Govinda की भांजी Ragini Khanna जल्द करेंगी शादी, बोली- खुद पर ध्यान देना है

टीवी सीरियल ‘ससुराल गेंदा फूल’ फेम एक्ट्रेस रागिनी खन्ना आज भी अपने फैंस के दिलों में राज करती है. रागिनी काफी समय से टीवी की दुनिया से गायब है. हालांकि वह अपने ओटीटी के प्रोजेक्ट के जरिए अपने दर्शकों का मनोरंजन करती है. वहीं रागिना खन्ना 35 साल की हो गई है लेकिन वह अभी तक सिंगल है. एक्ट्रेस अपनी पर्सनल लाइफ को लाइमलाइट से दूर रखती है. वहीं अब रागिनी शादी करने के लिए एकदम तैयार है वह जल्द ही शादी कर सकती है.

रागिनी की मां ने घर को बना दिया मैरिज ब्यूरो

टीवी एक्ट्रेस ने मीडिया इंटरव्यू में बताया है कि उनकी मां अब उन्हें शादी के बंधन में बंधते हुए देखना चाहती है. इसी वजह से उनकी मां रागिनी के लिए लड़का तलाश रही है. रागिनी ने बताया कि उनकी मां ने घर में ही मैरिज ब्यूरो खोल लिया है. एक्ट्रेस ने कहा, वह प्रापोजल पर विचार कर रही है और वह हर दिन एक बैचलर की जांच करती है. रागिनी को भी लगता है कि यह सही समय है शादी करने का और घर बसाने का, उम्मीद हैं ऐसा होना चाहिए.

 

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रागिनी खन्ना खुद पर ध्यान देना चाहती है

टीवी एक्ट्रेस ने इंटरव्यू में बताया कि उनके पास गुणों की लंबी लिस्ट नहीं है जो मैं अपने हमसफर मैं देखना चाहती हूं. मैं चाहुंगी वह मुंबई में रहे. मैने बहुत मेहनत की है और शोबिज मैं काम करना जारी रखूंगी. मैंने 10 साल अपने करियर को महत्व दिया है और अब खुद पर ध्यान देना चाहती हूं.

 

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शादी के बाद भी काम करेंगी रागिनी

टीवी एक्ट्रेस ने आगे बताया कि उनकी एक बार हालत खराब हो गई थी.  रागिनी ने कहा, ‘जब मैं ससुराल गेंदा फूल कर रही थी, तो मुझे कई हेल्थ इशूज का सामना करना पड़ा. मैं लगभग अस्पताल में भर्ती हो गई थी. इसलिए, मैं रियलिटी शो, लाइव इवेंट और फिल्मों की ओर चली गई. लेकिन जैसे कुछ कलाकार टीवी और फिल्म को छोड़ देते हैं, मैं शादी के बाद वैसा नहीं करूंगी. टीवी ने मुझे वह बनाया जो मैं आज हूं.’

मोटापे से सिकुड़ता है मस्तिष्क, जानिए कैसे

मोटापा आज लोगों के लिए बेहद आम और सबसे बड़ी परेशानी बन कर उभरी है. खराब डाइट और खराब लाइफस्टाइल के चलते लोगों में ये परेशानी और ज्यादा बढ़ी है. इन कारणों से लोगों के पेट पर चर्बी बढ़ती है. पेट पर जमा होने वाली चर्बी हमारे सेहत को बुरी तरह प्रभावित करती है. इसका सबसे ज्यादा बुरा असर हमारे दिमाग पर होता है. असल में पेट में मौजूद चर्बी से मस्तिष्क की क्रियाशील पदार्थ या बुद्धि (Grey Matter) कम होने लगती है. इस खतरे का खुलासा हाल ही में हुए एक स्टडी में हुआ.

शोध के मुताबिक दिमाग के क्रियाशील पदार्थ में करीब 100 बिलियन से अधिक नर्व कोशिकाएं होती हैं. इनमें सफेद पदार्थ में नर्व फाइबर होता है, जो दिमाग के हिस्सों से जुड़ा होता है.

आपको बता दें कि इस शोध को करीब 9650 लोगों पर किया गया. शोध में सभी लोगों के बौडी मास इंडेक्स (BMI) और कमर से हिप की जांच की गई. नतीजों में 5 में से लगभग 1 व्यक्ति मोटापे से पीड़ित पाया गया.

शोधकर्ताओं ने स्टडी में शामिल लोगों के दिमाग की वौल्यूम का पता लगाने के लिए उनके दिमाग का MRI स्कैन किया.

स्टडी के नतीजों में सामने आया कि 1, 291 लोग, जिनका BMI 30 या इससे ज्यादा था, उनके मस्तिष्क के क्रियाशील पदार्थ (Grey Matter) की वौल्यूम कम रही. स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक, वजन या मोटापे से पीड़ित लोगों के दिमाग का कुछ हिस्सा सिकुड़ने लगता है.

परिवार से दूर दोस्त क्यों जरूरी है

दोस्ती एक ऐसा मीठा रिश्ता है जो जिंदगी में चाशनी सी घोल जाता है… जब हम अपने परिवार से दूर होते हैं तो वहां पर कोई हमारा अपना होता है तो वो दोस्त ही होते हैं जो हमारा परिवार बनते हैं.अक्सर ऐसा होता है जब पढ़ाई करने या जौब करने के लिए हम घर से बाहर चले जाते हैं और घर से कोसो दूर होते हैं तो उस वक्त वहां दोस्त मिलते हैं जो सुख में दुख में हमारा साथ देते हैं…..

कभी-कभी मन बहुत उदास होता है घर वालों की याद आती है हम उनके बारे में सोचते हैं और रो भी देते हैं ऐसे में दोस्त ही होतें हैं जो हमारा सहारा बनते हैं ,हमें हंसाते हैं,हमारा मूड अच्छा करते हैं.कुछ ऐसी बातें होती हैं जो हम अपने परिवार से नहीं कह सकते हैं लेकिन अपने दोस्तों से शेयर करते हैं और उनसे सलाह भी लेते हैं. अब अगर कौलेज की बात करें तो बहुत सी गॉसिप होती हैं भाई लड़कियों को तो चाहिए वही और वो ये गॉसिप्स अपने दोस्तों से ही शेयर करती हैं.लड़कों का तो लेवल पूछो ही मत भाई उनके तो अपने अलग-अलग कांड ही होते हैं.साथ में मिलकर पार्टी करना दोस्तों के सोथ मिलकर हंसी-मज़ाक करना,और अगर ब्रेकप हो गया तो उसका दुखड़ा भी रोना..कोई पसंद आ गया तो उसकी सेंटिंग करवाना …अब आपको हंसी तो आ ही रही होगी लेकिन आजकल की सच्चाई यही है और होता भी यही है.

जब आप किसी प्रौबलम में होते हैं तो दूसरे दोस्त ही हेल्प करते हैं चाहे पैसे की दिक्कत हो या फिर आप बिमार हैं तो आपका ध्यान भी रखते हैं.या फिर कॉलेज में दोस्त के लिए टीचर से झूठ बोलते हैं या फिर ऑफिस में बॉस…ये सब थोड़ा अजीब भले लगे लेकिन दोस्त होते ही ऐसे हैं और  ये सब खट्टी-मीठी सी यादें होती हैं जब आप अपने दोस्तों से अलग होते हैं तो यही सारी यादें आपके साथ रहती हैं जिन्हें आप अपने घर परिवार या कुछ दूसरे दोस्तों से शेयर करते हो कि अरे हम तो ऐसा किया करते थें..हमने साथ में बहुत मस्तियां की हैं…घर से दूर हमारा परिवार हमारे दोस्त ही होते हैं वरना दुनिया में अकेले रहना बहुत मुश्किल है.अकेले होने पर आपके अंदर चिड़चिड़ापन आ जाता है क्योंकि आप सबकुछ अपने अंदर ही दबा कर रखते हो कुछ भी किसी से शेयर नहीं करते.इसलिए लाइफ में एक ऐसा साथी होना जरूरी है जो हर कदम पर आपके साथ हो अगर बोलो हां तो वो भी बोले हां…मज़े की बात तो ये हैं कि दोस्त एक-दूसरे को छेड़ते भी बहुत है लेकिन उसी में उनका जीना है जिसमें वो बहुत खुश रहते हैं.एक-दूसरे को गाली बिना तो बुला ही नहीं सकते लेकिन उसी गाली में उनका प्यार होता है उनका अपनापन होता है….शायद इसलिए ही कहते हैं कि दोस्ती वो अनमोल तोहफा है जिसे जितनी शिद्दत से निभाओगे उतना ही खुश रहोगे और सभी की जिंदगी में एक ऐसा दोस्त होना जरूरी है…..वो कहते हैं न ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…तोड़ेंगे हम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे.

किचन की सफाई के लिए नींबू है बेस्ट

नींबू अपने चटपटे और खट्टे स्वाद की वजह से खाने में खूब इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन इसके कुछ खास गुणों के कारण इसका इस्तेमाल सौंदर्य बढ़ाने के लिए और घर की सफाई में भी खूब किया जाता है. इसीलिए आज हम आपको नींबू से घर और किचन की सफाई कैसे करें इसकी कुछ टिप्स बताएंगे.  आइए जानें, नींबू के ऐसे ही 7 उपायों के बारे में जो आपके घर के हर कोने को चमकाएं

1. माइक्रोवेव को साफ करने के लिए

एक कप पानी में नींबू के टुकड़े काटकर इसे माइक्रोवेव में 15 मिनट के लिए गर्म होने के लिए रख दें. इसके बाद इसे निकाल ने और माइक्रोवेव को किचन टॉवल से साफ कर लें. यह एक बार फिर से नया सा हो जाएगा.

2. कूड़े के डिब्बे से बदबू हटाने के लिए

नींबू के रस को अच्छी तरह से इसमें डालें और फिर ठंडे पानी से इसे धो दें.

3. सब्जी काटने के चॉपिंग बोर्ड क्लीनिंग के लिए

सब्जी काटने के चॉपिंग बोर्ड से फल और सब्जी के दाग हटाने के लिए नींबू के टुकड़े को इस पर रगड़ने से दाग और सब्जी की महक दोनों निकल जाएगी.

4. कपड़ों से दाग को हटाने के लिए

नींबू के टुकड़े को उस दाग पर रगड़े और फिर इसे धोकर धूप में सूखा लें. दाग गायब हो जाएगा.

5. स्टील के नल में लगे दाग के लिए

बाथरूम में लगे स्टील के नल में लगे दाग हटाने में भी नींबू बहुत काम आता है.

6. सिंक साफ करने के लिए

नींबू को नमक में नि‍चोड़ कर एक गाढ़ा पेस्टं बना लें और उसको साबुन के घोल के साथ मिला कर सिंक की सफाई करें.

7. खिड़की, दरवाजा साफ करने के लिए

आप खिड़कियों के शीशे, शीशे के दरवाजे और यहां तक कि अपनी कार के शीशों को भी नींबू की मदद से साफ कर सकते हैं.

घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में लाइफस्टाइल में क्या बदलाव होने चाहिए?

सवाल-

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठा रहता हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिन से मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

जवाब-

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है.

किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

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रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

इस बीमारी के लक्षण का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस में सूजन, जोड़ों में तेज दर्द जैसे लक्षण होते हैं. पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं को अधिक देखने को मिलती है. वैसे तो यह समस्या बढ़ती उम्र के साथसाथ होती है, लेकिन अनियमित दिनचर्या और गलत खानपान के कारण कम उम्र की महिलाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मां: क्या मीरा को छोड़ कर चला गया सनी

तीसरी बार फिर मोबाइल की घंटी बजी थी. सम झते देर नहीं लगी थी मीरा को कि फिर वही राजुल का फोन होगा. आज जैसी बेचैनी उसे कभी महसूस नहीं हुई थी. सनी भी तो अब तक आया नहीं था. यह भी अच्छा है कि उस के सामने फोन नहीं आया. मोबाइल की घंटी लगातार बजती जा रही थी. कांपते हाथों से उस ने मोबाइल उठाया-‘‘हां, तो मीरा आंटी, फिर क्या सोचा आप ने?’’ राजुल की आवाज ठहरी हुई थी.‘‘तुम फिर एक बार सोच लो,’’ मीरा ने वे ही वाक्य फिर से दोहराने चाहे थे.

‘मेरा तो एकमात्र सहारा है सनी, तुम्हारा क्या, तुम तो किसी को भी गोद ले सकती हो.’’‘‘अरे, आप सम झती क्यों नहीं हैं? किसी और में और सनी में तो फर्क है न. फिर मैं कह तो रही हूं कि आप को कोई कमी नहीं होगी.’’ ‘‘देखो, सनी से ही आ कर कल सुबह बात कर लेना,’’ कह कर मीरा ने फोन रख दिया था. उस की जैसे अब बोलने की शक्ति भी चुकती जा रही थी.यहां मैं इतनी दूर इस शहर में बेटे को ले कर रह रही हूं. ठीक है, बहुत संपन्न नहीं है, फिर भी गुजारा तो हो ही रहा है. पर राजुल इतने वर्षों बाद पता लगा कर यहां आ धमकेगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था. बेटे की इतनी चिंता थी, तो पहले आती.अब जब पालपोस कर इतना बड़ा कर दिया, बेटा युवा हो गया तो… एकाएक फिर  झटका लगा था.

यह क्या निकल गया मुंह से, क्यों कल सुबह आने को कह दिया, सनी तो चला ही जाएगा, वियोग की कल्पना करते ही आंखें भर आई थीं. सनी उस का एकमात्र सहारा.पिछले 3 दिनों से लगातार फोन आ रहे थे राजुल के. शायद यहां किसी होटल में ठहरी है, पुराने मकान मालिक से ही पता ले कर यहां आई है. और 3 दिनों से मीरा का रातदिन का चैन गायब हो गया है. पता नहीं कैसे जल्दबाजी में उस के मुंह से निकल गया कि यहां आ कर सनी से बात कर लेना. यह क्या कह दिया उस ने, उस की तो मति ही मारी गई.‘‘मां, मां, कितनी देर से घंटी बजा रहा हूं, सो गईं क्या?’’ खिड़की से सनी ने आवाज दी, तब ध्यान टूटा.‘‘आई बेटा, तेरा ही इंतजार कर रही थी,’’ हड़बड़ा कर उठी थी मीरा.‘‘अरे, इंतजार कर रही थीं तो दरवाजा तो खोलतीं. देखो, बाहर कितनी ठंड है,’’ कहते हुए अंदर आया था सनी, ‘‘अब जल्दी से खाना गरम कर दो, बहुत भूख लगी है और नींद भी आ रही है.’’किचन में आ कर भी विचारतंद्रा टूटी नहीं थी मीरा की. अभी बेटा कहेगा कि फिर वही सब्जी और रोटी,

कभी तो कुछ और नया बना दिया करो. पर आज तो जैसेतैसे खाना बन गया, वही बहुत है.‘‘यह क्या, तुम नहीं खा रही हो?’’ एक ही थाली देख कर सनी चौंका था.‘‘हां बेटा, भूख नहीं है, तू खा ले, अचार निकाल दूं?’’‘‘नहीं रहने दो, मु झे पता था कि तुम वही खाना बना दोगी. अच्छा होता, प्रवीण के घर ही खाना खा आता. उस की मां कितनी जिद कर रही थीं. पनीर, कोफ्ते, परांठे, खीर और पता नहीं क्याक्या बनाया था.’’मीरा जैसे सुन कर भी सुन नहीं पा रही थी.‘‘मां, कहां खो गईं?’’ सनी की आवाज से फिर चौंक गई थी.‘‘पता है, प्रवीण का भी सलैक्शन हो गया है. कोचिंग से फर्क तो पड़ता है न, अब राजू, मोहन, शिशिर और प्रवीण सभी चले जाएंगे अच्छे कालेज में. बस मैं ही, हमारे पास भी इतना पैसा होता, तो मैं भी कहीं अच्छी जगह पढ़ लेता,’’ सनी का वही पुराना राग शुरू हो गया था.‘

‘हां बेटा, अब तू भी अच्छे कालेज में पढ़ लेना, मन चाहे कालेज में ऐडमिशन ले लेना, बस, सुबह का इंतजार.’’‘‘क्या? कैसी पहेलियां बु झा रही हो मां. सुबह क्या मेरी कोईर् लौटरी लगने वाली है, अब क्या दिन में भी बैठेबैठे सपने देखने लगी हो. तबीयत भी तुम्हारी ठीक नहीं लग रही है. कल चैकअप करवा दूंगा, चलना अस्पताल मेरे साथ,’’ सनी ने दो ही रोटी खा कर थाली खिसका दी थी.‘‘अरे खाना तो ढंग से खा लेता,’’ मीरा ने रोकना चाहा था.‘‘नहीं, बस. और हां, तुम किस लौटरी की बात कर रही थीं?’’ ‘‘हां, लौटरी ही है, कल सुबह कोई आएगा तु झ से मिलने.’’‘‘कौन? कौन आएगा मां,’’ सनी चौंक गया था.‘‘तू हाथमुंह धो कर अंदर चल, फिर कमरे में आराम से बैठ कर सब सम झाती हूं.’’मीरा ने किसी तरह मन को मजबूत करना चाहा था. क्या कहेगी किस प्रकार कहेगी.‘‘हां मां, आओ,’’ कमरे से सनी ने आवाज दी थी.मन फिर से भ्रमित होने लगा. पैर भी कांपे. किसी तरफ कमरे में आ कर पलंग के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई थी मीरा.‘‘क्या कह रही थीं तुम, किस लौटरी के बारे में?’’ सनी का स्वर उत्सुकता से भरा हुआ था. मीरा ने किसी तरह बोलना शुरू किया,

‘‘बेटा, मैं आज तु झे सबकुछ बता रही हूं, जो अब तक बता नहीं पाई. तेरी असली मां का नाम राजुल है, जोकि बहुत बड़ी प्रौपर्टी की मालिक हैं. उन की कोई और औलाद नहीं है. वे अब तु झे लेने आ रही हैं,’’ यह कहते हुए गला भर्रा गया था मीरा का और आंसू छिपाने के लिए मुंह दूसरी ओर मोड़ लिया था उस ने.मां, आप कह क्या रही हो, मेरी असली मां कोई और है. तो अब तक कहां थी, आई क्यों नहीं?’’ सनी सम झ नहीं पा रहा था कि आज मां को हुआ क्या है? क्यों इतनी बहकीबहकी बातें कर रही हैं.‘‘हां बेटा, तेरी असली मां वही है. बस, तु झे जन्म नहीं देना चाह रही थी तो मैं ने ही रोक दिया था और कहा था कि जो भी संतान होगी, मैं ले लूंगी. मेरे भी कोईर् औलाद नहीं थी. मैं वहीं अस्पताल में नर्स थी. बस, तु झे जन्म दे कर और मु झे सौंप कर वह चली गई.’’‘‘अब तू जो भी सम झ ले. हो सके तो मु झे माफ कर दे. मैं ने अब तक तु झ से यह सब छिपाए रखा था. मेरे लिए तो तू बेटे से भी बढ़ कर है. बस, अब और कुछ मत पूछ,’’ यह कहते फफक पड़ी थी मीरा और जोर की रुलाई को रोकते हुए कमरे से बाहर निकल गई.अपने कमरे में आ कर गिर रुलाई फूट ही पड़ी थी. सनी उस का बेटा इतने लाड़प्यार से पाला उसे.

कल पराया हो जाएगा. सोचते ही कलेजा मुंह को आने लगता है. कैसे जी पाएगी वह सनी के बिना. इतना दुख तो उसे अपने पति जोसेफ के आकस्मिक निधन पर भी नहीं हुआ था. तब तो यही सोच कर संतोष कर लिया था कि बेटा तो है उस के पास. उस के सहारे बची जिंदगी निकल जाएगी. यही सोच कर पुराना शहर छोड़ कर यहां आ कर अस्पताल में नौकरी कर ली थी. तब क्या पता था कि नियति ने उस के जीवन में सुख लिखा ही नहीं. तभी तो, आज राजुल पता लगाते हुए यहां आ धमकी है. शायद वक्त को यही मंजूर होगा कि सनी को अच्छा, संपन्न परिवार मिले, उस का कैरियर बने, तभी तो राजुल आ रही है. बेटा भी तो यही चाहता है कि उसे अच्छा कालेज मिले. अब कालेज क्या, राजुल तो उसे ऐसे ही कई फैक्ट्री का मालिक बना देगी.ठीक है, उसे तो खुश होना चाहिए. आखिर, सनी की खुशी में ही तो उस की भी खुशी है. और उस की स्वयं की जिंदगी अब बची ही कितनी है, काट लेगी किसी तरह.लेकिन अपने मन को लाख उपाय कर के भी वह सम झा नहीं पा रही थी. पुराने दिन फिर से सामने घूमने लगे थे. तब वह राजुल के पड़ोस में ही रहा करती थी. राजुल के पिता नगर के नामी व्यवसायी थे.

उन्हीं के अस्पताल में वह नर्स की नौकरी कर रही थी. राजुल अपने पिता की एकमात्र संतान थी. खूब धूमधाम से उस की शादी हुई पर शादी के चारपांच माह बाद ही वह तलाक ले कर पिता के घर आ गईर् थी. तब उसे 3 माह का गर्भ था. इसीलिए वह एबौर्शन करा कर नई जिंदगी जीना चाह रही थी. इस काम के लिए मीरा से संपर्क किया गया. तब तक मीरा और जोसेफ की शादी हुए एक लंबा अरसा हो चुका था और उन की कोई संतान नहीं थी.मीरा ने राजुल को सम झाया था. ‘तुम्हारी जो भी संतान होगी, मैं ले लूंगी. तुम एबौर्शन मत करवाओ.’ बड़ी मुश्किल से इस बात के लिए राजुल तैयार हुई थी. और बेटे को जन्म दे कर ही उस शहर से चली गई. बेटे का मुंह भी नहीं देखना चाहा था उस ने.सनी का पालनपोषण उस ने और जोसेफ ने बड़े लाड़प्यार से किया था. राजुल की शादी फिर किसी नामी परिवार के बेटे से हो गई थी और वह विदेश चली गई थी.यह तो उसे राजुल के फोन से ही मालूम पड़ा कि वहां उस के पति का निधन हो गया और अब वह अपनी जायदाद संभालने भारत आ गई है, चूंकि निसंतान है, इसलिए चाह रही है कि सनी को गोद ले ले, आखिर वह उसी का तो बेटा है.

मीरा समझ नहीं पा रही थी कि नियति क्यों उस के साथ इतना क्रूर खेल खेल रही है. सनी उस का एकमात्र सहारा, वह भी अलग हो जाएगा, तो वह किस के सहारे जिएगी.आंखों में नींद का नाम नहीं था. शरीर जैसे जला जा रहा था. 2 बार उठ कर पानी पिया.सुबह उठ कर रोज की तरह दूध लाने गई, चाय बनाई. सोचा, कमरा थोड़ा ठीकठाक कर दे, राजुल आती होगी. सनी को भी जगा दे, पर वह जागा हुआ ही था. उसे चाय थमा कर वह अपने कमरे में आ गई. बेटे को देखते ही कमजोर पड़ जाएगी. नहीं, वह राजुल के सामने भी नहीं जाएगी.जब राजुल की कार घर के सामने रुकी, तो उस ने उसे सनी के ही कमरे में भेज दिया था. ठीक है, मांबेटा आपस में बात कर लें. अब उस का काम ही क्या है? वैसे भी राजुल के पिता के इतने एहसान हैं उस पर, अब किस मुंह से वह सनी को रोक पाएगी. पर मन था कि मान ही नहीं रहा था और राजुल और सनी के वार्त्तालाप के शब्द पास के कमरे से उस के कानों में पड़ भी रहे थे.‘‘बस बेटा, अब मैं तु झे लेने आ गईर् हूं. मीरा ने बताया था कि तू अपने कैरियर को ले कर बहुत चिंतित है.

पर तु झे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. करोड़ों की जायदाद का मालिक होगा तू,’’ राजुल कह रही थी.‘‘कौन बेटा, कैसी जायदाद, मैं अपनी मां के साथ ही हूं, और यहीं रहूंगा. ठीक है, बहुत पैसा नहीं है हमारे पास, पर जो है, हम खुश हैं. मेरी मां ने मु झे पालपोस कर बड़ा किया है और आप चाहती हैं कि इस उम्र में उन्हें छोड़ कर चल दूं. आप होती कौन हैं मेरे कैरियर की चिंता करने वाली, कैसे सोच लिया आप ने कि मैं आप के साथ चल दूंगा?’’ सनी का स्वर ऊंचा होता जा रहा था.इतने कठोर शब्द तो कभी नहीं बोलता था सनी. मीरा भी चौंकी थी. उधर, राजुल का अनुनयभरा स्वर, ‘‘बेटे, तू मीरा की चिंता मत कर, उन की सारी व्यवस्था मैं कर दूंगी. आखिर तू मेरा बेटा ही है, न तो मैं ने तु झे गोद दिया था, न कानूनीरूप से तेरा गोदनामा हुआ है. मैं तेरी मां हूं, अदालत भी यही कहेगी मैं ही तेरी मां हूं. परिस्थितियां थीं, मैं तु झे अपने पास नहीं रख पाई. मीरा को मैं उस का खर्चा दूंगी. तू चाहेगा तो उसे भी साथ रख लेंगे.

मु झे तेरे भविष्य की चिंता है. मैं तेरा अमेरिका में दाखिला करा दूंगी, यहां तु झे सड़ने नहीं दूंगी. तू मेरा ही बेटा है.’’ ‘‘मत कहिए मु झे बारबार बेटा, आप तो मु झे जन्म देने से पहले ही मारना चाहती थीं. आप को तो मेरा मुंह देखना भी गवारा नहीं था. यह तो मां ही थीं जिन्होंने मु झे संभाला और अब इस उम्र में वे आप पर आश्रित नहीं होंगी. मैं हूं उन का बेटा, उन की संभाल करने वाला, आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है, सम झीं? और अब आप कृपया यहां से चली जाएं, आगे से कभी सोचना भी मत कि मैं आप के साथ चल दूंगा.’’सनी ने जैसे अपना निर्णय सुना दिया था. फिर राजुल शायद धीमे स्वर में रो भी रही थी. मीरा सम झ नहीं पा रही थी कि क्या कह रही है.तभी सनी का तेज स्वर सुनाई दिया, ‘‘मैं जो कुछ कह रहा हूं, आप सम झ क्यों नहीं पा रही हैं. मैं कोई बिकाऊ कमोडिटी नहीं हूं. फिर जब आप ने मु झे मार ही दिया था तो अब क्यों आ गई हैं मु झे लेने. मैं बालिग हूं, मु झे अपना भविष्य सोचने का हक है. आप चाहें तो आप भी हमारे साथ रह सकती हैं. पर मैं, आप के साथ मां को छोड़ कर जाने वाला नहीं हूं. आप मु झे भी सम झने की कोशिश करें. मेरा अपना भी उत्तरदायित्व है.

जिस ने मुझे पालापोसा, बड़ा किया, मैं उसे इस उम्र में अंधकार में नहीं छोड़ सकता. कानून आप की मदद नहीं करेगा. दुनिया में आप की बदनामी अलग होगी. आप भी शांति से रहें, हमें भी रहने दें. आप मु झे सम झने की कोशिश करें. अब मैं और कुछ कहूं और अपशब्द निकल जाएं मेरे मुंह से, मेरी रिक्वैस्ट है, आप चली जाएं. सुना नहीं आप ने?’’ सनी की आवाज फिर और तेज हो गई थी.इधर, राजुल धड़ाम से दरवाजा बंद करते हुए निकल गई थी. फिर कार के जाने की आवाज आई. मीरा की जैसे रुकी सांसें फिर लौट आई थीं. सनी कमरे से बाहर आया और मां के गले लग गया और बोला, ‘‘मेरी मां सिर्फ आप हो. कहीं नहीं जाऊंगा आप को छोड़ कर.’’ मीरा को लगा कि उस की ममता जीत गई है.

बड़ी आपा: नसीम के किस बात से घर में कोहराम मचा

तार पर नजर पड़ते ही नसीम बौखला गया. उस का हृदय बड़ी तीव्रता से धड़का. लगा, हलक से बाहर आ जाएगा. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला और तार ले कर घर के अंदर बढ़ गया.

घर में सुरैया और अम्मी ने खाने से निवृत्त हो कर अभी हाथ ही धोए थे कि नसीम के लटके मुंह को देख कर उस की अम्मी पूछ बैठीं, ‘‘क्या बात है, नसीम, दफ्तर नहीं गए?’’

‘‘अम्मी..’’ कहने के साथ ही नसीम की आंखें भीग गईं, ‘‘असद भाई कल सुबह दिन का दौरा पड़ने से चल बसे. यह तार आया है.’’

नसीम का इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया. उस की बीवी सुरैया और अम्मी बिलखबिलख कर रो पड़ीं. दुख तो नसीम को भी बहुत था, लेकिन किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला तथा सुरैया और अम्मी को जल्दी से तैयार होने को कह कर अपने दफ्तर को चल दिया. दफ्तर से उस ने 3 दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया. तब तक सुरैया और अम्मी तैयार हो चुकी थीं.

वह रिकशा ले आया और अम्मी तथा सुरैया को ले कर बस अड्डे को रवाना हो गया.

7 वर्ष पूर्व शमीम आपा की शादी असद भाई के साथ हुई थी. असद भाई अपने घर में सब से बड़े थे. घर का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर था. शमीम आपा को पा कर असद भाई अपने सारे गम भूल गए. शमीम आपा ने अपनी बुद्धिमानी से घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी और घर की चिंता से उन्हें पूरी तरह मुक्त कर दिया था.

सीधे और सरल स्वभाव के असद भाई रोजे, नमाज के बड़े कायल थे. इस के अतिरिक्त सभी धार्मिक कार्यों में रुचि लेते थे. हर जुम्मेरात को मजार पर जाना, अगरबत्ती सुलगाना उन का पक्का नियम था. उन के उसी नियम के कारण शमीम आपा को भी उन के कार्यों में शामिल होना पड़ता था. धीरेधीरे यही आदत उन के जीवन का अंग बन गई थी.

यों तो असद भाई और शमीम आपा के जीवन में कोई अभाव नहीं था, लेकिन शादी के 7 वर्ष बीत जाने पर भी उन के कोई संतान पैदा नहीं हुई थी. इस के कारण कभीकभी वे बेहद दुखी हो जाते थे. इस का कारण हमेशा ही वह मियां, फकीरों को बताते थे. कहते थे, फलां फकीर या मियां उन से नाराज हैं. इसी कारण उन्हें औलाद का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ है.

उधर उन के दोनों छोटे भाइयों के यहां 3-3 बच्चे थे. शमीम आपा ने जोर डाल कर डाक्टर को दिखाया था. डाक्टर से आधाअधूरा इलाज भी करवाया था. लेकिन लाभ होने से पहले ही छोड़ दिया गया, क्योंकि उन के अंदर भी यह अंधविश्वास बैठ गया था कि उन से कोई मियां नाराज हैं.

यही कारण था जब नसीम की शादी की बात आई तो उस की अम्मां ने पूरी होशियारी बरती थी. शमीम आपा तो सिर्फ मजहबी तालीम हासिल करने वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहती थीं. लेकिन नसीम और उस की अम्मी की जिद के कारण ही सुरैया के साथ नसीम का निकाह हुआ था.

सुरैया इंटर तक शिक्षा प्राप्त सुलझे विचारों की लड़की थी. अपने छोटे से घर को उस ने आते ही व्यवस्थित कर लिया था.

अपनी इच्छा पूरी न होने के कारण बड़ी आपा नाराज हो कर अपनी ससुराल वापस लौट गई थीं तथा बहुत कोशिशों के बाद भी नसीम की शादी में शरीक नहीं हुई थीं.

पिछले 2 वर्षों से उन्होंने अपने मायके की सूरत भी नहीं देखी थी. सुरैया की सूरत से भी वह नफरत करती थीं.

अपने भाई और अम्मी को सामने देख कर शमीम आपा के धैर्य का बांध टूट गया. वह उन से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ीं. किसी तरह अम्मी ने समझाया, ‘‘बेटी, सब्र से काम लो. जो होना था सो हो गया. अब रोने से असद तो वापस आ नहीं सकता.’’

शमीम आपा की आंखें रोने के कारण सूज गई थीं. कई बार गम से वह बेहोश हो जाती थीं. सुरैया साए की भांति उन के साथ रहती थी. वह उन्हें दिलासा देती रहती.

तीसरे दिन नसीम सुरैया को ले कर लौट आया था. अम्मी शमीम आपा के पास ही रुक गई थीं. अभी उन्हें सहारे की आवश्यकता थी. नसीम चाहता था शमीम आपा को अपने साथ घर ले जाए. लेकिन अभी इद्धत (40 दिन तक घर से बाहर न निकलना) होना बाकी था.

घर पहुंचते ही नसीम गहरी सोच में डूब गया था. असद भाई की असमय मृत्यु ने उसे विचलित कर दिया था. उसे मालूम था, असद भाई की मृत्यु के बाद उन के भाई शमीम आपा को अपने साथ रखने से रहे. फिर वह स्वयं भी शमीम आपा को उन लोगों की मेहरबानी पर नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे उदास और खोया देख कर सुरैया पूछ बैठी, ‘‘आप कुछ परेशान लगते हैं. मुझे बताइए, आखिर बात

क्या है?’’

‘‘आपा के बारे में सोच रहा था, सुरैया,’’ नसीम बोला, ‘‘भरी जवानी में वह विधवा हो गई हैं. शादी का सुख भी उन्हें न मिल सका.’’

‘‘हां, आप ठीक कहते हैं,’’ सुरैया ने एक गहरी सांस ली. फिर बोली, ‘‘लेकिन आप अधिक परेशान न हों. शमीम आपा को हम अपने साथ ही रखेंगे.’’

‘‘सुरैया,’’ नसीम ने आश्चर्य से कहा, ‘‘तुम्हें तो मालूम है, आपा तुम्हें पसंद नहीं करतीं.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं कोशिश करूंगी तो आपा मुझे पसंद करने लगेंगी.’’ सुरैया मुसकराई.

नसीम प्रसन्नता से सुरैया को देखता रह गया. उसे विश्वास हो गया, सुरैया शमीम आपा को जीने का सलीका सिखा देगी. एक बोझ सा उस ने अपने ऊपर से उतरता हुआ महसूस किया.

सवा महीने बाद शमीम आपा अम्मी के साथ अपने भाई के पास आ गईं. सुरैया ने उन्हें हाथोंहाथ लिया. उसे अपनी ननद से पूरी हमदर्दी थी. अब शमीम आपा हमेशा खामोश, उदास, परेशान सी रहती थीं. उन के होंठों की हंसी जैसे हमेशा के लिए मुरझा गई थी. सुरैया हमेशा उन का दिल बहलाने की कोशिश करती रहती थी.

एक दिन अचानक रात को चीखपुकार सुन कर नसीम और सुरैया की आंख खुल गई. कमरे से बाहर आ कर उन्होंने देखा तो चौंक पड़े. शमीम आपा अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी गहरीगहरी सांसें ले रही थीं. उन की आंखें बुरी तरह सुर्ख हो रही थीं. उन के पास ही घबराई हुई अम्मी खड़ी थीं.

‘‘क्या हुआ, अम्मी? क्या बात है?’’ नसीम ने पूछा.

‘‘सोतेसोते अचानक चीखने लगी, ‘अरे, मुझे बचाओ…मार डालेंगे…मार डालेंगे.’’ अम्मी ने बताया.

नसीम की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने शमीम आपा से कुछ पूछना चाहा लेकिन वह कुछ भी बताने में असमर्थ थीं. उस रात फिर घर के किसी भी व्यक्ति को एक पल भी नींद नहीं आई.

सुबह को जब शमीम आपा की तबीयत कुछ ठीक दिखाई दी तो नसीम ने पूछा, ‘‘रात क्या हुआ था, आपा?’’

आपा ने एक गहरी सांस ली और बोली, ‘‘भैया, रात स्वप्न में तुम्हारे दूल्हा भाई मेरा गला दबा रहे थे. कह रहे थे, ‘तू सब मियां, फकीरों को भूल गई. किसी भी मजार पर नहीं जाती. हर जुम्मेरात को मजार पर नहीं जाएगी तो मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा.’’’

नसीम ने एक गहरी सांस ली. वह समझ गया, ये सब बीती बातें हैं. इसी कारण उन्हें यह सब स्वप्न में दिखाई दिया.

अगली जुम्मेरात आने से पहले

ही एक रात को शमीम आपा फिर

चीख पड़ीं. पूरी रात वह रोती रहीं. नसीम और सुरैया ने किसी तरह उन्हें चुप कराया.

दिन निकला तो वह बोलीं, ‘‘मैं अब हर जुम्मेरात को मजार पर जाया करूंगी, नहीं तो वह मुझे जान से मार देंगे.’’

नसीम ने उन्हें इजाजत दे दी. उस ने अपने मन में सोचा, 2-4 बार मजार पर जाएंगी और इन के दिमाग से भ्रम निकल जाएगा तो वह आपा को समझा देगा. वह इन बातों को बिलकुल पसंद नहीं करता था. अंधविश्वास से उसे बुरी तरह चिढ़ थी.

अब आपा ने हर जुम्मेरात को मजार पर जाना शुरू कर दिया था. हर जुम्मेरात को आपा अच्छेअच्छे पकवान बनातीं और मजार पर जा कर नियाज दिलातीं.

नसीम चुपचाप खामोशी से सब कुछ देखता रहता. लेकिन 15 दिन में ही जब उस का वेतन इन खर्चों में समाप्त हो गया तो उसे अपने पैरों तले की जमीन खिसकती हुई सी प्रतीत हुई.

उस ने आपा को समझाना चाहा तो आपा भड़क उठीं. सारे दिन वह रोती रहीं. आपा का रोना अम्मी से न देखा गया तो वह भी नसीम को बुराभला कहने लगीं.

नसीम का परेशानी से बुरा हाल था. लेकिन वह किसी तरह सब्र कर रहा था. किसी तरह उस ने आपा को समझाया, ‘‘आपाजान, आप ही सोचो, एक मामूली सा क्लर्क हूं. मैं कोई बड़ा आदमी तो हूं नहीं, जो इस तरह से खर्च सहन करूं. लेकिन फिर भी आप थोड़ा सोचसमझ कर खर्च करें तो अच्छा होगा.’’

शमीम आपा पर उस के समझाने का इतना असर अवश्य हुआ कि खर्च में उन्होंने कुछ कमी कर दी, लेकिन मजार पर जाना कम नहीं किया.

नसीम इधर बेहद परेशान रहने लगा था. उस का बचत किया हुआ पैसा धीरेधीरे समाप्त होता जा रहा था. उधर सुरैया अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली थी. उसे अस्पताल में भरती कराना था, जिस के लिए रुपयों की आवश्यकता थी.

मानसिक परेशानियों के कारण एक  दिन उस की साइकिल स्रद्ध स्कूटर से टक्कर होतेहोते बची. वह तो संयोग की बात थी कि उस की साइकिल स्कूटर की टक्कर खा कर स्कूटर के आगे आ कर गिरने के स्थान पर विपरीत दिशा में गिरी जिस के कारण नसीम के हाथपैर में मामूली सी ही चोटें आईं.

सुरैया तो बेहद घबरा गई थी. शमीम आपा ने सुना तो बोलीं, ‘‘भैया, यह सब बुजुर्गों की बेअदबी के कारण हुआ है. तुम उन की अवमानना जो कर रहे थे.’’

‘‘ऐसी बातें तो मत करो, आपा,’’ सुरैया चीख पड़ी थी, ‘‘अपने ही भाई का बुरा चाहती हो? खुदा न करे उन्हें कुछ हो.’’

सुरैया की बातें सुन कर शमीम आपा रोने लगीं, ‘‘मैं तो हूं ही बुरी. मैं तो अपने भाई का बुरा ही चाहती हूं.’’

बड़ी मुश्किल से अम्मी और नसीम ने आपा को चुप कराया.

सुरैया नसीम की परेशानी को समझ गई थी. उस ने मन ही मन शमीम आपा को सही राह पर लाने की सोच ली. कई दिन तक वह योजनाएं बनाती रही. एक दिन उस के दिमाग में एक तरकीब आ ही गई.

उस रात को जब सब सो रहे थे तो अचानक सुरैया चीख पड़ी, ‘‘अरे बचाओ, मुझे भाई मार डालेंगे. अरे मेरा गला दबा रहे हैं.’’

घबरा कर शमीम आपा और अम्मी सुरैया के कमरे में पहुंचीं तो देखा सुरैया बुरी तरह चीख रही है. उस के बाल बिखरे हुए थे. वह किसी तरह संभल नहीं रही थी, हालांकि नसीम उसे बिस्तर पर बैठाने की कोशिश कर रहा था.

अचानक नसीम का बंधन ढीला पड़ गया तो सुरैया चीखती हुई शमीम आपा की ओर बढ़ी, ‘‘मैं तुझे जान से मार दूंगा,’’ अब वह पुरुषों की भाषा में बोलने लगी थी, ‘‘अरे, खापी कर मोटी भैंस हो रही है. तुझ से एक दिन यह भी न हुआ कि पांचों वक्त की नमाज पढ़े, रमजान रखे.’’

शमीम आपा का चेहरा भय से पीला पड़ गया था. वह हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आगे से मैं ऐसा ही करूंगी, जैसा आप कहते हैं.’’

‘‘करेगी कैसे नहीं,’’ सुरैया चीखी, ‘‘मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा. और सुन, अब तुझे मजार पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं. तेरे मजार पर जाने से बेपरदगी होती है जो मुझे स्वीकार नहीं.’’

किसी तरह अम्मी और नसीम ने सुरैया को काबू में किया. पूरी रात वह चीखतीचिल्लाती रही. कभी हंसने लगती तो कभी रोने लगती.

दिन निकलने पर बड़ी मुश्किल से सुरैया सो सकी. दोपहर बाद वह सो कर उठी. उस दिन घर का सारा कार्य शमीम आपा को करना पड़ा. सो कर उठने के बाद सुरैया पहले की तरह ही सामान्य थी. उस से अम्मी ने पूछा, ‘‘रात तुझे क्या हो गया था?’’

लेकिन उस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वह बोली, ‘‘मैं तो आराम से सोती रही हूं.’’

इस से शमीम आपा और अम्मी को विश्वास हो गया कि रात सुरैया पर असद भाई की रूह का असर था. उस दिन से शमीम आपा बेहद घबराईघबराई सी रहने लगीं. उन्होंने 10 दिन से पांचों वक्त की नमाज पढ़नी शुरू कर दी. एक दिन सुरैया ने चाहा कि वह उन्हें मजार पर ले जाए, लेकिन आपा इतनी बुरी तरह डरी हुई थीं कि उन्होंने मजार पर जाने से इनकार कर दिया.

इस तरह पूरे 6 महीने गुजर गए. इस बीच सुरैया ने एक सुंदर से शिशु को जन्म दिया. शमीम आपा में इस बीच काफी परिवर्तन आ गया था. अब वह पहले के समान उदास और परेशान नहीं रहती थीं. अब उन के चेहरे पर हमेशा मुसकराहट सी रहती थी. मजार आदि पर जाना वह बिलकुल भूल गई थीं.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो सुरैया बोली, ‘‘एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानेंगे आप?’’

‘‘हां, बोलो, क्या बात है?’’ नसीम ने कहा.

‘‘मैं ने सोचा है कि शमीम आपा का घर बस जाए तो अच्छा होगा.’’

‘‘क्या कह रही हो, सुरैया?’’ नसीम चौंक पड़ा, ‘‘जमाना क्या कहेगा? लोग कहेंगे एक विधवा बहन का बोझ भी नहीं उठाया जा सकता.’’

‘‘हमें लोगों से कुछ लेनादेना नहीं है. हमें आपा की खुशियां देखनी हैं. औरत मर्द के बिना अधूरी है,’’ सुरैया बोली.

सुरैया की बात सुन कर नसीम गहरी सोच में डूब गया. काफी सोचनेसमझने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुरैया की बात सही है. उस ने उसी दिन से आपा के लिए शौहर की तलाश शुरू कर दी.

शीघ्र ही उसे लतीफ मियां जैसे नेक और शरीफ व्यक्ति का पता मिल गया. लतीफ मियां एक स्कूल में अध्यापक थे. उन की पत्नी का कई वर्ष पूर्व देहांत हो गया था. एक छोटी सी बच्ची थी. नसीम ने तुरंत रिश्ता पक्का कर दिया. पहले तो शमीम आपा ने थोड़ा इनकार किया, लेकिन फिर निकाह के लिए राजी हो गईं.

ईद के महीने में नसीम ने शमीम आपा और लतीफ मियां का निकाह कर दिया. जब शमीम आपा की विदाई का समय आया तो सुरैया उन के गले लग गई और बोली, ‘‘आपाजान, मैं आप को किसी धोखे में रखना नहीं चाहती. उस रात जब मुझ पर असर हुआ था, वह सब एक नाटक था. सिर्फ आप का अंधविश्वास समाप्त करने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा. मुझे उम्मीद है, मेरी इस गलती को आप माफ कर देंगी.’’

‘‘भाभी, तुम ने गलती कहां की थी?’’ शमीम आपा बोलीं, ‘‘तुम ने जो कुछ भी किया मेरे भले के लिए किया. अगर तुम ऐसा न करतीं तो मैं आज भी उन्हीं अंधविश्वासों से लिपटी होती.’’

सुरैया मुसकरा पड़ी. अम्मी और सुरैया ने हंस कर बड़ी आपा को विदा कर दिया.

शमीम आपा का निकाह हुए 2 वर्ष बीत गए थे. आपा अपने जीवन से हर तरह से संतुष्ट थीं. लतीफ मियां ने उन्हें कभी कोई शिकायत का अवसर नहीं दिया था. जब भी आपा का दिल घबराता था वह अपनी अम्मी और भाभी से मिलने उन के घर आ जाती थीं. आपा को सुखी देख कर नसीम और अम्मी को बेहद प्रसन्नता होती. सुरैया तो शमीम आपा को देख कर फूल के समान खिल जाती थी.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो बेहद प्रसन्न था. आते ही अपनी अम्मी और सुरैया से बोला, ‘‘अम्मीजान, एक खुशखबरी, शमीम आपा के घर चांद सा बेटा आया है.’’

‘‘सच,’’ दोनों ने आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ पूछा.

‘‘हां, अम्मीजान,’’ नसीम बोला, ‘‘आज लतीफ भाई दफ्तर में आए थे और मुझे यह खबर दे गए.’’

उसी समय तीनों तैयार हो कर शमीम आपा को बधाई देने उन के घर जा पहुंचे.

सुरैया अधिक देर अपने कुतूहल को न छिपा सकी. पूछ ही बैठी, ‘‘आपाजान, आप तो कहती थीं आप से मियां नाराज हैं, इसी कारण आप को संतान नहीं होती. लेकिन यहां आ कर तो सब उलटा ही हो गया. क्या मियां आप से खुश हो गए?’’

नजदीक ही बैठे लतीफ मियां ने सुरैया की बात पर एक ठहाका लगाया और बोले, ‘‘सुरैया, यह सब इन के अंधविश्वास का कारण था. असद मियां को एक लंबे इलाज की आवश्यकता थी. लेकिन वह अपने अंधविश्वास के कारण यह सब नहीं कर सके. उन्हें विश्वास था वह नियाज दिलवा कर, मजारों पर जा कर अपने लिए संतान मांग लेंगे. लेकिन क्या मजारों से भी संतानें मिली हैं?’’

उन्होंने शमीम आपा की तरफ देखा तो उन्होंने शरमा कर मुंह दूसरी ओर कर लिया.

नीली झील में गुलाबी कमल: ईशानी ने कौनसा प्रस्ताव रखा था

ईशानी अपनी दीदी शर्मिला से बहुत प्यार करती थी. शर्मिला भी हमेशा अपनी ममता उस पर लुटाती रहती थी, तभी तो वह जबतब हमारे घर आ जाया करती थी. जब मैं ने शुरूशुरू में शर्मिला को देने के लिए एक पत्र उस के हाथों में सौंपा था, तब वह मात्र 12 वर्ष की थी. वह लापरवाह सी साइकिल द्वारा इधरउधर बेरोकटोक आयाजाया करती थी. मेरा और शर्मिला का गठबंधन कराने में ईशानी का ही हाथ था. जाति, बिरादरी से भरे शहर में हम दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन किसी को पता ही न चला. ईशानी ने एक दिन कहा, ‘‘तुम दोनों में क्या गुटरगूं चल रही है… मां को बता दूं?’’

उस की चंचल आंखों ने मानो हम दोनों को चौराहे पर ला खड़ा कर दिया. किसी तरह शर्मिला ने अंधेरे में तीर मार कर मामला संभाला, ‘‘मैं भी मां को बता दूंगी कि तू टैस्ट में फेल हो गई है.’’ वह सहम गई और विवाह तक उस ने हम लोगों की मुहब्बत को राज ही रहने दिया.

बड़ी बहन होने के नाते शर्मिला ने ईशानी की टीचर से मिल कर उस के इतिहासभूगोल के अंक बढ़वाए और पास करवा दिय?. शर्मिला ही ईशानी की देखरेख करती, सो, दोनों में मांबेटी जैसा ममतापूर्ण स्नेह भी पनपता रहा. अपनी सहेलियों से मजाक करतेकरते ईशानी दावा कर दिया करती थी, ‘मैं शर्मिला दीदी को ‘मां’ कह सकती हूं.’ यह बात मेरे दोस्त की बहन ने बताई थी, जो ईशानी की सहेली थी. समय ने करवट ली. एक दिन बाजार से लौटते समय ईशानी की मां को एक तीव्र गति से आती हुई कार ने धक्का दे दिया. उन्हें अस्पताल ले जाया गया, परंतु बिना कुछ कहे, बताए वे संसार से विदा हो गईं. ईशानी के बड़े भाई प्रशांत का इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष था. वह किशोरी अपने बड़े भैया को समझाती रही, तसल्ली देती रही, जैसे परिवार में वह सब से बड़ी हो.

उस की मां ने अपने पति के रहते हुए ही तीनों बच्चों में संपत्ति का बंटवारा करवा लिया था. इस से उन लोगों के न रहने पर भी आपस में मधुर संबंध बने रहे. मैं परिवार का बड़ा बेटा था. मुझ से छोटी 2 बहनें सुधा, सीमा हाई स्कूल और इंटर बोर्ड की तैयारी कर रही थीं. मैं बैंक में नौकरी करता था. पिता बचपन में ही चल बसे थे. मां ने अपनेआप को अकेलेपन से बचाने के लिए एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का काम ले लिया था. कुल मिला कर जीवन आराम से चल रहा था.

एक दिन ईशानी बोली, ‘‘होने वाले जीजाजी, अब आप लोग जल्दी से शादी कर लीजिए.’’

मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो… क्या भैया ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ वह बोली, ‘‘बात यह है कि कल मामाजी आए थे. भैया ने उन से दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने को बोला है.’’

‘‘तो क्या हुआ, हम तुझ से शादी कर लेंगे.’’ यह सुन कर वह ऐसे मुसकराई जैसे मुझे बच्चा समझ रही हो. मैं ने झेंपते हुए उस से कहा, ‘‘फिर क्या करें? मेरे घर में तो सब मान जाएंगे… हां, तुम्हारे भैया…’’

‘‘उन को मैं मनाऊंगी,’’ वह चुटकी बजाते हुए हंसती हुई चली गई.

पता नहीं उस ने भैया को कौन सी घुट्टी पिलाई कि वे एक बार में ही हम लोगों का विवाह करने को राजी हो गए.

ईशानी हमारे यहां आतीजाती रहती थी और भैया के समाचार देती रहती थी. भैया इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुए तो उस दिन वह बहुत खुश हुई और आ कर मुझ से लिपट गई. फिर झेंपती हुई अपनी दीदी के पास चली गई. हाई स्कूल का फार्म भरते समय ईशानी ने अभिभावक के स्थान पर भैया का नाम न लिख कर मेरा लिखा था. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘ईशानी, गलती से तुम ने यहां मेरा नाम लिख दिया है.’’ ‘‘वाह जीजाजी, आप तो अपुन के माईबाप हो, मैं ने तो समझबूझ कर ही आप का नाम लिखा है,’’ कहते हुए वह खिलखिला पड़ी थी.

मेरे पिता बनने का समाचार भी ईशानी ने ही मुझे दिया था. पर मैं ने इस बात को सामान्यतौर पर ही लिया था.

‘‘जीजाजी, आज हम सब इस खुशी में आइसक्रीम खाएंगे,’’ वह चहक रही थी.

शर्मिला भी बोली, ‘‘सच तो है, चलिए…आज सब लोग आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘ठीक है, आइसक्रीम खिला देंगे पर मैं तो इतनी बड़ी घोड़ी का बाप पहले से ही बना दिया गया हूं. तब तो किसी ने कुछ खिलाने की बात नहीं की,’’ मैं ने ईशानी की ओर देख कर कहा.

मेरी बात पर वह जोर से हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘बगल में खड़ी हो जाऊं तो आधी घरवाली लगूंगी और उंगली पकड़ लूं तो…’’

शर्मिला ने मीठी झिड़की दी, ‘‘चल हट, यह मुंह और मसूर की दाल…’’

मेरी बहन सुधा के विवाह में उस की विदाई पर ईशानी मुझे सांत्वना दे रही थी, ‘‘बेटियां तो पराए घर जाती ही हैं.’’

सीमा प्रेमविवाह करना चाहती थी, पर मां इस के लिए तैयार नहीं थीं, तब मैं ईशानी की बात सुन कर दंग रह गया. वह मां को समझा रही थी, ‘‘आप सीमा से नाराज मत होइए. आप के जो भी अरमान रह गए हों, मेरी शादी में पूरे कर लीजिएगा. आप जैसी कहेंगी मैं वैसी ही शादी करूंगी और जिस से कहेंगी, उस से कर लूंगी. बस, अब आप शांत हो जाइए.’’ मैं ने वातावरण को सहज करने के लिए मजाक किया, ‘‘मां कहेंगी, बच्चों के बापू से विवाह कर लो तो करना पड़ेगा…’’

मैं कई वर्षों बाद बेटे का बाप बना था. इस सुख ने मुझे अंदर से पुलकित और पूर्ण बना दिया था. बेटे का नाम रखना था, सो, सब ने अपनेअपने सोचे हुए नाम सुझाए पर निश्चित नहीं हो पा रहा था कि किस के द्वारा सुझाया हुआ नाम रखा जाए. फिर तय किया गया कि सब बारीबारी से बच्चे के कान में नाम का उच्चारण करेंगे, जिस के नाम पर वह जबान खोलेगा उसी का सुझाया गया नाम रखा जाएगा. सब से पहले शर्मिला ने उस का नाम लिया, ‘विराट’, सुधा ने ‘विक्रम’, सीमा ने ‘राघव’, मां ने पुकारा, ‘पुरुषोत्तम’. आखिर में ईशानी की बारी थी. उस ने बच्चे के कान के पास फूंक मारी और ‘अंकित’ कहते ही वह ‘ममम…ऊं…अं…मम…’ गुनगुना उठा.

सब लोग हंस पड़े, तालियां बज उठीं. मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘ईशानी, तू ने आधी घरवाली का रोल अदा किया है.’’ य-पि सुधा को यह अच्छा नहीं लगा था, परंतु मां का चेहरा दमक रहा था. वे बोलीं, ‘‘मौसी है न, मां ही होती है, गया भी तो मौसी पर ही है.’’

सुधा से न रहा गया. वह बोली, ‘‘सब कुछ मौसी का ही लिया है, क्या बात है ईशानी?’’ इस मजाक में य-पि सुधा की चिढ़ छिपी थी पर ईशानी झेंप गई थी. उस की झुकीझुकी पलकें मर्यादा से बोझिल थीं, परंतु होंठों की मुसकराहट में गौरव की झलक थी, ‘‘हां, मुझे मौसी होने पर गर्व है.’’

शर्मिला बीमार पड़ी तो पता चला कि उसे कैंसर ने दबोच लिया है. हम सब लोगों के तो जैसे हाथपांव ही फूल गए. एक ईशानी ही सब को दिलासा दे रही थी. अंकित की देखभाल अब ईशानी ही करती थी.

एक दिन ईशानी डाक्टर के सामने रो पड़ी, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी दीदी को बचा लीजिए.’’ मृत्यु के पूर्व शर्मिला का चेहरा चमकने लगा था. उस के कष्ट जैसे समाप्त ही हो गए थे. ईशानी यह देख कर खुश थी. लेकिन उसे क्या पता था कि मृत्यु इतनी निकट आ गई है. ईशानी अंकित को पैरों पर बिठा कर झुला रही थी, ‘‘बता, तू मुझे दीदी कहेगा या मौसी? बता न, तू मुझे दीदी कहेगा… हां…’’

मैं आरामकुरसी पर बैठा आंखें मूंदे सोने की चेष्टा कर रहा था. पर ईशानी की तोतली बोली में ‘दीदी’ का संबोधन सुन कर मन ही मन हंस पड़ा. मां पास बैठी थीं, बोलीं, ‘‘ईशानी, नीचे गद्दी रख ले, गीला कर देगा,’’ और उन्होंने गद्दी उठा कर उसे दे दी. ईशानी गद्दी रखते हुए दुलार से अंकित से बोली, ‘‘अगर तू दीदी कहेगा तो गीला नहीं करना, मौसी कहेगा तो गीला…’’ मैं हंस पड़ा, ‘‘तुम मौसी हो तो मौसी ही कहेगा न.’’

शर्मिला की सहेलियां उस से मिल कर जा चुकी थीं. भैया भी आ गए थे. शाम हो गई, पर अंकित ने गद्दी गीली नहीं की थी. मां बोलीं, ‘‘देखो तो इस अंकू को, आज गद्दी गीली ही नहीं की.’’ ईशानी जूस बना रही थी, झट से देखने आ गई, ‘‘अरे, वाह, यह हुई न बात.’’ फिर मुझे आवाज दे कर बोली, ‘‘जीजाजी, देखिए, अंकू ने गद्दी गीली नहीं की,’’ और फिर खुद ही झेंप गई. उसी रात साढ़े 11 बजे शर्मिला हम सब से विदा हो गई. अंदर से मैं पूरी तरह ध्वस्त हो गया था, परंतु कुछ ऐसा अनुभव कर रहा था कि ईशानी मुझ से भी ज्यादा बिखर कर चूरचूर हो गई है. उस की गंभीर आंखें देख कर मेरा मन और भी उदास होने लगता. मैं अपना दुख भूल कर उसे समझाने की चेष्टा करता, परंतु वह मेरे सामने पड़ने से कतरा जाती.

समय बीतने लगा. अंकित ईशानी के बिना नहीं रहता था. वह उसे कईकई दिनों के लिए अपने साथ ले जाने लगी. मैं ही अंकित से मिलने चला जाता. अंकित का जन्मदिन आने वाला था. मां अपनी योजनाएं बनाने लगीं. सुधा, सीमा को भी निमंत्रण भेजा गया. ईशानी और मैं बड़े पैमाने पर जन्मदिन मनाने के पक्ष में नहीं थे. पर मां का कहना था कि वे अपने पोते के जन्मदिन पर शानदार दावत देंगी.

मां और ईशानी का विवाद चल रहा था. ऐसा लग रहा था कि मां खिसिया गई हैं, तभी उन्होंने यह प्रस्ताव रख दिया, ‘‘ईशानी, तुम जब अंकित पर इतना अधिकार समझती हो तो उसे सौतेला बेटा बनने से बचा लो,’’ और वे रोने लगीं. सब चुप थे. शीघ्र ही मां ने धीरेधीरे कहा, ‘‘तुम एक बार यहां इस की मां बन कर आ जाओ, बेटी. अंकित अनाथ होने से बच जाएगा…’’ ईशानी उठ कर चली गई थी. वह अंकित के जन्मदिन पर भी नहीं आई. अंकित रोता, चिड़चिड़ाता, बीमार पड़ा, तब भी वह नहीं आई. मां अंकित की देखरेख करती थक जातीं. मेरा बेटा ईशानी के बिना नहीं रह सकता, यह मैं जानता था. वह निरंतर दुर्बल होता जा रहा था. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा था. लगभग 2 माह बीत गए. फिर इस विषय पर कोई बातचीत न हुई. एक शाम मैं उदास बैठा ईशानी के बारे में ही सोच रहा था. साथ ही, मां के प्रस्ताव की भी याद आ गई. लेकिन मैं ने ईशानी को कभी उस नजर से नहीं देखा था. मुझे उम्मीद नहीं थी कि विशाल नभ के नीचे फैली नीली नदी में भी झील उतर सकती है और उस में गुलाबी कमल खिल सकते हैं.

तभी भैया को आते देखा तो मैं उठ खड़ा हुआ, ‘‘आइए, मां देखो तो, भैया आए हैं.’’ मां झट से अंकित को गोद में उठाए आ गईं.

भैया ने कहा, ‘‘यह पत्र ईशानी ने दिया है,’’ और वह पत्र मेरे हाथ में दे दिया.

मैं कुछ घबरा गया, ‘‘सब ठीक तो है न, भैया?’’ ‘‘हां, सब ठीक ही है,’’ कहते हुए उन्होंने अंकित को गोद में ले लिया, ‘‘मैं इसे ले जा रहा हूं. घुमा कर थोड़ी देर में ले आऊंगा,’’ और वे अंकित को ले कर चले गए. ‘‘क्या बात है बेटा, देखो तो क्या लिखा है? मालूम नहीं, वह क्या सोच रही होगी, मुझे ऐसा प्रस्ताव नहीं रखना चाहिए था. सचमुच उस दिन से मैं पछता रही हूं. वह घर नहीं आती तो अच्छा नहीं लगता…’’ और मां की आंखों में आंसू आ गए. मैं ने पत्र खोला. उस में लिखा था…

‘मां, मैं बहुत सोचविचार कर, भैया से पूछ कर फैसला कर रही हूं. मुझे आप का प्रस्ताव स्वीकार है, ईशानी.’ मुझे अचानक महसूस हुआ जैसे सचमुच नीली झील में गुलाबी कमल खिल गए हैं.

पेचीदा हल – भाग 1 : नई जिंदगी जीना चाहता था संजीव

शिखाके पति संजीव का रोहित सब से अच्छा दोस्त था. उस  का महीना भर पहले अंजलि से रिश्ता तय हुआ था. उस शनिवार की शाम को अंजलि बिना फोन किए शिखा से मिलने उस के घर आईर् थी.

खुल कर हंसनेबोलने वाली अंजलि को खोयाखोया सा देख शिखा ने कुछ देर के औपचारिक वार्त्तालाप के बाद उस से पूछ लिया, ‘‘तुम आज परेशान क्यों लग रही हो?’’

अंजलि एकदम संजीदा हो कर बोली, ‘‘शिखा भाभी, मैं अमन के बारे में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘यह अमन कौन है?’’

‘‘हम दोनों कभी एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे,’’ अंजलि ने  िझ झकते लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘फिर तुम दोनों ने शादी क्यों नहीं करी?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए

शिखा ने सवाल किया.

‘‘हमारी जाति का न होने के कारण अमन ओबीसी कैटेगरी का है पर पढ़ने में अच्छा था, इसलिए आज बहुत ऊंची नौकरी पर है. मेरे मातापिता अमन के साथ मेरी शादी करने के

लिए बिलकुल तैयार नहीं हुए थे. फिर अमन ने

6 महीने पहले अपनी बिरादरी में अरेंज्ड मैरिज कर ली, पर वह उसे कतई रास नहीं आई है. वह व्हाट्सऐप पर मेरे संदेश और दोनों के फोटो अभी भी संभाले रख रहा है और बारबार उन्हें देख कर आंहें भरता है. इसीलिए पतिपत्नी के बीच बनी नहीं, दोनों आज की तारीख में अलगअलग रह रहे हैं.’’

‘‘अमन के साथ तुम्हारी मुलाकात अब भी होती है?’’

‘‘हां, होती है,’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद अंजलि ने अमन से मिलने की बात स्वीकार कर ली, ‘‘तभी तो मु झे ये सब पता चला है कि अगर मैं उस से नहीं मिली तो वह आत्महत्या

कर लेगा.’’

शिखा ने संजीदा लहजे में पूछा, ‘‘तुम अमन के बारे में मु झ से क्या बात करना चाहती हो?’’

‘‘मु झे उस से अभी भी मिलने जाना पड़ता है, भाभी. मैं ऐसा न करूं तो वह दुखी और निराश हो कर मरने की बात कहता है,’’  अंजलि एकदम भावुक हो उठी.

‘‘मेरी सम झ से तुम्हारा अमन से अब भी मिलते रहना गलत है, अंजलि. यह बात जब कभी रोहित को पता लगेगी, तो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘भाभी, मैं इस बात को अच्छी तरह से सम झती हूं, पर मैं उस से मिलने जाने को मजबूर हूं. उसे निराशा और उदासी के कुहरे से निकालना मैं अपनी जिम्मेदारी मानती हूं भाभी.’’

‘‘देखो, कुछ हफ्तों के बाद तुम्हारी शादी रोहित से होने जा रही है और यों भावुक हो कर अपनी भावी खुशियों को दांव पर लगाना तुम्हारे हित में नहीं होगा अंजलि.’’

‘‘इसी सिलसिले में मु झे आप की हैल्प चाहिए,’’ अंजलि की आंखों में बेचैनी के भाव साफ दिखाई दे रहे थे.

‘‘मु झ से कैसी हैल्प चाहिए?’’

‘‘मैं चाहती हूं कि शादी के बाद भी रोहित को मेरे अमन से मिलने जाने की बात न मालूम पड़े और यह काम आप की सहायता के बिना नहीं हो सकेगा भाभी.’’

‘‘मु झे तुम्हारी क्या सहायता करनी

होगी?’’ शिखा जबरदस्त उल झन का शिकार

बन गई.

‘‘भाभी, मैं आप के साथ घूमने का बहाना बना कर उस से मिलने जाया करूंगी.’’

‘‘तुम बेकार की बात कर के मेरा दिमाग खराब…’’

‘‘भाभी, आप पहले मेरी पूरी बात सुन लो, प्लीज,’’ अंजलि ने उसे टोक दिया, ‘‘आप अगर मेरे साथ होंगी, तो रोहित को किसी तरह का शक कभी नहीं होगा. आप को इस नाजुक मामले में मेरी सहायता करनी ही पड़ेगी भाभी. अगर अमन ने आत्महत्या…’’

‘‘सौरी, अंजलि, पर तुम कैसी भी दलील दे कर मु झे इस तरह के गलत काम में अपना साथ देने के लिए कभी राजी नहीं कर सकोगी.’’

अंजलि ने उसे मनाने की कोशिश नहीं छोड़ी और कहा, ‘‘अमन मेरे मामा के घर के

पास रहता है. कभी रोहित या संजीव भैया द्वारा पूछताछ करने की नौबत आई, तो कह दिया

करेंगे कि हम मामामामी से मिलने जा रहे थे कि अमन की मां ने हमें आवाज दे कर अपने घर बुला लिया. आप के मेरे साथ होने के कारण रोहित या संजीव भैया को कभी मु झ पर शक

नहीं होगा.’’

‘‘तुम संजीव के गुस्से को नहीं जानती हो अंजलि. मु झ से इस मामले में कैसी भी सहायता की उम्मीद मत रखो,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तब आप एक काम करो. मेरी तरफ से उन्हें आश्वासन जरूर देना कि अमन

के दिमागी हालत से ठीक होते ही मैं उस से मिलना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘वे इस काम में सहयोग करने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘आप उन्हें सम झाने की कोशिश तो करो. फिर कल मैं उन से खुद मिल लूंगी,’’ अंजलि थके से अंदाज में जाने के लिए खड़ी हो गई, ‘‘आप भैया से यह जरूर कह देना कि वे अमन के बारे में रोहित से कुछ न कहें.’’

‘‘तुम सम झदारी दिखाते हुए अमन से मिलना एकदम बंद कर दो अंजलि. रोहित…’’

शिखा को टोकते हुए अंजलि भावुक लहजे में बोली, ‘‘ऐसी बेरुखी दिखा कर मैं उसे मौत के मुंह में नहीं धकेल सकती हूं. मेरी कायरता की सजा वह नहीं भुगतेगा भाभी,’’ अपना फैसला सुना कर अंजलि मुड़ी और मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ी.

उस रात संजीव देर से घर लौटा. वह प्रौपर्टी का साइड बिजनैस करता था और रोहित के साथ जयपुर के पास बन रहे नए फ्लैटों को देखने सुबह जल्दी निकल गया था.

रात को खाना खाने के बाद छत पर घूमते

हुए शिखा ने अंजलि के साथ हुई सारी

बात संजीव को बता दी. अंजलि अभी भी अपने पुराने प्रेमी अमन के साथ संपर्क बनाए रखना चाहती है, यह बात सुन कर उसे बहुत गुस्सा आया.

‘‘इस शादी को मु झे रोकना ही पड़ेगा,’’ संजीव गुस्से से भर कर बोला, ‘‘मु झे तो लगता है कि अभी भी इन दोनों के बीच गलत तरह का रिश्ता बना हुआ है. एक बार को हम मान लें कि इस समय अंजलि के मन में कोई खोट नहीं है, पर रोहित के साथ शादी हो जाने के बाद अगर उस के पांव फिसल गए, तो रोहित का क्या होगा? इस मामले में बेकार का रिस्क लिया ही क्यों जाए?’’

‘‘रोहित भैया को इस रिश्ते के टूटने से बहुत दुख होगा,’’ शिखा एकदम से उदास हो गई.

‘‘हां, वह अंजलि को बहुत प्यार करने

लगा है, पर बाद के  झं झटों से बचने के लिए

उस का अंजलि से शादी न करना ही ठीक रहेगा.’’

‘‘आप कल अंजलि को सम झाने की कोशिश नहीं करोगे?’’

‘‘नहीं, उसे सम झाने की कोई तुक मु झे

नजर नहीं आ रही है. मैं तो जोर दे

कर कहूंगा कि वह रोहित की जिंदगी से चुपचाप निकल जाए,’’ कठोर लहजे में अपनी राय बता कर संजीव नीचे जाने के लिए सीढि़यों की तरफ

चल पड़ा.

संजीव ने अगले दिन सुबह 10 बजे अंजलि से एक रेस्तरां में मुलाकात करी. कोने की मेज पर बैठ कर दोनों ने गंभीर लहजे में अमन को ले कर बातें करना शुरू किया.

‘‘तुम्हारी अमन से रिश्ता बनाए रखने की जिद तुम दोनों के

बीच देरसवेर गहरी अनबन का कारण बन जाएगी. मैं उसे तुम्हारे साथ शादी करने की सलाह नहीं दूंगा,’’ रोहित ने शुष्क लहजे में अपना मत उसे बता दिया.

‘‘पर हमारी शादी

हो कर रहेगी क्योंकि हम एकदूसरे को बहुत चाहते हैं,’’ अपनी इच्छा बताते हुए अंजलि की आवाज में दृढ़ता की कोईर् कमी नजर नहीं आ रही थी, ‘‘मैं ने शिखा भाभी को इस समस्या का हल बताया है.’’

‘‘रोहित को धोखे में रख कर तुम अमन से मिलती रहो, ऐसा करने में वह तुम्हारा साथ बिलकुल

नहीं देगी.’’

‘‘फिर मैं किसी और तरह से इस समस्या का हल ढूंढ़ूगी. प्लीज, आप इस

मामले में रोहित से कुछ मत कहना.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मैं अपने दोस्त को ये सब बातें जरूर बताऊंगा.’’

‘‘आप ने अगर रोहित को कुछ भी बताया तो ठीक नहीं होगा,’’ अंजलि ने उसे सख्त स्वर में चेतावनी दे डाली.

‘‘क्या तुम मु झे धमकी दे रही हो?’’ संजीव को भी फौरन गुस्सा आ गया.

‘‘आप ऐसा ही सम झ लो.’’

‘‘तब तो मैं उसे सबकुछ बताने अभी जाऊंगा.’’

‘‘तब मैं भी इसी वक्त शिखा भाभी से मिलने जा रही हूं.’’

‘‘ उस से मिलने क्यों जा रही हो?’’ संजीव ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘मैं उन्हें मानसी के बारे में सबकुछ बता दूंगी.’’

‘‘यह मानसी कौन है?’’ संजीव की आंखों से उभरे चिंता के भाव साफ बता रहे थे कि अंजलि की बात सुन कर उसे मन ही मन तेज  झटका लगा है.

‘‘मानसी वही है जिस के साथ आप ने शिखा भाभी से शादी करने के बाद भी इश्क का चक्कर चला रखा है.’’

‘‘बेकार की बकवास मत करो. मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

‘‘मैं आप की जानकारी के लिए बता दूं

कि मैं एक ऐसे इंसान को जानती हूं जो आप

की गलत हरकतों के बारे में सारी जानकारी

रखता है.’’

‘‘तब क्या उस ने तुम्हें यह नहीं बताया

कि मानसी और मैं सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और

 

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