Summer Special: फेस पर आइस क्यूब लगाने के हैं ये 6 फायदे

आप बर्फ का इस्तेमाल तो खूब करते होंगे. कभी पानी पीने में या शर्बत या अन्य किसी चीज में लेकिन क्या आप जानते हैं कि बर्फ का इस्तेमाल आप खूबसूरती के लिए भी कर सकते हैं. आपको अपने सौंदर्य से संबंधित जितनी भी परेशानियां हैं, वह सब बर्फ का टुकड़ा सही कर सकता है.

बर्फ आपके चेहरे को तरोताजा रखने के साथ-साथ अपके चेहरे के डार्क सर्कल भी खत्म कर देता है. जिसके लिए आप बाजार से न जाने कौन-कौन से ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदती हैं जिससे कि आपके चेहरे के निखार और दाग-धब्बें खत्म हो जाए.

इन प्रोडक्ट से दाग-धब्बे खत्म हो जाते हैं लेकिन कुछ समय बाद गंदगी की वजह से फिर से निकल आते हैं. इसके बजाए आप घर में रह कर बिना पैसे खर्च किए बर्फ का इस्तेमाल कर सकती हैं. जो आपको आंतरिक सुंदरता प्रदान करेगा. जानिए चेहरे पर बर्फ लगाने के फायदों के बारे में.

1. जब चेहरे पर हों दाग-धब्बे

बर्फ दाग-धब्बों को ठीक करने में बहुत सहायक है. इसके लिए एक कॉटन के कपड़े में बर्फ रख उसे अपने चेहरे और गर्दन में घुमांए, लेकिन ध्यान रहें कि बर्फ के एक जगह ही न लगाएं. इससे आपकी त्वचा लाल हो सकती है. बर्फ लगाने से आपके चेहरे के दाग-धब्बे जल्द ही खत्म हो जाएगें.

2. डार्क सर्कल

आपको शायद ही पता हो कि चेहरे पर बर्फ लगाने से डार्क सर्कल दूर हो जाते हैं और चेहरा हमेशा तरोताजा बना रहता है. अगर आपको बहुत अधिक मेकअप लगाना पसंद नहीं है तो आपको नियमित रूप से बर्फ का इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसा करने से चेहरा हमेशा फ्रेश बना रहेगा.

3. मेकअप

अगर आप चाहती है कि अपका मेकअप ज्यादा वक्त तक रुका रहे तो इसके लिए मेकअप करने से पहले चेहरे में बर्फ लगाएं इसके बाद इसे साफ कॉटन के कपड़े से सुखा लें फिर मेकअप लगाएं.

4. टैनिंग की समस्या

अगर आप सनबर्न या टैनिंग की समस्या से परेशान है तो इसके लिए दिन में एक बार चेहरे में बर्फ के इस्तेमाल करें इससे आपके चेहरा सौम्य रहेगा साथ ही और आप अपने चेहरे में ठंडक महसूस करेगी.

5. आंखों की समस्या

आज कल कम्प्यूटर स्क्रीन के आगे बैठे रहनें से आंखों की समस्या काफी होने लगी है जिसके लिए हम रोज डॉक्टर के पास जाते हैं या घर पर ही कोई दवा का सेवन करते हैं. इस समस्या से आपको बर्फ निजात दिला सकती है और आपको ताजगी भी महसूस होगी. इसके लिए एक बर्फ के टुकड़े को एक मुलायम कपड़े में लपेटकर इसे आंखों के ऊपर थोड़ी देर के लिए रखिए. इससे आपको काफी राहत मिलेगी.

6. मांसपेशियों में दर्द से मिले राहत

अगर आप मांसपेशियों में दर्द से परेशान हैं तो इसके लिए आप बर्फ के इस्तेमाल करें आपको काफी फायदा मिलेगा. इसके लिए जिस जगह दर्द हो उस जगह कुछ देर बर्फ से सिकाई करें. इससे आपको काफी राहत मिलेगी.

संध्या: क्या एक और एक ग्यारह हो सकते हैं

‘‘बूआ ने रोजी के पापा को शादी के लिए मनाने की भरसक कोशिश की, मगर वे टस से मस नहीं हो रहे थे…’’

‘‘क्या रोजी डिसूजा क्रिश्चियन है? लल्ला तुम्हारा क्या दिमाग खराब हो गया है? क्या हमारी जाति में लड़कियों का अकाल पड़ गया है, जो हम विजातीय बहू घर लाएं? मैं दिवंगत भैयाभाभी को क्या मुंह दिखाऊंगी? मुझ उपेक्षित विधवा को दोनों ने मन से सहारा दिया था. उन की उम्मीदें पूरी करना मेरा फर्ज है… सारे समाज में हमारी खिल्ली उड़ेगी वह अलग,’’  सुमित्रा ने नाराज होते हुए कहा.

‘‘उफ, बूआ, आप नाहक परेशान हो रही हैं. आजकल अंतर्जातीय विवाह को सहर्ष स्वीकार किया जाता है… मांपापा जिंदा होते तो वे भी इनकार नहीं करते. आप पहले रोजी से मिल तो लो… बहुत सभ्य और संस्कारी लड़की है. आप को जरूर पसंद आएगी. बूआ हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं… जातिधर्म का क्या करना है… जीवन में प्यारविश्वास की अहमियत होती है,’’ मैं ने बूआ को समझाते हुए कहा.

‘‘मैं कह देती हूं लल्ला तुम अपनी पसंद की लड़की ला सकते हो, मुझे कोई एतराज नहीं होगा, किंतु विजातीय नहीं चलेगी,’’ बूआ ने भी अपना निर्णय सुना दिया.

बूआ अपनी शादी के 10 दिन बाद ही विधवा हो गई थीं. फूफाजी का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया था. बूआ के ससुराल वालों ने उन से रिश्ता खत्म कर लिया. रोतीबिलखती बूआ की चीखपुकार ससुराल के दरवाजे न खुलवा सकी थी. उस दुखदाई घड़ी में मेरे मांपापा ने उन्हें सहारा देते हुए कहा था, ‘‘जीजी, हमारे रहते खुद को बेसहारा और अकेला न समझो,’’ और फिर बूआ हमारे साथ ही रहने लगीं.

मेरे विवाह के संबंध में बूआ का निर्णयमेरे लिए आदेश से कम न था. मैं उसे नकार नहीं सकता था. बूआ ही मेरी सबकुछ थीं. मैं 14 साल का था जब मेरे मांपापा का देहांत हुआ था. उस कच्ची उम्र में मेरी बूआ ने मुझे टूटनेबिखरने नहीं दिया. वे चट्टान बन मेरा संबल बनी रहीं.

पापा की छोटी सी किराने की दुकान थी. उन के देहांत के बाद बूआ और मैं ने मिल

कर उसे संभाला, बूआ मुझे पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित करती रहीं. परिणामस्वरूप मैं ने बीकौम तक पढ़ाई कर ली. फिर मुझे प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. मैं और बूआ बेहद खुश हुए.

मेरे औफिस में मेरी जूनियर रोजी और मैं एकदूसरे से प्यार करने लगे, किंतु बूआ के इनकार के कारण अगले ही दिन मैं ने रोजी को बताते हुए कहा, ‘‘रोजी, बूआ हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं? मुझे रत्तीभर भी अंदेशा न था कि बूआ जातिधर्म का सवाल खड़ा कर देंगी. वरना मैं आगे न बढ़ता. मुझे माफ कर देना. मैं ने नाहक तुम्हारा दिल दुखाया.’’

रोजी ने संयत स्वर में कहा, ‘‘रजत, हमें बूआ को सोचने हेतु पर्याप्त समय देना चाहिए. मुझे पूरा विश्वास है एक दिन बूआ जरूर मान जाएंगी.’’

‘‘रोजी, बूआ की बातों से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि जातिधर्म की रूढि़वादिता उन के अंदर जड़ें जमाए है. मैं तुम्हें अन्यत्र शादी की सलाह देना चाहता हूं, शादीविवाह सही उम्र में ही अच्छे लगते हैं. मेरे लिए अपना जीवन बरबाद न करो,’’ मैं ने रोजी को समझाते हुए कहा.

‘‘यह मुझ से नहीं होगा रजत,’’ रोजी ने धीरे से कहा.

‘‘रोजी, तुम मेरी हमउम्र ही हो न यानी तुम भी बत्तीस वर्ष की हो रही है. अत: रिक्वैस्ट कर रहा हूं कि अन्यत्र विवाह पर विचार करो. रोजी हम बूआ की सहमति के बिना विवाह कर लेते हैं. मगर मैं बूआ को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं कर सकता,’’ मैं ने रोजी को अन्यत्र शादी करने हेतु बात बनाते हुए कहा.

‘‘नहीं रजत हम बूआ को नाराज नहीं कर सकते. उन्होंने तुम्हें पालपोस कर इस योग्य बनाया कि आज तुम गर्व से दुनिया का सामना कर सकते हो. वे चाहतीं तो पुनर्विवाह कर अपनी गृहस्थी बसा सकती थीं, किंतु उन्होंने मांपापा बन कर तुम्हें पालापोसा, पढ़ायालिखाया,’’ रोजी ने कहा.

‘‘इसी समझदारी का तो मैं दीवाना हूं. इसीलिए तुम से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं कि अन्यत्र विवाह हेतु सोचना शुरू कर दो.’’

रोजी मुसकराते हुए अपनी टेबल पर चली गई. लंचब्रेक खत्म हो चुका था.

10 दिनों के अंदर ही रोजी का ट्रांसफर कंपनी की दूसरी शाखा में कर दिया गया. मालूम हुआ इस हेतु रोजी ने अनुरोध किया था. मेरे दिल को ठेस लगी, किंतु मैं ने महसूस किया कि यह उचित ही है. दूर रहने से अन्यत्र विवाह हेतु मन बना सकेगी.

अब फोन से बातें कर संतोष करना पड़ता. मैं सदैव उसे अन्यत्र विवाह हेतु प्रोत्साहित

करता, मगर वह बात हंसी में टाल देती. मैं ने एक दिन कहा रोजी, ‘‘अपने विवाह में मुझे अवश्य बुलाना. भुला न देना.’’

उस ने खोखली हंसी के साथ कहा, ‘‘घबराओ नहीं, रजत पहला इन्विटेशन तुम्हें ही जाएगा… तुम्हारे बिना मेरी शादी संभव ही नहीं.’’

रोजी के बारे में जान लेने के बाद बूआ मेरी शादी के लिए विशेष सक्रिय हो गई थीं. मैं ने भी उन की आज्ञा का पालन करते हुए विज्ञापन दे दिया था. कई जगह रिश्ते की बात चली भी,किंतु कहीं मेरी साधारण कदकाठी, शक्लसूरत तो कहीं मेरी साधारण नौकरी तो कहीं मेरी सादगी और गंभीरता मेरे रिश्ते के लिए बाधक बन गई. कहींकहीं तो मेरी वृद्ध बूआ का मेरे साथ रहना और मेरा उन्हें सर्वस्व मान पूजना ही बाधक बन बैठा.

एक लड़की का कहना था, ‘‘मुझे तो सारे काम अपनी मनमरजी से करने की आदत है. तुम्हारे यहां तो तुम्हारी बूआ ही घर की सर्वेसर्वा हैं. मैं नहीं सह सकूंगी.’’

मेरी शादी की बात नहीं बन सकी.

मैं अब करीब 35 साल का हो चला था और बूआ 70 की. हम दोनों की बढ़ती उम्र ने बूआ को मेरी शादी हेतु चिंतित कर रखा था.

रविवार का दिन था. मैं समाचारपत्र पढ़ रहा था तभी बूआ मेरे पास बैठ कर मेरे बाल सहलाते हुए बोलीं, ‘‘लल्ला, एक बात कहूं, इनकार तो नहीं करेगा?’’

मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘बूआ, कुछ कहने के लिए आप को मुझ से पूछने की आवश्यकता कब से महसूस होने लगी? मैं आप को इतना पराया कब से लगने लगा?’’

‘‘क्या बोलूं लल्ला, बात ही कुछ ऐसी है,’’ बूआ ने धीरे से कहा.

मैं ने आशंका से समाचारपत्र एक तरफ पटकते हुए कहा, ‘‘बूआ, जो भी मन में है बोल दो. आप का कथन मेरे लिए आदेश से कम नहीं है. इनकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता.’’

‘‘लल्ला, तुम रोजी से शादी कर लो, तुम जैसे हो, जैसी तुम्हारी नौकरी और आमदनी है और तुम्हारी वृद्ध बूआ, सभी उसे यथास्थिति स्वीकार्य था न… वह तो तुम से अपनी इच्छा से शादी करना चाहती थी. मैं कम अक्ल अपनी रूढि़वादी सोच ले कर तुम दोनों के बीच आ खड़ी हुई,’’ बूआ ने अपनी बात रखी, ‘‘वह आज भी अविवाहित बैठी है लल्ला. मेरा दिल कहता है वह तुम्हारा इंतजार कर रही है. तुम उस से शादी कर लो,’’ भावावेश में बूआ की आंखें सजल हो उठी थीं.

मैं ने उन के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘बूआ, स्वयं को दोषी नहीं समझो. सब विधि का विधान समझो. आप के इनकार के बाद हम व्यक्तिगत रूप से कभी मिले ही नहीं. हां, औफिशियल मीटिंग में कभीकभी भेंट हुई है. हम ने अपनी शादी के संबंध में तो कभी चर्चा ही नहीं की इस दौरान. मैं जरूर उसे फोन करता हूं और हमेशा उसे अन्यत्र विवाह हेतु प्रोत्साहित करता हूं…फिर अचानक स्वयं के साथ शादी… इस के अलावा बूआ मैं ने महसूस किया है कि रोजी मुझ से बात करने से कतराती भी है.’’

‘‘अचानक ही सही लल्ला तुम मुझे उस के घर ले चलो. मैं स्वयं उसे मांग लूंगी. लल्ला इनकार न करो,’’ बूआ ने मनुहार करते हुए कहा तो मैं टाल न सका, पहुंच गया बूआ को ले कर रोजी के घर. रोजी के घर में पहली बार आया था. हां, उसे कालोनी के मोड़ पर 2-4 बार ड्रौप जरूर किया था.

मुझे अचानक बूआ के साथ देख कर रोजी का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था. उस ने अव्यवस्थित कुरसी को व्यवस्थित कर बैठने का आग्रह करते हुए बूआ के चरण स्पर्श किए.

रोजी का घर बेहतर साधारण था. एक पुरानी सी चौकी पर उस के वृद्ध कमजोर पापा ताश के पत्तों में लगे थे. उन की भावभंगिमाएं साफ प्रकट कर रही थीं कि उन्हें हमारा आना नापसंद है. एक कोने में खिड़की की तरफ बेहद वृद्ध दादी एक थाली में चावल लिए उन्हें चुनने की कोशिश में लगी थी. उन्हीं के पास रोजी की दीदी बच्चों जैसी हरकतें कर रही थी. वह मुंह में अंगूठा डाल चूसते हुए हंसते हुए बोल रही थी, ‘‘आप कौन हैं? ही…ही… आप यहां क्यों आए हैं…ही…ही…’’

मैं रोजी के घर के वातावरण से हैरान सा था. अब मैं समझ सकता था कि रोजी हमेशा क्यों कहती थी कि शादी का फाइनल करने के पहले मैं अपने परिवार के संबंध में तुम से

विस्तार से बात करना चाहती हूं. क्या बोलूं,क्या न बोलूं, समझ न आया तो शांत रहना ही उचित समझा.

बूआ हमारी शादी के लिए जैसे सोच कर आई थीं. अत: रोजी के पापा की बेरुखी के बावजूद मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘नमस्ते भाई साहब, मैं रजत से रोजी के विवाह हेतु प्रस्ताव

ले कर आई हूं. दोनों बच्चे एकदूसरे से प्यार करते हैं. अत: दोनों का विवाह कर देना उचित होगा.’’

‘‘रोजी के विवाह के संबंध में सिर्फ और सिर्फ मैं निर्णय लूंगा,’’ उन्होंने बेहद सख्त लहजे में कहा.

‘‘हांहां, यह उचित भी है. आप उस के ‘पापा’ हैं आप ही निर्णय करेंगे, मैं इस संबंध में आप की मंशा जानने आई हूं?’’ बूआ ने सहजता से कहा.

‘‘मुझे रोजी की शादी करनी ही नहीं है,’’ उन्होंने पूर्ववत सख्त लहजे में कहा.

रोजी के पापा की बात पर मैं और बूआ आश्चर्यचकित थे. बूआ ने स्वयं को शीघ्र ही संयत कर हंसते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें कर रहे हैं भाईसाहब, लड़की को कोई घर थोड़े ही बैठाता है… वह तो दूसरे की अमानत होती है…’’

उन्होंने बीच में ही बूआ की बात काटते हुए अत्यधिक तिरस्कार से कहा, ‘‘मुझे रोजी की शादी नहीं करनी है, आप ने सुना नहीं?’’

मैं ने बूआ को शांत रहने और लौट चलने का इशारा किया. रोजी भी नजरों से यही प्रार्थना करती प्रतीत हुई.

अगले दिन मैं बुझे मन से घर लौटा, तो बूआ ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है लल्ला, तबीयत तो ठीक है? एकदम लुटेपिटे से लग रहे हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘बूआ, ऐसा ही समझ लो. दरअसल, मैं औफिस से लौटते हुए रोजी से मिल कर आया. हमारे विवाह हेतु उस के पापा के विचार जान कर मैं हैरान था. यह भी मालूम हुआ, मेरे और रोजी के संबंध के बारे में जान लेने के बाद उन्होंने डांटफटकार कर उसे ट्रांसफर हेतु मजबूर कर दिया था.’’

सारी बात सुन कर बूआ भी हैरान हो गईं, शीघ्र ही अति उत्साह से बोलीं, ‘‘लल्ला, जल्दी चाय खत्म कर मुझे रोजी के घर ले चलो.’’

‘‘क्या बूआ, आप को बेइज्जत होना बुरा नहीं लगता?’’ मैं ने इनकार करते हुए कहा.

‘‘इनकार न करो, मेरे पास रोजी के पापा के भय का निवारण है,’’ बूआ ने अधीरता से कहा.

हमें स्वयं के घर पर देख कर रोजी केपापा ने आग्नेय नेत्रों से देखते हुए तिरस्कृतशब्दों में कहा, ‘‘आप दोनों फिर आ धमके,क्या मेरी बात…’’

बूआ ने हाथ जोड़ कर अनुरोध करते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप से प्रार्थना

करती हूं, आप नाराज न हों. आप मेरी पूरी बात सुन निर्णय करें. आप का निर्णय हमें शिरोधार्य होगा.’’

‘‘भाई साहब, आप अपने दिल से यह भय निकाल दीजिए कि विवाहोपरांत रोजी पर आप का अधिकार नहीं रहेगा वरन रोजी के साथसाथ रजत पर भी आप का पूरा अधिकार रहेगा. दोनों मिल कर परिवार की सारी जिम्मेदारियां पूरी करेंगे.’’

‘‘देखिए भाई साहब, दोनों एकदूसरे को चाहते हैं, विधि के विधान को भी दोनों का मेल स्वीकार्य है, मैं तो अपनी संकीर्ण रूढि़वादी सोच के कारण रोजी जैसी सभ्य, सुसंस्कृत लड़की को ठुकरा कर स्वजातीय विवाह हेतु प्रयासरत रही. किंतु मेरे लल्ला का रिश्ता कहीं भी नहीं हो सका. मेरी रूढि़वादी सोच ने खुद ही दम तोड़ दिया.’’

बूआ आज सब खुल कर बोल देना चाहती थीं, ‘‘भाई साहब, मैं अपनी संकीर्ण सोच त्याग कर आगे बढ़ना चाहती हूं. आप से भी प्रार्थना करती हूं, अपने शक अपने भय को त्याग कर प्यार करने वालों का संगम करवा दोनों को आशीर्वाद दीजिए. 2 प्यार करने वालों की राह में बाधा डालना उचित नहीं है.’’

वे बोलीं, ‘‘देखिए भाई साहब, समस्या से डरने या भागने से उस का समाधान असंभव है, किंतु अगर हम साहस के साथ सकारात्मक पहल करें तब अवश्य समस्या का समाधान निकाल लेंगे.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद बूआ अतीत में जाते हुए बोलीं, ‘‘मैं उपेक्षित विधवा थी. जिन्होंने मुझे सहारा दिया कुछ समय बाद वे किशोर रजत को मेरे हवाले कर इस दुनिया से चल बसे. हम दोनों उदास और दुखी थे. मगर फिर साहस और सकारात्मक सोच के साथ जीवन पथ पर बढ़ चले. परिणाम आप के सामने है.’’

रोजी के पापा शांत भाव से बूआ की बातें सुन रहे थे. बूआ ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैं आप को आश्वासन देती हूं कि रोजी और रजत मिल कर एक और एक

2 नहीं, 11 बन कर घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लेंगे.’’

रोजी के पापा की आंखों से झरझर आंसू बह चले. जैसे भय और शक की जमी बर्फ बूआ के आश्वासन की ऊष्मा पा कर पिघल कर आंसू बन आंखों से बह चली. वे आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘सिस्टर, जीवन में बहुत छलकपट देखा है. मैं बैंक कर्मी था. ईमानदार, सख्त मिजाज, रूखे स्वभाव का, बस सहकर्मियों की आंखों की किरकिरी बना रहता था. एक फ्रौड में जबरदस्ती फंसा दिया गया, नौकरी चली गई, मेरी पत्नी मैगी साहसी महिला थी, उस ने मुझे टूटने नहीं दिया. उस ने स्कूल में नौकरी कर घर संभाल लिया, किंतु नियति के क्रूर प्रहार से वह रोड ऐक्सीडैंट में मारी गई, तो मैं टूट गया.’’

‘‘रोजी अपनी मां जैसी साहसी है, पढ़लिख कर नौकरी कर घर संभाल रही है, इसी की आमदनी से घर का खर्च चलता है. अब आप ही बताइए इसे विवाह कर दूसरे घर भेज दूं, तो अपनी वृद्ध मां, मंदबुद्धि दूसरी बेटी और हाराटूटा मैं किस के सहारे रहें? बस इसी स्वार्थी सोच के कारण मुझे रोजी के विवाह यहां तक कि विवाह की चर्चा से ही भय हो गया था.’’

कुछ चुप रहने के बाद वे पुन: बोले, ‘‘आज आप की बातों से पुन: विश्वास करने का दिल हो रहा है कि दुनिया में आज भी इंसानियत है. सच कहता हूं रोजी बेटी की खुशियों का दमन करते हुए मुझे दुख भी बहुत होता था. सच ही कहा गया है कि सारे रास्ते बंद नजर आने के बावजूद एक रास्ता अवश्य खुला रखता है. बस साहस और सकारात्मक पहल की आवश्यकता होती है.’’

फिर उन्होंने मुसकराते हुए मुझ से कहा, ‘‘बेटा रजत मैं ने तुम्हारा और तुम्हारी बूआ का बहुत अनादर किया. मुझे माफ करना’’ और उन्होंने हाथ जोड़ दिए.

मैं ने उन के हाथ अलग करते हुए कहा, ‘‘आप बड़े हैं. आप का हाथ माफी के लिए नहीं आशीर्वाद के लिए उठना चाहिए. आप माफी मांग कर मुझ शर्मिंदा न करें अंकल.’’

‘‘बेटा, तुम मुझे पापा कह सकते हो, तुम्हारे जैसा बेटा पा कर मैं धन्य हो गया,’’ कहते हुए उन्होंने मुझे गले से लगा लिया.

सभी की आंखें खुशी के आंसुओं से भर उठीं. मैं मन ही मन अपनी बूआ के साहस, दृढ़संकल्प एवं सकारात्मक पहल को सलाम कर रहा था.

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शाकुंतलम फिल्म रिव्यू: उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती सामंथा प्रभु की ये फिल्म

  • रेटिंग: पांच में से एक स्टार
  • निर्माता: दिल राजू
  • निर्देशक: गुना सेखर
  • कलाकार: सामंथा प्रभु,मोहन देव,मोहन बाबू,सचिन खेड़ेकर, अदिति बालन, अनन्या नागलिया, प्रकाश राज,मधू, गौतमी,कबीर बेदी,जिषु सेन गुप्ता, कबीर दुहान सिंह,अल्लू अरहा व अन्य.  
  • अवधिः दो घंटे 22 मिनट
  • प्रदर्षन की तारीख: 14 अप्रैल 2023

केजीएफ ,आर आर आर व कंतारा जैसी दक्षिण भारतीय फिल्मों के हिंदी में सफल होने के बाद हर दक्षिण भाषी फिल्म को हिंदी में रिलीज करने की होड़ सी लग गयी है. मगर किसी को भी इस बात की परवाह नही है कि उनकी फिल्म हिंदी भाषी क्षेत्रों के अनुरूप है या नहीं.

दक्षिण भारत के वेलमाकुचा वेंकट रामन्ना रेड्डी जो कि फिल्म जगत में दिल राजू के नाम से मशहूर हैं,अब तक तेलगू भाषा में चालिस फिल्मों का निर्माण कर चुके दिल राजू कालीदास लिखित संस्कृत भाषा के नाटक ‘‘अभिज्ञान शाकुंतलम’’ पर आधारित फिल्म ‘‘शाकुंतलम’’ लेकर आए हैं.

गुना सेखर के निर्देशन में मूलतः तेगुलू भाषा में बनी इस फिल्म को हिंदी में डब कर ‘‘शाकुंतलम’’ के नाम से प्रदर्शित किया गया है. फिल्मकार ने फिल्म की शुरूआत में ही इसे धार्मिक फिल्म की संज्ञा दे दी है. एक राजा और एक ऋषि कन्या का प्रेम विवाह धार्मिक होता है? यह एक अलग विचारणीय प्रष्न है.

कुछ दिन पहले मुंबई में एक प्रेस काफ्रेंस में दिल राजू ने दावा किया था कि उन्होेने हौलीवुड स्टूडियो ‘डिज्नी’ को मात देने वाली फिल्म बनायी है. मगर इस फिल्म को देखने के बाद अहसास होता है कि उनका दावा ‘पानी का बताषा’ के अलावा कुछ नही है. इस फिल्म में आत्मा ही नही है.

इस फिल्म को देखना समय व पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नही है. वैसे ‘ द कष्मीर फाइल्स’ की ही तर्ज पर आर एस एस ने ‘‘शाकुंतलम’’ को सफल बनाने में जुट गया है. गुरुवार को आर एस एस के कई दिग्गज इस फिल्म को देखने आए. इतना ही नही प्रेस कांफ्रेंस में दिल राजू ने हिंदी बोलते हुए ऐलान किया था कि भाषाओं की विविधता के बावजूद ‘हम सब एक हैं.

 

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कहानीः

ऋषि विश्वामित्र अपनी ताकत बढ़ाने के लिए तपस्या करना शुरू करते हैं,इससे इंद्र भगवान को अपना सिंहासन खोने का डर सताने लगता है. इसलिए वह देवलोक की अप्सरा मेनका को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए पृथ्वी पर भेजते हैं. विश्वामित्र से संभोग के बाद ,जिसे वह देवलोक नहीं ले जा सकती, इसलिए पृथ्वी पर ही छोड़कर वापस लौट जाती हैं. ऋषि कण्व (सचिन खेडेकर)अपने आश्रम के पास पड़ी इस नवजात बच्ची को अ पना कर उसे शकुंतला (सामंथा) नाम देते हैं. और उसे अपनी बेटी के रूप में पालते हैं.

कई वर्षों के बाद जंगल में शकुंतला की मुलाकात राजा दुष्यंत (देव मोहन) से होती है और दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते है. वह गंधर्व विवाह करते हैं. शकुंतला गर्भवती हो जाती है. दुष्यंत कुछ समय बाद आकर शकुंतला को अपने राज्य में ले जाने का वचन देते हैं. दुष्यंत के आने के इंतजार में खोयी शाकुंतला को ऋषि दुर्वासा (मोहन बाबू) के आने का पता नही चलता.

तब ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण दुष्यंत,शकुंतला को भूल जाता है. उसके बाद शाकुंतला के जीवन की कठिनाइयों, श्राप मुक्ति व दुष्यंत से संबंध जुड़ने की कहानी है.

लेखन व निर्देशन:

पौराणिक कथाओं को पारंपरिक स्वरूप में बताना एक साहसिक आह्वान है,जिस पर निर्देशक गुना सेखर व निर्माता दिल राजू खरे नहीं उतरे हैं. यह न प्रेम कहानी है और न ही अच्छाई पर बुराई की जीत उभर कर आती है. एक्शन दृष्य तो ऐसे हैं, जैसे कि बच्चे आपस में लड़ रहे हों.

फिल्मकार गुना सेखर का कहानी कहने और पात्रों को चित्रित करने का तरीका बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं है. शकंुतला और दुष्यंत की प्रेम कहानी में रोमांच के साथ पीड़ा भी है. मगर इस फिल्म में यह दोनों चीजें गायब हैं. ऐसा लगता है जैसे कि भगवान इंद्र स्वर्ग में अपना सिंहासन सुरक्षित रखने के लिए ही दुष्यंत व शाकुंतला के बीच प्रेम रचा. मतलब इंसानी भावनाओं और इंसान की प्रेम की अनुभूति का कोई औचित्य ही फिल्म में नजर नही आता.

जब दुष्यंत के बेटे की मां बनने जा रही शाकुंतला खुद को विस्मृत कर चुके राजा दुष्यंत से मिलने उनके राज दरबार में पहुंचती है, उस वक्त राज दरबार के मंत्री आदि जिस तरह के अपशब्दों का प्रयोग शाकुंतला का प्रयोग कर शकुंतला को दंड देने की मांग करते हैं, वह पांच हजार वर्ष या 700 वर्ष पहले अथवा वर्तमान सरकार के लिए भी शोभाजनक नही है. राजा के मंत्री के बात करने में शालीनता होती है, मगर राजा दुष्यंत का राज दरबार तो ‘मछली बाजार’ नजर आता है. मंत्री गण अनपढ़ गंवार से भी निचले स्तर पर उतर आते हैं.

इतना ही नही राज दरबार से बाहर जा रही गर्भवती शकुंतला पर राज दरबारी व आम जनता जिस तरह से पत्थर बरसाते हुए पीछा करते हैं, वह कतई शोभा नही देता. क्या वास्तव में यह दृष्य कालीदास लिखित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’का हिस्सा हैं? क्या सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी नारी जाति का इस स्तर पर अपमान करने का हक मिल जाता है? फिल्मकारो ने यह भी जिस तरह से ऋषि दुर्वासा को शाकुंतला को श्राप देते हुए दिखाया है, वह तरीका भी सही नही है. अमूमन पुराने वक्त में ऋषि श्राप देने के लिए पवित्र जल इंसान के शरीर पर फेकते हुए श्राप बोलते थे. यहां श्राप देन के बाद दुर्वासा जल फेकते हैं.

फिल्म का वीएफएक्स व स्पेशल इफेक्ट्स त्रुटिपूर्ण है. शाकुंतला का परिचय देने वाले दृष्य में जंगल में पेड़ों के नीचे खड़ी षाकंुतला की सुंदरता के चारों ओर तितली के झुंड दिखाए गए हैं,यह तितलियां कम कागज की फुलझड़ियाँ नजर आती हैं. वीएफएक्स का कमाल यह है कि स्क्रीन पर बाघ की बजाय एक डमी मूर्ति वाला बाघ नजर आता है. बर्फ से ढंके पर्वत पर हर चरित्र न के बराबर व साधारण कपड़ों में ही नजर आते हैं. इतना ही नही चारों ओर बर्फबारी हो रही है,लेकिन किसी भी किरदार के शरीर या उनकी वेशभूषा पर एक परत बर्फ नहीं गिरती है. . है न निर्देशक की सोच का कमाल. . .  गीत संगीत प्रभावित नही करता. एडीटर कई जगह मात खा गए हैं.

 

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फिल्म के संवाद भी अजीबो गरीब हैं. कहीं अति शुद्ध हिंदी है,तो कहीं आम तौर पर बोली जाने वाली हिंदी है. तो कही संस्कृतनिष्ठ हिंदी है. कहीं ‘क्षमा’ या ‘माफी’ के लिए ‘क्षम्य’ शब्द का उपयोग किया गया है. शायद प्राचीन काल में स्त्रियाँ अपने होठों को रंगने के लिए गेरु या गेरुए रंग का उपयोग करती थीं,पर इस फिल्म में षाकंुतला के किरदार में अभिनेत्री सामंथा रूथ प्रभू हर दृष्य में लाल रंग की सबसे चमकदार लिपस्टिक लगाए ही नजर आती हैं.

कास्ट्यूम डिजाइनर नीता लुल्ला ने हर किरदार की पोषाक गढ़ते वक्त उस काल को पेश करने का सटीक प्रयास किया है. ोखर वी जोसेफ की सिनेमैटोग्राफी काफी औसत है.

अभिनयः

पूरी फिल्म में सामंथा रूथ प्रभू और देव मोहन के बीच कोई वास्तविक केमिस्ट्री नजर नहीं आती. वास्तव में युवा अभिनेता हर दृष्य में अपनी सह कलाकार व दिग्गज अदाकारा सामंथ के ‘औरा’ तले दबे नजर आते हैं. शायद अभिनय करते समय वह भूल गए थे कि वह सामंथा के साथ अभिनय कर रहे हैं, न कि वह वह जिस अदाकारा के प्रशंसक हैं, उससे मिल रहे हैं. इसके लिए कहीं न कहीं निर्देशक भी दोषी हैं.

प्रेम में खोयी,राजा से गंधर्व विवाह,गर्भवती होने के बाद पति का उसे विस्मृत करने के साथ ही सभी के सामने अपमानित करने की पीड़ा, खुद व जन्म लेने वाली संतान के अनिश्चित भविष्य की जो पीड़ा है, उसे सामंथा प्रभू अपने अभिनय से चित्रित करने में पूरी तरह से विफल रही हैं.

तो वहीं राज दुष्यंत के किरदार में मोहन देव भी निराश करते हैं. यहां तक कि अनुभवी कलाकार मधु और गौतमी भी निराश करती हैं. दुर्वासा ऋषि के छोटे किरदार में अभिनेता मोहन बाबू अपनी छाप छोड़ जाते हैं. असुर राक्षस के किरदार में कबीर दूहन सिंह कोई करतब नही दिखा पाते.

सचिन खेडेकर,कबीर बेदी,सुब्बा राजू, जिशु सेनगुप्ता, अदिति बालन, गौतमी, और हरीश उथमन जैसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.

प्रियंवदा के किरदार में अदिति बालन अधिक आकर्षक लग रही थीं. दुष्यंत व शाकुंतला के बेटे सर्वदमन उर्फ भारत के किरदार में बाल कलाकार अल्लू अरहा (अभिनेता अलु अर्जन की बेटी) हर किसी का मन मोह लेती है. यदि सामंथा व मोहन देव ने इस बाल कलाकार से संवाद अदायगी सीख ली होती, तो कुछ इनका भला हो जाता.

 

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6 टिप्स: टैलेंटेड होने के साथ ग्लैमरस भी बनें

खूबसूरत आशा जब एक टीवी औडिशन के लिए गई तो उस को उम्मीद थी कि उसे वह चरित्र अवश्य मिलेगा. उस का औडिशन भी अच्छा हुआ लेकिन उसे चांस नहीं मिला. उसे सम?ा में नहीं आ रहा था कि उसे मौका क्यों नहीं मिला. बाद में पता चला कि उस का लुक उस पात्र के लिए सही नहीं था, इसलिए उसे रिजैक्ट किया गया.

आशा मन ही मन दुखी हुई. उस ने ठान लिया कि अगर उसे एक्टिंग की फील्ड में काम करना है तो खुद पर काम करना पड़ेगा. वह स्टाइलिस्ट से मिली और खुद पर वर्क किया. उसे अगले औडिशन में एक ही बार में चांस मिला और आज वह सफल है.

  1. प्रैजेंटेबल होना जरूरी

एक कहावत है, ‘पहले दर्शनधारी, फिर गुण विचारी.’ यानी पहले आप का प्रैजेंटेबल होना जरूरी है, फिर बाद में टैलेंट पर विचार किया जाता है. यह सही है कि टैलेंट की कद्र हमेशा ही होती रही है. सालों पहले हो या आज, एक बात तय है कि केवल प्रतिभा से किसी का सफल होना संभव नहीं होता. आप को ग्लैमरस और प्रैजेंटेबल होना जरूरी होता है. आज हर क्षेत्र में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है, फिर चाहे वह स्कूल, कालेज, औफिस हो या ऐक्ंिटग या घर पर रहने वाले, हर जगह इस का महत्त्व है.

इस बारे में मुंबई की स्टाइलिस्ट और फैशन डिजाइनर मेघा पित्ती, जो पिछले 10 सालों से स्टाइलिंग का काम कर रही हैं, कहती हैं, ‘‘स्कूल में छोटेछोटे बच्चे भी टीचर के ग्लैमरस होने पर उन के पास बैठना पसंद करते हैं और यह ह्यूमन नेचर है कि प्रैजेंटेबल इंसान सब को आकर्षित कर सकते हैं. मेकअप के साथ सही हेयर स्टाइल, ड्रैसअप, शूज, बैग्स आदि सब का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व पर पड़ता है.’’

  1. इमेज बनाएं

डाक्टर अगर सही यूनिफौर्म नहीं पहनता है तो उस की बात को कोई सीरियसली नहीं लेगा. ऐसे में कौर्पोरेट हो या मनोरंजन की दुनिया, सभी जगह केवल जींसटौप नहीं, बल्कि जरूरत के अनुसार खुद को तैयार करें. केवल जींसटौप से आप की इमेज नहीं बन सकती. चीजें कीमती भले ही न हों लेकिन आप के गैटअप के साथ मेल खाती हुई अवश्य होनी चाहिए, जिस से आप के प्रति लोगों की भावना सकारात्मक हो. अवसर और स्थान के हिसाब से ड्रैस पहनें, अगर सुबह का समय हो तो शटल मेकअप और अगर शाम का समय हो तो ग्लैमरस लुक होना सही होता है.

  1. बौडी टाइप के अनुसार चुनें आउटफिट

फैशन में बदलाव हमेशा जरूरी होता है. इस से खुद में नयापन और आत्मविश्वास बढ़ता है. स्टाइलिस्ट और फैशन डिजाइनर मेघा पित्ती कहती हैं, ‘‘मेरे पास आने वाले अधिकतर व्यक्ति खुद को स्लिमट्रिम दिखने के लिए आउटफिट की मांग करते हैं. मु?ो उन की बौडी टाइप के अनुसार स्टाइलिंग करनी पड़ती है. आज प्लस साइज के व्यक्ति भी अपने बौडी टाइप के हिसाब से कपड़े पहनते हैं जिस से वे भी ग्लैमरस दिखते हैं.

‘‘आज के यूथ को सस्ते, लाइट वेट, ईजी टू कैरी, सही से मैनेज कर पाने, चुभें नहीं और आरामदायक कपड़े अधिक पसंद होते हैं. एक कपड़े को वे दो से तीन बार पहनना ही पसंद करते हैं. ज्वैलरी को दोहराया जा सकता है लेकिन कपड़े को दोहराना मुश्किल होता है क्योंकि एक ही परिवेश में उन्हें बारबार जाना पड़ता है. यूथ के अलावा वयस्क भी ग्लैमरस दिखने में पीछे नहीं हैं लेकिन वे किसी भी बदलाव को धीरेधीरे अडौप्ट करते हैं.’’

  1. फास्ट मूविंग और बजट फ्रैंडली का है क्रेज

सोशल मीडिया को यूथ अधिकतर फौलो करते हैं. स्टाइलिस्ट और फैशन डिजाइनर मेघा पित्ती कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया से पिक्चर ले कर वैसा बनाने की फरमाइश करते हैं. यूथ में फास्ट मूविंग स्टाइल और बजट फ्रैंडली फैशन का अधिक क्रेज है.

  1. सस्टेनेबल की है मांग

सस्टेनेबल फैशन भी आज की मांग है. मेधा पित्ती कहती हैं, ‘‘मैं ने कई बार खुद की ड्रैस को नए रूप में बदल कर यूथ को दिया है. इस में वे स्कर्ट के ऊपर दो औप्शन, जिन में कप्तान ब्लैक ब्लाउज के साथ पहना जा सकता है. पैंट, प्लाजो आदि के साथ मिक्स एंड मैच करते हुए टौप होने पर ड्रैस पूरी नई बन जाती है. कलर ट्रैंड आज लाइट, पर्पल, टिश्यू गोल्डन, लाइट ग्रीन आदि हैं.

  1. ग्लैमर से रहें सब की नजर में

लाइफ में सफल होने के लिए लोग बहुतकुछ करते हैं लेकिन अपने स्टाइल पर बहुत कम ध्यान देते हैं. मेघा आगे कहती हैं, ‘‘कई यूथ अपनी स्टाइल बदल कर जौब में कामयाब हुए, क्योंकि प्रैजेंटेबल होने पर आधा काम हो जाता है. लेकिन यूथ इसे कम समझा पाते हैं.’’

नए शहर में आने के बाद से मेरे बाल बहुत झड़ रहे हैं, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे बाल पहले बहुत घने और लंबे थे. हाल ही में मैं ने अपनी जौब चेंज की है. नए शहर जाने पर बाल बहुत झाड़ रहे हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

जरूरत से ज्यादा कैमिकल का इस्तेमाल और प्रदूषण की वजह से बालों को काफी नुकसान होता है. आप बालों के लिए करीपत्तों का इस्तेमाल करें. इस में विटामिन बी1, बी3, बी9 और सी होता है. इस के अलावा इस में आयरन, कैल्सियम और फास्फोरस होता है, साथ ही काफी मात्रा में प्रोटीन और बीटा कैरोटिन भी होता है, जो बालों को क्षतिग्रस्त होने से रोकने के साथसाथ बालों को पतला होने से भी रोकने में मदद करता है. इस के रोजाना सेवन से आप के बाल काले, लंबे और घने होने लगेंगे. यही नहीं यह बालों को डैंड्रफ से भी बचाता है.

इस के यूज के लिए करीपत्तों का एक गुच्छा ले कर उसे साफ पानी से धो धूप में तब तक सुखाएं जब तक पत्ते सूख न जाएं. फिर पाउडर बना लें. अब 200 एमजी नारियल या फिर जैतून के तेल में लगभग 4-5 चम्मच करीपत्ता पाउडर मिक्स कर के उबाल लें. ठंडा होने पर तेल को छान कर किसी एअरटाइट शीशी में भर कर रख लें. सोने से पहले रोज रात को यह तेल लगाएं और फिर सिर की अच्छी तरह मसाज करें. यदि इस तेल को हलकी आंच पर गरम कर के लगाया जाए तो जल्दी असर दिखेगा. सुबह सिर को नैचुरल शैंपू से धो लें.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Eid Special: जानिए मटन बिरयानी बनाने का आसान तरीका

घर में कुछ इस तरह बनाएं मटन बिरयानी, जिसकी सूची नीचें दी गई है. उसके अनुसार आप घर पर बडे ही आसान तरीके से मटन बिरयानी पका सकते है.

सामग्री

-500 ग्राम मटन (विद बोन),

-2 बड़े कप बासमती चावल पानी में भिगोया,

-1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट,

-1/2 छोटा चम्मच केसर दूध में भिगोया,

-1 कप हंग कर्ड,

-1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर,

-1 बड़ा चम्मच तेल,

-1 छोटा चम्मच मक्खन,

-2 मध्यम आकार के प्याज कटे ,

-5-6 लौंग

– 2-3 टुकड़े दालचीनी

 -1 छोटा चम्मच गरममसाला,

-8-10 छोटी इलायची,

-3-4 बड़ी इलायची,

-1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

-थोड़ी सी धनियापत्ती बारीक कटी

-थोड़ी सी पुदीनापत्ती बारीक कटी,

-1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर,

-1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

-नमक स्वादानुसार.

विधि

-मटन में हंग कर्ड, नमक, हलदीपाउडर और अदरकलहसुन का पेस्ट मिला कर 4 घंटे तक फ्रिज में मैरिनेट होने के लिए रखें. पैन में तेल गरम कर के कटे हुए प्याज में से थोड़ा सा अलग कर बाकी सुनहरा होने तक फ्राई कर के अलग रख लें.

-फिर प्रैशर कुकर में चावल, नमक, लौंग, दालचीनी, छोटी और बड़ी इलायची और 5 कप पानी डाल कर पकाएं. एक बरतन में घी गरम कर के बचा हुआ कटा प्याज, कटी हरी मिर्च और अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर अच्छी तरह से मिलाएं.

-अब इस में मैरिनेटेड मटन डाल कर तेज आंच पर 7 से 8 मिनट तक पकाएं. अब आंच को कम कर के इस में धनिया पाउडर, जीरा पाउडर और लालमिर्च डाल कर मटन अच्छी तरह पक जाने तक पकाएं.

-फिर इस में टमाटर, नमक, 1/2 गरममसाला पाउडर और कटी हुई धनियापत्ती डाल कर चलाते हुए कुछ देर तक पकाएं. अब एक मोटी पेंदी के बरतन में चावल और मटन की सामग्री खत्म होने तक लेयर बना लें.

-अंत में केसर दूध, बटर, पुदीनापत्ती और बचा हुआ गरममसाला पाउडर डाल कर बरतन को एल्युमिनियम फौयल से ढक कर 180 डिग्री सेल्सियस पर प्रीहीटेड ओवन में 20 मिनट तक रखें. फ्राइड प्याज से गार्निश कर परोसें.

Eid Special: घर पर ऐसे बनाएं शीर खुरमा

सामग्री

  • ताजा दूध – 4 कप
  • इलाईची – 1 पिसी हुई
  • शक्कर – स्वादानुसार
  • सेवईयां – 1 कप
  • घी – 2 चम्मच
  • सुखा मेवा और सूखे फल
  • बादाम – 2 चम्मच
  • काजू – 2 चम्मच
  • किशमिश – 2-3 चम्मच
  • खजूर – 4
  • इलाईची पाउडर – 1/4 चम्मच
  • केसर – 5 से 6 जवे
  • केवड़ा एसेंस या गुलाब जल – 1/4 चम्मच

विधि

केसर को 2 चम्मच गर्म पानी में, खजूर को काटकर गर्म दूध में और बादाम को 15 से 20 मिनट तक गर्म पानी में भिगोयें.

इसके बाद बादाम के छिलके को निकालकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ो में काट लीजिये. बादाम को सुखा लीजिए.

अब एक चम्मच घी गर्म करे और उसमे सारे मेवा को धीमी आंच पर कुछ मिनटों तक फ्राई करें. अब मेवों को निकालकर इसी में किशमिश फ्राई करे.

अब गैस पर कढ़ाई रखें और 1 चम्मच घी को गर्म करके धीमी आंच पर सेवईयां हल्की सुनहरी होने तक फ्राई करें.

अब एक भगोने में दूध को उबालें और धीमी आंच पर तब तक पकायें जब तक दूध गाढ़ा न हो जाये. इसी में पिसी हुई इलाईची भी डाल दें. दूध पकाते समय उसे बीच बीच में हिलाते रहें.

अब इस में शक्कर डाल कर धुलने तक पकाते रहें. अब उसमे फ्राई की हुई सेवईयाँ भी डाले.

अच्‍छी तरह पक जाने पर कुछ देर के लिए आंच से हटा लें और इसमें दूध डालकर भिगोयी हुई खजूर और केसर मिला दें.

इसके बाद सभी सूखे मेवे डालकर वापस गैस पर रखें और 2 मिनट तक पकायें.

हल्‍का ठंडा होने पर उसमे एसेंस डालकर अच्छी तरह मिलाएं. ठंडा करने पर यह और भी गाढ़ा और स्वादिष्ट लगेगा.

रोटी: क्या था अम्मा के संदूक में छिपा रहस्य

ढाई बजे तक की अफरातफरी ने पंडितजी का दिमाग खराब कर के रख दिया था. ये लाओ, वो लाओ, ये दिखाइए, वो दिखाइए, ऐसा क्यों है, कहां है, किस तरह है? इस का सुबूत…उस का साक्ष्य?

पारिवारिक सूची क्या बनी, पूरे खानदान की ही फेहरिस्त तैयार हो गई. पूरे 150 नाम दर्ज हो गए, सभी के पते, फोन नंबर, मोबाइल नंबर, उन का व्यवसाय और उन सब के व्यवसायों से जुड़े दूसरेदूसरे लोग.

पंडित खेलावन ने बेटी की सगाई पिछले माह ही की थी. उन्हें डर था कि कहीं ऐसा कुछ न हो कि उन के संबंधों पर आंच आए, सो कह उठे, ‘‘देखिए शर्मा साहब, आप को मेरे परिवार और मेरे धंधे के बाबत जो कुछ पूछना और जानना है, पूछिए किंतु मेरे समधी को इस में न घसीटिए, प्लीज. बेटी के विवाह का मामला है. कहीं ऐसा न हो कि…’’

पंडित खेलावन को बीच में टोकते हुए शर्माजी बोले, ‘‘देखिए पंडितजी, जिस तरह से आप को अपने संबंधों की परवा है उसी तरह मुझे भी अपनी नौकरी की चिंता है. यह सब तो आप को बताना ही होगा. आखिर आप का, आप के व्यापार का किसकिस से और कैसाकैसा संबंध है, यह मुझे देखना है और यही मेरे काम का पार्र्ट है.’’

तमाम जानकारियां दर्ज कर शर्माजी लंच के लिए बाहर निकल गए थे किंतु पीछे अपनी पूरी फौज छोड़ गए थे. घर के हर सदस्य पर पैनी नजर रखने के लिए आयकर विभाग का एकएक कर्मचारी मुस्तैद था.

पलंग पर निढाल हो पंडित खेलावन ने सारी स्थितियों पर गौर करना शुरू किया. आयकर वालों की ऐसी रेड पड़ी थी कि छिपनेछिपाने की तनिक भी मोहलत नहीं मिली. यह शनि की महादशा ही थी कि सुबहसुबह हुई दस्तक ने उन्हें जैसे सड़क पर नंगा ला कर खड़ा कर दिया हो.

पंडित खेलावन का दिमाग हर समय हर बात को धंधे की तराजू पर तोलता रहता था. पलड़ा अपनी तरफ झुके तभी फायदा है, इसी सिद्धांत को उन्होंने अपनाना सीखा था. और पलड़ा अपनी ओर झुकाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति ही कारगर सिद्ध  होती थी, होती आई है. इसीलिए पूरे जीवन को उन्होंने धंधे की तराजू पर तोला था.

‘‘मुझे, नहीं खाना कुछ भी,’’ कह कर पंडित खेलावन ने थाली परे सरका दी.

‘‘हमारी तो तकदीर ही फूटी थी जो यह दिन देखना पड़ रहा है,’’ पत्नी ने पीड़ा पर मरहम लगाते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि अपने दुश्मनों से होशियार रहो. कहने को भाई हैं तुम्हारे मांजाए. पर हैं नासपीटे…यह सबकुछ उन्हीं का कियाधरा है, नहीं तो…’’ कहतेकहते पंडिताइन सिसकसिसक कर रोने लगीं.

‘‘देख लूंगा…एकएक को देख लूंगा…किसी को नहीं छोड़ं ूगा. मुझे बरबाद करने पर तुले हैं…उन को भी आबाद नहीं रहने दूंगा. क्या मैं उन की रगरग को नहीं जानता हूं कि उन की औलादें क्याक्या गुल खिलाती फिरती हैं? मेरे मुंह खोलने की देर भर है, सब लपेटे में आ जाएंगे.’’

पंडितजी जोरजोर से चिल्ला रहे थे. वह जानते थे कि दीवार के उस पार जरूर भाइयों के कान लगे होंगे, भाभियों को चटखारे लेने का आज अच्छा मौका जो मिला था.

आयकर जांच अधिकारी ने लंच से लौटते ही एकएक चीज का मूल्यांकन करना शुरू किया. पत्नी के काननाक को भी उन्होंने नहीं छोड़ा.

‘‘हर चीज सामने होनी चाहिए…सोना, चांदी, हीरा, मोती, नकदी, बैंकबैलेंस, जमीनजायदाद, फैक्टरी, दुकान, घर, मकान, कोठी, बंगला, खेत खलिहान… सबकुछ नामे या बेनामे.’’

ज्योंज्यों लिस्ट बढ़ती जा रही थी त्योंत्यों पंडित खेलावन का दिल बैठता जा रहा था.

कोई जगह, कोई  कोना, कोई तहखाना नहीं छोड़ा था रेड पार्टी ने. हर कमरे की तलाशी, गद्दोंतकियों को छू- दबा कर देखा तो देखा, दीवारों के प्लास्टर को भी ठोकबजा कर देखने से नहीं चूके.

पंडितजी कुछ कहने को होते तो शर्मा साहब उन्हें बीच में ही रोक देते, ‘‘हम, अच्छी तरह जानते हैं, कहां क्या हो सकता है. टैक्स बचाने के चक्कर में आप लोगों का बस चले तो क्या कुछ नहीं कर सकते?’’

आखिरी कमरा बचा था अम्मां वाला. शर्माजी ने कहा, ‘‘इसे भी देखना होगा.’’

‘‘इस में क्या रखा है…बूढ़ी मां का कमरा है. जाओजाओ, अब उसे भी देख लो…कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए पंडितजी की इज्जत का फलूदा बनाने में…’’ झल्लाहट में पंडित खेलावन बड़बड़ा रहे थे.

समाज में इज्जत बनाने के लिए और बाजार में अपनी साख कायम रखने के लिए पंडित खेलावन ने क्याक्या नहीं किया था. थोड़ीबहुत राजनीति में भी दखल रखने का इरादा था. इसीलिए उन्होंने हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए अपने एक चित्र को परचे पर छपवाया और इस खूबसूरत परचे को शहर के कोनेकोने में चस्पां करवा डाला था. गली, महल्ला, टैक्सी, जीप, बस और रेल के डब्बों में भी उन की पहचान कायम थी.

सबकुछ धो डाला है आज के मनहूस दिन ने. हो न हो, कहीं यह सामने वाली पार्टी की करतूत तो नहीं? हो भी सकता है क्योंकि अभी वह पार्टी पावर में है. उन का मानना था कि अगले चुनाव में केंद्र वाली पार्टी ही राज्य में भी आएगी, इसलिए उस से ही जुड़ना ठीक होगा. पर इस बार के अनुमान में वह गच्चा खा गए.

अम्मां 80 को पार कर रही थीं. इस आयु में तो हर कोई सठिया जाता है. बातबात पर बच्चों जैसी जिद…अब वह क्या जानें कि ये आयकर क्या होता है वह तो जिद पर अड़ी हैं कि अपने कमरे में किसी को नहीं आने देंगी.

आंख से भले ही पूरा दिखाई न देता हो पर किसी बच्चे के पैरों की आहट भी सुनाई दे जाती है तो कोहराम मचा देती हैं…रोने लगती हैं. उन्हें अकेले पड़े रहना ही सुहाता है. अब अम्मां को कौन समझाए कि ये रेड पार्टी वाले जो ठान लेते हैं कर के ही दम लेते हैं, उन्हें तो यह कमरा भी चेक कराना ही होगा.

शर्माजी समय की नजाकत को जानते थे और जांचपड़ताल के दौरान किस के साथ कैसा व्यवहार कर के जड़ तक पहुंचना है, खूब जानते थे. उन्होंने सभी को रोक कर अकेले अम्मां के कमरे में प्रवेश किया.

‘‘अम्मां, पांव लागूं. कैसी हो अम्मां जी. बहुत दिनों से सुनता था कि बड़ेबूढ़ों का आशीर्वाद जीवन में पगपग पर कामयाबी देता है, क्या ऐसा वरदान आप मुझे नहीं देंगी?’’

‘‘बेटा, सब करनी का फल है… आशीषों से क्या होता है? पर तुम हो कौन? सुबह से इस घर में कोहराम मचा हुआ है. क्यों परेशान कर रखा है मेरे बच्चों को?’’ अम्मां के शब्दों में तल्खी भी थी और आर्तनाद भी, जैसे वह सबकुछ जानतीसमझती हों.

शर्माजी ने अम्मां को जैसे समझाने का प्रयास किया, ‘‘हम लोग सरकारी आदमी हैं, अम्मां. हमारा काम है गलत तरीकों से कमाए गए रुपएपैसों की पड़ताल करना…खरी कमाई पर खरा टैक्स लेना सरकार का कायदा है. अब देखिए न अम्मांजी, मैं ठहरा सरकारी मुलाजिम. मुझे आदेश मिला है कि पंडित खेलावन पर टैक्स चोरी का मुआमला है, उस की छानबीन करो…सो आदेश तो बजाना ही होगा न…अब बताइए अम्मां, इस में मेरा क्या दोष है? जो खरा है तो खरा ही रहेगा…पंडितजी ने कोई गुनाह किया नहीं है तो उन्हें सजा कैसे मिल सकती है पर खानापूर्ति तो करनी ही होगी न…’’

‘‘सो तो है, बेटा…तुम आदमी भले लगते हो. मुझ से क्या चाहते हो? सारे घर का हिसाब तो तुम ले ही चुके हो…लो, मेरा कमरा भी देख लो. यही चाहते हो न…पूरी कर लो अपनी ड्यूटी,’’ शर्माजी की बातों से अम्मां प्रभावित हुई थीं.

पुराने कमरे में क्या लुकाधरा है लेकिन शर्माजी की पैनी नजर ने संदेह तो खड़ा कर ही दिया था.

‘‘इस संदूक में क्या है? अम्मां, जरा खोल कर दिखाओ तो,’’ शर्माजी ने कहा तो अम्मां जैसे फिर बिफर पड़ीं, ‘‘नहीं… नहीं, इसे नहीं खोलने दूंगी. तुम इसे नहीं देख सकते…’’

‘‘लेकिन ऐसा भी क्या है, अम्मां, संदूक को जरा देख तो लेने दो,’’ शर्माजी बोले, ‘‘आप ने ही तो कहा है कि मुझे मेरी ड्यूटी पूरी करने देंगी. सो समझिए कि मेरी ड्यूटी में हर बंद चीज को खोल कर देखना शामिल है.’’

अम्मां ने अब और जिद नहीं की. खटिया से उठीं, दरवाजा भीतर से बंद किया.

संदूक का नाम सुनते ही पंडिताइन के मन में खटका हुआ था कि हो न हो, बुढि़या ने सब से छिपा कर जरूर कुछ बचा रखा है. इसीलिए वह अपने संदूक के पास किसी को फटकने तक नहीं देती थीं. जरूर कुछ ऐसा है जिसे शर्माजी ताड़ गए हैं, नहीं तो…

इधर पंडितजी भी शंकालु हो उठे तो पंडिताइन से कहने लगे, ‘‘अम्मां रहती हैं मेरे यहां और मन लगा रखा है दूसरे बेटों के साथ. भले ही वे उन्हें न पूछते हों. कहीं ऐसा तो नहीं है कि बड़के भैया के लिए कुछ रख छोड़ा हो. चलो, जो भी होगा, आज सामने आ ही जाएगा.’’

बंद कमरे में पसरे अंधकार में पिछली खिड़की से जो थोड़ी रोशनी की लकीर  आ रही थी उसी रोशनी में संदूक रखा था. ताला खोल कर ज्यों अम्मां ने संदूक का ढक्कन उठाया तो शर्माजी अवाक् रह गए.

‘‘रोटियां, ये क्या अम्मां… रोटियां और संदूक में?’’

‘‘हां, बेटे, यही जीवन का सत्य है… रोटियां. इन्हीं के लिए इनसान दुनिया में जीता है, जीवन भर भागता फिरता है, रातदिन एक करता है, बुरे से बुरा काम करता है. किस के लिए ? रोटी के लिए ही तो. खानी उसे सिर्फ दो रोटी ही हैं. फिर भी न जाने क्यों…’’ कहतेकहते अम्मां का गला भर उठा था.

‘‘लेकिन मांजी, ये तो सूखी रोटियां हैं. आप ने इन्हें संदूक में सहेज कर क्यों रख छोड़ा है?’’ शर्माजी इस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहे थे, भले ही उन्होंने बड़ी से बड़ी गुत्थियों को सुलझा दिया हो.

‘‘सप्ताह में एक दिन ऐसा भी आता है बेटे, जब कोई भी घर में नहीं रहता. इतवार को सभी बाहर खाना खाते हैं. उस दिन घर में रोटी नहीं बनती. उसी दिन के लिए मैं इन्हें बचाए रखती हूं. दो रोटियों को पानी में भिगो देती हूं और फिर किसी न किसी तरह से उन्हें चबा कर पेट भर ही लेती हूं…लो बेटे, तुम ने तो देख ही लिया है… अब इस कटुसत्य को पूरे घर के सामने भी जाहिर हो जाने दो…न जाने मेरे बच्चे क्या सोचेंगे.’’ आंसू पोंछते हुए अम्मां ने बंद दरवाजा खोल दिया.

Summer Special: गरमी में ऐसे करें स्किन केयर

सीनियर कंसल्टेंट डर्मेटौलोजिस्ट डा. नरेश भार्गव के अनुसार, गरमी हो या सर्दी हर मौसम में हमारी त्वचा को खास देखभाल की जरूरत होती है. गरमी में सूर्य की हानिकारक किरणों, धूलमिट्टी और तैलीय ग्रंथियों की अधिक सक्रियता का प्रभाव हमारी त्वचा पर सब से ज्यादा पड़ता है, जिस के कारण प्रिक्ली हीट, पिग्मैंटेंशन, फंगस, ब्लैकहैड्स, पिंपल, एक्ने, डैंड्रफ और स्किन ऐलर्जी आदि समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है. लेकिन अगर हम कुछ खास बातों का ध्यान रखते हुए उन पर चलें तो इन समस्याओं से काफी हद तक बचाव संभव है.

बचाव के उपाय

ठंडक का एहसास:

डा. भार्गव के अनुसार, गरमियों में त्वचा के रोगों के निदान के लिए शरीर को ठंडा रखना बेहद जरूरी है. इस के लिए दिन में 2 से 3 बार नहाना चाहिए तथा शरीर को ठंडक देने वाले पेयपदार्थ, जैसे लस्सी, दही, नीबूपानी, दूध आदि का सेवन करना चाहिए. साथ ही, धूप के संपर्क में कम से कम आना चाहिए. अंदरूनी हिस्सों की साफसफाई: डा. भार्गव के अनुसार, शरीर के अंदरूनी हिस्सों की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि शरीर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे बगलों, घुटने, कुहनियां आदि में पसीने के कारण बैक्टीरिया पनपते हैं, जिस से शरीर में पसीने की दुर्गंध आने लगती है. इसलिए इन हिस्सों को अच्छी तरह साफ कर के और सुखा कर टैल्कम पाउडर लगाना चाहिए.

सही खाद्यपदार्थों का सेवन:

डा. भार्गव गरमियों में उचित खानपान की सलाह देते हैं. उन के अनुसार, गरमियों में तैलीय व गरिष्ठ भोजन की अपेक्षा ऐसा सादा एवं फलाहारी भोजन सब से उपयुक्त है, जो शरीर को उपयुक्त ऊर्जा व नमी प्रदान करे. इसलिए फलसब्जियों और पानी को अपने आहार में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए और कैफीन वाली चीजों, जैसे चायकाफी आदि का इस्तेमाल जरूरी हो तो भी कम से कम करना चाहिए.

फेसवाश का प्रयोग:

गरमियों में आमतौर पर हर कोई 2 से 3 बार नहाता है. ऐसे में साबुन के अत्यधिक प्रयोग से उस की त्वचा रूखी व बेजान हो जाती है. इसलिए साबुन की जगह सौम्य फेसवाश और बौडी शैंपू के प्रयोग से अपनी त्वचा की नमी बरकरार रखें.

नियमित टोनिंग:

आप की त्वचा हमेशा जवां व खूबसूरत बनी रहे, इस के लिए नियमित रूप से क्लींजिंग, टोनिंग व मौइश्चराइजिंग करें. तैलीय त्वचा होने पर औयलफ्री मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें. ज्यादा असर के लिए मौइश्चराइजर को फ्रिज में रखें. जब आप धूप से घर लौटें तो चेहरा धोने के बाद ठंडाठंडा मौइश्चराइजर चेहरे पर लगाएं और गरमी में ठंडक का एहसास पाएं.

सनस्क्रीन का प्रयोग:

त्वचा को खूबसूरत बनाए रखने के लिए टोनिंग के साथ सनस्क्रीन का प्रयोग जरूर व नियमित करें, क्योंकि धूप में निकलने पर सूर्य की हानिकारक किरणों के संपर्क में आने के कारण हमारी त्वचा पर सनबर्न, असमय झुर्रियां आदि समस्याएं उभर आती हैं. जबकि नियमित सनस्क्रीन के इस्तेमाल से इन समस्याओं की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है तथा इन से बचा जा सकता है. इसलिए घर से बाहर निकलने से कम से कम आधा घंटा पहले इसे लगा लें तथा धूप में ज्यादा रहने की स्थिति होने पर 3 घंटे के बाद दोबारा सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें. सनस्क्रीन केवल चेहरे पर ही नहीं बल्कि शरीर के हर उस हिस्से पर लगाएं, जो धूप के सीधे संपर्क में आता है.

त्वचा के अनुसार सनस्क्रीन

डा. भार्गव के अनुसार, त्वचा के अनुरूप ही सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे:

नौर्मल और ड्राई स्किन:

नौर्मल और ड्राई स्किन के लिए नौर्मल 30+एसपीएफ का सनस्क्रीन उपयुक्त है, जो त्वचा पर सुरक्षा कवच का काम करता है.

तैलीय त्वचा:

इस प्रकार की त्वचा के लिए नौनऔयली 30 या 30+एसपीएफ सनस्क्रीन बेहतर व उपयुक्त है.

सैंसिटिव त्वचा:

नाजुक त्वचा के लिए न्यूट्रल सोप स्किन सनस्क्रीन अच्छा है.

ब्लैकहैड्स के लिए:

गरमियों में ब्लैकहैड्स की समस्या में बढ़ोतरी हो जाती है, जो आप की खूबसूरती में ग्रहण लगा देते हैं. इन से निबटने के लिए महीने में 2 बार किसी अच्छे पार्लर में जा कर फेस क्लीनिंग कराएं तथा इस के बाद टोनर का प्रयोग करें. ब्लैकहैड्स को कभी भी जबरदस्ती दबा कर निकालने की कोशिश न करें.

पैडिक्योर:

गरमियों में पैरों की उंगलियों के बीच में नियमित सफाई नहीं होने के कारण फंगस की समस्या उत्पन्न हो जाती है. इस से बचने के लिए उचित साफसफाई का ध्यान रखते हुए महीने में 1 या 2 बार पार्लर जा कर पैडिक्योर करवाएं.

वैक्सिंग:

वैक्सिंग करवाने से अनचाहे बालों से छुटकारा तो मिलता ही है, त्वचा की डैडस्किन भी निकलती है. इसलिए नियमित रूप से बालों की ग्रोथ के हिसाब से वैक्सिंग जरूर करवाएं.

उचित मेकअप प्रोडक्ट का चुनाव:

प्रसिद्ध मेकअप आर्टिस्ट सोनिया बत्रा के अनुसार, गरमियों में मैट मेकअप प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए तथा शाइनी लुक के लिए मैट प्रोडक्ट पर शिमर या शाइनर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा क्रीमी बेस प्रोडक्ट की जगह वाटरबेस प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. इस के साथ आजकल न्यूड मेकअप फैशन में है, इसलिए मेकअप लाइट ही रखें.

मेकअप उतारना:

गरमियों में रात को सोने से पहले मेकअप उतारना बहुत जरूरी होता है ताकि आप की त्वचा खुल के सांस ले सके. मेकअप उतारने के लिए क्लींजिंग मिल्क या मेकअप रिमूवर का इस्तेमाल करें.

फेशियल:

गरमियों के मौसम और त्वचा के अनुसार आप फेशियल जरूर करवाएं ताकि आप का चेहरा हर पल खिलाखिला रहे. गरमियों के मौसम में आप ग्लाइकोलिक पीलिंग या स्पा फेशियल करवा सकती हैं.

बालों की देखभाल:

गरमियों में लगातार पसीने के कारण बाल बहुत चिपचिपे हो जाते हैं. अत: इन की नियमित सफाई पर ध्यान दें. आजकल मार्केट में कई प्रकार के शैंपू उपलब्ध हैं, जिन के नियमित इस्तेमाल से बालों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है. लेकिन इन्हें खरीदते समय अपने बालों की प्रकृति का विशेष ध्यान रखें.

तनमन महके:

गरमियों में पसीने की गंध से छुटकारा पाने के लिए नहाने के पानी में कुछ बूंदें एसेंशियल औयल की या फिर गुलाबजल की डाल कर नहाएं. इस के अलावा बौडी डियोड्रैंट, बौडी स्प्रे या परफ्यूम का इस्तेमाल जरूर करें. ध्यान रखें कि परफ्यूम हमेशा बौडी के वार्म पौइंट्स, जैसे गरदन और कलाइयों पर ही लगाना चाहिए.

घरेलू फेसपैक:

गरमियों में घरेलू फेसपैक बनाने के लिए दही व मुलतानी मिट्टी में थोड़ा सा शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं. यह पैक गरमियों के लिए अति उत्तम है.

योग एक वरदान:

नियमित रूप से योग को अपने दैनिक कार्यों में सम्मिलित करें. स्वस्थ तनमन के लिए योग से बेहतर अन्य कोई साधन नहीं है.

पत्नी की देखभाल: संदीप को क्या हुआ था

‘‘अरे…अरे, संदीप क्या बात है? क्या हुआ?’’ उस ने हैरत से पति का सुस्त चेहरा देखा और उन का जवाब मिलने तक एक कप अदरक, कालीमिर्च व अजवायन की चाय बना कर उन के हाथ में दे दी.

‘‘आज दोपहर में हरारत सी हो गई. इसीलिए जल्दी लौट आया,’’ कह कर संदीप ने चाय का घूंट भरा, ‘‘वाह अमृत, बहुत आराम मिल रहा है.’’

तभी दोनों बेटियां भी उन्हीं के पास आ गईं, ‘‘अरेअरे, पापा आप को इस कुरसी पर और आराम से बैठना चाहिए,’’ कह कर 5 और 7 साल की बेटियां एकएक कुशन ले कर उन की पीठ से लगाने लगीं.

‘‘थैक्स बेटी, बहुत आराम मिला. खेलने जा रहे हो?’’

‘‘हांहां,’’ कह कर दोनों मां से पूछने लगीं, ‘‘पापा इतने हौलेहौले क्यों बोल रहे हैं?’’

‘‘वह आज पापा को फीवर आ गया है.’’

मां की बात सुनी तो, ‘‘अच्छा,’’ कह कर दोनों वहीं खड़ी हो गईं.

‘‘अरे, प्यारे बच्चों जाओ खेलने जाओ बच्चों,’’ मां ने जैसे ही कहा दोनों अपनाअपना बौल ले कर पार्क में चली गईं. वहां जा कर खूब खेलनेकूदने के बाद दोनों ने अपने सारे साथियों को सनसनीखेज खबर सुनाई, ‘‘पता है हमारे पापा को स्विमिंग, स्कैटिंग, बैडमिंटन, टैनिस, हौर्स राइडिंग सब आता है. पर…’’

‘‘अरे, मुग्धा व पावनी पर क्या? आगे भी तो बताओ,’’ बाकी दोस्तों ने उत्सुकता से चकित हो कर पूछा.

‘‘वह आज उन्हें फीवर आ गया है. तुम्हें देखने हैं? बोलो… बोलो?’’

‘‘अरे, हांहां देखने हैं, ‘‘और फिर पूरी धमाचौकड़ी पहुंच गई सीधा उस कमरे में जहां बुखार से कराहते संदीप आंखें बंद कर लेटे

हुए थे.

‘‘यह देखो पापा का माथा गरम है न… हाथ भी, गरदन भी. यहां सब जगह फीवर आ गया है.’’

वे सब नादान और प्यारे बच्चे बारीबारी से अपनी शीतल हथेलियों

से तपती त्वचा को स्पर्श करते जा रहे थे. वह तो संदीप को बच्चों के साथ रहने और खेलने की आदत बरसों से थी. उन के सभी मित्र अपने बच्चे उन्हीं के संरक्षण में छोड़ दिया

करते थे. इसलिए आज इतने ज्वर

में भी वे बच्चों की इतनी तीखी चिल्लपौं से न तो खीजे और न

ही  झल्लाएं.

‘‘मां हमारे दोस्त आए हैं,’’ जब

दोनों बच्चों ने बताया तो वे उस समय गरम

पानी की थैली बना रही थीं. वे अपने घर में

बच्चों की किलकारियों से गदगद हो उठीं और बच्चों को उन का पसंदीदा मिल्कशेक बना

कर दिया.

तभी बाई का फोन आया कि वह 2 दिन नहीं आ सकेगी.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ कह कर उन्होंने अपने घर जाते बच्चों को अलविदा कहा और फिर सिंक में भरे बरतन मांज कर रात के लिए भोजन की तैयारी करने लगीं. बच्चों के स्टडीरूम से कागज फटने और कैंची चलने की आवाज सुनाई दी तो चौंक कर स्टडीरूम में गईं. देखा कि प्लास्टिक की कैंची से कागज को सैट कर बेटियां अपनी कौपी में कवर चढ़ा रही हैं.

‘‘मां आप बिजी थीं न इसलिए हम ने

सोचा अपना काम खुद कर लेते हैं और मां आप हमें भी मूंग की खिचड़ी खिला दो,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘न, न, बच्चों, तुम्हारे लिए आलू के परांठे तुम्हें सेंकने जा रही हूं. सब तैयारी कर ली है,’’ मां ने कहा.

‘‘अच्छा मां हम दोनों एक ही प्लेट में खा लेंगी,’’ और फिर वे खुद ही रसोई मे पहुंच गईं और धुले हुए सूखे बरतन सैट करने लगीं.

मां संदीप को खिचड़ी खिला दवा दे दी. फिर अपनी उन सहेलियों के संदेश फोन पर देख कर जवाब लिखने लगीं, जिन्हें उन्होंने दोपहर बाद घबरा कर तनाव में संदीप को बुखार आ रहा है, ऐसा संदेश भेजा था.

रात उन्हें न जाने क्यों बहुत देर से नींद

आई और फिर पता ही नहीं चला कि कब

सुबह के 5 बज गए. वे उठ कर तत्परता से रसोई में जुट गईं. बच्चियां टिफिन ले कर हंसतीहंसती स्कूल चली गईं. मां ने संदीप को दूध का दलिया खिला कर आराम करने को कहा.

अभी सुबह के 10 ही बजे होंगे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. उस की सारी सहेलियों का एकसाथ आगमन हुआ. उन की चिंताभरी परवाह ने उन्हें गदगद कर दिया.

‘‘संदीपजी अरे, कैसे आया बुखार?’’

‘‘ये सब आवाजें उन्हें रसोई में सुनाई दे रही थीं और वे अपनी सहेलियों के भरपूर स्नेह से भावविह्वल हो रही थीं.

कड़क चाय ले कर जब वे उन के पास गईं तो देखा कि सहेलियों की गपशप एकदूसरे से हो रही है और संदीपजी इस शोर के बीच भी गजब के खर्राटे भर रहे थे.

‘‘ओह, दवा का असर है,’’ उन्होंने अपनी सहेलियों से कहा और फिर रसोई में चली गईं.

वे सब उन के पास रसोई में आ कर ही चाय पीने लगीं. सहेलियों ने ही सिंक में भरे सुबह के सारे बरतन मिल कर साफ कर दिए और दोपहर के भोजन में यथासंभव मदद कर के सब

चली गईं.

पता ही नहीं चला कि कब बेटियां स्कूल से लौट आईं और सब से पहले पापा का बुखार अपने हाथों थर्मामीटर से जांच कर खुद ही

कहने लगीं, ‘‘मां, हम वही खाएंगे जो पापा खा रहे हैं.’’

उस के बाद छोटी बेटी पूछने लगी, ‘‘पापा, आप को यह बुखार कब तक रहेगा?’’

‘‘3 दिन तक रहेगा,’’ जवाब उस की बड़ी बहन ने दिया, ‘‘पापा से डाक्टर ने फोन पर यही कहा है. मैं ने स्पीकर में सुना था.’’

इसी बीच संदीप के मित्र भी आते रहे. मां शाम से रात तक काम में लगी रहतीं.

इस बीच उन्हें एहसास हुआ कि वे पिछली रात नाममात्र को ही सोई हैं इसलिए आंखें मुंद रही हैं.

रात के खाने और संदीप को दवा दे कर वे जैसे ही बिस्तर पर गईं एकदम से निढाल हो गईं.

सुबह जागीं तो घबरा ही गईं. 8 बज रहे थे.

‘‘ओह,’’ कह कर उन्होंने उठना चाहा पर पूरा बदन दर्द से टूट रहा था.

‘‘सो जाओ मुहतरमा,’’ कह कर पति ने कक्ष में प्रवेश किया. उन के हाथों में एक ट्रे थी जिस में चाय का कप रखा था.

‘‘अरेअरे, संदीप तुम्हें बुखार था. मैं इसीलिए यहां आ कर सो गई. मु झे जागने में बहुत देर हो गई. बच्चों का स्कूल…’’ कह वे उठने की नाकाम कोशिश करने लगीं.

संदीप ने उन से अनुरोध किया, ‘‘सुनो मेरी अर्ज मान लो… यह चाय पी कर

लेटे रहो.’’

‘‘ओह, पर बच्चे?’’ वे चाय के एक घूंट में ही तरोताजा हो गई थीं. फिर उठीं और संदीप का माथा छू कर देखा. बुखार बिलकुल नहीं था. उन्हें शांति मिली. परदा उठा कर दूसरे कमरे में देखा तो बच्चियां गहरी नींद में थीं.

उन का चिंताभरा चेहरा देख कर संदीप ने अनुरोध किया, ‘‘जी, गृहलक्ष्मीजी मैं बिलकुल फिट और हिट हूं, आप चुपचाप बैठे रहो और सुनो आज रविवार है.’’

‘‘ओह, अच्छा…’’ कह उन्होंने चैन से

चाय पी.

‘‘मैं अब नाश्ता तैयार कर रहा हूं और एक सलाह दे रहा हूं कि सेवा संतुलित हो कर ही किया करो. देखो, तुम ने 2 दिन मेरी इतनी ज्यादा तीमारदारी की कि अब तुम्हें खुद बुखार ने

जकड़ लिया.’’

‘‘आप ने कैसे पता लगाया?’’

‘‘अपनी हथेली के थर्मामीटर से,’’ कह

कर संदीप ने हंस कर एक और कप चाय उन्हें थमा दी.

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