रूखे और बेजान बालों की समस्या से पाएं निजात, अपनाएं ये टिप्स

Monsoon आते ही काफी सारी दिक्कतें होने लगती हैं. वहीं महिलाओं के बोलों की समस्या सबसे ज्यादा होती है, जिसे लेकर वो काफी परेशान हो जाती है लेकिन आपको बिलकुल भी टेंशन में नहीं लेना है. इससे बचने के लिए हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे जिससे आप अपने बालों की देखभाल कर सके और उनका अच्छे से ख्याल रखकर मौनसून में बाल झड़ने से बचा सके. इस तरह रूटीन को करें फॉलो.

  1. दही का इस्तेमाल करें

मौनसून में उमस की वजह से हेयर ड्राई हो जाते है. दही का इस्तेमाल बालों के लिए काफी फयादेमंद होता है. दही में काफी सारे पोषक तत्व होते है. दही का सेवन करने से बालों के लिए बेहद लाभकारी होता है. मौनसून में आप अपने बालों पर दही जरूर लगाए और फिर 15-20 मिनट बाद बालों को शैंपू से धो लें. इसे सप्ताह में 2-3 बार लगाए. आप खुद महसूस करेंगे की बाल अच्छे हो रहे हैं.

2. कंडीशनर का इस्तेमाल करें

मौनसून में बाल रूखे हो जाते है जिसके बाद इन्हें सुलझाने में भी काफी समय लग जाता है. इससे बचने के लिए आपको कंडीशनिंग करनी चाहिए जिससे आप बाल एक दम सॉफ्ट बने रहे. और बाल बांधने में भी किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हो. कंडीशनिंग लगभग 10 मिनट तक करनी हैं इसके बाद आप खुद अपने बालों में बदलाव देखेंगे.

3. हेयर ड्रायर का इस्तेमाल ना करें

मौनसून में जाहिर सी बात है कि बारिश में भीगने के बाद ठंड लगती हैं और जिस दिन सिर धुला हो, उस दिन तो क्या ही कहना. बारिश में भीगने के बाद तुरंत ड्रायर का इस्तेमाल करते है जिससे हमारे बाल जल्दी सुख जाए और हमें ठंड नहीं लगे. लेकिन आपका ऐसा करना हानिकारक हो सकता है. इसलिए कोशिश करे की ड्रायर का इस्तेमाल नहीं करे. ये आपके बालों को सुखा तो देगा लेकिन इन्हें रूखा बना कर देगा जिससे आपके हेयर फॉल ज्यादा होने लगेंगे.

4. हेयर सीरम का इस्तेमाल करें

मौनसून में ड्राई बालों को बचाने और सिल्की बालों के लिए आपको सीरम का उपयोग करना चाहिए. इससे आपके बाल घने होते हैं और बेहद ही सिल्की होते है.

मेरे पति के 2 युवतियों से संबंध हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं विवाहित युवती हूं. मेरे पति के 2 युवतियों से संबंध हैं. मैं बहुत परेशान हूं और मुझे गृहशोभा से बहुत उम्मीद है. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से अपने पति को उन युवतियों के चंगुल से बचा सकूं?

जवाब-

लगता है, आप अपनी घरगृहस्थी में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो पति के प्रति लापरवाह होती गईं. घर में अपेक्षित प्यार और तवज्जो न मिलने के कारण ही आप के पति ने बाहर दूसरी महिलाओं से संबंध बना लिए. उन्हें वापस पाने के लिए आप को अब थोड़े धीरज से काम लेना होगा. पति जब भी घर आएं उन के साथ बिलकुल सामान्य व्यवहार करें. उन्हें तानेउलाहने न दें वरना वे घर आने से भी कतराने लगेंगे, जो आप के हित में नहीं होगा. पति जितनी देर घर रहें उन्हें भरपूर प्यार दें. धीरेधीरे उन का बाहर से वैसे भी मोहभंग हो जाएगा. विवाहित पुरुषों को युवतियां ज्यादा दिनों तक घास नहीं डालतीं, साथ ही अवैध संबंधों की मियाद भी ज्यादा लंबी नहीं होती. इसलिए चिंता छोड़ कर पति को वापस पाने के प्रयास में लग जाएं.

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लगभग एक साल पहले भंवरताल गार्डन जबलपुर में रहने वाली आयशा ने स्वास्थ्य महकमे में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर तैनात अपने पति डा. शफातउल्लाह खान की हत्या इसलिए करवा दी थी, क्योंकि उस का पति अपने विभाग की कई महिला कर्मचारियों से अवैध संबंध रखता था. अपनी अय्याशी की वजह से पत्नी के साथ संबंध भी नहीं बनाता था और पत्नी को प्रताडि़त करता था. हद तो तब हो गई जब पति ने पत्नी की नाबालिग भतीजी को अपनी हवस का शिकार बना लिया और इस से नाबालिग को गर्भ ठहर गया. तंग आ कर पत्नी ने सुपारी दे कर उस की हत्या करवा दी. इसी तरह दिसंबर 2019 में नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव थाना क्षेत्र में एक युवक आशीष की हत्या उस के दोस्त पंकज ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि आशीष ने पंकज की पत्नी से सैक्स संबंध बना रखे थे.

एक नारी ब्रह्मचारी- भाग 1 : पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

पीछे से जब उस गाड़ी वाले ने हौर्न मारा तो वरुण ने हड़बड़ा कर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी, वरना उसे उस लड़की को घूरने के चक्कर में ध्यान ही नहीं गया कि सिगनल ग्रीन हो चुका है.

“अरे, मुझे तो पता ही नहीं चला कि ग्रीन सिगलन कब हो गया,” झेंपते हुए वरुण बोला, तो स्नेहा ने खा जाने वाली नजरों से उसे ऐसे घूर कर देखा कि वह सकपका गया.

वरुण की हथेली दबा कर उस ने कई बार इशारा भी किया, परंतु बगुले की तरह ध्यान टिकाए वह उस स्कूटी वाली लड़की को घूरे ही जा रहा था, लग रहा था जैसे आंखों से ही उसे चबा जाएगा. बेचारी वह लड़की, कितनी असहज हो रही थी. आप ही सोचिए, आप को कोई एकटक निहारता ही जाए तो कैसा लगेगा? बुरा ही लगेगा न…? तभी तो ग्रीन सिगनल होते ही वह लड़की एकदम से फुर्र हो गई.

“तुम में जरा भी शर्म नाम की चीज नहीं है? मेरी छोड़ो, लेकिन कम से कम लोगों के बारे में तो सोचते, क्या सोचते होंगे वे तुम्हारे बारे में…?

“कैसे सोचोगे, आदत से मजबूर जो हो. सुंदर लड़की देखी नहीं कि… छिः…” अपना पर्स सोफे पर पटकते हुए स्नेहा कमरे में चली गई.

आज उसे सच में बहुत ही बुरा फील हो रहा था. जाने क्या सोचती होगी वह लड़की वरुण के बारे में? जब लाल सिगनल पर गाड़ी रुकी, तो पास खड़ी उस स्कूटी वाली लड़की को वरुण घूरघूर कर देखने लगा… और वह लड़की बारबार कभी अपनी टीशर्ट नीचे खींच रही थी, तो कभी अपने अधखुले पैर को समेट रही थी. मगर ये बेशर्म आदमी… हद है… आखिर ये मर्द इतने छिछोरेटाइप क्यों होते हैं? कहते हैं, आजकल की लड़कियों में संस्कार नाम की चीज नहीं बची. कैसेकैसे कपड़े पहन कर निकल जाती हैं. लेकिन महिलाओं की फटी जींस पर भाषण देने वाले ये पुरुष जब लड़कियों के कपड़े के अंदर ताकझांक करते हैं, तब उन्हें अपने संस्कार याद नहीं आते?

तकिया बिछावन पर पटकते हुए स्नेहा बुदबुदाई, ‘किसी सुंदर लड़की पर नजर पड़ी नहीं कि गिद्ध की तरह उसे ललचाई दृष्टि से देखने लगता है. और तो और सुंदर लड़कियों को देखते ही कौम्पिलीमेंट देने का भी मन होने लगता है इसे. मुझे शर्म आ जाती है, पर इस निर्लज्ज इनसान को जरा भी शर्म नहीं आती. यह भी नहीं सोचता कि उस जगह पर उस की बेटी या बहन भी हो सकती है. वह लड़की भी तो किसी की बेटी या बहन होगी?’

कितना खुश हो कर वह वरुण के साथ घूमने निकली थी. सोचा था कि फिल्म देखने के बाद किसी अच्छे से होटल में खाना खाएगी, फिर ढेर सारी शौपिंग भी करेगी. लेकिन वरुण के व्यवहार से मन क्षुब्ध हो उठा उस का.

“सौरी,” स्नेहा का हाथ पकड़ कर वरुण बोला तो जोर से उस ने उस का हाथ झटक दिया और किचन में आ कर रात के खाने की तैयारी करने लगी.

“स्नेहा, अब माफ भी कर दो न,” अपने कान पकड़ते हुए वरुण बोला, “सच कहता हूं कि मैं उस लड़की को नहीं देख रहा था डार्लिंग, वो तो मैं… अच्छा छोड़ो… देखो, कान पकड़ कर मैं फिर से तुम्हें सौरी बोलता हूं. अब गुस्सा थूक भी दो न, प्लीज.”

लेकिन आज स्नेहा का पारा कुछ ज्यादा ही गरम था, इसलिए माफ करने का तो सवाल ही नहीं उठता.

“खाना रहने दो. चलो बाहर खा कर आते हैं,” वरुण की बात पर स्नेहा का पारा और सातवें आसमान पर चढ़ गया.

“अच्छा, ताकि तुम्हें फिर लड़कियों को घूरने का मौका मिल जाएगा, है न?” चाकू को सब्जी पर पटकती हुई स्नेहा बोली, “मुझे तो समझ नहीं आता कि तुम किस टाइप के इनसान हो? क्योंकि बातें तो तुम बड़ी शराफत की करते हो, लेकिन सुंदरसुंदर लड़कियों व औरतों को देखते ही तुम्हारी सारी शराफत हवा क्यों हो जाती है? और कोई लड़की जरा ‘हाय, हैलो, प्लीज’ क्या बोल देती है, तुम तो उस पर अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार हो जाते हो. लेकिन बीवी जरा एक बैग उठाने को बोल दे तो… नौकर समझ रखा है क्या…? आंखें दिखाते हो. आखिर क्या है उन औरतों में, जो मुझ में नहीं है?” व्यथित होते हुए स्नेहा बोली.

सुंदर स्नेहा बनसंवर कर चाहे कितनी भी सुंदर क्यों न हो जाए, पर रसिया वरुण बाहर की औरतों को ताड़ने से बाज नहीं आता था.

एक युवा बेटी के पिता होने के बाद भी सुंदर महिलाओं को देखना, उस से दोस्ती करना वरुण का पैशन था. उस का सोचना था कि बंदर कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाए, पर गुलाटी मारना कभी नहीं छोड़ता. और मर्द तो साठा में भी पाठा…

वैसे, वरुण को देख कर उस की उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता था, क्योंकि उस ने अपनेआप को खूब अच्छी तरह से मेंटेन कर रखा था.

“बोलो न, क्या सोचने लग गए…? क्या है उन औरतों में, जो मुझ में नहीं है?” स्नेहा ने फिर वही बात दोहराई.

‘‘मेरी जान, कैसे समझाऊं तुम्हें? घर का खाना कितना भी स्वादिष्ठ क्यों न हो, बाहर के खाने की बात ही कुछ और होती है,‘‘ मुसकराते हुए वरुण बुदबुदाया, लेकिन जैसे ही उस की नजर स्नेहा से टकराई, एकदम से मुंह बना लिया.

“ज्यादा मुंह न बनाओ… बता रही हूं मैं. अपनी करनी से खुद तो एक दिन मुसीबत में फंसोगे ही, साथ में हमें भी ले डूबोगे,” बोल कर जिस तरह से उस ने गरम कड़ाही में सब्जी का छौंक लगाया, वरुण को समझते देर नहीं लगी कि अब यहां से खिसक जाने में ही उस की भलाई है. लेकिन यह भी पता है उसे, स्नेहा का गुस्सा एक उबाल के बाद शांत भी हो जाता है. लेकिन ज्यादा फूंक मारो तो और छिटकने लगती है. स्नेहा की यही कमजोरी है, पहले तो वह अपने पति को सिर पर बैठा लेती है, इतना प्यार और केयर करने लगती है कि पूछो मत. लेकिन जब गुस्सा चढ़ता है तो इज्जत भी उतार कर रख देती है. और वरुण उस की इस आदत का खूब अच्छी तरह से फायदा उठाता है.

किचन में झनपटक की आवाज सुन कर वरुण अपने मन में ही सोचने लगा, ‘अब भंवरे भी कभी फूलों से दूर रह सकते हैं भला? वह तो बने ही हैं फूलों के आगेपीछे मंडराने के लिए. मगर स्नेहा यह बात समझती ही नहीं है. सुंदर महिलाओं को देखना, उसे घूरना तो हम पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है, तो कैसे कोई एक नारी ब्रह्मचारी बना रह सकता है? और यह बात एक सर्वे में भी सिद्ध हो चुकी है कि प्रतिदिन महिलाओं को 10 मिनट तक निहारना हम पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. इस से हमारा ब्लडप्रेशर तो नार्मल रहता ही है, दिल की बीमारियों का भी खतरा नहीं होता.

‘तो बताओ, क्यों न घूरें हम महिलाओं को?‘ लेकिन उधर स्नेहा गुस्से से लालपीली हुई यह सोच कर गरम तवे पर रोटी सेंके जा रही थी कि ये मर्दजात कुत्ते की दुम है, कभी सीधी हो ही नहीं सकती. एक युवा बेटी का बाप होते हुए भी ऐसी छिछोरी हरकत करते इसे जरा भी लाज नहीं आती?‘‘

‘हां, हूं मैं एक युवा बेटी का बाप… तो क्या हो गया…? तो क्या मैं अपने सारे अरमान मिट्टी में दफन कर दूं? बाबू मोशाय… जिंदगी तो जीने का नाम है रे… मुरदे क्या खाक जिया करते हैं,’ अपनी सोच पर इतराते हुए वरुण मुसकराया और एक महिला दोस्त से चैटिंग करने लगा. लेकिन जैसे ही स्नेहा के आने की आहट सुनाई पड़ी, फोन बंद कर मुंह बना कर बैठ गया. ऐसी बात नहीं है कि वरुण को अपने परिवार की फिक्र नहीं है. बहुत प्यार करता है वह अपनी बीवीबच्चे से. देशविदेश घुमाना, होटलों में खिलाना, शौपिंग करवाना, सब करता है अपने परिवार के लिए. कभीकभी स्नेहा ही उकता जाती है, कहती कि उस की अलमारी कपड़ों से अटी पड़ी है, क्या करेगी वह और कपड़े खरीद कर. लेकिन वरुण कहता है, इनसान को फैशन के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए. वरुण का फंडा है, बीवी की हर जरूरतें पूरी करते रहो, उस का मुंह अपनेआप बंद हो जाएगा. उस का मानना है कि बाहर वाली को पटाना है, तो पहले घरवाली को खुश रखो.

“चलो, खाना बन गया है,” बोल कर स्नेहा कमरे में पड़े सुबह के जूठे कप उठाते हुए भुनभुनाते हुए बोली, “यहां लोगों को जरा भी शर्म नहीं है कि चाय पी कर कम से कम जूठा कप तो बेसिन में ही रख आएं,’ स्नेहा का इशारा वरुण की तरफ था. लेकिन आज उसे चुप रहने में ही अपनी भलाई लगी, सो उठ कर वह सीधे जा कर टेबल पर बैठ गया.

‘कहा भी गया है कि एक चुप सौ सुख. इसलिए सुख पाना है तो चुप रहो बेटा,’ मन में बुदबुदाते हुए वरुण मुसकराया, जो स्नेहा ने देख लिया.

“आह… बड़ी चवन्नी मुसकान निकल रही है,” वरुण की प्लेट में गरम रोटियां डालते हुए स्नेहा भन्नाई, “सुधर जाओ, नहीं तो बता रही हूं, तुम्हारा यही हाल रहा तो मायके चली जाऊंगी,” स्नेहा सिर्फ बोलती है, पर वरुण जानता है कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगी. और वह यह भी जानता है कि वह कभी नहीं सुधरने वाला क्योंकि सुंदरसुंदर महिलाओं को छोटेछोटे कपड़ों में देख कर… ‘उफ्फ’ जाने उसे कैसा होने लगता है. उन की मनमोहक खुशबू में डूब जाना चाहता है वह. उन के रेशमी बालों में उलझउलझ जाना चाहता है.

“खा क्यों नहीं रहे? फिर कोई सपना देखने लग गए क्या?” स्नेहा ने टोका, तो वरुण घबरा कर रोटियां तोड़ने लगा. चाहे कितनी भी लड़ाई हो जाए उन के बीच, पर स्नेहा वरुण का वैसे ही खयाल रखती है.
वरुण के लिए गरम खाना, धुले और प्रेस किए हुए कपड़े उस की हर जरूरत का सामान स्नेहा की पहली प्राथमिकता होती है और यह बात वरुण भी अच्छी तरह जानता है कि स्नेहा उस की पसंदनापसंद का कितना खयाल रखती है. स्नेहा भी समझती है कि वरुण इतनी मेहनत अपने परिवार के लिए ही तो करता है. उन की हर सुखसुविधाओं का कितना खयाल रखता है वह. कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देता.. परंतु उस की एकदो आदतें स्नेहा को बिलकुल पसंद नहीं हैं. एक तो सुंदर औरतों के पीछे भागना और दूसरा शराब पीना. कितना समझाया है कि शराब सेहत के लिए हानिकारक है, बल्कि औरतों को घूरना भी सेहत के लिए कम हानिकारक नहीं है, क्योंकि अगर किसी महिला ने जा कर उस के खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज करा दिया तो पुलिस के डंडे तो पड़ेंगे ही, नाम भी बदनाम हो जाएगा. मगर वरुण समझता ही नहीं.

 

15 अगस्त स्पेशल: इस स्वतंत्रता दिवस आजादी के रंगों से रंगीन हो आपका घर

घर की सजावट में घोलें आजादी के रंग. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अगर आप घर के रंग-रोगन की प्लैनिंग कर रही हैं, तो क्यों न तिरंगे के रंगो से घर को सजाया जाए. देशभक्ति किसी पर थोपी नहीं जा सकती, सच है. क्यों न इस संवतंत्रता दिवस को हम लोग अपने घर को आजादी के रंगों से रंग कर मनायें? देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि देने का ये एक अनूठा तरीका है. इसे जरूर आजमाइए.

1. केसरिया

केसरिया या सैफरौन रंग साहस और वीरता का प्रतीक है. किसी भी कमरे को अगर सैफरौन पेंट से कलर किया जाए तो वह कमरा ऊर्जा से भर जाता है. वैसे भी हमारी लाइफ में इतनी टेंशन रहती है कि हमें पाजिटिव ऐनर्जी की जरूरत पड़ती ही है. सैफरौन या औरेंज के किसी भी टोन से घर को पेंट करने से घर के वातावरण में भी अलग चेंज आता है. आप इस रंग से घर के हाल को पेंट कर सकती हैं.

2. सफेद

सफेद यानी एकता और शांति का प्रतीक. यह रंग तो सभी के घरों में होना ही चाहिए. वैसे भी आपके आस पास बहुत ज्यादा अशांति फैली हुई है. घर के इंटीरियर में इस रंग का इस्तेमाल एक अलग ही एहसास जगाता है.

पर पूरे घर को सफेद रंग से रंग देना भी अच्छा नहीं है. क्योंकि पूरी सफेदी के कारण आपके मेहमान भी असहज महसूस करेंगे. और आप भी हमेशा इस फिक्र में रहेंगी कि कहीं दीवार गंदी तो नहीं हो रही. पर सफेद रंग आपके घर को एक एलिगेंट लुक देगा.

3. नीला

तिरंगे की सफेद पट्टी पर लगा नीला अशोक चक्र सत्यता का प्रतीक है. इंटीरियर डिजाइनरों के अनुसार नीले रंग के साथ आप बहुत सारे एक्सपेरिमेंट कर सकती हैं. ब्लू एक ऐसा रंग है जो बोल्ड लुक के साथ ही आपके घर को सोफ्ट लुक भी दे सकता है. नीले रंग से गर्मियों में ठंडक भी रहती है.

4. हरा

उर्वरता, भूमि की पवित्रता को दर्शाता है हरा रंग. हरियाली किसे नहीं भाती? लिविंग रूम को हरे रंग से पेंट करें. इससे लिविंग रूम एक खुशनुमा एहसास से भर जाएगा. दिवारों के रंग के हिसाब से ही घर के परदे और फर्नीचर सेलेक्ट करें.

15 अगस्त स्पेशल: फैमिली के लिए बनाएं तिरंगा पुलाव

देश का सबसे बड़ा पर्व है स्वतंत्रता  दिवस. हर स्वतंत्रता दिवस हम जलेबी जरूरर खाते हैं या बनाते हैं. इस गणतंत्र दिवस आप कुछ अलग करें और तिरंगा पुलाव बनाएं. यह पुलाव देख बच्चे खुश हो जाएंगे और इस पर्व का महत्व भी समझ पाएंगें. यहां जानें तिरंगा पुलाव बनाने की विधि.

सामग्री

बासमती चावल भिगोकर रखा हुआ- 1 कप

नारंगी चावल के लिए

घी- 2 बड़े चम्मच

जीरा- ¼ छोटा चम्मच

अदरक की पेस्ट – 1 छोटा चम्मच

टमाटर या टोमाटो प्यूरी- 1/4

हल्दी पाउडर- 1/2 छोटा चम्मच

लाल मिर्च पाउडर- 1/2 छोटा चम्मच

लाल मिर्च की पेस्ट- 1 छोटा चम्मच

नमक स्वादानुसार

सफेद चावल के लिए

पके हुए बासमती चावल 1 कप

हरे चावल के लिए

घी २ बड़े चम्मच

जीरा ¼ चम्मच

अदरक की पेस्ट- 1 छोटा चम्मच

हरी मिर्च की पेस्ट- 1 छोटा चम्मच

पालक की प्यूरी- ½ कप

नमक स्वादानुसार

विधि

दो अलग अलग नान स्टिक पैन लें. हर पैन में 2 बड़े चम्मच घी गरम करें. एक पैन में जीरा डालें और रंग बदलने तक भूनें. चावल डालें और मिला लें. दूसरे पैन में भी जीरा डालें और रंग बदलने तक भूनें.

पहले पैन में अदरक पेस्ट, लाल मिर्च पावडर और लाल मिर्च पेस्ट डालें और भूनें. फिर उसमें डालें टोमेटो प्यूरी और नमक और अच्छी तरह मिला लें. अब 1 कप पानी डालकर मिला लें, ढक कर चावल को पूरी तरह पका लें.

दूसरे पैन में डालें हल्दी पावडर और चावल और अच्छी तरह मिला लें. अब हरी मिर्च पेस्ट, अदरक पेस्ट और नमक डालकर हल्का सा भूनें. ½ कप पानी डालकर अच्छी तरह मिला लें और ढक कर पकाएं. जब पानी उबलने लगे पालक प्यूरी डालकर अच्छी तरह मिला लें, ढक कर पकाएं जबतक चावल पक जाए.

सर्विंग प्लेट पर एक रिंग मौल्ड रखें, पहले हरा चावल डालें और हल्का सा दबा लें. उसके उपर सफेद चावल डालें और हल्का सा दबा लें. सबसे उपर नारंगी चावल डालें और हल्का सा दबा लें. फिर धिरे से रिंग मौल्ड हटा लें और परोसें.

15 अगस्त स्पेशल: हाट बाजार- दो सरहदों पर जन्मी प्यार की कहानी

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15 अगस्त स्पेशल: इस Independence day पर बनाएं तिरंगा ढोकला

स्वस्थ खाने का मतलब यह नहीं होता है कि आपको हमेशा अपने स्वाद के साथ समझौता करना  होगा. भारत विविध व्यंजनों का देश है और यहां के अधिकतर व्यंजनों में  भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं. हमारे देश के पश्चिमी भाग की एक डिश ढोकला बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है.

अगर आप कौर्नफ्लेक्स और ओट्स जैसे ब्लैंड फूड को ज्यादा पसंद नहीं करते तो आप उनकी जगह ढोकले  को अपनी डाइट में शामिल कर सकते है. उबले हुए और तले नहीं होने के कारण इनमे  कैलोरी की मात्रा कम होती है. 100  ग्राम ढोकला में केवल 160 कैलोरी होती है. ढोकला में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है जो इसे मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा बनाता है.

अक्सर 26  जनवरी या 15 अगस्त के मौके पर स्कूल में टीचर्स  बच्चो  को लंच में तिरंगा नाश्ता लाने के लिए कहती  है. आज हम आपको तिरंगा ढोकला बनाना सिखायेंगे. यह ढोकला 3 रंगों(हरा ,सफ़ेद और लाल) में होगा . इस  ढोकले को आप बच्चो  के टिफिन में रख सकते है.इसे बच्चे बहुत मन से खायेंगे.

ढोकला खाने में जितना हेल्दी और हल्का होता है ,उसे बनाना भी उतना ही आसान होता है. कई लोग स्टीमर से ढोकला बनाते है. यहां हम आपको इडली स्टैंड की सहायता से कुकर में ढोकला बनाने की आसान विधि बताएंगे –

हमें चाहिए

सूजी – 250 ग्राम

बेसन – 1 कप (100 ग्राम)

दही – 1 कप

पालक प्यूरी – 1 कप (ढोकले के हरे रंग के लिए )

टमाटर प्यूरी या टोमेटो सॉस – 2 टेबल स्पून (ढोकले के लाल  रंग के लिए )

ईनो फ्रूट सॉल्ट – 1.5 छोटी चम्मच

नमक – स्वादानुसार

तडके के लिए –

तेल – 4 टेबल स्पून

नींबू – 2

हरी मिर्च – 4

ताजा नारियल – 2-3 टेबल स्पून (कद्दूकस किया हुआ)

सरसों के दाने – 1 छोटी चम्मच

करी पत्ता – 15 – 20

1 छोटी चम्मच चीनी

बनाने का तरीका-

tricolour  ढोकला बनाने के लिए हम तीन अलग -अलग रंग के बैटर तैयार करेंगे. सबसे पहले 250 ग्राम सूजी को 2 अलग-अलग बाउल  में आधा-आधा निकाल लीजिए.

हरा बैटर बनाने के लिए पालक के पत्तों और हरी मिर्च को पानी से अच्छे से साफ करके मिक्सर में पीस लीजिये और पेस्ट तैयार कर लीजिए.आप चाहे तो हरी मिर्च use नहीं भी कर सकते हैं.

इसके बाद, एक बाउल में सूजी के साथ पालक प्यूरी डाल कर मिक्स कीजिए. इस बैटर में 1 नींबू का रस और ½ छोटी चम्मच नमक डाल कर अच्छे से मिक्स कर लें  ,फिर ऊपर से ½  छोटी चम्मच इनो डाल कर एक बार और मिला ले. बैटर को 10-15 मिनिट के लिए ढक कर रख दीजिए ताकि सूजी अच्छे से फूल कर तैयार हो जाए.

सफेद बैटर बनाने के लिए दूसरे बाउल में जो सूजी थी उसमें फैंटा हुआ दही और आधा छोटी चम्मच नमक डालकर मिक्स कर लीजिए और फिर ऊपर से ½  छोटी चम्मच इनो डाल कर एक बार और मिला ले. इस बैटर को भी 10-15 मिनिट के लिए ढक कर रख दीजिए ताकी सूजी अच्छे से फूल कर तैयार हो जाए.

तीसरे रंग का बैटर तैयार करने के लिए सबसे पहले एक प्याले में टमाटर प्यूरी या टोमेटो सॉस को 100 gm बेसन  के साथ डालकर अच्छे से मिक्स कर लीजिये ,अगर पेस्ट थोड़ा गाढ़ा  है तो थोड़ा पानी डाल  कर उसे अच्छे से फेंट लीजिये . अब इस बैटर में 1 नींबू का रस और ½ छोटी चम्मच नमक डाल कर अच्छे से मिक्स कर लें  ,फिर ऊपर से ½  छोटी चम्मच इनो डाल कर एक बार और मिला ले.

याद रखे की तीनो रंगों के घोल न ज्यादा गाढे  हो और न  ही ज्यादा पतले. अब कुकर को गैस पर चढ़ा दे और उसमे में 1 गिलास पानी डाल कर पानी को खौलने दे .

अब इडली स्टैंड के खानों में तेल लगाकर चिकना कीजिये. चमचे से इडली स्टैन्ड के नीचे वाले खानों में सफ़ेद रंग का बैटर  बराबर -बराबर मात्र में  भरिये.

अब इडली स्टैंड के बीच वाले खानों में हरे रंग का बैटर बराबर -बराबर मात्र में  भरिये. अब सबसे ऊपर वाले खानों में लाल रंग का बैटर  बराबर -बराबर मात्र में  भरिये.

अब ढोकला  पकने के लिये स्टैन्ड को कुकर में रखिये.  कुकर का ढक्कन बन्द कर दीजिये, ढक्कन के ऊपर सीटी मत लगाइये.

तेज गैस फ्लेम पर 9-10 मिनिट तक ढोकला  पकने दीजिये. 9 से 10 मिनट के बाद गैस बन्द कर दीजिये .ढोकले पक  गए होंगे. प्रेशर कुकर खोलिये, इडली स्टैन्ड निकालिये, खांचे अलग कीजिये, ठंडा कीजिये और चाकू की सहायता से ढोकले  निकाल कर प्लेट में लगाइये. लीजिये ढोकले  तैयार हैं.इसको आप हरी धनिया और गरी की चटनी के साथ खा सकते है.

तड़का लगायें –

पैन में 2 टेबल स्पून तेल डालिये, तेल गरम होने के बाद, राई डालिये, राई तड़कने के बाद गैस कम कर दीजिए और तेल में करी पत्ता डाल  कर हल्का सा भून लीजिए. इसमें लम्बाई में कटी हुई हरी मिर्च डाल कर 2 छोटे चम्मच पानी डाल  दीजिये, अब एक  1 चम्मच चीनी ऊपर से डाल दीजिये, अब इस मिश्रण को तब तक पका लीजिये जब तक चीनी घुल न जाये. गैस बन्द कर दीजिये, इस तड़के को चम्मच से ढोकले के ऊपर सभी जगह डालिये. कद्दूकस किये हुये नारियल को ऊपर से डाल कर सजाइये.

अगर आप चाहे तो गार्निशिंग के लिए अलग -अलग रंग के ढोकले के 4 पीस करके एक टूथपिक में हर रंग के ढोकले के पीस को लगा कर भी सर्व कर सकती है ये देखने में काफी आकर्षक लगेगा.

Raksha Bandhan: कच्ची धूप- भाग 2- कैसे हुआ सुधा को गलती का एहसास

सौम्या के महीनेभर की होते ही सुधा उसे ले कर कोलकाता आ गई. इस के बाद केशव की शादी पर ही सुधा अपने मायके गई थी.

सुधा ने सौम्या को बहुत ही नाजों से पाला था. वह उसे न तो कहीं अकेले भेजती थी और न ही किसी से मेलजोल रखने देती थी. स्कूल जाने के लिए भी अलग से गाड़ी की व्यवस्था कर रखी थी सौम्या के लिए.

यों अकेले पलती सौम्या साथी के लिए तरसने लगी. वह सोने के पिंजरे में कैद चिडि़या की तरह थी जिस के लिए खुला आसमान केवल एक सपना ही था. वह उड़ना चाहती थी, खुली हवा में सांस लेना चाहती थी मगर सुधा ने उसे पंख खोलने ही नहीं दिए थे. उसे बेटी का साधारण लोगों से मेलजोल अपने स्टेटस के खिलाफ लगता था. हां, सौम्या के लिए खिलौनों और कपड़ों की कोई कमी नहीं रखी थी सुधा ने.

धीरेधीरे वक्त के पायदान चढ़ती सौम्या ने अपने 16वें साल में कदम रखा. इसी बीच केशव एक प्रतिष्ठित डाक्टर बन चुका था. वह नोखा छोड़ कर अब बीकानेर शिफ्ट हो गया था, वहीं लोकेश एक पुलिस अधिकारी बन कर क्राइम ब्रांच में अपनी सेवाएं दे रहा था. दोनों भाइयों की आर्थिक स्थिति सुधरने से अब सुधा के मन में उन के लिए थोड़ी सी जगह बनी थी, मगर इतनी भी नहीं कि वह हर वक्त मायके के ही गुण गाती रहे. जबजब सुधा को कोई जरूरत आन पड़ती थी, वह अपने भाइयों से मदद अवश्य लेती थी. मगर काम निकलने के बाद वह उन्हें मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंकती थी. लोकेश और केशव उस के स्वभाव को जान चुके थे, इसलिए वे उस का बुरा भी नहीं मानते थे और जरूरत पड़ने पर बहन के साथ खड़े होते थे.

अपनी ममेरी बहन शालिनी की शादी में जाने के लिए सौम्या का उत्साह देखते ही बनता था. उसे याद ही नहीं कि वह पिछली बार ननिहाल साइड के भाईबहनों से कब मिली थी. उन के साथ बचपन में की गई किसी भी शरारत या चुहलबाजी की कोई धुंधली सी भी याद उस के जेहन में नहीं आ रही थी. बड़े होने पर भी मां कहां उसे किसी से भी कौन्टैक्ट रखने देती हैं. हां, सभी रिश्तेदारों ने व्हाट्सऐप पर ‘हमारा प्यारा परिवार’ नाम से एक फैमिली गु्रप बना रखा था, उसी पर वह सब को देखदेख कर अपडेट होती रहती थी. ‘पता नहीं वहां जा कर सब को पहचान पाऊंगी या नहीं, सब के साथ ऐडजस्ट कर पाऊंगी या नहीं, क्याक्या बातें करूंगी’ आदि सोचसोच कर ही सौम्या रोमांचित हुई जा रही थी.

सौम्या को यह देख कर आश्चर्य हो रहा था कि अपनी एकलौती भतीजी की शादी में जाने को ले कर उस की मां बिलकुल भी उत्साहित नहीं है. जहां सौम्या ने महीनेभर पहले से ही शादी में पहने जाने वाले कपड़ों, फुटवियर और मैचिंग ज्वैलरी की शौपिंग करनी शुरू कर दी थी, वहीं सुधा अभी तक उदासीन बैठी थी. उस ने मां से कहा भी, मगर सुधा ने यह कह कर उस के उत्साह पर पानी फेर दिया कि अभी तो बहुत दिन बाकी हैं, कर लेंगे तैयारी. शादी ही तो हो रही है इस में क्या अनोखी बात है. मगर यौवन की दहलीज पर खड़ी सौम्या के लिए शादी होना सचमुच ही अनोखी बात थी.

सौम्या बचपन से ही देखती आई है कि मां उस के लोकेश और केशव मामा से ज्यादा नजदीकियां नहीं रखतीं. मगर अब तो उन की एकलौती भतीजी की शादी थी. मां कैसे इतनी उदासीन हो सकती हैं?

खैर, शादी के दिन नजदीक आए तो सुधा ने शालिनी को शादी में देने के लिए सोने के कंगन खरीदे, साथ ही 4 महंगी साडि़यां भी. सौम्या खुश हो गई कि आखिर मां का अपनी भतीजी के लिए प्रेम जागा तो सही मगर जब उस ने सुधा को एक बड़े बैग में उस के पुराने कपड़े भरते देखा तो उस से रहा नहीं गया. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘मां, मेरे पुराने कपड़े कहां ले कर जा रही हो?’’

‘‘बीकानेर ले जा रही हूं, तुम तो पहनती नहीं हो, वहां किसी के काम आ जाएंगे,’’ सुधा ने थोड़ी लापरवाही और थोड़े घमंड से कहा.

‘‘मगर मां किसी को बुरा लगा तो?’’ सौम्या ने पूछा.

‘‘अरे, जिसे भी दूंगी, वह खुश हो जाएगा. इतने महंगे कपड़े खरीदने की हैसियत नहीं है किसी की,’’ सुधा अपने रुतबे पर इठलाई.

‘‘और ये आप की ड्राईक्लीन करवाई हुई पुरानी साडि़यां? ये किसलिए?’’ सौम्या ने फिर पूछा.

‘‘अरे, मैं ने पहनी ही कितनी बार हैं? इतनी महंगी साडि़यां भाभी ने तो कभी देखी भी नहीं होंगी. बेचारी पहन कर खुश हो जाएगी,’’ सुधा एक बार फिर इठलाई. वह अपनेआप को बहुत ही महान और दरियादिल समझे जा रही थी, मगर सौम्या को यह सब बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था. वह पुराने कपड़ों को बीकानेर न ले जाने की जिद पर अड़ी रही. आखिरकार उस की जिद पर वह पुराने कपड़ों से भरा बैग सुधा को वहीं कोलकाता में ही छोड़ना पड़ा.

शालिनी की शादी में सौम्या ने अपने ममेरे भाईबहनों के साथ बहुत मस्ती की. उस ने पहली बार प्यार और स्नेह के माने जाने थे. उस ने जाना कि परिवार क्या होता है और फैमिली बौंडिंग किसे कहते हैं. दिल के एक कोने में प्यार की कसक लिए सौम्या लौट आई अपनी मां के साथ फिर से उसी सोने के पिंजरे में जहां उस के लिए सुविधाएं तो मौजूद हैं मगर उसे अपने पंख अपनी इच्छा से फड़फड़ाने की इजाजत नहीं थी.

सौम्या का दिल अब इन बंधनों को तोड़ने के लिए मचलने लगा. जितना सुधा उसे आम लोगों से दूर रखने की कोशिश करती, सौम्या उतनी ही उन की तरफ खिंचती चली जाती. उस के मन में सुधा और उस के लगाए बंधनों के प्रति बगावत जन्म लेने लगी.

सौम्या ने अपनी स्कूल की पढ़ाई खत्म कर के कालेज में ऐडमिशन ले लिया था. सुधा ने बेटी को कालेज आनेजाने के लिए नई कार खरीद दी. मगर जब तक सौम्या ठीक से गाड़ी चलाना नहीं सीख लेती, उस के लिए किशोर को ड्राइवर के रूप में रखा गया. किशोर लगभग 30 वर्षीय युवक था. वह शादीशुदा और एक बेटे का पिता था. मगर देखने में बहुत ही आकर्षक और बातचीत में बेहद स्मार्ट था. रोज साथ आतेजाते सौम्या का किशोरमन किशोर की तरफ झुकने लगा. वह उस की लच्छेदार बातों के भंवरजाल में उलझने लगी.

एक रोज बातोंबातों में सौम्या को पता चला कि 4 दिनों बाद किशोर का जन्मदिन है. सौम्या ने सुधा से कह कर उस के लिए नए कपड़ों की मांग की. 4 दिनों बाद जब किशोर सौम्या को कालेज ले जाने के लिए आया तो सुधा ने उसे जन्मदिन की बधाई देते हुए राघव के पुराने कपड़ों से भरा बैग थमा दिया. किशोर ने बिना कुछ कहे वह बैग सुधा के हाथ से ले लिया, मगर सौम्या को किशोर की यह बेइज्जती जरा भी रास नहीं आई. उस ने कालेज जाते समय रास्ते में ही किशोर से गाड़ी मार्केट की तरफ मोड़ने को कहा और एक ब्रैंडेड शोरूम से किशोर के लिए शर्ट खरीदी. शायद वह अपनी मां द्वारा किए गए उस के अपमान के एहसास को कम करना चाहती थी. किशोर ने उस की यह कमजोरी भांप ली और वक्तबेवक्त उस के सामने खुद को खुद्दार साबित करने की जुगत में रहने लगा.

Raksha Bandhan: कच्ची धूप- भाग 1-कैसे हुआ सुधा को गलती का एहसास

‘‘सुनिए, केशव का फोन आया था, शालिनी की शादी है अगले महीने. सब को आने को कह रहा था,’’ देररात फैक्टरी से लौटे राघव को खाना परोसते हुए सुधा ने औपचारिक सूचना दी.

‘‘ठीक है, तुम और सौम्या हो आना. मेरा जाना तो जरा मुश्किल होगा. कुछ रुपएपैसे की जरूरत हो तो पूछ लेना, आखिर छोटा भाई है तुम्हारा,’’ राघव ने डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए कहा.

‘‘रुपएपैसे की जरूरत होगी, तभी इतने दिन पहले फोन किया है, वरना लड़का देखने से पहले तो राय नहीं ली,’’ सुधा ने मुंह बिचकाते हुए कहा.

सुधा का अपने मायके में भरापूरा परिवार था. उस के पापा और चाचा दोनों ही सरकारी सेवा में थे. बहुत अमीर तो वे लोग नहीं थे मगर हां, दालरोटी में कोई कमी नहीं थी. सुधा दोनों परिवारों में एकलौती बेटी थी, इसलिए पूरे परिवार का लाड़प्यार उसे दिल खोल कर मिलता था. चाचाचाची भी उसे सगी बेटी सा स्नेह देते थे. उस का छोटा भाई केशव और बड़ा चचेरा भाई लोकेश दोनों ही बहन पर जान छिड़कते थे.

सुधा देखने में बहुत ही सुंदर थी. साथ ही, डांस भी बहुत अच्छा करती थी. कालेज के फाइनल ईयर में ऐनुअल फंक्शन में उसे डांस करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में पधारे बीकानेर के बहुत बड़े उद्योगपति और समाजसेवक रूपचंद ने देखा तो उसी क्षण अपने बेटे राघव के लिए उसे पसंद कर लिया.

रूपचंद का मारवाड़ी समाज में बहुत नाम था. वे यों तो मूलरूप से बीकानेर के रहने वाले थे मगर व्यापार के सिलसिले में कोलकाता जा कर बस गए थे. हालांकि, अपने शहर से उन का नाता आज भी टूटा नहीं था. वे साल में एक महीना यहां जरूर आया करते थे और अपने प्रवास के दौरान बीकानेर ही नहीं, बल्कि उस के आसपास के कसबों में भी होने वाली सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे. इसी सिलसिले में वे नोखा के बागड़ी कालेज में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे.

‘सुधा की मां, तुम्हारी बेटी के तो भाग ही खुल गए. खुद रूपचंद ने मांगा है इसे अपने बेटे के लिए,’ पवन ने औफिस से आ कर शर्ट खूंटी पर टांगते हुए कहा.

‘मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुलहनिया…’ कह कर केशव ने सुधा को चिढ़ाया तो सुधा ने लोकेश की तरफ मदद के लिए देखा.

‘सज के आएंगे दूल्हे राजा, भैया राजा, बजाएगा बाजा…’ लोकेश ने हंसते हुए गाने को पूरा किया तो सुधा शर्म के मारे चाची के पीछे जा कर छिप गई. मां ने बेटी को गले लगा लिया. और पूरे परिवार ने एकसाथ मिल कर शादी की तैयारियों पर चर्चा करते हुए रात का खाना खाया.

2 कमरों के छोटे से घर की बेटी सुधा जब आलीशान बंगले की बहू बन कर आई तो कोठी की चकाचौंध देख कर उस की आंखें चौंधिया गईं. उस के घर जितनी बड़ी तो बंगले की लौबी थी. हौल की तो शान ही निराली थी. महंगे सजावटी सामान घर के कोनेकोने की शोभा बढ़ा रहे थे. सुधा हर आइटम को छूछू कर देख रही थी. हर चीज उसे अजूबा लग रही थी. ससुराल के बंगले के सामने सुधा को अपना घर ‘दीन की बालिका’ सा नजर आ रहा था.

पवन ने बेटी की शादी अपने समधी की हैसियत को देखते हुए शहर के सब से महंगे मैरिज गार्डन में की थी, मगर पगफेरे के लिए तो सुधा को अपने घर पर ही जाना था. उसे बहुत ही शर्म आ रही थी राघव को उस में ले जाते हुए.

सुधा जैसी सुंदर लड़की को पत्नी के रूप में पा कर राघव तो निहाल ही हो गया. उस के साथ कश्मीर में हनीमून के 15 दिन कैसे बीत गए, उसे पता ही नहीं चला. रूपचंद ने जब कामधंधे के बारे में याद दिलाया तब कहीं जा कर उसे होश आया. वहीं अपने मायके के परिवार में हवाईयात्रा कर हनीमून पर जाने वाली सुधा पहली लड़की थी. यह बात आज भी उसे गर्व का एहसास करा जाती है.

खूबसूरत तो सुधा थी ही, पैसे की पावर ने उस का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. रूपचंद की बहू बन कर वह अपनेआप को अतिविशिष्ट समझने लगी थी. सुधा अपनी ससुराल के ऐशोआराम और रुतबे की ऐसी आदी हुई कि अब उस का नोखा जाने का मन ही नहीं करता था. उसे मायके के लोग और वहां का घर बहुत ही हीन लगने लगे. उस ने धीरेधीरे उन से दूरी बनानी शुरू कर दी.

जब भी नोखा से किसी का फोन आता, तो उसे लगता था जैसे किसी तरह की मदद के लिए ही आया है और वह बहुत ही रुखाई से उन से बात करती थी. केशव भी सब समझने लगा था, वह बहुत जरूरी हो, तो ही बहन को फोन करता था. लोकेश तो उस के बदले रवैये से इतना आहत हुआ कि उस ने सुधा से बात करनी ही बंद कर दी.

शादी के बाद 1-2 बार तो मां के बुलाने पर सुधा राखी बांधने नोखा गई मगर उस का व्यवहार ऐसा होता था मानो वहां आ कर उस ने मायके वालों पर एहसान किया हो. बातबात में अपनी ससुराल की मायके से तुलना करना मां को भी कमतरी का एहसास करा जाता था. एक बार सुधा अपनी रौ में कह बैठी, ‘मेरा जितना पैसा यहां राखी बांधने आने पर खर्च होता है उतने में तो केशव के सालभर के कपड़ों और जूतों की व्यवस्था हो जाए. नाहक मेरा टाइम भी खराब होता है और तुम जो साड़ी और नकद मुझे देते हो, उसे तो ससुराल में दिखाते हुए भी शर्म आती है. अपनी तरफ से पैसे मिला कर कहना पड़ता है कि मां ने दिया है.’ यह सुन कर मां अवाक रह गईं. इस के बाद उन्होंने कभी सुधा को राखी पर बुलाने की जिद नहीं की.

लोकेश की शादी में पहली बार सुधा राघव के साथ नोखा आई थी. उस के चाचा अपने एकलौते दामाद की खातिरदारी में पलकपांवड़े बिछाए बैठे थे. वे जब उन्हें लेने स्टेशन पर पहुंचे तो उन्हें यह जान कर धक्का सा लगा कि सुधा ने नोखा के बजाय बीकानेर का टिकट बनवाया है. कारण था मायके के घर में एसी का न होना. उन्होंने कहा भी कि आज ही नया एसी लगवा देंगे मगर अब सुधा को तो वह घर ही छोटा लगने लगा था. अब घर तो रातोंरात बड़ा हो नहीं सकता था, इसलिए अपमानित से चाचा ने माफी मांगते हुए राघव से कहा, ‘दामाद जी, घर बेशक छोटा है हमारा, मगर दिल में बहुत जगह है. आप एक बार रुक कर तो देखते.’ राघव कुछ कहता इस से पहले ही ट्रेन स्टेशन से रवाना हो चुकी थी.

सुधा ठीक शादी वाले दिन सुबह अपनी लग्जरी कार से नोखा आई और किसी तरह बरात रवाना होने तक रुकी. जितनी देर वह वहां रुकी, सारा वक्त अपनी कीhttps://audiodelhipress.s3.ap-south-1.amazonaws.com/Audible/ch_a108_000001/1043_ch_a108_000006_kachhi_dhoop_gh.mp3मती साड़ी और महंगे गहनों का ही बखान करती रही. बारबार गरमी से होने वाली तकलीफ की तरफ इशारा करती और एसी न होने का ही रोना रोती रही. सुधा की मां को बेटी का यह व्यवहार बहुत अखर रहा था.

हद तो तब हो गई जब सौम्या पैदा होने वाली थी. सामाजिक रीतिरिवाजों के चलते सुधा की मां ने उसे पहले प्रसव के लिए मायके बुला भेजा. कोलकाता जैसे महानगर की आधुनिक सुविधाएं छोड़ कर नोखा जैसे छोटे कसबे में अपने बच्चे को जन्म देना नईनई करोड़पति बनी सुधा को बिलकुल भी गवारा नहीं था, मगर मां के बारबार आग्रह करने पर, सामाजिक रीतिरिवाज निभाने के लिए, उसे आखिरकार नोखा जाना ही पड़ा.

सुधा की डिलीवरी का अनुमानित समय जून के महीने का था. उस ने पापा से जिद कर के, आखिर एक कमरे में ही सही, एसी लगवा ही लिया. सौम्या के जन्म के बाद घरभर में खुशी की लहर दौड़ गई. हर कोई गोलमटोल सी सौम्या को गोदी में ले कर दुलारना चाहता था मगर सुधा ने सब की खुशियों पर पानी फेर दिया. यहां भी उस का अपनेआप को अतिविशिष्ट समझने का दर्प आड़े आ जाता. वह किसी को भी सौम्या को छूने नहीं देती थी, कहती थी, ‘गंदे हाथों से छूने पर बच्ची को इन्फैक्शन हो जाएगा.’

Film review OMG 2: फिल्म यौन शिक्षा की जरूरत बयां कर रही या फिर धर्म पर अंधश्रद्धा की बात, जानिए सबकुछ यहां…

रेटिंग : 5 में साढ़े 3 स्टार

निर्माता : अरूणा भाटिया, विपुल डी शाह, राजेश बहल व अश्विन वर्दे।

क्रिएटिव निर्माता : डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी

लेखक व निर्देशक : अमित राय

कलाकार : अक्षय कुमार, पंकज त्रिपाठी, यामी गौतम, पवन मल्होत्रा, गोविंद नामदेव, अरूण गोविल, सिमरन राजपूत, ब्रजेंद्र काला,आरुष वर्मा, पराग छापेकर (पत्रकार से बने अभिनेता), गीता अग्रवाल व अन्य.

अवधि : 2 घंटे 37 मिनट

सैंसर प्रमाणपत्र : ‘ए’ वयस्क

यूएई सैंसर बोर्ड : 12+

भारत में आज भी सैक्स हौआ है. घर हो या स्कूल, समाज का कोई भी तबका सैक्स को ले कर बात नहीं करता. सैक्स को वर्जित माना जाता है.

एक उम्र के बाद हर लड़के व लड़कियों को स्कूल में सही यौन शिक्षा देने की मांग लंबे समय से उठती आई है, मगर हमारी सरकार इस संबंध में मौन है.

यहां तक कि भारत का ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ यानि सैंसर बोर्ड के लिए भी सैक्स व यौन शिक्षा हौआ ही है. यह वही सैंसर बोर्ड है, जोकि धर्म के बाजार को आगे बढ़ाने के मकसद से ‘आदिपुरुष’ जैसी फिल्म को ‘यू’ प्रमाणपत्र दे कर पारित करता है.

मगर यौन शिक्षा की जरूरत की बात करने वाली फिल्म ‘ओह माय गौड 2’’  को ‘ए’ यानि वयस्क प्रमाणपत्र देता है.

हमारा सैंसर बोर्ड यह भूल गया कि कामसूत्र से ले कर पंचतंत्र की कहानियों में यौन शिक्षा की बात की गई है. वहीं इसलामिक देश ‘यूएई’ के सैंसर बोर्ड ने ‘ओह माय गौड 2’ को 12+ का प्रामणपत्र दिया है यानि 12 साल से बड़े बच्चे यूएई में इस फिल्म को देख सकते हैं, मगर भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चे नहीं देख सकते. अब भारत के सैंसर बोर्ड को सही कहा जाए या ‘यूएई’ के सैंसर बोर्ड को, इस पर खुल कर बात की जानी चाहिए.

अब धीरेधीरे समाज में यह मांग उठने लगी है कि सैंसर बोर्ड में सिनेमा की समझ रखने वाले ऐसे लोगों को रखा जाना चाहिए, जो बदलते समाज के बदलते आदर्शों और बदलती सामाजिक जरूरतों को समझ सकते हों. दूसरी बात, फिल्म के निर्माताओं ने जम कर प्रचार किया कि उन की फिल्म को 70 कट दिए गए, तो वहीं यूएई के अनुसार फिल्म को महज 1 कट दिया गया है, जोकि सही है क्योंकि ‘ओह माय गौड 2’ में पहले अक्षय कुमार शिव के किरदार में थे, पर भारतीय सैंसर बोर्ड ने बदलवा कर शिव का दूत कहलावा दिया.

माना कि फिल्मकार ने यौन शिक्षा जैसे मुद्दे को फिल्म में उठाया है. मगर इन की नियति पर सवाल उठ रहे हैं. फिल्म के निर्माता अक्षय कुमार व क्रिएटिव निर्माता डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं. ये दोनों आरएसएस और भाजपा भक्त हैं. ऐसे में फिल्म ‘ओह माय गौड 2’ धर्म का बाजार न हो, यह कैसे हो सकता है.

इस फिल्म को शिव के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर के अलावा उज्जैन शहर में फिल्माया गया है. फिल्म में सनातन धर्म व हिंदू धर्म का खुल कर प्रचार किया गया है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यौन शिक्षा व सैक्स जैसे मुद्दे पर मनोरंजक फिल्म बनाने का शायद यही एकमात्र जरिया है. अथवा यों कहें कि इन दिनों देश में जिस तरह का धार्मिक माहौल बन गया है, उसे देखते हुए इस फिल्म को विशाल दर्शक वर्ग तक पहुंचाने के लिए यही ढांचा उपयुक्त है.

बहरहाल, फिल्म 11 अगस्त, 2023 से सिनेमाघरों में पहुंच चुकी है और इस फिल्म को हर किशोरवय उम्र के लड़केलड़कियों, स्कूलों के शिक्षकों व मातापिता को जरूर देखनी चाहिए. यदि इस फिल्म को 7वीं कक्षा के बाद के छात्रछात्राओं को स्कूल व कालेज में दिखाई जाए, तो गलत नहीं होगा.

फिल्म ‘ओह माय गौड 2’ पूरी तरह से अंतर्विरोधों वाली फिल्म है. फिल्म के अंदर एक तरफ अदालती दृश्यों में सैक्स व यौन शिक्षा को ले कर वैज्ञानिक किताबों, वैज्ञानिक पोस्टरों, खजुराहो, कामशास्त्र की बातें की जा रही हैं, तो वहीं शिव, शिव में आस्था, शिव के दास, महाकाल मंदिर, भैरव नाथ मंदिर, सनातन धर्म व संस्कृति, शिवलिंग आदि की बातें की जा रही हैं. शिव के दूत के रूप में अक्षय कुमार, कांति मुद्गल बने पंकज त्रिपाठी से एक जगह कहते हैं कि ईश्वर पर विश्वास खो कर आप ने सबकुछ गलत कर डाला. मतलब कि फिल्म देख कर बाहर निकलने वाले कुछ लोग सवाल कर रहे थे कि यह फिल्म यौन शिक्षा की जरूरत बयां कर रही थी या धर्म पर अंधश्रृद्धा की बात कर रही है.

यहां इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि वर्तमान सरकार ने सब से पहले वाराणसी में काशी कौरीडोर का निर्माण किया और फिर उस से 4

गुना बड़ा उज्जैन शहर में ‘महाकाल कौरीडोर’ बनाया गया, जिस का लोकार्पण 11 अक्तूबर, 2023 को किया गया और उस के बाद वहीं पर फिल्म ‘ओह माय गौड’ का फिल्मांकन किया गया है. स्वाभाविक तौर पर यह फिल्म मध्य प्रदेश सरकार से मिली सब्सिडी पर बनी होगी.

कहानी : फिल्म ‘ओह माय गौड 2’ की कहानी उज्जैन, मध्य प्रदेश में रह रहे कांति शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) के साधारण परिवार से शुरू होती है. शिवभक्त कांति शरण मुद्गल के परिवार में पत्नी (गीता अग्रवाल), एक बेटा विवेक (आरुष वर्मा ) और एक बेटी (अन्वेषा विज) है. कांति शरण महाकाल मंदिर के बाहर फूल, मालाएं व प्रसाद बेचने की दुकान चलाते हुए हंसीखुशी अपना जीवन बिता रहे हैं. उन्होंने मंदिर के मुख्य पुजारी (गोविंद नामदेव) की मदद से अपने बेटे विवेक का दाखिला एक इंटरनैशनल स्कूल में करा रखा है, जिस के संचालक अटल नाथ माहेश्वरी (अरूण गोविल) हैं. पर कांति शरण मुद्गल की जिंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उन के बेटे विवेक का एक तथाकथित (स्कूल के टौयलेट में हस्तमैथुन करते हुए ) अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर उस के कालेज के एक सहपाठी दुश्मनी के चलते वायरल कर देता है. जिस के बाद स्कूल के संचालक विवेक पर सामाजिक अपराध करने का आरोप लगा कर स्कूल से निकाल देते हैं.

समाज में हरकोई उसे, उस की बहन व मातापिता को तंग करने लगते हैं, जिस से विवेक डिप्रैशन में चला जाता है और खुद ट्रेन के आगे अपनी जान देने का भी प्रयास करता है, मगर शिव का दूत (अक्षय कुमार) उसे मरने से बचा लेता है और फिर वह कांति शरण मुद्गल को समझाता है कि वह भगवान शिव पर विश्वास रखे। जो भगवान शिव पर विश्वास रखता है, वह शिव का दास होता है.

वह कांति शरण को उन के बेटे का सम्मान वापस दिलाने के लिए उन्हें सही राह दिखाता है. तब कांति शरण मुद्गल खुद अपने उपर स्कूल के संचालक, डाक्टर (ब्रजेंद्र काला), मैडिकल स्टोर के मालिक (पराग छापेकर), नीमहकीमों, जड़ीबूटी विक्रेताआ आदि पर अदालत में मुकदमा कर देते हैं.

स्कूल की तरफ से अटल नाथ की बहू व मशहूर ऐडवोकेट कामिनी माहेश्वरी (यामी गौतम) मुकदमा लड़ती हैं, जबकि कांति शरण अपनी पैरवी स्वयं करते हैं. अदालत में जज पुरूषोत्तम नागर (पवन राज मल्होत्रा), ऐडवोकेट कामिनी माहेश्वरी के तर्क को नजरअंदाज कर इस मुकदमे की सुनवाई करते हैं. कांति शरण वैज्ञानिक व धार्मिक तर्क देते हुए आरोप लगाते हैं कि उन के बेटे विवेक की जो हालत है, उस के लिए स्कूल दोषी है क्योंकि स्कूल ने उन के बेटे को सैक्स की सही शिक्षा नहीं दी.

अदालत में मुकदमा चलता रहता है। बीचबीच में शिव का दूत कांति शरण को सलाह देते रहता है. अदालत के अंदर कई मोड़ आते हैं. पर अंततः जीत कांति शरण मुद्गल की होती है. विवेक का खोया हुआ आत्मसम्मान उसे मिल जाता है.

लेखक व निर्देशन : मराठी फिल्म ‘टिंग्या’ के अलावा हिंदी फिल्म ‘रोड टू संगम’ का निर्देशन कर चुके अमित राय, जो पूरे 13 साल बाद एक उद्देश्यपूर्ण फिल्म ‘ओह माय गौड 2’ का लेखन व निर्देशन किया है. जोकि एक बेहतरीन कहानी पर सशक्त, साहसी व संवेदनशील पटकथा वाली रोचक फिल्म है. फिल्मकार ने फिल्म

में एकदम वास्तविक अंदाज में भारतीय समाज की सोच व कार्यशैली को पेश किया है. पूरी फिल्म वास्तविक लोकेशन पर फिल्माई गई है, इस कारण भी वास्तविकता का एक पुट आ ही जाता है. फिल्मकार ने स्कूल में यौन शिक्षा के बहाने सत्यपरक व सामाजिक विषमताओं की बात की है. फिल्म बाल मनोविज्ञान को समझने की भी बात करती है. आखिर एक बालक जब एक नृत्य के कार्यक्रम से महज इसलिए निकाल दिया जाता है कि उस का ‘लिंग’ छोटा है, तब वह ‘लिंग’ को बड़ा करने के सवाल व जिज्ञासा के साथ अपने स्कूल शिक्षक से ले कर कई लोगों से बात करता है. कोई भी उस की जिज्ञासा को शांत नहीं करता, तब वह गलत राय के अनुसार हस्तमैथुन करने लग जाता है. इसे फिल्मकार ने जिस सहजता से चित्रित किया है, उस के लिए अमित राय बधाई के पात्र हैं.

उन्होंने निडर हो कर सामाजिक पाखंड को भी उजागर किया है. अमित राय ने इस बात का स्पष्ट चित्रण किया है कि ‘यौन शिक्षा ’ के विरोध में हर धर्मावलंबी है. फिल्म के क्लाइमैक्स में जब जज का बेटा यौन शिक्षा के समर्थन में खड़ा दिखता है तो यह संकेत है कि गुजरती पीढ़ी को नई पीढ़ी के साथ कदमताल कितना जरूरी है. लेकिन यह फिल्म इस बात पर मौन है कि यौन शिक्षा किस तरह से दी जाए कि वह अश्लील न लगे. इतना ही नहीं फिल्म का क्लाइमैक्स काफी घटिया है.

फिल्मकार ने इस बात को नजरंदाज कर दिया कि स्कूल संचालक ने स्कूल के अंदर अवैध तरीके से अश्लील वीडियो का फिल्मांकन करने वाले छात्र के खिलाफ काररवाई क्यों नहीं की? क्या यह अपराध नहीं है?

अभिनय : किशोरवय बालक व बालिका के मध्यवर्गीय पिता कांति शरण मुद्गल, जोकि अपने बेटे के सम्मान को वापस लाने की लड़ाई लङते हैं, उस किरदार में पंकज त्रिपाठी ने जान डाल दी है. मूलतया बिहारी होते हुए भी पंकज त्रिपाठी ने मालवा की बोली को बहुत बेहतरीन तरीके से पकड़ा है. वैसे भी पंकज त्रिपाठी मंझे हुए कलाकार हैं. लेकिन अपने ‘छोटे’ लिंग को बड़ा करने की फिक्र में दरदर भटकते, फिर सामाजिक अपराध के दोषारोपण के साथ स्कूल से बाहर निकाले जाने के बाद अपमान सहते हुए डिप्रैशन का शिकार होने व अपने पिता की लड़ाई देख कर डिप्रैशन से उबरने वाले विवेक के किरदार को जितनी सहजता व डूब कर किशोरवय के बाल कलाकार आरूष वर्मा ने निभाया है, वह सभी अतिसक्षम कलाकारों पर भारी पड़ गया है. यदि आरूष का अभिनय निम्नस्तर का होता, तो फिल्म का प्रभाव नहीं होता. अन्वेषा विज ने अपने कठिन किरदारों में शानदार संभावनाएं दिखाई हैं.

ऐडवोकेट कामिनी माहेश्वरी के किरदार में यामी गौतम जमी हैं. पर कई दृश्यों में वह मात खा गई हैं. अक्षय कुमार के हिस्से कम दृश्य आए, यह अच्छा ही है. पत्रकार से अभिनेता बने पराग छापेकर महज शोपीस ही हैं. महाकाल मंदिर के मुख्य पुजारी के किरदार में गोविंद नामदेव अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

इस के अलावा ब्रजेंद्र काला, गीता अग्रवाल व अन्य कलाकारों के हिस्से कुछ खास नही आया. कुछ साल पहले प्रदर्शित फिल्म ‘जौली एलएलबी’ में सौरभ शुक्ल ने जज को एक नया रंग दिया था. कुछ हद तक जज पुरूषोत्तम नगर ने उसी अंदाज में अपना पुट डालते हुए निभाया है. मगर जज को हिंदी समझ में नहीं आती है, यह बात कुछ अजीब सी लगती है, जिस के लिए लेखक व निर्देशक दोषी हैं.

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