डाइट के नए फंडे

वजन घटाने और स्लिमट्रिम बने रहने के लिए न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी इन दिनों तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं. दुनिया भर के पोषण विशेषज्ञ एवं डाइटिशियन इस के लिए तरहतरह के डाइट फौर्मूलों का प्रयोग कर रहे हैं. यहां हम आप को कुछ ऐसी ही डाइट्स के बारे में बता रहे हैं.

अल्कलाइन डाइट

अल्कलाइन डाइट में वेट लौस प्रोग्राम के तहत मुख्य रूप से क्षारीय प्रकृति के भोज्यपदार्थ खाने पर जोर दिया जाता है. इस से बौडी का पीएच बैलेंस 7.35 से 7.45 के बीच बरकरार रखने की कोशिश की जाती है.

फायदे: अल्कलाइन डाइट के पैरोकारों का कहना है कि इस से न सिर्फ वजन घटाने में मदद मिलती है, बल्कि आर्थ्राइटिस, डायबिटीज और कैंसर सरीखी कई बीमारियों में भी राहत मिलती है. इतना ही नहीं यह डाइट ऐजिंग की प्रक्रिया को धीमा रखने में मददगार होती है.

थ्योरी क्या है: अल्कलाइन डाइट के समर्थकों के मुताबिक हमारा रक्त कुछ हद तक क्षारीय प्रकृति का होता है, जिस का पीएच लैवल 7.35 से 7.45 के बीच होता है. हमारी डाइट भी इसी पीएच लैवल को मैंटेन करने वाली होनी चाहिए. अम्ल उत्पादक भोजन जैसे अनाज, मछली, मांस, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि खाने से यह संतुलन गड़बड़ा जाता है जिस से जरूरी खनिज जैसे पोटैशियम, मैग्नीशियम, सोडियम आदि का नुकसान हो जाता है. इस असंतुलन से शरीर में बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है और वजन बढ़ने लगता है. इसलिए जरूरी है कि 70% अल्कलाइन फूड खाया जाए और 30% ऐसिड फूड.

सैकंड ओपिनियन: ब्रिटिश डाईटेटिक ऐसोसिएशन के रिक मिलर कहते हैं, ‘‘अल्कलाइन डाइट का सिद्धांत है कि खास भोज्यपदार्थ खाने से शरीर का पीएच बैलेंस मैंटेन रहेगा, लेकिन सही यह है कि शरीर अपना पीएच बैलेंस मैंटेन रखने के लिए डाइट पर निर्भर नहीं है.’’

माना कि अल्कलाइन डाइट से कैल्सियम, किडनी स्टोन, औस्टियोपोरोसिस एवं ऐजिंग की समस्याओं में काफी राहत मिलती है, लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ऐसिड प्रोड्यूसिंग डाइट क्रोनिक बीमारी की वजह है.

मोनो मील डाइट

इस के तहत सुबह या शाम के भोजन में सिर्फ एक खाद्यसामग्री (वह भी फल या सब्जी) रहती है. हमारे प्रचलित भोजन की तरह इस में दालचावल या रोटीसब्जी का तालमेल नहीं रहता. जब कोई मोनो मील पर अमल कर रहा हो, तो वह लंच में सिर्फ केले और डिनर में सिर्फ गाजर या सेब ही खाएगा, दूसरी कोई भी खाद्यसामग्री नहीं. इस डाइट को कोई हफ्ता भर तो कोई 6 महीने तक भी आजमाता है.

फायदे: इस डाइट को अपनाना बेहद आसान है. इस में किसी प्रकार की कृत्रिम खाद्यसामग्री का इस्तेमाल न होने की वजह से इसे हैल्दी भी माना जाता है. एक ही प्रकार का भोजन और वह भी कुदरती होने की वजह से शरीर की पाचन प्रणाली को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती.

नुकसान: भोजन में महीने भर से ज्यादा समय तक सिर्फ एक फल या सब्जी पर निर्भर रहना सेहत पर प्रतिकूल असर डाल सकता है. इस से शरीर में ऊर्जा का स्तर भी गिरने लगता है.

ग्लूटेन फ्री डाइट

डाइट की दुनिया में इन दिनों एक ताजा ट्रैंड आया है- ग्लूटेन फ्री डाइट का. इस के पक्षधर अपनी थाली से गेहूं से बने उत्पाद दूर रखते हैं. उन के मुताबिक गेहूंरहित भोजन उन्हें कई बीमारियां से बचाने के साथसाथ उन का ऐनर्जी लैवल भी इंपू्रव करता है.

ग्लूटेन फ्री डाइट के पैरोकारों का मानना है कि ग्लूटेन पोषक तत्त्वों के शरीर में अवशोषण की प्रक्रिया में बाधक होता है. आजकल कई लोग सैलिएक डिजीज से परेशान हैं. यह ग्लूटेन की वजह से होने वाला औटोइम्यून डिसऔर्डर है, जिस की वजह से डायरिया, वजन घटने और औस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

जेन डाइट

वेट मैनेजमैंट और गुड हैल्थ के लिए आप ने कई तरह की डाइट्स का नाम सुना होगा, लेकिन जापानी सिद्धांत काइजेन पर आधारित जेन डाइट के बारे में नहीं जानते होंगे. काइजेन का अर्थ है, इंप्रूवमैंट. यह वेट लौस प्लान लाइफस्टाइल की लौंग टर्म ओवरहौलिंग है, जिस में आप अपना भोजन बहुत समझदारी से चुनते और खाते हैं.

अपनी खानपान की आदतों में महत्त्वपूर्ण और स्थायी बदलाव ला कर जैसे, चीनी, प्रोसैस्ड फूड और तैलीय भोजन के त्याग या न्यूनतम सेवन से आप न सिर्फ अपना वजन घटाने में कामयाब हो सकते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवन की नीव भी डाल सकते हैं.

शरीर का आदर करें: जेन डाइट में धीरेधीरे अपने भोजन को आनंदपूर्वक खाने की सलाह दी जाती है. आप को प्रेरित किया जाता है कि आप क्या खा रहे हैं उसे देखें, अच्छी नींद लें और आराम भी करें.

धीमी मगर प्रभावशाली: अपनी हैल्थ इंपू्रव करने की चाहत रखने वालों के लिए यह डाइट काफी प्रभावशाली है. इसे अपनाने से वेट लौस स्थायी होता है, लेकिन इस की गति धीमी होती है.

वजन बढ़ाने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मेरा वजन 31 किलोग्राम है. मैं बचपन से ही बहुत दुबलीपतली हूं. मेरा विवाह हो चुका है और 2 साल की एक बेटी भी है. मैं सारे टेस्ट भी करवा चुकी हूं. सब कुछ नौर्मल है. मैं कुछ भी पहनती हूं तो वह मुझ पर जंचता नहीं है. मेरे दोस्त, रिश्तेदार मेरा मजाक उड़ाते हैं. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से मेरा वजन बढ़ जाए और मैं आकर्षक दिखूं?

जवाब-

दुबलापतला होना कई कारणों पर निर्भर करता है. जैसे आनुवंशिकता, व्यक्ति विशेष का मैटाबोलिज्म, उस का खानपान व बौडी स्ट्रक्चर आदि. आप आकर्षक दिखने व चेहरे पर रौनक लाने के लिए ऐक्सरसाइज करें. चेहरे को गुब्बारे की तरह फुलाएं व बंद करें. ऐसा 15-20 बार करें. इस से चेहरे पर रौनक आएगी व गाल भरेभरे लगेंगे. जहां तक वजन बढ़ाने की बात है तो भोजन में दूध, दही, पनीर जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स अधिक मात्रा में शामिल करें. कार्बोहाइड्रेट्स अधिक लें. केले का सेवन करें. दिन में 5-6 बार थोड़ेथोड़े अंतराल पर खाएं. ऐसा करने से वजन बढ़ाने में मदद मिलेगी. नियमित ऐक्सरसाइज करें. इस से भूख बढ़ेगी और फिर खाना खाने से वजन बढ़ेगा.

सवाल

मैं 16 वर्षीय युवती हूं. मैं अपने बड़े स्तनों को ले कर परेशान हूं. उन की वजह से मुझे बड़े साइज के कपड़े खरीदने पड़ते हैं. इस से सही फिटिंग नहीं आ पाती. कृपया स्तनों को छोटा करने का कोई तरीका बताएं?

जवाब

स्तनों का छोटा या बड़ा होना आनुवंशिकता पर निर्भर करता है. साथ ही अगर वजन अधिक हो तो भी स्तनों का साइज बड़ा होता है. उन के साइज को कम करने का एक तरीका प्लास्टिक सर्जरी है और एक ऐक्सरसाइज. कई बार हारमोनल असंतुलन भी ब्रैस्ट साइज के घटने या बढ़ने का कारण होता है. जहां छोटी ब्रैस्ट की वजह ऐस्ट्रोजन की कमी व टैस्टोस्टेरौन की अधिकता होती है, वहीं बड़ी ब्रैस्ट में स्थिति इस के विपरीत होती है. हारमोनल बैलेंस के लिए आप किसी गाइनोकोलौजिस्ट से संपर्क कर सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ज्यादा वजन से होने वाली बीमारियां और इलाज बताएं?

सवाल-

मैं 57 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरा वजन 98 किलोग्राम और लंबाई 5 फुट 3 इंच है. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. और्थोपैडिक सर्जन ने नी रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने से पहले वजन कम करने की सलाह दी है. काफी प्रयासों के बाद भी मेरा वजन कम नहीं हो रहा है. डाक्टर ने मुझे बैरिएट्रिक सर्जरी कराने की सलाह दी है. क्या यह सुरक्षित सर्जरी है?

जवाब-

आप के और्थोपैडिक डॉक्टर ने सही सलाह दी है. आप को नी रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने से पहले अपना वजन कम करना ही होगा क्योंकि वजन अधिक होने से सर्जरी कराने से भी आप को आराम नहीं मिलेगा. बैरिएट्रिक सर्जरी एक बहुत ही सुरक्षित सर्जरी है, लेकिन आप इसे किसी अच्छे अस्पताल में प्रशिक्षित डाक्टर से ही कराएं. इसे कराने के बाद जोड़ों का दर्द भी कम होगा और इस के बाद अगर आप नी रिप्लेसमैंट सर्जरी का विकल्प भी चुनेंगी तो भी अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे.

सवाल-

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले 2 वर्षों से मैं नियमित रूप से ऐक्सरसाइज कर रही हूं? लेकिन मेरा वजन कम नहीं हो रहा है. मैं जानना चाहती हूं कि खानपान की वजन कम करने में क्या भूमिका है?

जवाब-

वजन कम करने में खानपान की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. आप कितनी भी ऐक्सरसाइज कर लें लेकिन अगर आप अपनी कैलोरी इनटेक को नियंत्रित नहीं रखेंगी तो वजन कम कर पाना संभव नहीं होगा. दिन में 3 बार मेगा मील खाने के बजाय 6 बार मिनी मील खाएं. गेहूं के बजाय मल्टीग्रेन आटे का सेवन करें. हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी और सरसों खूब खाएं. एक दिन में 600 ग्राम हरी सब्जियां खाने की कोशिश करें. जितनी बार भोजन करें उतनी बार आप की थाली में एक ऐसा पकवान जरूर हो, जिस में प्रोटीन पाया जाता हो. चावल, चौकलेट, कौफी, चिप्स, मिठाई तथा फास्ट फूड के स्थान पर सादा, सुपाच्य तथा संतुलित भोजन लें. भोजन को खूब चबाचबा कर खाएं तथा हमेशा कुछ न कुछ खाते रहने से परहेज करें. रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले कर लें.

सवाल-

मेरा 2 साल का बेटा है. उस का वजन थोड़ा ज्यादा है. मैं ने सुना है जो बच्चे बचपन में मोटे होते हैं युवा होने पर उन के मोटापे की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है?

जवाब-

गोलमटोल बच्चे सब को बड़े प्यारे लगते हैं. दरअसल, हम छोटे बच्चों के वजन को किसी शारीरिक समस्या से नहीं बल्कि सुंदरता और स्वास्थ्य से जोड़ कर देखते हैं, लेकिन अगर नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों का वजन सामान्य से अधिक है तो उन के महत्त्वपूर्ण अंगों और मस्तिष्क का विकास प्रभावित हो सकता है. बच्चों में मोटापे को रोकने के लिए बनाई इंडियन एकेडमी औफ पीडिएट्रिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के मोटे वयस्कों में बदलने की आशंका 70% होती है. आप अपने बच्चे के खानपान का ध्यान रखें, उसे अपने साथ वौक पर ले जाएं. जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ती जाए उसे आउटडोर ऐक्टिविटीज में भाग लेने और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करने के लिए प्रेरित करें.

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प्रैग्नेंसी के बाद वजन कम करने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं एक गृहिणी हूं, मेरी उम्र 35 वर्ष है. मेरा वजन 98 किलोग्राम है. मेरी बेटी के जन्म के बाद मेरा वजन लगभग 27 किलोग्राम बढ़ गया है. मैं ने वजन कम करने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. मेरी लंबाई 5 फुट 1 इंच है. कृपया मुझे बताएं कि मेरा आदर्श वजन क्या होना चाहिए और इसे पाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

जवाब-

आप को अपना आदर्श वजन पाने के लिए कम से कम अपना वजन 40-45 किलोग्राम कम करना पड़ेगा. इतना वजन कम करने के लिए आप को काफी मेहनत करनी पड़ेगी. पहले किसी डाइटिशियन की देखरेख में आप ऐक्सरसाइज और डाइट के द्वारा 10 किलोग्राम वजन कम करने का लक्ष्य रखें.

इस के बाद वजन कम करने के लिए हम कुछ दवाइयां लेने का सुझाव भी देते हैं, लेकिन आप को शुरुआत डाइट और ऐक्सरसाइज से ही करनी चाहिए. नाश्ता हैवी करें, लंच और डिनर हलका लें. खाने के बीच में थोड़ा सलाद और फल खाएं. 1 सप्ताह में 500 ग्राम वजन कम करने का लक्ष्य रखें. 3-4 महीने तक यह प्रयास करें और परिणाम देखें.

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दिल्ली की 32 वर्षीय गृहिणी शुचिका चौहान अपने बढ़ते वजन को अपनी शारीरिक सुंदरता में एक बड़ी कमी मानते हुए कहती है, ‘‘खाने की अधिकता और शारीरिक श्रम की कमी के कारण बढ़ता मोटापा ही मेरी परेशानी की वजह है और मु झे डर है

कि कहीं आगे यह और न बढ़ जाए, इसलिए मैं ने इसे नियंत्रित करने पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.’’

मगर उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी रोग आदि भयंकर बीमारियों को बुलावा देने वाले इस मोटापे की चपेट में आने के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें नजरअंदाज कर लोग बढ़ते वजन की समस्या का शिकार होते चले जाते हैं.

इस की असल वजह है अस्वास्थ्यकर खुराक भरी स्टार्चयुक्त भोजन, फलों तथा सब्जियां रहित खाना और शारीरिक श्रम का अभाव. महिलाओं के लिए भी खतरा कम नहीं है. देश में पुरुषों से ज्यादा स्त्रियां खासकर 35 से ज्यादाकी आयु वाली अधिक वजन की है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बढ़ते वजन पर रखें नजर

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मोटापा: दोषी मां, बाप या आप

हमें अपने मांबाप से 30,000 से अधिक जीन्स वंशानुगत मिलते हैं, जो इस बात का निर्धारण करते हैं कि हमारे बालों, आंखों या त्वचा का रंग, यहां तक कि हमारा कद और शरीर कैसा होगा. लेकिन अब वैज्ञानिकों और मैडिकल साइंस ने इस बात की खोज कर ली है कि बौडी स्ट्रक्चर सिर्फ मांबाप से मिले जीन्स पर ही आधारित नहीं होता. आप के भीतर एफटीओ यानी फैट जीन्स भी होते हैं जो आप के वजन बढ़ने का कारण बनते हैं. इसलिए अब अपने मोटापे के लिए अपने मांबाप को दोषी मानना छोड़ दें. वैज्ञानिकों का मानना है कि मात्र 5% लोग फैट जीन्स को मोटापे का कारक बता सकते हैं.

अगर आप अपनी लाइफस्टाइल को बदलने की कोशिश करें यानी स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं तो यदि आप के खानदान में लोग मोटापे से ग्रसित हैं, तो भी आप स्वस्थ, फिटफाट और स्लिमट्रिम रह सकते हैं. जरूरी है इच्छाशक्ति कोशिश से सभी कुछ संभव है. नियमित व्यायाम व सुबह उठ कर खाली पेट पानी पीने से मोटापा बढ़ाने वाले जीन्स से लड़ा जा सकता है. बहुत से वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में पाया गया कि जो लोग नियमित जीवनशैली अपनाते हैं, कसरत करते हैं, जिम जाते हैं, उन में एफटीओ से लड़ने की अधिक क्षमता रहती है. लेकिन इस के लिए आप में विल पावर यानी इच्छाशक्ति होने के साथसाथ आप को अधिक देर तक कसरत करना जरूरी होता है.

मान लीजिए कि आप एक सामान्य व्यक्ति हैं और रोजाना 30 मिनट कसरत करते हैं, तो ऐसे में यदि आप का वजन अधिक है और आप को लगता है कि आप का मोटापा मांबाप की देन है, यह आप को विरासत में मिला है तो आप को 90 मिनट तक यानी 3 गुना अधिक समय तक कसरत करना होगा. ऐसा करने से आप फिट और स्लिमट्रिम रह सकते हैं. खानपान पर ध्यान दें यदि स्वस्थ रहना है और कसरत शुरू कर दी है तो खानपान पर भी ध्यान देना होगा. सब से पहले शुगर यानी चीनी को न कहना सीखें. इस का मतलब यह नहीं कि चाय फीकी पीनी है. उस के साथ में बरफी, पेस्ट्री वगैरह खाना छोड़ने से भी काफी हद तक शुगर से बचा जा सकता है.

यह मान लीजिए कि मोटापा आप के जीन्स की देन नहीं है. और भी कई कारण हैं जिन के जनक हम खुद हैं. जैसे पेट भर कर ही नहीं, प्लेट भरभर कर खूब कैलोरी वाला रेस्तरां का तलाभुना क्रीमयुक्त भोजन खाना, दिन में 4-6 कप चीनी मिली चाय, कौफी या सोडा पीना, हर काम के लिए कार का प्रयोग, घरों में पैदल रास्ते का गायब होना, टीवी अधिक देखना, खाना भी टीवी के आगे बैठ कर खाना, फास्ट फूड खूब खाना, नाश्ता न करना,

पानी पीने की आदत का छूटना, भोजन करते ही बिस्तर में पड़ जाना आदि. अब आप ही बताइए कि मांबाप भला दोषी कैसे हुए? मोटापे का दोषी कौन है? अच्छे खानपान से मतलब है संतुलित आहार, जिस में अंकुरित भोजन, मौसमी ताजा फल, दूध, दही, पनीर और मांसमछली शामिल है. घर के आसपास सुबहशाम खुले में सैर पर जाएं, कसरत करें और अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनें. मांबाप के सिर पर जीन्स का दोषारोपण करना छोड़ दें.

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14 Tips: तो नहीं बढ़ेगा वजन

बढ़ता वजन आप के माथे पर सिकुड़नों को बढ़ाता होगा, तो दिनबदिन बढ़ती चरबी आप को लोगों के सामने नहीं खुद अपनी नजरों में भी शर्मिंदा करती होगी. ऐसा चाहे डिलिवरी के बाद हुआ हो या अचानक यों ही, आप ने अपने वजन को घटाने के लिए व्यायाम, जिम, कार्डियो ऐक्सरसाइज वगैरह क्या कुछ नहीं किया लेकिन याद रखिए कि वजन घटाने का मतलब यह नहीं कि आप क्रैश डाइटिंग कर के एकदम से छरहरे बदन की हो जाएं. ध्यान रहे कि ऐसा करने से स्टैमिना कमजोर हो जाता है, तो न काम में मन लगता है और न दैनिक कार्यों के लिए ऐनर्जी रहती है. आप हैल्दी फूड के साथसाथ नियमित ऐक्सरसाइज व व्यायाम से ही अपना वजन मैंटेन कर सकती हैं.

आप का नाश्ता बिलकुल सही हो और थोड़ीथोड़ी देर बाद आप कुछ न कुछ खाती रहें. लेकिन डाइट में कैलोरी की मात्रा कम होनी चाहिए. तलेभुने और फास्ट फूड से दूर रहें. रात का खाना 8 बजे तक कर लें ताकि खाने को पचने का पर्याप्त समय मिल जाए और रात का खाना आप के पूरे दिन के खाने में सब से हलका होना चाहिए.

कुल मिला कर डाइट संतुलित मात्रा में लेनी चाहिए और डाइट में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए. एक आम इनसान को प्रतिदिन 2,500 कैलोरी की डाइट लेनी चाहिए. तभी हमारा शरीर स्वस्थ व छरहरा रह सकता है. आप अपने लिए डाइट प्लान इस तरह करें:

1. दिन में 3 बार की जगह 5 बार मील्स लें. इस में साबूत अनाज (ब्राउन राइस, व्हीट ब्रैड, बाजरा, ज्वार आदि) अवश्य शामिल करें. नौनरिफाइंड व्हाइट प्रोडक्ट्स (व्हाइट ब्रैड, व्हाइट राइस, मैदा आदि) को डाइट से पूरी तरह हटा दें.

2. डाइट में टोंड दूध से बना दही, पनीर व दाल, मछली आदि शामिल करें.

3. कब्ज व पेट की मरोड़ से बचने के लिए खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं. इस के लिए सप्लिमैंट्स के बजाय प्राकृतिक फाइबर लें. फाइबर के प्रमुख स्रोत हैं, साबूत अनाज, होम मेड सूप, दलिया, फल आदि. इन से फाइबर के साथसाथ कई मिनरल्स व विटामिंस भी मिलेंगे.

4. हड्डियों की मजबूती के लिए डाइट में कैल्सियम की मात्रा बढ़ाएं. इस के प्रमुख स्रोत हैं- दूध, मछली, मेवा, खरबूज के बीज, सफेद तिल आदि. याद रहे कि पतले होने के फेर में कैल्सियम को डाइट से नदारद किया तो गठिया आप को जकड़ सकता है.

5. वजन कम करने के लिए आप फैट इनटेक (वसा की मात्रा) कम करना चाहते हैं, तो डाइट से फैट्स एकदम हटाने की जरूरत नहीं. डाइटिशियन के अनुसार, ऐनर्जी लैवल को बनाए रखने, टिशू रिपेयर और विटामिंस को बौडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए खाने में पर्याप्त मात्रा में फैट्स होने जरूरी हैं. इसलिए डाइट से फैट्स को पूरी तरह हटाने के बजाय आप मक्खन जैसे सैचुरेटेड फैट्स को अवौइड करें और इस की जगह औलिव औयल इस्तेमाल में लाएं.

6. दिन की शुरुआत जीरा वाटर, अजवाइन वाटर, मेथी वाटर या आंवला जूस से करनी चाहिए. इस से मैटाबोलिक रेट बढ़ता है.

7. बहुत ज्यादा देर तक खाली पेट न रहें. इस से आप एक बार में अधिक भोजन करेंगी. बेहतर होगा कि आप बीचबीच में कम वसा वाले स्नैक्स या फिर फल, सूप जैसी चीजें लेती रहें.

8. रामदायक लाइफस्टाइल अपनाने के बजाय कुछ परिश्रम भी करें. याद रहे कि वजन तभी बढ़ता है, जब खाने से मिलने वाली कैलोरी पूरी तरह बर्न नहीं होती.

9. वजन कम करने का अनहैल्दी तरीका है क्रैश डाइटिंग. इस से न सिर्फ वजन कम होता है, बल्कि मसल्स व टिशूज पर भी इस का बुरा असर पड़ता है.

10. दिन में 8-10 गिलास पानी पीएं.

11. आप के खाने में सोडियम की मात्रा कम होनी चाहिए. सोडियम शरीर से पानी सोखता है और ब्लडप्रैशर बढ़ाता है, इसलिए दिन भर में नमक बस 1 या 11/2 चम्मच ही लें.

12. कोलैस्ट्रौल लैवल कंट्रोल करने के लिए फैट की मात्रा पर ध्यान दें.

13. पानी वाले फलसब्जी (मौसंबी, अंगूर, तरबूज, खरबूजा, खीरा, प्याज, बंदगोभी आदि) रैग्युलर लें.

14. कम से कम चीनी व नमक का प्रयोग करें.

कामकाजी लोग क्या करें

कामकाजी लोगों का ज्यादातर समय औफिस की कुरसी पर बैठेबैठे ही बीत जाता है. ऐसे में वजन बढ़ाना तो आसान होता है पर एक बार बढ़ जाए तो घटाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे लोगों को अपने खाने के प्रति काफी सतर्क रहना चाहिए. वे कुछ निश्चित नियमों का पालन कर के ही अपने वजन को काबू में रख सकते हैं. औफिस में कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें बाहर निकाल कर या कैंटीन में खाना आम बात होती है और उन्हें खा कर बैठे रहना वजन ही बढ़ाता है. ऐसा न हो, इस के लिए घर का बना टिफिन आप की काफी मदद करेगा.

जब उम्र कम हो

बेवजह का खानपान और असमय भोजन लेने की आदत ऐसे लोगों के वजन को बढ़ाने का काम करती है. फास्ट फूड पर निर्भरता भी इस उम्र के लोगों में औरों की अपेक्षा ज्यादा ही होती है. इसलिए दिन भर में 2 बार का भोजन और सुबह का प्रोटीनयुक्त नाश्ता दिन भर आप को चुस्त रखेगा और आप का वजन भी नियंत्रित करेगा. साथ ही खाने में सलाद का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें तो बेहतर होगा. कम उम्र में वजन बढ़ जाने से बुरा और कुछ नहीं हो सकता. ऐसा न हो इस के लिए जरूरी है कि पहले फास्ट फूड से बचें. इस उम्र में सब से ज्यादा ताकत की आवश्यकता होती है, इसलिए प्रोटीन से भरपूर भोजन लें. कार्बोहाइड्रेट को नाश्ते में जरूर शामिल करें.

बुजुर्गों की डाइट

अगर आप 60 की उम्र पार कर चुके हैं, तो सेहत के प्रति ज्यादा सजग होंगे. इस उम्र में पाचन क्रिया के साथसाथ हड्डियां और मांसपेशियां दोनों ही कमजोर हो जाती हैं. बुजुर्गों के लिए बेहतर है कि कम खाएं पर कई बार खाएं. साथ ही व्यायाम को भी अपने दिन के प्लान में जरूर शामिल करें. दिन में 1 बार 20 मिनट टहलने से आप खुद को काफी तरोताजा रख पाएंगे. -दीप्ति अंगरीश डाइटिशियन, शिखा शर्मा से की गई बातचीत पर आधारित

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लाइफस्टाइल डिसऔर्डर से होती बीमारियां

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही हैं. इस से घर और कैरियर दोनों के बीच तालमेल बैठाए रखना उन के लिए चुनौती बनता जा रहा है. सेहत का ध्यान न रखने की वजह से महिलाएं कम उम्र में ही कई बीमारियों की शिकार हो जाती हैं, जिन्हें लाइफस्टाइल डिसऔर्डर बीमारियां भी कहा जा सकता है. इस के बारे में मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. वंदना सिन्हा बताती हैं कि बीमारियां कभी भी अचानक नहीं होतीं. उन का अलार्म तो पहले ही बज चुका होता है, जिसे महिलाएं नजरअंदाज करती रहती हैं. ये बीमारियां तो दरअसल युवावस्था से ही शुरू हो जाती हैं.

महिलाओं के बदले लाइफस्टाइल की वजह से उन का मोटापा भी खूब बढ़ा है, जिस की वजहें जंक फूड का अत्यधिक सेवन, समय से भोजन न करना, डाइटिंग करना आदि हैं. इन से हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है. आजकल करीब 40% महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी पाया जाता है. इस में ओवरीज ठीक से काम नहीं करतीं और हारमोनल संतुलन बिगड़ता है, जिस से चेहरे और बौडी पर अधिक हेयर ग्रो होने लगता है. त्वचा रफ हो जाती है और ऐक्ने का प्रभाव दिखता है.

एक सर्वे के मुताबिक, आज के दौर में 75% महिलाओं का कोई न कोई लाइफस्टाइल डिसऔर्डर है. इस से 42% को पीठ दर्द, मोटापा, डिप्रैशन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन की शिकायत है. ऐसा न हो इस के लिए लड़कियों को किशोरावस्था से ही लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना आवश्यक है, जिस के लिए सही व्यायाम, सही डाइट, मोटापे को न बढ़ने देना आदि सभी विषयों पर मातापिता को ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि ये आदतें ऐसी हैं, जिन्हें उन्हें कम उम्र से ही अभ्यास में लाना जरूरी है.

कम उम्र में दिल का दौरा

डा. वंदना बताती हैं कि दिल की बीमारी का खतरा भी महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है. आजकल 24-25 साल की उम्र में भी लड़कियों को दिल का दौरा पड़ जाता है, जो चिंता का विषय है. अगर लड़कियां ओवरवेट हैं, तो वे पतला होने के लिए खाना छोड़ देती हैं. तब जरूरत से कम खाना खाने पर वे ऐनीमिया और हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने से बारबार इन्फैक्शन की शिकार होती हैं.

इस के अलावा जब लड़कियों का स्वास्थ्य खराब रहने लगता है, तो वे मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती हैं, जिस में डिप्रैशन, सुसाइडल टैंडैंसी आदि प्रमुख हैं. दरअसल, इस उम्र में पीयर प्रैशर अधिक होता है, जिस से बौयफ्रैंड या रिलेशनशिप न होने पर वे अपनेआप को कमतर समझना आदि को अपने अंदर पाल लेती हैं. क्या सही क्या गलत है यह समझना उन के लिए मुश्किल हो जाता है, तो वे दोस्तों की संगत में जाती हैं, जहां सही राय नहीं मिल पाती. ऐसे में मातापिता ही उन्हें सही दिशानिर्देश दे सकते हैं. युवावस्था में स्ट्रैस लैवल बढ़ने की वजह से नींद में कमी आती है, जिसे स्लीपिंग डिसऔर्डर कहते हैं. आजकल की लड़कियों में स्मोकिंग, ड्रिंकिंग की आदत भी बढ़ चुकी है, जो उन के लिए खतरनाक है.

विटामिन डी की कमी

विटामिन डी की कमी भी आजकल की युवतियों और महिलाओं में कौमन है. डा. वंदना का कहना है कि इस से महिलाओं में मैंस्ट्रुअल समस्या बढ़ रही है और शहरी क्षेत्रों में इस की संख्या अधिक है. विटामिन डी की कमी से महिलाओं को और भी कई गंभीर बीमारियों की शुरुआत हो जाती है. मसलन इम्यूनिटी का कम हो जाना, इनफर्टिलिटी का बढ़ना, मधुमेह की बीमारी, पीरियड की अनियमितता, स्तन कैंसर आदि. ओवरी के सही फंक्शन के लिए विटामिन डी जरूरी है. अत्यधिक दर्द के साथ पीरियड होने पर ऐंड्रोमैट्रियौसिस का खतरा रहता है, जिस में ओवरी में सिस्ट बन जाता है, जिस से आगे चल कर इनफर्टिलिटी बढ़ती है. यह समस्या आजकल 15 से 25 वर्ष की लड़कियों में अधिक देखने को मिल रही है, जो विटामिन डी की कमी की वजह से हो रही है. ये सभी बीमारियां लाइफस्टाइल की वजह से हैं, जिस का परिणाम स्ट्रैस है. विटामिन डी पूरे शरीर के लिए जरूरी है. यह हमारे शरीर में कैल्सियम के स्तर को नियंत्रित करता है.

संक्रमण का खतरा

संक्रमण की बीमारी भी आजकल महिलाओं में अधिक है. आजकल के युवा कम उम्र में अनप्रोटैक्टेड सैक्स में लिप्त होते हैं, तो उन के मल्टीपल सैक्सुअल पार्टनर्स भी होते हैं. ऐसे में हाइजीन पर ध्यान न देने से वे इन्फैक्शन के शिकार हो जाते हैं. जबकि पर्सनल हाइजीन पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है. महिलाएं आजकल जेनाइटल ट्यूबरकुलोसिस की शिकार भी हो रही हैं. इस बीमारी की जब तक सही जांच न हो पता नहीं चलता. इस बीमारी के तहत वे मां नहीं बन पातीं. अगर गर्भधारण करती भी हैं, तो बच्चा पूरे 9 महीने नहीं ठहरता. बायोप्सी से इस का पता चलता है. कई जगह पर तो इस की जांच भी संभव नहीं होती. लाइफस्टाइल से जुड़ी सब से खतरनाक बीमारी हार्ट डिजीज है. अधिकतर महिलाएं शहरों में कामकाजी हैं. उन के खाने में फैट अधिक होता है और वे व्यायाम नहीं करतीं, इसलिए उन का कोलैस्ट्रौल लैवल बढ़ जाता है. इस से कम उम्र में ही हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड आदि सब दिखने लगता है. डा. वंदना कहती हैं कि पहले जो बीमारी 45 वर्ष के बाद दिखती थी अब 27-28 साल की उम्र में ही दिखने लगी है. कामकाजी महिलाओं में स्ट्रैस लैवल काफी बढ़ चुका है.

मेनोपौज के बाद बीमारी बढ़ने की वजह कम उम्र में अपना ध्यान न रखना है. कुछ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं. पर अधिकतर हमारे लाइफस्टाइल की वजह से ही होती हैं. मैटाबौलिज्म ठीक न रहने की वजह से रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस से बीमारियां दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं. अगर शुरू से ही कुछ खास बातों पर ध्यान दिया जाए तो इन बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है. डा. वंदना के अनुसार, इस के लिए कुछ टिप्स निम्न हैं:

  1. 30 मिनट फिजिकल ऐक्टिविटी हर दिन करें.
  2. 10 मिनट ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज अवश्य करें. सुबह 5 मिनट शाम को 5 मिनट.
  3. रोज 10 से 15 गिलास पानी अवश्य पीएं.
  4. शुगर वाले खाद्यपदार्थ कम खाएं, प्रोटीन अधिक लें.
  5. फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट को डाइट में जरूर शामिल करें. फैट को कम से कम लें.
  6. चाय, कौफी अधिक न पीएं. ग्रीन टी का सेवन करें, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छी है.
  7. स्ट्रैस लैवल कम करने के लिए अपने लिए समय निकालें. अपनी मनपसंद की किताबें व पत्रिकाएं पढ़ें और मूवी आदि देखें, जिस से आप को खुशी मिले.
  8. सर्वाइकल कैंसर का वैक्सिन 11-12 साल की उम्र में अवश्य लगवाएं.
  9. मोटापे को बढ़ने से रोकना बेहद जरूरी है. अगर यह समस्या आनुवंशिक है, तो डाक्टर की सलाह के आधार पर दिनचर्या बनाएं और फिट रहें.

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बढ़ते वजन पर रखें नजर

दिल्ली की 32 वर्षीय गृहिणी शुचिका चौहान अपने बढ़ते वजन को अपनी शारीरिक सुंदरता में एक बड़ी कमी मानते हुए कहती है, ‘‘खाने की अधिकता और शारीरिक श्रम की कमी के कारण बढ़ता मोटापा ही मेरी परेशानी की वजह है और मु झे डर है

कि कहीं आगे यह और न बढ़ जाए, इसलिए मैं ने इसे नियंत्रित करने पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.’’

मगर उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी रोग आदि भयंकर बीमारियों को बुलावा देने वाले इस मोटापे की चपेट में आने के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें नजरअंदाज कर लोग बढ़ते वजन की समस्या का शिकार होते चले जाते हैं.

इस की असल वजह है अस्वास्थ्यकर खुराक भरी स्टार्चयुक्त भोजन, फलों तथा सब्जियां रहित खाना और शारीरिक श्रम का अभाव. महिलाओं के लिए भी खतरा कम नहीं है. देश में पुरुषों से ज्यादा स्त्रियां खासकर 35 से ज्यादाकी आयु वाली अधिक वजन की है.

कारण

महिलाओं में मोटापे के कारणों पर गौर किया जाए तो इस के प्रमुख कारणों में सब से अहम कारण है आरामतलबी होना और परिश्रम न करना जिसे इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है कि घरों में रहने वाली साधनसंपन्न महिलाएं अधिकतर कामों के लिए नौकरों पर निर्भर रहती हैं तथा घर में ही बैठेबैठे मनोरंजन के साधनों टीवी, मोबाइल और इंटरनैट आदि से दिनभर का टाइम पास करती हैं और इसी के साथ ही जब चाहें खाने का मन होने पर अपने मनपसंद भोजन का लुत्फ  उठाना भी उन की रोजमर्रा की आदतों में शुमार हो जाता है जिस का नतीजा होता कि मोटापा शरीर के कुछ अंगों- पेट, जांघों, नितंबों, कमर आदि को अनावश्यक रूप से फुलाते हुए अपने आसपास के अंगों को दबाता चला जाता है और पूरे शरीर को अपने कब्जे में ले लेता है.

स्वास्थ्य के लिए शारीरिक श्रम को महत्त्वपूर्ण बताते हुए ‘केयर’ की डाइटीशियनों का कहना है जितनी मात्रा में प्रतिदिन भोजन से कैलोरी प्राप्त की जाती है उस का उतनी मात्रा में उपयोग न हो पाने के कारण शरीर में कैलोरी की मात्रा बढ़ती चली जाती है और फैट जमा होने लगता है. यही कारण है कि एक ही जगह बैठे रह कर काम करते रहने वाले ऐसे लोग जो ज्यादा वर्कआउट नहीं करते मोटे होते चले जाते हैं.

मौडर्न लाइफस्टाइल

समय की कमी होने की वजह से जहां नौकरीपेशा व पढ़ाई में व्यस्त युवकयुवतियों को मजबूरी में ज्यादातर जंकफूड या बाहर के खाने का सहारा लेना पड़ता है तो कुछ लोगों जैसे कालेज स्टूडैंट्स आदि के लिए भूख लगने पर उन के पसंदीदा भोजन के रूम में पिज्जा, बर्गर चाउमीन आदि फास्ट फूड ही लेना होता है.

इस के अतिरिक्त ज्यादा से ज्यादा घर से बाहर रैस्टोरैंट आदि और फूड डिलिवरी पर निर्भर रहने वालों में खाना खाने का शौक रखने वाली महिलाएं स्वाद लेने के चक्कर में उस औयली खाने के दुष्प्रभावों की ओर भी ध्यान नहीं देतीं जिस का परिणाम यह होता है कि कुछ समय बाद स्टेटस सिंबल समझते हुए रैस्टोरैंट में लंच या डिनर करने का यह शौक अथवा मौडर्न लाइफस्टाइल मोटापे के रूप में बहुत महंगा पड़ता है. कोविड के दिनों में रैस्टोरैंटों का खाना घर पर पहुंचने लगा है और एक तरह से अब या फैशन हो गया है. डिलिवरी ऐप्स के खाने को पोर्शन बड़ा होता है और ज्यादा खाया जाता है.

खानपान से परहेज

हमारे यहां गर्भवती होने पर स्त्रियों को गर्भवती के नाम पर अनावश्यक खिलाते रहना एक नियम सा बना हुआ है. प्रसव के बाद भी मेवों का अधिक सेवन कराना और शारीरिक श्रम कम करना व कहीं बाहर जाने के बजाय घर में ही बने रहने आदि से भी मोटापा बढ़ने लगता है.

स्त्रियों में 3 बार बड़े शारीरिक बदलाव होते हैं- मासिकधर्म पर, गर्भधारण पर और मासिकधर्म बंद होने पर. इन तीनों मौकों पर उन के शरीर का वजन आमतौर पर बढ़ता ही है. इस विषय में हमें जानकारी देते हुए डाक्टर कहते हैं कि यदि कोई महिला डिलिवरी के बाद अधिक रैस्ट करती है या फिर उस समय संतुलित मात्रा में सही भोजन का सेवन नहीं करती तो उसे वजन बढ़ने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

इसी तरह मासिकधर्म होने के समय हारमोनल डिस्टरबैंस की वजह से पीरिएड्स लेट होने या अनियमित होने व मेनोपौज के बाद भी वजन बढ़ सकता है. ऐसी स्थिति में जब तक ऐक्सरसाइज न की जाए तब तक मोटापा कम नहीं होता.

वैसे इस के अतिरिक्त भी अगर वजन बढ़ने के कारणों पर ध्यान दिया जाए तो मोटापे का एक कारण जेनेटिक भी हो सकता है. मांबाप से आने वाले डीएनए के वे छोटेछोटे हिस्से ही जो बालों या आंखों का रंग निर्धारित करते हैं वजन बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.

आजकल और्गेनिक फूड के नाम पर कुछ भी खा लेना एक और खतरा बनता जा रहा है. और्गेनिक फूड नुकसान नहीं करेगा, यह सोच खाने की मात्रा को भी प्रभावित कर डालती है.

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आखिर दिल का मामला है

हमारा छोटा सा दिल हमारे शरीर का ऊर्जा स्रोत है. दिल काम कर रहा है तो हम जिंदगी जी रहे हैं. हमारा दिल प्रतिदिन करीब 1 लाख 15 हजार बार धड़कता है और करीब 2 हजार गैलन रक्त पंप करता है. जिस दिन इस दिल में तकलीफ शुरू हुई तो परेशानी आप को ही होगी.

हमारे देश में होने वाली मौतों का प्रमु ख कारण हृदय से जुड़ी बीमारियां ही हैं. हृदयरोगों के कारण मात्र 26 वर्ष की आयु में मृत्यु के आंकड़ों में 34% की वृद्धि हुई है. इसलिए इस का खास खयाल रखना जरूरी है.

दिल की तंदुरुस्ती जुड़ी होती है आप के दिमाग से, आप के खानपान और जीवनशैली से. आप क्या सोचते हैं, क्या खाते हैं और कैसे जीते हैं इस सब का सीधा असर दिल की सेहत पर पड़ता है.

आइए, जानते हैं दिल को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं:

सक्रियता जरूरी

एक निष्क्रिय जीवनशैली जीने का अर्थ है अपने दिल की सेहत को खतरे में डालना, इसलिए आलस त्याग कर दौड़ लगाएं, वाक करें, साइक्लिंग और स्विमिंग करें. जिम जाना जरूरी नहीं पर शरीर को थकाना और पसीना लाना जरूरी है. कोई भी ऐसी ऐक्टिविटी कीजिए जिस में आप के पूरे शरीर का व्यायाम हो जाए. नियमित व्यायाम करने से दिल की बीमारियों का जोखिम कम रहता है.

न करें धूम्रपान

यदि आप अपनेआप को हृदयरोगों से दूर रखना चाहते हैं तो जरूरी यह भी है कि आज ही धूम्रपान बंद कर दें. धूम्रपान और तंबाकू का सेवन कोरोनरी हृदयरोगों के होने के सब से बड़े कारणों में से एक है. तंबाकू रक्तवाहिकाओं और हृदय को बड़ा नुकसान पहुंचाता है, इसलिए यदि आप हृदय को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो आज ही धूम्रपान छोड़ दें.

रखें वजन को नियंत्रित

अधिक वजन होना हृदयरोग के लिए एक जोखिम कारक माना जाता है, इसलिए रोज कसरत करना और संतुलित आहार लेना बेहद जरूरी हो जाता है. मोटापे के कारण हृदय की समस्याएं अधिक होती हैं.

जीएं जिंदगी जीभर कर

जिंदगी से शिकायतें कम करें और खुल कर जीने का प्रयास अधिक करें. रोजमर्रा की जिंदगी में छोटीछोटी चीजों का आनंद लें. इस से दिल भी खुश रहेगा और आप भी. जितना हो सके मुसकराएं और ठहाके लगाएं. संगीत सुनें, किताबें पढ़ें, दोस्तों और बच्चों के साथ समय बिताएं.

शरीर में औक्सीजन की ज्यादा मात्रा पहुंचे इस के लिए गहरी सांसें लें. ये सभी आदतें तनाव और दबाव को कम करने में मदद करेंगी और आप को दिल की बीमारी से दूर रखेंगी.

अधिक फाइबर वाला खाना खाएं

हृदयरोग के खतरे को कम करने के लिए पर्याप्त मात्रा में फाइबर खाएं. दिन में कम से कम 30 ग्राम फाइबर खाने का लक्ष्य रखें. साबूत दालें अनाज, सब्जियां जैसे गाजर, टमाटर आदि में न घुलने वाला फाइबर होता है. दलिया, सेम, लोबिया, सूखे मेवे और फल जैसे सेब, नीबू, नाशपाती, अनानास आदि में घुलनशील फाइबर होता है.

फाइबर युक्त भोजन अधिक समय तक पेट में रहता है जिस के कारण पेट भरा हुआ महसूस होता है और खाना भी कम खाया जाता है. इसी कारण वजन भी कम होता है. फाइबर युक्त भोजन पाचन के समय शरीर से वसा निकाल देता है, जिस के कारण कोलैस्ट्रौल कम होता है व हृदय अधिक तंदुरुस्त होता है.

भोजन में बढ़ाएं फायदेमंद चिकनाई

अधिक वसा वाले ज्यादा खाद्यपदार्थ खाने से रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ सकती है. यह हृदयरोग होने के खतरे को बढ़ा सकता है. वसा की जगह फायदेमंद चिकनाई खाएं. तेल, दूध एवं दूध से बनी वस्तुएं और लाल मांस में नुकसानदेह चिकनाई होती है जो बुरा कोलैस्ट्रौल बढ़ा कर हृदय को अस्वस्थ करती है.

लेकिन मछली, अंडा, दालें, टोफू, किनोआ इत्यादि से पौष्टिक प्रोटीन एवं फायदेमंद चिकनाई दोनों मिलते हैं. बाजार में मिलने वाली अधिकतर खाने की वस्तुओं में अच्छा पौष्टिक तेल नहीं होता. इस कारण इन का उपयोग कम से कम करना चाहिए. चीनी एवं मैदे का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए और भोजन में पौष्टिक तत्त्व जैसे सूखे मेवे, हरी सब्जियां इत्यादि का इस्तेमाल बढ़ा देना चाहिए.

करें नमक में कटौती

सही रक्तचाप और दिल की सेहत के लिए टेबल पर रखे नमक का इस्तेमाल करने से बचें और अपने खाने में अधिक प्रयोग करने से भी बचें. एक बार जब आप बिना अतिरिक्त नमक के खाद्यपदार्थ खाने के आदी हो जाते हैं तो आप इसे पूर्णरूप से छोड़ सकते हैं. भोजन में अधिक नमक की मात्रा होने से रक्तचाप बढ़ जाता है.

इस कारण हृदय में कई बीमारियां होने की संभावना भी बढ़ जाती है. खाने को अधिक स्वादिष्ठ बनाने के लिए मसाले, हरा धनिया, पुदीना आदि डालिए. इस तरह नमक की मात्रा भी कम हो जाएगी. खरीदे गए खाद्यपदार्थ के लेबल को देखें. यदि 100 ग्राम में 1.5 ग्राम नमक या 0.6 ग्राम सोडियम से अधिक होता तो उस खाद्यपदार्थ में नमक की मात्रा अधिक है. एक वयस्क को दिनभर में 6 ग्राम से कम नमक खाना चाहिए.

घर के खाने को दें प्राथमिकता

घर में बना भोजन अधिक पौष्टिक होता है क्योंकि आप स्वयं सब्जी, मसाले, तेल एवं पकाने की विधि का चयन करते हैं. आप खाने को ज्यादा स्वादिष्ठ बनाने के लिए उस में विभिन्न प्रकार के मसाले डाल सकते हैं और नमक एवं चीनी जैसे हानिकारक तत्त्वों की मात्रा कम कर सकते हैं और फिर घर में बना खाना सस्ता भी पड़ता है.

रक्तचाप और कोलैस्ट्रौल पर नजर

हृदय की सेहत के लिए उच्च रक्तचाप और उच्च कोलैस्ट्रौल दोनों हानिकारक होते हैं. रक्तचाप और कोलैस्ट्रौल की जांच को ट्रैक करना और निगरानी करना महत्त्वपूर्ण होता है. उच्च रक्तचाप और उच्च रक्त कोलैस्ट्रौल के स्तर से दिल का दौरा पड़ सकता है.

कोलैस्ट्रौल 2 रूपों में शरीर में मौजूद होता है- पहला एचडीएल और दूसरा एलडीएल.

एचडीएल या गुड कोलैस्ट्रौल का ज्यादातर हिस्सा प्रोटीन से बना होता है, इसलिए शरीर की विभिन्न कोशिकाओं से कोलैस्ट्रौल को लेना और उसे नष्ट करने के लिए लिवर के पास ले जाने का मुख्य कार्य गुड कोलैस्ट्रौल करता है. अगर शरीर में गुड कोलैस्ट्रौल का उच्च स्तर बना रहे तो शरीर को हृदयरोग से सुरक्षा मिलती है और अगर गुड कोलैस्ट्रौल का स्तर कम हो जाए तो कोरोनरी आर्टरी डिजीज होने का खतरा बढ़ जाता है.

दूसरी तरफ एलडीएल या बैड कोलैस्ट्रौल का सिर्फ एकचौथाई हिस्सा ही प्रोटीन होता है और बाकी सारा फैट. वैसे तो यह क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में मदद करता है, लेकिन अगर शरीर में इस का स्तर बढ़ जाए तो यह रक्तधमनियों की अंदरूनी दीवारों में जमा होने लगता है जिस से धमनियां संकुचित होने लगती हैं और पर्याप्त रक्तप्रवाह में मुश्किल पैदा होती है जिस से हृदयरोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

कोलैस्ट्रौल बढ़ने का कारण

गलत भोजन: अगर आप ऐसे आहार का सेवन करें जिस में सैचुरेटेड फैट की मात्रा अधिक हो तो खून में एलडीएल या बैड कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है. मीट, डेयरी उत्पाद, अंडा, नारियल तेल, पाम औयल, मक्खन, चौकलेट्स, बहुत ज्यादा तलीभुनी चीजें, प्रोसैस्ड फूड और बेकरी उत्पाद इसी श्रेणी में आते हैं.

असक्रिय जीवनशैली: अगर कोई व्यक्ति अपने रोजाना की जीवनशैली में किसी तरह की शारीरिक गतिविधि न करे, हर वक्त बैठा रहे तो इस से भी खून में एलडीएल या बैड कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है और गुड कोलैस्ट्रौल यानी एचडीएल का सुरक्षात्मक प्रभाव कम होने लगता है.

बीमारियां: पीसीओएस, हाइपरथायरोइडिज्म, डायबिटीज, किडनी डिजीज, एचआईवी और औटोइम्यून बीमारियां जैसे रूमैटौइड आर्थ्राइटिस, सोरायसिस आदि की वजह से भी कोलैस्ट्रौल का लैवल बढ़ने लगता है.

कोलैस्ट्रौल कम करने के उपाय

खून में कोलैस्ट्रोल के लैवल को बढ़ने से रोकने में सब से अहम भूमिका होती है आप के भोजन की. अपने भोजन में सैचुरेटेड फैट से भरपूर चीजों का बहुत अधिक सेवन न करें. मीट, अंडा, प्रोसैस्ड फूड, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि चीजें बहुत ज्यादा न खाएं.

डाइट से जुड़ी आदतों में बदलाव करें. फुल फैट क्रीम वाले दूध की जगह स्किम्ड मिल्क का इस्तेमाल करें, खाना पकाने के लिए वैजिटेबल औयल का इस्तेमाल करें. अपने भोजन में साबूत अनाज, मछली, नट्स, फल, सब्जियां, चिकन आदि शामिल करें. फाइबर से भरपूर चीजें खाएं और बहुत ज्यादा चीनी वाले खाद्यपदार्थों और पेयपदार्थों का सेवन न करें.

सक्रियता बनाए रखें

अगर आप दिनभर कोई शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं तो इस से आप के खून में एचडीएल या गुड कोलैस्ट्रौल की मात्रा कम होने लगती है. हफ्ते में 3-4 बार 45 मिनट के लिए ऐरोबिक ऐक्सरसाइज करें. इस से बैड कोलैस्ट्रौल को कंट्रोल में रखने में मदद मिलती है. इस के अलावा वाक करें, रनिंग करें, जौगिंग करें, स्विमिंग, डांसिंग आदि भी आप को सक्रिय बनाए रखने और कोलैस्ट्रौल लैवल को कंट्रोल करने में मदद करेंगे.

अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटापे का शिकार हैं तो इस से भी बैड कोलैस्ट्रौल या एलडीएल का लैवल बढ़ने लगता है और गुड कोलैस्ट्रौल या एचडीएल कम होने लगता है. ऐसे में अगर आप वजन कम कर लें तो इस से भी आप को काफी मदद मिल सकती है.

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Healthy रहने के अचूक टिप्स

आजकल हाई हील पहनना फैशन स्टेटमैंट बन चुका है. लेकिन इन्हें पहनने वाले यह नहीं जानते कि वे अपनी सेहत के साथ कितना खिलवाड़ कर रहे हैं यानी अनजाने में कई तरह की परेशानियों जैसे जौइंट प्रौब्लम, पैरों में दर्द आदि को न्योता दे रहे हैं. वरिष्ठ आर्थोपैडिक सर्जन डा. टी. शृंगारी का कहना है कि ऐसे में यह जरूरी है कि सैंडल खरीदते समय यह ध्यान रखें कि वे दोनों पैरों में आराम से फिट आएं. पैर के अंगूठों पर दबाव न पड़े. हाई हील को ज्यादा समय तक पहने रखने के बजाय थोड़ीथोड़ी देर के लिए इन्हें पैरों से निकालती रहें ताकि पैरों को रिलैक्स मिले. गाड़ी चलाते समय गाड़ी में 1 जोड़ी स्लीपर रखना न भूलें ताकि ड्राइविंग करते समय उन्हें पहन सकें. हील को रैग्युलर पहनने के बजाय खास अवसर पर ही पहनें. हील पहनने के बाद रात को सोते समय कुनकुने पानी में नमक गल कर थोड़ी देर के लिए पैरों को उस में रखें. रिलैक्स फील करेंगी.

पलकें झपकाना है जरूरी

सैंटर फौर साइट के डा. महिपाल सचदेव बताते हैं कि टीवी व कंप्यूटर देखते हुए पलकें झपकाना बहुत जरूरी है क्योंकि इस से आंखों में शुष्कता तथा जलन पैदा नहीं होती और पानी आता रहता है. अध्ययनों के अनुसार सामान्य स्थितियों के मुकाबले टीवी देखते हुए लोग पलकों को 5 गुना कम झपकाते हैं. पलकें न झपकाने की वजह से आंसू नहीं आते जिस से आंखें शुष्क हो जाती हैं. हर आधे घंटे बाद स्क्रीन से नजरें हटाएं और दूर रखी किसी चीज पर 5-10 सैकंड नजरें डालें. अपने फोकस को फिर से ऐडजस्ट करने के लिए पहले दूर रखी चीज पर 10-15 सैकंड तक नजरें टिकाए रखें. फिर पास की चीज पर 10-15 सैकंड तक फोकस करें. ऐसा 10 बार करें. इन दोनों व्यायामों से आप की दृष्टि तनावग्रस्त नहीं होगी और आप की आंखों की फोकस करने वाली मांसपेशियों में भी फैलाव होगा. इस के अलावा हर 20 मिनट बाद 20 सैकंड का बे्रक लें और 20 फुट दूर देखें. हर आधे घंटे में यह व्यायाम करें.

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स्मोकिंग, ड्रिंकिंग को कहें बायबाय

मेदांता मेडीसिटी, गुड़गांव के डा. विपुल गुप्ता के अनुसार कुछ साल पहले तक बे्रन स्ट्रोक जैसी बीमारी को बढ़ती उम्र का लक्षण माना जाता था, लेकिन आज यह किसी को भी कहीं पर भी अपना शिकार बना सकता है. यह हमारे देश में मौत का तीसरा सब से बड़ा कारण है और किसी और बीमारी की अपेक्षा शरीर के विकारग्रस्त होने का दूसरा बड़ा कारण है. स्ट्रोक के मरीजों में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है. इस के मुख्य कारणों में एक कारण युवाओं में बढ़ रहा सिगरेट और शराब का चलन भी है. वैसे भी अगर एक बार स्ट्रोक हो जाए तो 4 में से 1 इंसान तो मौत के मुंह में चला ही जाता है और जो बच जाते हैं वे जीवन में कभी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं. स्ट्रोक से बचना है तो अपने लाइफस्टाइल को ठीक रखें तथा सिगरेट व शराब को हमेशा के लिए बाय कहें. इस के अलावा दिमाग की तंदुरुस्ती के लिए सूखा मेवा, मछली, दही, साबूत अनाज आदि को अपने भोजन में शामिल करें.

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