सही राह: भाग 1- नीरज को अपनी भूल का एहसास क्यों हुआ

उस रविवार की सुबह चाय पीने के बाद नीरज आराम से अखबार पढ़ रहा था. तभी उस की सास मीनाजी ने अचानक उलाहना सा देते हुए कहा, ‘‘अब तुम मेरी बेटी को पहले जितना प्यार नहीं करते हो न दामादजी?’’

‘‘क्या बात करती हैं आप, सासूमां? अरे, मैं अब भी अपनी जान के लिए आसमान से चांदसितारे तोड़ कर ला सकता हूं,’’ अखबार पर से नजरें हटाए बिना ही नीरज ने कहा.

अपने 3 साल के बेटे राहुल को कपड़े पहना रही संगीता ने अपनी मां से उत्सुक लहजे में पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हैं आप?’’

मीनाजी ने गहरी सांस छोड़ने के बाद जवाब दिया, ‘‘बड़ी सीधी सी बात है, मेरी भोली गुडि़या. जब कोई पति दूसरी औरत से इश्क फरमाने लगे तो यह सम  झ लेना चाहिए कि अब वह अपनी पत्नी को पहले की तरह दिल की गहराइयों से नहीं चाहता है.’’

राहुल को कपड़े पहना चुकी संगीता परेशान सी अपनी मां की बगल में आ बैठी. नीरज ने भी गहरी सांस छोड़ कर अखबार एक तरफ सरका दिया. फिर चुपचाप मांबेटी दोनों को उत्सुक अंदाज में देखने लगा.

‘‘यों खामोश रहने से काम नहीं चलेगा, दामादजी. मैं ने तुम्हारे ऊपर आरोप लगाया है. अब तुम अपनी सफाई में कुछ तो कहो,’’ मीनाजी की आंखों में शरारत भरी नाराजगी नजर आ रही थी.

‘‘सासूमां, पतिपत्नी के बीच गलतफहमी पैदा करने वाला ऐसा मजाक करना सही नहीं है. मेरी जिंदगी में कोई दूसरी औरत है, यह सुन कर अगर आप की इस भोलीभाली बेटी का हार्टफेल हो गया तो हम बापबेटे का क्या होगा?’’ नीरज ने मुसकराते हुए शिकायत सी की.

‘‘आप मजाक छोडि़ए और मु  झे यह बताइए कि क्या आप सचमुच किसी दूसरी औरत से इश्क लड़ा रहे हो?’’ संगीता ने पति से तनाव भरे स्वर में पूछा.

‘‘बस, इतना ही भरोसा है तुम्हें मेरे प्यार पर?’’ नीरज फौरन यों दुखी दिखने लगा जैसे उस के दिल को गहरी ठेस लगी हो, ‘‘अपनी मम्मी के मजाकिया स्वभाव को तुम जानती नहीं हो क्या? अरे पगली, वे मजाक कर रही हैं.’’

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं कर रही हूं, दामादजी,’’ मीनाजी ने अपने मुंह से निकले हर शब्द पर पूरा जोर दिया.

‘‘सासूमां, अब यह मजाक खत्म कर दो वरना संगीता सवाल पूछपूछ कर मेरी जान ले लेगी,’’ नीरज ने हंसते हुए अपनी सास के सामने हाथ जोड़ दिए.

मीनाजी उठ कर इधरउधर घूमते हुए गंभीर लहजे में बोलीं,

‘‘मुझे यहां आए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में भी मैं ने तुम्हारे अंदर आए बदलाव को पकड़ लिया है, दामादजी. अब तुम्हारी आंखों में संगीता के प्रति चाहत के भाव नजर नहीं आते… बस काम की ही बातें करते हो तुम उस से… इसीलिए मैं मन ही मन यह सोचने पर मजबूर हो गई कि तुम दोनों के बीच पहले हमेशा नजर आने वाली रोमांटिक छेड़छाड़ कब, कहां और क्यों खो गई है?’’

नीरज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘सासूमां, हमारी शादी को 5 साल हो गए हैं. अब हमारे रोमांटिक छेड़छाड़ करने के दिन बीत चुके हैं.’’

‘‘क्या तुम रितु के साथ भी रोमांटिक छेड़छाड़ नहीं करते हो, दामादजी?’’

‘‘यह रितु कौन है?’’ संगीता और नीरज ने एकसाथ पूछा तो मीनाजी रहस्यमयी अंदाज में मुसकराते हुए नीरज के सामने आ खड़ी हुईं.

कुछ देर खामोश रह कर मीनाजी ने सस्पैंस और बढ़ा दिया. फिर कहानी सुनाने वाले अंदाज में बोलीं, ‘‘चूंकि मैं अपनी लाडली के विवाहित जीवन की खुशियों को ले कर चिंतित हो उठी थी, इसलिए मैं ने कुछ देर पहले तुम्हारे फोन में आए सारे मैसेज तब पढ़ डाले जब तुम बाथरूम में नहाने गए हुए थे.’’

‘‘यह तो बड़ा गलत काम किया है सासूमां, पर सब मैसेज पढ़ लेने के बाद जब कुछ हाथ नहीं लगा तो आप को मायूसी तो बहुत हुई होगी,’’ नीरज ने उन का मजाक उड़ाया.

‘‘मेरे हाथ कुछ लगता भी कैसे, दामादजी? रितु के सारे मैसेज तो वहां से तुम ने हटा रखे थे, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, मम्मी?’’ संगीता ने उंगलियां मरोड़ते हुए परेशान लहजे में पूछा.

‘‘लेकिन संयोग से उसी वक्त रितु का ताजा मैसेज आ गया. मैं ने उसे पढ़ा और सारा मामला मेरी सम  झ में आ गया. लो, तुम भी पढ़ो अपने पति परमेश्वर के फोन में आए उन की इस रितु डार्लिंग का मैसेज,’’ मीनाजी ने मेज पर रखा नीरज का फोन उठा मैसेज निकालने के बाद संगीता को पकड़ा दिया.

संगीता ने मैसेज ऊंची आवाज में पढ़ा, ‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है. मूवी के टिकट वापस कर दो… आई लव यू, रितु.’

मैसेज पढ़ने के बाद संगीता नीरज की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी. उस की शक्ल बता रही थी कि वह किसी भी क्षण नीरज के साथ   झगड़ा शुरू कर सकती है.

मीनाजी ने व्यंग्य भरे स्वर में नीरज से कहा, ‘‘दामादजी, अपनी चोरी पकड़ी जाने पर तुम्हें बहुत हैरान नजर आने का नाटक करते हुए ऊंची आवाज में कहना चाहिए कि संगीता, मैं किसी रितु को नहीं जानता हूं. यह मैसेज किसी और के लिए होगा… गलती से मेरे फोन में आ गया है.’’

‘‘सच भी यही है, संगीता. मैं किसी रितु को नहीं जानता हूं,’’ नीरज ने ऊंचे स्वर में खुद का निर्दोष साबित करने की कोशिश की.

‘‘अगर तुम उसे नहीं जानते हो तो तुम ने उस का फोन नंबर अपने फोन में क्यों सेव कर रखा है, दामादजी?’’ मीनाजी ने भौंहें चढ़ाते हुए पूछा.

उल  झन का शिकार बना नीरज जब जवाब में खामोश रहा तो मीनाजी ने उसे फिर छेड़ा, ‘‘अब ‘मु  झे नहीं पता कि यह नाम और नंबर

कैसे मेरे फोन में आया है’ यह डायलौग तो बोलो, दामादजी.’’

‘‘संगीता, सचमुच मु  झे नहीं मालूम…’’ नीरज सफाई देते हुए   झटके से रुका और फिर मीनाजी की तरफ घूम विनती कर उठा,

‘‘सासूमां, मु  झे यों फंसा कर आप को क्या मिल रहा है? अब संगीता को सच बता कर यह खेल खत्म करो…’’

पेड़: नीरेंद्र की मांग से कैसे खुल गई सब की असलियत

चीनू की नन्हीनन्ही हथेलियां दूर होती चली गईं और धीरेधीरे एकदम से ओझल हो गईं.

नीरेंद्र की आंखों में आंसू झिलमिला आए थे. आज उन के सूने घर में महीने भर से आई इस रौनक का अंतिम दिन था.

पूरे 30 दिन से उन का घर गुलजार था. बच्चों के होहल्ले से भरा था. साल भर में उन के घर में 2 ही तो खुशी के मौके आते थे. एक गरमी की लंबी छुट्टियों में और दूसरा, दशहरे की छुट्टियों के समय.

उन दिनों नीरेंद्र की उजाड़ जिंदगी में हुलस कर बहार आ जाती थी. उस का जी करता था कि इस आए वक्त को रोक कर अपने घर में कैद कर ले. खूब नाचेगाए और जश्न मनाए, पर ऐसा हो कहां सकता था.

छोटी बहन के साथ 2 बच्चे, छोटे भाई के 2 बच्चे और बड़ी दीदी के दोनों बच्चे, पूरे 6 नटखट ऊधमी सदस्यों के आने से ऐसा लगता जैसे घर छोटा पड़ गया हो. बच्चे उस कमरे से इस कमरे में और इस कमरे से उस कमरे में भागे फिरते, चिल्लाते और चीजें बिखेरते रहते.

बच्चों के मुंह से ‘चाचीजी’, ‘मामीजी’ सुनसुन कर वे अघाते न थे. दिनरात उन की फरमाइशें पूरी करने में लगे रहते. किसी को कंचा चाहिए तो किसी को गुल्लीडंडा. किसी को गुडि़या तो किसी को लट्टू.

4 माह में जितना पैसा वे बैंक से निकाल कर अपने ऊपर खर्च करते थे, उस से भी ज्यादा बच्चों की फरमाइशें पूरी करने में उन दिनों खर्च कर देते. फिर भी लगता कि कुछ खर्च ही नहीं किया है. वे तो नईनई चीजें खरीदने के लिए बच्चों को खुद ही उकसाते रहते.

कभीकभी भाईबहनों को गुस्सा आने लगता तो वे उन्हें झिड़कते, ‘‘क्या करते हो भैया. सुबह से इन मामूली चीजों के पीछे लगभग 100 रुपए फूंक चुके हो. बच्चों की मांग का भी कहीं अंत है?’’

नीरेंद्र हंस देते, ‘‘अरे, रहने दो, यह इन्हीं का तो हिस्सा है. बस, साल में 10 दिन ही तो इन के चाव के होते हैं. देता हूं तो बदले में इन से प्यार भी तो पाता हूं.’’

सिर्फ 30 दिन का ही तो यह मेला होता है. बाद में बच्चों की बातें, उन की गालियां याद आतीं. उन की छोड़ी हुई कुछ चीजें, कुछ खिलौने संभाल कर वे उन निर्जीव वस्तुओं से बातें करते रहते और मन को बहलाते. उन की एक बड़ी अलमारी तो बच्चों के खिलौनों से भरी पड़ी थी.

इस तरह नीरेंद्र अपने अकेलेपन को काटते. हर बार उन का जी करता कि बच्चों को रोक लें, पर रोक नहीं पाते. न बच्चे रुकना चाहते हैं न माताएं उन्हें यहां रहने देना पसंद करती हैं. पहले तो उन के छोटे होने का बहाना था. बड़े हुए तो छात्रावास में डाल दिए गए. इसी से नीरेंद्र उन्हीं बच्चों में से एक को गोद लेना चाहते थे. मगर हर घर में 2 बच्चे देख खुद ही तालू से जबान लग जाती थी.

किसीकिसी साल तो ऐसा भी होता है कि 30 दिनों में भी कटौती हो जाती. कभीकभी बच्चे यहां आने के बजाय कश्मीर, मसूरी घूमने की ठान लेते. फिर तो ऐसा लगने लगता जैसे जीने का बहाना ही खत्म हो जाएगा. पिछले साल यही तो हुआ था. बच्चे रानीखेत घूमने की जिद कर बैठे थे और यहां आना टल गया था. किसी तरह छुट्टियों के 7-8 दिन बचा कर वे यहां आए थे तो उन का मन रो कर रह गया था.

कभीकभी नीरेंद्र को अपनेआप पर ही कोफ्त होने लगती कि क्यों वे अकेले रह गए? आखिर क्या कारण था इस का? पिता की असमय मृत्यु ने उन के घर को अनाथ कर दिया था. घर में वे सब से बड़े थे, इसलिए जिम्मेदारी निभाना उन्हीं का कर्तव्य था. घर में सभी को पढ़ाया- लिखाया. पूरी तरह से हिम्मत बांध कर उन के शादीब्याह किए तब कहीं जा कर अपने लिए विचार किया था.

नीरेंद्र सीधीसादी लड़की चाहते थे. मां ने उन के लिए सुलभा को पसंद किया था. सुलभा में कोई दोष न था. नीरेंद्र खुश थे कि उम्र उन के विवाह में बाधक नहीं बनी. इस से पहले जब वे भाईबहनों का घर बसा रहे थे तब सदा उन्हें एक ही ताना मिला था, ‘‘क्यों नीरेंद्र, ब्याह करोगे भी या नहीं? बूढ़े हो जाओगे, तब कोई लड़की भी न देगा. बाल पक रहे हैं, आंखों पर चश्मा चढ़ गया है और क्या कसर बाकी है?’’

सुन कर नीरेंद्र हंस देते थे, ‘‘चश्मा और पके बाल तो परिपक्वता और बुद्धिमत्ता की निशानी हैं. मेरी जिम्मेदारी को जो लड़की समझेगी वही मेरी पत्नी बनेगी.’’

सुलभा उन्हें ऐसी ही लड़की लगी थी. सगाई के बाद तो वे दिनरात सुलभा के सपने भी देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगता जैसे सुलभा उन की जिंदगी में एक बहार बन कर आएगी.

विवाह की तिथि को अभी काफी दिन थे. एक दिन इसी बीच वे सुलभा के साथ रात को फिल्म देख कर लौट रहे थे. अचानक कुछ बदमाशों ने सुलभा के साथ छेड़छाड़ की थी. नीरेंद्र को बुढ़ऊ कह कर ताना मार दिया था.

सुन कर नीरेंद्र को सहन न हुआ था और वे बदमाशों से उलझ पड़े थे, पर उन से वे कितना निबट सकते थे. अपनेआप से वे पहली बार हारे थे. गुस्सा आया था उन्हें अपनी कमजोरी पर. वे स्वयं को अत्यंत अपमानित महसूस कर रहे थे. हतप्रभ रह गए थे अपने लिए बुढ़ऊ शब्द सुन कर. उस शाम किसी तरह वे और सुलभा बच कर लौट तो आए थे मगर सुलभा ने दूसरे ही दिन सगाई की अंगूठी वापस भेज दी थी. शायद उसे भी यकीन हो गया था कि वे बूढ़े हो गए हैं.

‘अच्छा ही किया सुलभा ने.’ एक बार नीरेंद्र ने सोचा था. परंतु मन में अपनी हीनता और कमजोरी का एक दाग सा रह गया. विवाह से मन उचट गया, कोई इस विषय पर बात चलाए भी तो उस से उलझ बैठते. मां जब तक रहीं नीरेंद्र को शादी के लिए मनाती रहीं, समझाती रहीं.

मां की मृत्यु के बाद वह जिद और मनुहार भी खत्म हो गई. कुछ यह भी जिद थी कि अब इसी तरह जीना है. पहले भाईबहनों पर भरोसा था, पर वे अपनी- अपनी जिंदगी में लग गए तो उन्होंने उन्हें छेड़ना भी उचित न समझा.

हां, भाईबहनों के बच्चों ने अवश्य ही नीरेंद्र के अंदर एक बार गृहस्थी का लालच जगा दिया था. अंदर ही अंदर वे आकांक्षा से भर उठे कि उन्हें भी कोई पिता कहता. वे भी किसी के भविष्य को ले कर चिंता करते. वे भी कोई सपना पालते कि उन का बेटा बड़ा हो कर डाक्टर बनेगा या कोई उन का भी दुखसुख सुनता. सोतेजागते वे यही सोचा करते.

तब कभीकभी मन में मनाते कि कोई उन्हें क्यों नहीं कहता कि ब्याह कर लो. अकेले ही वे रसोईचूल्हे से उलझे हुए हैं कोई पसीजता क्यों नहीं, कोई अजूबा तो नहीं इस उम्र में ब्याह करना. बहुत से लोग कर रहे हैं.

नीरेंद्र अपनी जिंदगी की तुलना भाई की जिंदगी से करते. सोचते कि उन की और धीरेंद्र की सुबह में कितना अंतर है. वे 4 बजे का अलार्म लगा कर सोते. सोचते हुए देर रात गए उन्हें नींद आती. परंतु सुबह तड़के घड़ी की तेज घनघनाहट के साथ ही उन की नींद टूट जाती जबकि वे जागना नहीं चाहते. लेकिन जानते हैं कि सुबह के नाश्ते की तैयारी, कमरों की सफाई, कपड़ों की धुलाई आदि सब उन्हीं को ही करनी है.

मगर धीरेंद्र की सुबह भले ही झल्लाहट से शुरू हो लेकिन उत्सुकता से भरी जरूर होती है. 4 बजे का अलार्म बज जाए तो भी उसे कोई परवाह नहीं. नींद ही नहीं टूटती है. न जाने उसे कैसी गहरी नींद आती है.

घड़ी का कांटा जब 4 से 5 तक पहुंचता है तब उस की पत्नी चिल्लाती है, ‘‘उठो, दफ्तर जाने में देर हो जाएगी.’’

‘‘हूं,’’ धीरेंद्र उसी खर्राटे के साथ कहेगा, ‘‘क्या 5 बज गए?’’

‘‘तैयार होतेहोते 10 बज जाएंगे. फिर मुझे न कहना कि देर हो गई.’’

शायद फिर बच्चों को इशारा किया जाता होगा. पप्पू धीरेंद्र के बिछौने पर टूट पड़ता, ‘‘उठिए पिताजी, वरना पानी डाल दूंगा.’’

फिर वह बच्चों के अगलबगल बैठ कर कहता, ‘‘अरे, नहीं बाबा, मां से कहो कि चाय ले आए.’’

स्नानघर में जा कर भी धीरेंद्र बीवी से उलझता रहता, ‘‘मेरे कुरते में 2 बटन नहीं हैं और जूते के फीते बदले या नहीं? जाने मोजों की धुलाई हुई है या नहीं?’’

पत्नी तमक कर कहती, ‘‘केवल तुम्हें ही तो नौकरी पर नहीं जाना है, मुझे भी दफ्तर के लिए निकलना है.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम्हारे ब्लाउज के बटन मुझे टांकने होंगे,’’ धीरेंद्र चुहल करता तो पत्नी उसे धप से उलटा हाथ लगाती.

इसे कोई कुछ भी कहे, पर नीरेंद्र का लोभी मन गृहस्थी के ऐसे छोटेमोटे सुखों की कान लगा कर आहट लेता रहता.

नीरेंद्र बेसन के खुशबूदार हलवे के बहुत शौकीन हैं. जी करता है नाश्ते में कोई सुबहसुबह हलवा परोस दे और वे जी भर कर खाएं. अम्मां थीं तो उन का यह पसंदीदा व्यंजन हफ्ते में 3-4 बार अवश्य मिला करता था. पर उन की मृत्यु के बाद सारे स्वाद समाप्त हो गए.

धीरेंद्र की पत्नी बेसन का हलवा देखते ही मुंह बनाती थी. खुद नीरेंद्र अम्मां की भांति कभी हलवा बना नहीं सके. अब तो बस हलवे की खुशबू मन में ही दबी रहती है.

धीरेंद्र को बेसन के पकौड़ों के एवज में कई बार बीवी के हाथ बिक जाना पड़ता है. बीवी का मन न हो तो कोई न कोई बात पक्की करवा कर ही वह पकौड़े बनाती है. नीरेंद्र भी अपने पसंद के हलवे पर नीलाम हो जाना चाहते हैं, पर वह नीलामी का चाव मन में ही दबा रह गया. अब तो रोज सुबह थोड़ा सा चिवड़ा फांक कर दफ्तर की ओर चल देते हैं.

दफ्तर में नए और पुराने सहयोगियों का रेला नीरेंद्र को देखदेख कर दबी मुसकराहट से अभिवादन करता. कम से कम इतनी तसल्ली तो जरूर रहती कि हर कोई उन से काम निकलवाने के कारण मीठीमीठी बातें तो जरूर करता है. उस के साहब, अपनीअपनी फाइल तैयार करवाने के चक्कर में उसे मसका लगाते रहते. किसी को पार्टी में जाना हो, पत्नी को ले कर बाजार जाना हो, बच्चे को अस्पताल पहुंचाना हो, तुरंत उन्हें पकड़ते. ‘‘नीरेंद्र, थोड़ा सा यह काम कर दो.’’

इतना ही नहीं दफ्तर के क्लर्क, चपरासी, माली, जमादार आदि अपने तरीके से इस अकेले व्यक्ति से नजराना वसूलते रहते. अगर देने में थोड़ी सी आनाकानी की तो वे लोग कह देते, ‘‘किस के लिए बचा रहे हो, बाबू साहब. आप की बीवी होती तो कहते, साड़ी की फरमाइश पूरी करनी है. बेटा होता तो कहते कि उस की पढ़ाई का खर्च है. अगर बेटी होती तो हम कभी धेला भी न मांगते…मगर कुंआरे व्यक्ति को भला कैसी चिंता?’’

पर धीरेंद्र को न तो दफ्तर में रुकने की जरूरत पड़ती और न ही अपने मातहतों के हाथ में चार पैसे धरने की नौबत आती. घर जल्दी लौटने के बहाने भी उसे नहीं बनाने पड़ते. खुद ही लोग समझ जाते हैं कि घर में देरी की तो जनाब की खैर नहीं.

पर नीरेंद्र किस के लिए जल्दी घर लौटें. बालकनी में टहलते ठीक नहीं लगता. अपनीअपनी छतों पर टहलते जोड़ों का आपस में हंसीमजाक सुनना अब उन से सहन नहीं होता. बारबार  लगता है जैसे हर बात उन्हें ही सुनाई जा रही है. खनकती, ठुनकती हंसी वे पचा नहीं पाते. घर के अंदर भाग कर आएं तो मच्छरों की भूखी फौज उन की दुबली देह पर टूट पड़ती है. तब एक ही उपाय नजर आता है कि मच्छरदानी गिरा कर अंदर घुस जाएं और घड़ी के भागते कांटों को देखते हुए समय निकालते रहें.

इसीलिए नीरेंद्र कभीकभी वैवाहिक विज्ञापनों में स्वयं ही अपने लिए उपयुक्त पात्र तलाशने लगते हैं. पर ऐसा कभी न हो सका. कई बार समझौतों के सहारे लगा कि बात बनेगी परंतु विवाह के लिए समझौता करना उन्हें उचित नहीं लगा. अकेलेपन के कारण झिझकते हुए उन्होंने छोटे भाई की लड़की नीलू को अपने पास रख लेने का प्रस्ताव किया तो वह बचने लगा था, ‘‘पता नहीं, बच्ची की मां राजी होगी या नहीं?’’

पर नीरेंद्र बजाय बच्ची की मां से पूछने के छोटी बहन के सामने ही गिड़गिड़ा उठे थे, ‘‘कामिनी, मैं चाहता हूं, क्यों न आशू यहीं मेरे साथ रहे. उस का जिम्मा मैं उठाऊंगा.’’

‘‘आशू?’’ बहन की आंखें झुक गईं, ‘‘बाप रे, इस की दादी तो मुझे काट कर रख देंगी.’’

जवाब सुन कर नीरेंद्र चकित रह गए थे, ‘अरे यह क्या? अपनी लगभग सारी कमाई इन के बच्चों पर उड़ाता हूं. कितने दुलार से यहां उन्हें रखता हूं. हर वर्ष राखी पर मुंहमांगी चीज बहन के हाथ में रखता हूं. इतना ही नहीं, किसी भी बच्चे को कुछ भी चाहिए तो साधिकार माएं चालाकी से उन की फरमाइश लिख भेजती हैं, लेकिन क्या कोई भी अपने एक बच्चे को मेरे पास नहीं छोड़ सकती. कल को वह बच्चा मेरी पूरी संपत्ति का वारिस होगा, लेकिन सब ने मेरी मांग ठुकरा दी.’

‘‘अच्छा, आशू से ही पूछती हूं,’’ बहन ने आशू को आवाज दी थी.

नीरेंद्र उस की बातों से बेजार छत ताकने लगे थे, लेकिन आशू को सिर्फ उन की चीजें ही अच्छी लगती थीं.

कुंआरे रह कर नीरेंद्र लोगों के लिए सिर्फ एक पेड़ बन कर रह गए थे, जिसे जिस का जी चाहे, नोचे, फलफूल, लकड़ी आदि प्रत्येक रूप में उस का उपयोग करे. अपने लिए भी वे एक पेड़ की भांति थे. जैसे बसंत के मौसम में पेड़ों के नए फूलपत्ते आते हैं उसी प्रकार वे भी किसी पेड़ की तरह हरेभरे हो जाते. क्या उन्हें वर्ष भर मुसकराने का हक नहीं है? स्वयं के नोचे जाने के विरोध का भी कोई अधिकार नहीं है?

तलाक के बाद ट्रोलिंग की शिकार हुई ये एक्ट्रेस, बोलींं- मुझे खूब बुली किया गया

बॉलीवुड एक्ट्रेस और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कुशा कपिला काफी सुर्खियों में हैं. कुशा की फिल्म थैंक यू फॉर कमिंग सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. इसी फिल्म के प्रामोशन के चलते कुशा ने कई इंटरव्यू दे रही है. अभी हाल ही में एक्ट्रेस ने अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर खुलकर बात कहीं है.

जी हां, इसी साल जून में कुशा कपिला ने पति जोरावर अहलूवालिया से तलाक हुआ है. इसकी घोषणा कुशा ने सोशल मीडिया पर की थी जिसके बाद उन्हें काफी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था.

रोने में दिन बीत जाता है- कुशा

मीडिया इंटरव्यू में कुशा कपिला ने अपनी पर्सनल लाइफ लेकर खुलकर बात की और फिर इसके बाद उनका ज्यादातर समय रोने में बीत जाता और उन्हें बेहद बुरा फील होता था.

 

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मुझे खूब ट्रोल किया गया है

कुशा ने आगे बताया कि मुझे अपनी पर्सनल लाइफ को शेयर करने के चलते बुली किया गया है. ये पहला मौका था जब मैं ऐसा कुछ शेयर कर रही थी और उसमें मुझे 100% बुली किया गया लेकिन मैं खुश हूं कि मैंने अपनी शर्तों पर ये शेयर किया. मैं नहीं चाहती थी कि कोई और ये जानकारी दुनिया को दे वो भी मुझे बिना बताए. आपको बस अपनी आंखों पर पट्टी बांधनी पड़ती है. जिंदगी में करने के लिए बहुत कुछ है.

6 साल तक चली शादी

आपको बता दें कि कुशा की जोरावर से साल 2017 में शादी हुई थी. दोनों इससे पहले एक-दूसरे को डेट किया था. कुशा ने अपनी लव स्टोरी का खुलासा किया कि वह पहली बार जोरावर से अपने दोस्त की शादी में मिली थी. कुशा ने सोशल मीडिया पर अपनी शादी टूटने की घोषणा करते हुए कहा था, मैंने और जोरावर ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला किया है. ये बिलकुल भी आसान फैसला नहीं था लेकिन हमें लगता है कि जिंदगी के इस पड़ाव पर यही फैसला सही है.

दरअसल, तलाक के बाद कुशा का नाम अर्जुन कपूर से भी जुड़ा था जिसे उन्होंने नकार दिया था.

YRKKH: हर्षद चोपड़ा-प्रणाली राठौड़ का कटेगा पत्ता, ये होंगे नए लीड

प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों अक्षरा और अभिमन्यु की शादी का ट्रैक चल रहा है. सीरियल मे ये दोनों अलग कर दिए जाएंगे. लेकिन इसमें भी ढेर सारे ट्विस्ट आने वाले है. दावा किया जा रहा है कि अक्षरा और अभिमन्यु की शादी के बाद दोनों का चैप्टर खत्म हो जाएगा. इसके बाद ये रिश्ता क्या कहलाता है में नई कहानी शुरू होगी.

दरअसल, सीरियल में कम से कम 15 से 20 साल का जनरेशन लीप आने वाला है, जिससे सीरियल की कहानी के साथ-साथ कलाकार भी  बदल जाएंगे अब तक कई एक्टर्स का नाम सामने आ चुके हैं, जिन्हें मेकर्स अप्रोच कर रहे हैं. वहीं, अब दो लीड एक्टर्स के नाम भी सामने आ गए हैं.

ये होंगे सीरियल के नए लीड

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अभी तक दर्शकों को प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा नजर आ रहे थे. वहीं अब ये दावा किया जा रहा है कि शो के मेकर्स रणदीप राय के नाम पर विचार कर रहे हैं. लेकिन, अभी तक रणदीप राय का ऑडिशन और मॉक शूट नहीं हुआ है.  वहीं शो के मेकर्स इन दिनों ऑडिशन में ही बिजी है और जल्द ही रणदीप राय का ऑडिशन हो सकता है. रणदीप राय के अलावा, मेकर्स निहारिका चौकसे के नाम पर विचार कर रहे हैं. बता दें कि निहारिका आखिरी बार सीरियल फालतू में दिखी थीं. इस शो में उन्हें काफी पसंद किया गया था.

 

लीप से पहले सीरियल में आएगा ये ट्विस्ट

सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में जल्द ही आएंगे कई सारे ट्विस्ट. शो में सबसे पहले अभिमन्यू को पता चलेगा कि अक्षरा अभिनव के बच्चे की मां बनने वाली है. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के नए प्रोमो में दिखाया जाता है कि अभिमन्यु इस शादी से पीछे हट जाएगा. वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा कि अक्षरा अभिनव के बच्चे को जन्म देगी. वहीं दूसरी ओर अक्षरा भी अभिमन्यू और बच्चे में से बच्चे को चुनेगी. वहीं कई मीडिया रिपोर्ट में ये दावा किया जा रहा है कि लीप से पहले अभिमन्यु और अबीर का खतरनाक एक्सीडेंट होगा है. जिसमें अभिमन्यु की मौत हो जाएगी.

बालकनी को बनाएं फूलों का बगीचा

सभी की चाहत रहती है जीवन में कभी इक बंगला बने न्यारा उस बंगले के बाहर लंबेलंबे बोटलपाम के पेड़ हों, उन के पत्तों से छनती धूप, द्वार के एक ओर गुलमोहर के लाल फूलों से लदा पेड़ हो, टूजी और चांदनी के फूलों से ठंडक बिखेरती मनमोहक छटा. घर तक आती सड़क के किनारे गुलाबी रंगों वाले बोगनवेलिया की बाड़. बंगले की चारदीवारी पर रखे गमलों में ऐस्पेरेगस, चाईना ग्रास, अंब्रेला पाम, फिंगर पाम, चाइना पाम, पत्थरचट्टा (ब्रायोफाइलम सिंगोनियम), सदाबहार, आईवी, शोभाकारी डेफनबेचिया, कैलेडियम, पेपरोमिया के पौधे लगे हों.

क्या हरियाली है, सोचसोच कर ही रोमांच हो रहा है कि इतने सजावटी पौधों से हरीभरी होगी चारदीवारी. भीतर से आती भीनीभीनी रजनीगंधा की खुशबू मानो गेट खोल कर भीतर आने का मूक निमंत्रण दे रही हो.

यह क्या यहां तो सुगंध बिखेरते गुलाब, पीले गैंदे के फूलों की महक मदहोश कर रही है. यकीन मानिए जब पैर इस नर्म दूब वाले लौन में रखेंगे तो बेसाख्ता कह उठेंगे कि मजा आ गया. उद्यान हो तो ऐसा.

अब हर किसी को बंगला तो मिलना संभव नहीं होता है क्योंकि शहरों में जमीन की कमी की वजह से घर में बाग संभव नहीं है पर अगर फ्लैट में रह रहे हैं तो अपनी बालकनी, घर के अंदर या सोसायटी के साथ काम कर के बंगले जैसा खुशनुमा माहौल बनाया जा सकता है. जिन के पास जगह है, छोटाबड़ा प्लाट है तो वे इन सब पेड़पौधों का आनंद ले सकते हैं.

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कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए ढेर सारी जानकारी इकट्ठा करें. यह जानकारी कृषि अनुसंधान व बागबानी संबंधित टीवी शोज, यूट्यूब, इंटरनैट या फिर दोस्तोंमित्रों से भी प्राप्त कर सकते हैं.

फूलदार पौधों का चयन

थोड़ी सी कल्पनाशीलता, समझ, अनुभवी माली और आप की ग्रीन फिंगर्स की जरूरत है. आप को बताते हैं कि रंगबिरंगा माहौल लेने के लिए पौधों का चयन इस प्रकार करें कि पूरा साल घर में या आसपास खिलते रहें. देखभाल भी ज्यादा न करनी पड़े और हरियाली व रंगत भी बनी रहे.

गरमी और बरसात के पौधे: ये पौधे रंगबिरंगे फूल देंगे.

  •  पोटुलाका: लाल, पीले, सफेद, गुलाबी, केसरी, जामुनी.
  • जीनिया: विविध रंग.
  • गैंदा: विविध रंग.
  • बालसम: सफेद, गुलाबी, वैरिगेटेड. ये सब बालकनी या टैरेस गार्डन में लगाए जा सकते हैं.
  • वार्षिक पौधे: इन पौधों की ऊंचाई मध्यम आकार लिए है कौर्नफ्लावर, साल्विया (छाया में लगने वाला), डायनथस, ल्यूपिन, लार्कस्पुर, फ्लौक्स, ऐंटारहिनम, गैंदा, जाफरी को भी गमलों में लगा सकते हैं.
  • लघु ऊंचाई वाले: कैंडीटफ्ट, सिनानेरिया, ऐग्रेटम, बेसकम, गजानिया, नास्टर्टियम, स्वीट इलाइसम. इन के लिए थोड़े बड़े पौट्स की जरूरत होती है.
  • कंदीय: लिली, फुटबौल लिली, आइरस, रजनीगंधा, ग्लैडियोलस ये जमीन में ज्यादा फलते हैं.
  • सुगंधित पौधे: रंजनीगंधा, स्वीट पी, कार्नेशन, प्रेयसी गुलाब, जंगली गुलाब, बेला, जैस्मिन, मोतिया, मोगरा, चंपा, जूही, चमेली, रात की रानी, कामिनी, पिंकस डायनथस-1, गैंदा जैसे जाफरी, हजारी गैंदा, सुरमई, मखमली गैंदा तथा लैंवेडर का पौधा.
  • सुगंध बिखेरते: हरी चाय (सिंबोपोगान शूनेथेस).

लैमन ग्रास के नाम से मशहूर यह घास गमलों में लगाएं. यह अनूठी सुगंध के लिए कुछ थाई डिसेज व चाय में इस्तेमाल होती है. इस घास में फूल वर्षा ऋतु में आते हैं. चाहें तो जमीन में भी लगा सकते हैं. खुशबू बनी रहेगी.

  • गुलदाऊदी: इसी प्रकार वाटिका की खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए सर्द ऋतु में सब से पहले निकलने वाला फूल गुलदाऊदी का जिक्र बागबानी के शौकीनों के लिए बहुत आवश्यक है. इसे क्राइसैंथीमम मोरीफोलियम भी कहते हैं. यदि पुष्प प्रतियोगिता में जा रहे हैं तो इस में उपलब्ध बटन गुलदाऊदी जैसी किस्मों से ले कर ग्राफ्टिंग तकनीक के जरीए इनकार्विंग, कोरियन पोर्न रिफलैक्सर, सपून और सेमी किलर कितनी ही किस्मों का लाभ उठा कर अपने उद्यान के गमलों, जमीन की शोभा बढ़ाने के साथसाथ पुष्प प्रतियोगिता भी जीत सकते हैं.
  • डहलिया: ऐसा ही कंपोजिट परिवार का सदस्य डहलिया मैक्सिको मूल का माना गया है. वहां यह जंगली पौधे के रूप में पैदा होता था. यह अपनेआप में अनोखा खूबसूरत पुष्प है. इस के फूलों का आकार छोटे बादाम से ले कर खाने की बड़ी प्लेट तक मिलता है. इस में रंगों की विविधता पाई जाती है. अब तो इस की 20 हजार तक किस्मों का उल्लेख मिलता है. ऐसा वनस्पति शास्त्र के वैज्ञानिकों का विचार है.

आप चाहें तो बालकनी, क्यारी बना कर इसे गमलों में कंद, बीज या समूल कलमों द्वारा लगा सकते हैं. डहलिया का अच्छा पुष्प लेने के लिए इस के मिश्रण की तैयारी कर ली जाती है और इसे गमलों में भर कर रख दिया जाता है.

खाद मिश्रण

भुरभुरी मिट्टी 3 भाग, गोबर अथवा घोड़े की लीद वाली सड़ी खाद 3 भाग, पत्ती की खाद 2 भाग. आप इस मिश्रण में इन निम्नलिखित चीजों को एक गमले के लिए इस अनुपात में मिलाएं:

नदी की मोटी रेत या बदरपुर 2 मुट्ठी, लकड़ी के कोयले का चूरा 2 मुट्ठी, हड्डियों का चूरा 1/2 मुट्ठी, नीम की खली 1/2 मुट्ठी, बीएचसी 10%, चाय का 1 चम्मच, डायमोनियम फास्फेट 1 मुट्ठी, पौटाशियम नाइट्रेट 1 मुट्ठी, पौटाशियम सल्फेट 1 मुट्ठी.

इन सब चीजों को मिट्टी मिले खाद मिश्रण में अच्छी तरह मिला लें. गमलों में भर कर रखें.

डहलिया की कलम को गमलों में अच्छे से दाब दें. रोज पानी दें. जब सर्दी अधिक हो तो एक दिन छोड़ कर दें. जल्द ही पौधा बढ़ने लगेगा. तने मोटे होने लगें तो तरल खाद दें. महीने में 2 बार तरल खाद की प्रक्रिया काफी है. एक ही पुष्प देता हो तो बाकी की कलियां नोच डालें. फूल के लिए खपच्ची का सहारा बहुत जरूरी है.

फूलों से आती गंध का महत्त्व: रंगबिरंगे फूलों वाली बगिया में महक, खुशबू की कामना रखना साधारण सी बात है. आजकल सिंथैटिक गुलाब उपलब्ध हैं. रंग सभी लेकिन खुशबू बिलकुल नहीं. यह जरूरी नहीं हर फूल की खुशबू हो, खुशबू न भी हो, एक अजीब गंध हो तो उस का भी अपना महत्त्व होता है. यह गंध या महक कीटपत्तंगों को पत्तियों से दूर रखने में सहायक होती है. प्लांट हैल्दी रहते हैं.

फूलों के साथसाथ चारदीवारी पर रखने वाले गमलों में, बगिया में, घर के आंगन में कुछ हरे पत्तेदार पौधे भी लगा दिए जाएं तो टैरेस या बालकनी गार्डन खिल उठेगा जैसे एरोकेरिया, ड्रैसिना, मरांटा, ऐग्लोनिया, कैलेडियम, बिग्नोनिया, पिलो डैंड्रोन, कोलियस, सरसों, पनसरिया, क्रोटन, फर्न यानी ऐस्पेरेगस, रबर प्लांट, मनी प्लांट आदि.

ताकि औरत गुलाम रहे

मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपाती रहती है कि उस ने मुसलिम औरतों को 3 तलाक की क्रूरता से बचाया पर वह यह नहीं बता सकती कि जिन मुसलिम मर्दों ने 3 तलाक नहीं दिया क्या उन की शादियां बच गईं और मियांबीवी राजीखुशी रहने लगे? अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की जो आदत हिंदू कट्टरवादियों में है वह धर्म से परे नहीं देखती कि जब पतिपत्नी की न बने तो कोई काजी, पंडा, जज, कानून कुछ नहीं कर सकता.

17 या 18 सितंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जोड़े को तलाक दिलवाया जिस में पत्नी पति के घर सिर्फ 35 दिन रही और फिर मायके या अपने खुद के घर जा बैठी पर पति को तलाक देने को तैयार नहीं हुई. हिंदू पति के पास मुसलिम मर्द की तरह 3 तलाक ए हसन का हक होता तो वह अदालतों की कुरसियां 18 साल तक न तोड़ता रहता. उच्च न्यायालय ने उसे पत्नी की क्रूएलिटी की वजह से तलाक दिलवा दिया क्योंकि हिंदू मैरिज ऐक्ट में ब्रेकडाउन औफ मैरिज की बात कह कर तलाक लेने का हक दोनों को मिल कर या अकेले, दूसरे के मना करने के बावजूद नहीं है.

यह हिंदू औरत और हिंदू पुरुष दोनों के प्रति सनातनी सोच की वजह से सामाजिक अत्याचार है, जो मुसलिम कानून के 3 तलाक यानी तलाक ए इद्दत से ज्यादा खतरनाक और बेहूदा है. जब मियांबीवी की न बने तो वे अपनेअपने रास्ते पकड़ें यही सही है.

2004 में हुई शादी पर 35 दिन बाद ही घर छोड़ कर चले जाना पर तलाक न देना औरत को सनातन धर्म की वजह से करना पड़ता है. वह पत्नी जानती है कि पति का घर छोड़ कर आने के बाद यदि उसे तलाक मिल गया तो उस की हालत विधवा जैसी पापिन की हो जाएगी. वह न शृंगार कर पाएगी, न सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले पाएगी. हिंदू औरतों को तलाक के बाद पति नहीं मिलते क्योंकि लड़के तलाकशुदा औरत से शादी करने से डरते हैं. धर्म भी कहता है कि उन्हें अक्षत योनि वाली स्त्री से ही शादी करनी चाहिए.

इस मामले में अदालतों ने 10 साल लगाए. यह समाज की क्रूरता और धर्म के घरघर में घुसने की वजह से है. कानून अभी भी हिंदू शादी को संस्कार मानता है और 1956 के कानून के बावजूद जज तलाक देने में हिचकिचाता है. खासतौर पर जब तलाक मांगने पति आए.

हालांकि हिंदू सनातन धर्म औरतों को तुच्छ सम   झता है. आपस्तंब धर्मसूत्र स्पष्ट कहता है कि पत्नी पुत्र पैदा करने में सक्षम हो तो पुरुष पुनर्विवाह न करे पर यदि वह धार्मिक न हो, पुत्र (संतान ही नहीं) पैदा करने में सक्षम न हो तो अग्निहोत्र की अग्नि जलाने के पूर्व दूसरा विवाह कर लेना चाहिए. धर्मसूत्र की कंडिका 9 के सूत्र 13 में यह बात दोहराई गई है जो लगभग हर हिंदूग्रंथ में घुमाफिरा कर कही जाती रही है.

हिंदू औरत तलाक लेने में या देने में हिचकिचाती है क्योंकि उस का दूसरा विवाह नहीं होता, जबकि मुसलिम तलाकशुदा औरत की शादी जल्दी हो जाती है जैसे अमिताभ बच्चन, नूतन और पद्मा खन्ना को अरसे पहले भी फिल्म ‘सौदागर’ में दिखाया गया था.

अगर इस मामले में पत्नी

10 साल पति से अलग रह कर भी तलाक नहीं दे रही थी तो इसलिए कि वह तलाकशुदा नहीं कहलवाना चाहती थी. अभी भी मामला खत्म हुआ, यह पक्का नहीं. तलाकशुदा पत्नी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है और अगर मामला विचारार्थ ले लिया गया तो 5-7 साल फिर लग जाएंगे.

इसी सनातन धर्म का गुण गाया जाता है जो पतिपत्नी के बिस्तर तक घुसा हुआ है और उन्हें यह तक बताता है कि कब किस से कैसे विवाह करे या यौन संबंध बनाए. यह नियम धर्म या समाज की रक्षा के लिए नहीं, औरतों को गुलाम बनाए रखने के लिए है.

  संविधान बड़ा या धर्म

सनातन धर्म का नाम ले कर भाजपा के कट्टरपंथी और उन के अंधभक्त एक बार फिर वही पौराणिक युग लाना चाहते हैं जिस में औरतों को केवल दासी के समान, पति की सेवा, पिता-पति-पुत्र की आज्ञाकारिणी और बच्चे पैदा करने की मशीन सम   झा जाता था. हमारे अधिकांश देवता यही सिद्ध करने में लगे रहे कि औरतों का अपना कोई वजूद नहीं है जबकि समाज का एक वर्ग, एक बड़ा वर्ग, इन्हीं औरतों की देवी के रूप में पूजा करता रहा.

आजकल इस अलिखित पौराणिक कानून को संविधान के बराबर सिद्ध करने की कोशिश करी जा रही है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र उदयनिधि के सनातन धर्म के भेदभाव वाले बयान के कारण सनातन धर्म के दुकानदार तिलमिलाए हुए हैं क्योंकि उन्हें आधी आबादी केवल सेवा करने के लिए सदियों से मिलती रही है.

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि सनातन धर्म का अपमान करना संविधान का अपमान करना है. यह कैसे तर्क पर ठीक ठहरेगा? सनातन धर्म तो न लिखा गया है, न उस की अदालतें हैं और न ही उस में कोई बराबरी या न्याय का स्थान है जबकि संविधान लिखित है, अदालतों में उस की व्याख्या होती है. उस के दुकानदार नहीं हैं. इस का लाभ हर नागरिक और भारत निवासी को मिलता है.

सनातन धर्म का एक गुण भी भाजपाई नहीं बता सकते जबकि संविधान की हर धारा, हर पंक्ति नागरिक को सरकार के विरुद्ध कुछ अधिकार देती है. संविधान की ढाल में पैसा नहीं कमाया जा सकता जबकि सनातन धर्म का मुख्य ध्येय तो दानदक्षिणा है. पूजापाठ, देवीदेवता, रीतिरिवाज सभी सनातन के दुकानदारों को हलवापूरी का इंतजाम करते रहे हैं. हर मंदिर पैसे से लबालब भरा है और हर मंदिर में मौजूद हर जना इस पैसे का अघोषित मालिक है.

सनातन धर्म के केंद्र मंदिरों में देवदासियों का बोलबाला था, वहां नाचगाना होता था. वहां देश की 80% जनता को घुसने तक की इजाजत नहीं थी जबकि संविधान हर नागरिक को बराबर का हक देता है और औरतों को पुरुषों के बराबर खड़ा करता है.

अर्जुन राम मेघवाल ने धर्म की भगवा पट्टी आंखों पर बांध रखी हो तो कोई कुछ नहीं कर सकता पर सच फिर भी छिपाया नहीं जा सकता कि सनातन धर्म की देन संविधान की देन के सामने तुच्छ, रेत के कण के बराबर है जबकि संविधान को तो अभी 75 वर्ष भी नहीं हुए.

इस त्योहार घर पर बनाएं स्टफ्ड मावा लड्डू और गुड़खोपरा पाक

फेस्टिवल सीजन आने वाला है ऐसे में घर पर मिठाई में क्या बनाएं. इसके लिए परेशान बिलकुल नहीं होना. घर पर बस ये मिठाई आसानी से बनाएं. जो बहुत ही टेस्टी है. आइए आपको रेसिपी बताते है.

  1. गुड़खोपरा पाक

सामग्री

 1.  थोड़ा सा नारियल कद्दूकस किया

  2. 3/4 कप गुड़ या चीनी

  3.  3/4 कप दूध

  4. 1/2 कप मावा

  5. थोड़े से केसर के धागे

  6. थोड़ा सा इलायची पाउडर

  7. थोड़े से बादाम कटे हुए

विधि

नारियल को सुनहरा होने तक भून कर उसे बाउल में निकाल कर अलग रख दें. अब एक पैन में थोड़ा सा पानी गरम कर गुड़ को पिघलने तक चलाएं. जब गुड़ पिघल जाए तो उस में भुना नारियल डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस में दूध डाल कर पकाएं. साथ ही मावा, इलायची व केसर के धागे भी डालें. अब आंच बंद कर ऊपर से बादाम डालें. फिर मोल्ड में घी लगा कर पाक भरें और उसे करीब 1 घंटे के लिए फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें. ठंडा होने पर मोल्ड्स से निकाल कर मनचाहा आकार दें और बादाम के टुकड़ों से गार्निश कर सर्व करें.

2. मोदक

 सामग्री भरावन की

1. थोड़ा सा पानी

  2. 1 कप गुड़ कद्दूकस किया

  3. 2 कप नारियल कद्दूकस किया

  4. थोड़ा सा इलायची पाउडर

  5. 2 बड़े चम्मच घी

 6. थोड़े से काजू बारीक कटे.

सामग्री डो की

1. 1 कप पानी 

 2. 1 छोटा चम्मच घी

 3. 1 कप चावल का आटा 

 4. नमक स्वादानुसार.

विधि

एक पैन में पानी और गुड़ डाल कर मीडियम आंच पर पकाएं. फिर इस में नारियल डाल कर 10 मिनट तक अच्छी तरह चलाएं. जब मिक्स्चर अच्छी तरह मिक्स हो जाए तब उस में घी, इलायची पाउडर और काजू डाल कर अच्छी तरह चलाएं और फिर आंच से उतार कर एक तरफ रख दें. डो तैयार करने के लिए 1 कप पानी गरम कर उस में नमक और घी डालें. जब पानी अच्छी तरह उबलने लगे तब उस में चावल का आटा डाल कर अच्छी तरह से चलाएं ताकि गांठें न बनें. फिर इसे ढक कर 1 मिनट तक पकाएं और आंच बंद कर दें. अब इस मिक्स्चर को गरमगरम ही अच्छी तरह मिक्स करते हुए 10 बराबर भागों में बांट कर स्मूद बौल्स बना पूरी के आकार का बेलें. बेलने के बाद कोकोनट फिलिंग भर सील कर स्टीमर प्लेट पर केले के पत्तों पर रख कर 10-15 मिनट तक पका कर गरमगरम सर्व करें.

  3. स्टफ्ड मावा लड्डू

सामग्री

1. 1 कप खोया या मावा

2. 1/2 कप पाउडर शुगर

3. 1/2 बड़ा चम्मच घी

4. 1/4 कप मिक्स्ड ड्राईफूट्स

5. 4 बड़े चम्मच नारियल कद्दूकस किया

6. थोड़ा सा पिस्ता.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में घी गरम कर मावा डाल कर 2 मिनट चलाएं. फिर उस में चीनी डाल कर मिलाते हुए आंच से हटा कर ठंडा होने के लिए रख दें. इस के बाद हाथ में घी लगा कर इस मिक्स्चर से स्मूद बौल्स बनाएं. उन्हें हलका सपाट कर के बीच में गहरा कर ड्राइफूट्स भर कर इन के किनारों को बंद कर पुन: स्मूद बौल्स बनाएं. फिर पिस्ते व नारियल में लपेट कर थोड़ी देर सैट होने के लिए रखें और फिर सर्व करें.

न खोलें शिकायतों का पिटारा

शिकायत करना मानव स्वभाव का एक स्वाभाविक हिस्सा है और यह एक बहुत ही नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है इसलिए यदि कोई समस्या है तो उस की दोस्तों एवं अपने परिवार वालों से शिकायत करना स्वाभाविक है, लेकिन इसे मौडरेशन में या एक लिमिट में रह कर ही करें तो यह आप के तनाव को कम करने के लिए बेहतर होगा.

मैं और मेरी एक फ्रैंड एक ही औफिस में काम करते हैं और जब भी थोड़ा ब्रेक होता है तो उस से पूछो कि चलो थोड़ा ब्रेक ले लें, आओ चाय पी कर आते हैं तो बस उस का शिकायतों का पिटारा खुल जाता है…

अरे अभी मुझे फुरसत नहीं है, अरे यह काम करना है वह काम करना है. हर समय हैरानपरेशान रहती है. उस से जब भी मिलो और पूछो और भई क्या हाल है, क्या चल रहा है तो वह किसी प्रश्न का सही जवाब दिए बिना बस यही कहने में लगी रहती है बिलकुल भी फुरसत नहीं है. वह हमेशा यह कहने से दूर भागती है कि वह खुश है और सबकुछ ठीक चल रहा है.

उस का ऐसा करना कहीं उस की आदत में तो शुमार नहीं हो गया क्योंकि जो भी काम हम बारबार करते हैं या जो भी हम बारबार कहते हैं या सबकुछ ठीक ही क्यों न हो वह हमारी आदत में शामिल हो जाता है फिर चाहे हमारे पास समय हो या न हो, कितना ही कम काम क्यों न हो हम हर समय परेशान बने रहते हैं.

यदि आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है और आप जानना चाहते हैं कि इन शिकायतों के पिटारे को कैसे कम किया जाए, इस से कैसे बाहर निकला जाए तो आइए हम बताते हैं:

आखिर क्यों करते हैं हम शिकायत

आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में हम अकसर गंभीर प्रोफैशनल और व्यक्तिगत तनाव से गुजरते हैं, जोकि हमें हर समय थका हुआ महसूस कराता है और हमारी नींद को भी प्रभावित करता है इसलिए हमारी यह कोशिश रहती है कि अपनी समस्याएं या शिकायतें ज्यादातर समय हम अपने करीबी दोस्तों एवं अपने परिवार वालों से ही करते हैं. शिकायत करना बिलकुल बुरा नहीं है, लेकिन जब आप इसे लगातार करती/करते हैं, तो यह टौक्सिक बन सकता है और ऐसा इसलिए है क्योंकि शिकायत करना यह दर्शाता है कि आप अपने जीवन में जो हो रहा है उसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं.

ऐसा संभव नहीं कि आप को कभी कोई शिकायत ही न हो लेकिन सीमा तय करना आप के लिए फायदेमंद हो सकता है और रोजमर्रा की शिकायतों को कम करने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं.

आप की कुछ आदतें जो बताती हैं कि आप बहुत अधिक शिकायत कर रहे हैं:

  •  आप नकारात्मक चीजों पर ज्यादा ध्यान देते हैं और साथ ही उन का कोई समाधान निकालने की कोशिश नहीं करते हैं.
  •  आप अकसर पिछली घटनाओं के बारे में सोचते हैं और चाहते हैं कि चीजों को बदल सकें.
  •  आप अकसर चिंता की भावनाओं का अनुभव करते हैं.
  • आमतौर पर शिकायत करने के बाद आप चिड़चिड़े हो जाते हैं.
  • समस्याओं के बारे में बात करने से आप असहाय या निराश महसूस करते हैं.
  • कई बार ऐसे लोगों को दूसरों की जिंदगी अच्छी क्यों चल रही है इस से भी शिकायत होती है अकसर यह माना जाता है कि शिकायत करने से आप को तनाव दूर करने में मदद मिलती है, लेकिन ऐसा नहीं है.

इस के नुकसान

  •  बारबार शिकायत करना आप के दिमाग को नैगेटिव यानी नकारात्मक बना देता है.
  • हम अपने आसपास की सभी अच्छी चीजों पर ध्यान देने के बजाय उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो सही नहीं चल रहा हैं और हमारे सोचने का नजरिया ही नकारात्मक हो जाता है.
  • निर्णय लेना या समस्याओं को हल करना कठिन लगता है क्योंकि तनाव के कारण आप का दिमाग चकरा जाता है.
  • आप को समाधान की तुलना में अधिक समस्याएं दिखाई देती हैं. कुछ महिलाएं हमेशा अपनी जिंदगी और परिस्थितियों से नाराज दिखती या आती हैं और अपने हालात को ले कर शिकायत करती रहती हैं फिर धीरेधीरे उन की यह आदत इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि उन्हें अपने आसपास कुछ भी अच्छा नजर नहीं आता. चाहे कुछ अच्छा भी घटित हो रहा हो, उन्हें उस के नकारात्मक पहलू पहले नजर आते हैं.

जब भी आप शिकायत करने वाली हों तो पहले यह सोचें कि क्या आप जिस बात की शिकायत करने वाली हैं उस से अगले 5 मिनट या 5 महीने या फिर 5 साल में कुछ बड़ा बदलाव आएगा क्या? अगर ऐसा नहीं है तो शिकायत न करें.

डालें लिखने की आदत

लिखने की आदत भी हर समय शिकायत करने की आदत को बदलने का एक बेहतरीन, प्रभावशाली तरीका है. इस के लिए आप एक डायरी बनाएं और फिर उस में अपनी सभी समस्याओं और भावनाओं के बारे में पहले लिखें. उस के बाद आप उन के लिए सकारात्मक समाधानों के बारे में लिखें. यह तो आप भी जानती हैं कि सिर्फ शिकायत करने से समस्या नहीं सुल?ाने वाली. उस के लिए आप को हल भी खुद ही तलाशने होंगे.

बातचीत करें

अगर आप को किसी से शिकायत है तो किसी और से उस की शिकायत करने के बजाय अपनी शिकायत उस व्यक्ति को ही दर्ज कराएं जिस से आप को शिकायत है और उस व्यक्ति के साथ बातचीत करें और उस का हल निकलने की कोशिश करें.

यदि आप अपने पार्टनर से अपनी फीलिंग्स के साथ अच्छा महसूस नहीं कर रही हैं, तो इस के बारे में बात करें, लेकिन शिकायत भरे तरीके से नहीं बल्कि सकारात्मक तरीके से जब आप सकारात्मक रूप से बात करेंगी तो इस से आप का मन भी हलका होगा, साथ ही आप के रिश्तों की गरमाहट में भी कोई कमी नहीं आएगी. इतना ही नहीं, बातचीत का तरीका बदलने मात्र से ही आप को अपनी समस्या का समाधान भी मिल जाएगा.

सोचें अच्छी बात

कई बार ऐसा होता है कि जब हमें अपने किसी करीबी की कोई गलती नजर आती है या जब हम किसी की शिकायत करते हैं तो हम उस समय केवल उस की कमियों पर ही पूरा ध्यान केंद्रित कर देते हैं उस की अच्छाइयों पर ध्यान ही नहीं देते.

यहां आप शिकायत की जगह यह सोचना शुरू करें कि इन की वजह से आप के जीवन में क्या अच्छा हुआ है. जब आप अपने जीवन में हो रही अच्छी घटनाओं और सभी आशीर्वादों को गिनना शुरू करती हैं तो शिकायत करना मुश्किल हो जाता है.

लेकिन का प्रयोग करें

यदि आप शिकायत करने की आदत को  एक सीमा में रखना चाहती हैं तो ‘लेकिन’ का प्रयोग अकसर उपयोग करना सुनिश्चित करें. इस का मतलब यह है कि आप कह सकती हैं कि आज मेरे पास बहुत काम है लेकिन फिर भी उसे जल्दी खत्म कर अभी भी अपने दोस्तों के साथ बाहर जाने में खुश हूं. इस से आप को सकारात्मकता मिल सकती है.

हर छोटी बात की शिकायत से बचें

अपनी शिकायत को गंभीरता से लेते हुए एक बार सोचें कि जिस बात को ले कर आप परेशान हो रही हैं क्या वह आप के जीवन के किसी गंभीर मुद्दे का प्रतिनिधित्व करती है? अगर वाकई यह इतनी बड़ी बात नहीं है तो शिकायत से बचें.

कहावत है कि शिकायत करने वालों को चांद में भी दाग ही नजर आता है तो आप को  अपनी इस आदत को आज ही बदल लेना चाहिए. शिकायत से पहले एक बार जरूर सोचें या अपनी शिकायतों का पिटारा जितना कम कर सकें उतना अच्छा अन्यथा आप को अपने जीवन में सिर्फ दुख ही दुख मिलेगा.

रिंकल्स हटाएं फैस्टिव ग्लो पाएं

39 साल की ईरानी शाह आईने के सामने बैठ कर खुद को निहार रही थी. उस ने देखा कि उस के चेहरे पर पड़ी रिंकल्स अब और गहरी हो गई हैं. उन्हें देखदेख कर वह परेशान होने लगी.

तभी ईरानी का हसबैंड विराट रूम में आ गया. उस ने ईरानी को आईने के सामने बैठे देखा तो कहने लगा, ‘‘तुम यहां बैठ कर क्या देख रही हो? बड़ी सुंदर हो न जो खुद को इस तरह निहार रही हो. अपना फेस तो देखो जरा. कैसे उजड़ा चमन सा हो रखा है.’’

विराट की बातें सुन कर ईरानी उदास हो गई और वहां से उठ कर जाने लगी. कमरे से बाहर जाती ईरानी को विराट ने टोकते हुए कहा, ‘‘अब तुम बूढ़ी हो रही हो. तुम्हारे पूरे फेस पर रिंकल्स हैं और धीरेधीरे बढ़ रही हैं. रमा को देख लो 42 की उम्र में भी 32 की लगती है और एक तुम हो 33 की उम्र में भी 47 की लगने लगी हो. हमारा अभी एक भी बेबी नहीं है और तुम ने खुद की हालत ऐसे बना रखी है जैसे हमारे 2-4 बच्चे हों. कुछ तो ध्यान दो खुद पर.

‘‘अब तो मेरे दोस्त भी मुझे चिढ़ाने लगे हैं. बातबात में बोल देते हैं कि तुम्हारी पत्नी तो तुम्हारी मां लगती है. तुम अपनी वाइफ की तरफ अट्रैक्ट कैसे होते हो? मैं सच कहूं तो मैं अब तुम से जरा भी अट्रैक्ट नहीं होता हूं. मुझे तो तुम्हारे साथ चलने में भी शर्म आती है.’’

खुद की अनदेखी क्यों

ये सब सुन कर ईरानी के आंसू छलक गए. वह अपने आंसुओं को पोंछते हुए हौल में चली गई. वहां बैठ कर विराट की कही गई बातों के बारे में सोच ही रही थी कि तभी उस का फोन बज उठा. फोन मोनिका का था. उस ने न्यूयौर्क से वीडियो कौल की थी. ईरानी का उदास चेहरा देख कर मोनिका ने उस की उदासी का कारण पूछा तो ईरानी ने विराट की कही सारी बातें मोनिका को बता दीं.

तब मोनिका ने उसे सम?ाते हुए कहा कि उसे अपना मेकओवर करना चाहिए, विराट के लिए नहीं खुद के लिए. उस ने कहा कि हम महिलाएं अपनी फैमिली और जिम्मेदारियों के बीच फंसी रहती हैं और अपने ऊपर जरा भी ध्यान नहीं देती हैं. एक तरह से हम अपनी अनदेखी करते हैं. जिस की वजह से हम अपने पार्टनर को अट्रैक्ट नहीं कर पातीं. वे हम से दूरदूर रहने लगते हैं. यह हमारे रिलेशन के लिए सही नहीं है. अपनी केयर न करने की वजह से हमारी पर्सनैलिटी डाउन होने लगती है, जिस की वजह से हम अपना कौन्फिडैंस भी खोने लगती हैं.

सुंदर दिखना आप का हक

हमें भी पूरा हक है अपने बारे में सोचने का, अपनी केयर करने का. रही बात घर की तो घर सिर्फ हमारा अकेले का तो नहीं है. घर में तो सभी रहते हैं इसलिए घर की जिम्मेदारी भी सभी की होनी चाहिए. जब हमारी पर्सनैलिटी अट्रैक्टिव होती है तो हम ज्यादा कौन्फिडैंस फील करते हैं.

मोनिका की कही गई बातें ईरानी के दिल को छू गईं. उस ने ठान लिया कि अपना मेकओवर जरूर करेगी. उस ने फैसला किया कि क्लीनिक जा कर रिंकल्स के मैडिकल ट्रीटमैंट के बारे में जानकारी लेगी.

अगले दिन औफिस से आते हुए ईरान एक क्लीनिक गई और सब पता कर के उस ने अगले संडे को बोटोक्स ट्रीटमैंट की अपनी अपौइंटमैंट फिक्स करा ली. बोटोक्स प्रोटीन डेरिवेटिव होता है जो स्किन के अंदर जा कर मसल्स को रिलैक्स करता है. यह एजिंग इफैक्ट्स को धीरेधीरे पूरी तरह गायब कर देता है. यह ट्रीटमैंट इंजैक्शन के थ्रू किया जाता है. सामान्य तौर पर बोटोक्स 3 से 4 महीने तक चलता है.

ट्रीटमैंट के बाद ईरानी का फेस देखने लायक था. उस के चेहरे की सारी रिंकल्स हट गई थीं. बोटोक्स ट्रीटमैंट से उस की पर्सनैलिटी में भी चेंज आया. अब वह ज्यादा कौन्फिडैंस फील कर रही थी.

ईरानी का बदला रूप देखने के बाद विराट का मुंह खुला का खुला रह गया. ईरानी की काया पलट से विराट अब उस के आगेपीछे घूमने लगा.

अपने बारे में भी सोचें

ईरानी अब अपना और ज्यादा खयाल रखने लगी. उस ने अपनी डाइट में एवोकाडो नट्स, डार्क चौकलेट और पपीते को शामिल किया. इस के अलावा उस ने व्हाइट ब्रैड, जंक फूड खाना और शराब पीना बंद कर दिया. डाक्टर की सलाह के बाद उस ने कुछ रिंकल्स फ्री फेस के लिए सप्लिमैंट भी लेना शुरू कर दिया. इन से उस की ऐनर्जी भी बढ़ गई.

रिंकल्स होने पर फेस डल और पर्सनैलिटी डाउन होने लगती है, जिस की वजह से कम ऐज होने के बाद भी महिलाओं और लड़कियों को आंटी कहा जाता है. कई बार रिंकल्स होने पर पति अपनी पत्नी से कहते हैं कि तुम बूढ़ी लगने लगी हो. देखने में भी आंटी लगती हो. तुम्हारी ऐज के लोग भी तुम्हें आंटी कहने लगे हैं. हमारी जोड़ी मैच नहीं करती. तुम बूढ़ी और मैं जवान लगता हूं. मु?ो तुम्हारे साथ चलने में शर्म आती है. यही नहीं ऐसी औरतें घर या दफ्तर में भी सहमीसहमी सी रहती हैं और तरहतरह की मानसिक बीमारियां पाल लेती हैं.

अपनी केयर करना कभी गलत या स्वार्थी नहीं होता. इसे स्वार्थीपन या गिल्ट से जोड़ कर न देखें. आप को पूरा हक है कि आप औरों की तरह अपने बारे में भी सोचें. आज एक आम औरत 70-80 तक जीती हैं और अगर 35-40 की आयु में रिंकल्स आ जाएं तो बाद के सालों को वह ढोती नजर आएगी.

परी हूं मैं: भाग 3- आखिर क्या किया था तरुण ने

तरुण फुरती से दौड़ा उस के पीछे, तब तक तो खबर फैल चुकी थी. मैं कुछ देर तो चौके में बैठी रह गई. जब छत पर पहुंची तो औरतों की नजरों में स्पष्ट हिकारत भाव देखा और तो और, उस रोज से नानी की नजरें बदली सी लगीं. मैं सावधान हो गई. ज्योंज्यों शादी की तिथि नजदीक आ रही थी, मेरा जी धकधक कर रहा था. तरुण का सहज उत्साहित होना मुझे अखर रहा था. इसीलिए तरुण को मेहंदी लगाती बहनों के पास जा बैठी. मगर तरुण अपने में ही मगन बहन से बात कर रहा था, ‘पुष्पा, पंजे और चेहरे के जले दागों पर भी हलके से हाथ फेर दे मेहंदी का, छिप जाएंगे.’  सुन कर मैं रोक न पाई खुद को, ‘‘तरुण, ये दाग न छिपेंगे, न इन पर कोई दूसरा रंग चढ़ेगा. आग के दाग हैं ये.’’ सन्नाटा छा गया हौल में. मुझे राजीव आज बेहद याद आए. कैसी निरापदता होती है उन के साथ, तरुण को देखो…तो वह दूर बड़ी दूर नजर आता है और राजीव, हर पल उस के संग. आज मैं सचमुच उन्हें याद करने लगी.

आखिरकार बरात प्रस्थान का दिन आ गया, मेरे लिए कयामत की घड़ी थी. जैसे ही तरुण के सेहरा बंधा, वह अपने नातेरिश्तेदारों से घिर गया. उसे छूना तो दूर, उस के करीब तक मैं नहीं पहुंच पाई. मुझे अपनी औकात समझ में आने लगी. असल औकात अन्य औरतों ने बरात के वापस आते ही समझा दी. उन बहन-बुआ के एकएक शब्द में व्यंग्य छिपा था-‘‘भाभीजी, आज से आप को हम लोगों के साथ हौल में ही सोना पड़ेगा. तरुण के कमरे का सारा पुराना सामान हटा कर विराज के साथ आया नया पलंग सजाना होगा, ताजे फूलों से.’’ छुरियां सी चलीं दिल पर. लेकिन दिखावे के लिए बड़ी हिम्मत दिखाई मैं ने भी. बराबरी से हंसीठिठोली करते हुए तरुण और विराज का कमरा सजवाया. लेकिन आधीरात के बाद जब कमरे का दरवाजा खट से बंद हुआ. मेरी जान निकल गई, लगा, मेरा पूरा शरीर कान बन गया है. कैसे देखती रहूं मैं अपनी सब से कीमती चीज की चोरी होते हुए. चीख पड़ी, ‘चोर, चोर,चोर.’ गुल हुई सारी बत्तियां जल पड़ीं. रंग में भंग डालने का मेरा उपक्रम पूर्ण हुआ. शादी वाला घर, दानदहेज के संग घर की हर औरत आभूषणों से लदी हुई. ऐसे मालदार घरों में ही तो चोरलुटेरे घात लगाए बैठे रहते हैं.

नींद से उठे, डरे बच्चों के रोने का शोर, आदमियों का टौर्च ले कर भागदौड़ का कोलाहल…ऐसे में तरुण के कमरे का दरवाजा खुलना ही था. उस के पीछेपीछे सजीसजाई विराज भी चली आई हौल में. चैन की सांस ली मैं ने. बाकी सभी भयभीत थे लुट जाने के भय से. सब की आंखों से नींद गायब थी. इस बीच, मसजिद से सुबह की आजान की आवाज आते ही मैं मन ही मन बुदबुदाई, ‘हो गई सुहागरात.’ लेकिन कब तक? वह तो सावित्री थी जिस ने सूर्य को अस्त नहीं होने दिया था. सुबह से ही मेहमानों की विदाई शुरू हो गई थी. छुट्टियां किस के पास थीं? मुझे भी लौटना था तरुण के साथ. मगर मेरे गले में बड़े प्यार से विराज को भी टांग दिया गया. जाने किस घड़ी में बेटियों से कहा था कि चाची ले कर आऊंगी. विराज को देख कर मुझे अपना सिर पीट लेने का मन होता. मगर उस ने रिद्धि व सिद्धि का तो जाते ही मन जीत लिया. 10 दिनों बाद विराज का भाई उसे लेने आ गया और मैं फिर तरुण की परी बन गई. गिनगिन कर बदले लिए मैं ने तरुण से. अब मुझे उस से सबकुछ वैसा ही चाहिए था जैसे वह विराज के लिए करता था…प्यार, व्यवहार, संभाल, परवा सब.

चूक यहीं हुई कि मैं अपनी तुलना विराज से करते हुए सोच ही नहीं पाई कि तरुण भी मेरी तुलना विराज से कर रहा होगा. वक्त भाग रहा था. मैं मुठ्ठी में पकड़ नहीं पा रही थी. ऐसा लगा जैसे हर कोई मेरे ही खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है. तरुण ने भी बताया ही नहीं कि विराज ट्रांसफर के लिए ऐप्लीकेशन दे चुकी है. इधर राजीव का एग्रीमैंट पूरा हो चुका था. उन्होंने आते ही तरुण को व्यस्त तो कर ही दिया, साथ ही शहर की पौश कालोनी में फ्लैट का इंतजाम कर दिया यह कहते हुए, ‘‘शादीशुदा है अब, यहां बहू के साथ जमेगा नहीं.’’ मैं चुप रह गई मगर तरुण ने अब भी मुंह मारना छोड़ा नहीं था. तरुण मेरी मुट्ठी में है, यह एहसास विराज को कराने का कोई मौका मैं छोड़ती नहीं थी. जब भी विराज से मिलना होता, वह मुझे पहले से ज्यादा भद्दी, मोटी और सांवली नजर आती. संतुष्ट हो कर मैं घर लौट कर अपने बनावशृंगार पर और ज्यादा ध्यान देती. फिर मैं ने नोट किया, तरुण का रुख उस के बजाय मेरे प्रति ज्यादा नरम और प्यारभरा होता, फिर भी विराज सहजभाव से नौकरी, ट्यूशन के साथसाथ तरुण की सुविधा का पूरा खयाल रखती. न तरुण से कोई शिकायत, न मांगी कोई सुविधा या भेंट.

‘परी थोड़ी है जो छू लो तो पिघल जाए,’ तरुण ने भावों में बह कर एक बार कहा था तो मैं सचमुच अपने को परी ही समझ बैठी थी. तब तक तरुण की थीसिस पूरी हो चुकी थी मगर अभी डिसकशन बाकी था. और फिर वह दिन आ ही गया. तरुण को डौक्टरेट की डिगरी के ही साथ आटोनौमस कालेज में असिस्टैंट प्रोफैसर पद पर नियुक्ति भी मिल गई. धीरेधीरे उस का मेरे पास आना कम हो रहा था, फिर भी मैं कभी अकेली, कभी बेटियों के साथ उस के घर जा ही धमकती. विराज अकसर शाम को भी सूती साड़ी में बगैर मेकअप के मिडिल स्कूल के बच्चों को पढ़ाती मिलती. ऐसे में हमारी आवभगत तरुण को ही करनी पड़ती. वह एकएक चीज का वर्णन चाव से करता…विराज ने गैलरी में ही बोनसाई पौधों के संग गुलाब के गमले सजाए हैं, साथ ही गमले में हरीमिर्च, हरा धनिया भी उगाया है. विराज…विराज… विराज…विराज…विराज ने मेरा ये स्वेटर क्रोशिए से बनाया है. विराज ने घर को घर बना दिया है. विराज के हाथ की मखाने की खीर, विराज के गाए गीत… विराज के हाथ, पैर, चेहरा, आंखे…

मैं गौर से देखने लगती तरुण को, मगर वह सकपकाने की जगह ढिठाई से मुसकराता रहता और मैं अपमान की ज्वाला में जल उठती. मेरे मन में बदले की आग सुलगने लगी. मैं विराज से अकेले में मिलने का प्रयास करती और अकसर बड़े सहजसरल भाव से तरुण का जिक्र ही करती. तरुण ने मेरा कितना ध्यान रखा, तरुण ने यह कहा वह किया, तरुण की पसंदनापसंद. तरुण की आदतों और मजाकों का वर्णन करने के साथसाथ कभीकभी कोई ऐसा जिक्र भी कर देती थी कि विराज का मुंह रोने जैसा हो जाता और मैं भोलेपन से कहती, ‘देवर है वह मेरा, हिंदी की मास्टरनी हो तुम, देवर का मतलब नहीं समझतीं?’  विराज सब समझ कर भी पूर्ण समर्पण भाव से तरुण और अपनी शादी को संभाल रही थी. मेरे सीने पर सांप लोट गया जब मालूम पड़ा कि विराज उम्मीद से है, और सब से चुभने वाली बात यह कि यह खबर मुझे राजीव ने दी.

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ मैं भड़क गई.

‘‘तरुण ने बताया.’’

‘‘मुझे नहीं बता सकता था? मैं इतनी दुश्मन हो गई?’’

विराज, राजीव से सगे जेठ का रिश्ता निभाती है. राजीव की मौजूदगी में कभी अपने सिर से पल्लू नीचे नहीं गिरने देती है, जोर से बोलना हंसना तो दूर, चलती ही इतने कायदे से है…धीमेधीमे, मुझे नहीं लगता कि राजीव से इस बारे में उस की कभी कोई बात भी हुई होगी. लेकिन आज राजीव ने जिस ढंग से विराज के बारे में बात की , स्पष्टतया उन के अंदाज में विराज के लिए स्नेह के साथसाथ सम्मान भी था. चर्चा की केंद्रबिंदु अब विराज थी. तरुण ने विराज को डिलीवरी के लिए घर भेजने के बजाय अपनी मां एवं नानी को ही बुला लिया था. वे लोग विराज को हथेलियों पर रख रही थीं. मेरी हालत सचमुच विचित्र हो गई थी. राजीव अब भी किताबों में ही आंखें गड़ाए रहते हैं. और विराज ने बेटे को जन्म दिया. तरुण पिता बन गया. विराज मां बन गई पर मैं बड़ी मां नहीं बन पाई. तरुण की मां ने बच्चे को मेरी गोद में देते हुए एकएक शब्द पर जोर दिया था, ‘लल्ला, ये आ गईं तुम्हारी ताईजी, आशीष देने.’

बच्चे के नामकरण की रस्म में भी मुझे जाना पड़ा. तरुण की बहनें, बूआओं सहित काफी मेहमानों को निमंत्रित किया गया. कार्यक्रम काफी बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था. इस पीढ़ी का पहला बेटा जो पैदा हुआ है. राजीव अपने पुराने नातेरिश्ते से बंधे फंक्शन में बराबरी से दिलचस्पी ले रहे थे. तरुण विराज और बच्चे के साथ बैठ चुका तो औरतों में नाम रखने की होड़ मच गई. बहनें अपने चुने नाम रखवाने पर अड़ी थीं तो बूआएं अपने नामों पर. बड़ा खुशनुमा माहौल था. तभी मेरी निगाहें विराज से मिलीं. उन आंखों में जीत की ताब थी. सह न सकी मैं. बोल पड़ी, ‘‘नाम रखने का पहला हक उसी का होता है जिस का बच्चा हो. देखो, लल्ला की शक्ल हूबहू राजीव से मिल रही है. वे ही रखेंगे नाम.’’ सन्नाटा छा गया. औरतों की उंगलियां होंठों पर आ गईं. विराज की प्रतिक्रिया जान न सकी मैं. वह तो सलमासितारे जड़ी सिंदूरी साड़ी का लंबा घूंघट लिए गोद में शिशु संभाले सिर झुकाए बैठी थी.

मैं ने चारोें ओर दृष्टि दौड़ाई, शायद राजीव यूनिवर्सिटी के लिए निकल चुके थे. मेरा वार खाली गया. तरुण ने तुरंत बड़ी सादगी से मेरी बात को नकार दिया, ‘‘भाभी, आप इस फैक्ट से वाकिफ नहीं हैं शायद. बच्चे की शक्ल तय करने में मां के विचार, सोच का 90 प्रतिशत हाथ होता है और मैं जानता हूं कि विराज जब से शादी हो कर आई, सिर्फ आप के ही सान्निध्य में रही है, 24 घंटे आप ही तो रहीं उस के दिलोदिमाग में. इस लिहाज से बच्चे की शक्ल तो आप से मिलनी चाहिए थी. परिवार के अलावा किसी और पर या राजीव सर पर शक्लसूरत जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. यह तो आप भी जानती हैं कि विराज ने आज तक किसी दूसरे की ओर देखा तक नहीं है. वह ठहरी एक सीधीसादी घरेलू औरत.’’

औरत…लगा तरुण ने मेरे पंख ही काट दिए और मैं धड़ाम से जमीन पर गिर गई हूं. मुझे बातबात पर परी का दरजा देने वाले ने मुझे अपनी औकात दिखा दी. मुझे अपने कंधों में पहली बार भयंकर दर्द महसूस होने लगा, जिन्हें तरुण ने सीढ़ी बनाया था, उन कंधों पर आज न तरुण की बांहें थीं और न ही पंख.

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