Raksha Bandhan: कन्यादान- भाग 3- भाई और भाभी का क्या था फैसला

अगले दिन वे कालेज की सीढि़यां चढ़ रहे थे, उसी समय प्रोफैसर रंजन तेजी से उन की तरफ आए, ‘क्यों अनिरुद्धजी, श्रेयसी तो आप के किसी रिलेशन में है न. आजकल रौबर्ट के साथ उस के बड़े चरचे हैं?’ अनिरुद्ध कट कर रह गए, उन्हें तुरंत कोई जवाब न सूझा. धीरे से अच्छा कह कर वे अपने कमरे में चले गए थे.

उसी शाम रौबर्ट और श्रेयसी को फिर से साथ देख कर उन का माथा ठनका था. वे रौबर्ट के मातापिता से मिलने के लिए शाम को अचानक रौबर्ट के घर पहुंच गए. रौबर्ट उन्हें अपने घर पर आया देख, थोड़ा घबराया, परंतु उस के पिता मैथ्यू और मां जैकलीन ने खूब स्वागतसत्कार किया. मैथ्यू रिटायर्ड फौजी थे. अब वे एक सिक्योरिटी एजेंसी में मैनेजर की हैसियत से काम कर रहे थे. जैकलीन एक कालेज में इंगलिश की टीचर हैं. गरमगरम पकौडि़यों और चटनी का नाश्ता कर के अनिरुद्ध का मन खुश हो गया था.

वे प्रसन्नमन से गुनगुनाते हुए अपने घर पहुंचे. ‘क्या बात है? आज बड़े खुश दिख रहे हैं.’

‘मंजू, आज रौबर्ट की मां के हाथ की पकौडि़यां खा कर मजा आ गया.’

‘आप रौबर्ट के घर पहुंच गए क्या?’

‘हांहां, बड़े अच्छे लोग हैं.’

‘आप ने उन लोगों से श्रेयसी के बारे में बात कर ली क्या?’

‘तुम तो मुझे हमेशा बेवकूफ ही समझती हो. तुम्हारे आदरणीय भाईसाहब की अनुमति के बिना भला मैं कौन होता हूं, किसी से बात करने वाला? लेकिन अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि एक बार तुम्हारे भाईसाहब से बात करनी ही पड़ेगी.’ मंजुला नाराजगीभरे स्वर में बोली, ‘देखिए, आप को मेरा वचन है कि आप इस पचड़े में पड़ कर उन से बात न करें. आप मेरे भाईसाहब को नहीं जानते, किसी को बुखार भी आ जाए तो सीधे अपने महाराजजी के पास भागेंगे. उन के पास जन्मकुंडली दिखा कर ग्रहों की दशा पूछेंगे. उन से भभूत ला कर बीमार को खिलाएंगे और घर में ग्रहशांति की पूजापाठ करवाएंगे. डाक्टर के पास तो वे तब जाते हैं जब बीमारी कंट्रोल से बाहर हो जाती है.

‘जब से मैं ने होश संभाला है, भाईसाहब को कथा, भागवत, प्रवचन जैसे आयोजनों में बढ़चढ़ कर भाग लेते हुए देखा है. वे पंडे, पुजारी और कथावाचकों को घर पर बुला कर अपने को धन्य मानते हैं. उन सब को भरपूर दानदक्षिणा दे कर वे बहुत खुश होते हैं.’

‘मंजुला, तुम समझती क्यों नहीं हो? यह श्रेयसी के जीवन का सवाल है. रौबर्ट के साथसाथ उस का परिवार भी बहुत अच्छा है.’

‘प्लीज, आप समझते क्यों नहीं हैं.

2-4 दिनों पहले ही भाभी का फोन आया था कि जीजी, आप के भाईसाहब एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्माजी को ले कर घर में आए थे. उन्होंने उन की जन्मकुंडली देख कर बताया है कि आप की बिटिया का मंगल नीच स्थान में है, इसलिए मंगल की ग्रहशांति की पूजा जब तक नहीं होगी, तब तक शादी के लिए आप के सारे प्रयास विफल होंगे.

‘जीजी, महात्माजी बहुत बड़े ज्ञानी हैं. वे बहुत सुंदर कथा सुनाते हैं. उन के पंडाल में लाखों की भीड़ होती है. कह रहे थे, सेठजी दानदाताओं की सूची में शहरभर में आप का नाम सब से ऊपर रहना चाहिए. आप के भाईसाहब ने एक लाख रुपए की रसीद तुरंत कटवा ली. वे कह रहे थे कि शास्त्रों में लिखा है कि ‘दान दिए धन बढ़े’ दान से बड़ा कोई भी धर्म नहीं है.

‘महात्माजी खुश हो कर बोले थे कि सेठजी, आप की बिटिया अब मेरी बिटिया हुई, इसलिए आप बिलकुल चिंता न करें. उस के विवाह के लिए मैं खुद पूजापाठ करूंगा. आप को कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है.’ मंजुला अपने पति अनिरुद्ध को बताए जा रही थी, ‘भाभी कह रही थीं कि नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर महात्माजी भाईसाहब के हाथों से हवन करवाएंगे.’

‘वाह, आप के भाईसाहब का कोई जवाब नहीं है. अरे, जिन को महात्मा कहा जा रहा है वे महात्मा थोड़े ही हैं, वे तो ठग हैं, जो आम जनता को अपनी बातों के जाल में फंसा कर दिनदहाड़े ठगते हैं. छोड़ो, मेरा मूड खराब हो गया इस तरह की बेवकूफी की बातें सुन कर.’

‘इसीलिए तो आप से मैं कभी कुछ बताती ही नहीं हूं. जातिपांति के मामले में तो वे इतने कट्टर हैं कि घर या दुकान, कहीं भी नौकर या मजदूर रखने से पहले उस की जाति जरूर पूछेंगे.’ ‘मान गए आप के भाईसाहब को. वे आज भी 18वीं शताब्दी में जी रहे हैं. मेरा तो सिर भारी हो गया है. एक गिलास ठंडा पानी पिलाओ.’

‘अब तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि वे कितने रूढि़वादी और पुराने खयालों के हैं. आप भूल कर भी उन के सामने कभी भी ये सब बातें मत कीजिएगा.’

अनिरुद्ध बोले, ‘कम से कम एक बार श्रेयसी को अपने मन की बात भाईसाहब से कहनी चाहिए.’

‘अनिरुद्ध, आप समझते नहीं हैं, लड़की में परिवार वालों के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं होती. उस के मन में समाज का डर, मांबाप की इज्जत चले जाने का ऐसा डर होता है कि वह अपने जीवन, प्यार और कैरियर सब की बलि दे कर खुद को सदा के लिए कुरबान कर देती है.’

‘इस का मतलब तो यह है कि बड़े भाईसाहब ने तुम्हारे साथ भी अन्याय किया था.’

‘मेरे साथ भला क्या अन्याय किया था?’ ‘तुम्हारी शादी जल्दी करने की हड़बड़ी देख मेरा माथा ठनका था. क्या सोचती हो, मैं नासमझ था. तुम्हारा उदास चेहरा, रातदिन तुम्हारी बहती आंखें, मुझे देखते ही तुम्हारी थरथराहट, संबंध बनाते समय तुम्हारी उदासीनता, तुम्हारी उपेक्षा, कमरा बंद कर के रोनाबिलखना, प्रथम रात्रि को ही तुम्हारी आंसुओं से भीगा हुआ तकिया देख कर मैं सब समझ गया था. ‘तुम्हारी भाभी का पकड़ कर फेरा डलवाना. तुम्हारे कानों में कभी दीदी फुसफुसा रही थीं तो कभी तुम्हारी बूआ. विदा के समय भाईसाहब के क्रोधित चेहरे ने तो पूरी तसवीर साफ कर दी थी. उन का बारबार कहना, ‘ससुराल में मेरी नाक मत कटवाना’ मेरे लिए काफी था.

‘मैं परेशान तो था, परंतु धैर्यपूर्वक तुम्हारे सभी कार्यकलापों को देखता रहा और चुप रहा. वह तो उन्मुक्त पैदा हुआ तो उस से ममता हो जाने के बाद तुम पूर्णरूप से मेरी हो पाई थीं.’ यह सब सुन कर मंजुला की अंतर्रात्मा कांप उठी थी. अनिरुद्ध ने तो आज उस की पूरी जन्मपत्री ही खोल कर पढ़ डाली थी. इधर उन्मुक्त और छवि शादी के लिए शौपिंग में लगे हुए थे. आयुषी भी अपने लिए लहंगा ले आई थी. परंतु अभी तक श्रेयसी से किसी की बात नहीं हो पाई थी, इसलिए मंजुला का मन उचटाउचटा सा था. एक दिन कालेज से आने के बाद अनिरुद्ध बोले, ‘‘रौबर्ट बहुत उदास था, उस ने बताया कि श्रेयसी के मम्मीपापा आए थे और उस को अपने साथ ले गए. उस के बाद से उस का फोन बंद है. सर, एक बार उस से बात करवा दीजिए.’’

उदास मन से ही सही, श्रेयसी को देने के लिए, मंजुला अच्छा सा सैट ले आई थी. शादी में 4-5 दिन ही बाकी थे कि मंजुला का फोन बज उठा. उधर भाईसाहब थे, ‘‘मंजुला, श्रेयसी घर से भाग गई. वह हम लोगों के लिए आज से मर चुकी है.’’ और उन्होंने फोन काट दिया था. घर में सन्नाटा छा गया था. सब एकदूसरे से मुंह चुरा रहे थे. मंजुला झटके से उठी, ‘‘अनिरुद्ध जल्दी चलिए.’’

‘‘कहां?’’

‘‘हम दोनों श्रेयसी का कन्यादान ले कर उस को उस के प्यार से मिला दें. मुझे मालूम है, इस समय श्रेयसी कहां होगी. जल्दी चलिए, कहीं देर न हो जाए.’’ बरसों बाद आज मंजुला अपने साहस पर खुद हैरान थी.

उन्मुक्त बोला, ‘‘मां, भाई के बिना बहन की शादी अच्छी नहीं लगेगी. मैं भी चल रहा हूं. आप लोग जल्दी आइए, मैं गाड़ी निकालता हूं.’’

छवि और आयुषी जल्दीजल्दी लहंगा ले कर निकलीं. दोनों आपस में बात करने लगीं, ‘‘श्रेयसी दी, लहंगा पहन कर परी सी लगेंगी.’’ सब जल्दीजल्दी निकले और खिड़की से आए हवा के तेज झोंके ने श्रेयसी की शादी के कार्ड को कटीपतंग के समान घर से बाहर फेंक दिया था.

Raksha Bandhan:अंतत- भाग 1- क्या भाई के सितमों का जवाब दे पाई माधवी

बैठक में तनावभरी खामोशी छा गई थी. हम सब की नजरें पिताजी के चेहरे पर कुछ टटोल रही थीं, लेकिन उन का चेहरा सपाट और भावहीन था. तपन उन के सामने चेहरा झुकाए बैठा था. शायद वह समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या कहे. पिताजी के दृढ़ इनकार ने उस की हर अनुनयविनय को ठुकरा दिया था.

सहसा वह भर्राए स्वर में बोला, ‘‘मैं जानता हूं, मामाजी, आप हम से बहुत नाराज हैं. इस के लिए मुझे जो चाहे सजा दे लें, किंतु मेरे साथ चलने से इनकार न करें. आप नहीं चलेंगे तो दीदी का कन्यादान कौन करेगा?’’

पिताजी दूसरी तरफ देखते हुए बोले, ‘‘देखो, यहां यह सब नाटक करने की जरूरत नहीं है. मेरा फैसला तुम ने सुन लिया है, जा कर अपनी मां से कह देना कि मेरा उन से हर रिश्ता बहुत पहले ही खत्म हो गया था. टूटे हुए रिश्ते की डोर को जोड़ने का प्रयास व्यर्थ है. रही बात कन्यादान की, यह काम कोई पड़ोसी भी कर सकता है.’’

‘‘रघुवीर, तुझे क्या हो गया है,’’ दादी ने सहसा पिताजी को डपट दिया.

मां और भैया के साथ मैं भी वहां उपस्थित थी. लेकिन पिताजी का मिजाज देख कर उन्हें टोकने या कुछ कहने का साहस हम लोगों में नहीं था. उन के गुस्से से सभी डरते थे, यहां तक कि उन्हें जन्म देने वाली दादी भी.

मगर इस समय उन के लिए चुप रहना कठिन हो गया था. आखिर तपन भी तो उन का नाती था. उसे दुत्कारा जाना वे बरदाश्त न कर सकीं और बोलीं, ‘‘तपन जब इतना कह रहा है तो तू मान क्यों नहीं जाता. आखिर तान्या तेरी भांजी है.’’

‘‘मां, तुम चुप रहो,’’ दादी के हस्तक्षेप से पिताजी बौखला उठे, ‘‘तुम्हें जाना हो तो जाओ, मैं ने तुम्हें तो कभी वहां जाने से मना नहीं किया. लेकिन मैं नहीं जाऊंगा. मेरी कोई बहन नहीं, कोई भांजी नहीं.’’

‘‘अब चुप भी कर,’’ दादी ने झिड़क कर कहा, ‘‘खून के रिश्ते इस तरह तोड़ने से टूट नहीं जाते और फिर मैं अभी जिंदा हूं, तुझे और माधवी को मैं ने अपनी कोख से जना है. तुम दोनों मेरे लिए एकसमान हो. तुझे भांजी का कन्यादान करने जाना होगा.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा,’’ पिताजी बोले, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि सबकुछ जानने के बाद भी तुम ऐसा क्यों कह रही हो.’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि माधवी मेरी बेटी है और तेरी बहन और तुझे उस ने अपनी बेटी का कन्यादान करने के लिए बुलाया है,’’ दादी के स्वर में आवेश और खिन्नता थी, ‘‘तू कैसा भाई है. क्या तेरे सीने में दिल नहीं. एक जरा सी बात को बरसों से सीने से लगाए बैठा है.’’

‘‘जरा सी बात?’’ पिताजी चिढ़ गए थे, ‘‘जाने दो, मां, क्यों मेरा मुंह खुलवाना चाहती हो. तुम्हें जो करना है करो, पर मुझे मजबूर मत करो,’’ कह कर वे झटके से बाहर चले गए.

दादी एक ठंडी सांस भर कर मौन हो गईं. तपन का चेहरा यों हो गया जैसे वह अभी रो देगा. दादी उसे दिलासा देने लगीं तो वह सचमुच ही उन के कंधे पर सिर रख कर फूट पड़ा, ‘‘नानीजी, ऐसा क्यों हो रहा है. क्या मामाजी हमें कभी माफ नहीं करेंगे. अब लौट कर मां को क्या मुंह दिखाऊंगा. उन्होंने तो पहले ही शंका व्यक्त की थी, पर मैं ने कहा कि मामाजी को ले कर ही लौटूंगा.’’

‘‘धैर्य रख, बेटा, मैं तेरे मन की व्यथा समझती हूं. क्या कहूं, इस रघुवीर को. इस की अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए हैं. अपनी ही बहन को अपना दुश्मन समझ बैठा है,’’ दादी ने तपन के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘खैर, तू चिंता मत कर, अपनी मां से कहना वह निश्चिंत हो कर विवाह की तैयारी करे, सब ठीक हो जाएगा.’’

मैं धीरे से तपन के पास जा बैठी और बोली, ‘‘बूआ से कहना, दीदी की शादी में मैं और समीर भैया भी दादी के साथ आएंगे.’’

तपन हौले से मुसकरा दिया. उसे इस बात से खुशी हुई थी. वह उसी समय वापस जाने की तैयारी करने लगा. हम सब ने उसे एक दिन रुक जाने के लिए कहा, आखिर वह हमारे यहां पहली बार आया था. पर तपन ने यह कह इनकार कर दिया कि वहां बहुत से काम पड़े हैं. आखिर उसे ही तो मां के साथ विवाह की सारी तैयारियां पूरी करनी हैं.

तपन का कहना सही था. फिर उस से रुकने का आग्रह किसी ने नहीं किया और वह चला गया.

तपन के अचानक आगमन से घर में एक अव्यक्त तनाव सा छा गया था. उस के जाने के बाद सबकुछ फिर सहज हो गया. पर मैं तपन के विषय में ही सोचती रही. वह मुझ से 2 वर्ष छोटा था, मगर परिस्थितियों ने उसे उम्र से बहुत बड़ा बना दिया था. कितनी उम्मीदें ले कर वह यहां आया था और किस तरह नाउम्मीद हो कर गया. दादी ने उसे एक आस तो बंधा दी पर क्या वे पिताजी के इनकार को इकरार में बदल पाएंगी?

मुझे यह सवाल भीतर तक मथ रहा था. पिताजी के हठी स्वभाव से सभी भलीभांति परिचित थे. मैं खुल कर उन से कुछ कहने का साहस तो नहीं जुटा सकी, लेकिन उन के फैसले के सख्त खिलाफ थी.

दादी ने ठीक ही तो कहा था कि खून के रिश्ते तोड़ने से टूट नहीं जाते. क्या पिताजी इस बात को नहीं समझते. वे खूब समझते हैं. तब क्या यह उन के भीतर का अहंकार है या अब तक वर्षों पूर्व हुए हादसे से उबर नहीं सके हैं? शायद दोनों ही बातें थीं. पिताजी के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे भूल पाना इतना सहज भी तो नहीं था. हां, वे हृदय की विशालता का परिचय दे कर सबकुछ बिसरा तो सकते थे, किंतु यह न हो सका.

मैं नहीं जानती कि वास्तव में हुआ क्या था और दोष किस का था. यह घटना मेरे जन्म से भी पहले की है. मैं 20 की होने को आई हूं. मैं ने तो जो कुछ जानासुना, दादी के मुंह से ही सुना. एक बार नहीं, बल्कि कईकई बार दादी ने मुझे वह कहानी सुनाई. कहानी नहीं, बल्कि यथार्थ, दादी, पिताजी, बूआ और फूफा का भोगा हुआ यथार्थ.

दादी कहतीं कि फूफा बेकुसूर थे. लेकिन पिताजी कहते, सारा दोष उन्हीं का था. उन्होंने ही फर्म से गबन किया था. मैं अब तक समझ नहीं पाई, किसे सच मानूं? हां, इतना अवश्य जानती हूं, दोष चाहे किसी का भी रहा हो, सजा दोनों ने ही पाई. इधर पिताजी ने बहन और जीजा का साथ खोया तो उधर बूआ ने भाई का साथ छोड़ा और पति को हमेशा के लिए खो दिया. निर्दोष बूआ दोनों ही तरफ से छली गईं.

मेरा मन उस अतीत की ओर लौटने लगा, जो अपने भीतर दुख के अनेक प्रसंग समेटे हुए था. दादी के कुल 3 बच्चे थे, सब से बड़े ताऊजी, फिर बूआ और उस के बाद पिताजी. तीनों पढ़ेपलेबढ़े, शादियां हुईं.

उन दिनों ताऊजी और पिताजी ने मिल कर एक फर्म खोली थी. लेकिन अर्थाभाव के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. उसी समय फूफाजी ने अपना कुछ पैसा फर्म में लगाने की इच्छा व्यक्त की. ताऊजी और पिताजी को और क्या चाहिए था, उन्होंने फूफाजी को हाथोंहाथ लिया. इस तरह साझे में शुरू हुआ व्यवसाय कुछ ही समय में चमक उठा और फलनेफूलने लगा. काम फैल जाने से तीनों साझेदारों की व्यस्तता काफी बढ़ गई थी.

औफिस का अधिकतर काम फूफाजी संभालते थे. पिताजी और ताऊजी बाहर का काम देखते थे. कुल मिला कर सबकुछ बहुत ठीकठाक चल रहा था. मगर अचानक ऐसा हुआ कि सब गड़बड़ा गया. ऐसी किसी घटना की, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

वाइल्ड लाइफ चीतों का पुनर्वास करना मुश्किल क्यों हो रहा है, जानें एक्सपर्ट की राय

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लगातार हो रही चीतों की मौत ने सरकार और वनकर्मी की चिंता बढ़ा दी है. अब तक कुल नौ चीतों की मौत हो चुकी है. कुछ विशेषज्ञ इन मौतों का कारण चीतों को लगाए घटिया रेडियो कॉलर को मानते हैं. ये कॉलर टाइगर के थे मगर चीतों को लगा दिए गए, यही वजह है कि अब सभी बाकी बचे चीते के रेडियों कॉलर हटा दिए गए है और उनकी पूरी निगरानी की जा रही है.

असल में कूनो में नर चीते सूरज के रेडियो कॉलर को हटाने पर उसके गर्दन के नीचे संक्रमण पाया गया था. गहरे घाव में कीड़े भरे हुए थे. सूरज 8वां चीता था  जिसकी कूनों में मौत हुई. दावा है कि इसके पहले तेजस चीते में भी गर्दन में ऐसा ही इन्फेक्शन मिला था. ये इन्फेक्शन फ़ैल रहा है. कॉलर आईडी के कारण ऐसा हो रहा है, ऐसा विशेषज्ञ मान रहे है. जबकि 9वां मादा चीता धात्री भी इन्फेक्शन की वजह से ही मृत पाई गई.

असल में मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से आठ और दक्षिण अफ्रीका से 12 इस प्रकार कुल 20 चीते ‘प्रोजेक्ट चीता’ लाए गए. 29 मार्च को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ी गई तीन वर्ष की नामीबियाई मादा चीता ‘सियाया’ ने चार चीता शावकों को जन्म दिया. वर्तमान में 10 चीते खुले जंगल में विचरण कर रहे हैं और पांच चीतों को बाड़ों में रखा गया है. सभी चीतों की 24 घंटे मॉनीटरिंग की जा रही है. इसके अलावा कूनो वन्य-प्राणी चिकित्सक टीम और नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के विशेषज्ञों द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जा रहा है.

इसके बावजूद कूनो नेशनल पार्क में अब तक छह चीते और तीन शावकों की जान जा चुकी हैं. इन घटनाओं के बीच कई सवाल भी खड़े हुए. आखिर कूनो नेशनल पार्क में चीतों की लगातार हो रही मौत की वजह क्या है?

चीता न लाने की वजह

असल में चीता (Cheetah). दुनिया का सबसे तेज भागने वाला जानवर है. अधिकतम गति 120 किलोमीटर प्रतिघंटा के हिसाब से भाग सकता है. वर्ष 1948 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के खुले साल जंगल में तीन चीतों का शिकार किया गया. साल 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया. 70 साल से चीतें भारत में नहीं थे, फिर अचानक चीतों को लाने की जरुरत क्यों पड़ी? इसे पहले लाया क्यों नहीं गया? आइये जानते है इसका इतिहास, वर्ष 1970 के दशक में ईरान के शाहने कहा था कि वे ईरान से चीतें देने के लिए तैयार है, लेकिन बदले में उन्हें एशियाटिक लायन चाहिए.

लगभग उसी दौरान भारत सरकार ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनाया, जिसे साल 1972 में लागू किया गया. इसके अनुसार देश में किसी भी जगह किसी भी जंगली जीव का शिकार करना प्रतिबंधित है. जब तक इन्हें मारने की कोई वैज्ञानिक वजह न हो या फिर वो इंसानों के लिए किसी प्रकार का खतरा न हो. इसके बाद देश में जंगली जीवों के लिए संरक्षित इलाके बनाए गए, लेकिन किसी ने चीतों के बारें में नहीं सोचा. असल में इसकी आवाज साल 2009 में उठी.

जब वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) ने राजस्थान के गजनेर में दो दिन का इंटरनेशनल वर्कशॉप रखा. सितंबर में हुए इस दो दिवसीय आयोजन में यह मांग की गई कि भारत में चीतों को लाया जा सकता है. दुनिया भर के एक्सपर्ट इस कार्यक्रम में शामिल थे. केंद्र सरकार के मंत्री और संबंधित विभाग के अधिकारियों ने भी इसमें भाग लिया था.

फ़ूड चैन में रखता है संतुलन

दरअसल चीतों के विलुप्त होने के बाद भारतीय ग्रासलैंड की इकोलॉजी खराब हो चुकी है, उसे ठीक करना जरुरी था, चीता अम्ब्रेला प्रजाति का जीव है, जो बहुत ही सेंसेटिव होता है, यानि फ़ूड चैन में सबसे ऊपर के जीव, जो फ़ूड चेन की संतुलन को बनाए रखता है. कूनो नेशनल पार्क को इसलिए चुना गया था, क्योंकि यहाँ चीतों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध है और चीता की सबसे पसंदीदा भोजन ब्लैक बग्स यानि काला हिरन है. इसके अलावा चीता की पसंदीदा जगह के बारें में बात करें, तो उन्हें ऊँचे घास वाले मैदान पसंद होते है, जहाँ वातावरण में अधिक उमस न हों.

कुल पांच राज्यों में चीतों के लायक वातावरण पाए गए, जहाँ पर चीतों को रखा जा सकता है. उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश के सभी स्थानों को एक्सपर्ट ने जाँच किया और पाया कि इन सबमें मध्यप्रदेश का वातावरण सबसे अधिक उपयुक्त है, लेकिन फिर इसे होल्ड पर रखा गया और एक्सपर्ट ने पाया कि ईरान और अफ्रीका के चीतों की जेनेटिक्स एक जैसी है, ऐसे में सभी ने अफ्रीका से चीतों को लाया जाना उचित समझा और 8 चीते नामीबिया से और बाकी 12 साउथ अफ्रीका से लाए गए.

सही वातावरण जरुरी

इस बारें में महाराष्ट्र के रिटायर्ड चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन विश्वजीत मजुमदार कहते है कि टाइगर, पैंथर, लेपर्ड, लायन आदि सभी बिग कैट के इकोलॉजी, फिजियोलोजी, टेरिटोरी जरूरतें अलग -अलग होती है, जो वातावरण टाइगर के लिए सही है वह पैंथर के लिए सही नहीं हो सकता. चीता को पुनर्वास करना पूरे विश्व में बहुत कठिन होता है. चीता की ब्रीडिंग सबसे अधिक मुश्किल होती है. चीता जेनिटिकली दो तरह के होते है. अफ्रीकन चीता भी जेनिटकली एशियन चीता से अलग होते है.

इंडिया में एशियन वाइल्ड चीता मरने की वजह कई है, उनके शिकार करने के तरीके भी बहुत स्पेशल होते है, उन्हें काले हिरन बहुत पसंद होते है, लेकिन काले हिरण की संख्या में लगातार कमी होने की वजह से चीता की नैचुरल फ़ूड में कमी आने लगी, जिससे उन्हें कम पोषक तत्व मिलने लगे. वर्ष 1960 में जब अंतिम चीता का शिकार हुआ, तब हंटिंग के विरुद्ध कानून नहीं थे, जिससे शिकार होते रहे. अब कानून की वजह से वह बंद हो गए.

असल में पहले इंडिया में एशियाटिक चीता हुआ करते थे. वाइल्ड एशियाटिक चीता अभी केवल ईरान में है. सरकार उन्हें इंडिया लाना चाहती थी, लेकिन वे इसके बदले एशियाटिक लायन मांग रहे थे , इसलिए ये डील नहीं हो पाई और बातें होल्ड पर चली गई. ईरान की तरह भारत में भी गुजरात के गिर फारेस्ट में ही केवल एशियाटिक लायन है. भारत ने उसे देने से मना कर दिया थ. ईरान के मना करने की वजह से सभी चीते अफ्रीका से लाये गए.

इन्फेक्शन के अतिसंवेदनशील जानवर

जानकारों की माने तो पहले कई बार एशियाटिक लायन को मध्यप्रदेश के कुनो फारेस्ट में भी लाने का प्रावधान रहा, ताकि कूनों में उनकी संख्या बढे और कूनों एशियाटिक लायन का दूसरा होम बन जाय, क्योंकि ये सभी बिग कैट्स  वायरल इन्फेक्शन के अतिसंवेदनशील होते है. ये अधिकतर वायरल इन्फेक्शन आसपास के जानवरों से प्राप्त करते है, क्योंकि जंगलों के पास रहने वालों की आबादी अधिकतर पशुपालन करती है.

उनके जानवर इधर-उधर चरते रहते है, उन्हें जंगल के शेर से बचाना आसान नहीं होता, ऐसे चरते हुए जानवरों को शेर अधिकतर शिकार करते है, उन्हें खाने पर शेर भी उस जानवर के इन्फेक्शन को कैरी कर लेते है. इसका उदाहण साउथ अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क से लिया जा सकता है. वहां लायन बेस्ड टूरिज्म नंबर वन है. वहां के शेरों के घटने की वजह इन्फेक्शन ही रही, जो उन्हें डोमेस्टिक कैटल से मिलता था, क्योंकि वहां के पशुपालक अपने जानवरों को चरने के लिए छोड़ देते थे और इन इन्फेक्शन वाले जानवरों का शिकार लायन करते थे, जिससे उनमे भी इन्फेक्शन आ जाता था.

इसे देखते हुए वहां की सरकार ने वन मिलियन किलोमीटर के जंगल के दायरे को फेंसिंग किया और सारें ग्रामवासी हटाये गए. इस तरह की समस्या किसी भी प्रकार की इन्फेक्शन वाली बीमारी बिग कैट्स या शेरों में आने पर उनकी पूरी जनसंख्या ख़त्म हो सकती है. इसलिए ऐसे जानवरों के लिए सेकंड होम बनाया जाना चाहिए, ताकि एक जगह इन्फेक्शन होने पर उनकी प्रजाति को सेकंड होम में सुरक्षित रखा जाय, लेकिन तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री ने ऐसा करने से मना किया. अभी केंद्र सरकार चीतों को लाई है और उन्हें कुनो फ़ॉरेस्ट में रखने का मन बनाया है, ताकि पर्यटन के साथ-साथ उनके काम को भी सराहा जाय. यही कड़वी सच्चाई है, लेकिन लगातार चीतों की मृत्यु ने सबको सोचने पर मजबूर किया है.

जेनेटिक वेरिएशन में सबसे नीचे

इसके आगे विश्वजीत कहते है कि चीता खासकर बहुत कम बच्चे को जन्म देती है. जिसमे बहुत कम बच्चे एडल्ट हो पाते है, क्योंकि वे बचपन में ही मर जाते है, या मेल चीता उन्हें मार डालते  है. इसके अलावा चीता जेनेटिक वेरिएशन में सबसे नीचे आता है, वे अपने ही समूह में ब्रीड करते है. वे अफ्रीका के नामीबिया, जोहेंसबर्ग आदि सभी जगहों पर संगीन जेनेटिक डाइवर्सिटी यानि बोटलनेक के अंदर आते है. पूरे विश्व में इनकी पूरी जनसंख्या केवल 2 या 3 चीतों पर टिकी हुई है.

जिसमे 1 पुरुष चीता दो या तीन फिमेल चीता के साथ सम्भोग करता है, उससे अलग वह किसी भी जगह के मादा चीते साथ सम्भोग नहीं करता, यही वजह है कि उनकी जनसँख्या किसी भी बिमारी के लिए अति संवेदनशील होते है, क्योंकि उनकी जेनेटिक गुण स्ट्रोंग नहीं होती. अफ्रीका के चीता किसी भी बीमारी के बहुत अधिक संवेदनशील है, लेकिन उनकी जनसंक्या वहां अधिक होने की वजह से उसपर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता.

कम रोगप्रतिरोधक क्षमता

फारेस्ट वार्डन का आगे कहना है कि चीतों को जब भारत लाया गया, तो यहाँ की जलवायु तक़रीबन एक जैसी है और फारेस्ट भी उनके अनुसार होने की वजह से कुनो में लाया गया, लेकिन ऐसा देखा गया है कि, ऐसे बीमारी के संवेदनशील चीतों को यहाँ लाकर बचाया जाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि चीते ने यहाँ जन्म नहीं लिया है, उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता भारत के अनुसार विकसित नहीं हुई है और इसे विकसित होने में भी सालों लगेंगे और तकरीबन 10 से 15 साल बाद ही ये काम सफल हो सकेगा, इससे पहले होना संभव नहीं.

इसके अलावा सबसे जरुरी है जू में रखे जानवरों और जंगलों में रहने वालें जानवरों के बीच अंतर को समझना. चीता ने अगर कुनो में शावकों को जन्म दिया है तो इसकी वजह बहुत अधिक अफ्रीकन और इंडियन एक्सपर्ट के देखभाल का नतीजा है. इस बारें में बहुत अधिक टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. उदहारण को लें तो वाइल्ड लाइफ में टाइगर की अगर बात करें तो 3 शावक में केवल एक शावक बहुत मुश्किल से बच पाता है.

मादा टाइगर अपने बच्चों को दूसरे जंगली जानवरों और नर बाघ से बचाती है, क्योंकि नर टाइगर हमेशा शावकों को मार डालता है, ताकि मादा बाघ फिर से सम्भोग के लायक हो जाय. इसलिए 90 प्रतिशत अपना समय मादा टाइगर अपने बच्चों को सुरक्षित रखने में बीता देती है. वाइल्ड एनिमल वर्ल्ड में ये सबसे बड़ी समस्या है, जब उनके बच्चे एडल्ट नहीं हो पाते.

एक शावक को एडल्ट होने में 4 से 5 साल लगते है. चीता लाने के पहले वैज्ञानिकों ने काफी छानबीन की है और उपयुक्त माहौल उन्हें देने की कोशिश भी की गयी है. चीता की देखरेख में आज पूरा जू कमिशन काम कर रहा है, जबकि वाइल्ड कमीशन में काम करना जू कमीशन बिल्कुल अलग होता है. इसलिए उन्हें चीता के बारें में अधिक जानकारी होना जरुरी है. रिस्क फैक्टर ये भी है कि आगे आने वाली किसी  सरकार को भी इस प्रोजेक्ट पर ध्यान देने और जिम्मेदारी लेने की जरुरत है.

रिहैबिलिटेशन करना नहीं आसान

इसके आगे वे कहते है कि भारत में जानवरों का रिहैबिलिटेशन बहुत कम किया जाता है, अगर कही पर जानवर आसपास के लोगों को अटैक कर रह हो, तो उसे उठाकर दूसरी जगह भेज दिया जाता है, लेकिन एक सफल रिहैबिलिटेशन दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में किया गया था, क्योंकि दुधवा राष्ट्रीय उद्यान कभी गैंडो (RHINOCEROS) का होम टाउन हुआ करता था, लेकिन अचानक सभी राइनो के गायब होने पर आसाम के काजीरंगा नेशनल पार्क से उन्हें लाकर दुधवा नेशनल पार्क में छोड़ा गया और सभी राइनो वहां पर सरवाईव कर गए, क्योंकि दुधवा के जंगल भी मार्शी और गीले है, जो असम के काजीरंगा नेशनल पार्क से मेल खाते है.

किसी भी जानवर को पुनर्वास कराने से पहले उसकी पूरी छानबीन करना पड़ता है, जिसमे वहां के वातावरण जानवर को सूट करें और उसे रहने में किसी प्रकार की असुविधा न हो. इसमे उनके आहार का सबसे अधिक ध्यान रखना पड़ता है, ताकि वे स्वस्थ रहे.

इसमें एक पूरी टीम होती है, जिसमे वेटेरनरी डॉक्टर, लोकल वैज्ञानिक, आब्जर्वर आदि होते है, जो उनके घूमने फिरने और उनके स्वास्थ्य और हाँव-भाव को मोनिटर करते है. कुनो में भी यही किया जा रहा है, जिसमे वाइल्ड लाइफ मैनेजर का सबसे अधिक भागीदारी होती है. इसके लिए रेडियो कॉलर लगाया जाता है, जिसपर विवाद चल रहा है, लेकिन चीतों को सेटल होने में अभी काफी समय लगेगा, इस बारें में अभी बहुत कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी.

YRKKH: अबीर के लिए फिर साथ आएंगे अक्षरा और अभिमन्यू

प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ इन दिनों काफी ड्रामा से गुजर रहा है. अभिनव के मौत के बाद अबीर काफी डिप्रेशन में चला जाता है जिससे अक्षरा काफी परेशान नजर आती है. इसी वजह से अक्षरा अबीर के खातिर अभिमन्यू के साथ रहने का फैसला करती है.

कसौली जाएगी अक्षरा

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अभिमन्यू गोयनका हाउस में अबीर से मिलने पहुंचा. लेकिन अबीर उससे नहीं मिलेगा वह सोता रहेगा. वहीं अक्षरा अभिमन्यू से सारी बातें शेयर करेगी. लेकिन मुस्कान को ये बातें पसंद नहीं आती. वहीं अबीर शाम के बाद भी नहीं उठेगा. वह सोने की जिद करता रहता है और रात में अबीर टीवी देखने लगता है. अगले दिन अक्षरा कसौली जाने का फैसला लेगी.

 

अभिमन्यू देगा अक्षरा का साथ

अक्षरा बड़े पापा से बोलेगी- कसौली में मेरी जिंदगी है. वहां जाकर मुझे अभिनव की बहुत याद आएगी. लेकिन अबीर खुश रहेगा. सब लोग अक्षरा को समझाते है लेकिन वह नहीं मानती. तभी शो में अभिमन्यू रूही,आरोही और शिव को लेकर गोयनका हाउस पहुंच जाता है. वह कहेगा- जहां जाना है चले जाओ. बस खुश रहो, मैं वीकेंड्स पर आ जाऊंगा. लेकिन मुस्कान यह सब सुनकर खुश नहीं रहती. वहीं रूही और शिव वीकेंड्स पर कसौली जाने की जिद करेंगे.

अक्षरा और अभिमन्यू साथ रहने का फैसला करेंगे

अभिनव के मौत के बाद अबीर काफी डिप्रेशन में चला गया है जिससे अक्षरा काफी परेशान नजर आती है. अबीर को डॉक्टर के पास ले जाएंगे. वहीं डॉक्टर दोनों को बात बताएंगे घर में खुशनामा महौल बनाएं. डॉक्टर की बात सुनकर अभिमन्यू और अक्षरा अबीर की खुशी के लिए दोनों साथ में रहने का फैसला करेंगे. वहीं दोनों परिवार गोयनका और बिड़ला परिवार से कहेंगे कि अबीर को डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए मदद करें.

TRP List: TMKOC ने अनुपमा को टीआरपी में धूल चटा दी, देखें बाकी शो का हाल

टीवी सीरियल का जुनून हर दर्शकों के दिलों में देखी जा सकती है. दिन-प्रतिदिन टीवी सीरियल जनता को खूब मनोरंजन करते है. मनोरंजन की दुनिया में सारा खेल टीआरपी का है. जनता के मन पसंद शो टीआरपी की किस नंबर पर हैं, आज हम आपको बताएंगे.

साल 2023 के 33वें हफ्ते की टीआरपी लिस्ट जारी हो चुकी है. एक बार फिर से इस लिस्ट में सब टीवी के फेमस कॉमेडी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ने टीआरपी में झंडे गाड़ दिए है तो वहीं सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ का पत्ता टॉप 10 टीआरपी लिस्ट से साफ हो चुका है. तो वहीं रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना के शो ‘अनुपमा’  की हालत में सुधार देखने मिला है. आइए आपको बताते हैं कि कौन सा सीरियल पहले नंबर पर है?

TMKOC बना नंबर वन

इस साल 2023 के 33वे हफ्ते की टीआरपी जारी हो गई. दर्शकों का सबसे चाहेता सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ अभी भी नंबर वन पर छाया हुआ है. एक्टर दिलीप जोशी का शो हर बार की तरह इस बार भी सबको पछाड़ते हुए टीआरपी में नंबर वन पर बना हुआ है. ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ ने 74 रेटिंग के साथ पहले नंबर पर जगह बनाई है.

अनुपमा ने दूसरे स्थान पर जगह बनाई

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ सीरियल में कई ट्विस्ट और टर्न्स देखने के वाबजूद ‘अनुपमा’ ने दूसरे नंबर पर जगह बनाई है. शो को 68 रेटिंग के साथ दूसरे स्थान मिला है. बता दें कि ‘अनुपमा’  सीरियल को दर्शको से खूब प्यार मिल रहा है.

ये रिश्ता क्या कहलाता है

स्टार प्लास का सबसे पुराना सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ को आज भी दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है. प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा के शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ शो को लिस्ट में तीसरा स्थान मिला है. शो को 67 की रेटिंग मिली है.

कुंडली भाग्य

जी टीवी का सबसे चर्चित टीवी सीरियल कुंडली भाग्य की किस्मत चमकती नजर आ रही है. शो ने टीआरपी में बड़ा उछाल आया है. यह शो 7वें स्थान से सीधे 4वें स्थान पर पहुंच गया है. ‘कुंडली भाग्य’ को 64 की रेटिंग मिली है.

भाग्य लक्ष्मी और राधा मोहन

जी टीवी के शो ‘भाग्य लक्ष्मी’ को टीआरपी लिस्ट में पांचवां स्थान मिला है. ऐश्वर्या खरे और रोहित सुचांती स्टारर इस सीरियल को 62 रेटिंग मिली है. वहीं एक्टर शब्बीर अहलूवालिया के शो ‘राधा मोहन’ को लिस्ट में छठा स्थान मिला है. शो को 62 रेटिंग मिली है.

इंडियाज गॉट टैलेंट और कौन बनेगा करोड़पति

सोनी टीवी का रियलिटी शो इडियाज गॉट टैलेंट टीआरपी में हलात बेहद खराब नजर आ रही है. जहां पिछले हफ्ते शो को 5वां स्थान मिला था, वहीं अब इस शो को सातवां स्थान मिला है. इस सीरियल को 62 रेटिंग मिली है. वहीं अमिताभ बच्चन के रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ सीजन 15 की टीआरपी लिस्ट में एंट्री हो गई है. शो को लिस्ट में 8वें स्थान के साथ ही 60 की रेटिंग मिली है.

यह चाहते है और खतरों के खिलाड़ी 13

टीवी सीरियल ‘ये हैं चाहतें’ लगातार टॉप 10 की लिस्ट में आता- जाता रहता है. इस हफ्ते शो को 9वां स्थान हासिल हुआ है. शो को 59 की रेटिंग मिली है. वहीं कलर्स का रियलिटी शो ‘खतरों के खिलाड़ी 13’ रोहित शेट्टी होस्ट कर रहे है. टीआरपी के लिस्ट में इसे 10वां स्थान प्राप्त हुआ है. शो को 59 रेटिंग मिली है.

सोशल मीडिया है बीमारी

सोशल मीडिया पर धामकी धंधेबाजी आजकल खूब चमक रही है. न सिर्फ अपने पूजे जाने वाले देवीदेवताओं के फोटो सुबहसबेरे अपने सारे व्हाट्सएप गु्रपों पर डालने का आदेश हरेक के गुरू पंडे समयसमय पर देते रहते हैं. पढ़ीलिखी समझदार औरतें भी नहीं समझ पातीं कि जिस देवीदेवता को सब का कल्याणकारी और सर्वव्यापी माना जाता है वह अमेरिका की बनी तकनीक और कोरिया के बने मोबाइल के सहारे धर्म प्रचार में लग जाती है.

इसी के साथ हिंदू मुस्लिम वैरभाव भी चालू हो जाता है. धर्म के पिताओ ने बाकायदा फैक्टरियां खोल रखी हैं जिस में दसियों लोग एक साथ बैठ कर इतिहास और तथ्यों को तोड़मरोड़ वह फैलाते रहते हैं. इस फैक्टरियों में नकली मुसलिम बने कैरेक्टर ऐसा काम करते नजर आ सकते हैं जो ङ्क्षहदूमुसलिम बैर की आग पर पैट्रोल डाले.

ऐसे हर काम से फायदा पूजापाठ के धंधेबाजों को होता है. मंदिरों में भीड़ बढ़ जाती है. चंदा ज्यादा आने लगता है. छोटेमोटे त्यौहारों पर भी पंडितों की घरों में हाजिरी जरूरी हो जाती है जो स्लिक का कुरता पहने धर्म कार्य कराने आते हैं.

दिक्कत यह है कि यह बकवास, झूठी कहानियों, नकली वीडियो पोस्ट करने वाले गालीगलौच की भाषा को सोशल मीडिया पर इस्तेमाल करने के पूरी तरह आदी हो जाते है और यही शब्द अपने दोस्तों, सहेलियों रिश्तेदारों या जिन से व्यापारिक या व्यावसायिक संबंध हो उन पर भी लागू भी लागू होने लगते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही कहा कि सोशल मीडिया पर भाषा का इस्तेमाल बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए क्योंकि एक गलत शब्द दूसरे को बुरी तरह चुभ भी सकती है और उस की रेपूटेशन को हानि पहुंचा सकता है. एक मामले में एक डिफेमेशस मामले में राहत देने से इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया का मनमाना दुरुपयोग किया जाना किसी तरह माफ नहीं किया जाता. यहां 2 जनों के बीच मामला राजनीतिक था पर किसी भी मामले में कोई परिचित भी नाराज हो कर अदालत की शरण ले सकता है और तक मैसेज डिलीट करने या एपोंलोजी देेने का कदम भी सुप्रीमकोर्ट के हिसाब से काफी नहीं है. गलत पोस्ट के लिए कोई भी जिम्मेदार हो सकता है.

हिंदू मुस्लिम बैरभाव वाले पोस्टों पर अगर मुसलिम पुलिस में मामले ले जाने लगे तो अच्छीखासी पूजापाठी औरतें चपेटे में आ जाएंगे और उन की ऊंची एड़ी की सैंडिल घिसतेघिसते चप्पल बन जाएंगे क्योंकि अदालतों के कौरीडोर गंदे और खुरदुरे होते हैं.

व्हाट्सएप का इस्तेमाल डाक से भेजे जाने वाले पंखों की तरह करें जिन में सलाह या सूचना दी जाती रही थी, वैरभाव नहीं सिखाया जाता था. गलत मैसेजों को पोस्ट करने के पाप ऐसे ही देवीदेवताओं के फोटो पोस्ट करने से नहीं धुल जाएंगे.

रक्षाबंधन पर झटपट बनाएं ये मिठाइयां

फेस्टिव सीजन प्रारम्भ हो चुका है और फेस्टिवल अर्थात मिठाईयां क्योंकि भारतीय संस्कृति में तो त्यौहार का मतलब ही भांति भांति की टेस्टी मिठाईयां ही हैं.  इन दिनों मेहमानों के आने के कारण घर मे बहुत काम होता है ऐसे में कुछ ऐसा बनाने का मन करता है कि जिसे झटपट घर के सामान से ही आसानी से बनाया जा सके. आज हम आपको ऐसी ही कुछ मिठाईयां बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप मेहमानों के आने से पहले ही बनाकर रख सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

  1. कैरेट राईस

कितने लोगों के लिए – 6

बनने में लगने वाला समय –   20 मिनट

मील टाइप – वेज

सामग्री

  1. चावल  1 कप
  2. पानी  डेढ़ कप
  3. तेजपात पत्ता  2
  4. बड़ी इलायची  2
  5. दालचीनी  1/2 इंच
  6. घी  1 टेबलस्पून
  7. गाजर  250 ग्राम
  8. शकर  100 ग्राम
  9. काजू   8-10
  10. बादाम  8
  11. पिस्ता  8
  12. इलायची पाउडर  1/4 टीस्पून
  13. नारियल लच्छा  1 टेबलस्पून

विधि

चावल को अच्छी तरह धोकर डेढ़ कप पानी में 30 मिनट के लिए भिगो दें. अब चावल को तेजपात पत्ता, इलायची, दालचीनी और 1/2 टीस्पून घी डालकर एक प्रेशर ले लें. गाजर को धोकर किस लें. अब एक पैन में बचा घी डालकर सभी मेवा को धीमी आंच पर रोस्ट करके एक प्लेट में निकाल लें. जब मेवा ठंडी हो जाये तो चाकू से मोटा मोटा काट लें. अब इसी पैन में इलायची पाउडर किसी गाजर डालकर ढक दें. जब गाजर गल जाये तो शकर डाल दें. जब शकर घुल जाये तो पके चावल डालकर अच्छी तरह चलायें. 3-4 मिनट तक ढककर पकाकर मेवा डालकर सर्व करें.

2. चाकलेट पनीर बर्फी

कितने लोगों के लिए-   6

बनने में लगने वाला समय-    20 मिनट

मील टाइप –    वेज

सामग्री

  1. ताजा पनीर   1 कप
  2. मावा  1 कप
  3. मिल्क पाउडर  1 टीस्पून
  4. पिसी शकर   1 कप
  5. चाकलेट पाउडर  1/4 कप
  6. चाकलेट चिप्स  1 टेबलस्पून
  7. घी 1 टीस्पून

विधि

पनीर और मावा को अच्छी तरह हाथों से क्रम्बल करके एक पैन में डालें अब इसमें मिल्क पाउडर, पिसी शकर डालें. धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए शकर के गलने तक पकाएं. जब मिश्रण गाढ़ा सा होने लगे तो चाकलेट पाउडर मिलाएं. घी डालकर 2 मिनट तक तेज आंच पर रोस्ट करें. जब मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगे तो एक चिकनाई लगी ट्रे में जमा दें. ऊपर से चाको चिप्स डालें. ठंडा होने पर मनचाहे टुकड़ों में काटकर सर्व करें.

3. पान कोकोनट लड्डू

कितने लोगों के लिए-   6

बनने में लगने वाला समय –  20 मिनट

मील टाइप – वेज

सामग्री

  1. नारियल बुरादा   2 कप
  2. फुल क्रीम दूध  1 कप
  3. मिल्क पाउडर   1/2 कप
  4. पान के पत्ते   8
  5. इलायची पाउडर   1/4 टीस्पून
  6. पिसी शकर   1 टेबलस्पून
  7. गुलकंद  1 टेबलस्पून
  8. घी  1 टीस्पून
  9. पिस्ता कतरन  1 टीस्पून

विधि

नारियल बुरादा और दूध को एक पैन में डालें. जब उबाल आ जाये तो मिल्क पाउडर मिलाएं. अब लगातार चलते हुए शकर और घी डालकर मिश्रण के गाढ़ा होने तक पकाएं. जब मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगे तो गैस बंद कर दें और इसे ठंडा होने दें.पान के पत्तों को बारीक बारीक काट लें. अब नारियल के मिश्रण में कटे पान के पत्ते, गुलकंद और इलायची पाउडर मिलाकर चिकनाई लगे हाथों से छोटे छोटे लड्डू बना लें. पिस्ता कतरन से सजाकर सर्व करें.

अंडरआम्स के बालों को रेजर से रिमूव करती हूं, इस वजह से वह हिस्सा काला हो गया है, अब मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 22 साल की कामकाजी युवती हूं. स्लीवलैस कपड़े पहनने के कारण मुझे अंडरआम्स के बाल जल्दीजल्दी साफ करने पड़ते हैं, जिस के लिए मैं लेडीज रेजर यूज करती हूं. पर इस से वह हिस्सा काला होता जा रहा है और बाल भी मोटे होते जा रहे हैं. क्या करूं?

जवाब

रेजर के नियमित इस्तेमाल से बालों की ग्रोथ और सख्त और स्किन भी काली हो जाती है. इसलिए रेजर का यूज टोटली बंद कर दें. इन बालों से नजात पाने के लिए वैक्सिंग कर सकती हैं. सही यही है कि पल्स लाइट ट्रीटमैंट (लेजर) ले लें. यह एक इटैलियन टैक्नीक है जो अनचाहे बालों को साफ करने का सब से तेज और सुरक्षित समाधान है. लेजर अंडरआर्म्स के बालों पर ज्यादा असरदार होती है. इसी कारण इस की कुछ ही सिटिंग लेने से बाल खत्म होने लग जाते हैं.

काले अंडरआर्म्स पर आप ब्लीच के जरीए भी उन्हें हलका कर सकती हैं. पर एक बात का खयाल रखें कि ब्लीच और वैक्सिंग कभी भी साथसाथ न करवाएं. घरेलू उपचार के तौर पर कच्चे पपीते के टुकड़े को अंडरआर्म्स में रब करें. इस के साथ ही चाहें तो स्क्रब भी कर सकती हैं. इस के लिए ऐलोवेरा जैल में चंदन पाउडर, अखरोट का पाउडर और थोड़ी खसखस मिला लें. इस से अपने अंडरआर्म्स में स्क्रब करें. रंग में जरूर फर्क नजर आएगा.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Raksha Bandhan: राखी का उपहार

इस समय रात के 12 बज रहे हैं. सारा घर सो रहा है पर मेरी आंखों से नींद गायब है. जब मुझे नींद नहीं आई, तब मैं उठ कर बाहर आ गया. अंदर की उमस से बाहर चलती बयार बेहतर लगी, तो मैं बरामदे में रखी आरामकुरसी पर बैठ गया. वहां जब मैं ने आंखें मूंद लीं तो मेरे मन के घोड़े बेलगाम दौड़ने लगे. सच ही तो कह रही थी नेहा, आखिर मुझे अपनी व्यस्त जिंदगी में इतनी फुरसत ही कहां है कि मैं अपनी पत्नी स्वाति की तरफ देख सकूं.

‘‘भैया, मशीन बन कर रह गए हैं आप. घर को भी आप ने एक कारखाने में तबदील कर दिया है,’’ आज सुबह चाय देते वक्त मेरी बहन नेहा मुझ से उलझ पड़ी थी. ‘‘तू इन बेकार की बातों में मत उलझ. अमेरिका से 5 साल बाद लौटी है तू. घूम, मौजमस्ती कर. और सुन, मेरी गाड़ी ले जा. और हां, रक्षाबंधन पर जो भी तुझे चाहिए, प्लीज वह भी खरीद लेना और मुझ से पैसे ले लेना.’’

‘‘आप को सभी की फिक्र है पर अपने घर को आप ने कभी देखा है?’’ अचानक ही नेहा मुखर हो उठी थी, ‘‘भैया, कभी फुरसत के 2 पल निकाल कर भाभी की तरफ तो देखो. क्या उन की सूनी आंखें आप से कुछ पूछती नहीं हैं?’’

‘‘ओह, तो यह बात है. उस ने जरूर तुम से मेरी चुगली की है. जो कुछ कहना था मुझ से कहती, तुम्हें क्यों मोहरा बनाया?’’

‘‘न भैया न, ऐसा न कहो,’’ नेहा का दर्द भरा स्वर उभरा, ‘‘बस, उन का निस्तेज चेहरा और सूनी आंखें देख कर ही मुझे उन के दर्द का एहसास हुआ. उन्होंने मुझ से कुछ नहीं कहा.’’ फिर वह मुझ से पूछने लगी, ‘‘बड़े मनोयोग से तिनकातिनका जोड़ कर अपनी गृहस्थी को सजाती और संवारती भाभी के प्रति क्या आप ने कभी कोई उत्साह दिखाया है? आप को याद होगा, जब भाभी शादी कर के इस परिवार में आई थीं, तो हंसना, खिलखिलाना, हाजिरजवाबी सभी कुछ उन के स्वभाव में कूटकूट कर भरा था. लेकिन आप के शुष्क स्वभाव से सब कुछ दबता चला गया.

‘‘भैया आप अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में इतने अनुदार क्यों हो जबकि यह तो भाभी का हक है?’’

‘‘हक… उसे हक देने में मैं ने कभी कोई कोताही नहीं बरती,’’ मैं उस समय अपना आपा खो बैठा था, ‘‘क्या कमी है स्वाति को? नौकरचाकर, बड़ा घर, ऐशोआराम के सभी सामान क्या कुछ नहीं है उस के पास. फिर भी वह…’’

‘‘अपने मन की भावनाओं का प्रदर्शन शायद आप को सतही लगता हो, लेकिन भैया प्रेम की अभिव्यक्ति भी एक औरत के लिए जरूरी है.’’

‘‘पर नेहा, क्या तुम यह चाहती हो कि मैं अपना सारा काम छोड़ कर स्वाति के पल्लू से जा बंधूं? अब मैं कोई दिलफेंक आशिक नहीं हूं, बल्कि ऐसा प्रौढ हूं जिस से अब सिर्फ समझदारी की ही अपेक्षा की जा सकती है.’’ ‘‘पर भैया मैं यह थोड़े ही न कह रही हूं कि आप अपना सारा कामधाम छोड़ कर बैठ जाओ. बल्कि मेरा तो सिर्फ यह कहना है कि आप अपने बिजी शैड्यूल में से थोड़ा सा वक्त भाभी के लिए भी निकाल लो. भाभी को आप का पूरा नहीं बल्कि थोड़ा सा समय चाहिए, जब आप उन की सुनें और कुछ अपनी कहें. ‘‘सराहना, प्रशंसा तो ऐसे टौनिक हैं जिन से शादीशुदा जीवन फलताफूलता है. आप सिर्फ उन छोटीछोटी खुशियों को समेट लो, जो अनायास ही आप की मुट्ठी से फिसलती जा रही हैं. कभी शांत मन से उन का दिल पढ़ कर तो देखो, आप को वहां झील सी गहराई तो मिलेगी, लेकिन चंचल नदी सा अल्हड़पन नदारद मिलेगा.’’

अचानक ही वह मेरे नजदीक आ गई और उस ने चुपके से कल की पिक्चर के 2 टिकट मुझे पकड़ा दिए. फिर भरे मन से बोली, ‘‘भैया, इस से पहले कि भाभी डिप्रेशन में चली जाएं संभाल लो उन को.’’ ‘‘पर नेहा, मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा कि वह इतनी खिन्न, इतनी परेशान है,’’ मैं अभी भी नेहा की बात मानने को तैयार नहीं था.

‘‘भैया, ऊपरी तौर पर तो भाभी सामान्य ही लगती हैं, लेकिन आप को उन का सूना मन पढ़ना होगा. आप जिस सुख और वैभव की बात कर रहे हो, उस का लेशमात्र भी लोभ नहीं है भाभी को. एक बार उन की अलमारी खोल कर देखो, तो आप को पता चलेगा कि आप के दिए हुए सारे महंगे उपहार ज्यों के त्यों पड़े हैं और कुछ उपहारों की तो पैकिंग भी नहीं खुली है. उन्होंने आप के लिए क्या नहीं किया. आप को और आप के बेटों अंशु व नमन को शिखर तक पहुंचाने में उन का योगदान कम नहीं रहा. मांबाबूजी और मेरे प्रति अपने कर्तव्यों को उन्होंने बिना शिकायत पूरा किया, तो आप अपने कर्तव्य से विमुख क्यों हो रहे हैं?’’

‘‘पर पगली, पहले तू यह तो बता कि इतने ज्ञान की बातें कहां से सीख गई? तू तो अब तक एक अल्हड़ और बेपरवाह सी लड़की थी,’’ मैं नेहा की बातों से अचंभे में था.

‘‘क्यों भैया, क्या मैं शादीशुदा नहीं हूं. मेरा भी एक सफल गृहस्थ जीवन है. समर का स्नेहिल साथ मुझे एक ऊर्जा से भर देता है. सच भैया, उन की एक प्यार भरी मुसकान ही मेरी सारी थकान दूर कर देती है,’’ इतना कहतेकहते नेहा के गाल शर्म से लाल हो गए थे. ‘‘अच्छा, ये सब छोड़ो भैया और जरा मेरी बातों पर गौर करो. अगर आप 1 कदम भी उन की तरफ बढ़ाओगे तो वे 10 कदम बढ़ा कर आप के पास आ जाएंगी.’’

‘‘अच्छा मेरी मां, अब बस भी कर. मुझे औफिस जाने दे, लेट हो रहा हूं मैं,’’ इतना कह कर मैं तेजी से बाहर निकल गया था. वैसे तो मैं सारा दिन औफिस में काम करता रहा पर मेरा मन नेहा की बातों में ही उलझा रहा. फिर घर लौटा तो यही सब सोचतेसोचते कब मेरी आंख लगी, मुझे पता ही नहीं चला. मैं उसी आरामकुरसी पर सिर टिकाएटिकाए सो गया.

‘‘भैया ये लो चाय की ट्रे और अंदर जा कर भाभी के साथ चाय पीओ,’’ नेहा की इस आवाज से मेरी आंख खुलीं.

‘‘तू भी अपना कप ले आ, तीनों एकसाथ ही चाय पिएंगे,’’ मैं आंखें मलता हुआ बोला.

‘‘न बाबा न, मुझे कबाब में हड्डी बनने का कोई शौक नहीं है,’’ इतना कह कर वह मुझे चाय की ट्रे थमा कर अंदर चली गई. जब मैं ट्रे ले कर स्वाति के पास पहुंचा तो मुझे अचानक देख कर वह हड़बड़ा गई, ‘‘आप चाय ले कर आए, मुझे जगा दिया होता. और नेहा को भी चाय देनी है, मैं दे कर आती हूं,’’ कह कर वह बैड से उठने लगी तो मैं उस से बोला, ‘‘मैडम, इतनी परेशान न हो, नेहा भी चाय पी रही है.’’ फिर मैं ने चाय का कप उस की तरफ बढ़ा दिया. चाय पीते वक्त जब मैं ने स्वाति की तरफ देखा तो पाया कि नेहा सही कह रही है. हर समय हंसती रहने वाली स्वाति के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी, जिसे मैं आज तक या तो देख नहीं पाया था या उस की अनदेखी करता आया था. जितनी देर में हम ने चाय खत्म की, उतनी देर तक स्वाति चुप ही रही.

‘‘अच्छा भाई. अब आप दोनों जल्दीजल्दी नहाधो कर तैयार हो जाओ, नहीं तो आप लोगों की मूवी मिस हो जाएगी,’’ नेहा आ कर हमारे खाली कप उठाते हुए बोली.

‘‘लेकिन नेहा, तुम तो बिलकुल अकेली रह जाओगी. तुम भी चलो न हमारे साथ,’’ मैं उस से बोला.

‘‘न बाबा न, मैं तो आप लोगों के साथ बिलकुल भी नहीं चल सकती क्योंकि मेरा तो अपने कालेज की सहेलियों के साथ सारा दिन मौजमस्ती करने का प्रोग्राम है. और हां, शायद डिनर भी बाहर ही हो जाए.’’ फिर नेहा और हम दोनों तैयार हो गए. नेहा को हम ने उस की सहेली के यहां ड्रौप कर दिया फिर हम लोग पिक्चर हौल की तरफ बढ़ गए.

‘‘कुछ तो बोलो. क्यों इतनी चुप हो?’’ मैं ने कार ड्राइव करते समय स्वाति से कहा पर वह फिर भी चुप ही रही. मैं ने सड़क के किनारे अपनी कार रोक दी और उस का सिर अपने कंधे पर टिका दिया. मेरे प्यार की ऊष्मा पाते ही स्वाति फूटफूट कर रो पड़ी और थोड़ी देर रो लेने के बाद जब उस के मन का आवेग शांत हुआ, तब मैं ने अपनी कार पिक्चर हौल की तरफ बढ़ा दी. मूवी वाकई बढि़या थी, उस के बाद हम ने डिनर भी बाहर ही किया. घर पहुंचने पर हम दोनों के बीच वह सब हुआ, जिसे हम लगभग भूल चुके थे. बैड के 2 सिरों पर सोने वाले हम पतिपत्नी के बीच पसरी हुई दूरी आज अचानक ही गायब हो गई थी और तब हम दोनों दो जिस्म और एक जान हो गए थे. मेरा साथ, मेरा प्यार पा कर स्वाति तो एक नवयौवना सी खिल उठी थी. फिर तो उस ने मुझे रात भर सोने नहीं दिया था. हम दोनों थोड़ी देर सो कर सुबह जब उठे, तब हम दोनों ने ही एक ऐसी ताजगी को महसूस किया जिसे शायद हम दोनों ही भूल चुके थे. बारिश के गहन उमस के बाद आई बारिश के मौसम की पहली बारिश से जैसे सारी प्रकृति नवजीवन पा जाती है, वैसे ही हमारे मृतप्राय संबंध मेरी इस पहल से मानो जीवंत हो उठे थे.

रक्षाबंधन वाले दिन जब मैं ने नेहा को उपहारस्वरूप हीरे की अंगूठी दी तो वह भावविभोर सी हो उठी और बोली, ‘‘खाली इस अंगूठी से काम नहीं चलेगा, मुझे तो कुछ और भी चाहिए.’’

‘‘तो बता न और क्या चाहिए तुझे?’’ मैं मिठाई खाते हुए बोला. ‘‘इस अंगूठी के साथसाथ एक वादा भी चाहिए और वह यह कि आज के बाद आप दोनों ऐसे ही खिलखिलाते रहेंगे. मैं जब भी इंडिया आऊंगी मुझे यह घर एक घर लगना चाहिए, कोई मकान नहीं.’’

‘‘अच्छा मेरी मां, आज के बाद ऐसा ही होगा,’’ इतना कह कर मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया. मेरा मन अचानक ही भर आया और मैं भावुक होते हुए बोला, ‘‘वैसे तो रक्षाबंधन पर भाई ही बहन की रक्षा का जिम्मा लेते हैं पर यहां तो मेरी बहन मेरा उद्धार कर गई.’’ ‘‘यह जरूरी नहीं है भैया कि कर्तव्यों का जिम्मा सिर्फ भाइयों के ही हिस्से में आए. क्या बहनों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? और वैसे भी अगर बात मायके की हो तो मैं तो क्या हर लड़की इस बात की पुरजोर कोशिश करेगी कि उस के मायके की खुशियां ताउम्र बनी रहें.’’ इतना कह कर वह रो पड़ी. तब स्वाति ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया

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