अभिषेक मल्हान से मिलने अस्पताल पहुंचीं मनीषा रानी, देखें क्यूट वीडियो

बिग बॉस ओटीटी स्टार मनीषा रानी बिग बॉस ओटीटी 2 के फिनाले में वह तीसरे स्थान पर आई थी. वहीं मनीषा रानी के खास दोस्त अभिषेक मल्हान रनर अप रहे. बिग बॉस ओटीटी 2 के विजेता एल्विश यादव बनें. मनीषा रानी बीते दिन मंगलवार को, वह अपने दोस्त अभिषेक मल्हान उर्फ ​​फुकरा इंसान को सरप्राइज कर दिया जब वह उससे मिलने अस्पताल गई. उन्होंने अपनी सरप्राइज विजिट का वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर किया, जो अब वायरल हो रहा है.

मनीषा रानी अस्पताल पहुंची अभिषेक से मिलने

अभिषेक मल्हान को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण बिग बॉस ओटीटी फिनाले से पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वायरल वीडियो में अभिषेक को मनीषा को गले लगाते और मुस्कुराते हुए देखा जा सकता है. दोनों के बीच एक प्यारा सा रिश्ती हैं. जो वीडियो साफ-साफ दिख रहा है.

क्लिप शेयर करते हुए मनीषा ने लिखा, “बीबी ओटीटी सीजन 2 का हीरो. ओय तूने भले ही ट्रॉफी नहीं जीती हो. लेकिन तूने पूरे भारत का दिल जीता है और मेरे लिए तो तू हमेशा से ही विजेता रहा है.” और बिग बॉस ने मुझे बहुत कुछ दिया है. उसमे से खास तेरा जैसा दोस्त मिला मुझे. अगर इस सीजन में तू नहीं होता तो मेरी जर्नी बहुत मुश्किल होती शायद, और उम्मीद है कि हमारी दोस्ती हमेशा ऐसी ही रहेगी”.

 

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अभिषेक के फैंस उनके जल्दी ठीक होने की दुआ कर रहे

अभिषेक मल्हान के फैंस उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहे और उनकी तारीफ कर रहे है.  एक यूजर ने लिखा था, “ट्रॉफी नहीं, दिल जीत लिया भाई (आपने ट्रॉफी नहीं बल्कि दिल जीत लिया)” एक अन्य ने लिखा, “आपने दिल जीत लिया मल्हान!” एक अन्य फैन ने टिप्पणी की, “आप हमारे दिलों में विजेता हैं.”

 

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अभिषेक ने शेयर किया वीडियो

बीते दिन अभिषेक मल्हान ने अपने इंस्टाग्राम पर अपने प्रशंसकों के लिए एक संदेश साझा किया और उन्हें उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया. वीडियो में अभिषेक मल्हान को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “सबसे पहले वोट कराने वाले सभी लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद. मुझे पता है मैं ट्रॉफी नहीं लेके आ पाया, लेकिन आप लोगो का जो प्यार दिख रहा है, जो प्यार आप सब मुझे दे रहे हो, मैं भगवान की कसम खाता हूं, मुझे लगता नहीं मैं इतना लायक हूं… बहुत बहुत धन्यवाद पांडा गैंग, आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद, जिन्होंने वोट कारा. मैंने भले ही ट्रॉफी नहीं जीती हो, लेकिन मैं आपका प्यार देखता हूं. मुझे यकीन है कि मैं आप सभी के इतने प्यार का हकदार नहीं हूं. ”

अभिनेता मोहम्मद इकबाल खान ने न्यूकमर के लिए क्या मेसेज दिया, पढ़ें इंटरव्यू

छोटे और बड़े पर्दे पर नजर आने वाले हैंडसम, वेलबिल्ट अभिनेता मोहम्मद इक़बाल खान से कोई अपरिचित नहीं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कैरियर बनाने के चाह में कश्मीर से मुंबई आये और काफी संघर्ष के बाद कुछ फिल्मों में काम मिला. फिल्मों में उनकी एंट्री वर्ष 2002 में फिल्म ‘कुछ दिल ने कहा’ से हुई. इसके बाद उन्होंने कुल तीन और फिल्में ‘फनटूश’, ‘बुलेट एक धमाका’ और ‘अनफॉर्गेटेबल’ की जो फ्लॉप रहीं, जिसके चलते उन्हें हिंदी फिल्मों में काम मिलना भी बंद हो गया.

फिर उन्होंने खाली न बैठकर टीवी का रुख किया. टीवी में कैरियर बनाने की ठानी और साल 2005 में इकबाल ने ‘कैसा ये प्यार है’ से टीवी में एंट्री की. इसमें उनके किरदार को काफी सराहना मिली और बाद में उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.

पत्नी स्नेह छाबड़ा और इकबाल की मुलाकात एक वीडियो एलबम की शूटिंग के दौरन हुई थी. प्यार हुआ, शादी की और इकबाल दो बेटी के पिता बने.

उनकी वेब सीरीज क्रैकडाउन 2 जीओ सिनेमा पर रिलीज हो चुकी है, जिसमे उन्होंने जोरावर कालरा की भूमिका निभाई है, ये भूमिका उनके लिए काफी अलग और चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन उनके काम की तारीफ मिल रही है, जिससे वे बेहद खुश है. उन्होंने खास गृहशोभा से बात की आइये जानते है उनकी कहानी उनकी जुबानी.

 

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सवाल- हिंदी मनोरंजन की दुनिया में आपने बहुत काम किये है, अभी क्या कर रहे है?

जवाब – मेरी क्रेकडाउन 2 रिलीज हो चुकी है और अभी मैं एक धारावाहिक ‘न उम्र की सीमा हो’ में अभिनय कर रह हूँ. आगे कई वेव शो है, जो रिलीज पर है.

सवाल – किसी भी कहानी में काम करते वक्त किस बात का अधिक ध्यान रखते है?

जवाब – इसमें मैं 3 बातों का ध्यान रखता हूँ, पहला पूरी कहानी में काम करने वाले पात्र, क्योंकि पूरी टीम की अच्छी परफोर्मेंस से ही कहानी अच्छी बनती है, एक अकेला कलाकार कुछ नहीं कर सकता, दूसरा मेरी भूमिका, जिसमे मेरा चरित्र कितना दमदार है. तीसरा पैसा होता है, जिससे मेरा घर चलता है, वह ठीक है या नहीं.

सवाल –  आजकल फिल्म , वेब सीरीज और धारावाहिक ये तीन माध्यम चल रहे है, आप किस माध्यम में अभिनय करना अधिक पसंद करते है?

जवाब – मजा उसी में अधिक आता है, जिसमे काम करने में आनंद हो, वह कभी टीवी, कभी वेबसीरीज तो कभी फिल्म, माध्यम कोई भी हो काम की गहनता को मैं अधिक महत्व देता हूँ. एक छोटी सी भूमिका भी कई बार मुझे बहुत क्रिएटिव संतुष्टि प्रदान करती है. वेब एक ऐसा माध्यम है, जहाँ राइटर, डायरेक्टर या एक्टर सभी को क्रिएटिव आज़ादी मिलती है और वह उसे खुलकर प्रयोग कर सकते है.

सवाल – आजकल के वेब शोज की कहानियां काफी एक जैसी ही है, ऐसे में दर्शकों का वेब शो देखने की उत्सुकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है, जैसा आजकल टीवी शोज के साथ हो रहा है, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

जवाब – एक जैसी अगर कहानी वेब में दिखाया जायेगा, तो उसका क्रेज कम होगा. ये देखा गया है कि अगर कुछ चीज चल जाती है, तो लोग उसी ही बार-बार करने लगते है, जबकि आर्ट फॉर्म में ऐसा करना बेवकूफी है, क्योंकि आर्ट में कोई फार्मूला नहीं होता. क्रिएटिविटी में इन्सान सोचता है और उसे जो पैसा मिलता है, उसमे वह उस कहानी को कहने की कोशिश करता है.

सवाल – आजकल लोग फिल्मों को हॉल में जाकर अधिक देखना पसंद नहीं करते, क्या वेब ने फिल्म की जगह ले ली है, या कोई और वजह है?

जवाब – कोविड और वेब ने फिफ्टी- फिफ्टी बाँट लिया है. लोगों को वेब पर अच्छी कंटेंट देखने को मिल जाती है, ऐसे में सिनेमा को खुद के गेम हाई करना पड़ेगा, क्योंकि 3 से 4 हज़ार खर्च कर परिवार के साथ फिल्म तभी देखी  जायेगी, जब उसका अनुभव अलग और बहुत बढ़िया हो. नार्मल पिक्चर अब नहीं चल सकती. एक दो को छोड़कर बड़े-बड़े स्टार्स की फिल्मे इस बार फ्लॉप हुई है. इसका अर्थ ये हुआ है कि जो चीज देखने लायक हो, उसे ही दर्शक देखना चाहते है.

 

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सवाल – अभिनय की प्रेरणा कहां से मिली?

जवाब – अभिनय का कीड़ा बचपन से ही था. स्कूल में रहते हुए कसौली में मैंने एक नाटक ‘करन द सन ऑफ़ सूर्य’ में करन की भूमिका निभाई थी. वहां से मुझे लगा कि मुझे इस फील्ड में जाना चाहिए. मैं कश्मीर का रहने वाला हूँ.

सवाल – कश्मीर से मुंबई आने में परिवार का सहयोग कितना रहा?

जवाब – मैं ग्रेजुएशन के फाइनल परीक्षा देने से पहले घरवालों को बताकर मुंबई चला आया था और परीक्षा के लिए वापस जाऊंगा, ऐसा सोचा था, लेकिन यही रह गया. एग्जाम नहीं दिया, लेकिन परिवार वालों ने जब मेरे छोटे-छोटे मॉडलिंग के काम देखे, तो वे भी खुश हो गए और कुछ नहीं बोले, बल्कि साथ दिया.

सवाल – मुंबई में पहला ब्रेक मिलने तक कितना संघर्ष रहा?

जवाब – पहला दो साल काफी मुश्किल भरा था, इसके बाद जब मैंने दो फिल्मे की और वह भी फ्लॉप हो गई तो मुश्किलें और बढ़ी. इससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और इस दौरान मैं कुछ काम कर अपनी जिंदगी गुजार रहा था. वित्तीय सहयोग परिवार से कभी नहीं माँगा, उन्हें पता भी नहीं चलने दिया, क्योंकि तब वे वापस लौटने को कहते. उन्हें लग रहा था कि यहाँ सब अच्छा चल रहा है. थिएटर में भी तब पैसे मिलते नहीं थे, मिले तो भी कम थे. एक्टिंग सीखने की संस्थाएं भी कम थी और जो थे भी उनकी फीस उस समय 20 हज़ार थी, जो मेरे लिए अधिक थी. मैं 20 साल पहले यहाँ आया था. संघर्ष करते-करते मुझे अचानक टीवी ऑफर हुआ और मैं कुछ न सोचते हुए उसे ज्वाइन कर लिया, क्योंकि मेरे महीने का हाउस रेंट निकलना था, लेकिन शो बहुत हिट हो गई और मेरी जिंदगी बदल गई.

सवाल – किस शो से आप घर-घर पहचाने गए?

जवाब – एकता कपूर की शो ‘कैसा ये प्यार है’ से मैं पोपुलर हुआ और पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. इसे मैं पेरेंट्स का योगदान मानता हूँ, क्योंकि उन्होंने हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया.

सवाल – आप कश्मीर के कसौली से है, क्या अपने गांव में किसी प्रकार की परिवर्तन की इच्छा रखते है?

जवाब – मैं अपने गांव के लोगों को इमानदारी, सच्चाई और हार्डवर्क की तरफ ले जाना चाहता हूँ, इसके लिए मैं उनकी जागरूकता पर अधिक काम करना चाहता हूँ.

सवाल – इतने सालों के कैरियर में कहानियों के कहने और लोगों के पसंद  कितनी बदली है, आपकी सोच क्या है?

जवाब – हाँ सिनेमा काफी बदला है, वेब की कहानियां अच्छी है, लेकिन टीवी में बदलाव अधिक नहीं आया है. टीवी में 20 साल में कंटेंट में बदलाव केवल 5 प्रतिशत हुई है. वजह को बताना मुश्किल है, क्योंकि चैनल्स की रिसर्च टीम तो यही कहती है कि दर्शकों की पसंद यही है, जो वे दे रहे है.

सवाल – क्या एक्टिंग के अलावा कुछ करने की इच्छा रखते है?

जवाब – एक्टिंग के अलावा मैं डायरेक्ट और प्रोड्यूस करना चाहता हूँ, कभी-कभी कुछ फिक्शन कहानियाँ लिख भी लेता हूँ.

सवाल – क्या आप अपनी जर्नी से संतुस्ट है? कोई रिग्रेट है क्या?

जवाब – मैं 40 साल से ऊपर का हूँ और अबतक ये जान गया हूँ कि जीवन में रिग्रेट कुछ होता ही नहीं है. बहुत सारी चीजें जिंदगी में हो जाती है, उससे मैने बहुत कुछ सीखा है और खुद में बदलाव भी लाया हूँ.

सवाल – क्या आप न्यूकमर को कोई मेसेज देना चाहते है?

जवाब – मेसेज कोई नहीं सुनता, जब तक व्यक्ति उस परिस्थिति में नहीं पड़ता उसे किसी प्रकार की सीख समझ में नहीं आती. काम मांगना गलत नहीं, लेकिन किसी को जीवन का सबकुछ समझ लेना, उसके आगे गिडगिडाना ये कभी न करें. खुद पर भरोषा रखे, अपनी कमियों को समझे, मेहनत करें.  अच्छा काम करने की कोशिश करें और धीरज बनाए रखे, लगन से काम अवश्य मिलता है.

सवाल – आपको सुपर पॉवर मिलने पर क्या करना चाहते है?

जवाब – सुपर पॉवर मिलने पर मैं सामने वाला व्यक्ति गलत है या सही, इसे समझना चाहता हूँ.

कासनी का फूल: भाग 2- अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

उस रात अभिषेक बेकाबू हो गया. चित्रा की न… न… करती गुहार को अनसुना कर अपनी पिपासा मिटाने को आतुर हो गया. भय से नीले पड़े चित्रा के अधरों को उस ने अपने दहकते होंठों से सिल दिया. अपनी बलिष्ठ भुजाओं में कांपती देह दबोच ली. एक शिकारी पक्षी निरीह जीव को पंजों में दबाए था. अभिषेक के निढाल हो कर लुढ़कने के बाद चित्रा सिसकियां ले कर लगातार आंसू बहाती रही, लेकिन उस के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं था.

सिलसिला चल निकला. चित्रा अपने को अभिषेक द्वारा रौंदे जाने से पहले मन पक्का कर लेती, किसी तरह वे 10-15 मिनट बीतते और वह चैन की सांस लेती. धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई. अब अभिषेक के छूने पर वह चुपचाप पड़ी रहती. न कोई पीड़ा, न दुख, न उत्साह, न रोमांच. प्रेम में उत्तेजित होना क्या होता है, यह तो वह कभी जान ही नहीं पाई.

चित्रा का शुष्क व ठंडा व्यवहार अभिषेक को रास नहीं आ रहा था, लेकिन पति के खोल से बाहर निकल उस ने एक मित्र या प्रेमी के समान कभी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि चित्रा के ऐसे व्यवहार का कारण आखिर है क्या? चित्रा को उस ने न कभी प्यार से सहलाया और न गले लगा कर आंसू पोंछे. चित्रा बेचैन और उदास रहने लगी थी. चेहरा मलिन, क्लांत हो गया था.

‘‘कल सुबह जल्दी उठ कर नहाधो लेना. हमारा परिवार एक स्वामीजी का बहुत सम्मान करता है. वे कुछ. महीनों से विदेश गए हुए थे. कल ही लौटे हैं, सुबह उन का आशीर्वाद लेने चलेंगे,’’ उस रात सोने से पहले अभिषेक बोला.

‘‘साधु बाबा टाइप के हैं क्या स्वामीजी?’’ चित्रा अनिष्ट से आशंकित हो रही थी.

‘‘तो और कैसे होते हैं स्वामीजी? फालतू बातें ही करनी आती हैं तुम्हें.’’

‘‘मुझे ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं है. उन का आशीर्वाद तो दूर मैं तो पास भी नहीं फटकना चाहूंगी.’’

अभिषेक उठ कर बैठ गया. क्रोध में बढ़बढ़ाते हुए बोला, ‘‘तुम कैसी औरत हो? बिस्तर पर पति का साथ पसंद नहीं, बिन वजह रोज की यही समस्या. समाधान चाहा सिर्फ स्वामीजी के आशीर्वाद रूप में तो वह भी मंजूर नहीं. मैं तो पछता रहा हूं तुम से शादी कर के.’’

‘‘सौरी,’’ चित्रा रुंधे गले से बोली, ‘‘ऐसे लोगों से मुझे डर लगता है. एक बार जब मैं छोटी थी तो…’’

‘‘रहने दो बस. अब मेरी बात टालने के लिए बना लो कोई नई कहानी. मुझे परेशान देख कर बहुत मजा आता है न तुम्हें?’’ अभिषेक ने चित्रा को अपनी पूरी बात कहने का मौका ही नहीं दिया.

करवटें बदलती अगले दिन की भयावह कल्पनाओं में डूबी चित्रा रातभर सो न सकी. सुबह सिर भारी था. अभिषेक से चित्रा ने स्वामीजी के पास जाने में असमर्थता जताई तो उस ने घर वालों के साथ मिल कर आसमान सिर पर उठा लिया. चित्रा के सामने शर्त रखी गई कि उसे न केवल आज बल्कि माह में एक दिन स्वामीजी की सेवा में व्यतीत करना होगा वरना इस घर में उस के लिए कोई जगह नहीं होगी.

चित्रा के क्षमा मांगते हुए असहमति दर्शाने का कोई लाभ नहीं हुआ. हाथ जोड़ कर वह गिड़गिड़ाई भी, लेकिन कोई उस की बात सुनने को तैयार न था. अभिषेक उसी दिन चित्रा को यह कहते हुए मायके छोड़ आया कि स्वामीजी का अपमान वे लोग किसी कीमत पर नहीं सह सकते.

कुछ दिन यों ही बीत गए. चित्रा ने कई बार कौल कर बात करने का प्रयास किया, लेकिन अभिषेक ने फोन अटैंड नहीं किया. चित्रा के एक प्यार भरे मैसेज के जवाब में अभिषेक ने स्वामीजी से जुड़ने की शर्त को दोहरा दिया. अंतत: चित्रा को तलाक का रास्ता चुनना पड़ा. अभिषेक से रिश्ता रखने का अर्थ स्वामीजी से भी संबंध जोड़ना था.

‘‘जंगली जानवरों से भी डरावने चेहरे लिए चंदनदास जैसे ही किसी स्वामीजी के पास जाने के बारे में सोचते हुए भी मुझे डर लगता है,’’ अपनी मां से उस ने कहा था जब वे तलाश को ले कर फिर से सोचने की बात कह रही थीं.

‘‘तू बच्ची थी तब. मंत्र याद करने से बचना चाहती थी. अब तो सच स्वीकार कर ले चित्रा,’’ मां को बेटी से ज्यादा अभी भी चंदनदास पर भरोसा था.

‘‘नहीं आप को जो बताया था वही सच है कि चंदनदास ने अंधेरे में… मैं अब उस बारे में बात भी नहीं करना चाहती,’’ चित्रा के स्वर में घृणा उतर आई थी.

अभिषेक और चित्रा का वैवाहिक जीवन तलाक की भेंट चढ़ गया. जब चित्रा का परिवार ही उस का दुख नहीं समझ सका तो किसी से क्या आशा करती? मन पर बोझ लिए सब के बीच रहने से अच्छा विकल्प उसे दूर चले जाना ही लगा. कई होटलों में नौकरी के लिए अप्लाई किया. हिमाचल प्रदेश के छोटे से नगर कसौली से बुलावा आया तो उस ने तनिक देर नहीं की.

पहाड़ों पर बिखरे सौंदर्य को निहारते, आत्मसात करते हुए चित्रा अपने दुख को कम करने का प्रयास करती. उस दिन भी चाय ले कर बालकनी में खड़ा हो ढलती सांझ के झुटपुटे में खो रहे पेड़पौधों और रंगबिरंगे फूलों से कह रही थी कि अंधेरा हमेशा नहीं रहता, कल फिर धूप खिलेगी, फिर से रूपसौंदर्य दिखने लगेगा सब का. यही तो कहता था उसे ईशान जब कभी वह निराश होती थी. होटल मैनेजमैंट करते हुए ईशान के रूप में कितना बेहतरीन दोस्त पाया था उस ने. कोई डिश बनाते हुए चित्रा पीछे रह जाती तो ईशान चख कर स्वाद की प्रशंसा कर हौसला बढ़ाता.

 

मन के तहखाने-भाग 1: अवनी के साथ ससुराल वाले गलत व्यवहार क्यों करते थे

चाची बरामदा पार करने लगीं तो आंगन में गेहूं साफ करती अवनी पर दृष्टि ठहर गई. कमाल है यह लड़की भी. धूप में, पानी में कहीं भी बैठा दो, चुपचाप बैठी काम पूरा करती रहेगी.

सुबह उस के हाथों से गिर कर चायदानी टूट गई थी. उसी के दंडस्वरूप चाची ने अवनी को धूप में गेहूं बीनने का आदेश दिया था.

सुबह की धूप अब धीरेधीरे पूरे आंगन को अपनी बांहों में घेरती जा रही थी. चाची ने देखा, अवनी का गोरा रंग धूप की हलकी तपिश में और भी चमक रहा था. मन ने कहा, ‘श्रावणी, तू इतनी निर्दयी क्यों बन गई?’ पर उत्तर उस के पास नहीं था.

जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी, तब जेठानी मानसी के रूपरंग को देख धक रह गई थी. वह उन के आसपास भी कहीं नहीं ठहरती थी. मानसी जीजी ने प्यार से उसे बांहों में भर लिया था और एकांत होते ही बोली थीं, ‘‘हमारी कोई छोटी बहन नहीं है, बस 2 भाई हैं, तुम हमारी बहन बनोगी न?’’

वह मुसकरा कर आश्वस्त हो गई थी. जिसे अपने रूप का तनिक भी गर्व नहीं उस से भला कैसा डरना? पर सब कुछ वैसा ही नहीं होता है, जैसा व्यक्ति सोचता है. प्राय: किसी भी काम से पहले सास का स्वर उसे आहत कर देता, ‘‘श्रावणी बेटा, जरा मानसी से भी पूछ लेना कि भरवां टिंडे कैसे बनेंगे. पूरब को अभी तक अपनी भाभी के हाथों के स्वाद की आदत पड़ी है.’’

उस का तनमन सुलग उठता. कैसे प्यार भरी चाशनी में लपेट कर सास ने उसे जता दिया था कि अभी तुम रसोई में कच्ची हो.

श्रावणी धीमे कदमों से आंगन में पहुंची और उसे झंझोड़ कर बोली, ‘‘इतनी देर में बस आधा कनस्तर गेहूं बीना है, चल उठ, रसोई में जा कर नाश्ता कर ले.’’

अवनी चुपचाप उठ गई. श्रावणी जब मन ही मन दयावान होती, तब भी क्रोध से ही उसे परेशानी से नजात दिलाती. धूप की ताप से परेशान अवनी को देख कर मन में तो दया उपज रही थी, पर दिखाने से तो मन के तहखाने का सच सामने आ जाता, अत: नाश्ते के बहाने उसे वहां से उठा दिया था.

अवनी ने स्टील की छोटी प्लेट हटा कर देखा, 2 रोटियों पर आलू को कुछ टुकड़े रखे थे. वह चुपचाप खाने लगी. छुट्टी का दिन था, वह परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ना चाहती थी, पर अब रसोई के काम का समय हो गया था. उस की आंखें नम होने लगीं.

उसी समय पानी लेने विविधा वहां आ गई. उसे खाते देख कर बोली, ‘‘यह क्या अवनी दीदी, आप रोटी क्यों खा रही हैं? हम ने तो ब्रैडपैटीज खाई हैं.’’

अवनी के मन में हलचल मची पर संभालने की आदत पड़ चुकी थी उसे. बोली, ‘‘आज हीरा काम पर नहीं आया है तो बासी रोटी कौन खाता. इस महंगाई में अनाज फेंकना नहीं चाहिए.’’

विविधा ने 2-3 डोंगे खोल डाले और ब्रैडपैटीज उस की प्लेट में रखते हुए बोली, ‘‘पता है, आप बहुत अच्छी गृहस्थन हैं पर चख कर तो देखिए.’’

वह पानी ले कर मटकती हुई बाहर चली गई. अवनी की आंखें सदा ऐसे प्रसंगों पर नम हो जाती हैं. विविधा उस से 7 वर्ष छोटी है. जब पूरब चाचा का विवाह हुआ तब अवनी 5 वर्ष की थी. नई चाची को हुलस हुलस कर देखती. वे टौफी देतीं तो झट उन की गोद में बैठ जाती. ‘‘चाची आप बहुत अच्छी हैं,’’ वह कहती.

श्रावणी तब उसे बहुत प्यार करती थी. 2 वर्ष पूरे होतेहोते ही विविधा आ गई तो अवनी फूली नहीं समाई. स्कूल से आते ही उस के साथ खेलने लगती. कभीकभी चाची उसे टोकतीं, ‘‘देख संभल कर, गिरा मत देना,’’ मां सामने होतीं तो आगे बढ़ कर उस का हाथ विविधा की गरदन के नीचे लगा कर कहतीं, ‘‘देख बेटा, छोटे बच्चों को ऐसे संभाल कर गोद में उठाते हैं.’’

अवनी को जब भी अतीत याद आता वह उदास हो जाती. दादी जब बहुत बीमार थीं,

तब वह उन से कहती, ‘‘दादी, आप कब ठीक हो जाएंगी?’’

‘‘पता नहीं रानी, ठीक हो जाऊंगी या जाने का समय आ गया है,’’ दादी खांसते हुए कहतीं.

‘‘कहां जाना है दादी?’’ वह भोलेपन से पूछती तो दादी की आंखों के कोर भीग जाते.

‘‘तुम्हारे दादाजी के पास,’’ दादी दुख से शून्य में देखते हुए बोलतीं. तब तक वह इतनी बड़ी हो चुकी थी कि जन्म और मृत्यु का अर्थ समझ सकती थी. उसे पता था कि दादाजी अब इस संसार में नहीं हैं.

 

नाश्ता कर के उस ने प्लेट धो कर रख दी. तभी चाची आ गईं. बोलीं, ‘‘अवनी, जितना आटा है, गूंध कर रोटी बना लेना. दाल हम ने बना दी है. गोभीआलू भी बना लेना.’’

‘‘जी चाची, सब हो जाएगा,’’ उस ने सादगी से कहा.

चाची कमरे में पहुंचीं तो विविधा ने घेर लिया, ‘‘मम्मी, आप ऐसा क्यों करती हैं?’’ उस ने कहा.

‘‘क्या कैसा करती हूं?’’ श्रावणी ने पसीना पोंछते हुए पूछा.

‘‘दीदी को बासी रोटी क्यों दी?’’

श्रावणी के चेहरे पर हलकी सी घबराहट उभर आई. वह विविधा के समक्ष लज्जित होना नहीं चाहती थी. अपने आप को संभालती हुई बोली, ‘‘कल को उस का विवाह होगा और वहां बासी भी खाना पड़ा तो उसे दुख तो नहीं होगा.’’

‘‘यह तो कोई बात नहीं हुई. ऐसे घर में क्यों करोगी उन की शादी. उन के लिए खूब अच्छा घर खोजना,’’ विविधा ने कहा तो वह खीजते हुए बोली, ‘‘इतना दहेज कहां से लाएंगे.’’

विविधा जातेजाते ठिठक कर बोली, ‘‘इतनी सुंदर हैं दीदी, उन्हें तो कोई बिना दहेज के भी ब्याह लेगा.’’

श्रावणी के मन पर किसी ने जैसे पत्थर मार दिया. वह जब से ब्याह कर आई, यही तो सुनती रही, ‘बड़ी बहू बहुत सुंदर है. उस की बेटी भी मां पर ही गई है.’ कभी पड़ोसिनें कहतीं, कभी रिश्तेदार. वह डूबते मन से सुनती रहतीं.

पूरब अकसर कहता रहता, ‘‘भाभी बहुत स्वादिष्ठ खाना बनाती हैं. उन के हाथों में तो जादू है जैसे.’’

मांजी तो खाने की मेज पर बैठते ही पूछतीं, ‘‘मानसी बेटा, आज क्या बनाया?’’

हालांकि यह सब जान कर नहीं होता था पर ये अप्रत्यक्ष सी टिप्पणियां उस का सर्वांग आहत कर जातीं. वह अपमानित सा महसूस करती स्वयं को. साड़ी वाला साडि़यां ले कर प्राय: घर पर ही आया करता था. मांजी स्वयं ही साडि़यां चुनतीं और कहतीं, ‘‘ये कत्थई रंग तो अपनी मानसी पर खूब खिलेगा. श्रावणी बेटा, तुम पर यह हलका नीला रंग फबेगा.’’

वह उदास हो जाती. लगता यह सीधा प्रहार है उस के साधारण रूपरंग पर. मन के अंदर ईर्ष्या की ज्वाला सी धधकने लगती.

जब एक दिन कार दुर्घटना में जेठ जेठानी की अचानक मृत्यु हो गई तो पूरे घर पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी. कुछ वर्ष पहले ही मांजी की मृत्यु भी हो चुकी थी. लाख ईर्ष्या थी पर उस हादसे ने उसे किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया था. वह बिलखबिलख कर रो पड़ी थी.

 

कबूतरों का घर: क्या जूही और कृष्णा का प्यार पूरा हो पाया

चांद की धुंधली रोशनी में सभी एकदूसरे की सांसें महसूस करने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें तो यह भरोसा भी नहीं हो रहा था कि वे जीवित बचे हैं. पर ऊपर नीला आकाश देख कर और पैरों के नीचे जमीन का एहसास कर उन्हें लगा था कि वह बाढ़ के प्रकोप से बच गए. बाढ़ में कौन बह कर कहां गया, कौन बचा, किसी को कुछ पता नहीं था.

इन बचने वालों में कुछ ऐसे भी थे जिन के अपने देखते ही देखते उन के सामने जल में समाधि ले चुके थे और बचे लोग अब विवश थे हर दुख झेलने के लिए.

‘‘जाने और कितना बरसेगा बादल?’’ किसी ने दुख से कहा था.

‘‘यह कहो कि जाने कब पानी उतरेगा और हम वापस घर लौटेंगे,’’ यह दूसरी आवाज सब को सांत्वना दे रही थी.

‘‘घर भी बचा होगा कि नहीं, कौन जाने.’’ तीसरे ने कहा था.

इस समय उस टापू पर जितने भी लोग थे वे सभी अपने बच जाने को किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे थे और सभी आपस में एकदूसरे के साथ नई पहचान बनाने की चेष्टा कर रहे थे. अपना भय और दुख दूर करने के लिए यह उन सभी के लिए जरूरी भी था.

चांद बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रहा था जिस से वहां गहन अंधकार छा जाता था.

तानी ने ठंड से बचने के लिए थोड़ी लकडि़यां और पत्तियां शाम को ही जमा कर ली थीं. उस ने सोचा आग जल जाए तो रोशनी हो जाएगी और ठंड भी कम लगेगी. अत: उस ने अपने साथ बैठे हुए एक बुजुर्ग से माचिस के लिए पूछा तो वह जेब टटोलता हुआ बोला, ‘‘है तो, पर गीली हो गई है.’’

तानी ने अफसोस जाहिर करने के लिए लंबी सांस भर ली और कुछ सोचता हुआ इधरउधर देखने लगा. उस वृद्ध ने माचिस निकाल कर उस की ओर विवशता से देखा और बोला, ‘‘कच्चा घर था न हमारा. घुटनों तक पानी भर गया तो भागे और बेटे को कहा, जल्दी चल, पर वह….’’

तानी एक पत्थर उठा कर उस बुजुर्ग के पास आ गया था. वृद्ध ने एक आह भर कर कहना शुरू किया, ‘‘मुझे बेटे ने कहा कि आप चलो, मैं भी आता हूं. सामान उठाने लगा था, जाने कहां होगा, होगा भी कि बह गया होगा.’’

इतनी देर में तानी ने आग जलाने का काम कर दिया था और अब लकडि़यों से धुआं निकलने लगा था.

‘‘लकडि़यां गीली हैं, देर से जलेंगी,’’ तानी ने कहा.

कृष्णा थोड़ी दूर पर बैठा निर्विकार भाव से यह सब देख रहा था. अंधेरे में उसे बस परछाइयां दिख रही थीं और किसी भी आहट को महसूस किया जा सकता था. लेकिन उस के उदास मन में किसी तरह की कोई आहट नहीं थी.

अपनी आंखों के सामने उस ने मातापिता और बहन को जलमग्न होते देखा था पर जाने कैसे वह अकेला बच कर इस किनारे आ लगा था. पर अपने बचने की उसे कोई खुशी नहीं थी क्योंकि बारबार उसे यह बात सता रही थी कि अब इस भरे संसार में वह अकेला है और अकेला वह कैसे रहेगा.

लकडि़यों के ढेर से उठते धुएं के बीच आग की लपट उठती दिखाई दी. कृष्णा ने उधर देखा, एक युवती वहां बैठी अपने आंचल से उस अलाव को हवा दे रही थी. हर बार जब आग की लपट उठती तो उस युवती का चेहरा उसे दिखाई दे जाता था क्योंकि युवती के नाक की लौंग चमक उठती थी.

कृष्णास्वामी ने एक बार जो उस युवती को देखा तो न चाहते हुए भी उधर देखने से खुद को रोक नहीं पाया था. अनायास ही उस के मन में आया कि शायद किसी अच्छे घर की बेटी है. पता नहीं इस का कौनकौन बचा होगा. उस युवती के अथक प्रयास से अचानक धुएं को भेद कर अब आग की मोटीमोटी लपटें खूब ऊंची उठने लगीं और उन लपटों से निकली रोशनी किसी हद तक अंधेरे को भेदने में सक्षम हो गई थी. भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई.

कृष्णा के पास बैठे व्यक्ति ने कहा, ‘‘मौत के पास आने के अनेक बहाने होते हैं. लेकिन उसे रोकने का एक भी बहाना इनसान के पास नहीं होता. जवान बेटेबहू थे हमारे, देखते ही देखते तेज धार में दोनों ही बह गए,’’ कृष्णा उस अधेड़ व्यक्ति की आपबीती सुन कर द्रवित हो उठा था. आंच और तेज हो गई थी.

‘‘थोड़े आलू होते तो इसी अलाव में भुन जाते. बच्चों के पेट में कुछ पड़ जाता,’’ एक कमजोर सी महिला ने कहा, उन्हें भी भूख की ललक उठी थी. इस उम्र में भूखा रहा भी तो नहीं जाता है.

आग जब अच्छी तरह से जलने लगी तो वह युवती उस जगह से उठ कर कुछ दूरी पर जा बैठी थी. कृष्णा भी थोड़ी दूरी बना कर वहीं जा कर बैठ गया. कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोला, ‘‘आप ने बहुत अच्छी तरह अलाव जला दिया है वरना अंधेरे में सब घबरा रहे थे.’’

‘‘जी,’’ युवती ने धीरे से जवाब में कहा.

‘‘मैं कृष्णास्वामी, डाक्टरी पढ़ रहा हूं. मेरा पूरा परिवार बाढ़ में बह गया और मैं जाने क्यों अकेला बच गया,’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद कृष्णा ने फिर युवती से पूछा, ‘‘आप के साथ में कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सब समाप्त हो गए,’’ और इतना कहने के साथ वह हुलस कर रो पड़ी.

‘‘धीरज रखिए, सब का दुख यहां एक जैसा ही है,’’ और उस के साथ वह अपने आप को भी सांत्वना दे रहा था.

अलाव की रोशनी अब धीमी पड़ गई थी. अपनों से बिछड़े सैकड़ों लोग अब वहां एक नया परिवार बना रहे थे. एक अनोखा भाईचारा, सौहार्द और त्याग की मिसाल स्थापित कर रहे थे.

अगले दिन दोपहर तक एक हेलीकाप्टर ऊपर मंडराने लगा तो सब खड़े हो कर हाथ हिलाने लगे. बहुत जल्दी खाने के पैकेट उस टीले पर हेलीकाप्टर से गिरना शुरू हो गए. जिस के हाथ जो लग रहा था वह उठा रहा था. उस समय सब एकदूसरे को भूल गए थे पर हेलीकाप्टर के जाते ही सब एकदूसरे को देखने लगे.

अफरातफरी में कुछ लोग पैकेट पाने से चूक गए थे तो कुछ के हाथ में एक की जगह 2 पैकेट थे. जब सब ने अपना खाना खोला तो जिन्हें पैकेट नहीं मिला था उन्हें भी जा कर दिया.

कृष्णा उस युवती के नजदीक जा कर बैठ गया. अपना पैकेट खोलते हुए बोला, ‘‘आप को पैकेट मिला या नहीं?’’

‘‘मिला है,’’ वह धीरे से बोली.

कृष्णा ने आलूपूरी का कौर बनाते हुए कहा, ‘‘मुझे पता है कि आप का मन खाने को नहीं होगा पर यहां कब तक रहना पड़े कौन जाने?’’ और इसी के साथ उस ने पहला निवाला उस युवती की ओर बढ़ा दिया.

युवती की आंखें छलछला आईं. धीरे से बोली, ‘‘उस दिन मेरी बरात आने वाली थी. सब शादी में शरीक होने के लिए आए हुए थे. फिर देखते ही देखते घर पानी से भर गया…’’

युवती की बातें सुन कर कृष्णा का हाथ रुक गया. अपना पैकेट समेटते हुए बोला, ‘‘कुछ पता चला कि वे लोग कैसे हैं?’’

युवती ने कठिनाई से अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘कोई नहीं बचा है. बचे भी होंगे तो जाने कौन तरफ हों. पता नहीं मैं कैसे पानी के बहाव के साथ बहती हुई इस टीले के पास पहुंच गई.’’

कृष्णा ने गहरी सांस भरी और बोला, ‘‘मेरे साथ भी तो यही हुआ है. जाने कैसे अब अकेला रहूंगा इतनी बड़ी दुनिया में. एकदम अकेला… ’’ इतना कह कर वह भी रोंआसा हो उठा.

दोनों के दर्द की गली में कुछ देर खामोशी पसरी रही. अचानक युवती ने कहा, ‘‘आप खा लीजिए.’’

युवती ने अपना पैकट भी खोला और पहला निवाला बनाते हुए बोली, ‘‘मेरा नाम जूही सरकार है.’’

कृष्णा आंसू पोंछ कर हंस दिया. दोनों भोजन करने लगे. सैकड़ों की भीड़ अपना धर्म, जाति भूल कर एक दूसरे को पूछते जा रहे थे और साथसाथ खा भी रहे थे.

खातेखाते जूही बोली, ‘‘कृष्णा, जिस तरह मुसीबत में हम एक हो जाते हैं वैसे ही बाकी समय क्यों नहीं एक हो कर रह पाते हैं?’’

कृष्णा ने गहरी सांस ली और बोला, ‘‘यही तो इनसान की विडंबना है.’’

सेना के जवान 2 दिन बाद आ कर जब उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले कर चले तो कृष्णा ने जूही की ओर बहुत ही अपनत्व भरी नजरों से देखा. वह भी कृष्णा से मिलने उस के पास आ गई और फिर जाते हुए बोली, ‘‘शायद हम फिर मिलें.’’

रात होने से पहले सब उस स्थान पर पहुंच गए जहां हजारों लोग छोटेछोटे तंबुओं में पहले से ही पहुंचे हुए थे. उस खुले मैदान में जहांजहां भी नजर जाती थी बस, रोतेबिलखते लोग अपनों से बिछुड़ने के दुख में डूबे दिखाई देते थे. धीरेधीरे भीड़ एक के बाद एक कर उन तंबुओं में गई. पानी ने बहा कर कृष्णा और जूही  को एक टापू पर फेंका था लेकिन सरकारी व्यवस्था ने दोनों को 2 अलगअलग तंबुओं में फेंक दिया.

मीलों दायरे में बसे उस तंबुओं के शहर में किसी को पता नहीं कि कौन कहां से आया है. सब एकदूसरे को अजनबी की तरह देखते लेकिन सभी की तकलीफ को बांटने के लिए सब तैयार रहते.

सरकारी सहायता के नाम पर वहां जो कुछ हो रहा था और मिल रहा था वह उतनी बड़ी भीड़ के लिए पर्याप्त नहीं था. कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी मदद करने के काम में जुटी थीं.

वहां रहने वाले पीडि़तों के जीवन में अभाव केवल खानेकपड़े का ही नहीं बल्कि अपनों के साथ का अभाव भी था. उन्हें देख कर लगता था, सब सांसें ले रहे हैं, बस.

उस शरणार्थी कैंप में महामारी से बचाव के लिए दवाइयों के बांटे जाने का काम शुरू हो गया था. कृष्णा ने आग्रह कर के इस काम में सहायता करने का प्रस्ताव रखा तो सब ने मान लिया क्योंकि वह मेडिकल का छात्र था और दवाइयों के बारे में कुछकुछ जानता था. दवाइयां ले कर वह कैंपकैंप घूमने लगा. दूसरे दिन कृष्णा जिस हिस्से में दवा देने पहुंचा वहां जूही को देख कर प्रसन्नता से खिल उठा. जूही कुछ बच्चों को मैदान में बैठा कर पढ़ा रही थी. गीली जमीन को उस ने ब्लैकबोर्ड बना लिया था. पहले शब्द लिखती थी फिर बच्चों को उस के बारे में समझाती थी. कृष्णा को देखा तो वह भी खुश हो कर खड़ी हो गई.

‘‘इधर कैसे आना हुआ?’’

‘‘अरे इनसान हूं तो दूसरों की सेवा करना भी तो हमारा धर्म है. ऐसे समय में मेहमान बन कर क्यों बैठे रहें,’’ यह कहते हुए कृष्णा ने जूही को अपना बैग दिखाया, ‘‘यह देखो, सेवा करने का अवसर हाथ लगा तो घूम रहा हूं,’’ फिर जूही की ओर देख कर बोला, ‘‘आप ने भी अच्छा काम खोज लिया है.’’

कृष्णा की बातें सुन कर जूही हंस दी. फिर कहने लगी, ‘‘ये बच्चे स्कूल जाते थे. मुसीबत की मार से बचे हैं. सोचा कि घर वापस जाने तक बहुत कुछ भूल जाएंगे. मेरा भी मन नहीं लगता था तो इन्हें ले कर पढ़नेपढ़ाने बैठ गई. किताबकापी के लिए संस्था वालों से कहा है.’’

दोनों ने एकदूसरे की इस भावना का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आखिर हम कुछ कर पाने में समर्थ हैं तो क्यों हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें?’’

अब धीरेधीरे दोनों रोज मिलने लगे. जैसेजैसे समय बीत रहा था बहुत सारे लोग बीमार हो रहे थे. दोनों मिल कर उन की देखभाल करने लगे और उन का आशीर्वाद लेने लगे.

कृष्णा भावुक हो कर बोला, ‘‘जूही, इन की सेवा कर के लगता है कि हम ने अपने मातापिता पा लिए हैं.’’

एकसाथ रह कर दूसरों की सेवा करते करते दोनों इतने करीब आ गए कि उन्हें लगा कि अब एकदूसरे का साथ उन के लिए बेहद जरूरी है और वह हर पल साथ रहना चाहते हैं. जिन बुजुर्गों की वे सेवा करते थे उन की जुबान पर भी यह आशीर्वाद आने लगा था, ‘‘जुगजुग जिओ बच्चों, तुम दोनों की जोड़ी हमेशा बनी रहे.’’

एक दिन कृष्णा ने साहस कर के जूही से पूछ ही लिया, ‘‘जूही, अगर बिना बराती के मैं अकेला दूल्हा बन कर आऊं तो तुम मुझे अपना लोगी?’’

जूही का दिल धड़क उठा. वह भी तो इस घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी. नजरें झुका कर बोली, ‘‘अकेले क्यों आओगे, यहां कितने अपने हैं जो बराती बन जाएंगे.’’

कृष्णा की आंखें खुशी से चमक उठी. अपने विवाह का कार्यक्रम तय करते हुए उस ने अगले दिन कहा, ‘‘पता नहीं जूही, अपने घरों में हमारा कब जाना हो पाए. तबतक इसी तंबू में हमें घर बसाना पडे़गा.’’

जूही ने प्यार से कृष्णा को देखा और बोली, ‘‘तुम ने कभी कबूतरों को अपने लिए घोसला बनाते देखा है?’’

कृष्णा ने उस के इस सवाल पर अपनी अज्ञानता जाहिर की तो वह हंस कर बताने लगी, ‘‘कृष्णा, कबूतर केवल अंडा देने के लिए घोसला बनाते हैं, वरना तो खुद किसी दरवाजे, खिड़की या झरोखे की पतली सी मुंडेर पर रात को बसेरा लेते हैं. हमारे पास तो एक पूरा तंबू है.’’

कृष्णा ने मुसकरा कर उस के गाल पर पहली बार हल्की सी चिकोटी भरी. उन दोनों के घूमने से पहले ही कुछ आवाजों ने उन्हें घेर लिया था.

‘‘कबूतरों के इन घरों में बरातियों की कमी नहीं है. तुम तो बस दावत की तैयारी कर लो, बराती हाजिर हो जाएंगे.’’

उन दोनों को एक अलग सुख की अनुभूति होने लगी. लगा, मातापिता, भाईबहन, सब की प्रसन्नता के फूल जैसे इन लोगों के लिए आशीर्वाद में झड़ रहे हैं.

बेटी के जन्म के बाद स्ट्रैच मार्क्स आ गए हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

बेटी के जन्म के बाद मेरे पेट पर स्ट्रैच मार्क्स के निशान पड़ गए हैं. बताएं उन्हें कैसे दूर करूं?

जवाब-

आप स्ट्रैच मार्क्स के निशानों पर वर्जिन कोकोनट औयल लगाएं, जो स्ट्रैच मार्क्स को कम करने में मदद करता है. यह औयल त्वचा के रंग की चमक बनाए रखने में भी सहायक होता है. इस के इस्तेमाल से त्वचा अधिक चमकदार, मुलायम नजर आने लगेगी. इस के अलावा किसी भी प्रकार के निशान के लिए जैसे कभीकभी हमें किसी चोट का निशान पड़ जाता है या फिर खरोंच के निशान हो जाते हैं, यह उन निशानों को भी मिटाने में फायदेमंद साबित होता है. हर रात चेहरे पर वर्जिन कोकोनट औयल को एक नाइट क्रीम के रूप में इस्तेमाल करें.

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स्‍ट्रेच मार्क्‍स शरीर पर पड़ी वह सफेद क्षीण रेखाएं होती हैं जो कि प्रेग्नेंसी के दौरान या फिर अचानक मोटे हो जाने पर पड़ जाती हैं. यह देखने में काफी भद्दा लगता है. ज्यादातर स्‍ट्रेच मार्क्‍स पेट, पीठ या जांघों पर पड़ता है. कई केसों में तो स्‍ट्रेच मार्क्‍स अपने आप ही गायब हो जाते हैं लेकिन ज्‍यादातर केसों में यह नहीं जाते. बाजार में कई तरह के स्‍ट्रेच मार्क्‍स रिमूवर क्रीम और लोशन उपलब्‍ध हैं लेकिन सभी की सभी असरदार हों यह जरुरी नहीं हैं. इन क्रीमों की वजह से शरीर पर साइड इफेक्‍ट भी हो जाते हैं. अच्‍छा होगा कि आप प्राकृतिक चीजों का इस्‍तेमाल कर इन्‍हें हल्‍का करें. आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ प्राकृतिक उपाय.

एलो वेरा

स्‍ट्रेच मार्क्‍स पर ताजा एलो वेरा का गूदा मसाज करने से त्‍वचा टोन होती है और इसमें शामिल एंजाइम खराब हो चुकी त्‍वचा को हटा कर दूसरी त्‍वचा को हाइड्रेट करता है.

Raksha Bandhan: फैमिली के लिए बनाएं दाल कचौड़ी विद आलू भाजी

फेस्टिव सीजन में अगर आप अपनी फैमिली को टेस्टी रेसिपी ट्राय करवाना चाहती हैं तो दाल कचौड़ी विद आलू भाजी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये बनाने में आसान है, जिसके चलते आप फेस्टिव सीजन में मेहमानों की वाहवाही पा सकती हैं.

सामग्री कचौड़ी की

200 ग्राम मैदा

– 2 बड़े चम्मच घी मोयन के लिए

– आटा गूंधने के लिए पर्याप्त कुनकुना पानी

– कचौडि़यां तलने के लिए रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

50 ग्राम धुली मूंग दाल

– 2 बड़े चम्मच बेसन

– 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

– 1 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

– 2 छोटे चम्मच बारीक कटी अदरक व हरीमिर्च

– चुटकीभर हींग पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– 2 बड़े चम्मच रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री आलूभाजी की

– 250 ग्राम उबले व हाथ से फोड़े आलू

– चुटकी भर हींग पाउडर

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– 1/2 कप फ्रैश टमाटर पिसे हुए

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1 छोटा चम्मच अदरक व हरीमिर्च पेस्ट

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

विधि कचौड़ी बनाने की

मैदे में गरम घी का मोयन व नमक डाल कर गूंध लें. आधा घंटा ढक कर रख दें. धुली मूंग दाल धो कर 1 कप पानी में 5 मिनट उबालें. दाल गल जानी चाहिए पर फूटनी नहीं चाहिए. पानी निथार लें. एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर के हींग पाउडर, अदरक व हरीमिर्च पेस्ट भूनें. फिर बेसन डाल कर 1 मिनट सौते करें. दाल व सभी मसाले डाल कर 3-4 मिनट तक मिक्सचर भून लें. भरावन तैयार है. मैदे की नीबू के आकार की लोइयां लें. थोड़ा थपथपा कर बड़ा करें. बीच में एक बड़ा चम्मच मिक्सचर भरें और बंद कर के हलका सा बेल दें ताकि कचौड़ी थोड़ी बड़ी हो जाएं. गरम तेल में धीमी आंच पर कचौड़ी बना लें. इन्हें 1-2 दिन पहले भी बना कर रखा जा सकता है. ओवन या एअरफ्रायर में गरम कर आलू की भाजी के साथ ब्रेकफास्ट में सर्व करें.

विधि आलू की भाजी की

एक प्रैशरपैन में तेल गरम कर के हींग व जीरे का तड़का लगाएं फिर टमाटर पेस्ट व अन्य सूखे मसाले डाल कर भूनें. जब मसाले भुन जाएं तब हाथ से फोड़े आलू डालें, साथ ही तरी के लिए 2 कप कुनकुना पानी भी डालें. 1 सीटी लगाएं या 5 मिनट खुले में पकाएं. धनिया पत्ती डाल कर सर्व करें.

तीज 2023: सफल शादी के राज, सूरत नहीं सीरत

लड़के की हाइट कितनी है? कम तो नहीं है. हमें तो अच्छी हाइट का लड़का चाहिए. रिश्ता आने के बाद सबसे पहले पूछा जाने वाला प्रश्न . आखिर हमारा समाज हमेशा ही ऐसा क्यों मानता है कि लड़के को  हमेशा ही लड़की से हाइट में लंबा होना चाहिए .अगर लड़का लंबा और लड़की उससे कम हाइट की हो  तब ही उनकी जोड़ी अच्छी क्यों लगती है? क्या इसके पीछे कोई ठोस कारण है या फिर यह महज़ हमारा  एक मानसिक विकार है.

ऐसा क्यों हैं ? क्या यह कोई सामाजिक ठप्पा है जो शादी के सर्टिफिकेट पर लगना ही चाहिए?

दोस्तों आजकल हमारे समाज में यह अजीब सा प्रचलन हो चला है कि हम अपने जीवन साथी को अपनी निगाह से ज्यादा दूसरों की निगाहों से देखना पसंद करते हैं. अगर दूसरे बोलते हैं कि आपका साथी अच्छा है तो आप खुश होते हैं और  अगर वही लोग आपके साथी में कमियाँ निकालते हैं तो हमें भी अपने साथी में हजारों कमियां नज़र आने लगती है. यह गलत है क्योंकि केवल आप ही अपने जीवनसाथी की आंतरिक सुंदरता को पहचानते हैं.

यदि आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो “लोग क्या कहेंगे” के बारे में बहुत सोचता है, तो मेरा विश्वास करो कि लोग हमेशा कुछ कहेंगे.हाइट तो सिर्फ संख्या है.अगर आप समाज और दूसरे लोगों की इतनी परवाह करेंगे और यह सोचेंगे की दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते है तो यकीन मानिए आप कभी खुश नहीं रह पाएंगे.यह सोच  आपको हमेशा परेशान करती रहेगी.

अगर आपके पार्टनर में कोई कमी है तो यकीन मानिए कि आप से ज्यादा उसे यह चीज परेशान करती है और अगर आप भी उस पर कमेंट करेंगे तो वह अपना आत्म विश्वास  खो देगा. कमेंट करने की जगह उसका सहारा बनिए. उसे महसूस कराइए कि उसमे कोई कमी नहीं है और वह आपके लिए एकदम परफेक्ट है.

आपको यह दिखावा करने की ज़रूरत नहीं है कि वह लंबा है.बिना किसी वजह उसकी इस कमी पर ध्यान न देने की कोशिश करें. यदि आप उसके दोस्तों या अन्य लोगों को उसकी ऊंचाई के बारे में मजाक करते हुए नोटिस करते हैं, तो आपको निश्चित रूप से कभी भी इसमें शामिल नहीं होना चाहिए. आपकी यह प्रतिक्रिया उसे बहुत बेहतर महसूस कराएगी. आपका साथी इस बात की थोड़ी परवाह कर सकता है कि दूसरे क्या सोचते हैं, लेकिन वह इस बात को ज्यादा तवज्जो देगा कि आप क्या सोचते हैं.उसके साथ ईमानदार रहें और  उसे समय- समय पर महसूस कराते रहें कि वो अभी भी आपके लिए आकर्षक हैं इससे उसे पता चल जाएगा कि आप उसे कितना चाहते हैं  और उसकी हाइट आपके लिए कोई मायने नहीं रखती. अगर आप उसकी इस एक कमी को नज़रंदाज़ करेंगे तो यकीन मानिये वो भी आपकी हजारों कमियों को नज़रंदाज़ करेगा. आप अपने जीवनसाथी से  दिल और आत्मा से प्यार करना सीखें क्योंकि वे ही कीमती  चीजें हैं बाकि तो सब दिखावा है.

मैं ये नहीं कहती की शादी के लिए आप अपने जीवनसाथी की शारीरिक विशेषताओं पर ध्यान न दें लेकिन शारीरिक विशेषताओं के साथ -साथ आंतरिक सुन्दरता भी बहुत जरूरी है.

हममें से ज्यादातर लोग रिश्तों में धोखा खाते है और अंत तक कभी भी सही व्यक्ति को नहीं पा पाते, क्योंकि हमारी पहली प्रमुखता ही रूप और कद काठी होती है हमें कभी लोगों के चरित्र और आत्मा की परवाह होती ही नहीं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए, अगर दिल या आत्मा खोखली है, तो किसी भी तरह का अच्छा लुक किसी को खूबसूरत नहीं बनाता . हमें लोगों को  उनकी शारीरिक बनावट पर निर्णय लेने के बजाय, उनकी आंतरिक सुंदरता को समझना महत्वपूर्ण है.

यदि आप अपने जीवन-साथी के रूप में सिर्फ उसके शारीरिक सौंदर्य की तलाश कर रहें है तो यकीन मानिये की आप अभी शादी करने के लिए पूरी तरह  परिपक्व नहीं हैं.

शादी दो दिलों और आत्माओं का मिलन है और एक दूसरे से जीवन भर प्यार करने का वादा है. आसमां में जोड़ियाँ वो सबकी बनाता है,जिसपे जिसका नाम लिखा वो उसे मिल जाता है.

Raksha Bandhan: ज्योति- सुमित और उसके दोस्तों ने कैसे निभाया प्यारा रिश्ता

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Raksha bandhan: फैस्टिव मेकअप टिप्स

बात मेकअप की हो या फेशियल की, अगर सही स्टैप्स फौलो न किए जाएं तो वह निखार नहीं आ पाता, जो आना चाहिए था. कई बार महिलाएं बिजी शैड्यूल होने के कारण पार्लर नहीं जा पातीं और घर पर ही क्लींजिंग या फेशियल करना शुरू कर देती हैं. लेकिन जानकारी के अभाव में गलत स्टैप्स अप्लाई कर के परिणाम अच्छा न आने पर सोचती हैं कि बैस्ट कंपनी का प्रोडक्ट यूज करा था फिर भी रिजल्ट अच्छा क्यों नहीं आया?

दरअसल, कमी प्रोडक्ट में नहीं, बल्कि आप द्वारा प्रोडक्ट पर लिखे इंस्ट्रक्शन को फौलो न करने और स्किन संबंधी कुछ चीजों को इग्नोर करने के कारण हुई है.

आप से इस तरह की मिस्टेक्स न हों, इस के लिए स्किन मिरैक्ल ला मैरिनियर (फ्रांस) के टैक्निकल स्किन ऐक्सपर्ट, गुलशन द्वारा बताई बातों को फौलो करना न भूलें.

स्किन पर कुछ भी अप्लाई करने से पहले अपनी स्किन का टाइप चैक कर लिया जाए जैसे:

– अगर आप की स्किन नौर्मल है, तो फेस सौफ्ट दिखने के साथसाथ उस पर औयल भी नजर नहीं आएगा.

– औयली स्किन की निशानी है कि आप की नाक, फोरहैड और चीक्स पर औयल साफ दिखेगा.

– ड्राई स्किन में स्किन को जितने औयल की जरूरत होती है वह नहीं मिल पाता, जिस से स्किन रूखीरूखी नजर आती है.

– कौंबिनेशन स्किन में औयल ‘टी जोन’ यानी नाक और फोरहैड पर जमा रहता है.

– सैंसिटिव स्किन यानी एकदम से स्किन का रैड हो जाना. ऐसी स्किन पर किसी भी प्रोडक्ट का इस्तेमाल बहुत सोचसमझ कर करना पड़ता है.

– जब आप को अपनी स्किन का टाइप पता चल जाए तो फिर उसी के हिसाब से क्लींजिंग या फेशियल करवाएं.

इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि फेशियल तभी अच्छा होगा जब क्लींजिंग सही होगी वरना रिजल्ट ठीक नहीं मिलेगा.

क्लींजिंग

क्लींजिंग हर फेस के लिए जरूरी है, क्योंकि चाहे घर हो या बाहर रोज हमारा संपर्क धूलमिट्टी से होता ही है. अत: क्लींजिंग द्वारा फेस पर न दिखने वाली गंदगी रिमूव होने से फेस शाइन करने लगता है. इस से स्किन के अंदर बाकी प्रोडक्ट्स को पहुंचाने में भी आसानी होती है.

क्लींजिंग क्रीम फेस के हिसाब से यूज करें. 10-15 मिनट तक फेस की क्लींजिंग कर के टिशू पेपर से फेस को साफ कर लें.

ऐक्सपर्ट के अनुसार, एएचए यानी अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड, जो डिफरैंट पील ऐसिड का कौंबिनेशन होता है, करने से पहले स्किन को तैयार किया जाता है और दूसरा उस का पीएच लैवल मैंटेन किया जाता है, जो क्लींजिंग के द्वारा ही संभव है.

एएचए का कार्य स्किन की ब्लौकेज को खत्म करना होता है. वैसे तो यह कई रूपों में मिल जाता है लेकिन सब से ज्यादा ग्लाइसोलिक ऐसिड में पाया जाता है. यह स्किन की ऊपरी परत पर काम कर के कोशिकाओं को हैल्दी बनाता है.

इसी तरह स्किन के पीएच लैवल का मतलब है पोटैंशियल औफ हाइड्रोजन. अगर आप की बौडी का पीएच लैवल 7 है, तो इस का मतलब है कि आप की स्किन बेसिक है. लेकिन अगर पीएच लैवल 5.5 से थोड़ा भी कम है, तो इस का मतलब है कि स्किन की स्थिति सही नहीं है.

स्किन के पीएच लैवल का सही होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह बौडी व स्किन में बैक्टीरिया को प्रवेश करने से रोकता है. आप को पीएच लैवल को नौर्मल लाने के लिए स्किन प्रौब्लम्स जैसे खुजली या ड्राई स्किन आदि समस्या को पहले कंट्रोल करना होगा. इस के लिए आप पीएच बैलेंस्ड स्किन केयर प्रोडक्ट्स का यूज करें और फेस को कुनकुने पानी से धोएं.

ऐंजाइम मास्क

क्लींजिंग के बाद दूसरा स्टैप है ऐंजाइम मास्क को फेस पर लगाना. इस का स्किन से डैड सैल्स को हटाने में अहम रोल होता है. इसे फेस पर 10 मिनट के लिए अप्लाई करें फिर हलकी मसाज कर के हटा लें.

ऐंजाइम मास्क लगाने की शुरुआत हमेशा फोरहैड से करनी चाहिए. फिर फेस पर लगाएं. लेकिन हटाते वक्त हमेशा उलटी प्रक्रिया यानी पहले फेस से और फिर फोरहैड से हटाएं. ऐंजाइम मास्क का इस्तेमाल सैंसिटिव स्किन पर भी किया जा सकता है.

अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड पीलिंग

मास्क हटाने के बाद अल्फा हाइड्रौक्सी ऐसिड से फेस की पीलिंग करें. यह प्रक्रिया स्किन के टैक्स्चर को इंपू्रव करने के साथसाथ उसे कोमल भी बनाती है.

शुरुआत हलके से करें यानी पहले एएचए का अनुपात 10% फिर 20% फिर 30% फिर 40% करें. इस से आप को स्किन को समझने का मौका मिलेगा.

इसे बनाने की प्रक्रिया

10% के लिए 3 ड्रौप पानी में 1 ड्रौप एएचए. 20% के लिए 2 ड्रौप पानी में 2 ड्रौप एएचए. फिर 30% के लिए 3 ड्रौप पानी में 3 ड्रौप एएचए.

सब से पहले टी जोन से शुरू करें. एएचए लगाने के 10-15 सैकंड के बाद यह देखना है कि स्किन पर कुछ महसूस हो रहा है या नहीं. इसे 3 मिनट से ज्यादा फेस पर नहीं रखना है.

एएचए का इस्तेमाल करने के बाद चेहरे को कोल्ड कंप्रैशन देना न भूलें. इस से चेहरे पर आई रैडनैस, सूजन वगैरह खत्म होती है. कोल्ड कंप्रैशन के लिए बर्फ का इस्तेमाल, टौवेल को ठंडे पानी में डुबो कर कुछ देर के लिए फेस पर रख दें. इस से चेहरे को ठंडक मिलती है.

स्क्रब

एएचए के बाद 3 मिनट के लिए फेस पर स्क्रब करें. स्क्रब करतेकरते स्टीम भी दें. इस का फायदा यह है कि रोमछिद्र ओपन होते हैं और डैड स्किन रिमूव होती है. फिर ड्राई टिशू से फेस को क्लीन कर लें. ध्यान रहे कि आंखों के ऊपर स्क्रब का इस्तेमाल न करें.

बीटा हाइड्रौक्सी ऐसिड

बीएचए यानी बीटा हाइड्रौक्सी ऐसिड. इस के कण थोड़े बड़े होते हैं. यह भी एएचए की तरह स्किन की ऊपरी परत पर काम करता है. इस का मुख्य कार्य डैड स्किन को रिमूव कर के स्किन को हैल्दी बनाना है.

अगर आप को मुंहासे हैं या फिर ब्लैकहैड्स, व्हाइटहैड्स हैं, तो यह काफी फायदेमंद साबित होता है. इस प्रक्रिया को हमेशा लास्ट में करना चाहिए ताकि स्किन में जो भी इन्फैक्शन हो वह खत्म हो जाए. इस से आप के फेस पर काफी निखार आएगा और स्किन जवांजवां नजर आएगी.

इन बातों को न करें इग्नोर

– यदि स्किन सैंसिटिव है, तो एएचए पीलिंग यूज न करें.

– 21दिन से पहले न तो क्लींजिंग और न ही फेशियल दें.

– फेस पर ब्लीच का इस्तेमाल न करें.

– फेस को नमी देने के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं.

– पौष्टिक डाइट लें.

अगर फेस पर कोई ऐलर्जी हो रही है, तो ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने की गलती न करें, क्योंकि इस से ऐलर्जी बढ़ने का खतरा रहता है.

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