BB Ott 2: अभिषेक के नेगेटिव PR के आरोप पर Emotional हुए एल्विश यादव, भड़के फैंस

बिग बॉस ओटीटी 2 के फिनाले का वीक शुरु हो गया है. अभिषेक मल्हान, एल्विश यादव, मनीषा रानी, ​​पूजा भट्ट, जिया शंकर और बेबिका धुर्वे में से कोई एक ट्रॉफी घर ले जाएगा. पिछला वीकेंड के वार में काफी ड्रामा हुआ क्योंकि होस्ट सलमान खान ने कंटेस्टेंट को उनके गलत कार्यो के लिए फटकार लगाई. हालांकि, रविवार का एपिसोड हल्का-फुल्का था, जिसमें सलमान ने कुछ खुलकर बातचीत की और उनके साथ कुछ मजेदार गेम खेले.

अभिषेक ने एल्विश यादव पर लगाया आरोप

रविवार के एपिसोड के बीच में, फैंस को तब करारा झटका लगा जब अभिषेक मल्हान और एल्विश यादव के बीच नकारात्मक प्रचार को लेकर बहस हो गई. उनके शब्दों ने एल्विश को भावुक और आहत कर दिया, क्योंकि बाद में उन्हें रोते हुए देखा गया.

अभिषेक ने किया खुलासा

अभिषेक ने खुलासा किया कि उनकी मां ने उन्हें यह भी बताया था कि जिस दिन से एल्विश यादव ने वाइल्ड कार्ड के रूप में घर में प्रवेश किया है, उनके फैंस अभिषेक के पेज पर आकर नकारात्मक पोस्ट कर रहे हैं.

”अभिषेक उर्फ ​​फुकरा इंसान ने एल्विश से कहा.  “आपकी टीम बाहर मेरे खिलाफ नकारात्मक पीआर कर रही है. शायद आपको इसके बारे में पता हो.

मैं इसके बारे में ज्यादा बात करने से पहले बाहर जाकर इसे देखना चाहता हूं,”. आरोपों से हैरान एल्विश ने अपना बचाव करते हुए कहा कि वह ऐसा करना चाहता तो वह उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता या वह खुद शो भी जीतना चाहता.

लोगों ने अभिषेक को किया एक्सपोज

एल्विश यादव को अभिषेक मल्हान की बातों से इमोशनल होता देख फैंस भड़क गए हैं. ऐसे में लोग एल्विश यादव को को भर-भर के सपोर्ट कर रहे है. वहीं एल्विश के फैंस ने ट्विटर पर We Love You Elvish और Negative PR ट्रेंड करना शुरू कर दिया है. फैन्स एल्विश के सपोर्ट में हैं कि उन्हें पीआर की जरूरत नहीं है, उनकी आर्मी ही काफी है. वहीं कई लोगों ने अभिषेक को ‘दोगला’ और ‘सांप’ का टैग भी दिया है.

Deepika Padukone ने Ranveer Singh के लिए लिखा खास नोट, देखें पोस्ट

सोशल मीडिया पर दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने एक बार फिर अपने फैंस का दिल खुश कर दिया है. दीपिका ने इंस्टाग्राम पर खूबसूरत नोट साझा किया है, दीपिका ने इस लैटर में लिखा कि ‘शादी अपने बेस्ट फ्रेंड से करो, ये बात में ऐसे ही नहीं बोल रही हूं. जब आपकी दोस्ती गहरी होगी, तब आपको प्यार होना तय है. आप ऐसे आदमी से शादी करो जो अपके अंदर के पागलपन को बाहर निकाल पाए और आपके दुख-तकलीफ को समझ सके.’

वहीं दीपिका ने और भी कई बातें लिखी है. इस तस्वीर के कैप्शन में दीपिका पादुकोण ने रणवीर सिंह को टैग किया है. दीपिका पादुकोण की ये पोस्ट सोशल मीडिया पर खूब शेयर की जा रही है.

रणवीर सिंह का आया रिएक्शन

दीपिका पादुकोण ने फ्रेंडशिप डे पर पति रणवीर सिंह के लिए एक इमोशनल नोट शेयर किया. नोट में, एक्ट्रेस ने ‘अपने सबसे अच्छे दोस्त से शादी करने’ की खुशी व्यक्त की. रणवीर सिंह ने पोस्ट पर भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देते हुए पोस्ट के टिप्पणी अनुभाग में एक बुरी नजर, एक दिल और एक अनंत प्रतीक डाला.

दीपिका-रणवीर प्रेम कहानी की शुरूआत

दीपिका और रणवीर की प्रेम कहानी की जड़ें संजय लीला भंसाली की 2013 की फिल्म गोलियों की रासलीला राम-लीला में एक साथ अभिनय करने के बाद शुरू हुईं. छह साल की डेटिंग के बाद, इस जोड़े ने 14 नवंबर, 2018 को इटली के लेक कोमो में एक डेस्टिनेशन वेडिंग में सात फेरे लिए. राम-लीला के अलावा, इस जोड़ी ने फाइंडिंग फैनी, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत और स्पोर्ट्स ड्रामा 83 जैसी फिल्मों में स्क्रीन साझा की है.

दीपिका पादुकोण नजर आएंगी इन फिल्मों में

बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण की वर्क की बात करें तो दीपिका अपनी अपकमिंग फिल्मों को लेकर का काफी चर्चा में है. दीपिका शाहरूख खान की फिल्म जवान में कैमियो करने वाली हैं. इसके साथ ही एक्ट्रेस फिल्म फाइटर में ऋतिक रोशन साथ लीड रोल में नजर आएंगी.

मुट्ठी भर आसमान: सोमेश के घर जाते ही उसकी बहन को क्या हुआ?

भैया की शादी के बाद आज पहली बार भैया के पास जा रही हूं. मम्मीपापा 2 महीनों से वहीं हैं. मन आशंकाओं से भरा है कि पता नहीं उन का वहां क्या हाल होगा. अपने दोस्तोंमित्रों, सगेसंबंधियों से दूर मन लगा होगा या नहीं. पापा तो बाहर घूमफिर आते होंगे, पर मां वहां सारा दिन क्या करती होंगी. भैया की नईनई शादी हुई है. वे दोनों तो आपस में ही मस्त रहते होंगे.

फिर बरबस ही उस के होंठों पर मुसकराहट आ गई. क्या खूब होते हैं वे दिन भी. हर तरफ मस्ती का आलम, देर रात तक जागना और दिन में देर तक सोना. सब कुछ चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने घूमने लगा…

सोमेश देर तक सोते रहते और वह चुपचाप पास पड़ी उन्हें निहारती रहती, तनबदन सहलाती रहती. उस के पास तो सोने के लिए पूरा दिन रहता. सोमेश के बाथरूम से निकलते ही उन के साथ ही खाने की मेज पर पहुंच जाती.

नाश्ते के बाद सोमेश औफिस चले जाते और वह अपने कमरे में पहुंच जाती. दिन में 5-6 बार सोमेश से फोन पर बात करती. उन के पलपल की खबर रखती. लंच के लिए उन का फोन आते ही तुरंत तैयार हो कर खाने के लिए पहुंच जाती. सोमेश कुछ देर आराम कर चले जाते और वह दीनदुनिया से दूर न जाने किन खयालों में गुम कमरे में ही पड़ी रहती.

उन्हीं दिनों अंशु कोख में आ गया. फिर तो वह 7वें आसमान पर पहुंच गई. मन चाहता सोमेश हर पल साथ बने रहें. हलका सा सिरदर्द भी हो तो वे ही आ कर सहलाएं. तनमन में आने वाले बदलाव को सम झें,

महसूस करें. पर इन पुरुषों के लिए नारी के हर मर्ज की दवा उन की मां होती है. वे सम झते हैं एक मां ही भावी मां को सम झ सकती है, इसलिए चुपचाप पत्नी को मां के हवाले कर देते हैं.

एकाएक उस की सोच पर विराम लग गया. उन दिनों सोमेश के मम्मीपापा भी तो उन के साथ थे. उन के अकेलेपन का खयाल तो उसे कभी नहीं आया. वे दोनों भी शाम को सोमेश का बेचैनी से इंतजार करते और उन के आते ही उन से बात करने के लिए बेताब हो उठते. मम्मी दिन भर इधरउधर खटपट करती रहतीं, जिस से कभीकभी उसे बड़ी कोफ्त होती. असल में आपस में तालमेल हुए बिना हम शायद एकदूसरे की परेशानी को महसूस तो क्या सम झ भी नहीं सकते.

वह तो सारा दिन दरवाजा बंद कर के पड़ी रहती. अपने मम्मीपापा, सहेलियों से फोन पर लगी रहती. उस ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि वे सारा दिन कैसे गुजारते हैं. मम्मीजी दिन में कई बार आतीं, दरवाजा खटखटातीं और खानेपीने के लिए पूछतीं.

उसे याद आया उन दिनों तबीयत कुछ नासाज थी. वह किसी भी जरूरत के लिए नौकरानी को आवाज लगाती तो मम्मीजी भागीभागी चली आतीं. पर एक दिन आवाज लगाने पर नौकरानी ही आई. उस ने हैरान हो कर दरवाजे से  झांक कर देखा पापा मम्मी का हाथ पकड़ कर यह कह कर उन्हें अंदर आने से रोक रहे थे, ‘‘कोई तुम्हें इस तरह ‘फौर ग्रांटेड’ नहीं ले सकता.’’

मन एकाएक एक कदम और पीछे चला गया. एक दिन सोमेश ने उस का हाथ पकड़ कर बड़ी कोमलता से कहा, ‘‘शुरू से ही मेरा यह सपना रहा है कि मेरे मम्मीपापा हमेशा मेरे साथ रहें. बच्चे, मम्मीपापा, दादादादी घर कितना भराभरा लगता है.’’

‘‘हां, बच्चे संभालने के लिए हमें उन की जरूरत तो होगी.’’

‘‘बात जरूरत की नहीं, मेरी इच्छा की है,’’ सोमेश बोले.

वह कुछ नहीं सम झ पाई, पर यह जरूर जान गई कि ये लोग अब यहीं रहने वाले हैं उन के पास. पुरानी स्मृतियां थीं कि याद न आने का नाम ही नहीं ले रही थीं. वे अकसर एकदूसरे को अपने हाथों से खिलाते. कभीकभी एकाएक मम्मीपापा सामने पड़ जाने पर सोमेश सकपका जाते.

उसे बड़ा अजीब लगता कि हम पतिपत्नी हैं. एकदूसरे की कमर में हाथ डाल या गले में बांहें डाल कर घूमने में शर्म कैसी?

पर आज… आज यदि भैयाभाभी इसी प्रकार व्यवहार करते होंगे तो मम्मीपापा को कैसा लगता होगा, यह सोच कर ही वह शर्म से लजा गई. शर्म, लज्जा, हया सब व्यक्तिपरक होते हैं.

इन्हीं खयालों में डूबी उस को कब घर आ गया, पता ही नहीं चला. रात को खाना खा कर वह, मम्मी और पापा सोने का उपक्रम कर रहे थे. भैयाभाभी के कमरे से देर रात तक दबेदबे हंसी के स्वर आ रहे थे. वह भी जीवन के स्वप्निल क्षणों में पहुंच गई और फिर पता नहीं कब आंख लग गई. सुबह भाभी उठा रही थीं, ‘‘दीदी उठो, नाश्ता लग गया है.’’

मेज पर पहुंची तो मम्मीपापा, भैया सब उस का इंतजार कर रहे थे. सब को एकसाथ देख कर बड़ा अच्छा लगा. नाश्ते के बाद मम्मी ने भाभी को अपने कमरे में आराम करने भेज दिया. फिर मांबेटी दोनों बातों में लग गईं. 2 बजे भाभी ने आ कर कहा, ‘‘मम्मीजी, खाना लग गया है.’’

‘‘रघु कब आ रहा है?’’ मम्मी ने जानना चाहा.

‘‘उन का फोन आया था. लेट आएंगे… आप सब खाना खा लो,’’ भाभी ने आग्रह किया.

वह सोच में डूबी रही और चुपचाप भाभी की दिनचर्या देख रही थी. भाभी घर को व्यवस्थित करने के गुर, जैसे कपड़े संभालना, धोबी का हिसाब रखना, राशन, सब्जी मंगवाना, नौकरों पर निगरानी रखना आदि मम्मी से सम झने की कोशिश करतीं. उन के अनुसार चलतीं और बीचबीच में अपने फंडे मसलन, फ्राइड के साथ रोस्टेड या स्प्राउट खाना, परांठों के साथ ब्रैडबटर, समोसे, कचौरी, जलेबी के साथसाथ पेस्ट्री पैटीज डाल देतीं. मम्मीपापा भी इस छोटेमोटे बदलाव को सहर्ष स्वीकार कर रहे थे.

भाभी रात को अपने कमरे में जाने से पहले नौकर ने सब का बिस्तर ठीक किए हैं या नहीं, कमरे में पानी रख दिया है या नहीं जैसी छोटीछोटी बातों पर पूरी निगरानी रखतीं. कितनी जल्दी सब संभाल लिया है… वह सोचती रही.

‘‘आप तो बड़ी अच्छी गृहस्थी संभाल रही हैं,’’ एक दिन वह भाभी से बोली.

‘‘मु झे कहां कुछ आता था. सब मम्मीजी से सीखा है,’’ भाभी ने संकोच से जवाब दिया.

‘‘डिलिवरी के लिए आप मायके जाएंगी,’’ उस ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘नहीं, रघु कहते हैं उन्हें वहां कंफर्टेबल नहीं लगेगा. फिर मम्मीजी भी यही चाहती हैं. उन्होंने तो अभी से तैयारी भी शुरू कर दी है,’’ भाभी शरमाती हुई बोलीं.

वह सोच रही थी, ‘रघु कहते हैं’ ‘मम्मीजी चाहती हैं’ यह सब क्या है? सब दूसरों की मरजी पर. कितनी मूर्ख लड़की है. क्या इस का अपना कोई स्टैंड नहीं? पर मन में कुछ चुभन सी जरूर हुई.

वापसी वाले दिन सुबहसुबह भैया को देख कर चौंक गई, ‘‘भैया, आज

आप इतनी जल्दी…’’

‘‘तेरी ये भाभी मु झे सोने देंगी तब न? ‘दीदी जा रही हैं’ कह कर जबरन मु झे जगा दिया,’’ भैया ने एक प्यार भरी नजर भाभी पर डालते हुए कहा.

धीरगंभीर भैया के चेहरे पर अनोखी चमक थी. फिर आप ही कहते, ‘‘मु झे उठाया क्यों नहीं?’’ भाभी का उत्तर उसे अंदर तक कचोट गया. उसे याद आया उस की अपनी ननद जाने वाली थी. सोमेश गहरी नींद में सो रहे थे. उस ने दरवाजे पर पदचाप सुनी और चुपचाप पड़ी रही. जागने पर सोमेश ने भी ऐसा ही कुछ कहा था. सारा दिन उस का मूड उखड़ा रहा था. अगर वह भी इसी तरह निकल जाती तो? यहां यह बेवकूफ सी लगने वाली लड़की आगे निकल गई. जितनी नासम झ यह दिखती है उतनी है नहीं. वह सोच रही थी.

‘‘बहू खुशखबरी सुनाने वाली है. उन दिनों जरूर आना. थोड़ी मदद हो जाएगी, मु झे तो अभी से घबराहट हो रही है,’’ मम्मी ने मनुहार की. उन का चेहरा उल्लास से दमक रहा था.

पर चलते समय उस का मन बोझिल था. पता नहीं क्यों? उसे तो खुश होना चाहिए था. सारी आशंकाएं निराधार निकलीं. सब ठीकठाक है. मम्मीपापा, भैयाभाभी सब खुश हैं. फिर यह अन्यमनस्कता क्यों? शायद मां का हर बात में भाभी को उस से अधिक तरजीह देना या शायद उसे अब अपना मायका पराया लगने लगा था या फिर भैयाभाभी का आपसी प्यार… पर सोमेश भी तो उस पर जान छिड़कते हैं. फिर ऐसा क्या है, जो उसे कचोट रहा है. वह सम झ गई उस का अपना घरसंसार मात्र सोमेश तक ही सीमित रहा है. उस से आगे वह कभी सोच ही नहीं सकी. यहां तक कि उस के अपने मम्मीपापा के आने पर उस ने स्पष्ट कह दिया था, ‘‘ममा, सुबह

6 बजे ही जाने के लिए तैयार न हो जाना, कल सोमेश की छुट्टी है, हम देर तक सोते हैं.’’

सुन कर सोमेश, उस के मम्मीपापा सब उस का मुंह देखने लगे थे. पर विवाह 2 जिस्मों का 2 आत्माओं का ही नहीं 2 परिवारों का भी बंधन है और भाभी ने यह साबित भी कर दिया.

कहते हैं, इस असीम आकाश में सब का अपनाअपना हिस्सा है. उसे मुट्ठी भर आसमान ही मिल पाया. पर यह नादान सी लगने वाली भाभी बांहें पसार कर आसमान का एक बड़ा सा भाग समेट कर ले गई.

नाक की नाक

नाकें भी किस्मकिस्म की होती हैं. कोई छोटी, कोई मोटी, कोई लंबी, कोई नोकदार तो कोई चपटी यानी जितनी तरह के लोग उन की उतनी तरह की नाकें. साहित्य में तोते जैसी नाक का वर्णन कवियों ने खूब किया है. मु झे अभी तक नहीं पता कि सुग्गे जैसी नाक कैसी होती है. बहुत सी रूपसियों की नाक को गौर से देखा, पर मु झे कोई खास बात नजर नहीं आई. संभव है यह मेरी आंखों का दोष रहा हो.

वैसे देखा और सम झा जाए तो चेहरे पर नाक का महत्त्व कुछ ज्यादा ही है. नाक की खातिर लोग कुछ भी कर बैठते हैं. चेहरे या नाक को खूबसूरत बनाने के लिए विशेष कर युवतियां प्लास्टिक सर्जरी का सहारा लेती हैं. नाक छिदवाती हैं. शादी अथवा तीजत्योहारों पर नाक में नथ पहनने की परंपरा है. कुछ प्रांतों की महिलाएं हमेशा नथ पहने रहती हैं. कुछ जगह नथ उतराई किसी उत्सव की भांति संपन्न होने वाला रिवाज है.

विवाह और नथ यानी दुलहन और नथ का भी ऐसा ही संबंध है. नोज पिनें तो बच्ची, युवा, प्रौढ तथा वृद्धाएं सभी पहनती हैं, जो छोटेबड़े हर साइज में उपलब्ध होती हैं. कोई दाईं तरफ नाक छिदवाती हैं, कोई बाईं तरफ, तो कोई दोनों नथुनों के बीच की जगह. खैर, सौंदर्य के अलगअलग प्रतिमान अपनी पसंद के अनुसार गढ़े गए हैं.

नाक बनी रहे, इस के लिए लोग नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते, चाहे इस के लिए नाकों चने चबाने पड़ें. अब बच्चों को क्या मालूम कि उन का प्यार मातापिता की नाक का बाल बन गया है. प्यार कोई करे, नाक किसी की कटे. हां, रामायणकालीन रावण की बहन शूर्पणखा की नाक अवश्य जगप्रसिद्ध रही. शूर्पणखा की नाक क्या कटी, रावण की ही नाक कट गई. 2 महायोद्धा युद्ध में कूद पड़े और एक ऐतिहासिक, पौराणिक युद्ध नाक की खातिर हो गया.

हर साल इस की याद में पुन: शूर्पणखा की नाक काटी जाती है, लंका दहन होता है और रावण के 10 शीशों की आहुति दी जाती है. यह नाक की कथा न जाने कब तक चलती रहेगी. हम रहें न रहें, नाक अवश्य बनी रहेगी.

मैं अभी तक नहीं सम झ पाई हूं कि लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक ही क्यों काटी? खैर, व्याख्या करना व्याख्याकारों का काम है. मु झे तो बस नाक से मतलब है. जुकाम होने पर लोग नाक पोंछ कर रूमाल जेब में रख लेते हैं, जिस से वक्त पड़ने पर मुंह भी पोंछा जा सकता है.

कुछ लोग पूरा साल नाक सुड़कते रहते हैं, पर हासिल कुछ नहीं कर पाते. नाक के मारे नाक में दम. किसी दवा का कोई असर नहीं. नाक है कि नाकों चने चबवा रही है. नाक को चने चबाते मैं ने नहीं देखा, पर विशिष्टजन ऐसा कहते हैं. लोगों को मुंह से चने चबाते जरूर देखा है. हो सकता है कुछ लोगों की नाक में ही दांत निकल आते हों, क्योंकि दुनिया अजूबों से जो भरी पड़ी है.

हां, नाक पर मक्खी न बैठने देने की बात खासी प्रचलित है. नाक पर बैठी मक्खी अच्छी नहीं लगती. नाक पर बैठ कर अपने नाजुक पंखों और पैरों से गंदगी जो छोड़ती है. नाक में सुरसुराहट जैसा भी कुछ होने लगता है. लेकिन मक्खी की भी एक आदत है कि जहां से उड़ाओ पुन: वहीं आ कर बैठती है. जिद्दी जो ठहरी. इस की भिनभिनाहट भी नहीं भाती.

एक बार मैं अपने 4 वर्षीय बेटे के साथ बस से सफर कर रही थी. बगल की सीट पर बैठे एक सज्जन बड़ी देर से ऊंघ रहे थे. एक मक्खी काफी देर से उन के मुंह पर मंडरा रही थी. कभी मूंछों पर, कभी दाढ़ी पर तो कभी टोपी पर बैठती. वे सज्जन गरदन  झटक कर हटा देते.

मेरा बेटा काफी देर से मक्खी का खेल देख रहा था. तभी मक्खी उड़ कर सज्जन की नाक पर बैठ गई. मैं कुछ सम झ पाती, उस से पहले ही मेरे लाड़ले ने अपनी चप्पल उतार कर उन सज्जन की नाक पर दे मारी.

वे एकदम घबराए से उठ गए और फिर  झट से मेरे बेटे का हाथ पकड़ लिया और कड़क कर बोले, ‘‘तेरी यह मजाल कि मेरी नाक पर चप्पल मारे? तु झे अभी मजा चखाता हूं.’’

फिर जैसे ही मेरे बेटे को मारने के लिए अपना हाथ ऊपर उठाया, तभी बेटे ने सहमेसहमे कहा, ‘‘अंकल, मैं ने आप को नहीं, मक्खी को मारा था. वह आप को तंग कर रही थी. मम्मी कहती हैं कि नाक पर मक्खी नहीं बैठने देनी चाहिए.’’

यह सुन कर उन सज्जन का गुस्सा दूध के उफान सा शांत हो गया और उन्होंने मेरे बेटे का हाथ छोड़ दिया.

अब मैं ने बेटे को धमकाया, ‘‘तु झे क्या मतलब, मक्खी किसी के भी ऊपर और कहीं भी बैठे? तुम केवल अपनी नाक पर मक्खी मत बैठने दो. दूसरे की नाक की चिंता न करो.’’

बस में बैठे लोग ठठा कर हंस पड़े. वे सज्जन इतना  झेंपे कि अगले स्टौप पर ही उतर गए. पता नहीं उस समय लाड़ले को यह बात सम झ में आई कि नहीं, पर डांट खा कर चुप हो कर जरूर बैठ गया.

कभी नाक बाप जैसी होती है, तो कभी मां जैसी. बाप जैसी नाक को खूब वाहवाही मिलती है यानी नाक खानदानी है. होनी भी चाहिए. बेटा भी पिता की तरह नाकदार न हुआ तो बात ही क्या. भले बारबार कटवानी पड़े.

आजकल जिस के पास पैसा है वही ऊंची नाक वाला है. पैसा और नाक का चोलीदामन का साथ है. पैसा नहीं तो नाक भी नहीं. पैसा हो तो कैसी भी नाक मार्केट में चल जाएगी. ऊंची नाक वालों की ओर लोग हसरत भरी निगाहों से देखते हैं. पर नकचढ़ों को कोई नहीं पूछता. उन्हें देख कर अकसर लोग नाकभौं चढ़ा लेते हैं.

घोड़े, भैंसे, खच्चर, टट्टू, बैल, ऊंट की नाक में नकेल डाली जाती है, पर आजकल सासबहू में छत्तीस का आंकड़ा है. जिस के हाथ में नकेल है वही दूसरी को पहना देती है. कहीं बहू की नकेल सास के हाथ तो कहीं सास की नकेल बहू के हाथ. हो सकता है और लोग भी नकेल पहनाते हों. हां, दबंगों के हाथ में किसी न किसी की नकेल अवश्यरहती है.

मैं एक बात अकसर सुना व पढ़ा करती हूं कि बदमाशों को पकड़ने के लिए पुलिस को नाकेबंदी करनी पड़ी. बदमाशों को पकड़ने में नाक ए बंदी का क्या मतलब? पता नहीं ऐसेऐसे मुहावरे किस बात की जरूरत थे और क्यों बन गए. नाक है तो सब कुछ है वरना नाक में दम है.

अकसर नाक में दम होता रहता है. कभी बच्चों के कारण, कभी बुजुर्गों के कारण, कभी काम के कारण तो कभी शोरगुल के कारण. यह आज की बात नहीं है. हमारे बड़ों की नाक में भी दम हुआ था. हमारी नाक में भी होता है और आगे आने वालों की नाक में भी होगा. नकसीर भी फूटेगी. नाक है तो नाक के मसले भी होंगे. यानी नाक की समस्या आसानी से नहीं सुल झेगी. पूरा देश नाक बचाने में लगा है. बढ़ती महंगाई और मंदी के दौर के कारण विश्व की नाक में दम है.

पूरा देश नाक बचाने में लगा है. सब अपनीअपनी नाक देख रहे हैं. क्या पता कब किस की नाक कट जाए. माननीय अन्ना हजारेजी की नाक इतनी ऊंची हो गई है कि सरकार को अपनी नाक बचानी भारी पड़ रही है. पूरा देश अन्नाजी की नाक के नीचे आ गया है. जन लोकपाल बिल नाक का बाल बन गया है. नाक के ढेरों करतब सामने हैं. मैं अब कलम रखती हूं. कहीं औरों की नाक देखतेदेखते मेरी नाक भी चक्कर में न आ जाए.

9 टिप्स: लौन दिखेगा ग्रीन

लौन भले ही छोटा हो, मगर हराभरा हो, कुछ ऐसा जो आंखों को ठंडक दे, पैर रखें तो मखमली घास में धंस जाएं. ऐसे लौन की चाहत के लिए इन जरूरी बातोंको ध्यान में रखना होगा:

  1. जमीन का चयन

बगिया में लौन किस ओर कहां, किस साइज का बनाया जाए इस के लिए सब से पहले अपने मकान के प्लौट का साइज देखें. यदि 500 गज के प्लौट पिछवाड़े लौन तैयारकर रहे हैं तो घास खराब न हो, इस पर आराम से चल सकें, इस के लिए लौन के चारों ओर पैदल चलने के लिए एक पटरी बनाएं. यह प्रावधान रखें कि गोलगोल पत्थर कुछ दूरी पर रख कर आकर्षक रास्ता बने. पत्थर चौकोर या मनपसंद आकार का हों, यह चारों ओर से खुला हो, पेड़ों से ढका न हों, वहां पानी न खड़ा रहता हो, पथरीला न हो.

2. भूमि की जांच

जब यह तय हो जाए कि लौन कहां बनवाना है, तो सब से पहले किसी सौइल एजेंट से अपनी भूमि की जांच करवा लें. दिल्ली पूसा इंस्टिट्यूट में सौइल टैस्ट लैब से किसी विशेषज्ञ से या किसी बढि़या नर्सरी से भूमि जांच की सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं. यह सौइल एजेंट विशेषज्ञ ही आप की भूमि के बारे पूरी जानकारी देगा कि भूमि की किस्म क्या है, रेतीली है, चिकनी है, भुरभुरी है.

इस में न्यूट्रीयनरस कितने हैं, पैलस क्या है, जिस से यह पता चलता है कि यह भूमि अटकलाइन है या नहीं. प्राय उत्तम किस्म के घास वाले लौन के लिए पिट लेवल 6 और 7 के बीच सही माना गया है. यदि जमीन में कुछ कमियां हैं तो भूमि जांच के बाद सौइल एजेंट बताएगा कि अब आगे क्या किया जाए.

3. लौन की खुराक

हरेभरे लौन के लिए खाद कब, कितनी, कौन सी और कैसे डाली जाए यह बात बेहद जरूरी है. अमेरिका में मिसीसिप स्टेट यूनिवर्सिटी के असिसटैंट प्रोफैसर लैंडस्कपिंग बौब ब्रजजैक के अनुसार सिंथैटक खाद के मुकाबले और्गनिक खाद जो कुदरती चीजों जैसे सीवीड या बोन मील अच्छे परिणाम देती है.

अच्छी घास के लिए जरूरी है कंपोजर मिली मिट्टी को खूब मिलाया जाए, इस तरह फावड़े से या ट्रैक्टर चलवाएं कि ऊपरी मिट्टी की परत कम से कम 6 हो. खाद डालने की यह प्रक्रिया साल में कम से कम 2 बार वसंत ऋतु और जब पत्ते झड़ते हैं दोहराई जाए. खाद डालने से इस में मौजूद न्यूट्रीएंट्स और नमी घास के लिए क्रशन का काम करती है. 3-4 बार मिट्टी को ऊपरनीचे करें, फिर समतल करें. कंकड़पत्थर निकालें, जंगली बूटी निकालें. अब इस में गोबर की खाद दे सकते हैं. खाद किसी अच्छे मान्यताप्राप्त स्टोर से ही लें. आजकल तरहतरह की रैडीमेड खाद पैकेटों में मिल रही है और औफ लाइन मंगवाई जा सकती है.

4. घास की किस्म

लौन में घास की किस्म बहुत महत्त्वपूर्र्ण है. जलवायु, स्थान, क्षेत्र और लौन के आकार को देखते हुए घास लगाएं. आजकल नर्सरी में कई प्रकार की घास की वैराइटीज उप्लब्ध हैं जैसे यदि नमी, छाया वाले स्थान पर घास लगानी है तो ऐक्सोनोपस एफिनस की किस्म लगा सकते हैं. अच्छा लौन बनता है, चुभती नहीं, नरम होती है तथा चलने से दबती नहीं. खराब होने का अंदेशा भी नहीं रहता.

गहरे रंग की चाहत हो तो सब की पसंदीदा घास से लौन चमक उठता है. यह बहुत सघन होती है. चलने पर नरम गड्डे सा एहसास दिलाती है.

5. जायसिस किस्म

यदि आप के पास समय काफी है, देखरेख का प्रावधान है, आप बागबानी के शौकीन हैं तो, साउथ ईस्ट एशिया में प्रचलित जायसिस किस्म लगा सकते हैं. इस के पत्ते नुकीले और रंग गहरा हरा होता है.

6. भारत में साइनोडोन

यह घास काफी लोगों की पहली पसंद है. वर्षा ऋतु घास लगाने के लिए सब से उत्तम मौसम माना गया है. घास घनी हो उठती है जिस पर चलने में आनंद आता है.

7. सिंचाई

अमेरिका के ‘अमेरिका सोसाइटी औफ लैंडस्केपिंग आसला’ के विशेषज्ञ जेनेट मेश्सता का मानना है कि यह जरूरी नहीं लौन को रोज पानी दिया जाए. मौसम तथा रोज के तापमान को ध्यान में रखते हुए लौन को धीरेधीरे इस प्रकार पानी दें कि घास की जड़ों को जमने में आसानी हो.

लौन के बीचोंबीच, किनारों में कुछ छोटेछोटे टीन के डब्बे या प्लास्टिक के  खाली डब्बे रख दें. आप स्पिंकल की विधि से 15-20 मिनट तक पानी दें और देखें क्या लौन में रखे डब्बों में 1/2-1 इंच पानी जमा हो गया है. यदि ऐसा है तो इतना पानी अच्छी हरीभरी घास के लिए सप्ताहभर के लिए काफी है.

8. कंटिंग व रोलर लगाना

घास जिस में जड़ लगी हो उसे तैयार भूमि में 1-2 इंच के अंतर से अच्छी तरह दाब कर लगाते जाएं. पासपास लगी घास घनत्व वाला सघन लौन देगी और जल्दी उग भी जाती है.

बाजार में तरहतरह के  लौन उपलब्ध हैं. विदेशों में हाथ से चलाने वाले, मोटर में बैठ कर चलाने वाली घास काटने की मशीनें प्राय आम लोगों के पास रहती हैं क्योंकि वहां घरों में कई एकड़ों में लौन रखने का रिवाज है. हमारे यहां माली घास काटने की मशीन से कटिंग करते हैं, पर इस बात का ध्यान रखें मशीन के ब्लेड तीखे हों ताकि घास ढंग से कटे, उलझे न या जड़ समेत बाहर न आ जाए.

इसलिए बारबार और बहुत छोटी घास काटना अच्छे लौन के हित में नहीं रहता. काटते समय ध्यान में रखें कि किस किस्म की घास लगी है. हर घास को काटने की अपनी अलग मांग रहती है.

9. जो है वह काफी है

यह जरूरी नहींकि आप के पूरे लौन में हरीभरी घास हो. शेड, छायादार और पेड़ के नीचे जहां पानी ठहरता हो वहां घास बराबर नहीं उगती. इसलिए ऐसे स्थानों पर उपयुक्त झड़ीनुमा पौधे लगा कर इस कमी को पूरा किया जा सकता है. इस से लौन हराभरा दिखेगा.

आईब्रो शेप, जो बढ़ाए आप के चेहरे का नूर

तारीफ सुनना हर किसी महिला के लिए बेहद खुशी की बात होती है और खासकर जब कोई उस की तारीफ में यह बोल दे कि तुम्हारी आंखों में डूबने को जी चाहता है मानो जैसे  उस की खुशी का ठिकाना ना हो, लेकिन कभी सोचा है कि आप की आंखें खूबसूरत दिखने में आप की आईब्रो का कितना बड़ा योगदान है.

आईब्रो का डिजाइन इस तरह का होता है कि जब आप के माथे पर पसीना निकलता है, तो आईब्रो के डिजाइन के चलते वो आंखों के बगल में बह जाता है.  इसी तरह पानी को भी सीधे आंखों पर पड़ने से आईब्रो रोकती हैं.साथ ही, सूरज को किरण सीधे आंखों पर ना पड़े, इस का खयाल भी हमारी आईब्रो ही रखती हैं.

आईब्रो किसी भी व्यक्ति के हावभाव  जानने में भी मदद करती हैं और अहम बात कि ये आप की आंखों को और भी खूबसूरत दिखाती हैं, जिस से आप का चेहरा बेहद खूबसूरत लगता है. बस जरूरत होती है तो इन को अपने चेहरे के अनुसार अच्छी शेप देने की. तो चलिए, आईब्रो के फायदे जानने के बाद बात करते ही आप के चेहरे के अनुसार कैसे दें एक अच्छे लुक के लिए शेप.

स्क्वायर शेप चेहरे के लिए

स्क्वायर शेप चेहरे के फीचर्स डिफाइंड और जौलाइन एंग्युलर होते हैं. ऐसे में महिलाओं का चेहरा थोड़ा लंबा दिखाना हो तो  इस के लिए आर्च को ऊपर उठाएं और आईब्रो को लंबा रखें. यदि नैचुरल लुक चाहती हैं तो आईब्रो को एंग्युलर रखें.

हार्ट शेप के लिए

दिल के आकार के चेहरे वाली महिलाओं को राउंड  शेप आईब्रो रखने चाहिए, क्योंकि इन का माथा चौड़ा होता है, जबकि चिन थोड़ी पतली होती है. यह शेप उन को माथा छोटा दिखाने में मदद करती है.

 ओवल शेप के लिए

ओवल शेप चेहरा मेकअप आर्टिस्ट के अनुसार सब से बेहतर माना जाता है. इस तरह के चेहरे पर हर तरह की आईब्रो स्टाइल अच्छी लगती है. लेकिन आईब्रो को सौफ्ट रखने की कोशिश करें.

डायमंड शेप के लिए

ऐसे चेहरे की शेप वाली महिलाओं की हेयरलाइन पतली होती है व चीकबोंस चौड़ी होती है. इन के लिए बेहतर औप्शन राउंड आईब्रो के साथ हलका सा कर्व भी करा सकती हैं.

राउंड फेस के लिए

राउंड यानी गोलाकार चेहरे वाली महिलाओं के चेहरे पर एंगल्स और डेफिनेशन की कमी होती है. उस कमी को खत्म करने के लिए सौफ्ट लिफ्टेड आर्च का सहारा लेना चाहिए, जिस से कि चेहरा लंबा व जौलाइन स्लिमर नजर आने लगती है.

Menstrual हाइजीन टिप्स

पीरियड्स यानि माहवारी महिलाओं के स्वाभाविक विकास का परिचायक है. पहले जहां एक लडकी को पीरियड्स की शुरुआत 12 से 15 साल की उम्र में हुआ करती थी, वहीं आज यह 10 साल की उम्र में ही हो जाती है.

हमारी दादीनानी के समय में पैड्स आम जनता की पहुंच में नहीं थे इसलिए वे घर के फटेपुराने कपड़ों की परतें बना कर प्रयोग करतीं थीं. यही नहीं, उन्हीं कपड़ों को धो कर वे फिर से भी प्रयोग करती थीं पर आज हमारे पास इन दिनों में प्रयोग करने के लिए भांतिभांति के पैड्स, टैंपोन और कप मौजूद हैं और महिलाएं इन्हें यूज भी करती हैं. पर इन दिनों साफसफाई और कुछ अन्य बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.

अकसर जानकारी के अभाव में महिलाएं साधारण सी सावधानियां भी नहीं रख पातीं और यूरिनरी और फंगल इन्फैक्शन का शिकार हो जाती हैं. बाजार में उपलब्ध किसी भी साधन का पीरियड्स में उपयोग करें पर निम्न बातों का ध्यान जरूर रखें :

  1. सैनेटरी पैड्स

सैनेटरी पैड्स महिलाओं द्वारा सर्वाधिक मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं क्योंकि यह कम कीमत में आसानी से मिल जाते हैं पर अकसर महिलाएं इन्हें एक बार प्रयोग करने के बाद बदलने में कंजूसी करती हैं जबकि पैड्स खून के बहाव को एक जगह पर एकत्र कर देते हैं जिस से अकसर अंग में संक्रमण, ऐलर्जी और रैशेज हो जाते हैं. इसलिए अपने खून के बहाव के अनुसार पैड्स को 4-5 घंटे के अंतराल पर बदलना बेहद जरूरी है. साथ ही यदि बहाव अधिक है तो चौड़े पैड्स का प्रयोग करें ताकि किसी भी प्रकार के लीकेज से बची रहें.

2. टैंपोस

पैड्स के मुकाबले टैंपोस काफी आरामदायक और सुरक्षित होते हैं. ये खून को भी अच्छीखासी मात्रा में सोखने की क्षमता रखते हैं पर इन्हें बनाने में भी कैमिकल का प्रयोग किया जाता है इसलिए इन्हें भी नियमित अंतराल पर बदलना जरूरी होता है अन्यथा इन का कैमिकल शरीर को हानि पहुंचा सकता है.

डाक्टरों के अनुसार, इसे 8 घंटे से अधिक नहीं पहनना चाहिए और रात में टैंपुन के स्थान पर पैड का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा जलन और खुजली की समस्या हो सकती है.

 

3. मैंस्ट्रुअल कप

यह पीरियड्स के लिए सब से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह कैमिकल रहित सिलिकौन का एक कप होता है जिसे अंग के मुख पर रखा जाता है और भर जाने पर साफ कर के फिर से प्रयोग किया जा सकता है पर किसी भी प्रकार की ऐलर्जी अथवा इन्फैक्शन होने पर इस का प्रयोग केवल डाक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए. साफ करते समय डेटौल और सैवलौन आदि का प्रयोग भी करना चाहिए ताकि यह पूरी तरह कीटाणुमुक्त हो जाए.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • इन दिनों में अपनी इंटीमेट हाइजीन का विशेष ध्यान रखें ताकि किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन से बची रहें.
  • सदैव अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स का ही प्रयोग करें.
  • पीरियड्स के शुरुआती और अंतिम दिनों में जब फ्लो कम होता है तो पैंटी लाइनर पैड्स का प्रयोग किया जा सकता है। यह पैड पैंटी में आसानी से चिपक जाते हैं.
  • इन दिनों में बहुत भारी वजन को उठाने और लोअर बौडी पार्ट की ऐक्सरसाइज को करने से बचें क्योंकि इन दिनों में लोअर पार्ट में काफी बदलाव होते हैं.
  • सिंथैटिक कपड़े की जगह केवल सूती पैंटी का ही प्रयोग करें क्योंकि कई बार सिंथैटिक कपड़े से इंटीमेट पार्ट में रैशेज हो सकते हैं.

(जे पी हौस्पिटल, भोपाल की वरिष्ठ गाइनोकोलौजिस्ट, डाक्टर सुधा अस्थाना से की गई बातचीत पर आधारित)

बीमारी के कारण मेरी आंखों के नीचे काले घेरे पड़ गए है. मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल

मैं 24 वर्षीय छात्रा हूं. करीब 2 वर्ष से मैं बीमार रहती हूं, जिस कारण मेरी आंखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं व रंग भी काला लगने लगा है. कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं, जिस से मैं इन दोनों परेशानियों से छुटकारा पा सकूं?

जवाब

ये दोनों ही समस्याएं आप को बीमारी व उस के दौरान ली जा रही दवाइयों के साइडइफैक्ट के कारण हो रही हैं. आप अपने आहार में ज्यादा से ज्यादा पौष्टिक चीजें शामिल कीजिए जैसे हरी सब्जियां, दूध, दही, आंवला, संतरा, टमाटर, गाजर आदि. रंग निखारने के लिए घरेलू उबटन का प्रयोग भी कर सकती हैं. इस के लिए संतरे के सूखे छिलके, सूखी गुलाब

व नीम की पत्तियों को समान मात्रा में ले कर पीस लें और इस के बाद उस में कैलेमाइन पाउडर मिला कर रख लें. जब भी स्क्रब करना चाहें तब 1 चम्मच पाउडर में थोड़ा सा औरेंज जूस मिला कर पेस्ट बना लें और रोजाना चेहरे पर इस से स्क्रब करें. इस स्क्रब को करने से चेहरे की त्वचा साफ, चिकनी और निखरी रहती है. काले घेरों के लिए संतरे या गाजर का रस निकालें और रुई को उस में भिगो कर कुछ देर तक आंखों पर रखें.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055. व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

आफत हैं लड़ाकू औरतें

लड़ाकू औरतें कैसी होती हैं? ‘क्या ये बाकी महिलाओं से अलग होती हैं? क्या इन्हें लड़ाई झगड़ा करने में मजा आता है? क्या ये अपने घर में भी ऐसे ही लड़ती झगड़ती रहती हैं? इन के घर में सुखशांति का वास होता है या नहीं? लड़ाकू औरतें स्वभाव से कैसी होती हैं? ये सब समझने के लिए सोशल मीडिया पर अपलोड किए वीडियोज पर नजर डालते हैं.

मार्च, 2023 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. यह वीडियो दिल्ली मैट्रो के लेडीज कोच का है. वीडियो में सभी लेडीज अपनीअपनी सीट पर बैठी हुई थीं. तभी ब्लैक जींस और रैड टौप पहनी औरत अपनी सीट से उठती है और सामने में दूसरी सीट पर बैठी औरत पर बुरी तरह चिल्लाने लगती है. उधर दूसरी औरत भी उस पर भड़क जाती है. इस के बाद रैड टौप पहनी औरत ने अपनी चप्पल उतारी और दूसरी औरत को चुनौती दी. वहीं दूसरी औरत ने भी अपनी पानी की बोतल उठा ली.

इस के बाद दोनों के बीच बातों की तकरार हुई. एक ने कहा कि वह पहले हाथ लगा कर दिखाए तो पता चल जाएगा. वहीं दूसरी औरत ने उसे चुनौती दी कि वह फिर बच नहीं पाएगी. हालांकि इस बीच आसपास मौजूद औरतों ने उन्हें चुप रहने और लड़ाई न करने की हिदायत दी.

इस के बाद क्या हुआ यह किसी को नहीं पता क्योंकि वीडियो अपलोड करने वाले ने इतना ही वीडियो बनाया था. उस ने यह औडियंस पर सोचने के लिए छोड़ दिया था कि आगे क्या हुआ होगा.

कहासुनी का वीडियो वायरल

ऐसा ही एक वीडियो मुंबई की जान कहीं जाने वाली लोकल ट्रेन से आया. कुछ समय पहले मुंबई की लोकल ट्रेन के लेडीज कोच की 3 औरतों के बीच कहासुनी का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था. वायरल वीडियो में पैसेंजर से भरे एक डब्बे में 3 औरतें आपस में लड़ती नजर आ रही थीं. वीडियो में वे एकदूसरे के बाल खींच रही थीं.

एक लड़की गुस्से में अधेड़ उम्र की औरत के साथ बदतमीजी कर रही थी. वह उसे घसीट कर मार रही थी. इसी बीच एक तीसरी औरत भी इस लड़ाई में शामिल हो गई और वह लड़की को पीटने लगी.

आए दिन सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से वीडियोज वायरल होते रहते हैं, जिन में औरतें लड़ झगड़ रही होती हैं. सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए ऐसे तमाम वीडियोज में सिर्फ लड़ाई झगड़े को दिखाया जाता है. इन में लड़ाई के बाद क्या हुआ यह नहीं दिखाया जाता है. इस से इन वीडियोज को देखने वाले लोगों को यह जानकारी नहीं मिल पाती कि वीडियोज के अंत में क्या हुआ होगा.

वे इस उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि इस लड़ाई झगड़े का अंत क्या हुआ होगा? क्या पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई होगी? क्या किसी ने इस झगड़े में सलाहकार की भूमिका निभाई होगी? ऐसे कितने ही सवाल उन के मन में होंगे.

लड़ाकू औरतें हर युग में होती हैं. अगर इसे ऐतिहासिक संदर्भ में देखें तो कैकई, द्रौपदी और हिडिंबा का नाम सामने आता है. ये वे औरतें थीं जिन्होंने अपने लड़ाकू स्वभाव के कारण न सिर्फ हत्या करवाई बल्कि युद्ध भी करवा दिया. लड़ाकू औरत का एक उदाहरण रामायण में भी देखने को मिलता है. श्रीराम की सौतेली मां कैकई की बात करें तो उन की दोनों शर्तें, भरत को राजा बनाना और राम को 14 साल का वनवास काटना एक धूर्त चाल थी.

उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि वे अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बना सकें और अपने सौतेले पुत्र राम को अयोध्या से दूर रख सकें. इस के बाद राम ने कैकई की शर्तों को मानते हुए वनवास स्वीकारा.

महाभारत का उदाहरण

यह घटना त्रेतायुग की है. उस समय कैकई ने अपनी जिद और लड़ाकू स्वभाव के कारण महाराज दशरथ से अपनी शर्त मनवा ली. इस घटना से यह साबित होता है कि लड़ाकू औरतें हर युग में रही हैं. सतयुग में भी ये औरतें अपना हित साधने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं. ऐसी औरतों ने हमेशा परिवार को तहसनहस किया.

लड़ाकू औरत का एक दूसरा उदाहरण महाभारत में देखने को मिलता है. पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने कई बार ऐसे कटु वचन कहे जो महाभारत के युद्ध का कारण बनें जैसे द्रौपदी ने इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय दुर्योधन को ‘अंधे का पुत्र भी अंधा’ कहा था. यह बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई थी. इसी वजह से द्य्यूतकीड़ा में उस ने शकुनी के साथ मिल कर युधिष्ठर को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था. द्य्यूतकीड़ा में द्रौपदी को हारने के बाद भरी सभा में उस का चीरहरण हुआ.

अपने चीरहरण के बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि अगर तुम ने दुर्योधन और उस के भाइयों से मेरे अपमान का बदला नहीं लिया तो तुम पर धिक्कार है. द्रौपदी ने खुद भी यह प्रण लिया कि वह अपने बाल तब तक खुला रखेगी जब तक कि वह इन्हें दुर्योधन के खून से धो नहीं लेती.

द्रौपदी की इस बात को सुन कर भीम ने प्रण किया कि मैं दुर्योधन की जांघ को गदा से तोड़ दूंगा और दुशासन की छाती को चीर कर उस का रक्तपान करूंगा. चीरहरण के दौरान जब कर्ण ने द्रौपदी को बचाने की जगह कहा कि जो स्त्री 5 पतियों के साथ रह सकती है, उस का क्या सम्मान. यह बात सुन कर द्रौपदी को बहुत ठेस पहुंची. इस का बदला लेने के लिए द्रौपदी हर समय अर्जुन को कर्ण से युद्ध करने के लिए उकसाती रही.

झगड़ालू औरत कुछ भी करा सकती है

महाभारत के युद्ध में सभी कौरवों और कर्ण की मृत्यु के बाद ही द्रौपदी को चैन मिला. इन सभी बातों को जानने के बाद कहा जा सकता है कि लड़ाकू और ?ागड़ालू औरत कुछ भी करा सकती. फिर चाहे वह युद्ध ही क्यों न हो.

वहीं अगर भीम की राक्षसी पत्नी हिडिंबा की बात करें तो वह भीम से विवाह करना चाहती थी. लेकिन उस का राक्षस भाई हिडंब पांडवों को अपना भोजन बनाना चाहता था. कौरवों की जान बचाने और भीम से विवाह करने के लिए हिडिंबा ने भीम को अपने भाई की हत्या करने के लिए उकसाया, जिस के परिणामस्वरूप भीम ने हिडंबा को मौत के घाट उतार दिया.

हिडिंबा द्वारा अपने फायदे के लिए अपने भाई की हत्या करवाना यह साबित करता है कि एक स्त्री कुछ भी करा सकती. फिर चाहे वह राक्षस हो या एक सामान्य स्त्री.

महाभारत ने हिडिंबा को खलनायिका के रूप में प्रस्तुत नहीं किया क्योंकि उस का पुत्र घटोत्कच पांडवों के काम आया था. लड़ाकू औरतें जगह या समय नहीं देखतीं. वे देखती हैं  झगड़े का विषय. उन के लिए क्या सुबह क्या शाम, क्या दिन, क्या रात.

कार पार्किंग को ले कर लड़ाई

दिन और रात से परे झगड़े का एक ऐसा ही वाकेआ दिल्ली के ममता अपार्टमैंट में देखने को मिला. सुबहसुबह का समय था. बाहर से बहुत शोर आ रहा था. सोसाइटी में जा कर देखा तो जाग्रति राय और साक्षी सिंह लड़ रही थीं. पूछने पर पता चला कि दोनों कार पार्किंग की जगह को ले कर लड़ रही हैं.

साक्षी का कहना था कि इस जगह पर वह रोज अपनी कार पार्क करती है यह जानते हुए भी जाग्रति ने अपनी कार वहां पार्क कर दी,’’ जाग्रति अपनी बात रखते हुए कहती है कि रात को जब मैं अपनी कार पार्क करने आई तो यहां जगह खाली थी. इस के अलावा पूरी पार्किंग में कहीं जगह नहीं थी इसलिए मैं ने यहां कार पार्क कर दी.

सोसाइटी के प्रैसिडैंट ने समझबुझ कर दोनों को शांत कराया और उन्हें अपनीअपनी जगह पर ही कार पार्क करने की इंस्ट्रक्शन दी.

औरतों की इस तरह की हरकत उन के झगड़ालू नेचर को डिफाइन करने के लिए काफी है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि पढ़ीलिखी औरतें भी ऐसी हरकतें कर रही हैं. क्या वे अपने घर और वर्क प्लेस में भी ऐसा ही करती होंगी? यह भी सच है कि इस तरह की औरतों से लोग दूर ही रहना पसंद करते हैं क्योंकि सब को मैंटल पीस चाहिए.

चर्चा का विषय

लड़ाई झगड़े की कई घटनाएं स्कूलकालेजों में भी देखने को मिलती हैं. दिल्ली के संत नगर इलाके के एक स्कूल के बाहर 2 छात्राओं के बीच लड़ाई झगड़े का वीडियो कई दिनों तक सोशल साइट्स पर चर्चा का विषय बना रहा.

ऐसा ही एक वीडियो मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में स्थित गवर्नमैंट स्कूल से आया. इस वीडियो में स्कूल ग्राउंड में छात्राएं एकदूसरे को लातघूंसे मार रही थीं. लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उन में से एक छात्रा को हौस्पिटल में एडमिट कराना पड़ा. इस के बाद भी दूसरी छात्रा को चैन नहीं मिला. वह अपने साथियों को ले कर हौस्पिटल पहुंच गई जहां लोगों ने समझ बुझ कर उसे घर भेज दिया.

स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं की ऐसी हरकतें चिंता का विषय हैं. ऐसे में पेरैंट्स को बच्चों के विहेवियर पर ध्यान देने की जरूरत है.

हालांकि लड़ना झगड़ना सही नहीं है, लेकिन क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश की है कि आखिर ये लड़कियां या औरतें लड़ती क्यों हैं? हो सकता है कि ऐसी लड़कियों या औरतों के साथ पहले ऐसी कोई घटना घटी हो जो उन के नेचर को ऐसा बना देती हो.

पास्ट ऐक्सपीरियंस को झगड़ालू नेचर का कारण बताते हुए प्रीति यादव बताती है, ‘‘मैं जब 6 साल की थी तब से मैं अपने मम्मीपापा को झगड़ते हुए देखती आई हूं. मेरे पेरैंट्स के लड़ाईझगड़े से मुझ में भी ये गुण आ गए. अब मैं छोटीछोटी बात पर गुस्सा हो कर सब से लड़ने झगड़ने लगती. मेरे इसी नेचर की वजह से सब धीरेधीरे मुझ से दूर हो गए हैं.’’

ऐसा ही एक किस्सा कानपुर की रहने वाली 19 वर्षीय श्वेता यादव बताती है कि जब वह 4 साल की थी तब से ही उस ने अपनी मां को पापा से पिटते देखा है. मां को इस तरह पिटते देख कर वह सहम जाती थी. लेकिन जब एक दिन मां ने अपने ऊपर हो रही हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई तो उन में भी बोलने की हिम्मत आ गई. आज वह भी कोई गलत बात नहीं सुन सकती.

अगर कोई उस से तेज आवाज में भी बात करता है तो वह उस से बहस करने लगती है. वह कहती है कि हर लड़की के गुस्से और उस के झगड़ालू स्वभाव के पीछे कोई न कोई वजह जरूर होती है. अगर उस वजह को दूर कर दिया जाए तो वह लड़की या औरत अपने नेचर को बदलने का भरसक प्रयास करती है.

आखिर वजह क्या है

औरतों के झगड़ालू स्वभाव के पीछे आखिर वजह क्या है? यह जानने के लिए उन के नेचर को समझना होगा. इसी संदर्भ में कई सर्वे किए गए है:

‘गैलप’ नाम की संस्था हर साल दुनियाभर में एक सर्वे करती है. 2012 से 2021 के बीच एक सर्वे किया गया. इस सर्वे में 150 देशों के 12 लाख लोगों को शामिल किया गया. सर्वे में यह सामने आया कि पिछले 10 सालों में औरतों में गुस्सा ज्यादा बढ़ा है. भारत और पाकिस्तान की औरतों में यह 12% यानी दोगुने स्तर पर पहुंच चुका है. हमारे देश में पुरुषों में गुस्सा जहां 27.8% है वहीं औरतों में यह 40% तक पहुंच चुका है.

झगड़ालू नेचर की सब से बड़ी वजह गुस्सा है. इस सर्वे में यह पता चला कि गुस्सा, उदासी, अवसाद और घबराहट जैसी नैगेटिव फीलिंग्स पुरुषों से ज्यादा औरतों में होती है. इस की वजह से औरतों में फ्रस्ट्रेशन, हाइपरटैंशन और गुस्से की समस्या तेजी से बढ़ी है.

अब दुनिया की ज्यादातर महिलाएं पहले के मुकाबले ज्यादा एजुकेटेड और सैल्फ डिपैंडैंट हुई हैं. महिलाओं में जौब कल्चर बढ़ने से उन में कौंन्फिडैंस पैदा हुआ. अब औरतें गलत चीजों के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं. असल में लड़ाई करने वाली औरतों को पहले बोलने की इजाजत नहीं थी. अब जब वे बोलने लगी हैं तो उन के अंदर भरा गुस्सा उन के ?ागड़े के रूप में बाहर निकल रहा है.

गुस्सा एक फीलिंग है

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले भानु यादव कहते हैं, ‘‘गुस्सा एक फीलिंग है. यह फीलिंग आदमीऔरत दोनों में ही होती है. हां, यह जरूर है कि अब औरतें भी अपनी फीलिंग्स ऐक्सप्रैस करने लगी हैं. इसलिए अब झगड़ालू औरतों की संख्या बढ़ रही है.

यह भी सही है कि लड़ाई झगड़ा अपने मन के भावों को ऐक्सप्रैस देने का एक जरीया है, लेकिन क्या लड़ाकू औरतों से रिश्ता निभाना आसान है? इस का उत्तर है नहीं क्योंकि ऐसी औरतें सिर्फ अपनी सुनती हैं. वे सामने वाले को रत्तीभर भी भाव नहीं देती हैं. ऐसी औरतें लड़ाई?ागड़े के लिए हर वक्त उतावली रहती हैं और दूसरों की शांति भंग करती हैं.

यह भी एक कड़वा सच है कि लड़ाकू लड़कियों का घर जल्दी नहीं बसता है और अगर बस भी जाता है तो यह ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता क्योंकि अपने बिहेवियर के कारण ये वहां भी लड़ाई?ागड़ा चालू कर देंगी.

प्रभावित होती शादीशुदा जिंदगी

शादीशुदा लड़ाकू औरतें अपने नेचर के कारण छोटीछोटी बातों पर भी लड़ने झगड़ने लगती हैं, जिस से उन के हसबैंड उन से इरिटेट होने लगते हैं और फिर वह उन से दूर रहने लगते हैं.

जयपुर की रहने वाली 24 वर्षीय मुक्ता सिंह और 27 वर्षीय जतिन साहू डेढ़ साल से लिव इन रिलेशनशिप में हैं. मुक्ता लड़ाकू स्वभाव की लड़की है. जबकि जतिन इस के उलट शांत स्वभाव का लड़का है. मुक्ता के लड़ाकू नेचर की वजह से उन के बीच आए दिन लड़ाई झगड़ा होता रहता है. मुक्ता को कई बार समझने के बाद भी वह अपनी आदत नहीं बदल रही है. जतिन कहता है कि इस रिलेशनशिप ने उसे मैंटल स्ट्रैस दे दिया है. अगर मुक्ता ने अपने इस नेचर को नहीं बदला तो वह इस रिलेशनशिप को जल्द ही खत्म कर देगा.

अंजलि छाबड़ा दिल्ली के रोहिणी वैस्ट इलाके में रहती है. वह बताती है कि उस का फ्रैंड राहुल मौर्य बचपन से ही लड़ाकू स्वभाव का है. बचपन में भी उस के इक्कादुक्का दोस्त ही थे. आज भी उस के 1-2 दोस्त ही हैं. उन के लड़ाकू स्वभाव के कारण ही उस की वाइफ संजना मौर्य उसे छोड़ कर चली गई.

दूरी बना कर चलें

लड़ाकू नेचर के लड़के या लड़की से शादी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे लोग आप का मैंटल पीस खत्म कर देंगे. अगर आप ने ऐसे लोगों से शादी कर भी ली तो आएदिन होने वाले लड़ाई झगड़ों से आप की शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगी. इस से बेहतर है कि आप लड़ाकू लड़केलड़कियों से दूरी बना लें.

झगड़ालू प्रकृति की औरतें किसी के साथ मिल कर नहीं रह सकतीं. ऐसी औरतें हर तरफ से उपेक्षा पाती हैं. उन की इस उपेक्षा का कारण उन का लड़ाकू नेचर है. ऐसी औरतें हमेशा रिश्तेदारों और पड़ोसियों से लड़ती?ागड़ती रहती हैं. ऐसी औरतों के साथ रहने से रिश्तेदारों और पड़ोसियों से रिलेशन खराब हो जाते हैं. इतना ही नहीं लड़ाकू औरतें गुस्सैल नेचर की भी होती हैं.

चूंकि लड़ाकू लड़कियों और औरतों के साथ कोई रहना पसंद नहीं करता है इसलिए उन्हें यह सम?ाना चाहिए कि लड़ाई करना कब उन की आदत बन जाएगी, उन्हें पता भी नहीं चलेगा. अपने इस लड़ाकू स्वभाव की वजह से वे धीरेधीरे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को खो देंगी. उन्हें यह समझना चाहिए कि लड़ाई झगड़े में कुछ नहीं रखा है. इस से सिर्फ उन का समय और ऐनर्जी वेस्ट होगी. इसलिए ऐसे नेचर को बदलना ही सही होगा.

मिक्स वेज की बात ही अलग है

घर में किसी को लंच या डिनर पर इनवाइट किया हो और वह शाकाहारी हो तो सबसे पहले दिमाग में यही आता है कि क्या बनाया जाए. किसी को बैगन नहीं पसंद तो कोई पनीर नहीं खाता. फिर क्या बनाएं कि थाली की शान बढ़ जाए. ऐसे में मिक्स वेज सबसे बढि़या विकल्प होती है.

सीजनल सब्जियों के मिश्रण से बनी यह डिश बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को पसंद आती है. और अब आप इसमें सनराइज़ सब्जी मसाला से स्वाद का जादू भी जगा सकती हैं. इस मसाले के इस्तेमाल से आपको अलग-अलग मसालों का सही संतुलन बनाने के झंझट से मुक्ति तो मिलेगी ही, आप अपनी डिश भी कम समय में तैयार कर सकेंगी. अब किचन के काम से समय बचेगा तो मेहमानों के साथ ज्यादा समय भी बिता पाएंगी.

मिक्स वेज

सामग्री

  1. 2 कप सीजनल सब्जियां कटी
  2. 1 प्याज कटा
  3. 1 टमाटर कटा
  4. 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट
  5. 1 बड़ा चम्मच सनराइज़ सब्जी मसाला
  6. नमक स्वादानुसार
  7. तेल जरूरतानुसार
  8. थोड़ी सी धनियापत्ती गार्निश के लिए.

विधि

पैन में तेल गरम कर सब्जियों को हल्का फ्राई कर लें. अब इसी तेल में प्याज भूनें. अदरकलहसुन का पेस्ट भी मिलाएं और चलाते हुए भूनें. अब टमाटर मिक्स करें और टमाटर गलने तक भूनें. फिर सब्जियों को इसमे अच्छी तरह मिक्स करें. अब सनराइज़ सब्जी मसाला मिलाएं और मिक्स करके धीमी आंच पर ढक कर पकाएं. बीच में चलाती रहें ताकि सब्जियां जलें न. सब्जियां पक जाने पर थोड़ी देर चलाते हुए भूनें और फिर सर्विंग डिश में निकाल लें. धनियापत्ती से गार्निश कर परोसें.

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