सैलिब्रिटी आशियाना जो बना खास

आजकल होम इंटीरियर डैकोर यानी ऐथनिक लुक और कौंटैंपरेरी स्टाइल का ट्रैंड है. इस के लिए महंगे साजोसामान या फर्नीचर की आवश्यकता नहीं होती. अपनी रुचि, कलात्मकता, प्रबंधकीय दक्षता, नई सोच और जीवनशैली के आधार पर घर को मन मुताबिक बनाया जा सकता है. घर के इंटीरियर को देख कर व्यक्ति के व्यक्तित्व का कुछ हद तक अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि इंटीरियर व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होता हैआज इंटीरियर डिजाइनिंग में मिनिमलिस्ट, पेस्टल क्लर्स का जमाना है. कियारा अडवानी ने अपने घर में आइवरी रंग चूज किया है. जौन अब्राहम और जैक्लीन फर्नांडीस ने भी अपने घर में सफेद रंग कराया है और कई मौडर्न डिजाइन के फ्लौवर पौट्स और ग्रीन प्लांट्स से रंग का टच दिया है.अब शीशे की बड़ी खिड़कियों में पतले शीयर परदों का जमाना है, हैवी रंगीन परदों का नहीं. स्क्रीन के कलाकार भी दिनभर ग्रीनरूम में समय बिताने के बाद जब घर आते हैं तो उन का सुंदर घर उन्हें सुकून देता है. ये पल उन के अपने होते हैं. जहां न तो संवाद और न ही किसी दृश्य की शूटिंग के चर्चे होते हैं.

  1. रंगों की भूमिका

बिना इंटीरियर के घर आश्रम जैसा प्रतीत होता है. इंटीरियर से पता चलता है कि आप की जीवनशैली किस प्रकार की है ऐसे में यह जरूरी है कि आप अपने घर के कमरों की सजावट पर खास ध्यान दें. रंगों की भूमिका इंटीरियर करते वक्त सब से खास होती है. रंग ऐसे हों कि आंखों को चुभें नहीं.आज हलके रंग जो आंखों को आराम दें खास पसंद हैं. इन में सफेद औफ व्हाइट प्रमुख है.

इन के अलावा फूल बहुत पसंद किए जा रहे हैं. घर में हर तरफ  लटकने वाले फूलों के गमलों से काफी सजावट की जाती है. फूल आदि के पौधे हमेशा तरोताजा रखते हैं इन्हें आगेपीछे कर आप सजावट में नवीनता ला सकती हैं.घर हर व्यक्ति का सपना होता है फिर घर चाहे छोटा हो या बड़ा, उस में व्यक्ति 2 घंटे रहे या 4 घंटे, उसे जो शांति वहां मिलती है.

उसे बयां करना मुश्किल है. सैलिब्रिटीज अपने घर को फैलाने के लिए रंग औफ व्हाइट रखते हैं जिस में हलके हरे रंग का टच होता है. बैडरूम को थोड़ा ब्राइट रंग देते हैं जिस में एक दीवार पर कोई रंग होता है, पेंट किया होता है. इस के अलावा बैडरूम के ऊपर छत में चांदतारे सजाते हैं ताकि अगर रात में लाइट बंद कर दी जाए तो ऐसा लगे कि खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं.

2. क्लासिक लुक

इस के अलावा युवा सैलिब्रिटीज हर जगह सौफ्ट टौएज बहुत रखते हैं चाहे टीवी के ऊपर हों या ड्राइंगरूम में. हर तरह के सौफ्ट टौएज से सजाए परदों का रंग दीवारों से मैच करता होता है, जो मस्टर्ड रंग के होते हैं.हलके रंग का प्रयोग करने से सैलिब्रिटीज घर को स्पेशियस बनाते हैं. रंग का टच देने के लिए गोल्डन और लाल रंगों का भी प्रयोग करा जा सकता है. घर का फर्नीचर ब्राउन और लाइट कलर का हो. घर के लैंप शेडों के क्लासिक लुक पर आधारित हो सकते हैं.रंगों के साथसाथ रोशनी की भी सही व्यवस्था हर कमरे में की जानी जरूरी है. घर को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए क्रिस्टल कलैक्शन कर सकते हैं. इन की साफसफाई घर वालों को खुद ही करनी चाहिए. सजावट में बीचबीच में कुछ न कुछ बदलाव अवश्य करते रहें.

3. सपनों सा बनाएं

घरकलाकारों को सिर्फ अभिनय का शौक ही नहीं होता है बल्कि उन्हें घर को सजाने में भी आनंद आता है. उन्हें घर में हर चीज को देख कर खुशी मिलती है जिसे शब्दों में बताना मुश्किल है. हर सैलिब्रिटी अभिनेत्री हाउस मेकर भी होती है. घर में नौर्मल फील हो. पार्टी में चीजें टूटें नहीं, यह खयाल रखें.कई सैलिब्रिटीज को इंटीरियर करना सब से अधिक पसंद होता है. पूरे दिन की थकान के बाद जब वे घर आते हैं तो वे अपने घर का माहौल ऐसा चाहते हैं जहां उन्हें हर वस्तु को देख कर सुकून और खुशी मिले और अपना खुद का योगदान दिखे.

बेटी की पिता बनने की खुशी को अभिनेता मोहित रैना ने कैसे शेयर किया, पढ़ें इंटरव्यू

मोहित रैना एक मॉडल और अभिनेता है. उन्होंने कई टीवी धारावाहिकों, फिल्मों और वेब सीरीज में काम किया है. वे हर अभिनय को चुनौतीपूर्ण समझते है और उसे सजीव करने के लिए कड़ी मेहनत करते है. वर्ष 2002 मे वह मॉडलिंग से कैरियर की शुरुआत करने के लिए मुंबई आए, क्योंकि उन्हें लगता था कि मॉडलिंग उन्हें अभिनय में काम दिलाएगी और उन्होंने इसके लिए अपने 107 किलोग्राम के वजन को 29 किलोग्राम घटाया, ताकि वह साल 2005 ग्रासिम मिस्टर इंडिया मॉडलिंग प्रतियोगिता में भाग ले सकें. उन्होंने उस प्रतियोगिता भाग लिया और उसमें टॉप पांच प्रतियोगिता में रहे, जिससे उन्हें इंडस्ट्री में पहचान मिली.

मोहित का अभिनय कैरियर साल 2004 में साइंस फिक्शन टीवी धारावाहिक ‘अंतरिक्ष’ से शुरू हुआ. इसके बाद उन्हें कई धारावाहिकों में काम करने का अवसर मिला और उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई. सीरियल ‘चक्रवर्ती अशोक सम्राट’ में भी उन्होंने वयस्क सम्राट अशोक की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया था. हिंदी फिल्म द सर्जिकल स्ट्राईक में भी उन्होंने कर्नल करण कश्यप की भूमिका निभाई, जो काफी लोकप्रिय रही. मोहित रैना की कई वेब सीरीज को दर्शकों ने खास पसंद किया है, जिसमे  ‘काफिर’, ‘भौकाल’, ‘मुंबई डायरीज 26/11’ आदि शामिल हैं.

वर्ष 2022 को उन्होंने गर्लफ्रेंड अदिति शर्मा से शादी की, जिसकी जानकारी मोहित रैना ने खुद सोशल मीडिया अकाउंट पर तस्वीरें शेयर कर दिया था. साल 2023 में वे बेटी के पिता बने है और खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे है. सूत्रों की माने तो इससे पहले मोहित रैना का अफेयर मौनी रॉय के साथ था, लेकिन किसी वजह के चलते दोनों का ब्रेकअप हो गया.

मोहित रैना की वेब सीरीज ‘द फ्रीलांसर’, डिजनी + हॉट स्टार पर रिलीज हो चुकी है, जिसमे उनके अभिनय सभी को पसंद कर रहे है. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की, पेश है कुछ अंश.

इस वेब सीरीज में काम करने की उत्सुकता के बारें में मोहित का कहना है कि मेरे लिए ये बहुत अधिक उत्साह बढ़ने वाला रहा है, क्योंकि मैंने इससे पहले कभी ऐसी भूमिका नहीं निभाई है. ये जीरो टू हीरो की भूमिका है, जिसमें मैं महाराष्ट्र की एक पुलिस की भूमिका निभा रहा हूँ, जिसके जीवन में कुछ ऐसे हादसे होते है, जिसकी वजह से वह जीवन के एक डार्क फेज में चला जाता है, जहाँ उसकी मुलाकात अनुपम खेर, एक मेंटर से होती है और वे उस फेज से उन्हें निकालते है. ये कहानी जीवन की कई भावनाओं से गुजरता है, ये चुनौतीपूर्ण कहानी है, जिसे करने में अच्छा लगा. इस चरित्र से मैंने बहुत कुछ सीखा हूँ, हर किसी को कभी न कभी किसी डार्क फेज से गुजरने के लिए तैयार रहना पड़ता है. मेरे लिए भी चरित्र को समझना कठिन था.

 संघर्ष

मोहित कहते है कि मेरे रियल लाइफ में भी कई बार डार्क फेज आये जब लगा था कि एक्टिंग में  कुछ नहीं होगा, लेकिन समय के साथ – साथ मैंने धीरज रखा और मैं आगे बढ़ा. शुरू में मैं मनोरंजन की दुनिया में काम करना चाहता था और मॉडलिंग से मैंने काम शुरू किया, लेकिन बहुत जल्दी समझ में आया कि लोगों तक पहुँचने के लिए मुझे कुछ अच्छा अभिनय करना पड़ेगा, जो मुझे मिला.

बेटी की पिता बनने का अनुभव

मोहित अब बेटी के पिता बन चुके है और अपने अनुभव को शेयर करते हुए कहते है कि बेटी की पिता बनने का अनुभव बेहतरीन है, इसे रोज सुबह और शाम को जीता हूँ. इससे मैं अपने पेरेंट्स की मेहनत को समझ पाता हूँ. ये सही है कि जब तक कोई उस दौर से नहीं गुजरता, पेरेंट्स की बातें समझ नहीं सकता. मेरा वही दौर चल रहा है, आज लगता है कि पेरेंट्स की डांट-फटकार के पीछे भी कई सारी अच्छी बातें होती है, जिसकी वजह से मैं आज एक अच्छा इंसान बन पाया. मैं भी एक अच्छा पिता बनने की कोशिश में हूँ और बेटी की डायपर भी बदल रहा हूँ. मैं बच्चे के सारे काम करता हूँ और उसके साथ समय बिताता हूँ.

मेकर्स की है जिम्मेदारी

वेब सीरीज की कहानी में बदलाव बनाए रखना कितना जरुरी है? पूछने पर वे कहते है कि मेरे हिसाब से हर प्लेटफॉर्म पर हर तरह की कहानियों का समावेश होता है. ये सभी प्लेटफॉर्म फोलो करते है, जिसमें थ्रिलर, रोमांस, कॉमेडी आदि सब जरुरी होता है. इसे सभी जेनरेशन के देखने लायक बनाना प्रोड्यूसर और डायरेक्टर चाहते है, लेकिन कभी – कभी मेकर्स से गलती हो जाती है. देखा जाय तो कोशिश हमेशा अच्छी कहानियों के कहने की ही होती है.

किसी को भी उस पर शक नहीं करना चाहिए, क्योंकि मेकर्स बहुत जिम्मेदार होते है. डिजिटल मीडिया इतना स्ट्रोंग होने की वजह से उन्हें ये मौका मिला है कि किताबों में बंद कहानियों को ओटीटी पर दिखाया जाने लगा है. इसे ‘फॉर ग्रांटेड’ नहीं लेना है. कहानियों को कहने में गलतियाँ करने पर दर्शक उसे रिजेक्ट कर देते है और इन गलतियों से मेकर्स को सीख भी मिलती है. जिसे सुधार कर आगे बढ़ना है. दर्शक सबसे बड़ी आलोचक है, उनके हिसाब से ही एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री चलती है, क्योंकि वे सब्सक्रिप्शन, पैसे देकर लेते है, समय निकालकर हमें देखते है. उनके पैसों की वैल्यू देना हर मेकर्स की जिम्मेदारी होती है.

हायर एजुकेशन सरकार भी ले टैंशन

स्कूल के बाद एक सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए एक नवयुवा विश्वविद्यालयों की तरफ देखता है, जहां वह अपने इंटरैस्ट के अनुसार आगे उच्च शिक्षा हासिल कर सकता है. देश में लगभग हर साल लाखों स्टूडैंट्स 12वीं के एग्जाम के बाद विश्वविद्यालयों के लिए आवेदन की कतार में खड़े हो जाते हैं जिस में वे सफल होंगे, इस की संभावना 30 फीसदी से भी कम होती है.इस साल 2023 में करीब सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा स्टूडैंट्स ने 12वीं का एग्जाम दिया, जिस में 80-90 प्रतिशत से भी अधिक पास हो गए. जाहिर है, इस के बाद ये सभी पास होने वाले छात्र देश के बड़ेबड़े कालेजों में एडमिशन की दौड़ में शामिल हो जाते हैं.

इस दौड़ में केवल वही छात्र जीत पाते हैं जिन की शिक्षा किसी सरकारी स्कूल से न हो कर बड़े प्राइवेट स्कूल से हुई हो क्योंकि उन की योग्यता अधिक होती है. एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला स्टूडैंट संसाधनों के अभाव व अध्यापक की कम रुचि के कारण उतना योग्य नहीं बन पाता जितना कि एक प्राइवेट स्कूल का स्टूडैंट.

ऐसे में वह अकसर एडमिशन की दौड़ में पीछे रह जाता है.भारत लगभग 1,000 विश्वविद्यालयों और 40,000 कालेजों के साथ दुनिया की सब से बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली होने का दावा करता है पर वास्तविकता यह है कि इतनी बड़ी चेन होते हुए भी अधिकतर छात्र उन कालेजों या कोर्सों में एडमिशन नहीं ले पाते जिन में वे लेना चाहते हैं और उन्हें अपने भविष्य व सपनों के साथ समझता करना पड़ता है.एनईपी 2020 (नई शिक्षा नीति) कहती है, हमें अपनी जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करना चाहिए जबकि अभी सरकार शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2.9 प्रतिशत ही खर्च कर रही है. जबकि, काफी समय से शिक्षाविदों की मांग रही है कि शिक्षा बजट को 10 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने की जरूरत है.

सरकार का कहना है शिक्षा का खर्च 2013 की तुलना में दोगुना कर दिया गया है लेकिन मंदिरों और सरकारी इमारतों पर किया गया खर्च जिस तरह दिखाई देता है, वह खर्च शिक्षा संस्थानों में दिखाई नहीं देता. आज भी 12वीं पास करने वाला स्टूडैंट असमंजस की स्थिति में यहांवहां भटकता रहता है जिन में से गरीब निम्न क्लास स्टूडैंट एडमिशन की उम्मीदें तक छोड़ देता है और कई मामलों में तो पढ़ाई तक.भारत के कालेजों में इतनी सीटें नहीं हैं.

आकांशा सरकारी स्कूल से बीए पास कर चुकी है और एक आर्कियोलौजिस्ट बनना चाहती है. राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान और इंस्टिट्यूट औफ आर्कियोलौजी में सीटें इतनी कम हैं कि उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं. 60 प्रतिशत नंबर के साथ उसे किसी सरकारी कालेज में एडमिशन मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन सा लगता है.

कटऔफ की होड़ से तो वह पहले ही बाहर हो चुकी है. अब प्रवेश परीक्षा ही एक रास्ता है पर क्या वह एंट्रैंस पास कर पाएगी, इस में उसे शक है, क्योंकि सरकारी और निजी स्कूलों के भेद ने पहले ही उस जैसे कई स्टूडैंट्स को रेखा से बाहर कर दिया है. आकांशा के लिए चिंता की बात यह है कि अगर वह नहीं कर पाती तो फिर उस के पास क्या रास्ता है.इस साल करीब 3,04,699 विद्यार्थियों ने डीयू के केंद्रीय विश्वविद्यालय सीयूइटी के माध्यम से डीयू की प्रवेश परीक्षा में भाग लिया.

यहां हम केवल स्नातक या बीए की बात कर रहे हैं जबकि डीयू में केवल 59,554 सीटें ही हैं. ऐसे में जिन छात्रों का एडमिशन नहीं हो पाएगा, वे कहां जाएंगे. हर साल इसी तरह देश के युवाओं का एक बड़ा तबका उच्च शिक्षा की रेस से बाहर हो जाता है. इस की वजहों को सरकार दरकिनार कर जाती है. सरकारों का फोकस आज भी केवल मंदिर, स्टैच्यू आदि बनाने में है, न कि इन भटक रहे छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के इंतजाम के लिए.

शिक्षा की गुणवत्ताएक रिपोर्ट में, सरकार के अनुसार, 2014 के बाद से भारत में 5709 कालेज, 320 नए विश्वविद्यालय खोले गए. अब देश में कुल 23 आईआईटी, 25 आईआईआईटी, 20 आईआईएम और 22 एम्स हैं. शिक्षा का बजट दोगुना कर दिया गया.

ये सब कागजों में दिखाई पड़ते हैं, धरातल पर नहीं.अगर यह सही है तो फिर देश से विदेश पढ़ने जाने वालों की संख्या 7 लाख क्यों पार कर गई. शिक्षा मंत्रालय के नए आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 7,70,000 से अधिक भारतीय छात्र अध्ययन के लिए विदेश गए, जो 6 साल का उच्चतम स्तर है. इस की भी एक खास वजह है. यदि महानगरों के विश्वविद्यालयों को छोड़ दिया जाए तो देश के अन्य राज्यों की भारतीय शिक्षा व्यवस्था छात्रों को वह वातावरण और अवसर नहीं दे पाती जो विदेशी विश्वविद्यालय देते हैं.

भारत में शिक्षा की गुणवत्ता आजादी के बाद से जस की तस बनी हुई है, जो दुनिया के साथ तालमेल नहीं बैठा पाती. यही वजह है की नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार, 48 फीसदी इंजीनियरिंग छात्र बेरोजगार रह गए हैं. ये केवल सरकारी आकड़े हैं. सरकारी और वास्तविक आंकड़ों में कितना फर्क होता है, यह जगजाहिर है. वास्तविकता में 80 प्रतिशत से भी ज्यादा इस लायक नहीं कि एक इंजीनियर के तौर पर काम कर सकें. तो, वे यहांवहां छोटीमोटी नौकरियों में लगे हुए हैं.शिक्षा का कारोबारदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों में फीस का क्या स्तर है, आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि कुछ कालेजों में बीए कोर्स में फीस 1 लाख से 7 लाख रुपए तक पहुंच जाती है.

अगर मैडिकल और आईआईटी की बात करें तो फीस 40-45 लाख रुपए तक पहुंच जाती है. उन में प्रवेश लेने का सपना एक गरीब स्टूडैंट देख भी नहीं सकता और यदि वह देख भी लेता है तो उस के लिए वहां, जहां केवल मजबूत घरों से आने वाले छात्र ही पढ़ते हैं, के लिए शिक्षा हासिल करना वैसा ही है जैसा किसी युद्ध की तैयारी करना. जिस के कारण कितनी ही बार मानसिक तनाव में आ कर विद्यार्थी आत्महत्या तक कर लेते हैं.

भारत का शिक्षातंत्र दोहरी व्यवस्था पर काम करता है जिस में सरकारी और निजी दोनों ही शामिल हैं, जिस की वजह से निजी कालेजों का कारोबार बड़ी तेजी से फलफूल रहा है. यही कारण है कि सरकारें अपने देश में नए कालेजों पर ध्यान नहीं दे रही हैं और न ही पुराने कालेजों के विकास पर ध्यान देती हैं. और, इस तरह पुराने ढर्रे पर चल रहे कालेज नई तकनीकी दुनिया से पिछड़ जाते हैं.

सरकारी कालेजों में सीटें नहीं हैं और निजी कालेजों की फीस इतनी ज्यादा है कि आकांशा जैसे छात्रों को अपने सपनों को मार देना पड़ता है और ऐसे ही किसी विषय को चुनना पड़ता है जो उस की पसंद का नहीं है या केवल उस वक्त वह उपलब्ध हो. यदि उसे फिर भी वही करना है तो एक भारीभरकम फीस के साथ उसे निजी कालेज में एडमिशन लेना होगा.

जो फिर भी उस का सफल भविष्य सुनिश्चित नहीं करती क्योंकि बेरोजगारी का 8 प्रतिशत आंकड़ा देश के जो हालात प्रस्तुत करता है वह बहुत ही भयावह सा लगता है.भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि 2015 और 2019 के बीच विदेश में पढ़ाई करने वाले केवल 22 प्रतिशत भारतीय छात्र घर लौटने पर रोजगार सुरक्षित करने में सफल रहे.

देश में हर साल जो लाखों छात्र 12वीं पास कर के निकलते हैं, देश की शिक्षा की लचर व्यवस्था के शिकार होते हैं. उच्च शिक्षा की जब बारी आती है तो देश एक बड़ा बाजार बन के सामने खड़ा हो जाता है. एक ऐसा बाजार जहां केवल वही लोग व्यापार कर सकते हैं जिन के पास अथाह पैसा है या जो सक्षम हैं. इस पर सरकारों को ध्यान देना चाहिए.

आस्ट्रिया, साइप्रस गणराज्य, चेक गणराज्य, डेनमार्क, फिनलैंड, जरमनी, ग्रीस, आइसलैंड, नौर्वे, पोलैंड, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया और स्वीडन सहित कई अन्य देशों मे या तो शिक्षा मुफ्त है या केवल कुछ हिस्सा ही फीस के तौर पर देना पड़ता है. दुनिया के ये देश विकसित केवल इसलिए हैं क्योंकि उन का शिक्षा पर पूरा फोकस है. इसलिए, जरूरत है शिक्षा के अधिक से अधिक अवसर छात्रों को मुहैया कराए जाने की.

एडि़यों का ऐसे रखें खयाल

जिस तरह हमारा चमकता चेहरा हमारी पहचान बन जाता है उसी तरह हमारी दमकती एडि़यां भी हमारी पर्सनैलिटी को चारचांद लगाती हैं. कई बार आप ने देखा होगा कि कई लोग अपने पैरों को दूसरों से छिपाते हैं या अपनी फटी एडियों को बंद जूतियों में छिपाने की कोशिश करते हैं. कई महिलाएं घरेलू नुसखे अपनाते हुए थक भी जाती हैं लेकिन अपने पैरों को सौफ्ट और स्मूथ कर पाने की इच्छा पूरी नहीं कर पातीं. ऐसे में जरूरी है कि आप ऐसे उपकरणों का प्रयोग करें जिन के इस्तेमाल के बाद आप को अपनी एडि़यां छिपाने की जरूरत न पड़े और आप कम टाइम में मुलायम पैर पा सकें. तो चलिए आज हम आप को ऐसे कुछ कैलस रिमूवर के बारे में बताते हैं जिन के इस्तेमाल से आप के पैर चमक उठेंगे.

कैलस रिमूवर हैं क्या

यह एक छोटा सा रिचार्जेबल, कौम्पैक्ट और पोर्टेबल उपकरण है जिसे आप आसानी से कहीं भी कैरी कर सकती हैं. इस के इस्तेमाल से आप अपने पैरों की डैड स्किन, थिक स्किन और रफनैस प्रौब्लम से छुटकारा पा सकती हैं. जिन महिलाओं को पार्लर में जा कर पेडीक्योर करना मुसीबत लगता है उन के लिए यह एक बैस्ट आइटम है. इस के साथ कुछ रोलर भी आते हैं जिन्हें अपनी जरूरत के अनुसार आप इस्तेमाल कर सकती हैं. तो चलिए जानते हैं कुछ बैस्ट कैलस रिमूवर के बारे में जिन्हें आप औनलाइन व मार्केट से खरीद सकते हैं.

  1. लाइफलौंग एलएलपीसीडब्लू 04 

इस की खासीयत है कि इस रिमूवर को महज 30 मिनट चार्ज कर ही इसे 2 घंटे तक इस्तेमाल कर सकते हैं. यह पूरी तरह वाटरप्रूफ है. इस में 3 अटैचमैंट दिए गए हैं जिन से कम, मीडियम या बहुत ज्यादा डैड स्किन को निकाल सकते हैं. इस की कीमत 1,300 रुपए तक है.

2. एगेरो सीआर 3001

इस रिमूवर को 45 मिनट तक चार्ज कर 2 घंटे तक इस्तेमाल किया जा सकता है. यह रिचार्जेबल डिवाइस है, जिस में 2 अटैचमैंट हैं. इसे आप शौवर या ड्राई दोनों तरह से यूज कर सकते हैं. इस की कीमत 1,100 रुपए तक है.

3. आइग्रिड 

यह एक कम वजन वाला एलईडी लाइट के साथ आने वाला रिमूवर है. इस के साथ 3 रोलर मिलते हैं, जिन्हें आप उपयोग के बाद आसानी से साफ कर के दोबारा इस्तेमाल कर सकती हैं. इस की कीमत तकरीबन 900 से 1,100 रुपए तक है.

4. वैंडले (यूके) सीक्यूआर-एफसी 800

इस रिमूवर में 1,2000 एमएएच की बैटरी होती है. यह पौकेट साइज में आता है. इस से फाइन ग्राइंडिंग, मीडियम ग्राइंडिंग और रफ ग्राइंडिंग कर सकते हैं. यह 2 स्पीड वैरिएशन के साथ आता है. इस में डिजिटल डिस्प्ले भी होता है. यह 1,200 रुपए तक की कीमत में आसानी से मिल जाता है.

5. एमोप पेडी परफैक्ट 

यह एक इलैक्ट्रिक फुट फाइलर है. इसे बैटरी से औपरेट कर सकते हैं. यह 400 रुपए तक की कीमत में आसानी से मिल जाता है. यदि आप कम खर्चे में अपने पैरों से डैड स्किन हटाना चाहती हैं तो यह एक बढि़या औप्शन है.

अच्छे रिजल्ट के लिए आप कैलस रिमूवर को इस्तेमाल करने के बाद अपने पैरों पर अच्छा मोइस्चराजर लगाना न भूलें. साथ ही, अपने पैरों की सफाई सोने से पहले अवश्य करें जिस से ये रातभर में हील हो सकें और अपने रिमूवर रोलर्स को साफ कर के रखें.

मेरी शादी होने वाली है,मैं ऐसा क्या करूं जिस से हमारे बीच प्यार की गरमी यों ही बरकरार रहे?  

सवाल

मेरी उम्र 22 साल है और मैं ने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट कर लिया है. इसी साल मार्च में मेरी सगाई हो गई है और अक्तूबर में शादी है. मेरा मंगेतर विदेश में रहता है. मेरे वीजा का प्रौसेस चल रहा है ताकि मैं अक्तूबर में शादी के बाद नवंबर में पति के साथ विदेश चली जाऊं. मेरे और मेरे मंगेतर के बीच रोज 3-4 बार बात जरूर होती है. बहुत अच्छी सी फीलिंग है यह. ऐसा लगता है जैसे हम गर्लफ्रैँडबौयफ्रैंड हैं. हमारे बीच बहुत अच्छी बौंडिंग बन चुकी है. मैं अपने मंगेतर के प्यार में इतनी डूब चुकी हूं कि उस के सिवा मुझे और कोई नहीं दिखता. वह भी मुझ पर जीजान से फिदा है. कभीकभी मैं सोचती हूं कि यह हमारा प्यार शादी के बाद भी ऐसा ही रहेगा या शादी के बाद जब हम एक हो जाएंगे, वही पतिपत्नी वाला ठंडा प्यार रह जाएगा? मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहती. मैं ऐसा क्या करूं जिस से हमारे बीच प्यार की गरमी यों ही बरकरार रहे?  

जवाब

प्यार का आप का यह पहला अनुभव है और उस में आप पूरी तरह डूबी हुई हैं. ऐसा होना कोई नई बात नहीं है. पहले प्यार का नशा ऐसा ही होता है और अच्छा भी है कि आप अपनी सगाई और शादी के बीच के टाइम को प्यार से भर रहे हैं.

आप चाहती हैं ऐसा ही प्यार शादी के बाद भी रहे. देखिए, जिंदगी के हर पड़ाव के साथ प्रेम का रूप भी बदल जाता है. अभी आप दोनों की शादी हुई नहीं है. प्यार करने के अलावा आप दोनों के पास दूसरा और कोई जरूरी काम नहीं है. लेकिन शादी के बाद कई जिम्मेदारियां आ जाती हैं जिन के बीच में प्यार का जोश ठंडा पड़ने लगता है लेकिन जिस तरह ज्वालामुखी ऊपर से ठंडा लेकिन अंदर आग जलती रहती है वैसी ही प्यार में अंदर की आग जलती रहनी चाहिए. उस के लिए अपनी आपसी बौंडिंग को मजबूत बनाए रखें.

प्यार में गर्मजोशी को बनाए रखें ताकि एकरूपता से बोरियत पैदा न हो. एकदूसरे पर विश्वास रखें. आपसी बहसबाजी से बचें. एकदूसरे की जरूरतों, कम्फर्ट का ध्यान रखें. यही छोटीछोटी बातें होती हैं जिन से पतिपत्नी के बीच प्यार की गर्मजोशी बनी रहती है. आप इन बातों को ध्यान में रखेंगी तो सब अच्छा रहेगा. विश यू वैरी हैप्पी मैरिड लाइफ.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.,

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

फायदे का नुकसान : घर में हुई चोरी

रातके 2 बज रहे थे. शेखर के घर के आगे कुछ लोग इकट्ठा थे. पुलिस की 2 जीपें भी खड़ी थीं. 6-7 पुलिस वाले शेखर व उस की पत्नी स्मिता से घर के अंदर बातचीत कर रहे थे.

करीब 1 घंटा पहले उन की रसोई की दीवार तोड़ कर चोर घर में घुस आया था. स्टडीरूम से शेखर का मोबाइल, पर्स व घड़ी उठाने के बाद वह बैडरूम में आया जहां स्मिता अकेली सो रही थी. चोर ने जैसे ही उस के गले से सोने की चेन खींची वह जाग गई और जोरजोर से चिल्लाने लगी.

स्मिता का शोर सुन कर शेखर, जो उस रात मैच देखतेदेखते ड्राइंगरूम में ही सो गया था, बदहवास सा दौड़ादौड़ा आया और फिर तुरंत बैडरूम की लाइट जलाई. देखा, स्मिता डर के मारे कांप रही थी.

‘‘क्या हुआ?’’ शेखर ने पूछा तो उस के स्वर में घबराहट थी.

‘‘हम…हम… हमारे घर में कोई घुस आया है,’’ बड़ी मुश्किल से स्मिता के मुंह से निकला.

‘‘मतलब चोर?’’ शेखर घबराते हुए बोला.

‘‘हां शायद,’’ कह स्मिता ने अपने गले पर हाथ फेरा.

‘‘हाय, मेरी चेन ले गया चोर,’’ कह कर स्मिता रोने लगी.

‘‘बिस्तर झड़ कर देखो,’’ शेखर बोला.

‘‘यहां कहीं नहीं है,’’ स्मिता ने बिस्तर झड़ते हुए कहा.

‘‘मैं जा कर अशोकजी को जगाऊं क्या?’’ शेखर ने सकुचाते हुए पूछा.

‘‘हांहां, जल्दी जाओ,’’ कह कर स्मिता भी बाहर आ गई.

शेखर सामने अशोकजी को जगाने गया तो स्मिता भी बराबर वाले राजेंद्र अंकल को बुलाने दौड़ी.

दोनों घरों की लाइटें जलीं और सारे सदस्य बाहर आ गए. फिर सब

लोग स्मिता के घर पहुंचे व सारी घटना को सुना.

‘‘चलो, किचन की तरफ चलते हैं, वहीं से तो आया था चोर,’’ राजेंद्र अंकल बोले तो सभी उन के पीछे हो लिए

संयोग से स्मिता की चेन रसोई में ही पड़ी मिल गई. शायद जल्दबाजी में चोर के हाथ से छूट गई होगी.

‘‘अरे भाभीजी, शायद चोर को आप की चेन पसंद नहीं आई,’’ अशोकजी के बेटे निखिल ने चेन उठाते हुए कहा.

चेन पा कर स्मिता की जान में जान आई

‘‘कमबख्त ने कितना बड़ा छेद कर डाला है. दीवार में,’’ राजेंद्र अंकल की पत्नी ने चोर

को कोसा.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ कह कर राजेंद्र

अंकल ने पौकेट से चश्मा निकाल कर पहना. चश्मा पहनते ही वे चौंक कर बोले, ‘‘अरे, यह

तो चाकू है?’’

‘‘स्मिता, तुम्हारे पास चोर चाकू ले कर आया था. गनीमत सम?ो जो बच गईं,’’ कह कर राजेंद्र अंकल की पत्नी ने और डरा दिया.

‘‘निखिल, पुलिस को फोन करो,’’ अशोकजी परेशान से बोले.

आधे घंटे में पुलिस भी वहां पहुंच गई.

इसी बीच राजेंद्र अंकल ने शेखर के दोनों बड़े भाइयों के टैलीफोन नंबर पूछ कर उन्हें भी

सूचित कर दिया. वे भी आधी रात को वहां

आ पहुंचे.

मझले भैया के साथ उन का 5 वर्षीय बेटा मोंटू भी आया था.

‘‘चाची, मुझे वह वाला बिस्कुट दोगी?’’ उस ने अलमारी में रखे डब्बे की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘हां, जितने चाहे ले लो,’’ स्मिता ने डब्बा ही मोंटू के हाथ में थमा दिया.

अब तक बड़े भैया भी अपने बेटे मनीष के साथ आ पहुंचे थे. सभी एक ही शहर में थोड़ीथोड़ी दूरी पर रहते थे. शेखर से लड़ाई कर के घर से अलग हो जाने के कारण सभी ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था. रिश्ता निभाने की जहमत कभी शेखर ने नहीं उठाई थी. इसलिए तो पहले वाला किराए का मकान छोड़ कर जब वे लोग इस नई कालोनी में आए तो यहां भी शेखर ने किसी से ज्यादा जानपहचान नहीं बढ़ाई.

स्मिता के मिलनसार स्वभाव के कारण राजेंद्रजी व अशोकजी दोनों के परिवार उस से हिलमिल गए थे.

राजेंद्रजी बड़ी बहू वसंती भाभी, जो स्मिता के ठीक पीछे वाले मकान में अलग रह रही थीं को पुलिस के जाने के बाद करीब 3 बजे चोरी का पता चला.

‘‘यह कैसे हो गया स्मिता?’’ पहली बार उन के घर आई वसंती भाभी ने दुख प्रकट किया.

‘‘क्या कहूं भाभी, जब समय खराब होता है तो ऐसी घटनाएं होती रहती हैं,’’ और फिर स्मिता ने उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया.

सभी ने रात 3 बजे चाय पीते हुए एकसाथ सहानुभूति जताई. मोंटू अब तक बिस्कुट के

2 पैकेट खाली कर चुका था.

रोशनी और नेहा कहां हैं?’’ बड़े भैया ने स्मिता से पूछा.

‘‘3 दिनों से नानी के पास हैं. छुट्टियां चल रही हैं न,’’ स्मिता ने कहा.

‘‘पर तुम दोनों अलगअलग कमरे में सोए ही क्यों? एकसाथ सोते तो शायद चोर स्मिता के पास आने की हिम्मत नहीं करता,’’ काफी देर से उधेड़बुन में लगीं वसंती भाभी ने आखिर पूछ ही लिया.

‘‘चुप रहो,’’ पास बैठे उन के पति ने गुस्से में उन का हाथ दबाया.

बाकी लोगों के चेहरों पर उस तनाव के माहौल में भी मुसकान देख वसंती भाभी ने अपने शब्दों पर गौर किया तो वे भी झोप गईं और स्मिता भी.

‘‘चाची टौयलेट जाना है,’’ मोंटू दोनों पैरों को आपस में जोड़े हुए बोला तो स्मिता उसे ले कर कमरे से बाहर आ गई.

अब तक 4 बज चुके थे. अशोक अंकल का परिवार

विदा ले चुका था. थोड़ी देर बाद

राजेंद्रजी का परिवार भी सुबह मिलते हैं कह कर चला गया.

‘‘पुलिस वालों को कुछ खिलानापिलाना पड़ेगा तभी वे कोशिश करेंगे,’’ सब के जाने के बाद बड़े भैया स्मिता से बोले.

म?ाले भैया ने भी इस में अपनी सहमति जताई. शेखर वहीं बैठा सब कुछ चुपचाप सुन रहा था. उसे बातचीत शुरू करने में थोड़ी ?ोंप महसूस हो रही थी. आखिर 2 साल बाद पहली बार दोनों बड़े भाई उन के घर आए थे. और वे भी इस तरह आधी रात को.

मुझे भैया भी अपने नए मकान में कुछ समय पहले ही मां की अनुमति से अलग रहने गए थे. मां बड़े भैया के साथ थीं.

लगभग 4.30 बजे तक वे भी चले गए.

शेखर को रसोई में ही चटाई बिछा कर सोना पड़ा, क्योंकि दीवार में बना छेद उन के अंदर डर पैदा कर गया था.

स्मिता कमरे में सोने चली गई. सुबह करीब 7 बजे कालबैल की आवाज से दोनों चौंक कर उठे. शेखर ने देखा कि दीवार के छेद से वसंती भाभी का 4 साल का बेटा दीपू अंदर आने की कोशिश कर रहा था.

‘‘कौन है वहां?’’ आंखें मलते हुए रसोई के दूसरे कोने में लेटे शेखर ने पूछा.

‘‘अंकल मैं हूं. मम्मी काफी देर से चाय लिए आप के दरवाजे की घंटी बजा रही हैं. उन्होंने ही मु?ो इस चोर वाले छेद से अंदर आ कर आप लोगों को जगाने को कहा,’’ दीपू मासूमियत से बोला.

यह सब सुन कर शेखर मुसकरा दिया. तब तक वसंती भाभी भी चाय की केतली ले कर स्मिता के संग रसोई में आ गईं.

‘‘लो भाई साहब चाय पी

लो. मैं ने सोचा आप दोनों काफी थके हुए होंगे, इसलिए मैं ही चाय बना लाई.’’

मौर्निंग वाक पर आ जा रहे कालोनी के दूसरे लोगों को चोरी की जानकारी देने का जिम्मा दीपू को सौंप कर वसंती भाभी फिर से उन के दुख में शामिल हो गई.

थोड़ी ही देर में बहुत से अनजान चेहरे उन के ड्राइंगरूम में मेहमान बने बैठे थे. सभी पहले उस दीवार में बने छेद को देखते, फिर ड्राइंगरूम में आ कर अपने दुख और विचारों का आदानप्रदान करते.

‘‘बताओ चोर काफी देर से दीवार तोड़ता रहा और आप लोगों को पता भी न चला,’’ कालोनी के सैके्रटरी नीरज ने आश्चर्यचकित हो कर कहा.

‘‘पुलिस वाले क्या कर लेंगे. सब उन की सहमति से ही तो होता है,’’ प्रोफैसर जानकीदास ने अपना गुस्सा पुलिस पर निकाला.

इसी बीच वसंती भाभी,

जो अकेले ही स्मिता की रसोई संभाल रही थीं सभी के लिए चाय बना लाईं.

सुबह की चाय थी अत:

सभी ने चाय का आनंद उठाते हुए चोर को और कोसा व शेखर को धीरज बंधाया.

शेखर व स्मिता इन 6-7 महीनों में इनलोगों से पहली बार मिल रहे थे. शेखर के एकांतप्रिय स्वभाव ने स्मिता की मिलनसारिता पर भी बंदिशें लगा दी थीं.चाय की चुसकियों के बीच ही सभी का परिचय हुआ. ‘‘मुझे चिंता इस बात की है कि पर्स में मेरा एटीएम कार्ड व ड्राइविंग लाइसैंस भी था,’’

थोड़ी देर बाद शेखर ने चिंतित स्वर में कहा.

‘‘कोई बात नहीं, दोबारा लाइसैंस तो मैं तुम्हारा बनवा दूंगा,’’ राजेशजी मेज पर चाय का कप रखते हुए बोले.

यह सुन नीता भला कैसे चुप रहतीं. वे तुरंत बोलीं, ‘‘शेखर, मैं

9 बजे तक बैंक के लिए निकलूंगी. तुम चाहो तो मेरे साथ बैंक चल पड़ना. मैं तुम्हारा पुराना एटीएम कार्ड कैंसिल करवा कर नया बनाने का इंतजाम कर दूंगी.’’

‘‘जी शुक्रिया, मैं सोमवार को ही बैंक जाऊंगा,’’ शेखर बोला.

भीड़ छंटने का नाम ही नहीं ले रही थी. औफिस जाने वाले सज्जन जल्दी अपनी हाजिरी लगा रहे थे इस वादे के साथ कि शाम को मिलेंगे.

स्कूलों की छुट्टी थी, इसलिए दीपू भी एक अच्छे पड़ोसी का फर्ज निभाते हुए सभी को चोरी की खबर सुना रहा था.

इसी बीच वसंती भाभी की नेक सलाह पर शेखर और स्मिता मौका मिलने पर नहाधो लिए.

करीब 9 बजे उस लाइन के आखिरी मकान में रहने वाली सुधा टीचर दोनों के लिए नाश्ता ले आईं.

‘‘सुबह से लोगों का आनाजाना लगा है. ऐसे में कहां समय है नाश्ता बनाने का. इसलिए मैं ही कचौरियां ले आई. सोचा तुम लोगों से परिचय भी हो जाएगा,’’ प्लेट में कचौरियां व चटनी सजाते हुए सुधा बोले जा रही थीं. उन्होंने सारांश में अपने जीवन के एकाकीपन का वर्णन करते हुए स्मिता को 2-3 व्यंजन बनाने की विधियां भी बता डालीं.

बहती गंगा में हाथ धोने में निपुण वसंती भाभी ने न जाने कब 4 कचौरियां पीछे की दीवार से पति को पार्सल कर दीं व दीपू को भी वहीं नाश्ता करा दिया. बेचारा आखिर सुबह से गेट पर खड़ा अपना फर्ज जो निभा रहा था.

‘‘अरे निखिल बुरा न मानो तो 6 पैकेट दूध ले आओ? शायद और चाय बनानी पड़ जाए,’’ सकुचाते हुए शेखर ने निखिल से कहा तो निखिल ने मुसकरा कर सिर हां में हिला दिया.

10.30 बजे तक 2 कारों में शेखर की रूठी मां, दोनों भाई, भाभियां व उन के बच्चे पहुंच गए. शेखर उस समय बाहर ही खड़ा था.

अब गेट पर ही खड़ा रखेगा या अंदर भी बुलाएगा?’’ मां ने जोर से कहा तो शेखर जैसे नींद से जागा. सभी को एकसाथ देख कर वह हक्काबक्का रह गया था.

‘‘अरे मां, शीतल भाभी, उमा भाभी अंदर आइए न,’’ आवाज सुन स्मिता अंदर से निकल कर गेट की ओर भागी.

ड्राइंगरूम में जगह नहीं थी, इसलिए

स्मिता ने पड़ोसियों से परिचय कराने के बाद उन सभी को बैडरूम में ले आई.

शेखर मां के पास ही बैठा था. आखिर 2 साल बाद मांबेटे का मिलन हो रहा था. मां से रहा न गया, तो वे बेटे से लिपट कर रो पड़ीं. भाभियों की आंखें भी नम हो गई थीं.

अब दीपू का साथ देने मोंटू भी पहुंच गया. एक से भले दो. दोनों नमकमिर्च लगा कर खबर फैला रहे थे.

थोड़ी देर में वसंती भाभी सब के लिए चाय ले आईं.

‘‘मम्मीजी, आप लोगों ने नाश्ता किया?’’ स्मिता ने उन के पास बैठते हुए पूछा.

‘‘हम सब ने कर लिया, तुम दोनों के लिए भी लाए हैं. शेखर की पसंद के आलू के परांठे व

नीबू का अचार,’’ शीतल भाभी ने डब्बा खोल कर शेखर को पकड़ाते हुए कहा.

शेखर ने भी फटाफट 2 परांठे खा लिए. गेट तक पहुंची अचार की महक ने दीपू व मोंटू को थोड़ी देर के लिए अपने फर्ज से मुंह मोड़ने पर मजबूर कर दिया.

करीब 11 बजे तक उस कालोनी की वाचाल महिला मंडली भी अपने सारे काम निबटा कर वहां शोक व्यक्त करने पहुंच गई.

फिर से चायनाश्ते का दौर शुरू हुआ. इस बार वसंती भाभी का साथ देने उमा भाभी भी पहुंच गईं.

महिलाएं कुछ ज्यादा ही उत्साह में थीं. राखी ने तो मौका देख कर रीना की बेटी के लिए 2-3 रिश्ते भी बता डाले. सुधा टीचर का विमला के साथ 4 दिन बाद दांतों के डाक्टर के पास जाना फिक्स हो गया. कई व्यंजनों की रैसिपीज का आदानप्रदान हुआ. कई सीरियलों की नायिकाएं दया की पात्र बनीं.

दरअसल, काफी समय बाद सभी इतनी फुरसत से एक जगह मिले थे, इसलिए सभी समय का पूरापूरा लाभ उठाना चाह रहे थे.

बीचबीच में शेखर व स्मिता उन के बीच बैठ कर उन्हें यह याद दिलाते कि वे सभी यहां चोरी का दुख प्रकट करने आए हैं. पर सब व्यर्थ था.

करीब 1 बजे तक दोनों भाई भी सब कुछ भूल कर शेखर से पहले की तरह

घुलमिल गए. यह नजारा स्मिता को अंदर तक खुशी दे गया. उस ने तो हमेशा से सभी का साथ चाहा था, परंतु पति के अक्खड़ स्वभाव के आगे उस की एक न चलती.

महिला मंडली को विदा कर सभी ने खाना खाया. राजेंद्रजी की पत्नी लौकी के कोफ्ते दे गईं तो अशोकजी की पत्नी भरवां भिंडी बना लाईं. सभी ने एकसाथ खाना खाया. पूरा घर किसी शादी के माहौल से कम नहीं लग रहा था.

हां, इस में वसंती भाभी व दीपू का पूरापूरा योगदान रहा. दोपहर को औफिस से लंच करने आए अपने पति को भी वसंती भाभी ने वहीं बुला लिया.

शाम 4 बजे तक दूसरे शहर से स्मिता के मम्मीपापा भी आ पहुंचे. रोशनी व नेहा दादी, ताऊजी, ताईजी व बच्चों को देख कर बहुत खुश हुईं.

बड़ेबुजुर्ग जहां एक ओर राजनीति व खेल पर चर्चा कर रहे थे वहीं बच्चे चोर द्वारा किए छेद के आरपार खेल कर मजा ले रहे थे.

औफिस से लौटने के बाद फिर से लोगों का आनाजाना शुरू हो गया. अब तक शेखर व स्मिता भी ये भूल गए थे कि कल रात उन के घर चोरी हुई थी. दोनों लोगों की आवभगत में बिजी हो गए थे.

शाम को फोन की घंटी की आवाज सुन

बड़े भैया ने रिसीवर उठाया. थाने से इंस्पैक्टर का फोन था थोड़ी देर बातचीत हुई. फिर भैया बैडरूम में आए. जहां वसंती भाभी व घर के सारे सदस्य बैठे थे.

शेखर से बोले, ‘‘थाने से इंस्पैक्टर साहब कह रहे हैं कि तुम व स्मिता थाने जा कर एफआईआर दर्ज कराओ. तभी वे आगे कुछ

कर पाएंगे.’’

‘‘हमें कोई एफआईआर दर्ज नहीं करानी है, भैया. आप ही उन से फोन पर कह दीजिए,’’ स्मिता के चेहरे पर मुसकान थी.

सभी उसे आश्चर्यचकित नजरों से घूरने लगे.

‘‘आप सभी मुझे यों न देखें. वह चोर यहां से 2-3 चीजें ही तो चुरा कर भागा है न… किसी को शारीरिक रूप से कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया. परंतु उस महान व्यक्ति के कारण

2 सालों से बिछड़ी मेरी ससुराल मुझे वापस मिल गई. यहां 6-7 महीनों से अजनबियों की तरह रह रहे कालोनी वालों का स्नेह और अपनापन मिल गया. मेरे खयाल से चोरी एक फायदे का सौदा रहा. वह चोर जहां भी रहे सलामत रहे,’’ स्मिता ने कहा तो सभी को मिलीजुली मुसकान ने वातावरण को हलका कर दिया.

घर में चोर : क्या पकड़ा गया चोर?

एकबार यों हुआ कि हमारे पासपड़ोस में धड़ाधड़ चोरियां होने लगीं. चोरियां किसी योजनाबद्ध ढंग से होतीं तो किसी को ताज्जुबन होता. किंतु चोर इतने बौखलाए हुए थे कि एक दिन जिस घर में चोरी कर जाते तीसरे दिन फिर उसी घर में सेंध लगाने पहुंच जाते. परिणामस्वरूप वहां उन्हें उसी माल से साबिका पड़ता जिसे 2 दिन पहले वे रद्दी सम?ा कर छोड़ गए थे. उदाहरण के लिए दीवाने गालिब, गीतांजलि आदि.

अत: हमारे महल्ले के एक महानुभाव ने एहतियात के तौर पर अपने मकान के बाहर गत्ते पर यह लिख कर लटका दिया, ‘इस घर

में एक बार पहले चोरी हो चुकी है. कृपया अब कोई और घर देखें. सितारों से आगे जहान और भी है.’

मैं ने उन महानुभाव से पूछा, ‘‘आप ने हिंदी और अंगरेजी में लिखा, उर्दू में क्यों नहीं लिखा?’’

वे बोले, ‘‘अजी, वह शेरोशायरी की भाषा है, चोरों के पल्ले क्या खाक पड़ती? जो

भी हो, चोरों ने चोरी की भी डैमोके्रसी समझो कर जब उस का बिना खटके प्रयोग शुरू कर दिया तो मेरी एकमात्र अद्वितीय बीवी ने माथे पर दोहत्थड़ मार कर कहा, ‘‘हाय, इस घर में आ कर तो मेरे भाग्य फूट गए.’’

मैं ने कहा, ‘‘जनाब, यह तो बीवियों का शताब्दियों पुराना वाक्य है. नई कविता के लहजे में ताकि उसे बिना समझे दाद दी जा सके और सम?ाने का कार्य आने वाली शताब्दियों पर छोड़ा जा सके.’’

वह बोली, ‘‘मैं ने आप से शादी की है और आप मुझो से मजाक कर रहे हैं.

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘मजाक बिलकुल आगे नहीं. शादी तो मजाक की कब्र है. अब फरमाइए?’’

‘‘फरमाऊं क्या खाक? हर घर चोरियां हो रही हैं. मगर हमारे भाग्य निगोड़ा एक चोर भी नहीं.’’

मेरे जी में आया कह दूं, ‘डार्लिंग, तुम जो इस घर में हो, फिर चोर की क्या जरूरत है?’ सूचनार्थ निवेदन है कि मेरी जेब की रेजगारी प्राय: मेरी बीवी के खाते में चली जाती है, क्योंकि शादी के समय पवित्र अग्नि के फेरे लेते हुए हम दोनों ने शपथ ली थी कि हम एकदूसरे के सुखदुख में हिस्सा बंटाते रहेंगे.

इस शपथ का हम दोनों बराबर निर्वाह कर रहे हैं. फर्क इतना है कि वह दुख देती रहती है और सुख देने की ड्यूटी मेरे जिम्मे लगा रखी है.

मगर मैं घर के इस चोर साथी की बात जबान पर नहीं ला सका, क्योंकि अनुभव से सीखा था कि गृहस्थ जीवन एक शतरंज है. एक ऐसी शतरंज जिस में मात हमेशा पति की होती है. अत: मैं ने बीवी से कहा, ‘‘प्रिय, चोर का प्रबंध करना मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है. मैं समाज का बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति हूं. अभी पुलिस थाने में टैलीफोन कर दूं तो आधा घंटे में एक छोड़ दर्जन चोर पहुंच जाएंगे. वहां चोरों का बहुत बड़ा स्टौक रहता है.

मेरी यह वीरतापूर्ण घोषणा सुन कर मेरी बीवी 25 वर्ष बाद फिर मुझ पर फिदा हो गई. उस का एक बोसा मु?ा पर अंगड़ाई सी लेता हुआ मालूम हुआ. मगर मैं ने यह कह कर उसे टाल दिया कि पहले चोर आ जाए, बोसा उस के बाद सही और वैसे भी उस के बाद हमारे पास बोसे के सिवा और कौन सी चीज बाकी रह जाएगी.

फिर मैं ने सोचा कि थाने को फोन करने के बाद अगर चोर सचमुच आ गया तो हमारे घर में है ही क्या जो ले जाएगा. पिछले दिनों एक शायर के घर में चोर घुस आया था. उसे वहां से न तसवीरे बुतां मिली, न हसीनों के खुतूत, जिन की बिना पर वह शायर को ब्लैकमेल कर सकता. सुबह खाली हाथ लौटने पर उस ने मुंह से ?ाग वगैरह बहाए और उस की शायरी पर कठोर आलोचना लिख कर चला गया. आश्चर्य है कि उचित सीमा से अधिक पढ़ेलिखे लोग चोर क्यों बन जाते हैं? आलोचक क्यों नहीं बनते?

सहसा याद आया कि पड़ोस में हिंदी के एक कवि के घर चोरी हुई थी. चोर को भ्रम यह था कि आजकल हिंदी में प्रशंसा कम और पैसे अधिक मिलते हैं. उर्दू शायर की तरह नहीं जो गजल सुनाने के बाद जब पैसों की मांग करता है तो संयोजक कहते हैं, ‘‘मुकर्रर, मुकर्रर’’

शायर कहता है, ‘‘पैसे, पैसे.’’

जवाब मिलता है, ‘‘मुकर्रर, मुकर्रर.’’

मतलब यह कि उर्दू शायर को पैसा नहीं मिलता, मुकर्रर मिलता है और चोर इतिहास की सचाई से अच्छी तरह परिचित थे. किसी चोर ने मेरे घर का रुख नहीं किया, क्योंकि मैं भी एक जमाने में शायरी करता था. छोड़ इसलिए दी थी कि वह किसी की समझ में नहीं आती थी. यहां तक कि धीरेधीरे मेरी सम?ा में भी आनी बंद हो गई थी.

अत: मैं ने थाने में टैलीफोन करने से पहले उस हिंदी कवि को टैलीफोन किया और पूछा, ‘‘प्रशांतजी, सुना है आप के निवासस्थान पर चोर पधारा था.’’

वह गर्व से बोले, ‘‘हां, पधारा तो था.’’

मैं ने कहा, ‘‘बड़े खुशकिस्मत हो, यार. इधर हम हैं कि आंखें बिछाए बैठे हैं, लेकिन उन की नजर में चढ़ते ही नहीं. उर्दू में लिखते हैं न. हम पर न समाज की कृपा है न चोर की. मेरी बीवी तो इस गम में सुहाग की चूडि़यां तक तोड़ने पर उतारू है. आप के यहां जो चोर आया था, वह कैसा था?’’

वे बोले, ‘‘बहुत बढि़या. एकदम शानदार.’’

‘‘उस का अतापता बता सकते हो?’’ प्रशांतजी ने बताया, ‘‘मेरी तो उस से नमस्तेवमस्ते भी नहीं हुई, क्योंकि मैं कवि सम्मेलन में गया हुआ था और मेरी बीवी भी वहां वाहवाह करने के लिए पहुंची हुई थी. बच्चे स्कूल गए हुए थे.’’

मैं ने पूछा, ‘‘स्कूल, क्या चोर अब आधुनिक हो गए हैं. रात को सेंध नहीं लगाते, दिनदहाड़े आते हैं. मूल्यवान सूट पहन कर आते हैं. ताला तोड़ते नहीं, बाकायदा चाबी लगा कर खोलते

हैं. इस से चोर मालूम ही नहीं होते, रिश्तेदार मालूम होते हैं और फिर सामान उठा कर यों ले जाते हैं, जैसे चोरी न कर के मकान बदल कर जा रहे हों.’’

फिर मैं ने पूछा, ‘‘तो आप का कौन सा सामान शिफ्ट कर के ले गए?’’

‘‘मेरे सभी नए कपड़े ले गए. फटेपुराने कपड़े छोड़ गए.’’

‘‘कपड़ों के अतिरिक्त और कौन सी फटीपुरानी चीज छोड़ गए?’’

‘‘मेरी बीवी.’’

यह कह कर हिंदी कवि तो हंस दिए, मैं रो दिया. अगर चोरों ने मेरे घर आ कर भी

यही तरीका अपनाया तो… मगर फिर यह सोच कर कुछ आशा बंधी कि हिंदी कवि की बीवी तो दाद देने चली गई थी, मगर मेरी बीवी तो हमेशा घर में रहती है. इसीलिए एहतियात के तौर पर मैं ने चोरों की इस नीति का जिक्र बीवी से नहीं किया और तुरंत पुलिस चौकी का फोन नंबर मिलाने लगा. फोन एगेज निकला. चोरों की ज्यादा मांग और ज्यादा सप्लाई के कारण थाने का टैलीफोन प्राय: ऐंगेज रहने लगा है. इतने में अचानक तड़ाक से एक आवाज आई. आवाज में दहशत थी. फिर क्या देखता हूं कि एक साहब मेरे ड्राइंगरूम के रोशनदान से कूद कर फर्श पर प्रकट हुए और कड़क कर बोले, ‘‘हाथ ऊपर उठाओ.’’

मैं ने पूछा, ‘‘श्रीमान का शुभ नाम?’’

वह बोला, ‘‘मैं चोर हूं.’’

मैं ने चैन की सांस ली और कहा, ‘‘चोर हो? बड़ी देर की मेहरबां आतेआते… मेरी बीवी तो आप को बहुत याद कर रही थी.’’

वह कमीना जैसे राल टपकाते हुए

बोला, ‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘निवेदन यह है कि पड़ोसी के घर में फ्रिज आ जाए तो बीवियां ईर्ष्या के

मारे जल उठती हैं. इसी तरह पासपड़ोस में चोर आने लगे तो भी जल उठती हैं कि हमारे भाग्य में एक चोर भी नहीं. अत: श्रीमान, आप हमारे लिए चोर नहीं फ्रिज हैं.’’

वह जलभुन कर बोला, ‘‘चुप रहो और दोनों हाथ ऊपर उठाओ.’’

मैं उस से कुछ कहना चाहता था लेकिन इस डर से कि कहीं बुरा न मान जाए मैं खामोश रहा. बड़ी मुश्किल से तो एक चोर घर आया था उसे भी नाराज कर दूं. मैं ने तुरंत ही एक मनोरंजक बात छेड़ दी. ‘‘जनाब चोर, आप रोशनदान तोड़ कर अंदर क्यों दाखिल हुए? सामने दरवाजे से पधारते तो अपने संबंधी लगते?’’

वह गरदन फुला कर बोला, ‘‘हम चोर हैं. सीधे रास्ते से आना अपना अपमान सम?ाते हैं.’’

मैं ने प्रशंसा में ताली बजाई, ‘मुकर्रर’ तक मुंह से निकल गया. बीवी को, जो चोर के आते ही मेरी पीठ में शरण ले चुकी थी, मैं ने बधाई दी, ‘‘तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई. थानेदार का एहसान भी नहीं उठाना पड़ा. चोर खुद पधार गया है. इसे नमस्कार करो.’’

मगर बीवी कांप रही थी. चोर दहाड़ा, ‘‘यह क्या तुम ने ताली और मुकर्रर मुकर्रर लगा रखी है? और यह औरत कौन है?’’

मैं ने कहा, ‘‘यह एक शरणार्थी है.’’

वह गरजा, ‘‘मजाक बंद करो. मैं पूछता हूं, तुम इस के कौन हो?’’

‘‘मैं शरणार्थी शिविर का रखवाला हूं.’’

चोर में सैंस औफ ह्यूमर होती तो मेरे वाक्य की प्रशंसा करता मगर वह आलोचकोंकी सी आंखें निकाल कर बोला, ‘‘मेरा समय नष्ट मत करो. मुझो अभी 3 और घरों में चोरियां करनी हैं. अलमारी की चाबियां निकालो.’’

‘‘मैं आप के साथ चलूंगा और मार्गदर्शन करूंगा.’’

बीवी ने मेरे कान में कहा, ‘‘आप क्यों इस के साथ जा कर अपनी जान खतरे में डालते हैं? इसे अथार्टी लैटर दे दीजिए, खुद चला जाएगा.’’

मु?ो जीवन में पहली बार मालूम हुआ कि बीवी मुझो अलमारी से ज्यादा कीमती समझाती है.

मगर चोर को जैसे शक होने लगा कि हम इधरउधर की बातें कर के उसे टरका रहे हैं. अत: इस बार उस ने चाकू की नोक मेरी बीवी की गरदन पर रख दी और बोला, ‘‘अपना यह सोने का हार अपनेआप उतार कर मेरे हवाले करती हो या मैं खुद ही छीन लूं?’’

भारतीय नारियां गैर मर्दों से सीधे बात करना सभ्यता के विरुद्ध समझती हैं. अत: बीवी मुझो संबोधित करते हुए बोली, ‘‘इसे कह दीजिए कि यह नकली हार है, असली हार तो 7 दिन पहले सड़क पर एक ने छीन लिया था.’’

मगर मालूम होता था कि सभ्यता के विषय में चोर का ज्ञान मेरी बीवी से अधिक विस्तृत था. बोला, ‘‘तुम्हारा सोने के गहनों का डब्बा तो होगा. वह कहां रखा है?’’

चोर जानता था कि हर भारतीय नारी के पास गहनों का डब्बा अवश्य होता है. भारतीय संस्कृति का विद्वान होने के नाते चोर ने चाकू की नोक बीवी की गरदन पर अधिक जोर से दबाई तो पूरी भारतीय संस्कृति बाहर आ गई. बीवी कहने लगी, ‘‘डब्बा बैंक लौकर में है और यह है बैंक की रसीद और चाबी.’’

अब चोर कुछ अधिक तिलमिला उठा. उस ने हम दोनों को जबरदस्त धक्का दे कर फर्श पर गिरा दिया, कुछ इस कोण से कि हम दोनों जैसे गलबहियां से हो गए. गलबहियों का यह आनंद हमें सिर्फ हनीमून में आया था. चोर अब घर की वस्तुएं उलटपलट करने में व्यस्त हो गया. उसे बीवी के पर्स से दोढाई रुपए की रेजगारी मिली, जो मेरी पतलून से पर्स में और पर्स से चोर की मुट्ठी में जा पहुंची थी. कुछ फटेपुराने मैले वस्त्र मिले, जो हम ने बाढ़ पीडि़त लोगों को भेजने के लिए रख छोड़े थे. भेज इसलिए नहीं सके थे क्योंकि इस बीच कपड़ा बेचने वालों ने कपड़ों के मूल्य ढाई गुना बढ़ा दिए थे और हम नहीं चाहते थे कि एक पीडि़त परिवार दूसरे पीडि़त परिवार की सहायता करे. चोर ने मेरी अलमारी की कुछ पुस्तकें फर्श पर बिखेर दी थीं. उठा कर इसलिए नहीं ले गया, क्योंकि मार्केट में साहित्यिक रद्दी का भाव काफी गिर गया था और इस साहित्यिक धरोहर से एक खरबूजा तक नहीं खरीदा जा सकता था.

जब उसे काम की कोई भी वस्तु नहीं मिली तो वापस जाते हुए उस ने गुस्से में दरवाजा इस तरह जोर से बंद किया कि दरवाजे का एक छोटा शीशा टूट गया. बीवी कानाफूसी करते हुए बोली, ‘‘कमबख्त ख्वाहमख्वाह हमारा शीशा भी तोड़ गया. अब नया शीशा लगवाने के लिए पैसे कहां से लाएंगे?’’

चोर ने शायद सुन लिया और दरवाजे से झांक कर वही ढाई रुपए की रेजगारी मेरी बीवी के मुंह पर दे मारी और बोली, ‘‘भूखेनंगो, यह लो मेरी तरफ से नया शीश लगवा लेना.’’

ज्ञानोद: भाग 1

यहसुनने को बेताब मैं ने हमेशा  की तरह रिसीवर उठा कर हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई मैं भगतजी से बात कर सकती हूं?’’ मैं ने रौंग नंबर कह कर रिसीवर रख दिया. रोहित जब से अमेरिका गया है, शनिवार की सुबह 6 बजे उस का फोन आ जाता है. कभीकभी बीचबीच में भी आ जाता है. यह पूछने के लिए कि मां , मैं ने फला सब्जी बनाई है, नमक ज्यादा हो गया. क्या करू तो कभी पूछेगा मां, सब्जी तीखी हो गई है क्या करूं?

मैं उस के सवालों के जवाब दे कर उदास हो जाती सोचती बेचारा बच्चा, अकेला क्याक्या करेगा… उसे पढ़ना भी है, काम भी करना है, घर भी संभालना है.तब रिया कहती कि ठीक है न मां, हम सब से दूर जाने का निर्णय भी तो भैया का ही था. शुरूशुरू में तो 4 लड़के मिल कर एक घर में रहते थे, तो आपस में काम बांट लेते थे. पर अब रोहित अलग घर ले कर रहने लगा था.  वहां बाइयां नहीं मिलतीं, सभी काम खुद करने पड़ते है. लेकिन मुझे अपने बेटे पर बहुत गर्व है. इतनी छोटी उम्र में उस ने अपने दम पर घर भी खरीद लिया. जब से उस ने घर लिया है, बारबार आग्रह करता है कि हम उस के पास आ कर रहें मगर भला हम रिया को अकेले छोड़ कर कैसे जा सकते हैं.

इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही, आगे एम.एस. की पढ़ाई करने के लिए रोहित अमेरिका चला गया. जब उस ने अमेरिका जाने की इच्छा जाहिर की थी, तो उसे इतनी दूर भेजने की मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी. पर मैं उस की प्रगति के मार्ग में बाधक नहीं बनाना चाहती थी, मुझे ज्ञात है कि बच्चों की पढ़ाई आजकल कितनी महंगी हो गई है. एक व्यक्ति की आय में महंगी पढ़ाई का खर्च उठा पाना नामुमकिन है. इसीलिए तो मैं ने नौकरी शुरू कर दी थी. रवि के वेतन से घर सुचारु रूप से चल रहा था.

मेरा पूरा वेतन बच्चों की पढ़ाई में खर्च हो जाता था. बच्चे भी तो कितने होनहार हैं. दोनों ने अपनीअपनी मंजिल खुद तय कर ली थी. उन के मंजिल की तलाश में मैं एक साधक मात्र थी. दोनों बच्चे बहुत मेहनती थे. रोहित तो फिर भी मस्ती कर लेता था, लेकिन रिया ने कभी मुझे शिकायत का मौका नहीं दिया.

अमेरिका जाने के बाद शुरू के 2 साल तो रोहित पढ़ाई में व्यस्त रहा, इसलिए भारत नहीं आ सका. इस के बाद उस ने नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. फिर हर साल 3 सप्ताह के लिए भारत आने लगा. रोहित जब भी घर आता, मैं सब कुछ उस की पसंद का बनाती. मेरा ज्यादा समय रसोई में ही बीतता, वह दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलने जाते. इस तरह 3 हफ्ते पंख लगा कर उड़ जाते, फिर मैं उस के अगले साल आने का इंतजार करती.

मेरी शादीशुदा जिंदगी उतनी खुशहाल नहीं थी. ससुराल में सब से प्यार के दो मीठे बोल सुनने को तरस जाती थी मैं, जिन में रवि भी शामिल थे. ऐसे में कोख में नवीन सृजन की आहट पा कर मेरी जिंदगी में जैसे बहार आ गई. रोहित के जन्म के 2 साल के अंतराल पर जब रिया का जन्म हुआ तो मैं निहाल हो गई. दोनों बच्चों के पालनपोषण में मैं अपनी जिंदगी की सारी कडवाहट भूल गई.

मैं ने 2 साल पहले रिया की भी शादी कर दी. रिया के लिए मुझे जैसे योग्य वर की तलाश थी, राजीव के रूप में बिलकुल वैसा ही बेटे जैसा दामाद मिला मुझे. मुझे ऐसा लगने लगा कि दुनिया भर की खुशियां मुझे हासिल हो गई हैं. बेटी को विदा करने के बाद हम पतिपत्नी रोहित के पास अमेरिका चले गए. रोहित का इतना सुंदर घर, उस की प्रतिष्ठा वगैरह देख कर हम फूले नहीं समाए.

मैं सोचने लगी, मेरे लिए बहू लाना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. ऐसे प्रतिभाशाली उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के के लिए लड़कियों की भला क्यों कमी होगी. हम 2 महीने अमेरिका में रहे. इस बीच मैं ने कई बार  रोहित से उस की शादी की बात उठानी चाही, पर हर बार बात को टाल जाता था. उस ने हमें कई जगहों के दर्शन कराए, पर फिर भी मुझे रोहित का व्यवहार कुछ बदलाबदला सा लगा.

इस बीच कभीकभार उस के मित्र, जिन में लड़कियां भी शामिल थीं, घर आते थे. मैं उन सब का स्वागत करती थी. उन्हें भोजन करा कर ही घर भेजती थी. मुझे लगता, बेचारे ये बच्चे, रोहित की तरह घर से दूर रहते हैं, इन्हें भी तो घर में बने लजीज भोजन की तलब होती होगी.

रोहित के इन मित्रों में एक मैक्सिकन लड़की लिंडा, अकसर उस के घर आती थी. दोनों सहकर्मी थे, साथ में मिल कर प्रोजैक्ट तैयार करते थे. इसलिए मुझे भनक तक नहीं लगी कि दोनों एक दूसरे को चाहते भी थे. रोहित ने मुझे बताया कि लिंडा काफी पढ़ीलिखी, सुलझे विचारों वाली लड़की है. उस के पिता के बारे में पूछने पर रोहित ने बताया कि उस की मां का पिता से तलाक हो चुका है. लिंडा मां के साथ रहती है.

मैं दकियानूसी बिलकुल नहीं हूं. मैं ने तो सोच रखा था कि बच्चे अपना जीवनसाथी खुद चुन लेते हैं, तो मैं हर हाल में उन का साथ दूंगी. उन के रास्ते का रोड़ा नहीं बनूंगी. मैं अकसर रोहित से कहती थी, ‘‘बेटे, तुम किसी भारतीय लड़की से शादी करना, पर विदेशी लड़कियों से दूर रहना.’’

रोहित मेरे बातों को हंस कर टाल दिया करता था. मुझे गोरी लड़कियों से परहेज नहीं था, पर उन की उन्मुक्त सभ्यता और संस्कृति से मुझे डर लगता था. तलाक लेना वहां आम बात है. 2 महीने अमेरिका में रह कर जब हम स्वदेश लौटे, तो मेरा सर्वोपरि कार्य था, रोहित के लिए जल्दी से जल्दीजल्दी लड़की ढूंढ़ना. उस की सहमति से मैं ने बहू ढूंढ़ने का काम शुरू किया. पर मैं ने इस काम को जितना आसान सोचा था, उतना था नहीं, मैं रोहित के लिए घरेलू लड़की तो नहीं चाहती थी. ऐसी लड़की भी नहीं चाहती थी, जो घर के बजाय नौकरी को अहमियत दे. रोहित की पसंद एक आधुनिक तेजतर्रार लड़की थी. उस की पसंद को मद्देनजर रखते हुए, एक संस्कारी लड़की की तलाश इतनी आसान नहीं थी पर मैं भी हार मानने वालों में से नहीं थी. मैं जी जान से जुट गई अपने मकसद को कामयाबी का चोला पहनाने में.

इस सिलसिले में मैं कुछ लड़कियों और उन के परिवार वालों से भी मिली. बात आगे बढ़ती, उस से पहले ही एक दिन रोहित का फोन आया. कहने लगा, मां, मैं लिंडा को बेहद चाहता हूं. उस से शादी करना चाहता हूं.

सुन कर मैं हैरान रह गई, गुस्सा भी आया, मुझे रोहित पर कि अगर ऐसी बात थी, तो मुझे पहले क्यों नहीं बताया? लड़की ढूंढ़ने के लिए मुझे अपनी सहमति क्यों दी? मैं एक अच्छी लड़की की तलाश में दिनरात एक कर रही थी. खैर, अपनेआप को संयत कर के मैं ने रोहित से पूछा, ‘‘लिंडा के मातापिता का तलाक क्यों हुआ था क्या तुम ने कभी लिंडा से यह जानने की कोशिश की?’’

रोहित ने जवाब दिया, ‘‘लिंडा के पिता किसी और को चाहते थे. उन्होंने उस की मां से कह दिया कि वे उन के साथ नहीं रहना चाहते. तो इस में उस की मां का क्या दोष?’’

मैं सोचने लगी दोष चाहे माता या पिता किसी का भी हो, लिंडा का तो बिलकुल नहीं था. मेरे विचार से रोजमर्रा की जिंदगी में बच्चों को माता और पिता दोनों की आवश्यकता होती है. इन में से किसी एक की अनुपस्थिति से बच्चों का जीवन सामान्य नहीं रह पाता. ऐसे में तलाकशुदा मातापिता की बेटियों ने खुद जो भुगता होता है, वे कभी नहीं चाहेगी कि उन की संतान वहीं सब भुगते. इसीलिए वे परिवार में पूरा तालमेल बैठाने की पूरी कोशिश करेंगी. इस हिसाब से मुझे लिंडा को अपने परिवार में शामिल करने में कोई एतराज नहीं था.

इस के पहले कि मैं अपना निर्णय रोहित को सुना पाती, रोहित ने मुझे बताया कि लिंडा भी तलाकशुदा है. सुन कर कुछ अच्छा नहीं लगा. फिर भी मैं ने रोहित से उस के तलाक का कारण जानना चाहा.

रोहित ने कहा, ‘‘दोनों में बनी नहीं. छोड़ो न मां, कितनी पूछताछ करती हो. क्या यह काफी नहीं कि हम एकदूसरे को चाहते हैं?’’

मैं रोहित की इच्छा के आगे झकने ही वाली थी कि उस ने फिर एक तीर छोड़ा ‘‘मां, लिंडा के 1 बेटा भी है.’’

सुन कर दिल में एक हूक सी उठी, मैं ने रोहित से कहा, ‘‘बेटा, लिंडा को अपने पिता का प्यार मुहैया नहीं हुआ था, फिर क्या तलाक लेते हुए उस ने अपने बच्चे के बारे में नहीं सोचा और उसे भी पिता के प्यार से वंचित कर दिया? ‘आपस में बनी नहीं’ यह तो कोई कारण हुआ नहीं तलाक लेने का’ इतनी विषमताओं के बीच क्यों करना चाहते हो शादी लिंडा से? मेरी मानो तुम इन पचड़ों में न पड़ो.’’

रोहित ने कोई विवाद नहीं किया. उस ने चुपचाप मेरी बात मान ली. मुझे अपने बेटे पर गर्व महसूस हुआ. मैं ने सोचा, कितनी आसानी से उस ने मेरी बात समझ ली. कुछ वक्त बीत जाने के बाद मैं ने रोहित से फिर पूछा, ‘‘बेटे, क्या मैं फिर से लड़की की तलाश शुरू करूं.’’

इस पर रोहित ने कहा, ‘‘जैसा ठीक समझे .’’ मैं बस उस की सहमति चाहती थी. सहमति मिलने की देर थी कि बिना वक्त गंवाए मैं ने लड़की की तलाश शुरू कर दी. पर हमारे जल्दी मचाने से क्या होता है, होता तो वही है, जो नियति द्वारा निर्धारित होता है. 4-5 महीने निकल गए, पर मुझे सफलता हासिल नहीं हुई.

पेचीदा हल: नई जिंदगी जीना चाहता था संजीव

कशमकश- भाग 1: क्या बेवफा था मानव

सिंगापुर हवाईअड्डे से स्कूल की दूरी अच्छीखासी थी. एयरपोर्ट पर ही वसुधा को लेने आए ट्रैवल एजेंट ने स्कूल की तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए, ‘‘मैडम, ऐसा स्कूल आप को दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा. बच्चे का पूरा ध्यान रखते हैं. और शायद यह दुनिया का पहला स्कूल है जो अस्पताल से जुड़ा हुआ है. बच्चे की सेहत का पूरा ध्यान रखा जाता है, पेरैंट्स को टैंशन लेने की जरूरत नहीं. आप देखिएगा कुछ ही सालों में न आप अपने बच्चे को पहचान पाएंगे और न ही आप का बच्चा आप को.’’ जवाब में वसुधा ने एक फीकी मुसकान फेंकी और मन ही मन कहा, ‘देख पाएगा, तो जरूर पहचान पाएगा.’

‘‘मम्मी, पानी,’’ नन्हे करण का हाथ आगे था. वसुधा ने थर्मस से पानी डाला और गिलास आगे बढ़ा दिया जिसे बच्चे ने एक सांस में ही खाली कर दिया, ‘‘मम्मी, हम कहां जा रहे हैं? यह कौन सी जगह है.’’

‘‘हम सिंगापुर पहुंचे हैं और तुम्हारे नए स्कूल में जा रहे हैं, जहां तुम्हें ढेर सारे खिलौने मिलेंगे, अच्छेअच्छे दोस्त मिलेंगे, खूब मस्ती होगी…’’

‘‘अच्छा,’’ करण कुछ सोच में था, ‘‘सिंगापुर – वही जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सैकंड वर्ल्ड वार में दिल्ली चलो का नारा दिया था.’’

‘‘हां, यह जगह वही है. अब तुम थोड़ी देर सुस्ता लो. फ्लाइट में भी नहीं सोए थे, तबीयत खराब हो जाएगी.’’

स्कूल के रिसैप्शन पर एक लड़की वसुधा का इंतजार कर रही थी, ‘‘मैं हूं रमया, मानव सर की असिस्टैंट. सर, आप का ही इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘फ्लाइट लेट हो गईर् थी,’’ वसुधा ने कहा लेकिन दिमाग उस का मानव नाम पर अटका हुआ था. कितना परिचित नाम है. पिं्रसिपल के कमरे में प्रवेश करते ही वसुधा की सांस अटक सी गई, विशाल कमरा, पीछे दीवार पर एक बड़ी तसवीर और आगे एक बड़ी सी मेज, सोफे और इन सब के बीच एक कुरसी पर मानव… वही चेहरा, वही ललाट, वही माथा और वही गहरी आंखें – वसुधा सकपका सी गई. ‘‘वैलकम मिस्टर करण,’’ पिं्रसिपल का ध्यान अपने छात्र पर ही था.

‘‘थैंक्यू सर, करण कुरसी खींच कर उस पर बैठ चुका था.’’

‘‘तो आप दिल्ली से आए हैं?’’ पिं्रसिपल ने मुसकरा कर पूछा तो झट से करण ने जवाब दिया, ‘‘यस सर, हम दिल्ली में रहते हैं. वैसे, हम बीकानेर के राजघराने से हैं. आप कभी गए हैं वहां?’’

जवाब में मानव ने मुसकराहट फेंकी. फोन की घंटी बज रही थी, मानव ने फोन उठा कर बात करनी शुरू कर दी. ‘तो क्या मानव जानबूझ कर उसे अनदेखा कर रहा है, क्या वह अभी भी…’ वसुधा मन ही मन खुद से सवालजवाब कर रही थी कि अचानक एक शोर ने उस का ध्यान खींचा-खेलखेल में करण ने पेपरवेट नीचे गिरा दिया था जो लुढ़कते हुए अलमारी के कोने में छिप गया था. करण उठ कर गया और चुपचाप पेपरवेट वापस मेज पर रख दिया.

‘‘ओह गुड,’’ पिं्रसिपल मानव ने मुसकरा कर कहा,’’ बिना सहारे के तुम ने अपनेआप पेपरवेट मेज पर रख दिया. दिस इज इंप्रैसिव.’’

‘‘मैं अंधा थोड़े ही हूं. मम्मी तो बस वैसे ही मुझे देखदेख कर रोती रहती हैं. आप ही समझाइए न, मम्मी को.’’  ‘‘जरूर बेटा. तुम अभी छोटे हो, तुम्हें नहीं पता कि अपनों के आंसुओं में कितना प्यार, कितनी भावनाएं होती हैं. इस का इल्म मुझ से ज्यादा किसी को नहीं होगा जिस की आंखों के जाने पर किसी की आंखों से एक बूंद अश्क भी नहीं बहा.’’

वसुधा को काटो तो खून नहीं, तो क्या मानव नेत्रहीन है? आंखों की खूबसूरती वही जो कालेज के जमाने में थी. मगर उस खूबसूरती की अब कोई कीमत नहीं थी. यह सब कैसे हुआ, कब हुआ. ऐसे कई सवाल वसुधा को झकझोर रहे थे. इस से पहले कि बातों का सिलसिला कुछ आगे बढ़ता, मानव ने इजाजत मांगी और लाइब्रेरी की ओर बढ़ गया.

ऐडमिशन की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद वसुधा अपने कमरे की बालकनी में बैठी दूर पहाड़ों की ओर टकटकी लगाए थी. बादलों का एक झुरमुट आया और उसे भिगोने लगा. वसुधा ने आगे बढ़ कर खिड़की को बंद करने की कोशिश की, मगर तेज हवा की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाई और अतीत में खो गई.

पहाड़ों से उसे खास प्यार था. शायद इसी वजह से उस ने छुट्टियों में कश्मीर घूमने का कार्यक्रम बनाया था. उस के पति आनंद ने दफ्तर से काफी सारी छुट्टियां ले ली थीं. कितना खुश था नन्हा करण. श्रीनगर का हर कोना उन्होंने देखा. शिकारे में सैर की. हाउसबोट में सारे दिन आनंद और करण धमाचौकड़ी करते, शाम को डलझील के किनारे सैर करते.

ऐसी ही एक शाम थी जब वे डल झील के किनारे घूम रहे थे कि कुछ लड़के पास से गुजरते फौज के एक कारवां पर अकारण पत्थरों की बरसात करने लगे, फौजी दस्ते हथियारों से लैस होने के बावजूद चुपचाप चलते जा रहे थे कि अचानक एक दुबलेपतले लड़के ने एक फौजी की वरदी पर हाथ डाल दिया. जवान ने लड़के की कलाई पकड़ ली और वह घिसटता चला जा रहा था. जवान ने एक हाथ से उसे पकड़े रखा और वह लड़का अपनी पूरी ताकत व जोरआजमाइश के बावजूद अपनी कलाई नहीं छुड़ा पाया.

कारवां के कप्तान ने आखिर उसे छुड़ाया और कहा, ‘‘हम चाहें तो अभी तुम्हें मजा चखा सकते हैं, मगर हम तुम्हें एक और मौका देते हैं. मत करो ऐसा काम, वरना भूखे मर जाओगे, तुम्हारे आका ऐयाशी करते जाएंगे और तुम मरते जाओगे. ये जो पर्यटक हैं, पहाड़ देखने के लिए कुल्लू जा सकते हैं, शिमला, मनाली, मसूरी, आबू, दार्जिलिंग, यहां तक कि स्विट्जरलैंड भी जा सकते हैं. मगर सोचो, ये अगर यहां नहीं आएंगे तो तुम्हारा क्या होगा, दानेदाने को मुहताज हो जाओगे.’’ यह कह कर कप्तान ने लड़के को छोड़ दिया.

लड़का एक ओर गिरा. मगर गिरते ही एहसानफरामोश दल ने पत्थर की बारिश कर दी. एक पत्थर करण को जा लगा और उस की आंखों से खून बहने लगा. फौज के कप्तान ने कारण को घायल देखा तो नारे लगाती भीड़ में घुस गया और पत्थरों की बौछारों के बीच करण, वसुधा और आनंद को बचा कर जीप में बैठा कर अस्पताल की तरफ चल पड़ा.

अस्पताल पहुंचते ही फौरन करण का इलाज शुरू हो गया. ‘बच्चे की आंखों का कार्निया डैमेज हो चुका है, अगर कुछ देर और हो जाती तो औप्टिकल नर्व भी कट सकती थी. फिलहाल, बच्चा देख नहीं पाएगा,’ डाक्टर ने राय जाहिर की.

‘क्या कोई उम्मीद नहीं,’ आनंद ने हौले से पूछा.

‘आस तो रखिए, मगर उम्मीद नहीं. शायद कभी कोई ऐसा डोनर मिल जाए, जिस की आंखों का यह हिस्सा सही हो तो उस के कार्निया की मदद से इस की आंखों की रोशनी आ जाए. मगर पूरी तरह से मैचिंग हो जाए तभी ऐसा मुमकिन हो पाएगा.’

फोन की बजती घंटी वसुधा को अतीत से वापस वर्तमान में ले आई. फोन पर दूसरी ओर आनंद था जो करण की खैरियत पूछ रहा था. वसुधा चाह कर भी आनंद से मानव का जिक्र नहीं कर पाई.

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