अदा बिखेरने के लिए बेस्ट हैं ये 10 साड़ियां

साड़ी पहन कर कोई भी नारी बेहद खूबसूरत नजर आती है. भले ही वह मोटी हो या पतली साड़ी हरकिसी पर सूट करती है. किसी भी मौके के हिसाब से आप अपने लिए एक खास साड़ी का चयन कर सकती हैं. साडि़यां अलगअलग फैब्रिक और रंगों में मिलती हैं. कुछ साडि़यां जिन पर हैवी वर्क किया होता है काफी महंगी बिकती हैं. आप को कैसी साड़ी चाहिए यह अपनी जरूरत, मौका या व्यक्तित्व के आधार पर तय करें.

साड़ी पहन कर आप न सिर्फ ट्रैडिशनल दिखती हैं बल्कि साड़ी एक फैशनेबल अटायर भी है जिस में कोई भी लड़की या महिला खूबसूरत नजर आ सकती है. हालांकि इस बदलते दौर में साडि़यों का फैशन लगातार इन और आउट होता रहता है. ऐसे में आप कैसी साड़ी का चुनाव करती हैं यह ज्यादा माने रखता है.

आजकल मार्केट में कई तरह की डिजाइनर साडि़यों का चलन है. लेकिन बात कुछ ऐसी साडि़यों की हो जो हर मौसम और हर मौके में पहनी जा सकें तो कहने ही क्या. हम बात कर रहे हैं कुछ ऐसी ही सदाबहार साडि़यों की जिन्हें पहन कर आप कहीं भी खड़ी हो जाएं तो सिर्फ आप ही आप नजर आएं.

आइए, जानते हैं विकास भंसाली (सैलिब्रिटी फैशन डिजाइनर, असोपालव) से कुछ ऐसी ही साडि़यों के बारे में:

1 औरगेंजा साड़ी

औरगेंजा साड़ी भले ही आजकल काफी ट्रैंड में हो लेकिन यह काफी पुराने समय से पहनी जा रही है. औरगेजा साड़ी काफी आकर्षक, चमकदार और हलके कपड़े वाली होती है. इस का वजन भी काफी हलका होता है. इस का फैब्रिक भले ही फिसलने वाला हो, लेकिन यह साड़ी सदाबहार साडि़यों की लिस्ट में शुमार है. आप के वार्डरोब में अगर औरगेजा की साड़ी है तो आप को इसे खरीदने पर बिलकुल पछतावा महसूस नहीं होगा.

2 नैट साड़ी

शायद ही कोई ऐसी लड़की या महिला होगी जो नैट की साड़ी की दीवानी न हो. कौकटेल पार्टी हो या शादी आप ऐसे किसी भी मौके पर नैट की साड़ी पहन कर जलवे बिखेर सकती हैं खासकर डार्क कलर या फिर ब्लैक में नैट की साड़ी बेहद खूबसूरत लगती है. इसे खरीदने के बाद आप को बिलकुल पछतावा नहीं होगा.

3 फ्लोरल ऐंब्रौयडरी साड़ी

फ्लोरल ऐंब्रौयडरी वाली साड़ी किसी मास्टर पीस से कम नहीं होती. अलगअलग तरह के डिजाइन पैटर्न में मार्केट में आसानी से मिल सकती है. आप इस साड़ी को किसी भी फंक्शन में पहन कर इठला सकती हैं. साडि़यों में आने वाली नई डिजाइंस की दौड़ में भी फ्लोरल ऐंब्रौयडरी साड़ी सब से आगे है. अगर आप भी किसी फंक्शन के लिए साड़ी खरीदने की सोच रही हैं तो फ्लोरल ऐंब्रौयडरी साड़ी का चयन कर सकती हैं. यह सदाबहार साडि़यों में से एक है.

4 लहरिया साड़ी

चाहे कितन ही समय क्यों न बीत जाए कुछ चीजें कभी आउट आफ फैशन नहीं होतीं. इन्हीं में से एक है लहरिया साड़ी का आकर्षण. खूबसूरत गोटापट्टी के काम से उकेरी गई एक क्लासी जयपुरी लहरिया साड़ी के आकर्षण से कोई नहीं जीत सकता.

5 पतले बौर्डर वाली साड़ी

मोटे और भारी बौर्डर से ऊब चुकी हैं तो अपनी अलमारी में से पतले बौर्डर वाली साड़ी का चयन करें. इस डिजाइन की साडि़यों का फैशन कभी आउट नहीं होता. इस के अलावा ज्यादातर सैलिब्रिटीज और मौडल्स भी पतले बौर्डर वाली साडि़यों को कैरी करना पसंद करती हैं. आप इन में जरी वर्क, मिरर वर्क, कढ़ाई जैसे पैटर्न चुन सकती हैं जिन का फैशन हमेशा रहता है.

6 डबल फैब्रिक साड़ी

काफी पुराने समय से महिलाएं डबल फैब्रिक साड़ी को पहनना पसंद कर रही हैं. हालांकि आज के समय में इसे फ्यूजन टच का नाम दे दिया गया है. आज के दौर में इस फैशन को खूब पसंद किया जा रहा है. आप साटन या फिर जौर्जेट को नैट, वैल्वेट या किसी और तरह के कपड़े के साथ पेयर कर सकती हैं.

7 सिल्क साड़ी

सिल्क की साड़ी हर उम्र की महिला पर जंचती है. हालांकि पेस्टल रंग की सिल्क की साड़ी महिलाओं को सब से ज्यादा पसंद होती है. इस के अलावा सिल्क की साड़ी हर तरह के फिगर वाली महिलाएं आराम से पहन सकती हैं. सिल्क की साड़ी सदाबहार साडि़यों में से एक है और हर महिला के पास एक ऐसी साड़ी तो होनी ही चाहिए.

8 वैल्वेट साड़ी

कई सालों से इस का ट्रैंड लगातार बरकरार है. इस के फैब्रिक की चमक ही इस साड़ी को क्लासी बनाने के लिए काफी है. आप यह साड़ी शादी या किसी ऐसे ही दूसरे अवसर पर पहन कर गौर्जियस दिख सकती हैं. वाइन पर्लपल, मैरून और बाटल ग्रीन कलर की वैल्वेट की साडि़यां कभी आउट औफ सीजन नहीं होती.

9 मल्टी कलर साड़ी

मल्टी कलर साड़ी हमेशा चलन में रही है. इस तरह की साड़ी किसी भी कलर टोन स्किन की महिला के ऊपर जंचती है. मल्टी कलर साड़ी का फैशन कभी आउट नहीं होता. अगर आप ने एक बार मल्टी कलर साड़ी खरीद ली तो आप को इस में किसी तरह का कोई भी पछतावा नहीं होगा.

10 टिशू साड़ी

टिशू साड़ी को ज्यादातर कांस्य, गोल्ड और सिल्वर जैसी धातु के साथ डिजाइन किया जाता है. टिशू साडि़यों का फैब्रिक बेहद नाजुक होता है. हलके वजन वाली यह साड़ी पहनने में खूब फबती है. आप पर इनवैस्ट कर सकती हैं.

अपराजेय: भाग 2- क्यों अपने पति को गिरफ्तार न कर सकी अदिती?

अदिति की स्वयं की पहचान रहते हुए भी उसे जाति और जन्मसूत्र के कू्रर पंजों तले नाक रगड़ना होगा.

इस वक्त अदिति औफिस में थी और अदिति की मां पर यह बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी थी.

इतने बड़े महामहिम उच्चकुल जातक ने अदिति से ब्याह के लिए उस की जाति पहचान पूछी है. गुलाबी कैसे अपनी पहचान को कालिख से बेटी का भविष्य नष्ट करे. उसे अपनी बेटी को समाज की सामान्य धारा से जोड़ना है, एक निश्चिंत जिंदगी देनी है, वह गुलाबी सा न रह जाए समाज की मुख्य धारा से कटी हुई.

काफी कुछ सोच कर गुलाबी ने हिमांशु से कहा कि गुलाबी दरअसल अदिति की मां नहीं है. उस के मातापिता का कार ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया था. वे क्षत्रिय थे. गुलाबी तो उन के घर आया थी, उसी ने फिर अदिति को पाला.

हिमांशु कुछ संतुष्ट हुए. वे अदिति को पाने के लिए बेताब थे. इतना सुन कर ही उन्होंने दिल को तसल्ली दे दी.

गुलाबी ने कह तो दिया, लेकिन वह अपनी बेटी को जानती है कि उसे मनाना इतना आसान न होगा.

‘‘मान जाओ, मेरी प्यारी बिट्टो. मैं तुम्हें एक सामाजिक आधार देना चाहती हूं जो मेरे पास कभी नहीं रहा. मेरी पहचान तुम्हारे परिचय को काला न करे मेरी बच्ची.’’

‘‘मां, झूठ से सम्मान हासिल करने का भ्रम मैं कभी नहीं पाल सकती. दूसरे, मुझे  झूठ बोलने की जरूरत ही क्या है जब मैं मानव समाज को खंडितकरने वाली जाति के दुराग्रह को सिरे से नकारती हूं. मेरे लिए कोई ऊंच नहीं, नीच नहीं. जीवन, व्यवस्था और सामाजिक संबंध व्यक्ति के विचारों और व्यवहार से चलते हैं, जाति से तो विभेद होता है मिलन नहीं.’’

‘‘मैं झूठी साबित हो जाऊंगी बेटा.’’

‘‘अगर हिमांशु में जरा सी भी संवेदना होगी तो वह मां के मन की व्यथा को समझेगा. वह इसे झूठ नहीं मांबेटी के प्रति मां का प्रेम ही समझेगा.’’

हिमांशु से मिल कर अदिति ने अपनी जिंदगी का सारा सच बता दिया.

कुछ देर चुप रह कर उस ने इतना ही कहा कि उसे समय दिया जाए.

हिमांशु ने करीबी दोस्त से सलाह ली. दोस्त ने कहा, ‘‘जाति की छोड़ो अभी, इस एसपी की जरूरत होगी तुम्हें, शायद कुछ ही दिनों में तुम्हारे खिलाफ जांच बैठे. ब्यूरोक्रैट्स को अपने घर बांध लेने का मौका छोड़ना नहीं चाहिए. आगे खुद ही समझदार हो.’’

शादी के 6 महीने के भीतर अदिति चक्रव्यूह के एकएक द्वारा भेदती अंदर के रहस्यों तक पहुंच बनाती सरकारी तंत्र में लगी घुन को देखने की गहरी दृष्टि बना चुकी थी. अफसोस उसे और भी ज्यादा हो जाता जब घर पर भी उसे भ्रष्ट तंत्र से निबटना होता. जाने क्यों लोग ‘रच’ मैग्नेटिक फील्ड से बुरी तरह चिपक जाते हैं. इसी वजह न्याय और सत्य दूर छिटक जाते हैं. घर पर लगातार हिमांशु का दबाव बढ़ रहा था.

‘‘तो तुम यह आखिरी बार कह रही हो कि अरैस्ट वारंट निकालने की प्रक्रिया को तुम नहीं रोकोगी?’’

‘‘मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी जो कानून और देश के विरुद्ध जाता हो. मेरा आप से कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं है, आप ने कई सालों से बड़ेबड़े बिजनैस घोटाले करने वाली बिजनैस हस्तियों के साथ सांठगांठ रख उन्हें अपने महकमे से गलत लाइसैंस दिलवाया. खाद्य विभाग में इतने बड़े पद पर होते हुए आप मासूम लोगों की जिंदगी से खेलते रहे. बड़े होटलों और फैक्टरी मालिकों ने अपने खाद्य उत्पाद का मानक सही नहीं रखा और आप की विभाग से आप के ही नाक के नीचे लाइसैंस जारी कर दिए गए. करोड़ों के खेल में आप हिस्सेदार रहे.

‘‘खाद्य सुरक्षा विभाग में महीनेभर के लिए ट्रेनिंग आयोजित की जानी थी और आप ने 3 दिन में इस ट्रेनिंग कार्यक्रम को निबटा कर सरकारी फंड आपस में बांट लिए. अमेरिका में जमीन और फ्लैट ले कर करोड़ों रुपए की लीपापोती की, उस सब का क्या आप कुछ भी हरजाना नहीं दोगे?’’

‘‘तो लो न. यही तो मैं कह रहा हूं, कुछ इंतजाम करवाओ ताकि पैसा जितना भी लगे, मेरी इज्जत बच जाए.’’

‘‘बस यही आप के मुख से सुनना चाह रही थी. आप जैसी जोंक बड़ीबड़ी कुरसियों पर काबिज हो कर कितना ही असम्मानजनक कार्य करे, लोगों के सामने सम्मान बनाए रखने के लिए और भी नीचे उतरने से गुरेज नहीं करती. कितना जलील करोगे खुद को?’’

‘‘किस जाति, गोत्र की है, यह तो पता नहीं तुझे. मुझे जलील कहती है. तेरी मां एक स्वीपर थी ऊपर से झूठी. भूल मत अपनी औकात.’’

‘‘हिमांशु तुम ने अपने ही शब्दों से अपनी औकात का बलात्कार कर दिया. क्या तुम इतना भी नहीं सम?ाते कि इस वरदी का मान रखना मेरा पहला कर्तव्य है? इस वरदी की जिम्मेदारी है कि मैं गैरकानूनी और जनविरोधी कार्यों को तुरंत रोकूं. तुम्हें गैरकानूनी लाभ देने के लिए मासूमों की जिंदगी से क्यों खेलूं और मेरी मां स्वीपर थी इस का मुझे गर्व है. वह ठग और बेईमान नहीं थी. झूठ बेटी के स्नेह में कहा है, स्वार्थसिद्धि के लिए नहीं. मेरी जाति, मेरा गोत्र मेरा कर्म है पर तुम्हारी जाति क्या है बेईमानी और मक्कारी?

‘‘एक भ्रष्टाचार पीडि़त बिचौलिए के साथ अब मैं और नहीं रह सकती. मैं आज ही तुम्हारा घर छोड़ रही हूं और कानून से खिलवाड़ करने की तुम्हारी मंशा पर मेरी सख्त निगाह रहेगी.’’

वेदना के गहन अंधकार में आक्रोश का अथाह समुद्र बिना किसी की परवाह

किए आज उद्याम हो उठा था. अदिति के मन में वेदना का हाहाकार आक्रोश में तबदील हो रहा था.

अदिति ने केस सीबीआई को रैफर करने के लिए विशेष चिट्ठी लिखी जिस में हिमांशु द्वारा तथ्यों और सुबूतों को नष्ट कर न्याय प्रक्रिया को बाधित करने का अंदेशा जाहिर किया गया. अदिति ने दलील दी कि बड़ेबड़े नेता, मंत्री हिमांशु के संपर्क में हैं, साथ ही उस के निम्न कर्मचारी भी इन घपलों में शामिल हैं. अत: हिमांशु का जेल से बाहर रहना खतरनाक साजिशों को जन्म दे सकता है.

अदिति की न्यायप्रिया के चर्चे अब ऊपरी महकमे तक पहुंच गए थे. उस की सिफारिश पर गौर कर तुरंत सीबीआई ने जांच समिति की मदद से हिमांशु के खिलाफ अदिति को बतौर एसपी अरैस्ट वारंट निकालने को कहा.

हिमांशु की राजनीतिक आकाओं ने अदिति के इस साहसिक कर्म को पति से जलन का मसला बना कर लोगों में खूब उछाला.

आम समाज में अदिति की बगावती पत्नी की छवि बनाई गई. दूसरी ओर राजनीतिक खेमे से हिमांशु जैसे काम के मुहरे पर नजर रखी गई और उस के लिए वकील लगा कर सीबीआई जांच में कोर्ट को सहयोग का वादा करते हुए हिमांशु की ओर से जमानत की अर्जी दी गई.

‘कानून सब को समान अवसर देता है’ इस सिद्घांत पर जमानत न देने के कारण के अभाव में उसे जेल से बाहर आने की छूट मिली. हिमांशु ने अपना पद छोड़ दिया था.

जो राजनीतिक पार्टियां ऐसे धुरंधर खिलाडि़यों के लिए मुंह खोले, जीभ पसारे बैठी रहती हैं, उन में से किसी ने इन्हें राज्य पार्टी संयोजक का पद दे कर अपनी पार्टी के लिए बड़ा मुहरा विसात पर उतार लिया. यह मुहरा सरकारी तंत्र की मजबूत सलाखों में पिसता अधिकारी और पुलिसिया तंत्र के गलत प्रचारों से त्रस्त होने का दावा करता, जनता को बगावत का चालीसा रटाने आया था गोया कि बगावत का मतलब ही है न्याय के लिए बगावत.

हर देश और काल में कुछ वास्तविक प्रशासनिक तंत्र और नागरिक होते हैं और कुछ ‘सिउडो’ या भ्रमात्मक तंत्र और नागरिक. ऐेसे भ्रमात्मक तंत्र चाहे वे कार्यकारी हों या प्रजा हमेशा स्वार्थसिद्धि के लिए वास्तविक तंत्रों को भ्रम में उलझते हैं. इस तरह बड़े से बड़ा सच भ्रम के जाल में उलझ जाता है. ये सारी चीजें प्रोपोगैंडा और मिथ्या प्रचार द्वारा संपन्न होता है.

अदिति भी लगातार ऐसे ‘सिउडो’ लोगों और उन के प्रचारों में उलझती रही. राजनीतिक पार्टी के नामचीन कर्ताधर्ताओं ने गांवों में अवैध तरीके से शराब का ठेका ले रखा था. फर्जी लाइसैंस के बुते पर करोड़ोंअरबों के खेल में भागीदार इन ‘सिउडो’ यानी नकली लोगों को ग्रामीणों के जीवन और स्वास्थ से कोई मतलब नहीं था. अति निम्नस्तरीय शराब से जब ग्रामीण पुरुषों की मौतें होने लगीं और ग्रामीण महिलाओं ने एसपी अदिति के औफिस का घेराव कर आंदोलन किया, तो अदिति ने ग्रामीणों को इस राजनीतिक माफिया से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया. अवैध शराब ठेका रद्द करवाने और धंधे में लिप्त दलालों की धरपकड़ के लिए अपने पुलिस बल के साथ वे गावों की ओर रवाना हुई. अवैध शराब और धंधे में लिप्त लोगों को गिरफ्तार कर जब वे पुलिस जीप से लौट रही थीं तो उन पर हथियारों के साथ हमलावरों ने हमला कर दिया.

10 हमलावरों में से 2 हमलावर मारे गए और 3 गिरफ्तार किए गए. बाकी भाग गए. 4 पुलिसकर्मी के साथ अदिति का मुश्किल से बचाव हुआ था.

रात को एक फोन आया अदिति के पास, ‘‘एक औरत हो कर तुम लगातार चुनौती दे रही हो, भुगतना.’’

‘‘गरीब ग्रामीण आदिवासियों को माफिया बता कर धरपकड़ और प्रोमोशन के लालच में एनकाउंटर कर निर्दोष ग्रामीणों की हत्या,’’ अपनी गलतियों को छिपाने के लिए बड़े नेताओं का नाम इस मामले में घसीटना और हिमांशु से बदला लेने के लिए उस के नाम की रिपोर्ट तैयार करना. ऐसे ही और कई इलजामों पर अदिति से जवाब तलब किया गया और चेतावनी दी गई कि आगे से व्यक्तिगत कुंठा को देश के काम के आड़े न लाए.

अदिति इस मशीनरी को अब अच्छी तरह सम?ा गई थी. उसे इन झूठे इलजामों पर आश्चर्य नहीं हुआ. वह मन ही मन किसी और सजा की उम्मीद में थी ही कि तबादले की चिट्ठी आ गई.

इधर हिमांशु राजनीति में अपनी जड़ें मजबूत कर चुका था. पार्टी फंड में करोड़ों लगा

दिए थे उस ने. लंबित केस अभी पुरानी शराब की तरह नशा बढ़ा रहे थे. नशा शक्ति, पैठ और बेफिक्री का.

अदिति की नई पोस्टिंग डिप्टी कमिशनर औफ पुलिस में हुई. ऊपरी महकमे में व्यक्तिगत रूप से सभी जानते थे कि अदिति पर लगे इलजाम बेबुनियाद हैं. बस उसे नई पोस्टिंग में लाना था ताकि वह सड़े हुए पोखर के पानी को साफ करने की कोशिश में विभाग को ज्यादा व्यस्त न करे. हां विभाग मानता था कि मशीनरी का अधिकांश हिस्सा ‘सड़ा हुआ पोखर’ ही है.

मां को साथ ले कर चली योगिनी फिर नई जिम्मेदारी उठाने. यहां उस का काम मैन मैनेजमैंट का था. अदिति आदत से लाचार थी. उस के दिमाग की नसों में फिर से सनसनी पैदा होने लगी.

राजनीतिक हस्तियों को जेड सुरक्षा दी जाती है, उन में से कितने ऐसे हैं जिन्हें वाकई ‘रियल प्रेट’ यानी ‘जिंदगी का खतरा’ हो. अदिति ने तथ्य जुटाने शुरू कर दिए. उस ने पाया कि आधे से अधिक राजनीतिक हस्तियों, नेताओें, मंत्रियों ने अपनी दबंगई और पावर दिखाने के लिए अपने पास जरूरत से बहुत ज्यादा गनमैन और पुलिसमैन जुटा रखे थे. ये उन का स्टेट्स सिंबल था. महीनेभर में अदिति ने अपनी नई पोस्टिंग में गनमैन पोस्टिंग की सारी फाइलों का सिलसिलेवार अध्ययन कर डाला.

आज अदिति ने अपने घर पर अधीनस्थ कर्मचारी को बुलवाया था. जरूरी बातें थीं, जो औफिस में नहीं की जा सकती थीं. अदिति नहाधो कर मां के साथ नाश्ता कर रही थी. हर वक्त ड्रैस कोड में दिखने वाली अदिति आज नीली ए लाइन स्कर्ट और सफेर कुरती में बेहद खास लग रही थी. अदिति अचानक चौंक पड़ी. सामने मेष खड़ा था और अदिति को एकटक देख रहा था.

अगर की ये गलती तो सिंदूर भी हो सकता है खतरनाक

30 साल की सरला पिछले कुछ समय से सिर और माथे पर दाने होने से परेशान थी. डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह मांग भरने के लिए जो सिंदूर लगाती है, वह घटिया किस्म का है.

यह सुन कर सरला हैरान रह गई और तुरंत इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए अपना इलाज शुरू करा दिया.

लेकिन राधा ने ऐसा नहीं किया. या यों कह सकते हैं कि उस की सास ने उसे रीतिरिवाजों के चलते ऐसा नहीं करने दिया.

दरअसल, राधा की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे और रोज सुबह नहाने के बाद मांग भरने से उस के सिर में दर्द रहने लगा था.

पहले तो वह समझी नहीं थी लेकिन जब दर्द बरदाश्त से बाहर होने लगा तो वह अपने पति रंजन के साथ डाक्टर के पास गई थी.

डाक्टर ने जांच में पाया कि राधा के सिरदर्द की वजह उस का घटिया किस्म का सिंदूर लगाना है, जो वह थोक के भाव में अपनी मांग में भरती है.

डाक्टर ने राधा को जरूरी दवाएं देते हुए कहा कि तुम कुछ दिन बस नाम के लिए मांग भरना या मत भरना.

पतिपत्नी तो डाक्टर की यह सलाह समझ गए लेकिन जब राधा की सास को यह बात पता चली तो वह बिदक गई और बोली कि फैशन की मारी राधा ने चार जमात क्या पढ़ ली, डाक्टर के साथ मिल कर हमें गुमराह कर रही है, ताकि आगे मांग भरने से बच सके. ऐसा कभी हुआ है कि हमारे घर में किसी सुहागिन ने अपनी मांग सूनी रखी हो?

हिंदू धर्म में हर शादीशुदा औरत से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी मांग लाल रंग के सिंदूर से भर कर रखे. अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उस के पति पर मुसीबत आ सकती है या वह मर भी सकता है. पर क्या मिलावट करने वालों को भगवान का भी डर नहीं होता?

सिंदूर में आमतौर पर लैड औक्साइड कैमिकल मिला दिया जाता है, जो एक जहरीली धातु है. इसे मांग में भरने से सिर और माथे की चमड़ी लगातार कई सालों तक इस के संपर्क में आती रहती है, जिस से दाने होने के अलावा बाल झड़ने, टूटने, छोटे पड़ने और जल्दी सफेद होने लगते हैं.

चमड़ी के छेदों के साथ यह कैमिकल दिमाग के भीतर तक पहुंच जाता है जिस से नींद न आना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. खून के साथ मिल कर यह शरीर के दूसरे भागों में पहुंच कर और भी बहुत सी बीमारियां पैदा कर सकता है.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल में स्किन कौस्मैटिक सर्जरी के स्पैशलिस्ट डाक्टर अनूप धीर ने बताया, ‘‘आमतौर पर लाल और संतरी रंग के सिंदूर में लैड औक्साइड की मात्रा ज्यादा होने से यह नुकसानदायक हो जाता है. अगर किसी को स्किन की एलर्जी नहीं भी है तो उसे भी कैमिकल भरा ऐसा सिंदूर नुकसान पहुंचा सकता है. अगर यह आंख में गिर जाए तो बड़ी परेशानी पैदा कर सकता है.

‘‘अगर किसी के साथ ऐसा हो जाता?है तो उसे साफ पानी से अपनी आंखें धोनी चाहिए और किसी एमबीबीएस डिगरीधारी डाक्टर से आंखों में डालने की दवा लें.

‘‘शादीशुदा औरतों को चाहिए कि वे कम मात्रा में अपनी मांग में सिंदूर भरें. अगर आप को स्किन की एलर्जी है तो इस बारे में डाक्टर से जरूर सलाह लें. अच्छी क्वालिटी का ही सिंदूर इस्तेमाल करें और चटक रंग के चक्कर में सस्ता सिंदूर न खरीदें.’’

Priyanka Chopra ने दिखाया बेटी मालती का क्यूट चेहरा, फैंस हुए खुश

ग्लोब स्टार प्रिंयका चोपड़ा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है। प्रिंयका चोपड़ा सोशल मीडिया पर तस्वीरें अक्सर सांझा करती रहती है। प्रिंयका की फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल होती है। इसी बीच सोशल मीडिया पर प्रिंयका की नई तस्वीर छाई हुई है। वायरल तस्वीर में प्रिंयका अपनी बेटी मालती मैरी के साथ नजर आ रही है। बता दें, प्रिंयका और उनकी बेटी मालती मैरी की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है। इस तस्वीर में प्रिंयका अपनी बेटी के साथ नए अंदाज में नजर आ रही है। चलिए देखते है प्रिंयका की वायरल तस्वीर।

बेटी मालती मैरी का चेहरा देखते रह गए लोग

बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपनी पहचान बनाने वाली प्रिंयका चोपड़ा इन दिनों अपनी वेब सीरीज सिटाडेल को लेकर काफी चर्चा में हैं। इसी बीच प्रियंका चोपड़ा की नई तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही हैं। वायरल तस्वीर में प्रियंका चोपड़ा अपनी बेटी के साथ नजर आ रही हैं। प्रियंका चोपड़ा और उनकी बेटी मालती मैरी की ये तस्वीर फैंस को काफी पसंद आ रही हैं। बता दें इस तस्वीर में प्रियंका अपनी बेटी मालती मैरी को कंधे पर बिठाए हुए है।

 

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एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा और मालती मैरी की इस क्यूट सी तस्वीर को उनके फैंस जमकर शेयर कर रहे हैं। आपको बता दें, इस तस्वीर में निक जोनस और प्रियंका चोपड़ा की बेटी का प्यारा सा फेस भी दिखाई दे रहा है। प्रियंका चपोड़ा की बेटी मालती मैरी के फेस को देखने के बाद फैंस देखते ही रह गए। आइए आपको दिखाते है प्रियंका चोपड़ा और मालती मैरी की ये तस्वीर जो सोशल मीडिया पर तहलका मचा रही है.

A Winter Tale At Shimla Film Review: भटकी हुई कथा और पटकथा

रेटिंग: पांच में से डेढ़ स्टार
निर्माता: आगस्त्या सिने ड्रीम्स एलएलपी
लेखक व निर्देशकः योगेश वर्मा
कलाकार: गौरी प्रधान,इंद्रनील सेन गुप्ता, दीपराज राणा,निखिता चोपड़ा, अंगद ओहरी,रितुराज सिंह,कर्मवीर चैधरी,ध्रुव चुघ और अन्य.

अवधि: दो घंटे 22 मिनट

लगभग 35 वर्षों तक कारपोरेट जगत में शीर्ष पदो पर कार्यरत रहने के बाद योगेश वर्मा बतौर लेखक व निर्देशक एक मैच्योर प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘ ए विंटर टेल एट षिमला’’ लेकर आए हैं, मगर कहानी भटकी हुई है.  बेवजह ही फिल्म में अनचाहे ट्रैक जोड़कर चूचू का मुरब्बा बना दिया.

कहानीः
फिल्म शुरू होती है चिंतन (इंद्रनीलसेन गुप्ता) के अस्पताल पहुंचने से. दिया (निहारिका चोकसी) को खबर मिलती है कि चिंतन का एक्सीडेंट हो गया है. उसके बाद कहानी अतीत व वर्तमान में झूलते हुए बढ़ती है. जिसके अनुसार कालेज दिनों में चिंतन (अंगद ओहरी) और वेदिका (निखिता चोपड़ा) के बीच प्रेम हो जाता है. चिंतन इंजीनियर होने के साथ ही कोमल हृदय वाला लेखक व दार्षनिक बातें करने वाला युवक है,जो कि वेदिका के पिता के आफिस में ही नौकरी करता है. वेदिका के पिता चिंतन को अपना दामाद स्वीकार करने की बजाय उसे अपमानित करने के साथ ही नौकरी से भी निकाल देते हैं. क्योंकि वेदिका के पिता वेदिका का व्याह किसी आई एएस अफसर के साथ करना चाहते हैं. पर वेदिका का विवाह पुलिस अफसर उदय सिंह (दीपराज राणा) से हो जाता है. इस बात को पच्चीस वर्ष गुजर चुके हैं.  उदय सिंह डीआई जी बन चुके हैं. वेदिका की एक बेटी दिया (निहारिका चोकषी) है.  दिया के ही कालेज में प्रोफेसर बनकर चिंतन (इंद्रनील सेन गुप्ता) की वापसी होती है. चिंतन का बेटा मयंक विदेश में है और बहू मोना (इषिता षाह) व पोता षिवम (बाल कलाकार प्राज्वल ठाकुर) उनके साथ रहता है. कालेज के एक समारोह में ही वेदिका (गौरी प्रधान तेजवानी) व चिंतन की पुनः मुलाकात होती है. चिंतन महसूस करता है कि इच्छाओं व सपनों को पाने के लिए संघर्ष करने की बजाय तकदीर में यकीन करने वाली वेदिका में बहुत कुछ बदल चुका है. अब वह 25 साल पहले वाली जोश से भरी वेदिका नही है. चिंतन का वेदिका के घर जाना होता है,जहां उदय सिंह ,चिंतन को पसंद नही करते और चिंतन की हत्या करवाने का असफल प्रयास करते हैं.  पर इस वजह से उनका प्रमोशन रूक जाता है. चिंतन के दोस्त नवीन (रितुराज सिंह) बहुत बड़े उद्योगपति व कालेज के संस्थापक हैं. नवीन ने षिमला में प्रबंधन अध्ययन के साथ वैदिक प्रथाओं को मिलाकर एक संस्थान स्थापित किया है. उसी में उसने चिंतन को नौकरी दी है. उनकी पहुॅच राज्य के मुख्यमंत्री तक है.  जांच षुरू होती है. मुख्यमंत्री, उदय सिंह के प्रमोशन की फाइल रोक लेते हैं.  कहानी कई मोड़ों से गुजरती है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कहानी व पटकथा काफी भटकी हुई है. लेखक ने मूल कहानी के साथ कई किरदारों की अवंाछित कहानियों को जोड़कर पूरी फिल्म का सत्यानाश कर दिया गया हे. यह फिल्म भानुमती का पिटारा बनकर रह गयी है,जिसमंे लेखक ने कई पात्र व कहानियां जोड़ दी,पर उनके साथ न्याय नहीं कर पाए. उदय सिंह और मुख्यमंत्री के बीच के रिष्ते को बेवजह ठॅूंसा गया है. बैदेही व उदय सिंह यानी कि पति पत्नी के बीच के रिष्ते को भी ठीक से चित्रत नही किया गया.  औसत दर्जे के कथानक के साथ ही औसत दर्जे के संवाद हैं. जब चिंतन व वैदेही कालेज में होते हैं,उस वक्त उनके बीच सपनों व तकदीर को लेकर बहस होती है. पर फिल्म बाद में सपनों या इच्छाओं और तकदीर के आपसी टकराव को ठीक से चित्रित करने में विफल रहे हैं.  इस तरह की फिल्म में जो भावनात्मक गहराई होनी चाहिए, वह भी नही है. उदय सिंह का किरदार भी ठीक से गढ़ा नही गया. जिस पद पर उदय सिंह हैं,उस पद पर आसीन वरिष्ठ पुलिस अफसर हर जगह अपना वर्दी मंे नही जाता. चिंतन के घर माफी मांगने व समझौते की बात करने उदय सिंह का अपनी वर्दी मंे जाना खलता है.  फिल्म अतीत और वर्तमान के बीच झूलती रहती है. अतीत पूरी तरह से चिंतन और वैदेही के बीच विनाशकारी प्रेम कहानी पर केंद्रित है. अतीत में वैदेही के पिता से जो घाव चिंतन को मिलते हैं,उन्हे चिंतन वर्तमान में भी नही भुला पाए हैं. चिंतन की नजर में वैदेही भी दोषी है.  एडीटिंग टेबल पर फिल्म को कसे जाने की जरुरत थी,मगर एडीटर बुरी तरह से मात खा गए.

अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो वैदेही के किरदार मे टीवी अदाकारा गौरी प्रधान ने बेहतरीन अभिनय किया है. मगर पति के अड़ियल व गुस्सैल स्वभाव के तले दबी पत्नी की व्यथा को व्यक्त करने में वह असफल रही हैं. चिंतन के किरदार में इंद्रनील सेनगुप्ता का अभिनय षानदार है. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उदय सिंह के किरदार में दीप राज राणा का अभिनय घिसा पिटा है. चरित्र में क्रूरता और रणनीतिक सोच के बीच वांछित संतुलन का अभाव है. यॅंू तो निर्देशक ने भी उनके किरदार के साथ न्याय नही किया है. दिया के छोटे किरदार मंे निहारिका चोकषी अपना प्रभाव छोड़ जाती है.

Farhana Movie Review: धार्मिक कट्टरता के बीच नारी सशक्तिकरण का संदेश देती रोमांचक फिल्म

रेटिंग:  तीन स्टार
निर्माता: ड्रीम वारियर पिक्चर्स
लेखक व निर्देशकः नेल्सन वेंकटेशन
कलाकार: ऐष्वर्या राजेश, सेल्वाराघवन, ऐष्वर्या दत्ता, जीतेन रमेश, अनुमोल, शक्ति,किट्टू व अन्य
भाषा: तमिल,हिंदी व तेलुगू
अवधि: दो घंटे 20 मिनट

एक कट्टर और रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार की बहू जब परिवार की आर्थिक हालात के चलते मजबूर होकर एक ‘फ्रेंडषिप चैट’ के काल सेंटर में नौकरी करना षुरू करती है,तो उसे किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है और किस तरह वह विजेता बनकर उभरती है,उसी की रोमांचक कहानी है-फिल्म ‘‘फरहाना’’,जिसे चेन्नई निवासी और ‘माॅन्स्टर’ व ‘ओरू नाल कुठू’ जैसी तमिल फिल्मों के सर्जक नेल्सन वेंकटेशन लेकर आए हैं.फिल्म की नायिका ऐष्वर्या राजेश की 2023 में महज पांचवें माह की शुरूआत में प्रदर्शित होने वाली चौथी फिल्म है.

कहानीः
चेन्नई में एक मुस्लिम अजीज भाई (किट्टू) की जूते चप्पल की दुकान है,वह अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव से गुजर रहे हैं.पर धर्म के विरीत जाकर कुद नही कर सकते.इसी कारण वह कर्ज लेने के भी खिलाफ हैं.फिर भी उन्होेने अपनी तीनों बेटियों की षादी कर डाली.उनकी फरहाना व फातिमा सहित तीनों अपने पति व बच्चों के साथ उन्ही के साथ उसी घर में रहते हैं.षिक्षित फरहाना (ऐश्वर्या राजेश) का करीम (जीतन रमेश) अनपढ़ है और फरहाना के पिता अजीज भाई की ही जूते चप्पल की दुकान में काम करते हैं.करीम प्रगतिशील विचारों वाला व्यक्ति है.वह अपनी पत्नी पर भरोसा करने और उसका समर्थन करने में पूरी तरह से विश्वास करता है. फरहाना एक मेट्टी (पैर की अंगुली की अंगूठी) पहने हुए दिखाई देती है, स्थान और स्थिति के बावजूद दिन में पांच बार नमाज पढ़ती है.लेकिन अपनी बेटी की फीस भरने के पैसे न होने पर फरहाना अपने पिता अजीज भाई के विरोध के बावजूद काॅल सेंटर में नौकरी करने लगती है. पहले वह एचएसडीसी बैंक के क्रेडिट काॅल सेंटर में नौकरी करती हैं,पर बेटी के इलाज के लिए जल्दी ज्यादा धन कमाने के लिए वह ‘फे्रंडषिप चैट’ वाले काल संेटर में अपना तबादला करवा लेती है. जहां पर उसे यौन प्रेरित पुरुषों से बात करने की आवश्यकता होती है.फरहाना मजबूरी में यह नौकरी कर रही है.उसे लगता है कि इससे उसका अल्लाह नाराज हो जाएगा.वह अपना तबादला पुनः पुराने विभाग मंे करवाना चाहती है,पर एक कॉलर के कहने पर रूक जाती है.यह काॅलर,फरहाना को अपने दृष्टिकोण से आकर्षित करता है.क्योकि वह किसी भी तरह का कुछ भी यौन नहीं चाहता है,लेकिन किसी के साथ अपने विचार साझा करना चाहता है. रूढ़िवादी महिला फरहाना जिसके पास अपने विचार साझा करने के लिए कभी कोई नहीं था, उसे बातचीत ताजा लगती है और वह उसे अन्य भद्दे पुरुषों से बचाते हुए लंबे समय तक बात करती है.परिणामतः वह कुछ ज्यादा ही धन कमाने लगती है.पर यही काॅलर बाद में उसके व उसके परिवार के लिए नुकसान दायक बन जाता है.वह शख्स फरहाना के पूरे परिवार को बरबाद करने की धमकी देता है.इंटरवल के बाद फरहाना और उस अज्ञात काॅलर यानी कि धायलन (सेल्वाराघवन ) के बीच चूहे बिल्ली का खेल षुरू हो जाता है.पर फरहाना विजेता बनकर उभरती है.

लेखन व निर्देशनः
एक बेहतरीन पटकथा पर बनी फिल्म ‘‘फरहाना’’ इंटरवल तक काव्यमय नजर आती है.मगर इंटरवल के बाद फिल्म रोमांचक हो जाती है.पर पटकथा कमजोर हो जाती है.कुछ दृष्यों का दोहराव नजर आता है.फिल्मकार ने फरहाना की जिंदगी की उथल पुथल व भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मेट्रो ट्रेन और सुरंगों का हथियार के तौर पर उपयोग किया है.पति पत्नी के बीच सुलह वाला दृष्य काफी मार्मिक बन गया है.क्लायमेक्स काफी बनावटी नजर आता है. फिल्म में कुछ दृष्य आम फिल्मी दृष्यों जैसे ही हैं.इतना ही नही रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार की मजबूर नारी फरहाना का अपनी धार्मिक व कंपनी की आपत्तियों के बावजूद एक अजनबी से मिलने की त्वरित पहल करना आस्वाभाविक लगती है.इसके बावजूद निर्देशक ने सतही तौर पर संवेदनशील विशयों को कुशलता से संचालित किया है.फिल्मकार ने फरहाना की धार्मिक पहचान की न तो आलोचना की है और न ही उसे समझौतावादी बताया है.उसकी धर्मपरायणता अपनी जगह है और औरत के रूप में परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए स्वतंत्र नारी के रूप मंे काम करना एक जगह है. फिल्मकार ने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए फरहाना की इस्लामी पहचान को अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं से नही जोड़ा है और न ही धर्म के आधार पर औरतों को लेकर जो पूर्वाग्रह होते हैं,उनका ही चित्रण किया है.बल्कि यह फिल्म दर्षक को मुस्लिम पृष्ठभूमि की महिला की उस दुनिया में ले जाती है,जहां परिस्थितियां धर्म की सीमा में रहकर भी खुद को स्वतंत्र व ताकतवर नारी के रूप में सामने लाती है.

अभिनयः
एक धर्मभीरू,शर्मीली लड़की से लेकर हालात की वजह से जिंदगी में आते बदलाव के साथ निरंतर आत्मविश्वास हासिल करने के वाली फरहाना के किरदार को ऐष्वर्या राजेश अपने हाव भाव से भी यह व्यक्त करने में सफल रही हैं.तो उसे जो खुषी मिलती है,वह भी उसके चहरे पर साफ नजर आती है.यह एक कलाकार की अभिनय कुशलता का ही परिचायक है. असामान्य संघर्षों और कठिनाइयों से जूझ रही एक मुस्लिम महिला के चित्रण के साथ स्क्रिप्ट को समृद्ध करती हैं.तो वहीं उसके बाद पति के साथ बातचीत करते समय अपराध बोध से ग्रसित फरहाना की आवाज कांपने लगती है. ऐष्वर्या राजेश पूरी फिल्म को अकेले अपने कंधे पर उठाती है.फरहाना के प्रगतिषील पति के किरदार में जीतन रमेश ने अपनी असुरक्षाओं व मजबूरी को अपने चेहरे के भावों व चाल ढाल से व्यक्त करने का सही प्रयास किया है.तो वहीं फरहाना की दोस्त सोफिया के छोटे किरदार में भी ऐश्वर्या दत्ता अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं.विलेन धायलन के छोटे किरदार में सेल्वाराघवन का अभिनय कमाल का है.वैसे तमिल अभिनेता धनुश के भाई सेल्वाराघवन मूलतः सफल निर्देशक हंै.वह अब तक बीस से अधिक तमिल फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं.तो वहीं वह पहले ही पांच फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं. निथ्या के किरदार में अनुमोल का अभिनय भी प्रभावी है.रहस्यमय इंसान नजर आने वाला व फरहाना को बहन मानकर उसकी सुरक्षा के लिए तत्पर पृथ्वी के किरदार में शक्ति का अभिनय दिल को छू जाता है.

अपराजेय: भाग 1-क्यों अपने पति को गिरफ्तार न कर सकी अदिती?

‘‘तुम्हें मेरा काम करना ही होगा. जब तुम यह काम आसानी से कर सकती हो तो पति के लिए इतना भी नहीं कर सकती.’’

‘‘मैं ने कह दिया है वरदी का विश्वास रखना सिर्फ वेतन का ऋण चुकाना ही नहीं है, लाखों लोगों के भरोसे पर कायम रहना भी है.’’

‘‘तुम एक औरत हो, पहले घर देखो,

फिर नौकरी.’’

‘‘बस आ गए न तुम अपनी छोटी सी गोलाई के अंदर. अरे यह जिम्मेदारी देश, कानून और समाज के प्रति है. औरत हूं तो क्या न्याय की रक्षा मेरी जिम्मेदारी नहीं और तब जब इस वरदी को सिरआंखों पर लगाया है?’’

‘‘तुम अपनी बड़ीबड़ी बातें अपनी जेब में ही रखो. ऐसी सोच रखें तो सड़कों पर भीख मांगें. पावर है किसलिए? खुद ही फटेहाल हो जाएं? मैं कुछ नहीं जानता. तुम्हारा पहला धर्म है पत्नी का कर्तव्य निभाना. मगर तुम यह सब जानोगी कैसे. तुम्हारी तो परवरिश ही सही नहीं है. एक सावित्री थीं, जो सत्यवान को यम के द्वार से छुड़ा लाई थीं.’’

‘‘सावित्री सत्यवान जैसी कहानियां स्त्रियों का पूरा अस्तित्व ही पति पर आश्रित बनाती हैं. स्त्री खुद ही पूर्ण है और उस के होने के लिए किसी और की जरूरत नहीं. रही बात प्रेम की तो वह किसी बाध्यता की मुहताज नहीं. मैं इन कहानियों से सीख नहीं लेती, जो सही होगा, वही करूंगी’’

मैं तो इधर साक्षात यम को देख रही हूं, जो सरकार का वह प्रतिनिधि है. जिसे

देशवासियों की खाद्यसुरक्षा की जिम्मेदारी दी जाती है. वह मासूमों की जिंदगी दांव पर लगा कर अरबों कमाता है और लोगों की नजरों में धूल ?ोंक कर साफ बच निकलना भी चाहता है. घोटाले तो करें, लेकिन इज्जत पर आंच नहीं आए. लोग जाएं भाड़ में, खुद बच गए तो सब साफ. मैं वैसी पत्नी नहीं हूं जो पति धर्म के नाम पर सचाई और न्याय से खुद को हटा ले. इस के बाद कभी भी कानून के खिलाफ जाने की मु?ा से जिद न करना.’’

‘‘क्या बात है. तुम मु?ो धमकाओगी? फूड कमिशनर के पद पर मैं 5 साल से कार्यरत हूं, और तुम कुल जमा 4 महीने हो रहे होंगे तुम्हारी नौकरी को… सीनियरिटी सम?ा नहीं आती तुम्हें?’’

‘‘दुखद है हिमांशु. इतने सीनियर हो कर, ऊंचे पद पर हो कर तुम्हें ऊंचाई सम?ा नहीं आई. सरकार के द्वारा दी गई सीक्रेसी और शक्ति को तुम ने घपले में जाया किया और अब बचने के लिए ऐड़ीचोटी का जोर लगा रहे हो.’’

‘‘मुझे गुस्सा दिला कर अदिति तुम ने अच्छा नहीं किया. पैसे जो मैं ने बनाए उन में तुम्हारा भी हिस्सा और हक था. अपनी प्रिय पत्नी को एक छोटा सा काम ही तो दिया था. जब अरैस्ट वारंट निकालने को कहा जाए तो मत निकालो, टाल दो. तुम्हारे पास अधिकार है.’’

‘‘शब्दों से मत खेलो. गलत हक और हिस्से को मैं सिरे से खारिज करती हूं. अधिकार मेरे कर्तव्यों के आड़े नहीं आ सकता. मैं सीमित चाह में असीम हूं. छोड़ो, ये बातें समझ से परे होंगी,’’ और बस 2 किनारे चल दिए थे अपनेअपने रास्ते.

पत्नी के रूप में अब तक हम रूबरू थे सुपरिंटैंडैंट औफ पुलिस अदिति से… पति हिमांशु से उस का यह वैचारिक विद्रोह अब रिश्ते के आडे़ आ गया था.

खयालों में जैसे चमकने वाली सफेद क्रिस्टल की मानिंद उज्ज्वला अदिति बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी है.

5 फुट 7 इंच की हाइट है उस की. इस कोमलांगिनी वीरांगना को एक पलक देखो तो अपलक हो जाओ. स्वर्णवर्ग सी आभा वाली अदिति ठीक पहली ओर की रक्तिम सूरज की लाली सी प्रभावी भी और कोमल भी. तीक्ष्ण ज्योति भी, मृदु भी, हमेशा जैसे एक प्रेरक शुरुआत.

हां, उस की जिंदगी की शुरुआत कुछ अलग थी. सामाजिक धारा से हट कर, कुछ दुखद, कुछ एकाकी.

शुरुआत करते हैं उस की मां गुलाबी बाई से, जिन्हें अब गुलाबी देवी कहा जाता है. गुलाबी बाई नगर निगम में स्वोपर थी. उस के पिता यह काम करते थे. रोड ऐक्सीडैंट में उन की मृत्यु हो जाने पर दयाभाव पर उसे पिता की जगह नौकरी मिली थी. घर में 4 भाईबहनों में वह बड़ी थी. युवा सपनों से लदीफंदी आंखें जीने की उमंग वाली ?ालों से नजरें फेर सड़कों का कूड़ा

बुहारती गुलाबी बड़ी होती गई. गरीब घर में

बड़ी होती बड़ी बेटी यानी उम्मीदों और जिम्मेदारियों पर लगातार खरा उतरते रहने की कवायद. बड़ी यानी अचानक टूट गए दीए की अग्निशिखा को अपनी हथेलियों पर संभाल लेने को तैयार हो जाना.

गुलाबी भी इसी तरह सड़कें बुहारती बड़ी हो रही थी कि उस की जिंदगी में कुछ अजनबी कोंपलें फूटने लगीं.

एक दिन उस ने महसूस किया कि धनाढ्य परिवार के एक बाबू लगातार उस पर नजर रखते हैं. ऊंचे पद पर कार्यरत धनाढ्य परिवार के एक शादीशुदा बाबू सुबह गुलाबी के इस सड़क पर आते ही अपनी वाकिंग, जौगिंग ड्रैस में बाहर आ जाते. कई बार उस के पास से गुजरते, उस से व्यक्तिगत होने की कोशिश में उस से इधरउधर की बातें करते.

गुलाबी अपनी उम्र और अलबेले अप्रतिम सौंदर्य को यथासंभव चिंदियों में ढांपने की कोशिश करती रहती, लेकिन सड़क पर गुलाब की बिखरी पंखुडि़यों को प्रेम से उठा लेने की बाबू की इच्छा का वह असम्मान भी नहीं कर पाई. उधर बाबू के घर के अंदर से किसी कर्कशा स्त्री की चीखपूकार गुलाबी हमेशा सुनती. वह सम?ाती थी यह बाबू की पत्नी होगी. न जाने क्यों गुलाबी पर ध्यान टिकाए बाबू को देख उसे सहानुभूति हो आती बाबू पर. गरीबी और जिम्मेदारी ने गुलाबी को थका डाला था. ऐसे में पहली बार जब किसी अच्छे घराने के पुरुष की ओर से प्रशंसा और सम्मान के भाव मिले, तो वह विवश हो गईर् अपने मन के आगे.

बाबू की बेटी के जन्मदिन के मौके पर बाबू ने गुलाबी के घर वालों के लिए जब ढेर सारे उपहार भिजवाए तो वहां से भी जैसे मौन स्वीकृति मिल गई.

गरीबी की सब से बड़ी मार कष्ट सहन करते रहने से ऊबना ही है. इस उबाऊपन से निकलने की छटपटाहट भी अपनेआप में एक जंजीर है. अब जब इस जंजीर की गठान खोलने वाला कोई मिल गया तो गुलाबी लज्जा के सिंदूरी उज्ज्वल मेघों की तरह स्वप्निल आभा भी दमकने लगी.

गुलाबी अब स्वीपर की नौकरी छोड़ चुकी थी. ‘जब चाहो तब मुहैया’ की रस्म में बंधी वह बाबू की जिंदगी का अब एक अहम हिस्सा थी.

घर वालों के नाम पर बाबू ने एक अच्छी रकम बैंक में जमा करवा दी थी. इस से गुलाबी की मां का लुटपिट जाने का गम कुछ कम हो गया था. जहां ऊंगली भर टिकाने की जद्दोजहद थी, वहां पूरा पैर रखने को जगह मिल गई थी. अभावों की त्रासदी ने उसे सुविधाओं से दिल लगाना भलीभांति सिखाया था.

निराले आनंद में गुलाबी और बाबू के दिन गुजर रहे थे. लेकिन इन बातों को ज्यादा दिन समाज की नजरों से छिपाना मुमकिन नहीं और तब जब मुसीबत में नजर न उठा कर देखने वाला समाज गलतियों की खोज में गिद्ध की नजर रखता है.

बाबू डर गए थे. सरकारी नौकरी, बीबी, बच्चे, नातेरिश्ते, फजीहत हो जाएगी बाबू की. गुलाबी का क्या था. गरीब की बेटी, दुत्कारों में पली, कुछ जिल्लत और सही.

बाबू ने जल्दीबाजी में दूर किसी दूसरे शहर गुलाबी और उस के परिवार को भेज दिया. यहां का उन का छोटा सा मकान बेच वहां उन्हें एक अच्छा घर ले कर दिया. गुलाबी के अकाउंट में कुछ लाख रुपए डाले और उन्हें विदा किया. बाबू को उम्मीद थी कि टूर के बहाने वे गुलाबी से मिलते रहेंगे.

दूर शहर आए अभी 3-4 महीने हुए होंगे कि गुलाबी को अपनी कोख में किसी की

आहट महसूस हुई. बाबू को गुलाबी ने फोन किया.

निशाचर के दंश की डराबनी आशंका से कांप कर बाबू ने मन ही मन अब इस सुख लालसा के दलदल से खुद को निकाल लेने की शपथ ली.

गुलाबी को 2 लाख और दिए, बदले में उसे इस रिश्ते को दफन कर देने की गुजारिश की.

गुलाबी पर जो बीती उसे भूल बाबू ने अपने फोन की सिम बदल लीया और इस दुनिया की अनजानी भीड़ में गुम हो गए.

बाबू ने बहुत कुछ दिया था. अब अगर वह दूर जाना चाहता है तो गुलाबी ने भी क्षोभ नहीं माना.

भाई अब कुछ बड़े हो गए थे. उन्होंने पढ़ाई के साथ काम ढूंढ़ लिया था. सिर पर एक छत का आसरा था.

मां लेकिन तटस्थ नहीं थीं. उन की गुलाबी पर नजर थी और अपनी छोटी बेटी के ब्याह की चिंता थी.

आखिर परिवार वालों को समाज के कठघरे में खड़ा होने से बचाने के लिए गुलाबी को अपना आसरा छोड़ना पड़ा. जो कोई भी आज उस के पास आया था, कुसूर उस का नहीं था. गुलाबी ने अपना आसरा छोड़ दिया ताकि उस नन्हे आगंतुक को प्यार भरा आशियाना मिल सके.

किसी नए महफूज ठिकाने की खोज में गुलाबी शहर के आखिरी छोर पर पहुंच गई. वहां उसे आया संस्थान में नौकरी मिल गई और पास ही एक कमरे का एक मकान भी. रोगियों के घर जा कर उसे 8 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती थी.

सरकारी अस्पताल में अदिति के जन्म के 3 महीने बाद उसे पास ही एक अनाथालय की मदद लेनी पड़ी. दरअसल, वह अपने काम पर छोटी बच्ची अदिति को साथ नहीं ले जा सकती थी.

अनाथालय की हैड बहुत ही समझदार और स्नेही महिला थी. बच्ची के मासूम लावण्य और गुलाबी की विवशता देख उन्होंने अदिति को अनाथाश्रम में जगह दे दी.

पैसे की कमी रही हो या पिता की, मगर इस बच्ची के जीवन में प्रेम की कभी कमी नहीं रही. गुलाबी बेटी से रोज मिलती और बीचबीच में उसे घर पर ले आती. इस के अलावा अनाथालय में वह सब की चहेती थी ही. प्रेम से सींचे जा रहे इस अलौकिक पुष्प में जैसे सबकुछ असाधारण था. वह शांत, गंभीर, मृदुमुसकान बिखेरती बेहद मेधावी बालिका थी. रूपलावण्य में अप्रतिम और मेधा में गंगोत्तरी.

लगातार स्कौलरशिप पाते हुए वह कालेज लांघ यूनिवर्सिटी की दहलीज पर पहुंची तो पौलिटिकल साइंस में मार्स्ट्स करते हुए वह यूपीएससी की तैयारी में जुट गई.

अदिति कम संसाधनों में संतुष्ट और ज्ञानपिपासु

लड़की थी. उसे दोस्तों के साथ वक्त बिताने में खास रुचि नहीं थी और अकसर वह लाइब्रेरी में किताबें ढूंढ़तेपढ़ते

मिल जाती थी. इस लाइब्रेरी में वह एक सांवले, दुबलेपतले लगभग 5 फुट 9 इंच हाइट वाले लड़के को अपने आसपास देखती. कभीकभी इतना ज्यादा देखती कि उस के दिल में सवाल कौंध उठता कि यह महज संयोग है या रचा

गया भ्रम. बिराज था वह. इंग्लिश साहित्य में अदिति से 1 वर्ष जूनियर था. बारबार आसपास दिखने से अदिति को कभीकभार उस के बारे में कुतूहल होता.

अदिति के चेहरे की ओर देख लेती तो वहां एक मासूम सा उत्सुक बच्चा नजर आता जैसेकि वह नदी को एक ही छलांग में पार कर जाना चाहता है, जैसेकि नदी की गहराई का अंदाजा लगाता वह बेचैन सा निरीह नजरों से नदी को मौन आमंत्रण देता किनारों पर खड़ा रहता है.

कई बार अदिति छोटीछोटी बातें करती उस से. मसलन, तुम मास्टर्स प्रोवियस में हो न. अदिति पूछती तो एक हां कहने के बाद कई मिनट तक पास खड़ा रहता. अदिति किताबें पढ़ती हुई उस के कहती, ‘‘बैठो. तुम्हें किताबें पढ़ना अच्छा लगता है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो पढ़ो.’’

वह तुरंत कोई किताब ला कर पढ़ने बैठ जाता और तब तक पढ़ता जब तक अदिति पढ़ती रहती. अदिति को वैसे कभी उस का पास बैठे रहना बुरा भी नहीं लगा.

अदिति ने एक ही बार में यूपीएससी क्लीयर कर लिया था. उसे दूसरे राज्य में पुलिस का डिस्ट्रिक्ट हैड यानी एसपी बनाया गया.

कड़े परिश्रम और एकाग्र साधना ने उसे वह मुकाम दिया था जिस का सपना गुलाबी देवी देखने का कभी साहस भी नहीं कर पाई. अदिति ससम्मान अपने औफिशियल बंगले में मां को ले आई थी.

2 महीने हो चले थे अदिति को अपनी नौकरी में. एक औफिशियल पार्टी में हिमांशु के साथ उस की मुलाकात हुई.

अफसरों की भीड़ में एक लगभग 36 साल का सूटबूट में सजाधजा धनाढ्य व्यक्ति उसे लगातार प्रशंसा की दृष्टि से देख रहा था.

इस बात को अभी 10 दिन ही हुए होंगे कि एक दिन अचानक हिमांशु एक बुके के साथ गुलाबी देवी के सामने प्रस्तुत हुए. ये वही थे जो अदिति को पार्टी में मिले थे. हिमांशु फूड सेफ्टी कमिशनर थे. लोगों की खाद्यसुरक्षा की गारंटी इन की जिम्मेदारी थी.

वे अदिति से विवाह को इच्छुक थे. एक दिन आने वाला यह सच आज गुलाबी देवी के सामने आ चुका था. यह आनंद का क्षण शायद उन के लिए बड़ा भयावह क्षण था. वह बड़ी बेबस सी होने लगी.

बेटी का परिचय तो उस के पिता और मां के परिचय से अभिन्न रूप से जुड़ा है. क्या समाज उस व्यक्ति के निजी परिचय को कोई भी महत्त्व नहीं देता? क्या व्यक्ति के अथक श्रम, संघर्ष, उस की कामयाबी, उस की जीवनधारा, उस के विचार, उस की पहचान के आधार नहीं बन सकते?

शादी तो 2 व्यक्तित्व का आपसी तालमेल ही है. अगर उन का आपसी सामंजस्य बैठा तो नातेरिश्ते अपनेआप संभल जाते हैं. धर्म, जाति, जन्मसूत्र की उपयोगिता यहां नगन्य ही है.

Summer special: बौडी की हर प्रौब्लम्स के लिए है Roohaafzaa लस्सी

गर्मियों में शरीर को हाईड्रेट रखने के लिए पेय पदार्थों का सेवन अधिक करना चाहिए.वैसे तो हम सभी ये जानते हैं की दही हमारे शरीर के लिए कितना फायदेमंद है. पर अगर आप प्लेन दही नहीं खाना पसंद करते तो आप इसकी लस्सी भी try कर सकते है. जो लोग दूध से परहेज करते हैं उन लोगों के लिए भी लस्सी एक बेहतर ऑप्शन साबित होती है, क्योंकि इसमें दूध के गुण भी शामिल होते हैं.

लस्सी पीने से जहां एक ओर शरीर को ठंडक मिलती है वहीं दूसरी तरफ इसके ढेर सारे ऐसे फायदे भी हैं जिन्हें जानकर आप इसको रोजाना अपनी डाइट में ज़रूर शामिल करेंगे .

आइए जानते हैं इसके फायदों के बारे में…
1. अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है तो आप लस्सी का सेवन करना शुरू कर दीजिए. लस्सी में मौजूद पोटैशियम और राइबोफ्लेविन तत्व हाई ब्लड प्रेशर को नार्मल करता है.
2. लस्सी पीने से सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि इसके सेवन से पेट से संबंधित समस्याओं से निजात मिलती है. इसको पीने से फूड प्वॉइजनिंग जैसी समस्या होने की संभावना कम हो जाती है.
3.लस्सी उनके लिए भी बहुत फायदेमंद जिन लोगों को दूध न पीने से अक्सर कैल्शियम की कमी हो जाती है. इससे जहां एक ओर शरीर को भरपूर मात्रा में प्रोटीन मिलता है वहीं कैल्शियम भी इसमें प्रचुर मात्रा में होता है.

4. जिन लोगों को एसिडिटी की प्रॉबल्म रहती है उन्हें लस्सी का सेवन जरूर करना चाहिए। आपके खाने को जल्दी पचाती है।
5. लस्सी में मौजूद लैक्टिक एसिड और विटामिन डी आपके शरीर की इम्युनिटी पॉवर को मजबूत करते हैं और बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं। इसके नियमित सेवन से आप सर्दी-जुकाम जैसी मौसमी इन्फेक्शन से भी बचे रहते हैं।
6. लस्सी में मौजूद इलेक्ट्रोलाइट और पानी की मात्रा आपके शरीर की नमी को बनाये रखती है साथ ही शरीर की गर्मी को भी नियंत्रित रखती है।

तो चलिए आज बनाते है गुलाब लस्सी .ये उन लोगों के लिए ज्यादा कारगर है जो प्लेन लस्सी पीना नहीं पसंद करते .

हमें चाहिए –

दही -400 gm
चीनी –स्वादानुसार
रूह- अफ्ज़ा (roohaafzaa) सिरप -2 टेबलस्पून
बर्फ के cubes -6 से 7
काजू ,पिस्ता ,किशमिश –बारीक कटे हुए (ऑप्शनल)

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले मिक्सी के जार में दही और चीनी डाल कर अच्छे से ब्लेंड(फेंट) कर ले .
2-अब जार को खोल कर उसमे ice-cubes डाल कर एक बार फिर ब्लेंड कर ले .अगर आप चाहे तो ice-cube लस्सी के तैयार हो जाने के बाद ऊपर से भी डाल सकती हैं .
3-अब लस्सी को एक बड़े बर्तन में निकाल ले.
4-अब हर गिलास में रूह- अफ्ज़ा डाल कर ऊपर से लस्सी डाल दे.फिर एक बार चम्मच से चला दे.
5-रूह- अफ्ज़ा लस्सी को serve करते समय काजू ,पिस्ता और किशमिश से गार्निश कर लें.

मुझे मास्क लगाने पर फेस पर बहुत पसीना आता है?

सवाल-

मुझे मास्क लगाने पर फेस पर बहुत पसीना आता है, जिस के कारण मैं मास्क पहनना चाह कर भी नहीं पहन पा रही हूं, क्या ऐसा कोई उपाय है. जिस से मैं मास्क भी पहनूं और मुझे पसीने की समस्या भी न आए?

जवाब-

मास्क लगाने से अगर त्वचा में रैशेज या पसीना हो तो इस से बचने के लिए कौटन के बने मास्क या रूमाल का इस्तेमाल करें. मास्क पहनने से पहले चेहरे पर ऐसी क्रीम या मौइस्चराइजर लगाना चाहिए, जिस में ऐंटीइनफ्लैमेटरी इन्ग्रीडिऐंट्स हों. इस के लिए आप नियासिनमाइड बेस्ड क्रीम चुन सकती हैं. नियासिनमाइड विटामिन बी का ही एक प्रकार है. यह हमारी स्किन में सेरामाइड का निर्माण करने में सहायता करता है. सेरामाइड स्किन पर किसी भी तरह की दिक्कत को बढ़ने से रोकता है. यह हमारी त्वचा से अतिरिक्त पसीना निकलने से भी रोकता है. जिन की स्किन बहुत अधिक सैंसिटिव होती है,

उन्हें भी नियासिनमाइड बेस्ड औइनमैंट्स का उपयोग करना चाहिए ताकि गरमी में मास्क के कारण त्वचा संबंधी समस्याएं न बढ़ें.

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वायरसों से बेसिक बचाव के लिए मास्क पहना यानी नाक-मुंह ढका जाता है. मौजूदा घातक नोवल कोरोना वायरस के बहुत तेजी से फैलाव को देखते हुए विश्व संस्था डब्लूएचओ ने इस के इस्तेमाल पर काफी अधिक जोर दिया है. कुछ देशों ने तो इस के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है. हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मास्क पहनना लाजिमी करार दिया है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पहले से ही इसे जरूरी घोषित कर रखा है.

दरअसल, कोरोना से बचाव सिर्फ आज या कल ही नहीं, बल्कि आने वाले लंबे समय तक करना होगा, क्योंकि इस की दवा फ़िलहाल उपलब्ध नहीं है. इस वायरस के नाक या मुंह के रास्ते शरीर के अंदर जाने से रोकने के लिए मास्क का इस्तेमाल किया जाता है.

संक्रमित होने से बचाता है मास्क :

कनाडा में मैकमास्टर विश्वविद्यालय ने अपने शोध कहा है कि आम कपड़े से बने मास्क नोवल कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रभावी हैं. विशेषरूप से ऐसे मास्क जो सूती कपड़े के बने हों.

बदला नजरिया: क्या अच्छी बहू साबित हुई शिवानी

दवा की दुकान से बैंडएड खरीद कर शिवानी घर की तरफ चल पड़ी. मौसम बहुत सुहावना था. किसी भी समय बारिश शुरू हो सकती थी. ठंडी हवा के झोंकों ने उस के तनमन को तरोताजा कर दिया.

कोठी तक पहुंचने में उसे करीब 15 मिनट लगे. अंदर घुसते ही उस की सास सुमित्रा ने उसे आवाज दे कर अपने कमरे में बुला लिया.

‘‘शिवानी, तुम कहां चली गई थीं?’’ सुमित्रा नाराज और परेशान नजर आईं.

‘‘मम्मीजी, केमिस्ट से बैंडएड लाने गई थी,’’ शिवानी डरीसहमी बोली, ‘‘सेब काटते हुए चाकू से उंगली कट गई थी.’’

‘‘देखो, सेब काट कर देने का काम कमला का है. हमारी सेवा करने की वह पगार लेती है. उस का काम खुद करने की आदत तुम्हें छोड़नी चाहिए.’’

‘‘जी,’’ सास की कही बातों के समर्थन में शिवानी के मुंह से इतना ही निकला.

‘‘बैंडएड लाने इतनी दूर तुम पैदल क्यों गईं? क्या ड्राइवर रामसिंह ने कार से चलने की बात तुम से नहीं कही थी?’’

‘‘कही थी, पर दवा की दुकान है ही कितनी दूर, मैं ने सोचा कार से जाने की अपेक्षा पैदल जा कर जल्दी लौट आऊंगी,’’ शिवानी ने सफाई दी.

‘‘इस घर की बहू हो तुम, शिवानी.  किसी काम से बाहर निकलो तो कार से जाओ. वैसे खुद काम करने की आदत अब छोड़ दो.

‘‘जी,’’ शिवानी और कुछ न बोल सकी.

‘‘मैं समझती हूं कि तुम्हें मेरी इन बातों में खास वजन नजर नहीं आता क्योंकि तुम्हारे मायके में कोई इस तरह से व्यवहार नहीं करता. लेकिन अब तुम मेरे कहे अनुसार चलना सीखो. हर काम हमारे ऊंचे स्तर के अनुसार करने की आदत डालो, और सुनो, नेहा के साथ डा. गुप्ता के क्लीनिक पर जा कर अपनी उंगली दिखा लेना.’’

‘‘मम्मीजी, जख्म ज्यादा गहरा… ठीक है, मैं चली जाऊंगी,’’ अपनी सास की पैनी नजरों से घबरा कर शिवानी ने उन की हां में हां मिलाना ही ठीक समझा.

‘‘जाओ, नाश्ता कर लो और सारा काम कमला से ही कराना.’’

अपनी सास के कमरे से बाहर आ कर शिवानी कमला को सिर्फ चाय लाने का आदेश दे कर अपने शयनकक्ष में चली आई.

समीर की अनुपस्थिति उसे बड़ी शिद्दत से महसूस हो रही थी. वह  सामने होता तो रोझगड़ कर अपने मन की बेचैनी जरूर कम कर लेती.

इन्हीं विचारों की उधेड़बुन में वह अतीत की यादों में खो गई.

समीर के साथ उस का प्रेम विवाह करीब 3 महीने पहले हुआ था. एक साधारण से घर में पलीबढ़ी शिवानी एक बेहद अमीर परिवार की बहू बन कर आ गई.

समीर और शिवानी एम.बी.ए. की पढ़ाई के दौरान मिले थे. दोनों की दोस्ती कब प्रेम में बदल गई उन्हें पता भी न चला पर कालिज के वे दिन बेहद रोमांटिक और मौजमस्ती से भरे थे. शिवानी को समीर की अमीरी का एहसास था पर अमीर घर की बहू बन कर उसे इस तरह घुटन व अपमान का सामना करना पड़ेगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

शिवानी चाह कर भी ऐसे मौकों पर अपने मन की प्रतिक्रियाओं को नियंत्रण में न रख पाती. वह अजीब सी कुंठा का शिकार होती और बेवजह खुद की नजरों में अपने को गिरा समझती. ऐसा था नहीं पर उसे लगता कि सासससुर व ननद, तीनों ही मन ही मन उस का मजाक उड़ाते हैं. सच तो यह है कि उसे बहू के रूप में अपना कर भी उन्होंने नहीं अपनाया है.

हर 2-4 दिन बाद कोई न कोई ऐसी घटना जरूर हो जाती है जो शिवानी के मन का सुखचैन खंडित कर देती.

वह दहेज में जो साडि़यां लाई थी उन की खरीदारी उस ने बडे़ चाव से की थी. उस के मातापिता ने उन पर अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया था. पर यहां आ कर सिर्फ 2 साडि़यां पहनने की इजाजत उसे अपनी सास से मिली. बाकी सब को उन्होंने रिजेक्ट कर दिया.

‘बहू, साडि़यों में कोई बुराई नहीं है, पर इन की कम कीमत का अंदाजा मेरी परिचित हर औरत आसानी से लगा लेगी. तब मैं उन की मखौल उड़ाती नजरों व तानों का सामना नहीं कर सकूंगी. प्लीज, तुम इन्हें मत पहनना… या कभी मायके जाओ तो वहां जी भर कर पहन लेना.’

अपनी सास की सलाह सुन कर शिवानी मन ही मन बहुत दुखी हुई थी.

बाद में शिवानी ने गुस्से से भर कर समीर से पूछा था, ‘दूसरों की नजरों में ऊंचा बने रहने को क्या हमें अपनी खुशी व शौक दांव पर लगाने चाहिए?’

‘डार्लिंग, क्यों बेकार की टेंशन ले रही हो,’ समीर ने बड़े सहज भाव से उसे समझाया, ‘मां तुम्हें एक से एक बढि़या साडि़यां दिला रही हैं न? उन की खुशी की खातिर तुम ऐसी छोटीमोटी बातों को दिल से लगाना छोड़ दो.’

शादी के बाद समीर के प्रेम में जरा भी अंतर नहीं आया था. इसी बात का उसे सब से बड़ा सहारा था, वरना वह अपनी ससुराल वालों की अमीरी की दिखावट के कारण अपना बहुत ज्यादा खून फूंकती.

उस के ससुर रामनाथजी ने भी उस की इच्छाओं व भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं किया.

शिवानी समीर के बराबर की योग्यता रखती थी. दोनों ने एम.बी.ए. साथसाथ किया था. पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बनने की इच्छा सदा ही उस के मन में रही थी.

समीर ने अपने खानदानी व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरू किया. शिवानी भी वैसा ही करना चाहती थी और समीर को इस पर कोई एतराज न था. पर उस के ससुर रामनाथजी ने उस की बिजनेस में सहयोग देने की इच्छा जान कर अपना एकतरफा निर्णय पल भर में सुना दिया.

‘अपनी भाभी या बड़ी बहन की तरह से काम पर जाने की उसे न तो जरूरत है और न ही ऐसा करने की इजाजत मैं उसे दूंगा. अब वह मेरे घर की बहू है और उसे सिर्फ ठाटबाट व रुतबे के साथ जीने की कला सीखने पर अपना ध्यान लगाना चाहिए.’

एक बार फिर समीर उसे प्यार से समझाबुझा कर निराशा व उदासी के कोहरे से बाहर निकाल लाया था. अपने पति की गैरमौजूदगी में ससुराल की आलीशान कोठी में शिवानी लगभग हर समय घुटन व बेचैनी अनुभव करती. यद्यपि कभी किसी ने उस के साथ बदसलूकी या उस का अनादर नहीं किया था, फिर भी शिवानी को हमेशा लगता कि वह शादी कर के सोने के पिंजरे में कैद हो गई है.

कमला ने चाय की टे्र ले कर कमरे में प्रवेश किया तो शिवानी अतीत की यादों से उबर आई. उस के आदेश पर कमला चाय की टे्र मेज पर रख कर बाहर चली गई.

खराब मूड के चलते शिवानी ने कमरे में रखे स्टील के गिलास में चाय बनाई क्योंकि ठंडे मौसम में स्टील के गिलास में चाय पीने का उस का शौक वर्षों पुराना था.

पहली दफा उस की सास ने उसे स्टील के गिलास में चाय पीते देख कर फौरन टोका था, ‘‘बहू, वैसे तो चाय गिलास में भी पी जा सकती है… अपने मायके में तुम ऐसा करती ही रही हो, पर यहां की बात और है. अच्छा रहेगा कि कमला चाय की टे्र सजा कर लाए और तुम हमेशा कपप्लेट में ही चाय पीने की आदत बना लो.’’

आज बैंडएड वाली घटना के कारण शिवानी के मन में विद्रोह के भाव थे. तभी उस ने चाय गिलास में तैयार की और ऐसा करते हुए उसे अजीब सी शांति महसूस हो रही थी.

समीर फैक्टरी के काम से 3 दिन के लिए मुंबई गया था. उस की गैरमौजूदगी में शिवानी की व्यस्तता बहुत कम हो गई. चाय पीने के बाद उस ने कुछ देर आराम किया. फिर उठने के बाद वह अपने भैया के घर जन्मदिन पार्टी में शामिल होने गाजियाबाद जाने की तैयारी में लग गई.

सुमित्रा को जब पता चला कि बहू गाजियाबाद जाने की तैयारी कर रही है तो यह सोच कर वह भी पति रामनाथ सहित बहू के साथ हो लीं कि रास्ते में अपनी बहन सीमा से मिल लेंगी. मम्मी, पापा और भाभी को जाता देख कर नेहा भी उन के साथ हो ली.

सुमित्रा की बड़ी बहन सीमा की कोठी ऐसे इलाके में थी जहां का विकास अभी अच्छी तरह से नहीं हुआ था. रास्ता काफी खराब था. सड़क पर प्रकाश की उचित व्यवस्था भी नहीं थी. ड्राइवर रामसिंह को कार चलाने में काफी कठिनाई हो रही थी.

सुमित्रा जब अपनी बहन के घर पहुंचीं तो पता चला कि उन का लगभग पूरा परिवार एक विवाह समारोह में भाग लेने मेरठ गया हुआ था. घर में सीमा की छोटी बेटी अंकिता और नौकर मोहन मौजूद थे.

अंकिता ने जिद कर के उन्हें चाय पीने को रोक लिया. उन्हें वहां पहुंचे अभी 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि अचानक हवा बहुत तेजी से चलने लगी और बिजली चली गई.

‘‘मैं मोमबत्तियां लाती हूं,’’ कहते हुए अंकिता रसोई की तरफ चली गई.

‘‘लगता है बहुत जोर से बारिश आएगी,’’ रामनाथजी की आवाज चिंता से भर उठी.

मौसम का जायजा लेने के इरादे से रामनाथजी उठ कर बाहर बरामदे की दिशा में चले. कमरे में घुप अंधेरा था, सो वह टटोलतेटटोलते आगे बढे़.

तभी एक चुहिया उन के पैर के ऊपर से गुजरी. वह घबरा कर उछल पड़े. उन का पैर मेज के पाए से उलझा और अंधेरे कमरे में कई तरह की आवाजें एक साथ उभरीं. मेज पर रखा शीशे का गुलदान छनाक की आवाज के साथ फर्श पर गिर कर टूट गया. रामनाथजी का सिर सोफे के हत्थे से टकराया. चोट लगने की आवाज के  साथ उन की पीड़ा भरी हाय पूरे घर में गूंज गई.

‘‘क्या हुआ जी?’’ सुमित्रा की चीख में  नेहा और शिवानी की चिंतित आवाजें दब गईं.

रामनाथजी किसी सवाल का जवाब देने की स्थिति में ही नहीं रहे थे. उन की खामोशी ने सुमित्रा को बुरी तरह से घबरा दिया. वह किसी पागल की तरह चिल्ला कर अंकिता से जल्दी मोमबत्ती लाने को शोर मचाने लगीं.

अंकिता जलती मोमबत्ती ले भागती सी बैठक में आई. उस के प्रकाश में फर्श पर गिरे रामनाथजी को देख सुमित्रा और नेहा जोरजोर से रोने लगीं.

अपने ससुर के औंधे मुंह पड़े शरीर को शिवानी ने ताकत लगा कर सीधा किया. उन के सिर से बहते खून पर सब की नजर एकसाथ पड़ी.

‘‘पापा…पापा,’’ नेहा के हाथपांव की शक्ति जाती रही और वह सोफे पर निढाल सी पसर गई.

शिवानी के आदेश पर अंकिता ने मोमबत्ती सुमित्रा को पकड़ा दी.

मोहन भी घटनास्थल पर आ गया. शिवानी ने मोहन और अंकिता की सहायता से मूर्छित रामनाथजी को किसी तरह उठा कर सोफे पर लिटाया.

‘‘पापा को डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा,’’ शिवानी घाव की गहराई को देखते हुए बोली, ‘‘अंकिता, तुम बाहर खडे़ रामसिंह ड्राइवर को बुला लाओ.’’

सुमित्रा अपने पति को होश में लाने की कोशिश रोतेरोते कर रही थी और नेहा भयभीत हो अश्रुपूरित आंखों से अधलेटी सी पूरे दृश्य को देखे जा रही थी. अंकिता बाहर से आ कर बोली, ‘‘भाभी, आप का ड्राइवर रामसिंह गाड़ी के पास नहीं है. मैं ने तो आवाज भी लगाई, लेकिन उस का मुझे कोई जवाब नहीं मिला.’’

‘‘मैं देखती हूं. मम्मी, आप हथेली से घाव को दबा कर रखिए.’’

सुमित्रा की हथेली घाव पर रखवा कर शिवानी मेन गेट की तरफ बढ़ गई. अंकिता भी उस के पीछेपीछे हो ली.

‘‘पापा को डाक्टर के  पास ले जाना जरूरी है, अंकिता. यहां पड़ोस में कोई डाक्टर है?’’

‘‘नहीं भाभी,’’ अंकिता ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘नजदीकी अस्पताल कहां है?’’

‘‘बाहर निकल कर मुख्य सड़क पर.’’

‘‘टैक्सी या थ्री व्हीलर कहां मिलेगा?’’

‘‘मेन रोड पर.’’

‘‘चल मेरे साथ.’’

‘‘कहां, भाभी?’’

‘‘टैक्सी या थ्री व्हीलर लाने. उसी में पापा को अस्पताल ले चलेंगे.’’

अंधेरे में डूबी गली में दोनों तेज चाल से मुख्य सड़क की तरफ चल पड़ीं. तभी बादल जोर से गरजे और तेज बारिश पड़ने लगी.

सड़क के गड्ढों से बचतीबचाती दोनों करीब 10 मिनट में मुख्य सड़क पर पहुंचीं. बारिश ने दोनों को बुरी तरह से भिगो दिया था.

एक तरफ उन्हें थ्री व्हीलर खड़े नजर  आए तो वे उस ओर चल दीं.

शिवानी ने थ्री व्हीलर के अंदर बैठते हुए ड्राइवर से कहा, ‘‘भैया, अंदर कालोनी में चलो. एक मरीज को अस्पताल तक ले जाना है.’’

‘‘कौन से अस्पताल?’’ ड्राइवर ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘किसी भी पास के सरकारी अस्पताल में ले चलना है. अब जरा जल्दी चलो.’’

‘‘अंदर सड़क बड़ी खराब है, मैडम.’’

‘‘स्कूटर निकल जाएगा.’’

‘‘किसी और को ले जाओ, मैडम. मौसम बेहद खराब है.’’

‘‘बहनजी, आप मेरे स्कूटर में बैठें,’’ एक सरदार ड्राइवर ने उन की बातचीत में हस्तक्षेप करते हुए कहा.

‘‘धन्यवाद, भैया,’’ शिवानी ने अंकिता के साथ स्कूटर में बैठते हुए कहा.

सरदारजी सावधानी से स्कूटर चलाने के साथसाथ उन दोनों का हौसला भी अपनी बातों से बढ़ाते रहे. घर पहुंचने के बाद वह उन दोनों के पीछेपीछे बैठक में भी चले आए.

‘‘मम्मी, मैं थ्री व्हीलर ले आई हूं. पापा को अस्पताल ले चलते हैं,’’ शिवानी की आवाज में जरा भी कंपन नहीं था.

रामनाथजी होश में आ चुके थे पर अपने अंदर बैठने या बोलने की शक्ति महसूस नहीं कर रहे थे. चिंतित नजरों से सब की तरफ देखने के बाद उन की  आंखें भर आईं.

‘‘इन से चला नहीं जाएगा. पंजे में मोच आई है और दर्द बहुत तेज है,’’ घाव को दबा कर बैठी सुमित्रा ने रोंआसे स्वर में उसे जानकारी दी.

‘‘ड्राइवर भैया, आप पापाजी को बाहर तक ले चलने में हमारी मदद करेंगे,’’ शिवानी ने मदद मांगने वाली नजरों से सरदारजी की तरफ देखा.

‘‘जरूर बहनजी, फिक्र की कोई बात नहीं,’’ हट्टेकट्टे सरदारजी आगे बढ़े और उन्होंने अकेले ही रामनाथजी को अपनी गोद में उठा लिया.

थ्री व्हीलर में पहले सुमित्रा और  फिर शिवानी बैठीं. उन्होंने रामनाथजी को अपनी गोद में लिटा सा लिया.

सरदारजी ने अंकिता और नेहा को पास के सरकारी अस्पताल का रास्ता समझाया और रामसिंह के लौटने पर कार अस्पताल लाने की हिदायत दे कर स्कूटर अस्पताल की तरफ मोड़ दिया. बिजली की कौंध व बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश थमी नहीं थी.

मुख्य सड़क के किनारे बने छोटे से सरकारी अस्पताल में व्याप्त बदइंतजामी का सामना उन्हें पहुंचते ही करना पड़ा. वहां के कर्मचारियों ने खस्ताहाल स्ट्रेचर सरदारजी को मरीज लाने के लिए थमा दिया.

अंदर आपातकालीन कमरे में डाक्टर का काम 2 कंपाउंडर कर रहे थे. डाक्टर साहब अपने बंद कमरे में आराम फरमा रहे थे.

डाक्टर को बुलाने की शिवानी की  प्रार्थना का कंपाउंडरों पर कोई असर नहीं पड़ा तो वह एकदम से चिल्ला पड़ी.

‘‘डाक्टर यहां सोने आते हैं या मरीजों को देखने? मैं उठाती हूं उन्हें,’’ और इसी के साथ शिवानी डाक्टर के कमरे की तरफ चल पड़ी.

एक कंपाउंडर ने शिवानी का रास्ता रोकने की कोशिश की तो सरदारजी उस का हाथ पकड़ कर बोले, ‘‘बादशाहो, इन बहनजी से उलझे तो जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह पुलिस कमिश्नर की रिश्तेदार हैं. इनसान की पर्सनैलिटी देख कर उन की हैसियत का अंदाजा लगाना सीखो और अपनी नौकरी को खतरे में डालने से बचाओ.’’

एक ने भाग कर शिवानी के पहुंचने से पहले ही डाक्टर के कमरे का दरवाजा खटखटाया. डाक्टर ने नाराजगी भरे अंदाज में दरवाजा खोला. कंपाउंडर ने उन्हें अंदर ले जा कर जो समझाया, उस के प्रभाव में आ कर डाक्टर की नींद हवा हो गई और वह रामनाथजी को देखने चुस्ती से कमरे से बाहर निकल आया.

डाक्टर को जख्म सिलने में आधे घंटे से ज्यादा का समय लगा. रामनाथजी  के पैर में एक कंपाउंडर ने कै्रप बैंडेज बड़ी कुशलता से बांध दिया. दूसरे ने दर्द कम करने का इंजेक्शन लगा दिया.

‘‘मुझे लगता नहीं कि हड्डी टूटी है पर कल इन के पैर का एक्स-रे करा लेना. दवाइयां मैं ने परचे पर लिख दी हैं, इन्हें 5 दिन तक खिला देना. अगर हड्डी टूटी निकली तो प्लास्टर चढे़गा. माथे के घाव की पट्टी 2 दिन बाद बदलवा लीजिएगा,’’ डाक्टर ने बड़े अदब के साथ सारी बात समझाई.

तभी रामसिंह, अंकिता और नेहा वहां आ पहुंचे. नेहा अपने पिता की छाती से लग कर रोने लगी.

रामसिंह ने सुमित्रा को सफाई दी, ‘‘साहब ने कहा था कि घंटे भर बाद चलेंगे. मैं सिगरेट लाने को दुकान ढूंढ़ने निकला तो जोर से बारिश आ गई. मुझ से गलती हुई. मुझे कार से दूर नहीं जाना चाहिए था.’’

स्टे्रचर पर लिटा कर दोनों कंपाउंडर रामनाथजी को कार तक लाए. शिवानी ने उन्हें इनाम के तौर पर 50 रुपए सुमित्रा से दिलवाए.

सरदारजी तो किराए के पैसे ले ही नहीं रहे थे.

‘‘अपनी इस छोटी बहन की तरफ से उस के भतीजेभतीजियों को मिठाई खिलवाना, भैया,’’ शिवानी के ऐसा कहने पर ही भावुक स्वभाव वाले सरदारजी ने बड़ी मुश्किल से 100 रुपए का नोट पकड़ा.

विदा लेने के समय तक सरदारजी ने शिवानी के हौसले व समझदारी की प्रशंसा करना जारी रखा.

इसी तरह का काम लौटते समय अंकिता भी करती रही. वह इस बात से बहुत प्रभावित थी कि अंधेरे और बारिश की चिंता न कर शिवानी भाभी निडर भाव से थ्री व्हीलर लाने निकल पड़ी थीं.

अंकिता को उस के घर छोड़ वह सब वापस लौट पड़े. सभी के कपड़े खराब हो चुके थे. रामनाथजी को आराम करने की जरूरत भी थी.

उस रात सोने जाने से पहले सुमित्रा और नेहा शिवानी से मिलने उस के कमरे में आईं, ‘‘बहू, आज तुम्हारी हिम्मत और समझबूझ ने बड़ा साथ दिया. हमारे तो उन की खराब हालत देख कर हाथपैर ही फूल गए थे. तुम न होतीं तो न जाने क्या होता?’’ शिवानी को छाती से लगा कर सुमित्रा ने एक तरह से उसे धन्यवाद दिया.

‘‘भाभी, मुझे भी अपनी जैसी साहसी बना दो. अपने ढीलेपन पर मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है,’’ नेहा ने कहा.

‘‘बहू, तुम्हारे सीधेसादे व्यक्तित्व की खूबियां हमें आज देखने को मिलीं. मुसीबत के समय हम मांबेटी की सतही चमकदमक फीकी पड़ गई. हम बेकार तुम में कमियां निकालते थे. जीवन की चुनौतियों व संघर्षों का सामना करने का आत्मविश्वास तुम्हीं में ज्यादा है. तुम्हारा इस घर की बहू बनना हम सब के लिए सौभाग्य की बात है,’’ भावुक नजर आ रही सुमित्रा ने एक तरह से अपने अतीत के रूखे व्यवहार के लिए शिवानी से माफी मांगी.

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