Mother’s Day Special: आधुनिक मांएं- चुनौतियों से डरना क्यों

हमारे देश में 50 फीसदी कामकाजी मांओं को महज 30 साल की उम्र में अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ती है. अशोका यूनिवर्सिटी के ‘जैनपैक्ट सैंटर फौर वूमंस लीडरशिप’ ने ‘प्रिडिकेमैंट औफ रिटर्निंग मदर्स’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की जो कामकाजी मांओं की चुनौतियों पर कराई गई एक स्टडी के आधार पर तैयार की गई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मां बनने के बाद महज 27 फीसदी महिलाएं ही अपने कैरियर को आगे बढ़ा पाती हैं और वर्कफोर्स का हिस्सा बनी रहती हैं. यानी मां बनते ही 73 फीसदी महिलाएं जौब करना छोड़ देती हैं.

प्रोफैशनल सोशल साइट लिंक्डइन ने हाल ही में एक रिपोर्ट पब्लिश की है जिस के अनुसार भारत में 10 से 7 महिलाएं नौकरी छोड़ने पर विचार कर रही हैं. लिंक्डइन द्वारा सा?ा की गई रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के नौकरी छोड़ने की सब से बड़ी वजह वर्कप्लेस पर पक्षपात, तनख्वाह में कटौती और काम में फ्लैक्सिबिलिटी की कमी है.

इस रिपोर्ट के लिए करीब 2,266 महिलाओं से बातचीत की गई. इस में महिलाओं के कामकाज और उन से जुड़ी चुनौतियों पर फोकस किया गया. इस रिसर्च से पता चला है कि कोरोना महामारी ने महिलाओं के काम पर बहुत बुरा असर डाला है. इस महामारी के बाद अब देश में करीब 10 से 7 महिलाएं यानी करीब 83त्न महिलाएं औफिस में ज्यादा फ्लैक्सिबल तरीके से काम करना पसंद करने लगी हैं.

क्यों नहीं कर पाती महिलाएं नौकरी

फ्लैक्सिबिलिटी की कमी के कारण महिलाएं नौकरी छोड़ रही हैं. सर्वे के अनुसार करीब 70त्न महिलाएं पहले ही नौकरी छोड़ चुकी हैं या छोड़ने पर विचार कर रही हैं. इस के साथ ही वे उस तरह की नौकरी के औफर्स भी रिजैक्ट कर रही हैं जहां उन्हें काम करने के फ्लैक्सिबल आवर्स नहीं मिलते.

सर्वे में 5 में से 3 महिलाओं ने यह माना है कि वर्कप्लेस पर फ्लैक्सिबिलिटी से पर्सनल लाइफ और काम के बीच बैलेंस बनाने में आसानी होती है. इस से महिलाओं को कैरियर में आगे बढ़ने में मदद मिलती है. इस के साथ ही यह उन की अच्छी मैंटल हैल्थ के लिए भी जरूरी है. इन सभी चीजों से वे आगे भी नौकरी आसानी से कर पाती हैं. अगर यह सुविधा नहीं मिलती है तो परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से उन के लिए जौब कंटिन्यू कर पाना कठिन हो जाता है.

चुनौतियों से भरी होती है जिंदगी

एक स्त्री को अपने जीवन में जन्म से ले कर बुढ़ापे तक कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है खासकर कामकाजी मांओं के लिए ये चुनौतियां ज्यादा ही कठिन होती हैं. उन्हें घर में बच्चों और बड़ेबुजुर्गों की देखभाल के साथ पति और घर के दूसरे लोगों से भी रिश्तों में तालमेल बैठाना होता है और फिर बाहर जा कर औफिस भी संभालना होता है.

वर्कप्लेस पर चुनौतियां

21वीं सदी में महिलाएं हर कार्यक्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी हैं. फिर चाहे वह फाइनैंस सेक्टर हो, एअरफोर्स हो या कोई अन्य क्षेत्र पुरुषों के साथ वे कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं और सफलताएं भी हासिल कर रही हैं. लेकिन इस का मतलब यह कतई नहीं है कि महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में पूरी तरह से बाधाओं से परे हैं और उन्हें पुरुषों के समान ही बराबर का अवसर भी हासिल हो रहा है.

कामों के बीच तालमेल बैठाना

एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि महिला चाहे तो घर बसा भी दे और चाहे तो घर उजाड़ भी दे. इस कहावत से भले ही फौरी तौर पर महिलाओं की ताकत का बखान नजर आता है पर हकीकत में यह महिलाओं की काबिलीयत और अहमियत को सिर्फ परिवार बसाने तक में सीमित करती है. यानी यहां भी हमें यही सम?ाया जा रहा है कि किसी भी महिला की सफलता तब सिद्ध होगी जब वह अपने परिवार को अच्छी तरह संभाले.

परवरिश पर सवाल:

एक महिला सब से पहले एक मां होती है और अपने बच्चों को वह हमेशा खुद से आगे रखती है. इस के लिए वह हर तरह की चुनौतियों का सामना भी करती है. मगर इस के बावजूद उस की परवरिश पर सवाल उठाए जाते हैं. अगर वह कहीं चूक जाए तो उसे हर तरह से गलत साबित कर दिया जाता है. हमेशा से परवरिश से जुड़े सारे सवाल महिलाओं से ही पूछे जाते हैं. समय भले ही बदला हो लेकिन अभी भी हम पितृसत्ता वाले समाज में रहते हैं जहां हमेशा महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंका जाता है और उन के ऊपर दोहरी जिम्मेदारी लादी जाती है.

मगर सवाल यह है कि क्या परिवार सिर्फ महिला से ही बनता है? क्या बच्चे सिर्फ महिला की ही जिम्मेदारी होते हैं? क्या घर के कामों में पुरुषों की कोई भागीदारी नहीं होनी चाहिए?

इन सवालों पर हमारा समाज कहता है कि बच्चे ज्यादा वक्त मां के साथ गुजारते हैं. मां ही उन्हें अच्छाबुरा सिखाती है. मगर आज के समय में यह सिचुएशन भी बदल चुकी है. बच्चों का आधे से ज्यादा वक्त स्कूल और ट्यूशन में चला जाता है तो वहीं मांएं भी आजकल नौकरीशुदा हैं. ऐसे में उन का पूरा दिन वैसे ही औफिस में गुजर जाता है. ऐसे में यह कहना सही नहीं है कि बच्चे सब से ज्यादा वक्त मां के साथ गुजारते हैं.

हमें सम?ाना होगा कि घर बसाने और बच्चे पैदा करने में महिला और पुरुष दोनों की समान भागीदारी है. बच्चों की परवरिश का जिम्मा भी दोनों का होना चाहिए न कि केवल मां का. इसलिए अब से जब भी बात परवरिश की आए तो सिर्फ महिलाओं से नहीं बल्कि पुरुषों से भी सवाल होने चाहिए. समानता के लिए पुरुषों की भूमिकाओं को तय करना भी बेहद जरूरी है तभी महिलाओं के जीवन की चुनौतियों में कमी आएगी.

महिलाओं के साथ हिंसा

आज महिलाएं एक तरफ सफलता के नएनए आयाम गढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई महिलाएं जघन्य हिंसा और अपराध का शिकार भी हो रही हैं. उन को पीटा जाता है, उन का अपहरण किया जाता है, उन के साथ बलात्कार किया जाता है, उन्हें जला दिया जाता है या फिर उन की हत्या कर दी जाती है.

भारत आज भी महिलाओं के लिए दुनिया में सब से असुरक्षित स्थानों में से एक है. रोज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के समाचार आते हैं. अकसर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा भी होती है जिसे कई बार वे अपनी नियति मान लेती हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कानून खासकर घरेलू हिंसा कानून 2005 होने के बावजूद देश में हर 3 महिलाओं में से 1 महिला घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है. 2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा के 6,900 मामले दर्ज किए. अपने बड़ेबुजुर्गों को देख कर परिवार का लड़का अपनी बहन या पत्नी पर हाथ उठाना अपना अधिकार मान लेता है और उस के दिमाग में यह विचार मजबूत होता है कि महिलाएं उस से कमतर हैं.

हम कभी यह नहीं सोचते हैं कि आखिर वे कौन सी महिलाएं हैं जिन के साथ हिंसा होती है या उन के साथ हिंसा करने वाले लोग कौन हैं? हिंसा का मूल कारण क्या है और इसे खत्म कैसे किया जाए? हम में से अधिकांश लोग कभी भी इन प्रश्नों पर विचार नहीं करते हैं. इस के विपरीत हम जब भी किसी महिला के साथ हिंसा की खबर देखते या सुनते हैं तो उस हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने के बजाय अपने घर की महिलाओं, बहनों और बेटियों पर तरहतरह के प्रतिबंध लगा देते हैं.

नौकरी से जुड़ी चुनौतियां

योग्यता के बावजूद नौकरी से दूरी:  भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन देश के कार्यबल में महिलाओं की संख्या उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए. महिलाएं काम तो करना चाहती हैं लेकिन उन के सामने एक नहीं कई चुनौतियां हैं. इस वजह से कई दफा उन की योग्यता का उपयोग नहीं हो पाता.

‘सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकौनौमी’ के नए आंकड़ों के अनुसार कई प्रोफैशन ऐसे हैं जिन में महिलाओं की हिस्सेदारी नाममात्र की है. यही कारण है कि योग्यता के बावजूद सिर्फ 9त्न महिलाओं के पास काम है या वे काम की तलाश जारी रखे हुए हैं.

प्रैगनैंसी, बच्चों का जन्म, बच्चों की देखभाल, वृद्धों की देखभाल, पारिवारिक समर्थन की कमी और औफिस का माहौल जैसी कई बातें हैं जो महिलाओं को बाहर का रास्ता दिखाती हैं और बड़े रोल निभाने से रोकती हैं.

प्रैगनैंसी:

प्रैगनैंसी एक महिला के जीवन का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है. इस दौरान न चाहते हुए भी उस के कैरियर को धक्का पहुंचता है. वह इस समय हर तरह के काम नहीं कर सकती. उसे कई तरह की सावधानियां रखनी होती हैं और बहुत सी शारीरिक परेशानियां भी ?ोलती हैं. जब वह डिलिवरी लीव पर जाती है तो उस दौरान उस के पीछे औफिस में कई बार बहुत कुछ बदल चुका होता है.

उस की तरक्की का अवसर सिमट सकता है और हो सकता है कि उस के जूनियर को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया हो. बच्चा जब कुछ महीनों का होता है उस समय बच्चे को संभालने के साथ औफिस संभालना एक टफ जौब होता है. बच्चे की चिंता उसे काम में मन लगने नहीं देती.

प्रैगनैंसी के बाद शारीरिक परेशानियां

एक स्टडी के अनुसार 2त्न महिलाएं बच्चे के जन्म के 2 साल बाद तक भी गंभीर पीठ दर्द से गुजरती हैं. वहीं 38त्न महिलाएं प्रैगनैंसी के 10 से 12 साल बाद भी यूरिन लीकेज ?ोलती हैं. यही नहीं मां बनने के बाद अकसर महिलाएं बौडी शेमिंग भी ?ोलती हैं. बच्चा होने के बाद वजन कंट्रोल करना आसान नहीं होता. इस वजह से वे मोटी हो जाती हैं. ऐसे में उन महिलाओं को ज्यादा प्रौब्लम आती है जिन्हें औफिस में प्रेजैंटेबल दिखना जरूरी है या फिर मौडलिंग, ऐक्टिंग जैसे काम जहां खूबसूरती और फिगर बनाए रखना उन की पहली चुनौती होती है.

समान वेतन

अकसर महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम सैलरी दी जाती है. एक महिला को काम की प्रकृति पर भी ध्यान देना होता है. अगर बच्चे छोटे हैं तो उसे वैसा काम ही ढूंढ़ना होता है जिसे वह आसानी से निभा सके और शाम होने के बाद घर पहुंच सके. इस वजह से भी कई दफा उसे वेतन से सम?ाता करना होता है.

यौन उत्पीड़न

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अभी भी एक समस्या है. अगर किसी महिला के साथ कुछ ऐसा होता है तो वह इस की जानकारी मैनेजमैंट को देती है. मैनेजमैंट इस की जांच भी करता है. लेकिन कई जगहों पर मैनेजमैंट या ऊंचे पोजिशन के लोग इन बातों को दबा देते हैं और महिला को नौकरी तक से हाथ धोना पड़ जाता है.

श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी कम

विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं ने 2021 में भारत के कार्यबल का 23 फीसदी से कम प्रतिनिधित्व किया जो 2005 में लगभग 27 फीसदी थी. वहीं इस की तुलना में बंगलादेश में 32 फीसदी और श्रीलंका में 34.5 फीसदी है.

बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और महिलाओं के हित में बने कानूनों के बावजूद एकतिहाई से भी कम भारतीय महिलाएं काम कर रही हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रही हैं. इस कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे शादी, बच्चे की देखभाल और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं व आनेजाने की दिक्कत आदि.

उदाहरण के लिए 32 साल की दीपा साहनी के पास 2 मास्टर डिगरियां हैं. वह प्राइवेट जौब करती थीं. बाद में उन्होंने वही किया जो लाखों भारतीय महिलाएं हर साल करती हैं. उन की शादी हुई और बच्चे हुए तो उन्होंने अपना कैरियर छोड़ दिया. सब से बड़ा कारण औफिस की संस्कृति थी जहां दूसरे कर्मचारी 8 बजे तक और उस से भी ज्यादा देर तक औफिस में खुशी से रहने के लिए तैयार थे जबकि वह ऐसा नहीं कर सकती थीं.

वे कहती हैं, ‘‘मेरे लिए 6 से 8 बजे तक का समय बेहद कीमती है. यही वह समय होता है जब मैं अपने परिवार के साथ बैठ कर कुछ बात करती हूं. इस वजह से मैं समय पर घर आ जाती थी और कभी मैनेजमैंट की फैवरिट नहीं बन सकी.’’

मैकिंजी कंसल्टिंग फर्म की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक मैनेजमैंट स्तर पर ऐसे कई परिवर्तन किए जा सकते हैं जो इन समस्याओं को सुधार सकते हैं जैसे लैंगिक आधार पर प्रशिक्षण, सामाजिक सुरक्षा, बच्चे की देखभाल के लिए लचीले काम के घंटे और कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए सुरक्षित और सुलभ परिवहन की सुविधा जरूरी है. ये सुविधाएं कामकाजी महिलाओं की संख्या को बढ़ा सकती हैं और देश की जीडीपी में 2025 तक अरबों डालर जोड़ सकती हैं.

कामकाजी महिलाओं पर कोविड का असर

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘सैंटर फौर सस्टेनेबल ऐंप्लौयमैंट’ की एक रिपोर्ट में पाया गया कि कोविड-19 के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी खोने की संभावना अधिक थी और कार्यबल में लौटने की संभावना कम थी.

बच्चे को समय न दे पाने की गिल्ट

आजकल की महंगाई वाली जिंदगी में रोज एक नई चुनौती का सामना करने के लिए पुरुष के साथ स्त्री को भी घरगृहस्थी चलाने के लिए काम करना पड़ता है. मगर कामकाज के चक्कर में महिला अपने बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाती, जिस के कारण बच्चे अकेलापन और खालीपन सा महसूस करते हैं.

एक बच्चे को बस अपने मातापिता के साथ समय बिताना और उन का प्यार पाना होता है. जरूरत के समय मातापिता का साथ न पाने के कारण बच्चों में कई प्रकार की कुंठा पनपने लगती है. वे चिड़चिड़े, गुसैल और उदंड भी होने लगते हैं. इस बात को ले कर मां के दिल में गिल्ट की भावना रहती है. वह न पूरे मन से औफिस का काम कर पाती है और न ही घर में सारा समय दे पाती है.

न्यू मदर्स की चुनौतियां

मां बनना किसी भी महिला के लिए जिंदगी की सब से बड़ी सौगात हो सकती है. साथ ही मां बनते ही हर महिला के ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी आ जाती है. न्यू मदर्स के सामने कई चुनौतियां भी आती हैं. अनुभव की कमी और मन में अनजाना डर, उल?ान और सही सपोर्ट न मिलने के कारण ये चुनौतियां और भी गंभीर महसूस हो सकती हैं.

थकान और नींद की कमी

मां को नींद की कुरबानी देनी पड़ सकती है. बच्चे के सोनेजागने के रूटीन के अनुसार मांओं को भी जागना और सोना पड़ता है. इस से उन की नींद पूरी नहीं हो पाती. वहीं कई महिलाएं जिन्हें दिन में सोने की आदत नहीं होती या घर के कामों में हाथ बंटाना होता है फिर औफिस जाना होता है उन के लिए नींद की कमी एक बड़ी समस्या बन कर उभरती है.

अच्छी मां न बन पाने का पश्चात्ताप

नई मांओं को लगातार अपने आसपास के लोगों से सलाह, टिप्स और शिकायतें सुनने को मिलती रहती हैं जिस से उन पर लगातार खुद को अच्छी मां साबित करने का दबाव बढ़ता ही जाता है. इस से उन के मन में गिल्ट और जिंदगी में तनाव बढ़ता जाता है जो मां और बच्ची दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता.

मां बनना आसान नहीं होता. एक मां को अपनी खूबसूरत फिगर, आकर्षण और सेहत को दांव पर लगा कर बच्चे को जन्म देना होता है. अपने बढ़ते वजन, त्वचा पर दिखने वाले स्ट्रैच मार्क्स और हेयर फौल जैसी समस्याओं से न्यू मदर्स को अकसर तनाव, दुख, उदासी और निराशा महसूस हो सकती है. उन्हें अपने शरीर को देख कर दुख हो सकता है और कई बार महिलाएं अपने शरीर से भी नफरत करने लगती हैं.

कैरियर और सोशल लाइफ

बच्चे की देखभाल और अस्तव्यस्त दिनचर्या के बीच महिलाएं ज्यादातर समय घर में ही बिताती हैं और अपने दोस्तों, परिवार वालों या कलिग्स के साथ उन का मेलजोल या बातचीत भी बंद हो जाती है. इस से उन की सोशल लाइफ पूरी तरह खत्म होने का डर भी उन के अंदर पनप सकता है और उन्हें धीरेधीरे अकेले रह जाने का डर सताता है.

मानसिक समस्याएं

पोस्टपार्टम डिप्रैशन एक ऐसी स्थिति है जिस का सामना बहुत सी महिलाओं को चाइल्डबर्थ के बाद करना पड़ सकता है. बौलीवुड अभिनेत्री समीरा रेड्डी पोस्टपार्टम डिप्रैशन से गुजरने की बात स्वीकार कर चुकी हैं. वहीं अन्य कई मशहूर सेलेब्स ने भी इस बारे में कई बार खुल कर बात की है.

बच्चा होने के बाद अकसर पति पत्नी में दूरियां बढ़ जाती हैं. किसी भी कपल के लिए मांबाप बनना किसी सपने के सच होने जैसा होता है. नन्हे के आने के बाद कपल्स की दुनिया बदल जाती है और साथ ही बदल जाता है हस्बैंड और वाइफ के बीच का रिश्ता भी. महिला का सारा ध्यान और समय नन्हे को संभालने में चला जाता है. थकान या पोस्ट प्रैगनैंसी हैल्थ प्रौब्लम्स भी रहती हैं. इस वजह से वह पति के साथ वक्त बिताने के बारे में सोच ही नहीं पाती. इस से पतिपत्नी के बीच रोमांस कम हो जाता है. ऐसे में पति के साथ दूरियां बढ़ने से रोकना और बच्चे को अकेले संभालना बहुत बड़ी चुनौती होती है.

मगर पुरुष चाहे तो महिला को अपना सहयोग दे कर अटैचमैंट बढ़ा सकता सकता है.

करीना कपूर खान ने अपनी दूसरी प्रैगनैंसी के बाद एक किताब लौंच की जिस में उन्होंने प्रैगनैंसी और मदरहुड से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण बातें लिखीं. ‘करीना कपूर खान की प्रैगनैंसी बाइबल’ नाम की इस बुक में सैफ ने कहा कि करीना और उन के बड़े बेटे तैमूर अली खान के जन्म के बाद करीना और उन का रिश्ता भी अचानक से पूरी तरह बदल गया. अब वे पहले से ज्यादा अटैच्ड महसूस करते हैं.

बच्चे की देखभाल जैसे महत्त्वपूर्ण काम में अगर पति अपनी पत्नी को सपोर्ट करे तो महिला अपने लिए और पति के लिए समय निकाल सकती है. यही नहीं इस तरीके से दोनों एकसाथ अधिक समय बिताएंगे और बौंडिंग भी स्ट्रौंग बनेगी.

महिलाएं कैसे करें चुनौतियों का सामना

महिलाएं टैक सेवी बनें:

कल की दबीसहमी सी हाउसवाइफ आज की कौन्फिडैंट होममेकर या औफिस की बौस बन चुकी है. आधुनिक भारतीय स्त्री के इस बदलाव की एक वजह यह है कि अपनी चुनौतियों के लिए उस ने खुद को बहुत अच्छी तरह तैयार किया है. घरेलू उपकरणों की सुविधाओं ने स्त्रियों के कामकाज के तरीके को व्यवस्थित और आसान बना दिया है. पहले घर की सफाई और कुकिंग के लिए उन्हें बहुत ज्यादा वक्त देना पड़ता था, लेकिन अब उन का यह काम कुछ ही घंटों में निबट जाता है.

कंप्यूटर और इंटरनैट ने जीवन को और भी आसान बना दिया है. चाहे बिजली का बिल चुकाना हो या ट्रेन का टिकट बुक कराना हो ये सारे काम घर बैठे मिनटों में कर सकती हैं. जरूरी है कि महिलाएं टैक सेवी बनें और अपनी जिम्मेदारियां कुशलता से और कम समय में निभाना सीखें. इस से उन की सफलता के रास्ते खुलेंगे.

चुनौतियों से घबराएं नहीं

इस दुनिया में सफल होने के लिए अकसर इंसान को एक कठिन रास्ते से गुजरना होता है भले ही वह स्त्री हो या पुरुष. यह बात अलग है कि स्त्रियों के जीवन में चुनौतियां अधिक मिलती हैं. किसी भी महिला को चाहिए कि वह अपनी रुचि को सम?ो और फिर तय करे कि वह आगे क्या करना चाहती है. अपने परिवार को सम?ाए कि आप क्या और क्यों करना चाहती हैं और फिर उस के अनुसार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करे.

एक बार जब स्त्री अपनी सफलता की यात्रा शुरू कर देती है तो पीछे मुड़ कर नहीं देखती भले ही रास्ते में कितनी भी चुनौतियां क्यों न आएं. ये चुनौतियां कहीं न कहीं आप के जीवन को बेहतर बनाती हैं. आप चुनौतियां पार कैसे करती हैं यह आप पर डिपैंड करता है. यह आप का नजरिया है कि आप उन्हें मुसीबत मान लें या मजेदार ढंग से उन्हें पार कर आगे बढ़ जाएं.

स्त्री आपस में सहयोगी बनें

सैलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट और रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट आश्मीन मुंजाल कहती हैं कि महिलाएं शक्ति हैं और जिस के पास शक्ति है उस के पास चुनौतियां भी ज्यादा आएंगी, जबकि महिलाओं को यही नहीं पता होता कि वे शक्ति हैं. इस वजह से वे पिट जाती हैं. मगर जब वे अपनी शक्ति पहचान लेंगी तब उन चुनौतियों से बहुत आसानी से निबट सकती हैं. यही नहीं बल्कि जिस दिन औरतें एक हो जाएंगी और एकदूसरे को सपोर्ट करेंगी उस दिन उन्हें चुनौतियों का सामना करने और आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

Mother’s Day Special: देश की 70 % मांओं के लिए आज भी मुश्किल है ब्रेस्ट फीडिंग

क्या मांओं के लिए स्तनपान जितना स्वाभाविक काम लगता है उतना है? क्या उन्हें इस काम में मुश्किलें आती हैं? स्तनपान को लेकर उन्हें जरूरी सहयोग मिलता है? स्तनपान को लेकर उनकी एक्सपेक्टेशन क्या है? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब खोजने के लिए लेकर मौमस्प्रेसो ने मेडेला के साथ एक औनलाइन सर्वे किया है. इस सर्वे का विषय है ‘ स्तनपान को लेकर भारतीय माओं के सामने चुनौतियां’. यह सर्वे 25-45 साल की 510 शहरी और कस्बाई माओं पर किया गया.

सर्वे का उद्देश्य यह जानना था कि स्तनपान के दौरान कामकाज की जगहों, घर या सार्वजनिक स्थलों पर माएं किन किन चुनौतियों का सामना करती हैं.    उन्हें मेडिकल, व्यवहारिक और सहयोग के स्तर पर कैसा माहौल मिलता है. माओं के लिए स्तनपान की प्रक्रिया को सुलभ बनाने के लिए एक बहस शुरू करना.

स्तनपान को लेकर हुए इस सर्वे में जो तथ्य सामने आए उसमें ज्यादातर मौम्स का उत्साहवर्धन करने वाले नहीं थे. आइये जानते हैं सर्वे में सामने आई प्रमुख चुनौतियां:

  • 70 % से भी ज्यादा माएं स्तनपान के दौरान मुश्किल हालातों का सामना करती हैं.
  • 34.7 % माओं को स्तनपान के शुरुआती दिनों में ड्राइनेस के कारण स्तनों में कट या क्रैक का सामना करना पड़ता है.
  • करीब31.8 % माएं लंबे समय तक स्तनपान कराने,  कई बच्चों को बार-बार स्तनपान कराने और आधी रात में बच्चों के जागने पर बहुत ज्यादा थक जाती हैं.
  • 26.61 % माएं स्तनपान के दौरान बच्चों द्वारा काटने को लेकर परेशान होती हैं.
  • 22.7 % माओं को दूध न आने से जुड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.
  • 17.81 % माओं को सार्वजनिक जगहों जैसे बाजार,मौल्स और मेट्रो स्टेशनों आदि में स्तनपान को लेकर जरूरी इंतेजाम न होने के चलते मुश्किल पेश होती है.
  • 17.42 % माएं मां बनने के बाद पैदा हुए तनाव यानी पोस्टपार्टम का शिकार हो जाती हैं.
  • 38% माओं को मां बनने के शुरुआती दिनों में स्तनपान कराते समय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. खासतौर पर अस्पतालों में माओं को स्तनपान कराने का अनुभव सबसे कड़वा लगता है.
  • करीब 64% स्तनपान के दिनों में अपने परिवार का सहयोग हासिल कर पाती हैं.
  • महज 37% माएं यह स्वीकार करती हैं कि स्तनपान को लेकर उनके पति सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए उनके साथ मजबूती से खड़े रहते हैं. जाहिर है यह प्रतिशत बेहद कम है.
  • सिर्फ 2.4 % माओं को अपने कामकाज की जगहों, यानी औफिस/वर्कप्लेस में सहयोगात्मक माहौल मिलता है. यह बड़ा निराशाजनक आंकड़ा है.
  • परिवार, पति के सहयोग के बावजूद सिर्फ30 % माएं ही पारिवारिक जरूरतों और औफिस के बीच तालमेल बिठा पाती हैं.

हालांकि यह राहत भरी बात है कि स्तनपान के दौरान इतनी चुनैतियों के बावजूद 78% माओं ने अपने बच्चों को पिछले साल स्तनपान कराया. जब हमने उनसे स्तनपान कराने के पीछे के कारणों को लेकर सवाल पूछे तो कई दिलचस्प और खुशनुमा जवाब मिले. इन जवाबों में टौप 4 जवाब थे:  करीब 98.6 % माएं अपने बच्चों को उनकी बेहतर सेहत के लिए स्तनपान कराना पसंद करती हैं.  जबकि 73.4% माएं बच्चों के साथ घनिष्ट लगाव के चलते स्तनपान कराती हैं.  वहीं 57.5% मौम्स पाने स्वास्थ्य लाभ के लिए बच्चों को स्तनपान कराती हैं.  और आखिर में 39.7% मौम्स गर्भावस्था के बाद अपने बढ़े हुए वजन को कम करने के लिए स्तनपान कराती हैं.

हालात बदलने की जरूरत है
स्तनपान करना हर बच्चे का और कराना हर मां का पहला हक है. लेकिन आज भी हमारे देश की ज्यादातर माओं को यह काम कराना मुश्किल भरा लगता है तो  गलती समाज, परिवार की है. हम उन्हें इस से जुड़ी आधारभूत सुविधाओं को न तो घर पर मुहैया करा पाते हैं और न ही दफ्तर या सार्वजनिक जगहों पर. स्तनपान शुरुआती दिनों में मां और बच्चे के लिए लाभप्रद होता लेकिन समस्या यह है कि शुरुआती सप्ताहों में ही माओं को इसे लेकर दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.

बच्चे के जन्म के बाद मौम्स को अपनी लाइफ में कई बड़े बदलाओं को एडजस्ट करना पड़ता है. ऐसे में उनको जरूरत होती है अपने आसपास के लोगों के हरसंभव सपोर्ट की. चाहे वो परिवार के सदस्य हों, बौस हो या सहकर्मी.

Mother’s Day Special: मेरी मां के नाम

इस बात को लगभग 1 साल हो गया लेकिन आज भी एक सपना सा ही लगता है. अमेरिका के एक बड़े विश्वविद्यालय, यूनिवर्सिटी औफ ह्यूस्टन के बोर्ड के सामने मैं इंटरव्यू के लिए जा रही थी. यह कोई साधारण पद नहीं था और न ही यह कोई साधारण इंटरव्यू था. लगभग 120 से ज्यादा व्यक्ति अपने अनुभव और योग्यताओं का लेखाजोखा प्रस्तुत कर चुके थे और अब केवल 4 अभ्यर्थी मैदान में चांसलर का यह पद प्राप्त करने के लिए रह गए थे.

मुझे इस बात का पूरा आभास था कि अब तक न तो किसी भी अमेरिकन रिसर्च यूनिवर्सिटी में किसी भारतीय का चयन चांसलर की तरह हुआ है और न ही टैक्सास जैसे विशाल प्रदेश ने किसी स्त्री को चांसलर की तरह कभी देखा है. इंटरव्यू में कई प्रश्न पूछे जाएंगे. हो सकता है वे पूछें कि आप में ऐसी कौन सी योग्यता है जिस के कारण यह पद आप को मिलना चाहिए या पूछें कि आप की सफलताएं आप को इस मोड़ तक कैसे लाईं?

इस तरह की चिंताओं से अपना ध्यान हटाने के लिए मैं ने जहाज की खिड़की से बाहर अपनी दृष्टि डाली तो सफेद बादल गुब्बारों की तरह नीचे दिख रहे थे. अचानक उन के बीच एक इंद्रधनुष उभर आया. विस्मय और विनोद से मेरा हृदय भर उठा…अपनी आंखें ऊपर उठा कर तो आकाश में बहुत इंद्रधनुष देखे थे लेकिन आंखें झुका कर नीचे इंद्रधनुष देखने का यह पहला अनुभव था. मैं ने अपने पर्स में कैमरे को टटोला और जब आंख उठाई तो एक नहीं 2 इंद्रधनुष अपने पूरे रंगों में विराजमान थे और मेरे प्लेन के साथ दौड़ते से लग रहे थे.

आकाश की इन ऊंचाइयों तक उठना कैसे हुआ? कैसे जीवन की यात्रा मुझे इस उड़ान तक ले आई जहां मैं चांसलर बनने का सपना भी देख सकी? किसकिस के कंधों ने मुझे सहारा दे कर ऊपर उठाया है? इन्हीं खयालों में मेरा दिल और दिमाग मुझे अपने बचपन की पगडंडी तक ले आया.

यह पगडंडी उत्तर प्रदेश के एक शहर फर्रुखाबाद में शुरू हुई जहां मैं ने अपने बचपन के 18 साल रस्सी कूदते, झूलाझूलते, गुडि़यों की शादी करते और गिट्टे खेलते बिता दिए. कभी अमेरिका जाने के बारे में सोचा भी नहीं था, वहां के आकाश में उड़ने की तो बात ही दूर थी. बचपन की आवाजें मेरे आसपास घूमने लगीं :

‘अच्छा बच्चो, अगर एक फल वाले के पास कुछ संतरे हैं. अब पहला ग्राहक 1 दर्जन संतरे खरीदता है, दूसरा ग्राहक 2 दर्जन खरीदता है और तीसरा ग्राहक सिर्फ 4 संतरे खरीदता है. इस समय फल वाले के पास जितने संतरे पहले थे उस के ठीक आधे बचे हैं. जरा बताओ तो कि फल वाले के पास बेचने से पहले कितने संतरे थे?’ यह मम्मी की आवाज थी.

‘मम्मी, हमारी टीचर ने जो होमवर्क दिया था, उसे हम कर चुके हैं. अब और नहीं सोचा जाता,’ यह मेरी आवाज थी.

‘अरे, इस में सोचने की क्या जरूरत है? यह सवाल तो तुम बिना सोचे ही बता सकती हो. जरा कोशिश तो करो.’

सितारों वाले नीले आसमान के नीचे खुले आंगन में चारपाइयों पर लेटे सोने से पहले यह लगभग रोज का किस्सा था.

‘जरा यह बताओ, बच्चो कि अमेरिका के राष्ट्रपति का क्या नाम है?’

‘कुछ भी हो, हमें क्या करना है?’

‘यह तो सामान्य ज्ञान की बात है और सामान्य ज्ञान से तो सब को काम है.’

फिर किसी दिन होम साइंस की बात आ जाती तो कभी राजनीति की तो कभी धार्मिक ग्रंथों की.

‘अच्छा, जरा बताओ तो बच्चो कि अंगरेजी में अनार को क्या कहते हैं?’

‘राज्यसभा में कितने सदस्य हैं?’

‘गीता में कितने अध्याय हैं?’

‘अगले साल फरवरी में 28 दिन होंगे या 29?’

हम कार में हों या आंगन में, गरमी की दोपहर से बच कर लेटे हों या सर्दी की रात में रजाई में दुबक कर पड़े हों, मम्मी के प्रश्न हमारे इर्दगिर्द घूमते ही रहते थे. न हमारी मम्मी टीचर हैं, न कालिज की डिगरी की हकदार, लेकिन ज्ञान की प्यास और जिज्ञासा का उतावलापन उन के पास भरपूर है और खुले हाथों से उन्होंने मुझे भी यही दिया है.

एक दिन की बात है. हमसब कमरे में बैठे अपनाअपना होमवर्क कर रहे थे. मम्मी हमारे पास बैठी हमेशा की तरह स्वेटर बुन रही थीं. दरवाजे की आहट हुई और इस से पहले कि हम में से कोई उठ पाए, पापा की गुस्से वाली आवाज खुले हुए दरवाजे से कमरे तक आ पहुंची.

‘कोई है कि नहीं घर में, बाहर का दरवाजा खुला छोड़ रखा है.’

‘तुझ से कहा था रेनु कि दरवाजा बंद कर के आना, फिर सुना नहीं,’ मम्मी ने धीरे से कहा लेकिन पापा ने आतेआते सुन लिया.

‘आप सब इधर आइए और यहां बैठिए, रेशमा और टिल्लू, तुम दोनों भी.’ पापा गुस्से में हैं यह ‘आप’ शब्द के इस्तेमाल से ही पता चल रहा था. सब शांत हो कर बैठ गए…नौकर और दादी भी.

‘रेनु, तुम्हारी परीक्षा कब से हैं?’

‘परसों से.’

‘तुम्हारी पढ़ाई सब से जरूरी है. घर का काम करने के लिए 4 नौकर लगा रखे हैं.’ उन्होंने मम्मी की तरफ देखा और बोले, ‘सुनो जी, दूध उफनता है तो उफनने दीजिए, घी बहता है तो बहने दीजिए, लेकिन रेनु की पढ़ाई में कोई डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए,’ और पापा जैसे दनदनाते आए थे वैसे ही दनदनाते कमरे से निकल गए.

मैं घर की लाड़ली थी. इस में कोई शक नहीं था लेकिन लाड़ में न बिगड़ने देने का जिम्मा भी मम्मी का ही था. उन का कहना यही था कि पढ़ाई में प्रथम और जीवन के बाकी क्षेत्रों में आखिरी रहे तो कौन सा तीर मार लिया. इसीलिए मुझे हर तरह के कोर्स करने भेजा गया, कत्थक, ढोलक, हारमोनियम, सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग और कुकिंग. आज अपने जीवन में संतुलन रख पाने का श्रेय मैं मम्मी को ही देती हूं.

अमेरिका में रिसर्च व जिज्ञासा की बहुत प्रधानता है. कोई भी नया विचार हो, नया क्षेत्र हो या नई खोज हो, मेरी जिज्ञासा उतावली हो चलती है. इस का सूत्र भी मम्मी तक ही पहुंचता है. कोई भी नया प्रोजेक्ट हो या किसी भी प्रकार का नया क्राफ्ट किताब में निकला हो, मेरे मुंह से निकलने की देर होती थी कि नौकर को भेज कर मम्मी सारा सामान मंगवा देती थीं, खुद भी लग जाती थीं और अपने साथ सारे घर को लगा लेती थीं मानो इस प्रोजेक्ट की सफलता ही सब से महत्त्वपूर्ण कार्य हो.

मैं छठी कक्षा में थी और होम साइंस की परीक्षा पास करने के लिए एक डिश बनाना जरूरी था. मुझे बनाने को मिला सूजी का हलवा और वह भी बनाना स्कूल में ही था. समस्या यह थी कि मुझे तो स्टोव जलाना तक नहीं आता था, सूजी भूनना तो दूर की बात थी. 4 दिन लगातार प्रैक्टिस चली…सब को रोज हलवा ही नाश्ते में मिला. परीक्षा के दिन मम्मी ने नापतौल कर सामान पुडि़यों में बांध दिया.

‘अब सुन, यह है पीला रंग. सिर्फ 2 बूंद डालना पानी के साथ और यह है चांदी का बरक, ऊपर से लगा कर देना टीचर को. फिर देखना, तुम्हारा हलवा सब से अच्छा लगेगा.’

‘जरूरी है क्या रंग डालना? सिर्फ पास ही तो होना है.’

‘जरूरी है वह हर चीज जिस से तुम्हारी डिश साधारण से अच्छी लगे बल्कि अच्छी से अच्छी लगे.’

‘साधारण होने में क्या खराबी है?’

‘जो काम हाथ में लो, उस में अपना तनमन लगा देना चाहिए और जिस काम में इनसान का तनमन लग जाए वह साधारण हो ही नहीं सकता.’

आज लोग मुझ से पूछते हैं कि आप की सफलता के पीछे क्या रहस्य है? मेरी मां की अपेक्षाएं ही रहस्य हैं. जिस से बचपन से ही तनमन लगाने की अपेक्षा की गई हो वह किसी कामचलाऊ नतीजे से संतुष्ट कैसे हो सकता है? उस जमाने में एक लड़के और एक लड़की के पालनपोषण में बहुत अंतर होता था, लेकिन मेरी यादों में तो मम्मी का मेरे कोट की जेबों में मेवे भर देना और परीक्षा के लिए जाने से पहले मुंह में दहीपेड़ा भरना ही अंकित है.

मेरी सफलताओं पर मेरी मम्मी का गर्व भी प्रेरणादायी था. परीक्षा से लौट कर आते समय यह बात निश्चित थी कि मम्मी दरवाजे की दरार में से झांकती हुई चौखट पर खड़ी मिलेंगी. जिस ने बचपन से अपने कदमों के निशान पर किसी की आंखें बिछी देखी हों, उसे आज जीवन में कठिन से कठिन मार्ग भी इंद्रधनुष से सजे दिखते हों तो इस में आश्चर्य कैसा? इस का श्रेय भी मैं अपनी मम्मी को ही देती हूं.

मैं 18 वर्ष की थी कि जिंदगी में अचानक एक बड़ा मोड़ आ गया. अचानक मेरी शादी तय हो गई और वह भी अमेरिका में पढ़ रहे एक लड़के के साथ. जब मैं ने रोरो कर घर सिर पर उठा दिया तो मम्मी बोलीं, ‘बेटा, शादी तो होनी ही थी एक दिन…कल नहीं तो आज सही. तुम्हारे पापाजी जो कर रहे हैं, सोचसमझ कर ही कर रहे हैं.’

‘सब को अपनी सोचसमझ की लगती है. मेरी सोचसमझ कोई क्यों नहीं देखता. मुझे पढ़ना है और बहुत पढ़ना है. अब कहां गया उफनता हुआ दूध और बहता हुआ घी का टिन?’

‘तुम्हें पढ़ना है और वे लोग तुम्हें जरूर पढ़ाएंगे.’

‘आज तक पढ़ाया है किसी ने शादी के बाद जो वे पढ़ाएंगे? कौन जिम्मेदारी लेगा मेरी पढ़ाई की?’

‘मैं लेती हूं जिम्मेदारी. मेरा मन है… एक मां का मन है और यह मन कहता है कि वे तुझे पढ़ाएंगे और बहुत अच्छे से रखेंगे.’

मुझे पता था कि यह सब बहलाने की बातें थीं. मेरा रोना तभी रुका जब मेरा एडमिशन अमेरिका के एक विश्व- विद्यालय में हो गया. मम्मी के पत्र बराबर आते रहे और हर पत्र में एक पंक्ति अवश्य होती थी, ‘यह सुरेशजी की वजह से आज तुम इतना पढ़ पा रही हो…ऊंचा उठ पा रही हो.’ जिंदगी का यह पाठ कि ‘हर सफलता के पीछे दूसरों का योगदान है,’ मम्मी ने घुट्टी में घोल कर पिला दिया है मुझे. इसीलिए आज जब लोग पूछते हैं कि ‘आप की सफलता के पीछे क्या रहस्य है?’ तो मैं मुसकरा कर इंद्रधनुष के रंगों की तरह अपने जीवन में आए सभी भागीदारों के नाम गिना देती हूं.

‘‘वी आर स्टार्टिंग अवर डिसेंट…’’ जब एअर होस्टेस की आवाज प्लेन में गूंजी तो मैं अतीत से वर्तमान में लौट आई. खिड़की से बाहर झांका तो इंद्रधनुष पीछे छूट चुके थे और नीचे दिख रहा था अमेरिका का चौथा सब से बड़ा महानगर- ह्यूस्टन. मेरा मन सुबह की ओस के समान हलका था, मेरा मस्तिष्क सभी चिंताओं से मुक्त था.

ठीक 8 घंटे के बाद चांसलर और प्रेसीडेंट का वह दोहरा पद मुझे सौंप दिया गया था. मैं ने सब से पहले फोन मम्मी को लगाया और अपने उतावलेपन में सुबह 5 बजे ही उन्हें उठा दिया.

‘‘मम्मी, एक बहुत अच्छी खबर है… मैं यूनिवर्सिटी औफ ह्यूस्टन की प्रेसीडेंट बन गई हूं.’’

?‘‘फोन जरा सुरेशजी को देना.’’

‘‘मम्मी, आप ने सुना नहीं क्या, मैं क्या कह रही हूं.’’

‘‘सब सुना, जरा सुरेशजी से तो बात कर लूं.’’

मैं ने एकदम अनमने मन से फोन अपने पति के हाथ में थमा दिया.

‘‘बहुतबहुत बधाई, सुरेशजी, रेनु प्रेसीडेंट बन गई. मैं तो यह सारा श्रेय आप ही को देती हूं.’’

हमेशा दूसरों को प्रोत्साहन देना और श्रेय भी खुले दिल से दूसरों में बांट देना – यही है मेरी मां की पहचान. आज उन की न सुन कर, अपनी हर सफलता और ऊंचाई मैं अपनी मम्मी के नाम करती हूं.

लेखिका- रेनू खटोर

Mother’s Day Special: कैसे बचें एजिंग इफेक्ट से?

खूबसूरत दिखने की चाहत हर किसी का अरमान होता है,फिर चाहे कोई भी उम्र हो? जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगती है उसका सबसे पहला इफेक्ट आपके चेहरे पर ही दिखाई देता है. बढ़ती उम्र के असर को कम करने के लिए आप मार्केट के प्रॉडक्ट्स का इस्तमाल शुरू कर देते हैं. लेकिन, क्या आप इन उत्पादों के साइड इफेक्ट्स से वाकिफ हैं? स्किन पर आए एजिंग इफेक्ट को आप प्रॉपर डाइट, भरपूर नींद और एक्सरसाइज करके भी कम कर सकते हैं. आइए, जानते है कुछ ऐसे ही सुपरफुड्स के बारे में.

1.कॉफी

इंस्टेंट ग्लो के लिए कॉफी सबसे उत्तम प्रॉडक्ट है. एक शोध के मुताबिक कॉफी में मौजूद कम्पाउंड्स त्वचा को कैंसर से बचाते हैं और आपको लंबे समय तक जवान रखते हैं. कॉफी में मौजूद कैफीन से स्किन डलनेस दूर होती है जो आपकी स्किन में निखार लाती है. कॉफी के बीज स्किन पर रगड़ने से डेड सेल्स खत्म हो जाऎंगे और स्किन कोमल हो जाती है.

2.अनार

अनार के उपयोग से झुर्रियों और रूखेपन को कम किया जा सकता है. इसमें विटामिन सी होता है जो मिडल एज की महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है. अनार में एंथोसियानिन्स तत्व होता है,जो कोलैजेन के उत्पादन को रोकता है. अनार के प्रयोग से स्किन स्मूथ और कसी हुई रहती है.

3.तरबूज

तरबूज के प्रयोग से आप सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से बच सकते है. तरबूज में लाइकोपिन एंटी-ऑक्सीडेंट कंपाउंड होता है. रिसर्च के अनुसार टमाटर की बजाय तरबूज में 40 प्रतिशत ज्यादा फाइटो केमिकल होता है, जो एसपीएफ 3 के बराबर होता है. ये आपकी स्किन पर सन्सक्रीन का काम करता है.

4.अखरोट

अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड बालों को हाइड्रेटेड रखता है और विटामिन इ बालों को डेमेज होने से बचाता है. बालों को इन्हीं दोनों तत्वों से फायदा मिलता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ बाल भी झड़ने लगते है.अखरोट के प्रयोग से इस समस्या से निजात मिलता है. इसमें मौजूद कॉपर आपके बालों को असमय सफेद होने से बचाता है क्योंकि यह आपके बालों के नेचुरल कलर को बनाए रखता है.

Mother’s Day Special: मां के लिए नाश्ते में बनाएं हेल्दी और टेस्टी मूंग दाल ढोकला

ढोकला गुजरात का फेमस डिश है. यूं तो ढोकला बेसन से बनाया जाता है, लेकिन आज हम आपको मूंग दाल का ढोकला बनाने की रेसिपी बता रहे हैं. मूंग दाल ढोकला फ्राई नहीं होता है. जानें इसे बनाने की विधि.

हमें चाहिए-

  • मू्ंगदाल
  • बेसन
  • दही
  • हरी मिर्च
  • शक्कर
  • नमक
  • तेल
  • फ्रूट सॉल्ट
  • सरसो
  • तिल
  • हिंग
  • हल्दी पाउडर
  • घिसा हुआ नारियल
  • धनिया पत्ता

बनाने का तरीका

सबसे पहले पीली मूंग दाल को तीन से चार घंटे तक पानी में भीगो लें. इसके बाद उसका पानी निकाल कर हटा दें. अब भींगे हुए मूंग में हरी मिर्च डालकर अच्छी तरह पीस लें. अब इसमें नमक, थोड़ी सी शक्कर हींग थोड़ा सा तेल हल्दी पाउडर थोड़ा सा बेसन और दही डाल कर अच्छी तरह से मिला लें.

अब इस पूरे मिश्रण में फ्रूट सॉल्ट डालें. अब इसे हल्के हाथों से मिला लें. अच्छी तरह से मिला लेने के बाद एक थाली में तेल लगाकर सारा मिश्रण उसमें डाल दें. अब इसे स्टीम (भाप) पर पकने के लिए रख दें. इसे 10 से 12 मिनट तक भाप पर पकने के लिए छोड़ दें. 10 मिनट बाद इसके निकाल लें. आपका ढ़ोकला तैयार हो चुका है.

अब इसे छौंक लगा लें. इसके लिए एक पैन में तेल गर्म कर लें. इसमें सरसों, तिल, हींग, अगर तीखा खाना हो तो थोड़ी हरी मिर्च डाल दें. अब इसे अच्छी तरह पकाने के बाद ढोकले के उपर फैलाकर डाल दें और अंत में हरे धनिये पत्ते के साथ घिसा हुआ नारियल डाल दें और चटनी के साथ सर्व करें.

Mother’s Day Special: उसका निर्णय- क्या थी मां के फैसले की वजह

‘‘मैंहोस्टल नहीं जाऊंगी,’’ कह कर पैर पटकती किश्ती अपने कमरे के अंदर घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अचला घबरा कर बेटी को मनाने दौड़ीं. बहुत मनाने के बाद किश्ती ने दरवाजा खोला.

‘‘बेटी, इस समय तुम्हारा होस्टल जाना बहुत जरूरी है. औफिस में मेरा काम बहुत बढ़ गया है. मुझे देर तक वहां रुकना पड़ता है और फिर तुम्हारे पापा को अकसर औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में तुम्हें घर में अकेला नहीं छोड़ सकते हैं,’’ मां ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘तो तुम अपनी नौकरी छोड़ दो,’’ किश्ती चीख पड़ी.

अभी तो उस ने 7वीं पास की है और घर से निकालने की तैयारी शुरू हो गई. 12वीं के बाद जब कोई कोर्स करेगी तब शौक से जाएगी. पर मां उसे जबरदस्ती कैदखाने में अभी से क्यों भेज रही है. घर में कितना मजा आता है, जैसा मन चाहे वैसा करो. सुना है होस्टल में टीवी भी देखने को नहीं मिलता. उस के पापा भी इस समय शहर में नहीं हैं, नहीं तो रोरो कर उन से अपने मन की करवा लेती. किश्ती को मां पर बहुत गुस्सा आ रहा था. मां के आगे वह बहुत रोई भी, पर मां नहीं पिघलीं.

कई बैगों में जरूरत का सामान रख कर अचला किश्ती को छोड़ने होस्टल चली गईं. दूर खड़ी किश्ती मां को होस्टल में फौर्म भरते देख रही थी. आज उसे मां दुश्मन लग रही थीं. न जाने किस गलती की सजा दे रही थीं. उसे मां से नफरत सी हो गई. उस ने तय कर लिया कि वह अब मां से कभी बात नहीं करेगी. पापा से मां की हर बात की शिकायत करेगी. मां ने लौटते समय किश्ती को गले लगाया तो वह छिटक कर दूर हो गई. न उस ने मां के चेहरे को देखा न ही मां के लौटते बोझिल कदमों को.

किश्ती होस्टल के कमरे में रहने आ गई.

3 पलंग के कमरे में सब की अलमारी व टेबल अलगअलग थी. किश्ती बैग से धुली साफ चादर पलंग पर बिछा कर बैठी ही थी कि तभी बगल में खड़ी आंचल बोली, ‘‘मैं तुम से लंबी हूं और पलंग पर खड़ी हो कर छत छू सकती हूं.’’

इस से पहले कि किश्ती कुछ कहती, वह चप्पलें पहन कर किश्ती के पलंग पर खड़ी हो कर छत छूने लगी.

‘‘तुम ने मेरी चादर गंदी कर दी,’’ किश्ती गुस्से से बोली.

‘‘तो क्या हुआ,’’ कह कर किश्ती को धक्का दे कर आंचल पलंग से नीचे उतर गई. किश्ती जमीन पर कुहनी के बल जा गिरी. वह दर्द से वह कराह उठी. क्या यहां रोजरोज ऐसे ही दर्द सहना पड़ेगा या फिर चुप रह कर ये सब देखना पड़ेगा? क्यों किया मां ने ऐसा? मां ने वापस जा कर किश्ती को कई बार फोन किया पर उस ने फोन नहीं उठाया.

रात 11 बजे फिर से मां का फोन आया तो किश्ती फोन पर ही चिल्लाई, ‘‘मुझे अकेले यहां मरने दो,’’ और फोन काट दिया.

15 दिन बाद पापा होस्टल आए. गोरे, स्मार्ट, हीरो जैसे दिखने वाले पापा उसे कितना प्यार करते हैं. किश्ती ने रोरो कर मां की एकएक बात की शिकायत की. उस को पूरा विश्वास था कि पापा उस को तुरंत अपने साथ घर ले जाएंगे, पर पापा ने ऐसा नहीं किया.

पापा बोले, ‘‘किश्ती बेटा, मां ने सही निर्णय लिया है. मुझे अकसर घर से बाहर जाना पड़ता है और तेरी मां न नौकरी छोड़ सकती है और न ही तुम्हें घर में अकेला रख सकती है.’’

पापा बहुत सारा खाने का सामान दे कर उसे होस्टल में छोड़ कर चले गए. किश्ती समझ गई कि अब उसे हमेशा यहीं रहना है. अपने घर से दूर, अपनों से दूर. पर अब उस का अपना है कौन? कोई भाईबहन भी तो नहीं जिस से मन की बात साझा कर सके वह.

किश्ती धीरेधीरे होस्टल के वातावरण में अपनेआप को ढालने लगी. पापा के गले झूलने वाली चुलबुली किश्ती अब नन्ही सी उम्र में गंभीर हो गई थी. पढ़ने और खेल में अव्वल आने से होस्टल में उस की धूम मच गई थी. इतना सब होने पर भी मां के प्रति नफरत कम नहीं हुई थी. वह छुट्टियों में घर जाती तो मां से बेरुखी दिखाती.

आज किश्ती 11वीं की परीक्षा दे कर घर आई थी. तभी पापा भी टुअर से लौट

कर घर आए थे. मां को तो औफिस से फुरसत ही नहीं थी. पापा शाम को किश्ती को ले कर एक समारोह में गए. अब वह समझदार हो गई थी. एक किनारे की कुरसी पर अकेले बैठी किश्ती अतिथियों को देख कर उन के मन के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. उस के पास रखी खाली कुरसी पर एक बहुत सुंदर, शालीन महिला आ कर बैठ गई. किश्ती को बहुत समय बाद कोई अपना सा लगा. फिर तो बातों का सिलसिला ऐसा चला कि जैसे सदियों की दोस्ती हो.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?,’’ उस महिला ने पूछा.

‘‘किश्ती, और आप का?’’

‘‘सहेली…’’ दोनों खिलखिला पड़ीं. पास खड़ी उन की प्यारी सी बच्ची भी बिना कुछ समझे हंसने लगी.

‘‘घर आना,’’ कह कर सहेली ने पता दे दिया.

किश्ती की छुट्टियां समाप्त होने पर वह वापस होस्टल आ गई. इस बार वह होस्टल यह तय कर के आई थी कि 12वीं के बाद होस्टल नहीं जाएगी. अब वह बड़ी हो गई है. मां उसे जबरदस्ती नहीं भेज सकती. मां उसे इंजीनियर बनाना चाहती थी. नहीं मानेगी अब वह मां की कोई भी बात. नफरत करती है उन से. 12वीं की परीक्षा पूरी होने पर किश्ती वापस घर आ गई. अपनी मरजी से उस ने पत्रकारिता में प्रवेश ले लिया. मां नौकरी में व्यस्त थीं. पापा 15 दिन में एक बार घर आते और फिर जल्दी चले जाते. दिनभर किश्ती पढ़ाई करने में लगी रहती. रात में मां के प्रति नफरत की आग लिए अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लेती और देर रात तक जागती रहती.

मगर आज कई दिनों के बाद किश्ती का मन किसी अपने से बात करने का हुआ तो पिछले साल समारोह में मिलीं सहेली के घर चली गई. साफसुथरा सजा हुआ घर था, हर कोना व्यवस्थित तरीके से और नई साजसज्जा से गुलजार था. सहेली दिल खोल कर उस से मिलीं. उस की पसंद का खाना बनाया. दोनों ने खूब सारी बातें कीं. ऐसा प्यार ही तो वह मां से चाहती थी. चिंकी इधरउधर उछलकूद कर रही थी. अंधेरा घिरने लगा था.

किश्ती अपने घर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि तभी डोरबैल बजी, ‘‘तुम 2 मिनट रुको, मेरे पति आए हैं, मिल कर जाना,’’ कह कर सहेली गेट खोलने चली गईं.

एक स्मार्ट व्यक्ति के गाड़ी से उतरते ही चिंकी उन से लिपट गई. औफिस बैग उन्होंने सहेली को प्यारभरी मुसकान दे कर पकड़ा दिया. किश्ती ने शीशे से देखा तो उस के पैरों के नीचे की जमीन कांपने लगी. उसे देख कर विश्वास ही नहीं हो रहा था. यह तो उस के पापा थे.

शीशे को हाथ से पोंछ कर आंख गड़ा कर देखा, उस की आंखें बिलकुल ठीक देख रही हैं. यह तो उस के पापा हैं. तो क्या पापा ने मां को छोड़ दूसरी शादी कर ली? किश्ती तुरंत कमरे के दूसरे दरवाजे से छिप कर तेजी से निकल गेट के बाहर आ गई. उसे लग रहा था कि वह भंवर में अंदर तक डूबती जा रही थीं. अब वह किस से नफरत करे, मां से या पापा से? हांफती हुई किश्ती घर आ कर मां के सामने खड़ी हो गई. उन के सामने रखे कंप्यूटर का मुंह घुमा कर, अपनी आंखों में धधकती चिनगारी लिए. मां उस का यह रूप पहले भी कई बार देख चुकी थीं. वे शांत रहीं.

‘‘मां सचसच बताओ पापा कहां हैं?’’

अचला को इस प्रश्न की आशा नहीं थी. वे कमरे से बाहर जाने लगीं तो किश्ती दरवाजा घेर कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं बड़ी हो गई हूं. एकएक बात मुझे बिलकुल सच बताओ, नहीं तो किसी भी अनहोनी को देखने के लिए तैयार हो जाओ.’’

अचला बेटी की धमकी सुन कांप सी गईं. बोली, ‘‘आओ बैठो, मैं सब बताऊंगी, सबकुछ सचसच…’’

दोनों पलंग पर आमनेसामने बैठ गईं. उस वक्त मुजरिम थीं उस की मां अचला और न्यायाधीश थी किश्ती.

‘‘तुम्हारे पापा नंदिता से प्रेम करते थे. वह आकर्षक थी. घरेलू भी थी. मेरे

सामने जब इन्होंने डाइवोर्स के कागज रखे तब मैं ने यह शर्त रखी कि किश्ती को इस बात का कभी पता नहीं चलना चाहिए वरना वह टूट जाएगी. जब वह होस्टल जाएगी तब पापा बन कर ही उन्हें वहां जाना होगा और जब वह छुट्टियों में घर आएगी तब उन्हें भी घर पर आते रहना होगा. और हां, मैं ने उन्हें डाइवोर्स नहीं दिया. उन से कह दिया कि वे जहां जाना चाहें जा सकते हैं. मेरी तरफ से मुक्त हैं. उन्होंने मुझे छोड़ा है, मैं ने उन्हें नहीं. तुम घर पर रहती तब कभी न कभी तुम्हें पता चल ही जाता, इसलिए तुम्हें बहुत मजबूरी में मैं ने दिल पर पत्थर रख कर होस्टल भेजा और साथ में तुम्हारी नफरत भी सही. तुम मुझ से नफरत करती रही और मैं नंदिता से.’’

किश्ती मां की बातें सुन कर सन्न रह गई थी. मां के प्रति किए अपने रूखे व्यवहार के कारण आज वह अपनेआप को गुनहगार समझ रही थी.

‘‘मां मुझे माफ कर दो,’’ कह कर वर्षों से अनछुए रिश्तों को पिघलाती किश्ती मां से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी, ‘‘मां, आज तुम भी रो कर अपने मन में जमा गुबार निकाल दो. बहुत पत्थर हो गई हो तुम.’’

मांबेटी के मिलन का कोई साक्षी था तो वह एकमात्र समय, जो शाम से रात और रात से सुबह तक के परिवर्तन को देख रहा था.

सुबह की चाय किश्ती मां को पलंग पर ही पकड़ाती थी. फिर कुछ बातें और फिर अपनेअपने कार्यक्षेत्र में कूद जाना. यही दोनों की दिनचर्या थी. आज किश्ती ने चाय मां के सामने रख कर अखबार उठाया तो निगाह पहले पन्ने के कोने में छपे समाचार पर पड़ी, ‘सड़क दुर्घटना में महिला की मौत…’

तसवीर देख कर वह बुरी तरह चौंक उठी. यह तो नंदिता थीं. उस ने अखबार मां के सामने रख दिया. मां ने खबर पढ़ कर बिना चाय पीए कप एक किनारे सरका दिया.

‘‘मां तुम वहां जाओगी क्या?’’

‘‘नहीं, जिस जगह जाने से दिल और दिमाग दोनों को तकलीफ हो वहां नहीं जाना चाहिए.’’

मां और किश्ती दोनों के मन में उथलपुथल चल रही थी. पर दोनों ही मौन थीं. कुछ घटनाओं के एहसास में शब्द मौन हो जाते हैं.

नंदिता की मौत की खबर को 8 दिन हो गए थे. आज मां औफिस से जल्दी आ गई थीं. किश्ती मां से किसी बात पर परामर्श कर रही थी. शाम ढल रही थी. तभी दरवाजे पर एक पुरुष की आकृति उभरी. एक विक्षिप्त सा, थकाहारा आदमी. किश्ती ने नजर उठाई, अरे, यह तो पापा हैं. क्या हाल हो गया है इन का. वे कस कर दरवाजा पकड़े थे कि कहीं गिर न जाएं. उन के पीछे प्यारी चंचल चिंकी डरीसहमी खड़ी थी. उस का चेहरा पीला पड़ा था. उस के होंठ फटे हुए थे.

पापा ने धीमी आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘अचला, यह चिंकी है. इस की मां मर गई है. यह बहुत बीमार है. क्या तुम कुछ दिनों के लिए इसे अपने साथ रख लोगी? इस की तबीयत ठीक होते ही इसे होस्टल में छोड़ दूंगा.’’

इस से पहले कि मां कुछ बोलतीं किश्ती निर्णायक की भूमिका में खड़ी हो गई. वह इस छोटी सी बच्ची के मन में नफरत की नई चिनगारी जन्म नहीं लेने देगी.

‘‘नहीं, चिंकी कहीं नहीं जाएगी. यह यहीं रहेगी हमारे साथ. और हां, आप चाहें तो आज भी हमारे साथ रह सकते हैं.’’

पापा ने प्रश्नात्मक निगाहों से मां की तरफ देखा. मां का मौन रहना हां की स्वीकृति दे रहा था. किश्ती साफ देख रही थी कि उस के निर्णय से इस घर से नफरत के बादल छंटने शुरू हो गए.

Mother’s Day Special: बच्चों की परवरिश बनाएं आसान इन 7 टिप्स से

अकसर कामकाजी महिलाएं अपराधबोध से ग्रस्त रहती हैं. यह अपराधबोध उन्हें इस बात को ले कर होता है कि पता नहीं वे अपने कैरियर की वजह से घर की जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वाह कर पाएंगी या नहीं. उस पर यह अपराधबोध तब और बढ़ जाता है जब वे अपने दुधमुंहे बच्चे के हाथ से अपना आंचल छुड़ा कर काम पर जाती हैं. तब उन्हें हर पल अपने बच्चे की चिंता सताती है. एकल परिवारों में जहां पारिवारिक सहयोग की कतई गुंजाइश नहीं होती है, वहां तो नौबत यहां तक आ जाती है कि उन्हें अपने बच्चे या कैरियर में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है और फिर हमारे समाज में बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मां पर ही होती है इसलिए मां चाहे कितने भी बड़े पद पर आसीन क्यों न हो, चाहे उस की तनख्वाह कितनी भी ज्यादा क्यों न हो समझौता उसे ही करना पड़ता है. ऐसे में होता यह है कि यदि वह अपने बच्चे की परवरिश के बारे में सोच कर अपने कैरियर पर विराम लगाती है, तो उसे अपराधबोध होता है कि उस ने अपने कैरियर के लिए कुछ नहीं किया. यदि वह बच्चे के पालनपोषण के लिए बेबीसिटर (दाई) पर भरोसा करती है, तो इस एहसास से उबरना मुश्किल होता है कि उस ने अपने कैरियर और भविष्य के लिए अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान नहीं दिया. ऐसे में एक कामकाजी महिला करे तो करे क्या?

इस का कोई तयशुदा जवाब नहीं हो सकता ह. इस मामले में हरेक की अपने हालात, इच्छाओं और प्राथमिकताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. यों भी मां बनना किसी भी लड़की की जिंदगी का बड़ा बदलाव होता है. कुछ लड़कियां ऐसी भी होती हैं जो किसी भी तरह मैनेज कर अपनी जौब करना चाहती हैं तो कुछ ऐसी भी होती हैं जो किसी भी कीमत पर अपने बच्चे पर ध्यान देना चाहती हैं. वनस्थली विद्यापीठ में ऐसोसिएट प्रोफैसर डा. सुधा मोरवाल कहती हैं, ‘‘मां बनने के बाद मैं ने अपना काम फिर से शुरू किया. चूंकि मुझे पारिवारिक सहयोग मिला था, इसलिए मेरे कैरियर ने फिर से गति पकड़ ली. हालांकि शुरुआती दौर में मुझे थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था और बच्चे को अपना पूरा समय न दे पाने का अपराधबोध होता था. पर हां, घर के कामकाज का बोझ मुझ पर कभी भी ज्यादा नहीं पड़ा.’’

डा. सुधा के उलट मीना मिलिंद को अपनी जौब छोड़नी पड़ी, क्योंकि उस के बच्चे को संभालने वाला कोई नहीं था और वह यह भी नहीं चाहती थी कि उसे बच्चे को ले कर कोई गिल्ट हो. मगर काम छोड़ने की कसक भी कम नहीं थी. बच्चे के छोटे होने की वजह से वे अभी तक जौब शुरू नहीं कर पाईं, क्योंकि वे एकल परिवार में रह

ट्रैवल के दौरान रखें इन 12 बाथरूम एटिकेट्स का ध्यान

बच्चों के स्कूल की छुट्टियां प्रारम्भ होते ही हम सभी के घूमने के प्लान्स बनने प्रारम्भ हो जाते हैं. यूं तो आजकल वर्ष भर ही अभिभावक घूमने के प्लान बनाते रहते हैं. हम चाहे ट्रेन, बस, अपने वाहन या फ्लाइट से जाएं अपनी व्यक्तिगत जरूरतों के लिए वाशरूम का प्रयोग तो करते ही हैं. यात्रा सम्पन्न हो जाने के बाद हम होटल, रिजॉर्ट, होम स्टे या अपने किसी रिश्तेदार के यहां रुकें वाशरूम का यूज तो किया ही जाता है. अक्सर वाशरूम को बस हम यूज भर करते हैं उसे यूज करते समय किसी बात का ध्यान रखने की जरूरत नहीं समझते परन्तु वाशरूम कहीं का भी हो बच्चे ही नहीं बड़ों को भी कुछ बाथरूम एटिकेट्स का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है

  1. वाशरूम का प्रयोग करने के बाद फ्लश अवश्य चलाएं ताकि आपके बाद आने वाले को किसी भी प्रकार की दुर्गंध न सहनी पड़े.

2. यात्रा के दौरान सेनेटरी पैड या बच्चों के डायपर को कहीं भी फेंकने के स्थान पर डस्टबिन में डालें और यदि डस्टबिन बाथरूम में नहीं है तो इन्हें पेपर में रोल करके प्लास्टिक बैग में डालकर किसी ऐसी  सुनसान जगह पर फेंकें जहां पर कुत्ते तथा अन्य जानवर नोंच खसोंट न कर सकें.

3. होटल के वाशरूम में नहाने के बाद प्रयोग के लिए उपलब्ध कराए गए तौलियों को फर्श, गंदे पैर या बच्चों की पॉटी पोंछने के लिए प्रयोग न करें.

4. वाशरूम के प्रयोग के लिए अलग स्लीपर का प्रयोग करें ताकि बाहर की गंदगी बाथरूम में न जा सके.

5. वेस्टर्न टॉयलेट सीट का प्रयोग करते समय पहले सीट की रिंग और कवर को ऊपर कर दें तब ही प्रयोग करें.

6. किसी रिश्तेदार के वाशरूम को प्रयोग करने के बाद वाइपर चला दें ताकि बाथरूम सूख जाए.

7. प्रयोग करने के बाद टॉयलेट रोल से सीट की रिंग को अच्छी तरह पोंछ दें ताकि आपके बाद वाला बन्दा सहज होकर वाशरूम का प्रयोग कर सके.

8. शैम्पू के सैशे, बालों के गुच्छे, टूथपेस्ट और टूथब्रश के खाली डिब्बों और रैपर को बाथरूम में इधर उधर फेंकने के स्थान पर डस्टबिन में ही डालें.

9. बाथटब का यदि प्रयोग कर रहे हैं तो यूज करने के बाद पानी पूरा निकाल दें और गंदे पैरों से उसमें घुसने से बचें.

10. समुद्र के बीच से आने के बाद आपके पूरे पैर रेत से भरे होते हैं ऐसे में सीधे बाथरूम में घुसने के स्थान पर पहले शावर से रेत साफ करें फिर बाथरूम में जाएं.

11. वाशरूम में फोन पर बहुत लंबी बातचीत करने के स्थान पर प्रयोग करके तुरंत बाहर आये ताकि दूसरे लोग भी वाशरूम का प्रयोग कर सकें.

12. यूरिनल के दौरान महिलाएं सुनिश्चित करें कि वे सीट पर अच्छी तरह बैठ जाएं और पुरुष सीट से बहुत दूर न खड़े हों.

Mother’s Day Special: मां बेटी के बीच मनमुटाव के मुद्दे

मांबेटी का रिश्ता दुनिया के खूबसूरत रिश्तों में से एक होता है. बेटी होती है मां की परछाई और इस परछाई पर मां दुनियाभर की खुशियां वार देना चाहती है. एक औरत जब मां बनती है और खासकर बेटी की मां बनती है तो उसे लगता है एक बेटी के रूप में वह अपना जीवन फिर से जी सकेगी. मांबेटी के प्यारभरे रिश्ते में भी कई बार तल्खियां उभर आती हैं. मांबेटी के रिश्ते में तल्खियां विवाह से पहले या विवाह के बाद कभी भी हो सकती हैं.

1 शादी से पहले के मनमुटाव

मां के हिसाब से बेटी का समय पर न उठना, दिनभर मोबाइल में लगे रहना, ऊटपटांग कपड़े पहनना आदि अनेक ऐसे छोटेमोटे विषय हैं जिन पर मांबेटी के बीच आमतौर पर खींचातानी होती रहती है. ऐसा होना हर मांबेटी के बीच आम है. लेकिन कई बार कुछ मसले ऐसे हो जाते हैं जिन के कारण मांबेटी के बीच मनमुटाव इस कदर बढ़ जाता है कि वे एकदूसरे से बात करना भी नहीं पसंद करतीं या फिर बेटी, मां से अलग रहने का भी निर्णय ले लेती है.  मुझे पसंद नहीं तुम्हारा बौयफ्रैंड :  22 वर्षीया सान्या एमबीए की स्टूडैंट है. वह अपने कालेज के एक ऐसे लड़के को पसंद करती है जिसे उस की मां नापसंद करती है. मां नहीं चाहती कि सान्या उस लड़के के साथ कोई भी संपर्क रखे. लेकिन सान्या के दिलोदिमाग पर तो वह लड़का इस कदर छाया हुआ है कि वह मां की कोईर् बात सुनने को ही तैयार नहीं है. आएदिन की इस लड़ाईझगड़े से तंग आ कर सान्या ने अलग फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया है.

2 नौकरी बन जाए विवाद का विषय: 

28 वर्षीया रिया कौल सैंटर में नौकरी करती है, वह भी नाइट शिफ्ट की. उस की मां को यह जौब बिलकुल पसंद नहीं है क्योंकि इस नौकरी की वजह से रिया के आसपड़ोस वाले उस की मां को तरहतरह की बातें सुनाते रहते हैं.

रिया की मां ने कई बार उस से कहा है कि वह यह नौकरी छोड़ दे लेकिन चूंकि रिया को इस नौकरी से कोई दिक्कत नहीं है, सो, वह छोड़ना नहीं चाहती. इस बात पर दोनों की अकसर बहस होती रहती है. आएदिन की बहस से परेशान हो कर रिया ने अपने औफिस के पास के एक पीजी में रहना शुरू कर दिया है. उसे लगता है कि रोज की किचकिच से यही बेहतर है.  विवाह के बाद बेटी अपनी ससुराल चली जाती है. ऐसे में मांबेटी के बीच प्यार और अपनापन कायम रहना चाहिए लेकिन कुछ मामलों में शादी के बाद भी मांबेटी के बीच का मनमुटाव जारी रहता है. बस, विवाद के कारण बदल जाते हैं.

3 लेनदेन से उपजा मनमुटाव 

विधि की शादी एक संपन्न घर में हुई है. वह जब भी मायके  आती है तो मां से अपेक्षा करती है उसे वही ऐशोआराम, वही सुखसुविधाएं मायके में भी मिलें जो ससुराल में मिलती हैं. लेकिन चूंकि विधि के मायके की आर्थिक स्थिति सामान्य है, सो, उसे वहां वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं.  नतीजतन, जब भी विधि मायके आती है, मां से उस की बहस हो जाती है. इस के अलावा विधि को अपनी मां से हमेशा यह शिकायत भी रहती है कि वे उस की ससुराल वालों के स्टेटस के हिसाब से लेनेदेन नहीं करतीं, जिस की वजह से उसे अपनी ससुराल में सब के सामने नीचा देखना पड़ता है. विधि की मां अपनी हैसियत से बढ़ कर विधि की ससुराल वालों को लेनादेना करती है लेकिन विधि कभी संतुष्ट नहीं होती और दोनों के बीच खींचातानी चलती रहती है.

4 संपत्ति विवाद भी है कारण 

पति के गुजर जाने के बाद स्वाति की मां अपने बेटे रोहन के साथ रहती हैं. रोहन ही उन की सारी जरूरतों का ध्यान रखता है और उन की तरफ से सारे सामाजिक लेनदेन करता है. आगे चल कर कोई प्रौपर्टी विवाद न हो, इसलिए स्वाति की मां ने वसीयत में अपनी सारी जमीनजायदाद रोहन के नाम कर दी. स्वाति को जब इस बात का पता चला तो वह अपनी मां से संपत्ति में हिस्से के लिए लड़ने आ गई. उस का कहना था कि जमीनजायदाद  में उसे बराबरी का हिस्सा चाहिए जबकि स्वाति की मां का कहना था कि उस की शादी में जो लेनादेना था, वह उन्होंने कर दिया और वैसे भी, अब रोहन उन की पूरी जिम्मेदारी संभालता है तो वे प्रौपर्टी रोहन के नाम ही करेंगी. इस बात पर गुस्सा हो कर स्वाति ने मां से बोलचाल बंद कर दी और घर आनाजाना भी बंद कर दिया.

5 मां के संबंधों से बेटी को शिकायत

अनन्या के पिताजी को गुजरे 4 वर्ष हो गए हैं. वह अपनी ससुराल में मस्त है. मां कालेज में नौकरी करती हैं. जहां उन के संबंध कालेज के सहकर्मी से हैं. यह बात अनन्या को बिलकुल पसंद नहीं. अनन्या को लगता है पिताजी के चले जाने के बाद मां ने उस पुरुष से संबंध क्यों रखे हैं.  वह कहती है, ‘मां के इन संबंधों से समाज और ससुराल में उस की बदनामी हो रही है.’ जबकि अनन्या की मां का कहना है कि उम्र के इस पड़ाव के अकेलेपन को वह किस तरह दूर करे. अगर ऐसे में कालेज का उक्त सहकर्मी उस की भावनाओं व जरूरतों का ध्यान रखता है तो उस में बुरा क्या है. बस, यही बात मांबेटी के बीच मनमुटाव का कारण बनी हुई है. इस स्थिति में अनन्या को अपनी मां के अकेलेपन की जरूरत को समझना चाहिए और व्यर्थ ही समाज से डर कर मां की खुशियों की राह में रोड़ा नहीं बनना चाहिए. बेटी को मां की जरूरतों से ज्यादा अपनी प्रतिष्ठा की फिक्र है. वह तो मां को बुत बना कर बाहर खड़ा कर देना चाहती है जो आदर्श तो कहलाए पर आंधीपानी और अकेलेपन को रातदिन सहे.

Mother’s Day Special: अमेरिकन बेटा- क्या मां को समझ पाया डेविड

9ईवा टूट चुकी थी. उस का ट्यूमर लास्ट स्टेज पर था और वह चंद महीनों की मेहमान थी.

रीता एक दिन अपनी अमेरिकन मित्र ईवा से मिलने उस के घर गई थी, रीता भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक थी. वह अमेरिका के टैक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर में रहती थी. रीता का जन्म अमेरिका में ही हुआ था. जब वह कालेज में थी, उस की मां का देहांत हो गया था. उस के पिता कुछ दिनों के लिए भारत आए थे, उसी बीच हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

रीता और ईवा दोनों बचपन की सहेलियां थीं. दोनों की स्कूल और कालेज की पढ़ाई साथ हुई थी. रीता की शादी अभी तक नहीं हुई थी जबकि ईवा शादीशुदा थी. उस का 3 साल का एक बेटा था डेविड. ईवा का पति रिचर्ड अमेरिकन आर्मी में था और उस समय अफगानिस्तान युद्ध में गया था.

शाम का समय था. ईवा ने ही फोन कर रीता को बुलाया था. शनिवार छुट्टी का दिन था. रीता भी अकेले बोर ही हो रही थी. दोनों सखियां गप मार रही थीं. तभी दरवाजे पर बूटों की आवाज हुई और कौलबैल बजी. अमेरिकन आर्मी के 2 औफिसर्स उस के घर आए थे. ईवा उन को देखते ही भयभीत हो गई थी, क्योंकि घर पर फुल यूनिफौर्म में आर्मी वालों का आना अकसर वीरगति प्राप्त सैनिकों की सूचना ही लाता है. वे डेविड की मृत्यु का संदेश ले कर आए थे और यह भी कि शहीद डेविड का शव कल दोपहर तक ईवा के घर पहुंच जाएगा. ईवा को काटो तो खून नहीं. उस का रोतेरोते बुरा हाल था. अचानक ऐसी घटना की कल्पना उस ने नहीं की थी.

रीता ने ईवा को काफी देर तक गले से लगाए रखा. उसे ढांढ़स बंधाया, उस के आंसू पोंछे. इस बीच ईवा का बेटा डेविड, जो कुछ देर पहले कार्टून देख रहा था, भी पास आ गया. रीता ने उसे भी अपनी गोद में ले लिया. ईवा और रिचर्ड दोनों के मातापिता नहीं थे. उन के भाईबहन थे. समाचार सुन कर वे भी आए थे, पर अंतिम क्रिया निबटा कर चले गए. उन्होंने जाते समय ईवा से कहा कि किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो बताओ, पर उस ने फिलहाल मना कर दिया था.

ईवा जौब में थी. वह औफिस जाते समय बेटे को डेकेयर में छोड़ जाती और दोपहर बाद उसे वापस लौटते वक्त पिक कर लेती थी. इधर, रीता ईवा के यहां अब ज्यादा समय बिताती थी, अकसर रात में उसी के यहां रुक जाती. डेविड को वह बहुत प्यार करती थी, वह भी ईवा से काफी घुलमिल गया था. इस तरह 2 साल बीत गए.

इस बीच रीता की जिंदगी में प्रदीप आया, दोनों ने कुछ महीने डेटिंग पर बिताए, फिर शादी का फैसला किया. प्रदीप भी भारतीय मूल का अमेरिकन था और एक आईटी कंपनी में काम करता था. रीता और प्रदीप दोनों ही ईवा के घर अकसर जाते थे.

कुछ महीनों बाद ईवा बीमार रहने लगी थी. उसे अकसर सिर में जोर का दर्द, चक्कर, कमजोरी और उलटी होती थी. डाक्टर्स को ब्रेन ट्यूमर का शक था. कुछ टैस्ट किए गए. टैस्ट रिपोर्ट्स लेने के लिए ईवा के साथ रीता और प्रदीप दोनों गए थे. डाक्टर ने बताया कि ईवा का ब्रेन ट्यूमर लास्ट स्टेज पर है और वह अब चंद महीनों की मेहमान है. यह सुन कर ईवा टूट चुकी थी, उस ने रीता से कहा, ‘‘मेरी मृत्यु के बाद मेरा बेटा डेविड अनाथ हो जाएगा. मुझे अपने किसी रिश्तेदार पर भरोसा नहीं है. क्या तुम डेविड के बड़ा होने तक उस की जिम्मेदारी ले सकती हो?’’

रीता और प्रदीप दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे. उन्होंने ऐसी परिस्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. तभी ईवा बोली, ‘‘देखो रीता, वैसे कोई हक तो नहीं है तुम पर कि डेविड की देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हें दूं पर 25 वर्षों से

हम एकदूसरे को भलीभांति जानते हैं. एकदूसरे के सुखदुख में साथ रहे हैं, इसीलिए तुम से रिक्वैस्ट की.’’

दरअसल, रीता प्रदीप से डेटिंग के बाद प्रैग्नैंट हो गई थी और दोनों जल्दी ही शादी करने जा रहे थे. इसलिए इस जिम्मेदारी को लेने में वे थोड़ा झिझक रहे थे. तभी प्रदीप बोला, ‘‘ईवा, डोंट वरी. हम लोग मैनेज कर लेंगे.’’

ईवा ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘थैंक्स डियर. रीता क्या तुम एक प्रौमिस करोगी?’’ रीता ने स्वीकृति में सिर हिलाया और ईवा से गले लगते हुए कहा, ‘‘तुम अब डेविड की चिंता छोड़ दो. अब वह मेरी और प्रदीप की जिम्मेदारी है.’’

ईवा बोली, ‘‘थैंक्स, बोथ औफ यू. मैं अपनी प्रौपर्टी और बैंक डिपौजिट्स की पावर औफ अटौर्नी तुम दोनों के नाम कर दूंगी. डेविड के एडल्ट होने तक इस की देखभाल तुम लोग करोगे. तुम्हें डेविड के लिए पैसों की चिंता नहीं करनी होगी, प्रौमिस.’’

रीता और प्रदीप ने प्रौमिस किया. और फिर रीता ने अपनी प्रैग्नैंसी की बात बताते हुए कहा, ‘‘हम लोग इसीलिए थोड़ा चिंतित थे. शादी, प्रैग्नैंसी और डेविड सब एकसाथ.’’

ईवा बोली, ‘‘मुबारक हो तुम दोनों को. यह अच्छा ही है डेविड को एक भाई या बहन मिल जाएगी.’’

2 सप्ताह बाद रीता और प्रदीप ने शादी कर ली. डेविड तो पहले से ही रीता से काफी घुलमिल चुका था. अब प्रदीप भी उसे काफी प्यार करने लगा था. ईवा ने छोटे से डेविड को समझाना शुरू कर दिया था कि वह अगर बहुत दूर चली जाए, जहां से वह लौट कर न आ सके, तो रीता और प्रदीप के साथ रहना और उन्हें परेशान मत करना. पता नहीं डेविड ईवा की बातों को कितना समझ रहा था, पर अपना सिर बारबार हिला कर हां करता और मां के सीने से चिपक जाता था.

3 महीने के अंदर ही ईवा का निधन हो गया. रीता ने ईवा के घर को रैंट पर दे कर डेविड को अपने घर में शिफ्ट करा लिया. शुरू के कुछ दिनों तक तो डेविड उदास रहता था, पर रीता और प्रदीप दोनों का प्यार पा कर धीरेधीरे नौर्मल हो गया.

रीता ने एक बच्चे को जन्म दिया. उस का नाम अनुज रखा गया. अनुज के जन्म के कुछ दिनों बाद तक ईवा उसी के साथ व्यस्त रही थी. डेविड कुछ अकेला और उदास दिखता था. रीता ने उसे अपने पास बुला कर प्यार किया और कहा, ‘‘तुम्हारे लिए छोटा भाई लाई हूं. कुछ ही महीनों में तुम इस के साथ बात कर सकोगे और फिर बाद में इस के साथ खेल भी सकते हो.’’

रीता और प्रदीप ने डेविड की देखभाल में कोई कमी नहीं की थी. अनुज भी अब चलने लगा था. घर में वह डेविड के पीछेपीछे लगा रहता था. डेविड के खानपान व रहनसहन पर भारतीय संस्कृति की स्पष्ट छाप थी. शुरू में तो वह रीता को रीता आंटी कहता था, पर बाद में अनुज को मम्मी कहते देख वह भी मम्मी ही कहने लगा था. शुरू के कुछ महीनों तक डेविड की मामी और चाचा उस से मिलने आते थे, पर बाद में उन्होंने आना बंद कर दिया था.

डेविड अब बड़ा हो गया था और कालेज में पढ़ रहा था. रीता ने उस से कहा कि वह अपना बैंक अकाउंट खुद औपरेट किया करे, लेकिन डेविड ने मना कर दिया और कहा कि आप की बहू आने तक आप को ही सबकुछ देखना होगा. रीता भी डेविड के जवाब से खुश हुई थी. अनुज कालेज के फाइनल ईयर में था.

3 वर्षों बाद डेविड को वेस्टकोस्ट, कैलिफोर्निया में नौकरी मिली. वह रीता से बोला, ‘‘मम्मी, कैलिफोर्निया तो दूसरे छोर पर है. 5 घंटे तो प्लेन से जाने में लग जाते हैं. आप से बहुत दूर चला जाऊंगा. आप कहें तो यह नौकरी जौइन ही न करूं. इधर टैक्सास में ही ट्राई करता हूं.’’

रीता ने कहा, ‘‘बेटे, अगर यह नौकरी तुम्हें पसंद है तो जरूर जाओ.’’

प्रदीप ने भी उसे यही सलाह दी. डेविड के जाते समय रीता बोली, ‘‘तुम अब अपना बैंक अकाउंट संभालो.’’

डेविड बोला ‘‘क्या मम्मी, कुछ दिन और तुम्हीं देखो यह सब. कम से कम मेरी शादी तक. वैसे भी आप का दिया क्रैडिट कार्ड तो है ही मेरे पास. मैं जानता हूं मुझे पैसों की कमी नहीं होगी.’’

रीता ने पूछा कि शादी कब करोगे तो वह बोला, ‘‘मेरी गर्लफ्रैंड भी कैलिफोर्निया की ही है. यहां ह्यूस्टन में राइस यूनिवर्सिटी में पढ़ने आई थी. वह भी अब कैलिफोर्निया जा रही है.’’

रीता बोली, ‘‘अच्छा बच्चू, तो यह राज है तेरे कैलिफोर्निया जाने का?’’

डेविड बोला, ‘‘नो मम्मी, नौट ऐट औल. तुम ऐसा बोलोगी तो मैं नहीं जाऊंगा. वैसे, मैं तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.’’

‘‘नहीं, तुम कैलिफोर्निया जाओ, मैं ने यों ही कहा था. वैसे, तुम क्या सरप्राइज देने वाले हो.’’

‘‘मेरी गर्लफ्रैंड भी इंडियन अमेरिकन है. मगर तुम उसे पसंद करोगी, तभी शादी की बात होगी.’’

रीता बोली, ‘‘तुम ने नापतोल कर ही पसंद किया होगा, मुझे पूरा भरोसा है.’’

इसी बीच अनुज भी वहां आया. वह बोला, ‘‘मैं ने देखा है भैया की गर्लफ्रैंड को. उस का नाम प्रिया है. डेविड और प्रिया दोनों को लाइब्रेरी में अनेक बार देर तक साथ देखा है. देखनेसुनने में बहुत अच्छी लगती है.’’

डेविड कैलिफोर्निया चला गया.

उस के जाने के कुछ महीनों बाद

ही प्रदीप का सीरियस रोड ऐक्सिडैंट हो गया था. उस की लोअर बौडी को लकवा मार गया था. वह अब बिस्तर पर ही था. डेविड खबर मिलते ही तुरंत आया. एक सप्ताह रुक कर प्रदीप के लिए घर पर ही नर्स रख दी. नर्स दिनभर घर पर देखभाल करती थी और शाम के बाद रीता देखती थीं.

रीता को पहले से ही ब्लडप्रैशर की शिकायत थी. प्रदीप के अपंग होने के कारण वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी और चिंतित रहती थी. उसे एक माइल्ड अटैक भी पड़ गया, तब डेविड और प्रिया दोनों मिलने आए थे. रीता और प्रदीप दोनों ने उन्हें जल्द ही शादी करने की सलाह दी. वे दोनों तो इस के लिए तैयार हो कर ही आए थे.

शादी के बाद रीता ने डेविड को उस की प्रौपर्टी और बैंक डिपौजिट्स के पेपर सौंप दिए. डेविड और प्रिया कुछ दिनों बाद लौट गए थे. इधर अनुज भी कालेज के फाइनल ईयर में था. पर रीता और प्रदीप दोनों ने महसूस किया कि डेविड उतनी दूर रह कर भी उन का हमेशा खयाल रखता है, जबकि उन का अपना बेटा, बस, औपचारिकताभर निभाता है. इसी बीच, रीता को दूसरा हार्ट अटैक पड़ा, डेविड इस बार अकेले मिलने आया था. प्रिया प्रैग्नैंसी के कारण नहीं आ सकी थी. रीता को 2 स्टेंट हार्ट के आर्टरी में लगाने पड़े थे, पर डाक्टर ने बताया था कि उस के हार्ट की मसल्स बहुत कमजोर हो गई हैं. सावधानी बरतनी होगी. किसी प्रकार की चिंता जानलेवा हो सकती है.

रीता ने डेविड से कहा, ‘‘मुझे तो प्रदीप की चिंता हो रही है. रातरात भर नींद नहीं आती है. मेरे बाद इन का क्या होगा? अनुज तो उतना ध्यान नहीं देता हमारी ओर.’’

डेविड बोला, ‘‘मम्मी, अनुज की तुम बिलकुल चिंता न करो. तुम को भी कुछ नहीं होगा, बस, चिंता छोड़ दो. चिंता करना तुम्हारे लिए खतरनाक है. आप, आराम करो.’’

कुछ महीने बाद थैंक्सगिविंग की छुट्टियों में डेविड और प्रिया रीता के पास आए. साथ में उन का 4 महीने का बेटा भी आया. रीता और प्रदीप दोनों ही बहुत खुश थे. इसी बीच रीता को मैसिव हार्ट अटैक हुआ. आईसीयू में भरती थी. डेविड, प्रिया और अनुज तीनों उस के पास थे. डाक्टर बोल गया कि रीता की हालत नाजुक है. डाक्टर ने मरीज से बातचीत न करने को भी कहा.

रीता ने डाक्टर से कहा, ‘‘अब अंतिम समय में तो अपने बच्चों से थोड़ी देर बात करने दो डाक्टर, प्लीज.’’

फिर रीता किसी तरह डेविड से बोल पाई, ‘‘मुझे अपनी चिंता नहीं है. पर प्रदीप का क्या होगा?’’ डेविड बोला, ‘‘मम्मी, तुम चुप रहो. परेशान मत हो.’’  वहीं अनुज बोला, ‘‘मम्मा, यहां अच्छे ओल्डएज होम्स हैं. हम पापा को वहां शिफ्ट कर देंगे. हम लोग पापा से बीचबीच में मिलते रहेंगे.’’

ओल्डएज होम्स का नाम सुनते ही रीता की आंखों से आंसू गिरने लगे. उसे अपने बेटे से बाप के लिए ऐसी सोच की कतई उम्मीद नहीं थी. उस की सांसें और धड़कन काफी तेज हो गईं.

डेविड अनुज को डांट रहा था, प्रिया ने कहा, ‘‘मम्मी, जब से आप की तबीयत बिगड़ी है, हम लोग भी पापा को ले कर चिंतित हैं. हम लोगों ने आप को और पापा को कैलिफोर्निया में अपने साथ रखने का फैसला किया है. वहां आप लोगों की जरूरतों के लिए खास इंतजाम कर रखा है. बस, आप यहां से ठीक हो कर निकलें, बाकी आगे सब डेविड और मैं संभाल लेंगे.’’

रीता ने डेविड और प्रिया दोनों को अपने पास बुलाया, उन के हाथ पकड़ कर कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, उस की सांसें बहुत तेज हो गईं. अनुज दौड़ कर डाक्टर को बुलाने गया. इस बीच रीता किसी तरह टूटतीफूटती बोली में बोली, ‘‘अब मुझे कोई चिंता नहीं है. चैन से मर सकूंगी. मेरा प्यारा अमेरिकन बेटा.’’ इस के आगे वह कुछ नहीं बोल सकी.

जब तक अनुज डाक्टर के साथ आया, रीता की सांसें रुक चुकी थीं. डाक्टर ने चैक कर रहा, ‘‘शी इज नो मोर.’’

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