कुछ ऐसी जरूरी बातें, जो आपकी मुस्कान आपके व्यक्तित्व के बारे में दर्शाती है

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग बिजी होने के कारण खुद को समय नहीं दे पाते हैं जिससे वे गुस्सा और तनावग्रस्त रहते है. ऐसे में लोग मानो हंसना भूल गए हैं जो उनके लिए बेहद जरूरी है. आप जितना खुश रहते हैं उतनी ही पॉजिटिविटी आपके चेहरे पर झलकती है. अगर हम खुशियां बांटना चाहते हैं तो हमें भी खुश रहना पड़ेगा. इसके लिए हमें मुस्कुराना चाहिए.

आपकी मुस्कान से आपके व्यक्तित्व के बारे में जाना जा सकता है. लोग मुस्कान देखकर ही सामने वाले के बारे में काफी कुछ अंदाजा लगा सकते हैं. यहां हम आपको ऐसे ही कुछ जरूरी बातें बताएंगे जो मुस्कान के माध्यम से आपके व्यक्तित्व के बारे में पता चलती हैं तो आइए जानते हैं इनके बारे में-

  1. आत्मविश्वास 

किसी व्यक्ति की मुस्कान से उसके आत्मविश्वास को देखा जा सकता है. जब आप आत्मविश्वास के साथ एक सच्ची मुस्कान देते हैं तो यह दर्शाता है कि आप खुद के साथ कंफर्टेबल महसूस करते हैं और आप एक पॉजिटिव इंसान हैं. ये विशेषताएं उन व्यक्तियों से जुड़ी होती हैं जो मिलनसार होते हैं और अपने जीवन की चुनौतियों को संभालने में सक्षम होते हैं.

 2. सरल और नरम स्वभाव  

आपकी मुस्कान से नरम स्वभाव और सरलता का पता लगाया जा सकता है. ये गुण दर्शाते हैं कि आप बेहद मित्रवत है और दूसरों के साथ जुड़ने के लिए खुले विचारों के हैं. जिन व्यक्तियों की एक आकर्षक मुस्कान होती है वे लोगों के साथ आसानी से मित्रता करने के लिए माने जाते हैं. एक सच्ची मुस्कान, उन्हें लोगों के साथ संबंध बनाने में उत्कृष्ट बनाता है.

3. सकारात्मकता और आशावाद

आपकी सच्ची मुस्कान अक्सर आपके सकारात्मक दृष्टिकोण और आशावादी स्वभाव को दर्शाती है. ऐसे लोग जो कठिन परिस्थितियों में भी अक्सर मुस्कुराते रहते हैं उनका स्वभाव अच्छा होता है और वे जीवन की चुनौतियों में भी आशा की किरण देखते हैं और कठिनाइयों का डटकर सामना करते हैं. उनका सकारात्मक दृष्टिकोण उनके आसपास के लोगों के लिए भी प्रेरणादायक होता है.

 4. दया और सहानुभूति

जब आप मुस्कुराते हैं तो यह दूसरों के लिए दया और सहानुभूति के गुणों को दर्शाता है. एक सच्ची मुस्कान बताती है कि आप दूसरों के प्रति दयालु, देखभाल करने वाले और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले हैं. सच्ची मुस्कान वाले लोग दूसरों की भलाई के बारे में पहले सोचते हैं और जरूरत पड़ने पर मदद के लिए हमेशा खड़े रहते हैं.

5. सच्चाई 

आपकी सच्ची मुस्कान आपके चरित्र और आपकी सच्चाई को दिखाती है. आपकी सच्ची मुस्कान के माध्यम से पता चलता है कि आप खुद के प्रति कितना सच्चे हैं और अपनी सच्चाई को प्रकट करने के लिए आप डरते नहीं है. ऐसे लोगों को अक्सर भरोसेमंद और विश्वसनीय माना जाता है क्योंकि उनकी मुस्कान से उनके इमानदार इरादें और सत्यनिष्ठा को देखा जा सकता है.

इसलिए याद रखे कि एक मुस्कान व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी होती है क्योंकि वह आपके स्वभाव और चरित्र को दर्शा सकती है. ऐसा हो सकता है कि यह गलत भी हो किसी व्यक्ति को गहराई से जानने की जरूरत भी हो सकती है.

Monsoon special: ऐसे बनाएं बैगन चटखारा और कुरकुरी कमल ककड़ी

मानसून का सीजन आने वाला है. ऐसे मौसम में चटपटा खाने के बहुत ही मन करता है, तो चलिए आज आपके लिए लेकर आए मानसून स्पेशल बैगन चटखारा और कुरकुरी कमल ककड़ी की टेस्टी डिश. घर में जरूर ट्राई करें.

सामग्री

  1. 8-10 छोटे बैगन
  2. 3-4 टमाटर
  3. 2 प्याज
  4. 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर
  5. 1/2 छोटा चम्मच लाल देगीमिर्च
  6. 1/2 छोटा चम्मच हलदी
  7. 1/2 छोटा चम्मच भुना व पिसा जीरा
  8. 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट
  9. 2-3 तेजपत्ते
  10. 1 छोटा टुकड़ा दालचीनी
  11. 2-3 लौंग
  12. 1-2 हरीमिर्चें
  13. जरूरतानुसार तेल
  14. थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजाने के लिए
  15. नमक स्वादानुसार.

विधि

बैगनों को धो कर अच्छी तरह पोंछ कर लंबाई में 2 भाग कर लें. मिक्सी में टमाटर व हरीमिर्च पीस लें. एक कड़ाही में तेल गरम कर तेजपत्ते, दालचीनी और लौंग डालें. फिर प्याज के लच्छे डाल कर भूनें. देगीमिर्च, धनिया पाउडर, नमक, हलदी, जीरा और बाकी सारे मसाले डाल कर भूनें. अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर भूनें. पिसे टमाटर डालें और घी छूटने तक भूनें. इस में बैगन मिलाएं. 1/2 कप पानी डालें और ढक कर पानी सूखने व बैगन गलने तक पकाएं.

2. वैजी सोयाबीन

सामग्री

  1. 1/2 कप सोयाबीन की बडि़यां
  2. 1 शिमलामिर्च
  3. 1 प्याज
  4. 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन व हरीमिर्च का पेस्ट
  5. 1/2 पैकेट चिली पनीर मसाला
  6. 1 टमाटर
  7. 1 बड़ा चम्मच तेल
  8. 1/2 कप दूध
  9. नमक स्वादानुसार.

विधि

न्यूट्रिला को कुछ देर गरम पानी में भिगोए रखने के बाद अच्छी तरह निचोड़ कर रख लें. एक पैन में तेल गरम कर अदरक पेस्ट डाल कर भूनें. प्याज के मोटे टुकड़े काट कर पैन में डालें. कुछ नर्म होने तक भूनें. टमाटर के मोटे टुकड़े काट कर मिलाएं. जरा सा गलने तक पकाएं. सोया चंक मिला कर कुछ देर भूनें. चिली पनीर मसाला को 1 बड़े चम्मच पानी में मिला कर लगातार चलाते हुए सब्जी में डाल दें. इस में नमक मिलाएं. दूध डाल कर सब्जी को कुछ देर ढक कर पकाएं.

3. कुरकुरी कमल ककड़ी

सामग्री

  1. 500 ग्राम कमल ककड़ी
  2. 1 बड़ा चम्मच शहद
  3. 1 छोटा चम्मच सिरका
  4. 1 बड़ा चम्मच सफेद तिल
  5. 1 छोटा चम्मच देगीमिर्च
  6. तेल तलने के लिए
  7. 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा
  8. थोड़ी सी धनियापत्ती
  9. 2-3 हरीमिर्चें
  10. 1 बड़ा चम्मच शेजवान सौस
  11. एकचौथाई कप हरे प्याज के पत्ते
  12. 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट
  13. नमक स्वादानुसार.

विधि

कमल ककड़ी को छील कर तिरछे टुकड़ों में काट लें. इन्हें नमक मिले पानी में कुछ देर भिगो दें. फिर पानी निकाल दें. एक कड़ाही में तेल गरम कर कमल ककड़ी के टुकड़ों पर चावल का आटा मिला सुनहरा होने व गल जाने तक धीमी आंच पर तलें. एक दूसरे पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर कुछ देर भूनें. तली कमल ककड़ी डालें. सारी सौस और मसाले डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. लंबाई में कटी हरीमिर्च मिलाएं. ऊपर से हरे प्याज के पत्ते व तिल बुरक कर गरमगरम परोसें.

Monsoon Special: प्रेगनेंसी में रखें इन 7 बातों का ध्यान

गर्भवती होने के साथ ही एक औरत का जीवन जहां नई उम्मीदों से भर जाता है वहीं आने वाले दिनों की चिंता भी सताने लगती है. ये चिंता खुद से ज्यादा गर्भ में पल-पल सताती है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि गर्भावस्था वो समय है जब एक महिला को सबसे ज्यादा देखभाल और परहेज की जरूरत होती है.  गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के समय रखे विशेष ख्याल. प्रेगनेंसी में रखें इन 7 बातों का ध्यान.

  1.  शरीर में पानी की कमी न होने दें. अपने डाक्टर की सलाह से पानी के अलावा नारियल पानी, जूस इत्यादि का सेवन बढ़ा दें.
  2. गर्भावस्था के दौरान कब्ज की समस्या कुछ महिलाओं में बढ़ जाती है. अत: दिन में थोड़ेथोड़े अंतराल पर फाइबर फूड का सेवन करती रहें. मैटाबोलिक रेट सही रहेगा तो कब्ज की समस्या नहीं होगी.
  3. ओटीसी यानी ओवर द काउंटर दवाओं का सेवन अपने अनुसार न करें क्योंकि गर्भावस्था में शरीर बदलावों से गुजर रहा होता है. ऐसे में आप की एक गलती आप के साथसाथ आने वाले बच्चे की जान भी जोखिम में डाल सकती है.
  4. ज्यादा कैफीन के साथसाथ नशीली चीजों से भी दूरी बना लें. नशीली चीजों के सेवन से बच्चे के मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ता है. कई बार गर्भपात की समस्या भी हो जाती है.
  5. कच्चा पपीता, आधा पका अंडा, अंकुरित अनाज और कच्चा मांस बिलकुल न खाएं. ऐसा करने से बच्चे के विकास में खतरा पैदा हो सकता है. फिश से भी दूरी बना लें.
  6. नौर्मल डिलिवरी की चाह है तो डाक्टर की सलाह से किसी ऐक्सपर्ट की निगरानी में व्यायाम करें. रोजमर्रा के कुछ काम खुद करने की कोशिश करें. टहलना अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें.
  7. कीगल व्यायाम कर सकती हैं. ऐक्सपर्ट की सलाह से यह व्यायाम उन महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद है जिन्हें यूटीआई की समस्या है. यह व्यायाम यूरिन फ्लो कंट्रोल करने में मदद करता है.

परंपरा के नाम पर यह कैसा अंधविश्वास

आज सुबहसुबह मौर्निंग वाक पर जाते समय सामने वाली भाभीजी से लिफ्ट में मुलाकात हो गई. आमतौर पर 9 बजे तक सोई रहने वाली सासबहू को इतनी सुबहसुबह सजाधजा देख कर मैं चौंक गई और बोली, ‘‘अरे, आज इतनी सुबहसुबह कहां चल दीं आप दोनों?’’

‘‘आज शीतला सतमी है न तो उसी की पूजा करने पास के मंदिर में जा रहे हैं,’’ अपने हाथों में पूजा के थाल की ओर इशारा कर के वे बोलीं और फिर वे दोनों तो कार में बैठ कर पूजा करने चली गईं पर मैं सोच में पढ़ गई कि आज के समय में भी ये पढ़ीलिखीं महिलाएं चेचक जैसी बीमारी के प्रकोप से बचने के लिए शीतला सप्तमी की पूजा कर के पूरा दिन 1 दिन पूर्व बना बासा खाना खा रही हैं.

इसी प्रकार का एक व्रत होता है वट सावित्री का जिस में महिलाएं यमदूत से भी लड़ कर मृत्यु लोक से अपने पति को वापस ले आने वाली सावित्री देवी की पूजा वरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर करती हैं. इस दिन वे सभी युवा मौडर्न महिलाएं जो कभी लोअरटीशर्ट और जींसटौप के अलावा अन्य किसी परिधान में नजर नहीं आतीं वे सभी सिंदूर से लंबीलंबी मांग भर, हाथों में भरभर चूडि़यां और साड़ी पहने सोलहशृंगार में नजर आती हैं.

घरेलू अंधविश्वास

आगरा शहर के जानेमाने सर्जन की 35 वर्षीय पत्नी सुमेधा पब्लिक स्कूल में प्रिंसिपल है. हरतालिका व्रत में अपने घर की पूजा का सुखद बयां करते हुए वे कहती है ‘‘अपार्टमैंट की सभी महिलाएं हमारे घर पर ही एकसाथ पूजा करतीं हैं. निर्जल व्रत करने से शरीर रात्रि तक जबाब दे देता है. चूंकि रात्रि जागरण करना इस पूजा में अनिवार्य है इसलिए हम सभी मिल कर भजन करते हैं जिस से जागरण काफी आसान हो जाता है.’’

इस व्रत को जहां महिलाएं अपने सुखद दांपत्य के लिए तो कुंआरी लड़कियां अच्छे वर यानी उन्हें भी शंकरजी जैसा वर प्राप्त हो सके.

इन प्रमुख व्रतों के अतिरिक्त बिहार की छठ पूजा, करवाचौथ, सोलह सोमवार, मकर संक्रांति, अनंत चतुर्दशी, नवरात्रि, संतान सप्तमी, हलछठ और महाशिवरात्रि जैसी अनेकों पूजाएं हैं जिन में अधिकांश भारतीय स्त्रियां कभी वरगद, कभी चंद्रमा, कभी सूर्य, कभी बेलपत्र तो कभी शिवपार्वती की पूजा कर के उन से अपने सुखद दांपत्य, पति की दीर्घायु, बेटे के उत्तम स्वास्थ्य और परिवार के कल्याण आदि का वरदान मांगती नजर आती हैं.

ये उदाहरण समाज की हर उम्र की तथाकथित शिक्षित महिलाओं की सोच की एक छोटी सी बानगी मात्र हैं, जिन में कामकाजी हों या घरेलू अंधविश्वासों से भरे इन पूजापाठों में सभी की मानसिकता एक ही स्तर की होती. वास्तव में अंधविश्वास, पूजापाठ, पंडेपुजारियों का डर और धर्म की भेड़चाल ऐसे प्लेटफौर्म हैं जहां पर शिक्षित, अशिक्षित, उच्चवर्गीय, मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय सभी महिलाओं की सोच एकसमान हो जाती है.

आखिर महिलाएं ही क्यों पिसती हैं

प्रश्न यह उठता है कि आखिर इन धार्मिक क्रियाकलापों में महिलाएं ही क्यों फंसी रहती हैं? क्यों वे पूरे परिवार की सलामती का ठेका अपने सिर पर लिए बाबाओं और मंदिरों के चक्कर लगाती रहती हैं? क्यों अपनी खुद की सेहत और प्रगति के बारे में सोचने के स्थान पर पूजापाठ, मंदिरों और कथाप्रवचनों में खुद को व्यस्त किए रहती हैं? आइए, एक नजर डालते हैं उन कारणों पर:

स्त्री को कमजोर बनाती है

नवरात्रि में बालिकाओं ?को देवी का दर्जा प्रदान कर के उन के पैर पूजन करना, लड़कियों से घर के बड़ों के पैर नहीं छुआना, कन्यादान, बेटियों के घर का कुछ भी खाने से पाप लगता है और कन्या को देवी का दर्जा देने, मरणोपरांत बेटे के द्वारा मुखाग्नि देने से ही मोक्ष मिलता है जैसी अनेक मान्यताएं और रस्में हमारे समाज में व्याप्त हैं जिन के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से स्त्रियों को बाल्यावस्था से ही उन्हें उन के कमजोर और अबला होने का एहसास कराया जाता है.

इस से बाल्यावस्था से ही लड़कियों के मन में यह एहसास उत्पन्न हो जाता है कि घर के पुरुषों के मुकाबले वे कमजोर और समाज की दोयम दर्जे की नागरिक हैं. इस के परिणामस्वरूप वे बाल्यावस्था से ही मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर और परिवार के पुरुषों पर आश्रित होती जाती हैं.

इस बावत एक कालेज स्टूडैंट अस्मिता कहती है, ‘‘तुम लड़की हो फलाना काम नहीं कर सकती, देर रात अकेली बाहर नहीं जाना जैसे अनेक सामाजिक मानदंड हैं जिन्हें सुन कर ही हम बड़े होते हैं और कहीं न कहीं मन में यह बैठ जाता है कि हम समाज या परिवार के दूसरे श्रेणी के ही नागरिक हैं.’’

बड़ों का अनुकरण करने की प्रवृत्ति

बाल्यावस्था से ही लड़कियां अपनी मां, दादी या नानी को इस प्रकार की पूजाएं करते देख कर ही बड़ी होती हैं और इतने वर्षों तक निरंतर देखतेदेखते उन के अंदर डर बैठ जाता है कि यदि पूजाओं की इन परंपराओं को आगे नहीं बढ़ाया गया या विधिवत पूजाअर्चना नहीं की गई तो कभी भी परिवार या पति का अहित हो सकता है. बस अपनी इसी मानसिकता के चलते वे अपने परिवार और पति की सलामती के लिए इन्हें करती हैं.

ससुराल में भी सासूमां के द्वारा रस्मोरिवाज के नाम पर ऐसी ही अनगिनत परंपराओं को निभाना सिखाया जाता है. भले ही आज लड़कियां बाहर होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही हैं परंतु दूर रह कर भी माताएं उन्हें अंधविश्वास के जाल से निकलने नहीं देतीं. शिवरात्रि से एक दिन पूर्व हीरेवा ने होस्टल में रहने वाली अपनी इकलौती बेटी को फोन किया, ‘‘याद है न कल शिवरात्रि का व्रत रखना है?’’

‘‘हां मां याद है इतने सालों से तो तुम रखवाती रही हो तो कैसे भूल सकती हूं.’’

अंधविश्वास के ये बीज लड़कियों के मन में अपनी इतनी गहरी पैठ बना लेते हैं कि चाह कर भी वे इन से मुक्त नहीं हो पातीं. सौफ्टवेयर इंजीनियर रीमा कहती है, ‘‘मु?ो पता है कि करवाचौथ व्रत से मेरे पति की उम्र पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मेरा बीमार बेटा नजर उतारने से नहीं बल्कि डाक्टर को दिखाने से ही ठीक होगा पर फिर भी इन्हें न करने को मन नहीं मानता.’’

माताओं के द्वारा वर्षों से अपनी बेटियों को दी गई अतार्किक शिक्षा के कारण लड़कियां आजीवन इस मकड़जाल से बाहर ही नहीं निकल पातीं और पीढ़ी दर पीढ़ी इन परंपराओं को आगे बढ़ती रहती हैं.

धर्मभीरु स्वभाव और पंडेपुजारी

आज भी भारतीय समाज में अधिकांश महिलाएं धर्मभीरु स्वभाव की होती हैं और परिवार की सुरक्षा तथा जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए अंधविश्वासों, चमत्कारों और पंडेपुजारियों का सहारा लेती हैं. ये पुजारी उन के मन में भय उत्पन्न करते हैं कि यदि आप ने पूजा नहीं की तो परिवार के सदस्यों को आर्थिक या शारीरिक हानि हो सकती है जिस के कारण महिलाएं भयग्रस्त हो पूजापाठ में व्यस्त रहती हैं.

प्रत्येक व्रतउपवास के लिए धर्म के ठेकेदारों ने एक पुस्तक तय की है. व्रतउपवास के अनुसार उस पुस्तक की कहानी को पढ़ना आवश्यक होता है और उस पुस्तक में महिलाओं को डराने और कमजोर बनाने वाली कथा ही लिखी होती है.

इस के अतिरिक्त ये पुजारी अपनी आजीविका के लिए आमजन में धार्मिक भय उत्पन्न कर देते हैं, जिस से भयभीत हो कर महिलाएं इन के चंगुल में फंस जाती हैं.

लेखिका नीता कुछ वर्षों पूर्व अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘हमारे नएनवेले घर में एक पारिवारिक मित्र अपने किसी पुजारी गुरु को ले कर आए. उन पंडितजी ने हमारे यहां कुछ भी नहीं खाया. काफी देर रुकने के बाद जाते समय गेट पर वे मुझ से बोले के बेटा, मैं ने अपनी नजर से तुम्हारा पूरा घर देखा. सबकुछ बहुत अच्छा है परंतु हौल के एक कोने में एक बुरी आत्मा का वास है. यदि तुम ने इसे ठीक नहीं करवाया तो यह आत्मा इस घर के मुखिया का नाश कर देगी. परंतु चिंता की कोई बात नहीं है मैं अगली बार आऊंगा तो सब ठीक कर दूंगा,’’ कहते हुए उन्होंने अपने आने तक दीपक जलाने, मंत्रों का जाप करने जैसे कुछ उपाय मुझे बताए.

‘‘उन्होंने मुझे पकड़ा ही इसलिए कि मैं डर जाऊंगी. परंतु मैं एक लेखिका हूं और हमेशा दिल के स्थान पर दिमाग से काम लेती हूं. ये पंडितजी भी तो एक इंसान ही हैं और ये कैसे मेरा भलाबुरा बता सकते हैं. आज इस घटना को 10 साल हो गए हैं और हमारा परिवार पूरी तरह सुरक्षित और निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है.’’

तार्किक शिक्षा का अभाव

शहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो आज भी पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की शिक्षा का स्तर  बेहद कम है जिस के कारण उन की सोचने समझने की क्षमता बहुत कम हो जाती है. शहरी क्षेत्रों में इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाली आज की पीढ़ी को दी जाने वाली शिक्षा में तर्क के स्थान पर रटने वाली शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाता है जिस से युवा पीढ़ी में तार्किक क्षमता का अभाव पाया जाता है. इस कारण से वह किसी भी विषय पर तर्क शक्ति का प्रयोग करने के स्थान पर भेड़चाल में चलना अधिक पसंद करती है.

आज भी इंग्लिश माध्यम के स्कूलों में पढ़ीं और इन स्कूलों में अध्यापन कार्य करने वाली अनेक आधुनिकाएं अपने बच्चों और पति की सलामती के लिए व्रत रखतीं और नमक, तेल, राई, मिर्च से हरदम नजर उतारती पाई जाती हैं.

सूर्यग्रहण के दौरान 35 वर्षीय एक प्रशासनिक अधिकारी शेफाली ने न तो भोजन बनाया, न खाया और न ही घर से बाहर निकली, यही नहीं सूर्यग्रहण की अवधि के उपरांत शाम को स्नान भी किया जिस से अगले दिन बीमार भी हो गई. इस दौरान शेफाली जैसी अनेक इंग्लिश माध्यम से शिक्षा प्राप्त, घरों में आधुनिकतम फ्रिज का प्रयोग करने वाली तथाकथित आधुनिकाएं ग्रहण को निष्प्रभावी करने के लिए भोजन में कुश, दूब और तुलसी के पत्ते डालते नजर आईं, जबकि सूर्य और चंद्रग्रहण मात्र एक खगोलीय घटना है.

महिलाओं का संकुचित दृष्टिकोण

हमारे समाज में जहां लड़कियों का पालनपोषण बंधन और वर्जनाओं से युक्त किया जाता है वहीं लड़कों का पालनपोषण स्वच्छंद और उन्मुक्त से परिपूर्ण होता है. जैसे ही एक बालिका किशोरावस्था में कदम रखती है उस पर परिवार का संरक्षण और पाबंदियां बढ़ा दी जाती हैं. घर से बाहर निकलने, सखियोंसहेलियों से बात करने के लिए कठोर नियम बना दिए जाते हैं वहीं लड़कों पर इस प्रकार का कोई बंधन नहीं होता.

उन के बड़े होने के साथसाथ उन्मुक्तता भी बढ़ती जाती है. बाहर की दुनिया देख कर वे बहुतकुछ सीखते हैं जिस से लड़कियों की अपेक्षा उन के सोचने का नजरिया अधिक विस्तृत होता है.

भले ही आज अभिभावक अपनी बेटियों को बाहर भेज कर पढ़ रहे हैं परंतु वहां भी उन पर अप्रत्यक्ष रूप से अनेक पाबंदियां लगाई जाती हैं जिस से उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता और उन का दृष्टिकोण संकुचित ही रह जाता है. इसीलिए वे आगे चल कर अपने परिवार के पुरुषों का अनुगमन करती नजर आतीं हैं.

पुरुषप्रधान समाज

भारतीय समाज पुरुषप्रधान समाज है जहां अकसर परिवार का मुखिया पुरुष होता है और अधिकांश घरों में कमाने वाला एकमात्र जरीया भी. सदियों से महिला को भजन, पूजन और सत्संग जैसे अनेक धार्मिक क्रियाकलापों का उत्तरदायित्व सौंप कर पुरुष अपनी मनमरजी करते रहे हैं और यही परंपरा आज भी चली आ रही है.

यही नहीं कई बार तो महिलाएं धर्मकर्म और पूजा में इतनी अधिक व्यस्त हो जाती हैं कि इस से उन का दांपत्य जीवन तक प्रभावित हो जाता है, पतिपत्नी का परस्पर रिलेशनशिप तक ढकोसलों और अंधविश्वासों की गिरफ्त में आ जाती है और फिर अपने रिश्ते को बचाने के लिए वे धर्म के ठेकेदारोंऔर पुजारियों का सहारा लेती नजर आती हैं.

तोड़ना होगा इस जाल को

यह सही है कि सदियों से समाज में चली आ रही इस भेड़चाल को रोकना काफी मुश्किल है परंतु जब तक महिलाएं स्वयं अपने पैरों में पड़ी इन बेडि़यों को नहीं तोड़ेंगी तब तक उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास होना असंभव है और इस के लिए दिल नहीं दिमाग की तार्किक क्षमता का उपयोग करना होगा. समाज की पुरानी पीढ़ी के स्थान पर युवतियों को अपनी सोच को उन्नत बनाने के साथसाथ पुरानी पीढ़ी को भी बदलाव की ओर अग्रसर करना होगा क्योंकि आगे आने वाला युग पूर्णतया तकनीक पर आधारित होगा.

ऐसे में आगे आने वाली पीढ़ी को भी मानसिक रूप से सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है ताकि इन सब से दूर रह कर महिलाएं स्वयं अपने निर्णय ले कर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकें.

दिमाग का हो सही जगह उपयोग

दोस्तों के साथ बाहर जाने से मना करने पर या मर्यादित ड्रैस पहनने को कहने जैसी छोटीछोटी बातों पर लौजिक की बात करने वाली आज की युवा पीढ़ी धर्म के मामले में भेड़चाल का अंधानुकरण करने में कोई परहेज नहीं करती. एक नामीगिरामी कालेज से एमबीबीएस कर रही श्रेया एकादशी पर चावल न खाने का कारण पूछने पर कहती है, ‘‘पता नहीं मां और दादी ऐसा करती हैं तो मैं भी कर रही हूं.’’

वहीं तर्क पर भरोसा करने वाली इंटीरियर डिजाइनर ईवा कहती है, ‘‘मेरे लिए मेरा कर्म ही पूजा है. आम मम्मियों की तरह मेरी मां भी अकसर मु?ो अंधविश्वासों से भरी अनेक पूजाएं और व्रत करने के लिए कहती हैं. उस के उत्तर में मैं बस मां से यही कहती हूं, ‘‘यदि आप की ये भेड़चाल वाली पूजाएं मु?ो बिना काम किए पैसे दे दें तो मैं सब करने को तैयार हूं,’’ बस यहां मां चुप हो जाती है.

सोचने की बात है कि कोई भी पूजा, बाबा या मंदिर हमारा भला या बुरा कैसे कर सकता है. 2 युवा और मेधावी बच्चों की मां अनामिका कहती है, ‘‘जब बचपन में मेरे बच्चे बीमार पड़ते थे तो हर इंसान मु?ो नमकमिर्च से इन की नजर उतारने को कहता पर मैं ने कभी उन की नजर नहीं उतारी क्योंकि मेरा मानना है कि बच्चे की परेशानी आग में नमकमिर्च जलाने से नहीं बल्कि डाक्टरी इलाज से दूर होगी सो मैं हमेशा डाक्टर के पास ही गई.’’

विज्ञान और तर्क समझें

दकियानूसी परंपराओं, मान्यताओं, भेड़चालों से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है अपने ज्ञानचक्षुओं को हरदम खुला रखना. किसी भी कार्य को महज इसलिए न किया जाए कि मेरे परिवार में होता आया है. मेरी मां या सास ऐसा ही करती थीं तो मैं ने भी कर लिया के स्थान पर इसे क्यों करें इस पर विचार करना होगा.

हमारे तथाकथित बाबा, पंडेपुजारी और धर्मरक्षक भी इस तथ्य को भलीभांति जानते हैं कि महिलाएं स्वभाव से भावुक और परिवार की सुरक्षा के प्रति अति संवेदनशील होती हैं, घर की महिला के अंदर परिवार की असुरक्षा का भय उत्पन्न करने से उन का कार्य आसान हो जाएगा. इसीलिए वे अपने जाल में महिलाओं को ही फंसाते हैं.

एक कर्नल की पत्नी मंजुल सिंह कहती हैं, ‘‘मेरे विवाह को 45 वर्ष हो गए. आज तक कभी कोई व्रत नहीं रखा. यहां तक कि जब ये युद्ध पर गए तब भी नहीं. आज तक हम कभी किसी बाबा के दरबार या मंदिर में नहीं गए क्योंकि मु?ो लगता है कि कोई भी व्रतउपवास कैसे मेरे पति की रक्षा कर सकता है. यही नहीं हमारे इस लंबे सुखद वैवाहिक जीवन में हम पतिपत्नी में कभी विवाद या अबोला तक नहीं हुआ क्योंकि सुखद दांपत्य के लिए किसी पूजापाठ, बाबा, मंदिर या व्रतउपवास की नहीं बल्कि आपसी प्यार, सम?ादारी और एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करने की आवश्यकता होती है.’’

भेदभाव रहित हो पालनपोषण

आजकल अधिकांश मातापिता कहते हैं कि हम अपने बेटे और बेटी के पालनपोषण में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते परंतु क्या सच में वे अपनी बेटियों को मानसिक रूप से कमजोर कर देने वाली खोखली धार्मिक रस्मों और

रिवाजों से बचा पाते हैं? स्त्री को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए उसे कन्यादान, पैर पूजन और देवी का दर्जा देने जैसी अनेक कुरीतियों से बचाना होगा

ऐसी होती हैं बेटियां

स्नातक करने के बाद पिता के कहने पर मीना ने बीएड भी कर लिया था. एक दिन पिता ने मीना को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘मीना, मैं चाहता हूं कि अब तुम्हारे हाथ पीले कर दूं. तुम्हारे छोटे भाईबहन भी हैं न. बेटे, एकएक कर के अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहता हूं.’’

नाराज हो गई थी वह पापा से, शादी की बात सुन कर, ‘‘पापा, प्लीज, मुझे शादी कर के निबटाने की बात न करें. मैं आगे पढ़ना चाहती हूं. मुझे एमए कर के पीएचडी भी करनी है.’’

कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘अगर तुम्हारी पढ़ने की इतनी ही इच्छा है तो मैं तुम्हारे रास्ते का रोड़ा नहीं बनूंगा. जितनी मरजी हो पढ़ो.’’

पापा की बात सुन कर वह उस दिन कितना खुश हुई थी. लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उत्तरदायित्व के एहसास ने महत्त्वाकांक्षाओं पर विजय पा ली थी. मीना ने 20 साल की छोटी उम्र में ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी.

7 साल बाद जब 2 बड़े भाई और बहन ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली तो उन्होंने कहा था, ‘‘जीजी, आप ने हमारे लिए बहुत किया है. अब हमें घर संभालने दीजिए.’’

जिम्मेदारियों के कंधे बदलते ही मीना ने सोच लिया कि वह अब ब्याह कर के अपना घर बसा लेगी. 3 साल बाद 30 वर्षीय मीना की शादी 35 वर्षीय सुशांत से हो गई.

शादी के 2 वर्ष बाद जब मीना ने पुत्री को जन्म दिया तो वह खुशी से फूली नहीं समाई. मीना की सास ने बच्ची का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘इस बार लक्ष्मी आई है, ठीक है. पोते का मुंह कब दिखा रही हो?’’

बेटी नीता, अभी 2 साल की भी नहीं हुई थी कि घर के बुजुर्गों ने मीना पर बेटे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया. जल्द ही मीना गर्भवती हुई और समय पूरा होने पर उस ने फिर बेटी को जन्म दिया. दूसरी बेटी मीता के जन्म पर सब के लटके हुए चेहरों को देख कर मीना ने सुशांत से कहा, ‘‘सुशांत, हमारी इस बेटी का भी जोरशोर से स्वागत होना चाहिए. बेटियां, बेटों से किसी तरह भी कम नहीं हैं. किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के बजाय, हम बेटियों को ऊंची से ऊंची शिक्षा देंगे. फिर देखिए, कल आप उन पर गर्व करेंगे.’’

‘‘ठीक है मीना, तुम इतनी भावुक मत बनो. यह मेरी भी तो बेटी है, जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा.’’

कुछ दिन तो सबकुछ ठीक रहा. फिर घर में बेटे की रट शुरू हो गई. मीना के संस्कार उसे इजाजत नहीं देते थे कि वह घर के बड़ों से बहस करे. उस ने सुशांत से बात की.

‘‘सुशांत, हम इन 2 बेटियों की परवरिश अच्छी तरह करेंगे. मैं ने आप से पहले भी कहा था, तो फिर यह जिद क्यों?’’

सुशांत पर अपने मातापिता का प्रभाव इतना था कि वे भी उन की ही भाषा बोलते थे. वे मीना को समझाने लगे, ‘‘मीना, हमें एक बेटे की बहुत चाह है. कल को ये बेटियां ब्याह कर अपनेअपने घरों को चली जाएंगी, तो हमारी देखभाल के लिए बेटा ही साथ रहेगा न.’’

सुशांत का उत्तर सुन कर भड़क गई मीना, ‘‘सुशांत, क्या मैं ने अपने परिवार को नहीं संभाला? फिर हमारी बच्चियां हमारा सहारा क्यों नहीं बनेंगी? वास्तव में अपने बच्चों से ऐसी अपेक्षा हम रखें ही क्यों?’’

मीना की एक न चली. वह तीसरी बार भी गर्भवती हुई और उस ने फिर एक बेटी को जन्म दिया.

3 बच्चों की परवरिश, फिर स्कूल का काम, दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करना मीना को काफी मुश्किल लग रहा था. इस का असर मीना के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा.

3 बेटियों के बाद मीना पर जब फिर से दबाव डालने का सिलसिला शुरू हुआ तो वह चुप नहीं रह सकी. बरदाश्त की हद जब पार हो गई तो जैसे बम फूट पड़ा, मीना चीख उठी, ‘‘मैं कोई बच्चा पैदा करने की मशीन हूं? मेरी उम्र 40 पार कर चुकी है. ऐसे में एक और बच्चा पैदा करने का मेरे स्वास्थ्य पर क्या असर होगा, सोचा है आप ने? बस, बहुत हो गया. मुझ पर दबाव डालना बंद कीजिए.’’

मीना की सास अवाक् खड़ी बहू का मुंह देखती रह गईं. मीना भी वहां खड़ी नहीं रह सकी. अपने कमरे में पहुंच कर फूटफूट कर रोने लगी. सुशांत ने मीना को गले से लगा कर शांत कराया. शांत होने पर मीना मन ही मन सोचने लगी कि उस ने इस अनावश्यक दबाव के खिलाफ आवाज उठा कर कोई गलत नहीं किया है. थोड़े दिन तक तो सब शांत रहा. एक दिन सुशांत ने मीना से कहा, ‘‘मीना, क्यों न हम एक अंतिम कोशिश कर लेते हैं. अब की बार चाहे लड़का हो या लड़की, मैं तुम से वादा करता हूं, फिर कभी इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा. प्लीज, मान जाओ.’’

कोमल स्वभाव की मीना पति की बातों में आ गई. इस बार जब वह गर्भवती हुई तो 3 बच्चों की परवरिश, ऊपर से बढ़ती उम्र उस के स्वास्थ्य पर हावी होने लगी. मीना को हार कर लंबी छुट्टी लेनी पड़ी, जो वेतनरहित थी.

समय पूरा होने पर मीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अपनी मनोकामना पूरी होते देख, सब के चेहरों पर खुशी देखते बनती थी. उन की ये खुशी क्षणभंगुर साबित हुई. बच्चे को अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उसे औक्सीजन दी जाने लगी. डाक्टरों ने बताया, ‘‘बच्चे के शरीर में औक्सीजन की कमी होने की वजह से मस्तिष्क को सही समय पर औक्सीजन नहीं मिल पाई, इसलिए उस के दोनों हाथ और पैर विकृत हो गए हैं.’’

ऐसा शायद गर्भावस्था के दौरान मीना की बढ़ती उम्र और कमजोरी के कारण हुआ था. इस के बाद पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद मीना का बेटा अरुण स्वस्थ नहीं हो पाया था. वह जिंदगीभर के लिए अपाहिज बन गया.

मीना और सुशांत पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. पहले तो सुशांत बेटा चाहते थे, जो उन के बुढ़ापे की लाठी बने. अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि उन के बाद उन के बेटे की देखभाल कौन करेगा.

करीब 1 साल तक छुट्टी लेने के बाद मीना फिर से स्कूल जाने लगी. पहले वाली मीना और इस मीना में जमीनआसमान का अंतर था. पहले कितनी सुघड़ रहा करती थी मीना. अब तो कपड़े भी अस्तव्यस्त रहा करते थे. दिनरात की चिंता ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया था.

बच्चियां मां को सांत्वना देतीं, ‘‘मां, आप पहले की तरह हंसतीबोलती क्यों नहीं हैं? भाई की देखभाल हम सब मिल कर करेंगे. आप चिंता मत कीजिए.’’

बच्चियों की बातें सुन कर मीना उन्हें गले लगा लेती. अपनेआप को बदलने की कोशिश भी करती, पर फिर वही ‘ढाक के तीन पात.’ वास्तव में बच्चियों की बातों से मीना आत्मग्लानि से भर जाती थी. वह अपनेआप को कोसती, ‘अरुण को इस दुनिया में ला कर मैं ने बच्चियों के साथ अन्याय किया है. एक और बच्चे को इस दुनिया में न लाने के अपने निर्णय पर मैं अटल क्यों नहीं रह सकी? अपनी इस कायरता के लिए दूसरे को दोष देने का क्या फायदा? अन्याय के खिलाफ कदम न उठाना भी किसी गुनाह से कम तो नहीं.’

एक तो बढ़ती उम्र में कमजोर शरीर, ऊपर से यह मानसिक पीड़ा.

मानसिक चिंताएं शरीर को दीमक की तरह खोखला कर जाती हैं. दुखों का सामना न कर पाने की स्थिति में दुर्बल शरीर, कमजोर इमारत की तरह भरभरा कर गिर जाता है. यही हाल हुआ मीना का. एक रात जब वह सोई तो, फिर उठ नहीं सकी. वह चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी. मीना की सास की बूढ़ी हड्डियों में इतना दम कहां था कि वे सबकुछ संभाल सकें. कुछ ही दिनों में वे भी इस दुनिया से कूच कर गईं.

पत्नी और मां की विरह वेदना से ग्रसित सुशांत एक जिंदा लाश बन कर रह गए. उन की 2 बड़ी बेटियां जैसे रातोंरात बड़ी हो गईं. लड़कियां बारीबारी से अपने भाई का ध्यान रखतीं. दोनों बड़ी बहनें, भाई की दैनिक जरूरतों, खानेपीने का ध्यान रखतीं. नीता ने अपनी सब से छोटी बहन प्रिया को हिदायत दे रखी थी कि वह अरुण के पास बैठ कर पढ़ाई करे.

कहानी की पुस्तकें जोर से पढ़े ताकि अरुण भी उन का मजा ले सके. लड़कियां बारीबारी से अपने भाई को पढ़ाती भी थीं. पर वह अपने विकृत हाथों की वजह से कुछ लिख नहीं पाता था. उस के हाथों के मुकाबले उस के पांव कम विकृत थे. लड़कियों ने महसूस किया कि अरुण के पैरों की उंगलियों के बीच पैंसिल फंसा देने पर वह लिखने लगा था. उस की लिखावट अस्पष्ट होने पर भी, जोर देने पर पढ़ी जा सकती थी. कभीकभी अरुण कागज पर आड़ीतिरछी रेखाएं खींचता था, तो कुछ चित्र उभर कर आ जाता. बहनों ने जब देखा कि अरुण चित्रकारी में रुचि ले रहा है, तो उन्होंने उस के लिए एक गुरु की तलाश शुरू कर दी. इस के लिए उन्हें कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. घर बैठे ही इंटरनैट में उन्हें एक ऐसा गुरु मिल गया जो अपने हाथों से अक्षम बच्चों को पैरों की मदद से चित्रकारी करना सिखाता था. अरुण बहुत मन लगा कर सीखता था. देखते ही देखते वह इस कला में माहिर हो गया.

एक दिन ऐसा भी आया जब बहनों ने अरुण के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई. प्रदर्शनी काफी कामयाब रही. अरुण के चित्रों को बहुत सराहा गया. चित्रों की अच्छी बिक्री हुई और बहुत से और्डर भी मिले. फिर अरुण ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बहनों ने अरुण का नाम विकलांगों की श्रेणी में ‘गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स’ में भी दर्ज करा दिया. एक विदेशी संस्था, जो विकलांगों की मदद करती थी, ने इसे देखा और इस तरह अरुण के पास विदेशों से ग्रीटिंग कार्ड्स डिजाइन करने के और्डर आने लगे. अरुण अब डौलर में कमाने लगा.

सुशांत अब काफी संभल चुके थे. वक्त घावों को भर ही देता है. एकएक कर के उन्होंने अपनी 2 बड़ी बेटियों की शादियां कर दीं. छोटी अभी पढ़ रही थी. अरुण अब बड़ा हो गया था, इसलिए उस की देखभाल में दिक्कतें आने लगी थीं. ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने उन की सुन ली थी. मीता इस बार जब मायके आई तो अपने साथ असीम को ले कर आई, जो बेहद ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ था. असीम पढ़ालिखा था पर बेरोजगार था. वह मीता के पति के पास नौकरी की तलाश में आया था. अरुण, असीम को मोटी रकम पगार के तौर पर देने लगा. असीम जैसा साथी पा कर अरुण बेहद खुश था.

आज टीवी वाले घर पर आए हुए हैं. वे अरुण का इंटरव्यू लेना चाहते हैं. कैमरा अरुण की तरफ घुमा कर कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता ने अरुण का परिचय देने के बाद कहा, ‘‘अरुण से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए. हाथपैर सहीसलामत रहने पर भी लोग अपनी असमर्थता का रोना रोते रहते हैं. अपने पैरों की उंगलियों की सहायता से अरुण जिस तरह जानदार चित्र बनाता है, वैसा शायद हम हाथ से भी नहीं बना सकते. अरुण ने यह साबित कर दिया है कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. अरुण, अब आप को बताएगा कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसे देता है.’’

अरुण ने कहा, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी बहनों की बदौलत हूं. मैं ने अपनी मां को बचपन में ही खो दिया था. बहनों ने न सिर्फ मुझे मां का प्यार दिया बल्कि मेरी प्रतिभा को पहचान कर, मेरे लिए गुरुजी की व्यवस्था भी की. आज मैं अपने पिता, गुरुजी और सब से बढ़ कर अपनी बहनों का आभारी हूं.’’

अरुण की बातें कुछ अस्पष्ट सी थीं, इसलिए असीम, अरुण द्वारा कही बातों को दोहराने के लिए आगे आया. सुशांत वहां और ठहर नहीं सके. उन्होंने अपनेआप को कमरे में बंद कर लिया. मीना का फोटो हाथ में ले कर विलाप करने लगे, ‘‘मीना, देख रही हो अपने बच्चों को, उन की कामयाबी को. काश, आज तुम हमारे बीच होतीं. तुम्हें तो शुरू से ही अपनी बच्चियों पर विश्वास था. मैं ही तुम्हारे विश्वास पर विश्वास नहीं कर सका और तुम्हें खो बैठा. लेकिन आज मैं फख्र के साथ कह सकता हूं कि ऐसी होती हैं बेटियां क्योंकि उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए पूरे घर को संभाला, यहां तक कि मुझे भी. अपने भाई को काबिल बनाया और मेरी एक आवाज पर दौड़ी चली आती हैं.’’

एक डाली के फूल: भाग 2- किसके आने से बदली हमशक्ल ज्योति और नलिनी की जिंदगी?

उन की जिज्ञासा उन्हें कानपुर खींच ले गई. उन्होंने अस्पताल से सारी रिपोर्टें निकलवाईं, परंतु व्यर्थ. रिकौर्ड में तो एक ही बच्चा हुआ लिखा था. थोड़ी देर बाद उन्होंने सोचा, क्यों न नलिनी का रिकौर्ड देख लिया जाए. पहले तो अस्पताल के कर्मियों ने इनकार कर दिया परंतु डा. प्रशांत को वहां के डा. मल्होत्रा बहुत अच्छी तरह जानते थे. उन्होंने कहसुन कर नलिनी का रिकौर्ड निकलवा दिया.

विपुला के 2 जुड़वां बच्चे होने का रिकौर्ड था. साथ में यह भी लिखा था कि एक ही नाल से दोनों बच्चे जुड़े थे. उन्होंने देखा, वजन के स्थान पर एक बच्चे का वजन स्वस्थ बच्चे के वजन के बराबर काट कर लिखा गया था. यह बात वह समझ न सके कि आखिर एक ही नाल से जुड़े बच्चों के वजन में इतनी असमानता कैसे? जबकि जुड़वां बच्चों का वजन जन्म के समय एक स्वस्थ बच्चे जितना नहीं होता. ऊपर से लड़के का वजन काट कर लिखा हुआ था. यही नहीं, मात्रा भी कटी थी, मानो भूल से लड़की लिख दिया गया हो.

उन्होंने फिर अपनी फाइल देखी. कहीं कुछ कटापिटा नहीं था. इतना उन के दिमाग में दौड़ा भी नहीं कि बेटा को बेटी करने में या लड़का को लड़की करने में कहीं काटनेपीटने की जरूरत ही नहीं पड़ती. वे चुपचाप घर लौट आए.

पहेली हल नहीं हुई थी. यदि ज्योति नलिनी की बहन थी तो उन का बच्चा कौन था? वह कहां गया? उन की उत्सुकता इतनी तीव्र थी कि वे रातदिन सोचते ही रहते. नलिनी ज्योति से मिलने अकसर आ जाती. उसे बड़ा आनंद आता जब डा. प्रशांत उन दोनों के साथ गपशप में व्यस्त हो जाते.

एक दिन डा. प्रशांत ने नलिनी व ज्योति के खून का परीक्षण किया. दोनों के कार्डियोग्राफ, उंगलियों के चिह्न, विभिन्न अंगों के एक्सरे, कानों के परदे, आंखों के अंदर की नसों आदि की फोटो ले डालीं.

ज्योति ने हंसते हुए कहा, ‘‘नलिनी, पिताजी शायद यह देखना चाह रहे हैं कि हम किसी  गंभीर रोग से पीडि़त या पीडि़त होने वाली तो नहीं हैं. उन्हें यह सब करने में बड़ा मजा आता है.’’

डा. प्रशांत ने जितने भी परीक्षण किए, उन से यही साबित हुआ कि दोनों लड़कियां जुड़वां बहनें ही हैं. वे दुविधा में डूबे सोच रहे थे कि अंतिम व मान्यताप्राप्त परीक्षण रह गया है. यदि वह परीक्षण होहल्ला कर के करेंगे तो हो सकता है उन्हें अपनी ज्योति से हाथ न धोना पड़ जाए. और यदि लड़कियों को मूर्ख बना कर करना चाहेंगे तो वे तैयार न होंगी किसी सूरत में.

परीक्षण भी तो अजीबोगरीब था. यदि लड़कियों को राजी करने का प्रयत्न करते तो वे उन्हें पागल ही समझतीं. किसी घायल व्यक्ति का अगर मांस कहीं से उखड़ जाए तो उसी की जांघ का मांस उस स्थान पर लगाया जाता है. परंतु किसी दूसरे व्यक्ति का मांस कटे स्थान पर लगाने से वह सूख जाता है. यहां तक कि उस घायल व्यक्ति के मांबाप, भाईबहन का मांस भी काम नहीं दे सकता. सिर्फ जुड़वां भाई या बहन का मांस काम दे सकता है. अब इस परीक्षण के लिए भला जवान लड़कियां कहां से तैयार होतीं.

डा. प्रशांत ने सोचा, ‘सारे परीक्षण अभी तक पक्ष में गए हैं. फिर इस एक परीक्षण को ले कर शंका को शंका बने रहने देना कोई अक्लमंदी नहीं है. वे जान गए थे कि दोनों लड़कियां एक ही मां की हैं परंतु एक प्रश्न खड़ा था, फिर उन का बच्चा कहां गया? क्या किसी ने बच्चे बदल लिए? पर क्यों? यह प्रश्न वे सुलझा नहीं पा रहे थे क्योंकि ज्योति देखने में सुंदर, स्वस्थ बच्चे के रूप में थी और अपने यौवन के चढ़ते और भी निखर आई थी. लंगड़ी, लूली, गूंगी, काली कोई भी दोष तो न था, फिर किसी ने क्यों बदला?’

वे इस गंभीर प्रश्न में उलझे हुए थे कि उन के एक मित्र ने टोका, ‘‘क्या बात है, प्रशांत, कुछ परेशान से दिखते हो?’’

‘‘कोई स्त्री अपना बच्चा किसी

दूसरे से किनकिन कारणों से बदल सकती है?’’

उन के मित्र ने मुसकरा कर जवाब दिया, ‘‘अपने भारतीय समाज में सब से प्रमुख व पहला कारण तो ‘लड़का’ है, जिसे पाने के लिए…’’

वे पूरा वाक्य न कह पाए थे कि डाक्टर प्रशांत बोले, ‘‘धन्यवाद. तुम ने मेरी गुत्थी सुलझा दी.’’

डा. प्रशांत के दिमाग में बिजली सी कौंध गई. रिकौर्ड पर लिखी हस्तलिपि उन्हें याद हो आई, जिस में ‘लड़की’ शब्द के ऊपर की मात्रा कटी थी और वजन भी काट कर सामान्य बच्चे का लिखा गया था. उन्हें विश्वास हो गया कि जरूर दाल में काला है. परंतु फिर एक दुविधा थी.  नलिनी के पिता एक प्रतिष्ठित वकील थे, जिन के पास न धन की कमी थी और न ही विद्वत्ता की.

डा. प्रशांत एक दिन बिना बुलाए मेहमान की तरह नलिनी के घर पहुंच गए. वकील साहब सपरिवार घर पर ही थे. नलिनी ने उन के साथ ज्योति को न देख कर पूछा, ‘‘चाचाजी, ज्योति नहीं आई?’’

वे हंस कर बोले, ‘‘नहीं बेटे, मैं घर से थोड़े ही आ रहा हूं. मैं तो सीधे क्लीनिक बंद कर तुम्हारे घर आ धमका हूं, तुम्हारे हाथ की चाय पीने,’’ उन के इतना खुल कर बोलने से सब हंस पड़े.

वकील साहब बोले, ‘‘चाय ही क्यों, कुछ और पीना चाहेंगे तो वह भी मिलेगा.’’

उन्होंने बड़ी शिष्टता से इशारा समझते हुए कहा, ‘‘क्षमा करें, मैं इस के सिवा कुछ और नहीं पीता.’’

विपुला भी शिष्टाचारवश आ कर बैठ गई थी.

वकील साहब के बच्चों ने बारीबारी आ कर नमस्ते की तो वे पूछ बैठे, ‘‘इन में से जुड़वां कौन हैं?’’

इस अकस्मात किए गए प्रश्न पर विपुला चौंक सी गई. नलिनी भी ताज्जुब में पड़ गई क्योंकि उस ने कभी ज्योति से अपने जुड़वां भाई होने की बात कही ही नहीं थी.

‘‘नलिनी और यह मेरा बेटा दीपक. ये दोनों जुड़वां हैं,’’ वकील साहब मुसकराते हुए बोले.

डा. प्रशांत ताज्जुब  से देख तो रहे थे, पर विचलित तनिक न हुए. बेटे की ओर वे टकटकी लगाए देखते रहे. बिलकुल चेहरामोहरा, नाकनक्श उन के जैसा ही था. एक विचित्र सी तरंग उन के हृदय में दौड़ गई.

परंतु सामान्य स्वर में बोले, ‘‘वकील साहब, लोग जाने कैसे हैं, बच्चों की अदलाबदली करने में शर्म नहीं महसूस करते. एक लड़के के लिए लोग दूसरे का बच्चा चुरा लेते हैं.’’

वकील साहब, जो वास्तव में कुछ भी न समझने की स्थिति में थे, मेहमान की ‘हां’ में ‘हां’ मिलाते बोले, ‘‘हो सकता है साहब, इस दुनिया में कुछ भी संभव है.’’

‘‘संभव नहीं, वकील साहब, ऐसा हुआ है. एक केस हमारे पास ऐसा है, जिस में मैं चाहूं तो एक दंपती को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा सकता हूं, पूरे प्रमाण के साथ,’’ डा. प्रशांत कुछ ज्यादा जोश में कह गए.

विपुला को तो बिजली का करंट सा लगा. वह सुन्न सी पड़ गई. वकील साहब को तो जोश से कोर्ट में जिरह सुनने और कहने की आदत सी थी. वे प्रभावहीन बने देखते रहे.

डा. प्रशांत शायद अपने को तब तक काबू में कर चुके थे. वे मुलायम पड़ते रूखी हंसी हंसते हुए बोले, ‘‘पर मैं ऐसा करूंगा नहीं,’’ यह कहते उन्होंने तिर्यक दृष्टि विपुला पर डाली, जो सूखे पत्ते की तरह कांप रही थी.

उन के जाने के बाद वकील साहब विपुला से इतना भर बोले, ‘‘डा. प्रशांत ऐसे कह रहे थे मानो उन का कटाक्ष हम पर ही हो.’’

विपुला पति के मुंह से यह सुन और भी डर गई. उस का अनुमान अब और पक्का हो गया कि डाक्टर इशारे में उन्हीं को कह रहे थे. शिथिल, निढाल सी विपुला कुछ भी न बोल पाने की स्थिति में जहां बैठी थी वहीं बैठी रही. उस की आंखों के आगे अपना अतीत साकार हो उठा.

नामी वकील जगदंबा प्रसाद की पत्नी बनने से पूर्व विपुला कितनी चंचल थी, किंतु उस की हंसी, वह अल्हड़ता शादी के सातफेरों के बीच ही शायद स्वाहा हो गई थी. ससुराल के एक ही चक्कर के बाद किसी ने मायके में उसे हंसतेखिलखिलाते, बातबात पर उलझते नहीं देखा. जगदंबा प्रसाद के रोबदार व्यक्तित्व के आगे वह इतनी अदनी होती चली गई कि धीरेधीरे उस का अपना अस्तित्व ही विलीन हो गया. जगदंबा प्रसाद के बेबुनियादी क्रोध पर कई बार उस के मन में आया कि छोड़छाड़ कर मायके चली जाए. पर हर बार मां उसे तमाम ऊंचनीच समझा और अपनी असमर्थता जता वापस भेज देती थीं.

Karan Deol-Drisha Wedding: देखें देओल परिवार की बहू की लेटेस्ट फोटोज

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता सनी देओल और पूजा देओल के बड़े बेटे करण देओल शादी के बंधन में बंध गए हैं.  करण देओल ने द्रिशा के साथ लिए सात फेरे. करण देओल और द्रिशा की शादी की तस्वीरें सामने आई है. खुद सनी देओल ने भी बहू का स्वागत किया तो करण देओल ने भी शादी की पहली फोटोज की झलकियां सोशल मीडिया पर शेयर की.

करण काफी समय से द्रिशा को डेट कर रहे थे

करण देओल ने अपनी बेस्ट फ्रेंड और लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड से शादी रचा ली है. लंबे समय से दोनों एक दूसरे को डेट कर रहे थे, ऐसे में बीते दिन 18 जून 2023 को करण और द्रिशा ने अपने परिवार के सामने शादी कर ली.

लाल लहंगे में दिखीं दुल्हनियां

देओल खानदान की बहू द्रिशा ने अपने ब्राइडल लुक को बड़े मांग टीका और एक नेकलेस के साथ पूरा किया है. वहीं हाथों में चूड़ियों के बजाय सिंपल घड़ी पहनी नजर आई. लाल सुर्ख जोड़े में दुल्हन काफी खूबसूरत लग रही है. सामने आई तस्वीरों में दूल्हा- दुल्हन मंडप पर बैठा देखा जा सकता है. इन तस्वीरों में दुल्हन कभी मुस्कुराती तो कभी शर्माती नजर आईं.

सनी देओल का लुक

इन तस्वीरों के अलावा, बारात की कई फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इनमें सनी देओल और दादा धर्मेंद्र भी नजर आ रहे हैं. बेटे की शादी में सनी देओल व्हाइट कुर्ते और पायजामा के साथ लंबी ग्रीन कलर की शेरवानी में नजर आए. वहीं चाचा बॉबी देओल ब्लू सूटबूट और लाल पगड़ी में दिखे.

बहूरानी का सनी देओल ने किया स्वागत

सोशल मीडिया पर सनी देओल की पोस्ट खूब वायरल हो रही है, ये पोस्ट चर्चा में हैं. सनी देओल ने बहू द्रिशा का स्वागत करते हुए पोस्ट लिखा, ‘आज मैं अपनी प्यारी सी बेटी को पाकर बहुत खुश हूं. ऐसे ही मुस्कुराते रहना मेरे बच्चों.’

 

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इसके साथ ही सनी देओल के पोस्ट पर उनके छोटे भाई बॉबी देओल ने भी दिल वाला इमोजी बनाया और दोनों बच्चों को आशीर्वाद दिया.

‘कॉमेडी सर्कस’ की छोटी गंगू Saloni अब हो गई हैं बड़ी, देखें ग्लैमरस फोटोज

‘गंगूबाई’ का किरदार निभाने वाली छोटी बच्ची तो आपको याद होगी. जो टीवी पर ‘गंगूबाई’ बनकर कॉमेडी किया करती थी. घर-घर में ‘गंगूबाई’ से पहचान बनाने वाली सलोनी दैनी (Saloni Daini) अब बड़ी हो चुकी है. सलोनी दैनी ने बाल कलाकर के रुप में ‘कॉमेडी सर्कस’ से दर्शको के बीच अपने हुनर की अमिट छाप छोड़ी है. अब चाइल्ड कॉमेडियन सलोनी डैनी उर्फ गंगूबाई बड़ी हो गई हैं इसके साथ ही वह आज 19 जून को अपना 22वां बर्थडे मना रही है.

नन्ही-सी सलोनी काफी बड़ी हो गई है. उन्होने लॉकडाउन में गजब का बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन किया है. सलोनी की ग्लैमरस फोटोज सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे है.

 

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लॉकडाउन में किया गजब का बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन

सलोनी ने सोशल मीडिया पर वेट-लॉस ट्रांसफॉर्मेशन के बाद बिकिनी पहने तस्वीरें शेयर की. इसके बाद उन्होंने खुद खुलासा किया कि कैसे उन्हें लॉकडाउन में इस जर्नी को शुरू किए 3 साल हो गए हैं. परिणाम देखकर फैंस दंग रह गए. सलोनी ने अपने मनचाहे लुक के लिए काफी मेहनत की है. उनकी कोशिशों को लेकर काफी सराहना भी हुई है. हर कोई दंग है सलोनी का बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन देखकर.

 

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डाइट और जिम को फॉलो किया

सलोनी कई बार रील्स में शेयर करते हुए जिम और डाइट के बारे में बताती है. एक रील में सलोनी ने बताया कि, ‘जब आपने सोचा था कि जिम का एक दिन आपको आपके सपनों की बॉडी देगा’ और वीडियो में वह ट्रेडमिल पर दौड़ती और उस ड्रीम बॉडी को हासिल करने के लिए संघर्ष करती नजर आई थीं.

लैपटॉप की स्कीन ने सलोनी को बनाया खूबसूरत

सलोनी ने बताया, ‘जब लॉकडाउन शुरू हुआ था, तो मैं घर पर इतना खाती थी. मां मोमोज, बटर चिकन, केक और इसी तरह की चीजें बनाती थीं. एक दिन मैं बैठी थी. अपने लैपटॉप के सामने शो देख रही थी और अचानक, स्क्रीन लॉक हो गई और मैंने लैपटॉप पर अपना चेहरा देखा.’

आगे सलोनी ने बताया- ‘मैं बहुत गोल-मटोल लग रही थी. मैं उस समय 80 किलो थी. तो मैं इस तरह थी जब मैंने वजन कम करना शुरू किया. मैं फिट और स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ वजन कम करना चाहती थी. मैंने सही खाना खाया और हर दिन एक्सरसाइज किया. अब मैं 58 किलो की हूं. लॉकडाउन ने मेरा वजन कम कर दिया है.’

प्रोफाइल पिक्चर: जब मैट्रोमोनियल साइट पर मिली दुल्हन!

मोबाइलपर मैसेज

की घंटी बजी. अनजान नंबर था, प्रोफाइल पिक्चर के नाम पर एक तकिए पर रखा एक गुलाब का फूल. मैसेज में लिखा

था, ‘‘नमस्ते.’’

सोचा कि एक और स्पैम मैसेज, कौंटैक्ट का नाम देखने की कोशिश की, लिखा था ‘रोज’ यानी गुलाब थोड़ी देर रहने दिया.

एक बार फिर से मैसेज टोन बजी. उसी नंबर से था, ‘‘जी नमस्ते.’’

मैं ने कुछ सोचा, फिर जवाब लिख दिया, ‘‘नमस्ते, क्या मैं आप को जानता हूं?’’

मैसेज चला गया, पहुंच गया, पढ़ लिया गया. जवाब तुरंत नहीं आया. लगभग 10 मिनट की प्रतीक्षा के बाद  मैसेज टोन फिर से बजी, ‘‘आप मु झे नहीं जानते, मैं ने आप का नंबर आप के मैट्रिमोनियल प्रोफाइल से लिया है.’’

‘‘मैं सोच में पड़ गया. मैट्रिमोनियल प्रोफाइल. एक वैबसाइट पर अपनी डिटेल मैं ने कुछ महीने पहले डाली थी. फिर उस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई थी और मैं लगभग भूल सा गया था.

कामकाज के चक्कर में शादीवादी तो कहीं पीछे ही छूट गई थी. अकेला बंदा दिनरात काम में डूबा हुआ और वह भूली सी मैट्रिमोनियल प्रोफाइल. खैर. थोड़ी देर बाद जवाब लिख दिया, ‘‘अच्छा, तो बताइए?’’

अगला जवाब फिर से थोड़ी प्रतीक्षा के बाद आया, ‘‘आप की शादी तो नहीं हुई न अभी?’’

इस बार मैं ने तत्काल जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’

कुछ देर बाद फिर से मैसेज टोन बजी, ‘‘मैं आप से शादी के लिए ही बात करना चाहती हूं.’’

इस सीधे प्रस्ताव को हजम करने के लिए मैं ने उस दिन कोई मैसेज नहीं किया. उधर से भी फिर कोई मैसेज नहीं आया.

अगले दिन रात को मैसेज टोन फिर से बजी, ‘‘क्या आप शादी के लिए बात करने के लिए मु झ से मिलना चाहेंगे?’’

मैं ने जवाब दिया, ‘‘देखिए, मैं आप को जानता नहीं हूं, आप का नाम तक नहीं जानता, आप चाहें तो मु झे अपना बायोडाटा भेज सकती हैं.’’

जवाब में कुछ देर के बाद एक स्माइली और एक गुलाब का फूल.

ये कैसा ‘बायोडाटा’ था. थोड़ी देर बाद मैं सो गया, हलकी सी मुसकान के साथ.

अगले दिन रात को फिर से, ‘‘जी देखिए, बायोडाटा तो मैं नहीं भेज सकती

लेकिन आप से मिल कर बात करना चाहती हूं.’’

यह कुछ नया सा था कि न नाम, न बायोडाटा सीधा मिलना. अत: आज मैं ने कोई जवाब नहीं दिया, ज्यादा कुतूहल ठीक नहीं. 1-2 दिन व्यस्त रहा, उस अनजान नंबर से कोई मैसेज भी नहीं आया.

फिर एक दिन रात को मेरी उत्सुकता मेरे संयम पर भारी पड़ गई. मैं ने भी एक स्माइली भेज दी.

मैसेज डिलिवर नहीं हुआ. मैं ने कुछ देर इंतजार किया, फिर फोन बंद कर के सो गया.

अगली सुबह फोन औन करते ही 2-3  मैसेज, ‘‘तो मिलने की उम्मीद है, इस संडे को लखनऊ आइए न.’’

फिर एक स्माइली और गुलाब. मु झे गुलाब कभी पसंद नहीं आया, आखिर यही फूल प्यार का प्रतीक क्यों है. खैर, अब यह लखनऊ कहां से आ गया, मैं दिल्ली में और वह लखनऊ.

ऐसे कोई शादी की बात करता है. मैं ने आज सीधे फोन लगा दिया. उधर से किसी ने नहीं उठाया. मैसेज आया, ‘‘देखिए मैं फोन पर बात नहीं कर सकती, प्लीज, मैसेज से ही बात कीजिए, संडे को लखनऊ आ रहे हैं न…’’

मैं ने मैसेज कर दिया, ‘‘संडे को मैं बिजी हूं,’’ और फिर फोन डाटा औफ कर दिया कि आज कोई मैसेज देखूंगा ही नहीं.

रात को डाटा औन किया, कोई नया मैसेज नहीं था. आखिर चल क्या रहा है. इन्हीं उल झनों के बीच फिर से सो गया, बिना मुसकान के.

हफ्ता बीत गया. संडे भी आया और खाली चला गया. मैं भी थोड़ा कम ही बिजी रहा. क्या होता अगर मैं लखनऊ चला ही गया होता.

फिर से रात आई. 3-4 दिन से कोई मैसेज नहीं आया था. क्या बात खत्म हो गई, हो भी गई तो क्या. मैं कहां किसी को जानता हूं… वह भी शादी की बात.

मैसेज की घंटी बजी. मैं ने जल्दी से फोन देखा. किसी और गु्रप में मैसेज आया था. मैसेज खोले बिना मैं ने फोन बंद कर दिया और सो गया.

अगली सुबह. गुलाब वाले प्रोफाइल से कुछ मैसेज आए हुए थे, ‘‘देखिए अगले संडे को पक्का लखनऊ आइएगा. होटल क्लार्क के रैस्टोरैंट में सुबह के नाश्ते पर आप से मिलूंगी. प्लीज, प्लीज.

‘‘प्लीज मिल लीजिए, अगर इस संडे

को आप नहीं आए तो शायद फिर कभी मौका

न मिले.’’

उफ, अब एक डैडलाइन भी मिल गई, जोकि इसी संडे को पूरी करनी थी. मैं ने भी जीवन में तमाम तरह के पंगे किए थे, सोचा एक यह भी सही. देखें क्या होता है. अत: मैं ने जवाब में एक स्माइली, एक थम्सअप और एक गुलाब भी भेज दिया. शायद मैं भी पंगे के मूड में आ गया था.

पता नहीं क्यों मन में एक कहावत बारबार घूमफिर कर याद आ रही, जो कुछ ऐसा है कि चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर कटना तो खरबूजे को ही है. पता नहीं मैं खुद को खरबूजा सम झ रहा था या चाकू.

मैं ने शनिवार रात को जाने वाली लखनऊ मेल का टिकट ले लिया और एक स्क्रीनशौट भी गुलाब के प्रोफाइल वाले नंबर पर भेज दिया. उधर से जवाब में थम्सअप, गुलाब और हार्ट वाले मैसेज आ गए थे.

मैं ने शनिचर को ट्रेन पर सवार होने का इरादा बना लिया था. मु झ पर शायद अभी से शनिचर सवार हो गया था.

बदस्तूर शनिवार आया और मैं लखनऊ मेल में सवार हो कर लखनऊ पहुंच गया. लखनऊ के प्लेटफौर्म पर उतरते ही 2 छोटीछोटी बच्चियों ने गुलाब के फूल से मेरा स्वागत किया.

‘‘वैलकम.’’

मैं चौंक गया. पूछा, ‘‘ये गुलाब किस ने दिए?’’

‘‘वह दीदी, वहां लाल स्कार्फ में बैठी हैं,’’ जवाब मिला.

मैं ने प्लेटफौर्म पर दाईं तरफ देखा, थोड़ी दूरी पर एक लाल स्कार्फ जैसी  झलक किसी कुरसी पर बैठी दिखी. मैं उधर ही बढ़ गया. प्लेटफौर्म पर छिटपुट भीड़ थी. बढ़तेबढ़ते एक कुरसी तक पहुंचा, सचमुच एक युवती लाल स्कार्फ में बैठी थी. गुलाब मेरे हाथ में अब भी था. मैं ने जा कर धीरे से हैलो कहा. उस ने अजीब दृष्टि से मु झे देखा.

मैं ने कहा, ‘‘वेलकम के लिए थैंक्स.’’

उस ने घबरा कर कहा, ‘‘आप कौन हैं.’’

गुलाब वाला हाथ थोड़ा आगे कर के मैं ने कहा, ‘‘वह उन बच्चियों ने बताया कि आप ने गुलाब भेजे हैं,’’ कह मैं ने प्लेटफौर्म पर इधरउधर देखा. कोई बच्ची नजर नहीं आई. मेरे कान लाल हो गए जितना कि हो सकते थे,

उस लड़की की घबराहट देखते हुए मैं ने गुलाब वाला हाथ पीछे किया और वहां से चल निकला, लगभग भाग ही निकला क्योंकि आसपास के यात्री मु झे घूरने लगे थे और शायद किसी भी क्षण मेरा सामना लखनवी तहजीब की एक अलग विधा से हो सकता था. खैर. उल झन बढ़ती ही जा रही थी कि होटल क्लार्क जाऊं या न जाऊं. फिर औटोरिकशा लिया और पहुंच ही गया.

रिसैप्शन पर पहुंचते ही रिसैप्शनिस्ट ने पुकारा, ‘‘हैलो,’’ शायद मेरे प्रोफाइल फोटो से सब को मेरी पहचान करा दी गई थी.

‘‘जी, आप मु झे कैसे जानती हैं.’’

‘‘वैलकम टू अवर होटल, आप के लिए रूम नं. 304 बुक है, मैडम ने कमरा बुक कराया है.’’

‘‘304, कौन सी मैडम?’’

‘‘जी वे 305 में ठहरी हैं. आप अपनी ऐंट्री कर के रूम में जा सकते हैं.’’

‘‘रिसैप्शनिस्ट ने मु झे अपनी बेशकीमती मुसकराहट के साथ आश्वस्त किया. मैडम को बिलकुल ही नहीं जानने की हिमाकत मैं ने और जाहिर नहीं की, चुपचाप ऐंट्री की, चाबी ली और रूम नं. 304 के गेट पर आ गया.

रूम नं. 305 भी बगल में ही था. अगलबगल 2 कमरे, आखिर चल क्या रहा है.

ब्रेकफास्ट में क्या और कब मिलने वाला है.

मेरे सब्र की इंतहा हो चुकी थी. जाते ही मैं ने सीधे 305 में जाने की सोची. फिर सोचा, अपने कमरे में जा कर फ्रैश हो जाना अच्छा रहेगा. कमरा बंद कर के अपना छोटा बैग खोल ही रहा था कि कमरे की डोरबैल बजी.

धड़कते दिल से मैं ने दरवाजा खोला, अटैंडैंट था. मु झे टौवेल, सोप, ब्रश आदि की वैलकम किट दे गया. मैं ने भी फ्रैश हो कर नहानाधोना शुरू कर दिया. शायद डोरबैल फिर से बजे इस उम्मीद में मैं ने बाथरूम का दरवाजा खुला ही रखा.

जब पूरा साबुन लगा कर शौवर ले रहा था तब ऐसा लगा की डोरबैल बजी है. मैं ने जल्दी से नहाना खत्म किया. गीले बदन ही टौवेल लपेटा और लगभग भागते हुए दरवाजा खोलने आया. दरवाजे पर कोई भी नहीं था, थोड़ा कौरिडोर में  झांका. खाली था. दरवाजे पर एक भीनी सी परफ्यूम की खुशबू तैर रही थी, जोकि मेरे साबुन की खुशबू के बावजूद मु झ तक पहुंच रही थी. गहरी सांस ले कर मैं वापस कमरे में आ गया.

कपडे़ बदले, गीला टौवेल डालने बालकनी में गया, हलकी धूप थी, टौवेल डाल कर बगल की बालकनी में देखा, रूम नं. 305 की बालकनी थी. मैं ने  झांकने की कोशिश की. कांच के दरवाजों के पार मोटा परदा लगा था. बालकनी में कुछ रंगबिरंगे कपड़े सूख रहे थे, न चाहते हुए भी मैं ने कपड़ों को देख कर रूम नं. 305 की अल्पवासिनी के बारे में कल्पनाएं की.  कुछ ही पलों में मैं इस कल्पना और अनुमान के खेल को खत्म करना चाहता था.

मैं ने कमरे में वापस आ कर बाल संवारे, सुबह स्टेशन पर मिले गुलाब के फूलों में से एक फूल उठा लिया और दरवाजा खोल कर 305 की डोरबैल बजा दी. बैल की आवाज मु झे भी सुनाई दी, लेकिन दरवाजा खोलने कोई नहीं आया. फिर बैल बजाई. कोई उत्तर नहीं. मैं ने दरवाजे का हैंडल घुमाते हुए हलका सा धक्का दिया, दरवाजा खुला हुआ था. मैं धीरे से अंदर दाखिल हो गया.

धीमी सी रौशनी, बिस्तर पर सफेद चादर और कमरे में फैली हुई वही परफ्यूम

की खुशबू जो कुछ ही देर पहले मैं ने अपने कमरे के दरवाजे पर महसूस की थी.

कमरा खाली था. सफेद तकिए पर एक गुलाब रखा हुआ था. मैं आगे बढ़ा बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी. मैं उधर ही बढ़ गया. बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खुला था. सुरीली आवाज में गुनगुनाने की आवाज भी आ रही थी. बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक दूं सोच थोड़ा सा बढ़ा ही था कि मोबाइल पर मैसेज आने की आवाज आई, ‘‘प्लीज, ब्रेकफास्ट पर मिलिए.’’

मेरे कदम रुक गए. वापस बिस्तर तक आया. अपने हाथ का गुलाब तकिए पर रखे गुलाब की बगल में रख दिया. अब वहां 2 गुलाब थे.

लौट कर 304 में आया और फिर धीमे कदमों से नीचे ब्रेकफास्ट लौबी की ओर चल पड़ा. बात तो ब्रेकफास्ट पर मिलने की ही हुई थी.

ब्रेकफास्ट लौबी लगभग खाली थी. मैं ने एक ऐसी टेबल चुनी जिस से कि उतरती हुई सीढि़यों और लिफ्ट दोनों पर नजर रखी जा सके. थोड़ी ही देर में वेटर आ गया. यानी मेरे लिए नाश्ते का और्डर पहले ही किया हुआ था.

नाश्ते के साथ चाय या कौफी बस इतना पूछने आया था वेटर. खाली इंतजार करने से बेहतर समझ मैं ने ब्रेकफास्ट मंगवा ही लिया. नजर तो खैर सीढि़यों की तरफ ही थी.

कुछ ही देर में वहां से एक जोड़ी कदम उतरते हुए दिखाई दिए. एक युवती नपेतुले कदमों से ब्रेकफास्ट लौबी में आई. मैं ने स्वागत में नजरें उठाईं, लेकिन वह तो मोबाइल में देख रही थी. मेरे प्रत्याशा के प्रतिकूल वह मेरी टेबल के बजाय साथ की दूसरी टेबल पर जा बैठी जहां एक पारिवारिक समूह पहले से खानेपीने और गपशप में लगा था.

मेरा इंतजार जारी रहा. कुछ और संभावित युवतियां आईं और गईं, लेकिन कोई अकेली नहीं थी. एक को तो लिफ्ट से कुछ पुलिस वाले ले कर गए, उस के चेहरे पर मास्क लगा था. एक और थी जो एक युवक के साथ थी और उस का चेहरा भी परदे में था. मैं ने यथासंभव धीरेधीरे नाश्ता खत्म किया, मेरी टेबल की तरफ कोई भी नहीं आई.

नाश्ते के बाद मैं ने बिल देना चाहा तो पता चला कि बिल दिया जा चुका है. मैं ने उस नंबर पर फोन लगाया, जो हमेशा की तरह नहीं उठाया गया. मैं ने मैसेज डाल दिया, ‘‘कहां हो तुम?’’ मैसेज चला गया, लेकिन डिलिवर नहीं हुआ.

मैं ने होटल का एक चक्कर लगाया, पूल साइड से भी हो कर आया, फिर रिसैप्शन पर जा कर पूछा 305 वाली मैडम, जिन्होंने मेरा कमरा बुक कराया था वे कौन हैं, कहां हैं?’’

रिसैप्शन वाली ने अपनी बेशकीमती मुसकान के साथ मु झे बताया कि गैस्ट की डिटेल शेयर करना होटल की पौलिसी के खिलाफ है.

उस ने एक और बम फोड़ा, 305 वाली मैडम एक अर्जेंट काम की वजह से चैकआउट कर गई हैं.

इस से आगे सुनने की मु झे जरूरत नहीं थी. फिर भी मैं ने पूछा, ‘‘क्या मेरे लिए कोई संदेश है?’’

जवाब मिला कि आप का कमरा आज के लिए बुक है, आप चाहें तो आज रातभर यहां रुक सकते हैं, मैडम तो चली गईं.

मैं अपने कमरे में वापस आ गया. एक

बार फिर से फोन लगाया, पर कोई फायदा नहीं. 305 में गया, कमरा खुला था और अब खाली था. कमरे में हलकाहलका वही परफ्यूम तैर रहा था जो सुबह मु झे 304 के दरवाजे पर मिला था.

फोन उठाया, दिल्ली के लिए वापसी की ट्रेन चैक की, डेढ़ घंटे बाद की एक ट्रेन में

करंट टिकट मिल रहा था. बुक कर लिया. लखनऊ में अब और बेगानी मेहमाननवाजी कराने का मन नहीं था. पता नहीं क्यों, इस टिकट का एक स्क्रीनशौट भी उस गुलाब के प्रोफाइल वाले नंबर पर भेज दिया. अब मैं और क्या उम्मीद कर रहा था.

स्टेशन पर आया, ट्रेन में चढ़ गया. सीट पर बैठ गया. मैसेज की घंटी बजी, उसी का था, ‘‘हैलो, मु झे बहुत अफसोस है. इतने करीब आ कर भी आप से मिल नहीं सकी. मेरे बीते हुए अतीत का कोई बंद हो चुका पन्ना अचानक मेरे सामने आ गया और मु झे वहां से निकलना पड़ा.  भविष्य अनजान है, लेकिन आप से मिल पाने की उम्मीद अब बहुत कम ही है. शुभ यात्रा. भविष्य के लिए आप को मेरी शुभकामनाएं.’’

बहुत गुस्सा आया कि क्या यह कहीं से मु झ पर नजर रख रही है. ट्रेन के गेट तक आया. आगेपीछे पूरे प्लेटफौर्म पर एक नजर डाली. कोई संदिग्ध युवती नहीं दिखी. सिगनल हो गया था. ट्रेन सरकने लगी थी. वापस सीट पर आया. गुस्से में दिल्ली की कुछ चुनिंदा गालियां टाइप कर दीं. भेजने ही वाला था कि उस की प्रोफाइल पिक्चर पर मेरी नजर गई. उस की प्रोफाइल पिक्चर अब बदल गई थी.

प्रोफाइल पिक्चर को बड़ा कर के देखा. एक तकिए पर 2 गुलाब रखे थे. एक जो वहां पहले से रखा था और दूसरा वह जिसे मैं वहां रख कर आया था.

रिश्ता एहसासों का: क्या हो पाई नताशा और आदित्य की शादी?

चाइल्ड स्पैशलिस्ट पूरे रोहतक में डंका बजता. बच्चे को कोई भी तकलीफ हो बस उन्होंने अगर बच्चे को छू भी लिया तो सम झो वह ठीक. उन का एक ही बेटा था आदित्य. स्कूलिंग के लिए देहरादून में दून स्कूल में एडमिशन कराया.

डाक्टर रवि का सपना कि मेरा बेटा मु झ से भी काबिल डाक्टर बने. लेकिन आदित्य को तो कहीं और ही उगना था. उस का सपना था कि वह वर्ल्ड फेमस कोरियोग्राफर बनेगा.

खैर, स्कूल के बाद इसलिए कालेज की पढ़ाई करने मुंबई गया ताकि पढ़ाई भी पूरी हो जाए और शौक भी. पढ़ाई तो पूरी न हो सकी अलबत्ता शौक पूरा हो गया. कोरियोग्राफी सीखने लगा.

वहां पर किसी से मुहब्बत हो गई. मातापिता को बताया तो पापा बोले, ‘‘आदित्य, तेरी खुशी से बढ़ कर हमारे लिए इस जहां में और कुछ नहीं, अगर तु झे लगता है कि वह लड़की तेरे लिए सही है तो हमें क्या एतराज हो सकता है.’’

‘‘लेकिन पा… पा वो… वो… नताशा खान है,’’ आदित्य थोड़ा सा   झिझकते और हकलाते हुए बोला.

‘‘अरे तो क्या हुआ बेटा? तुम घबरा क्यों रहे हो. ये हिंदूमुसलिम हम इनसानों ने बनाए? कुदरत ने नहीं. उस ने तो केवल इनसान बनाया था… हम उस के मातापिता से बात करते हैं.’’

‘‘थैंक्यू पापा, थैंक्यू मम्मी…’’ वह खुश हो कर मांपापा के गले लग गया.

मगर उधर नताशा ने अपने घर में आदित्य के बारे में बताया तो भूचाल आ गया.

‘‘कान खोल कर सुन लो नताशा, आदित्य से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती और आज के बाद इस घर में मु झे आदित्य का नाम सुनाई नहीं देना चाहिए,’’ नताशा के डैड ने फरमान सुना दिया.

बात न बनती देख एक दिन नताशा ने

ठोस कदम उठाया और घर छोड़ कर चली आई आदित्य के पास.

बालिंग लड़की है, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. कोर्ट मैरिज कर ली. आदित्य के मातापिता को भी इस शादी को मानना ही था.

कैसा है आपसी तालमेल किसी को कुछ नहीं पता. या तो आदित्य जाने या वह जिस के साथ रहना है अर्थात आदित्य की पत्नी नताशा.

नताशा को कभी खाना तो दूर चाय तक बनानी नहीं आती थी. आदित्य बचपन से ही घर से दूर रहा. पहले देहरादून और फिर मुंबई. अकसर खाना बाहर का ही खाता. कभी जब घर आता तो मां के हाथ का खाना खा कर खुश हो जाता.

नताशा का कभी अगर घर में ही चाय पीने का मन होता तो वह भी आदित्य ही बना कर देता. नताशा को बनानी नहीं आती. आदित्य ने बहुत कहा, ‘‘नताशा, तुम थोड़ाबहुत मां से खाना बनाना सीख लो या कोई कुकिंग कोर्स कर लो.’’

नताशा का एक ही जवाब होता, ‘‘मु झ से यह तो होगा नहीं… मैं खाना बनाने के लिए नहीं पैदा हुई… ये इतने होटल किसलिए हैं?’’ रोज का यही काम तीनों समय खाना बाहर से ही आता.

 

एक बार बर्ड फ्लू फैला हर तरफ… न तो आदित्य को कुछ बनाना आता, न ही

नताशा बनाती. तब भी खाना बाहर से और्डर किया जाता.

आखिर शरीर है, कब तक बाहर का अनहाइजीनिक खाना सहन करता. मशीन में भी अगर तेल की जगह पानी या अन्य कोई गंदा तेल डालोगे तो वह भी खराब हो जाएगी.

आखिरकार आदित्य का शरीर भी अनहाइजैनिक खाना और अधिक सहन नहीं कर पाया. जवाब देने लगा. उस खाने को खा कर आदित्य अधिकतर बीमार रहने लगा. एक दिन बहुत बुरी तरह से पेट में दर्द उठा. तब डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि फूड पौइजनिंग हो गई है.

फूड पौइजनिंग इस हद तक हो गई कि

3 महीने तक इलाज चला तब जा कर ठीक हुआ, अभी ठीक हुआ ही था कि फिर से आदित्य को लगा कि उसे कुछ प्रौब्लम है क्योंकि उस के पेशाब में मवाद सा उसे महसूस हुआ और साथ ही अकसर कमजोरी रहने लगी. कामधाम सब बंद हो गया. डाक्टर को दिखाने पर पता चला कि दोनों गुरदे खराब हो चुके हैं.

आदित्य ने मातापिता को तब जा कर अपनी बीमारी के बारे में बताया. नताशा ने अब तक सोच लिया था कि वह आदित्य को छोड़ देगी. वह इस बीमार और लाचार व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती. आदित्य के मातापिता ने जब उस की बीमारी का सुना तो  झट से टैक्सी बुलाई और पहुंच गए बेटे के पास. डाक्टर से किडनी बदलने के लिए बात की. लेकिन किडनी दे कौन.  मातापिता दोनों ही शुगर और हार्ट पेशैंट हैं, अब रही नताशा, सो नताशा से कहा गया तो उस ने साफ शब्दों में कहा, ‘‘पापाजी मैं आदित्य को तलाक दे रही हूं. मैं अब इस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती,’’ कह कर उस ने अपने मायके के लिए गाड़ी पकड़ी और चली गई.

अगले ही दिन कोर्ट से तलाक के कागज आदित्य के पास पहुंच गए. आदित्य ने चुपचाप उन पर हस्ताक्षर कर दिए और मातापिता आदित्य को अपने साथ ले लाए.

आदित्य अब डायलिसिस पर है, लेकिन वह खुश है, वह मां के पास है, वह खुश है कि वह घर का साफसुथरा मां के हाथों का बना खाना खाता है. वह चहक उठता है जब मां उस के लिए दलिया या खिचड़ी भी बना देती हैं. वह खुश है नताशा की हर पल की चिकचिक नहीं सुननी पड़ती.

इधर नताशा कुछ दिन मुंबई अपनी सहेली के घर पर रही. लेकिन उस ने महसूस किया कि सहेली उसे बो झ सम झती है, उस पर उस का पति किसी न किसी बहाने से उसे छूता रहता. कभी जब उस की सहेली घर पर न होती और वह अकेली होती तो घर आ जाता और उसे परेशान करने लगता. आखिर उसे अलग से किराए का घर ले कर रहना पड़ा.

मगर यह क्या वह तो यहां भी सुरक्षित नहीं. अकसर बौस घर तक छोड़ने के बहाने आते और घंटों उस के घर बैठे रहते. कभी चाय, कभी कौफी लेते. कभी बहाने से नितंबों पर तो कभी गालों पर चपत मार कर बात करते.

एक बार तो कस कर सीने को पकड़ लिया. दर्द से उस की चीख निकल गई, जिस से ऊपर के फ्लैट वाली रूबी ने पूछा लिया, ‘‘क्या हुआ नताशा, फिर से छिपकली देख ली क्या?’’

‘‘उफ, हां भाभी, हां बहुत बड़ी छिपकली है, चली गई अब,’’  झूठ बोलना पड़ा. बौस जो ठहरे और तब बौस भी चले गए.

मगर नताशा सम झ चुकी थी कि अकेले रहना आसान नहीं. आदित्य को तलाक दे चुकी है, अब मायके के सिवा कोई जगह नजर नहीं आ रही थी.

आखिर मायके का रुख किया. सोचा वहीं पर कोई छोटीमोटी नौकरी कर के गुजारा कर लेगी. मगर घर पर सुरक्षित तो रहेगी, मगर बोया बबूल तो आम कहां से पाओगे.

वही हाल नताशा का था. घर में कदम रखते ही वह सम झ गई कि उस की यहां किसी को जरूरत नहीं. बिन बुलाया मेहमान है वह. डैड ने तो आते ही कह दिया, ‘‘आ गई न फिर से मेरे घर, क्या दिया आदित्य ने? उस की औकात ही नहीं थी, जो तु झे रखता. अब यहां क्या लेने आई है? जहां से आई है वहीं वापस जा. यह मेरा घर है धर्मशाला नहीं.

मातापिता हर समय तिरस्कार करते. भाईभाभी भी नौकरों की तरह काम लेते. उस पर भी तिरस्कृत होती रहती. आखिर एक स्कूल में नौकरी लगी. सोचा कुछ कमाएगी तो कोई कद्र भी करेगा.

यहां भी नजरों से नताशा के रूप का रस पीने वाले हजारों कीड़े थे. एक टीचर ने तो एक दिन सरेआम हथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘नताशा डार्लिंग उस लौंडे से कुछ नहीं मिला क्या जो उसे छोड़ आई है?’’

उस पर दूसरा बोला, ‘‘अरे तो हम हैं न, इस की हर ख्वाहिश पूरी कर देंगे. एक बार हमें सीने से तो लगाए, हम तो कब से तड़प रहे हैं. नताशा डियर बोलो कब और कहां मिलें?’’

नताशा की आंखें भर आईं. आज उसे आदित्य की बेहद याद आने लगी. उस ने फिर से एक ठोस कदम उठाया. घर आई, अपना सामान पैक किया और चल पड़ी मुंबई वापस उन्हीं गलियों की तरफ.

 

रास्ते में ही आदित्य के नंबर पर फोन मिलाया. लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. नताशा

लगातार रोए जा रही थी और अपनेआप से ही बोलती जा रही थी कि आदी प्लीज एक बार फोन उठाओ, मु झे तुम से माफी मांगनी है, मु झे वापस अपने घर आना है, मु झे तुम्हारे पास आना है. प्लीज आदी एक बार फोन उठा लो मेरा.

3-4 कौल के बाद आदित्य के पापा ने फोन उठाया. कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो, पापाजी, पापाजी मैं नताशा बोल

रही हूं.’’

‘‘हां बेटा मैं जानता हूं, कहो, कुछ काम था?’’

‘‘हां पापाजी, मु झे आदित्य से, आप सब से मिलना है, पापाजी मैं बहुत बुरी हूं, लेकिन फिर भी आप की बेटी हूं, मु झे माफ कर दीजिए, पापाजी आदित्य से भी कहें मु झे माफ कर दे और एक बार मु झ से बात कर ले. मैं वापस आ रही हूं पापाजी, मैं अपने घर वापस आ रही हूं. आप सब से माफी मांगने और आप सब का प्यार लेने,’’ नताशा बोले जा रही थी और रोए भी जा रही थी.

‘‘किस से माफी मांगेगी बेटा, वह तो चला गया हमें छोड़ कर हमेशाहमेशा के लिए, अभीअभी उस का क्रिमिशन कर के आ रहे हैं.’’

‘‘क्या, नहीं पापाजी, ऐसा नहीं हो सकता, कह दो यह  झूठ है, कह दो, एक बार कह दो कि यह  झूठ है,’’ और फोन हाथ से छूट गया और वह जारजार रोने लगी.

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