Safe Drive : कभी न करें स्टाइल में ड्राइव

Safe Drive :  अकसर दौलतमंद मांबाप दौलत के नशे में हमेशा चूर रहते हैं. उन को यह भी नहीं पता होता कि उन्हें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे कर देश का अच्छा नागरिक बनाना चाहिए या नहीं. वे तो अपनी संतान को पैसे के बल पर बड़ा कर के छोड़ देते हैं और कह देते हैं, ‘जा बेटा तू भी ऐश कर और हमें भी ऐश करने दे.’

अब बेटा तो बेटा उसे क्या गरज पड़ी है, मेहनत जैसी फालतू चीज करने की. बेटा तो भलीभांति जानता है कि उस का बाप कमा रहा है, 7 पीढि़यों के लिए धन जुटा रहा है तो हम क्यों कोई कामधाम करें. हम तो दोनों हाथ खोल कर धन लुटाएंगे.

बचत और सद्व्यवहार जैसी दकियानूसी चीज तो गरीबों के बच्चे सीखते हैं. लायक बनना और फर्ज निभाना ये तो गरीब के बच्चों की जिम्मेदारी है. बेचारे दौलत तो कभी खुली आंखों से देखे नहीं होते तो बंद आंखों से क्या देखेंगे. गरीब बच्चे ही रातदिन भूखे प्यासे शरीर को तपा कर काबिल बनते हैं. तब जा कर चार पैसे उन्हें देखने को मिलते हैं. यही इन की नियति भी है.

स्टाइल ही इन का जीवन

रईसजादे तो अकसर पेरैंट्स बाप के बेटे हैं इसलिए उन के शौक भी करोड़पतियों वाले होते हैं. ये जब घर से निकलते हैं तो अपनी सवारी पर सवार हो  झूमतेगाते, मोबाइल से बतियाते और शौर्ट कट मारते ऐसे निकलते हैं जैसे इन का काम ही काम है बाकी सब बेकार हैं. बीच सड़क पर कहीं भी गाड़ी पार्क कर देते हैं क्योंकि सड़क तो इन के बाप की संपत्ति है न.

जाम लगता है तो लगे इन की बला से, लोग परेशान होते हैं तो हों उन का तो काम ही है परेशान होना और जब कभी साहबजादे जाम में फंस जाएं तो फिर मत पूछिए हौर्न बजाबजा कर पूरी दुनिया को बता देते हैं कि कोई अमीरजादा फंसा है जाम में, सब लोग अपनीअपनी गाड़ी को साइड लगा दो ताकि अमीरजादे को रास्ता मिल सके और यह अपनी डिस्को पार्टी अटैंड कर सके. स्टाइल में रहना स्टाइल में खाना, स्टाइल में बतियाना स्टाइल ही इन का जीवन है.

ये तो ताल ठोंक के कहते हैं भाई अपुन स्टाइल में धुआंधार ड्राइव करेंगे. डरना अपुन ने सीखा नहीं और डराने वाला अभी कोई पैदा हुआ नहीं. ऐसी बिगड़ी हुई औलादें कानून को कुछ नहीं सम झतीं. इन्हें कानून का कोई डर नहीं होता. इन के लिए फुटपाथ पर रहने वाले, पद यात्रा करने वाले, बाइक स्कूटी से आनेजाने वाले कीड़ेमकोड़ों के समान होते हैं. इन का फंडा ही यही है कि नशे में गाड़ी चलाओ जिंदगी का लुत्फ उठाओ.

जान की कोई कीमत नहीं

यदि गाड़ी के सामने कोई आ जाए तो उसे ठोकतेबजाते आगे निकल जाओ. ये भावनाहीन होते हैं. इन के लिए किसी अन्य व्यक्ति के जान की कोई कीमत नहीं होती. इन की हरकतों से न जाने कितने घर बिखर जाते हैं. कितनी औरतों के सिंदूर उजड़ जाते हैं, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं.

रईसजादे इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि यदि ये अपनी कीमती गाड़ी से किसी को उड़ा देंगे तो कानून इन का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा. इन की नजर में कानून बिकता है और इन जैसे अमीर लोग जब चाहें तब पैसों से कानून को खरीद सकते हैं.ये खुद तो बिगड़े हुए होते ही हैं और न जाने कितने लोगों को अपने साथ बिगाड़ देते हैं.

इन की नजर में ट्रैफिक के नियम गरीब तबके के लोगों के लिए होते हैं, जिन के पास समय ही समय होता है. अमीर लोग तो बहुत व्यस्त होते हैं. अगर अमीर लोग ट्रैफिक के नियमों का पालन करने लगेंगे तो अमीर और गरीब में अंतर क्या रह जाएगा? अमीर लोगों को बड़ीबड़ी पार्टियों में जाना होता है. 4 लोफरों को इकट्ठा कर दारू की बोतल चढ़ानी होती है.तभी तो दुनिया को पता चलेगा ये रईसजादे अपने मांबाप की बिगड़ी औलादें हैं.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी इस कहावत का मान और ध्यान तो सिर्फ सरीफ लोग रखते है. नशेड़ी, जुआरी और बिगड़े लोगों के लिए यह कहावत कोई माने नहीं रखती. उन्हें तो अपने हिसाब से चलना है. वे जिधर से गुजरते हैं वह जगह वह सड़क उन की हो जाती है.

Tips For Sex Life : फिजिकल रिलेशनशिप में एड्स होने का डर लगा हुआ है, मैं क्या करूं?

Tips For Sex Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 32 साल का हूं. मैंने पड़ोस की औरत के साथ हमबिस्तरी की है, पर डर है कि कहीं मुझे एड्स न हो जाए. वैसे, जिस्मानी संबंध बनाने के 5 दिन बाद मैंने जांच कराई, तो नतीजा निगेटिव रहा. औरत ने 10 दिन बाद जांच कराई, तो उस का नतीजा भी निगेटिव ही था. कोई डर तो नहीं है?

जवाब

एक ओर तो आप को जिस्मानी संबंधों का मजा चाहिए, वहीं दूसरी ओर मौत का डर भी है. आखिर ऐसा काम किया ही क्यों जाए, जिस में खौफ हो. वैसे, जांच रिपोर्टों के मुताबिक आप दोनों ही महफूज हैं, लेकिन यह खेल दूसरे तरीके से भी खतरनाक हो सकता है. औरत के पति को पता चलेगा, तो वह एड्स से भी ज्यादा दर्द देगा.

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2017 के अंत तक भारत में अनुमानत: 21.40 लाख लोग एचआईवी संक्रमित है. खतरनाक बात ये है कि उनमें से 20 प्रतिशत अपने संक्रमित होने को ले कर अनजान हैं. हालांकि एचआईवी पर जागरूकता पैदा करने, एड्स के साथ जीने, असुरक्षित यौन संबंधों से बचने को ले कर बहुत कुछ किया जा रहा है. लेकिन आज जरूरी है कि भारत की बड़ी आबादी को विभिन्न तरीकों से एचआईवी संक्रमण के संचारित होने को ले कर जागरूक किया जाए. लोगों को इस घातक संक्रमण से बचने के लिए रक्ताधान से पहले रक्त परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है, ताकि जो संक्रमित है वे आगे संक्रमण न फैलाए.

2016 में किए रक्त बैंकों का राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) ने मूल्यांकन किया था. इसके मुताबिक, देश में कुल 2626 कार्यात्मक रक्त बैंक हैं. भारत को प्रति वर्ष 12.2 मिलियन करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, जिसमें से केवल 11 मिलियन ब्लड यूनिट ही मिल पाते हैं. ऐसे में, सुरक्षित रक्ताधान पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आवश्यक है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Amla Ruia’s Fight for Water: A Story of Resilience & Change

Amla Ruia, born in 1946 into an affluent family in Uttar Pradesh, was raised in a literary and spiritual environment. However, from a young age, she recognized her responsibilities toward society. This led her to dedicate herself to social causes at the first opportunity.

Tackling Water Scarcity in Rajasthan

Rajasthan is a region frequently grappling with water scarcity, where many households struggle even for drinking water, let alone water for bathing. Women often walk miles to fetch water, carrying pots on their heads to meet their families’ needs.

The daily challenges faced by rural women in Rajasthan deeply impacted young Amla Ruia and shaped her perspective. The severe droughts of 1999-2000 and 2003 troubled her greatly, inspiring her to take action. She became passionate about water conservation in villages and established the Aakar Charitable Trust (ACT) to collaborate with communities in building check dams for water security.

Transforming Villages

Her initiative to construct check dams has transformed the lives of over 2 million people across 450+ villages in India. These small structures, built on seasonal streams, allow water to percolate into the ground, recharge aquifers, and ensure year-round water availability. Amla motivated communities to contribute labor and resources, fostering a sense of ownership and sustainability.

Using traditional water-harvesting techniques and check dams, Amla Ruia changed the face of Rajasthan’s villages, all by involving local communities.

No Looking Back

Her first project was in Mandawar village, which became a huge success. Farmers earned ₹12 crores within a year thanks to the two check dams built by her trust. After this, she never looked back. ACT has since constructed 200 check dams in 100 villages across Rajasthan, benefiting over 200,000 people, who now collectively earn ₹300 crores annually.

Changing Farmers’ Lives

The impact of Amla’s efforts meant that farmers who once struggled to grow one crop a year could now harvest three crops annually. Increased income allowed them to take up livestock farming as well. Gradually, Amla’s hard work transformed their lives.

Households benefiting from water conservation now have 8-10 cattle each, earning additional income from milk, ghee, and khoa. Rising incomes also mean that every family owns 1-2 motorcycles, and each village has 4-5 tractors—a significant achievement for rural India.

Recognition

For her relentless efforts in water conservation and rural empowerment, Amla Ruia has been honored with the Grassroots Changemaker Achiever Award, celebrating her as a true agent of change.

Hindi Fiction Stories : आखिर क्या कमी थी – जब पत्नी ने किया जीना हराम

Hindi Fiction Stories :  ‘‘मेरा जीना हराम कर दिया है मेरी पत्नी ने. उठतेबैठते, सोतेजागते एक ही रट कि मेरा बाहर की औरतों से संबंध है. घर के बाहर गया नहीं कि चीखनाचिल्लाना शुरू. क्या करूं मैं? उसे न बच्चों की शर्म है न महल्ले वालों की. नौकरचाकर सामने रहते हैं और वह अनापशनाप बकने लगती है,’’ विजय की बातें सुन कर मैं अवाक् रह गया. नीरा भाभी भला ऐसा क्यों करने लगीं. पढ़ीलिखी समझदार हैं. जब मेरी शादी हुई थी तब भाभी ने बड़ी बहन की तरह सारा काम संभाला था. अपनी बहन सी लगने वाली भाभी पर उस के पति विजय का आरोप मैं कैसे सह लेता.

‘‘ऐसा कैसे हो गया एकाएक?’’

झुंझला पड़ा था विजय, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘पता क्यों नहीं, तुम्हारी पत्नी है… कुछ तो ऐसा होगा ही जिस की वजह से वे ऐसा व्यवहार कर रही हैं वरना दिमाग खराब है क्या उन का?’’

‘‘हां, यही लगता है मुझे भी,’’ बदबुदाया विजय.

‘‘क्या कह रहे हो तुम, होश में हो न. जिस औरत ने तुम्हारे साथ 15 साल की खुशहाल गृहस्थी काटी है, तुम्हारे हर सुखदुख में तुम्हारा साथ दिया, एकाएक उस का व्यवहार क्यों बदल गया है, तुम्हें पता नहीं और उस पर यह दावा कि उस का दिमाग खराब हो गया है?’’

‘‘दिमाग ही तो खराब है जो मुझ पर शक करती है. क्या यह सही दिमाग की निशानी है?’’

‘‘तुम ने कुछ ऐसा किया है क्या जो भाभी को तुम पर शक करने का मौका मिला? आखिर इस शक की कोई तो वजह होगी.’’

‘‘मुझे तो लगता है उसी का किसी के साथ संबंध है,’’ विजय बोला, ‘‘जो खुद गलत करता है वही सामने वाले पर आरोप लगाता है…’’

चटाक की आवाज के साथ मेरा हाथ विजय के गाल पर पड़ा. ऐसा लगा विश्वास और निष्ठा का सुंदर भवन मेरे सामने भरभरा कर गिर गया. धूलमिट्टी उड़ कर कुछ मेरे कपड़ों पर पड़ी और कुछ मेरी आंखों में भी. किसी ने मानो मेरी जीभ ही खींच ली. क्या विजय की आंखों की शर्म इतनी मर गई है कि मेरे सामने भाभी को चरित्रहीन कहते उसे लज्जा नहीं आई.

मर्द तो सदा ही अपनी मर्दानगी प्रमाणित करता आया है यहांवहां मुंह मार कर, कम से कम अपनी पत्नी का मान- सम्मान तो वह इस तरह न उछालता. क्या समझूं मैं? विजय के इस व्यवहार पर कैसे अपनी सोच का निर्धारण करूं? हद होती है हर बात की.

अवाक् था विजय. उस ने भी कहां सोचा होगा कि मैं नीरा भाभी का पक्ष ले कर उसी पर हाथ उठा बैठूंगा.

‘‘मुझे लगता है तुम ही कहीं भटक गए हो और अपनी किसी करतूत पर परदा डाल रहे हो. शायद तुम्हीं नहीं चाहते कि नीरा भाभी तुम्हारे साथ रहें और इसलिए उन्हें अपमानित कर अपने जीवन से निकालना चाहते हो. कहीं तो कुछ है…’’

‘‘वही कुछ तो मैं भी समझाना चाह रहा हूं तुम्हें…कहीं तो कुछ है जिस की आड़ ले कर वह मेरा अपमान कर रही है. मैं तो कहीं मुंह दिखाने के लायक भी नहीं रहा. अब तो बच्चों के सामने भी आंख उठाते हुए मुझे शर्म आती है.’’

विजय का रोनापीटना, चीखना- चिल्लाना सब सत्य था लेकिन भाभी का चरित्र खोटा है मैं इसे भी कैसे मान लूं, ‘‘बच्चों पर क्या असर होगा तुम्हारे झगड़ों का, सोचा है कभी तुम ने…’’

‘‘वही सब तो तुम से पूछना चाहता हूं कि नीरा के इस पागलपन की वजह से मेरे घर का भविष्य क्या होगा?’’

विजय की पीड़ा कहींकहीं मुझे भेदने लगी. कहीं सचमुच कुछ है तो नहीं, ‘‘तुम दोनों के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘पिछले कुछ महीनों से हम अलगअलग कमरे में सोते हैं. मेरी परछाईं से भी वह दूर भागती है. मेरी सूरत देखते ही जैसे उसे दौरा पड़ जाता है. मैं आत्महत्या ही कर लूंगा, मुझे ऐसा लगता है. तुम्हारे पास इसीलिए आया हूं. तुम नीरा से बात करो, पूछो उस से, वह क्या चाहती है…’’

विजय का कंधा थपथपा दिया मैं ने. थोड़ी देर के लिए खुद को विजय के स्थान पर रख कर सोचा, मेरी पत्नी अगर मेरी परछाईं से भी दूर भागे या मेरी सूरत देखते ही चीखनेचिल्लाने लगे तो क्या हो? जाहिर सा लगा कि कहीं मैं ने ही ऐसा कुछ किया है जो मेरी पत्नी के गले में कांटे सा फंस गया है.

नीरा भाभी जैसी संतोषी औरत बहुत कम नजरों के सामने आती हैं. जब वे ब्याह कर आई थीं तब ब्याहने लायक विजय की एक बहन भी घर में थी. पिता का साया उठ चुका था. पूरा घर विजय के कंधों पर था. अच्छा वर मिल गया तो एक क्षण भी नहीं लगाया था, भाभी ने अपनी कोरी, अनछुई साडि़यां और गहने ला कर विजय के सामने रख दिए थे.

भाभी ने बड़ी सहजता से अपना सब बांट लिया था इस परिवार के साथ. नीरा भाभी का निष्कपट रूप किसी गहने का मोहताज नहीं था, फिर भी एक शाम उन के कानों में छोटीछोटी चमकती बालियों को देखा तो सहसा मेरे होंठों से निकल गया था, ‘‘भाभी, आज कुछ बदलाबदला सा है आप में?’’

‘‘भैया, नई बाली पहनी है. थोड़ेथोड़े रुपए बचा कर आज ही लाई हूं.’’

मन भर आया था मेरा. सच में भाभी पर बालियां बहुत खिल रही थीं और फिर जिस औरत ने अपने मायके का सारा सोना विजय की बहन पर कुरबान कर दिया था वही औरत पाईपाई जोड़ अपने लिए पुन: एक छोटा सा गहना संजो पाई थी और उसी में बहुत संतुष्ट भी थी.

इसी तरह जराजरा संजोतेसंजोते, पता नहीं कहांकहां अपना मन मारते नीरा भाभी पूरी तरह विजय के जीवन में रचबस गई थीं. मेरी पत्नी के साथ भी भाभी का गहरा जुड़ाव है. हैरान हूं कि मेरी पत्नी ने भी कभी कुछ नहीं बताया. अगर पतिपत्नी में कुछ दूरी होती तो कभी तो नीरा भाभी उसे बतातीं.

‘‘नीरा भाभी से मिले तुम्हें कितने दिन होे गए?’’ मैं ने शोभा से पूछा जो उस समय शीना को खाना खिला रही थी.

‘‘काफी समय हो गया है. पहले उन के बच्चों के पेपर चल रहे थे इसलिए मैं नहीं गई. फिर भाभी के मायके में कोई शादी थी उस में वे व्यस्त रहीं, उस के बाद मैं शीना की वजह से नहीं मिल पाई,’’ सहज ही थी शोभा. सहसा बोली, ‘‘हां, मैं ने फोन किया था पर ज्यादा बात नहीं हो पाई थी…चलिए, आज चलें उन के घर.’’

मैं बिना कुछ बात बढ़ाए मान गया. शोभा को कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वह पहले से ही कोई पूर्वाग्रह पाल ले. यदि नीरा भाभी में कुछ समस्या होगी तो अपनेआप ही शोभा भांप जाएगी.

शाम को हम दोनों उन के घर पहुंचे. भाभी को देख धक्का सा लगा. बीमार लग रही थीं. मैं पछता उठा कि कैसा इनसान हूं मैं कि जिसे इतना मानता हूं उसी की सुध लेने में काफी समय लगा दिया. समीप जा कर भाभी की बांह पकड़ी, इस से पहले कि मैं कुछ पूछूं, भाभी मेरी छाती से लग कर चीखचीख कर रोने लगीं.

‘‘सब खत्म हो गया भैया…मेरा सब समाप्त हो गया.’’

शोभा भी घबरा गई. भाभी की पीठ सहलासहला कर दुलारने लगी. वह ऐसी कोई भी बात नहीं जानती थी जिस का सिरा पकड़ बात शुरू कर पाती. किसी तरह शांत किया हम ने भाभी को.

‘‘क्या हो गया, भाभी? ऐसा क्या हो गया है जो आप ऐसा कहने लगीं? कितनी कमजोर हो गई हैं आप, बीमार हैं क्या?’’

भाभी चुप थीं. टकटकी लगा कर कभी हमारा मुंह देखतीं और कभी शून्य में कुछ निहारतीं. शोभा बारबार प्रश्न करती रही.

‘‘मेरा घर उजड़ गया है प्रकाश भैया, आप का भाई अब मेरा नहीं रहा…’’

‘‘आप को ऐसा क्यों लगा, भाभी, आप ने ऐसा क्या देखा?’’

मैं शोभा से नजरें चुरा रहा था. मैं नहीं चाहता था, वह जाने कि मैं भी कुछ जानता हूं.

‘‘पुरुष का तो कार्यक्षेत्र ही बाहर होता है भाभी, पूरे दिन में आधे से ज्यादा समय वह घर के बाहर खटता है, किसलिए? अपने परिवार के लिए ही न. विश्वास की डोर पर ही वह दूरदूर तक उड़ता है और अगर आप ही डोर तोड़ देंगी तो कैसे चलेगा.’’

‘‘जानती थी कि तुम अपने भाई की वकालत करोगे. उसी विजय के सगे हो न. वही तुम्हारा सबकुछ है. मैं तो कल भी आप सब के लिए मुफ्त की नौकरानी थी और आज भी. इस घर में मेरी बस इतनी ही जगह है कि आने वाले को सलाम करूं और जाने वाले से कुछ भी न पूछूं…इस में मैं किसी को कोई दोष नहीं देती क्योंकि मेरा यही हाल होना चाहिए था. ज्यादा शराफत भी इनसान को कहीं का नहीं छोड़ती.’’

अवाक् रह गए थे हम दोनों. शोभा की सूरत तो रोने जैसी हो गई. नीरा भाभी का यह रूप उस ने कहां सोचा था. कभी मेरा मुंह देखती और कभी भाभी का.

‘‘भाभी, आप ऐसा क्यों कह रही हैं? मेरी जान निकल जाएगी घबराहट से.’’

‘‘मैं ने भी सोचा था, मेरी जान निकल जाएगी लेकिन निकली कहां है… देखो न मैं जिंदा हूं. रिश्तों की मानमर्यादा का बहुत महत्त्व होता है. इतना तो तुम जानते हो न. सच कहा तुम ने, इनसान विश्वास की डोर के सहारे ही दूरदूर तक उड़ता है. मैं भी उसी डोर के सहारे 15 साल से उड़ रही थी. कितना कर्ज था विजय के सिर पर. सब तुम जानते हो न, तब कैसेकैसे मेहनत कर मैं पैसे बचाती रही. कुछ पैसे जमा हो जाते तो कर्ज की एक किस्त उतर जाती. मैं पाईपाई जोड़ती रही और तुम्हारा दोस्त पाईपाई बाहर लुटाता रहा.

‘‘बोनस मिलता रहा और आफिस के काम के बहाने दोस्तों के साथ बाहर घूमनेफिरने जाता रहा. वह हर साल जाता है. उसे कभी मेरा सूना गला या सूनी कलाइयां नजर नहीं आईं? मेरी कुरबानी को उस ने अपना अधिकार ही मान लिया, क्या यह घर सिर्फ मेरा है?

‘‘मैं किसी शक के बिना पर ऐसा नहीं कह रही हूं. अपने कानों से मैं ने विजय को अग्रवाल के साथ बातें करते सुना है. 3 महीने पहले उसे जो बोनस मिला उस का इस्तेमाल कैसे हुआ था. वही चटखारे लगालगा कर दोनों आपस में बातें कर रहे थे. विजय को लगा था कि मैं घर पर नहीं हूं. अपने भीतर के जानवर को उस ने कबकब, कहांकहां और कैसेकैसे खुश किया, कहो तो एकएक शब्द बोल कर सुनाऊं आप दोनों को? सुनोगे?’’

मुझ में काटो तो खून नहीं रहा. यह तो सच है कि हर साल विजय कुछ दिन के लिए बाहर जाता है. वैसे भी जब से उस की पदोन्नति हुई है, उस का बाहर का काम ज्यादा रहता है. कोई कब कहां जा रहा है और वहां क्या करता है, कोई कैसे जान सकता है?

‘‘तुम्हारे दोस्त के पास पत्नी के लिए एक सूती धोती तक लाने के पैसे कभी नहीं हुए. खुद बाहर से मौजमस्ती कर के आता रहा और मैं आगेपीछे घूमती रही कि बेचारे आफिस के काम से थक कर आए हैं.

‘‘तुम्हीं बताओ मुझ से कहां चूक हुई? कभी कुछ मांगा नहीं, क्या इसी का असर यह हुआ कि मेरी सारी इच्छाएं ही मर गईं. उन की हर इच्छा जागती रही और मेरी इच्छाओं का क्या?’’

रो रही थीं भाभी. तनिक झुकीं फिर आंसू पोंछ हंस दीं.

‘‘अच्छा बेवकूफ बनाया मुझे मेरे पति ने…’’

‘‘आप के इस व्यवहार का बच्चों पर क्या असर होगा, भाभी?’’

‘‘बच्चे सिर्फ मेरे हैं क्या? अब तो जो हो गया सो हो गया. जब बच्चों के पिता ने घर की चौखट लांघी थी तब क्या उस ने सोचा था कि इस का उस

के बच्चों पर क्या असर होगा. जानती हूं, विजय ने ही तुम्हें मेरे पास समझाने के लिए भेजा है क्योंकि अब घर पर उन के पैर दबाने को मैं जो नहीं मिलती उन्हें.’’

क्या उत्तर देता मैं? भाभी कहां गलत हैं? क्या करतीं वे जब उन्होंने अपने पति की रासलीलाएं उसी के मुंह से सुनी होंगी. बुरी तरह ठगा हुआ महसूस किया होगा स्वयं को. रिश्ते को काट कर फेंक न देती तो क्या करतीं. मुझे भी तो ठगा है न विजय ने, इतनी पुरानी दोस्ती में अपने चरित्र का यह रूप तो मुझे कभी दिखाया ही नहीं. अपनी वकालत के लिए भाभी के पास भी भेज दिया. चुपचाप वापस लौट आए हम, लेकिन रात भर सो नहीं पाए. शोभा की नजर मुझ पर यों पड़ रही थी मानो मैं भी कहीं न कहीं भाभी का गुनहगार हूं.

दूसरी सुबह विजय मुझ से मिला. तरस भी आ रहा था मुझे उस पर और क्रोध भी.

‘‘भाभी ने सब से पहले कब तुम पर चीखनाचिल्लाना शुरू किया बता सकते हो, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं तो, कोई भी बात नहीं हुई थी.’’

‘‘पिछली बार जब तुम शिमला गए थे तब वहां होटल में क्याक्या किया था, क्या याद है तुम्हें…दिल्ली और उदयपुर का तजरबा भी खासा रंगीन था, याद आया…’’

विजय के चेहरे का उड़ता रंग मुझे सारी सचाई बता गया और उसी पल मुझे लगा भाभी की तरह मैं ने भी विजय को खो दिया.

‘‘भाभी ने तुम्हारी वे सारी बातें सुन ली थीं जब तुम शिमला से वापस आने पर अपने सहयोगी अग्रवाल से बात कर रहे थे. तब तुम्हें यह पता नहीं था कि वे घर में ही हैं.’’

मानो विजय नंगा हो गया. क्या कहे अपनी सफाई में? प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत थी.

‘‘अपनी गृहस्थी में तुम ने खुद आग लगाई है. चरित्र तुम्हारा घिनौना है और आरोप भाभी पर लगा रहे हो. क्या तुम्हारी आंखों में जरा सी भी शर्म है? सारी कालोनी में तुम बदनाम हो गए, इस में दोष किस का है?…

‘‘…और कैसे प्रतिक्रिया करे वह औरत जिस के अटूट विश्वास को ही तुम ने चौराहे का मजाक बना दिया. ईमानदार पति तो पत्नी का अभिमान होता है न. तुम ने जो किया उस के बाद वे तुम्हारी परछाईं से दूर न भागें तो क्या करेें. बेचारी अपना लहूलुहान विश्वास ले कर अलग कमरे में क्यों न चली जाएं.’’

‘क्योंभरोसा करें भाभी उस इनसान पर जो खुद को पाकसाफ बताता रहा और भाभी को ही चरित्रहीन कहता रहा. वजह यह बताई कि शायद वही अपनी जरूरतों के लिए कहीं और से जुड़ गई है जिस कारण अब विजय की जरूरत कभी महसूस ही नहीं होती उन्हें.

‘‘तुम्हें आज भी बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है. तकलीफ है तो इस बात की कि अब भाभी ने तुम्हारी जरूरतें पूरी करनी छोड़ दी हैं. मुफ्त की औरत नसीब नहीं होती तुम्हें.’’

‘‘नीरा सबकुछ जान कर भी चुप रह सकती थी. अकेला मैं ही तो ऐसा नहीं हूं जो बाहर से मौजमस्ती कर के लौटता हूं,’’ विजय का उत्तर था.

वास्तव में मुझे उस पर शर्म आई उस पल. क्या यह वही विजय है? सच कहा है बुजुर्गों ने. कोई भी अनैतिकता अपनाने जाओ तो बस एक बार की ही जरा सी झिझक होती है. किसी पर गोली चलाने वाले के हाथ भी बस पहली बार ही कांपते हैं. समझ नहीं पा रहा हूं विजय के संस्कार क्यों और कब भटक गए. वह इतना कमजोर तो कभी नहीं था.

‘‘इतने महंगे शौक क्या उस इनसान को शोभा देते हैं जिस के सिर पर आज तक बहन की शादी का कर्ज है.

‘‘ईमानदार के सामने चरित्रहीनता परोस दोगे तो बेचारा कैसे निगल पाएगा? नहीं पचा सकीं सो उलट दिया उस गरीब ने. सहने की भी एक सीमा होती है, विजय. और मुझे अफसोस हो रहा है कि अपनी करनी पर तुम्हें जरा सी भी आत्म- ग्लानि नहीं है.’’

चुप रहा विजय. अपनी भूल पर शर्म तो नहीं आई उसे लेकिन इस बात की चिंता अवश्य हो रही थी कि लोग क्या कहेंगे. समाज क्या कहेगा, क्योंकि समाज से कट कर रहने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए.

‘‘जवान होते बेटों के पिता हो तुम. यह मत सोचना भाभी अकेली हैं. जरूरत पड़ी तो मैं भी तुम्हारा साथ नहीं दूंगा. जो कर चुके हो सो कर चुके हो, आगे की सोचो, तुम्हारी भूल तुम्हारी है, प्रायश्चित्त भी तुम्हीं को करना है. किसी तरह अपना घर बचाने का प्रयत्न करो, विजय.’’

विजय को समझाबुझा कर किसी तरह मैं चला तो आया लेकिन मेरे प्रयास का क्या प्रभाव होगा, नहीं जानता. आसार भी इस तरह के नहीं लग रहे थे कि जल्दी कोई अच्छी खबर सुनने को मिलेगी.

‘‘भाभी ने कल बच्चों का और अपना एचआईवी टैस्ट कराया है. अभी रिपोर्ट नहीं आई. पता नहीं क्या होगा. दम घुट रहा है मेरा.’’

शाम को रोंआसी सी शोभा ने खबर सुनाई. सकते में आ गया मैं भी. एक इनसान का गलत कदम पूरे परिवार को कैसे मुसीबत में डाल देता है, मैं बड़ी गहराई से महसूस कर रहा था.

कल से शोभा के चेहरे की भावभंगिमा भी विचित्र सी ही है. प्रश्न सा लिए मुझे निहारती हैं उस की बड़ीबड़ी आंखें. भाभी का परिवार सदा से मेरा भी परिवार रहा है. कहीं उसी का दुष्प्रभाव तो नहीं, जो शोभा की आंखों में भी संदेह के बादल मैं साफसाफ पढ़ रहा हूं.

‘‘क्या मैं भी शीना और अपना टैस्ट करवा लूं? क्या मुझे भी इस की जरूरत है?’’

हजारों प्रश्न अपने एक ही प्रश्न में समेटे शोभा ने अपने होंठ खोले. कल रात से ही शोभा भी परेशान सी है. चौंक कर मैं ने उस की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब?’’ बड़ी मेहनत करनी पड़ी मुझे यह सवाल पूछने में 10 साल पुराना संबंध क्या किसी ऐेसे प्रश्न का मोहताज हो गया? विजय का परम मित्र हूं न जिस का हरजाना मुझे भी भरना पड़ेगा, विजय के घर में उठने वाला तूफान मेरे भी घर की दीवारें फाड़ कर भीतर चला आया था.

शोभा का चेहरा सफेद पड़ गया मेरा चेहरा देख कर. क्या समझ रही है वह मेरे चुप रहने का मतलब. लपक कर समीप चला आया मैं. यह क्या हो रहा है शोभा को?

‘‘अगर आप भी वैसे ही हैं तो पास मत आइए…’’

‘‘शोभा, यह क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘अगर मेरी आंखों पर कोई परदा है तो बता दीजिए…विजय भैया की तरह आधे रास्ते में…’’

‘‘पागल हो गई हो क्या?’’

रो पड़ा था मैं भी. कस कर छाती से भींच लिया शोभा को. माथे पर प्रगाढ़ चुंबन देते हुए समझाने का प्रयास किया.

‘‘शीना की कसम. कहीं कोई परदा नहीं है. जो तुम्हारी आंखों के सामने है वही तुम्हारी पीठ के पीछे भी है.’’

फूटफूट कर रोने लगी शोभा. पास खड़ी शीना भी सहम गई मां की इस हालत पर. इशारे से बच्ची को पास बुलाया. अपने छोटे से परिवार को बांहों में बांध मैं सोचने लगा, ‘आखिर क्या कमी थी विजय को? क्षणिक सुख की चाह में क्यों उस ने पूरे परिवार की खुशी और जान सूली पर चढ़ा दी.’

शीना मेरे गाल चूम रही थी और उस मासूम के चुंबन में भी मैं इस का उत्तर खोज रहा था कि क्या कमी है मुझे जो मैं भटक जाऊं? क्या कमी थी विजय के पास जो वह भटक गया? आखिर क्या कमी थी?

Interesting Hindi Stories : अनोखा हनीमून – मिस्टर माथुर और सिया का क्या रिश्ता था

Interesting Hindi Stories :  ‘‘पर, क्या तुम्हें अब भी लगता है कि मैं ने तुम को धोखा दिया है और प्यार का नाटक कर के तुम्हारा बलात्कार किया है,‘‘ वीरेन की इस बात पर नमिता सिर्फ सिर झुकाए बैठी रही. उस की आंखों में बहुतकुछ उमड़ आया था, जिसे रोकने की कोशिश नाकाम हो रही थी.

नमिता के मौन की चुभन को अब वीरेन महसूस कर सकता था. उन दोनों के बीच अब दो कौफी के मग आ चुके थे, जिन्हें होठों से लगाना या न लगाना महज एक बहाना सा लग रहा था, एकदूसरे के साथ कुछ समय और गुजारने का.

‘‘तो इस का मतलब यह है कि तुम सिर्फ मुझे ही दोषी मानती हो… पर, मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की… हमारे बीच जो भी हुआ, वो दो दिलों का प्यार था और जवान होते शरीरों की जरूरत… और फिर संबंध बनाने से कभी तुम ने भी तो मना नहीं किया.‘‘

वीरेन की इस बात से नमिता को चोट पहुंची थी, तिलमिलाहट की रेखा नमिता के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी.

पर, अचानक से एक अर्थपूर्ण मुसकराहट नमिता के होठों पर फैल गई.

‘‘उस समय तुम 20 साल के रहे होगे और मैं 16 साल की थी… उम्र के प्रेम में जोश तो बहुत होता है, पर परिपक्वता कम होती है और किए प्रेम की परिणिति क्या होगी, यह अकसर पता नहीं होता…

‘‘वैसे, सभी मर्द कितने स्वार्थी होते हैं… दुनिया को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं और कुछ इस तरह से कि कहीं उन का दामन दागदार न हो जाए.‘‘

‘‘मतलब क्या है तुम्हारा?‘‘ वीरेन ने पूछा.‘‘आज से 16 साल पहले तुम ने प्रेम की आड़ ले कर मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाए, उस का परिणाम मैं आज तक भुगत ही तो रही हूं.‘‘‘थोड़ा साफसाफ कहो,‘‘ वीरेन भी चिहुंकने लगा था.

‘‘बस यही कि मेरे बच्चा ठहर जाने की बात मां को जल्द ही पता चल गई थी. वे तुरंत ही मेरा बच्चा गिराने अस्पताल ले कर गईं…”पर… पर, डाक्टर ने कहा कि समय अधिक हो गया है, इसलिए बच्चा गिरवाने में मेरी जान को भी खतरा हो सकता है,‘‘ दो आंसू नमिता की आंखों से टपक गए थे.

‘‘हालांकि पापा तो यही चाहते थे कि मुझे मर ही जाने दिया जाए, कम से कम मेरा चरित्र और उन की इज्जत दोनों नीलाम होने से बच जाएंगे… लेकिन, मां मुझे ले कर मेरठ से दिल्ली चली आईं और बाकी का समय हम ने उस अनजाने शहर में एक फ्लैट में बिताया, जब तक कि मैं ने एक लड़की को जन्म नहीं दे दिया,‘‘ कह कर नमिता चुप हो गई थी.

उस ने बोलना बंद किया.‘‘कोई बात नहीं नमिता, जो हुआ उसे भूल जाओ… अब मैं अपनी बेटी को अपनाने को तैयार हूं… कहां है मेरी बेटी?‘‘‘‘मुझे नहीं पता… पैदा होते ही उसे मेरा भाई किसी अनाथालय में छोड़ आया था,‘‘ नमिता ने बताया.

‘‘पर क्यों…? मेरी बेटी को एक अनाथालय में छोड़ आने का क्या मतलब था?‘‘‘‘तो फिर एक नाजायज औलाद को कौन पालता…? और फिर, हम लोगों से क्या कहते कि हमारे किराएदार ने ही हमारे साथ धोखा किया.‘‘‘‘पर, मैं ने कोई धोखा नहीं किया नमिता.‘‘

‘‘एक लड़की के शरीर से खिलवाड़ करना और फिर जब वह पेट से हो जाए तो उस को बिना सहारा दिए छोड़ कर भाग जाना धोखा नहीं तो और क्या कहलाता है वीरेन?‘‘

‘‘देखो, जहां से तुम देख रही हो, वह तसवीर का सिर्फ एक पक्ष है, बल्कि दूसरा पक्ष यह भी है कि तुम्हारे भाई और पापा मेरे कमरे में आए और मुझे बहुत मारा, मेरा सब सामान बिखेर दिया और मुझे लगा कि मेरी जान को भी खतरा हो सकता है, तब मैं तुम्हारा मकान छोड़ कर भाग गया…

“यकीन मानो, उस के बाद मैं ने अपने दोस्तों के द्वारा हर तरीके से तुम्हारा पता लगाने की कोशिश की, पर तुम्हारा कुछ पता नहीं चल सका.‘‘

‘‘हां वीरेन… पता चलता भी कैसे, पापा ने मुझे घर में घुसने ही नहीं दिया… मैं तो आत्महत्या ही कर लेती, पर मां के सहयोग से ही मैं दूसरी जगह रह कर पढ़ाई कर पाई और आज अपनी मेहनत से तुम्हारी बौस बन कर तुम्हारे सामने बैठी हूं.‘‘

नमिता के शब्द वीरेन को चुभ तो गए थे, पर मैं ने प्रतिउत्तर देना सही नहीं समझा.‘‘खैर, तुम बताओ, तुम्हारी शादी…? बीवीबच्चे…? सब ठीक तो होंगे न,‘‘ नमिता के स्वर में कुछ व्यंग्य सा था, इसलिए अब वीरेन को जवाब देना जरूरी लगा.

‘‘नहीं नमिता… तुम स्त्रियों के मन के अलावा हम पुरुषों के मन में भी भाव रहते हैं… हम लोगों को भी सहीगलत, ग्लानि और प्रायश्चित्त जैसे शब्दों का मतलब पता होता है…

“तुम्हारे घर से निकाले जाने के बाद मैं पढ़ाई पूरी कर के राजस्थान चला गया. वहां मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा… मेरे मन में भी अपराधबोध था, जिस के कारण मैं ने आजीवन कुंवारा रहने का प्रण लिया… ‘‘

मेरे ‘कुंवारे‘ शब्द के प्रयोग पर नमिता की पलकें उठीं और मेरे चेहरे पर जम गईं.‘‘मेरा मतलब है… अविवाहित… मैं अब भी अविवाहित हूं.‘‘‘‘और मैं भी…‘‘ नमिता ने कहा.

उन दोनों की बातों का सफर लंबा होता देख वीरेन ने और दो कौफी का और्डर दे दिया.

‘‘पर, मेरी बेटी अनाथालय में है, यह बात मेरे पूरे व्यक्तित्व को ही कचोटे डाल रही है… मैं अपनी बेटी से मिलने के बाद उसे अपने साथ रखूंगा… मैं उसे अपना नाम दूंगा.‘‘‘पर, कहां ढूंढ़ोगे उसे?‘‘

‘‘अपने भाई का मोबाइल नंबर दो मुझे… मैं उस से पूछूंगा कि उस ने मेरी बेटी को किस अनाथालय में दिया है?‘‘ वीरेन ने कहा.‘‘वैसे, इस सवाल का जवाब तुम्हें कभी नहीं मिल पाएगा… क्योंकि इस बात का जवाब देने के लिए मेरा भाई अब इस दुनिया में नहीं है. एक सड़क हादसे में उस की मौत हो गई थी.‘‘

‘‘ओह्ह, आई एम सौरी,‘‘ मेरे चेहरे पर दुख और हताशा के भाव उभर आए.‘‘हम शायद अपनी बेटी से कभी नहीं मिल पाएंगे?‘‘‘‘नहीं नमिता… भला जो भूल हम ने की है, उस का खमियाजा हमारी बेटी क्यों भुगते… मैं अपनी बेटी को कैसे भी खोज निकालूंगा.’’

‘‘मैं भी इस खोज में तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.‘‘नमिता का साथ मिल जाने से वीरेन का मन खुशी से झूम उठा था. शायद ये उन दोनों की गलती का प्रायश्चित्त करने का एक तरीका था.

अपनी नाजायज बेटी को ढूंढ़ने के लिए वीरेन ने जो प्लान बनाया, उस के अनुसार उन्हें दिल्ली जाना था और उस अस्पताल में पहुंचना था, जहां नमिता ने बेटी को जन्म दिया था.

वीरेन के हिसाब से उस अस्पताल के सब से निकट वाले अनाथालय में ही नमिता के भाई ने बेटी को दिया होगावीरेन की छुट्टी को पास कराने के लिए एप्लीकेशन पर नमिता के ही हस्ताक्षर होने थे, इसलिए छुट्टी मिलने या न मिलने का कोई अंदेशा नहीं था… नमिता को अपने अधिकारी से जरूर परमिशन लेनी थी.

वीरेन और नमिता उस की पर्सनल गाड़ी से ही दिल्ली के लिए रवाना हो लिए थे.वीरेन के नथुनों में नमिता के ‘डियोड्रेंट‘ की खुशबू समा गई. नमिता के बाल उस के कंधों पर झूल रहे थे, निश्चित रूप से समय बीतने के साथ नमिता के रूप में और भी निखार आ गया था.

‘‘नमिता कितनी सुंदर है… कोई भी पुरुष नमिता को बिना देर किए पसंद कर लेगा, पर… ‘‘ वीरेन सोच रहा था.‘‘अगर जिंदगी में ‘इफ‘, ‘बट‘, ‘लेकिन’, ‘किंतु’, ‘परंतु’ नहीं होता, तो कितनी सुहानी होती जिंदगी… है न,‘‘ नमिता ने कहा, पर मुझे उस की इस बात का मतलब समझ नहीं आया.

नमिता की कार सड़क पर दौड़ रही थी. नमिता अपने साथ एक छोटा सा बैग लाई थी, जिसे उस ने अपने साथ ही रखा हुआ था.नमिता ‘व्हाट्सएप मैसेज‘ चेक कर रही थी.

वीरेन को याद आया कि पहले नमिता अकसर हरिवंशराय बच्चन की एक कविता अकसर गुनगुनाया करती थी, ‘जो बीत गई सो बात गई‘.

वीरेन ने तुरंत ही गूगल के द्वारा उस कविता को सर्च किया और नमिता के व्हाट्सएप पर भेज दिया.नमिता मैसेज देख कर मुसकराई और उसे पूरे ध्यान से पढ़ने लगी. कुछ देर बाद मैं ने अपने मोबाइल पर भी नमिता का एक मैसेज देखा, जो कि एक पुरानी फिल्म का गीत था, ‘दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा… जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा’.‘‘

उस के द्वारा इस तरह से एक गंभीर मैसेज भेजने के बाद और कोई मैसेज भेजने की वीरेन की हिम्मत नहीं हुई.नमिता खिड़की से बाहर देख रही थी. बाहर अंधेरे के अलावा सिर्फ बहुमंजिला इमारतों की जगमगाहट ही दिखती थी. हालांकि एसी औन था, फिर भी पसीने की चमक मैं नमिता के माथे पर देख सकता था.

‘‘तुम्हारा ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है क्या?‘‘ वीरेन ने पूछ ही लिया.‘‘नहीं. दरअसल, इस से पहले जब तुम साथ में थे, तो उस के बाद मेरे जीवन में एक भूचाल आया था और अब फिर से मैं तुम से मिल रही हूं… ऊपर वाला ही जाने कि अब क्या होगा,‘‘ नमिता के चेहरे पर फीकी मुसकराहट थी.

नमिता को अच्छी तरह पता था कि पीला कलर वीरेन को बहुत पसंद है… और आज उस ने पीली कलर की साड़ी पहनी थी.बीचबीच में वीरेन की नजर अपनेआप नमिता के चेहरे पर चली जाती थी.

‘‘मेरी वजह से नमिता कितना परेशान रही होगी. और न जाने कैसे उस ने अपने मांबाप के अत्याचारों और तानों को सहा होगा,‘‘ यह सोच कर वीरेन को गहरा अफसोस हो रहा था.गाड़ी हाईवे पर दौड़ रही थी. बाहर ढाबों और रैस्टोरैंट की कतार देख कर वीरेन ने कहा, ‘‘चलो, खाना खा लेते हैं.‘‘

वीरेन ने अपने लिए दाल फ्राई और चपाती मंगाई, जबकि नमिता ने सिर्फ सलाद और्डर किया… और धीरेधीरे खाने लगी.

वापस कार में बैठते ही नमिता ने कानों में हैडफोन लगा लिया था और कोई संगीत सुनने लगी. वीरेन समझ गया कि नमिता अब और ज्यादा बातें नहीं  करना चाहती है. लिहाजा, वीरेन भी अपने मोबाइल पर उंगलियों को सरकाने लगा.

कार सड़क पर मानो फिसल रही थी. बाहर रात गहरा रही थी. शहर पीछे छूटते जा रहे थे और नमिता का सिर वीरेन के कंधे पर आ गया था. उसे नींद आ गई थी. उस का मासूम सा चेहरा नींद में कितना खूबसूरत लग रहा था.

नमिता का वीरेन के कंधे पर सिर रख लेना उस के लिए सुखद अहसास से कम नहीं था.कुछ देर बाद ही नमिता जाग गई थी. वीरेन ने भी अपने उड़ते विचारों को थाम लिया था.वे दिल्ली पहुंच गए थे, और वे वहां से कैब ले कर नमिता के फ्लैट की तरफ चल दिए.

‘अमनचैन अपार्टमैंट्स‘ में ही नमिता आ कर रुकी थी और वहीं से कुछ ही दूरी पर एक नर्सिंगहोम था, जहां पर नमिता ने बेटी को जन्म दिया था. यहां पहुंच कर उन्हें सब से पास का अनाथालय ढूंढ़ना था, जिस के लिए वीरेन ने तकनीक की मदद ली और गूगल मैप की सहायता से उसे अनाथालय ढूंढ़ने में कोई परेशानी नहीं हुई. उन्होंने अनाथालय में जा कर वहां के मैनेजर से मुलाकात की.

‘‘जी कहिए… आप कितना डोनेशन देने आए हैं सर,‘‘ गंजे सिर वाले मैनेजर ने पूछा.‘‘डोनेशन…? हम तो एक बच्चे को ढूंढ़ने आए हैं, जिसे आज से 15 साल पहले आप के ही अनाथालय में कोई आ कर दे गया था.‘‘

मैनेजर ने आंखें सिकोड़ीं, मानो वो बिना बताए ही सबकुछ समझने की कोशिश कर रहा था.‘‘अरे साहब, कोई जरूरी नहीं कि वह बच्चा अब भी यहां हो या उसे कोई आ कर गोद ले गया हो… इतने साल पुरानी बात आप आज क्यों पूछ रहे हैं… हालांकि मुझे इस बात से कोई लेनादेना नहीं है… पर, अब पुराने रिकौर्ड भी इधरउधर हो गए हैं… और फिर हम किसी अजनबी को अपनी कोई जानकारी भला दे भी क्यों?‘‘ मैनेजर ने अपनी हथेली खुजाते हुए कहा.

नमिता अपने बच्चे को देखने के लिए अधीर हो रही थी. उस ने अपने पर्स से सौ के नोट की एक गड्डी निकाली और मैनेजर की ओर बढ़ाई.

‘‘जी, ये लीजिए डोनेशन… और इस की रसीद भी हमें आप मत दीजिए. उसे आप ही रख लीजिएगा… बस आज से 15 साल पहले 10 अगस्त को एक लड़की को कोई आप के यहां दे गया था. आप हमें उस बच्ची से मिलवा दीजिए… हम उसे गोद लेना चाहते हैं.‘‘

नोटों की गड्डी को जेब के हवाले करते हुए मैनेजर ने अपना सिर रजिस्टर में झुका लिया और कुछ ढूंढ़ने का उपक्रम करने लगा.‘‘जी, आप जिस बच्ची की बात कर रही हैं… वह कहां है… देखता हूं…‘‘

कुछ देर बाद मैनेजर ने उन लोगों को बताया कि 10 अगस्त के दिन एक लड़की को कोई छोड़ तो गया था, पर अब वह लड़की उन के अनाथालय में नहीं है.‘‘तो कहां है मेरी बेटी?‘‘ किसी अनिष्ट की आशंका से डर गई थी नमिता.

‘‘जी, घबराइए नहीं. आप की बेटी जहां भी है, सुरक्षित है. आप की बेटी को कोई निःसंतान दंपती आ कर गोद ले गए थे.‘‘‘‘कौन दंपती? कहां हैं वो? आप हमें उन का पता दीजिए… हम अपनी बेटी उन से जा कर मांग लेंगे,‘‘ वीरेन ने कहा.

‘‘जी नहीं सर… उस दंपती ने पूरी कानूनी कार्यवाही कर के उस बच्ची को गोद लिया है… अब कोई भी उन से बच्ची को छीन नहीं सकता है,‘‘ मैनेजर ने कहा.

‘‘पर, आप हमें बता तो सकते हैं न कि किस ने उसे गोद लिया है… हम एक बार अपनी बेटी से मिल तो लें,‘‘ नमिता परेशान हो उठी थी.

‘‘मैं चाह कर भी उन लोगों की पहचान आप को नहीं बता सकता हूं… ये हमारे नियमों के खिलाफ है,‘‘ मैनेजर ने कहा.

अब बारी वीरेन की थी. उस ने भी मैनेजर को पैसे पकड़ाए, तो कुछ ही देर में उस ने उस दंपती का पूरा पता एक कागज पर लिख कर मेरी ओर बढ़ा दिया.

ये बरेली के सिविल लाइंस में रहने वाले मिस्टर राजीव माथुर का पता था.‘‘अब हमें वापस चलना चाहिए,‘‘ वीरेन ने नमिता से कहा.‘‘नहीं, मैं अपनी बेटी से जरूर मिलूंगी और अपने साथ ले कर आऊंगी,‘‘ नमिता ने कहा, तो वह उस के चेहरे पर कठोरता का भाव साफ देख सकता था.

वीरेन के समझाने पर भी नमिता नहीं मानी, तो वे बरेली की तरफ चल दिए और वहां पहुंच कर दिए गए पते को खोजते हुए राजीव माथुर के घर के सामने खड़े हुए थे. वह एक सामान्य परिवार था. उन का घर देख कर तो ऐसा ही लग रहा था.

राजीव माथुर के घर की घंटी बजाई, तो उन के नौकर ने दरवाजा खोला. सामने ही मिस्टर माथुर थे. मिस्टर माथुर की उम्र कोई 70 साल के आसपास होगी, पर उन्हें व्हीलचेयर पर बैठा देख वीरेन को एक झटका सा जरूर लगा, मिस्टर माथुर के साथ ही उन की पत्नी भी खड़ी थीं. उन दोनों को देख कर नमिता और वीरेन के चेहरे पर कई प्रश्नचिह्न आए.

पर, फिर भी उन्होंने एक महिला को देख कर उन्हें ड्राइंगरूम में बिठाया और अपने नौकर को 2 कप चाय बनाने को कहा.

‘‘जी, दरअसल, हम लोग दिल्ली से आए हैं और आप लोग जिस अनाथालय से एक लड़की को गोद ले कर आए थे… वो दरअसल में हमारी बेटी है,‘‘ नमिता ने एक ही सांस में मानो सबकुछ कह डाला था और बाकी का अनकहा मिस्टर माथुर बखूबी समझ गए थे.

‘तो आज इतने सालों के बाद मांबाप का प्यार जाग उठा है… अब आप लोग मुझ से क्या चाहते हैं?‘‘‘देखिए, मैं जानता हूं कि आप ने कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद ही हमारी बेटी को गोद लिया है… पर, फिर भी…‘‘ वह आगे कुछ कह न पाया, तो मिस्टर माथुर ने वीरेन की मदद की.

‘‘पर, फिर भी… क्या… बेहिचक कहिए…‘‘‘‘दरअसल, हम हमारी बेटी को वापस चाहते हैं.‘‘वीरेन भी हिम्मत कर के अपनी बात कह गया था.

कुछ देर चुप रहने के बाद मिस्टर माथुर ने बोलना शुरू किया, ‘‘देखिए, यह तो संभव नहीं है. आज का युवा मजे करता है, जब फिर बच्चे पैदा होते हैं,  फिर अनाथालय में छोड़ देता है और फिर एक दिन अचानक उन का प्यार जाग पड़ता है और वे औलाद को ढूंढ़ने चल पड़ते हैं.

‘‘आप जैसे लोगों की वजह से ही अनाथालयों में बच्चों की भीड़ लगी रहती है और कई नवजात बच्चे कूड़े के ढेर में पड़े हुए मिलते हैं… और मुझे लग रहा है कि आप दोनों अब भी अविविवाहित हैं?‘‘ मिस्टर माथुर का पारा बढ़ने लगा था. उन की अनुभवशाली आंखें काफीकुछ समझ गई थीं.

कुछ देर खामोशी छाई रही, फिर मिस्टर माथुर ने अपनेआप को संयत करते हुए कहा, ‘‘खैर जो भी हो, अब वह हमारी बेटी है और वह हमारे ही पास रहेगी… अगर आप चाय पीने में दिलचस्पी रखते हों तो पी सकतें हैं, नहीं तो आप लोग जा सकते हैं.‘‘

कुछ कहते न बना वीरेन और नमिता से, वे दोनों अपना सा मुंह ले कर मिस्टर माथुर के घर से निकल आए.माथुर दंपती ने जब अनाथालय से बच्ची को गोद लिया था, तब उन की उम्र 55 साल के आसपास थी, एक बच्ची को गोद लेने की सब से बड़ी वजह थी कि मिस्टर माथुर के भतीजों की नजर उन की संपत्ति पर थी और माथुर दंपती के निःसंतान होने के नाते उन के भतीजे उन की दौलत को जल्दी से जल्दी हासिल कर लेना चाहते थे.

मिस्टर माथुर ने बच्ची को गोद लेने के बाद उस का नाम ‘सिया‘ रखा और उसे खूब प्यारदुलार दिया. उन्होंने सिया के थोड़ा समझदार होते ही उसे ये बात बता दी थी कि सिया के असली मांबाप वे नहीं हैं, बल्कि कोई और हैं और वे लोग उसे अनाथालय से लाए हैं.

इस बात को सिया ने बहुत ही सहजता से लिया और वह माथुर दंपती से ही अपने असली मांबाप की तरह प्यार करती रही.आज माथुर दंपती के इस प्रकार के रूखे व्यवहार से नमिता बुरी तरह टूट गई थी. वह होटल में आ कर फूटफूट कर रोने लगी. वीरेन ने उसे हिम्मत दी, “तुम परेशान मत हो नमिता… मैं माथुर साहब से एक बार और मिल कर उन से प्रार्थना करूंगा, उन के सामने अपनी झोली फैलाऊंगा. हो सकता है कि उन्हें दया आ जाए और वे हमारी बेटी से हमें मिलने दें,” वीरेन ने कहा.

अगले दिन वीरेन एक बार फिर मिस्टर माथुर के सामने खड़ा था. उसे देखते ही मिस्टर माथुर अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए बोले, “अरे भाई, क्यों बारबार चले आते हो हमें डिस्टर्ब करने…? क्या कोई और काम नहीं है तुम्हारे पास? हम तुम्हें अपनी बेटी से नहीं मिलवाना चाहते… अब जाओ यहां से?”

एक बार फिर वीरेन अपना सा मुंह ले कर वापस आ गया था.वीरेन को बारबार सिया से मिलने के लिए परेशान और मिस्टर माथुर के रूखे व्यवहार को देख कर मिस्टर माथुर की पत्नी ने उन से कहा, “आप उन लोगों को सिया से मिला क्यों नहीं देते?”

“आज को तुम बेटी को मिलाने को कह रही हो, कल को उसे उन लोगों के साथ जाने को कहोगी… और क्या पता कि ये लोग भला उस के असली मांबाप हैं भी या नहीं,” मिस्टर माथुर ने अपनी पत्नी से कहा.

“वैसे, अपनी सिया की शक्ल उस युवक से काफी हद तक मिलती तो है,” मिसेज माथुर ने कहा, तो मिस्टर माथुर ने भी अपनी आंखें कुछ इस अंदाज में सिकोड़ीं, जैसे वे वीरेन और सिया की शक्लें मिलाने का प्रयास कर रहे हों और कुछ देर बाद वे भी मिसेज माथुर की बात से संतुष्ट ही दिखे.

“अब यहां रुके रहने से क्या फायदा वीरेन? हम ने जो गलत काम किया है, उस की सजा हमें इस रूप में मिल रही है कि हम अपनी बेटी के इतने करीब आ कर भी उस से नहीं मिल पाएंगे,” नमिता ने दुखी स्वर में कहा.

“हां नमिता… पर, एक बार मुझे और कोशिश करने दो. हो सकता है कि उन का मन पसीज जाए… और फिर तुम ने ही तो एक बार किसी कवि की चंद पंक्तियां सुनाई थीं न… ‘फैसला होने से पहले मैं भला क्यों हार मानूं… जग अभी जीता नहीं है… मैं अभी हारा नहीं हूं’,” वीरेन ने कहा.

“तो फिर मैं भी तुम्हारे साथ हूं,” नमिता ने भी दृढ़ता से कहा.एक बार फिर से वीरेन और नमिता माथुर दंपती के सामने बैठे हुए थे. मिस्टर माथुर का लहजा भी थोड़ा नरम लग रहा था.

“तो वीरेनजी, हम आप को आप की बेटी से मिलने तो देंगे, पर हम ये कैसे मान लें कि आप ही सिया के असली मांबाप हैं?”“जी, मैं किसी भी तरह के टैस्ट के लिए तैयार हूं,” वीरेन का स्वर अचानक से चहक उठा था.

“तो फिर ठीक है, आप लोग अपना डीएनए टेस्ट करवा लाइए और आज मैं आप लोगों को सिया से मिलवा देता हूं.”मिसेज माथुर अपने साथ सिया को ले कर आईं, 15 साल की सिया कितनी भोली लग रही थी, उस के चेहरे पर वीरेन की झलक साफ नजर आ रही थी.नमिता ने दौड़ कर सिया को अपनी बांहों में भर लिया और उसे चूमने लगी. वीरेन तो सिर्फ सिया को निहारे जा रहा था. उन का इस तरह से अपनी बेटी से मिलना देख कर माथुर दंपती की आंखें भी भर आई थीं.

कुछ दिनों बाद डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट से यह साफ हो गया था कि सिया ही नमिता और वीरेन की बेटी है.

“देखो गलती हर एक से होती है, पर अपनी गलती का अहसास हो जाए तो वह गलती नहीं कहलाती… सिया तुम्हारी ही बेटी है, ये तो टैस्ट से साबित हो गया है, पर अब कानूनन हम ही उस के उस के मांबाप हैं और हम अपनी बेटी को अब किसी को गोद नहीं देंगे… तुम लोगों को भी नहीं…

“पर, मैं तुम दोनों से सब से पहले तो ये गुजारिश करूंगा कि तुम दोनों शादी कर लो और आगे का जीवन प्यार से बिताओ.‘‘

मिस्टर माथुर की ये बात सुन कर नमिता के गालों पर अचानक शर्म की लाली घूम गई थी. साथ ही साथ ये भी कहूंगा कि तुम दोनों अपनी सारी संपत्ति सिया के नाम करो, तभी मुझे ये लगेगा कि तुम लोगों का अपनी बेटी के प्रति यह प्रेम कहीं  क्षणभंगुर तो नहीं…, कहीं यह कोई दिखावा तो नहीं है, जैसे वक्तीतौर का प्यार होता है…” मिस्टर माथुर ने मुसकराते हुए कहा.

मिस्टर माथुर की किसी भी बात से वीरेन और नमिता को कोई गुरेज नहीं था. वीरेन ने नमिता की तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखा, नमिता खामोश थी, पर उस की मुसकराती हुई खामोशी ने वीरेन को जवाब दे दिया था.

“माथुर साहब, आप ने हमें हमारी बेटी से मिलने की अनुमति दे कर हम पर बहुत बड़ा अहसान किया है, भले ही हम सिया को दुनिया में लाने का माध्यम बने हैं, पर उस को मांबाप का प्यार तो आप लोगों ने ही दिया है… सिया आप की बेटी बन कर ही रहेगी… इसी में हम लोगों की खुशी है,” वीरेन ने कहा.

“और हम लोगों की खुशी तुम दोनों को दूल्हादुलहन के रूप में देखने की है… अब जल्दी करो शादी तुम लोग…” मिसेज माथुर ने मुसकराते हुए कहा. कमरे में सभी के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई थी.

नमिता और वीरेन दोनों ने एक मंदिर में एकदूसरे को जयमाल पहना कर शादी कर ली. दोनों बहुत सुंदर लग रहे थे. सिया अपने वीडियो कैमरे से वीरेन और नमिता को शूट कर रही थी, जो उस के जैविक मातापिता थे.

वीरेन और नमिता ने आगे बढ़ कर माथुर दंपती के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.“माथुर साहब, आप ने मेरी इतनी बातें मानीं, इस के लिए आप का शुक्रिया, पर, मैं अब एक निवेदन और करना चाहता हूं कि आप दोनों और सिया हमारे साथ शिमला चलें, जहां हम सब मानसिक रूप से रिलेक्स कर सकें,” वीरेन ने कहा.

“अरे भाई, शिमला तो लोग हनीमून मनाने जाते हैं… हम लोग तो बूढ़े हो चुके हैं.” हंसते हुए मिस्टर माथुर ने कहा.

‘‘माथुर साहब, उम्र तो सिर्फ एक नंबर है… और फिर हम भी हनीमून ही तो मनाने जा रहें हैं, जिस में आप लोग हमारे साथ होंगे और हमारी बेटी सिया भी हमारे साथ होगी… होगा न यह एक एक अनोखा हनीमून.”माथुर दंपती ने मुसकरा कर हामी भर ली.

कुछ दिनों बाद माथुर दंपती, सिया और नमिता और वीरेन शिमला में अपना अनोखा हनीमून मना रहे थे और सिया अपने वीडियो कैमरे में नजारे कैद कर रही थी.

Hindi Fiction Stories : आशीर्वाद – बिना दहेज के आई बहू की कहानी

Hindi Fiction Stories :  नीलम ने आलोक के लिए चाय ला कर मेज पर रख दी और चुपचाप मेज के पास पड़ी कुरसी पर बैठ केतली से प्याले में चाय डालने लगी. आलोक ने नीलम के झुके हुए मुख पर दृष्टि डाली. लगता था, वह अभीअभी रो कर उठी है. आलोक रोजाना ही नीलम को उदास देखता है. वैसे नीलम रोती बहुत कम है. वह समझता है कि नीलम के रोने का कारण क्या हो सकता है, इसलिए उस ने पूछ कर नीलम को दोबारा रुलाना ठीक नहीं समझा. उस ने कोमल स्वर में पूछा, ‘‘मां और पिताजी ने चाय पी ली?’’ ‘‘नहीं,’’ नीलम के स्वर में हलका सा कंपन था.

‘‘क्यों?’’ ‘‘मांजी कहती हैं कि उन्हें इस कदर थकावट महसूस हो रही है कि चाय पीने के लिए बैठ नहीं सकतीं और पिताजी को चाय नुकसान करती है.’’

‘‘तो पिताजी को दूध दे देतीं.’’ ‘‘ले गई थी, किंतु उन्होंने कहा कि दूध उन्हें हजम नहीं होता.’’

आलोक चाय का प्याला हाथ में ले कर मातापिता के कमरे की ओर जाने लगा तो नीलम धीरे से बोली, ‘‘पहले आप चाय पी लेते. तब तक उन की थकान भी कुछ कम हो जाती.’’ ‘‘तुम पियो. मेरे इंतजार में मत बैठी रहना. मां को चाय पिला कर अभी आता हूं.’’

नीलम ने चाय नहीं पी. गोद में हाथ रखे खिड़की से बाहर देखती रही. काश, वह भी हवा में उड़ते बादलों की तरह स्वतंत्र और चिंतारहित होती. नीलम के पिता एक सफल डाक्टर थे. पर उन की सब से बड़ी कमजोरी यह थी कि वे किसी को कष्ट में नहीं देख सकते थे. जब भी कोई निर्धनबीमार उन के पास आता तो वे उस से फीस का जिक्र तक नहीं करते, बल्कि उलटे उसे फल व दवाइयों के लिए कुछ पैसे अपने पास से दे देते. परिणाम यह हुआ कि वे जितना काम व मेहनत करते थे उतना धन संचित नहीं कर पाए. फिर उन की लंबी बीमारी चली, जो थोड़ाबहुत धन था वह खत्म हो गया.

उन की मृत्यु के बाद सिर्फ एक मकान के अलावा और कोई संपत्ति नहीं बची थी. सब से बड़ी बहन होने के नाते नीलम ने घर का भार संभालना अपना कर्तव्य समझा. उस ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली. छोटी बहन पूनम मैडिकल कालेज में चौथे साल में थी और भाई अनुनय बीए द्वितीय वर्ष में. आलोक ने जब नीलम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो उस ने साफ इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि जब तक पूनम पढ़ाई पूरी कर के कमाने लायक नहीं हो जाती, तब तक वह विवाह की बात सोच भी नहीं सकती. इस पर आलोक ने आश्वासन दिया था कि विवाह में वह कुछ खर्च न होने देगा और विवाह के पश्चात भी नीलम अपना वेतन घर में देने के लिए स्वतंत्र होगी. आलोक का यह तर्क था कि वह एक मित्र के नाते उस के परिवार के प्रति सबकुछ नहीं कर सकता जो परिवार का सदस्य बन जाने के पश्चात कर सकेगा.

यह तर्क नीलम को भी ठीक लगा था. कभीकभी अपनी चिंताओं के बीच वह खुद को बहुत ही अकेला व असहाय सा पाती थी. उस ने सोचा यदि उसे आलोक जैसा साथी, जो उस की भावनाओं को अच्छी तरह समझता है, मिल गया तो उस की चिंताएं कम हो जाएंगी. फिर भी नीलम की आशंका थी कि अकेली संतान होने के कारण आलोक से उस के मातापिता को बहुत सी आशाएं होंगी और इसलिए शायद उन्हें दहेजरहित लड़की को अपनी बहू बनाने में आपत्ति हो सकती है, पर आलोक ने इस बात को भी टाल दिया था. उस का कहना था कि उस के मातापिता उसे इतना अधिक प्यार करते हैं कि उस की इच्छा के सामने वे दहेज जैसी बात पर सोचेंगे भी नहीं.

आलोक के पिता प्रबोध राय एक साधारण औफिस असिस्टैंट की हैसियत से ऊपर न उठ सके थे. आलोक उन की आशाओं से बहुत अधिक उन्नति कर गया था. घर के रहनसहन का स्तर भी ऊंचा उठ गया था. आलोक सोचता था कि उस के मातापिता उस की अर्जित आय से ही इतने अधिक संतुष्ट हैं कि नीलम के वेतन की आवश्यकता अनुभव नहीं करेंगे. यही उस की भूल थी, जिसे वह अब समझ पाया था. उस के मातापिता ने पुत्र का विवाह बिना दहेज लिए केवल इसलिए किया था कि बहू अपने वेतन से वह कमी पूरी कर देगी. जब उन की वह आशा पूरी नहीं हुई तो वे क्षुब्ध हो उठे. उन्हें इस भावना ने जकड़ लिया कि उन्हें धोखा दिया गया. आलोक कमरे में पहुंचा तो उस की मां सुमित्रा अपने पलंग पर लेटी हुई थीं. प्रबोध राय पास ही पड़ी कुरसी पर बैठे समाचारपत्र देख रहे थे. आलोक बोला, ‘‘मां, नीलम कह रही थी कि आप थकान महसूस कर रही हैं. चाय पी लीजिए, थकान कुछ कम हो जाएगी.’’

‘‘रहने दे बेटा, चाय के लिए मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है.’’ ‘‘तो बताइए फिर क्या लेंगी? नीलम पिताजी के लिए मौसमी का रस निकाल रही है, आप के लिए भी निकाल देगी.’’

‘‘रहने दे, मैं रस नहीं पिऊंगी. मैं तेरी मां हूं. क्या मुझे अच्छा लगता है कि मैं अपने खर्चे बढ़ाबढ़ा कर तेरे ऊपर बोझ बन जाऊं? क्या करूं, उम्र से मजबूर हूं. अब काम नहीं होता.’’ ‘‘तो फिर क्यों नहीं नीलम को रोटी बनाने देतीं? वह तो कहती है कि सुबह आप दोनों के लिए पूरा भोजन बना कर स्कूल जा सकती है.’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है, आलोक? 7 बजे का पका खाना 12 बजे तक बासी नहीं हो जाएगा? तू ने कभी अपने पिताजी को ठंडा फुलका खाते देखा है?’’ फिर एक ठंडी सांस ले मां बोलीं, ‘‘मांबाप पुत्र का विवाह कितने अरमानों से करते हैं. घर में बहू आएगी, रौनक होगी. शरीर को आराम मिलेगा,’’ फिर एक और लंबी सांस छोड़ कर बोलीं, ‘‘खैर, इस में किसी का क्या दोष? अपनाअपना समय है. श्यामसुंदर लाल 25 लाख रुपए नकद और एक कार देने का वादा कर रहे थे.’’

‘‘कैसी बातें करती हो, मां? जो लड़की इतनी रकम ले कर आती वह क्या आप को रस निकाल कर देती? कार में उसे फिल्में दिखाने और शौपिंग कराने में ही मेरा आधे से ज्यादा वेतन स्वाहा हो जाता. ऊपर से उस के उलाहने सुनने को मिलते कि उस के मायके में तो इतने नौकरचाकर काम करते थे. और मां, यदि मेरा विवाह अभी हुआ ही न होता तो क्या होता? यदि नीलम कुछ लाई नहीं, तो वह अपने ऊपर खर्च भी तो कुछ नहीं कराती. तुम से इतनी बार मैं ने कहा है कि नौकर रख लो, पर तुम्हें तो नौकर के हाथ का खाना ही पसंद नहीं. अब तुम ही बताओ कि यह समस्या कैसे हल हो?’’ सुमित्रा के पास जो समाधान था, वह उस के बिना बताए भी आलोक जानता था, सो, वह चुप रही. आलोक ही फिर बोला, ‘‘थोड़े दिन और धीरज रखो, मां, पूनम ने आखिरी वर्ष की परीक्षा दे दी है. अब उस का खर्च तो समाप्त हो ही जाएगा. अनुनय भी 1-2 वर्ष में योग्य हो जाएगा और उस के साथ नीलम का उस का उत्तरदायित्व भी खत्म हो जाएगा. वह नौकरी छोड़ देगी.’’

‘‘अरे, एक बार नौकरी कर के कौन छोड़ता है? फिर वह इसलिए धन जमा करती रहेगी कि बहन का विवाह करना है.’’

आलोक हंस कर बोला, ‘‘इतने दूर की चिंता आप क्यों करती हैं मां? पूनम डाक्टर बन कर स्वयं अपने विवाह के लिए बहुत धन जुटा लेगी.’’ ‘‘मुझे तो तेरी ही चिंता है. तेरे अकेले के ऊपर इतना बोझ है. मुझे तो छोड़ो, इन्हें तो फल इत्यादि मिलने ही चाहिए, नहीं तो शरीर कैसे चलेगा?’’

तभी नीलम 2 गिलासों में मौसमी का जूस ले कर कमरे में आई. आलोक हंस कर बोला, ‘‘देखो मां, तुम तो केवल पिताजी की आवश्यकता की बात कह रही थीं, नीलम तो तुम्हारे लिए भी जूस ले आई है. अब पी लो. नीलम ने इतने स्नेह से निकाला है. नहीं पिओगी तो उस का दिल दुखेगा.’’ इस प्रकार की घटनाएं अकसर होती रहतीं. मां का जितना असंतोष बढ़ता जाता है, आलोक का पत्नी के प्रति उतना ही मान और अनुराग. विवाह के पश्चात नीलम ने एक बार भी सुना कर नहीं कहा कि आलोक ने उसे जो आश्वासन दिए थे वे निराधार थे. उस ने कभी यह नहीं कहा कि आलोक के मातापिता की तरह उस के मातापिता ने भी उसे योग्य बनाने में उतना ही धन खर्च किया था. तब क्या उस का उन के प्रति इतना भी कर्तव्य नहीं है कि वह अपने बहनभाई को योग्य बनाने में सहायता करे. वह तो अपने सासससुर को संतुष्ट करने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ती. स्कूल से आते ही घरगृहस्थी के कार्यों में उलझ जाती है.

कभी उस ने पति से कोई स्त्रीसुलभ मांग नहीं की. अपने मायके से जो साडि़यां लाई थी, अब भी उन्हें ही पहनती, पर उस के माथे पर शिकन तक नहीं आती थी. नीलम ने सरलता से परिस्थितियों से समझौता कर लिया था, उसे देख आलोक उस से काफी प्रभावित था. यही बात वह अपने मातापिता को समझाने का प्रयत्न करता था, किंतु वे तो जैसे समझना ही नहीं चाहते थे. वे घर के खर्चों को ले कर घर में एक अशांत वातावरण बनाए रखते, केवल इसलिए कि वे बहू को यह बतलाना चाहते थे कि वह अपने बहनभाई के ऊपर जो धन खर्च करती है वह उन के अधिकार का अपहरण है. नीलम स्कूल के लिए तैयार हो रही थी. उसे सास की पुकार सुनाई दी तो बाहर निकल आई. पड़ोस के 2 लड़कों ने उन्हें बताया कि प्रबोध राय जब अपने नियम के अनुसार सुबह की सैर के बाद घर लौट रहे थे, तब एक स्कूटर वाला उन्हें धक्का दे कर भाग निकला और वे सड़क पर गिरे पड़े हैं. नीलम तुरंत घटनास्थल पर पहुंची. ससुर बेहोश पड़े थे. नीलम कुछ लोगों की सहायता से उन्हें उठा कर घर लाई.

उस ने जल्दी से पूनम को फोन किया, पूनम ने कहा कि वे चिंता न करें, वह जल्दी ही एंबुलेंस ले कर आ रही है. नीलम ने छुट्टी के लिए स्कूल फोन कर दिया और घर आ कर अस्पताल के लिए जरूरी सामान रखने लगी. तभी पूनम आ गई. जितनी तत्कालीन चिकित्सा करना संभव था, उस ने की और उन्हें अस्पताल ले गई.

पूनम अपने स्वभाव व व्यवहार के कारण पूरे अस्पताल में सर्वप्रिय थी. यह जान कर कि उस का कोई निकट संबंधी अस्पताल में भरती होने आया है, उस के मित्रों और संबंधित डाक्टरों ने सब प्रबंध कर दिए. घबराहट के कारण सुमित्रा को लग रहा था कि वह शक्तिरहित होती जा रही है. सारे अस्पताल में एक हलचल सी मची हुई थी. वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि कभी उस के रिटायर्ड पति को इस प्रकार का विशेष इलाज उपलब्ध हो सकेगा. बीचबीच में नीलम आ कर सास को धीरज बंधाने का प्रयत्न करती.

आलोक औफिस के कार्य से कहीं बाहर गया हुआ था. नीलम ने उसे भी इस घटना की सूचना दे दी. अनुनय समाचार पाते ही तुरंत आ गया था. दवाइयों के लिए भागदौड़ वही कर रहा था. मदद के लिए उस के एक मित्र ने उसे अपनी कार दे दी थी. 5-6 घंटे बाद प्रबोध राय कमरे में लाए गए. पूनम ने बारबार नीलम की सास को तसल्ली दी कि प्रबोध राय जल्दी ही ठीक हो जाएंगे. वातावरण में एक ठहराव सा आ गया था. सुमित्रा ने कमरे में चारों ओर देखा. अस्पताल में इतना अच्छा कमरा तो काफी महंगा पड़ेगा. जब उस ने अपनी शंका व्यक्त की तब अनुनय बोला, ‘‘मांजी, आप 2 बेटों की मां हो कर खर्च की चिंता क्यों करती हैं? मेरे होते यदि आप को किसी प्रकार का कष्ट हो तो मैं बेटा होने का अधिकार कैसे पाऊंगा?’’

नीलम हंस कर बोली, ‘‘मांजी, आज इस ने पिताजी को अपना रक्त दिया है न, इसीलिए यह बढ़बढ़ कर आप का बेटा होने का दावा कर रहा है.’’ यह सुन सुमित्रा की आंखें छलछला आईं. वे सोच रही थीं कि यदि नीलम ने बहन की पढ़ाई में सहायता न की होती तो क्या आज पूनम डाक्टर होती और क्या उस के पति को ये सुविधाएं मिल पातीं, श्यामसुंदर लाल का पुत्र क्या अपनी बहन को दहेज के बाद उस के ससुर को खून देने की बात सोचता?

प्रबोध राय जब घर आए, तब तक सुमित्रा की मनोस्थिति बिलकुल बदल चुकी थी और सारी कमजोरी भी गायब हो चुकी थी. रात को पति को जल्दी भोजन करा कर वे नीलम के लिए कार्डीगन बुन रही थीं. तभी उन्हें अनुनय के आने की आवाज सुनाई दी. प्रसन्नता से उन का मुख उज्ज्वल हो उठा. अनुनय ने एक डब्बा ला कर उन के पैरों के पास रख दिया और पूछने पर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने एक पार्टटाइम जौब कर लिया है. पहला वेतन मिला तो आप से आशीर्वाद लेने चला आया.’’

यह सुन कर सुमित्रा चकित रह गईं. वे रुष्ट हो कर बोलीं, ‘‘क्या तेरा दिमाग खराब हुआ है? पढ़ना नहीं है, जो पार्टटाइम जौब करेगा?’’ ‘‘पढ़ाई में इस से कुछ अंतर नहीं पड़ता, मां. बेशक अब आवारागर्दी का समय नहीं मिलता.’’

‘‘मैं तेरी बात नहीं मानूंगी. जब तक तू नौकरी छोड़ने का वादा नहीं करेगा, मैं इस डब्बे को हाथ भी नहीं लगाऊंगी.’’ ‘‘और मांजी, आप तो जीजाजी से भी ज्यादा धमकियां दे रही हैं. चलिए, मैं ने आप की बात मान ली. अब शीघ्र डब्बा खोलिए,’’ अनुनय ने आतुरता से कहा.

डब्बा खोला तो सुमित्रा स्तब्ध रह गईं और डबडबाई आंखों से बोलीं, ‘‘पगले, मैं बुढि़या यह साड़ी पहनूंगी? अपनी जीजी को देता न?’’ ‘‘पहले मां, फिर बहन. अच्छा मांजी, अब जल्दी से आशीर्वाद दे दो,’’ और अनुनय ने सुमित्रा का हाथ अपने सिर पर रख लिया. सुमित्रा हंसे बिना न रह सकीं, ‘‘तू तो बड़ा शातिर है, आशीर्वाद लेने के लिए भी रिश्वत देता है. तुम सब भाईबहन सदा प्रसन्न रहो और दूसरों को प्रसन्न रखो, मैं तो कामना करती हूं.’’

Famous Hindi Stories : अपराजिता

Famous Hindi Stories :  मेरे जागीरदार नानाजी की कोठी हमेशा मेरे जीवन के तीखेमीठे अनुभवों से जुड़ी रही है. मुझे वे सब बातें आज भी याद हैं.

कोठी क्या थी, छोटामोटा महल ही था. ईरानी कालीनों, नक्काशीदार भारी फर्नीचर व झाड़फानूसों से सजे लंबेचौड़े कमरों में हर वक्त गहमागहमी रहती थी. गलियारों में शेर, चीतों, भालुओं की खालें व बंदूकें जहांतहां टंगी रहती थीं. नगेंद्र मामा के विवाह की तसवीरें, जिन में वह रूपा मामी, तत्कालीन केंद्रीय मंत्रियों व उच्च अधिकारियों के साथ खडे़ थे, जहांतहां लगी हुई थीं.

रूपा मामी दिल्ली के प्रभावशाली परिवार की थीं. सब मौसियां भी ठसके वाली थीं. तकरीबन सभी एकाध बार विदेश घूम कर आ चुकी थीं. नगेंद्र मामा तो विदेश में नौकरी करते ही थे.

देशी घी में भुनते खोए से सारा घर महक रहा था. लंबेचौड़े दीवानखाने में तमाम लोग मामा व मौसाजी के साथ जमे हुए थे. कहीं राजनीतिक चर्चा गरम थी तो कहीं रमी का जोर था. नरेन मामा, जिन की शादी थी, बारबार डबल पपलू निकाल रहे थे. सभी उन की खिंचाई कर रहे थे, ‘भई, तुम्हारे तो पौबारह हैं.’

नगेंद्र मामा अपने विभिन्न विदेश प्रवासों के संस्मरण सुना रहे थे. साथ ही श्रोताओं के मुख पर श्रद्धामिश्रित ईर्ष्या के भाव पढ़ कर संतुष्ट हो चुरुट का कश खींचने लगते थे. उन का रोबीला स्वर बाहर तक गूंज रहा था. लोग तो शुरू से ही कोठी के पोर्टिको में खड़ी कार से उन के ऊंचे रुतबे का लोहा माने हुए थे. अब हजारों रुपए फूंक भारत आ कर रहने की उदारता के कारण नम्रता से धरती में ही धंसे जा रहे थे.

यही नगेंद्र मामा व रूपा मामी जब एक बार 1-2 दिन के लिए हमारे घर रुके थे तो कितनी असुविधा हुई थी उन्हें भी, हमें भी. 2 कमरों का छोटा सा घर  चमड़े के विदेशी सूटकेसों से कैसा निरीह सा हो उठा था. पिताजी बरसते पानी में भीगते डबलरोटी, मक्खन, अंडे खरीदने गए थे. घर में टोस्टर न होने के कारण मां ने स्टोव जला कर तवे पर ही टोस्ट सेंक दिए थे, पर मामी ने उन्हें छुआ तक नहीं था.

आमलेट भी उन के स्तर का नहीं था. रूपा मामी चाय पीतेपीते मां को बता रही थीं कि अगर अंडे की जरदी व सफेदी अलगअलग फेंटी जाए तो आमलेट खूब स्वादिष्ठ और अच्छा बनता है.

यही मामी कैसे भूल गई थीं कि नाना के घर मां ही सवेरे तड़के उठ रसोई में जुट जाती थीं. लंबेचौडे़ परिवार के सदस्यों की विभिन्न फरमाइशें पूरी करती कभी थकती नहीं थीं. बीच में जाने कब अंडे वाला तवा मांज कर पिताजी के लिए अजवायन, नमक का परांठा भी सेंक देती थीं. नौकर का काम तो केवल तश्तरियां रखने भर तक था.

दिन भर जाने क्या बातें होती रहीं. मैं तो स्कूल रही. रात को सोते समय मैं अधजागी सी मां और पिताजी के बीच में सोई थी. मां पिताजी के रूखे, भूरे बालों में उंगलियां फिरा रही थीं. बिना इस के उन्हें नींद ही नहीं आती थी. मुझे भी कभी कहते. मैं तो अपने नन्हे हाथ उन के बालों में दिए उन्हीं के कंधे पर नींद के झोंके में लुढ़क पड़ती थी.

मां कह रही थीं, ‘पिताजी को बिना बताए ही ये लोग आपस में सलाह कर के यहां आए हैं. उन से कह कर देखूं क्या?’

‘छोड़ो भी, रत्ना, क्यों लालच में पड़ रही हो? आज नहीं तो कुछ वर्ष बाद जब वह नहीं रहेंगे, तब भी यही करना पडे़गा. अभी क्यों न इस इल्लत से छुटकारा पा लें. हमें कौन सी खेतीबाड़ी करनी है?’ कह कर पिताजी करवट बदल कर लेट गए.

‘खेतीबाड़ी नहीं करनी तो क्या? लाखों की जमीन है. सुनते हैं, उस पर रेलवे लाइन बनने वाली है. शायद उसे सरकार द्वारा खरीद लिया जाएगा. भैया क्या विलायत बैठे वहां खेती करेंगे.’

मां को इस तरह मीठी छुरी तले कट कर अपना अधिकार छोड़ देना गले नहीं उतर रहा था. उत्तर भारत में सैकड़ों एकड़ जमीन पर उन की मिल्कियत की मुहर लगी हुई थी.

भूमि की सीमाबंदी के कारण जमीनें सब बच्चों के नाम अलगअलग लिखा दी गई थीं. बंजर पड़ी कुछ जमीनें ‘भूदान यज्ञ’ में दे कर नाम कमाया था. मां के नाम की जमीनें ही अब नगेंद्र मामा बडे़ होने के अधिकार से अपने नाम करवाने आए थे. वैसे क्या गरीब बहन के घर उन की नफासतपसंद पत्नी आ सकती थी?

स्वाभिमानी पिताजी को मिट्टी- पत्थरों से कुछ मोह नहीं था. जिस मायके से मेरे लिए एक रिबन तक लेना वर्जित था वहां से वह मां को जमीनें कैसे लेने देते? उन्होंने मां की एक न चलने दी.

दूसरे दिन बड़ेबडे़ कागजों पर मामा ने मां से हस्ताक्षर करवाए. मामी अपनी खुशी छिपा नहीं पा रही थीं.

शाम को वे लोग वापस चले गए थे.

अपने इस अस्पष्ट से अनुभव के कारण मुझे नगेंद्र मामा की बातें झूठी सी लगती थीं. उन की विदेशों की बड़बोली चर्चा से मुझ पर रत्ती भर प्रभाव नहीं पड़ा. पिताजी शायद अपने कुछ साहित्यकार मित्रों के यहां गए हुए थे. लिखने का शौक उन्हें कोठी के अफसरी माहौल से कुछ अलग सा कर देता था.

मुझे यह देख कर बड़ा गुस्सा आता था कि पिताजी का नाम अखबारों, पत्रिकाओं में छपा देख कर भी कोई इतना उत्साहित नहीं होता जितना मेरे हिसाब से होना चाहिए. अध्यापक थे तो क्या, लेखक भी तो थे. पर जाने क्यों हर कोई उन्हें ‘मास्टरजी’ कह कर पुकारता था.

सब मामामौसा शायद अपनी अफसरी के रोब में अकड़े रहते थे. कभी कोई एक शेर भी सुना कर दिखाए तो. मोटे, बेढंगे सभी कुरतापजामा, बास्कट पहने मेरे छरहरे, खूबसूरत पिताजी के पैर की धूल के बराबर भी नहीं थे. उन की हलकी भूरी आंखें कैसे हर समय हंसती सी मालूम होती थीं.

अनजाने में कई बार मैं अपने घर व परिस्थितियों की रिश्तेदारों से तुलना करती तो इतने बडे़ अंतर का कारण नहीं समझ पाई थी कि ऊंचे, धनी खानदान की बेटी, मां ने मास्टर (पिताजी) में जाने क्या देखा कि सब सुख, ऐश्वर्य, आराम छोड़ कर 2 कमरों के साधारण से घर में रहने चली आईं.

नानानानी ने क्रोध में आ कर फिर उन का मुंह न देखने की कसम खाई. जानपहचान वालों ने लड़कियों को पढ़ाने की उदारता पर ही सारा दोष मढ़ा. परंतु नानी की अकस्मात मृत्यु ने नाना को मानसिक रूप से पंगु सा कर दिया था.

मां भी अपना अभिमान भूल कर रसोई का काम और भाईबहनों को संभालने लगीं. नौकरों की रेलपेल तो खाने, उड़ाने भर को थी.

नानाजी ने कई बार कोठी में ही आ कर रहने का आग्रह किया था, परंतु स्वाभिमानी पिताजी इस बात को कहां गवारा कर सकते थे? बहुत जिद कर के  नानाजी ने करीब की कोठी कम किराए पर लेने की पेशकश की, परंतु मां पति के विरुद्ध कैसे जातीं?

फिर पिताजी की बदली दूसरे शहर में हो गई, पर घर में शादी, मुंडन, नामकरण या अन्य कोई भी समारोह होने पर नानाजी मां को महीना भर पहले बुलावा भेजते, ‘तुम्हारे बिना कौन सब संभालेगा?’

यह सच भी था. उन का तर्क सुन कर मां को जाना ही पड़ता था.

असुविधाओं के बावजूद मां अपना पुराना सा सूटकेस बांध कर, मुझे ले कर बस में बैठ जातीं. बस चलने पर पिताजी से कहती जातीं, ‘अपना ध्यान रखना.’

कभीकभी उन की गीली आंखें देख कर मैं हैरान हो जाती थी, क्या बडे़ लोग भी रोते हैं? मुझे तो रोते देख कर मां कितना नाराज होती हैं, ‘छि:छि:, बुरी बात है, आंखें दुखेंगी,’ अब मैं मां से क्या कहूं?

सोचतेसोचते मैं मां की गोद में आंचल से मुंह ढक कर सो जाती थी. आंख खुलती सीधी दहीभल्ले वाले की आवाज सुन कर. एक दोना वहीं खाती और एक दोना कुरकुरे भल्लों के ऊपर इमली की चटनी डलवा रास्ते में खाने के लिए रख लेती. गला खराब होगा, इस की किसे चिंता थी.

कोठी में आ कर नानाजी हमें हाथोंहाथ लेते. मां को तो फिर दम मारने की भी फुरसत नहीं रहती थी. बाजार का, घर का सारा काम वही देखतीं. हम सब बच्चे, ममेरे, मौसेरे बहनभाई वानर सेना की तरह कोठी के आसपास फैले लंबेचौड़े बाग में ऊधम मचाते रहते थे.

आज भी मैं, रिंपी, डिंकी, पप्पी और अन्य कई लड़कियां उस शामियाने की ओर चल दीं जहां परंपरागत गीत गाने के लिए आई महिलाएं बैठी थीं. बीच में ढोलकी कसीकसाई पड़ी थी पर बजाने की किसे पड़ी थी. पेशेवर गानेवालियां गा कर थक कर चाय की प्रतीक्षा कर रही थीं.

सभी महिलाएं अपनी चकमक करती कीमती साडि़यां संभाले गपशप में लगी थीं. हम सब बच्चे दरी पर बैठ कर ठुकठुक कर के ढोलकी बजाने का शौक पूरा करने लगे. मैं ने बजाने के लिए चम्मच हाथ में ले लिया. ठकठक की तीखी आवाज गूंजने लगी. नगेंद्र मामा की डिंकी व रिंपी के विदेशी फीते वाले झालरदार नायलोनी फ्राक गुब्बारे की तरह फूल कर फैले हुए थे.

पप्पी व पिंकी के साटन के गरारे खेलकूद में हमेशा बाधा डालते थे, सो अब उन्हें समेट कर घुटनों से ऊपर उठा कर बैठी हुई थीं. गोटे की किनारी वाले दुपट्टे गले में गड़ते थे, इसलिए कमर पर उन की गांठ लगा कर बांध रखे थे.

इन सब बनीठनी परियों सी मौसेरी, ममेरी बहनों में मेरा साधारण छपाई का सूती फ्राक अजीब सा लग रहा था. पर मुझे इस का कहां ज्ञान था. बाल मन अभी आभिजात्य की नापजोख का सिद्धांत नहीं जान पाया था. जहां प्रेम के रिश्ते हीरेमोती की मालाओं में बंधे विदेशी कपड़ों में लिपटे रहते हों वहां खून का रंग भी शायद फीका पड़ जाता है.

रूपा मामी चम्मच के ढोलकी पर बजने की ठकठक से तंग आ गई थीं. मुझे याद है, सब औरतें मग्न भाव से उन के लंदन प्रवास के संस्मरण सुन रही थीं. अपने शब्द प्रवाह में बाधा पड़ती देख वह मुझ से बोलीं, ‘अप्पू, जा न, मां से कह कर कपडे़ बदल कर आ.’

हतप्रभ सी हो कर मैं ने अपनी फ्राक की ओर देखा. ठीक तो है, साफसुथरा, इस्तिरी किया हुआ, सफेद, लाल, नीले फूलों वाला मेरा फ्राक.

किसी अन्य महिला ने पूछा, ‘यह रत्ना की बेटी है क्या?’

‘हां,’ मामी का स्वर तिरस्कारयुक्त था.

‘तभी…’ एक गहनों से लदी जरी की साड़ी पहने औरत इठलाई.

इस ‘तभी’ ने मुझे अपमान के गहरे सागर में कितनी बार गले तक डुबोया था, पर मैं क्या समझ पाती कि रत्ना की बेटी होना ही सब प्रकार के व्यंग्य का निशाना क्यों बनता है?

समझी तो वर्षों बाद थी, उस समय तो केवल सफेद चमकती टाइलों वाली रसोई में जा कर खट्टे चनों पर मसाला बुरकती मां का आंचल पकड़ कर कह पाई थी, ‘मां, रूपा मामी कह रही हैं, कपड़े बदल कर आ.’

मां ने विवश आंखों में छिपी नमी किस चतुराई से पलकें झपका कर रोक ली थी. कमरे में आ कर मुझे नया फ्राक पहना दिया, जो शायद अपनी पुरानी टिशू की साड़ी फाड़ कर दावत के दिन पहनने के लिए बनाया था.

‘दावत वाले दिन क्या पहनूंगी?’ इस चिंता से मुक्त मैं ठुमकतीकिलकती फिर ढोलक पर आ बैठी. रूपा मामी की त्योरी चढ़ गईं, साथ ही साथ होंठों पर व्यंग्य की रेखा भी खिंच गई.

‘मां ने अपनी साड़ी से बना दिया है क्या?’ नाश्ते की प्लेट चाटते मामी बोलीं. वही नाश्ता जो दोपहर भर रसोई में फुंक कर मां ने बनाया था. मैं शामियाने से उठ कर बाहर आ गई.

सेहराबंदी, घुड़चढ़ी, सब रस्में मैं ने अपने छींट के फ्राक में ही निभा दीं. फिर मेहमानों में अधिक गई ही नहीं. दावत वाले दिन घर में बहुत भीड़भाड़ थी. करीबकरीब सारे शहर को ही न्योता था. हम सब बच्चे पहले तो बैंड वाले का गानाबजाना सुनते रहे, फिर कोठी के पिछवाड़े बगीचे में देर तक खेलते रहे.

फिर बाग पार कर दूर बने धोबियों के घरों की ओर निकल आए. पुश्तों से ये लोग यहीं रहते आए थे. अब शहर वालों के कपड़े भी धोने ले आते थे. बदलते समय व महंगाई ने पुराने सामंती रिवाज बदल डाले थे. यहीं एक बड़ा सा पक्का हौज बना हुआ था, जिस में पानी भरा रहता था.

यहां सन्नाटा छाया हुआ था. धोबियों के परिवार विवाह की रौनक देखने गए हुए थे. हम सब यहां देर तक खेलते रहे, फिर हौज के किनारे बनी सीढि़यां चढ़ कर मुंडेर पर आ खडे़ हुए. आज इस में पानी लबालब भरा था. रिंपी और पप्पी रोब झाड़ रही थीं कि लंदन में उन्होंने तरणताल में तैरना सीखा है. बाकी हम में से किसी को भी तैरना नहीं आता था.

डिंकी ने चुनौती दी थी, ‘अच्छा, जरा तैर कर दिखाओ तो.’

‘अभी कैसे तैरूं? तैरने का सूट भी तो नहीं है,’ पप्पी बोली थी.

‘खाली बहाना है, तैरनावैरना खाक आता है,’ रीना ने मुंह चिढ़ाया.

तभी शायद रिंपी का धक्का लगा और पप्पी पानी में जा गिरी.

हम सब आश्वस्त थे कि उसे तैरना आता है, अभी किनारे आ लगेगी, पर पप्पी केवल हाथपैर फटकार कर पानी में घुसती जा रही थी. सभी डर कर भाग खड़े हुए. फिर मुझे ध्यान आया कि जब तक कोठी पर खबर पहुंचेगी, पप्पी शायद डूब ही जाए.

मैं ने चिल्ला कर सब से रुकने को कहा, पर सब के पीछे जैसे भूत लगा था. मैं हौज के पास आई. पप्पी सचमुच डूबने को हो रही थी. क्षणभर को लगा, ‘अच्छा ही है, बेटी डूब जाए तो रूपा मामी को पता लगेगा. हमारा कितना मजाक उड़ाती रहती हैं. मेरा कितना अपमान किया था.’

तभी पप्पी मुझे देख कर ‘अप्पू…अप्पू…’ कह कर एकदो बार चिल्लाई. मैं ने इधरउधर देखा. एक कटे पेड़ की डालियां बिखरी पड़ी थीं. एक हलकी पत्तों से भरी टहनी ले कर मैं ने हौज में डाल दी और हिलाहिला कर उसे पप्पी तक पहुंचाने का प्रयत्न करने लगी. पत्तों के फैलाव के कारण पप्पी ने उसे पकड़ लिया. मैं उसे बाहर खींचने लगी. घबराहट के कारण पप्पी डाल से चिपकी जा रही थी. अचानक एक जोर का झटका लगा और मैं पानी में जा गिरी. पर तब तक पप्पी के हाथ में मुंडेर आ गई थी. मैं पानी में गोते खाती रही और फिर लगा कि इस 9-10 फुट गहरे हौज में ही प्राण निकल जाएंगे.

होश आया तो देखा शाम झुक आई थी. रूपा मामी वहीं घास पर मुझे बांहों में भरे बैठी थीं. उन की बनारसी साड़ी का पानी से सत्यानास हो चुका था. डाक्टर अपना बक्सा खोले कुछ ढूंढ़ रहा था. मां और पिताजी रोने को हो रहे थे.

‘बस, अब कोई डर की बात नहीं है,’ डाक्टर ने कहा तो मां ने चैन की सांस ली.

‘आज हमारी बहादुर अप्पू न होती तो जाने क्या हो जाता. पप्पी के लिए इस ने अपनी जान की भी परवा नहीं की,’ नगेंद्र मामा की आंखों में कृतज्ञता का भाव था.

मैं ने मां की ओर यों देखा जैसे कह रही हों, ‘तुम्हारा दिया अपराजिता नाम मैं ने सार्थक कर दिया, मां. आज मैं ने प्रतिशोध की भावना पर विजय पा ली.’

शायद मैं ने साथ ही साथ रूपा मामी के आभिजात्य के अहंकार को भी पराजित कर दिया था.

Hindi Stories Online : ममता का आंगन

Hindi Stories Online :  विदाई की बेला… हर विवाह समारोह का सबसे भावुक कर देने वाला पल. सुंदर से लहंगे में आभूषणों से लदी  निशा धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ा रही थी. आंसुओं से चेहरा भीगा जा रहा था. सहेलियां और भाभियां उलाहना दे रहीं थीं. “अरे इतना रोओगी तो मेकअप धुल जाएगा.” इसी तरह की चुहलबाज़ी हो रही थी.

मगर वह चाह कर भी अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी. खुद को दोराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी आज वह. सजी-धजी सुंदर सी कार उसे पिया के घर ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. अजय कार में बैठ चुका था. निशा ने कनखियों से देखा तो लगा कि अजय बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था मानो कह रहा हो, “अब बस भी करो निशा! नए घर में भी लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं.”  वह एक कदम आगे बढ़ती तो दो कदम पीछे वाली स्थिति थी. पापा भैया पास में ही खड़े थे. निशा पलट कर पापा के गले लग कर रोने लगी. भाई उसे प्यार से सहला रहा था. मानो पापा से छुड़ाना चाह रहा हो और कह रहा हो,” दीदी, एक नई सुंदर सी दुनिया तुम्हारी प्रतीक्षा में है. उसका स्वागत करो.”

तभी उसने देखा कि मां किसी अपराधिनी दूर खड़ी अपने ढुलकते आंसुओं को छिपाने का असफल प्रयास कर रही थी. दोनों तरफ से स्थिति कमोबेश एक सी ही थी. मां आगे बढ़कर उसे गले लगाने का साहस नहीं कर पा रही थी क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं निशा नाराज़ ना हो जाए. ये अधिकार निशा ने उन्हें आज तक दिया ही नहीं था. इधर निशा भी चाहते हुए ममत्व की  प्यास को सहलाने में नाकाम साबित हो रही थी.  बड़ी ही मुश्किल से मां  धीरे-धीरे आगे आकर खड़ी हो गई. मौसी, बुआ सभी से निशा प्रेम से गले मिल रही थी. तभी अचानक मां के दिल में ठहरा दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा और उसे ज़ोर की रुलाई आ गई.

देखकर निशा से रहा नहीं गया. वह मां की तरफ बढ़ी. दोनों मां बेटी इस तरह गले मिलीं जैसे दोनों को एक दूसरे से कोई शिकवा शिकायत ही ना हो. शब्द साथ नहीं दे रहे थे. बस कुछ देर एक दूसरे से लिपट कर दोनों पूर्ण हो गई थी. अब निशा को जाना ही था क्योंकि कार काफी देर से स्टार्ट होकर खड़ी थी.

नए घर में पहुंचकर निशा को बहुत प्यार सम्मान मिला. शुरू के कुछ दिनों में उसे किसी भी काम में हाथ नहीं लगाने दिया. उसकी छोटी प्यारी सी ननद अपनी मां के हर काम में हाथ बंटाती. धीरे धीरे हाथों की मेहंदी का रंग छूटने के साथ-साथ नेहा भी घर परिवार की ज़िम्मेदारियों में शामिल हो गई. जबकि मां के घर में वह कोई भी काम नहीं करती थी मगर ससुराल तो ससुराल ही होता है. शुरुआत में कुछ कठिनाई भी आई.
कई बार वह रो पड़ती थी कि अपनी समस्या किसे बताएं.. क्योंकि अपनी मां को तो उसने पूर्ण रूप से तिरस्कृत किया हुआ था.

मां ने कई बार प्रयास किया था कि निशा घर के थोड़े बहुत काम सीख ले परंतु ढाक के वही तीन पात. जब कुछ छोटी थी तो पापा के लाड प्यार की वजह से और फिर बड़ी होने पर मां से एक अनकही रंजिश होने के नाते. यूं निशा को काम करने में कोई परेशानी नहीं थी परंतु वह मां से कुछ नहीं सीखना चाहती थी. न जाने क्यों उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी थी वह.

विवाह को लगभग  बीस दिन बीत चुके थे. निशा की सास उसे एक बड़ा सा डिब्बा देते हुए बोली,”बेटा, यह बाॅक्स तुम्हारी मां ने तुम्हें सरप्राइस के तौर पर दिया है. तुम्हीं इसे खोलना और देखना इसमें क्या है. अपने सारे जेवर डिब्बे में रख देना. लॉकर में रखवा देंगे. घर में  रखना सुरक्षित नहीं होगा.”शाम को जब निशा अपने जेवर डिब्बे में करीने से संभाल रही थी तो उसने वह बाॅक्स  भी खोला. वह देखकर अवाक रह गयी. डिब्बे में सुंदर से सोने और हीरे के जेवरात थे और साथ में एक संक्षिप्त पत्र भी.

यह पत्र उसकी मां रीता ने लिखा था. “प्यारी निशा, तुम्हारे पापा का मुझसे शादी करने का मकसद सिर्फ इतना था कि उनकी अनुपस्थिति में मैं तुम्हारी देखभाल कर सकूं. अब तुम्हारा विवाह हो चुका है. समय के साथ धीरे धीरे समझ जाओगी कि एक पिता के लिए अकेले संतान को पालना कितना मुश्किल होता है. मां तो सिर्फ मां होती है. यह सौतेला शब्द तो हमारे समाज ने ही गढ़ा है. पूर्वाग्रह से ग्रसित यह भावना किसी स्त्री को जाने समझे बगैर ही खलनायिका बना देती है. तुम्हारा विदाई के समय मुझसे लिपटना मुझे उम्र भर की खुशी दे गया. मेरा बचपन भी कुछ तुम्हारी ही तरह बीता है.  सदा सुखी रहना. अपनी मां से मिलने कब आ रही हो.”

वह सोच में पड़ गई. उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. उसे  इन गहनों में से ममत्व की सुगंध आने लगी. वह काफी देर तक उन्हें देखती रही. इनमें से कुछ गहने उसकी अपनी मां के थे और अधिकतर नई मां के, जिसे उसने मां तो कभी माना ही नहीं.

दरअसल, निशा के जीवन में दुखद मोड़ तब आया जब बारह वर्ष की उम्र में उसकी मां की मृत्यु हो गई थी. लाड प्यार से पली इकलौती संतान कुदरत के इस अन्याय को सहने की समझ भी नहीं रखती थी. पिता राजेश भी परेशान. एक तो पत्नी की असमय मृत्यु का ग़म, दूसरा बारह साल की बिटिया को पालने की ज़िम्मेदारी. ऐसी कच्ची उम्र जब बच्चे कई तरह के शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजरते हैं, एक पिता के लिए बहुत ही मुश्किल हो जाता है ऐसे में खासकर बिटिया का लालन पालन करना.

कुछ लोगों ने सलाह दी कि वह निशा की मौसी से विवाह कर ले.
क्योंकि अपनी बहन की संतान को जितने प्यार से वह पालेगी,  ऐसा कोई दूसरी महिला नहीं कर सकती. परंतु निशा की मौसी उसके पिता से उम्र में बहुत छोटी थी इसलिए राजेश जी को यह मंजूर नहीं था. खैर, समय की मांग को देखते हुए रीता के साथ निशा के पिता राजेश का पुनर्विवाह सादे समारोह में हो गया.
मां को गए अभी सिर्फ एक ही साल हुआ था. निशा की यादों में मां की हर बात जिंदा थी. इकलौती संतान होने की वजह से माता पिता का संपूर्ण प्यार उसी पर निछावर था.

राजेश ने रीता के साथ विवाह तो किया परंतु निशा को किसी भी मनोवैज्ञानिक संकट में वह नहीं डालना चाहते थे. रीता भी ख़ुद  बहुत समझदार थी. इधर निशा भावनात्मक मानसिक और शारीरिक तौर पर आने वाले बदलावों से गुजर रही थी. मां उसे भावनात्मक सहारा देने का भरसक प्रयास करती  परंतु निशा हर बार मां को ठुकरा देती है. अकेली अकेली उदास सी रहती थी वह. नई मां कभी पिता से हंसकर,खिलाकर बात करती तो निशा परेशान हो उठती. उसे लगता कि इस महिला ने आकर उसकी मां की जगह ले ली है.

निशा की मां की साड़ियां राजेश के कहने पर अगर रीता ने पहन लीं तो निशा आग बबूला हो उठती. यह सब देख कर रीता ने अपने आप को बहुत  संयमित कर लिया था. वह नहीं चाहती थी कि किशोरावस्था में किसी बच्चे के दिमाग पर कोई गलत असर पड़े. समय के साथ साथ निशा का अकेलापन दूर करने के लिए एक छोटा भाई आ चुका था. आश्चर्य कि छोटे भाई से निशा को कोई शिकायत नहीं थी. वह उसके साथ खेलती और अब थोड़ा खुश रहने लगी थी. लेकिन मां के प्रति अपने व्यवहार को वह नहीं बदल पाई थी.

बाईस वर्ष की उम्र पूरी होने पर घरवालों से विचार विमर्श के बाद निशा का विवाह तय कर दिया गया. निशा ने भी कोई अरुचि नहीं दिखाई. वह तो मानो नई मां से छुटकारा पाना चाहती थी.
आज इन गहनों को संभालते वक्त वह सोचने लगी कि अपनी मां की साड़ी तक वह  नई  मां को नहीं पहने देती थी और इस अनचाही मां ने तो उसे खूब लाड प्यार से पाला. कभी अपने बेटे और उसमें कोई फर्क नहीं किया. विवाह के समय अपनी सुंदर कीमती साड़ियां और भारी गहने सब उसी को सौंप दिए, जैसा कोई असली मां करती है.

तभी सासु मां ने उसे आवाज देकर दरवाज़े पर अपनी उपस्थिति का एहसास कराया. निशा का उदासीन चेहरा देखकर वह बोली,”अरे बेटा, क्या बात है…? मैंने लॉकर वाली बात कहकर तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया.. दरअसल घर में इतना कीमती सामान रखना असुरक्षित है इसीलिए मैंने ऐसा कह दिया.”
“अरे नहीं मम्मी, ऐसी बात नहीं है.” कहकर वह अटक गई.
आगे और कहती भी क्या..? कैसे कह देती कि जिस मां ने अपना सर्वस्व उसके लालन-पालन में लुटा दिया उससे वह इतनी नफ़रत करती थी कि पश्चात करने की भी कोई राह ही नहीं सूझ रही है .

खैर, सासू मां समझदार थी. सब जानते हुए भी वे अनजान ही बनी रहीं. इधर निशा के अंदर उधेड़बुन चलती रही. शाम को अजय आकर बोला,”अगले दो-तीन दिन में हम तुम्हारे घर मम्मी पापा से मिलने चल रहे हैं.” दरअसल अजय की मां ने ही उसे निशा को मां के घर ले जाने की सलाह दी थी. वह धीरे से बोली, “ठीक है.” मगर मन ही मन बड़ी शर्मिंदा हो रही थी कि कैसे सामना करूंगी मां का.

अगले दिन सुबह मौसी का फोन आया. निशा आत्मग्लानि से भरी हुई थी. उसने मौसी से मां का जिक्र किया. तब मौसी ने ही उसे बताया कि अजय के साथ उसका विवाह उसकी मां रीता ने ही तय किया था. दरअसल अजय की मां रीता की बचपन की सहेली थी. अजय की मां का विवाह तो समय से हो गया परंतु यह रीता का दुर्भाग्य था कि बहुत ही छोटी उम्र में उसकी मां की मृत्यु हो गई. पिता ने दूसरा विवाह नहीं किया. पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर खुद ही अपनी बेटी को पालने की ज़िम्मेदारी ली. परिवार के बीच में रीता की परवरिश तो ठीक-ठाक हो गई परंतु उसके विवाह में देरी होती रही. क्योंकि दादा दादी की मृत्यु हो चुकी थी . ताऊ ताई अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए थे .अब रह गए थे रीता और उसके पिता. वह पिता को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहती थी.

अधिक उम्र हो जाने पर भी लड़की के लिए लड़का मिलना कभी-कभी मुश्किल काम साबित हो जाता है. इसीलिए जब राजेश की पहली पत्नी की मृत्यु हुई, तब रीता का विवाह उनके साथ इस शर्त पर हुआ कि उनकी बेटी निशा को अपनी बेटी की मान कर पालेगी. और रीता ने यह ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई. कुछ वर्ष बाद अपना बेटा होने के बावजूद भी उसने दोनों बच्चों में कभी कोई फर्क नहीं किया. और आज भी यह रीता ही थी जिसने निशा का रिश्ता अपनी सहेली के बेटे अजय से करवाया था ताकि वह स्वयं अपनी बेटी के भविष्य को लेकर आशान्वित रहे. परंतु यह बात परिवार के किसी भी सदस्य ने निशा को नहीं बताई थी क्योंकि उसे तो नई मां से अत्यधिक बैर था. फिर वह ये बात कैसे बर्दाश्त करती…?
यह जानकार निशा अत्यधिक दुखी और शर्मिंदा थी. उसने साहस करके मां को फोन मिलाया. उधर से मां की प्यारी सी आवाज़ आई,” बेटा, रिश्तो को सहेजने की कोई उम्र नहीं होती. जब भी अवसर मिले, इन्हें संवार लो.”
शायद मां इससे आगे कुछ नहीं बोल पाई और इधर निशा मायके जाने की तैयारी में जुट गई. क्योंकि उधर ममता का आंगन बांह  पसारे उसके इंतज़ार में था.

Hindi Kahaniyan : धमकियां – गांव की रहने वाली सुधा को क्या अपना पाया शेखर?

Hindi Kahaniyan :  *शेखर* और सुधा की मैरिज ऐनिवर्सरी के दिन सब बेहद खुश थे. शनिवार का दिन था तो आराम से सब सैलिब्रेशन के मूड में थे. पार्टी देर तक भी चले तो कोई परेशानी नहीं.

अनंत और प्रिया ने पार्टी का सब इंतजाम कर लिया था. अंजू और सुधीर से भी बात हो गई थी. वे भी सुबह ही आ रहे थे. प्रोग्राम यह था कि पहले पूरा परिवार लंच एकसाथ घर पर करेगा, फिर डिनर करने सब बाहर जाएंगे. इस तरह पूरा दिन सब एकसाथ बिताने वाले थे.

शेखर और सुधा अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए अति उत्साहित थे. अनंत तो अपनी पत्नी प्रिया और बेटी पारूल के साथ उन के साथ ही रहता था, बेटी अंजू अंधेरी में अपने पति सुधीर और बेटे अनुज के साथ रहती थी. मुंबई में होने पर भी मिलनाजुलना जल्दी नहीं हो पाता था, क्योंकि बहूबेटा, बेटीदामाद सब कामकाजी थे.

इसलिए जब भी सब एकसाथ मिलते, शेखर और सुधा बहुत खुश होते थे.सब की आपस में खूब बनती थी. सब जब भी मिलते, महफिल खूब जमती, जम कर एकदूसरे की टांग खींची जाती, कोई किसी की बात का बुरा न मानता. बच्चों के साथ शेखर और सुधा भी खूब हसंतेहंसाते.

12 बजे अंजू सुधीर और अनुज के साथ आ गई. सब ने एकदूसरे को प्यार से गले लगाया. शेखर और सुधा के साथसाथ अंजू सब के लिए कुछ न कुछ लाई थी. पारूल और अनुज तो अपनेआप में व्यस्त हो गए. हंसीमजाक के साथसाथ खाना भी लगता रहा. लंच भी बाहर से और्डर कर लिया गया था, पर प्रिया ने स्नेही सासससुर के लिए खीर और दहीबड़े उन की पसंद को ध्यान में रख कर खुद बनाए थे, जिसे सब ने खूब तारीफ करते हुए खाया.

खाना खाते हुए सुधीर ने बहुत सम्मानपूर्वक कहा, ”पापा, आप लोगों की मैरिडलाइफ एक उदाहरण है हमारे लिए. कभी भी आप लोगों को किसी बात पर बहस करते नहीं देखा. इतनी अच्छी बौंडिंग है आप दोनों की. मेरे मम्मीपापा तो खूब लड़ते थे. आप लोगों से बहुत कुछ सीखना चाहिए.”

फिर जानबूझ कर अंजू को छेड़ते हुए कहा,” इसे भी कुछ सिखा दिया होता, कितना लड़ती है मुझ से. कई बार तो शुरूशुरू में लगता था कि इस से निभेगी भी या नहीं.”

अंजू ने प्यार से घूरा,”बकवास बंद करो, तुम से कभी नहीं लड़ी मैं, झूठे…”

प्रिया ने भी कहा,”जीजू , आप ठीक कह रहे हैं, मम्मीपापा की कमाल की बौंडिंग है. दोनों एकदूसरे का बहुत ध्यान रखते हैं. बिना कहे ही एकदूसरे के मन की बात जान लेते हैं. यहां तो अनंत को मेरी कोई बात ही याद नहीं रहती. काश, अनंत भी पापा की तरह केयरिंग होता.”

अनंत से भी रहा नहीं गया, झूठमूठ गले में कुछ फंसने की ऐक्टिंग करता हुआ बोला,” मेरी प्यारी बहन अंजू, यह हम दोनों भाईबहन क्या सुन रहे हैं? क्यों न आज मम्मीपापा की बहू और दामाद को इस बौंडिंग की सचाई बता दें? हम कब तक ताने सुनते रहेंगे,” कहता हुआ अनंत अंजू को देख कर शरारत से हंस दिया.

शेखर ने चौंकते हुए कहा,”अरे, कैसी सचाई? क्या तुम बच्चों से अपने पेरैंट्स की तारीफ सहन नहीं हो रही?”

अनंत हंसते हुए बोला,”मम्मीपापा, तैयार हो जाइए, आप की बहू और आप के दामाद से हम भाईबहन आप की इस बौंडिंग का राज शेयर करने जा रहे हैं…”

फिर नाटकीय स्वर में अंजू से कहा,”चल, बहन, शुरू हो जा…”

*अंजू* ने जोर से हंसते हुए बताना शुरू किया,”जब हम छोटे थे, हम रोज देखते कि पापा मम्मी को हर बात में कहते हैं कि मैं तुम्हारे साथ एक दिन नहीं रह सकता. अम्मांपिताजी ने मेरे साथ बहुत बुरा किया है कि तुम से मेरी शादी करवा दी. मेरे जैसे स्मार्ट लड़के के लिए पता नहीं कहां से गंवार लड़की ले कर मेरे साथ बांध दिया,” इतना सुनते ही प्रिया और सुधीर ने चौंकते हुए शेखर और सुधा को देखा.

शेखर बहुत शर्मिंदा दिखे और सुधा की आंखों में एक नमी सी आ गई थी, जिसे देख कर शेखर और शर्मिंदा हो गए.

अनंत ने कहा,”और एक मजेदार बात यह थी कि रोज हमें लगता कि बस शायद कल मम्मी और पापा अलग हो जाएंगे पर हम अगले दिन देखते कि दोनों अपनेअपने काम में रोज की तरह व्यस्त हैं.

“सारे रिश्तेदारों को पता था कि दादादादी ने अपनी पसंद की लड़की से पापा की शादी कराई है और पापा को मम्मी पसंद नहीं हैं. हम किसी से भी मिलते, तो हम से पूछा जाता कि अब भी तुम्हारे पापा को तुम्हारी मम्मी पसंद नहीं हैं क्या?

“हमें कुछ समझ नहीं आता कि क्या कहें पर सब मम्मी की खूब तारीफ करते. सब का कहना था कि मम्मी जैसी लड़की संयोग से मिलती है पर पापा घर में हर बात पर यही कहते कि उन की लाइफ खराब हो गई है, यह शादी उन की मरजी से नहीं हुई है. उन्हें किसी शहर की मौडर्न लड़की से शादी करनी थी और उन के पेरैंट्स ने अपने गांव की लड़की से उन की शादी करा दी.

“हालांकि मम्मी बहुत पढ़ीलिखी हैं पर प्रोफैसर पापा अलग ही दुनिया में जीते और मैं और अंजू मम्मीपापा के तलाक के डर के साए में जीते रहे.

“कभी अनंत मुझे समझाता, तसल्ली देता कि कुछ नहीं होगा, कभी मैं उसे समझाती कि अगले दिन तो सब ठीक हो ही जाता है. हमारी जवानी तो पापा की धमकियों में ही बीत गई.”

फिर अचानक अनंत जोर से हंसा और कहने लगा,”धीरेधीरे हम बड़े हो गए और समझ आ गया कि पापा सिर्फ मम्मी को धमकियां देते हैं, हमारी प्यारी मां को छोड़ना इन के बस की बात नहीं.”

प्रिया और सुधीर ने शेखर को बनावटी गुस्से से कहा,”पापा, वैरी बैड, हम आप को क्या समझते थे और आप क्या निकले… बेचारे बच्चे आप की धमकियों में जीते रहे और हम आप दोनों की बौंडिंग के फैन होते रहे. क्यों, पापा, ये धमकियां क्यों देते रहे?”

शेखर ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा,”वैसे अच्छा ही हुआ कि आज तुम लोगों ने बात छेड़ दी, दिन भी अच्छा है आज.”

*उन* के इतना कहते ही अंजू ने कहा,”अच्छा, दिन अच्छा हो गया अब मैरिज ऐनिवर्सरी का, बच्चों को परेशान कर के?”

”हां, बेटा, दिन बहुत अच्छा है आज का जो मुझे इस दिन सुधा मिली.”

अब सब ने उन्हें चिढ़ाना शुरू कर दिया,”रहने दो पापा, हम आप की धमकियां नहीं भूलेंगे.”

”सच कहता हूं, मैं गलत था. मैं ने सुधा को सच में तलाक की धमकी देदे कर बहुत परेशान किया. मैं चाहता था कि मैं बहुत मौडर्न लड़की से शादी करूं, गांव की लड़की मुझे पसंद नहीं थी. हमेशा शहर में रहने के कारण मुझे शहरी लड़कियां ही भातीं. जब अम्मांपिताजी ने सुधा की बात की तो मैं ने साफसाफ मना कर दिया पर सुधा के पेरैंट्स की मृत्यु हो चुकी थी और भाई ने ही हमेशा सुधा की जिम्मेदारी संभाली थी.

“अम्मां को सुधा से बहुत लगाव था. मैं ने तो यहां तक कह दिया था कि मंडप से ही भाग जाऊंगा पर पिताजी के आगे एक न चली और सारा गुस्सा सुधा पर ही उतरता रहा.

“मेरे 7 भाईबहनों के परिवार को सुधा ने ऐसे अपनाया कि सब मुझे भूलने लगे. हर मुंह पर सुधा का नाम, सुधा के गुण देख कर सब इस की तारीफ करते न थकते पर मेरा गुस्सा कम होने का नाम ही ना लेता पर धीरेधीरे मेरे दिल में इस ने ऐसी जगह बना ली कि क्या कहूं, मैं ही इस का सब से बड़ा दीवाना बन गया.

“जब आनंद पैदा हुआ तो सब को लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा पर मैं नहीं सुधरा, सुधा से कहता कि बस यह थोड़ा बड़ा हो जाए तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा.

“फिर 2 साल बाद अंजू हुई तो भी मैं यही कहता रहा कि बस बच्चे बड़े हो जाएं तो मैं तुम्हे तलाक दे दूंगा और तुम चाहो तो गांव में अम्मां के साथ रह सकती हो.

“फिर बच्चे बड़े हो रहे थे तो मेरी बहनों की शादी का नंबर आता रहा. सुधा अपनी हर जिम्मेदारी दिल से निभाती रही और मेरे दिल में जगह बनाती रही पर मैं इतना बुरा था कि तलाक की धमकियों से बाज नहीं आता…

“सुधा घर के इतने कामों के साथ अपना पूरा ध्यान पढाईलिखाई में लगाती और इस ने धीरेधीरे अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली और एक दिन एक कालेज में जब इसे नौकरी मिल गई तो मैं पूरी तरह से अपनी गलतियों के लिए इतना शर्मिंदा था कि इस से माफी भी मांगने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

“मन ही मन इतना शर्मिंदा था कि आज इसलिए इस दिन को अच्छा बता रहा था कि मैं तुम सब के सामने सुधा से माफी मांगने की हिम्मत कर पा रहा हूं.

“बच्चो, तुम से भी शर्मिंदा हूं कि मेरी तलाक की धमकियों से तुम्हारा बालमन आहत होता रहा और मुझे खबर भी नहीं हुई.

“सुधा, अनंत और अंजू, तुम सब मुझे आज माफ कर दो…”

प्रिया ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा,”मम्मी, आप भी कुछ कहिए न?”

सुधा ने एक ठंडी सांस ली और बोलने लगी,”शुरू में तो एक झटका सा लगा जब पता चला कि मैं इन्हें पसंद नहीं, मातापिता थे नहीं, भाई ने बहुत मन से मेरा विवाह इन के साथ किया था. लगा भाई को बहुत दुख होगा अगर उस से अपना दुख बताउंगी तो…

“इसलिए कभी भी किसी से शेयर ही नहीं किया कि पति तलाक की धमकियां दे रहा है. सोचा समय के साथ शायद सब ठीक हो जाए और ठीक हुआ भी. तुम दोनों के पैदा होने के बाद इन का अलग रूप देखा. तुम दोनों को यह खूब स्नेह देते, कालेज से आते ही तुम दोनों के साथ खूब खेलते.

“मैं ने यह भी देखा कि मुझे अपने पेरैंट्स के सामने या उन के आसपास होने पर ये तलाक की धमकियां ज्यादा देते हैं, अकेले में इन का व्यवहार कभी खराब भी नहीं रहा. मेरी सारी जरूरतों का हमेशा ध्यान रखते. मैं समझने लगी थी कि यह हम सब को प्यार करते हैं, हमारे बिना रह ही नहीं सकते.

“ये धमकियां पूरी तरह से झूठी हैं, सिर्फ अपने पेरैंट्स को गुस्सा दिखाने के लिए करते हैं.

“यह अपने पेरैंट्स से इस बात पर नाराज थे कि उन्होंने इन के विवाह के लिए इन की मरजी नहीं पूछी, सीधे अपना फैसला थोप दिया.

“जब मैं ने यह समझ लिया तो जीना मुश्किल ही नहीं रहा. मुझे पढ़ने का शौक था, किताबें तो यह ही ला कर दिया करते. पूरा सहयोग किया तभी तो पीएचडी कर पाई.

“रातभर बैठ कर पढ़ती तो यह कभी चाय बना कर देते, कभी गरम दूध का गिलास जबरदस्ती पकड़ा देते और अगर अगले दिन अम्मांपिताजी आ जाएं तो तलाकपुराण शुरू हो जाता, पर मैं इन के मौन प्रेम का स्वाद चख चुकी थी, फिर मुझे कोई धमकी असर न करती,” कहतेकहते सुधा बहुत प्यार से हंस दी.

*शेखर* हैरानी से सुधा का मुंह देख रहे थे, बोले,”मतलब तुम्हें जरा भी चिंता नहीं हुई कभी?”

”नहीं, जनाब, कभी भी नहीं,” सुधा मुसकराई.

अनंत और अंजू ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर अनंत बोला,” लो बहन, और सुनो इन की कहानी, मतलब हम ही बेवकूफ थे जो डरते रहे कि हाय, मम्मीपापा का तलाक न हो जाए, फिर हमारा क्या होगा?

“हम बच्चे तो कई बार यह बात भी करने बैठ जाते कि पापा के पास कौन रहेगा और मम्मी के पास कौन?

“हमें तो फिल्मी कोर्टसीन याद आते और हम अलग ही प्लानिंग करते. पापामम्मी, बड़ा जुल्म किया आप ने बच्चों पर. ये धमकियां हमारे बचपन पर बहुत भारी पड़ी हैं.”

शेखर ने अब गंभीरतापूर्वक कहा,”हां, बच्चो, यह मैं मानता हूं कि तुम दोनों के साथ मैं ने अच्छा नहीं किया, मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि मेरे बच्चों के दिलों पर ये धमकियां क्या असर कर रही होंगी, सौरी, बच्चो.”

अंजू ने चहकते हुए शरारत से कहा,”वह तो अच्छा है कि मम्मी ने यह बात एक दिन महसूस कर ली थी कि आप की तलाक की धमकियां हमें परेशान करती हैं तो उन्होंने हमें बैठा कर एक दिन समझा दिया था कि आप का यह गुस्सा दादादादी को दिखाने का एक नाटक है. कुछ तलाकवलाक कभी नहीं होगा, तब जा कर हम थोड़ा ठीक हुए थे.”

शेखर अब मुसकराए और नाटकीय स्वर में कहा,”मतलब मेरी खोखली धमकी का किसी पर भी असर नहीं पड़ रहा था और मैं खुद को तीसमारखां समझता रहा…”

सुधीर ने प्रिया की ओर देखते हुए कहा,”प्रिया, अनंत और अंजू कोई धमकी कभी दें तो दिल पर मत लेना, यार, हमें तो बड़े धमकीबाज ससुर मिले हैं, पर यह भी सच है कि आप दोनों की बौंडिंग है तो कमाल…

“एक सारी उम्र धमकी देता रहा, दूसरा एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकालता रहा, बस 2 बेचारे बच्चे डरते रहे.”

हंसी के ठहाड़ों से घर के दीवार चहक उठे थे और शेखर सुधा को मुग्ध नजरों से निहारते जा रहे थे.

Dr. Bushra Ateeq: A Beacon of Excellence in Cancer Research

Dr. Bushra Ateeq is a leading cancer biologist and molecular oncologist. She is currently a Professor in the Department of Biological Sciences and Bioengineering at the Indian Institute of Technology (IIT) Kanpur.

Dr. Ateeq’s passion for biology was evident from her high school years, which led her to pursue higher education in genetics. After earning her PhD in this field, she engaged in postdoctoral research at several prestigious institutions, including the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) in New Delhi and the National Institute of Immunology (NII).

She continued her research at McGill University in Montreal, Canada, and later at the Michigan Center for Translational Pathology at the University of Michigan, where she also served as a Research Investigator (Junior Faculty). In February 2013, she joined IIT Kanpur, where she has played a key role in advancing cancer research.

Recognition:

Dr. Ateeq was honored with the Grihshobha Inspire Award, and her writing and research have earned her numerous accolades.

Research Focus and Contributions:

Dr. Ateeq’s research focuses on understanding genetic and epigenetic alterations in cancer. Her work has led to significant discoveries in molecular characterization and potential therapeutic targets. Her research has been published in various prestigious medical journals and continues to receive recognition.

She has made vital contributions in identifying biomarkers for prostate cancer, which has helped improve diagnostic and therapeutic strategies. Prostate cancer is increasingly affecting men over the age of 50 in India, and alarmingly, it is now also being seen in men as young as 30, largely due to lifestyle disorders. Only about 2–3% of cases are due to genetic reasons.

According to Dr. Ateeq, early detection, along with a balanced diet, regular exercise, and symptom-based monitoring, can help in managing the condition effectively.

Bridging Lab and Clinic:

Dr. Ateeq’s commitment to translational research helps bridge the gap between laboratory discoveries and clinical applications, offering hope for better management and treatment of cancer patients

 Awards and Honors:

Her outstanding work has been recognized with several prestigious awards, including:

  • Shanti Swarup Bhatnagar Prize for Science and Technology (in Medical Science)
  • S. Ramachandran National Bioscience Award
  • Basanti Devi Amir Chand Award in Biotechnology
  • C.N.R. Rao Faculty Award
  • Saeeda Begum Woman Scientist Award
  • P.K. Kelkar Research Award

 A True Inspiration:

Dr. Bushra Ateeq is an inspiration in many ways. Her research spans areas such as:

  • Cancer biomarkers
  • Cancer genomics
  • Non-coding RNA
  • Drug targets
  • Prostate, breast, and colorectal cancers

Her work emphasizes the molecular changes and biomarkers that contribute to the progression of these cancers.

In her own words:

“Our lab aims to discover targets for anti-cancer therapies. Identifying these targets is crucial because early detection significantly increases the chances of successful treatment.”

 

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