छोटे छोटे सुख दुख: राशि ने फ्लैट बेचने का मन क्यों बना लिया?

राशि हाथों का सामान संभालती हुई तेजी से बिल्डिंग के अंदर घुस कर लिफ्ट की तरफ बढ़ी. लिफ्ट का दरवाजा खुला था. जल्दी से अंदर प्रवेश कर चौथी मंजिल का बटन दबा दिया. अब उस ने ध्यान दिया तो उस के पड़ोसी तीसरी मंजिल पर रहने वाले रोनितजी तना हुआ चेहरा लिए खड़े थे. राशि ने हलके से मुसकराने की कोशिश की यह सोच कर कि अगर रोनितजी के चेहरे पर कुछ सहज भाव दिखे तो वह दुआसलाम कर सकती है पर रोनितजी का तना चेहरा तना ही रहा.

कैसेकैसे लोग होते हैं इस दुनिया में… मिनटों की बात घंटों, घंटों की बात दिनों, दिनों की बात महीनों और महीनों की सालों… यहां तक कि पूरी जिंदगी याद रखते हैं, राशि मन ही मन बड़बड़ाई. रोनित तीसरी मंजिल पर बाहर निकल गए. अपने फ्लैट पर जा कर राशि ने बैल बजाई.

‘‘बहुत देर कर दी… मोबाइल भी नहीं उठा रही थी… मुझे बहुत चिंता हो रही थी,’’ सुमित राशि को देखते ही बोला. ‘‘उफ, अंदर तो आने दो… कितनी गरमी है बाहर… सड़क के शोर में मोबाइल की आवाज सुनाई नहीं दी होगी,’’ कह वह अंदर आ गई. सुमित उस के लिए पानी ले आया. अक्तूबर का महीना खत्म होने को था पर गरमी अभी भी जारी थी. राशि ने पंखा चला दिया और सुस्ताने बैठ गई.

‘‘पता है, अभी लिफ्ट में रोनितजी मिल गए… लगता है इन लोगों का गुस्सा तो जिंदगीभर खत्म नहीं होगा… मनीषा भी पता नहीं आए दिन क्या कह कर भरमाती रहती है अपने पति को… बात खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है,’’ राशि कुछकुछ हताश सी बोली. ‘‘छोड़ो न उन को…’’ सुमित उसे शब्दों से दिलासा देते हुए बोला, ‘‘मैं तो पहले ही सोसाइटी के फ्लैट्स में आने के पक्ष में नहीं था… अपना इंडीपैंडैंट घर चाहता था… फ्लैट्स में न फर्श अपनी न छत… कुछ भी गड़बड़ होती है तो ऊपरनीचे वालों के साथ मुश्किल हो जाती है… पर तुम्हें ही शौक था फ्लैट लेने का कि वहां साथ हो जाता है… मिलजुल कर तीजत्योहार मन जाते हैं…’’ ‘‘गलत भी तो नहीं कहा था… और लोग तो ठीक ही हैं… पर अपने निकट पड़ोसी ही ऐसे निकलेंगे सोचा नहीं था.’’ राशि हंसमुख स्वभाव की खुशमिजाज महिला थी. छोटेछोटे 2 बच्चे स्कूल में पढ़ते थे. अनामिका अपार्टमैंट नामक इस बिल्डिंग में 1 साल पहले ही उन्होंने फ्लैट खरीदा था. 4 मंजिला इस बिल्डिंग में कुल मिला कर 16 फ्लैट्स थे.

उन की सोसाइटी की एक समिति बनी हुई थी, जिस में हर तीजत्योहार या नया साल आने पर परिवार को कुछ रुपए जमा करने पड़ते थे. मिलजुल कर त्योहार मनता, डिनर होता अच्छा लगता था. कभी कपल्स के प्रोग्राम होते तो कभी सिर्फ लेडीज के. तीज, करवाचौथ या वूमंस डे पर लेडीज मिल कर प्रोग्राम कर लेतीं. 16 परिवारों में 2-3 परिवारों को छोड़ कर बाकी सब परिवार समझदार व मिलजुल कर रहने वाले थे. अलगअलग एजग्रुप के होने के बावजूद कभी किसी के बीच कोई खास दिक्कत नहीं आई.

जब 1 साल पहले उन्होंने यह फ्लैट खरीदा था तो सामने के फ्लैट में रहने वाली शिवानी ने उसे आगाह किया था कि तुम्हारे नीचे के फ्लैट में रहने वाली मनीषा से जरा बच कर चलना, बहुत ही सैंसिटिव नेचर की है. जराजरा सी बात पर बुरा मान कर मुंह फुला कर बैठ जाती है… अब ऐसा भी कहीं होता है, सब के साथ रह कर तो थोड़ाबहुत हंसीमजाक चलता ही है… छोटीछोटी बातें तो होती रहती हैं. नजरअंदाज करना आना चाहिए… पर मनीषा का स्वभाव ही निराला है… कोई ऐसा नहीं है, जिस से उस की नाराजगी न हुई हो. राशि ने यह बात जब सुमित को बताई, तो वह ठठा कर हंस पड़ा था, ‘‘हो गई न तेरीमेरी उस की बात शुरू… टिपिकल औरतों वाली बात… इन सब चक्करों में ज्यादा मत उलझना… तुम्हारा लेखन कार्य बाधित होगा… बस हैलो सब से रखो. खिचड़ी किसी के साथ मत पकाओ…’’ धीरेधीरे राशि की सब से जानपहचान होने लगी. मनीषा से शुरू में तो उसे कोई परेशानी नहीं महसूस हुई. वैसे भी वह किसी के व्यक्तिगत जीवन से अधिक लेनादेना नहीं रखती थी.

इसलिए उस की अधिकतर लोगों से पट जाती थी. उस ने ध्यान दिया कि मनीषा, रजनी व संजना की आपस में खूब बनती थी. संजना राशि के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी और रजनी शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में यानी सारा कबाड़ मेरे आसपास ही इकट्ठा है. राशि मन ही मन हंसी. मनीषा, संजना व रजनी ये तीनों महिलाएं अपने असहयोगी स्वभाव के लिए पूरे अनामिका अपार्टमैंट में बदनाम थीं और जानेअनजाने उन के पति भी. राशि को अभी कुछ ही महीने हुए थे यहां आए हुए. एक दिन सुबह दूधवाले के घंटी बजाने पर उस ने दरवाजा खोला तो ठीक दरवाजे पर कुत्ते ने पौटी की हुई थी. सुबहसुबह पौटी देख कर दिमाग भन्ना गया. दूध ले कर वह अंदर चली गई. उस दिन सफाई वाली से मिन्नत कर के अलग से पैसे दे कर उस ने पौटी साफ करवा दी. लेकिन उस के बाद यह रोज ही होने लगा. एक दिन राशि ने तैश में आ कर सामने शिवानी के फ्लैट की घंटी बजा दी.

शिवानी बाहर आ गई.  ‘‘शिवानी, यह कुत्ता किस ने पाल रखा है… रोज मेरे दरवाजे पर पौटी कर जाता है… मैं परेशान हो गई हूं.’’ जवाब में शिवानी के होंठों पर रहस्यमय मुसकराहट उभर आई. बोली, ‘‘मनीषा ने पाल रखा है… छोड़ देती है उसे सुबह बाहर… फिर यह नहीं देखती कि नीचे गया या ऊपर… आजकल ऊपर आने की आदत पड़ गई होगी… मैं भी परेशान हो गई थी इस बात से… कुछ बोलो तो बुरा मान जाती है…’’ कुछ सोच कर राशि नीचे उतरी और मनीषा के फ्लैट की घंटी दबा दी. दरवाजा खुलने तक वह अपने चेहरे पर शांत मुसकराहट ले आई थी. मनीषा ने दरवाजा खोला, तो राशि ने कहा, ‘‘हैलो मनीषा…’’ ‘‘अरे राशि तुम… आओआओ बैठो…’’ ‘‘नहीं इस समय मैं बैठने नहीं आई हूं… बस एक छोटी सी समस्या थी… दरअसल, तुम्हारा डौगी रोज ऊपर जा कर मेरे दरवाजे के सामने पौटी कर देता है… मुझे रोज सफाई करवानी पड़ती है… बहुत दिक्कत होती है… मैं सोच रही थी, अगर तुम उसे चेन से बांध कर सड़क पर ले जाओ तो मेरी परेशानी खत्म हो जाएगी और डौगी को भी अच्छी आदत पड़ जाएगी.’’ सुनते ही मनीषा का चेहरा गुस्से से तन गया, ‘‘राशि तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे तुम ने उसे खुद पौटी करते देखा हो… बिल्डिंग का गेट खुला रहता है हर वक्त. दरबान भी ध्यान नहीं रखता है… आसपास के अपार्टमैंट वाले भी अपनाअपना कुत्ता खुला छोड़ देते हैं सड़क पर… पता नहीं कौन आ कर जाता होगा.’’ मनीषा की ऊंची होती आवाज से राशि संकोच से गड़ गई कि आसपास के फ्लैट्स के दरवाजे न खुलने लग जाएं. ‘‘हो सकता है मनीषा,’’ कह कर वह बात खत्म कर लौट गई.

पर उस के बाद उस के दरवाजे पर कुत्ते की पौटी बंद हो गई. इस के बाद वह जब भी मनीषा से टकराई, मनीषा ने सीधे मुंह बात नहीं की. उस का व्यवहार देख कर राशि सोच में पड़ गई कि आखिर उस की गलती क्या है. शायद शिवानी सही कहती है. उस दिन राशि सुबह उठी तो फ्लश जाम हो गया. फ्लश से पानी नीचे नहीं जा पा रहा था और ऊपर के फ्लैट से फ्लश हो कर पानी नीचे न जा पाने के कारण नाली में भर कर उन के पौट से बाहर निकलने को हो रहा था.

वह और सुमित परेशान हो गए. नीचे जा कर उस ने मनीषा को अपनी परेशानी बताई व सुमित ने ऊपर वाले फ्लैट में जा कर संजना के पति से फिलहाल उस वाले बाथरूम को इस्तेमाल न करने की प्रार्थना की. पर मनीषा, जो पहले से ही नाराज चल रही थी, सुनते ही भड़क गई. ‘‘हमारे यहां तो कोई दिक्कत नहीं…तुम्हारे यहां है, तुम जानो.’’  ‘‘मैं यह नहीं कह रही मनीषा कि तुम्हारे कारण दिक्कत है… समस्या तो कहीं बीच  में है… प्लंबर को बुलाने जा रहे हैं सुमित… पर थोड़ी दिक्कत तुम्हें भी होगी… प्लंबर यहां भी आएगा… देखेगा कि आखिर दिक्कत कहां है…’’ ‘‘मुझे तो आज बाहर जाना है… घर पर नहीं हूं.’’ ‘‘उफ, तो ऐसा करो तुम मुझे चाबी दे जाना… मैं खुद यहां पर खड़ी हो कर काम करवा लूंगी.’’ ‘‘अरे ऐसे कैसे चाबी दे दूं… पता नहीं कौन प्लंबर है… हर ऐरेगैरे नत्थु खैरे को घर में घुसा दो,’’ मनीषा बड़बड़ाने लगी. ‘‘देखो मनीषा, प्लंबर को दिखाना तो पड़ेगा… यह परेशानी भुगती तो नहीं जा सकती… ठीक तो करवानी ही पड़ेगी,’’ कह कर राशि ऊपर आ गई. उस दिन मनीषा के पति रोनित ने बात संभाल ली. प्लंबर आया. मनीषा के फ्लैट से ही उसे पाइप की प्रौबलम ठीक करनी पड़ी.

लेकिन मनीषा का राशि से उखड़ा मूड और भी उखड़ गया. शिवानी के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाली रजनी भी कुछ कम नहीं थी. शिवानी तो इन तीनों से कई बार उलझ भी पड़ती, फिर ठीक भी हो जाती. पर राशि के बस का नहीं था ये सब कि कभी झगड़ा कर पीठ पीछे बुराइयां करो और फिर साथ बैठ कर कौफी पी लो. छोटीछोटी बातों पर किसी से झगड़ा करना नहीं आता था. एक दिन कूड़े वाला राशि की कूड़े की थैली उठा कर ले गया और रजनी के दरवाजे के सामने रख कर भूल गया.

रजनी ने शोर मचा दिया, ‘‘न जाने किस बदतमीज ने रख दिया यहां कूड़ा… शर्म नहीं आती… अनपढ़गंवार कहीं के…’’ बाहर शोर सुन कर राशि भी बाहर निकल आई. राशि दरवाजे पर रखी अपनी कूड़े की थैली तुरंत पहचान गई. जल्दी से नीचे उतर कर उस ने थैली उठा ली, ‘‘सौरी रजनी… लगता है कूड़ेवाला भूल से छोड़ गया,’’ पर रजनी के चेहरे के भाव व पहले सुने गए शब्द उसे अंदर तक अपमानित कर गए थे. अपार्टमैंट में होने वाले होली, दीवाली, नए साल, क्रिसमस के प्रोग्राम राशि को भी अच्छे लगते, खुशी देते पर ये छोटीछोटी परेशानियां उसे अंदर तक आहत कर देतीं.

सुमित राशि को समझाता, ‘‘मैं तो सोसाइटी के फ्लैट में आना ही नहीं चाहता था पर अब आ गए हैं तो सब के स्वभाव को झेलने की आदत बना लो… शिवानी भी तो यहीं रह रही है… इतना सैंसिटिव होने की जरूरत नहीं है. सब की अपनी फितरत होती है… कोई हमारी तरह का नहीं हो सकता… जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार कर लो… और क्या कर सकते हैं…’’ ‘‘पर फिर भी सुमित… आतेजाते ऐसे तनाव भरे चेहरे देख कर अच्छा नहीं लगता… थोड़े दिन ठीक रहती हैं ये तीनों, फिर लड़ पड़ती हैं किसी न किसी बात पर… अब फ्लैट्स इतने जुड़े होते हैं कि किसी से बिना मतलब रखे भी नहीं रहा जा सकता.’’

‘‘जैसे उस से रहा जाता है वैसे ही तुम भी रहो… तुम हर बात की परवाह क्यों करती हो. कुछ न कुछ प्रौबलम तो सब जगह होगी.’’ ऐसे ही छोटेछोटे सुखदुख के बीच जिंदगी बीत रही थी. राशि को भी धीरेधीरे 1 साल रहते होने को आ गया था. सुमित का प्रमोशन हुआ तो उस ने 16 परिवारों से सिर्फ 16 लेडीज को चाय पर बुला लिया. सब आईं सिवा मनीषा, रजनी व संजना के. बाकी सब ने कारण पूछा तो राशि को कारण ठीक से पता हो तो बताए. इतने छोटेछोटे भी कोई कारण होते हैं न्योता ठुकराने के. शिवानी को इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता था.

जब वे तीनों ठीक रहतीं तो वह भी अच्छे से बात कर लेती, जब नहीं रहतीं तो वह भी खुद मुंह पलट कर चली जाती. ‘‘लगता है, रजनी के घर आजकल मेहमान आए हैं. काफी चहलपहल रहती है,’’ एक दिन सुबह चाय पीती हुई राशि सुमित से कह रही थी कि तभी 3-4 बार जल्दीजल्दी घंटी बज उठी. ‘‘इतनी सुबह ऐसी घंटी कौन बजा रहा है,’’ हड़बड़ाहट में दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े. रजनी की कामवाली खड़ी थी, ‘‘भाभीजी, जल्दी नीचे चलिए रजनी भाभी के ससुरजी गुजर गए.’’ ‘‘ससुरजी गुजर गए… उन के सासससुर आए हुए थे क्या?’’ ‘‘हां, जल्दी चलिए… रात में उन की तबीयत खराब हुई… भैया अस्पताल ले कर गए थे… सुबह गुजर गए. घर में सिर्फ भाभीजी और उन की सास हैं…भैया अभी अस्पताल में ही हैं.’’ सुमित और राशि हड़बड़ाहट में सीढि़यां उतर गए.

अंदर दोनों सासबहू विलाप कर रही थीं. राशि दोनों को सांत्वना देने लगी. थोड़ी देर में पार्थिव शरीर घर आ गया. फ्लैट रिश्तेदारों व जानपहचान वालों से भरने लगा. राशि ने रजनी के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी सहर्ष अपने ऊपर ले ली. वह उन्हें अपने घर ले आई. जितनी मदद कर सकती थी उस ने सारे पूर्वाग्रह भूल कर उन की 13 दिन तक की.  13वीं हो गई. इस मुसीबत के वक्त राशि का सहयोग रजनी के दिल को छू  गया. अब वह संजना व मनीषा की परवाह करे बगैर राशि से ठीक से रिश्ता रखने लगी. संजना से राशि का आमनासामना तब भी कम होता था पर मनीषा से अकसर हो जाता था. इसलिए मनीषा का दुर्व्यवहार उसे बहुत अखरता था. संजना का बेटा मयंक और मनीषा की बेटी खुशी एक ही स्कूल में पढ़ते व एक ही रिकशे से स्कूल आतेजाते थे.

उस दिन सुमित की छुट्टी होने के कारण राशि और सुमित मार्केट से लौट रहे थे तो रास्ते में सड़क में भीड़ देख कर वे भी रुक गए. ‘‘क्या हुआ? उन्होंने एक राहगीर से पूछा.’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हुआ है… एक रिकशे को कार ने टक्कर मार दी… 2 बच्चे बैठे थे रिकशे में…’’ ‘‘उफ, बच्चे तो ठीक हैं.’’ ‘‘चोटें आई हैं काफी.’’ सुमित उतर कर देखने चला गया. घायल मयंक व खुशी सड़क पर बैठे रो रहे थे. रिकशे वाले व कार चालक के बीच लड़ाई हो रही थी.

‘‘तुम यहां झगड़ा करने लगे हो… बच्चों के कितनी चोटें लगी हैं… तुम से यह नहीं दिख रहा. इन्हें पहले तुरंत अस्पताल ले जाओ,’’ सुमित रिकशे वाले पर बरस पड़ा.  रिकशे वाला उसे पहचानता था. बोला, ‘‘साहब, मेरा रिकशा तो पूरी तरह टूट गया… जब तक भरपाई नहीं होगी तब तक नहीं छोड़ूंगा इन को.’’ ‘‘चाहे बच्चों का नुकसान हो जाए,’’ सुमित दहाड़ते हुए बोला, ‘‘मैं बच्चों को अस्पताल ले कर जा रहा हूं,’’ कह वह बच्चों को अपने साथ कार तक ले आया. बच्चों को इस हाल में देख कर राशि भी घबरा गई, ‘‘यह क्या हुआ?’’ ‘‘ऐक्सीडैंट हो गया… बच्चे इस समय स्कूल से लौट रहे होंगे,’’ सुमित बोला, ‘‘तुम मनीषा व संजना को फोन कर दो. मैं कार मोड़ कर इन्हें अस्पताल ले जाता हूं. उन्हें वहीं आने के लिए कह दो,’’ और फिर सुमित बच्चों को अस्पताल ले गया. जब तक दोनों बच्चों के मातापिता अस्पताल पहुंचे तब तक मयंक के सिर पर टांके और खुशी के हाथ में प्लास्टर चढ़ चुका था. संजना व मनीषा और उन के पतियों के कृतज्ञन चेहरे बिना कहे भी बहुत कुछ कह रहे थे.

‘‘अभी तो स्थिति कुछ ऐसी बन गई है कि तुम्हारी तीनों सहेलियों के मुंह से फिलहाल बोल नहीं फूटेंगे…’’ सुमित हंस कर राशि की खिंचाई करते हुए बोला, ‘‘फिलहाल कुछ दिन तक तो बहुत मिठास घोल कर बातें करने वाली हैं तीनों… कम से कम जब तक बच्चे ठीक नहीं हो जाते.’’ ‘‘हां, यह तो है. थोड़े दिन की टैंशन खत्म, राशि हंसने लगी.’’ आजकल सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है. शिवानी, संजना, मनीषा, राशि चारों नीचे टहलती हुई मिल जातीं तो बढि़या बातें होतीं. चारों में हंसीमजाक होती, चुहलबाजी भी होती. राशि को अच्छा लग रहा था कि चलो अब सब अच्छा रहेगा. 2 महीने गुजर गए. एक दिन सुबह राशि ने दूध लेने के लिए दरवाजा खोला तो दरवाजे के बीचोंबीच कुत्ते की पौटी पड़ी थी, उफ, राशि मन ही मन भड़क गई कि फिर वही… अब कुछ कहेगी तो मनीषा फिर भड़क जाएगी और नहीं कहती है तो रोज पौटी साफ करनी पड़ेगी. दूसरे दिन सुबह थोड़ा जल्दी उठ कर राशि ने दरवाजा खोल दिया और ऐसे बैठ गई कि यदि कुत्ता पौटी करने आए तो उसे दिखाई दे.

थोड़ी देर में मनीषा का कुत्ता सचमुच आ गया. राशि ने जोर से डांट कर भगा दिया.  इसी बीच दूध वाला भी आ गया. दूध वाले से बोली, ‘‘भैया, जरा नीचे की घंटी बजा कर बता देना कि आप का डौगी फिर यहां दरवाजे के आगे पौटी करने लगा है.’’ दूसरे दिन राशि नीचे टहल रही थी, तो मनीषा ने उसे देख कर फिर मुंह फेर लिया. ‘उफ, अब संजना और रजनी भी यही करेंगी.’

वह मन ही मन बड़बड़ाई. फिर उस ने भी तय कर लिया कि वह भी किसी की परवाह नहीं करेगी और फिर मुंह पलट टहलने दूसरी तरफ चली गई. रात को सुमित से बोली, ‘‘तुम ठीक कहते थे… मुझे भी यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा… यह फ्लैट बेच कर कहीं इंडीपैंडैंट घर देखो.’’   सुमित ने थोड़ी देर उस के चेहरे को निहारा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, कल  ही बात करता हूं किसी प्रौपर्टी डीलर से.’’ सुमित के गालब्लैडर में पथरी थी. काफी समय से डाक्टर उसे औपरेशन के लिए कह रहे थे. पर आजकल करतेकरते सुमित टाल रहा था. लेकिन इस बार जब उसे दोबारा से दर्द हुआ तो डाक्टर ने उसे औपरेशन कराने की सख्त हिदायत दे डाली. आखिर सुमित औपरेशन के लिए तैयार हो गया. औपरेशन की डेट फिक्स कर उस ने औफिस से छुट्टी ले ली.

राशि के दोनों बच्चे बहुत छोटे तो नहीं थे, पर उन के खानेपीने की समस्या तो थी ही. औपरेशन के विषय में उस ने सिर्फ शिवानी को ही बताया था, पर यह खबर जंगल में आग की तरह पूरे अपार्टमैंट में फैल गई. सुमित औपरेशन के लिए अस्पताल में ऐडमिट हुआ तो सारा ‘अनामिका अपार्टमैंट’ जैसे वहीं आ गया. सुमित का औपरेशन ठीकठाक हो गया. अस्पताल में कहां से उस के लिए खाना पहुंच रहा है, कहां से सूप, दलिया, खिचड़ी पहुंच रही है, उस के बच्चे कहां खाना खा रहे हैं, बच्चे स्कूल कैसे जा रहे हैं, उन को टिफिन कौन बना कर दे रहा है, घर में काम करने वाली से काम कौन करवा रहा है ये सब सोचने की राशि को फुरसत नहीं थी. बस सारे काम हो रहे थे.

शिवानी के साथ रजनी, संजना, मनीषा बढ़चढ़ कर सब कुछ कर रही थीं. कहीं से नहीं लग रहा था कि वे कभी नाराज भी होती होंगी. सुमित घर आ गया और फिर ठीक हो कर औफिस भी जाने लगा. लेकिन राशि की सोच इस बीच रास्ता बदल चुकी थी. कहीं नहीं जाना है उसे यहां से. यहीं रहेगी. अजीब सा दिल जुड़ गया है इन सब के साथ… छोटेछोटे सुखदुख हैं सब के साथ रहने में… सब जगह कुछ न कुछ होंगे… चलता है. उस ने सोचा सुमित को आज ही न करना पड़ेगा. शिवानी का तरीका सही है, सब के साथ भी और सब से अलग भी सोच कर राशि मुसकरा पड़ी.

Summer Special: शाइनी नेल्स के लिए घर पर करें नींबू से मैनीक्‍योर

हाथों में मात्र कुछ तेल ग्रंथियां होने के कारण हमारी उंगलियां जल्‍द ही सूख जाती हैं. रोज धूल और मिट्टी के संपर्क में आने वालें हमारे हाथों को जरुरत होती है एक अच्‍छे मैनीक्‍योर की, जिससे नाखूनों की सही देखभाल हो सके और वह चमकदार बन सकें.

आप चाहें तो अपने घर में भी मैनीक्‍योर कर सकती हैं जो न केवल सस्‍ते में होगा बल्कि काफी प्रभावपूर्ण भी होगा. नींबू द्वारा किया गया मैनीक्‍योर काफी लाभकरी होता है. चलिए जानते हैं कि चमकदार नाखून पाने के लिए आप इसका प्रयोग कैसे कर सकती हैं.

1. नींबू –

अगर आप ज्‍यादा कुछ नहीं कर सकतीं तो केवल नींबू को स्‍लाइस में काट लीजिए और उसी से अपना मेनीक्‍योर करिए. अपने नाखूनों को 2-4 मिनट के लिए गरम पानी में डाल कर उसे नींबू से रगडिए. इससे उगंलियों का कालापन चला जाएगा. यह करने के बाद अपनी उंगलियों को गरम पानी से धो लें ओर क्रीम लगा लें.

2. नींबू और नमक –

नींबू को रगड़ते समय अपने नाखूनों पर नमक छिड़क लें और उंगलियों के आस पास मृत त्‍वचा को साफ कर लें. एक तरीका यह भी है कि गरम पानी में नमक और नींबू निचोड़ लें और उसमें 5-7 मिनट के लिए अपनी उंगलियों को डुबोएं और ब्रश की मदद से उन्‍हें साफ करें.

3. नींबू और ग्लिसरीन –

अगर आप की त्‍वचा ड्राई है तो नींबू से मेनीक्‍योर करते वक्‍त उसमें 4-5 बूदें ग्‍लिसरीन की डाल लें. इस घोल में अपनी उंगलियों को 5-7 मिनट डाले और मृत त्‍वचा को साफ कर लें. केवल नींबू के प्रयोग से त्‍वचा के ड्राई हो जाने का डर रहता है पर अगर आप ग्‍लिसरीन का उपयोग करेगीं तो आपके नाखून चमक उठेगें.

4. नींबू और शक्‍कर –

जहां आप नींबू का उपयोग मेनीक्‍योर के लिए करेगीं वहीं पर शक्‍कर का उपयोग स्‍क्रब के रूप में होगा. नींबू के रस में थोड़ी सी चीनी मिला लें और उससे स्‍क्रब करें.

तपस्या: क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली?

शैली उस दिन बाजार से लौट रही थी कि वंदना उसे रास्ते में ही मिल गई.

‘‘तू कैसी है, शैली? बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी. आ, चल, सामने रेस्तरां में बैठ कर कौफी पीते हैं.’’

वंदना शैली को घसीट ही ले गई थी. जाते ही उस ने 2 कप कौफी का आर्डर दिया.

‘‘और सुना, क्या हालचाल है? कोई पत्र आया शिखर का?’’

‘‘नहीं,’’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर शैली का मन उदास  हो गया था.

‘‘सच शैली कभी तेरे बारे में सोचती हूं तो बड़ा दुख होेता है. आखिर ऐसी क्या जल्दी पड़ी थी तेरे पिताजी को जो तेरी शादी कर दी? ठहर कर, समझबूझ कर करते. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल तो है नहीं.’’

इस बीच बैरा मेज पर कौफी रख गया और वंदना ने बातचीत का रुख दूसरी ओर मोड़ना चाहा.

‘‘खैर, जाने दे. मैं ने तुझे और उदास कर दिया. चल, कौफी पी. और सुना, क्याक्या खरीदारी कर डाली?’’

पर शैली की उदासी कहां दूर हो पाई थी. वापस लौटते समय वह देर तक शिखर के बारे में ही सोचती रही थी. सच कह रही थी वंदना. शादीब्याह कोई गुड्डेगुडि़या का खेल थोड़े ही होता है. पर उस के साथ क्यों हुआ यह खेल? क्यों?

वह घर लौटी तो मांजी अभी भी सो ही रही थीं. उस ने सोचा था, घर पहुंचते ही चाय बनाएगी. मांजी को सारा सामान संभलवा देगी और फिर थोड़ी देर बैठ कर अपनी पढ़ाई करेगी. पर अब कुछ भी करने का मन नहीं हो रहा था. वंदना उस की पुरानी सहेली थी. इसी शहर में ब्याही थी. वह जब भी मिलती थी तो बड़े प्यार से. सहसा शैली का मन और उदास हो गया था. कितना फर्क आ गया था वंदना की जिंदगी में और उस की  अपनी ंिंजदगी में. वंदना हमेशा खुश, चहचहाती दिखती थी. वह अपने पति के साथ  सुखी जिंदगी बिता रही थी. और वह…अतीत की यादों में खो गई.

शायद उस के पिता भी गलत नहीं होंगे. आखिर उन्होंने शैली के लिए सुखी जिंदगी की ही तो कामना की थी. उन के बचपन के मित्र सुखनंदन का बेटा था शिखर. जब वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था तभी  उन्होंने  यह रिश्ता तय कर दिया था. सुखनंदन ने खुद ही तो हाथ मांग कर यह रिश्ता तय किया था. कितना चाहते थे वह उसे. जब भी मिलने आते, कुछ न कुछ उपहार अवश्य लाते थे. वह भी तो उन्हें चाचाजी कहा करती थी.

‘‘वीरेंद्र, तुम्हारी यह बेटी शुरू से ही मां के अभाव में पली है न, इसलिए बचपन में ही सयानी हो गई है,’ जब वह दौड़ कर उन की खातिर में लग जाती तो वह हंस कर उस के पिता से कहते.

फिर जब शिखर इंजीनियर बन गया तो शैली के पिता जल्दी शादी कर देने के लिए दबाव डालने लगे थे. वह जल्दी ही रिटायर होने वाले थे और उस से पहले ही यह दायित्व पूरा कर लेना चाहते थे. पर जब सुखनंदन का जवाब आया कि शिखर शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रहा है तो वह चौंक पड़े थे. यह कैसे संभव है? इतने दिनों का बड़ों द्वारा तय किया रिश्ता…और फिर जब सगाई हुई थी तब तो शिखर ने कोई विरोध नहीं किया था…अब क्या हो गया?

शैली के पिता ने खुद भी 2-1 पत्र लिखे थे शिखर को, जिन का कोई जवाब नहीं आया था. फिर वह खुद ही जा कर शिखर के बौस से मिले थे. उन से कह कर शायद जोर डलवाया था उस पर. इस पर शिखर का बहुत ही बौखलाहट भरा पत्र आया था. वह उसे ब्लैकमेल कर रहे हैं, यह तक लिखा था उस ने. कितना रोई थी तब वह और पिताजी से भी कितना कहा था, ‘क्यों नाहक जिद कर रहे हैं? जब वे लोग नहीं चाहते तो क्यों पीछे पड़े हैं?’

‘ठीक है बेटी, अगर सुखनंदन भी यही कहेगा तो फिर मैं अब कभी जोर नहीं दूंगा,’ पिताजी का स्वर निराशा में डूबा हुआ था.

तभी अचानक शिखर के पिता को दिल का दौरा पड़ा था और उन्होंने अपने बेटे को सख्ती से कहा था कि वह अपने जीतेजी अपने मित्र को दिया गया वचन निभा देना चाहते हैं, उस के बाद ही वह शिखर को विदेश जाने की इजाजत देंगे. इसी दबाव में आ कर शिखर  शादी के लिए तैयार हो गया था. वह तो कुछ समझ ही नहीं पाई थी.  उस के पिता जरूर बेहद खुश थे और उन्होंने कहा था, ‘मैं न कहता था, आखिर सुखनंदन मेरा बचपन का मित्र है.’

‘पर, पिताजी…’ शैली का हृदय  अभी  भी अनचाही आशंका से धड़क रहा था.

‘तू चिंता मत कर बेटी. आखिरकार तू अपने रूप, गुण, समझदारी से सब का  दिल जीत लेगी.’

फिर गुड्डेगुडि़या की तरह ही तो आननफानन में उस की शादी की सभी रस्में अदा हो गई थीं. शादी के समय भी शिखर का तना सा चेहरा देख कर वह पल दो पल के लिए आशंकाओं से घिर गई थी. फिर सखीसहेलियों की चुहलबाजी में सबकुछ भूल गई थी.

शादी के बाद वह ससुराल आ गई थी. शादी की पहली रात मन धड़कता रहा था. आशा, उमंगें, बेचैनी और भय सब के मिलेजुले भाव थे. क्या होगा? पर शिखर आते ही एक कोने में पड़ रहा था, उस ने न कोई बातचीत की थी, न उस की ओर निहार कर देखा था.

वह कुछ समझ ही नहीं सकी थी. क्या गलती थी उस की? सुबह अंधेरे ही वह अपना सामान बांधने लगा था.

‘यह क्या, लालाजी, हनीमून पर जाने की तैयारियां भी शुरू हो गईं क्या?’ रिश्ते की किसी भाभी ने छेड़ा था.

‘नहीं, भाभी, नौकरी पर लौटना है. फिर अमरीका जाने के लिए पासपोर्ट वगैरह भी बनवाना है.’

तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गया था वह. दूसरे कमरे में बैठी शैली ने सबकुछ सुना था. फिर दिनभर खुसरफुसर भी चलती रही थी. शायद सास ने कहा था, ‘अमरीका जाओ तो फिर बहू को भी लेते जाना.’

‘ले जाऊंगा, बाद में, पहले मुझे तो पहुंचने दो. शादी के लिए पीछे पड़े थे, हो गई शादी. अब तो चैन से बैठो.’

न चाहते हुए भी सबकुछ सुना था शैली ने. मन हुआ था कि जोर से सिसक पड़े. आखिर किस बात के लिए दंडित किया जा रहा था उसे? क्या कुसूर था उस का?

पिताजी कहा करते थे कि धीरेधीरे सब का मन जीत लेगी वह. सब सहज हो जाएगा. पर जिस का मन जीतना था वह तो दूसरे ही दिन चला गया था. एक हफ्ते बाद ही फिर दिल्ली से अमेरिका भी.

पहुंच कर पत्र भी आया था तो घर वालों के नाम. उस का कहीं कोई जिक्र नहीं था. रोती आंखों से वह देर तक घंटों पता नहीं क्याक्या सोचती रहती थी. घर में बूढ़े सासससुर थे. बड़ी शादीशुदा ननद शोभा अपने बच्चों के साथ शादी पर आई थी और अभी वहीं थी. सभी उस का ध्यान रखते थे. वे अकसर उसे घूमने भेज देते, कहते, ‘फिल्म देख आओ, बहू, किसी के साथ,’ पर पति से अपनेआप को अपमानित महसूस करती वह कहां कभी संतुष्ट हो पाती थी.

शोभा जीजी को भी अपनी ससुराल लौटना था. घर में फिर वह, मांजी और बाबूजी ही रह गए थे. महीने भर के अंदर ही उस के ससुर को दूसरा दिल का दौरा पड़ा था. सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया. बड़ी कठिनाई से हफ्ते भर की छुट्टी ले कर शिखर भी अमेरिका से लौटा था, भागादौड़ी में ही दिन बीते थे. घर नातेरिश्तेदारों से भरा था और इस बार भी बिना उस से कुछ बोले ही वह लौट गया था.

‘मां, तुम अकेली हो, तुम्हें बहू की जरूरत है,’ यह जरूर कहा था उस ने.

शैली जब सोचने लगती है तो उसे लगता है जैसे किसी सिनेमा की रील की तरह ही सबकुछ घटित हो गया था उस के साथ. हर क्षण, हर पल वह जिस के बारे में सोचती रहती है उसे तो शायद कभी अवकाश ही नहीं था अपनी पत्नी के बारे में सोचने का या शायद उस ने उसे पत्नी रूप में स्वीकारा ही नहीं.

इधर सास का उस से स्नेह बढ़ता जा रहा था. वह उसे बेटी की तरह दुलराने लगी थीं. हर छोटीमोटी जरूरत के लिए वह उस पर आश्रित होती जा रही थीं. पति की मृत्यु तो उन्हें और बूढ़ा कर गई थी, गठिया का दर्द अब फिर बढ़ गया था. कईर् बार शैली की इच्छा होती, वापस पिता के पास लौट जाए. आगे पढ़ कर नौकरी करे. आखिर कब तक दबीघुटी जिंदगी जिएगी वह? पर सास की ममता ही उस का रास्ता रोक लेती थी.

‘‘बहूरानी, क्या लौट आई हो? मेरी दवाई मिली, बेटी? जोड़ों का दर्द फिर बढ़ गया है.’’

मां का स्वर सुन कर तंद्रा सी टूटी शैली की. शायद वह जाग गई थीं और उसे आवाज दे रही थीं.

‘‘अभी आती हूं, मांजी. आप के लिए चाय भी बना कर लाती हूं,’’ हाथमुंह धो कर सहज होने का प्रयास करने लगी थी शैली.

चाय ले कर कमरे में आई ही थी कि बाहर फाटक पर रिकशे से उतरती शोभा जीजी को देखते ही वह चौंक गई.

‘‘जीजी, आप इस तरह बिना खबर दिए. सब खैरियत तो है न? अकेले ही कैसे आईं?’’

बरामदे में ही शोभा ने उसे गले से लिपटा लिया था. अपनी आंखों को वह बारबार रूमाल से पोंछती जा रही थी.

‘‘अंदर तो चल.’’

और कमरे में आते ही उस की रुलाई फूट पड़ी थी. शोभा ने बताया कि अचानक ही जीजाजी की आंखों की रोशनी चली गई है, उन्हें अस्पताल में दाखिल करा कर वह सीधी आ रही है. डाक्टर ने कहा है कि फौरन आपरेशन होगा. कम से कम 10 हजार रुपए लगेंगे और अगर अभी आपरेशन नहीं हुआ तो आंख की रोशनी को बचाया न जा सकेगा.

‘‘अब मैं क्या करूं? कहां से इंतजाम करूं रुपयों का? तू ही शिखर को खबर कर दे, शैली. मेरे तो जेवर भी मकान के मुकदमे में गिरवी  पड़े  हुए हैं,’’ शोभा की रुलाई नहीं थम रही थी.

जीजाजी की आंखों की रोशनी… उन के नन्हे बच्चे…सब का भविष्य एकसाथ ही शैली के  आगे घूम गया था.

‘‘आप ऐसा करिए, जीजी, अभी तो ये मेरे जेवर हैं, इन्हें ले जाइए. इन्हें खबर भी करूंगी तो इतनी जल्दी  कहां पहुंच पाएंगे रुपए?’’

और शैली ने अलमारी से निकाल कर अपनी चूडि़यां और जंजीर  आगे रख दी थीं.

‘‘नहीं, शैली, नहीं…’’ शोभा स्तंभित थी.

फिर कहनेसुनने के बाद ही वह जेवर लेने के लिए तैयार हो पाई थी. मां की रुलाई फूट पड़ी थी.

‘‘बहू, तू तो हीरा है.’’

‘‘पता नहीं शिखर कब इस हीरे का मोल समझ पाएगा,’’ शोभा की आंखों में फिर खुशी के आंसू छलक पड़े थे.

पर शैली को अनोखा संतोष  मिला था. उस के मन ने कहा, उस का नहीं तो किसी और का परिवार तो बनासंवरा रहे. जेवरों का शौक तो उसे वैसे ही नहीं था. और अब जेवर पहने भी तो किस की खातिर? मन की उसांस को उस ने दबा  दिया था.

8 दिन के बाद खबर मिली थी, आपरेशन सफल रहा. शिखर को भी अब सूचना मिल गई थी, और वह आ रहा था. पर इस बार शैली ने अपनी सारी उत्कंठा को दबा लिया था. अब वह किसी तरह का उत्साह  प्रदर्शित नहीं कर  पा रही थी. सिर्फ तटस्थ भाव से रहना चाहती थी वह.

‘‘मां, कैसी हो? सुना है, बहुत बीमार रही हो तुम. यह क्या हालत बना रखी है? जीजाजी को क्या हुआ था अचानक?’’ शिखर ने पहुंचते ही मां से प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘मेरी  तो तबीयत तू देख ही रहा है, बेटे. बीच में तो और भी बिगड़ गई थी. बिस्तर से उठ नहीं पा रही थी. बेचारी बहू ने ही सब संभाला. तेरे जीजाजी  की तो आंखों की रोशनी ही चली गई थी. उसी समय आपरेशन नहीं होता तो पता नहीं क्या होता. आपरेशन के लिए पैसों का भी सवाल था, लेकिन उसी समय बहू ने अपने जेवर दे कर तेरे जीजाजी  की आंखों की रोशनी वापस ला दी.’’

‘‘जेवर दे दिए…’’ शिखर हतप्रभ था.

‘‘हां, क्या करती शोभा? कह रही थी कि तुझे खबर कर के रुपए मंगवाए तो आतेआते भी तो समय लग जाएगा.’’

मां बहुत कुछ कहती जा रही थीं पर शिखर के सामने सबकुछ गड्डमड्ड हो गया था. शैली चुपचाप आ कर नाश्ता रख गई थी. वह नजर उठा कर  सिर ढके शैली को देखता रहा था.

‘‘मांजी, खाना क्या बनेगा?’’ शैली ने धीरे से मां से पूछा था.

‘‘तू चल. मैं भी अभी आती हूं रसोई में,’’ बेटे के आगमन से ही मां उत्साहित हो उठी थीं. देर तक उस का हालचाल पूछती रही थीं. अपने  दुखदर्द  सुनाती रही थीं.

‘‘अब बहू भी एम.ए. की पढ़ाई कर रही है. चाहती है, नौकरी कर ले.’’

‘‘नौकरी,’’ पहली बार कुछ चुभा शिखर के मन में. इतने रुपए हर महीने  भेजता हूं, क्या काफी नहीं होते?

तभी उस की मां बोलीं, ‘‘अच्छा है. मन तो लगेगा उस का.’’

वह सुन कर चुप रह गया था. पहली बार उसे ध्यान आया, इतनी बातों के बीच इस बार मां ने एक बार भी नहीं कहा कि तू बहू को अपने साथ ले जा. वैसे तो हर चिट्ठी में उन की यही रट रहती थी. शायद अब अभ्यस्त हो गई हैं  या जान गई हैं कि वह नहीं ले जाना चाहेगा. हाथमुंह धो कर वह अपने किसी दोस्त से मिलने के लिए घर से निकला  पर मन ही नहीं हुआ जाने का.

शैली ने शोभा को अपने जेवर दे  दिए, एक यही बात उस  के मन में गूंज रही थी. वह तो शैली और उस के पिता  दोनों को ही बेहद स्वार्थी समझता रहा था जो सिर्फ अपना मतलब हल करना जानते हों. जब से शैली के पिता ने उस के बौस से कह कर उस पर शादी के लिए दबाव डलवाया था तभी से उस का मन इस परिवार के लिए नफरत से भर गया था और उस ने सोच लिया था कि मौका पड़ने पर वह भी इन लोगों से बदला ले कर रहेगा. उस की तो अभी 2-4 साल शादी करने की इच्छा नहीं थी, पर इन लोगों ने चतुराई से उस के भोलेभाले पिता को फांस लिया. यही सोचता था वह अब तक.

फिर शैली का हर समय चुप रहना उसे खल जाता. कभी अपनेआप पत्र भी तो नहीं लिखा था उस ने. ठीक है, दिखाती रहो अपना घमंड. लौट आया तो  मां ने उस का खाना परोस दिया था. पास ही बैठी बड़े चाव से खिलाती रही थीं. शैली रसोई में ही थी. उसे लग रहा था कि  शैली जानबूझ कर ही उस  के सामने आने से कतरा रही है.

खाना खा कर उस ने कोई पत्रिका उठा ली थी. मां और शैली ने भी खाना खा लिया था. फिर मां को दवाई  दे कर शैली मां  के कमरे से जुड़े अपने छोटे से कमरे में चली गई और कमरे की बत्ती जला दी थी.

देर तक नींद नहीं आई थी शिखर को. 2-3 बार बीच में पानी पीने के बहाने  वह उठा भी था. फिर याद आया था पानी का जग  तो शैली  कमरे में ही  रख गई थी. कई बार इच्छा हुई थी चुपचाप उठ कर शैली को  आवाज देने की. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आज  पहली बार उसे क्या हो रहा है. मन ही मन वह अपने परिवार के बारे में सोचता रहा था. वह सगा बेटा हो कर भी घरपरिवार का इतना ध्यान नहीं रख पा रहा था. फिर शैली तो दूसरे घर की है. इसे क्या जरूरत है सब के लिए मरनेखपने की, जबकि उस का पति ही उस की खोजखबर नहीं ले रहा हो?

पूरी रात वह सो नहीं सका था.

दूसरा दिन मां को डाक्टर के यहां दिखाने के लिए ले जाने, सारे परीक्षण फिर से करवाने में बीता था.

सारी दौड़धूप में शाम तक काफी थक चुका था वह. शैली अकेली कैसे कर पाती होगी? दिनभर वह भी तो मां के साथ ही उन्हें सहारा दे कर चलती रही थी. फिर थकान के  बावजूद रात को मां से पूछ कर उस की पसंद के कई व्यंजन  खाने  में बना लिए थे.

‘‘मां, तुम लोग भी साथ ही खा लो न,’’ शैली की तरफ देखते हुए उस ने कहा था.

‘‘नहीं, बेटे, तू पहले गरमगरम खा ले,’’ मां का स्वर लाड़ में भीगा हुआ था.

कमरे में आज अखबार पढ़ते हुए शिखर का मन जैसे उधर ही उलझा रहा था. मां ने शायद खाना खा लिया था, ‘‘बहू, मैं तो थक गईर् हूं्. दवाई दे कर बत्ती बुझा दे,’’ उन की आवाज आ रही थी. उधर शैली रसोईघर में सब सामान समेट रही थी.

‘‘एक प्याला कौफी मिल सकेगी क्या?’’ रसोई के दरवाजे पर खड़े हो कर उस ने कहा था.

शैली ने नजर उठा कर देखा भर था. क्या था उन नजरों में, शिखर जैसे सामना ही नहीं कर पा रहा था.

शैली कौफी का कप मेज पर रख कर जाने के लिए मुड़ी ही थी कि शिखर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आओ, बैठो.’’

उस के कदम ठिठक से गए थे. दूर की कुरसी की तरफ बैठने को उस के कदम बढ़े ही थे कि शिखर ने धीरे से हाथ खींच कर उसे अपने पास पलंग पर बिठा लिया था.

लज्जा से सिमटी वह कुछ बोल भी नहीं पाई थी.

‘‘मां की तबीयत अब तो काफी ठीक जान पड़ रही है,’’ दो क्षण रुक कर शिखर ने बात शुरू करने का प्रयास किया था.

‘‘हां, 2 दिन से घर में खूब चलफिर रही हैं,’’ शैली ने जवाब में कहा था. फिर जैसे उसे कुछ याद हो आया था और वह बोली थी, ‘‘आप शोभा जीजी से भी मिलने जाएंगे न?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मांजी को भी साथ ले जाइएगा. थोड़ा परिवर्तन हो जाएगा तो उन का मन बदल जाएगा. वैसे….घर से जा भी कहां पाती हैं.’’

शिखर चुपचाप शैली की तरफ देखता भर रहा था.

‘‘मां को ही क्यों, मैं तुम्हें भी साथ ले चलूंगा, सदा के लिए अपने साथ.’’

धीरे से शैली को उस ने अपने पास खींच लिया था. उस के कंधों से लगी शैली का मन जैसे उन सुमधुर क्षणों में सदा के लिए डूब जाना चाह रहा था.

Summer special: बौडी इम्युनिटी और मेटाबोलिज्म को बढाती है नींबू की चाय 

वैसे तो हम सभी जानते है की नींबू बहुत ही गुणकारी होता है. कई रूपों में यह हमारे स्वास्थ्य के लिए फयदेमंद साबित होता है. नींबू विभिन्न विटामिन्स व मिनरल्स का खजाना माना जाता है. नींबू विटामिन C का बेहतर स्रोत है. इसमें विभिन्न विटामिन्स जैसे थियामिन, रिबोफ्लोविन, नियासिन, विटामिन B – 6, और विटामिन-E की थोड़ी मात्रा मौजूद रहती है.

पर क्या आप ये जानते है की नींबू से भी ज्यादा फायदेमंद नींबू की चाय (lemon tea )होती है.
सुबह एक चाय की चुस्की से ही हम तरोताजा फील करते हैं. लेकिन इस चाय में थोड़ा सा बदलाव करके इसे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद भी बनाया जा सकता है. चाय को सिर्फ सामान्य चाय की तरह ही इस्तेमाल ना करके इसे नींबू की चाय (lemon tea )यानी लेमन टी की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.

लेमन टी में पोलीफीनोल और विटामिन-C अधिक मात्रा में पाया जाता है. जिस कारण लेमन टी शरीर में कैंसर सेल्स को बनने से भी रोकता है. जिससे लेमन टी के सेवन से कैंसर से भी बचा जा सकता है. लेमन टी पीने से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में आसानी होती है. जिससे कई बीमारियों और इन्फेक्शन से बचा जा सकता है.

लेमन टी में फ्लेवोनोइड्स नाम का केमिकल पाया जाता है. इससे धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते हैं. जिसके कारण हार्ट अटैक का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है.

अगर आपको वजन कम करना है और स्‍वस्‍थ्‍य रहना है तो नींबू की चाय (lemon tea )बना कर रोज सुबह पियें. एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक मेडिकल रिसर्च के अनुसार, नींबू में शरीर को डिटॉक्स करने का गुण पाया जाता है. साथ ही इसे लो-कैलोरी माना गया है, जिस कारण यह वजन को कम करने में मदद कर सकता है.

रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए भी लेमन टी का उपयोग फायदेमंद हो सकता है. एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध के अनुसार, लेमन टी बनाने में उपयोग किए जाने वाले नींबू में इम्युनिटी बढ़ाने का गुण पाया जाता है. यह न केवल इम्युनिटी को बढ़ा सकता है, बल्कि संक्रमण से भी बचाने में आपकी मदद कर सकता है.

पाचन के लिए भी नींबू की चाय (lemon tea )बहुत बढ़िया हो सकती है. यह मतली और उल्टी जैसे लक्षणों को दूर करने में फायदेमंद हो सकती है. बशर्ते आप इसमें थोड़ा सा अदरक मिलाएं. यह अपच और ऐसी अन्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं से राहत दिलाने के लिए असरदार हो सकती है.
पर ध्यान रहे जिन लोगों को अल्सर की परेशानी हो वे नींबू का या नींबू की चाय का सेवन न करें.
तो चलिए जानते है की नींबू की चाय (lemon tea )कैसे बनायीं जाती है-

हमें चाहिए-(2 कप चाय के लिए )

पानी -2 कप
नींबू -1/2
चाय पत्ती -1/2 छोटी चम्मच
अदरक का टुकड़ा -1 इंच
लौंग-2
काली मिर्च -2 से 3
शक्कर या शहद -2 से 3 चम्मच या स्वादानुसार

बनाने का तरीका –

1-सबसे पहले एक केतली में 2 कप पानी गर्म करें .अब उसमे ½ चम्मच चाय पत्ती डालें .
2-अब अदरक ,लौंग और कालीमिर्च को अच्छे से पीस कर केतली में डालें.
3-अब उसमे स्वादानुसार शक्कर डाल दें .आप चाहे तो शक्कर की जगह शहद का उपयोग भी कर सकते हैं.
4-अब उसे अच्छे से पका ले.जब चाय अच्छे से पक जाये तब उसमे नींबू का रस डाल दें और तेज़ आंच पर 1 से 2 मिनट पका लें .
5-अब गैस को बन्द करके चाय को कप में छान लें.

रहे चमकता अक्स: आखिर क्या करना चाहती थी अनन्या

‘‘रजत की बेरुखी अनन्या को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. इसी बीच उसे हैदराबाद शिफ्ट होने की बात पता चली…’’

रजत के घर से जाते ही अनन्या चुपचाप बैड पर आ कर लेट गई. 5 दिन के लिए औफिस के काम से भीमताल जा रहा था रजत. पर जाते हुए रोज की तरह वही रूखा सा बाय. कितनी याद आई थी उसे रजत की जब वह पिछले महीने 1 सप्ताह के लिए गोवा गया था.

वह बेसब्री से रजत का इंतजार करते हुए उस के दिल में जगह बनाने के तरीके ढूंढ़ती रहती थी. तभी तो उस ने इंटरनैट पर वीडियो देख कर खाने की कुछ चीजें बनाना भी सीख लिया था. जिस दिन रजत लौटा था, उस दिन कुक से खाना न बनवा कर अपने हाथों से नर्गिसी कोफ्ते और लच्छेदार परांठे बनाए थे रजत के लिए. खाना खाने के बाद हलके से मुसकरा कर जब रजत ने थैंक्स बोला था, तो गदगद हो गई थी अनन्या.

आज उसे पूरी उम्मीद थी कि रजत खूब हिदायतें दे कर जाएगा, जैसेकि ज्यादा याद मत करना… बाई से अपने लिए अच्छा सा खाना बनवा कर खा लिया करना… रात में देर तक जागती मत रहना वगैरहवगैरह. पर रजत तो हमेशा की तरह सिर्फ बाय बोल टैक्सी में बैठ गया और मुड़ कर भी नहीं देखा.

सब सोचते हुए अनन्या को नींद आ गई. उस की नींद मोबाइल की रिंग बजने से टूटी.

‘‘अभीअभी लैंड हुई है फ्लाइट,’’ रजत का फोन था.

‘‘ओके… अभी तो कुछ देर लगेगी न एअरपोर्ट से बाहर निकलने में? फिर औफिस के गैस्ट हाउस तक पहुंचने में 1 घंटा और लगेगा… आप ने औफिस में इन्फौर्म कर के गाड़ी तो मंगवा ली थी न? रात को टैक्सी से जाना रिस्की होता है… ध्यान रखना अपना…’’

अनन्या हमेशा की तरह रजत को ले कर चिंतित हुई जा रही थी. इस के अलावा वह दूर गए रजत से बातचीत का कोई बहाना भी तलाशती रहती है.

‘‘मैं ठीक हूं,’’ और फोन काट दिया रजत ने.

अनन्या की रुलाई फूट पड़ी कि रजत थोड़ी देर और बात कर सकता था. अभी उस की शादी को 6 महीने ही तो हुए हैं, पर रजत तो लगता है उस से बोर हो गया. दिव्या की शादी भी तो उस के साथ ही हुई थी. वह तो जैसे अभी तक हनीमून पीरियड पर है.

उस दिन बाजार में कैसे अपने मियांजी के हाथ में हाथ डाले घूम रही थी… और एक वह है कि रजत को खुश करने में लगी रहती है दिनरात. खूब बातें बताती है वह रजत को अपने विषय में. पर रजत सुन भर लेता है. न चेहरे पर कोई भाव और न अपना सुनाने की उत्सुकता. चुपचाप अपनी धुन में मग्न घर पर भी लैपटौप लिए औफिस के काम में व्यस्त रजत अनन्या के लिए एक पहेली सा बनता जा रहा था.

अंधेरा घिरते ही अनन्या को उदासी ने पूरी तरह से घेर लिया. अपना ध्यान दूसरी ओर करने के उद्देश्य से उस ने व्हाट्सऐप पर जा कर दोस्तों के गु्रप की चैट खोली.

‘अरे वाह, कल सब ने इंडियागेट पर मिलने का कार्यक्रम बनाया है. मस्ती से बीतेगा कल का दिन,’ सोच कर उछल पड़ी अनन्या.

‘मैं भी आऊंगी,’ लिख कर वह कल पहनने के लिए अलमारी से कपड़े निकालने चल दी. कपड़ों से मैचिंग ऐक्सैसरी निकाल कर ड्रैसिंग टेबल पर रख वह खुशीखुशी सो गई.

सुबह उठ कर कामवाली से जल्दीजल्दी काम करवा कर खुशीखुशी तैयार होने लगी. ग्रे पैंट के साथ गुलाबी रंग का क्रौप टौप और रूबी का चोकर पहन जब वह लिपस्टिक लगाने लगी तो आईने में दपदप करते अपने रूप पर खुद ही फिदा हो गई. मुसकराते हुए हाथ में मैचिंग पर्स लिए वह मोबाइल ले कर कैब बुक कराने लगी. कैब के आते ही वह इंडिया गेट रवाना हो गई.

वहां पहुंची तो संजना, मनीष, निवेदिता, सारांश और कार्तिक पहले से ही पहुंचे हुए थे.

‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ मनीष हमेशा की तरह उसे देख कर हाथ हिलाते हुए बोला.

‘‘वाह कौन कहेगा कि तुम मैरिड हो… कितने लोग रोज प्रपोज करते हैं तुम्हें?’’ सारांश उसे ऊपर से नीचे तक निहारता हुआ बोला.

तभी किसी ने पीछे से आ कर अपने हाथों से अनन्या की आंखें बंद कर दीं.

‘‘साक्षी… पहचान लिया मैं ने,’’ साक्षी के हाथों को अपनी आंखों से हटाती हुए अनन्या खुशी से चहक उठी.

साक्षी अनन्या को आंखें फाड़े देखे जा रही थी, ‘‘अरे, यार मैं ने तो शादी के 2 महीने बाद ही वेट पुट औन कर लिया… तू कैसे अब तक… वाकई अनन्या, तुम सा नहीं देखा.’’

संजना भी पीछे नहीं रही, अनन्या की तारीफ में, ‘‘पता है सारे होस्टल में चर्चा होती थी उत्तराखंड से आई इस लड़की की… हम सब तो इसे डौल बुलाते थे… मेरी प्यारी सी…’’

‘‘कुछ भी कहो तुम सब इसे, मैं तो चुनचुन ही कहता था और वही कहूंगा,’’ संजना की बात पूरी होने से पहले रितेश आ गया और हमेशा की तरह अनन्या पर दुलार बरसाने लगा.

‘‘स्वाति अब तक नहीं आई?’’ सब को पहले की तरह ही अपने आगेपीछे घूमते देख अपनी इकलौती प्रतिद्वंद्वी स्वाति को याद करते हुए अनन्या बोली.

‘‘अरे, लो आ गई वह… साथ में पतिदेव हैं शायद,’’ दूर से आती स्वाति को देख मनीष बोला. स्वाति ने आ कर सब को हाय किया. इस से पहले कि वह सब से अपने पति की जानपहचान करवाती, स्वाति की ओर इशारा कर वह खुद ही बोल उठा, ‘‘बिना मैम के हमारा मन ही नहीं लगता, इसलिए इन का पल्लू पकड़ कर पीछेपीछे आ गए.’’

स्वाति अनन्या के रूप को देख कर हमेशा कुढ़ती रहती थी. पर आज स्वाति के पति को इस तरह मजाक करते और स्वाति के साथसाथ दोस्तों के बीच आया देख कर अनन्या को जलन हो रही थी.

कुछ ही देर में सब दोस्त इकट्ठे हो गए. एकदूसरे के साथ मौजमस्ती करते हुए वे अभी भी कालेज के स्टूडैंट्स ही लग रहे थे. इसी तरह हंसतेखेलते, खातेपीते पूरा दिन बीत गया. कुछ समय बाद फिर से मिलने का वादा कर सब ने एकदूसरे से विदा ले ली.

घर आ कर अनन्या के 2-3 दिन फेसबुक और व्हाट्सऐप पर तसवीरें डालते और शेयर करते हुए बीत गए. फेसबुक पर जब उस ने अपनी प्रोफाइल पिक बदली तो उस की खूबसूरती पर दनादन कमैंट्स आने लगे. खुद पर इतराती अनन्या कमैंट्स के रिप्लाई करने लगी. इसी बीच रजत के लौटने का दिन भी आ गया.

रजत ने आते ही बताया कि उन्हें 15 दिनों के अंदर ही दिल्ली से हैदराबाद शिफ्ट होना पड़ेगा, क्योंकि मीटिंग के दौरान उस के काम से प्रभावित हो कर उसे प्रमोशन दे दिया गया है. अगले ही दिन से दोनों जाने की तैयारियों में जुट गए.

हैदराबाद पहुंच कर रजत नई जिम्मेदारियां संभालते हुए बेहद व्यस्त हो गया. अनन्या सुबह से शाम तक नए मकान की सैटिंग करते हुए बहुत थक जाती थी. कामवाली रोजमर्रा का काम तो निबटा देती थी, पर अन्य कामों में अनन्या उस की मदद नहीं ले पा रही थी. अनन्या तेलुगु नहीं जानती थी और वह हिंदी ठीक से नहीं समझ पाती थी. अत: अनन्या के लिए बताना संभव नहीं हो पा रहा था कि वह किस काम में बाई की मदद चाहती है.

कुछ दिनों बाद अनन्या को कमजोरी के साथसाथ नींद भी बहुत आने लगी. दोपहर में वह कोई पत्रिका ले कर पढ़ने बैठती तो नींद के झोंके आने लगते. सुबह भी उसे उठने में देरी हो जाती थी, इसलिए बैड टी रजत ही बना रहा था इन दिनों. रजत का यह व्यवहार अनन्या को अच्छा तो लग रहा था, लेकिन अपनी सुस्ती को ले कर वह खुश नहीं थी. उस का मौर्निंगवौक भी छूट गया था. खुद को काम में लगाए हुए वह नींद और सुस्ती से दूर रहने का भरसक प्रयास करती, पर ऐसा हो नहीं पा रहा था.

उन लोगों को हैदराबाद आए हुए लगभग 1 महीना हो चुका था. उस दिन दोनों को पड़ोस में एक बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होना था. अनन्या ने पहनने के लिए ड्रैस निकाली, पर यह क्या, वह ड्रैस तो अनन्या को बहुत टाइट आ रही थी. उस ने सोचा कि ड्रैस धोने से सिकुड़ गई होगी, इसलिए 3-4 और ड्रैसेज निकाल कर पहनने की कोशिश की, पर कोई भी ड्रैस ठीक से पहनी नहीं जा रही थी. इन दिनों घर के काम में व्यस्त होने के कारण वह ढीली कुरती और गाउन ही पहन रही थी. अत: उसे अंदाज ही नहीं लग पाया कि उस का वजन बढ़ रहा है.

अनन्या ने सुबहसुबह टहलना शुरू कर दिया और साथ ही व्यायाम भी, पर वजन काबू में नहीं आ रहा था. थकान हो रही थी वह अलग. चेहरा भी निस्तेज पड़ गया था. जब उसे पैरों में सूजन दिखाई देने लगी तो वह रजत के साथ डाक्टर के पास गई.

वहां डाक्टर ने उसे ब्लड टैस्ट करवाने को कहा. रिपोर्ट आने पर पता चला कि अनन्या को हाइपरथायरोडिज्म हो गया है. गले में पाई जाने वाली थायराइड नामक ग्लैंड जब अधिक सक्रिय नहीं रह पाती तो यह बीमारी हो जाती है, जिस कारण शरीर को आवश्यक हारमोंस नहीं मिल पाते.

डाक्टर ने रोज खाने के लिए दवा लिख दी और कुछ समय बाद फिर टैस्ट करवाने को कहा ताकि दवा की सही मात्रा निर्धारित की जा सके. साथ ही उसे यह भी बता दिया कि एक बार यह ग्रंथि निष्क्रिय हो जाती है तो दोबारा सक्रिय होना लगभग असंभव है. लेकिन घबराने वाली बात नहीं है.

अनन्या ने अगले दिन से ही दवा लेनी शुरू कर दी. उस के असर से वह पहले से बेहतर महसूस कर रही थी पर अपने वजन को ले कर अकसर चिंतित हो जाती कि न जाने यह कब सामान्य होगा और फिर बाद में भी तो डोज कमज्यादा होने से वजन पर ही सब से पहले असर पड़ेगा. फिर डाक्टर की बताई यह बात याद कर कि बस अपना ध्यान रखते हुए रोज दवा की गोली खाने से एक सामान्य व्यक्ति जैसा ही जीवन व्यतीत होता रहेगा, खुद को तसल्ली देने की कोशिश करती.

कुछ दिनों बाद रजत को ट्रेनिंग के सिलसिले में 1 महीने के लिए दिल्ली जाना था.

इतने लंबे समय तक अजनबी शहर में अनन्या कैसे रहेगी, यही सोच कर उस ने अनन्या को भी साथ ले जाने का कार्यक्रम बना लिया.

दिल्ली पहुंच कर वे एक होटल में ठहरे. अनन्या का ज्यादातर समय टीवी देखने में बीत जाता था. एक दिन उस ने अपने दोस्तों को लंच पर बुलाने का कार्यक्रम रखा. जिस होटल में वह ठहरी थी, उस का पता सब को बता कर उस ने वहां के डाइनिंग हौल में ही टेबल्स बुक करवा लीं. अपनी मनपसंद ड्रैस पहन अनन्या बेसब्री से दोस्तों का इंतजार करने लगी.

मनीष ने सब से पहले आ कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. अनन्या उसे देखते ही खिल उठी. पर मनीष ने उसे देख मुंह बना कर आंखें सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘अरे यह क्या? तू… तू… इतनी मोटी? क्या कर लिया?’’

इस से पहले कि अनन्या उस का जवाब देती, रितेश भी आ पहुंचा. फिर 1-1 कर के सब आ गए.

‘‘मैं अनन्या से मिल रहा हूं या किसी बहनजी से… कैसी थुलथुली हो गई इतने दिनों में… आलसियों की तरह पड़ी रह कर खूब खाती रहती है क्या सारा दिन?’’ सारांश हंसता हुआ बोला.

अनन्या रोंआसी हो गई, ‘‘अरे, नहीं… न मैं आलसी हूं और न ही कोई डाइटवाइट बढ़ी है मेरी… हाइपोथायरोडिज्म की प्रौब्लम हो गई है.’’

‘‘वह तो मेरी भाभी को भी है, पर तू तो कुछ ज्यादा ही…’’ अपने गालों को फुला कर दोनों हाथों से मोटापे का इशारा करती हुई स्वाति ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

सब की बातों से उदास अनन्या ने वेटर को खाना लगाने को कहा. खाना खाते हुए भी दोस्त उस की प्लेट उस के सामने से हटा कर बस कर कितना खाएगी जैसी बातें करते हुए उस का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आ रहे थे. खाना खाने के बाद अनन्या सब को बाहर तक छोड़ने आई.

‘‘ओके… बाय चुनचुन नहीं टुनटुन…’’ रितेश के कहते ही सब जाते हुए खूब हंसे, पर अनन्या का मन छलनी हुआ जा रहा था. उदास मन से वह अपने कमरे में आ कर बैठ गई.

रात को सोने के लिए जब वह बैड पर लेटी तो रजत के करीब जा कर उस के सीने में अपना मुंह छिपाए कुछ देर यों ही चुपचाप लेटी रही.

‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है? दोस्तों के साथ गप्पें मारते हुए ज्यादा ही थक गईं शायद?’’ रजत उस की पीठ पर हाथ रख कर बोला.

अनन्या अपना चेहरा रजत की ओर घुमाते हुए बोली, ‘‘एक बात पूछूं रजत… क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं इतनी मोटी हो गई हूं. फेस भी बदलाबदला सा लग रहा है…तुम ने तो एक स्लिमट्रिम, गोरी लड़की से शादी की थी…

7-8 महीनों में ही वह क्या से क्या हो गई.’’ ‘‘हा… हा… हा…’’ पहले तो रजत ने एक जोरदार ठहाका लगाया. फिर मुसकरा कर अनन्या की ओर देखते हुए बोला, ‘‘ओह अनन्या, कैसा सवाल है यह? यह सच है कि तुम्हें एक बीमारी हो गई है और उस में वेट कंट्रोल में नहीं रहता…पर यह बताओ कि क्या हम हमेशा वैसे ही दिखते रहेंगे जैसे शादी के वक्त थे? क्या जब बुढ़ापे में मैं गंजा हो जाऊंगा या फिर मेरे दांत टूट जाएंगे तो तुम्हें खराब लगने लगूंगा?’’

‘‘तुम मुझे प्यार तो करते हो न?’’ अनन्या के चेहरे पर निराशा अभी भी झलक रही थी. रजत एक बार फिर खिलखिला पड़ा, ‘‘अनन्या तुम इतनी समझदार हो कि मैं कब तुम से पूरी तरह जुड़ गया मैं ही नहीं समझ पाया. तुम मेरी केयर तो करती ही हो, मुझ से अपने मन की हर बात शेयर करती हो, बिना वजह कभी भी झगड़ा नहीं करतीं… और इतना क्वालिफाइड होने के बाद भी घर का काम करना पड़े तो नाकभौं नहीं सिकोड़ती… तुम सच में अपने नाम की तरह ही सब से बिलकुल अलग, बहुत खास हो.’’

‘‘पर इस से पहले तो आप ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा?’’ रजत की प्रेममयी बातें सुन भावविभोर हो अनन्या बोली.

‘‘मैं हूं ही ऐसा… बोलना कम और सुनना बहुत कुछ चाहता हूं… अनन्या यकीन करो, मुझे बिलकुल तुम सा ही पार्टनर चाहिए था.’’

अनन्या मंत्रमुग्ध हुए जा रही थी.

‘‘एक बात और कहूंगा…अपने शरीर का ध्यान रखना हम सब के लिए जरूरी है… पर बाहरी सुंदरता कभी मन पर हावी नहीं होनी चाहिए… तुम जब भी मेरे इस मन में झांक कर अपनी सूरत देखोगी, तुम्हें अपनी वही सूरत दिखाई देगी जो कल थी. आज भी वही और आने वाले कल भी.’’

‘‘ओह रजत… कुछ नहीं चाहिए मुझे अब… कोई मुझे कुछ भी कहता रहे परवाह नहीं… बस तुम्हारे दिल के आईने में मेरा अक्स यों ही चमकता रहे.’’

अनन्या नम आंखों को मूंद कर रजत से लिपट गई. रजत के प्रेम की लौ में पिघल कर वह स्वयं को बहुत हलका महसूस कर रही थी.

Summer Special: गर्मियों में पिएं ये 5 रिफ्रेशिंग ड्रिंक्स

  1. सत्तू मिंट शरबत

सामग्री

  • 2 बड़े चम्मच सत्तू
  • थोड़ी सी पुदीनापत्ती बारीक कटी
  • 1 छोटा चम्मच प्याज बारीक कटा
  • 2 छोटे चम्मच नीबू का रस
  • 1 छोटा चम्मच भुना जीरा पाउडर
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में सत्तू व नमक डाल कर 1 गिलास पानी मिलाएं. अब इस में पुदीनापत्ती, नीबू का रस, प्याज व जीरा पाउडर डाल कर मिलाएं. फिर गिलास में भर कर कूल सत्तू मिंट शरबत का लुत्फ उठाएं.

  1. वाटरमैलन चुसकी

सामग्री

  • 1 बाउल तरबूज के टुकड़े
  • थोड़ी सी पुदीनापत्ती
  • 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस
  • 1 छोटा चम्मच चीनी पिसी
  • 1 कप बर्फ का चूरा.

विधि

तरबूज को मिक्सर में पुदीनापत्ती के साथ ग्राइंड कर रस निकाल लें. फिर उसे कांच के गिलास में भर कर इस में नीबू का रस व चीनी डाल कर मिक्स करें. ऊपर से बर्फ का चूरा भर ठंडी चुसकी सर्व करें.

  1. लैमन मिंट आइस्ड टी

सामग्री

  • 1 नीबू
  • थोड़ी सी पुदीनापत्ती
  • 5-6 छोटे चम्मच चीनी
  • 1/4 छोटा चम्मच चायपत्ती
  • 11/2 गिलास पानी.

विधि

एक सौसपेन में पानी व चीनी डाल कर आंच पर पकने दें. जब पानी में उबाल आ जाए तो चायपत्ती व पुदीनापत्ती डाल कर 2-3 मिनट और पकने दें. फिर आंच बंद कर थोड़ी देर के लिए ढक कर रख दें. अब इस पानी को छान कर इस में नीबू रस मिलाएं. थोड़ा पानी अलग निकाल कर ठंडा करें और बाकी पानी को आइस ट्रे में भर कर आइस बना लें. कांच के गिलास में पहले तैयार आइस, फिर नीबू स्लाइस और ठंडा लैमन मिंट टी पानी डाल कर सर्व करें.

  1. कूल औरेंज डिलाइट

सामग्री

  • 1 लिटर दूध फुलक्रीम
  • 1 कप औरेंज जूस
  • 1 बड़ा चम्मच काजू व बादाम
  • 1 छोटा चम्मच टूटी फ्रूटी
  • 1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर
  • औरेंज जेस्ट गार्निशिंग के लिए.

विधि

दूध में काजूबादाम डाल कर दूध के आधा रह जाने तक उबालें. ठंडा होने पर ग्राइंडर में फेंट कर फ्रिज में रखें. ठंडा हो जाए तो इस में इलायची पाउडर, टूटी फ्रूटी, औरेंज जूस मिला कर गिलास में डालें. ऊपर से ठंडा दूध डाल कर औरेंज जेस्ट से गार्निश करें.

  1. स्ट्राबेरी रोज लैमोनेड

सामग्री

  • 4 स्ट्राबेरी
  •  2-3 बड़े चम्मच नीबू रस
  • 1 छोटा चम्मच शहद
  • 4 बड़े चम्मच स्ट्राबेरी स्क्वैश
  • 8-10 बूंदें गुलाबजल
  • 2 छोटे चम्मच रोज स्क्वैश
  • चीनी स्वादानुसार.

विधि

ठंडे पानी में शहद, चीनी, गुलाबजल व नीबू का रस डाल कर मिक्स करें. स्ट्राबेरी धो कर उस का पेस्ट बना लें. अब छलनी से छान कर तैयार मिश्रण में मिला दें. सर्व करने से पहले स्ट्राबेरी व रोज स्क्वैश डालें

गुलदस्ता-भाग-2: गलत पते पर आखिर क्यों गुलदस्ता आता था?

काश खड़ूस समर से पहले यह मिल गया होता मम्मीपापा को… ऐसे की ही तो तलाश थी मुझे.. तो जिंदगी गा उठी होती मेरी,’’ उस ने लंबी सी सांस ली.पति समर का खयाल आते ही उस का मन कसैला होने लगा. अच्छा ही तो हुआ

पिछले महीने की 22 तारीख को उस से सारी कार्यवाही पूरी हो कर तलाक मिल गया और मुझे उस बगैर दिल के जंगली रईस से सदा के लिए मुक्ति मिल गई. एक तो बदमाश ऊपर से पहले से शादीशुदा था. उस से भी तलाक हुआ था, जिस से उस का एक 6 साल का बेटा भी था. मेरे सीधेसादे मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर मुझ से शादी रचा ली. कितना बड़ा धोखेबाज था… सोच में गुम वह अमन के ‘वैलकम’ कहने पर तंद्रा से लौट आई…

‘‘भूल ही गया…’’ उस ने जेब में हाथ डाला… यह लैटर… यह उसी रिनी मैडम का खत फिर मेरे घर…

‘‘वह तो आप की दोस्त हैं. इन्हें तो आप अपना सही अड्रैस बता सकती हैं…’’ पहले भी तो कितनी बार कह चुका है फिर कहने की हिम्मत नहीं हुई. जाने कब कौन मेरे फ्लैट में सरका जाता है मिले तो अच्छे से बताऊं उसे… फिर आजकल फोन की सुविधा है कोई लैटर कहां लिखता है… इन की दोस्त भी अजीब हैं. नीची निगाह किए कुछ सोचते शरमीले अमन को देख वह मुसकरा उठी. इसे यों सताने में उसे बहुत मजा आता. वह गुनगुना उठी, ‘‘आप यों ही अगर हम से मिलते रहे देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा….’’ फिर बोली, ‘‘मैं ने बताया था न बेचारी बहुत गरीब है… शराफत में… वह मेरे बचपन की सहेली थोड़ी दिमाग से हटी हुई है. एक दिन मैं आप के दरवाजे तक ही पहुंची थी उस ने मुझे देख लिया और यही मेरा घर समझ लिया. किसी बच्चे से ड्रौप करवा देती है मुझ से मिलती भी नहीं बस अपनी भावनाएं लैटर से शेयर कर देती है अपना पता भी नहीं बताती कि मैं जा कर उसे सही क्या है बता सकूं… अपनी दोस्त दर्शाया संचालित अपने नाटक पर वह मन ही मन मुसकरा उठी.

न चाहते हुए भी अमन ने ओके कहा और नीची निगाह किए कुछ सोचता सीढि़यां उतरने लगा कि गरीब है बेचारी मगर शराफत में? मतलब? उस ने गौर किया था मतलब पाजी या बदमाश… वह भी जाने क्या बला हो.

अजीब मुसीबत है, आखिर मेरे ही गले पड़ी रही. वाकई शनिवार को 39

फैमिली, 37, 36 फैमिली सभी जाने कहां मरने चले जाते हैं. एक मैं ही मिलता रहूंगा इस के गुलदस्ते संभालने. एक ही दिन तो काम के बाद चैन का मिलता है कि जल्दी सोऊं आराम से देर से उठूं, पर मैडम का यह बुके… इस परेशानी का हल सोचता बिस्तर में समा गया. झल्लाहट के मारे नींद भी देर तक नहीं आई. वह करवटें ही बदलता रहा. 8 बज रहे थे कि उस की डोरबैल बज उठी.

‘‘अब संडे इतनी सुबह कौन आ गया…’’ उनींदे से उस ने आंखें मलते हुए दरवाजा खोला.

सामने दोस्त संचित खड़ा मुसकरा रहा था, ‘‘अरे तू अभी तक सो रहा है?’’

अमन फिर बिस्तर में घुस गया.

‘‘तू सुबहसुबह मुझे पकाने कैसे आ गया? फैमिली कहां गई तेरी?’’

‘‘मायके… व्हाट ए रियली?’’

‘‘अरे तो मेरा रिलीफ छीनने क्यों आ गया?’’

‘‘पूछा नहीं 3-4 महीने बाद क्यों आ रहा हूं? मिस्टर बोर, चल आज आजाद हूं, अपने टाइप की मारधाड़, ससपैंस वाली मूवीशूवी देखते हैं. वह जैकी चेन की सुपर्ब मूवी लगी है, आईनौक्स में. चल उठ 10 बजे का शो है.’’

‘‘अबे छोड़ न मेरा मूड वैसे ही औफ है.’’

‘‘क्यों हुआ? बोला था शादी कर ले वरना घरपरिवार से दूर तेरा मूड हमेशा औफ ही रहने वाला है. मगर लड़कियों को तू पास भी नहीं फटकने देता है, शादी कैसे कर पाएगा.’’

‘‘अरे यार ड्यूटी के बाद छुट्टी में भी दूसरी ड्यूटी से माथा खराब हो रखा है.’’

‘‘कैसी दूसरी ड्यूटी?’’

‘‘चल छोड़?’’

‘‘अरे बता न?’’

‘‘जाने दे तू हंसेगा…’’

अमन ने जब बुके, लैटर आराधना और रिनी लड़कियों की बात बताई तो संचित हंसतेहंसते लोटपोट हो गया.

‘‘उड़ा ले मजाक…’’

‘‘वाह बेटा याद है बड़ी अकड़ से कहता था कि और लड़कों की तरह कभी किसी लड़की को फूलवूल देने की बेवकूफी मैं कभी नहीं कर सकता और अब तो हर हफ्ते बुके ही पहुंचाए जा रहा है और लैटर भी हा… हा…’’

‘‘अच्छा किया संचित इसे उठा दिया बड़ी देर तक सोता है यह… हम वौक कर दूध, फ्रूट भी ले आए,’’ अमन के पापामम्मी सुबह सैर कर लौट आए थे.

‘‘नमस्ते अंकल, नमस्ते आंटी… आप

लोग कब आए? अच्छा किया आ गए… संचित

ने दोनों के पैर छुए. इस ने फोन पर कुछ बताया

ही नहीं…’’

‘‘अरे कुछ न पूछो बेचारे का बहुत मूड औफ रहता है आजकल… इस बेचारे को ऊपर एक आराधना मैडम को हर शनिवार बुके देना पड़ रहा है… बीचबीच में उस की चिट्ठियां भी देनी पड़ती हैं जिन्हें डाकिया गलती से हमारे पते पर डाल जाता है. तू तो जानता है संचित लड़कियों से कितना दूर भागता है. सो बहुत परेशान है…’’ चुटकी लेते हुए मम्मी मुसकराईं, ‘‘इसी से तो शादी नहीं कर रहा… इस बार तो इस का रिश्ता करवा कर ही जाएंगे हम, यह सोच लिया है… तू कैसा दोस्त है संचित कुछ करता क्यों नहीं इस के लिए… कितने अच्छे रिश्ते हैं हाथ में… इस आराधना से भी हम मिलते रहे हैं. वह भी अच्छी एकदम मस्त लगती है… हंसतीबोलती है, मनहूस नहीं इस के जैसी. आज भी हमें योग करवाने के बाद वौक कर के हमारे साथ ही लौटी है. चुस्त भी है, सुंदरसमझदार भी… वह भी चलेगी पर, अब इसे करनी ही पड़ेगी शादी किसी को भी पसंद करे…’’ उन्होंने हंसते हुए अमन की पीठ थपथपाई थी.

‘‘मम्मी आप फिर शुरू हो गईं सुबहसुबह…’’ वह थोड़ा रूठते

हुए बोला. फिर स्लीपर्स डाली और बाथरूम चला गया.

‘‘पूछ न तू संचित इसे आराधना पसंद है तो हम उस के लिए भी तैयार हैं. हम आगे बात चलाएं… वैसे उस से ही सब पता कर लिया इस के बारे में… सुबहसुबह रोज वह भी पार्क में टहलने आती है न… बड़े साफ दिल की है… कितना दुख है उस की जिंदगी में पर हर समय हंसतीहंसाती ही रहती है… पहले ही बातोंबातों में अमन से उस की शादी के लिए पूछा था. तभी उस ने सब बता दिया अपने बारे में. कहा कि वह हमें किसी धोखे में नहीं रख सकती. वह शादीशुदा है, मगर अब उस का तलाक हो रहा है. उस के मांपापा उस के इसी गम में चल बसे कि बेटी की कितने गलत आदमी से शादी करवा दी थी… अब वह बिलकुल अकेली है.’’

‘‘तो क्या हुआ? 22 अगस्त को उस के खड़ूस पति से उस का तलाक भी हो गया, जिस की पहले भी एक और शादी, फिर उस से तलाक हो चुका था, जिस से एक 6 साल का बेटा भी है, बोर्डिंग में रहता है… शादी से पहले इस को, इस

के मांबाप को कुछ बताया नहीं था… आराधना

सुंदर है, सो एक्स पति समर ने अच्छे बन कर,

उस के गरीब मांबाप को धोखे से, बिना दहेज की शादी के लिए मना लिया. पर अब वह उस की ज्यादतियों से परेशान हो कर उस का घर छोड़ आई. केस दर्ज किया, उसी परेशानी में अपने दम से नौकरी ढूंढ़ी, फिर आगे की पढ़ाई पूरी की और फिर दूसरी यह इतनी अच्छी नौकरी मिल गई उसे कि यह फ्लैट किराए पर ले लिया. फिर अब कोर्ट द्वारा दिलवाए पैसों का भी सहारा हो गया है तो किराए की जगह फ्लैट की किस्तें ही देने लगी है. कुछ सालों में यह उस का अपना हो जाएगा…

उस के केस की आखिरी तारीख पर अंकल और मैं भी इस के साथ कोर्ट गए थे. तब उस बदसूरत, बदसीरत इस के पति समर को देखा था हम ने… अच्छा ही हुआ वह किसी तरह इस के योग्य नहीं था.

‘‘हम को तो कोई एतराज नहीं अगर यह आराधना से ब्याह कर ले, बल्कि हमें तो बहुत खुशी ही होगी एक जिंदादिल समझदार बहू घर आएगी. हमें तो बहुत पसंद आई वह. हिम्मती है, दृढ़निश्चयी है. अपने दम से सबकुछ हासिल कर लिया और हौसले से जिंदगी जी रही है. इस अमन को सारा कुछ हम ने पहले भी बताया था… तभी अमनआ गया.

‘‘संचित समझ इसे कब तक अकेले रहेगा… किसी को तो पसंद करे…’’

मम्मीपापा जब अंदर चले गए तो संचित मुसकराया, ‘‘बेटा क्या इरादा है?’’

कमजोर नस: वंदना को क्यों था अपने पति पर शक

किरण से मेरी पहली मुलाकात राजीव से शादी होने के करीब 6 महीने बाद हुई थी. वह अपनी भाभी के साथ स्कूल आई थी. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले उस के भतीजे समीर की मैं क्लास टीचर हूं.

‘‘मैं किरण हूं. राजीव और मैं कालेज में साथसाथ पढ़े हैं और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे,’’ उस की भाभी जब दूसरी टीचर से मिलने चली गई तो उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय मुझे दिया था.

उस का नाम सुनते ही मेरा दिमाग एक बार को सुन्न सा हो गया. एकदम से समझ में ही नहीं आया कि मैं आगे क्या बोलूं.

उस ने मेरी चुप्पी का गलत अर्थ लगाया और बिदा लेते हुए बोली, ‘‘कभी राजीव को ले कर घर जरूर आना. बाय.’’

‘‘उसे यों जाते देख कर मैं चौंकी और फिर हड़बड़ाती सी बोली, ‘‘मैं अकेले में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘श्योर,’’ उस का जवाब सुन कर मैं कुरसी से उठी और उसे हौल के एक कोने में ले आई. फिर मैं ने इधरउधर की बातें करने में समय नष्ट किए बिना उस से सीधा सवाल पूछा, ‘‘तुम ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी?’’

‘‘मुझे राजीव से शादी क्यों करनी चाहिए थी?’’ उस ने मुसकराते हुए उलटा सवाल पूछा.

‘‘क्योंकि तुम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. राजीव विजातीय थे तो क्या हुआ? तुम्हें अपने मातापिता की इच्छा के खिलाफ जा कर उन से शादी करनी चाहिए थी.’’

‘‘क्योंकि उन्होंने आज भी तुम्हारी तसवीर को दिल में बसा रखा है. तुम से जुड़ी यादों के कारण मैं कभी उन के दिल की रानी नहीं बन पाऊंगी,’’ मैं गुस्सा हो उठी थी.

‘‘क्या मेरे साथ जुड़ी यादें तुम्हारे व राजीव के प्यार में बीच में आ रही है?’’ वह चौंक पड़ी.

‘‘हां, उन्होंने सिवा प्यार की गरमाहट के मुझे सबकुछ दे रखा है,’’ न चाहते हुए भी मेरा गला भर आया था.

‘‘यह तो राजीव बहुत गलत कर रहा है,’’ उस ने सहानुभूति

भरे अंदाज में मेरा कंधा पकड़

कर दबाया.

‘‘तुम ने अपने मातापिता की क्यों सुनी? जब प्यार किया था तो शादी क्यों नहीं करी?’’

उस ने कुछ देर खामोश

रहने के बाद जवाब दिया, ‘‘इन सवालों के जवाब देने मैं तुम्हारे घर आती हूं.’’

‘‘नहीं, तुम्हारा मेरे घर आना ठीक नहीं रहेगा,’’ मैं एकदम

घबरा उठी.

‘‘क्या तुम्हें डर है कि अगर मैं ने तुम्हारे घर आनाजाना शुरू कर दिया तो तुम कहीं राजीव को पूरी तरह से ही न खो दो?’’

मैं जवाब में खामोश रही तो उस ने प्यार से मेरा गाल थपथपा कर कहा, ‘‘मुझे तुम आज से अपनी बड़ी बहन समझो. मैं कभी तुम्हारा अहित नहीं करूंगी.’’

‘क्या तुम और राजीव मिलते रहते हो?’’

‘‘तुम्हारे सब सवालों के जवाब अगली मुलाकात में तुम्हारे घर आ कर दूंगी.’’

‘‘कब आओगी?’’

‘‘जल्द ही,’’ उस ने मुझ से हाथ मिलाया और अपनी भाभी की तरफ चली गई.

मैं ने राजीव को किरण से हुई इस मुलाकात की जानकारी शाम को दी तो उन्होंने सब से पहला सवाल यह पूछा, ‘‘कैसी लगी किरण की पर्सनैलिटी तुम्हें?’’

‘‘तुम बिना बात गुस्सा हो रही हो. अरे, वह मुझ से प्यार जरूर करती थी पर अब हमारे बीच कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

‘‘चक्कर नहीं चल रहा है पर आप उसे भूले भी कहां हैं,’’ मेरा मूड खराब होता जा रहा था.

‘‘तुम सचसच बताओ कि क्या उस जैसी शानदार शख्सीयत को कोई भुला सकता है?’’ उन्होंने गहरी आह सी भरी.

‘‘यह बिडंबना ही है कि मेरी सेवा और समर्पण की आप की नजरों में कोई कीमत नहीं है,’’

मैं बुरी तरह से चिड़ उठी, ‘‘आप मेरी यह बात कान खोल कर

सुन लो. मैं बिलकुल नहीं चाहती हूं कि उस का मेरे घर में आनाजाना शुरू हो.’’

‘‘किसी का दिल ईर्ष्या की आग में जलने की बू आ रही है,’’ मेरा मजाक सा उड़ाते ये कमरे से बाहर चले गए और मैं देर तक किलसती रही.

अगले रविवार सुबह 11 बजे के करीब किरण

अपनी 2 सहेलियों शिखा व नेहा के साथ अचानक हमारे घर आ पहुंची. ये दोनों भी कालेज में राजीव के साथ पढ़ी थीं. इन के आते ही घर का माहौल तो एकदम से खुशनुमां हो गया, पर मैं खिंचीखिंची सी

बनी रही.

‘‘राजीव, जितनी तुम तारीफ फोन पर करते थे, वंदना तो उस से कहीं गुणा ज्यादा सुंदर और स्मार्ट है,’’ शिखा के मुंह से मेरी तारीफ सुन कर राजीव खुश हो गए.

‘‘तुम्हारी तो लौटरी निकल आई इै इतनी अच्छी पत्नी पा कर. इसी बात पर आज पार्टी हो जाए?’’ नेहा की आंखों में भी मैं ने अपने लिए प्रशंसा के भाव साफ देखे.

‘‘बिलकुल हो जाए,’’ राजीव ने फौरन खुशी से जवाब दिया.

‘‘मिठाई में हमारी पसंद याद है या भूल गए हो?’’ किरण ने बड़ी अदा से पूछा.

‘‘नेहा को रसमलाई, शिखा को रसगुल्ले और तुम्हें काजू की बरफी पसंद है. मैं कुछ नहीं भूला हूं.’’

‘‘तो किस की पसंद की मिठाई खिलाओगे?’’

‘‘मेरी.’’

‘‘मेरी.’’

‘‘नहीं, मेरी.’’

‘‘अरे, परेशान मत होओ.

मैं तीनों की पसंद की मिठाई ले आता हूं.’’

‘‘यह हुई न बात. तुम बिलकुल नहीं बदले हो. कितना बड़ा दिल है तुम्हारा,’’ किरण के मुंह से अपनी तारीफ सुनते ही राजीव ने विजयी भाव से मेरी तरफ देखा.

‘‘मैं अभी गया और अभी आया,’’ कह वे एकदम बाजार जाने को उठ खड़े हुए.

‘‘अभी रुको. थोड़ी देर बाद सब साथ चलेंगे. पहले तुम्हारी जानेमन वंदना के हाथ की बनी चाय तो पी लें.’’

‘‘चाय तो मैं अभी बना कर लाती हूं पर मुझे इन की जानेमन समझने की भूल न करें. इन की जानेमन तो कोई और है,’’ अपनी शिकायत बताने के बाद मैं रसोई में जाने को उठ खड़ी हुई.

‘‘लगता है कालेज में इस के सिर के ऊपर हर लड़की से प्रेम करने का जो भूत सवार रहता था, वह अभी भी उतरा नहीं है,’’ शिखा की इस टिप्पणी पर वे तीनों खिलखिला कर हंसीं.

किरण ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे किचन में जाने से रोका और अपने पास बैठाते हुए बोली, ‘‘हमें जाने की कोई जल्दी नहीं है. चाय कुछ देर बाद पी लेंगे. वैसे सहेलियां आज बहुत समय बाद राजीव के हाथ की बनी चाय पी जाए तो

कैसा रहेगा?’’

राजीव तो चाय बनाने को फौरन तैयार हो गए थे. वे तीनों उन के साथ रसोई में चली आई. वहां उन्होंने मुझे कोई काम नहीं करने दिया.

कुछ देर बाद ही रसोई में बहुत शोर मचने लगा.

‘‘अरे, इतनी ज्यादा चाय की पत्ती मत डालो.’’

‘‘अरे, अभी से चीनी क्यों डाल रहे हो?’’

‘‘कैसे भोंदू हो गए हो जो ढंग की चाय बनाना भी भूल गए हो. लगता है वंदना कोई काम तुम से नहीं कराती है.’’

‘‘आज पकौड़े बना कर नहीं खिलाओगे?’’

‘‘पकौड़ों को रहने दें… हमें पेट खराब नहीं करना है.’’

वे तीनों राजीव का खूब मजाक उड़ा रही थीं. लेकिन उन का व्यवहार बहुत दोस्ताना था. कभीकभी मुझे भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो जाता था.

कुछ देर बाद हम सब ड्राइंगरूम में बैठ कर राजीव द्वारा बनाई गई चाय का आनंद ले रहे थे. चाय अच्छी बनी थी और सब के मुंह से अपने काम की प्रशंसा सुन वे फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘राज, आज एक बढि़या सा गाना भी हो जाए,’’ किरण के मुंह से निकला तो बाकी दोनों भी गाना सुनाने के लिए उन के पीछे पड़ गई.

‘‘अब प्रैक्टिस नहीं रही है. मैं नहीं गा पाऊंगा,’’ राजीव ने गाने से बचने की कोशिश करी.

‘‘मेरी खातिर गाओ न,’’ किरण ने बड़ी अदा से जोर डाला तो ये गाना गाने को सचमुच तैयार हो गए और कमरे में एकदम से वे तीनों हल्ला मचाने लगीं.

‘‘कौन सा गाना सुनाओगे?’’

‘‘जब मुझ से इश्क लड़ा रहे थे तब ‘चौहदवीं का चांद हो…’ सुनाया था. आज वही सुना दो.’’

‘‘नहीं, पार्क में मेरे साथ घूमते हुए मेरी तारीफ में जो ‘तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं…’ गीत गुनगुनाते थे वही सुना दो.’’

‘‘नहीं, वह मेरी पसंद का गाना सुनाइगा.’’

कुछ देर बाद जब राजीव ने किरण की पसंद का गाना गाया तो हम सब की हंसतेहंसते हालत खराब हो गई. उन से न सुर सध रहा था, न ताल. आवाज कहीं की कहीं जा रही थी.

वे बारबार रुक जाते थे पर उन तीनों ने पीछे पड़ कर गाना पूरा करवा ही लिया. गाना खत्म कर के इन्होंने मुझे सफाई सी दी, ‘‘मैं कालेज के दिनों में अच्छा सिंगर होता था. कुछ दिन रियाज करने के बाद देखना मैं कितना बढि़या गाने लगूंगा.’’

‘‘यह राजीव लड़कियों में भी सब से पौपुलर युवक होता था हमारे कालेज का, वंदना.’’

‘‘जब यह लड़कियों पर अनापशनाप खर्चा करने को हमेशा तैयार रहता था तो पौपुलर कैसे न होता?’’

‘‘मुझे इस ने कम से कम 20 फिल्में तो दिखाई ही होंगी.’’

‘‘मैं ने 50 देखी होंगी.’’

‘‘मैं ने 100 से ऊपर.’’

‘‘तू तो खास सहेली थी न इस की.’’

वे राजीव की पुरानी बातें याद कर खूब देर तक हंसती रहीं और फिर अचानक किरण ने कहा, ‘‘अब चलो भी. देर हो रही है. मेरा बेटा और पति लंच करने को तैयार बैठे होंगे.’’

‘‘ऐसे कैसे जाओगी? अभी तो तुम लोगों ने मनपसंद मिठाई भी नहीं खाई है,’’ राजीव बाजार जाने को फौरन उठ खड़े हुए.

‘‘मिठाई फिर कभी खा लेंगे. अभी तो तुम बस कोल्ड ड्रिंक ही पिला दो अपने हाथों से ला कर,’’ किरण ने राजीव को रसोई की तरफ जबरदस्ती धकेल दिया.

वे चले गए तो किरण ने संजीदा हो कर मुझ से कहा, ‘‘मैं ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी, अब जल्दी से अपने सवाल का जवाब सुनो, वंदना. हमारे आज के व्यवहार से तुम्हें अंदाजा हो गया होगा कि राजीव को हम ने मनोरंजन के माध्यम से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझा था. उस जैसे सीधेसादे लड़केलड़कियों के अच्छे दोस्त बन ही जाते हैं पर उस से शादी करने का विचार कभी हम में से किसी के दिल में आया ही नहीं था.

‘‘मैं इस के साथ बस फ्लर्ट करती थी पर जब यह सीरियस हो गया तो मुझे मजबूरन अपनी मम्मी को बीच में लाना पड़ा था. वे विजातीय लड़के से मेरी शादी करने को बिलकुल तैयार नहीं हैं, यह कह कर मैं ने अपनी जान छुड़ाई थी.

‘‘अब मेरी एक बात ध्यान से सुनो. अगर तुम हमारी तरह इसे अपनी उंगलियों पर नचाना चाहती हो तो इस की एक कमजोर नस मैं तुम्हें बताती हूं. यह दूसरों की नजरों में खास बने रहने को कुछ भी करेगा और कहेगा. इस के डींग मारने वाले व्यवहार से नाराज व दुखी रहने के बजाय तुम इस की झूठीसच्ची तारीफ कर के इस से कुछ भी करा सकती हो.’’

राजीव के लौट आने के कारण वह आगे और कुछ नहीं कह पाई थी. कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद उन तीनों ने बारीबारी से मेरा माथा चूमा और खूब होहल्ला मचाते हुए अपनेअपने घर चली गईं.

उन के जाते ही राजीव ने मुझ से छाती चौड़ी करते हुए पूछा, ‘‘तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा है न?’’

‘‘किस बात का?’’ मैं ने उन की आंखों में प्यार से झांक कर पूछा.

‘‘यही कि मेरी चाहने वालियों की आज भी कोई कमी नहीं है.’’

‘‘बिलकुल भी नहीं. आप हो ही इतने स्मार्ट,’’ पहले वाले अंदाज में नाराज हो कर मुंह फुलाने के बजाय मैं ने इन के गले में प्यार से बांहें डाल कर यह जवाब दिया तो इन का चेहरा खिल उठा.

‘‘वैसे आज की तारीख में ये सब तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं हैं,’’ इन के मुंह से यों उलटी गंगा बहती देख मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी और मन ही मन किरण को धन्यवाद दिया जिस ने मुझे इन की कमजोर नस पकड़वा दी थी.

Summer Special: फ्रोजेन फूड के इस्तेमाल से पहले जानें कुछ बातें 

आजकल वर्क फ्रॉम होम सामान्य स्थिति बन चुकी है। घरेलू कार्य में मदद करने वाले की कमी और लंबे समय तक कार्य करने की वजह से हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। मेडिटेशन, योग और लंबी सांस वाले व्यायाम के जरिए हम इस तरह के चुनौतीपूर्ण समय में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की लगातार कोशिश की जा रही है. इसके अलावा सुरक्षित, स्वास्थ्यवर्धक, स्वच्छ और स्वादिष्ट होने के साथ समय की बचत करने वाला भोजन का विकल्प आज की जरूरत बन गया है.

इस बारें में गोल्ड फ्रोजेन फ़ूड के डायरेक्टर और एक्सपर्ट अर्चित गोयल बताते है कि अगर आप हर दिन आसानी से बनने वाले और स्वादिष्ट और कुछ अलग भोजन की तलाश में है तो फ्रोजेन फूड्स को ट्राय कर सकते है, जो गुणवत्ता और स्वाद में अच्छा होता है. आजकल फ्रोजेन फूड्स की उपयोगिता बढ़ चुकी है. आइये जाने इसकी उपयोगिता और खरीदते वक्त कुछ सावधानियां, जो जरुरी है, ताकि आपको घर पर स्वादिष्ट भोजन के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता भी मिल सकें. ध्यान रखने योग्य बातें निम्न है,

  • ऐसा माना जाता है कि मार्केट में उपलब्ध कोई भी खाना कई हाथों से गुजरकर आपके घर तक पहुंचता है, लेकिन ऐसा नहीं होता, फ्रोजेन फूड्स सुरक्षित और ताजा होता है, क्योंकि वो ब्लास्ट, आईक्यूएफ या स्पायरल फ्रीजिंग तकनीक के जरिए तैयार होता है, जो आपके भोजन को कई बार ताजे बनाए, भोजन से भी ज्यादा ताजा रख सकता है, वो भी 12 महीने तक आपको वैसी ही गुणवत्ता और स्वाद मिल सकता है.
  • इसके लिए किसी भी नामचीन ब्रांड के फ्रोजेन फ़ूड को लें, ताकि व्यंजन की प्रिजर्वेटिव, कलर, फ्लेवर या ट्रांस फैट्स न हो, जो आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक न हो, क्योंकि भोजन फ्रोजेन है, सही तरीके से प्रोसेस किया गया फ़ूड उसके पोषक तत्व और स्वाद को अधिक दिनों तक बनाये रखती है.
  • अभी अधिकतर लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे है, ऐसे में काम का बोझ सभी पर अधिक हो चुका है, क्योंकि काम के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियां भी पूरी तरह से निभानी पड़ रही है. साथ ही कोरोना संक्रमण की वजह से लोग बाहर से खाना मंगाने से भी डर रहे है, ऐसे में फ्रोजेन फ़ूड का आप्शन काफी अच्छा विकल्प है, जिसमें आप रोज-रोज के खाने से कुछ अलग ट्राय कर सकते है. जिसे बनाने में भी समय कम लगता है. ‘रेडी टू कुक’ खाने को कोई भी आसानी से इसके निर्देश के अनुसार बनाकर खा सकता है.
  • मिलेनियल्स और पेशेवर जिंदगी में व्यस्त लोगों के लिए, परिवार के लिए और बैचलर्स के लिए फ्रोजेन फूड्स एक व्यावहारिक विकल्प है, जो कि स्वादिष्ट, स्वच्छ और किफायती होने के साथ ही पौष्टिक और लंबे समय तक ताजा रहने वाला भी होता है.
  • फ्रोजेन मटर, स्माइली, नगेट्स, पोटैटो फ्राइज के अलावा कई कंपनियों ने नए और बेहद स्वादिष्ट अलग अलग तरह के भारतीय व्यंजन मसलन किनोआ पैटिज, सोया शमी कबाब, कई प्रकार के पराठे, स्नैक्स आदि कई आप्शन शुरू किये है, जिसे आप अपनी स्वादनुसार खरीद सकते है.
  • फ्रोजेन फूड्स सुरक्षित होते है, क्योंकि इसमें बाहर जाकर या मंगवाकर खाना नहीं पड़ता, इसलिए किसी प्रकार के संक्रमण से आप दूर रह सकते है, अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट भोजन का आनंद आप इसके द्वारा ले सकते है.
  • फ्रोजेन फूड्स एक बेहद फ्लेक्सिबल पैकेजिंग के साथ आता है जो खाने को सुरक्षित रखने की पूरी जिम्मेदारी निभाता है, इसलिए ये भोजन को दूषित होने से बचाता है और सुरक्षित स्टोर करता है जिससे उपभोक्ता आसानी से इसका प्रयोग कर सकें.
  • फ्रोजेन फूड का विकल्प अक्सर ताजे और ऑर्गेनिक उत्पादों से सस्ता होता है, ये रेडी टू ईट खाने का विकल्प है जो समय बचाने के साथ-साथ कई प्रकार की सहूलियतें भी देता है.
  • इसे खरीदने से पहले पैकेट पर लगाए गए लेबल को भी देखें जिससे कि आप ये जान सकें कि जो खरीद रहे हैं उसमें क्या है और जो तैयार खाना आप खरीदते हैं उसमें क्या क्या मिलाया गया है, जो भी सामग्री उसमें डाली गई है चाहे प्रिजर्वेटिव, ट्रांसफैट, नमक, चीनी या सॉस हो उसे देखे और अपने अनुसार ही ख़रीदे.
  • याद रखें कि फ्रोजेन फूड्स को 18 डिग्री या उससे कम तापमान पर रखना होता है और एकबार निकालने के बाद उनका दोबारा इस्तेमाल करना सही नहीं होता.

एकांत कमजोर पल: जब सनोबर ने साहिल को गैर महिला की बांहों में देखा

वकील साहब का हंसताखेलता परिवार था. उन की पत्नी सीधीसाधी घरेलू महिला थी. वकील साहब दिलफेंक थे यह वे जानती थीं पर एक दिन सौतन ले आएंगे वह ऐसा सोचा भी नहीं था. उस दिन वे बहुत रोईं.

वकील साहब ने समझाया, ‘‘बेगम, तुम तो घर की रानी हो. इस बेचारी को एक कमरा दे दो, पड़ी रहेगी. तुम्हारे घर के काम में हाथ बटाएगी.’’

वे रोती रहीं, ‘‘मेरे होते तुम ने दूसरा निकाह क्यों किया?’’

वकील साहब बातों के धनी थे. फुसलाते हुए बोले, ‘‘बेगम, माफ कर दो. गलती हो गई. अब जो तुम कहोगी वही होगा. बस इस को घर में रहने दो.’’

बेगम का दिल कर रहा था कि अपने बच्चे लें और मायके चली जाएं. वकील साहब की सूरत कभी न देखें. पर मायके जाएं तो किस के भरोसे? पिता हैं नहीं, भाइयों पर मां ही बोझ है. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि शादी के 14 साल बाद 40 साल की उम्र में वकील साहब यह गुल खिलाएंगे. बसाबसाया घर उजड़ गया.

वकील साहब ने नीचे अपने औफिस के बगल वाले कमरे में अपनी दूसरी बीवी का सामान रखवा दिया और ऊपर अपनी बड़ी बेगम के पास आ गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं. बड़ी बेगम का दिल टूट गया. इतने जतन से पाईपाई बचा कर मकान बनवाया था. सोचा भी न था कि गृहस्थी किसी के साथ साझा करनी पड़ेगी.

दिन गुजरे, हफ्ते गुजरे. बड़ी बेगम रोधो कर चुप हो गईं. पहले वकील साहब एक दिन ऊपर खाना खाते और एक दिन नीचे. फिर धीरेधीरे ऊपर आना बंद हो गया. उन की नई बीवी में चाह इतनी बढ़ी कि वकालत पर ध्यान कम देने लगे. आमदनी घटने लगी और परिवार बढ़ने लगा. छोटी बेगम के हर साल एक बच्चा हो जाता. अत: खर्चा बड़ी बेगम को कम देने लगे.

बड़ी बेगम ने हालत से समझौता कर लिया था. हाईस्कूल पास थीं, इसलिए महल्ले के ही एक स्कूल में पढ़ाने लगीं. बच्चों की छोटीमोटी जरूरतें पूरी करतीं. शाम को घर पर ही ट्यूशन पढ़ातीं जिस से अपने बच्चों की ट्यूशन की फीस देतीं. अब उन का एक ही लक्ष्य था अपने बेटेबेटी को खूब पढ़ाना और उन्हें उन के पैरों पर खड़ा करना. पति और सौतन के साथ रहने का उन का निर्णय केवल बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए ही था. वे जानती थीं कि बच्चों के लिए मांपिता दोनों आवश्यक हैं.

अब सारे घर पर छोटी बेगम का राज था. बड़ी बेगम और उन के बच्चे एक कमरे में रहते थे जहां कभी किसी विशेष कारण से वकील साहब बुलाए जाने पर आते.

इस तरह समय बीतता गया और फिर एक दिन वकील साहब अपनी 5 बेटियों और छोटी बेगम को छोड़ कर चल बसे. छोटी बेगम ने जैसेतैसे बेटियों की शादी कर दी. मकान भी बेच दिया.

बड़ी बेगम की बेटी सनोबर की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. देखने में सुंदर भी थी पर शादी के नाम से भड़कती थी. वह अपनी मां का अतीत देख चुकी थी अत: शादी नहीं करना चाहती थी. बड़ी बेगम के बहुत समझाने पर वह शादी के लिए राजी हो गई. साहिल अच्छा लड़का था, परिवार का ही था.

सनोबर ने शादी के लिए हां तो कर दी पर अपनी शर्तें निकाहनामे में रखने को कहा.

साहिल ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है.’’

सनोबर ने बात साफ की, ‘‘ऐसे कह देने से नहीं, निकाहनामे में लिखना होगा की मेरे रहते तुम दूसरी शादी नहीं करोगे और अगर कभी हम अलग हों और हमारे बच्चे हों तो वे मेरे साथ रहेंगे.’’

सनोबर को साहिल बचपन से जानता था. उस के दिल का डर समझता था. बोला, ‘‘सनोबर निकाहनामे में यह भी लिख देंगे और भी जो तुम कहो. अब तो मुझ से शादी करोगी?’’

सनोबर मान गई और दोनों की शादी हो गई. दोनों की अच्छी जौब, अच्छा प्लैट, एक प्यारी बेटी थी. कुल मिला कर खुशहाल जीवन था सनोबर का. शादी के 12 साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.

सनोबर का प्रमोशन होने वाला था. अत: वह औफिस पर ज्यादा ध्यान दे रही थी. घर बाई ने ही संभाल रखा था. बेटी भी बड़ी हो गईर् थी. वह अपना सब काम खुद ही कर लेती थी. सनोबर उस को भी पढ़ाने का समय नहीं दे पाती. अत: ट्यूशन लगा दिया था. सनोबर का सारा ध्यान औफिस के काम पर था. घर की ओर से वह निश्चिंत थी. बाई ने सब संभाल लिया था.

औफिस के काम से सनोबर 2 दिनों के लिए बाहर गई थी. आज उसे रात को आना था पर उस का काम सुबह ही हो गया तो वह दिन में ही फ्लाइट से आ गई. इस समय बेटी स्कूल में होगी, पति औफिस में और बाई तो 5 बजे आएगी. वह अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर आई तो देखा लाईट जल रही है. बैडरूम

से कुछ आवाज आई तो वह दबे पैर बैडरूम तक गई तो देख कर अवाक रह गई. साहिल और बाई एक साथ…

वह वापस ड्राइंगरूम में आ गई. साहिल दौड़ता हुआ आया और बाई दबे पैर खिसक ली.

साहिल सनोबर को सफाई देने लगा, ‘‘मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था. मेरी तबीयत खराब थी तो वह सिर दबाने लगी और मैं बहक गया. उस ने भी मना नहीं किया.’’

वह और भी जाने क्याक्या कहता रहा. सनोबर बुत बनी बैठी रही. वह माफी मांगता रहा.

सनोबर धीरे से उठी और अपने और अपनी बच्ची के कुछ कपड़े बैग में डालने लगी. बच्ची आई तो उसे ले कर अपनी अम्मी के पास चली गई. साहिल उसे रोकता रहा, माफी मांगता रहा पर सनोबर को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

घर आ कर मां से सारी बात बताई और फफक कर रो पड़ी, ‘‘साहिल ने मुझे धोखा दिया. अब मैं उस के साथ नहीं रह सकती.’’

बड़ी बेगम का दिल रो पड़ा. वर्षों पहले जिस आग में उन का घर जला था आज उन की बेटी के घर पर उस की आंच आ गई.

निकाह में शर्तें रखने से भी क्या हुआ? सब मर्द एकजैसे होते हैं, जब जिसे मौका मिल जाए कोई नहीं चूकता.

बड़ी बेगम ने बेटी को संभाला, ‘‘बेटी मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूं. तुम सो जाओ.’’ और उस का सिर अपनी गोद में रख कर सहलाने लगीं.

दूसरे दिन जब सनोबर औफिस गई और बच्ची स्कूल तो साहिल आया. जानता था बड़ी बेगम अकेली होगी. नौकरानी ने बैठाया. बड़ी बेगम को सलाम कर के बैठ गया. धीरे से बोला, ‘‘खालाजान, मुझ से बड़ी गलती हो गई. मैं एक कमजोर पल में बहक गया था. मुझ से गलती हो गई. मैं कसम खाता हूं अब कभी ऐसा नहीं होगा. मुझे माफ कर दीजिए, सनोबर से माफ करवा दीजिए,’’ इतना सब वह एक सांस में ही कह गया था.

बड़ी बेगम चुप रहीं. उन को बहुत दुख था और गुस्सा भी. साहिल की बातों और आंखों में शर्मिंदगी और पछतावा था. वे धीरे से बोलीं, ‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती, जैसा सनोबर चाहे.’’

‘‘खालाजान मेरा घर टूट जाएगा, मेरी बेटी मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैं सनोबर के बिना जी नहीं सकता.’’

बड़ी बेगम कुछ न कह सकीं.

शाम को जब सनोबर औफिस से आई तो बड़ी बेगम ने बताया कि साहिल आया था और माफी मांग रहा था.

सनोबर ने गुस्सा किया, ‘‘आप ने उसे आने क्यों दिया? हमारा कोई रिश्ता नहीं उस से. मैं तलाक लूंगी.’’

बड़ी बेगम को याद आया जब वकील साहब दूसरी बीवी ले आए थे तो वे भी मायके जाना चाहती थीं पर उन का न तो कोई सहारा था न वे अपने पैरों पर खड़ी थीं. आज सनोबर अपने पैरों पर खडी है. अपने फैसले खुद ले सकती है. फिर सोचने कि लगीं तलाक से इस मासूम बच्ची का क्या होगा? मां या बाप किसी एक से कट जाएगी. अगर दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा? वे अंदर ही अंदर डर गईर्ं. अपने बेटे को सनोबर और साहिल के बारे में बताया तो वह दूसरे दिन ही आ गया. दोनों बहनभाई की एक ही राय थी कि तलाक ले लिया जाए. साहिल रोज फोन करता, मैसेज भेजता पर सनोबर जवाब न देती.

साहिल बड़ी बेगम से मिन्नतें करता, ‘‘खालाजान, आप सब ठीक कर सकती हैं. एक बार मुझे माफ कर दीजिए और सनोबर से भी माफ करवा दीजिए. मैं अपनी गलती के लिए बहुत शर्मिंदा हूं.’’

एक दिन सनोबर औफिस से अपने फ्लैट पर कुछ सामान लेने गई तो उस ने देखा घर बिखरा है. किचन में भी कुछ बाहर का खाना पड़ा है. वह समझ गई बाई नहीं आ रही है. घर में हर तरफ लिखा था, ‘आई एम सौरी, वापस आ जाओ सनोबर.’ सनोबर को लगा साहिल 40 साल का नहीं, कोई नवयुवक हो और उसे मना रहा हो.

धीरेधीरे कई कोशिशों के बाद साहिल ने बड़ी बेगम को विश्वास दिला दिया कि यह एक कमजोर पल की भूल थी. उस ने पहले कभी कोई बेवफाई नहीं की. बड़ी बेगम ने सोचा यह तो सच है कि साहिल से भूल हो गई, अपनी गलती पर उसे शर्मिंदगी भी है, माफी भी मांग रहा है. प्रश्न बच्ची का भी है. वह दोनों में से किसी एक से छिन जाएगी. तो क्या इसे एक अवसर देना चाहिए?

बड़ी बेगम ने साहिल को बताया कि सनोबर तलाक लेने की तैयारी कर रही है. यह सुनते ही साहिल दौड़ादौड़ा आया, ‘‘खालाजान, अगर सनोबर ने तलाक की अर्जी डाली तो मैं मर जाऊंगा, मुझे एक मौका दीजिए और बच्चों की तरह रोने लगा.’’

बड़ी बेगम को दया आने लगी बोलीं, ‘‘तुम रो मत मैं आज बात करूंगी.’’

सनोबर बोली, ‘‘औफकोर्स अम्मी.’’

बड़ी बेगम ने भूमिका बांधी, ‘‘जब तुम्हारे अब्बू दूसरी बीवी ले आए थे तो मैं भी उन्हें छोड़ना चाहती थी पर सामने तुम दोनों बच्चे थे.’’

‘‘आप की बात अलग थी मैं खुद को और अपनी बच्ची को संभाल सकती हूं. उस की गलती की सजा उसे मिलना ही चाहिए, सनोबर बोली.’’

‘‘उस की गलती की सजा उस के साथसाथ तुम्हारी बेटी को भी मिलेगी या तो उस का बाप छिनेगा या मां और अगर तुम दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा?’’

‘‘अम्मी एक शादी से दिल नहीं भरा जो दूसरी करूंगी? रह गया पिता तो ऐसे पिता के होने से ना होना भला,’’ सनोबर के मन की सारी कड़वाहट होंठों पर आ गई.

बड़ी बेगम जानती थीं इस का गुस्सा निकलना अच्छा है. उन्होंने बहस नहीं की.

बोलीं, ‘‘ठीक है तुम को लगता है तुम अकेली ही अच्छी परवरिश कर सकती हो तो ठीक है, पर मैं चाहती हूं कि तुम तलाक की अर्जी 6 महीने बाद दो. कुछ वक्त दो फिर जो तुम्हारा फैसला होगा मैं मानूंगी.’’

‘‘नो वे अम्मी मैं 6 दिन भी न दूं. जबजब मुझे याद आता है साहिल और बाई… घिन आती है उस के नाम से. कोई इतना गिर सकता है?’’

बड़ी बेगम ने दुनिया देखी थी. अपने पति को बहुतों के साथ देखा था. उन्होंने अपने अनुभव का निचोड़ बताया, ‘‘वह एक वक्ती हरकत थी. उस का कोई अफेयर नहीं था. जब एक औरत और एक मर्द अकेले हों तो दोनों के बीच तनहाई में एक कमजोर पल आ सकता है.’’

मैं भी तो औफिस में अकेली मर्दों के साथ घंटों काम करती हूं. मेरे साथ तो कभी ऐसा नहीं हुआ. आत्मसंयम और मर्यादा ही इंसान होने की पहचान हैं वरना जानवर और आदमी में क्या फर्क है?’’

‘‘मैं ने अब तक तुम से कुछ नहीं कहा पर बहुत सोच कर तुम से समय देने को कह रही हूं. आगे तुम्हारी जो मरजी.’’

‘‘ठीक है आप कहतीं हैं तो मान लेती हूं पर मेरे फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’

सनोबर यह सोच कर मान गई कि उसे भी तो कुछ काम निबटाने हैं. प्रौपर्टी के पेपर अपने नाम करवाना और सेविंग्स में नौमिनी बदलना आदि. फिर अभी औफिस का भी प्रैशर है. रात को रोज की तरह साहिल ने फोन किया तो सनोबर ने उठा लिया.

साहिल खुशी और अचंभे के मिलेजुले स्वर में बोला, ‘‘सनोबर मुझे माफ कर दो, वापस आ जाओ.’’

सनोबर ने तटस्थ स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना है.’’

साहिल बोला, ‘‘हां, हां… जब कहो.’’

सनोबर बोली, ‘‘कल औफिस के बाद घर पर.’’ और फोन रख दिया.

औफिस के बाद सनोबर घर पहुंची. साहिल उस की प्रतिक्षा कर रहा था. घर भी उस ने कुछ ठीक किया था. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने झिड़क दिया और दूर बैठ गई.

‘‘साहिल मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती. शांति से सब तय करना चाहती हूं. मेरातुम्हारा जौइंट अकाउंट बंद करना है. इंश्योरैंस पौलिसीज में नौमिनी हटाना है. इस फ्लैट में तुम्हारा जो पैसा लगा वह तुम ले लो. मैं इसे अपने नाम करवाना चाहती हूं. मुझे तुम से कोई पैसा नहीं चाहिए, मैं काजी के यहां खुला (औरत की ओर से निकाह तोड़ना) की अर्जी देने जा रही हूं.’’

थोड़ी देर के लिए साहिल चुप रहा फिर बोला, ‘‘सनोबर, मेरा जो कुछ है सब तुम्हारा और हमारी बेटी का है. तुम सब ले लो मुझे मेरी सनोबर दे दो. मुझे एक बार माफ कर दो. मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो. अगर तुम मेरी जिंदगी में नहीं तो मैं यह जिंदगी ही खत्म कर दूंगा,’’ सनोबर जानती थी साहिल भावुक है पर इतना ज्यादा है यह नहीं जानती थी. वह उठ कर चली गई.

अब बस औफिस जाने और मन लगा कर काम करने में और बेटी के साथ उस का समय बीतने लगा. बड़ी बेगम के कहने पर और बेटी की जिद पर वह राजी हुई कि साहिल सप्ताह में एक बार बेटी से मिल सकता है. उसे बाहर ले जा सकता है. वह नहीं चाहती थी कि उस की बेटी को उस के पिता की असलियत पता चले. इस आयु में यदि उसे पिता के घिनौने कारनामे का पता चलेगा तो वह जाने क्या प्रतिक्रिया करे. साहिल सप्ताह में 2 घंटे के लिए बेटी को घुमाने ले जाता, गिफ्ट दिलाता और सनोबर की पसंद का भी कुछ बेटी के साथ भेजता पर सनोबर आंख उठा कर भी न देखती.

तभी सनोबर की पदोन्नति हुई साथ ही मुख्यालय में तबादला भी. सनोबर को न चाह कर भी दिल्ली जाना पड़ा. बेटी को नानी के पास छोड़ना पड़ा. स्कूल का सैशन समाप्त होने में अभी 2 महीने थे. बड़ी बेगम ने आश्वासन दिया, ‘‘मैं संभाल लूंगी तुम जाओ मगर हर वीकैंड पर आ जाना.’’

मुख्यालय में उस के कुछ पूर्व साथी भी थे, सब ने स्वागत किया. एक प्रोजैक्ट में उस को समीर के साथ रखा गया. समीर भी सनोबर का पुराना साथी था और उस पर फिदा भी था.

समीर और सनोबर साथसाथ काम करते हुए काफी समय एकदूसरे के साथ बिताते. सनोबर ने साहिल और अपने बारे में समीर को नहीं बताया. जिस प्रोजैकट पर दोनों काम कर रहे थे उस में क्लाइंट की लोकेशन पर भी जाना होता था. दोनों साथसाथ जाते, होटल में रहते और काम पूरा कर के आते. घंटों अकेले एकसाथ काम करते. आज भी दोनों सुबह की फ्लाइट से गए थे. दिन भर काम कर के रात को होटल पहुंचे. समीर बोला, ‘‘फ्रैश हो लो फिर खाना खाने नीचे डाइनिंगरूम में चलते हैं.’’

सनोबर बोली, ‘‘तुम जाओ. मैं अपने रूम में ही कुछ मंगवा लूंगी.’’

समीर बोला, ‘‘ठीक है मेरा भी कुछ और्डर कर देना, साथ ही खा लेंगे.’’

सनोबर को समीर चाहता भी था, उस का आदर भी करता था. सनोबर के हैड औफिस आने के बाद समीर ने कभी अपने पुराने प्यार को प्रकट नहीं किया. वह अपनी पत्नी और बच्चों में खुश था.

समीर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना आने की प्रतीक्षा में दोनों काम से जुड़ी बातें ही करते रहे. समीर की पत्नी का फोन भी आया. समीर की और उस की पत्नी की बातों से लग रहा था दोनों सुखी व संतुष्ट हैं.

समीर ने साहिल के बारे में पूछा तो सनोबर बात टाल गई. फिर खाना आया, दोनों खाना खातेखाते पुराने दिनों की बातें करने लगे.

समीर ने सनोबर से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात बताओ यदि तुम साहिल से शादी न करतीं तो क्या मुझ से शादी करतीं?’’

सनोबर झिझकी फिर बोली, ‘‘शायद हां.’’

समीर ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘अरे पहले बताती तो मैं उस को गोली मार देता,’’ बात आईगई हो गई. दोनों ने खाना खाया फिर समीर अपने कमरे में चला गया.

सनोबर सोचने लगी समीर अच्छा दोस्त हैं. फिर जाने क्यों साहिल याद आ गया. वह काफी थकी थी. कुछ ही देर में सो गई. अगले दिन भी दोनों बहुत व्यस्त रहे.

‘‘आज भी खाना कमरे में मंगवाते हैं ठीक है?’’ समीर ने पूछा तो सनोबर बोली, ‘‘हां, ठीक है.’’

फिर समीर फ्रैश हो कर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना और्डर कर के दोनों बातें करने लगे. सनोबर को खाते समय खाना सरक गया वह खांसने लगी. समीर ने उसे जल्दी से पानी निकाल कर दिया. पानी पी कर ठीक हुई. खाने के बाद समीर ने चाय बना कर सनोबर की दी तो दोनों का हाथ एकदूसरे से टकराया. दोनों चुपचाप धीरेधीरे चाय पीने लगे.

एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. दोनों पासपास बैठे थे. एक अजीब सी चाह सनोबर ने अपने मन में महसूस की जैसे वह समीर के सीने से लग के रोना चाहती हो. फिर उस ने देखा समीर की निगाहें भी उस के ऊपर टिकी हैं. शायद वह भी सनोबर को अपनी बांहों में जकड़ना चाहता है. तभी उसे लगा कहीं यही वह एकांत कमजोर पल तो नहीं है जिस के बारे में अम्मी कह रही थी. वह संभल गई और उठ कर इधरउधर कुछ रखनेउठाने लगी. समीर से बोली, ‘‘अच्छा, कल मिलते हैं.’’

समीर भी उठते हुए बोला, ‘‘हां देर हो गई, गुड नाईट.’’

अगले दिन दोनों वापस आ गए. सनोबर अपनी अम्मी के पास चली गई. अम्मी उसे बताने लगीं कि उस की बेटी खाने में नखरा करती है. साहिल बेटी का बहुत ध्यान रखता है. अपने साथ ले जाता है, बराबर फोन करता है. अम्मी साहिल की प्रशंसा किए जा रही थीं.

सनोबर ने साहिल को फोन किया, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं अभी.’’ वह साहिल से मिलने चल पड़ी. साहिल पलकें बिछाए उस की राह ताक रहा था. घर लगता था साहिल ने ही साफ किया था. बैडरूम पर नजर गई तो बदलाबदला लग रहा था. साहिल बहुत प्यार से बोला, ‘‘अब तो वापस आ जाओ, मुझे माफ कर दो.’’

सनोबर एकांत कमजोर पल क्या होता है यह जान चुकी थी. उस ने साहिल को माफ कर दिया. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ा और दोनों एकदूसरे के बहुत पास आ गए.

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