Summer Special: गरमी में ऐसे करें स्किन केयर

सीनियर कंसल्टेंट डर्मेटौलोजिस्ट डा. नरेश भार्गव के अनुसार, गरमी हो या सर्दी हर मौसम में हमारी त्वचा को खास देखभाल की जरूरत होती है. गरमी में सूर्य की हानिकारक किरणों, धूलमिट्टी और तैलीय ग्रंथियों की अधिक सक्रियता का प्रभाव हमारी त्वचा पर सब से ज्यादा पड़ता है, जिस के कारण प्रिक्ली हीट, पिग्मैंटेंशन, फंगस, ब्लैकहैड्स, पिंपल, एक्ने, डैंड्रफ और स्किन ऐलर्जी आदि समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है. लेकिन अगर हम कुछ खास बातों का ध्यान रखते हुए उन पर चलें तो इन समस्याओं से काफी हद तक बचाव संभव है.

बचाव के उपाय

ठंडक का एहसास:

डा. भार्गव के अनुसार, गरमियों में त्वचा के रोगों के निदान के लिए शरीर को ठंडा रखना बेहद जरूरी है. इस के लिए दिन में 2 से 3 बार नहाना चाहिए तथा शरीर को ठंडक देने वाले पेयपदार्थ, जैसे लस्सी, दही, नीबूपानी, दूध आदि का सेवन करना चाहिए. साथ ही, धूप के संपर्क में कम से कम आना चाहिए. अंदरूनी हिस्सों की साफसफाई: डा. भार्गव के अनुसार, शरीर के अंदरूनी हिस्सों की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि शरीर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे बगलों, घुटने, कुहनियां आदि में पसीने के कारण बैक्टीरिया पनपते हैं, जिस से शरीर में पसीने की दुर्गंध आने लगती है. इसलिए इन हिस्सों को अच्छी तरह साफ कर के और सुखा कर टैल्कम पाउडर लगाना चाहिए.

सही खाद्यपदार्थों का सेवन:

डा. भार्गव गरमियों में उचित खानपान की सलाह देते हैं. उन के अनुसार, गरमियों में तैलीय व गरिष्ठ भोजन की अपेक्षा ऐसा सादा एवं फलाहारी भोजन सब से उपयुक्त है, जो शरीर को उपयुक्त ऊर्जा व नमी प्रदान करे. इसलिए फलसब्जियों और पानी को अपने आहार में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए और कैफीन वाली चीजों, जैसे चायकाफी आदि का इस्तेमाल जरूरी हो तो भी कम से कम करना चाहिए.

फेसवाश का प्रयोग:

गरमियों में आमतौर पर हर कोई 2 से 3 बार नहाता है. ऐसे में साबुन के अत्यधिक प्रयोग से उस की त्वचा रूखी व बेजान हो जाती है. इसलिए साबुन की जगह सौम्य फेसवाश और बौडी शैंपू के प्रयोग से अपनी त्वचा की नमी बरकरार रखें.

नियमित टोनिंग:

आप की त्वचा हमेशा जवां व खूबसूरत बनी रहे, इस के लिए नियमित रूप से क्लींजिंग, टोनिंग व मौइश्चराइजिंग करें. तैलीय त्वचा होने पर औयलफ्री मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें. ज्यादा असर के लिए मौइश्चराइजर को फ्रिज में रखें. जब आप धूप से घर लौटें तो चेहरा धोने के बाद ठंडाठंडा मौइश्चराइजर चेहरे पर लगाएं और गरमी में ठंडक का एहसास पाएं.

सनस्क्रीन का प्रयोग:

त्वचा को खूबसूरत बनाए रखने के लिए टोनिंग के साथ सनस्क्रीन का प्रयोग जरूर व नियमित करें, क्योंकि धूप में निकलने पर सूर्य की हानिकारक किरणों के संपर्क में आने के कारण हमारी त्वचा पर सनबर्न, असमय झुर्रियां आदि समस्याएं उभर आती हैं. जबकि नियमित सनस्क्रीन के इस्तेमाल से इन समस्याओं की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है तथा इन से बचा जा सकता है. इसलिए घर से बाहर निकलने से कम से कम आधा घंटा पहले इसे लगा लें तथा धूप में ज्यादा रहने की स्थिति होने पर 3 घंटे के बाद दोबारा सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें. सनस्क्रीन केवल चेहरे पर ही नहीं बल्कि शरीर के हर उस हिस्से पर लगाएं, जो धूप के सीधे संपर्क में आता है.

त्वचा के अनुसार सनस्क्रीन

डा. भार्गव के अनुसार, त्वचा के अनुरूप ही सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे:

नौर्मल और ड्राई स्किन:

नौर्मल और ड्राई स्किन के लिए नौर्मल 30+एसपीएफ का सनस्क्रीन उपयुक्त है, जो त्वचा पर सुरक्षा कवच का काम करता है.

तैलीय त्वचा:

इस प्रकार की त्वचा के लिए नौनऔयली 30 या 30+एसपीएफ सनस्क्रीन बेहतर व उपयुक्त है.

सैंसिटिव त्वचा:

नाजुक त्वचा के लिए न्यूट्रल सोप स्किन सनस्क्रीन अच्छा है.

ब्लैकहैड्स के लिए:

गरमियों में ब्लैकहैड्स की समस्या में बढ़ोतरी हो जाती है, जो आप की खूबसूरती में ग्रहण लगा देते हैं. इन से निबटने के लिए महीने में 2 बार किसी अच्छे पार्लर में जा कर फेस क्लीनिंग कराएं तथा इस के बाद टोनर का प्रयोग करें. ब्लैकहैड्स को कभी भी जबरदस्ती दबा कर निकालने की कोशिश न करें.

पैडिक्योर:

गरमियों में पैरों की उंगलियों के बीच में नियमित सफाई नहीं होने के कारण फंगस की समस्या उत्पन्न हो जाती है. इस से बचने के लिए उचित साफसफाई का ध्यान रखते हुए महीने में 1 या 2 बार पार्लर जा कर पैडिक्योर करवाएं.

वैक्सिंग:

वैक्सिंग करवाने से अनचाहे बालों से छुटकारा तो मिलता ही है, त्वचा की डैडस्किन भी निकलती है. इसलिए नियमित रूप से बालों की ग्रोथ के हिसाब से वैक्सिंग जरूर करवाएं.

उचित मेकअप प्रोडक्ट का चुनाव:

प्रसिद्ध मेकअप आर्टिस्ट सोनिया बत्रा के अनुसार, गरमियों में मैट मेकअप प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए तथा शाइनी लुक के लिए मैट प्रोडक्ट पर शिमर या शाइनर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा क्रीमी बेस प्रोडक्ट की जगह वाटरबेस प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. इस के साथ आजकल न्यूड मेकअप फैशन में है, इसलिए मेकअप लाइट ही रखें.

मेकअप उतारना:

गरमियों में रात को सोने से पहले मेकअप उतारना बहुत जरूरी होता है ताकि आप की त्वचा खुल के सांस ले सके. मेकअप उतारने के लिए क्लींजिंग मिल्क या मेकअप रिमूवर का इस्तेमाल करें.

फेशियल:

गरमियों के मौसम और त्वचा के अनुसार आप फेशियल जरूर करवाएं ताकि आप का चेहरा हर पल खिलाखिला रहे. गरमियों के मौसम में आप ग्लाइकोलिक पीलिंग या स्पा फेशियल करवा सकती हैं.

बालों की देखभाल:

गरमियों में लगातार पसीने के कारण बाल बहुत चिपचिपे हो जाते हैं. अत: इन की नियमित सफाई पर ध्यान दें. आजकल मार्केट में कई प्रकार के शैंपू उपलब्ध हैं, जिन के नियमित इस्तेमाल से बालों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है. लेकिन इन्हें खरीदते समय अपने बालों की प्रकृति का विशेष ध्यान रखें.

तनमन महके:

गरमियों में पसीने की गंध से छुटकारा पाने के लिए नहाने के पानी में कुछ बूंदें एसेंशियल औयल की या फिर गुलाबजल की डाल कर नहाएं. इस के अलावा बौडी डियोड्रैंट, बौडी स्प्रे या परफ्यूम का इस्तेमाल जरूर करें. ध्यान रखें कि परफ्यूम हमेशा बौडी के वार्म पौइंट्स, जैसे गरदन और कलाइयों पर ही लगाना चाहिए.

घरेलू फेसपैक:

गरमियों में घरेलू फेसपैक बनाने के लिए दही व मुलतानी मिट्टी में थोड़ा सा शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं. यह पैक गरमियों के लिए अति उत्तम है.

योग एक वरदान:

नियमित रूप से योग को अपने दैनिक कार्यों में सम्मिलित करें. स्वस्थ तनमन के लिए योग से बेहतर अन्य कोई साधन नहीं है.

पत्नी की देखभाल: संदीप को क्या हुआ था

‘‘अरे…अरे, संदीप क्या बात है? क्या हुआ?’’ उस ने हैरत से पति का सुस्त चेहरा देखा और उन का जवाब मिलने तक एक कप अदरक, कालीमिर्च व अजवायन की चाय बना कर उन के हाथ में दे दी.

‘‘आज दोपहर में हरारत सी हो गई. इसीलिए जल्दी लौट आया,’’ कह कर संदीप ने चाय का घूंट भरा, ‘‘वाह अमृत, बहुत आराम मिल रहा है.’’

तभी दोनों बेटियां भी उन्हीं के पास आ गईं, ‘‘अरेअरे, पापा आप को इस कुरसी पर और आराम से बैठना चाहिए,’’ कह कर 5 और 7 साल की बेटियां एकएक कुशन ले कर उन की पीठ से लगाने लगीं.

‘‘थैक्स बेटी, बहुत आराम मिला. खेलने जा रहे हो?’’

‘‘हांहां,’’ कह कर दोनों मां से पूछने लगीं, ‘‘पापा इतने हौलेहौले क्यों बोल रहे हैं?’’

‘‘वह आज पापा को फीवर आ गया है.’’

मां की बात सुनी तो, ‘‘अच्छा,’’ कह कर दोनों वहीं खड़ी हो गईं.

‘‘अरे, प्यारे बच्चों जाओ खेलने जाओ बच्चों,’’ मां ने जैसे ही कहा दोनों अपनाअपना बौल ले कर पार्क में चली गईं. वहां जा कर खूब खेलनेकूदने के बाद दोनों ने अपने सारे साथियों को सनसनीखेज खबर सुनाई, ‘‘पता है हमारे पापा को स्विमिंग, स्कैटिंग, बैडमिंटन, टैनिस, हौर्स राइडिंग सब आता है. पर…’’

‘‘अरे, मुग्धा व पावनी पर क्या? आगे भी तो बताओ,’’ बाकी दोस्तों ने उत्सुकता से चकित हो कर पूछा.

‘‘वह आज उन्हें फीवर आ गया है. तुम्हें देखने हैं? बोलो… बोलो?’’

‘‘अरे, हांहां देखने हैं, ‘‘और फिर पूरी धमाचौकड़ी पहुंच गई सीधा उस कमरे में जहां बुखार से कराहते संदीप आंखें बंद कर लेटे

हुए थे.

‘‘यह देखो पापा का माथा गरम है न… हाथ भी, गरदन भी. यहां सब जगह फीवर आ गया है.’’

वे सब नादान और प्यारे बच्चे बारीबारी से अपनी शीतल हथेलियों

से तपती त्वचा को स्पर्श करते जा रहे थे. वह तो संदीप को बच्चों के साथ रहने और खेलने की आदत बरसों से थी. उन के सभी मित्र अपने बच्चे उन्हीं के संरक्षण में छोड़ दिया

करते थे. इसलिए आज इतने ज्वर

में भी वे बच्चों की इतनी तीखी चिल्लपौं से न तो खीजे और न

ही  झल्लाएं.

‘‘मां हमारे दोस्त आए हैं,’’ जब

दोनों बच्चों ने बताया तो वे उस समय गरम

पानी की थैली बना रही थीं. वे अपने घर में

बच्चों की किलकारियों से गदगद हो उठीं और बच्चों को उन का पसंदीदा मिल्कशेक बना

कर दिया.

तभी बाई का फोन आया कि वह 2 दिन नहीं आ सकेगी.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ कह कर उन्होंने अपने घर जाते बच्चों को अलविदा कहा और फिर सिंक में भरे बरतन मांज कर रात के लिए भोजन की तैयारी करने लगीं. बच्चों के स्टडीरूम से कागज फटने और कैंची चलने की आवाज सुनाई दी तो चौंक कर स्टडीरूम में गईं. देखा कि प्लास्टिक की कैंची से कागज को सैट कर बेटियां अपनी कौपी में कवर चढ़ा रही हैं.

‘‘मां आप बिजी थीं न इसलिए हम ने

सोचा अपना काम खुद कर लेते हैं और मां आप हमें भी मूंग की खिचड़ी खिला दो,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘न, न, बच्चों, तुम्हारे लिए आलू के परांठे तुम्हें सेंकने जा रही हूं. सब तैयारी कर ली है,’’ मां ने कहा.

‘‘अच्छा मां हम दोनों एक ही प्लेट में खा लेंगी,’’ और फिर वे खुद ही रसोई मे पहुंच गईं और धुले हुए सूखे बरतन सैट करने लगीं.

मां संदीप को खिचड़ी खिला दवा दे दी. फिर अपनी उन सहेलियों के संदेश फोन पर देख कर जवाब लिखने लगीं, जिन्हें उन्होंने दोपहर बाद घबरा कर तनाव में संदीप को बुखार आ रहा है, ऐसा संदेश भेजा था.

रात उन्हें न जाने क्यों बहुत देर से नींद

आई और फिर पता ही नहीं चला कि कब

सुबह के 5 बज गए. वे उठ कर तत्परता से रसोई में जुट गईं. बच्चियां टिफिन ले कर हंसतीहंसती स्कूल चली गईं. मां ने संदीप को दूध का दलिया खिला कर आराम करने को कहा.

अभी सुबह के 10 ही बजे होंगे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. उस की सारी सहेलियों का एकसाथ आगमन हुआ. उन की चिंताभरी परवाह ने उन्हें गदगद कर दिया.

‘‘संदीपजी अरे, कैसे आया बुखार?’’

‘‘ये सब आवाजें उन्हें रसोई में सुनाई दे रही थीं और वे अपनी सहेलियों के भरपूर स्नेह से भावविह्वल हो रही थीं.

कड़क चाय ले कर जब वे उन के पास गईं तो देखा कि सहेलियों की गपशप एकदूसरे से हो रही है और संदीपजी इस शोर के बीच भी गजब के खर्राटे भर रहे थे.

‘‘ओह, दवा का असर है,’’ उन्होंने अपनी सहेलियों से कहा और फिर रसोई में चली गईं.

वे सब उन के पास रसोई में आ कर ही चाय पीने लगीं. सहेलियों ने ही सिंक में भरे सुबह के सारे बरतन मिल कर साफ कर दिए और दोपहर के भोजन में यथासंभव मदद कर के सब

चली गईं.

पता ही नहीं चला कि कब बेटियां स्कूल से लौट आईं और सब से पहले पापा का बुखार अपने हाथों थर्मामीटर से जांच कर खुद ही

कहने लगीं, ‘‘मां, हम वही खाएंगे जो पापा खा रहे हैं.’’

उस के बाद छोटी बेटी पूछने लगी, ‘‘पापा, आप को यह बुखार कब तक रहेगा?’’

‘‘3 दिन तक रहेगा,’’ जवाब उस की बड़ी बहन ने दिया, ‘‘पापा से डाक्टर ने फोन पर यही कहा है. मैं ने स्पीकर में सुना था.’’

इसी बीच संदीप के मित्र भी आते रहे. मां शाम से रात तक काम में लगी रहतीं.

इस बीच उन्हें एहसास हुआ कि वे पिछली रात नाममात्र को ही सोई हैं इसलिए आंखें मुंद रही हैं.

रात के खाने और संदीप को दवा दे कर वे जैसे ही बिस्तर पर गईं एकदम से निढाल हो गईं.

सुबह जागीं तो घबरा ही गईं. 8 बज रहे थे.

‘‘ओह,’’ कह कर उन्होंने उठना चाहा पर पूरा बदन दर्द से टूट रहा था.

‘‘सो जाओ मुहतरमा,’’ कह कर पति ने कक्ष में प्रवेश किया. उन के हाथों में एक ट्रे थी जिस में चाय का कप रखा था.

‘‘अरेअरे, संदीप तुम्हें बुखार था. मैं इसीलिए यहां आ कर सो गई. मु झे जागने में बहुत देर हो गई. बच्चों का स्कूल…’’ कह वे उठने की नाकाम कोशिश करने लगीं.

संदीप ने उन से अनुरोध किया, ‘‘सुनो मेरी अर्ज मान लो… यह चाय पी कर

लेटे रहो.’’

‘‘ओह, पर बच्चे?’’ वे चाय के एक घूंट में ही तरोताजा हो गई थीं. फिर उठीं और संदीप का माथा छू कर देखा. बुखार बिलकुल नहीं था. उन्हें शांति मिली. परदा उठा कर दूसरे कमरे में देखा तो बच्चियां गहरी नींद में थीं.

उन का चिंताभरा चेहरा देख कर संदीप ने अनुरोध किया, ‘‘जी, गृहलक्ष्मीजी मैं बिलकुल फिट और हिट हूं, आप चुपचाप बैठे रहो और सुनो आज रविवार है.’’

‘‘ओह, अच्छा…’’ कह उन्होंने चैन से

चाय पी.

‘‘मैं अब नाश्ता तैयार कर रहा हूं और एक सलाह दे रहा हूं कि सेवा संतुलित हो कर ही किया करो. देखो, तुम ने 2 दिन मेरी इतनी ज्यादा तीमारदारी की कि अब तुम्हें खुद बुखार ने

जकड़ लिया.’’

‘‘आप ने कैसे पता लगाया?’’

‘‘अपनी हथेली के थर्मामीटर से,’’ कह

कर संदीप ने हंस कर एक और कप चाय उन्हें थमा दी.

वह बदनाम लड़की : आकाश की जिंदगी में कैसे आया भूचाल

आकाश जैसे एक खूब पढ़ेलिखे व काबिल इनसान की एक कालगर्ल से यारी…? यकीन मानिए, वह अपनी पत्नी प्रिया को पूरा प्यार देने वाला अच्छा इनसान है और हवस मिटाने के लिए यहांवहां झांकना भी उसे हरगिज गवारा नहीं है. इस के बावजूद वह टीना को दिलोजान से चाहता है, उस की इज्जत करता है.

आप के दिमाग में चल रही कशमकश मिटाने के लिए हम आप को कुछ पीछे के समय में ले चलते हैं. कुछ साल हो गए हैं आकाश को बैंगलुरु आए हुए. एक छोटे कसबे से निकल कर इस महानगरी की एक निजी कंपनी में जब क्लर्की का काम मिला तो पत्नी प्रिया को भी वह अपने साथ यहां ले आया था और उस के नन्हेमुन्ने प्रियांशु ने भी यहीं पर जन्म लिया था.

औफिस से अपने किराए के घर और घर से औफिस, यही आकाश की दिनचर्या बन चुकी थी. ऐसे ही एक दिन वह बस में सवार हो कर औफिस जा रहा था कि कंडक्टर की बहस ने उस का ध्यान खीच लिया. एक बेहद हसीन लड़की शायद पैसे घर पर ही भूल आई थी और कंडक्टर बड़े शांत भाव से पैसों का तकाजा कर रहा था. उस लड़की के चेहरे के भाव उस की परेशानी बयां करने के लिए काफी थे.

न जाने आकाश के मन में क्या आया कि उस ने लड़की के टिकट के पैसे अदा कर दिए. वह उसे ‘थैंक्स’ कह कर पीछे की सीट पर बैठ गई. आकाश ने भी पैसों को ज्यादा तवज्जुह नहीं दी और अपना स्टौप आते ही नीचे उतर गया.

आकाश कुछ कदम ही चला था कि हांफते हुए वह लड़की एकदम उस के आगे आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘सर… आप के पैसे मैं कल लौटा दूंगी. हुआ यह कि मैं आज जल्दी में अपने पर्स में पैसे डालना ही भूल गई.’’

आकाश ने उस का चेहरा देखा तो अपलक निहारता ही रह गया. फिर जैसे उसे अपनी हालत का बोध हुआ. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैडम, वह इनसान ही क्या, जो इनसान के काम न आए. आप पैसों की टैंशन न लें.’’

‘‘नहीं सर, आप ने आज मुझे शर्मिंदा होने से बचा लिया. प्लीज, मुझे अपना घर या औफिस का पता बता दें. मैं किसी का अहसान नहीं रख सकती.’’

‘‘तो फिर कल मैं बिना टिकट बस में चढ़ूंगा. आप मेरा टिकट ले कर अहसान चुका देना,’’ आकाश के इस अंदाज ने उस लड़की के होंठों पर हंसी बिखेर दी.

साथसाथ चलते हुए आकाश को पता चला कि उस का नाम टीना है और वह प्राइवेट नौकरी करती है. काम के बारे में पूछने पर वह हंस कर टाल गई. साथ ही, यह भी पता चला कि वह इस महानगरी के पौश इलाके छायापुरम में रहती है. बाकी उस की बातें, उस का लहजा उस के ज्यादा पढ़ेलिखे होने का सुबूत दे ही रहा था.

आकाश ने उसे वापसी के खर्च के लिए 100 रुपए देने चाहे, लेकिन उस ने कहा कि उस की सहेली इस जगह काम करती है. वह उस से पैसा ले लेगी.

आकाश के औफिस का पता ले कर पैसे आजकल में लौटाने की बात

कह कर वह चली गई. न जाने उस छोटी सी मुलाकात में क्या जादू था कि आकाश दिनभर टीना के बारे में ही सोचता रहा.

अगले दिन आकाश ने टीना का इंतजार किया, पर वह नहीं आई. कुछ दिन बीत गए. आकाश के दिमाग से अब वह पूरा वाकिआ निकल ही गया था.

आज काम की भारी टैंशन थी. आकाश अपने केबिन में फाइलों में सिर खपाए बैठा था कि किसी ने पुकारा, ‘‘हैलो, सर.’’

काम की चिंता में गुस्से से सिर उठाया तो सामने टीना को देख आकाश का सारा गुस्सा काफूर हो गया.

‘‘सौरी सर, मैं आप के पैसे तुरंत नहीं लौटा पाई. दरअसल, मेरा इस तरफ आना ही नहीं हुआ,’’ वह एक ही सांस में कह गई.

आकाश ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए चपरासी को कौफी लाने को बोल दिया. इस बीच उन दोनों में हलकीफुलकी बातों का दौर शुरू हो गया.

आकाश को अच्छा लगा, जब टीना ने उस के बारे में, उस के परिवार और उस के शौक का भी जायजा लिया. लेकिन तब तो और भी अच्छा लगा, जब आकाश के शादीशुदा होने की बात सुन कर भी उस के चेहरे पर किसी तरह के नैगेटिव भाव नहीं उभरे.

आकाश अंदाजा लगाने लगा कि टीना उस के बारे में क्या सोच बना रही होगी, पर वह नहीं चाहता था कि उस से बातों का यह सिलसिला यहीं टूट जाए.

आकाश की इस हालत को टीना ने भी महसूस किया और कौफी की घूंट भर कर कहा, ‘‘आकाशजी, आज तक न जाने मैं कितने मर्दों से मिली हूं लेकिन आप से जितनी प्रभावित हुई हूं, उतनी कभी किसी से नहीं हुई.’’

आकाश खुद पर ही इतरा गया. आखिर में उस के जज्बात शब्दों में उमड़ ही आए, ‘‘क्या हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं?’’

टीना ने मूक सहमति तो दी, लेकिन यह भी साफ कर दिया कि आकाश के शादीशुदा होने के चलते उस की पत्नी प्रिया को वह दोस्ती हरगिज गवारा नहीं होगी. पर आकाश का बावला मन तो किसी भी तरह उस के साथ के लिए छटपटा रहा था. आकाश ने बचकाने अंदाज में बोल दिया, ‘‘हमारी दोस्ती के बारे में प्रिया को कभी पता नहीं चलेगा. मैं दोस्ती तो निभाऊंगा, पर पति धर्म मेरे लिए बढ़ कर होगा.’’

टीना ने सहमति जताई और आकाश को अपना मोबाइल नंबर दे कर चली गई. आकाश फिर से अपने काम में जुट गया. फाइलों का जो ढेर उसे सिरदर्दी दे रहा था, अब वह पलक झपकते ही निबट गया.

मोबाइल फोन पर मैसेज और बातों का सिलसिला शुरू हो गया. शाम को टीना ने आकाश को अपने घर बुला लिया. घर क्या आलीशान बंगला था, जिस के आसपास सन्नाटा पसरा हुआ था. टीना के दरवाजा खोलते ही शराब का तेज भभका आकाश की नाक से टकराया. टीना ने उसे भीतर बुला कर दरवाजा बंद कर दिया.

आकाश कुछ सोचनेसमझने की कोशिश करता, इस से पहले ही टीना ने उसे बैठने का संकेत किया और खुद उस के सामने सोफे पर पसर गई और बोली, ‘‘तुम मेरा यह अंदाज देख कर हैरान हो रहे होगे न. दरअसल, आज मैं तुम से अपनी जिंदगी के कुछ गहरे राज बांटना चाहती हूं.’’

चंद पल चुप रहने के बाद टीना बोली, ‘‘हम अपनी जिंदगी में एक नकाब ओढ़े रहते हैं. यह ऊपर का जो चेहरा है न, यह सब को दिखता है, पर जो चेहरा अंदर है उसे कोई दूसरा नहीं देख पाता. तुम भी सोच रहे होगे कि मैं कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हूं. पर आकाश, मैं ने तुम्हारे अंदर एक सच्चा इनसान, एक सच्चा दोस्त देखा है

जो जिस्म नहीं, दिल देखता है. और इस दोस्त से मैं भी कुछ छिपा

कर नहीं रखना चाहती… तुम मेरी नौकरी पूछते थे न? तो सुनो, मैं एक कालगर्ल हूं,’’ इतना कह कर वह ठिठक गई.

आकाश को झटका सा लगा. उस के होंठ कुछ कहने को थरथराए, इस

से पहले ही टीना बोली, ‘‘मेरी कोई मजबूरी नहीं थी, न ही किसी ने मुझे जबरन इस धंधे में धकेला. मेरे बीटैक होने के बावजूद कोई भी नौकरी, कोई भी तनख्वाह मेरी ऐशोआराम की जरूरतें, मेरे शाही ख्वाब पूरे नहीं कर सकती थी, इसलिए मैं ने अपने रूप, अपनी जवानी के मुताबिक देह का धंधा चुना. तुम यह जो आलीशान फ्लैट देख रहे हो, यह मैं नौकरी कर के कभी नहीं बना सकती थी.

‘‘आकाश, मैं ने बहुत पैसा कमाया, बहुत संबंध बनाए, लेकिन रिश्ता नहीं कमा सकी. मैं कोई ऐसा शख्स चाहती थी जिसे मैं खुल कर अपनी भावनाएं साझा कर सकूं. लेकिन हर किसी की नजरें मेरे जिस्म से हो कर गुजरती थीं. यही वजह है कि तुम्हारे अंदर की सचाई देख कर मैं खुद तुम्हारी दोस्ती को उतावली थी. पर मुझे यह मंजूर नहीं

हो रहा था कि मैं अपने दोस्त को अंधेरे में रखूं,’’ कह कर उस ने आकाश को सवालिया नजरों से देखा.

‘‘टीना, मैं तुम्हारे काम के बारे में सुन कर चौंका तो जरूर हूं, लेकिन मुझे झटका नहीं लगा. तुम ने जिस बेबाकी से मुझे अपने बारे में बताया, उसे जान कर मेरी दोस्ती और गहरी हुई है.

‘‘मेरी जानकारी में ऐसी कई और

भी लड़कियां और औरतें हैं, जिन्होंने शराफत का चोला ओढ़ रखा है, लेकिन उन के नाजायज रिश्तों ने आपसी रिश्तों को ही बदनाम कर दिया है. भले ही यह पेशा अपनाना तुम्हारी मजबूरी न हो, लेकिन दिलोदिमाग और जिस्मानी मेहनत तो इस में भी है. हर किसी को अपनी जरूरत के मुताबिक काम चुनने का हक है. कानून और समाज भले ही इसे नाजायज माने, लेकिन मैं इस में कुछ भी गलत नहीं मानता.’’

‘‘दोस्त, मैं तुम्हारी सोच की कायल हूं. अच्छा यह बताओ, क्या पीना चाहोगे…’’

‘‘फिलहाल तो मैं कुछ नहीं लूंगा. अच्छा, तुम्हारे परिवार में और कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरी मम्मी बचपन में ही चल बसी थीं और पापा की मौत 2 साल पहले हुई. वे इलाहाबाद में रहते थे लेकिन अपनी आजादी के चलते मैं ने बैंगलुरु आना ही मुनासिब समझा. अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारा चेहरा क्यों लटका हुआ है.’’

‘‘कोई खास बात नहीं है,’’ कह कर आकाश ने टालने की कोशिश की, पर टीना के जोर देने पर उसे बताना पड़ा, ‘‘मेरा नया बौस मुझे बेवजह परेशान कर रहा है.’’

‘‘चिंता न करो. सब ठीक हो जाएगा. अब तो मेरे हाथ की बनी कौफी ही तुम्हारा मूड ठीक करेगी,’’ टीना ने कहा.

कौफी वाकई उम्दा बनी थी. तरावट महसूस करते हुए आकाश ने उस से विदा लेनी चाही. न जाने आकाश के दिल में क्या भाव उभरे कि उस ने टीना से लिपट कर उस का चेहरा चूमना चाहा, तो वह छिटक कर पीछे हट गई और बोली, ‘‘दोस्त, दूसरों और तुम्हारे बीच में बस यही तो फासला है. क्या इसे भी मिटाना चाहोगे…’’

गर्मजोशी से इनकार में सिर हिलाते हुए आकाश ने उस से विदा ली.

अगले 2 दिनों में बौस के तेवर बिलकुल बदले देखे तो आकाश को यकीन न हुआ. साथ में काम करने वालों में से एक ने कहा, ‘‘यार, क्या जादू चलाया है तू ने? कल तक तो यह तुझे काट खाने को दौड़ता था और अब तो तेरा मुरीद हो कर रह गया है. अब तो तेरी प्रमोशन पक्की.’’

अगले ही महीने आकाश का प्रमोशन कर दिया गया. जब उस ने यह खुशखबरी टीना को सुनाई, तो उस ने मुबारकबाद दी.

आकाश ने पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ टीना?’’

‘‘बौस शायद तुम्हारे काम से खुश हो गया होगा.’’

‘‘टीना, प्लीज सच क्या है?’’

‘‘सच तो यह है कि मुझ से अपने दोस्त का लटका चेहरा देखा नहीं

गया और…’’

‘‘और क्या?’’

‘‘और यह कि सख्त दिखने वाले बुढ़ऊ ही महफिल में हुस्न के तलबे चाटते हैं. वैसे, तुम चिंता न करो. उसे मेरी और तुम्हारी दोस्ती की कोई खबर नहीं है.’’

‘‘टीना, मेरे लिए तुम ने…’’

‘‘बस, अब भावुक मत होना. और कोई परेशानी हो तो साफ बताना.’’

उस दिन से आकाश के मन में टीना के लिए और ज्यादा इज्जत बढ़ गई. वह उस के लिए सच्चे दोस्त से बढ़ कर साबित हुई.

कुछ दिन बाद जब आकाश ने अपने लिए एक छोटा सा घर खरीदने के लिए बैंक के कर्ज के बावजूद 2 लाख रुपए कम पड़े तो टीना ने उसे इस मुसीबत से भी उबार दिया.

हालांकि आकाश ने उसे वचन दिया कि भविष्य में वह यह रकम उसे जरूर वापस लौटाएगा.

अब आकाश के दिल में टीना के लिए प्यार की भावना उछाल मारने लगी थी. लेकिन उस ने कभी इन जज्बातों को खुद पर हावी न होने दिया. वह औफिस से छुट्टी के बाद आज शाम को फिर टीना के घर पर था.

‘‘टीना, मैं तुम्हारा सब से अच्छा दोस्त हूं तो फिर मुझ से ऐसी दूरी क्यों?’’

‘‘आकाश, अकसर हम मतलबी बन कर दूसरे रिश्तों खासकर अपनों को भूल जाते हैं. फिर क्या तुम नहीं मानते कि दोस्ती दिलों में होनी चाहिए, जिस्म की तो भूख होती है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं समझना चाहता. मेरे लिए तुम ही सबकुछ हो…’’ भावनाओं के जोश में आकाश ने लपक कर उसे अपनी बांहों के घेरे में कस लिया. उस के लरजते लबों ने जैसे ही टीना के तपते गालों को छुआ, उस की आंखें मुंद गईं. सांसों के ज्वारभाटे के साथ ही उस की बांहें भी आकाश पर कसती चली गईं.

‘टिंगटांग…’ तभी दरवाजे की घंटी बजते ही टीना आकाश से अलग हुई. उसे जबरन एक तरफ धकेल कर टीना ने दरवाजा खोला. कोरियर वाला उसे एक लिफाफा थमा कर चला गया. आकाश ने लिफाफे की बाबत पूछा तो उस ने लिफाफा अलमारी में रख कर बात टाल दी.

जब आकाश ने दोबारा उसे अपनी बांहों में लिया तो उस ने आहिस्ता से खुद को उस की पकड़ से छुड़ा लिया और बोली, ‘‘नहीं आकाश, यह सब करना ठीक नहीं है.’’

आकाश नाराजगी जताते हुए वहां से चला गया.

अगले दिन जब सुबह टीना ने मोबाइल फोन पर बात की तो आकाश ने काम का बहाना बना कर फोन काट दिया. वह चाहता था कि टीना को अपनी गलती का अहसास हो.

रात को 10 बजे मोबाइल फोन बज उठा. टीना का नंबर देख कर आकाश कांप गया. नजर दौड़ाई. प्रिया और प्रियांशु सो रहे थे. उस ने फोन काट दिया. मोबाइल फोन फिर बजने पर आकाश ने रिसीव किया तो उधर से टीना का बड़ा धीमा स्वर सुनाई दिया. ‘‘हैलो आकाश, कैसे हो? नाराज हो न?’’

आकाश नहीं चाहता था कि प्रिया उठ जाए और उसे टीना की भनक तक लगे, इसलिए फौरन कहा, ‘‘नहीं, नाराज नहीं. कहो, कैसे याद किया?’’

‘‘दोस्त, तुम्हारी बड़ी याद आ रही है. मैं तुम्हें अभी अपने पास देखना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं देखता हूं.’’

तभी प्रिया ने करवट बदली तो आकाश ने फोन काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया. अब जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था. प्रिया को क्या जवाब देगा भला… और टीना को इस समय फोन करने की क्या सूझी? कल तक इंतजार नहीं कर सकती थी?

इसी उधेड़बुन में आकाश की आंख लग गई.

सुबह उठते ही प्रिया ने रोज की तरह अखबार की सुर्खियों को टटोलते हुए कहा, ‘‘छायापुरम में अकेली रहने वाली कालगर्ल की मौत.’’

आकाश फौरन बिस्तर से उठ कर बैठ गया. खबर में उस की उत्सुकता देख प्रिया ने पूरी खबर पढ़ी, ‘‘छायापुरम में तनहा जिंदगी बसर करने वाली टीना की कल देर रात ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई. वह देह धंधे से जुड़ी बताई जाती थी. डाक्टर के मुताबिक टीना काफी समय से दिमागी कैंसर से पीडि़त थी. कल रात हालत बिगड़ने पर पड़ोसियों ने उसे अस्पताल पहुंचाया, लेकिन रास्ते में ही उस ने दम तोड़ दिया.’’

खबर पढ़ने के बाद प्रिया ने कह दिया, ‘‘ऐसी औरतों का तो यही हश्र होता है,’’ और उस ने आकाश की तरफ देखा.

आकाश की आंखों में पानी देख कर उस ने वजह पूछी. आकाश ने सफाई दी, ‘‘कुछ नहीं, आंखों में कचरा चला गया है. मैं अभी आंखें धो कर आता हूं.’’

संदीप कुमार

अगर वजन कम करते समय मील के बीच में लगे भूख तो फॉलौ करें ये 5 टिप्स

अगर आप भी वजन कम करने की जर्नी पर निकल पड़े हैं तो शुरुआत में यह आपके लिए बिलकुल भी आसान नहीं रही होगी क्योंकि इस रूटीन को काफी समय तक पालन करना सबके बस की बात नहीं होती है. खास कर अपने मन पसन्द स्नैक्स को बाय बोल कर बोरिंग डाइट फॉलो करने से आपका मन जल्द ही भर जाता होगा .

बहुत सारे लोगों की यह शिकायत रहती है कि उन्हें एक समय का खाना खाने के बाद दूसरे समय के खाने के बीच में बहुत भूख लग जाती है और इस बीच वह खुद का कंट्रोल खो कर अन हेल्दी स्नैक्स खाने लगते हैं . इस वजह से आपको बाद में बहुत पछतावा भी महसूस करना पड़ता होगा .

इस बीच खुद को अन हेल्दी स्नैक्स खाने से रोकने के लिए और अपना हेल्दी रूटीन पालन करते रहने के लिए इन टिप्स का पालन कर सकते हैं .

  1. घर पर बनाएं स्नैक्स का चुनाव करें :

अगर आप दुकान से खरीद कर स्नैक्स खाते हैं तो उनमें शुगर, ट्रांस फैट और बहुत सारी अन हेल्दी चीजें मिक्स हुई मिलेंगी जो आपको वजन कम नहीं करने देंगी इसलिए आप खुद घर पर बना कर भी स्नैक्स का सेवन कर सकते हैं . आप हेल्दी प्रोटीन बार बना सकते हैं, एनर्जी बॉल्स बना सकते हैं या फिर पॉप कॉर्न बना कर भी खा सकते हैं . इनसे आपकी भूख भी कंट्रोल होगी और आपकी बाहर का खाने की क्रेविंग भी शांत हो जायेगी .

  1. खुद को रखें हाइड्रेटेड :

कई बार आपके शरीर में डीहाइड्रेशन हो जाती है और आप उसे भी भूख समझ कर खाना खाने लगते हैं . इसलिए पूरा दिन पानी पीते रहें और खुद को हाइड्रेटेड जरूर रखें ताकि इस तरह की दुविधा में आने पर ओवर ईटिंग करने से बच सकें . ज्यादा पानी पीते रहने से भी आपका पेट ज्यादा समय तक भरा रहेगा . रोजाना कम से कम 8 गिलास पानी तो जरूर पिएं . अगर आपको भूख लगती है तो सबसे पहले पानी पी कर चेक करें .

  1. ओवर ईटिंग करने से बचें :

आपको माइंड फूल ईटिंग करनी चाहिए मतलब कि आपको आप क्या खा रहे हैं और किस मात्रा में खा रहे हैं इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए ताकि ओवर ईट करने से बच सकें . आपको खाना खाते समय टीवी और मोबाइल जैसी डिस्ट्रेक्शन से बचना होगा . अगर आप गैजेट्स का प्रयोग करके खाना खाते हैं तो आप अपने पोर्शन साइज का ध्यान रखे बिना जितना आपका मन करता है उतना खाते रहते हैं फिर चाहे आपको भूख हो या न हो .

  1. होल फूड्स का सेवन करें :

स्नैक्स का सेवन करते समय भी होल फूड का सेवन कर सकते हैं जो आपको पोषण प्रदान करते हैं . इनमें आप फल, सब्जियां, नट्स और सीड्स आदि का चुनाव कर सकते हैं . इनमें आपको काफी सारे विटामिन, मिनरल और पौष्टिक तत्व मिलते हैं . इनका पाचन भी आसानी से हो जाता है और यह आपके शरीर को लंबे समय तक भरा रखने में भी मदद करते हैं .

  1. अन हेल्दी चीजों को अपने आस पास भी न रखें :

अगर आपको अन हेल्दी चीजें दिखेंगी ही नहीं तो वह आपको याद भी नहीं आएंगी जिस वजह से आपका उन्हें खाने का मन नहीं करेगा . अगर कोई अन हेल्दी चीज आपके घर में ही नहीं होगी तो आप भूख लगने पर कुछ हेल्दी खाना खाने का प्रयास कर सकते हैं जो आपके स्वास्थ्य के लिए सही रहेगा .

निष्कर्ष

ऐसी ही कुछ टिप्स का पालन करके आप दिन में अन हेल्दी खाने से खुद को बचा सकते हैं.

मेरे कानों पर बाल है जिसके कारण मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है, क्या करूं?

सवाल

कानों पर बाल होने के कारण मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है. कृपया कोई उपचार बताएं जिस से मैं इन से मुक्ति पा सकूं ?

जवाब

कानों के बालों से मुक्ति पाने के लिए उन की सावधानीपूर्वक कटिंग करें. बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने हेतु लेजर हेयर रिमूवल औप्शन अच्छा रहेगा. लेजर लाइट की बीम बालों की जड़ों को हमेशा के लिए नष्ट कर देती है, जिस से बाल दोबारा नहीं उगते. यह उपचार करवाने के लिए किसी अच्छे सैलून में ही जाएं.

आजकल बाजार में कई तरह के इलैक्ट्रिक रेजर उपलब्ध हैं. इस रेजर से कानों के बाल हटा सकती हैं. हां, रेजर चलाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि वह स्किन के न ज्यादा पास हो और न ही ज्यादा दूर. लोशन या क्रीम का प्रयोग बहुत ही आसान होता है. इन में ऐसे रसायन होते हैं जो बालों को गला जड़ से निकाल देते हैं. लोशन या क्रीम लगाने से पहले अपनी स्किन पर टैस्ट जरूर कर लें. अगर कहीं कटा या जला हो तो क्रीम को उस जगह न लगाएं. क्रीम को कानों के बालों पर कुछ देर लगाए रखने के बाद गरम तौलिए से पोंछ लें.

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सवाल

मेरे बाल बारिश के मौसम में बहुत चिपचिपे हो जाते हैं, साथ ही उन में रूसी भी हो जाती है. क्या कोई ऐसा उपाय है जिस से मैं अपनी यह समस्या दूर कर सकूं?

जवाब

आप शैंपू के बाद बालों की देखभाल के लिए सिरके का प्रयोग करें. इस से बालों में ब्लड सर्कुलेशन सुचारू होता है जो बालों को टूटने से बचा कर उन्हें मजबूती प्रदान करता है.

अगर आप के बाल औयली हैं तो शैंपू के बाद नीबू के साथ सिरका लगाएं और 15 मिनट बाद बालों को ठंडे पानी से धो लें. नैचुरल सिरका लगाने से बाल कोमल होने के साथसाथ उन में नमी भी आ जाती है जिस से वे आपस में उलझते नहीं हैं.

अगर आप की सिर की त्वचा रूखी है और उस में रूसी की परेशानी है तो आप को बाल धोने के बाद सिरका और थोड़ा सा बादाम का तेल मिक्स कर के लगाना चाहिए. इस मिश्रण से स्कैल्प में नमी आती है और रूसी हमेशा के लिए दूर हो जाती.

Eid Special: फैमिली के लिए बनाएं कश्मीरी पुलाव

अगर आप लंच या डिनर में टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो कश्मीरी पुलाव की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. कश्मीरी पुलाव आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

– 1/2 कप बासमती चावल

– 4-5 केसर की किस्में

– 1/4 कप सेब, कटा हुआ

– 1/4 कप अनार के दाने

– 1/4 कप अंगूर (बीजरहित), वैकल्पिक

– नमक – स्वाद अनुसार

– 2 टेबलस्पून घी

– तेल, प्याज तलने के लिये

– 1 कप पानी

– 1 टेबलस्पून दूध

– 5-6 काजू, कटे हुए

– 5-6 बादाम, कटे हुए

– 1 तेज पता

– 2 लोंग

– 1 हरी इलायची

– 2-इंच लंबा दालचीनी का टुकड़ा

– 1 हरी मिर्च, लंबी कटी हुई

– 1/2 टीस्पून कद्दूकस किया हुआ अदरक

– 1/4 टीस्पून सोंफ पाउडर

– 1 प्याज, लंबाई में कटा हुआ

बनाने का तरीका

– चावल को 2-3 बार पानी से धो ले और 15 मिनट तक पानी में भिगो दें. बाद में चावल मे से अतिरिक्त पानी निकालें और चावल को अलग रखें.

– केसर की किस्मों को 1 टेबलस्पून गरम दूध में भिगो दें.

– एक गहरे पैन/कड़ाही में मध्यम आंच पर 1 टेबलस्पून घी गरम करें. उसमें काजू और बादाम डालें और उन्हें हल्का सुनहरा होने तक भून लें. उन्हें थाली में निकालें.

– उसी पैन/कड़ाही में बाकी बचा हुआ 1 टेबलस्पून घी डाले और उसमें तेज पता, लोंग, हरी इलायची और   दालचीनी का टुकड़ा डाले और 30 सेकंड तक भून लें. उसमे हरी मिर्च, कद्दूकस किया हुआ अदरक और   सोंफ पाउडर डाले और फिर से 30 सेकंड के लिये भून लें.

– भिगोये और पानी निकाले हुए चावल डालें.

– 1-2 मिनट के लिये भून लें.

– 1 कप पानी, भिगोया हुआ केसर और नमक डालें. अच्छी तरह से मिला ले और मध्यम आंच पर   उबालने  रखे.

– जब वे उबलने लगे तब आंच को धीमी कर दे और ढक्कन लगाकर 8-10 मिनट या चावल पक जाय तब   तक पकने दें. बीच में ढक्कन न खोले और चावल को भी मत हिलाये. चावल के पक जाने पर गैस बंध कर  दे और बिना ढककन खोले 5-7 मिनट के लिये रहने दें. बाद में ढक्कन खोले और चावल को कांटे से फुला लें.

– इसी बीच दूसरे पैन में प्याज तलने के लिये 3-4 टेबलस्पून तेल को गरम करे. हाथ से प्याज के लच्छों     को अलग कर ले और बाद में तेल में डाले और भूरा होने तक तले. प्याज को बीच- बीच में हिलाते रहे.

– पके हुए चावल में हल्के तले हुए सूखे मेवे, कटे हुए ताजे फल और हल्का तला हुआ प्याज डालें.

– हल्के से मिला ले और सर्विंग बाउल मे निकालें. हरे धनिये से सजाये.

Summer Special: स्किन की टैनिंग दूर करता है ‘शुगर स्क्रब’

त्वचा हमारे शरीर में सबसे संवेदनशील अंग है जो आसानी से हमारे आस-पास के माहौल से प्रभावित हो जाता है. हम इसे कितना भी कवर या बचाने की कोशिश करें, यह सूर्य और अन्‍य पर्यावरणीय कारकों से क्षतिग्रस्‍त हो ही जाती है.

ऐसे में हमें त्‍वचा पर जमा मृत कोशिकाओं के साथ टैनिंग को दूर करने के लिए कुछ उपायों की जरूरत होती है. क्या आप जानते हैं कि इसके लिए नींबू और चीनी से बेहतर विकल्‍प आपके लिए कुछ और हो ही नहीं सकता.

नींबू में टैंनिंग को दूर करने के गुण पाए जाते हैं और ये त्वचा के रोम छिद्रों में छिपी गंदगी को साफ करने में मदद करता है और साथ में चीनी एक शक्तिशाली एक्‍सफोलिएटिंग एंजेट होने के कारण साथ मिलाने से इसके फायदों को कई गुणों कर देती हैं.

इसके लिए आपको जरुरत होगी :

1. आधा ताजा नींबू

2. आधा कप दानेदार चीनी

3. 1 बड़ा चम्मच ऑलिव ऑयल

4. 1 बड़ा चम्मच आर्गेनिक शहद

यही तत्‍व जरुरी क्‍यों है ?

नींबू- नींबू विटामिन सी से भरपूर होता है और आमतौर पर एजिंग स्पॉट्स और सूरज से क्षतिग्रस्‍त त्‍वचा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है. साथ ही यह पोर्स को बंद करने और रंगत को निखारने में मदद करता है.

चीनी – चीनी एक एक्‍सफोलिएटर के रूप में काम करती है और धीरे-धीरे शरीर की बंद सभी मृत कोशिकाओं को निकाल कर त्‍वचा की संपूर्ण बनावट में सुधार करती है.

ऑलिव ऑयल – ऑलिव ऑयल एक उत्‍कृष्‍ट एमोलिएंट है जो त्‍वचा को गहराई से पोषण और साफ करता है. इसके अलावा यह एजिंग के निशान को दूर करने में मदद करता है.

शहद – शहद प्राकृतिक एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटीबैक्‍ट‍ीरियल गुणों से भरपूर होता है, जो त्‍वचा को पर्यावरण से होने वाले नुकसान से रक्षा करता है. इसके अलावा त्‍वचा को पोषण और नमी प्रदान करता है.

स्‍क्रब बनाने का तरीका :

1: एक कटोरी में नींबू का रस और ऑलिव ऑयल लेकर पेस्‍ट बना लें. अगर आप गाढ़ा या पतला पेस्‍ट बनाना चाहते हैं तो उसी हिसाब से ऑलिव ऑयल को कम या ज्‍यादा कर सकते हैं.

2 : फिर इसमें शहद को मिलाकर धीरे-धीरे मिक्‍स करें.

3 : अंत में, चीनी मिलाकर सभी चीजों को अच्‍छे से मिला लें.

तो अब आपका घर में बना नींबू और चीनी का टैन हटाने वाला स्‍क्रब तैयार है.

इस चीनी के स्‍क्रब को लगाने का तरीका

इस फेस स्‍क्रब को लगाने के लिए सबसे पहले अपने चेहरे को साफ पानी से धो लें और धीरे-धीरे इस स्‍क्रब को सर्कुलर मोशन में रगड़कर 2-3 मिनट तक मसाज करें. फिर स्‍क्रब को 5-7 मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ दें. ठंडे पानी से चेहरे को धोकर पोछ लें. अगर त्‍वचा पर ड्राईनेस महसूस हो रही है तो मॉश्‍चराइजर लगा लें.

करणकुंती: कैसी थी रंजीत की असली मां

‘‘रंजीतचल यार, कुछ खा कर आते हैं. आज मैरीडियन में सिजलर्स स्पैशल डे है.’’

समीर के उत्साह पर रंजीत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जैसे कुछ सुना ही नहीं. पत्थर की तरह बैठा रहा.

‘‘मैं भी देख रहा हूं, जब से तू अपने गांव से आया है, बहुत डल फील कर रहा है. आखिर बात क्या है यार?’’

रंजीत से अब रहा न गया. बोला, ‘‘मम्मीपापा ने ऐसा सच बताया, जिसे मैं अभी तक बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं, समीर,’’ उस का गला भर आया. आगे कुछ न बोल सका.

‘‘रोता क्यों है, हर समस्या का कोई न कोई हल होता है. तेरी प्रौब्लमक्या है?’’ समीर को बड़ा अजीब लग रहा था.

रंजीत ने एक लंबी सांस ली, ‘‘मैं मम्मीपापा का बेटा नहीं हूं. उन्होंने बताया कि मैं उन्हें ट्रेन

में मिला था. कोई मुझे ट्रेन के डब्बे में छोड़ गया था. मैं तब 6 महीने का था. मम्मीपापा ने पुलिस में शिकायत दी और उस की इजाजत से मुझे घर ले गए. जब 1 साल के बाद भी मुझे लेने कोई नहीं आया तो उन्होंने मुझे कानूनी तौर पर गोद

ले लिया.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है…अब तू मायूस

क्यों है?’’

‘‘मुझे इतना बड़ा सच मालूम हो और

मुझ पर कोई असर न पड़े, यह कैसे हो सकता

है यार?’’

‘‘कम औन रंजीत, तुझे तो कुदरत का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिस ने तुझे इतने अच्छे मांबाप दिए. तुम्हारे मांबाप ने तुझे इतना प्यार दिया, पढ़ायालिखाया. तुझे इस लायक बनाया कि तू दुनिया के आगे सिर उठा कर जी सके… तुझे तो उन का शुक्रगुजार होना चाहिए.’’

‘‘वह तो है. अब उन के प्रति मेरा प्रेम, अभिमान और भी ज्यादा हो गया है.’’

‘‘तो यह उदासी क्यों?’’

‘‘मेरी सगी मां, मुझ से मुंह फिरा कर क्यों चली गई? कहते हैं, बुरा बेटा हो सकता है, मगर मां बुरी नहीं. एक 6 महीने के बच्चे में क्या बुराई हो सकती है, जो वे मुझे छोड़ गईं या फिर वे मजबूर थीं. किसी ने उन के साथ बलात्कार कर के उन्हें समाज के सामने मुंह दिखाने लायक न रखा हो और वे मुझे छोड़ने पर मजबूर हो गईं.’’

‘‘अरे छोड़ न तू… अपने गुजरे कल पर रो क्यों रहा है? अच्छा हुआ जो तू किसी अनाथालय नहीं पहुंचा और न ही बुरे लोगों के चंगुल में… तेरे साथ सब अच्छा ही हुआ है… रोता क्यों है?’’

‘‘हां, तू बिलकुल ठीक कहता है मैं अपने मम्मीपापा का शुक्रगुजार हूं. फिर भी मैं अपनी असली मां को ढूंढ़ कर ही रहूंगा. यह मेरा

जनून है.’’

समीर ने उस की पीठ थपथपा कर कहा, ‘‘मैं तेरे साथ हूं.’’

अगले 2-3 दिनों तक रंजीत अपने औफिस में व्यस्त था. वह एक नामी कंपनी

में सौफ्टवेयर टैक्निशियन था. उस ने एमसीए किया था. प्रोग्रामिंग में कुछ नएनए कंप्यूटर कोर्स भी किए थे. 25वें साल में ही अपनी उम्र से दोगुनी से भी अधिक तनख्वाह पाता था. मांबाप का एकलौता बेटा था. पिताजी स्कूल मास्टर थे. अपने कम वेतन में भी उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी. मां तो आज भी उसे बच्चा

ही समझतीं.

एक दिन अचानक मां का बीपी डाउन होने की वजह से उन्हें अस्पताल में भरती किया गया. वह सारे काम छोड़ कर मां के पास बैठ गया. मां की तबीयत बिगड़ती गई. रंजीत ने पानी की तरह पैसा बहाया. उन्हें दिल्ली ले जा कर बड़े अस्पताल में भरती करवा कर इलाज करवाया. मां तो बच गईं. मगर उन्होंने अपनी बीमारी के दिनों में वह सच जाहिर कर दिया जिसे सुन रंजीत पूरी तरह हिल गया था.

उसे अपने बचपन के दिनों की याद आई. पड़ोस की आंटी उसे काला कौआ कह कर चिढ़ाया करती थीं.

‘‘तेरी मम्मी तो दूध जैसी गोरी है रे. पापा भी इतने काले नहीं, तो तू क्यों ऐसा है?’’

आंटी के सवाल पर रोतेरोते मम्मी के पास जा कर उस ने वही सवाल दोहराया था.

मम्मी ने प्यार से उस का माथा चूम कर कहा था, ‘‘बेटा, मैया यशोदा भी गोरी थीं, मगर कृष्ण काले थे…कोई नियम नहीं है बच्चे बिलकुल अपने मांबाप पर जाएं. तुम अपने दादादादी, नानानानी या परदादा, परदादी पर भी जा सकते हो. ऐसी बातों से मन खराब मत करो. जाओ अपने दोस्तों के साथ खेलो.’’

फिर मां ने उस पड़ोसिन को बच्चों के मन को दुखाने वाली ऐसी बातें करने के लिए काफी कटु वचन सुनाए थे.

रंजीत को एक और किस्सा याद आया. पापा का तबादला होने पर वे एक नए जिले में गए थे. मांबेटे का प्यार देख कर, घर की कामवाली को आश्चर्य हुआ था.

‘‘आप का बहुत बड़ा दिल है मालकिन. सौतन के बच्चे से कोई इतना प्यार

नहीं करता.’’

‘‘तुम्हें किस ने कहा कि यह मेरी सौतन का बच्चा है?’’

‘‘रंजीत बाबा की शक्ल आप दोनों से नहीं मिलती तो मैं ने सोचा, यह बच्चा साहब की पहली बीवी का तो नहीं.’’

मम्मी ने गुस्से में आ कर उसे काम से निकाल दिया.

रंजीत सोच रहा था बचपन से ही मांबाप से मेरी शक्लसूरत से भिन्नता को कई लोगों ने पहचाना. मगर मम्मीपापा के प्यार में डूबे मेरे मन में कभी इस बारे में कोई हैरानी पैदा नहीं हुई.

औफिस के काम निबटा कर उस ने सोचना शुरू किया कि अब अपनी मां को ढूंढ़े कैसे? पहले उस ने पुलिस की मदद लेने की कोशिश की. समीर के साथ कई बार पुलिस स्टेशन के चक्कर भी काट आया. मगर उन की प्रतिक्रिया निराशाजनक थी.

‘‘रंजीत हम आप की भावनाओं को समझ सकते हैं. मगर जो फाइल 25 साल पहले सी रिपोर्ट के दौरान बंद हुई हो, उस का पता हम कैसे लगा सकते हैं? 25 साल पहले भी इस बारे में तहकीकात हुई थी. मगर बच्चे को छोड़ कर जाने वाले के बारे में कुछ भी पता न लगने के कारण ही सी रिपोर्ट डाली गई थी और वह फाइल बंद भी हुई थी. सौरी, अब हम इस मामले में कोई मदद नहीं कर सकते.’’

समीर उसे बाहर ले आया था. होटल में चाय पीते वक्त बोला, ‘‘सुन हम खुद ढूंढ़ते हैं. मैं रेलवे की इनफौर्मेशन निकालता हूं और 25 साल पहले के उस ट्रेन के डब्बे की रिजर्वेशन लिस्ट निकालता हूं. शुक्र है, तुझे छोड़ कर जाने वाले कम से कम रिजर्वेशन के डब्बे में तो आए. अगर जनरल में आते तो कोई तुझे ढूंढ़ नहीं पाता.’’

‘‘काम तो मुश्किल है समीर. उस के साथसाथ हम क्यों न दूसरा रास्ता भी अपनाएं?’’

‘‘क्या?’’

‘‘बचपन से लोग मेरी और मम्मीपापा की शक्लसूरत की भिन्नता को पहचान रहे हैं. मतलब मैं अपनी असली मां या पिता के रूप से मिलताजुलता हूं. क्यों न मैं अपनी तसवीर फेसबुक पर डालूं और अपनी कहानी सुना कर लोगों से अपने मांबाप को ढूंढ़ने में मदद मांगू?’’

‘‘आइडिया तो अच्छा है. कोशिश करते हैं.’’

फेसबुक पर उस के पोस्ट पर उम्मीद से ज्यादा प्रतिक्रियाएं आईं. वृद्धाश्रम, अनाथालय में रही कुछ बूढि़यों की तसवीरें भी आईं, जिन्हें अपने किए पर पछतावा था. वे दोनों जा कर उन से मिल कर भी आए. वे उसी इलाके की रहने वाली थीं. जवानी में भूल के कारण बच्चे को जन्म दे कर उसे त्यागना पड़ा था. मगर किसी ने भी ट्रेन में नहीं छोड़ा था. 1-2 ने कहा था, उन्होंने बच्चा तो दूसरों के हाथ में दिया था. फिर पता नहीं आगे क्याक्या हुआ होगा… उन लोगों ने बच्चे के जन्म की जो तारीख बताई, उन में से कोई भी

रंजीत की जन्मतिथि की आसपास वाली नहीं थी.

समीर बड़े प्रयत्न के बाद रेलवे से रिजर्वेशन लिस्ट भी ले आया. पहले तो उन लोगों ने उन पतों को इंटरनैट में रही वोटर्स लिस्ट के साथ मैच किया. कुछ नाम और पते तो आज भी वही थे, पर कुछ में वे नाम नहीं थे. रंजीत की मां ने बताया था कि जब वह बच्चा उन्हें मिला था तो वह आराम से सो रहा था और उस डब्बे में कोई नहीं था.

‘‘पूरे डब्बे के लोग एकसाथ कैसे खाली हो सकते हैं?’’

समीर के सवाल पर मां ने समाधान दिया था, ‘‘उस समय वहां मेला लगा था बेटा. दूरदूर के लोग मेले में आते थे बेटा.’’

‘‘छोटे बच्चे को सोते छोड़ जाना मतलब उस की मां भी साथ में आई होगी. उसे दूध पिला कर, उसे चैन से सुला कर छोड़ गई होगी ताकि उसे छोड़ते वक्त किसी की नजर न पड़े. अगर वह रोने लगता तो सब की नजरें उस पर पड़ जातीं. जिस बर्थ पर तुम्हें छोड़ा गया था यदि उस के आजूबाजू वालों को ढूंढ़ कर उन से पूछें तो शायद कुछ पता चले.’’

‘‘यू आर सर्चिंग ए नीडल इन ए हेस्टैक,’’ रंजीत खुद निराश था.

‘‘ऐटलिस्ट देयर इज हेस्टैक,’’ समीर मुसकराया.

‘‘शुक्रिया. जो मेरे लिए इतना कष्ट उठा रहे हो,’’ रंजीत ने दोस्त को गले से लगाया.

दोनों औफिस से छुट्टी ले कर रिजर्वेशन लिस्ट में दर्ज नामों की तलाश में जुट गए. कुछ ने मकान बदल दिए थे तो कुछ लोगों के पतेठिकाने मिल गए. दोनों घरघर जाने लगे. बहुत से घरों में कोई सहयोग नहीं मिला.

उन्होंने कहा, ‘‘25 साल पुरानी रेल यात्रा के हमसफरों की याद भला किसे रह सकती है?’’

एक वृद्धा की याददाश्त तेज थी. बोली, ‘‘हां बेटा उस कोने की सीट पर एक लड़की अपने नवजात शिशु के साथ बैठी थी, साथ में उस की मां भी थी. उन लोगों के कपड़ों व बातचीत से लगता था वे लोग ब्राह्मण हैं और किसी मंदिरवंदिर के पुजारियों के परिवार वाले हैं. वे दोनों किसी के साथ भी बातचीत नहीं कर रहे थे. मुझे नहीं पता कि वे कौन थे.’’

‘‘दादीजी, क्या यह याद है कि वे लोग कहां से उस ट्रेन में चढ़े थे?’’

‘‘हां बेटा, दोनों भारतीपुर से चढ़े थे.’’

‘‘शुक्रिया दादीजी,’’ उस वृद्धा के चरण छू कर दोनों वहां से चल दिए.

रंजीत ने कंप्यूटर में अपने फोटो को मौर्फ कर के एक औरत की तसवीर में बदल दिया. करीब 45 साल की औरत की उस तसवीर को भारतीपुर की वोटर लिस्ट में रही सभी औरतों की तसवीरों के साथ तुलना करने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ.

‘‘भारतीपुर

के मंदिरों और पुजारियों का अतापता लगाते हैं.’’

वहां के कई मंदिरों और पुजारियों के दर्शन के बाद शिव मंदिर के पुजारी 80 साल के शंकर शास्त्रीजी ने कहा, ‘‘बेटा, तुम अपनी मां को ढूंढ़ने के लिए इतना प्रयत्न कर रहे हो…अगर तुम ने अपनी मां का पता लगा भी लिया और मिलने गए तो जानते हो उस औरत के जीवन में कितना बड़ा तूफान उठ सकता है… उस की बसीबसाई जिंदगी बिगड़ जाएगी बेटा.’’

‘‘बाबाजी, मैं वादा करता हूं, मैं किसी की भी जिंदगी बरबाद नहीं करूंगा. मैं तो बस अपनी मां को देखना चाहता हूं. अगर मेरे जन्म के कारण से वह इस समाज में बाधित हुई हो तो मैं उसे अपने साथ ले जाने के लिए भी तैयार हूं. मगर यदि मेरे प्रवेश से उस की जिंदगी में तूफान उठ सकता है, तो मैं दूर से ही उसे एक बार देख लूंगा. प्लीज बताइए पंडितजी आप मेरी मां के बारे में कुछ जानते हैं?’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता बेटा, मैं पूछताछ कर के बताऊंगा. तुम अपना नंबर मुझे दे दो बेटा.’’

दोनों को यकीन हो गया कि वे रंजीत की मां के बारे में जानते हैं. शायद उस की इजाजत लेने के बाद, रंजीत को इस बारे में बताएंगे. अब इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था.

2 हफ्तों के बाद शास्त्रीजी के बेटे ने कौल की, ‘‘पिताजी आप से मिलना चाहते हैं. क्या इस इतवार को फुरसत निकाल कर आ सकते हैं आप?’’

दोनों बड़ी बेसब्री से इतवार की प्रतीक्षा करने लगे. वह दिन आ भी गया. दोनों भारतीपुर पहुंचे. शास्त्रीजी ने उन के खाने का इंतजाम किया था. खाने के बाद घर के बरामदे में ही बातचीत शुरू हुई. घर वाले अंदर थे.

शास्त्रीजी ने गला ठीक किया और बड़ी मुश्किल से बात शुरू की, ‘‘देखो बेटा, तुम ने उस दिन अपने बारे में बताया और अपनी मां को देखने की इच्छा व्यक्त की. मैं ने उस औरत से बात भी की. उसे भी इस बात पर बड़ा दुख है. आखिर वह भी एक मां है बेटा. मंगर उस की जिंदगी में कुछ और लोग भी हैं और उसे स्वयं अपने जीवन का भी तो खयाल करना है, इसलिए वह दुनिया के सामने तुम्हें अपना नहीं सकती.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं पंडितजी, मगर वह कौन है? क्या मैं उसे देख सकता हूं?’’

‘‘वह मेरी भानजी है बेटा. 16वें साल में उस से हुई एक नादानी का

फल तुम हो… जब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ था, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डाक्टर ने कहा बच्चे को जन्म देने के अलावा और कोई चारा नहीं है. इसलिए वह अपने शहर से दूर मेरे घर आई थी तुम्हें जन्म देने.

‘‘तुम यहीं पर पैदा हुए थे बेटा. तुम्हारी शक्लसूरत बिलकुल तुम्हारी मां से मिलतीजुलती है बेटा. उस का नाम राजेश्वरी है बेटा. उस जमाने में एक कुंआरी मां का इस समाज में जीना असंभव था बेटा. इसलिए उसे मजबूरन तुम्हें त्यागना ही पड़ा. वह इस घर में जैसे अज्ञातवास में थी. हमेशा घर के अंदर छिपी रहती थी दुनिया की नजरों से दूर.

‘‘तुम्हारे जन्म के 15वें दिन तुम्हें त्यागना पड़ा. रातभर रो रही थी वह. फिर 4 साल बाद उस की शादी हो गई. 2 बेटे भी हुए. अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गई. जब मैं ने तुम्हारे बारे में बताया तो उस से रहा न गया. फौरन चली आई. अपनी मां से मिलोगे बेटा. मैं अभी उसे भेजता हूं,’’ और वे अंदर चले गए.

अंदर से हूबहू उसी की शक्त से मिलतीजुलती एक औरत आई. भले ही 40 साल की थी, मगर उम्र का एहसास नहीं हो रहा था. उस ने अपनी सुंदरता को बरकरार रखा था. कमरे में आ कर बस रंजीत को एक टक देखती रही. कुछ बोली नहीं. फिल्मों की तरह दौड़ कर आ कर लिपटी नहीं और न ही आंसू बहाने लगी.

रंजीत मां कहते हुए उस के चरण छूने चला तो राजेश्वरी ने बीच ही में उसे रोक दिया. बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटा. मैं मजबूर थी.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं मां. कम से कम आज तो मुझ से मिलने आई. इतना ही काफी है,’’ और फिर रंजीत ने अपने बारे में बताया. अपने मम्मीपापा, पढ़ाईलिखाई, नौकरी, समीर अन्य दोस्त वगैरह सभी के बारे में.

उस की परवरिश की कथा सुन कर राजेश्वरी की आंखें भर आईं, ‘‘भले ही मैं ने तुम्हारा साथ छोड़ दिया हो, मगर कुदरत तुम्हारे साथ है बेटा. मुझे खुशी है कि तुम्हें इतनी अच्छी जिंदगी मिली.’’

3 घंटों के मांबेटे के मिलाप के बाद उसे वहां से निकलना ही पड़ा. उस ने मां को अपना नंबर दिया और जब भी फुरसत मिले कौल करने को कहा. मां अपना नंबर देने के लिए झिझक रही थी. उसे डर था कि अपने पति और बच्चों के सामने यदि इस बेटे की कौल आई तो क्या करेगी? तब रंजीत ने समझाया. फिर उस ने न

ही मां के नंबर के लिए जिद की और न ही

ऐड्रैस पूछा.

3 महीने बीत गए. न मां का फोन आया और न कोई खबर मिली. रंजीत निराश था. दोस्त के सामने अपनी निराशा व्यक्त भी की, ‘‘मैं तो सोचता था मेरी मां भी मेरी ही तरह बेटे को देखने के लिए तरस रही होगी. अगर वह मेरे जन्म के कारण इस दुनिया की कू्ररता का शिकार हुई होगी तो मैं उसे अपने साथ रखने के लिए भी तैयार था. अगर उस के अपने परिवार में किसी चीज की जरूरत हो तो मैं उसे पूरा करने के लिए भी तैयार था, मगर वह तो अपनेआप में ही मगन है. मेरे बारे में सोचने के लिए भी तैयार नहीं है.’’

‘‘तुझे बुरा न लगे तो इस का जवाब दूं?’’

‘‘यही न कि मैं पागल हूं?’’

‘‘अगर वह तुम से प्यार करती या तुम्हारे लिए तरसती तो तुम्हें छोड़ती क्यों? वह दुनिया की क्रूरता का शिकार तब होती, जब वह तुम्हें साथ रखती. इस से बचने के लिए ही तो उस ने तुम्हें छोड़ा. इस का मतलब तो यही हुआ न कि उसे अपनी जिंदगी के सुकून से प्यार था. आज भी वह सिक्योर्ड है अपने परिवार में. उन के कानों में तुम्हारे बारे में भनक भी नहीं पड़ने देगी. अच्छा हुआ जो रास्ते में छोड़े जाने पर भी तू भिखारी नहीं बना.’’

‘‘हां, मम्मीपापा ही मेरे लिए सबकुछ हैं. मगर मां मुझ से मिली क्यों? आखिर यह राज उस ने जाहिर क्यों किया?’’

‘‘डर कर.’’

‘‘सच…?’’

‘‘और नहीं तो क्या? जो लड़का 25 साल बाद भी न जाने कहांकहां से पता

लगा कर अपने जन्मस्थान तक पहुंच गया,

क्या जाने वह कल को उस के घर तक पहुंच

गया तो? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी बिखर जाएगी यार.’’

रंजीत मायूस हो गया. समीर ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘जाने दे छोड़… पूरी दुनिया ही मतलबी है.’’

और 3 महीने बीत गए. रंजीत मां को धीरेधीरे भूलने लगा. उस रात उस के मोबाइल पर अनजान नंबर से कौल आई. रंजीत ने तीसरी बार रिंग होने पर उठाया.

‘‘मैं राजेश्वरी बोल रही हूं. कैसे हो बेटा?’’

‘‘मां, बड़े दिनों बाद इस गरीब की याद कैसे आई?’’ वह खुशी से उछल रहा था.

‘‘सौरी बेटा, घरगृहस्थी के झंझट तो तुम जानते ही हो. तुम ठीक तो हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं मां. आप कैसी हैं?’’

‘‘हमारा क्या है बेटा, बस जैसेतैसे जिंदगी काट रहे हैं. तुम जरा मेहरबानी दिखा दो तो हम भी जरा चैन की सांस लेंगे.’’

‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘मेरा बेटा राजीव पिछले हफ्ते तुम्हारी ही कंपनी में इंटरव्यू देने आया था. उस इंटरव्यू कमेटी में तुम भी थे. मेरे बेटे ने तुम्हारा नाम बताया. तुम जरा बड़ा दिल दिखा कर अपने भाई को चुन लोगे तो तुम्हारी मां जिंदगीभर इस एहसान को नहीं भूलेगी बेटा.’’

‘‘मैं कुछ नहीं कह सकता मां. यह मुझ अकेले के फैसले पर निर्भर नहीं है. वैसे मेरे भाई को मेरे बारे में बताया है आप ने?’’

‘‘जो बातें मुंह से नहीं कह सकते, मन

ही उन्हें बता देता है बेटा… तुम उस कंपनी में इतने बड़े ओहदे पर हो… तुम्हारे लिए मुश्किल क्या है बेटा?’’

रंजीत ने फोन काट दिया.

‘‘क्या बात है?’’ समीर ने पूछा.

टीवी पर महाभारत आ रहा था, जिस में कुंती करण से युद्ध में पाडवों को खासकर

अर्जुन को कोई हानि न पहुंचाने का वचन मांग रही थी,’’ रंजीत उसी दृश्य की ओर इशारा कर बोला, ‘‘यही.’’

यही दस्तूर है: समीर ने क्या किया था मां के साथ

कालिज से लौट कर गरिमा ने जैसे ही अपने फ्लैट का दरवाजा खोला सामने के फ्लैट से रोहित निकल कर आ गए.

‘‘आप का पत्र कोरियर से आया है,’’ एक लिफाफा उस की तरफ बढ़ाते हुए रोहित ने कहा.

‘‘ओह…आइए न,’’ पत्र थाम कर गरिमा अंदर आ गई. रोहित भी अंदर आ गए.

‘‘पत्र विदेशी है. बेटे का ही होगा?’’ रोहित की बात पर गरिमा ने पलट कर उन्हें देखा. मानो कोई चुभती हुई बात उन के मुंह से निकल गई हो.

फिर वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं कौफी बनाती हूं.’’

‘‘पर खत तो पढ़ लीजिए.’’

‘‘कोई जल्दी नहीं है, पहले कौफी बना लूं.’’

रोहित को आश्चर्य नहीं हुआ यह देख कर कि बेटे का पत्र पढ़ने की उसे कोई जल्दी नहीं है. इतने दिन से गरिमा को देख रहे हैं. इतना तो जानते हैं कि यह विदेशी पत्र उसे विचलित कर गया है. कुछ तो है मांबेटे के बीच पर वह कभी पूछने का साहस नहीं कर पाए हैं.

गरिमा के बारे में सिर्र्फ इतना जानते हैं कि 30 वर्ष पूर्व गरिमा के पति नहीं रहे थे. तब वह मात्र 20 वर्ष की थी. समीर गोद में आ गया था. अपना पूरा यौवन उस ने बेटे को बड़ा करने में लगा दिया था. मांबाप ने एकाध जगह बात पक्की की पर बेटे के साथ उसे अपनाने वाला कोई उचित वर न मिला. भैयाभाभी उस से विशेष मतलब नहीं रखते. मां को अस्थमा का अकसर दौरा पड़ता था, इस के बावजूद वह समीर को अपने पास रखने को तैयार थीं. पर गरिमा ने खुद को बच्चे से अलग नहीं किया. मांपिताजी के पास रह कर उस ने बी.एड. किया और एक स्कूल में पढ़ाने लगी. 5 वर्ष पूर्व इस फ्लैट में आई है. बेटे को कभी आते नहीं देखा. बस, इतना पता है कि वह विदेश में है.

‘‘कौफी…’’ गरिमा की आवाज पर रोहित की तंद्रा टूटी. प्याला हाथ में ले कर गरिमा भी वहीं बैठ गई.

‘‘गरिमा, मैं ने आप से एक प्रश्न किया था, आप ने जवाब नहीं दिया?’’

अचानक पूछे गए इस प्रश्न पर गरिमा चौंक पड़ी. हां, रोहित ने 2 दिन पूर्व उन के सामने एक बात रखी थी. अपनी बोझिल पलकों को उठा कर उस ने रोहित की तरफ देखा. यह आदमी उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता है.

बचे हुए जीवन के दिनों को हंसीखुशी से जी लेने का उस का भी दिल करता है. बेटे के कृत्य के लिए वह खुद को दोषी क्यों ठहराए. मगर इन 5-6 वर्षों में वह समीर के कुसूर को भूल नहीं पाई  है, उसे माफ नहीं कर पाई है.

रोहित के जाने के बाद उस ने समीर का पत्र खोला, लिखा था, ‘‘जानता हूं अभी तक नाराज हो. कुछ तो है जो अभिशाप बन कर हमारे बीच पसर गया है. शिखा 2 बार मां बनतेबनते रह गई. मां, जानता हूं तुम्हारा दिल दुखाया है, उसी की सजा मिल रही है. क्या मुझे क्षमा नहीं करोगी?’’

समीर के पत्र ने उस के जख्मों को फिर हरा कर दिया. शैल्फ पर रखी तसवीर पर उस की नजर अटक गई. लाख चाह कर भी वह इस तसवीर को हटा नहीं पाई है. आखिर है तो मां ही. तसवीर में समीर मां की गरदन में बांहें डाले था. उसे देखते हुए वह अतीत में खो गई.पति के समय का ही एक माली था नंदू. माली कम सेवक ज्यादा. पति की बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई  थी. नंदू ने काम छोड़ने से मना कर दिया था, ‘बचपन से खिलाया है रवि भैया को, उन के न रहने पर तो मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. मैं यहीं रहूंगा.’

रवि की मृत्यु के बाद आफिस का फ्लैट भी चला गया था. वह मां के पास रह कर बी.एड. करने लगी तो नंदू ने ही समीर को संभाला. फिर नौकरी लगने पर वह नंदू और समीर को ले कर दूसरे शहर आ गई.

समीर बड़ा हो गया और नंदू बूढ़ा. एक दिन वह गांव गया तो कई दिनों तक नहीं लौटा. उस की पत्नी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी. गांव से लौटा तो 17-18 वर्ष की एक सांवलीसलोनी सी पोती भी उस के साथ थी, ‘बहूजी, इस के 4 भाईबहन हैं. गांव में कुछ सीख नहीं पाती. पढ़ना चाहती है, सो अपने साथ ले आया हूं. आप की छत्रछाया में कुछ गुण ढंग सीख लेगी.’

ज्योति नाम था उस का. 8वीं तक पढ़ी थी. 9वीं में एक स्कूल में नाम लिखवा दिया उस का. फिर तो हिरनी सी कुलांचें भरती कटोरी जैसी आंखों वाली वह छरहरी काया पूरे घर पर शासन कर बैठी. घर का सारा काम उस ने अपने ऊपर ले लिया. समीर इंजीनियरिंग कर रहा था. उस के पास जाने में वह थोड़ी झेंपती थी. लेकिन यह संकोच भी टूट गया जब उसे पढ़ाई में विज्ञान एवं गणित कठिन लगने लगे तब गरिमा ने ही समीर से कहा कि वह ज्योति की मदद कर दिया करे.

समीर की महत्त्वाकांक्षा काफी ऊंची थी. उस की इच्छा विदेश जा कर पढ़ने की थी. जहां भी कुछ अवसर मिलता वह फौरन आवेदन कर देता. पासपोर्र्ट उस ने बनवा रखा था. मां अकेली कैसे रहेगी, पूछने पर कहता, ‘मैं तुम्हें भी जल्दी ही बुला लूंगा. यहां इंडिया में अपना है ही कौन.’

पर गरिमा ने निश्चय कर लिया था कि वह अपना देश नहीं छोड़ेगी. उसे लगता कि ऐसी पढ़ाई से क्या फायदा जब बच्चे पढ़ते इंडिया में हैं और बसने विदेश चले जाते हैं. पर बेटे की महत्त्वाकांक्षा के सामने वह मौन हो जाती.

ज्योति ने समीर से पढ़ना शुरू किया तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. गरिमा इसे दोनों की नोकझोंक समझती रही. समीर ज्योति की बड़ीबड़ी आंखों में खो गया. प्रेम की यह पींग काफी ऊंची उड़ान ले बैठी. इतनी ऊंची कि झूला टूट कर गिर गया.

उस दिन वाशिंगटन से समीर के नाम एक पत्र आया था कि वह फैलोशिप के लिए चुन लिया गया है. इधर घर में एक जबरदस्त विस्फोट हुआ जब नंदू उस के सामने बिलख उठा, ‘बहूजी, मैं तो बरबाद हो गया. ज्योति ने तो मुझे मुंह दिखाने लायक नहीं रखा. मैं क्या करूं. कहां ले कर जाऊं इस कलंक को.’

ज्योति के मुंह से समीर का नाम सुनते ही वह सुलग उठी. उसे यह बात सच लगी कि हर व्यक्ति के अंदर एक जानवर होता है जो मौका पड़ते ही जाग जाता है. समीर के अंदर का जानवर भी जाग उठा था. समीर ने मां के विश्वास के सीने में छुरा घोंपा था.

दोषी तो ज्योति भी थी. उस ने समीर को इतने पास आने ही क्यों दिया कि अपनी अस्मत ही गंवा बैठी. गरिमा का जी चाहा कि वह जोरजोर से चीखे, रोए. पर कैसी लाचार हो गई थी वह. कहीं कोई सुन न ले, इस डर से मुंह से सिसकी भी न निकाली.

2 दिन तक गरिमा घर में पड़ी रही. क्या करे, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. उधर समीर जो घर से गया तो 2 दिन तक लौटा ही नहीं. तीसरे दिन जरा सी आंख लगी ही थी कि आहट पर खुल गई. दरवाजा खुला छोड़ कर कोई बाहर गया था. ‘कौन है…’ वह बड़बड़ाते हुए उठी. देखा तो कमरे से समीर के कपड़े, अटैची सब गायब थे. एक पत्र जरूर मिला. लिखा था, ‘टिकट के पैसे नहीं हैं. कुछ रुपए और आप का हार लिए जा रहा हूं. हो सके तो क्षमा कर दीजिएगा.’

अरे, बेशर्म, क्षमा हार की मांग रहा है, पर जो कुकर्म किया है उस की क्षमा उसे कैसे मिलेगी. ज्योति की तरफ देख कर वह बिलख उठी थी. चाह कर भी वह उस के साथ न्याय नहीं कर पा रही थी. कौन अपनाएगा इसे. सबकुछ तितरबितर हो गया. क्या सोचा था, क्या हो गया. आंखों से आंसुओं की झड़ी भी सूख चली. बुद्घि, विवेक सबकुछ मानो किसी ने छीन लिया हो.

और एक दिन नंदू भी लड़की को ले कर कहीं चला गया. तब से अकेली है. पुराना मकान छोड़ कर नई कालोनी में यह फ्लैट ले लिया था, ताकि समीर को उस का पता न लग सके. पर जाने कहां से उस ने पता कर ही लिया है. पत्र भेजता है. पत्रों में उसे बुलाने का ही आग्रह होता है. शादी कर ली है….पर वह तो उसे आज तक क्षमा नहीं कर पाई है.

डोर बेल बजने पर वह अतीत से बाहर आई. बाई थी. उसे तो समय का ध्यान ही नहीं रहा कि रात के 8 बज चुके हैं. बाई ने उसे अंधेरे में बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, बहूजी. तबीयत तो ठीक है न. यह अंधेरा क्यों?’’

‘‘यों ही आंख लग गई थी.’’

‘‘खाना क्या बनाऊं, बहूजी.’’

‘‘मेरे लिए कुछ नहीं बनाना. तेरा जो खाने का दिल करे बना ले.’’

‘‘पर आप….’’

‘‘मैं कुछ नहीं लूंगी.’’

‘‘तो फिर कौफी, दूध…कुछ तो ले लीजिए.’’

‘‘ठीक है दूध दे जाना कमरे में,’’ कहती हुई गरिमा अपने कमरे में चली गई.

समीर का पत्र एक बार फिर पढ़ा उस ने. बहू की फोटो भेजी थी समीर ने. एक बार देख कर उस ने तसवीर को अलमारी में रख दिया. सोचती रही, क्या करे. रोहित भी जवाब मांग रहे हैं. मां- पिताजी अब रहे नहीं. अपना कहने वाला कोई नहीं है. मां की अस्थमा की बीमारी उसे भी हो गई है. ऐसे में रोहित ही उस की देखभाल करते हैं. जब वह यहां आई थी तब रोहित से कटती रहती थी पर आमने- सामने रहने से कभीकभार की मुलाकात से परिचय गहरा हो गया. यही परिचय अब अच्छी मित्रता में बदल चुका है.

रोहित का व्यक्तित्व बहुत मोहक है. कम बोलना, पर जो बोलना सोचसमझ कर. 2 बच्चे हैं, बेटा पत्नी के साथ बंगलौर में है. बेटी कनाडा में है. 2 साल पहले पति के साथ आई थी. उसे बहुत पसंद करती है. जाने से पहले उस का हाथ अपने हाथ में ले कर अपने पिता से बोली थी, ‘‘जाने के बाद अब यह सोच कर तसल्ली होगी कि अब आप अकेले नहीं हैं.’’

वह चौंकी थी कि रोहित पर उस का क्या अधिकार है. कहीं रोहित ने ही तो बेटी से कुछ नहीं कहा. उन के बेटे से भी वह मिल चुकी है. जब भी आता है, उस के पैर छूता है. रोहित के प्रस्ताव में, लगता है दोनों बच्चों की सहमति भी छिपी है. रोहित के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे, ‘गरिमाजी, मेरा और आप का रास्ता एक ही है तो क्यों न मंजिल तक साथ ही चलें. मुझ से शादी करेंगी?’

वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आज समीर के पत्र ने उसे झकझोर दिया था. उस ने कभी भी बेटे को कोसा नहीं है. आखिर क्यों कोसे? अब वह किसी का पति है. आखिर उस की पत्नी का क्या दोष? वह मां बनना चाहती है तो इस में वह क्या सहयोग कर सकती है सिवा इस के कि उसे अपनी शुभकामना दे. आखिर उस ने बहू शिखा को पत्र लिखने का निश्चय कर लिया.

दूसरे दिन उस ने शिखा को पत्र लिखा, ‘‘बेटी, हम दोनों एकदूसरे से अब तक नहीं मिले हैं, पर हमारे बीच आत्मीय दूरी नहीं है. तुम मेरी बहू हो और मैं तुम्हारी सास. तुम मां बनो और मैं दादी यह हृदय से कामना करती हूं. तुम्हारी मां.’’

पत्र मोड़ कर लिफाफे में रखते हुए गरिमा सोच रही थी कि उसे रोहित का प्रस्ताव अब मान लेना चाहिए. जीवन के बाकी दिन खुद के लिए भी तो जी लें.

सुख का पैमाना: मां-बेटी की कहानी

बाजार से लौटते ही सब्जी का थैला पटक कर सुधा बेटी प्रज्ञा के कमरे की ओर बढ़ गई थी. गुस्से से उस का रोमरोम सुलग रहा था. प्रज्ञा फोन पर अपनी किसी सहेली से बात कर रही थी. खुशी उस की आवाज से टपक रही थी. ‘‘मेरे विशेष योग्यता में 4 नंबर कम रह गए हैं, इस का मुझे अफसोस नहीं है. मुझे खुशी है राजश्री सभी विषयों में अच्छे अंकों से पास हो गई है. पता है, राजश्री के रिजल्ट की उस से ज्यादा बधाइयां तो मुझे मिल रही थीं…’’ मां को अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा देख प्रज्ञा ने सकपका कर फोन बंद कर दिया था.

‘‘हां, तो इस में गलत क्या है ममा? देखिए न, इस प्रयोग से सारी लड़कियां अच्छे अंकों से पास हो गई हैं.’’

‘‘तेरा रिजल्ट तो गिर गया न?’’

‘‘4 नंबर कमज्यादा होना रिजल्ट उठना या गिरना नहीं होता ममा. और वैसे भी इस का राजश्री की मदद से कोई लेनादेना नहीं है.’’

‘‘तो मतलब मेरी देखरेख में कमी रह गई?’’

‘‘क्या ममा, आप बात को कहां से कहां ले जा रही हैं? आप जैसी केयरिंग मौम तो कोई हो ही नहीं सकती.’’

‘‘बसबस, रहने दे. एक तो मना करने के बावजूद तू अपनी दरियादिली दिखाने से बाज नहीं आती, दूसरे मुझ से बातें भी छिपाने लगी है,’’ हमेशा की तरह सुधा का गुस्सा पिघल कर बेबसी में तबदील होने लगा था और प्रज्ञा हमेशा की तरह अब भी संयम बनाए हुए थी.

उस ने सोचा, ‘जिस बात को बताने से सामने वाले को दुख हो रहा हो, उसे न बताना ही अच्छा है.’

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सुधा के लिए बेटी की ऐसी हरकतें और बातें कोई अजूबा नहीं थीं. प्रज्ञा बचपन से ही ऐसी थी. कभी अपने लिए कुल्फी मांग कर, भूखी नजरों से ताकती भिखारिन को पकड़ा देती तो कभी अपना टिफिन किसी को खिला कर खुद भूखी घर लौट आती. सुधा समझ ही नहीं पाती थी कि इन सब के लिए उसे बेटी की पीठ थपथपानी चाहिए या उसे जमाने के अनुसार चलने की सीख देनी चाहिए. अकसर वह अकेले में पति के सामने अपना दुखड़ा ले कर बैठ जाती, ‘मुझे तो लगता है हमारे यहां कोई सतीसाध्वी अवतरित हुई है, जिसे अपने अलावा सारे जमाने की चिंता है.’

‘हर इंसान का सुख का अपना पैमाना होता है सुधा. दुनिया के सारे लोग पैसा या नाम कमा कर ही सुखी हों, यह जरूरी तो नहीं. हमारी बेटी दूसरों को सुखी देख कर सुखी होती है. आज के मतलबपरस्त समाज में यह अव्यावहारिक जरूर

लगता है.’

‘मुझे उस की बहुत चिंता रहती है. उसे तो कोई भी आसानी से उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा कर सकता है.’

पति के असामयिक निधन के बाद तो सुधा बेटी को ले कर और भी फिक्रमंद हो गई थी. कालेज के अंतिम वर्ष में पहुंच चुकी प्रज्ञा की शादी की चिंता उसे बेचैन करने लगी थी. दूसरों पर सबकुछ लुटा देने वाली इस लड़की के लिए तो कोई दौलतमंद, अच्छे घर का लड़का ही ठीक रहेगा. ऐसे में बड़ी ननद प्रज्ञा के लिए एक अति संपन्न घराने का रिश्ता ले कर आई तो सुधा की मानो मन की मुराद पूरी हो गई.

‘‘अपनी प्रज्ञा के लिए दीया ले कर निकलोगी तो भी इस से अच्छा घरवर नहीं मिलेगा. खानदानी रईस हैं. लड़के के पिता तुम्हारे ननदोई को बहुत मानते हैं. यदि ये आगे बढ़ कर कहेंगे तो वे लोग कभी मना नहीं कर पाएंगे. वैसे हमारी प्रज्ञा सुंदर तो है ही और अब तो पढ़ाई भी पूरी हो गई है. भैया नहीं रहे तो क्या हुआ, प्रज्ञा हम सब की जिम्मेदारी है. तभी तो जानकारी मिलते ही मैं सब से पहले तुम्हें बताने चली आई.’’

सुधा ननद का उपकार मानते नहीं थक रही थी, ‘‘दीदी, मैं एक बार प्रज्ञा से बात कर आप को जल्द से जल्द सूचित करती हूं.’’

ननद को रवाना करने के बाद सुधा ने बेचैनी में बरामदे के बीसियों चक्कर लगा डाले थे पर प्रज्ञा का कहीं अतापता नहीं था. फोन भी नहीं लग रहा था. स्कूटी रुकने की आवाज आई तो सुधा की जान में जान आई.

‘‘कहां रह गईर् थी तू? घंटों से बाहर चहलकदमी कर रही हूं.’’

‘‘मैं ने आप को बताया तो था कालेज के बाद मेघना के साथ कुछ काम से जाऊंगी,’’ प्रज्ञा अंदर आ कर कपड़े बदलने लगी थी. लेकिन सुधा को चैन कहां था. वह पीछेपीछे आ पहुंची.

‘‘हां, पर इतनी देर लग जाएगी, यह कहां बताया था? खैर, वह सब छोड़. तेरी बूआ आई थीं तेरे लिए बहुत अच्छा रिश्ता ले कर.’’

प्रज्ञा के कपड़े बदलते हाथ थम से गए थे. सुधा खुशी से लड़के, परिवार और उस के बिजनैस के बारे में बताए जा रही थी.

‘‘ममा, खाना खाएं बहुत भूख लगी है,’’ प्रज्ञा ने टोका तो सुधा चुप हो गई. खाने के दौरान भी सुधा रिश्ते की ही बात करती रही. लेकिन प्रज्ञा ने कोई उत्साह नहीं दिखाया. खाना खा कर वह थकावट का बहाना बना कर जल्द ही सोने चली गई. सुधा हैरान उसे देखती रह गई थी. ‘यह लड़की है या मूर्ति? लड़कियां अपने रिश्ते की बात को ले कर कितनी उत्साहित हो जाती हैं. और इसे देखो, खुद के बारे में तो न सोचने की मानो इस ने कसम खा ली है.’’

सवेरे उठते ही सुधा की फिर वही रात वाली बातें शुरू हो गई थीं.

‘‘ममा, मैं अभी कुछ साल नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं. उस के बाद ही शादी के बारे में फैसला लूंगी,’’ प्रज्ञा ने अपनी बात रखते हुए इस एकतरफा बातचीत को विराम लगाना चाहा. पर कल से संयम बरत रही सुधा का धैर्य जवाब दे गया.

‘‘इतने अमीर परिवार की बहू बनने के बाद तुझे नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होने की जरूरत कहां रह जाएगी? यह तो हमारा समय है कि दीदी को तेरा खयाल आ गया…’’ सुधा को अपनी बात बीच में ही रोक देनी पड़ी क्योंकि प्रज्ञा के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया था और वह किसी से बात करने में बिजी हो गईर् थी.

‘‘तू चिंता मत कर. क्लास के बाद मैं चलूंगी तेरे साथ रिपोर्ट्स लेने. जरूरत हुई तो दूसरे डाक्टर को दिखा देंगे. तब तक जो दवाएं चल रही हैं, आंटी को देती रहना. सब ठीक हो जाएगा.’’

मोबाइल पर बात को खत्म कर के प्रज्ञा ने सुधा से कहा, ‘‘ममा, मुझे जल्दी निकलना होगा, मेघना की मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है. कल उन की खांसी और कफ ज्यादा बढ़ गया. कफ में खून भी आने लगा तो कुछ टैस्ट करवाने पड़े. उस के पापा लंबे टूर पर बाहर हैं. वह बेचारी घबरा रही थी, तो मैं साथ हो ली. वहां भीड़ होेने के कारण ही कल टाइम ज्यादा लग गया था. अभी भी बेचारी फोन पर रो रही थी कि पूरी रात मां खांसती रहीं. मांबेटी दोनों ही पूरी रात जागती रही हैं.’’ तैयार होतेहोते प्रज्ञा ने अपनी बात पूरी की और मां को बोलने का मौका दिए बिना ही स्कूटी ले कर निकल गई.

बेटी के लिए फिक्रमंद सुधा पति की तसवीर के आगे जा कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. चिंतित और दुखी होने पर अकसर सुधा ऐसा ही किया करती थी. इस से कुछ पलों के लिए ही सही, उसे यह संतोष मिल जाता था कि वह अकेली नहीं है. उस के सुखदुख में कोई और भी उस के साथ है. सुधा को लगा तसवीर न केवल उस के दर्द को समझ रही है बल्कि उसे दिलासा भी दे रही है, ‘अपनी बेटी को समझने का प्रयास करो सुधा. मैं ने बताया तो था कि सुख को मापने का उस का पैमाना अलग है.’

कुछकुछ सुकून पाती सुधा घर के कामों में लग गई. प्रज्ञा को उस दिन लौटने में फिर रात हो गई थी. अगला सूर्योदय सुधा की जिंदगी में नया सवेरा ले कर आता था. आश्चर्यजनक रूप से प्रज्ञा ने शादी के लिए सहमति दे दी थी. सुधा को जानने की जिज्ञासा तो थी पर ज्यादा टटोलने से कहीं बेटी का मन न पलट जाए, इस आशंका से उस ने कुछ न पूछना ही ठीक समझा.

ननद को फोन कर उस ने प्रज्ञा की सहमति की सूचना दे दी. फिर तो आननफानन सारी औपचारिकताएं पूरी की जाने लगीं. सगाई का दिन भी तय हो गया. मां का उल्लास देख प्रज्ञा ने खुशी के साथसाथ चिंता भी जाहिर की थी, ‘‘काम का इतना तनाव मत लो ममा, आप बीमार हो जाओगी. आप कहो तो मेरी शौपिंग का काम मैं मेघना के साथ जा कर निबटा लूं.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ,’’ सुधा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. तय हुआ कि मेघना को घर बुला लिया जाएगा और सुधा के टैंट वाले के यहां से लौटते ही दोनों सहेलियां शौपिंग के लिए निकल जाएंगी. घर में ज्वैलरी आदि रखी होने के कारण सुधा इन दिनों घर सूना नहीं छोड़ना चाहती थी.

अगले दिन सुधा समय से घर लौट आई थी. चाबी डाल कर दरवाजा खोलते ही उसे एहसास हो गया था कि मेघना आ चुकी है. दोनों बातों में बिजी थीं. रसोई में चाय चढ़ाने जाते वह प्रज्ञा के कमरे के आगे से गुजरी तो अंदर धीमे आवाज में चल रही बातचीत ने उस के कान खड़े कर दिए.

‘‘प्रज्ञा, अन्यथा मत लेना. पर मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि तू पैसे के लालच में किसी और से शादी कर रही है? मैं तो समझती थी कि तू और प्रतीक…’’

सुधा को लगा उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी. वह कान लगा कर दरवाजे की ओट में खड़ी हो गई.

‘‘कल प्रतीक मिला था…’’ मेघना की आवाज फिर सुनाई दी.

‘‘अच्छा, कहां? क्या कर रहा था? सुना, उस की नौकरी लग गई?’’ प्रज्ञा के स्वर की तड़प ने सुधा के साथसाथ मेघना को भी चौंका दिया था.

‘‘उस के बारे में जानने की इतनी तड़प क्यों? अभी तो तू कह रही थी तुम दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं है. मुझ से सच मत छिपा प्रज्ञा. जो कुछ मैं तेरी आंखों में देख रही हूं, वही मुझे प्रतीक की आंखों में भी दिखा था. मैं ने उसे तेरी सगाई की बात बताई तो उसे यकीन नहीं हुआ. कहने लगा कि मैं मजाक कर रही हूं. फिर थोड़ी देर बाद मैं ने उसे ढूंढ़ा तो वह फंक्शन से जा चुका था. मेरा शक अब यकीन में बदलता जा रहा है. उस से

2 दिनों पहले तक तो तू बराबर मां के टैस्ट वगैरह करवाने में मेरे साथ थी. तूने कभी कोई जिक्र ही नहीं किया. या शायद मैं ही इतनी बौखलाई हुई थी कि तुम्हारी मन की स्थिति से अनजान बनी रही.’’

‘‘आंटी अब कैसी हैं?’’ इतनी देर बाद प्रज्ञा का स्वर सुनाई दिया था. सुधा को लगा वह शायद बात का रुख पलटने का प्रयास कर रही थी.

‘‘मां की तबीयत में काफी सुधार है. मुझे सुकून है कि मैं समय रहते उन का अच्छे से अच्छा इलाज करवा सकी. तुम्हारे साथ रहने से मुझे मानसिक संबल मिला. वरना उन की बिगड़ी हालत देख कर एकबारगी तो मैं उम्मीद ही छोड़ बैठी थी. उन दिनों मुझे न कपड़ों का होश था, न खाने का, न सोने का. बस, एक ही बात चौबीसों घंटे सिर पर सवार रहती थी, किसी तरह मां जी जाए,’’ भावुक मेघना का गला भर आया तो प्रज्ञा ने उस के हाथ थाम लिए थे.

‘‘तुम्हारी इसी मातृभक्ति ने तो मुझे इस सगाई के लिए प्रेरित किया है. तुम्हें मां के लिए रोते, कलपते, भागते, दौड़ते देख मुझे एहसास हुआ कि सहजसुलभ उपलब्ध वस्तु की हम अहमियत ही नहीं समझते. उसे खो देने का एहसास ही क्यों हमें उस की अहमियत का एहसास कराता है?

‘‘हम समय रहते उस की परवा क्यों नहीं करते? बस, मैं ने तय कर लिया कि मैं मां की खुशी के लिए सबकुछ करूंगी. हां मेघना, मैं यह शादी ममा की खुशी के लिए कर रही हूं. यह जानते हुए भी कि मैं समीर के साथ कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. उस से 2 मुलाकातों में ही मुझे समझ आ गया है कि पैसे के पीछे भागने वाले इस इंसान की नजर में मैं जिंदगीभर एक उपभोग की वस्तु मात्र बन कर रह जाऊंगी. जबकि प्रतीक पर मुझे खुद से ज्यादा यकीन है. वह सैल्फमेड इंसान मेरी मजबूरी समझ कर मुझे माफ जरूर कर देगा.’’

‘‘मुझे अब जिंदगीभर यह संतोष रहेगा कि मैं मां की खुशी का सबब बनी. उस मां की जो आजतक मेरे ही लिए सोचती रहीं. और मैं कितनी नादान थी सारी दुनिया की परवा करती रही और अपनी परवा करने वाली की ओर लापरवाह बनी रही.’’

सुधा में इस से आगे सुनने का साहस नहीं रहा था. वह लड़खड़ाते कदमों से जा कर बिस्तर पर लेट गई.

‘‘अरे ममा, आप कब आईं, बताया ही नहीं?’’ प्रज्ञा ने मां को कमरे में लेटा देखा तो पूछा.

‘‘बस, अभी आई ही हूं. अब तुम लोग बाजार हो आओ,’’ सुधा ने किसी तरह खुद को संभालते हुए उठने का प्रयास किया.

‘‘क्या हुआ? आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही है,’’ प्रज्ञा घबराई सी मां का माथा, नब्ज आदि टटोलने लगी, ‘‘मैं डाक्टर को बुलाती हूं.’’

‘‘अरे नहीं, जरा सी थकान है, अभी ठीक हो जाऊंगी, तुम लोग जाओ.’’

‘‘मैं इसीलिए आप से कहती थी काम का ज्यादा तनाव मत लो,’’ प्रज्ञा मां के पांव सहलाने लगी.

‘‘प्रज्ञा, तू अब जा, देख मेघना भी आ गई है.’’

‘‘कोई बात नहीं आंटी, मैं तो फिर आ जाऊंगी.’’ मेघना जाने लगी तो सुधा ने उसे छोड़ कर आने का इशारा किया. दोनों के निकल जाने के बाद सुधा गहरी सोच में डूब गई थी.

‘एक पल को भी इस से मेरा दर्द सहन नहीं हो रहा. और मैं इसे

जिंदगीभर का दर्द देने वाली थी. प्रज्ञा को जानतेसमझते हुए भी मैं ने कैसे सोच लिया कि पैसा इस लड़की को खुश रख पाएगा? यदि प्रज्ञा समीर के साथ नाखुश रहेगी तो मैं कैसे खुश रह पाऊंगी? प्रज्ञा की शादी अब वहीं होगी जहां वह सुखी रहे.’ एक दृढ़ निश्चय के साथ उठ कर सुधा पति की तसवीर के सामने खड़ी हो गई. उसे लगा तसवीर अचानक मुसकराने लगी है, मानो, कह रही है, ‘आखिर बेटी ने तुम्हारे सुख का पैमाना बदल ही दिया.’

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