बॉयफ्रेंड संग मूवी डेट पर गई Ananya Pandey! लोगों ने कहा- बेस्ट कपल

बॉलीवुड एक्ट्रेस अनन्या पांडे और एक्टर आदित्य रॉय कपूर काफी समय से दोनों एक-साथ स्पॉट होते रहते है. पिछले महीने से दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे है. कभी वह वीकेशन तो कभी लांच और डिनर डेट के लिए अक्सर साथ नजर आते है. हालांकि दोनों ने इस रिश्ते को अभी ऑफिशियल नहीं किया है. लेकिन बॉलीवुड इंडस्ट्री में इनके प्यार की काफी चर्चा है. अभी हील ही में बीते मंगलवार को दोनों ही साथ में स्पॉट हुए है.

आदित्य और अनन्या मूवी देखने पहुंचे

बॉलीवुड का नया कपल आदित्य रॉय कपूर और अनन्या पांडे मंगलवार को ‘थैंक यू फॉर कमिंग’ की स्क्रीनिंग पर पहुंचे थे. इस शानदार स्क्रीनिंग पर बॉलीवुड के तमाम सितारे नजर आए थे. जिसमें ये दोनों कपल भी साथ नजर आए थे.

 

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आदित्य रॉय कपूर-अनन्या लोगों ने बेस्ट कपल

अनन्या पांडे-आदित्य रॉय कपूर की इन तस्वीरों को देखने के बाद लोगों ने उन्हें बेस्ट कपल तक बता डाला. आपको बता दें कि अनन्या पांडे-आदित्य रॉय कपूर के अफेयर को लेकर कई दिनों से खबरें आ रही हैं.

दरअसल, साल की शुरुआत में पहली बार आदित्य रॉय कपूर और अनन्या पांडे एक फैशन वीक के रैंप वॉक पर एक साथ नजर आए थे. वहीं फरवरी में कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा के मुंबई रिसेप्शन में भी उन्हें एक साथ देखा गया था. उसके बाद आदित्य की बेव सीरिज की स्क्रीनिंग के दौरान अनन्या पांडे एक्टर की चीयर करती नजर आई थी.

पुर्तगाल में रोमांटिक अंदाज में नजर आए थे

अनन्या और आदित्य ने पुर्तगाल में एकदूसरे के साथ अच्छा समय गुजारा था. वहीं स्पेन में लाइव कॉन्सर्ट के बाद लिस्बन के एक रेस्तरां में एक-साथ देखा गया था. इससे पहले लिस्बन से कई तस्वीरें खूब वायरल हुई थी, जिसमें आदित्य अनन्या को हग करते नजर आए थे. इन्हीं तस्वीरों से दोनों ने अपने रिलेशनशिप पर मुहर लगाई थी.

अनन्या की फिल्में

अनन्या पांडे की वर्कफ्रंट की बात करें तो हाल ही में एक्ट्रेस ड्रीम गर्ल 2 में नजर आई थी. इसके बाद वह खो गए हम कहां में नजर आएंगी. वहीं विक्रमादित्य मोटावानी की अपकमिंग साइबर थ्रिलर कंट्रोल में नजर आएंगी. वहीं आदित्य मेट्रो इन दिनों में दिखाई देंगे.

हैंडलूम साङी त्योहार बनाएं यादगार

फैस्टिवल्स में साङी खरीदने का प्लान बना रही हैं, तो बाजार में साड़ियों की कई रेंज उपलब्ध हैं. मगर आजकल सब से अधिक जो साड़ी ट्रेंड में है वह है हैंडलूम साड़ी. हैंडलूम साड़ियां कारीगरों के द्वारा हाथों से बनाई जाती हैं. इन की बड़ी विशेषता यह है कि इन में प्रयोग किया जाने वाला मैटीरियल ईको फ्रैंडली और नैचुरल होता है. साथ ही ये साड़ियां कभी भी आउट औफ फैशन नहीं होतीं.

इसलिए इन पर खर्च किया गया पैसा कभी भी अखरता नहीं है. पर कई बार ऐसा होता है कि हम अच्छीखासी महंगी साड़ी खरीद लाते हैं पर घर आ कर हमें उस का कलर या डिजाइन पसंद नहीं आता.

कुछ इसी तरह की समस्याओं से बचने के लिए हम आप को कुछ टिप्स बता रहे हैं, जिन का ध्यान रख कर आप बेझिझक हैंडलूम साड़ियां खरीद सकती हैं :

क्या होता है हैंडलूम

लकड़ी का लूम जिस पर कई प्रकार और रंगों के धागों के द्वारा कारीगरों के हाथों से साड़ी की बुनाई की जाती है उसे हैंडलूम कहा जाता है. चूंकि लूम पर हाथों से बुनाई की जाती है इसलिए इसे हैंडलूम साड़ी कहा जाता है.

हाथों से बनाए जाने के कारण ही इन साङियों की डिजाइन और क्वालिटी मशीन पर बनी साड़ियों से अलग होती हैं और इसलिए इन्हें पहन कर आप भीड़ में भी अपना अलग व्यक्तित्व बना लेते हैं क्योंकि इन की कभी भी नकल नहीं हो सकती.

कलर हो सब से खास

हर रंग हर इंसान पर नहीं फबता. फेअर या पेल कौंप्लैक्शन पर ब्राइट रंग और मैरून, डार्क पिंक, ग्रीन कलर डस्की या सांवले रंग पर खूब फबते हैं. इसलिए साड़ी खरीदते समय अपनी स्किन टोन का ध्यान जरूर रखें.

बजट निर्धारित करें

हैंडलूम साड़ियां हर रेंज में बाजार में उपलब्ध हैं. खरीदने जाने से पहले आप अपना बजट तय कर लें फिर उसी के अनुसार दुकानदार से साड़ियां  दिखाने को कहें क्योंकि कई बार बजट तय न होने पर दुकानदार अधिक रेंज की साड़ियां दिखाना शुरू करता है और हम अपने बजट से अधिक की साड़ी खरीद कर ले आते हैं। फिर बहुत पछताते भी हैं इसलिए बाद में पछताने की अपेक्षा पहले से ही अपना बजट तय कर के जाएं.

बौडी टाइप का रखें ध्यान

दुबलेपतले शरीर पर हैवी बौर्डर वाली, ओवरवेट शरीर पर बिना बौर्डर या एकदम पतले बौर्डर वाली और हैवी बौडी पर प्लेन या माइल्ड प्रिंट की साड़ी फबती है.

जीआई टैग देखें

हैंडलूम की सभी साड़ियों पर हथकरघा विभाग अपना टैग देता है. इसे देख कर ही आप साड़ी खरीदें ताकि आप किसी भी प्रकार की चीटिंग से बचीं रहें. बनारसी और सिल्क की साड़ियों पर सिल्क मार्क देखना भी बेहद जरूरी होता है.

देखभाल सुनिश्चित करें

साड़ी खरीदने के साथ ही दुकानदार से साड़ी की देखभाल के बारे में जरूरी जानकारी ले लें ताकि उस के अनुसार आप अपनी साड़ी को सुरक्षित रख सकें. एक बार पहनने के बाद अच्छी तरह से पोंछ कर फिर साड़ी कवर में रखें। यदि आप ने गरमी में साड़ी पहनी है तो ड्राईक्लीन करा कर ही रखें अन्यथा पसीने का दाग साड़ी को खराब कर सकता है.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • ये साड़ियां बहुत नाजुक और महंगी होती हैं। इसलिए इन्हें अतिरिक्त देखभाल की भी आवश्यकता होती है. बारिश के मौसम में इन्हें पहनने से बचें.
  • गरमियों में पहनने के तुरंत बाद पसीना सुखाएं और फिर ड्राईक्लीन करवा कर ही रखें.
  • यदि बौर्डर और पल्लू बहुत हैवी है और बहुत सारे धागे दिख रहे हैं तो पीछे की तरफ नेट अवश्य लगवाएं ताकि पहनते समय धागे हाथों में न उलझें.
  • बाघ प्रिंट और चुनरी प्रिंट की कौटन साड़ियों को पहली बार धोते समय नमक के गरम पानी में आधा घंटा भिगो कर रखें। उस के बाद सादा पानी से धोएं अन्यथा इन का रंग निकल सकता है.
  • हैंडलूम की साड़ियों को मशीन में धोने की अपेक्षा हमेशा हाथ से ही धोएं क्योंकि मशीन में रंग निकलने या फिर श्रिंक होने की संभावना रहती है.

अंडरआर्म्स का कालापन झट से होगा दूर, लगाएं ये आसान पैक

आमतौर पर महिलाओं को हॉफ स्लीव्स कपड़े पहनना बेहद पसंद होता है. खासकर गर्मियों में हॉफ स्लीव्स कपड़े पहनना सभी को अच्छा लगता है. लेकिन हमारे त्वचा में कई प्रॉब्लम होते है जिस वजह हॉफ स्लीव्स कपड़े पहनने के लिए सोचना पड़ता है. इसी में से एक समास्या है डार्क अंडरआर्म्स की. वैक्सिंग के बावजूद और रेजर के इस्तेमाल करने से अंडरआर्म्स के हेयर्स तो क्लीन हो जाते है लेकिन बाद में स्किन डार्क हो जाती है. बार-बार अंडरआर्म्स के कालेपन से महिलाएं अपने मन मुताबिक कपड़े नहीं पहन पाती. कई बार कालेपन की वजह से शर्मिंदा महसूस होती है. अगर आप भी डार्क अंडरआर्म्स से परेशान तो अपनाएं ये होममेड टिप्स.

डार्क अंडरआर्म्स के ये आसान टिप्स

  1. नींबू

 

नींबू विटामिन सी से भरपूर होता है. आप एक नींबू लें उसको दो भाग में काट लें इसके बाद अपने अंडरआर्म्स पर हल्के हाथ से नींबू से स्क्रब करें. नींबू को 5-10 मिनट तक लगे रहने दे. साफ पानी से इसको धो लें.

2. बेकिंग सोडा

बेकिंग सोडा अंडरआर्म्स के कालेपान को दूर करने में सबसे करगार तरीका है. इसके लिए आप दो चम्मच एप्पल साइडर विनेगर में दो चम्मच बेकिंग सोडा डालकर एक पेस्ट तैयार करें. पेस्ट को घोलते वक्त इसमें बुलबुले आने लगेंगे, जब ये बुलबुले कम हो जाएं तो इसे अपने अंडरआर्म पर लगाएं और 5 से 10 मिनट तक सूखने दें. इसके बाद ठंडे पानी से धो लें.

3. हल्दी

हल्दी में एंटी बैक्टीरियल गुण मौजूद होते है इसके साथ ही हल्दी स्किन को चमक देने में मदद करती है. सबसे पहले आप एक कटोरी में हल्दी, शहद और दूध लें. इन सभी को आपस में  अच्छी तरह से मिलाएं उसके बाद अंडरआर्म पर लगाएं. 15 मिनट के बाद इसे धो लें.

4. एलोवेरा

एलोवेरा स्किन को हाइड्रेट रखता है इसमें एंटी बैक्टीरियल पाएं जाते है और यह ठंड़ा होता है. आप नेचुरल एलोवेरा की पत्ती लें उसका जेल निकाल लें. इस जेल को अंडरआर्म्स पर लगाएं. और इसे लगभग 10-15 मिनट तक लगा रहने दें. इसके बाद ठंडे पानी से धो लें.

5. आलू

आलू अंडरआर्म्स कालेपन को दूर करने के लिए सबसे आसान और किफायती तरीका है. सबसे पहले आप एक आलू लें उसे कद्दूकस करके उसका रस निकाल लें. उसके बाद इस रस को कॉटन की मदद से सीधे अंडरआर्म्स पर लगाएं. करीब 10 मिनट बाद इसे ठंडे पानी से धो लें.

व्यंग्य: मैं ऐसी क्यों हूं

जमानाकहां से कहां पहुंच गया पर मिसेज शर्मा अभी भी पुरानी सदी का अजूबा हैं. मगर सम?ाती अपनेआप को मौडर्न. यह बात और है कि नईनई चीजों से उन्हें डर लगता है, पर पंगा घर में आने वाली हर नई वस्तु से लेना होता है. फिर चाहे वह स्मार्ट फोन हो, आईपौड हो या सीडी अथवा डीवीडी प्लेयर. वैसे तो अब ये सब आउट औफ फैशन हो गए हैं.

कितना हसीन था वह दिन जब शर्मा परिवार तैयार हो कर स्मार्ट फोन लेने गया था. एक तूफान से बेखबर बच्चों ने स्मार्ट फोन पसंद कर लिया और घर पहुंचतेपहुंचते उस का असर मिसेज शर्मा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

जैसे ही फोन की घंटी बजी तो उन्होंने ऐसे चौंक कर उठाया मानो वह कोई बम हो, जो अगर जल्दी नहीं उठाया तो फट जाएगा.

बच्चे भी बातबात पर कहते, ‘‘ममा, क्या होगा आप का?’’

‘‘अब क्या होना,’’ एक लंबी सांस खींच कर वे कहतीं, ‘‘मेरा जो होना था वह हो गया है.’’

बच्चों ने सम?ाया, ‘‘ममा यह स्मार्ट फोन है.’’

‘‘लो अब बोलो. स्मार्ट तो इंसान होते हैं… कहीं फोन भी स्मार्ट होते हैं? अब इस फोन में ऐसा क्या है, जो मु?ा में नहीं?’’ मिसेज शर्मा तुनक कर बोलीं.

तब बच्चों ने सम?ाया, ‘‘इस में सोशल नैटवर्किंग होती है जैसे फेसबुक, ट्विटर, याहू कर सकते हैं.’’

‘‘लो बोलो ‘याहू’ तो मैं भी कर सकती हूं शम्मी कपूर को मैं ने एक पिक्चर में ‘याहू’ करते देखा है. फेसबुक पर क्या होता है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘उस पर हम अपने दोस्तों के साथ चैटिंग कर सकते हैं. कमैंट्स पढ़ते हैं.’’ बच्चों ने बताया.

‘‘अच्छा, हमारी किट्टी पार्टी की तरह.’’

‘‘ममा, क्या होगा आप का? कहां स्मार्ट फोन और कहां किट्टी पार्टी.’’

मिसेज शर्मा ने बच्चों को समझया, ‘‘किट्टी पार्टी में भी तो हम एक

से एक नए कपड़े पहन कर जाते हैं ताकि बाकी तारीफ करने वाली महिलाएं तारीफ करें और जलने वाली जलें… चैटिंग तो हम भी करते हैं. आप लोग जो स्टेटस डालते हो वह तो पुराना हो जाता है. हमारा तो लाइव टैलीकास्ट होता है. जलवा दिखाओ और हैंड टू हैंड कमैंट्स ले लो.’’

‘‘ममा, आप कहां की बात कहां ले जाती हैं.’’

जब बच्चे पहली बार लैप्पी यानी लैपटौप ले कर आए तो फिर उन के दिमाग ने उस के सिगनल पकड़ने शुरू कर दिए.

उन्होंने उसे बड़े प्यार से उठाया और अपनी गोद में बैठाया जैसे छोटे बच्चे को बैठाते हैं. फिर उसे गरदन गिरागिरा कर देखने लगीं. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे चलेगा? जब 15-20 मिनट की जद्दोजेहद के बाद भी नहीं चला पाईं तो बच्चों ने फिर ममा, ‘‘क्या होगा आप का?’’ डायलौग दोहराया. फिर उन के प्लीज कहते ही उन्होंने पलक झपकते उसे चला दिया. वे उन के टेक सेवी होने पर बलिहारी हो गईं. पर फिर वही मुसीबत कि अब क्या करूं? कंप्यूटर को तो माउस घुमाघुमा कर चला लेती थीं, गाने सुन लेती थीं, गेम खेल लेती थीं.

पर इस माउस ने उन्हें बहुत दौड़ाया. उन की चीखें निकाली हैं. अकसर उन का और माउस का आमनासामना रसोई में हो जाता था. फिर तो ‘आज तू नहीं या मैं नहीं’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती थी पर जीत हमेशा उस की ही होती थी. पर कंप्यूटर के माउस को उन्होंने खूब घुमाया और अपना बदला पूरा किया.

अब इस लैप्पी के ‘टचपैड’ को कैसे औपरेट करूं? गाने सुनना चाहती हूं तो वह गेम खोल देता है. सिर खुजाखुजा कर वे परेशान हो गई थीं. तभी हाथ से चाय का प्याला छलका और चाय लैपटौप पर जा गिरी. बच्चों को पता न चले इसलिए फटाफट उसे धोने चली गईं और फिर धो कर अच्छी तरह कपड़े से सुखा दिया.

पर यह क्या? लैप्पी को तो जैसे किसी की नजर लग गई? वह चल ही नहीं रहा था यानी उसे मिसेज शर्मा की हाय. ओ नहीं, चाय लग गई थी. 2 दिन लैप्पी कंप्यूटर क्लीनिक में रह कर आया, बेचारा. तभी चलने लायक हुआ.

तब बच्चों ने फरमान सुनाया, ‘‘ममा, अब आप इस से दूर ही रहना.’’

पर अब लगता है उन का सीपीयू कुछकुछ काम कर रहा है और इस का नैटवर्क अलग ही सिगनल पकड़ रहा है, उड़तीउड़ती खबर सुनी है कि घर में ‘आईपैड’ आने वाला है यानी अब उन का बेड़ा पार है और आईपैड का बंटाधार है.

सिगरेट से ज्यादा खतरनाक है फ्लेवर्ड हुक्का

भारत में आज कल हर छोट बड़े शहरों और मौल्‍स में हुक्‍का बार या शीशा लाउंज पौपुलर हो रहे हैं. खासकर युवा वर्ग अकसर बार में हुक्के के कश लगाते दिख जाते हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हुक्का पीना सिगरेट पीने से ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. उनका मानना है कि हुक्के से खींचा जाने वाला तंबाकू पानी से होते हुए आता है इसलिए वह ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता. लेकिन हाल ही सामने आई एक रिसर्च से पता चला है कि हुक्का भी सिगरेट के बराबर हार्ट को नुकसान पहुंचाता है. इससे दिल की बीमारी होने खतरा बढ़ जाता है.

वहीं ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हुक्का में जिस तंबाकू का इस्तेमाल होता है, उसमें कई तरह के अलग-अलग फ्लेवर का भी इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि आज कल युवा इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं. हुक्के का स्वाद बदलने के लिए उसमें फ्रूट सिरप मिलाया जाता है, जिससे किसी भी तरह का विटामिन नहीं मिलता. लोगों को लगता है कि हुक्के में मिलाया जाने वाला यह फ्लेवर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. इसके अलावा हुक्के में सिगरेट की ही तरह कार्सिनोजन लगा होता है जिससे कैंसर होने की संभावना प्रबल होती है. हुक्के का धुआं ठंडा होने के बाद भी नुकसान पहुंचाता है. यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक हुक्के में इस्तेमाल किए जाने वाले हशिश (एक प्रकार का ड्रग) सेहत के लिए हानिकारक होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग हुक्का पीते हैं उनकी धमनियां सख्त होने लगती हैं और हार्ट से संबंधित बारी होने का खतरा बढ़ जाता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक हुक्के में भी सिगरेट की तरह हानिकारक तत्व व निकोटीन पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए लोगों को यह मानना बंद कर देना चाहिए कि इसकी लत नहीं लग सकती. हुक्के में मौजूद तंबाकू में 4000 तरह के खतरनाक रसायन होते हैं. हुक्के के बारे में सच यही है कि इसका धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है.

मैं चुप रहूंगी: विजय की असलियत जब उसकी पत्नी की सहेली को पता चली

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मैं क्रैश डाइटिंग कर रही हूं लेकिन मां कहती हैं कि इससे कमजोरी आएगी, क्या यह सही है?

सवाल

मैं 29 साल की कामकाजी महिला हूं और अगले साल शादी करने की योजना बना रही हूं. मैं क्रैश डाइटिंग कर रही हूं लेकिन मेरी मां कहती हैं कि इस से कमजोरी आएगी और आगे चल कर सेहत खराब होगी. क्या यह गंभीर बात है?

जवाब-

क्रैश डाइट वजन कम करने के लिए तेज और अपेक्षाकृत आसान समाधान है. खाना और कैलोरी खाने पर इस तरह के कठोर प्रतिबंध लंबे समय तक टिकते नहीं हैं. इसलिए वापस ऐसी चीजें खाना शुरू कर देने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगता, जिस से उन का वजन बढ़ता है. सेहत पर क्रैश डाइट के संभावित जोखिम पड़ते हैं. लो ब्लड शुगर लेवल के कारण आप थका, चिड़चिड़ा महसूस करते हैं, एकाग्रता में कमी आती है, कमजोर इम्युनिटी, डिहाइड्रेशन, चक्कर आना, सिरदर्द, बालों का पतला होना जैसी समस्याएं भी होती हैं.

यदि आप वाकई अपनी सेहत और फिटनैस को ले कर चिंतित हैं तो जीवनशैली के लंबे समय तक चलने वाले सेहतमंद विकल्पों को अपनाएं. यदि आप डाइट पर जा रहे हैं तो शुरुआत करने और रुकने की तारीख होनी चाहिए. इस का अर्थ है कि आप केवल इन समयों के दौरान जो भी खाते हैं उसे बदलें न कि पूरी तरह से खाना बंद करें.

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अमूमन ऐसा देखा जाता है कि डाइट पर रहने वाले लोग घी, तेल से तो दूरी बना ही लेते हैं, अपनी थाली को भी बड़ा बोरिंग बना देते हैं. न ज्यादा नमक, न चीनी. केवल सैलड और जूस. इस चक्कर में वो अपना फिटनेस प्लान ज्यादा दिनों तक फॉलो नहीं कर पाते, लेकिन हमारा मानना है कि एक हेल्दी डाइट स्वादिष्ट भी हो सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पीयें गरमागरम चैडर चीज सूप

सामग्री

-1 बड़ा चम्मच फिगारो औलिव औयल

– 5 कलियां लहसुन बारीक कटी

– 1 हरा प्याज बारीक कटा

– थोड़ी सी सैलेरी बारीक कटी

– 3 कप वैजिटेबल स्टाक

– 1/4 कप क्रीम

– 1/2 कप चैडर चीज कद्दूकस किया

– थोड़ी सी चाइव्स कटी

– नमक व कालीमिर्च पाउडर स्वादानुसार

विधि

एक सौस पैन में फिगारो औलिव औयल गरम कर के लहसुन, हरा प्याज व सैलेरी डाल कर भून लें. अब इस में वैजिटेबल स्टाक धीमी आंच पर कुछ देर पकाएं. फिर आंच से उतार कर क्रीम और चीज मिलाएं. अब दोबारा धीमी आंच पर चढ़ा कर नमक व कालीमिर्च डालें और चीज गल जाने तक पकाएं. तैयार सूप को चाइव्स से सजा कर परोसें.

शैफ आशीष सिंह

कौरपोरैट शैफ, कैफे देल्ही हाइट्स, दिल्ली

इसमें गलत क्या है : क्या रमा बड़ी बहन को समझा पाई

मेरी छोटी बहन रमा मुझे समझा रही है और मुझे वह अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही है. यह समझती क्यों नहीं कि मैं अपने बच्चे से कितना प्यार करती हूं.

‘‘मोह उतना ही करना चाहिए जितना सब्जी में नमक. जिस तरह सादी रोटी बेस्वाद लगती है, खाई नहीं जाती उसी तरह मोह के बिना संसार अच्छा नहीं लगता. अगर मोह न होता तो शायद कोई मां अपनी संतान को पाल नहीं पाती. गंदगी, गीले में पड़ा बच्चा मां को क्या किसी तरह का घिनौना एहसास देता है? धोपोंछ कर मां उसे छाती से लगा लेती है कि नहीं. तब जब बच्चा कुछ कर नहीं सकता, न बोल पाता है और न ही कुछ समझा सकता है.

‘‘तुम्हारे मोह की तरह थोड़े न, जब बच्चा अपने परिवार को पालने लायक हो गया है और तुम उस की थाली में एकएक रोटी का हिसाब रख रही हो, तो मुझे कई बार ऐसा भी लगता है जैसे बच्चे का बड़ा होना तुम्हें सुहाया ही नहीं. तुम को अच्छा नहीं लगता जब सुहास अपनेआप पानी ले कर पी लेता है या फ्रिज खोल कर कुछ निकालने लगता है. तुम भागीभागी आती हो, ‘क्या चाहिए बच्चे, मुझे बता तो?’

‘‘क्यों बताए वह तुम्हें? क्या उसे पानी ले कर पीना नहीं आता या बिना तुम्हारी मदद के फल खाना नहीं आएगा? तुम्हें तो उसे यह कहना चाहिए कि वह एक गिलास पानी तुम्हें भी पिला दे और सेब निकाल कर काटे. मौसी आई हैं, उन्हें भी खिलाए और खुद भी खाए. क्या हो जाएगा अगर वह स्वयं कुछ कर लेगा, क्या उसे अपना काम करना आना नहीं चाहिए? तुम क्यों चाहती हो कि तुम्हारा बच्चा अपाहिज बन कर जिए? जराजरा सी बात के लिए तुम्हारा मुंह देखे? क्यों तुम्हारा मन दुखी होता है जब बच्चा खुद से कुछ करता है? उस की पत्नी करती है तो भी तुम नहीं चाहतीं कि वह करे.’’

‘‘तो क्या हमारे बच्चे बिना प्यार के पल गए? रातरात भर जाग कर हम ने क्या बच्चों की सेवा नहीं की? वह सेवा उस पल की जरूरत थी इस पल की नहीं. प्यार को प्यार ही रहने दो, अपने गले की फांसी मत बना लो, जिस का दूसरा सिरा बच्चे के गले में पड़ा है. इधर तुम्हारा फंदा कसता है उधर तुम्हारे बच्चे का भी दम घुटता है.’’

‘‘सुहास ने तुम से कुछ कहा है क्या? क्या उसे मेरा प्यार सुहाता नहीं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे नहीं, दीदी, वह ऐसा क्यों कहेगा. तुम बात को समझना तो चाहती नहीं हो, इधरउधर के पचड़े में पड़ने लगती हो. उस ने कुछ नहीं कहा. मैं जो देख रही हूं उसी आधार पर कह रही हूं. कल तुम भावना से किस बात पर उलझ रही थीं, याद है तुम्हें?’’

‘‘मैं कब उलझी? उस ने तेरे आने पर इतनी मेहनत से कितना सारा खाना बनाया. कम से कम एक बार मुझ से पूछ तो लेती कि क्या बनाना है.’’

‘‘क्यों पूछ लेती? क्या जराजरा सी बात तुम से पूछना जरूरी है? अरे, वही

4-5 दालें हैं और वही 4-6 मौसम की सब्जियां. यह सब्जी न बनी, वह बन गई, दाल में टमाटर का तड़का न लगाया, प्याज और जीरे का लगा लिया. भिंडी लंबी न काटी गोल काट ली. मेज पर नई शक्ल की सब्जी आई तो तुम ने झट से नाकभौं सिकोड़ लीं कि भिंडी की जगह परवल क्यों नहीं बनाए. गुलाबी डिनर सैट क्यों निकाला, सफेद क्यों नहीं. और तो और, मेजपोश और टेबल मैट्स पर भी तुम ने उसे टोका, मेरे ही सामने. कम से कम मेरा तो लिहाज करतीं. वह बच्ची नहीं है जिसे तुम ने इतना सब बिना वजह सुनाया.

‘‘सच तो यह है, इतनी सुंदर सजी मेज देख कर तुम से बरदाश्त ही नहीं हुआ. तुम से सहा ही नहीं गया कि तुम्हारे सामने किसी ने इतना अच्छा खाना सजा दिया. तुम्हें तो प्रकृति का शुक्रगुजार होना चाहिए कि बैठेबिठाए इतना अच्छा खाना मिल जाता है. क्या सारी उम्र काम करकर के तुम थक नहीं गईं? अभी भी हड्डियों में इतना दम है क्या, जो सब कर पाओ? एक तरफ तो कहती हो तुम से काम नहीं होता, दूसरी तरफ किसी का किया तुम से सहा नहीं जाता. आखिर चाहती क्या हो तुम?

‘‘तुम तो अपनी ही दुश्मन आप बन रही हो. क्या कमी है तुम्हारे घर में? आज्ञाकारी बेटा है, समझदार बहू है. कितनी कुशलता से सारा घर संभाल रही है. तुम्हारे नातेरिश्तेदारों का भी पूरा खयाल रखती है न. कल सारा दिन वह मेरे ही आगेपीछे डोलती रही. ‘मौसी यह, मौसी वह,’ मैं ने उसे एक पल के लिए भी आराम करते नहीं देखा और तुम ने रात मेज पर उस की सारे दिन की खुशी पर पानी फेर दिया, सिर्फ यह कह कर कि…’’

चुप हो गई रमा लेकिन भन्नाती रही देर तक. कुछ बड़बड़ भी करती रही. थोड़ी देर बाद रमा फिर बोलने लगी, ‘‘तुम क्यों बच्चों की जरूरत बन कर जीना चाहती हो? ठाट से क्यों नहीं रहती हो. यह घर तुम्हारा है और तुम मालकिन हो. बच्चों से थोड़ी सी दूरी रखना सीखो. बेटा बाहर से आया है तो जाने दो न उस की पत्नी को पानी ले कर. चायनाश्ता कराने दो. यह उस की गृहस्थी है. उसी को उस में रमने दो. बहू को तरहतरह के व्यंजन बनाने का शौक है तो करने दो उसे तजरबे, तुम बैठी बस खाओ. पसंद न भी आए तो भी तारीफ करो,’’ कह कर रमा ने मेरा हाथ पकड़ा.

‘‘सब गुड़गोबर कर दे तो भी तारीफ करूं,’’ हाथ खींच लिया था मैं ने.

‘‘जब वह खुद खाएगी तब क्या उसे पता नहीं चलेगा कि गुड़ का गोबर हुआ है या नहीं. अच्छा नहीं बनेगा तो अपनेआप सुधारेगी न. यह उस के पति का घर है और इस घर में एक कोना उसे ऐसा जरूर मिलना चाहिए जहां वह खुल कर जी सके, मनचाहा कर सके.’’

‘‘क्या मनचाहा करने दूं, लगाम खींच कर नहीं रखूंगी तो मेरी क्या औकात रह जाएगी घर में. अपनी मरजी ही करती रहेगी तो मेरे हाथ में क्या रहेगा?’’

‘‘अपने हाथ में क्या चाहिए तुम्हें, जरा समझाओ? बच्चों का खानापीना या ओढ़नाबिछाना? भावना पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. घर संभालती है, तुम्हारी देखभाल करती है. तुम जिस तरह बातबात पर तुनकती हो उस पर भी वह कुछ कहती नहीं. क्या सब तुम्हारे अधिकार में नहीं है? कैसा अधिकार चाहिए तुम्हें, समझाओ न?

‘‘तुम्हारी उम्र 55 साल हो गई. तुम ने इतने साल यह घर अपनी मरजी से संभाला. किसी ने रोका तो नहीं न. अब बहू आई है तो उसे भी अपनी मरजी करने दो न. और ऐसी क्या मरजी करती है वह? अगर घर को नए तरीके से सजा लेगी तो तुम्हारा अधिकार छिन जाएगा? सोफा इधर नहीं, उधर कर लेगी, नीले परदे न लगाए लाल लगा लेगी, कुशन सूती नहीं रेशमी ले आएगी, तो क्या? तुम से तो कुछ मांगेगी नहीं न?

‘‘इसी से तुम्हें लगता है तुम्हारा अधिकार हाथ से निकल गया. कस कर अपने बेटे को ही पकड़ रही हो…उस का खानापीना, उस का कुछ भी करना… अपनी ममता को इतना तंग और संकुचित मत होने दो, दीदी, कि बेटे का दम ही घुट जाए. तुम तो दोनों की मां हो न. इतनी तंगदिल मत बनो कि बच्चे तुम्हारी ममता का पिंजरा तोड़ कर उड़ जाएं. बहू तुम्हारी प्रतिद्वंद्वी नहीं है. तुम्हारी बच्ची है. बड़ी हो तुम. बड़ों की तरह व्यवहार करो. तुम तो बहू के साथ किसी स्पर्धा में लग रही हो. जैसे दौड़दौड़ कर मुकाबला कर रही हो कि देखो, भला कौन जीतता है, तुम या मैं.

‘‘बातबात में उसे कोसो मत वरना अपना हाथ खींच लेगी वह. अपना चाहा भी नहीं करेगी. तुम से होगा नहीं. अच्छाभला घर बिगड़ जाएगा. फिर मत कहना, बहू घर नहीं देखती. वह नौकरानी तो है नहीं जो मात्र तुम्हारा हुक्म बजाती रहेगी. यह उस का भी घर है. तुम्हीं बताओ, अगर उसे अपना घर इस घर में न मिला तो क्या कहीं और अपना घर ढूंढ़ने का प्रयास नहीं करेगी वह? संभल जाओ, दीदी…’’

रमा शुरू से दोटूक ही बात करती आई है. मैं जानती हूं वह गलत नहीं कह रही मगर मैं अपने मन का क्या करूं. घर के चप्पेचप्पे पर, हर चीज पर मेरी ही छाप रही है आज तक. मेरी ही पसंद रही है घर के हर कोने पर. कौन सी चादर, कौन सा कालीन, कौन सा मेजपोश, कौन सा डिनर सैट, कौन सी दालसब्जी, कौन सा मीठा…मेरा घर, मैं ने कभी किसी के साथ इसे बांटा नहीं. यहां तक कि कोने में पड़ी मेज पर पड़ा महंगा ‘बाऊल’ भी जरा सा अपनी जगह से हिलता है तो मुझे पता चल जाता है. ऐसी परिस्थिति में एक जीताजागता इंसान मेरी हर चीज पर अपना ही रंग चढ़ा दे, तो मैं कैसे सहूं?

‘‘भावना का घर कहां है, दीदी, जरा मुझे समझाओ? तुम्हें जब मां ने ब्याह कर विदा किया था तब यही समझाया था न कि तुम्हारी ससुराल ही तुम्हारा घर है. मायका पराया घर और ससुराल अपना. इस घर को तुम ने भी मन से अपनाया और अपने ही रंग में रंग भी लिया. तुम्हारी सास तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती थीं. तुम गुणी थीं और तुम्हारे गुणों का पूरापूरा मानसम्मान भी किया गया. सच पूछो तो गुणों का मान किया जाए तभी तो गुण गुण हुए न. तुम्हारी सास ने तुम्हारी हर कला का आदर किया तभी तो तुम कलावंती, गुणवंती हुईं.

वे ही तुम्हारी कीमत न जानतीं तो तुम्हारा हर गुण क्या कचरे के ढेर में नहीं समा जाता? तुम्हें घर दिया गया तभी तो तुम घरवाली हुई थीं. अब तुम भी अपनी बहू को उस का घर दो ताकि वह भी अपने गुणों से घर को सजा सके.’’

रमा मुझे उस रात समझाती रही और उस के बाद जाने कितने साल समझाती रही. मैं समझ नहीं पाई. मैं समझना भी नहीं चाहती. शायद, मुझे प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है कि अपने सिवा मुझे कोई भी पसंद नहीं. अपने सिवा मुझे न किसी की खुशी से कुछ लेनादेना है और न ही किसी के मानसम्मान से. पता नहीं क्यों हूं मैं ऐसी. पराया खून अपना ही नहीं पाती और यह शाश्वत सत्य है कि बहू का खून होता ही पराया है.

आज रमा फिर से आई है. लगभग 9 साल बाद. उस की खोजी नजरों से कुछ भी छिपा नहीं. भावना ने चायनाश्ता परोसा, खाना भी परोसा मगर पहले जैसा कुछ नहीं लगा रमा को. भावना अनमनी सी रही.

‘‘रात खाने में क्या बनाना है?’’ भावना बोली, ‘‘अभी बता दीजिए. शाम को मुझे किट्टी पार्टी में जाना है देर हो जाएगी. इसलिए अभी तैयारी कर लेती हूं.’’

‘‘आज किट्टी रहने दो. रमा क्या सोचेगी,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप तो हैं ही, मेरी क्या जरूरत है. समय पर खाना मिल जाएगा.’’

बदतमीज भी लगी मुझे भावना इस बार. पिछली बार रमा से जिस तरह घुलमिल गई थी, इस बार वैसा कुछ नहीं लगा. अच्छा ही है. मैं चाहती भी नहीं कि मेरे रिश्तेदारों से भावना कोई मेलजोल रखे.

मेरा सारा घर गंदगी से भरा है. ड्राइंगरूम गंदा, रसोई गंदी, आंगन गंदा. यहां तक कि मेरा कमरा भी गंदा. तकियों में से सीलन की बदबू आ रही है. मैं ने भावना से कहा था, उस ने बदले नहीं. शर्म आ रही है मुझे रमा से. कहां बिठाऊं इसे. हर तरफ तो जाले लटक रहे हैं. मेज पर मिट्टी है. कल की बरसात का पानी भी बरामदे में भरा है और भावना को घर से भागने की पड़ी है.

‘‘घर वही है मगर घर में जैसे खुशियां नहीं बसतीं. पेट भरना ही प्रश्न नहीं होता. पेट से हो कर दिल तक जाने वाला रास्ता कहीं नजर नहीं आता, दीदी. मैं ने समझाया था न, अपनेआप को बदलो,’’ आखिरकार कह ही दिया रमा ने.

‘‘तो क्या जाले, मिट्टी साफ करना मेरा काम है?’’

‘‘ये जाले तुम ने खुद लगाए हैं, दीदी. उस का मन ही मर चुका है, उस की इच्छा ही नहीं होती होगी अब. यह घर उस का थोड़े ही है जिस में वह अपनी जानमारी करे. सच पूछो तो उस का घर कहीं नहीं है. बेटा तुम से बंधा कहीं जा नहीं सकता और अपना घर तुम ने बहू को कभी दिया नहीं.

‘‘मैं ने समझाया था न, एक दिन तुम्हारा घर बिगड़ जाएगा. आज तुम से होता नहीं और वह अपना चाहा भी नहीं करती. मनमन की बात है न. तुम अपने मन का करती रहीं, वह अपने मन का करती रही. यही तो होना था, दीदी. मुझे यही डर था और यही हो रहा है. मैं ने समझाया था न.’’

रमा के चेहरे पर पीड़ा है और मैं यही सोच कर परेशान हूं कि मैं ने गलती कहां की है. अपना घर ही तो कस कर पकड़ा है. आखिर इस में गलत क्या है?

परख : भाग 1- कैसे बदली एक परिवार की कहानी

नीताभाभी का फोन आया था,’’ गौरिका के घर लौटते ही श्यामला ने बेटी को सूचित किया.

पर गौरिका तो मानों वहां हो कर भी वहां नहीं थी. उस ने अपना पर्स एक ओर फेंका, सैंडल उतारे और सोफे पर पसर गई.

कुछ देर तो श्यामला बात को मुंह में दबाए बैठी रहीं. फिर आंखें मूंदे लेटी अपनी इकलौती बेटी गौरिका को देखा.

मनमस्तिष्क में  झं झवात सा उठ रहा था. वे दिन भर गौरिका की प्रतीक्षा में बैठी रहती हैं, पर वह घर लौट कर मानों बड़ा उपकार करती है. उस के पास मां से बात करने का तो समय ही नहीं है.

मन हुआ, इतनी जोर से चीखें कि गौरिका तो क्या पासपड़ोस तक हिल उठें और उन के मन का सारा गुबार निकल जाए. पर वे भली प्रकार जानती थीं कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगी. वे तो हर समय और हर कार्य में मर्यादा के ऐसे अबू झ बंधन में बंधी रहती थीं कि इस प्रकार के अभद्र व्यवहार की बात सोच भी नहीं सकतीं.

हार कर श्यामला ने टीवी खोल लिया और बेमन से रिमोट हाथ में थामे अलगअलग चैनलों का जायजा लेने लगीं.

उधर गौरिका सोफे पर ही सो गई थी. श्यामला ने एक नजर उस पर डाली, फिर मुंह फेर लिया. उन्होंने कितने लाड़प्यार से पाला है गौरिका को. उस के लिए उन्होंने न दिन को दिन सम झा न रात को रात. पर अब गौरिका अपने सामने किसी को कुछ सम झती ही नहीं.

वे तो उस घड़ी को कोस रही हैं जब उन्होंने गौरिका को राजधानी आ कर नौकरी करने की अनुमति दी थी. उन के पति नभेश ने साफ मना कर दिया था कि वे बेटी के अकेले अजनबी शहर में जा कर रहने के पक्ष में नहीं हैं. तब उन्होंने जोरशोर से बेटी के अधिकारों का  झंडा बुलंद किया था. उन का अकाट्य तर्क था कि जब बेटे को दूसरे शहर में रह कर पढ़ाई व नौकरी करने का हक है तो बेटी को क्यों नहीं?

नभेशजी ने मांबेटी की जिद के आगे हथियार डाल दिए थे. गौरिका राजधानी आ गई. पिछले 4-5 वर्षों में श्यामला ने गौरिका में थोड़ाबहुत परिवर्तन होते देखा था.

गौरिका जब ब्रैंडेड पोशाक पहन कर कंधे तक कटे केशों को बड़ी अदा से लहराती और गरदन को  झटकती अपने शहर आती तो पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों की आंखों में ईर्ष्या के भाव देख कर उन का दिल  झूम उठता था. इसी दिन के लिए तो वे जी रही थीं. उन्होंने अपना जीवन बड़ी तंगहाली में बिताया था. बड़े संयुक्त परिवार में उन का विवाह हुआ था, जिस में छोटीछोटी बातों के लिए भी मन मार कर रहना पड़ता था. पर गौरिका को एमबीए करते ही क्व25 लाख प्रतिवर्ष की नौकरी मिल जाएगी, ऐसा तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. उन की नाक कुछ अधिक ही ऊंची हो चली थी.

श्यामला के भाई श्याम और भाभी नीता उसी शहर में रहते थे. नभेश बाबू अड़ गए कि गौरिका उन्हीं के साथ रहेगी. वे उसे अजनबी शहर में अकेले नहीं रहने देंगे.

इस में श्यामला को कोई आपत्ति नहीं थी. भाईभाभी से उन के मधुर संबंध थे. यों भी वे आवश्यकता पड़ने पर उन की सहायता करने को सदैव तत्पर रहते थे. गौरिका को यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा था. उस ने नौकरी मिलते ही जिस उन्मुक्त उड़ान का सपना देखा था उस में यह प्रस्ताव बाधा बन रहा था. पर श्यामला ने उसे मना लिया. गौरिका भी सम झ गई थी कि अधिक जिद की तो नौकरी से हाथ धोने पड़ेंगे.

श्याम संपन्न व्यक्ति थे. पर वे और उन की पत्नी नीता घर में कड़ा अनुशासन रखते थे. वह अनुशासन गौरिका को रास नहीं आया और मामी की रोकटोक से तंग आ कर उस ने शीघ्र ही अलग फ्लैट ले लिया.

नभेश यह सुनते ही भड़क उठे थे और श्यामला को तुरंत बेटी के साथ रहने भेज दिया था. पर श्यामला 4 दिनों में ही ऊब गई थीं. गौरिका सुबह 9 बजे घर से निकलती तो फिर रात 8 बजे तक ही घर लौटती. घर में रहती भी तो या तो टीवी में व्यस्त रहती या फिर लैपटौप में. श्यामला का वश चलता तो वे कब की लौट जातीं पर नभेश की आज्ञा का उल्लंघन कर के वे नया बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती थीं.

श्यामला न जाने कितनी देर अपने ही विचारों में खोई रहतीं कि तभी

गौरिका की आवाज ने उन्हें चौंका दिया, ‘‘मां, कहां खोई हो. चलो खाना खा लें.’’

‘‘उफ, तो तुम्हारी नींद पूरी हो गई? अपनी मां से बात करने का तो तुम्हें समय ही नहीं मिलता,’’ श्यामला तीखे स्वर में बोलीं.

‘‘मम्मी, नाराज हो गईं क्या?’’ कह गौरिका ने बड़े लाड़ से मां के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नाराज होने वाली मैं होती कौन हूं?’’

‘‘आप को नाराज होने का पूरा अधिकार है पर नाराज होने का कोई कारण भी तो हो.’’

‘‘मैं ने कहा था कि नीता भाभी का फोन आया था. पर तुम ने तो पलट कर उत्तर देना भी जरूरी नहीं सम झा.’’

‘‘मैं ने सुना था मां. पर उस में उत्तर देने जैसा क्या था? मैं भलीभांति जानती हूं कि नीता मामी ने क्या कहा होगा.’’

‘‘अच्छा बड़ी अंतर्यामी हो गई हो तुम. तो तुम्हीं बता दो क्या कहा था उन्होंने?’’ श्यामला चिहुंक उठीं.

‘‘मेरी बुराइयों का पिटारा खोल दिया होगा और क्या. मैं आप को सच बताऊं? उन के घर में 6 माह मैं ने कैसे बिताए हैं केवल मैं ही जानती हूं. मु झे तो उन के बच्चों अशीम और आभा पर दया आती है. इतना अनुशासन किस काम का कि दम घुटने लगे,’’ गौरिका एक ही सांस में बोल गई.

‘‘उन्होंने तो तुम्हारा नाम तक नहीं लिया बुराईभलाई की कौन कहे. वे तो बस यही कहती रहीं कि बिना मिले मत चली जाना.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं है कहीं आनेजाने की. वे बड़े, धनीमानी होंगे तो अपने लिए, अब आप को उन का रोब सहने की कोई जरूरत नहीं है. हम उन का दिया नहीं खाते. अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही है गौरिका? माना तुम अब अपने पैरों पर खड़ी हो, अच्छा वेतन ले रही हो पर इस का अर्थ यह तो नहीं कि हम अपने सगेसंबंधियों से मुंह फेर लें और वह भी श्याम भैया और नीता भाभी जैसे लोगों से, जिन के हम पर अनगिनत उपकार हैं?’’

‘‘ठीक है, आप को जाना है तो जाओ, मेरे पास समय नहीं है. आप जब कहें मैं आप को उन के यहां छोड़ दूंगी.’’

‘‘अपने पांव धरती पर रखना सीख बेटी. पढ़ेलिखे लोगों को क्या ऐसा व्यवहार शोभा देता है?’’ श्यामला ने सम झाया.

‘‘आप लोगों के कहने से मैं उन के यहां रहने को तैयार हो गई थी. यों मैं ने कभी स्वयं को उन पर बो झ नहीं बनने दिया पर अब नहीं. उन की रोकटोक से तो मेरा दम घुटने लगा था,’’ गौरिका ने अपनी असमर्थता जताई.

‘‘ठीक है, जैसी तेरी मरजी. कल औफिस जाते समय मु झे छोड़ देना और लौटते समय ले लेना. वैसे भी दिन भर अकेले बैठे मन ऊब जाता है,’’ श्यामला ने बात समाप्त की.

अगले दिन श्यामला श्याम के यहां पहुंचीं तो पतिपत्नी दोनों ने बड़ी गर्मजोशी

से स्वागत किया. बहुत जोर डालने पर गौरिका अंदर तक आई और समय न होने का बहाना कर लौट गई.

‘‘जिस दिन से यहां से गई है आज सूरत दिखाई है, तुम्हारी बेटी ने,’’ नीता ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘उस की ओर से मैं क्षमा मांगती हूं. आजकल के बच्चों को तो तुम जानती ही हो, वे किसी की सुनते कहां हैं. पर मेरे मन में तुम दोनों के लिए अथाह श्रद्धा है,’’ श्यामला ने हाथ जोड़े.

‘‘क्षमायाचना मांगने का समय नहीं है श्यामला, सतर्क हो जाने का समय है. मैं किसी के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता. पर तुम्हें बरबाद होते भी तो नहीं देख सकता.’’

‘‘क्या कह रहे हो भैया? मैं कुछ सम झी नहीं?’’ श्यामला का मन किसी अनजानी आशंका से धड़क उठा था.

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