जैसे को तैसा: भाग 3- भावना लड़को को अपने जाल में क्यों फंसाती थी

बातोंबातों में ही एक दिन भावना ने बताया कि उस के पापा प्राइवेट जौब में थे. कोरोना के कारण वह नहीं रहे तो घर चलाने के लिए उसे अपने सपने त्याग कर यह जौब करनी पड़ी. अमन के पूछने पर वह बोली कि उस का सपना तो पायलट बनने का था मगर आज एक छोटी सी नौकरी करने को मजबूर है. फिर वह बताने लगी कि उस के घर में मांपापा के अलावा एक छोटा भाई भी है और उन सब की जिम्मेदारी भावना पर ही है. उस की बातों से अमन काफी इंप्रैस हुआ और बोला था कि कौन कहता है कि लड़कियां बो   झ होती हैं अपने मांबाप पर बल्कि वे तो अपने मातापिता का अभिमान होती हैं और वक्त पड़ने पर उन का सहारा भी बनती हैं.

भावना के पूछने पर अमन ने बताया कि वह यहीं दिल्ली में ही एक बड़ी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत है और उस के पापा पटना में एसबीआई में ब्रांच मैनेजर हैं. मां हाउसवाइफ हैं और एक छोटा भाई है जो बैंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.

‘‘क्या बात, तुम्हारी तो पूरी फैमिली ही ऐजुकेटेड है,’’ अपने हाथ को हवा में लहराते हुए भावना बोली.

उस पर अमन बोला कि हां, उस के परिवार में, चाचा, मामा और उन के बच्चे भी ऊंचीऊंची पोस्ट पर हैं. कई तो अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में रहते हैं. उस पर आश्चर्य से भावना की आंखें फैल गई थीं.

दोनों की दोस्ती अब काफी गहरी हो चुकी थी. छुट्टी में अकसर दोनों साथ समय गुजारते दिख जाते थे. पहले भावना कभी बस तो कभी औटो पकड़ कर औफिस जातीआती थी. मगर अब वह अमन के साथ उस की ही गाड़ी में औफिस जानेआने लगी थी.

एक रोज भावना ने बताया कि वह यहां एक पीजी में रहती है पर पीजी का भाड़ा बहुत ज्यादा है. खाना भी वहां का खाने लायक नहीं होता है. इसलिए रूम शेयरिंग में अगर एक कमरे का घर मिल जाता तो अच्छा होता. उस पर अमन बोला था कि वह भी एक लड़के के साथ, जोकि उस के ही औफिस में काम करता है, रूम शेयरिंग में रहता है. लेकिन अब उस की शादी हो रही है. इसलिए उसे अकेले रहना पड़ेगा. तो क्यों न भावना उस के साथ आ कर रहने लगे?

आइडिया अच्छा था. तय हुआ कि दोनों आधाआधा किराया देंगे और खानेपीने का खर्चा भी मिलबांट कर उठाएंगे. अब दोनों साथ रहने लगे थे. घरबाहर के कामों में भी वे एकदूसरे का पूरा सहयोग करते.

साथ रहने से जल्द ही दोनों के बीच की सारी औपचारिकताएं भी मिट गईं. लेकिन पहल हमेशा भावना की ही तरफ से होती थी और अंजाम तक पहुंचने में अमन उस का भरपूर सहयोग करता था. कोई चूक न हो जाए, इस बात की दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. नहींनहीं, भविष्य में इन्हें कोई बंधनवंधन में नहीं बंधना था. यह तो बस जिंदगी के मजे ले रहे थे. अमन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. वह घर से भी काफी संपन्न व्यक्ति था. लेकिन भावना पर अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी थी. इसलिए अमन जहां तक हो पाता उस से घर खर्च के पैसे नहीं लेता था. घर का भाड़ा भी अकसर वही भर दिया करता था. इस बात के लिए जब भावना उसे ‘थैंक्स’ कहती, तो अमन हंसते हुए कहता, ‘‘दोस्ती में ‘नो थैंक्यू नो सौरी,’’ और फिर दोनों ठहाके लगा कर हंस पड़ते थे.

छुट्टियों पर अमन अकसर भावना को लौंग ड्राइव पर ले जाता. मौल ले जा कर उसे शौपिंग करवाता, होटलों में खाना खिलाता और बदले में भावना उस पर अपना तनमन लुटाती. भावना के पिछले जन्मदिन पर अमन ने उसे ‘आई फोन’ गिफ्ट किया था और इस जन्मदिन पर लैपटौप. बदले में भावना ने भी उसे एक बढि़या सी व्हाइट शर्ट खरीद कर दी थीं. दोनों अपनीअपनी लाइफ खूब ऐंजौय कर रहे थे. कोई टैंशन नहीं, बस मौज ही मौज. साथ रहते हुए 3 साल कैसे हवा की तरह उड़ गए उन्हें पता ही नहीं चला.

अच्छे पैकेज पर अमन ने मुंबई की एक बड़ी कंपनी जौइन कर ली और उधर भावना ने दिल्ली में कोई दूसरी नौकरी पकड़ ली जो पहले से ज्यादा पैसा दे रहा था. लेकिन दोनों अब भी संपर्क में बने हुए थे. उन का जब भी मन करता एकदूसरे से मिलने आ जाते और अपनी भूख शांत कर तृप्त हो जाते. वैसे भी दिल्ली और मुंबई की दूरी है ही कितनी?

एक रोज जब अमन ने बताया कि उस की शादी तय हो गई, तो भावना खुश होते हुए उसे शादी की बधाई देते हुए बोली कि वह उसे अपनी शादी पर तो बुलाएगा न?

‘‘अरे, यह भी कोई पूछने वाली बात है,’’ हंसते हुए अमन ने कहा था.

इस क्रिसमस की छुट्टी पर अमन ने पटना जाने का प्रोग्राम बनाया था मगर भावना ने उसे दिल्ली बुला लिया यह कह कर कि दोनों खूब मजे करेंगे. अमन ने भी सोचा, अब तो उस की शादी होने ही वाली है, तो क्यों न 1-2 दिन भावना के साथ मजे कर लिए जाएं. 3-4 दिन दिल्ली रह कर वह वहीं से पटना चला गया.

रिटायरमैंट के बाद अमन के मांपापा हमेशा के लिए यहीं दिल्ली रहने आ गए और अमन ने भी मुंबई की कंपनी छोड़ फिर दिल्ली में ही जौब पकड़ ली.

अमन और भावना के बीच पहले की तरह ही नौर्मल बातें होतीं. लेकिन अमन जिस बात को इतना नौर्मल सम   झ रहा था, अब वह नौर्मल नहीं रही थी.

उस रात अचानक भावना ने फोन कर अमन से यह कह कर 50 हजार रुपए की मांग कर दी कि उस के पापा की तबीयत बहुत खराब है और अभी उस के पास इतने पैसे नहीं हैं. वह जल्द ही उस के पैसे लौटा देगी. दूसरी बार उस ने अपने भाई की एडमिशन का कह कर पैसे मांगे कि अगर समय पर पैसे नहीं भरे तो एडमिशन की डेट निकल जाएगी. ऐसा करकर के वह जबतब अमन से पैसे    झटकने लगी और हर बार पैसे लेते समय वह इतना जरूर कहती कि वह उस के पैसे जल्द ही लौटा देगी और अमन चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाता. अभी तक वह धीरेधीरे कर अमन से करीब 2 लाख से ज्यादा ले चुकी थी.

मगर हर बात की एक हद होती है और अमन की अपनी भी जिंदगी थी, उस के भी खर्चे थे. इसलिए इस बार उस ने पैसे देने से साफ मना कर दिया और यह बात भावना को चुभ गई. अपना असली रंग दिखाते हुए बोली, ‘‘वैसे अमन हमारे नाजुक पल के मैं ने कुछ वीडियो बना रखे हैं, देखोगे? कुछ तसवीरें भी खींची थीं. अभी भेजती हूं. बताना पसंद आईं या नहीं,’’ बोल कर वह अजीब तरह से हंसी.

वीडियो और तसवीरें देख कर अमन के तो पैरों तले की जमीन ही खिसक गई.

‘‘ये ये सब क्या है भावना? प्लीज, इन्हें डिलीट करो अभी,’’ अमन घबराया सा बोला.

‘‘अरे, तुम तो घबरा गए और डिलीट क्यों करूं इन्हें? कितना तो अच्छी हैं, देखो न, नहीं लग रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से खुद को बचाने की कोशिश कर रही हूं… रो रही हूं… गिड़गिड़ा रही हूं… तुम्हारे सामने दया की भीख मांग रही हूं और तुम मु   झे दबोचे हुए हो… हांहां, जानती हूं यह सब    झूठ है बल्कि मैं ने ही तुम्हें ऐसा करने को कहा था. लेकिन यह बात मानेगा कौन क्योंकि यह वीडियो और फोटो तो यही बता रहे हैं कि तुम मेरा बलात्कार कर रहे हो,’’ बोल कर भावना ठहाका लगा कर हंसी.

मगर अमन को सम   झ नहीं आ रहा था कि भावना ने ये वीडियो कब और क्यों बनाया और तस्वीरें भी तो यही कह रही हैं कि उस ने उस के साथ जबरदस्ती की है. लेकिन उस ने तो कभी उस के साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, बल्कि जब भी उन के बीच रिश्ता बना, दोनों की मरजी से बना.

हां, याद आया. उस क्रिसमस पर जब वह भावना से मिलने दिल्ली गया था तब मजाक में ही भावना बोली थी, ‘‘चलो, आज हम कुछ नए तरीके से सैक्स का मजा लेते हैं. ऐसा लगे कि तुम मेरा बलात्कार कर रहे हो और मैं खुद को तुम से बचाने की कोशिश कर रही हूं, गिड़गिड़ा रही हूं, तुम्हारे सामने, दया की भीख मांग रही हूं.’’

उस पर अमन ने हंसते हुए बोला भी था कि यह सब नाटक करने की क्या जरूरत है भावना? उस पर भावना बोली थी, ‘‘अरे, कर के देखो तो सही बहुत मजा आएगा.’’

मगर अमन को यह नहीं पता था कि भावना की यह सब सोचीसम   झी चाल है. उस ने जानबू   झ कर अमन से ऐसा करवाया था ताकि वीडियो बना कर बाद में उसे ब्लैकमेल कर सके.

‘‘सही सोच रहे हो तुम, मैं ने यह वीडियो जानबू   झ कर ही बनाया था ताकि मौका पड़ने पर इसे इस्तेमाल कर सकूं? लेकिन सोचो, अगर यह वीडियो और तसवीरें पुलिस के पास चली गईं तो क्या होगा?’’ अपने अधर को टेढ़ा कर भावना मुसकराते हुए बोली, ‘‘वैसे, मैं ऐसा होने नहीं दूंगी. लेकिन सोच रही हूं रागिनी को सैंड कर दूं. उसे बहुत पसंद आएगा. तुम क्या कहते हो?’’

‘‘तुम… तुम चाहती क्या हो?’’ अमन चीख पड़ा था.

‘‘पैसे और जब भी बुलाऊं आना पड़ेगा,’’ इठलाते हुए भावना बोली. पैसे देने से मना करने पर वह अमन को पुलिस का डर दिखाती. कहती कि पूरी दुनिया में उसे बदनाम कर देगी. फिर उसे मुंह छिपाने के लिए जगह नहीं मिलेगी और डर कर अमन उस की हर गलतसही मांग को मानता जा रहा था. भावना ने उस की हंसतीखेलती जिंदगी को मजाक बना कर रख दिया था. लेकिन अब वह इन सब से थकने लगा था. मन करता नींद की गोलियां खा कर सो जाए या किसी ट्रेन के नीचे आ जाए. लेकिन यह सब इतना आसान भी नहीं था. अपनी जिस शादी को ले कर अमन इतना खुश था, अब उसी से उसे डर लगने लगा था. सोचता, अगर रागिनी को यह सब पता चल गया तो क्या होगा, उलटेपुलटे विचार आते उस के मन में और वह सिहर उठता.

भावना के फोन का स्पीकर खराब हो गया था. इसलिए उस ने अमन को व्हाट्सऐप मैसेज कर 1 लाख रुपए ले कर आने को बोल दिया वह भी तुरंत. लेकिन अमन के पास सच में पैसे नहीं थे अभी. इसलिए उस ने उसे पैसे देने से मना कर दिया.

‘‘फिर अंजाम क्या होगा यह भी सम   झ लो तुम,’’ मैसेज कर के ही भावना बोली, ‘‘कल शाम 5 बजे पैसे तैयार रखना. सम   झ लो नहीं तो मैं यह वीडियो और तसवीरें पुलिस के पास पहुंचा दूंगी और तुम्हारी उस रागिनी को भी. फिर मत कहना कि बताया नहीं था.’’

अमन ने उस की बातों का फिर कोई जवाब नहीं दिया और उन्हीं कपड़ों में घर से बाहर निकल गया. रागिनी जब अमन से मिलने उस के घर पहुंची तो छाया ने बताया कि पता नहीं सुबह से ही वह कहां गया है? कुछ बता कर भी नहीं गया है. इसलिए वह खुद ही उसे फोन कर के पूछ ले. रागिनी ने जब अमन को फोन मिलाया तो पता चला वह अपना फोन घर पर ही भूल गया है. पता नहीं रागिनी का क्या मन हुआ कि वह उस का व्हाट्सऐप खोल कर देखने लगी. भावना और अमन का मैसेज पढ़ कर पहले तो वह हक्कीबक्की रह गई, लेकिन जब भावना का

डीपी खोल कर गौर से देखा, तो शौक्ड रह गई क्योंकि भावना वही लड़की थी जिस के कारण रागिनी के एक अजीज दोस्त, श्लोक ने अपनी जान दे दी थी. मगर कोई सुबूत न होने के

कारण पुलिस को किसी पर कोई शक नहीं हो पाया था और गुनहगार बच निकला था. लेकिन मरतेमरते श्लोक ने रागिनी को भावना की सारी सचाई बता दी थी. आज फिर वही सब अमन के साथ होते देख रागिनी का खून खौल उठा. उसे डर था कि कहीं श्लोक की तरह अमन भी कुछ कर न ले.

रागिनी को सब सम   झ में आने लगा कि अचानक अमन का व्यवहार इतना क्यों बदल गया? क्यों वह हर बात पर    झुं   झला उठता? क्यों शादी को ले कर कोई रुचि नहीं दिखाता? भावना ने और भी कई लड़कों को अपनी सुंदरता के जाल में फंसा कर प्राइवेट पल के वीडियो का भय दिखा कर उन्हें अपना निशाना बनाया था.

रागिनी ने फटाफट अमन के फोन से भावना के सारे मैसेज, फोटो, वीडियो अपने फोन में ट्रांसफर कर लिए और छाया से यह बोल कर घर से निकल गई कि अमन ने उसे गार्डन रैस्टोरैंट में मिलने बुलाया है तो वह जा रही है. लेकिन घर से वह यह सोच कर निकली कि अब वह भावना को नहीं छोड़ेगी. उसे उस की करनी की सजा दिलवा कर रहेगी.

अमन कहीं कुछ ऐसावैसा न कर ले इसलिए रागिनी ने पहले उसे ढूंढ़ने की कोशिश की. मिलने पर वह अमन को एक शांत पार्क में ले गई. अमन अभी भी चुप था. रागिनी ने अपनी हथेलियों के बीच उस के हाथ को प्यार से दबाते हुए फिर पूछा कि भावना से उस का क्या रिश्ता है, तो पहले तो वह    झूठ बोल गया कि वह किसी भावना को नहीं जानता है, लेकिन जब उस ने सारे मैसेज, जो भावना ने उसे भेजे थे, दिखाए तो वह टूट गया. अपने आंसू पोंछते हुए उस ने 1-1 कर सारी बातें रागिनी के सामने रख दी और कहने लगा कि अब वह जीना नहीं चाहता.

मगर रागिनी उसे धैर्य बंधाते हुए बोली, ‘‘मरने से क्या होगा? यही कि उस के मांपापा भी नहीं बचेंगे. उसे तो यह सोचना है कि भावना को कैसे सबक सिखाया जाए ताकि वह फिर किसी को अपना शिकार न बना सके और तुम ने मु   झे यह सब क्यों नहीं बताया? यह सोच कर कि मैं तुम्हें गलत सम   झूंगी? पागल हो? क्या मैं अपने अमन को नहीं जानती. चिंता मन करो सबकुछ ठीक हो जाएगा. चलो, अब उठो, घर चलते हैं. वहां आंटीअंकल तुम्हारे लिए परेशान हो रहे हैं,’’ अमन का हाथ पकड़ कर रागिनी बोली तो वह उस के पीछे चल पड़ा.

रागिनी की बातों ने अमन को एक राहत तो पहुंचाई पर डर अब भी उस के दिल में बैठा हुआ था कि जब छाया को यह सब पता चलेगा तो क्या होगा?

छाया जब अमन के लिए उस के कमरे में खाना ले कर पहुंची, तो उस का मन किया मां को पकड़ कर खूब रोए. बेटे की हालत देख कर छाया को उस की चिंता होने लगी. लेकिन अभी भी वह सम   झ नहीं पा रही थी कि उसे हुआ क्या है. इधर रागिनी कुछ जरूरी काम का बता कर वहां से निकल गई. अमन ने तो सोच लिया था अब उसे जीना ही नहीं है. लेकिन रागिनी ने कुछ और ही सोच रखा था.

पहले तो रागिनी ने भावना से दोस्ती गांठी. फिर एक अच्छी दोस्त बनने का दिखावा कर उस का विश्वास जीता यह कह कर कि वह अपनी कंपनी में उसे बढि़या जौब दिलवा देगी जहां उसे पहले से ज्यादा सैलरी मिलेगी. अकसर दोनों साथ में शौपिंग करते और मूवी भी देखने जाते थे.

उस संडे दोनों ने ‘कटहल’ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया. मूवी देखने के बाद दोनों एक रैस्टोरैंट में खाना खाने गए. जहां रागिनी ने यह बोल कर भावना से उस का फोन मांग लिया कि उसे एक जरूरी मैसेज करना है और उस का नैट बहुत स्लो चल रहा है. फिर उस ने भावना के फोन से सारे डिटेल्स अपने फोन में ट्रांसफर कर लिए जिसे भावना को भनक तक नहीं लगी.

रागिनी अमेरिका के कई हैकर्स को जानती थी जो उसी की कंपनी में काम करते थे. उस ने भावना के बारे में उन्हें बताया और उन से मदद मांगी. हैकर्स ने उस से भावना के फोन डिटेल्स मांगी जो रागिनी ने उन्हें दे दी और ये सारे डिटेल्स हैकर्स के लिए काफी थीं.

दूसरे दिन ही हैकर्स भावना का लड़कों को ब्लैकमेल करने का धंधा पकड़ लेते हैं. भावना कुछ सम   झ पाती, उस से पहले ही पुलिस उस के हाथों में हथकड़ी लगा दी. वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि रागिनी ने सिर्फ इसलिए उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था क्योंकि वह उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना चाहती थी और जिस में आज वो कामयाब हो चुकी थी.

खैर, जैसे को तैसा, तो होना ही था. आखिर कब तक वह अपनी सुंदरता की आड़ में अमन और राहुल जैसे लड़कों का फायदा उठाती. अमन की चेहरे की रौनक अगर वापस आई थी तो वह रागिनी की वजह से. आज दोनों अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश है और भावना जेल की सलाखों के पीछे है.

कुछ हैकर्स ऐसे भी होते हैं जो सही उद्देश्य के लिए काम करते हैं और उन्हें एथिकल हैकर्स या व्हाइट हैकर्स भी कहा जाता है.

भेडि़या: भाग 3- मीना और सीमा की खूबसूरती पर किसकी नजर थी

हफ्ता निकल गया. डर थोड़ा कम तो हुआ पर गया नहीं. झुग्गी के ठीक सामने खूब घना जामुन का पेड़ है. गरमियों के मौसम में कई बस्ती वाले रात को इसी पेड़ के नीचे सोते हैं और सर्दियों में सभी बुजुर्ग यहां धूप सेंकते हैं. कुछ बच्चे कंच्चे और क्रिकेट भी खेलते हैं.

अकसर मीना दरवाजे पर खड़ी हो कर बच्चों के खेल का आनंद लेती है. 2 दिन से 18-19 साल के एक लड़के को पेड़ के नीचे डेरा डाले देख रही है. मैलेकुचैले कपड़ों में यह लड़का चुपचाप    झुग्गी को ताकता रहता है. शुरू में मीना को अजीब सा लगा. फिर जल्द ही सम   झ आ गया, मुसीबत का मारा है बेचारा. भोले से चेहरे वाले इस लड़के के करीब बैठने का जी करता.

आजकल दोनों बहनों के बीच वार्त्ता का विषय, मुच्छड़ नहीं पेड़ के नीचे बैठा वह लड़का है.

मीना को बड़ा तरस आता है इस बेचारे पर. जी करता है पूछे कि वह ऐसा क्यों है?

नहीं, दोनों बहनें अपनी परिधि से घिरी हैं. किसी ने उन्हें लड़के से बात करते देख लिया तो बात उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा. पूरी बस्ती है ही ऐसी. इस से अच्छा है इसे इसी के हाल पर छोड़ देते हैं. पर बच्चे अकसर पागल कह कर जब पत्थर मारते तो बहनों का जी तड़प जाता. संवेदना तो बस्ती वालों की पहले ही मर चुकी है. किसी के दुख को ये क्या सम   झेंगे?

एक रोज मीना मौका देख लड़के के पास जा पहुंची. बोली, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘कमल,’’ लड़के ने   झिझकते हुए बताया.

‘‘कहां के रहने वाले हो?’’

‘‘मंतर गांव है. मेरा घर में कोई नहीं है. गांव में बाढ़ आई सब तबाह हो गया. तुम इन्हीं    झुग्गियों में रहती हो? मेरे गांव में तुम्हारे जैसी एक लड़की थी. उस का नाम मीना था. तुम्हारा क्या नाम है?’’

वह हंस पड़ी, ‘‘मेरा नाम भी मीना है.’’

अगले पल दोनों समवेत स्वरों में हंसे. मीना आज कई दिनों बाद हंसी थी वो भी खुल कर.

अगले पल चुप हो लड़के ने मीना पर आंखें टिका दीं और बोला, ‘‘कितने अजीब हैं यहां के लोग. सब देखता हूं पर चुप रहता हूं. यहां मु   झे अपना कहने वाला कोई नहीं है. थोड़े दिन में पानी उतर जाएगा तो मैं चला जाऊंगा.’’

मीना का मन लड़के की बात के समर्थन में बहुत कुछ कहना चाहता था पर विवश है. फिर भी बोल, ‘‘वह क्या नाम बताया?’’

‘‘नाम? तुम ने पूछा तो था? कमल है

मेरा नाम,’’ मुसकराहट की पतली सी रेखा खिंच गई थी.

गजब का आकर्षण था कमल के चेहरे पर.

‘‘तुम ने देखा होगा वह मुच्छड़ दारू पी कर सारी बस्ती में घूमता रहता है. लड़कियों को देख गंदेगंदे इशारे करता है. जी करता है गोली मार दूं और वह मोटा लाला. फिर वह तिरपाली बनिया कितनी बकवास करता है? देखा है न? मन करता है इन सब को इकट्ठा कर के आग लगा दूं.’’

‘‘किसकिस को गोली मारोगी? सब गंदगी में पले हैं. मु   झे भी पागल कह कर मेरी खिल्ली उड़ाते रहते हैं.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. सब यहां ठेकेदार के पाले हुए गुंडे हैं. तभी तो कोई कुछ नहीं कहता. अच्छा, मैं चलती हूं.’’

सामने से मोटा लाला खींसें निपोरता हुआ आ कर खड़ा हो गया. बोला, ‘‘नईनई दोस्ती हुई है. कभी हमें भी अपना यार बना लो, कसम से पूरी दुकान तुम्हारे नाम कर दूंगा…’’’ और मीना के बाजू को रगड़ता हुआ निकल गया. मीना का शरीर कांप गया. कमल की आंखों में भी गुस्सा था.

अपमान का घूंट पी कर    झुग्गी पर आ गई. चुप, डरी हुई. अच्छा हुआ घर पर अम्मां नहीं है. बापू भी गायब था. बहन सोई पड़ी है. मीना का मन हलका था. न जाने कितने दिनों के बाद उसे लगा था, वह अकेली ही नहीं बल्कि कोई और भी इस गंदे माहौल से आजिज है. कमल ने मन का कमल खिला दिया था.

शाम के 7 बजे हैं. अम्मां देर रात तक लौटेगी. कह रही थी कोठी में पार्टी है. दरवाजा बंद कर के लेट गई.

कोठी नंबर 26 में पार्टी जूम पर है. ड्रिंक्स का दौर थम ही नहीं रहा. पी कर गिलास फेंकने की भी यह नई रीत है. रात के 10 बज चुके हैं. आधी  बोतलें खाली हो गई हैं. ठंड में सौ गिलासों को धोना आसान नहीं है.

चंपा के हाथ थक गए हैं. बारबार टूटे गिलासों को    झाड़ू से समेट कर डस्टबिन में डालतेडालते कांच के टुकड़ों से उगलियां घायल हो चुकी हैं.

अचानक लगा बसेसर गार्ड के पास गेट पर बैठा है. धुली कमीज और पाजामे में बसेसर ही तो था.

यहां कैसे? घर में लड़कियां अकेली हैं, यह यहां? भला पूछूं यहां क्या कर रहा है?

हाथ में लोहे की मूठ वाला डंडा लिए गार्ड से हंसहंस कर बतिया रहा था. चमेली का गुस्सा  7वें आसमान पर था. जी करा, लाठी से मारमार कर अधमरा कर दे. लगता है मुफ्त की दारू इसे यहां खींच लाई है. उस ने सपने में कभी न सोचा था कि ऐसी कुत्ती चीज के लिए लार टपकाता कोठी तक पहुंच जाएगा. पता होता, बेटियों को छोड़ यहां आ टपकेगा तो कभी न आती. भाड़ में जाएं हजार रुपए. यहां पता नहीं कितनी देर और लगेगी. चल कर पहले बसेसर की खबर लेती हूं. लेकिन यह क्या अचानक भेडि़या… भेडि़या  का शोर सुनाई दिया.

अफरातफरी मच गई. डर के मारे लोग एकदूसरे पर गिरने लगे. उस ने भी देखा कुत्ते जैसा था भयानक आंखें जैसे जलते हुए अंगारे हों. डर कर पलंग के नीचे जा छिपी. सूखे पत्ते सा कांप गया था मन और तन.

चंपा ने देखा. बसेसर कूद कर उस के सामने आ गया. लोहे की मूठ वाली लाठी उस के हाथ में थी, छलांग लगा कर खिड़की से कूद कर भागने की कोशिश में था भेडि़या. अचानक ग्रिल में जा फंसा.

आधा तन अंदर तो सिर का हिस्सा बाहर था. बसेसर ने मूठ वाली लाठी से सिर पर कम से कम 20-25 वार किए होंगे.

हल्ला मच गया, ‘‘बसेसर ने भेडि़ए को मार डाला.’’

लोगों ने बसेसर की पीठ ठोंकी, ‘‘आज यह न होता तो भेडि़ए ने 2-4 का खात्मा तो कर ही देना था.’’

चमेली पति की तारीफ सुन कर खुश हो रही थी. उसे अपने लंगड़े बहादुर पति पर पहली बार जबरदस्त प्यार उमड़ा.

पार्टी खत्म हो चुकी थी. लोग घर के लिए निकल कर कार पार्किंग की तरफ बढ़ लिए.

बसेसर अभी तक गार्ड के पास था. दारू जो नहीं मिली थी. गार्ड को आंख मार कर बोला, ‘‘इतनी दिलेरी दिखाई है, ईनाम तो मिलना ही चाहिए. जा भाई, अंदर से एक बोतल तो ला दे.’’

बोतल स्वैटर में छिपा कर निकल भागा और सांस झुग्गी पर पहुंच कर ही ली थी.

पीछेपीछे चमेली भी जा पहुंची. न जाने कहां से चमेली की चाल में दम भर गया. वह ठंड से कांप रही थी, परंतु दौड़ लगाने से पसीना आ गया.

हाय यह क्या? दरवाजे खुले थे. घर में अंधेरा कैसे? लड़कियां कहां गईं?

‘‘मीना?’’ कोई जवाब न था. मन सनाका खा गया. क्या हुआ? कहीं उन्हें भेडि़या तो नहीं खा गया? सड़क पर लगे लैंप पोस्ट की मरी हुई लाइट घर के अंदर पहुंच रही थी.

चंपा ने देखा, दोनों लड़कियां खून से लथपथ फर्श पर बेसुध पड़ी हैं.

‘‘मीना…’’ मुंह से चीख निकल गई. चीख काफी दूर तक लोगों ने सुनी. दौड़ कर पड़ोसी भी आ गए. किसी पड़ोसी ने अंदाज से बिजली का बटन दबाया. लाइट में सभी ने देखा. कमरे के फर्श पर लड़कियां निर्वस्त्र पड़ी थीं. टांगों के बीच से निकली खून की धार घर की चौखट को पार कर बाहर तक पहुंच गई थी. हाय यह क्या? यह किस ने किया है? जरूर किसी कसाई गुंडे का काम है. तन को कपड़े से ढक कर चंपा ने बेटियों के मुंह पर पानी के छींटे मारे… कुछ देर बाद दोनों को होश आ गया. दोनों ने आंखें खोल कर भय से इधरउधर देखा और फिर बेहोश हो गईं.

लोग कानाफूसी कर रहे थे. जितने मुंह, उतनी बातें. पूछनाकहना क्या था, सब को सम   झ में आ रहा था. लड़कियां के साथ दरिंदगी हुई है, लेकिन कौन है वह? सभी ने होंठ सी लिए थे. एक ही आवाज गूंज रही थी, पुलिस को बुलाओ, हौस्पिटल ले चलो.

थोड़ी देर में पुलिस आ गई. लड़कियां हौस्पिटल पहुंच गईं. बदहवास चंपा, हौस्पिटल के बरामदे में बेचैनी से चक्कर लगा रही थी और बसेसर का रात का हैंगओवर अभी उतरा नहीं था. दोनों पतिपत्नी पता नहीं किसकिस को गालियां देते जा रहे थे.

बड़ी सुबह दोनों को होश आया. फटी नजरों से आसपास देख रही थीं. पुलिस बयान लेगी. किसी ने आ कर बताया. यह भी बताया कि पुलिस को शक है कि यह कमल का ही काम है सो पकड़ कर ले गई है. कमल को पुलिस ने पीटा भी है. वह लौकअप में है.

‘‘कितने लोग थे?’’ पुलिस वाले ने मीना से पूछा.

इधरउधर देख कर बोली, ‘‘भेडि़या.’’

बारबार दोनों से यही प्रश्न किया. दोनों ने घबराते हुए, ‘‘भेडि़या,’’ यही उत्तर दिया.

पुलिस वाले ने कहा, ‘‘ये अभी कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं हैं. मैं फिर आऊंगा.

चंपा ने कोठी का काम छोड़ दिया. अफसोस मनाती है हजार के लालच में अस्मत गवां दी. उस रात न जाती तो यह सबकुछ भी न होता. मीना, सीमा इतनी सहम गई हैं कि घर से बाहर नहीं जातीं. जानती है परीक्षा होने वाली है नहीं देंगी तो साल बरबाद हो जाएगा. कितनी मजबूर हैं वे. जब से निर्दोष मासूम कमल के बारे में पता लगा है बस यही रटती हैं कि वह तो बेचारा भेड़ है, भेडि़या तो कोई और ही है. देखना, निर्दोष को फंसा कर, भेडि़या भी नहीं बचेगा. देखना अम्मां, एक दिन यही होगा.

बसेसर ने भी दारू का अड्डा छोड़ दिया. इस हादसे ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया. इसीलिए छत के लिए, चद्दरें भी खरीद लाया है. बस बल्लियों पर रख कर लोहे के कड़े से कस दूंगा.

लोहे के दरवाजे भी खरीद लिए हैं. 2-3 दिन में बस चढ़ा देगा. सोच रहा है कल ही यह काम कर लेता हूं.

बाप को उदास देख लड़कियों को भी अच्छा नहीं लगता. आजकल दोनों अम्मां से चिपट कर सोती हैं.

बसेसर इतनी ठंड में भी    झुग्गी से बाहर सोता है. रात गहरी हो रही है. सन्नाटा ऐसा कि सन्नाटा भी डर जाए. बसेसर ने कसम खाई है अब कभी नहीं पीएगा. वैसे वह जानता है असली भेडि़या कौन है? बसती में जब भी मुच्छड़ को देखता है, लगता है उस से कहा जा रहा है, बसेसर, अंगारों पर चलना आसान है पर उस से पंगा मत लेना.

यह बात कहीं उस के अंदर के बसेसर को विपरीत दिशा में सोचने को मजबूर करती है. कहीं बेहद मजबूत पाता है अपने को… किसी से डरता नहीं है. कुछ दिन पहले उस ने कोठी में खिड़की की ग्रिल में फंसा कर जंगल से कूद कर आए भेडि़ए का काम तमाम किया था. सब जानते हैं. सोचतेसोचते कब सो गया पता ही लगा.

अचानक झुग्गी के अंदर से ‘धम्म’ की आवाज से नींद खुली. लपक कर लाठी उठाई. अंदर की ओर भागा सामने मुच्छड़ था जिसे चंपा ने गरदन से पकड़ रखा था मीना और सीमा पास में पड़ी लोहे की रौड से सिर पर वार पर वार कर रही थीं. 2-3 रौड पड़ने के बाद वह बेहोश हो गया.

चारों ने मिल कर, घसीट कर    झुग्गी से बाहर ला पटका. रात के 2 बजे थे. कड़ाके की ठंड. सड़क सुनसान थी. डाल दिया भेडि़ए को बीच सड़क पर…

आज लड़कियों के लिए तो कैदमुक्ति थी. तभी चारों ने चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘भेडि़या… भेडि़या… भेडि़या…’’

देखते ही देखते हाथों में लाठी, डंडे, बल्लम, बरछे के साथ भीड़ उमड़ पड़ी. रास्ते में अंधेरे में कौन किस के पैरों तले रौंदा जा रहा है, किसी को कुछ पता न था.

चंपा, बसेसर मीना और सीमा सड़क के सुरक्षित कोने पर खड़े चुपचाप देखते रहे.

अगले दिन अखबार में खबर छपी, मालाड गांव से सटे जंगल से आए एक भेडि़ए ने पास की कालोनी से लगी    झुग्गी के एक निवासी पर हमला कर के घायल कर दिया. अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में घायल की मौत हो गई.

दूसरे दिन चंपा ने देखा मुसकराती मीना और सीमा अपनाअपना बस्ता ले कर स्कूल के लिए निकल पड़ी थीं.

Anupamaa: अनुज की जान बचाने के लिए समर की होगी मौत, अनु का हुआ बुरा हाल

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में आए दिन शो में जबरदस्त ट्विस्ट देखने को मिल जाते है. यह सीरियल लगातर टीआरपी में आगे बना हुआ है. शो को धमाकेदार बनाने के लिए मेकर्स ‘अनुपमा’ में नए मोड़ लेकर आ गए है. अभी इस शो में समर की मौत का ट्रेक चल रहा है.  ‘अनुपमा’ के बीते एपिसोड में देखने को मिला कि क्लब में पार्टी करते हुए अनुज से सोनू नाम का गुंडा बार-बार पंगे लेता है. वहीं अब आने वाले एपिसोड में अनुज और सोनू गुंडा के बीच टाशनबाजी देखने को मिलेगी, जिसका हरजाना समर भुगतेगा.

अनुज की मां-बेटी के बारे में बोलेगा सोनू

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि सोनू नाम का गुंडा बार-बार एक लड़की को छेड़ता है और ये चीज अनुज बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसे रोकता है. तभी सोनू अनुज के पास जाकर उसकी मां-बेटी के बारे में बुरा बोलता है. अनुज यह सब झेल नहीं पाता और वह उससे लड़ने लगता है. अनुज को रोकने के लिए बनराज आगे आता है, लेकिन सोनू फिर अनुज के पास आकर बकवास करने लगता है. ऐसे में अनुज अपना हौश खो बैठता है और उसे मारने लगता है. ये मामला मैनेजर की तरफ शांत करवाया जाता है.

 

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अनुपमा से होगा अपशगुन

वहीं सीरियल में दूसरी तरफ शाह हाउस में अचानक से ही टेंशन आ जाती है. अनुपमा और बा मंदिर में दीपक जला रहे होते हैं, तभी अनुपमा की नजर उस धागे पर जाती है जो समर के पैरों से निकल गया.

इसके बाद अचानक से घर के दरवाजे पर लगी फूलों की तोरण गिर जाती है. हद तो तब होती है जब अचानक मंदिर में समर के नाम का जल रहा दीया भी गिर जाता है. ये सब कुछ देखकर अनुपमा की सांसें अटक जाती हैं. वह बार-बार सबको फोन करती है, लेकिन कोई नहीं उठाता. हालांकि, अनुपमा का फोन बाबू जी उठाते हैं, जो क्लब में वॉशरूप की तरफ होते हैं और उन्हें अनुज की लड़ाई के बारे में कुछ पता ही नहीं होता.

 

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समर अनुज की जान बचाएगा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि वनराज अनुज और सबको क्लब से बाहर ले जाता है. तभी पीछे से सोनू गुंडा हाथ में गन लेकर आता. जो सिर्फ समर देख लेता है. गुंडा गोली चलाता है  समर अनुज को धक्का देकर उस गोली के आगे आ जाता है. यह सब देखकर सबकी आंखें फट जाती है.

‘लाल सिंह चड्ढा’ के बाद इस फिल्म से कमबैक कर है Amir Khan

आमिर खान बॉलीवुड के सबसे फाइन आर्टिस्ट में से एक है. अपनी एक्टिंग की वजह से वह मिस्टर परफेक्शनिस्ट माने जाते है. उनकी फिल्मों में आमतौर पर ऐसा संदेश छुपा होता है जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है. दरअसल, आमिर की साल 2022 में ‘लाल सिंह चड्ढा’ फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई थी, जिस वजह से आमिर ने एक्टिंग से ब्रेक ले रखा था. उनके फैंस इस बात से काफी निराश हो गए थे, लेकिन आमिर फैंस के लिए बड़ी खुशखबरी सामने आई है. आमिर खान इस फिल्म से करेंगे कमबैक.

 

बायोपिक फिल्म से करेंगे कमबैक आमिर

आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होने बाद उन्होंने कहा था कि वह डेढ़ साल के लिए एक्टिंग से ब्रेक लेंगे.

वहीं एक्टर अब बड़े पर्दे पर वापसी की खबर आई है. आमिर खान को लेकर ऐसी खबरें हैं कि वह एडवोकेट उज्जवल निकम की बायोपिक में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म क अविनाश अरुण डायरेक्ट कर रहे हैं, जिन्होंने ‘पाताल लोक’, ‘स्कूल ऑफ लाइज’ और ‘किला’ जैसी फिल्में बनाई हैं.

उज्जवल निकम की बायोपिक पर काम करेंगे आमिर

मीडिया इंटरव्यू के दौरान अविनाश अरुण ने आमिर खान के इस प्रोजेक्ट को लेकर बात की. उन्होंने यह भी बताया कि फिल्म अभी शुरुआती चरणों में है. इसके बारे बात करना अभी जल्दबाजी होगी. मेरे पास कुछ आइडिया है लेकिन अभी इसके बारे में कुछ भी ठोस नहीं है. अभी कुछ भी अमल नही लाया गया. अभी सिर्फ बात चल रहीं है.

छलिया कौन: क्या हुआ था सुमेधा के साथ

सब कहते हैं और हम ने भी सुना है कि जिंदगी एक अबूझ पहेली है. वैसे तो जिंदगी के कई रंग हैं, मगर सब से गहरा रंग है प्यार का… और यह रंग गहरा होने के बाद भी अलगअलग तरह से चढ़ता है और कईकई बार चढ़ता है. अब प्यार है ही ऐसी बला कि कोई बच नहीं पाता. ‘प्यार किया नहीं जाता हो जाता है…’ और हर बार कोई छली जाती है… यह भी सुनते आए थे.

आज भी ‘छलिया कौन’ यह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह बन कर मुंहबाए खड़ा है. प्यार को छल मानने को दिल तैयार नहीं और प्यार में सबकुछ जायज है, तो प्यार करने वाले को भी कैसे छलिया कह दें? प्यार करने वाले सिर्फ प्रेमीप्रेमिका नहीं होते, प्यार तो जिंदगी का दूसरा नाम है और जिंदगी में बहुतेरे रिश्ते होते हैं. मसलन, मातापिता, भाईबहन, मित्र और इन से जुड़े अनेक रिश्ते…

ममत्व, स्नेह, लाड़दुलार और फटकार ये सभी प्यार के ही तो स्वरूप हैं. इन सब के साथ जहां स्वार्थ हो वहां चुपके से छल भी आ जाता है.

वैसे, जयवंत और वनीला की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. कथानायक तो जयवंत ही है, मगर नायिका अकेली वनीला नहीं है. वनीला तो जयवंत और उस की पत्नी सुमेधा की जिंदगी में आई वह दूसरी औरत है जिस की वजह से सुमेधा अपनी बेटी मीनू के साथ अकेली रहने के लिए विवश है. सुमेधा सरकारी स्कूल में शिक्षिका है और जयवंत सरकारी कालेज में स्पोर्ट्स टीचर है. दोनों की शादी परिवारजनों ने तय की थी.

सुमेधा सुंदर और सुशील है और जयवंत के परिजनों को दिल से अपना मान कर सब के साथ सामंजस्य बैठा कर कुशलतापूर्वक घर चला रही है. शादी के 10 सालों बाद सरकारी काम से जयवंत को दूसरे शहर में ठौर तलाशना पड़ा. काफी प्रयासों के बाद भी सुमेधा का ट्रांसफर नहीं हुआ. जयवंत हर शनिवार शाम को आता और पत्नी व बेटी के साथ 2 दिन बिता कर सोमवार को लौट जाता. मीनू भी प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रही थी तो सुमेधा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया. सुमेधा सप्ताहभर घर की जिम्मेदारी अकेली उठाती रहती और सप्ताहांत में घर आए पति के लिए भी समय निकालती.

जयवंत के कालेज में एक प्राध्यापिका थी वनीला, जो अधिक उम्र की होने के बाद भी अविवाहित थी. वह सुंदर, सुशील और संपन्न थी. मनोनुकूल वैवाहिक रिश्ता न मिलने से सब को नकारती रही. उम्र के इस सोपान पर तो समझौता करना ही था, जो उस के स्वभाव में नहीं था, इसलिए आजीवन अविवाहित रहने का मन बना चुकी थी. अक्ल और शक्ल दोनों कुदरत ने जी खोल कर दी थी तो अकड़ भी स्वाभाविक. कालेज में सब को अपने से कमतर ही समझती थी.

जयवंत और वनीला ने जब पहली दफा एकदूसरे को देखा तो दोनों का दिल कुछ जोर से धड़का. जयवंत तो था ही स्पोर्ट्समैन तो उस का गठीला शरीर था. उसे देख कर वनीला को अपना संकल्प कमजोर पड़ता जान पड़ा. उसे लगा कि कुदरत ने उस के लिए योग्य जीवनसाथी बनाया तो सही, मगर मिला देर से. दोनों देर तक स्टाफरूम में बैठे रहते, जबरदस्ती का कुछ काम ले कर.

दोनों को पहली बार पता चला कि वे कितने कर्मठ हैं. एकदूसरे की उपस्थिति मात्र से वे उत्साह से लबरेज हो तेजी से काम निबटा देते. अधिकांश कार्यकारिणी समितियों में दोनों का नाम साथ में लिखा जाने लगा, क्योंकि इस से समिति के अन्य सदस्य निश्चिंत हो जाते थे. दोनों को किसी अन्य की उपस्थिति पसंद भी नहीं थी.

स्पोर्ट्स समिति की कर्मठ सदस्य और अधिकांश गतिविधियों की संयोजक अब वनीला मैडम होती थीं. यह अलग बात है कि उन की बातचीत अभी भी शासकीय कार्यों तक ही सीमित थी. व्यक्तिगत रूप से दोनों एकदूसरे से अनजान ही थे.

बास्केटबौल के टूर्नामैंट्स होने थे, जिस की टीम में वनीला दल की अभिभावक के तौर पर जबकि जयवंत कोच के रूप में छात्राओं के दल के साथ गए थे. वहां अप्रत्याशित अनहोनी हुई कि एक छात्रा की तबियत काफी खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. शहर के दूसरे कालेज के दल के साथ ही अपनी टीम को रवाना कर वे दोनों छात्रा के पेरैंट्स के आने तक वहीं रुके.

हौस्पिटल में गुजरी वह एक रात उन की जिंदगी में बहुत बड़ा परिवर्तन ले आई. रातभर बेंचनुमा कुरसियों पर बैठेबैठे ही काटनी पड़ी और चूंकि काम तो कुछ था नहीं, सो उस दिन खूब व्यक्तिगत बातें हुईं.

जयवंत ने वनीला से अभी तक शादी न करने की वजह पूछी तो उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, “तुम्हारे जैसा कोई मिला ही नहीं…”

उस की बात का इशारा समझ कर जयवंत भी बोल उठा, “जब मैं ही मिल सकता हूं तो मेरे जैसे की जरूरत ही क्या है?”

वनीला की आंखें आश्चर्यमिश्रित खुशी से फैल गईं,”क्या आप ने भी अभी तक शादी नहीं की?”

अब जयवंत मगरमच्छी आंसुओं के साथ बोला,”मेरी दादी मरते वक्त मुझे उन के एक दूर के रिश्तेदार की बेटी का हाथ जबरन थमा गईं… वह दिमाग से पैदल है, तभी तो यहां ले कर नहीं आया… अब मैं उसे तलाक दे दूंगा… यदि तुम चाहोगी तो हम शादी कर लेंगे, वीनू.”

“ओह जय, कितना गलत हुआ तुम्हारे साथ… हम पहले क्यों नहीं मिले? अब तुम्हारी पत्नी है तो हम कैसे शादी कर सकते हैं?”

“क्यों नहीं कर सकते वीनू… आई लव यू…और मुझे पता है कि तुम भी मुझे प्यार करती हो… बोलो, सच है न यह? हमारी जिंदगी है… हम एकदूसरे के साथ बिताना चाहें तो इस में गलत क्या है?” कहते हुए उस ने भावातिरेक में वनीला का हाथ कस कर पकड़ लिया.

उम्र की परतों में वनीला ने जो भावनाओं की बर्फ छिपा रखी थी वह जयवंत के सहारे की गरमी से पिघलने लगी… जवाब में उस ने भी बोल ही दिया, “आई लव यू टू जय… आई वांट टू स्पैंड माई लाइफ विद यू.”

इधर इजहार ए इश्क हुआ और उधर छात्रा की तबियत थोड़ी सुधरने लगी. वीनू सोच रही थी कि जय की पत्नी के साथ मैं छल कर रही हूं तो गलत नहीं है, क्योंकि उस के परिवार वालों ने भी तो जय के साथ छल किया है. जय सोच रहा था कि घर की जिम्मेदारी भी उठाऊंगा, पत्नी और बेटी तो वैसे ही अकेले रहने की आदी हो गई हैं… यहां पर मैं वीनू को उस के हिस्से का प्यार दे कर उस पर उपकार कर रहा हूं… कोई छल नहीं कर रहा, वह भी तो मुझे पाना चाहती है. बेटी को पढालिखा कर शादी कर दूंगा… कितने ही पुरुषों ने 2 शादियां की हैं… यह कहीं से भी गलत नहीं है और सुमेधा तो इस सब से अनजान ही थी.

जय और वीनू अब कालेज के बाद भी साथ में समय गुजारने लगे थे. उम्र का तकाजा था तो शाम के बाद कभी कोई रात भी साथ में गुजर जाती. जय अपने रूम पर कम और वीनू के घर पर अधिक समय गुजारने लगा. दोनों ने चोरीछिपे शादी भी कर ली, मगर उसे गुप्त रखा.

जय का रविवार अभी भी सुमेधा और मीनू के साथ गुजरता था. यह बात भी सोलह आने सच है कि पत्नियों की आंखें उन्हें अपने पतियों की नजरों में परिवर्तन का एहसास करा ही देती हैं. सुम्मी भी जय में आए परिवर्तन को महसूस कर रही थी. रहीसही कसर स्टाफ मैंबर्स ने पूरी कर दी.

एक गुमनाम पत्र पहुंचा था सुम्मी के पास जिस में जयवंत और वनीला के संबंधों का जिक्र करते हुए उसे सावधान किया गया था.

अगले रविवार जब जयवंत घर पहुंचा तो वहां अपने मातापिता और सासससुर को आया देख कर हैरान रह गया. हंगामा होना था… हुआ भी… जयवंत लौट आया इस समझौते के साथ कि तलाक के बाद भी मीनू की पढ़ाई और शादी की सारी जिम्मेदारी वही वहन करेगा. अब वीनू से शादी की बात राज नहीं रह गई थी.

काफी लंबे अरसे बाद किसी वजह से हमारा सुमेधा के शहर में जाना हुआ. जयवंत ने सुम्मी और मीनू से मिल कर आने को कहा. हमें भला क्यों आपत्ति होती… जयवंत और वनीला निस्संतान थे, इसलिए इस की तड़प तो थी ही.

इतने सालों बाद बेटी से मिलने की तड़प तो पिता को होनी स्वाभाविक भी थी. प्यार का खुमार हमेशा एकजैसा नहीं रहता है और जयवंत की पोस्टिंग भी दूसरे शहर में हो चुकी थी. अब उसे अकेले में अपराधबोध सालता होगा. जयवंत के मातापिता ने वीनू को कोसने में कोई कसर नहीं रखी. उन के अनुसार उस बांझ स्त्री ने उन के बेटेबहू का घर तोड़ कर उन का जीवन नारकीय बना दिया है. उस ने पत्नी का सुख तो दिया मगर पिता का सुख नहीं दे पाई. उसी की वजह से जय और मीनू इतने सालों तक एकदूसरे से दूर रहे.

अब मीनू पीजी की पढ़ाई पिता के साथ रह कर उन के कालेज से करना चाहती थी. जयवंत और वनीला की पोस्टिंग अलगअलग शहर में होने से शायद उन्हें फिर उम्मीद की किरण दिख रही थी. सुमेधा का कहना था कि मुझे कोई अपेक्षा नहीं है मगर मीनू को उस का अधिकार मिलना चाहिए.

वनीला के विरोध के बावजूद भी मीनू अपने पिता के घर रहने आ गई थी. वीनू अब वीकैंड में आती थी. जब कभी कुछ विवाद होता तो उन का फोन आने पर हमें ही जाना पड़ता था, क्योंकि न चाहते हुए भी इस कलह की अप्रत्यक्ष वजह तो हम बन ही चुके थे. न हम सुम्मी से मिलने जाते और न ही यह टूटा तार फिर से जुड़ता.

आज भी अचानक फोन आया और वीनू ने कहा, “आपलोग तुरंत आइए, अब इस घर में या तो मैं रहूंगी या मीनू.”

कुछ देर तक तो हम समझ ही नहीं पाए… सौतन का आपसी झगड़ा तो सुना था, मगर सौतेली मां और बेटी का इस तरह से झगड़ना…?

आश्चर्य की एक वजह और थी कि वनीला और मीनू दोनों ही काफी समझदार थीं. अलगअलग दोनों से बात करने पर हम इतना समझ पाए थे कि दोनों अपनी सीमाएं जानती थीं और एकदूसरे के क्षेत्राधिकार में दखल भी नहीं देती थीं. कभीकभी जय संतुलन नहीं कर पाते, तभी विवाद होता था.

जय का कहना था कि मीनू ही मेरी इकलौती संतान है तो वीनू को भी इसे स्वीकार लेना चाहिए. आखिर वह उस की भी बेटी है. सुमेधा ने तो वनीला को अपनी जगह दे दी तो क्या यह उस की बेटी को हमारी जिंदगी में थोड़ी भी जगह नहीं दे सकती? उस का अधिकार तो यह नहीं छीन रही है. 2-3 साल बाद तो ससुराल चली जाएगी, तब तक भी इसे आंख की किरकिरी नहीं मान कर सूरमे की तरह सजा ले… हमारी जिंदगी में रोशनी ही तो कर रही है…

हम भी जय की बातों से सहमत थे. जिंदगी का यही दस्तूर है… दूसरी औरत ही हमेशा गलत ठहराई जाती है. मैं भी एक औरत हूं तो सुम्मी का दर्द महसूस कर रही थी और मीनू से सहानुभूति होते हुए भी वीनू को गलत नहीं मान पा रही थी. मेरे पति वीनू को गलत ठहरा रहे थे और मैं जय को… एक पल को लगा कि उन का झगड़ा सुलझाने में हम न झगड़ पड़ें.

वीनू ने चुप्पी तोड़ी,”हम इतने सालों से अकेले रहे, मीनू कोई छोटी बच्ची नहीं है, उसे समझना चाहिए कि मैं वीकैंड पर आती हूं, उस के आने के बाद जय तो आते नहीं उसे अकेला छोड़ कर, यदि कुछ गलत दिखे तो मुझे मीनू को डांटने का अधिकार है या नहीं? यदि कुछ ऊंचनीच हो गई तो दोष तो मुझे देंगे सब… पड़ोस में रहने वाले लड़के से इस का नैनमटक्का चल रहा है, मैं ने खुद देखा… पूछा तो साफ मुकर गई और जय मुझे ही गलत कह रहे हैं. यह उतनी भी सीधी नहीं है, जितनी दिखती है…” उस का प्रलाप चलता ही रहता यदि हमें मीनू की सिसकियां न सुनाई देतीं.

“मेरी कोई गलती नहीं हैं… आंटी मुझे क्यों ऐसा बोल रही हैं, वे खुद जैसी हैं, वैसा ही मुझे समझ रही हैं… मैं उन की सगी बेटी नहीं हूं तो मेरी तकलीफ क्यों समझेंगी?” सुबकते हुए भी मीनू इतनी बड़ी बात बोल गई. एक पल को सन्नाटा छा गया.

“मुझे भी आज मीनू को देख कर अपना अजन्मा बच्चा याद आता है…” सन्नाटे को चीरते हुए वनीला ने रहस्योद्घाटन किया. अब चौंकने की बारी हमारी थी.

“वीनू, चुप रहो प्लीज… मीनू बेटी के सामने इस तरह बात मत करो…” जयवंत गिड़गिड़ाते हुए बोले. मीनू भी सहम सी गई.

वीनू के सब्र का बांध जो टूटा तो आंसुओं की बाढ़ सी आ गई, “बताओ मेरी क्या गलती है… जब जय आखिरी बार सुम्मी के घर से लौटे थे, तब मैं ने इन्हें खुशखबरी दी थी… जीवन बगिया में नया फूल खिलने वाला था… मगर…”

जय ने बीच में ही बात काट दी, “वीनू प्लीज… मेरी गलती है, मुझे माफ कर दो. मगर प्लीज अब चुप हो जाओ…”

लेकिन वीनू ने भी आज ठान ही लिया था. वह बोलती रही और परत दर परत जयवंत के छल की कलई खोलती गई.

“उस समय इन्होंने मुझे कहा कि अभी कोर्ट में केस चल रहा है. इस समय सुम्मी के वकील को हमारी शादी का सुबूत मिल गया तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे… सरकारी नौकरी भी जा सकती है… तुम अभी बच्चे को एबोर्ट करवा दो.… एक बार कोर्ट की कार्यवाही निबट जाएं फिर हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करेंगे और बच्चा तो भविष्य में फिर हो ही जाएगा…”

“तो मैं ने गलत नहीं कहा था… उस समय यही उचित था…”

“उचितअनुचित मैं नहीं जानती. मुझ पर तो बांझ होने का कलंक लग गया, क्योंकि मीनू तुम्हारी बेटी है, यह सब जानते हैं.”

हम पसोपेश में बैठे थे. स्थिति इतनी बिगड़ने की उम्मीद नहीं थी. मैं सोच रही थी कि प्यार क्याक्या बदलाव ला देता है, सही और गलत की विवेचना के परे… सुम्मी ने मातृत्व को जिया मगर परित्यक्त हो कर अधूरी रही.… वीनू ने प्रेयसी बन प्यार पाया मगर मातृत्व की चाह में अधूरी रही… जयवंत ने सुम्मी और वीनू के साथ अधूरी जिंदगी जी, बेटी होने के बाद भी मीनू को दुलार न सका… क्या यही प्यार है या मात्र छलावा है?

“आप ने मेरे पापा को छीना, अपने अजन्मे बच्चे की हत्या की थी, इसलिए आप मां नहीं बन सकीं… कुदरत ने आप को सजा दी,” मीनू भी आज उम्र से बड़ी बातें कर वीनू को कटघरे में खींच रही थी.

“देखो, जो हुआ उसे हम बदल नहीं सकते. मीनू सही कह रही है, हमारी गलती का प्रायश्चित करने के लिए ही कुदरत ने मीनू को हमारे पास भेज दिया है, वही हमारी बेटी है, तुम बांझ नहीं हो… प्लीज अब बात को यहीं खत्म करो…”

“बात तो अब शुरू हुई है. कुदरत ने सजा नहीं दी, यह तो… ” बोलते हुए वीनू उठी और पर्स में से एक कागज निकाल कर मेरे सामने रख दिया, “यह देखो… सजा मुझे मिली है, यह सही है, मैं ने प्यार किया मगर जय ने मेरे साथ कितना बड़ा छल किया… यह अचानक मिला है मुझे, देखो…”

“क्या नाटक है यह? कौन सा कागज है?” जय अब गुस्से से चिल्लाया.

मैं ने देखा… वह मैडिकल सर्टिफिकेट था, जय की नसबंदी का…”आप ने वीनू को बताए बिना ही औपेरशन…”

मैं ने बात अधूरी छोड़ दी. अब जरूरी भी नहीं था कुछ बोलना. अब परछाई पानी में नहीं थी. आईने में सब स्पष्ट दिख रहा था और हम सोच रहे थे कि प्यार में छल हम किस से करते हैं, अपने रिश्तों से या खुद से, खुद की जिंदगी से?

प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है…

घर पर बनाएं रेस्टोरेंट स्टाइल मिक्स वेज पास्ता

बड़ों से लेकर बच्चों तक पास्ता सभी का फेवरेट होता है. जिसके लिए वह अपनी बाहर से पास्ता और्डर करते हैं. लेकिन आज हम आपको घर पर टेस्टी और यमी पास्ता कैसे बनाएं यह बताएंगे. जिससे आप अपनी फैमिली को खुश कर पाएंगे.

हमें चाहिए…

200 ग्राम पास्ता

2 शिमला मिर्च

150 ग्राम पास्ता सौस

200 ग्राम ब्रोकली

200 ग्राम मशरूम

50 ग्राम बीन्स

1/2 छोटा चम्मच अजीनोमोटो

2-1/2 बड़ा चम्मच औलिव औयल

1 छोटा चम्मच सोया सौस

1/2 छोटा चम्मच आर्गानो पाउडर

1/2 छोटा चम्मच चिल्ली फ्लेक्स

नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

-सबसे पहले बीन्स ब्रोकली को धोकर मीडियम साइज में काट लें और 2 चुटकी नमक मिलाकर 5 मिनट तक स्टीम कर लें. अब मशरूम को धोकर उसके डंठल हटा दें और दो टुकड़ों को काट लें.

-कढ़ाई में औलिव औयल डालकर गरम करें. तेल गरम होने पर उसमें बीन्स डाल दें और एक मिनट तक चलाते हुए भून लें. उसके बाद ब्रोकली डालें और उसे भी एक मिनट भून लें. इसके बाद मशरूम, अजीनोमोटो, ओरगेनो पाउडर, चिल्ली फ्लेक्स, सोयासास, नमक डालकर, दो मिनट भून लें और ढ़क कर गैस बंद कर दें.

-अब एक बर्तन में पास्ता रखें, फिर उसमें इतना पानी डालें, जिससे वे आसानी से डूब जाएं. उसके बाद पानी में आधा छोटा चम्मच नमक और एक छोटा चम्मच तेल डाल दें और मध्यम आंच पर पकाएं. लगभग 10 मिनट बाद, जब पास्ता नरम हो जाए, गैस बंद कर दें और बर्तन का पानी छानकर निकाल दें.

-अब शिमला मिर्च धोकर उसके बीज हटा दें और मध्यम आकार के टुकड़े काट लें. इसके बाद कढ़ाई में तेल डाल कर उसे गरम करें. तेल गरम होने पर उसमें शि‍मला मिर्च डाल दे और 2 मिनट भून लें.

इसके बाद उबला हुआ पास्ता, पास्ता सौस और अजीनोमोटो डाल दें और 1-2 मिनट चलाते हुए भून लें. अब पहले से तैयार की गयी मिक्स वेज पास्ता में मिला दें और अच्छी तरह से चलाकर मिक्स कर लें. इसके बाद गैस बंद कर दें.

घर पर ही बना सकती हैं अपना फेस टोनर

क्या आप अपने टोनर से संतुष्ट हैं? क्या आपको लगता है कि जिस फायदे के लिए आपने टोनर खरीदा था वो आपको मिल रहा है? ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है कि हम लोगों के कहने पर और विज्ञापन देखकर ब्यूटी प्रोडक्ट्स खरीद लेते हैं लेकिन उनसे हमें वो फायदा नहीं मिल पाता है, जिसकी हमें उम्मीद होती है. इसके बाद हम सिर्फ कीमत वसूलने के लिए ही उस प्रोडक्ट को यूज करते हैं.

अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही है तो घबराने की जरूरत नहीं है. आप चाहें तो अपना नेचुरल स्‍क‍िन टोनर घर पर ही बना सकती हैं. टोनर पोर्स को खोलने का काम करता है और चेहरे की गंदगी साफ करता है. नेचुरल तरीके से टोनर तैयार करने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसके लिए बहुत बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ती है और इसका कोई साइड-इफेक्ट भी नहीं होता.

घर पर आप अपनी स्किन के अनुसार अपना टोनर बना सकती हैं. अगर आपके चेहरे पर बहुत अधिक मुंहासें हैं तो आप उन चीजों का इस्तेमाल कर सकती हैं जो एंटी-बैक्टीरियल हों. इसके अलावा अगर आपकी स्क‍िन ड्राई है तो आप मॉइश्चराइज करने वाली चीजों का इस्तेमाल कर सकती हैं.

आप चाहें तो इन उपायों से अपना स्क‍िन टोनर घर पर ही बना सकती हैं:

1. गुलाब जल और सिरके के इस्तेमाल से

अगर आपकी स्क‍िन नॉर्मल है तो चार चम्मच गुलाब जल और चार चम्मच सिरका ले लें. इन्हें अच्छी तरह मिला लें. उसके बाद एक कॉटन बॉल को इसमें डिप करके चेहरे की सफाई करें. इससे पोर्स तो खुलेंगे ही, चेहरा भी साफ हो जाएगा.

2. बर्फ भी है एक अच्छा टोनर

शायद आपको पता न हो लेकिन बर्फ भी एक बहुत अच्छा टोनर है. अगर आपकी स्क‍िन ऑयली है तो ये आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. एक मुलायम और बारीक से कपड़े में बर्फ को लपेट लें. इससे पूरे चेहरे की मसाज करें. इससे स्क‍िन को ठंडक को मिलेगी ही साथ ही पोर्स भी खुल जाएंगे.

3. तुलसी की पत्त‍ियां

अगर आपकी स्क‍िन पर बहुत अधिक मुंहासे हैं तो आपके लिए तुलसी की पत्त‍ियों का टोनर बहुत फायदेमंद रहेगा. तुलसी की कुछ पत्तियों को उबाल लें. पांच मिनट तक उबालने के बाद इसे ठंडा होने दें. इसके बाद इसे छान लें और कॉटन बॉल से चेहरे की सफाई कर लें. बचे हुए तुलसी के पानी को एक बोतल में स्टोर करके रख लें.

अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखें, कब नहीं

भले ही सासबहू के रिश्ते को 36 का आंकड़ा कहा जाता है पर सच यह भी है कि एक खुशहाल परिवार का आधार कहीं न कहीं सासबहू के बीच अच्छे सामंजस्य और एकदूसरे को समझने की कला पर निर्भर करता है.

एक लड़की जब शादी कर के किसी घर की बहू बनती है तो उसे सब से पहले अपनी सास की हुक़ूमत का सामना करना पड़ता है. सास सालों से जिस घर को चला रही होती है उसे एकदम से बहू के हवाले नहीं कर पाती. वह चाहती है कि बहू उसे मान दे, उस के अनुसार चले.

ऐसे में बहू यदि कामकाजी हो तो उस के मन में यह सवाल उठ खड़ा होता है कि वह अपनी कमाई अपने पास रखे या सास के हाथों पर रख दे. वस्तुतः बात केवल सास के मान की नहीं होती बहू का मान भी मायने रखता है. इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले कुछ बातों का ख्याल जरूर रखना चाहिए.

बहू अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखे—

1. जब सास हो मजबूर

यदि सास अकेली हैं और ससुर जीवित नहीं तो ऐसे में एक बहू यदि अपनी कमाई सास को सौंपती है तो सास उस से अपनापन महसूस करने लगती है. पति के न होने की वजह से सास को ऐसे बहुत से खर्च रोकने पड़ते हैं जो जरूरी होने पर भी पैसे की तंगी की वजह से वह नहीं कर पातीं. बेटा भले ही अपने रुपए खर्च के लिए देता हो पर कुछ खर्चे ऐसे हो सकते हैं जिन के लिए बहू की कमाई की भी जरूरत पड़े. ऐसे में सास को कमाई दे कर बहू परिवार की शांति कायम रख सकती है.

2. सास या घर में किसी और के बीमार होने की स्थिति में

यदि सास की तबीयत खराब रहती है और डॉक्टरबाजी में बहुत रुपए लगते हैं तो यह बहू का कर्तव्य है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों पर रख कर उन्हें इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद करे.

3. अपनी पहली कमाई

एक लड़की जैसे अपनी पहली कमाई को मांबाप के हाथों पर रख कर खुश होती है वैसे ही यदि आप बहू हैं तो अपनी पहली कमाई सास के हाथों पर रख कर उन का आशीर्वाद लेने का मौका न चूकें.

4. यदि आप की सफलता की वजह सास हैं

यदि सास के प्रोत्साहन से आप ने पढ़ाई की या कोई हुनर सीख कर नौकरी हासिल की है यानी आप की सफलता की वजह कहीं न कहीं आप की सास का प्रोत्साहन और प्रयास है तो फिर अपनी कमाई उन्हें दे कर कृतज्ञता जरुर प्रकट करें. सास की भीगी आंखों में छुपे प्यार का एहसास कर आप नए जोश से अपने काम में जुट सकेंगी.

5. यदि सास जबरन पैसे मांग रही हो

पहले तो यह देखें कि ऐसी क्या बात है जो सास जबरन पैसे मांग रही है. अब तक घर का खर्च कैसे चलता था?

इस मामले में अच्छा होगा कि पहले अपने पति से बात करें. इस के बाद पतिपत्नी मिल कर इस विषय पर घर के दूसरे सदस्यों से विचारविमर्श करें. सास को समझाएं. उन के आगे खुल कर कहें कि आप कितने रुपए दे सकती हैं. चाहे तो घर के कुछ खास खर्चे जैसे राशन /बिल/ किराया आदि की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें . इस से सास को भी संतुष्टि रहेगी और आप पर भी अधिक भार नहीं पड़ेगा.

6. यदि सास सारे खर्च एक जगह कर रही हो

कई परिवारों में घर का खर्च एक जगह किया जाता है. यदि आप के घर में भी जेठ, जेठानी, देवर, ननद आदि साथ में रह रहे हैं और सम्मिलित परिवार की तरह पूरा खर्च एक ही जगह हो रहा है तो स्वभाविक है कि घर के प्रत्येक कमाऊ सदस्य को अपनी हिस्सेदारी देनी होगी.

सवाल यह उठता है कि कितना दिया जाए? क्या पूरी कमाई दे दी जाए या एक हिस्सा दिया जाए? देखा जाए तो इस तरह की परिस्थिति में पूरी कमाई देना कतई उचित नहीं होगा. आप को अपने लिए भी कुछ रुपए रकम बचा कर रखना चाहिए. वैसे भी घर के प्रत्येक सदस्य की आय अलगअलग होगी. कोई 70 हजार कमा रहा होगा तो कोई 20 हजार, किसी की नईनई नौकरी होगी तो किसी ने बिजनेस संभाला होगा. इसलिए हर सब सदस्य बराबर रकम नहीं दे सकता.

बेहतर होगा कि आप सब इनकम का एक निश्चित हिस्सा जैसे 50% सास के हाथों में रखें. इस से किसी भी सदस्य के मन में असंतुष्टि पैदा नहीं होगी और आप भी निश्चिंत रह सकेंगी.

7. यदि मकान सासससुर का है

जिस घर में आप रह रही हैं यदि वह सासससुर का है और सास बेटेबहू से पैसे मांगती है तो आप को उन्हें पैसे देने चाहिए. कुछ और नहीं तो घर और बाकी सुखसुविधाओं के किराए के रूप में ही पैसे जरूर दें

8. यदि शादी में सास ने किया है काफी खर्च

अगर आप की शादी में सासससुर ने शानदार आयोजन रखा था और बहुत पैसे खर्च किए थे. लेनदेन, मेहमाननवाजी तथा उपहार वितरण आदि में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. बहू और उस के घरवालों को काफी जेवर भी दिए थे तो ऐसे में बहू का भी फर्ज बनता है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों में रख कर उन्हें अपनेपन का अहसास दिलाए.

9. ननद की शादी के लिए

यदि घर में जवान ननद है और उस की शादी के लिए रुपए जमा किए जा रहे हैं तो बेटेबहू का दायित्व है कि वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दे कर अपने मातापिता को सहयोग करें.

10. जब पति शराबी हो*

कई बार पति शराबी या निकम्मा होता है और पत्नी के रुपयों पर अय्याशी करने का मौका ढूंढता है. वह पत्नी से रुपए छीन कर शराब में या गलत संगत में खर्च कर सकता है. ऐसी स्थिति में अपने रुपयों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि आप ला कर उन्हें सास के हाथों पर रख दें.

कब अपनी कमाई सास के हाथों में न रखें

1. जब आपकी इच्छा न हो

अपनी इच्छा के विरुद्ध बहू अपनी कमाई सास के हाथों में रखेगी तो घर में अशांति पैदा होगी. बहू का दिमाग भी बौखलाया रहेगा और उधर सास बहू के व्यवहार को नोटिस कर दुखी रहेगी. ऐसी स्थिति में बेहतर है कि सास को रुपए न दिए जाएं.

2. जब ससुर जिंदा हो और घर में पैसों की कमी न हो

यदि ससुर जिंदा हैं और कमा रहे हैं या फिर सास और ससुर को पेंशन मिल रही है तो भी आप को अपनी कमाई अपने पास रखने का पूरा हक है. परिवार में देवर, जेठ आदि हैं और वे कमा रहे हैं तो भी आप को कमाई देने की जरूरत नहीं है.

3. जब सास टेंशन करती हो

यदि आप अपनी पूरी कमाई सास के हाथों में दे रही हैं इस के बावजूद सास आप को बुराभला कहने से नहीं चूकती और दफ्तर के साथसाथ घर के भी सारे काम कराती हैं, आप कुछ खरीदना चाहें तो रुपए देने से आनाकानी करती हैं तो ऐसी स्थिति में सास के आगे अपने हक के लिए लड़ना लाजिमी है. ऐसी सास के हाथ में रुपए रख कर अपना सम्मान खोने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि अपनी मर्जी से खुद पर रुपए खर्च करने का आनंद लें और दिमाग को टेंशनफ्री रखें.

4. जब सास बहुत खर्चीली हो

यदि आप की सास बहुत खर्चीली हैं और आप जब भी अपनी कमाई ला कर सास के हाथों में रखती हैं तो वे उन रुपयों को दोचार दिनों के अंदर ही बेमतलब के खर्चों में उड़ा देती हैं या फिर सारे रुपए मेहमाननवाजी और अपनी बेटियों के परिवार और बहनों पर खर्च कर देती हैं तो आप को संभल जाना चाहिए. सास की खुशी के लिए अपनी मेहनत की कमाई यूं बर्बाद होने देने के बजाय उन्हें अपने पास रखिए और सही जगह निवेश कीजिए.

5. जब सास माता की चौकी कराए

जब सासससुर घर में तरहतरह के धार्मिक अनुष्ठान जैसे माता की चौकी वगैरह कराएं और पुजारियों की जेबें गर्म करते रहें या अंधविश्वास और पाखंडों के चक्कर में रूपए बर्बाद करते रहें तो एक पढ़ीलिखी बहू सास की ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बनने या आर्थिक सहयोग करने से इंकार कर सकती है. ऐसा कर के वह सास को सही सोच रखने को प्रेरित कर सकती है.

बेहतर है कि उपहार दें

इस सन्दर्भ में सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरूरी नहीं आप पूरी कमाई सास को दें. आप उपहार ला कर सास पर रुपए खर्च कर कर सकती हैं. इस से उन का मन भी खुश हो जाएगा और आप के पास भी कुछ रूपए बच जाएंगे. सास का बर्थडे है तो उन्हें तोहफे ला कर दें, उन्हें बाहर ले जाएं, खाना खिलाएं, शॉपिंग कराएं, वह जो भी खरीदना चाहें वे चीजें खरीद कर दें. त्यौहारों के नाम पर घर की साजसजावट और सब के कपड़ों पर रूपए खर्च कर दें.

पैसों के लेनदेन से घरों में तनाव पैदा होते हैं पर तोहफों से प्यार बढ़ता है, रिश्ते सँभलते हैं और सासबहू के बीच बॉन्डिंग मजबूत होती है. याद रखें रुपयों से सास में डोमिनेंस की भावना बढ़ सकती है जब कि बहू के मन में भी असंतुष्टि की भावना उत्पन्न होने लगती है. बहू को लगता है कि मैं कमा क्यों रही हूं जब सारे रुपए सास को ही देने हैं.

इसलिए बेहतर है कि जरूरत के समय सास पर या परिवार पर रूपए जरूर खर्च करें पर हर महीने पूरी रकम सास के हाथों में रखने की मजबूरी न अपनाएं.

तराई : कैसे बचाई उस लड़की ने अपनी इज्जत

शहर से दूर बस रही सैटेलाइट कालोनी में शानदार कोठी बन रही थी. मिक्सर मशीन की तेज आवाज के बीच में मजदूर काम में लगे हुए थे. उन में जवान, अधेड़ उम्र के आदमी और औरतें थीं. उन में जवानी की दहलीज पर खड़ी एक लड़की भी थी. वह सिर पर ईंटें ढो रही थी. तराई भी हो रही थी, इसलिए उस के गीले बदन से जवानी झांक रही थी.

बनते हुए मकान के सामने ठेकेदार खड़ा हो कर उस जवान होती लड़की की तरफ देखते हुए चिल्ला कर कह रहा था, ‘‘जल्दीजल्दी काम करो.’’

ठेकेदार के पास ही मकान मालिक खड़ा था, जो बहुत बड़ा अफसर था. ठेकेदार को उम्मीद थी कि साहब उसे दूसरे कामों के ठेके भी दिलाएंगे इसलिए उन्हें खुश करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था.

ठेकेदार ने मकान मालिक की तरफ देखा तो उस को जवान होती मजदूर लड़की की तरफ देखते हुए पाया. मकान मालिक ने सब को सुना कर जोर से कहा, ‘‘मकान की तराई अच्छी तरह से कराना, तभी मकान मजबूत होगा.’’

ठेकेदार ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता न करें साहब, इस काम में अच्छी लड़की को लगाऊंगा.’’

ठेकेदार ने काम की देखभाल करने वाले सुपरवाइजर को इशारे से अपने पास बुला कर उस के कान में कुछ कहा.

सुपरवाइजर ने सहमति से सिर हिलाया. उस ने जा कर ईंट ढोती लड़की को कहा, ‘‘आज से मकान की तराई का काम तू करेगी.’’

यह सुन कर वह मजदूर लड़की खुश हो गई क्योंकि तराई का काम सब से हलका होता है. उस ने तुरंत ईंटों का तसला नीचे रख पानी का पाइप उस मजदूर लड़के से ले कर दीवार के प्लास्टर पर पानी छिड़कना शुरू कर दिया.

मकान मालिक ने 5 सौ का नोट निकाल कर सुपरवाइजर को दिया और मजदूरों को नाश्ता कराने को कहा. वह तराई करने वाली लड़की का ध्यान रखने की कह कर उस लड़की को देखने लगा. किसी भी मजदूर लड़की को फांसने का यह एक तरीका था कि उसे हलका काम खासकर मकान में तराई का काम दे दिया जाता था.

यह एक जाल होता था जिस में जवान होती मजदूर लड़की के फंसने की उम्मीद ज्यादा होती थी. मिक्सर मशीन में सीमेंट, रेत, पानी और वाटरप्रूफ कैमिकल की मिक्सिंग के साथ कितनी गरीब मजदूर लड़कियों की इज्जत भी मिक्स हो जाती थी और यह आलीशान मकानों में रहने वालों को पता भी नहीं चलता होगा.

दुनियादारी को कुछ समझने और कुछ नासमझने वाली लड़की खुशीखुशी तराई का काम कर रही थी. उसे मालूम नहीं था कि ठेकेदार और मकान मालिक उस पर इतने मेहरबान क्यों हो रहे हैं.

उस मजदूर लड़की को रोजाना चायनाश्ते की खास सुविधा और काम के बीच में बैठ कर आराम करने की छूट मिली हुई थी और काम भी क्या था, पानी का पाइप पकड़ कर दीवारों और फर्श पर दिन में 3 बार पानी से तराई करना.

ठेकेदार और मकान मालिक को कोई जल्दी नहीं थी. वे जानते थे कि सब्र का फल मीठा होता है.

एक हफ्ते बाद मकान मालिक ने दोमंजिला बनते मकान के किसी सूने कमरे में तराई करती उस लड़की का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है. तुम को कोई परेशानी हो तो मुझे बताना,’’ और धीरे से उस की पीठ पर हाथ फेरने की कोशिश करने लगा.

लड़की चौंकते हुए डर कर पीछे हट गई. उस ने मकान मालिक की आंखों में ऐसा कुछ देखा जो उसे ठीक नहीं लगा. पानी में भीगा उस का बदन ठंड और डर से कांप रहा था. उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. पानी का पाइप उस के हाथ से छूट कर कंक्रीट से बने फर्श पर बह रहा था. उस ने कमरे से निकलने की कोशिश की, पर बिना दरवाजे के उस कमरे में निकलने के रास्ते पर मकान मालिक खड़ा था.

मकान मालिक पुराना खिलाड़ी था. उस ने लड़की से कहा, ‘‘कुछ नहीं. तू अपना काम कर,’’ कहते हुए वह बाहर निकल कर ठेकेदार के पास आ गया.

ठेकेदार ने आंखों ही आंखों में उस से पूछा, पर उस ने असहमति से गरदन हिला कर मना कर दिया. उस के बाद शाम तक उस लड़की से किसी ने कुछ नहीं कहा.

हफ्ते का आखिरी दिन शनिवार था. उस दिन सभी मजदूरों को मजदूरी का पैसा मिलता था. सुपरवाइजर ने सभी मजदूरों को उन की हाजिरी के हिसाब से रजिस्टर पर दस्तख्त करा कर या अंगूठा लगवा कर पैसा दे दिया. अगले दिन रविवार की छुट्टी थी.

सोमवार को सभी मजदूर काम पर आ गए थे. वह लड़की भी डरीडरी सी काम पर आई थी. काम शुरू होते ही रोज की तरह उस ने पानी का पाइप पकड़ कर जैसे ही तराई शुरू की, सुपरवाइजर ने उसे मना कर के ईंटें ढोने और दूसरे भारी कामों पर लगा दिया.

अब उस लड़की को भारी काम देने और बातबात पर डांटने का सिलसिला शुरू हो गया. काम से निकालने की धमकी भी ठेकेदार द्वारा दी जाने लगी थी.

जवान मजदूर लड़की परेशान होने लगी थी, क्योंकि इतने दिन उस ने तराई करने का काम किया था. उसे ईंटें ढोने जैसा भारी काम करना अच्छा नहीं लग रहा था.

खाने की छुट्टी के दौरान उस ने अधेड़ उम्र की पुरानी मजदूर, जिसे सब मौसी कहते थे, से जा कर अपनी समस्या बताई और ठेकेदार से सिफारिश करने को कहा कि उसे फिर से तराई का काम मिल जाए.

उस अधेड़ मजदूर की बात ठेकेदार मानता था. वह कई सालों से उस के साथ काम कर रही थी और काम करने में भी बहुत तेज थी. उस ने लड़की से कहा, ‘‘मैं ठेकेदार से बात करूंगी.’’

दिनभर काम करने के बाद घर जा कर वह लड़की थक कर चूर हो गई थी. वैसे भी उस ने भारी काम कई दिनों बाद किया था. बीच में उसे कमर सीधी करने का मौका भी नहीं मिला था, पर उसे भरोसा था कि मौसी अगर कहेंगी तो उसे तराई का काम फिर से मिल जाएगा.

इसी तरह काम करते हुए 3 दिन हो गए. भारी काम करतेकरते वह लड़की लस्तपस्त हो गई थी. बीच में चायनाश्ते और आराम की सुविधा भी खत्म हो गई थी.

ठेकेदार और मकान मालिक में गजब का सब्र था और अपनेआप पर यकीन था कि दूसरा तरीका कामयाबी दिलाएगा.

शनिवार को मजदूरी बंटने का दिन आ गया था. सुपरवाइजर ने रजिस्टर पर अंगूठा लगवा कर रुपए उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘तुझ से ठीक से काम नहीं हो रहा है. ठेकेदार नाराज हो रहे हैं कि इस लड़की को हटा कर दूसरी लड़की को काम पर लगा दो. मैं ने अभी तो उन्हें मना लिया है, पर आगे से काम ठीक से करना.’’

काम ठीक से करने के बावजूद काम से हटाने की धमकी से उस लड़की को कुछकुछ समझ में आने लगा था कि उस के साथ ऐसा क्यों हो रहा था. गरीबी और बेरोजगारी से भूखे रहने की नौबत आ सकती थी, इसलिए उस ने मौसी से एक बार और उस के घर जा कर मिलने की सोची.

रात को खाना खा कर वह सीधा पास की झुग्गी बस्ती में रहने वाली मौसी के घर गई और जा कर उन से कहा कि ठेकेदार ने काम से निकालने की धमकी दी है.

मौसी ने पूरी बात सुन कर उसे दुनियादारी की बातें समझाते हुए कहा, ‘‘देख बेटी, हम गरीब मजदूर हैं. हमारे साथ तो ऐसा होता ही है. मेरे साथ भी हो चुका है. यह ठेकेदार नहीं होगा तो दूसरा होगा, यह साहब नहीं होगा तो दूसरा साहब होगा.

‘‘तेरी किस्मत और हिम्मत हो तो अपनेआप को बचा ले या काम से बचना है तो जो वे चाहते हैं कर ले.’’

मौसी ने अपने ब्लाउज में से 500 का नोट निकाल कर उस की मुट्ठी में दबाते हुए कहा,’’ ठेकेदार ने दिया है और कहा है कि तू चिंता मत कर. वे तेरा बहुत खयाल रखेंगे.’’

500 का नोट जोर से पकड़ कर वह लड़की चुपचाप अपने घर आ गई. उसे देर तक नींद नहीं आई. ठेकेदार द्वारा आराम का काम देने और मकान मालिक द्वारा रोज स्वादिष्ठ नाश्ता कराने की याद कर के उस के मुंह में पानी आ गया था. वह सोचने लगी कि किस तरह ज्यादा मेहनत करने से रात को उस का बदन थक कर चूर हो जाता था.

उस ने अपनेआप से कहा कि इतनी मेहनत का काम मैं कैसे और कब तक करूंगी. फिर उसे मौसी की बात याद आ गई कि उस के साथ भी ऐसा हो चुका है, जब वह जवान थी.

कुछ देर सोचने के बाद वह सो गई. दूसरे दिन रविवार था. आज वह निश्चिंत और बेफिक्र थी. मौसी भी उस से मिलने आई थीं. उस ने उन से भी खूब हंस कर बातें कीं.

मौसी समझ गईं कि उन का काम हो गया है. उन्होंने शाम को ही ठेकेदार को खबर कर दी कि लड़की ने 500 रुपए ले लिए हैं.

दूसरे दिन सोमवार को वह लड़की नहाधो कर अच्छी तरह तैयार हो कर काम करने निकली. साइट पर सब उसे देखने लगे.

सुपरवाइजर ने भी हलकी मुसकान से उसे देखा क्योंकि साहब लोगों के बाद बची हुई मलाई पर उसे भी मुंह मारने का मौका मिलने की उम्मीद थी.

मौसी ने ठेकेदार को जो बताया था, उस से उसे लग रहा था कि बड़े साहब आज खुश हो जाएंगे. वह उन का ही इंतजार कर रहा था. साहब दफ्तर से बीच में कोठी का काम देखने आने ही वाले थे.

सुपरवाइजर ने उस लड़की को ऊपर के कमरों में जिन का प्लास्टर हो गया था तराई करने को कहा. वह ऊपर जा कर पाइप उठा कर तराई का काम करने लगी. बालकनी से उस ने साहब को कार से उतरते देखा. ठेकेदार तेजी से उन के पास गया और ऊपर देखते हुए वे आपस में कुछ बात कर रहे थे. काम की रफ्तार बढ़ गई थी. मिक्सर मशीन का शोर भी तेज था. लड़की भी दीवारों पर पानी फेंक कर दीवारों को मजबूत बना रही थी.

थोड़ी देर बाद ठेकेदार उसी कमरे में आ गया और मुसकराते हुए कहने लगा, ‘‘चल, जरा स्टोररूम में… एक काम है.’’

लड़की ने धीरे से, लेकिन मजबूत आवाज में कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि क्या काम है, लेकिन मैं यह सब नहीं करूंगी,’’ उस ने तुरंत पानी का पाइप नीचे पटका और साड़ी के पल्लू में बंधा 500 का नोट निकाल कर उसे वापस करते हुए कहा, ‘‘ठेकेदार, साहब, काम जितना मरजी करा लो, आज से मैं तराई का काम नहीं करूंगी. तुम कहोगे तो

2 मजदूरों के बराबर काम करूंगी, लेकिन अपनी इज्जत नहीं दूंगी,’’ इतना कह कर वह नीचे उतर कर सुपरवाइजर से कहने लगी, ‘‘मैं तराई का काम नहीं, ईंटें ढोने का काम करूंगी.’’

इतना कह कर उस लड़की ने तसले में ईंटें भरनी शुरू कर दीं.

फिर वही शून्य: क्या शादी के बाद पहले प्यार को भुला पाई सौम्या

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