जानें प्रदूषण के बारे में क्या कहती हैं स्मिता कनोडिया, क्षेत्रीय अधिकारी- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

धरती पर वायु, जल और ध्वनि का जितना संतुलन रहेगा, उतना ही हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. मगर यह बड़े अफसोस की बात है कि हम जैसेजैसे आधुनिकता की तरफ बढ़ रहे हैं, पर्यावरण पर प्रदूषण का प्रकोप उतना ही ज्यादा होता जा रहा है.

केंद्र और राज्य सरकारें भी प्रदूषण को रोकने के लिए अपने स्तर पर कई तरह के काम करती हैं. ऐसे में लोगों को यह जानने का हक है कि प्रदूषण क्या बला है और यह हमारी धरती को किस तरह नुकसान पहुंचाता है? इसी सिलसिले में हरियाणा प्रदूषण बोर्ड फरीदाबाद की क्षेत्रीय अधिकारी स्मिता कनोडिया से बातचीत की गई. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश:

लोगों को आसान शब्दों में यह कैसे समझया जाए कि प्रदूषण क्या है और

यह कितने तरीके का होता है?

पर्यावरण में होने वाला हर वह बदलाव जिस का धरती पर मौजूद जीवों पर बुरा असर पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है. चूंकि ऐसे जहरीले तत्त्व हवा, पानी और भूमि की क्वालिटी को खराब करते हैं, इसलिए जल, वायु और ध्वनि ये 3 प्रकार के प्रदूषण हमें सब से ज्यादा प्रभावित करते हैं.

भूमिगत जल प्रदूषण किस कारण से होता है?

इसे प्रदूषण का चौथा प्रकार कहा जा सकता है. हमारे घरों, कारखानों, अस्पतालों आदि से निकलने वाला कचरा भूमिगत जल को खराब करने की सब से बड़ी वजह है. यही ठोस कचरा जमीन के रास्ते धरती के भीतर जा कर भूमिगत पानी को खराब कर देता है.

फरीदाबाद और गुरुग्राम का ऐसा ठोस कचरा बंधवाड़ी लैंडफिल मैनेजमैंट साइट पर जमा किया जाता है. अगर शहरों का ऐसा कचरा ट्रीट किया जा रहा है, तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो वह कचरा धीरेधीरे जमीन के पानी को प्रदूषित कर देता है, जो एक खतरे की घंटी है.

कहने को लैंडफिल साइट पर घरों का कचरा ही जमा होता है, पर उस में प्लास्टिक, पौलिथीन, टूटे थर्मामीटर, बैटरी, कांच आदि भी होते हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं. प्लास्टिक की लाइफ 100 साल तक होती है. ऐसी चीजों का अगर वैज्ञानिक तरीके से निबटान न किया जाए, तो भूमिगत पानी पर बहुत बुरा असर डालती हैं, तभी तो बड़ीबड़ी फैक्टरियों, कारखानों आदि में ट्रीटमैंट प्लांट्स लगाने के आदेश दिए जाते हैं और उन्हें काम के हिसाब से ग्रीन, ह्वाइट, औरेंज और रैड कैटेगरी में बांटा जाता है. जो लोग नियमों का पालन नहीं करते हैं, उन पर कड़ी कार्यवाही तक की जाती है.

कैमिकलयुक्त वेस्ट वाटर को ट्रीट करने के बाद ही फैक्टरी वाले उसे सीवर में डाल सकते हैं. अगर कोई रैड कैटेगरी की फैक्टरी किसी भी तरह के कानून का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो उस पर 12,500, औरेंज कैटेगरी पर 7,500 और ग्रीन कैटेगरी पर 5,000 रुपए प्रतिदिन का जुरमाना लगता है.

इसी तरह कोई इंडस्ट्री पर्यावरण में विषैला धुआं छोड़ती है तो उसे नियंत्रित करने के लिए एअर पौल्यूशन कंट्रोल डिवाइस लगाने होते हैं. इस के बाद ही चिमनी से धुआं बाहर छोड़ा जा सकता है.

गांवदेहात में खेत में पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण कैसे नुकसानदायक होता है?

पराली को खेत में जलाने के अलग नुकसान हैं. इस से धरती की ऊपरी परत खराब हो जाती है, जो सब से ज्यादा उपजाऊ मानी जाती है. धुएं से पर्यावरण तो खराब होता ही है, सांस से संबंधित बीमारियां होने का खतरा भी बना रहता है.

प्रदूषण से जुड़े सरकारी महकमे कैसे प्रदूषण की रोकथाम पर काम करते हैं?

दरअसल, हमारा विभाग एक मौनिटरिंग एजेंसी है. हम दूसरे विभागों से तालमेल करते हैं ताकि पर्यावरण से जुड़ी समस्याएं समय रहते दूर की जा सकें.

निर्माण क्षेत्र के हिसाब से सरकार द्वारा ऐंटीस्मोग गन लगाने के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. अगर कोई बिल्डर 5000 स्क्वेयर मीटर के एरिया में एक ऐंटीस्मोग गन लगा कर काम करता है तो पौल्युशन कम होता है.

सरकार ने अपनी तरफ से भी ऐंटीस्मोग गन लगवाई हैं. इस के अतिरिक्त मशीनीकृत ?ाड़ू भी लगवाई जाती है. अगर किसी इलाके में काफी कंस्ट्रक्शन हो रहा है और उस एअर क्वालिटी खराब हो कर 300 के मानक से ऊपर पहुंच जाए तो फिर कंस्ट्रक्शन के सारे काम रुकवा दिए जाते हैं.

लोगों को किस तरह इस समस्या के प्रति जागरूक किया जा सकता है?

कार पूलिंग करनी चाहिए. ज्यादा गाडि़यां चलेंगी तो प्रदूषण ज्यादा होगा और ट्रैफिक जाम की समस्या भी बढ़ेगी. इस से वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है. यातायात सार्वजनिक परिवहन जैसे बस, मैट्रो आदि का इस्तेमाल करें. लोगों की जागरूकता ही प्रदूषण को कम करने का आसान हल है.

Monsoon special: फिट रहने के लिए 7 डाइट प्लान्स

हाल ही में महिलाओं की न्यूट्रिशन संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जानकारी के लिए हेलियोन (कंज्यूमर हैल्थ केयर ब्रैंड) ने कांतार (रिसर्च कंपनी) के साथ मिल कर ‘द सैंट्रम इंडिया वूमंस हैल्थ सर्वे’ किया. यह सर्वे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में 1200 से ज्यादा 2 से 65 साल की महिलाओं के बीच किया गया.

इस सर्वे के अनुसार कमजोर हड्डी (वीक बोन हैल्थ), अपर्याप्त रोगप्रतिरोधक क्षमता (लो इम्यूनिटी) और लो ऐनर्जी भारतीय महिलाओं की 3 मुख्य स्वास्थ्य समस्याएं हैं. इस की वजह उन की डाइट में प्रौपर न्यूट्रिशन की कमी है. वे अपनी सेहत का खयाल नहीं रखतीं.

अब समय आ गया है कि महिलाएं भी अपनी डाइट का पूरा खयाल रखें और उन के शरीर को जिस तरह की डाइट की जरूरत है वैसी ही डाइट लें.

आप ऐक्सपर्ट्स से बात कर या किताबों में पढ़ कर अपने लिए सही डाइट का विकल्प चुन सकती हैं. कोई भी नई डाइट चुनने से पहले खुद से कुछ सवाल पूछिए जैसे:

आप की रिक्वायरमैंट क्या है? आप अपने लिए जो डाइट प्लान बनाने वाली हैं वह किस मकसद से बना रही हैं? क्या आप को हैल्थ इशूज हैं? क्या आप मोटापे से ग्रस्त हैं या आप को अपनी ओवरऔल हैल्थ सही नहीं लगती या फिर आप एक नए आकर्षक अवतार में दिखना चाहती हैं? जो भी समस्या या जरूरत है उस के अनुरूप अपने डाइट प्लान को तैयार करें और उस पर पूरे भरोसे के साथ आगे बढ़ें. ऐसा न हो कि 2-4 दिन बाद ही आप का मन डगमगाने लगे और डाइट फौलो करना छोड़ दें.

क्या यह आहार बहुत रैस्ट्रिक्ट्रिव है और आप इस की वजह से अपनी जिंदगी और अपने भोजन में अधूरापन महसूस कर रही हैं? क्या आप इस डाइट को लेते हुए खुश और संतुष्ट रह कर अपना जीवन जी पाएंगी या फिर रोज यह सोचेंगी कि काश मुझे कुछ अच्छा खाने को मिल जाता?

क्या आप को अपनी इस डाइट से पर्याप्त पोषण मिल रहा है या आप कमजोरी महसूस कर रही हैं? डाइट वही लें जिस से आप अच्छी ऐनर्जी महसूस करें.

इस संदर्भ में डाइटीशियन शमन मित्तल ने फिट रहने के लिए 7 तरह के डाइट प्लान्स डिस्कस किए जिन्हें फौलो कर आप स्वस्थ रह सकती हैं या जो भी शारीरिक परेशानियां हैं उन पर काबू पा सकती हैं. ये डाइट प्लान्स निम्न हैं:

  1. हाई फाइबर लो कोलैस्ट्रौल डाइट चार्ट

जिन को गाल ब्लैडर का औपरेशन हुआ है, कौंस्टिपेशन की ज्यादा समस्या रहती है या पेट की दूसरी समस्याएं रहती हैं वे इस डाइट को फौलो कर सकती हैं. इस डाइट में आसानी से पचने वाली चीजें और फाइबर ज्यादा दिया जाता है ताकि बौडी के टौक्सिन निकल जाएं. इस डाइट से इंसान के शरीर को 55 से 60 ग्राम प्रोटीन और दिन में करीब 700 से 800 मिलीग्राम कैल्सियम मिल जाता है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6:00 एएम)- रात को 1 चम्मच मेथीदाना 1 गिलास पानी में भिगो कर रखें और उसे सुबह खाली पेट पी लें.

नाश्ता (9:00 एएम)- मलाई उतरा हुआ दूध (1 कप), सूजी का उपमा/पोहा/दलिया/ मल्टीग्रेन रोटी, मिड मौर्निंग(12 पीएम)- फल/सब्जी का जूस, लंच (2 पीएम)- सलाद, दाल या पनीर के साथ 2 रोटी/लिन चिकन या फिश के साथ, 2 रोटी या 1 रोटी और आधी प्लेट चावल, दही 1 कटोरी, ईवनिंग (4 पीएम)- सोया मिल्क/स्प्राउट्स/दाल चाट, डिनर (8 पीएम)- हरी सब्जी के साथ

2 रोटी/हलकी दाल के साथ 2 रोटी, बैड टाइम

(10 पीएम)-दालचीनी का पानी.

2. हाई प्रोटीन लो कैलोरी डाइट चार्ट

इस तरह की डाइट जिस में डायबिटीज या ओबैसिटी के पेशैंट को दी दी जाती है. इस डाइट में व्यक्ति को करीब 550 से 670 मिलीग्राम कैल्सियम मिलता है. प्रोटीन भी अच्छे अनुपात में होता है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6 एएम)- खाली पेट 1 गिलास गरम पानी में नीबू निचोड़ कर पीएं, नाश्ता (9 एएम)- वैजिटेबल ओट्स /दलिया /वैजिटेबल पोहा/सूजी का उपमा, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- फल या नमकीन छाछ, लंच (2 पीएम)- सलाद आधी प्लेट, टोफू या पनीर के साथ 2 मल्टीग्रेन रोटी/काले चने के साथ 2 मल्टीग्रेन रोटी, वैजिटेबल रायता, ईवनिंग (4 पीएम)- ग्रीन टी 1 या 2 उबले अंडों का सफेद हिस्सा या कोई भी रोस्टेड नमकीन 2 चम्मच, डिनर -(9 पीएम) सब्जी वाली खिचड़ी या टोफू का सलाद या हरी सब्जी के साथ 1 रोटी, सोते समय (10 पीएम)- दालचीनी का पानी.

3. डिटौक्स डाइट प्लान

यह डाइट उन के लिए है जो अपनी बौडी या जो अपने लिवर को डिटौक्स करना या वेट कम करनी चाहती हैं. यह लो कार्ब, लो साल्ट रहता है और नैचुरली बौडी को डिटौक्स करती है. फ्रूट्स वगैरह ज्यादा खाने होते हैं.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6 एम)- अजवाइन वाली ग्रीन टी, नाश्ता (9 एएम)- फ्रूट सलाद के साथ 5 बादाम और 2 अखरोट, मिड मौर्निंग (12 पीएम) नारियल का पानी या छाछ, लंच (2 पीएम)- सलाद, दही के साथ स्प्राउट्स की 1 कटोरी/उबले हुए 3 अंडे, ईवनिंग (4 पीएम)- चाय के साथ भुने हुए मखाने या भुने चने, डिनर (9 पीएम)- सूप के साथ 2 उबले अंडे या सूप के साथ पनीर का सलाद, बैड टाइम (10 पीएम)- हलदी और अजवाइन का पानी.

4. हाई प्रोटीन डाइट चार्ट

इस तरह की डाइट उन के लिए है जो प्रैगनैंसी या किसी इलनैस से रिकवर कर रही हैं जैसे टीबी. यह हाई प्रोटीन डाइट है जिस में पूरे दिन में 70 से 80 ग्राम प्रोटीन खाना होता है. इस से करीब 1800 कैलोरी मिलती है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग- (6 एएम)- ग्रीन टी के साथ 6 बादाम, नाश्ता (9 एएम)- सोया मिल्क, बेसन का चीला/मूंग दाल का चीला/पनीर की भुरजी के साथ 1 रोटी, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- सूप या लस्सी अथवा फल, लंच (2 पीएम)- मल्टीग्रेन रोटी या चावल के साथ दाल या पनीर की सब्जी, वैजिटेबल रायता, सलाद, ईवनिंग (4 पीएम)- सोया मिल्क के साथ पनीर का सैंडविच या पनीर के कटलेट, डिनर (9 पीएम)- सलाद, टोफू की सब्जी के साथ 2 रोटी या सोयाबीन की बडि़यों की सब्जी के साथ 2 रोटी या चिकन और फिश के साथ 2 रोटी, बैड टाइम (10 पीएम)- हलदी वाले दूध के साथ 5 बादाम.

5.वेगन डाइट प्लान

यह केवल प्लांट बेस्ड खाना है ताकि ऐनिमल को हार्म नहीं पहुंचाया जाए. आप इस में सोयाबीन मिल्क कोकोनट या आमंड मिल्क लेती हो. यह एक तरह से स्टेटस सिंबल है. इस में 1300-1400 कैलोरीज मिलती है. प्रोटीन ज्यादा नहीं लिया जाता.

डाइट चार्ट: अली मौर्निंग (6 एएम)- सोयाबीन के दूध की चाय के साथ 5 बादाम, नाश्ता (9 एएम)- वैजिटेबल पैनकेक के साथ 1 गिलास सोयाबीन मिल्क, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- फल या फ्रूट्स स्मूदी या नारियल पानी, लंच (2 पीएम)- सलाद, क्विनो पुलाव, ईवनिंग (4 पीएम)- बादाम के दूध की चाय के साथ ऐवोकाडो टोस्ट या स्प्राउट्स, डिनर (8 पीएम)-  वैजिटेबल टोफू के साथ चावल या रोटी या किसी भी दाल या सब्जी के साथ रोटी या चावल, बैड टाइम (10 पीएम)- बादाम का दूध 1 गिलास.

6. लो कार्बोहाइड्रेट लो फैट डाइट चार्ट

ऐसी डाइट ओबैसिटी और कोलैस्ट्रौल के पेशैंट के लिए परफैक्ट है. यह काफी लो इन कोलैस्ट्रौल, लो इन फैट और लो इन कैलोरीज डाइट है और इस से बहुत जल्दी वेट कम हो जाता है. इसे मैंटेन रखा जाए तो परमानैंट वेट काबू में रहता है. इस डाइट में प्रोटीन 70 से 80 ग्राम तक लेना होता है.

डाइट चार्ट: अर्ली मौर्निंग (6 एएम)- रात को भिगो कर मेथीदाने के पानी का सुबह सेवन करें. ब्रेकफास्ट (9 एएम)- मलाई उतरा हुआ दूध (1 गिलास), वैजिटेबल दलिया/वैजिटेबल ओट्स या सूजी का उपमा, मिड मौर्निंग (12 पीएम)- नारियल पानी या छाछ, लंच (2 पीएम)- सलाद, वैजिटेबल पुलाव के साथ दही या दाल के साथ 2 रोटी, ईवनिंग (6 पीएम)- 1 कप चाय के साथ स्प्राउट्स/दाल/चाट या पनीर का टोस्ट, डिनर (9 पीएम)- सलाद, सब्जी के साथ रोटी या सब्जी वाली खिचड़ी अथवा वैजिटेबल ओट्स, बैड टाइम (10 पीएम)- हलदी वाला मलाई उतरा हुआ दूध.

7. इंटरमिटैंट फास्ट डाइट चार्ट

यह डाइट उन के लिए है जिन्हें पीसीओडी या सीवियर ओबैसिटी (ग्रेड 2) है. यह लो कैलोरी और हाई प्रोटीन डाइट है. इस में 60 से 70 ग्राम प्रोटीन मिलता है. वैजीटेरियन हैं तो टोफू और सोयाबीन ज्यादा लेना होगा और नौनवैज चिकन वगैरह ज्यादा यूज करें.

फास्ट ऐंड विंडोज (8 एएम, 12 पीएम), ब्रेकफास्ट (12 पीएम)- ओट्स का चीला या मूंग दाल का चीला या 2 प्लेन अंडों के साथ 2 ब्रैडस्लाइस, (2 पीएम)- फ्रूट सलाद, (4 पीएम) ग्रीन टी/छाछ या नारियल पानी, (6 पीएम)- सूप या रोस्टेड पनीर, डिनर (9 पीएम)- सलाद, दाल या सब्जी के साथ 2 रोटी या रोस्टेड चिकन, बैड टाइम- जीरे का पानी.

आखिर क्या है सैकंड हैंड हसबैंड?

कुछ औरतें शादीशुदा पुरुषों के साथ डेट कर रही हैं और आने वाले समय में उन के विवाह बंधन में बंधने की संभावनाएं हैं. ऐसे  एक विवाह की चर्चा हर बार जोरों पर होती है उन के अपने सर्कल में. सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है?

2012 में सैफ ने करीना कपूर से शादी की थी. इस से पहले वे 13 साल तक अमृता से वैवाहित रिश्ते में बंधे रह चुके थे और उन के 2 बच्चे भी थे. बच्चों ने नए पिता को सहज अपना लिया.

मौडलिंग करती करिश्मा ने भी एक बैचलर से प्यार किया और सगाई भी. लेकिन शादी की एक व्यवसाई संजय से, जो तलाकशुदा था. संजय 7 साल तक शादीशुदा रहा फिर अपनी पत्नी से अनबन के कारण तलाकके लिए अदालत पहुंचा.

मान्यता एक पीआर कंपनी में काम करती है. पहले उस की 2 शांदियां हो चुकी थीं, जिन में से एक की कोविड की बीमारी से मौत हो गई थी. पहले पति से उन की एक बेटी है. अब मान्यता के और नए पति के जुड़वां बच्चे हैं.

श्रीदेवी को तो जानते ही होंगे जिन्होंने फिल्म निर्माता बोनी कपूर से जोकि पहले से ही मोना से विवाहित थे और उन के 2 बच्चे भी थे 1996 में विवाह कर लिया था. हालांकि इस से पहले श्रीदेवी और मिथुन चक्रवर्ती की गुपचुप शादी की चर्चा भी बौलीवुड में उड़ी थी. ‘इंग्लिशविंग्लिश’ की सफलता के बाद श्रीदेवी को नए कैरियर से बहुत उम्मीदें थीं पर वे दुबई में बाथटब में मरी पाई गईं.

यकीन के साथ कहा जा सकता है कि अब बढ़ते तलाकों और बेसब्री के कारण औरतों का शादीशुदा या तलाकशुदा मर्दों के साथ शादी करने का सिलसिला बढ़ता जाएगा.

1.क्या कहती हैं मैरिज काउंसलर

एक मैरिज काउंसलर के अनुसार बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो शादीशुदा पुरुषों से प्यार करने लग जाती हैं, उन के प्रेम में पड़ जाती हैं. फिल्मी दुनिया में तो ऐसे कई उदाहरण हैं जैसेकि हेमामालिनी, जयाप्रदा और श्रीदेवी ऐसे पुरुषों के न सिर्फ प्यार में गिरफ्तार हुईं बल्कि उन्हीं से शादी भी की. क्या अच्छे कुंआरे लड़कों की कमी होती है या फिर कोई और कारण है? ऐसे अफेयर्स महिलाओं को द अदर वूमन या होम ब्रेकर का टैग लगा देते हैं और लोग यहां तक भी कह देते हैं कि सैलिब्रिटीज सैकंड हैंड हसबैंड का दौर चलता है.

यहां कुछ ऐसी वजहें दी जा रही हैं जो बताएंगी कि प्यार, शादी और सैक्स के लिए महिलाएं शादीशुदा मर्द ही क्यों प्रैफर करती हैं?

2.वह एक चैलेंज होता है

एक शादीशुदा पुरुष के साथ विवाह करना एक महिला के लिए दूसरी महिला पर विजय पा लेने की तरह होता है. ऐसे पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित कर लेना उस के अनुभव, आत्मविश्वास और क्षमता को और भी बढ़ा देता है. ऐसे पुरुषों को अपना बना लेना इन महिलाओं के लिए एक ट्रौफी पा लेने की भांति होता है. उन्हें पाना असंभव को संभव बनाने जैसा होता है. बहुत सी महिलाएं ऐसी चीजें पाना चाहती हैं जो किसी और महिला से जुड़ी हों या उस के पास हों. शादीशुदा पुरुषों को पाने की एक वजह ऐसी महिलाओं में ईर्ष्या या बदला लेने की प्रवृत्ति के कारण आई हुई हो सकती है.

3.एक शादीशुदा पुरुष के पास हर जवाब होता है

बहुत सी महिलाएं मानती हैं कि बैचलरों की तुलना में शादीशुदा पुरुष उन की भावनात्मक और भौतिक जरूरतों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. उन के पास सभी सवालों के जवाब मौजूद होते हैं और ऐसी समस्याओं से निबटने और उन से उबरने की कला में वे पहले से ही अनुभवी होते हैं.

4.अवैधानिक फल

समाज ऐसी महिलाओं को सपोर्ट नहीं करता, जो अन्य महिलाओं के पति को छीन लेती हैं. पहले से अनुभवी पुरुषों को पाने की लालसा सामाजिक लिहाज से गलत मानी जाती है, यही बात कुछ महिलाओं को खासतौर से इस ओर आकर्षित करती है. बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें अपनी प्लेट से कहीं ज्यादा दूसरों की प्लेट का खाना स्वादिष्ठ दिखता है. यह मनुष्य की सामान्य आदत है कि जो उस के पास नहीं होता, उसे वही अच्छा लगता और लुभाता है. शादीशुदा पुरुषों का साथ कुछ महिलाओं के आत्मविश्वास को और भी बढ़ा देता है.

5.कोई रिश्ता नहीं रखने की प्रवृत्ति:

कैरियर केंद्रित महिलाओं के लिए शादीशुदा पुरुष आदर्श महसूस होते हैं, जो उन के साथ सैक्स के लिए तो तैयार हो जाते हैं लेकिन शादी नहीं करना चाहते. जब वे किसी ऐसे को पसंद करती हैं, जो उन का नहीं हो सकता तो ऐसे पुरुषों को उन की पत्नियों के साथ या उस रिश्ते से संघर्ष भी नहीं करना पड़ता. इस तरह दोनों ही के लिए ऐसे रिश्ते से न तो कोई रिस्क रह जाता है और न ही ऐतराज.

6.शादीशुदा पुरुष बिस्तर पर अच्छे होते हैं

बहुत सी महिलाएं मानती हैं कि शादीशुदा पुरुष, जिन्हें सैक्स का काफी अनुभव होता है, वे बैचलर लड़कों के मुकाबले काफी अच्छे होते हैं. ऐसे ही कुछ शादीशुदा पुरुष हैं जिन्हें वे सोच में अपने साथ पाती हैं और महसूस करती हैं कि उन के साथ वे बेहतरीन वक्त गुजार पाएंगी.

7.वाइल्ड अट्रैक्शन

कुछ शादीशुदा पुरुष आकर्षक और चार्मिंग होते हैं जिन्हें देर तक ऐंजौय करना पसंद होता है. बहुत सी महिलाओं के लिए ऐसे पुरुषों से निकलने वाली तरंगोंको रोक पाना परेशानी भरा सबब होता है.

8.योग्य सिंगल पुरुष नहीं चुन पातीं

योग्य सिंगल पुरुष कम ही मिल पाते हैं. इस प्रतियोगिता से पार पाने के लिए वे शादीशुदा पुरुषों का ही चुनाव कर लेती हैं.

9.यह प्यार भी हो सकता है

प्यार किसी से भी हो सकता है. जैसाकि प्यार के बारे में प्रसिद्ध है कि प्यार अंधा होता है और जब कोई प्यार में होता है तो यह माने नहीं रह जाता कि वह शादीशुदा है या सिंगल.

10.मैट कौपीइंग

बहुत सी महिलाएं यह मानती हैं कि यदि किसी पुरुष के साथ या पीछे कोई और महिला है तो वह पुरुष जरूर कुछ न कुछ खास की तलाश में होगा. बस, उन की इस तलाश को पूरा कर के वे खुद को खुशहाल मानने लगते हैं.

11. सैक्स ऐडिक्ट

कुछ महिलाएं सिर्फ सैक्स करना चाहती हैं, चाहे उन के साथ कोई भी क्यों न हो. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह व्यक्ति सैक्स ऐडिक्ट होगा जबकि वह उन के साथ समर्पित नहीं भी हो सकता है.

बहरहाल, वजह जो भी हो, इतना अवश्य है कि अब राजनीति, बिजनैस में सैकंड हैंड हसबैंड प्रेम दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और अब बड़े पैमाने पर नजर आने लगा है. अब अखबारों में, मैट्रीमोनियल साइटों, फेसबुक पर सैकड़ों औरतों के बायोडाटा दिख जाएंगे जिन्हें सैकंड हसबैंड से कोई आपत्ति नहीं है.

सलाहकार

छात्र छात्राओं का प्रिय शगल हर एक अध्यापक- अध्यापिका को कोई नाम देना होता है और चाहे अध्यापक हों या प्राध्यापक, सब जानबूझ कर इस तथ्य से अनजान बने रहते हैं, शायद इसलिए कि अपने जमाने में उन्होंने भी अपने गुरुजनों को अनेक हास्यास्पद नामों से अलंकृत किया होगा.

ऋतिका इस का अपवाद थीं. वह अंगरेजी साहित्य की प्रवक्ता ही नहीं होस्टल की वार्डन भी थीं, लेकिन न तो लड़कियों ने खुद उन्हें कोई नाम दिया और न ही किसी को उन के खिलाफ बोलने देती थीं. मिलनसार, आधुनिक और संवेदनशील ऋतिका का लड़कियों से कहना था :

‘‘देखो भई, होस्टल के कायदे- कानून मैं ने नहीं बनाए हैं, लेकिन मुझे इस होस्टल में रह कर पीएच.डी. करने की सुविधा इसलिए मिली है कि मैं किसी को उन नियमों का उल्लंघन न करने दूं. मैं नहीं समझती कि आप में से कोई भी लड़की होस्टल के कायदेकानून तोड़ कर मुझे इस सुविधा से वंचित करेगी.’’

इस आत्मीयता भरी चेतावनी के बाद भला कौन लड़की मैडम को परेशान करती?  वैसे लड़कियों की किसी भी उचित मांग का ऋतिका विरोध नहीं करती थीं. खाना बेस्वाद होने पर वह स्वयं कह देती थीं, ‘‘काश, मुझ में होस्टल की मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों को दावत पर बुला कर यह खाना खिलाने की हिम्मत होती.’’

लड़कियां शिकायत करने के बजाय हंसने लगतीं.

ऋतिका मैडम का व्यवहार सभी लड़कियों के साथ सहृदय था. किसी के बीमार होने पर वह रात भर जाग कर उस की देखभाल करती थीं. पढ़ाई में कोई दिक्कत होने पर अपना विषय न होते हुए भी वह यथासंभव सहायता कर देती थीं, लेकिन अगर कभी कोई लड़की व्यक्तिगत समस्या ले कर उन के पास जाती थी तो बजाय समस्या सुनने या कोई हल सुझाने के वह बड़ी बेरुखी से मना कर देती थीं. लड़कियों को उन की बेरुखी उन के स्वभाव के अनुरूप तो नहीं लगती थी फिर भी किसी ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया.

मनोविज्ञान की छात्रा श्रेया ने कुछ दिनों में ही यह अटकल लगा ली कि ऊपर से सामान्य लगने वाली ऋतिका मैम, भीतर से बुरी तरह घायल थीं और जिंदगी को सजा समझ कर जी रही थीं. मगर उन से पूछने का तो सवाल ही नहीं था क्योंकि अगर उस का प्रश्न सुन कर ऋतिका मैडम जरा सी भी उदास हो गईं तो सब लड़कियां उन का होस्टल में रहना मुश्किल कर देंगी.

एम.ए. की छात्रा होने के कारण श्रेया अन्य लड़कियों से उम्र में बड़ी और ऋतिका मैडम से कुछ ही छोटी थी, सो प्राय: हमउम्र होने के कारण दोनों में दोस्ती हो गई और दोनों एक ही कमरे में रहने लगीं.

एक दिन एक पत्रिका द्वारा आयोजित निबंध लेखन प्रतियोगिता में भाग ले रही छात्रा रश्मि उन के कमरे में आई.

‘‘मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं हिंदी में निबंध लिखूं या अंगरेजी में?’’

‘‘लिखना तो उसी भाषा में चाहिए जिस में तुम सुंदरता से अपने भाव व्यक्त कर सको,’’ श्रेया बोली.

‘‘दोनों में ही कर सकती हूं.’’

‘‘इस की दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है,’’ ऋतिका मैडम के स्वर में सराहना थी जिसे सुन कर रश्मि का उत्साहित होना स्वाभाविक ही था.

‘‘इस प्रतियोगिता में मैं प्रथम पुरस्कार जीतना चाहती हूं, सो आप सलाह दें मैडम, कौन सी भाषा में लिखना अधिक प्रभावशाली रहेगा?’’ रश्मि ने ऋतिका से मनुहार की.

‘‘तुम्हारी शिक्षिका होने के नाते बस, इतना ही कह सकती हूं कि तुम अच्छी अंगरेजी लिखती हो और सलाह तो मैं किसी को देती नहीं,’’ ऋतिका मैडम ने इतनी रुखाई से कहा कि रश्मि सहम कर चली गई.

‘‘जब आप को पता है कि उस की अंगरेजी औसत से बेहतर है, तो उसे उसी भाषा में लिखने को कहना था क्योंकि अंगरेजी में जीत की संभावना अधिक है,’’ श्रेया बोली.

‘‘इतनी समझ रश्मि को भी है.’’

‘‘फिर भी बेचारी आश्वस्त होने आप के पास आई थी और आप ने दुत्कार दिया,’’ श्रेया के स्वर में भर्त्सना थी, ‘‘मैडम, आप से सलाह मांगना तो सांड को लाल कपड़ा दिखाना है.’’

ऋतिका ने अपनी हंसी रोकने का असफल प्रयास किया, जिस से प्रभावित हो कर श्रेया पूछे बगैर न रह सकी :

‘‘आखिर आप सलाह देने से इतना चिढ़ती क्यों हैं?’’

‘‘चिढ़ती नहीं श्रेया, डरती हूं,’’ ऋतिका मैडम आह भर कर बोलीं, ‘‘मेरी सलाह से एकसाथ कई जीवन बरबाद हो चुके हैं.’’

‘‘किसी आतंकवादी गिरोह की आप सदस्या रह चुकी हैं?’’ श्रेया ने उन की ओर कृत्रिम अविश्वास से देखा.

ऋतिका ने गहरी सांस ली, ‘‘असामाजिक तत्त्व ही नहीं शुभचिंतक भी जिंदगियां तबाह कर सकते हैं, श्रेया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बड़ी लंबी कहानी है.’’

‘‘मैडम, आज पढ़ाई यहीं बंद करते हैं. कल रविवार को कहीं घूमने न जा कर पढ़ाई कर लेंगे,’’ कह कर श्रेया उठी और उस ने कमरे का दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझा कर बोली, ‘‘अब आप शुरू हो जाओ. कहानी सुनाने से आप का दिल हलका हो जाएगा और मेरी जिज्ञासा शांत.’’

‘‘मेरा दिल तो कभी हलका नहीं होगा मगर चलो, तुम्हारी जिज्ञासा शांत कर देती हूं.

‘‘शुचिता मेरी स्कूल की सहपाठी थी. जब वह 7वीं में पढ़ती थी तो उस के डाक्टर मातापिता उसे दादी के पास छोड़ कर मस्कट चले गए थे. जब भी वह उन्हें याद करती, दादी प्रार्थना करने को कहतीं या उसे दिलासा देने को राह चलते ज्योतिषियों से कहलवा देती थीं कि उस के मातापिता जल्दी आएंगे.

‘‘मस्कट कोई खास दूर तो था नहीं, सो दादी से शुचि की उदासी के बारे में सुन कर अकसर उस के मातापिता में से कोई न कोई बेटी से मिलने आता रहता था. इस तरह शुचि भाग्य और भविष्यवक्ताओं पर विश्वास करने लगी. विदेश से लौटने पर उस के आधुनिक मातापिता ने शुचि को बहुत समझाया मगर उस की अंधविश्वास के प्रति आस्था नहीं डिगी.

‘‘रजत शुचि का पड़ोसी और मेरे पापा के दोस्त का बेटा था, सो एकदूसरे के घर आतेजाते मालूम नहीं कब हमें प्यार हो गया, लेकिन यह हम दोनों को अच्छी तरह मालूम था कि सही समय पर हमारे मातापिता सहर्ष हमारी शादी कर देंगे, मगर अभी से इश्क में पड़ना गवारा नहीं करेंगे. लेकिन मिले बगैर भी नहीं रहा जाता था, सो मैं पढ़ने के बहाने शुचि के घर जाने लगी. शुचि के मातापिता नर्सिंग होम में व्यस्त रहते थे इसलिए रजत बेखटके वहां आ जाता था. जिंदगी मजे में गुजर रही थी. मैं शुचि से कहा करती थी कि प्यार जिंदगी की अनमोल शै है और उसे भी प्यार करना चाहिए. तब उस का जवाब होता था, ‘करूंगी मगर शादी के बाद.’

‘‘ ‘उस में वह मजा नहीं आएगा जो छिपछिप कर प्यार करने में आता है.’

‘‘‘न आए, मगर जब मैं अपने मम्मीपापा को यह वचन दे चुकी हूं कि मैं शादी उन की पसंद के डाक्टर लड़के से करूंगी, जो उन का नर्सिंग होम संभाल सके तो फिर मैं किसी और से प्यार कैसे कर सकती हूं?’

‘‘असल में शुचि के मातापिता उसे डाक्टर बनाना चाहते थे लेकिन शुचि की रुचि संगीत साधना में थी, सो दामाद डाक्टर पर समझौता हुआ था. हम सब बी.ए. फाइनल में थे कि रजत का चचेरा भाई जतिन एम.बी.ए. करने वहां आया और रजत के घर पर ही रहने लगा.

‘‘एक रोज शुचिता पर नजर पड़ते ही जतिन उस पर मोहित हो गया और रजत के पीछे पड़ गया कि वह उस की दोस्ती शुचिता से करवाए. रजत के असलियत बताने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. मालूम नहीं जतिन को कैसे पता चल गया कि रजत मुझ से मिलने शुचिता के घर आता है. उस ने रजत को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि या तो वह उस की दोस्ती शुचिता के साथ करवाए नहीं तो वह हमारे मातापिता को सब बता देगा.

‘‘इस से बचने की मुझे एक तरकीब समझ में आई कि शुचिता के अंधविश्वास का फायदा उठा कर उस का चक्कर जतिन के साथ चला दिया जाए. रजत के रंगकर्मी दोस्त सुधाकर को मैं ने अपने और शुचिता के बारे में सबकुछ अच्छी तरह समझा दिया. एक रोज जब मैं और शुचिता कालिज से घर लौट रहे थे तो साधु के वेष में सुधाकर हम से टकरा गया और मेरी ओर देख कर बोला कि मैं चोरी से अपने प्रेमी से मिलने जा रही हूं. उस के बाद उस ने मेरे और रजत के बारे में वह सब कहना शुरू कर दिया जो हम दोनों के अलावा शुचिता को ही मालूम था, सो शुचिता का प्रभावित होना स्वाभाविक ही था.

‘‘शुचिता ने साधु बाबा से अपने घर चलने को कहा. वहां जा कर सुधाकर ने भविष्यवाणी कर दी कि शीघ्र ही शुचिता के जीवन में भी उस के सपनों का राजकुमार प्रवेश करेगा. सुधाकर ने शुचिता को आश्वस्त कर दिया कि वह कितना भी चाहे प्रेमपाश से बच नहीं सकेगी क्योंकि यह तो उस के माथे पर लिखा है. उस ने यह भी बताया कि वह कहां और कैसे अपने प्रेमी से मिलेगी.

‘‘शुचिता के यह पूछने पर कि उस की शादी उस व्यक्ति से होगी या नहीं, सुधाकर सिटपिटा गया, क्योंकि इस बारे में तो हम ने उसे कुछ बताया ही नहीं था, सो टालने के लिए बोला कि फिलहाल उस की क्षमता केवल शुचिता के जीवन में प्यार की बहार देखने तक ही सीमित है. वैसे जब प्यार होगा तो विवाह भी होगा ही. सच्चे प्यार के आगे मांबाप को झुकना ही पड़ता है.

‘‘उस के बाद जैसे सुधाकर ने बताया था उसी तरह जतिन धीरेधीरे उस के जीवन में आ गया. शुचिता का खयाल था कि जब साधु बाबा की कही सभी बातें सही निकली हैं तो मांबाप के मानने वाली बात भी ठीक ही निकलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जतिन ने यहां तक कहा कि उसे उन का एक भी पैसा नहीं चाहिए…वे लोग चाहें तो किसी गरीब बच्चे को गोद ले कर उसे डाक्टर बना कर अपना नर्सिंग होम उसे दे दें. शुचिता ने भी जतिन की बात का अनुमोदन किया. शुचिता के मातापिता को मेरी और अपनी बेटी की गहरी दोस्ती के बारे में मालूम था, सो एक रोज वह दोनों हमारे घर आए.

‘‘‘देखो ऋतिका, शुचि हमारी इकलौती बेटी है. हम ने रातदिन मेहनत कर के जो इतना बढि़या नर्सिंग होम बनाया है या दौलत कमाई है इसीलिए कि हमारी बेटी हमेशा राजकुमारियों की तरह रहे. जतिन अच्छा लड़का है लेकिन उस की एक बंधीबधाई तनख्वाह रहेगी. वह एक डाक्टर जितना पैसा कभी नहीं कमा पाएगा और फिर हमारे इतनी लगन से बनाए नर्सिंग होम का क्या होगा? अपनी बेटी के रहते हम किसी दूसरे को कैसे गोद ले कर उसे सब सौंप दें? हम ने शुचि के लिए डाक्टर लड़का देखा हुआ है जो हर तरह से उस के उपयुक्त है और उस के साथ वह बहुत खुश रहेगी. तुम भी उसे जानती हो.’

‘‘ ‘कौन है, अंकल?’

‘‘‘तुम्हारा भाई कुणाल. उस के अमेरिका से एम.एस. कर के लौटते ही दोनों की शादी कर देंगे.’

‘‘ ‘मैं ठगी सी रह गई. शुचिता मेरी भाभी बन कर हमेशा मेरे पास रहे इस से अच्छा और क्या होगा? जतिन तो आस्ट्रेलिया जाने को कटिबद्ध था.

‘‘ ‘आप ने यह बात छिपाई क्यों?’ मैं ने पूछा, ‘क्या पता भैया ने वहीं कोई और पसंद कर ली हो.’

‘‘ ‘उसे वहां इतनी फुरसत ही कहां है? और फिर मैं ने कुणाल और तुम्हारे मम्मीपापा को साफ बता दिया था कि मैं कुणाल को अमेरिका जाने में जो इतनी मदद कर रहा हूं उस की वजह क्या है. उन सब ने तभी रिश्ता मंजूर कर लिया था. तुम्हें बता कर क्या ढिंढोरा पीटना था?’

‘‘अब मैं उन्हें कैसे बताती कि मुझे न बताने से क्या अनर्थ हुआ है. तभी मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी. शुचिता के जिस अंधविश्वास का सहारा ले कर मैं ने उस का और जतिन का चक्कर चलवाया था, एक बार फिर उसी अंधविश्वास का सहारा ले कर उस चक्कर को खत्म भी कर सकती थी लेकिन अब यह इतना आसान नहीं था. रजत कभी भी मेरी मदद करने को तैयार नहीं होता और अकेली मैं कहां साधु बाबा को खोजती फिरती? मैं ने शुचिता की मम्मी को सलाह दी कि वह शुचि के अंधविश्वास का फायदा क्यों नहीं उठातीं? उन्हें सलाह पसंद आई. कुछ रोज के बाद उन्होंने शुचिता से कहा कि वह उस की और जतिन की शादी करने को तैयार हैं मगर पहले दोनों की जन्मपत्री मिलवानी होगी. अगर कुछ गड़बड़ हुई तो ग्रह शांति की पूजा करा देंगे.

‘‘अंधविश्वासी शुचिता तुरंत मान गई. उस ने जबरदस्ती जतिन से उस की जन्मपत्री मंगवाई. मातापिता ने एक जानेमाने पंडित को शुचिता के सामने ही दोनों कुंडलियां दिखाईं. पंडितजी देखते ही ‘त्राहिमाम् त्राहिमाम्’ करने लगे.

‘‘‘इस कन्या से विवाह करने के कुछ ही समय बाद वर की मृत्यु हो जाएगी. कन्या के ग्रह वर पर भारी पड़ रहे हैं.’

‘‘ ‘उन्हें हलके यानी शांत करने का कोई उपाय जरूर होगा पंडितजी. वह बताइए न,’ शुचिता की मम्मी ने कहा.

‘‘ ‘ऐसे दुर्लभ उपाय जबानी तो याद होते नहीं, कई पोथियां देखनी होंगी.’

‘‘‘तो देखिए न, पंडितजी, और खर्च की कोई फिक्र मत कीजिए. अपनी बिटिया की खुशी के लिए आप जो पूजा या दान कहेंगे हम करेंगे.’

‘‘‘मगर पूजा से अमंगल टल जाएगा न पंडितजी?’ शुचिता ने पूछा.

‘‘‘शास्त्रों में तो यही लिखा है. नियति में लिखा बदलने का दावा मैं नहीं करता,’ पंडितजी टालने के स्वर में बोले.

‘‘ ‘ऐसा है बेटी. जैसे डाक्टर अपने इलाज की शतप्रतिशत गारंटी नहीं लेते वैसे ही यह पंडित लोग अपनी पूजा की गारंटी लेने से हिचकते हैं,’ शुचिता के पापा हंसे.

‘‘उस के बाद शुचिता ने कुछ और नहीं पूछा. अगली सुबह उस के कमरे से उस की लाश मिली. शुचिता ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस ने अपने अंतिम पत्र में लिखा था कि पंडितजी की बात से साफ जाहिर है कि उस की जिंदगी में जतिन का साथ नहीं लिखा है, वह जतिन से बेहद प्यार करती है. उस के बगैर जीने की कल्पना नहीं कर सकती और न ही उस का अहित चाहती है, सो आत्महत्या के सिवा उस के पास कोई और विकल्प नहीं है.

‘‘शुचिता की आत्महत्या के लिए उस के मातापिता स्वयं को अपराधी मानते हैं, मगर असली दोषी तो मैं हूं जिस की सलाह पर पहले एक नकली ज्योतिषी ने शुचिता का जतिन से प्रेम करवाया और मेरी सलाह से ही उस प्रेम संबंध को तोड़ने के लिए फिर एक झूठे ज्योतिषी का सहारा लिया गया.

‘‘शुचिता के मातापिता और उस से अथाह प्यार करने वाला जतिन तो जिंदा लाश बन ही चुके हैं. मगर मेरे कुणाल भैया, जो बचपन से शुचिता से मूक प्यार करते थे और जिस के कारण ही वह बजाय इंजीनियर बनने के डाक्टर बने थे, बुरी तरह टूट गए हैं और भारत लौटने से कतरा रहे हैं इसलिए मेरे मातापिता भी बहुत मायूस हैं. यही नहीं मेरे इस तरह क्षुब्ध रहने से रजत भी बेहद दुखी हैं. तुम ही बताओ श्रेया, इतना अनर्थ कर के, इतने लोगों को संत्रास दे कर मैं कैसे खुश रह सकती हूं या सलाहकार बनने की जुर्रत कर सकती हूं?’

फरिश्ता

‘‘मम्मी,मेरा दोष क्या था जो कुदरत ने मेरे साथ इतना क्रूर मजाक किया?’’ नंदिता अपनी मां से रोरो कर पूछ रही थी. उस के रुदन से मां का कलेजा फटा जा रहा था. वे क्या जवाब दें? बेटी का दुख इस कदर हावी हो रहा था कि जैसे उन के खुद के प्राण न निकल जाएं. बूढ़ी हड्डियां कितना सहन करेंगी? पिता का भी वही हाल था. भाईबहन सभी की आंखें गीली थीं. सभी उसे धैर्य बंधा रहे थे. मगर वह थी कि रोना बंद करने का नाम नहीं ले रही थी.

नंदिता की यह दूसरी शादी थी. पहले से उसे एक लड़की मीना थी. वह 5 साल की रही होगी जब उस के पिता एक ऐक्सीडैंट में गुजर गए. नंदिता के लिए इस हादसे को सह पाना आसान न था. मात्र 30 साल की होगी नंदिता, जब उसे वैधव्य का असहनीय दुख  झेलना पड़ा. गोरीचिट्टी, तीखे नैननक्श वाली नंदिता में चित्ताकर्षण के सारे गुण थे. खूबसूरत इतनी थी कि जो उसे एक बार देखे बस देखता ही रह जाए. उस का पहला पति अक्षय एक निजी कंपनी में उच्चाधिकारी था. कार, फ्लैट, आधुनिक सुखसुविधा का सारा सामान घर में मौजूद था. अक्षय उसे बेहद प्यार करता था. वह अपने छोटे से परिवार में खुश थी कि एक दिन उस के ऐक्सीडैंट की खबर ने नंदिता की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया. सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ. अक्षय की लाश के पास बैठ कर वह बारबार उस से उठने को कहती. इस हृदयविदारक दृश्य को देख कर सब की आंखें नम थीं. किसी तरह लोगों ने नंदिता को संभाला.

वक्त हर जख्म को भर देता है. ऐसा ही हुआ. नंदिता ने एक निजी कंपनी में नौकरी कर ली. वह धीरेधीरे अतीत के हादसों से उबरने लगी. अब सबकुछ सामान्य हो चुका था. मगर उस के मांबाप को चैन नहीं था. वे उस की पहाड़ जैसी जिंदगी को ले कर चिंताकुल थे. वे चाहते थे कि नंदिता की दूसरी शादी हो जाए ताकि उस की जिंदगी में आया सूनापन भर जाए. कब तक अकेली रहेगी? क्या अकेले जिंदगी काटना एक स्त्री के लिए आसान होगा? माना कि वह अपने पैरों पर खड़ी है फिर भी जब काम से घर आती तो अपनेआप में खोई रहती. न किसी से ज्यादा बोलना न किसी से जिरह करना. यकीनन अकेलापन उसे अंदर ही अंदर बेचैन किए हुए था. भले ही जाहिर न करे पर क्या मांबाप की अनुभवी नजरों से छिप सकता है? वे बेटी की दुर्दशा देख कर गहरी वेदना से भर जाते.

ये सब देख कर एक दिन पिता ने नंदिता से कहा, ‘‘हम तुम्हारी दूसरी शादी करना चाहते हैं.’’

यह अप्रत्याशित था नंदिता के लिए. फिर भी इस का जवाब देना था. अत: वह बोली, ‘‘मेरी बेटी का क्या होगा? मैं उसे आप लोगों पर छोड़ कर ब्याह रचाऊं यह मेरे लिए संभव नहीं है.’’

‘‘अगर लड़का तुम्हारी बेटी को अपनाने के लिए तैयार हो जाए तब क्या स्वीकार करोगी?’’

‘‘ऐसे कैसे हो सकता है जो किसी और से पैदा बेटी को अपनी बेटी माने?’’

‘‘सब एकजैसे नहीं होते. एक ऐसा ही रिश्ता आया है. लड़के को कोई एतराज नहीं है. वह सरकारी नौकरी में है. पहली पत्नी से

2 संतानें हैं. एक 15 साल का बेटा और एक 10 साल की बेटी है,’’ पिता बोले.

‘‘उन के पालने की जिम्मेदारी मेरी होगी?’’

‘‘पालना क्या है… दोनों अपने पैरों पर खड़े हैं. सिर्फ साथ की बात है, जिस की तुम दोनों की जरूरत है.’’

पिता के कथन पर नंदिता ने सोचने के लिए समय मांगा. उस ने हर तरीके से सोचा. फिर इस फैसले पर पहुंची कि उसे शादी कर लेनी चाहिए. इस से जहां उस के मांबाप की चिंता कम होगी, वहीं उसे भी आर्थिक सुरक्षा मिलेगी. मांबाप, कब तक जिंदा रहेंगे. भैयाभाभी का क्या भरोसा? कल वे बदल गए तो क्या बेटी को ले कर जीना आसान होगा?

नंदिता की रजामंदी के बाद एक दिन उस के औफिस में उस का भावी पति विश्वजीत उसे देखने आया. सांवला रंग, सामान्य कदकाठी, सिर पर नाममात्र बाल. नैननक्श ऐसे मानों 19वीं सदी के हों. नंदिता को वह जमा नहीं. उस का पहला पति बेहद स्मार्ट था. एमबीए किया.  वहीं विश्वजीत देखने से ही सरकारी विभाग का बाबू लग रहा था. न ढंग से कपड़े पहने था न ही बातचीत में स्मार्टनैस की  झलक थी. उस का मन उदास हो गया. विधवा न होती तो आज भी उस के लिए कुंआरों की कमी न थी.

‘‘आप का नाम नंदिता है?’’ विश्वजीत ने पूछा.

‘‘जी,’’ नंदिता मुसकराई.

‘‘मेरा नाम विश्वजीत है. अगर आप को एतराज न हो तो आज शाम किसी रैस्टोरैंट में चलते हैं.’’

कुछ देर के लिए नंदिता हिचकिचाई. फिर खुद को संयत कर उस से क्षमा मांग कर एकांत में आई. अपनी मां को फोन लगाया. मां ने उस के साथ जाने की इजाजत दे दी. न चाहते हुए भी वह विश्वजीत के साथ रैस्टोरैंट में गई.

कौफी के शिप के बीच विश्वजीत बोला, ‘‘क्या आप शादी के लिए तैयार हैं?’’

नंदिता के सामने दूसरा कोई चारा न था. उसे लगा रंगरूप अपनी जगह है. मगर जिंदगी जीने के लिए एक पारिवारिक व्यक्ति होना बेहद जरूरी है, साथ में उस का आर्थिक भविष्य भी सुनिश्चित हो. यही सब सोच कर उस ने उस के रंगरूप को नजरअंदाज कर दिया.

‘‘मु झे अपनी बेटी की फिक्र है. क्या उसे आप पिता का नाम देंगे?’’ नंदिता के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ थीं.

‘‘क्यों नहीं? जब आप मेरे बेटेबेटी को मां का प्यार देंगी तो मैं भला क्यों पिता के फर्ज से विमुख होऊंगा? आप की बेटी मेरी बेटी होगी. भरोसा रखिए मैं आप को शिकायत का मौका कभी नहीं दूंगा.’’

‘‘मु झे अलग से कुछ नहीं चाहिए. मैं सिर्फ इस बात के लिए आश्वस्त होना चाहूंगी कि आप अपने और मेरे में कोई भेद नहीं करेंगे.’’

‘‘ऐसा ही होगा,’’ विश्वजीत मुसकराया.

नंदिता को विश्वजीत के कथन में सत्यता नजर आई. सो शादी के लिए हां कर दी.

शादी संपन्न हो गई. नंदिता ने नौकरी छोड़ दी. धीरेधीरे उस ने खुद को नए

माहौल के अनुरूप ढाल लिया. विश्वजीत के लिए वह किसी हूर से कम नहीं थी. करीबियों को छोडि़ए उस के दूरदूर के रिश्ते में नंदिता जैसी कोई खूबसूरत महिला नहीं थी. इसी के बल पर वह विश्वजीत के दिल पर राज करने लगी. विश्वजीत की हालत यह थी कि जब उसे नंदिता धकेलती तब कहीं औफिस जाता वरना उसी के मोहपाश में बंध कर समय काटना उसे अच्छा लगता. औफिस जाता तो भी नंदिता को 10 बार फोन लगा कर अपना हाल ए दिल बयां करता रहता.

2 साल गुजर गए. इस बीच वह एक लड़के की मां भी बन गई. बच्चा दोनों की सहमति से पैदा हुआ. नंदिता के लिए यह अच्छी खबर थी. एक लड़की तो थी ही. अब वह एक लड़के की भी मां बन गई. बच्चे की मां बनते ही नंदिता का पूरा ध्यान उसी पर लग गया.

लड़का पूरी तरह अपनी मां पर गया था. एकदम गोरा था. कहीं से नहीं लगता था कि वह विश्वजीत का बेटा है. ऐसा बेटा पा कर विश्वजीत निहाल था. यों बेटे का नाम सुबोध रखा.

एक दिन विश्वजीत की बड़ी बहन सुमन हालचाल लेने के लिए आई. जब तक विश्वजीत की दूसरी शादी नहीं हो गई थी तब तक घर की देखभाल वही करती थी. जब शादी हो गई तो आनाजाना कम कर दिया. उस का अपना भी परिवार था. विश्वजीत का हाल लेने के बाद वह विश्वजीत की पहली पत्नी से पैदा बेटे अंकित और बेटी अनुराधा के कमरे में आई. विश्वजीत नंदिता के साथ नीचे रहता तो उस की दोनों संतानें दूसरी मंजिल पर.

‘‘पढ़ाईलिखाई कैसी चल रही है?’’ कमरे में घुसते ही विश्वजीत की बहन ने पूछा.

दोनों बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ कर बूआ की तरफ मुखातिब हो गए.

‘‘ठीक चल रही है,’’ अंकित बोला.

‘‘क्या बात है तुम्हारी आवाज इतनी दबी क्यों है? सब ठीक तो है?’’ सुमन ने भांप लिया. उस ने फिर पूछा, ‘‘नई मां कैसी हैं?’’

अंकित सम झदार था, इसलिए कुछ नहीं बोला.

वहीं अनुराधा बोल पड़ी, ‘‘पापा, ऊपर बहुत कम आते हैं. ज्यादातर नीचे नई मां और बच्चे के साथ रहते हैं. पहले रोज हमारे लिए बाजार से कुछ न कुछ लाते थे, अब सिवा डांटने के उन्हें कुछ नहीं सू झता.’’

सुन कर सुमन को दुख हुआ. उसे अपने ही बच्चे पराए लगने लगे? ऐसा होना स्वाभाविक था. मगर इस कदर अपने बच्चों से बेखबर हो जाएगा, इस की कल्पना उस ने नहीं की थी. सुमन को विश्वजीत का दोबारा बाप बनना नागवार गुजरा. जब पहले से ही 2 संतानें थीं, नंदिता की जोड़ें तो 3 उस पर एक और बेटा लाना कहां की सम झदारी थी? सुमन को विश्वजीत मूर्ख लगा, जो अपनी बीवी के रंगरूप में ऐसा डूबा कि सहीगलत का फैसला भी नहीं कर पाया. सुमन पहले से ही उस के इस फैसले से खिन्न थी.

एक बार सोचा विश्वजीत से इस संदर्भ में बात करे. उसे दुनियादारी सिखाए पर फिर अगले ही पल सोचा यह उन लोगों का आपसी मामला है. बिना वजह बुरा बनेगी. विचारप्रक्रिया बदली तो सोचा उन का आपसी मामला बता कर क्या वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग रही?

क्या उस का इस परिवार पर कोई हक नहीं? सगी बहन है कोई सौतेली मां नहीं. जब कोई नहीं था तब तो उसी ने अपने परिवार का हरज कर के विश्वजीत का घर संभाला. अब उन का आपसी मामला बता कर किनारा कर ले? उस का मन नहीं माना. उसे अंकित और अनुराधा की फिक्र थी. इसलिए विश्वजीत को रास्ते पर लाना जरूरी लगा.

‘‘विश्वजीत, आजकल तुम अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे रहे हो? वे बेचारे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं.’’

‘‘अपने बच्चे? यह क्या कह रही दीदी? क्या नंदिता के बच्चे मेरे अपने बच्चे नहीं हैं?’’

‘‘मैं ने यह कब कहा? मगर तुम्हें उन पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि वे बिन मां के हैं.’’

विश्वजीत को सुमन की बात बुरी लगी.

सुमन आगे बोली, ‘‘सुना है तुम ने अनुराधा का नाम पहले वाले स्कूल से कटवा कर उसे एक छोटे से स्कूल में डलवा दिया है?’’

दूसरे कमरे में अपने नवजात को दूध पिलाते हुए नंदिता सारी बातें सुन रही थी. एक बार सोचा इस का प्रतिकार करे, मगर भाईबहन का आपसी मामला सम झ कर चुप रही.

‘‘स्कूल इसलिए छुड़वा दिया क्योंकि उस की फीस बहुत ज्यादा थी. अंकित का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था. ऐसे में बिना वजह महंगे स्कूल में डालने का क्या औचित्य है?’’

‘‘इसीलिए सस्ते स्कूल में डलवा दिया?’’ सुमन के स्वर में व्यंग्य का पुट था, ‘‘तुम उस की पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देते तो वह कमजोर नहीं होती. तुम्हारा सारा ध्यान नंदिता के इर्दगिर्द रहता है.’’

सुमन का कथन विश्वजीत को शूल की तरह चुभ गया. अत: गुस्से में बोला, ‘‘दीदी, बेहतर होगा तुम इस पचड़े में न पड़ो. नंदिता मेरी पत्नी है. मैं उस का ध्यान नहीं रखूंगा तो कौन रखेगा?’’

‘‘बीवी का खयाल है अपने खून का नहीं?’’ सुमन तलख स्वर में बोली, ‘‘अब मैं तुम्हारे घर कभी नहीं आऊंगी. अंकित और अनुराधा को नहीं पाल सकते तो मेरे यहां छोड़ देना. मैं देख लूंगी,’’ कह कर सुमन चली गई.

विश्वजीत खून का घूंट पी कर रह गया. उस का मन किया कि सुमन को खूब खरीखोटी सुनाए, मगर हिम्मत नहीं हुई.

उस दिन पतिपत्नी दोनों में इस बात को ले कर खूब कहासुनी हुई. नंदिता कहने लगी, ‘‘मैं ने सपने में भी न सोचा था कि तुम्हारे बच्चे इस हद तक जा सकते हैं? क्या जरूरत थी सुमन दीदी के कान भरने की? क्या नहीं उन्हें यहां मिल रहा है? लगाईबु झाई करना कोई इन से सीखे,’’ और फिर वह मुंह फुला कर बैठ गई.

विश्वजीत को काफी देर तक उसे मनाना पड़ा. तब जा कर मानी.

उधर सुमन का मन विश्वजीत के रवैए से खिन्न था. नंदिता का रंगरूप इस कहर हावी हो गया कि अपना खून ही बेगाना लगने लगा. नंदिता की बेटी को अच्छे से अच्छे कपड़े लाना, बड़े स्कूल में दाखिला दिलाना, बाजार, मौल घूमना, उस की उलटीसीधी हर मांग पूरी करना, प्यारदुलारमनुहार सब नंदिता के ही परिवार तक सिमट गया.

विश्वजीत के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से उस की सभी बहनें उस से कटने लगीं. मगर विश्वजीत को कोई फर्क नहीं पड़ा. उस के लिए नंदिता ही सबकुछ थी. नंदिता ने इस का भरपूर फायदा उठाया. विश्वजीत के मकान पर नंदिता का नाम चढ़ गया. औफिस में पत्नी की जगह नंदिता का नाम हो गया. ये सब नंदिता ने खुद को आर्थिक रूप से सुरक्षित करने के लिए किया.

अंकित से कुछ भी छिपा न था. राखी के दिन जब वह सुमन के घर आया तो सारी बातों का खुलासा कर दिया. सारी बात जानने के बाद वह बोली, ‘‘नंदिता ने अच्छा नहीं किया. आते ही तुम्हारी मां के सारे गहने ले लिए. अब धीरेधीरे हर चीज पर कब्जा करती जा रही है.’’

मां का जिक्र आते ही अंकित की आखें भर आईं. भरे कंठ से बोला, ‘‘मां होतीं तो ये सब न होता.’’

‘‘सब समय का खेल है. कल विश्वजीत के लिए तुम्हारी मां ही सबकुछ थी. बदलाव आता है, मगर विश्वजीत इतना बदल जाएगा, मु झे सपने में भी भान नहीं था. खैर छोड़ो, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?

‘‘जल्दी से पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ… सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘बूआजी, मु झे अनुराधा की फिक्र होती है. सोचता हूं जितनी जल्दी हो सके मैं कमाने लायक हो जाऊं ताकि उस की अच्छी शादी कर सकूं.’’

अंकित की बातों से लगा सचमुच वह सम झदार हो गया है. सुमन का मन भर आया.

अंकित ने सिविल सर्विसेज की तैयारी की और उस में सफल हो गया. उस के नौकरी पा जाने पर नंदिता ज्यादा खुश नहीं थी. उस की नजर में अंकित औसत बुद्धि का लड़का था. वहीं विश्वजीत खुश था. नंदिता को लगा विश्वजीत का  झुकाव कहीं अंकित की तरफ न हो जाए, इसलिए तंज कसने से बाज नहीं आती.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि एक दिन मनहूस खबर आई कि

विश्वजीत को फूड पौइजनिंग हो गया है. वह शहर से 100 किलोमीटर दूर एक गांव में शादी अटैंड करने अकेला गया था. वहीं पर उसे फूड पौइजनिंग हो गया. तब तक काफी देर हो चुकी थी. वह रास्ते में ही चल बसा.

अंकित फैजाबाद में पोस्टेड था. भागाभागा आया. पिता की लाश देख कर फूटफूट कर रोने लगा. आज पहली बार उसे लगा कि वह सचमुच अनाथ हो गया.

पिता के सारे क्रियाक्रम करने के बाद वह वापस जाने लगा तो नंदिता के पास आया. बोला, ‘‘मम्मी, आप यह मत समझिएगा कि आप अकेली हो गईं. मैं हमेशा आप के साथ रहूंगा. मोना की शादी मेरे हिस्से की जिम्मेदारी है. जैसे अनुराधा वैसी मोना. मैं आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’’

अचानक नंदिता फफकफफक कर रो पड़ी. वहां बैठे सब के सब अचंभित.

अंकित पास बैठी सुमन से बोला, ‘‘बूआ, मां को देखिए क्या हो गया?’’

एकबारगी सुमन को लगा क्यों वह उस से सहानुभूति जताने जाए… जैसा किया वैसा भुगते.

बूआ की दुविधा अंकित ने भांप ली. उसे अच्छा नहीं लगा. जो भी हो वह उस की मां है. क्या उन्हें मं झधार में छोड़ कर यों चले जाना उचित होगा? उन्हें दोबारा वैधव्य की पीड़ा  झेलने पड़ी, इस से बड़ा दंड क्या हो सकता है कुदरत का एक स्त्री के लिए?

‘‘मु झे क्षमा कर दें. मैं स्वार्थ में अंधी हो गई थी. मु झे नहीं पता था कि जिस के साथ भेदभाव कर रही हूं वह मेरे बेटे से भी बढ़ कर होगा.’’

नंदिता का इतना भर कहना था कि सब के मन के भाव एकाएक बदल गए. सुमन को अब भी नंदिता के व्यवहार में आए परिवर्तन पर भरोसा नहीं था. उसे यही लग रहा था कि उस ने वक्त की नजाकत सम झ कर अपना पैतरा बदल लिया है. फिर एकांत में ले जा कर अंकित को सम झाने का प्रयास किया.

‘‘नहीं बूआजी, उन का अब मेरे सिवा कोई नहीं है. उन्होंने चाहे जैसा भी व्यवहार मेरे साथ किया हो मैं अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होऊंगा.’’

सुमन को अंकित का कद उस से भी बड़ा नजर आने लगा. वह इंसान नहीं साक्षात फरिश्ता लगा उसे. वह भावविभोर हो उठी.

बाहरवाली

बूआ का दुखड़ा सुनना मेरी दिनचर्या में शामिल था. रोज दोपहर में वे भनभनाती हुई चली आतीं और रोना ले कर बैठ जातीं, ‘‘क्या बताऊं सुधा, बेटों को पालपोस कर कितने जतन से बड़ा करो और बहुएं उन्हें ऐसे छीन ले जाती हैं जैसे सब उन्हीं का हो. अरे, हम तो जैसे कुछ हैं ही नही.’’

‘‘आप ने तो जैसे कभी किसी को पलापलाया छीना ही नहीं है, क्यों बूआ?’’ मेरे पति ने अकारण ही हस्तक्षेप कर दिया, ‘‘आप की तीनों बेटियां भी तो किन्हीं के पलेपलाए छीन कर बैठी हैं.’’

मैं ने आंखें तरेर कर पति को मना करना चाहा, मगर अखबार एक तरफ फेंक वे बोलते ही चले गए, ‘‘मेरी मां भी कहती हैं, शादी के बाद मैं सुधा का ही हो कर रह गया हूं. अब तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं? समझ में नहीं आता, जब बहुओं से इतनी ही जलन होती है तो उन्हें तामझाम के साथ घर लाने की क्या जरूरत होती है?

‘‘बेटे की शादी करने से पहले हर मां को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अब उसे बेटा किसी और को सौंपना है, जैसे लड़की के मांबाप सोच लेते हैं. एक नया घर बनता है बूआ, लड़के पर जिम्मेदारी पड़ती है. वह भी कई रिश्तों में बंट जाता है. ऐसे में मां का यह सोचना कि वह अभी भी दुधमुंहा बच्चा बन उस का पल्लू थामे ‘राजा बेटा’ ही बना रहे तो यह उस के प्रति अन्याय होगा.’’

‘‘न, न सुधीर, मां का पल्लू क्यों पकड़े बेचारा राजा बेटा, वह हूर जो मिल गईर् है, पल्लू देने को,’’ बूआ ने हाथ झटक दिया.

मैं विषय उलझाना नहीं चाहती थी पर लाख इशारों के बाद भी पति मान नहीं रहे थे. वे बोले, ‘‘हूर लाता कौन है, तुम्हीं तो ठोकबजा कर, सैकड़ों लड़कियां देख अपनी बहू लाई थीं. फिर रोजरोज बहू का रोना ले कर क्यों बैठ जाती हो. उसे आए 2 महीने ही तो हुए हैं. नईनई शादी हुई है, तुम्हें तो बहू को लाड़प्यार से अपने काबू में रखना चाहिए. कभी तुम भी तो किसी की बहू बनी थीं.’’

‘‘लाड़प्यार करे मेरी जूती, मैं पीछेपीछे घूमने वालों में से नहीं हूं. देख सुधीर, मुझे विशू का उस की ससुराल वालों से ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं है. 3 दिन से उस का छोटा भाई आया हुआ है. बाहर पढ़ता है न, इसलिए छुट्टियों में बहन के घर चला आया.’’

‘‘तो क्या हुआ, तुम भी 3-3 महीने अपनी बेटियों के घर रह आती हो. वह तो फिर भी छोटा भाई है.’’

‘‘वह…वह… मैं तो इलाज कराने…’’

‘‘इलाज कराने ही सही, पर दामाद ने भरपूर सेवा की, तुम स्वयं ही तो सुनाती रही हो. क्या तुम्हारा दामाद किसी

का पलापलाया बेटा नहीं है? तब तो तुम्हारी समधिन भी तुम्हारी तरह ही चीखतीचिल्लाती होगी?’’

‘‘सुधीर’’, बूआ का चेहरा फक पड़ गया. उन का चेहरा देख मुझे घबराहट होने लगी. मैं कभी बूआ की बातों को काटती नहीं थी. हमेशा यही सोचती, क्यों बुजुर्ग औरत का मन दुखाऊं. दो घड़ी मन हलका कर के भला वे मेरा क्या ले जाती हैं. परंतु पति का उन्हें आईना दिखा देना मुझे अनावश्यक सा लगा.

मेरे पति आगे बोले, ‘‘अपनी बेटी पराए घर में जा कर चाहे जो नाच नचाए, परंतु बहू का ऊंची आवाज में बात करना भी तुम्हें खलता है. अच्छा बूआ, घर में सुखशांति रखने का एक गुरुमंत्र लोगी मुझ से, बोलो?’’

बूआ कुछ न बोलीं, गुस्से से इन्हें घूरती रहीं.

पति बातें करते रहे, परंतु बूआ चली गईं. मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर प्रत्यक्ष में मैं मौन ही रही. समय ने अतीत को पीछे धकेल दिया था, परंतु एक घाव सदा मेरे मानसपटल पर हरा रहा. चाहती तो पति को फटकार कर बूआ के अपमान पर नाराजगी प्रकट कर सकती थी, मगर ऐसा किया नहीं. शायद मैं भी बूआ को आईना दिखाना चाहती थी.

यही बूआ थीं जिन्होंने कभी सासुमां का पैर इस घर में जमने नहीं दिया था. मुझे अपनी सास निरीह गाय सी लगी थीं. पता नहीं क्यों, सासुमां ने मुझे कभी अपना नहीं समझा था. बूआ के सामने चुप रहने वाली सासुमां मेरे सामने शेरनी सी बन जाती थीं.

शायद अपने साथ हुए अन्याय का प्रतिकार सासुमां मुझ से लेना चाहती थीं. मुझ से मन की बात कभी न करतीं और जराजरा सी बात मेरे पति के कानों में जा डालतीं, जिस का प्रभाव अकसर हमारी गृहस्थी पर पड़ता. हम आपस में झगड़ पड़ते, जिस की कोई वजह हमारे पास होती ही नहीं थी.

एक शाम मायके से मेरे भाई की सगाई का पत्र आया तो मैं खुशीखुशी अम्मा को सुनाने दौड़ी. पर मेरी प्रसन्नता पर कुठाराघात हो गया. वे गुस्से से बोलीं, ‘बसबस, हमारे घर में मायके की ज्यादा चर्चा करने का रिवाज नहीं है.’

मैं अवाक रह गई और पति के सामने रो पड़ी, ‘इस घर में ब्याह दी गई, इस का अर्थ यह तो नहीं कि मेरा मायका समाप्त ही हो गया.’

उस दिन पहली बार पति को मां पर क्रोध आया था. मेरे मन में अम्मा के लिए संजोया सम्मान धीरेधीरे समाप्त होने लगा. यह सत्य है, अम्मा ने जो कुछ अपनी ससुराल से पाया था, वही मुझे लौटा रही थीं, मगर क्या यह न्यायसंगत था?

तब इन्होंने अम्मा से कहा था, ‘तुम्हें इस तरह नहीं करना चाहिए, अम्मा. तुम बबूल का पेड़ बो कर आम के फल की उम्मीद कैसे कर सकती हो? बिना वजह सुधा का मन दुखाओगी तो घर में सुखशांति कैसे रहेगी? इज्जत चाहती हो तो इज्जत देना भी सीखो, उस की खुशी में भी तो हमें खुश होना चाहिए.’

‘अरे’, विस्फारित आंखें लिए अम्मा मुझे यों घूरने लगीं मानो पति ने मेरी वकालत कर किसी की हत्या जैसा अपराध कर दिया हो. वे तुनक कर बोलीं, ‘यह कल की आई तुझे इतनी प्यारी हो गई, जो मुझे समझाने चला है. जोरू का गुलाम.’

उसी पल से अम्मा मेरी प्रतिद्वंद्वी बन गईं. कभी रुपए चोरी हो जाने का इलजाम मुझ पर लगता और कभी यह आरोप लगता कि मैं अपनी ननदों की पूरी देखभाल नहीं करती. धीरेधीरे पति ने हस्तक्षेप करना छोड़ दिया. 20

वर्ष बीत जाने पर भी अम्मा मुझे स्वीकार नहीं कर पाईं. पति पर जोरू का गुलाम होने का ठप्पा आज भी लगा है. अम्मा और मैं नदी के 2 किनारों की तरह जीते हैं.

मैं हैरान थी कि मेरी ननदों के घर में अम्मा का पूरा दखल है, मगर मेरे मायके से किसी का आना उन्हें पसंद नहीं. अम्मा, जो स्वयं बूआ और अपनी सास के दुर्व्यवहार से आजीवन अपमानित होती रहीं, क्यों मेरे मन की पीड़ा समझ नहीं पाईं? मैं उन के बेटे की पत्नी हूं, उन की प्रतिद्वंद्वी नहीं.

बूआ तो चली गईं, मगर अपने पीछे कड़वाहट का गहरा धुआं छोड़

गई थीं. पति बुरी तरह झल्ला रहे थे, ‘‘पता नहीं प्रकृति ने स्त्री को ऐसा क्यों बनाया है? 10-10 पुरुष एकसाथ  रह लेते हैं, लेकिन 2 औरतें जब भी साथ रहेंगी, अधिकारों को ले कर लड़ेंगी, विशेषकर अपना बेटा, बहू के साथ बांटने में औरत को बड़ी तकलीफ होती है.’’

‘‘हर घर में तो ऐसा नहीं होता,’’ मैं ने उन्हें टोका.

‘‘हां, सच कहती हो. 10 प्रतिशत घर ऐसे होंगे, जहां सासबहू में तालमेल होता होगा, वरना 90 प्रतिशत तो ऐसे ही हैं, जिन में अमनचैन नहीं है. सास अच्छी है तो बहू नकचढ़ी और कहीं बहू सेवा करने वाली हो, तो सास मेरी मां और बूआ जैसी.

‘‘सत्य तो यह है कि झगड़ा होता ही नहीं, सिर्फ उसे पैदा किया जाता है. भई, सीधी सी बात है, बेटा काबू में रखना हो तो बहू को वश में करो, उस से प्रेम करो, वह वश में रहेगी तो बेटा भी पीछेपीछे खिंचा चला आएगा.’’

‘‘और पति को वश में रखना हो तो क्या बहू को सास को वश में रखना चाहिए, ताकि बेटा, बहू के वश में रहे?’’ मेरी इस बात पर पति हंस पड़े, ‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. बहू बाहर से आती है, उसे विश्वास में लेना ज्यादा जरूरी होता है. बेटा तो अपना ही होता है, उस से इतना प्यार बढ़ाने की भला क्या जरूरत होती है.

‘‘मजा तो तब है जब पराई को अपना बनाओ. मगर होता उलटा है. शादी कर के सास अकसर असुरक्षा से घिर जाती है, बेटे पर हाथ कसने लगती है और बस, यहीं से झगड़ा शुरू हो जाता है.’’

‘‘यह सब अपनी अम्मा से भी कहा है कभी?’’

‘‘नहीं कह पाया न, इसीलिए तुम्हें समझा रहा हूं. आने वाले कुछ वर्षों में तुम भी तो सास बनने वाली हो, कुछ समझीं?’’

मैं क्या कहती, सिर्फ हंस कर रह गई कि कौन जाने जब सास बनूंगी, तब मैं कैसी हो जाऊंगी. कहीं मैं भी अपनी बहू को वही न परोसने लगूं, जो मुझे मिलता रहा था.

शादी के 11 साल बाद राम चरण-उपासना के घर आई नन्ही परी

साउथ फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार राम चरण (Ram Charan) इन दिनों अपनी फिल्मों के बजाय पर्सनल लाइफ को लेकर काफी चर्चा में है. आरआरआर फिल्म में अपनी एक्टिंग का जलवा दिखाने वाले राम चरण सुर्खियों में है. दरअसल, राम चरण की वाइफ उपासना कामिनेनी (Upasana Kamineni) ने जबसे मां बनने की खुशखबरी दी है तबसे उनके फैंस काफी समय से इंतजार कर रहे थे. लेकिन इस बीच खुशखबरी सामने आ चुकी है. खबरों के मुताबिक राम चरण-उपासना के घर बेबी गर्ल का जन्म हुआ है. इस खबर के आने के बाद उनके फैंस खुशी से झूम उठे.

 राम चरण के घर हुआ बेटी का जन्म

साउथ इंडस्ट्री के एक्टर राम चरण और उपासना कामिनेनी से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उपासना कामिनेनी और राम चरण के घर के एक प्यारी सी गर्ल का जन्म हुआ है. बता दें, उपासना कामिनेनी और राम चरण शादी के 11 साल बाद खुशखबरी आई है. जानकारी के लिए बता दें कि उपासना कामिनेनी कल यानी 19 जून को हॉस्पिटल में भर्ती हुई थी.

आज सुबह यानी 20 जून को उन्होंने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. इसके साथ ही हॉस्पिटल द्वारा जारी किया गया लैटर भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. जिसके बाद से फैंस कपल को बधाई देते हुए दिखाई दिए.

 

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11 साल बाद बने माता-पिता

‘आरआरआर’ एक्टर राम चरण की उपासना कामिनेनी ने 14 जून 2012 को शादी की थी. शादी के 11 साल बाद राम चरण और उपासना कामिनेनी ने पोस्ट शेयर कर अपने फैंस को बताया की वो जल्द माता-पिता बनने वाले है. जिसके बाद यानी 20 जून को राम चरण और उपासना कामिनेनी के घर एक बेबी गर्ल का जन्म हुआ.

 

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फैंस का खुशी का ठिकाना नहीं

इतना ही नहीं, जबसे राम चरण के फैंस को यह खुशखबरी मिली है तबसे सोशल मीडिया पर उनके फैंस का खुशी को ठिकाना नहीं. सोशल मीडिया पर कई सारी वीडियो सामने आई है जिसमें उनके फैंस हॉस्पिटल के बाहर जश्न मनाते नजर आ रहे है. ट्विटर पर #megastarprinces ट्रेंड कर रहा है.

मैं रोज मसकारा लगाती हूं, इसके यूज से मेरी पलकें टूट रही हैं तो मैं क्या करूं?

सवाल

मुझे मसकारा लगाना पसंद है. इसलिए मैं रोज मसकारा लगाती हूं. लेकिन 1 साल पहले मैं ने एक मसकारा खरीदा था जिसे लगाने से मुझे लग रहा है मेरी पलकें काफी टूट रही हैं. सम झ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब

आमतौर पर एक मसकारा की लाइफ केवल 3 से 6 महीने की होती है. अगर मसकारा बहुत पुराना हो जाए तो उसे तुरंत बदलना चाहिए. इस के कारण न केवल आप की पलकें ड्राई हो सकती हैं बल्कि इस में बैक्टीरिया भी पैदा हो सकते हैं जो आप की पलकों और आंखों दोनों के लिए नुकसानदायक हैं. अगर आप रात को पलकों से मसकारा निकाले बिना सो जाती हैं तो वह भी पलकें टूटने का एक कारण हो सकता है. इसलिए रात को सोने से पहले अपना मेकअप जरूर रिमूव करें. ऐसा भी देखा गया है कि थायराइड ग्लैंड के असंतुलित होने से भी पलकों का  झड़ना देखा गया है. हाइपरथायराइडिज्म और हाइपोथायराइडिज्म दोनों मामलों में पलकें  झड़ने लगती हैं. थायराइड का इलाज कराने के बाद दोबारा पलकें आना शुरू हो जाती हैं. अत: आप इस के लिए अपने डाक्टर से भी कंसल्ट कर सकती हैं.

 -समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

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कुछ ऐसी जरूरी बातें, जो आपकी मुस्कान आपके व्यक्तित्व के बारे में दर्शाती है

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग बिजी होने के कारण खुद को समय नहीं दे पाते हैं जिससे वे गुस्सा और तनावग्रस्त रहते है. ऐसे में लोग मानो हंसना भूल गए हैं जो उनके लिए बेहद जरूरी है. आप जितना खुश रहते हैं उतनी ही पॉजिटिविटी आपके चेहरे पर झलकती है. अगर हम खुशियां बांटना चाहते हैं तो हमें भी खुश रहना पड़ेगा. इसके लिए हमें मुस्कुराना चाहिए.

आपकी मुस्कान से आपके व्यक्तित्व के बारे में जाना जा सकता है. लोग मुस्कान देखकर ही सामने वाले के बारे में काफी कुछ अंदाजा लगा सकते हैं. यहां हम आपको ऐसे ही कुछ जरूरी बातें बताएंगे जो मुस्कान के माध्यम से आपके व्यक्तित्व के बारे में पता चलती हैं तो आइए जानते हैं इनके बारे में-

  1. आत्मविश्वास 

किसी व्यक्ति की मुस्कान से उसके आत्मविश्वास को देखा जा सकता है. जब आप आत्मविश्वास के साथ एक सच्ची मुस्कान देते हैं तो यह दर्शाता है कि आप खुद के साथ कंफर्टेबल महसूस करते हैं और आप एक पॉजिटिव इंसान हैं. ये विशेषताएं उन व्यक्तियों से जुड़ी होती हैं जो मिलनसार होते हैं और अपने जीवन की चुनौतियों को संभालने में सक्षम होते हैं.

 2. सरल और नरम स्वभाव  

आपकी मुस्कान से नरम स्वभाव और सरलता का पता लगाया जा सकता है. ये गुण दर्शाते हैं कि आप बेहद मित्रवत है और दूसरों के साथ जुड़ने के लिए खुले विचारों के हैं. जिन व्यक्तियों की एक आकर्षक मुस्कान होती है वे लोगों के साथ आसानी से मित्रता करने के लिए माने जाते हैं. एक सच्ची मुस्कान, उन्हें लोगों के साथ संबंध बनाने में उत्कृष्ट बनाता है.

3. सकारात्मकता और आशावाद

आपकी सच्ची मुस्कान अक्सर आपके सकारात्मक दृष्टिकोण और आशावादी स्वभाव को दर्शाती है. ऐसे लोग जो कठिन परिस्थितियों में भी अक्सर मुस्कुराते रहते हैं उनका स्वभाव अच्छा होता है और वे जीवन की चुनौतियों में भी आशा की किरण देखते हैं और कठिनाइयों का डटकर सामना करते हैं. उनका सकारात्मक दृष्टिकोण उनके आसपास के लोगों के लिए भी प्रेरणादायक होता है.

 4. दया और सहानुभूति

जब आप मुस्कुराते हैं तो यह दूसरों के लिए दया और सहानुभूति के गुणों को दर्शाता है. एक सच्ची मुस्कान बताती है कि आप दूसरों के प्रति दयालु, देखभाल करने वाले और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले हैं. सच्ची मुस्कान वाले लोग दूसरों की भलाई के बारे में पहले सोचते हैं और जरूरत पड़ने पर मदद के लिए हमेशा खड़े रहते हैं.

5. सच्चाई 

आपकी सच्ची मुस्कान आपके चरित्र और आपकी सच्चाई को दिखाती है. आपकी सच्ची मुस्कान के माध्यम से पता चलता है कि आप खुद के प्रति कितना सच्चे हैं और अपनी सच्चाई को प्रकट करने के लिए आप डरते नहीं है. ऐसे लोगों को अक्सर भरोसेमंद और विश्वसनीय माना जाता है क्योंकि उनकी मुस्कान से उनके इमानदार इरादें और सत्यनिष्ठा को देखा जा सकता है.

इसलिए याद रखे कि एक मुस्कान व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी होती है क्योंकि वह आपके स्वभाव और चरित्र को दर्शा सकती है. ऐसा हो सकता है कि यह गलत भी हो किसी व्यक्ति को गहराई से जानने की जरूरत भी हो सकती है.

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