स्वाद से भरपूर नमकीन गुझिया की रेसिपी

शाम के समय में आपके बच्चो को मन चटपटा खाने का चलता है, ऐसे में बच्चों के लिए क्या बनाए यही चिंता रहती है तो ये रेसिपी आपके लिए है. आइए बताते हैं आपको रेसिपी.

सामग्री

  1. 1.200 ग्राम मैदा
  2. 50 ग्राम रवा
  3. 65 ग्राम घी
  4. 250 ग्राम नवरत्न मिक्स्चर
  5. तलने के लिए तेल
  6. नमक स्वादानुसार.

विधि

मैदा, रवा, घी व नमक को मिला कर अच्छी तरह मसलें. आवश्यकतानुसार पानी डाल कर कड़ा गूंध लें. आधा घंटे के लिए ढक कर रख दें. तैयार मैदे की छोटीछोटी लोइयां बनाएं. प्रत्येक लोई को पतला बेल लें. गुझिया के सांचे पर रख कर किनारों पर पानी लगाएं. नवरत्न मिक्स्चर भरते हुए गुझिया का आकार दें. कड़ाही में तेल गरम कर के मंदी आंच पर गुझिया तल लें.

  1. तिरंगे कटलेट्स

सामग्री

  1. 11/2 कप आलू उबले व मैश किए
  2. 1 कप मटर मैश किए
  3. 1 टुकड़ा पनीर मैश किया
  4. 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर
  5. 1 छोटा चम्मच हरीमिर्च पेस्ट
  6. 1 छोटा चम्मच अदरक पेस्ट
  7. 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  8. 1 छोटा चम्मच गरममसाला
  9. 1 छोटा चम्मच जीरा
  10. चुटकीभर हींग
  11. तलने के लिए तेल
  12. नमक स्वादानुसार.

विधि

पनीर में 1/2 छोटा चम्मच हलदी और नमक मिलाएं और 4 बौल्स बना कर रख लें. पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर इस में जीरा, हींग, हरीमिर्च पेस्ट और अदरक पेस्ट डाल कर भूनें. मटर और बाकी मसाले मिला कर भूनें. इस मिश्रण के 4 पेड़े बना कर रख दें. मैश किए आलू में कौर्नफ्लोर और थोड़ा नमक मिला कर 4 पेड़े बना लें. अब मटर के पेड़ों को 1-1 कर हथेली में रख कर फैलाएं और पनीर की 1 बाल बीच में रख कर चारों ओर से बंद कर के कटलेट बना लें. इसी प्रकार आलू के पेड़ों को फैला कर मटर के कटलेट रखें और बंद कर दें. ऐसे ही बाकी कटलेट्स बना लें. फिर कड़ाही में तेल गरम करें और इन्हें सुनहरा होने तक तल लें. 4-4 टुकड़े कर के हरी चटनी के साथ सर्व करें.

पैरों की स्किन पर मौजूद काले धब्बों को कैसे करें रिमूव?

सवाल

मेरी उम्र 32 साल है. मेरे पैरों की स्किन पर कई जगह काले धब्बे हैं. इन्हें रिमूव करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

उम्र की मैच्योरिटी के साथ स्किन के रिजुविनेशन होने की क्षमता कम होती जाती है और सनलाइट के अधिक कौंटैक्ट में आने के कारण स्किन में लेंटिगो सोलारिस नामक छोटेछोटे धब्बे बनने लगते हैं. ये स्पौट हलके भूरे रंग से काले रंग के होते जाते हैं. हालांकि हारमोनल उतारचढ़ाव के कारण भी चेहरे पर दागधब्बे पैदा हो जाते हैं. सनलाइट के अधिक कौंटैक्ट में आने पर ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोरोन हारमोन स्किन को मैलेनिन के अत्यधिक उत्पादन को प्रेरित करते हैं. जिस कारण स्किन पर धब्बे पड़ जाते हैं. इन धब्बों को हटाने के लिए पपीते के टुकड़ों को पीस कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को काले धब्बों पर लगा कर सूखने के लिए छोड़ दें. पेस्ट के सूखने के बाद त्वचा को पानी से धो लें या आलू को छोटे टुकड़ों में काट कर थोड़ा भिगो लें. उन टुकड़ों को कद्दूकस कर लें. फिर उस में शहद मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को अपने काले धब्बों पर 10 से 20 मिनट तक लगा कर रखें. इस के बाद अपनी स्किन को कुनकुने पानी से धो लें.

सवाल

मेरी उम्र 30 साल है. पिछले कुछ महीनों से मेरे बाल काफी ड्राई होने लगे हैं. दोमुंहे बाल भी काफी बढ़ गए हैं. आप मुझे दोमुंहे बाल खत्म करने का कोई तरीका बताएं?

जवाब

बालों की आउटर मोस्ट लेयर क्यूटिकल में मौजूद नैचुरल औयल बालों के अंदर की 2 लेयर्स को स्वस्थ रख कर प्रोटैक्ट करता है जब बालों की टिप से क्यूटिकल की प्रोटैक्टिव लेयर हट जाती है तो बाल दोमुंहे हो जाते हैं. इसलिए अंडे में मौजूद प्रोटीन और फैटी ऐसिड दोमुंहे बालों को ठीक करने में काफी फायदेमंद होता है. इस मास्क को बनाने के लिए अंडे के पीले भाग को शहद की कुछ बूंदों तथा 2 से 3 चम्मच बादाम या जैतून के तेल के साथ फेंट लें. बालों में यह पेस्ट इन पर लगा लें. आधे घंटे बाद बालों को शैंपू करें. यदि आप को अंडे का प्रयोग नहीं करना है तो केले का प्रयोग करें. केला बालों की लचक बढ़ाने में सहायता करता हैं, क्षतिग्रस्त बालों की मरम्मत करता है तथा उन्हें नमी प्रदान कर के नर्म बनाता है. एक पके केले के साथ थोड़ी दही और गुलाबजल की कुछ बूंदें मिला कर ब्लैंडर में पीस लें. इस मास्क का प्रयोग अपने सिर पर करें और 1 घंटे के लिए छोड़ दें. अब बालों को अच्छे से ठंडे पानी से धो लें. इसे सप्ताह में एक या दो बार करें.

Sirf Ek Banda Kafi Hai Review: बेहतरीन कोर्ट रूम ड्रामा में मनोज बाजपेयी का शानदार अभिनय

  • रेटिंग: पांच में से साढ़े तीन स्टार
  • निर्माता: विनोद भानुषाली
  • लेखकः दीपक किंगरानी
  • निर्देशक: अपूर्व सिंह कार्की
  • कलाकार: मनोज बाजपेयी,सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ,विपिन शर्मा, अड्जिा,दुर्गा शर्मा,प्रियंका सेटिया, जयहिंद कुमार, व अन्य
  • अवधिः दो घंटे 12 मिनट
  • ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5, 23 मई से

हमारा देश हमेषा से एक धर्म भीरू देश रहा है.धर्म के नाम पर आम जनता को ठगने की हजारों कहानियां मौजूद हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान छद्म वेश धारी साधु संत व बाबाओं ने न सिर्फ जनता को लूटा बल्कि नाबालिग लड़कियों का यौन षोशण करने से पीछे नहीं रहे. कुछ तो अब जेल की सलाखों के पीछे हैं.ऐसे ही सत्य घटनाक्रमों पर फिल्मसर्जक अपूर्व सिंह कार्की फिल्म ‘‘सिर्फ एक बंदा काफी है’’ लेकर आए हैं,जो कि 23 मई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘जी 5’ पर स्ट्रीम होगी. लेकिन फिल्मकार ने जमकर अंधविष्वास भी परोसा है. बलात्कार के आरोपी बाबा के खिलाफ अदालत में मुकदमा लड़ने वाले वकील पी सी सोलंकी को भगवान षिव का बहुत बड़ा भक्त दिखाया है. तो वहीं रामायण से एक कहानी सुनायी गयी है,जिसे कम लोगों ने सुनी होगी.फिल्म देखते समय लोगों को आसाराम बापू व उनके बेटे की याद आ जाए तो आष्चर्य नही होना चाहिए. फिल्म ‘‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ मूलतः एक छोटे शहर के वकील पूनमचंद सोलकी के जीवन पर आधारित कहानी है.यह उन पूनमचंद सोलंकी के साहस की दास्तान है,जिन्होंने देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक में एक नाबालिग लड़की की तरफ से पैरवी कर लाखों अनुयायियों वाले बाबा को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया था.एक साधारण सा सेशंस कोर्ट (सत्र न्यायालय) का वकील जो इन दिग्गज वकीलों की नजीरें पढ़ पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ाता रहा है, इनके साथ फोटो खिंचाने, इनके साथ बैठने तक को एक उपलब्धि मानता है. वही वकील जब अपनी मुवक्किल के लिए इनके सामने अकाट्य तर्क रखता है तो यह हिंदी सिनेमा का एक ऐसा कोर्ट रूम ड्रामा बनता है,जिसे देखना हर किसी के लिए जरुरी है.

कहानीः

फिल्म की कहानी 2013 को कमला नगर पुलिस थाना,दिल्ली से षुरू होती है,जहां सोलह साल की लड़की अपने माता (दुर्गा शर्मा) व पिता (जयहिंद कुमार) के साथ शक्तिषाली बाबा के खिलाफ बलात्कार की षिकायत लिखाने जाती है.पुलिस हकरत में आ जाती है.एफआईआर दर्ज कर नू का मेडिकल जांच भी करा दी जाती है और अंततः बाबा को उनके जोधपुर आश्रम से गिरफ्तार जेल भेज दिया जाता है.मामला अदालत पहुॅचता है.अदालत से बाबा को जमानत नही मिलती.लेकिन उसके बाद नू के वकील,बाबा के आदमी से दस करोड़ रूपए की मांग करते हैं,जिसे नू के पिता सुन लेते हैं.वह पुलिस इंस्पेक्टर को खबर करते हैं,वह पुलिस इंस्पेक्टर नू के माता पिता को अन्य वकील पी सी सोलंकी (मनोज बाजपेयी ) से मिलवाता है.सोलंकी नू को समझाते है कि उसे ताकत से खड़े रहना होगा.यह मुकदमा लड़ना आसान नही होगा.अदालत में मुकदमा षुरू होता है.बाबा का मुकदमा उनके वकील शर्मा (विपिन शर्मा ) लड़ते हैं.कानूनी दांव पेच खेले जाते हैं.बाबा के बेटे को भी बलात्कार के आरोप में सूरत से गिरफ्तार कर लिया जाता है.बाबा के इषारे पर चार गवाहों की हत्या हो जाती है.पुलिस नू व उसके परिवार तथा वकील पी सी सोलंकी को सुरक्षा प्रदान करती है.अदालत में बाबा के वकील आस्था का सवाल उठाते हुए कहते है-‘‘मेरे क्लाइंट देश कीआस्था के प्रतीक है.’पांच साल के कानूनी दांव पेच के बाद 2018 में अदालत अपना फैसला सुनाते हुए बाबा को सजा सुना देती है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म के पटकथा लेखक दीपक किंगरानी ने अंग्रेजी शब्दांे का उपयोग किए बगैर हिंदी में ही काफी कसी हुई पटकथा लिखी है.कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं.फिल्म की गति कुछ धीमी है.फिल्म की खासियत यह है कि यह आम बौलीवुड फिल्मांे से कोसों दूर हैं.फिल्म की विशयवस्तु की संजीदगी को देखते हुए अदालत के अंदर जोरदार चिल्लाने वाली बहस या मेलोड्ामैटिक दृष्य नही है.पीड़िता लडकी से भी आम फिल्मों की तरह सवाल नही किए गए हैं.पर यह फिल्म पाॅक्सो और बलात्कार के जुर्म से जुड़े हर बारीक कानून की जाने अनजाने दर्षक को जानकारी भी देती है.कोर्ट रूम ड्ामा वाली फिल्म कहीं भी विशय से भटकती नही है.इसीलिए इसमें नाच गाने का भी अभाव है.षुरू से अंत तक वास्तविकता के करीब रहने, विशय की संजीदगी और नाजुकता पर लेखक दीपक किंगरानी और निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की ने कहीं कोई समझौता नही किया है.कहानी के केंद्र में बलात्कार है,मगर फिल्मकार ने इसे भुनाने के लिए यौन हमले को स्पष्ट रूप से चित्रित नहीं किया है.फिल्म में कहीं कोई असंवेदनशील तरीके के संवाद नही है.षायद विवादों से बचने के लिए लेखक व निर्देशक ने वकील पी सी सोलंकी को न सिर्फ भगवान षिव का भक्त दिखाया, बल्कि भगवान षंकर व पार्वती के बीच रावण को माफ करने बातचीत वाली कहानी भी सोलंकी के मुंह से सुनवायी है.पर ऐसा करके फिल्म कहंी न कहीं अंधविष्वास को भी बढ़ावा देने का काम करती है.मगर अदालत के अंदर कुछ दृष्य खलते हैं,जब पी सी सोलंकी के किरदार में मनोज बाजपेयी लोगों को हंसाने के लिए अभिनय करते हैं. इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.

अभिनयः

मनोज बाजपेयी की खूबी है कि वह हर किरदार में डूब जाते हैं और किरदार के अनुरूप ही अपनी षारीरिक बनावट व लुक भी गढ़ते हैं.जोधपुर के छोटे शहर के वकील पी सी सोलंकी के किरदार में भी मनेाज बाजपेयी पूरी तरह से डूबे हुए हैं.उन्होने वहां की भाषा भी पकड़ी है.वह सोलंकी के अंतर्द्वंद्वों और शुष्क हास्य को अपनी ट्रेडमार्क शैली में बड़ी कुशलता से सामने लाते हैं. नू के किरदार में अद्रीजा का अभिनय भी कमाल का है.उसने 16 वर्ष की बलात्कार पीड़िता लड़की के दर्द को बाखूबी पेश किया है.जब अदालत में नू कहती है, ‘मेरे साथ यह उस इंसान ने किया,जिसे मैंने भगवान माना.’ तो पूरी कहानी का सार बस अद्रिजा की आंखों में इस दौरान आए आंसुओं में सिमट आता है.बचाव पक्ष के वकील के बचाव पक्ष के वकील शर्मा के किरदार में अभिनेता विपिन शर्मा ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि अभिनय में वह किसी से कम नही है.बाबा के किरदार में सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ की प्रतिभा को जाया किया गया है.नू की मां के किरदार में दुर्गा शर्मा और पिता के किरदार में जय हिंद कुमार का अभिनय ठीक ठाक है.

कांस में रेड कार्पेट पर चलने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय अदाकारा बनी शैनन

हैरिसन फोर्ड अभिनीत फिल्म ‘इंडियाना जोन्स 5’’अभिनय करने वाली एकमात्र भारतीय अभिनेत्री व गायिका शैनन के भी ‘कांस फिल्म फेस्टिवल 2023’ में रेड कार्पेट पर चलकर एक नए इतिहास को रचा.वह कांस फिल्म फेस्टिवल में रेड कार्पेट पर चलने वाली सबसे कम उम्र की पहली भारतीय अदाकारा बनी.

शैनन के ने कांस में अपने रेड कार्पेट पर चलने को ‘‘यूक्रेनी युद्ध पीड़ितों को किया समर्पित. अंतर्राष्ट्रीय गायिका और अभिनेत्री शैनन के जब अपने अनोखे पहनावे के साथ कांस फिल्म फेस्टिवल में कालीन पर टहल रही थीं,तब हर किसी की नजरें उन्हीं पर टिकी हुई थी. वास्तव में शैनन के ने लगातार युद्ध से पीड़ित यूक्रेन का प्रतिनिधित्व करने के लिए यूक्रेनी डिजाइनरों ब्लैंक डी ब्लैंक्स और लाना मारिनेंको द्वारा सुंदर सिला हुआ सफेद गाउन पहना हुआ था. उनका यह पहनावा पहनावा शांति का प्रतीक है. उन्होंने महिलाओं की शक्ति के रूप में भारतीय देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक डायमंड टियारा पहना था!

इस बीच, प्रशंसकों ने उनकी रेड कार्पेट-उपस्थिति को पसंद किया और ‘‘व्हाट ए डेब्यू‘‘, ‘‘दिस हाउ यू रिप्रेजेंट इंडिया‘‘, ‘‘हेल द क्वीन‘‘ जैसी तारीफों से इंटरनेट पर बाढ़ ला दी.शैनन के कान्स में ‘मॉडर्न डे स्नो व्हाइट‘ का एक शाब्दिक उदाहरण थी.

शैनन के ने कहा, ‘‘यह अविश्वसनीय लगता है,लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं कान्स के रेड कार्पेट पर चलने के लिए बहुत घबरायी हुई थीा! दिग्गज हैरिसन फोर्ड की प्रतिष्ठित फिल्म प्रीमियर के लिए आमंत्रित किए जाने पर बहुत खुश हूं.यह अवास्तविक लगता है! यह जीवन के लिए एक स्मृति है! कान में पदार्पण एक शानदार था. कुल मिलाकर मेरे लिए अद्भुत अनुभव रहा..’’ वास्तव में 76वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में 18 मई 2023 को ‘‘इंडियाना जोन्स 5’’ यानी कि ‘‘इंडियाना जोन्स एंड द डायल ऑफ डेस्टिनी’’ का प्रीमियर हुआ और अब यह फिल्म तीस जून को अमरीकी सिनेमाघरों में प्रदर्षित होगी.

‘इंडियाना जोन्स एंड द किंगडम ऑफ द क्रिस्टल स्कल’ (2008) की अगली कड़ी यानी कि पांचवीं फिल्म ‘‘इंडियाना जोन्स एंड द डायल ऑफ डेस्टिनी’’ एक अमेरिकी एक्शन एडवेंचर फिल्म है,जिसका निर्देशन जेम्स मैंगोल्ड ने किया है,जबकि इसका लेखन जेज बटरवर्थ, जॉन-हेनरी बटरवर्थ और डेविड कोएप ने मिलकर किया है.फिल्म में हैरिसन फोर्ड,जॉन राइस-डेविस, फोबे वालर-ब्रिज, एंटोनियो बैंडेरस, शॉनेट रेनी विल्सन, थॉमस क्रेशमैन, टोबी जोन्स, बॉयड होलब्रुक, एथन इसिडोर और मैड्स मिकेलसेन,शैनन के जैसे कलाकार हैं.

Ishita Dutta ने फ्लॉट किया बेबी बंप, जल्द गूंजने वाली है किलकारियां

बॉलीवुड फिल्म दृश्यम 2 में अजय देवगन की बेटी का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस इशिता दत्ता अब मां बनने वाली हैं, कुछ समय पहले ही उन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी का खुलासा किया था. अब एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर अपने बेबी बंप की फोटो शेयर किया है. सोशल मीडिया पर इशिता दत्ता की फोटो को उनके फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

इशिता दत्ता ने कराया फोटोशूट

दृश्यम 2 की एक्ट्रेस इशिता दत्ता इन दिनों प्रेग्नेंट है. उन्होनें एक बार फिर से प्रेग्नेंसी फोटोशूट कराया है, इन तस्वीरों में इशिता ने फ्लॉट किया बेबी बंप. इन तस्वीरों में इशिता दत्ता काफी खूबसूरत लग रही है, इशिता दत्ता ने ऑफ शोल्डर ड्रेस पहन कर काफी खूबसूरत पोज दिए हैं जो उनके फैंस पसंद कर रहे हैं. इशिता दत्ता को इस अंदाज में देखकर फैंस काफी खुश हो रहे हैं. इशिता दत्ता के लिए ये पहला मौका नहीं है जब उन्होंने बेबी बंप फ्लॉन्ट किया है. इशिता दत्ता कई बार अपने पति वत्सल सेठ के साथ फोटोशूट करवा चुकी हैं. रविवार को इशिता ने अपने इंस्टाग्राम पर तस्वीरें शेयर की है. इन तस्वीरों में इशिता बेबी बंप फ्लॉट करती नजर आई.

चेहरे पर दिखी मुस्कान

इन तस्वीरों में इशिता के चेहरे पर बड़ी मुस्कान नजर आ रही है. इशिता की मुस्कान देखकर उनके फैंस काफी पसंद कर रहे है. इन तस्वीरों में साफ-साफ दिख रहा है इशिता दत्ता के चेहरे पर प्रेग्नेंसी का ग्लो, फैंस का मानना है कि प्रेग्नेंसी में एक्ट्रेस और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं. इसी के साथ एक्ट्रेस इशिता दत्ता के बेबी बंप की फोटोज पर फैंस सोशल मीडिया पर जमकर प्यार लुटा रहे हैं, और उन्हें ढेर सारी बधाई भी दे रहे हैं. इन फोटोज में आप देख सकते है कि इशिता ने अपने बेबी बंप का फोटो शूट जंगल की थीम पर करवाया है, जो काफी प्यारा लग रहा है, इस फोटोज में एक्ट्रेस काफी खूबसूरत लग रही हैं.

पिता का नाम: भाग 2- एक बच्चा मां के नाम से क्यों नहीं जाना जाता

फिर एक दिन अचानक मानसी जब कालेज से लौटी तो उस ने देखा तापस अपने मातापिता के साथ उस के घर पर है. इतने दिनों में मानसी तापस को पहचानने तो लगी थी और नाम भी जान गई थी.

तापस बैंगलुरु की एक अच्छी कंपनी में है. उस के मातापिता नागपुर में ही सैटल्ड हैं. सबकुछ अच्छा है. यह देख कर मानसी के मातापिता ने यह रिश्ता सहर्ष स्वीकार कर लिया लेकिन मानसी अभी अपना एमबीए कंपलीट करना चाहती थी, वह जौब करना चाहती थी, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. मानसी ने जब सब के समक्ष अपने मन की यह बात रखी तो कोई कुछ कहता, इस से पहले ही तापस ने उस पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी और फिर उन दोनों की सगाई हो गई.

दोचार प्रश्नों के पश्चात कुशाग्र बुद्धि की धनी मानसी का सेलैक्शन मैनेजमैंट द्वारा कर लिया गया. मानसी यह खुशखबरी सब से पहले अपने मम्मीपापा से शेयर करना चाहती थी, इसलिए उस ने फौरन घर पर फोन लगा कर अपने सेलैक्ट होने की खबर दी. यह खबर सुनते ही अमिता ने मन ही मन ठान लिया कि अब वह मानसी की शादी जल्द से जल्द करवा कर ही दम लेगी.

उस के बाद जैसे ही मानसी ने तापस को यह बताया कि वह कैंपस सेलैक्शन में सेलैक्ट हो गई, तापस ने उस से कहा, “तुम वहीं रुको, मैं अभी आता हूं.” और कुछ देर में तापस कालेज कैंपस के बाहर था. तापस को देखते ही मानसी उस से लिपट गई, बोली, “जल्दी घर चलो, मुझे मम्मीपापा को एक बहुत ही इम्पौर्टेंट बात बतानी है और उन के चेहरे का एक्सप्रैशन देखना है.”

यह सुनते ही तापस बोला, “अरे पहले मुझे तो बताओ वह इम्पौर्टेंट बात क्या है?”

मानसी दोबारा तापस के गले लगती हुई बोली, “मेरी पोस्टिंग बैंगलुरु में हुई है.”

“वाऊ, नाइस. तब तो डबल सैलिब्रेशन होना चाहिए क्योंकि अब मुझे तुम से मिलने के लिए दिन नहीं गिनने पड़ेंगे,” तापस अपनी खुशी का इजहार करते हुए बोला.

“सैलिब्रेशन…” मानसी हंसती हुई बोली.

“यस माई लव, सैलिब्रेशन तो बनता ही है तुम्हारी पोस्टिंग बैंगलुरु में जो हो गई है. इसलिए, अब हम सीधे चलेंगे मेरे फेवरेट कैफे.”

“लेकिन…”

“लेकिनवेकिन कुछ नहीं माई डियर, लेट्स हैव अ सैलिब्रेशन.”

मानसी कैफे नहीं जाना चाहती थी लेकिन तापस की खुशी की खातिर वह चुप रही. मानसी अब तक अपनी हर खुशी अपनी सहेलियों के संग कालेज के चौराहे पर लगे नत्थूलाल के ठेले पर जा कर आलूटिक्की की चाट व पानीपूरी खा कर ही सैलिब्रेट करती आई थी.

कैफे में जा कर तापस ने मानसी से बिना उस की पसंद जाने ही चीज़पिज़्ज़ा और कोल्डकौफी और्डर कर दिया. तापस, जो आजीवन मानसी का होने वाला साथी था, ने यह जानने की कोशिश न की कि मानसी क्या चाहती है. मानसी का मन उदास हो गया. उस पर तापस का कैफे में सब के बीच बेबाक होना, उसे बार बार छूना बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए मानसी ने तुरंत घर चलने की ज़िद पकड़ ली और वे घर आ गए.

घर पर सभी को यह जान कर बेहद खुशी हुई कि मानसी की पोस्टिंग बैंगलुरु में हुई है. दोनों के मातापिता यही चाहते थे कि मानसी और तापस की शादी जल्द से जल्द करा दी जाए ताकि शादी के बाद दोनों साथ रह सकें लेकिन तापस अपने नागपुर वाले प्रोजैक्ट में बिजी था और मानसी की नईनई नौकरी थी, इसलिए शादी 6 महीने के लिए पोस्टपोन्ड कर दी ग‌ई.

जौइनिंग लैटर मिलते ही मानसी बैंगलुरु पहुंच गई. तापस ने सारा इंतजाम कर रखा था. वह चाहता था जब शादी के बाद दोनों को साथ रहना ही है तो क्यों न अभी से साथ रहें. लेकिन मानसी ने इनकार दिया और वह एक अलग फ्लैट किराए पर ले कर रहने लगी.

जब भी तापस का मन करता या उसे समय मिलता, वह मानसी से मिलने उस के फ्लैट आ जाता. वीकैंड और छुट्टी का दिन तो दोनों साथ में ही बिताते. क‌ई दफा तापस मानसी के ही फ्लैट में रुक जाता और दोनों रातें भी साथ ही गुजारते लेकिन मानसी कभी भी अपनी मर्यादा न लांघती. मानसी का यों तापस के इतने करीब रह कर भी दूर रहना तापस के अंदर की तपिश को और बढ़ा देता और तापस हर बार अधीर हो उठता, अपना संयम खोने लगता परंतु मानसी उसे रोक देती. इस वजह से दोनों के बीच तकरारें भी होतीं और तापस खफा हो जाता लेकिन फिर धीरे से मानसी उसे मना लेती.

शादी को अभी मात्र 3 महीने ही बचे थे कि इसी बीच तापस एक रविवार मानसी से मिलने उस के फ्लैट पहुंचा और उस ने जो देखा उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. उस की नजरें मानसी पर आ कर यों थमीं कि वह अपने होश गंवा बैठा. उसी वक्त मानसी नहा कर निकली थी और उस के बालों से गिरेते पानी मोतियों की तरह चमक रहे थे. मानसी के घुटनों से नीचे के पांव संगमरमर की तरह चिकने व खूबसूरत लग रहे थे. आज मानसी बाथिंग गाउन में बाकी दिनों से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. यह देख तापस ने मानसी को कुछ इस तरह अपनी बांहों में भर लिया कि दोनों के दिल में उमड़तेघुमड़ते प्यार के बादल और तेज हवाओं में शरमोहया की दीवारें कांपने लगीं और थोड़ी ही देर में सारी हदें पार हो गईं.

मानसी को पा कर तापस के चेहरे पर एक ओर जहां जीत के भाव थे तो वहीं इस के विपरीत मानसी खुद से थोड़ी खफा थी. उस दिन के बाद से तापस के व्यवहार में बदलाव आने लगा. वह बहुत कम मानसी से मिलने लगा. तभी अचानक एक रोज़ मानसी की तबीयत बिगड़ ग‌ई और डाक्टर से चैक‌अप कराने पर पता चला कि वह मां बनने वाली है. यह सुनते ही मानसी के पैरोंतले जमीन खिसक गई. मानसी ने फौरन तापस को फोन लगाया परंतु उस ने फोन नहीं उठाया. मानसी की बेचैनी बढ़ने लगी और वह तापस से मिलने उस के फ्लैट जा पहुंची.

वहां जो हुआ उस ने मानसी को पूरी तरह से तोड़ दिया. यहां तापस का एक अलग ही रूप मानसी को देखने को मिला जिस की कल्पना कभी मानसी ने अपने सपने में भी नहीं की थी. जब मानसी ने अपनी प्रैग्नैंसी और शादी की बात तापस से कही तो वह शादी करने से मुकर गया और उस ने जो कहा उस से तापस के घटिया विचारों का उजागर हुआ जिसे सुन कर मानसी आवाक रह गई.

धन्यवाद: समीर के प्यार में जब वंदना ने पार की हदें

‘‘क्या बात है शालू सुस्त क्यों नजर आ रही हो?’’ औफिस से लौटते राजेश को मेरी उदासी पहचानने में 1 मिनट का समय भी नहीं लगा.

‘‘आज एक बुरी खबर सुनने को मिली है,’’ मेरी आंखों में आंसू भर आए.

‘‘कैसी बुरी खबर?’’ वे फौरन चिंता से भर उठे.

‘‘आप को मेरी सहेली वंदना याद है?’’

‘‘हां, याद है.’’

‘‘वह बहुत बीमार है. शायद ज्यादा दिन न जीए,’’ मैं ने उन्हें रुंधे गले से जानकारी दी.

‘‘वैरी सैड,’’ सिर्फ ये 2 शब्द बोल कर उन्होंने जब सतही सा अफसोस जताया और

जूतों के फीते खोलने में लग गए, तो मुझे गुस्सा आ गया.

‘‘आप इस बारे में और कुछ नहीं जानना चाहेंगे?’’ भावावेश के कारण मेरी आवाज कांप रही थी.

‘‘तुम बोलो मैं सुन रहा हूं.’’

‘‘लेकिन सुन कितने अजीब से ढंग से रहे हो. अरे, मैं उस वंदना की बात कर रही हूं जिस से आप शादी के बाद घंटों बतियाते थे, जो बिलकुल घर की सदस्य बन कर यहां सुबह से रात तक रहा करती थी. आज करीब 15 साल बाद मैं आप की उस लाडली साली की दुखभरी खबर सुना रही हूं और आप सिर्फ वेरी सैड कह रहे हो,’’ मैं गुस्से से फट पड़ी.

‘‘मैं और क्या कहूं शालू. जीनामरना तो इस दुनिया में चलता ही रहता है,’’ उन्होंने भावहीन से लहजे में जवाब दिया.

‘‘आप ऐसी दार्शनिकता किसी और मौके पर बघारना. मेरा मन वंदना से मिलने का कर रहा है. उस की इतने सालों से कोई खबर नहीं थी और आज मिली है तो कैसी बुरी खबर मिली है,’’ मेरा गला फिर से भर आया.

‘‘क्या करोगी उस से मिल कर?’’

‘‘यह आप कैसा अजीब सा सवाल पूछ रहे हो. अरे, वह मेरी सब से प्यारी सहेली है.’’

‘‘उस प्यारी सहेली ने पिछले 15 सालों में तुम्हें न कभी फोन किया, न चिट्ठी लिखी और न ही कभी मिलने आई.’’

‘‘इस कारण मेरे दिल में उस के लिए बसे प्यार और दोस्ती के भाव रत्तीभर कम नहीं हुए हैं.’’

‘‘मैं तो सिर्फ ये कहना चाह रहा हूं कि जो इंसान अब ज्यादा जीएगा ही नहीं, उस से मिल कर मन को दुखी करने का क्या फायदा है.’’

‘‘यह फायदेनुकसान की बात ही नहीं है. मेरा दिल उस से मिलना चाह रहा है और मैं जाऊंगी.’’

‘‘बच्चों के ऐग्जाम आने वाले…’’

‘‘ऐग्जाम अगले महीने हैं और आगामी सोम और मंगल को उन के स्कूल में छुट्टी है. हम शनिवार को निकलेंगे और मंगल तक लौट आएंगे.’’

‘‘लेकिन उन की देखभाल…’’

‘‘वे अपनी चाची के पास रहेंगे. मैं ने नीतू से मोबाइल पर बात कर ली है.’’

‘‘देखो, यों जिद…’’

‘‘प्लीज, राजेश मुझे वंदना से मिलना ही है.’’

मेरे आंसुओं के सामने उन्होंने हथियार डालते हुए कह दिया, ‘‘ओके. हम शनिवार की रात को निकलेंगे. मैं ट्रेन के टिकट बुक करा देता हूं,’’ कह वे मुझे ड्राइंगरूम में अकेला छोड़ कर कपड़े बदलने बैडरूम में चले गए.

मेरे दोनों बेटों का ट्यूशन से लौटने में अभी वक्त था. मैं थकीहारी सी आंखें मूंद कर वहीं बैठीबैठी वंदना की यादों में खो गई…

वरना मेरी बचपन की सहेली थी. हमारे घर आसपास ही थे इसलिए हम साथसाथ खेल और पढ़ कर बड़े हुए थे.

राजेश को मेरे लिए मेरे मम्मीपापा ने ढूंढ़ा था. मेरी सास बीमारी रहती थी और घर का सारा काम करने की जिम्मेदारी मुझे ही बड़ी जल्दी संभालनी पड़ी थी.

मैं ने बीएड में प्रवेश पाने के लिए परीक्षा शादी के पहले दे रखी थी. शादी के बाद मुझे परीक्षा में सफल हो जाने का समाचार मिला, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

वंदना ने मेरा साथ न दिया होता, तो मैं कभी बीएड न कर पाती. मुझे पूरे सालभर तक रोज कालेज जाने के अलावा घर लौट कर भी बहुत पढ़ना-लिखना पड़ता था.

वंदना रोज मेरे घर आ जाती. मेरा घर के कार्यों में ही नहीं बल्कि कालेज से मिले असाइनमैंट पूरे करने में भी हाथ बंटाती. मेरी सास उस की बहुत तारीफ करती. राजेश से वह जल्द ही खूब खुल गई थी और जीजासाली की नोक झोंक के चलते हमारे घर का माहौल बड़ा खुशनुमा रहता.

मेरा बीएड का रिजल्ट बड़ा अच्छा रहा. इस खुशी के मौके पर मैं ने वंदना को बड़ा सुंदर और कीमती सूट उपहार में दिया.

मैं ने बीएड के बाद एक पब्लिक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. वंदना पहले की तरह रोज तो नहीं, पर सप्ताह में 2-3 बार तब भी हम से मिलने आ जाया करती थी. राजेश के साथ फोन पर किसी भी विजय पर लंबीलंबी चर्चा करती. वह तो शुक्र था कि इन दोनों के बीच फोन पर बातें मुफ्त में होती थीं क्योंकि राजेश ने एक खास स्कीम फोन कंपनी से ले रखी थी. वे ऐसा न करते, तो इन दोनों की गपशप का बिल हर महीने हजारों रुपए आता. उन दिनों मोबाइलों का रेट कुछ ज्यादा था. वह राजेश को लैंडलाइन पर नहीं, मोबाइल पर फोन करती थी.

मेरी शादी के करीब 2 साल बाद वंदना का रिश्ता उस की मम्मी ने तय किया. उस के पापा की हार्टअटैक से मौत हुए तब 6-7 साल का समय बीत चुका था.

लड़का अच्छा था, उस का घरबार भी ठीक था, पर उन दोनों की शादी तय करी गई तारीख से केवल 5 दिन पहले टूट गई.

वंदना और उस लड़के के बीच न जाने क्या घटा जो वह शादी नहीं हो सकी. दोनों तरफ के लोगों ने बहुत पूछा, पर शादी टूटने का सही कारण न वंदना ने किसी को बताया, न उस लड़के ने. वह इस विषय पर मेरे सामने भी चुप्पी साध लेती थी. लोगों को तरहतरह की अफवाहें उड़ाने का मौका मिल गया. तब वंदना ने अपनी ननिहाल के शहर मेरठ शिफ्ट करने का फैसला किया. अपनी शादी टूटने के करीब 3 महीने बाद वह अपनी मां के साथ मेरठ चली गई. फिर कानपुर शिफ्ट हो गई. तब से उस के और हमारे बीच संपर्क खत्म होता गया. शुरूशुरू में 2-4 बार टैलीफोन पर बातें हुईं, पर मुझे ऐेसे अवसरों पर साफ महसूस होता कि वह अनमनी हो कर ही मुझ से बातें करती.

‘‘वंदना बदल गई है. उस के दिल पर शादी टूट जाने से गहरा जख्म लगा है. बहुत कटीकटी सी बोलती है फोन पर,’’ मैं उन दिनों राजेश से अकसर ऐसी शिकायत दुखी मन से किया करती, पर ये मुझ पर ज्यादा ध्यान नहीं देते.

लगभग 15 साल बीत गए थे वंदना को दिल्ली छोड़े हुए. वह अब कानपुर में गंभीर रूप से बीमार पड़ कर जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी. इतने लंबे समय में उस के जीवन में क्याक्या घटा है, इस की कोई जानकारी मेरे पास नहीं थी.

शनिवार को हम दोनों गाड़ी से चल दिए. सारे रास्ते में मैं ने वंदना को याद करते हुए कई बार आंसू बहाए. अपनी सीट पर बैठे हुए जिस अंदाज में राजेश बारबार करवट बदल रहे थे, उस से यह साफ जाहिर हो रहा था कि वे भी कुछ बेचैन हैं. स्टेशन से पहले ही उन्होंने किसी को मोबाइल से कहा, ‘‘5 मिनट में बाहर आते हैं.’’

कानपुर स्टेशन से बाहर आने के बाद जिस बात ने मुझे बड़ा हैरान किया, वह थी एक औटोरिकशेवाले का राजेश को सलाम करना और बिना हम से पूछे हमारा बैग उठा कर अपने रिकशा की तरफ बढ़ जाना.

‘‘यह औटो वाला आप को कैसे जानता है,’’ मैं ने अचंभित स्वर में पूछा, तो राजेश गंभीर अंदाज में मेरा चेहरा ध्यान से देखने लगे.

‘‘मेरे सवाल का जवाब दीजिए न?’’ उन्हें हिचकिचाते देख मैं ने उन पर दबाव डाला.

‘‘शालू, तुम वंदना से मिलना चाहती हो न,’’ उन्होंने संजीदा लहजे में मुझ से ये पूछा.

‘‘हम यहां इसीलिए तो आए हैं,’’ उन का सवाल सुन कर मेरे मन में अजीब सी उलझन के भाव उभरे.

‘‘हां, और अब तुम मेरी एक प्रार्थना पर ध्यान दो प्लीज. आगेआगे जो घटेगा, उसे लेकर तुम्हारे मन में कई तरह की भावनाएं और सवाल उभरेंगे. तुम कृपा कर के उन्हें अपने मन में ही रखना.’’

‘‘आप ऐसी अजीब सी बंदिश क्यों लगा रहे हैं मुझ पर?’’

‘‘क्योंकि कुछ सवालों के जवाब दिए नहीं जा सकते. शब्दों से मनोभावनाओं को व्यक्त करना हमेशा संभव नहीं होता है. उन्हें व्यक्त करने का प्रयास पीड़ादायक होता है और सुनने वाला कहीं अर्थ का अनर्थ लगा ले, तो स्थिति और बिगड़ जाती है, शालू.’’

‘‘मेरी समझ में तो आप की कोई बात नहीं आ रही है,’’ मैं परेशान हो उठी.

‘‘ध्यान रखना कि तुम्हें कोई सवाल नहीं पूछना है मुझ से,’’ उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और औटो की तरफ चल पड़े.

औटो वाले ने 20 मिनट बाद हमें खन्ना नर्सिंगहोम की ऊंची सी इमारत तक अपनेआप पहुंचा दिया. फिर गेट पर खड़े वाचमैन ने राजेश को परिचित अंदाज में सलाम किया. रिसैप्शनिस्ट भी उन्हें पहचानती थी. उस नर्सिंगहोम के मालिक डाक्टर सुभाष ने मुझे अपना परिचय राजेश के बचपन के दोस्त के रूप में दिया. वहां की सिस्टर और आयाओं की मुसकान साफ दर्शा रही थी कि वे सब राजेश को अच्छी तरह जानतेपहचानते हैं.

मेरी जानकारी में राजेश कभी कानपुर नहीं आए थे, लेकिन इन सब बातों से मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि यहां मुझ से छिपा कर वे आते रहे हैं. उन्हें अपनी कंपनी के काम से अकसर टूर पर जाना पड़ता है. मेरी जानकारी में आए बिना उन का यहां आना कोई मुश्किल काम न था.

‘‘मुझ से क्यों छिपाते रहे हो आप यहां अपना आना?’’ मैं राजेश से यह सवाल पूछना चाहती थी, पर उन्होंने तो पहले ही कोई सवाल पूछने पर बंदिश लगा दी थी.

मुझे डाक्टर सुभाष के पास छोड़ कर राजेश बिना कुछ कहे कक्ष से बाहर चले गए. डाक्टर साहब ने मेरे लिए चाय मंगवाई और फिर मुझ से बातें करने लगे.

‘‘राजेश को मैं सालों से जानता हूं, पर वे ऐसा हीरा इंसान हैं, इस का अंदाजा मुझे पिछले

1 साल में ही हुआ, भाभीजी,’’ उन की आंखों

में अपने दोस्त के लिए गहरे सम्मान के भाव मौजूद थे. मेरी समझ में नहीं आया कि वे क्यों राजेश को ‘हीरा’ कह रहे हैं, सो मैं खामोश रही. वैसे मैं सारे मामले को समझने के लिए बड़ी उत्सुकता से उन के आगे बोलने का इंतजार कर रही थी.

‘‘आजकल कौन किसी के काम आता है, भाभीजी. सचमुच अपना राजेश अनूठा इंसान है. जरूर आप ने ही उसे इतना ज्यादा बदल दिया है,’’ मेरी प्रशंसा कर वे हंस पड़े तो मुझे भी मुसकराना पड़ा.

‘‘राजेश वंदना के इलाज का सारा खर्चा उठा कर बड़ी इंसानियत का काम रह रहा है. मैं भी जितनी रियायत कर सकता हूं, कर रहा हूं, पर फिर भी दवाइयां महंगी होती हैं. आप की सहेली के इलाज पर डेढ़दो लाख का खर्चा तो जरूर हो चुका होगा आप लोगों का. यहां का हर कर्मचारी और डाक्टर राजेश को बड़ी इज्जत की नजरों से देखता है, भाभीजी.’’

यह दर्शाए बिना कि मैं इस सारी जानकारी से अनजान हूं, मैं ने वार्त्तालाप को आगे बढ़ाने के लिए पूछा, ‘‘अब वंदना की तबीयत कैसी है?’’

‘‘ठीक नहीं है, भाभीजी. जो कुछ हो सकता है, हम कर रहे हैं, पर ज्यादा लंबी गाड़ी नहीं खिंचेगी उस की.’’

‘‘ऐसा मत कहिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों से आंसू बह चले.

‘‘मैं आप को झूठी तसल्ली नहीं दूंगा. भाभीजी. अस्थमा ने उस के फेफड़ों को इतना कमजोर कर दिया है कि अब उस का हृदय भी फेल होने लगा है. उस ने बहुत कष्ट भोग लिया है. अब उसे छुटकारा मिल ही जाना चाहिए.’’

‘‘मुझे उस से मिलवा दीजिए, प्लीज.’’

डाक्टर सुभाष के आदेश पर एक वार्डबौय मुझे वंदना के कमरे तक छोड़ गया. मैं अंदर प्रवेश करती उस से पहले ही राजेश बाहर आए.

‘‘जाओ, मिल लो अपनी सहेली से,’’ उन्होंने थके से स्वर में मुझे से कहा और फिर मेरा माथा बड़े भावुक से अंदाज में चूम कर वहां से चले गए.

मैं ने वंदना को बड़ी मुश्किल से पहचाना. उस का चेहरा और बदन सूजा सा नजर आ रहा था. उस की सांसें तेज चल रही थीं और उसे तकलीफ पहुंचा रही थीं.

‘‘शालू, तू ने बड़ा अच्छा किया जो मुझसे मिलने आ गई. बड़ी याद आती थी तू कभीकभी. तुझ से बिना मिले मर जाती, तो मेरा मन बहुत तड़पता,’’ मेरा स्वागत यों तो उस ने मुसकरा कर किया, पर उस की आंखों से आंसू भी बहने लगे थे. मैं उस के पलंग पर ही बैठ गई. बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, तो उस की छाती पर सिर रख कर एकाएक बिलखने लगी. ‘‘इतनी दूर से यहां क्या सिर्फ रोने आई है, पगली. अरे, कुछ अपनी सुना, कुछ मेरी सुन. ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास गपशप करने का,’’ मुझे शांत करने का यों प्रयास करतेकरते वह खुद भी आंसू बहाए जा रही थी.

‘‘तू कभी मिलने क्यों नहीं आई? अपना ठिकाना क्यों छिपा कर रखा? मैं तेरा दिल्ली में इलाज कराती, तो तू बड़ी जल्दी ठीक हो जाती, वंदना,’’ मैं ने रोतेरोते उसे अपनी शिकायतें सुना डालीं.

‘‘यह अस्थमा की बीमारी कभी जड़ नहीं छोड़ती है, शालू. तू मेरी छोड़ और अपनी सुना. मैं ने सुना है कि अब तू शांत किस्म की टीचर हो गई है. बच्चों की पिटाई और उन्हें जोर से डाटना बंद कर दिया है तूने,’’ उस ने वार्त्तालाप का विषय बदलने का प्रयास किया.

‘‘किस से सुना है ये सब तुम ने वंदना?’’ मैं ने अपने आंसू पोंछे और उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से सहलाने लगी.

‘‘जीजाजी तुम्हारी और सोनूमोनू की ढेर सारी बातें मुझे हमेशा सुनाते रहते हैं,’’ जवाब देते हुए उस की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव बढ़ते हुए साफसाफ देखे.

‘‘वे यहां कई बार आ चुके हैं?’’

‘‘हां, कई बार. मेरा सारा इलाज वे ही…’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि उन्होंने मुझे अपने यहां आने की, तुम्हारी बीमारी और इलाज कराने की बातें कभी नहीं बताई हैं?’’

‘‘हां, मुझे पता है.’’

‘‘क्यों किया उन्होंने ऐसा? मैं क्या तुम्हारा इलाज कराने से उन्हें रोक देती? मुझे अंधेरे में क्यों रखा उन्होंने?’’ ये सवाल पूछते हुए मैं बड़ी पीड़ा महसूस कर रही थी.

‘‘तुम्हें कुछ न बताने का फैसला जीजाजी ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर लिया था, शालू.’’

‘‘पर क्यों किया उन्होंने ऐसा फैसला?’’

‘‘उन का मत था कि तुम शायद उन के ऐक्शन को समझ नहीं पाओगी.’’

‘‘उन का विचार था कि तुम्हारे इलाज कराने के उन के कदम को क्या मैं नहीं समझ पाऊंगी?’’

‘‘हां, और मुझ से बारबार मिलने आने की बात को भी,’’ वंदना का स्वर बेहद धीमा और थका सा हो गया.

कुछ पलों तक सोचविचार करने के बाद मैं ने झटके से पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम जीजासाली कब से एकदूसरे से मिल रहे हो?’’

एक गहरी सांस छोड़ कर वंदना ने बताया, ‘‘करीब सालभर पहले वे टूर पर बनारस आए हुए थे. वहां से वे अपने एक सहयोगी के बेटे की शादी में बरात के साथ यहां कानपुर आए थे. यहीं अचानक इसी नर्सिंगहोम के बाहर हमारी मुलाकात हुई थी. वे अपने पुराने दोस्त डाक्टर सुभाष से मिलने आए थे.’’

‘‘और तब से लगातार यहां तुम से मिलने आते रहे हैं?’’

‘‘हां, वे सालभर में 8-10 चक्कर यहां के लगा ही चुके होंगे. उन का भेजा कोई न कोई आदमी तो मुझ से मिलने हर महीने जरूर आता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यहां का बिल चुकाने, मुझे जरूरत के रुपए देने. मैं कोई जौब करने में असमर्थ हूं न. मुझ बीमार का बोझ जीजाजी ही उठा रहे हैं शालू.’’

अचानक मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही झटके में सारा माजरा मुझे समझ आ गया.

‘‘तुम्हारा और तुम्हारे जीजाजी का अफेयर चल रहा है न… मुझ से छिपा कर तुम से मिलने का. तुम्हारी बड़ी आर्थिक सहायता करने का और कोई कारण हो ही नहीं सकता है, वंदना,’’ मारे उत्तेजना के मेरा दिल जोर से धड़कने लगा. उस ने कोई जवाब नहीं दिया और आंसूभरी आंखों से बस मेरा चेहरा निहारती रही.

‘‘मेरा अंदाजा ठीक है न?’’ मेरी शिकायत से भरी आवाज ऊंची हो उठी. पलभर में मेरी आंखों पर वर्षों से पड़ा परदा उठ गया है. मेरी सब से अच्छी सहेली का मेरे पति के साथ अफेयर तो तब से ही शुरू हो गया होगा जब मैं बीएड करने में व्यस्त थी और तुम मेरे हक पर चुपचाप डाका डाल रही थी. तुम ने शादी क्यों तोड़ी, अब तो यह भी मैं आसानी से समझ सकती हूं. तब कितनी आसानी से तुम दोनों ने मेरी आंखों में धूल झोंकी.’’

‘‘न रो और न गुस्सा कर शालू. तेरे अंदाज ठीक है, पर तेरे हक पर मैं ने कभी डाका नहीं डाला. कभी वैसी भयंकर भूल मैं न कर बैठूं, इसीलिए मैं ने दिल्ली छोड़ दी थी. हमेशा के लिए तुम दोनों की जिंदगियों में से निकलने का फैसला कर लिया था. मुझे गलत मत समझ, प्लीज.

‘‘जीजाजी बड़े अच्छे इंसान हैं. हमारे बीच जीजासाली का हंसीमजाक से भरा रिश्ता पहले अच्छी दोस्ती में बदला और फिर प्रेम में.

‘‘हम दोनों के बीच दुनिया के हर विषय पर खूब बातें होतीं. हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी बन गए थे. हमारे आपसी संबंधों की मिठास और गहराई ऐसी ही थी जैसी जीवनसाथियों के बीच होनी चाहिए.

‘‘फिर मेरा रिश्ता तय हुआ पर मैं ने अपने होने वाले पति की जीजाजी से तुलना करने की भूल कर दी. जीजाजी की तुलना में उस के व्यक्तित्व का आकर्षण कुछ भी न था.

‘‘मैं जीजाजी को दिल में बसा कर कैसे उस की जीवनसंगिनी बनने का ढोंग करती. अत: मैं ने शादी तोड़ना ही बेहतर समझ और तोड़ भी दी.

‘‘जीजाजी मुझे मिल नहीं सकते थे क्योंकि वे तो मेरी बड़ी

बहन के जीवनसाथी थे. तब मैं ने भावुक हो कर उन से खूबसूरत यादों के सहारे अकेले और तुम दोनों से दूर जीने का फैसला किया और दिल्ली छोड़ दी.’’

‘‘मैं तो कभी तुम दोनों से न मिलती पर कुदरत ने सालभर पहले मुझे जीजाजी से अचानक मिला दिया. तब तक अस्थमा ने मेरे स्वास्थ्य का नाश कर दिया था. मां के गुजर जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली ही आर्थिक तंगी और जानलेवा बीमारी का सामना कर रही थी.

‘‘जीजाजी के साथ मैं ने उन के प्रेम में पड़ कर वर्षों पहले अपनी जिंदगी के सब से सुंदर 2 साल गुजारे थे. उन्हें भी वह खूबसूरत समय याद था. मुझे धन्यवाद देने के लिए उन्होंने सालभर से मेरी सारी जिम्मेदारी उठाने का बोझ अपने ऊपर ले रखा है. मैं बदले में उन्हें हंसीखुशी के बजाय सिर्फ चिंता और परेशानियां ही दे सकती हूं.

‘‘यह सच है कि 15 साल पहले तेरे हिस्से से चुराए समय को जीजाजी के साथ बिता कर मैं ने सारी दुनिया की खुशियां और सुख पाए थे. अब भी तेरे हिस्से का समय ही तो वे मुझे दे कर मेरी देखभाल कर रहे हैं. तेरे इस एहसान को मैं इस जिंदगी में तो कभी नहीं चुका पाऊंगी, शालू. अगर मेरे प्रति तेरे मन में गुस्सा या नफरत हो, तो मुझे माफ कर दे. तुझे पीड़ा दे कर मैं मरना नहीं चाहती हूं,’’ देर तक बोलने के साथसाथ रो भी पड़ने के कारण उस की सांसें बुरी तरह से उखड़ गई थीं.

मैं ने उसे छाती से लगाया और रो पड़ी. मेरे इन आंसुओं के साथ ही मेरे मन में राजेश और उसे ले कर पैदा हुए शिकायत, नाराजगी और गुस्से के भाव जड़ें जमाने से पहले ही बह गए.

मखमली पैबंद: एक अधूरी प्रेम कहानी

मेरी उंगलियां गिटार के तारों पर लगातार थिरक रही थीं और कंठ किसी मशहूर इंगलिश सिंगर के गानों की लय में डूबता चला जाता था. मेरे सामने एक छोटी सी बच्ची जिस की उम्र लगभग 5 वर्ष रही होगी उस इंगलिश गाने की धुन पर थिरक रही थी. उस के गोलमटोल चेहरे पर घुंघराले बालों का एक गुच्छा बारबार लटक आता था जिसे वह बड़ी ही बेपरवाही से पीछे की ओर झटक देती और बीचबीच में कभी अपनी मम्मी तो कभी पापा की उंगलियों को थाम अपने साथ डांस करने के लिए सामने की मेज से खींच लाती.

बच्ची के मातापिता की आंखों में अपनी बच्ची के इंगलिश गानों के प्रति प्रेम व लगाव से उत्पन्न गर्व उन की आंखों से साफ झलक रहा था. इन इंगलिश गानों का अर्थ वह बच्ची कितना समझ पा रही थी, यह तो नहीं पता, परंतु हां फाइवस्टार होटल के उस डाइनिंगहौल में उपस्थित सभी मेहमानों के लिए वह बच्ची आकर्षण का केंद्र अवश्य बनी हुई थी.

मैं इस समय नील आइलैंड के एक फाइवस्टार होटल के डाइनिंगहौल में गिटार थामे होटल के मेहमानों के लिए उन की फरमाइशी गीतों को गा रहा था. यह डाइनिंगहौल होटल के बीच में केंद्रित था और इस से करीब 20 गज की दूरी पर कौटेज हाउस बने हुए थे, जिन की संख्या लगभग 25 से 30 होगी. लोगों के लिए गाना गा कर उन का दिल बहलाना मेरा शौक नहीं, बल्कि मेरा पेशा  था. हां, संगीत का यह शौक कालेज के दिनों में मेरे लिए महज टाइम पास हुआ करता था.

संगीत के इसी शौक ने तो नायरा को मेरे करीब ला दिया था. वह मुझ से अकसर गानों की फरमाइश करती रहती थी और मैं तब दिल खोल कर बस उस के लिए ही गाता था. कालेज की कैंटीन में जब उस दिन भी मैं कालेज में होने वाले वार्षिक समारोह के लिए अपने दोस्तों के साथ किसी गाने की प्रैक्टिस कर रहा था. तभी तालियों की आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा. नायरा से कालेज की कैंटीन में मेरी वह पहली मुलाकात थी. कालेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद जहां मुझे  किसी कंपनी में फाइनैंस ऐग्जिक्यूटिव की जौब मिली, वहीं नायरा किसी मल्टीनैशनल कंपनी में एचआर मैनेजर के पद पर तैनात हुई. हम दोनों एक ही शहर मुंबई में ही 2 अलगअलग कंपनियों में कार्यरत थे. हम ने किराए का फ्लैट ले लिया था जिस में हम साथ रहते थे. हम लिव इन में 4 सालों से थे.

एक दिन अचानक मेरा तबादला कोलकाता हो गया. कोलकाता आने पर भी हमारा साथ पूर्ववत बना रहा. वीकैंड में कभी वह कोलकाता आ जाती तो कभी मैं मुंबई पहुंच जाता और साथ में अच्छा समय व्यतीत करने के बाद वापस अपनेअपने कार्यस्थल लौट जाते. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मेरी जौब चली गई और धीरेधीरे नायरा का साथ भी. जौब जाने के बाद से ही वह मुझ से कटीकटी सी रहने लगी थी. हमारे बीच की दूरियां लगातार बढ़ती जा रही थीं. हालांकि मेरी पूरी कोशिश रही कि हमारे बीच की दूरियां मिट जाएं.

खैर, आज मैं इस छोटे से आइलैंड के बड़े से होटल में गिटार बजा रहा हूं और मेरा शौक ही अब मेरा पेशा बन गया है.

‘‘ऐक्स्क्यूज मी’’ मैं ने पानी पी कर गिलास साइड की टेबल पर रखा ही था कि तभी एक महिला की आवाज सुनाई दी जिस ने मुसकराते हुए ‘कैन यू सिंग दिस सौंग’ बोल कर कागज का एक टुकड़ा जिस पर किसी हिंदी गाने की कुछ पंक्तियां लिखी हुई थीं. मेरी और बढ़ाते हुए कहा. उस की उम्र करीब 28 वर्ष की रही होगी.

उस ने अपने सवाल फिर से दोहराया, ‘‘क्या आप यह हिंदी गाना गा सकते हैं? यह उन की फरमाइश है,’’ यह कहते हुए उस महिला ने अपनी उंगली से एक ओर इशारा किया.

मेरी आंखों ने उस की उंगली का अनुकरण किया. मेरी नजर मेरे से कुछ दूरी पर मेरी दाईं तरफ की मेज पर बैठी उस महिला से जा टकराई. उस की आंखों में गजब का आकर्षण था. वह बड़े प्यार से मेरी ओर देखते हुए मुसकराई तो मैं ने हामी में सिर हिला दिया और फिर मेरी उंगलियों ने गिटार के तारों पर थिरकना शुरू कर दिया.

मैं ने उस महिला की फरमाइश के गीत को अभी खत्म ही किया था कि उस ने एक और हिंदी गाने की फरमाइश कर दी. इस बार वह महिला स्वयं मेरे सामने खड़ी थी. इस से पहले उस महिला की सहेली थी. गाने के बोल थे, ‘‘नीलेनीले अंबर पे…’’

धीरेधीरे रात बीतती जा रही थी और होटल का डाइनिंगहौल भी एकएक कर खाली होने लगा था, लेकिन वह महिला अब भी वहीं बैठी हुई थी.  मंत्रमुग्ध सी मेरी ओर देखे जा रही थी. उस का इस प्रकार मुझे एकटक देखना मेरे अंदर झिझक  पैदा कर रहा था. मैं ने अपने गिटार पैक किए और चलने की तैयारी की. उस महिला की बाकी सहेलियां भी जा चुकी थीं और शायद अब वह भी डाइनिंगहौल से बाहर निकलने ही वाली थी कि अचानक मौसम बेहद खराब हो चला. बाहर तेज गरज के साथ बारिश शुरू हो गई थी. आइलैंड पर अचानक साइक्लोन का आना और मौसम का इस तरह खराब होना सामान्य बात थी.

मुझे इस बात का पूर्व अंदेशा था फिर भी अपने किराए के कमरे से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर यहां आना मेरी मजबूरी थी. यह आइलैंड न तो  बहुत बड़ा है और न ही यहां की आबादी ही इतनी ज्यादा है. यहां की जितनी आबादी है उतनी तो मेरे शहर कोलकाता में किसी शादी में बरात में ही लोग आते होंगे. खैर, अमूमन यहां हरकोई एकदूसरे को पहचानता था. वैसे मेरी जानपहचान यहां के लोगों से उतनी अधिक अभी नहीं हुई थी क्योंकि यहां रहते हुए मुझे बामुश्किल 1 महीना हुआ होगा और दूसरा मैं अपनी शर्मीले  स्वभाव के कारण लोगों से कम ही घुलतामिलता हूं.

‘‘कृपया आप इस छाते के अंदर आ जाइए बाहर बारिश बहुत तेज है,’’ मैं जैसे ही डाइनिंगहौल से कांच के बने उस दरवाजे से बाहर निकला कि वह महिला उस बड़े से छाते का एक हिस्सा मेरी ओर करते हुए मु?ा से छाते के अंदर आने का आग्रह करने लगी.

‘‘जी धन्यवाद, मेरे पास खुद का रेनकोट है, आप बेकार में परेशान न हों,’’ मैं ने अपने बैग को टटोला, लेकिन यह क्या रेनकोट आज मैं घर पर ही भूल आया था. मुझे अपनी लापरवाही पर गुस्सा आया.

‘‘कोई बात नहीं आप इस छाते के अंदर आ सकते हैं. वैसे भी यह काफी बड़ा है. आप इतनी रात गए इस तूफान में वापस कैसे जाएंगे?’’ उस ने मेरे प्रति चिंता जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘मेरे विचार से, आप जब तक मौसम ठीक नहीं हो जाता कुछ घंटे मेरे साथ मेरे कौटेज हाउस में रुक सकते हैं तूफान थमने के बाद वापस जा सकते हैं. वैसे आप के पास घर जाने का क्या कोई साधन है?’’

मैं ने खामोशी से इनकार में सिर हिलाया. संजोग से मेरी बाइक को भी आज ही खराब होना था.

‘‘इस वक्त आप को कोई औटोरिकशा भी शायद ही मिले,’’ उस की बातों में सचाई थी.  सच में ऐसे मौसम में बाहर किसी भी तरह की सवारी का मिल पाना मुश्किल था. चारों ओर  सन्नाटा पसरा था. मैं ने नोटिस किया डाइनिंगहौल खाली हो चुका था. मैं ने कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई. रात के 11:30 बज रहे थे. अब मैं बिना कोई सवाल किए उस के साथसाथ चल पड़ा. हम दोनों डाइनिंगहौल वाले एरिया से निकल कर थोड़ी दूर आ चुके थे.

 

सामने गार्डन में लगा पाम ट्री बड़ी तेजी के साथ हिल रहा था. हवा का तेज झोका मानो जैसे उस की मजबूती को बारंबार चुनौती दे रहा था. तेज तूफानी हवा जब उस के ऊपर से हो कर गुजरती तो वह एक ओर झक जाता और फिर वापस उसी मजबूती के साथ तन कर खड़ा हो जाता. मालूम नहीं, वह इस तूफान का मुकाबला कब तक कर पाएगा? तेज हवा का एक गीला झोंका हमारे ऊपर से हो कर निकला और छाते  को अपने साथ उड़ा ले गया.

‘‘मौसम तो बहुत ही ज्यादा खराब हो चला है,’’ कह वह महिला मेरे करीब आ गई थी.

मैं ने गौर से देखा बारिश की तेज बौछार के कारण वह महिला बिलकुल भीग चुकी थी. बिजली की तेज कौंध से उस का चेहरा चमक उठता था और उस के होंठ शायद सर्द हवाओं के कारण कांप रहे थे. मैं ने एक सभ्य और शालीन पुरुष की भूमिका अदा करते हुए अपना कोट उतार कर उस के कंधों पर टिका दिए जोकि लगभग गीले हो चुके थे.

मेरे द्वारा ऐसा करने पर वह महिला खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरा कोट वापस मुझे पकड़ाते हुए बोली, ‘‘इस की कोई जरूरत नहीं.’’

इतने सन्नाटे में और ऐसी स्थिति में उस का इतने जोर से हंसना मुझे बिलकुल पसंद नहीं आया. हालांकि तभी मुझे अपनी इस बेवकूफी

पर गुस्सा भी आया. मैं ने गंभीर होते हुए पूछा, ‘‘आप का कौटेज हाउस कौन सा है?’’ क्योंकि होटल के डाइनिंग एरिया से 20 गज की दूरी पर करीब 25 से 30 की संख्या में कौटेज हाउस बने हुए हैं, जिन में से हरेक कौटेज एकदूसरे से लगभग 50 कदम की दूरी पर स्थित है.

होटल समुद्र किनारे था. अत: लहरों का शोर उस सन्नाटे में सिहरन पैदा कर रहा था. स्ट्रीट लाइट के धुंधले से प्रकाश में हम दोनों एकदूसरे को सहारा देते हुए तेज कदमों के साथ चल रहे थे. थोड़ी ही देर में हम कौटेज के बाहर थे. उस ने दरवाजे का लौक खोला और कमरे के अंदर जाते हुए मुझे भी हाथ के संकेत से अंदर आने के लिए कहा. मैं संकोचवश दरवाजे पर ही खड़ा रहा.

‘‘आप अंदर आ जाइए,’’ उस ने जब फिर से मुझे अंदर आने के लिए कहा तो मैं थोड़ा सोचते हुए कमरे के अंदर आ गया.

‘‘आप की सहेलियां क्या आप के साथ नहीं ठहरी हैं?’’ मैं ने देखा कि इतने बड़े कौटेज हाउस में वह महिला अकेली ठहरी हुई थी.

‘‘हम सभी अलगअलग ठहरे हुए हैं. मैं यहां अकेली ही ठहरी हूं. हम सभी पोर्ट ब्लेयर से साथ आई थीं. हमारा किट्टी ग्रुप है, हर एज की महिलाएं हैं. कुछ तो अपने बच्चों को भी साथ लाई हैं, लेकिन मुझे जरा शांत और अकेले रहना पसंद है इसलिए मैं ने यहां कौटेज हाउस लिया है. आप चिंता न करें आप के यहां रुकने से मुझे कोई परेशानी नहीं है,’’ कहते हुए वह महिला बाथरूम में चली गई और मैं वहां लगे सोफे पर पसर गया, जोकि उस के बैडरूम के साथ ही लगा था. थोड़ी देर में जब वह चेंज कर के लौटी तब भी मैं उस सोफे पर था, न जानें किस गहरी सोच में डूबा हुआ. ‘‘आप ने अभी तक चेंज नहीं किया? आप के कपड़े तो बिलकुल गीले हो चुके हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं अपने साथ…’’ मैं कहने ही वाला था कि मेरे पास ऐक्स्ट्रा कपड़े नहीं हैं.   उस ने अपना ट्रैक सूट मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘आप इसे तब तक पहन सकते हैं जब तक आप के कपड़े सूख नहीं जाते.’’ मैं मना नहीं कर सका क्योंकि मेरे पास इस के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था. थोड़ी देर बाद मैं लेडीज ट्रैक सूट में था जोकि मेरी माप का बिलकुल नहीं था.

मैं ने अपनी पतलून और शर्ट वहीं चेयर पर पंखे के नीचे फैला दी.

‘‘आप के पति क्या काम करते हैं?’’ मैं ने उस के गले में लटकते मंगलसूत्र की ओर देखते हुए पूछा. हालांकि मुझे यह खुद भी पता नहीं था कि क्या मैं सच में इस सवाल का उत्तर जानना चाहता था, लेकिन शायद माहौल को सहज बनाने के लिए, बातचीत की पहल के लिए मैं ने यह सवाल किया.

इस का जवाब उस ने बड़े ही शांत भाव से दिया, ‘‘बिजनैस?’’ उत्तर काफी संक्षिप्त था. इस के बाद कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी छाई रही.

मैं उस के बैड से कुछ ही दूरी पर लगे एक बड़े से सोफे पर पैर पसारे हुए सिर को सोफे की दूसरे छोर पर कुशन के सहारे टिकाए लेटा था, जहां से मैं उस के चेहरे की भावभंगिमाओं को अच्छी तरह से पढ़ पा रहा था. उस के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी नजर आ रही थी. न जाने क्यों मुझे उस की हंसी में एक खोखलापन नजर आ रहा था. उस की खुशी बनावटी प्रतीत हो रही थी. वह जब भी जोर से हंसती तो ऐसा महसूस होता कि जैसे वह अपने अंदर के किसी खालीपन को ढकने की कोशिश कर रही है, कोई दर्द जो उस ने अपने अंदर समेटा हुआ है. मालूम नहीं कैसे?

उस कमरे में उस के साथ कुछ घंटे व्यतीत करने के बाद ही मुझे उस की वास्तविक आंतरिक स्थिति का एहसास होने लगा था. उस की आंखों में छिपे दर्द को मैं महसूस करने लगा था. मैं अभी तक उस के नाम से वाकिफ नहीं था और न ही वह मेरे विषय में ज्यादा कुछ जानती थी, फिर भी हम दोनों कमरे में साथ थे.

‘‘आप किसी बात से परेशान हैं क्या…’’  मैं ने कमरे में छाई चुप्पी को तोड़ना चाहा.

‘‘मेरा नाम राधिका है,’’ उस ने मेरे अधूरे वाक्य को पूरा करते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘और आप समीर? मैं ने आप के आईडैंटटी कार्ड मैं आप का नाम देखा था,’’ और फिर से वह किसी गहरी सोच में डूब गई.

‘‘वैसे मुझे पूछने का हक तो नहीं, लेकिन माफ कीजिएगा मैं फिर भी पूछ रहा हूं. कुदरत ने तो आप के झाले में रुपएपैसे, सारे ऐशोआराम दिए हैं, फिर भी पिछले कुछ घंटों से मैं ने एक बात नोटिस की है कि आप के चेहरे की खुशी बनावटी है. आप की हंसी मालूम नहीं क्यों मुझे लगती है?’’

‘‘खुशी, ऐशोआराम, रुपएपैसे,’’ उस ने मेरे द्वारा कहे गए इन सारे शब्दों को दोहराते हुए एक गहरी सांस ली, ‘‘मैं तुम से एक सवाल पूछना चाहती हूं, धनदौलत, रुपएपैसे का तुम्हारी जिंदगी में क्या अहमियत है? चलो तुम्हें ये सब मैं दे दूं तो भी क्या तुम इन से सुखशांति खरीद लोगे?’’

‘‘बिलकुल, धनदौलत से सबकुछ हासिल किया जा सकता है. मेरी समझ से जिंदगी में अगर एक इंसान के पास धनदौलत है तो उस के पास सबकुछ है. नायरा ने इन्हीं वजहों से तो मुझे छोड़ा था, जब मेरी नौकरी चली गई थी, मैं आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. नायरा और हमारे बीच आई दूरियों की वजह तो यही रुपएपैसे थे.’’

‘‘मेरा मतलब प्रेम से था, सच्चे प्रेम से, क्या तुम रुपएपैसे की बदौलत सच्चे प्रेम को खरीद  सकते हो या ठीक इस के विपरीत कहूं तो यदि मैं तुम्हें रुपएपैसे, धनदौलत दे दूं, तो क्या बदले में तुम मुझे सच्चा प्रेम दे सकते हो? क्या दे सकोगे  मुझे सच्चा प्रेम? मेरे पास धन, दौलत, रुपएपैसे सबकुछ है परंतु नहीं है तो सच्चा प्रेम जो मेरी जिंदगी के खालीपन को भर सके.’’

‘‘क्यों? क्या आप के पति आप से प्रेम नहीं करते?’’ मैं ने अचानक सवाल पूछा.

‘‘उन का बहुत बड़ा कारोबार है, बहुत सारी संपत्ति है और नहीं है तो एक औलाद जो उन के बाद उन की संपत्ति का मालिक बन सके औलाद की चाहत में उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया. पैसों के बल पर मुझे से 50 वर्ष की आयु में शादी कर ली, जबकि मेरी उम्र उस वक्त 22 साल थी. मेरे पिता जोकि उन के यहां एक साधारण सी नौकरी करते थे ने मेरी मां के इलाज के लिए काफी पैसे उधार ले लिए थे,’’ बोलतेबोलते वह अचानक चुप हो गई.

कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने आगे बताना जारी रखा, ‘‘मेरी शादी के कुछ ही महीने बाद मेरी मां की मृत्यु हो गई और उन की मृत्यु के कुछ महीने बाद ही अपने पिता भी चल बसे. मेरे पास सबकुछ है और जो नहीं है वह है प्रेम, सच्चा प्रेम जिस के अभाव में जीवन निरर्थक लगता है. अपने पति के लिए मैं सिर्फ एक साधन हूं. एक ऐसा साधन जो उन के लिए संतान की प्राप्ति करा सकता है, उन की अपार संपत्ति का वारिस दिला सकता है. हमारी शादी के 5 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन संतान की प्राप्ति नहीं हुई. वे इस सब का जिम्मेदार मुझे ठहराते हैं, जबकि कमी उन के अंदर है. मैं आज अच्छीखासी संपत्ति की मालकिन हूं. फिर भी जिंदगी में एक खालीपन है, खोखलापन है.’’

वह बिलकुल मेरे नजदीक बैठी थी. मैं सोफे पर शांत बैठा हुआ उस की बातों को सुन रहा था. न जाने कब मेरा हाथ उस के हाथों में आ गया. मेरे हाथ पर पानी की बूंद सा कुछ टपका तो मैं ने देखा उस की आंखों में आंसू भरे थे.

मैं ने सोफे पर बैठेबैठे पीछे खिड़की पर से परदे को थोड़ा सरका कर कांच से बाहर झंकते हुए मौसम का मुआयना किया. बाहर अभी भी तेज हवा के साथ जोरदार बारिश हो रही थी.

‘‘मौसम अभी भी काफी खराब है,’’ मैं ने टौपिक चेंज करने की कोशिश की.

‘‘क्या तुम मेरे लिए कुछ गा सकते हो?’’

‘‘अभी इस वक्त?’’ मैं ने घड़ी देखी रात के 2 बज रहे थे.

‘‘क्या तुम मुझे कुछ पल की खुशी दे सकते हो? ऐसी खुशी जिसे मैं ताउम्र संजो कर रख सकूं? कुछ ऐसे लमहे जिन की मखमली यादों से मैं अपनी जिंदगी की इस रिक्तता को भर सकूं? मैं तुम्हें मुंहमांगे पैसे दे कर इन लमहों को तुम से खरीदना चाहती हूं.’’

अचानक उस ने अपना सिर मेरे सीने पर टिका दिया. मैं उस की तेज धड़कन को साफसाफ सुन पा रहा था, उस की गरम सांसों को महसूस कर रहा था. उस ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए.

बाहर बिजली की कड़कड़ाहट के साथ एक तेज आवाज हुई. शायद पाम का वह वृक्ष जो अभी तक अपनी जड़ों पर मजबूती के साथ खड़ा था, उसे इस तूफान ने उखाड़ गिराया था. मैं ने जीवन में पहली बार नायरा से बेवफाई की. हम सारी रात एकदूसरे के आगोश में थे.

सुबह जब आंख खुली तो बारिश थम चुकी थी. मैं ने कांच की खिड़की से परदे को सरका कर बाहर देखा. बारिश थम चुकी थी. हवा के हलकेहलके झांके बाहर खूबसूरत फूलपत्तियों को सहला रहे थे. हवा के इस प्रेमस्पर्श से लौन में लगे पेड़ों की पत्तियां थिरकथिरक कर जैसे खुशी का इजहार कर रही थीं.

सामने दीवार पर लटकी उस मोटी तार पर बारिश के पानी की एक अकेली बूंद अपने अकेलेपन की बेचैनी को एक ओर झटकते हुए नीचे टपकने को आतुर था. सामने किसी वृक्ष के डाल पर एक छोटी सी चिडि़या कहीं से उड़ती आई और फुदकफुदक कर अपने गीले पंखों को फड़फड़ाते हुए सुखाने की चेष्टा करने लगी मानो जैसे खुले आसमान में वापस उड़ने की तैयारी कर रही हो.

‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’

‘‘नहीं, मैं अब जाना चाहूंगा,’’ यह कहता  हुआ मैं उठ खड़ा हुआ और बाहर निकलने की तैयारी करने लगा तो उस ने मेरे हाथों में एक विजिटिंग कार्ड पकड़ा दिया और कहा, ‘‘यदि आप कोलकाता आएं तो इस पते पर अवश्य संपर्क करें.’’

मैं ने आश्चर्य से उस की ओर देखा.

‘‘मैं इस कंपनी की मालकिन हूं. दरअसल,  यह कंपनी मेरे ही नाम है. आप को आप की पसंद की पोस्ट मिल जाएगी और तनख्वाह आप जितना कहें क्योंकि मेरे पति के बहुत सारे बिजनैस हैं. अलगअलग शहरों में कई कंपनियां हैं, तो उन में से यह एक कंपनी मेरे नाम है. शादी के इतने सालों में मैं ने यही एक समझदारी का काम किया है कि मैं ने खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया वरना यह जालिम दुनिया,’’ और वह कुछ कहतेकहते अचानक चुप हो गई, फिर आगे बोली, ‘‘इस जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. वैसे आप चाहें तो पोर्ट ब्लेयर में भी आप को काम मिल सकता है क्योंकि मैं पोर्ट ब्लेयर में भी एक बिजनैस जल्द ही शुरू करने वाली हूं. आप के लिए यहां भी मौका है.’’

मैं कुछ दिनों बाद कोलकाता वापस आ गया. वादे के मुताबिक मुझे नौकरी भी मिल गई और ऊंची तनख्वाह भी. धीरेधीरे वक्त अपनी गति से बीतता चला गया.

‘‘हैलो, मैं कोलकाता वापस आ रही हूं,’’ एक दिन अचानक नायरा ने मुझे फोन कर के अपने आने की सूचना दी और उस के अगली सुबह वह मेरे घर आ गई. मैं ने कोलकाता के पौश एरिया में एक बड़ा सा फ्लैट खरीद लिया था. एक नई गाड़ी भी खरीद ली थी. ऐशोआराम की सारी सुखसुविधा अब हमारे पास थी. अब नायरा मुझ से शादी करना चाहती थी. नायरा के  मांबाप भी जोकि पहले हमारी शादी के पक्ष में नहीं थे क्योंकि वह अपनी बेटी की शादी किसी बेरोजगार से नहीं करा सकते थे और नायरा अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ मुझ से शादी नहीं कर सकती थी. परंतु अब नायरा और उस के मांबाप जल्द से जल्द शादी के पक्ष में थे.

वैसे मुझे भी शादी से कोई ऐतराज नहीं था. जल्द ही शादी की तारीख भी तय हो गई और हमारी ऐंगजेमैंट भी हो गई. जिंदगी वापस पटरी पर दौड़ने लगी थी. ऐंगजेमैंट के बाद नायरा वापस मुंबई आ गई थी क्योंकि शादी में अभी कुछ दिन बाकी थे. मैं वीकैंड पर नायरा से मिलने मुंबई गया हुआ था. मैं और नायरा साथ में एक अच्छा टाइम स्पैंड कर रहे थे ताकि मैं किसी औफिस कौल में बिजी न हो जाऊं, नायरा ने मेरे फोन को साइलैंट मोड पर कर के फोन अपने पास ही रख लिया था.

मैं इस बात से बेखबर था कि उस दिन राधिका के 10 फोन आए थे. फोन नहीं उठा पाने के कारण राधिका ने वाट्सऐप मैसेज सैंड कर दिया, ‘‘मुबारक हो मैं ने बेटे को जन्म दिया है. मुझे इतनी बड़ी खुशी मिली है कि संभाले नहीं संभल रही है. इस खुशी का सारा श्रेय आप को जाता है. मेरे दामन को खुशियों से भरने के लिए आप का बहुतबहुत शुक्रिया. मुझे भनक तक नहीं लगी और यह मैसेज नायरा ने पढ़ लिया. उस दिन मेरे और नायरा के बीच काफी बहस हुई. बात वापस संबंधविच्छेद तक आ गई, लेकिन मैंने हार नहीं मानी.

मैं ने नायरा को समझना जारी रखा. मैं ने उसे बड़े शांतभाव और प्रेमपूर्वक समझाया, ‘‘नायरा, मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति जो प्रेम है वह सिर्फ तुम्हें ही समर्पित है. मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं. तुम्हारे प्रति मेरा यह प्रेम कभी खत्म नहीं हुआ. हां, मैं ने उन में से कुछ लमहे किसी को सौंप कर तुम्हारे लिए जीवनभर की खुशियां ही तो खरीदी हैं. तुम्हारा जीवनभर का साथ ही तो चाहा है. अब तुम ही बताओ जब मेरे पास नौकरी नहीं थी, पैसे नहीं थे, सुखसुविधा नहीं थी तब तुम ने ही मेरा साथ छोड़ा था.’’

नायरा चुप थी क्योंकि उस के पास मेरे सवालों के जवाब नहीं थे.

मैं ने राधिका की सारी सचाई, सारी बातें नायरा के समक्ष रख दीं. सारी बातें जानने के बाद नायरा ने मुझे माफ कर दिया. अब मैं और नायरा शादी के बंधन में बंध कर एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं. बच्चे की पहली सालगिरह पर राधिका ने हमें भी आमंत्रित किया है और उन के पति कन्हैया भी इस सचाई से अब तक वाकिफ हो चुके हैं फिर भी वे अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं. हालांकि वे अपनी आंतरिक पीड़ा को लोगों के समक्ष प्रकट करने से  कतराते नजर आ रहे हैं. अपने चेहरे पर खुशी ओढ़े हुए वे मेहमानों की आवभगत में लगे हुए हैं. यह सचाई हालांकि कन्हैया के पुरुषरूपी अहंकार पर प्रहार तो अवश्य कर रही है, लेकिन दुनिया के समक्ष इन बातों से ऊपर उन के लिए एक पुत्र का पिता कहलाने का गौरव और उस की महत्ता अधिक हो गई थी.

नायरा और मैं बच्चे को प्यार और दुलार कर गिफ्ट पकड़ा कर केक, मिठाई और स्वादिष्ठ व्यंजनों की दावत उड़ा कर अपने घर लौट रहे थे. इस मौके पर राधिका बेहद खुश दिख रह थी. उस ने नायरा से खूब सारी बातें कीं और हमें गेट तक छोड़ने कन्हैया भी राधिका के साथ आए.

Summer Special: अपनाएं 10 नुस्खे, समर में मेकअप न खिसके

गरमी में अगर कोई फंक्शन आ जाए तो घर की ‘फीमेल पंचायत’ में एक ही मुद्दा गरम रहता है कि किस तरह का मेकअप हो, जो उन्हें ज्यादा समय तक फोटोजैनिक और फ्रैश बनाए रखे. फिलहाल यही मौसम भारत में आतंक मचाए हुए है और लौन, वटिकाएं, फार्महाउस, रिजौर्ट आदि किसी न किसी पारिवारिक समारोह के लिए सजे हुए हैं.

मेकअप न खराब होने की इसी समस्या पर डाइटीशियन और ब्यूटी ऐक्सपर्ट नेहा सागर ने कुछ ऐसे कारगर टिप्स दिए हैं, जिन पर अमल कर के आप किसी भी फंक्शन की ‘सैंटर औफ अट्रैक्शन’ बन सकती हैं :

गरमियों में मेकअप करने से पहले कलीनिंग, टोनिंग और मौश्चराइजिंग बहुत जरूरी है. यह स्किन टाइप के मुताबिक ही किया जाना चाहिए.

1.औयली स्किन पर वाटर बेस्ड मेकअप ही इस्तेमाल करें, औयल बेस्ड नहीं. मेकअप को सैट करने के लिए अच्छे ब्रांड का कौंपैक्ट पाउडर इस्तेमाल करें.

2. ड्राई या नौर्मल स्किन पर से पहले अच्छे से मौस्चराइजिंग कर के वाटर बेस्ड मेकअप करें तो अच्छा होगा. इस से मेकअप ज्यादा समय तक टिका रहेगा.

3. दिन के समय अगर मेकअप करें तो क्लीजिंग, टोनिंग और मौस्चराइजिंग के बाद कम से कम 30 एसपीएफ का सनस्क्रीन जरूर लगाएं और उस के बाद ही मेकअप करें.

4. मेकअप को रीटच करने के लिए कौंपैक्ट पाउडर लगाएं और डैबिंग तकनीक इस्तेमाल करें. स्वाइप करने से मेकअप हट सकता है.

5. दिन के समय मैट आईशैडो इस्तेमाल करें. रात के मेकअप में शिमर या ग्लिटर आईशैडो लगा सकते हैं.

6. दिन में मैट लिपस्टिक और रात में क्रीमी मैट लिपस्टिक इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन अगर ड्राई लिप्स हैं तो मैट लिपस्टिक लगाने से बचें और क्रीमी मैट, क्रीमी लिपस्टिक इस्तेमाल करनी चाहिए.

7. मस्कारा और लाइनर मैट वाटरप्रूफ इस्तेमाल करें. नौर्मल मस्कारा या लाइनर पसीना आने या गरमी की वजह से मेकअप को मैसी कर सकता है.

8. औयली और नौर्मल स्किन पर पाउडर बेस्ड ब्लशर ही लगाएं, जबकि ड्राई और कौंबिनेशन स्किन पर क्रीमी और पाउडर दोनों ही तरह का ब्लश इस्तेमाल कर सकते हैं.

9. मेकअप को पूरी तरह सैट करने के लिए मेकअप फिक्सर स्प्रे से लौक कर के लास्ट स्टैप करें. अगर मेकअप फिक्सर नहीं है तो सैटिंग स्प्रे इस्तेमाल कर सकते हैं.

10. नोट : सैटिंग स्प्रे मेकअप के किसी भी स्टैप पर इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन मेकअप फिक्सर को बिलकुल लास्ट स्टैप पर ही इस्तेमाल करें.

रिश्ते: क्या बोलें क्या नहीं

कई बार हम हंसी-मजाक में अपनी शालीनता को भूल जाते है और कुछ गलत बोल जाते हैं और जिन से हम मजाक कर रहे हैं उन को नागवारा गुजरता है और वे हम से रूठ जाते हैं. इस से हमारे संबंधों में दरार पड़ जाती है. अत: मजाक हमेशा शालीनता और अच्छी मानसिकता से किया जाए तो ही अच्छा रहता है.

कई बार देखा गया है कि जो शब्द हम बारबार बोलते हैं वही हमारे मुंह पर आते हैं फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे, इसलिए शब्दों का ध्यान रखें. फिर चाहे वे मजाक में ही क्यों न बोले हों क्योंकि हमारे मुंह से निकला 1-1 शब्द हमारे चरित्र और व्यवहार का परिचय देता है. यदि हम कोई गलत शब्द बोल देते हैं तो लोगों के दिल में घृणा के पात्र बन जाते हैं और यदि हम अच्छे शब्द और प्यार से बोलते हैं तो सब का दिल जीत लेते हैं. इसलिए किसी से भी बातचीत करते समय शब्दों का ध्यान रखें.

जब कर रहे हों आलोचना

यदि हमें किसी की आलोचना करनी हो तो कोशिश करें कि तीखे शब्दों का उपयोग न करें. आलोचना हम सकारात्मक भी कर सकते हैं. इस के लिए कुछ सु झाव प्रस्तुत हैं:

रवि पार्टी में बहुत शराब पी कर आया था और सब से लड़ाई झगड़ा कर रहा था. तभी उस के दोस्त उस को बहुत भलाबुरा कहने लगे, लेकिन दोस्त आलोचना करते समय यह भूल गए कि यहां सभी अपने परिवार के संग आए हैं. तब क्या रवि के साथ ऐसा व्यवहार ठीक है? इस समय आप आलोचना करते समय अपने शब्दों का ध्यान रखें. उस को प्यार से सम झाने की कोशिश करें कि उस की वजह से पार्टी का मजा खराब हो गया क्योंकि आज सभी दोस्त परिवार संग मौजमस्ती करना चाहते थे, लेकिन उस की वजह से ऐसा नहीं कर पाए.

उसे आगे से किसी भी पार्टी में बिना शराब पीए आने को कहें ताकि वह भी अपने दोस्तों के संग पार्टी का मजा ले सके और कुछ यादगार पल बिता सकें. इस से उस की सोच सकारात्मक होगी और अगली बार वह पार्टी में ऐसा व्यवहार नहीं करेगा. इस तरह आलोचना सकारात्मक भी कर सकते हैं.

जब कर रहे हों बच्चों से बात

माता-पिता के द्वारा बच्चों से की गई बातचीत के ढंग का प्रभाव भी उन के ऊपर पड़ता है. कई मातापिता उन को डांटतेमारते समय अपशब्दों और कुछ गालियों का भी उपयोग करते हैं जिन्हें बच्चे भी सीख जाते हैं जिस का उन की मानसिकता पर गहरा असर पड़ता है. कई बार जब बच्चों को गुस्सा आता है तो वे भी इन्हीं शब्दों का उपयोग करते हैं. तब मातापिता को उन का यह व्यवहार नागवारा गुजरता है.

इस के साथ ही इस का प्रभाव हमारी छवि पर भी पड़ता है, इसलिए मातापिता घर से ले कर बाहर तक कुछ भी कहने में सावधानी बरतें क्योंकि बारबार अपशब्दों का उपयोग हमारी आदत में शामिल हो जाता है और फिर ये शब्द हमारे मुंह से अपने आप ही निकल आते हैं. बात कुछ दिनों पहले की है. उस दिन हमारे पड़ोस में रहने वाल 4 साल का रोहन अपने मातापिता से नाराज हो कर हमारे घर आया. पूछने पर उस ने अपनी बात को बताने के लिए कई बार कुछ अपशब्दों और गालियों का उपयोग किया. शायद वह उन शब्दों का मतलब ही नहीं जानता था. वे शब्द उस की रोज की बोलचाल में शामिल हो गए थे, इसलिए उस ने उन्हें बोलने से पहले जरा भी नहीं सोचा. इसलिए हमें बच्चों के सामने इस तरह के शब्दों से परहेज करना चाहिए.

अपमानजनक भाषा का प्रयोग

बड़े अकसर बातोंबातों में या फिर फोन पर किसी व्यक्ति के लिए गलत भाषा का उपयोग कर जाते हैं. उन्हें लगता है कि बच्चों ने नहीं सुना होगा या कई बार हम ध्यान ही नहीं देते कि आसपास बच्चे हैं और वे कुछ भी कह जाते हैं. कई बार बच्चे बड़ों की हर बात को बड़े गौर से सुनते हैं. इसलिए अगर घर में छोटे बच्चे हैं तो बेहद संभल कर बातचीत करें. बच्चों के सामने किसी के लिए अपशब्द या अभद्र भाषा का प्रयोग न करें.

कमियां निकालना

घर से मेहमान के जाने के बाद अकसर परिवार के सदस्य उस व्यक्तिको ले कर बातें करते हुए उस की कमियां निकालते हैं. यही सब बच्चे भी देखते हैं और वे भी उस व्यक्ति के बारे में वैसी ही धारणा बना लेते हैं. बच्चों के मन पर इन सब बातों का गहरा असर पड़ता है और वे भी बड़े हो कर लोगों में कमियां ढूंढ़ने लगते हैं. कई बार तो घर के सदस्य भी एकदूसरे की पीठपीछे बुराई करते नजर आते हैं. अत: मातापिता बच्चों के सामने किसी की पीठपीछे उस की कमियां न निकालें और न ही उस की बुराई करें.

एक-दूसरे का अपमान करना

हर घर में और हर पतिपत्नी के बीच  झगड़ा और नाराजगी आम बात होती है. ऐसे में एकदूसरे का अपमान करना या नीचा दिखाना सही नहीं होता. जब बच्चा ये सब देखता है तो वह उसी के आधार पर आप की इज्जत, आदर और सम्मान करता है. इसलिए जैसी इज्जत, आदर और सम्मान आप बच्चों से चाहते हैं वैसा ही सम्मान दूसरे को दें. अगर किसी बात पर नाराजगी हो तो उसे बंद कमरे में सुल झाएं न कि बच्चों के सामने. इस के अलावा बाकी सदस्य भी बच्चों के सामने एकदूसरे से अच्छी तरह से बातचीत करें. इस से बच्चों में परिवार के प्रति प्रेम बढ़ता है और वे सभी का आदर करते हैं.

जब कर रहे हों दोस्तों से या औफिस में बात

आज रवि बहुत दिनों बाद अपने बचपन के दोस्त श्याम से मिलने उस के औफिस गया और वह अपने उसी अंदाज में मिला जैसे वह बचपन में मिला करता था. कंधे पर हाथ रखे बात करना, बातबात पर मजाक करना, तेजतेज हंसना, टेबल पर रखे सामान को हाथ लगाना, फोन पर तेज आवाज में बात करना आदि. ये सब श्याम और उस के आसपास के सहकर्मियों को बिलकुल नहीं भा रहा था, लेकिन श्याम के पास कोई उपाय भी नहीं था. आखिर वह अपने बचपन के दोस्त को कैसे सब के सामने कुछ कह सकता था, यही बात दोस्तों के साथ होने वाली बातचीत में भी लागू होती है.

तानेबाजी से बचें

कई बार हम मजाक के बहाने दोस्तों से अपने मन में दबी कड़वाहट को कहने की कोशिश करते हैं और अपनी कड़वाहट  को सार्वजनिक रूप से उजागर करते हैं और यदि सामने वाले को बुरा लग जाए तो कह देते हैं कि मैं ने तो मजाक किया था.

कई बार ऐसा होता है कि पार्टी या शादीविवाह के प्रोग्राम में हम अपने उन दोस्तों संग जोकि प्रोफैशनल लाइफ में आप से आगे निकल गए होते हैं और आप वहीं हैं जहां पहले थे तो कई बार मन में जलन और कड़वाहट के भाव आते हैं और तब हम उन के साथ फनी और कूल माहौल बनाने के लिए तानेबाजी भरा मजाक करने लगते हैं. जैसे और भाई बहुतबहुत बधाई. सुना है तुम्हारी प्रमोशन हो गई है, बड़ी गाड़ी ले ली है तो आजकल बहुत बड़े आदमी हो गए हो.

फोन उठाने की भी फुरसत नहीं है, हां अब क्यों मेरा फोन उठाओगे वैगरहवैगरह कह कर दोस्तों के सामने मजाक बनाने लगते हैं. ऐसा करने से हमेशा बचें क्योंकि संभव है कि दोस्त इस चीज से आहत हो कर आप से नाराज हो जाए या संबंध खराब हो जाएं.

स्वभाव, स्थान व समय का ध्यान रखें

दरअसल, समय और जरूरत का ध्यान रख कर कही गई बात से हमारी अहमियत अपनेआप बढ़ जाती है. बोलने की कला और व्यवहारकुशलता के बगैर प्रतिभा काम नहीं आ सकती. शब्दों से हमारा नजरिया  झलकता है. कई बार हमारी बिना सोचेसम झे बोली गई बात सामने वाले को बुरी लग सकती है. तब हो सकता है जब तक आप को अपनी गलती का एहसास हो तब तक बहुत देर हो चुकी हो क्योंकि यह तो हम सभी जानते हैं कि मुंह से निकली बात, आखों से निकले आंसू एवं बाण से निकला तीर वापस नहीं आता है इसलिए हमेशा सोचसम झ कर बोलें.

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