Mother’s Day Special: पिता और बच्चे के बीच का सेतु है मां

बच्चे के लिए दूध की बोतल तैयार करना, उस का नैपी बदलना, उसे गोद में लिए ही शौपिंग करना, यहां तक कि फिल्म देखना, ये सब काम ज्यादातर मां ही करती है. इसीलिए बच्चे का मां के साथ अलग ही भावनात्मक रिश्ता होता है. लेकिन पिता के साथ बच्चे का भावनात्मक रिश्ता बनाने में मां ही मदद करती है. तभी पिता और बच्चा करीब आ पाते हैं. जरमनी के नैटवर्क औफ फादर्स के चेयरमैन हांस जार्ज नेल्स भी कहते हैं कि साझा अनुभव, रीतिरिवाज, साथ बिताया सप्ताहांत और बिना मां की मौजूदगी वाली साझी अभिरुचियां पिता और बच्चे को करीब लाने का आधार बनती हैं. पिता को बच्चे से जुड़ने के लिए सब से पहले उस की मां के साथ सहयोग करना होता है. मां के साथ किया गया सहयोग पिता को बच्चे से जुड़ने में मददगार साबित होता है. यह बहुत जरूरी होता है कि जब बच्चा छोटा होता है तब मां उस का खयाल रखने में पिता पर भरोसा करे. तब पिता बच्चे के साथ मां से थोड़ा अलग तरह का रिश्ता कायम कर पाता है.

बच्चे की छोटीबड़ी बात में पिता को भी हिस्सेदार बनाती है मां:

बच्चे का हर काम यानी उसे नहलाने से ले कर खिलानेसुलाने तक का काम मां ही करती है. इसीलिए पिता बच्चे से थोड़ा दूर ही रहता है और दूर से ही उसे देख मुसकराता रहता है. लेकिन धीरेधीरे मां ही पिता को भी थोड़ी जिम्मेदारी निभाना सिखाती है जैसे यदि मां नहाने जा रही है तो बच्चे को पिता को सौंप जाती है. शुरू में पिता झिझकता और शर्म महसूस करते हुए बच्चे को पकड़ता है, लेकिन फिर आदत होने लगती है और वह थोड़ाथोड़ा वक्त बच्चे को देने लगता है. शुरू में पिता बच्चे की पौटी से नाकभौं सिकोड़ता है और तुरंत बच्चे को मां को सौंप देता है. लेकिन धीरेधीरे मां बच्चे के पिता से नैपी आदि बदलने में हैल्प लेने लगती है, तो पिता को भी इस की आदत हो जाती है. पिता भी बच्चे के प्रति अपनी भावनात्मक जिम्मेदारी समझने लगता है और इस तरह वह बच्चे से पहले से ज्यादा जुड़ जाता है. इस से पिता और बच्चे के बीच की दूरी कम होती है. पिता और बच्चे के बीच एक रिश्ता बन जाता है. बच्चा पिता के करीब रहने लगता है.

पिता पर भी भरोसा करती है:

बच्चे को ले कर मां किसी पर भी जल्दी भरोसा नहीं करती है. वह बच्चे का हर काम खुद करती है. लेकिन पिता पर उसे भरोसा होता है इसलिए वह बच्चे के छोटेबड़े कामों में पिता की मदद लेना शुरू करती है जैसे किचन में कोई काम है तो बच्चे को पिता को सौंप देती है. इस से पिता को कुछ समय बच्चे के साथ अकेले बिताने के लिए मिलता है, तो बच्चे से लगाव बढ़ता है. पिता के मन में प्यार जगाती है मां: बच्चा 9 महीने मां के गर्भ में रहता है, इसलिए दुनिया में आने के बाद मां और बच्चे का एक अलग ही भावनात्मक रिश्ता होता है. लेकिन पिता से वह रिश्ता धीरेधीरे कायम होता है. शुरूशुरू में पिता को बच्चे को गोद में लेने से भी डर लगता है. लेकिन मां पिता को बच्चा संभालना सिखाती है, उस की नन्हीनन्ही शरारतों का जिक्र पिता से करती है, बच्चे से उसी तरह तोतली जबान में बात करती है और फिर उस का खुश होता चेहरा पिता को दिखाती है.

गलतफहमी दूर करती है मां:

बच्चा बड़ा हो या छोटा, कई बार पिता और बच्चे के बीच किन्हीं बातों को ले कर तनाव हो जाता है, क्योंकि अकसर पिता थोड़ा कठोर और कड़क स्वभाव का होता है. ऐसा होने की एक वजह यह भी है कि वह मां की तरह अपना प्रेम प्रदर्शित नहीं कर पाता. ऐसे में पिता के द्वारा किसी चीज के लिए मना कर देने पर बच्चे को लगता है कि पिता उस से प्यार नहीं करते. तब मां ही बच्चे को प्यार से समझाती है कि पिता के ऐसा करने की क्या वजह थी. वह बच्चे को यह भी समझाती है कि पिता उस से बहुत प्यार करते हैं. दूरी बढ़ जाए तो करीब लाती है मां: कई बार बड़े होते बच्चे और पिता के बीच किसी बात को ले कर अनबन हो जाए तो बच्चा और पिता दोनों ही एकदूसरे से मुंह बना लेते हैं. टीनऐजर बच्चे के साथ तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है. ऐसे में मां ही समझदारी दिखाते हुए दोनों का पौइंट औफ व्यू एकदूसरे के सामने रखती है और उन्हें समझाती है.

तब एकदूसरे से बात न करते हुए भी वे एकदूसरे का नजरिया समझ जाते हैं. बच्चे को यह भी पता लग जाता है कि पिता गलत नहीं हैं. वे बड़े हैं इसलिए उसे टोकते हैं और पिता भी जान जाता है कि बच्चे की उम्र ही ऐसी है. इसलिए नाराज हो कर मुंह फुलाने के बजाय बातचीत के जरीए समस्या का हल निकाला जाता है और इस का सारा श्रेय मां को ही जाता है. 

बच्चे की नजरों में पिता को रोल मौडल बनाती है मां:

पिता से बच्चे को मां ही जोड़ती है. वह बताती है कि पिता में क्या खूबियां हैं और कैसे उन्होंने अपने परिवार को जोड़ कर रखा है. वह पिता के बचपन के, उन की पढ़ाईलिखाई के, उन के खेलकूद आदि के बारे में बच्चे को बताती है. तब बच्चा पिता से उन की खूबियों और सफलता के बारे में प्रश्न करने लगता है और इस तरह पिता और बच्चे के बीच अच्छे मुद्दों को ले कर संवाद की शुरुआत होती है और वह पिता को पहले से भी ज्यादा सम्मान देने लगता है. पिता उस के रोल मौडल बन जाते हैं. उसे लगता है वह आज जो कुछ भी है पिता की वजह से ही है और उसे अपने पिता जैसा ही बनना है. 

Mother’s Day Special: मां बनने के लिए इनसे बचना है जरूरी

आजकल सैक्स के मामले में बढ़ती आजादी और 1 से ज्यादा पार्टनर की वजह से कई यौन संबंधी बीमारियां होने का डर रहता है. यौन परेशानियों को जल्द से जल्द पहचान कर डाक्टर के पास जाना आवश्यक हो जाता है. ऐसा न करने पर बांझपन जैसी बड़ी परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है.

पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज (पीआईडी)

यह ज्यादातर असुरक्षित संबंधों के कारण फैलने वाली बीमारी है. यह मैट्रो शहरों में चुपकेचुपके महिलाओं की इन्फर्टिलिटी का एक बड़ा कारण बन रही है. इस की चपेट में 15 से 24 साल तक की लड़कियां ज्यादा आ रही हैं. पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में हालांकि अभी इस का प्रसार कम है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर लगाम नहीं लगाई तो यह आने वाले समय में बड़ी दिक्कत में तब्दील हो सकती है. इस का असर नई पीढ़ी के मां बनने पर पड़ सकता है.

डा. अनुभा सिंह का कहना है कि यह एक हारमोनल डिसऔर्डर है. इस की सब से बड़ी पहचान है कि इस से अचानक वजन बढ़ने लगता है. माहवारी अनियमित हो जाती है. मुंहासों की समस्या और गंजापन भी हो सकता है. बच्चे पैदा करने की उम्र में लगभग 1 से 10 महिलाओं में यह समस्या देखने को मिलती है. फैलोपियन ट्यूब्स और प्रजनन से जुड़े अन्य अंगों में भी इस से सूजन आ सकती है. समय पर इलाज न कराने पर इस का नतीजा इनफर्टिलिटी के रूप में सामने आ सकता है.

यह बीमारी क्लैमाइडिया ट्रैकोमाइटिस नाम के बैक्टीरिया के कारण होती है. बड़े शहरों में सैक्स के मामलों में बढ़ती आजादी और 1 से ज्यादा पार्टनर इस के फैलने की सब से बड़ी वजह हैं. इस के अलावा साफसफाई का ध्यान न रखने, शराब या स्मोकिंग के कारण इम्यून सिस्टम के कमजोर पड़ने से भी इस का बैक्टीरिया महिलाओं को अपना निशाना बना सकता है.

मैट्रो शहरों में इस की चपेट में आने वाली महिलाओं का प्रतिशत 3 से 10 के बीच है. यह महिलाओं के सोशल स्टेटस और सैक्सुअल बिहेवियर पर काफी निर्भर करता है. 25 साल से कम उम्र की लड़कियों के इस की चपेट में आसानी से आने का कारण यह है कि उन की बच्चेदानी का मुंह इस उम्र तक सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज का सामना करने के लिए तैयार नहीं होता है. इस के कारण वे ऐसे रोगों की शिकार बन जाती हैं. यही बीमारियां बाद में पीआईडी की बड़ी वजह बनती हैं.

लक्षणों पर रखें नजर

पीआईडी की चपेट में आने पर वैजाइनल इरिटेशन हो सकती है. व्हाइट डिस्चार्ज की शिकायत हो सकती है. पेडू के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है, बुखार आ सकता है व उलटियां भी हो सकती हैं. साथ ही माहवारी से पहले और बाद में शारीरिक संबंध कायम करते समय ब्लीडिंग हो सकती है. इस के कारण पेशाब करते समय जलन भी हो सकती है. कई महिलाओं में ऐसा कोई लक्षण नहीं भी हो सकता है.

कैसे पाएं छुटकारा

डा. अनुभा सिंह का कहना है कि पीआईडी के ज्यादा मामले मैट्रो शहरों में आते हैं. इस बीमारी की एक बड़ी वजह असुरक्षित यौन संबंध है. नई पीढ़ी को इस बात पर जागरूक करने की जरूरत है. इस बीमारी के प्रति लापरवाही आप को मां बनने के सुख से वंचित कर सकती है.

पीआईडी से जुड़े लक्षण महसूस होने पर डाक्टर से संपर्क करें. दवा के साथ ही नियमित चैकअप से इस का आसानी से इलाज संभव है. लापरवाही करने पर यह बीमारी पूरी प्रजनन प्रणाली को अपनी चपेट में ले सकती है. कुछ अन्य यौन बीमारियां भी हैं जो एकसमान घातक हैं जैसेकि:

ट्राइकोमोनिएसिस

अगर किसी महिला की योनि से लगातार 6 महीनों से स्राव होने के साथसाथ उस में खुजली होती है, पति के साथ संबंध बनाते वक्त दर्द होता है, पेशाब करते वक्त परेशानी होती है, तब तुरंत डाक्टर से संपर्क करें. यह ट्राइकोमोनिएसिस बीमारी हो सकती है. कई बार महिलाओं में प्रसव, मासिकधर्म व गर्भपात के समय भी संक्रमण होने का डर होता है.

अशिक्षा, गरीबी, शर्म के कारणों से अकसर महिलाएं प्रजनन अंगों के रोगों का उपचार कराने में हिचकिचाती हैं. प्रजनन अंगों के संक्रमण से एड्स जैसा खतरनाक रोग भी हो सकता है. कौपर टी लगवाने से भी प्रजनन अंगों में रोग के पनपने की आशंका रहती है. क्लैमाइडिया रोग ट्रैकोमाइटिस नामक जीवाणु से हो जाता है. यह रोग मुखमैथुन और गुदामैथुन से जल्दी फैलता है. कई बार इस बीमारी से संक्रमण गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन ट्यूब्स तक फैल जाता है. समय पर उपचार नहीं होने पर एचआईवी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

गोनोरिया

यह रोग महिलाओं में सूजाक, निसेरिया नामक जीवाणु से होता है. यह स्त्री के प्रजनन मार्ग के गीले क्षेत्र में आसानी से बड़ी तेजी से बढ़ता है. इस के जीवाणु मुंह, गले, आंखों में भी फैल जाते हैं. इस बीमारी में यौनस्राव में बदलाव होता है. पीले रंग का बदबूदार स्राव निकलता है. कई बार योनि से खून भी निकलता है.

गर्भवती महिला के लिए यह बहुत घातक रोग होता है. प्रसव के दौरान बच्चा जन्म नली से गुजरता है. ऐसे में मां के इस बीमारी से ग्रस्त होने पर बच्चा अंधा भी हो सकता है.

हर्पीज यह रोग हर्पीज सिंपलैक्स से ग्रस्त व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से होता है. इस में 2 प्रकार के वायरस होते हैं. कई बार इस रोग से ग्रस्त स्त्रीपुरुष को मालूम ही नहीं पड़ता कि उन्हें यह रोग भी है. यौन अंगों व गुदा क्षेत्र में खुजली, पानी भरे छोटेछोटे दाने, सिरदर्द, पीठदर्द, बारबार फ्लू होना आदि इस के लक्षण होते हैं.

सैप्सिस

यह रोग ट्रेपोनेमा पल्लिडम नामक जीवाणु से पैदा होता है. योनिमुख, योनि, गुदाद्वार में बिना खुजली के खरोंचें हो जाती हैं. महिलाओं को तो पता ही नहीं चलता है. पुरुषों में पेशाब करते वक्त जलन, खुजली, लिंग पर घाव आदि समस्याएं हो जाती हैं.

हनीमून सिस्टाइटिस

नवविवाहिताओं में यूटीआई अति सामान्य है. इसे हनीमून सिस्टाइटिस भी कहते हैं. यह महिलाओं में मूत्रछिद्र, योनिद्वार और मलद्वार के पास स्थित होता है. यहां से जीवाणु आसानी से मूत्रमार्ग में पहुंच कर संक्रमण कर सकते हैं. करीब 75% महिलाओं में यूटीआई आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है. इस के अतिरिक्त अनेक अन्य प्रजाति के जीवाणु भी यूटीआई उत्पन्न कर सकते हैं.

करीब 40% महिलाएं इस से जीवन में कभी न कभी ग्रस्त हो जाती हैं. अगर बात लक्षणों की करें तो यूटीआई होने पर बारबार पेशाब आता है, पर पेशाब कुछ बूंद ही होता है. मूत्र से दुर्गंध आती है, मूत्र का रंग धुंधला हो सकता है. कभीकभी खून मिलने के कारण पेशाब का रंग गुलाबी, लाल या भूरा हो सकता है.

पति या पत्नी दोनों में से किसी को भी संक्रमण होने पर यौन संबंध बनाए जाते हैं तो यौन संबंधी परेशानी बढ़ सकती है. यदि उपचार नहीं कराया जाता है तो शरीर के अंगों में दर्द हो सकता है, बुखार हो सकता है. कुछ स्थितियों में संक्रमण मूत्राशय से ऊपर पहुंच कर संक्रमण कर सकता है.

प्रजनन अंग साफ व सुरक्षित रहें, इस के लिए जरूरी है कि आप अपने प्रजनन अंगों के बारे में जागरूक हों. उन में कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

-अनुभा सिंह

गायनोकोलौजिस्ट व आईवीएफ ऐक्सपर्ट, शांता आईवीएफ सैंटर से बातचीत पर आधारित

सुष्मिता सेन से लेकर नीना गुप्ता तक, सिंगल मदर की मिसाल हैं ये 10 बॉलीवुड एक्ट्रेस

मां, एक खूबसूरत एहसास जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. मां के बिना हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते. इस रिश्ते का कोई दूसरा पर्याय नहीं. बेहद खास होता है ये रिश्ता. इसमें एक ऐसा एहसास, अपनापन और मिठास है, जो इसे औरों से अलग करता है. चाहे कुछ भी हो कैसी भी परिस्थिति हो वह मां ही है जो हमेशा हमारे साथ खड़ी होती है- हमारे सुख में, हमारे दुख में.

कुछ मामलों में जीवन में कई उतार चढ़ावों का अकेले सामना करने के बाद भी वह कमजोर नहीं बल्कि मजबूती से अपनी संतान के लिएखड़ी होती है. दुनिया के लिए वह कुछ भी हो लेकिन अपने बच्चों के लिए वह हमेशा दुनिया से लड़ने को तैयार होती है.

यह खूबसूरत एहसास, चुनौतियां या परिस्थितियां सिर्फ आम आदमी की जिंदगी तक ही सिमित नहीं है. हमारे सितारे भी इससे अछुते नहीं हैं. बॉलीवुड में ऐसी कई अभिनेत्रियां हैं जो सिंगल मदर हैं.

बॉलीवुड की ये अभिनेत्रियां सुपरस्टार होने के साथ ही सुपर मॉम भी साबित हुईं हैं. किसी ने खुद ही सिंगल मदर होने के एहसास को पाने की कोशिश की तो किसी को परस्थितियों से समझौता करना पड़ा. वजह कोई भी हो मगर इस एहसास में उन्होंने खुद के साथ अपने बच्चों को भी तराशा है.

तो आइए आज हम बॉलीवुड की कुछ ऐसी ही सिंगल मदर से आपको रूबरू कराते हैं.

1 सुष्मिता सेन

सिंगल मदर की लिस्ट में सुष्मिता सेन का नाम सबसे उपर है. मिस यूनिवर्स होने के साथ साथ वह एक जिम्मेदार मां भी हैं. सुष्मिता दो बच्चों की मां हैं. साल 2000 में उन्होंने अपनी पहली बच्ची रिनी और 2010 में दूसरी बेटी (अलीशा) को गोद लिया. सुष्मिता कई सिंगल मदर्स के लिए प्रेरणा हैं.

 

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2 नीना गुप्ता

बॉलीवुड में नीना गुप्ता की पहचान अभिनय के अलावा एक सिंगल मदर के रूप में भी है. नीना के लिए बेटी मसाबा को पालना कोई आसान काम नहीं था. नीना ने वेस्टंडीज के क्रिकेटर विव रिचर्ड के रिश्ते के दौरान माशाबा को जन्म दिया. उन्होंने विव से शादी नहीं की थी. हमारे समाज में बिन ब्याही मां के लिए बच्चे का पालन पोषण करना कितना मुश्किल होता है यह हम सब जानते हैं. लेकिन नीना ने इसे कर दिखाया और बेटी की अच्छी परवरिश कर उन्हें एक सफल फैशन डिजाइनर बनाया.

 

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3 रवीना टंडन

रवीना टंडन अपने दौर की सफल अभिनेत्री हैं. महज 21 साल की उम्र में उन्होंने दो बच्चियों को गोद लिया. 1994 में उन्होंने 11 साल की पूजा और 8 साल की छाया को गोद लिया था. रवीना ने इन बच्चों के देख भाल खुद की ओर उनको आगे बढ़ाया. इसके बाद 2004 में उन्होंने शादी कर ली. शादी के बाद रवीना दो और बच्चों की मां बनीं. आज रवीना के 4 बच्चे हैं. चारों को अच्छी परवरिश देने के लिए उन्होंने फिल्मों से ब्रेक ले लिया था. हाल ही में उन्होंने फिल्म मातृ से बॉलीवुड में वापसी की है.

4 करिश्मा कपूर

करिश्मा कपूर अपने समय की बेहतरीन अभिनेत्र‍ियों में शामिल हैं. बॉलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर ने व्यवसायी संजय कपूर से शादी की थी लेकिन बाद में दोनों का डिवॉर्स हो गया. अब करिश्मा दो बच्चों समायरा और कियान की सिंगल मदर हैं और उनकी परवरिश कर रही हैं.

5 अमृता सिंह

सैफ अली खान की एक्स वाइफ अमृता सिंह के दो बच्चे सारा और इब्राहिम हैं. सैफ-अमृता का डिवॉर्स हो चुका है और अमृता अब सिंगल मदर हैं. इसके लिए उन्होंने फिल्मों में काम से भी ब्रेक ले लिया. इन दिनों सारा बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली हैं.

6 कोंकणा सेन शर्मा

बॉलीवुड में एक सिंगल मदर के रूप में कोंकणा काफी चर्चाओं में रहीं. कोंकणा ने रणवीर शौरी से शादी करने के बाद 2011 में बेटे हरुन को जन्म दिया. इसके बाद आपसी मनमुटाव के कारण दोनों का तलाक हो गया. तब से कोंकणा अकले ही अपने बच्चे की परवरिश कर रही हैं.

7 बबीता

करिश्मा और करीना कपूर की मां बबीता कपूर ने भी अपनी दोनों बेटियों को अकेले ही पाला है. इसके लिए उन्होंने अपने काम से भी दूरी बनाई और बेटियों को अच्छी परवरिश दी.

8 पूजा बेदी

पूजा बेदी दो बच्चों आलिया और उमर की सिंगल मदर हैं. अपने बिजनेसमैन पति फरहान इब्राहिम से तलाक के बाद दोनों बच्चों की परवरिश पूजा ने अकेले की है.

9 सारिका

80 के दशक में सारिका पहले से शादीशुदा अभिनेता कमल हसन के साथ रिलेशनशिप में थीं. सारिका ने श्रुति हसन को जन्म दिया जिसके बाद कमल ने अपनी पत्नी से तलाक लेने के बाद सारिका से शादी की. बाद में सारिका और कमल भी साल 2004 में अलग हो गएं. उसके बाद से सारिका सिंगल मदर हैं.

10 पूनम ढिल्लन

80 के दशक की बेहतरीन अभिनेत्री और पूर्व मिस इंडिया होने के साथ ही पूनम एक सफल मां भी हैं. फिल्म निर्माता अनिल ठाकरिया से शादी के बाद उन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया. थोड़े समय बाद दोनों का तलाक हो गया. पति से रिश्तों में दरार आने के बाद से उन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की. एक बिजनेस वुमेन होने के साथ ही पूनम फिल्म और टेलीविजन से भी जुड़ी हैं.

जीवन में उतार-चढ़ाव आम बात है. यूं कहें कि उतार-चढ़ाव ही जीवन है. जिंदगी के उतार-चढ़ाव के बीच इन अभिनेत्रियों ने मां और बच्चे के बीच का रिश्ता बखूबी निभाया और निभा रही हैं.

2018 Movie Review: मानवता की मिसाल को पेश करती केरला की असली कहानी

  • रेटिंगः पांच में से चार स्टार
  • निर्माताः वेणु कुन्नापिली,सी के पद्मकुमार और एंटो जोसेफ
  • लेखक: जूड एंथनी जोसेफ व अखिल पी धर्मजन
  • निर्देशकः जूड एंथनी जोसेफ
  • कलाकारः टोविनो थॉमस, इंद्रन्स, कुंचाको बोबन, अपर्णा बालमुरली, विनीत श्रीनिवासन, आसिफ अली, लाल, नारायण, तन्वी राम, शशिवाड़ा, कलैयारसन, अजु वर्गीज
  • अवधिः दो घंटे 35 मिनट
  • प्रदर्शन की तारीख: 5 मई 2023,सिनेमाघरों
  • भाषा: मलयालम, अंग्रेजी सब टाइटल्स के साथ

2018 में केरला राज्य भीशण बाढ़ के चलते तबाही का षिकार हुआ था.  ऐसी बाढ़ केरला वासियों ने कभी नही देखी थी. लेकिन केरल के हर नागरिक,धर्म जाति भुलाकर इस बाढ़ मंे एक दूसरे से हाथ मिलाकर मानवता की जो मिसाल पेश की थी,उसी मिसाल ,सच व केरल वासियों की सच्ची भावना को फिल्मकार जूड एंथनी जोसेफ फिल्म ‘‘2018ः एवरी वन इज हीरो’’ लेकर आए हैं,जो कि 5 मई को ही फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ के साथ ही प्रदर्षित हुई है.

फिल्म ‘‘2018ः एवरीवन इज हीरो’ मूलतः मलयालम भाषा में है,पर अंग्रेजी में सब टाइटल्स हैं. इस छोटे बजट की फिल्म ने चार दिन में ही सिर्फ केरला में तेरह करोड़ रूपए कमा कर एक इतिहास रच दिया है. इस फिल्म को देखने के बाद हर दर्षक इस फिल्म को ‘‘केरला की असली कहानी’’ बताते हुए इस हिंदी सहित दूसरी भाषाओं में डब कर प्रदर्षित करने की मांग करता नजर आ रहा है.  वैसे हकीकत यह है कि 2018 की भयानक त्रासदी में केरला राजय में हजारों मकान ध्वस्त हो गए थे,483 लोग मौत के मुंॅह में समा गए थे,पर यह त्रासदी केवल छोटी सी खबर मात्र बनकर रह गयी थी.  इस फिल्म को देखते हुए हमें मुंबई की 26 जुलाई 2005 की उस मूसलाधार की याद दिला देती है,जिसने दो दिनों के लिए शहर को पंगु बना दिया था. इन दो दिनों में हर मुंबईकर ने प्रकृति की क्रूर शक्ति का सामना किया था. तब सभी की भावनात्मक जुड़ाव उजागर हुई थी. लेखक-निर्देशक जूड एंथनी जोसेफ की ‘2018ः एवरी वन इज हीरो’ हमें केरल राज्य में अचानक आई बाढ़ के प्रति संवेदनशील बनाती है.

कहानीः

यह कहानी है केरला राज्य में 2018 में मूसलाधार बारिश के तौर पर आयी प्राकृतिक आपदा के साथ ही भारतीय सेना के असफल कैडेट अनूप (टोविनो थॉमस) के निस्वार्थ कृत्यों व वीरता की. फिल्म की कहानी किरदारो के परिचय से षुरू होती है,जिन्हे अहसास ही नही है कि उन पर कोई बहुत बड़ी आपत्ति आने वाली है. हम देखते है कि अनूप ‘भगवान के अपने देश’ से बाहर निकलने और संयुक्त अरब अमीरात में जाकर बसने की लालसा रखता है. सेना में असफल होने के बावजूद अनूप अपने गांव में बच्चों के बीच सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. जबकि गांव के बुजुर्ग उसे पसंद कम करते हैं. कुछ दबंग मलयाली लड़के हिंदी फिल्म ‘बार्डर’ के गीत ‘‘संदेशे आते हैं. . ’उसे देखकर गाते हैं. लेकिन बाढ़ की विपदा के वक्त वही अनूप लोगों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी की बाजी लगा देता है.  केरला पर बाढ़ की आपदा आने पर राज्य के गृह सचिव शाजी पुन्नूस ( कांचाको बोबन) क्षति को सीमित करने और बचाव के प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिए अथक प्रयास करते हैं. जबकि उनकी गर्भवती पत्नी (शिवदा)और बेटी स्नेहा( देवानंद )अनूप की मदद से भारतीय वायु सेना सही वक्त पर अस्पताल पहुॅचाने में कामयाब होती है.  मछुआरे के बेटे निक्सन (आसिफ अली ) इस बात से आहत हैं कि कैसे उनकी गर्ल फ्रेंड के पिता ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिससे उन्हें और उनके मछुआरे परिवार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी.  अपने पिता के साथ झगड़ा होने पर वह उस क्षेत्र को छोड़ देता है,लेकिन वह संकट की घड़ी में वहां आकर ख्ुाद मछुआरा बन हर इंसान को सुरक्षित जगह पहुॅचाने,उनकी जिंदगी बचाने में लग जाता है.  फिल्म में तमिलनाड़ु के ट्क चलाने वाले सेतुपति(कलैया सरन ) को केरला से लगाव नही है. उसके इरादे खराब हैं. वह अपने ट्क में बारूद का सामान लेकर जा रहा होता है. बारिश में सारे साधन बंद हो जाने पर वह अनिच्छा से रमेशन (विनीत श्रीनिवासन )को अपने ट्क में यात्रा करने देता है. रमेशन व उसके मित्र किसी तरह अपनी शादी बचाने की उम्मीद में दुबई से वापस आया है.  संकट की घड़ी और दो अच्छे लोगों की कंपनी सेतुपति का दिल बदल देती है और वह सारा बारूद समुद्र में फेंक देता है.  राहत केंद्रों-अस्पतालों, स्कूलों, पूजा स्थलों में फंसी महिलाओं ,बच्चों व बूढ़ों की मदद करने में महिलाएं भी पीछे नही है.  केरला राज्य मे ंनई भर्ती हुई स्कूल षिक्षक मंजू (तन्वी राम ) भी अनूप की तरह दयालु है. स्कूल में पहले दिन ही वह बच्चों का विश्वास जीतने के लिए उनके लिए टॉफी लेकर आती है.

लेखन व निर्देशनः

एक कसी हुई पटकथा, सत्यपरक चरित्र चित्रण,कलाकारों का तार्किक अभिनय, बेहतरीन तकनीकीटीम के चलते फिल्म मनोरंजक होने के साथ ही देखने योग्य व सोचने पर मजबूर करती है. इस तरह के विशय पर पूरी संवेदनषीलता व मानवीय धरातल पर यथार्थ के साथ फिल्म को दर्षकों तक पहुॅचाना जूड एंथनी जोसेफ जैसे बिरले निर्देशक ही कर सकते हैं.  फिल्मकार जोसेफ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्हेाने विपदा के वक्त लोगों के संघर्षों को चित्रित करने के साथ ही जीवित बचे लोगों के प्रति सहानुभूति भी पैदा करते हैं. फिल्मकार ने समाज में मौजूद हर किरदार को बारीकी से पकड़कर अपनी फिल्म में पेश किया है. फिर चाहे वह नेकदिल अनूप हो या क्षुद्र और अहंकारी इंसान हो अथवा अपने परिवार के सदस्यों सहित कुछ लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखने वाले इंसान हो.  फिल्मकार जोसेफ इमानदारी के साथ यथार्थ के धरातल पर प्राकृतिक आपदा की इस कहानी को पेश करते हुए प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने में मानवीय भूमिका का जिक्र करने से परहेज नही करते हैं.  अपनी ‘ओहम षंाथी ओषान’’, ‘‘ओटी मुथासी गढा’ और ‘‘सारास’ जैसी सफल रोमांटिक हास्य फिल्मों की वजह से जूड एंथेनी जोसेफ की जो पहचान है,उसे देखते हुए उनसे किसी ने भी इस तरह की संवेदनषील,भावनात्मक,रोंगटे खड़े कर देने वाले दृष्यों वाली फिल्म की उम्मीद नही की थीं. पूरी फिल्म के दौरान वह लगभग पांच साल पहले हुई त्रासदी पर दोबारा गौर करने पर किसी को भी असहज या व्यथित महसूस नही कराते.  इतना ही नहीं वह पूरी फिल्म में राजनीतिक टिप्पणी करने से भी बचे हैं. जबकि हमने पढ़ा था कि बाढ़ की विनाशलीला के वक्त जिन मछुआरों ने मलियालियों की मदद की थी,बाद में जब उन्हे मदद की जरुरत पड़ी,तो उनके साथ दुब्र्यवहार किया गया.  जी हाॅ! केरला में मछुआरों की अपनी जिंदगी व महत्व है. फिल्म मछुआरों को महत्व देने से नही बचती,जिन्होने बाढ़ की विपदा के वक्त केरल की अपनी सेना की तरह काम किया था. वह परोपकारी बचाव कार्यों का नेतृत्व करते हुए कई मलयाली लोगों को बचा रहे थे. यहां तक कि जब सरकार के प्रयास विफल हो गए,तब मछुआरे आगे बढ़कर निःस्वार्थ भाव से लोगों की जिंदगी बचाते हैं.  फिल्म में एक दृष्य है जब दबंग लड़के अनूप को देखकर हिंदी फिल्म ‘बार्डर’ के गीत ‘‘संदेशे आते हैं. . ’उसे देखकर गाते हैं. यह दृष्य मणिरत्नम,ए आर रहमान सहित उन लोगों के मंुॅह पर तमाचा है,जो हिंदी भाषा के विरोध का राग अलापते रहते हैं.  अनूप के किरदार के माध्यम से फिल्मकार ने इस बात को रेखंाकित किया हैै कि भारतीय सशस्त्र बलों का सम्मान देश भर का हर नागरिक करता है और आर्मी का प्रषिक्षण कभी जाया नही जाता.  फिल्मकार ने इस बात को भी बड़ी खूबसूरती से चित्रित किया है कि आम समय में हम सभी किस तरह एक ध्रुवीकृत दुनिया में रहते हैं, लेकिन आपदा के समय में सभी सच्ची मानवीय भावना का परिचय देते हैं. विपदा के वक्त लोगों का जीवन बचाने के लिए हर इंसान व्यक्तिगत व सामाजिक पहचान से परे हो जाता है. लोग किस तरह से अपने हर आपसी मतभेद को भुलाकर एक दूसरे की मदद करने लगते हैं.  फिल्मकार जूड एंथनी जोसेफ राजनीति से परे एक दृष्टिकोण पेश करते हुए 2018 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और केंद्र सरकार द्वारा की गयी मदद व राहत कार्यों का उल्लेख करने से पीछे नही रहते. फिल्मकार ने विशेश समुदाय पर आत्म- आत्मनिरीक्षण करने का दायित्व डाला है. फिल्मकार ने जहां दक्षिणपंथियों को सूक्ष्म संदेश दिया है,वहीं वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष दलों की चापलूसी नहीं की है. फिल्म कुछ नौकरशाही पर सवाल भी उठाती है. फिल्म के पात्र राज्य के भीतर विभिन्न संस्कृतियों, वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं. फिल्म में एक दृष्य है जहां पादरी चर्च के दरवाजे पीड़ितों के लिए नहीं खोलना चाहता,पर अंततः वह ऐसा करता है. इस दृष्य के माध्यम से फिल्मकार ने यह संदेश दिया हे कि विनम्रता के साथ किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है.  फिल्म हर इंसान को हीरो बताते हुए त्रासदियाँ,नुकसान,आपदा की भयावहता और अंततः यथार्थवाद का एहसास कराने में सफल रहती हैं. बाढ़ की विपदा का चित्रण करते हुए फिल्मकार अनूप व मंजू के रिश्ते को ठीक से चित्रित नही कर पाए.  फिल्मकार की कमजोर कड़ी यह है कि केरल में मूसलाधार बारिश व बिजली गिरने के दौरान मच रही तबाही के बावजूद मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह सक्रिय हैं. षायद फिल्मकार ने लोगों की जिंदगी बचाने के एक साधन के तौर मोबाइल नेटवर्क को बाधित नही किया. इसी तरह फिल्मकार की कमजोर यह है कि उन्होने अपनी फिल्म में महिलाओं को कम महत्व दिया है. जबकि हमने पढ़ा है कि उस वक्त वहां कि हजारों महिलाओं ने भी वीरता व दयालुता के उदाहरा पेश किए थे. स्कूल षिक्षक मंजू के किरदार को ठीक से विकसित नहीं किया गया.  तूफानी मौसम में फंसे दो पोलिश पर्यटकों की उपस्थिति और स्थानीय लोगों द्वारा गर्मजोशी से दनका स्वागत किए जाने के दृष्यों से फिल्मकार ने केरल पर्यटन को बढ़ावा देने का काम किया है.  कैमरामैन अखिल जॉर्ज की तारीफ करनी पड़ेगी,जिन्होने बारिश,पीड़ितो व जमीन के नीचे दब गएउ माकन वगेरह के दृष्यों को अपनी कलात्मक खूबी से परदे पर उतारने के साथ ही इंसानी भावनाओं को भी कैमरे में कैद किया है.  एडीटर चमन चाको ने भी सही काम किया है. नोबिन पॉल का संगीत और विष्णु गोविंद की ऑडियोग्राफी भी शानदार माहौल बनाने में योगदान करती है.

अभिनयः

यूं तो फिल्म के सभी कलाकारों ने असाधारण अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया हे. लेकिन सेना में असफल और अपने देश को छोड़कर संयुक्त अरब अमीरात में बसने की लालसा रखने वाला युवक बाढ़ की विपदा के वक्त हर समुदाय के लोगों की जिंदगी बचाते हुए हीरो बन जाने वाले अनूप के किरदार में टोविनो थामस का अभिनय षानदार है. वैसे भी 2012 में अभिनय कैरियर की षुरूआत करने वाले टोविनो थामस अब तक ‘ए बीसीडी’,‘चार्ली’,‘मिनाल मुरली’सहित तकरीबन 45 फिल्मों में अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं.  टीवी रिपोर्टर एन मारिया के किरदार में अपर्णा बालमुरली भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. छोटे किरदार में तन्वी राम अपनी उपस्थिति दर्ज कराने मे सफल रहती हैं. निकसन के किरदार में आसिफ अली भी अपने अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.

Mother’s Day Special: Eco फ्रेंडली और सस्टेनेबल सूती डायपर का करें इस्तेमाल

कुछ सालों पहले माँ अपने बच्चे को घर पर बनी हुई सूती कपडे की लंगोटी पहनाती थी, जिसे बच्चे के जन्म होने के पहले से ही परिवार की महिलाएं सिलना शुरू कर देती थी, क्योंकि सूती कपड़ों का बच्चे की कोमल त्वचा पर किसी प्रकार के इन्फेक्शन का न होने से है,लेकिन इन डायपर के साथ समस्या थी,बच्चे के मल या पेशाब होने पर बार-बार धोकर सुखाना पड़ता था.

इसके बाद बाजार में कई कंपनियों के डायपर्स उतारने की वजह से एक खास वर्ग ही इसका प्रयोग कर सका, क्योंकि ये डायपर्स काफी महंगे होते है. समय के साथ डायपर की मांग बढ़ी और डायपर्स के दाम में भी कमी आई. आज की माएं सुविधा के लिए बच्चों को जन्म के बाद से ही डायपर पहनाती है, क्योंकि डायपर पहना देने से बिस्तर और कपडे ख़राब नहीं होता और बच्चा ख़ुशी से खेल सकता है. डायपर बच्चे के मल और पेशाब को सोखकर उसे सूखा होने का एहसास करवाती है, लेकिनबाजार में मिलने वाले डायपर में प्लास्टिक और केमिकल से बच्चे के शरीर पर कई बार रैशेज आ जाने से माँ परेशान भी हो जातीहै.

कम प्रयोग प्लास्टिक और कैमिकल का

कई बार रैशेज इतना अधिक हो जाता है कि बच्चा डायपर पहन नहीं पाता,ऐसा अधिकतर अत्यधिक नमी, ऊमसऔर गर्मी वाले स्थानों पर होता है. इसलिए ये डायपर जितना मुश्किल बच्चों को पहनने में होता है, उतना ही इसमें प्रयोग किये गए केमिकल और प्लास्टिक पर्यावरण के लिए हानिकारक होते है. एक शोध में यह पता चला है कि एक होता  की लगभग 2 टन डायपर को गलने में 500 साल लगते है. इसके अलावा इससे निकलने वाले कैमिकल से कैंसर या अन्य कई बीमारियोंका खतरा रहता है और धीरे-धीरे ये कचरा जमीन के एक बड़े हिस्से में फ़ैल जाती है. इससे बचने के लिए सूती डायपर्स का प्रयोग करना आज सभी पसंद कर रहे है. पहले ये डायपर्स केवल विदेशों में मिलता था, लेकिन समय के साथ कई कंपनियां इस क्षेत्र में आकर आपना योगदान दे रही है.

खोज सूती कपडे की इको फ्रेंडली डायपर

इस बारें में सुपरबॉटम्स की फाउंडर पल्लवी उटगी कहती है कि जब मेरा बेटा कबीर हुआ तो मेरे परिवार के बड़ों ने डिस्पोजेबल डायपर्स न पहनाकर अधिकतर लंगोटी पहनाने की सलाह दी. मैंने भी बेटे को घर पर बनी सूती नैपी पहनाई, क्योंकि डॉक्टर की सलाह भी यही थी, ताकि बच्चे की स्किन पर किसी प्रकार का रैशेज न हो.हालाँकि डिस्पोजेबल डायपर्स बच्चे को पहनाना आसान होता है, जबकि लंगोट पहनाने से बार-बार गीला होने पर बदलना पड़ता है,ऐसे में मैं चाहती थी कि कोई ऐसा प्रोडक्ट मुझे मिले, जो बच्चे की त्वचा को किसी बीमारी से बचाने के साथ-साथ उसे पहनाना सुविधाजनक और इको फ्रेंडली भी हो. मै अच्छी क्वालिटी की सूती कपडे की डायपर को खोजने लगी. पता चला कि ये केवल विदेशों में ही मिलता है. फिर मैंने इस पर जानकारी हासिल करनी शुरू की. वर्ष 2013 से बेटे के जन्म के बाद से ही करीब 2 साल तक इस बारें में मैंने रिसर्च किया और तैयार प्रोडक्ट को मैं बेटे पर प्रयोग करती रही, उससे जो परिणाम मिले,उन्हें मैं रिकॉर्ड में रखती गयी. इस प्रकार वर्ष 2016 में सुपरबॉटम्स का जन्म बहुत कम पूंजी के साथ हुआ. इस काम में पति सलिल ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि मैं शुरू में एक कोर्पोरेट कंपनी की मार्केटिंग में काम करती थी. मेटरनिटी लीव के दौरान मेरे पास कुछ समय बच जाता था. मैंने उस समय का उपयोग इको-फ्रेंडली क्लॉथ डायपर के लिए किया. इसे बनाने में ट्रायल और समय लगा. उस दौरान मैंने बेटे, ऑफिस और सुपरबॉटम्स को साथ-साथकिया, जो बहुत मुश्किल था. मैंने जॉब छोड़कर, अपनी कंपनी में लग गयी.

होती है चुनौती

इसके आगे पल्लवी कहती है कि जब कोई नयी प्रोडक्ट मार्केट में आती है, उसे लोगों को समझाना मुश्किल होता है, ग्राहक को लगता है कि अगर ये काम न करें, तो उनके पैसे बेकार होंगे और बच्चे की नीद ख़राब होगी, इसलिए मैंने अपनी नेटवर्क में कई ट्रायल किये, जिसमें मैंने पहले फ्री में डायपर दिया, जिससे वे इसका प्रयोग कर इसकी उपयोगिता समझ सकें. अभी भी किसी पेरेंट्स के डायपर खरीदने पर एक महीने प्रयोग में लाने के बाद भी उन्हें अच्छा न लगे,तो मैं यूज्ड किये डायपर भी ले लेती हूँ. इसके अलावा मॉम्स की एक नेटवर्क है. 10 हैप्पी मदर्स आज ब्रांड की एम्बेसेडर बन चुकी है, क्योंकि ये महिलाएं घर बैठे कुछ काम कर पैसा कमाना चाहती है. इसके अलावा करीब 80 मदर्स की एक नेटवर्क बनाई है, जो इस इको- फ्रेंडली डायपर्स के बारें में पेरेंट्स को शिक्षित करती है. करीब 2 लाख से भी अधिक महिलाएं इस उत्पाद के साथ जुड़ चुकी है. इसके साथ-साथ सोशल मीडिया का भी मैंने सहारा लिया है. इसमें मैंने उस काम को किया, जो बड़े ब्रांड नहीं कर पाते है. मैंने पर्सनल लेवल पर मदर्स से बात की और उनकी मांग को प्रोडक्ट में शामिल करने की कोशिश की, जो उन मदर्स को अच्छा लगता है. देश के अलावा विदेश में जैसे सिंगापुर और मलयेशिया में भी इको-फ्रेंडली डायपर की मांग है.

सही प्रोडक्ट और सही सर्विस

पल्लवी का कहना है कि इस कॉटन डायपर के बारें में सबको जागरूक कर ब्रांड को ग्रो करना ही सबसे बड़ी चुनौती पल्लवी के लिए थी, वह कहती है कि मेरी मदर टू मदर का जो जुड़ाव सोशल मीडिया के द्वारा थी, उसका मैंने सदुपयोग किया. उन्हें प्रोडक्ट के बारें में जानकारी दी. करीब 60 महिलाओं ने मेरे प्रोडक्ट का यूज़ अपने बच्चे के लिए किया है और उन्हें इस पर विश्वास है. सही प्रोडक्ट और सही सर्विस होने की वजह से मैं आगे बढ़ पायी.

फायदा हुआ माँ होना

इस काम को बेटे के साथ काम करना आसान नहीं था. मैंने शुरू से बेटे को साथ लेकर ही प्लानिंग की है. मेरे हर रूटीन में वह शामिल होता है. एक प्लानिंग पहले से करनी पड़ती है, जिससे किसी प्रकार की समस्या काम में नहीं आती. माँ होने की वजह से प्रोडक्ट की छोटी-छोटी बारीकियों को समझना मेरे लिए आसान होता है, क्योंकि कई बार छोटी चीज भी बच्चे के लिए बड़ी हो सकती है. इसके अलावा एक माँ दूसरी माँ की जरूरतों को समझ सकती है. मेरे साथ जितनी भी महिलाएं है वे इस डायपर का प्रयोग कर चुकी है, ऐसे में किसी नई फीचर का प्रोडक्ट में शामिल करना भी आसान होता है.

घरेलू महिलाएं भी कर सकती है रोजगार

इतना ही नहीं, घरेलू महिलायें जो ऑफिस जाकर काम नहीं कर सकती और खुद का कुछ इनकम चाहती है, उनके लिए ये एक बेहतर आप्शन है, क्योंकि ये एक सही प्रोडक्ट है और इसे प्रयोग करने वाला हमेशा खुश रहता है. इसलिए इस प्रोडक्ट के साथ काम करना आसान होता है और घर बैठे वे अच्छा कमाती है. कई महिलाएं इससे जुड़ने के लिए फ़ोन करती है. इस व्यवसाय से जुड़ना बहुत आसान है और ये मुफ्त है. एक छोटा टेस्ट प्रोडक्ट से जुडी जानकारी के लिए लिया जाता है. इससे उनकी रूचि और सीरियसनेस को देखा जाता है और उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है. इसके बाद वे शुरू व्यवसाय कर सकती है, केवल वेबसाइट पर दिए गए फॉर्म को भरना होता है. ये रियूजेबल डायपर है और बच्चे को पहनाना भी आसान है. ये रात में 12 घंटे और दिन में 5 से 6 घंटे के बाद धोना पड़ता है. इसे आप मशीन में या हाथ से धो सकते है. इसमें प्रयोग किया जाने वाला कपडा आर्गेनिक सूती का होता है. उसके ऊपर ड्राई फील होने के लिए एक कपडा डाला जाता है. इस प्रकार एक डायपर 300 बार धोकर प्रयोग किया जा सकता है. 3 डायपर लेने पर जन्म से लेकर 3 साल तक प्रयोग किया जा सकता है. इसमें जरुरत के अनुसार दिए गए बटन को साइज़ के अनुसार कर फ्लैप को बंद करना होता है. ये डायपर दूसरेडिस्पोजेबल डायपर्ससे करीब 75 प्रतिशत सस्ता पड़ता है.

काम को आगे बढ़ाने के लिए पल्लवी की एक ड्रीम होती है, जिसमें अगर वह 100 डायपर्स के टार्गेट पर 300 डायपर्स बेच लेती है, तो आगे 1000 का टार्गेट होता है. इसमें  प्रेरणा महिलाओं द्वारा मिली डायपर की फीडबैक पर निर्भर करता है.हर महीने प्लानिंग से पहले महिलाओं द्वारा दिए सलाह को भी शामिल किया जाता है. पल्लवी के खुश रहने का मन्त्र, जो जीवन मिला है,उसमें खुश रहना. वह इसी तरह से लाइफ को जीना पसंद करती है.

Mother’s Day Special: तुम्हें सब है पता मेरी मां

जब मिस वर्ल्ड का ताज किसी प्रतियोगी से सिर्फ एक प्रश्न दूर हो और उस प्रश्न के जवाब में प्रतियोगी एक मां को सब से ज्यादा सैलरी पाने का हकदार बताए और साथ ही मां की गरिमा को और बढ़ाते हुए यह भी कहे कि मां के वात्सल्य की कीमत कैश के रूप में नहीं, बल्कि आदर और प्यार के रूप में ही अदा की जा सकती है और जब उस के इस जवाब पर खुश हो कर विश्व भी अपनी सहमति की मुहर लगा कर उसे ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ मानते हुए ‘मिस यूनिवर्स’ का ताज पहना देता है तो यकीनन उस की कही बात उस के ताज की ही तरह महत्त्वपूर्ण हो जाती है.

मानुषी छिल्लर के जवाब से शतप्रतिशत सहमत होने में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है. सचमुच मां का काम अतुल्य है. एक मां एक दिन में ही अपने बच्चे के लिए आया, रसोइया, धोबी, अध्यापिका, नर्स, टेलर, मोची, सलाहकार, काउंसलर, दोस्त, प्रेरक, अलार्मघड़ी और न जाने ऐसे कितने तरह के कार्य करती है, जबकि घर से बाहर की दुनिया में इन सब कार्यों के लिए अलगअलग व्यक्ति होते हैं.

एक विलक्षण शक्ति

मां बनते ही मां के कार्यक्षेत्र का दायरा बहुत विकसित हो जाता है, किंतु निश्चित रूप से मां को ‘संपूर्ण और सम्माननीय मां’ उस के वे दैनिक कार्य नहीं बनाते, बल्कि एक मां को महान उस की वह आंतरिक शक्ति बनाती है, जो उसे एक ‘सिक्स्थ सैंस’ के रूप में मिली होती है, जिस के बल पर मां बच्चे के अंदर इस हद तक समाहित हो जाती है कि अपने बच्चे की हर बात, हर पीड़ा, हर जरूरत, उस की कामयाबी और नाकामयाबी हर बात को बिना कहे केवल उस का चेहरा देख कर ही भांप लेती है.

मां का कर्तव्य केवल अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करना ही नहीं होता, बल्कि मां की और भी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं. अपने बच्चों को समझना, जानना और उन पर विश्वास करना, उन का उचित मार्गदर्शन और चरित्र निर्माण कर के उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना भी मां की जिम्मेदारियों में शामिल होता है.

जहां एक तरफ मां का भावनात्मक संबल किसी भी बच्चे का सब से बड़ा सहारा होता है, वहीं दूसरी तरफ मां के विश्वास और मार्गदर्शन में वह शक्ति होती है, जिस से वह अपने बच्चे को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकती है.

बच्चे को योग्य बनाती है मां

जहां एक तरफ अब्राहम लिंकन की मां ने घोर आर्थिक तंगी के बावजूद अब्राहम लिंकन को चूल्हे के कोयले से अक्षर ज्ञान कराया और उन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति के पद पर पदासीन होने योग्य बनाया, वहीं दूसरी तरफ जब महान वैज्ञानिक थौमस एडिसन को उन के स्कूल टीचर ने ‘ऐडल्ट चाइल्ड’ कह कर उन्हें हतोत्साहित किया तब उन की मां ने एड

Mother’s Day Special: और प्यार जीत गया

देवयानीको समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? जिस दोराहे पर 25 साल पहले वह खड़ी थी, आज फिर वही स्थिति उस के सामने थी. फर्क सिर्फ यह था कि तब वह खुद खड़ी थी और आज उस बेटी आलिया थी. उस का संयुक्त परिवार होने के बावजूद उसे रास्ता सुझाने वाला कोई नहीं था. पति सुमित तो परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से दबे रहने वाले शख्स थे. उन से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार था. शादी के बाद से आज तक उन्होंने कभी एक अच्छा पति होने का एहसास नहीं कराया था. घंटों कारोबार में डूबे रहना उन की दिनचर्या थी. प्यार के 2 बोल सुनने को तरस गई थी वह. घर के राशन से ले कर अन्य व्यवस्थाओं तक का जिम्मा उस पर था. वह जब भी कोई काम कहती सुमित कहते, ‘‘तुम जानो, रुपए ले लो, मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’

संयुक्त परिवार में देवयानी को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती. भाइयों और परिवार में सुमित के खुद को उच्च आदर्श वाला साबित करने के चक्कर में कई बार देवयानी अपने को कटघरे में खड़ा पाती. तब उस का रोमरोम चीत्कार उठता. 25 वर्षों में उस ने जो झेला, उस में स्थिति तो यही थी कि वह खुद कोई निर्णय ले और अपना फैसला घर वालों को सुनाए. इस वक्त देवयानी के एक तरफ उस का खुद का अतीत था, तो दूसरी तरफ बेटी आलिया का भविष्य. उसे अपना अतीत याद हो गया. वह स्कूल के अंतिम वर्ष में थी कि महल्ले में नएनए आए एक कालेज लैक्चरर के बेटे अविनाश भटनागर से उस की नजरें चार हो गईं. दोनों परिवारों में आनाजाना बढ़ा, तो देवयानी और अविनाश की नजदीकियां बढ़ते लगीं. दोनों का काफी वक्त साथसाथ गुजरने लगा. अत्यंत खूबसूरत देवयानी यौवन की दहलीज पर थी और अविनाश उस की ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित था. वह उस के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता. अत्यंत कुशाग्र अविनाश पढ़ाई में भी देवयानी की मदद करता और जबतब मौका मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट भी देता. वह अविनाश के प्यार में खोई रहने के बावजूद अपनी पढ़ाई में अव्वल आ रही थी. दिन, महीने, साल बीत रहे थे. देवयानी स्कूल से कालेज में आ गई. वह दिनरात अविनाश के ख्वाब देखती. उस के घर वाले इस सब से बेखबर थे. उन्हें लगता था कि अविनाश समझदार लड़का है. वह देवयानी की मदद करता है, इस से ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन उन का यह भ्रम तब टूटा, जब एक रात एक अजीब घटना हो गई. अविनाश ने देवयानी के नाम एक लव लैटर लिखा और एक पत्थर से बांध कर रात में देवयानी के घर की चारदीवारी में फेंका. उसी वक्त देवयानी के पिता वहां बने टौयलेट में जाने के लिए निकले. अचानक पत्थर आ कर गिरने से वे चौंके और देखा तो उस पर कोई कागज लिपटा हुआ था. उन्होंने उसे उठाया और वहीं खड़े हो कर पढ़ने लगे. ज्योंज्यों वे पत्र पढ़ते जा रहे थे. उन की त्योरियां चढ़ती जा रही थीं.

देवयानी के पापा ने गली में इधरउधर देखा, कोई नजर नहीं आया. गली में अंधेरा छाया हुआ था, क्योंकि स्ट्रीट लाइट इन दिनों खराब थी. उस वक्त रात का करीब 1 बज रहा था और घर में सभी सदस्य सो रहे थे. उन्हें अपनी बेटी पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन इतनी रात गए वे कोई हंगामा नहीं करना चाहते थे. वे अपने बैडरूम में आए उन की पत्नी इस सब से बेखबर सो रही थी. वे उस की बगल में लेट गए, लेकिन उन की आंखों में नींद न थी. उन्हें अपनी इस लापरवाही पर अफसोस हो रहा था कि देवयानी की हरकतों और दिनचर्या पर नजर क्यों नहीं रखी? खत में जो कुछ लिखा था, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि देवयानी और अविनाश एकदूसरे के प्यार में डूबे हैं. देवयानी के पापा फिर सो नहीं पाए. रात भर उन्होंने खुद पर नियंत्रण किए रखा, लेकिन जैसे ही देवयानी उठी उन के सब्र का बांध टूट गया. वह अपनी छोटी 2 बहनों और 2 भाइयों के साथ चाय पी रही थी कि उसे पापा का आदेश हुआ कि चाय पी कर मेरे कमरे में आओ. ‘‘ये क्या है देवयानी?’’ उस के आते ही अविनाश का खत उस की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने पूछा.

‘‘क्या है पापा?’’ उस ने कांपती आवाज में पूछा और फोल्ड किए हुए खत को खोल कर देखा, तो उस का कलेजा धक रह गया. अविनाश का खत, पापा के पास. कांप गई वह. गला सूख गया उस का. काटो तो खून नहीं.

‘‘क्या है ये…’’ पापा जोर से चिल्लाए.

‘‘पा…पा…,’’ उस के गले से बस इतना ही निकला. वह समझ गई कि आज घर में तूफान आने वाला है. बुत बनी खड़ी रह गई वह. घबराहट में कुछ बोल नहीं पाई और आंखों से अश्रुधारा बह निकली. ‘‘शर्म नहीं आती तुझे,’’ पापा फिर चिल्लाए तो मां भी कमरे में आ गईं.

‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो सुबहसुबह?’’ मां ने पूछा.

‘‘ये देख अपनी लाडली की करतूत,’’ पापा ने देवयानी के हाथ से खत छीनते हुए कहा.

‘‘क्या है ये?’’

‘‘खुद देख ले ये क्याक्या गुल खिला रही है. परिवार की इज्जत, मानमर्यादा का जरा भी खयाल नहीं है इस को.’’ मां ने खत पढ़ा तो उन का माथा चकरा गया. वे धम्म से बैड पर बैठ गईं.’’ ‘‘यह क्या किया बेटी? तूने बहुत गलत काम किया. तुझे यह सब नहीं करना चाहिए था. तुझे पता है तू घर में सब से बड़ी है. तूने यह नहीं सोचा कि तेरी इस हरकत से कितनी बदनामी होगी. तेरे छोटे भाईबहनों पर क्या असर पड़ेगा. उन के रिश्ते नहीं होंगे,’’ मां ने बैड पर बैठेबैठे शांत स्वर में कहा तो देवयानी खुद को रोक नहीं पाई. वह मां से लिपट कर रो पड़ी. पापा के दुकान पर जाने के बाद मां ने देवयानी को अपने पास बैठाया और बोलीं, ‘‘बेटा, भूल जा उस को. जो हुआ उस पर यहीं मिट्टी डाल दे. मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘नहीं मां, हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं,’’ देवयानी ने हिम्मत जुटा कर मां से कहा.

‘‘नहीं बेटा, इस प्यारव्यार में कुछ नहीं धरा. वह तेरे काबिल नहीं है देवयानी.’’ ‘‘क्यों मां, क्यों नहीं है मेरे काबिल? मैं ने उसे 2 साल करीब से देखा है. वह मेरा बहुत खयाल रखता है. बहुत प्यार करता है वह भी मुझ से.’’ ‘‘बेटा, वे लोग अलग जाति के हैं. उन का खानपान उन के जिंदगी जीने के तरीके हम से बिलकुल अलग है,’’ मां ने देवयानी को समझाने की कोशिश की.

‘‘पर मां, अविनाश मेरे लिए सब कुछ बदलने को तैयार है. उस के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं,’’ देवयानी मां से तर्कवितर्क कर रही थी. ‘‘और तूने सोचा है कि तेरे इस कदम से तेरे छोटेभाई बहनों पर क्या असर पडे़गा? रिश्तेदार, परिवार वाले क्या कहेंगे? नहीं देवयानी, तुम भूल जाओ उस को,’’ मां ने फैसला सुनाया. पापा ने कड़ा फैसला लेते हुए देवयानी की शादी दिल्ली के एक कारोबारी के बेटे सुमित के साथ कर दी. लेकिन वह अविनाश को काफी समय तक भुला नहीं पाई. शादी के बाद वह संयुक्त परिवार में आई तो ननदों, जेठानियों और बच्चों के बड़े परिवार में उस का मन लगता गया. एक बेटी आलिया और एक बेटे अंकुश का जन्म हुआ, तो वह धीरेधीरे अपनी जिम्मेदारियों में खो गई. लेकिन अविनाश अब भी उस के दिल के किसी कोने में बसा हुआ था. उसे कसक थी कि वह अपने प्यार से शादी नहीं कर पाई.

देवयानी अपने अतीत और वर्तमान में झूल रही थी. उस की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने घड़ी में टाइम देखा. 3 बज रहे थे. पौ फटने वाली थी. उस के बगल में पति सुमित सो रहे थे. आलिया और अंकुश अपने रूम में थे.देवयानी को आलिया और तरुण के बीच चल रहे प्यार का एहसास कुछ दिन पूर्व ही हुआ था, आलिया के सहपाठी तरुण का वैसे तो उन के घर आनाजाना था, लेकिन देवयानी ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. वह एक मध्यवर्गीय परिवार से वास्ता रखता था. उस के पापा एक बैंक में मैनेजर थे. हैसियत के हिसाब से देखा जाए, तो उस का परिवार देवयानी के परिवार के सामने कुछ भी नहीं था. लेकिन आजकल स्कूलकालेज में पढ़ने वाले बच्चे जातपांत और गरीबीअमीरी से ऊपर उठ कर स्वस्थ सोच रखते हैं. तरुण ने आलिया के साथ ही बीकौम किया और एक यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक विभाग में नौकरी लग गया था. जबकि आलिया अभी और आगे पढ़ना चाहती थी.

उस दिन आलिया बाथरूम में गई हुई थी. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. देवयानी ने देखा मोबाइल स्क्रीन पर तरुण का नाम आ रहा था. उस ने काल को औन कर मोबाइल को कान पर लगाया ही था कि उधर से तरुण की चहकती हुई आवाज आई, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार कब से काल कर रहा हूं, कहां थीं?’’

देवयानी को समझ में नहीं आया कि वह क्या बोले तो बस सुनती रही. तरुण बोले जा रहा था. ‘‘क्या हुआ जान, बोल क्यों नहीं रहीं, अभी भी नाराज हो? अरे यार, इस तरह के वीडियो चलते हैं आजकल. मेरे पास आया, तो मैं ने तुझे भेज दिया. मुझे पता है तुम्हें ये सब पसंद नहीं, सो सौरी यार.’’

‘‘हैलो तरुण, मैं आलिया की मम्मी बोल रही हूं. वह बाथरूम में है.’’

‘‘ओह सौरी आंटी, वैरी सौरी. मैं ने सोचा. आलिया होगी.’’ ‘‘बाथरूम से आती है, तो कह दूंगी,’’ कहते हुए देवयानी ने काल डिसकनैक्ट कर दी. लेकिन उस के मन में तरुण की काल ने उथलपुथल मचा दी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आलिया के माबोइल में वाट्सएप को खोल लिया. तो वह आलिया के बाथरूम से निकलने से पहले इसे पढ़ लेना चाहती थी. दोनों ने खूब प्यार भरी बातें लिख रही थीं और आलिया ने तरुण के साथ हुई एकएक बात को लंबे समय से सहेज कर रखा हुआ था. दोनों बहुत आगे बढ़ चुके थे. देवयानी को 25 साल पहले का वह दिन याद हो आया, जब उस के पापा ने अविनाश का लिखा लव लैटर पकड़ा था. सब कुछ वही था, जो उस के और अविनाश के बीच था. प्यार करने वालों की फीलिंग शायद कभी नहीं बदलती, जमाना चाहे कितना बदल जाए. एक फर्क यह था कि पहले कागज पर दिल की भावनाएं शब्दों के रूप में आकार लेती थीं, अब मोबाइल स्क्रीन पर. तब लव लैटर पहुंचाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे, अब कितना आसान हो गया है.

देवयानी कई दिनों से देख रही थी कि आलिया के खानेपीने, सोनेउठने की दिनचर्या बदल गई थी. अब उसे समझ आ रहा था कि आलिया और तरुण के बीच जो पक रहा था, उस की वजह से ही यह सब हो रहा था. देवयानी ने फैसला किया कि वह अपनी बेटी की खुशियों के लिए कुछ भी करेगी. उस ने आलिया से उसी दिन पूछा, ‘‘बेटी, तुम्हारे और तरुण के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या चल रहा है मौम?’’ आलिया ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘मेरा मतलब प्यारव्यार.’’

‘‘नहीं मौम, ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलना. मैं तुम्हारी मां हूं. मैं ने तुम्हारे मोबाइल में सब कुछ पढ़ लिया है.’’

‘‘क्या पढ़ा, कब पढ़ा? यह क्या तरीका है मौम?’’

‘‘देखो बेटा, मैं तुम्हारी मां हूं, इसलिए तुम्हारी शुभचिंतक भी हूं. मुझे मां के साथसाथ अपनी फै्रंड भी समझो.’’

‘‘ओके,’’ आलिया ने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘‘मैं तरुण से प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? तरुण तो मुश्किल से 20-25 हजार रुपए महीना कमाता होगा. क्या होगा इतने से.’’

‘‘मौम आप टैंशन मत लें. हम दोनों ऐडजस्ट कर लेंगे. शादी के बाद मैं भी जौब करूंगी,’’ आलिया ने कहा.

‘‘तुम्हें पता है जौब क्या होती है, पैसे कहा से, कैसे आते हैं?’’

‘‘हां मौम, आप सही कह रही हैं. मुझे अब तक नहीं पता था, लेकिन अब सीख रही हूं. तरुण भी मुझे सब बताता है.’’

‘‘हम कोई मदद करना चाहें उस की… उस को अच्छा सा कोई बिजनैस करा दें तो…?’’

‘‘नहीं मौम, तरुण ऐसा लड़का नहीं है. वह कभी अपने ससुराल से कोई मदद नहीं लेगा. वह बहुत खुद्दार किस्म का लड़का है. मैं ने गहराई से उसे देखासमझा है.’’

‘‘पर बेटा परिवार में सब को मनाना एकएक बात बताना बहुत मुश्किल हो जाएगा. कैसे होगा यह सब…?’’ मां ने आलिया के समक्ष असमर्थता जताते हुए कहा.

‘‘मुझे कोई जल्दी नहीं है मां… मैं वेट करूंगी.’’ देवयानी के समक्ष अजीब दुविधा थी. वह बेटी को उस का प्यार कैसे सौंपे? पहली अड़चन पति सुमित ही थे. फिर उन के भाई यानी आलिया के चाचाताऊ कैसे मानेंगे? तरुण व आलिया परिवारों के स्टेटस में दिनरात जैसा अंतर था. फिर भी देवयानी ठान चुकी थी कि यह शादी करवा कर रहेगी. उस ने अपने स्तर पर भी तरुण और उस के परिवार के बारे में पता लगाया. सब ठीक था. सब अच्छे व नेकदिल इंसान और उच्च शिक्षित थे. कमी थी तो बस एक ही कि धनदौलत, कोठीबंगला नहीं था. एक रात मौका देख कर देवयानी ने सुमित के समक्ष आलिया की शादी की बात रखी, ‘‘वह शादी लायक हो गई है, आप ने कभी ध्यान दिया? उस की फैं्रड्स की शादियां हो रही हैं.’’

‘‘क्या जल्दी है, 1-2 साल बाद भी कर सकते हैं. अभी तो 24 की ही हुई है.’’

‘‘24 की उम्र कम नहीं होती सुमित.’’

‘‘तो ठीक है, लेकिन अब रात को ही शादी कराएंगी क्या उस की? मेरी जेब में लड़का है क्या, जो निकाल कर उस की शादी करवा दूंगा?’’

‘‘लड़का तो है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘तरुण, आलिया का फ्रैंड. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. अच्छी अंडरस्टैंडिंग है दोनों में.’’

‘‘वह बैंक मैनेजर का बेटा,’’ सुमित उखड़ गए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या देवयानी?’’

‘‘बिलकुल नहीं हुआ है. जो कह रही हूं बहुत सोचसमझ कर दोनों के हित के लिए कह रही हूं. वह आलिया को खुश रखेगा, बस इतना कह सकती हूृं.’’ देवयानी ने उस रात अपने पति सुमित को तकवितर्क और नए जमाने की आधुनिक सोच का हवाला दे कर अपने पक्ष में कर लिया. उसे लगा एक बड़ी बाधा उस ने पार कर ली है. अब बारी थी परिवार के अन्य सदस्यों के समक्ष दीवार बन कर खड़ा होने की. उस ने अपनी  सास, देवर और जेठानियों के समक्ष अपना मजबूत पक्ष रखा. उस ने यह भी कहा कि अगर आप तैयार न हुए, तो वह घर से भाग कर शादी कर लेगी तो क्या करोगे? फिर तो चुप ही रहना पड़ेगा. और अगर दोनों बच्चों ने कुछ कर लिया तो क्या करोगे? जीवन भर पछताओगे. इस से तो अच्छा है कि हम अपनी सहमति से दोनों की शादी कर दें. और एक एक दिन वह आ गया जब आलिया और तरुण की शादी पक्की हो गई. शादी वाले दिन जब आलिया अग्नि के समक्ष तरुण के साथ फेरे ले रही थी अग्नि से उठते धुएं ने देवयानी की आंखों से अश्रुधारा बहा दी. इस अश्रुधारा में उसे अपने पुराने ख्वाब पूरे होते हुए नजर आए. उसे लगा कि 25 साल बाद उस का प्यार जीत रहा है.

एक गलती

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं संकर्षण को क्या जवाब दूं कि उस का पिता कौन है? संकर्षण मेरा बेटा है, पर उस के जीवन की भी अजब कहानी रही. वह मेरी एक गलती का परिणाम है जो प्रकृति ने कराई थी. मेरे पति आशीष के लंदन प्रवास के दौरान उन के बपचन के मित्र गगन के साथ प्रकृति ने कुछ ऐसा चक्र चलाया कि संकर्षण का जन्म हो गया. कोई सोच भी नहीं सकता था कि गगन या मैं आशीष के साथ ऐसी बेवफाई करेंगे. हम ने बेवफाई की भी नहीं थी बस सब कुछ आवेग के हाथों घटित हो गया था.

मुझे आज भी अच्छा तरह याद है जब गगन की पत्नी को हर तरफ से निराश होने के बाद डाक्टर के इलाज से गर्भ ठहरा था. पर पूर्ण समय बाद एक विकृत शिशु का जन्म हुआ, जो अधिक देर तक जिंदा न रहा. होटल के कमरे में थके, अवसादग्रस्त और निराश गगन को संभालतेसंभालते हम लोगों को झपकी आई और कब हम लोग प्रकृति के कू्रर हाथों के मजाक बन बैठे समझ ही नहीं पाए. फिर संकर्षण का जन्म हो गया. मैं ने उसे जन्म देते ही गगन और उन की पत्नी को उसे सौंप दिया ताकि यह राज आशीष और गगन की पत्नी को पता न चले. गगन की पत्नी अपनी सूनी गोद भरने के कारण मेरी महानता के गुण गाती और आशीष मेरे इस त्याग को कृतज्ञता की दृष्टि से देखते.

हां, मेरे मन में जरूर कभीकभी अपराधबोध होता. एक तो संकर्षण से अपने को दूर करने का और दूसरा आशीष से सब छिपाने का. पर इसी में सब की भलाई थी और सबकुछ ठीकठाक चल भी रहा था. गगन और उन की पत्नी संकर्षण को पा कर खुश थे. वह उन के जीवन की आशा था. मेरे 2 बच्चे और थे कि तभी वह घटना घटी.

संकर्षण तब 10 वर्ष का रहा होगा. वह, गगन और उन की पत्नी कार से कहीं से लौट रहे थे कि उन की कार का ऐक्सिडैंट हो गया. गगन की पत्नी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई. गगन को भी काफी चोटें आईं. हां, संकर्षण को 1 खरोंच तक नहीं आई.

काफी दिन हौस्पिटल में रहने के बाद गगन स्वस्थ हो गए पर दुनिया से विरक्त. एक दिन उन्होंने मुझे और आशीष को बुला कर कहा, ‘‘मैं ने अपनी सारी संपत्ति संकर्षण के नाम कर दी है. अब मैं संन्यास लेने जा रहा हूं. मेरी खोजखबर लेने की कोशिश मत करना.’’

हम लोगों ने बहुत समझाने की कोशिश की पर संकर्षण को हमारे हवाले कर के एक दिन वे घर छोड़ कर न जाने कहां चले गए. आशीष को गगन के जाने का गम जरूर था, पर संकर्षण अब हमारे साथ रहेगा, यह जान कर वे बहुत खुश थे. उन के अनुसार हम दोनों ने इतने दिन पुत्रवियोग सहा. तब से आज तक 10 साल बीत गए थे, लेकिन संकर्षण हम लोगों के साथ था.

हालांकि जब से उसे पता चला था कि गगन और उन की पत्नी, जिन के साथ वह इतने वर्ष रहा, उस के मातापिता नहीं हैं, मातापिता हम लोग हैं, तो वह हम से नाराज रहता. कहता, ‘‘आप लोग कैसे मातापिता हैं, जो अपने बच्चे को इतनी आसानी से किसी दूसरे को दे दिया? अगर मैं इतना अवांछनीय था, तो मुझे जन्म क्यों दिया था?’’

अपने बड़े भाईबहन से भी संकर्षण का तालमेल न बैठ पाता. उस की रुचि, सोच सब कुछ उन से अलग थी. उस की शक्ल भी गगन से बहुत मिलती थी. कई बार अपने दोनों बच्चों से इतनी भिन्नता और गगन से इतनी समरूपता आशीष को आश्चर्य में डाल देती. वे कहते, ‘‘हैरत है, इस का सब कुछ गगन जैसा कैसे है?’’

मैं कहती, ‘‘बचपन से वहीं पला है… व्यक्ति अपने परिवेश से बहुत कुछ सीखता है.’’

आशीष को आश्चर्य ही होता, संदेह नहीं. मैं और गगन दोनों ही उन के संदेह की परिधि के बाहर थे. यह सब देख कर मुझे खुद पर और क्षोभ होता था और मन करता था आशीष को सबकुछ सचसच बता दूं. लेकिन आशीष क्या सच सुन पाएंगे? इस पर मुझे संदेह था. वैसे संकर्षण आशीष की ही भांति बुद्धिमान था. केवल उस के एक इसी गुण से जो आशीष से मिलता था, आशीष का पितृत्व संतुष्ट हो जाता, पर संकर्षण उस ने तो अपने चारों तरफ हम लोगों से नाराजगी का जाल बुन लिया और अपने को एकाकी करता चला गया. पता नहीं यह कारण था अथवा कोई और संकर्षण अब बीमार रहने लगा. अस्थमा जैसे लक्षण थे. मर्ज धीरेधीरे बढ़ता गया.

हम लोग अब तक कोचीन में सैटल हो गए थे, पर कोचीन में ही नहीं बाहर भी अच्छे डाक्टर फेल हो गए. हालत यह हो गई कि संकर्षण कईकई घंटे औक्सीजन पर रखा जाता. मैं और आशीष दोनों ही बड़े परेशान थे.

अंत में ऐक्सपर्ट डाक्टरों की टीम की एक मीटिंग हुई और तय किया गया कि यह अल्फा-1 ऐंटीट्राइप्सिन डिजीज नामक बीमारी से पीडि़त है, जोकि जेनेटिक होती है और इस के  लक्षण अस्थमा से मिलतेजुलते हैं. हालांकि यह बीमारी 30 साल की उम्र के बाद होती है पर शायद संकर्षण को समय से पहले हो गई हो और इस के लिए पिता का डीएनए टैस्ट होना है ताकि यह तय हो सके कि वह उसी बीमारी से पीडि़त है और उस का सही इलाज हो सके. आशीष का डीएनए टैस्ट संकर्षण से मेल नहीं खाया. मेल खाता भी कैसे? आशीष अगर उस के पिता होते तब न.

आशीष तो डीएनए रिपोर्ट आते ही बिना मेरी ओर देखे और बिना संकर्षण की बीमारी की परवाह किए कार स्टार्ट कर घर चले गए. संकर्षण की आंखों में उठते मेरे लिए नफरत के भाव और उस का यह प्रश्न करना कि आखिर मेरे पिता कौन हैं, मुझे अंदर तक झकझोर गया. मैं तो अपराधी की तरह कटघरे में खड़ी ही थी, गगन को संकर्षण की नजरों से गिराने की इच्छा न हुई अत: मैं चुप रही.

संकर्षण बोला, ‘‘आज तक मैं अपने को अवांछनीय समझता रहा जिस के मातापिता उसे बड़ी आसानी से किसी और की गोद में ऐसे डाल देते हैं, जैसे वह कोई निर्जीव वस्तु हो. पर आज पता चला कि मैं अवांछनीय होने के साथसाथ नाजायज औलाद भी हूं, अपनी चरित्रहीन मां और पिता की ऐयाशी की निशानी. आप ने आशीष अंकल को भी इतने दिन तक अंधेरे में रखा, जबकि मैं ने देखा है कि वे आप पर कितना विश्वास करते हैं, आप को कितना चाहते हैं.’’ मैं ने विरोध करना चाहा, ‘‘बेटा ऐसा नहीं है.’’

‘‘मत कहिए मुझे बेटा. इस से अच्छा था मैं बिना यह सत्य जाने मर जाता. कम से कम कुछ भ्रम तो बना रहता. अब हो सके तो कृपा कर के मेरे पिता का नाम बता दीजिए ताकि मैं उन से पूछ सकूं कि अपने क्षणिक सुख के लिए मुझे इतनी बड़ी यातना क्यों दे डाली, जिस से निकलने का भी मुझे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है,’’ संकर्षण बोला.

फिर उस ने अपनी सारी दवाएं उठा कर फेंक दीं और जो कुछ उस के खाने के लिए आया था उसे भी हाथ नहीं लगाया. मैं उसे असहाय सी खड़ी देख रही थी. मैं ने डरतेडरते आशीष को फोन मिलाया.

आशीष बोले, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘संकर्षण ने दवाएं फेंक दी हैं और खाना भी नहीं खा रहा है,’’ मैं ने कहा.

आशीष झल्ला कर बोले, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’ और फोन काट दिया.

मैं ने संकर्षण को समझाने की कोशिश की ‘‘प्लीज, ऐसा मत करो. ऐसे तो तुम्हारी तबीयत और खराब हो जाएगी. तुम ठीक हो जाओ. मैं तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर दूंगी, अभी तुम मेरी बात समझ नहीं पाओगे.’’

‘‘क्या नहीं समझ पाऊंगा? इतना बच्चा नहीं हूं मैं. आप क्या बताएंगी? यही न कि मेरी कोई गलती नहीं थी. मैं  रेप का शिकार हुई थी. कम से कम यही बता दीजिए ताकि आप के प्रति मेरी नफरत कुछ कम हो सके, वरना इस नफरत से मेरे अंदर ज्वालीमुखी धधक रहा है.’’

मैं कैसे कह दूं यह, जबकि मुझे पता है कि मेरे साथ कोई रेप नहीं हुआ था और न ही हम दोनों अपने पार्टनर के प्रति बेवफा थे. यह बिलकुल सत्य है कि उस एक घटना के अलावा हम लोगों के मन में कभी एकदूसरे के प्रति और भाव नहीं आए. हम एकदूसरे का उतना ही आदर करते रहे जितना इस घटना के पहले करते थे, पर इस बात को संकर्षण समझ पाएगा भला? संकर्षण ही क्या आशीष भी इस बात को समझ पाएंगे क्या?

मेरा ऐसा सोचना गलत भी न था. तभी तो 2 दिन बाद आशीष ने मुझ से पूछा, ‘‘संकर्षण के पिता गगन ही हैं न?’’

मैं ने कहा, ‘‘पहले मेरी बात तो सुनिए.’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं सुनना है, तुम मुझे केवल यह बताओ के संकर्षण के पिता गगन ही है न?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

यह सुनते ही आशीष जैसे पागल हो गए. मुझ पर चिल्लाए, ‘‘नीच हो तुम लोग. जिन पर मैं ने जिंदगी भर विश्वास किया, उन्हीं लोगों ने मुझे धोखा दिया. मुझे इस की आदतें, शक्ल गगन से मिलती लगती थी, पर फिर भी मैं कभी संदेह न कर सका तुम दोनों पर…मेरे इस विश्वास का यह सिला दिया… तुम ने क्यों किया ऐसा?’’ और फिर गुस्से से आशीष ने मेरी गरदन पकड़ते हुए आगे कहा, ‘‘जी तो कर रहा है, तुम्हें मार का जेल चला जाऊं ताकि फिर कोई पत्नी पति को धोखा देने से पहले 10 बार सोचे, पर तुम इतनी नीच हो कि तुम्हें मारने का भी मन नहीं कर रहा है. उस से तुम्हारी तुरंत मुक्ति हो जाएगी जबकि मैं यह नहीं चाहता. मेरी इच्छा है तुम तिलतिल कर मरो,’’ और फिर आशीष ने मेरी गरदन छोड़ दी.

उधर संकर्षण अपने पिता का नाम जानने की जिद लगाए बैठा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे गगन का नाम कैसे बता दूं…मुझे पता था कि वह उन की बहुत इज्जत करता है. उन के साथ बिताए सारे सुखद क्षणों की स्मृतियां संजोए हुए है. अगर वे भी उस से छिन गईं तो कैसे जीएगा, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. इधर कुआं तो उधर खाई. न बताने पर तो वह केवल अवसादग्रस्त है, बताने पर कहीं अपनी जान ही न दे दे. दवा न खाने और अवसादग्रस्त होने से संकर्षण की हालत 2 दिनों में और ज्यादा बिगड़ गई. उसे मानोवैज्ञानिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ गई. इधर गगन का कुछ भी पता न था. वे क्या कर रहे हैं, कहां हैं, किसी को कोई जानकारी न थी.

एक दिन मैं ने डरतेडरते आशीष से कहा, ‘‘गगन का पता लगाइए वरना संकर्षण का इलाज नहीं हो पाएगा.’’

‘‘मैं कैसे पता लगाऊं? तुम अनपढ़ हो क्या?’’ और फिर पैर पटकते हुए चले गए.

कुछ समझ में नहीं आ रहा था. पलपल अपनी आंखों के सामने अपने बच्चे को मरता देख रही थी. जिंदगी में अनजाने में हुई एक गलती का इतना बड़ा दुष्परिणाम होगा, सोचा न था. फिर मैं ने सारे संबंधियों, दोस्तों को ई-मेल किया, ‘‘संकर्षण बहुत बीमार है. उस की बीमारी डीएनए टैस्ट से पता चलेगी. अत: गगन जहां कहीं भी हों तुरंत संपर्क करें.’’ अंजन और अमिता भी संकर्षण को देखने आ गए थे. वीकैंड था वरना रोज फोन से ही हालचाल पूछ लेते थे. आज की जिंदगी में इनसान इतना व्यस्त रहता है कि अपनों के लिए ही समय नहीं निकाल पाता है. आते ही थोड़ा फ्रैश होने के बाद अमिता और अंजन दोनों ने एकाएक पूछा, ‘‘क्या बात है मम्मीपापा, आप दोनों बहुत परेशान नजर आ रहे हैं?’’

आशीष यह प्रश्न सुन कर वहां से उठ कर चले गए.

‘‘मम्मी इन्हें क्या हुआ?’’ अंजन ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, संकर्षण की ही बीमारी को ले कर हम परेशान हैं.’’

‘‘यह बीमारी का तनाव आप लोगों के चेहरे पर नहीं है. कुछ और बात है…हम लोग इतने बच्चे भी नहीं हैं कि कुछ समझ न सकें. सच बात बताइए शायद हम लोग कोई हल निकाल सकें.’’

मुझे बच्चों की बातों से कुछ आशा की किरण नजर आई, लेकिन फिर मन में संदेह हो गया कि जब आशीष कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं, तो बच्चे क्या खाक मेरी बात समझेंगे? फिर बताना तो पड़ेगा ही, सोच मैं ने बच्चों को सारी बात बता दी. आज की पीढ़ी शायद हम लोगों से ज्यादा समझदार है. सारी स्थिति का विश्लेषण करती है और फिर कोई निर्णय लेती है.

वे दोनों कुछ देर के लिए एकदम गंभीर हो गए, फिर अमिता बोली, ‘‘तभी हम लोग समझ नहीं पाते थे कि संकर्षण हम लोगों से इतना भिन्न क्यों है? हम लोग इस का कारण उस की परवरिश मानते थे पर सच तो कुछ और ही था.’’ फिर अंजन बोला, ‘‘पर कोई बात नहीं. सारी परिस्थितियों को देखते हुए अंकल और आप को इतना दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता है. हां, गलती आप की सिर्फ इतनी है कि आप ने यह बात इतने दिनों तक पापा से छिपा कर उन का विश्वास तोड़ा है, जो वे आप और अंकल पर करते थे. आप को यह बात उसी समय पापा को बता देनी चाहिए थी.’’

अमिता बोली, ‘‘भैया, तुम भी कैसी बात करते हो. क्या पापा आज जिस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं उसे उस समय सहजता से सुन लेते?’’

अंजन बोला, ‘‘सुन लेते, इस समय उन्हें ज्यादा धक्का इस बात का लगा है कि मम्मी ने यह सच उन से इतने दिनों तक छिपाया.’’

‘‘तुम गलत कह रहे हो. अगर मम्मी न छिपातीं तो यकीनन दोनों परिवारों का विघटन हो जाता. पापा और आंटी दोनों ही इस बात को सहजता से न ले पाते.’’

अंजन बोला, ‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो, मम्मी ने ठीक ही किया. चलो, हम लोग पापा को समझाते हैं और संकर्षण को भी.’’

‘‘मम्मी, आप संकर्षण के पास हौस्पिटल जाओ हम लोग थोड़ी देर में आते हैं.’’ मेरे हौस्पिटल जाने के बाद अंजन आशीष के पास जा कर बोला, ‘‘मम्मी ने हम लोगों को सारी बात बता दी है. अब आप यह बताइए कि आप को मम्मी की किस बात पर अधिक गुस्सा है, मम्मी और अंकल के बीच जो कुछ हुआ उस पर अथवा उन्होंने यह बात आप से छिपाई उस पर?’’

‘‘दोनों पर.’’

‘‘अधिक किस बात पर गुस्सा है?’’

‘‘बात छिपाने पर.’’

‘‘अगर वे उस समय सच बता देतीं तो क्या आप मम्मी और अंकल को माफ कर देते?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो कितनी जिंदगियां बरबाद हो जातीं, यह आप ने कभी सोचा है? यह सत्य आज पता चला है. तब भी संकर्षण, आप और मम्मी मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं जबकि आप को मम्मी और अंकल पर कभी शक तक नहीं हुआ. इतना तो तय है कि वह क्षणिक गलती मात्र थी. उस गलती की आप मम्मी को और स्वयं को इतनी बड़ी सजा कैसे दे सकते हैं?’’

आशीष बोले, ‘‘पता नहीं. दिमाग तो तुम्हारी बात मान रहा है, पर दिल नहीं.’’

‘‘दिल को समझाएं. पापा, देखिए मम्मी कितनी परेशान हैं.’’

मैं हौस्पिटल में अमिता और अंजन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. ऐसा लग रहा था मेरी परीक्षा का परिणाम निकलने वाला है. तभी अमिता और अंजन मुझे आते दिखाई दिए. पास आए तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘धैर्य रखें समय लगेगा,’’ अंजन ने कहा और फिर संकर्षण से बोला, ‘‘क्या हालचाल है?’’

संकर्षण ने बिना उन लोगों की ओर देखे कहा, ‘‘ठीक हूं.’’

अमिता और अंजन ने मुझे घर जाने को कहा. बोले, ‘‘आप घर जा कर आराम करिए हम लोग संकर्षण के पास हैं.’’अमिता और अंजन के समझाने और मनोचिकित्सक के इलाज से संकर्षण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और वह दवा लेने लगा. साथ ही यह भी पता चला कि उस की बीमारी जेनेटिक न हो कर उस दवा की ऐलर्जी है, जो दवा वह खा रहा था. हालांकि उस द वा से ऐलर्जी के चांसेज .001% होते हैं, पर संकर्षण को थी. कारण पता चल जाने पर उस का इलाज सही होने लगा और वह स्वस्थ होने लगा. आशीष भी ऊपर से सामान्य दिखने लगे.

संकर्षण को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. उसे घर ले जाने का समय आ गया. हम सभी बहुत बड़े चक्रवात से निकल आए थे. घर जाने से पूर्व आशीष हौस्पिटल का बिल भरने गए थे और मैं मैडिकल स्टोर से संकर्षण की दवा खरीदने. तभी गेट पर मुझे संन्यासी की वेशभूषा में एक आदमी मिला जो मुझे देख कर बोला, ‘‘संकर्षण कैसा है?’’ मैं ने चौंक कर उस की ओर देखा तो पता चला कि वह संन्यासी कोई और नहीं गगन ही हैं.

‘‘ठीक है, आप इतने दिनों तक कहां थे?’’

वे बोले, ‘‘यह सब न पूछिए. आप का ई-मेल पूरे ग्रुप में घूम रहा है. पता चला तो चला आया. आशीष सब कुछ जान गए होंगे? क्या प्रतिक्रिया रही उन की? मैं तो उन से नजरें मिलाने के काबिल भी न रहा. संकर्षण की जिंदगी का सवाल नहीं होता तो मैं यहां कभी न आता. चलिए डाक्टर से कह कर डीएनए टैस्ट करवा लूं.’’

‘‘नहीं, अब उस की कोई जरूरत नहीं है. उस की बीमारी जेनेटिक नहीं थी.’’

‘‘क्या संकर्षण भी जान गया है कि मैं उस का पिता हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘संकर्षण को कब तक हौस्पिटल से छुट्टी मिलेगी? कितना समय लगेगा उस के ठीक होने में?’’

‘‘अब संकर्षण बिलकुल ठीक है. बस थोड़ी कमजोरी है. आज हम लोग उसे घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘ठीक है फिर मैं चलता हूं,’’ कह कर गगन जाने को तैयार हो गए.

मैं ने कहा, ‘‘संकर्षण से मिलेंगे नहीं?’’

‘‘नहीं, जो उथलपुथल इस सत्य को जान कर आप सभी की जिंदगी में मची होगी और किसी प्रकार सब कुछ शांत हुआ होगा, वह सब मुझे देख कर पुन: होने की संभावना है. वैसे भी मैं मोहमाया का परित्याग कर चुका हूं और एक एनजीओ में गांव के बच्चों के लिए काम कर रहा हूं. संकर्षण को मेरा प्यार कहिएगा और आशीष से कहिएगा कि हो सके तो मुझे क्षमा कर दें,’’ इतना कह कर वे वहां से चले गए. मैं उन्हें जाते हुए तब तक देखती रही जब तक नजरों से ओझल नहीं हो गए.

Mother’s Day Special: मां और मोबाइल- वैदेही जी ने मोबाइल से क्या किया?

‘‘मेरा मोबाइल कहां है? कितनी बार कहा है कि मेरी चीजें इधरउधर मत किया करो पर तुम सुनती कहां हो,’’ आफिस जाने की हड़बड़ी में मानस अपनी पत्नी रोमा पर बरस पड़े थे.

‘‘आप की और आप के बेटे राहुल के कार्यालय और स्कूल जाने की तैयारी में सुबह से मैं चकरघिन्नी की तरह नाच रही हूं, मेरे पास कहां समय है किसी को फोन करने का जो मैं आप का मोबाइल लूंगी,’’ रोमा खीझपूर्ण स्वर में बोली थी.

‘‘तो कहां गया मोबाइल? पता नहीं यह घर है या भूलभुलैया. कभी कोई सामान यथास्थान नहीं मिलता.’’

‘‘क्यों शोर मचा रहे हो, पापा? मोबाइल तो दादी मां के पास है. मैं ने उन्हें मोबाइल के साथ छत पर जाते देखा था,’’ राहुल ने मानो बड़े राज की बात बताई थी.

‘‘तो जा, ले कर आ…नहीं तो हम दोनों को दफ्तर व स्कूल पहुंचने में देर हो जाएगी…’’

पर मानस का वाक्य पूरा हो पाता उस से पहले ही राहुल की दादी यानी वैदेहीजी सीढि़यों से नीचे आती हुई नजर आई थीं.

‘‘अरे, तनु, मेरे ऐसे भाग्य कहां. हर घर में तो श्रवण कुमार जन्म लेता नहीं,’’ वे अपने ही वार्त्तालाप में डूबी हुई थीं.

‘‘मां, मुझे देर हो रही है,’’ मानस अधीर स्वर में बोले थे.

‘‘पता है, इसीलिए नीचे आ रही हूं. तान्या से बात करनी है तो कर ले.’’

‘‘मैं बाद में बात कर लूंगा. अभी तो मुझे मेरा मोबाइल दे दो.’’

‘‘मुझे तो जब भी किसी को फोन करना होता है तो तुम जल्दी में रहते हो. कितनी बार कहा है कि मुझे भी एक मोबाइल ला दो, पर मेरी सुनता ही कौन है. एक वह श्रवण कुमार था जिस ने मातापिता को कंधे पर बिठा कर सारे तीर्थों की सैर कराई थी और एक मेरा बेटा है,’’ वैदेहीजी देर तक रोंआसे स्वर में प्रलाप करती रही थीं पर मानस मोबाइल ले कर कब का जा चुका था.

‘‘मोबाइल को ले कर क्यों दुखी होती हैं मांजी. लैंडलाइन फोन तो घर में है न. मेरा मोबाइल भी है घर में. मैं भी तो उसी पर बातें करती हूं,’’ रोमा ने मांजी को समझाना चाहा था.

‘‘तुम कुछ भी करो बहू, पर मैं इस तरह मन मार कर नहीं रह सकती. मैं किसी पर आश्रित नहीं हूं. पैंशन मिलती है मुझे,’’ वैदेही ने अपना क्रोध रोमा पर उतारा था पर कुछ ही देर में सब भूल कर घर को सजासंवार कर रोमा को स्नानगृह में गया देख कर उन्होंने पुन: अपनी बेटी तान्या का नंबर मिलाया था.

‘‘हैलो…तान्या, मैं ने तुम से जैसा करने को कहा था तुम ने किया या नहीं?’’ वे छूटते ही बोली थीं.

‘‘वैदेही बहन, मैं आप की बेटी तान्या नहीं उस की सास अलका बोल रही हूं.’’

‘‘ओह, अच्छा,’’ वे एकाएक हड़बड़ा गई थीं.

‘‘तान्या कहां है?’’ किसी प्रकार उन के मुख से निकला था.

‘‘नहा रही है. कोई संदेश हो तो दे दीजिए. मैं उसे बता दूंगी.’’

‘‘कोई खास बात नहीं है, मैं कुछ देर बाद दोबारा फोन कर लूंगी,’’ वैदेही ने हड़बड़ा कर फोन रख दिया था. पर दूसरी ओर से आती खनकदार हंसी ने उन्हें सहमा दिया था.

‘कहीं छोकरी ने बता तो नहीं दिया सबकुछ? तान्या दुनियादारी में बिलकुल कच्ची है. ऊपर से यह फोन. स्थिर फोन में यही तो बुराई है. घरपरिवार को तो क्या सारे महल्ले को पता चल जाता है कि कहां कैसी खिचड़ी पक रही है. मोबाइल फोन की बात ही कुछ और है…किसी भी कोने में बैठ कर बातें कर लो.’ उन की विचारधारा अविरल जलधारा की भांति बह रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी थी.

‘‘हैलो मां, मैं तान्या. मां ने बताया कि जब मैं स्नानघर में थी तो आप का फोन आया था. कोई खास बात थी क्या?’’

‘‘खास बात तो कितने दिनों से कर रही हूं पर तुम्हें समझ में आए तब न. अरे, जरा अक्ल से काम लो और निकाल बाहर करो बुढि़या को. जब देखो तब तुम्हारे यहां पड़ी रहती है. कब तक उस की गुलामी करती रहोगी?’’

‘‘धीरे बोलो मां, कहीं मांजी ने सुन लिया तो बुरा मानेंगी.’’

‘‘फोन पर हम दोनों के बीच हुई बात को कैसे सुनेगी वह?’’

‘‘छोड़ो यह सब, शनिवाररविवार को आप से मिलने आऊंगी तब विस्तार से बात करेंगे. जो जैसा चल रहा है चलने दो. क्यों अपना खून जलाती हो.’’

‘‘मैं तो तेरे भले के लिए ही कहती हूं पर तुम लोगों को बुरा लगता है तो आगे से नहीं कहूंगी,’’ वैदेही रोंआसे स्वर में बोली थीं.

‘‘मां, क्यों मन छोटा करती हो. हम सब आप का बड़ा सम्मान करते हैं. यथाशक्ति आप की सलाह मानने का प्रयत्न करते हैं पर यदि आप की सलाह हमारा अहित करे तो परेशानी हो जाती है.’’

‘‘लो और सुनो, अब तुम्हें मेरी बातों से परेशानी भी होने लगी. ठीक है, आज से कुछ नहीं कहूंगी,’’ वैदेही ने क्रोध में फोन पटक दिया था और मुंह फुला कर बैठ गई थीं.

‘‘क्या हुआ, मांजी, सब ठीक तो है?’’ उन्हें दुखी देख कर रोमा ने प्रश्न किया.

‘‘क्यों? तुम्हें कैसे लगा कि सब ठीक नहीं है?’’ वैदेही ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही पूछ लिया.

‘‘आप का मूड देख कर.’’

‘‘मैं सब समझती हूं. छिप कर मेरी बातें सुनते हो तुम लोग. इसीलिए तो मोबाइल लेना चाहती हूं मैं.’’

‘‘मैं ने आज तक कभी किसी का फोन वार्त्तालाप नहीं सुना. आप को दुखी देख कर पूछ लिया था. आगे से ध्यान रखूंगी,’’ रोमा तीखे स्वर में बोली और अपने काम में व्यस्त हो गई.

वैदेही बेचैनी से तान्या के आने की प्रतीक्षा करती रही कि कब तान्या आए और कब वे उस से बात कर के अपना मन हलका करें पर जब सांझ ढलने लगी और तान्या नहीं आई तो उन का धीरज जवाब देने लगा. मानस सुबह से अपने मोबाइल से इस तरह चिपका था कि उन्हें तान्या से बात करने का अवसर ही नहीं मिल रहा था.

‘‘मुझे अपनी सहेली नीता के यहां जाना है, मांजी. मैं सुबह से तान्या दीदी की प्रतीक्षा में बैठी हूं पर लगता है कि आज वे नहीं आएंगी. आप कहें तो मैं थोड़ी देर के लिए नीता के घर हो आऊं. उस का बेटा बीमार है,’’ रोमा ने आ कर वैदेही से अनुनय की तो वे मना न कर सकीं.

रोमा को घर से निकले 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि तान्या ने कौलबेल बजाई.

‘‘लो, अब समय मिला है तुम्हें मां से मिलने आने का? सुबह से दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठी हूं. आंखें भी पथरा गईं.’’

‘‘इस में टकटकी लगा कर बैठने की क्या बात थी, मां?’’ मानस बोल पड़ा, ‘‘आप मुझ से कहतीं मैं तान्या दीदी से फोन कर के पूछ लेता कि वे कब तक आएंगी.’’

‘‘लो और सुनो, सुबह से पता नहीं किसकिस से बात कर रहा है तेरा भाई. सारे काम फोन कान से चिपकाए हुए कर रहा है. बस, सामने बैठी मां से बात करने का समय नहीं है इस के पास.’’

‘‘क्या कह रही हो मां. मैं तो सदासर्वदा आप की सेवा में मौजूद रहता हूं. फिर राहुल है, रोमा है जितनी इच्छा हो उतनी बात करो,’’ मानस हंसा.

‘‘2 बेटों, 2 बेटियों का भरापूरा परिवार है मेरा पर मेरी सुध लेने वाला कोई नहीं है. यहां आए 2 सप्ताह हो गए मुझे, तान्या को आज आने का समय मिला है.’’

‘‘मेरा बस चले तो दिनरात आप के पास बैठी रहूं. पर आजकल बैंक में काम बहुत बढ़ गया है. मार्च का महीना है न. ऊपर से घर मेहमानों से भरा पड़ा है. 3-4 नौकरों के होने पर भी अपने किए बिना कुछ नहीं होता,’’ तान्या ने सफाई दी थी.

‘‘इसीलिए कहती हूं अपने सासससुर से पीछा छुड़ाओ. सारे संबंधी उन से ही मिलने तो आते हैं.’’

‘‘क्या कह रही हो मां, कहीं मांजी ने सुन लिया तो गजब हो जाएगा. बहुत बुरा मानेंगी.’’

‘‘पता नहीं तुम्हें कैसे शीशे में उतार लिया है उन्होंने. और 2 बेटे भी तो हैं, वहां क्यों नहीं जा कर रहतीं?’’

‘‘जौय और जोषिता को मांजी ने बचपन से पाल कर बड़ा किया है. अब तो स्थिति यह है कि बच्चे उन के बिना रह ही नहीं पाते. दोचार दिन के लिए भी कहीं जाती हैं तो बच्चे बीमार पड़ जाते हैं.’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को कठपुतली बना कर रखा है उन्होंने. जैसा चाहते हैं वैसा नचाते हैं दोनों. सारा वेतन रखवा लेते हैं. दुनिया भर का काम करवाते हैं. यह दिन देखने के लिए ही इतना पढ़ायालिखाया था तुम्हें?’’

‘‘किसी ने जबरदस्ती मेरा वेतन कभी नहीं छीना है मां. उन के हाथ में वेतन रखने से वे लोग भी प्रसन्न हो जाते हैं और मेरे सासससुर भी वह पैसा अपनी जेब में नहीं रख लेते बल्कि उन्हें हमारे पर ही खर्च कर देते हैं. जो बचता है उसे निवेश कर देते हैं. ’’

‘‘पर अपना पैसा उन के हाथ में दे कर उन की दया पर जीवित रहना कहां की समझदारी है?’’

‘‘मां, आप क्यों तान्या दीदी के घर के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करती हैं,’’ इतनी देर से चुप बैठा मानस बोला था.

‘‘अरे, वाह, अपनी बेटी के हितों की रक्षा मैं नहीं करूंगी तो कौन करेगा. पर मेरी बेटी तो समझ कर भी अनजान बनी हुई है.’’

‘‘मां, मैं आप के सुझावों का बहुत आदर करती हूं पर साथ ही घर की सुखशांति का विचार भी करना पड़ता है.’’

‘‘वही तो मैं कह रहा हूं. अपनी समस्याएं क्या कम हैं, जो आप तान्या दीदी की समस्याएं सुलझाने लगीं? और मां, आप ने तो दीदी के आते ही अपने सुझावों की बमबारी शुरू कर दी. न चाय, न पानी…कुछ तो सोचा होता,’’ मानस ने मां को याद दिलाया.

‘‘रोमा अभी तक लौटी नहीं जबकि उसे पता था कि तान्या आने वाली है. फोन करो कि जल्दी से घर आ जाए.’’

‘‘फोन करने की जरूरत नहीं है. वह स्वयं ही आ जाएगी. उस की मां आई हुई हैं, उन से मिलने गई है.’’

‘‘मां आई हुई हैं? मुझ से तो कह कर गई है कि नीता का बेटा बीमार है. उसे देखने जा रही है.’’

‘‘उसे भी देखने गई है. कई दिनों से सोच रही थी पर जा नहीं पा रही थी. नीता के घर के पास रोमा के दूर के रिश्ते के मामाजी रहते हैं. वे बीमार हैं और रोमा की मम्मी उन्हें देखने आई हुई हैं.’’

‘‘ठीक है, सब समझ में आ गया. मां से मिलने जा रही हूं यह भी तो कह कर जा सकती थी, झूठ बोल कर जाने की क्या आवश्यकता थी. रोमा अपना फोन तो ले कर गई है?’’

‘‘हां, ले गई है.’’

‘‘ला, अपना फोन दे तो मैं उस से बात करूंगी.’’

‘‘क्या बात करेंगी आप? वह अपनेआप आ जाएगी,’’ मानस ने तर्क दिया.

‘‘फोन कर दूंगी तो जल्दी आ जाएगी. तान्या आई है तो खाना खा कर ही जाएगी न…’’

‘‘आप चिंता न करें मां, मैं खाना नहीं खाऊंगी. आप को जो खाना है मैं बना देती हूं,’’ तान्या ने उन्हें बीच में ही टोक दिया.

‘‘फोन तो दे मानस, रोमा से बात करनी है,’’ वैदेही जिद पर अड़ी थीं.

‘‘एक शर्त पर मोबाइल दूंगा कि आप रोमा से कुछ नहीं कहेंगी. बेचारी कभीकभार घर से बाहर निकलती है. दिनभर घर के काम में जुटी रहती है.’’

‘‘ठीक है, रोमा को कुछ नहीं कहूंगी, उस की मां से बात करूंगी. कहूंगी आ कर मिल जाएं. बहुत लंबे समय से मिले नहीं हम दोनों.’’

मां को फोन थमा कर मानस और तान्या रसोईघर में जा घुसे थे.

‘‘हैलो रोमा, तुम नीता के बीमार बेटे से मिलने की बात कह कर गई थीं. सौदामिनी बहन के आने की बात तो साफ गोल कर गईं तुम,’’ वैदेही बोलीं.

‘‘नहीं मांजी, ऐसा कुछ नहीं था. मुझे लगा, आप नाराज होंगी,’’ रोमा सकपका गई.

‘‘लो भला, मांबेटी के मिलने से भला मैं क्यों नाराज होने लगी? सौदामिनी बहन को फोन दो जरा. उन से बात किए हुए तो महीनों बीत गए,’’ वैदेहीजी का अप्रत्याशित रूप से मीठा स्वर सुन कर रोमा का धैर्य जवाब देने लगा था. उस ने तुरंत फोन अपनी मां सौदामिनी को थमा दिया था.

‘‘नमस्ते, सौदामिनी बहन. आप तो हमें भूल ही गईं,’’ उन्होंने उलाहना दिया.

‘‘आप को भला कैसे भूल सकती हूं दीदी, पर दुनिया भर के पचड़ों से समय ही नहीं मिलता.’’

‘‘तो यहां तक आ कर क्या हम से मिले बिना चली जाओगी? मेरा तो सब से मिलने को मन तरसता रहता है. इसीलिए बच्चों से कहती हूं एक मोबाइल ला दो, कम से कम सब से बात कर के मन हलका कर लूंगी.’’

रसोईघर में भोजन का प्रबंध करते मानस और तान्या हंस पड़े थे, ‘‘मां फिर मोबाइल पुराण ले कर बैठ गईं, लगता है उन्हें मोबाइल ला कर देना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं ने भी कई बार सोचा पर डरती हूं अपना मोबाइल मिलते ही वे हम भाईबहनों का तो क्या, अपने खानेपीने का होश भी खो बैठेंगी.’’

‘‘मुझे दूसरा ही डर है. फोन पर ऊलजलूल बात कर के कहीं कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दें.’’

‘‘जो भी करें, उन की मर्जी है. पर लगता है कि अपने अकेलेपन से जूझने का इन्होंने नया ढंग ढूंढ़ निकाला है.’’

‘‘चलो, तान्या दीदी, आज ही मां के लिए मोबाइल खरीद लाते हैं. इन का इस तरह फोन के लिए बारबार आग्रह करना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘चाय तैयार है. चाय पी कर चलते हैं, भोजन लौट कर करेंगे,’’ तान्या ने स्वीकृति दी थी.

‘‘मैं रोमा और जीजाजी दोनों को फोन कर के सूचित कर देता हूं कि हम कुछ समय के लिए बाहर जा रहे हैं.’’

‘‘कहां जा रहे हो तुम दोनों?’’ वैदेही ने अपना दूरभाष वार्त्तालाप समाप्त करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों नहीं, हम तीनों. चाय पियो और तैयार हो जाओ, आवश्यक कार्य है,’’ मानस ने उन का कौतूहल शांत करने का प्रयत्न किया.

वे उन्हें मोबाइल की दुकान पर ले गए तो उन की प्रसन्नता की सीमा न रही. मानो कोई मुंह में लड्डू ठूंस दे और उस का स्वाद पूछे.

वैदेहीजी के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे लंबे समय से अपने मनपसंद खिलौने के लिए मचलते बच्चे को उस का मनपसंद खिलौना मिल गया हो.

उन्होंने अपनी पसंद का अच्छा सा मोबाइल खरीदा जिस से अच्छे छायाचित्र खींचे जा सकते थे. घर के पते आदि का सुबूत देने के बाद उन के फोन का नंबर मिला तो उन का चेहरा खिल उठा.

‘‘आप को अपना फोन प्रयोग में लाने के लिए 24 घंटे तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी,’’ सेल्समैन ने बताया तो वे बिफर उठीं.

‘‘यह कौन सी दुकान पर ले आए हो तुम लोग मुझे? इन्हें तो फोन चालू करने में ही 24 घंटे लगते हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मां जहां आप ने इतने दिनों तक प्रतीक्षा की है एक दिन और सही,’’ तान्या ने समझाना चाहा.

‘‘तुम नहीं समझोगी. मेरे लिए तो एक क्षण भी एक युग की भांति हो गया है,’’ उन्होंने उत्तर दिया.

घर पहुंचते ही फोन को डब्बे से निकाल कर उस के ऊपर मोमबत्ती जलाई गई. फिर बुला कर सब में मिठाई बांटी, मानो मोबाइल का जन्म उन्हीं के हाथों हुआ था और उस के चालू होने की प्रतीक्षा की जाने लगी.

यह कार्यक्रम चल ही रहा था कि रोमा, सौदामिनी और अपने मामा आलोक बाबू के साथ आ पहुंची.

वैदेही का नया फोन आना ही सब से बड़ा समाचार था. उन्होंने डब्बे से निकाल कर सब को अपना नया मोबाइल फोन दिखाया.

‘‘कितना सुंदर फोन है,’’ राहुल तो देखते ही पुलक उठा.

‘‘दादी मां, मुझे भी दिया करोगी न अपना मोबाइल?’’

‘‘कभीकभी, वह भी मेरी अनुमति ले कर. छोटे बच्चों पर नजर रखनी पड़ती है न सौदामिनी बहन.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ सौदामिनी ने सिर हिला दिया था.

‘‘सच कहूं, तो आज कलेजा ठंडा हो गया. यों तो राहुल को छोड़ कर सब के पास अपनेअपने मोबाइल हैं. पर अपनी चीज अपनी ही होती है. आयु हो गई है तो क्या हुआ, मैं ने तो साफ कह दिया कि मुझे तो अपना मोबाइल फोन चाहिए ही. मैं क्या किसी पर आश्रित हूं? मुझे पैंशन मिलती है,’’ वे देर तक सौदामिनी से फोन के बारे में बातें करती रही थीं.

कुछ देर बाद सौदामिनी और आलोक बाबू ने जाने की अनुमति मांगी थी.

‘‘आप ने फोन किया तो लगा कि यहां तक आ कर आप से मिले बिना जाना ठीक नहीं होगा,’’ सौदामिनी बोलीं.

‘‘यही तो लाभ है मोबाइल फोन का. अपनों को अपनों से जोड़े रखता है,’’ वैदेही ने उत्तर दिया.

‘‘चिंता मत करना. अब मेरे पास अपना फोन है. मैं हालचाल लेती रहूंगी.’’

‘‘मैं भी आप को फोन करती रहूंगी. आप का नंबर ले लिया है मैं ने,’’ सौदामिनी ने आश्वासन दिया था.

हाथ में अपना मोबाइल फोन आते ही वैदेही का तो मानो कायाकल्प ही हो गया. उन का मोबाइल अब केवल वार्त्तालाप का साधन नहीं है. उन के परिचितों, संबंधियों और दोस्तों के जवान बेटेबेटियों का सारा विवरण उन के मोबाइल में कैद है. वे चलताफिरता मैरिज ब्यूरो बन गई हैं. पहचान का दायरा इतना विस्तृत हो गया है कि किसी का भी कच्चा चिट्ठा निकलवाना हो तो लोग उन की ही शरण में आते हैं.

‘‘इस बुढ़ापे में भी अपने पांवों पर खड़ी हूं मैं. साथ में पैंशन भी मिलती है,’’ वे शान से कहती हैं. और एक राज की बात. उन के पास अब एक नहीं 5 मोबाइल फोन हैं जो पहले दूरभाष पर उन के लंबे वार्त्तालाप का उपहास करते थे अब उसी गुण के कारण उन का सम्मान करने लगे हैं.

Mother’s Day Special: आधुनिक मांएं- चुनौतियों से डरना क्यों

हमारे देश में 50 फीसदी कामकाजी मांओं को महज 30 साल की उम्र में अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ती है. अशोका यूनिवर्सिटी के ‘जैनपैक्ट सैंटर फौर वूमंस लीडरशिप’ ने ‘प्रिडिकेमैंट औफ रिटर्निंग मदर्स’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की जो कामकाजी मांओं की चुनौतियों पर कराई गई एक स्टडी के आधार पर तैयार की गई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मां बनने के बाद महज 27 फीसदी महिलाएं ही अपने कैरियर को आगे बढ़ा पाती हैं और वर्कफोर्स का हिस्सा बनी रहती हैं. यानी मां बनते ही 73 फीसदी महिलाएं जौब करना छोड़ देती हैं.

प्रोफैशनल सोशल साइट लिंक्डइन ने हाल ही में एक रिपोर्ट पब्लिश की है जिस के अनुसार भारत में 10 से 7 महिलाएं नौकरी छोड़ने पर विचार कर रही हैं. लिंक्डइन द्वारा सा?ा की गई रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के नौकरी छोड़ने की सब से बड़ी वजह वर्कप्लेस पर पक्षपात, तनख्वाह में कटौती और काम में फ्लैक्सिबिलिटी की कमी है.

इस रिपोर्ट के लिए करीब 2,266 महिलाओं से बातचीत की गई. इस में महिलाओं के कामकाज और उन से जुड़ी चुनौतियों पर फोकस किया गया. इस रिसर्च से पता चला है कि कोरोना महामारी ने महिलाओं के काम पर बहुत बुरा असर डाला है. इस महामारी के बाद अब देश में करीब 10 से 7 महिलाएं यानी करीब 83त्न महिलाएं औफिस में ज्यादा फ्लैक्सिबल तरीके से काम करना पसंद करने लगी हैं.

क्यों नहीं कर पाती महिलाएं नौकरी

फ्लैक्सिबिलिटी की कमी के कारण महिलाएं नौकरी छोड़ रही हैं. सर्वे के अनुसार करीब 70त्न महिलाएं पहले ही नौकरी छोड़ चुकी हैं या छोड़ने पर विचार कर रही हैं. इस के साथ ही वे उस तरह की नौकरी के औफर्स भी रिजैक्ट कर रही हैं जहां उन्हें काम करने के फ्लैक्सिबल आवर्स नहीं मिलते.

सर्वे में 5 में से 3 महिलाओं ने यह माना है कि वर्कप्लेस पर फ्लैक्सिबिलिटी से पर्सनल लाइफ और काम के बीच बैलेंस बनाने में आसानी होती है. इस से महिलाओं को कैरियर में आगे बढ़ने में मदद मिलती है. इस के साथ ही यह उन की अच्छी मैंटल हैल्थ के लिए भी जरूरी है. इन सभी चीजों से वे आगे भी नौकरी आसानी से कर पाती हैं. अगर यह सुविधा नहीं मिलती है तो परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से उन के लिए जौब कंटिन्यू कर पाना कठिन हो जाता है.

चुनौतियों से भरी होती है जिंदगी

एक स्त्री को अपने जीवन में जन्म से ले कर बुढ़ापे तक कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है खासकर कामकाजी मांओं के लिए ये चुनौतियां ज्यादा ही कठिन होती हैं. उन्हें घर में बच्चों और बड़ेबुजुर्गों की देखभाल के साथ पति और घर के दूसरे लोगों से भी रिश्तों में तालमेल बैठाना होता है और फिर बाहर जा कर औफिस भी संभालना होता है.

वर्कप्लेस पर चुनौतियां

21वीं सदी में महिलाएं हर कार्यक्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी हैं. फिर चाहे वह फाइनैंस सेक्टर हो, एअरफोर्स हो या कोई अन्य क्षेत्र पुरुषों के साथ वे कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं और सफलताएं भी हासिल कर रही हैं. लेकिन इस का मतलब यह कतई नहीं है कि महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में पूरी तरह से बाधाओं से परे हैं और उन्हें पुरुषों के समान ही बराबर का अवसर भी हासिल हो रहा है.

कामों के बीच तालमेल बैठाना

एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि महिला चाहे तो घर बसा भी दे और चाहे तो घर उजाड़ भी दे. इस कहावत से भले ही फौरी तौर पर महिलाओं की ताकत का बखान नजर आता है पर हकीकत में यह महिलाओं की काबिलीयत और अहमियत को सिर्फ परिवार बसाने तक में सीमित करती है. यानी यहां भी हमें यही सम?ाया जा रहा है कि किसी भी महिला की सफलता तब सिद्ध होगी जब वह अपने परिवार को अच्छी तरह संभाले.

परवरिश पर सवाल:

एक महिला सब से पहले एक मां होती है और अपने बच्चों को वह हमेशा खुद से आगे रखती है. इस के लिए वह हर तरह की चुनौतियों का सामना भी करती है. मगर इस के बावजूद उस की परवरिश पर सवाल उठाए जाते हैं. अगर वह कहीं चूक जाए तो उसे हर तरह से गलत साबित कर दिया जाता है. हमेशा से परवरिश से जुड़े सारे सवाल महिलाओं से ही पूछे जाते हैं. समय भले ही बदला हो लेकिन अभी भी हम पितृसत्ता वाले समाज में रहते हैं जहां हमेशा महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंका जाता है और उन के ऊपर दोहरी जिम्मेदारी लादी जाती है.

मगर सवाल यह है कि क्या परिवार सिर्फ महिला से ही बनता है? क्या बच्चे सिर्फ महिला की ही जिम्मेदारी होते हैं? क्या घर के कामों में पुरुषों की कोई भागीदारी नहीं होनी चाहिए?

इन सवालों पर हमारा समाज कहता है कि बच्चे ज्यादा वक्त मां के साथ गुजारते हैं. मां ही उन्हें अच्छाबुरा सिखाती है. मगर आज के समय में यह सिचुएशन भी बदल चुकी है. बच्चों का आधे से ज्यादा वक्त स्कूल और ट्यूशन में चला जाता है तो वहीं मांएं भी आजकल नौकरीशुदा हैं. ऐसे में उन का पूरा दिन वैसे ही औफिस में गुजर जाता है. ऐसे में यह कहना सही नहीं है कि बच्चे सब से ज्यादा वक्त मां के साथ गुजारते हैं.

हमें सम?ाना होगा कि घर बसाने और बच्चे पैदा करने में महिला और पुरुष दोनों की समान भागीदारी है. बच्चों की परवरिश का जिम्मा भी दोनों का होना चाहिए न कि केवल मां का. इसलिए अब से जब भी बात परवरिश की आए तो सिर्फ महिलाओं से नहीं बल्कि पुरुषों से भी सवाल होने चाहिए. समानता के लिए पुरुषों की भूमिकाओं को तय करना भी बेहद जरूरी है तभी महिलाओं के जीवन की चुनौतियों में कमी आएगी.

महिलाओं के साथ हिंसा

आज महिलाएं एक तरफ सफलता के नएनए आयाम गढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएं जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार भी हो रही हैं. उन को पीटा जाता है, उन का अपहरण किया जाता है, उन के साथ बलात्कार किया जाता है, उन्हें जला दिया जाता है या फिर उन की हत्या कर दी जाती है.

भारत आज भी महिलाओं के लिए दुनिया में सब से असुरक्षित स्थानों में से एक है. रोज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के समाचार आते हैं. अकसर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा भी होती है जिसे कई बार वे अपनी नियति मान लेती हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कानून खासकर घरेलू हिंसा कानून 2005 होने के बावजूद देश में हर 3 महिलाओं में से 1 महिला घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है. 2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा के 6,900 मामले दर्ज किए. अपने बड़ेबुजुर्गों को देख कर परिवार का लड़का अपनी बहन या पत्नी पर हाथ उठाना अपना अधिकार मान लेता है और उस के दिमाग में यह विचार मजबूत होता है कि महिलाएं उस से कमतर हैं.

हम कभी यह नहीं सोचते हैं कि आखिर वे कौन सी महिलाएं हैं जिन के साथ हिंसा होती है या उन के साथ हिंसा करने वाले लोग कौन हैं? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए? हम में से अधिकांश लोग कभी भी इन प्रश्नों पर विचार नहीं करते हैं. इस के विपरीत हम जब भी किसी महिला के साथ हिंसा की खबर देखते या सुनते हैं तो उस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने के बजाय अपने घर की महिलाओं, बहनों और बेटियों पर तरहतरह के प्रतिबंध लगा देते हैं.

नौकरी से जुड़ी चुनौतियां

योग्यता के बावजूद नौकरी से दूरी:  भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन देश के कार्यबल में महिलाओं की संख्या उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए. महिलाएं काम तो करना चाहती हैं लेकिन उन के सामने एक नहीं कई चुनौतियां हैं. इस वजह से कई दफा उन की योग्यता का उपयोग नहीं हो पाता.

‘सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकौनौमी’ के नए आंकड़ों के अनुसार कई प्रोफैशन ऐसे हैं जिन में महिलाओं की हिस्सेदारी नाममात्र की है. यही कारण है कि योग्यता के बावजूद सिर्फ 9त्न महिलाओं के पास काम है या वे काम की तलाश जारी रखे हुए हैं.

प्रैगनैंसी, बच्चों का जन्म, बच्चों की देखभाल, वृद्धों की देखभाल, पारिवारिक समर्थन की कमी और औफिस का माहौल जैसी कई बातें हैं जो महिलाओं को बाहर का रास्ता दिखाती हैं और बड़े रोल निभाने से रोकती हैं.

प्रैगनैंसी:

प्रैगनैंसी एक महिला के जीवन का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है. इस दौरान न चाहते हुए भी उस के कैरियर को धक्का पहुंचता है. वह इस समय हर तरह के काम नहीं कर सकती. उसे कई तरह की सावधानियां रखनी होती हैं और बहुत सी शारीरिक परेशानियां भी ?ोलती हैं. जब वह डिलिवरी लीव पर जाती है तो उस दौरान उस के पीछे औफिस में कई बार बहुत कुछ बदल चुका होता है.

उस की तरक्की का अवसर सिमट सकता है और हो सकता है कि उस के जूनियर को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया हो. बच्चा जब कुछ महीनों का होता है उस समय बच्चे को संभालने के साथ औफिस संभालना एक टफ जौब होता है. बच्चे की चिंता उसे काम में मन लगने नहीं देती.

प्रैगनैंसी के बाद शारीरिक परेशानियां

एक स्टडी के अनुसार 2त्न महिलाएं बच्चे के जन्म के 2 साल बाद तक भी गंभीर पीठ दर्द से गुजरती हैं. वहीं 38त्न महिलाएं प्रैगनैंसी के 10 से 12 साल बाद भी यूरिन लीकेज ?ोलती हैं. यही नहीं मां बनने के बाद अकसर महिलाएं बौडी शेमिंग भी ?ोलती हैं. बच्चा होने के बाद वजन कंट्रोल करना आसान नहीं होता. इस वजह से वे मोटी हो जाती हैं. ऐसे में उन महिलाओं को ज्यादा प्रौब्लम आती है जिन्हें औफिस में प्रेजैंटेबल दिखना जरूरी है या फिर मौडलिंग, ऐक्टिंग जैसे काम जहां खूबसूरती और फिगर बनाए रखना उन की पहली चुनौती होती है.

समान वेतन

अकसर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम सैलरी दी जाती है. एक महिला को काम की प्रकृति पर भी ध्यान देना होता है. अगर बच्चे छोटे हैं तो उसे वैसा काम ही ढूंढ़ना होता है जिसे वह आसानी से निभा सके और शाम होने के बाद घर पहुंच सके. इस वजह से भी कई दफा उसे वेतन से सम?ाता करना होता है.

यौन उत्पीड़न

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अभी भी एक समस्या है. अगर किसी महिला के साथ कुछ ऐसा होता है तो वह इस की जानकारी मैनेजमैंट को देती है. मैनेजमैंट इस की जांच भी करता है. लेकिन कई जगहों पर मैनेजमैंट या ऊंचे पोजिशन के लोग इन बातों को दबा देते हैं और महिला को नौकरी तक से हाथ धोना पड़ जाता है.

श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी कम

विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं ने 2021 में भारत के कार्यबल का 23 फीसदी से कम प्रतिनिधित्व किया जो 2005 में लगभग 27 फीसदी थी. वहीं इस की तुलना में बंगलादेश में 32 फीसदी और श्रीलंका में 34.5 फीसदी है.

बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और महिलाओं के हित में बने कानूनों के बावजूद एकतिहाई से भी कम भारतीय महिलाएं काम कर रही हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रही हैं. इस कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे शादी, बच्चे की देखभाल और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं व आनेजाने की दिक्कत आदि.

उदाहरण के लिए 32 साल की दीपा साहनी के पास 2 मास्टर डिगरियां हैं. वह प्राइवेट जौब करती थीं. बाद में उन्होंने वही किया जो लाखों भारतीय महिलाएं हर साल करती हैं. उन की शादी हुई और बच्चे हुए तो उन्होंने अपना कैरियर छोड़ दिया. सब से बड़ा कारण औफिस की संस्कृति थी जहां दूसरे कर्मचारी 8 बजे तक और उस से भी ज्यादा देर तक औफिस में खुशी से रहने के लिए तैयार थे जबकि वह ऐसा नहीं कर सकती थीं.

वे कहती हैं, ‘‘मेरे लिए 6 से 8 बजे तक का समय बेहद कीमती है. यही वह समय होता है जब मैं अपने परिवार के साथ बैठ कर कुछ बात करती हूं. इस वजह से मैं समय पर घर आ जाती थी और कभी मैनेजमैंट की फैवरिट नहीं बन सकी.’’

मैकिंजी कंसल्टिंग फर्म की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक मैनेजमैंट स्तर पर ऐसे कई परिवर्तन किए जा सकते हैं जो इन समस्याओं को सुधार सकते हैं जैसे लैंगिक आधार पर प्रशिक्षण, सामाजिक सुरक्षा, बच्चे की देखभाल के लिए लचीले काम के घंटे और कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए सुरक्षित और सुलभ परिवहन की सुविधा जरूरी है. ये सुविधाएं कामकाजी महिलाओं की संख्या को बढ़ा सकती हैं और देश की जीडीपी में 2025 तक अरबों डालर जोड़ सकती हैं.

कामकाजी महिलाओं पर कोविड का असर

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘सैंटर फौर सस्टेनेबल ऐंप्लौयमैंट’ की एक रिपोर्ट में पाया गया कि कोविड-19 के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी खोने की संभावना अधिक थी और कार्यबल में लौटने की संभावना कम थी.

बच्चे को समय न दे पाने की गिल्ट

आजकल की महंगाई वाली जिंदगी में रोज एक नई चुनौती का सामना करने के लिए पुरुष के साथ स्त्री को भी घरगृहस्थी चलाने के लिए काम करना पड़ता है. मगर कामकाज के चक्कर में महिला अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाती, जिस के कारण बच्चे अकेलापन और खालीपन सा महसूस करते हैं.

एक बच्चे को बस अपने मातापिता के साथ समय बिताना और उन का प्यार पाना होता है. जरूरत के समय मातापिता का साथ न पाने के कारण बच्चों में कई प्रकार की कुंठा पनपने लगती है. वे चिड़चिड़े, गुसैल और उदंड भी होने लगते हैं. इस बात को ले कर मां के दिल में गिल्ट की भावना रहती है. वह न पूरे मन से औफिस का काम कर पाती है और न ही घर में सारा समय दे पाती है.

न्यू मदर्स की चुनौतियां

मां बनना किसी भी महिला के लिए जिंदगी की सब से बड़ी सौगात हो सकती है. साथ ही मां बनते ही हर महिला के ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी आ जाती है. न्यू मदर्स के सामने कई चुनौतियां भी आती हैं. अनुभव की कमी और मन में अनजाना डर, उल?ान और सही सपोर्ट न मिलने के कारण ये चुनौतियां और भी गंभीर महसूस हो सकती हैं.

थकान और नींद की कमी

मां को नींद की कुरबानी देनी पड़ सकती है. बच्चे के सोनेजागने के रूटीन के अनुसार मांओं को भी जागना और सोना पड़ता है. इस से उन की नींद पूरी नहीं हो पाती. वहीं कई महिलाएं जिन्हें दिन में सोने की आदत नहीं होती या घर के कामों में हाथ बंटाना होता है फिर औफिस जाना होता है उन के लिए नींद की कमी एक बड़ी समस्या बन कर उभरती है.

अच्छी मां न बन पाने का पश्चात्ताप

नई मांओं को लगातार अपने आसपास के लोगों से सलाह, टिप्स और शिकायतें सुनने को मिलती रहती हैं जिस से उन पर लगातार खुद को अच्छी मां साबित करने का दबाव बढ़ता ही जाता है. इस से उन के मन में गिल्ट और जिंदगी में तनाव बढ़ता जाता है जो मां और बच्ची दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता.

मां बनना आसान नहीं होता. एक मां को अपनी खूबसूरत फिगर, आकर्षण और सेहत को दांव पर लगा कर बच्चे को जन्म देना होता है. अपने बढ़ते वजन, त्वचा पर दिखने वाले स्ट्रैच मार्क्स और हेयर फौल जैसी समस्याओं से न्यू मदर्स को अकसर तनाव, दुख, उदासी और निराशा महसूस हो सकती है. उन्हें अपने शरीर को देख कर दुख हो सकता है और कई बार महिलाएं अपने शरीर से भी नफरत करने लगती हैं.

कैरियर और सोशल लाइफ

बच्चे की देखभाल और अस्तव्यस्त दिनचर्या के बीच महिलाएं ज्यादातर समय घर में ही बिताती हैं और अपने दोस्तों, परिवार वालों या कलिग्स के साथ उन का मेलजोल या बातचीत भी बंद हो जाती है. इस से उन की सोशल लाइफ पूरी तरह खत्म होने का डर भी उन के अंदर पनप सकता है और उन्हें धीरेधीरे अकेले रह जाने का डर सताता है.

मानसिक समस्याएं

पोस्टपार्टम डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है जिस का सामना बहुत सी महिलाओं को चाइल्डबर्थ के बाद करना पड़ सकता है. बौलीवुड अभिनेत्री समीरा रेड्डी पोस्टपार्टम डिप्रैशन से गुजरने की बात स्वीकार कर चुकी हैं. वहीं अन्य कई मशहूर सेलेब्स ने भी इस बारे में कई बार खुल कर बात की है.

बच्चा होने के बाद अकसर पति पत्नी में दूरियां बढ़ जाती हैं. किसी भी कपल के लिए मांबाप बनना किसी सपने के सच होने जैसा होता है. नन्हे के आने के बाद कपल्स की दुनिया बदल जाती है और साथ ही बदल जाता है हस्बैंड और वाइफ के बीच का रिश्ता भी. महिला का सारा ध्यान और समय नन्हे को संभालने में चला जाता है. थकान या पोस्ट प्रैगनैंसी हैल्थ प्रौब्लम्स भी रहती हैं. इस वजह से वह पति के साथ वक्त बिताने के बारे में सोच ही नहीं पाती. इस से पतिपत्नी के बीच रोमांस कम हो जाता है. ऐसे में पति के साथ दूरियां बढ़ने से रोकना और बच्चे को अकेले संभालना बहुत बड़ी चुनौती होती है.

मगर पुरुष चाहे तो महिला को अपना सहयोग दे कर अटैचमैंट बढ़ा सकता सकता है.

करीना कपूर खान ने अपनी दूसरी प्रैगनैंसी के बाद एक किताब लौंच की जिस में उन्होंने प्रैगनैंसी और मदरहुड से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण बातें लिखीं. ‘करीना कपूर खान की प्रैगनैंसी बाइबल’ नाम की इस बुक में सैफ ने कहा कि करीना और उन के बड़े बेटे तैमूर अली खान के जन्म के बाद करीना और उन का रिश्ता भी अचानक से पूरी तरह बदल गया. अब वे पहले से ज्यादा अटैच्ड महसूस करते हैं.

बच्चे की देखभाल जैसे महत्त्वपूर्ण काम में अगर पति अपनी पत्नी को सपोर्ट करे तो महिला अपने लिए और पति के लिए समय निकाल सकती है. यही नहीं इस तरीके से दोनों एकसाथ अधिक समय बिताएंगे और बौंडिंग भी स्ट्रौंग बनेगी.

महिलाएं कैसे करें चुनौतियों का सामना

महिलाएं टैक सेवी बनें:

कल की दबीसहमी सी हाउसवाइफ आज की कौन्फिडैंट होममेकर या औफिस की बौस बन चुकी है. आधुनिक भारतीय स्त्री के इस बदलाव की एक वजह यह है कि अपनी चुनौतियों के लिए उस ने खुद को बहुत अच्छी तरह तैयार किया है. घरेलू उपकरणों की सुविधाओं ने स्त्रियों के कामकाज के तरीके को व्यवस्थित और आसान बना दिया है. पहले घर की सफाई और कुकिंग के लिए उन्हें बहुत ज्यादा वक्त देना पड़ता था, लेकिन अब उन का यह काम कुछ ही घंटों में निबट जाता है.

कंप्यूटर और इंटरनैट ने जीवन को और भी आसान बना दिया है. चाहे बिजली का बिल चुकाना हो या ट्रेन का टिकट बुक कराना हो ये सारे काम घर बैठे मिनटों में कर सकती हैं. जरूरी है कि महिलाएं टैक सेवी बनें और अपनी जिम्मेदारियां कुशलता से और कम समय में निभाना सीखें. इस से उन की सफलता के रास्ते खुलेंगे.

चुनौतियों से घबराएं नहीं

इस दुनिया में सफल होने के लिए अकसर इंसान को एक कठिन रास्ते से गुजरना होता है भले ही वह स्त्री हो या पुरुष. यह बात अलग है कि स्त्रियों के जीवन में चुनौतियां अधिक मिलती हैं. किसी भी महिला को चाहिए कि वह अपनी रुचि को सम?ो और फिर तय करे कि वह आगे क्या करना चाहती है. अपने परिवार को सम?ाए कि आप क्या और क्यों करना चाहती हैं और फिर उस के अनुसार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करे.

एक बार जब स्त्री अपनी सफलता की यात्रा शुरू कर देती है तो पीछे मुड़ कर नहीं देखती भले ही रास्ते में कितनी भी चुनौतियां क्यों न आएं. ये चुनौतियां कहीं न कहीं आप के जीवन को बेहतर बनाती हैं. आप चुनौतियां पार कैसे करती हैं यह आप पर डिपैंड करता है. यह आप का नजरिया है कि आप उन्हें मुसीबत मान लें या मजेदार ढंग से उन्हें पार कर आगे बढ़ जाएं.

स्त्री आपस में सहयोगी बनें

सैलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट और रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट आश्मीन मुंजाल कहती हैं कि महिलाएं शक्ति हैं और जिस के पास शक्ति है उस के पास चुनौतियां भी ज्यादा आएंगी, जबकि महिलाओं को यही नहीं पता होता कि वे शक्ति हैं. इस वजह से वे पिट जाती हैं. मगर जब वे अपनी शक्ति पहचान लेंगी तब उन चुनौतियों से बहुत आसानी से निबट सकती हैं. यही नहीं बल्कि जिस दिन औरतें एक हो जाएंगी और एकदूसरे को सपोर्ट करेंगी उस दिन उन्हें चुनौतियों का सामना करने और आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

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