पेचीदा हल – भाग 1 : नई जिंदगी जीना चाहता था संजीव

शिखाके पति संजीव का रोहित सब से अच्छा दोस्त था. उस  का महीना भर पहले अंजलि से रिश्ता तय हुआ था. उस शनिवार की शाम को अंजलि बिना फोन किए शिखा से मिलने उस के घर आईर् थी.

खुल कर हंसनेबोलने वाली अंजलि को खोयाखोया सा देख शिखा ने कुछ देर के औपचारिक वार्त्तालाप के बाद उस से पूछ लिया, ‘‘तुम आज परेशान क्यों लग रही हो?’’

अंजलि एकदम संजीदा हो कर बोली, ‘‘शिखा भाभी, मैं अमन के बारे में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘यह अमन कौन है?’’

‘‘हम दोनों कभी एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे,’’ अंजलि ने  िझ झकते लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘फिर तुम दोनों ने शादी क्यों नहीं करी?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए

शिखा ने सवाल किया.

‘‘हमारी जाति का न होने के कारण अमन ओबीसी कैटेगरी का है पर पढ़ने में अच्छा था, इसलिए आज बहुत ऊंची नौकरी पर है. मेरे मातापिता अमन के साथ मेरी शादी करने के

लिए बिलकुल तैयार नहीं हुए थे. फिर अमन ने

6 महीने पहले अपनी बिरादरी में अरेंज्ड मैरिज कर ली, पर वह उसे कतई रास नहीं आई है. वह व्हाट्सऐप पर मेरे संदेश और दोनों के फोटो अभी भी संभाले रख रहा है और बारबार उन्हें देख कर आंहें भरता है. इसीलिए पतिपत्नी के बीच बनी नहीं, दोनों आज की तारीख में अलगअलग रह रहे हैं.’’

‘‘अमन के साथ तुम्हारी मुलाकात अब भी होती है?’’

‘‘हां, होती है,’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद अंजलि ने अमन से मिलने की बात स्वीकार कर ली, ‘‘तभी तो मु झे ये सब पता चला है कि अगर मैं उस से नहीं मिली तो वह आत्महत्या

कर लेगा.’’

शिखा ने संजीदा लहजे में पूछा, ‘‘तुम अमन के बारे में मु झ से क्या बात करना चाहती हो?’’

‘‘मु झे उस से अभी भी मिलने जाना पड़ता है, भाभी. मैं ऐसा न करूं तो वह दुखी और निराश हो कर मरने की बात कहता है,’’  अंजलि एकदम भावुक हो उठी.

‘‘मेरी सम झ से तुम्हारा अमन से अब भी मिलते रहना गलत है, अंजलि. यह बात जब कभी रोहित को पता लगेगी, तो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘भाभी, मैं इस बात को अच्छी तरह से सम झती हूं, पर मैं उस से मिलने जाने को मजबूर हूं. उसे निराशा और उदासी के कुहरे से निकालना मैं अपनी जिम्मेदारी मानती हूं भाभी.’’

‘‘देखो, कुछ हफ्तों के बाद तुम्हारी शादी रोहित से होने जा रही है और यों भावुक हो कर अपनी भावी खुशियों को दांव पर लगाना तुम्हारे हित में नहीं होगा अंजलि.’’

‘‘इसी सिलसिले में मु झे आप की हैल्प चाहिए,’’ अंजलि की आंखों में बेचैनी के भाव साफ दिखाई दे रहे थे.

‘‘मु झ से कैसी हैल्प चाहिए?’’

‘‘मैं चाहती हूं कि शादी के बाद भी रोहित को मेरे अमन से मिलने जाने की बात न मालूम पड़े और यह काम आप की सहायता के बिना नहीं हो सकेगा भाभी.’’

‘‘मु झे तुम्हारी क्या सहायता करनी

होगी?’’ शिखा जबरदस्त उल झन का शिकार

बन गई.

‘‘भाभी, मैं आप के साथ घूमने का बहाना बना कर उस से मिलने जाया करूंगी.’’

‘‘तुम बेकार की बात कर के मेरा दिमाग खराब…’’

‘‘भाभी, आप पहले मेरी पूरी बात सुन लो, प्लीज,’’ अंजलि ने उसे टोक दिया, ‘‘आप अगर मेरे साथ होंगी, तो रोहित को किसी तरह का शक कभी नहीं होगा. आप को इस नाजुक मामले में मेरी सहायता करनी ही पड़ेगी भाभी. अगर अमन ने आत्महत्या…’’

‘‘सौरी, अंजलि, पर तुम कैसी भी दलील दे कर मु झे इस तरह के गलत काम में अपना साथ देने के लिए कभी राजी नहीं कर सकोगी.’’

अंजलि ने उसे मनाने की कोशिश नहीं छोड़ी और कहा, ‘‘अमन मेरे मामा के घर के

पास रहता है. कभी रोहित या संजीव भैया द्वारा पूछताछ करने की नौबत आई, तो कह दिया

करेंगे कि हम मामामामी से मिलने जा रहे थे कि अमन की मां ने हमें आवाज दे कर अपने घर बुला लिया. आप के मेरे साथ होने के कारण रोहित या संजीव भैया को कभी मु झ पर शक

नहीं होगा.’’

‘‘तुम संजीव के गुस्से को नहीं जानती हो अंजलि. मु झ से इस मामले में कैसी भी सहायता की उम्मीद मत रखो,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तब आप एक काम करो. मेरी तरफ से उन्हें आश्वासन जरूर देना कि अमन

के दिमागी हालत से ठीक होते ही मैं उस से मिलना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘वे इस काम में सहयोग करने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘आप उन्हें सम झाने की कोशिश तो करो. फिर कल मैं उन से खुद मिल लूंगी,’’ अंजलि थके से अंदाज में जाने के लिए खड़ी हो गई, ‘‘आप भैया से यह जरूर कह देना कि वे अमन के बारे में रोहित से कुछ न कहें.’’

‘‘तुम सम झदारी दिखाते हुए अमन से मिलना एकदम बंद कर दो अंजलि. रोहित…’’

शिखा को टोकते हुए अंजलि भावुक लहजे में बोली, ‘‘ऐसी बेरुखी दिखा कर मैं उसे मौत के मुंह में नहीं धकेल सकती हूं. मेरी कायरता की सजा वह नहीं भुगतेगा भाभी,’’ अपना फैसला सुना कर अंजलि मुड़ी और मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ी.

उस रात संजीव देर से घर लौटा. वह प्रौपर्टी का साइड बिजनैस करता था और रोहित के साथ जयपुर के पास बन रहे नए फ्लैटों को देखने सुबह जल्दी निकल गया था.

रात को खाना खाने के बाद छत पर घूमते

हुए शिखा ने अंजलि के साथ हुई सारी

बात संजीव को बता दी. अंजलि अभी भी अपने पुराने प्रेमी अमन के साथ संपर्क बनाए रखना चाहती है, यह बात सुन कर उसे बहुत गुस्सा आया.

‘‘इस शादी को मु झे रोकना ही पड़ेगा,’’ संजीव गुस्से से भर कर बोला, ‘‘मु झे तो लगता है कि अभी भी इन दोनों के बीच गलत तरह का रिश्ता बना हुआ है. एक बार को हम मान लें कि इस समय अंजलि के मन में कोई खोट नहीं है, पर रोहित के साथ शादी हो जाने के बाद अगर उस के पांव फिसल गए, तो रोहित का क्या होगा? इस मामले में बेकार का रिस्क लिया ही क्यों जाए?’’

‘‘रोहित भैया को इस रिश्ते के टूटने से बहुत दुख होगा,’’ शिखा एकदम से उदास हो गई.

‘‘हां, वह अंजलि को बहुत प्यार करने

लगा है, पर बाद के  झं झटों से बचने के लिए

उस का अंजलि से शादी न करना ही ठीक रहेगा.’’

‘‘आप कल अंजलि को सम झाने की कोशिश नहीं करोगे?’’

‘‘नहीं, उसे सम झाने की कोई तुक मु झे

नजर नहीं आ रही है. मैं तो जोर दे

कर कहूंगा कि वह रोहित की जिंदगी से चुपचाप निकल जाए,’’ कठोर लहजे में अपनी राय बता कर संजीव नीचे जाने के लिए सीढि़यों की तरफ

चल पड़ा.

संजीव ने अगले दिन सुबह 10 बजे अंजलि से एक रेस्तरां में मुलाकात करी. कोने की मेज पर बैठ कर दोनों ने गंभीर लहजे में अमन को ले कर बातें करना शुरू किया.

‘‘तुम्हारी अमन से रिश्ता बनाए रखने की जिद तुम दोनों के

बीच देरसवेर गहरी अनबन का कारण बन जाएगी. मैं उसे तुम्हारे साथ शादी करने की सलाह नहीं दूंगा,’’ रोहित ने शुष्क लहजे में अपना मत उसे बता दिया.

‘‘पर हमारी शादी

हो कर रहेगी क्योंकि हम एकदूसरे को बहुत चाहते हैं,’’ अपनी इच्छा बताते हुए अंजलि की आवाज में दृढ़ता की कोईर् कमी नजर नहीं आ रही थी, ‘‘मैं ने शिखा भाभी को इस समस्या का हल बताया है.’’

‘‘रोहित को धोखे में रख कर तुम अमन से मिलती रहो, ऐसा करने में वह तुम्हारा साथ बिलकुल

नहीं देगी.’’

‘‘फिर मैं किसी और तरह से इस समस्या का हल ढूंढ़ूगी. प्लीज, आप इस

मामले में रोहित से कुछ मत कहना.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मैं अपने दोस्त को ये सब बातें जरूर बताऊंगा.’’

‘‘आप ने अगर रोहित को कुछ भी बताया तो ठीक नहीं होगा,’’ अंजलि ने उसे सख्त स्वर में चेतावनी दे डाली.

‘‘क्या तुम मु झे धमकी दे रही हो?’’ संजीव को भी फौरन गुस्सा आ गया.

‘‘आप ऐसा ही सम झ लो.’’

‘‘तब तो मैं उसे सबकुछ बताने अभी जाऊंगा.’’

‘‘तब मैं भी इसी वक्त शिखा भाभी से मिलने जा रही हूं.’’

‘‘ उस से मिलने क्यों जा रही हो?’’ संजीव ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘मैं उन्हें मानसी के बारे में सबकुछ बता दूंगी.’’

‘‘यह मानसी कौन है?’’ संजीव की आंखों से उभरे चिंता के भाव साफ बता रहे थे कि अंजलि की बात सुन कर उसे मन ही मन तेज  झटका लगा है.

‘‘मानसी वही है जिस के साथ आप ने शिखा भाभी से शादी करने के बाद भी इश्क का चक्कर चला रखा है.’’

‘‘बेकार की बकवास मत करो. मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

‘‘मैं आप की जानकारी के लिए बता दूं

कि मैं एक ऐसे इंसान को जानती हूं जो आप

की गलत हरकतों के बारे में सारी जानकारी

रखता है.’’

‘‘तब क्या उस ने तुम्हें यह नहीं बताया

कि मानसी और मैं सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और

 

मां आनंदेश्वरी: भाग 3- पोस्टर देख के नलिनी हैरान क्यों हो गई

वह गुस्से के कारण तमतमा उठी थी.‘‘एक ओर उस का अपना सपना पूरा होने वाला था, वह स्वतंत्ररूप से कथावाचक बन कर मंच पर बैठ कर कथा सुनाने वाली थी, दूसरी ओर जिन बच्चों के स्वर्णिम भविष्य के जो सपने वह देख रही थी वे सब टूटते दिखाई पड़ रहे थे.

लेकिन अपने मन का दर्द कहे भी तो किस से, इस दुनिया में कोई भी तो ऐसा नहीं था जो उस के मन की पीड़ा बांट सके. वह बिलख उठी थी. उसे अपने चारों तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ रहा था. वह समझ तो गई कि माताजी ने उस के साथ बदला लेने के लिए रूपा को कहीं गायब किया है.

वह यह भी जान रही थी कि स्वामीजी को भी सबकुछ अवश्य मालूम है. उन्होंने उस के पर काटने के लिए बेटी को अपना हथियार बनाया है. ‘‘स्वामीजी के पैरों पर गिर कर वह घंटों तक सिसकती रही थी, ‘स्वामीजी. मैं आजीवन आप की गुलाम बनी रहूंगी, बस, आप मेरी बेटी रूपा को बुला कर दिखा दीजिए.

बेटे बलराम को यहां से हटा कर होस्टल में पढ़ने के लिए उस का एडमिशन करवा दीजिए.’‘‘वे नाराज हो कर बोले, ‘मैं तो बराबर तुम्हारे साथ था. मुझे स्वयं नहीं मालूम. आप माताजी से पूछिए, वे सब बता देंगी.’ ‘‘जब स्वामीजी ने माताजी को पुलिस का डर दिखाया तो उन्होंने कबूला, ‘रूपा ने मलंग के साथ शादी कर ली है. वह डर के मारे नहीं आ रही है. वह उन के संपर्क में है.’ ‘‘मलंग कथा में कृष्ण का रूप धारण करता था और माताजी का करीबी था.

वह लगभग 35 साल का आकर्षक रंगरूप का आदमी था. सब से बड़ी खासीयत उस की चिकनीचुपड़ी, मीठीमीठी बातें… बस, रूपा को उस ने अपनी बातों में ही फंसा लिया होगा, आनंदी अपनी बेबसी पर सिसकती रही थी. माताजी ने उस के साथ खूब बदला लिया था.

‘‘अब वह बेटे को इन सब से दूर करना चाहती थी जहां इस जगह की उस पर परछाईं भी न पड़े. अभी वह 10 वर्ष का पूरा हुआ था और कक्षा 4 में था. वह पढ़ने के बजाय मोबाइल पर वीडियो देखता या गेम खेलता था. पहले तो स्वामीजी नाराज हो कर बोले, ‘इस की फीस कौन भरेगा?’लेकिन जब आनंदी ज्यादा रोईगिड़गिड़ाई तो वे पिघल गए.‘‘उन के अपना कोई बेटा नहीं था, इसलिए स्वामीजी बलराम को अपना बेटा कहा करते थे.

उन्होंने किसी भक्त से कह कर तुरंत उस का एक बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन करवा दिया. सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि उस के जीवन में इतना कुछ घटित हो चुका है.‘बोर्डिंग में जाते समय बलराम उस से लिपट कर रोता रहा था.

उस की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली थी, यहां तक कि स्वामीजी की भी आंखें भीग उठीं तो वे अंदर चले गए थे.‘बलराम बेटा, तुम पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े होना.’ आज उस की ममता बिलख उठी थी परंतु वह उस के भविष्य की सुनिश्चितता के लिए सबकुछ सहने को तैयार थी.’’

बूआ उस आश्रम में दर्शन करने अकसर जाया करती थीं. आनंदी के चेहरे पर छाई उदासी को देख वे पूछ बैठीं, ‘आनंदी, आज तुम्हें बहुत दिनों के बाद देख रही हूं. तुम्हारा चेहरा बुझा हुआ दिखाई पड़ रहा है?’ उस की आंखें भीग उठी थीं. उस ने आंखों से अपने कमरे की ओर आने का इशारा किया था.

वहां सभी लोग उन दोनों के आपसी संबंधों के बारे जानते थे, इसलिए कुछ नया नहीं था. जब वह कमरे में आई तो उन के कंधे पर सिर रख कर पहले खूब रोई, फिर बोली, ‘दीदी, मैं ने स्वामीजी की शरण ली कि यहां पर मुझे भगवान मिलेंगे और मैं शांति से जी सकूंगी. कम से कम अगला जन्म तो सुधर जाएगा लेकिन दीदी, यहां का जीवन देख कर तो मन वितृष्णा से व्यथित हो उठा है.

सोचा था कि भगवान की शरण में रह कर किसी तरह से बच्चों को पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर दूंगी. लेकिन यहां पर तो धर्म की आड़ में वही धन की लिप्सा, भोगलिप्सा, सामदामदंडभेद से येनकेन प्रकारेण समाज में अपने को श्रेष्ठ दिखाने की होड़ में लगी रहती है. दूसरों की जमीन, धन और स्त्री पर गिद्ध दृष्टि रहती है. ये स्वामीजी, दूसरे कथावाचक, जो समाज में भगवान के समान पूजे जाते हैं, अंदर से सब खोखले होते हैं.

इन के अंदर भी वही मानवीय अवगुण भरे हुए हैं जो सामान्य इंसान में होते हैं. ये अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए दान करो, दान करो का गान करते रहते हैं ताकि ये संपन्न हो कर अपने लिए सुखसुविधा जुटा कर बड़ेबड़े आश्रम बना कर समाज में अपना वैभव दिखा कर सर्वश्रेष्ठ स्थान पर आसीन हो सकें.  ‘समस्या निदान के नाम पर ये लोगों की भावनाओं से खेल कर, उन्हें ठग कर अपना खजाना भरते हैं. ये नशा भी करते हैं, साथ में अन्य असामाजिक कृत्यों में भी संलग्न रहते हैं.

जो भी इन के जाल में फंस जाता है, उस का निकलना मुश्किल हो जाता है क्योंकि? कभी भविष्य का डर दिखाते हैं तो कभी भविष्य की सपनीली दुनिया. ‘दीदी, आप तो लिखती हैं, मेरे जीवन की कहानी जरूर लिखना, कम से कम यहां की असलियत तो बाहर की दुनिया

जाने.‘दीदी, अब मुझे अपनी परीक्षा की तैयारी करनी है क्योंकि कल से ही मेरी फाइनल परीक्षा शुरू है,’ कहती हुई व अपने आंसू पोंछती हुई मुझे बाहर जाने का इशारा किया लेकिन उस की बेबसी देख कर मुझे बहुत दर्द हुआ.

वह अपनी कथा के रिहर्सल में जुट गई थी. आखिर, उस के लिए भी तो परीक्षा की घड़ी थी, जिस में उसे जरूर से पास हो कर खरा उतरना जरूरी था. आखिर, उस के भी तो भविष्य का सवाल था. सुनतेसुनते नलिनी कब झपकी आ गई थी, पता ही नहीं लगा था. जब सूर्य की रश्मियों ने कमरे में उजाला भर दिया तब वह हड़बड़ा कर उठ बैठी थी.  मामी विशेष कमरे में घंटी बजा रही थीं और मधुर स्वर में गा रही थीं, ‘जागो मोहन प्यारे…’वह अभी भी आनंदी के फर्श से अर्श के संघर्ष की कहानी में खोई हुई थी. तभी मामी की आवाज से तंद्रा टूटी थी, ‘‘नलिनी दी उठ गईं.’’ मासूम आनंदी से मां आनंदेश्वरी बनने की कहानी तो वास्तव में बहुत संघर्षभरी जीवन गाथा है. प्रसन्नता इस बात की है कि वह अपने प्रयास में सफल हुई.

Suhana Khan ने ब्यूटी स्टैंडर्ड पर की बात, लोगों ने दिला दी सर्जरी की याद

जोया अख्तर की फिल्म द आर्चीज़ से बॉलीवुड में डेब्यू करने से पहले ही सुहाना खान इंटरनेट सेंसेशन बन गईं. शाहरुख खान की लाडली बेटी, जिसकी बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग है, हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय मेकअप ब्रांड का चेहरा बनी है. जहां उनका परिवार, दोस्त और प्रशंसक उनकी नई उपलब्धियों को लेकर बेहद उत्साहित थे, वहीं मीडिया ने कथित तौर पर ब्रांड के पोस्टर पर खुद का रंग सही करने के लिए अभिनेत्री को ट्रोल किया. विवाद के बीच, सुहाना ने खूबसूरती को लेकर जो टिप्पणी दी है उसको लेकर वह वायरल हो गई है.

सुहाना खान का वीडियो

वीडियो की शुरुआत अर्जुन कपूर से होती है जो सुहाना खान से पूछते हैं, “मैं उत्सुक हूं, आपकी पीढ़ी का क्या है ब्यूटी पे?” जिस पर वह आत्मविश्वास से जवाब देती है,

इस वीडियो में सुहाना खान अनरियलिस्टिक ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को लेकर कह रही हैं, “हमारी जनरेशन का मानना है कि अब ब्यूटी स्टैंडर्ड्स आपकी आत्म अभिव्यक्ति और पर्सनैलिटी से निर्धारित होते हैं. मुझे लगता है कि अब हम खूबसूरती शब्द को अधिक लेयर्स और डेप्थ के साथ परिभाषित कर रहे हैं और साथ ही उन अनरियलिस्टिक ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को तोड़ रहे हैं.”

“Beauty is not about setting unrealistic standards anymore” – says Suhana, whose whole group has done the complete opposite
byu/savaged_soul inBollyBlindsNGossip

सुहाना खान हुई ट्रोल

अनरियलिस्टिक ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को लेकर सुहाना खान खूब ट्रोल हो रही है. एक यूजर ने उन्हें ट्रोल करते हुए लिखा, अपनी नाक बदली, स्किन को वाइट किया और अब ये लोगों को ज्ञान दे रही है. सही में ये शाहरुख खान की बेटी है. तो दूसरे यूजर ने लिखा “इस लड़की ने अपनी स्किन को व्हाइट किया और मुझे नहीं पता कि आप क्यों दूसरों को शेड कर रही हैं, जब आपकी फेवरेट बेटी भी वही काम कर रही है. असलियत तो यह है कि यह शाहरुख खान की बेटी है इसलिए यहां है.” एक और यूजर ने लिखा, “पैसा हो तो हर कोई प्रिंसेस बन जाता है.”

KBC 15: जब अमिताभ बच्चन को नर्स ने बोला- खाली है आपका दिमाग

टीवी का सबसे फेमस क्विज शो कौन बनेंगा करोड़पति इन दिनों काफी सुर्खियों में है. इस शो को अपना पहला करोड़पति मिल चुका है. पंजाब के रहने वाले जसकरन 1 करोड़ रुपये के विजेता बनें थे. वहीं शो के होस्ट अमिताभ बच्चन गेम शो में अपने निजी जिंदगी के किस्से सुनाते रहते है. अभी हाल ही में एक एपिसोड में बिग बी ने अपने रेगुलर हेल्थ चेकअप का मजेदार किस्सा सुनाया.

अमिताभ ने सुनाया किस्सा

सोनी टीवी का लोकप्रिय गेम शो कौन बनेंगा करोड़पति हर घर का पसंदीदा शो है. अमिताभ बच्चन ने अभी के हाल ही में एक एपिसोड में रेग्यूलर मेडिकल चेकअप का अपना एक मजेदार किस्सा शयेर किया. उन्होंने बताया कि एक बार एमआरआई मशीन में स्कैनिंग के दौरान नर्स ने उनके दिमाग का मजाक बनाया था.

 

इस सावल को लेकर अमिताभ ने सुनाया किस्सा

कौन बनेंगा करोड़पति 15 के बीते एपिसोड में वुडपैकर को लेकर पूछे गए एक सवाल के दौरान अमिताभ बच्चन ने बताया, “मैं अपनी उम्र की वजह से अक्सर रेगुलर चेकअप करवाता हूं. इसलिए मुझसे कभी- कभी एक राउंड हाफ सिलेंडरिकल मशीन यानी एमआरआई मशीन में लेटने के लिए कहा जाता है. यह मशीन आपके ब्रेन की जांच करती है. एक बार मैंने एक नर्स से ये चेक करने के लिए कहा था कि स्कैन में देखना कहीं मेरा दिमाग खाली तो नहीं है. बाद में वह महिला नर्स मेरे पास आई और बोली कि आपके दिमाग में तो कुछ भी नहीं है.” अमिताभ बच्चन की यह बात सुनकर हर कोई दहाड़े मारकर हंसने लगा था और खुद बिग बी भी हंसी से लोटपोट हो गए थे.

‘द ग्रेट इंडियन फैमिली’ की स्टारकस्ट  केबीसी में पहुंची

कौन बनेंगा करोड़पति 15 के  एपिसोड में ‘द ग्रेट इंडियन फैमिली’ की स्टारकस्ट शो में आई. इस दौरान विक्की कौशल और मानुषी छिल्लर होट सीट पर बैठकर सवाल-जवाब देंगे. जहां विक्की कैटरीना संग शादी को लेकर काफी खुलासे करेंगे. वहीं अमिताभ बच्चन भी कई किस्से सुनाएंगे.

प्रेरणादायक कहानियां जो आपको सफल बना सकती है | Real Top 10 motivational Stories of Success

Top 10 Motivational Stories: गृहशोभा डिजिटल लेकर आया प्रेरणादायक कहानियां, अगर आपको भी पसंद है ऐसी कहानियां जो आपको सफल बनाएं. पढ़िए Motivational Stories जो एक से बढ़कर एक कहानियां है.

  1. सम्मान: क्यों आसानी से नही मिलता सम्मान

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सम्मान पाने की चाह किसे नहीं होती. हमें भी थी. सो, जीतोड़ कोशिश की और कोशिश रंग लाई, लेकिन यह सम्मान इस तरह से मिलेगा, ऐसी उम्मीद न थी.

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2. डर: क्या हुआ था निशा के साथ

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निशा फफक कर रो पड़ी. निशा के आँसू लगातार, उसके गालों को झुलसाते हुए बहे जा रहे हैं .उसके दिमाग में उथल पुथल मच उठी .

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3. सीख: आखिर वंदना ने कौन-सी योजना बनाई

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शादी के बाद भी वंदना ने जब यह जान लिया कि उस के ससुराल वाले लालची हैं और उस पर दहेज के लिए दबाव डाल रहे हैं, तो मन ही मन उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए एक योजना बनाने लगी…

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4. आफ्टर औल बराबरी का जमाना है

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बातबात पर नारी शक्ति की बात करने वाली शुमोना के साथ एक रात रास्ते में कुछ ऐसा घटित हो गया, जिस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी. आखिर क्या हुआ था उस रात…

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5. नाक की नाक

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नाक महिमा पर किस्मकिस्म की बातें कही गई हैं. नाक ऊंची तो आप ऊंचे. अगर कट गई तो न घर के न घाट के

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6. हिंदुस्तान जिंदा है: दंगाइयों की कैसी थी मानसिकता

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यह एक इत्तफाक ही था कि मौलवी रशीद की पत्नी जिस दिन मरी थी उसी दिन मीना का पति भी मरा था. मौलवी रशीद की पत्नी को दंगाइयों ने पहले नंगा किया फिर अपना मुंह काला किया और अंत में उसे गोली मार दी.

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7. एक सच यह भी: किस वजह से सुमि डिप्रैशन में चली गई?

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सोशल मीडिया की बुरी लत की शिकार सुमि डिप्रैशन में रहने लगी और खुद की जिंदगी ही भूल चुकी थी. उस को वापस राह पर लाने के लिए उस की एक दोस्त आगे आई तो एक हकीकत जान कर वह हैरान रह गई…

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8. गर्विता: क्या अपने सपनों को पंख दें पाएगी वो?

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घर की चारदीवारी से निकल कर खुद के सपनों को पंख देना चाहती थी. उस ने मन ही मन यह ठान लिया था कि धीरज के पुरुष अहं का जवाब वह एक कामयाब इंसान बन कर देगी.

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9. अपराजेय: क्यों अपने पति को गिरफ्तार न कर सकी अदिती?

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अदिति ईमानदार औफिसर थी किंतु अपने पति को ही गलत कामों में पाया तो उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कर सकी?

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10. लैफ्टिनैंट सोना कुमारी: क्या हुआ था सोना के साथ

सेना में अफसर बन कर सोना ने अपने पिता की इच्छा तो पूरी कर दी, मगर तभी एक घटना घट गई और फिर…

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बीच राह में: भाग 3- अनिता ने अपना घर क्यों नहीं बसाया

अनिता को जबयह खबर मिली तो वह फौरन अस्पताल पहुंचगई थी.डाक्टर आनंद उस के प्रेरणास्रोत, मागर्दशक, प्रेमी और हमसफर थे. उन्हें असहाय हालत में आईसीयू में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते देख वह रो पड़ी थी, ‘‘डाक्टर साहब तुम्हें बहुत काबिल मानते हैं, अनिता. उन्हें स्वस्थ कर के मुझे सौंपने की जिम्मेदारी तुम्हारी है,’’ आईसीयू के बाहर सीमा भी उस के गले लग कर बहुतरोई थी.सीमा की खास प्रार्थना पर उसे डाक्टर आनंद की देखभाल पर लगाया गया था.

जब तक वे खतरे में रहे, तब तक किसी ने अनिता की आंखों में आंसू की 1 बूंद नहीं देखी थी. जिस दिन केस इंचार्ज डाक्टर राजीव ने उन्हें खतरे से बाहर बताया, उस रात वह अपने फ्लैट के एकांत में फूटफूट कर रोई थी.‘‘डाक्टर आनंद को दिल का दौरा पड़ा था.

उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ेगा. वे अब 60 के तो हो चले हैं. मुझे नहीं लगता कि वे अब ड्यूटी पर कभी लौट सकेंगे,’’ डाक्टर राजीव की ये बातें हथौड़े सी उस के दिमाग में सारी रात पड़ती रही थीं.

जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझ सा गया.

सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी. पूरे 20 साल में इकट्ठी हुईयादों को एक रात में जी लेना संभव नहीं.

वक्त अपनीरफ्तार से चलता रहा और सुबहहो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गलारुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा.

मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मुझे बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं.

मझे अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’ 10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझ रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझ में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहनेका कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझ जरूर प्रतीत होरहा था.

प्रैगनैंसी: भाग 3- अरुण को बड़ा सबक कब मिला

दूसरे दिन अरुण पहुंच गया. सभी नौकरों ने सूचना दी कि रूपा का ऐक्सीडैंट हुआ है जब वह 3-4 दोस्तों के साथ थी. उसे चोट तो नहीं लगी पर एक दोस्त बुरी तरह घायल है जिस की वजह से वह शौक में है.

शिखा खामोश थी. वह अरुण को सीधे अपने कमरे में ले गई. अरुण बहुत घबराया

हुआ था. शिखा ने उसे अपने कमरे में ला कर धीरे से कहा, ‘‘आप घबराइए नहीं, कोई

ऐक्सीडैंट नहीं हुआ है. रूपा का मन ठीक है, किसी लड़के ने उसे प्यार में धोखा दे कर छोड़ दिया है,’’ कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए.

अरुण सारी स्थिति समझ गया. पर करता क्या. धीरे से शिखा से बोला, ‘‘अगर कहो तो उस लड़के से बात करूं?’’

शिखा ने समझते हुए कहा, ‘‘क्या बात करोगे. वह लड़का साफ झूठ बोल जाएगा. पहले तो किसी लेडी डाक्टर को दिखा कर यह पता लगाओ कि कहीं रूपा को गर्भ तो नहीं ठहर गया है.’’

यह सुन कर अरुण भी परेशान हो उठा. पर पुरुष होने के नाते उस ने शिखा से कहा,

‘‘तुम घबराओ नहीं, मैं कल ही इंतजाम कर दूंगा. किसी को पता भी नहीं लगेगा.’’

यह सुन कर शिखा की घबराहट थोड़ी कम हो गईर्. फिर अरुण रूपा के कमरे में आया. उस का रूपा से मिलने का उत्साह थोड़ा ठंडा हो गया था. पर उस ने यह जाहिर नहीं किया. बोला, ‘‘रूपा बेटी, कैसी हो?’’

रूपा ने अपना चेहरा झुका लिया. उस की आंखों में लाचारी के आंसू तैरने लगे. वह कुछ बोल नहीं पा रही थी.

अरुण ने ही उस के बाल सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम बिलकुल न घबराओ. अब तो मैं आ ही गया हूं.

वैसे भी घबराने से काम नहीं चलेगा. हिम्मत से काम लो. तुम अब बड़ी भी हो गई हो,’’ कह कर वह शिखा के साथ अपने कमरे में चला गया. शिखा ने बताया कि होम टैस्ट से पता चला है कि वह प्रैगनैंट है.

अरुण शिखा से बोला, ‘‘कल ही जा कर इसे डाक्टर मीना को दिखा देता हूं. वह सबकुछ संभाल लेगी,’’ कहते हुए उस ने अपने कपड़े बदले. खाना पहले से ही तैयार था, सभी ने रूपा के कमरे में ही खाना खाया ताकि नौकरों को पता न लगे कि रूपा के साथ क्या हुआ है.

दूसरे दिन सुबह 9 बजते ही अरुण शिखा और रूपा के साथ गाड़ी में बैठ कर डाक्टर मीना के नर्सिंगहोम में पहुंचा. अरुण ने पहले ही फोन कर दिया था, इसलिए डाक्टर मीना उन का इंतजार कर रही थी.

शिखा ने बहुत धीरे से उन से कहा, ‘‘आप रूपा को जरा देख लीजिए.’’

डाक्टर मीना अनुभवी डाक्टर थी. स्थिति समझते देर नहीं लगी. कहा, ‘‘आप घबराइए नहीं, मैं ऐसे कितने ही मामले ठीक कर चुकी हूं. अगर कुछ होगा भी तो मैं सब संभाल लूंगी,’’ कहते हुए डाक्टर ने अरुण की तरफ देखा.

अरुण कुछ खोया हुआ था, बोला, ‘‘डाक्टर अब आप जानें.’’

डाक्टर मीना रूपा को कमरे में ले गई. शिखा भी उन के साथ चली गई. डाक्टर ने रूपा को पूरी तरह देखा. शिखा को जिस बात का डर था,  रूपा के पेट में 2 महीने का बच्चा पल रहा था.

रूपा चुपचाप आंखें बंद किए रो रही थी. शिखा ने डाक्टर की तरफ देखा और बोली, ‘‘कोई इंजैक्शन दे कर इस को समाप्त कर दीजिए.’’

डाक्टर मीना बोली, ‘‘नहीं, शिखाजी, अब तो अबौर्शन ही करना होगा. अगर आप चाहें तो मैं आज ही यह कर सकती हूं. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. ऐसे मामले मैं कितने ही कर चुकी हूं. फिर आप तो अपने हैं.’’

यह सुनते ही शिखा बोली, ‘‘मुझ से ज्यादा तो डाक्टर आप सम?ाती हैं. आप जैसा चाहें करें, मैं उन को जा कर बताती हूं.’’

डाक्टर मीना के साथ शिखा बाहर वाले कमरे में आ गई जहां अरुण बैठा हुआ कमरे की हर चीज बड़े ध्यान से देख रहा था. डाक्टर मीना ने आ कर अपनी मेज से एक रजिस्टर निकाला. उस पर कुछ लिखा और फिर अरुण से बोली, ‘‘इस में आप अपने दस्तखत कर दीजिए.’’

इस बीच शिखा ने अरुण को सबकुछ बता दिया था. दस्तखत करते हुए अरुण के हाथ कांपने लगे. उस ने शिखा की तरफ देखा, जिसे वह हमेशा दकियानूसी विचारों की समझता था. उस के आधुनिक विचार कहां गए. शिखा भी अपने पति की तरफ देख रही थी. एक क्षण को उसे लगा कि आज वह अपने पति से जीत गई. कितनी बार वह अपने अंदर की बात अपने पति से कहना चाहती थी.

उस का मन कर रहा था कि वह खूब जोर से हंसे और अरुण से कहे, ‘‘तुम ने मेरी बात कभी नहीं मानी, आज तुम्हारी लड़की ही तुम्हें शिक्षा दे रही है.’’

अरुण से यह सब बरदाश्त नहीं हो पा रहा था. वह जिंदगी में कभी हारना नहीं चाहता था. उस ने शिखा की आंखों की चमक को जैसे पढ़ लिया था. उस ने एकदम जेब से पैन निकाला और दस्तखत कर दिए.

मां आनंदेश्वरी: भाग 2- पोस्टर देख के नलिनी हैरान क्यों हो गई

‘‘बूआ भी उन गुरु सच्चानंद की भक्त बन गई थीं, इसलिए वे भी वहां अकसर दर्शन और कथा सुनने जाया करती थीं. वहां पर उन की मुलाकात आनंदी से हो जाया करती थी.‘‘राधे ने शहर से दूर एक चाल में कमरा लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे.

वह दूध का काम करने के साथ एक हलवाई की दुकान में भी काम करने लगा था. वे लोग 3-4 महीने भी नहीं रह पाए थे कि स्वामीजी के आदमी उन लोगों का पता लगा कर आए और उन लोगों को अपने साथ ले गए. वह अपने कमरे में आ कर खुश हो गई थी लेकिन राधे को यहां आना अच्छा नहीं लगा था. उस ने सख्त ताकीद कर दी थी कि तुम स्वामीजी से दूरी बना कर रहना. ‘‘मंदिर के पीछे कई सारे कमरे बने हुए थे जो प्रबंध कमेटी ने पुजारियों के परिवारों के रहने के लिए बनाए हुए थे.

उस के सिवा भी 8-10 कमरे थे जो यात्रियों के लिए बनाए गए थे लेकिन उन सब कमरों में अब स्वामीजी के चहेते रहते थे. गुरुजी की पत्नी भी वहीं पर रहती थीं. उन के कमरे में एसी लगा था, बड़ा टीवी और सारी सुखसुविधाएं थीं.

यह आश्रम बूआ के घर के पास ही था, इसलिए बूआ वहां पर आनंदी को देख चौंकी थी. लेकिन उस ने इशारे से चुप रहने को कह दिया था. ‘राधे, तुम्हारी बहू तो कमरे में ही घुसी रहती है, बाहर आ कर दर्शन तो कर लिया करे.’जब वह सजधज कर आश्रम में पहुंची तो स्वामीजी वहीं बाहर ही बैठे हुए थे. ‘आनंदी बहू, यहां पर तुम्हें कोई परेशानी या कुछ जरूरत हो तो बता देना. राधे तो एकदम लापरवाह है और गैरजिम्मेदार लड़का है.’‘‘स्वामीजी ने स्वयं उठ कर मंदिर में चढे़ हुए ढेर सारे फल और मिठाई उस की झूली में डाले और बोले, ‘सब बच्चों को ही मत खिलाना, खुद भी खाना.

कितनी कमजोर लग रही हो. मैं राधे से कहूंगा कि मेहरी का बड़ा सुख लेकिन खर्ची का बड़ा दुख.’ उन के चेहरे पर अनोखा तेज देख उस का मन उन के प्रति श्रद्धा से भर उठा था. वह उन के चमकते चेहरे और आकर्षक व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हो गई थी.‘‘स्वामीजी लगभग 40-45 साल के लंबेचौड़े स्वस्थ गठीले बदन के थे.

उन का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था. उन को सुंदरकांड कंठस्थ था. उन्हें संस्कृत के कई सारे श्लोक और मंत्र कंठस्थ थे, जिन्हें अपने मधुर स्वर में गा कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे. उन के आश्रम में एक बड़ा सा वरांडा था जहां रोज कीर्तनभजन और प्रसाद वितरण होता था. वे समयसमय पर दूसरे कथावाचकों को आमंत्रित करते, जिस के कारण वहां भीड़ के साथसाथ चढ़ावा बढ़ता जा रहा था, जिस पर स्वामीजी अपनी काग दृष्टि लगाए रखते थे. ‘‘वहां एक कोने में उन का धार्मिक कार्य करने का एक छोटा सा कमरा था जहां के लिए यह कहा जाता था कि वे वहां पर ध्यान लगाया करते थे.

उस कमरे में उन की आज्ञा के बिना कोई नहीं जा सकता था. वे केवल जोगिया कपड़ा पहनते थे.‘‘स्वामीजी की पत्नी कादंबरीजी को सब लोग माताजी कहते थे. एक दिन माताजी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा, ‘बिटिया, अपना खाना अलग क्यों बनाती हो? यहां प्रसादी बनता ही है, वहीं पर तुम मदद कर दिया करो और सब लोग यहीं पर प्रसाद ग्रहण कर लिया करो.’ वह बहुत खुश हुई थी और उस ने माताजी के पैर पकड़ लिए थे, ‘आप तो मेरी अम्मा से भी बढ़ कर हैं.’  ‘‘सच था कि वहां रसोई में बढि़या खाना देख कर उसे बहुत लालच आया करता था. अब वह वहां पर मदद करती और फिर राजसी भोजन करती. कुछ दिनों में ही उस का शरीर गदबदा उठा और सौंदर्य निखर उठा था.

वह गौर कर रही थी कि वह स्वामीजी की विशेष कृपा का पात्र बनती जा रही थी और उन की नजरें उस का पीछा करती रहती थीं.‘‘स्वामीजी झड़फूंक भी करते थे. वे लोगों की परेशानियों का निदान करने के लिए धार्मिक कार्य के साथ अन्य उपाय भी बताया करते थे. वे बच्चों/बड़ों को एक काला डोरा के साथ भभूत, जिसे वे मंत्रसिक्त या सिद्ध कह कर, दिया करते थे.

उस के एवज में लोग प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दक्षिणा में रुपया आदि दिया करते.‘‘इस के सिवा आश्रम की व्यवस्था के नाम पर उस के नवनिर्माण के लिए लोगों की औकात व श्रद्धा देखपरख कर स्वामीजी रसीद काट दिया करते थे. वह व्यक्ति श्रद्धा के कारण मजबूरीवश पैसा दे दिया करता था.

इसी कारण से उन का आश्रम दिनोंदिन विशाल और भव्य होता जा रहा था. स्वामीजी के प्रति उस का भी श्रद्धाभाव बढ़ता जा रहा था.‘‘उन के धार्मिक कार्य करने वाले कमरे से खूब सुगंधित धुआं बाहर निकलता था. माताजी बताया करतीं कि उन्हें देवीजी की सिद्धि है. वे प्रसाद में लौंग दिया करते और कपूर, गुगुर, लोबान का धुआं या अज्ञारी करवाते.  ‘‘उस छोटे से कक्ष में महिलाएं अपनी समस्या ले कर जाया करतीं, उन से वहां पर विशेष कार्य करवाया जाता था.

उन से विशेष रूप से चढ़ावा चढ़वाने के बाद उन की समस्या के समाधान हो जाने के लिए विशेष मंत्र जाप करने के लिए भी कहा जाता. वह झंक कर जानने की कोशिश करती कि वहां कुछ गलत काम तो नहीं हो रहा. लेकिन माताजी वहां बाहर बैठ कर निगरानी करतीं, इसलिए अंदर क्या होता है, वह कभी नहीं देख पाई थी. वैसे, यह तो उसे पक्का विश्वास था कि स्वामीजी के कमरे के अंदर अकेली महिला के साथ कुछ अनैतिक कार्य अवश्य किया जाता है परंतु वह कभी नहीं देख पाई और न ही किसी से भी सुना.‘‘राधे, स्वामीजी और उन के सब संगीसाथी रात में इकट्ठा हो कर गांजे की चिलम लगाते, नशा किया करते थे. नशे का सामान राधे और गुरुजी का विश्वासपात्र अंगद चुपचाप लाया करते थे.

कई बार माताजी को भी उस ने चिलम लगाते देखा था. राधे ने उसे रात के समय जब सब चिलम से नशा करते, उस समय बाहर निकलने से बिलकुल मना कर दिया था. लेकिन धीरेधीरे राधे नशेड़ची बन कर आश्रम में रहने वाली माला के साथ खुल्लमखुल्ला इश्क लड़ाने लगा था. यहां तक कि वह रातें भी उस के कमरे में गुजारने लगा था.‘‘राधे एक दिन काम पर गया, फिर वह लौट कर ही नहीं आया. कई दिनों बाद उस की लावारिस लाश मिली थी.

क्रौसिंग से जल्दबाजी में ट्रेन के साथ बाइक के साथ घिसटता चला गया था. आनंदी तो बिलकुल बेसहारा हो गई थी. रोतेरोते वह बेहोश हो जाती. उस समय स्वामीजी ने उसे सहारा देते हुए कहा था, ‘राधे नहीं रहा तो क्या हुआ? मैं तुम्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दूंगा.’‘‘स्वामीजी के सिवा उस के पास कोई सहारा नहीं था. चारों तरफ अंधकार ही अंधकार छाया हुआ था.

वह पंखविहीन पक्षी की भांति स्वामीजी के चरणों पर अपना सिर रख सिसक पड़ी थी. स्वामीजी ने दिलासा देते हुए उसे अपना विशेष शिष्य बना लिया. लेकिन उन की वासनाभरी नजरें उस के शरीर के आरपार मानो देख रही थीं. कोई भी स्त्री किसी पुरुष की कामुक निगाहों को पलभर में परख लेती है, फिर, वह तो ऐसी निगाहों के धोखे से कई बार गुजर चुकी थी.

अब वह स्वामीजी के सहारे अपने जीवन को नई दिशा दे सकती है, ऐसा वह मन ही मन सोचा करती थी.‘‘विशेष शिष्य बनने के बाद अब वह स्वामीजी की मंडली के साथ दूसरे गांवगांव सत्संग और कथा में जाने लगी थी. उन की समृद्धि और संपन्नता देख वह स्वामीजी के प्रति आकर्षित होती जा रही थी. सार्वजनिक रूप से वह आश्रम की विशेष प्रबंधक कही जाती थी. लेकिन वह जानती थी कि स्वामीजी के जीवन में उस का क्या स्थान था.

जब वह फौर्चुनर गाड़ी में बैठती तो इस सपने के साथ बैठती कि जल्द ही वह भी ऐसी ही गाड़ी और आश्रम की मालकिन बन कर रहेगी. वह स्वामीजी का राजसी ठाटबाट देख वह स्वयं भी मन ही मन उसी तरह की रईसी से रहने की अभिलाषा पाल बैठी थी.  ‘‘आनंदी अपनी जद्दोजहेद में लगी हुई थी, इधर बेटी लक्ष्मी 12 वर्ष की हो चुकी थी और स्कूल के नाम पर वह स्वामीजी के ही एक चेले मलंग के साथ आंखें लड़ा रही थी. बेटा बलराम सब की नजर बचा कर चिलम के सुट्टे लगाया करता.

उस के सामने दोनों इस तरह से कौपीकिताब के पेज पलटते मानो पढ़ाई के सिवा कुछ जानते ही नहीं. वह बच्चों की तरफ से निश्चित थी. वे दोनों स्वामीजी से ट्यूशन और हाथ खर्च के लिए रकम लेते रहते. दोनों के पास बड़ेबड़े मोबाइल देख वह खुश होती थी कि उस के बच्चे उस की तरह गरीबी में नहीं बड़े हो रहे हैं.‘‘अब वह अपने को शातिर समझ कर अपने लिए नई राह बनाने चल पड़ी थी.

‘‘उस का प्रोमोशन हो गया था. माताजी वाला कक्ष उस के लिए आवंटित हो गया था. वह स्वामीजी की मुख्य शिष्या के रूप में जानी जाने लगी थी परंतु वह जानसमझ रही थी कि वह स्वामीजी के लिए एक खिलौने की तरह थी, जब तक चाहेंगे उस के शरीर के साथ अपनी भूख मिटाएंगे, फिर उन को जैसे ही कोई नया शिकार पसंद आया, वह किनारे कर दी जाएगी क्योंकि वह उन की तथाकथित पत्नी का हश्र देख रही थी.

उस के देखतेदेखते वे पदच्युत हो कर टूटी टांग के साथ आश्रम के एक छोटे से कोने में आंसू बहाती हुई अपने दिन काट रही थीं.इसलिए कुछ कथाप्रसंगों को आनंदी ने कंठस्थ कर लिया और उसे अकेले में अभ्यास किया करती. चूंकि वह पढ़ना जानती थी, इसलिए वह रोज कथाप्रसंगों को पढ़ती, सुनती और बोलने का अभ्यास करती थी.‘‘उस ने जब एक दिन मोबाइल पर अपनी आवाज में कथा रिकौर्ड कर के चुपचाप रिकौर्डिंग चला दी तो स्वामीजी सुन कर दंग रह गए. वे नाराज हो कर बोल पड़े, ‘तुम तो जल्दी ही मेरी रोजीरोटी ही बंद करवा दोगी.

बंद करो.’’ उन के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई पड़ रही थीं. वे आगे बोले, ‘अब तुम ऐसी हिम्मत मत करना.’‘‘स्वामीजी की संपन्नता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी. वे भागवत कथा सुनाया करते थे. उन के नाम पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. उन का अंदाज बहुत चुटीला और संगीत व नृत्य से भरपूर रहता था, जिस में कथा कम होती थी, मनोरंजन ज्यादा होता था. इसीलिए, भीड़ बेतहाशा उमड़ पड़ती थी. ‘‘उन का कथा सुनाने का रेट बढ़ता जा रहा था.

बुकिंग करवाते समय उन्हें लंबी रकम मिलती, फिर कथा में लोग श्रद्धा से भरपूर चढ़ावा चढ़ाते. स्वामीजी मालामाल होते जा रहे थे. अब उन के पास एक नहीं, दो बड़ी गाडि़यां थीं. वे रेशमी जोगिया कपड़े धारण करने लगे थे. उन के हाथ में महंगी स्मार्ट वाच और बड़ा वाला आइफोन रहने लगा था. उन्होंने विनय नाम के एक पढ़ेलिखे भक्त को मैनेजर बना कर अपौइंट कर लिया था, जो उन की बुकिंग की तारीख तय करता. उन के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लग जाती.

उन की सुरक्षा के लिए उन के साथ 2 गनर रहने लगे थे. उन के पास नेताओं का जमावड़ा रहने लगा था.‘‘आनंदी की रिकौर्डिंग सुनने के बाद उस के सुंदर रूप और मीठे स्वर से स्वामीजी घबराने लगे तो उन्होंने उस के रंगीन कपड़ों पर, साजशृंगार पर प्रतिबंध लगा कर सफेद साड़ी पहनने के लिए मजबूर कर दिया. वह बहुत रोई थी क्योंकि रंगबिरंगी साडि़यों, विशेषकर चुनरी, में उस की जान बसती थी. मजबूर हो कर उसे अपनी मांग से सिंदूर मिटा कर विधवा का वेष धारण करना पड़ा.

अति तो तब हो गई थी जब उन्होंने उस के लंबे बालों पर कैंची चलवा दी थी. उस दिन आनंदी फूटफूट कर रोई थी. लेकिन वह सबकुछ अपने बच्चों के भविष्य के लिए सह रही थी. ‘‘उस ने मन ही मन योजना बना रखी थी कि जब उस की ख्याति बढ़ जाएगी तो वह कथावाचक बन कर अपना अलग आश्रम बना लेगी परंतु स्वामीजी के गुप्तचर उस की हर क्रियाकलाप पर नजर रखते थे.

उन्होंने उसे आगाह किया था, ‘ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना वरना बरबाद हो जाओगी.’ ‘‘वह स्वामीजी के साथ बहराइच में भागवत कथा के लिए उन की मंडली के साथ गई हुई थी. वह छोटा शहर था, अपार जनसमूह उमड़ पड़ा था क्योंकि आयोजनकर्ता ने कथावाचक के पोस्टर में उस की तसवीर भी छपवा रखी थी और वे लगातार पर्चा बांट कर कथा का प्रचार भी कर रहे थे.

वह अपनी कथा में व्यस्त थी. लगातार उसे एक महीने तक बाहर रहना पड़ा था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. वह अकसर कथामंडली के साथ गांवगांव जाती रहती थी क्योंकि ग्रामीण श्रद्धापूर्वक कथा सुनते थे और जीभर कर दान भी देते थे. ‘‘अब तो गुरुजी की ख्याति बढ़ती जा रही थी, इसलिए बड़ेबड़े शहरों में भी लंबे प्रवास के लिए जाना पड़ता था. वह मना तो कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वह उन की मंडली के साथसाथ उन के आनंद के लिए वह आवश्यक सामग्री की तरह थी. उन के लिए वह एक पंथ दो काज थी. वह लगभग 2 महीने के व्यस्त कार्यक्रम के बाद कुछ दिनों के लिए ही लौट कर आई थी. ‘‘घर पर बेटी रूपा को न पा कर जब बेटे से पूछा तो वह बोला, ‘वह तो लगभग एक महीने पहले माताजी की आज्ञा से उन के किसी रिश्तेदार के साथ कुछ पढ़ाई करने गई है.’

‘‘वह समझ नहीं पा रही थी कि बेटी रूपा कहां गई. माताजी से पूछा तो वे गोलमोल जवाब दे कर बोलीं, ‘मुझ से कहा था कि वह कल लौट कर आ जाएगी तो मैं ने हां कर दी थी. वह कहां गई, उन्हें नहीं मालूम.’ इतना कह कर उन्होंने मुंह फेर लिया था.‘‘स्वामीजी से पूछा तो वे लापरवाही से बोले थे, ‘वह बड़ी हो गई है, अपना भलाबुरा जानती है.

तुम नाहक परेशान हो रही हो. अपने अगले प्रोग्राम पर ध्यान दो. इस बार तुम्हारे नाम से अलग से बुकिंग ली है, इसलिए अच्छे से अभ्यास करो और कलपरसों से यहां आश्रम में तुम्हें कथा सुनानी होगी.’ ‘‘इस अप्रत्याशित घटना ने उस के सारे सपनों को धूलधूसरित कर दिया था. वह रातभर सिसकती रही थी.

डीप फ्राइंग करते समय रखें इन 6 बातों का ध्यान

त्यौहारी सीजन प्रारम्भ हो चुका है और ऐसे में हम भारतीयों के घरों में अक्सर पूरी, कचौरी, पकौड़े, मिठाइयां आदि भरपूर मात्रा में बनाई जातीं हैं जिन्हें अक्सर डीप फ्राई करके बनाया जाता है और अक्सर डीप फ्राई करने के बाद बचे तेल को पुनः प्रयोग किया जाता है परन्तु आहार विशेषज्ञों के अनुसार लम्बे समय तक आग पर उबलते रहने के कारण इस तेल के काफी सारे पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं इसलिए इसे बार बार डीप फ्राइंग के लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. डीप फ्राइंग करते समय यदि कुछ सावधानियां बरतना अत्यंत आवश्यक है-

1-बर्तन के आकार का रखें ध्यान

डीप फ्राई करते समय बड़े, फैले और चपटे पैन आदि के स्थान पर छोटे, गहरे और संकरे मुंह के बर्तन का प्रयोग करें इससे आप कम तेल में ही आसानी से डीप फ्राइंग कर सकेंगीं.

2-तेल पर भी रखें नजर

डीप फ्राइंग करने के लिए ओलिव आयल, कोकोनट आयल अदि के स्थान पर घी, मूंगफली, केनोला और सरसों के तेल का उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि कोकोनट और ओलिव आयल का बोइलिंग पॉइंट कम होने से ये बहुत जल्दी जलने लगते हैं वहीँ घी, सरसों तथा केनोला आयल का बोइलिंग पॉइंट अधिक होता है जिससे ये उच्च तापमान पर भी जलते नहीं हैं और इनका पुनः प्रयोग भी आसानी से किया जा सकता है.

3-तापमान रखें सही

अक्सर हम तेल को या तो बहुत अधिक गर्म कर लेते हैं या फिर कम तापमान पर खाद्य पदार्थ को कड़ाही में डाल देते हैं जिससे उसमें तेल भर जाता है. तापमान को जांचने के लिए आप तेल में एक ब्रेड का टुकड़ा डालकर देखें यदि डालने के 60 सेकंड के अंदर वह भूरा हो रहा है तो समझें कि डीप फ्राइंग के लिए तापमान एकदम सही है.

4-खाद्य पदार्थ का आकार भी है जरूरी

आप जो भी फ्राई करें उसका आकार एक समान रखें..छोटा बड़ा, मोटा पतला होने पर खाद्य वस्तु असमान तरीके से फ्राई होगी या तो वह जल जाएगी अथवा कच्ची रह जाएगी. साथ ही बड़े टुकड़ों को तलने में समय भी अधिक लगेगा.

5-पानी से रखें दूरी

फ्रेंच फ्राईज, पकोड़े, पूरी तलते समय कई बार हाथ या कलछी में पानी लगा होता है और जब यह पानी गरम तेल में गिरता है तो छीटें छोड़ता है जिससे जलने की सम्भावना हो जाती है इससे बचने के लिए कलछी और हाथों को अच्छी तरह पोंछकर प्रयोग करें.

6-ओवरफिलिंग से बचें

डीप फ्राइंग करते समय न तो बर्तन में ही तेल अधिक भरें और न ही खाद्य वस्तु बहुत अधिक कड़ाही में भरे क्योंकि यदि तेल अधिक होगा तो वह खाद्य वास्तु को डालते ही बाहर आने लगेगा और यदि खाद्य पदार्थ अधिक है तो वह एकदूसरे में चिपक जायेंगी और फिर ठीक से क्रिस्प नहीं हो पायेगा.

रखें इन बातों का भी ध्यान

-डीप फ्राइंग के दौरान गैस से कुछ दूरी बनाकर खड़ीं हों ताकि किसी भी प्रकार के तेल के गर्म छींटे से आप बची रहें.

-यदि सम्भव हो तो सिंथेटिक के स्थान पर सूती कपड़े पहनें.

-डीप फ्राई करने के बाद बचे तेल को छलनी से छानकर एक डिब्बे में भर लें और फिर इससे  पुनः डीप फ्राई करने के स्थान पर सब्जी बनाने और परांठे सेंकने के लिए प्रयोग करें.

-डीप फ्रायड खाद्य वस्तुओं को सीधे प्लेट में निकालने के स्थान पर पहले टिश्यू पेपर या न्यूज पेपर पर निकालें फिर प्रयोग करें.

-मठरी, कचौरी, बालूशाही, पकौड़े जैसे स्नैक्स को तलते समय तेल का तापमान और आंच एकदम मध्यम रखें अन्यथा मठरी क्रिस्पी नहीं होगी.

-पूरी तलते समय तेल को अच्छा गर्म करें तभी तेल में पूरी डालें ठंडे तेल में पूरी अच्छी तरह फूलेगी नहीं.

तुम बिन जिया जाए कैसे

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