अनुपमा के खास दिन को बर्बाद करेगी माया, मीडिया के सामने किया बवाल

स्टार प्लस का सबसे पॉपुलर शो अनुपमा’ की टीआरपी लगातार नंबर वन पर बना हुआ है. लोगों के लिए ये शो टीवी का सबसे चहेता शो बना हुआ है. शो में आए दिन नए नए ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिलते रहते है. ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि, जैसे-जैसे अनुपमा के अमेरिका जाने के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही अनुज का प्यार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है जो माया को कतई बर्दाश्त नहीं हो रहा.

बीते दिन भी रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में देखने को मिला कि मीडिया के सामने मालती देवी अनुपमा को उत्तराधिकारी घोषित करती हैं. वहीं दूसरी ओर डिंपल शाह हाउस में बवाल मचाती है.

अनुपमा अनारकली बनकर डांस करेंगी

टीवी सीरियल अनुपमा में देखने को मिलेगा कि मालती देवी खुद अनुपमा को तैयार करेंगी और उसके बाद इवेंट की शुरुआत होगी. शो में पहले मालती देवी डांस करती है उसके बाद अनुपमा स्टेज को संभालेगी. अनुपमा अनारकली के लुक में अनारकली बनकर डांस करेंगी. अनुपमा का डांस देखकर सिर्फ मालती ही नहीं बल्कि हर किसी का दिल जीत लेगा. ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होते है शो में अनुज भी अनुपमा का इवेंट देखने पहुंच जाएगा. पीछे से माया भी वहीं पहुंच जाएगी. जो अनुपमा की खुशी जरा सी भी बर्दाश्त नहीं कर सकती.

अनुपमा का खास दिन बर्बाद हो जाएगा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कि शीशे में अनुपमा को देख माया बौखला जाएगी, फिर क्या माया डंडा लेकर उसे फोड़ देगी. माया को जहां-जहां अनुपमा दिखेगी, वह वहां-वहां तोड़-फोड़ करेगी.

यहां तक कि वह अनुपमा को स्टेज पर देखकर माया वहां भी पहुंच जाएगी और उसपर अनुज को छीनने का आरोप लगाएगी. शो में अनुपमा और अनुज उसे शांत कराने की कोशिश करेंगे, लेकिन माया किसी की नहीं सुनेगी. माया अनुपमा से कहेगी कि तुम इतनी भाग्यशाली क्यों हो? मेरी बेटी भी तुमसे प्यार करती है और अनुज भी तुमपर जान छिड़कते हैं.

Eyes: डार्क सर्कल्स से पाए छुटकारा, इस्तेमाल करें ये 2 चीजें

हर कोई चाहता है उसकी आंखे खूबसूरत और आकर्षक हो. लेकिन आंखो के नीचे मौजूद काले-काले घेरों की वजह से खूबसूरती में ग्रहण लग जाता है. अंडर आई डार्क सर्कल्स को हटाने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते. आप डार्क सर्कल्स की समस्या को दूर करने के लिए क्या कुछ इस्तेमाल नहीं करते, महंगे-महंगे स्किन केयर प्रोडक्ट्स से लेकर ट्रीटमेंट्स तक. लेकिन ये काफी महंगे होने के साथ-साथ केमिकल से भरपूर होते हैं जो आपको मनचाहे रिजल्ट नहीं देते हैं. इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए टमाटर अंडर आई मास्क लेकर आए हैं जिसको आजमाकर आप आंखों के नीचे के जिद्दी से जिद्दी काले घेरों का सफाया कर सकते हैं. बता दें, टमाटर में ब्लीचिंग एजेंट मौंजूद होते हैं जो आपकी काली पड़ी स्किन को लाइटन करने में कारगर साबित होते हैं.

टमाटर अंडर आई मास्क साम्रगी

  • टमाटर
  • नींबू

टमाटर अंडर आई मास्क कैसे बनाएं

 टमाटर अंडर आई मास्क बनाने के लिए आप सबसे पहले एक छोटा बाउल लें.
फिर आप इसमें टमाटर का जूस और नींबू का रस डालें.
इसके बाद आप इन दोनों चीजों को अच्छी तरह से मिला लें.
अब आपका टमाटर अंडर आई मास्क बनकर तैयार है.

कैसे टमाटर अंडर आई मास्क का इस्तेमाल करें

आप सबसे पहले पानी से चेहरा धो लें. उसके बाद कॉटन बॉल की मदद से आंखो के नीचे अंडर आई मास्क लगाए, इसके बाद 10 मिनट का इंतजार करें. उसके बाद आप अपना फेस पानी से धो सकते है. बढ़िया रिज्लट के लिए आप टमाटर अंडर आई मास्क का इस्तेमाल 2 टाइम्स कर सकते है आप सुबह और शाम अप्लाई कर सकते है. इसके इस्तेमाल से आप आंखों के नीचे काले घेरे कम होने लगते है.

टमाटर के फायदे

वैसे तो हर चीज के अपने-अपने फायदे होते है. ऐसे ही टमाटर स्किन के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है और टमाटर स्किन बर्न में राहत प्रदान करता है. इतना ही नहीं टमाटर स्किन ड्रायनेस को दूर करके स्किन को नरिश बनाता है.

फुकेट: यहां मस्ती है अनलिमिटेड

जब अचानक मन हुआ कि लौकडाउन में काफी बंद बैठ लिए, अब थोड़ा घूमा जाए, कहीं घूम कर आया जाए तो सौ चीजें सामने थीं. भारत में तो काफी घूमा जा चुका है, अगर बाहर जाते हैं तो इतनी जल्दी वीजा नहीं मिलेगा, क्या किया जाए, यह सोचते हुए सब गूगल छानते रहे, आजकल तो गूगल है ही हर मरज की दवा. हर मुश्किल का हल. फिर वे जगहें देखीं गईं जहां ‘वीजा औन अराइवल’ की सुविधा है और ऐसी जगह भी चाहिए थी जहां की फ्लाइट बहुत लंबी न हो. तो सर्वसम्मति से थाईलैंड फाइनल हुआ.

फौरन एक एजेंसी सब पूछताछ की और उन के माध्यम से ही 10 दिन का पैकेज लिया गया. आजकल इस बात से बहुत आराम हो गया है कि टूर्स ऐंड ट्रैवल्स कंपनीज की सुविधा लेने से यात्राएं आसान हो जाती हैं. नई जगह कहां भटकेंगे, इस बात की चिंता नहीं रहती. फ्लाइट बुक करने से ले कर होटल, टैक्सी, खानापीना सब में आराम हो जाता है.

तो बस हम पतिपत्नी सुबह 5 बजे की मुंबई से फुकेट की 4 घंटे 40 मिनट की फ्लाइट पकड़ कर फुकेट पहुंचे, कहने को ही 4:30 घंटे की फ्लाइट थी, इस के लिए हमें रात 12 बजे ही ठाणे यानी घर से निकलना पड़ा था क्योंकि इंटरनैशनल फ्लाइट्स के लिए बाकी औपचारिकताओं के लिए एअरपोर्ट जल्दी पहुंचना होता है.

मस्ती और मजा

फुकेट एअरपोर्ट पर वीजा लेने वालों की लंबी लाइन थी. लाइन में मेरे पीछे पता है कौन था? मुजफ्फरनगर का कोई लड़का अपनी नईनवेली पत्नी के साथ. सोच कर देखिए, थाईलैंड में लाइन में आप के पीछे मायके के शहर का कोई इंसान फोन पर बात कर रहा हो और आप को समझ आ जाए कि लो, भई, यहां पीछे वाले मायके से हैं. मन ही मन मुसकराते हुए मैं ने उन की फोन पर बातें सुनीं. लड़का अपने पेरैंट्स को सारी जानकारी दे रहा था और उस की भाषा और बातों से साफसाफ पता चल चुका था कि हां, मायके की तरफ का ही है.

मैं ने आगे खड़े अपने पति से कहा, ‘‘अपने साले से मिलना है?’’

वे समझ गए कि कोई जोक आ रहा है, हंस कर बोले, ‘‘नहीं, मन नहीं.’’

काम बहुत तेजी से हो रहा था, इतनी तेजी से तो काम होने की उम्मीद नहीं की थी. हैरानी हुई कि किसी ने कोई पेपर नहीं देखा, पता चला आजकल टूरिस्ट्स की बहुत भीड़ है क्योंकि लौकडाउन के बाद अब सब घूमने आ रहे हैं. फौर्म भर कर बस फोटो लगवाया, इमीग्रेशन तो 10 मिनट में हो गया, फिर अपना सामान लिया, डेढ़ घंटे में एअरपोर्ट से बाहर आए. ट्रैवल एजेंसी की लड़की और एक शानदार कार हमारा इंतजार कर रही थी.

घूमतेघूमते जब भूख लगी

उस ने हमें कार में बैठा दिया और हम फिर क्राबी आइलैंड के लिए निकल गए. फुकेट हम लौटते हुए रुकने वाले थे. कार के ड्राइवर को न हिंदी आती थी, न इंग्लिश. इंग्लिश के कुछ ही शब्द वह सम?ा पा रहा था. हमें अब भूख लग रही थी. ड्राइवर को यह सम?ाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी कि कोई रेस्तरां दिखे तो रोक दे. बारबार उसे हंगरीहंगरी कहते हुए पेट पर हाथ रखा तो वह सम?ा गया और हंसने लगा. हम भी हंसते हुए उसे सम?ाते रहे कि ‘वैरी हंगरी’ और वह हंसते हुए कहता रहा कि नो फूड, नो रेस्तरां.

खैर, उस ने एक जगह कार रोक दी और कहा कि फूड कौफी.

हम ने जा कर उस शौप में खाने के बारे में पूछा तो भाषा की वही समस्या. उन्हें इशारे से सम?ाया कि खाना चाहिए तो उस शौप की 2 महिलाओं में से एक ने हमें एक प्लेट में थोड़े राइस और उबली सब्जियां डाल कर पकड़ा दीं जो खाई तो नहीं जा रही थीं पर भूख में तो पत्थर भी पापड़ लगता है तो बस किसी तरह पेट में डाल ही लिया.

जब वापस कार में आए तो ड्राइवर ने अपने पेट पर हाथ रखते हुए मुझ से पूछा कि फूड. ओके?

शायद वह समझ गया था कि भूख से ज्यादा परेशान में ही थी. क्राबी होटल पहुंचे. बहुत बड़ा और सुंदर होटल था. इस ट्रिप में हर जगह होटल की बुकिंग में ब्रेकफास्ट कौंप्लिमैंट्री था, लंच भी कहींकहीं उन्हीं की जिम्मेदारी थी. हां, डिनर अपने हाथ में था. पहली शाम अपनी थी, रूम में जा कर फ्रैश हुए.

स्थानीय बाजार की सैर

थोड़ा आराम किया. शाम को वहां की लोकल मार्केट घूमने और डिनर करने निकले. होटल के पास ही एक लाइन से कई रेस्तरां थे. हमारी इंडियन शक्लें देख कर इंडियन रेस्तरां वालों के वेटर हमें आवाजें लगा रहे थे, ‘‘आ जाओ, भैया, भाभी, दाल तड़का, मटरपनीर, इंडियन खाना है.’’

मुझे मन ही मन भैयाभाभी सुन कर हंसी आई. फिर हम एक इंडियन रेस्तरां में चले ही गए जहां खाना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. सर्विस भी बहुत खराब थी. सोच लिया, अब भैयाभाभी दोबारा इस होटल में तो आने से रहे. कल कहीं और ट्राई किया जाएगा.

फोर आइलैंड

अगले दिन फोर आइलैंड्स का टूर था जहां स्पीड बोट से गए, हाट वाटर स्प्रिंग देखा जहां नैचुरल गरम पानी के झरने थे जहां बहुत सारे विदेशी पर्यटक नहा रहे थे. हमें अभी तक स्पीड बोट में यहीं मुलुंड, मुंबई के युवा पतिपत्नी मिल चुके थे जिन से हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. हम उन के, वे हमारे फोटो लेते रहे. हमारे होटल भी आसपास थे और यह भी समझ आ गया था कि अगले कुछ दिन हमारा साथ रहेगा क्योंकि उन्होंने भी उसी एजेंसी से पैकेज लिया हुआ था.

उसी दिन ‘एमरल्ड पूल’ और ‘ब्लू पूल’ भी गए. इतना सुंदर नैचुरल रंगों का पूल देखने लायक था. बहुत ही सुंदर नीला, हरा सा पानी. वहां की खूबसूरती ऐसी थी जैसे किसी ने पानी में हरा और नीला रंग मिला दिया हो. अद्भुत, दर्शनीय. लौटते हुए फिर पगोड़ा देखा. यह काफी बड़े एरिया में बना हुआ है. कई सीढि़यां चढ़ कर ऊपर एक पौइंट भी है जहां से अच्छा व्यू दिखता है, पर बारिश में इस पर जाना सेफ नहीं है. अद्भुत कलाकारी है. बुद्ध की कई प्रतिमाएं हैं.

फिर आई वह एक शाम जिस की कल्पना मैं मुंबई से कर के चली थी, जिसे जान कर हो सकता है आप हंसें भी. जिस के शौक के कारण ही मुझे थाईलैंड आने का रोमांच था. मैं ने यहां की मसाज के बारे में बहुत सुना था और अब मैं यहां थी तो मुझे यह अनुभव लेना ही था.

शाम को जब हम होटल वापस पहुंचे, हम फ्रैश हो कर मार्केट की तरफ निकले तो मैं ने पति से कहा, ‘‘अब सब से पहले मसाज करवानी है, फिर कुछ और.’’

‘‘सच.’’

‘‘अरे, मैं तो आई ही इसलिए हूं. जरा देखा जाए यहां ऐसी क्या बात है जो मुंबई के स्पा में नहीं होती.’’

पति ने कहा, ‘‘ठीक है, कोई साफसुथरी जगह देखते हैं. मैं बाहर बैठा रहूंगा, तुम करवा लेना,’’ फिर हंसे, ‘‘तुम्हारा कोई शौक छूट न जाए.’’

मसाज का आनंद

वहां लाइन से लगातार मसाज पार्लर थे. एक साफसुथरा पार्लर देख कर हम अंदर गए. वहां की मालकिन काफी उम्रदराज थी और वहां काम करने वाली लड़कियां करीब 20 से 25 साल की रही होंगी. रेट्स पता किए, चार्ट लगा ही था, औयल मसाज चार सौ बाथ की थी, थाई मसाज 3 सौ की थी. मैं ने औयल मसाज के लिए बात की. थाई मसाज ड्राई होती है, औयल से नहीं होती. वहां मिले भारतीय लोगों ने बताया था कि वह भी बहुत अच्छी होती है. यह बहुत अच्छा पार्लर था. पति बाहर रखे सोफे पर बैठ कर अपने फोन में व्यस्त हो गए. सच कहूं, मुंबई से कई गुना ज्यादा अच्छी मसाज हुई. ऐसे कायदे से, ऐसी शालीनता से कभी नहीं हुई थी.

मुंबई से उलट पहला फर्क यही था कि सब से पहले शरीर को एक साफ चादर से ढक दिया गया. फिर जिस हाथ या जिस पैर की वह लड़की मालिश करती, उतना ही हिस्सा चादर से बाहर निकालती. सीने और नीचे के हिस्से से कपड़ा एक बार भी हटा ही नहीं. मैं हैरान सोचती रही कि मालिश भी ऐसे सभ्य तरीके से हो सकती है. 1 घंटा लगा, इतना आराम मिला कि यह अनुभव याद रहेगा.

मुंबई के पार्लर्स के मुकाबले यहां के रेट्स मुझे बहुत सस्ते लगे तो मैं ने सोचा कि मुंबई जाने से पहले 1-2 बार और करवाऊंगी. अब फीफी आइलैंड में भी इस का अनुभव लूंगी. यहां की करंसी ‘बाथ’ है, चार सौ बाथ मतलब लगभग यहां का हजार. तो मुंबई में हजार में कहां ऐसी मसाज होती.

3 दिन क्राबी रह कर हम फीफी आइलैंड में फेरी से टोनसाई पिएर उतरे. वहां से बोट से होटल आए. मुलुंड वाले दंपती भी साथ ही थे पर उन का होटल दूसरा था. शाम को बीच घूमे. यह मौसम यहां बारिशों का था. हम बोट पर बैठे. नीचे समुद्र की लहरें, ऊपर से तेज बारिश. बस हर तरफ पानी ही पानी था.

माया बे का जवाब नहीं

दूसरे दिन अपने नए साथियों के साथ छोटी बोट से माया बे गए जो बहुत प्रसिद्ध जगह है. फिर एक लगून गए. वहां उन लोगों ने स्नोर्कलिंग की. हम उन सब के फोटो लेते रहे क्योंकि हम दोनों उस समय पानी में नहीं उतरे थे. शार्क्स साफसाफ दिखाई दे रही थीं. बहुत आनंद के पल थे. वहां से हम उसी नाव से होंग आइलैंड पहुंचे. यहां गाइड ने सिर पर किसी इंजीनियर की तरह पहनने के लिए एक मजबूत टोपी दी.

समुद्र के किनारे घुटनेघुटने पानी में चल कर गुफाओं में होते हुए एक जगह जाना था. बहुत सुंदर जगह थी. यह और काफी एडवैंचर्स ट्रिप. यहां के पानी में मेरी एक चप्पल भी बह गई. बाहर लगी दुकानों से फिर एक जोड़ी चप्पल खरीदी गई.

यहां हमें दिल्ली के एक मिडल ऐज दंपती भी मिल गए जिन में से पत्नी का नाम मैं ने अपने मन में पम्मी आंटी रख लिया था क्योंकि मेरे युवा दोस्त ऐसी आंटियों को पम्मी आंटी कहते हैं जो न कोई मतलब, न कोई रिश्ता होते हुए पूछ लेती हैं कि बेटी की शादी कब करोगे. इन बहुत फैशनेबल, नखरीली सी पम्मी आंटी ने जब देखा कि हम भी इंडियन हैं तो उन्होंने घरपरिवार के बारे में पूछा. मेरे नाम और सरनेम पर तो अच्छेअच्छों को ?ाटका लगता है, सोचिए भारत से इतनी दूर घूमते हुए भी एक इंडियन लेडी को पानी में चलते हुए ये बातें करनी याद आईं, ‘‘आप का क्या नाम है.’’

‘‘पूनम अहमद.’’

‘‘लवमैरिज?’’

‘‘जी.’’

‘‘ओह, बड़ी मुश्किल हुई होगी?’’

‘‘जी.’’

‘‘बच्चे?’’

मैं ने बच्चों के बारे में उन्हें बताते हुए अपना हाथ पकडे़ अपने साथ चलते पति के कान में कहा, ‘‘फिर एक इंटरव्यू.’’

वे बोलीं, ‘‘बेटी की शादी अभी नहीं की?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उस का अभी मूड नहीं.’’

‘‘एक तो मुझे आजकल की लड़कियों की बातें ही नहीं पसंद. भई, अपने पैरों पर जब खड़ी हो गईं तो शादी कर के सैटल हो जाओ.’’

गृहशोभा के दीवाने

मैं बस उन की दाद देना चाहूंगी कि जब सब पानी में इतनी मुश्किल से अपना बैलेंस बनाते हुए गिरपड़ रहे थे, वे इस बात की चिंता कर रही थीं कि हमारी बेटी शादी कब करेगी. हमारे यहां की पम्मी आंटियां कमाल हैं न. हां, पर उन की एक अच्छी बात यह थी कि कभी वे ‘गृहशोभा’ बहुत शौक से पढ़ा करती थीं. अब उन्हें फोन के कारण टाइम नहीं मिल पाता. पर वे अब फिर पढ़ना जल्दी शुरू करेंगी.

उन्हें गृहशोभा हमेशा बहुत अच्छी लगी है. ये दोनों पतिपत्नी कभी भी लड़ते, कभी भी किसी भी बात पर बहस करते. ये पतिपत्नी इतने दिलचस्प कैरेक्टर लगे कि बस इन्हें देखते रहना और इन की बातें सुनते रहना कम रोचक नहीं रहा. ये दोनों अपनेआप में मनोरंजन का एक पूरा पैकेज थे. दुनिया में ऐसे लोगों का होना भी बहुत जरूरी है जिन्हें देखसुन कर ही आप बस मुसकराते रहें.

टोनसाई मार्केट में बर्गर किंग में बर्गर खाया. एक अलग तरह की कोकोनट आइसक्रीम खाई जो यहां की विशेषता है. फिर बोट से वापस होटल आ गए. नावों में इतना बैठ चुके थे कि अब जमीन पर चलते तो लगता कि सबकुछ हिल रहा है, वाशबेसिन पर सुबह ब्रश करते तो सिर ऐसे घूमता कि एक बार तो मैं ने वाशबेसिन पकड़ा, खूब सिर घूमता, फिर तैयार हो कर अगले आइलैंड के लिए नाव पर जा बैठते. यहां हम 2 रात थे, नैशनल पार्क देखा. यहां वाइट सैंड है, वहां से फेरी से फुकेट आए, होटल पौना घंटा दूर था.

अगले दिन सुबह जेम्स बांड आइलैंड गए, फिर एक जगह फ्लोटिंग रेस्तरां में लंच किया. फिर एक बीच पर स्विमिंग की और फिर होटल वापस. अगली सुबह टाइगर किंगडम गए, पशुपक्षी मु?ो विशेषरूप से प्रिय हैं और जब बात शेर देखने की, उस की पूंछ पकड़ कर उसे छू कर देखने की हो तो भला कौन मना करेगा. टाइगर किंगडम में टाइगर्स को दूर से देखते हुए भी आनंद लिया जा सकता है और एक तय राशि दे कर प्रोफैशनल फोटोग्राफर को हायर कर के एक विशेष केज में बौडीगार्ड्स और उन के केयर टेकर्स के साथ अंदर जा सकते हैं.

हम ने यही किया. इस में जो टाइगर्स थे, वे ट्रेंड थे. हमें निर्देश दिया गया कि उन्हें पीछे से हग कर सकते हैं, उन के आगे खड़ा नहीं होना है, इस फोटोग्राफर ने हमारे टाइगर्स के साथ अलगअलग पोज में 50 फोटो लिए मजा आ गया. यह जीवन का यादगार दिन था.

गजब का रोमांच

टाइगर्स इतने ट्रेंड हैं कि उन्होंने चूं तक नहीं की. आराम से बैठे हुए टाइगर्स के गले में हाथ डालडाल कर फोटो खिंचवाने में गजब का रोमांच रहा. फिर दिल में आया कि कहीं इन टाइगर्स को कोई ड्रग्स दे कर तो ऐसे नहीं रखा जाता. इस बारे में पूछ नहीं पा रहे थे क्योंकि भाषा की समस्या थी पर एक बोर्ड पर इंग्लिश में लिखा था कि इन टाइगर्स को ये केयर टेकर्स बचपन से ही ट्रेनिंग देते हैं इसलिए वे इन्हें देख कर कंफर्टेबल रहते हैं और इन्हें कोई ड्रग नहीं दिया जाता है. टाइगर्स कई घंटे सोते हैं.

फिर लंच कर के बिग बुद्धा गए. बुद्धा की एक बहुत बड़ी प्रतिमा के साथसाथ यहां और भी कई तरह की मूर्तियां हैं जो काफी सुंदर बनाई गई हैं. आसपास का वातावरण भी बहुत सुंदर था. प्राकृतिक दृश्यों की छटा देखते ही बनती है. साफसफाई बहुत है. फिर शाम को मार्केट, अगले दिन वापस.

अब तक थकान हो चुकी थी. अब

अच्छे पार्लर्स दिख नहीं रहे थे. दोबारा मसाज न करवा पाने का मौका न मिल पाने का मलाल

और मन में कई सुखद यादें, कई रोमांचक अनुभव लिए अगले दिन भारत लौट आए. यह सच है कि यात्राएं बहुत जरूरी होती हैं, नए अनुभव मिलते हैं, नए उत्साह से भर कर स्फूर्ति मिलती है. जीवन के सफर में सफर करते रहना जीवन को संवारता है, सफर की थकान को, मुश्किलों को नजरअंदाज करते हुए नईनई जगहें देखने के मौके तलाशते रहें. जीवन संवरता रहता है, आप बहुत कुछ सीख कर, जान कर वापस लौटते हैं.

उन का तो काम गंद फैलाना है

एक बड़ा सा विज्ञापन देकर देश की 10 प्लास्टिक का सामान बनाने वाली ऐसीसिएशनों ने सरकार से अपील की है कि माइक्रो व स्मौज प्लास्टिक प्रोड्यूसर्स को सरकार के क्रूर इंस्पैक्टर राज वाले एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पौंसिविलिटी रेगूलेशनों से मुक्ति दिलाई जाए. कहने को तो यह दुहाई ऋषि विश्वामित्र के राजा दशरथ के दरबार में राक्षसों से आश्रम बचानें जैसी है पर यह भूल गए कि दशरथ के साथ भेजने से राक्षस (जो भी लोग वे इस कथा में थे) खत्म नहीं हुए.

रामलक्ष्मण द्वारा राक्षसों को विश्वामित्र को भगा देने के बाद भी लंका सोने की बनी रही और रावण के मरने के बाद भी वह समाप्त नहीं हुई विभीषण के हाथ में गई और फलीफूली. इसलिए प्रधानमंत्री से बड़ा विज्ञापन दे कर इंस्पैक्टर राज के क्रूर हाथों से मुक्ति मिलेगी, यह प्लास्टिक प्रोड्यूसर भूल जाएं.

बड़ी बात है कि देश में प्लास्टिक से प्रदूषण के लिए प्रोड्यूसर नहीं हमारी वह धाॢमक संस्कृति है जो कचरा फैलाने को हर रोज प्रोत्साहित करती है. प्लास्टिक को जो उपयोग करते हैं, वे समझते हैं कि धर्म ने सफाई करने की जिम्मेदारी किसी और पर डाल रखी है और उन का काम गंद फैलाना है. चाहे प्लास्टिक की हो या कागज की या पत्तों व मिट्टी के पक्के बरतनों से.

प्लास्टिक उद्योग ने देश की जनता का बड़ा भला किया है. करोड़ों टन खाना आज प्लास्टिक के कारण बरबाद नहीं होता क्योंकि उसे प्लास्टिक में लाया ले जाया जाता है और घर व फ्रिजों में रखा जाता है. एक छोटी सी थैली ले कर बड़ेबड़े टैंक तक प्लास्टिक के बन रहे हैं जिन्होंने जीवन को सरल व सस्ता बनाया है. प्लास्टिक का इस्तेमाल आज इतनी जगह हो रहा है कि गिनाना संभव नहीं है.

प्लास्टिक का इस्तेमाल करने वालों की नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी है कि वे खुद अपने फैलाए गंद को साफ करें, यह काम और कोई नहीं करने आएगा. गाय का कुत्तों का मल सडक़ों पर है तो उन के मालिकों या संरक्षकों का काम है कि वे उसे साफ करें.

पर जैसे गोबर व गौमूत्र का गुणगान करना सिखा दिया गया है और उसे सहने की और सडऩे पर बदबू की आदत धर्म ने देश की जनता को डाल दी है, वही आदत प्लास्टिक के इस्तेमाल में डली हुई है. अच्छे से अच्छा जमा प्लास्टिक की थैलियों से ले कर खराब हो गए डब्बे, ड्रम सडक़ों पर डाल देता है. रिसाइकल वाले ले जाते हैं पर जिस को रिसाइकल न किया जा सके वह पड़ा रह जाता है. सालभर में देश की 30-35 लाख टन प्लास्टिक की वेस्ट अगर सडक़ों पर पड़ी रहती है तो जिम्मेदारी बनाने वाली की नहीं, इस्तेमाल करने वालों की है.

उस से बड़ी जिम्मेदारी सरकारी विभागों की है जो प्लास्टिक वेस्ट को उठाने, उसे सही ढंग से डिस्पोजबल करने के तरीके नहीं ईजाद कर रहे या लागू कर रहे. नगर निकायों से ले कर केंद्रीय सचिवालय तक प्लास्टिक कचरा निबटान पर कोई सोच नहीं है. सिर्फ बैन कर देना समस्या का हल नहीं है.

आज हर तरह की तकनीक मिल रही है. प्लास्टिक दिखने वाला प्रदूषण न फैलाए इस के लिए तो हर घर में मशीनें लगाई जा सकती हैं जो प्लास्टिक को कंप्रैस कर दें. नगर निकाय इन को तुरंत उठा कर रिसाइकल प्लांटों को दे सकते हैं. इन्हें जलाने की जगह इन्हें हाई प्रेस कर के भराव के काम में आसानी से लाया जा सकता है जहां आज मिट्टी पत्थर का इस्तेमाल होता है. यह समस्या इतनी विकराल नहीं है जितनी हम ने बना रखी है.

दिक्कत यही है कि हम जैसे अपनी गरीबी, बीमारी, संकटों के लिए पंडितों की बनाई बात कि यह पिछले जन्मों के पापों का फल है, मान लेते हैं. प्लास्टिक पोल्यूशन के लिए प्लास्टिक प्रोड्यूसर्स को दोषी मान रहे हैं. यह टके सेर यानी, टके फेर खाजा, अंधी प्रजा काना राजा वाली कहानी को दोहराता है.

पार्टी वाला पनीर बटर मसाला

घर में पार्टी हो तो घर और घरवालों में जान आ जाती है, ठीक इसी तरह पार्टी मेन्यू में पनीर बटर मसाला हो तो दावत में जान आ जाती है. बड़े ही नहीं बच्चे भी पनीर बटर मसाला बड़े चाव से खाते हैं. इसलिए इस डिश को मेन्यू में रखने से पहले दो बार सोचना नहीं पड़ता.

लेकिन कई बार घर में ये डिश बनाने के बाद मन में यह बात जरूर आती है कि बना तो बहुत उम्दा लेकिन वो वाली बात नहीं आ पाई. और ऐसा होता है मसालों का सही संतुलन न होने की वजह से. मगर अब टेंशन लेने की कोई बात नहीं, क्योंकि अब सनराइज़ पनीर बटर मसाला जो है.

सनराइज़ पनीर बटर मसाले की खास बात यह है कि इसे इस्तेमाल करने से न सिर्फ आप झटपट अपनी डिश तैयार कर सकती हैं बल्कि अलगअलग मसालों का सही संतुलन बनाने झटपट से भी मुक्ति मिलती है.

पनीर बटर मसाला

सामग्री

  1. 4-5 मध्यम आकार के प्याज बारीक कटे
  2. 1 बड़ा चम्मच टमाटर का पेस्ट 
  3. 250 ग्राम पनीर क्यूब्स में कटा 
  4. 1/2 चम्मच अदरकलहसुन को पेस्ट 
  5. सनराइज़ पनीर बटर मसाला 
  6. 1 बड़ा चम्मच काजू को पेस्ट
  7. 1/2 कप दूध
  8. 1 चम्मच बटर
  9. क्रीम गार्निशिंग के लिए 
  10. जरूरतानुसार तेल
  11. नमक स्वादनुसार.

विधि

पैन में तेल गरम कर उसमें बटर मिला दें. ध्यान रखें बटर जलना नहीं चाहिए. अब इसमें प्याज और अदरकलहसुन का पेस्ट भूनें. आंच धीमी कर सनराइज़ पनीर बटर मसाला मिलाकर कुछ देर भूनें. अब टमाटर का पेस्ट मिलाकर कुछ देरी चलाते हुए भूनें. जब मिश्रण तेल छोड़ने लगे तो काजू को पेस्ट मिलाकर धीमी आंच पर भूनें. अब पहले दूध फिर पानी इस मिश्रण में डालें. जब ग्रवी अच्छी तरह उबलने लगे तो पनीर और नमक भी मिक्स कर दें. 1 मिनट धीमी आंच पर ढक कर पकने दें. सर्विंग बाउल में निकालकर क्रीम से गार्निश करें और नान या कुल्चे के साथ परोसें.

शादी को 10 साल के बाद भी मां नहीं बन पा रही हूं, मै क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 38 साल है. शादी को 10 साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन मां बनने के सुख से वंचित हूं. डाक्टर ने बताया कि मेरे अंडे कमजोर हैं. इसी वजह से एक बार मेरा 3 माह का गर्भ भी गिर चुका है. बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

इस उम्र में गर्भधारण करना आमतौर पर थोड़ा मुश्किल हो जाता है. आप का 3 माह का गर्भ गिरना भी यही साबित करता है कि आप के अंडे कमजोर हैं. लेकिन आप को निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अगर आप के पति में कोई कमी नहीं है, तो आप एग डोनेशन तकनीक का सहारा ले सकती हैं. किसी अन्य महिला जैसे आप की बहन या भाभी आदि के अंडे आप के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं. इसके लिए आवश्यक है कि उक्त महिला शादीशुदा हो और बच्चे को जन्म दे चुकी हो.

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खानपान, शिफ्ट वाली नौकरी और रहन-सहन में आए बदलाव के कारण जहां एक तरफ लाइफस्टाइल पहले से अधिक बढ़ गया है, वहीं दूसरी तरफ टैकनोलौजी से भी कई हेल्थ प्रौब्लम बढ़ गई हैं. अब बढ़ती उम्र के साथ होने वाले रोग युवावस्था में ही होने लगे हैं. इनमें एक कौमन प्रौब्लम है युवाओं में बढ़ती इन्फर्टिलिटी. दरअसल, युवाओं में इन्फर्टिलिटी की समस्या आधुनिक जीवनशैली में की जाने वाली कुछ आम गलतियों की वजह से बढ़ रही है.

1. खानपान की गलत आदतें

इन्फर्टिलिटी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होती है खानपान की गलत आदतें. समय पर खाना नही, जंक व फास्ट फूड खाने के क्रेज का परिणाम है युवावस्था में इन्फर्टिलिटी की प्रौब्लम. फास्ट फूड और जंक फूड खाने में मौजूद पेस्टीसाइड से शरीर में हारमोन संतुलन बिगड़ जाता है, जिसके कारण इन्फर्टिलिटी हो सकती है. इसलिए अपने खानपान में बदलाव का पौष्टिक आहार का सेवन करें. हरी सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, बींस, दालें आदि ज्यादा से ज्यादा खाएं.

2. टेंशन

आधुनिक जीवनशैली में लगभग हर व्यक्ति टेंशन से ग्रस्त है. काम का दबाव, कंपीटिशन की भावना, ईएमआई का बोझ, लाइफस्टाइल मैंटेन करने के लिए फाइनैंशल बोझ आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो हम ने स्वयं अपने लिए तैयार की हैं. इन सभी के कारण ज्यादातर युवा टेंशन में रहते हैं और इन्फर्टिलिटी का शिकार हो रहे हैं. इससे बचने के लिए ऐसे काम करें कि आप टेंशन न हों. टेंशन के समय घर वालों और दोस्तों की मदद लें.

Father’s day 2023: एफर्ट से बढ़ाएं पिता का कारोबार

24 वर्षीय रोहन ग्रैजुएशन के अंतिम वर्ष का छात्र है. उस के पिता का टूर ऐंड ट्रैवल का बिजनैस है, लेकिन पिछले 2 साल से यह धंधा मंदा चल रहा था. रोहन को जब यह पता चला तो उस ने आगे बढ़ कर बिजनैस को गति देने की सोची. उस ने कंपनी की वैबसाइट बना कर जगहजगह उस का लिंक भेजना शुरू किया. धीरेधीरे बुकिंग शुरू हो गई. आज आलम यह है कि रोहन की कंपनी के पास कस्टमर की डिमांड के मुताबिक गाडि़यां ही नहीं हैं.

रोहन जैसे न जाने कितने किशोर हैं जिन्होंने आगे बढ़ कर अपने एफर्ट से पिता के बिजनैस का मेकओवर किया है और घाटे में चल रहे बिजनैस को मुनाफे का सौदा बना दिया. दरअसल, समय के साथ परंपरागत तरीके से बिजनैस के बजाय नए जमाने के हिसाब से चलने में मुनाफा है. नोटबंदी के बाद से तो बिजनैस का पूरा परिदृश्य ही बदल गया है. कल तक जहां कैश से सारा काम हो सकता था आज औनलाइन पेमैंट और डिजिटल मार्केटिंग का चलन जोरों पर है. ऐसे में यदि किशोर पिता के कारोबार को ऊंचाई देने की सोच रहे हैं तो इस से जुड़ी तमाम बातों की जानकारी हासिल कर लें. प्रस्तुत हैं कुछ बिंदु जो इस राह में आप की मदद कर सकते हैं :

पेरैंट्स को भरोसे में लें

व्यवसाय या परिवार के हित में आप जो भी करना चाहते हैं, सब से पहले आप को अपने पेरैंट्स को भरोसे में लेना होगा. आप उन्हें विस्तार से समझाइए कि किस तरह से उन की कोशिश सफल होगी. इस के लिए आप के पास सौलिड आइडियाज होने के साथसाथ उस के कुछ कागजी सुझाव भी होने चाहिए.

फायदे नुकसान के बारे में जानें

नई दिल्ली स्थित तारा इंस्टिट्यूट के डायरैक्टर सत्येंद्र कुमार का कहना है कि बिजनैस को बढ़ाने अथवा नया कलेवर देने से पहले जरूरी है कि आप उस के फायदे व नुकसान से भलीभांति अवगत हों, आप को यह चिह्नित करना होगा कि आप के साथ कौनकौन सी दिक्कतें आने वाली हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

बाजार की डिमांड समझें

गर्ग ग्रुप, दिल्ली के संरक्षक वी के गर्ग का मानना है कि यह समझना अत्यंत जरूरी है कि हम जिस बिजनैस में हाथ आजमाने जा रहे हैं, मौजूदा समय में उस की बाजार में कितनी और किस रूप में डिमांड है. उसी के अनुरूप अपनी प्लानिंग करें और कदम आगे बढ़ाएं.

संबंधित स्किल सीखना भी जरूरी

बिजनैस से जुड़ा कोई हुनर सीखना जरूरी है तो उस से पीछे न हटें. आप को कई ऐसे रास्ते मिलेंगे जहां से आप नई जानकारी हासिल कर सकते हैं. केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई कौशल विकास योजना के अंतर्गत 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल सिखाया जाना है. इस में बड़ी आबादी युवाओं की होगी, जो कम खर्च में बेहतर स्किल से लैस होंगे.

इंटरनैट से मिलेगी भरपूर मदद

आज युवा पीढ़ी के पास इंटरनैट के रूप में एक ऐसा अस्त्र है जिस की बदौलत वे अपनी हर समस्या का पलभर में समाधान ढूंढ़ सकते हैं. इस के जरिए उपभोक्ताओं तक पहुंच भी आसान हो सकेगी और काम का दायरा किसी सीमा में सीमित न हो कर देशविदेश तक फैल सकता है.

पढ़ाई न होने पाए बाधित

इन सब कोशिशों के बीच यह न भूलें कि आप यदि ग्रैजुएशन के छात्र हैं तो आप की जिम्मेदारी उस परीक्षा को बेहतर अंकों से पास करने की भी है. समय के साथ हर चीज जरूरी होती है. पिता के कारोबार को गति देने में सक्षम साबित हुए हैं तो पढ़ाई के प्लेटफौर्म पर भी आप को खुद को अव्वल साबित करना होगा. शिक्षा से आप का विजन मजबूत होगा.

ये 7 स्किल आएंगे काम

नवीनतम विचार, धैर्य व दृढ़ संकल्प, महत्त्वाकांक्षी, आकलन का कौशल, नई चीज सीखने को तत्पर रहना, निर्णय लेने की क्षमता, प्रतिकूल परिस्थितियों में न डिगना ऐसे स्किल्स हैं जो बिजनैस को गति देने के लिए जरूरी हैं.

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Father’s day 2023: क्या वही प्यार था

दादी और बाबा के कमरे से फिर जोरजोर से लड़ने की आवाजें आने लगी थीं. अम्मा ने मुझे इशारा किया, मैं समझ गई कि मुझे दादीबाबा के कमरे में जा कर उन्हें लड़ने से मना करना है. मैं ने दरवाजे पर खड़े हो कर इतना ही कहा कि दादी, चुप हो जाइए, अम्मा के पास नीचे गुप्ता आंटी बैठी हैं. अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि दादी भड़क गईं.

‘‘हांहां, मुझे ही कह तू भी, इसे कोई कुछ नहीं कहता. जो आता है मुझे ही चुप होने को कहता है.’’

दादी की आवाज और तेज हो गई थी और बदले में बाबा उन से भी जोर से बोलने लगे थे. इन दोनों से कुछ भी कहना बेकार था. मैं उन के कमरे का दरवाजा बंद कर के लौट आई.

दादीबाबा की ऐसी लड़ाई आज पहली बार नहीं हो रही थी. मैं ने जब से होश संभाला है तब से ही इन दोनों को इसी तरह लड़ते और गालीगलौज करते देखा है. इस तरह की तूतू मैंमैं इन दोनों की दिनचर्या का हिस्सा है. हर बार दोनों के लड़ने का कारण रहता है दादी का ताश और चौपड़ खेलना. हमारी कालोनी के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे महल्लों के सेवानिवृत्त लोग, किशोर लड़के दादी के साथ ताश खेलने आते हैं. ताश खेलना दादी का जनून था. दादी खाना, नहाना छोड़ सकती थीं, मगर ताश खेलना नहीं.

दादी के साथ कोई बड़ा ही खेलने वाला हो, यह जरूरी नहीं. वे तो छोटे बच्चे के साथ भी बड़े आनंद के साथ ताश खेल लेती थीं. 1-2 घंटे नहीं बल्कि पूरेपूरे दिन. भरी दोपहरी हो, ठंडी रातें हों, दादी कभी भी ताश खेलने के लिए मना नहीं कर सकतीं. बाबा लड़ते समय दादी को जी भर कर गालियां देते परंतु दादी उन्हें सुनतीं और कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर उसी तरह ताश में मगन रहतीं. कई बार बहुत अधिक गुस्सा आने पर बाबा, दादी के 1-2 छड़ी भी टिका देते. दादी बाबा से न नाराज होतीं न रोतीं. बस, 1-2 गालियां बाबा को सुनातीं और अपने ताश या चौपड़ में मस्त हो जातीं.

एक खास बात थी, वह यह कि दोनों अकसर लड़ते तो थे मगर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. जब दोनों की लड़ाई हद से बढ़ जाती और दोनों ही चुप न होते तो दोनों को चुप कराने के लिए अम्मा इसी बात को हथियार बनातीं. वे इतना ही कहतीं, ‘‘आप दोनों में से किसी एक को देवरजी के पास भेजूंगी,’’ दोनों चुप हो जाते और तब दादी, बाबा से कहतीं, ‘‘करमजले, तू कहीं रहने लायक नहीं है और न मुझे कहीं रहने लायक छोड़ेगा,’’ और दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते.

खैर, गुप्ता आंटी तो चली गई थीं मगर अम्मा को आज जरा ज्यादा ही गुस्सा आ गया था. सो, अम्मा ने दोनों से कहा, ‘‘बस, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती. अभी देवरजी को चिट्ठी लिखती हूं कि किसी एक को आ कर ले जाएं.’’

अम्मा का कहना था कि बाबा हाथ जोड़ कर हर बार की तरह गुहार करने लगे, ‘‘अरी बेटी, तू बिलकुल सच्ची है, तू हमें ऊपर बनी टपरी में डाल दे, हम वहीं रह लेंगे पर हमें अलगअलग न कर. अरी बेटी, आज के बाद मैं अपना मुंह सी लूंगा.’’

अभी बात चल ही रही थी कि संयोग से चाचा आ गए. चायनाश्ते के बाद अम्मा ने चाचा से कहा, ‘‘सुमेर, दोनों में से किसी एक को अपने साथ ले कर जाना. जब देखो दोनों लड़ते रहते हैं. न आएगए की शर्म न बच्चों का लिहाज.’’

चाचा लड़ने का कारण तो जानते ही थे इसलिए दादी को समझाते हुए बोले, ‘‘मां, जब पिताजी को तुम्हारा ताश और चौपड़ खेलना अच्छा नहीं लगता तो क्यों खेलती हैं, बंद कर दें. ताश खेलना छोड़ दें. पता नहीं इस ताश और चौपड़ के कारण तुम ने पिताजी की कितनी बेंत खाई होंगी.

‘‘भाभी ठीक कहती हैं. मां, तुम चलो मेरे साथ. मेरे पास ज्यादा बड़ा मकान नहीं है, पिताजी के लिए दिक्कत हो जाएगी. मां, तुम तो बच्चों के कमरे में मजे से रहना.’’

आज दादी भी गुस्से में थीं, एकदम बोलीं, ‘‘हां बेटा, ठीक है. मैं भी अब तंग आ गई हूं. कुछ दिन तो चैन से कटेंगे.’’

दादी ने अपना बोरियाबिस्तर बांध कर तैयारी कर ली. अपनी चौपड़ और ताश उठा लिए और जाने के लिए तैयार हो गईं.

यह बात बाबा को पता चली तो बाबा ने वही बातें कहनी शुरू कर दीं जो दादी से अलग होने पर अम्मा से किया करते थे, ‘‘अरी बेटी, मैं मर कर नरक में जाऊं जो तू मेरी आवाज फिर सुने.’’

अम्मा के कोई जवाब न देने पर वे दादी के सामने ही गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘सुमेर की मां, आप मुझे जीतेजी क्यों मार रही हो. आप के बिना यह लाचार बुड्ढा कैसे जिएगा.’’

इतना सुनते ही दादी का मन पिघल गया और वे धीरे से बोलीं, ‘‘अच्छा, नहीं जाती,’’ दादी ने चाचा से कह दिया, ‘‘तेरे पिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं न, मैं नहीं जाऊंगी,’’ और दादी ने अपना बंधा सामान, अपना बक्सा, ताश, चौपड़ सब कुछ उठा कर खुद ही अंदर रख दिया.

चाचा को उसी दिन लौटना था अत: वे चले गए. शाम को मैं चाय ले कर बाबा के पास गई तो बाबा ने कहा, ‘‘सिम्मी बच्ची, पहले अपनी दादी को दे,’’ और फिर खुद ही बोले, ‘‘सुमेर की मां, सिम्मी चाय लाई है, चाय पी लो.’’

दादी भी वाणी में मिठास घोल कर बड़े स्नेह से बोलीं, ‘‘अजी आप पियो, मेरे लिए और ले आएगी.’’

एक बात और बड़ी मजेदार थी, जब अलग होने की बात होती तो तूतड़ाक से बात करने वाले मेरे बाबा और दादी आपआप कर के बात करते थे जो हमारे लिए मनोरंजन का साधन बन जाती थी. लेकिन ऐसे क्षण कभीकभी ही आते थे, और दादीबाबा कभीकभी ही बिना लड़ेझगड़े साथ बैठते थे. आज भी ऐसा ही हुआ था. ये आपआप और धीमा स्वर थोड़ी ही देर चला क्योंकि पड़ोस के मेजर अंकल दादी के साथ ताश खेलने आ गए थे.

बाबा की तबीयत खराब हुए कई दिन हो गए थे. दादी को विशेष मतलब नहीं था उन की तबीयत से. एक दिन बाबा की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. बाबा कहने लगे, ‘‘आज मैं नहीं बचूंगा. अपनी दादी से कहो, मेरे पास आ कर बैठे, मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

दादी की ताश की महफिल जमी हुई थी. हम उन्हें बुलाने गए मगर दादी ने हांहूं, अच्छा आ रही हूं, कह कर टाल दिया. वह तो अम्मा डांटडपट कर दादी को ले आईं. दादी बेमन से आई थीं बाबा के पास.

दादी बाबा के पास आईं तो बाबा ने बस इतना ही कहा था, ‘‘सुमेर की मां, तू आ गई, मैं तो चला,’’ और दादी का जवाब सुने बिना ही बाबा हमेशा के लिए चल बसे.

तेरहवीं के बाद सब रिश्तेदार चले गए. शाम को दादी अपने कमरे में गईं. वे बिलकुल गुमसुम हो गई थीं हालांकि बाबा की मृत्यु होने पर न वे रोई थीं न ही चिल्लाई थीं. दादी ने खाना छोड़ दिया, वे किसी से बात नहीं करती थीं. ताश, चौपड़ को उन्होंने हाथ नहीं लगाया. जब कोई ताश खेलने आता तो दादी अंदर से मना करवा देतीं कि उन की तबीयत ठीक नहीं है. अम्मा या पापा दादी से बात करने का प्रयास करते तो दादी एक ही जवाब देतीं, ‘‘मेरा जी अच्छा नहीं है.’’

एक दिन अम्मा, दादी के पास गईं और बोलीं, ‘‘मांजी, कमरे से बाहर आओ, चलो ताश खेलते हैं, आप ने तो बात भी करना छोड़ दिया. दिनभर इस कमरे में पता नहीं क्या करती हो. चलो, आओ, लौबी में ताश खेलेंगे.’’

दादी के चिरपरिचित जवाब में अम्मा ने फिर कहा, ‘‘मांजी, ऐसी क्या नफरत हो गई आप को ताश से. इस ताश के पीछे आप ने सारी उम्र पिताजी की गालियां और बेंत खाए. जब पिताजी मना किया करते थे तो आप खेलने से रुकती नहीं थीं और अब वे मना करने के लिए नहीं हैं तो 3 महीने से आप ने ताश छुए भी नहीं. देखो, आप की चौपड़ पर कितनी धूल जम गई है.’’

अब दादी बोलीं, ‘‘परसों होंगे 3 महीने. मेरा उन के बिना जी नहीं लगता. सुमेर के पिताजी, मुझे भी अपने पास बुला लो. मुझे नहीं जीना अब.’’

दादी की मनोकामना पूरी हुई. बाबा के मरने के ठीक 3 महीने बाद उसी तिथि को दादी ने प्राण त्याग दिए. यानी दादी अपने कमरे में जो गईं तो 3 महीने बाद मर कर ही बाहर आईं.

दादीबाबा को हम ने कभी प्रेम से बैठ कर बातें करते नहीं देखा था, लेकिन दादी बाबा की मौत का गम नहीं सह पाईं और बाबा के पीछेपीछे ही चली गईं. उन के ताश, चौपड़ वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं.

 

परिवर्तन: शिव आखिर क्यों था शर्मिंदा?

टीचर सुनील कुमार सभी विद्यार्थियों के चहेते थे. अपनी पढ़ाने की रोचक शैली के साथसाथ वे समयसमय पर पाठ्यक्रम के अलावा अन्य उपयोगी बातों से भी छात्रों को अवगत कराते रहते थे जिस कारण सभी विद्यार्थी उन का खूब सम्मान करते थे. 10वीं कक्षा में उन का पीरियड चल रहा था. वे छात्रों से उन की भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछ रहे थे.

‘‘मोहन, तुम पढ़लिख कर क्या बनना चाहते हो?’’ उन्होंने पूछा.

मोहन खड़ा हो कर बोला, ‘‘सर, मैं डाक्टर बनना चाहता हूं.’’

इस पर सुनील कुमार मुसकरा कर बोले, ‘‘बहुत अच्छे.’’

फिर उन्होंने राजेश की ओर रुख किया, ‘‘तुम?’’

‘‘सर, मेरे पिताजी उद्योगपति हैं, पढ़लिख कर मैं उन के काम में हाथ बंटाऊंगा.’’

‘‘उत्तम विचार है तुम्हारा.’’

अब उन की निगाह अश्वनी पर जा टिकी.

वह खड़ा हो कर कुछ बताने जा ही रहा था कि पीछे से महेश की आवाज आई, ‘‘सर, इस के पिता मोची हैं. अपने पिता के साथ हाथ बंटाने में इसे भला पढ़ाई करने की क्या जरूरत है?’’ इस पर सारे लड़के ठहाका लगा कर हंस पड़े परंतु सुनील कुमार के जोर से डांटने पर सब लड़के एकदम चुप हो गए.

‘‘महेश, खड़े हो जाओ,’’ सुनील सर ने गुस्से से कहा.

आदेश पा कर महेश खड़ा हो गया. उस के चेहरे पर अब भी मुसकराहट तैर रही थी.

‘‘बड़ी खुशी मिलती है तुम्हें इस तरह किसी का मजाक उड़ाने में,’‘ सुनील सर गंभीर थे, ‘‘तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बाबा ने किन परिस्थितियों में संघर्ष कर के तुम्हारे पिता को पढ़ाया. तब जा कर वे इतने प्रसिद्ध डाक्टर बने.’’ महेश को टीचर की यह बात चुभ गई. वह अपने पिताजी से अपने बाबा के बारे में जानने के लिए बेचैन हो उठा. उस ने निश्चय किया कि वह घर जा कर अपने पिता से अपने बाबा के बारे में अवश्य पूछेगा.

रात के समय खाने की मेज पर महेश अपने पिताजी से पूछ बैठा, ‘‘पिताजी, मेरे बाबा क्या काम करते थे?’’

अचानक महेश के मुंह से बाबा का नाम सुन कर रवि बाबू चौंक गए. फिर कुछ देर के लिए वे अतीत की गहराइयों में डूबते चले गए.

पिता को मौन देख कर महेश ने अपना प्रश्न दोहराया, ‘‘बताइए न बाबा के बारे में?’’

रवि बाबू का मन अपने पिता के प्रति श्रद्धा से भर आया. वे बोले, ‘‘बेटा, वे महान थे. कठोर मेहनत कर के उन्होंने मुझे डाक्टरी की पढ़ाई करवाई. तुम जानना चाहते हो कि वे क्या थे?’’

महेश की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी.

उस के पिता बोले, ‘‘तुम्हारे बाबा रिकशा चलाया करते थे. अपने शरीर को तपा कर उन्होंने मेरे जीवन को शीतलता प्रदान की. उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि हर काम महान होता है. मुझे याद है, मेरे साथ अखिल नाम का एक लड़का भी पढ़ा करता था. उस के पिता धन्ना सेठ थे. वह लड़का हमेशा मेरा मजाक उड़ाया करता था. पढ़ने में तो उस की जरा भी रुचि नहीं थी.

‘‘मैं घर जा कर पिताजी से जब यह बात कहता तो वे जवाब देते कि क्या हुआ, अगर उस ने तुम्हेें रिकशा वाले का बेटा कह दिया? अपनी वास्तविकता से इंसान को कभी नहीं भागना चाहिए. झूठी शान में रहने वाले जिंदगी में कुछ नहीं कर पाते. कोई भी काम कभी छोटा नहीं होता.

‘‘पिताजी की यह बात मैं ने गांठ बांध ली. इस का परिणाम यह हुआ कि मुझे सफलता मिलती गई, लेकिन अखिल अपनी मौजमस्ती की आदतों में डूबा रहने के कारण बरबाद हो गया. जानते हो, आज वह कहां है?’’

महेश उत्सुकता से बोला, ‘‘कहां है पिताजी?’’

‘‘पिता की दौलत से आराम की जिंदगी गुजारने वाला अखिल आज बड़ी तंगहाली में जी रहा है. पिता के मरने के बाद उस ने उन की दौलत को मौजमस्ती व ऐयाशी में खर्च किया. आजकल वह पैसेपैसे को मुहताज है. अपनी बहन के यहां पड़ा हुआ उस की रहम की रोटी खा रहा है और उस का बहनोई उस के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करता है.‘‘ महेश ने पिता की बातों को गौर से सुना. अब उसे एहसास हो रहा था कि अश्वनी के पिता उसे वैसा बना सकते हैं, जैसे वे स्वयं हैं लेकिन वे उसे पढ़ालिखा रहे हैं ताकि वह कुछ अच्छा बन सके. फिर यह सोच कर वह कांप उठा कि कहीं उसे अखिल कीतरह मुसीबतों भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े.

दूसरे दिन जब वह स्कूल गया तो सब से पहले अश्वनी से ही मिला और बोला, ‘‘कल मैं ने तुम्हारा मजाक उड़ाया था, मैं बहुत शर्मिंदा हूं… मुझे माफ कर दो,’’ महेश का स्वर पश्चात्ताप में डूबा हुआ था.

अश्वनी हंस पड़ा, ‘‘अरे यार, ऐसा मत कहो. वह बात तो मैं ने उसी समय दिमाग से निकाल दी थी.’’

‘‘यह तो तुम्हारी महानता है अश्वनी… क्या तुम मुझे अपना मित्र बनाओगे?’’

यह सुन कर अश्वनी जोर से हंसा और उस ने अपना हाथ महेश की तरफ बढ़ा दिया. अश्वनी के हाथ में अपना हाथ दे कर महेश बहुत राहत महसूस कर रहा था.

Father’s day 2023: ले बाबुल घर आपनो

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