मुझे कोई सच्चे मन से प्यार करने वाला इंसान नहीं मिल रहा, क्या कमी है मुझ में?

सवाल

इस साल मैं 24 वर्ष की हो जाऊंगी. मेरी जौब भी लग गई है. अब मैं पढ़ाईलिखाई से फ्री हो गई हूं. नौकरी करने के अलावा कोई दूसरा काम करने को नहीं है. लेकिन मैं एक महीने के अंदर ही अपनी रूटीन लाइफ से बोर हो गई हूं. दरअसल कालेज टाइम में कई बौयफ्रैंड बनाए थे. कई बौयफ्रैंड वाली बात जान कर आप को लगेगा कि मैं लड़कों के साथ फ्लर्ट करती हूं लेकिन ऐसा हरगिज नहीं, बल्कि मैं ‘वन मैन वुमन’ थिंकिंग वाली लड़की हूं लेकिन मुझे लड़के ही ऐसे मिले जो प्यार को ले कर सीरियस ही नहीं होते थे जबकि मैं इमोशनल हूं और बहुत जल्दी किसी एक से जुड़ जाती हूं और उस के प्रति वफादार रहती हूं लेकिन मुझे लड़के ऐसे मिले जिन्होंने मुझ से सिर्फ अपने मतलब के लिए दोस्ती की और फिर प्यार का वास्ता दिया जिसे मैं सच मान बैठती थी.

लेकिन अब मुझे लड़कों की फितरत के बारे में पता चल गया. मेरा अब कोई बौयफ्रैंड नहीं है. मैं बिलकुल सीधीसपाट लाइफ जी रही हूं. लेकिन जब दूसरे लड़केलड़कियों को साथ देखती हूं तो मन रोता है. मैं ने तो सब को सच्चे मन से प्यार किया था लेकिन मुझे कोई सच्चा दिलवाला नहीं मिला. मेरा भी मन करता है कि कोई मुझे सच्चा प्यार करने वाला मिले. लेकिन पता नहीं क्यों मुझे धोखेबाज मिलते हैं. जबकि मैं देखने में सुंदर हूं, स्मार्ट हूं, पढ़ीलिखी हूं. अब तो जौब भी कर रही हूं. क्यों मुझे कोई सच्चा इंसान नहीं मिल रहा जो सच्चे मन से मुझे प्यार करे और जीवनभर साथ रहे? क्या कमी है मुझ में?

जवाब

आप की बातें सुन कर अफसोस हुआ कि आप को कोई ऐसा सच्चा इंसान नहीं मिला जो आप को वाकई सच्चा प्यार करता और जीवनभर साथ निभाने का वादा करता. इस चक्कर में आप एक, फिर दूसरा, फिर तीसरा बौयफ्रैंड बनाती चली गईं. लेकिन हर बार निराशा हाथ लगी.ऐसा लग रहा है कि आप नई रिलेशनशिप में जाने के लिए बहुत जल्दबाजी कर जाती हैं. लाइफ में कदम सोचसमझ कर उठाने चाहिए. एक ब्रेकअप हुआ तो दूसरी रिलेशनशिप में जाने से पहले बहुतकुछ सोचनासमझना होता है.

पहले ब्रेकअप में जो गलतियां हुईं उन्हें एनालिस करने की जरूरत होती है. प्यार करना और उसे जीवनभर निभाने की बात करना कोई खेल नहीं है. जब आप किसी के साथ रिश्ते में जुड़ते हो तो साथ में कई बातें जुड़ी होती हैं. लड़के जब एक लड़की के साथ जीवनभर साथ निभाने की बात करते हैं तो वे भी एक बार यह जरूर देखते हैं कि वह लड़की उस के परिवार के साथ जुड़ पाएगी? क्या वह शादी कर के उसे खुशी दे पाएगी? क्या इस लड़की से शादी कर के वह आगे लाइफ में और तरक्की करेगा?अब आप एक बार सोचिए जब आप किसी लड़के के साथ रिलेशनशिप में आती हैं तो आप उसे क्या फील करवाती हैं? क्या आप उस लड़के को फील करवाती हैं कि आप से बेहतर लाइफपार्टनर उसे नहीं मिल सकता. आप एक फुल मैरिज मैटीरियल पैकेज हैं?लाइफ को प्रैक्टिकल हो कर भी सोचना होता है.

यह बात बिलकुल सही है कि प्यार लाइफ में न हो तो कुछ नहीं लेकिन जैसे एक महंगी, शानदार गाड़ी मिल जाए लेकिन उस में डालने के लिए पैट्रोल न हो तो वह किस काम की. इसलिए आप शांत दिमाग से बैठ कर सोचिए कि आप अपनी रिलेशनशिप में कहां गलती करती हैं. कुछ तो ऐसे लूज पौइंट होंगे जो आप से रह जाते होंगे. रिलेशनशिप को मजबूत कैसे बनाएं, ऐसे कई वीडियो उपलब्ध हैं. लेख पढि़ए. आप को कई नई बातें सोचनेसमझने में मदद मिलेगी.

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बच्चों को खिलाएं हैल्दी और टेस्टी रैसिपीज

शोभा मुखर्जी 39 साल की है. वह दिल्ली के रोहिणी इलाके के आनंदा अपार्टमैंट में अपने हसबैंड के साथ रहती है. उन का 1 बेटा है. बेटे आरव की उम्र 7 साल और बेटी शोभा की शिकायत है कि जब भी वह उसे खाना देती है तो वह उसे खाने में बहुत नखरे करता है. कभीकभी तो वह खाना खाता ही नहीं है. आलूमेथी की सब्जी अकसर अपनी प्लेट में ही छोड़ देता है. लेकिन वह जंक फूड बड़े चाव से खाता है खासकर पिज्जा और बर्गर. उस के खाना न खाने पर कई बार मु?ो उसे जंक फूड देना पड़ता है. जबकि मैं नहीं चाहती कि आरव ज्यादा जंक फूड खाए. मैं चाहती कि वह ज्यादा से ज्यादा हैल्दी फूड खाए ताकि फिट रह कर बीमारियों से दूर रहें.’’

यह प्रौब्लम सिर्फ शोभा की ही नहीं है. इस समस्या से तमाम मांएं जू?ा रही हैं. बच्चों को तो बस बर्गर, पिज्जा, पास्ता, फ्रैंच फ्राइस, मोमोस, रोल आदि पसंद होते हैं. लेकिन जंक फूड से पोषण नहीं मिलता. इस से सिर्फ मोटापा और बीमारियां मिलती हैं.

बच्चे खासकर हरी सब्जियां जिन में घीया, तोरी और पालक शामिल हैं, खाने से कतराते हैं. वहीं फलों की बात करें तो चीकू, केला उन्हें पसंद नहीं आते. दूध पीने के नाम पर तो बच्चे मुंह बनाने लग जाते हैं. ऐसे में उन्हें हैल्दी और पोषणयुक्त खाना खिलाना किसी चैलेंज से कम नहीं होता है.

अगर आप बच्चों को न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खिलाना चाहती हैं तो आप को खाना बनाने और बच्चों को खाना खिलाने के तरीकों में कुछ बदलाव कर के नए तरीकों को अपनाना होगा. कुछ ऐसे स्मार्ट तरीके हैं जिन्हें अपना कर आप बच्चों को न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खिला सकती हैं. आइए, जानते हैं उन स्मार्ट तरीकों को:

अपने फूड का नाम खुद रखें

खाने को अपना नया नाम दें. बच्चे खाने का वही बोरिंग सा नाम सुन कर थक जाते हैं इसलिए खाने का नया नाम रखें. कोशिश करें कि नाम कुछ फनी और इंट्रस्टिंग हो जैसे नौर्मल से ब्रैडआमलेट का नाम बदल कर एग्गी ब्रैड रख सकती हैं.

इस का नाम सुन कर बच्चे सोचेंगे कि कोई नई डिश है और वे इसे बड़े चाव से खाएंगे. इसी तरह ब्रोकली से बनी डिश को आप बेबी ट्री नाम दे सकती हैं. ब्रोकली माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का बेहतरीन सोर्स हैं. इस से विटामिन के, बी6, बी2, बी9 और सी पाया जाता है.

चेंज करें फूड की शेप

बच्चों को खाना खिलाने का एक अन्य तरीका उस की शेप को बदलना है. बच्चे सैंडविच को ट्राइऐंगुलर शेप में देखदेख कर बोर हो गए होंगे. उन्हें सैंडविच नई शेप में परोसें. इस के लिए आप उसे स्टार, हार्ट और सर्कल शेप में ट्राई कर सकती हैं. इस के लिए मार्केट में डिफरैंट टाइप के शेप कटर मिलते हैं. ध्यान रहे कि सैंडविच ब्राउन ब्रैड का ही बनाएं. इसे और अट्रैक्टिव बनाने के लिए इस पर टोमैटो सौस से आंखें और मुंह बना सकती हैं. इस पर पतलीपतली मूली या गाजर से मूंछें भी बना सकती हैं. ऐसा क्रिएटिव सैंडविच देख कर बच्चे बारबार इसे खाने की फरमाइश करेंगे.

इसी तरह अलगअलग तरह के फेस पैनकेक बना सकती हैं जैसे स्माइली फेस. यह बच्चों को बहुत पसंद आएगा. इसी तरह आप टोस्ट और इडली को भी अलगअलग शेप में तैयार कर सकती हैं, जिन्हें खा कर बच्चे आप के खाने के फैन हो जाएंगे.

रंगों का खेल

बच्चों को फ्रूट्स खिलाना बिलकुल आसान नहीं है. लेकिन उन्हें न्यूट्रिशन से भरपूर डाइट देनी है तो यह सब तो खिलाना ही होगा. आप फलों के साथ रंगों का खेल नहीं खेल सकती हैं जैसे अगर बच्चे फल खाने से इनकार करते हैं तो आप फल को अलगअलग शेप में काट कर सकती है जैसे मंकी और खरगोश का फेस. आप अलगअलग फलों को काट कर घर या ट्री की शेप दे कर बच्चों को खाने के लिए तैयार कर सकती हैं.

नो स्टोर जंक फूड

जब घर में जंक फूड रखा होता है तो बच्चे उसे खाने की जिद्द करते हैं. ऐसे में बेहतर है कि आप घर में जंक फूड न के बराबर ही स्टोर करें. कोशिश करें कि घर में ज्यादा से ज्यादा हैल्दी फूड रखें. अगर वे इस में से कुछ खाएंगे भी तो आप बेफिक्र हो जाएं क्योंकि यह हैल्दी फूड ही होगा.

बच्चों के फ्रैंडस को इन्वाइट करें

बच्चों के फ्रैंडस को घर पर इन्वाइट करें. उन्हें खाने के लिए वे चीजें दें जो उन्हें पसंद हों, लेकिन हैल्दी और डिफरैंट स्टाइल में. इस के लिए आप ड्राई फ्रूट्स को पीनट बटर में कोट कर के दे सकती हैं. इस के अलावा मखाने रोस्ट कर के भी दे सकती हैं.

सब्जियों को दें ड्रैसिंग का साथ

बच्चों को कुछ कच्ची सब्जियां जैसे गाजर और खीरा खाने को दें. टेस्ट के लिए ऊपर थोड़ी सी ब्राउन शुगर लगा दें. कुछ सब्जियों पर दही की भी ड्रेसिंग की जा सकती है. एक रिसर्च के मुताबिक, रोजाना फल या सब्जियां खाने से कार्डियोमैटाबोलिक बीमारी का खतरा 6 से 7% तक ही रहता है.

बच्चे मफिन खाना बेहद पसंद करते हैं. ऐसे में आप मफिन को हैल्दी बनाने के लिए केले या सेब का इस्तेमाल सकती हैं.

आप इस में ड्राई फ्रूट्स भी पीस कर या काट कर डाल सकती हैं. ओट्स, औरेंज और किशमिश से भी मफिन तैयार कर सकती हैं. ओट्स पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इस में विटामिन ई और फाइबर प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है. इस तरह से बच्चे टेस्टी और हैल्दी मफिन खा सकेंगे.

फलों का कबाब

बच्चों को फल खिलाना आसान नहीं. लेकिन उन्हें हैल्दी बनाने के लिए फल तो खिलाने ही होंगे. इस के लिए आप फलों का कबाब बना सकती हैं. कबाब बनाने के लिए 3 या 4 तरह के फलों को एक स्टिक में डाल लें और फिर उन पर नमक और चाट मसाला बुरक दें. फ्लों का कसाब तैयार हो गया. आप के बच्चे इसे खेलखेल में ही खा जाएंगे और उन्हें फलों का पोषण मिल जाएगा.

हैल्दी ऐंड टेस्टी बीटरूट रोल

अगर आप के बच्चे हैल्दी खाना खाने में नखरे करते हैं तो आप उन्हें  कौर्न और पनीर से बना बीटरूट रोल दे सकती हैं. बीटरूट रोल बनाने के लिए आटे में उबले बीटरूट पल्प डाल कर गूंध लें और परांठा बना लें.  इस की फिलिंग मनपसंद मसाले से तैयार कर सकती हैं. इस के बाद परांठे को रोल की शेप दे दें.

सेब को दें जैम का रूप

सेब को हैल्थ के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. लेकिन बच्चे इसे आसानी से नहीं खाते. अगर आप बच्चों को सेब खिलाना चाहती हैं तो सेब का जैम इस्तेमाल कर सकती हैं. आप इसे बच्चों को रोटी या ब्रैड के साथ दे सकती हैं. यकीन मानिए आप के बच्चे इसे बड़े चाव से खाएंगे.

बच्चे हैल्दी फूड से ज्यादा टेस्टी फूड की भाषा सम?ाते हैं, इसलिए बच्चों को हैल्दी और टेस्टी दोनों ही तरह के फूड का कौंबिनेशन दें. इस से उन्हें टेस्ट और न्यूट्रिशन दोनों मिलेंगे.

किस को न करें मिस

भारत में ‘किस’ सिर्फ रील लाइफ में ही देखने को मिलती है, रियल लाइफ में नहीं. इस किस सीन को परदे पर देख कर हम खुश तो होते हैं, लेकिन जब इस पर अमल की बात आती है तो खुलेपन की बात तो छोडि़ए, बैडरूम में भी ज्यादातर दंपती एकदूसरे को सपोर्ट नहीं करते हैं. जबकि, किस पर हुए कई सर्वे बता चुके हैं कि इस से कोई नुकसान नहीं, बल्कि फायदा ही होता है.

कई महिलाएं और पुरुष अकसर यह बहाने बनाते देखे जा सकते हैं कि सुनो न, आज मन नहीं है, बहुत थक गया हूं/गई हूं. कल करेंगे, प्लीज. जब आप अपने पार्टनर के साथ चंद प्यारभरे लमहे गुजारना चाहें और ऐसे में आप का पार्टनर कल कह कर बात टाल दे तो आप को बुरा लगना स्वाभाविक है. लेकिन क्या आप ने कभी यह सोचा है कि ऐसा कह कर आप अपना रिश्ता तो खराब नहीं कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाएं. बहुत से ऐसे शादीशुदा जोड़े हैं जो एकदूसरे की फीलिंग्स को इसी तरह हर्ट कर अपना रिश्ता बिगाड़ लेते हैं.

सभी को प्यार को ऐक्सप्रैस करने का हक है. ऐसे में पार्टनर जब इस तरह से संबंध को रोकेगाटोकेगा तो इस से न सिर्फ आप का रिश्ता प्रभावित होगा बल्कि मन में भी खटास आएगी. इतना ही नहीं, ऐसा करना आप के शारीरिक व मानसिक संतुलन पर भी बुरा असर डालेगा. आप को मालूम होना चाहिए कि किस थेरैपी दे कर आप का पार्टनर पलभर में आप की सारी थकान को गायब कर सकता है. इसलिए इसे मना करने से पहले थोड़ा सोच लें. आइए, अब जानें किस की खूबियों को :

  1. रिश्ता मजबूत बनाता है किस 

यह तो हम सभी जानते हैं कि लिपलौक करने से रिश्ता अधिक मजबूत बनता है. एकदूसरे के साथ लिपलौक करने से एकदूसरे के प्रति ऐक्स्ट्रा प्यार का एहसास मिलता है. ऐसा लगता है कि मेरा पार्टनर मुझ से बेहद प्यार करता है. किस करने से औक्सीटौसिन हारमोन बनता है, जो रिश्तों को ज्यादा मजबूत बनाता है.

2. सैक्सुअल प्लैजर को बढ़ाता है 

सैक्स करने से जहां दिनभर की थकान या किसी भी तरह का तनाव तो कम होता ही है, आप का रिश्ता भी ज्यादा स्ट्रौंग बनता है. लेकिन किसी भी किस के बिना आप की सैक्स ड्राइव अधूरी रहती है. सैक्स से पहले किस आप का सैक्सुअल प्लैजर बढ़ाता है. आसान शब्दों में कहें तो सैक्स करने से पहले अपने पार्टनर के साथ एक किस सैशन जरूर करें. ऐसा करना आप के प्लैजर को न सिर्फ बढ़ावा देगा, बल्कि आप के पार्टनर को भी पूरी तरह से संतुष्ट करेगा.

3. स्पिट स्वैपिंग भगाए बीमारी 

चुंबन करते समय जब तक स्पिट स्वैपिंग न हो तब तक किस करना बेमानी सा है. किस या लिपलौक करते समय अपने पार्टनर के साथ बेझिझक हो पूरा मजा लें और स्पिट यानी थूक आने पर पोंछें नहीं, बल्कि उस की स्वैपिंग करें, क्योंकि यह कई संक्रमणों को दूर करता है. सैक्स के दौरान किए जाने वाले किस से इम्यूनिटी भी बढ़ती है.

4. मिलती हैं जहां की खुशियां 

किस करते वक्त एंडोफिंस नाम का तत्त्व निकलता है जो आप को खुश रखने में मदद करता है. अगर आप टैंशन में हैं या गहन सोचविचार में तो पार्टनर को किस करना आप के लिए दवा का काम करेगा.

5. दवा का काम करे किसिंग सैशन 

हौट किसिंग सैशन के दौरान आप का शरीर एक ऐड्रेनलीन हारमोन रिलीज करता है, जो किसी भी तरह के दर्द को कम करने में मददगार होता है. अब दर्द को कम करने के लिए भी आप यह सैशन कई बार ट्राई कर सकते हैं. अगर आप के सिर में दर्द है तो लिपलौक जरूर ट्राई करें और इस का असर देखें और फिर इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता है.

6. तनाव भगाए किस

दिन के ढलतेढलते इंसान भी काफी थकाथका सा महसूस करने लगता है, इसलिए सिर्फ अपने काम का दबाव या अपने हारमोनल बदलावों को ब्लेम करना गलत होगा. थके होने पर आप घर जा कर बस अपने पार्टनर के साथ एक किस थेरैपी लीजिए. यकीन मानिए, आप की थकान पलक झपकते छूमंतर हो जाएगी और आप फ्रैश महसूस करेंगे. दरअसल किसिंग करने से कार्टिसोल नामक हार्मोन लैवल कम होता है जो आप के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है. एंडोक्राइन सिस्टम से दिमाग भी स्वस्थ रहता है.ऐक्स्ट्रा

7. कैलोरीज करता है कम 

अपनी हैल्थ के प्रति सचेत लोग अपनी अति कैलोरी को कम करने के लिए या तो ट्रेडमिल पर रनिंग करते हैं या फिर डाइट पार्ट फौलो करते हैं. अगर आप कभी जिम जाना भूल जाएं या पार्टी का मौका देख डाइट चार्ट को एक दिन के लिए फौलो न कर पाएं तब भी आप अपने पार्टनर के साथ किसिंग सैशन कर के अपनी कैलोरी बर्न कर सकते हैं. जी हां, जितनी कैलोरी आप की जिम सैशन में कम नहीं होगी उतनी आप की किसिंग सैशन में हो जाएगी. इतना ही नहीं, कैलोरी बर्न करने के अलावा किस करने से आप के चेहरे की भी ऐक्सरसाइज होती है. किस आप की स्किन मसल्स को भी टाइट करता है, जिस से आप दिखेंगे जवांजवां.

8. डैंटिस्ट को भी रखे दूर 

किस मुंह, दांतों और मसूड़ों की बीमारी से भी आप को दूर रखता है. मुंह में लार कम बने तो भी किसिंग फायदेमंद हो सकता है.

बड़े काम की चीज है नारियल तेल

नारियल से बना तेल अपने एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगस गुणों से भरपूर होता है. बनावट में हल्का और त्वचा में आसानी से अवशोषित होने वाला नारियल तेल शरीर को ठंडक प्रदान करता है और गर्मियों में होने वाली अनेक समस्याओं के समाधान में मरहम की भूमिका अदा करता है.

  1. सनबर्न या सनटैन दूर करने में मददगार

गर्मियों में सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के कारण त्वचा को सनबर्न या सनटैन से बचाने में नारियल तेल कारगर साबित होता है. नारियल तेल में थोड़ा सा टमाटर का रस मिला कर प्रभावी जगह पर नियमित रूप से लगाने पर त्वचा का रंग ठीक हो जाता है.

2. पसीने की दुर्गन्ध रोकने में सहायक

गर्मियों में पसीने की समस्या से दो चार होना आम बात है. नारियल तेल में मौजूद लौरिक एसिड पसीने की दुर्गन्ध पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारता है. नहाते समय अपनी बाल्टी में एक नीबू का रस और नारियल तेल की 5-6 बूंदे डाल कर नहाएं तो इससे पसीने से राहत मिलती है और दुर्गन्ध भी कम होती है. आप अपने अंडरआर्म्स पर थोड़ा-सा नारियल तेल लगा लें तो दुर्गन्ध कम होगी.

3.त्वचा को रूखी होने से बचाए

सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के प्रभाव और पानी की कमी के कारण त्वचा की प्राकृतिक नमी पर भी असर पड़ता है. एसपीएफ और मॉइस्चराइजिंग गुणों से धनी नारियल तेल त्वचा में होने वाली लालिमा, चकत्ते, बेजान और रूखेपन को दूर करता है. ठंडी प्रकृति का होने के कारण यह त्वचा में होने वाली जलन और खुजली को शांत करता है और मॉइस्चराइज करके मुलायम बनाए रखता है. इसके लिए नहाने के बाद पूरे शरीर पर हल्का-हल्का तेल लगाने से त्वचा में ताजगी बनी रहती है. सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के प्रभाव से आपकी त्वचा का बचाव करने में नारियल का तेल एक सनस्क्रीन का भी काम करता है.

गर्मियों में अगर आपको दिन में अपनी त्वचा पर क्रीम या मॉइस्चराइजर लगाने में परेशानी हो, चिपचिपाहट महसूस हो या पसीना आता हो तो त्वचा को नमी युक्त और मुलायम रखने के लिए रात में इस तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर आप मॉइस्चराइजर में नारियल तेल की कुछ बूंदें मिलाकर लगाएं तो सोने पर सुहागा होगा.

4. बालों को भी दे पोषण

हमारे बाल भी मौसम की चपेट में आ जाते हैं. अल्ट्रावॉयलेट किरणों और पसीने के कारण बाल अकसर चिपचिपे, रूखे और बेजान हो जाते हैं, जिस कारण वे झड़ने भी लगते हैं. इसके अलावा क्लोरीन युक्त पानी के इस्तेमाल और स्विमिंग पूल के पानी का बालों पर खासा असर पड़ता है. इसके लिए जरूरी है नियमित रूप से बालों की सफाई. धोने से पहले बालों में नारियल तेल की मालिश असरदार रहती है. रात को सोते समय मालिश करना बेहतर है.

अगर संभव न हो तो नहाने से एक घंटे पहले नारियल के हल्के गर्म तेल से मालिश जरूर करें. रूसी की समस्या हो तो तेल में थोड़ा-सा कपूर मिलाकर लगाएं. इससे बाल कम टूटते हैं और इन्हें पोषण भी मिलता है. सिर धोने के बाद अगर बाल ज्यादा ड्राई हों तो हल्का सा नारियल तेल लगाने से चमक बरकरार रहती है.

5. लिप बाम का काम

शरीर में डीहाइड्रेशन या पानी की कमी का असर होंठों पर भी पड़ता है. कटे-फटे होंठों में से खून भी आने लगता है. नारियल तेल इनके लिए बेहतरीन बाम का काम करता है. दिन में 3-4 बार उंगली की टिप से नारियल तेल होंठों पर लगाना काफी फायदेमंद साबित होता है.

6. मॉइस्चराइजर की तरह करे काम

स्क्रबर की तरह इस्तेमाल होने वाला नारियल तेल मॉइस्चराइजिंग का काम बखूबी करता है. एक छोटे चम्मच नारियल के तेल में चीनी या समुद्री नमक मिला कर त्वचा पर रगड़ने पर मृत त्वचा बड़ी आसानी से उतर जाती है और त्वचा मुलायम और चमकदार हो जाती है. इससे कुहनी, घुटनों, गर्दन जैसे शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाली कालिमा भी धीरे-धीरे खत्म हो जाती है.

7. संक्रमण से करे बचाव

गर्मियों में बैक्टीरियल संक्रमण से अकसर अंदरूनी अंगों के आसपास दाने, लाल चकत्ते हो जाते हैं, जिनके कारण असहनीय खुजली और जलन होती है. नारियल का तेल लगा कर इन पर आसानी से काबू पाया जा सकता है.

8. फंगल इन्फेक्शन को करे दूर

माइक्रोबियल गुण से भरपूर नारियल तेल गर्मियों में होने वाले दाद-खाज जैसे फंगल इन्फेक्शंस में भी प्रभावी है. प्रभावित जगह पर नियमित रूप से नारियल तेल लगाने से आराम मिलता है.

गर्भावस्था में होने वाली उल्टी को इन पांच तरीकों से करें काबू

गर्भावस्था में उल्टी का होना बेहद आम बात है. इस दौरान महिलाओं में कई तरह के शारीरिक बदलाव होते हैं. इसका असर उनके मानसिक सेहत पर भी होता है. इस दौरान उनमें कई तरह के हार्मोंनल बदलाव होते हैं जिसके कारण उल्टी की समस्या होती है.

उल्टी होना गर्भावस्था की पहचान होती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से जी मिचलना और मौर्निंग सिकनेस भी होने लगते हैं. अगर आपकी उल्टी सामान्य है तो घबराने की कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको बहुत अधिक उल्टी हो रही है तो तुरंत सतर्क हो जाइए.

इस खबर में हम आपको कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप इन परेशानियों का घर बैठे इलाज कर सकेंगी.

  • ऐसी स्थिति में आंवले का मुरब्बा खाना भी काफी असरदार होता है.
  • गर्भावस्था के लगातार उल्टी होने पर सूखे या हरे धनिया को पीस कर मिश्रण बना लें. समय समय पर इसका सेवन करने से उल्टी की समस्या बंद हो जाती है. इसमें काला नमक मिला कर भी सेवन किया जा सकता है.
  • जीरा, नमर, नींबू का रस और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार कर लें. कुछ देर पर इसे चूसते रहें. ऐसा करने से आपको फायदा होगा.
  • तुलसी के पत्ते के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी फायदा होता है.
  • अगर आपको लगातार उल्टियां हो रही हैं तो रात में एक ग्लास पानी में काले चने को भींगा कर छोड़ दें और सुबह में उस पानी को पी लें. ऐसा करने से आपको काफी फायदा होगा.

थोड़ा दूर थोड़ा पास- भाग 1 : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

साराऔफिस खाली हो चुका था पर विजित अपनी जगह पर उल झा हुआ सा सोच में बैठा था. वह बहुत देर से तन्वी को फोन करने की सोच रहा था पर जितनी बार मोबाइल हाथ में उठाता, उतनी बार रुक जाता. क्या कहेगा तन्वी से, वही जो कई बार पहले भी कह चुका है?

पिछले काफी समय से तन्वी से उस की बात नहीं हुई थी. लेकिन आज तो वह बात कर के ही रहेगा. उस ने मोबाइल फिर उठाया और नंबर मिला दिया. उधर से तन्वी की हैलो सुनाई दी.

‘‘तन्वी…’’ विजित की आवाज सुन कर तन्वी पलभर के लिए चुप हो गई. फिर तटस्थ स्वर में बोली, ‘‘हां बोलो विजित…’’

‘‘तन्वी एक बार फिर सोचो, सब ठीक हो जाएगा… इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं है… आखिर तुम्हें मु झ से तो कोई शिकायत नहीं है न… बाकी समस्याएं भी सुल झ जाएंगी… कुछ न कुछ हल निकालेंगे उन का… तुम वापस आ जाओ… ऐसा मत करो… ऐसा क्यों कर रही हो तुम मेरे साथ…’’ बोलतेबोलते विजित का स्वर नम हो गया था.

‘‘पिछले 2 सालों से तुम समस्या को नहीं सुल झा पाए विजित तो आगे क्या सुल झाओगे… मैं ऐसे घुटघुट कर और तनाव भरे माहौल में जिंदगी नहीं काट सकती… पूरी जिंदगी ऐसी नहीं जी पाऊंगी मैं… माफी चाहती हूं तुम से…’’ कहतेकहते तन्वी का स्वर भी भीग गया था.

उस ने फोन रख दिया. विजित खामोश आंखों से ठंडे फोन को घूरता रह गया. 2 साल हो गए थे विजित के विवाह के और पिछले 1 साल से तन्वी मायके में थी. तन्वी से जब उस की रिश्ते की बात चल रही थी तो उस बीच वे दोनों काफी बार मिले थे.

विजित को तन्वी एक सुंदर, सुल झी हुई, शांत तबीयत की संतुलित लड़की लगी थी. योग्य तो वह थी ही और उसी की तरह एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रही थी. तन्वी से बात करते समय उस ने स्पष्ट कर दिया था कि आजकल की आजाद खयाल लड़कियां ससुराल में रहना पसंद नहीं करती हैं पर वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा है. दीदी की शादी बहुत पहले हो चुकी है, इसलिए वह कभी उन से अलग नहीं जा पाएगा. तो क्या तन्वी उन के साथ रह पाएगी.

तन्वी बोली थी, ‘‘मु झे क्या समस्या हो सकती है मातापिता के साथ रहने में… उन के साथ रहने से हमें सहायता ही मिलेगी… थोड़ेबहुत सम झोते करने पड़ेंगे… उस की कोई बात नहीं… वह तो अकेले रहने पर भी करने पड़ते हैं…’’

सुन कर वह खुश हो गया था. पर वह यह नहीं बोल पाया था कि शिक्षित होते हुए भी उस की मां बहुत कुछ पुराने खयालों की हैं. उस

समय उस ने सोचा कि इतनी अच्छी लड़की को वह इतनी छोटीछोटी बातों के कारण तो नहीं छोड़ सकता.

उन का विवाह हो गया. स्वच्छ विचार व पावन भावनाएं ले कर आई थी तन्वी उस की जिंदगी में, उस के घर में. शुरूशुरू में कुछ महीने ठीकठाक रहे. मां का मूड वह कई बार कई बातों पर उखड़ा हुआ देखता पर सोचता शायद धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. कितना प्यार करती थी तन्वी उसे और वह तन्वी को. लेकिन घर के कशमकश भरे वातावरण व रिश्तों की तनाव भरे खींचतान के बीच उन के प्यार का  झरना कम होतेहोते कब सूखने लगा था, उसे एहसास तक नहीं हो पाया.

तन्वी बड़ी कंपनी में बड़े पद पर कार्यरत थी. बड़ी जिम्मेदारियां थीं उस की. पर मां ये सब भूल जाती थीं. वे उस से आम घरेलू बहुओं वाली उम्मीद करने लग जाती थीं. किचन में तन्वी अपने समय व क्षमतानुसार पूरा प्रयत्न करती, मां की सहायता करने की. पर मां को तो पड़ोसी की बहू दिखती कि कैसे वह सुबह की चाय से ले कर रात का खाना भी हाथ में उपलब्ध कराती है.

घर में होने वाले व्रत, उपवास, तीजत्योहार में हिस्सा लेती है. नवरात्रों में पूरे 9 दिन के व्रत रखती है. घर में होने वाले कीर्तनों में ढोलक की थाप पर कीर्तन गाती है. तीज पर नाचती है. सुबह उठती है. साड़ी में सजती है. किचन में भी तरहतरह के पकवान बनाने आते हैं.

उन्हें तन्वी की योग्यता को देखते हुए उस का मीठा स्वभाव या संतुलित व्यवहार नहीं दिखता. समय की कमी और थकान के बावजूद उन को खुश करने की उस की कोशिश नहीं दिखती.

वह कई बार मां को सम झाता, ‘‘मां आप छोटीछोटी बातों पर ध्यान देना छोड़ दो… किचन का काम इतना बड़ा नहीं है… खाना बनाने के लिए किसी को रख लेते हैं… आप के बस का भी नहीं है अब काम करना… तन्वी भी औफिस से आ कर थक जाती है… पैसा किसलिए कमाते हैं हम… सुखसुविधाओं के लिए ही न… किसी फुलटाइम मेड का इंतजाम कर लेते हैं…’’

तो मां बात को कहीं और ही घुमा देतीं, ‘‘हांहां… अब दिख रहा है तुम्हें कि मां के बस का नहीं है… जब बीबी आ गई… कमाता तो पहले भी था, तब कभी नहीं दिखी मां की परेशानी… अब जब बीवी को करना पड़ता है तो काम दिखता है…’’ और मां के आंसू निकल पड़ते, ‘‘तभी कहते हैं कि शादी के बाद बेटे बदल जाते हैं… सुना ही था अब देख भी लिया…’’

मां का बिसूरना देख उसे सम झ नहीं आता कि वह मां को चुप कराए या अंदर जा कर मां की बातें सुन रही तन्वी को सांत्वना दे. छुट्टी के दिन तन्वी का थोड़ा सा देर से उठना भी मां को अखर जाता. उस की थोड़ी आधुनिक ड्रैस तो वे देख भी नहीं पाती थीं. रोजरोज के तानों से बचने के लिए तन्वी ने वैस्टर्न डै्रसेज को पहनना ही छोड़ दिया था. जब मायके जाती तभी अपने शौक पूरे कर लेती. मां को बहू की खुशी से ज्यादा अपने पासपड़ोस की खुशी अधिक प्यारी थी.

मां को शिकायत रहती, ‘‘आसपास की सब बहुएं व्रतउपवास करती हैं… एक हमारी है, करवाचौथ तक का व्रत नहीं रखती… एक दिन पति की लंबी उम्र के लिए भूखी नहीं रह सकती…’’

‘‘एक दिन भूखे रह कर कौन से पति की उम्र लंबी होती है मां… पति से रोज  झगड़ा करो… पतिपत्नी में गालीगलौज हो… और करवाचौथ वाले दिन पति के हाथ से पानी पी कर व्रत खुलवाओ और पति के पैर छुओ… मु झे नहीं पसंद ये सब… आप इस के लिए जोरजबरदस्ती क्यों करना चाहती हैं तन्वी के साथ… ये सब ढकोसले हैं… करवाचौथ का व्रत आस्था से कम शौक से ज्यादा जुड़ा है…’’

‘‘हांहां, मैं जो इतने सालों से तेरे पापा के लिए व्रत रख रही हूं… तो मैं भी ढकोसला कर रही हूं…’’ मां का मूड उखड़ जाता.

‘‘आप रखती हैं तो ठीक है… यह आप की आस्था, आपकी सोच है… पर आप इस के लिए अपनी आस्था, अपनी सोच दूसरे पर तो नहीं थोप सकती हैं न…’’

मां के निराधार तर्कों व विचारों पर वह जबतब भन्ना जाता. तन्वी का पक्ष लेतेलेते उस के  अपने मातापिता से संबंध खराब हो रहे थे. उसे आश्चर्य होता अपने पिता की चुप्पी पर कि कैसे वे मां की हर बात पर चुप्पी साध लेते हैं. वह सम झ ही नहीं पाता कि उस में उन की हां है या न.

छुट्टी के दिन यदि उन का कहीं घूमने या फिल्म देखने का प्रोग्राम बनता तो मां ताना देना कभी न भूलतीं, ‘‘रोज तो नौकरी के बहाने घर से गायब रहती है मेम साहिब… छुट्टी वाले दिन पिक्चर और सैरसपाटे से फुरसत नहीं…’’

तन्वी का मूड उखड़ जाता. वह जाने के लिए मना कर देती. विजित उसे किसी तरह मानमनुहार कर ले जाता पर बाहर जा कर भी दोनों का मूड उखड़ा ही रहता.

वह मां से कहता, ‘‘मां तुम दूसरों से तन्वी की तुलना करना छोड़ दो… तन्वी की कार्यकुशलता, क्रियाकलापों को उस के व्यवहार व स्वभाव को, उस की योग्यता के अनुसार तोला करो… तब तुम्हें कोई शिकायत नहीं रहेगी… तुम मु झे ये सब कार्य करने के लिए कहोगी या मु झ से ये सब उम्मीद करोगी तो मु झे भी कहां समय है ये सब करने का… जो तुम तन्वी से उम्मीद करती हो… वैसे ही वह भी तो मेरी तरह ही व्यस्त है… तो वह ये सब कैसे कर सकती है… तुम उस का स्वभाव क्यों नहीं देखतीं, इतना कुछ कह देती हो उसे पर वह कभी पलट कर जवाब नहीं देती… छोटीछोटी बातों पर ध्यान देना छोड़ दो मां… खुश रहो… मस्त रहो… जिंदगी को खुशी से जीना सीखो…

‘‘सब के जीवन की प्राथमिकता अलग होती है… तुम जिन बहुओं की बात करती हो, उन के जीवन की प्राथमिकता वही है… पर तन्वी जैसी लड़कियों के जीवन की प्राथमिकताएं कुछ अलग होती हैं… उस पर अपने विचार, अपनी इच्छाएं मत थोपो… वे स्वभाव से तो अच्छी है, कुछ बुरा नहीं कहती… कुछ बुरा नहीं करती कभी…’’

मां उस का उपदेश सुन कर और भी उखड़ जातीं, ‘‘बहुत बड़ीबड़ी बातें करने लगा है… बहुत उपदेश देना सीख गया है… मैं क्या जानती नहीं किस की सह पर कह रहा है ये सबकुछ… जब तक शादी नहीं हुई थी तब तक तो जो मैं कहती थी सब ठीक लगता था…’’

मां का प्रलाप शुरू होता तो तन्वी के आंसुओं पर जा कर ही खत्म होता. इन्हीं सब बातों से घर का वातावरण धीरेधीरे बो िझल व दमघोंटू होता जा रहा था. तनावपूर्ण रिश्तों से हो रही कशमकश भरी दिनचर्या उन के खुद के रिश्तों का रस भी सोखने लगी थी. दोनों के बीच प्यार की बातें कम दूसरे विषयों पर चर्चा ज्यादा होने लगी थी.

अंधविश्वास की दलदल: प्रतीक और मीरा के रिश्ते का क्या हुआ

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नया प्रयोग: विजया ने कौनसी हदें पार की थी

‘‘इतना कुछ कह दिया बूआ ने, आप एक बार बात तो करतीं.’’

‘‘मधुमक्खी का छत्ता है यह औरत, अपनी औकात दिखाई है इस ने, अब इस कीचड़ में कौन हाथ डाले, रहने दे स्नेहा, जाने दे इसे.’’

मीना ने कस कर बांह पकड़ ली स्नेहा की. उस के पीछे जाने ही नहीं दिया. अवाक् थी स्नेहा. कितना सचझूठ, कह दिया बूआ ने. इतना सब कि वह हैरान है सुन कर.

‘‘आप इतना डरती क्यों हैं, चाची? जवाब तो देतीं.’’

‘‘डरती नहीं हूं मैं, स्नेहा. बहुत लंबी जबान है मेरे पास भी. मगर मुझे और भी बहुत काम हैं करने को. यह तो आग लगाने ही आई थी, आग लगा कर चली गई. कम से कम मुझे इस आग को और हवा नहीं देनी. अभी यहां झगड़ा शुरू हो जाता. शादी वाला घर है, कितने काम हैं जो मुझे देखने हैं.’’

अपनी चाची के शब्दों पर भी हैरान रह गई स्नेहा. कमाल की सहनशीलता. इतना सब बूआ ने कह दिया और चाची बस चुपचाप सुनती रहीं. उस का हाथ थपक कर अंदर चली गईं और वह वहीं खड़ी की खड़ी रह गई. यही सोच रही है अगर उस की चाची की जगह वह होती तो अब तक वास्तव में लड़ाई शुरू हो ही चुकी होती.

चाची घर के कामों में व्यस्त हो गईं और स्नेहा बड़ी गहराई से उन के चेहरे पर आतेजाते भाव पढ़ती रही. कहीं न कहीं उसे वे सारे के सारे भाव वैसे ही लग रहे थे जैसे उस की अपनी मां के चेहरे पर होते थे, जब वे जिंदा थीं. जब कभी भी बूआ आ कर जाती थी, पापा कईकई दिन घर में क्लेश करते थे. चाचा और पापा बहुत प्यार करते हैं अपनी बहन से और यह प्यार इतना तंग, इतना दमघोंटू है कि उस में किसी और की जगह है ही नहीं.

‘विजया कह रही थी, तुम ने उसे समय से खाना नहीं दिया. नाश्ता भी देर से देती थी और दोपहर का खाना भी.’

‘दीदी खुद ही कहती थीं कि वह नहा कर खाएगी. अब जब नहा लेगी तभी तो दूंगी.’

‘तो क्या 11 बजे तक वह भूखी ही रहती थी?’

‘तब तक 4 कप चाय और बिस्कुट आदि खाती रहती थी. कभी सेब, कभी पपीता और केला आदि. क्यों? क्या कहा उस ने? इस बार रुपए खो जाने की बात नहीं की क्या?’

चिढ़ जाती थीं मां. घर की शांति पूरी तरह ध्वस्त हो जाती. हम भी घबरा जाते थे जब बूआ आती थी. पापा बिना बात हम पर भड़कते रहते मानो बूआ को जताते रहते, देखो, मैं आज भी तुम से अपने बच्चों से ज्यादा प्यार करता हूं. खीजा करते थे हम कि पता नहीं इस बार घर में कैसा तांडव होगा और उस का असर कितने दिन चलेगा. बूआ का आना किसी बड़ी सूनामी जैसा लगता और उस के जाने  के बाद वैसा जैसे सूनामी के बाद की बरबादी. हफ्तों लग जाते थे हमें अपना घर संभालने में. मां का मुंह फूला रहता और पापा उठतेबैठते यही शिकायतें दोहराते रहते कि उन की बहन की इज्जत नहीं की गई, उसे समय पर खानापीना नहीं मिला, उस के सोने के बाद मां बाजार चली गईं, वह बोर हो गई क्योंकि उस से किसी ने बात नहीं की, खाने में नमक ज्यादा था. और खासतौर पर इस बात की नाराजगी कि जितनी बार बूआ ने चाय पी, मां ने उन के साथ चाय नहीं पी.

‘मैं बारबार चाय नहीं पी सकती, पता है न आप को. क्या बचपना है स्नेहा यह. तुम समझाती क्यों नहीं अपने पापा को. विजया आ कर चली तो जाती है, पीछे तूफान मचा जाती है. दिमाग उस का खराब है और भोगना हमें पड़ता है.’

यह बूआ सदा मुसीबत थी स्नेहा के परिवार के लिए. और अब यहां भी वही मुसीबत. स्नेहा के परिवार में तो साल में एक बार आती थी क्योंकि पापा की नौकरी दूसरे शहर में थी मगर यहां चाचा के घर तो वह स्थानीय रिश्तेदार है. वह भी ऐसी रिश्तेदार जो चाहती है भाई के घर में छींक भी मारी जाए तो बहन से पूछ कर.

5 साल पहले इसी तरह के तनाव में स्नेहा की मां की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और सहसा कहानी समाप्त. मां की मौत पर सब सदमे में थे और बूआ की वही राम कहानीस्नेहा और उस का भाई तब होस्टल से घर आए थे. मां की जगह घर में गहरा शून्य था और उस की जगह पर थे पापा और बूआ के चोंचले. चाची रसोई संभाले थीं और पापा अपनी लाड़ली बहन को.

‘पापा, क्या आप को हमारी मां से प्यार था? कैसे इंसान हैं आप. हमारी मां की चिता अभी ठंडी नहीं हुई और बूआ के नखरे शुरू हो भी गए. ऐसा क्या खास प्यार है आप भाईबहन का. क्या अनोखे भाई हैं आप जिसे अपने परिवार का दुख बहन के चोंचलों के सामने नजर ही नहीं आता.’

‘क्या बक रहा है तू?’

‘बक नहीं रहा, समझा रहा हूं. रिश्तों में तालमेल रखना सीखिए आप. बहन की सच्चीझूठी बातों से अपना घर जला कर भी समझ में नहीं आ रहा आप को. हमारी मां मर गई है पापा और आप अभी भी बूआ का ही चेहरा देख रहे हैं.’

ऐसी दूरी आ गई तब पिता और बच्चों के बीच कि मां के जाते ही मानो वे पितृविहीन भी हो गए. स्नेहा की शादी हो गई और भाई बेंगलुरु चला गया अपनी नौकरी पर. पापा अकेले हैं दिल्ली में. टिफिन वाला सुबहशाम डब्बा पकड़ा जाता है और नाश्ते में वे डबलरोटी या फलदूध ले लेते हैं.

‘बूआ से कहिए न, अब आ कर आप का घर संभाले. मां आप दोनों भाईबहन की सेवा करती रहती थीं. तब आप को हर चीज में कमी नजर आती थी. अब क्यों नहीं बूआ आ कर आप का खानापीना देखती. अब तो आप की बहन की आंख की किरकिरी भी निकल चुकी है.’

पापा अपने पुत्र के ताने सुनते रहते हैं जिस पर उन्हें गुस्सा भी आता है और पीड़ा भी होती है. अफसोस होता है स्नेहा को अपने पापा की हालत पर. बहन से इतना प्रेम करते हैं कि उसे ऊंचनीच समझा ही नहीं पाते. कभी बूआ से यह नहीं कह पाए कि देखो विजया, तुम यहां पर सही नहीं हो. तुम्हारी अधिकार सीमा इस घर तक नहीं है.

चाची के घर आई है स्नेहा, भाई की शादी पर. इकलौता बच्चा है चाची का जिस की शादी चाची अपने तरीके से करना चाहती हैं. मगर यहां भी बूआ का पूरापूरा दखल जिस का असर उसे चाची के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है. समझ सकती है स्नेहा चाची के भीतर उठता तनाव. डर लग रहा है उसे कहीं अति तनाव में चाची का हाल भी मां जैसा ही न हो. चाची के साथ काम में हाथ बंटाती रही स्नेहा और साथसाथ चाची का चेहरा भी पढ़ती रही.

दोपहर में जब वह दरजी के यहां से, आने वाली भाभी के कुछ कपड़े ला कर चाची को दिखाने लगी तब चाचा का फोन आया. स्नेहा ने ही उठा लिया, ‘‘जी चाचाजी, कहिए, चाची थोड़ी देर के लिए लेटी हैं, आप मुझे बताइए, क्या काम है?’’

‘‘विजया दीदी से कोई बात हुई है क्या?’’

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

‘‘उन का फोन आया था, नाराज थीं, कह रही थीं, वह घर गई थी, उस की बड़ी बेइज्जती हुई?’’

‘‘बेइज्जती हुई, बेइज्जती, क्या मतलब?’’

अवाक् रह गई स्नेहा. आगेपीछे देखा उस ने, कहीं चाची सुन तो नहीं रहीं. झट से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और दरवाजा भीतर के बंद कर लिया.

‘‘हां चाचा, बताइए, क्या हुआ, क्या कहा चाची के बारे में बूआ ने? बेइज्जती कैसे हुई, बात क्या हुई?’’

‘‘यह तो उस ने बताया नहीं. बस, इतना ही कहा.’’

‘‘वाह चाचा, आप भी कमाल के हैं. बूआ ने चाबी भरी और आप का बोलना शुरू हो गया पापा की तरह. चाबी के खिलौने हैं क्या आप? 60 साल की उम्र हो गई और अभी तक आप को चाची के स्वभाव का पता ही नहीं चला. बहन से प्रेम कीजिए, मायके में बेटी का सम्मान भी कीजिए मगर अंधे बन कर नहीं. बहन जो दिखाए उसी पर अमल मत करते रहिए,’’ स्नेहा के भीतर का आक्रोश ज्वालामुखी सा फूटा, गला भी रुंध गया, ‘‘हमारी मां भी सारी उम्र पापा को सफाई ही देती रही कि उस ने बूआ की सेवा में कोई कमी नहीं की. मगर पापा कभी खुश नहीं हुए. आज हमारी मां नहीं हैं और पापा अकेले हैं. इस उम्र में आप भी क्या पापा की तरह ही अकेले बुढ़ापा काटना चाहते हैं? आई थी आप की बहन और बहुत अनापशनाप…झूठसच सुना कर गई है. चाची ने जबान तक नहीं खोली. कोई जवाब नहीं दिया कि बात न बढ़ जाए, शादी वाला घर है. उस पर भी नाराजगी और शिकायतें? आखिर बूआ चाहती क्या है? क्या आप का घर भी उजाड़ना चाहती है? आप अपनी बहन की जबान पर लगाम नहीं लगा सकते तो न सही, हम पर तो सवाल मत उठाइए.’’

उस तरफ चुप थे चाचा. कान के साथ लगा था फोन मगर जबान मानो तालू से जा चिपकी थी.

‘‘बूआ से कहिए अपनी इज्जत अपने हाथ में रखे. जगहजगह उसे सवाल बना कर उछालती फिरेगी तो जल्दी ही पैरों में आ गिरेगी. कल को आप की बहू आएगी. यह तो उसे भी टिकने नहीं देगी. चाची और मां में सहनशक्ति थी जो कल भी चुप रहीं और आज भी. हमारी पीढ़ी में तनाव पीने की इतनी क्षमता नहीं है जो सदियोंसदियों बढ़ती ही जाए. बूआ का कभी किसी ने अपमान नहीं किया और अगर हमारा सांस लेना भी उसे पसंद नहीं है तो ठीक है, आप उसे समझा दीजिए, हमारे घर न आए क्योंकि

हम चैन की सांस लेना चाहते हैं.’’

फोन काट दिया स्नेहा ने और धम से पलंग पर बैठ गई. इतना कुछ कह देगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था. तभी चाची दरवाजा खोल अंदर चली आईं.

‘‘क्या हुआ स्नेहा, किस का फोन था? तेरे ससुराल से किसी का फोन था? वहां सब राजीखुशी है न बेटी? क्या दामादजी का फोन था? नाराज हो रहे हैं क्या?’’

उस का तमतमाया चेहरा देख डर रही थी मीना. शादी से 10-12 दिन पहले ही चली आई थी न स्नेहा चाची की मदद करने को. हो सकता है ससुराल में उन्हें कोई असुविधा हो रही हो. मन डर रहा था मीना का.

‘‘मैं ने कहा था न, मैं अकेली जैसेतैसे सब संभाल लूंगी. तुम इतने दिन पहले आ गईं, उन्हें बुरा लग रहा होगा.’’

‘‘नहीं न, चाची. आप के दामाद ने मुझे खुद भेजा है यहां आप की मदद करने को. आप ही तो हैं हमारी मां की जगह. उन का फोन नहीं था, चाचा का फोन था. बूआ ने शिकायत लगाई है कि तुम ने उस की बेइज्जती की है.’’

‘‘और तुम ने अपने चाचा को भाषण दे दिया क्या? यह जो ऊंचाऊंचा कुछ बोल रही थी, क्या उन्हें ही सुना रही थी?’’

‘‘मैं भी तो घर की बेटी हूं न. क्या सारी उम्र बूआ की ही जबान चलेगी. घर की विरासत मुझे ही तो संभालनी है अब. कल वह बोलती थी, आज मैं भी तो बोलूंगी.’’

अवाक् थी मीना, चाहती है हर काम सुखचैन से बीत जाए मगर लगता नहीं कि ऐसा होगा. विजया सदा अड़चन डालती आई है और सदा उस की ही चली है. इस बार भी वह अपनी जायजनाजायज हर जिद मनवाना चाहती है. वह जराजरा सी बात को खींच कर कहानी बना रही है.

‘‘डर लग रहा है मझे स्नेहा, पहले ही मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इस औरत ने और तंग किया तो पता नहीं क्या होगा.’’

चाची का हाथ कांपने लगा था आवेग में. उच्चरक्तचाप की मरीज हैं चाची. स्नेहा के हाथपैर फूलने लगे चाची का कांपता हाथ देख कर. उस की मां का भी यही हाल हुआ था. अगर यहां भी वही कहानी दोहराई गई तो क्या होगा, इसी घबराहट में स्नेहा ने चाचा को डाक्टर के साथ घर आने के लिए फोन कर दिया. नजर चाची पर थी जो बारबार बाथरूम जा रही थीं.

डाक्टर साहब आए, पूरी जांच की और वही ढाक के तीन पात.

डाक्टर ने कहा, ‘‘तनाव मत लीजिए. काम का बोझ है तो खुशीखुशी कीजिए न, शादी वाला घर है. बेचैनी कैसी है. बेटी की शादी थोड़े है जो समधन का डर है, बेटे की शादी है.’’

चाचा बोले, ‘‘बेटे की शादी है, इसी बात की तो चिंता है. सभी रूठेरूठे घूम रहे हैं. सब की मनमानी पूरी करतेकरते ही समय जा रहा है फिर भी नाराजगी किसी की भी कम नहीं हुई.’’

‘‘आप का दिमाग खराब हो गया है क्या, जो दुनिया को खुश करने चले हैं. बाल सफेद हो गए और अनुभव अभी तक नहीं हुआ. 60 साल की उम्र तक भी अगर आप नहीं समझे तो कब समझेंगे,’’ मजाक भी था पारिवारिक डाक्टर के शब्दों में और सत्य की कचोट भी. चाचा के शब्दों पर तनिक गंभीरता से बात की डाक्टर साहब ने, ‘‘अपनी सामर्थ्य और हिम्मत से ज्यादा कुछ मत कीजिए आप. गिलेशिकवे अगर कोई करता भी है तो उस का भी चरित्र देखिए न आप. जिसे कभी खुश नहीं कर पाए उसे उसी के हाल पर छोड़ दीजिए. पहले अपना घर देखिए. अपने परिवार की प्राथमिकता देखिए. जो न जीता है, न ही जीने देता है उसे जरा सा दूर रखिए. कहीं न कहीं तो एक रेखा खींचिए न.’’

स्नेहा चुपचाप सब देखतीसुनती रही और चाचा के चेहरे के हावभाव भी पढ़ती रही. डाक्टर साहब दवाएं लिख कर दे गए और चाची बुदबुदाई, ‘मुझे कोई दवा नहीं खानी. बस, यह औरत मेरे घर से दूर रहे.’

‘‘मेरी बहन है वह.’’

‘‘तो बहन की जबान पर लगाम लगाइए, चाचा. आप के ही अनुचित लाड़प्यार की वजह से, यह दिन आ गया कि चाची बूआ को ‘यह औरत’ कहने लगी है. पापा की तरह आप भी बस वही भाषा बोल रहे हैं. ‘स्याह करे, सफेद करे, मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि वह मेरी बहन है.’ यह घर तभी तक घर रहेगा जब तक चाची जिंदा हैं और कोई बूआ को चायपानी पूछता है वह भी तब तक है जब तक चाची हैं. आप को भी अपनी बहन के जायजनाजायज तानेशिकवे तभी तक अच्छे लगेंगे जब तक उन को सहने वाली आप की पत्नी जिंदा है. जिस दिन चाची न रहेंगी, देखना, आप की यही बहन कभी देखने भी नहीं आएगी कि आप भूखे सो गए या कुछ खाया भी था,’’ रो पड़ी थी स्नेहा, ‘‘हमारे पापा का हाल देख रहे हैं न आप. अब बूआ वहां क्यों नहीं जाती, जाए न, रहे उस घर में जहां साल में 6 महीने इसी बूआ की वजह से दिनरात मनहूसियत छाई रहती थी.’’

अच्छाखासा तनाव हो गया. उस शाम चाची की तबीयत से परेशान स्नेहा खो चुकी अपनी मां को याद करकर के खूब परेशान रही. ऐसा भी क्या अंधा प्रेम जिसे रिश्ते में तालमेल भी रखना न आए. भावी दूल्हा यानी चाचा का बेटा भी बहन की हालत पर दुखी हो गया उस रात.

‘‘स्नेहा, थोड़ा तो खा ले न,’’ उस ने मनुहार की.

‘‘देख लेना बूआ का दखल एक दिन यहां भी सब तबाह कर देगा. कैसी औरत है यह जो भाई का सुख नहीं देख सकती.’’

‘‘तुम तो मेरा सुख देखो न, स्नेहा. मुझे भूख लगी है. आज कितना काम था औफिस में, क्या भूखा ही सुलाना चाहती हो?’’

हलकी सी चपत लगाई भाई ने उस के गाल पर. चाची भी भूखी बैठी थीं. वे बिना कुछ खाए दवा कैसे खा लेतीं. चाचा विचित्र चुप्पी में डूबे थे. स्नेहा मुखातिब हुई चाचा से, बोली, ‘‘इतने साल उस बेटी की चली, मैं भी ससुराल से आई हूं न, मेरा भी हक है इस घर पर. आप बूआ से कह दीजिए हमारे घर में हमारी मरजी चलने दीजिए. बस, मैं इतना ही चाहती हूं, चाचा. मेरी इतनी सी बात मान लीजिए, चाचा. चाचा, आप सुन रहे हैं न?

‘‘चाचा, मुझे इस घर में सुखचैन चाहिए जहां मेरी आने वाली भाभी खुल कर सांस ले सके. मेरी भाभी सुखी होगी तभी तो मेरा मायका खुशहाल होगा. वरना मुझे पानी के लिए भी कौन पूछेगा, जरा सोचिए.

‘‘मेरा घर, मेरा ससुराल है जहां मेरी मरजी चलती है. यह घर चाची का है, यहां चाची को जीने दीजिए और बूआ अपने घर में खुश रहे. बस, और तो कुछ नहीं मांग रही मैं.’’

गरदन हिला दी चाचा ने. पता नहीं सच में या झूठमूठ. सब ने मिल कर खाना खा लिया. तभी पता चला सुबह 6 बजे वाली गाड़ी से स्नेहा के पिता आ रहे हैं. स्नेहा का भाई बोला, ‘‘मैं शाम को ही बताने वाला था मगर घर में उठा तूफान देख मैं यह बताना भूल गया. ताऊजी का फोन आया था. पूरे 6 बजे मैं स्टेशन पहुंच जाऊं उन्हें लेने. कह रहे थे-घुटने का दर्द बढ़ गया है, इसलिए वे सामान के साथ प्लेटफौर्म नहीं बदल पाएंगे.’’ स्नेहा की चाची बोलीं, ‘‘मैं ने तो कहा भी है, भैया यहीं हमारे पास ही क्यों नहीं आ जाते. वहां अकेले रहते हैं. कौन है वहां देखने वाला.’’

‘‘भैया तो मान जाएं मगर विजया नहीं चाहती,’’ सहसा चाचा के होंठों से निकल गया. सब का मुंह खुला का खुला रह गया. हैरान रह गए सब. चाचा का रंग वास्तव में बदला सा लगा स्नेहा को. शायद अभीअभी उन का मोह भंग हुआ है अपनी पत्नी की हालत देख कर और भाई का उजड़ा घर देख कर.

‘‘भैया अगर मेरे साथ रहें तो विजया को समस्या क्या है? वही बेकार का अधिकार. हर जगह अपनी टांग फसाना शौक है इस का,’’ यह भी निकल गया चाचा के मुंह से.

सब उन का मुंह ही ताकते रह गए. चाचा ने स्नेहा का माथा सहला दिया, ‘‘कल से विजया का दखल समाप्त. अब भैया यहीं रहेंगे मेरे पास. तुम्हारी चाची और तुम्हारी आने वाली भाभी की चलेगी इस घर में. जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा.’’चाचा का स्वर भीगाभीगा सा था. पता नहीं नाराज थे उस से या खुश थे मगर उन का चेहरा एक नई ही आशा से जरा सा चमक रहा था. शायद वे एक और बेटी की जिद मान एक नया प्रयोग करने को तैयार हो गए थे.

कन्यादान: ससुराल जाने से रिया ने क्यों मना कर दिया

“रिया की माँ आज दिल्ली से राम नाथ जी का phone आया था .उन्होंने रिया के लिए बहुत ही अच्छा लड़का बताया है ,” दयाशंकर जी ने चहकते हुए कहा.

सरिता जी रसोई से बहार निकलकर आई और उत्सुकता से पूछा ,”क्या करता है लड़का..?कैसा है देखने में….?नाम क्या है….?

“सारे सवाल एक ही बार में पूछ लोगी ,अरे सांस तो ले लो जरा …….,”,दयाशंकर जी ने हँसते हुए कहा .
लड़का तो इंजिनियर है और नाम है ‘अविनाश ‘.बस मुझे एक चीज़ की चिंता है की हम इतना दहेज़ कैसे दे पाएंगे?उन्होंने 15 लाख रूपए कैश बोले है .

सरिता जी ने कहा कि पहले लड़का देख लें ,कुंडली मिला लें ,फिर देखते हैं .आखिर हमारी गुडिया(रिया) से बढ़कर कुछ है क्या ?कहीं न कहीं से इंतज़ाम कर लेंगे.वैसे भी मेरे पास थोड़े जेवर पड़े है ,मैं इस बुढ़ापे में अब क्या करूंगी उनका. और जो आपने FD करा रखी थी हम दोनों के नाम से उसे भी तुडवा देंगे.बस हमारी गुडिया खुश रहे हमें और क्या चाहिए?

जब रिया शाम को कॉलेज से लौट कर आई तब उसके छोटे भाई ने उसे सारी बात बताई .रिया अपने पापा के पास गयी और गुस्साते हुए बोली की मुझे नहीं करनी ये शादी. मै अभी आपको छोड़कर कहीं नहीं जाउंगी.क्या मैं आप लोगों को बोझ लगती हूँ?जो आप मुझे पराये घर भेज रहे हो.

दयाशंकर जी ने उसके सर पर हाँथ फेरते हुए कहा,”नहीं मेरी गुडिया …ऐसा सोचना भी मत !बेटी तो पराई होकर भी परायी नहीं होती.एक बेटी ही तो है जिसकी याद माँ बाप के मरते दम तक उनके साथ रहती है.बेटे तो भाग्य से होते हैं पर बेटियां तो सौभाग्य से होती है.

रिया अपने पापा के गले लग गयी और बोली बस अब रहने दीजिये ,मुझे रुलएंगे क्या.?

इसी तरह कुछ महीने बीत गए .रिया का B.TECH भी कम्पलीट हो गया.अविनाश अपने घरवालों के साथ रिया को देखने उसके घर गया.सभी को रिया बहुत पसंद आई.रिया और रिया के माता-पिता को भी अविनाश अच्छा और सुलझा हुआ लगा.शादी की बात पक्की हो गयी.शादी की डेट 6 महीने बाद की निकली.

रिया के माता-पिता और भाई दिन रात शादी की योजना बनाते रहते.जैसे तैसे करके दहेज़ की रकम भी जुटा ली गयी थी.पर ये तो रिया ही जानती थी की इस रकम को जुटाने के पीछे उसके घर वालों ने अपने कितने सपने कुर्बान किये है.

रिया इस शादी से खुश तो थी पर कहीं न कहीं दहेज़ वाली बात उसके मन में चुभ रही थी.वो अनमने मन से अपने पापा के पास गयी और बोली,”पापा ये दहेज़ क्यूँ मांगते है लोग ?क्या बेटी होना कोई अभिशाप है ?एक तरफ तो लड़की अपने सारे रिश्ते नाते ,अपनी सारी यादों को दिल में समेट कर अपने पिता के घर को छोड़ कर किसी अनजान घर में अनजान लोगों के बीच जाती है ,उसपर भी ऊपर से ये दहेज़ !

पापा मुझे समाज के इस प्रथा से तो शिकायत है ही मुझे आप से भी एक शिकायत है.

दयाशंकर जी थोड़ा ठहरे फिर बोले,”क्या हुआ गुडिया ?मुझसे क्या शिकायत है.”?

रिया ने कहा ,”जब मैं छोटी थी और खेल- खेल में कहीं छिप जाती थी तब तो आप जमीन आसमान एक कर देते थे और आज आप मुझे किसी अनजान के हाथों में सौप रहे है……………

पापा आपको याद है जब मैं एक बार आँगन में आपके साथ खेल रही थी तब मैंने आँगन में लगे हुए एक पेड़ को देखकर कहा था की पापा इसे यहाँ से हटाकर अपने बागीचे में लगा लेते है तब आपने कहा था की बेटी ये 4 साल पुराना पेड़ है ,इसका नयी जगह,नयी मिटटी में ढल पाना मुश्किल होगा .आज मैं आपसे पूछती हूँ एक पौधा और भी तो है आपके आँगन का जो 22 साल पुराना है ,क्या वो नयी जगह ढल पायेगा?
दयाशंकर जी की आँखों में आंसू आ गए ,उनका गला रुंध गया .उन्होंने भरे हुए गले से कहा ,”बेटी जब तुमने मुझसे एक चिड़िया को देखकर कहा था की पापा मुझे भी पंख चाहिए ,मैं भी उड़ना चाहती हूँ.तब मैंने तुमसे कहा था न की तुम तो बिना पंखों के एक दिन उड़ कर परदेश चली जाओगी .बेटी यही जीवन का सत्य है .माँ बाप चाह कर भी अपनी बेटी को हमेशा के लिए अपने पास नहीं रख सकते और बेटी यह शक्ति सिर्फ एक औरत में ही होती ,जो खुद को नए माहौल में ढाल सकती हैं ,अनजाने लोगों को भी अपना बना सकती है.ताउम्र उनके लिए जीती है .एक माँ एक बहन और एक पत्नी बनकर.वो बेटियाँ ही तो होती है जिनके हाथों में अपने दोनों घरों की लाज होती है.

यह कहते हुए दयाशंकर जी रो पड़े और उन्होंने रिया को अपने गले से लगा लिया.

शादी का दिन आ चुका था.दरवाज़े पर बारात खड़ी थी .सब बारातियों की आवभगत में लगे हुए थे.रिया शादी के लाल जोड़े में तैयार अपने कमरे में बैठी थी .वो अपने बचपन के खिलौने को देख रही थी तभी रिया के पापा ने आकर उससे कहा चलो गुडिया जयमाल का समय हो गया है ,मै तुम्हे लेके चलूँगा .पर रिया के हाथों में उसके बचपन की गुडिया देखकर वो थोड़ा मुस्कुराये और बोले ,”गुडिया तुम्हे पता है ,मुझमे और तुममे एक चीज़ कॉमन है.रिया ने कहा ,”कौन सी ?

उसके पापा ने कहा की तुम्हे अपनी गुडिया से बहुत प्यार है और मुझे अपनी गुडिया से……..
रिया अपने पापा के गले लग गयी.तभी दयाशंकर जी ने कहा चलो गुडिया देर हो रही है.फिर वो दोनों नीचे आ गए.

धीरे-धीरे करके सारी रश्मे पूरी हो गयी .अब रश्मों का सबसे कठोर समय आया …. कन्यादान का समय.जिससे हर माता-पिता को डर लगता है.

जब पंडित ने उन्हें कन्यादान के लिए बुलाया तो उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई उनके जिस्म से उनकी जान मांग रहा हो.वो अन्दर ही अन्दर सोच रहे थे की जिस नन्ही सी गुडिया हो अपने हाथों में खिलाया,जिसकी उंगली पकड़ कर चलना सिखाया ,आज कन्यादान करते समय उसी गुडिया से अपना हाथ छुडाना पड़ेगा.
पर रस्मे तो निभानी ही पड़ती हैं न …ये सोचकर वो आगे बढे .

रिया के माता पिता जब कन्यादान के लिए आये तब रिया अपने माता-पिता को देख कर सोचने लगी की की इन्हें अपने आंसुओ से कितना लड़ना पड़ा होगा.

जब कन्या दान पूरा होने के बाद माता पिता अपना हाथ हटाने लगे तब रिया बहुत रोने लगी और बोली ,”पापा क्या आज से आपने सचमुच मुझको छोड़ दिया………………
रिया की बाते सुनकर दयाशंकर जी से रहा नहीं गया और वो बदहवास रोने लगे .उस समय तो क्या लड़के वाले और क्या लड़की वाले,सभी की आँखों में ही आंसू थे.

सरिता जी ने दयाशंकर जी को संभाला और उन्हें वहां से ले गयी.
सारी रश्में पूरी हो चुकी थी.अब आया सबसे कठिन पल …विदाई का ….

रिया सब से लिपट कर बहुत रो रही थी आखिरकार उसके बचपन की यादों का घरौंदा जो छूट रहा था.रिया ने अपने भाई की तरफ देखा वो कोने में खड़ा सुबक-सुबक कर रो रहा था.उसे चुप करने वाला भी कोई नहीं था.

रिया अपने भाई के पास जाकर उसे च्गुप करने लगी और बोली तुम कहते थे न की मै जब चली जाउंगी तब तुम मुझे याद भी नहीं करोगे.लो अब मैं जा रही हूँ.
उसका भाई रिया से चिपककर बोला …………नहीं दीदी मत जाओ मैं कैसे रहूँगा तुम्हारे बिना.दोनों भाई बहन काफी देर तक एक दूसरे को दिलासा देते रहे.

सबसे मिलने के बाद रिया अपने पिता के पास गई .उसके पिता यहां वहां मुंह घुमा रहे थे .वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहते थे,रिया उनसे चिपट कर बहुत रोइ सहसा उनको भी रुलाई छूट गई और वह भी मेरी गुड़िया…….. मेरी गुड़िया………. कहकर बहुत रोए .उसके बाद वो रिया को गाडी में बैठने के लिए ले जा रहे थे.रिया सजाई गई गाड़ी के नजदीक आ गई.

वहीं पास में उसका पति अविनाश अपने दोस्तों से बातें कर रहा था. उसके दोस्त ने कहा ,”अविनाश यार सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल चलकर बढ़िया सा खाना खाएंगे, यहां तेरी ससुराल में खाने का मजा नहीं आया.

तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला,” हां भैया पनीर कुछ ठीक नहीं था और रसमलाई में तो रस ही नहीं था ,यह कहकर वो खूब ठहाके लगाकर हंसने लगा.
रिया ये सब सुन रही थी .पर उसे विश्वास था की अविनाश इन सबको समझाएगा.लेकिन…………………………

लेकिन अचानक उसके कानो में अविनाश की आवाज़ पड़ी.वो कह रहा था ,” अरे हम लोग रास्ते मे जब रुकेंगे तब तुम लोगों को जो खाना है खा लेना, मुझे भी यहां खाने में मजा नहीं आया ,रोटियां तक गर्म नहीं थी “.

अब तक तो रिया सब बर्दास्त कर रही थी लेकिन जब उसने अपने होने वाले पति के मुंह से यह शब्द सुना तो जो रिया गाड़ी में बैठने जा रही थी ,वो वापस मुड़ी ………….. गाड़ी के दरवाजे को जोर से बंद किया और घूंघट हटा कर अपने पापा के पास पहुंची .

उसने अपने पापा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली पापा ,”मैं इनके साथ पूरी जिंदगी नहीं बिता सकती . मैं ससुराल नहीं जा रही हूं. मुझे यह शादी मंजूर नहीं है. यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के रह गए .सब उसके नजदीक आ गए. रिया के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा. मामला क्या था किसी को समझ में नहीं आ रहा था?

तभी रिया के ससुर राधेश्याम जी ने आगे बढ़कर रिया से पूछा,” लेकिन बात क्या है बहू? शादी हो गई है विदाई का समय है अचानक क्या हुआ क्यों तुम शादी को नामंजूर कर रही हो ?
अविनाश भी हक्का-बक्का रह गया उसने रिया के पास आकर कहा कि अब तक तो सही था अब तुम ऐसे क्यों कह रही हो , आखिरी वक्त पर ऐसा क्या हुआ कि तुम ससुराल जाने को मना कर रही हूं?
रिया ने अपने पिता का हाथ पकड़ रखा था. रिया ने अपने ससुर से कहा ,” पिताजी मेरे पापा ने अपने सपनों को मारकर हम दोनों भाई –बहन को पढ़ाया लिखाया व काबिल बनाया है. आप जानते हैं कि एक पिता के लिए एक बेटी क्या मायने रखती है.हो सकता आप ये ण समझ सके क्योंकि आपकी कोई बेटी नहीं है.

रिया रोती हुई बोली जा रही थी……………

आप जानते हैं कि मेरी शादी के लिए और शादी में बारातियों की आवभगत में कोई कमी ना रह जाए इसलिए मेरे पापा पिछले 6 महीने से रात को 2:00 से 3:00 तक शादी की तैयारियों की योजना बनाते रहते थे. खाने में क्या बनेगा ?रसोईया कौन होगा ? पूरी शादी भर वो सबके सामने हाथ जोड़ जोड़ कर खड़े थे जैसे एक बेटी को जन्म देकर कोई पाप कर दिया हो.

बाबु जी जरा सोचिये की वो चीज़ जो आपको पसंद है ,अगर आपसे कोई मांग ले तो आप हिचकिचाने लग जायेंगे,पर एक पिता का जिगर तो देखिये ,जो अपने जिगर का टुकड़ा सौंप देते हैं.
जिस दहेज़ को मांगने में लोगों को कुछ मिनट ही लगते है उसी रकम को जुटाने के लिए एक पिता दिन रात मेहनत करता है.मेरे पति को रोटी ठंड लगी……………उनके दोस्तों को पनीर में गड़बड़ लगी……………..

मेरे देवर को रसमलाई में रस ही नहीं मिला. पर क्या इनको पता है की यह सिर्फ खाना नहीं है ,ये किसी पिता के अरमान व जीवन का सपना होता है .मेरे माता-पिता ने कितने सपनों को मारा होगा..बेटी की शादी में बनने वाले पकवान में स्वाद कई सपनों के कुचलने के बाद आता है. उन्हें पकने में सालों लगते हैं .
पर इनका खिलखिला कर हंसना मेरे पिता के सम्मान को ठेस पहुंचाने की समान है.रिया हाफ रही थी .

रिया के पिता ने रोते हुए कहा ,”लेकिन बेटी इतनी छोटी सी बात!”

रिया ने उनकी बात बीच में काटी और बोली ये छोटी सी बात नहीं है पिताजी ..

मेरे पति को मेरे पिता की इज्जत नहीं है . आपने तो दिल खोलकर अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च किया है. आप अपने दिल का टुकड़ा अपनी गुड़िया रानी को विदा कर रहे हैं .आप कितनी रात रोएंगे क्या मुझे पता नहीं .
वो लगातार रोती जा रही थी.
तभी रिया के ससुर ने आगे आकर रिया के आसू पोछे और कहा,”वाकई में किसी ने सच ही कहा है की हर बेटी के भाग्य में तो पिता होता है ,पर हर पिता के भाग्य में तुम्हारे जैसी बेटी नहीं होती’.बेटा तो तब तक अपना होता है जब तक उसे पत्नी नहीं मिलती,लेकिन बेटियां तो मरते दम तक साथ निभाती है…..अब मैंने जाना की भगवन ने मुझे बेटी क्यों नहीं दी.क्यूंकि मेरे नसीब में तो तेरे जैसी बेटी थी.”

रिया के ससुर ने रिया का हाथ पकड़ कर बोला ,”बेटी मेरे बच्चो को माफ़ कर दे.और मुझे मेरी बेटी लौटा दे.तुझे लिए बगैर मैं यहां से खाली हाथ नहीं जाऊंगा.”ये कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए.
रिया अपने ससुर को रोते देख कर उनके गले लग गयी और बोली नहीं पिताजी आप मत रोइए.
रिया के ससुर ने कहा ,”पिताजी नहीं बेटी ,’……………………..पापा’

अविनाश ने भी आकर दयाशंकर जी से माफ़ी मांगी .दयाशंकर जी ने उसे गले लगा लिया.
दयाशंकर जी ऐसी बेटी पाकर गौरव की अनुभूति कर रहे थे.रिया अब राजी खुशी अपने ससुराल रवाना हो गई थी और छोड़ गई थी आंसुओं से भीगी अपने मां पिताजी की आंखें. अपने पिता का वो आंगन जिसमें कल तक वो चहकती रहती थी.आज इस आंगन की चिड़िया उड़ गई थी .अब वो किसी दूसरी देश में और किसी पेड़ पर अपना घरौंदा बनाएगी.

विदाई के समय एक लड़की इसलिए नहीं रोती कि वो अपने माँ बाप से दूर जा रही है बल्कि वो इसलिए रोती है की उसके माँ बाप उसके बिना अकेले रह जायेंगे

वो लम्हे: ट्रिप पर क्या हुआ था श्वेता के साथ

नूपमुझे झंझड़ कर जगा रहे थे. मैं पसीनापसीना हो रही थी. आज फिर वही सपना आया था. मीलों दूर तक फैला पानी, बीचोंबीच एक भूतहा खंडहर और उस खंडित इमारत में पत्थर का एक बुत…

मैं हमेशा खुद को उस बुत के सामने खड़ा पाती हूं. मेरे देखते ही देखते वह बुत अपनी पत्थर की पलकें झपका कर एकदम आंखें खोल देता है. आंखों से चिनगारियां फूटने लगती हैं, फिर वे लपटें बन कर मेरी ओर आती हैं, एक अट्टहास के साथ… मैं पलटती हूं और वह हंसी एक सिसकी में बदल जाती है. मैं बाहर भागती हूं, पानी में हाथपैर मारती हूं, तैरने की कोशिश करती हूं, आंखनाककान सब में पानी भर जाता है. दम घुटने लगता है. मैं डूबने लगती हूं और फिर… अचानक नींद खुल जाती है.

‘‘क्या हुआ? कोई डरावना सपना देखा…’’ अनूप की आवाज कहीं दूर से आती प्रतीत हुई. मेरी आंखें अपने आप मुंदने लगीं.

‘‘मम्मा आज सोशल साइंस का ऐग्जाम है…’’ 6 बजे ऋचा मुझे जगा रही थी. वैसे तो

रोज स्कूल के लिए इसे जगाने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ती है, पर परीक्षा के समय बिटिया कुछ ज्यादा समझदार हो जाती है. इस की यही समझदारी मुझे निश्चिंत करने के बजाय आशंकित कर देती है. बरसों से कहीं गहरे

दफन किया हुआ राज धीरेधीरे दिलदिमाग पर जमी मिट्टी खोद कर उस के खूंखार पंजे बाहर निकालने लगता है. मैं सिर झटक कर उठ बैठी. सब विचारों और सपने के भय को परे हटा किचन में घुस गई.

ऋचा स्कूल और अनूप औफिस जा चुके थे. बेटे ऋत्विक के रूम में जा कर देखा, महाशय जमीन पर सो रहे थे और बैड पर किताबें पसरी पड़ी थीं. उस के बेतरतीब रूम को देख कर मन फिर पुरानी गलियों में बेतरतीब भटकने लगा…

‘‘बेटा, यह क्या है, परीक्षा का मतलब यह तो नहीं कि किताबें पूरे कमरे में बिखर जाएं…’’ मां अकसर मुझे डांटा करती थीं, किंतु मुझ पर कोई असर नहीं होता था. परीक्षा के दिनों में एक जनून सवार हो जाता था कि मुझे खूब पढ़ना है और प्रथम आना है. पहली कक्षा से ले कर 10वीं कक्षा तक हमेशा स्कूल में प्रथम आई थी. 11वीं कक्षा में एक नई लड़की ने प्रवेश लिया.

‘‘श्वेता, यह मेधा है, नया एडमिशन हुआ है, तुम क्लास टौपर हो, इस की मदद कर देना, पिछले नोट्स दे कर…’’ मैडम ने मेरा परिचय करवाया.

मैं दर्प से भर उठी. उस से दोस्ती भी हुई, मदद भी की… धीरेधीरे जाना कि वह मुझ से

ज्यादा होशियार है. मैं तो सिर्फ पढ़ाई में टौपर थी, पर वह हर गतिविधि में भाग भी लेती और पुरस्कार भी प्राप्त करती. इस वर्ष मेरा मन पढ़ाई में कुछ कम लगने लगा था. मेधा से प्रतिस्पर्धा के चलते वह मेरे दिमाग में रहने लगी. इस के विपरीत मेधा मुझे दिल में उतारती जा रही थी. हम दोनों की दोस्ती उसे खुशी और मुझे तनाव दे रही थी. फिर वही हुआ जिस का डर था. मेधा प्रथम और मैं कक्षा में पहली बार द्वितीय आई.

‘‘मम्मी, नाश्ता लगा दो…’’ ऋत्विक की आवाज मुझे फिर वर्तमान में ले आई.

‘‘कितने बजे सोया था?’’ मैं ने खुद को अतीत से बाहर लाने के लिए पूछा.

ऋत्विक ने क्या कहा और टेबल पर नाश्ते की प्लेट और सूप का कटोरा कब खाली हुआ,

मैं नहीं जान पाई. मेरा मन तो बरसों पहले मेरी जिंदगी के खालीपन को टटोलने चला गया

फिर से…

‘‘श्वेता तू एक नंबर और ले आती यार या मेरा एक नंबर कम आता तो हम दोनों के मार्क्स बराबर होते…’’ मेधा की आवाज को अनसुना कर मैं खुद पर गुस्सा हो रही थी कि 2 नंबर का सवाल सही किया होता तो मैं हमेशा की तरह प्रथम आती.

यही तो अंतर था उस में और मुझ में… वह जितना मुझे अपना दोस्त समझती मैं उस में अपने दुश्मन का अक्स देखती. उस के प्रति मेरी ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही थी.

जीवन के सारे रंग अपने में समेटे समय

भी आगे बढ़ रहा था. स्कूल के आखिरी वर्ष में हमेशा स्कूल ट्रिप पर शहर से दूर ले जाते थे.

हमें भी ले गए थे. वह एक पहाड़ की तराई में बसा गांव था. बहुत बड़ी नदी और उस में बीचोंबीच बना एक टापूनुमा मंदिर जैसा था, जहां स्टीमर से जाया जाता था. वह स्थान काफी बड़ा था. मैं वहां विचर ही रही थी कि कौलबैल ने तंद्रा तोड़ दी.

‘‘मम्मा, आज का पेपर भी बहुत अच्छा हुआ.. अब बस 2 महीने की छुट्टी… भैया के ऐग्जाम के बाद हम घूमने चल रहे हैं न?’’

‘‘हां बेटा, इस बार डैडी ने साउथ घूमने का प्लान बनाया है. भैया की इंजीनियरिंग पूरी होने पर वह पता नहीं कहां जाएगा और अब 2 साल तू भी स्कूल और कोचिंग के बीच चकरघिन्नी बन कर घूमेगी… इस साल के बाद पता नहीं कब कहां जाना होगा…’’

ऐग्जाम से फ्री ऋचा सहेलियों के साथ घूमने चली गई. बेटा पढ़ने में मशगूल और मैं फिर सोच में डूब गई. ऋचा भी मेरी तरह हमेशा प्रथम आती है, पाठ्येत्तर गतिविधि में भी उस के पुरस्कार मुझे मेधा की याद दिला देते और मेरे मन में एक आशंका पैर पसारने लगती. मेरा दिल ऋचा को मेरी या मेधा की जगह देखना नहीं चाहता, किंतु दिमाग कोई तीसरी जगह तलाश ही नहीं कर पा रहा था.

उस दिन स्कूल ट्रिप से मैं बहुत बड़ा बोझ ले कर लौटी थी. इतना बड़ा कि उसे ढोतेढोते मैं मरमर कर जी रही हूं. बोझ भी और खालीपन भी… कभी कभी दिल का बोझ और दिमाग का खालीपन मुझे बेचैन कर देता है. ऋचा की 10वीं कक्षा की परीक्षा का खत्म होना और आज फिर उस सपने का आना… मैं घबरा गई. अच्छा हुआ अनूप आ गए और मुझे सोच से बाहर आने में मदद मिली. इन्हें कैसे पता चल जाता है कि मैं गहरे गड्ढे में गिरने वाली हूं और एकदम आ कर हाथ खींच लेते हैं.

अगला महीना सफर की तैयारी में बीत गया. मैं ने दिल और दिमाग को इतना व्यस्त रखा कि कुछ और सोचा ही नहीं.

हमारा टूर काफी अच्छा चल रहा था. ऋचा और ऋत्विक अपने नए अनुभव सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे थे और अनूप भी उन के साथ पूरे मनोयोग से जुड़ कर चर्चा में हमेशा की तरह शामिल थे… बस मैं ही बारबार अतीत में पहुंच जाती थी.

कन्याकुमारी के विवेकानंद रौक मैमोरियल पहुंच कर तो मैं स्तब्ध रह गई.

‘‘1892 में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे. वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंचे और इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था…’’ अनूप बोल रहे थे…

मुझे उस मूर्ति की आंखों से निकलती चिनगारियां दिख रही थीं.

‘‘इस के कुछ समय बाद ही वे शिकागो सम्मेलन में भाग लेने गए थे और वहां भारत

का नाम ऊंचा किया था. उन के अमर संदेशों

को साकार रूप देने के लिए ही 1970 में इस विशाल शिला पर भव्य स्मृतिभवन का निर्माण किया गया…’’

मुझे वे चिनगारियां लपटों में बदलती दिख रही थीं. मैं फिर पानी में डूब रही थी… यह शोर कैसा है?

‘‘किसी ने मेधा को देखा?’’ टीचर की आवाज आई…

‘‘हां मैम, वह नदी में उस मूर्ति के पीछे जा रही थी…’’ मेरा दिल बोलना चाह रहा था, किंतु दिमाग रोक रहा था कि पागल है क्या? उस से बदला लेने का मौका मिल रहा है… होने दे परेशान उसे…’’

दिमाग जीत गया था और मेधा जिंदगी हार गई थी…

‘‘मेधा…’’ मेरी आवाज से ऋचा चौंक गई… ‘‘डैडी… मम्मी को क्या हुआ?’’

मोबाइल बज रहा था… मुझे अनूप ने फिर गड्ढे में से बाहर निकाल लिया.

‘‘मम्मा मेरा रिजल्ट आ गया, मैं इस बार थर्ड पोजीशन पर हूं. 93% मार्क्स हैं,’’ ऋचा खुश थी.

‘‘अरे वाह… अब तो यहीं पार्टी करेंगे,’’ ऋत्विक और अनूप चहक रहे थे.

मैं ने मूर्ति की ओर देखा… उस का चेहरा मुसकराता लगा.

‘‘मम्मा मेधा कौन है?’’

‘‘मेरी पक्की सहेली थी. हमारे स्कूल ट्रिप

में एक नदी में ऐसी ही मूर्ति के पीछे पानी में डूब गई थी… और…’’ मैं फूटफूट कर रो पड़ी… बरसों से जमा मेरा अपराधभाव धीरेधीरे पिघल रहा था…

‘‘वह एक दुर्घटना थी…’’ दिल ने कहा, ‘‘लेकिन…’’ दिमाग को मैं ने सोचने ही नहीं दिया.

ऋचा का मोबाइल फिर बजा, ‘‘पलका

तुझे फर्स्ट आने की बधाई… और मैं अभी कन्याकुमारी में हूं 2 दिन बाद लौटूंगी, तब पार्टी करते हैं चल बाय…’’

‘‘बेटा, परीक्षा की मैरिट को कभी भी सहेलियों के बीच मत आने देना…’’

‘‘हां मम्मा, मुझे पता है…’’

ऋचा की थर्ड पोजीशन आज मुझे असीम राहत दे गई.

मूर्ति की आंखों में कोई आग नहीं थी. उस के चेहरे में मेधा का चेहरा नजर आया… उस की मुसकराहट मानो मुझे माफी दे रही थी. बरसों से मेरे मन के तहखाने में कैद वो लम्हे पिघल कर मानो बूंदबूंद बह रहे थे…

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