धर्म की पोल खोलना मना है

दिल्ली में एक पति ने अपनी पत्नी की हत्या इसलिए कर दी कि उस ने कह डाला कि चाय नहीं बन सकती क्योंकि दूध नहीं है. ‘जा कर दूध ले आओ’ कहने पर पति ने एक खिडक़ी का शीशा तोड़ा और टूटे शीशे से पत्नी पर हमला कर दिया और उसे बचाने आई एक बेटी घायल हो गई व उस की मौत हो गई. वह शख्स 3 बड़ी बेटियों का पिता है जिस की बड़ी बेटी नौकरी कर घर चला रही है और सब से छोटी 12वीं में है. उसे मालूम था कि उस के पास पत्नी पर हमला करने का हक है.

पत्नियों से इस तरह की हिंसा विश्वव्यापी है और सामाज उसे मर्दानगी की श्रेणी में रखता है. पंजाब केसरी समाचार पत्र एक लेख में बताता है कि वेदव्यास ने स्त्रियों के लिए मन, बचन और कर्म से पति सेवा की सब कुछ माना है. गायत्री परिवार जिस के काफी समर्थक देश भर में फैले हैं, अपनी पुस्तकों से कहलवाते हैं.

पतिव्रत धर्म का अर्थ है -पत्नी द्वारा पति के आस्तित्व में संपूर्ण आत्म समर्पण. पतिव्रत में निष्ठा रखने वाली नारी योगियों की तरह जीवन मुक्त हो जाती है. वह पति में भगवत भक्ति का पुण्य तथा आनंद पाती है. अपने अराध्य के प्रति आत्मोत्सर्ग कर देने से एक अनिवार्य आनंद होता है. पतिव्रत का विशेष लक्षण है उस का स्वतंत्र मास्तित्व न रहना, न स्वतंत्र रहने की इच्छा रखना, न भावना.

आस्थावान पत्नियां सेवा व प्रेम से वेश्यागायी व शराबी पति को बदल देती है. स्त्रियों के पुरुषों के मास्तिष्क में किसी प्रकार की िचता पैदा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए. आदि आदि.

यह बातें सोशल मीडिया से ली गई हैं यानी आज भी प्रचालित ही नहीं है. जम कर प्रचारित की जा रही हैं. ऐसे में शराब का लती एक पति अगर पत्नी को चाय बना कर देने के लिए धमकाए और दूध लाने को कहने पर हत्या कर दे तो बरगलाने का दोषी कौन है? क्या ये पाठ पढ़ाने वाले नहीं जो सैंकड़ों व्हाट्सएप मैसेजों, फेसबुक पोस्टों, औन लाइन बलौगों, साइटों से रातदिन पत्नीव्रत समझाते रहते हैं.

धर्म सत्ता पर आगाध निष्ठा के पीछे औरततों का शोषण है. धर्म औरतों के साथ पिछड़ों और दलितों का शोषण करने का लाइसेंस दे रहा है और इसीलिए िहदूिहदू का शोर मचा रहा है और जो भी धर्म की पोल खोलता है उस का मुंह बंद करने की कोशिश की जाती है कि धाॢमक भावनाएं आहत हो रही हैं.

असल में जो आहत हो रहा है वह है वह व्यवस्था जिस में कुछ पुरुष औरतों पर जुल्म कर सकते हैं. इस निकम्मे पति की इतनी हिम्मत थी कि वह दूध तक बाजार से लाने को तैयार नहीं था. ऐसी मानसिकता क्यों? क्योंकि वह जानता है धर्म द्वारा बनाई गई व्यवस्था में औरत नीरीह है, कमजोर है, अकेली है. तलाकशुदा, अविवाहित, विधवाएं, परित्यगताएं समाज से कह जाती है. कितने ही त्यौहार ऐसे हैं जो औरतों को रूसवा रहने को महिमामंडित करते हैं और अकेले रहने पर अपमानित करते हैं. यह हत्या उसी का एक प्रमाण व परिधर्म है.

गुस्से में छोटीछोटी बातों पर हत्याएं होती है पर पत्नियों और बेटियों की नहीं. सोच समझ कर की गर्ई हत्या की बात दूसरी होती है. दुर्घटनावश हुई हत्या भी एक गलती मानी जा सकती है. पर पहले खिडक़ी का शीशा तोडऩा और फिर शीशे के एक टुकड़े से मां के साथ बचाने भाई, बेटी पर भी हमले करते रहना एक बीमारी का चलन है जो केवल धर्म देता है, समाज उसे पालता है, कानून उस की रक्षा करता है, यह 21वीं सदी का विश्वगुरू भारत की राजधानी दिल्ली की एक छोटी सी झलक है.

मेरा शहर मेरा इतिहास

”मेरा शहर मेरा इतिहास” कार्यक्रम का आयोजन इतिहास संस्था द्वारा उत्तर प्रदेश पर्यटन के सहयोग से किया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन श्री मुकेश कुमार मेश्राम, प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति, उत्तर प्रदेश तथा श्री अश्विनी कुमार पाण्डेय, विशेष सचिव, पर्यटन, उत्तर प्रदेश की उपस्थिति में रेजीडेन्सी परिसर, लखनऊ में किया गया.

इस कार्यक्रम में लखनऊ के 10 प्रमुख विद्यालयों के छात्रों द्वारा प्रतिभाग किया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन वाराणसी और गोरखपुर में भी किया जाएगा, जिससे उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों एवं विरासतों के बारे में आज की युवा पीढ़ी को जागरूक किया जा सकेंगे तथा ऐसे धरोहरों के रख-रखाव हेतु  प्रशिक्षित एवं प्रोत्साहित किए जा सकेंगे .

उत्तर प्रदेश पर्यटन के प्रमुख सचिव श्री मुकेश कुमार मेश्राम ने छात्रों को संबोधित करते हुए विभिन्न प्रकार के पर्यटनों के बारे में उनको जानकारी दी. उन्होंने विद्यार्थियों को प्रदेश के विरासत स्थलों का भ्रमण करने एवं उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में जानने तथा उनसे सीख लेने का आग्रह किया. यह कार्यक्रम युवाओं मे रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया और युवा पर्यटन को प्रोत्साहित करेगा.

इतिहास, एक शैक्षिक संस्था है, जो कि देश की विरासतों के बारे में विद्यार्थियो एवं आम जनमानस को जागरूक करने का कार्य करते है. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश पर्यटन के सहयोग से लखनऊ में रेजीडेंसी परिसर में “मेरा शहर मेरा इतिहास” कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया.

इतिहास की संस्थापक-निदेशक सुश्री स्मिता वत्स ने “मेरा शहर मेरा इतिहास” कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों में अपने शहर के संबंध में गर्व की भावना पैदा करना था. इसके साथ ही साथ धरोहरों से जुड़ेंगे, इतिहास तथा वास्तुकला के माध्यम से गणित जैसे विषयों को सीखने का था.

यह कार्यक्रम विद्यार्थियों को ऐसे स्मारकों और ऐतिहासिक रत्नों को देखने और उनकी सराहना करने के लिए तैयार किया गया है, जो उन शहरों में विराजमान है. लखनऊ शहर के 10% से भी कम छात्रों ने बताया कि रेजीडेंसी की यह उनकी पहली यात्रा थी.

लखनऊ में 15 दिवसीय कार्यक्रम की संरचना विद्यालय में एक ओरियन्टेशन सत्र के साथ शुरू हुई, जिसके बाद बच्चों ने “एक नारा” लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया, जो उनके शहर और स्थायी पर्यटन पर केंद्रित था. यह एक अनुभवात्मक शिक्षण मॉड्यूल के साथ समाप्त होता है. इस क्रम में 3 अगस्त को रेजीडेंसी और 4 अगस्त को जरनैल कोठी का भ्रमण करेगें, जहां बच्चे इन स्मारकों के महत्व के बारे में सीखेगें.

पत्नियों की सफलता पर विवाद

वैवाहिक विवादों में पति क्याक्या आर्गूमैंट पत्नी का कैरेक्टर खराब दिखाने के लिए ले सकते हैं इस का एक उदाहरण अहमदाबाद में किया. 2008 में जोड़े का विवाह हुआ पर 2010 में पत्नी अपने मायके चली गई. बाद में पति दुबई में जा कर काम करने लगा. पत्नी ने जब डोमेस्टिक वौयलैंस और मैंनटेनैंस का मुकदमा किया तो और बहुत सी बातों में पति ने यह चार्ज भी लगाया कि उस की अब रूठी पत्नी के पौलिटिशयनों से संबंध है और वह लूज कैरेक्टर की है. सुबूत के तौर पर उस ने फेसबुक पर पत्नी और भाजपा के एक विधायक के फोटो दर्शाए.

कोर्ट ने पति की औब्जैक्शन को नकार दिया और 10000 मासिक का खर्च देने का आदेश दिया पर यह मामला दिखाता है कि कैसे पुरुष छोड़ी पत्नी पर भी अंकुश रखना चाहते हैं और उस के किसी जाने चले जाने के साथ फोटो को उस का लूज कैरेक्टर बना सकते हैं.

पत्नियों की सफलता किसी भी फील्ड में हो, पतियों को बहुत जलाती है क्योंकि सदियों से उन के दिमाग में ठूंसठूंस कर भरा हुआ है कि पत्नी तो पैर की जूती है. कितनी ही पत्नियां आज भी कमा कर भी लाती हैं और पति से पिटती भी हैं. ऐसे पतियों की कमी नहीं है जो यह सोच कर कि पत्नी आखिर जाएगी कहां, उस से गुलामों का सा व्यवहार करते हैं. जो पत्नी काम करने की इजाजत दे देते हैं, उन में से अधिकांश पत्नी का लाया पैसा अपने कब्जे में कर लेते हैं.

यह ठीक है कि आज के अमीर घरों की पत्नियों के पास खर्चने को बड़ा पैसा है, वे नईनई ड्रेसें, साडिय़ां, जेवर खरीदती हैं, किट्टी पाॢटयों में पैसा उड़ाती हैं पर यह सब पति बहलाने के लिए करने देते हैं ताकि पत्नी पूरी तरह उन की गुलाम रहे. ऐशो आराम की हैविट पड़ जाए तो पति की लाख जबरदस्ती सुननी पड़ती है.

गनीमत बस यही है कि आजकल लड़कियों के मातापिता जब तक संभव होता है, शादी के बाद भी बेटी पर नजर रखते हैं, उसे सपोर्ट करते हैं, पैसा देते हैं, पति की अति से बचाते है. यहां पिता ज्याद जिम्मेदार होते हैं मां के मुकाबले. मांएं साधारण या अमीर घरों में गई बेटियों को एडजस्ट करने और सहने की ही सलाह देती है.

पति को आमतौर पर कोई हक नहीं चाहिए कि वह अपनी पत्नी के कैरेक्टर पर उंगली भी उठाए, खासतौर पर जब पत्नी घर छोड़ चुकी हो और पति देश. पति ने अगर 10000 रुपए मासिक की मामूली रकम दे दी तो कोई महान काम नहीं किया.

जनता का बेड़ा पार तो रामजी करेंगे

जब घर में आग लगी हो तो क्या आप को यह देखने की फुरसत होती है कि पड़ोसिन की बेटी ने आज स्लीवलैस टौप और शौर्ट क्यों पहने हैं या आप अमरनाथ यात्रा के लिए बैंक में जा कर बचाखुचा पैसा निकालने दौड़ती हैं? नहीं न. पर भारत सरकार को इसी की चिंता है. जब देश महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा हो, भारत सरकार की सत्तारूढ़ पार्टी के मुख्य काम क्या हैं- मंदिर बनवाना, मुहम्मद साहब का इतिहास खोजना, मसजिदों में खुदाई कर के शिवलिंग ढूंढ़ना, ईडी से छापे मरवाना ताकि विपक्ष का सफाया हो सके. दूसरे दलों में सेंध लगाना कि राज्यसभा की 4 सीटें ज्यादा मिल जाएं बगैरा.

ऐसा लगता ही नहीं है कि सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री या किसी और नाम के बने मंत्री को देश की बढ़ती महंगाई की कोई चिंता है. ठीक है, कुछ रुपए डीजल और पैट्रोल पर कम कर दिए पर उस से ज्यादा तो अनाज और खानेपीने की चीजों के दाम बढ़ने से जेब से निकल गए. जिन्हें हम ने चुना था वे सफाई नहीं दे रहे, रिजर्व बैंक के गवर्नर दे रहे हैं जो सिर्फ अफसरी करते रहे हैं.

देशभर में हिंदूमुसलिम अलगाव को फैलाने की कोशिशें जारी हैं, भड़काऊ भाषणों से अखबारों के पन्ने और चैनलों की सुर्खियां भरी पड़ी हैं. आम औरत किस तरह अपना पेट काट कर गुजारा कर रही है, इस का कोई खयाल नहीं रख रहा.

सरकार का कोई विभाग अपने खर्चे में कटौती नहीं कर रहा. पुलिस पर बेहद खर्च किया जा रहा है पर आप के घर को सुरक्षित करने के लिए नहीं, आप के पड़ोस के मंदिर को या मुसलमानों को पकड़नेधकड़ने में. चप्पेचप्पे पर पुलिस का जो पहरा है वह मुफ्त नहीं होता. उस पर जनता का टैक्स लगता है, यह नहीं बचाया जा रहा.

उत्तर प्रदेश में वाराणसी पर गंगा की दूसरी तरफ सड़क बन रही है ताकि आरतियां देखी जा सकें जो थोक में हो रही हैं और जिन पर अरबों बरबाद होंगे. दिल्ली में नया संसद भवन बन रहा है जिस पर सैकड़ों करोड़ बेबात में खर्च होंगे. गौशालाओं के लिए सरकार के पास पैसे हैं पर स्कूलों को, किताबों को मुफ्त करने के लिए नहीं. अस्पताल सरकार नहीं खोलेगी, निजी क्षेत्र खोलेगा जो एक इंजैक्शन लगाने के क्व1,000 झटक लेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 जून को अस्पतालों में पैसा लगाने वालों से कहा कि अगला साल उन के लिए अच्छा होगा. शायद इसलिए कि सरकार अपनी जनता के प्रति सरकारी अस्पताल खोलने की ड्यूटी में और ढीलढाल करेगी.

महंगाई से निबटने के लिए सरकार को अपने सरकारी ढांचे का क्या करना चाहिए, जनता व सिर पर बैठे इंस्पैक्टरों को क्या करना चाहिए? बेकार के कानूनों को लागू करने में लगने वाले पैसे को बचाना चाहिए. मंत्रियों और नेताओं को सुरक्षा के नाम पर मिल रही फौज में कटौती करनी चाहिए, सरकारी कर्मचारियों के वेतन काटने चाहिए, सरकारी स्कूल ठीक करने चाहिए ताकि लोग अपने बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूलों में न भेजें. सरकार यह सबकुछ न कर के सिर्फ  जय राम, जय राम कर रही है. यह भगवान को चाहे खुश करता हो, भगवानों के दुकानदारों को ज्यादा दक्षिणा दिलाता हो, आम घरवाली की आफतों में कमी नहीं करता.

दिमागों को रंगने का काम चालू है

दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के सब से पास गंगा गढ़मुक्तेश्वर में बहती है और लंबे समय से यह भक्तों की डुबकी लगाने की या मृतकों को फूंकने की जगह है. पर अब सरकार और मंदिरवादियों के जबरदस्त प्रचार के कारण यहां का भी धंधा देश के दूसरे तीर्थों की तरह फूलफल रहा है. इस बार जेठ दशहरा पर 12 लाख से अधिक अंधभक्तों ने जम कर मैली गंगा में स्नान किया और पहले व बाद में दान में करोड़ों रुपए दिए. गंगा को और ज्यादा गंदा किया वह अलग क्योंकि हर भक्त एक दोने में फूलपत्ती, दीए रख कर बहाता है.

इस बार इस दिन मेन सड़क पर जाम न होने पर पुलिस वाले अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं. पुलिस ने जेठ दशहरे के लिए हफ्तों पहले प्लानिंग शुरू कर दी. सड़कों पर बीच की पटरी में कट बंद किए गए. खेतों में पार्किंग बनाई गई. मेरठ और मुरादाबाद मंडल के अफसरों ने कईकई मीटिंगें कीं और हर बार आनेजाने पर पैट्रोल फूंका ताकि भक्तों और हाईवे इस्तेमाल करने वालों का पैट्रोल बेकार न जाए.

जहां पुलिस के मैनेजमैंट की तारीफ की जानी चाहिए, वहीं यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि आखिर इस जेठ दशहरे पर डुबकी लगाने से भक्तों का कौन सा व्यापार चमक उठता है? कौन सी नौकरी में प्रमोशन मिल जाती है? किस के ऐग्जाम में ज्यादा नंबर आ जाते हैं? किस की बीमारी ठीक हो जाती है? कहां रिश्वतखोरी बंद हो जाती है? कौन सा सरकारी दफ्तर अच्छा काम करने लगता है? किस के खेत की उपज बढ़ जाती है? किस कारखाने में प्रोडक्ट ज्यादा बनने लगते हैं?

गढ़गंगा हो, हर की पौड़ी हो, चारधाम हों, अमरनाथ यात्रा हो, वैष्णो देवी हो, अजमेर का उर्स हो या कुछ भी हो, धर्म के नाम पर कहां कुछ अच्छा होता है? धर्म के नाम पर तो झगड़ा होता है. हमारे यहां वे यही चैनल जो इन तीर्थों का गुणगान हर दूसरेतीसरे दिन करते हैं, हर रोज पिछले कई सालों से धर्म के नाम पर जहर उगल रहे हैं और लगातार उकसा रहे हैं. नतीजा नूपुर शर्मा और नवीन कुमार की बहती जबान है जिस से न केवल पूरे देश में हंगामा मच गया, भारत के दूतावासों के अफसर कितने ही देशों में बेमतलब में सफाई देते बयान जारी करते रहे.

गढ़गंगा के हाईवे पर जाम नहीं लगा, यह अच्छा है पर दिमागों पर जो जाम लगवा दिया गया है, उस से कैसे मुक्ति मिलेगी? दिमागों को रंगने का काम चालू है और जलती आग में घी डालने वाले चुप नहीं हैं. चुपचाप अपनी साजिश में लगे हैं कि कैसे हिंदुओं को उकसा कर बचीखुची जायदाद भी उन से हड़प लें. हर तीर्थ पर बड़ेबड़े भवन दिख जाएंगे और तीर्थ से 5-7 किलोमीटर पहले दिखने लग जाएंगे. यह मन के जाम का नतीजा है.

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार “अभिनेता” और राजनीति

यह शायद अब होने लगा है की राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में भी राजनीति की चौपड़ बिछाई जा रही है. अगरचे आप अजय देवगन को, जिन्हें सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया है के सम्मान को महाराष्ट्र की सत्ता, राजनीति को जोड़ कर देखेंगे तो आपके सामने सब कुछ दूध का दूध और पानी का पानी , साफ साफ होगा.

महाराष्ट्र की राजनीति और षड्यंत्र अभी अभी देश ने देखा है कि किस तरह वहां भाजपा के इशारे पर शिवसेना के एक प्यादे एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को तोड़ा है और मुख्यमंत्री बन गए हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि एकनाथ शिंदे जिनके पास न तो शिवसेना पार्टी है और ना ही शिवसेना आलाकमान का आशीर्वाद या सभी विधायकों का समर्थन इसके बावजूद भाजपा की अनैतिक राजनीति और सत्ता की धमक के कारण एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हो गए हैं.

अब हम बात करें महाराष्ट्र की राजनीति एकनाथ शिंदे अजय देवगन की बीच के तारों की तो यह आपको समझना होगा कि जो कुछ महाराष्ट्र में भाजपा के शीर्ष नेताओं ने खेल खेला है उसमें मराठा, हिंदुत्व और महाराष्ट्र अस्मिता का घोल है, यहां भविष्य की राजनीति के साथ वोट बैंक जुड़ा हुआ है. अजय देवगन की फिल्म जनवरी 2020 में आई उनकी यह सौवीं फिल्म थी जो हिंदू मराठा भावना को जागृत करती है. और भाजपा को यही चाहिए. जहां हिंदुत्व है वहां भाजपा की सील तैयार है. अजय देवगन की यह फिल्म तानाजी मराठा पराक्रम को रेखांकित करती है.

अभिनय की दृष्टि से और बाजार की दृष्टि से यह फिल्म अपना कोई मुकाम हासिल नहीं कर पाई थी फिल्म समीक्षकों ने भी तानाजी को कोई विशेष तवज्जो नहीं दी इसके बावजूद राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जब घोषित होते हैं तो अजय देवगन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता घोषित किया जाता है. इसकी बिसात शायद पहले ही बिछ चुकी थी यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया था. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने फिल्म की प्रदर्शन के समय ही भूरी भूरी प्रशंसा कर दी थी. बाद में यह महाराष्ट्र में टैक्स फ्री हुई और लगभग 150 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने सिर्फ 400 करोड़ की कमाई की है.

यहां यह देखना समीचीन होगा कि अजय देवगन सर्वश्रेष्ठ अभिनेता घोषित हुए हैं, यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ नहीं है! बल्कि सूर्या को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार दिया गया है. इस सब को अगर आप देखें तो फिल्म पुरस्कारों में राजनीति का जो खेल खेला गया है वह आपके सामने होगा.

यह फिल्म बाक्स आफिस पर सामान्य रही. केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सभी विजेताओं को बधाई दी.और उन्होंने कड़ी मेहनत और पारदर्शिता के लिए निर्णायक मंडल की भी प्रशंसा की. मंत्री जी का इस अनावश्यक बात को कहना चर्चा का विषय बन गया कि आखिर मंत्री जी ने ऐसा क्यों कहा है क्या पहले निष्पक्ष और पारदर्शी रूप से सम्मान फिल्म और कलाकारों को नहीं मिलते थे?
आपने अगर अभिनेता सूर्या की ‘सोरारई पोटरु’नहीं देखी है तो एक बार अवश्य देखें और तुलना करें अजय देवगन और सूर्या में. आपके सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. फिल्म एअर डेक्कन के संस्थापक कैप्टन जी आर गोपीनाथ के जीवन से प्रेरित है. इसी फिल्म के लिए अपर्णा बालामुरली ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता. सूर्या की फिल्म ‘सोरारई पोटरु’ साल 2020 में आई थी.

जहां तक बात अजय देवगन की फिल्म का सवाल है तो अजय देवगन ने‌ मराठा साम्राज्य को फिर से हासिल करने के लिए क्रूर मुगल सरदार उदयभान सिंह राठौर के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई को जीवंत किया था.

टिप नहीं स्माइल करिए

एक रेस्तरां या होटल की जान उस की लोकेशन, डिकोर, एयरकंडीशिनग, शैफ की प्रीप्रेशन, सफाई, मैनेजमैंट की कार्यकुशलता में होती है न कि उस जने में जो एक कागज पर ग्राहक का आर्डर लिखना है और पहले से साफ की हुई प्लेटों में किचन से लाकर ग्राहक की मेज तक ले जाता है. यह जना चाहे कितना ही वैल ड्रैस्ड हो, पोलाइट हो, स्मार्ट हो, ….हो या यदि किचन से गंदी प्लेट में खराब खाना आएगा तो वह कुछ नहीं कर सकता.

अफसोस यह है कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में लोग सारा क्रेडिट उसे देते हैं जो रेस्तरां की फूड चेन में केवल डिलवरी का काम करता है और यह उम्मीद की जाती है कि रेस्तरां के मालिक की तय की गई कीमतों के और भी कुछ पैसे केवल इन डिलवरी मैन को दे दिए जाए. अमेरिका में तो अगर टिप न दें तो सर्व करने वाला इस तरह का मुंह बनाता है कि साफ दिखे कि वह नाराज है.

जापान और पूर्व एशिया के कुछ देशों में न टिप देने की जो कल्चर है वह बहुत अच्छी है. वहां फिर भी अच्छी सेवा मिलती है, स्मार्ट सर्वर होते है, अच्छा खाना मिलता है.

आजकल कंज्यूमर फोरम इस बारे में हल्ला मचा रहे हैं कि इस टिप को रेस्तरां मालिक सॢवस चार्ज के नाम पर जबरन बिल में न जोड़ें, यह ठीक हो सकता है पर उस के टिप देना लगभग अनिवार्य हो ही जाएगा. यदि कंज्यूमर फोरम टििपग के खिलाफ ही खड़े होते तो बात दूसरी होती.

टिपिंग अपनेआप में गलत इसलिए है क्योंकि टिप लेने वाला या टैक्सी ड्राइवर हो, पोर्टर हो, व्हील चेयर पुशर हो, पेडिक्योरिस्ट या बारबार हो, पूरी सेवा चेन का घोम का हिस्सा होता है. उस का ग्राहक से संबंध है तो वह सेवा का जिम्मेदार नहीं है क्योंकि वह जो भी सॢवस दे रहा है उस में सिर्फ अपनी मुस्कान के अलावा कुछ नहीं जोड़ सकता. खराब टैक्सी या खराब खाना या गंदे पार्लर की खराब कैचियां सर्व करने वाले की जिम्मेदारी नहीं हैं.

टिप बरसों से गलत जनों को दी जा रही हैं और कंज्यूमर फोरमों को कुछ करना था तो सॢवस चार्ज जो बिल में जोड़ा जा रहा है के पीदे नहीं. सेवा देने के बदले टिप की परंपरा के पीछे पड़ते. कंज्यूमर फोरम यह आदत डाल सकते हैं कि सेवा देने वालों को वेतन मिलता है और ग्राहक उन्हें कुछ अतिरिक्त न दे. अच्छी स्माइल और स्मार्ट सेवा के बदले ग्राहक से स्माइल और बिग थैंक यू मिलना चाहिए, करारे नोट नहीं.

एकदूसरे को बराबर का सम्मान दें

आम लोगों में जब विवाह टूटते हैं तो मामला मोहल्ले तक रह जाता है पर जब सिमरों के संबंध टूटते हैं तो पता चलता है कि पतिपत्नी संबंध किस तरह नाजुक और रेतीली जमीन पर होते हैं कि जरा सी गलतफहमी उन्हें अलग कर सकती है.

धर्म चोपड़ा और राजीव सेन की शादी के बाद. एक बेटी के जन्म के बाद हो रही अनबन, दोषादोषी साबित कर रही है कि अगर विवाह बाद जीवन को पटरी पर रखना है तो उसी तरह से इंजन की देखभाल करनी होती है जैसे रेलवे करती है. पटरी बिदा दी गई, 200-300 लोगों के सामने एकदूसरे को सुंदर डिजाइनर कपड़ों में घूम लिया काफी नहीं है.

‘क्यों दिल छोड़ आए’ धारावाही की नायिका का कहना है कि राजीव की फेशफुलनैस पर उसे शक है और वह कहता रहता है एक चांस दो, एक धोस दो और फिर कहीं मुंह मार आता है. राजीव का कहना है कि चारू की पहले बीकानेर में शादी हुई थी पर उस ने वह बात राजीव को नहीं बताई. पहली शादी की बात अपने पति से छिपाना किसी पति को मंजूर नहीं होता. शादी के बाद पतिपत्नी एकदूसरे पर अगाध विश्वास करते हैं और यही प्रेम की जौट होती है जो 2 सफल से लोगों को एक छत के नीचे रहने को तैयार रखती है.

जब से दोनों में अनबन हुई है, वकीलों के बीच में ले आया गया, दोनों को एकदूसरे के प्रति झूठसच फैलाना एकदम सुलह के सारे रास्ते बंद कर देना होता है. ऐसी हालत में तलाक तो होता ही है, बेटी को मां या बाप में से एक को खोना होता है. अब राजीव सेन को अपनी बेटी को देखने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है.

एक खासी सफल सी एक्ट्रेस को काम से रोकना या बेटी के फोटो दोस्तों और फैनों के साथ सोशल मीडिया पर शेखर करने से रोकने जैसी छोटी बातें कई बार ऐसा एसिड हो जाती हैं जो शादी के पहले के प्यार की गोंद को बहा ले जाता है.

हर शादी में पतिपत्नी एकदूसरे को बराबर का सम्मान दें, जगह दें, स्पेस दें, फैसले करने दें, क्या करने दें जरूरी है. कामों का बंटवारा प्यार से हो तराजू में तोल कर नहीं. पतिपत्नी बढ़चढ़ कर एकदूसरे को आराम देने की कोशिश करें. रसोई से ले कर टैक्स तक दोनों एकदूसरे के साथ बने रहें और एकदूसरे के गलत फैसलों का भी सम्मान ही नहीं करें, उन्हें सहन करने की आदत डालें मानों यह फैसला उसी का है.

शो बिजनैस में किसी और के साथ सोना एक आफत नहीं होना चाहिए. यह इंडस्ट्री की कल्चर का हिस्सा है. जैसे पंजाब के शासक रणजीत ङ्क्षसह की 5 पत्नियां थीं और रणजीत ङ्क्षसह फिर भी सफल रहता थे, वैसे ही शो बिजनैस तो विवाहित साथी के दूसरे संबंध सहज लेना ही सही है. जिन्हें इस पर आपत्ति हो, उन्हें साथ रहना ही नहीं चाहिए.

चारू असोपा और रोहित सेन का विवाह टूटे या न टूटे पर इस तरह की घटनाओं से आम लोगों कोई कई सबक मिल सकते हैं.

‘सिंगल मदर समाज के लिए सौफ्ट टारगेट होती है- अनीता शर्मा

समाज की रूढि़यों को

जिस किसी को भी दिल्ली के आईटीओ इलाके का थोड़ा सा भी इतिहास पता हो, तो उसे यह भी जरूर याद होगा कि वहां की इमारतों के एक समूह में हिंदी, इंग्लिश, पंजाबी, उर्दू के कई नामचीन अखबार छपते थे. इस वजह से वहां पत्रकारों, संपादकों, फोटोग्राफरों सहित तमाम बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लगा रहता था.

फिर समय का ऐसा फेर आया कि अखबार वाले वहां से दूसरी जगह शिफ्ट हो गए, पर उन्हीं इमारतों में से एक इमारत में उडुपी नाम का दक्षिण भारतीय व्यंजनों का एक कैफे आज भी मौजूद है.

हाल ही में उसी कैफे में अनीता वेदांत नाम की एक महिला से मुलाकात हुई जो दिखने में दूब जैसी नाजुक थीं, पर जब उन्होंने अपने ‘सिंगल मदर’ होने और 8 साल के बेटे वेदांत को अकेले पालने की दास्तान सुनाई तो उन में मुझे शमशीर की ऐसी धार दिखाई दी, जो समाज की रूढि़यों पर वार करने में जरा भी नहीं झिझकती है.

अनीता वेदांत का यह सफरनामा जानने से पहले इस ‘सिंगल मदर’ शब्द को जरा खंगाल लेते हैं, जो पिछले कुछ सालों में भारतीय शहरों में तेजी से गूंजने लगा है. ‘सिंगल मदर’ को आसान हिंदी में ‘एकल मां’ कहते हैं. इस का मतलब ऐसी मां से है जो अकेली अपने बच्चों का लालनपालन करती है, पर पति के जिंदा रहते हुए. वह तलाकशुदा हो सकती है या नहीं भी. कभीकभी तो शादीशुदा भी नहीं.

एक मिसाल हैं

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नीना गुप्ता ‘सिंगल मदर’ होने की शानदार मिसाल हैं. अपनी जवानी में वे वैस्टइंडीज के दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स के प्यार में थीं, बिना शादी किए बेटी को पैदा किया और पालापोसा भी अकेले ही. आज उन की बेटी मसाबा गुप्ता देश की जानीमानी फैशन डिजाइनर हैं.

नीना गुप्ता देश की एक नामचीन कलाकार हैं, लेकिन हर ‘सिंगल मदर’ पैसे और रुतबे के लिहाज से मजबूत हो, ऐसा जरूरी नहीं है. संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 4.5 फीसदी घरों को ‘सिंगल मदर’ चला रही हैं, जिन की संख्या करीब 1.3 करोड़ है. रिपोर्ट के मुताबिक अनुमानित ऐसी ही 3.2 करोड़ महिलाएं संयुक्त परिवारों में भी रह रही हैं.

अब अनीता वेदांत पर फोकस करते हैं, जो नीना गुप्ता जितनी मशहूर तो नहीं हैं, पर हिम्मत में उन्हें पूरी टक्कर देंगी. चूंकि उडुपी कैफे में उस दिन अनीता वेदांत का 8 साल का बेटा वेदांत भी हमारे साथ था, तो उसे बिजी रखने के लिए उन्होंने फोन पर बच्चों के गाने लगा कर हैंड्स फ्री वेदांत के कान में लगा दिए थे. इस की एक वजह यह भी थी कि वे नहीं चाहती थीं कि वेदांत हमारी बातचीत को सुने, फिर कई तरह के सवाल करे.

शिक्षा बेहद जरूरी

अनीता वेदांत का नाम अनीता शर्मा है और वे दिल्ली में पैदा हुई थीं. अपनी शुरुआती पढ़ाईलिखाई उत्तर प्रदेश से करने के बाद वे दिल्ली आ गईं और आगे की पढ़ाई के लिए वहां दाखिला ले लिया. अपनी पोस्ट ग्रैजुएशन तक की पढ़ाईलिखाई उन्होंने दिल्ली से ही पूरी की थी. वे खेलों में भी काफी अच्छी थीं. उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं दिवंगत शीला दीक्षित के हाथों अवार्ड भी मिल चुका है.

शिक्षा को ले कर अनीता शर्मा का मानना है, ‘‘शिक्षा को अपने जीवन में उतारना बहुत ही जरूरी है. मैं ने भी यही किया. मेरे पिता ट्रक मैकैनिक हैं और मां गृहिणी, जिन्होंने हम 6 भाईबहनों का लालनपालन किया. चूंकि मैं शिक्षा से गहरे से जुड़ी थी तो मुझे लगता था कि किताबें हमें कभी झठ बोलना नहीं सिखाती हैं, कभी गलत चीजों को सहना नहीं सिखाती हैं, तो उन्हीं किताबों की बातों को मैं ने जीवन में भी उतारा.

‘‘फिर मेरे जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जो हर चीज में अव्वल रहने वाली अनीता के लिए टर्निंग पौइंट बन गया. 2010 में मैं ने 10वीं कक्षा पास की थी. उन्हीं दिनों हमारे एक करीबी रिश्तेदार के बेटे ने मेरे साथ 3 बार जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब मैं ने अपने घर वालों को बताया तो वे उस रिश्तेदार की तरफ खड़े दिखाई दिए खासकर मेरी मां. समाज के नाम पर मुझे चुप रहने के लिए कहा गया. मैं ने काफी कोशिश की, पर मुझ से यह सब बरदाश्त नहीं हो पाया. तब मुझे बहुत ज्यादा अकेलापन महसूस हुआ और मैं ने अपना घर छोड़ दिया.

काम की तवज्जो

अनीता बताती हैं, ‘‘इस के बाद हालांकि मेरा कोई इरादा तो नहीं था, पर समाज के चुभते सवालों से छुटकारा पाने के लिए मैं ने लव मैरिज कर ली. उस समय मैं साढ़े 19 साल की थी और अपने एक दोस्त के घर जा कर उन्हें सब बताया तो उन्होंने मेरा संबल बनते हुए मुझ से शादी कर ली, पर शादी के दूसरे ही दिन मुझे उन के स्वभाव के बारे में पता चल गया.

‘‘दरअसल, हम दोनों घर का समान लेने के लिए बाजार गए थे और किसी आदमी के कमैंट पर मैं हंस दी, जो मुझ जैसी पढ़ीलिखी महिला के लिए एक सामान्य सी बात थी, पर मेरे पति को यह सब अच्छा नहीं लगा और फिर तो हमारे अगले 3 साल बड़े बुरे गुजरे. वे मेरी हर बात पर शक करते थे. शायद उन के दिमाग में यह बात थी कि जब इस के घर वालों ने इस का साथ नहीं दिया तो गलती इसी की रही होगी.

‘‘इस के बाद भी मैं ने रिश्ता निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. घर की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए मैं ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली. चूंकि मैं इंग्लिश में अच्छी थी, तो स्कूल वालों को मेरा पढ़ाने का तरीका पसंद आया. पहले साल में ही मुझे शिक्षक सम्मान मिला. धीरेधीरे मैं अपने काम में तो आगे निकल गई, पर पारिवारिक रिश्ते कहीं पीछे छूट गए.’’

तलाक ही एक रास्ता था

अनीता बताती हैं, ‘‘जब मैं दिल्ली के लक्ष्मी नगर के एक स्कूल में पढ़ाती थी, तो वहां की प्रिंसिपल से अपने टूटते रिश्ते के बारे में बताया. उन्होंने सलाह दी कि बेबी कर लो, उस के बाद रिश्ता पटरी पर आ जाएगा. मैं ने यह भी कर के देखा और 2013 में बेटा हो गया, पर उस के बाद दिक्कतें और ज्यादा बढ़ गईं. इसी तरह 2 साल और निकले, फिर मैं ने थकहार कर पति से तलाक मांग लिया.

‘‘मेरे पति ने मुझे तलाक देने से मना कर दिया. पर मुझे यह चिंता सता रही थी कि इस माहौल में हो सकता है कि अपने पिता को देख कर मेरा बेटा भी कल को मेरी इज्जत न करे.

क्या पता वह किसी भी महिला की इज्जत न

करे. लिहाजा, मार्च, 2017 में मैं ने अपने पति का घर भी छोड़ दिया और कानपुर गर्ल्स होस्टल चली गई.

‘‘कानपुर जाने की एक वजह यह भी थी कि मैं वहां से तलाक लेने की कार्यवाही कर सकती थी क्योंकि मेरे जेठ वहीं रहते हैं. लेकिन मेरे पति ने तलाक नहीं दिया और अब पिछले 5 सालों से मैं अकेली अपने बेटे को पाल रही हूं.’’

हम सब जानते हैं कि भारतीय समाज दकियानूसी रीतिरिवाजों से भरा है और अगर कोई महिला अकेली अपने बच्चे का लालनपालन कर रही होती है तो उसे ट्रोल करने वालों की तो जैसे लौटरी लग जाती है. गाहेबगाहे उस से जरूर पूछा जाता है कि बच्चे के पिता कहां हैं, वे क्या करते हैं, उन का नाम क्या है आदि.

अनीता शर्मा का बेटा अब 8 साल का हो गया है और स्कूल जाता है. जरा सोचिए, जब वह अपने आसपास के माहौल में तैरते सवालों को अपनी जबान देता होगा कि मम्मी हम पापा के साथ क्यों नहीं रहते हैं या दादादादी के घर क्यों नहीं जाते हैं, तो एक मां कैसे उन से जूझती होगी.

यह जो हमारे समाज की महिलाओं को जज करने की आदत है न, वह किसी को भी मन से तोड़ने में देर नहीं लगाती है. एकल मांएं तो ऐसे समाज के लिए सौफ्ट टारगेट होती हैं, जिन्हें ताने सुनाना लोग अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. वे खुद तो जैसेतैसे इस तरह के सवालों को झेल जाती हैं, पर जब उन के बच्चों को पोक किया जाता है, तो वह असहनीय हो जाता है.

गलत का साथ कभी नहीं

अनीता शर्मा के साथ भी यही हुआ. उन्होंने बताया, ‘‘जब से वेदांत थोड़ा समझदार हुआ है, वह अपने पापा का नाम मुझ से पूछता है. एक टीचर होने के नाते मैं बच्चों को किताबों की लिखी बातें समझती हूं कि हमारे लिए परिवार जरूरी होता है, पर अपने बेटे को इस बारे में जवाब नहीं दे पाती हूं तो बहुत परेशान हो जाती हूं. कभीकभी उसे डांट भी देती हूं, लेकिन साथ ही मुझे सुकून भी है कि मैं ने कभी गलत का साथ नहीं दिया. मेरे परिवार में किसी लड़की के साथ ऐसा होता है, उस के सामने मैं उदाहरण हूं. लेकिन मैं यह भी नहीं चाहूंगी कि कोई बेवजह अपना घर तोड़े.

‘‘सिंगल मदर पासपड़ोस के तानों से बचने के लिए घर के दरवाजे तो बंद कर सकती है, पर काम की जगह पर रह कर काम से तो मुंह नहीं मोड़ सकती है. ऐसा मेरे साथ भी हुआ है. स्कूल में जब मेरे काम की वजह से तरक्की हुई तो उसे भी शक की निगाह से देखा जाने लगा. अजीब तरह की राजनीति होने लगी, पर मैं ने अपने काम पर ही फोकस रखा.

‘‘आज मैं अपने स्कूल में टीचर होने के साथसाथ कोऔर्डिनेटर भी हूं. मैं बच्चों की कैरियर और इमोशनल काउंसलिंग करती हूं. अगर उन्हें कोई पर्सनल प्रौब्लम होती है तो वे कभी भी मुझ से साझ कर सकते हैं.’’

सिनी शेट्टी का Miss India World 2022 का सफर

जीवन की यही खूबसूरती है किसी को भी  जमीन से उठाते हुए  सितारों पर बैठा दिया जाता है.ऐसी ही कुछ बात  सिनी शेट्टी के साथ हुई है जो सुंदरता की दौड़ में सबको पीछे छोड़ कर आगे निकलती जा रही है. भारत सुंदरी बनने के बाद अब वह विश्व सुंदरी बनने की दौड़ में है, लेकिन उसके सामने क्या है चुनौतियां. और किस तरह भारत सुंदरी बनने के बाद परफारमेंस दे रही हैं.

इक्कीस वर्ष की सिनी शेट्टी सामान्य सी लड़की है जो कभी बॉलीवुड, तो कभी फ्री स्टाइल या अपने भरतनाट्यम नृत्य के  वीडियो यूट्यूब पर डालकर उनके ‘‘व्यूज’’ गिनती थी ने संभवतः कभी सोचा भी नहीं था कि देश की सबसे सुंदर लड़की चुन ली जाएंगी और उन्हें देखने वाले लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों करोड़ों लोग होंगे.

मुंबई के जियो वर्ल्ड कन्वेंशन सेंटर में मिस इंडिया 2022 का ग्रैंड फिनाले आयोजित किया गया, जिसमें कर्नाटक की सिनी शेट्टी ने अपने पूरे तीस प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़कर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. मिस इंडिया चुने जाने के अलावा उन्हें ‘मिस टेलेंटिड’ और ‘मिस बॉडी ब्यूटिफुल’ का खिताब भी मिल गया.

विश्व सुंदरी का खिताब लक्ष्य

 

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जब उनसे पूछा गया कि आगे आप क्या करने जा रही हैं तो हंसकर सिनी शेट्टी  ने कहा – वह 71 वें मिस वर्ल्ड मुकाबले में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती है.

आपको हम बताते चलें कि यह 5 वर्ष पहले भारत के लिए आखिरी दफा भारत की मानुषी छिल्लर ने 2017 में जीता था. अब सिनी शेट्टी की हाजिरजवाबी सुंदरता को देख सबकी निगाह सिनी पर टिकी हुई है.

20 जून 2001 को जन्मी सिनी शेट्टी ने अपने कॉलेज में पढ़ते हुए ही मॉडलिंग शुरू कर दी थी और मिस इंडिया का ताज अपने सिर पर सजाने से पहले वह एक वेब सीरिज में अभिनय भी कर चुकी हैं.वह अपने डांस वीडियो अकसर सोशल मीडिया पर अपलोड करती हैं और उनके ऐसे ही एक वीडियो को लाखों लोग देख चुके हैं.

मजे की बात यह है कि देश की सबसे सुंदर महिला बनने के बाद सिनी अब ‘विश्व सुंदरी’ प्रतियोगिता की तैयारी में जुट गई है. सिनी शेट्टी ने एक संवाददाता से बातचीत में कहा यह उपलब्धि एक सपने के साकार होने जैसा है. और आगे कहा कि दुनिया की हर लड़की सुंदर होती है और उसके मन में सबसे सुंदर दिखने की चाह भी होती है. उनमें से कुछ खुशनसीब ही अपने ख्वाबों को पूरा कर पाती हैं.

सिनी शेट्टी ने अपनी अद्भुत सफलता के लिए अपनी माता और पिता सहित अपने मेंटोर का शुक्रिया अदा करते हुए सिनी ने कहा कि देशभर की लड़कियों द्वारा भेजी गई तीस हजार से अधिक प्रविष्टियों में से विभिन्न राज्यों की 31 प्रतियोगियों को इस फाइनल मुकाबले के लिए चुना गया और इस मुकाबले में मिस इंडिया का ताज उनके सिर पर आने के साथ ही उनके कंधों पर यह जिम्मेदारी भी आ गई है कि वह दुनिया के सामने अपनी और अपने देश की एक सच्ची और बेहतर तस्वीर पेश करें. किसी एक संवाददाता के

यह पूछे जाने पर कि प्रतियोगिता के दौरान क्या उन्हें अपनी जीत का विश्वास था, सिनी ने कहा ‘‘प्रतियोगिता में आई सभी अन्य तीस लड़कियां अपने राज्य का प्रतिनिधित्व कर रही थीं और सभी कड़ी मेहनत के बाद इस फाइनल मुकाबले तक पहुंची थीं, ऐसे में खुद की जीत के लिए आश्वस्त होना आसान नहीं था, लेकिन मैं जब कोई काम शुरू करती हूं तो उसे पूरा किए बिना नहीं छोड़ती, इसलिए हार और जीत से ज्यादा अपने आप को बेहतरीन अंदाज में पेश करने पर ज्यादा जोर दिया और हर मुश्किल आसान होती गई.’’

आपको एक मजेदार बात बताते चलें – सिनी ने बताया कि विजेता के रूप में उनका नाम पुकारे जाने पर उन्होंने सबसे पहले अपने माता-पिता की तरफ देखा, जो उनके नाम की घोषणा होते ही खुशी से उछल पड़े थे. सिनी ने कहा कि उन्हें खुश देखकर मिस इंडिया बनने की उनकी खुशी दोगुनी गई और इस बात का गर्व और संतोष भी हुआ कि उन्होंने एक बेटी होने का फर्ज अच्छे से निभाया है और आगे भी निभाती रहेंगी.

सिनी शेट्टी ने अपने भविष्य की योजना का जिक्र करते हुए कहा कि अगर उन्हें मौका मिला तो वह भारतीय फिल्मों में अपना योगदान करना चाहती है. सिनी ने दक्षिण भारत की आसिन राशि खन्ना और बालीवुड में दीपिका पादुकोण और आलिया भट्ट को अपनी पसंदीदा कलाकार बताते हुए कहा कि यह सभी अभिनेत्रियां अपने दम पर फिल्म को सफल बनाने का माद्दा रखती हैं और वह भी अभिनय के क्षेत्र में इनका अनुसरण करना चाहती हैं.

देखिए खूबसूरती के मामले में देश की सबसे सुंदर लड़की का खिताब जीत चुकी सिनी शेट्टी को अब संसार की सबसे सुंदर लड़की चुने जाने के लिए कुछ महीने तक खूब मेहनत करनी होगी और पूरे देश को उम्मीद है कि सिनी पांच साल बाद एक बार फिर मिस वर्ल्ड का हीरे जड़ा ताज लेकर आएंगी.

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