Cook Book special: बेहतरीन बंगाली कुजीन

बंगाल के खाने के गजब ही स्वाद होता है. वैसे तो बंगाल का रसगुला, मिष्टी दोई और विरयानी बहुत फैमस है. तो आज हम आपको बंगाल की फेमस फूड की रेसिपी बताने जा रहे है. तो देर किस बात की. आइए बनाते है बंगाली जायके.

  1. कोशा मांगशो

सामग्री

1.  500 ग्राम मटन कटा 

2.  1/2 कप सरसों का तेल 

3.  4 लौंग, हरी इलायची और दालचीनी के कुछ छोटे टुकड़े 

4.  1/2 कप प्याज ग्रेट किया 

5.  1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट 

6. लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार

  7. 1/2 बड़ा चम्मच हल्दी 

8.  1 बड़ा चम्मच जीरा भुना 

9.  500 ग्राम हंग कर्ड 

10. नमक स्वादानुसार.

विधि

तेल गरम कर लौंग, इलायची और दालचीनी डालें. फिर प्याज डाल कर उस के मुलायम होने तक सौते करें. अब अदरकलहसुन पेस्ट, मिर्च पाउडर और हलदी मिला कर चलाते हुए फ्राई करें. मटन मिला कर तेज आंच पर फ्राई करें. आंच धीमी करें और फैट के अलग होने तक सौते करें. अब दही, जीरा और नमक मिलाएं. फैट के अलग होने तक फिर सौते करें. ढक कर धीमी आंच पर पकने दें. फिर गरमगरम सर्व करें.

2. मिष्टी दोई

सामग्री

1. 1 लिटर दूध फुल क्रीम 

  2. 300 ग्राम पाम गुड़

  3. 2 छोटे चम्मच दही

विधि

एक भारी पैंदी वाले पैन में दूध को तब तक गरम करें जब तक कि वह 1/4 न रह जाए. फिर भारी पैंदी वाले सौसपैन में गुड़ गरम करें. 10 एमएल पानी की सहायता से उसे ठंडा करें. अब उबलते दूध में गुड़ डाल कर उसे अच्छी तरह मिलाएं. 5 मिनट तक पका कर 40 डिग्री सैल्सियस पर ठंडा करें. अब उस में दही मिलाएं. दही मिलाते समय दूध बहुत ज्यादा गरम न हो. इस मिश्रण को किसी टैराकोटा या मिट्टी के बरतन में निकालें. हलकी गरम जगह सैट होने रख दें. ठंडा हो जाने पर सर्व करें.

3. कोलकाता बिरयानी

सामग्री

1. बिरयानी मसाला की

 2.  6-7 हरी इलायची 

  3. 1-2 काली इलायची

  4. 1 छोटा चम्मच लौंग

   5. 1 इंच के 2 टुकड़े दालचीनी

   6. 1 फ्लोरेट मेस 

    7. 1/4 जायफलद्य 1 स्टार अनाइस 

     8. 1 छोटा चम्मच जीरा

     9. 1 छोटा चम्मच फेनेल

    10. 1 छोटा चम्मच कालीमिर्च.

सामग्री मटन की

  1. 500 ग्राम हड्डी वाला मटन

2.  2-3 छोटे चम्मच हंग कर्ड 

 3. छोटा चम्मच क्रश्ड लहसुन

  4. 1 छोटा चम्मच अदरक कसा 

   5. 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर 

   6. 1/2 छोटा चम्मच कश्मीरी लालमिर्च पाउडर

   7. 1/3 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर 

8. 1 बड़ा चम्मच बिरयानी मसाला

 9. नमक स्वादानुसार

सामग्री बिरयानी चावल की

1.  2 कप चावल 

  2. 1 बे लीफ 

  3. 6-7 हरी इलायची 

  4. 1-2 काली इलायची 

  5. 1 छोटा चम्मच लौंग 

   6. 1 इंच के 2 टुकड़े दालचीनी

   7. 1 फ्लोरेट मेस

   8. 1/4 जायफल 

  9. 1 छोटा चम्मच जीरा 

10. 1 छोटा चम्मच फेनेल

 11. 1 छोटा चम्मच कालीमिर्च 

12. थोड़ा सा घी या मक्खन

 13. 4 कप पानी 

14. नमक स्वादानुसार 

 15. 2 प्याज बड़े

  16. 2-3 आलू बड़े 

   17. 3 अंडे उबले 

  18. 8-10 केसर की पत्तियां

  19. 1/3 कप कुनकुना दूध 

  20. 2-3 बूंदें गुलाब ऐसेंस 

   21. 1/2 छोटा चम्मच केवड़े का पानी

   22. 5-6 बड़े चम्मच घी या मक्खन.

विधि

लोहे के तवे पर हर सामग्री को अलगअलग भून लें. भुने सूखे मसालों का पाउडर बना लें. इसे बिरयानी मसाला कहते हैं. एक बड़े बाउल में हंग कर्ड फेंट कर उस में नमक और मटन के अलावा बाकी सारी सामग्री मिला कर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. फिर मटन और नमक मिला कर 4-5 घंटे या कम से कम 1 घंटे के लिए अलग रख दें. चावलों को धो कर 30 मिनट तक पानी में भिगो कर रखें. फिर चावल वाली सारी सामग्री से मुस्लिन का पाउच बना कर सील कर दें. उस में चावल, नमक, घी और बे लीफ न मिलाएं. बड़े बरतन में उबलते पानी में बे लीफ, नमक, घी और मसालों की पोटली डालें. चावल मिला कर चावल आधा पकने तक पकाती रहें.

पानी निकालें और चावलों को किसी समतल बरतन में निकालें. बे लीफ और मसालों की पोटली को हटा दें. एक कड़ाही में 3 बड़े चम्मच घी गरम कर प्याज के पतले व लंबे टुकड़े कर सुनहरा होने तक तल लें. मटन मिलाएं और धीमी आंच पर भूनती रहें. आलू और मटन के पकने तक भूनती रहें. केसर को कुनकुने पानी में भिगो कर 5 मिनट के लिए अलग रख दें. केसर की लड़ों को दूध में रब करती रहें ताकि पूरी तरह से घुल जाए. उस में गुलाब ऐसेंस और केवड़ा पानी मिला कर 15 मिनट के लिए अलग रख दें. अब एक बड़े बरतन में चावल, ग्रेवी, मटनआलू और अंडों की लेयर्स सजाएं. उन लेयर्स को घी और केसर वाले दूध से अलग करें. सर्विंग प्लेट में निकाल कर गरमगरम परोसें.

शैंपू के बाद मेरे हेयर्स डल नजर आते है, क्या कंडीशनर इस्तेमाल करना सही है?

सवाल

शैंपू के बाद भी मेरे बालों में बिलकुल चमक नहीं आ पाती. कंडीशनर करना क्या अच्छी बात है? इस से बाल चिपचिपे तो नहीं हो जाएंगे? मैं कैसा कंडीशनर इस्तेमाल करूं?

जवाब

कुछ बालों में शैंपू के बाद ऐक्स्ट्रा कंडीशनर करना बहुत जरूरी होता है. अगर आप के बाल खुश्क हैं तो क्रीमी कंडीशनर इस्तेमाल करने के बाद वे चिपचिपे नहीं बल्कि चमकदार हो जाएंगे. तैलीय बालों के लिए शैंपू कंडीशनर रहित होना चाहिए. औयली या सामान्य बालों में अतिरिक्त चमक के लिए एक मग पानी में एक नीबू निचोड़ लें या उस में 1 चम्मच सिरका डाल लें. फिर सिर धोने के बाद इस पानी से बालों को रिंज कर लें. बालों में चमक आ जाएगी. अगर आप चाहें तो लीव इन कंडीशनर भी लगा सकती हैं. गीले बालों में लीव इन कंडीशनर की कुछ बूंदें लगा लें. इस से बालों में शाइन आ जाती है और वे स्टिकी भी नहीं होते. आजकल लीव इन कंडीशनर स्प्रे में भी मिलता है जो मौइस्चराइजिंग स्प्रे कहलाता है. आप उस का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

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मैं 24 साल की युवती हूं. मेरे नाखून पीले दिखते हैं. मुझे हर वक्त उन पर नेलपौलिश लगा कर रखनी पड़ती है. मेरे नेल्स शुरू में कम पीले दिखते थे पर अब बहुत गहरे पीले हो गए हैं और भद्दे नजर आने लगे हैं. इन का स्वाभाविक रंग कैसे वापस लाया जा सकता है? 

जवाब

शरीर में कैल्सियम और फास्फोरस की कमी के कारण नाखून पीले पड़ जाते हैं. अगर आप खाने में दूध कम लेती हैं तो उस की मात्रा बढ़ा दें. हो सके तो रोजाना 1 अंडा जरूर लें. अगर आप कैल्सियमयुक्त आहार का सेवन ठीक से कर रही हैं तो आप को विटामिन डी का भी उचित सेवन करना होगा. शरीर में कैल्सियम से घुलनेमिलने के लिए विटामिन डी भी लेना जरूरी है. नाखूनों का पीलापन बढ़ रहा है तो अच्छी किस्म की नैलपौलिश यूज कीजिए. खराब नैलपौलिश नेल्स पर कलर छोड़ देती है. कुछ समय बाद नेल यलो नजर आने लगते हैं. आप कोशिश करें कि नेलपौलिश  लगाने से पहले बेस कोट जरूर लगाएं. इस से नैलपौलिश का कलर नाखूनों पर नहीं आएगा.

सवाल

मेरी उम्र 22 साल है. मुझे मेकअप करने का बहुत शौक है. पर मुझे समझ नहीं आता कि ब्लशर लगाते वक्त किस बात का ध्यान रखूं ताकि मैं बहुत खूबसूरत मेकअप कर पाऊं? 

जवाब

ब्लशर लगाते वक्त आप को अपनी स्किन टोन का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. यदि आप की स्किन गुलाबी टोन वाली है तो पिंक कलर का ब्लशर इस्तेमाल कर सकती हैं. यदि आप की स्किन पीलापन लिए हुए हैं तो पीच कलर का इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर गहरी या गेहुएं रंग की हैं तो पीची ब्राउन कलर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से आप हमेशा खूबसूरत लगेंगी.

Rakhsa Bandhan:एक विश्वास था- अमर ने क्यों निभाया बड़े भाई का फर्ज

मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.

‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम.

आप का, अमर.

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.

एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.

मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफसुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’

‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’

‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’

‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.

‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.

‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.

‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.

अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है?’

वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था.

‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा.

‘अमर विश्वास.’

‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’

‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.

‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा.

‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.

उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.

‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए. उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.

‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’

‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’

वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.

कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.

दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं. भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई. दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.

मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी. एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?

मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.

शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले.

मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.

‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.

मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी.

अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.

इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था.

मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है.

Raksha Bandhan: अंतत- भाग 2- क्या भाई के सितमों का जवाब दे पाई माधवी

अचानक ही फर्म में लाखों की हेराफेरी का मामला प्रकाश में आया, जिस ने न केवल तीनों साझेदारों के होश उड़ा दिए बल्कि फर्म की बुनियाद तक हिल गई. तात्कालिक छानबीन से एक बात स्पष्ट हो गई कि गबन किसी साझेदार ने किया है, और वह जो भी है, बड़ी सफाई से सब की आंखों में धूल झोंकता रहा है.

तमाम हेराफेरी औफिस की फाइलों में हुई थी और वे सब फाइलें यानी कि सभी दस्तावेज फूफाजी के अधिकार में थे. आखिरकार शक की पहली उंगली उन पर ही उठी. हालांकि फूफाजी ने इस बात से अनभिज्ञता प्रकट की थी और अपनेआप को निर्दोष ठहराया था. पर चूंकि फाइलें उन्हीं की निगरानी में थीं, तो बिना उन की अनुमति या जानकारी के कोई उन दस्तावेजों में हेराफेरी नहीं कर सकता था.

लेकिन जाली दस्तावेजों और फर्जी बिलों ने फूफाजी को पूरी तरह संदेह के घेरे में ला खड़ा किया था. सवाल यह था कि यदि उन्होंने हेराफेरी नहीं की तो किस ने की? जहां तक पिताजी और ताऊजी का सवाल था, वे इस मामले से कहीं भी जुड़े हुए नहीं थे और न ही उन के खिलाफ कोई प्रमाण था. प्रमाण तो कोई फूफाजी के खिलाफ भी नहीं मिला था, लेकिन वे यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि अगर फर्म का रुपया उन्होंने नहीं लिया तो फिर कहां गया? ऐसी ही दलीलों ने फूफाजी को परास्त कर दिया था. फिर भी वे सब को यही विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहे कि वे निर्दोष हैं और जो कुछ भी हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ नहीं जानते.

इन घटनाओं ने जहां एक ओर पिताजी को स्तब्ध और गुमसुम बना दिया था, वहीं ताऊजी उत्तेजित थे और फूफाजी से बेहद चिढ़े थे. जबतब वे भड़क उठते, ‘यह धीरेंद्र तो हमें ही बदनाम करने पर तुला हुआ है. अगर इस पर विश्वास न होता तो हम सबकुछ इसे कैसे सौंप देते. अब जब सचाई सामने आ गई है तो दुहाई देता फिर रहा है कि निर्दोष है. क्या हम दोषी हैं? क्या यह हेराफेरी हम ने किया है?

‘मुझे तो इस आदमी पर शुरू से ही शक था, इस ने सबकुछ पहले ही सोचा हुआ था. हम इस की मीठीमीठी बातों में आ गए. इस ने अपने पैसे लगा कर हमें एहसान के नीचे दबा देना चाहा. सोचा होगा कि पकड़ा भी गया तो बहन का लिहाज कर के हम चुप कर जाएंगे. मगर उस की सोची सारी बातें उलटी हो गईं, इसलिए अब अनापशनाप बकता फिर रहा है.’

एक बार तो ताऊजी ने यहां तक कह दिया था, ‘हमें इस आदमी को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए.’

लेकिन दादी ने कड़ा विरोध किया था. पिताजी को भी यह बात पसंद नहीं आई कि यदि मामला पुलिस में चला गया तो पूरे परिवार की बदनामी होगी.

बात घर से बाहर न जाने पाई, लेकिन इस घटना ने चारदीवारी के भीतर भारी उथलपुथल मचा दी थी. घर का हरेक प्राणी त्रस्त व पीडि़त था. पिताजी के मन को ऐसा आघात लगा कि वे हर ओर से विरक्त हो गए. उन्हें फर्म के नुकसान और बदनामी की उतनी चिंता नहीं थी, जितना कि विश्वास के टूट जाने का दुख था. रुपया तो फिर से कमाया जा सकता था. मगर विश्वास? उन्होंने फूफाजी पर बड़े भाई से भी अधिक विश्वास किया था. बड़ा भाई ऐसा करता तो शायद उन्हें इतनी पीड़ा न होती, मगर फूफाजी ऐसा करेंगे, यह तो उन्होंने ख्वाब में भी न सोचा था.

उधर फूफाजी भी कम निराश नहीं थे. वे किसी को भी अपनी नेकनीयती का विश्वास नहीं दिला पाए थे. दुखी हो कर उन्होंने यह जगह, यह शहर ही छोड़ देने का फैसला कर लिया. यहां बदनामी के सिवा अब धरा ही क्या था. अपने, पराए सभी तो उन के विरुद्ध हो गए थे. वे बूआ को लेकर अपने एक मित्र के पास अहमदाबाद चले गए.

दादी बतातीं कि जाने से पूर्व फूफाजी उन के पास आए थे और रोरो कहा था, ‘सब लोग मुझे चोर समझते हैं, लेकिन मैं ने गबन नहीं किया. परिस्थितियों ने मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचा है. मैं चाह कर भी इस कलंक को धो नहीं पाया. मैं भी तो आप का बेटा ही हूं. मैं ने उन्हें हमेशा अपना भाई ही समझा है. क्या मैं भाइयों के साथ ऐसा कर सकता हूं. क्या आप भी मुझ पर विश्वास नहीं करतीं?’

‘मुझे विश्वास है, बेटा, मुझे विश्वास है कि तुम वैसे नहीं हो, जैसा सब समझते हैं. पर मैं भी तुम्हारी ही तरह असहाय हूं. मगर इतना जानती हूं, झूठ के पैर नहीं होते. सचाई एक न एक दिन जरूर सामने आएगी. और तब ये ही लोग पछताएंगे,’ दादी ने विश्वासपूर्ण ढंग से घोषणा की थी.

व्यवसाय से पिताजी का मन उचट गया था, उन्होंने फर्म बेच देने का प्रस्ताव रखा. ताऊजी भी इस के लिए राजी हो गए. गबन और बदनामी के कारण फर्म की जो आधीपौनी कीमत मिली, उसे ही स्वीकार कर लेना पड़ा.

पिताजी ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली, जबकि ताऊजी का मन अभी तक व्यवसाय में ही रमा हुआ था. वे पिताजी के साथ कोई नया काम शुरू करना चाहते थे. किंतु उन के इनकार के बाद उन्होंने अकेले ही काम शुरू करने का निश्चय कर लिया.

फर्म के बिकने के बाद जो पैसा मिला, उस का एक हिस्सा पिताजी ने फूफाजी को भिजवा दिया. हालांकि यह बात ताऊजी को पसंद नहीं आई, मगर पिताजी का कहना था, ‘उस ने हमारे साथ जो कुछ किया, उस का हिस्सा ले कर वही कुछ हम उस के साथ करेंगे तो हम में और उस में अंतर कहां रहा. नहीं, ये पैसे मेरे लिए हराम हैं.’

किंतु लौटती डाक से वह ड्राफ्ट वापस आ गया था और साथ में थी, फूफाजी द्वारा लिखी एक छोटी सी चिट…

‘पैसे मैं वापस भेज रहा हूं इस आशा से कि आप इसे स्वीकार कर लेंगे. अब इस पैसे पर मेरा कोई अधिकार नहीं है. फर्म में जो कुछ भी हुआ, उस की नैतिक जिम्मेदारी से मैं मुक्त नहीं हो सकता. यदि इन पैसों से उस नुकसान की थोड़ी सी भी भरपाई हो जाए तो मुझे बेहद खुशी होगी. वक्त ने साथ दिया तो मैं पाईपाई चुका दूंगा, क्योंकि जो नुकसान हुआ है, वह आप का ही नहीं, मेरा, हम सब का हुआ है.’

पत्र पढ़ कर ताऊजी वितृष्णा से हंस पड़े थे और व्यंग्यात्मक स्वर में कहा था, ‘देखा रघुवीर, सुन लो मां, तुम्हारे दामाद ने कैसा आदर्श बघारा है. चोर कहीं का. आखिर उस ने सचाई स्वीकार कर ही ली. लेकिन अब भी अपनेआप को हरिश्चंद्र साबित करने से बाज नहीं आया.’

पिताजी इस घटना से और भी भड़क उठे थे. उन्होंने उसी दिन आंगन में सब के सामने कसम खाई थी कि ऐसे जीजा का वे जीवनभर मुंह नहीं देखेंगे. न ही ऐसे किसी व्यक्ति से कोई संबंध रखेंगे, जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो, फिर चाहे वह उन की बहन ही क्यों न हो.

बूआ न केवल फूफाजी से जुड़ी हुई थीं बल्कि वे उन का एकमात्र संबल थीं. उस के बाद वास्तव में ही पिताजी फूफाजी का मुंह न देख सके. वे यह भी भूल गए कि उन की कोई बहन भी है. उन्होंने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि वे लोग कहां हैं, किस हालत में हैं.

इधर ताऊजी ने बिलकुल ही नए क्षेत्र में हाथ डाला और अपना एक पिं्रटिंग प्रैस खोल लिया. शुरू में एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ. बहुत समय तक ऐसे ही चला, किंतु धीरेधीरे पत्रिका का प्रचारप्रसार बढ़ने लगा. कुछ ही वर्षों में उन के प्रैस से 1 दैनिक, 2 मासिक और 1 साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन होने लगा. ताऊजी की गिनती सफल प्रकाशकों में होने लगी. किंतु जैसेजैसे संपन्नता बढ़ी, वे खुद और उन का परिवार भौतिकवादी होता चला गया. जब उन्हें यह घर तंग और पुराना नजर आने लगा तो उन्होंने शहर में ही एक कोठी ले ली और सपरिवार वहां चले गए.

इस बीच बहुतकुछ बदल गया था. मैं और भैया जवान हो गए थे. मां, पिताजी ने बुढ़ापे की ओर एक कदम और बढ़ा दिया. दादी तो और वृद्ध हो गई थीं. सभी अपनीअपनी जिंदगी में इस तरह मसरूफ हो गए कि गुजरे सालों में किसी को बूआ की याद भी नहीं आई.

पिताजी ने बूआ से संबंध तोड़ लिया था, लेकिन दादी ने नहीं, इस वजह से पिताजी, दादी से नाराज रहते थे और शायद इसीलिए दादी भी बेटी के प्रति अपनी भावनाओं का खुल कर इजहार न कर सकती थीं. उन्हें हमेशा बेटे की नाराजगी का डर रहा. बावजूद इस के, उन्होंने बूआ से पत्रव्यवहार जारी रखा और बराबर उन की खोजखबर लेती रहीं. बूआ के पत्रों से ही दादी को समयसमय पर सारी बातों का पता चलता रहा.

फूफाजी ने अहमदाबाद जाने के बाद अपने मित्र के सहयोग से नया व्यापार शुरू कर दिया था. लेकिन काम ठीक से जम नहीं पाया. वे अकसर तनावग्रस्त और खोएखोए से रहते थे. बूआ ने एक बार लिखा था, ‘बदनामी का गम उन्हें भीतर ही भीतर खोखला किए जा रहा है. वे किसी भी तरह इस सदमे से उबर नहीं पा रहे. अकेले में बैठ कर जाने क्याक्या बड़बड़ाते रहते हैं. समझाने की बहुत कोशिश करती हूं, पर सब व्यर्थ.’

कुछ समय बाद बूआ ने लिखा था, ‘उन की हालत देख कर डर लगने लगा है. उन का किसी काम में मन नहीं लगता. व्यापार क्या ऐसे होता है. पर वे तो जैसे कुछ समझते ही नहीं. मुझ से और बच्चोें से भी अब बहुत कम बोलते हैं.’

बूआ को भाइयों से एक ही शिकायत थी कि उन्होंने मामले की गहराई में गए बिना बहुत जल्दी निष्कर्ष निकाल लिया था. यदि ईमानदारी से सचाई जानने की कोशिश की गई होती तो ऐसा न होता और न वे (फूफाजी) इस तरह टूटते.

डिंपल करेगी किचन से खाना चोरी, अनुपमा लगाएगी पाखी की क्लास

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में काफी ड्रामा देखने को मिलेगा. अनुपमा डिंपल की जिंदगी का अहम सबक सिखाने के लिए उसके प्रति सख्ती से पेश आएगी.

अनुपमा सीरियल की वर्तमान कहानी अनुपमा और अनुज के इर्द-गिर्द घूमती है, जिन्हें पाखी की भलाई के बारे में चिंता होने लगी है क्योंकि उन्हें अधिक के स्वभाव के बारे में पता चल गया है.

पाखी को लगी अनुपमा की फटकार

शो में अनुपमा और पाखी के बीच बहस देखने को मिलेगी वजह है अधिक. लेकिन यह अनुपमा का सपना होगा सच नहीं. ब्रेकफास्ट के दौरान अधिक, बातों-बातों में अपने ऑफिस वर्क का जिक्र करेगा. वहीं पाखी अनुपमा से कहेगी वह प्रोजेक्ट अधिक को दे दिया जाए. इसके लिए वह बहाना करेगी और अधिक अच्छा बनने का नाटक करेगा.

 

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अनुपमा रोमिल को समझाएगी

अनुपमा रोमिल को जीवन की अच्छी दिशा बताती है और उसे सबके लिए चुभने की बजाय खुश रहने के लिए कहती है.

डिंपल करेगी खाना की चोरी

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में आगे देखने को मिलेगा कि शाह हाउस में साफ-सफाई चलती है. डिंपल को झाड़ू पोछा देती है और साफ सफाई करने को कहती है. इस बीच समर और डिंपी की नाश्ते को लेकर बहस देखने को मिलेगी. वहीं बा, डिंपी को पोछा लगाने सिखाएगी. पोछा लगाने के बाद डिंपी, किचन में जाएगी और भूख लगने पर चोरी से बा के बनाए ढोकले उठाकर खाने लगेगी. हालांकि बा को पता लग जाता है इस बारे में. वहीं आखिर में अनुपमा के पास किंजल का मैसेज आता है कि ऑफिस जाते हुए घर होते हुए जाना.

 

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डिंपल की लगेगी क्लास

अनुपमा के आने वाले एपिसोड में अनुपमा डिंपल को शाह परिवार पर निर्भर नहीं रहने देगी और उसे अपने घर का काम खुद करने के लिए कहेगी. अनुपमा डिंपल से कहती है कि शाह परिवार से कोई भी उसका बिजली बिल नहीं भरेगा और डिंपल को यह काम खुद करना चाहिए क्योंकि वह अब अलग रहती है.

KBC 15: 50 हजार के सवाल पर हार गया कंटेस्टेंट, क्या आप जानते है इसका सही जवाब?

‘कौन बनेगा करोड़पति’ एक ऐसा रियलिटी शो है, जिससे लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं. जब से ये शो शुरू हुआ है, भारत की जनता इस प्लेटफॉर्म पर आने के लिए तरसती है. कई लोगों के लिए ये प्लेटफॉर्म उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित होता है, क्योंकि वह जीती प्राइज मनी से अपना भविष्य बदलने में कामयाब रहते हैं. वहीं, कुछ अपनों का सपना पूरा करने आते हैं. बीते एपिसोड में एक कंटेस्टेंट आया, शो के होस्ट अमिताभ बच्चन ने 23 अगस्त 2023 के एपिसोड में कंटेस्टेंट योगेश कलरा के साथ गेम शुरू किया. योगेश के गलत जवाब से 50 हजार जीतकर भी वह हर गए.

गलत जवाब देकर फंस गए योगेश

बिग बी ने कंटेस्टेंट से 50 हजार रूपये का सवाल पूछा ने योगेश से 50 लाख रुपये के लिए सवाल पूछा- डॉ. एस जयशंकर ने गोवा में संरक्षित 16वीं सदी की ईसाई संत रानी केतेवन के अवशेष किस देश को सौंपे थे? ऑप्शन्स थे- आर्मेनिया, पुर्तगाल, जॉर्जिया और सर्बिया

योगेश ने ऑप्शन बी (पुर्तगाल) चुना लेकिन यह गलत जवाब था. सही जवाब था जॉर्जिया. योगेश 50 लाख जीतने की तरफ बढ़ रहे थे, लेकिन एक गलती के चलते वह वापस 3 लाख 20 हजार पर आ गए. योगेश के जाने के बाद अमिताभ बच्चन ने फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट खेलकर गूगल में काम करने वाली अर्पणा यादव को हॉटसीट पर बुलाया.

शाहरूख खान के जुड़ा सवाल

अमिताभ बच्चन ने अर्पणा यादव से पूछा, “शाहरुख खान स्टारर इनमें से कान सी फिल्म करण जौहर द्वारा निर्देशित नहीं है?” अर्पणा ने ‘जब तक है जान’ का विकल्प चुनकर बता दिया वह कितनी बड़ी फैन है किंग खान की. वहीं अर्पणा ने पहली लाइफलाइन 50 हजार के सवाल पर ली. सवाल था- इनमें से कौन पांडु की मृत्यु के बाद उनकी चिता में कूदा था? ऑप्शन्स थे. माद्री, कुंती, गांधरी, और द्रौपदी.

10 हजार लेकर घर लौटी अर्पणा

ऑडियंस पोल लाइफलाइन लेकर अर्पणा ने जवाब दिया- माद्री. यही सही जवाब भी था. अगले ही सवाल पर उन्होंने Call a Friend लाइफलाइन का इस्तेमाल किया और अपनी दोस्त की मदद से जो जवाब दिया वो गलत निकला. इस तरह अर्पणा सिर्फ 10 हजार रुपये लेकर अपने घर लौटीं.

Cook Book special: कच्छ के करारे जायके

घर पर बनाएं शैप शिप्रा खन्ना की ये स्पेशल डिश. जो आपके स्वाद और सेहत में लजवाब है. आज ही घर पर बनाएं मस्टर शैफ शिप्रा खन्ना की ये डिशिज.

  1. कच्छी दाबेली  

सामग्री

1. 4 बर्गर बन

2.  2 उबले व मैश किए आलू

3.  एकचौथाई कप मूंगफली भुनी

4.   2 बड़े चम्मच इमली की चटनी

 5. 2 बड़े चम्मच लहसुन की चटनी

6. 2 बड़े चम्मच औयल

7.   1 छोटा चम्मच सरसों के दाने

8.  1/2 छोटा चम्मच जीरा

9. चुटकी भर हींग

10. 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

11.  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

12.   गार्निश करने के लिए धनियापत्ती

13.   गार्निश करने के लिए सेव (कुरकुरे चने के आटे के नूडल्स)

14. स्वादानुसार नमक

विधि

एक पैन में औयल को गरम कर के उस में सरसों डाल कर उसे चटकाएं, उस के बाद उसमें हींग और जीरा डालें. अब इस में मसले आलू, हलदी पाउडर, मिर्च पाउडर व नमक डाल कर अच्छे से मिलाते हुए 2-3 मिनट तक पकाएं. फिर बर्गर बन को आधा काट कर हलका टोस्ट करें. अब इमली की चटनी को बन के एक तरफ और दूसरी तरफ लहसुन की चटनी लगाएं. अब आलू के मिश्रण को बन के एक तरफ लगा कर उस पर मूंगफली क्रश करें, साथ ही उस पर धनिया भी डालें. ऊपर से सेव से गार्निश कर के तुरंत कच्छी दाबेली सर्व करें.

 2. कच्छी खिचड़ी

सामग्री

1. 1 कप चावल 

2.   1/2 कप पीली मूंग दाल (स्प्लिट ) 

3.  2 बड़े चम्मच घी 

4. 1 छोटा चम्मच जीरा

5.  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

6.  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

7.   चुटकीभर हींग 

 8.  गार्निश करने के लिए धनियापत्ती

9.    नमक स्वादानुसार.

विधि

एकसाथ दाल और चावल को धो कर आधे घंटे के लिए भिगो कर रख दें. फिर पानी निकाल कर एकतरफ रख दें. अब प्रैशर कूकर में घी गरम कर के उस में हींग और जीरा डालें. फिर हलदी पाउडर, लालमिर्च पाउडर और नमक डाल कर अच्छे से मिलाएं. अब इस में भीगी दाल और चावल डाल कर कुछ मिनट तक चलाएं. फिर इस में 4 कप पानी डाल कर कूकर बंद कर के 10-15 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं. पकने पर धनियापत्ती से गार्निश कर के तैयार कच्छी खिचड़ी को कड़ी या रायता के साथ सर्व करें.

  3. कच्छी कढ़ी

 सामग्री

1. 1 कप योगहर्ट 

   2.  2 बड़े चम्मच बेसन

  3.  2 कप पानी 

 4.  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

5.    1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर 

 6. 1/2 छोटा चम्मच जीरा

7.  1/2 छोटा चम्मच सरसों के दाने

8.  चुटकीभर हींग

9.  थोड़े से करीपत्ते

10.    2 बड़े चम्मच औयल 

  11.  गार्निश करने के लिए धनियापत्ती

12. स्वादानुसार नमक.

बनाने की विधि

एक बाउल में योगहर्ट और बेसन को अच्छे से तब तक फेंटें, जब तक बैटर स्मूद न हो जाए. अब एक पैन में औयल गरम कर के उस में हींग, जीरा और सरसों डाल कर चटकाएं. अब इस में करीपत्ते डाल कर कुछ सैकंड तक चलाएं. इस के बाद इस में योगहर्ट और बेसन का मिक्स्चर डाल कर अच्छे से चलाएं. इस में पानी, हलदी पाउडर, लालमिर्च पाउडर और नमक डाल कर अच्छे से मिलाएं. अब कड़ी को एक उबाल आने के बाद आंच को धीमा कर के 10-15 मिनट तक अच्छे से पकाएं. बीचबीच में चलाना न छोड़े. अब तैयार कच्छी कड़ी को धनियापत्ती से गार्निश कर के स्टीम राइस या रोटी के साथ सर्व करें.

4. कच्छी भाकरी

सामग्री  

 1. 2 कप बाजरे का आटा 

  2. आटा गूंधने के लिए थोड़ा गरम पानी 

   3. थोड़ा सा घी

    4. नमक स्वादानुसार.

विधि

एक मिक्सिंग बाउल में बाजरे का आटा व नमक डालें. फिर इस में धीरेधीरे पानी डालकर सख्त आटा गूंधें. तैयार आटे से छोटीछोटी बौल्स बनाएं. अब आटे की 1 बौल लें और उसे अपनी हथेली से चपटा करें. इस के बाद चपटी लोई (भाकरी) पर आटा छिड़कें और इसे चपटा बेल लें. अब तवे को मीडियम आंच पर गरम करें. अब इस भाकरी को तवे पर तब तक पकाएं जब तक इस में से छोटे बुलबुले नजर न आने लगें. अब इसे उलटा कर के दूसरी तरफ से भी थोड़ा पकाएं. अब इस की दोनों तरफ घी लगा कर सुनहरा होने तक पकाएं और तवे से उतार लें. बाकी बौल्स के साथ भी इसी प्रक्रिया को दोहराएं. अब तैयार कच्छी भाकरी को घी, दही या अपनी पसंद की करी के साथ सर्व करें.

5. कच्छी पूरी

सामग्री

1.  2 कप गेहूं का आटा

 2.  आटा गूंदने के लिए पानी

 3.  फ्राई करने के लिए औयल

  4. नमक स्वादानुसार.

विधि

एक मिक्सिंग बाउल में आटा और नमक डाल कर अच्छे से मिलाएं. फिर इस में धीरेधीरे पानी डाल कर नर्म आटा लगाएं. अब इस आटे से छोटीछोटी बौल्स बनाएं. प्रत्येक बौल को रोलिंग पिन की मदद से पतला गोल बेल लें. फिर डीप पैन में औयल गरम कर के पूरी को फूलने व सुनहरा होने तक फ्राई करें. अब इन पूरियों को औयल से निकाल कर पेपर टौवेल पर रख दें. आखिर में इन तैयार कच्छी पूरियों को अपनी पसंद की करी या फिर अचार के साथ सर्व करें.

सनी देओल तक नहीं चुका पा रहे बैंक का कर्जा

देश के सुपररिचों से ज्यादा ईष्या न करें क्योंकि वे अपने पैसे पर ऐश नहीं करते बल्कि या तो पब्लिक को बेवकूफ बना कर पैसा जमा करते हैं या बैंकों से कर्ज लेते हैं, नीरव मोदी, ललित मोदी, चोखसी, विजय माल्या जैसे सुपर रिच ही नहीं, सोसो रिच सनी देओल जैसे भी बैंक से पैसा लेते हैं और ऐश करते हैं.

सनी  देवल की फिल्म ‘गदर-2’ ने पैसा तो कमाया है पर केवल उसी हिंदू-मुस्लिम खाई को भुना कर. वरना तो जो आलीशान जिंदगी वह जीता था उस में बहुत कुछ बैंकों का है. बैंक औफ बड़ोदा ने उस के वर्ली के 600 गज के मकान के 55 करोड़ के कर्ज को न चुका पाने के लिए अब निर्यात करने का नोटिस दिया है. ‘गदर-2’ की कमाई से आम हिंदू-मुस्लिम  तो एक दूसरे को दुश्मन कुछ और ज्यादा मानने लगेंगे पर सनी देओल शायद इस मकान को बचा ले जाएं.

अदानी, अंबानी जैसे सुपर रिच भी बैंकों के कर्जों में डूबे है और उन के चेहरों पर शिकन नहीं है क्योंकि सरकार की गोदी में फल रहे थे उद्योगपति जानते हैं कि बैंक कभी इन्हें तो छू भी नहीं पाएंगे. इन को वही प्रोटेक्शन हासिल है जो हरियाणा के बजरंगी बिट्टू या नुपूर शर्मा को मिली है.

बैंकों से कर्ज लेना हर जने का हक है पर उसे लौटाने का कर्तव्य भी है, आमतौर पर सुपररिचों को लौटाने की चिंता नहीं होती, सिर्फ किसानों की होती है जो आए दिन आत्महत्या करते रहते हैं और अब तो उन की खबरें भी छपनी सरकारी ईशारों पर बंद हो गई हैं. उन्हें इस हिंदू-मुस्लिम  भेदभाव या सरकारी गोदी का लाभ नहीं मिलता.

बहुत छोटे व्यापारियों के 5 लाख से ले कर 25 लाख तक के करों की निलामी के इश्तेहार अखबारों में छपते रहते है. व्यवसाय में गलत फैसलों या सरकारी परमिटों की देर के कारण कितने ही उद्योग नुकसान में चले जाते है और उन के ठीकठाक मकानों से खोलियों में जा कर रहना पड़ता है.

कर्ज देते समय बैंक बड़ी लुभावनी बातें करते हैं और बाद में जब कोई कठिन समय आए तो वे तुरंत पैसा ले कर बैठ जाते हैं और चलता उद्योग या चलती दुकान बंद हो जाती है.

अच्छा तो यही है कि कर्ज लिया न जाए क्योंकि चाह यह कितना लुभावना हो बाद में दर्द देता है. कर्ज में डुबे घर की बुरी हालत होती है. औरतों के जेवर बिकते हैं, बच्चे की पढ़ाई बंद होती है.

बड़े काम, बड़े मकान, बड़ी गाड़ी का सपना देखने वाले अवसर इस चक्कर में फंसते है. अधबने मकानों की किस्ते देतेदेते लाखों लोगों की हालत पतली हो रही है. हर कोई सनी देओल नहीं होता जिस से भाजपा से अच्छे संबंध है और उस का सांसद है. उस का मकान असल में बिकेगा, इस में शक है जैसे नरेंद्र मोदी के कहने के बावजूद चोखसी, नीरव मोदी, ललित मोदी और विजय माल्या देश में लौटेंगे, इस में शक है.

मैं सब से अधिक हैल्दी कुकिंग पर ध्यान देती हूं- शिप्रा खन्ना सैलिब्रिटी शैफ

शैफ शिप्रा खन्ना ने टीवी की दुनिया में ‘मास्टर शैफ सीजन 2’ से कदम रखा और आज विश्व में ग्लैमरस सैलिब्रिटी शैफ के नाम से जानी जाती हैं. इन्होंने कई रैसिपीज बुक लिखी हैं, कई टीवी शोज में ऐंकरिंग की है, अपना यूट्यूब चैनल चलाती हैं. शिप्रा खन्ना सिंगल मदर हैं और काम के साथसाथ अपने परिवार की भी देखभाल कर रही हैं.

उन्होंने केवल 9 साल की उम्र में किचन में कदम रखा और तब से ले कर आज तक तरहतरह की रैसिपीज से लोगों को अवगत कराया है.शिप्रा ने अपने काम के बल पर यह सिद्ध कर दिया है कि महिलाओं का केवल घर में खाना बनाना ही काम नहीं होता बल्कि वे पुरुषों की तरह बाहर भी सफल मास्टर शैफ बन सकती हैं. शिप्रा को कांस में 2023 में ‘वर्ल्ड इन्फ्लुएंसियल बिजनैस वूमन अवार्ड’ मिला.

यह ग्लोबली अवार्ड है, जिसे पा कर शिप्रा बहुत उत्साहित हैं.अवार्ड पर बात करते हुए शिप्रा कहती हैं कि अवार्ड किसी को भी आगे अच्छा करने की प्रेरणा देता है. मैं पहली इंडियन हूं, जिसे यह अवार्ड मिला है. ये एक बड़ी उपलब्धि है. विबा अवार्ड भारत में पहली बार किसी महिला को मिला है. इस के अलावा मैं डैजर्ट पर एक नई किताब लिख रही हूं. ‘सिंपली योर्स टू.’ इस में हर तरह की मिठाई की रैसिपी है. साथ ही टीवी पर भी एक शो आ रहा है.उस में मैं सब से अधिक ध्यान हैल्दी कुकिंग पर देती हूं.

अभी मैं सरकार के साथ, मिलेट्स पर रैसिपी बना रही हूं क्योंकि मिलेट्स वजन कम करने के साथसाथ पौष्टिक भी होती है. मैं किसी भी शो पर खाने के बारे में जागरूकता फैलाती हूं, जिस में सभी को में छोटीछोटी बातों पर ध्यान देने की सलाह देती हूं ताकि लाइफ की लौजिटिविटी बढ़े और व्यक्ति स्वस्थ रहे. प्लांट बेस्ड फूड का है ट्रैंड खाने में परिवर्तन के बारें में शिप्रा कहती है कि खाने में हमेशा नईनई चीजों का प्रयोग होता है.

हमारे देश के लोग अपने खानपान को भूलकर विदेशों की कौपी करते है, जबकि वहां के लोग यहां के भोजन को अधिक पसंद करते हैं. खाने की पसंद समय के साथ बदलती जाती है. अभी का ट्रैंड प्लांट बेस्ड फूड का है, जिस में दाल, चावल, आलू, सब्जी आदि को लोग पसंद करने लगे हैं.भोजन का ट्रैंड एक सर्कल की तरह है,जो बदलता रहता है खासकर पेंडेमिक के दौरान सभी ने अपनों को खोया है. ऐसे में लोगों ने अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना अब शुरू कर दिया है और यह जरूरी भी हो चुका है. आज ग्लोबल वार्मिंग भी एक बड़ी समस्या विश्व में हो रही है.

कहीं अधिक बारिश तो कहीं सूखा पड़ रहा है.सस्टेनेबिलिटी के बारे में बहुतों को आज पता तक भी नहीं है. ऐसे में मिलेट्स का प्रयोग अच्छा रहेगा क्योंकि इसे अधिक बारिश की जरूरत नहीं पड़ती और यह पौष्टिक होने के साथसाथ कई बीमारियों से बचाती है.मिली प्रेरणा खाना बनाने की प्रेरणा के बारे में शिप्रा का कहना है कि खाना बनाने की प्रेरणा मुझे दादी से मिली.

मेरे लिए दादी खाना बनाती थीं और स्कूल से आने पर बहुत प्यार से खिलाती थीं. तब मुझे समझ में अधिक नहीं आती था, लेकिन प्यार से खाना बना कर खिलाना मुझे बहुत अच्छा लगता था. मैं ने खाना बनाने की शुरुआत तब की जब मेरी बेटी को डाक्टर ने हैल्दी खाना कहने के लिए कहा ताकि उस का वजन न बढें.यहीं से मैं ने हैल्दी खाना बनाना शुरू किया था. पहली डिश मैं ने 9 साल की उम्र में सब्जियों की बनाई थी. उस समय परिवार वालों ने मुझे सहयोग नहीं दिया क्योंकि मैं छोटी थी.

मुझे किचन में काम करने से मेरे पिता मना करते थे,पर मुझे वह काम करना था. बड़े होने के बाद मैं ने कुकिंग शुरू की. धीरेधीरे सभी ने सहयोग दिया.सिंगल मदर होने के बावजूद मैं ने सामंजस्य के साथ पूरा काम किया. मेरे हिसाब से जहां कुछ करने की इच्छा होती है तो व्यक्ति कर लेता है. उसे सहयोग भी मिलता है और मेरे परिवार वालों ने मेरा साथ दिया.

मेरे बच्चों को मेरे हाथ का बना सबकुछ पसंद होता है. करती है तनावमुक्तशिप्रा आगे कहती हैं कि आज का यूथ खाना बनाने से कतराता है, लेकिन उसे समझना होगा कि पहले लोग बहुत समय लगा कर, सोच कर खाना बनाते थे, लेकिन अब स्मार्ट किचन को लोग फौलो करते हैं क्योंकि उन के पास समय का अभाव है. खाना बनाने के अलावा उन के पास समय बिताने के काफी विकल्प उपलब्ध हैं, जिन्हें वे ऐंजौय करते हैं.हैल्दी रैसिपी बनाने में समय नहीं लगता. फल, सलाद, बौयल्ड सब्जियां आदि बनाना आसान होता है. रैडीमेड फूड जितना कम अपने दैनिक जीवन में शामिल करें, उतना सेहत के लिए अच्छा होता है और यह किसी भी तनाव से मुक्त करता है.

इंस्टैंट रैसिपीशिप्रा कहती हैं कि मीठा खाने की इच्छा हो तो फ्रैश नारियल को कद्दूकस कर उस में थोड़ा गुड़ और इलाइची डाल कर मिश्रण को लड्डू की शेप में बना लें. इस के अलावा हैंड मेड ओट्स और पीनट्स बटर के साथ मिल कर लड्डू की शेप दें, जो खाने में स्वादिष्ठ होने के साथसाथ यह खाना पौष्टिक भी होगा. डेजर्ट की ये कुछ खास रेसिपी कोई भी बना सकता है.

मेरी रैसिपी ही मेरी डाइट खुद की डाइट के बारे में शिप्रा बताती हैं कि जो रेसिपी मैं लोगों तक पहुंचाती हूं, उसे खाती मैं भी हूं. मुझे याद आता है कि एक बार किसी शैफ ने मुझ से कहा था कि अगर मैं हट्टीकट्टी नहीं, तो अच्छी शैफ नहीं. तब मैं ने उन से कहा था कि वक्त बदल गया है. अगर आप फिट नहीं हो, तो अच्छे शैफ नहीं हो क्योंकि फिट होने का अर्थ यह है कि मैं अच्छा खाना बना रही हूं और उसे खा कर फिट भी रहती हूं. इस के अलावा सप्ताह में 5 दिन वर्कआउट, योगा आदि करती हूं. डाइट के साथ वर्कआउट करना जरूरी है. यूथ के लिए मैसेज है कि वह इधरउधर न भटके, दृढ़ता से किया गया काम हमेशा सफलता दिलाता है.

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