तबादला: उसे कौनसा दंश सहना पड़ा

‘‘इन से मिलिए, यह मेरे विभाग के वरिष्ठ अफसर राजकुमारजी हैं. जब से यह आए हैं स्वास्थ्य विभाग का कामकाज बहुत तेजी से हो रहा है. किसी भी फाइल को 24 घंटे के अंदर निबटा देते हैं,’’ स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल ने राजकुमार का परिचय अपनी पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रामचंद्रजी से कराया.

रामचंद्र ने एक उड़ती नजर राजकुमार पर डाली और बोले, ‘‘आप के विभाग में मेरे इलाके के कई डाक्टर हैं जिन के बारे में मुझे आप से बात करनी है. मैं अपने सचिव को बता दूंगा. वह आप से मिल लेगा. आप जरा उन पर ध्यान दीजिएगा.’’

राजकुमार का अधिकारी वर्ग में अच्छा नाम था. वह केवल कार्यकुशल ही नहीं थे बल्कि फैसले भी समझदारी के साथ लेते थे. फाइलों को दबा कर रखना उन के उसूल के खिलाफ था. फैसला किस के हक में हो रहा है, इस बात पर वह ज्यादा माथापच्ची नहीं करते थे. हां, किसी के साथ पक्षपात नहीं करते थे चूंकि दबंग व्यक्तित्व के थे. इसलिए राजनीतिक दखल को सहन नहीं करते थे. आम व्यक्ति उन की कार्य प्रणाली से संतुष्ट था.

मोहनलाल पहली बार मंत्री बने थे. उन्हें राजकुमार की कार्यशैली का अनुभव नहीं था. उन्होंने जो फाइलों में देखा या दूसरे अधिकारियों व आम लोगों से सुना, उसी के आधार पर मंत्रीजी राजकुमार से बेहद प्रभावित थे. यह और बात है कि मंत्री आमतौर पर जो चाहते हैं वही करवाने की अपने अधिकारियों से उम्मीद करते हैं, चाहे वह नियम के खिलाफ ही क्यों न हो.

मंत्री रामचंद्र के सचिव मुरली मनोहर ने राजकुमार से फोन पर संपर्क किया और बोले, ‘‘कहो भाई, कैसा चल रहा है तुम्हारे विभाग का काम? मेरे विभाग के मंत्री रामचंद्र तुम्हारी बड़ी तारीफ कर रहे थे. उन के इलाके के कुछ डाक्टर 4-5 साल पहले दुबई नौकरी करने चले गए थे. लगता है जाने से पहले उन्होंने सरकार से कोई मंजूरी नहीं ली थी और वहां नौकरी कर ली थी. अब वे पैसा कमा कर भारत लौट आए हैं. वह इस गैरहाजिरी के समय को छुट्टी मनवा कर वापस नौकरी पर आना चाहते हैं. उन सब की फाइलें तुम्हारे पास हैं, क्या विचार है? मैं मंत्रीजी से क्या कहूं?’’

राजकुमार ने शांति से मगर दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘ऐसे डाक्टरों की तादाद बहुत ज्यादा है और इस बात को उन्होंने मौखिक रूप से स्वीकार भी किया है, लेकिन अपने लिखित पत्र में मातापिता की लंबी बीमारी या उन के देहांत का बहाना बना कर छुट्टी मंजूर करने की प्रार्थना की है. समस्या यह है कि उन की गैरहाजिरी के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे डाक्टरों की नियुक्ति कर दी थी. अब उन्हें हटा कर इन्हें वापस लेने का कोई औचित्य नहीं है. ऐसे डाक्टरों पर विभागीय जांच भी चल रही है. ऐसे में इन्हें वापस नौकरी पर लेना मुमकिन नहीं है. मेरी स्वास्थ्य मंत्री से इस बारे में बात हुई है. आप अपने मंत्री को हमारी इस बातचीत से अवगत करा सकते हैं.’’

स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल को जब इस बात का पता चला तो वह तिलमिला उठे. फौरन राजकुमार को बुला कर कहने लगे, ‘‘आप मंत्री रामचंद्रजी के बारे में कुछ जानते भी हैं. वह मेरे आराध्य हैं. उन्हीं की मदद से मैं मंत्री बन पाया हूं. यदि उन का यह छोटा सा काम नहीं हुआ तो वह मुझ से नाराज हो जाएंगे. हो सकता है कि वह मुख्यमंत्री तक इस विषय को ले जाएं और मुझे मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ जाए. आप इतनी सख्ती न करें तो अच्छा होगा.’’

राजकुमार गंभीर हो कर बोले, ‘‘आप इस विभाग के मंत्री हैं. हालात की गंभीरता को समझने की कोशिश करें. हमारे दिमाग को कुछ डाक्टर समझते हैं कि वह कैसा भी अनैतिक कार्य क्यों न करें, उन पर कोई काररवाई नहीं हो सकती क्योंकि उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त है.

‘‘अंधेरगर्दी मची हुई है. कई डाक्टर अस्पताल से गायब रह कर अपनी निजी प्रैक्टिस करते हैं तो कुछ बिना अनुमति लिए विदेशों में नौकरी करते हैं. और फिर अचानक वापस आ कर अपनी बहाली की बात धड़ल्ले से करते हैं. मैं इस विषय पर एक नोट तैयार कर देता हूं. आप उसे कैबिनेट में चर्चा के लिए रख दीजिए. मुख्यमंत्रीजी जो फैसला करेंगे उसे हम लागू कर देंगे. मेरे विचार में यही इस समस्या का सही हल होगा.’’

इस के बाद मंत्रीजी चुप्पी साध गए.

कुछ ही दिनों में मुख्यमंत्री का फैसला फाइल पर आ गया. वह राजकुमार के तर्क से सहमत थे. स्वास्थ्य मंत्री ने भी इस समस्या को आगे न खींचने में ही अपनी भलाई समझी.

विभाग में डाक्टरों के 1 हजार खाली पड़े पदों को भरने का सरकारी आदेश आया. मंत्रीजी का पी.ए. बड़ा घाघ था. उस ने उन्हें समझाया, ‘‘सर, अपने आराध्य रामचंद्रजी तथा दूसरे मंत्रिगण को खुश करने का यह बड़ा अच्छा मौका है. आप एक कमेटी का निर्माण कर के सचिव राजकुमार को उस का चेयरमैन बना दीजिए तथा सभी मंत्रिगण की सिफारिश पर डाक्टरों की भरती कीजिए. ऐसा पहले भी किया जा चुका है.’’

पी.ए. के सुझाव पर मंत्रीजी बेहद खुश हुए. उन्होंने फौरन राजकुमार से बातचीत करते हुए कहा, ‘‘आप ने डाक्टरों की भरती के लिए आया सरकारी आदेश जरूर देखा होगा. मैं चाहता हूं कि एक कमेटी बना कर आप को उस का चेयरमैन बनाया जाए. मैं ने सभी कैबिनेट स्तर के मंत्रियों के लिए 30-30 डाक्टरों का कोटा तय किया है. आप उन की सिफारिश पर उन्हें बतौर दैनिक वेतन पर नियुक्त करें तो सभी मंत्री संतुष्ट हो जाएंगे. कुछ भरतियां विरोधी पक्ष के नेताओं की सिफारिश पर भी की जा सकती हैं ताकि वे सदन में हंगामा खड़ा न करें. आशा है कि इस बार आप मेरे इस सुझाव के अनुसार ही कार्य करेंगे.’’

राजकुमार थोड़ी देर सोचते रहे. फिर बोले, ‘‘मान्यवर, आप का सुझाव सरकारी नियमों के खिलाफ है. कमेटी की रचना तथा मुझे चेयरमैन बनाने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है. सरकार के लिखित आदेश मौजूद हैं जिस के तहत डाक्टरों की दैनिक वेतन पर भरती नहीं की जा सकती. डाक्टरों की भरती का अधिकार केवल लोकसेवा आयोग को है. मेरे पास सरकारी आदेश उपलब्ध हैं. मैं आप को फाइल भेज दूंगा. आप कृपया पढ़ लीजिएगा.’’

मंत्रीजी बहुत निराश हुए. उन्होंने सभी बड़े मंत्रियों को उन के सुझाए डाक्टरों की नियुक्ति का वादा कर दिया था. अब क्या होगा? यह सवाल उन के सामने खड़ा था और इसी के साथ जुड़ा था उन की इज्जत का सवाल.

पी.ए. ने एक बार फिर उन्हें बहकाया और कहा, ‘‘सर, आप की आज्ञा सरकारी आदेशों के ऊपर है. आप सार्वजनिक हित में कोई भी आदेश दे सकते हैं. सचिव को उस का पालन करना ही पड़ेगा. आप इतना निराश न हों. आप फाइल पर आदेश दे दीजिए. मैं एक नोट तैयार कर देता हूं.’’

मंत्रीजी ने वैसा ही किया. राजकुमार ने अपने सेवाकाल में ऐसे कई आदेश देखे थे. वह पी.ए. की शरारत को समझ गए और मंत्रीजी से मिल कर उन्हें सुझाया, ‘‘सर, इस फाइल को मैं अपनी टिप्पणी सहित कानून विभाग को भेज देता हूं. उन की सलाह पर ही आगे की काररवाई करना उचित होगा.’’

यह पहली बार था कि राजकुमार चाहते हुए भी फाइल का निबटारा जल्दी नहीं कर पा रहे थे. कुछ अरसे बाद कानून विभाग के सचिव की टिप्पणी सहित फाइल वापस आ गई. राजकुमार के तर्क से उन्होंने सहमति जाहिर की थी. एक बार फिर वह अपने मंत्री से मिले. उन्हें फाइल दिखाई और सुझाव दिया, ‘‘कानून विभाग के सचिव ने अपनी टिप्पणी फाइल पर लिखित रूप में दी है. इस के खिलाफ कार्य करने पर विधानसभा में हंगामा खड़ा हो सकता है. विरोधी पक्ष वाले इस तरह के नियम के विरुद्ध काररवाई की भनक पड़ते ही आप के लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. मेरा सुझाव है कि नियमों के दायरे में ही डाक्टरों की भरती करें तो अच्छा होगा.’’

मंत्रीजी नाराज थे, वह बोले, ‘‘आप इस फाइल को कुछ दिनों के लिए रोक लें. मैं मुख्यमंत्री से बात कर के आप को बताऊंगा कि क्या करना है.’’

एक माह से ज्यादा समय बीत गया पर मंत्रीजी ने न तो मुख्यमंत्री से कोई बात की और न ही अपने सचिव को कोई आदेश दिया. राजकुमार के याद दिलाने पर कि भरती का सूचनापत्र सरकारी आदेश के अनुसार अगले एक माह के अंदर निकलना चाहिए वरना समय बढ़ाने के लिए फिर सरकार को भेजना पड़ेगा. विरोधी पक्ष इस तरह की अनियमितताओं की खोजखबर रखता है. अच्छा होगा कि हम अगली काररवाई समयावली के मुताबिक कर लें. मंत्रीजी कुछ नहीं बोले.

राजकुमार मुख्य सचिव से मिलने गए. पूरी बात सुनने पर वह बोले, ‘‘कानून विभाग के सचिव की टिप्पणी फाइल पर है. आप के पास भरती करने के पूरे अधिकार हैं. मंत्रीजी के आदेश की कोई जरूरत नहीं है. यह सरकार का आदेश है और इस पर आप के मंत्री की भी परोक्ष रूप से सहमति कैबिनेट में ली जा चुकी है. वह इसे लटका नहीं सकते. आप आगे की काररवाई कीजिए.’’

लोकसेवा आयोग का डाक्टरों की भरती के लिए सूचनापत्र गजट में छप गया. पी.ए. ने मंत्रीजी को अवगत कराया, ‘‘सर, आप की मंजूरी के बिना सचिव ने लोकसेवा आयोग को भरती का निर्देश जारी कर दिया है. यह आप के सम्मान का सवाल है.’’

मंत्रीजी गुस्से से लालपीले हो गए. अपने पी.ए. को फाइल लाने को कहा. राजकुमार ने मंत्रीजी से फोन पर पूछा, ‘‘क्या मैं आ कर आप को पूरी स्थिति से अवगत कराऊं?’’

मंत्री मोहनलाल तो गुस्से से फड़फड़ा रहे थे. वह रूखे स्वर में बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. मैं स्वयं देख लूंगा…’’ उन्होंने अपने वरिष्ठ मंत्रियों से सलाह ली. मालूम नहीं उन्होंने क्या सुझाव दिया पर 2 दिन के बाद फाइल वापस राजकुमार की मेज पर थी. उस पर मंत्रीजी ने अपनी सहमतिस्वरूप हस्ताक्षर कर दिए थे.

मंत्री मोहनलाल मुख्यमंत्री से जा कर मिले. अगले ही दिन राजकुमार अपने पद का कार्यभार एक दूसरे अफसर को दे रहे थे. यह उन की 30 साल के सेवाकाल का 27वां तबादला था.

कशमकश: क्या बेवफा था मानव

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जेठानी मुझे परिवार से अलग होने का दबाव डाल रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय स्त्री हूं. मेरे विवाह को 2 साल हुए हैं. विवाह के बाद पता चला है कि मेरे पति को साइकोसिस है. वे 1 साल से इस की दवा भी ले रहे हैं. उन का मेरे प्रति व्यवहार मिलाजुला है. कभी तो अच्छी तरह पेश आते हैं, तो कभीकभी छोटीछोटी बातों पर भी बहुत गुस्सा करते हैं. घर वालों से मेरी बिना वजह बुराई करते हैं और मुझे पलपल अपमानित करते रहते हैं. मुझे हर समय घर में बंद कर के रखते हैं. किसी से बात नहीं करने देते क्योंकि बिना वजह मुझ पर शक करते हैं. इस रोजाना के झगड़ेफसाद से छुटकारा पाने के लिए मेरी जेठानी मुझ पर दबाव डाल रही हैं कि मैं उन से अलग रहूं. पर मेरे पति 2 दिन भी मेरे बिना नहीं रह पाते. बताएं मुझे इन हालात में क्या करना चाहिए?

जवाब-

पति के मनोविकार के कारण आप जिस समस्या से आ घिरी हैं उस का कोई आसान समाधान नहीं है. उन के लक्षणों के बारे में जो जानकारी आप ने दी है उस से यही पता चलता है कि उन्हें नियमित साइक्रिएटिक इलाज की जरूरत है. दवा में फेरबदल कर साइकोसिस के लगभग 80 फीसदी मामलों में आराम लाया जा सकता है, पर सचाई यह भी है कि  दवा लेने के बावजूद न तो हर किसी का रोग काबू में आ पाता है और न ही दवा से आराम स्थाई होता है. साइकोसिस के रोगी की संभाल के लिए सभी परिवार वालों का पूरा सहयोग भी बहुत जरूरी होता है. रोग की बाबत बेहतर समझ विकसित करने के लिए परिवार वालों का फैमिली थेरैपी और गु्रप थेरैपी में सम्मिलित होना भी उपयोगी साबित हो सकता है. अच्छा होगा कि आप इस पूरी स्थिति पर अपने मातापिता, सासससुर से खुल कर बातचीत करें. स्थिति की गंभीरता को ठीकठीक समझने के लिए उस साइकिएट्रिस्ट को भी इस बातचीत में शामिल करना ठीक होगा जिसे आप के पति के रोग के बारे में ठीक से जानकारी हो. उस के बाद सभी चीजों को अच्छी तरह समझ लेने के बाद ही कोई निर्णय लें. आप उचित समझें तो अभी आप के सामने तलाक का भी विकल्प खुला है. अगर कोई स्त्री या पुरुष विवाह के पहले से किसी गंभीर मनोविकार से पीडि़त हो और विवाह तक यह बात दूसरे पक्ष से छिपाई गई हो, तो भारतीय कानून में इस आधार पर तलाक मिलने का साफ प्रावधान है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Bigg Boss 17 में एंट्री लेंगे हर्षद चोपड़ा-प्रणाली राठौड, YRKKH में आया लीप

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में एक्टर्स हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौड लीड रोल निभा रहे है. दोनों ही सीरियल में अक्षरा और अभिमन्यु के किरदार में टीवी पर छा गए है. इस जोड़ी को फैंस काफी पसंद करते है. इन दिनों खबर आ रही है कि हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौड जल्द ही सीरियल को छोड़ सकते है और बिग बॉस 17 के हिस्सा बन सकते है. वहीं ये दावा किया जा रहा सीरियल में जल्द ही लीप आने वाला है.

जय सोनी को भी किया गया है अप्रोच

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में नजर आए जय सोनी को कॉन्ट्रोवर्शियल शो बिग बॉस 17 के लिए अप्रोच किया गया है. जय सीरियल में अभिनव का रोल निभा रहे थे, जिसकी मौत के बाद शो से चैप्टर क्लॉज हो गया है. दरअसल, जय सोनी इस समय भी सीरियल की शूटिंग नहीं कर रहे है. कई फेन पेज के मुताबिक, जय सोनी को बिग बॉस के मेकर्स शो में लाना चाहते है. हालांकि मेकर्स और भी एक्टर्स को अप्रोच कर रहे है. इसी वजह से अंदाजा लगाया जा रहा है कि हर्षद और प्रणाली के पास भी मेकर्स अप्रोच कर सकते है.

 

दोनों अगर ये रिश्ता क्या कहलाता है को अलविदा कहेंगे, तो आने वाले दिनों में फ्री रहेंगे. इस वजह से वह बिग बॉस के ऑफर के बारे में सोच सकते हैं.

रिलेशनशिप की उड़ चुकी है अफवाह

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में पति-पत्नी का रोल निभाने वाले हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौड की असल जिंदगी में दोनों का नाम एक साथ जोड़ा जाता है. कई रिपोर्ट्स में दावा भी किया गया है कि दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे है. लेकिन, इन दोनों ने इसे अफवाहों का झूठ बताया था. प्रणाली नें एक बार हर्षद के साथ इंस्टा लाइव भी किया था जिसमें बताया कि वह दोनों दोस्त है.

KBC के मंच पर पहुंचे कॉमेडिन जाकिर खान, बिग बी को सुनाई दिल छूने वाली शायरी

लोकप्रिय गेम शो ‘कौन बनेगा करोड़पति 15’ में 25 सितंबर के एपिसोड में दो खास मेहमान होंगे. स्टैंड-अप कॉमेडियन जाकिर खान और प्रसिद्ध यूट्यूबर खान सर एपिसोड में विशेष अतिथि के रूप में होस्ट अमिताभ बच्चन के साथ शामिल होंगे.

जाकिर खान ने बिग बी को समझाया ‘सख्त लौंडा’ क्या है

सोनी टीवी द्वारा जारी हालिया प्रोमो में, जाकिर और खान सर धमाकेदार एंट्री करते हैं और हॉट सीट पर कब्जा कर लेते हैं. दर्शकों में से कई लोग खड़े होकर कॉमेडिन के उनके फेमस वन लाइनर ‘सख्त लौंडा’ के साथ स्वागत करते हैं. यह देखकर, अमिताभ बच्चन पूछते हैं, “ये क्या है”, और जाकिर जवाब देते हैं “सर ये एक आंदोलन है. जैसी आपकी लाइन है कि हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहां से शुरू होती है, तो वहां वह लाइन ख़त्म होती है, वहां हम जैसे लोग स्टार्ट होते हैं.”

 

जाकिर ने सुनाई दिल छूने वाली शायरी

प्रोमो में दिखाया गया है कि कॉमेडिन जाकिर खान बिग बी की एक रिक्वेस्ट पर सभी माताओं के लिए शायरी डेडीकेट करते है. अमित जी कहते है हमारे लिए अगर आप एक छोटा सा परफॉर्मेंस कर देंगे तो…आपकी बड़ी कृपा होगी. जाकिर कहते हैं, ‘कि खोया मैं जिस भी राह, वो मंजिल पर जा खुली …दी रुसवइयां मैंने, पर मोहब्बत मुझे मिली…और बद्दुआ ने जब-जब काटा है मेरा रास्ता…मुझसे भी पहले मेरी मां की दुआएं निकलीं.’

 

केबीसी को मिला है दूसरा करोड़पति

हाल ही में केबीसी 15 को सीजन का दूसरा करोड़पति मिला. यूपी के आज़मगढ़ के एक छोटे से शहर के रहने वाले जसनील कुमार 1 करोड़ रुपये घर ले गए. उन्होंने 7 करोड़ रुपये का सवाल खेला लेकिन सही अनुमान लगाने के बावजूद खेल छोड़ दिया. हालांकि, रकम जीतकर वह बेहद खुश थे. शो के दौरान बिग बी ने उन्हें एक जैकेट भी गिफ्ट किया था. वहीं पंजाब के जसकरण ने 1 करोड़ रुपये जीते थे. बता दें, केबीसी का नया प्रोमो तेजी से वायरल हो रहा है.

हमसफर: भाग 3- प्रिया रविरंजन से दूर क्यों चली गई

मौसम में बदलाव आया. वसंत विदाई पर था. टेसू के फूलों से प्रकृति सिंदूरी हो गई थी. मैं जब भी रविरंजन को याद करती, दिल में अंगारे दहक जाते. रवि कह के गए थे कि जब भी मेरी जरूरत हो कहना, मैं चला आऊंगा पर आए नहीं थे. गरम हवा के थपेड़े

तन को   झुलसाने लगे थे. मैं ने लंबी छुट्टी पर जाने का मन बना लिया. फोन से मां को सूचित भी कर दिया.

बहुत दिनों बाद मां के पास पहुंची तो मु  झे लगा जैसे मेरा बचपन लौट आया है. अकसर मां की गोद में सिर रख कर लेटी रहती. मां भी दुलार से कहतीं कि बस, तेरी एक नहीं सुनूंगी. कई घरवर देख रखे हैं. अब भी चेत जा. अपना कहने वाला कोई तो होना चाहिए, मैं और कितने दिन की हूं.

उत्तर में मैं ने मां को साफसाफ कह दिया कि मां मेरी जिंदगी में दखल मत दो. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. अभी वर्तमान में जी रही हूं. कल की कल देखी जाएगी. और हां मां, मेरी कुछ कुलीग मसूरी जा रही हैं छुट्टियां मनाने, उन के साथ मैं ने भी जाने का प्रोग्राम बना लिया है. बस 2 दिन बाद ही जाना है.

मसूरी में मैं ने एक कौटेज बुक करा लिया था. दरअसल, मैं अपना मन शांत करने के लिए एकांत में कुछ दिन बिताना चाहती थी. मां से मैं ने   झूठ ही कह दिया था कि मेरी फ्रैंड्स मेरे साथ जा रही हैं. सच तो यह था कि रवि द्वारा दी गई चोट ने मु  झे बड़ी पीड़ा पहुंचाई थी. एकांत शायद मु  झे राहत दे यह सोचा था मैं ने, इसीलिए अकेले मसूरी चली आई थी.

मसूरी में सैलानियों की टोलियां थीं और मैं बिलकुल अकेली अलगथलग घूमती. एक दिन अचानक एक 14-15 साल की किशोरी मेरे सामने आ खड़ी हुई. नमस्ते की और बोली, ‘‘आप शायद अकेली हैं. हमारी कंपनी लेना चाहेंगी? मैं और मेरे पापा हैं, हमें खुशी होगी आप के साथ. वे आ रहे हैं मेरे पापा.’’

फिर हमारा परिचय हुआ और लगभग रोज हमारे प्रोग्राम साथ बनने लगे.

हम अपनेअपने कौटेज से चल कर नियत समय पर, नियत स्थान पर पहुंच जाते. पर एक दिन मेरा मन निकलने को नहीं किया क्योंकि मेरा माथा तप रहा था. मैं अवचेतनावस्था में सोती रही.

शाम गहरा गई थी. ज्वर का जोर कम हुआ तब मैं ने आंखें खोलीं. देखा कि राजीव और उन की बेटी दोनों मेरे पास बैठे हैं. लड़की मेरे सिरहाने बैठी मेरा सिर दबा रही थी.

‘‘यह अचानक आप को क्या हो गया मिस प्रिया? हम तो चिंतित हो उठे थे. अब आप

कैसी हैं? मेरे पास दवा थी मैं ले आया हूं,

नीलू बेटा चाय बनाओ और आंटी को दवा दो,’’ राजीव बोले.

मैं ने बच्ची की ओर देखा. मासूम सा चिंतित चेहरा. मेरे ज्वर ने दोनों को उदास कर दिया था. मैं द्रवित हो उठी.

मैं सोचने लगी कितना अंतर है रवि और राजीव में. एक बरसाती नदी सा चंचल, दूसरा सागर सा शांत. मैं ने सोच पर लगाम लगाई. मैं इस अकेलेपन से डरने क्यों लगी हूं? मैं सदा यही सोचा करती कि रवि के अलावा मेरे जीवन में अब किसी पुरुष की जगह नहीं. पर राजीव… जागजाग कर दवा देना, कभी दूध गरम करना कभी पानी उबालना. ये नहीं होते तो इस अनजान जगह में बीमारी के बीच कौन होता मेरे पास?

मैं बहला रही थी अपनेआप को, भाग रही थी खुद से दूर. शायद सोच में डूब गई थी कि राजीव ने टोका, ‘‘क्या सोच रही हैं प्रियाजी?’’

‘‘आप के विषय में, आप नहीं जानते आप ने मु  झे क्या दिया है. अकेलेपन और अंतर्द्वंद्व के भयावह दौर से गुजर रही हूं मैं.’’

‘‘देखिए प्रियाजी, आप बिलकुल फिक्र न करें. आप के ठीक हो जाने के बाद ही हम यहां से जाएंगे. मेरी बच्ची नीलू को आप ने ममता भरा जो प्यार दिया है, वह उसे इस से पहले नहीं मिला. वह चाह रही है कि आप सदा उस के साथ रहें. जब उस ने अपनी मां को खोया, तब बच्ची थी मात्र 2 साल की. बाकी मेरे विषय में आप जान चुकी हैं और मैं आप के. आप सम  झ रही होंगी, मैं क्या कहना चाह रहा हूं?’’

‘‘मैं सम  झ रही हूं, राजीवजी पर अभी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं. इत्तफाक से हम दोनों का कार्यस्थल दिल्ली है. मैं बाद में आप से बात करती हूं.’’

छुट्टियां पूरी होने पर मैं मां के पास न लौट कर सीधे दिल्ली पहुंची.

घर इतने दिनों से बंद था. खोला तो लगा कि एक अनजानी रिक्तता हर तरफ पसरी थी. औफिस पहुंची तो वहां सन्नाटे भरी गहमागहमी थी. ज्ञात हुआ कि मिस सुजान की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया. सुजान मेरे ही साथ काम करती थी. मैं स्वयं अपनेआप से उबर नहीं पा रही थी फिर भी सुजान को देखने अस्पताल पहुंची.

उस के आसपास अपना कहने वाला कोई नहीं था. मांबाप की मौत के बाद वह बिलकुल अकेली थी. उस की मानसिकता मेरे जैसी ही थी. अपने अहं, अपनी स्वतंत्रता की चाह में उस ने विवाह नहीं किया था. दिल की बातों को वह किसी से शेयर नहीं कर पाती थी और आज उस का परिणाम उस के सामने था. लोग कह रहे थे कि इसी कारण वह डिप्रैशन और मानसिक बीमारी की शिकार हो गई.

शायद मेरी मां इसी कारण मेरी चिंता करती रहती हैं, यह सोच कर मैं ऐसी दुखद और त्रासद स्थिति के लिए भयभीत हो उठी.

आगे का पूरा सप्ताह मैं ने ऊहापोह की स्थिति में गुजारा. मैं दोराहे पर खड़ी थी. कोई फैसला लेना कठिन हो रहा था. जीवन की

नौका अथाह जल में घूमती अपनी दिशा खो बैठी थी. किनारा उस की पहुंच से दूर होता जा रहा था. कभीकभी लगता कि मां का कहना मान लूं. पर क्या मां राजीव जैसे व्यक्ति से शादी करने की आज्ञा देंगी, जिस की एक बेटी है और जो विधुर है?

काफी सोचविचार के उपरांत मैं ने राजीव को फोन लगाया क्योंकि उन का और उन की बेटी का प्रस्ताव ही मु  झे उचित लगा. मैं ने फोन पर बस इतना ही कहा, ‘‘इस अकेलेपन में मु  झे आप की जरूरत है.’’

शाम   झुक आई थी. मैं ने कमरे की खिड़की खोली तो ठंडी हवा के   झोंके के साथ देखा कि राजीव की कार मेरे घर के नीचे आ लगी थी और वे अपनी बेटी के साथ मुख्य द्वार से प्रवेश कर रहे थे. मैं खुशी से झूम उठी. मु  झे लगा कि यही सच है, यही सृष्टि का नियम है. मां को बताना ही होगा, उन्हें मानना ही होगा.

खेल: दिव्या ने रचा ऐसा प्रपंच

आज से 6-7 साल पहले जब पहली बार तुम्हारा फोन आया था तब भी मैं नहीं समझ पाया था कि तुम खेल खेलने में इतनी प्रवीण होगी या खेल खेलना तुम्हें बहुत अच्छा लगता होगा. मैं अपनी बात बताऊं तो वौलीबौल छोड़ कर और कोई खेल मुझे कभी नहीं आया. यहां तक कि बचपन में गुल्लीडंडा, आइसपाइस या चोरसिपाही में मैं बहुत फिसड्डी माना जाता था.

फिर अन्य खेलों की तो बात ही छोड़ दीजिए कुश्ती, क्रिकेट, हौकी, कूद, अखाड़ा आदि. वौलीबौल भी सिर्फ 3 साल स्कूल के दिनों में छठीं, 7वीं और 8वीं में था, देवीपाटन जूनियर हाईस्कूल में.उन दिनों स्कूल में नईनई अंतर्क्षेत्रीय वौलीबौल प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ था और पता नहीं कैसे मुझे स्कूल की टीम के लिए चुन लिया गया और उस टीम में मैं 3 साल रहा.

आगे चल कर पत्रकारिता में खेलों का अपना शौक मैं ने खूब निकाला. मेरा खयाल है कि खेलों पर मैं ने जितने लेख लिखे, उतने किसी और विषय पर नहीं. तकरीबन सारे ही खेलों पर मेरी कलम चली. ऐसी चली कि पाठकों के साथ अखबारों के लोग भी मुझे कोई औलराउंडर खेलविशेषज्ञ समझते थे. पर तुम तो मुझ से भी बड़ी खेल विशेषज्ञा निकली.

तुम्हें रिश्तों का खेल खेलने में महारत हासिल है. 6-7 साल पहले जब पहली बार तुम ने फोन किया था तो मैं किसी कन्या की आवाज सुन कर अतिरिक्त सावधान हो गया था.

‘हैलो सर, मेरा नाम दिव्या है, दिव्या शाह. अहमदाबाद से बोल रही हूं. आप का लिखा हुआ हमेशा पढ़ती रहती हूं.’‘जी, दिव्याजी, नमस्कार, मुझे बहुत अच्छा लगा आप से बात कर. कहिए मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं.’जी सर, सेवावेवा कुछ नहीं. मैं आप की फैन हूं. मैं ने फेसबुक से आप का नंबर निकाला. मेरा मन हुआ कि आप से बात की जाए.‘थैंक्यूजी. आप क्या करती हैं, दिव्याजी?’‘सर, मैं कुछ नहीं करती. नौकरी खोज रही हूं.

वैसे मैं ने एमए किया है समाजशास्त्र में. मेरी रुचि साहित्य में है.’‘दिव्याजी, बहुत अच्छा लगा. हम लोग बात करते रहेंगे,’ यह कह कर मैं ने फोन काट दिया. मुझे फोन पर तुम्हारी आवाज की गर्मजोशी, तुम्हारी बात करने की शैली बहुत अच्छी लगी. पर मैं लड़कियों, महिलाओं के मामले में थोड़ा संकोची हूं. डरपोक भी कह सकते हैं. उस का कारण यह है कि मुझे थोड़ा डर भी लगा रहता है कि क्या मालूम कब, कौन मेरी लोकप्रियता से जल कर स्टिंग औपरेशन पर न उतर आए. इसलिए एक सीमा के बाद मैं लड़कियों व महिलाओं से थोड़ी दूरी बना कर चलता हूं.

पर तुम्हारी आवाज की आत्मीयता से मेरे सारे सिद्धांत ढह गए. दूरी बना कर चलने की सोच पर ताला पड़ गया. उस दिन के बाद तुम से अकसर फोन पर बातें होने लगीं. दुनियाजहान की बातें. साहित्य और समाज की बातें. उसी दौरान तुम ने अपने नाना के बारे में बताया था. तुम्हारे नानाजी द्वारका में कोई बहुत बड़े महंत थे.

तुम्हारा उन से इमोशनल लगाव था. तुम्हारी बातें मेरे लिए मदहोश होतीं. उम्र में खासा अंतर होने के बावजूद मैं तुम्हारी ओर आकर्षित होने लगा था. यह आत्मिक आकर्षण था. दोस्ती का आकर्षण. तुम्हारी आवाज मेरे कानों में मिस्री सरीखी घुलती. तुम बोलती तो मानो दिल में घंटियां बज रही हैं. तुम्हारी हंसी संगमरमर पर बारिश की बूंदों के माध्यम से बजती जलतरंग सरीखी होती.

उस के बाद जब मैं अगली बार अपने गृहनगर गांधीनगर गया तो अहमदाबाद स्टेशन पर मेरीतुम्हारी पहली मुलाकात हुई. स्टेशन के सामने का आटो स्टैंड हमारी पहली मुलाकात का मीटिंग पौइंट बना. उसी के पास स्थित चाय की एक टपरी पर हम ने चाय पी. बहुत रद्दी चाय, पर तुम्हारे साथ की वजह से खुशनुमा लग रही थी. वैसे मैं बहुत थका हुआ था.

दिल्ली से अहमदाबाद तक के सफर की थकान थी, पर तुम से मिलने के बाद सारी थकान उतर गई. मैं तरोताजा हो गया. मैं ने जैसा सोचा सम?ा था तुम बिलकुल वैसी ही थी. एकदम सीधीसादी. प्यारी, गुडि़या सरीखी. जैसे मेरे अपने घर की. एकदम मन के करीब की लड़की. मासूम सा ड्रैस सैंस, उस से भी मासूम हावभाव. किशमिशी रंग का सूट.

मैचिंग छोटा सा पर्स. खूबसूरत डिजाइन की चप्पलें. ऊपर से भीने सेंट की फुहार. सचमुच दिलकश. मैं एकटक तुम्हें देखता रह गया. आमनेसामने की मुलाकात में तुम बहुत संकोची और खुद्दार महसूस हुई.कुछ महीने बाद हुई दूसरी मुलाकात में तुम ने बहुत संकोच से    कहा कि सर, मेरे लिए यहीं अहमदाबाद में किसी नौकरी का इंतजाम करवाइए.

मैं ने बोल तो जरूर दिया, पर मैं सोचता रहा कि इतनी कम उम्र में तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है? तुम्हारी घरेलू स्थिति क्या है? इस तरह कौन मां अपनी कम उम्र की बिटिया को नौकरी करने शहर भेज सकती है? कई सवाल मेरे मन में आते रहे, मैं तुम से उन का जवाब नहीं मांग पाया.

सवाल सवाल होते हैं और जवाब जवाब. जब सवाल पसंद आने वाले न हों तो कौन उन का जवाब देना चाहेगा. वैसे मैं ने हाल में तुम से कई सवाल पूछे पर मुझे एक का भी उत्तर नहीं मिला. आज 20 अगस्त को जब मुझे तुम्हारा सारा खेल समझ में आया है तो फिर कटु सवाल कर के क्यों तुम्हें परेशान करूं.मेरे मन में तुम्हारी छवि आज भी एक जहीन, संवेदनशील, बुद्धिमान लड़की की है.

यह छवि तब बनी जब पहली बार तुम से बात हुई थी. फिर हमारे बीच लगातार बातों से इस छवि में इजाफा हुआ. जब हमारी पहली मुलाकात हुई तो यह छवि मजबूत हो गई. हालांकि मैं तुम्हारे लिए चाह कर भी कुछ कर नहीं पाया. कोशिश मैं ने बहुत की पर सफलता नहीं मिली.दूसरी पारी में मैं ने अपनी असफलता को जब सफलता में बदलने का फैसला किया तो मुझे तुम्हारी तरफ से सहयोग नहीं मिला. बस, मैं यही चाहता था कि तुम्हारे प्यार को न समझ पाने की जो गलती मुझ से हुई थी उस का प्रायश्चित्त यही है कि अब मैं तुम्हारी जिंदगी को ढर्रे पर लाऊं. इस में जो तुम्हारा साथ चाहिए वह मुझे प्राप्त नहीं हुआ. बहरहाल, 25 जुलाई को तुम फिर मेरी जिंदगी में एक नए रूप में आ गई.

अचानक, धड़धड़ाते हुए. तेजी से. सुपरसोनिक स्पीड से. यह दूसरी पारी बहुत हंगामाखेज रही. इस ने मेरी दुनिया बदल कर रख दी. मैं ठहरा भावुक इंसान. तुम ने मेरी भावनाओं की नजाकत पकड़ी और मेरे दिल में प्रवेश कर गई.मेरे जीवन में इंद्रधनुष के सभी रंग भरने लगे. मेरे ऊपर तुम्हारा नशा, तुम्हारा जादू छाने लगा. मेरी संवेदनाएं जो कहीं दबी पड़ी थीं उन्हें तुम ने हवा दी और मेरी जिंदगी फूलों सरीखी हो गई. दुनियाजहान के कसमेवादों की एक नई दुनिया खुल गई. हमारेतुम्हारे बीच की भौतिक दूरी का कोई मतलब नहीं रहा. बातों का आकाश मुहब्बत के बादलों से गुलजार होने लगा.

तुम्हारी आवाज बहुत मधुर है और तुम्हें सुर और ताल की सम?ा भी है. तुम जब कोई गीत, कोई गजल, कोई नगमा, कोई नज्म अपनी प्यारी आवाज में गाती तो मैं सबकुछ भूल जाता. रात और दिन का अंतर मिट गया. रानी, जानू, राजा, सोना, बाबू सरीखे शब्द फुसफुसाहटों की मदमाती जमीन पर कानों में उतर कर मिस्री घोलने लगे.

उम्र का बंधन टूट गया. मैं उत्साह के सातवें आसमान पर सवार हो कर तुम्हारी हर बात मानने लगा. तुम जो कहती उसे पूरा करने लगा. मेरी दिनचर्या बदल गई. मैं सपनों के रंगीन संसार में गोते लगाने लगा.क्या कभी सपने भी सच्चे होते हैं? मेरा मानना है कि नहीं. ज्यादा तेजी किसी काम की नहीं होती.

25 जुलाई को शुरू हुई प्रेमकथा 20 अगस्त को अचानक रुक गई. मेरे सपने टूटने लगे. पर मैं ने सहनशीलता का दामन नहीं छोड़ा. मैं गंभीर हो गया था. मैं तो कोई खेल नहीं खेल रहा था. इसलिए मेरा व्यवहार पहले जैसा ही रहा. पर तुम्हारा प्रेम उपेक्षा में बदल गया. कोमल भावनाएं औपचारिक हो गईं. मेरे फोन की तुम उपेक्षा करने लगी.

अपना फोन दिनदिन भर, रातभर बंद करने लगी. बातों में भी बोरियत झलकने लगी. तुम्हारा व्यवहार किसी खेल की ओर इशारा करने लगा.इस उपेक्षा से मेरे अंदर जैसे कोई शीशा सा चटख गया, बिखर गया हो और आवाज भी नहीं हुई हो. मैं टूटे ताड़ सा झक गया. लगा जैसे शरीर की सारी ताकत निचुड़ गई है. मैं विदेह सा हो गया हूं.

डा. सुधाकर मिश्र की एक कविता याद आ गई, इतना दर्द भरा है दिल में, सागर की सीमा घट जाए. जल का हृदय जलज बन कर जब खुशियों में खिलखिल उठता है. मिलने की अभिलाषा ले कर,भंवरे का दिल हिल उठता है. सागर को छूने शशधर की किरणें,भागभाग आती हैं, झमझम कर, चूमचूम कर, पता नहीं क्याक्या गाती हैं.

तुम भी एक गीत यदि गा दो,आधी व्यथा मेरी घट जाए.पर तुम्हारे व्यवहार से लगता है कि मेरी व्यथा कटने वाली नहीं है.अभी जैसा तुम्हारा बरताव है, उस से लगता है कि नहीं कटेगी. यह मेरे लिए पीड़ादायक है कि मेरा सच्चा प्यार खेल का शिकार बन गया है.

मैं तुम्हारी मासूमियत को प्यार करता हूं, दिव्या. पर इस प्यार को किसी खेल का शिकार नहीं बनने दे सकता. लिहाजा, मैं वापस अपनी पुरानी दुनिया में लौट रहा हूं. मुझे पता है कि मेरा मन तुम्हारे पास बारबार लौटना चाहेगा. पर मैं अपने दिल को समझ लूंगा. और हां, जिंदगी के किसी मोड़ पर अगर तुम्हें मेरी जरूरत होगी तो मुझे बेझिझक पुकारना, मैं चला आऊंगा. तुम्हारे संपर्क का तकरीबन एक महीना मुझे हमेशा याद रहेगा. अपना खयाल रखना.

इस फेस्टिव सीजन दिखाएं अपनी क्रिएटिविटी

“आई  तीज बिखेर गई बीज, आई  होली भर लें गई झोली” आप सोच रहें होंगे की इस पंक्ति का क्या अर्थ है तो ठहरिये जरा यह एक कहावत है जो हमारे त्योहारों से जुडी हुई है जी हां जैसे  ही सावन में तीज आती है तो वह अपने साथ ढेर सारे त्योहारों को संग लाती है और होली के त्यौहार तक हिन्दू धर्म में त्योहारों कि जैसे धूम मची रहती है लेकिन होली आती है तब वह अपने साथ सभी त्योहारों को लें जाती है और त्योहारों का यही सिलसिला  चलता रहता है त्यौहार ना सिर्फ हमें ख़ुशी देते है बल्कि एक दूसरे के साथ समय बिताने का मौका भी देते हैं  त्योहारों के आते ही सभी में एक खास उत्साह उमड़ने लगता है ख़ासकर महिलाओं में.

किसी भी त्यौहार से पहले ही उनकी तैयारियां शुरू होने लगती हैं. अब जैसे कि नवरात्रि, करवाचौथ दिवाली जैसे  त्यौहार आने वाले है इन त्योहारों को लेकर जो महिलाओं के मन में उत्साह होता है वह देखते बनता है यानि कि कैसे वो इन त्योहारों पर तैयार होंगी ,क्या वो पहनेगी  ,कैसे वो अपने घर को सजाएंगी, कैसे वो अपना फेस्टिव सीजन सेलिब्रेट करेंगी. तो आज इस लेख में हम आपके लिए लाये है कुछ ऐसे टिप्स जिन से आपकी ड्रेसिंग कि समस्या आपकी पुरानी साड़ी से  ही कम हो सकती है  तो इस फास्टिव सीज़न में अपनाएं ये  ट्रिक्स और और अपनी पुरानी साड़ी  को हैवी या डिजाइनर गोटा वर्क के साथ  दें ये नए लुक.

  1. बनारसी या सिल्क साड़ी

पुरानी बनारसी या सिल्क की साड़ी से आप खूबसूरत लहंगा या फिर इंडो वेस्टर्न स्कर्ट सिलवा सकती है. इस तरह की साड़ी से कलीदार या ए लाइन कट का लहंगा बहुत ही खूबसूरत लगता है इसके साथ में सारी के पल्ले से आप ब्लाउज तैयार करा सकती है या कांट्रेस्ट ब्लाउज भी पहन सकती हैं बनारसी या सिल्क में अक्सर डीप नैक बहुत जचता है आप चाहें तो ट्राई  कर सकती हैं बेहतर होगा की साड़ी के बॉर्डर को पहले कट कर लें व ऊपर से स्टीच कर के लेस के तौर  पर इस्तेमाल करें ऐसा करने से साड़ी वाला लुक बिलकुल खत्म हो जाएगा. साथ  ही आप बनारसी, सिल्क और कांजीवरम जैसी भारी साड़ियों से ओवरकोट बनाएंगी, तो यह और सुंदर दिखेगा और आप इन्हें शादी या किसी इवेंट में भी पहन सकेंगी.

 2. बांधनी साड़ी

वैसे तो यह बहुत पुराने समय से महिलाओं की पसंद बनी रही हैं लेकिन यदि आप अपनी साड़ी से  बोर हो गई हैं तो आप उसमे घेरदार सलवार के साथ सूट या  लॉन्ग सूट तैयार  करा सकती हैं पारंपरिक और वेस्टर्न दोनों तरह के परिधान पर कैरी करने के लिए आप लॉन्ग या शार्ट  जैकेट स्टीच  करा सकती हैं आज कल बँधानी  शर्ट्स, स्कर्ट, सहारा पेंट या लेंहगा भी तैयार कर सकती हैं नवरात्री में डांडिया नाइट्स में यह प्रिंट काफ़ी  चलन में रहता हैं यह  प्रिंट आपको  एक नया लुक देने में मदद करेगा.

 3. प्लेन या शिरफोन साड़ी

आप प्लेन साड़ी  से खूबसूरत लहंगा तैयार करा सकती हैं जिसमे आप हैवी गोटा लेस लगवाएं व इसके साथ कांट्रेस्ट हैवी ब्लाउज बहुत फ़ब्ता हैं दुप्पटा आप चाहें  तो बची हुई साड़ी से ही निकाल  सकती हैं शिरफोन साड़ी के वन  पीस फ्रॉक या घेरदार सूट सिलवा  सकती हैं साथ ही इन दिनों शरारा फिर से ट्रेंड में है. आप साधारण प्लेन या प्रिंटेड किसी भी तरह की साड़ी का शरारा, प्लाजो हैवी या डिजाइनर गोटा वर्क के साथ बनवा सकती हैं. उसके साथ क्राॅप टाॅप, ब्रालेट या कुर्ता पेयर कर सकती हैं. जो आपको इंडो वेस्टर्न लुक देने में मदद करेगा.

 4. साटन की साड़ी

साटन की साडी में  आप मोटा गोटा लगा कर हैवी लेस के साथ स्टीच कराएं व ब्लाउज पर आप थोड़ा वर्क करा सकती हैं या  हैवी कांट्रेस्ट ब्लाउज भी बहुत जचेगा।  साटन साड़ी से आप  लॉन्ग श्रग  तैयार करा सकती हैं जिसे आप सूट,साड़ी,लहंगे, या पेंट के साथ भी डाल सकती हैं यह आपको परफेक्ट इंडो वेस्टर्न लुक देगा. तो आप हैं ना इस फेस्टिव सीजन में पुरानी साड़ीयों को नया लुक देने के लिए तैयार

सत्ताधारी पार्टी की मनमानी

स्कूल  व कालेजों की टैक्स्ट बुक्स में बदलाव की फिराक में भारतीय जनता पार्टी सरकार उस दिन ही जुट गई जिस दिन वह सत्ता में आई थी. यह मामला अब गहरा गया है क्योंकि योगेंद्र यादव व सुहास पलशिकर ने एनसीईआरटी को नोटिस दिया कि उन के नाम टैक्स्ट बुक डैवलपमैंट कमेटी से हटा दिए जाएं क्योंकि इन किताबों को इतना बदल डाला गया है कि उन की असली शक्ल रह ही नहीं गई है. इतना ही नहीं, इन 2 के बाद 33 और विशेषज्ञों ने कह दिया कि सलाहकार समिति से उन के नाम हटा दिए जाएं.

विश्व के कई देशों में वहां की सरकारों ने पाठ्यपुस्तकों को बदल कर झूठा इतिहास और झूठी संस्कृति फैलाई. वर्ष 1917 के बाद सोवियत संघ में लेनिन और स्टालिन ने यह काम रूस में जम कर किया और 1932 में सत्ता में आने के बाद एडोल्फ हिटलर ने जरमनी में किया.

इतिहास और संस्कृति की झूठी व्याख्या के जरिए आम जनता को बहकाने का काम राजा लोग हमेशा करते रहे हैं. वे अपने को बड़ा, और बड़ा, ईश्वर के निकट दिखाने की कोशिश करते रहे हैं और इजिप्ट में अबू सिंबल के मंदिरों से ले कर राज्य के पिरामिडों तक किया गया. इस में दूसरे डरें या नहीं, देश की अपनी प्रजा जरूर प्रभावित हो व डर जाती है.

इस प्रचार का शासक को सब से बड़ा लाभ यह होता है कि उस के लिए जनता पर टैक्स लगाना आसान हो जाता है और इस संस्कृति व इतिहास की रक्षा के नाम पर विरोध करने वालों को मारने के लिए सेना, पुलिस व देशभर में फैले सरकारी गुंडा तत्त्वों को एक बल मिल जाता है.भारतीय जनता पार्टी को ये सब लाभ मिल रहे हैं. सरकार दनादन टैक्स बढ़ा रही है. बारबार नोटबंदी कर के पैसा लूट रही है.

पंडितों की अच्छी कमाई होने लगी है और देशभर में भव्य मंदिर व पार्टी के विशाल कार्यालय बनने लगे हैं. धर्म, संस्कृति, इतिहास की झूठी कहानियों को सुना कर भक्तों की फौज को कभी कांवड़ यात्रा में धकेला जाता है, कभी कुंभ में लाया जाता है तो कभी तीर्थों के लिए पहाड़ों, जंगलों और मैदानों के मंदिरों में ले जाया जाता है जो हर रोज फैल रहे हैं और जिन में गुप्त कमरों में धर्म है, औरतें हैं और हथियार भी. आम जनता इस ढोल को बजाने से सुखी हो रही है, इस की कोई गारंटी नहीं है.

पिछले साल ही कम से कम 6,500 अरबपति लोगों ने भारत छोड़ कर दूसरे देशों की नागरिकता ले ली. अमेरिका में ऊंचे पदों पर नौकरियों के लिए भारतीय युवा सब से आगे हैं. छोटेछोटे देशों ने इंग्लिश मीडियम के मैडिकल व इंजीनियरिंग कालेज खोल लिए हैं जहां अपनी संस्कृति व इतिहास का झूठा ढोल पीटने वाले हर रोज प्लेन में बैठ कर जा रहे हैं.

यह बदलाव अगर काम का होता तो भारत से बाहर बसे 3 करोड़ से ज्यादा मूल भारतीय भारत लौटते. इस महान इतिहास के बावजूद, भाजपाभक्ति के बावजूद भारतीय भाग रहे हैं तो इसलिए क्योंकि इस झूठ की सचाई सामने जो है.

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