Father’s day 2023: पिता बदल गए हैं तो कोई हैरानी नहीं, बदलते वक्त के साथ ही था बदलना

आइंस्टीन की बिग बैंग थ्योरी को लेकर भले संदेह हो कि ब्रह्मांड निरंतर फ़ैल रहा है या नहीं.लेकिन इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि दुनिया हर पल बदल रही है.कारण कुछ भी हो.ऐसे में भले किसी की पहचान हमेशा एक सी कैसे रह सकती है.पिता नाम का,समाज का सबसे महत्वपूर्ण शख्स भी इस बदलाव से अछूता नहीं है तो इसमें किसी आश्चर्य की बात नहीं है.आज जब पिछली सदी के जैसा कुछ नहीं रहा,न खानपान,न पहनावा,शिक्षा,न रोजगार,न संपर्क के साधन तो भला पिता कैसे वैसे के वैसे ही बने रहते,जैसे बीसवीं सदी के मध्यार्ध या उत्तरार्ध में थे.पिता भी बदल गए हैं.क्योंकि अब वो घर में अकेले कमाने वाले शख्स नहीं हैं.क्योंकि अब वो अपने बच्चों से ज्यादा नहीं जानते,ज्यादा स्मार्ट भी नहीं हैं.

यही वजह है कि आज पिता घर की अकेली और निर्णायक आवाज भी नहीं हैं. आज के पिता परिवार की कई आवाजों में से एक हैं और यह भी जरूरी नहीं कि घर में उनकी  आवाज सबसे वजनदार आवाज हो.इसमें कुछ बुरा भी नहीं है और न ही इसके लिए पिताओं के प्रति अतिरिक्त सहानुभूति होनी चाहिए.क्योंकि अकेली निर्णायक आवाज न घर के लिए और न ही समाज के लिए,किसी भी के लिए बहुत अच्छी नहीं होती.अकेली आवाज के हमेशा तानाशाह आवाज में बदल जाने की आशंका रहती है.

बहरहाल पहले के पिता ख़ास होने के भाव से अकड़ में रहते थे, इस कारण वह अपने बच्चों के प्रति अपने प्यार और फिक्रमंदी की भावनाएं भी सार्वजनिक तौरपर प्रदर्शित नहीं कर पाते थे.यहां तक कि पहले पिता सबके सामने अपने बच्चों को अपनी जुबान से प्यार भी नहीं कर पाते थे.वही सामाजिक दबाव, क्या कहेंगे लोग.ढाई-तीन दशक पहले जिनका बचपन गुजरा है,उन्हें मालूम है कि कैसे बचपन में ज्यादातर समय उन्हें अपने पिताओं से नकारात्मक व्यवहार ही मिलता रहा है, लेकिन आज ऐसा नहीं है.आज के पिता बच्चों के साथ किसी हद तक दोस्ताना भाव रखते हैं. आज के पिता में वह दंबगई नहीं है, जो पहले हुआ करती थी? आज के बच्चे अपने पापा  से डरते नहीं है?

क्योंकि तकनीक ने,जीवनशैली ने पारिवारिक ताकत और प्रभाव का विकेंद्रीकरण किया है.पहले की तरह सारी पारिवारिक ताकत और प्रभाव का अब कोई अकेला केंद्र नहीं रहा.इस कारण आज का पिता बदल गया है.यह बदलाव कदम कदम पर दिखता है.आज का पिता घर के काम बिल्कुल न करता या कर पाता हो, ऐसा नहीं है.आज का पिता न सिर्फ घर के कई काम बड़ी सहजता से करता है बल्कि रसोई में भी अब वह अनाड़ी नहीं है.पहले जिन कामों को हम सिर्फ घर की महिलाओं को करते देखते थे, जैसे घर की सफाई, बच्चों को उठाना, स्कूल के लिए तैयार करना, उनके लिए नाश्ता और लंच बनाना आदि, आज ये तमाम काम पिता भी सहजता से करते दिखते हैं.

क्योंकि आज की तारीख में विभिन्न कामों के साथ जुड़ी अनिवार्य लैंगिगकता खत्म हो गई है या धीरे धीरे खत्म हो रही है.हम चाहें तो इसे इस तरह कह सकते हैं कि आज के पिता बहुत कूल हैं, हर काम कर लेते हैं.कई बार तो ऐसा इसलिए भी होता है; क्योंकि पिता एकल पालक होते हैं.आज बहुत नहीं पर काफी पिता ऐसे हैं,जिन्होंने सिंगल पैरेंट के रूप में बच्चा गोद लिया हुआ है.सौतेले पिता भी आज अजूबा नहीं हैं. आज के पिता बड़ी सहजता से अपनी बेटियों के हर काम और हर तरह के संवाद का जरिया बन सकते हैं.हम आमतौर पर ऐसा होने को पश्चिमी संस्कृति का असर मान लेते हैं.लेकिन यह महज पश्चिमी संस्कृति का असर भर नहीं है,यह एक स्वाभाविक बदलाव है.जो दुनिया में हर जगह आधुनिक जीवनशैली और शिक्षा से आया है.

इसके कारण आज के पिता बच्चों के लिए ज्यादा रीचेबल हो गये हैं,बच्चे बड़ी सहजता से उन तक पहुँच रखते हैं,वह पिताओं से हर तरह की बातचीत कर लेते हैं.उनमें एक किस्म का धैर्य आया है.आज के पिता बच्चों के रोल मॉडल हैं या नहीं हैं.ज्यादातर लड़कियां अपने ब्वाॅयफ्रेंड या हसबैंड में पिता की छाया तलाशती हैं.जाहिर है आज का पिता भावनात्मक रूप से ज्यादा सम्पन्न, संयमी, मददगार और केयर करने वाला है.यहां तक कि आज के पिता ने अपने बच्चों और परिवार को अपनी आलोचना की भी भरपूर छूट दी है.नहीं दी तो परिवार द्वारा ले ली गयी है,चाहे उसे पसंद हो या न हो. यही वजह है कि आज परिवार नामक संस्था ज्यादा प्रोग्रेसिव है.

इस सबके पीछे कारण बड़े ठोस हैं.आज का पिता घर का अकेला रोजी रोटी कमाने वाला नहीं रहा.मां भी बड़े पैमाने पर ब्रेड बटर अर्नर है.बच्चे भी पहले के मुकाबले कहीं जल्दी कमाने लगते हैं. इस वजह से घर में अब पिता का पहले के जमाने की तरह का दबदबा नहीं रहा,जब वह परिवार की रोजी रोटी कमाने वाले अकेले शख्स हुआ करते थे.

यूं शुरू हुआ फादर्स डे मनाने का सिलसिला

हर साल जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है. इसका सबसे पहले विचार एक अमरीकी लड़की सोनोरा स्मार्ट डोड को साल 1909 में आया था.पहला फादर्स डे 19 जून 1910 को वाशिगंटन में मनाया गया. 1966 में अमरीका के राष्ट्रपति लिंडन बेन जॉनसन ने जून के तीसरे रविवार को हर साल फादर्स डे मनाने की औपचारिक घोषणा की. तब से यह न केवल अमरीका में नियमित रूप से मनाया जाता है बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी इसने धीरे धीरे अपना विस्तार किया है.पिता दिवस के मनाये जाने के इस औपचारिक सिलसिले के बाद से दुनिया में पिता और पितृत्व की भूमिका लगातार चर्चा होती रही है.

Film Review: ताज सीजन 2- सल्तनत के अंदर रिश्तों की बोर करती साजिश

  • रेटिंगः पांच में से दो स्टार
  • निर्माताः अभिमन्यु सिंह और रुपाली कादयान
  • लेखकःसाइमन फैंटुजो, और विलियम बोर्थविक
  • निर्देषकः विभु पुरी
  • कलाकारः नसीरुद्दीन शाह , आशिम गुलाटी , सौरसेनी मैत्रा , शुभम कुमार मेहरा , संध्या मृदुल और जरीना वहाब
  • अवधिः 41 से 52 मिट के आठ एपीसोड, लगभग छह घटे आठ मिनट
  • ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5

मुगलिया सल्तनत का इतिहास खून खराबा, कत्लेआम, भीतरी घात, दरबारी साजिश, बादशाह की रानियों, बादशाह के अति करीबी दरबरियों की साजिषो से सना हुआ है. जहां किसी रिष्ते की कोई अहमियत नही. इसी मुगल सल्तनम पर वेब सीरीज बन रही है. जिसका पहला भाग लगभग ढाई माह पहले ‘जी 5’ पर ही ‘‘ताजः द डिवाइडेड बाय ब्लड’’ के नाम से स्ट्रीम हुआ था, जिसका निर्देशन ब्रिटिश निर्देशक रॉन स्कैल्पेलो  ने किया था. अब उसका दूसरा सीजन ‘‘ताजः रेन आफ रिवेंज’ के नाम से दो जून से ‘जी 5’ पर ही स्ट्रीम हो रहा है. जिसके कुल आठ एपीसोड हैं. इस सीजन के निर्देशक विभु पुरी हैं. जोे कि 2015 में प्रदर्षित ‘‘हवाईजादा’’ जैसी असफल फिल्म के निर्देशक के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. अब पूरे आठ साल बाद निर्देशन में उतरे हैं. पर उनमें निर्देशकीय प्रतिभा नजर नही आती.

कहानीः

इस दूसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहला सीजन खत्म हुआ था. पहले सीजन में अकबर (नसीरुद्दीन शाह) के तीन बेटों में से एक मुराद (ताहा साहा) को अकबर के करीबी अबुल फजल (पंकज सारस्वत)  ने सांप का जहर देकर मार दिया था. अकबर ने अपने बड़े बेटे सलीम (आशिम गुलाटी) को देश निकाला दे दिया था और सलीम की प्रेमिका अनारकली ( दिति राव हैदरी) को अकबर के तीसरे बेटे दनियाल (शुभम कुमार मेहरा)ने मार दिया था, जबकि  अनाकरली,  दनियाल की सगी मां थी. इस घटनाक्रम के पंदह वर्ष बाद शुरू होती है. अब अकबर के उत्तराधिकारी कट्टर दनियाल (शुभम कुमार मेहरा) है. सलीम के दोनों बेटे खुर्रम और खुसरो युवा हो चुके हैं.

सलीम,  एक फर कोट और चेहरे के बालों की एक गांठ में जुनूनी रूप से अनारकली (अदिति राव हैदरी) की कब्र की तलाश कर रहा है. देखकर तो वह जिप्सी डाकू लगता है, जो कि अरावली की पहाड़ियों से अपने पिता के रक्षकों पर छापा मारकर उनसे धन लूटता आया है. अपने गुरू शेख चिष्ती (धर्मेंद्र) से मिलने के बाद  अकबर,  सलीम से सुलाह के नाम पर उसे अपने दुष्मन मेवाड़ से लड़ने भेजना चाहते हैं, पर सलीम को यह कबूल नही.

उधर अकबर की बेगम बादशाह रूकैय्या(पद्मा दामोदरन) ने सलीम के बेटे खुसरू (जियांश अग्रवाल) को पालते हुए खुसरो के मन में सलीम के प्रति नफरत बढ़ दी है. वह खुसरो को ही मुगल सल्तनत का बादशाह बनाना चाहती है. सलीम का दूसरा बेटा खुर्रम (मितांश लुल्ला) मानता है कि हर सच के दो पहलू होते हैं. उधर सलीम तक महल की खबर पहुंचाने वाली मेहरुनिसा (सौरसेनी मैत्रा) की शादी अबू फजल की सलाह व अकबर के आदेश पर एक वहशी अली कुली (रोहल्ला काजिम) से करा दी जाती है, जिसे कुछ समय बाद कुश्ती के मैदान पर सलीम मौत की नींद सुला देते हैं.

चौथे एपीसोड के अंत में शेख चिष्ती , अकबर बादशाह को  सलाह देते है कि कत्लेआम रोकें और सलीम में तमाम बुराइयां हैं, फिर भी अकबर को चाहिए कि वह सलीम से सुलह कर लें. पांचवंे एपीसोड में सलीम के हाथों दनियाल मारे जाते हैं. अब अकबर बीमार रहने लगते है. जिसके चलते अब अबुल फजल, बेगम बादशाह रूकैया के साथ मिलकर साजिश रचते हैं. रूकैया,  मेहरुनिसा को जेल में डालकर प्रताड़ित करती है.  फिर अबुल फजल एक साजिश रचकर सलीम को मारने इलहाबाद पहुंचते हैं, जहां वह खुद उनके हाथों मारे जाते हैं, जिन पर उन्हे भरोसाथा. यह जानकर बादशाह अकबर,  रूकैया से सारे अधिकार छीन लेते हैं. सातवें एपीसोड मेहरूनिसा,  महारानी  व सलीम की मां जोधा बाई (संध्या मृदल ) व खुर्रम के साथ सलीम के पास सुलह करवाने के लिए पहुॅचती है. इधर अकबर को अपने अंतिम वक्त में अपने पाप याद आते हैं और वह रानी सलीमा (जरीना वहाब) से कबूल करते हंै कि उनके पहले शौहर पैगम खान की हत्या उन्होने की थी. सातवें एपीसोड के अंत में मरने से पहले अकबर सभी लोगो के सामने धीमी आवाज में मेहरूनिसा के पिता को बताते हैं कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? वह सभी को बताते है कि अकबर ने सलीम का नाम लिया था. इससे खुसरो बगावत करना चाहता है. रूकैया उसे बगावत करने के लिए उकसाती है. खुसरो अपनी सेना के साथ आक्रमण करता है, हारने पर भागकर लाहौर पहंुचता है. इधर मेहरूनिसा और उसकी भतीजी अर्जुमंद को सच पता चल जाता है. पर सलीम तो उसका नाम नूरजहां रखकर बादशाह के अधिकार देकर खुसरो से युद्ध करने लाहौर जाते हैं और बंदी बनाकर लाते हैं. इधर महरूनिसा उर्फ नूरजहां, रूकैया को जेल मंे डालकर प्रताड़ित करती है. तथा सच जानकर खुर्ररम के साथ दरबार से भागी अर्जुमंद को मारने की सुपारी दे दी जाती है. फिर दरबार में सजा के तौर पर खुसरो की दूसरी आंख भी फोड़ देते हैं. पान महल, कष्मीर पहुॅचने पर सलीमा अकबर बादशाह का मरने से पहले लिखा हुआ पत्र पढ़कर चैंक जाती हैं. क्योंकि इस पत्र में लिखा है कि उन्होने अपना उत्तराधिकारी ख्ुार्ररम को चुना है. उधर राज्य के बहार रदी किनारे रह रहे ख्ुार्ररम,  अर्जुमंद को नया नाम मुमताज देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

पहले सीजन के मुकाबले दूसरा सीजन गुणवत्ता के स्तर पर कमतर ही हुआ है. इस बार पअकथा में वह कसावट नही है, जो होनी चाहिए थी, जबकि जब दरबार व परिवार के अंदर ही साजिषें रची जा रही हों, तो रोचकता व रोमांच दोनो बढ़ जाना चाहिए, पर ऐसा कुछ भी नही है. . जिन्होने इतिहास पढ़ा है, उन्हे तो इसमें काफी गलतियंा भी नजर आएंगी. पटकथा में झोल ही झोल है. मसलन-अकबर के आदेश के बाद मेहरूनिसा को हरम में भेज दिया गया है. हरम से बाहर आना मुनासिब नही होता. पर वह जगह पहुॅच जाती हैं. फिल्म में किरदारों के पास दाढ़ी बनाने का वक्त नही हे. कहानी 15 साल आगे बढ़ी है, मगर खुर्रम व खुसरु के अलावा किसी भी किरदार पर उम्र का असर नही नजर आता. तो वही बेवजह के सेक्स दृष्य ठॅूंसे गए हैं. बिना व्याह किए सलीम के बच्चे की मां बनने जा रही मेरुनिसा के संग सेक्स दृष्य को विस्तार से फिल्माने की जरुरत निर्देशक को क्यों पड़ी. यह तो वही जाने. युद्ध के दृष्य अप्रभावशाली है. दनियाल, रूकैया, खुसरु, सलीम, अबुल फजल,  मानसिंह, मेहरुनिसा सहित कईयों के साजिश के बीच फंसे अकबर बादशाह. राज्य का खजाना खाली हो रहा है, जबकि तीनो रानियां अपने हरम में धन जमा कर रही हैं. इन सब बातों को लेकर बहुत अच्छे रोचक दृष्य रचे जा सकते थे, पर सब कुछ बहुत नीरस है. कहानी आगरा से बंगाल, कष्मीर, लाहौर, काबुल व दक्षिण तक जाती है, पर हर जगह के किरदारों की बोली में कोई अंतर नजर नही आता. जबकि भारत मेें हर  दस किलोमीटर पर बोली बदल जाती है.

अभिनयः

अकबर के किरदार में एक बार फिर नसिरूद्दीन शाह मात खा गए. बादशाह और पिता के बीच फंसे इंसान की व्यथा, सल्तनत के लिए हो रहे खून खराबा में अपनों को खोने के दर्द को भी वह अपने अभिनय से उकेरने में सफल नही रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे कि उन्होने बेमन इस सीरियल में अभिनय किया हो. बीमार बादशाह  के रूप में भी वह कोई प्रभाव नहीं छोड़ते.

सलीम के किरदार में आशिम गुलाटी इस सीजन में कुछ कमजोर नजर आते हैं.

रूकैया के किरदार में पद्मा ठीक ठाक हैं.

मेहरुनिसा के किरदार में सौरसेनी मैत्रा अपना प्रभाव छोड़ती हैं.

दनियाल की भूमिका में शुभम कुमार मेहरा ने पहले से बेहतर काम किया है.

पंकज सारस्वत, जियांश अग्रवाल, मित्तांश लुल्ला, शिल्पा कटारिया सिंह, संध्या मृदुल, राहुल बोस आदि का अभिनय ठीक ठाक है.

सुलोचना लाटकर का निधन, अमिताभ बच्चन ने जताया दुख

बॉलीवुड फिल्मों में ‘मां’ का रोल निभाने वाली एक्ट्रेस सुलोचना लाटकर का निधन हो गया है. सुलोचना का लंबी बीमारी के बाद मुंबई के अस्पताल में रविवार को निधन हो गया है. सुलोचना लाटकर का  94 साल की थी. वहीं इस खबर की जानकारी सुलोचना के पोते पराग अजगावकर ने उनके निधन की पुष्टि की.

हिंदी और माराठी सिनेमा में सुलोचना लाटकर ने अपनी पहचान बनाई है. सुलोचना ने 1940 के दशक में अपने करियर की शुरुआत की और 250 से अधिक फिल्मों में काम किया. सुलोचना के निधन पर एक्ट्रेस के ऑनस्क्रीन बेटे अमिताभ बच्चन ने भी दुख जताया. वहीं बॉलीवुड के जाने-माने सितारों ने शोक व्यक्त किया. जानकारी के मुताबिक एक्ट्रेस को आठ मई को दादर के सुश्रुषा अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहीं रविवार शाम के 6 बजे एक्ट्रेस का निधन हो गया. सुलोचना लाटकर काफी लंबे समय से बीमार थी.

 

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अमिताभ बच्चन ने दुख जताया

सुलोचना लाटकर के निधन पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी दुख प्रकट किया. बता दें, अमिताभ बच्चन ने उस खत को याद किया, जो सुलोचना जी ने उन्हें उनके 75वें जन्मदिन पर दिया था. अमिताभ बच्चन ने लिखा, ‘निरूपा रॉय जी के बाद उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्मों में मेरी मां का किरदार निभाया. सुलोचना जी वास्तव में हिंदी और मराठी फिल्म उद्योग दोनों के लिए एक मां की तरह थीं. मेरे 75वें जन्मदिन पर उन्होंने मुझे जो सुंदर हाथ से लिखा खत भेजा था, वह मुझे आज भी याद है. यह मुझे अब तक मिले सबसे प्यारे उपहारों में से एक था.’

आशा पारेख ने कहा

दिग्गज एक्ट्रेस आशा पारेख ने कहा, ‘मैंने उनके साथ कई फिल्में की हैं। मुझे ऐसा कोई समय याद नहीं है जब सुलोचना जी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं थीं. हम सभी ने उन्हें वही सम्मान दिया जो हमने अपनी असली मां को दिया था.’ वहीं डायरेक्टर समीर विदवान्स ने भी एक्ट्रेस की तस्वीर शेयर करते हुए दुख जताया.

कब होगा अंतिम संस्कार

जानकारी के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार सोमवार शाम पांच बजे दादर के शिवाजी पार्क श्मशान घाट में किया जाएगा. इसके साथ ही आपको बता दें, सुलोचना जी को साल 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

नहीं रहे महाभारत के शकुनि गूफी पेंटल, 78 साल की उम्र में निधन

बी आर चोपड़ा का प्रसिद्ध सीरियल महाभारत में शकुनी मामा का किरदार निभाने वाले अभिनेता गूफी पेंटल पिछले कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थे. गूफी पेंटल का सोमवार सुबह निधन हो गया। वे 78 साल के थे. बता दें उनके साथी कलाकर ने सुरेंद्र पाल ने गूफी पेंटल की निधन जानकारी दी है.

जिस समय गुफी पेंटल की तबियत बिगड़ी थी तब वह फरीदाबाद में थे, इसके बाद उन्हे फरीदाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है उसके बाद उन्हें मुंबई में शिफ्ट किया गया. बताया जा रहा है आज शाम 4 बजे मुंबई में अंतिम संस्कार किया जाएगा.

 

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गूफी पेंटल ने फिल्म ‘रफू चक्कर’ से डेब्यू किया

गूफी पेंटल ने 1975 में ‘रफू चक्कर’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था. गूफी  80 के दशक में वे कई फिल्मों और टीवी शोज में नजर आए. किंतु, गूफी को असली पहचान 1988 में बीआर चोपड़ा के सुपरहिट शो ‘महाभारत’ से मिली थी. शो में  गूफी पेंटल ने  शकुनि मामा का किरदार निभाया था. इसके बाद गूफी आखिरी बार स्टार भारत के शो ‘जय कन्हैया लाल की’ में नजर आए थे.

कैसे अर्मी जवान से शकुनि बने- गूफी पेंटल

मीडिया इंटरव्यू के मुताबिक गूफी पेंटल एक्टिंग में आने से पहले वह अर्मी में थे. उन्होनें भास्कर में दिए इंटरव्यू में कहा- 1962 में भारत-चीन के बीच जब युद्ध चल रहा था, तब मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. युद्ध के दौरान भी कॉलेज में आर्मी की भर्तियां चल रही थीं. मैं हमेशा से आर्मी में जाना चाहता था. पहली पोस्टिंग चीन बॉर्डर पर आर्मी आर्टिलरी में हुई थी.

बॉर्डर पर मनोरंजन के लिए टीवी और रेडियो नहीं होता था इसलिए हम बॉर्डर पर (सेना के जवान) रामलीला करते थे. रामलीला में मैं सीता का रोल करता था और रावण बना शख्स स्कूटर पर आकर मेरा अपहरण करता था. मुझे एक्टिंग का शौक तो था ही, इससे कुछ ट्रेनिंग भी मिल गई.

उसके बाद गूफी का इंटरेस्ट में बढ़ने लगा. इसके लिए वह अपने छोटे भाई कंवरजीत पेंटल के कहने पर 1969 में मुंबई गए थे. मुंबई  में गूफी ने मॉडलिंग और एक्टिंग सीखी और कई फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर भी काम किया. इस दौरान बीआर चोपड़ा की महाभारत में कास्टिंग डायरेक्टर के तौर पर काम करने का मौका मिला.

आगे इंटरव्यू में गूफी ने बताया कि, मैं महाभारत में शकुनि के कैरेक्टर के लिए परफेक्ट फेस की तलाश में थे. मैंने शो के लिए सभी कैरेक्टर्स का ऑडिशन लिया था. मैंने इस रोल के लिए तीन लोगों को चुना था. इस बीच शो की स्क्रिप्ट लिख रहे मासूम रजा की नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे ही शकुनि का रोल करने की सलाह दी. इस तरह मैं महाभारत का मामा शकुनि बन गया.

यह तो होना ही था: भाग 1- वासना का खेल मोहिनी पर पड़ गया भारी

अपमानित, शर्मसार, निर्वस्त्र मोहिनी अपनेआप को बैड पर बिछी चादर से ढकने की कोशिश कर रह थी. मन फूटफूट कर, चीखचीख कर रोने को कर रहा था, लेकिन अपमान के सदमे से आंखें इतनी खुश्क थीं जैसे पत्थर की हों. अभीअभी एक तूफान उस के जीवन में आ कर गया था. कमरे के बाहर का शोर कुछ ठंडा तो पड़ा था. लेकिन यह तूफान उस के जीवन को हमेशा के लिए तहसनहस कर गया था.

मोहिनी 18 साल की थी जब शिव कुमार से उस का विवाह हुआ था, मोहिनी का उन से कभी वैचारिक तालमेल नहीं बैठा. शिव कुमार इंगलिश के अध्यापक थे व शांत गंभीर शिव कुमार ने उसे घर की चाबी पकड़ाई और लगभग भूल गए कि वह है चंचल मोहिनी. उन के गहरेपन को कभी सम झ नहीं पाई. शिव कुमार ने उसे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया, लेकिन अपने रूप और मन के बिंदासपन के आगे उस ने कभी शिव कुमार की बात को गंभीरता से नहीं लिया.

उसी साल मोहिनी ने एक पुत्री को जन्म दिया, मां बन कर भी वह अल्हड़ युवती बनी रही. शिव कुमार ने बेटी कोमल की देखरेख भी एक तरह से अपने जिम्मे ले ली. कालेज से आते तो बेटी की देखरेख पर ध्यान देते, मोहिनी इधरउधर सहेलियों के साथ सैरसपाटा करती.

कोमल अपने पिता की तरह धीरगंभीर, शांत, दृढ़चरित्र की स्वामिनी थी. वह अपने पिता की छत्रछाया में पलतीबढ़ती रही. कोमल ने इंग्लिश में एमए किया ही था कि शिव कुमार का हृदयाघात से निधन हो गया. मांबेटी दोनों ने किसी तरह अपने को संभाला. पीएफ, पैंशन सब मोहिनी को मिला, अब उसे अपने भविष्य की चिंता खाए जा रही थी.

सब से बड़ी चिंता उसे कोमल की नहीं, अपनी थी, उसे अपने लिए किसी पुरुष का साथ चाहिए था, वह दूसरा विवाह भी नहीं करना चाहता थी, सोचती कौन फिर से  झं झट में पड़े, किसी की घरगृहस्थी की जिम्मेदारी क्यों उठाए. अगर किसी से तनमनधन की जरूरत बिना विवाह के पूरी हो जाए तो क्या हरज है आराम से जी लेगी.

मोहिनी दिनभर यही योजनाएं बनाती, सोचती कुछ ऐसा किया जाए ताकि बाकी का जीवन आराम से कट जाए, देखते में वह कोमल की बड़ी बहन ही लगती थी, यत्न से सजाया गया रूपसौंदर्य किशोरियों को भी पीछे छोड़ देता था और इसी बीच कोमल ने बीएड भी कर लिया तो शिव कुमार के कालेज में ही उसे इंगलिश की अध्यापिका का पद मिल गया. आर्थिक रूप से मांबेटी ठीक स्थिति में थीं, घर अपना था ही लेकिन मोहनी को मन ही मन यह चिंता थी कि शादी के बाद कोमल की अपनी घरगृहस्थी होगी तो वह मां पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाएगी.

मोहिनी के मायके में अब कोई नहीं था, मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी, भाईबहन कोई था नहीं. ससुराल वालों से उस की कभी बनी नहीं थी. शिव कुमार की मृत्यु के बाद तो संबंध बिलकुल ही खत्म हो चुके थे और अब लखनऊ की इस कालोनी में मांबेटी अकेली ही रहती थीं. पासपड़ोसी अच्छे थे, उन का हालचाल लेते रहते थे, लेकिन मोहिनी को जिस चीज की तलाश थी, वह उसे एक विवाह समारोह से मिली, अनिल से उस का परिचय उस की सहेली अंजू ने करवाया था. अंजू ने उस को कहा था, ‘‘मोहिनी है हमारे दफ्तर के नया सीनियर अफसर, मातापिता हैं नहीं, एक बहन है जो विदेश में रहती है. महाराष्ट्र से है और रिजर्व कोटे की वजह से आए है पर अच्छेअच्छों को मात दे देता.’’

मोहिनी को अनिल पहली ही नजर में पसंद आ गया. उस के मन की मुराद पूरी हो गई. सुंदर, स्मार्ट है, भिन्न जाति का है तो क्या हुआ. सुल झा हुआ है, देखने में कश्मीरी लगता है. अनिल की तरफ वह आकर्षित हो गई.

अनिल उस से अच्छी तरह मिला और यह जान कर हैरान हुआ कि वह एक युवा बेटी की मां है. दोनों काफी देर अकेले में बातें करते रहे. अनिल भी उस के सौंदर्य से प्रभावित हुआ. मोहिनी को भी लगा कि अनिल में कहीं से हीनग्रंथि नहीं है.

चलते समय अगले दिन अनिल को घर आने का निमंत्रण दे कर मोहिनी स्वप्नों के संसार में डूबतीउतराती घर पहुंची.

कोमल ने पूछा, ‘‘मां, कैसी रही शादी?’’

‘‘तुम्हें क्या, तुम्हें तो अपने पापा की तरह बस किताबों में सिर खपाए रखने का शौक है.’’

‘‘नहीं मां, कुछ जरूरी नोट्स बनाने थे मु झे और वैसे भी मैं वहां किसी को जानती नहीं थी. मै वहां क्या करती.’’

‘‘अरे, कहीं जाओगी तभी तो जानपहचान होगी. कितने नएनए लोगों से मिली मैं आज. बहुत अच्छा लगा.’’

कोमल ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ मां, आप हो आईं, आप को अच्छा लगा वहां यह आप को देख कर ही पता चल रहा है.’’

मोहिनी गुनगुनाते हुए चेंज करने अपने बैडरूम में चली गई तो कोमल अपने काम में व्यस्त हो गई.

अगले दिन कोमल कालेज चली गई. लंच के समय अनिल ने जब मोहिनी की डोरबैल बजाई तो दरवाजा खोलने पर मोहिनी हैरान नहीं हुई. उस ने अनिल को जिन अदाओं से आने का निमंत्रण दिया था अनिल जरूर आएगा यह उसे पूरा विश्वास था. उस ने अनिल की खूब आवभगत की. उसे घर दिखाया, उस के साथ ही लंच किया, अपनी दुखद कहानी सुनाई, कम उम्र में शादी, फिर वैधव्य का दुख और अकेलापन.

मोहिनी से अनिल को सहानुभति हुई. उस ने कहा, ‘‘आप परेशान न हों,

मु झे आप अपने साथ ही सम िझए. मैं आप की ऊंची जाति का नहीं पर जानता हूं कि दुनिया कैसे चलती है,’’ कह कर वह उठ कर मोहिनी के  पास ही बैठ गया तो मोहिनी ने भी अपना हाथ उस के हाथ पर रख दिया. अनिल के सामीत्य ने कई दिनों से पुरुष संपर्क को तरसते उस के तनमन में एक चिनगारी भी भड़का दी तो उस ने सारी लाजशर्म छोड़ कर अनिल की बांहों में खुद को सौंप दिया और फिर यह एक दिन की बात नहीं रही, कोमल के बाहर जाने का समय देख कर वह अनिल के मोबाइल पर मैसेज भेज देती और अनिल पहुंच जाता, वह अच्छे पद पर था. मोहिनी पर खुल कर खर्च करता. मोहिनी को हवस और पैसों का स्वाद मुंह लग गया.

अनिल और कोमल का अभी तक आमनासामना नहीं हुआ था, लेकिन एक दिन मार्केट में मोहिनी कोमल के साथ घर का कुछ सामान खरीद रही थी, तो अनिल वहां मिल गया. मोहिनी ने कोमल को अनिल का परिचय दिया. कहा कि अंजू के परिचित हैं और अनिल ने कोमल को पहली बार देखा तो देखता रह गया. शांत, कोमल, सुंदर सा चेहरा, दुबलीपतली. कोमल का शिष्ट व्यवहार उसे प्रभावित कर गया.

मोहिनी ने अनिल की आंखों में कोमल के लिए पसंदगी के भाव देखे तो उस के दिमाग में फौरन नई योजनाएं जन्म लेने लगीं.

अब तक कई पड़ोसी बातबात में अनिल कौन है, क्या करता है, क्या करने आता है, इस तरह के कई सवाल मोहिनी से करने लगे थे. मोहिनी ने अनिल को अपना एक परिचित बता कर बात टाल दी थी. अब वह ज्यादा सचेत रहने लगी थी. अनिल दूसरी कालोनी में अकेला रहता था. उस के मातापिता अरसा पहले मर चुके थे. वह वर्षों से अकेला रहा क्योंकि शादी के लिए कोई कहने वाला भी तो हो.

मोहिनी ने अनिल से कह दिया, ‘‘तुम यहां कम ही आया करो, मैं ही तुम्हारे घर आ जाया करूंगी.’’

अनिल को इस में कोई आपत्ति नहीं थी. अब फुरसत मिलते ही वह मोहिनी को फोन

कर देता.

मोहिनी कोमल को कोई न कोई काम बता कर

अनिल के घर पहुंच जाती और दोनों एकदूसरे में डूब कर काफी समय साथ बिताते. ऐसी ही एक शाम थी जब दोनों साथ थे, मोहिनी ने बात छेड़ी, ‘‘अनिल, तुम्हें कोमल पसंद है?’’

अनिल चौंका. पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘मैं काफी दिनों से कुछ सोच रही हूं, तुम जवाब दो तो आगे बात करूं?’’

‘‘हां, अच्छी है,’’ अनिल ने  िझ झकते हुए कहा.

मोहिनी हंसी,’’ तो शरमा क्यों रहे हो. तुम्हारे ही फायदे की बात सोच रही हूं.’’

‘‘बताओ क्या सोचा है?’’

‘‘तुम कोमल से शादी कर लो.’’

जैसे करंट लगा अनिल को. बोला, ‘‘यह आप कैसे सोच सकती हो? मेरेआप के जो संबंध हैं उन के बाद भी मु झे अपनी बेटी से शादी करने के लिए कह रही हो? वैसे भी अपनी जाति के लोग आप को खा जाएंगे कि दलित से शादी

कर ली.’’

‘‘तो क्या हुआ. शादी तो तुम एक दिन किसी से करोगे ही और कोमल की भी शादी तो होनी ही है, तुम उस से कर लोगे तो उस के बाद भी हमारे संबंध ऐसे ही रहेंगे, फिर कभी किसी को हम पर शक भी नहीं होगा. रही बात जाति की तो तुम तो देख ही रहे हो कि हमारी जाति वालों ने ही हमें कैसे छोड़ दिया. उन्हें मैं अपशकुनी लगती. ऐसी जाति का क्या करूंगी.’’

अनिल मोहिनी का मुंह देखता रह गया कि कोई औरत ऐसा भी सोच सकती है.

मोहिनी ने अनिल के गले में बांहें डालते हुए कहा, ‘‘क्यों, क्या तुम मु झे प्यार नहीं करते? मेरे साथ हमेशा संबंध नहीं रखना चाहते?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ कहते हुए उस ने भी मोहिनी को बांहों में भर लिया. कहा, ‘‘लेकिन मु झे सोचने का समय तो दो.’’

‘‘ठीक है, अच्छी तरह सोच लो,’’ कुछ देर रुक कर मोहिनी चली गई.

अनिल ने बाद में सोचा, मेरा क्या नुकसान है, अच्छीभली शरीफ सी लड़की है. मेरे तो

दोनों हाथों में लड्डू हैं. जब मोहिनी को बेटी से अपना प्रेमी शेयर करने में कोई परेशानी नहीं तो मु झे क्या.

अनिल ने मोहिनी को फोन पर अपनी स्वीकृति दे दी तो मोहिनी ने कोमल को भी अनिल से विवाह के लिए तैयार कर लिया. उस की बिरादरी में तो इस तरह के संबंध बहुत होते थे और कोई कुछ बोलता भी नहीं था.

बहुत जल्दी मोहिनी ने कोमल और अनिल की सीविल मैरिज करवा दी. कोमल चली गई. अब मोहिनी को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं रहा. कोमल कालेज जाती तो अनिल कोमल को बिना बताए छुट्टी ले लेता. मोहिनी पहुंच जाती और दोनों कोमल के आने तक का समय साथ बिताते.

फिर वसंत लौट आया: भाग 3- जब टूटा मेघा का भ्रम

तभी अचानक उस की नजर बस के साइड मिरर पर पड़ गई. सांवला सा चेहरा. चेहरे पर उदासी पुती हुई थी. सांवलापन एकाएक उस के पूरे बदन में एक जहर की तरह फैल गया और उस का पूरा बदन गुस्से से सुलगने लगा, ‘‘राइज ऐंड लवली, क्रीम किसलिए चाहिए तुम्हें? गोरा होने के लिए… हुंह… जब कुदरत ने तुम्हें सांवला बना दिया है, तो तुम रोजी की तरह कभी गोरी नहीं हो सकती.

तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती?’’ मनोज मेघा की एक छोटी सी डिमांड पर गुस्से से बिफरते हुए बोला था.

‘‘क्या यही कारण है कि तुम रोजी से शादी करना चाहते हो? मेरा रंग खराब है इसलिए?’’ मेघा बोली.

‘‘कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मैं रोजी से शादी करूंगा और हर हाल में करूंगा. अब हर चीज का कारण बताना मैं तुम्हें जरूरी नहीं समझता,’’ मनोज पलंग से उतर कर

खिड़की के पास चला गया और नीचे बालकनी

में देखने लगा.

उस दिन के बाद वह वापस कभी मनोज के पास नहीं गई. अपने दोनों बच्चों आदि और अवंतिका के साथ वह अपने पिता के घर पर ही रह रही थी.

इस बीच मेघा ने अपने पिता से निशांत के बारे में बताया था कि वह उस से शादी करना चाहता है. रंजीत बाबू अपनी बेटी की समझदारी के कायल थे. एक गलती उन से अपनी जिंदगी में मनोज जैसे दामाद को पा कर हुई थी. वे अपनी गलती का पश्चात्ताप भी करना चाहते थे.

इस तरह सालभर बीत गया. पतझड़ के बाद फिर से वसंत आया. पेड़ों पर नए पत्ते आए. बाग गुलजार हो गए और मेघा ने निशांत को अपने घर बुलाया और अपने पिताजी से मिलवाया. रंजीत बाबू निशांत की प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित हुए.

अगले दिन निशांत को खाने पर बुलाया. अजय साहब भी मेघा और निशांत की जोड़ी को देख कर बहुत खुश हुए और दोनों को खूब आशीर्वाद दिया.

आज मेघा आईने के सामने खड़ी हो कर खुद को निहारने लगी. गुलाबी सूट में वह किसी परी से कम नहीं लग रही थी. आंखों में काजल, दोनों हाथों में लाललाल चूडि़यां, पांवों में नए सैंडल. उस ने गालों पर राइज ऐंड ग्लो क्रीम लगाना चाही, लेकिन कुछ सोच कर रुक गई.

निशांत ने तो मुझे ऐसे ही पसंद किया है और वह अपनी नई खरीदी स्कूटी पर सवार हो कर निशांत से  मिलने होटल पहुंच गई.

निशांत आज बड़ी बेसब्री से होटल में मेघा का इंतजार कर रहा था. उस ने एक टेबल मेघा और अपने लिए पहले से ही बुक कर रखी थी. काले कोटपैंट में निशांत भी खूब फब रहा था. मेघा के आते ही उस ने पहले उसे बुके दे कर

उस का स्वागत किया. फिर पूछा, ‘‘क्या फैसला किया तुम ने?’’

मेघा बुके लेते हुए बोली, ‘‘वही जो पहले था. सोच कर बताऊंगी,’’ और हंसने लगी.

आज बहुत दिनों के बाद निशांत ने मेघा के चेहरे पर हंसी देखी थी. वह भी बिना मुसकराए नहीं रह सका.

फिर मेघा बोली, ‘‘मेरे बच्चों को तुम अपना नाम दोगे, आई मीन तुम उन्हें अपनाओगे न? उन की जिम्मेदारी लोगे?’’

‘‘हां, तुम्हारे साथसाथ मैं तुम्हारे बच्चों को भी अपनाऊंगा और तुम्हारी जिम्मेदारी भी उठाऊंगा,’’ निशांत मेघा के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोला और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

फिर वसंत लौट आया: भाग 2- जब टूटा मेघा का भ्रम

किसी तरह बस में सवार हुई और किनारे की सीट पर बैठ गई. बस में आनाजाना भी उसे बहुत ही उबाऊ लगता है. पापा अकसर कहते हैं कि बेटा कोई छोटी कार ही ले लो. मेरा रिटायरमैंट का पैसा तो है ही. समय से घर आओगी और दफ्तर भी समय से चली जाओगी.

आजकल जमाना बहुत खराब हो गया है. रात को छोड़ो आजकल दिनदहाड़े हत्या और बलात्कार हो रहे हैं. तुम जब बाहर निकलती हो तो मेरा जी बहुत घबराता है. कल मैं ने अखबार में पढ़ा था कि दिल्ली में एक बुजुर्ग महिला के साथ रेप हो गया है.’’

मगर मेघा बहुत ही स्वाभिमानी है, यह उस के पिता भी बखूबी जानते हैं. वह सबकुछ अपने कमाए पैसों से खरीदती है. घर भी अब उस के पैसों से ही चलता है. किसी प्राइवेट फाइनैंश कंपनी में काम करती है.

वह छेड़छाड़ से भी डरती है. अकेली औरत सब को ‘मुफ्त’ का माल लगती है. कोई हाथ छूने का बहाना ढूंढ़ता है, कोई कमर या कूल्हे का एक दिन बस में किसी ने उस का हाथ पकड़ लिया. खड़े रहने का सहारा ढूंढ़ते हुए. वह सब सम?ाती है. यह और बात है कि कभी किसी से कुछ कहा नहीं.

देशमुख उस दिन फाइल लेने के बहाने उस का हाथ पकड़ना चाहते थे. उस ने तब देशमुख को डपट दिया था, ‘‘आप को शर्म नहीं आती देशमुखजी? आप बालबच्चों वाले आदमी हैं. आप की पत्नी को जब यह सब पता चलेगा तब उस को कैसा लगेगा? मैं आप की बेटी की उम्र की हूं. मुझे घिन आती है आप जैसे लोगों से,’’ और वह फाइल फेंक कर चली गई.

उस दिन के बाद मेघा आज तक देशमुख

के कैबिन में नहीं गई. जब कोई फाइल

देनी होती तो चपरासी के हाथों भिजवाती है. देशमुख और उस के जैसे लोग मेघा को फूटी आंख नहीं सुहाते.

कंडक्टर ने आ कर पूछा, ‘‘टिकट… टिकट… टिकट… लीजिए.’’

मेघा की तंद्रा टूटी. उस ने टिकट लिया और पर्स से पैसे निकाल कर कंडक्टर की ओर बढ़ाए.

किसी को शायद उतरना था. कोई परिवार था. बस वहां काफी देर खड़ी रही.

सामने ढेर सारी सुहागिन औरतें वटवृक्ष

की पूजा कर रही थीं. लालनारंगी साडि़यों में सब कितनी सुंदर लग रही हैं. आपस में बोलतीबतियातीं, हंसीठहाके लगातीं, मांग में केसरिया सिंदूर नाक से ले कर मांग तक भरा हुआ था. कितनी हंसीखुशी से जीवन भरा हुआ है इन का. इस पृथ्वी पर सुख और दुख एक ही साथ पलते हैं. अलगअलग लोग एक ही समय में उस को

जीते हैं.

मेघा का गला रुंध आया था. एक टीस उस के अंदर पैदा होने लगी. उस के अंदर एक घाव है जो रहरह कर टीसता है. ऐसे मौके उसे बेचैनी से भर देते हैं.

मेघा के जीवन में अब तक दुख ही दुख भरे थे, लेकिन उस के जीवन में इधर

2 महीनों से एक सुख का पौधा अंकुराने लगा

था. निशांत से उस की मुलाकात इसी बस में

हुई थी, दफ्तर से लौटते वक्त. वह उस की

बगल में ही किसी बीमा कंपनी में काम करता है. अभी नयानया ही आया है इस शहर में. एकदम नई उम्र का लड़का है निशांत. औफिस से लौटते वक्त उस से इसी बस में रोज मुलाकात होने

लगी थी.

मुलाकातों का यह सिलसिला जब लंबा चला तो एक दिन मोबाइल पर बातचीत भी

होने लगी.

‘‘हाय,’’ मोबाइल पर पहला मैसेज निशांत ने ही किया था.

‘‘हैलो… अब तक सोए नहीं?’’ मेघा ने लिखा.

‘‘नहीं, नींद नहीं आ रही है. कुछ सोच

रहा हूं.’’

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ मेघा बोली.

‘‘नहीं, जाने दो तुम बुरा मान जाओगी,’’ निशांत बोला.

‘‘अच्छा, ठीक है, नहीं मानूंगी. अब बोलो भी,’’ मेघा बोली.

‘‘मैं बहुत दिनों से तुम से एक बात कहना चाहता हूं,’’ निशांत बोला.

‘‘बोलो, क्या बोलना चाहते हो?’’ मेघा बोली.

‘‘कैसे कहूं, मुझ से कहा नहीं जा रहा है?’’ निशांत बोला.

‘‘अब कह भी दो. कोई बात कह देने से मन का बोझ हलका हो जाता है,’’ मेघा बोली.

निशांत ने किसी तरह हिम्मत की और अपना मैसेज पूरा किया, ‘‘आई

लव यू… मेघा…’’ लेकिन ऐसा लिखते ही उस का दिल बल्लियों उछलने लगा.

उधर से मेघा का कोई जबाब नहीं मिला.

निशांत परेशान हो गया. वह मेघा के मैसेज का बहुत देर तक इंतजार करता रहा कि उस का कोई जवाब मिले.

इस चक्कर में उसे सारी रात नींद नहीं आई. वह रहरह कर सारी रात मोबाइल चैक करता रहा.

एक दिन बस से लौटते वक्त निशांत मेघा से बोला, ‘‘मुझे सांवला रंग बहुत

पसंद है.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने निशांत से ऐसे ही पूछ लिया.

‘‘क्योंकि मुझे बादल बहुत पसंद है. जोकि काले होते हैं. घटाएं भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे स्याह होती हैं और मेघा यानी वर्षा भी मुझे बहुत अच्छी लगती है. ये तीनों स्याह होतेहोते काले

हो जाते हैं. वर्षा के कारण ही इस धरती पर जीवन है, हरियाली है. इसलिए मुझे सांवला रंग बहुत पसंद है.’’

निशांत द्वीअर्थी भाषा में बोल रहा था. जिसे मेघा ने ताड़ लिया था. बोली, ‘‘और क्या पसंद

है तुम्हें?’’

‘‘तुम्हारी आंखों का स्याहपन और कत्थईरंग,’’ निशांत मेघा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला.

मेघा अपना हाथ धीरे से निशांत के हाथ से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘इन कत्थई रंग के खूबसूरत आंखों की रूमानियत में मत बहो निशांत. रंग आदमी को हमेशा धोखा दे जाते हैं और आदमी भी समय के साथ रंग बदलने लगता है और बादल और घटाएं धरती के दुख को ही देख कर रोती हैं. जब आसमान से धरती का दुख नहीं देखा जाता तो वह बादल और घटाओं की आड़ ले कर रोता है,’’ और सचमुच मेघा की आंखें भीगने लगी थीं. वह अपनी आंखें पोंछते हुए बोली, ‘‘तुम्हें मालूम है, मैं तलाकशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे भी हैं.’’

‘‘हां जानता हूं.’’

‘‘फिर भी तुम मुझ से शादी करोगे?’’ मेघा उसी अंदाज में बोली.

‘‘हां, फिर भी तुम से ही शादी करूंगा. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. और… और… मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं… आई लव यू मेघा.’’

‘‘और तुम्हारे घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है?’’ मेघा बोली.

‘‘मैं बचपन से अनाथ हूं. एक बूढ़ी चाची हैं. उन्होंने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया है. उन्हें मैं ने बताया था. उन्हें कोई ऐतराज नहीं है,’’ निशांत बोला.

‘‘आई लव यू जैसा सस्ता और हलका शब्द प्रेम के लिए मत यूज करो निशांत, प्लीज. मैं सोच कर बताऊंगी… अपने पापा से पूछ कर,’’ मेघा ने टालने की गरज से कहा.

‘‘मुझे इस का बेसब्री से इंतजार रहेगा,’’ निशांत बस से उतरते हुए बोला.

अभी और 30 मिनट लगेंगे औफिस पहुंचने में. उस ने एक बार फिर घड़ी पर नजर डाली. अभी तो 9 ही बजे हैं.

मेरे अपर लिप पर बाल हैं, मैं इन बालों को कैसे रिमूव करूं?

सवाल

मेरे अपर लिप पर एमदम से बहुत सारे बाल आ गए हैं जिस की वजह से मुझे बहुत शर्म आती है. मैं इन्हें कैसे रिमूव करूं?

जवाब

अपर लिप के बाल हटाने के लिए बहुत सारे तरीके हैं. थ्रैडिंग या वैक्सिंग भी की जा सकती है. थ्रैडिंग में बहुत पेन होती है और धीरेधीरे बाल डार्क और थिक भी होने शुरू हो जाते हैं. वैक्सिंग से बाल सौफ्ट तो हो जाते हैं मगर स्किन के बारबार खींचने से रिंकल्स पड़ने शुरू हो जाते हैं. इसलिए इन बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिए पल्स लाइट या लेजर सब से अच्छा समाधान है.

पल्स लाइट करने में फ्लैश लाइट की जाती है जिस में 2 मिनट लगते हैं. इस तरह से 5-6 सीटिंग में बाल हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं या यों कहें इतने कम और हलके व सौफ्ट हो जाते हैं कि दिखते भी नहीं. अगर हलके हैं

तो ब्लीच किए जा सकते हैं. यह इलाज बिलकुल सेफ है और पेनलैस भी है. 6 महीने के अंदर आप इन बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पा लेती हैं.

आप किसी क्लीनिक में जाएं. वहां किसी डाक्टर से बात करें. वह चैक कर के बताएंगे कि आप की प्रौब्लम हारमोनल तो नहीं है. अगर हारमोनल इंबैलेंस है तो उस केलिए कोई दवा भी जरूर दी जाएगी. मगर ध्यान रखें कि जहां भी जाएं वहां हाइजीन का खास खयाल रखा जाता हो.

समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8, रानी  झांसी मार्गनई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

घर में झटपट से बनाएं ग्रीन स्पैगेटी और वाइट सॉस पास्ता

गर्मियों में बनाएं अपने बच्चों के लिए घर में बनाएं ग्रीन स्पैगेटी और वाइट सॉस पास्ता. एक बार घर में बना के तो देखें ये रेसिपी बच्चे प्लेट साफ कर देंगे. घर में झटपट से बनाएं ग्रीन स्पैगेटी और वाइट सॉस पास्ता

  1. ग्रीन स्पैगेटी

सामग्री

  1.   1 कप पकी स्पैगेटी
  2.   3 बड़े चम्मच धनियापत्ती
  3. 1 हरीमिर्च
  4.   1/4 कप भुनी मूंगफली
  5.   1 कली लहसुन
  6.   1 बड़ा चम्मच औलिव औयल
  7. नमक स्वादानुसार.

विधि

मिक्सी में धनिया, लहसुन, भुनी मूंगफली और मिर्च का दरदरा पेस्ट बनाएं. कड़ाही में तेल गरम कर पेस्ट, नमक और स्पैगेटी मिलाएं और गरमगरम सर्व करें.

2. पास्ता विद व्हाइट सौस वैजिटेबल्स

सामग्री

  1.   1 कप पास्ता
  2.   3 हरे प्याज
  3.   1/2 कप बींस
  4.   1-1 बड़ा चम्मच लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च कटी
  5.   2 बड़े चम्मच मटर के दाने
  6. 1 कली लहसुन
  7.   2 बड़े चम्मच फूलगोभी कटी
  8.   1 कप दूध
  9.   2 बड़े चम्मच बटर
  10.   1 बड़ा चम्मच ओट्स आटा
  11. 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर
  12.   2 बड़े चम्मच चीज कसी.

विधि

कड़ाही में मक्खन गरम कर उस में लहसुन और हरा प्याज भूनें. फिर सारी सब्जियां डालें और उन के हलका पकने पर 1 बड़ा चम्मच मक्खन और ओट्स का आटा डाल कर भूनें. इसी में 1 कप दूध डालें. धीरेधीरे चलाते हुए हलका गाढ़ा होने दें. फिर चीज व पका पास्ता डालें. फिर काली मिर्च पाउडर डाल कर गरमगरम सर्व करें.

3.पनीर नूडल्स सूप

सामग्री

  1.   1/2 कप आटा नूडल्स पके
  2.   1-1 बड़ा चम्मच लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च कटी
  3.   2 बड़े चम्मच गाजर कटी
  4. 1 हरा प्याज कटा
  5.   2 उबले हुए टमाटरों की प्यूरी
  6.   1 हरीमिर्च कटी
  7.   2 बड़े चम्मच पनीर के बारीक टुकड़े
  8.   1/4 छोटा चम्मच नूडल्स मसाला
  9. 1 कली लहसुन कटी
  10. 1 बड़ा चम्मच मक्खन
  11. नमक स्वादानुसार.

विधि

कड़ाही में मक्खन गरम कर लहसुन, हरा प्याज और शिमला मिर्च भूनें. इस में गाजर और टमाटर की प्यूरी, नमक व हरीमिर्च डालें. नूडल्स मसाला और 11/2 कप पानी डाल कर उबलने दें. फिर पनीर और नूडल्स डालें और गरमगरम सर्व करें.

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