व्यंग्य: मैं ऐसी क्यों हूं

जमानाकहां से कहां पहुंच गया पर मिसेज शर्मा अभी भी पुरानी सदी का अजूबा हैं. मगर सम?ाती अपनेआप को मौडर्न. यह बात और है कि नईनई चीजों से उन्हें डर लगता है, पर पंगा घर में आने वाली हर नई वस्तु से लेना होता है. फिर चाहे वह स्मार्ट फोन हो, आईपौड हो या सीडी अथवा डीवीडी प्लेयर. वैसे तो अब ये सब आउट औफ फैशन हो गए हैं.

कितना हसीन था वह दिन जब शर्मा परिवार तैयार हो कर स्मार्ट फोन लेने गया था. एक तूफान से बेखबर बच्चों ने स्मार्ट फोन पसंद कर लिया और घर पहुंचतेपहुंचते उस का असर मिसेज शर्मा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

जैसे ही फोन की घंटी बजी तो उन्होंने ऐसे चौंक कर उठाया मानो वह कोई बम हो, जो अगर जल्दी नहीं उठाया तो फट जाएगा.

बच्चे भी बातबात पर कहते, ‘‘ममा, क्या होगा आप का?’’

‘‘अब क्या होना,’’ एक लंबी सांस खींच कर वे कहतीं, ‘‘मेरा जो होना था वह हो गया है.’’

बच्चों ने सम?ाया, ‘‘ममा यह स्मार्ट फोन है.’’

‘‘लो अब बोलो. स्मार्ट तो इंसान होते हैं… कहीं फोन भी स्मार्ट होते हैं? अब इस फोन में ऐसा क्या है, जो मु?ा में नहीं?’’ मिसेज शर्मा तुनक कर बोलीं.

तब बच्चों ने सम?ाया, ‘‘इस में सोशल नैटवर्किंग होती है जैसे फेसबुक, ट्विटर, याहू कर सकते हैं.’’

‘‘लो बोलो ‘याहू’ तो मैं भी कर सकती हूं शम्मी कपूर को मैं ने एक पिक्चर में ‘याहू’ करते देखा है. फेसबुक पर क्या होता है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘उस पर हम अपने दोस्तों के साथ चैटिंग कर सकते हैं. कमैंट्स पढ़ते हैं.’’ बच्चों ने बताया.

‘‘अच्छा, हमारी किट्टी पार्टी की तरह.’’

‘‘ममा, क्या होगा आप का? कहां स्मार्ट फोन और कहां किट्टी पार्टी.’’

मिसेज शर्मा ने बच्चों को समझया, ‘‘किट्टी पार्टी में भी तो हम एक

से एक नए कपड़े पहन कर जाते हैं ताकि बाकी तारीफ करने वाली महिलाएं तारीफ करें और जलने वाली जलें… चैटिंग तो हम भी करते हैं. आप लोग जो स्टेटस डालते हो वह तो पुराना हो जाता है. हमारा तो लाइव टैलीकास्ट होता है. जलवा दिखाओ और हैंड टू हैंड कमैंट्स ले लो.’’

‘‘ममा, आप कहां की बात कहां ले जाती हैं.’’

जब बच्चे पहली बार लैप्पी यानी लैपटौप ले कर आए तो फिर उन के दिमाग ने उस के सिगनल पकड़ने शुरू कर दिए.

उन्होंने उसे बड़े प्यार से उठाया और अपनी गोद में बैठाया जैसे छोटे बच्चे को बैठाते हैं. फिर उसे गरदन गिरागिरा कर देखने लगीं. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे चलेगा? जब 15-20 मिनट की जद्दोजेहद के बाद भी नहीं चला पाईं तो बच्चों ने फिर ममा, ‘‘क्या होगा आप का?’’ डायलौग दोहराया. फिर उन के प्लीज कहते ही उन्होंने पलक झपकते उसे चला दिया. वे उन के टेक सेवी होने पर बलिहारी हो गईं. पर फिर वही मुसीबत कि अब क्या करूं? कंप्यूटर को तो माउस घुमाघुमा कर चला लेती थीं, गाने सुन लेती थीं, गेम खेल लेती थीं.

पर इस माउस ने उन्हें बहुत दौड़ाया. उन की चीखें निकाली हैं. अकसर उन का और माउस का आमनासामना रसोई में हो जाता था. फिर तो ‘आज तू नहीं या मैं नहीं’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती थी पर जीत हमेशा उस की ही होती थी. पर कंप्यूटर के माउस को उन्होंने खूब घुमाया और अपना बदला पूरा किया.

अब इस लैप्पी के ‘टचपैड’ को कैसे औपरेट करूं? गाने सुनना चाहती हूं तो वह गेम खोल देता है. सिर खुजाखुजा कर वे परेशान हो गई थीं. तभी हाथ से चाय का प्याला छलका और चाय लैपटौप पर जा गिरी. बच्चों को पता न चले इसलिए फटाफट उसे धोने चली गईं और फिर धो कर अच्छी तरह कपड़े से सुखा दिया.

पर यह क्या? लैप्पी को तो जैसे किसी की नजर लग गई? वह चल ही नहीं रहा था यानी उसे मिसेज शर्मा की हाय. ओ नहीं, चाय लग गई थी. 2 दिन लैप्पी कंप्यूटर क्लीनिक में रह कर आया, बेचारा. तभी चलने लायक हुआ.

तब बच्चों ने फरमान सुनाया, ‘‘ममा, अब आप इस से दूर ही रहना.’’

पर अब लगता है उन का सीपीयू कुछकुछ काम कर रहा है और इस का नैटवर्क अलग ही सिगनल पकड़ रहा है, उड़तीउड़ती खबर सुनी है कि घर में ‘आईपैड’ आने वाला है यानी अब उन का बेड़ा पार है और आईपैड का बंटाधार है.

सिगरेट से ज्यादा खतरनाक है फ्लेवर्ड हुक्का

भारत में आज कल हर छोट बड़े शहरों और मौल्‍स में हुक्‍का बार या शीशा लाउंज पौपुलर हो रहे हैं. खासकर युवा वर्ग अकसर बार में हुक्के के कश लगाते दिख जाते हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने से ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. उनका मानना है कि हुक्के से खींचा जाने वाला तंबाकू पानी से होते हुए आता है इसलिए वह ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. लेकिन हाल ही सामने आई एक रिसर्च से पता चला है कि हुक्का भी सिगरेट के बराबर हार्ट को नुकसान पहुंचाता है. इससे दिल की बीमारी होने खतरा बढ़ जाता है.

वहीं ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का में जिस तंबाकू का इस्तेमाल होता है, उसमें कई तरह के अलग-अलग फ्लेवर का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि आज कल युवा इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं. हुक्के का स्वाद बदलने के लिए उसमें फ्रूट सिरप मिलाया जाता है, जिससे किसी भी तरह का विटामिन नहीं मिलता. लोगों को लगता है कि हुक्के में मिलाया जाने वाला यह फ्लेवर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. इसके अलावा हुक्के में सिगरेट की ही तरह कार्सिनोजन लगा होता है जिससे कैंसर होने की संभावना प्रबल होती है. हुक्के का धुआं ठंडा होने के बाद भी नुकसान पहुंचाता है. यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक हुक्के में इस्तेमाल किए जाने वाले हशिश (एक प्रकार का ड्रग) सेहत के लिए हानिकारक होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग हुक्का पीते हैं उनकी धमनियां सख्त होने लगती हैं और हार्ट से संबंधित बारी होने का खतरा बढ़ जाता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक हुक्के में भी सिगरेट की तरह हानिकारक तत्व व निकोटीन पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए लोगों को यह मानना बंद कर देना चाहिए कि इसकी लत नहीं लग सकती. हुक्के में मौजूद तंबाकू में 4000 तरह के खतरनाक रसायन होते हैं. हुक्के के बारे में सच यही है कि इसका धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है.

मैं चुप रहूंगी: विजय की असलियत जब उसकी पत्नी की सहेली को पता चली

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मैं क्रैश डाइटिंग कर रही हूं लेकिन मां कहती हैं कि इससे कमजोरी आएगी, क्या यह सही है?

सवाल

मैं 29 साल की कामकाजी महिला हूं और अगले साल शादी करने की योजना बना रही हूं. मैं क्रैश डाइटिंग कर रही हूं लेकिन मेरी मां कहती हैं कि इस से कमजोरी आएगी और आगे चल कर सेहत खराब होगी. क्या यह गंभीर बात है?

जवाब-

क्रैश डाइट वजन कम करने के लिए तेज और अपेक्षाकृत आसान समाधान है. खाना और कैलोरी खाने पर इस तरह के कठोर प्रतिबंध लंबे समय तक टिकते नहीं हैं. इसलिए वापस ऐसी चीजें खाना शुरू कर देने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगता, जिस से उन का वजन बढ़ता है. सेहत पर क्रैश डाइट के संभावित जोखिम पड़ते हैं. लो ब्लड शुगर लेवल के कारण आप थका, चिड़चिड़ा महसूस करते हैं, एकाग्रता में कमी आती है, कमजोर इम्युनिटी, डिहाइड्रेशन, चक्कर आना, सिरदर्द, बालों का पतला होना जैसी समस्याएं भी होती हैं.

यदि आप वाकई अपनी सेहत और फिटनैस को ले कर चिंतित हैं तो जीवनशैली के लंबे समय तक चलने वाले सेहतमंद विकल्पों को अपनाएं. यदि आप डाइट पर जा रहे हैं तो शुरुआत करने और रुकने की तारीख होनी चाहिए. इस का अर्थ है कि आप केवल इन समयों के दौरान जो भी खाते हैं उसे बदलें न कि पूरी तरह से खाना बंद करें.

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अमूमन ऐसा देखा जाता है कि डाइट पर रहने वाले लोग घी, तेल से तो दूरी बना ही लेते हैं, अपनी थाली को भी बड़ा बोरिंग बना देते हैं. न ज्यादा नमक, न चीनी. केवल सैलड और जूस. इस चक्कर में वो अपना फिटनेस प्लान ज्यादा दिनों तक फॉलो नहीं कर पाते, लेकिन हमारा मानना है कि एक हेल्दी डाइट स्वादिष्ट भी हो सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पीयें गरमागरम चैडर चीज सूप

सामग्री

-1 बड़ा चम्मच फिगारो औलिव औयल

– 5 कलियां लहसुन बारीक कटी

– 1 हरा प्याज बारीक कटा

– थोड़ी सी सैलेरी बारीक कटी

– 3 कप वैजिटेबल स्टाक

– 1/4 कप क्रीम

– 1/2 कप चैडर चीज कद्दूकस किया

– थोड़ी सी चाइव्स कटी

– नमक व कालीमिर्च पाउडर स्वादानुसार

विधि

एक सौस पैन में फिगारो औलिव औयल गरम कर के लहसुन, हरा प्याज व सैलेरी डाल कर भून लें. अब इस में वैजिटेबल स्टाक धीमी आंच पर कुछ देर पकाएं. फिर आंच से उतार कर क्रीम और चीज मिलाएं. अब दोबारा धीमी आंच पर चढ़ा कर नमक व कालीमिर्च डालें और चीज गल जाने तक पकाएं. तैयार सूप को चाइव्स से सजा कर परोसें.

शैफ आशीष सिंह

कौरपोरैट शैफ, कैफे देल्ही हाइट्स, दिल्ली

इसमें गलत क्या है : क्या रमा बड़ी बहन को समझा पाई

मेरी छोटी बहन रमा मुझे समझा रही है और मुझे वह अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही है. यह समझती क्यों नहीं कि मैं अपने बच्चे से कितना प्यार करती हूं.

‘‘मोह उतना ही करना चाहिए जितना सब्जी में नमक. जिस तरह सादी रोटी बेस्वाद लगती है, खाई नहीं जाती उसी तरह मोह के बिना संसार अच्छा नहीं लगता. अगर मोह न होता तो शायद कोई मां अपनी संतान को पाल नहीं पाती. गंदगी, गीले में पड़ा बच्चा मां को क्या किसी तरह का घिनौना एहसास देता है? धोपोंछ कर मां उसे छाती से लगा लेती है कि नहीं. तब जब बच्चा कुछ कर नहीं सकता, न बोल पाता है और न ही कुछ समझा सकता है.

‘‘तुम्हारे मोह की तरह थोड़े न, जब बच्चा अपने परिवार को पालने लायक हो गया है और तुम उस की थाली में एकएक रोटी का हिसाब रख रही हो, तो मुझे कई बार ऐसा भी लगता है जैसे बच्चे का बड़ा होना तुम्हें सुहाया ही नहीं. तुम को अच्छा नहीं लगता जब सुहास अपनेआप पानी ले कर पी लेता है या फ्रिज खोल कर कुछ निकालने लगता है. तुम भागीभागी आती हो, ‘क्या चाहिए बच्चे, मुझे बता तो?’

‘‘क्यों बताए वह तुम्हें? क्या उसे पानी ले कर पीना नहीं आता या बिना तुम्हारी मदद के फल खाना नहीं आएगा? तुम्हें तो उसे यह कहना चाहिए कि वह एक गिलास पानी तुम्हें भी पिला दे और सेब निकाल कर काटे. मौसी आई हैं, उन्हें भी खिलाए और खुद भी खाए. क्या हो जाएगा अगर वह स्वयं कुछ कर लेगा, क्या उसे अपना काम करना आना नहीं चाहिए? तुम क्यों चाहती हो कि तुम्हारा बच्चा अपाहिज बन कर जिए? जराजरा सी बात के लिए तुम्हारा मुंह देखे? क्यों तुम्हारा मन दुखी होता है जब बच्चा खुद से कुछ करता है? उस की पत्नी करती है तो भी तुम नहीं चाहतीं कि वह करे.’’

‘‘तो क्या हमारे बच्चे बिना प्यार के पल गए? रातरात भर जाग कर हम ने क्या बच्चों की सेवा नहीं की? वह सेवा उस पल की जरूरत थी इस पल की नहीं. प्यार को प्यार ही रहने दो, अपने गले की फांसी मत बना लो, जिस का दूसरा सिरा बच्चे के गले में पड़ा है. इधर तुम्हारा फंदा कसता है उधर तुम्हारे बच्चे का भी दम घुटता है.’’

‘‘सुहास ने तुम से कुछ कहा है क्या? क्या उसे मेरा प्यार सुहाता नहीं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे नहीं, दीदी, वह ऐसा क्यों कहेगा. तुम बात को समझना तो चाहती नहीं हो, इधरउधर के पचड़े में पड़ने लगती हो. उस ने कुछ नहीं कहा. मैं जो देख रही हूं उसी आधार पर कह रही हूं. कल तुम भावना से किस बात पर उलझ रही थीं, याद है तुम्हें?’’

‘‘मैं कब उलझी? उस ने तेरे आने पर इतनी मेहनत से कितना सारा खाना बनाया. कम से कम एक बार मुझ से पूछ तो लेती कि क्या बनाना है.’’

‘‘क्यों पूछ लेती? क्या जराजरा सी बात तुम से पूछना जरूरी है? अरे, वही

4-5 दालें हैं और वही 4-6 मौसम की सब्जियां. यह सब्जी न बनी, वह बन गई, दाल में टमाटर का तड़का न लगाया, प्याज और जीरे का लगा लिया. भिंडी लंबी न काटी गोल काट ली. मेज पर नई शक्ल की सब्जी आई तो तुम ने झट से नाकभौं सिकोड़ लीं कि भिंडी की जगह परवल क्यों नहीं बनाए. गुलाबी डिनर सैट क्यों निकाला, सफेद क्यों नहीं. और तो और, मेजपोश और टेबल मैट्स पर भी तुम ने उसे टोका, मेरे ही सामने. कम से कम मेरा तो लिहाज करतीं. वह बच्ची नहीं है जिसे तुम ने इतना सब बिना वजह सुनाया.

‘‘सच तो यह है, इतनी सुंदर सजी मेज देख कर तुम से बरदाश्त ही नहीं हुआ. तुम से सहा ही नहीं गया कि तुम्हारे सामने किसी ने इतना अच्छा खाना सजा दिया. तुम्हें तो प्रकृति का शुक्रगुजार होना चाहिए कि बैठेबिठाए इतना अच्छा खाना मिल जाता है. क्या सारी उम्र काम करकर के तुम थक नहीं गईं? अभी भी हड्डियों में इतना दम है क्या, जो सब कर पाओ? एक तरफ तो कहती हो तुम से काम नहीं होता, दूसरी तरफ किसी का किया तुम से सहा नहीं जाता. आखिर चाहती क्या हो तुम?

‘‘तुम तो अपनी ही दुश्मन आप बन रही हो. क्या कमी है तुम्हारे घर में? आज्ञाकारी बेटा है, समझदार बहू है. कितनी कुशलता से सारा घर संभाल रही है. तुम्हारे नातेरिश्तेदारों का भी पूरा खयाल रखती है न. कल सारा दिन वह मेरे ही आगेपीछे डोलती रही. ‘मौसी यह, मौसी वह,’ मैं ने उसे एक पल के लिए भी आराम करते नहीं देखा और तुम ने रात मेज पर उस की सारे दिन की खुशी पर पानी फेर दिया, सिर्फ यह कह कर कि…’’

चुप हो गई रमा लेकिन भन्नाती रही देर तक. कुछ बड़बड़ भी करती रही. थोड़ी देर बाद रमा फिर बोलने लगी, ‘‘तुम क्यों बच्चों की जरूरत बन कर जीना चाहती हो? ठाट से क्यों नहीं रहती हो. यह घर तुम्हारा है और तुम मालकिन हो. बच्चों से थोड़ी सी दूरी रखना सीखो. बेटा बाहर से आया है तो जाने दो न उस की पत्नी को पानी ले कर. चायनाश्ता कराने दो. यह उस की गृहस्थी है. उसी को उस में रमने दो. बहू को तरहतरह के व्यंजन बनाने का शौक है तो करने दो उसे तजरबे, तुम बैठी बस खाओ. पसंद न भी आए तो भी तारीफ करो,’’ कह कर रमा ने मेरा हाथ पकड़ा.

‘‘सब गुड़गोबर कर दे तो भी तारीफ करूं,’’ हाथ खींच लिया था मैं ने.

‘‘जब वह खुद खाएगी तब क्या उसे पता नहीं चलेगा कि गुड़ का गोबर हुआ है या नहीं. अच्छा नहीं बनेगा तो अपनेआप सुधारेगी न. यह उस के पति का घर है और इस घर में एक कोना उसे ऐसा जरूर मिलना चाहिए जहां वह खुल कर जी सके, मनचाहा कर सके.’’

‘‘क्या मनचाहा करने दूं, लगाम खींच कर नहीं रखूंगी तो मेरी क्या औकात रह जाएगी घर में. अपनी मरजी ही करती रहेगी तो मेरे हाथ में क्या रहेगा?’’

‘‘अपने हाथ में क्या चाहिए तुम्हें, जरा समझाओ? बच्चों का खानापीना या ओढ़नाबिछाना? भावना पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. घर संभालती है, तुम्हारी देखभाल करती है. तुम जिस तरह बातबात पर तुनकती हो उस पर भी वह कुछ कहती नहीं. क्या सब तुम्हारे अधिकार में नहीं है? कैसा अधिकार चाहिए तुम्हें, समझाओ न?

‘‘तुम्हारी उम्र 55 साल हो गई. तुम ने इतने साल यह घर अपनी मरजी से संभाला. किसी ने रोका तो नहीं न. अब बहू आई है तो उसे भी अपनी मरजी करने दो न. और ऐसी क्या मरजी करती है वह? अगर घर को नए तरीके से सजा लेगी तो तुम्हारा अधिकार छिन जाएगा? सोफा इधर नहीं, उधर कर लेगी, नीले परदे न लगाए लाल लगा लेगी, कुशन सूती नहीं रेशमी ले आएगी, तो क्या? तुम से तो कुछ मांगेगी नहीं न?

‘‘इसी से तुम्हें लगता है तुम्हारा अधिकार हाथ से निकल गया. कस कर अपने बेटे को ही पकड़ रही हो…उस का खानापीना, उस का कुछ भी करना… अपनी ममता को इतना तंग और संकुचित मत होने दो, दीदी, कि बेटे का दम ही घुट जाए. तुम तो दोनों की मां हो न. इतनी तंगदिल मत बनो कि बच्चे तुम्हारी ममता का पिंजरा तोड़ कर उड़ जाएं. बहू तुम्हारी प्रतिद्वंद्वी नहीं है. तुम्हारी बच्ची है. बड़ी हो तुम. बड़ों की तरह व्यवहार करो. तुम तो बहू के साथ किसी स्पर्धा में लग रही हो. जैसे दौड़दौड़ कर मुकाबला कर रही हो कि देखो, भला कौन जीतता है, तुम या मैं.

‘‘बातबात में उसे कोसो मत वरना अपना हाथ खींच लेगी वह. अपना चाहा भी नहीं करेगी. तुम से होगा नहीं. अच्छाभला घर बिगड़ जाएगा. फिर मत कहना, बहू घर नहीं देखती. वह नौकरानी तो है नहीं जो मात्र तुम्हारा हुक्म बजाती रहेगी. यह उस का भी घर है. तुम्हीं बताओ, अगर उसे अपना घर इस घर में न मिला तो क्या कहीं और अपना घर ढूंढ़ने का प्रयास नहीं करेगी वह? संभल जाओ, दीदी…’’

रमा शुरू से दोटूक ही बात करती आई है. मैं जानती हूं वह गलत नहीं कह रही मगर मैं अपने मन का क्या करूं. घर के चप्पेचप्पे पर, हर चीज पर मेरी ही छाप रही है आज तक. मेरी ही पसंद रही है घर के हर कोने पर. कौन सी चादर, कौन सा कालीन, कौन सा मेजपोश, कौन सा डिनर सैट, कौन सी दालसब्जी, कौन सा मीठा…मेरा घर, मैं ने कभी किसी के साथ इसे बांटा नहीं. यहां तक कि कोने में पड़ी मेज पर पड़ा महंगा ‘बाऊल’ भी जरा सा अपनी जगह से हिलता है तो मुझे पता चल जाता है. ऐसी परिस्थिति में एक जीताजागता इंसान मेरी हर चीज पर अपना ही रंग चढ़ा दे, तो मैं कैसे सहूं?

‘‘भावना का घर कहां है, दीदी, जरा मुझे समझाओ? तुम्हें जब मां ने ब्याह कर विदा किया था तब यही समझाया था न कि तुम्हारी ससुराल ही तुम्हारा घर है. मायका पराया घर और ससुराल अपना. इस घर को तुम ने भी मन से अपनाया और अपने ही रंग में रंग भी लिया. तुम्हारी सास तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती थीं. तुम गुणी थीं और तुम्हारे गुणों का पूरापूरा मानसम्मान भी किया गया. सच पूछो तो गुणों का मान किया जाए तभी तो गुण गुण हुए न. तुम्हारी सास ने तुम्हारी हर कला का आदर किया तभी तो तुम कलावंती, गुणवंती हुईं.

वे ही तुम्हारी कीमत न जानतीं तो तुम्हारा हर गुण क्या कचरे के ढेर में नहीं समा जाता? तुम्हें घर दिया गया तभी तो तुम घरवाली हुई थीं. अब तुम भी अपनी बहू को उस का घर दो ताकि वह भी अपने गुणों से घर को सजा सके.’’

रमा मुझे उस रात समझाती रही और उस के बाद जाने कितने साल समझाती रही. मैं समझ नहीं पाई. मैं समझना भी नहीं चाहती. शायद, मुझे प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है कि अपने सिवा मुझे कोई भी पसंद नहीं. अपने सिवा मुझे न किसी की खुशी से कुछ लेनादेना है और न ही किसी के मानसम्मान से. पता नहीं क्यों हूं मैं ऐसी. पराया खून अपना ही नहीं पाती और यह शाश्वत सत्य है कि बहू का खून होता ही पराया है.

आज रमा फिर से आई है. लगभग 9 साल बाद. उस की खोजी नजरों से कुछ भी छिपा नहीं. भावना ने चायनाश्ता परोसा, खाना भी परोसा मगर पहले जैसा कुछ नहीं लगा रमा को. भावना अनमनी सी रही.

‘‘रात खाने में क्या बनाना है?’’ भावना बोली, ‘‘अभी बता दीजिए. शाम को मुझे किट्टी पार्टी में जाना है देर हो जाएगी. इसलिए अभी तैयारी कर लेती हूं.’’

‘‘आज किट्टी रहने दो. रमा क्या सोचेगी,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप तो हैं ही, मेरी क्या जरूरत है. समय पर खाना मिल जाएगा.’’

बदतमीज भी लगी मुझे भावना इस बार. पिछली बार रमा से जिस तरह घुलमिल गई थी, इस बार वैसा कुछ नहीं लगा. अच्छा ही है. मैं चाहती भी नहीं कि मेरे रिश्तेदारों से भावना कोई मेलजोल रखे.

मेरा सारा घर गंदगी से भरा है. ड्राइंगरूम गंदा, रसोई गंदी, आंगन गंदा. यहां तक कि मेरा कमरा भी गंदा. तकियों में से सीलन की बदबू आ रही है. मैं ने भावना से कहा था, उस ने बदले नहीं. शर्म आ रही है मुझे रमा से. कहां बिठाऊं इसे. हर तरफ तो जाले लटक रहे हैं. मेज पर मिट्टी है. कल की बरसात का पानी भी बरामदे में भरा है और भावना को घर से भागने की पड़ी है.

‘‘घर वही है मगर घर में जैसे खुशियां नहीं बसतीं. पेट भरना ही प्रश्न नहीं होता. पेट से हो कर दिल तक जाने वाला रास्ता कहीं नजर नहीं आता, दीदी. मैं ने समझाया था न, अपनेआप को बदलो,’’ आखिरकार कह ही दिया रमा ने.

‘‘तो क्या जाले, मिट्टी साफ करना मेरा काम है?’’

‘‘ये जाले तुम ने खुद लगाए हैं, दीदी. उस का मन ही मर चुका है, उस की इच्छा ही नहीं होती होगी अब. यह घर उस का थोड़े ही है जिस में वह अपनी जानमारी करे. सच पूछो तो उस का घर कहीं नहीं है. बेटा तुम से बंधा कहीं जा नहीं सकता और अपना घर तुम ने बहू को कभी दिया नहीं.

‘‘मैं ने समझाया था न, एक दिन तुम्हारा घर बिगड़ जाएगा. आज तुम से होता नहीं और वह अपना चाहा भी नहीं करती. मनमन की बात है न. तुम अपने मन का करती रहीं, वह अपने मन का करती रही. यही तो होना था, दीदी. मुझे यही डर था और यही हो रहा है. मैं ने समझाया था न.’’

रमा के चेहरे पर पीड़ा है और मैं यही सोच कर परेशान हूं कि मैं ने गलती कहां की है. अपना घर ही तो कस कर पकड़ा है. आखिर इस में गलत क्या है?

परख : भाग 1- कैसे बदली एक परिवार की कहानी

नीताभाभी का फोन आया था,’’ गौरिका के घर लौटते ही श्यामला ने बेटी को सूचित किया.

पर गौरिका तो मानों वहां हो कर भी वहां नहीं थी. उस ने अपना पर्स एक ओर फेंका, सैंडल उतारे और सोफे पर पसर गई.

कुछ देर तो श्यामला बात को मुंह में दबाए बैठी रहीं. फिर आंखें मूंदे लेटी अपनी इकलौती बेटी गौरिका को देखा.

मनमस्तिष्क में  झं झवात सा उठ रहा था. वे दिन भर गौरिका की प्रतीक्षा में बैठी रहती हैं, पर वह घर लौट कर मानों बड़ा उपकार करती है. उस के पास मां से बात करने का तो समय ही नहीं है.

मन हुआ, इतनी जोर से चीखें कि गौरिका तो क्या पासपड़ोस तक हिल उठें और उन के मन का सारा गुबार निकल जाए. पर वे भली प्रकार जानती थीं कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगी. वे तो हर समय और हर कार्य में मर्यादा के ऐसे अबू झ बंधन में बंधी रहती थीं कि इस प्रकार के अभद्र व्यवहार की बात सोच भी नहीं सकतीं.

हार कर श्यामला ने टीवी खोल लिया और बेमन से रिमोट हाथ में थामे अलगअलग चैनलों का जायजा लेने लगीं.

उधर गौरिका सोफे पर ही सो गई थी. श्यामला ने एक नजर उस पर डाली, फिर मुंह फेर लिया. उन्होंने कितने लाड़प्यार से पाला है गौरिका को. उस के लिए उन्होंने न दिन को दिन सम झा न रात को रात. पर अब गौरिका अपने सामने किसी को कुछ सम झती ही नहीं.

वे तो उस घड़ी को कोस रही हैं जब उन्होंने गौरिका को राजधानी आ कर नौकरी करने की अनुमति दी थी. उन के पति नभेश ने साफ मना कर दिया था कि वे बेटी के अकेले अजनबी शहर में जा कर रहने के पक्ष में नहीं हैं. तब उन्होंने जोरशोर से बेटी के अधिकारों का  झंडा बुलंद किया था. उन का अकाट्य तर्क था कि जब बेटे को दूसरे शहर में रह कर पढ़ाई व नौकरी करने का हक है तो बेटी को क्यों नहीं?

नभेशजी ने मांबेटी की जिद के आगे हथियार डाल दिए थे. गौरिका राजधानी आ गई. पिछले 4-5 वर्षों में श्यामला ने गौरिका में थोड़ाबहुत परिवर्तन होते देखा था.

गौरिका जब ब्रैंडेड पोशाक पहन कर कंधे तक कटे केशों को बड़ी अदा से लहराती और गरदन को  झटकती अपने शहर आती तो पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों की आंखों में ईर्ष्या के भाव देख कर उन का दिल  झूम उठता था. इसी दिन के लिए तो वे जी रही थीं. उन्होंने अपना जीवन बड़ी तंगहाली में बिताया था. बड़े संयुक्त परिवार में उन का विवाह हुआ था, जिस में छोटीछोटी बातों के लिए भी मन मार कर रहना पड़ता था. पर गौरिका को एमबीए करते ही क्व25 लाख प्रतिवर्ष की नौकरी मिल जाएगी, ऐसा तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. उन की नाक कुछ अधिक ही ऊंची हो चली थी.

श्यामला के भाई श्याम और भाभी नीता उसी शहर में रहते थे. नभेश बाबू अड़ गए कि गौरिका उन्हीं के साथ रहेगी. वे उसे अजनबी शहर में अकेले नहीं रहने देंगे.

इस में श्यामला को कोई आपत्ति नहीं थी. भाईभाभी से उन के मधुर संबंध थे. यों भी वे आवश्यकता पड़ने पर उन की सहायता करने को सदैव तत्पर रहते थे. गौरिका को यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा था. उस ने नौकरी मिलते ही जिस उन्मुक्त उड़ान का सपना देखा था उस में यह प्रस्ताव बाधा बन रहा था. पर श्यामला ने उसे मना लिया. गौरिका भी सम झ गई थी कि अधिक जिद की तो नौकरी से हाथ धोने पड़ेंगे.

श्याम संपन्न व्यक्ति थे. पर वे और उन की पत्नी नीता घर में कड़ा अनुशासन रखते थे. वह अनुशासन गौरिका को रास नहीं आया और मामी की रोकटोक से तंग आ कर उस ने शीघ्र ही अलग फ्लैट ले लिया.

नभेश यह सुनते ही भड़क उठे थे और श्यामला को तुरंत बेटी के साथ रहने भेज दिया था. पर श्यामला 4 दिनों में ही ऊब गई थीं. गौरिका सुबह 9 बजे घर से निकलती तो फिर रात 8 बजे तक ही घर लौटती. घर में रहती भी तो या तो टीवी में व्यस्त रहती या फिर लैपटौप में. श्यामला का वश चलता तो वे कब की लौट जातीं पर नभेश की आज्ञा का उल्लंघन कर के वे नया बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती थीं.

श्यामला न जाने कितनी देर अपने ही विचारों में खोई रहतीं कि तभी

गौरिका की आवाज ने उन्हें चौंका दिया, ‘‘मां, कहां खोई हो. चलो खाना खा लें.’’

‘‘उफ, तो तुम्हारी नींद पूरी हो गई? अपनी मां से बात करने का तो तुम्हें समय ही नहीं मिलता,’’ श्यामला तीखे स्वर में बोलीं.

‘‘मम्मी, नाराज हो गईं क्या?’’ कह गौरिका ने बड़े लाड़ से मां के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नाराज होने वाली मैं होती कौन हूं?’’

‘‘आप को नाराज होने का पूरा अधिकार है पर नाराज होने का कोई कारण भी तो हो.’’

‘‘मैं ने कहा था कि नीता भाभी का फोन आया था. पर तुम ने तो पलट कर उत्तर देना भी जरूरी नहीं सम झा.’’

‘‘मैं ने सुना था मां. पर उस में उत्तर देने जैसा क्या था? मैं भलीभांति जानती हूं कि नीता मामी ने क्या कहा होगा.’’

‘‘अच्छा बड़ी अंतर्यामी हो गई हो तुम. तो तुम्हीं बता दो क्या कहा था उन्होंने?’’ श्यामला चिहुंक उठीं.

‘‘मेरी बुराइयों का पिटारा खोल दिया होगा और क्या. मैं आप को सच बताऊं? उन के घर में 6 माह मैं ने कैसे बिताए हैं केवल मैं ही जानती हूं. मु झे तो उन के बच्चों अशीम और आभा पर दया आती है. इतना अनुशासन किस काम का कि दम घुटने लगे,’’ गौरिका एक ही सांस में बोल गई.

‘‘उन्होंने तो तुम्हारा नाम तक नहीं लिया बुराईभलाई की कौन कहे. वे तो बस यही कहती रहीं कि बिना मिले मत चली जाना.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं है कहीं आनेजाने की. वे बड़े, धनीमानी होंगे तो अपने लिए, अब आप को उन का रोब सहने की कोई जरूरत नहीं है. हम उन का दिया नहीं खाते. अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही है गौरिका? माना तुम अब अपने पैरों पर खड़ी हो, अच्छा वेतन ले रही हो पर इस का अर्थ यह तो नहीं कि हम अपने सगेसंबंधियों से मुंह फेर लें और वह भी श्याम भैया और नीता भाभी जैसे लोगों से, जिन के हम पर अनगिनत उपकार हैं?’’

‘‘ठीक है, आप को जाना है तो जाओ, मेरे पास समय नहीं है. आप जब कहें मैं आप को उन के यहां छोड़ दूंगी.’’

‘‘अपने पांव धरती पर रखना सीख बेटी. पढ़ेलिखे लोगों को क्या ऐसा व्यवहार शोभा देता है?’’ श्यामला ने सम झाया.

‘‘आप लोगों के कहने से मैं उन के यहां रहने को तैयार हो गई थी. यों मैं ने कभी स्वयं को उन पर बो झ नहीं बनने दिया पर अब नहीं. उन की रोकटोक से तो मेरा दम घुटने लगा था,’’ गौरिका ने अपनी असमर्थता जताई.

‘‘ठीक है, जैसी तेरी मरजी. कल औफिस जाते समय मु झे छोड़ देना और लौटते समय ले लेना. वैसे भी दिन भर अकेले बैठे मन ऊब जाता है,’’ श्यामला ने बात समाप्त की.

अगले दिन श्यामला श्याम के यहां पहुंचीं तो पतिपत्नी दोनों ने बड़ी गर्मजोशी

से स्वागत किया. बहुत जोर डालने पर गौरिका अंदर तक आई और समय न होने का बहाना कर लौट गई.

‘‘जिस दिन से यहां से गई है आज सूरत दिखाई है, तुम्हारी बेटी ने,’’ नीता ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘उस की ओर से मैं क्षमा मांगती हूं. आजकल के बच्चों को तो तुम जानती ही हो, वे किसी की सुनते कहां हैं. पर मेरे मन में तुम दोनों के लिए अथाह श्रद्धा है,’’ श्यामला ने हाथ जोड़े.

‘‘क्षमायाचना मांगने का समय नहीं है श्यामला, सतर्क हो जाने का समय है. मैं किसी के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता. पर तुम्हें बरबाद होते भी तो नहीं देख सकता.’’

‘‘क्या कह रहे हो भैया? मैं कुछ सम झी नहीं?’’ श्यामला का मन किसी अनजानी आशंका से धड़क उठा था.

परी हूं मैं: भाग 1- आखिर क्या किया था तरुण ने

जिस रोज वह पहली बार राजीव के साथ बंगले पर आया था, शाम को धुंधलका हो चुका था. मैं लौन में डले झूले पर अनमनी सी अकेली बैठी थी. राजीव ने परिचय कराया, ‘‘ये तरुण, मेरा नया स्टूडैंट. भोपाल में परी बाजार का जो अपना पुराना घर था न, उसी के पड़ोस में रमेश अंकल रहते थे, उन्हीं का बेटा है.’’ सहजता से देखा मैं ने उसे. अकसर ही तो आते रहते हैं इन के निर्देशन में शोध करने वाले छात्र. अगर आंखें नीलीकंजी होतीं तो यह हूबहू अभिनेता प्राण जैसा दिखता. वह मुझे घूर रहा था, मैं हड़बड़ा गई. ‘‘परी बाजार में काफी अरसे से नहीं हुआ है हम लोगों का जाना. भोपाल का वह इलाका पुराने भोपाल की याद दिलाता है,’’ मैं बोली.

‘‘हां, पुराने घर…पुराने मेहराब टूटेफूटे रह गए हैं, परियां तो सब उड़ चुकी हैं वहां से’’, कह कर तरुण ने ठहाका लगाया. तब तक राजीव अंदर जा चुके थे.

‘‘उन्हीं में से एक परी मेरे सामने खड़ी है,’’ लगभग फुसफुसाया वह…और मेरे होश उड़ गए. शाम गहराते ही आकाश में पूनम का गोल चांद टंग चुका था, मुझे लगा वह भी तरुण के ठहाके के साथ खिलखिला पड़ा है. पेड़पौधे लहलहा उठे. उस की बात सुन कर धड़क गया था मेरा दिल, बहुत तेजी से, शायद पहली बार. उस पूरी रात जागती रही मैं. पहली बार मिलते ही ऐसी बात कोई कैसे कह सकता है? पिद्दा सा लड़का और आशिकों वाले जुमले, हिम्मत तो देखो. मुझे गुस्सा ज्यादा आ रहा था या खुशी हो रही थी, क्या पता. मगर सुबह का उजाला होते मैं ने आंखों से देखा. उस की नजरों में मैं एक परी हूं. यह एक बात उस ने कई बार कही और एक ही बात अगर बारबार दोहराई जाए तो वह सच लगने लगती है. मुझे भी तरुण की बात सच लगने लगी.

और वाकई, मैं खुद को परी समझने लगी थी. इस एक शब्द ने मेरी दुनिया बदल कर रख दी. इस एक शब्द के जादू ने मुझे अपने सौंदर्य का आभास करा दिया और इसी एक शब्द ने मुझे पति व प्रेमी का फर्क समझा दिया. 2 किशोरियों की मां हूं अब तो. शादी हो कर आई थी तब 23 की भी नहीं थी, तब भी इन्होंने इतनी शिद्दत से मेरे  रंगरूप की तारीफ नहीं की थी. परी की उपमा से नवाजना तो बहुत दूर की बात. इन्हें मेरा रूप ही नजर नहीं आया तो मेरे शृंगार, आभूषण या साडि़यों की प्रशंसा का तो प्रश्न ही नहीं था. तरुण से मैं 1-2 वर्ष नहीं, पूरे 13 वर्ष बड़ी हूं लेकिन उस की यानी तरुण की तो बात ही अलहदा है. एक रोज कहने लगा, ‘मुझे तो फूल क्या, कांटों में भी आप की सूरत नजर आती है. कांटों से भी तीखी हैं आप की आंखें, एक चुभन ही काफी है जान लेने के लिए. पता नहीं, सर, किस धातु के बने हैं जो दिनरात किताबों में आंखें गड़ाए रहते हैं.’

‘बोरिंग डायलौग मत मारो, तरुण,’ कह कर मैं ने उस के कमैंट को भूलना चाहा पर उस के बाद नहाते ही सब से पहले मैं आंखों में गहरा काजल लगाने लगी, अब तक सब से पहले सिंदूर भरती थी मांग में. तरुण के आने से जाने अनजाने ही शुरुआत हो गई थी मेरे तुलनात्मक अध्ययन की. इन की किसी भी बात पर कार्य, व्यवहार, पहनावे पर मैं स्वयं से ही प्रश्नोत्तर कर बैठती. तरुण होता तो ऐसे करता, तरुण यों कहता, पहनता, बोलता, हंसताहंसाता. बात शायद बोलनेबतियाने या हंसतेहंसाने तक ही सीमित रहती अगर राजीव को अपने शोधपत्रों के पठनपाठन हेतु अमेरिका न जाना पड़ता. इन का विदेश दौरा अचानक तय नहीं हुआ था. पिछले सालडेढ़साल से इस सैमिनार की चर्चा थी यूनिवर्सिटी में और तरुण को भी पीएचडी के लिए आए इतना ही वक्त हो चला है. हालांकि इन के निर्देशन में अब तक दसियों स्टूडैंट्स रिसर्च कंपलीट कर चुके हैं मगर वे सभी यूनिवर्सिटी से घर के ड्राइंगरूम और स्टडीहौल तक ही सीमित रहे किंतु तरुण के गाइड होने के साथसाथ ये उस के बड़े भाई समान भी थे क्योंकि तरुण इन के गृहनगर भोपाल का होने के संग ही रमेश अंकल का बेटा जो ठहरा. इस संयोग ने गुरुशिष्य को भाई के नाते की डोर से भी बांध दिया था.

औपचारिक तौर पर तरुण अब भी भाभीजी ही कहता है. शुरूशुरू में तो उस ने तीजत्योहार पर राजीव के और मेरे पैर भी छुए. देख कर राजीव की खुशी छलक पड़ती थी. अपने घरगांव का आदमी परदेस में मिल जाए, तो एक सहारा सा हो जाता है. मानो एकल परिवार भरापूरा परिवार हो जाता है. तरुण भी घर के एक सदस्य सा हो गया था, बड़ी जल्दी उस ने मेरी रसोई तक एंट्री पा ली थी. मेरी बेटियों का तो प्यारा चाचू बन गया था. नन्हीमुन्नी बेटियों के लिए उन के डैडी के पास वक्त ही कहां रहा कभी. यों तो तरुण कालेज कैंपस के ही होस्टल में टिका है पर वहां सिर्फ सामान ही पड़ा है. सारा दिन तो लेबोरेट्री, यूनिवर्सिटी या फिर हमारे घर पर बीतता है. रात को सोने जाता है तो मुंह देखने लायक होता है. 3 सप्ताहों का दौरा समाप्त कर तमाम प्रशंसापत्र, प्रशस्तिपत्र के साथ ही नियुक्ति अनुबंध के साथ राजीव लौटे थे. हमेशा की तरह यह निर्णय भी उन्होंने अकेले ही ले लिया था. मुझ से पूछने की जरूरत ही नहीं समझी कि ‘तुम 3 वर्ष अकेली रह लोगी?’

मैं ने ही उन की टाई की नौट संवारते पूछा था, ‘‘3 साल…? कैसे संभालूंगी सब? और रिद्धि व सिद्धि…ये रह लेंगी आप के बगैर?’’ ‘‘तरुण रहेगा न, वह सब मैनेज कर लेगा. उसे अपना कैरियर बनाना है. गाइड हूं उस का, जो कहूंगा वह जरूर करेगा. समझदार है वह. मेरे लौटते ही उसे डिगरी भी तो लेनी है.’’ मैं पल्लू थामे खड़ी रह गई. पक्के सौदागर की तरह राजीव मुसकराए और मेरा गाल थपथपाते यूनिवर्सिटी चले गए, मगर लगा ऐसा जैसे आज ही चले गए. घर एकदम सुनसान, बगीचा सुनसान, सड़कें तक सुनसान सी लगीं. वैसे तो ये घर में कोई शोर नहीं करते मगर घर के आदमी से ही तो घर में बस्ती होती है. इन के जाने की कार्यवाही में डेढ़ माह लग गए. किंतु तरुण से इन्होंने अपने सामने ही होस्टलरूम खाली करवा कर हमारा गैस्टरूम उस के हवाले कर दिया. अब तरुण गैर कहां रह गया था? तरुण के व्यवहार, सेवाभाव से निश्ंिचत हो कर राजीव रवाना हो गए.

वैसे वे चाहते थे घर से अम्माजी को भी बुला लिया जाए मगर सास से मेरी कभी बनी ही नहीं, इसलिए विकल्प के तौर पर तरुण को चुन लिया था. फिर घर में सौ औरतें हों मगर एक आदमी की उपस्थिति की बात ही अलग होती है. तरुण ने भी सद्गृहस्थ की तरह घर की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी. हंसीमजाक हम दोनों के बीच जारी था लेकिन फिर भी हमारे मध्य एक लक्ष्मणरेखा तो खिंची ही रही. इतिहास गवाह है ऐसी लक्ष्मणरेखाएं कभी भी सामान्य दशा में जानबूझ कर नहीं लांघी गईं बल्कि परिस्थिति विशेष कुछ यों विवश कर देती हैं कि व्यक्ति का स्वविवेक व संयम शेष बचता ही नहीं है. परिस्थितियां ही कुछ बनती गईं कि उस आग ने मेरा, मुझ में कुछ छोड़ा ही नहीं. सब भस्म हो गया, आज तक मैं ढूंढ़ रही हूं अपनेआप को. आग…सचमुच की आग से ही जली थी. शिफौन की लहरिया साड़ी पहनने के बावजूद भी किचन में पसीने से तरबतर व्यस्त थी कि दहलीज पर तरुण आ खड़ा हुआ और जाने कब टेबलफैन का रुख मेरी ओर कर रैगुलेटर फुल पर कर दिया. हवा के झोंके से पल्ला उड़ा और गैस को टच कर गया.

जैसे को तैसा: भाग 3- भावना लड़को को अपने जाल में क्यों फंसाती थी

बातोंबातों में ही एक दिन भावना ने बताया कि उस के पापा प्राइवेट जौब में थे. कोरोना के कारण वह नहीं रहे तो घर चलाने के लिए उसे अपने सपने त्याग कर यह जौब करनी पड़ी. अमन के पूछने पर वह बोली कि उस का सपना तो पायलट बनने का था मगर आज एक छोटी सी नौकरी करने को मजबूर है. फिर वह बताने लगी कि उस के घर में मांपापा के अलावा एक छोटा भाई भी है और उन सब की जिम्मेदारी भावना पर ही है. उस की बातों से अमन काफी इंप्रैस हुआ और बोला था कि कौन कहता है कि लड़कियां बो   झ होती हैं अपने मांबाप पर बल्कि वे तो अपने मातापिता का अभिमान होती हैं और वक्त पड़ने पर उन का सहारा भी बनती हैं.

भावना के पूछने पर अमन ने बताया कि वह यहीं दिल्ली में ही एक बड़ी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत है और उस के पापा पटना में एसबीआई में ब्रांच मैनेजर हैं. मां हाउसवाइफ हैं और एक छोटा भाई है जो बैंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.

‘‘क्या बात, तुम्हारी तो पूरी फैमिली ही ऐजुकेटेड है,’’ अपने हाथ को हवा में लहराते हुए भावना बोली.

उस पर अमन बोला कि हां, उस के परिवार में, चाचा, मामा और उन के बच्चे भी ऊंचीऊंची पोस्ट पर हैं. कई तो अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में रहते हैं. उस पर आश्चर्य से भावना की आंखें फैल गई थीं.

दोनों की दोस्ती अब काफी गहरी हो चुकी थी. छुट्टी में अकसर दोनों साथ समय गुजारते दिख जाते थे. पहले भावना कभी बस तो कभी औटो पकड़ कर औफिस जातीआती थी. मगर अब वह अमन के साथ उस की ही गाड़ी में औफिस जानेआने लगी थी.

एक रोज भावना ने बताया कि वह यहां एक पीजी में रहती है पर पीजी का भाड़ा बहुत ज्यादा है. खाना भी वहां का खाने लायक नहीं होता है. इसलिए रूम शेयरिंग में अगर एक कमरे का घर मिल जाता तो अच्छा होता. उस पर अमन बोला था कि वह भी एक लड़के के साथ, जोकि उस के ही औफिस में काम करता है, रूम शेयरिंग में रहता है. लेकिन अब उस की शादी हो रही है. इसलिए उसे अकेले रहना पड़ेगा. तो क्यों न भावना उस के साथ आ कर रहने लगे?

आइडिया अच्छा था. तय हुआ कि दोनों आधाआधा किराया देंगे और खानेपीने का खर्चा भी मिलबांट कर उठाएंगे. अब दोनों साथ रहने लगे थे. घरबाहर के कामों में भी वे एकदूसरे का पूरा सहयोग करते.

साथ रहने से जल्द ही दोनों के बीच की सारी औपचारिकताएं भी मिट गईं. लेकिन पहल हमेशा भावना की ही तरफ से होती थी और अंजाम तक पहुंचने में अमन उस का भरपूर सहयोग करता था. कोई चूक न हो जाए, इस बात की दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. नहींनहीं, भविष्य में इन्हें कोई बंधनवंधन में नहीं बंधना था. यह तो बस जिंदगी के मजे ले रहे थे. अमन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. वह घर से भी काफी संपन्न व्यक्ति था. लेकिन भावना पर अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी थी. इसलिए अमन जहां तक हो पाता उस से घर खर्च के पैसे नहीं लेता था. घर का भाड़ा भी अकसर वही भर दिया करता था. इस बात के लिए जब भावना उसे ‘थैंक्स’ कहती, तो अमन हंसते हुए कहता, ‘‘दोस्ती में ‘नो थैंक्यू नो सौरी,’’ और फिर दोनों ठहाके लगा कर हंस पड़ते थे.

छुट्टियों पर अमन अकसर भावना को लौंग ड्राइव पर ले जाता. मौल ले जा कर उसे शौपिंग करवाता, होटलों में खाना खिलाता और बदले में भावना उस पर अपना तनमन लुटाती. भावना के पिछले जन्मदिन पर अमन ने उसे ‘आई फोन’ गिफ्ट किया था और इस जन्मदिन पर लैपटौप. बदले में भावना ने भी उसे एक बढि़या सी व्हाइट शर्ट खरीद कर दी थीं. दोनों अपनीअपनी लाइफ खूब ऐंजौय कर रहे थे. कोई टैंशन नहीं, बस मौज ही मौज. साथ रहते हुए 3 साल कैसे हवा की तरह उड़ गए उन्हें पता ही नहीं चला.

अच्छे पैकेज पर अमन ने मुंबई की एक बड़ी कंपनी जौइन कर ली और उधर भावना ने दिल्ली में कोई दूसरी नौकरी पकड़ ली जो पहले से ज्यादा पैसा दे रहा था. लेकिन दोनों अब भी संपर्क में बने हुए थे. उन का जब भी मन करता एकदूसरे से मिलने आ जाते और अपनी भूख शांत कर तृप्त हो जाते. वैसे भी दिल्ली और मुंबई की दूरी है ही कितनी?

एक रोज जब अमन ने बताया कि उस की शादी तय हो गई, तो भावना खुश होते हुए उसे शादी की बधाई देते हुए बोली कि वह उसे अपनी शादी पर तो बुलाएगा न?

‘‘अरे, यह भी कोई पूछने वाली बात है,’’ हंसते हुए अमन ने कहा था.

इस क्रिसमस की छुट्टी पर अमन ने पटना जाने का प्रोग्राम बनाया था मगर भावना ने उसे दिल्ली बुला लिया यह कह कर कि दोनों खूब मजे करेंगे. अमन ने भी सोचा, अब तो उस की शादी होने ही वाली है, तो क्यों न 1-2 दिन भावना के साथ मजे कर लिए जाएं. 3-4 दिन दिल्ली रह कर वह वहीं से पटना चला गया.

रिटायरमैंट के बाद अमन के मांपापा हमेशा के लिए यहीं दिल्ली रहने आ गए और अमन ने भी मुंबई की कंपनी छोड़ फिर दिल्ली में ही जौब पकड़ ली.

अमन और भावना के बीच पहले की तरह ही नौर्मल बातें होतीं. लेकिन अमन जिस बात को इतना नौर्मल सम   झ रहा था, अब वह नौर्मल नहीं रही थी.

उस रात अचानक भावना ने फोन कर अमन से यह कह कर 50 हजार रुपए की मांग कर दी कि उस के पापा की तबीयत बहुत खराब है और अभी उस के पास इतने पैसे नहीं हैं. वह जल्द ही उस के पैसे लौटा देगी. दूसरी बार उस ने अपने भाई की एडमिशन का कह कर पैसे मांगे कि अगर समय पर पैसे नहीं भरे तो एडमिशन की डेट निकल जाएगी. ऐसा करकर के वह जबतब अमन से पैसे    झटकने लगी और हर बार पैसे लेते समय वह इतना जरूर कहती कि वह उस के पैसे जल्द ही लौटा देगी और अमन चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाता. अभी तक वह धीरेधीरे कर अमन से करीब 2 लाख से ज्यादा ले चुकी थी.

मगर हर बात की एक हद होती है और अमन की अपनी भी जिंदगी थी, उस के भी खर्चे थे. इसलिए इस बार उस ने पैसे देने से साफ मना कर दिया और यह बात भावना को चुभ गई. अपना असली रंग दिखाते हुए बोली, ‘‘वैसे अमन हमारे नाजुक पल के मैं ने कुछ वीडियो बना रखे हैं, देखोगे? कुछ तसवीरें भी खींची थीं. अभी भेजती हूं. बताना पसंद आईं या नहीं,’’ बोल कर वह अजीब तरह से हंसी.

वीडियो और तसवीरें देख कर अमन के तो पैरों तले की जमीन ही खिसक गई.

‘‘ये ये सब क्या है भावना? प्लीज, इन्हें डिलीट करो अभी,’’ अमन घबराया सा बोला.

‘‘अरे, तुम तो घबरा गए और डिलीट क्यों करूं इन्हें? कितना तो अच्छी हैं, देखो न, नहीं लग रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से खुद को बचाने की कोशिश कर रही हूं… रो रही हूं… गिड़गिड़ा रही हूं… तुम्हारे सामने दया की भीख मांग रही हूं और तुम मु   झे दबोचे हुए हो… हांहां, जानती हूं यह सब    झूठ है बल्कि मैं ने ही तुम्हें ऐसा करने को कहा था. लेकिन यह बात मानेगा कौन क्योंकि यह वीडियो और फोटो तो यही बता रहे हैं कि तुम मेरा बलात्कार कर रहे हो,’’ बोल कर भावना ठहाका लगा कर हंसी.

मगर अमन को सम   झ नहीं आ रहा था कि भावना ने ये वीडियो कब और क्यों बनाया और तस्वीरें भी तो यही कह रही हैं कि उस ने उस के साथ जबरदस्ती की है. लेकिन उस ने तो कभी उस के साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, बल्कि जब भी उन के बीच रिश्ता बना, दोनों की मरजी से बना.

हां, याद आया. उस क्रिसमस पर जब वह भावना से मिलने दिल्ली गया था तब मजाक में ही भावना बोली थी, ‘‘चलो, आज हम कुछ नए तरीके से सैक्स का मजा लेते हैं. ऐसा लगे कि तुम मेरा बलात्कार कर रहे हो और मैं खुद को तुम से बचाने की कोशिश कर रही हूं, गिड़गिड़ा रही हूं, तुम्हारे सामने, दया की भीख मांग रही हूं.’’

उस पर अमन ने हंसते हुए बोला भी था कि यह सब नाटक करने की क्या जरूरत है भावना? उस पर भावना बोली थी, ‘‘अरे, कर के देखो तो सही बहुत मजा आएगा.’’

मगर अमन को यह नहीं पता था कि भावना की यह सब सोचीसम   झी चाल है. उस ने जानबू   झ कर अमन से ऐसा करवाया था ताकि वीडियो बना कर बाद में उसे ब्लैकमेल कर सके.

‘‘सही सोच रहे हो तुम, मैं ने यह वीडियो जानबू   झ कर ही बनाया था ताकि मौका पड़ने पर इसे इस्तेमाल कर सकूं? लेकिन सोचो, अगर यह वीडियो और तसवीरें पुलिस के पास चली गईं तो क्या होगा?’’ अपने अधर को टेढ़ा कर भावना मुसकराते हुए बोली, ‘‘वैसे, मैं ऐसा होने नहीं दूंगी. लेकिन सोच रही हूं रागिनी को सैंड कर दूं. उसे बहुत पसंद आएगा. तुम क्या कहते हो?’’

‘‘तुम… तुम चाहती क्या हो?’’ अमन चीख पड़ा था.

‘‘पैसे और जब भी बुलाऊं आना पड़ेगा,’’ इठलाते हुए भावना बोली. पैसे देने से मना करने पर वह अमन को पुलिस का डर दिखाती. कहती कि पूरी दुनिया में उसे बदनाम कर देगी. फिर उसे मुंह छिपाने के लिए जगह नहीं मिलेगी और डर कर अमन उस की हर गलतसही मांग को मानता जा रहा था. भावना ने उस की हंसतीखेलती जिंदगी को मजाक बना कर रख दिया था. लेकिन अब वह इन सब से थकने लगा था. मन करता नींद की गोलियां खा कर सो जाए या किसी ट्रेन के नीचे आ जाए. लेकिन यह सब इतना आसान भी नहीं था. अपनी जिस शादी को ले कर अमन इतना खुश था, अब उसी से उसे डर लगने लगा था. सोचता, अगर रागिनी को यह सब पता चल गया तो क्या होगा, उलटेपुलटे विचार आते उस के मन में और वह सिहर उठता.

भावना के फोन का स्पीकर खराब हो गया था. इसलिए उस ने अमन को व्हाट्सऐप मैसेज कर 1 लाख रुपए ले कर आने को बोल दिया वह भी तुरंत. लेकिन अमन के पास सच में पैसे नहीं थे अभी. इसलिए उस ने उसे पैसे देने से मना कर दिया.

‘‘फिर अंजाम क्या होगा यह भी सम   झ लो तुम,’’ मैसेज कर के ही भावना बोली, ‘‘कल शाम 5 बजे पैसे तैयार रखना. सम   झ लो नहीं तो मैं यह वीडियो और तसवीरें पुलिस के पास पहुंचा दूंगी और तुम्हारी उस रागिनी को भी. फिर मत कहना कि बताया नहीं था.’’

अमन ने उस की बातों का फिर कोई जवाब नहीं दिया और उन्हीं कपड़ों में घर से बाहर निकल गया. रागिनी जब अमन से मिलने उस के घर पहुंची तो छाया ने बताया कि पता नहीं सुबह से ही वह कहां गया है? कुछ बता कर भी नहीं गया है. इसलिए वह खुद ही उसे फोन कर के पूछ ले. रागिनी ने जब अमन को फोन मिलाया तो पता चला वह अपना फोन घर पर ही भूल गया है. पता नहीं रागिनी का क्या मन हुआ कि वह उस का व्हाट्सऐप खोल कर देखने लगी. भावना और अमन का मैसेज पढ़ कर पहले तो वह हक्कीबक्की रह गई, लेकिन जब भावना का

डीपी खोल कर गौर से देखा, तो शौक्ड रह गई क्योंकि भावना वही लड़की थी जिस के कारण रागिनी के एक अजीज दोस्त, श्लोक ने अपनी जान दे दी थी. मगर कोई सुबूत न होने के

कारण पुलिस को किसी पर कोई शक नहीं हो पाया था और गुनहगार बच निकला था. लेकिन मरतेमरते श्लोक ने रागिनी को भावना की सारी सचाई बता दी थी. आज फिर वही सब अमन के साथ होते देख रागिनी का खून खौल उठा. उसे डर था कि कहीं श्लोक की तरह अमन भी कुछ कर न ले.

रागिनी को सब सम   झ में आने लगा कि अचानक अमन का व्यवहार इतना क्यों बदल गया? क्यों वह हर बात पर    झुं   झला उठता? क्यों शादी को ले कर कोई रुचि नहीं दिखाता? भावना ने और भी कई लड़कों को अपनी सुंदरता के जाल में फंसा कर प्राइवेट पल के वीडियो का भय दिखा कर उन्हें अपना निशाना बनाया था.

रागिनी ने फटाफट अमन के फोन से भावना के सारे मैसेज, फोटो, वीडियो अपने फोन में ट्रांसफर कर लिए और छाया से यह बोल कर घर से निकल गई कि अमन ने उसे गार्डन रैस्टोरैंट में मिलने बुलाया है तो वह जा रही है. लेकिन घर से वह यह सोच कर निकली कि अब वह भावना को नहीं छोड़ेगी. उसे उस की करनी की सजा दिलवा कर रहेगी.

अमन कहीं कुछ ऐसावैसा न कर ले इसलिए रागिनी ने पहले उसे ढूंढ़ने की कोशिश की. मिलने पर वह अमन को एक शांत पार्क में ले गई. अमन अभी भी चुप था. रागिनी ने अपनी हथेलियों के बीच उस के हाथ को प्यार से दबाते हुए फिर पूछा कि भावना से उस का क्या रिश्ता है, तो पहले तो वह    झूठ बोल गया कि वह किसी भावना को नहीं जानता है, लेकिन जब उस ने सारे मैसेज, जो भावना ने उसे भेजे थे, दिखाए तो वह टूट गया. अपने आंसू पोंछते हुए उस ने 1-1 कर सारी बातें रागिनी के सामने रख दी और कहने लगा कि अब वह जीना नहीं चाहता.

मगर रागिनी उसे धैर्य बंधाते हुए बोली, ‘‘मरने से क्या होगा? यही कि उस के मांपापा भी नहीं बचेंगे. उसे तो यह सोचना है कि भावना को कैसे सबक सिखाया जाए ताकि वह फिर किसी को अपना शिकार न बना सके और तुम ने मु   झे यह सब क्यों नहीं बताया? यह सोच कर कि मैं तुम्हें गलत सम   झूंगी? पागल हो? क्या मैं अपने अमन को नहीं जानती. चिंता मन करो सबकुछ ठीक हो जाएगा. चलो, अब उठो, घर चलते हैं. वहां आंटीअंकल तुम्हारे लिए परेशान हो रहे हैं,’’ अमन का हाथ पकड़ कर रागिनी बोली तो वह उस के पीछे चल पड़ा.

रागिनी की बातों ने अमन को एक राहत तो पहुंचाई पर डर अब भी उस के दिल में बैठा हुआ था कि जब छाया को यह सब पता चलेगा तो क्या होगा?

छाया जब अमन के लिए उस के कमरे में खाना ले कर पहुंची, तो उस का मन किया मां को पकड़ कर खूब रोए. बेटे की हालत देख कर छाया को उस की चिंता होने लगी. लेकिन अभी भी वह सम   झ नहीं पा रही थी कि उसे हुआ क्या है. इधर रागिनी कुछ जरूरी काम का बता कर वहां से निकल गई. अमन ने तो सोच लिया था अब उसे जीना ही नहीं है. लेकिन रागिनी ने कुछ और ही सोच रखा था.

पहले तो रागिनी ने भावना से दोस्ती गांठी. फिर एक अच्छी दोस्त बनने का दिखावा कर उस का विश्वास जीता यह कह कर कि वह अपनी कंपनी में उसे बढि़या जौब दिलवा देगी जहां उसे पहले से ज्यादा सैलरी मिलेगी. अकसर दोनों साथ में शौपिंग करते और मूवी भी देखने जाते थे.

उस संडे दोनों ने ‘कटहल’ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया. मूवी देखने के बाद दोनों एक रैस्टोरैंट में खाना खाने गए. जहां रागिनी ने यह बोल कर भावना से उस का फोन मांग लिया कि उसे एक जरूरी मैसेज करना है और उस का नैट बहुत स्लो चल रहा है. फिर उस ने भावना के फोन से सारे डिटेल्स अपने फोन में ट्रांसफर कर लिए जिसे भावना को भनक तक नहीं लगी.

रागिनी अमेरिका के कई हैकर्स को जानती थी जो उसी की कंपनी में काम करते थे. उस ने भावना के बारे में उन्हें बताया और उन से मदद मांगी. हैकर्स ने उस से भावना के फोन डिटेल्स मांगी जो रागिनी ने उन्हें दे दी और ये सारे डिटेल्स हैकर्स के लिए काफी थीं.

दूसरे दिन ही हैकर्स भावना का लड़कों को ब्लैकमेल करने का धंधा पकड़ लेते हैं. भावना कुछ सम   झ पाती, उस से पहले ही पुलिस उस के हाथों में हथकड़ी लगा दी. वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि रागिनी ने सिर्फ इसलिए उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था क्योंकि वह उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना चाहती थी और जिस में आज वो कामयाब हो चुकी थी.

खैर, जैसे को तैसा, तो होना ही था. आखिर कब तक वह अपनी सुंदरता की आड़ में अमन और राहुल जैसे लड़कों का फायदा उठाती. अमन की चेहरे की रौनक अगर वापस आई थी तो वह रागिनी की वजह से. आज दोनों अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश है और भावना जेल की सलाखों के पीछे है.

कुछ हैकर्स ऐसे भी होते हैं जो सही उद्देश्य के लिए काम करते हैं और उन्हें एथिकल हैकर्स या व्हाइट हैकर्स भी कहा जाता है.

भेडि़या: भाग 3- मीना और सीमा की खूबसूरती पर किसकी नजर थी

हफ्ता निकल गया. डर थोड़ा कम तो हुआ पर गया नहीं. झुग्गी के ठीक सामने खूब घना जामुन का पेड़ है. गरमियों के मौसम में कई बस्ती वाले रात को इसी पेड़ के नीचे सोते हैं और सर्दियों में सभी बुजुर्ग यहां धूप सेंकते हैं. कुछ बच्चे कंच्चे और क्रिकेट भी खेलते हैं.

अकसर मीना दरवाजे पर खड़ी हो कर बच्चों के खेल का आनंद लेती है. 2 दिन से 18-19 साल के एक लड़के को पेड़ के नीचे डेरा डाले देख रही है. मैलेकुचैले कपड़ों में यह लड़का चुपचाप    झुग्गी को ताकता रहता है. शुरू में मीना को अजीब सा लगा. फिर जल्द ही सम   झ आ गया, मुसीबत का मारा है बेचारा. भोले से चेहरे वाले इस लड़के के करीब बैठने का जी करता.

आजकल दोनों बहनों के बीच वार्त्ता का विषय, मुच्छड़ नहीं पेड़ के नीचे बैठा वह लड़का है.

मीना को बड़ा तरस आता है इस बेचारे पर. जी करता है पूछे कि वह ऐसा क्यों है?

नहीं, दोनों बहनें अपनी परिधि से घिरी हैं. किसी ने उन्हें लड़के से बात करते देख लिया तो बात उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा. पूरी बस्ती है ही ऐसी. इस से अच्छा है इसे इसी के हाल पर छोड़ देते हैं. पर बच्चे अकसर पागल कह कर जब पत्थर मारते तो बहनों का जी तड़प जाता. संवेदना तो बस्ती वालों की पहले ही मर चुकी है. किसी के दुख को ये क्या सम   झेंगे?

एक रोज मीना मौका देख लड़के के पास जा पहुंची. बोली, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘कमल,’’ लड़के ने   झिझकते हुए बताया.

‘‘कहां के रहने वाले हो?’’

‘‘मंतर गांव है. मेरा घर में कोई नहीं है. गांव में बाढ़ आई सब तबाह हो गया. तुम इन्हीं    झुग्गियों में रहती हो? मेरे गांव में तुम्हारे जैसी एक लड़की थी. उस का नाम मीना था. तुम्हारा क्या नाम है?’’

वह हंस पड़ी, ‘‘मेरा नाम भी मीना है.’’

अगले पल दोनों समवेत स्वरों में हंसे. मीना आज कई दिनों बाद हंसी थी वो भी खुल कर.

अगले पल चुप हो लड़के ने मीना पर आंखें टिका दीं और बोला, ‘‘कितने अजीब हैं यहां के लोग. सब देखता हूं पर चुप रहता हूं. यहां मु   झे अपना कहने वाला कोई नहीं है. थोड़े दिन में पानी उतर जाएगा तो मैं चला जाऊंगा.’’

मीना का मन लड़के की बात के समर्थन में बहुत कुछ कहना चाहता था पर विवश है. फिर भी बोल, ‘‘वह क्या नाम बताया?’’

‘‘नाम? तुम ने पूछा तो था? कमल है

मेरा नाम,’’ मुसकराहट की पतली सी रेखा खिंच गई थी.

गजब का आकर्षण था कमल के चेहरे पर.

‘‘तुम ने देखा होगा वह मुच्छड़ दारू पी कर सारी बस्ती में घूमता रहता है. लड़कियों को देख गंदेगंदे इशारे करता है. जी करता है गोली मार दूं और वह मोटा लाला. फिर वह तिरपाली बनिया कितनी बकवास करता है? देखा है न? मन करता है इन सब को इकट्ठा कर के आग लगा दूं.’’

‘‘किसकिस को गोली मारोगी? सब गंदगी में पले हैं. मु   झे भी पागल कह कर मेरी खिल्ली उड़ाते रहते हैं.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. सब यहां ठेकेदार के पाले हुए गुंडे हैं. तभी तो कोई कुछ नहीं कहता. अच्छा, मैं चलती हूं.’’

सामने से मोटा लाला खींसें निपोरता हुआ आ कर खड़ा हो गया. बोला, ‘‘नईनई दोस्ती हुई है. कभी हमें भी अपना यार बना लो, कसम से पूरी दुकान तुम्हारे नाम कर दूंगा…’’’ और मीना के बाजू को रगड़ता हुआ निकल गया. मीना का शरीर कांप गया. कमल की आंखों में भी गुस्सा था.

अपमान का घूंट पी कर    झुग्गी पर आ गई. चुप, डरी हुई. अच्छा हुआ घर पर अम्मां नहीं है. बापू भी गायब था. बहन सोई पड़ी है. मीना का मन हलका था. न जाने कितने दिनों के बाद उसे लगा था, वह अकेली ही नहीं बल्कि कोई और भी इस गंदे माहौल से आजिज है. कमल ने मन का कमल खिला दिया था.

शाम के 7 बजे हैं. अम्मां देर रात तक लौटेगी. कह रही थी कोठी में पार्टी है. दरवाजा बंद कर के लेट गई.

कोठी नंबर 26 में पार्टी जूम पर है. ड्रिंक्स का दौर थम ही नहीं रहा. पी कर गिलास फेंकने की भी यह नई रीत है. रात के 10 बज चुके हैं. आधी  बोतलें खाली हो गई हैं. ठंड में सौ गिलासों को धोना आसान नहीं है.

चंपा के हाथ थक गए हैं. बारबार टूटे गिलासों को    झाड़ू से समेट कर डस्टबिन में डालतेडालते कांच के टुकड़ों से उगलियां घायल हो चुकी हैं.

अचानक लगा बसेसर गार्ड के पास गेट पर बैठा है. धुली कमीज और पाजामे में बसेसर ही तो था.

यहां कैसे? घर में लड़कियां अकेली हैं, यह यहां? भला पूछूं यहां क्या कर रहा है?

हाथ में लोहे की मूठ वाला डंडा लिए गार्ड से हंसहंस कर बतिया रहा था. चमेली का गुस्सा  7वें आसमान पर था. जी करा, लाठी से मारमार कर अधमरा कर दे. लगता है मुफ्त की दारू इसे यहां खींच लाई है. उस ने सपने में कभी न सोचा था कि ऐसी कुत्ती चीज के लिए लार टपकाता कोठी तक पहुंच जाएगा. पता होता, बेटियों को छोड़ यहां आ टपकेगा तो कभी न आती. भाड़ में जाएं हजार रुपए. यहां पता नहीं कितनी देर और लगेगी. चल कर पहले बसेसर की खबर लेती हूं. लेकिन यह क्या अचानक भेडि़या… भेडि़या  का शोर सुनाई दिया.

अफरातफरी मच गई. डर के मारे लोग एकदूसरे पर गिरने लगे. उस ने भी देखा कुत्ते जैसा था भयानक आंखें जैसे जलते हुए अंगारे हों. डर कर पलंग के नीचे जा छिपी. सूखे पत्ते सा कांप गया था मन और तन.

चंपा ने देखा. बसेसर कूद कर उस के सामने आ गया. लोहे की मूठ वाली लाठी उस के हाथ में थी, छलांग लगा कर खिड़की से कूद कर भागने की कोशिश में था भेडि़या. अचानक ग्रिल में जा फंसा.

आधा तन अंदर तो सिर का हिस्सा बाहर था. बसेसर ने मूठ वाली लाठी से सिर पर कम से कम 20-25 वार किए होंगे.

हल्ला मच गया, ‘‘बसेसर ने भेडि़ए को मार डाला.’’

लोगों ने बसेसर की पीठ ठोंकी, ‘‘आज यह न होता तो भेडि़ए ने 2-4 का खात्मा तो कर ही देना था.’’

चमेली पति की तारीफ सुन कर खुश हो रही थी. उसे अपने लंगड़े बहादुर पति पर पहली बार जबरदस्त प्यार उमड़ा.

पार्टी खत्म हो चुकी थी. लोग घर के लिए निकल कर कार पार्किंग की तरफ बढ़ लिए.

बसेसर अभी तक गार्ड के पास था. दारू जो नहीं मिली थी. गार्ड को आंख मार कर बोला, ‘‘इतनी दिलेरी दिखाई है, ईनाम तो मिलना ही चाहिए. जा भाई, अंदर से एक बोतल तो ला दे.’’

बोतल स्वैटर में छिपा कर निकल भागा और सांस झुग्गी पर पहुंच कर ही ली थी.

पीछेपीछे चमेली भी जा पहुंची. न जाने कहां से चमेली की चाल में दम भर गया. वह ठंड से कांप रही थी, परंतु दौड़ लगाने से पसीना आ गया.

हाय यह क्या? दरवाजे खुले थे. घर में अंधेरा कैसे? लड़कियां कहां गईं?

‘‘मीना?’’ कोई जवाब न था. मन सनाका खा गया. क्या हुआ? कहीं उन्हें भेडि़या तो नहीं खा गया? सड़क पर लगे लैंप पोस्ट की मरी हुई लाइट घर के अंदर पहुंच रही थी.

चंपा ने देखा, दोनों लड़कियां खून से लथपथ फर्श पर बेसुध पड़ी हैं.

‘‘मीना…’’ मुंह से चीख निकल गई. चीख काफी दूर तक लोगों ने सुनी. दौड़ कर पड़ोसी भी आ गए. किसी पड़ोसी ने अंदाज से बिजली का बटन दबाया. लाइट में सभी ने देखा. कमरे के फर्श पर लड़कियां निर्वस्त्र पड़ी थीं. टांगों के बीच से निकली खून की धार घर की चौखट को पार कर बाहर तक पहुंच गई थी. हाय यह क्या? यह किस ने किया है? जरूर किसी कसाई गुंडे का काम है. तन को कपड़े से ढक कर चंपा ने बेटियों के मुंह पर पानी के छींटे मारे… कुछ देर बाद दोनों को होश आ गया. दोनों ने आंखें खोल कर भय से इधरउधर देखा और फिर बेहोश हो गईं.

लोग कानाफूसी कर रहे थे. जितने मुंह, उतनी बातें. पूछनाकहना क्या था, सब को सम   झ में आ रहा था. लड़कियां के साथ दरिंदगी हुई है, लेकिन कौन है वह? सभी ने होंठ सी लिए थे. एक ही आवाज गूंज रही थी, पुलिस को बुलाओ, हौस्पिटल ले चलो.

थोड़ी देर में पुलिस आ गई. लड़कियां हौस्पिटल पहुंच गईं. बदहवास चंपा, हौस्पिटल के बरामदे में बेचैनी से चक्कर लगा रही थी और बसेसर का रात का हैंगओवर अभी उतरा नहीं था. दोनों पतिपत्नी पता नहीं किसकिस को गालियां देते जा रहे थे.

बड़ी सुबह दोनों को होश आया. फटी नजरों से आसपास देख रही थीं. पुलिस बयान लेगी. किसी ने आ कर बताया. यह भी बताया कि पुलिस को शक है कि यह कमल का ही काम है सो पकड़ कर ले गई है. कमल को पुलिस ने पीटा भी है. वह लौकअप में है.

‘‘कितने लोग थे?’’ पुलिस वाले ने मीना से पूछा.

इधरउधर देख कर बोली, ‘‘भेडि़या.’’

बारबार दोनों से यही प्रश्न किया. दोनों ने घबराते हुए, ‘‘भेडि़या,’’ यही उत्तर दिया.

पुलिस वाले ने कहा, ‘‘ये अभी कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं हैं. मैं फिर आऊंगा.

चंपा ने कोठी का काम छोड़ दिया. अफसोस मनाती है हजार के लालच में अस्मत गवां दी. उस रात न जाती तो यह सबकुछ भी न होता. मीना, सीमा इतनी सहम गई हैं कि घर से बाहर नहीं जातीं. जानती है परीक्षा होने वाली है नहीं देंगी तो साल बरबाद हो जाएगा. कितनी मजबूर हैं वे. जब से निर्दोष मासूम कमल के बारे में पता लगा है बस यही रटती हैं कि वह तो बेचारा भेड़ है, भेडि़या तो कोई और ही है. देखना, निर्दोष को फंसा कर, भेडि़या भी नहीं बचेगा. देखना अम्मां, एक दिन यही होगा.

बसेसर ने भी दारू का अड्डा छोड़ दिया. इस हादसे ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया. इसीलिए छत के लिए, चद्दरें भी खरीद लाया है. बस बल्लियों पर रख कर लोहे के कड़े से कस दूंगा.

लोहे के दरवाजे भी खरीद लिए हैं. 2-3 दिन में बस चढ़ा देगा. सोच रहा है कल ही यह काम कर लेता हूं.

बाप को उदास देख लड़कियों को भी अच्छा नहीं लगता. आजकल दोनों अम्मां से चिपट कर सोती हैं.

बसेसर इतनी ठंड में भी    झुग्गी से बाहर सोता है. रात गहरी हो रही है. सन्नाटा ऐसा कि सन्नाटा भी डर जाए. बसेसर ने कसम खाई है अब कभी नहीं पीएगा. वैसे वह जानता है असली भेडि़या कौन है? बसती में जब भी मुच्छड़ को देखता है, लगता है उस से कहा जा रहा है, बसेसर, अंगारों पर चलना आसान है पर उस से पंगा मत लेना.

यह बात कहीं उस के अंदर के बसेसर को विपरीत दिशा में सोचने को मजबूर करती है. कहीं बेहद मजबूत पाता है अपने को… किसी से डरता नहीं है. कुछ दिन पहले उस ने कोठी में खिड़की की ग्रिल में फंसा कर जंगल से कूद कर आए भेडि़ए का काम तमाम किया था. सब जानते हैं. सोचतेसोचते कब सो गया पता ही लगा.

अचानक झुग्गी के अंदर से ‘धम्म’ की आवाज से नींद खुली. लपक कर लाठी उठाई. अंदर की ओर भागा सामने मुच्छड़ था जिसे चंपा ने गरदन से पकड़ रखा था मीना और सीमा पास में पड़ी लोहे की रौड से सिर पर वार पर वार कर रही थीं. 2-3 रौड पड़ने के बाद वह बेहोश हो गया.

चारों ने मिल कर, घसीट कर    झुग्गी से बाहर ला पटका. रात के 2 बजे थे. कड़ाके की ठंड. सड़क सुनसान थी. डाल दिया भेडि़ए को बीच सड़क पर…

आज लड़कियों के लिए तो कैदमुक्ति थी. तभी चारों ने चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘भेडि़या… भेडि़या… भेडि़या…’’

देखते ही देखते हाथों में लाठी, डंडे, बल्लम, बरछे के साथ भीड़ उमड़ पड़ी. रास्ते में अंधेरे में कौन किस के पैरों तले रौंदा जा रहा है, किसी को कुछ पता न था.

चंपा, बसेसर मीना और सीमा सड़क के सुरक्षित कोने पर खड़े चुपचाप देखते रहे.

अगले दिन अखबार में खबर छपी, मालाड गांव से सटे जंगल से आए एक भेडि़ए ने पास की कालोनी से लगी    झुग्गी के एक निवासी पर हमला कर के घायल कर दिया. अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में घायल की मौत हो गई.

दूसरे दिन चंपा ने देखा मुसकराती मीना और सीमा अपनाअपना बस्ता ले कर स्कूल के लिए निकल पड़ी थीं.

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