पिता का नाम: भाग 1- एक बच्चा मां के नाम से क्यों नहीं जाना जाता

हौर्न की आवाज़ सुनते ही मानसी सैंडविच का एक टुकड़ा हाथों में ले, अपने मम्मीपापा को गले लगाती हुई, डायनिंग चेयर पर टंगा अपना बैग कांधे पे लटका कर बाहर की तरफ दौड़ी. मानसी की मां अमिता भी उस के पीछे भागी. गेट के बाहर तापस अपनी स्टाइलिश बाइक पर मानसी का इंतजार कर रहा था.

मानसी को खुले स्ट्रेट बाल, ब्लैक ट्राउजर, व्हाइट शर्ट और उस पर ब्लैक ब्लैजर में देखते ही अपनी आंखों में चढ़ा गौगल उतार मानसी को ऊपर से नीचे शरारती अंदाज में देखते हुए बोला- “लगता है आज तुम मेरे साथसाथ पूरे मैनेजमैंट का होश उड़ाने वाली हो.”

यह सुन मानसी बड़ी अदा से मुसकराती हुई अपने हाथों से बाल पीछे की ओर झटकती हुई बोली, “मिस्टर तापस, यह फ्लर्ट करने का समय नहीं है, जल्दी चलो, आई एम गैंटिंग लेट.” यह कहती हुई मानसी बाइक पर बैठ गई और अपनी मम्मी को हाथ हिला कर बाय करने लगी. तापस ने अपनी बाइक की स्पीड बढ़ा ली और बाइक सरसराते हुए वहां से निकल ग‌ई.

मानसी के जाने के बाद मानसी की मां अमिता अंदर आ कर अपने पति रजत से बोली, “आज कैंपस सेलैक्शन में मानसी का सेलैक्शन हो या न, उसे जौब मिले या न लेकिन मैं इतना कहे देती हूं इस साल उस के एमबीए कंपलीट करते ही उस की शादी जरूर होगी चाहे कुछ भी हो जाए. वैसे भी, तापस की तो अच्छीखासी नौकरी है, शादी के बाद भी मानसी नौकरी कर सकती है. यह जरूरी नहीं है कि जौब मिलने के बाद ही मानसी की शादी हो.”

मानसी के पिता अखबार पर नजरें गड़ाए मुसकराते हुए बोले, “शादी भी हो जाएगी तुम काहे इतना परेशान होती हो, तापस जैसा अच्छा और वैल सैटल्ड लड़का मानसी का जीवनसाथी बनने वाला है, तुम्हें और क्या चाहिए.”

“बात वह नहीं है, सगाई के बाद शादी में ज्यादा देर करना ठीक नहीं है,” अमिता चिंता व्यक्त करती हुई बोली.

“हां, तुम ठीक ही कह रही हो लेकिन यह निर्णय तो स्वयं मानसी का ही है कि उस के एमबीए कंपलीट होने और उसे जौब मिलने के बाद ही वह शादी करना चाहती है और फिर तापस भी तो हमारी मानसी के इस फैसले में उस के साथ है. ये आजकल के बच्चे हैं अमिता, अपना भलाबुरा खूब समझते हैं. हमें चिंता करने की जरूरत नहीं. लेकिन फिर भी हम तापस के मातापिता से इस बारे में बात करते हैं.”

आज मानसी के कालेज में कैंपस सेलैक्शन था और मानसी इस के लिए पूरी तरह से तैयार थी. तापस की सरपट दौड़ती बाइक और बीचबीच में आते स्पीड ब्रेकर्स पर अचानक लगते ब्रेक से तापस और मानसी का एकदूसरे से होता स्पर्श दोनों के दिल में एक हलचल पैदा कर रहा था. तापस के शरीर से हलके से होते स्पर्श से मानसी के गाल सुर्ख हो जाते और वह अपनेआप से शरमा जाती. तापस यह सब अपने बाइक में लगे मिरर से देख रहा था. मानसी का हाल ए दिल तापस से छिपा नहीं था.

कालेज कैंपस के बाहर पहुंचते ही मानसी को गले लगा कर तापस बोला, “औल द बेस्ट, तुम अपना इंटरव्यू दो, तब तक मैं अपने औफिस के कुछ जरूरी काम निबटा कर आता हूं.” इतना कह कर मानसी को ड्रौप करने के बाद तापस वहां से चला गया.

तापस बैंगलुरु की एक आईटी कंपनी में था. उस की कंपनी नागपुर में भी अपना एक नई ब्रांच लौंच कर रही थी जिसे तापस लीड कर रहा था, इसलिए तापस को महीने में एकदो चक्कर नागपुर के लगाने ही पड़ते. वैसे भी नागपुर में तापस का अपना घर था, उस के मातापिता यहीं रहते थे और फिर जब से उस की सगाई मानसी से हुई थी तब से तापस को जब भी मौका मिलता वह बैंगलुरु से नागपुर आ जाता. जिस से एक पंथ दो काज हो जाता, औफिस के काम के साथसाथ तापस का मानसी से मिलना भी हो जाता.

अभी 2 महीने पहले ही तापस और मानसी की सगाई दोनों परिवारों की रजामंदी से हुई थी. तापस ने मानसी को पहली बार अपने दोस्त सुभाष की शादी में देखा था और देखते ही उसे अपना दिल दे बैठा. मानसी की खूबसूरती और उस की अदाओं पर वह कुछ इस तरह फिदा हुआ कि पूरी शादी में बस वह मानसी के आगेपीछे भौंरे की भांति मंडराता रहा और मानसी…जैसे परवाना को देख शमा धीरेधीरे पिघलने लगती है वैसे ही मानसी भी बारबार तापस को अपने सामने देख पिघल रही थी.

क्रीम कलर के लंहगे पर खूबसूरत डिजाइनर चोली और उस पर लहराती हुई चुनरी तापस के होश उड़ाने के लिए काफी थी. मानसी का गोरा रंग क्रीम कलर में और अधिक निखर आया था. पूरी शादी में तापस का ध्यान बस मानसी पर ही रहा. मानसी यह बात जान कर भी अनजान बनी रही. जब भी तापस से उस की नजर मिलती, वह सिहर उठती.

खाने के वक्त जब मानसी अपनी सहेलियों के संग फूड कौर्नर में बर्फ़ के गोले की चुस्कियां लेने लगी, मानसी के होंठ उस के गोरे चेहरे पर लाल गुलाब की तरह खिल उठे जिसे देख तापस की निगाहें मानसी के होंठों पर ही जा कर ठहर ग‌ईं. उस की यह छवि सीधे तापस की निगाहों से होते हुए दिल में उतर ग‌ई.

तापस के बहुत प्रयत्नों के बाद भी कोई बात न बनी. वह मानसी को शीशे में उतारने में असफल रहा. मानसी उस से किसी भी प्रकार से बात करने को तैयार न थी. ऐसा पहली बार था जब तापस के लाख प्रयासों के बावजूद कोई लड़की उस से बात करने को तैयार नहीं थी वरना तापस के आकर्षक व्यक्तिव के आगे लड़कियां स्वयं खिंची चली आती थीं. तापस केवल इतना जान पाया था कि वह जिस लड़की के लिए बावरा हुआ जा रहा है उस का नाम मानसी है.

तापस के दोस्त सुभाष की शादी तो हो गई लेकिन तापस की रातों की नींद उड़ चुकी थी. मानसी की तसवीर उस के दिल में कुछ इस तरह बस ग‌ई थी कि वह उसे भुला ही नहीं पा रहा था. अब उस के पास सुभाष से सारी बातें कहने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. अखिरकार, उसे मानसी तक पहुंचने के लिए सुभाष का सहारा लेना ही पड़ा और सुभाष ने भी अपने दोस्त का हाल ए दिल जान कर मानसी का पता लगा ही लिया. वह सुभाष की बहन रमा की सहेली थी. यह जानने के बाद तापस जब भी बैंगलुरु से नागपुर आता, मानसी के घर और कालेज के चक्कर काटने लगा लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी.

Father’s day 2023: वह कौन थी- भाग 2

अमरनाथ को अमेरिका में अपने लड़के के घर में रहते हुए 1 वर्ष होने को आया था और इस 1 वर्ष में उन्होंने क्या कुछ काम नहीं किया. वह व्यक्ति जिस ने कभी भारत में रहते हुए एक गिलास पानी खुद ले कर नहीं पिया अब वह अपनों के आदेश पर खाना बनाने और उन्हें पानी पिलाने पर विवश था. जिस ने अपने घर में रहते हुए कभी अपना एक रूमाल तक नहीं धोया था वह अमेरिका आ कर बेटे के घर में नौकरों की तरह सारे घर के कपड़े धोया करता. इस के अलावा मीतेश के दोनों बच्चों की देखभाल, उन का कमरा ठीक करना, उन्हें खानापानी देना, उन के स्कूल जाने के समय उन्हें स्कूल बस तक छोड़ने जाना और स्कूल से वापस आने के समय उन्हें घर लाने के लिए अपना अतिरिक्त समय देना, अब अमर के लिए हरेक दिन की साधारण सी बात हो चुकी थी.

इस बीच जरूरत से अधिक काम करने तथा बढ़ती हुई उम्र के हिसाब से शरीर पर अधिक भार पड़ने से अमरनाथ एक दिन बीमार हो गए. साधारण दवाओं से ठीक नहीं हुए तो मजबूर हो कर उन्हें डाक्टर को दिखाना पड़ा. डाक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल मेें कुछ दिनों तक रखना पड़ा. इस से एक अतिरिक्त आर्थिक भार और अपना अतिरिक्त समय भी देने की परेशानी मीतेश व उस की पत्नी के ऊपर आ गई.

अमरनाथ का कोई अलग से चिकित्सा बीमा तो था नहीं, इसलिए उन की आर्थिक सहायता के लिए जब मीतेश ने अमेरिकी सरकार के सोशल सिक्यूरिटी कार्यालय में अर्जी दायर की तो वहां से भी यह कह कर मना कर दिया गया कि यह सुविधा अब केवल उन प्रवासियों को ही उपलब्ध है जिन्होंने अमेरिका में अपने सोशल सिक्यूरिटी नंबर के साथ बाकायदा लगभग 3 वर्ष तक कार्य किया होगा.

यह पता चलने के बाद मीतेश और उस की पत्नी दोनों के ही सोचे हुए मनसूबों पर पानी फिर गया क्योंकि उन्होंने सोचा था कि अमरनाथ को अपने पास बुला कर रखने पर 2 प्रकार की सुविधाएं उन्हें स्वत: ही मिल जाएंगी. एक तो उन के दोनों बच्चों को देखने के लिए निशुल्क बेबी सिटर का प्रबंध हो जाएगा, जिस से लगभग 400 डालर उन के प्रतिसप्ताह बचा करेंगे और साथ ही अमरनाथ को सरकार के द्वारा मिलने वाली प्रतिमाह कम से कम 500 डालर की सोशल सिक्यूरिटी की आर्थिक सहायता भी मिलती रहेगी. इस बात का पिता को तो कुछ पता नहीं चल पाएगा, सो एक पंथ दो काज वाली कहावत भी ठीक काम करती रहेगी.

अमरनाथ के लिए मीतेश जब सोशल सिक्यूरिटी का लाभ न ले सका और साथ ही उन के बीमार हो जाने पर उन की चिकित्सा का एक अतिरिक्त खर्च भी उस पर आ पड़ा तो उस के व उस की पत्नी के बदले स्वभाव को अमरनाथ की बूढ़ी अनुभवी आंखों ने पहचानने में देर नहीं लगाई. वह समझ गए कि अब उन का अपने बेटे और बहू के घर में रहना उन दोनों के लिए बोझ बन चुका है.

इस के साथ ही अमरनाथ को यह समझते देर नहीं लगी कि मीतेश का अचानक  से भारत आना और उन को अपने साथ अमेरिका ले जाना मात्र उस का उन के प्रति प्रेम और अपनत्व का एक झूठा लगाव ही था. सच तो यह था कि मीतेश और उस की पत्नी को केवल अपने दोनों बच्चों की देखभाल के लिए उन की जरूरत थी और अब उन के बच्चे बड़े हो गए हैं तो बूढ़ा लाचार बाप, बेटे व बहू के लिए बोझ हो चुका है.

एक दिन अमरनाथ ने मीतेश से कहा, ‘मेरा यहां रहने से कोई मतलब तो निकलता नहीं है, बेहतर होगा कि मुझे भारत भेजने का प्रबंध कर दो.’

यह सुनते ही मीतेश का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. वह चिल्ला कर बोला था, ‘क्या समझ रखा है आप ने हमें. कुबेर का खजाना तो नहीं मिल गया है कि जिसे जब चाहे जितना खर्च कर लो. पूरे 1,500 डालर से कम का हवाई जहाज का टिकट तो आएगा नहीं. कहां से आएगा इतना पैसा? हम अपने को बेच तो नहीं देंगे. यहां घर में आराम के साथ चुपचाप पड़ेपड़े रोटियां तोड़ने में भी कोई तकलीफ होने लगी है क्या?’

‘तो फिर मुझे नीतेश या रीतेश के पास ही भेज दो. कम से कम आबोहवा तो बदलेगी,’ अमरनाथ ने साहस कर के आगे कहा तो मीतेश पहले से भी अधिक झुंझलाता हुआ उन से बोला था, ‘मैं ने उन दोनों को फोन किया था. उन दोनों में से कोई भी आप को रखने के लिए तैयार नहीं है. उन का कहना है कि मैं ही आप को ले कर आया हूं, सो इस मुसीबत को केवल मैं ही जानूं और भुगतूं.’

मीतेश के  मुंह से यह अनहोनी बात सुन कर अमरनाथ ने अपना माथा एक बार फिर से पीट लिया. वह समझ गए कि किसी से कुछ भी कहना और सुनना बेकार ही साबित होगा. वह उस घड़ी को कोसने लगे जब बेटे की बातों में आ कर उन्होंने अपना देश और अपनों का साथ छोड़ा था. एक आह भर कर उन्होंने अपने को पूरी तरह हालात के हवाले छोड़ दिया.

एक दिन बहू अमरनाथ को बड़े ही भोलेपन से अपने साथ स्टोर घुमाने यह कह कर ले गई कि उन का भी मन बहल जाएगा. वैसे भी घर में सदा बैठे रहने से इनसान का मन खराब होने लगता है. स्टोर में खरीदारी करते समय बहू उन से यह कह कर बाहर आ गई कि वह अपना मोबाइल फोन घर पर भूल आई है और उस को मीतेश को फोन कर के यह बताना है कि वह बच्चों को स्कूल से ले आएं.

इतना कह कर मीतेश की पत्नी स्टोर से बाहर निकल कर जो गई तो फिर वह कभी भी उन के पास वापस नहीं आई. बेचारे अमरनाथ अकेले स्टोर का एकएक कोना घूमघूम कर थक गए. फिर जब उन से कुछ भी नहीं बन सका तो थकहार कर स्टोर के बाहरी दरवाजे के पास पड़ी एक बैंच पर बैठ कर अपनी बहू के वापस आने की प्रतीक्षा करने लगे.

इस प्रकार प्रतीक्षा करतेकरते, भूखे- प्यासे उन को शाम हो गई. अंगरेजी आती नहीं थी कि वह अपना दुख किसी को बताते और जो 1-2 भारतीय वहां दिख जाते तो वे केवल उन की ओर मुसकरा कर देखते और आगे बढ़ जाते. उन की जेब में मात्र 2 डालर पडे़ थे, सोचा कि फोन कर लें मगर उन्हें फोन नंबर भी याद नहीं था. कभी भूले से भी उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन उन की यह नौबत आ जाएगी.

बैठेबैठे परेशान से जब रात घिर आई और स्टोर भी बंद होने को आया तो अमरनाथ की समझ में आया कि वह यहां संयोग से अकेले नहीं छूटे हैं बल्कि उन्हें जानबूझ कर छोड़ा गया है. सो इस प्रकार की मनोवृत्ति को अपनी ही संतान के रक्त में महसूस कर अमरनाथ फफकफफक कर रो पडे़. उन की दशा और उन को रोते हुए कुछेक लोगों ने देखा मगर किसी ने भी उन से रोने का कारण नहीं पूछा.

ऐसे समय में स्टैसी नामक महिला स्टोर से बाहर निकली और अमरनाथ को यों रोते, आंसू बहाते देख उन के पास आ गई. बड़ी देर तक वह एक अनजान, भारतीय बूढ़े की परेशानी जानने का प्रयत्न करती रही. जब उस से नहीं रहा गया तो वह अमरनाथ को संबोधित करते हुए बोली, ‘ऐ मैन, व्हाई आर यू क्राइंग?’

स्टैसी के यों हमदर्दी दिखाने पर अमरनाथ पहले से और भी अधिक जोरों के साथ रोने लगे. स्टैसी समझ गई कि इस आदमी को अंगरेजी नहीं आती है अत: वह तुरंत वापस स्टोर में गई और वहां से एक लड़की, जो भारतीय दिखती थी और उसी स्टोर में क्लर्क का काम कर रही थी, को अपने साथ बुला कर बाहर लाई. बाद में उस लड़की के द्वारा बातचीत से स्टैसी को अमरनाथ के सामने आई हुई समस्त परिस्थिति की जानकारी हो सकी. चूंकि अमरनाथ को अपने लड़के और बहू के घर का न तो कोई पता मालूम था औैर न ही कोई फोन नंबर याद था, इस कारण स्टैसी ने नियमानुसार पहले तो स्थानीय पुलिस को फोन किया, फिर बाद में आवश्यक पुलिस काररवाई के बाद वह अमरनाथ को अपनी निगरानी में अपने घर ले आई. घर आ कर सब से पहले उस ने दिन भर के भूखेप्यासे अमरनाथ को खाना खिलाया. इस के बाद उस ने उन से उन की टूटीफूटी अंगरेजी में अतिरिक्त जानकरी भी प्राप्त कर ली.

अब अमरनाथ अमेरिकी स्त्री स्टैसी के साथ रहने लगे. स्टैसी की भी कहानी कुछकुछ उन्हीं के समान थी. उस के भी बच्चे और पति सब थे मगर जैसे उन में से किसी को भी किसी से कुछ भी सरोकार नहीं था. स्टैसी का पति किसी दूसरी स्त्री के साथ रहता था और बच्चे भी अमेरिकी जीवन के तौरतरीकों के अनुसार रहते थे, जो अपनी मां से भूलेभटके किसी त्योहार आदि पर मिल गए तो ‘हैलो’ हो गई.

सिर्फ तुम: भाग 3- जब प्यार बन गया नासूर

गौरव का इंतजार करते करते बहुत देर हो गई, लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं था. पति और कल्पना में समाए हुए प्रेमी के बीच द्वंद्वात्मक स्थिति से हताश वह देर तक भीगी पलकों के साथ झूल को निहारती रही, फिर चल पड़ी घर की ओर. वह घर जो अब घर नहीं, बल्कि मकान का ढांचा भर रह गया था.

भावशून्यता एवं संवादहीनता के कारण अनुपम और मोनिका के लिए अवकाश के दिन भी बोझ बन गए थे. ऐसे ही अवकाश के एक दिन ब्रेकफास्ट के बाद मोनिका और अनुपम अपनेअपने मोबाइल पर चिपटे हुए थे, तभी उन के घनिष्ठ तुषार और नेहा उन से मिलने आ पहुंचे. दोनों नगर निगम में सेवारत थे. तुषार जूनियर इंजीनियर और नेहा वहीं हैड क्लर्क के पद पर. उन्होंने प्रेम विवाह किया था और बहुत खुश थे. चारों लौन में आ गए. बातों ही बातों में दोनों के टूटते संबंध के बारे में जान कर तुषार और नेहा दुखी हो उठे.

घर पहुंच कर दोनों ने आपसी मंत्रणा कर अनुपम और मोनिका के संबंधों को बचाने

की रूपरेखा तैयार की. इस के लिए अनुपम और मोनिका से अलगअलग बात करना जरूरी था.उसी शाम उन्होंने अनुपम को चाय पर बुलाया. चाय पीने के बीच बात शुरू की तुषार ने, ‘‘अनुपम, क्या बात है यों घुटघुट कर क्यों जी रहे हो? जीवन को क्यों नर्क बना रखा है? हम से कुछ छिपा नहीं है.’’

‘‘मोनिका ने मेरा जीवन बरबाद कर दिया है, अब साथ रहना मुश्किल है,’’ अनुपम ने अपने मन की बात कह दी. फिर और कुरेदने पर पूरी भड़ास निकाल दी.

‘‘अरे, हो जाती हैं ऐसी बातें. अभी कुछ नहीं बिगड़ा है. साथ रह रहे हो न,’’ नेहा ने समझाया.

‘‘कैसा साथ, नर्क बना रखा है घर को…’’

‘‘प्यार में बड़ी शक्ति होती है, तुम्हारे प्रेमपाश में बंध गई तो कहीं जाना नहीं चाहेगी. तुम परेशान मत हो, हम मोनिका को भी समझएंगे.’’

‘‘नहीं, अब और नहीं सहा जाता. दूसरा साथी तलाशना ही होगा,’’ अनुपम ने दो टूक कह दिया.

‘‘यह आसान नहीं है और उचित भी नहीं है. तुम्हारी पत्नी है न घर में,’’ तुषार ने समझाया.

‘‘वह जब मुझ से बात ही नहीं करती तो कैसी पत्नी? आखिर मैं इंसान हूं, मुझे भी तो प्रेमसुख चाहिए. कहां जाऊं?’’

‘‘इस के लिए घर में मोनिका है तो? जरा सोचो, बाहर वाली को प्रभावित कर के अपना बनाने में जितना प्रयास करोगे, धन और समय खर्च करोगे, उस से कम में तो मोनिका स्वयं ही तुम्हारी गोद में लुढ़क आएगी और फिर उसे भी तो तुम्हारी जरूरत होगी,’’ नेहा ने अनुपम को छेड़ते हुए कहा.

‘‘अरे, प्रेमिका तो घर में ही है. बाहर तो बेकार ही हाथपैर मार रहे हो. उस का क्या भरोसा? मरीचिका निकली तो? समाज और कानून की भी तो मर्यादाएं हैं. यार, घर में मोनिका नाम की जो लड़की है, उसी को प्रेमिका समझ कर क्यों नहीं फुसलाते? आखिर शादी से पहले भी तो उस के आगेपीछे डोलते रहते थे,’’ कहते हुए तुषार ने आंख मारी तो न चाहते हुए भी अनुपम के चेहरे पर हंसी आ ही गई, ‘‘और फिर घर वाली से प्रेमप्रदर्शन में न तो कोई रिस्क और न ही समाज और कानून का डर.’’

इस पर सभी जोर से हंस पड़े. तुषार ने आगे कहा, ‘‘अनुपम, इस तरह के उतारचढ़ाव

तो हर परिवार में आते ही रहते हैं. इस का अर्थ यह तो नहीं कि स्थिति को संभालने के बजाय दूसरा विकल्प तलाशा जाए.’’

‘‘अच्छा सुनो,’’ नेहा ने तुषार के साथ चुहलबाजी की, ‘‘अगर मैं ने मुंह फेर लिया तो क्या करोगे?’’

‘‘अरी मुहतरमा, आप की मिन्नतें करेंगे, मनाएंगे, फुसलाएंगे, बहकाएंगे, कुछ भी करेंगे, लेकिन तुम्हें अलग नहीं होने देंगे. तुम्हारे बिना हमारा जीवन ही कहां,’’ तुषार ने नेहा की बांह में चिकोटी काट ली.

‘‘ऐसे में किस की मजाल कि तुम्हारे प्रेमजाल से छूट सके,’’ नेहा ने मुसकराते हुए कहा.

तुषार और नेहा के घर से लौटते हुए अनुपम काफी हलका महसूस कर रहा था. उसे लगा जैसे एक बड़ा बोझ उतर गया हो.

दूसरे दिन तुषार और नेहा ने मोनिका को भी शाम की चाय पर अकेले बुलाया, लेकिन उसे अनुपम के साथ हुई बातचीत के बारे में नहीं बताया.

‘‘देखो मोनिका, तुम अंदर ही अंदर घुटघुट कर क्यों जी रही हो? बात क्या है?’’ चाय पीने और औपचारिक बातों के बाद नेहा ने पूछा.

‘‘अनुपम एकदम बदल गए हैं. पहले जैसे नहीं रहे,’’ मोनिका के स्वर में वेदना थी. उस ने भी जो भी मन में था, सब खोल कर रख दिया. उद्वेलित मन थोड़ी सी भी सहानुभूति पर फूट पड़ता है.

‘‘ऐसा नहीं है, तुम्हारी सोच बदल गई है. एक ग्रंथि पाल ली है तुम ने. क्या वह तुम्हें प्रताडि़त करता है, हिंसा करता है तुम्हारे साथ? घरगृहस्थी की खयाल नहीं रखता?’’ तुषार ने एकसाथ मोनिका के सामने कई सवाल रख दिए.

‘‘नहीं, ऐसा तो नहीं है. वे तो हर बात का खयाल रखते हैं. जोर से बोलते तक नहीं. लेकिन बस मेरे लिए उन का प्रेम समाप्त हो गया है. मेरे भी कुछ अरमान हैं… कभीकभी लगता है कि कोई तो हो, जिस के साथ अपना मन हलका कर सकूं,’’ कहते हुए मोनिका फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘देखो मोनिका, तुम दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ है. ईगो से जन्मा एक खालीपन है जो तुम दोनों को खाए जा रहा है. दूसरे साथी के लिए आकर्षण भी इसी खालीपन को भरने के लिए ही है. बस गलती यही है कि हम घर में प्रेम होते हुए भी उसे बाहर तलाशते हैं, यह जानते हुए भी कि उसे पाना बहुत मुश्किल होता है. उस के लिए घर में मिलने वाले प्रेम और खुशियों का गला मत घोटो, प्लीज.’’

थोड़ी देर की खामोशी के बाद नेहा ने समझाया, ‘‘यार, पतिपत्नी के बीच किस बात का ईगो. इस ईगो और चुप्पी ने ही कई हंसतेखेलते परिवारों की खुशियां छीन ली हैं. अनुपम अब भी तुम्हें ही चाहता है. मैं पक्के तौर पर कहती हूं वह भी तुम से मिलने को बेचैन होगा. तुम थोड़ी पहल तो करो,’’ नेहा ने भी समझाया.

‘‘मुझ से नहीं हो सकता अब,’’ मोनिका ने बुझे स्वर में कहा.

‘‘अरे यार समझ तो नारी के पास तो पुरुष को अपना बनाने के हजार गुण होते हैं. पराए पुरुष को अवैधरूप में रिझाने में लगी हो और घर का अपना पुरुष तुम्हारे कब्जे में नहीं आ रहा है, कमाल है, जरा प्रेम की बारिश तो करो, फिर देखना, अनुपम कैसे खुदबखुद तुम्हारे पास खिंचा चला आता है और वह भी खुशामद करता हुआ,’’ नेहा ने उस की कमर में चिकोटी काटी तो वह खिलखिला पड़ी और फिर काफी सहज हो गई.

‘‘मैं तो खुद बेबस हूं इन के सामने. थोड़ा सा भी दूर भागता हूं तो तुरंत इन की कातिल अदाएं अपने मोहपाश में बांध लेती हैं, क्यों देवीजी, ठीक कह रहा हूं न?’’ तुषार ने नेहा की आंखों में झांकते हुए कहा तो सभी खिलखिला पड़े.

तुषार और नेहा के चलाए तीर निशाने पर लगे. मोनिका घर पहुंची तो हिरणी जैसी प्रसन्नता के भाव से भरी हुई थी. कमरे में झंका तो बैड पर अनुपम करवट लिए लेटा था. तो क्या बिना खाए ही सो गया? करुणा से उस की आंखें द्रवित हो गईं. बहुत देर तक छिपती नजरों से उसे निहारती रही. वह उसे मासूम बच्चा सा लगा. भावविह्वलता के साथ वात्सल्य भी उमड़ पड़ा. कई दिनों बाद उस अनुपम को देख रही थी, जिसे पहले प्रेमी के रूप में हर पल अपनी आंखों में और अपने मन में समाए रखा था.

उस की नजरों के सामने प्यार होते समय की सारी यादें घूम गईं. क्या यह वही अनुपम है, जिस के बिना एक भी पल नहीं रह पाती थी, तो अब क्या हो गया? कुछ देर तक उस का चेहरा निहारा तो सारे गिलेशिकवे जाते रहे, सारी दूरियां तिरोहित होती गईं. ‘क्यों न मैं इस लड़के को ही अपना बनाऊं जो मेरे घर में ही है,’ अचानक उमड़े प्रेम से साहस पा कर पास चली गई. अनुपम सो रहा था. वह उस के पास लेट गई और बहुत देर तक उस के चेहरे को निहारती रही. आखिर छोटीछोटी बातों से उपजा ऐसा अहं किस काम का जो जीवन की खुशियां ही छीन ले. लगा जैसे समर्पण में ही जीत है, हार नहीं. पतिपत्नी में कैसा अहं. भावावेश में वह अनुपम के शरीर से बुरी तरह लिपट गई.

‘‘तुम? क्या हुआ?’’ जागने के बाद अनुपम ने पूछा तो मोनिका ने इठलाती भावभंगिमा और कंटीली मुसकान के साथ आंख मार दी. अनुपम के अंदर प्रेमपूरित रोमांस की लहर सी दौड़ गई. उस ने मोनिका को अपने बाहुपाश में जकड़ कर कस कर भींच लिया, ‘‘कहां थीं इतने दिनों से?’’

मोनिका उस की बांहों की जकड़ने में कसमसाती रही, एक अलौकिक

सुख के साथ. बहुत देर तक दोनों यों ही एकदूसरे की बांहों में समाए रहे.

फिर अनुपम ने कहा, ‘‘मेरी ही गलती थी मोना. तुम्हें छोड़ कर बाहर खुशियां तलाश रहा था, जबकि मेरी सब से बड़ी खुशी मेरे घर में ही थी. मुझे माफ…’’

मोनिका ने तुरंत अनुपमा के होंठों पर अपनी उंगलियां रख दीं, बोली, ‘‘जानेमन, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. अपनी जिद को पूरा कराने के लिए तुम्हें दुख पहुंचाती रही, फिर भी तुम ने कुछ नहीं कहा. अनु, मैं कुछ भी कहूं तो मुझे समझने का पूरा अधिकार है तुम्हें. तुम्हारी हर बात मानूंगी. अब इस घर को छोड़ कर सब के साथ उसी घर में रहेंगे.’’

‘‘भूल जाओ पुरानी बातों को. हम घर आतेजाते रहेंगे. मुझे विश्वास है कि परिवार के लोग हमारे अलग रहने की स्थिति को समझ सकेंगे,’’ थोड़ा रुक कर वह फिर बोला, ‘‘मोना, मैं तुम्हें एक सजा देना चाहता हूं.’’

‘‘क्या?’’ मोनिका चौंकी.

‘‘एक पल के लिए भी बातचीत बंद मत करना.’’

जवाब में मोनिका ने अनुपम के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उस के शरीर से कस कर चिपक गई. दिलों की तेज होती धड़कनों के साथ दोनों प्रेमरस में डूब गए. उन्हें लगा कि पतिपत्नी के बीच का प्रेम ही यथार्थ है, परिपूर्ण है. उसे दूसरों में तलाषने की जरूरत नहीं. दूसरों से प्रेम की चाह रखना एक मरीचिका के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं. प्रेम के विकल्प के दिवास्वप्न से अब उन का मोहभंग हो चुका था.

मीरा राजपूत ने पैपराजी को प्यार से दिया जवाब, जीता लोगों का दिल

बॉलीवुड एक्टर शाहिद कपूर ने मीरा राजपूत से शादी की है. शाहिद के दो प्यारे बच्चे हैं मीशा और ज़ैन हैं और वे अपने जीवन का सबसे बेहतरीन दौर जी रहे हैं. वैसे तो शाहिद का नाम करीना कपूर, प्रिंयका चोपड़ा और कई एक्ट्रेसेस के साथ नाम जुड़ चुका है. चॉकलेट बॉय शाहिद कपूर अपनी लेडीलव के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं.

बच्चों को लेकर काफी प्रोटेक्टिव है मीरा राजपूत

हलिए इवेंट में मीरा राजपूत अकेले ही पहुंची थीं और पैपराजी ने उनके निकलते ही चारो तरफ से घेर लिया. मीरा का वहां से जो वीडियो सामने आया है, वो आपका दिल जीत लेगा. मीरा राजपूत को जब फोटोग्राफर्स ने पोज देने को कहा तो उन्होंने फट से कह दिया, ‘मुझे जाने दो, मेरे बच्चों को सुबह स्कूल जाना है.’ इतना कहकर मीरा वहां से निकल गईं. बच्चों के प्रति उनकी चिंता देखकर इंटरनेट यूजर्स को उनपर खूब प्यार आ रहा है.

 

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शाहिद और मीरा की शादी

आपको बता दें, मीरा राजपूत और शाहिद कपूर ने साल 2014 में अरेंज मैरिज की थी. इसके साथ ही उनकी शादी एक हफ्ते तक चली और शादी की तस्वीरों ने सबका दिल जीत लिया. अब दोनों का एक परिवार है, जिसमें उनके दो बच्चे भी हैं. मीरा अक्सर अपने बच्चों को लेकर काफी प्रोटेक्टिव रहती हैं.

मीरा राजपूत ने दिल्ली से की पढ़ाई

मीरा राजपूत ने दिल्ली के वसंत वैली स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की और दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज से अंग्रेजी (ऑनर्स) में ग्रेजुएशन किया है. इतना ही नहीं, मीरा ने अमेरिका से अपनी इंटर्नशिप भी की है. हालांकि, अपने स्कूली दिनों के दौरान, वह आदित्य लाल के साथ रिश्ते में थीं. लेकिन उनकी किस्मत में शाहिद के साथ जुड़ी थी. अब मीरा शाहिद कपूर की पत्नी और दो बच्चों की मां हैं.

नीला आकाश -भाग 1 : क्या नीला दूसरी शादी के लिए तैयार हो पाई?

पति आकाश की असमय मौत के बाद जब महेश ने नीला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह किस नतीजे तक नहीं पहुंच पा  रही थी. एक तरफ महेश था तो दूसरी तरफ अबोध बेटा रूद्र. क्या महेश उस के साथ उस के बेटे को अपना पाएगा… नीला,वैसे तो औफिस से शाम 7 बजे तक घर आ जाती है, लेकिन कभी मीटिंग वगैरह हो तो बोल कर जाती है कि आज उसे घर आने में थोड़ी देर जाएगी. मगर आज तो 9 बजने को थे और अब तक वह औफिस से घर नहीं आई.

सुबह कुछ बोल कर भी नहीं गई थी कि आज उसे घर आने में देर हो जाएगी. जब उस की मेड मंजु ने उसे फोन लगाया, तो नीला का फोन बिजी आ रहा था. इसलिए उस ने उसे मैसेज किया कि रुद्र, नीला का 4 साल का बेटा, बहुत रो रहा है. चुप ही नहीं हो रहा है और उसे भी तो अपने घर जाना है. उस पर नीला ने उसे मैसेज से ही जवाब दिया कि वह एक जरूरी मीटिंग में बिजी है, आने में देर लगेगी.

इसलिए वह मालती (नीला की मां) को बुला ले. मंजु ने जब मालती को फोन कर के कहा कि आज नीला को औफिस से आने में देर लगेगी. इसलिए वे आ कर कुछ देर के लिए रुद्र को संभाल लें. मालती आ तो गईं लेकिन उन्होंने मंजु को कस कर ?ाड़ लगाते हुए कहा, ‘‘पैसे किस बात की लेती हो, जब बच्चे की ठीक से देखभाल नहीं कर सकती हो और यह नीला पता नहीं क्या सम?ा रखा है मु?ो? अरे, मैं क्या कोई फालतू बैठी हूं, जो उस के बच्चे को संभालती रहूं?’’ मंजु ने उन की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि उसे पता है कि मालती से मुंह लगाने का मतलब है खुद ही पत्थर पर सिर मारना.

दरअसल, नीला एक सिंगल मदर है. साथ में वह बैंक में जौब भी करती है. इसलिए रुद्र की देखभाल के लिए उस ने मंजु को रखा हुआ है. मंजु सुबह 9 बजे से ले कर रात 8 बजे तक रुद्र को संभालती है. उस के बाद तो नीला औफिस से आ ही जाती है. वैसे तो नीला का बैंक 6 बजे तक ही होता है, लेकिन कभी मीटिंग की वजह से या बैंक में औडिट चल रहा हो, तब नीला को घर आने में देर हो जाती है. रात के करीब 10 बजे नीला घर आई. धीरे से दरवाजा खोल कर जब वह अंदर कमरे में गई, तो देखा रुद्र मालती अपनी नानी के सीने से लग कर आराम से सो रहा है. ‘‘आ गई तू?’’ नीला के आने की आहट सुन कर मालती तुरंत उठ बैठीं. ‘‘हां, आ गई मां, लेकिन बहुत थक गई आज तो,’’ बैड पर एक तरफ पर्स रखते हुए नीला ने नजर भर कर रुद्र की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘वह अचानक मीटिंग रख दी, इसलिए मैं ने ही मंजु से कहा था कि वह आप को बुला ले. वैसे रुद्र ने आप को ज्यादा परेशान तो नहीं किया न?’’

मालती ने तलखी से कहा, ‘‘यह बता कि ऐसा कब तक चलता रहेगा? आखिर मैं भी कब तक तुम्हारा साथ दे पाऊंगी? उम्र हो चुकी है मेरी भी. थक जाती हूं यहांवहां करतेकरते,’’ बोलते हुए मालती का चेहरा रूखा हो आया. ‘‘पता है मां, लेकिन मैं ने कहा न अचानक मीटिंग आ गई… अब जौब तो छोड़ नहीं सकती मैं,’’ नीला ने अपनी मजबूरी बताई. ‘‘भले तू अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकती, लेकिन मेरी परिस्थिति भी तो सम?ा. मैं खुद बेटेबहू पर आश्रित हूं. मुझे  उन के हिसाब से चलना पड़ता है. इसलिए कह रही हूं रुद्र को इस की दादी के पास छोड़ आ. लेकिन तू सुनती ही कहां है मेरी.’’ ‘‘आप की बात सही है मां. लेकिन रुद्र अभी बहुत छोटा है. उसे मेरी जरूरत है और फिर कौन सा आप को रोजरोज कष्ट उठाना पड़ता है जो आप इतना सुना रही हो,’’

फिल्म समीक्षा कटहलः मनोरंजक तरीके से बिना भाषणबाजी के बड़ा संदेश देती फिल्म

रेटिंग: पांच में से साढ़े तीन स्टार

निर्माताः एकता कपूर, शोभा कपूर,गुनीत मोंगा,अचित जैन

लेखकः अशोक मिश्रा

निर्देशक: यशोवर्धन मिश्रा

कलाकार: सान्या मल्होत्रा,अनंतविजय जोशी,विजयराज,राजपाल यादव,नेहा सराफ व अन्य

अवधिः एक घंटा 55 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

श्याम बेनेगल के लिए ‘‘वेलकम टू सज्जनपुर’’,‘वेलडन अब्बा’ के अलावा ‘ वॉक अलोन’,‘गंजे की कली’,‘बवंडर’,‘समर’ व ‘नसीम’ जैसी फिल्मों के लेखक व गीतकार अशोक मिश्रा के लेखन की अपनी अलग पहचान है. उन्हे सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है. अब वही अशोक मिश्रा ने फिल्म ‘‘कटहल’’ का लेखन किया है, जिसका निर्देशन उनके बेटे यशोवर्धन मिश्रा ने किया है.

विधायक के दो कटहल की चोरी के इर्द गिर्द घूमती फिल्म ‘‘कटहल’’ में कई अहम मुद्दे उठाए गए हैं. फिल्म में इन दिनों जिस तरह से पत्रकारों के साथ व्यवहार किया जा रहा है,उसका भी बाखूबी सुंदर चित्रण है,काश ! फिल्मकार स्वयं इन दृश्यों से कुछ सबक ले पाते.

बहरहाल, फिल्म ‘‘कटहल’’ 19 मई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफिलक्स’ पर स्ट्रीम हो रही है. फिल्म देखते हुए दर्शकों को उत्तर प्रदेश के विधायक आजम की भैंस की चोरी सहित कई घटनाक्रम याद आ जाएं,तो गलत नहीं होगा.

अमूमन देखा जाता है कि ज्यादातर फिल्में गंभीर समस्याओं को उठाती हैं,मगर उन समस्याओं की गहराई में जाने की बजाय सतही स्तर पर ही बात करती हैं. जबकि फिल्म ‘‘कटहल’’ हलके फुलके विशय को उठाकर समाज व आम इंसान से जुड़े कई गंभीर मुद्दों पर कहीं हास्य तो कहीं व्यंग के साथ बात करती है. यह लेखक व निर्देशक की समाज व देश की गंभीर समझ से ही संभव हो पाया है.  बिना नाम लिए किसी को भी कटघरे में खड़ा करने में फिल्मकार विचलित नहीं हुए है.

कहानीः

फिल्म की कहानी मथुरा के नजदीक मोबा से शुरू होती है, जहां विधायक पटेरिया (विजयराज) के बगीचे से दो कटहल चेारी हो गए हैं. विधायक के अनुसार यह मामूली कटहल नही है. बल्कि यह मलेशिया के ‘अंकल हांग ब्रीड’ प्रजाति के हैं. हर कटहल का वजन 15 किलो है. विधायक के फान पर एस पी अंग्रेज सिंह रंधावा (गुरपाल सिंह) ,डीएसपी शर्मा,इंस्पेक्टर महिमा बसोर (सान्या मल्होत्रा), हवलदार सौरभ (अनंत विजय जोशी ),हवलदार मिश्रा, हवलदार कुंती (नेहा सराफ ) के साथ विधायक के बंगले पर पहुंच जाते हैं. विधायक की हां में हां मिलाते हुए कटहल पके उससे पहले उनकी तलाश कर पहुंचाने की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर महिमा बसोर को दी जाती है. विधायक पटारिया को पसंद नहीं कि इंस्पेक्टर महिमा उनके कालीन पर जूते पहने पैर रख दें.

इंस्पेक्टर महिमा अपने तरीके से कटहल की खोज शुरू करती है. पर वह स्थानीय पत्रकार अनुज संघवी को महत्व नही देती. तो वहीं वह कांस्टेबल सौरभ द्विवेदी संग प्यार की पेंगें भी बढ़ा रहीं है. महिमा का शक विधायक के यहां काम करने वाले माली पर है, जिसकी बेटी अमीरा गायब है. तभी महिमा को पता चलता है कि कितनी लड़कियां गायब हो गयी हैं, पर उनकी गुमशुदा की रपट फाइल में बंद है. वह अमीरा पर कटहल चोरी करने का आरोप लगाकर उसकी खोज शुरू करती है और कई नई बातें सामने आती हैं. अपने मकसद में कामयाब होने के लिए महिमा ,पत्रकार अनुज के कंधे पर बंदूक रख कर चलाती है, जिसकी कीमत पत्रकार अनुज को चुकानी पड़ती है.

लेखन व निर्देशनः

‘कटहल’ की चोरी को लेखक ने सामाजिक व्यंग्य घटना के प्रतीक के तौर पर लेकर सारे गंभीर मुद्दों को उसी के इर्द गिर्द बुने हैं. लेखक अशोक मिश्रा और उनके निर्देशक पुत्र यशोवर्धन मिश्रा इस फिल्म में शानदार, विचारोत्तेजक, अनूठा सामाजिक व्यंग्य परोसने में सफल रहे हैं. दुर्लभ प्रजाति के कटहल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच करते करते पुलिस इंस्पेक्टर उन गंभीर अपराधों की जांच करने लग जाती हैं,जिन्हे अब तक पुलिस विभाग ने दबा रखा हुआ होता है. तो कहानी को यह अनूथा मोड़़ देना एक लेखक की कुशल सोच का परिचायक है.  ग्रामीण पृष्ठभूमि के सभी किरदार अपनी जड़ों से जुड़े व यथार्थ परक नजर आते हैं. फिल्मकार ने हर किरदार के व्यक्तित्व को ही नही बल्कि उसके इर्द गिर्द के सामाजिक रहन सहन व माहौल आदि को भी यथार्थ के धरातल पर फिल्म में पेश किया है. फिल्म में शहर में पुलिस की चुनौतियों, सत्ता के खेल, नौकरशाही, जातिगत व लैंगिक पूर्वाग्रहों को भी चित्रित किया गया है. एक महिला के घरेलू कर्तब्यों के साथ नौकरी की मांग के बीच सामंजस्य बैठाने की बात को बाखूबी चित्रित किया गया है. फिल्मकार ने पुलिस विभाग की कार्यषैली पर कुठाराघाट करने के साथ ही पत्रकारों यानी कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की जो हालत है,उस पर भी यह फिल्म निडरता के साथ अपनी बात कह जाती है. फिल्म में जिस तरह से पुलिस इंस्पेक्टर महिमा, पत्रकार अनुज का उपयोग अपना मतलब साधने के लिए करती है, लगभग वही तरीका बौलीवुड से जुड़े लोग पत्रकारोें के साथ अपनाते हैं. महिमा बसोर पुलिस इंस्पेक्टर है,जो कि एक उंची जाति के हवलदार सौरभ द्विवेदी से प्यार करती है.  पर पुलिस विभाग के ही असक्षम व महिमा की सफलता से जलन रखने वाले वरिष्ठ पुलिस अफसर उसके जातिगत उपनाम का मजा उड़ाने से बाज नहीं आते. तो वहीं समाज के लोगों की नीची जाति को लेकर जो सोच है,उसे भी फिल्म में उजागर किया गया है. महिमा को भी जाति व लैंगिक पूर्वाग्रहों से गुजरना पड़ता है. महिमा जल्द ही अपनी बुद्धि का उपयोग करके इन पूर्वाग्रहों को अपने लाभ के लिए बदल देती है. यह लेखन की खूबी है. सौरभ और महिमा की शादी के बीच जाति के अलावा दोनों के बीच पद का अंतर भी दीवार बना हुआ है. इस तरह की सोच को बदलने की जरुरत को ही यह फिल्म रेखंाकित करती है. राजनीतिक परिवारों में रिष्तों की क्या अहमियता होती है, उसका बड़ा सटीक चित्रण किया गया है. विधायक पटेरिया अब अपने दामाद की इज्जत नही करते,क्योंकि अब दामाद के पिता छतरपुर के पूर्व विधायक जो हो गए हैं. बतौर निर्देशक यशोवर्धन की यह पहली फिल्म है. वह अपने पिता के शानदार सामाजिक व्यंग्य के साथ न्याय करने में सफल रहे हैं. कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं. मसलन-‘‘राजनीति में, जो काम सदाचार, उच्च विचार से नहीं होते, कभी कभी अचार से हो जाते हैं. ’’

अभिनयः

विधायक के किरदार में विजय राज का अभिनय याद रह जाने वाला है. इंस्पेक्टर महिमा बसोर की भूमिका में सान्या मल्होत्रा लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेती हैं. वह मिठास के साथ बात करते हुए दृष्य की मांग के अनुसार कड़ा रुख अपनाने से नहीं हिचकिचाती हैं. मगर यह आम बौलीवुड पुलिस इंस्पेक्टर से कोसों दूर है. निजी जीवन और नौकरी के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए संघर्षरत पुलिस हवलदार कुंती के किरदार में नेहा सराफ का अभिनय शानदार है. इंस्पेक्टर महिमा के प्रेमी हवलदार सौरभ के किरदार को सही मायनों में आनंत विजय जोशी ने जिया है. स्थानीय मोगा चैनल के पत्रकार अनुज के किरदार में राजपाल यादव हैं. इस फिल्म में वह मात खा गए हैं. वह अपने तरीके से दर्शकों को हंसाने का असफल प्रयास करते हैं. उनकी विग साफ नजर आती है.

आखिरी बिछोह: भाग-2

अपना दुख अपनी नाराजगी, अपनी हताशा में डूबा रहा और शादी में नहीं आया. वास्तव में छोड़े गए संबंधों को आगे खूबसूरती से निभाना आदमी के अंदर की ताकत, ईमानदारी, सचाई और पवित्रता पर निर्भर करता है. मैं मानता हूं कि तुम्हारे अंदर मुझ से ज्यादा आत्मविश्वास है.’’

अनुज ने अपनी शैली में ये सब सोचसमझ कर नित्या को खुश करने के लिए कहा था पर वह उस के स्वभाव को अच्छी तरह जानता था. नित्या के चेहरे को देख कर उसे लगा कि वह उस के कथन खासतौर पर ‘पवित्रता’ शब्द को ले कर प्रतिक्रियात्मक हो सकती है. वह व्यग्र हो गया और फिर से खड़ा हो कर विदा मांगने लगा.

नित्या ने चेहरा सामान्य किया और उदारता बरतते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं भी थक गई हूं. आराम करती हूं… शाम को मिलते हैं.’’

‘‘ठीक है मैं शाम 6 बजे आता हूं.’’

‘‘हां, तुम्हारा कमरा नंबर क्या है?’’

‘‘350 यही बगल वाला,’’ कह वह चल पड़ा.

नित्या ने पीछे से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे कमरे में आती हूं.’’

अनुज थका था पर मस्तिष्क में उमड़ रहे खयालों ने सोने नहीं दिया. वह लेटा भी तो महज करवटें बदलता रहा. इस मनोस्थिति में वह समय से पहले तैयार हो कर नित्या की प्रतीक्षा करने लगा. नित्या आराम से आई. घड़ी पर नजर डाली तो 6 बज चुके थे. अब तक वह नित्या से आगे मुलाकात की कई बार रिहर्सल खयालों में कर चुका था. नित्या के आते ही उस ने औपचारिक रूप से चायकौफी के लिए पूछा तो नित्या ने इनकार कर दिया.

अनुज का अनुमान सही था. नित्या उस की बातों से आहत हुई थी खासतौर पर ‘पवित्रता’ को ले कर. उस ने बिना भूमिका के प्रतिक्रिया दी, ‘‘मन और देह की पवित्रता तुम्हारी लिजलिजी भावुकता और चिपचिपी मनोवृत्ति का हिस्सा है. मेरे जीने के तरीके को तुम अच्छी तरह जानते हो. मैं समाज और परंपराओं की विरोधी नहीं हूं पर बंधी मान्यताओं में भी मैं नहीं जी सकती हूं. तुम भले ही इस के लिए मुझे उलाहना दे सकते हो.’’

‘‘नहीं, मेरा ऐसा कोईर् आशय नहीं था. मैं ने तो बस यह कहने का प्रयास

किया था कि छूटे संबंधों को तभी निभाया जा सकता है जब मन में उन के लिए जगह बची हो. इस से भी ज्यादा मेरा यह कहना था कि छूटे संबंधों में अगर आगे निभाने का सिलसिला बनता है, तो इस का मतलब है कि हम ने संबंधों को जितनी ईमानदारी से निभाया है उतनी ही ईमानदारी से भी छोड़ा है.’’

अनुज अपनी सफाई में बोलते समय खुद ही भ्रमित हो गया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या कहा जाए, इसलिए वह चुप हो गया.

नित्या के चेहरे से साफ था वह इस सफाई से संतुष्ट नहीं है. उस ने अपनी आक्रामकता जारी रखी, ‘‘तुम हर चीज को फीमेल की ईमानदारी और पवित्रता से जोड़ने की मानसिकता से अभी तक बाहर नहीं आए हो. तुम्हें शायद अच्छी तरह मालूम है कि तुम्हारे और मेरे बीच जो फासला बना उस की सब से बड़ी वजह तुम्हारी यही लिजलिजी मानसिकता थी. अब तो तुम्हारे शरीर में थुलथुलापन भी आ गया है,’’ और फिर नित्या ने अनुज के पेट पर हलकी सी चपत लगा दी.

अनुज जैसे शर्मिंदगी में डूब गया. वह शुरू से ही नित्या के बिंदास व्यक्तित्व की चपेट में दबा सा रहा था. वह जानता था कि इस स्थिति से कैसे पार पाना है.

उस ने आत्मसमर्पण की मुद्रा में कहा, ‘‘तुम्हारी इस बेबाकी का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूं. तुम्हारे और रुचिर के संबंधों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए मैं ने अनजाने में जो टिप्पणी की उस के लिए मुझे खेद है. जहां तक तुम्हारे और मेरे बीच बने संबंधों के फासलों का प्रश्न है शायद मेरी कमी है. मैं कभी खुद को पूरी तरह समझा नहीं पाया वरना मेरी सोच किसी भी रूप में तुम्हारे जीने के तरीके के विरुद्ध नहीं है. बस अफसोस है तो यही कि हम ने संबंधों को फासलों के साथ जीया है.’’

‘‘इस में मैं ने छिपाया क्या है? तुम्हारी भाषा में कहा जाए तो मैं ने संबंधों को ईमानदारी के साथ निभाया है, भले ही तुम कन्फ्यूज्ड रहे हो… मैं हमेशा क्लियर रही हूं. मैं ने तुम्हें हमेशा दोस्त की तरह देखा है… कभी लाइफपार्टनर की तरह नहीं देखा है.’’

अनुज का दर्द छलक आया. उस के दिल का प्रवाह खुल गया, ‘‘हम दोस्त रहे हैं पर दोस्ती के प्रति हमारा नजरिया अलगअलग रहा है, हमारी परस्पर उम्मीदें अलगअलग रही हैं. मैं ने तुम्हें दोस्त के रूप में स्वीकार किया है. यह दोस्ती मैं बनाए रखना चाहता था. मैं मानता हूं तुम्हारी शादी में सम्मिलित नहीं हुआ पर अफसोस तुम ने शादी के बाद दोस्ती तोड़ दी और दूरी बना ली. तुम ने अपने फोन पर मुझे ब्लौक कर दिया. हो सकता है तुम ने अपना नंबर बदल दिया हो. लंबे समय से मैं तुम से बात भी नहीं कर पाया.’’

‘‘तुम जानते हो मैं खुली किताब की तरह हूं. तुम्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला तो गलती तुम्हारी है. खैर, आज हम साथ हैं. मौका आने दो तुम्हारे दिल में जो सवाल हैं उन के जवाब मिल जाएंगे… तुम आजकल क्या कर रहे हो?’’

‘‘क्या करता… खानदानी दुकान संभाल

रहा हूं.’’

‘‘तभी शक्ल भी बनिए की बना ली है.’’

नित्या का स्वभाव है कि वह बीचबीच में कड़े व्यंग्य जरूर करती है.

पर वह भी जैसे इन व्यंग्यात्मक टिप्पणियों का आदी हो चुका था. उस ने हमेशा की तरह व्यंग्य को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘तुम आजकल क्या कर रही हो?’’

‘‘मैं दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी में एमबीए के छात्रों को पढ़ा रही हूं.’’

‘‘वैसे भी तुम्हारी आदत दूसरों को पढ़ाने की रही है,’’ अपने स्वभाव के विपरीत अनुज ने परिहास किया… शायद व्यंग्यात्मक टिप्पणी का प्रतिउत्तर दिया था.

नित्या ने पुअर जोक कह कर अनुज की टिप्पणी की हवा निकाल दी. इतनी चर्चा के बाद अभी केवल 7 बजे थे. डिनर के लिए काफी वक्त बचा था. अनुज ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो, कहीं घूम आते हैं.’’

‘‘नहीं मैं थकी हूं. मेरी घूमने की इच्छा नहीं हो रही है.’’

‘‘कुछ स्नैक्स और्डर कर देता हूं…

आखिरी बिछोह: भाग-1

होटलकी लिफ्ट में नित्या दिखी, तो अचानक बरसों बाद नित्या से मिलने के रोमांच से वह घिर गया. नित्या के शरीर में उम्र का भराव आ गया था. देह मांसल हो गई थी. कालेज की छरहरी लड़की से परिपक्व नित्या का व्यक्तित्व तुलनात्मक रूप से ज्यादा आकर्षक लग रहा था. लिफ्ट में 6 लोग थे. नित्या ने या तो उसे पहचाना नहीं या फिर उसे देख नहीं पाई. उसे देखने के रोमांच में डूबा वह जैसे नित्या से बात करना ही भूल गया. उसे तीसरी मंजिल पर जाना था. जब तक वह कुछ कहने का मन बनाता, तीसरी मंजिल आई गई और लिफ्ट

रुक गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही वह बाहर आ गया.

इन पलों में उस के दिमाग में इतने प्रश्न उमड़े कि उन की गिनती करना मुश्किल था. इन पलों में उस के दिमाग में इतने दृश्य चलायमान हुए कि उन्हें ठीक से देख पाना भी मुश्किल था. लिफ्ट से बाहर निकलते समय वह मात्र यह सोच रहा था कि नित्या किस मंजिल पर जाएगी

वह सोच ही रहा था कि नित्या भी लिफ्ट से बाहर आ गई. उस ने सोचा कि नित्या उसे देख कर रुकेगी पर वह उस पर नजर डाल कर आगे बढ़ गई. अपनी उपेक्षा से वह बेचैन हो गया, फिर उस ने मन को समझाया कि हो सकता है वह उसे पहचान न पाई हो. आखिर कितना लंबा

समय बीत गया है दोनों की मुलाकात को हुए.

वह नित्या के पीछेपीछे चल दिया. नित्या जा कर उस के कमरे के ठीक बगल वाले कमरे के सामने रुकी और फिर पर्स से चाबी निकाल कर दरवाजे का ताला खोलने लगी. नित्या उस के बगल वाले कमरे में रुकी है, यह जान कर उस के सवाल जैसे रुक गए. उस की बेचैनी कम हो गई. नित्या से मुलाकात का मौका अब बहुत करीब नजर आ रहा था. उस ने देखा कि नित्या दरवाजा नहीं खोल पा रही है.

उस का उतावलापन छलक गया. अत: उस ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘कैन आई हैल्प यू?’’

नित्या ने पलट कर उस की ओर गुस्से में ऐसे देखा जैसे आम लड़की फ्लर्ट करने वाले पुरुष को देखती है.

वह एक पल के लिए सकुचा गया. फिर हड़बड़ाहट में कहा, ‘‘तुम ने मुझे पहचाना नहीं?’’

नित्या ने उस की ओर देखा और फिर दिमाग पर जोर देते हुए कहा, ‘‘अरे, अनुज… रियली सौरी. मेरे दिमाग में तो अभी तक तुम्हारी वही घुंघराले बालों वाले दुबलेपतले लड़के की छवि थी,’’ और फिर हंसने लगी.

अनुज ने दरवाजा खोला तो नित्या ने उसे कमरे के अंदर आने का निमंत्रण दिया. अनुज जैसे इस प्रतीक्षा में ही था. अत: चुपचाप नित्या के पीछेपीछे कमरे में आ गया.

नित्या आते ही पलंग पर पसर गई, ‘‘आज तो बहुत थक गई हूं. प्लीज, अनुज 2 कप चाय का और्डर दे दो.’’

अनुज ने रूम सर्विस पर चाय का और्डर दिया और फिर वह भी आराम से कुरसी पर बैठ गया. संवाद शुरू करने का कोई सिरा अनुज के हाथ नहीं आ रहा था. नित्या भी आंखें बंद कर पलंग पर थकान मिटा रही थी. कमरे में चाय आने तक चुप्पी छाई रही. चाय आते ही नित्या उठ कर पलंग पर बैठ गई. दोनों चाय पीने लगे.

अनुज ने यों ही संवाद शुरू करने की गरज से कहा, ‘‘मैं तो तुम से मुलाकात की उम्मीद ही खो चुका था.’’

नित्या ने जैसे उसे अनसुना करते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो यह कल्पना भी नहीं की थी कि तुम इतनी बदली हुई काया के साथ मिलोगे. तुम तो आधे गंजे हो चुके हो, पेट भी अधेड़ों की तरह बाहर आ गया है. इस उम्र में भी तुम 40-50 के लगने लगे हो,’’ और फिर हंसने लगी.

अनुज झेंप गया और फिर अपना ध्यान इस ओर से हटाने के लिए चुपचाप चाय पीने लगा. नित्या की हंसी रुकने के बाद कुछ पलों तक खामोशी छाई रही. अनुज नित्या के मजाक से आहत हो गया था. उस ने इस स्थिति से उबरने के लिए प्रश्न किया, ‘‘लगता है तुम मुझे केवल मेरे घुंघराले बालों और खूबसूरत शरीर के लिए ही पसंद करती थीं.’’

‘‘तुम तो बुरा मान गए. शारीरिक सुंदरता मानवीय पसंद का महत्त्वपूर्ण फैक्टर है. सब से पहले किसी व्यक्ति का शारीरिक सौंदर्य ही देखा जा सकता है. हां, हम जिसे जान जाते हैं उस के आंतरिक सौंदर्य को भी देख पाते हैं. तब पसंद में आंतरिक सौंदर्य का तत्त्व भी प्रधानता से जुड़ जाता है. तुम तो मेरे पुराने मित्र हो. मैं ने तो एक मित्र के नाते तुम्हारी ईमानदार समीक्षा की थी,’’ नित्या ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘चलो, तुम्हें यह तो याद है कि हम कभी मित्र थे.’’

नित्या को लगा कि अनुज ज्यादा आहत हो गया है, इसलिए उस ने आगे कुछ नहीं कहा. वह केवल मुसकरा दी. यों तो दोनों के पास चर्चा करने के लिए एक लंबा अतीत था, जो उन्होंने साथ गुजारा था, पर न जाने क्यों दोनों के बीच खामोशी पसरी थी. अनुज की अकुलाहट बढ़ रही थी. वह किसी भी हालत में इस मुलाकात को इतनी औपचारिक चुप्पी के साथ नहीं बिताना चाहता था. अत: उस ने चुप्पी में सेंध लगाते हुए कहा, ‘‘भोपाल कैसे आना हुआ?’’

‘‘अपने ऐक्स हसबैंड की शादी में आई थी,’’ नित्या ने बिंदास अंदाज में कहा.

‘‘मजाक कर रही हो?’’

‘‘इस में मजाक क्या है? रुचिर से मेरा तलाक शादी के 2 साल बाद ही हो गया था. तुम्हें शायद जानकारी नहीं है. हां, इस दौरान हमारा संवाद भी नहीं हुआ. अगर बात होती तो यह बात मैं तुम्हें जरूर बताती. रुचिर ने मेरी सहेली ऋचा से शादी की. मुझे निमंत्रण दोनों ने दिया था और आग्रह भी बहुत किया था, इसलिए चली आई.’’

अनुज अवाक सा नित्या की ओर देखता रह गया. नित्या के चेहरे पर न उदासी थी और न ही आक्रोश था. उस के चेहरे से लग रहा था जैसे वह किसी खास रिश्तेदार की शादी अटैंड करने के बाद बहुत उत्साह के साथ वापस आई है.

अनुज कुछ कहना चाहता था पर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. फिर उस ने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा, ‘‘तुम ने भी अपनी शादी पर आग्रह किया था पर शायद मैं कमजोर पड़ गया था.

मेरे ख्वाबों में जो आए

तलाकशुदा अनुपा अपनी जिंदगी दोबारा शुरू करना चाहती थी, मगर जब मनीष नाम के शख्स से उस की शादी की बात चली तो फिर क्या हुआ कि उसे शादी से ही नफरत होने लगी. अनुपाबहुत देर तक जीवनसाथी की वैबसाइट पर कमल का प्रोफाइल चैक करती रही. कमल का 3 वर्ष पहले डाइवोर्स हुआ था और उस का 12 साल का बेटा था. अनुपा का खुद विवाह के 5 वर्षों के बाद ही अपने पति से अलगाव हो गया था, मगर डाइवोर्स की प्रक्रिया इतनी लंबी थी कि पूरे सात वर्ष लग गए. आज अनुपा 38 वर्ष कीहो चुकी थी.

मगर शरीर की बनावट के कारण वह 30 वर्ष से अधिक की नहीं लगती थी. घर में उस के भाई, बहन सब अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त थे. बूढ़े मातापिता को अनुपा के पास छोड़ कर वे अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर चुके थे. मम्मी, पापा भी जबतब सब रिश्तेदारों के सामने अनुपा की जिम्मेदारी का दुखड़ा रोते थे, मगर कौन किस की जिम्मेदारी उठा रहा है यह बस अनुपा ही जानती थी.

कभी मम्मी का डाक्टर से अपौइंटमैंट होता तो कभी पापा का. बड़ी बहन और छोटा भाई भी छुट्टियों में आ कर मम्मी, पापा की खैरखबर ले लेते थे, मगर अपनी प्राइवेसी में वे उन का दखल नहीं चाहते थे.

आज मम्मीपापा ने फिर से अनुपा के लिए एक रिश्ता ढूंढ़ कर रखा था. मगर अनुपा कैसे अपने मम्मीपापा को सम झाए कि वह दोबारा शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहती. पहली शादी में वह सब पा चुकी थी. उस के बहुत से पुरुष मित्र थे और वह ऐसे ही हंसतेखेलते जिंदगी काटना चाहती थी.

आर्थिक रूप से अनुपा स्वभावलंबी थी. पहली शादी के टूटने के बाद, कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने के कारण अब भावनात्मक रूप से भी स्वतंत्र थी और शारीरिक जरूरतों को पूरी करने के लिए उस के पास औप्शंस की कमी

नहीं थी.

मगर उसे हंसताखेलता देख कर अनुपा के परिवार को शक होने लगता था. परिवार अनुपा को शादी के खूंटे से बांधना चाहता था. अनुपा का प्रोफाइल उस के परिवार ने मैट्रिमोनियल साइट्स पर डाला हुआ था और कमल का इंट्रैस्ट वहीं आया था. अनुपा का मन नहीं था पर फिर भी मम्मीपापा के कारण अनुपा ने कमल से मिलना निश्चित कर लिया.

अनुपा ने शनिवार की शाम को कमल से मिलने के लिए चुना. उस ने आसमानी रंग की साड़ी पहनी थी और बाल खुले ही छोड़ दिए थे. छोटी सी बिंदी और हलकी लिपस्टिक में वह दिलकश लग रही थी.

अनुपा के मन में ढेर सारी बातें थीं. जब अनुपा ने रंगोली होटल का दरवाजा खोला तो कमल वहां पहले से ही बैठा था. कमल के

बराबर में एक 12 वर्ष के करीब का लड़का भी बैठा था.

अनुपा को देख कर कमल उठ गया. उस ने अनुपा को ठीक से देखा भी नहीं. पूरा समय अपने बेटे युग के बारे में ही बात करता रहा. अनुपा को ऐसा महसूस हुआ, कमल को अपने लिए बीवी नही, अपने बेटे युग के लिए एक केयरटेकर चाहिए. उसे लगा जैसे अगर थोड़ी देर वह और बैठी तो उस का दम घुट जाएगा.

कमल के जाते ही अनुपा ने अपने लिए एक ड्रिंक और्डर किया. पहले ड्रिंक के बाद उस का मन फूल सा हलका हो गया, दूसरे ड्रिंक के बाद अनुपा के ऊपर ऐसा नशा छाया कि वह उठ कर डांस करने लगी.

कुछ ही देर बाद एक आकर्षक नौजवान अनुपा के साथ थिरकने लगा. लगभग आधे घंटे बाद दोनों ने 1-1 ड्रिंक और लिया और फिर थिरकने लगे. लड़के का नाम कशिश था और वह सौफ्टवेयर कंपनी में प्रोजैक्ट मैनेजर था. अनुपा और कशिश लगभग 12 बजे तक साथ बैठे रहे. जब 12 बजे कशिश ने अनुपा को छोड़ा तो अनुपा के मम्मीपापा जगे हुए थे.

मम्मी चहकते हुए बोलीं, ‘‘कैसा रहा?’’

अनुपा बोली, ‘‘कुछ नहीं, उसे पत्नी नहीं अपने बच्चे के लिए मां चाहिए.’’

पापा बोले, ‘‘तो ठीक है न तुम्हें भी मां कहने वाला कोई मिल जाएगा.’’

अनुपा मुसकराते हुए बोली, ‘‘मु झे बेटा नहीं, जीवनसाथी चाहिए,’’ इस से पहले मम्मी कुछ बोलतीं, अनुपा ने दरवाजा बंद कर लिया.

कपड़े बदलते हुए कशिश के कौंप्लिमैंट्स याद कर के मन ही मन मुसकरा उठी थी.

आज की रात बेहद हसीन थी. अभी बैड पर

लेटी ही थी कि कशिश का मैसेज आ गया. वह अनुपा को दोपहर लंच के लिए इनवाइट कर

रहा था.

अनुपा जब अगले दिन लंच के लिए

तैयार हो रही थी तभी मम्मी बोलीं, ‘‘मु झे

थोड़ा जहर दे दे अनुपा, तू क्यों नहीं अपना घर बसाना चाहती है? क्या इस उम्र में तु झे कोई राजकुमार मिलेगा?’’

अनुपा बोली, ‘‘राजकुमार नहीं मम्मी हमसफर चाहिए और अगर नहीं मिला तो मैं ऐसे ही खुश हूं.’’

मम्मी कड़वाहट के साथ बोलीं, ‘‘न जाने कौन होगा तेरे ख्वाबों का राजकुमार.’’

रेस्तरां में कशिश पहले से ही बैठा था. लंच के बाद थोड़ी इधरउधर की बातें हुईं और फिर कशिश और अनुपा लौंगड्राइव के लिए निकल गए.

कार को एक सुनसान जगह पर रोक कर कशिश के हाथ धीरेधीरे अनुपा के शरीर के ऊपर रेंगने लगे. अनुपा ने पहले धीरे से मना किया, मगर जब कशिश के हाथ रुक ही नहीं रहे थे तो अनुपा ने कशिश का हाथ पकड़ कर जोर से  झटक दिया.

कशिश गुस्से में फुफकारते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे जैसी बूढ़ी औरत के साथ मु झे मजा ही क्या आएगा.’’

अनुपा कार से उतरती हुई बोली, ‘‘तुम्हारे जैसे थर्डग्रेड लोफर के साथ किसी 20 साल की लड़की को भी मजा नही आएगा.’’

उस के बाद अनुपा ने वहीं से अजय को

कौल किया. अजय करीब 15 मिनट

बाद पहुंच गया. अजय अनुपा का फ्रैंड था या

यों कहें फ्रैंड से कुछ ज्यादा था. दोनों के पास जब भी समय होता तो वो लौंगड्राइव पर निकल जाते थे. अजय एक तरह से अनुपा का पार्टटाइम हसबैंड था.

अजय का भी अपनी पत्नी से कुछ वर्ष पहले अलगाव हो गया था. मगर अजय और अनुपा दोनों ही एक बार शादी का लड्डू चखने के बाद दोबारा उसे खा कर अपनी जिंदगी खराब नही करना चाहते थे.

अनुपा को कार में बैठाते हुए अजय

बोला, ‘‘आज क्या हो गया, किस के साथ

आई थी?’’

अनुपा आंखों में पानी भरते हुए बोली, ‘‘मु झे बूढ़ी बोल रहा था जब मैं ने उसे उस की सीमा लांघने को मना कर दिया तो.’’

अजय हंसते हुए बोला, ‘‘देखा  25 साल

के लड़के के लिए तो तू बूढ़ी ही होगी. मगर यह तुम ने बिलकुल सही किया और आगे से हर किसी पर इतनी जल्दी विश्वास करने की जरूरत नहीं है.’’

फिर अजय अनुपा को कौफी पिलाने के लिए ले गया. जब शाम 6 बजे अनुपा लौटी तो मम्मी गुस्से में भरी बैठी थीं और अनुपा को देखते ही बोलीं, ‘‘क्या सोच रखा है तुम ने? हम तेरे कारण अपना घरवार छोड़ कर बैठे हुए हैं. बहू की सेवा और पोतेपोतियों के साथ न खेल पा रहे हैं पर तू तो 16 साल की लड़की को भी मात कर रही है.’’

पहले अनुपा इन बातों पर आंखों में पानी भर लेती थी और पूरापूरा दिन घर में खुद को कैद कर के रखती थी. मगर जब वह धीरेधीरे डिप्रैशन में जाने लगी तो उस की एक सहकर्मी उसे काउंसलर के पास ले गई. वहीं अनुपा की अजय से मुलाकात हुई थी.

अजय के साथ धीरेधीरे अनुपा की गहरी दोस्ती हो गई थी. जब से अजय अनुपा की जिंदगी में आया था अनुपा का जिंदगी जीने

का नजरिया ही बदल गया था. अनुपा के परिवार और समाज की नजरों में अनुपा पथभ्रष्ठा हो

गई थी.

आज जब अनुपा दफ्तर से घर पहुंची तो उस की बड़ी दीदी शिखा आई हुई थी. शिखा अपने दूर के देवर का रिश्ता ले कर आई थी जिस की हाल ही में पत्नी की मृत्यु हो गई थी.

शिखा चहकते हुए बोली, ‘‘अनु, सब से अच्छी बात यह कि वह इसी शहर में रहता है तो न तु झे नौकरी बदलनी पड़ेगी और मम्मीपापा को भी तू आराम से देख पाएगी.’’

अनुपा को लगा ऐसी शादी के बाद तो उस की दोहरी जिम्मेदारी हो जाएगी, मगर अनुपा अपने परिवार को मना नहीं कर पाई थी.

शाम को जब अनुपा ने अजय को इस रिश्ते के बारे में बताया तो अजय बोला, ‘‘देख ले हो सकता है वह वाकई तुम्हारे काबिल हो.’’

शाम को शिखा का देवर मनीष अपने

परिवार के साथ आया. मनीष का

अपना व्यापार था और उस के 10 और 12 साल के दो बच्चे थे.

जब अनुपा तैयार हो कर आई तो मनीष लगातर अनुपा को क्षुधा भरी नजरों से घूर रहा था.

अनुपा इतने पुरुषों से मिल चुकी थी, मगर

मनीष की आंखें न जाने क्यों उसे असहज कर रही थी.

थोड़ी देर बाद मनीष ने शिखा से कहा, ‘‘भाभी, मैं अनुपा को थोड़ी देर घुमा कर ले आऊं क्या?’’

शिखा ने खुश होते हुए कहा, ‘‘क्यों नहीं.’’

कार में बैठते ही मनीष अनुपा से बोला, ‘‘तुम ऐसे क्यों छुईमुई सी

हुई जा रही हो? एक बार शादी

हो चुकी है…

और क्या तुम्हारे जीवन में कोई पुरुष नहीं है?’’

अनुपा को मनीष की बातें सुन कर  झुर झुरी सी हो गई थी. फिर धीरे से मनीष ने अनुपा की थाई पर हाथ रख दिया.

अनुपा का मन वितृष्णा से भर उठा. उस ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मनीष कार रोक दो.’’

मनीष गुस्से में बोला, ‘‘सब पता है

तुम्हारी जैसी औरतों का… 36 जगह

मुंह मारने के बाद मेरे सामने सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही है.’’

अनुपा बिना कोई जवाब दिए कार से उतर गई और सामने वाले कैफे में बैठ गई. बारबार अनुपा यही मनन कर रही थी कि क्या शादी वाकई उस के लिए जरूरी है, क्या वह ऐसे लोगों के साथ अपनी जिंदगी बिता सकती है?

जब शाम को अनुपा घर पहुंची तो शिखा दीदी गुस्से में बोली, ‘‘इतनी मुश्किल से मैं ने मनीष को मनाया था पर तुम्हें तो शायद चिडि़या की तरह हर डाली पर फुदकने की आदत पड़ गई है. तुम घोंसला कैसे बना सकती हो.’’

उधर मम्मीपापा का भी इमोशनल ड्रामा

शुरू हो गया था, ‘‘हम अपना घरद्वार छोड़े

बैठे हैं.’’

अनुपा ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मम्मीपापा आप कुछ दिनों के लिए दीदी या भाई के

यहां चले जाएं. आप मेरे बारे में चिंता न करें.

मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से गुजारना

चाहती हूं.’’

अनुपा की बात सुन कर जहां मम्मी ने रोनाधोना शुरू कर दिया वहीं शिखा

दीदी ने एकाएक पैतरा बदल लिया, ‘‘अरे, तु झे मम्मीपापा अकेला कैसे छोड़ सकते हैं. अभी हम तु झे शादी के लिए फोर्स नही करेंगे पर अनुपा तेरे ख्वाबों के सपनों का राजकुमार तो अब इस उम्र में तो नहीं मिलेगा.’’

अनुपा हंसते हुए बोली, ‘‘दीदी, मेरे ख्वाबों में कोई राजकुमार नहीं आता है. मेरे ख्वाबों में बस मैं ही मैं हूं, जो हर दिन से कुछ नया सीख कर एक साहसी महिला के रूप में खुद को पहचान रही है.’’

‘‘कभी कोई ऐसा मिला जो मेरे साथ मेरे ख्वाब सा झा कर सकेगा तो जरूर शादी करूंगी.’’

शिखा दीदी और मम्मीपापा अनुपा की

बातें सुन कर उसे अजीब नजरों से देख रहे थे, मगर वे लोग भी तो अपनेअपने स्वार्थ के कारण मजबूर थे.

आदमी का स्वार्थ: पेड़ के पास क्यों आता था बच्चा

उस बालक को मानो सेब के उस पेड़ से स्नेह हो गया था और वह पेड़ भी बालक के साथ खेलना पसंद करता था. समय बीता और समय के साथसाथ नन्हा सा बालक कुछ बड़ा हो गया. अब वह रोजाना पेड़ के साथ खेलना छोड़ चुका था. काफी दिनों बाद वह लड़का पेड़ के पास आया तो बेहद दुखी था.

‘‘आओ, मेरे साथ खेलो,’’ पेड़ ने लड़के से कहा.

‘‘मैं अब नन्हा बच्चा नहीं रह गया और अब पेड़ पर नहीं खेलता,’’ लड़के ने जवाब दिया, ‘‘मुझे खिलौने चाहिए. इस के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं. मैं पैसे कहां से लाऊं?’’

‘‘अच्छा तो तुम इसलिए दुखी हो?’’ पेड़ ने कहा.

‘‘मेरे पास पैसे तो नहीं हैं, पर तुम मेरे सारे सेब तोड़ लो और बेच दो. तुम्हें पैसे मिल जाएंगे.’’

यह सुन कर लड़का बड़ा खुश हुआ. उस ने पेड़ के सारे सेब तोड़ लिए और चलता बना. इस के बाद वह लड़का फिर पेड़ के आसपास दिखाई नहीं दिया. पेड़ दुखी रहने लगा.

अचानक एक दिन लड़का फिर पेड़ के पास दिखाई दिया. वह अब जवान हो रहा था. पेड़ बड़ा खुश हुआ और बोला, ‘‘आओ, मेरे साथ खेलो.’’

‘‘मेरे पास खेलने के लिए समय नहीं है. मुझे अपने परिवार की चिंता सता रही है. मुझे अपने परिवार के लिए सिर छिपाने की जगह चाहिए. मुझे एक घर चाहिए. क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो?’’ युवक ने पेड़ से कहा.

‘‘माफ करना, मेरे बच्चे, मेरे पास तुम्हें देने के लिए कोई घर तो नहीं है, हां, अगर तुम चाहो तो मेरी शाखाओं को काट कर अपना घर बना सकते हो.’’

युवक ने पेड़ की सभी शाखाओं को काट डाला और खुशीखुशी चलता बना. उस को प्रसन्न जाता देख कर पेड़ प्रफुल्लित हो उठा. इस तरह नन्हे बच्चे से जवान हुआ दोस्त फिर काफी समय के लिए गायब हो गया और पेड़ फिर अकेला हो गया, उस की हंसीखुशी उस से छिन गई.

काफी समय बाद अचानक एक दिन गरमी के दिनों में वही युवक  से अधेड़ हुआ व्यक्ति पेड़ के पास आया तो पेड़ खुशी से फूला नहीं समाया, मानो उस की जिंदगी वापस आ गई हो. पेड़ ने उस से कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ खेलो.’’

‘‘मैं बहुत दुखी हूं,’’ उस ने कहा, ‘‘अब मैं बूढ़ा होता जा रहा हूं. मैं एक जहाज पर लंबे सफर पर निकलना चाहता हूं ताकि आराम कर सकूं. क्या तुम मुझे एक जहाज दे सकते हो?’’

‘‘मेरे तने को काट कर जहाज बना लो. तुम इस जहाज से खूब लंबा सफर करना और बस, अब खुश हो जाओ,’’ बालक से अधेड़ बने व्यक्ति ने पेड़ के तने से एक जहाज बनाया और सफर पर निकल गया और फिर गायब हो गया.

काफी समय के बाद वह पेड़ के पास फिर पहुंचा.

‘‘माफ करना मेरे बच्चे, अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. अब तो सेब भी नहीं रहे,’’ पेड़ ने बालक से कहा.

‘‘मेरे दांत ही नहीं हैं कि मैं सेब चबाऊं,’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘अब वह तना भी नहीं बचा जिस पर चढ़ कर तुम खेलते थे.’’

‘‘अब मेरी उम्र मुझे पेड़ पर चढ़ने की इजाजत नहीं देती,’’ रुंधे गले से उस ने कहा.

‘‘मैं सही मानों में तुम्हें कुछ दे नहीं सकता. अब मेरे पास केवल मेरी बूढ़ी मृतप्राय जड़ें ही बची हैं,’’ पेड़ ने आंखों में आंसू ला कर कहा.

‘‘अब मैं ज्यादा कुछ नहीं चाहता. चाहता हूं तो बस एक आराम करने की जगह. मैं इस उम्र में अब बहुत थका सा महसूस कर रहा हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘वाह, ऐसी बात है. पेड़ की पुरानी जड़ें टेक लगा कर आराम करने के लिए सब से बढि़या हैं. आओ मेरे साथ बैठो और आराम करो,’’ पेड़ ने खुशीखुशी उस को आराम करने की दावत दी.

वह टेक लगा कर बैठ गया.

ये सेब के पेड़ हमारे अभिभावकों की तरह हैं. जब हम बच्चे होते हैं तो पापामम्मी के साथ खेलना पसंद करते हैं. जब हम पलबढ़ कर बड़े होते हैं तो अपने मातापिता को छोड़ कर चले जाते हैं और उन के पास गाहेबगाहे अपनी जरूरत से ही जाते हैं, जब कोई ऐसी जरूरत आन पड़ती है जिसे खुद पूरा करने में असमर्थ होते हैं. इस के बावजूद हमारे अभिभावक ऐसे मौकों पर हमारी सब जरूरतें पूरी कर हमें खुश देखना चाहते हैं.

आदमी कितना कू्रर है कि उस सेब के पेड़ का फल तो फल उस की शाखाएं और तने तक काट डालता है, वह भी अपने स्वार्थ की खातिर. इतना कू्रर कि पेड़ काटते समय उसे जरा भी उस पेड़ पर दया नहीं आई, जिस के साथ बचपन से खेला, उस के फल खाए और उस के साए में मीठी नींद का मजा लिया.

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