अपने जैसे लोग: भाग 3- नीरज के मन में कैसी शंका थी

हम खुशीखुशी बाहर निकल कर घर के सामने आए ही थे कि देखा पंकज और प्रदीप दोनों साइकिल से खेल रहे हैं. आश्चर्य तो नीरज को तब हुआ जब उस ने देखा कि पंकज तो गद्दी पर बैठा है और प्रदीप उसे धक्का दे रहा है.

‘‘देखो तो सही कैसे बादशाह की तरह गद्दी पर जमा बैठा है और उस से साइकिल खिंचवा रहा है. कहीं मिसेज गांगुली ने देख लिया तो…’’

‘‘वे कितनी ही बार बच्चों को ऐसे खेलता हुआ देख चुकी हैं. कोई भावना उन के मुख पर कभी दिखाई नहीं दी. सब आप के दिल का वहम है,’’ मैं ने उचित अवसर देख कर कहा और वह चुप हो गया. शायद वह अपनी गलती अनुभव करने लगा था.

एक इतवार को दोपहर का शो देखने का प्रोग्राम था. मैं नहा कर जल्दी से कपड़े बदल आई थी और घर में पहनने वाली अपनी साधारण सी धोती को मैं ने बरामदे में ही रस्सी पर डाल दिया. नीरज कुछ देर पीछे वाली कोठियों की ओर बड़े ध्यान से देखता रहा, फिर मेरी धुली धोती को उस ने रस्सी से उतार फेंका और बोला, ‘‘इस बीस रुपल्ली की धोती को इन लोगों के सामने सुखाने मत डाला करो. देखो, वह 6 नंबर वाली देखदेख कर कैसे हंस रही है, यह देख कर कि तुम्हारे पास ऐसी ही सस्ती धोती है पहनने को. क्या कहेंगे ये सब लोग? इसे सुखाना ही था तो उधर बाहर बगीचे में तार पर डाल देतीं.’’

‘‘आप तो बेकार हर समय वहम करते हैं, उलटा ही सोचते हैं. किसी को क्या मतलब है इतनी दूर से यह देखने का कि हमारी घर में पहनी जाने वाली धोती कीमती है या सस्ती? कोई किसी की ओर इतना ध्यान क्यों देगा भला.’’ मैं भी जरा क्रोध में बोलती हुई धोती को उठा कर बाहर डाल आई थी. बहुत दुख हुआ था नीरज के सोचने के ढंग पर. फिल्म देखते हुए भी दिल उखड़ाउखड़ा रहा. परंतु मैं ने भी हिम्मत न हारी.

तीसरे दिन शाम को 6 नंबर वाली रमा हमारे यहां आईं तो मुझे आश्चर्य हुआ. पर वे बड़े प्रेम से अभिवादन कर के बैठते हुए बोलीं, ‘‘शीलाजी, आप कलम चलाने के साथसाथ कढ़ाई में भी अत्यंत निपुण हैं, यह तो हमें अभी सप्ताहभर पहले ही सौदामिनीजी ने बताया है. सच, परसों दोपहर आप ने बरामदे में जो धोती सुखाने के लिए डाल रखी थी, उस पर कढ़े हुए बूटे इतने सुंदर लग रहे थे कि मैं तो उसी समय आने वाली थी लेकिन आप उस दिन फिल्म देखने चली गईं.’’

नीरज उस समय वहीं बैठा था. रमा अपनी बात कह रही थीं और हम एकदूसरे के चेहरों को देख रहे थे. मैं अपनी खुशी को बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थी और नीरज अपनी झेंप को किसी तरह भी छिपाने में समर्थ नहीं हो रहा था. आखिर उठ कर चल दिया. रमा जब चली गईं तो मैं ने उस से कहा, ‘‘अब बताओ कि वे मेरी धोती के सस्तेपन पर हंस रही थीं या उस पर कढ़े हुए बेलबूटों की सराहना कर रही थीं.’’

‘‘हां, भई, चलो तुम्हीं ठीक हो. मान गए हम तुम्हें.’’ पहली बार उस ने अपनी गलती स्वीकारी. उस के बाद एक आत्मसंतोष का भाव उस के चेहरे पर दिखाई देने लगा.

इस कालोनी में रहने का एक बड़ा लाभ मुझे यह हुआ कि मध्यम और उच्च वर्ग, दोनों ही प्रकार के लोगों के जीवन का अध्ययन करने का अवसर मिला. मैं ने अनुभव किया बड़ीबड़ी कोठियों में रहने वाले व धन की अपार राशि के मालिक होते हुए भी अमीर लोग कितनी ही समस्याओं व जटिलताओं से जकड़े हुए हैं. उधर अपने जैसे मध्यम वर्ग के लोगों की भी कुछ अपनी परेशानियां व उलझनें थीं.

मेरे लिए खुशी की बात तो यह थी कि प्रत्येक महिला बड़ी ही आत्मीयता से अपना सुखदुख मेरे सम्मुख कह देती थी क्योंकि मैं समस्याओं के सुझाव मौखिक ही बता देती थी या फिर अपनी लेखनी द्वारा पत्रिकाओं में प्रस्तुत कर देती थी. परिणामस्वरूप, कई परिवारों के जीवन सुधर गए थे.

मेरे घर के द्वार हर समय हरेक के लिए खुले रहते. अकसर महिलाएं हंस कर कहतीं, ‘‘आप का समय बरबाद हो रहा होगा. हम ने तो सुना है कि लेखक लोग किसी से बोलना तक पसंद नहीं करते, एकांत चाहते हैं. इधर हम तो हर समय आप को घेरे रहती हैं…’’

‘‘यह आप का गलत विचार है. लेखक का कर्तव्य जनजीवन से भागने का नहीं होता, बल्कि प्रत्येक के जीवन में स्वयं घुस कर खुली आंखों से देखने का होता है. तभी तो मैं आप के यहां किसी भी समय चली आती हूं.’’ मैं बड़ी नम्रता से उत्तर देती तो महिलाएं हृदय से मेरे निकट होती चली गईं.

धीरेधीरे उन के साथ उन के पति भी हमारे यहां आने लगे. नीरज को भी उन का व्यवहार अच्छा लगा और वह भी मेरे साथ प्रत्येक के यहां जाने लगा. मुझे लगने लगा वास्तव में सभी लोग अपने जैसे हैं…न कोई छोटा न बड़ा है. बस, दिल में स्थान होना चाहिए, फिर छोटे या बड़े निवासस्थान का कोई महत्त्व नहीं रहता.

अभी 3 दिनों पहले ही पंकज का जन्मदिन था. हमारी इच्छा नहीं थी कि धूमधाम से मनाया जाए, परंतु एक बार जरा सी बात मेरे मुंह से निकल गई तो सब पीछे पड़ गए, ‘‘नहीं, भई, एक ही तो बच्चा है, उस का जन्मदिन तो मनाना ही चाहिए.’’

हम दोनों यही सोच रहे थे कि जानपहचान वाले लोग कम से कम डेढ़ सौ तो हो ही जाएंगे. कैसे होगा सब? इतने सारे लोगों को बुलाया जाएगा तो पार्टी भी अच्छी होनी चाहिए.

‘‘इतने बड़े लोगों को मुझे तो अपने यहां बुलाने में भी शर्म आ रही है और ये सब पीछे पड़े हैं. कैसे होगा?’’ नीरज बोला.

‘‘फिर वही बड़ेछोटे की बात कही आप ने. कोई किसी के यहां खाने नहीं आता. यह तो एक प्रेमभाव होता है. मैं सब कर लूंगी.’’ मैं ने अवसर देखते हुए बड़े धैर्य से काम लिया. सुबह ही मैं ने पूरी योजना बना ली.

आशा देवी की आया व कमलाजी के यहां से 2 नौकर बुला लिए. लिस्ट बना कर उन्हें सहकारी बाजार से सामान लाने को भेज दिया और मैं तैयारी में जुट गई. घंटेभर बाद ही सामान आ गया. मैं ने घर में समोसे, पकोड़े, छोले व आलू की टिकिया आदि तैयार कर लीं. मिठाई बाजार से आ गई.

बैठने का इंतजाम बाहर लौन में कर लिया गया. फर्नीचर आसपास की कोठियों से आ गया. सभी बच्चे अत्यंत उत्साह से कार्य कर रहे थे. गांगुली साहब ने अपनी फर्म के बिजली वाले को बुला कर बिजली के नन्हें, रंगबिरंगे बल्बों की फिटिंग पार्क में करवा दी. मैं नहीं समझ पा रही थी कि सब कार्य स्वयं ही कैसे हो गया.

रात के 12 बजे तक जश्न होता रहा. सौदामिनीजी के स्टीरियो की मीठी धुनों से सारा वातावरण आनंदमय हो गया. पंकज तो इतना खुश था जैसे परियों के देश में उतर आया हो. इतने उपहार लोगों ने उसे दिए कि वह देखदेख कर उलझता रहा, गाता रहा. सब से अधिक खुशी की बात तो यह थी कि जिस ने भी उपहार दिया उस ने हार्दिक इच्छा से दिया, भार समझ कर नहीं. मैं यदि इनकार भी करती तो आगे से उत्तर मिलता, ‘‘वाह, पंकज आप का बेटा थोड़े ही है, वह तो हम सब का बेटा है.’’ यह सुन कर मेरा हृदय गदगद हो उठता.

रात के 2 बज गए. बिस्तर पर लेटते ही नीरज बोला, ‘‘आज सचमुच मुझे पता चल गया है कि व्यक्ति के अंदर योग्यता और गुण हों तो वह कहीं भी अपना स्थान बना सकता है. तुम ने तो यहां बिलकुल ऐसा वातावरण बना दिया है जैसे सब लोग अपने जैसे ही नहीं, बल्कि अपने ही हैं, कहीं कोई अंतर ही नहीं, असमानता नहीं.’’

‘‘अब मान गए न मेरी बात?’’ मैं ने विजयी भाव से कहा तो वह प्रसन्नता से बोला, ‘‘हां, भई, मान गए. अब तो सारी आयु भी इन लोगों को छोड़ने का मन में विचार तक नहीं आएगा और छोड़ना भी पड़ा तो अत्यंत दुख होगा.’’

‘‘तब इन लोगों की याद हम साथ ले जाएंगे,’’ कह कर मैं निश्चित हो कर बिस्तर पर लेट गई.

प्रेग्नेंसी को लेकर छलका दीपिका कक्कड़ का दुख, देखें वायरल वीडियो

‘ससुराल सिमर का’ धारावाहिक से अपनी पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ अपनी निजी लाइफ को लेकर काफी सुर्खियों में है. बता दें, टीवी एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ इन दिनों मां बनने वाली है. दीपिका अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर काफी चर्चा में है. दीपिका की जल्द ही डिलीवरी होने वाली है. वह अपने फैंस को यूट्यूब व्लॉग के जरिए प्रेग्नेंसी से जुड़ी पल-पल अपडेट्स देती रहती है.

अभी तक वह अपनी प्रेग्नेंसी को काफी एन्जॉय कर रही है. लेकिन अब दीपिका ने खुलासा किया है कि थर्ड ट्राइमेस्टर में उन्हें बहुत तकलीफ हो रही है. खासतौर पर वो सो नहीं पा रही हैं. इसके अलावा एक्ट्रेस ने ये भी बताया कि अब उनकी मम्मी भी उनका ख्याल रखने के लिए मुंबई शिफ्ट हो रही हैं और इस बात से वो बहुत खुश हैं.

प्रेग्नेंट दीपिका कक्कड़ अब सो नहीं पा रही

बता दें, दीपिका कक्कड़ अब प्रेग्नेंसी की थर्ड ट्राइमेस्टर में सोने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. दीपिका ने वीडियो में कहा, ‘मैं इस अजीब चीज से गुजर रही हूं. खासकर अपने तीसरे ट्राइमेस्टर में. पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान मुझे ये समस्या थी, लेकिन अब ये और भी मुश्किल हो गया है. मैं अभी सो नहीं पा रही हूं. यहां तक कि जब मैं टीवी बंद करके रात को सोने की कोशिश करती हूं, लेकिन कुछ भी मदद नहीं करता है. मैं सुबह 5 बजे सो जाती हूं और फिर मैं शोएब के लिए सुबह 7 बजे उठती हूं और मुझे भूख लगती है. मैं बिना चीनी वाली चाय पीती हूं और फिर मैं सुबह 10-11 बजे सो जाती हूं और अपनी नींद पूरी करती हूं.’

दीपिका ने बताया- “बच्चा मारता है किक और याद दिलाता है”

एक्ट्रेस अपने प्रेग्नेंसी के खास पल शेयर करते हुए कहती है ‘जब आप नींद में थोड़ा हिलते हैं, हालांकि आप इसके बारे में सचेत हैं तो बच्चा मुझे किक करता है और याद दिलाता है, ‘मैं अंदर हूं, मुझे धक्का न दें.’ इसलिए मैं इस फेज को इंजॉय कर रही हूं.

मैं अपने नए घर, हमारे बच्चे और हमारे लिए जो कुछ भी हो रहा है, उसके साथ नए बदलाव का एक्सपीरियंस करने के लिए बिल्कुल इंतजार नहीं कर सकती. शोएब और मैं अभी जो अनुभव कर रहे हैं, उसके लिए सपना देखा था और कड़ी मेहनत की थी.’

Anupama: गुरुकुल की जिम्मेदारी मिलने के बाद अनुज के प्यार को ठुकाराएगी अनुपमा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में आए दिन ट्विस्ट और टर्न्स देखने को मिल रहे है. शो के मेकर्स सीरियल को दिलचस्प बनाने के लिए शो में तड़का लगाते रहते है. दर्शकों के बीच ‘अनुपमा’ काफी फेमस है. शो के मेकर्स ने टीआरपी लिस्ट में नंबर वन बनने के लिए हर तरह का पैंतरा अपना लिया है. शो में अनुपमा की उड़ान की तैयारी शुरू हो चुकी है. वहीं दूसरी ओर अनुज को प्यार हो गया है वह अनुपमा के ख्यालों में डूबा रहता है.

गुरु मां अनुपमा में को उत्तराधिकारी बनाएंगी

बीते दिन ‘अनुपमा’ में देखने को मिला कि गुरु मां मीडिया के सामने अनुपमा को स्टार बना देती है. लेकिन अनुपमा में आने वाले ट्विस्ट यहीं खत्म होतें है.

गुरु मां मीडिया के सामने अनुपमा को उत्तराधिकारी बनाएंगी. वह पूजा के समय अनुपमा को अपने घुंघरु देंगी और अनुपमा से कहेंगी आज से कला की जिम्मेदारी तुम्हारी. गुरुकुल अब से तुम्हारा पहला घर होना चाहिए. गुरु मां यह भी बताती हैं कि आज से 6 दिन बाद अनुपमा अमेरिका चली जाएगी. उनकी बातें सुनकर अनुज परेशान हो जाता है.

बरखा माया के जले पर नमक छिड़केगी

‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि बरखा माया के जले पर नमक छिड़केगी. वह उससे कहेगी कि तुम्हें एक दिया था वह भी ढ़ग से नही हुआ. तुम्हे अनुज के दिल से अनुपमा को निकालना है. लेकिन तुम अनुज के दिल से अनुपमा को तो निकाल नहीं पाई अब खुद ही उसका नाम रटती रहती हो. बरखा की बाते सुनकर माया जलकर राख हो जाती है. वह खुद से बातें करते हुए कहेगी कि मैं हार नहीं मान सकती. मैं अनुपमा का सफाया करके रहूंगी. ऐसे में माना जा रहा है कि माया अनुपमा से छुटकारा पाने के लिए गंदा खेल खेलेगी.

पैरों तले अनुज का प्यार कुचलेगी अनुपमा

‘अनुपमा’ में ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होता. शो में आगे देखने को मिलेगा कि अनुज अनुपमा से मिलने जाएगा और उससे कहेगा कि मैंने पछतावे में ही सही, लेकिन माया की जिम्मेदारी लेकर गलती कर दी. इसपर अनुपमा कहेगी कि अब अन सब बातों का कोई फायदा नहीं है. अनुपमा वहां से जाने लगेगी कि अनुज उसे अमेरिका जाने से पहले मिलने के लिए कहेगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुपमा क्या कदम उठाएगी.

जानिए 5 बजट फ्रेंडली ब्रांडेड लिपस्टिक, देंगी परफेक्ट मेकअप लुक

अगर आपको मेकअप करना बेहद पसंद है और आप हमेशा से मेकअप के नए-नए प्रोडक्ट ट्राई करते रहते हैं तो ये लेख आप के लिए है. आमतौर पर महिलाओं को मेकअप करना खूब पसंद होता है, ऐसे में वे  अक्सर मेकअप प्रोडक्ट खरीदती रहती हैं. महिलाओं की रोजमर्रा लाइफ में लिपस्टिक की खास अहमियत है. लिपस्टिक के बिना मेकअप अधूरा है, लिपस्टिक ही मेकअप की जान है.

चलिए आज हम आपको इस लेख के जरिए 5 बजट फ्रेंडली ब्रांडेड लिपस्टिक के बारे में बताएंगे, जो ई-कॉमर्स साइट और स्टोर पर आसानी से मिल जाएंगी.

  1. Lakeme कुशन मैट लिपस्टिक

Lakme इंडिया का जाना-माना मेकअप ब्रांड है. इसकी खासियत यह है कि ये लॉन्ग लास्टिंग लिपस्टिक है. Lakeme कुशन मैट लिपस्टिक में कई सारे शेड में उपलब्ध जिसे आप ऑफिस से लेकर पार्टी, हर अवसर पर इस्तेमाल कर सकते है. Lakme ब्रांड की लिपस्टिक हर इंडियन स्किन स्टोन के लिए उपलब्ध है और यह लंबे समय तक होंठों पर टिकी रहती है. साथ ही यह लाइटवेट फॉर्मूला के साथ आती है.

2. Sugar Mini Lipstick

सुगर कॉस्मेटिक की यह लिपस्टिक विटामिन्स से भरपूर है और यह 12 घंटे तक टिकी रहती है. यह वाटरप्रूफ, ट्रांसफर प्रूफ है. यह लिक्विड फॉर्म में आती है. सुगर मिनी लिपस्टिक के कई सारे शेड उपलब्ध है. इसे आप कई अवसर पर इस्तेमाल कर सकते है. ऑनलाइन शॉपिंग एप पर इसके कई सारे शेड मौजूद है जिसे आप खरीद सकते है.

3. Maybelline मैट लिपस्टिक

Maybelline लिपस्टिक मखमली, हाइड्रेटिंग मैट लिपस्टिक है जो हर रोज इस्तेमाल के लिए सबसे बेस्ट है. ये लिपस्टिक चिकनी, मलाईदार बनावट प्रदान करती है जो बिल्कुल भी सूखती नहीं है. अमेजन पर इसके कई सारे शेड मौजूद है जिसे आप खरीद सकते है. Maybelline मैट लिपस्टिक एक बोल्ड, इंटेंस रंग देता है जो लंबे समय तक टिकता है और स्मूद मैट फ़िनिश देता है. ये लिपस्टिक हर इंडियन स्किन टोन पर सूट करती है.

4. MARS क्रिमी मैट लिपस्टिक

MARS क्रिमी मैट लिपस्टिक जो होंठों को मैट फिनिश स्मूद लुक देता है और ये  लिपस्टिक आपके लिए डेली बेसिस पर अप्लाई करना आसान बनाता है  ये  बेहद मलाईदार लिपस्टिक है इसी वजह से यह लिपस्टिक मक्खन की तरह चमकती है. इसमें एक स्वाइप पिग्मेंटेशन है. ये खासतौर पर इंडियन स्किन टोन के लिए बनीं है.

5. Insight नॉन ट्रांसफर लिपस्टिक

यह लिपस्टिक स्मूद मैट फिनिश देती है और लंबे समय तक रहती है. यह इंटेंस कलर देती है और यह नॉन-ट्रांसफरेबल और वाटर प्रूफ है. केवल एक बार लगाने पर पिगमेंट से भरपूर रंग प्रदान करती है. यह लिपस्टिक पैराबेन्स से मुक्त है. पार्टी से लेकर दफ्तर तक आप इस लिपस्टिक का इस्तेमाल कर सकते है. ये लिपस्टिक इंडियन स्किन टोन के लिए बनीं है.

Father’s day 2023: कृष्णिमा- बाबूजी को किस बात का शक था

‘‘आखिर इस में बुराई क्या है बाबूजी?’’ केदार ने विनीत भाव से बात को आगे बढ़ाया.

‘‘पूछते हो बुराई क्या है? अरे, तुम्हारा तो यह फैसला ही बेहूदा है. अस्पतालों के दरवाजे क्या बंद हो गए हैं जो तुम ने अनाथालय का रुख कर लिया? और मैं तो कहता हूं कि यदि इलाज करने से डाक्टर हार जाएं तब भी अनाथालय से बच्चा गोद लेना किसी भी नजरिए से जायज नहीं है. न जाने किसकिस के पापों के नतीजे पलते हैं वहां पर जिन की न जाति का पता न कुल का…’’

‘‘बाबूजी, यह आप कह रहे हैं. आप ने तो हमेशा मुझे दया का पाठ पढ़ाया, परोपकार की सीख दी और फिर बच्चे किसी के पाप में भागीदार भी तो नहीं होते…इस संसार में जन्म लेना किसी जीव के हाथों में है? आप ही तो कहते हैं कि जीवनमरण सब विधि के हाथों होता है, यह इनसान के वश की बात नहीं तो फिर वह मासूम किस दशा में पापी हुए? इस संसार में आना तो उन का दोष नहीं?’’

‘‘अब नीति की बातें तुम मुझे सिखाओगे?’’ सोमेश्वर ने माथे पर बल डाल कर प्रश्न किया, ‘‘माना वे बच्चे निष्पाप हैं पर उन के वंश और कुल के बारे में तुम क्या जानते हो? जवानी में जब बच्चे के खून का रंग सिर चढ़ कर बोलेगा तब क्या करोगे? रक्त में बसे गुणसूत्र क्या अपना असर नहीं दिखाएंगे? बच्चे का अनाथालय में पहुंचना ही उन के मांबाप की अनैतिक करतूतों का सुबूत है. ऐसी संतान से तुम किस भविष्य की कामना कर रहे हो?’’

‘‘बाबूजी, आप का भय व संदेह जायज है पर बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में केवल खून के गुण ही नहीं बल्कि पारिवारिक संस्कार ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं,’’ केदार बाबूजी को समझाने का भरसक प्रयास कर रहा था और बगल में खामोश बैठी केतकी निराशा के गर्त में डूबती जा रही थी.

केतकी को संतान होने के बारे में डाक्टरों को उम्मीद थी कि वह आधुनिक तकनीक से बच्चा प्राप्त कर सकती है और केदार काफी सोचविचार के बाद इस नतीजे पर पहुंचा था कि लाखों रुपए क्या केवल इसलिए खर्च किए जाएं कि हम अपने जने बच्चे के मांबाप कहला सकें. यह तो केवल आत्मसंतुष्टि तक सोचने वाली बात होगी. इस से बेहतर है कि किसी अनाथ बच्चे को अपना कर यह पैसा उस के भविष्य पर लगा दें. इस से मांबाप बनने का गौरव भी प्राप्त होगा व रुपए का सार्थक प्रयोग भी होगा.

‘केतकी, बस जरूरत केवल बच्चे को पूरे मन से अपनाने की है. फर्क वास्तव में खून का नहीं बल्कि अपनी नजरों का होता है,’ केदार ने जिस दिन यह कह कर केतकी को अपने मन के भावों से परिचित कराया था वह बेहद खुश हुई थी और खुशी के मारे उस की आंखों से आंसू बह निकले थे पर अगले ही क्षण मां और बाबूजी का खयाल आते ही वह चुप हो गई थी.

केदार का अनाथालय से बच्चा गोद लेने का फैसला उसे बारबार आशंकित कर रहा था क्योंकि मांबाबूजी की सहमति की उसे उम्मीद नहीं थी और उन्हें नाराज कर के वह कोई कार्य करना नहीं चाहती थी. केतकी ने केदार से कहा था, ‘बाबूजी से पहले सलाह कर लो उस के बाद ही हम इस कार्य को करेंगे.’

लेकिन केदार नहीं माना और कहने लगा, ‘अभी तो अनाथालय की कई औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी, अभी से बात क्यों छेड़ी जाए. उचित समय आने पर मांबाबूजी को बता देंगे.’

केदार और केतकी ने आखिर अनाथालय जा कर बच्चे के लिए आवेदनपत्र भर दिया था.

लगभग 2 माह के बाद आज केदार ने शाम को आफिस से लौट कर केतकी को यह खुशखबरी दी कि अनाथालय से बच्चे के मिलने की पूर्ण सहमति प्राप्त हो चुकी है. अब कभी भी जा कर हम अपना बच्चा अपने साथ घर ला सकते हैं.

भावविभोर केतकी की आंखें मारे खुशी के बारबार डबडबाती और वह आंचल से उन्हें पोंछ लेती. उसे लगा कि लंबी प्रतीक्षा के बाद उस के ममत्व की धारा में एक नन्ही जान की नौका प्रवाहित हुई है जिसे तूफान के हर थपेडे़ से बचा कर पार लगाएगी. उस नन्ही जान को अपने स्नेह और वात्सल्य की छांव में सहेजेगी….संवारेगी.

केदार की धड़कनें भी तो यही कह रही हैं कि इस सुकोमल कोंपल को फूलनेफलने में वह तनिक भी कमी नहीं आने देगा. आने वाली सुखद घड़ी की कल्पना में खोए केतकी व केदार ने सुनहरे सपनों के अनेक तानेबाने बुन लिए थे.

आज बाबूजी के हाथ से एक तार खिंचते ही सपनों का वह तानाबाना कितना उलझ गया.

केतकी अनिश्चितता के भंवर में उलझी यही सोच रही थी कि मांजी को मुझ से कितना स्नेह है. क्या वह नहीं समझ सकतीं मेरे हृदय की पीड़ा? आज बाबूजी की बातों पर मां का इस तरह से चुप्पी साधे रहना केतकी के दिल को तीर की तरह बेध रहा था.

केदार लगातार बाबूजी से जिरह कर रहा था, ‘‘बाबूजी, क्या आप भूल गए, जब मैं बचपन में निमोनिया होने से बहुत बीमार पड़ा था और मेरी जान पर बन आई थी, डाक्टरों ने तुरंत खून चढ़ाने के लिए कहा था पर मेरा खून न आप के खून से मेल खा रहा था न मां से, ऐसे में मुझे बचाने के लिए आप को ब्लड बैंक से खून लेना पड़ा था. यह सब आप ने ही तो मुझे बताया था. यदि आप तब भी अपनी इस जातिवंश की जिद पर अड़ जाते तो मुझे खो देते न?

‘‘शायद मेरे प्रति आप के पुत्रवत प्रेम ने आप को तब तर्कवितर्क का मौका ही नहीं दिया होगा. तभी तो आप ने हर शर्त पर मुझे बचा लिया.’’

‘‘केदार, जिरह करना और बात है और हकीकत की कठोर धरा पर कदम जमा कर चलना और बात. ज्यादा दूर की बात नहीं, केवल 4 मकान पार की ही बात है जिसे तुम भी जानते हो. त्रिवेदी साहब का क्या हश्र हुआ? बेटा लिया था न गोद. पालापोसा, बड़ा किया और 20 साल बाद बेटे को अपने असली मांबाप पर प्यार उमड़ आया तो चला गया न. बेचारा, त्रिवेदी. वह तो कहीं का नहीं रहा.’’

केदार बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘बाबूजी, हम सब यही तो गलती करते हैं, गोद ही लेना है तो उन्हें क्यों न लिया जाए जिन के सिर पर मांबाप का साया नहीं है कुलवंश, जातबिरादरी के चक्कर में हम इतने संकुचित हो जाते हैं कि अपने सीमित दायरे में ही सबकुछ पा लेना चाहते हैं. संसार में ऐसे बहुत कम त्यागी हैं जो कुछ दे कर भूल जाएं. अकसर लोग कुछ देने पर कुछ प्रतिदान पा लेने की अपेक्षाएं भी मन में पाल लेते हैं फिर चाहे उपहार की बात हो या दान की और फिर बच्चा तो बहुत बड़ी बात होती है. कोई किसी को अपना जाया बच्चा देदे और भूल जाए, ऐसा संभव ही नहीं है.

‘‘माना अनाथालय में पल रहे बच्चों के कुल व जात का हमें पता नहीं पर सब से पहले तो हम इनसान हैं न बाबूजी. यह बात तो आप ही ने हमें बचपन में सिखाई थी कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है. अब आप जैसी सोच के लोग ही अपनी बात भुला बैठेंगे तब इस समाज का क्या होगा?

‘‘आज मैं अमेरिका की आकर्षक नौकरी और वहां की लकदक करती जिंदगी छोड़ कर यहां आप के पास रहना चाहता हूं और आप दोनों की सेवा करना चाहता हूं तो यह क्या केवल मेरे रक्त के गुण हैं? नहीं बाबूजी, यह तो आप की सीख और संस्कार हैं. मैं ने बचपन में आप को व मांजी को जो करते देखा है वही आत्मसात किया है. आप ने दादादादी की अंतिम क्षणों तक सेवा की है. आप के सेवाभाव स्वत: मेरे अंदर रचबस गए, इस में रक्त की कोई भूमिका नहीं है और ऐसे उदाहरणों की क्या कमी है जहां अटूट रक्त संबंधों में पनपी कड़वाहट आखिर में इतनी विषाक्त हो गई कि भाई भाई की जान के दुश्मन बन गए.’’

‘‘देखो, मुझे तुम्हारे तर्कों में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सोमेश्वर बोले, ‘‘मैं ने एक बार जो कह दिया सो कह दिया, बेवजह बहस से क्या लाभ? और हां, एक बात और कान खोल कर सुन लो, यदि तुम्हें अपनी अमेरिका की नौकरी पर लात मारने का अफसोस है तो आज भी तुम जा सकते हो. मैं ने तुम्हें न तब रोका था न अब रोक रहा हूं, समझे? पर अपने इस त्याग के एहसान को भुनाने की फिराक में हो तो तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हो.’’

इतना कह कर सोमेश्वर अपनी धोती संभालते हुए तेज कदमों से अपने कमरे में चले गए. मांजी भी चुपचाप आदर्श भारतीय पत्नी की तरह मुंह पर ताला लगाए बाबूजी के पीछेपीछे कमरे में चली गईं.

थकेहारे केदार व केतकी अपने कमरे में बिस्तर पर निढाल पड़ गए.

‘‘अब क्या होगा?’’ केतकी ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘होगा क्या, जो तय है वही होगा. सुबह हमें अपने बच्चे को लेने जाना है, और मैं नहीं चाहता कि इस तरह दुखी और उदास मन से हम उसे लेने जाएं,’’ अपने निश्चय पर अटल केदार ने कहा.

‘‘पर मांबाबूजी की इच्छा के खिलाफ हम बच्चे को घर लाएंगे तो क्या उन की उपेक्षा बच्चे को प्रभावित नहीं करेगी? कल को जब वह बड़ा व समझदार होगा तब क्या घर का माहौल सामान्य रह पाएगा?’’

अपने मन में उठ रही इन आशंकाओं को केतकी ने केदार के सामने रखा तो वह बोला, ‘‘सुनो, हमें जो कल करना है फिलहाल तुम केवल उस के बारे में ही सोचो.’’

सुबह केतकी की आंख जल्दी खुल गई और चाय बनाने के बाद ट्रे में रख कर मांबाबूजी को देने के लिए बाहर लौन में गई, मगर दोनों ही वहां रोज की तरह बैठे नहीं मिले. खाली कुरसियां देख केतकी ने सोचा शायद कल रात की बहसबाजी के बाद मां और बाबूजी आज सैर पर न गए हों लेकिन उन का कमरा भी खाली था. हो सकता है आज लंबी सैर पर निकल गए हों तभी देर हो गई. मन में यह सोचते हुए केतकी नहाने चली गई.

घंटे भर में दोनों तैयार हो गए पर अब तक मांबाबूजी का पता नहीं था. केदार और केतकी दोनों चिंतित थे कि आखिर वे बिना बताए गए तो कहां गए?

सहसा केतकी को मांजी की बात याद आई. पिछले ही महीने महल्ले में एक बच्चे के जन्मदिन के समय अपनी हमउम्र महिलाओं के बीच मांजी ने हंसी में ही सही पर कहा जरूर था कि जिस दिन हमारा इस सांसारिक जीवन से जी उचट जाएगा तो उसी दिन हम दोनों ही किसी छोटे शहर में चले जाएंगे और वहीं बुढ़ापा काट देंगे.

सशंकित केतकी ने केदार को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘नहीं, नहीं, केतकी, बाबूजी को मैं अच्छी तरह से जानता हूं. वे मुझ पर क्रोधित हो सकते हैं पर इतने गैरजिम्मेदार कभी नहीं हो सकते कि बिना बताए कहीं चले जाएं. हो सकता है सैर पर कोई परिचित मिल गया हो तो बैठ गए होंगे कहीं. थोड़ी देर में आ जाएंगे. चलो, हम चलते हैं.’’

दोनों कार में बैठ कर नन्हे मेहमान को लेने चल दिए. रास्ते भर केतकी का मन बच्चा और मांबाबूजी के बीच में उलझा रहा. लेकिन केदार के चेहरे पर कोई तनाव नहीं था. उमंग और उत्साह से भरपूर केदार के होंठों पर सीटी की गुनगुनाहट ही बता रही थी कि उसे अपने निर्णय पर जरा भी दुविधा नहीं है.

केतकी का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह बोला, ‘‘यार, क्या मुंह लटकाए बैठी हो? चलो, मुसकराओ, तुम हंसोगी तभी तो तुम्हें देख कर हमारा नन्हा मेहमान भी हंसना सीखेगा.’’

नन्ही जान को आंचल में छिपाए केतकी व केदार दोनों ही कार से उतरे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था पर बाहर ताला न देख वे समझ गए कि मां और बाबूजी घर के अंदर हैं. केदार ने ही दरवाजे की घंटी बजाई तो इसी के साथ केतकी की धड़कनें भी तेज हो गई थीं. नन्ही जान को सीने से चिपटाए वह केदार को ढाल बना कर उस के पीछे हो गई.

दरवाजा खुला तो सामने मांजी और बाबूजी खडे़ थे. पूरा घर रंगबिरंगी पताकों, गुब्बारों तथा फूलों से सजा हुआ था. यह सबकुछ देख कर केदार और केतकी दोनों विस्मित रह गए.

‘‘आओ बहू, अंदर आओ, रुक क्यों गईं?’’ कहते हुए मांजी ने बडे़ प्रेम से नन्हे मेहमान को तिलक लगाया. बाबूजी ने आगे बढ़ कर बच्चे को गोद में लिया.

‘‘अब तो दादादादी का बुढ़ापा इस नन्हे सांवलेसलौने बालकृष्ण की बाल लीलाओं को देखदेख कर सुकून से कटेगा, क्यों सौदामिनी?’’ कहते हुए बाबूजी ने बच्चे के माथे पर वात्सल्य चिह्न अंकित कर दिया.

बाबूजी के मुख से ‘बालकृष्ण’ शब्द सुनते ही केदार और केतकी ने एक दूसरे को प्रश्न भरी नजरों से देखा और अगले ही पल केतकी ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘लेकिन बाबूजी, यह बेटा नहीं बेटी है.’’

‘‘तो क्या हुआ? कृष्ण न सही कृष्णिमा ही सही. बच्चे तो प्रसाद की तरह हैं फिर प्रसाद चाहे लड्डू के रूप में मिले चाहे पेडे़ के, होगा तो मीठा ही न,’’ और इसी के साथ एक जोरदार ठहाका सोमेश्वर ने लगाया.

केदार अब भी आश्चर्यचकित सा बाबूजी के इस बदलाव के बारे में सोच रहा था कि तभी वह बोले, ‘‘क्यों बेटा, क्या सोच रहे हो? यही न कि कल राह का रोड़ा बने बाबूजी आज अचानक गाड़ी का पेट्रोल कैसे बन गए?’’

‘‘हां बाबूजी, सोच तो मैं यही रहा हूं,’’ केदार ने हंसते हुए कहा.

‘‘बेटा, सच कहूं तो आज मैं ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. मुझे तुझ पर गर्व है. यदि आज तुम अपने निश्चय से हिल जाते तो मैं टूट जाता. मैं तुम्हारे फैसले की दृढ़ता को परखना चाहता था और ठोकपीट कर उस की अटलता को निश्चित करना चाहता था क्योंकि ऐसे फैसले लेने वालों को सामाजिक जीवन में कई अग्नि परीक्षाएं देनी पड़ती हैं.’’

‘‘समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं न. यदि 4 लोग तुम्हारे कार्य को सराहेंगे तो 8 टांग खींचने वाले भी मिलेंगे. तुम्हारे फैसले की तनिक भी कमजोरी भविष्य में तुम्हें पछतावे के दलदल में पटक सकती थी और तुम्हारे कदमों का डगमगाना केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि आने वाली नन्ही जान के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता था. बस, केवल इसीलिए मैं तुम्हें जांच रहा था.’’

‘‘देखा केतकी, मैं ने कहा था न तुम से कि बाबूजी ऐसे तो नहीं हैं. मेरा विश्वास गलत नहीं था,’’ केदार ने कहा.

‘‘बेटा, तुम लोगों की खुशी में ही तो हमारी खुशी है. वह तो मैं तुम्हारे बाबूजी के कहने पर चुप्पी साधे बैठी रही, इन्हें परीक्षा जो लेनी थी तुम्हारी. मैं समझ सकती हूं कि कल रात तुम लोगों ने किस तरह काटी होगी,’’ इतना कह कर सौदामिनी ने पास बैठी केतकी को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘वह तो ठीक है मांजी, पर यह तो बताइए कि सुबह आप लोग कहां चले गए थे. मैं तो डर रही थी कि कहीं आप हरिद्वार….’’

‘‘अरे, पगली, हम दोनों तो कृष्णिमा के स्वागत की तैयारी करने गए थे,’’ केतकी की बातों को बीच में काटते हुए सौदामिनी बोली, ‘‘और अब तो हमारे चारों धाम यहीं हैं कृष्णिमा के आसपास.’’

सचमुच कृष्णिमा की किलकारियों में चारों धाम सिमट आए थे, जिस की धुन में पूरा परिवार मगन हो गया था.

कपल्स के बीच ट्रेंड कर रहा ‘स्लीप डिवोर्स’, अच्छी नींद के लिए क्यों जरूरी?

शादी के रिश्ते में सबसे जरूरी बात क्या हैं ये पूछने पर कई तरह के जवाब मिलते है? जैसे एक दूसरे को समझना चाहिए, एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए और बाकी अलग-अलग तरह की और भी कई चीजें. लेकिन जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण चीज है नींद इसके बारे में कोई बात नहीं करता.

हाल ही नए जेनरेशन के शादी-शुदा कपल के बीच एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है. जो ट्विटर पर  के नाम से ‘स्लीप डिवोर्स’ काफी ट्रेंड हो रहा है. अब आप ये जानना चाहेंगे की आखिर ये ‘स्लीप डिवोर्स’ क्या है? तो चलिए आज हम आपको इसके हर एक पहलू से रूबरू करवाते हैं.

क्या है ‘स्लीप डिवोर्स’?

स्‍लीप डिवोर्स तब होता है, जब अच्छी और बेहतर नींद के लिए कपल अलग-अलग कमरे, अलग बिस्तर या फिर  या अलग-अलग समय पर सोते हैं तो इसे हम स्लीप डिवोर्स कहते हैं. इसके ट्रेंड में आने का कारण है कपल्स का नींद ना पूरा हो पाना. स्‍लीप डिवोर्स ठीक से नींद न ले पाने वाले लोगों के लिए बड़ा समाधान है. स्‍लीप डिवोर्स वो है जिसमें पार्टनर्स रात को साथ में न सोकर अपनी सुविधानुसार अलग-अलग सोते हैं. इसके चलते कपल्स की नींद भी पूरी हो जाती है और वो अगली सुबह पूरी एनर्जी के साथ उठते हैं.

स्लीप डिवोर्स का ट्रेंड

स्लीप डिवोर्स  सुनने में नया लग रहा है. लेकिन इसका चलन बेहद पुराना है. साल 1850 में ये ट्रेंड ट्विन-शेयरिंग बेड के नाम से फेमस हुआ. तब के समय में पति-पत्नी एक कमरे तो होते थे, लेकिन होटलों की तर्ज पर ट्विन-शेयरिंग बेड की तरह एक रूम में ही 2 अलग-अलग बिस्तर पर सोया करते थे. ये इसलिए शुरू हुआ ताकि पति-पत्नी एक रूम में साथ होकर भी बिना एक-दूसरे को डिस्टर्ब किए आराम से नींद पूरी कर सकें. लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हिलेरी हिंड्स ने इस पर कल्चरल हिस्ट्री ऑफ ट्विन बेड्स के नाम से एक किताब भी लिखी है. बुक के अनुसार उस समय में डॉक्टर नींद ना पूरी होने पर मानसिक नुकसान मानते थे.

नींद ना पूरा होने के कारण

नींद पूरा ना हो पाने के कई कारण हो सकते है. जैसे दिनभर की भागदौड़ के बाद सोने के समय में देरी होना. पार्टनर के सोने की खराब आदतें या खर्राटे, पार्टनर का देर तक काम में लगे रहना. इस तरह की कई चीजें हो सकती है जिसके कारण दूसरे पार्टनर की नींद पूरी नहीं हो पाती.

नींद के कारण रिश्तों में दरार

नींद की कमी का सीधा-सीधा असर रिश्ते पर होता है. नींद की कमी से जूझते जोड़े छोटी-मोटी बातों पर भी उलझ पड़ते हैं. नींद पूरी ना होने का कारण चिड़चिड़ापन होता है और ये कारण  भी झगड़े का मुख्य कारण बन जाता है.

स्लीप डिवोर्स के फायदे

आज के समय पूरे दिन की भागदौड़ के बाद रात में अच्छी नींद ना मिलने के कारण आपका अगला पूरा दिन खराब जा सकता है. इसलिए समय-समय पर स्लीप डिवोर्स से आपकी नींद पूरी होती है और नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है. इसके अलावा एक साथ होने के बाद हर किसी का अपना एक पर्सनल स्पेस होता है. जो हर व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी है. और इसके कारण आपको एक पर्सनल स्पेश मिलता है. कई लोग सोने से पहले किताबें पढ़ना चाहते है, कई लोगों को मेडिटेशन के बाद सोने की आदत होती है. तो इस समय में आप अपनी चीजों के लिए समय निकाल सकते है.

क्या स्लीप डिवॉर्स रिश्तों में दूरियों के लिए वजह बन सकता है?

कई लोगों का मानना है की स्लीप डिवोर्स के कारण रिश्तों में दूरियां आ सकती है.  अलग सोना आपकी अपनी मर्जी है. आपसी सहमति के साथ कपल्स एक दूसरे की जरूरतों का सम्मान करते हुए एक-दूसरे को समय देते है. गौरतलब है की स्लीप डिवोर्स रिश्तों को बिगाड़ने के लिए नहीं बल्कि रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है. ताकि आपकी नींद पूरी होने के कारण आप चिड़-चिड़ा फील नहीं करोगे तो एक-दूसरे को ज्यादा समय दे पाओगे.

55 प्रतिशत लोग 8 घंटे से कम नींद लेते है

ग्रेट इंडियन स्लीफ ( GISS) 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 55 प्रतिशत लोग रात में 11 बजे के बाद सोते है. जिसके कारण 8 घंटे से कम नींद ले पाते है. साथ ही हेल्थ टेक्नोलॉजी कंपनी फिलिप्स इंडिया के 2019 के रिपोर्ट के अनुसार लगभग 93 प्रतिशत भारतीय पूरी नींद नहीं ले पाते. और इनमें से करीब 58 प्रतिशत लोग 7 घंटे से कम नींद ले पाते है.

Father’s day 2023: माता-पिता के सपनों को पूरा करती बेटियां

कुछ अरसा पहले रिलीज हुई बौलीवुड की सब से ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म ‘दंगल’ महिला पहलवानों गीता फोगट और बबीता फोगट की वास्तविक जिंदगी पर आधारित थी. इस में बड़ी खूबसूरती से चित्रण किया गया कि कैसे बहुत ही कम उम्र में उन के पिता महावीर फोगट ने कुश्ती में गोल्ड मैडल लाने के अपने अधूरे सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी का बोझ नन्ही गीता और बबीता के कंधों पर डाल दिया, क्योंकि उन का कोई बेटा नहीं था.

ऐसे में बहुत ही कम उम्र में नाजुक सी गीता और बबीता पिता की मेहनत से इतनी मजबूत बन गईं कि अपने से बड़ी उम्र के बलिष्ठ पहलवान लड़कों को भी चारों खाने चित्त करने लगीं. 2010 व 2014 के कौमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीत कर पिता के साथसाथ पूरे देश का भी नाम रोशन कर दिया. ऐसा नहीं है कि लड़कियां किसी भी नजरिए से लड़कों से कम होती हैं या फिर जिंदगी में लड़कों की तरह किसी भी तरह की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं होतीं. जरूरत पड़े तो वे कुछ भी कर सकती हैं.

आजकल ज्यादातर घरों में संतान के नाम पर 1 या 2 बेटियां ही होती हैं. ऐसे में न चाहते हुए भी उन के नाजुक कंधों पर ही बुजुर्ग मांबाप की देखभाल, उन के सपने पूरे करने या परिवार से जुड़ी दूसरी जिम्मेदारियां आ जाती हैं, जिन्हें वे बखूबी निभाती भी हैं. कितनी ही बेटियां हैं, जिन्होंने एक मुकाम हासिल कर घर वालों को सम्मानित किया है.

उदाहरण के लिए इंदिरा गांधी को ही ले लीजिए. वे एक बेटी ही तो थीं, मगर देश की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री बन कर परिवार की प्रतिष्ठा को नए आयाम तक पहुंचाया.

बेटियां होती हैं बेटों से अधिक जिम्मेदार

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि 1 बेटी 5 बेटों से बेहतर होती है. वैज्ञानिक रूप से भी यह प्रमाणित हो चुका है कि बेटियां अपने मांबाप से भावनात्मक रूप से अधिक जुड़ी रहती हैं और उन की देखभाल करने में बेटों से अधिक रुचि लेती हैं.

बेटियां बड़ी हो कर मांबाप की अच्छी दोस्त बन जाती हैं. वे भी अपने दिल की बात बेटियों से ही अधिक शेयर करते हैं. बेटा तभी तक बेटा होता है जब तक उस की शादी नहीं होती. बेटियां हमेशा बेटियां ही रहती हैं. वे मांबाप को भावनात्मक सहारा देती हैं, उन्हें खुश रखती हैं. शादी से पहले तो वे अपने मांबाप की देखभाल करती ही हैं, शादी के बाद भी दोनों परिवारों की देखभाल करती हैं. वे अपने फर्ज से कभी मुंह नहीं मोड़तीं.

क्षेत्र कोई भी हो लड़कियों ने मौका मिलने पर न सिर्फ दायित्व निभाया वरन समाज में अपना अलग मुकाम भी बनाया है.

ट्रैवल एजेंट उज्ज्वला पादुकोण शादी के बाद एक बेटे को जन्म देना चाहती थीं, क्योंकि उन का कोई भाई नहीं था. वे अपने मन में पैदा इस रिक्तता को बेटे के जरीए भरना चाहती थीं. मगर 1986 में उन के घर बिटिया ने जन्म लिया. उन के पति अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण व उज्ज्वला पादुकोण ने बड़े प्यार से बच्ची का नाम दीपिका रखा. वही दीपिका आज घरघर में पहचानी जाती हैं. उज्ज्वला स्वीकारती हैं कि उन्हें दुनिया की सब से अच्छी 2 बेटियां मिली हैं. दीपिका की छोटी बहन अनीषा गोल्फ प्लेयर हैं.

दीपिका का फोकस भी शुरू से ही बैडमिंटन में रहा, क्योंकि कहीं न कहीं अपने पापा के सपनों को पूरा करने के लिए वे प्रयासरत थीं. उन्होंने कम उम्र से ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था. जब वे स्कूल में थीं, तो सुबह जल्दी उठ जाती थीं. फिर फिजिकल ट्रेनिंग पूरी कर स्कूल जातीं. लौट कर बैडमिंटन खेलतीं और फिर होमवर्क खत्म कर के ही सोती थीं. वे नैशनल लैवल चैंपियनशिप प्रतियोगिता में भी खेली हैं. कुछ स्टेट लैवल टूरनामैंट्स में बेसबौल भी खेला है. पढ़ाई और खेल में ध्यान देने के साथसाथ वे चाइल्ड मौडल के रूप में भी काम करती रहीं.

10वीं क्लास में दीपिका के मन में फैशन मौडल बनने की चाहत पैदा हुई. इस बाबत उन्होंने अपने पिता से पूछा कि क्या वह बैडमिंटन खेलना छोड़ सकती है? पिता की स्वीकृति के बाद 2014 में उन्होंने फुलटाइम कैरियर के रूप में मौडलिंग को अपना लिया. फिर लगातार सफलता के मुकाम छूती रहीं. इसी दौरान उन्हें फिल्मों के औफर भी मिलने लगे. 2007 में उन की झोली में फिल्म ‘ओम शांति ओम’ आई, जिस के बाद सफलता और दीपिका एकदूसरे के पर्याय बन गए.

म्यूजिकल लीजैंड व सितारवादक रविशंकर को म्यूजिक वर्ल्ड का गौडफादर कहा जाता है. इंडियन क्लासिकल म्यूजिक को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है. बेटा न होने की वजह से उन्होंने अपना म्यूजिकल टेलैंट अपनी बेटी अनुष्का शंकर को सौंपा. पिता से ही अनुष्का ने सितार वादन सिखा. आज पितापुत्री की यह जोड़ी पूरी दुनिया में अपनी जुगलबंदी के लिए जानी जाती है.

20 साल की उम्र में अनुष्का को पहली दफा ग्रैमी अवार्ड के लिए नौमिनेट किया गया था. आज तक वे 6 दफा इस के लिए नौमिनेट की जा चुकी हैं. वे देश की पहली कलाकार हैं, जिन्होंने ग्रैमी अवार्ड प्रोग्राम में परफौर्म किया है.

मूल रूप से मणिपुर की रहने वाली अंतराश पिछले कई वर्षों से अपने घर की एकमात्र कमाऊ सदस्या हैं. वे कहती हैं कि उन के पिता बेरोजगार थे. भाई के पास भी नौकरी नहीं थी. ऐसी स्थिति में परिवार की देखभाल और मांबाप के सपने पूरे करने का जिम्मा उन्हीं पर था.

अंतराश के सामने कई चुनौतियां थीं पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. 2014 में प्रतिनिधि के रूप में अंतराश ने एवौन कंपनी जौइन की और अब वहां सेल्स लीडर एसईएल के पद पर हैं. आज वे इतनी सक्षम हैं कि परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करने के साथसाथ अपने सपनों को भी साकार कर रही हैं.

आर्थिक स्वंतत्रता ने दिए नए आयाम

सरोज सुपर स्पैश्यलिटी अस्पताल, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. संदीप गोविल बताते हैं, ‘‘पहले महिलाएं पुरुषों की परछाईं होती थीं. पर आज उन का स्वतंत्र वजूद है. समाज में उन की हैसियत बढ़ी है. आज वे ऊंची शिक्षा प्राप्त कर अच्छी नौकरियां करने लगी हैं. आज बहुत सी महिलाएं अपने परिवार का आर्थिक आधार हैं. वे न सिर्फ नौकरी कर रही हैं वरन बड़ेबड़े बिजनैस भी चला रही हैं.’’

एक महिला के लिए घर की चारदीवारी से निकल कर काम करना और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना आसान नहीं है. लेकिन जीवन की हर चुनौती का डट कर सामना करना उन्हें मानसिक रूप से मजबूत और दृढ़निश्चयी बना देता है. आर्थिक आत्मनिर्भरता उन के जीवन को एक नई दिशा देती है.

बढ़ता आत्मविश्वास

जो महिलाएं अपने परिवार के लिए रोटी कमाने वाली (ब्रैड अर्नर) होती हैं, वे उन महिलाओं की तुलना में अधिक आत्मविश्वासी होती हैं, जो अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए पिता, पति या बेटे पर निर्भर रहती हैं. जब अपनी कमाई से वे अपनी ही नहीं, परिवार की भी जरूरतें पूरी करती हैं, तो उन में अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का साहस उत्पन्न होता है. वे अपनी जिंदगी में उन समझौतों को नकार देती हैं, जो दूसरी महिलाओं को पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता के कारण करने पड़े थे. आर्थिक स्वतंत्रता से मिला आत्मविश्वास उन्हें अपने जीवन को उस दिशा में  आगे बढ़ाने में सहायता करता है, जिस दिशा में वे बढ़ना चाहती हैं.

आत्मनिर्भर महिलाओं को अपने भविष्य की चिंता नहीं रहती कि कल को अगर मातापिता नहीं रहे, उन की शादी नहीं हुई, तलाक हो गया या पति की मृत्यु हो गई तो वे क्या करेंगी? अगर उन के अपने बच्चे हैं, तो उन के भविष्य का क्या होगा? उन के जीवन में कोई दुर्घटना घटती है, तो भी वे आर्थिक दृष्टि से इतनी सक्षम होती हैं कि अपने जीवन को पटरी पर ला सकती हैं. भविष्य को ले कर सुरक्षा का भाव उन के व्यक्तित्व को मजबूत बनाता है.

चुनौतियों का सामना करने के टिप्स

डा. संदीप गोविल बताते हैं कि किसी महिला के लिए घर से बाहर निकल कर कमाना आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है. उसे समाज व कार्यस्थल पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और जब महिला सिंगल हो तब तो ये चुनौतियां और बढ़ जाती हैं.

– अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक और आशावादी रखें.

– मानसिक शांति के लिए ध्यान करें.

– अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखना सीखें.

– रोज कम से कम 30 मिनट ऐक्सरसाइज करें. इस से न सिर्फ शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है.

– मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए शरीर को आराम देना भी बहुत जरूरी है. अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार 7-8 घंटे की नींद जरूर लें.

– सामाजिक रूप से सक्रिय रहें.

रोजगार में संभावनाएं बढ़ाने की जरूरत

एसोचैम व थौट आर्बिट्रेज की साझा रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पिछले 10 सालों में भारत में फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट में 10% की गिरावट आई है. 2000 से 2005 के बीच जहां यह दर 34-37% थी. वहीं 2016 में घट कर 27% के आसपास रह गई है. इस के पीछे जो मुख्य वजहें सामने आईं, वे निम्न प्रकार हैं:

– रोजगार के कम अवसर.

– महिलाओं के लिए प्रतिकूल कार्यशैली.

– महिलाओं के प्रति परिवारों व समाज में रूढि़वादी सोच.

पिछले 10 सालों में भारत के पड़ोसी देश चीन में यह दर 64% तक पहुंच गई है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि यदि हमें अपनी जीडीपी दर बढ़ानी है, तो महिलाओं के लिए भी पुरुषों के समान रोजगार की नई संभावनाएं तलाशनी होंगी. भारत की बेटियों के सपने पूरे होंगे तभी तो देश तरक्की करेगा.

Father’s day 2023: त्रिकोण का चौथा कोण

Father’s day 2023: पुरस्कार- रिटायरमेंट के बाद पिता और परिवार की कहानी

उन्हें एक निष्ठावान तथा समर्पित कर्मचारी बताया गया और उन के रिटायरमेंट जीवन की सुखमय कामना की गई थी. अंत में कार्यालय के मुख्य अधिकारी ने प्रशासन तथा साथी कर्मचारियों की ओर से एक सुंदर दीवार घड़ी, एक स्मृति चिह्न के साथ ही रामचरितमानस की एक प्रति भी भेंट की थी. 38 वर्ष का लंबा सेवाकाल पूरा कर के आज वह सरकारी अनुशासन से मुक्त हो गए थे.

वह 2 बेटियों और 3 बेटों के पिता थे. अपनी सीमित आय में उन्होंने न केवल बच्चों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाया बल्कि रिटायर होने से पहले ही उन की शादियां भी कर दी थीं. इन सब जिम्मेदारियों को ढोतेढोते वह खुद भारी बोझ तले दब से गए थे. उन की भविष्यनिधि शून्य हो चुकी थी. विभागीय सहकारी सोसाइटी से बारबार कर्ज लेना पड़ा था. इसलिए उन्होंने अपनी निजी जरूरतों को बहुत सीमित कर लिया था, अकसर पैंटशर्ट की जगह वह मोटे खद्दर का कुरतापजामा पहना करते. आफिस तक 2 किलोमीटर का रास्ता आतेजाते पैदल तय करते. परिचितों में उन की छवि एक कंजूस व्यक्ति की बन गई थी.

बड़ा लड़का बैंक में काम करता था और उस का विवाह साथ में काम करने वाली एक लड़की के साथ हुआ था. मंझला बेटा एफ.सी.आई. में था और उस की भी शादी अच्छे परिवार में हो गई थी. विवाह के बाद ही इन दोनों बेटों को अपना पैतृक घर बहुत छोटा लगने लगा. फिर बारीबारी से दोनों अपनी बीवियों को ले कर न केवल अलग हो गए बल्कि उन्होंने अपना तबादला दूसरे शहरों में करवा लिया था.

शायद वे अपने पिता की गरीबी को अपने कंधों पर ढोने को तैयार न थे. उन्हें अपने पापा से शिकायत थी कि उन्होंने अपने बच्चों को अभावों तथा गरीबी की जिंदगी जीने पर विवश किया पर अब जबकि वह पैरों पर खड़े थे, क्यों न अपने श्रम के फल को स्वयं ही खाएं.

हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. उन का तीसरा बेटा श्रवण कुमार साबित हुआ और उस की पत्नी ने भी बूढ़े मातापिता के प्रति पति के लगाव को पूरा सम्मान दिया और दोनों तनमन से उन की हर सुखसुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास करते रहते थे.

सब से छोटी बहू ने तो उन्हें बेटियों की कमी भी महसूस न होने दी थी. मम्मीपापा कहतेकहते दिन भर उस की जबान थकती न थी. सासससुर की जरा भी तबीयत खराब होती तो वह परेशान हो उठती. सुबह सो कर उठती तो दोनों की चरणधूलि माथे पर लगाती. सीमित साधनों में जहां तक संभव होता, उन्हें अच्छा व पौष्टिक भोजन देने का प्रयास करती.

सुबह जब वह दफ्तर के लिए तैयार होने कमरे में जाते तो उन का साफ- सुथरा कुरता- पजामा, रूमाल, पर्स, चश्मा, कलम ही नहीं बल्कि पालिश किए जूते भी करीने से रखे मिलते और वह गद्गद हो उठते. ढेर सारी दुआएं अपनी छोटी बहू के लिए उन के होंठों पर आ जातीं.

उस दिन को याद कर के तो वह हर बार रोमांचित हो उठते जब वह रोजाना की तरह शाम को दफ्तर से लौटे तो देखा बहूबेटा और पोतापोती सब इस तरह से तैयार थे जैसे किसी शादी में जाना हो. इसी बीच पत्नी किचन से निकली तो उसे देख कर वह और हैरान रह गए. पत्नी ने बहुत सुंदर सूट पहन रखा था और आयु अनुसार बड़े आकर्षक ढंग से बाल संवारे हुए थे. पहली बार उन्होंने पत्नी को हलकी सी लिपस्टिक लगाए भी देखा था.

‘यह टुकरटुकर क्या देख रहे हो? आप का ही घर है,’ पत्नी बोली.

‘पर…यह सब…बात क्या है? किसी शादी में जाना है?’

‘सब बता देंगे, पहले आप तैयार हो जाइए.’

‘पर आखिर जाना कहां है, यह अचानक किस का न्योता आ गया है.’

‘पापा, ज्यादा दूर नहीं जाना है,’ बड़ा मासूम अनुरोध था बहू का, ‘आप झट से मुंहहाथ धो कर यह कपड़े पहन लीजिए. हमें देर हो रही है.’

वह हड़बड़ाए से बाथरूम में घुस गए. बाहर आए तो पहले से तैयार रखे कपड़े पहन लिए. तभी पोतापोती आ गए और अपने बाबा को घसीटते हुए बोले, ‘चलो न दादा, बहुत देर हो रही है…’ और जब कमरे में पहुंचे तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. रंगबिरंगी लडि़यों तथा फूलों से कमरे को सजाया गया था. मेज पर एक बड़ा सुंदर केक सजा हुआ था. दीवार पर चमकदार पेपर काट कर सुंदर ढंग से लिखा गया था, ‘पापा को स्वर्ण जयंती जन्मदिन मुबारक हो.’

वह तो जैसे गूंगे हो गए थे. हठपूर्वक उन से केक कटवाया गया था और सभी ने जोरजोर से तालियां बजाते हुए ‘हैपी बर्थ डे टू यू, हैपी बर्थ डे पापा’ कहा. तभी बहू और बेटा उन्हें एक पैकेट पकड़ाते हुए बोले, ‘जरा इसे खोलिए तो, पापा.’

पैकेट खोला तो बहुत प्यारा सिल्क का कुरता और पजामा उन के हाथों में था.

‘यह हम दोनों की ओर से आप के 50वें जन्मदिन पर छोटा सा उपहार है, पापा,’ उन का गला रुंध गया और आंखें नम हो गईं.

‘खुश रहो, मेरे बच्चो…अपने गरीब बाप से इतना प्यार करते हो. काश, वह दोनों भी…बहू, एक दिन…एक दिन मैं तुम्हें इस प्यार और सेवा के लिए पुरस्कार दूंगा.’

‘आप के आशीर्वाद से बढ़ कर कोई दूसरा पुरस्कार नहीं है, पापा. यह सबकुछ आप का दिया ही तो है…आप जो सारा विष स्वयं पी कर हम लोगों को अमृत पिलाते रहते हैं.’

सेवानिवृत्त हो कर जब वह घर पहुंचे तो पत्नी ने आरती उतार कर स्वागत किया. बहूबेटे, पोतेपोती ने फूलों के हार पहनाए और चरणस्पर्श किए. कुछ साथी घर तक छोड़ने आए थे. कुछ पड़ोसी भी मुबारक देने आ गए थे, उन सब को जलपान कराया गया. बड़े बेटे व बहुएं इस अवसर पर भी नहीं आ पाए. किसी न किसी बहाने न आ पाने की मजबूरी जता कर फोन पर क्षमा याचना कर ली थी उन्होंने.

अतिथियों के जाने के बाद उन्होंने बहूबेटे से कहा था, ‘‘लो भई, अब तक तो हम फिर भी कुछ न कुछ कमा लाते थे, आज से निठल्ले हो गए. फंड तो पहले ही खा चुका था, ग्रेच्युटी में से सोसाइटी ने अपनी रकम काट ली. यह 80 हजार का चेक संभालो, कुछ पेंशन मिलेगी. कुछ न बचा सका तुम लोगों के लिए. अब तो पिंकी और राजू की तरह हम बूढ़ों को भी तुम्हें ही पालना होगा.’

बहू रो दी थी. सुबकते हुए बोली थी, ‘‘बेटी को यों गाली नहीं देते, पापा. यह चेक आज ही मम्मी के खाते में जमा कर दीजिए. आप ने अपनी भूखप्यास कम कर के, मोटा पहन कर, पैदल चल कर, एकएक पैसा बचा कर, बेटेबेटियों को आत्मनिर्भर बनाया है. आप इस घर के देवता हैं, पापा. हमारी पूजा को यों लज्जित न कीजिए.’’

उन्होंने अपनी सुबकती हुई बहू को पहली बार सीने से लगा लिया था और बिना कुछ कहे उस के सिर पर हाथ फेरते रहे थे.

समय अपनी निर्बाध गति से चलता जा रहा था. अचानक एक दिन उन के हृदय की धड़कन के साथ ही जैसे समय रुक गया. घर में कोहराम मच गया. भलेचंगे वह सुबह की सैर को गए थे. लौट कर स्नान आदि कर के कुरसी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे. बहू चाय का कप तिपाई पर रख गई थी. अचानक उन्होंने बाईं ओर छाती को अपनी मुट्ठी में भींच लिया. उन के चेहरे पर गहरी पीड़ा की लकीरें फैलती गईं और शरीर पसीने से तर हो गया.

उन के कराहने का स्वर सुन कर सभी दौड़े आए थे पर मृत्यु ने डाक्टर को बुलाने तक की मोहलत न दी. देखते ही देखते वह एकदम शांत हो गए थे. यों लगता था जैसे बैठेबैठे सो गए हों पर यह नींद फिर कभी न खुलने वाली नींद थी.

शवयात्रा की तैयारी हो चुकी थी. बाहर रह रहे दोनों बेटों का परिवार, बेटियां व दामाद सभी पहुंच गए थे. बेटियों और छोटी बहू ने रोरो कर बुरा हाल कर लिया था. पत्नी की तो जैसे दुनिया ही वीरान हो गई थी.

शवयात्रा के रवाना होतेहोते लोगों की काफी भीड़ जुट गई थी. बेटे यह देख कर हैरान थे कि इस अंतिम यात्रा में शामिल बहुत से चेहरे ऐसे थे जिन्हें उन्होंने पहले कभी न देखा था. पिता के कोई लंबेचौड़े संपर्क नहीं थे. तब न जाने यह अपरिचित लोग क्यों और कैसे इस शोक में न केवल शामिल होने आए थे बल्कि वे गहरे गम में डूबे हुए दिखाई दे रहे थे.

क्रियाकर्म के बाद दोनों बड़े बेटेबहुएं और बेटियां विदा हो गए. अंतिम रस्मों का सारा व्यय छोटे बेटे ने ही उठाया था, क्योंकि बड़ों का कहना था कि पिता की कमाई तो वही खाता रहा है.

मेहमानों से फुरसत पा कर छोटे बहूबेटे का जीवन धीरेधीरे सामान्य होने लगा. बेटे के आफिस चले जाने के बाद घर में बहू व सास प्राय: उन की बातें ले बैठतीं और रोने लगतीं, फिर एकदूसरे को स्वयं ही सांत्वना देतीं.

कुछ ही दिन बीते थे. रविवार को सभी घर पर थे. किसी ने दरवाजा खटखटाया. बेटे ने द्वार खोला तो एक अधेड़ उम्र के सज्जन को सामने पाया. बेटे ने पहचाना कि पिताजी की शवयात्रा में वह अनजाना व्यक्ति आंसू बहाते हुए चल रहा था.

‘‘आइए, अंकल, अंदर आइए, बैठिए न,’’ बेटे ने विनम्रता से कहा.

‘‘तुम मुझे नहीं जानते बेटा, तुम मुझ जैसे अनेक लोगों को नहीं जानते, जिन के आंसुओं को तुम्हारे पिताजी ने हंसी में बदला, उन की गरीबी दूर की.’’

‘‘मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा, अंकल…आप…’’ बेटा बोला.

‘‘मैं तुम्हें समझाता हूं बेटे. 10 साल पहले की बात है. तुम्हारे पिता दफ्तर जाते हुए कभीकभी मेरे खोखे पर एक कप चाय पीने के लिए रुक जाते थे. मैं एक टूटे खोखे में पुरानी सी केतली में चाय बनाता और वैसे ही कपों में ग्राहक को देता था. मैं खुद भी उतना ही फटेहाल था जितना मेरा खोखा. मेरे ग्राहक गरीब मजदूर होते थे क्योंकि मेरी चाय बाजार में सब से सस्ती थी.

‘‘तुम्हारे पिता जब भी चाय पीते तो कहते, ‘क्या गजब की चाय बनाते हो दोस्त, ऐसी चाय बड़ेबड़े होटलों में भी नहीं मिल सकती, अगर तुम जरा ढंग की दुकान बना लो, साफसुथरे बरतन और कप रखो, ग्राहकों के बैठने का प्रबंध हो तो अच्छेअच्छे लोग लाइन लगा कर तुम्हारे पास चाय पीने आएं.’

‘‘मैं कहता, ‘क्या कंरू बाबूजी, घरपरिवार का रोटीपानी मुश्किल से चलता है. दुकान बनाने की तो सोच ही नहीं सकता.’

‘‘और एक दिन तुम्हारे पिताजी बड़ी प्रसन्न मुद्रा में आए और बोले, ‘लो दोस्त, तुम्हारे लिए एक दुकान मैं ने अगले चौक पर ठीक कर ली है. 3 माह का किराया पेशगी दे दिया है. उस में कुछ फर्नीचर भी लगवा दिया है और क्राकरी, बरतन भी रखवा दिए हैं. रविवार को सुबह 8 बजे मुहूर्त है.’

‘‘मैं उन की बातें सुन कर हक्काबक्का रह गया. उन की कोई बात मेरी समझ में नहीं आई थी तो उन्होंने सीधेसादे शब्दों में मुझे सबकुछ समझा दिया. शायद यह बात आप लोग भी नहीं जानते कि वह अपनी नौकरी के साथसाथ ओवरटाइम कर के कुछ अतिरिक्त धन कमाते थे.

‘‘उन्होंने मुझे बताया कि ओवरटाइम की रकम वह बैंक में जमा कराते रहते थे. मेरी दुर्दशा को देख कर उन्होंने योजना बनाई थी और वह कई दिनों तक मेरे खोखे के आसपास किसी उपयुक्त दुकान की तलाश करते रहे और आखिर उन की तलाश सफल हो गई. वह दुकान को पूरी तरह तैयार करवा कर मुझे बताने आए थे कि अगले रविवार मुझे अपना काम वहां शुरू करना है.

‘‘अगले रविवार को मेरी उस दुकान का मुहूर्त हुआ तो बरबस मेरी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. मैं उन के चरणों में झुक गया. मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि किन शब्दों में मैं उन का धन्यवाद करूं. उन्होंने तो मेरे जीवन की काया ही पलट दी थी.

‘‘एक दिन मुझे एक बैंक पासबुक पकड़ाते हुए उन्होंने कहा था, ‘मैं ने यह सब तुम्हारे उपकार के लिए नहीं किया. इस में मेरा भी स्वार्थ है. नई दुकान पर तुम्हें जितना भी लाभ होगा, उस का 5 प्रतिशत तुम स्वयं ही मेरे इस खाते में जमा कर दिया करना.

‘‘उन के आशीर्वाद ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया कि मेरी दुकान दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती गई और आज वह दुकान एक शानदार रेस्तरां का रूप ले चुकी है. मैं और मेरा बेटा तो अब उस का प्रबंध ही देखते हैं. आज तक नियमित रूप से मैं लाभ का 5 प्रतिशत इस पासबुक में जमा करा रहा हूं.

‘‘इसी तरह एक बूढ़ा सिर पर फल की टोकरी उठाए गलीगली भटक कर अपनी रोजीरोटी चलाता था. बढ़ती उम्र के साथ उस का शरीर इतना कमजोर हो गया था कि टोकरी का वजन सिर पर उठाना उस के लिए कठिन होने लगा था. एक दिन इसी तरह केलों की टोकरी उठाए जब वह बूढ़ा चिलाचिलाती धूप में घूम रहा था तो संयोग से तुम्हारे पापा पास से गुजरे थे. सहसा बूढ़े को चक्कर आ गया और वह टोकरी समेत गिर गया.

‘‘तुम्हारे पापा उसे सहारा दे कर फौरन एक डाक्टर के पास ले गए और उस का उपचार कराया. उस के बाद उस बूढ़े ने उन्हें बताया कि वह 600 रुपए मासिक पर एक अमीर आदमी के लिए फल की फेरी लगाता है, जिस ने इस तरह के और भी 10-15 लाचार लोगों को इस काम के लिए रखा हुआ है जो गलीगली घूम कर उस का फल बेचते हैं.

‘‘तुम्हारे पिताजी उस बूढ़े की हालत देख कर द्रवित हो उठे और मुझ से बोले, ‘मैं इस बुजुर्ग के लिए कुछ करना चाहता हूं, जरा मेरी पासबुक देना.’

‘‘कुछ ही दिन बाद उन्होंने एक ऐसी रेहड़ी तैयार करवाई जो चलने में बहुत हलकी थी. रेहड़ी उस बूढ़े के हवाले करते हुए उन्होंने कहा था, ‘इस रेहड़ी पर बढि़या और ताजा फल सजा कर निकला करना. आप की रोजीरोटी इस से आसानी से निकल आएगी. काम शुरू करने के लिए यह 10 हजार रुपए रख लो और हां, मैं आप के ऊपर कोई एहसान नहीं कर रहा हूं. अपने काम में आप को जो लाभ हो उस का 5 प्रतिशत श्यामलाल को दे दिया करना, ताकि यह मेरे खाते में जमा करा दे.’

‘‘वह बूढ़ा तो अब इस दुनिया में नहीं है पर उसी रेहड़ी की कमाई से अब उस का बेटा एक बड़ी फल की दुकान का मालिक बन चुका है. वह भी अब तक नियमित रूप से लाभ का 5 प्रतिशत मेरे पास जमा कराता है, जिसे मैं तुम्हारे पिताजी की पासबुक में जमा करता रहता हूं. उस बूढ़े के बाद उन्होंने 7-8 वैसे ही दूसरे फेरी वालों को रेहडि़यां बनवा कर दीं जो अब खुशहाली का जीवन बिता रहे हैं और उन के लाभ का भाग भी इसी पासबुक में जमा हो रहा है.

‘‘इतना ही नहीं, एक नौजवान की बात बताता हूं. एम.ए. पास करने के बाद जब उस को कोई नौकरी न मिली तो उस ने पटरी पर बैठ कर पुस्तकें बेचने का काम शुरू कर दिया. एक बार तुम्हारे पिताजी उस ओर से निकले तो उस पटरी वाली दुकान पर रुक कर पुस्तकों को देखने लगे. यह देख कर उन्हें बहुत दुख हुआ कि उस युवक ने घटिया स्तर की अश्लील पुस्तकें बिक्री के लिए रखी हुई थीं.

‘‘लालाजी ने जब उस युवक से क्षोभ जाहिर किया तो वह लज्जित हो कर बोला, ‘क्या करूं, बाबूजी. साहित्य में एम.ए. कर के भी नौकरी न मिली. घर में मां बिस्तर पर पड़ी मौत से संघर्ष कर रही हैं. 2 बहनें शादी लायक हैं. ऐसे में कुछ न कुछ कमाई का साधन जुटाना जरूरी था. अच्छी पुस्तकें इतनी महंगी हैं कि बेचने के लिए खरीदने की मेरे पास पूंजी नहीं है. ये पुस्तकें काफी सस्ती मिल जाती हैं और लोग किराए पर ले भी जाते हैं. इस तरह कम पूंजी में गुजारे लायक आय हो रही है.’

‘‘‘यदि चाहो तो मैं तुम्हारी कुछ आर्थिक सहायता कर सकता हूं. यदि तुम वादा करो कि इस पूंजी से केवल उच्च स्तर की पुस्तकें ही बेचने के लिए रखोगे, तो मैं 40 हजार रुपए तुम्हें उधार दे सकता हूं, जिसे तुम अपनी सुविधानुसार धीरेधीरे वापस कर सकते हो. मेरा तुम पर कोई एहसान न रहे, इस के लिए तुम मुझे अपने लाभ का 5 प्रतिशत अदा करोगे.’

‘‘शायद तुम्हें यह जान कर आश्चर्य होगा कि तुम्हारे पिताजी द्वारा लगाया गया वह पौधा आज फलफूल कर कैपिटल बुक डिपो के रूप में एक बड़ा वृक्ष बन चुका है और शहर में उच्च स्तर की पुस्तकों का एकमात्र केंद्र बना हुआ है.

‘‘एक बार मैं ने तुम्हारे पिताजी से पूछा था, ‘बाबूजी, बुरा न मानें, तो एक बात पूछूं?’

‘‘वह हंस कर बोले थे, ‘तुम्हारी बात का बुरा क्यों मानूंगा. तुम तो मेरे छोटे भाई हो. कहो, क्या बात है?’

‘‘‘आप ने बीसियों लोगों की जिंदगी को अंधेरे से निकाल कर उजाला दिया है. उन की बेबसी और लाचारी को समाप्त कर के उन्हें स्वावलंबी बनाया है पर आप स्वयं सदा ही अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते रहे हैं. कभी एक भी पैसा आप ने अपनी सुविधा या सुख के लिए व्यय किया हो, मुझे नहीं लगता. आखिर बैंक में जमा यह सब रुपए…’

‘‘और बीच में ही मेरी बात काट दी थी उन्होंने. वह बोले थे, ‘यह सब मेरा नहीं है, श्यामलाल. इस पासबुक में जमा एकएक पैसा मेरे छोटे बेटे और बहू की अमानत है. तुम्हें छोटा भाई कहा है तभी तुम से कहता हूं, मेरे बड़े बेटे और बहुएं अपनेअपने बच्चों को ले कर मेरे बुढ़ापे का सारा बोझ छोटे बेटे पर छोड़ कर दूसरे शहरों में जा बसे हैं और ये मेरे छोटे बच्चे दिनरात मेरे सुख और आराम की चिंता में रहते हैं. बहू ने तो मेरी दोनों बेटियों की कमी पूरी कर दी है. मेरा उस से वादा है श्यामलाल कि मैं उसे एक दिन उस की सेवा का पुरस्कार दूंगा. मेरी बात गांठ बांध लो. जब मैं न रहूं, तब यह पासबुक जा कर मेरी बहू के हाथ में दे देना और उन्हें सारी बात समझा देना. मैं ने अपनी वसीयत भी इस लिफाफे में बंद कर दी है जिस के अनुसार यह सारी पूंजी मैं ने अपनी बहू के नाम कर दी है. यही उस का पुरस्कार है.’’’

बहू की आंखों से गंगाजमुना बह चली थीं. श्यामलाल ने उसे ढाढ़स बंधाते हुए एक लिफाफा और पासबुक उस के हाथों में थमा दिए. बहू रोतेरोते उठ खड़ी हुई और धीरेधीरे चल कर पिता की तसवीर के सामने जा पहुंची और हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे. उस के मुख से केवल इतना ही निकला, ‘‘पापा…’’

लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

सवाल-

मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती हूं. मैं जानना चाहती हूं कि इस दौरान जब हम शारीरिक संबंध बनाएं तो हमें क्याक्या सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि मैं गर्भवती न होऊं?

जवाब-

शारीरिक संबंध बनाने के उपरांत गर्भधारण से बचने के लिए आप को अपनी सुविधानुसार कोई गर्भनिरोधक प्रयोग करना चाहिए. 

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आज राहुल के दोस्त विनय के बेटे का नामकरण था, इसलिए वह औफिस से सीधे उस के घर चला गया था.

वैसे, राहुल को ऐसे उत्सव पसंद नहीं आते थे, पर विनय के आग्रह पर उसे वहां जाना ही पड़ा, क्योंकि विनय उस का जिगरी दोस्त जो था.

‘‘यार, अब तू भी सैटल हो ही जा, आखिर कब तक यों ही भटकता रहेगा,’’ फंक्शन खत्म होने के बाद नुक्कड़ वाली पान की दुकान पर पान खाते हुए विनय ने राहुल से कहा. ‘‘नहीं यार,’’ राहुल पान चबाता हुआ बोला, ‘‘तुझे तो पता है न कि मुझे इन सब झमेलों से कितनी कोफ्त होती है?

‘‘भई, मैं तो अपनी पूरी जिंदगी पति नाम का पालतू जीव बन कर नहीं गुजार सकता. मैं सच कहूं तो मुझे शादी के नाम से ही चिढ़ है और बच्चा… न भई न.’’

‘‘अच्छा यार, जैसी तेरी मरजी,’’ इतना कह कर विनय खड़ा हुआ, ‘‘पर हां, एक बात तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरी पत्नी राशि की मुंहबोली बहन करिश्मा फिदा है तुझ पर. उस बेचारी ने जब से तुझे मेरी शादी में देखा है तब से वह तेरे नाम की रट लगाए बैठी है. उस ने जो मुझ से कहा वह मैं ने तुझे बता दिया, अब आगे तेरी मरजी.’’

उस के बाद काफी समय तक दोनों की मुलाकात नहीं हो पाई, क्योंकि अपने घर वालों के तानों से तंग आ कर अब राहुल ज्यादातर टूर पर ही रहता था.

‘‘न जाने क्या है हमारे बेटे के मन में, लगता है पोते का मुंह देखे बिना ही मैं इस दुनिया से चली जाऊंगी,’’ जबजब राहुल की मां उस से यह कहतीं, तबतब राहुल की बेचैनी बहुत बढ़ जाती.

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