कासनी का फूल: भाग 4- अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

चित्रा के मनमस्तिष्क में अनवरत अभिषेक और ईशान के बीच के अंतर की सोच जारी थी. चैल में दुनिया का सब से ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड देखते हुए चारों ओर का नयनाभिराम दृश्य चित्रा को ईशान के खुशदिल व्यक्तित्व सा लग रहा था तो वाइल्ड लाइफ सैचुरी देखते हुए जंगली जानवर अभिषेक का व्यवहार याद दिला रहे थे. जिस प्रकार ईशान पूरे मनोयोग से उसे स्थानस्थान पर ले जाते हुए विस्तृत जानकारी दे रहा था, वैसी आशा तो वह अभिषेक से कर ही नहीं सकती थी. जानकारी अभिषेक को भी थी लेकिन वह चित्रा से ज्यादा बातचीत करने और कुछ भी समझनेसमझने के चक्कर में नहीं पड़ता था. ईशान बारबार पूछ रहा था कि वह थक तो नहीं गई?

चाहती हूं.’’

‘‘मैं सुनना चाहता हूं, चिकोरी.’’

‘‘दिल जो न कह सका, वही राज ए दिल कहने की रात आई…’’

‘‘कितना रोमाटिक सौंग है. मुझे याद है मीना कुमारी पर फिल्माया गया है. तुम्हें बोल याद हैं तो अंतरा भी सुनाओ न,’’ ईशान ने आग्रह किया.

‘‘नगमा सा कोई जाग उठा बदन में, झंकार की सी थरथरी है तन में…’’ चित्रा की मीठी आवाज में नशा घुल रहा था. आकंठ प्रेम में डूबे उस के मादक स्वरों में ईशान भी डूबता चला गया.

चित्रा ने कमरे में जल रही खुशबूदार मोमबत्ती बुझ दी. जगमग रोशनी से डर कर नहीं, न ही उस की खुशबू से दूर भगाने का. आज वह बाहर से आ रही चांद, सितारों की रोशनी में उस रात को जीना चाहती थी जो उस के जीवन में कभी आई ही नहीं थी. ईशान के तन से आती हुई उस महक में डूब जाना चाहती थी जो उसे उन्मादी बनाए जा रही थी.

ईशान की बरसों पुरानी कल्पनाएं आज की रात साकार हो रही थीं. इस मिलन के साक्षी बनने आसमान के तारे जुगनुओं के रूप में धरती पर उतर आए थे. चांद भी नदी में झिलमला कर मुबारकबाद दे रहा था.

अगली सुबह वे वापस अपने ठिकानों पर आ गए. मिलनाजुलना अब बढ़ गया था. ईशान प्राय रात में रैस्टोरैंट से सीधा चित्रा के पास आ जाता. अचानक मिली इस खुशी ने चित्रा की झोली में एक और खुशी डाल दी. उसे पता लगा कि ईशान का अंश उस में पलने लगा है.

उस दिन यह सुखद समाचार वह ईशान के साथ साझ करने वाली थी. ईशान ने आते ही प्रश्न कर दिया, ‘‘चिकोरी, अगर मैं कुछ समय तुम से दूर रहूं तो सह लोगी?’’

‘‘मतलब? कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां कहोगी तो ही जाऊंगा. कनाडा में एक इंस्टिट्यूट स्मौल बिजनैस करने वालों को 6-7 महीने की ट्रेनिंग देता है. इस बार मेरा नाम लिस्ट में आ गया है. वहां ट्रेनिंग लेने वालों को अपने छोटे व्यवसाय से जुड़ी किसी खास योजना पर प्रोजैक्ट तैयार कर दिखाना होता है. जो उन को पसंद आ जाता है उसे फैलोशिप के नाम से बड़ी रकम देते हैं बिजनैस में लगाने को. मैं अपने रैस्टोरैंट को बढ़ा कर एक होटल का रूप देना चाहता हूं. कासनी के फूल के थीम पर पूरा इंटीरियर होगा. बहुत कुछ और भी सोच रहा हूं जैसे सलाद के रूप में कासनी की पंखुडि़यों का इस्तेमाल कम लोग जानते हैं. इसे बड़े स्तर पर लाना और ऐसे ही अन्य उपयोग भी. इसी पर होगा मेरा प्रोजैक्ट.’’

‘‘वाह, इस मौके को हाथ से जाने मत देना. मैं सोच रही हूं कि अपनी जौब छोड़ दूं. तुम्हारे जाने के बाद रैस्टोरैंट की देखभाल कर लूंगी. यह ठीक से चलता रहेगा तभी तो होटल का रूप ले पाएगा भविष्य में,’’ चित्रा ने अपनी प्रैगनैंसी की बात नहीं बताई. जानती थी कि पता लगा तो ईशान विदेश नहीं जाएगा.

ईशान चला गया. चित्रा ने अपना पूरा ध्यान ईशान के व्यवसाय को संभालने में लगा दिया. अपने घर में कह दिया कि वह विदेश जा रही है ताकि कोई उस से मिलने न आ जाए और होने वाले बच्चे को ले कर हंगामा न हो जाए.

दोनों का परिश्रम और त्याग रंग लाया. ईशान का प्रोजैक्ट चुन लिया गया. 25 लाख की धनराशि मिली. वापस लौटा तो होने वाली संतान के विषय में जान कर अचंभित हो गया.

‘‘तुम ने मेरे लिए कितना बड़ा त्याग किया, चिकोरी, इस से पहले यह बच्चा दुनिया में आए हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं, घर पर सब को यही कहेंगे कि हम ने मेरे कनाडा जाने से पहले शादी कर ली थी,’’ ईशान भावुक हो रहा था.

‘‘तुम आराम से सोच लेना, ईशान. मेरे कारण तुम्हें अपमानित न होना पड़े. मेरी वजह से ?ाठ का सहारा लेना पड़ रहा है तुम्हें.’’

‘‘चिकोरी, 7 फेरों का नाम ही विवाह होता है क्या? मैं ने तो साधुपुल में बिताई रात के बाद ही पत्नी मान लिया था तुम्हें. कनाडा जा कर अपना सपना पूरा करने में मुझे तुम्हारा कितना सहयोग मिला मैं बता नहीं सकता. एकदूसरे के सुखदुख में साथ देने वाले हम क्या पतिपत्नी नहीं हैं? झूठ नहीं है इस में कुछ. भी,’’ ईशान ने चित्रा को गले से लगा लिया.

चित्रा को अचानक याद आया जब अभिषेक और वह इंदौर में ही घूमने गए थे. अभिषेक जल्दबाजी में एक के बाद एक कई जगह ले कर जा रहा था उसे. चित्रा के यह कहने पर कि हम छुट्टी वाले दिन आ कर आराम से एक दिन में एक जगह देखेंगे, अभिषेक भड़क उठा था, ‘‘मेरे पास तुम्हें घुमाने के सिवा और भी काम हैं. तुम्हारे कहने पर ही आया हूं आज वरना मैं तो दोस्तों के साथ कई बार आ चुका हूं इन जगहों पर.’’

सब याद कर चित्रा का मुंह कसैला होने लगा, किंतु कुछ देर बाद वह ईशान के मधुर व्यवहार में खो गई. साथसाथ घूमते हुए समय का पता ही नहीं लगा. शाम हो रही थी.

‘‘अब वापस चलें होटल? कल साधुपुल आएंगे. घूमने के बाद वहां रात को कैंपिंग करेंगे. परसों घर वापसी,’’ ईशान ने आगे के कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कहा.

वापस होटल जा कर रात बिताने की कल्पना से चित्रा को अचानक दहशत होने लगी. वही जगमगती रोशनी, खुशबू और एक पुरुष. कैंप में शायद होटल सी चकाचौंध न हो, सोचते हुए वह बोली, ‘‘ईशान,क्या आज की रात हम साधुपुल के कैंप में नहीं बिता सकते?’’

‘‘साधुपुल यहां से दूर है. मेन रोड से नदी के किनारे तक जाने वाली सड़क ढलवां है. वहां से हट्स और कैंप्स तक पहुंचने का रास्ता कच्चा है, पैदल जाना पड़ेगा. कार बीच में कहीं लगानी पड़ेगी. अभी जाएंगे तो वहां तक पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. ऐसे में कल सुबह चलना ठीक रहेगा,’’ ईशान ने अभी चलने की मुश्किल बताई तो चित्रा के पास होटल वापस जाने के अलावा कोई उपाय न था.

डिनर के बाद वे कमरे में पहुंचे. चित्रा कपड़े बदलने बाथरूम में चली गई. बाहर आई तो जगमग रोशनी और कमरे में फैली रूमफ्रैशनर की सुगंध ने उसे झकझरना शुरू ही किया था कि बैड पर बैठे ईशान पर निगाहें ठहर गईं. ईशान दोनों हाथों से कासनी के फूलों का बड़ा सा बुके पकड़े हुए चित्रा को स्नेहसिक्त दृष्टि से देख रहा था. चित्रा सुधबुध खो कर बैड तक पहुंची. कासनी का रंग ईशान की आंखों में भी झिलमिला रहा था.

‘‘यह कहां से कब ले लिया?’’ चित्रा हैरानी से अपनी हथेलियां गालों पर रख कभी ईशान को तो कभी कासनी के पुष्पगुच्छ को निहार रही थी.

‘‘रास्ते में जहां चाय पीने रुके थे उस के पास ही है फूलों की बड़ी सी दुकान. मैं उन से खास मौकों पर रैस्टोरैंट की सजावट के लिए फूल मंगवाता रहता हूं. 2 दिन पहले ही फोन कर और्डर दे दिया था बुके का क्योंकि कासनी के फूल सब जगह नहीं मिलते. हम जब चाय पी रहे थे वह कार में रख गया था यह बुके,’’ ईशान ने अपने सरप्राइज का राज खोला.

‘‘ईशान आज तुम्हारे हाथों में कासनी के नीले फूल नहीं वह आसमान है जहां मैं पंख फैला कर उड़ना चाहती हूं, यह गुलदस्ता नहीं तुम्हारे एहसासों का नीला सागर है जिस की गहराई तक मैं कभी पहुंच नहीं सकती. इस तोहफे के लिए शुक्रिया कहना इस का अपमान होगा,’’ चित्रा भावविभोर थी. एकाएक उसे कमरे में फैली रोशनी की चकाचौंध ईशान के प्रेम की चमक सी लगने लगी, रूमफ्रैशनर की महक में कासनी के फूलों की सुगंध घुल गई. बुके हाथ में लिएलिए ही वह ईशान के गले लग गई.

उसे बेसाखता चूमते हुए चित्रा फफकफफक कर रो पड़ी, ‘‘हम पहले क्यों नहीं

मिले ईशान? मेरे साथ तब वह सब तो नहीं होता जो हुआ.’’

ईशान ने उसे बैड पर लिटा कर प्यार से सहलाया, पानी पिलाया फिर बोला, ‘‘बताओमु?ो क्याक्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

चित्रा ने चंदनदास की करतूत, उस कारण अभिषेक से संबंध न बना पाने का सच और नतीजतन अभिषेक की बेरुखी और नाराजगी सबकुछ एकएक कर ईशान को बता दिया. चित्रा की आपबीती ईशान की कल्पना से बाहर थी. चित्रा के आंसुओं ने उस के चेहरे को भिगो दिया और ईशान के मन को भी.

 

मन के तहखाने-भाग 3: अवनी के साथ ससुराल वाले गलत व्यवहार क्यों करते थे

पूरब को उस की खामोशी अच्छी नहीं लग रही थी पर वह कुछ कह कर उस के मन को दुखी नहीं करना चाहता था. सारी स्थिति को स्वयं ही संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘मौसी, आप का बेटा हमें भी बहुत पसंद है. अब आप आज्ञा दें तो शगुन दे कर इसे अपना बना लें.’’

मौसी ने तुरंत कहा, ‘‘यह तुम्हारा ही है पूरब.’’

प्रसन्नचित्त पूरब रसोई में जा कर श्रावणी से बोली, ‘‘श्रावी, चलो अपनी बेटी के शगुन की रस्म पूरी करो. तुम्हें ही मां और चाची का फर्ज निभाना है.’’

श्रावणी कुछ कहने जा रही थी पर उसी समय विविधा आ गई तो उस ने मन की बात बाहर नहीं निकाली. विविधा आते ही श्रावणी से लिपट गई. बोली, ‘‘हाय मम्मी, अवनी दी अब हमें छोड़ कर चली जाएंगी…’’

श्रावणी के मन में अचानक कुछ घनघना उठा. इतने वर्षों से इस घर का हर काम अवनी ने ही संभाला हुआ था. अब क्या होगा, कैसे होगा? श्रावणी ने विविधा और पूरब को देखा. वह बोला, ‘‘विवू ठीक कह रही है. बहुत थोड़ा समय है जिस में हमें अवि को जी भर कर लाड़ देना है.’’

पूरब जैसे ही घूमा देखा द्वार पर अवनी खड़ी थी और उस के आंसू झरने लगे थे.

‘‘बाहर क्यों खड़ी है, चल अंदर आ जा,’’ अचानक श्रावणी ने कहा. वह सुबकती हुई आई तो श्रावणी ने आंचल से उस के आंसू पोंछ डाले.

‘‘आज तो खुशी का दिन है, फिर रो क्यों रही है?’’

अवनी उन के गले से लग गई तो धीरेधीरे श्रावणी ने भी उसे बांहों में भर लिया.

‘‘चुप हो जा और विवू इसे अच्छी सी साड़ी पहना कर तैयार कर. हम अनिकेत के टीके की थाली बना रहे हैं.’’

पूरब जा चुका था. विविधा अवि को ले कर चली तो अचानक श्रावणी ने कहा, ‘‘बेटा अवि, मेरी किसी बात का दुख न मनाना. मैं तो हूं ही पगली. कभी यह भी नहीं सोचा, यह तो पराया धन है, इसे जी भर कर प्यार कर लूं.’’

‘‘नहीं चाची, आप तो हमें घरगृहस्थी के योग्य बनाना चाहती थीं. यह तो मातापिता ही सिखाते हैं.’’

श्रावणी ने भरी आंखों से उसे देखा. एकदम अपनी मां जैसी सादगी से भरी हुई. अवनी चली गई तो श्रावणी जल्दीजल्दी थाली सजाने लगी. उस के हाथ तीव्रता से चल रहे थे और उसी रफ्तार से वह सोच में डूब गई थी. आखिर वह इतने दिनों से किस से चिढ़ रही थी. उस जेठानी से, जिस ने सदा उसे छोटी बहन माना. यह क्रोध क्या उसे इसलिए सताता रहा कि सास क्यों जेठानी को अधिक प्यार करती थीं या इसलिए कि वह क्यों नहीं उन की तरह समर्थ थी? तो फिर क्यों अवनी को भी उसी क्रोध का शिकार बना डाला?

मन के बवंडर को संभालते हुए वह टीके की थाली ले कर बाहर आ गई. विविधा भी तब तक अवनी को ले कर आ गई थी. सुनहरे बौर्डर वाली लाल जरीदार साड़ी में अवनी एकदम राजकुमारी लग रही थी. मौसी ने उसे अपनी बगल में बैठा लिया और लाड़ से उसे देखते हुए शनील का डब्बा खोल कर सुंदर सा हार उस के गले में पहना दिया.

माथे पर रोली का टीका लगा कर बोलीं, ‘‘श्रावणी, तुम्हारी बेटी अब हमारी हुई.’’

श्रावणी का मन धक से रह गया. एक बार फिर वह किसी अपने को खोने जा रही थी तो क्यों नहीं उसे कभी जी भर कर प्यार कर पाई?

श्रावणी देर से जिस बवंडर से जूझ रही थी. वह आखिर बांध तोड़ कर बह निकला, ‘‘बहुत भोली है हमारी बेटी, इसे…’’

‘‘इसे हम बहू नहीं बेटी बना कर रखेंगे श्रावणी,’’ मौसी ने बीच में ही टोक दिया.

अवनी ने पलकें उठा कर रोती हुई चाची को देखा तो उस का मन भी भर आया. श्रावणी अनिकेत को टीका करने लगी तो उस ने कहा, ‘‘आप से वादा करता हूं, इन्हें कभी मायके की कमी महसूस नहीं होने देंगे.’’

अवनी को लग रहा था, जैसे वह कोई स्वप्न देख रही हो. आखिर इतना प्यार चाची ने कहां छुपा रखा था और क्यों छुपा रखा था?

जाने कितने द्वंद्व श्रावणी के अंतरमन में छुपे हुए थे, जो बूंदबूंद बन कर रिसने लगे थे. अवनी ने देखा और उन के गले से लग गई. एक कांपता सा रुदन उस के कंठ से भी फूट निकला था, ‘‘छोटी मां…’’

श्रावणी के स्वर गायब से हो चुके थे, फिर भी लरजती ध्वनि से कह गई, ‘‘क्षमा कर देना मेरी बच्ची.’’

अवनी के आंसुओं से उस का कंधा भीग गया था और अवनी अस्फुट स्वरों में फुसफुसा रही थी, ‘‘मां कभी क्षमा नहीं मांगती है, बस आशीर्वाद देती है.’’

अवनी के ये अस्फुट शब्द श्रावणी के अंतरमन को हुलसाते चले गए थे. यह कैसा मधुर सा एहसास था, किसी को अपना पूरी तरह बना लेने का. काश, मन के दरवाजे बहुत पहले ही खोल दिए होते. उस ने प्रफुल्लित मन से अवनी का माथा चूम लिया था.

40 की उम्र के बाद कितना कारगर है आईवीएफ ट्रीटमेंट

40 की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी कई चुनौतियों के साथ आती है. आजकल देरी से एक नया परिवार शुरू करने के कई कारण होते हैं, चाहे वो कैरियर हो, स्थिर संबंध की कमी हो, आर्थिक कारण हो या फिर सिर्फ अपनी पसंद.

लेकिन बड़ा सवाल है कि इस से आप के प्रेग्नेंसी के अवसरों पर कैसा असर पड़ता है?

आईवीएफ ट्रीटमेंट से 40 के बाद भी बच्चे की चाहत पूरी हो सकती है. लेकिन सवाल यह भी है कि आईवीएफ ट्रीटमेंट कितने साल तक कराया जा सकता है. इस में आप को सही उम्र और आईवीएफ से जुड़े सारे सवालों के जवाब मिलेंगे. मैडिकल साइंस में प्रगति के साथ, रिप्रोडक्शन के सहायक अवसरों का भी आविष्कार हुआ है, जिस से फर्टिलिटी को ले कर सभी परेशानियों को दूर किया जा सकता है.

Dr. Nishi Singh, Head of Fertility at Prime IVF कहती हैं, “किसी भी महिला के लिए उम्र उस के मां बनने में एक बड़ी बाधा नहीं बननी चाहिए. सही मार्गदर्शन और चिकित्सा विज्ञान में उल्लेखनीय प्रगति के साथ मां बनने के सपने को साकार करने का मार्ग अब असंभव नहीं है.

“आजकल कई महिलाएं कैरियर विकल्प जैसी अलगअलग परिस्थितियों के कारण देरी से बच्चे पैदा करने की योजना बना रही हैं. आईवीएफ की मदद से उचित मार्गदर्शन और उपचार के माध्यम से वे मां बनने की खुशी का अनुभव प्राप्त कर सकती हैं.

“अब महिलाओं को मां बनने के लिए कोई अपनी बायोलौजिकल क्लौक और साथसाथ उम्र की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. सही मूल्यांकन और अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से हम उम्र से संबंधित फर्टिलिटी क्षमता में गिरावट से उत्पन्न होने वाली बड़ी से बड़ी चुनौतियों से आईवीएफ की मदद से निबट सकते हैं.

“चिकित्सा प्रगति के साथ सही आईवीएफ ऐक्सपर्ट का मार्गदर्शन भी जरूरी है, यह एक पावरफुल नुसखा है, जो उम्र से जुड़ी बाधाओं को पार करते हुए मां बनने की आकांक्षाओं को और ज्यादा बढ़ा देता है.”

आइए डा. निशी सिंह से जानते हैं इस से जुड़े कुछ प्रमुख कारक :

उम्र बढ़ने के साथ ऐग्स से जुड़ी चुनौतियों का समाधान

महिलाओं की बढ़ती उम्र के साथ उन की फर्टिलिटी क्षमता में धीरेधीरे कमी आने लगती है. जैसेजैसे महिलाएं 40 की उम्र के करीब पहुंचती हैं, उन के ऐग्स की गुणवत्ता और मात्रा में कमी आने लगती है. इस वजह से प्रेग्नेंसी की उम्मीदें भी कम हो जाती हैं. इस में कोई संदेह नहीं है कि ऐग्स की मात्रा से फर्टिलिटी पर प्रभाव पड़ता है, जिस की वजह से कपल्स को मातापिता बनने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन अब आईवीएफ की मदद से ऐसी स्थिति में भी कपल्स को निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आईवीएफ उम्र बढ़ने के साथ ऐग्स से जुड़ी समस्या का समाधान करने और संभावित रूप से प्रेग्नेंसी की पौसिबिलिटी बढ़ता है.

40 के बाद आईवीएफ से प्रेग्नेंसी की संभावना में सुधार

जो कपल्स बायोलौजिकली बच्चे पैदा करने में सक्षम नहीं होते, उन के लिए आईवीएफ ने एक क्रांति सी ला दी है. आईवीएफ के माध्यम से महिलाओं के मां बनने की आयु से जुड़ी समस्या दूर होती है. इस प्रक्रिया में ओवरी से ऐग निकालना, उन्हें कंट्रोल कंडीशन में स्पर्म के साथ फर्टिलाइजर करना और एंब्रियो को यूट्रस में ट्रांसफर करने के साथ ही ऐग की क्वालिटी में कमी के मुद्दों को प्रभावी ढंग से एड्रेस करना शामिल है.

यह प्रक्रिया 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए सफल प्रेग्नेंसी की पौसिबिलिटी में इंप्रूवमेंट कर सकती है.

आईवीएफ ट्रीटमेंट की प्लानिंग में 40 के बाद रखें खुद का खयाल

जिन महिलाओं की उम्र 40 वर्ष से ज्यादा हो गई है और वे आईवीएफ ट्रीटमेंट की प्लानिंग कर रही हैं, तो उन के लिए खुद की देखभाल के साथ सेहत का सही इवैल्यूएशन भी जरूरी होता है. हर व्यक्ति की स्थिति अलग होती है, जिस से उन की रिप्रोडक्शन हेल्थ, मैडिकल हिस्ट्री और ओवरआल वेलफेयर का इनडेप्थ इवैल्यूएशन आवश्यक हो जाता है. हेल्थ कंडीशन, ओवेरियन रिजर्व और लाइफस्टाइल जैसे फैक्टर सभी आईवीएफ ट्रीटमेंट को मुमकिन करने में योगदान करते हैं. फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट इन पर्सनल फैक्टर के आधार पर सेहत से जुड़े सुझाव देते हैं.

यंग ऐग्स से 40 वर्ष के बाद भी सफल प्रेग्नेंसी की बढ़ जाती है संभावनाएं

ओवेरियन रिजर्व में कमी की वजह से परेशानियों का सामना करने वाली महिलाओं के लिए, ऐग डोनेशन एक सरल तरीका हो सकता है. एग डोनेशन, प्रेग्नेंसी और डिलीवरी का अनुभव करने की चाहत रखने वाली बड़ी उम्र की महिलाओं के लिए एक संभावित समाधान देता है. यह उपाय स्वस्थ और ज्यादा यंग ऐग्स के इस्तेमाल की अनुमति देता है, जिस से सफल प्रेग्नेंसी की संभावना बढ़ जाती है. यंग डोनर के ऐग्स का उपयोग कर के स्वस्थ प्रेग्नेंसी की संभावना में काफी सुधार किया जा सकता है. यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए एक औप्शन देता है, जिन के ऐग की क्वालिटी उम्र बढ़ने की वजह से कम हो गई है.

फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट से जान सकती हैं आईवीएफ की सक्सैस रेट और ऐक्यूट इनफोर्मेशन

जिन महिलाओं की उम्र 40 वर्ष से ज्यादा है और वे आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए सोच रही हैं, तो उन को रियलिस्टिक उम्मीद बनाए रखनी चाहिए. आईवीएफ प्रेग्नेंसी की संभावना को बढ़ा सकता है, पर इस की सफलता की उम्मीद निजी कारणों के आधार पर अलगअलग हो सकती है. संभावित परिणामों और उपलब्ध विकल्पों के स्पैक्ट्रम की स्पष्ट समझ बनाने के लिए मरीज और फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट के बीच पारदर्शी और स्पष्ट चर्चा होना जरूरी है. फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट 40 से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए आईवीएफ से जुड़ी सफलता दर और चुनौतियों के बारे में सटीक जानकारी दे सकते हैं, जिस से मरीजों को फैसला लेने और उम्मीदें निर्धारित करने में मदद मिलती है.

प्रौपर गाइडेंस और ट्रीटमेंट से महिलाएं बन सकती हैं मां

महिलाओं के 40 वर्ष के बाद आईवीएफ ट्रीटमेंट कराने का निर्णय निजी, भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक विचारों से प्रभावित होता है. फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट आईवीएफ के माध्यम से मां बनने वाली महिलाओं को सलाह और मदद करने के लिए कमिटेड हैं. उन का दृष्टिकोण साक्ष्य आधारित प्रथाओं, सावधानीपूर्वक देखभाल पर आधारित है. फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट मरीज की रिप्रोडक्टिव स्टेटस का कंप्रिहेंसिव इवैल्यूएशन कर सकते हैं. निजी कारणों के आधार पर आईवीएफ की संभावित सफलता में इंट्रोस्पेक्शन प्रदान कर सकते हैं. साथ ही, हमदर्दी और विशेषज्ञता के साथ मरीजों को सलाह दे सकते हैं.

आईवीएफ 40 के बाद मां बनने की चाह रखने वाली महिलाओं के लिए आशा की नई किरण बन कर उभरता है. फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट की इंट्रोस्पेक्शन आईवीएफ ट्रीटमेंट की क्षमता के बारे में बताती है, जो महिला को मां बनने के लिए परामर्श देते हैं.

फर्टिलिटी के फील्ड में जहां विज्ञान और आशा बिना किसी बाधा के मिलते हैं, फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट मां बनने की चाह रखने वाली महिला के साथ खड़े होते हैं. जो महिलाओं की उम्र की परवाह किए बिना मां बनने की संभावना को अपनाने के लिए सशक्त करते हैं.

 

तीज स्पेशल: लाइफ पार्टनर- क्या थी अवनि के अजीब व्यवहार की वजह?

अवनि की शादी को लगभग चार महीने बीत चुके थे, परंतु अवनि अब तक अभिजीत को ना मन से और ना ही‌ तन‌ से‌ स्वीकार कर पाई थी. अभिजीत ने भी इतने दिनों में ना कभी पति होने का अधिकार जताया और ना ही अवनि को पाने की चेष्टा की. दोंनो एक ही छत में ऐसे रहते जैसे रूम पार्टनर .

अवनि की परवरिश मुंबई जैसे महानगर में खुले माहौल में हुई थी.वह स्वतंत्र उन्मुक्त मार्डन विचारों वाली आज की वर्किंग वुमन (working woman) थी. वो चाहती थी कि उसकी शादी उस लड़के से हो जिससे वो प्यार करे.अवनि शादी से पहले प्यार के बंधन में बंधना चाहती थी और फिर उसके बाद शादी के बंधन में, लेकिन ऐसा हो ना सका.

अवनि जिसके संग प्यार के बंधन में बंधी और जिस पर उसने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, वो अमोल उसका लाइफ पार्टनर ना बन सका लेकिन अवनि को इस बात का ग़म ना था.उसे इस बात की फ़िक्र थी कि अब वो अमोल के संग अपना संबंध बिंदास ना रख पाएगी.वो चाहती थी कि अमोल के संग उसका शारीरिक संबंध शादी के बाद भी ऐसा ही बना रहे.इसके लिए अमोल भी तैयार था.

अवनि अब तक भूली‌ नही ‌अमोल से उसकी वो पहली मुलाकात.दोनों ऑफिस कैंटीन में मिले थे.अमोल को देखते ही अवनि की आंखों में चमक आ गई थी.उसके बिखरे बाल, ब्लू जींस और उस पर व्हाईट शर्ट में अमोल किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था.उसके बात करने का अंदाज ऐसा था कि अवनि उसे अपलक निहारती रह गई थी. उसे love at first sight वाली बात सच लगने लगी. सुरभि ने दोनों का परिचय करवाया था.

अवनि और अमोल ऑफिस के सिलसिले में एक दूसरे से मिलते थे.धीरे धीरे दोनों में दोस्ती हो गई और कब दोस्ती प्यार में बदल गई पता ही नही चला.प्यार का खुमार दोनों में ऐसा ‌चढ़ा की सारी मर्यादाएं लांघ दी गई.

अमोल  इस बात से खुश था की अवनि जैसी खुबसूरत लड़की उसके मुठ्ठी में है‌ और अवनि को भी इस खेल में मज़ा आ रहा  था.मस्ती में चूर अविन यह भूल ग‌ई कि उसे पिछले महीने पिरियड नहीं आया है जब उसे होश आया तो उसके होश उड़ गए.वो ऑफिस से फौरन लेडी डॉक्टर के पास ग‌ई. उसका शक सही निकला,वो प्रेग्नेंट थी.

अवनि ने हास्पिटल से अमोल को फोन किया पर अमोल का फोन मूव्ड आउट आफ कवरेज एरिया बता रहा था.अवनि घर आ गई.वो सारी रात बेचैन रही. सुबह ऑफिस पहुंचते ही वो अमोल के सेक्शन में ग‌ई जहां सुरभि ने उसे बताया कि अमोल तो कल‌ ही अपने गांव के लिए निकल गया.उसकी पत्नी का डीलीवरी होने वाला है,यह सुनते ही अवनि के चेहरे का रंग उड़ गया.अमोल ने उसे कभी बताया नहीं कि वो शादीशुदा है. इस बीच अवनि के आई – बाबा ने अभिजीत से अवनि की शादी तय कर दी.अवनि यह शादी नहीं करना चाहती थी.

पंद्रह दिनों बाद अमोल के लौटते ही अवनि उसे सारी बातें बताती हुई बोली-“अमोल मैं किसी और से शादी नहीं करना चाहती तुम अपने बीबी,बच्चे को छोड़ मेरे पास आ जाओ हम साथ रहेंगे ”

अमोल इसके लिए तैयार नही हुआ और अवनि को पुचकारते हुए बोला-“अवनि तुम  एबार्शन करा लो और जहां तुम्हारे आई बाबा चाहते हैं वहां तुम शादी कर लो और बाद में तुम कुछ ऐसा करना कि कुछ महीनों में वो तुम्हें  तलाक दे दे और फिर हमारा संबध यूं ही बना रहेगा”.

अवनि मान गई और उसने अभिजीत से शादी कर ली.शादी के बाद जब अभिजीत ने सुहाग सेज पर अवनि के होंठों पर अपने प्यार का मुहर लगाना‌ चाहा तो अवनि ने उसी रात अपना मंतव्य साफ कर दिया कि जब ‌तक वो अभिजीत को दिल से स्वीकार नही कर लेती, उसके लिए उसे शरीर से स्वीकार कर पाना संभव नही होगा.उस दिन से अभिजीत ने अविन‌ को कभी छूने का प्रयास नही किया.केवल दूर से उसे देखता.ऐसा नही था की अभिजीत देखने में बुरा था.अवनि जितनी खूबसूरत ‌थी.अभिजीत उतना ही सुडौल और आकर्षक व्यक्तित्व का था.

अभिजीत वैसे तो माहराष्ट्र के जलगांव जिले का रहने वाला था,लेकिन अपनी नौकरी के चलते नासिक में रह रहा था.शादी के ‌बाद अवनि को भी अपना ट्रांसफर नासिक के ब्रान्च ऑफिस में परिवार वालों और अमोल  के कहने पर करवाना पड़ा.अमोल ने वादा किया था कि वो नासिक आता रहेगा.अवनि के नासिक‌ पहुंचने की दूसरी सुबह,अभिजीत ने चाय‌ बनाने से पहले अवनि से कहा-” मैं चाय बनाने जा रहा हूं क्या तुम चाय पीना पसंद करोगी .

अवनि ने बेरुखी से जवाब दिया-“तुम्हें तकल्लुफ करने की कोई जरुरत नहीं.मैं अपना ध्यान स्वयं रख सकती हूं.मुझे क्या खाना‌ है,पीना है ,ये मैं खुद देख लुंगी”.

अवनि के ऐसा कहने पर अभिजीत वहां से बिना कुछ कहे चला गया.दोनों एक ही छत में ‌रहते हुए एक दूसरे से अलग ‌अपनी‌ अपनी‌ दुनिया में मस्त थे.

शहर और ऑफिस दोनों ही न‌ए होने की वजह से अवनि ‌अब तक ज्यादा किसी से घुलमिल नहीं पाई थी.ऑफिस का काम और ऑफिस के लोगों को समझने में अभी उसे  थोड़ा वक्त चाहिए था.अभिजीत और अवनि दोनों ही सुबह अपने अपने ऑफिस के लिए निकल जाते और देर रात घर लौटते.सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना दोनों अपने ऑफिस कैंटीन में खा लेते.केवल रात का खाना ही घर पर बनता.दोंनो में से जो पहले घर पहुंचता खाना बनाने की जिम्मेदारी उसकी होती.ऑफिस से आने के बाद अवनि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर देती या फिर अपनी क्लोज  फ्रैंड सुरभि को,जो उसकी हमराज भी थी और अभिजीत को अवनि का room partner संबोधित किया करती थी. अभिजीत अक्सर न्यूज या फिर  एक्शन-थ्रिलर फिल्में देखते हुए बिताता.

अवनि और अभिजीत दोनों मनमौजी की तरह अपनी जिंदगी अपने-अपने ढंग से जी रहे थे, तभी अचानक एक दिन अवनि का पैर बाथरूम में फिसल गया और उसके पैर में मोच आ गई. दर्द इतना था ‌कि अवनि के लिए हिलना डुलना मुश्किल हो गया. डॉक्टर ने अवनि को पेन किलर और कुछ दवाईयां दी साथ में पैर पर मालिस करने के लिए लोशन भी, साथ ही यह हिदायत भी दी कि वो दो चार दिन घर पर ही रहे और ज्यादा चलने फिरने से बचे.

अवनि को इस हाल में देख अभिजीत ने भी अवनि के साथ अपने ‌ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और पूरे दिन अवनि की देखभाल करने लगा.उसकी हर जरूरतों का पूरा ध्यान रखता.अवनि के मना करने के बावजूद दिन में दो बार उसके पैरों की मालिश करता.अभिजीत जब उसे छूता ‌अवनि को अमोल के संग बिताए अपने अंतरंग पलों की याद ताज़ा हो जाती और वो रोमांचित हो उठती.अभिजीत भी तड़प उठता लेकिन फिर संयम रखते हुए अवनि से दूर हो जाता.अभिजीत सारा दिन अवनि को खुश रखने का प्रयास करता उसे हंसाता उसका दिल बहलाता.

इन चार दिनों में अवनि ने यह महसूस किया की अभिजीत देखने में जितना सुंदर है उससे कहीं ज्यादा खुबसूरत उसका दिल है.वो अमोल से ज्यादा उसका ख्याल रखता है. अभिजीत ने अपने सभी जरूरी काम स्थगित कर दिए थे.इस वक्त अवनि ही अभिजीत की प्रथमिकता थी. इन्हीं सब के बीच ना जाने कब अवनि के मन में अभिजीत के लिए प्रेम का पुष्प पुलकित होने लगा पर इस बात ‌से अभिजीत बेखबर था.

अवनि अब ठीक हो चुकी थी.एक हफ्ते गुजरने को थे.अवनि अपने दिल की बात  कहना चाहती थी, लेकिन कह‌ नही पा रही थी.अवनि चाहती थी अभिजीत उसके करीब आए उसे छूएं लेकिन अभिजीत भूले से भी उसे हाथ नहीं लगाता बस ललचाई आंखों से उसकी ओर देखता.एक सुबह मौका पा अवनि, अभिजीत से बोली-“मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं”

” हां कहो,क्या कहना है ?”अभिजीत न्यूज पेपर पर आंखें गढ़ाए अवनि की ओर देखे बगैर ही बोला.

अवनि गुस्से में अभिजीत के हाथों से न्यूज पेपर छीन उसके दोनों बाजुओं को पकड़ अपने होंठ उसके होंठों के एकदम करीब ले जा कर जहां दोनों को एक-दूसरे की गर्म सांसें महसूस होने लगी अवनि बोली-“मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं मुझे तुम से प्यार हो गया है”.

यह सुनते ही अभिजीत ने अवनि को अपनी बाहों में भर लिया और बोला-“तुम मुझे अब प्यार करने लगी हो,मैं तुम्हें उस दिन से प्यार करता हूं जिस दिन से तुम मेरी जिंदगी में आई हो और तब से तुम्हें पाने के लिए बेताब हूं. तभी अचानक अवनि का मोबाइल बजा.फोन पर सुरभि थी.हाल चाल पूछने के बाद सुरभि ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-“and what about your room partner”

यह सुनते ही अवनि गम्भीर स्वर में बोली- “No सुरभि he is not my room partner.now he is my life partner”.

ऐसा कह अवनि अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर सब कुछ भूल अभिजीत की बाहों में समा गई.

तीज स्पेशल 10 टिप्स: ऐसे मजबूत होगा पति-पत्नी का रिश्ता

जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है. छोटी-छोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं. मुश्किल के समय में एक-दूसरे का सहारा बनना पड़ता है. कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है. जैसे…

1 मैसेज पर नहीं बातचीत पर निर्भर रहे…

ब्राइघम यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जो दंपत्ति जीवन के छोटे-बड़े पलों में मैसेज भेज कर दायित्व निभाते हैं जैसे बहस करना हो तो मैसेजेज, माफी मांगनी हो तो मैसेज, कोई फैसला लेना हो तो मैसेज, ऐसी आदत रिश्तों में खुशी और प्यार कम करती है. जब कोई बड़ी बात हो तो जीवनसाथी से कहने के लिए वास्तविक चेहरे के बजाय इमोजी का सहारा न लें.

2 ऐसे दोस्तों का साथ जिन की वैवाहिक जिंदगी खुशहाल है…

ब्राउन यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक यदि आप के निकट संबंधी या दोस्त ने डिवोर्स लिया है तो आप के द्वारा भी यही कदम उठाए जाने की संभावना 75% तक बढ़ जाती है. इस के विपरीत यदि आप के प्रियजन सफल वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं तो यह बात आप के रिश्ते में भी मजबूती का कारण बनता है.

3 पति-पत्नी बनें बेस्ट फ्रेंड्स…

द नेशनल ब्यूरो औफ इकनोमिक द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जो दंपत्ति एक-दूसरे को बेस्ट फ्रेंड मानते हैं वे दूसरों के देखे अपनी वैवाहिक जिंदगी में दोगुना अधिक संतुष्ट जीवन जीते हैं.

4 छोटी-छोटी बातें भी होती हैं महत्वपूर्ण…

मजबूत रिश्ते के लिए समय-समय पर अपने जीवनसाथी को स्पेशल महसूस कराना जरूरी है. यह जताना भी जरूरी है कि आप उन की केयर करते हैं और उन्हें प्यार करते हैं. इस से तलाक की नौबत नहीं आती. आप भले ही ज्यादा कुछ नहीं पर इतना तो कर ही सकते हैं कि प्यार भरा एक छोटा सा नोट जीवनसाथी के पर्स में डाल दें या दिनभर के काम के बाद उन के कंधों को प्यार से सहला दें.

5 सरप्राइज दें…

उन के बर्थडे या अपनी एनिवर्सरी को खास बनाएं. कभी-कभी उन्हें सरप्राइज दें. ऐसी छोटी-छोटी गतिविधियां आप को उन के करीब लाती हैं. वैसे पुरुष जिन्हे अपनी बीवी से इस तरह का सपोर्ट नहीं मिलता उन के द्वारा तलाक दिए जाने की संभावना दोगुनी ज्यादा होती है. जब कि स्त्रियों के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है. इस की वजह यह है कि स्त्रियों का स्वभाव अलग होता है. वे अपने दोस्तों के क्लोज होती हैं. ज्यादा बातें करती हैं. छोटी-छोटी बातों पर उन्हें हग करती हैं. अनजान लोग भी महिलाओं को कौन्प्लीमेंट देते रहते हैं. जबकि पुरुष स्वयं में सीमित रहते हैं. उन्हें फीमेल पार्टनर या पत्नी से सपोर्ट की जरूरत पड़ती है.

6 आपसी विवादों को बेहतर ढंग से करें हैंडल…

पतिपत्नी के बीच विवाद और झगड़े होने बहुत स्वाभाविक है और इन से बचा नहीं जा सकता. मगर रिश्ते की मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि आप इन्हे किस तरह हैंडल करते हैं. अपने जीवनसाथी के प्रति हमेशा सौम्य और शिष्ट व्यवहार करने वालों के रिश्ते जल्द नहीं टूटते. झगड़े या विवाद के दौरान चिल्लाना, अपशब्द बोलना या मारपीट पर उतारू हो जाना रिश्ते में जहर घोलने जैसा है. ऐसी बातें इंसान कभी भूल नहीं पाता और वैवाहिक जिंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

एक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है कि कैसे फाइटिंग स्टाइल आप की मैरिज को प्रभावित करती है. शादी के 10 साल बाद वैसे कपल्स जिन्होंने तलाक ले लिया और वैसे कपल्स जो अपने जीवनसाथी के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे थे, के बीच जो सब से महत्वपूर्ण अंतर पाया गया वह था शादी के 1 साल के अंदर के अंदर उन के आपसी विवाद और झगड़ों को निपटाने का तरीका.

कपल्स जिन्होंने शादी के प्रारंभिक वर्षों में ही अपने जीवनसाथी के साथ समयसमय पर क्रोध और नकारात्मक लहजे के साथ व्यवहार किया उन का तलाक 10 सालों के अंदर हो गया. अली इयर्स ऑफ मैरिज प्रोजेक्ट में भी अमेरिकी शोधकर्ता ओरबुच ने यही पाया कि अच्छा, जिंदादिल रवैया और मधुर व्यवहार रहे तो परेशानियों के बीच भी कपल्स खुश रह सकते हैं.  इस के विपरीत मारपीट और उदासीनता भरा व्यवहार रिश्ते को कमजोर बनाता है.

7 बातचीत का विषय हो विस्तृत…

पति-पत्नी के बीच बातचीत का विषय घरेलू मामलों के अलावा भी कुछ होना चाहिए. अक्सर कपल्स कहते हैं कि हम तो आपस में बातें करते ही रहते हैं. संवाद की कोई कमी नहीं. पर जरा गौर करें कि आप बातें क्या करते हैं. हमेशा घर और बच्चों के काम की बातें करना ही पर्याप्त नहीं होता. खुशहाल दंपति वे होते हैं जो आपस में अपने सपने, उम्मीद, डर, ख़ुशी और सफलता सबकुछ बांटते हैं. एकदूसरे को जानने समझने का प्रयास करते हैं. किसी भी उम्र में और कभी भी रोमांटिक होना जानते हैं.

8 अच्छे समय को करे सेलिब्रेट…

जर्नल औफ पर्सनैलिटी और सोशल साइकोलौजी में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक अच्छे समय में पार्टनर का साथ देना तो अच्छा है पर उस से भी जरूरी है कि दुख, परेशानी और कठिन समय में अपने जीवनसाथी के साथ खड़ा होना. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर मोनिका लेविंस्की ने जब यौन शोषण का आरोप लगाया, उस वक्त भी हिलेरी क्लिंटन ने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा. उन दिनों के साथ ने दोनों के रिश्ते को और भी मजबूत बना दिया.

9 रिस्क लेने से न घबराएं…

पति-पत्नी के बीच यदि नोवेल्टी, वैरायटी और सरप्राइज का दौर चलता रहता है तो रिश्ते में भी ताजगी और मजबूती बनी रहती है. साथ मिल कर नएनए एक्साइटमेंटस से भरी एक्टिविटीज में इन्वौल्व हों, नई-नई  जगह घूमने जाएं, रोमांचक सफर का मजा ले, लौन्ग ड्राइव पर जाएं, एक-दूसरे को खानेपीने, घूमने, हसने ,मस्ती करने और समझने के नए-नए औप्शन दे. कभी भी रिश्ते में नीरसता और उदासीनता को झांकने न दे. जिंदगी को नई-नई सरप्राइज से सजा कर रखे.

10 केवल प्यार काफी नहीं…

हम जिंदगी में अपने हर तरह के कमिटमेंट्स के लिए पूरा समय देते हैं. ट्रेनिंग्स लेते हैं. प्रयास करते हैं ताकि हम उसे बेहतर तरीके से आगे ले जा सके जैसे खिलाड़ी खेल के टिप्स सीखता रहता है, लौयर किताबें पढ़ता है, आर्टिस्ट्स वर्कशौप्स करता है. उसी तरह शादी को सफल बनाने के लिए हमें कुछ न कुछ नया सीखने और करने को तैयार रहना चाहिए.  सिर्फ अपने पति/पत्नी को प्यार करना ही काफी नहीं. उस प्यार का अहसास कराना और उस की वजह से मिलने वाली खुशी को सेलिब्रेट करना भी जरूरी है. साइंटिफिक दृष्टि से देखें तो इस तरह के नए-नए अनुभव शरीर में डोपामिन सिस्टम को एक्टिवेट करते हैं जिस से आप का दिमाग शादी के प्रारंभिक वर्षों में महसूस करने वाले रोमांटिक पलों को जीने का प्रयास करता है. एक-दूसरे को सकारात्मक बातें कहना तारीफ करना और साथ रहना रिश्ते में मजबूती लाता है.

बालों को मुलायम व चमकदार बनाने के लिए कोई कारगर उपाय बताएं?

सवाल

मैं 35 वर्षीय महिला हूं. पिछले कुछ दिनों से मेरे बाल बेजान व दोमुंहे हो रहे हैं. मैं बालों को कलर करने के लिए मेहंदी लगाती हूं. मेहंदी लगाने के बाद जब मैं शैंपू करती हूं तो मेरे बाल और रूखे व बेजान हो जाते हैं. बालों को मुलायम व चमकदार बनाने के लिए कोई कारगर उपाय बताएं?

जवाब

आप के बालों के रूखे और बेजान होने का कारण मेहंदी ही है. दरअसल, मेहंदी में आयरन होता है, जो बालों की कोटिंग करता है, जिस से वे रूखे व बेजान हो जाते हैं. अगर आप बालों को कलर करने के लिए मेहंदी ही लगाना चाहती हैं, तो सब से पहले मेहंदी को सारे बालों पर लगाने के बजाय सिर्फ रूट टचिंग करें. दूसरा, मेहंदी के घोल में थोड़ा सा कोई भी औयल अवश्य मिला लें, साथ ही मेहंदी लगाने के बाद बालों को शैंपू न करें सिर्फ पानी से मेहंदी निकालें. फिर बालों के सूखने पर खोपड़ी में अच्छी तरह औयलिंग कर शैंपू करें. इस के अलावा बालों में मेथी का पैक व दही आदि लगाएं. इस से बालों की रफनैस दूर होगी और वे चमकदार व मुलायम भी बनेंगे.

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चमचमाते बाल सर्दियों में भी

सर्दी का मौसम अपने साथसाथ कई समस्याएं भी ले कर आता है. उन्हीं में से एक है बालों की समस्या. आइए, जानते हैं सर्दी के मौसम में होने वाली बालों की समस्याओं के बारे में:

बालों का टूटना

अकसर सर्दी के मौसम में स्वस्थ बाल भी नाजुक हो जाते हैं और हवा में मौइश्चराइजर होने की वजह से वे टूटने लगते हैं. अत: इस परेशानी से बचने के लिए आवश्यकतानुसार तेल की कुछ बूंदें अंडे के साथ मिलाएं और फिर बालों पर लगाएं. अगर चाहें तो अंडा हिना मास्क के साथ भी लगा सकती हैं. उस के बाद माइल्ड शैंपू से धो लें. आप पाएंगी सुंदर, सिल्की व कोमल बाल.

गरम तेल से मसाज

अकसर मालिश के लिए प्राकृतिक तेल जैसे औलिव औयल, नारियल तेल, कैस्टर औयल इस्तेमाल किए जाते हैं. ये बालों को मौइश्चराइज करने के साथसाथ उन्हें टूटने से भी बचाते हैं.

संतुलित आहार

बालों को टूटने से रोकने का संतुलित भोजन बेहतरीन उपाय है. अत: हमारे भोजन में चावल, दाल, हरी सब्जियां, अंकुरित अनाज इत्यादि पर्याप्त मात्रा में हो. इस के साथ ही दिन भर में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए.

दोमुंहे बाल

अगर बालों को ड्रायर से सुखाएंगी तो उस से वे दोमुंहे होंगे और जल्दी टूटेंगे. अत: आवश्यकतानुसार तेलों का मिश्रण जैसे नारियल तेल, औलिव व बादाम के तेल के प्रयोग से बाल घने और सुंदर बनेंगे.

अंडा मास्क

3 चम्मच अंडे की जरदी को 1 चम्मच शहद के साथ मिलाएं फिर बालों पर हलके हाथों से लगाएं. कुछ देर बाद माइल्ड शैंपू से धो लें.

शहद मसाज

2 चम्मच शहद 4 कप गरम पानी में मिलाएं और फिर शैंपू के बाद बालों पर लगाएं.

सूखे बाल व सूखी स्कैल्प

टीट्री औयल में पावरफुल ऐंटीफंगल और ऐंटीबैक्टीरियल ताकत होती है. बालों के लिए यह एक बेहतर घरेलू उपचार है.

ऐलोवेरा जैल

बालों से डैंड्रफ खत्म करने के लिए ऐलोवेरा जैल सब से बेहतरीन उपाय है. इस के अलावा ऐलोवेरा जैल से बालों में मसाज कर

10-15 मिनट बाद धो लें. इस से बालों की खुजली भी कम हो जाएगी. बेकिंग सोडा पेस्ट भी बालों की खुजली में असरदायक है. इस के लिए बेकिंग सोडे का पेस्ट बना कर बालों में लगाएं. आधे घंटे बाद बालों को धो लें.

नारियल तेल

नारियल तेल घरेलू उपचार में सब से ज्यादा इस्तेमाल होने वाला सामान है. यह बालों की नमी को बनाए रखता है और बालों को ड्राई होने से बचाता है. कुनकुने नारियल तेल से बालों की जड़ों में मालिश करें. फिर घंटे भर बाद उन्हें धो लें.

नीबू का रस

सूखे बालों व सूखी स्कैल्प के चलते बालों में रूसी हो जाती है. ऐसे में नींबू का रस इस के लिए सब से बेहतर उपाय है. नींबू के रस से बालों में हलकेहलके मसाज की जाए तो रूसी कम होगी.

तीज स्पेशल: उज्ज्वला- क्या पत्नी को स्वीकार कर पाया सुनील

सुनील के जाते ही उज्ज्वला कमरे  में आ गई और तकिए में मुंह गड़ा  कर थकी सी लेट गई. सुनील के व्यवहार से मन का हर कोना कड़वाहट से भर गया था. जितनी बार उस ने सुनील से जुड़ने का प्रयत्न किया था उतनी बार सुनील ने उसे बेदर्दी से झटक डाला था. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में यह मोड़ भी आ सकता है. शादी से पहले कई बार उपहास भरी नजरें और फब्तियां झेली थीं, पर उस समय कभी ऐसा नहीं सोचा था कि स्वयं पति भी उस के प्रति उपेक्षा और घृणा प्रदर्शित करते रहेंगे.

बचपन कितना आनंददायी था. स्कूल में बहुत सारी लड़कियां उस की सहेलियां बनने को आतुर थीं. अध्यापिकाएं भी उसे कितना प्यार करती थीं. वह हंसमुख, मिलनसार होने के साथसाथ पढ़ने में अव्वल जो थी. पर ऐसे निश्ंिचत जीवन में भी मन कभीकभी कितना खिन्न हो जाया करता था.

उसे बचपन की वह बात आज भी कितनी अच्छी तरह याद है, जब पहली बार उस ने अपनेआप में हीनता की भावना को महसूस किया था. मां की एक सहेली ने स्नेह से गाल थपथपा कर पूछा था, ‘क्या नाम है तुम्हारा, बेटी?’

‘जी, उज्ज्वला,’ उस ने सरलता से कहा. इस पर सहेली के होंठों पर व्यंग्यात्मक हंसी उभर आई और उस ने पास खड़ी महिला से कहा, ‘लोग न जाने क्यों इतने बेमेल नाम रख देते हैं?’ और वे दोनों हंस पड़ी थीं. वह पूरी बात समझ नहीं सकी थी. फिर भी उस ने खुद को अपमानित महसूस किया था और चुपचाप वहां से खिसक गई थी.

फिर तो कई बार ऐसे अवसर आए, जब उस ने इस तरह के व्यवहार से शर्मिंदगी महसूस की. उसे अपने मातापिता पर गुस्सा आता था कि प्रकृति ने तो उसे रंगरूप देने में कंजूसी की ही पर उन्होंने क्यों उस के काले रंग पर उज्ज्वला का नाम दे कर व्यंग्य किया और उसे ज्यादा से ज्यादा उपहास का पात्र बना दिया. मात्र नाम दे कर क्या वे उज्ज्वला की निरर्थकता को सार्थकता में बदल पाए थे. जब वह स्कूल के स्नेहिल प्रांगण को छोड़ कर कालिज गई थी तो कितना तिरस्कार मिला था. छोटीछोटी बातें भी उस के मर्म पर चोट पहुंचा देती थीं. अपने नाम और रंग को ले कर किया गया कोई भी मजाक उसे उत्तेजित कर देता था.

आखिर उस ने किसी से भी दोस्ती करने का प्रयत्न छोड़ दिया था. फिर भी उसे कितने कटु अनुभव हुए थे, जो आज भी उस के दिल में कांटे की तरह चुभते हैं. सहपाठी विनोद का हाथ जोड़ कर टेढ़ी मुसकान के साथ ‘उज्ज्वलाजी, नमस्ते’ कहना और सभी का हंस पड़ना, क्या भूल सकेगी कभी वह? शर्म और गुस्से से मुंह लाल हो जाता था. न जाने कितनी बातें थीं, जिन से उस का हर रोज सामना होता था. ऐसे माहौल में वह ज्यादा से ज्यादा अंतर्मुखी होती गई थी.

वे दमघोंटू वर्ष गुजारने के बाद जब कुछ समय के लिए फिर से घर का सहज वातावरण मिला तो मन शांत होने लगा था. रेणु और दीपक उस की बौद्धिकता के कायल थे और उसे बहुत मानते थे. मातापिता भी उस के प्रति अतिरिक्त प्यार प्रदर्शित करते थे. ऐसे वातावरण में वह बीते दिनों की कड़वाहट भूल कर सुखद कल्पनाएं संजोने लगी थी.

उज्ज्वला के पिता राजकिशोर जूट का व्यापार करते थे और व्यापारी वर्ग में उन की विशेष धाक थी. उन के व्यापारी संस्कार लड़कियों को पढ़ाने के पक्ष में न थे. पर उज्ज्वला की जिद और योग्यता के कारण उसे कालिज भेजा था. अब जल्दी से जल्दी उस की शादी कर के निवृत्त हो जाना चाहते थे. अच्छा घराना और वर्षों से जमी प्रतिष्ठा के कारण उज्ज्वला का साधारण रंगरूप होने के बावजूद अच्छा वर और समृद्ध घर मिलने में कोई विशेष दिक्कत नहीें हुई.

दीनदयाल, राजकिशोर के बचपन के सहपाठी और अच्छे दोस्त भी थे. दोस्ती को संबंध में परिवर्तित कर के दोनों ही प्रसन्न थे. दीनदयाल कठोर अनुशासन- प्रिय व्यक्ति थे तथा घर में उन का रोबदाब था. वह लड़कालड़की को आपस में देखनेदिखाने तथा शादी से पूर्व किसी तरह की छूट देने के सख्त खिलाफ थे.

सुनील सुंदर, आकर्षक और सुशिक्षित नौजवान था. फिर सी.ए. की परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर तो वह राजकिशोर की नजरों में और भी चढ़ गया था. ऐसा सुदर्शन जामाता पा कर राजकिशोर फूले नहीं समा रहे थे. सुनील को भी पूरा विश्वास था कि उस के पिता जो भी निर्णय लेंगे, उस के हित में ही लेंगे. पर सुहागरात को दुबलीपतली, श्यामवर्ण, आकर्षणहीन उज्ज्वला को देखते ही उस की सारी रंगीन कल्पनाएं धराशायी हो गईं. वह चाह कर भी प्यार प्रदर्शित करने का नाटक नहीं कर सका. बाबूजी के प्रति मन में बेहद कटुता घुल गई और बिना कुछ कहे एक ओर मुंह फेर कर नाराज सा सो गया. पैसे वाले प्रतिष्ठित व्यापारियों का समझौता बेमेल वरवधू में सामंजस्य स्थापित नहीं करा पाया था.

उज्ज्वला धड़कते दिल से पति की खामोशी के टूटने का इंतजार करती रही. सबकुछ जानते हुए भी इच्छा हुई थी कि सुनील की नाराजगी का कारण पूछे, माफी भी मांगे, पर सुनील के आकर्षक व्यक्तित्व से सहमी वह कुछ नहीं बोल पाई थी. आखिर घुटनों में सिर रख कर तब तक आंसू बहाती रही थी जब तक नींद न आ गई थी.

‘‘बहू, खाना नहीं खाना क्या?’’ सास के स्वर से उज्ज्वला अतीत के उन दुखद भंवरों से एक झटके से निकल कर पुन: वर्तमान से आ जुड़ी. न जाने उसे इस तरह कितनी देर हो गई. हड़बड़ा कर गीली आंखें पोंछ लीं और अपनेआप को संयत करती नीचे आ गई.

वह खाने के काम से निवृत्त हो कर फिर कमरे में आई तो सहज ही चांदी के फ्रेम में जड़ी सुनील की तसवीर पर दृष्टि अटक गई. मन में फिर कोई कांटा खटकने लगा. सोचने लगी, इन 2 सालों में किस तरह सुनील छोटीछोटी बातों से भी दिल दुखाते रहे हैं. कभीकभार अच्छे मूड में होते हैं तो दोचार औपचारिक बातें कर लेते हैं, वरना उस के बाहुपाश को बेदर्दी से झटक कर करवट बदल लेते हैं.

अब तक एक बार भी तो संपूर्ण रूप से वह उस के प्रति समर्पित नहीं हो पाए हैं. आखिर क्या गलती की है उस ने? शिकायत तो उन्हें अपने पिताजी से होनी चाहिए थी. क्यों उन के निर्णय को आंख मूंद कर सर्वोपरि मान लिया? यदि वह पसंद नहीं थी तो शादी करने की कोई मजबूरी तो नहीं थी. इस तरह घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर कर के वह मुझे किस बात की सजा दे रहे हैं?

बहुत से प्रश्न मन को उद्वेलित कर रहे थे. पर सुनील से पूछने का कभी साहस ही नहीं कर सकी थी. नहीं, अब नहीं सहेगी वह. आज सारी बात अवश्य कहेगी. कब तक आज की तरह अपनी इच्छाएं दबाती रहेगी? उस ने कितने अरमानों से आज रेणु और दीपक के साथ पिकनिक के लिए कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया था. बड़े ही अपनत्व से सुबह सुनील को सहलाते हुए बोली थी, ‘‘आज इतवार है. मैं ने रेणु और दीपक को बुलाया है. सब मिल कर कहीं पिकनिक पर चलते हैं.’’

‘‘आज ही क्यों, फिर कभी सही,’’ उनींदा सा सुनील बोला.

‘‘पर आज आप को क्या काम है? मेरे लिए न सही उन के लिए ही सही. अगर आप नहीं चलेंगे तो वे क्या सोचेंगे? मैं ने उन से पिकनिक पर चलने का कार्यक्रम भी तय कर रखा है,’’ उज्ज्वला ने बुझे मन से आग्रह किया.

‘‘जब तुम्हारे सारे कार्यक्रम तय ही थे तो फिर मेरी क्या जरूरत पड़ गई? तुम चली जाओ, मेरी तरफ से कोई मनाही नहीं है. मैं घर पर गाड़ी भी छोड़ दूंगा,’’ कह कर सुनील ने मुंह फेर लिया. उसे बेहद ठेस पहुंची.

पहली बार उस ने स्वेच्छा से कोई कार्यक्रम बनाया था और सुनील ने बात को इस कदर उलटा ले लिया. न तो वह कोई कार्यक्रम बनाती और न ही यह स्थिति आती. उज्ज्वला ने उसी समय दीपक को फोन कर के कह दिया, ‘‘तेरे जीजाजी को कोई जरूरी काम है, इसलिए फिर कभी चलेंगे.’’

मन बहुत खराब हो गया था. फिर किसी भी काम में जी नहीं लगा. बारबार अपनी स्थिति को याद कर के आंखें भरती रहीं. क्या उसे इतना भी अधिकार नहीं है कि अपने किसी शौक में सुनील को भी शामिल करने की सोच सके? आज वह सुनील से अवश्य कहेगी कि क्यों वह उस से इस कदर घृणा करते हैं और उस के साथ कहीं भी जाना पसंद नहीं करते.

शाम उतरने लगी थी. लंबी परछाइयां दरवाजों में से रेंगने लगीं तो उज्ज्वला शिथिल कदमों से रसोई में आ कर खाना बनाने में जुट गई. हाथों के साथसाथ विचार भी तेज गति से दौड़ने लगे. रोज की यह बंधीबंधाई जिंदगी, जिस में जीवन की जरा भी हसरत नहीं थी. बस, भावहीनता मशीनी मानव की तरह से एक के बाद एक काम निबटाते रहो. कितनी महत्त्वहीन और नीरस है यह जिंदगी.

मातापिता खाना खा चुके थे. सुनील अभी तक नहीं आया था. उज्ज्वला बचा खाना ढक कर मन बहलाने के लिए टीवी के आगे बैठ गई. घंटी बजी तो भी वैसे ही कार्यक्रम में खोई बैठी रहने का उपक्रम करती रही. नौकर ने दरवाजा खोला. सुनील आया और जूते खोल कर सोफे पर लेट सा गया.

‘‘बड़ी देर कर दी. चल, हाथमुंह धो कर खाना खा ले. बहू इंतजार कर रही है तेरा,’’ मां ने कहा.

‘‘बचपन का एक दोस्त मिल गया था. इसलिए कुछ देर हो गई. वह खाना खाने का बहुत आग्रह करने लगा, इसलिए उस के घर खाना खा लिया था,’’ सुनील ने लापरवाही से कहा.

उज्ज्वला अनमनी सी उठी और थोड़ाबहुत खा कर, बाकी नौकर को दे कर अपने कमरे में आ गई, ‘सुनील जैसे आदमी को कुछ भी कहना व्यर्थ होगा. यदि मन की भड़ास निकाल ही देगी तो भी क्या ये दरारें पाटी जा सकेंगी? कहीं सुनील उस से और ज्यादा दूर न हो जाए? नहीं, वह कभी भी अपनी कमजोरी जाहिर नहीं करेगी. आखिर कभी न कभी तो उस के अच्छे बरताव से सुनील पिघलेंगे ही,’ मन को सांत्वना देती उज्ज्वला सोने का प्रयत्न करने लगी.

सुबह का सुखद वातावरण, ठंडी- ठंडी समीर और तरहतरह के पक्षियों के मिलेजुले स्वर जैसे कानों में रस घोलते हुए. ‘सुबह नींद कितनी जल्दी टूट जाती है,’ बिस्तर से उठ कर बेतरतीब कपड़ों को ठीक करती उज्ज्वला सोचने लगी, ‘कितनी सुखी होती हैं वे लड़कियां जो देर सुबह तक अलसाई सी पति की बांहों में पड़ी रहती हैं.’ वह कमरे के कपाट हौले से भिड़ा कर रसोई में आ गई. उस ने घर की सारी जिम्मेदारियों को स्वेच्छा से ओढ़ लिया था. उसे इस में संतोष महसूस होता था. वह सासससुर की हर जरूरत का खयाल रखती थी, इसलिए थोड़े से समय में ही दोनों का दिल जीत लिया था.

भजन कब के बंद हो चुके थे. कोहरे का झीना आंचल हटा कर सूरज आकाश में चमकने लगा था. कमरे के रोशनदानों से धूप अंदर तक सरक आई थी.

‘‘सुनिए जी, अब उठ जाइए. साढ़े 8 बज रहे हैं,’’ उज्ज्वला ने हौले से सुनील की बांह पर हाथ रख कर कहा. चाह कर भी वह रजाई में ठंडे हाथ डाल कर अधिकारपूर्वक छेड़ते हुए नहीं कह सकी कि उठिए, वरना ठंडे हाथ लगा दूंगी.

बिना कोई प्रतिकार किए सुनील उठ गया तो उज्ज्वला ने स्नानघर में पहनने के कपड़े टांग दिए और शेविंग का सामान शृंगार मेज पर लगाने लगी. जरूरी कामों को निबटा कर सुनील दाढ़ी बनाने लगा. उज्ज्वला वहीं खड़ी रही. शायद किसी चीज की जरूरत पड़ जाए. सोचने लगी, ‘सुनील डांटते हैं तो बुरा लगता है. पर खामोश हो कर उपेक्षा जाहिर करते हैं, तब तो और भी ज्यादा बुरा लगता है.’

‘‘जरा तौलिया देना तो,’’ विचारों की शृंखला भंग करते हुए ठंडे स्वर में सुनील ने कहा.

उज्ज्वला ने चुपचाप अलमारी में से तौलिया निकाल कर सुनील को थमा दिया. सुनील मुंह पोंछने लगा. अचानक ही उज्ज्वला की निगाह सुनील के चेहरे पर बने हलकेहलके से सफेद दागों पर अटक गई. मुंह से खुद ब खुद निकल गया, ‘‘आप के चेहरे पर ये दाग पहले तो नहीं थे.’’

‘‘ऐसे ही कई बार सर्दी के कारण हो जाते हैं. बचपन से ही होते आए हैं,’’ सुनील ने लापरवाही से कहा.

‘‘फिर भी डाक्टर से राय लेने में हर्ज ही क्या है?’’

‘‘तुम बेवजह वहम मत किया करो. हमेशा अपनेआप मिटते रहे हैं,’’ कह कर सुनील स्नानघर में घुस गया तो उज्ज्वला भी बात को वहीं छोड़ कर रसोई में आ गई और नाश्ते की तैयारी में लग गई.

पर इस बार सुनील के चेहरे के वे दाग ठीक नहीं हुए थे. धीरेधीरे इतने गहरे होते गए थे कि चेहरे का आकर्षण नष्ट होने लगा था. सुनील पहले जितना लापरवाह था, अब उतना ही चिंतित रहने लगा. इस स्थिति में उज्ज्वला बराबर सांत्वना देती और डाक्टरों की बताई तरहतरह की दवाइयां यथासमय देती रही.

अब सुनील उज्ज्वला से चिढ़ाचिढ़ा नहीं रहता था. अधिकतर किसी सोच में डूबा रहता था, पर उज्ज्वला जो भी पूछती, शांति से उस का जवाब देता था. उज्ज्वला को न जाने क्यों इस आकस्मिक परिवर्तन से डर लगने लगा था.

रात गहरा चुकी थी. सभी टीवी के आगे जमे बैठे थे. आखिर उकता कर उज्ज्वला ऊपर अपने कमरे में आ गई तो सुनील भी मातापिता को हाल में छोड़ कर पीछेपीछे आ गया. हमेशा की तरह उज्ज्वला चुपचाप लेट गई थी. चुपचाप, मानो वह सुनील की उपेक्षा की आदी हो गई हो. सुनील ने बत्ती बंद कर के स्नेह से उसे बांहों में कस लिया और मीठे स्वर में बोला, ‘‘सच बताओ, उज्ज्वला, तुम मुझ से नफरत तो नहीं करतीं?’’

उस स्नेहस्पर्श और आवाज की मिठास से उज्ज्वला का रोमरोम आनंद से तरंगित हो उठा था. पहली बार प्यार की स्निग्धता से परिचित हुई थी वह. खुशी से अवरुद्ध कंठ से फुसफुसाई, ‘‘आप ने ऐसा कैसे सोच लिया?’’

‘‘अब तक बुरा बरताव जो करता रहा हूं तुम्हारे साथ. पिताजी के प्रति जो आक्रोश था, उस को तुम पर निकाल कर मैं संतोष महसूस करता रहा. सोचता था, मेरे साथ धोखा हुआ और बेवजह ही इस के लिए मैं तुम को दोषी मानता रहा. पर तुम मेरे लिए हमेशा प्यार लुटाती रहीं. मैं मात्र दैहिक सौंदर्य की छलना में मन के सौंदर्य से अनजान बना रहा. अब मैं जान गया कि तुम्हारा मन कितना सुंदर और प्यार से लबालब है. मैं तुम्हें सिर्फ कांटों की चुभन ही देता रहा और तुम सहती रहीं. कैसे सहन किया तुम ने मुझे? मैं अपनी इन भूलों के लिए माफी मांगने लायक भी नहीं रहा.’’

‘‘बस, बस, आगे कुछ कहा तो मैं रो पडूंगी,’’ सुनील के होंठों पर हथेली रखते हुए उज्ज्वला बोली, ‘‘मुझे पूरा विश्वास था कि एक न एक दिन मुझे मेरी तपस्या का फल अवश्य मिलेगा. आप ऐसा विचार कभी न लाना कि मैं आप से घृणा करती हूं. मेरे मन में आप का प्यार पाने की तड़प जरूर थी, पर मैं ने कभी भी अपनेआप को आप के काबिल समझा ही नहीं. आज मुझे ऐसा लगता है मानो मैं ने सबकुछ पा लिया हो.’’

‘‘उज्ज्वला, तुम सचमुच उज्ज्वला हो, निर्मल हो. मैं तुम्हारा अपराधी हूं. आज मैं अपनेआप को कंगाल महसूस कर रहा हूं. न तो मेरे पास सुंदर दिल है और न ही वह सुंदर देह रही जिस पर मुझे इतना घमंड था,’’ सुनील ने ठंडी सांस ले कर उदासी से कहा.

‘‘जी छोटा क्यों करते हैं आप? हम इलाज की हर संभव कोशिश करेंगे. फिर भी ये सफेद दाग ठीक नहीं हुए तो भी मुझे कोई गम नहीं. यह कोई खतरनाक बीमारी नहीं है. प्यार इतना सतही नहीं होता कि इन छोटीछोटी बातों से घृणा में बदल जाए. मैं तो हमेशाहमेशा के लिए आप की हूं,’’ उज्ज्वला ने कहा.

सुनील ने भावविह्वल हो कर उसे इस तरह आलिंगनबद्ध कर लिया मानो अचानक उसे कोई अमूल्य निधि मिल गई हो.

तीज स्पेशल: 12 साल छोटी पत्नी- सोच में फर्क

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तीज स्पेशल: झूठा सच- पत्नी आशा से क्यों नफरत कर बैठा ओम

“ऐसे कैसे अकेले ही निर्णय ले बैठा है शरत… अब वह अविवाहित नहीं, शादीशुदा है. पत्नी का भी बराबर का अधिकार है उस के जीवन में. जाना ही था तो संग ले कर जाए कामिनी को,” आशा बोल रही थी.

यों शरत और कामिनी की शादी को पूरे 3 साल हो चुके थे. उस के पति शरत ने भारत में नौकरी छोड़ दी और आस्ट्रेलिया में आगे शिक्षा प्राप्त करने हेतु अरजी दी थी जो स्वीकार हो गई थी. उसे अच्छाखासा वजीफा भी मिल रहा था. ऐसे में शरत यह मौका हाथ से जाने देने को बिलकुल तैयार न था. कामिनी यहां अकेली नहीं रहना चाहती थी, मगर खर्चों के कारण शरत के साथ जाना भी संभव नहीं था और यही कारण था दोनों में क्लेश का. कुछ दिन सोचविचार करने हेतु कामिनी मायके आ गई थी.

‘थोड़े दिन अलग रह कर, बिना भावनाओं को बीच में लाए सोचेंगे तो शायद सही निर्णय पर पहुंच पाएं,’ यह दोनों का मत था.

कामिनी नहीं चाहती थी कि मातापिता दोनों में से कोई भी उस की गृहस्थी के निर्णयों में दखल दें. वैसे भी पिता ओम चुपचाप हमेशा अपनी ही चलाते थे और हर मामले में आशा तिरस्कार सहती आ रही थी. वह इस बात को देखती और समझती रही थी और इसलिए उस ने दोनों को कुछ नहीं बताया. पिता एकदम उग्र हो उठेंगे, उसे मालूम था.

आखिर कई दिनों बाद कामिनी और शरत ने एकसाथ ओम व आशा को अपने निर्णय से अवगत कराया, ‘‘शरत 2 वर्षों की प्रबंधक शिक्षा हेतु आस्ट्रेलिया जाएंगे और इस बीच मैं यहां रह कर अपनी नौकरी करती रहूंगी. फिर इन की शिक्षा पूरी होने पर देखते हैं कि कहां अच्छी नौकरी मिलती है, उसी हिसाब से आगे की योजना बनाएंगे,” कामिनी की इस बात से जहां मां आशा सहमत न होते हुए भी ब्याहता बेटी के निर्णय का सम्मान कर रही थी, वहीं ओम के चेहरे पर कुंठा साफ झलक रही थी, ‘‘मैं तुम दोनों के इस निर्णय से असंतुष्ट हूं. विवाहोपरांत अलग रहना और वह भी इतनी समायाविधि के लिए कहां उचित है?’’ ओम के ऐसा कहते ही मानों एक गहरी खाई खुल गई और एकायक वे उस में गिरते चले गए…

करीब 24 वर्ष पूर्व, जब कामिनी मात्र 3 साल की थी, उस के पिता ओम को एक अच्छी नौकरी की तलाश विदेश ले गई. कतर में कंपनी ने ही रहने को क्वार्टर किया था. पीछे आशा और कामिनी को एक किराए के घर में छोड़ ओम अच्छा पैसा कमाने निकल पड़े थे. आखिर यह पैसा ही उन की गृहस्थी की गाड़ी को फर्राटे से चला पाएगा न.

कतर में दिनरात कड़ी मेहनतमशक्कत मेंं कब व्यतीत हो जाता, पता ही नहीं चलता. रात को शहर से दूर, औफ साइट कंपनी के अहाते में ओम अपनी पत्नी आशा की स्नेहपूर्ण यादों के सहारे समय काटते.

भारत में थे तो घर चाहे कितना छोटा था, टीन की छत वाली रसोई हो, दोपहरी में कितनी भी गरमी बरस रही हो, आशा गरमगरम खाना ही परोसती. ओम के पेट भर लेने के बाद भी एक और फुलके की जिद करती. उन को खाने के बाद कुछ मीठा खाना पसंद था तो हर रोज कुछ न कुछ, चाहे कितना भी कम बन पड़े, मीठा बनाती और बड़े प्यार से खिलाती. जब ओम शाम को थक कर घर लौटते तो गली के मोड़ से ही आशा को द्वार पर खड़ा पाते और जब तक चल कर घर में दाखिल होते, आशा हाथ में पानी का गिलास और आखों में प्रेममनुहार लिए आ पहुंचती.

दूर परदेस में ओम यही सब छोटीछोटी बातें याद करते रहते और उदास हो उठते. साल में एक बार घर आने का अवसर मिलता. वह 1 माह फिर उसी स्नेह और आदरसत्कार के बीच बीत जाता. कामिनी भी इस बार उन्हें बड़ी सी लगने लगी थी.

साल बीतने लगे. करीब 3-4 सालों के बाद आशा शिकायत करने लगी कि अब उस से अकेलापन नहीं झेला जाता. साथ के अपने जैसे लोगों के साथ कुछ समय बीत जाता पर सब इसी दुख को झेल रहे थे.

‘‘तुम यहां अपने घर में, अपनी बच्ची के साथ हो, तुम्हें काहे का अकेलापन? मेरा सोचो, वहां सुदूर परदेस मैं अकेला तो मैं हूं,’’ ओम तर्क देते.

‘‘आप समझ नहीं रहे हैं, एक बच्ची को अकेले पालना…अब मैं कैसे कहूं…’’ आशा ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई थी.

बस इस बार छुट्टियां पूरी होने पर कतर लौटने के 1 महीने बाद ही ओम को आशा की चिट्ठी मिली थी-

‘कामिनी के पापा, आप से साफ तरह से कह न सकी, इस बारबार या तो हमें अपने साथ ले चलिए या खुद लौट आइए. लगता है, आप को जैसा चल रहा है वही रास आने लगा है. लेकिन मुझ से अब यों नहीं रहा जाता. मेरी जिंदगी में कोई और आ गया है…वह मुझ से बहुत प्यार करता है, अपने साथ रखने को तैयार है. कामिनी को भी अपनाना चाहता है. आप मुझे तलाक दे दीजिए.

‘आप की आशा.’

आघात ने ओम के पांव तले जमीन हिला दी. आशा ने यह क्या सब लिख भेजा? और अंत में लिखती है ‘आप की आशा.’ कौन हो सकता है वह आदमी आशा के जीवन में? जब वे इस बार भारत गए थे, तब उन्हें कोई शक क्यों नहीं हुआ? कामिनी ने भी कभी कोई उत्तर नहीं दिया…पत्नी वियोग में पहले ही उन के लिए यहां स्वयं को स्थापित करना मुश्किल लगता था, साथ ही अकेलेपन की टीस और वीरान सी उन की जिंदगी बेचैन हुआ करती थी. आशा के इस पत्र से ओम को बहुत रोष हुआ था. उन का मन खिन्न हो उठा था. वह तन और मन से कितना भार ढो रहे हैं. इस से अनजान कैसे हो सकती थी उस की पत्नी. ओम आहत थे.

मगर उन्होंने इस रिश्ते को ऐसे ही खत्म करने का सोच लिया. आशा ऐसा चाहती है, तो ऐसा ही सही. जल्द से जल्द लौट कर उन्होंने अपने लिए एक अलग मकान का बंदोबस्त किया और अदालत के रास्ते अपना लिए.

नोटिस मिलने पर लुटीपिटी सी आशा अदालत में दुहाई देने लगी, ‘‘जज साहिबा, मैं ने झूठ लिखा था, ऐसावैसा कुछ नहीं है. वह तो मेरी एक सहेली ने मुझे यह तरकीब सुझाया कि शायद जलन और असुरक्षा की वजह से कामिनी के पापा वापस आ जाएं या फिर हमें अपने संग ले जाएं.’’

‘‘आप समझ रही हैं कि आप क्या कह रही हैं…’’ जज साहिबा ने झिडक़ी लगाई.

‘‘जज साहिबा, मुझे गलत न समझें. एक अकेली औरत के लिए समाज में जीना बहुत मुश्किल है. रास्ते से जाओ तो मनचलेमजनुओं के ताने सुनो, यहां तक कि त्योहारों पर भी लोग सुना देते हैं. ऐसे कमाने का क्या फायदा कि इंसान होलीदीवाली पर भी घर न आ पाएं. और तो और अपने खास दोस्त भी…’’ कहतेकहते आशा वियोग में बिताए पलों की खट्टी यादों में पहुंच गई…

एक बार कामिनी काफी बीमार हो गई थी. उस कष्ट की घड़ी में आशा की पड़ोस की सहेली अंबिका ने उस का बहुत साथ दिया. अंबिका के पति गगन ने उन के अपने छोटे से बेटे का ध्यान रखा और अंबिका कामिनी के माथे पर पट्टी रखती रही, जब तक आशा डाक्टर के पास जा कर दवा ले आई. उस रात आशा के घर गगन रुक गया ताकि जरूरत के समय काम आ सके. आशा, अंबिका को जातियों के भेदभाव के बावजूद अपनी बहन समान मानती थी और गगन उसे दीदी कह कर संबोधित करता था. इस वक्त उन्होंने यह रिश्ता निभा कर दिखाया था. आशा कामिनी के पास ही सो गई और गगन साथ वाले कमरे में.

अचानक रात के तीसरे पहर नींद की कच्ची आशा ने कमरे में कुछ आहट महसूस की. देखा तो गगन पास खड़ा था, ‘‘क्या हुआ गगन? कुछ चाहिए आप को?’’

‘‘नहीं आशा, मैं तो बस देखने आ गया कि तुम्हें नींद आ गई क्या?’’ गगन के मुंह से अपना नाम व ‘तुम’ सुन आशा का चौंकना स्वाभाविक था. उस के लाल डोरे और उन में एक अजीब सा नशा आशा को डरा रहा था. प्रकृति ने स्त्री को छठी इंद्री प्रदान की है जिस से वह परपुरुष की मन की इच्छा आसानी से भांप लेती है.

घर अकेला था और कामिनी बीमार अवस्था में सो रही थी. आशा ने फौरन बात टाली, ‘‘चाय लोगे गगन भाई?’’

‘‘आशा, यह समय चाय का नहीं बल्कि…’’

‘‘नहीं, मैं चाय बना ही लाती हूं. तब तक आप जरा कामिनी के पास बैठिए,’’ कह जबरदस्ती चाय बनाने लगी. उस ने 2 कप चाय बनाई, एक गगन को दी और एक खुद घूंटघूंट कर के पी. जैसेतैसे सुबह के 5 बजे. सूर्योदय से पहले की लालिमा के साथ चिडिय़ों की चहचहाहट पौ फटते ही सारे आकाश में फैल गई. आशा बोली, ‘‘गगन भाई, अब आप अपने घर जाइए, अंबिका आप का इंतजार कर रही होगी.’’

उस घटना के बाद आशा अंदर तक हिल गई. किस से कहे? अंबिका को कैसे बताए? कहीं उस ने आशा को ही गलत समझ लिया कि एक तो मेरे पति ने इतनी मदद की और ऊपर से उन पर इतना घिनौना इल्जाम. और फिर हुआ तो कुछ भी नहीं. यह तो सिर्फ उस का डर है, कोई सुबूत नहीं है उस के पास. काफी परेशान हो गई वह और उस ने ठान लिया कि अब वह अकेली नहीं रहेगी. इस संसार में उस का कोई है तो बस उस का अपना पति. वह फौरन उन्हें घर वापस बुलाना चाहती थी. बस, एक अन्य सहेली की सुझाई हुई तरकीब अपना कर आशा ने ओम को वह चिट्ठी लिख डाली.

कितनी मूर्ख थी आशा. क्या वह कभी समझ पाएगी कि उस की इस तरकीब से ओम को कितना गुस्सा होगा? उन में कितनी निराशा, कितना अंधकार घर कर चुका था. इस तरकीब के पीछे के सारे घटनाक्रम से अनभिज्ञ ओम इस फैसले पर पहुंच गए थे कि चुप्पी ही तूतूमैंमैं से बेहतर है. वे तो केवल अपनी पत्नी की ओर कमजोर आंखों से देख रहे थे. आशा ने बहुत माफी मांगी. कोर्ट ने भी उसे खरीखोटी सुनाई. मगर आशा के न मानने पर तलाक न हो पाया. उन्हें साथ ही रहना था लेकिन ओम के मन में गङी फांस ने उन्हें आशा की ओर से एक तरह अलग कर दिया. तो बस, यों ही बुझे मन से, निभाने के लिए ओम ने अपना जीवन काट दिया था.

कामिनी को इस बात की कुछ हलकीफुलकी जानकारी मौसी से मिली थी जो कभीकभार आती थीं. आज उस का पति वही करने जा रहा था जिस का परिणाम उस के पिता आज तक भुगत रहे थे तो भला कैसे मान जाते इस निर्णय को? नेपथ्य से वाकिफ कामिनी भी समझ रही थी कारण को. बेटियां मांओं की थोड़ी अधिक करीब होती हैं. यही कारण था कि बड़ी होती कामिनी ने मातापिता के बीच की दूरी भांप ली थी. पूछने पर मां ने अपनी गलती तथा अपने दिल का हाल दोनों ही उड़ेल दिए थे. संवेदनशील कामिनी सब समझ गई थी. लेकिन मर्यादा का पालन इसी में था कि वह छोटी थी और छोटों की भांति रहती सो इस विषय में उस का चुप रहना ही उचित था.

मगर आज एक झूठे सच को ले कर इतना परेशान भी तो नहीं देख पा रही थी. बहुत उधेड़बुन में उलझे थे दिल और दिमाग. आज वह स्वयं शादीशुदा है, पतिपत्नी के रिश्ते की नजाकत को पहचानती है. क्या आगे बढ़ कर एक प्रयास करना उचित न होगा?

कामिनी शरत के साथ अपने घर लौट गई. शरत जाने की तैयारी में था. कामिनी उस का पूरा साथ दे रही थी. वह चाहती थी कि शरत खुश मन से जाए, पूरी लगन से अपनी शिक्षा पूर्ण करे और फिर दोनों साथ में एक बेहतर जिंदगी जिएं.

नियत दिन शरत चला गया. आजकल के युग में जहां संपूर्ण दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन गई है. जहां स्काइप, ट्विटर, व्हाट्सऐप आदि ने सात समुंदर पार की भी दूरियों को हमारी हथेलियों पर सिमटा दिया है, वहां लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप का निभना इतना कठिन नहीं, कामिनी यह बात अच्छी तरह समझती थी.

उस का पति उस से बहुत दूर, एक दूसरे महाद्वीप में होते हुए भी उस के इतने पास था कि आज उस ने क्या खाया, कितने बजे सोया, क्या कपड़े पहने, किसकिस से मिला, क्या सीखा आदि सब से वाकिफ थी कामिनी. इसी तरह वह भी जो कुछ अपने पति से बांटना चाहती, वह हर बात वह शरत से कर सकती थी. बिस्तर जरूर अकेला था, मगर इतना साथ भी बहुत था. और फिर वह जानती थी कि ये दूरियां केवल 2 साल के लिए हैं. जब समायाविधि नियत हो तो प्रतीक्षा इतनी कठिन नहीं लगती.

कुछ समय बाद कामिनी फिर अपने मायके चली जाती. एक ही शहर में मायका और ससुराल होने का एक फायदा यह भी है कि जल्दीजल्दी मिलना हो जाता है. मातापिता ने शरत के हालचाल पूछे और कामिनी को सारी जानकारी है इस बात से उन्हें तसल्ली मिली, ‘‘चल, अच्छा है बिटिया, तेरी शरतजी से रोज बातें हो जाती हैं. हमारे जमाने में तो बस चिट्ठियों का सहारा था…’’

आशा के कहते ही ओम बिफर पड़े, ‘‘हां, बहुत सहारा था चिट्ठियों का. जो बातें मुंह पर न कह सको, वे लिख कर भेज दो. एक बार फिर उपेक्षा से आशा की आंखें छलक आईं. पल्लू के कोर से धीरे से आंखें पोंछती आशा बहाने से उठ गई पर कामिनी से यह बात न छिप सकी, ‘‘पापा, आप कब तक यों…”

फिर कुछ सोच कर उस ने अपने पिता का हाथ थाम कमरे में ले गई और चिटकनी चढ़ा दी. उन की प्रश्नवाचक दृष्टि के उत्तर में वह बोली, ‘‘मैं नहीं चाहती कि मम्मी हमारी बातें सुन लें. पापा, शायद मैं पूरी तरह न समझ पाऊं कि आप पर मम्मी की वह चिट्ठी पढ़ कर क्या गुजरी होगी क्योंकि जिस पर बीतती है, वही जानता है. लेकिन फिर यही लौजिक मम्मी की भावनाओं पर भी तो लागू होगा न. जैसे आप को अपनी ठेस, अपना आघात ज्ञात है, वैसे ही क्या आप ने कभी मम्मी से यह जानना चाहा कि क्यों उन्होंने इतना बड़ा झूठ बोला? इतना बड़ा झूठ जिस की सजा वे आज तक भुगत रही हैं…”

कामिनी ने आगे कहा,”जैसे आज मेरे पति के मुझ से दूर जाने पर आप को एक पिता के रूप में परेशानी हुई क्योंकि आप मानते हो कि मैं अकेली कैसी जिंदगी जिऊंगी. लेकिन पापा, मेरे पास आप दोनों हो और बच्चे की जिम्मेदारी भी नहीं है. मम्मी के पास मैं थी और घरपरिवार वाले सब दूर. ऐसे में उन्हें कितनी ही परेशानियां आई होंगी. एक महानगर में अकेली औरत, एक छोटे बच्चे का साथ, उस की पढ़ाईलिखाई का इंतजाम. स्कूल में दाखिला कराना, स्कूल की मीटिंग में जाना, घरगृहस्थी की सारी संभाल, राशन, कपड़ों इत्यादि की खरीदारी, ऊपर से बढ़ते बच्चे का पालनपोषण… मैं सोच भी नहीं पाती हूं कि कैसे मां ने अकेले ही सब किया होगा.

“याद है आप को जब आप छुट्टियों में आया करते थे, तब सभी रिश्तेदार दूरदूर से आप सेे मिलने बारीबारी आते रहते थे. एक तो उस 1 माह में मम्मी आप के साथ ढंग से समय नहीं बिता पाती थीं ऊपर से बढ़ा हुआ काम और घर खर्च.

“आज सोचती हूं तो समझ पाती हूं कि उन्हें कितनी कोफ्त होती होगी कि 1 माह को पति आया है, फिर 1 साल नहीं मिल पाएंगी और इस 1 माह में भी रिश्तेदारों का तांता.

‘‘एक औरत की तरह सोचती हूं तो समझ पाती हूं कि कितना अकेलापन सालता होगा उन्हें. काम बांटने की इच्छा, बातें करने की इच्छा, मानसिक संबल की आवश्यकता, हंसनेबोलने और बदन को छूनेसहलाने का मन, मन बढ़त की जरूरतें, विरह भरे दिनमहीने…

‘‘उस समय उम्र ही क्या थी उन की? किसी भी औरत के लिए कितना नीरस हो जाएगा जीवन जब उस का पति दूर परदेस में हो और उस के लौटने का कोई सूत्र भी नहीं दिखे. जरा सोचिए पापा, किस हद तक अकेली हो गई होगी उन की जिंदगी जो उन्होंने यह कदम उठा लिया. किसी परपुरुष के अपने जीवन में न होते हुए भी उन्होंने इतना बड़ा रिस्क उठाया कि अपने पति को अपनी बेवफाई का लिखित सुबूत दे डाला. यह उन की चालाकी नहीं, सीधापन था.

“जो वे वाकई बेवफा होतीं तो कुछ भी कर सकती थीं. आप तो साल में 1 बार आते थे और सभी रिश्तेनातेदार भी उसी 1 माह में आते थे. यहां क्या हो रहा है किस को खबर?’’

कामिनी ने आज वह खिडक़ी खोली थी जिसे ओम कस कर बंद चुके थे. यह बात ठीक है कि ओम अपने परिवार से दूर, कठिन परिस्थितियों में परदेस में मेहनत कर अपनी गृहस्थी के लिए कमा रहे थे मगर यह भी उतना ही सच था कि उस गृहस्थी की गाड़ी को आशा अकेली ही खींच रही थी. उस ने कई बार ओम को घर लौट आने या उसे भी साथ ले चलने की मांग की थी. ओम की अनिच्छा देख हो सकता है उसे यही एक विकल्प सूझा हो. गलती दोनों में से किसी की भी नहीं थी. गलती केवल परिस्थिति की थी. ओम की परिस्थिति उन्हें बीवीबच्चे साथ रखने की इजाजत नहीं दे रही थी और आशा की परिस्थिति उसे अकेले आगे नहीं बढ़ने दे रही थी. वह जानती थी कि कतर में नौकरी मिलने की शर्त ही यह थी कि पत्नी को साथ न लाओ. वह यह भी जानती थी कि ओम न जाते, तो वे टूटेफूटे, टीनटप्पर के मकान में रहने को मजबूर रहते.

कामिनी को भी 2 वर्ष ही अकेले विरहगीत गाने थे लेकिन आज उस ने जो किया था उस से एक ही छत के नीचे रह रहे अपने मांबाप की कभी न खत्म होने वाली विरह की दीवार को तोङ जरूर दिया था. इस बार मायके से अपने घर वापस लौटने पर कामिनी अकेले होते हुए भी मुसकरा रही थी. उस का मन हलका हो गया था.

कासनी का फूल: भाग 3- अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

एक बार इंस्टिट्यूट के फाउंडेशन डे पर क्लासिक सौंग्स के कंपीटिशन में जब दर्शकों की वाहवाही के बाद भी चित्रा को तीसरा स्थान मिला था तो ईशान ने कितने प्यार से कहा था, ‘‘तुम्हारी वजह से यहां के स्टूडैंट्स पुरानी फिल्मों के गीतों में रुचि दिखा रहे हैं. यही तुम्हारा इनाम है. दुनिया में तरहतरह के लोग होते हैं और उन की पसंद भी अलगअलग होती है. हमें खानेपीने के साथसाथ और बातों में भी सभी लोगों की पसंद का ध्यान रखना पड़ेगा क्योंकि हौस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में जाना है.’’

यहां आने के बाद चित्रा को ईशान की कुछ ज्यादा ही याद आने लगी है. शिमला के आसपास ही तो बताता था वह अपना घर. जब से यहां आई है जहां निगाह पड़ती है ईशान की दृष्टि से सब देखने लगती है. ईशान के पास प्रतिदिन उस का बैठना और ईशान से पहाड़ों के बारे में सवाल करना उस की दिनचर्या का सब से सुखद पहलू था. ईशान भी बातें करते हुए खो जाता था चित्रा में. सच तो यह है कि ईशान का मन पढ़ते हुए वह जान गई थी कि एक मुलायम सा मखमली कोना ईशान के हृदय में बन चुका है उस के लिए. अपने दिल को कभी टटोला ही नहीं था उस ने क्योंकि चंदनदास वाली घटना के बाद उसे प्रेम संबंधों के विषय में सोच कर ही डर लगता था.

आज अपने मन के अंधेरे, उजाले के बीच झलती चित्रा घाटी में उतर रहे हलके उजाले और घाटी से पहाड़ पर चढ़ रहे अंधेरे में खोई थी. थोड़ी देर बाद दृष्टि वहां से हट कर सामने कुछ दूरी पर बने मकानों पर टिकी तो एक घर में प्रवेश करती आकृति उसे ईशान जैसी लगी.

‘ईशान इतना छा गया है मुझ पर कि दिखाई भी देने लगा,’ अशांत कहीं खोईखोई सी चित्रा मोबाइल में मैसेज देख अपना ध्यान उस ओर से हटाने के प्रयास में लग गई.

चित्रा का होटल घर से बहुत दूर नहीं था. सुबह जल्दी उठकर पैदल ही निकल जाती थी वह. उस दिन भी घर से निकली, सामने की छोटी पहाड़ी पर बने मकान पर निगाहें टिक गईं. जब से ईशान के प्रवेश का भ्रम हुआ है वहां से निकलते हुए एक चोर सा मोह उस के मन को जकड़ने लगता है. ऊंचाई अधिक न होने के कारण 2 मिनट रुक कर एक भरपूर दृष्टि उस मकान पर डाल सिर झट कर चल दी.

‘‘चित्रा…’’ अपने नाम की पुकार सुन एकाएक चित्रा विश्वास न कर सकी, ‘उफ, मुझे तो ईशान की आवाज भी सुनाई देने लगी,’ चित्रा ने अपना सिर उठा कर देखा तो आंखें खुली की खुली रह गईं. ईशान बालकनी में खड़ा हाथ हिला रहा था.

‘‘मैं नीचे आ रहा हूं, रुको,’’ ईशान झटपट सामने आ खड़ा हुआ.

‘‘तुम्हें देखा तो लगा कि तुम चित्रा ही हो, सोचा कि नाम पुकारता हूं कोई और हुई तो तुम्हारे नाम से रुक थोड़े ही जाएगी,’’ हांफते हुए ईशान एक सांस में सब बोल गया.

‘‘मुझे भी एक दिन तुम जैसा कोई मतलब तुम दिखे थे वहां से,’’ चित्रा अपने घर की ओर इशारा करते हुए बोली.

दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. एकदूसरे को अपने वर्तमान की झलक दे कर शाम को मिलने की बात हुई. चित्रा चली ही थी कि ईशान ने पुकार कर कहा, ‘‘पता है अपने जिस रैस्टोरैंट की बात मैंने अभी की है वह तुम्हें डैडिकेटेड है. एक दिन वहां ले जाऊंगा फिर बताना कैसे जुड़ा है वह तुम से? देखता हूं तुम्हें दोस्ती की पुरानी बातें कितनी याद हैं?’’

‘‘मिलते ही उलझन में डाल दिया ईशान,’’ चित्रा मुसकरा दी.

दोनों ने हंसते हुए विदा ली और अपनी राह चल दिए. ईशान ने कसौली में एक ढाबानुमा रैस्टोरैंट खोला था. उस का अपना घर वहां से कोई 150 किलोमीटर दूर धरौट नाम के गांव में था. चित्रा को याद है कि पढ़ते हुए भी ईशान अकसर फूड शौप खोलने के सपने देखता था. गांव में ऐसे रैस्टोरैंट्स के चलने की संभावना कम ही थी. कसौली में इस व्यवसाय को शुरू करने का मुख्य कारण पर्यटकों का कसौली के प्रति बढ़ता आकर्षण था. चित्रा के सामने वाले मकान में वह उन 2 लड़कों के साथ किराए पर रह रहा था जिन्हें अपने साथ ही काम पर रखा हुआ था.

चित्रा ने थोड़ी दूर चलने के बाद पगडंडी छोड़ सड़क का रास्ता पकड़ लिया. वह सड़क उस ओर जाती थी, जहां ईशान ने अपना रैस्टोरैंट होने की बात कही थी. वह रैस्टोरैंट उसे कैसे समर्पित है, यह देखने की चाह उसे खींच रही थी.

रास्तेभर चित्रा सोचती आ रही थी कि शाम को अपने विषय में ईशान को क्या बताए, क्या छिपाए? अभी तो ईशान को उस ने केवल यही बताया कि उस का विवाह हो चुका और यहां वह अकेली रह कर जौब कर रही है. अपनी व्यथा और पीड़ा के सिवा बताने को है ही क्या उस के पास. क्या ईशान उस की जिंदगी की अंधेरी गलियों में जाना पसंद करेगा?

चित्रा की सोच एक झटके में थम गई. सामने दिख रही फूड शौप ईशान की थी, नाम था ‘कासनी फूड हट.’ बोर्ड पर बना लोगो (प्रतीक चिह्न) भी कासनी के फूल की बनावट लिए था.

चित्रा कैसे भूल सकती है कि एक बार पढ़ाई के दौरान उन को हल्द्वानी के एक संस्थान में ले कर गए थे, जहां कासनी के फूल प्रचुर मात्रा में उगाए जाते थे. होटल मैनेजमैंट के विद्यार्थियों को वहां कासनी के पौधों की सूखी जड़ें पीस कर पाउडर बनाने के बाद कौड़ी में मिलाना सिखाया गया था. सामान्य सी दिखने वाली जड़ों से सूखने पर चौकलेट जैसी गंध आती है, स्वाद भी चौकलेट से मिलताजुलता होता है, लेकिन कैफीन नहीं होता उस में. चित्रा उस मनभावन सुगंध में खो गई थी. कासनी का फूल उसे हमेशा से बहुत प्रिय था.

ईशान ने उस दिन कहा था, ‘‘चित्रा, तुम इन कासनी के फूलों जैसी ही हो. नीले रंग के फूल प्रकृति ने बहुत कम दिए हैं, तुम सी भी कम ही होंगी दुनिया में. कासनी न सिर्फ सुंदर है इस का प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में लाभकारी भी है. तुम भी खूबसूरती के साथ अपने में अनेक गुण समेटे हो. इस की मीठी खुशबू सा व्यवहार भी है तुम्हारा. कासनी को चिकोरी भी कहते हैं इसलिए आज से मैं तुम्हें चिकोरी कह कर बुलाऊंगा.’’

यह बात ईशान और चित्रा तक ही सीमित थी. कोई चिकोरी नाम के विषय में पूछता तो ईशान कह देता कि चित्रा की तुलना में चिकोरी बोलना आसान है, इसलिए बुलाता है वह इस नाम से.

‘ईशान को मैं न सिर्फ याद हूं उस के मन में मेरी अब भी वही खास जगह है. तभी तो उस ने कासनी रखा है अपने रैस्टोरैंट का नाम. मैं ईशान से कुछ नहीं छिपाऊंगी. अपनी जिंदगी खोल कर रख दूंगी उस के सामने. ऐसे दिल से चाहने वाले दोस्त कहां मिलते हैं? मुझे अपना राजदार बनाना ही है उसे,’ सोच चित्रा की आंखें नम हो गईं.

किसी तरह पलपल गिनते हुए उस का दिन बीता. सांझ को घर लौटी. ईशान की प्रतीक्षा में आकुल मन कुछ करने ही नहीं दे रहा था.

ईशान आते ही बोला, ‘‘सुबह हिम्मत नहीं जुटा सका था, क्या मैं तुम्हें अब भी चिकोरी कह कर बुला सकता हूं.’’

चित्रा खिल उठी. लौंग, इलायची डाल कर चाय बनाई. उसे याद था कि ईशान को चाय में इलायची और लौंग डाल कर पीना बहुत पसंद है. ईशान अपने रैस्टोरैंट के बने मोमोज ले कर आया था.

‘‘चिकोरी, तुम से बहुत सी बातें करनी हैं या यों कहूं कि बहुत कुछ सुनना है. मुझे तो जो कहना था सुबह ही कह दिया था मैं ने,’’ ईशान चित्रा के विषय में जानने को उत्सुक था.

दोनों बालकनी में बैठे तो बातों का सिलसिला शुरू हो गया.

‘‘चिकोरी, तुम ने बताया कि तुम्हारी शादी हो गई, लेकिन तुम तो पहले जैसी ही दिख रही हो, बल्कि चेहरा कुछ मुरझाया सा लग रहा है. यह बात दूसरी है कि सूखे हुए कासनी के फूल की तरह सुंदरता कम नहीं हुई तुम्हारी.’’

इतने अपनेपन में भीगे शब्द चित्रा ने न जाने कितने दिनों बाद सुने थे. अत: वह आपबीती सुनाने लगी. अभिषेक से विवाह और तलाक के विषय में तो उस ने सब बता दिया, लेकिन चंदनदास वाली घटना और अभिषेक के साथ संबंध बनाते हुए सहयोग न कर पाने की बात कहते हुए उसे झिझक आ रही थी. इतना ही कह सकी, ‘‘हम मिलते रहेंगे तो जीवन की अनकही परतें खोलती रहूंगी, जाने कब से मन के अंधेरे कुएं में बंद मेरा दम घोटती रहती हैं काली यादें.’’

‘‘ओह, तुम्हारी जिंदगी इतनी दुखभरी रही और मुझे पता तक नहीं चला,’’ ईशान के शब्दों में चित्रा को सहानुभूति और आंखों में जज्बात की वह झील दिख रही थी जो इतना समय बीत जाने पर भी नहीं सूखी थी. अनायास ही उस का सिर ईशान के कंधे पर जा टिका. ईशान ने प्यार से उस के बालों में हाथ फेरा तो चित्रा की पलकें मुंद गईं. दोनों देर तक यों ही शांत बैठे रहे.

रात को ईशान घर लौटा तो आंखों में नींद की जगह बेचैनी ने ले ली थी, ‘लगता है अभी भी बहुत कुछ दबा है चिकोरी के दिल में. मैं उस के मन की थाह लूंगा, उस के दुख में भागीदार बनूंगा.’

ईशान का काम अच्छा चलने लगा था. सहयोग के लिए 2 और लड़कों को रख लिया उस ने. इस का एक अन्य कारण चित्रा को समय देना भी था.

‘‘2 दिनों के लिए चैल चलोगी? यहां से ज्यादा दूर नहीं है, बहुत सुंदर हिल स्टेशन है,’’ एक दिन चित्रा के सामने ईशान ने प्रस्ताव रखा तो उस ने पूरे मन से हां कर दी.

ईशान को पहाड़ों पर ड्राइव करने का अच्छा अनुभव था, इसलिए अपनी कार से जाने का निश्चय किया. 2 घंटे की यात्रा थी लगभग. नियत दिन वे सुबह जल्दी घर से निकल पड़े. सर्दी के दिन बीत चुके थे, फिर भी हलकी सी धुंध फैली. कुछ देर बाद हलके कुहरे को चीरती सूर्य की किरणें बिखरने लगीं. ठंडी हवा के ?ांके हृदय को आह्लादित कर रहे थे.

बलखाती सड़क के एक ओर खाई तो दूसरी ओर ऊंचे पहाड़, चित्रा मन ही मन ईशान व अभिषेक की तुलना करने लगी, ‘खाई दूर से हरीभरी लग रही है लेकिन भूले से भी कोई फिसल जाए तो गिरता ही जाए नीचे, नीचे, कहां तक पता नहीं. अभिषेक का साथ मिला तो मेरी नौकरी भी छूटी, सुकून भी गया. इस के विपरीत पहाड़ पर चढ़ना मतलब ऊंचाइयों को छू लेना. अपने मन में तरल प्रेम सा पानी छिपाए हैं जो कभीकभी झरनों के रूप में फूट पड़ता है ठीक ईशान की तरह.’

‘‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा…’’ कानों में गीत की आवाज आने से चित्रा अपने खयालों से बाहर निकल आई.

‘‘चिकोरी, कैसा है गाना? जहां तक मुझे याद है तुम्हें पुराने गाने पसंद हैं. जो कहोगी वही सौंग लगा दूंगा. बहुत बड़ा कलैक्शन है मेरे पास. रैस्टोरैंट में सारा दिन अलगअलग तरह के गाने लगाने पड़ते हैं.’’

‘‘इतना सुंदर गाना किस को पसंद नहीं आएगा,’’ चित्रा सचमुच गाने में खो गई.

‘‘गाने की दूसरी लाइन मेरे दिल सी निकली लगती है चिकोरी, न कोई है न कोई था जिंदगी में तुम्हारे सिवा…’’ ईशान ने गाने के बहाने मन की बात कह ही दी.

उन का कमरा पैलेस होटल में बुक था. कार वहां पहुंची तो होटल की भव्यता देख चित्रा ठगी सी रह गई.

‘‘जानती हो चिकोरी यह एक महल था जिसे 19वीं शताब्दी के अंत में पटियाला के महाराजा ने बनवाया था.’’

बातें करते हुए दोनों कमरे में पहुंच गए. कौफी और हलकेफुलके स्नैक्स लेने के बाद घूमने चल दिए.

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