मैं फेस पर क्रीम इस्तेमाल करती हूं तो मेरी स्किन ड्राई लगने लगती है, मैं अब क्या करूं?

सवाल

मैं जब भी क्रीम का इस्तेमाल करती हूं तो स्किन ड्राई लगने लगती है. बताएं क्या करूं?

जवाब

स्किन में पानी और तेल का बैलेंस होना बहुत जरूरी है. अगर  तेल की कमी हो तो स्किन ड्राई हो जाती है. लेकिन जब पानी की कमी होती है तो डीहाइड्रेटेड हो जाती है. ऐसे में तेल लगाने से स्किन काली नजर आने लगती है. स्किन डीहाइड्रेटेड है इसलिए अपने फेस पर मौइस्चर का इस्तेमाल करें. यह आप की स्किन में तुरंत ऐब्जौर्ब हो जाएगी और फेस को बिना औयली किए मौइस्चराइज भी करेगी. वैसे आप अपने फेस को मौइस्चराइज करने के लिए ऐलोवेरा जैल का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. घरेलू उपाय के तौर पर पके हुए केले को शहद के साथ मैश कर के फेस पर लगाएं और फिर कुछ देर बाद पानी से धो लें. ऐसा हर हफ्ते करने से स्किन सौफ्टस्मूथ व मौइस्चराइज होगी.

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मेरी स्किन काफी ड्राई है. मेरे फेस पर ग्लो भी नहीं है. मु झे ग्लो लाने के लिए कौन सा फेशियल कराना चाहिए?

जवाब

जब स्किन में सेरामाइड की कमी होती है तो यह सूखापन और जलन पैदा कर सकती है. यह एक लिपिड है जो स्किन की सब से बाहरी परत में पाया जाता है और स्किन की नमी को बनाए रखने में मदद करता है. इस कमी से चेहरे का ग्लो भी खत्म होने लगता है. इसलिए आप ग्लो लाने के लिए  फेशियल का सहारा ले सकती हैं. आप की स्किन ड्राई है इसलिए आप को पोषण युक्त ऐसा फेशियल करवाना चाहिए जिस में नमी की मात्रा अधिक होआजकल हाइड्रा फेशियल अवेलेबल है जो ड्राई स्किन के लिए बहुत ही अच्छा है वरना अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड फेशियल भी मृत त्वचा को हटा कर त्वचा में नई ऊर्जा भर देता है. इस फेशियल को करवाने के बाद त्वचा रूखी नजर नहीं आती है. इस के साथसाथ ऐसी क्रीम का इस्तेमाल करें जिस में ऐलोवेरा और नियासिनमाइड दोनों हों.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

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Monsoon Special: वर्कआउट के लिए सही आउटफिट

कुछ लोग वर्कआउट के समय सही आउटफिट का चुनाव नहीं कर पाते जिस से उन्हें वर्कआउट करने में असहजता होती है. अत: ध्यान रहे वर्कआउट करते समय सब से ज्यादा जरूरी होता है कि आप कंफर्टेबल रहे. महिलाएं हमेशा फैशनेबल नजर आना चाहती हैं, मगर वर्कआउट के लिए आउटफिट चुनते समय स्टाइल से ज्यादा कंफर्ट का ध्यान रखें, अपनी पसंद और जरूरत के हिसाब से ही स्पोर्ट्स आउटफिट चुनें.

टीशर्ट, स्पोर्ट्स ब्रा, जूते, मोजे, लोअर आदि कैसे हों, आइए जानते हैं:

  •  अंदर की लेयर जल्दी पसीना सोखने वाली हो.
  • प्योर कौटन के बजाय पौलिस्टर, लायक्रा और सिंथैटिक ब्लैंड आउटफिट ज्यादा बेहतर होते हैं क्योंकि ये जल्दी सूख जाते हैं, साथ ही ये गरमी में आप को ठंडा और ठंड में गरम रखते हैं.

कैसी हो आउटफिट की फिटिंग

वर्कआउट के लिए ज्यादा टाइट और स्किनी आउटफिट पहनने से बचें क्योंकि टाइट कपड़ों में आप खुल कर ऐक्सरसाइज नहीं कर पाएंगे और आप को असहज महसूस होगा. ऐसे में शौर्ट या लोअर के साथ टीशर्ट पहनना बैस्ट रहता है. योग के लिए स्ट्रैचेबल आउटफिट का चुनाव करें. जौगिंग के लिए आप लूज और शौर्ट्स या कैप्री ट्राई कर सकते हैं.

गरमी का मौसम है तो ऐसे कपड़े चुनें जो हलके हों और आसानी से पसीना सोख सकें. वर्कआउट के दौरान आने वाले पसीने से बेचैनी भी न महसूस हो ताकि आप कंफर्टेबल रहें. इस के अलावा सर्दी के दिनों में ऐसे आउटफिट लें जो ठंड से बचाएं लेकिन ध्यान रहे कि ऐक्सरसाइज के दौरान भी पसीना आता है इसलिए खुद को इतना न ढकें कि आप को बेचैनी महसूस होने लगे. बारिश के दिनों में नमी और पसीना सोखने वाले कपड़ों का चुनाव करें.

  1. टीशर्ट

वर्कआउट या ऐक्सरसाइज करते समय कौटन की टीशर्ट न पहनें क्योंकि वह पसीने से भीग कर भारी हो जाती है फिर हम ऐक्सरसाइज नहीं कर पाते हैं. कौटन की जगह पौलिस्टर, लायक्रा और सिंथैटिक ब्लैंड कपड़े वाली टीशर्ट पहने वह आरामदायक होती है, पसीने से भीग कर भारी नहीं होती और आप आसानी से ऐक्सरसाइज कर सकते हैं.

2. स्पोर्ट्स ब्रा

वर्कआउट के दौरान आरामदायक अंडरगारमैंट्स और लड़कियों के लिए वर्कआउट करते समय स्पोर्ट्स ब्रा पहनना सब से जरूरी है ताकि वे अपनी ब्रैस्ट को सुडौल बनाए रखें. अगर आप हाई इंटैंसिव या हाई इंपैक्ट वर्कआउट करते हैं तो ऐसे समय हाई इंपैक्ट स्पोर्ट्स ब्रा पहननी चाहिए. यह ब्रैस्ट को सपोर्ट देती है जिस से ब्रैस्ट के टिशू डैमेज नहीं होते एवं ब्रैस्ट सुडौल बनी रहती हैं. वहीं स्पोर्ट्स ब्रा न पहनने से स्ट्रैच मार्क्स होने का डर बना रहता है. इस के साथ ही स्पोर्ट्स ब्रा आप के लुक को और बेहतर बनाती है.

3. सही फुटवियर चुनें

वर्कआउट के लिए जूते हलके और आरामदायक होने चाहिए. अगर आप घर में ही ऐक्सरसाइज करते हैं तो भी चप्पलों में न करें बल्कि अच्छे स्पोर्ट्स वियर और आरामदायक जूतों में ही वर्कआउट करें. इस से चोट लगने का खतरा कम रहता है. ध्यान रखें कि ये हलके, फ्लैक्सिबल, ऐंटीस्किट और स्पोर्टिव होने चाहिए. कई बार सही फुटवियर का चुनाव न होने पर पैरों में दर्द होने लगता है और घुटनों पर भी इस का असर पड़ता है.

4. लोअर या ट्रैक पैंट

ऐक्सरसाइज करने के लिए ऐसे लोअर या ट्रैक पैंट का चुनाव करें जो आसानी से स्ट्रैच हो जाए यानी मुड़ जाएं. उसे पहन कर आप आसानी से ऐक्सरसाइज कर पाए. आप को किसी तरह की कोई दिक्कत या परेशानी न हो. इस के लिए मार्केट में बहुत सारे विकल्प हैं जैसे योगा पैंट, स्ट्रैच पैंट, स्पोर्ट लैगिंग्स. ये सिर्फ आरामदायक ही नहीं होते हैं बल्कि इन्हें पहनने के बाद लुक भी स्टाइलिश लगने लगता है.

5. सौक्स

वर्कआउट करते समय पैरों में भी पसीना आता है इसलिए ऐसे मोजों या सौक्स का चुनाव करें जो पसीना अच्छे से सोख सकें, मुलायम हों और कौटन की हों. वर्कआउट के लिए बनी खास तरह की सौक्स ही पहनें. कई बार सौक्स का गलत चुनाव भी पैरों में असहज महसूस कराता है.

यदि आप चाहते हैं कि वर्कआउट करते समय कंफर्टेबल रहें तो इन बातों का रखें ध्यान:

  •  जिम जाते समय अपने बालों को बांध लें ताकि वर्कआउट करते समय आप के बाल आप के मुंह पर न आएं और आप आसानी से वर्कआउट/ऐक्सरसाइज कर पाएं.
  • वर्कआउट करते समय कभी फाउंडेशन न लगाएं क्योंकि ऐक्सरसाइज करते समय पसीना आता है और मेकअप होने की वजह से फेस के पोर्स बंद हो जाते हैं और पसीना ठीक से बाहर नहीं निकल पाता है. इस वजह से फेस पर पिंपल निकल सकते हैं.
  • ड्राई स्किन वाले क्रीम या मौइस्चराइजर लगा सकते हैं. अगर धूप में ऐक्सरसाइज करने जा रहे हैं तो सनस्क्रीन लगा सकते हैं.

एक डाली के फूल: भाग 1- किसके आने से बदली हमशक्ल ज्योति और नलिनी की जिंदगी?

इंटर की परीक्षा पास कर नलिनी ने जिस कालेज में प्रवेश लिया, इत्तफाक से उस की हमशक्ल ज्योति नाम की एक लड़की ने भी उसी कक्षा में दाखिला लिया. शुरूशुरू में तो लोग समझते रहे कि दोनों सगी जुड़वां बहनें होंगी परंतु जब धीरेधीरे पता चला कि ये बहनें नहीं हैं तो सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ.

लोगों के आश्चर्य का तब ठिकाना न रहा जब ज्योति ने बताया कि वह इस वर्ष ही कानपुर से यहां आई है और नलिनी को जानती तक नहीं. इस चर्चा के कारण दोनों गहरी मित्र बन गईं. ज्योति तो बहुत मेधावी व चंचल थी परंतु नलिनी थोड़ी संकोची व अपने में सिकुड़ीसिमटी. ज्योति जीवन की भरपूर हिलोरे लेती नदिया सी लहराती बहती दिखती थी, वहीं नलिनी शांत, स्थिर जल के समान थी. यही अंतर दोनों में भेद रख सकता था वरना यदि दोनों को समान वेशभूषा व समान बालों की बनावट कर खड़ा कर दिया जाता तो उन के अभिभावक तक धोखा खा सकते थे.

धीरेधीरे यह बात उन के घरों तक भी पहुंची. नलिनी के घर में कोई तवज्जुह न दी गई. हंसीहंसी में बात उड़ गई. शायद विपुला की स्मरणशक्ति भी धूमिल पड़ चुकी थी. वकील साहब यानी नलिनी के पिता ने एक कान से सुनी, दूसरे से निकाल दी. वैसे भी वे बेटियों को महत्त्व ही कब देते थे.

किंतु ज्योति के पिता डा. प्रशांत ने जब यह सुना तो उन्हें थोड़ा ताज्जुब हुआ चूंकि उन की एकमात्र संतान ज्योति ही थी, वे उस की खुशियों का इतना अधिक खयाल रखते थे कि उस की छोटीछोटी बातों को भी पूरा कर के उन्हें संतोष मिलता था. पत्नी नवजात शिशु को जन्म देते ही इस दुनिया से चल बसी थी. वे इसी बच्ची को चिपकाए रहे. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की. उन की सारी खुशियां ज्योति के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थीं.

ज्योति के कालेज में  वार्षिकोत्सव था. डा. प्रशांत हमेशा की भांति वहां गए. ज्योति अपनी सहेली नलिनी को अपने पिता से मिलवाने ले गई. नलिनी ने दोनों हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया. डा. प्रशांत तो यह समानता देख ठगे से रह गए. वे एकटक निहारते रहे. यह देख ज्योति उन की आंखों के आगे हाथ से पंखा करती हंसती हुई बोली, ‘‘पिताजी, कहां खो गए? है न बिलकुल मेरी तरह?’’

वे मानो उस को देखते ही अपनी सुधबुध क्षणभर को खो बैठे थे. सामान्य होते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

सकुचाते हुए वह बोली, ‘‘नलिनी.’’

‘‘तुम्हारे मातापिता भी आए हैं?’’

नलिनी दुखी स्वर में बोली, ‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं, शायद दिलचस्पी नहीं ली है.’’

वे एक कटु मुसकान छोड़ उसे पुचकारते से स्वर में बोले, ‘‘अच्छा बेटा, जाओ.’’

ज्योति नलिनी का हाथ पकड़ उछलतेकूदते छात्राओं की पंक्ति में जा कर बैठ गई. डा. प्रशांत कार्यक्रम तो जरूर देख रहे थे पर उन का ध्यान कहीं दूसरी ओर था. बैठेबैठे उन्हें ध्यान आया कि नलिनी के घर का पता व फोन नंबर पूछना तो वे भूल ही गए. ज्यों ही समारोह समाप्त हुआ उन की बेटी ज्योति पास आई और बोली, ‘‘पिताजी, नलिनी को भी ले चलें. उस के घर पर छोड़ देंगे.’’

‘‘क्यों, क्या उस के घर से उसे लेने कोई नहीं आया?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है, उस का भाई आया होगा. परंतु मैं उस का घर देखना चाहती हूं.’’

‘‘अच्छा, ठीक है.’’

नलिनी का भाई सचमुच मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. परंतु ज्योति ने हठ कर के उसे अपने साथ कार में बैठा लिया. नलिनी भी कुछ न बोली. इसी बहाने डा. प्रशांत ने भी उस का घर देख लिया. वह उतरने लगी तो उन्होंने पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारे यहां फोन है?’’

‘‘घर पर नहीं है, पिताजी के दफ्तर में है.’’

‘‘जरा नंबर बताना,’’ डा. प्रशांत ने जेब से छोटी डायरी निकाली और नंबर नोट किया.

नमस्ते व धन्यवाद कह कर नलिनी घर में चली गई.

डा. प्रशांत रातभर ठीक से सो न सके. बड़ी उथलपुथल सी उन के हृदय में मची रही. 2 लड़कियों की शक्लसूरत व उम्र की इतनी समानता देख वे दुविधा में पड़ गए थे. अगले दिन उन्होंने नलिनी के पिता को फोन किया. उन्होंने फोन पर ही अपना पूरा परिचय दिया और पूछा, ‘‘क्या आप की बेटी नलिनी का जन्म 4 जनवरी, 1974 को कानपुर के भारत अस्पताल में हुआ था?’’

उधर वकील साहब का स्वर गूंजा, ‘‘बिलकुल सही फरमाया आप ने. तारीख और सन मुझे इसलिए भी याद है क्योंकि मेरे बेटे की जन्मतिथि भी वही है. समय मैं बता देता हूं, रात के करीब 12 बज कर 10 मिनट.’’

डा. प्रशांत फोन पर ही चकित हो उठे. इसी समय के आसपास तो उन की बेटी भी पैदा हुई थी. उन्होंने मन ही मन सोचा, ‘अभी तक किस्सेकहानियों में ही ऐसी बातें पढ़ने को मिलती थीं लेकिन क्या वास्तविक जीवन में भी ऐसा हो सकता है?’ उन का जिज्ञासु वैज्ञानिक मन यह मानने को बिलकुल तैयार नहीं था कि समान कदकाठी के चेहरेमोहरे की 2 लड़कियां 2 भिन्न परिवारों में पैदा हो सकती हैं.

डा. प्रशांत बड़े चुपचाप से रहने लगे, कहीं खोएखोए से. घंटों सोचा करते, पर कोई निष्कर्ष निकालने में सफल न हो पाते. ज्योति भी पिता की इस स्थिति से अनभिज्ञ न थी. परंतु उन के दुख व चिंता का कारण भी वह न समझ पा रही थी. एक दिन पिता के गले झूलते हुए बोली, ‘‘क्या मुझ से कोई गलती हो गई, पिताजी?’’

‘‘नहीं, बेटे.’’

‘‘फिर आप इतना गुमसुम क्यों रहते हैं? मुझे आप का इतना गंभीर होना बहुत खलता है, पिताजी.’’

डा. प्रशांत बेटी के गाल थपथपा कर हंस दिए और बोले, ‘‘बेटा, तुम अपनी सहेली को इतवार के दिन घर ले आना, हम सब बैडमिंटन खेलेंगे.’’

ज्योति खुशीखुशी चली गई. डा. प्रशांत का वैज्ञानिक दिमाग कुछ परीक्षण कर लेना चाहता था.

इतवार को गाड़ी ले ज्योति अपनी सहेली के घर उसे लाने गई तो डा. प्रशांत लौन में ही बेचैनी से टहलते रहे और सोचते रहे, अपने परीक्षण के विषय में. इंतजार में घडि़यां बीत रही थीं और ज्योति का कहीं अतापता न था. अंत में गाड़ी बंगले में दाखिल हुई.

परंतु यह क्या? नलिनी तो उस के साथ नहीं थी. यह तो कोई और ही लड़की थी.  ज्योति को क्या मालूम कि उस के पिता के दिमाग में क्या गूंज रहा है या वह किस विशेष सहेली को लाने को बोले थे. वह पास आते हुए बड़ी शान से बोली, ‘‘चलिए, अब खेलते हैं. गीता बेजोड़ है बैडमिंटन में.’’

डा. प्रशांत इस पर क्या बोलते, उन का तो तीर खाली चला गया था. वे धीरे से बोले, ‘‘और वह तुम्हारी सहेली क्या नाम बताया था, हां, नलिनी, उसे क्यों नहीं लाईं?’’

ज्योति हंस दी, ‘‘पिताजी, उसे खेलने में विशेष दिलचस्पी नहीं है.’’

डा. प्रशांत ने मन ही मन अपने को कोसा. चूंकि वे बेटी से वादा कर चुके थे. इसलिए बड़े मरे मन से बैडमिंटन खेलने लगे. बच्चों के साथ खेलतेखेलते थोड़ी देर को वास्तव में भूल गए अपने परीक्षण व परिणाम को और उन के साथ नोकझोंक करते खेलने लगे.

एक दिन इत्तफाक से नलिनी स्वयं अपने भाई के साथ डा. प्रशांत के क्लीनिक पहुंच गई. उस के गाल में सूजन आ गई थी. अंदर की दाढ़ में काफी दर्द था. डा. प्रशांत को तो मानो बिना लागलपेट के परीक्षण करने का सुराग हाथ लग गया था. कहां तो उन्होंने सोचा था कि ज्योति जब नलिनी को ले कर घर आएगी तो खेल तो एक बहाना होगा, वास्तव में तो उस का दंत परीक्षण मजाकमजाक में कर अपनी शंका दूर करेंगे.

उन्होंने नलिनी का मुख खोल कर परीक्षण किया. उस का इलाज तो किया ही साथ ही, यह भी नोट किया कि नलिनी के पीछे संपूर्ण दांत न हो कर केवल 2 ही दांत हैं. सुबह उन्होंने ज्योति को बुलाया और उस का दंत परीक्षण किया. वे दंग रह गए. उस के भी पीछे केवल 2 ही दांत थे. उन्हें विश्वास हो गया कि ज्योति व नलिनी दोनों जुड़वां ही हैं. जरूर किसी ने बीच में शरारत की है. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन की एक बेटी किसी ने चुराई हो? उन का मन व्याकुल हो उठा. डा. प्रशांत तो पत्नी के प्रसव से 8 माह पूर्व ही विदेश चले गए थे. उन्हें तो जब पत्नी के निधन का समाचार मिला था तब भागे चले आए थे.

Top 10 Best Father’s Day Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फादर्स डे कहानियां हिंदी में

Father’s Day Stories in Hindi: एक परिवार की सबसे अहम कड़ी हमारे माता-पिता होते हैं. वहीं मां को हम जहां अपने दिल की बात बताते हैं तो वहीं पिता हमारे हर सपने को पूरा करने में जी जान लगा देते हैं. हालांकि वह अपने दिल की बात कभी शेयर नहीं कर पाते. हालांकि हमारा बुरा हो या अच्छा, हर वक्त में हमारे साथ चट्टान बनकर खड़े होते हैं. इसीलिए इस फादर्स डे के मौके पर आज हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की  Best Father’s Day Story in Hindi, जिसमें पिता के प्यार और परिवार के लिए निभाए फर्ज की दिलचस्प कहानियां हैं, जो आपके दिल को छू लेगी. साथ ही आपको इन Father’s Day Stories से आपको कई तरह की सीख भी मिलेगी, जो आपके पिता से आपके रिश्तों को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए Grihshobha की Best Father’s Day Story in Hindi.

1. Father’s Day Story 2023: पिता का वादा

मुदित के पिता अकसर एक महिला से मिलने उस के घर जाया करते थे. कौन थी वह महिला और क्यों मुदित उस महिला के बारे में सबकुछ जानना चाहता था…

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2. Father’s Day Story 2023: अंतराल- क्या बेटी के लिए पिता का फैसला सही था?

चंद मुलाकातों के बाद ही सोफिया और पंकज ने शादी करने का निर्णय कर लिया. पर सोफिया के पिता द्वारा रखी गई शर्त सुनने पर पंकज ने शादी से इनकार कर दिया.

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3. Father’s Day Story 2023: अब तो जी लें

पिता के रिटायरमैंट के बाद उन के जीवन में आए अकेलेपन को दूर करने के लिए गौरव व शुभांगी ने ऐसा क्या किया कि उन के दोस्त भी मुरीद हो गए…

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4. Father’s day Story 2023: फादर्स डे- वरुण और मेरे बीच कैसे खड़ी हो गई दीवार

नाजुक हालात कहें या वक्त का तकाजा पर फादर्स डे पर हुई उस एक घटना ने वरुण और मेरे बीच एक खामोश दीवार खड़ी कर दी थी. इस बार उस दीवार को ढहाने का काम हम दोनों में से किसी को तो करना ही था.

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5. Father’s Day Story : दूसरा पिता- क्या दूसरे पिता को अपना पाई कल्पना

पति के बिना पद्मा का जीवन सूखे कमल की भांति सूख चुका था. ऐसे में कमलकांत का मिलना उस के दिल में मीठी फुहार भर गया था. दोनों के गम एकदूसरे का सहारा बनने को आतुर हो उठे थे. परंतु …

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6. Father’s day Stories : कोरा कागज- घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

बच्चे अपने मातापिता की सख्ती के चलते घर से भागने जैसी बेवकूफी तो कर देते हैं, लेकिन इस की उन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ती है उस से अनजान रहते हैं. इस दर्द से राहुल भी अछूता नहीं था…

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7. Father’s Day 2023: चेहरे की चमक- माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

गुंजन व रवि ने अपने मातापिता की खुशियों के लिए एक ऐसा प्लान बनाया कि उन के चेहरे की चमक एक बार फिर वापस लौट आई. आखिर क्या था उन दोनों का प्लान?

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 8. Father’s Day 2023: जिंदगी फिर मुस्कुराएगी- पिता ने बेटे को कैसे रखा जिंदा

दानव की तरह मुंह फाड़े मौत के आगे सोनू की नन्ही सी जिंदगी ने घुटने तो टेके पर हार नहीं मानी. उस के मातापिता के एक फैसले ने मरणोपरांत भी उसे जीवित रखा क्योंकि जिंदगी का मकसद ही मुसकराना है.

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9. Father’s Day 2023: परीक्षाफल- क्या चिन्मय ने पूरा किया पिता का सपना

मानव और रत्ना को अपने बेटे चिन्मय पर गर्व था क्योंकि वह कक्षा में हमेशा अव्वल आता था, उन का सपना था कि चिन्मय 10वीं की परीक्षा में देश में सब से अधिक अंक ले कर उत्तीर्ण हो.

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10. Father’s Day Story 2023: बाप बड़ा न भैया- पिता की सीख ने बदली पुनदेव की जिंदगी

 

5 बार मैट्रिक में फेल हुए पुनदेव को उस के पिता ने ऐसी राह दिखाई कि उस ने फिर मुड़ कर देखा तक नहीं. आखिर ऐसी कौन सी राह सुझाई थी उस के पिता ने.

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क्या होती है पिता और बच्चे की बोन्डिंग? जानें एक्टर पवन चोपड़ा से

छोटे और बड़े पर्दे पर न जाने पिता के कितने ही भूमिका निभा चुके अभिनेता पवन चोपड़ा से कोई अपरिचित नहीं. हैंड्सम और वेलबिल्ट पिता, जो कभी किसी बेटी के, तो कभी किसी बेटे के व्यवसायी पिता बन दर्शकों को पिता की भूमिका से परिचय करवाया है. वे कहते है कि पर्दे पर पिता बनना और रियल में पिता बनने में बहुत फर्क है.

पर्दे का पिता अधिक दोस्ताना रिश्ता नहीं रखता, जितना मैं रियल लाइफ में अपने बच्चों के साथ रखता हूँ. मैंने बहुत सारी पिता की अलग-अलग भूमिका निभाई है, लेकिन लड़की के पिता में जो इमोशन आती है, वह सबसे अधिक प्यारा होता है. मुझे किसी लड़की का पिता बनना बहुत पसंद होता है, क्योंकि इसमें लड़की भी जो एक्टिंग करती है, उसे भी अपने पिता की याद आती है, क्योंकि लड़कियां हमेशा अपने पिता के करीब होती है, इससे अभिनय में एक स्पार्क दिखता है. पर्दे पर फिक्स्ड इमोशन पर काम होता है, मसलन पहले पिता ने किसी बात को मना करना, गुस्सा होना और अंत में मान जाना. मुझे याद आता है जब मैं रियल लाइफ में 15 दिनों बाद घर आया और मेरी डेढ़ साल की बेटी मेरे गले से लिपट गई, तो ये मेरे लिए प्योरेस्ट लव है, जो मुझे बेटी से मिला.

रियल लाइफ में पवन बेटे शौर्या चोपड़ा और बेटी मान्या चोपड़ा के पिता है और पिता बनना या उसकी भूमिका निभाना उनके जीवन का एक खुबसूरत एहसास है, फिर चाहे वह बेटी की पिता हो या बेटे के, एक भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते है. खासकर एक बेटी के पिता बनने को वे एक वरदान मानते है, जिसके एहसास को शब्दों में बयां करना संभव नहीं. वे कहते है कि पिता बनने का सही अर्थ तब अधिक मुझे समझ में आया जब मैं खुद पिता बना. एक पिता, बिना नोटिस के परिवार को बहुत सहयोग देता है, जिसे उसका कर्तव्य समझा जाता है.

पिछले 23 सालों से इंडस्ट्री में काम कर रहे अभिनेता पवन चोपड़ा, अब तक कई हिंदी फिल्मों में नजर आ चुकें हैं, जिनमे मोक्ष, तहजीब, कर्म, मायका, शापित: द कर्सड, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई, दुबारा, मिलियन डॉलर आर्म ,दिल धडकने दो, एयरलिफ्ट आदि शामिल हैं. फिल्मों के अलावा उन्होंने टीवी सीरीज और वेब सीरीज भी किये है. उनका कहना है कि मेरे पिता नरेंदर चोपड़ा के साथ मेरा अधिक जुड़ाव नहीं था, क्योंकि मैं उनसे डरता था और माँ इंदिरा चोपड़ा के बहुत करीब था, हालाँकि तब टीवी नई-नई आई थी और वे अधिक टीवी देखते थे, इसलिए मैंने भी उसी फील्ड में जाना उचित समझा.

मैं हरियाणा के हिसार का हूँ. 15 साल तक वही था. दिल्ली 10 साल रहा और बाद में मुंबई आया और जब मैं  अभिनय करने लगा था. तब मैने पिता को समझने की कोशिश की और हमारी बोन्डिंग अच्छी हो गयी थी. असल में जब मैं 12 वीं में था तो मेरे पिता रिटायर्ड हो चुके थे. मैं चौथे नंबर पर था और मेरे बड़े होने तक मेरे बहन और भाइयों की शादी हो चुकी थी. मैं अकेला ही बड़ा हुआ हूँ, क्योंकि तब मेरे पिता की भी उम्र हो चली थी. मेरे पिता बहुत ही रिलैक्सड पर्सन थे, मैंने भी उनसे यही सीखा है.

खुद पिता बनने के अनुभव के बारें में पवन कहते है कि मैंने अपने दोनों बच्चों को हमेशा बहुत समय दिया है, उनके साथ रहने की कोशिश की है. जब मेरे बच्चे हुए तो मैंने उनके साथ दोस्ती का रिश्ता रखा, दूरी कभी नहीं रखा. वे जो भी बोलते है, उसे मैं स्वीकार करता हूँ और अगर कुछ समझाने की जरुरत हो तो समझाता भी हूँ. आज की जेनरेशन समझदार है, उनकी रेस्पेक्ट करनी पड़ती है, उन्हें समझना पड़ता है. इसके अलावा मैं सारें यंग बच्चों के साथ अभिनय करता हूँ. बहुत कुछ वहां से भी मैं सीखता हूँ. मेरे बच्चे मुझसे बहुत इंस्पायर्ड है और उन्होंने इस छोटी उम्र में अभिनय भी किये है. विज्ञापनों और एक फिल्म ‘नीरजा’ में उनके अभिनय को काफी सराहना मिली.

इसके आगे पवन कहते है कि आज के पिता का रिश्ता बच्चों से पहले के पिता से बहुत अलग हो चुका है, ऐसे में पिता से अधिक वे अपने बच्चों के दोस्त होते है, ऐसे में बच्चे भी सारी बातें शेयर करने से कभी हिचकिचाते नहीं, क्योंकि पिता उन्हें जज नहीं करते. बच्चों को कई बातें पता नहीं होती, ऐसे में पिता के क्लोज रहने से वे इसे शेयर करते है और एक अच्छी इमोशनल बोन्डिंग पिता के साथ बनती है. मेरा सभी पिता के लिए मेसेज है कि अधिक जजमेंटल न बने, आज के बच्चे इन्टरनेट की वजह से बहुत जागरूक है. उनके पास बहुत सारी इनफार्मेशन है. उनके जजमेंट की रेस्पेक्ट करें.

गर्विता: क्या अपने सपनों को पंख दें पाएगी वो?

‘‘दवाखा लो मां,’’ गर्विता ने अपनी बीमार मां को पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘तुम कभी समय से दवा नहीं खातीं.’’

मां कोई जवाब दे पातीं उस से पहले ही गर्विता का फोन बजने लगा. उस ने देखा धीरज का फोन था.

गर्विता अभी कुछ सोच ही रही थी कि मां बोल उठीं, ‘‘वह इतने दिनों से फोन कर रहा है उठा कर बात क्यों नहीं कर लेती.’’

कुछ सोच कर उस दिन गर्विता ने फोन

उठा लिया.

‘‘तुम्हें कितने दिनों से फोन मिला रहा हूं उठाती क्यों नहीं?’’ उधर से तड़क कर धीरज ने पूछा, ‘‘मां बीमार हैं अपने पोते को बहुत याद कर रही हैं. तुम वापस कब आओगी? कल ही आ जाओ युग को ले कर और हां अब अपनी मां की बीमारी का बहाना मत बनाना. तुम ने 2 साल निकाल दिए… कभी पापा बीमार हैं, कभी मां. ऐसे भी कोई मांबाप अपनी बेटी को घर बैठा लेते हैं. मेरा बेटा भी मु झे ठीक से नहीं जानता. मु झे कुछ नहीं सुनना… कल के कल ही आ जाओ,’’ कह कर धीरज ने फोन काट दिया.

न सलाम न किसी का हालचाल ही पूछा. गर्विता न कुछ बोल सकी न उस ने कुछ बोलने का मौका ही दिया. बस एक हुक्म सा सुना कर फोन काट दिया.

गर्विता ने आंगन में खेलते युग की तरफ देखा तो पुरानी सब यादें ताजा हो गईर्ं. धीरज का फोन जैसे उस के पुराने जख्मों को हरा कर गया. उसे वह दिन याद आ गया जब शादी के 7 साल बाद उसे और धीरज को पता चला था कि वे मातापिता बनने वाले हैं. वे दोनों बेहद खुश थे, वो ही क्या परिवार में सभी खुश थे. सभी को इस खुशखबरी का कब से इंतजार था आने वाले नन्हे मेहमान के लिए.

रोज नए सपने सजातेसजाते 9 महीने कब बीत गए गर्विता को पता ही नहीं चला

और फिर उस के जीवन में वह खूबसूरत दिन आया जब उस ने एक नन्हे से राजकुमार को जन्म दिया. सासससुर तो अपना वंशज पा कर बेहद खुश थे. पोते के जन्म पर धीरज की मां बहू की बालाएं लेती नहीं थक रही थीं.

गर्विता युग को ले कर अस्पताल से घर

आई तो घर वालों ने उस का जोरदार स्वागत किया. उस ने सोचा सबकुछ है मेरे पास एक बच्चे की कमी थी वह भी युग ने पूरी कर दी.

वह मन ही मन बुदबुदाई कि यों ही कहते हैं कि कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.

उस का मन कर रहा था कि जोर से चिल्ला कर सब से कहे कि मेरी दुनिया देख लो यहां कोई कमी नहीं.

मगर गर्विता नहीं जानती थी कि उस की दुनिया कैसे उलटपलट होने जा रही थी. उस की खुशी को जैसे उस की अपनी ही नजर लगने वाली थी.

अभी युग को पैदा हुए 1 हफ्ता ही हुआ

था कि गर्विता को धीरज का व्यवहार कुछ बदलाबदला सा लगने लगा. गर्विता खुद भी

नई परिस्थितियों में ढलने की कोशिश कर रही

थी और इस वक्त उसे सब से ज्यादा धीरज के साथ की जरूरत थी, लेकिन वह तो रोज एक

नई शिकायत करने लगा था. कभी कहता

तुम्हारे पास तो मेरे लिए वक्त ही नहीं है, कभी कहता इस कमरे में हर समय बच्चों के डायपरों और दूध की बदबू आती रहती है. उस ने

गर्विता का हाथ बंटाना बिलकुल बंद कर

दिया था.

एक दिन बोला, ‘‘मैं तुम्हारे साथ इस

कमरे में नहीं रह सकता. युग के रोने की वजह से मेरी नींद बहुत खराब होती है,’’ और अपना तकिया ले कर दूसरे कमरे में सोने चला गया. वह भूल चुका था कि गर्विता भी नईनई मां बनी है और उसे युग के साथसाथ अपना भी खयाल रखना है क्योंकि उस के प्रसव को अभी सिर्फ 1 ही हफ्ता हुआ था.

धीरज में अचानक आए इस बदलाव से गर्विता अचंभित थी, फिर भी उस ने सोचा कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. एक दिन उस ने

युग के लिए कुछ सामान मंगवाया पर जब वह पहुंचा तो धीरज ने कहा, ‘‘तुम कुछ कमाती तो

हो नहीं बस दिनरात मेरा पैसा उड़ा रही हो. मेरे पास तुम्हारे फुजूल खर्च के लिए पैसे नहीं हैं.

खुद कमाओगी तो पता चलेगा. पैसे पेड़ पर

नहीं उगते.’’

धीरज की यह बात गर्विता को अंदर तक तोड़ गई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि उस

की गलती क्या है. क्यों धीरज उस से इस तरह पेश आ रहा. यों ही कशमकश में कुछ दिन और बीत गए. गर्विता को आभास हो रहा था कि रोज धीरज उस से दूर होता जा रहा है फिर भी वह

खुद को धैर्य बंधा रही थी कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

मगर उस रोज गर्विता के सब्र का बांध

टूट गया जब धीरज ने शराब पी कर गुस्से में उस से कहा, ‘‘खुद को आईने में देखो कितनी मोटी होती जा रही हो. दिनभर बैठ कर बस खाती ही रहती हो. कुछ काम भी किया करो. मैं ने तुम से शादी कर के बहुत बड़ी गलती की. न तुम से शादी करता और न ही यह मुसीबत पैदा होती. जा कर अपनी मां से अपनी सेवा करवाओ. जितना दूध यहां अपने और अपने बेटे के लिए मंगवाती हो वहां अपनी मां के घर में मंगवाना. सब लड़कियां प्रसव के समय मायके जाती हैं. एक तुम हो यहां मेरी छाती पर मूंग दल रही हो. कल तुम्हें तुम्हारी मां के घर छोड़ आऊंगा. जब यह

6 महीने का हो जाए लौट आना. जब से पैदा

हुआ है एक रात चैन से नहीं सोया, ऊपर से

इतना खर्चा.’’

गर्विता तो यह सब सुन कर सन्न रह गई. उस से कुछ कहते नहीं बना. बस रोती ही जा रही थी. उस की सास ने उसे सम झाया कि अभी धीरज नशे में है मैं सुबह उस से बात करूंगी.’’

यह क्या तरीका है अपनी पत्नी से बात करने का और कौन सा बाप अपने बेटे के बारे में इस तरह सोचता है.

सुबह हुई तो धीरज के मांबाप ने उसे सम झाने की, कोशिश की लेकिन वह नहीं माना और गर्विता को उस के मायके छोड़ आया. उस ने वहां से चलतेचलते अपनी बात फिर दोहराई कि जब युग 6 महीने का हो जाए खुद लौट आना. यह कह कर चला तो आया लेकिन उसे इस बात का जरा भी एहसास नहीं हुआ कि वह जिसे अपने घर से ले कर चला था और जिस गर्विता को छोड़ कर जा रहा है. वह तो अलग गर्विता थी. ससुराल से मायके तक आतेआते गर्विता ने कभी न लौटने का निश्चय कर लिया था. उस ने सोच लिया था कि वह अपने पैरों पर खड़ी होगी और अपने बेटे को खुद अकेली पालेगी साथ ही यह भी कि उस के बेटे को ऐसी घटिया सोच वाले बाप की जरूरत नहीं है.

मायके आ कर गर्विता ने अपने मातापिता को सारी बात बताई तो उन्होंने भी उस का पूरा साथ देने का वादा किया. अब उसे युग की चिंता नहीं थी क्योंकि उस की देखभाल करने के लिए उस की नानी जो थीं. गर्विता ने कुछ दिनों में खुद को समेटा. धीरज से शादी कर के वह भूल गई थी कि उस ने एमबीए किया है. वह जानती थी इतने लंबे समय के बाद उसे कहीं नौकरी नहीं मिलेगी इसलिए उस ने अपना ही कुछ काम करने का मन बनाया.

उसे अपनी एक सहेली का खयाल आया

जो कैलिफोर्निया में इंडियन स्टोर चलाती

थी और कई बार गर्विता को बता चुकी थी कि वहां हिंदुस्तानी चीजों की कितनी मांग है. उस ने अपनी सहेली को फोन लगाया और उस से बात की कि वह हिंदुस्तान से उसे हस्तशिल्प और हथकरघा का सामान भेजेगी जिसे वह सीधे कारीगरों से खरीदेगी ताकि उन की बनाई हुई चीजें सीधी विदेश भेजी जाएं और उन्हें भी अच्छा मुनाफा हो.

गर्विता की सहेली को उस की बात पसंद आई और उस ने मदद का वादा किया. धीरेधीरे गर्विता का काम चल निकला. दूसरे शहरों और देशों में भी उस के सामान की मांग होने लगी. ज्यादा फायदा होने के कारण काफी कारीगर उस के साथ जुड़ गए थे. अब वह अपना एक ऐक्सपोर्ट हाउस शुरू करने जा रही थी.

इन सालों में गर्विता को धीरज का खयाल तो कई बार आया, लेकिन वह कभी यह फैसला नहीं कर सकी कि उसे उस रिश्ते का करना क्या है. कभीकभी सोचती थी कि कहीं वह युग के साथ अन्याय तो नहीं कर रही. आखिर एक बच्चे को मांबाप दोनों की जरूरत होती है.

आज धीरज का बरताव देख कर वह फैसला करने ही जा रही थी कि पापा ने आवाज लगाई, ‘‘बेटा. बावर्ची ने खाना परोस दिया है,

आ जाओ.’’

पापा की आवाज जैसे उसे वर्तमान में वापस खींच लाई. उस ने नजर उठा कर देखा तो नन्हा युग अपने नाना के कंधे पर बेसुध सो रहा था. उसे देख कर वह उठी उस के सिर पर हाथ फेर कर मन ही मन बोली कि इसे उस घटिया बाप की जरूरत नहीं. इस के पास मेरे पापा हैं, जिन्होंने मु झे इस लायक बनाया कि आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं.

अगले दिन सुबह अपनी अलमारी से कुछ कागज निकाल कर गर्विता जींसटौप

और पैंसिल हील पहन कर धीरज के घर पहुंची तो वह उसे देख कर चकित रह गया फिर भी खुद को संभाल कर कड़क कर बोला, ‘‘अकेली आई हो, मेरा बेटा युग कहां है? तुम से कहा था उसे ले कर आना.’’

तभी धीरज के मातापिता भी आ गए. गर्विता ने आदर से उन्हें नमस्ते की और अपनी सास की तबीयत पूछी.

तभी धीरज बोल पड़ा, ‘‘मां बीमार हैं तुम्हें यहां आ कर उन की सेवा करनी चाहिए. अब उन से घर का काम नहीं होता.’’

आज गर्विता से चुप न रहा गया. अत: बोली, ‘‘मेरे मातापिता भी बीमार थे. तुम उन्हें एक बार भी देखने आए? आना तो छोड़ो तुम ने तो फोन पर भी उन का हाल तक नहीं पूछा, फिर मु झ से यह उम्मीद तुम्हें क्यों है कि मैं तुम्हारे घर आ कर उन की देखभाल करूंगी और आज जिसे तुम बारबार अपना बेटा कह रहे हो याद करो उस के दूध तक का खर्चा तुम उठाना नहीं चाहते थे. एक बात बता दूं धीरज सिर्फ जन्म देने से कोई आदमी बाप नहीं बन जाता.’’

हमेशा चुप रहने वाली गर्विता के मुंह से इतनी बात सुन कर धीरज सकते में आ गया, लेकिन पुरुष होने का कुछ अहं अभी बाकी था सो उस ने अपना तुरुप का पत्ता निकाला, ‘‘ठीक है, अगर तुम्हें इतनी शिकायतें हैं तो मैं तलाक के कागज बनवा कर तुम्हारे घर भेज दूंगा, दस्तखत कर देना.’’

इस के लिए तो गर्विता तैयार

ही थी. अपने पर्स से एक कागज निकाल कर धीरज से बोली, ‘‘इतनी तकलीफ करने की कोई जरूरत नहीं. कागज मैं ने बनवा लिए हैं, दस्तखत भी कर दिए हैं. तुम भी दस्तखत कर देना और हां न ही मु झे तुम से कुछ चाहिए न ही मैं तुम्हें कुछ दूंगी, युग भी नहीं,’’ कह कर वह वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी कि उस ने दोबारा अपने पर्स में हाथ डाला और एक निमंत्रणपत्र निकाल कर धीरज के हाथ में थमा दिया, ‘‘तुम ने कहा था न खुद कमाओ, कल मेरे ऐक्सपोर्ट हाउस का उद्घाटन है, युग ऐक्सपोर्ट्स, सपरिवार आना, मु झे अच्छा लगेगा.

‘‘यों तो तुम्हारे दिए जख्मों को कभी भूल नहीं पाऊंगी लेकिन सिर्फ एक बात के लिए हमेशा तुम्हारी शुक्रगुजार रहूंगी. अगर तुम मु झे मेरे मायके छोड़ कर नहीं आए होते तो मैं आज वह नहीं होती जो हूं. मेरे मातापिता ने मु झे नाम दिया था गर्विता लेकिन तुम ने मु झे गर्विता बनाया है. आज मु झे अपनेआप पर गर्व है,’’ कह कर गर्विता पलट कर बाहर निकल गई.

धीरज अपना सिर पकड़ कर वहीं बैठा रह गया. उस की मां ने उस के सिर पर हाथ रखा और धीरे से बोलीं, ‘‘बेटा जो बोया पेड़ बबूल का तो फूल कहां से होय.’’

इधर गर्विता अपनेआप को आजाद और बहुत हलका महसूस कर रही थी, लेकिन धीरज के घर से निकलतेनिकलते उसे आज फिर 2 पंक्तियां याद आ गईं?

‘‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कहीं जमीन नहीं मिलती कहीं आसमां नहीं मिलता…’’

इस मोड़ पर: आखिर ऐसा क्या हुआ कि आशी ने गौरव को बेपरदा कर दिया?

आशी की आंखें अभी आधी नींद में और आधी खुली हुई थीं. उस के जेहन में बारबार एक शब्द गूंज रहा था, ‘‘ठंडीठंडी.’’

आशी अधखुली आंखों के साथ ही वाशरूम चली गई. चेहरे पर पानी के छींटे पड़ते ही आंखों के नीचे की कालिमा और स्पष्ट रूप से उभर गई. आशी बराबर खुद का चेहरा आईने में देख रही थी. उसे लग रहा था जैसे उस का जीना बेमानी हो गया है. शायद गौरव सच ही कह रहा था कितनी थकी हुई और बूढ़ी लग रही थी वह आईने में.

कैसे बरदाश्त करता होगा गौरव उसे रात में. तभी गौरव की उनींदी आवाज आई, ‘‘आशु चाय बना दो.’’

आशी ने विचारों को  झटका और रसोई में घुस गई. अभी आशी चाय बना ही रही थी कि पीछे से सासूमां बोली, ‘‘आशी, तेरे बाल रातदिन इतने  झड़ रहे हैं, देख कितने पतले हो गए हैं. पहले कितनी मोटी चोटी होती थी. यह सब इन बालों को कलर कराने का नतीजा है.’’

तभी पीछे से गौरव बोला, ‘‘मम्मी, तुम्हारी बहू अब बूढ़ी हो गई है.’’

सासूमां हंसते हुए बोली, ‘‘चुप कर बेवकूफ.’’

गौरव बोला, ‘‘मु झ से बेहतर कौन जान पाएगा, क्यों आशी?’’

आशी कट कर रह गई. आंखों में आंसुओं को पीते हुए उस ने गौरव को चाय का प्याला पकड़ा दिया.

गौरव नहाने घुस गया तो आशी फिर से आईने के सामने अपने को देखने लगी, उस के बाल आगे से कितने कम हो गए थे. तभी आशी ने देखा बाएं गाल पर 3-4 धब्बे भी नजर आ रहे थे.

तभी कार्तिक आया और बोला, ‘‘मम्मी, नाश्ते में क्या बनाया है?’’

आशी को एकाएक ध्यान आया कि वह कितनी पागल है. पूरे आधे घंटे से आईने के सामने खड़ी है.

सासूमां रसोई में पहले से ही परांठे सेंक रही थी. आशी बोली, ‘‘मम्मी, मैं सेंक लेती हूं.’’

सासूमां प्यार से बोली, ‘‘आशी, तू तैयार हो जा, मैं बना दूंगी. वैसे भी पिछले 3-4 महीनों से तुम बेहद थकीथकी लगती हो, आज गौरव के साथ डाक्टर के पास चली जाना.’’

आशी प्यार में भीगी हुई अंदर चली गई. जब नहा कर बाहर निकली तो उस का मन फूल जैसा हलका लग रहा था.

रास्ते में गौरव आशी से बोला, ‘‘आज

आने में देर हो जाएगी, हम पुराने दोस्तों

का रियूनियन है.’’

आशी ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं सोच रही थी आज डाक्टर के पास चलते, मम्मी कह रही थी मु झे अपना ध्यान रखना चाहिए.’’

गौरव हंसते हुए बोला, ‘‘अरे यार ढलती उम्र का क्या कोई इलाज होता है? कल चल पड़ेंगे.’’

दफ्तर में जैसे ही आशी घुसी उस ने कनकियों से देखा, ‘‘पायल और निकिता एकदूसरे को अपने बालों के हाईलाइट्स दिखा रही थीं,’’ आशी का भी कितना मन करता है मगर अब उस के बाल इतने रूखे और बेजान हो गए हैं कि वह सोच भी नहीं सकती है.’’

आशी को सुबहसुबह ही ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस की ऊर्जा किसी ने सोख ली हो.

तभी आशी की सीट पर प्रियशा आई, ‘‘क्या सोच रही है आशी और यह चेहरे पर 12 क्यों बज रहे हैं?’’

आशी बोली, ‘‘अभी तुम बस 38 साल की हो, तुम्हें सम झ नहीं आएगा कि 50 वर्ष की महिला को कैसा प्रतीत होता है जब उस का अस्तित्व उस से जुदा हो रहा होता है.’’

प्रियाशा बोली, ‘‘आशी, क्या आंटियों की तरह पहेलियां बुझा रही हो.’’

आशी बिना कुछ बोले अपने लैपटौप में डूब गई. जब आशी दफ्तर से वापस आई तो सासूमां उस का चाय पर इंतजार कर रही थी.

आशी को शादी के बाद कभी अपनी मम्मी की कमी नहीं खली थी. सासूमां ने हमेशा आशी से बेटी की तरह ही व्यवहार किया था. चाय का घूंट पीते हुए आशी सोच रही थी कि सबकुछ तो कितना अच्छा चल रहा था, मगर फिर न जाने यह मेनोपौज का मोड़ अचानक कहां से आ गया.

सासूमां सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, देख रही हूं पिछले कुछ दिनों से बहुत थकीथकी रहती… इस गौरव के मिजाज का भी कुछ ठीक नहीं है. वह क्यों इधरउधर बिना तेरे दोस्तों के साथ घूमता रहता है.’’

आशी बोली, ‘‘वह न जाने मम्मी आजकल क्यों मेरा मन उखड़ाउखड़ा रहता है जिस कारण गौरव अपसैट हो जाते हैं.’’

सासूमां तोलती सी नजरों से बोली, ‘‘आशी, तुम शायद मेनोपौज के मोड़ पर खड़ी हो मगर इस मोड़ पर गौरव को तुम्हारा साथ देना चाहिए न कि इधरउधर फुदकने लगे.

रात में काफी देर तक आशी गौरव की प्रतीक्षा करती रही और फिर थक कर सो गई थी.

आधी रात को अचानक आशी की आंख खुली. उस का गाउन खराब हो गया था. पहले तो उसे अपनी डेट का हमेशा आभास भी हो जाता था और वह कभी इधरउधर भी नहीं होती थी. वह वाशरूम में जा कर जब वापस आई तो गौरव की खीज भरी आवाज कानों से टकराई, ‘‘क्या प्रौब्लम है तुम्हारा… न दिन में चैन और न ही रात में.’’

आशी को एकाएक खुद पर शर्म सी आ गई. 50 साल की उम्र में उस के कपड़े खराब हो गए हैं, कितनी फूहड़ है वह. दफ्तर में भी आशी को बहुत दिक्कत हो रही थी. इसलिए बीच में ही घर चली आई थी.

शाम को गौरव आया और तैयार होते हुए बोला, ‘‘आज मेरा डिनर बाहर है.’’

आशी बोली, ‘‘गौरव हम डाक्टर के पास कब चलेंगे?’’

गौरव बोला, ‘‘मेरी क्या जरूरत है आशी… पढ़ीलिखी हो खुद चली आओ.’’

आशी फिर पूरी शाम ऐसे ही लेटी रही. शाम को सासूमां आई और फटकार लगाते हुए बोली, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें? क्या तुम्हारी कोई अपनी जिंदगी नहीं है, चलो उठो डाक्टर के पास जाओ, कब तक खुद को इग्नोर करती रहोगी.’’

डाक्टर ने आशी से बात करी और फिर बोला, ‘‘इस उम्र में यह सब नौर्मल है. जरूरी है आप इसे सहजता से लें. अगली बार अपने पति के साथ आइए. आप के साथसाथ उन की काउंसलिंग भी जरूरी है, और फिर आशी को कुछ दवाइयां लिख दीं.’’

जब गौरव वापस आया तो औपचारिक तौर से पूछा, ‘‘क्या कहा डाक्टर ने?’’

आशी बोली, ‘‘अगली बार तुम्हें बुलाया है.’’

गौरव हंसते हुए बोला, ‘‘भई बूढ़ी तुम हो रही हो मैं नहीं, मु झे किसी डाक्टरवाक्टर की जरूरत नहीं है.’’

आशी को सम झ नहीं आ रहा था कि गौरव इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है. अगर वह 50 साल की हो गई है तो गौरव भी 52 साल का हो रहा है फिर यह उम्र का ताना क्यों बारबार उसे मिल रहा है, इसलिए क्योंकि वह एक औरत है. जो गौरव पहले भौंरे की तरह उस से चिपका रहता था अब उस के संपूर्ण जीवन का रस सोखने के बाद ऐसे व्यवहार कर रहा है मानो यह उस का कोई अपराध हो.

अगले दिन दफ्तर में जब आशी ने प्रियांशी से इस बारे में बातचीत करी तो प्रियांशी हंसते हुए बोली, ‘‘यह बस जीवन का एक मोड़ है. जैसे हम लड़कियों की जिंदगी में मासिकधर्म का आरंभ होना भी एक मोड़ होता है वैसे ही रजनोवृत्ति भी बस एक मोड़ ही है, जिंदगी खत्म होने का संकेत नहीं है.’’

आशी बोली, ‘‘तुम अभी सम झ नहीं पाओगी. ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा वजूद खत्म हो रहा है. जब तुम अपने पति की नजरों में एक फालतू सामान बन जाते हो, तब सम झ आता है कि यह मोड़ है या डैड एंड है.’’

प्रियांशी बोली, ‘‘मैडम, मैं 35 साल की उम्र से इस मोड़ पर खड़ी हूं.’’

आशी आश्चर्य से प्रियांशी की तरफ देखने लगी तो प्रियांशी बोली, ‘‘देखो क्या

मैं तुम्हें बुढि़या लगती हूं? मेनोपौज को तो मैं कंट्रोल नहीं कर सकती थी मगर खुद को तो कर सकती हूं. मेरी स्त्री होने की पहचान बस इस एक प्रक्रिया से नहीं है और हम स्त्रियों का स्त्रीत्व बस इसी पर क्यों टिका हुआ हैं? क्या तुम्हारे पति की परफौर्मैंस पहले जैसी ही है अभी भी? पर पुरुषों के पास स्त्रियों की तरह ऐसा कोई इंडिकेटर नहीं है इसलिए आज भी अधिकतर मर्द इस गलतफहमी में जीते हैं कि मर्द कभी बूढ़े नहीं होते हैं.’’

आशी सोचते हुए बोली, ‘‘बात तो सही है तुम्हारी.’’

प्रियांशी और आशी फिर बहुत देर तक बात करती रही. प्रियांशी से बात करने के बाद आशी सोच रही थी कि वह कितनी बुद्धू है.

उस रात को जब आशी ने पहल करी तो गौरव बोला, ‘‘अरे, आज इतना जोश कैसे आ गया तुम्हें?’’

आशी मुसकराते हुए बोली, ‘‘अब तुम्हारे अंदर भी पहले जैसा जोश कहां रह गया है?’’

गौरव घमंड से बोला, ‘‘मर्द और घोड़े कभी बूढ़ा नहीं होता है.’’

आशी बोली, ‘‘यह मु झ से बेहतर कौन जान सकता है.’’

आशी के स्वर में उपहास देख कर गौरव चुपचाप किताब के पन्ने पलटने लगा. उस का मन जानता था कि आशी की बातों में सचाई है और इसी सचाई को  झुठलाने के लिए वह आशी को रातदिन कोसता रहता था. मगर आशी उसे इस तरह बेपरदा कर देगी उस ने सोचा भी नहीं था.

Film review: आदिपुरूष- बेकार डायलॉग और VFX ने किया फिल्म का कबाड़ा

  • रेटिंगः पांच में से आधा स्टार
  • निर्माता:भूषण कुमार और किशन कुमार
  • लेखकः मनोज शुक्ला मुंतशिर
  • निर्देषक: ओम राउत
  • कलाकार: प्रभास,कृति सैनन, सनी सिंह, सैफ अली खान, देवदत्त नागे, वत्सल सेठ, तृप्ति तोरडमल, सोनल चौहान
  • अवधि: लगभग तीन घंटे

पिछले दो वर्ष से सुर्खियों  में बनी रही निर्देषक ओम राउत की  फिल्म ‘‘आदिपुरूष‘’ अंततः 16 जून को सिनेमाघरो में पहुंच चुकी है. गत वर्ष इस फिल्म का टीजर अयोध्या में रिलीज किया गया था, उस वक्त फिल्म के खिलाफ हंगामा बरपा था. फिल्मकार पर कई तरह के आरोप लगे थे. फिल्म में राम व लक्ष्मण के पैरागॉन कंपनी के चमड़े के चप्पल पहनने पर रोष व्यक्त किया गया था. उस वक्त माहौल इतना बिगड़ गया था कि निर्माता ने फिल्म की रिलीज छह माह के टाल दी थी. इन छह माह में फिल्म के लेखक व भाजपा के नजदीकी मनोज मुंतशिर ने काफी मेहनत की और फिल्म के निर्माता भूषण कुमार व निर्देषक ओम राउत को अपने साथ लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा (ज्ञातब्य है कि ‘आदिपुरुष’ के टीजर को हिंदू आस्था के साथ खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए काफी विरोध किया था,पर अब वह खुश है. जबकि फिल्म में कहीं कोई बदलाव नहीं किया गया.) सहित भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से जाकर मिले और उन्हे फिल्म दिखाकर फिल्म के लिए आशिर्वाद लिया और जब सब कुछ सही हो गया,तब यह फिल्म सिनेमाघर में पहुंचायी गयी.

बौलीवुड में कदम रखने के साथ ही फिल्म के लेखक व गीतकार  अपना नाम मनोज मुतशिर लिखते आए हैं. मगर केंद्र में सरकार बदलने व ‘हिंदूवाद’ व ‘राष्ट्रवाद’ की हवा को देखते हुए उन्होने घोषित कर दिया कि उनका असली नाम मनोज शुक्ला है.

जब पूरा देश राष्ट्रवाद में डूबा हो तो इस फिल्म में विभीषण, राघव(राम) से कहते हैं-‘‘मातृभूमि की रक्षा के लिए विश्वघात सही है.’’ फिल्म को समझने के लिए एक संवाद और देखें-‘‘शेष (लक्ष्मण )को मूर्क्षित करने के बाद इंद्रजीत ,राघव से कहते हैं-‘‘तुम लोगों का बंदर नाच खत्म..अब अपने भाई को उठाओ और वापस जाओ.’

‘रामायण’ की कथा उस काल की है,जब हमारे देश का नाम ‘भारत नही था.पर इस फिल्म में इस भारत ही कहा गया है. इतिहास इतना ही नही काफी बदला गया है.मसलन- शेष (लक्ष्मण) के मूर्क्षित हो जाने पर उनका इलाज करने के लिए श्रीलंका के राजवैद्य सुसैन नही आते हैं,बल्कि विभीषण की पत्नी बजरंग (हनुमान ) से कहती हैं कि संजीवनी बूटी लेकर आओ. बजरंग संजीवनी बूटी का पहाड़ यह कह कर उठाकर लाते हैं कि युद्ध चल रहा है तो इसकी जरुरत दूसरों को भी पड़ेगी और फिर विभीषण की पत्नी संजीवनी बूटी की दवा
बनाकर शेष को पिलाती हैं.

कहानीः

फिल्म की कहानी राघव(प्रभास   ),शेष(सनी सिंह ) व जानकी(कृति सैनन ) के जंगल में पहुंचने से होती है. उधर सुपर्णखा अपने भाई रावण के पास अपनी कटी नाक लेकर पहुंचती है और रावण (सैफ अली खान ) से कहती है कि जानकी जैसी सुंदर औरत तो रावण की पत्नी होनी चाहिए. और यही उसकी कटी नाक का बदला होगा. फिर स्वर्ण मृग को देखकर जानकी कहती है कि इस मृग को हमे अयोध्या लेकर चलना चाहिए. अयोध्या के लोग इसे देखकर खुश होंगें. राघव,मृग के पीछे भागते हैं, शेष की आवाज सुनकर शेष भी उनके पीछे जाते हैं. इधर रावण,जानकी का अपहरण कर लेते हैं. राघव व शेष दोनों पैदल कई किलोमीटर तक रावण के पीछे पैदल भागते हैं,जबकि रावण अपने राक्षसी विमान पर जानकी के साथ उड़ रहा है.फिर जानकी के लिए रावण का वध.

लेखन व निर्देषनः

सात सौ करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘‘आदिपुरूष’’ देखने के बाद अहसास होता है कि यह तो धन की आपराधिक बर्बादी है. फिल्म में निर्देषक की प्रतिभा शून्य नजर आती है. यह फिल्म सिनेमा के नाम पर सबसे बड़ा मजाक है. पूरी फिल्म देखकर यह समझ में नही आता कि फिल्म बनाने का औचित्य क्या है? फिल्मकार कहना क्या चाहते हैं? यह फिल्म किसी की आस्था ही नही बल्कि देश की संस्कृति,इतिहास, तहजीब आदि का मजाक उड़ाती है.

फिल्मकार ने रामायण की जो कहानी है,उसके कुछ दृष्यों को जोड़कर लगभग तीन घंटे की बैलगाड़ी से भी धीमी गति से चलने वाली फिल्म के रूप में पेश कर दिया. कहानी में कहीं भी आपस में कोई तारतम्य नही है. दर्शक भी चौंक जाता है कि यह क्या हो रहा है. वास्तव में एडीटर की भी गलती हैं. बाद वाले दृष्य पहले आ जाते हैं.इसमें न कहीं कोई रिष्ता उभरता है, न कोई संस्कृति,न कोई धर्म,न कोई इतिहास…सब कुछ कूड़ा करकट परोसा गया है. फिल्म में एक भी एक्षन दृष्य नही है, जो कि दर्शक को आकर्षित करे. इससे अच्छे एक्षन दृष्य तो बच्चा मोबाइल पर वीडियो गेम में देख लुत्फ उठाता रहता है. पर फिल्म का बजट सात सौ करोड़ रूपए है, पर वीएफएक्स वगैरह सब कुछ सतही है, तो फिर यह रकम खर्च कहां की गयी? ओम राउट के अनुसार लंका सोने की नही बल्कि काले रंग की थी. फिल्म में लंका काले रंग की ही है. फिल्म के किरदारों की हेअर स्टाइल हूबहू वही है जो वर्तमान समय की नई पीढ़ी की हेअर स्टाइल है. बौलीवुड मसाला फिल्मों की तरह राघव व जानकी प्रेम गीत गाते नजर आती हैं. दो दृष्यों में राघव व जानकी को एक दूसरे की तरफ कम से कम पांच मिनट तक भागते हुए देखकर शाहरुख खान की फिल्म के राज व सिमरन याद आ जाते हैं. निर्देषक ओम राउत का ज्ञान इतना अच्छा है कि उनके राम फिल्म में लोगो से तीर से नही बल्कि हाथपाई करते हैं. लेखक व निर्देषक ने सीता/जानकी की बजाय एक दृष्य में सेक्सी अवतार /सेंसुअल रूप में विभीषण की पत्नी को दिखा दिया.आखिर बौलीवुड मसाला फिल्मों में सेक्स व सेंसुआलिटी नजर आनी चाहिए. जानकी को रावण अशोक वाटिका नहीं, बल्कि काले पत्थर की जमीं वाली जगह पर रखते हैं. इतना ही लोगों को पहली बार पता चलेगा कि रावण व उनके भाई विभीषण  एक साथ बैठकर षराब का सेवन किया करते थे.

ओम राउत ने कुछ दृष्यों को विदेषी फिल्मों ‘‘लार्ड्स आफ द रिंग’ और ‘गेम्स आफ थ्रोन’’ के चुराकर इस फिल्म में पिरो दिए हैं. यह फिल्म देखकर यह स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है कि इन्ही  ओम राउत ने फिल्म ‘‘तान्हाजी’’ का निर्देशन किया था.

फिल्म के कुछ संवाद ऐसे हैं,जिन्हे सुनकर मनोज मुंतशिर के ज्ञान,उनकी भाषा व उनकी तहजीब पर तरस आता है. संवादों में गरिमा, उत्कृष्टता व मर्यादा होनी चाहिए, पर ऐसा कुछ नही है. संवाद सुनकर लेखक का दीमागी दिवालियापन ही सामने आता है. मसलन-रावण का बेटा बजरंग यानी हनुमान से कहता है-‘‘यह तेरी बुआ का बगीचा है,जो हवा खाने चला आया.’’

पूंछ में आग लगाई जाने के बाद हनुमान,रावण के बेटे से कहते हैं-‘‘कपड़ा तेरे बाप का,तेल तेरे बाप का,अग्नि तेेरे बाप की,अब जलेगी तेरे बाप की लंका..’’

जानकी उर्फ सीता,हनुमान से-‘‘राघव ने मुझे पाने के लिए षिव धनुष तोड़ा था,अब उन्हे रावण का घमंड तोड़ना होगा.’’अंगद का संवाद-‘‘जो हमारी बहन को हाथ लगाएगें, हम उनकी लंका लगाएंगे.’ कई संवाद तो ऐसे हैं,जिन्हें हम अक्सर सास बहू मार्का टीवी सीरियलों में अक्सर सुनते आए हैं.

अभिनयः

अफसोस फिल्म में किसी भी कलाकार ने ऐसा अभिनय नही किया है जिसकी चर्चा की जाए. हर कलाकार ‘रोबोट’ की तरह है,जो कि रिमोट कंट्रोल से संचालित होता रहता है. किसी के भी चेहरे पर कोई भाव नहीं.ज्यादा तर कलाकारों को संवाद तक ठीक से बोलना नही आया. हॉ! विभीषण की पत्नी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ने जरुर सही ढंग से संवाद बोले हैं.

अंत मेंः यूं तो मैं किसी भी फिल्म  के लिए नहीं कहता कि आप उसे न देखे. क्योंकि फिल्म के सफल होने पर हजारों परिवारो का पेट पलता है. मगर ‘‘आदिपुरूष’ फूहड़ फिल्म है. यह सिर्फ निराश ही नही करती बल्कि इतना सिरदर्द पैदा करती है कि कहना पड़ रहा है कि इस फिल्म को देखकर अपना पैसा व समय न बर्बाद करें. वैसे भी फिल्मकार ने फिल्म की शुरूआत में ही डिस्क्लेमर दिया है कि जिन्हे राम या रामायण की कहानी समझनी हो वह इस फिल्म को देखने के बाद बाल्मीकी रामायण को जाकर पढ़ें.हमने इंटरवल में कुछ लोगों को फिल्म छोड़कर जाते हुए देखा भी.

मेरे बाल दोमुंहे, रूखे और बेजान हैं, मुझे कितने दिनों के गैप में हेयर स्पा लेना चाहिए?

सवाल

मेरी आईसाइट बहुत वीक है इसलिए मुझे रोज लैंस लगाने पड़ते हैं. लैंस लगाने के बाद काजल लगाती हूं तो काजल आंखों के अंदर चला जाता है. लैंस लगाए बिना काजल लगाती हूं तो वह सही नहीं लगता. बताएं क्या करूं?

जवाब

जब हम लैंस लगाने के बाद काजल या लाइनर लगाते हैं तो वह आंखों के अंदर चला जाता है जो उन के लिए हानिकारक है. इसलिए जो महिलाएं लैंस लगाती हैं उन के लिए परमानैंट काजल और लाइनर बैस्ट है क्योंकि वह सारी उम्र वैसा का वैसा ही बना रहता है. इस से आप के टाइम की भी बचत होती है. इस तकनीक से लगाया गया लाइनर और काजल दोनों की आंखों को बिना किसी विशेष देखभाल के लगभग 15 वर्षों तक आकर्षक बनाए रखते हैं.

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सवाल

मेरे बाल दोमुंहेरूखे और बेजान हैं. सैलून वाले मुझे हेयर स्पा लेने की सलाह दे रहे हैं. क्या यह सलाह सही है और मुझे कितने दिनों के गैप में हेयर स्पा लेना चाहिए?

हेयर स्पा बेजानरूखे और डैमेज्ड बालों का बहुत ही बेहतर ट्रीटमैंट है. हेयर स्पा ट्रीटमैंट से दोमुंहे और रूखे बालों से तो छुटकारा मिलता ही हैसाथ ही हेयर लौसगंजेपन और डैंड्रफ जैसी समस्याओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है. इस से सिर की त्वचा को पूरा पोषण मिलता है. बालों की नियमित देखभाल के लिए महीने में कम से कम 1 बार हेयर स्पा जरूर लेना चाहिए ताकि बाल अपनी चमक न खोएं और आप की खूबसूरती बरकरार रहे.

समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

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Women: प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करने वाले कारक और फर्टिलिटी को बेहतर बनाने के तरीके

मां बनने का सुख सिर्फ शब्‍दों में बयान नहीं किया जा सकता. यह किसी भी महिला के जीवन का सबसे अतुलनीय अनुभव होता है, जो उसके जीवन में खास अर्थ भरता है. लेकिन हर महिला अपने जीवन में इस सुख का अनुभव करने में समर्थ नहीं होती, और इसका कारण बांझपन या इंफर्टिलिटी होता है.

डॉ. मालती मधु, सीनियर कंसल्टेंट- फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी, नोएडा का कहना है कि- इंफर्टिलिटी की वजह से न सिर्फ भावनात्‍मक विषाद पैदा होता है, बल्कि इसकी वजह से महिलाओं में लंबे समय तक एंग्‍ज़ाइटी और डिप्रेशन भी घर कर सकता है. भारत में इंफर्टिलिटी की समस्‍या तेजी से आम और काफी चिंताजनक बनती जा रही है.

सैंपल रजिस्‍ट्रेशन सर्वे डेटा के मुताबिक, देश में, करीब 30% महिलाएं लो ओवेरियन रिज़र्व से जूझ रही हैं. इसका एक बड़ा कारण उनकी लाइफस्‍टाइल संबंधी आदतें भी हैं.

 1.फर्टिलिटी को प्रभावित करने वाले कारक-

 महिलाओं की फर्टिलिटी पर असर डालने वाले कई कारण हो सकते हैं जिनके चलते मां बनने का उनका सपना अधूरा रह जाता है.

2.शराब का सेवन 

शराब किस तरह से महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित करती है, इसका सही-सही कारण अभी मालूम नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि इसकी वजह से फॉलिक्‍यूलर ग्रोथ, ओवुलेशन, ब्‍लास्‍टोसाइट और इंप्‍लांटेशन की प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं. मेडिकल पत्रिका लान्‍सेट में प्रकाशित एक अध्‍ययन के मुताबिक, 15 से 39 वर्ष की 5.39 मिलियन भारतीय महिलाएं शराब का सेवन करती हैं.

3. धूम्रपान

धूम्रपान खुद किया जाए या परोक्ष (एक्टिव अथवा पैसिव) हो, इसका महिलाओं की प्रजनन प्रक्रिया के प्रत्‍येक चरण में नुकसानकारी प्रभाव हो सकता है. तंबाकू के धुंए में मौजूद दो रसायन – कैडमियम और कोटिनाइन विषाक्‍त होते हैं और इनके कारण डिंब निर्माण (ऍग प्रोडक्‍शन) और एएमएच लैवल्‍स पर असर पड़ता है. धूम्रपान की वजह से फर्टिलिटी पर पड़ने वाले अन्‍य नकारात्‍मक प्रभावों में निषेचन और विकास क्षमता का कम होना शामिल है, जो गर्भ धारण की दरों में कमी लाता है.

4. तनाव

प्रजनन क्षमता या फर्टिलिटी, वास्‍तव में, भावनात्‍मक उतार-चढ़ाव की तरह होती है, और यह समझना महत्‍वपूर्ण होता है कि कई बार तनाव, दबाव और चिंताओं आदि से, जिनकी वजह से बांझपन बढ़ता है, बचा जा सकता है. तनाव आज के दौर में ऐसा पहलू है जिससे बचना नामुमकिन है, और इसका असर महिलाओं की फर्टिलिटी पर पड़ता है.

 5. बीएमआई

हार्मोनल असंतुलन के चलते डिंबस्राव (ओवुलेशन) की प्रक्रिया प्रभावित होती है जिसका असर किसी महिला के गर्भवती होने पर पड़ता है, देखा गया है कि सामान्‍य से कम वज़न (18.5 से कम बीएमआई) होने पर फर्टिलिटी प्रभावित होती है. जिन महिलाओं का वज़न सामान्य से कम होता है, वे स्‍वस्‍थ वज़न वाली महिलाओं की तुलना में गर्भधारण करने में एक साल से ज्‍यादा समय ले सकती हैं. इसी तरह, अधिक वज़न (35 से अधिक बीएमआई) होने से भी हार्मोनल संतुलन बिगड़ सकता है, प्रेगनेंसी के जोखिम बढ़ते हैं और साथ ही, फर्टिलिटी उपचार के लिए जरूरी दवाओं का सेवन/खर्च भी बढ़ता है.

 आधुनिक दौर की व्‍यस्‍त जीवनशैली में, महिलाओं को अपने निजी और पेशेवर जीवन में बहुत-सी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में, कई बार वे लाइफस्‍टाइल संबंधी गलत चुनाव भी कर बैठती हैं जिससे उनकी फर्टिलिटी पर असर पड़ता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि स्थितियां अंधकारपूर्ण ही हैं। अब ऐसे कई तौर-तरीके और विकल्‍प उपलब्‍ध हैं जो महिलाओं को अपनी फर्टिलिटी को बेहतर बनाने में मदद कर करते हैं.

फर्टिलिटी बेहतर बनाने के उपाय

  1. संतुलित भोजन करें:-

जो महिला गर्भधारण का प्रयास कर रही होती है, उसे संतुलित भोजन यानि सेहतमंद खानपान पर ध्‍यान देना चाहिए. आमतौर पर, कुछ स्‍पेशल खुराक जैसे कि वेजीटेरियन या लो-फैट डाइट्स उन महिलाओं के लिए उचित होती हैं जो इस लाइफस्‍टाइल को चुनती हैं. गर्भधारण के लिए प्रयासरत महिलाएं फॉलिक एसिड सप्‍लीमेंट भी ले सकती हैं जो न्‍यूरल ट्यूब की असामान्‍यताओं से बचाव करता है (इस मामले में मेडिकल स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से सलाह करें). साथ ही, वे अपनी खुराक में विटामिन डी भी शामिल कर सकती हैं, जो कि डिंब निर्माण और उनकी परिपक्‍वता में भूमिका निभाता है.

 2. धूम्रपान और शराब का सेवन करने से बचें:-

जो महिलाएं गर्भधारण के लिए प्रयासरत होती हैं, उन्‍हें धूम्रपान और शराब के सेवन से हर हाल में बचना चाहिए. इन आदतों के चलते, इंफर्टिलिटी यानि बांझपन के जोखिम बढ़ सकते हैं लेकिन इनसे बचने पर स्‍वस्‍थ प्रेग्‍नेंसी और खुशहाल परिणाम मिलने की संभावना बढ़ सकती है.

 3. तनाव का प्रबंधन:-

गर्भधारण का प्रयास करने और फर्टिलिटी उपचार लेने के दौरान, अपने संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य (शारीरिक और मानसिक) पर ध्‍यान देना जरूरी है. ऐसे में, घर-परिवार के स्‍तर पर ठोस सपोर्ट उपलब्‍ध होने से भी फर्टिलिटी में मदद मिलती है.

 4. विशेषज्ञ से सलाह लें:-

यदि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या बनी रहे और गर्भधारण करने में कठिनाई हो, तो ऐसे में म‍ेडिकल एक्‍सपर्ट से सलाह-मश्विरा करना फायदेमंद हो सकता है जो आपकी मदद कर सकते हैं. अब टैक्‍नोलॉजी में सुधार होने से, फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट लोगों को रिप्रोडक्टिव केयर के हर पहलू के बारे में मदद करते हैं. इसके लिए उन्‍हें इंफर्टिलिटी थेरेपी, फर्टिलिटी के यथासंभव प्रीज़र्वेशन और गर्भाशय संबंधी मामलों में मदद शामिल है. फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट आमतौर पर, पूरी मेडिकल हिस्‍ट्री के बारे में जानकारी लेते हैं और यदि आपने पूर्व में कोई फर्टिलिटी जांच या उपचार करवाया होता है, तो उसके अलावा कुछ और उपाय करना चाहते हैं. इन तमाम जानकारियों के आधार पर, वे आपको कुछ उपयोगी समाधान दे पाते हैं.

फर्टिलिटी, आपकी लाइफस्‍टाइल संबंधी आदतों समेत अन्‍य कई कारणों से प्रभावित होती है।.इसलिए, अगर आप गर्भधारण करने और मां बनने का सपना देख रही हैं, तो अपनी बुरी और गैर-सेहतमंद आदतों को दूर करें और उनके स्‍थान पर स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों को अपनाएं.

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