तो सूनी गोद में भी गूंजेगी किलकारी

मां बाप बनना किसी भी दंपती के लिए सब से बड़ा और सुखद अवसर होता है. शादी के कुछ समय बाद हर युगल अपना परिवार आगे बढ़ाने की चाह रखता है. 2-3 हो कर घरआंगन में बच्चों की किलकारियां सुनने को बेताब दंपती, पहले 1-2 साल कुदरती रूप से गर्भधान की कोशिश करते हैं. अगर कुदरती रूप से गर्भ नहीं ठहरता तब चिकित्सकों के चक्कर चालू हो जाते हैं.

आजकल फर्टिलिटी फैल्योर रेट दिनबदिन बढ़ता जा रहा है. बां?ापन को एक बीमारी के रूप में देखते हैं. 12 महीने या उस से अधिक नियमित असुरक्षित यौन संबंध के बाद भी गर्भधारण करने में सक्सैस न होने पर जोड़े को बांझ माना जाता है.  डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में बांझपन की दर 3.9 % और 16.8त्% के बीच है.

अगर संयुक्त परिवार में रहने वाला युगल शादी के 1-2 साल बाद भी कोई खुशखबरी नहीं देता तब घर वालों और रिश्तेदारों के सवालों का शिकार होते परेशान हो उठता है. घर के बड़ेबुजुर्गों को दादादादी बनने की जल्दी होती है. बहू के पीरियड्स आने पर कुछ सासों की भवें तन जाती हैं. एक तो गर्भ न ठहरने की चिंता ऊपर से घर वालों का व्यवहार और व्यंग्यबाणों से छलनी होती जिंदगी के प्रति पतिपत्नी उदास हो जाते हैं.

हर कुछ दिनों बाद इस मामले में पूछताछ करने वाले परिवार जन उन को दुश्मन लगने लगते हैं.तकरार की शुरुआतमगर जो दंपती अकेले रहते हैं उन को क्या बांझपन को ले कर कम परेशानी उठानी पड़ती है? हरगिज नहीं, ऐसे दंपती को लगता है जैसे पासपड़ोस वालों को छोड़ो अजनबी लोगों की नजरें भी जैसे यही सवाल करती हैं कि कब खुशखबरी दे रहे हो? दूर बैठे परिवार वाले और रिश्तेदार फोन कर के बातोंबातों में इस विषय पर जरूर पूछते हैं कि कब तक हमें दादादादी बनने का सुख प्राप्त होगा? तब पतिपत्नी आहत होते अपनों के फोन उठाने से भी कतराने लगते हैं.

बांझपन के शिकार युगलों को शारीरिक कमी की चिंता मानसिक रूप से डांवांडोल करते पूरे शरीर की व्यवस्था बिगाड़ देती है. न कह सकते हैं, न सह सकते हैं. बांझपन की वजह से तकरार की शुरुआत एकदूसरे पर शक और दोषारोपण से होती है. दोनों को खुद स्वस्थ और सामने वाले में कमी नजर आती है.कुछ मामलों में कभीकभी पति गलतफहमी का शिकार होते सोचता है कि शादी से पहले मुझे हस्तमैथुन की आदत थी कहीं उस की वजह से मुझ में कोई कमी तो नहीं आ गई? कहीं मेरा वीर्य तो पतला नहीं हो गया? कहीं शुक्राणुओं की संख्या तो कम नहीं हो गई? उस काल्पनिक डर की वजह से काम में तो ध्यान नहीं दे पाता साथ में सैक्स लाइफ पर भी उस का बुरा प्रभाव पड़ता है.

चाह कर भी न खुद चरम तक पहुंच पाता है, न ही पत्नी को सुख दे पाता है. इस की वजह से दोनों एकदूसरे से खिंचेखिंचे रहते हैं.हीनभावना से ग्रस्तऐसे ही किसी मामले में पत्नी भी खुद को दोषी सम?ाते सोचती है कि पीसीओडी की वजह से मेरे पीरियड्स अनियमित हैं. उस की वजह से तो कहीं गर्भाधान नहीं हो पा रहा या तो कभी किसी लड़की ने कुंआरेपन में किसी गलती की वजह से अबौर्शन कराया होता है तो वह बात न पति को बता सकती है न डाक्टर को, ऐसे में वह गिल्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जाती है, जिस की वजह से अंतरंग पलों में पति को सहयोग नहीं दे पाती.

तब प्यासा पति या तो पत्नी पर शक करने लगता है या फिर पत्नी से विमुख हो किसी और के साथ विवाहेत्तर संबंध से जुड़ जाता है.कई बार संयुक्त परिवार से अलग रहने वाले युगल उन्मुक्त लाइफस्टाइल जीते हैं, जिस में आएदिन पार्टियों में आनाजाना लगा रहता है और आजकल युवाओं की पार्टियां शराब, सिगरेट और जंक फूड के बिना तो अधूरी ही होती है.

अत: अल्कोहल, तंबाकू और जंक फूड का सेवन भी गर्भाधान में बाधा डालने का कारण बन सकता है.कई बार यह भी देखा जाता है कि लाख प्रयत्न के बाद भी जब गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब कुछ युगल नीमहकीमों या बाबाओं के चक्कर में पड़ कर समय और पैसे बरबाद करते हैं और ऐसे गलत उपचारों से निराश हो कर उम्मीद ही खो बैठते हैं.

ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हार कर कभीकभी प्रयत्न करना ही छोड़ देते हैं.मगर ऐसे हालात में अगर पतिपत्नी दोनों समझदार होंगे तो बांझपन के बारे में एकदूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय खुल कर विचारविमर्श कर के डाक्टर के पास जा कर सारे टैस्ट करवा कर उचित रास्ता अपनाते हैं.

बांझपन के कारणबां?ापन के कई कारण हो सकते हैं. एक तो आज के दौर में कैरियर औरिएंटेड लड़के, लड़कियां शादी को टालमटोल करते 30-32 के हो जाते हैं. ऊपर से शादी के बाद कुछ समय घूमनेफिरने और ऐश करने में गंवा देते हैं, जबकि हर काम उम्र रहते हो जाना चाहिए यह नहीं सोचते.ऊपर से मौजूदा जीवनशैली, गलत खानपान, पर्यावरणीय फैक्टर और देरी से बच्चे पैदा करने सहित विभिन्न कारणों की वजह से बांझपन आम हो गया है.

माना जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग ने भी बां?ापन के बढ़ते मामलों में योगदान दिया है.बांझपन मैडिकल कंडीशन यानी एक बीमारी है जहां कई दंपती कई वर्ष तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं. यह समस्या दुनियाभर में एक चिंता का विषय है. इस बीमारी से लगभग 10 से 15त्न जोड़े प्रभावित होते हैं साथ में ओव्यूलेशन की समस्या महिलाओं में बांझपन का सब से आम कारण है. एक महिला की उम्र, हारमोनल असंतुलन, वजन, रसायनों या विकिरण के संपर्क में आना और शराब, सिगरेट पीना सभी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालते हैं.क्या कहते हैं ऐक्सपर्टडाक्टर के अनुसार प्रैगनैंट होने के लिए सही उम्र 18 से 28 मानते हैं.

इसलिए इन वर्षों के बीच बच्चे के लिए किए गए प्रयास अधिक सफल होते हैं.सब से पहले तो शादी सही उम्र में कर लेनी चाहिए और यदि शादी लेट हुई है तो बच्चे की प्लानिंग में देरी नहीं करनी चाहिए वरना प्रैगनैंसी में दिक्कत हो सकती है.पतिपत्नी की सैक्स लाइफ हैल्दी होनी चाहिए. जब तक आप बारबार मैदानएजंग में नहीं उतरेंगे तब तक आप समस्या से लड़ेंगे कैसे जीतेंगे कैसे? इसलिए प्रैगनैंसी के लिए सब से जरूरी है कि पीरियड्स के बाद जिन दिनों गर्भाधान की संभावना ज्यादा होती है उन दिनों में अपने पार्टनर के साथ नियमित सैक्स करना चाहिए.

जितना अधिक सैक्स होगा प्रैगनैंसी की संभावना भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी.जब कुदरती रूप से गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब डाक्टर दंपती के सामने कुछ औप्शन रखते हैं जैसेकि:आईवीएफ पद्धति से प्रैगनैंसीयह एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमैंट है. इस प्रक्रिया में 2 स्टैप ट्रीटमैंट किया जाता है. यदि महिला के अंडाशय में एग का सही तरह से निर्माण नहीं हो रहा है और वह फौलिकल से अलग नहीं हो पा रहा है, पुरुष साथी में शुक्राणु कम बन रहे हैं या वे कम ऐक्टिव हैं तो ऐसे में महिला को कुछ इंजैक्शन दिए जाते हैं, जिस से ऐग फौलिकल से सही तरह से अलग हो पाता है.

इस के बाद पुरुष साथी से शुक्राणु प्राप्त कर उन्हें साफ किया जाता है और उन में से क्वालिटी शुक्राणुओं को एक सिरिंज द्वारा महिला के गर्भाशय में छोड़ा जाता है. इस के बाद की सारी प्रक्रिया कुदरती रूप से होती है. इस की सफलता की दर 10 से 15त्न होती है.

कुछ मामलों में आईयूआई से सफलता मिल जाती है, लेकिन यदि समस्या किसी और तरह की है तो आईवीएफ ही सही उपचार होता है.समस्या का निवारणइन्फर्टिलिटी की समस्या से पीडि़त दंपतियों को इनविट्रोफर्टिलाइजेशन की तकनीक की सलाह दी जाती है. यह पद्धति तब उपयोग में ली जाती है जब फैलोपियन ट्यूब में किसी भी कारण से कोई रुकावट हो जाए या खराब हो जाए.

महिला के ओव्यूलेशन में समस्या होने पर आईवीएफ की मदद से गर्भधारण किया जा सकता है. टैस्ट ट्यूब बेबी तकनीक अब नई नहीं रही. अनुभवी डाक्टर से करवाया गया उपचार परिणाम जरूर देता है.कृत्रिम रूप से गर्भवती होने में थोड़ा जोखिम तो है और इन प्रक्रियाओं में कुछ जटिलताओं का भी सामना करना पड़ सकता है.

लेकिन इस का मतलब यह हरगिज नहीं कि जो महिलाएं इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या कृत्रिम गर्भाधान से गुजरती हैं उन्हें निश्चित रूप से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आजकल उन्नत चिकित्सा विधियों की बदौलत कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर में काफी सुधार आया है. इसलिए इन्फर्टिलिटी के शिकार युगलों को हारे बिना, गबराए बिना सही निर्णय ले कर सही उपचार द्वारा समस्या का निवारण करना चाहिए.

धागा प्रेम का: रंभा और आशुतोष का वैवाहिक जीवन ये कहां पहुंच गया

आज सलोनी विदा हो गई. एअरपोर्ट से लौट कर रंभा दी ड्राइंगरूम में ही सोफे पर निढाल सी लेट गईं. 1 महीने की गहमागहमी, भागमभाग के बाद आज घर बिलकुल सूनासूना सा लग रहा था. बेटी की विदाई से निकल रहे आंसुओं के सैलाब को रोकने में रंभा दी की बंद पलकें नाकाम थीं. मन था कि आंसुओं से भीग कर नर्म हुई उन यादों को कुरेदे जा रहा था, जिन्हें 25 साल पहले दफना कर रंभा दी ने अपने सुखद वर्तमान का महल खड़ा किया था.

मुंगेर के सब से प्रतिष्ठित, धनाढ्य मधुसूदन परिवार को भला कौन नहीं जानता था. घर के प्रमुख मधुसूदन शहर के ख्यातिप्राप्त वकील थे. वृद्धावस्था में भी उन के यहां मुवक्किलों का तांता लगा रहता था. वे अब तक खानदानी इज्जत को सहेजे हुए थे. लेकिन उन्हीं के इकलौते रंभा के पिता शंभुनाथ कुल की मर्यादा के साथसाथ धनदौलत को भी दारू में उड़ा रहे थे. उन्हें संभालने की तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी थीं. पिता ने किसी तरह वकालत की डिगरी भी दिलवा दी थी ताकि अपने साथ बैठा कर कुछ सिखा सकें. लेकिन दिनरात नशे में धुत्त लड़खड़ाती आवाज वाले वकील को कौन पूछता?

बहू भी समझदार नहीं थी. पति या बच्चों को संभालने के बजाय दिनरात अपने को कोसती, कलह करती. ऐसे वातावरण में बच्चों को क्या संस्कार मिलेंगे या उन का क्या भविष्य होगा, यह दादाजी समझ रहे थे. पोते की तो नहीं, क्योंकि वह लड़का था, दादाजी को चिंता अपनी रूपसी, चंचल पोती रंभा की थी. उसे वे गैरजिम्मेदार मातापिता के भरोसे नहीं छोड़ना चाहते थे. इसी कारण मैट्रिक की परीक्षा देते ही मात्र 18 साल की उम्र में रंभा की शादी करवा दी.

आशुतोषजी का पटना में फर्नीचर का एक बहुत बड़ा शोरूम था. अपने परिवार में वे अकेले लड़के थे. उन की दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी. मां का देहांत जब ये सब छोटे ही थे तब ही हो गया था. बच्चों की परवरिश उन की बालविधवा चाची ने की थी.

शादी के बाद रंभा भी पटना आ गईं. रिजल्ट निकलने के बाद उन का आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला पटना में ही हो गया. आशुतोषजी और रंभा में उम्र के साथसाथ स्वभाव में भी काफी अंतर था. जहां रंभा चंचल, बातूनी और मौजमस्ती करने वाली थीं, वहीं आशुतोषजी शांत और गंभीर स्वभाव के थे. वे पूरा दिन दुकान पर ही रहते. फिर भी रंभा दी को कोई शिकायत नहीं थी.

नया बड़ा शहर, कालेज का खुला माहौल, नईनई सहेलियां, नई उमंगें, नई तरंगें. रंभा दी आजाद पक्षी की तरह मौजमस्ती में डूबी रहतीं. कोई रोकनेटोकने वाला था नहीं. उन दिनों चाचीसास आई हुई थीं. फिर भी उन की उच्छृंखलता कायम थी. एक रात करीब 9 बजे रंभा फिल्म देख कर लौटीं. आशुतोषजी रात 11 बजे के बाद ही घर लौटते थे, लेकिन उस दिन समय पर रंभा दी के घर नहीं पहुंचने पर चाची ने घबरा कर उन्हें बुला लिया था. वे बाहर बरामदे में ही चाची के साथ बैठे मिले.

‘‘कहां से आ रही हो?’’ उन की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था.

‘‘क्लास थोड़ी देर से खत्म हुई,’’ रंभा दी ने जवाब दिया.

‘‘मैं 5 बजे कालेज गया था. कालेज तो बंद था?’’

अपने एक झूठ को छिपाने के लिए रंभा दी ने दूसरी कहानी गढ़ी, ‘‘लौटते वक्त सीमा दीदी के यहां चली गई थी.’’ सीमा दी आशुतोषजी के दोस्त की पत्नी थीं जो रंभा दी के कालेज में ही पढ़ती थीं.

आशुतोषजी गुस्से से हाथ में पकड़ा हुआ गिलास रंभा की तरफ जोर से फेंक कर चिल्लाए, ‘‘कुछ तो शर्म करो… सीमा और अरुण अभीअभी यहां से गए हैं… घर में पूरा दिन चाची अकेली रहती हैं… कालेज जाने तक तो ठीक है… उस के बाद गुलछर्रे उड़ाती रहती हो. अपने घर के संस्कार दिखा रही हो?’’

आशुतोषजी आपे से बाहर हो गए थे. उन का गुस्सा वाजिब भी था. शादी को 1 साल हो गया था. उन्होंने रंभा दी को किसी बात के लिए कभी नहीं टोका. लेकिन आज मां तुल्य चाची के सामने उन्हें रंभा दी की आदतों के कारण शर्मिंदा होना पड़ा था.

रंभा दी का गुस्सा भी 7वें आसमान पर था. एक तो नादान उम्र उस पर दूसरे के सामने हुई बेइज्जती के कारण वे रात भर सुलगती रहीं.

सुबह बिना किसी को बताए मायके आ गईं. घर में किसी ने कुछ पूछा भी नहीं. देखने, समझने, समझाने वाले दादाजी तो पोती की विदाई के 6 महीने बाद ही दुनिया से विदा हो गए थे.

आशुतोषजी ने जरूर फोन कर के उन के पहुंचने का समाचार जान लिया. फिर कभी फोन नहीं किया. 3-4 दिनों के बाद रंभा दी ने मां से उस घटना का जिक्र किया. लेकिन मां उन्हें समझाने के बजाय और उकसाने लगीं, ‘‘क्या समझाते हैं… हाथ उठा दिया… केस ठोंक देंगे तब पता चलेगा.’’ शायद अपने दुखद दांपत्य के कारण बेटी के प्रति भी वे कू्रर हो गई थीं. उन की ममता जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रही थी. रंभा दी अपनी विगत जिंदगी की कहानी अकसर टुकड़ोंटुकड़ों में बताती रहतीं, ‘‘मुझे आज भी जब अपनी नादानियां याद आती हैं तो अपने से ज्यादा मां पर क्रोध आता है. मेरे 5 अनमोल साल मां के कारण मुझ से छिन गए. लेकिन शायद मेरा कुछ भला ही होना था…’’ और वे फिर यादों में खो जातीं…

इंटर की परीक्षा करीब थी. वे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं चाहती थीं, इसलिए परीक्षा देने पटना में दूर के एक मामा के यहां गईं. वहां मामा के दानव जैसे 2 बेटे अपनी तीखी निगाहों से अकसर उन का पीछा करते रहते. उन की नजरें उन के शरीर का ऐसे मुआयना करतीं कि लगता वे वस्त्रविहीन हो गई हैं. एक रात अपनी कमर के पास किसी का स्पर्श पा कर वे घबरा कर बैठ गईं. एक छाया को उन्होंने दौड़ते हुए बाहर जाते देखा. उस दिन के बाद से वे दरवाजा बंद कर के सोतीं. किसी तरह परीक्षा दे कर वे वापस आ गईं.

मां की अव्यावहारिक सलाह पर एक बार फिर वे अपनी मौसी की लड़की के यहां दिल्ली गईं. उन्होंने सोचा था कि फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर के बुटीक वगैरह खोल लेंगी. लेकिन वहां जाने पर बहन को अपने 2 छोटेछोटे बच्चों के लिए मुफ्त की आया मिल गई. वे अकसर उन्हें रंभा दी के भरोसे छोड़ कर पार्टियों में व्यस्त रहतीं. बच्चों के साथ रंभा को अच्छा तो लगता था, लेकिन यहां आने का उन का एक मकसद था. एक दिन रंभा ने मौसी की लड़की के पति से पूछा, ‘‘सुशांतजी, थोड़ा कोर्स वगैरह का पता करवाइए, ऐसे कब तक बैठी रहूंगी.’’

बहन उस वक्त घर में नहीं थी. बहनोई मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, आराम से रहिए न… यहां किसी चीज की कमी है क्या? किसी चीज की कमी हो तो हम से कहिएगा, हम पूरी कर देंगे.’’

उन की बातों के लिजलिजे एहसास से रंभा को घिन आने लगी कि उन के यहां पत्नी की बड़ी बहन को बहुत आदर की नजरों से देखते हैं… उन के लिए ऐसी सोच? फिर रंभा दी दृढ़ निश्चय कर के वापस मायके आ गईं.

मायके की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. पिताजी का लिवर खराब हो गया था. उन के इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे. रंभा के बारे में सोचने की किसी को फुरसत नहीं थी. रंभा ने अपने सारे गहने बेच कर पैसे बैंक में जमा करवाए और फिर बी.ए. में दाखिला ले लिया. एम.ए. करने के बाद रंभा की उसी कालेज में नौकरी लग गई.

5 साल का समय बीत चुका था. पिताजी का देहांत हो गया था. भाई भी पिता के रास्ते चल रहा था. घर तक बिकने की नौबत आ गई थी. आमदनी का एक मात्र जरीया रंभा ही थीं. अब भाई की नजर रंभा की ससुराल की संपत्ति पर थी. वह रंभा पर दबाव डाल रहा था कि तलाक ले लो. अच्छीखासी रकम मिल जाएगी. लेकिन अब तक की जिंदगी से रंभा ने जान लिया था कि तलाक के बाद उसे पैसे भले ही मिल जाएं, लेकिन वह इज्जत, वह सम्मान, वह आधार नहीं मिल पाएगा जिस पर सिर टिका कर वे आगे की जिंदगी बिता सकें.

आशुतोषजी के बारे में भी पता चलता रहता. वे अपना सारा ध्यान अपने व्यवसाय को बढ़ाने में लगाए हुए थे. उन की जिंदगी में रंभा की जगह किसी ने नहीं भरी थी. भाई के तलाक के लिए बढ़ते दबाव से तंग आ कर एक दिन बहुत हिम्मत कर के रंभा ने उन्हें फोन मिलाया, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो, कौन?’’

आशुतोषजी की आवाज सुन कर रंभा की सांसों की गति बढ़ गई. लेकिन आवाज गुम हो गई.

हैलो, हैलो…’’ उन्होंने फिर पूछा, ‘‘कौन? रंभा.’’

‘‘हां… कैसे हैं? उन की दबी सी आवाज निकली.’’

‘‘5 साल, 8 महीने, 25 दिन, 20 घंटों के बाद आज कैसे याद किया? उन की बातें रंभा के कानों में अमृत के समान घुलती जा रही थीं.’’

‘‘आप क्या चाहते हैं?’’ रंभा ने प्रश्न किया.

‘‘तुम क्या चाहती हो?’’ उन्होंने प्रतिप्रश्न किया.

‘‘मैं तलाक नहीं चाहती.’’

‘‘तो लौट आओ, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’ और सचमुच दूसरे दिन बिना किसी को बताए जैसे रंभा अपने घर लौट गईं. फिर साहिल पैदा हुआ और फिर सलोनी.

रंभा दी मुंगेर के जिस कालेज में इकोनौमिक्स की विभागाध्यक्ष और सहप्राचार्या थीं, उसी कालेज में मैं हिंदी की प्राध्यापिका थी. उम्र और स्वभाव में अंतर के बावजूद हम दोनों की दोस्ती मशहूर थी.

रंभा दी को पूरा कालेज हिटलर के नाम से जानता था. आभूषण और शृंगारविहीन कठोर चेहरा, भिंचे हुए होंठ, बड़ीबड़ी आंखों को ढकता बड़ा सा चश्मा. बेहद रोबीला व्यक्तित्व था. जैसा व्यक्तित्व था वैसी ही आवाज. बिना माइक के भी जब बोलतीं तो परिसर के दूसरे सिरे तक साफ सुनाई देता.

लेकिन रंभा दी की सारी कठोरता कक्षा में पढ़ाते वक्त बालसुलभ कोमलता में बदल जाती. अर्थशास्त्र जैसे जटिल विषय को भी वे अपने पढ़ाने की अद्भुत कला से सरल बना देतीं. कला संकाय की लड़कियों में शायद इसी कारण इकोनौमिक्स लेने की होड़ लगी रहती थी. हर साल इस विषय की टौपर हमारे कालेज की ही छात्रा होती थी.

मैं तब भी रंभा दी के विगत जीवन की तुलना वर्तमान से करती तो हैरान हो जाती कि कितना प्यार, तालमेल है उन के परिवार में. अगर रंभा दी किसी काम के लिए बस नजर उठा कर आशुतोषजी की तरफ देखतीं तो वे उन की बात समझ कर जब तक नजर घुमाते साहिल उसे करने को दौड़ता. तब तक तो सलोनी उस काम को कर चुकी होती.

दोनों बच्चे रूपरंग में मां पर गए थे. सलोनी थोड़ी सांवली थी, लेकिन तीखे नैननक्श और छरहरी काया के कारण बहुत आकर्षक लगती थी. वह एम.एससी. की परीक्षा दे चुकी थी. साहिल एम.बी.ए. कर के बैंगलुरु में एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर नियुक्त था. उस ने एक सिंधी लड़की को पसंद किया था. मातापिता की मंजूरी उसे मिल चुकी थी मगर वह सलोनी की शादी के बाद अपनी शादी करना चाहता था.

लेकिन सलोनी शादी के नाम से ही बिदक जाती थी. शायद अपनी मां के शुरुआती वैवाहिक जीवन के कारण उस का शादी से मन उचट गया था.

फिर एक दिन रंभा दी ने ही समझाया, ‘‘बेटी, शादी में कोई शर्त नहीं होती. शादी एक ऐसा पवित्र बंधन है जिस में तुम जितना बंधोगी उतना मुक्त होती जाओगी… जितना झुकोगी उतना ऊपर उठती जाओगी. शुरू में हम दोनों अपनेअपने अहं के कारण अड़े रहे तो खुशियां हम से दूर रहीं. फिर जहां एक झुका दूसरे ने उसे थाम के उठा लिया, सिरमाथे पर बैठा लिया. बस शादी की सफलता की यही कुंजी है. जहां अहं की दीवार गिरी, प्रेम का सोता फूट पड़ता है.’’

धीरेधीरे सलोनी आश्वस्त हुई और आज 7 फेरे लेने जा रही थी. सुबह से रंभा दी का 4-5 बार फोन आ चुका था, ‘‘सुभि, देख न सलोनी तो पार्लर जाने को बिलकुल तैयार नहीं है. अरे, शादी है कोई वादविवाद प्रतियोगिता नहीं कि सलवारकमीज पहनी और स्टेज पर चढ़ गई. तू ही जरा जल्दी आ कर उस का हलका मेकअप कर दे.’’

5 बज गए थे. साहिल गेट के पास खड़ा हो कर सजावट वाले को कुछ निर्देश दे रहा था. जब से शादी तय हुई थी वह एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घरबाहर दोनों के सारे काम संभाल रहा था. मुझे देख कर वह हंसता हुआ बोला, ‘‘शुक्र है मौसी आप आ गईं. मां अंदर बेचैन हुए जा रही हैं.’’

मैं हंसते हुए घर में दाखिल हुई. पूरा घर मेहमानों से भरा था. किसी रस्म की तैयारी चल रही थी. मुझे देखते ही रंभा दी तुरंत मेरे पास आ गईं. मैं ठगी सी उन्हें निहार रही थी. पीली बंधेज की साड़ी, पूरे हाथों में लाल चूडि़यां, पैरों में आलता, कानों में झुमके, गले में लटकी चेन और मांग में सिंदूर. मैं तो उन्हें पहचान ही नहीं पाई.

‘‘रंभा दी, कहीं समधी तुम्हारे साथ ही फेरे लेने की जिद न कर बैठें,’’ मैं ने छेड़ा.

‘‘आशुतोषजी पीली धोती में मंडप में बैठे कुछ कर रहे थे. यह सुन कर ठठा कर हंस पड़े. फिर रंभा दी की तरफ प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘आज कहीं, बेटी और बीवी दोनों को विदा न करना पड़ जाए.’’

रंभा दीदी शर्म से लाल हो गईं. मुझे खींचते हुए सलोनी के कमरे में ले गईं. शाम कोजब सलोनी सजधज कर तैयार हुई तो मांबाप, भाई सब उसे निहार कर निहाल हो गए. रंभा दी ने उसे सीने से लगा लिया. मैं ने सलोनी को चेताया, ‘‘खबरदार जो 1 भी आंसू टपकाया वरना मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी.’’

सलोनी धीमे से हंस दी. लेकिन आंखों ने मोती बिखेर ही दिए. रंभा दी ने हौले से उसे अपने आंचल में समेट लिया.

स्टेज पर पूरे परिवार का ग्रुप फोटो लिया जा रहा था. रंभा दी के परिवार की 4 मनकों की माला में आज दामाद के रूप में 1 और मनका जुड़ गया था.

उन लोगों को देख कर मुझे एक बार रंभा दी की कही बात याद आ गई. कालेज के सालाना जलसे में समाज में बढ़ रही तलाक की घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि प्रेम का धागा मत तोड़ो, अगर टूटे तो फिर से जोड़ो.

आज उन्हें और उन के परिवार को देख कर यह बात सिद्ध भी हो रही थी. रंभा दी के प्रेम का धागा एक बार टूटने के बावजूद फिर जुड़ा और इतनी दृढ़ता से जुड़ा कि गांठ की बात तो दूर उस की कोई निशानी भी शेष नहीं है. उन के सच्चे, निष्कपट प्यार की ऊष्मा में इतनी ऊर्जा थी जिस ने सभी गांठों को पिघला कर धागे को और चिकना और सुदृढ़ कर दिया.

दोराहा: पति ने की पत्नी के साथ की बेवफाई

‘‘सौरीमैडम, उपमा मिक्स का एक ही पैकेट था, जो इन्होंने ले लिया. नया स्टौक 3-4 दिनों में आएगा,’’ सेल्समैन की आवाज सुन कर रोहित ने मुड़ कर देखा. एक गौरवर्ण की अमेरिकन नवयुवती उस की तरफ देख रही थी.

उस के देखने में कुछ ऐसी कशिश थी कि रोहित ने उपमा मिक्स का पैकेट सेल्समैन को थमाते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट इन्हें दे दो. मैं फिर ले लूंगा.’’ उस युवती ने रोहित को आभारयुक्त नजरों से देखा और फिर डिपार्टमैंटल स्टोर से चली गई.

मैट्रो टे्रन लेट थी. ठंड बढ़ने के साथसाथ घना कुहरा भी छाया था. रोहित प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर रहा था. तभी वह वहां एक लड़की से टकराया. दोनों की नजरें मिलीं और दोनों मुसकरा पड़े. वह वही डिपार्टमैंटल स्टोर में मिलने वाली लड़की थी.

तभी मैट्रो आ गई और दोनों एक ही डब्बे में चढ़ गए. रोहित उस के रेशम से लंबे केशों और गौरवर्ण से बहुत प्रभावित हुआ. उस का नाम जेनिथ था. उन में बातचीत शुरू हो गई. ‘‘आप कहां काम करते हैं?’’ ‘‘पार्क एवेन्यू की एक कंपनी में.’’

‘‘मैं भी वहीं काम करती हूं. आप की बिल्डिंग के साथ वाली बड़ी बिल्डिंग में मेरा दफ्तर है.’’ इस मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ी. फिर दोनों में दूरियां समाप्त हो गईं. कभी रोहित जेनिथ के यहां चला जाता तो कभी जेनिथ उस के यहां आ जाती.

विवाह किए बिना रहने वाले स्त्रीपुरुषों को अमेरिका में सामान्य रूप से ही देखा जाता था. अमेरिका और पाश्चात्य देशों में तलाक लेने पर काफी खर्चा पड़ता था, इसलिए असंख्य जोड़े विवाह किए बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहने को प्राथमिकता देते थे.

ऐसे जोड़ों में आपस में वफा या बेवफा जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं था. लेकिन इतना जरूर सम झा जाता था कि जब तक साथ रहें तब तक साथी वफादारी निभाए. एक रोचक बात यह थी कि कुछ समय के लिए साथसाथ रहने को रजामंद हुए जोड़ों में सारी उम्र का साथ बन जाता था, जबकि कानूनी तौर से विवाह कर पतिपत्नी बने जोड़ों का विवाह टूट जाता था.

यानी पक्की डोर से बंधा बंधन टूट जाता था तो कच्ची डोर से बंधा बंधन सारी उम्र चलता था. अमेरिका में युवकयुवतियों के लिए डेटिंग को जरूरी काम सम झा जाता था. जो डेटिंग पर नहीं जाता था उसे मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजा जाता था.

कौमार्य एक बेमानी बात सम झी जाती थी. जेनिथ ने रोहित से संबंध बनाए, साथ ही उस का और अपना एचआईवी टैस्ट भी करवाया कि कहीं उन में से कोई एड्स से ग्रस्त तो नहीं. दोनों इस बात से सहमत थे कि सैक्स संबंधों के दौरान कंडोम का प्रयोग कुदरती मजे को कम करता है.

एक रात सैक्स के दौरान रोहित ने कहा, ‘‘जेनिथ, तुम न कंडोम इस्तेमाल करने देती हो न ही और कोई गर्भनिरोधक अपनाती हो. अगर प्रैगनैंट हो गईं तो? ‘‘तो क्या? तब या तो गर्भपात करा लूंगी या फिर बच्चे को जन्म दे कर मां बन जाऊंगी,’’ जेनिथ ने सहजता से कहा. ‘‘गर्भपात तो ठीक है, मगर बच्चा…’’ ‘‘क्यों क्या आप को बच्चा अच्छा नहीं लगता?’’ ‘‘यह बात नहीं है.

मगर बिना विवाह किए बच्चे को जन्म देना तो नाजायज है?’’ ‘‘यह सब पुरातनपंथी बातें हैं. आजकल के जमाने में कोई इन बातों को नहीं मानता… छोड़ो इसे. यह बताओ आप अपनी पत्नी को यहां कब बुला रहे हो?’’ जेनिथ ने बात में उपजे तनाव को देखते विषय बदलते हुए पूछा. ‘‘मेरा हाल ही में ग्रीन कार्ड बना है. अब मैं अपनी पत्नी को यहां बुला सकता हूं.

मुझे अब बारबार अपना वीजा और वर्क परमिट बढ़वाने की जरूरत नहीं है.’’ रोहित की बात सुन कर जेनिथ गंभीर हो गई. आखिर ब्याहता पत्नी का कानूनी हक अपनी जगह था. वह तो एक साथी के तौर पर लिव इन रिलेशनशिप में उस के साथ रह रही थी. आखिरकार रोहित की पत्नी सुषमा का अमेरिका आना हो ही गया. जेनिथ ने हकीकत को सम झते हुए उस के आने से पहले ही अपना सामान रोहित के फ्लैट से उठा लिया और अपने फ्लैट में चली गई. रोहित की पत्नी सुषमा भी स्नातकोत्तर तक पढ़ीलिखी थी. साथ में कंप्यूटर में डिप्लोमा होल्डर थी. जेनिथ के मुकाबले वह थोड़े छोटे कद की थी. उस का रंग भी गेहुआं था. पर भारतीय नारी के दृष्टिकोण से वह भी सुंदर थी.

थोड़े दिनों तक घूमनाफिरना होता रहा. फिर रोहित सुषमा के लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. थोड़े समय में ही उस के लिए कंप्यूटर सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. सुषमा के सहयोगियों में कई देशों के युवक थे. उस के साथ की सीट पर बैठने वाला एडवर्ड नील, अमेरिकन था. वह पुरानी सोच रखने वाला रोमन कैथोलिक ईसाई था. वह हर रविवार को चर्च जाता था.

अपने मातापिता की कब्रों पर मोमबत्तियां भी जलाता था. सुषमा उस के इस स्वभाव के कारण उस की तरफ आकर्षित होने लगी. एडवर्ड नील भी सुषमा के भारतीय पहनावे साड़ी और पंजाबी सलवारकमीज को बहुत पसंद करता था. वह भी सुषमा के प्रति स्नेह रखने लगा. एडवर्ड नील को भारतीय व्यंजन बहुत पसंद थे. सुषमा उस के लिए अपने टिफिन बौक्स में खाना लाने लगी.

एडवर्ड नील खाना लेते समय संकोच से भर उठता, क्योंकि वह बदले में खाना औफर नहीं कर पाता था. एक दिन उस के मनोभावों को सम झ सुषमा हंस कर बोली, ‘‘नील, कोई बात नहीं… टेक इट ईजी.’’ तब एडवर्ड नील ने हंस कर कहा, ‘‘क्या आप मु झे भारतीय खाना बनाना सिखाएंगी?’’ ‘‘श्योर… जब आप चाहो.’’ उस दिन रविवार था.

एडवर्ड नील सुषमा के यहां आया. सुषमा ने उस का रोहित से परिचय करवाया. परिचय करते समय रोहित कुछ असहज था जबकि एडवर्ड नील सहज था. एडवर्ड नील नीली जींस और सादी कमीज पर हलकी जैकेट पहने था जबकि रोहित पिकनिक का प्रोग्राम होने के कारण सूटेडबूटेड था. ‘‘रोहित, क्या आप कहीं बाहर जा रहे हैं?’’

‘‘हां, पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम था.’’ ‘‘आप तो सूटकोट में हो. मैं तो उस के बजाय कैजुअल वियर ही पसंद करता हूं. मु झे आप का भारतीय पहनावा कुरतापाजामा बहुत पसंद है.’’ ‘‘यानी आप भारतीय बन रहे हैं और हम अमेरिकन,’’ सुषमा की इस टिप्पणी पर सभी हंस पड़े. एडवर्ड नील ने मनोयोग से सुषमा के साथ रसोईघर में काम किया.

आलू छीले, टिकियां बनाईं, खीर बनाई और कई व्यंजन बनाए. फिर सभी पिकनिक पर चले गए. कार में बैठते समय सुषमा ने एडवर्ड नील से कहा, ‘‘आप अगली सीट पर बैठ जाएं.’’ ‘‘नहीं मैडम, मैं आप का स्थान नहीं ले सकता,’’ एडवर्ड नील ने अदा के साथ सिर नवा कर कहा और पिछली सीट पर बैठ गया. उस की इस अदा पर रोहित भी मुसकरा पड़ा.

पिकनिक स्पौट समुद्री तट था. कई स्त्रीपुरुष अधोवस्त्रों में रेतीले तट पर लेटे धूप सेंक रहे थे. कई समुद्र में नहा रहे थे. एडवर्ड नील कपड़े उतार जांघिया पहने समुद्र में उतर गया. सुषमा तैरना जानती थी मगर इस तरह अधोवस्त्रों में वह समुद्र या नदी में नहीं जाती थी. पिकनिक का दिन काफी अच्छा बीता. फिर एडवर्ड नील थोड़ेथोड़े अंतराल पर सुषमा के घर आता रहा.

थोड़े समय में ही वह अनेक भारतीय व्यंजन बनाना सीख गया. फिर वह भी सुषमा और अन्य साथियों के लिए भारतीय व्यंजन लाने लगा. एडवर्ड नील और सुषमा के मेलजोल को रोहित शंकित नजरों से देखने लगा. वह स्वयं एक गोरी मेम को कई महीनों तक अपने यहां एक साथी के तौर पर रख चुका था, इसलिए शंकित था कि एडवर्ड नील भी उस की पत्नी से गलत संबंध बनाएगा.

अत: अब वह बारबार सुषमा पर तुनक पड़ता. पहले सुषमा को वीकऐंड पर बाहर घुमाने ले जाता था. मगर अब अकेला जाता था. एडवर्ड नील का अपनी पत्नी से हाल ही में तलाक हुआ था. वह आम अमेरिकन लड़कियों के समान ही उच्छृंखल विचारों की थी.

उस की नजरों में उस का पति एक मिस फिट पर्सन था. कमोबेश ऐसे ही विचार सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले अन्य सहयोगियों के थे. उन के विपरीत सुषमा एडवर्ड नील को एक फिलौस्फर और जीनियस मानती थी. दोनों में धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ने लगी. सुषमा का आकर्षण रोहित के लिए काफी कम हो गया. तब उसे जेनिथ की याद आई. 2-3 माह से उस ने उस की खबर न ली थी.

उस ने जेनिथ का फोन नंबर मिलाया. ‘‘अरे, आज आप को मेरी याद कैसे आ गई?’’ ‘‘कभी तो आनी ही थी. कैसी हो?’’ ‘‘फाइन… आप कैसे हैं? आप की पत्नी का क्या हाल है?’’ ‘‘अच्छा है, मिलने आ जाऊं?’’ ‘‘आ जाओ.’’ जेनिथ रोहित का फ्लैट छोड़ते समय प्रैगनैंट थी.

प्रैगनैंसी का पता उसे थोड़े समय बाद ही चला था. वह इस कशमकश में थी कि गर्भपात करवाए या नहीं. वह जानती थी कि बढ़ती उम्र में सहारे के लिए एक साथी के साथसाथ बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर जीवनसाथी को पाना भी आसान था तो छोड़ना भी. मगर जो भावनात्मक सुरक्षा विवाह नामक बंधन या संस्था में थी

वह लिव इन रिलेशनशिप में नहीं थी. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर साथसाथ रहने वाले साथियों में हर समय डर सा रहता कि कहीं उस का साथी उस से नाराज हो या अन्य बैटर साथी पा कर उसे छोड़ न जाए. जबकि विवाह की डोर से बंधे पतिपत्नी निश्चिंत रहते. उन्हें डर नहीं रहता कि साथी छोड़ कर चला जाएगा. फिर यदि तलाक भी लेगा तो नोटिस देगा और इस में समय लगेगा. रोहित जेनिथ के फ्लैट पर पहुंचा. उस को उस के प्रैगनैंट होने की खबर नहीं थी.

जेनिथ गर्भपात कराऊं या नहीं करवाऊं इसी कशमकश के कारण निर्धारित समय निकाल चुकी थी. अब गर्भपात नहीं हो सकता था. गर्भावस्था के कारण उस का शरीर फूल गया था. उस ने ढीलेढाले वस्त्र पहने हुए थे. रोहित उस के बेडौल शरीर को देख कर हैरान रह गया. बोला, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ ‘‘आप स्त्री होते तो ऐसा न कहते.’’

‘‘गर्भपात करवा लेतीं.’’ ‘‘सोचा तो था. बाद में विचार बना बड़ी उम्र में एक जीवनसाथी और बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. आखिर सारी उम्र तो कोई जवान नहीं रहता,’’ जेनिथ के स्वर में वेदना थी. रोहित थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा. फिर उठ खड़ा हुआ, ‘‘अच्छा मैं चलता हूं,’’ और फ्लैट से बाहर निकल गया. जेनिथ को रोहित के इस व्यवहार से धक्का लगा.

अमेरिकन या अंगरेज पुरुष स्वार्थी या मतलबी होते हैं, मगर क्या एक भारतीय भी इतना निर्मोही हो सकता है? अब उसे अपने प्यार या वासना का नतीजा भुगतना था. लिव इन रिलेशनशिप की पोल खुल चुकी थी. विवाह आखिर विवाह ही होता है. फिर उस ने अपनी देखभाल के लिए एक नर्सिंगहोम से संपर्क बना लिया. सुषमा का परिचय सामने के फ्लैट में रहने वाली पड़ोसिन मार्था डोरिन से हो गया.

वह उस के साथ फुरसत में गपशप मारने लगी. एक दिन मार्था डोरिन ने उस से कहा, ‘‘आप तो बहुत मिलनसार हो. आप से पहले वाली तो बहुत रिजर्व्ड थी. आखिर वह अमेरिकन थी न.’’ सुषमा सम झ गई कि रोहित ने उस के आने से पहले किसी लड़की को लिव इन रिलेशनशिप में रखा हुआ था. आखिर वह क्या करता? 3 साल से पत्नी से दूर था.

उसे भी स्त्रीसंसर्ग की जरूरत थी. मगर अब रोहित की उच्छृंखलताएं बढ़ गई थीं. वह रोज पीए घर लौटता था. सारी तनख्वाह पबों, बारों में और लड़कियों पर उड़ाने लगा था. घर का खर्चा सुषमा ही चलाती थी. कितनी विडंबना की बात थी कि जब तक पत्नी नहीं आई थी, जेनिथ से उस का संबंध जरूर था, लेकिन उस में संयम था. मगर अब उस की कामवासना विकृत हो चुकी थी. एडवर्ड नील तनहाई भरा जीवन गुजार रहा था. एक दिन सुषमा ने उस से हमदर्दी से पूछा, ‘‘नील, क्या आप को अकेलापन महसूस नहीं होता?’’ ‘‘यह तनहाई और अकेलापन क्या होता है?’’

‘‘क्या आप नहीं सम झते?’’ ‘‘देखिए, सुषमाजी, विवाह होने या जीवनसाथी के होने का मतलब यह नहीं है कि आप अकेलेपन का शिकार नहीं हैं. अगर पतिपत्नी की भी नहीं बनती हो तो सम झो ऐसे विवाह का कोई अर्थ नहीं.’’ ‘‘आप के यहां तो लिव इन रिलेशनशिप का चलन है. आप कोई साथी क्यों नहीं ढूंढ़ते?’’ ‘‘मेरा इस सिस्टम में विश्वास नहीं है.

इस का चलन उन पुरुषों में है, जो एक से ज्यादा स्त्रियों को शादी किए बिना साथ रखना चाहते हैं. आम आदमी तो विवाह के बंधन में ही विश्वास रखता है.’’ सुषमा अपने कार्यस्थल और घर आने के लिए कभी मैट्रो तो कभी लोकल बस का उपयोग करती थी. एक दिन डबलडैकर बस की खिड़की से उस ने रोहित को एक अमेरिकन युवती के साथ बगलगीर हो जाते देखा तो उसे धक्का लगा. उस रात भी रोहित नशे में धुत्त घर आया. उस रात सुषमा ने उसे सहारा न दिया.

गिरतापड़ता रोहित बिस्तर पर जा लेटा. सुबह नींद खुलने पर उस ने सुषमा को आवाज दी. मगर सुषमा नहीं आई. रोजाना उस की आवाज पर वह उसे चाय की प्याली थमा देती थी. ‘‘आज बैड टी नहीं बनाई?’’ उस ने पूछा. ‘‘खुद बना लीजिए,’’ उस की तरफ देखे बिना सुषमा ने कहा. ‘‘क्या आज मूड खराब है?’’ कहते हुए उस ने सुषमा को बांहों में लेना चाहा.

‘‘मु झे मत छुओ. अपनी उसी के पास जाओ जिस के साथ आप सरेआम घूमते हो.’’ इस पर रोहित ने तैश में आ कर कहा, ‘‘तुम उस दाढ़ी वाले फिलौसफर नील के साथ मस्ती करती हो और इलजाम मु झ पर लगाती हो?’’ ‘‘मैं इलजाम नहीं लगा रही… कल मैं ने खुद देखा था.’’ इस पर रोहित गुस्से में आ कर बाहर चला गया. दोनों अकेले हो गए. धीरेधीरे रुखाई बढ़ती गई. ‘‘तुम भारत वापस चली जाओ,’’ एक दिन रोहित ने कहा. ‘‘क्यों चली जाऊं?’’ ‘‘मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो आप यहां भी दे सकते हैं. भारत में एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है, क्या मु झे पता नहीं है.’’ आखिरकार सुषमा का रोहित से तलाक हो ही गया. वह अपने साथी एडवर्ड नील के साथ चली गई. रोहित अपनी नई मित्र मारिया के यहां गया मगर उस ने नया प्रेमी कर लिया था. तब वह जेनिथ के यहां गया. पर वह भी एक नए प्रेमी संग घर बसा चुकी थी. खाली हाथ मलता रोहित अपने फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा उस दोराहे को देख रहा था, जिस के एक रास्ते से उस की 7 फेरों की ब्याहता चली गई तो दूसरे से लिव इन रिलेशनशिप की साथी. उस का घर उजड़ चुका था.

अंधविश्वास की दलदल: भाग 4- प्रतीक और मीरा के रिश्ते का क्या हुआ

प्रतीक बोल रहा था और उस की आवाज से लग रहा था कि वह काफी गुस्से में है, ‘‘आप तो मान गई थीं कि अब कोई कुंडली का मिलान नहीं करेंगी तो आज अचानक से क्या हो गया आप को? उस ढोंगी बाबा ने भड़काया है न आप को? ठीक है तो मेरी भी बात सुन लीजिए, अगर मीरा से मेरी शादी नहीं हुई तो मैं जिंदगी भर कुंवारा रह जाऊंगा पर किसी और से शादी नहीं करूंगा.’’

सुन कर मेरा हृदय व्याकुल हो उठा. कुछ देर तो मैं काठ की मूर्ति की तरह जड़वत चुपचाप वहीं खड़ी रह गई. फिर अंकल के चिल्लाने की आवाज से मेरा ध्यान टूटा.

‘‘अरे मूर्ख औरत, मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया, यह मंगलीफंगली कुछ नहीं होता है तो फिर कौन तुम्हें भड़का गया? वो ढोंगी बाबा? मत सुनो किसी की, यह शादी हो जाने दो. क्यों दो प्यार करने वालों को अलग करने का पाप अपने सिर पर ले रही हो?’’ अंकल आंटी को समझाने की कोशिश कर रहे थे.

आंटी कहने लगी, ‘‘देखोजी, सिर्फ प्यार से जिंदगी नहीं चलती है और दुनिया कितनी भी मौडर्न क्यों न हो जाए जो सही है सो है. मीरा मंगली तो है ही ऊपर से कालसर्प दोष भी है उस में. पंडितजी ने तो यहां तक कहा कि अगर हम अपने बेटे की शादी मीरा से कर देते हैं तो प्रतीक की जान को भयंकर खतरा है. उस की जान भी जा सकती है. अब बोलो, क्या जानबूझ कर मैं अपने बेटे को मौत के मुंह में डाल दूं? जो भी हो पर अब मैं यह शादी नहीं होने दे सकती.’’

‘‘पर मां आप समझती क्यों नहीं हैं. ऐसे पंडित ढोंगी और पाखंडी होते हैं. अपनेआप को महान साबित करने के लिए कुछ भी बोल देते हैं. अब भी कहता हूं छोड़ दो अपनी जिद. किसी के बातों में आ कर हमारी जिंदगी नर्क मत बनाओ. हो जाने दो हमारी शादी.’’ प्रतीक की बातों में बेबसी साफ झलक रही थी. आंटी जब अपनी बातों पर अड़ी रहीं तो प्रतीक यह कह कर वहां से चला गया कि ‘‘ठीक है आप को जो अच्छा लगता है कीजिए और मुझे जो अच्छा लगेगा मैं करूंगा.’’

अंकल कहने लगे, ‘‘देखना एक दिन तुम जरूर पछताओगी और तब मैं नहीं रहूंगा तुम्हारे आंसू पोंछने के लिए.’’ कह कर वे भी वहां से चले गए. समझ नहीं आ रहा था क्या हो रहा है. मेरी आंखें पथरा गईं. जबान बंद हो गई, कान सुन्न हो गए. जैसे मेरी सारी शक्ति खत्म हो गई. घर आ कर मैं निढाल हो गई.

मां मेरे कमरे में चाय देने आईं और मेरा चेहरा देख कर पूछा भी कि मैं तो प्रतीक के साथ गहने पसंद करने जाने वाली थी तो गई क्यों नहीं, पर मैं ने चुप्पी साध ली. कुछ बताने की हिम्मत नहीं हुई. मां की जिद पर किसी तरह चाय समाप्त कर मैं सोने को हुई पर फिर उन की बातें याद कर झटके से उठी और वहां पड़े सामान को फेंकने लगी. मां डर गई और पूछने लगी, ‘‘क्या हो गया… सब ठीक है न?’’

मेरे होंठ कांप रहे थे. मैं बोलना चाह रही थी पर बोल नहीं पा रही थी. मां घबरा उठी, ‘‘मीरा क्या हुआ बेटा, सब ठीक तो है न?’’ फिर उन्होंने आवाज दे कर पापा को बुलाया. पापा मुझे रोते देख व्याकुल हो उठे. कहने लगे, ‘‘बेटा क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?’’

‘‘पापा…’’ रोतेरोते मेरी हिचकियां बंधने लगी थीं. तभी प्रतीक की मां का फोन आया. उन्होंने जो कहा सुन कर पापा वहीं जमीन पर बैठ गए. पापा की तबीयत न बिगड़ जाए, सोच कर मैं ही पापा को ढाढ़स देने लगी. शाम को प्रतीक ने मुझे मिलने को बुलाया. वहीं जहां हम हमेशा मिलते थे.

‘‘मीरा, सुनो मेरी बात और रोना बंद करो. कल ही जा कर हम मंदिर में शादी कर लेंगे. नहीं चाहिए मुझे मां का आशीर्वाद,’’ जैसे प्रतीक फैसला कर के आया था.

प्रतीक की बातों पर मैं चौंक गई, ‘‘पर हम ऐसा कैसे कर सकते हैं प्रतीक?’’ मैं ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘तो मुझे भूल जाओ क्योंकि मां कभी हमें एक होने नहीं देंगी और मैं…? कहतेकहते प्रतीक चुप हो गया.’’

थोड़ी चुप्पी के बाद मैं ने ही कहा, ‘‘अभी मैं कुछ नहीं कह सकती हूं.’’ प्रतीक और मेरे बीच हुई बात मैं ने मां को बताई.

मां कहने लगी, ‘‘ऐसी शादी का क्या मतलब जिस से बड़ों का आशीर्वाद न मिले और जब उस की मां नहीं चाहतीं कि यह शादी हो तो मेरी बेटी कोई बोझ नहीं है हमारे ऊपर. और बेटा, शादी सिर्फ लड़का और लड़की से नहीं, बल्कि पूरे परिवार से होता है.’’

मैं ने सोचा कि मां सही कह रही थीं. अपने मन को कड़ा कर मैं ने अपना फैसला प्रतीक को सुना दिया. सब बातों को भूल, अपना मन काम और घर में रमाने लगी. पर जब आप किसी से बेइंतहा प्यार करते हैं तो उसे भूलना इतना आसान नहीं होता. पर मैं कोशिश कर रही थी. कई बार प्रतीक का फोन भी आया पर मैं ने कोई तवज्जो नहीं दी.

कुछ महीने बाद ही मेरी दीदी मेरे लिए एक रिश्ता ले कर आईं जो उन की ननद के रिश्ते में था. पर पापा ने लड़के वालों को सब बता दिया कि मैं मंगली हूं और इस वजह से मेरी शादी टूट गई थी.

लड़की के परिवार वाले कहने लगे, ‘‘हम मंगलीअंगली कुछ नहीं मानते. बस लड़कालड़की एकदूसरे को पसंद कर लें.’’

जल्द से जल्द मैं प्रतीक को अपनी यादों से मिटाना चाहती थी इसलिए शादी के लिए मैं ने तुरंत हां कर दिया. ज्यादा तामझाम लड़के वालों को भी नहीं पसंद था. बड़ी ही सादगी से मेरी शादी वरुण के संग हो गई. कहां मैं प्रतीक की दुलहन बनने वाली थी और बन गई वरुण की दुलहन. शादी के बाद मैं मुंबई आ गई और अपना तबादला भी मुंबई में ही करवा लिया. वरुण जैसा दिलोजान से प्यार करने वाला पति पा कर मैं पूरी तरह से प्रतीक को भूल चुकी थी. जिगर और साक्षी के आने के बाद तो हमारा जीवन और भी खुशियों से भर उठा था.

सुबह मन तो नहीं था पर प्रतीक ने बात ही ऐसी बोल दी थी कि जाने मां कब तक जिंदा रहें, यही सोच कर मैं ने आंटी से मिलने का मन बना लिया. सोचा अब क्या बैर रखना?

मुझे देखते ही, आंटी रो पड़ी और अपने सीने से लगाते हुए कहने लगीं, ‘‘बेटा, मुझ अभागन को माफ कर देना. तुम क्या गईं, तुम्हारे अंकल भी हमें छोड़ कर चले गए और जातेजाते बोल गए, ‘‘अपनी करनी पर पछताओगी. उन की बात लग गई. मैं बहुत पछता रही हूं. हीरा फेंक कांच का टुकड़ा उठा लिया अपने बेटे के लिए. बेटा, मैं अंधविश्वास के दलदल में फंस गई थी.’’ कह कर आंटी फिर फफक पड़ीं.

‘‘तो क्या हुआ जो हम सासबहू न बन पाए तो? मांबेटी सा रिश्ता तो है न हमारा, मां,’’ कह कर मैं उन के गले लग गई.’’

कैसे पाएं ब्लैकहैड्स फ्री त्वचा

ब्लैकहैड्स की समस्या सभी स्किन टोन पर हो जाती है. त्वचा कई प्रकार की होती है, जैसे नौर्मल, ड्राई, औयली और टीशेप्ड जिस में माथे और नाक की त्वचा गालों की अपेक्षा ज्यादा औयली होती है. ब्लैकहैड्स की समस्या ज्यादातर औयली और टीशेप्ड त्वचा पर होती है. सिबेशस गं्रथि के सीबम के अत्यधिक रिसाव से ब्लैकहैड्स, वाइट हैड्स, पिंपल्स, एक्ने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. त्वचा के औयली होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे आनुवंशिकता, खानपान, हारमोनल परिवर्तन, गर्भधारण, बर्थ कंट्रोल पिल्स, गलत कौस्मैटिक्स, आर्द्रता या गरम वातावरण. युवावस्था में औयली स्किन की समस्या ज्यादा परेशान करती है और आयु बढ़ने के साथ एक्ने में भी तबदील हो सकती है.

कैसे उत्पन्न होते हैं ब्लैकहैड्स 

त्वचा की बनावट 3 प्रमुख भागों में होती है- एपिडर्मिस, डर्मिस और सबडर्मिस. औयल ग्लैंड डर्मिस पार्ट में होती है. यही सीबम उत्पन्न करती है. जब सीबम हेयर फौलिकल ट्यूब में जम जाता है, तो ट्यूब ब्लौक हो जाती है. प्रत्येक हेयर फौलिकल, र्मिस लेयर से एपिडर्मिस लेयर में छोटेछोटे छिद्रों के द्वारा खुलता है. जब ये छिद्र ब्लौक हो जाते हैं, तब ब्लैकहैड्स बन जाते हैं. आमतौर पर ये नाक और चेहरे पर उत्पन्न होते हैं.

नियमित देखभाल

किशोरावस्था में ही यह समस्या शुरू हो जाती है. 12 से 16 साल की आयु में ब्लैकहैड्स ज्यादा हो सकते हैं. ये न हों, इस के लिए त्वचा की नियमित देखभाल जरूरी है. दिन में 2-3 बार फेसवाश इस्तेमाल करें या किसी अच्छे माइल्ड सोप से चेहरा धोएं ताकि चेहरे पर मैल जमा न हो. मैल से ब्लैकहैड्स पिंपल्स में तबदील हो जाते हैं. इन से नजात पाने के लिए क्लींजिंग करें ताकि सीबम डिजौल्व हो जाए. इस से ब्लैकहैड्स होने की संभावना कम हो जाती है. खासतौर से औयली स्किन वाली महिलाओं को माह में 1 बार फेशियल जरूर कराना चाहिए और औयली स्किन के हिसाब से सूटेबल सौंदर्य उत्पाद ही इस्तेमाल करने चाहिए. तैलीय त्वचा के लिए सूटेबल नाइट क्रीम का इस्तेमाल करें. रोज रात को चेहरा धो कर इसे लगाएं.

क्लीनिकल ट्रीटमैंट

ब्लैकहैड्स को क्लीनिकल ट्रीटमैंट से भी निकलवाया जा सकता है. पहले क्लीन से चेहरे को अच्छी तरह साफ किया जाता है, फिर स्क्रब करने के पश्चात स्टीम दे कर ब्लैकहैड्स रिमूव किए जाते हैं.

घरेलू तरीके

जूनियर औयल, ट्रीट्री औयल और सैंडलवुड औयल की 1-1 बूंद मिक्स कर के प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं. फिर हलके हाथों से त्वचा को दबा कर कौटन से ब्लैकहैड्स हटाएं. इस के साथ ही डेली क्लींजिंग भी करें.

डाइट का रहे ध्यान

त्वचा संबंधी रोगों से बचने के लिए पौष्टिक आहार लेना जरूरी है. जब तक शरीर से स्वस्थ नहीं होंगी, चेहरे से हैल्दी नहीं दिखेंगी. स्किन को ग्लोइंग बनाने और त्वचा के रोगों से बचने के लिए फल और ताजा सब्जियां लें. चाकलेट, अलकोहल, फास्टफूड और जंक फूड से परहेज करें. दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं. इस से शरीर के टाक्सिंस निकल जाते हैं.

Disha Parmar ने दिया नन्हीं परी को जन्म, खुशी में झूम उठे पापा राहुल वैद्य

बिग बॉस 14 फेम सिंगर राहुल वैद्य और एक्ट्रेस दिशा परमार टीवी इंडस्ट्री के सबसे क्यूट कपल है. इन दोनों की जोड़ी को फैंस काफी पसंद करते है. अभी हाल ही में राहुल वैद्य और दिशा परमार एक बेटी के माता-पिता बन गए हैं! राहुल ने खुलासा किया था कि उनका बच्चा गणेश चतुर्थी के दौरान आने वाला है. अभिनेता-गायक ने अपने फैंस को बताया कि मां और बच्चा दोनों ठीक हैं.

राहुल-दिशा ने बेबी गर्ल का वेलकम किया

टीवी एक्ट्रेस दिशा परमार ने मई में प्रेग्नेंसी की घोषणा करने के बाद, राहुल वैद्य और दिशा परमार एक बच्ची के माता-पिता बन गए हैं. इसे साझा करते हुए, जोड़े ने इंस्टाग्राम पर लिखा, “हमें एक बच्ची का आशीर्वाद मिला है! मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं और पूरी तरह से ठीक हैं! हम अपने गाइनेक @dhrupidedhia को धन्यवाद देना चाहते हैं जो गर्भधारण करने से लेकर जन्म तक बच्चे की देखभाल कर रहे थे”. हम ख़ुश हैं! कृपया बच्चे को आशीर्वाद दें.”

 

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राहुल वैद्य दिशा परमार के साथ पहले बच्चे का स्वागत कर रहे हैं

राहुल वैद्य ने हाल ही में बताया था कि दिशा परमार की डिलीवरी 19 सितंबर से 25 सितंबर के बीच है. अपनी खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने मीडिया से कहा, ”मैं हर साल की तरह इस बार भी बप्पा को घर ला रहा हूं. और इस साल यह और भी खास है क्योंकि मेरा बच्चा भी लगभग उसी समय आने वाला है. दिशा की डिलीवरी 19-25 सितंबर के बीच होनी है. मैं बस यही उम्मीद कर रहा हूं कि सब कुछ ठीक हो जाए.”

 

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गणपति उत्सव के बारे में बात करते हुए, राहुल ने यह भी कहा, “आमतौर पर, मेरी मां बप्पा की मूर्ति का चयन करने जाती हैं. वह इसे हमारे पारिवारिक व्हाट्सएप ग्रुप में भेजती है और फिर हम सब मिलकर एक को चुनते हैं. दिशा सजावट का ख्याल रखती है और हम हर साल पांच दिनों के लिए बप्पा को घर लाते हैं, इसलिए लोगों का आना जाना लगा ही रहता है. हालांकि दिशा इस साल भी वह सब करेगी, लेकिन निश्चित रूप से, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि वह ज़्यादा मेहनत न करे.”

Parineeti-Raghav Wedding: उदयपुर में होगी राघव-परिणीति की रॉयल शादी

बॉलीवुड एक्ट्रेस परिणीति और आप नेता राघव चड्ढा जल्द ही शादी के बंधन में बधंने वाले है. राघव-परिणीति की प्री-वेडिंग फक्शन शुरु हो चुके है. बीते दिन कपल की मेहंदी सेरेमनी की तस्वीरें सामने आई है. अभी फिलहाल राघव-परिणीति की शादी के कुछ फक्शन दिल्ली में हो रहे है. उसके बाद 23 और 24 सितंबर को उदयपुर में शादी होगी.

जानें कब चूड़ा और सेहराबंदी की रस्में कब होगी.

वैसे तो राघव और परिणीति की शादी एकदम रॉयल अंदाज में होगी. इस शादी में परिवार-रिश्तेदार, फ्रेंड्स, बॉलीवुड सेलेब्स और तमाम राजनैतिक हास्तियां शिरकत करेंगी. परिणीति और राघव की शादी की तमाम रस्में द लीला पैलेस और ताज पैलेस होटल में की जाएंगी. कौन सी रस्म कब होगी इसका भी पूरा शेड्यूल तैयार है.

 

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23 सितंबर 2023 को ये हैं फक्शन

• दोपहर के 12 से 4 बजे तक गेस्ट के लिए वेलकम लंच रखा गया है. इसे ग्रेंस ऑफ लव नाम दिया गया है.
• 10 से 1 बजे के बीच फ्रेस्को आफ्टरनू होस्ट की जाएगी जिसे ब्लूम्स एंड बाइट्स नाम दिया गया है.
• सुबह 10 बजे ही परिणीति की चूड़ा रस्म की जाएगी. जिसका नाम परिणीति ज चूड़ी सेरेमनी का नाम दिया गया है.
• शाम 4 बजे गेस्ट के लिए 90’s थीम बेस्ड पार्टी होगी.

24 सितंबर 2023 को ये हैं फक्शन

• दोपहर 1 बजे राघव चड्ढा की सेहराबंदी की जाएगी.
• दोपहर 2 बजे राघव बारात लेकर ताज लैक पैलेस से रवाना होंगे.
• दोपहर 3.30 बजे जयमाला होगी और इसके बाद 4 बजे फेरो का टाइम तय हुआ
• शाम 6.30 बजे परिणीति की अपने पति संग लीला पैलेस से विदा होंगी.

इस समय पर किसी की निगाहें इन दोनों कपल की शादी पर टिकी है. लोग काफी ब्रेसब्री से परिणीति को राघव की दुल्हानियां बनें का इंतजार कर रहे है. अपनी शादी में परिणीति मनीष मल्होत्रा द्वारा डिजाइन किया गया आउटफिट पहनेंगी.

फेसबुक फ्रैंडशिप: भाग 1- वर्चुअल दुनिया में सचाई कहां है

शुरुआत तो बस यहीं से हुई कि पहले उस ने फेस देखा और फिदा हो कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. रिक्वैस्ट 2-3 दिनों में ऐक्सैप्ट हो गई. 2-3 दिन भी इसलिए लगे होंगे कि उस सुंदर फेस वाली लड़की ने पहले पूरी डिटेल पढ़ी होगी.

लड़के के फोटो के साथ उस का विवरण देख कर उसे लगा होगा कि ठीकठाक बंदा है या हो सकता है कि तुरंत स्वीकृति में लड़के को ऐसा लग सकता है कि लड़की उस से या तो प्रभावित है या बिलकुल खाली बैठी है जो तुरंत स्वीकृति दे कर उस ने मित्रता स्वीकार कर ली.

यह तो बाद में पता चलता है कि यह भी एक आभासी दुनिया है. यहां भी बहुत झूठफरेब फैला है. कुछ भी वास्तविक नहीं. ऐसा भी नहीं कि सभी गलत हो. ऐसा भी हो सकता है कि जो प्यार या गुस्सा आप सब के सामने नहीं दिखा सकते, वह अपनी पोस्ट, कमैंट्स, शेयर से जाहिर करते हो.

अपनी भावनाएं व्यक्त करने का साधन मिला है आप को, तो आप कर रहे हैं अपने को छिपा कर किसी और नाम, किसी और के फोटो या किसी काल्पनिक तसवीर से. यदि अपनी बात रखने का प्लेटफौर्म ही चाहिए था तो उस में किसी अप्सरा की तरह सुंदर चेहरा लगाने की क्या जरूरत थी? आप कह सकती हैं कि हमारी मरजी. ठीक है, लेकिन है तो यह फर्जी ही. आप साधारण सा कोई चित्र, प्रतीक या फिर कोई प्राकृतिक तसवीर लगा सकते थे.

खैर, यह कहने का हक नहीं है. अपनी मरजी है. लेकिन जिस ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी उस ने उस मनोरम छवि को वास्तविक जान कर भेजी न आप को? आप शायद जानती हो कि मित्र संख्या बढ़ाने का यही साधन है, तो भी ठीक है, लेकिन बात जब आगे बढ़ रही हो तब आप को समझना चाहिए कि आगे बढ़ती बात उस सुंदर चित्र की वजह से है जो आप ने लगाई हुई है अपने फेसबुक अकांउट पर.

आप ने अपने विषय में ज्यादा कोई जानकारी नहीं लिखी. आप से पूछा भी मैसेंजर बौक्स पर जा कर. और पूछा तभी, जब बात कुछ आगे बढ़ गई थी. कोई किसी से यों ही तो नहीं पूछ लेगा कि आप सिंगल हो. और आप का उत्तर भी गोलमोल था. यह मेरा निजी मामला है. इस से हमारी फेसबुक फ्रैंडशिप का क्या लेनादेना?बात लाइक और कमैंट्स तक सीमित नहीं थी.

बात मैसेंजर बौक्स से होते हुए आगे बढ़ती जा रही थी. इतनी आगे कि जब लड़के ने मोबाइल नंबर मांगा तो लड़की ने कहा, ‘‘फोन नहीं, मेल से बात करो. फोन गड़बड़ी पैदा कर सकता है. किस का फोन था, कौन है वगैराहवगैरहा.’’अब मेल पर बात होने लगी. शुरुआत में लड़के  ने फेस देखा. मित्र बन जाने पर लड़के ने विवरण देखा उसे पसंद आया.

उसे किसी बात की उम्मीद जगी. भले ही वह उम्मीद एकतरफा थी. उसे नहीं पता था शुरू में कि वह जिस दुनिया से जुड़ रहा है वहां भ्रम ज्यादा है,  झूठ ज्यादा है. पहले लड़की के हर फोटो, हर बात पर लाइक, फिर अच्छेअच्छे कमैंट्स और शेयर के बाद निजी बातें जानने की जिज्ञासा हुई दोनों तरफ से. हां, यह सच है कि पहल लड़के की तरफ से हुई. लड़के ही पहल करते हैं. लड़कियां तो बहुत सोचनेविचारने के बाद हां या नहीं में जवाब देती हैं. बात आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी लड़के पर ही आती है समाज, संस्कारों के तौर पर. तो शुरुआत लड़के ने ही की.

इंटरनैट की दुनिया में आ जाने के बाद भी समाज, संस्कार नहीं छूट रहे हैं यानी 21वीं सदी में प्रवेश किंतु 19वीं सदी के विचारों के साथ. फे  सबुक पर सुंदर चेहरे से मित्रता होने पर लड़के के अंदर उम्मीद जगी. विस्तृत विवरण देख कर उस ने हर पोस्ट पर लाइक और सुंदर कमैंट्स के ढेर लगा दिए. बात इसी तरह धीरेधीरे आगे बढ़ती रही.

लड़की के थैंक्स के बाद जब गुडमौर्निंग, गुडइवनिंग और अर्धरात्रि में गुडनाइट होने लगी तो किसी भाव का उठना, किसी उम्मीद का बंधना स्वाभाविक था. लगता है कि दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई है. लड़के को तो यही लगा. लड़के ने विस्तृत विवरण में जाति, धर्म, शिक्षा, योग्यता, आयु सब देख लिया था. पूरा स्टेटस पढ़ लिया था और उस को ही अंतिम सत्य मान लिया था.

जो बातें स्टेटस मेें नहीं थीं, उन्हें लड़का पूछ रहा था और लड़की जवाब दे रही थी. जवाब से लड़के को स्पष्ट जानकारी तो नहीं मिल रही थी लेकिन कोई दिक्कत वाली बात भी नजर नहीं आ रही थी. फेसबुक पर ऐसे सैकड़ों, हजारों की संख्या में मित्र होते हैं सब के. आमनेसामने की स्थिति न आए, इसलिए एक शहर के मित्र कम ही होते हैं. होते भी हैं तो लिमिट में बात होती है. सीमित लाइक या कमैंट्स ही होते हैं खास कर लड़केलड़की के मध्य.लड़का छोटे शहर का था.

विचार और खयालात भी वैसे ही थे. लड़कियों से मित्रता होती ही नहीं है. होती है तो भाई बनने से बच गए तो किसी और रिश्ते में बंध गए. नहीं भी बंधे तो सम्मानआदर के भारीभरकम शब्दों या किसी गंभीर विषय पर विचारविमर्श, लाइक, कमैंट्स तक. ऐसे में और उम्र के 20वें वर्ष में यदि किसी दूसरे शहर की सुंदर लड़की से जब बात इतनी आगे बढ़ जाए तो स्वाभाविक है उम्मीद का बंधना.फोटो के सुंदर होने के साथसाथ यह भी लगे कि लड़की अच्छे संस्कारों के साथसाथ हिम्मत वाली है.

किसी विशेष राजनीतिक दल, जाति, धर्म के पक्ष या विपक्ष में पूरी कट्टरता और क्रोध के साथ अपने विचार रखने में सक्षम है और आप की विचारधारा भी वैसी ही हो. आप जब उस की हर पोस्ट को लाइक कर रहे हैं तो जाहिर है कि आप उस के विचारों से सहमत हैं. लड़की की पोस्ट देख कर आप उस के स्वतंत्र, उन्मुक्त विचारों का समर्थन करते हैं, उस के साहस की प्रशंसा करते हैं और आप को लगने लगता है कि यही वह लड़की है जो आप के जीवन में आनी चाहिए.

आप को इसी का इंतजार था.बात तब और प्रबल हो जाती है जब लड़का जीवन की किसी असफलता से निराश हो कर परिवार के सभी प्रिय, सम्माननीय सदस्यों द्वारा लताड़ा गया हो, अपमानित किया गया हो, अवसाद के क्षणों में लड़के ने स्वयं को अकेला महसूस किया हो और आत्महत्या करने तक का विचार मन में आ गया हो. तब जीवन के एकाकी पलों में लड़के ने कोई उदास, दुखभरी पोस्ट डाली हो. लड़की ने पूछा हो कि क्या बात है और लड़के ने कह दिया हाले दिल का.

लड़की ने बंधाया हो ढांढ़स और लड़के को लगा हो कि पूरी दुनिया में बस यही है एक जीने का सहारा.लड़के ने पहले अपने ही शहर में महिला मित्र बनाने का प्रयास किया था, जिस में उसे सफलता भी मिली थी. लड़की खूबसूरत थी. पढ़ीलिखी थी. स्टेटस में खुले विचार, स्वतंत्र जीवन और अदम्य साहस का परिचय होने के साथ कुछ जबानी बातें भी थीं.

लड़के ने इतनी बार उस लड़की का फोटो व स्टेटस देखा कि दोनों उस के दिलोदिमाग में बस गए. फोटो कुछ ज्यादा ही. अपने शहर की वही लड़की जब उसे रास्ते में मिली तो लड़के ने कहा, ‘‘नमस्ते कल्पनाजी.’’लड़की हड़बड़ा गई, ‘‘आप कौन? मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’ लड़के ने खुशी से अपना नाम बताते हुए कहा, ‘‘मैं आप का फेसबुक फ्रैंड.’’और लड़की ने गुस्से में कहा, ‘‘फेसबुक फ्रैंड हो तो फेसबुक पर ही बात करो. घर वालों ने देख लिया तो मुश्किल हो जाएगी.

गर्भावस्था में इसे करें अपनी डाइट में शामिल, स्वस्थ होता है बच्चा

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के खानपान का विशेष ध्यान दिया जाता है. इस दौरान गर्भवती महिला के डाइट का सीधा प्रभाव उसके बच्चे पर भी होता है. इसलिए जरूरी है कि उसके पोषण का खासा ख्याल रखा जाए. जानकारों की माने तो गर्भावस्था के दौरान अंडा खाना बेहद फायदेमंद होता है. अंडे में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, सेलेनियम, जिंक, विटामिन A, D और कुछ मात्रा में B कौम्प्लेक्स भी पाया जाता है. जो शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करने का सबसे बेहतर सूपर फूड है.

कई तरह के स्टडीज से भी ये बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान अंडा खाने से बच्चे का दिमाग तेज होता है. इसके साथ ही उसकी सीखने की क्षमता भी तेज होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था में अंडा खाना कैसे लाभकारी है और आपके बच्चे पर उसका सकारात्मक असर कैसे होगा.

अंडा प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. इसमें प्रोटीन की प्रचूरता होती है. आपको बता दें कि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए प्रोटीन बेहद जरूरी तत्व होता है. असल में उसकी हर कोशिका का निर्माण प्रोटीन से होता है. गर्भावस्था में अंडा खाने से भ्रूण का विकास बेहतर होता है.

आपको बता दें कि गर्भवती महिला के लिए एक दिन में दो सौ से तीन सौ तक एडिशनल कैलोरी लेनी चाहिए. इससे उसे और बच्चे, दोनों को पोषण मिलता है. अंडे में करीब 70 कैलोरी होती है जो मां और बच्चे दोनों को एनर्जी देती है.

आपको बता दें कि अंडे में 12 तरह के विटामिन्स होते हैं. इसके अलावा कई तरह के लवण भी इसमे होते हैं. इनमें मौजूद choline और ओमेगा-3 फैटी एसिड बच्चे के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देते हैं. इसके सेवन से बच्चे को मानसिक बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है और उसका दिमागी विकास भी होता है.

अगर गर्भवती महिला का ब्लड कोलेस्ट्रौल स्तर सामान्य है तो वह दिन में एक या दो अंडे खा सकती है. अंडे में कुछ मात्रा में सैचुरेटेड फैट भी होता है. अगर महिला का कोलेस्ट्रौल लेवल अधिक है तो उसे जर्दी वाला पीला हिस्सा नहीं खाना चाहिए.

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