मां आनंदेश्वरी: भाग 2- पोस्टर देख के नलिनी हैरान क्यों हो गई

‘‘बूआ भी उन गुरु सच्चानंद की भक्त बन गई थीं, इसलिए वे भी वहां अकसर दर्शन और कथा सुनने जाया करती थीं. वहां पर उन की मुलाकात आनंदी से हो जाया करती थी.‘‘राधे ने शहर से दूर एक चाल में कमरा लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे.

वह दूध का काम करने के साथ एक हलवाई की दुकान में भी काम करने लगा था. वे लोग 3-4 महीने भी नहीं रह पाए थे कि स्वामीजी के आदमी उन लोगों का पता लगा कर आए और उन लोगों को अपने साथ ले गए. वह अपने कमरे में आ कर खुश हो गई थी लेकिन राधे को यहां आना अच्छा नहीं लगा था. उस ने सख्त ताकीद कर दी थी कि तुम स्वामीजी से दूरी बना कर रहना. ‘‘मंदिर के पीछे कई सारे कमरे बने हुए थे जो प्रबंध कमेटी ने पुजारियों के परिवारों के रहने के लिए बनाए हुए थे.

उस के सिवा भी 8-10 कमरे थे जो यात्रियों के लिए बनाए गए थे लेकिन उन सब कमरों में अब स्वामीजी के चहेते रहते थे. गुरुजी की पत्नी भी वहीं पर रहती थीं. उन के कमरे में एसी लगा था, बड़ा टीवी और सारी सुखसुविधाएं थीं.

यह आश्रम बूआ के घर के पास ही था, इसलिए बूआ वहां पर आनंदी को देख चौंकी थी. लेकिन उस ने इशारे से चुप रहने को कह दिया था. ‘राधे, तुम्हारी बहू तो कमरे में ही घुसी रहती है, बाहर आ कर दर्शन तो कर लिया करे.’जब वह सजधज कर आश्रम में पहुंची तो स्वामीजी वहीं बाहर ही बैठे हुए थे. ‘आनंदी बहू, यहां पर तुम्हें कोई परेशानी या कुछ जरूरत हो तो बता देना. राधे तो एकदम लापरवाह है और गैरजिम्मेदार लड़का है.’‘‘स्वामीजी ने स्वयं उठ कर मंदिर में चढे़ हुए ढेर सारे फल और मिठाई उस की झूली में डाले और बोले, ‘सब बच्चों को ही मत खिलाना, खुद भी खाना.

कितनी कमजोर लग रही हो. मैं राधे से कहूंगा कि मेहरी का बड़ा सुख लेकिन खर्ची का बड़ा दुख.’ उन के चेहरे पर अनोखा तेज देख उस का मन उन के प्रति श्रद्धा से भर उठा था. वह उन के चमकते चेहरे और आकर्षक व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हो गई थी.‘‘स्वामीजी लगभग 40-45 साल के लंबेचौड़े स्वस्थ गठीले बदन के थे.

उन का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था. उन को सुंदरकांड कंठस्थ था. उन्हें संस्कृत के कई सारे श्लोक और मंत्र कंठस्थ थे, जिन्हें अपने मधुर स्वर में गा कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे. उन के आश्रम में एक बड़ा सा वरांडा था जहां रोज कीर्तनभजन और प्रसाद वितरण होता था. वे समयसमय पर दूसरे कथावाचकों को आमंत्रित करते, जिस के कारण वहां भीड़ के साथसाथ चढ़ावा बढ़ता जा रहा था, जिस पर स्वामीजी अपनी काग दृष्टि लगाए रखते थे. ‘‘वहां एक कोने में उन का धार्मिक कार्य करने का एक छोटा सा कमरा था जहां के लिए यह कहा जाता था कि वे वहां पर ध्यान लगाया करते थे.

उस कमरे में उन की आज्ञा के बिना कोई नहीं जा सकता था. वे केवल जोगिया कपड़ा पहनते थे.‘‘स्वामीजी की पत्नी कादंबरीजी को सब लोग माताजी कहते थे. एक दिन माताजी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा, ‘बिटिया, अपना खाना अलग क्यों बनाती हो? यहां प्रसादी बनता ही है, वहीं पर तुम मदद कर दिया करो और सब लोग यहीं पर प्रसाद ग्रहण कर लिया करो.’ वह बहुत खुश हुई थी और उस ने माताजी के पैर पकड़ लिए थे, ‘आप तो मेरी अम्मा से भी बढ़ कर हैं.’  ‘‘सच था कि वहां रसोई में बढि़या खाना देख कर उसे बहुत लालच आया करता था. अब वह वहां पर मदद करती और फिर राजसी भोजन करती. कुछ दिनों में ही उस का शरीर गदबदा उठा और सौंदर्य निखर उठा था.

वह गौर कर रही थी कि वह स्वामीजी की विशेष कृपा का पात्र बनती जा रही थी और उन की नजरें उस का पीछा करती रहती थीं.‘‘स्वामीजी झड़फूंक भी करते थे. वे लोगों की परेशानियों का निदान करने के लिए धार्मिक कार्य के साथ अन्य उपाय भी बताया करते थे. वे बच्चों/बड़ों को एक काला डोरा के साथ भभूत, जिसे वे मंत्रसिक्त या सिद्ध कह कर, दिया करते थे.

उस के एवज में लोग प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दक्षिणा में रुपया आदि दिया करते.‘‘इस के सिवा आश्रम की व्यवस्था के नाम पर उस के नवनिर्माण के लिए लोगों की औकात व श्रद्धा देखपरख कर स्वामीजी रसीद काट दिया करते थे. वह व्यक्ति श्रद्धा के कारण मजबूरीवश पैसा दे दिया करता था.

इसी कारण से उन का आश्रम दिनोंदिन विशाल और भव्य होता जा रहा था. स्वामीजी के प्रति उस का भी श्रद्धाभाव बढ़ता जा रहा था.‘‘उन के धार्मिक कार्य करने वाले कमरे से खूब सुगंधित धुआं बाहर निकलता था. माताजी बताया करतीं कि उन्हें देवीजी की सिद्धि है. वे प्रसाद में लौंग दिया करते और कपूर, गुगुर, लोबान का धुआं या अज्ञारी करवाते.  ‘‘उस छोटे से कक्ष में महिलाएं अपनी समस्या ले कर जाया करतीं, उन से वहां पर विशेष कार्य करवाया जाता था.

उन से विशेष रूप से चढ़ावा चढ़वाने के बाद उन की समस्या के समाधान हो जाने के लिए विशेष मंत्र जाप करने के लिए भी कहा जाता. वह झंक कर जानने की कोशिश करती कि वहां कुछ गलत काम तो नहीं हो रहा. लेकिन माताजी वहां बाहर बैठ कर निगरानी करतीं, इसलिए अंदर क्या होता है, वह कभी नहीं देख पाई थी. वैसे, यह तो उसे पक्का विश्वास था कि स्वामीजी के कमरे के अंदर अकेली महिला के साथ कुछ अनैतिक कार्य अवश्य किया जाता है परंतु वह कभी नहीं देख पाई और न ही किसी से भी सुना.‘‘राधे, स्वामीजी और उन के सब संगीसाथी रात में इकट्ठा हो कर गांजे की चिलम लगाते, नशा किया करते थे. नशे का सामान राधे और गुरुजी का विश्वासपात्र अंगद चुपचाप लाया करते थे.

कई बार माताजी को भी उस ने चिलम लगाते देखा था. राधे ने उसे रात के समय जब सब चिलम से नशा करते, उस समय बाहर निकलने से बिलकुल मना कर दिया था. लेकिन धीरेधीरे राधे नशेड़ची बन कर आश्रम में रहने वाली माला के साथ खुल्लमखुल्ला इश्क लड़ाने लगा था. यहां तक कि वह रातें भी उस के कमरे में गुजारने लगा था.‘‘राधे एक दिन काम पर गया, फिर वह लौट कर ही नहीं आया. कई दिनों बाद उस की लावारिस लाश मिली थी.

क्रौसिंग से जल्दबाजी में ट्रेन के साथ बाइक के साथ घिसटता चला गया था. आनंदी तो बिलकुल बेसहारा हो गई थी. रोतेरोते वह बेहोश हो जाती. उस समय स्वामीजी ने उसे सहारा देते हुए कहा था, ‘राधे नहीं रहा तो क्या हुआ? मैं तुम्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दूंगा.’‘‘स्वामीजी के सिवा उस के पास कोई सहारा नहीं था. चारों तरफ अंधकार ही अंधकार छाया हुआ था.

वह पंखविहीन पक्षी की भांति स्वामीजी के चरणों पर अपना सिर रख सिसक पड़ी थी. स्वामीजी ने दिलासा देते हुए उसे अपना विशेष शिष्य बना लिया. लेकिन उन की वासनाभरी नजरें उस के शरीर के आरपार मानो देख रही थीं. कोई भी स्त्री किसी पुरुष की कामुक निगाहों को पलभर में परख लेती है, फिर, वह तो ऐसी निगाहों के धोखे से कई बार गुजर चुकी थी.

अब वह स्वामीजी के सहारे अपने जीवन को नई दिशा दे सकती है, ऐसा वह मन ही मन सोचा करती थी.‘‘विशेष शिष्य बनने के बाद अब वह स्वामीजी की मंडली के साथ दूसरे गांवगांव सत्संग और कथा में जाने लगी थी. उन की समृद्धि और संपन्नता देख वह स्वामीजी के प्रति आकर्षित होती जा रही थी. सार्वजनिक रूप से वह आश्रम की विशेष प्रबंधक कही जाती थी. लेकिन वह जानती थी कि स्वामीजी के जीवन में उस का क्या स्थान था.

जब वह फौर्चुनर गाड़ी में बैठती तो इस सपने के साथ बैठती कि जल्द ही वह भी ऐसी ही गाड़ी और आश्रम की मालकिन बन कर रहेगी. वह स्वामीजी का राजसी ठाटबाट देख वह स्वयं भी मन ही मन उसी तरह की रईसी से रहने की अभिलाषा पाल बैठी थी.  ‘‘आनंदी अपनी जद्दोजहेद में लगी हुई थी, इधर बेटी लक्ष्मी 12 वर्ष की हो चुकी थी और स्कूल के नाम पर वह स्वामीजी के ही एक चेले मलंग के साथ आंखें लड़ा रही थी. बेटा बलराम सब की नजर बचा कर चिलम के सुट्टे लगाया करता.

उस के सामने दोनों इस तरह से कौपीकिताब के पेज पलटते मानो पढ़ाई के सिवा कुछ जानते ही नहीं. वह बच्चों की तरफ से निश्चित थी. वे दोनों स्वामीजी से ट्यूशन और हाथ खर्च के लिए रकम लेते रहते. दोनों के पास बड़ेबड़े मोबाइल देख वह खुश होती थी कि उस के बच्चे उस की तरह गरीबी में नहीं बड़े हो रहे हैं.‘‘अब वह अपने को शातिर समझ कर अपने लिए नई राह बनाने चल पड़ी थी.

‘‘उस का प्रोमोशन हो गया था. माताजी वाला कक्ष उस के लिए आवंटित हो गया था. वह स्वामीजी की मुख्य शिष्या के रूप में जानी जाने लगी थी परंतु वह जानसमझ रही थी कि वह स्वामीजी के लिए एक खिलौने की तरह थी, जब तक चाहेंगे उस के शरीर के साथ अपनी भूख मिटाएंगे, फिर उन को जैसे ही कोई नया शिकार पसंद आया, वह किनारे कर दी जाएगी क्योंकि वह उन की तथाकथित पत्नी का हश्र देख रही थी.

उस के देखतेदेखते वे पदच्युत हो कर टूटी टांग के साथ आश्रम के एक छोटे से कोने में आंसू बहाती हुई अपने दिन काट रही थीं.इसलिए कुछ कथाप्रसंगों को आनंदी ने कंठस्थ कर लिया और उसे अकेले में अभ्यास किया करती. चूंकि वह पढ़ना जानती थी, इसलिए वह रोज कथाप्रसंगों को पढ़ती, सुनती और बोलने का अभ्यास करती थी.‘‘उस ने जब एक दिन मोबाइल पर अपनी आवाज में कथा रिकौर्ड कर के चुपचाप रिकौर्डिंग चला दी तो स्वामीजी सुन कर दंग रह गए. वे नाराज हो कर बोल पड़े, ‘तुम तो जल्दी ही मेरी रोजीरोटी ही बंद करवा दोगी.

बंद करो.’’ उन के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई पड़ रही थीं. वे आगे बोले, ‘अब तुम ऐसी हिम्मत मत करना.’‘‘स्वामीजी की संपन्नता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी. वे भागवत कथा सुनाया करते थे. उन के नाम पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. उन का अंदाज बहुत चुटीला और संगीत व नृत्य से भरपूर रहता था, जिस में कथा कम होती थी, मनोरंजन ज्यादा होता था. इसीलिए, भीड़ बेतहाशा उमड़ पड़ती थी. ‘‘उन का कथा सुनाने का रेट बढ़ता जा रहा था.

बुकिंग करवाते समय उन्हें लंबी रकम मिलती, फिर कथा में लोग श्रद्धा से भरपूर चढ़ावा चढ़ाते. स्वामीजी मालामाल होते जा रहे थे. अब उन के पास एक नहीं, दो बड़ी गाडि़यां थीं. वे रेशमी जोगिया कपड़े धारण करने लगे थे. उन के हाथ में महंगी स्मार्ट वाच और बड़ा वाला आइफोन रहने लगा था. उन्होंने विनय नाम के एक पढ़ेलिखे भक्त को मैनेजर बना कर अपौइंट कर लिया था, जो उन की बुकिंग की तारीख तय करता. उन के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लग जाती.

उन की सुरक्षा के लिए उन के साथ 2 गनर रहने लगे थे. उन के पास नेताओं का जमावड़ा रहने लगा था.‘‘आनंदी की रिकौर्डिंग सुनने के बाद उस के सुंदर रूप और मीठे स्वर से स्वामीजी घबराने लगे तो उन्होंने उस के रंगीन कपड़ों पर, साजशृंगार पर प्रतिबंध लगा कर सफेद साड़ी पहनने के लिए मजबूर कर दिया. वह बहुत रोई थी क्योंकि रंगबिरंगी साडि़यों, विशेषकर चुनरी, में उस की जान बसती थी. मजबूर हो कर उसे अपनी मांग से सिंदूर मिटा कर विधवा का वेष धारण करना पड़ा.

अति तो तब हो गई थी जब उन्होंने उस के लंबे बालों पर कैंची चलवा दी थी. उस दिन आनंदी फूटफूट कर रोई थी. लेकिन वह सबकुछ अपने बच्चों के भविष्य के लिए सह रही थी. ‘‘उस ने मन ही मन योजना बना रखी थी कि जब उस की ख्याति बढ़ जाएगी तो वह कथावाचक बन कर अपना अलग आश्रम बना लेगी परंतु स्वामीजी के गुप्तचर उस की हर क्रियाकलाप पर नजर रखते थे.

उन्होंने उसे आगाह किया था, ‘ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना वरना बरबाद हो जाओगी.’ ‘‘वह स्वामीजी के साथ बहराइच में भागवत कथा के लिए उन की मंडली के साथ गई हुई थी. वह छोटा शहर था, अपार जनसमूह उमड़ पड़ा था क्योंकि आयोजनकर्ता ने कथावाचक के पोस्टर में उस की तसवीर भी छपवा रखी थी और वे लगातार पर्चा बांट कर कथा का प्रचार भी कर रहे थे.

वह अपनी कथा में व्यस्त थी. लगातार उसे एक महीने तक बाहर रहना पड़ा था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. वह अकसर कथामंडली के साथ गांवगांव जाती रहती थी क्योंकि ग्रामीण श्रद्धापूर्वक कथा सुनते थे और जीभर कर दान भी देते थे. ‘‘अब तो गुरुजी की ख्याति बढ़ती जा रही थी, इसलिए बड़ेबड़े शहरों में भी लंबे प्रवास के लिए जाना पड़ता था. वह मना तो कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वह उन की मंडली के साथसाथ उन के आनंद के लिए वह आवश्यक सामग्री की तरह थी. उन के लिए वह एक पंथ दो काज थी. वह लगभग 2 महीने के व्यस्त कार्यक्रम के बाद कुछ दिनों के लिए ही लौट कर आई थी. ‘‘घर पर बेटी रूपा को न पा कर जब बेटे से पूछा तो वह बोला, ‘वह तो लगभग एक महीने पहले माताजी की आज्ञा से उन के किसी रिश्तेदार के साथ कुछ पढ़ाई करने गई है.’

‘‘वह समझ नहीं पा रही थी कि बेटी रूपा कहां गई. माताजी से पूछा तो वे गोलमोल जवाब दे कर बोलीं, ‘मुझ से कहा था कि वह कल लौट कर आ जाएगी तो मैं ने हां कर दी थी. वह कहां गई, उन्हें नहीं मालूम.’ इतना कह कर उन्होंने मुंह फेर लिया था.‘‘स्वामीजी से पूछा तो वे लापरवाही से बोले थे, ‘वह बड़ी हो गई है, अपना भलाबुरा जानती है.

तुम नाहक परेशान हो रही हो. अपने अगले प्रोग्राम पर ध्यान दो. इस बार तुम्हारे नाम से अलग से बुकिंग ली है, इसलिए अच्छे से अभ्यास करो और कलपरसों से यहां आश्रम में तुम्हें कथा सुनानी होगी.’ ‘‘इस अप्रत्याशित घटना ने उस के सारे सपनों को धूलधूसरित कर दिया था. वह रातभर सिसकती रही थी.

डीप फ्राइंग करते समय रखें इन 6 बातों का ध्यान

त्यौहारी सीजन प्रारम्भ हो चुका है और ऐसे में हम भारतीयों के घरों में अक्सर पूरी, कचौरी, पकौड़े, मिठाइयां आदि भरपूर मात्रा में बनाई जातीं हैं जिन्हें अक्सर डीप फ्राई करके बनाया जाता है और अक्सर डीप फ्राई करने के बाद बचे तेल को पुनः प्रयोग किया जाता है परन्तु आहार विशेषज्ञों के अनुसार लम्बे समय तक आग पर उबलते रहने के कारण इस तेल के काफी सारे पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं इसलिए इसे बार बार डीप फ्राइंग के लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. डीप फ्राइंग करते समय यदि कुछ सावधानियां बरतना अत्यंत आवश्यक है-

1-बर्तन के आकार का रखें ध्यान

डीप फ्राई करते समय बड़े, फैले और चपटे पैन आदि के स्थान पर छोटे, गहरे और संकरे मुंह के बर्तन का प्रयोग करें इससे आप कम तेल में ही आसानी से डीप फ्राइंग कर सकेंगीं.

2-तेल पर भी रखें नजर

डीप फ्राइंग करने के लिए ओलिव आयल, कोकोनट आयल अदि के स्थान पर घी, मूंगफली, केनोला और सरसों के तेल का उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि कोकोनट और ओलिव आयल का बोइलिंग पॉइंट कम होने से ये बहुत जल्दी जलने लगते हैं वहीँ घी, सरसों तथा केनोला आयल का बोइलिंग पॉइंट अधिक होता है जिससे ये उच्च तापमान पर भी जलते नहीं हैं और इनका पुनः प्रयोग भी आसानी से किया जा सकता है.

3-तापमान रखें सही

अक्सर हम तेल को या तो बहुत अधिक गर्म कर लेते हैं या फिर कम तापमान पर खाद्य पदार्थ को कड़ाही में डाल देते हैं जिससे उसमें तेल भर जाता है. तापमान को जांचने के लिए आप तेल में एक ब्रेड का टुकड़ा डालकर देखें यदि डालने के 60 सेकंड के अंदर वह भूरा हो रहा है तो समझें कि डीप फ्राइंग के लिए तापमान एकदम सही है.

4-खाद्य पदार्थ का आकार भी है जरूरी

आप जो भी फ्राई करें उसका आकार एक समान रखें..छोटा बड़ा, मोटा पतला होने पर खाद्य वस्तु असमान तरीके से फ्राई होगी या तो वह जल जाएगी अथवा कच्ची रह जाएगी. साथ ही बड़े टुकड़ों को तलने में समय भी अधिक लगेगा.

5-पानी से रखें दूरी

फ्रेंच फ्राईज, पकोड़े, पूरी तलते समय कई बार हाथ या कलछी में पानी लगा होता है और जब यह पानी गरम तेल में गिरता है तो छीटें छोड़ता है जिससे जलने की सम्भावना हो जाती है इससे बचने के लिए कलछी और हाथों को अच्छी तरह पोंछकर प्रयोग करें.

6-ओवरफिलिंग से बचें

डीप फ्राइंग करते समय न तो बर्तन में ही तेल अधिक भरें और न ही खाद्य वस्तु बहुत अधिक कड़ाही में भरे क्योंकि यदि तेल अधिक होगा तो वह खाद्य वास्तु को डालते ही बाहर आने लगेगा और यदि खाद्य पदार्थ अधिक है तो वह एकदूसरे में चिपक जायेंगी और फिर ठीक से क्रिस्प नहीं हो पायेगा.

रखें इन बातों का भी ध्यान

-डीप फ्राइंग के दौरान गैस से कुछ दूरी बनाकर खड़ीं हों ताकि किसी भी प्रकार के तेल के गर्म छींटे से आप बची रहें.

-यदि सम्भव हो तो सिंथेटिक के स्थान पर सूती कपड़े पहनें.

-डीप फ्राई करने के बाद बचे तेल को छलनी से छानकर एक डिब्बे में भर लें और फिर इससे  पुनः डीप फ्राई करने के स्थान पर सब्जी बनाने और परांठे सेंकने के लिए प्रयोग करें.

-डीप फ्रायड खाद्य वस्तुओं को सीधे प्लेट में निकालने के स्थान पर पहले टिश्यू पेपर या न्यूज पेपर पर निकालें फिर प्रयोग करें.

-मठरी, कचौरी, बालूशाही, पकौड़े जैसे स्नैक्स को तलते समय तेल का तापमान और आंच एकदम मध्यम रखें अन्यथा मठरी क्रिस्पी नहीं होगी.

-पूरी तलते समय तेल को अच्छा गर्म करें तभी तेल में पूरी डालें ठंडे तेल में पूरी अच्छी तरह फूलेगी नहीं.

तुम बिन जिया जाए कैसे

Romantic story in hindi

अपना घर: क्यों तलाक लेनी चाहती थी सुरेखा

विजय की गुस्से भरी आवाज सुनते ही सुरेखा चौंक उठी. उस का मूड खराब था. वह तो विजय के आने का इंतजार कर रही थी कि कब विजय आए और वह अपना गुस्सा उस पर बरसाए क्योंकि आज सुबह औफिस जाते समय विजय ने वादा किया था कि शाम को कहीं घूमने चलेंगे. उस के बाद खरीदारी करेंगे. खाना भी आज होटल में खाएंगे. शाम को 6 बजे से पहले घर पहुंचने का वादा किया था.

4 बजे के बाद सुरेखा ने कई बार विजय के मोबाइल फोन पर बात करनी चाही तो उस का फोन नहीं सुना था. हर बार उस का फोन काट दिया गया था. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या बात है? जल्दी नहीं आना था तो मना कर देते. बारबार फोन काटने का क्या मतलब?

सुरेखा तो शाम के 5 बजे से ही जाने के लिए तैयार हो गई थी. पता नहीं, औफिस में देर हो रही है या यारदोस्तों के साथ सैरसपाटा हो रहा है. बस, उस का मूड खराब होने लगा था. उसे कमरे की लाइट औन करना भी ध्यान नहीं रहा.

सुरेखा ने विजय की ओर देखा. विजय का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. 2 साल की शादीशुदा जिंदगी में आज वह पहली बार विजय को इतने गुस्से में देख रही थी.

सुरेखा अपना गुस्सा भूल कर हैरान सी बोल उठी, ‘‘यह क्या कह रहे हो? मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. तुम्हारा फोन मिलाया तो हर बार तुम ने फोन काट दिया. आखिर बात क्या है?’’

‘‘बात तो बहुत बड़ी है. तुम ने मुझे धोखा दिया है. तुम्हारे मातापिता ने मुझे धोखा दिया है.’’

‘‘धोखा… कैसा धोखा?’’ सुरेखा के दिल की धड़कन बढ़ती चली गई.

‘‘तुम्हारे धोखे का मुझे आज पता चल गया है कि तुम शादी से पहले विकास की थी,’’ विजय ने कहा.

यह सुन कर सुरेखा चौंक गई. वह विजय से आंख न मिला पाई और इधरउधर देखने लगी.

‘‘अब तुम चुप क्यों हो गई? शादी को 2 साल होने वाले हैं. इतने दिनों से मैं धोखा खा रहा था. मुझे क्या पता था कि जिस शरीर पर मैं अपना हक समझता था, वह पहले ही कोई पा चुका था और मुझे दी गई उस की जूठन.’’

‘‘नहीं, आप यह गलत कह रहे हो.’’

‘‘क्या तुम विकास से प्यार नहीं करती थी? तुम उस के साथ पता नहीं कहांकहां आतीजाती थी. तुम दोनों को शादी की मंजूरी भी मिल गई थी कि अचानक वह कमबख्त विकास एक हादसे में मर गया. यह सब तो मुझे आज पता चल गया नहीं तो मैं हमेशा धोखे में रहता.’’

यह सुन कर सुरेखा की आंखें भर आईं. वह बोली, ‘‘तुम्हें किसी ने धोखा नहीं दिया है, मेरी किस्मत ने ही मुझे धोखा दिया है जो विकास के साथ ऐसा हो गया था.’’

‘‘तुम ने मुझे अब तक बताया क्यों नहीं?’’

सुरेखा चुप रही.

‘‘अब तुम यहां नहीं रहोगी. मैं तुम जैसी चरित्रहीन और धोखेबाज को अपने घर में नहीं रखूंगा.’’

‘‘विजय, मैं चरित्रहीन नहीं हूं. मेरा यकीन करो.’’

‘‘प्रेमी ही तो मरा है, तुम्हारे मांबाप तो अभी जिंदा हैं. जाओ, वहां दफा हो जाओ. मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहता. अपने धोखेबाज मांबाप से कह देना कि अपना सामान ले जाएं.’’

सुरेखा सब सहन कर सकती थी, पर अपने मातापिता की बेइज्जती सहना उस के वश से बाहर था. वह एकदम बोल उठी, ‘‘तुम मेरे मम्मीपापा को क्यों गाली देते हो?’’

‘‘वे धोखेबाज नहीं हैं तो उन्होंने क्यों नहीं बताया?’’ कहते हुए विजय ने गालियां दे डालीं.

‘‘ठीक है, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रहूंगी,’’ कहते हुए सुरेखा ने एक बैग में कुछ कपड़े भरे और चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई.

सुरेखा रेलवे स्टेशन पर जा पहुंची. रात साढ़े 10 बजे ट्रेन आई.

3 साल पहले एक दिन सुरेखा बाजार में कुछ जरूरी सामान लेने जा रही थी. उस के हाथ में मोबाइल फोन था. तभी एक लड़का उस के हाथ से फोन छीन कर भागने लगा. वह एकदम चिल्लाई ‘पकड़ो… चोरचोर, मेरा मोबाइल…’

बराबर से जाते हुए एक नौजवान ने दौड़ लगाई. वह लड़का मोबाइल फेंक कर भाग गया था. जब उस नौजवान ने मोबाइल लौटाया, तो सुरेखा ने मुसकरा कर धन्यवाद कहा था.

वह युवक विकास ही था जिस के साथ पता नहीं कब सुरेखा प्यार के रास्ते पर चल दी थी.

एक दिन सुरेखा ने मम्मी से कह दिया था कि विकास उस से शादी करने को तैयार है. विकास के मम्मीपापा भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए हैं.

पर उस दिन अचानक सुरेखा के सपनों का महल रेत के घरौंदे की तरह ढह गया जब उसे यह पता चला कि मोटरसाइकिल पर जाते समय एक ट्रक से कुचल जाने पर विकास की मौत हो गई है.

सुरेखा कई महीने तक दुख के सागर में डूबी रही. उस दिन पापा ने बताया था कि एक बहुत अच्छा लड़का विजय मिल गया है. वह प्राइवेट नौकरी करता है.

सुरेखा की विजय से शादी हो गई. एक रात विजय ने कहा था, ‘तुम बहुत खूबसूरत हो सुरेखा. मुझे तुम जैसी ही घरेलू व खूबसूरत पत्नी चाहिए थी. मेरे सपने सच हुए.’

जब कभी सुरेखा विजय की बांहों में होती तो अचानक ही एक विचार से कांप उठती थी कि अगर किसी दिन विजय को विकास के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? क्या विजय उसे माफ कर देगा. नहीं, विजय कभी उसे माफ नहीं करेगा क्योंकि सभी मर्द इस मामले में एकजैसे होते हैं. तब क्या उसे बता देना चाहिए? नहीं, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारे?

आज विजय को पता चल गया और जिस बात का उसे डर था, वही हुआ. पर वह शक, नफरत और अनदेखी के बीच कैसे रह सकती थी?

सुबह सुरेखा मम्मीपापा के पास जा पहुंची थी.

सुरेखा के कमरे से निकल जाने

के बाद भी विजय का गुस्सा बढ़ता

ही जा रहा था. वह सोफे पर पसर गया. धोखेबाज… न जाने खुद को क्या समझती है वह? अच्छा हुआ आज पता चल गया, नहीं तो पता नहीं कब तक उसे धोखे में ही रखा जाता?

2-3 दिन में ही पासपड़ोस में सभी को पता चल गया. काम वाली बाई कमला ने साफसाफ कह दिया, ‘‘देखो बाबूजी, अब मैं काम नहीं करूंगी. जिस घर में औरत नहीं होती, वहां मैं काम नहीं करती. आप मेरा हिसाब कर दो.’’

विजय ने कमला को समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, काम न छोड़ो, 100-200 रुपए और बढ़ा लेना.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मेरी भी मजबूरी है. मैं यहां काम नहीं करूंगी.’’

‘‘जब तक दूसरी काम वाली न मिले, तब तक तो काम कर लेना कमला.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं एक दिन भी काम नहीं करूंगी,’’ कह कर कमला चली गई.

4-5 दिन तक कोई भी काम वाली बाई न मिली तो विजय के सामने बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गई. सुबह घर व बरतनों की सफाई, शाम को औफिस से थका सा वापस लौटता तो पलंग पर लेट जाता. उसे खाना बनाना नहीं आता था. कभी बाजार में खा लेता. दिन तो जैसेतैसे कट जाता, पर बिस्तर पर लेट कर जब सोने की कोशिश करता तो नींद आंखों से बहुत दूर हो जाती. सुरेखा की याद आते ही गुस्सा व नफरत बढ़ जाती.

रात को देर तक नींद न आने के चलते विजय ने शराब के नशे में डूब

कर सुरेखा को भुलाना चाहा. वह जितना सुरेखा को भुलाना चाहता, वह उतनी ज्यादा याद आती.

एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’

उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.

‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.

‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’

उधर से फोन बंद हो गया.

विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.

औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.

एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’

विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.

‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’

‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.

विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.

अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.

विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.

‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.

वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.

वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी.

अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.

वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?

‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.

‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.

‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’

‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.

विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?

सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.

अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’

‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’

‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’

‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’

‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’

‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’

‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.

‘‘चाचा के पास थोड़ी सी जमीन है जिस में सालभर के गुजारे लायक ही अनाज होता है. कभीकभार चाचा मुझे यहां ले कर आ जाता है.’

‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘जब चाचा ने इस काम में तुम्हें धकेला तो तुम ने विरोध नहीं किया?’

‘‘वह बोली थी, ‘किया था विरोध. बहुत किया था. एक दिन तो मैं ने यमुना में डूब जाना चाहा था. तब किसी ने मुझे बचा लिया था. मैं क्या करती? अकेली कहां जाती? कटी पतंग को लूटने को हजारों हाथ होते हैं. बस, मजबूर हो गई थी चाचा के सामने.’

‘‘फिर मैं ने उस से पूछा था, ‘इस दलदल में धकेलने के बजाय चाचा ने तुम्हारी शादी क्यों नहीं की?’

‘‘वह बोली, ‘मुझे नहीं मालूम…’

‘‘यह सुन कर मैं कुछ सोचने लगा था. तब उस ने पूछा था, ‘क्या सोचने लगे? आप मेरी चिंता मत करो और…’

‘‘कुछ सोच कर मैं ने कहा था, ‘सीमा, मैं तुम्हें इस दलदल से निकाल लूंगा.’

‘‘तो वह बोली थी, ‘रहने दो आप बाबूजी, क्यों मजाक करते हो?’

‘‘लेकिन मैं ने ठान लिया था. मैं ने उस से कहा था, ‘यह मजाक नहीं है. मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा.’

‘‘सीमा के चेहरे पर अविश्वास भरी मुसकान थी. एक दिन मैं ने सीमा के चाचा से बात की. एक मंदिर में हम दोनों की शादी हो गई.

‘‘मैं ने कभी सीमा को उस की पिछली जिंदगी की याद नहीं दिलाई. वह मेरा कितना उपकार मानती है कि मैं ने उसे ऐसे दलदल से बाहर निकाला जिस की उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी.’’

यह सुन कर विजय हैरान रह गया. वह अनिल की ओर एकटक देख रहा था. न जाने कितने लोग सीमा के जिस्म से खेले होंगे? आखिर यह सब कैसे सहन कर गया अनिल? क्या अनिल के सीने में दिल नहीं है? अनिल के सामने कोई मजबूरी नहीं थी, फिर भी उस ने सीमा को अपनाया.

अनिल ने कहा, ‘‘यार, भूल तो सभी से होती है. कभी किसी को माफ भी कर के देखो. भूल की सजा तो कोई भी दे सकता है, पर माफ करने वाला कोईकोई होता है. किसी गिरे हुए को ठोकर तो सभी मार सकते हैं, पर उसे उठाने वाले दो हाथ किसीकिसी के होते हैं.’’

तभी सीमा एक ट्रे में चाय के कप व कुछ खाने का सामान ले कर आई और बोली, ‘‘चाय लीजिए.’’

विजय सकपका गया. वह सीमा से आंखें नहीं मिला पा रहा था. वह खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहा था. उसे लग रहा था कि सचमुच उस ने सुरेखा को घर से निकाल कर बहुत बड़ी भूल की है. शक के जाल में वह बुरी तरह उलझ गया था. आज उस जाल से बाहर निकलने के लिए छटपटाहट होने लगी. उसे खुद से ही नफरत हो रही थी.

विजय चुपचाप चाय पी रहा था. अनिल ने कहा, ‘‘अब ज्यादा न सोचो. कल ही जा कर तुम भाभीजी को ले आओ. सब से पहले यह शराब उठा कर बाहर फेंक देना. भाभीजी के आने के बाद तुम्हें इस की जरूरत नहीं पड़ेगी.

‘‘शराब तुम्हें खोखला और बरबाद कर देगी. भाभीजी की याद में जलने से जिंदगी दूभर हो जाएगी. जिस का हाथ थामा है, उसे शक के अंधेरे में इस तरह भटकने के लिए न छोड़ो.

‘‘कुछ त्याग भी कर के देखो यार. वैसे भी इस में भाभीजी की जरा भी गलती नहीं है.’’

विजय को लग रहा था कि अनिल ठीक ही कह रहा है. वह एक भूल तो कर चुका है सुरेखा को घर से निकाल कर, अब तलाक लेने की दूसरी भूल नहीं करेगा. कुछ दिनों में ही उस की और घर की क्या हालत हो गई है. अभी तो जिंदगी का सफर बहुत लंबा है.

‘‘हम 4 दिन बाद लौटेंगे तो भाभीजी से मिल कर जाएंगे,’’ अनिल ने कहा.

विजय ने मोबाइल फोन का स्विच औन किया और दूसरे कमरे में जाता हुआ बोला, ‘‘मैं सुरेखा को फोन कर के आता हूं.’’

अनिल और सीमा ने मुसकुरा कर एकदूसरे की ओर देखा.

विजय ने सुरेखा को फोन मिलाया. उधर से सुरेखा बोली, ‘हैलो.’

‘‘कैसी हो सुरेखा?’’ विजय ने पूछा.

‘मैं ठीक हूं. कब भेज रहे हो तलाक के कागज?’

‘‘सुरेखा, तलाक की बात न करो. मुझे दुख है कि उस दिन मैं ने तुम्हें घर से निकाल दिया था. फिर फोन पर न जाने क्याक्या कहा था. मुझे उस भूल का बहुत पछतावा है.’’

‘पी कर नशे में बोल रहे हो क्या? मुझे पता है कि अब तुम रोज शराब पीने लगे हो.’

‘‘नहीं सुरेखा, अब मैं नशे में नहीं हूं. मैं ने आज नहीं पी है. तुम्हारे बिना यह घर अधूरा है. अब अपना घर संभाल लो. मैं तुम्हें लेने कल आ रहा हूं.’’

उधर से सुरेखा का कोई जवाब

नहीं मिला.

‘‘सुरेखा, तुम चुप क्यों हो?’’

सुरेखा के रोने की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहीं, सुरेखा नहीं, अब मैं तुम्हें रोने नहीं दूंगा. मैं कल ही आ कर मम्मीपापा से भी माफी मांग लूंगा. बस, एक रात की बात है. मैं कल शाम तक तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा.’’

‘मैं इंतजार करूंगी,’ उधर से सुरेखा की आवाज सुनाई दी.

विजय ने फोन बंद किया और अनिल व सीमा को यह सूचना देने के लिए मुसकराता हुआ उन के पास आ गया.

ठूंठ से लिपटी बेल : रूपा को आखिर क्या मिला

रूपा के आफिस में पांव रखते ही सब की नजरें एक बारगी उस की ओर उठ गईं और तुरंत सब फिर अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. सब की नजरों में छिपा कौतूहल दूर अपनी मेज पर बैठे मैं ने देख लिया था. मेरे पास से निकल कर अपनी मेज तक जाते रूपा ने मेरे कंधे पर हलके हाथ से दबाव दे कर कहा, ‘हैलो, स्वीटी.’ उस की इस शरारत पर मैं भी मुसकरा दी.

रूपा में आया परिवर्तन मुझे भी दिखाई पड़ रहा था पर मैं चाहती थी वह खुद ही खुले. मैं जानती थी वह अधिक दिनों तक अपना कोई भी सुखदुख मुझ से छिपा नहीं सकती. हमेशा बुझीबुझी और उदास रहने वाली रूपा को मैं वर्षों से जानती थी. उसे किसी ने हंसतेचहकते शायद ही कभी देखा हो. हंसने, खुश रहने के लिए उस के पास था ही क्या? छोटी उम्र में मां का साया उठ गया था. मां के रहने का दुख शायद कभी भुलाया भी जा सकता था, पर जिस हालात में मां मरी थीं वह भुलाना बहुत ही मुश्किल था.

शराबी बाप के अत्याचारों से मांबेटी हमेशा पीडि़त रहती थीं. मां स्कूल में पढ़ाती थीं और जो तनख्वाह मिलती उस से तो पिताजी की पूरे महीने की शराब भी मुश्किल से चलती थी. पैसे न मिलने पर रूपा के पिता रतनलाल घर का कोई भी सामान उठा कर बेच आते थे. जरा सा भी विरोध उन्हें आक्रामक बना देता. मांबेटी को रुई की तरह धुन कर रख देते.

धीरेधीरे रूपा की मां भूख, तनाव और मारपीट सहतेसहते एक दिन चुपचाप बिना चीखेचिल्लाए चल बसीं. उस वक्त रूपा 9वीं कक्षा में पढ़ती थी. बिना मां की किशोर होती बेटी को एक दिन मौसी आ कर उस को अपने साथ ले गईं. मौसी तो अच्छी थीं, पर उन के बच्चों को रूपा फूटी आंखों न भाई.

मौसी के घर की पूरी जिम्मेदारी धीरेधीरे रूपा पर आ गई. किसी तरह वहीं रह कर रूपा ने ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन करते ही रतनलाल आ धमके और सब के विरोध के बावजूद रूपा को अपने साथ ले गए. इतने दिनों बाद उन की ममता उमड़ने का कारण जल्दी ही रूपा की समझ में आ गया. उन्होंने उस के लिए एक नौकरी का प्रबंध कर रखा था.

रूपा की नौकरी लगने के बाद कुछ दिनों तक तो रतनलाल थोड़ेथोड़े कर के शराब के लिए पैसे ऐंठते रहे फिर धीरेधीरे उन की मांग बढ़ती गई. पैसे न मिलने पर चीखतेचिल्लाते और गालियां बकते थे. रूपा 2-3 साडि़यों को साफसुथरा रख कर किसी तरह अपना काम चलाती. चेहरे पर मेघ छाए रहते. सारे सहयोगी उस की जिंदगी से परिचित थे. सभी का व्यवहार उस से बहुत अच्छा था. लंच में चाय तक के लिए उस के पास पैसे न रहते. मैं कभीकभार ही चायनाश्ते  के लिए उसे राजी कर पाती. पूछने पर वह अपनी परेशानियां मुझे बता भी देती थी.

इधर करीब महीने भर से रूपा में एक खास परिवर्तन आया था, जो तुरंत सब की नजरों ने पकड़ लिया. 33 साल की नीरस जिंदगी में शायद पहली बार उस ने ढंग से बाल संवारे थे. उदास होंठों पर एक मदहोश करने वाली मुसकराहट थी. आंखें भी जैसे छलकता जाम हों.

मैं ने सोचा शायद आजकल रूपा के पिता सुधर रहे हों…यह सब इसी कारण हो. करीब 1 माह पहले ही तो रूपा ने एक दिन बताया था कि कैसे चीखतेचिल्लाते और गालियां बकते पिता को रवि भाई समझाबुझा कर बाहर ले गए थे. करीब 1 घंटे बाद पिताजी नशे में धुत्त खुशीखुशी लौटे थे और बिना शोर किए चुपचाप सो गए थे. रवि भाई उस के मौसेरे भाई के दोस्त हैं. पहले 1-2 बार मौसी के घर पर ही मुलाकात हुई थी. अब इसी शहर में बिजनेस कर रहे हैं.

ऐसे ही रूपा ने बातचीत के दौरान बताया था कि अब पिताजी चीखते-चिल्लाते नहीं, क्योंकि रवि भाई की दुकान पर बैठे रहते हैं. काफी रात गए वहीं से पी कर आते हैं और चुपचाप सो जाते हैं.

2 महीने बाद अचानक एक दिन सुबहसुबह रूपा मेरे घर आ पहुंची. बहुत खुश नजर आ रही थी. जैसे जल्दीजल्दी बहुत कुछ बता देना चाहती हो पर मुझे व्यस्त देख उस ने जल्दीजल्दी मेरे काम में मेरा हाथ बंटाना शुरू कर दिया. नाश्ता मेज पर सजा दिया. मुन्ने को नहला कर स्कूल के लिए तैयार कर दिया. पति व बच्चों को भेज कर जब हम दोनों नाश्ता करने बैठीं तो आफिस जाने में अभी डेढ़ घंटा बचा था. रूपा ने ऐलान कर दिया कि आज आफिस से छुट्टी करेंगे. मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘क्यों भई, छुट्टी किसलिए. डेढ़ घंटे में तो पूरा नावेल पढ़ा जा सकता है…सुना भी जा सकता है.’’

पर वह डेढ़ घंटे में सिर्फ एक लाइन ही बोल पाई, ‘‘मैं रवि से शादी कर लूं, रत्ना?’’ मैं जैसे आसमान से गिरी, ‘‘रवि से? पर वह तो…’’

‘‘शादीशुदा है, बच्चों वाला है, यही न?’’ मैं आगे सुनने के लिए चुप रही. रूपा ने अपनी छलकती आंखें उठाईं, ‘‘मेरी उम्र तो देख रत्ना, इस साल 34 की हो जाऊंगी. पिताजी मेरी शादी कभी नहीं करेंगे. उन्होंने तो आज तक एक बार भी नहीं कहा कि रूपा के हाथ पीले करने हैं. मुझे…एक घर…एक घर चाहिए, रत्ना. रवि मुझे बहुत चाहते हैं. मेरा बहुत खयाल रखते हैं. आजकल रवि के कारण पिताजी ऊधम भी नहीं करते. रवि के कारण ही मैं चैन की सांस ले पाई हूं. शादी के बाद मैं रवि के पास रहूंगी. पिताजी यहीं अकेले रहें और चीखेंचिल्लाएं.’’

मुझे उस की बुद्धि पर तरस आया. मैं ने कहा, ‘‘यहां तो अकेले पिताजी हैं, वहां सौत और उस के बच्चों के बीच रह कर किस सुख की कल्पना की है तू ने? जरा मैं भी तो सुनूं?’’

उस ने मेरे गले में बांहें डाल दीं, ‘‘ओह रत्ना, तुम समझती क्यों नहीं. वहां मेरे साथ रवि हैं फिर मुझे नौकरी करने की भी जरूरत नहीं. रवि की पत्नी बिलकुल बदसूरत और देहाती है. रवि मेरे बिना रह ही नहीं सकते.’’

इस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं. रूपा से तो मुलाकात नहीं हुई, बस, उस की 1 महीने की छुट्टी की अर्जी आफिस में मैं ने देखी. एक दिन सुना दोनों ने कहीं दूसरी जगह जा कर कोर्ट मैरिज कर ली है. इस बीच मुझे दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल गई. जहां मेरा आफिस था वहां से बच्चों का स्कूल भी पास था. इसलिए मेरे पति ने भागदौड़ कर उसी इलाके में मकान का इंतजाम भी कर लिया. इस भागमभाग में मुझे रूपा के बारे में उठती छिटपुट खबरें ही मिलीं कि रूपा उसी आफिस में नौकरी कर रही है, फिर सुना रूपा 1 बेटी की मां बन गई है.

एक ही शहर में रहते हुए भी हमारी मुलाकात एक शादी में 10 साल बाद हुई. करीब 9 साल की बेटी भी उस के साथ थी. देखते ही आ कर लिपट गई. मैं ने पूछा, ‘‘रवि नहीं आए?’’

ठंडा सा जवाब था रूपा का, ‘‘उन्हें अपने काम से फुरसत ही कहां है.’’

रूपा का कुम्हलाया चेहरा यह कहते और बेजान हो गया. उस की बेटी का उदास चेहरा भी झुक गया. मैं ने पूछा, ‘‘रूपा, तुम्हारे पिताजी आजकल कैसे हैं?’’

‘‘वैसे ही जैसे थे,’’ वह बोली.

‘‘कहां रहते हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कभी मेरे पास, कभी गांव में जमीनजायदाद बेचते हैं. पीते रहते हैं, शहर आते हैं तो मैं हूं ही पैसे देने के लिए. महीने में 8-10 दिन यहीं मेरे पास रहते हैं. गांव में पिक्चर हाल जो नहीं है. वहां बोर हो जाते हैं.’’

‘‘पैसे देने से मना क्यों नहीं कर देतीं.’’

‘‘मना करती हूं तो ऐसी भद्दी और गंदी गालियां देते हैं कि सारा महल्ला सुनता है. मेरी बेटी डर कर रोती है. पढ़- लिख नहीं पाती.’’

‘‘घर के बाकी लोग कुछ नहीं कहते. रवि कुछ नहीं कहते?’’

‘‘बाकी कौन से लोग हैं? मैं तो अपने उसी घर में रहती हूं. रात को रवि 10 बजे आते हैं, 12-1 बजे चले जाते हैं. वह भी एक दिन छोड़ कर. बस, हमारा पतिपत्नी का नाता यही 2-3 घंटे का है. घर खर्च देना नहीं पड़ता, कारण, मैं कमाती हूं न.’’

‘‘भई, कुछ तो खर्चा देते ही होंगे. तुझे न सही अपनी बेटी को ही.’’

‘‘और क्या देंगे जब शाबाशी तक तो दे नहीं सकते. नीलूहर साल फर्स्ट आती है. कभी टौफी तक ला कर नहीं दी.’’

नीलू का चेहरा और बुझ गया था. उस का सिर झुक गया. मेरा मन भर आया. बोली, ‘‘पागल, मैं ने तो तुझे पहले ही समझाना चाहा था पर…’’

रूपा की आंखें छलक गईं, ‘‘क्या करती, रत्ना? मुझ जैसी बेसहारा बेल के लिए तो ठूंठ का सहारा भी बड़ी बात थी. फिर वह तो…’’

इतने में हमारे पास 2-3 महिलाएं और आ बैठीं. मैं ने बात बदल दी, ‘‘भई, तेरी बेटी 9 साल की हो गई, अब तो 1 बेटा हो जाना चाहिए था,’’ फिर धीरे से कहा, ‘‘1 बेटा हो जाए तो तुम दोनों का सहारा बने, और नीलू को भाई भी मिल जाए.’’

अचानक नीलू हिचकियां ले कर रोने लगी, ‘‘नहीं चाहिए मुझे भाई, नहीं चाहिए.’’

मैं सहम गई, ‘‘क्या हो गया नीलू बेटे…क्या बात है मुझे बताओ?’’ नीलू को मैं ने गोद में समेट लिया. उस ने हिचकियों के बीच जो कहा सुन कर मैं सन्न रह गई.

‘‘मौसी, वह भी नाना और पापा की तरह मां को तंग करेगा. वह भी लड़का है.’’

मैं हैरान सी उसे गोद में समेटे बैठी उस के भविष्य के बारे में सोचती रह गई. इस नन्ही सी उम्र में उस ने 2 ही पुरुष देखे, एक नाना और दूसरा पापा. दोनों ने उस के कोमल मन पर पुरुष मात्र के लिए एक खौफ और नफरत पैदा कर दी थी.

हम चलने लगे तो रूपा भी चल दी. गेट के बाहर निकले तो रवि को एक महिला के साथ अंदर जाते देखा. समझते देर नहीं लगी कि यह उस की पहली पत्नी है. सेठानियों जैसी गर्वीली चाल, कमर से लटकता चाबियों का गुच्छा और जेवरों से लदी उस अनपढ़ सांवली के चेहरे की चमक के सामने रूपा का गोरा रंग, सुंदर देह, खूबसूरत नाकनक्श, कुम्हलाया सा चेहरा फीका पड़ गया. एक के चेहरे पर पत्नी के अधिकारों की चमक थी तो दूसरी का चेहरा, अपमान और अवहेलना से बुझा हुआ. मैं नहीं चाहती थी कि रूपा और नीलू की नजर भी उन पर पड़े, इसलिए मैं ने जल्दी से कार का दरवाजा खोला और उन्हें पहले अंदर बैठा दिया.

कितनी रंजिश: मोनू को क्यों पाना चाहता था वह

मेरा एक मित्र था गजलों का बड़ा शौकीन. हर जुमले पर वह झट से कोई शेर पढ़ देता या मुहावरा सुनाने लगता. मुझे कई बार हैरानी भी होती थी उस की हाजिरजवाबी पर. इतना बड़ा खजाना कहां सहेज रखा है, सोच कर हैरत होती थी. कभी किसी चीज को लेने की चाह व्यक्त करता तो अकसर कहने लगता, ‘‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी हर ख्वाहिश पे दम निकले…’’

‘‘ऐसी भी क्या ख्वाहिश पाल ली है यार, हर बात पर तुम्हारा प्रवचन मुझे पसंद नहीं,’’ मैं टोकता था.

‘‘चादर अनुसार पैर पसारो, बेटा.’’

‘‘कोई ताजमहल खरीदने की बात तो की नहीं मैं ने जो लगे हो भाषण देने. यही तो कह रहा हूं न, नया मोबाइल लेना है, मेरा मोबाइल पुराना हो गया है.’’

‘‘कहां तक दौड़ोगे इस दौड़ में. मोबाइल तो आजकल सुबह खरीदो, शाम तक पुराना हो जाता है. यह तो अंधीदौड़ है जो कभी खत्म नहीं हो सकती. पूर्णविराम या अर्धविराम तो हमें ही लगाना पड़ेगा न,’’ वह बोला.

उस की हाजिरजवाबी के आगे मेरे सार तर्क समाप्त हो जाते थे. बेहद संतोषी और ठंडी प्रकृति थी उस की. एक बार मेरी उस से कुछ अनबन सी हो गई. हमारे एक तीसरे मित्र की वजह से कोई गलतबयानी हुई जिस पर मुझे बुरा लगा. उस मामले में मैं ने कोई सफाई नहीं मांगी, न ही दी. बस, चुप रहा और उसी चुप्पी ने बात बिगाड़ दी.

आज बहुत अफसोस होता है अपनी इस आदत पर. कम से कम पूछता तो सही. उस ने कई बार कोशिश भी की थी मगर मेरा ही व्यवहार अडि़यल रहा जो उसे नकारता रहा. सहसा एक हादसे में वह संसार से ही विदा हो गया और मैं रह गया हक्काबक्का. यह क्या हो गया भला. ऐसा क्या हो गया जो वह चला ही गया. चला वह गया था और नाराज था मैं. रो नहीं पा रहा था. रोना आ ही नहीं रहा था. ऐसा बोध हो रहा था जैसे उसे नहीं मुझे जाना चाहिए था. आत्मग्लानि थी जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था. जिंदा था वह और मैं नकारता रहा. और अब जब वह नहीं है तो कहां जाऊं मैं उसे मनाने. जिस रास्ते वह चला गया उस रास्ते का नामोनिशान है ही कहां जो पीछेपीछे जाऊं और उस की बात सुन, अपनी सुना पाऊं.

आज कल में बदल गया और जो कल चला गया वह कभी नहीं आता. गया वक्त बहुत कुछ सिखा गया मुझे. उन दिनों हम जवान थे, तब इतना तजरबा नहीं होता जो उम्र बीत जाने के बाद होता है. आज बालों में सफेदी छलकने लगी है और जिंदगी ने मुझे बहुतकुछ सिखा दिया है. सब से बड़ी बात यह है कि रंजिश हमारे जीवन से बड़ी कभी नहीं हो सकती. कोई नाराजगी, कोई रंजिश तब तक है जब तक हम हैं. हमारे बाद उस की क्या औकात. हमारी जिद क्या हमारी जिंदगी से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि उसे हम जिंदगी से ऊपर समझने लगें.

मन में आया मैल इतना बलवान कभी न हो कि रिश्ते और प्यारमुहब्बत ही उस के सामने गौण हो जाएं. प्रेम था मुझे अपने मित्र से, तभी तो उस का कहा मुझे बुरा लगा था न. किस संदर्भ में उस ने कहा था, जो भी कहा था, तीसरे इंसान ने उसे क्या समझा और मुझे क्या बना कर बताया होगा, कम से कम विषय की गहराई में तो मुझे ही जाना चाहिए था न. मेरा मित्र इतना भी बचकाना, इतना नादान तो नहीं था जो मेरे विषय में इतनी हलकी बात कर जाता जिस का मुझे बेहद अफसोस हुआ था. उसी अफसोस को मैं ने नाजायज नाराजगी का जामा पहना कर इतना खींचा कि मेरा प्रिय मित्र समय से भी आगे निकल गया और मेरे सफाई लेनेदेने का मौका हाथ से निकल गया.

हमारा जीवन इतना भी सस्ता नहीं है कि इसे बेकार, बचकानी बातों पर बरबादकर दिया जाए. रंजिश हो तो भी बात करने की गुंजाइश बंद कर देने की भला क्या जरूरत है. मिलो, कुछ कहो, कुछ सुनो, बात को समाप्त करो और आगे बढ़ो. गजल सम्राट मेहंदी हसन की गाई एक गजल मेरा मित्र बहुत गाया करता था-

‘‘रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,

तू मुझ से खफा है तो जमाने के लिए आ,

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ…’’

छोटेछोटे अहंकार, छोटेछोटे दंभ हमें कभीकभी उस रसातल पर ला कर पटक देते हैं जहां से ऊपर आने का कोई रास्ता ही नहीं होता. अगर हमें अपनी गलती का बोध हो जाए तो इतना अवश्य हो कि किसी और को समझा सकें. जिसे स्वयं भोग कर सीखा जाए उस से अच्छा तजरबा और क्या होगा. समझदार लोग अकसर समझाते हैं, या जान कर चलो या मान कर चलो.

जीवन पहले से ही फूलों की सेज नहीं है. हर किसी के मन पर कहीं न कहीं, कोई न कोई बोझ रहता है. जरा से बच्चे की भी कोई न कोई प्यारी सी, सलोनी सी समस्या होती है जिस से वह जूझता है. नन्हे, मेरा प्यारा पोता है. बड़ा उदास सा मेरे पास आया.

‘‘आज मोनू मेरे से बोला ही नहीं,’’ रोंआसा सा हो गया नन्हे.

‘‘तो आप बुला लेते बेटा. वैसे, बात क्या हुई थी? कोई झगड़ा हो गया था क्या?’’

‘‘उस ने मेरी कौपी पर लकीरें डाल दी थीं. मेरा इरेजर भी नीचे फेंक दिया. मेरी ड्राइंगशीट भी फाड़ दी.’’

‘‘वह तुम्हारा दोस्त है न. बैस्ट फ्रैंड है तो उस ने ऐसा क्यों किया. आप ने पूछा नहीं?’’

‘‘वह कहता है उस ने नहीं किया. वह तो लंचब्रैक में क्लास में आया ही नहीं था. झूले पर था.’’

‘‘और तुम कहां थे? तब तुम उस के साथ थे न?’’

‘‘हां, मैं उस के साथ था.’’

‘‘फिर तुम क्यों कहते हो? उसी ने सब किया है. तुम्हें किस ने बताया?’’

‘‘मुझे राशि ने बताया कि उस ने देखा था मोनू को मेरा बैग खोलते हुए.’’

‘‘राशि भी तुम्हारी फ्रैंड है, तुम्हारे साथ ही बैठती है.’’

‘‘नहीं, वह पीछे बैठती है. मोनू की उस से कट्टी है न, इसलिए मोनू उस से बोलता नहीं है,’’ नन्हे ने झट जवाब दिया.

सारा माजरा समझ गया था मैं. छोटेछोटे बच्चे भी कैसीकैसी चालें चल जाते हैं.

‘‘कल सुबह जब जाओगे न, मोनू को गले से लगा लेना, सौरी कह देना. झगड़ा खत्म हो जाएगा.’’

मेरे पोते नन्हे के चेहरे पर ऐसी मुसकान चली आई जिस में एक विश्वास था, एक प्यारा सा, मीठा सा भाव.

दूसरी दोपहर स्कूल से आते ही नन्हे झट से मेरे पास चला आया. ‘‘दादू, आज मोनू मेरे साथ बोला, हम ने खाना भी साथ खाया, झूला भी झूला. थैंक्यू दादू, आप ने मेरी समस्या हल कर दी. मैं ने मोनू को गले से भी लगाया, किस भी किया,’’ नन्हे ने खुश होते हुए बताया.

सारे संसार का सुख नन्हें की आंखों में था जिन में कल उदासी छाई थी. बच्चे का छोटा सा संसार उस का स्कूल, उस का मित्र और उस की मासूम सी चाह थी कि मोनू उस से बात करे. मोनू को नन्हे खोना नहीं चाहता था, वह उदास था. आज मोनू मिल गया तो उसे लग रहा है सारी कायनात की खुशी मोनू के मिलने से उसे मिल गई. मेरे चाचा मेरे अच्छे मित्र भी थे. उन्होंने समझाया था मुझे, कभी जीवन में एकतरफा फैसला न करो. फांसी पर चढ़ने वाले को भी कानून एक बार तो बोलने का अवसर देता है न. मैं अपने पोते नन्हे जैसा मासूम होता तो शायद चाचा का कहना मान लेता. बढ़ती उम्र शीशे से मन पर मैल के साथसाथ जिद भी ले आती है. धुंधले शीशे में कुछ भी साफ नहीं दिखता. क्यों जिद पर अड़ा रहा मैं और झूठा दंभ पालता रहा. आज सोचता हूं कि क्या मिला मुझे. हर पल कलेजे में एक फांस सी धंसी रहती है, बस.

लिवर से जुड़ी प्रौब्ल्म का इलाज बताएं?

सवाल-

2 वर्ष पहले मेरा लिवर प्रत्यारोपण हुआ था. मैं एक टैटू बनवाना चाहती हूं, लेकिन मैं ने सुना है कि यह मेरे नए लिवर को प्रभावित कर सकता है. अगर मैं टैटू बनवाती हूं तो क्या मुझे कोई समस्या होगी?

जवाब-

टैटू बनवाने से हैपेटाइटिस सी होने का खतरा अधिक होता है, जो आगे चल कर आप के प्रत्यारोपित लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है. फिर भी यदि आप टैटू बनवाने के लिए बहुत उत्सुक हैं, तो पहले अपने लिवर प्रत्यारोपण करने वाले शल्य चिकित्सक अथवा अन्य किसी लिवर रोग विशेषज्ञ से परामर्श कर लें.

सवाल-

मैं 45 वर्षीय पुरुष हूं. काम के ज्यादा तनाव के कारण मैं ने शराब पीनी शुरू कर दी और फिर इस की लत लग गई. कई वर्षों की लत के बाद 1 वर्ष पहले मुझे लिवर सिरोसिस होने का पता चला. उस के बाद मैं ने शराब पीनी पूरी तरह छोड़ दी. क्या लिवर सिरोसिस के लिए कोई प्राकृतिक उपचार है?

यदि आप ने शराब छोड़ दी है तो इस बीमारी के बढ़ने की संभावना कम है. फिर भी किसी लिवर विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श लें.

जवाब-

मेरी उम्र 34 वर्ष है. कुछ दिनों से मुझे अपने शरीर की क्रियाओं में कुछ बदलाव दिखाई दे रहा है. मुझे अकसर डायरिया और उलटियों की शिकायत हो जाती है. मैं अकसर फूड पौइजनिंग का भी शिकार हो जाता हूं. मैं ने अभी डाक्टर से सलाह नहीं ली है. मुझे क्या करना चाहिए?

फौरन डाक्टर से मिलें.

सवाल-

मैं 6 महीने बाद बिजनैस के लिए दक्षिण अमेरिका जा रहा हूं और वहां 2 वर्ष रहूंगा. मैं ने सुना है कि वहां हैपेटाइटिस ए काफी प्रचलित है. मुझे क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? यदि मुझे हैपेटाइटिस ए हो जाता है तो उपचार के क्या साधन हैं?

जवाब-

हैपेटाइटिस ए से बचाव के लिए प्रभावी और सुरक्षित टीके 6 महीने के अंतराल पर 2 बार लगवाने पड़ते हैं, जो 20 वर्षों तक सुरक्षित रखते हैं. चूंकि आप 6 महीने बाद जा रहे हैं, तो एक अभी लगवा लें और दूसरा जाने से ठीक पहले यानी 6 महीने बाद. इस के अलावा अपने खानपान को ले कर भी सावधानी बरतें.

– डा. आर.पी.चौबे श्री बालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हृदय संबंधी बीमारियों से जल्द पाएं निजात

हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त महिलाओं की गर्भावस्था अधिक जोखिम वाली मानी जाती है. इस दौरान ऐसी महिलाओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है.

अधिक जोखिम वाली गर्भावस्था (हाई ब्लडप्रैशर, गर्भावस्था के दौरान ऐक्लैंसिया) और हार्ट अटैक व स्ट्रोक आने की आशंका बढ़ने (8 से 10) के बीच संबंध पाया गया है. ये आंकड़े सामान्य गर्भावस्था वाली महिलाओं की तुलना में जुटाए गए हैं.

जोखिमभरी गर्भावस्था वाली महिलाओं की पहचान की जानी चाहिए और नियमित तौर पर हाई ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल व डायबिटीज के लिए उन की जांच की जानी चाहिए. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के दिशानिर्देशों के अनुसार, अधिक जोखिम वाली गर्भावस्था के एक साल के भीतर इन महिलाओं की स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए.

आयरन की कमी से हृदय रोग

एनीमिया में रक्त में औक्सीजन ले जाने वाली मौलिक्यूल हीमोग्लोबीन का स्तर कम हो जाता है और इस से सीधे हार्ट अटैक हो सकता है या फिर व्यक्ति की हृदय संबंधी बीमारियों की गंभीरता बढ़ सकती है. विटामिन बी1 की कमी के कारण होने वाले एनीमिया से हार्ट पर सीधे असर हो सकता है जिस से हार्ट फेल भी हो सकता है. हालांकि, तुरंत विटामिन बी1 की डोज देने से इस स्थिति को बदला जा सकता है.

एनीमिया आमतौर पर कंजैस्टिव हार्ट फेल्योर और कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ा देता है. हार्ट फेल होने या एंजाइना की स्थिति में अगर रोगी का हीमोग्लोबीन स्तर 7-8 ग्राम से कम है तो रोगी के लक्षण और प्रोग्नोसिस को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए सुधारा जा सकता है.

हृदय संबंधी बीमारियों के ज्यादातर रोगी जो दवाएं लेते हैं उन में खून को पतला करने वाले तत्त्व होते हैं, जिस से खून की मात्रा कम हो सकती है. एनीमिक रोग में हृदय संबंधी बीमारी का पता चलने पर इन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

स्वस्थ हृदय के लिए भोजन

हमेशा से ही मनुष्य को होने वाली बीमारियों को उस के द्वारा खाए जा रहे भोजन से जोड़ा जाता रहा है. आधुनिक युग में लोगों को होने वाली हृदय संबंधी सब से आम बीमारी कोरोनरी आर्टरी डिजीज का भोजन के साथ गहरा रिश्ता है. आधुनिक भोजन में फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है. विशेषतौर पर, सैचुरेटेड फैट का सीधा संबंध कोरोनरी आर्टरी डिजीज से होता है. वहीं दूसरी ओर, फलों और हरी सब्जियों जैसे स्वस्थ भोजन में कई ऐसे तत्त्व पाए जाते हैं जो हृदय की सुरक्षा में प्रभावकारी होते हैं.

कुछ ऐसे भोजन जो स्वस्थ हृदय के लिए सही हैं. जैसे हरी सब्जियां, फल, अनाज, पौलीअनसैचुरेटेड औयल जैसे सरसों, औलिव और कनोला, मछली विशेषकर समुद्री मछली और नट्स जैसे बादाम, अखरोट इत्यादि.

स्लीप एप्निया

इस से अचानक कार्डियेक डैथ यानी एससीडी (लक्षण दिखने के 1 घंटे के भीतर मौत) का जोखिम बढ़ जाता है. औब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया यानी ओएसए से एससीडी होने की आशंका 2.5 गुना बढ़ जाती है. ओएसए के दौरान रक्त में बारबार औक्सीजन की कमी (हाइपोक्सिया) होती है. हाइपोक्सिया की इस अवधि के दौरान हृदय में हार्ट रिदम संबंधी विकास उत्पन्न होने लगते हैं. इन रिदम डिस्और्डर में से एक वैंट्रिक्यूलर टैकीकार्डिया/ फाइब्रिलेशन सडन कार्डियेक डैथ के लिए जिम्मेदार होता है.

ओएसए को कई बार कार्डिएक जोखिम बढ़ाने वाले कारकों जैसे मोटापा, हाइपरटैंशन, डायबिटीज से भी जोड़ा जा सकता है, जिन की वजह से कोरोनरी आर्टरी डिजीज होती हैं. कोरोनरी आर्टरी डिजीज अपनेआप में सडन कार्डिएक डैथ की बड़ी वजह होती हैं. यह भी देखा गया है कि ओएसए और संबंधित बीमारियों का इलाज कराने से एससीडी के मामलों में गिरावट आई है.

हार्ट अटैक के जोखिम कारक

जोखिम कारक ऐसी क्लीनिकल परिस्थितियां होती हैं जो किसी व्यक्ति या समाज में मौजूद होती हैं, जिन से कोई विशिष्ट बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. हार्ट डिजीज की बात करें तो इस के लिए कई जोखिम कारकों की पहचान की गई है. जोखिम कारकों के सब से बड़े अध्ययन, जिस में 52 देशों के पुरुषों व महिलाओं समेत 30 हजार से अधिक लोगों ने प्रतिभागिता की, में सामने आया है कि किसी व्यक्ति को हृदय संबंधी बीमारियां होने की मुख्यतया 9 बुनियादी वजहें होती हैं– टोटल कोलैस्ट्रौल, धूम्रपान, हाइपरटैंशन, डायबिटीज, ऐब्डौमिनल औबेसिटी, मनोवैज्ञानिक, आहार यानी फल व सब्जियां, शारीरिक गतिविधियां और मदिरापान.

इन जोखिम कारकों की मौजूदगी के मामले में महिलाएं भी पुरुषों से अलग नहीं होती हैं, सिर्फ इन 2 लिहाज से कि महिलाओं में ट्राइग्लिसराइड्स लिपिड व एस्ट्रोजन और ओरल कंस्ट्रासैप्टिव्स भी भूमिका निभाते हैं. इस के अतिरिक्त कोई अंतर नहीं है.

जिन महिलाओं को मासिकधर्म हो रहा हो, उन्हें इस बीमारी से थोड़ी सुरक्षा रहती है. लेकिन डायबिटीज, हाइपरटैंशन, धूम्रपान और मोटापे जैसी समस्याओं ने इस लाभ को काफी हद तक कम कर दिया है.

साइलैंट हार्ट अटैक

करीब 20 से 25 फीसदी मामलों में हार्ट अटैक का सीने में दर्द जैसा सामान्य लक्षण नहीं दिखता, बल्कि इस में सांस लेने में तकलीफ, अचानक कमजोरी महसूस होना, बेहोशी होना इत्यादि लक्षण दिखते हैं. इस वजह से लोगों का ध्यान इस की तरफ नहीं जाता. इस की तरफ ध्यान तभी जाता है जब व्यक्ति फिजीशियन के पास जा कर ईसीजी और अल्ट्रासाउंड कराता है और उस में हार्ट अटैक होने के लक्षण मिलते हैं. यह सब से ज्यादा डायबिटीज से पीडि़त व्यक्तियों या बुजुर्गों में दिखता है और इसलिए जब इस आबादी में असाधारण लक्षण दिखें तो उन की ध्यानपूर्वक जांच करना बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है. साइलैंट हार्ट अटैक का इलाज भी सीने में दर्द करने वाले सामान्य हार्ट अटैक जैसा ही होता है.

सामान्य गलतफहमियां

मौजूदा समय में सब से अधिक मौतों की प्रमुख वजहों में हार्ट अटैक भी शामिल है. इस बीमारी के कारण बड़ी संख्या में होने वाली मौतों को देखते हुए इसे ले कर गई गलत अवधारणाएं भी बन गई हैं.

भारत में हृदय संबंधी बीमारियों को ले कर शीर्ष 10 गलत अवधारणाएं निम्न हैं-

यह गैस की बीमारी है, इस का हार्ट अटैक से कोई लेनादेना नहीं है. ईनो, एंटासिड लेने से काम चल जाएगा. हृदय संबंधी बीमारियों के प्रति इसी गलत अवधारणा के कारण रोजाना कई रोगी जान गंवा रहे हैं. कोई भी असाधारण लक्षण महसूस हो, विशेषकर सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, बेहद कमजोरी आदि तो तुरंत फिजीशियन से संपर्क करें.

मुझे पता है कि मैं धूम्रपान करता / करती हूं, हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज है लेकिन मुझे हृदय संबंधी बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं तो फिर चिंता की क्या बात, ये परिस्थितियां साइलैंट किलर होती हैं. संभव है कि कई वर्षों तक कोई लक्षण नहीं दिखाई दे लेकिन इन्हें नजरअंदाज करना बाद में जानलेवा साबित हो सकता है.

मेरे मातापिता को हृदय संबंधी बीमारियां हैं लेकिन उस के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता है. अगर ऐसा है तो आप को भी हृदय संबंधी बीमारियां होने का जोखिम है. लेकिन आप कुछ कदमों का पालन कर इसे रोक सकते हैं, जैसे धूम्रपान नहीं करें और डायबिटीज, हाइपरटैंशन व कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करें. साथ ही, स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, स्वस्थ भोजन खाएं और वजन नियंत्रित रखें.

हृदय संबंधी बीमारी होने की चिंता करने के लिए मेरी उम्र अभी बहुत कम है. ऐसा ठीक नहीं है क्योंकि आप की कोरोनरी आर्टरीज में फैट इकट्ठा होने की प्रक्रिया बचपन में ही शुरू हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए कदम उठाने भी आप को कम उम्र में ही शुरू कर देने चाहिए.

ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम

अगर किसी महिला नहीं, बल्कि किसी और वजह से आप का दिल टूटा है तो यह गंभीर समस्या है. यह ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम साबित हो सकता है. आमतौर पर इस की वजह गंभीर तनाव वाली परिस्थितियां, जैसे किसी प्रिय की मृत्यु होना या तलाक इत्यादि होती है. यह हार्ट अटैक जैसा ही होता है और इस से हार्ट फेल भी हो सकता है. इस की कोरोनरी एंजियोग्राम और हृदय का अल्ट्रासाउंड (ईको) से जांच कराएं. यह पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होता है. अच्छी बात यह है कि ज्यादातर मामलों में हृदय कुछ हफ्तों में ही इस से उबर जाता है.

10 बातें जो आप को जाननी चाहिए

जानें कि आप को हृदय संबंधी बीमारियां होने का कितना जोखिम है, यह आप की उम्र, परिवार, पारिवारिक इतिहास, आप के वजन, शारीरिक गतिविधियों के स्तर, धूम्रपान की आदत, डायबिटीज, हाइपरटैंशन और कोलैस्ट्रौल पर निर्भर करती है.

धूम्रपान करते हैं, तो छोड़ दें.

लंबाई के अनुपात में स्वस्थ वजन बरकरार रखें.

खानपान की आदतों की समीक्षा करें और भोजन में फैट, नट्स, फल व सब्जियों, मांसाहारी पदार्थों, अंडों के सेवन पर ध्यान दें. बताई गई डाइट का पालन करें.

किसी भी प्रकार की कोई शारीरिक गतिविधि करना डायबिटीज, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, कैंसर या स्ट्रोक जैसी बीमारियों को रोकने या देरी करने में प्रभावकारी होती हैं.

ब्लडप्रैशर पर नजर रखें, अगर आप हाइपरटैंसिव हैं तो ब्लडप्रैशर को दिशानिर्देशों के तहत नियंत्रित रखें.

अगर आप को डायबिटीज है तो अपने ब्लडशुगर को बताई गई सीमा में रखें, आदर्श वजन बरकरार रखें, कोलैस्ट्रौल, ब्लडप्रैशर पर नजर रखें और उन्हें नियंत्रित रखें.

कोलैस्ट्रौल की जांच कराएं.

25 वर्ष से अधिक उम्र के प्रत्येक व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि वे इसे दिशानिर्देशों के अनुसार स्वस्थ स्तर पर बरकरार रखें.

जितनी जल्दी मुमकिन हो, पूरे परिवार को इस से बचाने के लिए रोकथाम के कदम उठाएं.

परिवार में महिलाओं को नजरअंदाज नहीं करें. उन में जोखिम कारकों की पहचान व उन का इलाज भी बेहद महत्त्वपूर्ण है.

आधुनिक जीवनशैली में 30 से 40 वर्ष की उम्र में ही लोगों को दिल के रोग होने लगे हैं. खराब जीवनशैली, तनाव, व्यायाम न करना, खराब खानपान इस के प्रमुख कारण हैं. जोखिमभरी गर्भावस्था वाली महिलाओं की नियमित रूप से हाई ब्लडपै्रशर, कोलैस्ट्रौल व डायबिटीज की जांच की जानी चाहिए.

Bigg Boss 17 Promo: दिल और दिमाग को हिलाकर रख देगा बिग बॉस, 3 अवतार में दिखें सलमान

बॉलीवुड के दबंग एक्टर सलमान खान का कॉन्ट्रोवर्शियल शो ‘बिग बॉस’ टीवी का सबसे हिट शो है. सलमान बिग बॉस 17 के होस्ट के रूप में वापस आ गए हैं. बिग बॉस ओटीटी सीजन 2 खत्म होने के ठीक एक महीने बाद, सलमान ने गुरुवार शाम को रियलिटी शो के एक नए प्रोमो के साथ फैंस को हैरान कर दिया. सलमान ने इंस्टाग्राम पर नए सीज़न का पहला प्रोमो साझा किया.

बिग बॉस 17 का नया प्रोमो

टीवी का कॉन्ट्रोवर्शियल शो ‘बिग बॉस 17’ का प्रोमो आ चुका है. पहले प्रोमो में सलमान कहते हैं कि अब तक दर्शकों को केवल आंखें ही देखने को मिली हैं, लेकिन इस बार सभी को पहली बार तीन अवतार देखने को मिलेंगे. पहला अवतार ‘दिल’ या हार्ट है. प्रोमो में सलमान लाल कुर्ता पहने हुए और कैमरे की ओर देखकर मुस्कुराते हुए नजर आ रहे हैं.

वहीं, दूसरे अवतार में वह ‘दिमाग’ और ब्रेन कहते नजर आ रहे हैं. आख़िर में, सलमान कहते हैं कि तीसरा भाग ‘दम’ या शक्ति है. टीज़र यहां सलमान के कहने के साथ समाप्त होता है, “अभी के लिए इतना ही, प्रोमो हुआ खत्म.

प्रोमो शो के नए लोगो और टैगलाइन, ‘कमिंग सून’ के साथ समाप्त होता है. कैप्शन में सलमान ने लिखा, ‘इस बार बिग बॉस दिखाएंगे एक अलग रंग, जिसे देखकर रह जाएंगे आप सब दंग.’

 

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फैंस ने दी प्रतिक्रियाएं

बिग बॉस 17 के नए प्रोमो पर फैंस ने प्रतिक्रिया दी. टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया करते हुए, एक प्रशंसक ने कहा, “आखिरकार प्रोमो आ गया, मैं बहुत उत्साहित हूं. दूसरे ने कहा, “वाह, मैं बहुत उत्साहित हूं.” एक टिप्पणी में लिखा था, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा! आख़िरकार!” “यह देखने के लिए बहुत उत्साहित हूं कि नया अवतार क्या है!”

बिग बॉस 17 के ये कंटेस्टेंट्स

शो के संभावित कंटेस्टेंट्स को लेकर कई खबरें आईं. मीडिया रिपोर्ट के  मुताबिक एक सूत्र के हवाले से कहा गया है कि कंवर ढिल्लन और ऐलिस कौशिक बिग बॉस 17 में नजर आ सकते है.

Anupama: मालती देवी ने अनुज को लगाया गले, अनुपमा हुई हैरान

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में आया जबरदस्त ट्विस्ट मालती देवी ने अनुज को लगाया गले. शो के मेकर्स टीआरपी में नंबर वन बनने के लिए जद्दोजहद में लगे है. अनुपमा के बीते एपिसोड में देखने को मिला कि पाखी सही सलामत घर में पाखी की एंट्री हो जाती है. जिसको लेकर सब परेशान थे. रोमिल के इस प्रैंक से सभी लोग नाराज होते है और उसे जेल भेजना चाह रहे होते है. रोमिल का पक्ष अंकुश लेता है लेकिन पाखी ने रोमिल को माफ कर दिया है.

मालती देवी ने अनुज को लगाया गले

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि कपाडिया हाउस में मालती देवी से कुछ कांच के पीस टूट जाते है. जिससे वह परेशान हो जाएगी और बार-बार कहेंगी- मैंने कुछ नहीं किया, मैंने कुछ नहीं किया. इस पर अनुपमा कहेंगी कोई बात नहीं टूट गया तो टूट गया. हालांकि इस बीच कांच के ऊपर से गुजर के मालती देवी अनुज को गले लगाती है और कहती, प्लीज मुझे ले जाओ, मुझे यहां नहीं रहना है. अपनी मां को घर ले जा. ये देख के हर कोई हैरान रह जाता है. खुद अनुज भी.

 

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मालती देवी की वापसी

आपको बता दें, मालती देवी पहले अनुपमा के सपने के लिए उसकी मदद करती थी. तो बाद में उसके खिलाफ हो गई थी और उसे बर्बाद करना चाहती थी. इसके बाद मालती देवी का शो में ट्रैक खत्म कर दिया था. जब उनकी वापसी हुई तो वह शो में बेसुध नजर आई. उनकी याददाश्त जा चुकी थी. अनुपमा को अभी तक पता लग चुका है कि यह सब नकुल की वजह से हुआ है जिसने धोखे से उनकी संपत्ति को हड़प ली. अब अनुपमा मालती देवी का ख्याल रख रहीं है.

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