तीज स्पेशल: 12 साल छोटी पत्नी- भाग 3-सोच में फर्क

वह हंस पड़ी, “खबर मिल गई आप को?”

“हां, स्पेशल इनविटेशन है. मालती और आंटी तो स्वागत की तैयारियों में जुटी होंगी?”

“हां, भाभी को सब से पहले पार्लर जाना याद आया.”

“सच…?”

“हां भाभी, मुझे तो लगता है कि वे यहां भाभी से मिलने ही आते हैं,” कह कर नीरा जोर से हंसी, तो मैं ने झूठ ही डांटा, “खबरदार, अपनी भाभी का मजाक नहीं बनाते.”

“आप से ही कह सकती हूं, वे तो भाभी से फोन पर भी टच में रहते हैं, उन का कहीं शिविर होने वाला है, भाभी वहां जा कर रहने की सोच रही हैं, आजकल भाभी सचमुच बहुत एक्साइटेड घूम रही हैं.”

“नीरा, यह बहुत चिंता की बात है. कुछ तो करना चाहिए.”

“हमारे यहां कुछ नहीं हो सकता, भाभी. सब की आंखों पर पट्टी बंधी है, उन के आने के टाइम पर मैं तो अपने फ्रैंड के घर चली जाऊंगी, मैं ने सोच लिया है, मैं तो मेंटली इन ड्रामों से थक चुकी हूं. अच्छाभला नाम है, नीलेश. दुनिया को पत्थर की दुनिया कहते हैं, तो पत्थर वाले बाबा हो गए. आशीर्वाद देने के बहाने जिस तरह से छूते हैं न, घिन आने लगती है. पर अपने घर वालों का क्या करूं?”

“मेरे पास एक आइडिया है, साथ दोगी? फिलहाल तो मालती के सिर से इन का भूत उतारना बहुत जरूरी है, नहीं तो शिविर में जा कर बैठ जाएगी. और आंटी झींकती भी रहेंगी और कुछ कह भी न पाएंगी.”

“बोलो भाभी, क्या करना है?”

मैं ने और नीरा ने बहुत देर तक काफी बातें की, अच्छाखासा प्रोग्राम बनाया और फोन रख दिया.

सुधीर के घर जाने वाले दिन जब मैं बिना कोई तमाशा किए आराम से तैयार होने लगी, तो जयराज को बड़ी हैरानी हुई, बोल ही पड़े, “क्या हुआ? बड़ी शांति से जाने के लिए तैयार हो रही हो?”

यह सुनते ही मुझे हंसी आ गई, तो वे और चौंके, ध्यान से मुझे देखा, उन की आंखों में तारीफ के भाव देख मैं हंस पड़ी, “हां, हां, जानती हूं कि अच्छी लग रही हूं.”

“तुम तो ऐसे तैयार हो गई हो, जैसे किटी पार्टी में जा रही हो.”

“नीलेश ने बुलाया है, सजना तो पड़ेगा ही,” मुझे शरारत सूझी, तो वे बुरा मान गए, “कैसी बकवास करती हो?”

“32-35 साल में बाबा बन गया तो अरमान तो खत्म नहीं हो गए होंगे न? वरना मुझे विशेष रूप से बुलाने का क्या मतलब था? पुरुष भक्त काफी नहीं हैं?”

“जिस ने घरसंसार न बसाया हो, उस के लिए ऐसी बातें करनी चाहिए? कितना त्यागपूर्ण जीवन जीते हैं. सबकुछ तो त्याग रखा है. तुम जैसी महिलाओं के कारण धर्म खतरे में है,” जयराज ने जब यह ताना कसा, मुझे बहुत तेज गुस्सा आया. मैं ने अपने मन में और पक्का ठान लिया कि मिस्टर नीलेश का तो भांडा फोड़ कर के रहूंगी. मैं चुप रही. मालती के घर पहुंचे, ऐसे दृश्य तो अब मेरे लिए आम रह ही नहीं गए हैं, पूरी तरह बाबाओं के प्रति अंधश्रद्धा में डूबे पति के कारण मैं ये अनुभव काफी झेल चुकी हूं. मालती जिस तरह से तैयार थी और जिस तरह से उस की नजर इस फर्जी बाबा को निहार रही थी, मुझे समझने के लिए कुछ शेष न रहा था.

किचन में मेरी और नीरा की कुछ जरूरी बातें हुईं. मैं नीलेश को प्रणाम करने उस के पास गई, उस पर अपना जाल फेंका, उसे तो फंसना ही था, नीरा दूर खड़ी मेरा और नीलेश का वीडियो बना रही थी, जो हम बाद में मालती को दिखाने वाले थे. पुरुष बस 3-4 ही थे, जो एक कोने में बैठे थे.

सजीसंवरी महिलाओं पर नीलेश की नजरें यहां से वहां घूम रही थीं, आशीर्वाद देने के बहाने उस ने मुझे कई बार छुआ, मन हुआ कि एक जोर का थप्पड़ मार कर सारी मस्ती भुला दूं, पर इस से क्या होता. लोग मुझे बुराभला कहते और फिर यह मजमा कहीं और लगता.

अभी मेरा एक ही उद्देश्य था कि मालती के सिर से नीलेश का भूत उतरे. वह मेरी अच्छी दोस्त थी, पर इस समय इस कपटी के हाथों कोई नुकसान न उठा ले, बस यही चिंता थी मुझे. वैसे वीडियो बन गए थे, जैसे मुझे चाहिए थे. जब सब हो गया, नीलेश और उस के साथी चले गए, हमें खाने के लिए रोक लिया गया था. सब से फ्री हो कर मैं, नीरा और मालती थोड़ी देर साथ आ कर बैठे, फिर नीरा ‘चाय बना कर लाती हूं,’ कह कर बाहर चली गई. मैं ने बात छेड़ी, “कहो, कैसा रहा बाबा का दर्शन?”

वह यों शरमा गई, तो मेरा दिमाग घूम गया, “क्यों भाई, तुम्हारा चेहरा क्यों शर्म से लाल हो रहा है?”

“मुझे नीलेश के प्रवचन अच्छे लगते हैं, मैं कुछ दिन उन के शिविर में जा कर रहने वाली हूं.”

“बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा? तुम्हारा घर कौन देखेगा?”

“सब ईश्वर की मरजी से ही तो होता है.”

“ईश्वर क्या तुम्हारे बच्चों का होमवर्क करवाएंगे?”

“जयराज भाई जैसी भक्ति क्यों नहीं रखती तुम?” उस ने चिढ़ कर कहा. मैं ने तो आज ठान ही लिया था, ”इसलिए, क्योंकि ये बाबा उन की कमर नहीं सहलाते, बहाने से बारबार उन्हें नहीं छूते. हम महिलाओं को जो इन महापुरुषों के स्पर्श से घिन आती है, उस का जयराज जैसों को कहां अंदाजा होता है? क्यों इन पर मोहित हुई चली जा रही हो? ये वीडियो देखोगी? आज का ही है. ये देखो, कितनी बार मेरे करीब आने की कोशिश की है आज इस लंपट ने. देखो,” कहते हुए मैं ने उसे वीडियो दिखाए, जहां वह नीलेश मुझ पर लट्टू होहो कर पास आए जा रहा था.

यह वीडियो देख मालती का मुंह लटक गया. मैं ने कहा, “दोस्त हो मेरी. तुम्हें मूर्खता करते हुए नहीं देख सकती. और जयराज पति हैं, इन सब बातों पर रोज तो उन से नहीं लड़ सकती न. फिर भी कोशिश तो कर ही रही हूं, आज जा कर ये वीडियो उन्हें भी दिखाऊंगी. तुम जैसे भक्तों को सुधारने में जितनी मेहनत करनी पड़े करूंगी.”

इतने में नीरा चाय ले कर आ गई. मैं ने उसे इशारे से बता दिया कि काम हो गया है. थोड़ी देर हलकीफुलकी बातें कर के हम वहां से चलने के लिए निकले.

जयराज ने विदा लेते हुए मालती से कहा, “भाभी, अच्छा आयोजन था. ऐसे ही फिर किसी प्रोग्राम में जल्दी मिलते हैं.”

मालती ने बेदिली से कहा, “नहीं, भाईसाहब. किसी और दिन ऐसे ही मिल लेंगे, मिलने के लिए ऐसे ही आयोजन रह गए हैं क्या?”

मालती के इस जवाब पर जयराज ने मुझे घूर कर देखा. मैं जोर से हंस पड़ी, कहा, “और क्या, आ जाओ हमारे घर वीकेंड पर. साथ डिनर करते हैं. सेलिब्रेट करते हैं,” सब के मुंह से एकसाथ निकला, “क्या सेलिब्रेट करना है?”

नीरा और मैं बस खुल कर हंस दिए, कहा कुछ नहीं. मालती भी समझ गई थी और फिर वह भी हंस पड़ी.

शाह फैमिली को धमकी देगी डिंपल, अनुपमा निकालेगी हेकड़ी

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में होगा हाई वोल्टेज ड्रामा. शो के मेकर्स सीरियल को नंबर वन बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे है. टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में आए दिन नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलते है. ‘अनुपमा’ के ट्विस्ट ने दर्शकों का दिमाग हिला रखा है. टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में अपकमिंग एपिसोड में काफी धमाकेदार होने वाला है.

डिंपल को पड़ा जोरदार चांटा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड देखने को मिलेगा कि कपाड़िया हाउस में अनुज अपने भाई अंकुश पर भड़कता है क्योंकि वह रॉमिल को सिर पर चढ़ा रहा है. इस दौरान अनुज सबको बोलता है कि उसे पता है कि घर और बिजनेस में क्या हो रहा है और जल्द ही मीटिंग के लिए तैयार हो जाए

वहीं दूसरी तरफ शाह हाउस में ड्रामा होगा. डिंपल परिवार वालों के खिलाफ हद से ज्यादा बदतमीजी करेगी, जिस वजह से अनुपमा उसको जोरदार चांटा जड़ देती है. समर अपनी मां से सवाल पूछने की हिम्मत करता है, लेकिन अनुपमा उसे पूरे 101 थप्पड़ मारने की धमकी देकर चुप करवा देती है.

 

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डिंपल से सवाल करेगी अनुपमा

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि अनुपमा डिंपल को जवाब देते हुए कहती है, ‘तुझे मुझसे बात करनी है तो सिर्फ मुझतक रहे. मेरे पति और मां-पिता पर गई, तो ऐसे ही जवाब मिलेगा.’

इसके बाद अनुपमा डिंपल से कहेगी कि मुझे जरा भी शौक नहीं है किसी और की गृहस्थी में टांग घुसाने की. तुम लोग अच्छी तरह घर क्यों नहीं संभालते हो. मैं तुम लोगों के भरोसे तो अपने बा-बाबूजी को नहीं छोड़ सकती. इस घर में सबने तुझे अपनाने की कोशिश की. तूने इस घर के लिए क्या किया है. ‘ अनुपमा समर और डिंपल को ताना मारते हुए कहते हैं कि तुम लोगों को साइकिल चलाने तक आती नहीं है और हवाई जहाज चलाना है.

 

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वहीं शो में आगे देखने को मिलेगा कि डिंपल अपना हिस्सा मांगती है. जब तक हमें अपना हिस्सा नहीं मिलेगा. तब तक हम तो यहां से नहीं जाएंगे.’ यह सब सुनकर सब लोग डिंपल की तरफ देखने लगते है. इसके बाद डिंपल कहती है- अगर हमें अपना हिस्सा नहीं मिलेगा तो अदालत हमें अपना हक दिला देगी. इसके बाद अनुपमा घर का बंटवारा करती है और उन्हें घर में हर एक सामान के पैसे देने के लिए कह देती है.

व्हीट ग्रास जूस के अद्भूत फायदे, जूस से करें दिन की शुरूआत, रहेंगे तरोताजा

स्वस्थ रहने के लिए हम सभी क्या-क्या नहीं करते. हम सभी चाहते है हमारा शरीर फिट और स्वस्थ रहे है। हैल्थी रहने के लिए पोषक तत्वों का होना बेहद जरूरी है.

व्हीट ग्रास जूस में सबसे ज्यादा पोषक तत्व मौजूद होते है, इसके साथ ही आप हाइड्रेटेड रहना चाहते है तो व्हीट ग्रास जूस का सेवन जरूर करें. गर्मियों के सीजन में बॉडी को हाइड्रेटेड रखना बहुत जरूरी है. व्हीट ग्रास में कई सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसमें कई विटामिन, आवश्यक अमीनो एसिड और आयरन, जिंक और मैग्नीशियम जैसे अन्य खनिज भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

व्हीट ग्रास जूस का सेवन करने से प्रतिरक्षा और प्रजनन क्षमता में सुधार, वजन घटाने में सहायक, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने समेत कई अन्य लाभ प्रदान करता है.

व्हीट ग्रास जूस के अद्भूत फायदे

  1. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है

व्हीट ग्रास जूस एक फायदेमंद इम्युनिटी बूस्टर है और बिमारियो-रोगों को दूर करता है. इसमें पाए जाते है महत्वपूर्ण एंजाइमों और अमीनो एसिड से भरपूर है. जो आपके बॉडी के हानिकारक प्रदूषकों और कार्सिनोजेन्स के दुषप्रभावों बचाता है.

2. वजन घटाने में सहायक

व्हीट ग्रास जूस में सेलेनियम नामक खनिज होता है, जो थायरॉयड ग्लैंड के कमकाज को बेहतर बनाने में मदद करता है. व्हीट ग्रास वजन बनाए रखने में भी मदद करता है. इसके साथ ही व्हीट ग्रास में पाए जाने पोषक तत्व आपके फूड क्रेविंग और ओवरईटिंग से दूर रखता है. वजन कम करने के लिए आपको रोजना खाली पेट एक गिलास जूस पीना चाहिए.

3. पाचन में सहायक

व्हीट ग्रास जूस में अधिक मात्रा में एंजाइम और फाइवर के कारण आपके पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद करता है. यह सूजन, गैस और कब्ज जैसी समस्याओं को रोकने में मदद करता है.

4. बॉडी को डिटॉक्स करता है

गलत खान-पान की आदत और गलत जीवनशैली की वजह से लोग अस्वस्थ रहते है. व्हीट ग्रास में क्लोरोफिल होता है जो शरीर में रक्त और लीवर को डिटॉक्स करने मदद करता है और सेल्स को मजबूत करता है. व्हीट ग्रास जूस पीने से रक्त कोशिका की संख्या बढ़ती है और ब्लड के स्तर में भी वृद्धि होती है.

BB OTT 2: ट्विटर पर ट्रेंड हुए एल्विश, अभिषेक के फैंस को लगा झटका

सलमान खान का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो बिग बॉस ओटीटी 2 को दर्शकों से खूब प्यार मिल रहा है. बिग बॉस ओटीटी 2 फिनाले के पड़ाव पर पहुंच गया है. बिग बॉस ओटीटी 2 टॉप 5 कंटेस्टेंट्स मिल गए है. फाइनल में मनीषा रानी, एल्विश यादव, पूजा भट्ट, अभिषेक मल्हान और बेबिका धुर्वे पहुंच गए हैं.

बिग बॉस ओटीटी 2 में एल्विश यादव ने बतौर वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट एंट्री ली थी और तभी से एल्विश का नाम ट्विटर पर छाया हुआ है. वहीं, एल्विश के फैंस ने उनको अपना विनर मान लिया है. दरअसल, बिग बॉस ओटीटी 2 के ग्रैंड फिनाले से सिर्फ दो दिन रह गए है. ऐसे में एल्विश के फैंस ने ट्विटर पर #ElvishForTheWin और #VoteForElvish ट्रेंड करवाया है.

ट्विटर पर एल्विश यादव छाए हुए है

बिग बॉस ओटीटी 2 में एल्विश यादव ने बतौर वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट आए है. वहीं अभिषेक मल्हान शुरुआत से ही घर में स्टॉग कंटेस्टेंट साबित हुए है. दोनों कंटेस्टेंट्स की सोशल मीडियो पर तगड़ी फैन फॉलोइंग है. इस बीच एल्विश यादव के फैंस ट्विटर पर गदर मचा दी है. एल्विश के फैंस उनको विनर बनाने के लिए पूरा जोर लगा रहे है. ट्विटर पर छाया #ElvishForTheWin और #VoteForElvish ट्रेंड. लाखों संख्या में ट्वीट किए जा रहे है. इसके साथ ही कुछ लोग फैंस से एल्विश के लिए ज्यादा से ज्यादा वोट करने की अपील कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘एल्विश का दिल बहुत बड़ा है… लेकिन फुकरा आत्म-मुग्ध, असुरक्षित और अहंकारी व्यक्ति है… एल्विश सच्चा विजेता है.’ इसी तरह के और भी ट्वीट आ रहे हैं.

टॉप 5 कंटेस्टेंट्स

वहीं बिग बॉस ओटीटी 2 के टॉप 5 में एल्विश यादव, अभिषेक मल्हान, मनीषा रानी, पूजा भट्ट और बेबिका धुर्वे ने अपनी जगह बनाई है. फैंस मनीषा रानी को टॉप 3 में देख रहे हैं. वहीं यह दावा किया जा रहा है कि बिग बॉस ओटीटी 2 में टॉप 3 की रेस में पूजा भट्ट और बेबिका धुर्वे पीछे रह जाएंगी. एल्विश यादव, अभिषेक मल्हान और मनीषा रानी आगे जाएंगे. इन तीनों में से ही कोई एक विनर हो सकता है.

क्या है परित्याग यानी डिजर्शन का कारण?

अविनाश की शादी के कुछ महीने बहुत आराम से बीते. लेकिन धीरेधीरे उसे अपने इस रिश्ते से उलझन सी महसूस होने लगी. कुछ महीने बाद अविनाश को अपनी पत्नी रिया का एक अलग ही रूप नजर आया. पहले तो अविनाश ने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन उस के बाद भी उस का व्यवहार नहीं बदला और अकसर दोनों के बीच में मनमुटाव रहने लगे. यही नहीं, रिया का परिवार के हर सदस्य से किसी न किसी बात पर झगड़ा होता. और तो और वह अकसर नौकरचाकरों पर भी चिल्लाती रहती.

अविनाश ने बहुत बार चाहा कि इस रिश्ते को खत्म कर दे. पर घर के बड़ों ने हर बार समाज की दुहाई दे कर अविनाश की इस सोच को विराम लगा दिया. ऐसे ही कुछ साल और निकल गए. लेकिन पानी सिर के ऊपर से जाने लगा और एक दिन अविनाश बिना बताए रिया को उस के घर छोड़ कर चला गया. फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

ऐक्सपर्ट के मुताबिक, यह अलगाव डिजर्शन होता है यानी एकतरफा फैसला. आइए जानते हैं इसे विस्तार से.

रिश्ते में ऐसे बहुत से पड़ाव होते हैं, जिस में प्यार और दुख जैसी अलगअलग भावनाओं को समयसमय पर महसूस किया जाता है. जब नईनई शादी होती है, तब दोनों पार्टनर एकदूसरे के साथ काफी प्यार और सुख से रहते हैं और उस समय रिश्ता काफी अच्छे से आगे बढ़ता है. लेकिन जैसे ही थोड़ा समय हो जाता है, तब असली जीवन की समस्याएं शुरू हो जाती हैं. और फिर दोनों पार्टनर को आपस में काफी मेलजोल बना कर रहने की जरूरत होती है.

कुछ पार्टनर दुख और क्लेश वाले जीवन के पड़ाव को झेल नहीं पाते और एकदूसरे से अलग भी नहीं हो पाते. ऐसे पार्टनर एकदूसरे को पता भी नहीं चलने देते, लेकिन अपने दिल में अपने पार्टनर की जगह को खत्म कर देते हैं.

एक रिश्ते में डिजर्शन का क्या मतलब है?

जब एक व्यक्ति खुद को अपने पार्टनर के प्रति किसी भी रूप से जिम्मेदार न समझे और अपनेआप को आजाद मान कर केवल अपने लिए ही सबकुछ करे, तो इसे डिजर्शन कहा जाता है. एक पार्टनर अपने घरपरिवार को छोड़ देता है और उस के पार्टनर को इस बारे में कुछ पता भी नहीं होता है. यह अचानक से होता है और इस में दूसरे पार्टनर की कोई सहमति नहीं होती है. कई जगह तो ऐसा करने वाले व्यक्ति पर आरोप लगा कर उसे सजा भी मिलती है.

अलग होने और डिजर्शन में क्या फर्क है?

डिजर्शन और सैपरेशन दोनों अलगअलग होते हैं. डिजर्शन में एक पार्टनर दूसरे को बिना बताए अलग होता है. इस में दूसरे पार्टनर की सहमति नहीं होती है. वह आपस में बातचीत भी नहीं करते हैं.

सैपरेशन में दोनों पार्टनर एकदूसरे की सहमति से और बातचीत कर के एक सहमत फैसला ले कर एकदूसरे से अलग होते हैं. अगर दोनों में सहमति नहीं भी होती है तो भी पार्टनर अपने पार्टनर को बताने के बाद ही अलग होता है.

अगर पार्टनर ने डिजर्शन का फैसला लिया है, तो उस के वापस आने की उम्मीद काफी कम होती है और वह अकसर वापस नहीं आता है, जबकि सैपरेशन में अगर पार्टनर फिर से खुश हो जाए और एकदूसरे से सहमत हो जाएं तो वह वापस आ सकता है.

डिजर्शन के कारण

  1. किसी और वजह से डाइवोर्स न हो पाना 

जब पार्टनर एक रिश्ते से बाहर निकलना चाहता है और उसे कोई कारण या बहाना नहीं मिल रहा है, तो अकसर वह खुद को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए रिश्ते से भागना ही बेहतर समझता है.

2. पतिपत्नी का एकसाथ रहना असंभव हो गया हो

जब पति और पत्नी एकदूसरे के साथ न रह पा रहे हों और उन का एकसाथ रहना सभी के लिए समस्या बन रहा हो तो भी इस तरह के नतीजे सामने आते हैं.

3. शारीरिक और मानसिक रूप से क्रूरता का सामना करना 

जब एक पार्टनर अपने पार्टनर को शारीरिक या मानसिक रूप से दुख पहुंचाता है, तो वह पार्टनर किसी को बिना बताए अलग होना ही बेहतर समझता है.

4. धोखे में रहना

जब एक पार्टनर अपने पार्टनर को बारबार धोखा दे रहा हो और इस चीज को अपनी आदत बना ले तो भी दूसरा पार्टनर परेशान हो कर उसे बिना बताए उस से अलग हो जाता है.

क्या कहता है कानून

हिंदू विवाह अधिनियम,1955 में विवाह विच्छेद के बहुत से आधार हैं. अधिनियम की धारा 13(1) (आईबी) एक के मुताबिक, परित्याग (डिजर्शन)- के अंतर्गत पति या पत्नी में से किसी ने अपने साथी को छोड़ दिया हो और विवाह विच्छेद की अर्जी दाखिल करने से पहले वे लगातार दो वर्षों से अलग रह रहे हों. तो यह विवाह विच्छेद मान्य है. ‘परित्याग’ शब्द का मतलब मैरिज के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता का परित्याग है.

अब टर्म इंश्योरेंस खरीदने वाली महिलाओं की संख्या 9 प्रतिशत से बढ़ कर 12 प्रतिशत हुई

टर्म इंश्योरैंस परिवार के लिए एक सिक्योरिटी लेयर के रूप में काम करता है और परिवार के कमाऊ सदस्य के जल्दी निधन की स्थिति में परिवार की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने में सहायक होता है. समय के साथसाथ महिलाओं की भूमिकाएं और जिम्मेदारियां बदल रही हैं. अब कामकाजी महिलाएं भी परिवार में कमाने वाले सदस्य की भूमिका निभा रही हैं. साथ ही, गृहिणियां भले आय अर्जित नहीं करती हैं, लेकिन वे अपने योगदान के माध्यम से अपने घरों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.

पौलिसी बाजार के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में टर्म इंश्योरैंस खरीदने वालों में महिलाओं की संख्या 9 प्रतिशत और पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 91 प्रतिशत था. हालांकि कोरोना महामारी के बाद से महिलाओं में टर्म इंश्योरैंस के प्रति जागरूकता बढ़ी है और वर्ष 2023 में यह आंकड़ा 9 प्रतिशत से बढ़ कर 12 प्रतिशत हो गया है.

इतना ही नहीं, Q1 वित्तीय वर्ष 24 में, 31-50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा खरीदी गई पौलिसियों की हिस्सेदारी 57 प्रतिशत (उच्चतम) थी, जबकि 18-30 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत रही. इस का मतलब यह है कि वित्तीय स्थिरता आते ही महिलाएं टर्म प्लान में निवेश के बारे में अधिक जागरूक हो जाती हैं.

ऋषभ गर्ग, हैड टर्म इंश्योरैंस, पौलिसी बाजार डौट कौम का कहना है कि कामकाजी महिलाओं के लिए टर्म कवर जरूरी है. कामकाजी महिलाएं या तो प्राथमिक या सहअर्जक के रूप में अपने परिवार के वित्त में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अगर किसी कमाने वाले सदस्य के साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण होता है तो परिवार उस महत्वपूर्ण आय को खो देता है, जो कर्ज चुकाने, बच्चों की उच्च शिक्षा की लागत को पूरा करने या बुजुर्ग मातापिता के पालनपोषण की ओर जाती थी.

टर्म प्लान से भुगतान वित्तीय बफर के रूप में काम कर सकता है, इसलिए आदर्श रूप से कामकाजी पुरुषों के समान कामकाजी महिलाओं के पास भी अपनी वार्षिक आय का 10 गुना कवर होना चाहिए.

गृहिणियां और उन का आर्थिक महत्व

भारत में अनुमानित 150 मिलियन गृहिणियां हैं, जो आय अर्जित कर घर में योगदान नहीं देती हैं, लेकिन वे घर का प्रबंधन करने और परिवार के सदस्यों की देखभाल करने में काफी योगदान देती हैं. गृहिणी की अनुपस्थिति में परिवार के सदस्य, बच्चे की देखभाल, घरेलू बिल और अन्य विविध लागतों को कवर करते हैं. कामकाजी महिलाओं के लिए टर्म इंश्योरैंस हमेशा से एक सीधा प्रस्ताव रहा है.

लेकिन जब गृहिणियों की बात आती है, तो बीमाकर्ता मुख्य रूप से संभावित नैतिक जोखिम के कारण उन्हें टर्म कवर देने से हिचकते हैं. मगर गृहिणियां भी अब टर्म इंश्योरैंस का विकल्प चुन सकती हैं, भले ही उन के पति के पास यह पौलिसी हो या नहीं.

होममेकर्स को उन की घरेलू आय के आधार पर टर्म कवर दिया जाता है. 18 से 50 वर्ष की आयु के बीच की गृहिणी, जो स्नातक हैं या 10वीं या 12वीं पास हैं, और जिन की न्यूनतम घरेलू आय 5 लाख रुपए है, वे एक करोड़ रुपए तक का टर्म कवर खरीद सकती हैं.

पौलिसी बाजार के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 75 प्रतिशत गृहिणियों ने 25 से 50 लाख के टर्म कवर को खरीदा, वहीं अगर कामकाजी महिलाओं की बात करें, तो 5 में से 2 कामकाजी महिलाओं ने 50 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक के टर्म कवर में निवेश किया और प्रत्येक 4 में से एक महिला ने एक करोड़ रुपए से अधिक के टर्म कवर का विकल्प चुना.

जैसेजैसे महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती जा रही हैं, उन के परिवार के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए टर्म इंश्योरैंस प्रोडक्ट्स में उन्हें शामिल करने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है.

कीमतों की तुलना करना

अवधि चुनते समय इस बात पर विचार करें कि आप अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों जैसे बच्चों की शिक्षा, शादी और होम लोन चुकाना आदि को कब तक पूरा कर पाएंगे. कार्यकाल समाप्त होने तक आप के जीवनसाथी और आप के पास रिटायरमैंट के दिनों के लिए पर्याप्त पैसा होना चाहिए.

टर्म इंश्योरैंस पौलिसी खरीदते समय आप को खरीदने से पहले विभिन्न इंश्योरैंस कंपनियों के प्रीमियम की तुलना करनी चाहिए. पौलिसी बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की पालिसी 9 से 28 फीसदी तक सस्ती हो सकती हैं.

औयली स्किन से परेशान हैं

हरकोई चाहता है कि उस का चेहरा सुंदर दिखे लेकिन कई बार सीबम का उत्पादन अधिक होने के कारण औयली, मुंहासे, ब्लैकहैड्स और व्हाइटहैड्स जैसी त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.

प्रदूषण और धूलमिट्टी से औयली स्किन वाले लोगों के त्वचा पर उभार भी आ सकता है. अगर आप भी ऐसी समस्याओं से परेशान हैं, तो यहां आप के लिए बैस्ट तरीके दिए गए हैं :

  1. क्लींजिंग करें

चेहरे के औयल को बैलेंस करने के लिए क्लींजिंग करें. अपने चेहरे पर जमी गंदगी और तेल से छुटकारा पाने के लिए दिन में 2 या 3 बार चेहरे को साफ करना बेहद जरूरी है. औयली स्किन के लिए ऐसे क्लींजर का उपयोग करें जो औयल फ्री हो. क्लींजर का उपयोग करते हुए ध्यान रखें कि ऐसी क्लींजिंग टैकनिक्स का सहारा न लें जो आप की स्किन की प्राकृतिक नमी को खत्म कर देती है.

ऐसे प्रोडक्ट्स को आजमाएं जिन में सैलिसिलिक एसिड, नीम, हलदी, टी ट्री औयल, शहद वगैरह हो.

2. स्क्रबिंग 

सप्ताह में 1 या 2 बार स्क्रब जरूर करना चाहिए. इस से चेहरे की गंदगी और डैड स्किन सैल्स को खत्म करने में मदद मिलेगी, जिस से पिंपल्स, व्हाइटहैड्स और ब्लैकहैड्स से छुटकारा मिल सकता है. इसलिए अपनी स्किन की देखभाल के लिए अपनी दिनचर्या में ऐक्सफोलिएशन को शामिल करें. ध्यान रखिए कि त्वचा को कठोर तरीके से न रगड़ें.

3. फेस मास्क का उपयोग 

ऐक्सफोलिएशन के बाद फेस मास्क जरूर लगाएं. आप को हफ्ते में चंदन, मुलतानी युक्त फेस पैक का इस्तेमाल करना चाहिए. इन से आप के चेहरे का अतिरिक्त तेल अवशोषित हो जाता है.

4. अल्कोहल फ्री टोनर का इस्तेमाल करें 

आप को प्रतिदिन अल्कोहल फ्री टोनर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस से स्किन का अतिरिक्त तेल हटाने में मदद मिलती है। गुलाबजल एक अच्छा टोनर है.

5. मोइश्चराइजर लगाना न भूलें 

औयली स्किन को मोइस्चराइजिंग और हाइड्रेशन की जरूरत होती है. औयली स्किन के लिए औयल फ्री, वाटर बेस्ड मोइस्चराइजर चुनना चाहिए.

6. रोजाना सनस्क्रीन लगाएं 

औयली स्किन वाले लोग सनस्क्रीन लगाना स्किप कर देते हैं क्योंकि इस से उन की स्किन चिपचिपी हो सकती है. सनस्क्रीन न लगाने से पिगमैंटेशन, दागधब्बे हो सकते हैं. इसलिए अपनी स्क्रीन पर वाटर बेस्ड सनस्क्रीन लगाएं. जंकफूड खाने से बचें, पानी का अधिक से अधिक सेवन करें जिस से आप हाइड्रेटेड रहेंगे और टौक्सिंस को बाहर निकाल पाएंगे.

अपनी डाइट में फल और हरी सब्जियों को शामिल करें. ये सभी चीजें फौलो करने से आप की स्किन के औयल को बैलेंस किया जा सकता है.

बंटवारा- भाग 4: क्या थी फौजिया की कहानी

इधर, अफशां को काफी देर से बेबे की कोठरी में दरवाज़ा बंद कर के बैठे हुए देख कर रजिया की छोटी भाभी ने फ़ौरन अपनी सास के कान भरे और दरवाज़ा खुलवाने को कहा. फौजिया दनदनाती हुई आई और दरवाज़े पर लात मार कर रजिया से दरवाज़ा खोलने को कहा. तो झट से अपना फोन कुरते की जेब में डाल कर अफशां बेबे से शीरमाल की रैसिपी पूछने लगी और रजिया ने दरवाज़ा खोल दिया.

बीकानेर में अपने घर में बैठे किशनचंद मेघवाल ने पोते से पूछा कि उन की बीरी को भारत लाने   का प्रबंध कैसे किया जाएगा? संजय ने अपने दादू को हौसला देते हुए कहा कि वह जल्दी ही भारतीय विदेश मंत्रालय में इस बारे में पत्र लिखेगा और दादू को उन की बीरी से मिलवाने का प्रयत्न करेगा.

कुछ महीनों के प्रयास के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से बात कर के अमीरन उर्फ़ लक्ष्मी के भारत लौटने का प्रबंध करवा दिया और सरकारी हुक्म होने के कारण बेबे के बेटे उस के भारत जाने में कोई रुकावट नहीं डाल सके. मगर अपनी मां को धमकी ज़रूर दे दी कि अगर वह हिंदुस्तान गई तो बेटे वापस उस को अपने घर में कभी नहीं आने देंगे. अपने देश जाने की ख़ुशी में बेबे ने बेटे की बात पर कोई ध्यान ही नहीं दिया और अपने टीन के बक्से में सफ़र पर ले जाने का सामान रखने लगी.

नियत दिन पर रजिया अपनी बेबे को ले कर अपना वादा पूरा करने के लिए चल पड़ी. उस के अब्बू ने तो साथ चलने से इनकार कर दिया, इसलिए अफशां ने अपने अब्बा से गुजारिश की तो अजीबुर्रहमान अमीरन और रजिया को ले कर कराची रेलवे स्टेशन पंहुच  गए. वहां पंहुचने पर पता चला कि दूतावास की तरफ से भारत जाने का प्रबंध केवल लक्ष्मी के लिए  किया गया है, इसलिए और कोई उस के साथ नहीं जा सकता है. रजिया ने बेबे की उम्र का हवाला देते हुए साथ जाने की इजाज़त मांगी लेकिन पाकिस्तान सरकार ने अनुमति नहीं दी. निराश रजिया ने भीगी आंखों से अपनी बेबे को रुखसत किया और अफशां के अब्बा के साथ अपने गांव वापस आ गई. अफशां द्वारा बेबे के आने की सूचना  मिलने पर संजय व उस के पापा अमृतसर के लिए रवाना हो गए.

इतना लंबा सफ़र अकेले तय करने में लक्ष्मी को बहुत घबराहट हो रही थी. तब उस के साथ सफ़र कर रही एक महिला ने उस से बातें करनी शुरू कीं और बेबे की कहानी सुनने के बाद उस ने रास्तेभर बेबे की पूरी देखभाल की और अमृतसर पर लक्ष्मी के परिवार वालों को उसे सौंप कर ही वहां से गई. अमृतसर स्टेशन पर कुछ रेलवे अधिकारियों के अलावा  प्रैस के संवाददाता और संजय एवं उस के पिता बरसों से बिछुड़ी लक्ष्मी की प्रतीक्षा में फूलों के गुलदस्ते ले कर खड़े थे.  संजय और उस के पिता ने आगे बढ़ कर लक्ष्मी के पैर छू कर जब अपना परिचय दिया तो लछमी ने आंखें मिचमिचाते हुए उन दोनों को पहचानने का प्रयास किया और फिर दोनों को कलेजे से लगा कर सिसकने लगी.

कुछ और घंटों की यात्रा पूरी करने के बाद लक्ष्मी जब अपने राजस्थान पंहुची तो इतने लंबे सफ़र से उस का तन तो थका हुआ था लेकिन अपनी धरती पर पांव रखने की ख़ुशी ने उस थकान को मन पर हावी होने ही नहीं दिया और घर के दरवाज़े पर अपनी प्रतीक्षा करते अपने किसना को देख कर तो उस के पैरों में जैसे पंख लग गए व उस ने अपने किसना को कलेजे से ऐसे चिपका लिया जैसे अब वह अपने भाई से कभी अलग नहीं होगी. घर के अंदर पंहुचने पर संजय की मां ने भी अपनी बरसों से बिछुड़ी बूआ सास के पांव छुए और उस का सत्कार किया.  चायनाश्ता करते हुए  जब लक्ष्मी ने बंसी, सरजू और लाली के बारे में पूछा, तब किशनचंद ने बताया कि बंसी भैया का 2 वर्ष पहले कैंसर से देहांत हो गया और उन के बच्चे जयपुर में कारोबार करते हैं. सरजू भैया मोर गांव में ही रहते हैं और लाली अपने परिवार के साथ कोटा में रहती है.

मोर गांव का नाम सुनते ही लक्ष्मी ने गांव जाने की रट पकड़ ली. तब किशनचंद ने कुछ दिनों बाद गांव ले चलने का आश्वासन दे कर अपनी बीरी को शांत किया. लेकिन 15 दिन निकल गए और अपनीअपनी व्यस्तताओं के चलते किसी का भी गांव जाना न हो सका. लक्ष्मी के अंदर भी अब कभीकभी अमीरन अपना सिर उठाने लगती और उसे अपने बच्चों, विशेषरूप से रजिया, की याद सताने लगती. मगर संकोचवश वह किसी को इस विषय में कुछ न बताती थी.

अचानक मार्च के महीने से दुनिया का माहौल एकदम बदल गया और हर तरफ कोरोना का डर व्याप्त हो गया. तब अमीरन ने लक्ष्मी को अपने टब्बर की तरफ से लापरवाह हो जाने के लिए फटकार लगाई और उस ने संजय से कहा कि वह उस की बात एक बार रजिया से करवा दे. संजय ने तुरंत फोन मिलाया तो अफशां ने अगले दिन बेबे के परिवार से बात करवाने का वादा किया.

अगले दिन अफशां ने रजिया के घर पंहुच कर बेबे से सब की बात करवानी चाही तो बेबे की बहु और पोताबहुएं तो काम के बहाने इधरउधर खिसक गईं और रजिया के भाई खेतों पर थे.  रजिया ने फोन अफशां के हाथ से ले कर अपनी बेबे से बात करने लगी तो बेबे भी खूब चटखारे ले कर अपने भाई व उस के परिवार के बारे में बताने लगी. तभी रजिया का अब्बा अकरम वहां आ गया और जब उसे पता चला कि रजिया फोन पर बेबे से रूबरू है तो उस ने बेटी के हाथ से फोन छीन कर अपनी मां को दोबारा फोन न करने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अब पाकिस्तान वापस आने के बारे में सोचे भी न, क्योंकि इस परिवार के लिए वह मर चुकी है. फिर अकरम ने फोन काटा और अफशां के हाथ में थमा कर वहां से चला गया.

रजिया अपने अब्बू के व्यवहार से दुखी हो कर रोने लगी तो अफशां ने उसे दिलासा देते हुए कहा कि उसे जब भी बेबे से बात करनी हो, तो वह उस के घर आ कर आराम से बात कर सकती है.

अपने बेटे के ज़हरबुझे शब्दों से आहत लक्ष्मी फोन हाथ में पकडे निश्छल बैठी रह गई. यह देख कर संजय ने उसे बड़े प्रेम से समझाते हुए कहा कि ‘काका अपनी मां के यहां आ जाने से दुखी हो कर ऐसे बोल रहे होंगे, असलियत में नाराज़ नहीं होंगे.‘  उस की बात सुन कर लक्ष्मी ने अपने आंसू तो पोंछ लिए लेकिन मन ही मन वह जानती थी कि अकरम ने जो भी कहा है, उस का एकएक शब्द सच्चा है.

अब सीमापार लक्ष्मी का कोई टब्बर नहीं है. जीवन की यह कैसी विडंबना है कि जिस परिवार में जन्म लिया वह अब अपना हो कर भी अपना नहीं है और जो नाता ज़बरदस्ती जुड़ा था वह अधिक अपना था लेकिन उसे मानने से उस के अपने बेटे ने ही इनकार कर दिया. कहां जाए अब अमीरन का चेहरा ओढ़े यह लक्ष्मी. यह परिवार अब उस के भाई और बच्चों का है जिस पर उस का कोई अधिकार नहीं है और जिन पर अधिकार बनता है उन्होंने तो उस को जीतेजी ही मार दिया है. वह अब जाए तो कहां जाए? इस बंटवारे ने केवल ज़मीनें ही नहीं बांटी हैं बल्कि रिश्तों के भी टुकड़ेटुकड़े कर दिए हैं.

मन ही मन कुछ तय करने के बाद लक्ष्मी ने किशनचंद से बात की और कहा कि अब वह अपना बाकी जीवन अपने गांव में ही बिताना चाहती है, इसलिए उस को जल्द से जल्द गांव भेजने का प्रबंध करवा दिया जाए. बीरी की इच्छा पूरी करते हुए उसे (लक्ष्मी) को ले कर किशनचंद मोर गांव गए और वहां अपने पैतृक घर के एक हिस्से में लक्ष्मी के रहने का प्रबंध करवा कर लौट आए. और लछमी के गांव जाने के पूरे एक महीने बाद आज सुबहसुबह गांव से सरजू भैया का फोन आया कि बीरी सुबहसुबह परलोक सिधार गई.

आजीवन जो धरती उसे नसीब नहीं हुई, उस ने अंत में अपने अंक में उसे समेट लिया था.

बंटवारा- भाग 3: क्या थी फौजिया की कहानी

अमीरन ने गांव वालों से भी कई बार खुशामद की कि उसे हिंदुस्तान भिजवाने का कुछ इंतज़ाम करवा दें. कुछ लोगों ने तो उस की बात पर कान ही नहीं दिए लेकिन गफूर के एक दूर के रिश्तेदार कादिर ने पास के एक गांव से 2 लोगों को ला कर उस के सामने खड़ा कर दिया और बोला, “परजाई, तेरे प्रा नू ले आया.” पहले तो अमीरन उनको देख कर खुश हो गई लेकिन जैसे ही उस ने उन दोनों के नाम पूछे तो कादिर का झूठ  खुल गया क्योंकि उन नकली भाइयों ने अपने नाम जाकिर और हशमत बताए. बस, फिर क्या था, अमीरन ने झाड़ू से पीटपीट कर तीनों को घर से बाहर निकाल दिया और कादिर को दोबारा इस तरफ आने पर जान से मार देने की धमकी दे दी.

वक्त गुज़रता गया और धीरेधीरे चारों बेटों ने खेतीबारी पूरी तरह से संभाल ली. लक्ष्मी को पुराने बेकार सामान की तरह घर के एक कोने में पटक दिया. रहीसही कसर बहुओं ने अपनी सास की दुर्दशा कर के पूरी कर दी. धीरेधीरे चारों बेटे अलगअलग घर बसा कर रहने लगे और मां को बड़े बेटे के पास छोड़ गए. तब से लक्ष्मी अकरम के परिवार के साथ रह रही है और उन लोगों द्वारा किए जाने वाले अपमान को सह रही है. लेकिन दुख के इस अंधेरे में रज़िया उस के लिए उम्मीद की किरन बन कर हमेशा उस के साथ खड़ी रहती है.

सारी बात सुन कर अफशां ने रजिया से पूछा,  “रज्जो, हुण त्वाडे दिमाग विच की चलदा प्या मैनू दस.” तब रजिया ने उस से पूछा कि क्या वे बेबे की मदद करने के लिए फेसबुक पर बेबे के परिवार वालों को ढूंढने की कोशिश करेंगी? अफशां ने जवाब दिया कि बगैर नामपता जाने फेसबुक पर किसी को ढूंढना मुश्किल है और बेबे को अपने भाइयों के पूरे नाम भी मालूम नहीं हैं. और यह भी ज़रूरी नहीं है कि बेबे के परिवार वाले  लोग फेसबुक पर हों.

रजिया यह सुन कर निराश हो गई. तब अफशां ने कुछ सोच कर लक्ष्मी की पूरी कहानी और मोर गांव का ज़िक्र करते हुए एक लेख फेसबुक पर पोस्ट किया और साथ ही, लोगों से प्रार्थना की कि इस बारे में कोई भी जानकारी होने पर तुरंत सूचित करें.

पोस्ट डाले कई दिन बीत गए. लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं आया. अफशां निराश हो गई और रजिया से बोली कि शायद बेबे को उस के परिवार से मिलवाना संभव नहीं होगा. मगर रजिया ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अफशां को दोबारा लोगों से अपील करने को कहा जिस पर अफशां ने एक बार फिर लोगों से मदद की अपील की.

रजिया के गांव से 4-5 सौ किलोमीटर दूर बीकानेर के एक दफ्तर में बैठे मनीष राठौर ने जब अपने  फेसबुक के पन्ने पर लक्ष्मी की कहानी पढ़ी तो उस का ध्यान सब से पहले मोर गांव ने खींचा और उस ने फ़ौरन अपने मित्र संजय मेघवाल को फोन मिलाया जो मूलरूप से मोर गांव का रहने वाला है. “संजय, तूने फेसबुक पर लक्ष्मी की कहानी देखी?” संजय ने शायद जवाब नहीं में दिया क्योंकि मनीष ने उसे बताया कि कहानी किसी लक्ष्मी नाम की महिला से संबंधित है जो मोर गांव से पार्टीशन के समय गायब हुई थी. “यार, जल्दी से पढ़ पूरा किस्सा, हो सकता है तेरे पापा या दादाजी इस औरत को जानते हों.”

मित्र के आग्रह पर संजय ने पूरा किस्सा फेसबुक पर पढ़ा तो उसे ख़याल आया कि बहुत पहले दादू ने एक बार ज़िक्र तो किया था अपनी किसी रिश्तेदार के गायब होने का.

दफ्तर से शाम को घर पंहुचने पर संजय ने अपने दादू को लक्ष्मी की कहानी के बारे में बताया. तो किशन चंद मेघवाल तुरंत पलंग पर सीधे बैठ गए और खुश हो कर चिल्लाए, “म्हारी बीरी मिली गई.” दादू से इस प्रतिक्रया की उम्मीद संजय को हरगिज़ न थी. उस ने दादू को तकिए से टिका कर बैठाते हुए पूछा कि क्या लक्ष्मी उन की बहन का नाम है?

किशनचंद ने आंसू पोंछते हुए हामी भरी और बताया कि वे उस समय करीब 5 वर्ष के रहे होंगे, इसलिए ज़्यादाकुछ याद नहीं है पर उस दिन घर में खूब रौनक थी. उन को लड्डू खाने को मिले थे और घर में गानाबजाना हो रहा था. लेकिन कुछ देर बाद ही शोर मचने लगा की लक्ष्मी गायब हो गई है और मासा रोने लगी थी. सब ने बहुत ढूंढा लेकिन बीरी  कहीं नहीं मिली. मासा ने तो इसी दुख में बिस्तर पकड़ लिया और जल्दी ही दुनिया से चली गईं. परिवार वाले भी धीरे धीरे बीरी को भूल गए. “के संजय बेटा, म्हारी बात हो सके छे बीरी से?” किशनचंद ने पोते से पूछा.

“पता करता हूं दादू,” संजय ने जवाब दिया और फिर से फेसबुक पर लक्ष्मी की कहानी पर नज़र दौडाने लगा तो नीचे एक व्हाट्सऐप नंबर दिखाई दिया. संजय ने तुरंत उस नंबर पर मैसेज कर के अपना फोन नंबर भेजा और वीडियोकौल करने को कहा. इस के बाद उस ने यह खबर मनीष को दी और फिर अपने पापा व मम्मी को बताने गया. पापा तो खबर सुन कर खुश हो गए लेकिन मां ने एक सवाल खड़ा कर दिया- “तुम्हें क्या मालूम कि ये असली लक्ष्मी हैं या आतंकवादियों की नई  चाल? तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि वह औरत बाबूजी की बहन ही हैं? जानते तो हो कि आजकल न जाने कितने धोखेबाज़ झूठी कहानियां बना कर लोगों को लूटते रहते हैं. तुम तो इन चक्करों से दूर ही रहो बेटा.”

मां की बात में दम तो था लेकिन संजय का मन कह रहा था कि एक बार इस कहानी की सचाई जाननी ज़रूरी है. उधर पाकिस्तान में अफशां ने जैसे ही संजय मेघवाल का संदेश और फोन नंबर देखा, वह रजिया के घर की तरफ दौड़ी. रजिया की भाभियां और अम्मी आंगन में बैठ कर गेंहू साफ़ कर रही थीं. अफशां को अपने घर आया देख कर वे सब चौंक गईं और अफशां उन लोगों को इतना हैरान देख कर अपने आने की वजह उन लोगों को बताने ही वाली थी कि तभी बेबे की कोठरी से निकलते हुए रजिया की नज़र अफशां पर पड़ी और वह अफशां बाजी चिल्लाती हुई दौड़ कर उस के पास आई व उस का हाथ पकड़ कर बहाने से उसे छत पर ले गई. अफशां ने उसे बताया कि वह बेबे की बात उन के भाई से करवाने के लिए यहां आई है, इसलिए अभी बेबे के पास चलना ज़रूरी है.

रजिया ने मारे ख़ुशी के अफशां के हाथ पकड़ कर उस को नचा डाला और फिर उसे ले कर बेबे के पास गई. फौजिया ने बेटी को अफशां के साथ बेबे के पास जाते हुए देखा तो वह लपक कर आई और रजिया से बोली कि बेबे की कोठरी  में तो बहुत गरमी है, इसलिए अफशां को बैठक में ले जा कर बैठाए. उस पर अफशां ने कहा कि वह बेबे से ख़ास किस्म की शीरमाल बनाने के बारे में पूछने आई है. फौजिया ने झट से कहा कि शीरमाल बनाना तो उस को भी आता है वही सिखा देगी लेकिन रजिया ने अम्मी को परे करते हुए कहा कि अफशां शीरमाल के बारे में बेबे से पूछना चाहती है, इसलिए वह बीच में न पड़े और फिर दोनों सहेलियां दौड़ कर बेबे के पास पंहुच गईं.

अफशां ने रजिया से कोठे का दरवाज़ा बंद करने को कहा और फिर शुरू हुआ बरसों से बिछुड़े भाई और बहन का वार्त्तालाप जिस में बातें तो कम हुईं लेकिन दोनों तरफ से आंसू ज़्यादा बहे. बेबे फोन में दिखाई दे रहे सफ़ेद बालों वाले बूढ़े के चेहरे में अपने छोटे से किसना को ढूंढ रही थी और किशनचंद मेघवाल अपनी जर्जर बूढ़ी बहन की हालत देख कर दुखी हो रहे  थे. फिर बेबे से फोन ले कर अफशां ने संजय से कहा कि अगर वे लोग बेबे को हिंदुस्तान बुलाना चाहते हैं तो उस के लिए उन लोगों को ही कोशिश करनी होगी क्योंकि यहां बेबे के बेटे इस मामले में उस की कोई मदद नहीं करेंगे. संजय ने उस से कहा कि वह बेबे को भारत लाने का सारा प्रबंध होते ही अफशां को सूचित कर देगा.

हाट बाजार- भाग 4: दो सरहदों पर जन्मी प्यार की कहानी

जमाल ने रुखसार की पूरी बात नहीं सुनी. वह अंधेरे की आड़ में गायब हो गया. शाहिद लौटा तो रुखसार ने उसे सारी बात विस्तार से बता दी.

‘‘मैं जमाल का नापाक इरादा पूरा नहीं होने दूंगा. अपने सुखचैन के लिए मैं अपने मुल्क से गद्दारी नहीं करूंगा. मैं कप्तान मंजीत को सब कुछ सचसच बता दूंगा. भले ही इस का अंजाम कुछ भी क्यों न हो,’’ शाहिद ने मानो पक्का फैसला कर लिया और जीरो लाइन के करीब पोस्ट की तरफ चल पड़ा.

‘‘साहब तो कहीं फौरवर्ड एरिया में गए हैं,’’ संतरी ने बताया.

‘‘अच्छा कप्तान साहब आएं तो कहना मैं आया था. कोई जरूरी काम है. मैं सुबह फिर आऊंगा.’’

पौ फटते ही शाहिद फिर मंजीत से मिलने के लिए निकला, तो सामने से आती बीएसएफ और बंगलादेशी गार्ड्स की संयुक्त टुकड़ी को अपनी ओर आते हुए देख कर ठिठक गया. अनिष्ट की आशंका को इनसान की परेशानी पर पसीने के रूप में आने से ठंडी और बर्फीली हवा भी नहीं रोक सकती. शाहिद चाह कर भी पसीना पोंछ नहीं पाया.

‘‘हमें तुम्हारे स्टोर की तलाशी लेनी है. इन्हें शक है कि इस जगह का इस्तेमाल आईएसआई के एजेंट अपने उन हथियारों को रखने के लिए करते हैं, जो भारत में गड़बड़ी के इरादे से भेजे जाते हैं,’’ मंजीत ने बंगलादेशी कप्तान की ओर इशारा करते हुए कहा.

शाहिद को काटो तो खून नहीं, ‘‘यह एक लंबी कहानी है कप्तान साहब. मैं कल रात को सब सच बयां करने के लिए आप की पोस्ट पर गया था. मगर आप वहां नहीं थे. यह सारा सामान रुखसार के भाई जमाल का है.’’

‘‘रुखसार कौन, वही बंगलादेशी लड़की न, जिसे आप ने डूबने से बचाया था? उस का आप से क्या रिश्ता है?’’ मंजीत ने सवाल दागा.

‘‘मैं बताती हूं,’’ रुखसार ने बाहर निकल कर आत्मविश्वास के साथ कहना शुरू किया, ‘‘यह अमन है मेरा बच्चा. यह यहीं इसी बियाबान जंगल में पैदा हुआ है. मैं शाहिद की ब्याहता हूं, हमारा बाकायदा निकाह हुआ है.’’

कप्तान मंजीत और बंगलादेशी गार्ड दोनों हतप्रभ हो कर एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

‘‘क्या तुम दोनों नहीं जानते कि तुम मुख्तलिफ मुल्कों के बाशिंदे हो और जो तुम ने किया वह गैरकानूनी है,’’ मंजीत बोले.

‘‘शादी के अलावा हम ने कोई भी काम गैरकानूनी नहीं किया है,’’ शाहिद ने आहिस्ता से कहा, ‘‘हम ने सिर्फ प्यार किया है. इस के अलावा कोई गुनाह नहीं किया है. न हम ने कोई कानून तोड़ा है, न कोई गद्दारी की है.’’

‘‘इस का फैसला कानून करेगा,’’ मंजीत ने कहा फिर शाहिद को अपनी जीप में बैठा लिया. बंगलादेशी गार्ड ने बच्चा रुखसार की गोद से छीन लिया और उस को जीप में धकेल दिया. जीप जब चलने को हुई तो रुखसार चीख उठी, ‘‘मेरा बच्चा…’’

रुखसार की चीख का बंगला गार्ड पर कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारा बच्चा न इंडियन है न बंगलादेशी, इसलिए वह कहीं और रहेगा. और तुम बंगलादेश की जेल में सड़ोगी और तुम्हारा खाविंद हिंदुस्तानी जेल में हवा खाएगा.’’

‘‘यह अन्याय है, एक मासूम पर जुल्म है. हमारे जुर्म की सजा इसे क्यों दी जा रही है? यह कहां रहेगा किस के पास रहेगा? अगर बच्चा दोनों मुल्कों के बीच की धरती में पैदा हुआ है तो क्या वह इनसान नहीं है?’’ रुखसार चीखती जा रही थी और जीप उसी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी.

कप्तान मंजीत ने शाहिद के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘तुम बेफिक्र रहो. मैं तुरंत रैडक्रौस को वायरलैस भिजवा कर उन की नर्स को बुलवाता हूं और बाकी इंतजाम करवाता हूं.’’

शाहिद को भारतीय जेल में डाल दिया गया और रुखसार बंगलादेश की जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दी गई. ‘नो मैन लैंड’ में जन्मा मासूम अमन रैडक्रौस के हवाले कर दिया गया और मीडिया के कैमरों की मेहरबानी से दोनों ओर की सीमा पर अमन को दूर से देखने वालों का तांता लग गया. वह समाचार, नेताओं और एनजीओ के सदस्यों के लिए चाय के प्याले पर चलने वाली बहस का एक मुद्दा भी बन गया. टीआरपी बढ़ाने के लए इस विषय पर टीवी चैनलों में होड़ सी लग गई और अमन को इंसाफ दिलाने की मुहिम हर शहर, हर गांव तक पहुंच गई.

यह बात कि अमन नाम का एक बच्चा दोनों सरहदों के बीच जन्म लेने के जुर्म की सजा पा रहा है और दोनों देशों के बीच अपनी पहचान ढूंढ़ रहा है, दोनों देशों की सरकारों के कानों तक भी पहुंच चुकी थी. नन्हा अमन रैडक्रौस की नर्सों से इठलाते हुए कभी भारत की सीमा की ओर मुंह कर लेता, तो कभी बंगलादेश की सरहद की तरफ इशारा कर देता मानो अपने वजूद की तलाश कर रहा हो या याचना कर रहा हो कि मेरा कुसूर क्या है?

जमाल में शायद कुछ इंसानियत जिंदा रह गई थी. उस ने ऐसा बयान दिया कि रुखसार पर कोई आंच नहीं आई. उधर कप्तान मंजीत और गांव वालों ने शाहिद को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सजा के तौर पर शाहिद का ठेका रद्द कर दिया गया और हाटबाजार का काम रोक दिया गया.

धीरेधीरे बेबस शाहिद, रुखसार और अमन का मामला अंतर्राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया और कोलकाता एवं ढाका दोनों के न्यायालयों में याचिकाएं दायर हो गईं. दोनों ही देशों के मानवाधिकार आयोग भी सक्रिय हो गए. दोनों ही न्यायालयों ने सख्त रवैया अपनाते हुए लगभग एकजैसा फैसला सुनाया कि अमन के बालिग होने तक उसे रैडक्रौस के संरक्षण में रखा जाए. उस के बाद ही मामला फिर सुना जाए. शाहिद और रुखसार टूट गए. लगा वक्त ठहर गया है और इस गहरी भयानक काली रात का कोई अंत नहीं है. लेकिन तभी आशा की एक किरण से ऐसा प्रकाश फूटा जिस ने तीनों की जिंदगी को पूर्णतया रोशन कर दिया. हताशा और बेबसी की लहरों के बीच कुदरत ने अपना करतब दिखाया और उफनती लहरों के शांत होने की उम्मीद जाग उठी.

भारत और बंगलादेश की सीमा पर कुछ गांवों की अदलाबदली का मामला दसियों सालों से निलंबित था. सरकारें बदलती गईं मगर इस प्रक्रिया की कोई शुरुआत नहीं हो पाई. नियति ने मानो इस मामले को शाहिद, रुखसार और अमन के लिए ही बचा कर रखा हुआ था. दोनों सरकारों ने नई अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखाएं तय कीं और अदलाबदली किए जाने वाले इलाकों को चिहिन्त किया. इसी समझौते के अंतर्गत जिंजराम नदी के मुहाने के कई बंगलादेशी गांव भारत में शामिल हो गए और वहां के नागरिकों को यह अख्तियार और विकल्प दिया गया कि वे भारत अथवा बंगलादेश की नागरिकता का स्वेच्छा से चुनाव करें.

वह दिन किसी मेले से कम नहीं था. रैडक्रौस ने भारतीय और बंगलादेशी अधिकारियों की उपस्थिति में अमन को रुखसार की गोद में डाल दिया. जिस की आंखों से आंसू अविरल और अनवरत बहते जा रहे थे. रुखसार और शाहिद के अलावा न सिर्फ मानसी मां, बल्कि पूरे गांव वाले भी अपने आंसू छिपा नहीं पा रहे थे और सब के हाथ स्वत: ही आशीर्वाद स्वरूप उठ गए थे. दूर कहीं से नगाड़ों के बजने की आवाज पूरे वातावरण में गूंज रही थी. देशों की राजनीति से बिछड़ा प्यार फिर मिल रहा था.

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