Social story in hindi
Social story in hindi
देर शाम अनुष्का का फोन आया. कामधाम से खाली होती तो अपने पिता विश्वनाथ को फोन कर अपना दुखसुख अवश्य साझ करती. शादी के 3 साल हो गए, यह क्रम आज भी बना हुआ था. पिता को बेटियों से ज्यादा लगाव होता है, जबकि मां को बेटों से. इस नाते अनुष्का निसंकोच अपनी बात कह कर जी हलका कर लेती.
‘‘पापा, आज फिर ये जोरजोर से चिल्लाने लगे,’’ अनुष्का ने अपने पति कृष्णा का जिक्र किया.
‘‘क्यों?’’ विश्वनाथ निर्विकार भाव से बोले.
‘‘इसी का जवाब मैं खोज रही हूं.’’ कह कर वह भावुक हो गई.
विश्वनाथ का जी पसीज गया. विश्वनाथ उन पिताओं जैसे नहीं थे जो बेटी का विवाह कर के गंगा नहा लेते थे. वे उन पिताओं सरीखे थे जिन्हें अपनी बेटी का दुख भारी लगता. तनिक सोच कर बोले, ‘‘उन की बातों को ज्यादा तवज्जुह मत दिया करो. अपने काम से काम रखो.’’
जब भी अनुष्का का फोन आता वे उसे धैर्य और बरदाश्त करने की सलाह देते. विश्वनाथ की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी तरफ से कभी बेटियों को निराश नहीं किया. उन की बात पूरी लगन से सुनते. वे चाहते तो कह सकते थे कि यह तुम दोनों का आपसी मामला है. बारबार फोन कर के मु?ो परेशान मत किया करो. ज्यादातर पिताओं की यही भूमिका होती है. बेटियों की शादी कर दी तो अपने बेटाबहू में रम गए.
विश्वनाथ की 3 बेटियां थीं और एक बेटा. उन्होंने बेटेबेटियों में कोई फर्क नहीं किया. अमूमन लोग बेटियों को बोझ समझते हैं. इस के विपरीत विश्वनाथ को लगता, उन की बेटियां ही उन की ताकत हैं. उन की पत्नी कौशल्या की सोच उन से इतर थी. उन्हें अपना बेटा ही हीरा लगता. वे बेटियों को जबतब कोसती रहतीं. विश्वनाथ को बुरा लगता. इसी बात पर तूतूमैंमैं शुरू हो जाती.
विश्वनाथ का जीवन अभावपूर्ण था. बड़े संघर्षों से गुजर कर उन्होंने अपनी औलादों को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि वे अपने पैरों पर खडे़ हो गए. बड़ी बेटी की शादी से वे खुश नहीं थे क्योंकि दामाद का कामधाम कोई खास नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि उन की कामाऊ बेटी की बदौलत ही गृहस्थी की गाड़ी चलेगी. उन की मजबूरी थी. कहां से अच्छे वर के लिए दहेज ले आते? बेटी की शक्लसूरत कोई खास नहीं थी. हां, पढ़ने में तेज जरूर थी. पहली से निबटे तो दूसरी अनुष्का आ गई. सब बेटियों में 2 से 3 साल का फर्क था. अनुष्का देखनेसुनने के साथ पढ़ने में भी होशियार थी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह किसी भी सूरत में प्राइवेट नौकरी वाले लड़के से शादी नहीं करेगी. सब चिंता में पड़ गए. कहां से लड़का ढूंढे़ं.
ऐसे में उन के बड़े दामाद ने कृष्णा का जिक्र किया. वह सरकारी नौकरी में था. देखने में ठीकठाक था. रही पढ़ाई तो वह अनुष्का की तुलना में औसत दर्जे का था तो भी क्या? सरकारी नौकरी थी. जिस आर्थिक अनिश्चितता के दौर से विश्वनाथ का परिवार गुजरा, उस से तो मुक्ति मिलेगी. यही सब सोच कर विश्वनाथ इस रिश्ते के लिए अपने दामाद की मनुहार करने लगे. साथसाथ, उन्होंने अपनी तीसरी बेटी के लिए भी सरकारी नौकरी वाले वर से करने का मन बना लिया.
लड़के को अनुष्का पसंद आ गई. दहेज पर मामला रुका तो विश्वनाथ ने साफसाफ कह दिया कि उन की औकात ज्यादा कुछ देने की नहीं है. सांवले रंग के कृष्णा को जब गोरीचिट्टी अनुष्का मिली तो वह न न कर सका. इस के पहले उस ने काफी लड़कियां देखीं. किसी की पढ़ाई पसंद आती तो रूपरंग मनमाफिक न मिलता. रूपरंग होता तो पढ़ाई साधारण रहती. यहां सब था. नहीं था तो दहेज की रकम. कृष्णा को लगा अब अगर और छानबीन में लगा रहेगा तो उम्र निकल जाएगी, ढंग की लड़की न मिलेगी. लिहाजा, उसे भी गरज थी. शादी संपन्न हो गई.
अनुष्का फूले नहीं समा रही थी. उस ने जो चाहा वह मिल गया. बिना आर्थिक किचकिच के जिंदगी आसानी से कटेगी. शादी होते ही वह जयपुर घूमने निकल गई. बड़ी बहन लतिका को तकलीफ हुई. वह सोचने लगी, आज उस का भी पति ऐसी ही नौकरी में होता तो वह भी वैवाहिक जीवन की इस प्रथम पायदान पर चढ़ कर जिंदगी का लुत्फ उठाती.
दोनों के विवाह का शुरुआती दौर बिना किसी शिकवाशिकायत के कटा. अनुष्का इस रिश्ते से निहाल थी. वहीं कृष्णा को लगा, उस ने जैसा चाहा उसे मिल गया. इस बीच, वह एक बेटे की मां बनी.
कृष्णा में एक खामी थी. उसे रुपए से बहुत मोह था. घरगृहस्थी के लिए खर्च करने में कोई कोताही नहीं बरतता तो भी बिना मेहनत के धन ही मिल जाए तो हर्ज ही क्या है. इसी लालच में उस ने अपना काफी रुपया शेयर में लगा दिया. अनुष्का ने एकाध बार टोका. मगर कृष्णा ने नजरअंदाज कर दिया.
एक दिन तो हद हो गई, कहने लगा, ‘मेरा रुपया है, जहां भी खर्च करूं.’
कृष्णा को ऐसे तेवर में देख कर अनुष्का सहम गई. एकाएक उस के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज कर दिया. उस का मन खिन्न हो गया. मारे खुन्नस कृष्णा से बोली नहीं. कृष्णा की आदत थी, जल्द ही सामान्य हो जाता. वहीं अनुष्का के लिए आसान न था. चूंकि यह पहला अवसर था, इसलिए अनुष्का ने भी अपनी तरफ से भूलना मुनासिब सम?ा. मगर कब तक. जल्द ही उसे लगा कि कृष्णा अपने मन के हैं, उन्हें सम?ाना आसान नहीं. इस बीच, शेयर के भाव बुरी तरह से नीचे आ गए और उस के लाखों रुपए डूब गए. सो, अनुष्का को कहने का मौका मिल गया.
कृष्णा बुरी तरह टूट गया. परिणामस्वरूप, उस के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया. हालांकि उस की तनख्वाह कम न थी. तो भी, 10 साल की कमाई पानी में बह जाए तो क्या उसे भूल पाना आसान होगा? वह भी ऐसे आदमी के लिए जो बिना मेहनत अमीर बनने की ख्वाहिश रखता हो. कृष्णा अनमना सा रहने लगा. उस का किसी काम में मन न लगता. कब क्या बोल दे, कुछ कहा न जा सकता था. कभीकभी तो बिना बात के चिल्लाने लगता. आहिस्ताआहिस्ता यह उस की आदत में शामिल होता गया.
अनुष्का पहले तो लिहाज करती रही, बाद में वह भी पलट कर जवाब देने लगी. बस, यहीं से आपसी टकराव बढ़ने लगे. अनुष्का का यह हाल हो गया कि अपनी जरूरतों के लिए कृष्णा से रुपए मांगने में भी भय लगता. इसलिए अनुष्का ने अपनी जरूरतों के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली. स्कूल से पढ़ा कर आती तो बच्चों को टयूशन पढ़ाती. इस तरह उस के पास खासा रुपया आने लगा. अब वह आत्मनिर्भर थी.
अनुष्का जब से नौकरी करने लगी तो घर के संभालने की जिम्मेदारी कृष्णा के ऊपर भी आ गई. अनुष्का को कमाऊ पत्नी के रूप में देख कर कृष्णा अंदर ही अंदर खुश था, मगर जाहिर होने न देता. अनुष्का जहां सुबह जाती, वहीं कृष्णा 10 बजे के आसपास. इस बीच उसे इतना समय मिल जाता था कि चाहे तो अस्तव्यस्त घर को ठीक कर सकता था मगर करता नहीं. वजह वही कि वह मर्द है. एक दिन अनुष्का से रहा न गया, गुस्से में कृष्णा का उपन्यास उसी के ऊपर फेंक दिया.
‘यह क्या बदतमीजी है?’ कृष्णा की त्योरियां चढ़ गईं.
‘घर को सलीके से रखने का ठेका क्या मैं ने ही ले रखा है. आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती,’ अनुष्का ने तेवर कड़े किए.
‘8 घंटे डयूटी दूं कि घर संभालूं,’ कृष्णा का स्वर तल्ख था.
‘नौकरी तो मैं भी करती हूं. क्या आप अपना काम भी नहीं कर सकते? बड़े जीजाजी को देखिए. कितना सहयोग दीदी का करते हैं.’
‘उन के पास काम ही क्या है. बेकार आदमी, घर नहीं संभालेगा तो क्या करेगा?’
‘आप से तो अच्छे ही हैं. कम से कम अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं.’
‘मैं कौन सा कोठे पर जाता हूं?’ कृष्णा चिढ़ गया.
‘औफिस से आते ही टीवी खोल कर बैठ जाते है. न बच्चे को पढ़ाना, न ही घर की दूसरी जरूरतों को पूरा करना. मैं स्कूल भी जाऊं, टयूशनें भी करूं, खाना भी बनाऊं,’ अनुष्का रोंआसी हो गई.
‘मत करो नौकरी, क्या जरूरत है नौकरी करने की,’ कृष्णा ने कह तो दिया पर अंदर ही अंदर डरा भी था कि कहीं नौकरी छोड़ दी तो आमदनी का एक जरिया बंद हो जाएगा.
‘जब से शेयर में रुपया डूबा है, आप रुपए के मामले में कुछ ज्यादा ही कंजूस हो गए हैं. अपनी जरूरतों के लिए मांगती हूं तो तुरंत आप का मुंह बन जाता है. ऐसे में मैं नौकरी न करूं तो क्या करूं,’ अनुष्का ने सफाई दी.
‘तो मुझ से शिकायत मत करो कि मैं घर की चादर ठीक करता फिरूं.’
कृष्णा के कथन पर अनुष्का को न रोते बन रहा था न हंसते. कैसे निष्ठुर पति से शादी हो गई. उसे अपनी पत्नी से जरा भी सहानुभूति नहीं, सोच कर उस का दिल भर आया.
कृष्णा की मां अकसर बीमार रहती थी. अवस्था भी लगभग 75 वर्ष से ऊपर हो चली थी. अब न वह ठीक से चल पाती, न अपनी जरूरतों के लिए पहल कर पाती. उस का ज्यादा समय बिस्तर पर ही गुजरता. कृष्णा को मां से कुछ ज्यादा लगाव था. उसे अपने पास ले आया.
अनुष्का को यह नागवार लगा. उन के 3 और बेटे थे. तीनों अच्छी नौकरी में थे. अपनीअपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो आराम की जिंदगी गुजार रहे थे. अनुष्का चाहती थी कि वह उन्हीं के पास रहे. वह घर देखे कि बच्चे या नौकरी. वहीं उन के तीनों बेटों के बहुओं के पास अतिरिक्त कोई जिम्मेदारी न थी. वे दिनभर या तो टीवी देखतीं या फिर रिश्तेदारी का लुत्फ उठातीं.
अनुष्का ने कुछ दिन अपनी सास की परेशानियों को झेला, मगर यह लंबे समय तक संभव न था. एक दिन वह मुखर हो गई, ‘आप माताजी को उन के अन्य बेटों के पास छोड़ क्यों नहीं देते?’
‘वे वहां नहीं रहेंगी?’ कृष्णा ने दोटूक कहा.
‘क्यों नहीं रहेंगी? क्या उन का फर्ज नहीं बनता?’ अुनष्का का स्वर तल्ख था.
‘मैं तुम्हारी बकवास नहीं सुनना चाहता. तुम्हें उन की सेवा करनी हो तो करो वरना मैं सक्षम हूं’
‘खाक सक्षम हैं. कल आप नहीं थे, बिस्तर गंदा कर दिया. मुझे ही साफ करना पडा.’
‘कौन सा गुनाह कर दिया. वे तुम्हारी सास हैं.’
‘यह रोजरोज का किस्सा है. आप उन की देखभाल के लिए एक आया क्यों नहीं रख लेते?’ आया के नाम पर कृष्णा कन्नी काट लेता. एक तरफ खुद जिम्मेदारी लेने की बात करता, दूसरी तरफ सब अनुष्का पर छोड़ कर निश्ंिचत रहता. जाहिर है, वह आया पर रुपए खर्च करने के पक्ष में नहीं था. शेयर में लाखों रुपए डुबाना उसे मंजूर था मगर मां के लिए आया रखने में उसे तकलीफ होती.
कंजूसी की भी हद होती है. रात अनुष्का, पिता विश्वनाथ को फोन कर के सुबकने लगी, ‘‘पापा, आप ने कैसे आदमी से मेरी शादी कर दी. एकदम जड़बुद्वि के हैं. मेरी सुनते ही नहीं.’’ फिर एक के बाद एक उस ने सारा किस्सा बयां कर दिया. सब सुन कर विश्वनाथ को भी तीव्र क्रोध आया. मगर चुप रहे यह सोच कर कि बेटी है.
‘‘तुम से जितना बन पड़ता है, करो,’’ पिता विश्वनाथ का स्वर तिक्त था.
‘‘सास को यहां लाने की क्या जरूरत थी? 3 बेटे अच्छी नौकरियों में हैं. सब अपनेअपने बेटेबेटियों की शादी कर के मुक्त हैं. क्या अपनी मां को नहीं रख सकते थे? यहां कितनी दिक्कत हो रही है. किराए का मकान. वह भी जरूरत के हिसाब से लिए गए कमरे जबकि उन तीनों बेटों के निजी मकान हैं. आराम से रह सकती थीं वहां.’’
‘‘अब मैं उन की बुद्वि के लिए क्या कहूं’’ विश्वनाथ ने उसांस ली.
गरमी की छुट्टियां हुईं. अनुष्का अपने बेटे को ले कर मायके आई. कृष्णा उसे मायके पहुंचा कर अपने भाईयों से मिलने चला गया. ससुराल में रुकने को वह अपनी तौहीन सम?ाता. भाईयों का यह हाल था कि वे सिर्फ कहने के भाई थे, कभी दुख में झंकने तक नहीं आते. इतनी ही संवेदनशीलता होती तो जरूर अपनी मां की खोजखबर लेते. वे सब इसी में खुश थे कि अच्छा हुआ, कृष्णा ने मां को अपने पास रख लिया. अब आराम से अपनीअपनी बीवियों के साथ सैरसपाटे कर सकेंगे.
दो दिनों बाद कृष्णा अनुष्का को छोड़ कर इंदौर अपनी नौकरी पर चला गया. मां को दूसरे के भरोसे छोड़ कर आया था, इसलिए उस का वापस जाना जरूरी था. बातचीत का दौर चलता तो जब भी समय मिलता अनुष्का अपना दुखड़ा ले कर विश्वनाथ के पास बैठ जाती.
एक दिन विश्वनाथ से रहा न गया, बोले, ‘‘तुम यहीं रह जाओ. कोई जरूरत नहीं है उस के पास जाने की.’’
अनुष्का ने कोई जवाब नहीं दिया. बगल में खड़ी अनुष्का की मां कौशल्या से रहा न गया, ‘‘आप भी बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते हैं.’’ अनुष्का की चुप्पी बता रही थी कि यह न तो संभव था न ही व्यावहारिक. भावावेश में आ कर भले ही पिता विश्वनाथ ने कह दिया हो मगर वे भी अच्छी तरह जानते थे कि बेटी का मायके में रहना आसान नहीं है. फिर पतिपत्नी के रिश्ते का क्या होगा? अगर ऐसा हुआ तो दोनों के बीच दूरियां बढ़ेंगी जिसे बाद में पाट पाना आसान न होगा.
अनुष्का की आंखें भर आईं. उसे लग रहा था वह ऐसे दलदल में फंस गई है जहां से निकल पाना आसान न होगा. आज उसे लग रहा था कि रुपयापैसा ही महत्त्वपूर्ण नहीं, बल्कि आदमी का व्यावहारिक व सुलझा हुआ होना भी जरूरी है. पिता विश्वनाथ को आदर्श मानने वाली अनुष्का को लगा, पापा का सुलझपन ही था जो तमाम आर्थिक परेशानियों के बाद भी उन्होंने हम सब भाईबहनों को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि समाज में सम्मान के साथ जी सकें. वहीं, कृष्णा के पास रुपयों के आगमन की कोई कमी नहीं तिस पर उन की सोच हकीकत से कोसों दूर है.
पिता विश्वनाथ की जिंदगी आसान न थी. सीमित आमदनी, उस पर 3 बेटियों ओैर एक बेटे की परवरिश. वे अपने परिवार को ले कर हमेशा चिंतित रहते. मगर जाहिर होने न देते. उन के लिए औलाद ही सबकुछ थी. पत्नी कौशल्या जबतब अपनी बेटियों को डांटतीफटकारती रहती जिस को ले कर पतिपत्नी में अकसर विवाद होता. बेटियों का कभी भी उन्होंने तिरस्कार नहीं किया. उन का लाड़प्यार उन पर हमेशा बरसता रहता. इसलिए बेटियां उन के ज्यादा करीब थीं. यही वजह थी कि बेटियां आज भी अपने पिता को अपना आदर्श मानतीं. जब बेटा हुआ तो मां कौशल्या का सारा प्यार उसी पर उमड़ने लगा. यह अलग बात थी कि जब उन की तीनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो उन की नजर उन के प्रति सीधी हो गई.
एक महीना रहने के बाद अनुष्का कृष्णा के पास वापस इंदौर जाने की तैयारी करने लगी तो अचानक एक शाम विश्वनाथ को क्या सूझ, कहने लगे, ‘‘क्या तुम्हारी मां मुझ से खुश थीं?’’ सुन कर क्षणांश वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई. अनुष्का ने मां की तरफ देखा. उन की आंखें सजल थीं. मानो अतीत का सारा दृश्य उन के सामने तैर गया हो. वे आगे बोले, ‘‘जब वह मुझ से खुश नहीं थी तो तुम कैसे अपने पति से अपेक्षा कर सकती हो वह हमेशा तुम्हें खुश रखेगा?’’
पिता की बेबाक टिप्पणी पर अनुष्का को कुछ कहते नहीं बन पड़ा. वह तो अपने पिता को आदर्श मानती थी. वह तो यही मान कर चलती थी कि उस के पिता समान कोई हो ही नहीं सकता. बेशक पिता के रूप में वे सफल थे मगर क्या पति के रूप में भी वे उतने ही सफल थे? क्या उन्होंने हमेशा वही किया जो कौशल्या को पसंद था? शायद नहीं.
वे आगे बोलते रहे, ‘‘यह लगभग सभी के साथ होता है. पत्नी अपने पति से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करती है पर खुशी का पैमाना क्या है? क्या कृष्णा शराबी या जुआरी है? कामधाम नहीं करता या मारतापीटता है? सिर्फ विचारों और आदतों की भिन्नता के कारण हम किसी को नापंसद नहीं कर सकते? जब एक गर्भ से पैदा भाईयों में मतभेद हो सकते हैं तो पतिपत्नी में क्यों नहीं.’’
अनुष्का को अपने पिता से यह उम्मीद न थी. उन के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज बना दिया. अभी तक उसे यही लग रहा था कि कृष्णा जो कुछ कर रहा है वह एक तरह से उस पर मनोवैज्ञानिक अत्याचार था. उन के कथन ने एक तरह से उसे भी कुसूरवार बना दिया. आहत मन से बोली, ‘‘पापा, जब ऐसी बात थी तो फिर आप ने मुझ क्यों मायके में ही रहने की सलाह दी?’’
वे किंचिंत भावुक स्वर में बोले, ‘‘एक पिता के नाते तुम्हारा दुख मेरा था. पुत्रीमोह के चलते मैं ने तुम्हें यहां रहने की सलाह दी. मगर यह व्यावहारिक न था. काफी सोचविचार कर मुझे लगा कि शायद मैं तुम्हें गलत रास्ते पर चलने की नसीहत दे रहा हूं. बड़ेबुजर्ग का कर्तव्य है कि पतिपत्नी के बीच की गलतफहमियां अपने अनुभव से दूर करें, न कि आवेश में आ कर दूरियां बढ़ा दें, जो बाद में आत्मघाती सिद्ध्र हो.’’
अनुष्का पर पिता विश्वनाथ की बातों का असर पड़ा. उस ने मन बना लिया कि अब से वह कृष्णा को भी समझने की कोशिश करेगी.
उन्हें फेसबुक का पता चलेगा तो वह अकाउंट भी बंद हो जाएगा. चार बातें अलग सुनने को मिलेंगी. वे कहेंगे स्वतंत्रता दी है तो इस का यह मतलब नहीं कि तुम लड़कों से फेसबुक के जरिए मित्रता करो. उन से मिलो…और प्लीज, तुम जाओ यहां से, मैं नहीं जानती तुम्हें. क्या घर से मेरा निकलना बंद कराओगे? घर पर पता चल गया तो घर वाले नजर रखना शुरू कर देंगे.’’ फिर, घर वालों का प्रेम, विश्वास और भी बहुतकुछ कह कर लड़की चली गई.तब लड़के के मन में खयाल आया कि एक ही शहर के होने में बहुत समस्या है.
जो लड़की की समस्या है वही लड़के की भी है. लड़के ने हिम्मत कर के पूछ तो लिया, लेकिन लड़की ने कहा कि फेसबुक फ्रैंड हो तो फेसबुक पर मिलो. अपनी बात कहने के बाद लड़के ने भी सोचा कि यदि उसे भी कोई घर का या परिचित देख लेता तो प्रश्न तो करता ही. भले ही वह कोई भी जवाब दे देता लेकिन वह जवाब ठीक तो नहीं होता. यह तो नहीं कह देता कि फेसबुक फ्रैंड है. बिलकुल नहीं कह सकता था. फिर बातें उठतीं कि जब इस तरह की साइड पर लड़कियों से दोस्ती हो सकती है तो और भी अनैतिक, अराजक, पापभरी साइट्स देखते होंगे.
गे.’’लड़के ने कहा, ‘‘मुझे घर वालों से झूठ बोलना पड़ेगा और पैसों का इंतजाम भी करना पड़ेगा. हां, संबंध बनने के बाद शादी के लिए तुरंत मत कहना. मैं अभी कालेज कर रहा हूं. प्राइवेट जौब में पैसा कम मिलेगा. और आसानी से मिलता भी नहीं है काम, लेकिन मेरी कोशिश रहेगी कि…’’ लड़की ने बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम आ जाओ. पैसों की चिंता मत करो. मेरे पास अच्छी सरकारी नौकरी है.
शादी कर भी ली तो तुम्हें कोई आर्थिक समस्या नहीं होगी.’’‘‘मैं कोशिश करता हूं.’’ और लड़के ने कोशिश की. घर में झूठ बोला और अपनी मां से इंटरव्यू देने जाने के नाम पर रुपए ले कर दिल्ली चला गया. पिताजी घर पर होते तो कहते दिखाओ इंटरव्यू लैटर.
लौटने पर पूछेंगे तो कह दूंगा कि गिर गया कहीं या हो सकता है कि लौटने पर सीधे शादी की ही खबर दें. लड़का दिल्ली पहुंचा 6 घंटे का सफर कर के.घर पर तो जा नहीं सकते. घर का पता भी नहीं लिखा रहता है फेसबुक पर. सिर्फ शहर का नाम रहता है.
यह पहले ही तय हो गया था कि दिल्ली पहुंच कर लड़का फोन करेगा. और लड़के ने फोन कर के पूछा, ‘‘कहां मिलेगी?’’‘‘कहां हो तुम अभी?’’‘‘स्टेशन के पास एक बहुत बड़ा कौफी हाउस है.’’‘‘मैं वहीं पहुंच रही हूं.’’लड़के के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. उस के सामने लड़की का सुंदर चेहरा घूमने लगा. लड़के ने मन ही मन कहा, ‘‘कदकाठी अच्छी हो तो सोने पर सुहागा.’’
ऐसे में दूसरे शहर की वीर, साहसी, दलबल, विचारधारा, जाति, धर्म सब देखते हुए जिस में चेहरे का मनोहारी चित्र तो प्रमुख है ही, फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी जाती है और लड़की की तरफ से भी तभी स्वीकृति मिलती है जब उस ने सारा स्टेटस, फोटो, योग्यता, धर्म, जाति आदि सब देख लिया हो. और वह भी किसी कमजोर व एकांत क्षणों से गुजरती हुई आगे बढ़ती गई हो.
लड़की क्यों इतना डूबती जाती है, आगे बढ़ती जाती है. शायद तलाश हो प्रेम की, सच्चे साथी की. उसे जरूरत हो जीवन की तीखी धूप में ठंडे साए की.और जब बराबर लड़की की तरफ से उत्तर और प्रश्न दोनों हो रहे हो. मजाक के साथ, ‘‘मेरे मोबाइल में बेलैंस डलवा सकते हो?’’ और लड़के ने तुरंत ‘‘हां’’ कहा. लड़की ने हंस कर कहा कि मजाक कर रही हूं.
तुम तो इसलिए भी तैयार हो गए कि इस बहाने मोबाइल नंबर मिल जाएगा. चाहिए नंबर?‘‘हां.’’‘‘क्यों?’’‘‘बात करने के लिए.’’‘‘लेकिन समय, जो मैं बताऊं.’’‘‘मंजूर है.’’और लड़की ने नंबर भी भेज दिया. अब मोबाबल पर भी अकसर बातें होने लगीं. बातों से ज्यादा एसएमएस. बात भी हो जाए और किसी को पता भी न चले. बातें होती रहीं और एक दिन लड़की की तरफ से एसएमएस आया.‘‘कुछ पूछूं?’’‘‘पूछो.’’‘‘एक लड़की में क्या जरूरी है?’’‘‘मैं समझ नहीं.’’‘‘सूरत या सीरत?’’लड़के को किताबी उत्तर ही देना था हालांकि देखी सूरत ही जाती है.
सिद्धांत के अनुसार वही उत्तर सही भी था. लड़के ने कहा, ‘‘सीरत.’’‘‘क्या तुम मानते हो कि प्यार में उम्र कोई माने नहीं रखती?’’‘‘हां,’’ लड़के ने वही किताबी उत्तर दिया.‘‘क्या तुम मानते हो कि सूरत के कोई माने नहीं होते प्यार में?’’‘‘हां,’’ वही थ्योरी वाला उत्तर.और इन एसएमएस के बाद पता नहीं लड़की ने क्या परखा, क्या जांचा और अगला एसएमएस कर दिया.
‘‘आई लव यू.’’लड़के की खुशी का ठिकाना न रहा. यही तो चाहता था वह. कमैंट्स, शेयर, लाइक और इतनी सारी बातें, इतना घुमावफिराव इसलिए ही तो था.
लड़के ने फौरन जवाब दिया, ‘‘लव यू टू.’’ रात में दोनों की एसएमएस से थोड़ीबहुत बातचीत होती थी, लेकिन इस बार बात थोड़ी ज्यादा हुई. लड़की ने एसएमएस किया, ‘‘तुम्हारी फैंटेसी क्या है?’’‘‘फैंटेसी मतलब?’’‘‘किस का चेहरा याद कर के अपनी कल्पना में उस के साथ सैक्स…’’लड़के को उम्मीद नहीं थी कि लड़की अपनी तरफ से सैक्स की बातें शुरू करेगी, लेकिन उसे मजा आ रहा था.
कुछ देर वह चुप रहा. फिर उस ने उत्तर दिया, ‘‘श्रद्धा कपूर और तुम.’’लड़की की तरफ से उत्तर आया, ‘‘शाहरुख.’’फिर एक एसएमएस आया, ‘‘आज तुम मेरे साथ करो.’’ लड़की शायद भूल गई थी उस ने जो चेहरा फेसबुक पर लगाया है वह उस का नहीं है. एसएमएस में लड़की ने आगे लिखा था, ‘‘और मैं तुम्हारे साथ.’’‘‘हां, ठीक है,’’ लड़के का एसएमएस पर जवाब था.‘‘ठीक है क्या? शुरू करो, इतनी रात को तो तुम बिस्तर पर अपने कमरे में ही होंगे न.’’‘‘हां, और तुम?’’‘‘ऐसे मैसेज बंद कमरे से ही किए जाते हैं. ये सब करते हुए हम अपने मोबाइल चालू रख कर अपने एहसास आवाज के जरिए एकदूसरे तक पहुंचाएंगे.’’‘‘ठीक है,’’ लड़के ने कहा. फिर उस ने अपने अंडरवियर के अंदर हाथ डाला. उधर से लड़की की आवाजें आनी शुरू हुईं. बेहद मादक सिसकारियां.
फिर धीरेधीरे लड़के के कानों में ऐसी आवाजें आने लगीं मानो बहुत तेज आंधी चल रही हो. आंधियों का शोर बढ़ता गया.लड़के की आवाजें भी लड़की के कानों में पहुंच रही थीं, ‘‘तुम कितनी सुंदर हो. जब से तुम्हें देखा है तभी से प्यार हो गया. मैं ने तुम्हें बताया नहीं. अब श्रद्धा के साथ नहीं, तुम्हारे साथ सैक्स करता हूं इमेजिन कर के.
काश, किसी दिन सचमुच तुम्हारे साथ सैक्स करने का मौका मिले.’’लड़की की आंधीतूफान की रफ्तार बढ़ती गई, ‘‘जल्दी ही मिलेंगे फिर जो करना हो, कर लेना.’’थोड़ी देर में दोनों शांत हो गए. लेकिन अब लड़का सैक्स की मांग और मिलने की बात करने लगा. जिस के लिए लड़की ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. तुम दिल्ली आ सकते हो. हम पहले मिल लेते हैं वहीं से किसी होटल चलें चलेंगे.’’
लड़के ने कहा, ‘‘मुझे घर वालों से झूठ बोलना पड़ेगा और पैसों का इंतजाम भी करना पड़ेगा. हां, संबंध बनने के बाद शादी के लिए तुरंत मत कहना. मैं अभी कालेज कर रहा हूं. प्राइवेट जौब में पैसा कम मिलेगा. और आसानी से मिलता भी नहीं है काम, लेकिन मेरी कोशिश रहेगी कि…’’ लड़की ने बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम आ जाओ. पैसों की चिंता मत करो. मेरे पास अच्छी सरकारी नौकरी है.
शादी कर भी ली तो तुम्हें कोई आर्थिक समस्या नहीं होगी.’’‘‘मैं कोशिश करता हूं.’’ और लड़के ने कोशिश की. घर में झूठ बोला और अपनी मां से इंटरव्यू देने जाने के नाम पर रुपए ले कर दिल्ली चला गया. पिताजी घर पर होते तो कहते दिखाओ इंटरव्यू लैटर. लौटने पर पूछेंगे तो कह दूंगा कि गिर गया कहीं या हो सकता है कि लौटने पर सीधे शादी की ही खबर दें.
लड़का दिल्ली पहुंचा 6 घंटे का सफर कर के.घर पर तो जा नहीं सकते. घर का पता भी नहीं लिखा रहता है फेसबुक पर. सिर्फ शहर का नाम रहता है. यह पहले ही तय हो गया था कि दिल्ली पहुंच कर लड़का फोन करेगा. और लड़के ने फोन कर के पूछा, ‘‘कहां मिलेगी?’’‘‘कहां हो तुम अभी?’’‘‘स्टेशन के पास एक बहुत बड़ा कौफी हाउस है.’’‘‘मैं वहीं पहुंच रही हूं.’’लड़के के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. उस के सामने लड़की का सुंदर चेहरा घूमने लगा. लड़के ने मन ही मन कहा, ‘‘कदकाठी अच्छी हो तो सोने पर सुहागा.’’
रोज-रोज एक ही तरह का खाना खा कर पक गए हैं. खाना खाने को लेकर बच्चों ने नाक में दम कर रखी है. आप परेशान हो गए रोज नया क्या बनाएं, तो चिंता छड़िए गृहशोभा की खास फूड रेसिपी को नोट कर लें. आज ही अपने घर में बनाएं चटपटे बनाना कबाब और ककड़ी के अप्पे. आइए रेसिपी देखते है.
सामग्री
1. 6 कच्चे केले
2. 1/2 कप आलू उबले मैश किए
3. 2 बड़े चम्मच मैदा
4. 1 कप ब्रैडक्रंब्स
5. 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर
6. 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर
7. 1 छोटा चम्मच चाटमसाला
8. 2 हरीमिर्चे बारीक कटी
9. 1 छोटा चम्मच अनारदाना दरदरा
10. तेल तलने के लिए
11. नमक स्वादानुसार.
विधि
केलों को आधा उबालें और छील कर मैश कर के आलू के साथ मिला लें. हरीमिर्च व सारे मसाले भी इन के साथ अच्छी तरह मिला लें. तैयार मिश्रण से नीबू के आकार की बौल्स बनाएं और दबा कर कबाब बना लें. मैदे में 4 बड़े चम्मच पानी मिला कर घोल बना लें. कड़ाही में तेल गरम करें. 1-1 कबाब को मैदे के घोल में डुबो कर ब्रैड क्रंब्स में रोल कर के मध्यम आंच पर उलटपलट कर सुनहरा होने तक तलें. चटपटे बनाना कबाब तैयार हैं. इन्हें छोले या चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.
2. ककड़ी के अप्पे
सामग्री
1. 2 कप ककड़ी कद्दूकस की
2. 1 कप सूजी
3. 1/2 कप दही
4. 2 बड़े चम्मच पालक कटा
5. 2 हरीमिर्चें कटी द्य
6. 1 छोटा चम्मच अदरक कटा
7. 1/2 छोटा चम्मच चाटमसाला
8. 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर
9. 1/4 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा
10. 1 बड़ा चम्मच तेल
11. नमक स्वादानुसार.
विधि
कद्दूकस की ककड़ी एक बाउल में डाल कर सूजी और दही के साथ मिला लें. तेल, प्याज, टोमैटो सौस और बेकिंग सोडा छोड़ कर बाकी सारी सामग्री इस में अच्छी तरह मिला कर 15 मिनट के लिए रख दें. अब अप्पा पैन के सभी खानों में 2-2 बूंद तेल डालें. ककड़ी के मिश्रण में बेकिंग सोडा मिला कर 1-1 बड़ा चम्मच इन में डालें. ढक कर 2-3 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं. प्रत्येक अप्पे पर 2-2 बूंद तेल टपका कर पलटें. 2 मिनट और बिना ढके पकाएं. प्याज और टोमैटो सौस के साथ सर्व करें.
हर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में कभी ना कभी हार का सामना करना ही पड़ता है फिर वह चाहें करियर में हो बिज़नेस में हो, किसी रिश्ते में हो या जीवन की किसी भी परिस्थिति में. लेकिन यह हार हमें कुछ ना कुछ नया सबक अवश्य सिखाती है और अक्सर वहीं लोग अधिक कामयाब होते हैं जो अपनी हार से सीख लेते हैं ना की अपनी किस्मत को कोसते हैं. वृंद सतसई का दोहा, करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. रसरी आवत-जात ते सिल पर पड़त निशान. इस बात के लिए बिलकुल सटीक हैं कि यदि हम असफलता के बाद भी निरंतर प्रयास करते हैं तो कठिन से कठिन कार्य भी आसान बन जाता है इसलिए जरूरी हैं कि अपनी गलतियों से सीख लें और जीवन में सकरात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहें. क्योंकि आपकी सही सोच आपके लक्ष्य को पाने में मदद करती है.तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स एंड ट्रिक्स जो आपको सफल बनाने में मदद करते हैं.
गलतियों से लें सीख
यदि हम अपनी हार को खुद पर हावी कर लेते हैं तो हमें सिर्फ निराशा ही हाथ लगती हैं लेकिन यदि अतीत में की गई गलती से हम सबक लेते हैं तो निश्चित ही कामयाबी एक ना एक दिन हमारे कदम चूमती हैं. इसलिए अपने अतीत में की गई गलती का पछतावा न करें बल्कि अपनी खामियों और खूबियों को जाने व उन पर और काम करें व सकरात्मक बदलाव के साथ आगे बढ़े.
डरना मना है
एक मूवी का बहुत ही फेमस डायलॉग हैं “जो डर गया सो मर गया ” और यह सही भी है जो इंसान डर के सामने घुटने टेक लेता है और पीछे हट जाता है वो अपना आत्म विश्वाश बिलकुल खो देता है रोजमर्रा के कामकाजों तक में निर्णय लेने में वह असहज महसूस करते हैं इसलिए जरूरी है कि असफलता से डरें नहीं बल्कि डट कर सामना करें और सफल बने.
अपने सपने का पीछा करें
परिस्थिति कोई भी हो लेकिन असफलता मिलने पर हमें अपने सपनो को बिखरने नहीं देना चाहिए बल्कि अपने अनुभवों से सीख लेनी चाहिए क्योंकि दोबारा प्रयास करतें समय आपकी शुरुआत शून्य से नहीं बल्कि अनुभव से होती है. इसलिए अपने सपने को पूरा करे बिना हार न माने.
कम्फर्ट ज़ोन से हट कर कुछ नया करो
असफलता हमें सिखाती है कि हमें अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकल कर कुछ अलग कुछ नया करना है कुछ लोग किसी भी काम को करने से पहले ही उससे डरने लगते हैं लेकिन हमें नकरात्मक विचारों को त्याग कर सकरात्मक सोच के साथ कुछ नया करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जब तक नया करने की कोशिश नहीं करेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते. साथ ही हमें कभी भी किसी और के जीवन से खुद की तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि हर किसी व्यक्ति की क्षमता अलग होती है.
अक्षरज्ञान ही नहीं जूनून भी है जरूरी
हमें सफल बनने के लिए केवल डिग्री की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जूनून की अवश्यकता होना बेहद जरूरी है. कुछ लोग बिना किसी डिग्री के भी कामयाब होते हैं तो कुछ लोग पढ़े लिखें होने के बाद भी नाकामयाब रहते हैं सफलता के लिए, इंसान के अंदर जूनून और आगे बढ़ने की भूख होनी चाहिए. फिर कामयाबी आपके कदम अवश्य चूमेगी.
जीवन में कुछ चीजें इतनी ज्यादा आकर्षक होती हैं कि देखते ही मुंह से ‘वाह’ निकल जाता है. ऐसा ही एक दिन मानवी और उस के पति रोनित के साथ हुआ. उन की शादी को अभी 3 महीने ही बीते थे. एक दिन मानवी की स्कूल फ्रैंड दीवांशी ने उसे अपने घर डिनर पर बुलाया.
चूंकि मानवी ने अभी तक दीवांशी का घर नहीं देखा था, तो वह वहां जाने के लिए रोमांचित थी.रोनित के साथ जब मानवी ग्रेटर नोएडा पहुंची तो शाम के 6 बज चुके थे. दीवांशी का फ्लैट एक आलीशान अपार्टमैंट्स की छठी मंजिल पर था.
मानवी ने डोरबैल बजाई तो दीवांशी ने अपने पति पृथ्वी के साथ उन दोनों का वैलकम किया और उन्हें अपने ड्राइंगरूम में ले गए. वहां जाते ही मानवी और रोनित के मुंह से एकसाथ ‘वाह’ निकला. निकले भी क्यों न, वह ड्राइंगरूम था ही इतना कलरफुल कि कोई जैसे अपनी फैंटेसी की दुनिया में चला आया हो.
मानवी ने दीवांशी को कनखियों से देखा और बोली, ‘‘यार, यह क्या बला है… इतना शानदार ड्राइंगरूम. पानी तो मैं बाद में पीऊंगी, तू जल्दी से यह बता कि तुझे इसे करने का आइडिया कैसे आया.’’दीवांशी ने मानवी को सब्र रखने को कहा और कौफी पीते समय बताया कि यह घर सजाने का बोहेमियन स्टाइल है. जिस तरह मानवी चौंकी हुई थी, उसी तरह आप भी सोच रहे होंगे कि दीवांशी किस बोहेमियन स्टाइल की बात कर रही है.एक खास पहचानइस बारे में ‘न्यू आर्क स्टूडियोज’ की आर्किटैक्ट नेहा चोपड़ा ने बताया, ‘‘बोहेमियन घर सजाने का एक ऐसा तरीका है, जो अलगअलग रंगों का खूबसूरत तालमेल है. पुराने समय में इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान की हवेलियों और महलों में इस्तेमाल किया जाता था और अब अपार्टमैंट्स और घरों में लोग अपनाने लगे हैं.
इसे ‘बोहो’ भी कहते हैं. इसे पसंद करने वाले लोग थोड़ी घुमक्कड़ सोच के होते हैं और खुद को थोड़ा अलग दिखाने में यकीन रखते हैं. इसे आर्टिस्टिक रूम भी कहा जा सकता है.‘‘विदेशों में एक हिप्पी कल्चर विकसित हुआ था, उस की छाप भी इस स्टाइल पर देखी जा सकती है. हलके क्रीम कलर की दीवारें, एक रंगीन गलीचा, नर्म और गुदगुदे सोफे पर कई रंगों के छोटेबड़े कुशन, यहांवहां गमलों में सजे पौधे इस बोहेमियम स्टाइल की खास पहचान होते हैं.‘‘इस स्टाइल की खूबी यह है कि इस में पेंटिंग, फैब्रिक और ऐक्सैसरीज जैसी फिनिश और स्टैक्ड डैकोर आइटम्स को मिलाया जाता है.
इस से कमरे में एक बहुत अच्छी वाइब मिलती है.‘‘इस में रंगों का तालमेल बहुत खास रोल निभाता है. दीवार का रंग परदे से, सोफे का रंग उस पर रखे कुशन से और लकड़ी के फर्नीचर का दीवारों पर टंगी पेंटिंग से रंगों का कंट्रास्ट बोहेमियम स्टाइल को दिखाता है.
इसे लेयरिंग या मिक्सिंग भी कहा जाता है.अलग लुक‘‘बोहेमियम स्टाइल में हाथ से बने सामान और किताबों की बड़ी अहमियत होती है. बड़ी बुक अलमारी के बजाय छोटी बुक शैल्फ से ले कर कलाकृतियों आदि का चुनाव इस तरह से करें कि वे कमरे को बड़ा दिखाएं और अगर वे हाथ से बनी अनगढ़ ही लगें तो भी कोई बात नहीं क्योंकि यही स्टाइल उसे अलग लुक देता है.
आरामदायक कुरसी हो या साइड टेबल या फिर चमड़े का बीन बैग और कमरे के बीच में सजा कालीन, सब का संतुलन ही बोहेमियन स्टाइल को चार चांद लगा देता है. पौधों की सजावट भी इस स्टाइल को मजबूती देती है. पौधे कमरे को जीवंत कर देते हैं. वे कुदरत को घर के भीतर ले आते हैं और हरा रंग बाकी रंगों की छठा और ज्यादा खिला देता है. कमरा ही क्या वहां रहने वालों का भी मिजाज खिल उठता है.‘‘मान लीजिए आप की एक 10?10 फुट की दीवार है.
उस पर अपनी पसंद का ब्राइट या लाइट कलर इस्तेमाल कर के कुछ गमलों को रस्सी के सहारे टांग दिया जाता है. आप चाहें तो वहां लाइट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.‘‘दीवार पर कुछ शैल्फ लगा कर उन में अलगअलग जगह से खरीदी गई चीजें सजा सकते हैं, फिर वे सस्ती ही क्यों न हों, पर उन में आप की शख्सियत जरूर झलकती हो. इतना ही नहीं, अपनी बनाई कोई पेंटिंग, किसी स्क्रैप आदि को कलर कर के भी दीवार पर टांगा जा सकता है.‘‘स्नेक प्लांट और ड्रैकैना जैसे पौधे कम रखरखाव वाले हाउसप्लांट हैं जो हवा को साफ करने में मदद करते हैं.
इस के अलावा दूसरी डिजाइन आइटम्स जो कमरे में अच्छी लगती हैं, वे हैं बुने हुए टैराकोटा या पैटर्न वाले सिरैमिक प्लांटर्स.इमोशनल टच‘‘अपने रूम की थीम को और रिच करने के लिए अपनी शादी की पुरानी हैवी साड़ी के बैस्ट हिस्से जैसे किसी हाथीघोड़े या किसी और डिजाइन को फ्रेम करा कर कमरे में सजा सकते हैं. दीवारों पर हलके रंग के साथ कलरफुल रंगों की चीजें मैच कर सकते हैं. रंगबिरंगे मिरर की सजावट से भी रूम को वाइब्रैंट बनाया जा सकता है.
इस में आप का इमोशनल टच भी दिखता है.‘‘लोगों के मन में यह शंका रहती है कि यह स्टाइल बहुत ज्यादा अमीर लोग ही अफोर्ड कर सकते हैं, पर अगर आप की आंखें खुली हैं और आप को बाजार में घुम्मकड़ी का शौक है, तो सस्ते में बोहेमियन स्टाइल का सामान आप को जरूर दिख जाएगा. अपने कमरे के आकार को ध्यान में रख कर सजावट करें, फिर देखें रंगों का कमाल. फिर जो भी आप के घर में पहली बार आएगा, वह मानवी की तरह ‘वाह’ कह उठेगा.’’
सवाल
मेरी उम्र 23 साल है. बचपन से ही मेरा रंग सांवला है जिसकारण मुझे कहीं आनेजाने में शर्म आती है. मुझे रंग साफ करने का कोई तरीका बताएं?
जवाब
आप सब से पहले तो अपने मन से इस हीनभावना को निकालदें कि आप का रंग काला है और अपने अंदर आत्मविश्वास लाएं. कुदरती सांवलेपन में बहुत ज्यादा फर्क तो नहीं लाया जा सकता
मगर कुछ उपचार करने से त्वचा के रंग को हलका जरूर किया जा सकता है.आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर स्किन लाइटनिंग की सिटिंग ले सकती हैं. इस के अलावा घरेलू उपाय केतौर पर उबटन लगा सकती हैं जिसेबनाने के लिए चावल का मोटा पिसा आटा, चने की दाल का आटा और मुलतानी मिट्टी समान मात्रा में मिला लें. अब इस में चुटकीभर हलदी डालें और कच्चे पपीते के गूदे को मिला कर अपने चेहरे पर मालिश करें.कच्चे पपीते में पपिननामक ऐंजाइम रहता है जो रंग को साफ करता है. ऐसा 1 महीने तक रोजाना करने से रंग में जरूर फर्क आएगा. रोज नारियल पानी या औरेंज जूस पीने से भी रंग काफी हद तक साफ होता है.
कच्चे पपीते में पपिननामक ऐंजाइम रहता है जो रंग को साफ करता है. ऐसा 1 महीने तक रोजाना करने से रंग में जरूर फर्क आएगा. रोज नारियल पानी या औरेंज जूस पीने से भी रंग काफी हद तक साफ होता है.
-समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा
पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.
मां बाप बनना किसी भी दंपती के लिए सब से बड़ा और सुखद अवसर होता है. शादी के कुछ समय बाद हर युगल अपना परिवार आगे बढ़ाने की चाह रखता है. 2-3 हो कर घरआंगन में बच्चों की किलकारियां सुनने को बेताब दंपती, पहले 1-2 साल कुदरती रूप से गर्भधान की कोशिश करते हैं. अगर कुदरती रूप से गर्भ नहीं ठहरता तब चिकित्सकों के चक्कर चालू हो जाते हैं.
आजकल फर्टिलिटी फैल्योर रेट दिनबदिन बढ़ता जा रहा है. बां?ापन को एक बीमारी के रूप में देखते हैं. 12 महीने या उस से अधिक नियमित असुरक्षित यौन संबंध के बाद भी गर्भधारण करने में सक्सैस न होने पर जोड़े को बांझ माना जाता है. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में बांझपन की दर 3.9 % और 16.8त्% के बीच है.
अगर संयुक्त परिवार में रहने वाला युगल शादी के 1-2 साल बाद भी कोई खुशखबरी नहीं देता तब घर वालों और रिश्तेदारों के सवालों का शिकार होते परेशान हो उठता है. घर के बड़ेबुजुर्गों को दादादादी बनने की जल्दी होती है. बहू के पीरियड्स आने पर कुछ सासों की भवें तन जाती हैं. एक तो गर्भ न ठहरने की चिंता ऊपर से घर वालों का व्यवहार और व्यंग्यबाणों से छलनी होती जिंदगी के प्रति पतिपत्नी उदास हो जाते हैं.
हर कुछ दिनों बाद इस मामले में पूछताछ करने वाले परिवार जन उन को दुश्मन लगने लगते हैं.तकरार की शुरुआतमगर जो दंपती अकेले रहते हैं उन को क्या बांझपन को ले कर कम परेशानी उठानी पड़ती है? हरगिज नहीं, ऐसे दंपती को लगता है जैसे पासपड़ोस वालों को छोड़ो अजनबी लोगों की नजरें भी जैसे यही सवाल करती हैं कि कब खुशखबरी दे रहे हो? दूर बैठे परिवार वाले और रिश्तेदार फोन कर के बातोंबातों में इस विषय पर जरूर पूछते हैं कि कब तक हमें दादादादी बनने का सुख प्राप्त होगा? तब पतिपत्नी आहत होते अपनों के फोन उठाने से भी कतराने लगते हैं.
बांझपन के शिकार युगलों को शारीरिक कमी की चिंता मानसिक रूप से डांवांडोल करते पूरे शरीर की व्यवस्था बिगाड़ देती है. न कह सकते हैं, न सह सकते हैं. बांझपन की वजह से तकरार की शुरुआत एकदूसरे पर शक और दोषारोपण से होती है. दोनों को खुद स्वस्थ और सामने वाले में कमी नजर आती है.कुछ मामलों में कभीकभी पति गलतफहमी का शिकार होते सोचता है कि शादी से पहले मुझे हस्तमैथुन की आदत थी कहीं उस की वजह से मुझ में कोई कमी तो नहीं आ गई? कहीं मेरा वीर्य तो पतला नहीं हो गया? कहीं शुक्राणुओं की संख्या तो कम नहीं हो गई? उस काल्पनिक डर की वजह से काम में तो ध्यान नहीं दे पाता साथ में सैक्स लाइफ पर भी उस का बुरा प्रभाव पड़ता है.
चाह कर भी न खुद चरम तक पहुंच पाता है, न ही पत्नी को सुख दे पाता है. इस की वजह से दोनों एकदूसरे से खिंचेखिंचे रहते हैं.हीनभावना से ग्रस्तऐसे ही किसी मामले में पत्नी भी खुद को दोषी सम?ाते सोचती है कि पीसीओडी की वजह से मेरे पीरियड्स अनियमित हैं. उस की वजह से तो कहीं गर्भाधान नहीं हो पा रहा या तो कभी किसी लड़की ने कुंआरेपन में किसी गलती की वजह से अबौर्शन कराया होता है तो वह बात न पति को बता सकती है न डाक्टर को, ऐसे में वह गिल्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जाती है, जिस की वजह से अंतरंग पलों में पति को सहयोग नहीं दे पाती.
तब प्यासा पति या तो पत्नी पर शक करने लगता है या फिर पत्नी से विमुख हो किसी और के साथ विवाहेत्तर संबंध से जुड़ जाता है.कई बार संयुक्त परिवार से अलग रहने वाले युगल उन्मुक्त लाइफस्टाइल जीते हैं, जिस में आएदिन पार्टियों में आनाजाना लगा रहता है और आजकल युवाओं की पार्टियां शराब, सिगरेट और जंक फूड के बिना तो अधूरी ही होती है.
अत: अल्कोहल, तंबाकू और जंक फूड का सेवन भी गर्भाधान में बाधा डालने का कारण बन सकता है.कई बार यह भी देखा जाता है कि लाख प्रयत्न के बाद भी जब गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब कुछ युगल नीमहकीमों या बाबाओं के चक्कर में पड़ कर समय और पैसे बरबाद करते हैं और ऐसे गलत उपचारों से निराश हो कर उम्मीद ही खो बैठते हैं.
ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हार कर कभीकभी प्रयत्न करना ही छोड़ देते हैं.मगर ऐसे हालात में अगर पतिपत्नी दोनों समझदार होंगे तो बांझपन के बारे में एकदूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय खुल कर विचारविमर्श कर के डाक्टर के पास जा कर सारे टैस्ट करवा कर उचित रास्ता अपनाते हैं.
बांझपन के कारणबां?ापन के कई कारण हो सकते हैं. एक तो आज के दौर में कैरियर औरिएंटेड लड़के, लड़कियां शादी को टालमटोल करते 30-32 के हो जाते हैं. ऊपर से शादी के बाद कुछ समय घूमनेफिरने और ऐश करने में गंवा देते हैं, जबकि हर काम उम्र रहते हो जाना चाहिए यह नहीं सोचते.ऊपर से मौजूदा जीवनशैली, गलत खानपान, पर्यावरणीय फैक्टर और देरी से बच्चे पैदा करने सहित विभिन्न कारणों की वजह से बांझपन आम हो गया है.
माना जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग ने भी बां?ापन के बढ़ते मामलों में योगदान दिया है.बांझपन मैडिकल कंडीशन यानी एक बीमारी है जहां कई दंपती कई वर्ष तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं. यह समस्या दुनियाभर में एक चिंता का विषय है. इस बीमारी से लगभग 10 से 15त्न जोड़े प्रभावित होते हैं साथ में ओव्यूलेशन की समस्या महिलाओं में बांझपन का सब से आम कारण है. एक महिला की उम्र, हारमोनल असंतुलन, वजन, रसायनों या विकिरण के संपर्क में आना और शराब, सिगरेट पीना सभी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालते हैं.क्या कहते हैं ऐक्सपर्टडाक्टर के अनुसार प्रैगनैंट होने के लिए सही उम्र 18 से 28 मानते हैं.
इसलिए इन वर्षों के बीच बच्चे के लिए किए गए प्रयास अधिक सफल होते हैं.सब से पहले तो शादी सही उम्र में कर लेनी चाहिए और यदि शादी लेट हुई है तो बच्चे की प्लानिंग में देरी नहीं करनी चाहिए वरना प्रैगनैंसी में दिक्कत हो सकती है.पतिपत्नी की सैक्स लाइफ हैल्दी होनी चाहिए. जब तक आप बारबार मैदानएजंग में नहीं उतरेंगे तब तक आप समस्या से लड़ेंगे कैसे जीतेंगे कैसे? इसलिए प्रैगनैंसी के लिए सब से जरूरी है कि पीरियड्स के बाद जिन दिनों गर्भाधान की संभावना ज्यादा होती है उन दिनों में अपने पार्टनर के साथ नियमित सैक्स करना चाहिए.
जितना अधिक सैक्स होगा प्रैगनैंसी की संभावना भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी.जब कुदरती रूप से गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब डाक्टर दंपती के सामने कुछ औप्शन रखते हैं जैसेकि:आईवीएफ पद्धति से प्रैगनैंसीयह एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमैंट है. इस प्रक्रिया में 2 स्टैप ट्रीटमैंट किया जाता है. यदि महिला के अंडाशय में एग का सही तरह से निर्माण नहीं हो रहा है और वह फौलिकल से अलग नहीं हो पा रहा है, पुरुष साथी में शुक्राणु कम बन रहे हैं या वे कम ऐक्टिव हैं तो ऐसे में महिला को कुछ इंजैक्शन दिए जाते हैं, जिस से ऐग फौलिकल से सही तरह से अलग हो पाता है.
इस के बाद पुरुष साथी से शुक्राणु प्राप्त कर उन्हें साफ किया जाता है और उन में से क्वालिटी शुक्राणुओं को एक सिरिंज द्वारा महिला के गर्भाशय में छोड़ा जाता है. इस के बाद की सारी प्रक्रिया कुदरती रूप से होती है. इस की सफलता की दर 10 से 15त्न होती है.
कुछ मामलों में आईयूआई से सफलता मिल जाती है, लेकिन यदि समस्या किसी और तरह की है तो आईवीएफ ही सही उपचार होता है.समस्या का निवारणइन्फर्टिलिटी की समस्या से पीडि़त दंपतियों को इनविट्रोफर्टिलाइजेशन की तकनीक की सलाह दी जाती है. यह पद्धति तब उपयोग में ली जाती है जब फैलोपियन ट्यूब में किसी भी कारण से कोई रुकावट हो जाए या खराब हो जाए.
महिला के ओव्यूलेशन में समस्या होने पर आईवीएफ की मदद से गर्भधारण किया जा सकता है. टैस्ट ट्यूब बेबी तकनीक अब नई नहीं रही. अनुभवी डाक्टर से करवाया गया उपचार परिणाम जरूर देता है.कृत्रिम रूप से गर्भवती होने में थोड़ा जोखिम तो है और इन प्रक्रियाओं में कुछ जटिलताओं का भी सामना करना पड़ सकता है.
लेकिन इस का मतलब यह हरगिज नहीं कि जो महिलाएं इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या कृत्रिम गर्भाधान से गुजरती हैं उन्हें निश्चित रूप से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आजकल उन्नत चिकित्सा विधियों की बदौलत कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर में काफी सुधार आया है. इसलिए इन्फर्टिलिटी के शिकार युगलों को हारे बिना, गबराए बिना सही निर्णय ले कर सही उपचार द्वारा समस्या का निवारण करना चाहिए.
आज सलोनी विदा हो गई. एअरपोर्ट से लौट कर रंभा दी ड्राइंगरूम में ही सोफे पर निढाल सी लेट गईं. 1 महीने की गहमागहमी, भागमभाग के बाद आज घर बिलकुल सूनासूना सा लग रहा था. बेटी की विदाई से निकल रहे आंसुओं के सैलाब को रोकने में रंभा दी की बंद पलकें नाकाम थीं. मन था कि आंसुओं से भीग कर नर्म हुई उन यादों को कुरेदे जा रहा था, जिन्हें 25 साल पहले दफना कर रंभा दी ने अपने सुखद वर्तमान का महल खड़ा किया था.
मुंगेर के सब से प्रतिष्ठित, धनाढ्य मधुसूदन परिवार को भला कौन नहीं जानता था. घर के प्रमुख मधुसूदन शहर के ख्यातिप्राप्त वकील थे. वृद्धावस्था में भी उन के यहां मुवक्किलों का तांता लगा रहता था. वे अब तक खानदानी इज्जत को सहेजे हुए थे. लेकिन उन्हीं के इकलौते रंभा के पिता शंभुनाथ कुल की मर्यादा के साथसाथ धनदौलत को भी दारू में उड़ा रहे थे. उन्हें संभालने की तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं. पिता ने किसी तरह वकालत की डिगरी भी दिलवा दी थी ताकि अपने साथ बैठा कर कुछ सिखा सकें. लेकिन दिनरात नशे में धुत्त लड़खड़ाती आवाज वाले वकील को कौन पूछता?
बहू भी समझदार नहीं थी. पति या बच्चों को संभालने के बजाय दिनरात अपने को कोसती, कलह करती. ऐसे वातावरण में बच्चों को क्या संस्कार मिलेंगे या उन का क्या भविष्य होगा, यह दादाजी समझ रहे थे. पोते की तो नहीं, क्योंकि वह लड़का था, दादाजी को चिंता अपनी रूपसी, चंचल पोती रंभा की थी. उसे वे गैरजिम्मेदार मातापिता के भरोसे नहीं छोड़ना चाहते थे. इसी कारण मैट्रिक की परीक्षा देते ही मात्र 18 साल की उम्र में रंभा की शादी करवा दी.
आशुतोषजी का पटना में फर्नीचर का एक बहुत बड़ा शोरूम था. अपने परिवार में वे अकेले लड़के थे. उन की दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी. मां का देहांत जब ये सब छोटे ही थे तब ही हो गया था. बच्चों की परवरिश उन की बालविधवा चाची ने की थी.
शादी के बाद रंभा भी पटना आ गईं. रिजल्ट निकलने के बाद उन का आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला पटना में ही हो गया. आशुतोषजी और रंभा में उम्र के साथसाथ स्वभाव में भी काफी अंतर था. जहां रंभा चंचल, बातूनी और मौजमस्ती करने वाली थीं, वहीं आशुतोषजी शांत और गंभीर स्वभाव के थे. वे पूरा दिन दुकान पर ही रहते. फिर भी रंभा दी को कोई शिकायत नहीं थी.
नया बड़ा शहर, कालेज का खुला माहौल, नईनई सहेलियां, नई उमंगें, नई तरंगें. रंभा दी आजाद पक्षी की तरह मौजमस्ती में डूबी रहतीं. कोई रोकनेटोकने वाला था नहीं. उन दिनों चाचीसास आई हुई थीं. फिर भी उन की उच्छृंखलता कायम थी. एक रात करीब 9 बजे रंभा फिल्म देख कर लौटीं. आशुतोषजी रात 11 बजे के बाद ही घर लौटते थे, लेकिन उस दिन समय पर रंभा दी के घर नहीं पहुंचने पर चाची ने घबरा कर उन्हें बुला लिया था. वे बाहर बरामदे में ही चाची के साथ बैठे मिले.
‘‘कहां से आ रही हो?’’ उन की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था.
‘‘क्लास थोड़ी देर से खत्म हुई,’’ रंभा दी ने जवाब दिया.
‘‘मैं 5 बजे कालेज गया था. कालेज तो बंद था?’’
अपने एक झूठ को छिपाने के लिए रंभा दी ने दूसरी कहानी गढ़ी, ‘‘लौटते वक्त सीमा दीदी के यहां चली गई थी.’’ सीमा दी आशुतोषजी के दोस्त की पत्नी थीं जो रंभा दी के कालेज में ही पढ़ती थीं.
आशुतोषजी गुस्से से हाथ में पकड़ा हुआ गिलास रंभा की तरफ जोर से फेंक कर चिल्लाए, ‘‘कुछ तो शर्म करो… सीमा और अरुण अभीअभी यहां से गए हैं… घर में पूरा दिन चाची अकेली रहती हैं… कालेज जाने तक तो ठीक है… उस के बाद गुलछर्रे उड़ाती रहती हो. अपने घर के संस्कार दिखा रही हो?’’
आशुतोषजी आपे से बाहर हो गए थे. उन का गुस्सा वाजिब भी था. शादी को 1 साल हो गया था. उन्होंने रंभा दी को किसी बात के लिए कभी नहीं टोका. लेकिन आज मां तुल्य चाची के सामने उन्हें रंभा दी की आदतों के कारण शर्मिंदा होना पड़ा था.
रंभा दी का गुस्सा भी 7वें आसमान पर था. एक तो नादान उम्र उस पर दूसरे के सामने हुई बेइज्जती के कारण वे रात भर सुलगती रहीं.
सुबह बिना किसी को बताए मायके आ गईं. घर में किसी ने कुछ पूछा भी नहीं. देखने, समझने, समझाने वाले दादाजी तो पोती की विदाई के 6 महीने बाद ही दुनिया से विदा हो गए थे.
आशुतोषजी ने जरूर फोन कर के उन के पहुंचने का समाचार जान लिया. फिर कभी फोन नहीं किया. 3-4 दिनों के बाद रंभा दी ने मां से उस घटना का जिक्र किया. लेकिन मां उन्हें समझाने के बजाय और उकसाने लगीं, ‘‘क्या समझाते हैं… हाथ उठा दिया… केस ठोंक देंगे तब पता चलेगा.’’ शायद अपने दुखद दांपत्य के कारण बेटी के प्रति भी वे कू्रर हो गई थीं. उन की ममता जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रही थी. रंभा दी अपनी विगत जिंदगी की कहानी अकसर टुकड़ोंटुकड़ों में बताती रहतीं, ‘‘मुझे आज भी जब अपनी नादानियां याद आती हैं तो अपने से ज्यादा मां पर क्रोध आता है. मेरे 5 अनमोल साल मां के कारण मुझ से छिन गए. लेकिन शायद मेरा कुछ भला ही होना था…’’ और वे फिर यादों में खो जातीं…
इंटर की परीक्षा करीब थी. वे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं चाहती थीं, इसलिए परीक्षा देने पटना में दूर के एक मामा के यहां गईं. वहां मामा के दानव जैसे 2 बेटे अपनी तीखी निगाहों से अकसर उन का पीछा करते रहते. उन की नजरें उन के शरीर का ऐसे मुआयना करतीं कि लगता वे वस्त्रविहीन हो गई हैं. एक रात अपनी कमर के पास किसी का स्पर्श पा कर वे घबरा कर बैठ गईं. एक छाया को उन्होंने दौड़ते हुए बाहर जाते देखा. उस दिन के बाद से वे दरवाजा बंद कर के सोतीं. किसी तरह परीक्षा दे कर वे वापस आ गईं.
मां की अव्यावहारिक सलाह पर एक बार फिर वे अपनी मौसी की लड़की के यहां दिल्ली गईं. उन्होंने सोचा था कि फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर के बुटीक वगैरह खोल लेंगी. लेकिन वहां जाने पर बहन को अपने 2 छोटेछोटे बच्चों के लिए मुफ्त की आया मिल गई. वे अकसर उन्हें रंभा दी के भरोसे छोड़ कर पार्टियों में व्यस्त रहतीं. बच्चों के साथ रंभा को अच्छा तो लगता था, लेकिन यहां आने का उन का एक मकसद था. एक दिन रंभा ने मौसी की लड़की के पति से पूछा, ‘‘सुशांतजी, थोड़ा कोर्स वगैरह का पता करवाइए, ऐसे कब तक बैठी रहूंगी.’’
बहन उस वक्त घर में नहीं थी. बहनोई मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, आराम से रहिए न… यहां किसी चीज की कमी है क्या? किसी चीज की कमी हो तो हम से कहिएगा, हम पूरी कर देंगे.’’
उन की बातों के लिजलिजे एहसास से रंभा को घिन आने लगी कि उन के यहां पत्नी की बड़ी बहन को बहुत आदर की नजरों से देखते हैं… उन के लिए ऐसी सोच? फिर रंभा दी दृढ़ निश्चय कर के वापस मायके आ गईं.
मायके की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. पिताजी का लिवर खराब हो गया था. उन के इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे. रंभा के बारे में सोचने की किसी को फुरसत नहीं थी. रंभा ने अपने सारे गहने बेच कर पैसे बैंक में जमा करवाए और फिर बी.ए. में दाखिला ले लिया. एम.ए. करने के बाद रंभा की उसी कालेज में नौकरी लग गई.
5 साल का समय बीत चुका था. पिताजी का देहांत हो गया था. भाई भी पिता के रास्ते चल रहा था. घर तक बिकने की नौबत आ गई थी. आमदनी का एक मात्र जरीया रंभा ही थीं. अब भाई की नजर रंभा की ससुराल की संपत्ति पर थी. वह रंभा पर दबाव डाल रहा था कि तलाक ले लो. अच्छीखासी रकम मिल जाएगी. लेकिन अब तक की जिंदगी से रंभा ने जान लिया था कि तलाक के बाद उसे पैसे भले ही मिल जाएं, लेकिन वह इज्जत, वह सम्मान, वह आधार नहीं मिल पाएगा जिस पर सिर टिका कर वे आगे की जिंदगी बिता सकें.
आशुतोषजी के बारे में भी पता चलता रहता. वे अपना सारा ध्यान अपने व्यवसाय को बढ़ाने में लगाए हुए थे. उन की जिंदगी में रंभा की जगह किसी ने नहीं भरी थी. भाई के तलाक के लिए बढ़ते दबाव से तंग आ कर एक दिन बहुत हिम्मत कर के रंभा ने उन्हें फोन मिलाया, ‘‘हैलो.’’
‘‘हैलो, कौन?’’
आशुतोषजी की आवाज सुन कर रंभा की सांसों की गति बढ़ गई. लेकिन आवाज गुम हो गई.
हैलो, हैलो…’’ उन्होंने फिर पूछा, ‘‘कौन? रंभा.’’
‘‘हां… कैसे हैं? उन की दबी सी आवाज निकली.’’
‘‘5 साल, 8 महीने, 25 दिन, 20 घंटों के बाद आज कैसे याद किया? उन की बातें रंभा के कानों में अमृत के समान घुलती जा रही थीं.’’
‘‘आप क्या चाहते हैं?’’ रंभा ने प्रश्न किया.
‘‘तुम क्या चाहती हो?’’ उन्होंने प्रतिप्रश्न किया.
‘‘मैं तलाक नहीं चाहती.’’
‘‘तो लौट आओ, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’ और सचमुच दूसरे दिन बिना किसी को बताए जैसे रंभा अपने घर लौट गईं. फिर साहिल पैदा हुआ और फिर सलोनी.
रंभा दी मुंगेर के जिस कालेज में इकोनौमिक्स की विभागाध्यक्ष और सहप्राचार्या थीं, उसी कालेज में मैं हिंदी की प्राध्यापिका थी. उम्र और स्वभाव में अंतर के बावजूद हम दोनों की दोस्ती मशहूर थी.
रंभा दी को पूरा कालेज हिटलर के नाम से जानता था. आभूषण और शृंगारविहीन कठोर चेहरा, भिंचे हुए होंठ, बड़ीबड़ी आंखों को ढकता बड़ा सा चश्मा. बेहद रोबीला व्यक्तित्व था. जैसा व्यक्तित्व था वैसी ही आवाज. बिना माइक के भी जब बोलतीं तो परिसर के दूसरे सिरे तक साफ सुनाई देता.
लेकिन रंभा दी की सारी कठोरता कक्षा में पढ़ाते वक्त बालसुलभ कोमलता में बदल जाती. अर्थशास्त्र जैसे जटिल विषय को भी वे अपने पढ़ाने की अद्भुत कला से सरल बना देतीं. कला संकाय की लड़कियों में शायद इसी कारण इकोनौमिक्स लेने की होड़ लगी रहती थी. हर साल इस विषय की टौपर हमारे कालेज की ही छात्रा होती थी.
मैं तब भी रंभा दी के विगत जीवन की तुलना वर्तमान से करती तो हैरान हो जाती कि कितना प्यार, तालमेल है उन के परिवार में. अगर रंभा दी किसी काम के लिए बस नजर उठा कर आशुतोषजी की तरफ देखतीं तो वे उन की बात समझ कर जब तक नजर घुमाते साहिल उसे करने को दौड़ता. तब तक तो सलोनी उस काम को कर चुकी होती.
दोनों बच्चे रूपरंग में मां पर गए थे. सलोनी थोड़ी सांवली थी, लेकिन तीखे नैननक्श और छरहरी काया के कारण बहुत आकर्षक लगती थी. वह एम.एससी. की परीक्षा दे चुकी थी. साहिल एम.बी.ए. कर के बैंगलुरु में एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर नियुक्त था. उस ने एक सिंधी लड़की को पसंद किया था. मातापिता की मंजूरी उसे मिल चुकी थी मगर वह सलोनी की शादी के बाद अपनी शादी करना चाहता था.
लेकिन सलोनी शादी के नाम से ही बिदक जाती थी. शायद अपनी मां के शुरुआती वैवाहिक जीवन के कारण उस का शादी से मन उचट गया था.
फिर एक दिन रंभा दी ने ही समझाया, ‘‘बेटी, शादी में कोई शर्त नहीं होती. शादी एक ऐसा पवित्र बंधन है जिस में तुम जितना बंधोगी उतना मुक्त होती जाओगी… जितना झुकोगी उतना ऊपर उठती जाओगी. शुरू में हम दोनों अपनेअपने अहं के कारण अड़े रहे तो खुशियां हम से दूर रहीं. फिर जहां एक झुका दूसरे ने उसे थाम के उठा लिया, सिरमाथे पर बैठा लिया. बस शादी की सफलता की यही कुंजी है. जहां अहं की दीवार गिरी, प्रेम का सोता फूट पड़ता है.’’
धीरेधीरे सलोनी आश्वस्त हुई और आज 7 फेरे लेने जा रही थी. सुबह से रंभा दी का 4-5 बार फोन आ चुका था, ‘‘सुभि, देख न सलोनी तो पार्लर जाने को बिलकुल तैयार नहीं है. अरे, शादी है कोई वादविवाद प्रतियोगिता नहीं कि सलवारकमीज पहनी और स्टेज पर चढ़ गई. तू ही जरा जल्दी आ कर उस का हलका मेकअप कर दे.’’
5 बज गए थे. साहिल गेट के पास खड़ा हो कर सजावट वाले को कुछ निर्देश दे रहा था. जब से शादी तय हुई थी वह एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घरबाहर दोनों के सारे काम संभाल रहा था. मुझे देख कर वह हंसता हुआ बोला, ‘‘शुक्र है मौसी आप आ गईं. मां अंदर बेचैन हुए जा रही हैं.’’
मैं हंसते हुए घर में दाखिल हुई. पूरा घर मेहमानों से भरा था. किसी रस्म की तैयारी चल रही थी. मुझे देखते ही रंभा दी तुरंत मेरे पास आ गईं. मैं ठगी सी उन्हें निहार रही थी. पीली बंधेज की साड़ी, पूरे हाथों में लाल चूडि़यां, पैरों में आलता, कानों में झुमके, गले में लटकी चेन और मांग में सिंदूर. मैं तो उन्हें पहचान ही नहीं पाई.
‘‘रंभा दी, कहीं समधी तुम्हारे साथ ही फेरे लेने की जिद न कर बैठें,’’ मैं ने छेड़ा.
‘‘आशुतोषजी पीली धोती में मंडप में बैठे कुछ कर रहे थे. यह सुन कर ठठा कर हंस पड़े. फिर रंभा दी की तरफ प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘आज कहीं, बेटी और बीवी दोनों को विदा न करना पड़ जाए.’’
रंभा दीदी शर्म से लाल हो गईं. मुझे खींचते हुए सलोनी के कमरे में ले गईं. शाम कोजब सलोनी सजधज कर तैयार हुई तो मांबाप, भाई सब उसे निहार कर निहाल हो गए. रंभा दी ने उसे सीने से लगा लिया. मैं ने सलोनी को चेताया, ‘‘खबरदार जो 1 भी आंसू टपकाया वरना मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’
सलोनी धीमे से हंस दी. लेकिन आंखों ने मोती बिखेर ही दिए. रंभा दी ने हौले से उसे अपने आंचल में समेट लिया.
स्टेज पर पूरे परिवार का ग्रुप फोटो लिया जा रहा था. रंभा दी के परिवार की 4 मनकों की माला में आज दामाद के रूप में 1 और मनका जुड़ गया था.
उन लोगों को देख कर मुझे एक बार रंभा दी की कही बात याद आ गई. कालेज के सालाना जलसे में समाज में बढ़ रही तलाक की घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि प्रेम का धागा मत तोड़ो, अगर टूटे तो फिर से जोड़ो.
आज उन्हें और उन के परिवार को देख कर यह बात सिद्ध भी हो रही थी. रंभा दी के प्रेम का धागा एक बार टूटने के बावजूद फिर जुड़ा और इतनी दृढ़ता से जुड़ा कि गांठ की बात तो दूर उस की कोई निशानी भी शेष नहीं है. उन के सच्चे, निष्कपट प्यार की ऊष्मा में इतनी ऊर्जा थी जिस ने सभी गांठों को पिघला कर धागे को और चिकना और सुदृढ़ कर दिया.
‘‘सौरीमैडम, उपमा मिक्स का एक ही पैकेट था, जो इन्होंने ले लिया. नया स्टौक 3-4 दिनों में आएगा,’’ सेल्समैन की आवाज सुन कर रोहित ने मुड़ कर देखा. एक गौरवर्ण की अमेरिकन नवयुवती उस की तरफ देख रही थी.
उस के देखने में कुछ ऐसी कशिश थी कि रोहित ने उपमा मिक्स का पैकेट सेल्समैन को थमाते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट इन्हें दे दो. मैं फिर ले लूंगा.’’ उस युवती ने रोहित को आभारयुक्त नजरों से देखा और फिर डिपार्टमैंटल स्टोर से चली गई.
मैट्रो टे्रन लेट थी. ठंड बढ़ने के साथसाथ घना कुहरा भी छाया था. रोहित प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर रहा था. तभी वह वहां एक लड़की से टकराया. दोनों की नजरें मिलीं और दोनों मुसकरा पड़े. वह वही डिपार्टमैंटल स्टोर में मिलने वाली लड़की थी.
तभी मैट्रो आ गई और दोनों एक ही डब्बे में चढ़ गए. रोहित उस के रेशम से लंबे केशों और गौरवर्ण से बहुत प्रभावित हुआ. उस का नाम जेनिथ था. उन में बातचीत शुरू हो गई. ‘‘आप कहां काम करते हैं?’’ ‘‘पार्क एवेन्यू की एक कंपनी में.’’
‘‘मैं भी वहीं काम करती हूं. आप की बिल्डिंग के साथ वाली बड़ी बिल्डिंग में मेरा दफ्तर है.’’ इस मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ी. फिर दोनों में दूरियां समाप्त हो गईं. कभी रोहित जेनिथ के यहां चला जाता तो कभी जेनिथ उस के यहां आ जाती.
विवाह किए बिना रहने वाले स्त्रीपुरुषों को अमेरिका में सामान्य रूप से ही देखा जाता था. अमेरिका और पाश्चात्य देशों में तलाक लेने पर काफी खर्चा पड़ता था, इसलिए असंख्य जोड़े विवाह किए बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहने को प्राथमिकता देते थे.
ऐसे जोड़ों में आपस में वफा या बेवफा जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं था. लेकिन इतना जरूर सम झा जाता था कि जब तक साथ रहें तब तक साथी वफादारी निभाए. एक रोचक बात यह थी कि कुछ समय के लिए साथसाथ रहने को रजामंद हुए जोड़ों में सारी उम्र का साथ बन जाता था, जबकि कानूनी तौर से विवाह कर पतिपत्नी बने जोड़ों का विवाह टूट जाता था.
यानी पक्की डोर से बंधा बंधन टूट जाता था तो कच्ची डोर से बंधा बंधन सारी उम्र चलता था. अमेरिका में युवकयुवतियों के लिए डेटिंग को जरूरी काम सम झा जाता था. जो डेटिंग पर नहीं जाता था उसे मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजा जाता था.
कौमार्य एक बेमानी बात सम झी जाती थी. जेनिथ ने रोहित से संबंध बनाए, साथ ही उस का और अपना एचआईवी टैस्ट भी करवाया कि कहीं उन में से कोई एड्स से ग्रस्त तो नहीं. दोनों इस बात से सहमत थे कि सैक्स संबंधों के दौरान कंडोम का प्रयोग कुदरती मजे को कम करता है.
एक रात सैक्स के दौरान रोहित ने कहा, ‘‘जेनिथ, तुम न कंडोम इस्तेमाल करने देती हो न ही और कोई गर्भनिरोधक अपनाती हो. अगर प्रैगनैंट हो गईं तो? ‘‘तो क्या? तब या तो गर्भपात करा लूंगी या फिर बच्चे को जन्म दे कर मां बन जाऊंगी,’’ जेनिथ ने सहजता से कहा. ‘‘गर्भपात तो ठीक है, मगर बच्चा…’’ ‘‘क्यों क्या आप को बच्चा अच्छा नहीं लगता?’’ ‘‘यह बात नहीं है.
मगर बिना विवाह किए बच्चे को जन्म देना तो नाजायज है?’’ ‘‘यह सब पुरातनपंथी बातें हैं. आजकल के जमाने में कोई इन बातों को नहीं मानता… छोड़ो इसे. यह बताओ आप अपनी पत्नी को यहां कब बुला रहे हो?’’ जेनिथ ने बात में उपजे तनाव को देखते विषय बदलते हुए पूछा. ‘‘मेरा हाल ही में ग्रीन कार्ड बना है. अब मैं अपनी पत्नी को यहां बुला सकता हूं.
मुझे अब बारबार अपना वीजा और वर्क परमिट बढ़वाने की जरूरत नहीं है.’’ रोहित की बात सुन कर जेनिथ गंभीर हो गई. आखिर ब्याहता पत्नी का कानूनी हक अपनी जगह था. वह तो एक साथी के तौर पर लिव इन रिलेशनशिप में उस के साथ रह रही थी. आखिरकार रोहित की पत्नी सुषमा का अमेरिका आना हो ही गया. जेनिथ ने हकीकत को सम झते हुए उस के आने से पहले ही अपना सामान रोहित के फ्लैट से उठा लिया और अपने फ्लैट में चली गई. रोहित की पत्नी सुषमा भी स्नातकोत्तर तक पढ़ीलिखी थी. साथ में कंप्यूटर में डिप्लोमा होल्डर थी. जेनिथ के मुकाबले वह थोड़े छोटे कद की थी. उस का रंग भी गेहुआं था. पर भारतीय नारी के दृष्टिकोण से वह भी सुंदर थी.
थोड़े दिनों तक घूमनाफिरना होता रहा. फिर रोहित सुषमा के लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. थोड़े समय में ही उस के लिए कंप्यूटर सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. सुषमा के सहयोगियों में कई देशों के युवक थे. उस के साथ की सीट पर बैठने वाला एडवर्ड नील, अमेरिकन था. वह पुरानी सोच रखने वाला रोमन कैथोलिक ईसाई था. वह हर रविवार को चर्च जाता था.
अपने मातापिता की कब्रों पर मोमबत्तियां भी जलाता था. सुषमा उस के इस स्वभाव के कारण उस की तरफ आकर्षित होने लगी. एडवर्ड नील भी सुषमा के भारतीय पहनावे साड़ी और पंजाबी सलवारकमीज को बहुत पसंद करता था. वह भी सुषमा के प्रति स्नेह रखने लगा. एडवर्ड नील को भारतीय व्यंजन बहुत पसंद थे. सुषमा उस के लिए अपने टिफिन बौक्स में खाना लाने लगी.
एडवर्ड नील खाना लेते समय संकोच से भर उठता, क्योंकि वह बदले में खाना औफर नहीं कर पाता था. एक दिन उस के मनोभावों को सम झ सुषमा हंस कर बोली, ‘‘नील, कोई बात नहीं… टेक इट ईजी.’’ तब एडवर्ड नील ने हंस कर कहा, ‘‘क्या आप मु झे भारतीय खाना बनाना सिखाएंगी?’’ ‘‘श्योर… जब आप चाहो.’’ उस दिन रविवार था.
एडवर्ड नील सुषमा के यहां आया. सुषमा ने उस का रोहित से परिचय करवाया. परिचय करते समय रोहित कुछ असहज था जबकि एडवर्ड नील सहज था. एडवर्ड नील नीली जींस और सादी कमीज पर हलकी जैकेट पहने था जबकि रोहित पिकनिक का प्रोग्राम होने के कारण सूटेडबूटेड था. ‘‘रोहित, क्या आप कहीं बाहर जा रहे हैं?’’
‘‘हां, पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम था.’’ ‘‘आप तो सूटकोट में हो. मैं तो उस के बजाय कैजुअल वियर ही पसंद करता हूं. मु झे आप का भारतीय पहनावा कुरतापाजामा बहुत पसंद है.’’ ‘‘यानी आप भारतीय बन रहे हैं और हम अमेरिकन,’’ सुषमा की इस टिप्पणी पर सभी हंस पड़े. एडवर्ड नील ने मनोयोग से सुषमा के साथ रसोईघर में काम किया.
आलू छीले, टिकियां बनाईं, खीर बनाई और कई व्यंजन बनाए. फिर सभी पिकनिक पर चले गए. कार में बैठते समय सुषमा ने एडवर्ड नील से कहा, ‘‘आप अगली सीट पर बैठ जाएं.’’ ‘‘नहीं मैडम, मैं आप का स्थान नहीं ले सकता,’’ एडवर्ड नील ने अदा के साथ सिर नवा कर कहा और पिछली सीट पर बैठ गया. उस की इस अदा पर रोहित भी मुसकरा पड़ा.
पिकनिक स्पौट समुद्री तट था. कई स्त्रीपुरुष अधोवस्त्रों में रेतीले तट पर लेटे धूप सेंक रहे थे. कई समुद्र में नहा रहे थे. एडवर्ड नील कपड़े उतार जांघिया पहने समुद्र में उतर गया. सुषमा तैरना जानती थी मगर इस तरह अधोवस्त्रों में वह समुद्र या नदी में नहीं जाती थी. पिकनिक का दिन काफी अच्छा बीता. फिर एडवर्ड नील थोड़ेथोड़े अंतराल पर सुषमा के घर आता रहा.
थोड़े समय में ही वह अनेक भारतीय व्यंजन बनाना सीख गया. फिर वह भी सुषमा और अन्य साथियों के लिए भारतीय व्यंजन लाने लगा. एडवर्ड नील और सुषमा के मेलजोल को रोहित शंकित नजरों से देखने लगा. वह स्वयं एक गोरी मेम को कई महीनों तक अपने यहां एक साथी के तौर पर रख चुका था, इसलिए शंकित था कि एडवर्ड नील भी उस की पत्नी से गलत संबंध बनाएगा.
अत: अब वह बारबार सुषमा पर तुनक पड़ता. पहले सुषमा को वीकऐंड पर बाहर घुमाने ले जाता था. मगर अब अकेला जाता था. एडवर्ड नील का अपनी पत्नी से हाल ही में तलाक हुआ था. वह आम अमेरिकन लड़कियों के समान ही उच्छृंखल विचारों की थी.
उस की नजरों में उस का पति एक मिस फिट पर्सन था. कमोबेश ऐसे ही विचार सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले अन्य सहयोगियों के थे. उन के विपरीत सुषमा एडवर्ड नील को एक फिलौस्फर और जीनियस मानती थी. दोनों में धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ने लगी. सुषमा का आकर्षण रोहित के लिए काफी कम हो गया. तब उसे जेनिथ की याद आई. 2-3 माह से उस ने उस की खबर न ली थी.
उस ने जेनिथ का फोन नंबर मिलाया. ‘‘अरे, आज आप को मेरी याद कैसे आ गई?’’ ‘‘कभी तो आनी ही थी. कैसी हो?’’ ‘‘फाइन… आप कैसे हैं? आप की पत्नी का क्या हाल है?’’ ‘‘अच्छा है, मिलने आ जाऊं?’’ ‘‘आ जाओ.’’ जेनिथ रोहित का फ्लैट छोड़ते समय प्रैगनैंट थी.
प्रैगनैंसी का पता उसे थोड़े समय बाद ही चला था. वह इस कशमकश में थी कि गर्भपात करवाए या नहीं. वह जानती थी कि बढ़ती उम्र में सहारे के लिए एक साथी के साथसाथ बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर जीवनसाथी को पाना भी आसान था तो छोड़ना भी. मगर जो भावनात्मक सुरक्षा विवाह नामक बंधन या संस्था में थी
वह लिव इन रिलेशनशिप में नहीं थी. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर साथसाथ रहने वाले साथियों में हर समय डर सा रहता कि कहीं उस का साथी उस से नाराज हो या अन्य बैटर साथी पा कर उसे छोड़ न जाए. जबकि विवाह की डोर से बंधे पतिपत्नी निश्चिंत रहते. उन्हें डर नहीं रहता कि साथी छोड़ कर चला जाएगा. फिर यदि तलाक भी लेगा तो नोटिस देगा और इस में समय लगेगा. रोहित जेनिथ के फ्लैट पर पहुंचा. उस को उस के प्रैगनैंट होने की खबर नहीं थी.
जेनिथ गर्भपात कराऊं या नहीं करवाऊं इसी कशमकश के कारण निर्धारित समय निकाल चुकी थी. अब गर्भपात नहीं हो सकता था. गर्भावस्था के कारण उस का शरीर फूल गया था. उस ने ढीलेढाले वस्त्र पहने हुए थे. रोहित उस के बेडौल शरीर को देख कर हैरान रह गया. बोला, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ ‘‘आप स्त्री होते तो ऐसा न कहते.’’
‘‘गर्भपात करवा लेतीं.’’ ‘‘सोचा तो था. बाद में विचार बना बड़ी उम्र में एक जीवनसाथी और बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. आखिर सारी उम्र तो कोई जवान नहीं रहता,’’ जेनिथ के स्वर में वेदना थी. रोहित थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा. फिर उठ खड़ा हुआ, ‘‘अच्छा मैं चलता हूं,’’ और फ्लैट से बाहर निकल गया. जेनिथ को रोहित के इस व्यवहार से धक्का लगा.
अमेरिकन या अंगरेज पुरुष स्वार्थी या मतलबी होते हैं, मगर क्या एक भारतीय भी इतना निर्मोही हो सकता है? अब उसे अपने प्यार या वासना का नतीजा भुगतना था. लिव इन रिलेशनशिप की पोल खुल चुकी थी. विवाह आखिर विवाह ही होता है. फिर उस ने अपनी देखभाल के लिए एक नर्सिंगहोम से संपर्क बना लिया. सुषमा का परिचय सामने के फ्लैट में रहने वाली पड़ोसिन मार्था डोरिन से हो गया.
वह उस के साथ फुरसत में गपशप मारने लगी. एक दिन मार्था डोरिन ने उस से कहा, ‘‘आप तो बहुत मिलनसार हो. आप से पहले वाली तो बहुत रिजर्व्ड थी. आखिर वह अमेरिकन थी न.’’ सुषमा सम झ गई कि रोहित ने उस के आने से पहले किसी लड़की को लिव इन रिलेशनशिप में रखा हुआ था. आखिर वह क्या करता? 3 साल से पत्नी से दूर था.
उसे भी स्त्रीसंसर्ग की जरूरत थी. मगर अब रोहित की उच्छृंखलताएं बढ़ गई थीं. वह रोज पीए घर लौटता था. सारी तनख्वाह पबों, बारों में और लड़कियों पर उड़ाने लगा था. घर का खर्चा सुषमा ही चलाती थी. कितनी विडंबना की बात थी कि जब तक पत्नी नहीं आई थी, जेनिथ से उस का संबंध जरूर था, लेकिन उस में संयम था. मगर अब उस की कामवासना विकृत हो चुकी थी. एडवर्ड नील तनहाई भरा जीवन गुजार रहा था. एक दिन सुषमा ने उस से हमदर्दी से पूछा, ‘‘नील, क्या आप को अकेलापन महसूस नहीं होता?’’ ‘‘यह तनहाई और अकेलापन क्या होता है?’’
‘‘क्या आप नहीं सम झते?’’ ‘‘देखिए, सुषमाजी, विवाह होने या जीवनसाथी के होने का मतलब यह नहीं है कि आप अकेलेपन का शिकार नहीं हैं. अगर पतिपत्नी की भी नहीं बनती हो तो सम झो ऐसे विवाह का कोई अर्थ नहीं.’’ ‘‘आप के यहां तो लिव इन रिलेशनशिप का चलन है. आप कोई साथी क्यों नहीं ढूंढ़ते?’’ ‘‘मेरा इस सिस्टम में विश्वास नहीं है.
इस का चलन उन पुरुषों में है, जो एक से ज्यादा स्त्रियों को शादी किए बिना साथ रखना चाहते हैं. आम आदमी तो विवाह के बंधन में ही विश्वास रखता है.’’ सुषमा अपने कार्यस्थल और घर आने के लिए कभी मैट्रो तो कभी लोकल बस का उपयोग करती थी. एक दिन डबलडैकर बस की खिड़की से उस ने रोहित को एक अमेरिकन युवती के साथ बगलगीर हो जाते देखा तो उसे धक्का लगा. उस रात भी रोहित नशे में धुत्त घर आया. उस रात सुषमा ने उसे सहारा न दिया.
गिरतापड़ता रोहित बिस्तर पर जा लेटा. सुबह नींद खुलने पर उस ने सुषमा को आवाज दी. मगर सुषमा नहीं आई. रोजाना उस की आवाज पर वह उसे चाय की प्याली थमा देती थी. ‘‘आज बैड टी नहीं बनाई?’’ उस ने पूछा. ‘‘खुद बना लीजिए,’’ उस की तरफ देखे बिना सुषमा ने कहा. ‘‘क्या आज मूड खराब है?’’ कहते हुए उस ने सुषमा को बांहों में लेना चाहा.
‘‘मु झे मत छुओ. अपनी उसी के पास जाओ जिस के साथ आप सरेआम घूमते हो.’’ इस पर रोहित ने तैश में आ कर कहा, ‘‘तुम उस दाढ़ी वाले फिलौसफर नील के साथ मस्ती करती हो और इलजाम मु झ पर लगाती हो?’’ ‘‘मैं इलजाम नहीं लगा रही… कल मैं ने खुद देखा था.’’ इस पर रोहित गुस्से में आ कर बाहर चला गया. दोनों अकेले हो गए. धीरेधीरे रुखाई बढ़ती गई. ‘‘तुम भारत वापस चली जाओ,’’ एक दिन रोहित ने कहा. ‘‘क्यों चली जाऊं?’’ ‘‘मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूं.’’
‘‘वह तो आप यहां भी दे सकते हैं. भारत में एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है, क्या मु झे पता नहीं है.’’ आखिरकार सुषमा का रोहित से तलाक हो ही गया. वह अपने साथी एडवर्ड नील के साथ चली गई. रोहित अपनी नई मित्र मारिया के यहां गया मगर उस ने नया प्रेमी कर लिया था. तब वह जेनिथ के यहां गया. पर वह भी एक नए प्रेमी संग घर बसा चुकी थी. खाली हाथ मलता रोहित अपने फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा उस दोराहे को देख रहा था, जिस के एक रास्ते से उस की 7 फेरों की ब्याहता चली गई तो दूसरे से लिव इन रिलेशनशिप की साथी. उस का घर उजड़ चुका था.