थोड़ा दूर थोड़ा पास- भाग 3 : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

शुरूशुरू में तन्वी कुछ नाराजगी, कुछ डर के कारण नहीं गई. फिर धीरेधीरे उस ने भी जाना शुरू कर दिया. विजित के साथ छुट्टी के दिन या रविवार को वह भी मांपापा के पास चली जाती. ससुरजी का मूड तो कुछकुछ दिखाने के लिए सही हो गया पर सास का मूड उसे देख कर उखड़ा ही रहता. अभी उन्हें घर से अलग हुए 2 महीने भी नहीं हुए थे कि दिन वे सुबह औफिस जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि विजित का मोबाइल बज उठा. पापा का फोन था. वे घबराए स्वर में बोल रहे थे. पापा बोल रहे थे कि मां का ऐक्सीडैंट हो गया है. जल्दी से घर आ जाओ.

‘‘हम अभी आते हैं पापा…’’ कह कर दोनों घबराए हुए दोनों जैसेतैसे घर की तरफ दौड़े… मां को उठा कर अस्पताल ले गए.

उन का ऐक्सरे हुआ तो पता चला पैर मुड़ने से पैर के बल गिरने से पैर में फ्रैक्चर हो गया है. प्लस्तर चढ़ गया. 45 दिन का प्लस्तर था. डाक्टर ने शुरू में तो पूर्ण आराम की सलाह दी थी. यहां तक कि बाथरूम तक भी व्हीलचेयर से ही ले जाना.

सबकुछ करा कर जब मां को ले कर विजित और तन्वी घर पहुंचे तो काफी देर हो गई थी.

तन्वी ने ही सब के लिए थकने के बावजूद जैसेतैसे खाना बनाया. उस रात दोनों वहीं रुक गए. रात को दोनों सोच में पड़ गए अब…?’’ पिता के बस का नहीं था मां की देखभाल करना,

‘‘मैं तो एकदम से छुट्टी भी नहीं ले सकता… कल से रिव्यू है… दिल्ली से बौस लोग आ रहे हैं… अलगे कुछ दिन मैं बहुत व्यस्त रहूंगा… इतने दिन से तैयारी कर रहा था…’’ विजित लाचारी और उल झन में बोला.

‘‘ऐसा करते हैं विजित…’’ विजित को सोच व उल झन में पड़े देख कर तन्वी बोली, ‘‘मेरी काफी छुट्टियां बाकी हैं… कल से मैं फिलहाल 15 दिन की छुट्टी ले लेती हूं… तब तक तुम्हारे रिव्यू खत्म हो जाएंगे. तब तुम छुट्टी लेने की कोशिश करना… उस के बाद दीदी को पूछ लो… यदि हफ्ते भर के लिए वे आ सकती हैं तो… फिर मैं दोबारा कोशिश करूंगी छुट्टी लेने की…’’

विजित ने चौंक कर तन्वी की तरफ देखा. उस के चेहरे पर मां की परेशानी  से उपजे चिंता के भाव थे. वह मुग्ध भाव से तन्वी को देखता रह गया कि पता नहीं मां तन्वी को क्यों नहीं सम झ पातीं. मां तन्वी की पीढ़ी की बहुओं को भी अपने जमाने की सासों के चश्मे से देखती हैं और उन की तुलना अपने जमाने की बहुओं से करती हैं. लेकिन तब से अब तक जमाने में, समाज में, शिक्षा में, लड़कियों के पालनपोषण में बहुत परिवर्तन आ चुका है, इस बात पर बिलकुल विचार करना नहीं चाहतीं.

इस घोर परेशानी व उल झन के समय में तन्वी के सहयोग से उस का दिल भर आया था, मां ने क्या कुछ नहीं कहा तन्वी को… पर प्रत्यक्ष में बोला, ‘‘ठीक है, पर तुम्हें छुट्टी लेने में दिक्कत तो नहीं होगी…’’

‘‘नहीं, मिल जाएगी… जरूरत पर नहीं मिलेंगी तो किस काम की ये छुट्टियां…’’

रात में वह निश्चिंत हो कर सो पाया. तन्वी ने छुट्टियां ले कर पूर्ण तनमन से मां की देखभाल की. चूंकि यह शुरू का समय था, इसलिए ज्यादा कष्टपूर्ण व नाजुक था. देखभाल की ज्यादा जरूरत थी. तन्वी की निश्छल देखभाल से मां का मन बारबार पिघलने को होता. हालांकि वे उन विचारों की अधिक थीं जिन में वे बहू का प्यार कम उस का फर्ज ज्यादा सम झती थीं.

15 दिन बाद तन्वी औफिस चली गई और विजित ने छुट्टियां ले ली. विजित की छुट्टियां खत्म हुईं तो 1 हफ्ते के लिए दीदी मां की देखभाल के लिए आ गई. दीदी गई तो तन्वी ने कुछ दिन की छुट्टियां दोबारा ले लीं.

मां अब काफी ठीक हो गई थीं. सहारे से बाथरूम जाने लगी थीं. तन्वी पूरी देखभाल  कर रही थी. धीरेधीरे मां पूरी तरह ठीक हो गईं.

विजित कृतज्ञ हो रहा था तन्वी के प्रति. उस ने इस परेशानी के समय मां के प्रति सभी पूर्वाग्रह भुला कर मन से उन की देखभाल व सेवा की थी और वह देख रहा था, कहीं न कहीं मां के मन को भी तन्वी की सेवा बांध गई थी.

तन्वी की जरूरतों पर कभी ध्यान न देने वाली मां उस से अब जबतब पूछ लेतीं कि उस ने खाना खा लिया या नहीं. चाय पी ली या फिर थोड़ी देर आराम कर ले तन्वी, थक गई होगी. विजित को खुशी होती यह देख कर.

कल से तन्वी की छुट्टियां भी खत्म हो रही थीं. कल से उसे औफिस जाना था. मां अब पूरी तरह से ठीक थीं. रात का खाना खिला कर खाना खाने के बाद वे अपने घर जाने के लिए तैयार हो गए. तन्वी कमरे में जा कर मां से मिल कर बाहर आ गई.

विजित भी मां से मिलने कमरे में चला गया. बोला, ‘‘अच्छा मां चलते हैं… अब आप बिलकुल ठीक हैं… अपना ध्यान रखना… हम आतेजाते रहेंगे… तन्वी की भी काफी छुट्टियां हो गई हैं, कल से वह भी औफिस जाएगी…’’

‘‘हां बेटा, बहुत सेवा की तन्वी ने मेरी…’’ मां का स्वर कुछकुछ पश्चात्ताप से भरा था, ‘‘तन्वी को सम झाने में शायद भूल कर दी मैं ने…’’

‘‘कोई बात नहीं मां…’’ वह संतुष्ट होता हुआ बोला, ‘‘आप सम झ गईं, हमारे लिए यही काफी है और मातापिता की सेवा व देखभाल करना तो हमारा फर्ज है… आप को जब भी जरूरत होगी, हम आप के पास होंगे मां…’’ वह भीगे स्वर में बोला. मां की आंखों में भी नमी तैर गई.

‘‘विजित, तन्वी अब वापस आ जाए बेटा… क्यों अलग जा रहे हो रहने… जहां दो बरतन होंगे तो थोड़ेबहुत तो बजेंगे ही… पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं तुम लोगों को प्यार नहीं करती… बड़ों की बातों का इतना भी क्या बुरा मानना…’’ मां का स्वर कातर हो गया था.

‘‘ओह, मां…’’ वह मां को गले लगाता हुआ बोला, ‘‘आप इतनी भावुक क्यों हो रही हैं… आप के ही तो बच्चे हैं हम… दूर थोड़े ही न हो गए हैं आप से… जरा सी दूरी पर ही तो हैं…’’ वह धीरेधीरे मां की पीठ सहलाने लगा.

‘‘मां, एक घर में एक छत के नीचे रह रहे थे… पास थे आप के, पर आप के दिल से दूर थे… जब थोड़ा दूर हैं तो दिल के पास हैं… पास रह कर दूर रहने से, दूर रह कर पास रहना ज्यादा अच्छा है मां… मु झे उम्मीद है आप मेरी बात सम झ रही होंगी…’’ वह मां से अलग होता हुआ बोला.

‘‘साथ रह कर थोड़े दिन बाद फिर वही सब शुरू हो, वही दमघोंटू वातावरण, वही रिश्तों की खींचतान, बहुत मुश्किल होती है मां मु झे… तन्वी के लिए भी ये सब मुश्किल है नौकरी के साथ  झेलना… मैं अब तन्वी के ऊपर अपनी कोई सोच लादना नहीं चाहता… अपने और तन्वी के रिश्ते को थोड़ा और समय दो… हो जाने दो इस रिश्ते को परिपक्व… बदल जाने दो अपने खुद के विचारों को आप… जैसे आप को तन्वी पर विश्वास हो गया, वैसे ही तन्वी का विश्वास भी हो जाने दो आप पर…

‘‘जब तक तन्वी मु झे स्वयं घर लौटने के लिए नहीं कहेगी, तब तक मैं यह कदम नहीं उठाऊंगा… और तब तक आप भी इंतजार करो. मैं जानता हूं तन्वी को, जिस दिन उसे अपने और आप के रिश्ते पर विश्वास हो जाएगा वह खुद ही वापस आ जाएगी…

‘‘मेरे लिए तो दोनों रिश्ते प्रिय हैं मां… मैं तो चाहूंगा ही कि आप और तन्वी के बीच प्यार और प्यारभरा रिश्ता विकसित हो…जैसे तन्वी ने आप का दिल जीता. आप का उस पर विश्वास लौटा… वैसे ही तन्वी का विश्वास भी लौट आएगा आप पर… मु झे पूरा भरोसा है… तभी साथ रहने का मजा है मां…’’ कह कर वह उठ खड़ा हुआ.

विजित पीछे मुड़ा तो पापा खड़े थे. आज पहली बार उसे पापा के चेहरे पर  अपनी कही बात पर सहमति के भाव नजर आए. उन्होंने बेहद अपनेपन व बेहद भरोसे से उस का कंधा थपथपा दिया. बाहर आया तो तन्वी उस का इंतजार कर रही थी. वह जानता था, मां अभीअभी मुश्किल दौर से निकली हैं, इसलिए इतनी बदली हुई हैं. वर्षों की आदतें और विचार 4 दिन में नहीं बदलते.

जब फिर से साथ रहना शुरू करेंगे तो फिर से उन्हें अपनी वाणी और विचारों पर अकुंश रखना मुश्किल होगा. अभी और समय देना होगा उन्हें तन्वी को सम झाने का… और उन फालतू बातों से अधिक अपने बच्चों की जरूरत अपनी जिंदगी में महसूस करने का. तब तक तन्वी भी कुछ मां के नजदीक आ जाएगी तो फिर शायद उसे उन की बात इतनी बुरी न लगे, जितनी अभी लगती है.

जैसे मातापिता की देखभाल और सेवा करना उस का फर्ज है वैसे ही तन्वी भी उस से ही बंधी हुई इस घर में आई है, उस की जिंदगी में आई है. उसे एक सुंदर, स्वच्छ, अच्छी, संतुलित जिंदगी देना भी उस का कर्तव्य है. सोचता हुआ वह तन्वी के साथ घर से बाहर निकल गया.

थोड़ा दूर थोड़ा पास- भाग 2 : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

अकसर चुप रहने वाली तन्वी अब उस से कभीकभी प्रतिवाद करने लगी  थी. तर्क करने लगी थी और एक दिन उस की सहनशक्ति जवाब दे गई.

‘‘यह रोजरोज की चखचख मु झ से बरदाश्त नहीं होती विजित… औफिस से थक कर आओ और घर में आ कर ये सब सुनो… किचन में मां की मदद के लिए जाना चाहती हूं तो उन के रुख से भी डर लगता है… मैं भी कब तक चुप रहूं… एक ही काम तो नहीं है मेरा… एक छुट्टी के दिन भी न शरीर को आराम, न दिलदिमाग को… या तो तुम मां को सम झाओ या फिर अलग रहने की व्यवस्था करो…’’

‘‘सम झाता तो हूं मां को तन्वी… पर क्या करूं. वे मां हैं, बुरी तो नहीं हो सकतीं हमारे लिए… बस थोड़ा पुराने विचारों की हैं… तुम उन की बातों पर ध्यान मत दिया करो…’’

‘‘कितने दिन ध्यान न दो विजित… आखिर बातें जब कानों में पड़ती हैं तो दिल में भी उतरती ही हैं… दिमाग में बसती भी हैं… कितनी बार नजरअंदाज करूं… थकामांदा दिमाग भन्ना जाता है मेरा… ऐसे घुटनभरे वातावरण में कितने दिन रह पाऊंगी…

‘‘माना कि मां हैं… दिल की बुरी नहीं होंगी… हमें प्यार भी करती होंगी… पर वाणी भी कोई चीज होती है विजित… रोजरोज ताने नहीं सुने जाते… वाणी पर अकुंश रखना भी तो जरूरी है… यह उन का स्वभाव है… इंसान अपनी आदतें बदल सकता है पर अपना स्वभाव नहीं बदल सकता… उन के साथ मेरा निर्वाह नहीं हो पाएगा… मैं नहीं रह पाऊंगी उन के साथ…’’ तन्वी फैसला सा करते हुए बोली.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो तन्वी… मैं ने तुम्हें पहले ही इस बारे में स्पष्ट बता दिया था कि मैं इकलौता बेटा हूं… मैं मांबाप से अलग नहींजा पाऊंगा.’’

‘‘तब तुम ने यह नहीं बताया था कि उन का बोलना इतना बुरा है… दूसरी बातों के साथ, आदतों के साथ, दिनचर्या के साथ सामंजस्य बैठाया जा सकता है… पर बुरा बोलने वाले के साथ सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल है विजित… प्यार के दो मीठे बोल, प्रसंशा के दो शब्द नहीं हैं उन के पास… हर समय कोई बुरा ही कैसे सुनता रहे, तुम्हीं बताओ… ऐसा क्या बुरा करती हूं मैं उन के साथ…’’ कहतेकहते तन्वी का स्वर भर्रा गया.

विजित मानसिक उल झन का शिकार होता जा रहा था. मां किसी भी तरह से अपने स्वभाव से बाज नहीं आती थीं और तन्वी जबतब उस पर अपनी भड़ास निकाल देती.

उसे सम झ नहीं आता क्या करे, क्या न करे. समस्या का कोई समाधान उसे न दिखता. अलग घर भी लेता है तो क्या कहेंगे नातेरिश्तेदार, समाज कि विजित उन्हीं बेटों में से एक निकला, जो विवाह के बाद बीवी की बातों में आ कर मांबाप को छोड़ कर अलग हो गया, पर वे यहां आ कर उस की रात दिन की उल झन को नहीं सम झ सकते कि उस की मां… उस के जीवन का सब से प्यारा व अहम रिश्ता… उस के जीवन, उस के दिल का एक अभिन्न अंग कैसे अपने स्वभाव, अपनी कर्कश वाणी से उस के जीवन को छिन्नभिन्न करने पर तुली है. बीवी बुरी हो तो इंसान तलाक दे दे, पर मां का क्या करे, सोचसोच कर वह भन्ना जाता.

अपने जीवन की उल झनों ने उसे सम झा दिया था  कि रिश्तों को बनाने के लिए सिर्फ एक की कोशिश काफी नहीं होती जब तक सभी कोशिश न करें. धीरेधीरे उस के और तन्वी के बीच में भी  झगड़े होने लगे.

वह अपनी खीज और उल झन कभीकभी तन्वी पर भी उतार देता और ऐसे ही एक दिन के  झगड़े और मनमुटाव के बाद तन्वी घर छोड़ कर मायके चली गई. वह जब औफिस से घर आया और उसे तन्वी के जाने का पता चला तो उस ने तन्वी को फोन किया.

तब तन्वी ने साफ ऐलान कर दिया कि अगर उसे उस के साथ जिंदगी बितानी है तो अलग रहने की व्यवस्था करे… वह उस के मातापिता के साथ नहीं रह पाएगी. उस ने कई बार कई तरह से मनाने की कोशिश की तन्वी को. कई तरह से सम झाया पर तन्वी टश से मश नहीं हुई. वह बस अलग रहने की शर्त पर आने को तैयार थी.

तब से एक साल होने को आया था और अब तो तन्वी कहने लगी थी कि उस के लिए अगर ये सब इतना मुश्किल है तो वह चाहे तो वे दोनों अब अपना रास्ता बदल सकते हैं. सुन कर वह सन्न रह गया था. इतना बड़ा फैसला कैसे कर सकती है तन्वी इतनी छोटीछोटी बातों पर…

गुस्से के मारे कुछ समय तक उस ने तन्वी को फोन ही नहीं किया. आज उस ने बहुत दिनों बाद जब उस का दिमाग कुछ शांत हुआ तो नए सिरे से सम झाने के लिए फोन किया था पर तन्वी का जवाब जैसे का तैसा था.

छोटीछोटी बातों ने उस के जीवन में इतनी बड़ी उल झन पैदा कर  दी थी कि उसे समस्या का कोई समाधान नहीं सू झ रहा था. कैसे अपना वैवाहिक जीवन बचाए वह. खिन्न मन से वह उठा. औफिस से बाहर निकला पर घर जाने का मन नहीं किया. कुछ सोच कर अपने दोस्त शिवम के घर चला गया. शिवम उस की उल झनों को अच्छी तरह से सम झता था.

‘‘हूं… मतलब कि तन्वी अलग रहने के सिवा किसी भी सूरत में वापस आने को तैयार नहीं है…’’ चाय का कप मेज पर रखता हुआ शिवम बोला.

‘‘आएगी भी कैसे शिवम… मां का रवैया वही है… वे कुछ भी सम झाने को तैयार नहीं हैं… समस्याएं वही हैं… कुछ भी तो नहीं बदला… फिर से सबकुछ वही होगा… मां के ताने… मां का बोलना, मां का स्वभाव, अपनी वाणी पर जरा भी अकुंश नहीं रख पाती हैं वे… मां के विचारों से पार पाना तन्वी के लिए आसान नहीं…’’

‘‘एक बात कहूं विजित…’’

‘‘हूं…’’ विजित ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टी उस के चेहरे पर तान दी.

‘‘तू फिलहाल तन्वी की बात मान क्यों नहीं लेता… ज्यादा दूर मत जा… बस जहां तक तन्वी को मां के ताने सुनाई न दें…’’ वह हंसता हुआ बोला, ‘‘इतनी दूरी पर किराए का घर देख ले… फिलहाल अपना घर तो बचा… तू और तन्वी साथ रहोगे, पास रहोगे, तो एकदूसरे के प्यार व आकर्षण में बंध कर समस्या का हल भी निकाल लोगे…

‘‘यों दूर रह कर तो समस्या और भी विकराल हो जाएगी. दूर रह कर तो तुम दोनों के रिश्ते भी नकारात्मक हो रहे हैं… और वैसे भी तुम जबरदस्ती तो तन्वी को साथ में रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते… ये सब अपनी मरजी से हो और उन दोनों के रिश्ते खुद सुधरें… तभी साथ रहने में शांति है विजित… नहीं तो क्या फायदा है ऐसे साथ रहने से…’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे शिवम… रिश्तेदार, समाज… मातापिता दुखी होंगे, सो अलग…’’ विजित उल झन में बोला.

‘‘तू भी वही बात करने लगा… तु झे सब की चिंता है या अपना घर बचाने की… पहले एक सीढ़ी तो चढ़… अगली सीढ़ी की बाद में सोचना… तू मातापिता को कोई छोड़ थोड़े ही न रहा है, बस उन से थोड़ी दूरी पर रहेगा… उन की एक पुकार पर उन के पास पहुंच जाएगा…’’

बात कुछकुछ विजित की सम झ में आ गई. दूसरे दिन वह तन्वी से मिलने उस के औफिस में चला गया. तन्वी को इस बात पर क्या एतराज हो सकता था. विजित ने थोड़ी दूरी पर किराए का घर देखा और ऐडवांस दे दिया. अब बात मांबाप को बताने की थी.

जैसेकि उम्मीद थी. सुनते ही मां ने तूफान मचा दिया, ‘‘मैं क्या सम झ नहीं रही थी, उस के शुरू से ही लक्षण ऐसे दिख रहे थे… बड़ों की बातें सम झने और मनाने के बजाय बुरा मान कर मायके जा बैठी… वह तो मैं सम झ ही रही थी कि बेटे को मांबाप से अलग कर के ही मानेगी पागल कही की… और तू भी कुपूत निकला, जो बीवी की बातों में आ कर मांबाप को छोड़ने पर राजी हो गया… तु झे शर्म नहीं आई ये सब कहने में… इसीलिए औलाद को बड़ा करते हैं मांबाप…’’

मां के मुंह में जो आ रहा था वह बोल रही थीं. विजित के दिल में भी बहुत कुछ आ रहा था पर इस समय मां के साथ तर्क करना व्यर्थ था और वह चाहता भी नहीं था. वह जानता था उस के मातापिता का दिल उस के इस निर्णय से बहुत दुखी हुआ होगा, पर इस के पीछे उन्हें अपनी खामियां नजर नहीं आई होंगी.

पिता ने इस बार भी कुछ न बोल कर भी अपने हावभाव से अपनी पूरी नाराजगी जाहिर कर दी. किसी तरह मन मजबूत कर वह अपने इरादे पर कायम रहा और तन्वी को ले कर अलग गृहस्थी बसा ली. घर से वह कोई सामान ले कर नहीं गया. थोड़ाबहुत सामान बाजार से खरीदा. कुछ फर्नीचर मकानमालिक का था.

कुल मिला कर उन की गृहस्थी सुचारु रूप से चलने लगी. उस की रोज की दिनचर्या थी वह औफिस से आ कर पहले रोज मांपापा केपास जाता. वहां चाय पीता. फिर अपने घर चला जाता.

गर्ल टौक: आंचल कैसे बनी रोहिणी की दोस्त

एक दिन साहिल के सैलफोन की घंटी बजने पर जब आंचल ने उस के स्क्रीन पर रोहिणी का नाम देखा तो उस के माथे पर त्योरियां चढ़ गईं.

रोहिणीके महफिल में कदम रखते ही संगीसाथी जो अपने दोस्त साहिल की शादी में नाच रहे थे, के कदम वहीं के वहीं रुक गए. सभी रोहिणी के बदले रूप को देखने लगे.

‘‘रोहिणी… तू ही है न?’’ मोहन की आंखों के साथसाथ उस का मुंह भी खुला का खुला रह गया.

वरमाला होने को थी, दूल्हादुलहन स्टेज पर आ चुके थे. दोस्त स्टेज के सामने मस्ती से नाच रहे थे. तभी रोहिणी के आते ही सारी महफिल का ध्यान उस की तरफ खिंच गया. यह तो होना ही था. वह लड़की जो कभी लड़कों का पर्यायवाची समझी जाती थी, आज बला की खूबसूरत लग रही थी. गोल्डन बौर्डर की हलकीपीली साड़ी पहने, खुले घुंघराले केशों और सुंदर गहनों से लदीफंदी रोहिणी आज परियों को भी मात दे रही थी. रोहिणी को इस रूप में कालेज के किसी भी दोस्त ने आज तक नहीं देखा था.

‘‘अरे यार, पहले पूछ ले कहीं कोई और न हो,’’ मनीष ने मोहन के साथ मिल कर ठिठोली की.

‘‘पूछने की कोई जरूरत नहीं. हूं मैं ही. मैं ने सोचा कि आज साहिल को दिखा दूं कि उस ने क्या खोया है,’’ रोहिणी स्टेज पर चढ़ते हुए बोली.

‘‘पर अब तो लेट हो गई. अब क्या फायदा जब साहिल दूल्हा बन चुका,’’ मोहन के कहते ही सब हंसने लगे.

हंसीखिंचाई के इस माहौल में आंचल गंभीर थी. दुलहन बनी बैठे होने के कारण वह कुछ कह नहीं सकती थी और फिर साहिल को जानती भी कहां थी वह. यह रिश्ता मातापिता ने ढूंढ़ा था. मेरठ के पास एक छोटे से कसबे की लड़की को दिल्ली में रहने वाला अच्छा वर मिला तो सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था. आननफानन उस की शादी तय कर दी गई थी. लेकिन आज ये सब बातें सुन कर उस का दिल बैठा जा रहा था कि कहीं गलती तो नहीं कर बैठी वह… यह लड़की खुलेआम सब के सामने क्या कुछ कह रही है और सब हंस रहे हैं. साहिल भी कुछ नहीं कह रहे. ऐसी बातें क्या लड़कियों को शोभा देती हैं? साड़ी पहन लेने से संस्कार नहीं आ जाते. इन्हीं सब विचारों में उलझती आंचल ने धीरे से आंखें उठा कर साहिल की ओर देखा.

‘‘अरे यार रोहिणी, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई है, अभी से लड़ाई करवाएगी क्या?’’ आंचल की आंखों के भाव शायद साहिल को समझ आ गए थे.

शादी कर के आंचल दिल्ली आ गई. कुछ दिन उसे नई गृहस्थी में बसाने हेतु उस की सास साथ रहीं. ससुरजी की नौकरी जामनगर में थी, इसलिए घरगृहस्थी बस जाने पर सास को वहीं लौटना था. कुछ ही दिनों में आंचल तथा उस की सास में मधुर रिश्ता बन गया. वह बहुत खुश थी. दिल्ली में अच्छा मकान, सारी सुखसुविधाएं, साजसज्जा, सास से मधुर संबंध, पति के प्यार में पूरी तरह सराबोर. उस ने कभी सोचा भी न था कि उस की शादीशुदा जिंदगी की इतनी खुशहाल शुरुआत होगी. अपने मायके फोन कर के वह यहां की तारीफों के पुल बांधती रहती. खाना बनाना, घर को सलीके से रखना, पहननेओढ़ने की तहजीब व बातचीत में माधुर्य, इन सभी गुणों से उस ने भी अपनी सास तथा साहिल का मन जल्द ही मोह लिया.

‘‘मम्मी फिर, जल्दी आना, ’’ सास के पांव छूते हुए उस ने कहा.

‘‘आंचल, मैं मम्मी को स्टेशन छोड़ कर आता हूं,’’ कहते हुए साहिल व उस की मां कार में सवार हो निकल गए.

आज पहली बार आंचल घर पर अकेली थी. वह गुनगुनाती हुई अपने घर को संवारने लगी. तभी फोन की घंटी बजी तो उस ने ध्यान दिया कि साहिल अपना सैलफोन घर पर ही भूल गए हैं. साहिल के फोन की स्क्रीन पर रोहिणी का नाम पढ़ वह सोचने लगी कि यह तो उसी लड़की का नाम है फोन उठाऊं या नहीं? माथे पर त्योरियां चढ़ गईं. फिर आंचल ने फोन उठा लिया, किंतु हैलो नहीं कहा. वह सुनना चाहती थी कि रोहिणी कैसे पुकारती है साहिल को.

‘‘हैलो डियर, व्हाट्स अप?’’ रोहिणी की आवाज में गर्मजोशी थी, ‘‘खो ही गए तुम तो शादी के बाद.’’

‘‘साहिल तो घर पर नहीं हैं,’’ आंचल ने रूखा सा जवाब दिया.

‘‘ओह, तुम आंचल हो न? तुम मुझे नहीं पहचान पाओगी, सिर्फ शादी में मुलाकात हुई थी और शादी में इतने नए चेहरे मिलते हैं कि याद रखना मुमकिन नहीं,’’ रोहिणी की आवाज में अभी भी गर्मजोशी थी.

आंचल ने रोहिणी की बातों का कोई उत्तर न दिया, ‘‘कोई काम था आप को मेरे पति से?’’

मेरे पति से के संबोधन पर रोहिणी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, साहिल से नहीं, आंटी से बात करनी थी.’’

‘‘वे जामनगर जा चुकी हैं. क्या बात करनी थी, मुझे बता दीजिए,’’ आंचल का स्वर अब भी रूखा था.

‘‘कुछ खास काम नहीं, बस ऐसे ही…’’ कह रोहिणी चुप हो गई. आंचल का बात करने का ढंग उसे अटपटा लगा. लग रहा था मानो वह रोहिणी से बात करना नहीं चाह रही.

‘‘ठीक है,’’ कह आंचल ने फोन काट दिया. उस का मन उदास हो गया. साहिल तो दोस्त हैं पर यह लड़की तो उस की सास से भी बातचीत करती है. क्या पता कब से करती हो. उस के शहर में लड़के और लड़की के बीच इस तरह की दोस्ती के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. और अब जबकि उन की शादी हो चुकी है तब क्या मतलब है इस दोस्ती का?

साहिल के लौट आने पर आंचल ने उसे रोहिणी के फोन के बारे में कुछ नहीं बताया. सोचा जब कोई जरूरी काम या बात नहीं है तो क्या बताना.

आंचल को उदास देख साहिल ने मजाक किया, ‘‘क्या बात है, अभी से सास की याद सताने लगी?’’

फीकी सी हंसी से आंचल ने बात टाल दी कि कैसे पूछे साहिल से कुछ? रात भर अजीबअजीब विचार आते रहे, कुछ खुली आंखों से तो कुछ सपने बन कर. कैसे हल करे आंचल अपने मन की उलझन. न तो मायके में और न ही ससुराल में वह यह बात किसी से कर सकती थी.

जीवन यथावत चलने लगा. साहिल सुबह से देर शाम तक औफिस में रहता और आंचल घर में मगन रहती. उसे इसी जिंदगी का इंतजार था. अब अपनी मनपसंद जिंदगी पा कर वह बहुत खुश थी. एक शाम घर लौट कर साहिल ने कहा, ‘‘आंचल, मैं रोहिणी को खाने पर बुलाना चाहता हूं, मैं चाहता हूं उसे तुम्हारे हाथों का लजीज खाना खिलाऊं. इस रविवार को बुलाया है मैं ने उसे. क्याक्या बनाओगी?’’

‘‘आप ने मुझे बता दिया है तो कुछ अच्छा ही बनाऊंगी. आप फिक्र मत कीजिए,’’ आंचल ने साहिल को तो आश्वस्त कर दिया, किंतु स्वयं चिंताग्रस्त हो गई.

रविवार को रोहिणी का रूप उस की शादी के दिन से बिलकुल विपरीत था. जींसटौप, कसे केश… आज रोहिणी के नैननक्श पर गौर किया था आंचल ने. वह वाकई खूबसूरत थी. साहिल के दरवाजा खोलते ही रोहिणी उस के गले लगी. यह कैसी दोस्ती है भला. आंचल को यह बात एकदम नागवार गुजरी. अचानक वह जा कर साहिल की बांह में बांह डाल खड़ी हो गई. लेकिन उस की इस हरकत से साहिल अचकचा गया. धीरे से बोला, ‘‘अ… चायनाश्ता ले आओ.’’

‘हुंह, दोस्त गले लग सकती है, लेकिन बीवी बांह में बांह नहीं डाल सकती,’ मन ही मन बड़बड़ाती आंचल किचन में चली गई.

बेहद फुरती के साथ उस ने सारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया. वह साहिल और रोहिणी को कम से कम समय एकसाथ अकेले में गुजारने देना चाहती थी. वे दोनों सोफे पर आमनेसामने बैठे थे.

साहिल के पीछे से आ कर आंचल ने इस बार साहिल के गले में अपनी बांहें डालते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना तैयार है.’’साहिल फिर अचकचा गया. आंचल का अचानक ऐसा व्यवहार… वह तो हमेशा छुईमुई सी, शरमाई सी रहती थी और आज रोहिणी के सामने उसे क्या हो गया है.

खाना खाते हुए रोहिणी ने आंचल के खाने की तारीफ की.

‘‘थैंक्यू. मैं तो रोज ही इन के लिए अच्छे से अच्छा खाना पकाती हूं. बहुत प्यार करती हूं इन से और अगर किसी ने इन के और मेरे बीच आने की सोची भी तो मैं… मैं उसे…’’

‘‘अरे, यह क्या बोल रही हो?’’ साहिल ने आंचल की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘रोहिणी क्या कह रही है और तुम क्या समझ रही हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि आप मुझे इस तरह…’’

आंचल अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही रोहिणी ने बीचबचाव करते हुए कहा, ‘‘क्या साहिल, तुम भी न… ये कोई तरीका है नईनवेली दुलहन से बात करने का. एक तो उस ने इतना लजीज खाना बनाया है और तुम…’’

आंचल ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘इन्होंने जो कुछ कहा वह अपनी पत्नी से कहा और इन्हें पूरा हक है. आप बीच में न ही पड़ें,’’ फिर धीरे से बड़बड़ाई, ‘‘अच्छी तरह समझती हूं मैं, पहले आग लगाओ फिर बुझाने का नाटक.’’

रोहिणी चुप हो गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि आंचल उस से इस तरह बेरुखी से व्यवहार क्यों कर रही है. वह तो उन के घर साहिल के साथसाथ आंचल से भी दोस्ती करने आई थी.

‘‘अरे, मूड क्यों खराब करती हो, आंचल, जाओ, खाना तो हो गया अब कुछ मीठा नहीं खिलाओगी रोहिणी को?’’ साहिल ने एक बार फिर माहौल को खुशगवार बनाने का प्रयास किया. किंतु आंचल और रोहिणी दोनों ही उदास थीं. आंचल मुंह बिचकाए अंदर चली गई. रोहिणी हाथ धोने के बहाने वहां से उठ कर बाथरूम में चली गई. वहां एकांत में वह सोचने लगी कि आखिर ऐसी क्या बात हो सकती है जो आंचल को इतनी बुरी लगी. हर नईनवेली को कुछ समय लगता है नए वातावरण, नए लोगों से तालमेल बैठाने में. हर लड़की अलग ढंग से पलीबढ़ी होती है. नए परिवार के नए रंगढंग में रचनेबसने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न. आखिर आंचल को नए घर में आए दिन ही कितने हुए हैं. अभीअभी उस ने गृहस्थी संभाली है और खुद न्योतों पर जाने की जगह वही दूसरों को भोज करा रही है.

अचानक उस के मन में खयाल आया कि आंचल कहीं मेरे और साहिल के संबंध पर शक तो नहीं कर रही? आखिर वह एक ऐसे वातावरण से आई है जहां लड़कों और लड़कियों के बीच बराबरी की दोस्ती देखने को नहीं मिलती. ऐसे में रोहिणी का खुला व्यवहार कहीं आंचल को अटपटा तो नहीं लग रहा?

मीठे में आंचल ने खीर परोसी. आंचल का उतरा मुंह ठीक करने के लिए रोहिणी ने एक और कोशिश की, ‘‘वाह, कितनी स्वादिष्ठ खीर बनाई है. आंचल, प्लीज मुझे भी सिखाओ न ऐसा खाना बनाना.’’

‘‘क्यों? मैं क्यों सिखाऊं ताकि आप रोजरोज मेरी गृहस्थी में दाखिल होती रहें?’’

आंचल का यह जवाब साहिल को बिलकुल पसंद नहीं आया और उस ने आंचल को डपट दिया, ‘‘आंचल, यह क्या तरीका है घर आए मेहमान से बात करने का?’’

साहिल की आवाज में कड़ाई सुन आंचल की आंखें डबडबा गईं. कुछ शक की चुभन, कुछ क्रोध की छटपटाहट… वह स्वयं को रोक न पाई और आंसू पोंछती हुई अंदर चली गई.

‘‘पता नहीं आज क्या हो गया है इसे, कैसा अजीब बरताव कर रही है,’’ साहिल आंचल की प्रतिक्रिया पर अभी भी हैरान था. लेकिन आंचल की आंखों के भावों व बेरुखी से रोहिणी की कुछकुछ समझ आ रहा था.

‘‘यदि तुम बुरा न मानो तो मैं आंचल से बात कर सकती हूं क्या?’’ रोहिणी ने साहिल से अनुमति मांगी.

‘‘अ… मैं तो बुरा नहीं मानूंगा पर अगर आंचल ने तुम्हारे साथ कोई बदतमीजी कर दी तो? इसे इस मूड में मैं ने पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘तो मैं भी बुरा नहीं मानूंगी.’’

कमरे में आंचल बिस्तर पर औंधी पड़ी सुबक रही थी. रोहिणी के उस का नाम पुकारने पर वह व्यवस्थित होने लगी.

‘‘तबीयत ठीक नहीं थी तो कह देतीं न,

मैं फिर कभी आ जाती,’’ रोहिणी ने बिलकुल साधारण ढंग से बात शुरू की, ‘‘मैं यहां साहिल से मिलने या खाना खाने नहीं आई थी, बल्कि मैं तो आप से मिलने, आप से गपशप करने आई थी.’’

किंतु आंचल अब भी मुंह फुलाए बैठी थी. रोहिणी की ओर देखना भी उसे गवारा न था.

‘‘देखो न, आप मेरी भाभी जैसी हो. आप को मस्का नहीं मारूंगी तो आप मेरे लिए एक अच्छा सा लड़का कैसे ढूंढ़ोगी भला?’’ कह रोहिणी हंसने लगी, ‘‘साहिल से कोई उम्मीद रखना बेकार है. उसे तो मैं कहकह कर थक गई. वैसे उस की भी गलती नहीं है. उस की दोस्ती तो जैसा वह है वैसे लड़कों से है पर मुझे साहिल जैसा शांत, शरमीला लड़का नहीं चाहिए. मुझे तो अपने जैसा बिंदास और मस्त लड़का चाहिए. अगर है कोई आप की नजर में तो बताओ न.’’

रोहिणी का यह पैतरा काम कर गया. आंचल थोड़ी संभली हुई दिखने लगी. रोहिणी की बातों से उसे कुछ आश्वासन मिल रहा था.

तभी साहिल भी झांकता हुआ कमरे में दाखिल हुआ, ‘‘क्या चल रहा है भई?’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हारे मतलब का कुछ नहीं है यहां पर. यहां गर्ल टौक चल रही है और वह भी बेहद इंट्रैस्टिंग. इसलिए प्लीज, बाहर जाते हुए दरवाजा बंद करते जाना,’’ कह रोहिणी तो हंसी ही, साथ ही आंचल की भी हंसी छूट गई.

मुझे नहीं जाना: क्या वापस ससुराल गई अलका

शाम 7 बजे जब फोन की घंटी बजी तब ड्राइंगरूम में अलका, उस की मां गायत्री और पिता ज्ञानप्रकाश उपस्थित थे. फोन पर वार्तालाप अलका ने किया.

अलका की ‘हैलो’ के जवाब में दूसरी तरफ से भारी एवं कठोर स्वर में किसी पुरुष ने कहा, ‘‘मुझे अलका से बात करनी है.’’

‘‘मैं अलका ही बोल रही हूं. आप कौन?’’

‘‘मैं कौन हूं इस झंझट में न पड़ कर तुम उसे ध्यान से सुनो जो मैं तुम से कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हैं आप?’’

‘‘यही कि अपने पतिदेव को तुम फौरन नेक राह पर चलने की सलाह दो, नहीं तो खून कर दूंगा मैं उस का.’’

‘‘ये क्या बकवास कर रहे हो.’’

‘‘मैं बकवास न कर के तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं. अलका मैडम,’’ बोलने वाले की आवाज क्रूर हो उठी, ‘‘अगर तुम्हारे पति राजीव ने फौरन मेरे दिल की रानी कविता पर डोरे डालने बंद नहीं किए तो जल्दी ही उस की लाश को चीलकौवे खा रहे होंगे.’’

‘‘ये कविता कौन है मैं नहीं जानती… और न ही मेरे पति का किसी से इश्क का चक्कर चल रहा है. आप को जरूर कोई गलतफहमी…’’

‘‘शंकर उस्ताद को कोई गलतफहमी कभी नहीं होती. मैं ने पूरी छानबीन कर के ही तुम्हें फोन किया है. अगर तुम अपने आप को विधवा की पोशाक में नहीं देखना चाहती हो तो उस मजनू की औलाद राजीव से कहो कि वह मेरी जान कविता के साए से भी दूर रहे.’’

अलका कुछ और बोल पाती इस से पहले ही फोन कट गया.

अपने मातापिता के पूछने पर अलका ने घबराई आवाज में वार्तालाप का ब्योरा उन्हें सुनाया.

गायत्री रोने ही लगीं. ज्ञानप्रकाश ने गुस्से से भर कर कहा, ‘‘तो राजीव इस कविता के चक्कर में उलझा हुआ है. मैं भी तो कहूं कि साल भर अभी शादी को हुआ नहीं और 2 महीने से पत्नी को मायके में छोड़ रखा है. जरूर उस ने इस कविता से गलत संबंध बना लिए हैं.’’

‘‘उस अकेले को दोष मत दो, जी,’’ गायत्री ने सुबकते हुए कहा, ‘‘दामादजी ने तो दसियों बार इस मूर्ख के सामने वापस लौट आने की विनती की होगी, लेकिन इस की जिद के आगे उन की एक न चली.’’

‘‘अलका को कुसूरवार मत कहो. हमारी बेटी ने राजीव से प्रेमविवाह किया है. उसे सुखी रखना उस का कर्तव्य है. अगर अलका अलग घर में जाने की जिद पर अड़ी हुई है तो वह मेरी समझ से कुछ गलत नहीं कर रही,’’ कह कर ज्ञानप्रकाश अलका की तरफ देखने लगे.

‘‘पापा, आप ठीक कह रहे हैं. मैं ने नौकरानी बनने के लिए शादी नहीं की थी राजीव से,’’ अलका ने अपने मन की बात फिर दोहराई.

‘‘अलका, तुम राजीव को फोन कर के इसी वक्त यहां आने के लिए कहो. ऐसी डांट पिलाऊंगा मैं उसे कि इश्क का भूत फौरन उस के सिर से उतर कर गायब हो जाएगा,’’ ज्ञानप्रकाश की आंखों में चिंता व क्रोध के मिलेजुले भाव नजर आ रहे थे.

अलका राजीव को फोन करने के लिए उठ खड़ी हुई.

करीब घंटे भर बाद राजीव अपनी ससुराल पहुंचा. उस के पिता ओंकारनाथ और मां कमलेश भी उस के साथ आए थे. उन तीनों के चेहरों पर चिंता और तनाव के भाव साफ झलक रहे थे.

कुछ औपचारिक वार्तालाप के बाद ओंकारनाथ ने परेशान लहजे में ज्ञानप्रकाश से कहा, ‘‘बहू से फोन पर मेरी भी बात हुई थी. मुझे लगा कि वह किसी बात को ले कर बहुत परेशान है. इसलिए राजीव के साथ उस की मां और मैं ने भी आना उचित समझा.’’

‘‘ये अच्छा ही हुआ कि आप दोनों साथ आए हैं राजीव के. सारी बात आप दोनों को भी मालूम होनी चाहिए. शाम को 7 बजे हमारे यहां एक फोन आया था. फोन करने वाले ने हमें राजीव के बारे में बड़ी गलत व गंदी तरह की सूचना दी है,’’ ज्ञानप्रकाश ने नाराज अंदाज में राजीव को घूरना शुरू कर दिया था.

‘‘फोन किसी शंकर नाम के आदमी का था?’’ कमलेश के इस सवाल को सुन कर अलका और उस के मातापिता बुरी तरह से चौंक उठे.

‘‘आप को कैसे मालूम पड़ा उस का नाम, बहनजी?’’ गायत्री अचंभित हो उठीं.

‘‘क्योंकि उस ने शाम 6 बजे के आसपास हमारे यहां भी फोन किया था. राजीव और उस के पिता घर पर नहीं थे, इसलिए मेरी ही उस से बातें हो पाईं.’’

‘‘क्या कहा उस ने आप से?’’

‘‘उस ने आप से क्या कहा?’’ कमलेश ने उलट कर पूछा.

गायत्री के बजाय ज्ञानप्रकाश ने गंभीर हो कर उन के प्रश्न का जवाब दिया, ‘‘बहनजी, शंकर ऐसी बात कह रहा था जिस पर विश्वास करने को हमारा दिल तैयार नहीं है, लेकिन वह बहुत क्रोध में था और राजीव को गंभीर नुकसान पहुंचाने की धमकी भी दे रहा था. इसलिए राजीव से हमें पूछताछ करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘क्या वह किसी कविता नाम की लड़की से मेरे अवैध प्रेम संबंध होने की बात आप को बता रहा था?’’ राजीव गहरी उलझन और परेशानी का शिकार नजर आ रहा था.

अलका ने उस के चेहरे पर

पैनी नजरें गड़ा कर कहा, ‘‘हां,

कविता की ही बात कर रहा था वह. कौन है ये कविता?’’

‘‘मैं तो सिर्फ एक कविता को ही जानता हूं, जो मेरे विभाग में मेरे साथ काम करती है. तुम्हें याद है शादी के बाद हम एक रात नीलम होटल में डिनर करने गए थे. तब एक लंबी सी लड़की अपने बौयफैं्रड के साथ वहां आई थी. मैं ने तुम्हें उस से मिलाया था, अलका.’’

अलका ने अपनी सास की तरफ मुड़ कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं ने आप से उस लड़की का जिक्र घर आ कर किया था. वह राजीव से बहुत खुली हुई थी. उसे ‘यार, यार’ कह कर बुला रही थी. वह अपने बौयफ्रैंड के साथ न होती तो राजीव से उस के गलत तरह के संबंध होने का शक मुझे उसी रात हो जाता. मेरा दिल कहता है कि राजीव जरूर उस के रूपजाल में फंस गया है और उस के पुराने प्रेमी शंकर ने क्रोधित हो कर उसे जान से मारने की धमकी दी है,’’ बोलते- बोलते अलका की आंखें डबडबा आईं, चेहरा लाल हो चला.

‘‘बेकार की बात मुंह से मत निकालो, अलका,’’ राजीव को गुस्सा आ गया, ‘‘घंटे भर से अपने मातापिता को यह बात समझाते हुए मेरा मुंह थक गया है कि कविता से मेरा कोई चक्कर नहीं चल रहा है. अब तुम भी मुझ पर शक कर रही हो. क्या तुम मुझे चरित्रहीन इनसान समझती हो?’’

‘‘अगर दाल में कुछ काला नहीं है तो ये शंकर क्यों जान से मार देने की धमकी तुम्हें दे रहा है?’’ अलका ने चुभते स्वर में पूछा.

‘‘उस का दिमाग खराब होगा. वह पागल होगा. अब मैं कैसे जानूंगा कि वह क्यों ऐसी गलतफहमी का शिकार हो गया है?’’ राजीव चिढ़ उठा.

‘‘अगर वह सही कह रहा हो तो तुम कौन सा अपने व कविता के प्रेम की बात सीधेसीधे आसानी से कुबूल कर लोगे?’’ अलका ने जवाब दिया.

‘‘तब मेरे पीछे जासूस लगवा कर मेरी इनक्वायरी करा लो, मैडम,’’ राजीव गुस्से से फट पड़ा, ‘‘मैं दोषी नहीं हूं, लेकिन मैं एक सवाल तुम से पूछना चाहता हूं. तुम 2 महीने से मुझ से दूर यहां मायके में जमी बैठी हो. ऐसी स्थिति में अगर मैं किसी दूसरी लड़की के चक्कर में पड़ भी जाता हूं तो तुम्हें परेशानी क्यों होनी चाहिए? जब तुम्हें मेरी फिक्र ही नहीं है तो मैं कुछ भी करूं, तुम्हें क्या लेनादेना उस से?’’

‘‘मेरा दिल कह रहा है कि तुम ने मुझ पर लौटने का दबाव बनाने के लिए ही शंकर वाला नाटक किया है. लेकिन तुम मेरी एक बात ध्यान से सुन लो. जब तक तुम मेरे मनोभावों को समझ कर उचित कदम नहीं उठाओगे तब तक मैं तुम्हारे पास नहीं लौटूंगी,’’ अलका झटके से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

चायनाश्ता ले कर मेहमान अपने घर लौटने लगे. चलतेचलते ओंकारनाथ ने स्नेह भरा हाथ अलका के सिर पर रख कर कहा, ‘‘बहू, मैं ने कुछ प्रापर्टी डीलरों से कह दिया है तुम दोनों के लिए किराए का मकान ढूंढ़ने के लिए. तुम दोनों का साथसाथ सुखी रहना सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. किराए का मकान मिलने तक अगर तुम घर लौट आओगी तो हम सब को बहुत खुशी होगी.’’

जवाब में अलका तो खामोश रही लेकिन गायत्री ने कहा, ‘‘ये आगामी इतवार को पहुंच जाएगी आप के यहां.’’

मेहमानों के चले जाने के बाद अलका ने कहा, ‘‘मां, एक तो मुझे इस कविता के चक्कर की तह तक पहुंचना है. दूसरे, अगर मैं राजीव के साथ रहूंगी तो उस पर मकान जल्दी ढूंढ़ने के लिए दबाव बनाए रख सकूंगी. इन बातों को ध्यान में रख कर ही मैं ससुराल लौट रही हूं.’’

शुक्रवार की दोपहर में एक अजीब सा हादसा घटा. अलका अपने कमरे में आराम कर रही थी कि खिड़की का कांच टूट कर फर्श पर गिर पड़ा. वह भाग कर ड्राइंगरूम में पहुंची. तभी उस के पिता ने घबराई हालत में बाहर से बैठक में प्रवेश किया और अलका को देख कर कांपती आवाज में उस से बोले, ‘‘शंकर दादा के 2 गुंडों ने पत्थर मार कर शीशा तोड़ा है. पत्थर पर कागज लिपटा है…उसे ढूंढ़. उस में हमारे लिए संदेश लिख कर भेजा है शंकर दादा ने.’’

पत्थर पर लिपटे कागज में टाइप किए गए अक्षरों में लिखा था :

‘अलका मैडम,

अपने पति राजीव की करतूतों का फल भुगतने को तैयार हो जाओ. आज शीशा तोड़ा गया है, कल उस का सिर फूटेगा. कविता सिर्फ मेरी है. उस पर गंदी नजर डालने वाले के पूरे खानदान को तबाह कर दूंगा मैं, शंकर दादा.’

पत्र पढ़ने के बाद गायत्री, ज्ञानप्रकाश व अलका के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

पूरी घटना की खबर दोपहर में ही ओंकारनाथ के परिवार तक भी पहुंच गई. खबर सुन कर सभी मानसिक तनाव व चिंता का शिकार हो गए. सब से ज्यादा मुसीबत का सामना राजीव को करना पड़ा. हर आदमी उसे कविता से अवैध प्रेम संबंध रखने का दोषी मान रहा था. वह सब से बारबार कहता कि कविता से उस का कोई गलत संबंध नहीं है, पर कोई उस की बात पर विश्वास करने को राजी न था.

रविवार की सुबह अलका अपने पिता के साथ ससुराल पहुंच गई.

रात को शयनकक्ष में पहुंच कर उन दोनों के बीच बड़ी गरमागरमी हुई. राजीव अपने को दोषी नहीं मान रहा था और अलका का कहना था कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है जो शंकर उस्ताद यों गुस्से से फटा जा रहा है.

आखिरकार राजीव ने अलका को मना ही लिया. तभी उस ने अपनेआप को राजीव की बांहों के घेरे में कैद होने

दिया था.

पूरा एक सप्ताह शांति से गुजरा और फिर शंकर दादा की एक और हरकत ने उन की शांति भंग कर डाली. किसी ने रात में उस की मोटरसाइकिल की सीट को फाड़ डाला था. हैंडिल पर लगे शीशे फोड़ दिए थे. ऊपर से उस पर कूड़ा बिखेरा गया था.

उस के हैंडिल पर एक चिट लगी हुई थी जिस पर छपा था, ‘अब भी अपनी जलील हरकतों से बाज आ जा, नहीं तो इसी तरह तेरा पेट फाड़ डालूंगा.’

राजीव चिट उखाड़ कर उसे गायब कर पाता उस से पहले ही ओंकारनाथ वहां पहुंच गए. उन के शोर मचाने पर पूरा घर फिर वहां इकट्ठा हो गया. जो भी राजीव की तरफ देखता, उस की ही नजरों में शिकायत व गुस्से के भाव होते.

शंकर दादा का खौफ सभी के दिल पर छा गया. दिनरात इसी विषय पर बातें होतीं. राजीव को उस के घर व ससुराल का हर छोटाबड़ा सदस्य चौकन्ना रहने की सलाह देता.

शंकर दादा का अगला कदम न जाने क्या होगा, इस विषय पर सोचविचार करते हुए सभी के दिलों की धड़कनें बढ़ जातीं.

लगभग 10 दिन बिना किसी हादसे के गुजर गए. लेकिन ये खामोशी तूफान के आने से पहले की खामोशी सिद्ध हुई.

एक रात राजीव और अलका 10 बजे के आसपास घर लौटे. एक मारुति वैन उन के घर के गेट के पास खड़ी थी, इस पर उन दोनों ने ध्यान नहीं दिया.

राजीव की मोटरसाइकिल के रुकते ही उस वैन में से 3 युवक निकल कर बड़ी तेज गति से उन के पास आए और दोनों को लगभग घेर कर खड़े हो गए.

‘‘क…कौन हैं आप लोग? क्या चाहते हैं?’’ राजीव की आवाज डर के मारे कांप उठी.

‘‘अपना परिचय ही देने आए हैं हम तुझे, मच्छर,’’ बड़ीबड़ी मूंछों वाले ने दांत पीसते हुए कहा, ‘‘और साथ ही साथ सबक भी सिखा कर जाएंगे.’’

फिर बड़ी तेजी व अप्रत्याशित ढंग से एक अन्य युवक ने अलका के पीछे जा कर एक हाथ से उस का मुंह यों दबोच लिया कि एक शब्द भी उस के मुंह से निकलना संभव न था. बड़ीबड़ी मूंछों वाले ने राजीव का कालर पकड़ कर एक झटके में कमीज को सामने से फाड़ डाला. दूसरे युवक ने उस के बाल अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लिए.

‘‘हमारे शंकर दादा की चेतावनी को नजरअंदाज करने की जुर्रत कैसे हुई तेरी, खटमल,’’ मूंछों वाले ने आननफानन में 5-7 थप्पड़ राजीव के चेहरे पर जड़ दिए, ‘‘बेवकूफ इनसान, ऐसा लगता है कि न तुझे अपनी जान प्यारी है, न अपने घर वालों की. कविता भाभी पर डोरे डालने की सजा के तौर पर क्या हम तेरी पत्नी का अपहरण कर के ले जाएं?’’

‘‘मैं सौगंध खा कर कहता हूं कि कविता से मेरा कोई प्रेम का चक्कर नहीं चल रहा है. आप मेरी बात का विश्वास कीजिए, प्लीज,’’ राजीव उस के सामने गिड़गिड़ा उठा.

2 थप्पड़ और मार कर मूंछों वाले ने क्रूर लहजे में कहा, ‘‘बच्चे, आज हम आखिरी चेतावनी तुझे दे रहे हैं. कविता भाभी से अपने सारे संबंध खत्म कर ले. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो तेरी इस खूबसूरत बीवी को उठा ले जाएंगे हम शंकर दादा के पास. बाद में जो इस के साथ होगा, उस की जिम्मेदारी सिर्फ तेरी होगी, मजनू की औलाद.’’ फिर उस ने अपने साथियों को आदेश दिया, ‘‘चलो.’’

एक मिनट के अंदरअंदर वैन राजीव व अलका की नजरों से ओझल हो गई. वैन का नंबर नोट करने का सवाल ही नहीं उठा क्योंकि नंबर प्लेट पर मिट्टी की परत चिपकी हुई थी.

पूरे घटनाक्रम की जानकारी पा कर ज्ञानप्रकाश व ओंकारनाथ के परिवारों में चिंता और तनाव का माहौल बन गया. 3 दिन बाद अलका के मातापिता ने सब को रविवार के दिन अपने घर लंच पर आमंत्रित किया.

कुछ मीठा ले आने के लिए ज्ञानप्रकाश और ओंकारनाथ बाजार की तरफ चल दिए. रास्ते में ज्ञानप्रकाश ने तनाव भरे लहजे में अपने समधी से पूछा, ‘‘अलका कैसी चल रही है?’’

ओंकारनाथ ने मुसकरा कर जवाब दिया, ‘‘बिलकुल ठीक है वह. कल मैं ने राजीव से कहा कि जा कर वह मकान देख आओ जिस का पता प्रापर्टी डीलर ने बताया है. अलका ने मेरी बात सुन कर फौरन कहा कि वह किसी किराए के मकान में जाने की इच्छुक नहीं है. उस का ऐसा ‘मुझे नहीं जाना’ वाला कथन सुन कर मुझे अपनी मुसकान को छिपाना बहुत मुश्किल हो गया था दोस्त. हमारी योजना सफल रही है.’’

‘‘यानी कि अलका की अकेले रहने की जिद समाप्त हुई?’’ ज्ञानप्रकाश एकाएक प्रसन्न नजर आने लगे थे.

‘‘बिलकुल खत्म हुई. सुनो, हमारा कितना नुकसान हुआ है कुल मिला कर?’’ ओंकारनाथ ने जानना चाहा.

‘‘छोड़ो यार,’’ ज्ञानप्रकाश ने कहा, ‘‘मेरी बेटी अलका का जो खून सूख रहा होगा आजकल उस की कीमत क्या रुपयों में आंकी जा सकती है समधी साहब.’’

‘‘ज्ञानप्रकाश, हमतुम अच्छे दोस्त न होते तो अलका की अलग रहने की जिद से पैदा हुई समस्या का समाधान इतनी आसानी से नहीं हो पाता. अब बहू सब के बीच रह कर घरगृहस्थी चलाने के तरीके बेहतर ढंग से सीख जाएगी और चार पैसे भी जुड़ जाएंगे उन के पास,’’ ओंकारनाथ ने अपने समधी के कंधे पर हाथ रख कर अपना मत व्यक्त किया.

‘‘आप का लाखलाख धन्यवाद कि उस के सिर से अलग होने का भूत उतर गया,’’ ज्ञानप्रकाश ने राहत की गहरी सांस ली.

‘‘मुझे धन्यवाद देने के साथसाथ अपने दोस्त के बेटे को भी धन्यवाद दो,  जिस ने शंकर उस्ताद की भूमिका में ऐसी जान डाल दी कि उस की आवाज व हावभाव को याद कर के अलका के अब भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं.’’

‘‘नाटकों में भाग लेने का उस का अनुभव हमारे खूब काम आया.’’

‘‘उस को हिदायत दे देना कि जो उस ने किया है हमारे कहने पर, उस की चर्चा किसी से न करे.’’

‘‘मेरे बेटे व बहू को अगर कभी पता लग गया कि उन की रातों की नींद उड़ाने वाला नाटक हमारे इशारे पर खेला गया था तो मेरा तो बुढ़ापा बिगड़ जाएगा. मैं कभी एक शब्द नहीं मुंह से निकालूंगा,’’ ओंकारनाथ ने संकल्प किया.

‘‘हम ने जो किया है, सब के भले को ध्यान में रख कर किया है, समधीजी. कांटे से कांटा निकल गया है. अब शंकर दादा गायब हो जाएंगे तो धीरेधीरे राजीव व अलका सामान्य होते चले जाएंगे. नतीजा अगर अच्छा निकले तो कुछ गलत कार्यशैली को उचित मानना समझदारी है,’’ ज्ञानप्रकाश की बात का सिर हिला कर ओंकारनाथ ने अनुमोदन किया और दोनों अपने को एकदूसरे के बेहद करीब महसूस करते हुए बाजार पहुंच गए.

फिर वही शून्य- भाग 1 : क्या शादी के बाद पहले प्यार को भुला पाई सौम्या

सुनहरी सीपियों वाली लाल साड़ी पहन कर जब मैं कमरे से बाहर निकली तो मुझे देख कर अनिरुद्ध की आंखें चमक उठीं. आगे बढ़ कर मुझे अपने आगोश में ले कर वह बोले, ‘‘छोड़ो, सौम्या, क्या करना है शादीवादी में जा कर? तुम आज इतनी प्यारी लग रही हो कि बस, तुम्हें बांहों में ले कर प्यार करने का जी चाह रहा है.’’

‘‘क्या आप भी?’’ मैं ने स्वयं को धीरे से छुड़ाते हुए कहा, ‘‘विशाल आप का सब से करीबी दोस्त है. उस की शादी में नहीं जाएंगे तो वह बुरा मान जाएगा. वैसे भी इस परदेस में आप के मित्र ही तो हमारा परिवार हैं. चलिए, अब देर मत कीजिए.’’

‘‘अच्छा, लेकिन पहले कहो कि तुम मुझे प्यार करती हो.’’

‘‘हां बाबा, मैं आप से प्यार करती हूं,’’ मेरा लहजा एकदम सपाट था.

अनिरुद्ध कुछ देर गौर से मेरी आंखों में झांकते रहे, फिर बोले, ‘‘तुम सचमुच बहुत अच्छी हो, तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी संवर गई है. अपने आप को बहुत खुशनसीब समझने लगा हूं मैं. फिर भी न जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे तुम दिल से मेरे साथ नहीं हो, कि जैसे कोई समझौता कर रही हो. सौम्या, सच बताओ, तुम मेरे साथ खुश तो हो न?’’

मैं सिहर उठी. क्या अनिरुद्ध ने मेरे मन में झांक कर सब देख लिया था? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. खुद को संयत कर मैं ने इतना ही कहा, ‘‘आप भी कैसी बातें करते हैं? मेरे खुश न होने का क्या कारण हो सकता है? इस वक्त मुझे बस, समय से पहुंचने की चिंता है और कोई बात नहीं है.’’

शादी से वापस आतेआते काफी देर हो गई थी. अनिरुद्ध तो बिस्तर पर लेटते ही सो गए, लेकिन मेरे मन में उथलपुथल मची हुई थी. पुरानी यादें दस्तक दे कर मुझे बेचैन कर रही थीं, ऐसे में नींद कहां से आती?

कितने खुशनुमा दिन थे वे…स्कूल के बाद कालिज में प्रवेश. बेफिक्र यौवन, आंखों में सपने और उमंगों के उस दौर में वीरांगना का साथ.

वीरांगना राणा…प्यार से सब उसे वीरां बुलाते थे. दूध में घुले केसर सी उजली रंगत, लंबीघनी केशराशि, उज्ज्वल दंतपंक्ति…अत्यंत मासूम लावण्य था उस का. जीवन को भरपूर जीने की चाह, समस्याओं का साहस से सामना करने का माद्दा, हर परिस्थिति में हंसते रहने की अद्भुत क्षमता…मैं उस की जीवंतता से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. हम दोनों कब एकदूसरे के निकट आ गईं, खुद हमें भी न पता चला.

फिर तो कभी वह मेरे घर, कभी मैं उस के घर में होती. साथ नोट्स बनाते और खूब गप लड़ाते. मां मजाक में कहतीं, ‘जिस की शादी पहले होगी वह दूसरी को दहेज में ले जाएगी,’ और हम खिलखिला कर हंस पड़ते.

एक दिन वीरां ने मुझ से कहा, ‘आज भाई घर आने वाला है, इसलिए मैं कालिज नहीं चलूंगी. तू शाम को आना, तब मिलवाऊंगी अपने भाई से.’

वीरां का बड़ा भाई फौज में कैप्टन था और छुट्टी ले कर काफी दिन के बाद घर आ रहा था. इसी वजह से वह बहुत उत्साहित थी.

शाम को वीरां के घर पहुंच कर मैं ने डोरबेल बजाई और दरवाजे से थोड़ा टिक कर खड़ी हो गई, लेकिन अपनी बेखयाली में मैं ने देखा ही नहीं कि दरवाजा सिर्फ भिड़ा हुआ था, अंदर से बंद नहीं था. मेरा वजन पड़ने से वह एक झटके से खुल गया, मगर इस से पहले कि मैं गिरती, 2 हाथों ने मुझे मजबूती से थाम लिया.

मैं ने जब सिर उठा कर देखा तो देखती ही रह गई. वीरां जैसा ही उजला रंग, चौड़ा सीना, ऊंचा कद…तो यह था कैप्टन समर राणा. उस की नजरें भी मुझ पर टिकी हुई थीं जिन की तपिश से मेरा चेहरा सुर्ख हो गया और मेरी पलकें स्वत: ही झुक गईं.

‘लो, तुम तो मेरे मिलवाने से पहले ही भाई से मिल लीं. तो कैसा लगा मेरा भाई?’ वीरां की खनकती आवाज से मेरा ध्यान बंटा. उस के बाद मैं ज्यादा देर वहां न रह पाई, जल्दी ही बहाना बना कर घर लौट आई.

उस पूरी रात जागती रही मैं. उन बलिष्ठ बांहों का घेरा रहरह कर मुझे बेचैन करता रहा. एक पुरुष के प्रति ऐसी अनुभूति मुझे पहले कभी नहीं हुई थी. सारी रात अपनी भावनाओं का विश्लेषण करते ही बीती.

समर से अकसर ही सामना हो जाता. वह बहन को रोज घुमाता और वीरां मुझे भी साथ पकड़ कर ले जाती. दोनों भाईबहन एक से थे, ऊपर से सताने के लिए मैं थी ही. रास्ते भर मुझे ले कर हंसीठिठोली करते रहते, मुझे चिढ़ाने का एक भी मौका न छोड़ते. मगर मेरा उन की बातों में ध्यान कहां होता?

मैं तो समर की मौजूदगी से ही रोमांचित हो जाती, दिल जोरों से धड़कने लगता. उस का मुझे कनखियों से देखना, मुझे छेड़ना, मेरे शर्माने पर धीरे से हंस देना, यह सब मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था. कभीकभी डर भी लगता कि कहीं यह खुशी छिन न जाए. मन में यह सवाल भी उठता कि मेरा प्यार एकतरफा तो नहीं? आखिर समर ने तो मुझे कोई उम्मीद नहीं दी थी, वह तो मेरी ही कल्पनाएं उड़ान भरने लगी थीं.

अपने प्रश्न का मुझे जल्दी ही उत्तर मिल गया था. एक शाम मैं, समर और वीरां उन के घर के बरामदे में कुरसी डाले बैठे थे तभी आंटी पोहे बना कर ले आईं, ‘मैं सोच रही हूं कि इस राजपूत के लिए कोई राजपूतनी ले आऊं,’ आंटी ने समर को छेड़ने के लहजे में कहा.

‘मम्मा, भाई को राजपूतनी नहीं, गुजरातिन चाहिए,’ वीरां मेरी ओर देख कर बडे़ अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराई.

आंटी मेरी और समर की ओर हैरानी से देखने लगीं, पर समर खीज उठा, ‘क्या वीरां, तुम भी? हर बात की जल्दी होती है तुम्हें…मुझे तो कह लेने देतीं पहले…’

समर ने आगे क्या कहा, यह सुनने के लिए मैं वहां नहीं रुकी. थोड़ी देर बाद ही मेरे मोबाइल पर उस का फोन आया. अपनी शैली के विपरीत आज उस का स्वर गंभीर था, ‘सारी सौम्या, मैं खुद तुम से बात करना चाहता था, लेकिन वीरां ने मुझे मौका ही नहीं दिया. खैर, मेरे दिल में क्या है, यह तो सामने आ चुका है. अब अगर तुम्हारी इजाजत हो तो मैं मम्मीपापा से बात करूं. वैसे एक फौजी की जिंदगी तमाम खतरों से भरी होती है. अपने प्यार के अलावा तुम्हें और कुछ नहीं दे सकता. अच्छी तरह से सोच कर मुझे अपना जवाब देना…’

‘सोचना क्या है? मैं मन से तुम्हारी हो चुकी हूं. अब जैसा भी है, मेरा नसीब तुम्हारे साथ है.’

Raghav Chadha की दुल्हन बनीं Parineeti Chopra, देखें वेडिंग फोटोज

बॉलीवुड एक्ट्रेस परिणीति चोपड़ा और आप पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने उदयपुर के द लीला पैलेस होटल में बीते दिन 24 सितंबर को बड़े ही धूनधाम से शादी की. परिणाति राघव के संग सात जन्मों के बंधन में बंध गए है. वहीं अब कपल की शादी की तस्वीरें फैंस के सामने आ चुकी है.

परिणीति ने चुनरी पर लिखवाया ये खास शब्द

राघव और परिणीति की शादी की तस्वीरें देखने के लिए फैंस काफी उत्सुक थे. #Raghneeti का फर्स्ट लुक देखने का कल से ही बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. अब ये इंतजार हुआ खत्म, क्योंकि परिणीति ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर अपनी शादी की तस्वीरें साझा की हैं. इन फोटोज में ये जोड़ा बेहद ही प्यारा और खूबसूरत लग रहा है. वहीं इन फोटोज में देख सकते है कि परिणीति ने अपने वेडिंग लुक के साथ सिर पर एक लंबी चुनरी ओढ़ी, जिस पर उन्होंने एक खास शब्द लिखवाया.

देखें वेडिंग की खास फोटोज

परिणीति चोपड़ा अपनी शादी में पेस्टल रंग के लहंगे में नजर आईं. जिसके साथ ही वह न्यूड मेकअप लुक में नजर आ रही है. इन तस्वीरों में परिणीति बला की खूबसूरत नजर आ रही है. अपने इस लुक के साथ उन्होंने अपने गले में दुपट्टा ओढ़ने के साथ-साथ, अपने सिर पर भी एक लंबी चुनरी ओढ़ रखी थी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by @parineetichopra

 

सिंपल से दुपट्टे पर साइड में गोल्डन कलर से वर्क हो रखा है. साइड में मोती का वर्क है. लेकिन परिणीति ने सिर पर जो ओढ़नी ओढ़ रखी है उसमें गोल्डन रंग से अपने पति राघव चड्ढा का नाम गुदवाया. जो उनकी सिर पर ओढ़ी चुनरी पर साफ-साफ नजर आ रहा है.

मनीष मल्होत्रा ने डिजाइन किया था परिणीति का वेडिंग लुक

परिणीति चोपड़ा का वेडिंग लुक मशूहर फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने डिजाइन किया था. वहीं इस शादी में वह उदयपुर में गए थे. परिणीति और राघव की शादी में सानिया मिर्जा, हरभजन सिंह, सीएम अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान सहित कई सितारे और बड़ी हस्तियां पहुंचीं.

बेटी दिवस’ (Daughter’s Day) पर क्या कहते है सितारे, आइये जानें

हर साल सितंबर का चौथा रविवार ‘बेटी दिवस’ (Daughter’s Day) के रूप में मनाया जाता है. इस साल 2023 में यह दिन 24 सितंबर को मनाया जा रहा है. इस दिन को आम लोगों के साथ – साथ सेलेब्स भी मनाते है और खुद को बेटी होने का गर्व महसूस करती है. इतना ही नहीं उन्होंने समय के साथ – साथ इसकी गहराई को महसूस किया है और वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने में भी सक्षम हुई है, जबकि बचपन में वे घर की सबसे लाडली और प्रोटेक्टिव चाइल्ड रही. आज भी इसे हर बेटी एन्जॉय कर रही है. इस बार वे नेशनल डॉटर्स डे को कैसे मनाने वाली है और इस दिन का उनके जीवन में कितना महत्व है, आइये जानते है.

सेलेस्टी बैरागे

उडती का नाम रज्जो फेम अभिनेत्री सेलेस्टी बैरागे कहती है कि मैं परिवार की सबसे बड़ी बेटी हूँ मेरा एक छोटा भाई मृदुतपोल भी है. मैं असम की एक कॉलोनी में पली और बड़ी हुई हूँ और हमेशा कॉलोनी की दूसरे बच्चों के साथ खेलती थी, इससे मेरे अंदर सबसे मिलजुलकर रहने की आदत पनपी. मेरे पेरेंट्स ने मेरे किसी भी निर्णय का हमेशा साथ दिया और मैं बचपन से एक प्रिंसेस की तरह ही बड़ी हुई हूँ, लेकिन बड़ी होने पर मेरा रिश्ता पेरेंट्स के साथ काफी बदल चुका है. वे भी समय के साथ – साथ काफी बदले है, इससे मुझे उनके साथ किसी बात को शेयर करने में किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होती. वे मेरे जीवन के सबसे बड़े चीयरलीडर्स है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Binita deka (@celesty_bairagey_f_p)

 

फर्नाज़ शेट्टी

अभिनेत्री फर्नाज़ कहती है कि बेटी होना और बड़ी बेटी होने में बहुत अंतर होता है. मैं परिवार की बड़ी बेटी हूँ और मेरे दायित्व भी सबसे अलग है. देखा जाय तो पहला बच्चा किसी भी परिवार के लिए बहुत अधिक माइने रखता है, क्योंकि परिवार की आशाएं भी बड़ी बेटी से काफी होती है. मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि मैं एक बेटी, महिला और बहन हूँ और मुझे जिम्मेदारी निभाने का मौका मिल रहा है, नहीं तो लाइफ बड़ी बोरिंग हो जाती. मेरी माँ ने मुझे बेटी होने के गर्व को हमेशा महसूस करवाया है. उन्हें मेरे हर कामयाबी और काम से बहुत ख़ुशी मिलती है. यही मुझे आगे बढ़ने में भी प्रेरित करती है. मैने खुद को भाई से कभी कमतर नहीं समझी और न ही मेरी माँ ने मेरी तुलना कभी भाई से किया. मैं उनके लिए हमेशा स्पेशल हूँ और स्पेशल ही रहूंगी, ऐसा मैं सोचती हूँ.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Farnaz Shetty (@farnazshetty)

 

सुरभि दास

अभिनेत्री सुरभि दास का कहना है कि परिवार की इकलौती बेटी होने की वजह से मेरी जिम्मेदारियां बहुत अधिक है, लेकिन मैं उनके लिए स्पेशल भी हूँ. मैं कभी भी ‘पापा की परी गर्ल’ बनकर नहीं रही, जिसे सभी पैम्पर करें. मैंने बहुत कम उम्र में परिवार की किम्मेदारियां सम्हाली है, इससे मुझे किसी निर्णय को लेने, मैच्योर होने और एक मजबूत महिला होने में मदद मिली है. बेटी होने का मुझे गर्व है, क्योंकि मैं अपनी परिवार के किसी भी निर्णय को ले सकती हूँ. समय के साथ पेरेंट्स के साथ मेरा रिश्ता गहरा हुआ है, जिसमे खासकर मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता बहुत गहरा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Surabhi Das (@surabhi_das22)

 

शीबा आकाशदीप

अभिनेत्री शीबा आकाशदीप कहती है कि बेटी होना मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है, क्योंकि बेटियों को सबसे अधिक प्यार मिलता है. मुझे कभी भी नहीं लगा कि मैं बेटी हूँ और मेरी बातें परिवार वाले कम सुनते है. मैं खुद को अपने परिवार का स्पेशल मानती हूँ. समय के साथ – साथ परिवार के साथ मेरी बोन्डिंग बढती गई है. शादी के बाद मैंने इसे और अधिक स्ट्रोंग और इंटेंस पाया है.

 

YRKKH में लीप के बाद होगी किस एक्टर की होगी एंट्री, हुआ खुलासा

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है कई सालों से दर्शकों के बीच छाया हुआ है. प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ इन दिनों काफी ड्रामा से गुजर रहा है. वहीं शो के मेकर्स ने अक्षरा और अभिमन्यु को एक करने की तैयारी कर ली है. टीवी सीरियल का नया प्रोमो आया जिसमें देखने को मिल रहा है कि अक्षरा और अभिमन्यू की मेहंदी सेरेमनी हो रही है.

वैस तो कहा जा रहा है कि इस शो में जल्द ही लीप देखने को मिलेंगा. मेकर्स अभिमन्यू और अक्षरा की कहानी का अंत कर देंगे. जिसके बाद सीरियल में 15 या 20 साल का लीप आएगा. इसके बाद शो अबीर पर चलेगा. वहीं मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है इस शो के लिए. इन दो एक्टर्स को लीड रोल के लिए अप्रोच किया जा रहा है. शहीर शेख और करण कुंद्रा का नाम लीड रोल के लिए लिया जा रहा है. इसमें कितनी सच्चाई है आपको बताते है.

नहीं होंगे शो का हिस्सा शहीर शेख और करण कुंद्रा

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है को लेकर कई सारी मीडिया रिपोर्ट सामने आई है. दावा किया जा रहा था कि हर्षद चोपड़ा की जगह लीड रोल में शहीर शेख और करण कुंद्रा का नाम सामने आ रहा था. वहीं अब फैंस कंफर्मेंशन का इंतजार कर रहे है. लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं.

बता दें कि शहीर शेख इन दिनों अपनी फिल्म की शूटिंग में बिजी हैं, जिसमें वह कृति सेनन के साथ नजर आएंगे. इसके अलावा, करण कुंद्रा पहले ही ये रिश्ता क्या कहलाता है का हिस्सा रह चुके हैं. वह सीरियल में सीरत (शिवांगी जोशी) के बॉयफ्रेंड रणवीर के रोल में नजर आए थे, तो साफ है कि करण कुंद्रा भी इस शो का हिस्सा नहीं बन सकते हैं. मीडिया रिपोर्ट  के मुताबिक, जिसमें दावा किया गया है कि ये दोनों अभिनेता इस सीरियल का हिस्सा नहीं बन रहे हैं.

हमसफर: भाग 2- प्रिया रविरंजन से दूर क्यों चली गई

दूसरे दिन शाम को जब रवि आए तो मैं ने उन से पड़ोसियों के व्यंग्य और आक्षेपों की बात कही. रवि बोले, ‘‘तुम क्यों दूसरों की बातों में अपना दिमाग खराब करती हो? तुम शहर से बाहर घूमने भी तो नहीं जातीं. अच्छा हो कि

तुम कुछ दिनों की छुट्टी ले कर मां के पास चली जाओ या उन्हें यहां बुला लो. तुम्हें अच्छा लगेगा. क्यों अपनेआप को सब से काटती जा रही हो?’’

‘‘रवि, मैं तुम्हारे बिना कहीं जाने की कल्पना भी नहीं कर सकती. 2 दिन का विछोह भी मेरे लिए कठिन है. और मां को कैसे बुला लूं? मां इस बात को कभी नहीं स्वीकार करेंगी कि उन की बेटी एक…’’

‘‘फिर तुम बताओ प्रिया, मैं अपना घरबार, बीवीबच्चे छोड़ कर तो तुम्हारे पास रह नहीं सकता, यह सब तुम्हें पहले सोचना था.’’

रवि के कथन और इस प्रकार की प्रतिक्रिया से मैं अवाक रह गई. मेरे विश्वास को ठेस लगी.

‘‘खैर छोड़ो, चलो कहीं लौंग ड्राइव पर चलते हैं,’’ रवि बोले.

मैं आहत सी बोली, ‘‘नहीं रवि, आज मन नहीं है.’’

थोड़ी देर में रवि चले गए तो मैं सोचने लगी कि यह क्या कर डाला मैं ने? रवि ठीक ही तो कहते हैं. वे मेरे लिए अपना घरबार तो नहीं छोड़ सकते. दोष मेरा है. यह जानने के बाद कि रवि शादीशुदा हैं मु  झे पीछे हट जाना चाहिए था. पर मैं दिल के हाथों मजबूर हो गई. रवि की चाहत में बुराभला सब कुछ भूल गई.

मेरा औफिस से लौटने के बाद पहला काम होता था लेटर बौक्स खोल कर उस दिन की डाक देखना. एक दिन देखा तो एक निमंत्रणपत्र था विवाह का, वह भी रवि के घर से. रवि के बेटे के विवाह का. मु  झे आश्चर्य हुआ. रवि ने पहले तो नहीं बताया.

रवि आए तो मैं ने कहा, ‘‘तुम ने पहले नहीं बताया कि तुम्हारा विवाह योग्य बेटा है.’’

‘‘इस में बतलाने को क्या था?’’

‘‘अच्छा छोड़ो इस बात को, मु  झे सिर्फ इतना बताओ कि क्या सचमुच अपने घर शादी में शामिल होने के लिए बुलाया है मु  झे? तुम रोज आते हो, निमंत्रण खुद भी तो दे सकते थे. मैं शादी में आऊं तो क्या कह कर मेरा परिचय कराओगे अपने परिवार से?’’

‘‘तुम मेरी मित्र हो क्या इतना काफी नहीं?’’

‘‘केवल मित्र?’’

‘‘अब चलता हूं, बहुत से काम हैं. एक

ही बेटा है, बहुत जश्न से उस की शादी करना चाहता हूं.’’

विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिए मैं दिन भर ऊहापोह में रही. अंतत: निर्णय ले ही लिया कि मैं वरवधू के स्वागत समारोह में अवश्य जाऊंगी. उपहार दफ्तर से लौटते वक्त ही लेती आई थी.

नियत समय पर मैं रवि के घर पहुंच गई. वाकई विवाह स्थल की सजावट काबिलेतारीफ थी. काफी गहमागहमी थी. मैं तो वहां किसी को भी नहीं जानती थी. आंखें रवि को खोज रही थीं. रवि पुरुषों की भीड़ में नजर आए. उन्होंने भी मुझे देख लिया था पर लगा जैसे मु  झ से बचना चाहते हैं. तभी मेरे करीब आई एक आवाज ने मु  झे चौंका दिया, ‘‘तो आखिर आप आ ही गईं.’’

यह वही व्यंग्य भरी आवाज थी जिस ने मु  झे बहुत आहत किया था. अपने करीब खड़ी एक महिला को संबोधित करते हुए वे बोलीं, ‘‘दीदी, ये वही हैं जिन का जिक्र मैं ने किया था.’’

उन महिला ने आग्नेय और हिकारत भरी दृष्टि मेरी तरफ डाली और बोलीं, ‘‘आप जैसी महिलाएं, जो दूसरों की हरीभरी गृहस्थी में आग लगाती हैं, समाज के लिए कलंक हैं. अपना कैरियर बनाने के गरूर में आप जैसी औरतें समय रहते विवाह तो करतीं नहीं पर शरीर की भूख मिटाने के लिए जूठी पत्तल चाटने से नहीं चूकतीं.’’

इस से आगे मैं नहीं सुन सकी. वहां खड़े रहना मुश्किल हो गया. किसी तरह तेजतेज कदमों से चल कर गाड़ी तक आई और डोर खोल कर धम से बैठ गई. वरवधू के लिए लाए गिफ्ट को सीट पर फेंक दिया और गाड़ी स्टार्ट कर दी. घर पहुंचने पर थकीथकी चाल से चलते हुए दरवाजा खोला और ढह गई पलंग पर. इतना अपमान, इतने अपशब्द जीवन में पहली बार   झेले थे.

उस के बाद मैं रोज रवि के आने का इंतजार करती और सोचती रहती कि क्यों नहीं आए रवि? बेटे के विवाह को तो कई दिन बीत गए. कहां जाऊं मैं? जब से रवि जीवन में आए सब कुछ तो छोड़ दिया. न क्लब जाती न पार्टियों में. यहां तक कि आर्ट गैलरी में भी जाना छोड़ दिया, जिस का बड़ा चाव था.

लंबी प्रतीक्षा के बाद एक दिन रवि आए तो मैं भरभरा कर उन पर ढह गई, ‘‘कहां थे इतने दिन?’’

‘‘शांत हो प्रिया और सुनो. मेरा यहां आना अब नहीं हो सकेगा. पत्नी को सब कुछ पता चल गया. उसी ने रोक लगाई है. फिर घर में बहू आ गई है. क्या यह सब मु  झे शोभा देगा?’’

आहत होती हुई मैं बोली, ‘‘यह सब तुम क्या कह रहे हो रवि, क्या भूल गए अपने उस वादे को जो तुम ने मु  झ से किया था?’’

‘‘तुम्हें सब कुछ पहले सोचना था. कौन पत्नी सह सकती है दूसरी औरत?’’

‘‘पहले तो मेरे लिए पूरी दुनिया से लोहा लेने के लिए तैयार थे.’’

‘‘प्रिया सम  झा करो, अब बात कुछ और है.’’

‘‘मैं सम  झ गई थी उसी समय जब तुम ने बताया था कि तुम शादीशुदा हो. मु  झे तभी तुम से नाता तोड़ लेना था, लेकिन मैं दिल के हाथों मजबूर थी. यह क्यों नहीं कहते रवि कि तुम मु  झ से कटना चाहते हो. तुम्हारा जी भर गया मु  झ से. मैं तो केवल अपने प्यार का वास्ता दे कर ही तुम्हें रोक सकती हूं. बाकी तो मेरा कोई अधिकार नहीं. अधिकार मिलता है रिश्ते से और हमारा कोई रिश्ता ही नहीं. मु  झे क्या मिला रवि? केवल तुम्हारा इंतजार. हफ्तों न भी आओ तो मैं शिकायत नहीं कर सकती. सब कुछ जानते हुए भी तुम्हारे प्यार के जाल में उल  झती चली गई.’’

‘‘प्रिया, वर्तमान में, सचाई में जीना सीखो. भावुकता इंसान को कमजोर बनाती है. मैं तुम से दूर नहीं, अलग नहीं. जब भी तुम्हें जरूरत होगी, आता रहूंगा.’’

‘‘बस रवि, बस,’’ कह कर मैं ने रवि को चुप करा दिया. थोड़ी देर में वे मेरे घर से चले गए.

लगामरहित सोशल प्लेटफौर्म

सोशल   मीडिया प्लेटफौर्मों में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर के बाद अब फेसबुक की कंपनी से ट्विटर जैसा थ्रैड्स भी जुड़ गया है. सोशल मीडिया आज मुख्य मीडिया से ज्यादा महत्त्व का हो गया है. मुसीबत यह है कि इन सब का कोई संपादक नहीं है, कोई यह नहीं देख रहा है कि लोग जो फौरवर्ड कर रहे हैं या लिख रहे हैं वह मतलब का है या नहीं, भ्रामक है या नहीं, झूठा है या सच्चा, उकसाता है या थोड़ा मनोरंजन करता है आदिआदि.

दरअसल, सोशल मीडिया सुलभ है, हाथ में ले कर एकदूसरे से बात करने के लिए बने मोबाइल पर यह मिल रहा है, इसलिए इसे जम कर देखा जा रहा है. वहीं, इस पर बकवास करने वालों की भीड़ इतनी बड़ी हो गई है कि सही व समझदारी की बात ढूंढ़ना मुश्किल हो गया है.दुनिया की सारी सरकारें आज सोशल मीडिया से भयभीत हैं क्योंकि इस ने चौराहों पर होने वाली गपों को एक क्षेत्र तक सीमित न रख कर दुनियाभर में फैला दिया है. इस से जहां सरकारों की पोल खोली जा रही है वहीं सरकारों के समर्थक जम कर अपना प्रचार कर रहे हैं और आमजन सरकारी झूठ को सच मानने लगे हैं.

जो काम कभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के लेखक-संपादक बड़ी गंभीरता और जिम्मेदारी से करते थे वही चीज आज नौसिखिए बिना आगेपीछा सोचे पोस्ट कर रहे हैं. सरकारों को उन मैसेजों की तो चिंता है जो सत्ता में बैठे नेताओं और जनता की परेशानियों पर खरीखोटी सुनाएं. पर जो उन की ?ाठी बड़ाई करें या फालतू के लोगों के स्वास्थ्य, चमत्कारी उपायों, डरावने व घिनौने वीडियो पोस्ट करें उन की कोई चिंता नहीं है.

मार्क जुकरबर्ग का थैड्स एलन मस्क के ट्विटर को नुकसान पहुंचा कर दोनों का बंटाधार कर दे तो अच्छा है वरना सोशल मीडिया उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां यह सिर्फ लोगों को परियों की कहानियां सुनाने वाला रह गया है और उन्हें लगातार मानसिक दीवालिया बना रहा है. शातिर लोग पैसा बनाने या सिर्फ चख लेने के लिए जो बातें सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, वे तर्क, तथ्य, विवेक से दूर हैं. वे लोगों की सोचनेसमझने की शक्ति को कुंद कर रही हैं.

इन पर कंट्रोल करना सरकार का काम नहीं है, लोगों का खुद का है. यदि समाज को समझदारी और विशेषज्ञों की जानकारी चाहिए तो सोशल मीडिया कभी काम का नहीं हो सकता क्योंकि इस में कौन सा तथ्य कहां से आया, कभी पता नहीं चल सकता. बाजार में मजमा लगा कर झूठी कहानियों के बल पर मर्दानगी की दवाएं बेचने वालों से भी बदतर है यह क्योंकि वहां एक शक्ल तो होती है. सोशल मीडिया पर न पता है, न सूरत है, न स्रोत है.

लोग, बस, इस से भ्रमित हुए चले जा रहे हैं.सोशल मीडिया से लाभ हो रहा है तो टैक्नोलौजी देने वाले प्लेटफौर्मों को, जो मनचाहे मुनाफे विज्ञापनों से कमा रहे हैं. लोग इन विज्ञापनों से भी वैसे ही बहकाए जा रहे हैं जैसे अपने धर्मगुरुओं और नेताओं के चमत्कारों के माध्यम से बहकाए जाते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें