कंप्यूटर की वजह से मेरी आंखों में दर्द होने लगता है, मैं ऐसी क्या चीज यूज करूं कि कोई साइड इफैक्ट न पड़े?

सवाल

मैं अकसर कंप्यूटर पर बहुत देर तक काम करती हूं जिस कारण आंखों में दर्द होने लगता है. इस से मुझे अच्छी गहरी नींद भी नहीं आती. मैं ऐसी क्या चीज यूज करूं कि कोई साइड इफैक्ट न पड़े?

जवाब 

गुलाबजल का आंखों पर बहुत अच्छा असर पड़ता है और यह अच्छी नींद लेने में भी मदद करता है. गुलाबजल को आंखों के लिए इस्तेमाल करने का सब से अच्छा तरीका है कि गुलाबजल में रुई भिगोएं और उसे बंद आंखों पर 15 मिनट रखा रखें. इस से बहुत राहत मिलेगी. आंखों के आसपास गुलाबजल लगाने से डार्क सर्कल्स भी दूर होते हैं और आंखों की थकान भी चली जाती है.

आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में गुलाबजल का इस्तेमाल आंखों के इन्फैक्शन और ऐलर्जी को दूर करने के लिए किया जाता है.

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सवाल

बेटी के जन्म के बाद मेरे पेट पर स्ट्रैच मार्क्स के निशान पड़ गए हैं. बताएं उन्हें कैसे दूर करूं?

जवाब 

आप स्ट्रैच मार्क्स के निशानों पर वर्जिन कोकोनट औयल लगाएं, जो स्ट्रैच मार्क्स को कम करने में मदद करता है. यह औयल त्वचा के रंग की चमक बनाए रखने में भी सहायक होता है. इस के इस्तेमाल से त्वचा अधिक चमकदार, मुलायम नजर आने लगेगी. इस के अलावा किसी भी प्रकार के निशान के लिए जैसे कभीकभी हमें किसी चोट का निशान पड़ जाता है या फिर खरोंच के निशान हो जाते हैं, यह उन निशानों को भी मिटाने में फायदेमंद साबित होता है. हर रात चेहरे पर वर्जिन कोकोनट औयल को एक नाइट क्रीम के रूप में इस्तेमाल करें.

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सवाल

 मेरी स्किन औयली है. मैं चेहरे पर क्या लगाऊं जिस से ऐक्सट्रा औयल खत्म हो जाए?

जवाब 

आप के चेहरे के लिए मुलतानी मिट्टी का पेस्ट सब से फायदेमंद रहेगा. सुबह या शाम जब भी समय मिले, इसे करीब 5 मिनट के लिए फेस पर लगा लें. इस से स्किन का औयल खत्म हो जाएगा. मुलतानी मिट्टी में पाए जाने वाले तत्त्व फेस से मुंहासे हटाने में भी मदद करते हैं. दरअसल, इस में मैग्नीशियम क्लोराइड होता है, जो मुंहासों की समस्या या औयली स्किन के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है. मुलतानी मिट्टी स्किन को क्लीन कर मिनटों में शाइनिंग देती है.

सपनों को न छोड़ने को लेकर क्या कहती है, निर्देशक राजश्री ओझा, पढ़े इंटरव्यू

बिना किसी फिल्मी पृष्ठभूमि के हिंदी सिनेमा में आने वालों को जो संघर्ष करना पड़ता है, वैसा ही संघर्ष राजश्री ने भी किया, लेकिन इस दौरान उनका सबसे बड़ा मानसिक सहारा बने उनके पिता प्रमोद ओझा.

यहां तक कि जब उनकी पहली फिल्म ‘चौराहे’के निर्माता ने बीच में ही हाथ खींच लिए, तो उनके पिता ने ही ये फिल्म पूरी कराई.सोनी लिव पर उनकी वेब सीरीज पॉटलॉक काफी लोकप्रिय सीरीज है, जिसे राजश्री ने बड़ी मेहनत और लगन से बनाई है.

होती है कहानी की चुनौती

वेब सीरीज को बनाने की चुनौती के बारें में पूछने पर खूबसूरत, विनम्र, हंसमुख राजश्री ओझा बताती है कि निर्देशक के रूप में मुझे ये देखना पड़ता है कि कहानी से खुद को दर्शक जोड़ सकें. ‘पॉटलॉक’ एकपरिवार की कहानी है, इसमें दर्शकों को सीरीज को देखते हुए लगना चाहिए कि वे अपने आसपास ऐसे कुछ व्यक्ति को देखा या जानते है, जिसे वे सीरीज में देख रहे है. मैने आसपास कई ऐसे चरित्र देखे है, और उसी से प्रेरित हूँ. इसके दूसरे सीजन में चरित्र को आगे आकर अपनी कहानी कहने का मौका मिला है.

 

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मिली प्रेरणा

राजश्री ओझा ने जब इंडस्ट्री में आने का मन बनाया,तो उन्हें यह कहना मुश्किल था कि वह डायरेक्टर बनना चाह रही हैं, क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वे कुछ और बने. राजश्री को फिल्मों में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह कहती है कि मैं कोलकाता से हूँ, वहां मेरा जन्म हुआ है. मेरे परिवार के सभी किताबें पढ़ते और फिल्मे देखते थे. मैं भी फिल्मे देखती थी, कहानियां पढने का मुझे शौक था, इसी से मुझे प्रेरणामिली. इसके अलावा मुझे कोलकाता कल्चर बहुत पसंद है. कक्षा 5 के बाद मैं बैंगलोर चली गई.मेरे कैरियर को लेकर पिता को थोड़ी चिंता थी, क्योंकि उन्हें मैंने कुछ बताया भी नहीं. असल में मुझे बचपन से ही सत्यजीत रे की फिल्में बहुत पसंद थी. मुझे लगता है तभी से मेरे अंदर एक निर्देशक बनने की चाह उत्पन्न हो गई थी, फिर तय किया कि न्यूयॉर्क जाकर फिल्म निर्माण की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. काफी समय से सोच रही थी कि पिता को यह बात बताऊं, लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी.मैं कंप्यूटर विज्ञान पढने अमेरिका गई. स्नातक करने के बाद न्यूयॉर्क जाकर फिल्म में डिप्लोमा करने की बात पिता को बताई, तो उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रखकर जाने की इजाजत दी. मैंने वहां पर थिएटर भी किया, कुछ फिल्मे बनाई और अवार्ड भी जीते.बाद में फिल्म मेकिंग में मास्टर्स किया. इससे पिता को लगा कि मैं कुछ अच्छा कर रही हूँ. असल में मुझे चार्ली चैपलिन की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में और सत्यजीत रे की कॉमेडी फिल्म ‘गुपी गाइन बाघा बाईन’देखने के बाद से ही लगा था कि इसे मैं भी बना सकती हूँ. यही से मेरे अंदर एक पैशन ने जन्म लिया.

मिली संतुष्टि

सीरियल और फिल्म के बीच की कड़ी है वेब सीरीज, आपने फिल्में भी बनाई है, ओटीटी से आपको कितनी संतुष्टि मिली है?पूछने पर राजश्री कहती है कि ओटीटी ने मुझे बहुत संतुष्टि दिया है. ये सही है कि ओटीटी, फिल्म और धारावाहिक के बीच की कड़ी है. मुझे फिल्म और ओटीटी में कोई खास अंतर नहीं दिखा, सिर्फ टाइम का अंतर है. काम वही पसंद होता है, जिसे आप अच्छी तरह से दर्शा सकते है. इसमें समय महत्वपूर्ण होता है, समय मिलने पर किसी चरित्र को अच्छी तरह से प्रेजेंट किया जा सकता है, गानों और कहानी को अच्छी तरह से दिखाया जा सकता है. जबकि फिल्म में समय के हिसाब से और सीरियल्स में चैनल के हिसाब से काम करना पड़ता है. ओटीटी सभी क्रिएटर्स के लिए एक अच्छा समय लेकर आया है. पूरा विश्व इसे घर बैठे देख सकता है. बाहर के वेब सीरीज और देश के वेब सीरीज में अंतर यही है कि वहां का बजट तीन गुना और समय अधिक होता है,जो देश में नहीं मिलता.

 

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होती है मानसिक तनाव

राजश्री आगे कहती है कि महिलाओं को मानसिक तनाव कैरियर में होता है.देखा जाय तो हर क्षेत्र में मानसिक तनाव होता है, घर में बैठे या काम करें, स्ट्रेस बहुत होता है. मैंने अपनी माँ को घर में रहकर भी तनाव लेते हुए देखा है. ये लाइफ का एक पार्ट होता है. हर किसी को होता है. कभी अच्छा तो कभी बुरा दिन सबके लिए होता है. मैं बहुत लकी हूँ कि मुझे मेरी माँ से मानसिक शक्ति मिली है. दरअसल लाइफ कभी आसान नहीं होती.

नहीं है कोई समस्या

राजश्री कहती है कि महिलाओं के लिए निर्देशक बनना चुनौतीपूर्ण होता है. मैं 20 साल से काम कर रही है, काम खुद में चुनौती होती है. ये टफ होता है, कहानी को विजुअल और प्रभावी तरीके से बनाना आसान नहीं होता. इसे मैं समस्या नहीं समझती. मुझे याद है जब दिल्ली में मैं थी, तो मैं कभी-कभी रात में घर आती थी, तो सभी मुझे इतनी रात को बाहर रहने से मना करते थे, लेकिन तब मैं दिल्ली को जानती नहीं थी, क्योंकि मैं बैंगलोर की हूँ.इतनी बाधाएं वहां नहीं थी. महिलाओं के लिए ऐसे कई चुनौतियाँ होती है, जो पुरुषों को नहीं होता.

ड्रीम को न छोड़े अधूरा

निर्देशक हंसती हुई कहती है कि मेरे बहुत सारे ड्रीम है, जिसे मैं आगे करना चाहती हूँ और महिलाओं को मेरा मेसेज है कि अपने ड्रीम को पूरा करें, किसी के लिए इंतज़ार न करें, मलाल न रखे. शादी करें, बच्चों को भी पालें, पर ड्रीम न छोड़े.

मैं ने जरा देर में जाना

‘‘सुबहसे बारिश लगी है. औफिस जाते हुए मु?ो कार से सत्संग भवन तक छोड़ दो न,’’ अनुरोध के स्वर में एकता ने अपने पति प्रतीक से कहा तो उस के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘सत्संग? तुम कब से सत्संग और प्रवचन के लिए जाने लगीं? जिस एकता को मैं 2 साल से जानता हूं वह तो जिम जाती है, सहेलियों के साथ किट्टी पार्टी करती है और मेरे जैसे रूखे

पति की प्रेमिका बन कर उस की सारी थकान दूर कर देती है. सत्संग में कब से रुचि लेने लगीं? घर पर बोर होती हो तो मेरे साथ औफिस चल कर पुराना काम संभाल सकती हो, मु?ो खुशी होगी. इन चक्करों में पड़ना छोड़ दो, यार,’’ एकता के गाल को हौले से खींचते हुए प्रतीक मुसकरा दिया, ‘‘अब मैं चलता हूं. शाम को मसाला चाय के साथ गोभी के पकौड़े खाऊंगा तुम्हारे हाथ के बने,’’ अपने होंठों को गोल कर हवा में चुंबन उछालता हुआ प्रतीक फरती से दरवाजा खोल बाहर निकल गया.

एकता ने मैसेज कर अपनी सहेली रुपाली को बता दिया कि वह आज सत्संग में नहीं आएगी. बु?ो मन से कपड़े बदलकर बैड पर बैठे हुए वह एक पत्रिका के पन्ने उलटने लगी और साथ ही अपने पिछले दिनों को भी. 2 वर्ष पूर्व प्रतीक को पति के रूप में पा कर जैसे उस का कोई स्वप्न साकार हो गया था. प्रतीक गुरुग्राम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था और एकता वहां रिसैप्शनिस्ट. प्रतीक दिखने में साधारण किंतु अपने भीतर असीम प्रतिभा व अनेक गुण समेटे था.

एकता गौर वर्ण की नीली आंखों वाली आकर्षक युवती थी. जब कंपनी की ओर से एकता को प्रतीक का पीए बनाया गया तो दोनों को पहली नजर में इश्क सा कुछ लगा. एकदूसरे को जानने के बाद वे और करीब आ गए. बाद में दोनों के परिवारों की सहमति से विवाह भी हो गया.

प्रतीक जैसे सुल?ो व्यक्ति को पा कर एकता का जीवन सार्थक हो गया था. एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी एकता के पिता की पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर में परचून की दुकान थी. परिवार में एकता के अतिरिक्त मातापिता और भाई व भाभी थे. ग्रैजुएशन के बाद एकता ने औफिस मैनेजमैंट में डिप्लोमा कर गुरुग्राम की कंपनी में काम करना शुरू किया था.

प्रतीक एक मध्यवर्गीय परिवार से जुड़ा था, जिस में एक भाई प्रतीक से बड़ा और एक छोटा था. बहन इकलौती व उम्र में सब से बड़ी थी. प्रतीक का बड़ा भाई शेयर बेचने वाली एक छोटी सी कंपनी में अकाउंटैंट था और छोटा बैंक अधिकारी था. मातापिता अब इस दुनिया में नहीं थे. विवाह से पहले प्रतीक दिल्ली के पटेल नगर में बने अपने पुश्तैनी घर में रहता था. बाद में गुरुग्राम में 2 कमरों का मकान किराए पर ले कर रहने लगा था.

विवाह के बाद स्वयं को एक संपन्न पति की पत्नी के रूप में पा कर एकता जितनी प्रसन्न थी उतनी ही वह प्रतीक के इस गुण के कारण कि वह संबंधों के बीच अपने पद व रुपएपैसों को कभी भी नहीं आने देता. निर्धन हो या धनी सभी का वह समान रूप से सम्मान करता था.

एकता का सोचना था कि प्रतीक विवाह के बाद उसे नौकरी पर जाने के लिए मना कर देगा क्योंकि मैनेजर की पत्नी का उस के अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ काम करना शायद प्रतीक को अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन प्रतीक ने ऐसा नहीं किया. दफ्तर में एकता के प्रति उस का व्यवहार पूर्ववत था.

विवाह के 1 वर्ष बाद जीवन में नए मेहमान के आने की आहट हुई. अभी प्रैगनैंसी को 3 माह ही हुए थे कि एकता का ब्लड प्रैशर हाई रहने लगा. अपने स्वास्थ्य को देखते हुए एकता ने नौकरी छोड़ दी. घर पर काम करने के लिए फुल टाइम मेड थी, इसलिए उस का अधिकतर समय फेसबुक और व्हाट्सऐप पर बीतने लगा. प्रतीक उस की तबीयत में खास सुधार न दिखने पर डाक्टर से संपर्क के लिए जोर डालता रहा, लेकिन एकता किसी व्हाट्सऐप गु्रप में बताए देशी नुसखे आजमाती रही.

जब उस की तबीयत दिनबदिन बिगड़ने लगी तो प्रतीक अस्पताल ले गया. डाक्टर की देखरेख में स्वास्थ्य कुछ सुधरा, लेकिन समय से पहले डिलिवरी हो गई और बच्चे की जान चली गई. प्रतीक उसे अकेलेपन से जू?ाते देख वापस काम पर चलने को कहता लेकिन एकता तैयार न हुई.

पड़ोस में रहने वाली रुपाली ने एकता को सोसायटी की महिलाओं के गु्रप में शामिल कर लिया. वे सभी पढ़ीलिखी थीं. एकदूसरे का बर्थडे मनाने, किट्टी आयोजित करने और घूमनेफिरने के अलावा वे शंभूनाथ नामक पंडितजी के सत्संग में भी सम्मिलित हुआ करती थीं. पुराणों की कथा सुनाते हुए शंभूनाथजी मानसिक शांति की खोज के मार्ग बताते थे. सब से सुविधाजनक रास्ता उन के अनुसार विभिन्न अवसरों पर सुपात्र को दान देने का था. दान देने के इतने लाभ वे गिनवा देते थे कि एकता की तरह अन्य श्रोताओं को भी लगने लगा था कि थोड़ेबहुत रुपएपैसे शंभूनाथजी को दे देने से जीवन सफल हो जाएगा.

एक दिन प्रवचन सुनाते हुए शंभूनाथजी ने अनजाने में होने वाले पापों के दुष्परिणाम की बात की. सुन कर एकता सोच में पड़ गई. अंत में उस ने निष्कर्ष निकाला कि उसके नवजात की मृत्यु का कारण संभवत: उस से अज्ञानतावश हुआ कोई पाप होगा. पंडित शंभूनाथ की कुछ अन्य बातों ने भी उस पर जादू सा असर किया और उन के द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना उसे सही लगने लगा.

आज प्रतीक का शुष्क प्रश्न कि वह कब से सत्संग में जाने लगी, उसे अरुचिकर लग रहा

था. सोच रही थी कि प्रतीक तो उस की प्रत्येक बात का समर्थन करता है, आज न जाने क्यों सत्संग जाने की बात पर वह अन्यमनस्क हो उठा. शाम को प्रतीक के लौटने तक वह इसी उधेड़बुन में रही.

रात का खाना खा कर बिस्तर पर लेटे हुए दोनों विचारमग्न थे कि प्रतीक बोल उठा, ‘‘अलमारी में पुराने कपड़ों का ढेर लग गया है. सोच रहा हूं मेड को दे देंगे.’’

‘‘हां, बहुत से कपड़े खरीद तो लिए हैं मैं ने, लेकिन पहनने का मौका नहीं मिला. नएनए पहन लेती हूं हर जगह. कल ही दे दूंगी. अच्छा सुनो, इस बात से याद आया कि कुछ पैसे चाहिए मु?ो. कल सत्संग भवन में हमारे गु्रप की ओर से दान दिया जाएगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पंडितजी ने कहा था कि दान देने से न सिर्फ इस जीवन में बल्कि अगले जन्म में भी कष्ट पास नहीं फटकते.’’

‘‘देखो एकता, तुम अपने पर कितना भी खर्च करो मु?ो ऐतराज नहीं, ऐतराज तो छोड़ो बल्कि मैं तो चाहता हूं कि तुम मौजमस्ती करो और खूब खुश रहो. तुम्हारा यों पंडितजी की बातों में आ कर व्यर्थ पैसे लुटा देना सही नहीं लग रहा मु?ो तो.’’

‘‘गु्रप में फ्रैंड्स को क्या जवाब दूंगी?’’ मुंह बनाते हुए एकता ने पूछा.

‘‘मेरे विचार से तुम्हें उन लोगों को भी सही दिशा दिखानी चाहिए.’’

प्रतीक की इस बात को सुन एकता निरुत्तर हो गई.

गु्रप की महिलाएं रुपयेपैसे के अतिरिक्त फल, अनाज व मिठाई भी पंडितजी को दिया

करती थीं, लेकिन एकता मन मसोस कर रह जाती. एकता के बारबार कहने पर भी प्रतीक का दान देने की बात पर नानुकुर करना उसे रास नहीं आ रहा था. आर्थिक स्तर पर अपने से निम्न संबंधियों से प्रतीक का मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना, मेड को पुराने कपड़े, खाना व कंबल आदि देने को कहना तथा ड्राइवर के बेटे की पुस्तकें खरीदना एकता को असमंजस में डाल रहा था. दूसरों की मदद को सदैव तत्पर प्रतीक दानपुण्य के नाम से क्यों बिफर उठता है, इस प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल पा रहा था.

शंभूनाथजी ने वट्सऐप ग्रुप बना लिया था. उस पर वे विभिन्न अवसरों, तीजत्योहारों आदि पर दान देने के मैसेज डालने लगे थे. प्रत्येक मैसेज के साथ दान की महत्ता बताई जाती. सुख, शांति व पापों से मुक्ति इन सभी के लिए दानदक्षिणा को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना बताया जाता.

गु्रप की सभी महिलाओं के बीच होड़ सी लग जाती कि कौन शंभूनाथजी को अधिक से अधिक दान दे कर न केवल स्वयं को बल्कि परिवार को भी पापों से मुक्ति दिलवाने का महान प्रयास कर रहा है? एकता भी इस से अछूती न रही. प्रतीक से किसी न किसी बहाने पैसे मांग कर वह पंडितजी को दे देती थी. मन ही मन इस के लिए वह अपने को दोषी भी नहीं मानती थी क्योंकि उस का विचार था कि इस से प्रतीक पर भी कष्ट नहीं आएंगे. सत्संग में विभिन्न कथाएं सुनकर वह भयभीत हो जाती कि विपरीत भाग्य होने पर किसी व्यक्ति को कैसेकैसे कष्ट ?ोलने पड़ते हैं. मन ही मन वह उन सखियों का धन्यवाद करती जिन के कारण वह पंडितजी के संपर्क में आई थी वरना नर्क में जाने से कौन रोकता उसे.

उस दिन प्रतीक औफिस से लौटा तो चेहरे की आभा देखते ही एकता सम?ा गई कि कोई प्रसन्नता का समाचार सुनने को मिलेगा. यह सच भी था. प्रतीक को कंपनी की ओर से प्रमोशन मिली थी. शाम की चाय पीकर प्रतीक एकता को घर से दूर कुछ दिनों पहले बने एक फाइवस्टार होटल में ले गया.

कैंडल लाइट डिनर में एकदूसरे की उपस्थिति को आत्मसात करते हुए दोनों भविष्य के नए सपने बुन रहे थे. प्रतीक ने बताया कि अब वह एक आलीशान फ्लैट खरीदने का मन बना चुका है.

खुशी से एकता का अंगअंग मुसकराने लगा. खाने के बाद प्रतीक डिजर्ट मंगवाने के लिए मैन्यू देखने लगा तो एकता ने मोबाइल पर मैसेज पढ़ने शुरू कर दिए. सत्संग गु्रप में आज शंभूनाथजी ने जिस विषय पर पोस्ट डाली थी वह था कि किस प्रकार खुशियों को कभीकभी बुरी नजर लग जाती है और काम बनतेबनते बिगड़ने लगते हैं.

ऐसे में कुछ रुपए या सामान द्वारा नजर उतार कर दान कर देना चाहिए. इस से नजर का बुरा असर उस वस्तु के साथ दानपात्र के पास चला जाता है. गु्रप में कई महिलाओं ने अपने अनुभव बांटे थे कि कैसे जीवन में कुछ अच्छा होते ही अचानक उन के साथ अप्रिय घटना घट गई.

‘‘उफ, कब से आ रहा है बुखार. टेस्ट की रिपोर्ट कब तक मिलेगी,’’ प्रतीक की आवाज कानों में पड़ी तो एकता ने अपना मोबाइल पर्स में रख दिया. प्रतीक के मोबाइल पर बड़ी बहन प्रियंका ने कौल किया था, उस से ही बात हो रही थी प्रतीक की. प्रियंका आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं थी, लेकिन वह या उस का पति मुकेश अपनी स्थिति सुधारने के लिए कोई प्रयास भी करते तो वह केवल परिचितों से पैसे मांगने तक ही सीमित था.

पेशे से इलैक्ट्रिक इंजीनियर मुकेश की कुछ वर्षों पहले नौकरी चली गई थी. वह उस समय बिजली का सामान बेचने का व्यवसाय शुरू करना चाहता था, जिस में प्रतीक ने आर्थिक रूप से मदद कर व्यवसाय शुरू करवा दिया था. कुछ समय तक सब ठीक रहा, लेकिन मुकेश बाद में कहने लगा कि इस बिजनैस में खास कमाई नहीं हो रही और अब एक अंतराल के बाद नौकरी लगना भी मुश्किल है.

ऐसे में प्रियंका बारबार अपने को दयनीय स्थिति में बता कर पैसों की मांग करने लगती थी. प्रतीक के बड़े भाई की आमदनी अधिक नहीं थी और छोटे की तुलना में भी प्रतीक की सैलरी ही अधिक थी तो सारी आशाएं प्रतीक पर आ कर टिक जाती थीं. प्रतीक यथासंभव मदद भी करता रहता था.

आज प्रियंका का फोन आया तो एकता की सांस ठहर गई. वह सम?ा गई थी कि कोई नई मांग की होगी प्रियंका दीदी ने. उसे पंडितजी का मैसेज याद आ रहा था कि खुशियों को कभीकभी बुरी नजर लग जाती है. कुछ देर पहले वह फ्लैट लेने की योजना बनाते हुए कितनी खुश थी. अब प्रियंका की आर्थिक मदद करनी पड़ेगी तो पता नहीं प्रतीक फ्लैट लेने की बात कब तक के लिए टाल देगा.

उस ने घर पहुंच कर नजर उतार कुछ रुपए शंभूनाथजी को देने का मन बना लिया क्योंकि भोगविलास से दूर भक्ति में लीन साधारण जीवन जीने वाला उन जैसा व्यक्ति ही ऐसे दान का पात्र हो सकता है. शंभूनाथजी दान का पैसा कल्याण में ही लगा रहे होंगे इस बात पर पूरा भरोसा था उसे. प्रतीक को प्रियंका से बात करते देख एकता ने प्रतीक की पसंदीदा पान फ्लेवर की आइसक्रीम मंगवा ली.

‘‘दीदी ने की थी कौल?’’ आइसक्रीम का स्पून मुंह में रखते हुए एकता ने पूछा.

‘‘हां, घर चल कर बात करेंगे,’’ प्रतीक जैसे किसी निर्णय पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था.

आइसक्रीम के स्वाद और विचारों में डूबे हुए अचानक एकता का ध्यान सामने वाली टेबल पर चला गया. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वहां शंभूनाथजी विभिन्न व्यंजनों का आनंद ले रहे थे. सत्संग के दौरान दिखने वाले रूप से विपरीत वे धोतीकुरते के स्थान पर जींस और टीशर्ट पहने थे, चेहरे पर प्रवचन देते समय खिली हुई मंदमंद मुसकान जोरदार ठहाकों में बदली हुई थी. अपने को संयासी बताने वाले शंभूनाथजी के पास वाली कुरसी पर एक महिला उन से सट कर बैठी थी.

तभी वेटर ने महिला के सामने प्लेट में सजा केक रख दिया. शंभूनाथजी ने महिला का हाथ पकड़ कर केक कटवाया और हौले से ‘हैप्पी बर्थडे’ जैसा कुछ कहा. जब अपने हाथ से केक का टुकड़ा उठा कर शंभूनाथजी ने महिला के मुंह में डाला तो एकता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उत्साह और अनुराग शंभूनाथ व महिला पर तारी था.

‘तो यह है कल्याणकारी काम जिस पर शंभूनाथजी दान का रूपयापैसा खर्च करते हैं.’ सोच कर एकता सकते में आ गई.

 

घर लौटने पर प्रतीक ने फोन के बारे में बताया. एकता का संदेह सच

निकला. प्रियंका ने इस बार बताया था कि मुकेश की अस्वस्थता के कारण वे मकान का किराया नहीं दे सके. मकान मालिक परेशान कर रहा है, माह का सारा वेतन दवाई में खर्च हो गया.

‘‘तो कितने पैसे भेजने पड़ेंगे उन लोगों को?’’ एकता न रानी सूरत बना कर पूछा.

‘‘बहुत हुआ बस. अब नहीं,’’ प्रतीक छूटते ही बोला.

‘‘मतलब इस बार आप कुछ पैसे नहीं…’’

‘‘हां, बहुत मदद की है मैंने दीदी, जीजाजी की. ये लोग स्वयं पर बेचारे का ठप्पा लगवा कर उस का फायदा उठा रहे हैं,’’ एकता की बात पूरी होने से पहले ही प्रतीक बोल उठा, ‘‘बुरे वक्त में किसी से मदद मांगना अलग बात है, लेकिन दूसरों की कमाई पर नजर रख अपने को असहाय दिखाते हुए दूसरों से पैसे ऐंठना और बात. पता है तुम्हें पिछले साल जब मैं औफिशियल टूर पर अहमदाबाद गया तो था प्रियंका के घर रुका था 1 दिन के लिए.’’

‘‘हां, याद है.’’ छोटा सा उत्तर दे कर एकता आगे की बात जानने के लिए टकटकी लगाए प्रतीक को देख रही थी.

‘‘मेरे वहां जाने से कुछ दिन पहले ही अपने बेटे कार्तिक की फीस और बुक्स खरीदने के बहाने पैसे मांगे थे मु?ा से उन लोगों ने, वहां जा कर देखा तो कार्तिक के लिए एक नामी ब्रैंड का महंगा मोबाइल फोन खरीदा हुआ था. मैं ने ऐतराज जताया तो प्रियंका दीदी बोलीं कि यह तो इसे गाने की एक प्रतियोगिता जीतने पर मिला है. मुकेश जीजाजी ने कार भी तभी खरीदी थी. क्या जरूरत थी कार लेने की जब फीस तक देने को पैसे नहीं थे उन के पास? मन ही मन मु?ो बहुत गुस्सा आया. मैं सम?ा गया कि इन्हें अपने सुखद जीवन के लिए जो पैसा चाहिए उसे ये दोनों इमोशनल ब्लैकमेल कर हासिल कर रहे हैं. उसी दिन मैं ने फैसला कर लिया कि रिश्तों को केवल सम्मान दूंगा भविष्य में.’’

‘‘आप ने यह मु?ो पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं सही समय की प्रतीक्षा में था.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘देखो एकता मैं कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम सत्संग में जाती हो. मैं जानता हूं कि वहां धर्म, कर्म के नाम से डराया जाता है. समयसमय पर दान का महत्त्व बता रुपएपैसे ऐंठने का चक्रव्यूह रचा जाता है. खूनपसीने की कमाई क्या निठल्ले लोगों पर उड़ानी चाहिए? फिर वह चाहे मेरी बहन हो या कोई साधू बाबा.’’

प्रतीक की बात सुन एकता किसी अपराधी की तरह स्पष्टीकरण देते हुए बोली, ‘‘मैं तो इसलिए दान देने की बात कहा करती थी कि सुना था इस से भला होता है.’’

‘‘कैसा भला? क्या उसी डर से दूर कर देना भला कहा जाएगा है जो डर जबरदस्ती पहले मन में बैठाया जाता है.’’

एकता सब ध्यान से सुन रही थी.

‘‘सोनेचांदी की वस्तुओं के दान से पाप धुल जाते हैं, रुपएपैसे व अन्य सामान का समयसमय पर दान किया जाए तो स्वर्ग मिलता है, ग्रहण लगे तो दान करो ताकि उस के बुरे प्रभावों से बचा जा सके, परिवार में जन्म हो तो भविष्य में सुख के लिए और मृत्यु हो तो अगले जन्म में शांति व समृद्धि के लिए दान पर खर्च करो. सत्संग में ऐसा ही कुछ बताया जाता होगा न,’’ प्रतीक ने पूछा तो एकता ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘तो बताओ किसने देखा है स्वर्ग. क्या ऐसा नहीं लगता कि स्वर्गनर्क की अवधारणा ही व्यक्तिको डराए रखने के लिए की गई है, अगले जन्म की कल्पना कर के सुख पाने की इच्छा से इस जन्म की गाढ़ी कमाई लुटा देना कहां की सम?ादारी है? ग्रह, नक्षत्रों, सूर्य और चंद्रग्रहण का बुरा प्रभाव कैसे होगा जबकि ये केवल खगोलीय घटनाएं है? ये बेमतलब के डर मन में बैठाये गए हैं कि नहीं? तुम से एक और सवाल करता हूं कि यदि दान देने से पाप दूर हो जाते हैं तो इस का मतलब यह हुआ कि जितना जी चाहे बुरे कर्म करते रहो और पाप से बचने के लिए दान देते रहो, यह क्या सही तरीका है जीने का?’’

‘‘नहीं, यह रास्ता तो अनाचार को बढ़ा कर व्यक्ति को गलत दिशा में ले जा सकता है,’’ एकता के सामने सच की परतें खुल रही थीं.

‘‘मैं देखता हूं कि लोग पटरी पर धूप और ठंड में सामान बेचने वालों से पैसेपैसे का मोलभाव करते हैं, नौकरों को मेहनत के बदले तनख्वाह देने से पहले सौ बार सोचते हैं कि कहीं ज्यादा तो नहीं दे रहे. पसीने से लथपथ रिकशे वाले से छोटी सी रकम का सौदा करते हैं और वही लोग दानपुण्य संबंधी लच्छेदार बातों में फंस कर बेवजह धन लुटा देते हैं.’’

शंभूनाथ का होटल में बदला हुआ रूप देख कर एकता का मन पहले ही खिन्न था. इन सब बातों को सम?ाते हुए वह बोल उठी, ‘‘विलासिता का जीवन जीने की चाह में दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं कुछ लोग. दान देना तो सचमुच निठल्लेपन को बढ़ाना ही है. किसी हृष्टपुष्ट को बिना मेहनत के क्यों दिया जाए? इस से हमारा तो नहीं बल्कि उस का जीवन सुखद हो जाएगा. देना ही है तो किसी शरीर से लाचार को, अनाथाश्रम या गरीब के बच्चे की पढ़ाई के लिए देना चाहिए और मैं ऐसा ही करूंगी अब.’’

प्रतीक मुसकरा उठा, ‘‘वाह, तुम कितनी जल्दी सम?ाती हो कि मैं कहना क्या चाह रहा हूं, इसलिए ही तो इतना प्यार करता हूं तुम्हें. जो अभी तुम ने कहा वही तो दीदी, जीजाजी को अब पैसे न भेजने का कारण है. जब वे लोग मुश्किल में थे मैं ने हर तरह से सहायता की. अब उन को गुजारे के लिए नहीं अपनी जिंदगी मजे से बिताने के लिए पैसे चाहिए. जहां धर्म में डर का जाल बिछा कर पैसे निकलवाए जाते हैं, वहां दीदी, जीजाजी अपनी बेचारगी का बहाना बना मु?ो बेवकूफ बना रहे हैं. मैं दान या मदद के नाम पर निकम्मेपन को बढ़ावा नहीं दूंगा, कभी नहीं.’’

‘‘सोच रही हूं व्हाट्सऐप के सत्संग गु्रप में जो फ्रैड्स हैं आज उन सब से बात करूं ताकि वे भी उस सचाई को जान सकें जिसे मैं ने जरा देर में जाना है,’’ प्रतीक की ओर मुसकरा कर देखने के बाद एकता अपना मोबाइल ले कर सखियों को कौल करने चल दी.

फेस मिस्ट मिनटों में लाएं चेहरे पर ग्लो

गरमी के मौसम में आप अपनी स्किन को कूल व रिफ्रैश फील देने की कोशिश करती हैं क्योंकि चिलचिलाती गरमी के कारण स्किन की रंगत फीकी पड़ जाती है, स्किन ड्राईनैस की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. ऐसे में फेस मिस्ट स्किन को हाइड्रेट, कूल व फ्रैश रखती है.

तो आइए जानते हैं कि आप किस तरह से फेस मिस्ट का चयन करें ताकि आप की स्किन को उस का फायदा मिले:

फेस मिस्ट है क्या

असल में फेस मिस्ट एक तरह का स्प्रे होता है जो ऐंटीऔक्सीडैंट्स, विटामिंस, एक्सट्रैक्ट्स व ऐसैंशियल औयल्स में रिच होने के कारण स्किन को ढेरों फायदे पहुंचाने का काम करता है. यह स्किन को पूरा दिन हाइड्रेट रख कर आप को फील गुड करवाता है. लेकिन इस का पूरा लाभ लेने के लिए फेस मिस्ट को हमेशा क्लीनिंग और मौइस्चराइजिंग स्टैप के बीच में इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि साबुन, फेसवाश ऐल्कलाइन होते हैं. ऐसे में फेस मिस्ट स्किन के पीएच लैवल को रीबैलेंस करने में मदद करता है.

ब्यूटी लवर्स की पसंद बना फेस मिस्ट

फेस मिस्ट में स्किन को मिनटों में तरोताजा करने वाली प्रौपर्टीज तो होती ही हैं, साथ ही इजी टू यूज के साथ इसे आसानी से कैरी भी किया जा सकता है. यह स्किन की थकान को दूर करने के साथसाथ स्किन को मेकअप के लिए भी तैयार करने का काम करता है और अगर स्किन ड्राईनैस की प्रौब्लम है तब तो यह स्किन पर मैजिक का काम करता है क्योंकि इस में स्किन को हाइड्रेट करने वाली प्रौपर्टीज जो होती है.

तभी तो आज ब्यूटी लवर्स की पसंद बन गया है फेस मिस्ट. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि आप अपनी स्किन की जरूरत के हिसाब से फेस मिस्ट का चयन करें.

तो आइए जानते हैं इस संबंध में:

ड्राईनैस से फाइट करे

अगर आप की स्किन ड्राई है तो आप किसी भी तरह के फेस मिस्ट का चयन न करें क्योंकि यह ड्राई स्किन की प्रौब्लम को और बढ़ा सकता है. ऐसे में आप के लिए जरूरी है कि ऐसे फेस मिस्ट का चयन करें, जिस में ह्यालूरोनिक ऐसिड व स्क्वालेन जैसे इनग्रीडिऐंट्स हों क्योंकि ये स्किन सैल्स को प्लंप करने के साथसाथ स्किन को हाइड्रेट करने में मदद करते हैं, साथ ही ये डैमेज स्किन को हील करने का भी काम करते हैं.

बैस्ट फेस मिस्ट

– बनिला को डिअर हाइड्रेशन फेशियल मिस्ट, जिस में है बैंबू, लोटस वाटर व नीम लीफ ऐक्सट्रेक्ट. ये स्किन के हाइड्रेशन लैवल को बूस्ट करने का काम करते हैं.

– पाई सैंचुरी फ्लौवर लोटस ऐंड औरेंज ब्लौसम सूथिंग टौनिक न्यूट्रिएंट रिच वाटर स्किन टोन

व टैक्स्चर को इंप्रूव करने के साथसाथ स्किन को रिफ्रैश व सुपर सौफ्ट बनाने का भी काम करता है.

स्ट्रैस स्किन से रिलीफ दे समर्स में ज्यादा सन ऐक्सपोजर, हीट, प्रदूषण व पसीने की वजह से स्किन पर स्ट्रैस की समस्या साफ देखने को मिलती है, जो स्किन को डल, बेजान व उस के नूर को कम करने का काम करती है और स्किन की सैंसिटिविटी से ले कर ऐजिंग का भी कारण बनती है.

ऐसे में स्किन के स्ट्रैस को दूर करने के लिए ऐसे फेस मिस्ट का चयन करें, जिस में कैमोमाइन, जोजोबा औयल, ऐसैंशियल औयल, लैवेंडर औयल व रोज वाटर की खूबियां हों क्योंकि ये स्किन को डीस्ट्रेस करने के साथसाथ स्किन सैल्स को हैल्दी बनाने का भी काम करते हैं.

बैस्ट फेस मिस्ट

– बौडी हर्बल स्ट्रैस रिलीफ लैवेंडर फेशियल मिस्ट स्किन टोन को इंप्रूव करने के साथसाथ ऐजिंग प्रोसैस को भी धीमा करने में मदद करता है.

– रोज वाटर मिस्ट स्किन को रैडनैस व पफीनैस को दूर करता है.

ऐक्ने प्रोन स्किन का ट्रीटमैंट

समर्स में खासकर औयली स्किन वालों को पोर्स के बंद होने के कारण ऐक्ने की प्रौब्लम सब से ज्यादा होती है. जो ऐक्ने के कारण स्किन रूखी व डल लगने लगती है. ऐसे में ऐक्ने प्रोन स्किन के लिए फेस मिस्ट किसी मैजिक से कम नहीं है क्योंकि यह औयल्स व सिलिकौन फ्री जो होता है.

बस इस बात का ध्यान रखें कि ऐसी स्किन के लिए फेस मिस्ट में रोज वाटर, ऐलोवेरा, ग्रीन टी जैसे इनग्रीडिऐंट्स हों क्योंकि इन में ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज होने के कारण ये स्किन को ठंडक पहुंचाने का काम करते हैं. डल स्किन में भी नई जान डालने का काम करते हैं.

बैस्ट फेस मिस्ट

– इन्नीसफ्री ग्रीन टी मिस्ट लाइटवेट होने के साथसाथ ग्रीन टी की खूबियों से भरपूर है जो हाइड्रेशन, हैल्दी स्किन टोन व ग्लोइंग स्किन देने का काम करता है, साथ ही स्किन के ऐक्सैस औयल को भी कंट्रोल करने में मदद करता है.

– इन्नीसफ्री ऐलो रीवाइटल स्किन मिस्ट ड्राई व पीलिंग स्किन के लिए बैस्ट ब्यूटी ट्रीटमैंट है.

– द ब्यूटी कंपनी ऐलोवेरा मिस्ट अलकोहल फ्री होने के कारण स्किन को सुपर हाइड्रेट करने में मदद करता है.

4 फाइट विद ऐजिंग

हर महिला चाहती है कि उस की स्किन हमेशा यंग रहे, लेकिन कई बार स्किन की केयर नहीं करने, गलत व कैमिकल्स वाले स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने की वजह से समय से पहले स्किन पर ऐजिंग की समस्या दिखने लगती है, जो किसी को भी गवारा नहीं होती. ऐसे में लेटैस्ट ब्यूटी ट्रैंड में चल रहे फेस मिस्ट ऐजिंग से फाइट करने में कारगर साबित हो रहे हैं.

इसलिए ऐजिंग के लिए जिस भी फेस मिस्ट का चयन करें तो देखें कि उस में टी ऐक्सट्रैक्ट, विटामिन सी, ई, पोमेग्रेंट ऐक्सट्रैक्ट, अल्फा ऐंड बीटा हाइड्रौक्सी ऐसिड, ग्रेपफूड ऐक्सट्रैक्ट आदि जरूर हों क्योंकि ये औक्सिडेशन स्ट्रैस को कम करने का काम करते हैं, जो ऐजिंग के लिए जिम्मेदार होता है.

बैस्ट फेस मिस्ट

– एसटी बोटेनिका नूट्रिटिवा पोमेग्रेंट फेस मिस्ट, जो ऐंटीऔक्सीडैंट्स का पावरहाउस होने के कारण यह एजिंग को रोकने का काम करता है.

– द बौडी शौप का विटामिन सी फेशियल मिस्ट आप की स्किन को ग्लोइंग बनाने व ऐजिंग से फाइट करने का काम करता हैं क्योंकि इस में है ऐंटीऔक्सीडैंट्स प्रौपर्टीज, जो स्किन सैल्स में कोलोजन का उत्पादन कर के ऐजिंग के प्रोसैस को स्लो करने का काम करती हैं.

ब्लू लाइट प्रोटैक्शन मिस्ट

आजकल अधिकांश समय गैजेट्स के सामने ही बीतता है जैसे लैपटौप, स्मार्टफोन, टीवी आदि. ये स्किन प्रौब्लम्स का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं क्योंकि इन डिवाइस से ब्लू लाइट के कारण निकलने वाली फ्री रैडिकल्स स्किन को डैमेज भी कर सकती हैं. ऐसे में ब्लू लाइट से स्किन को प्रोटैक्ट करने के लिए फेशियल मिस्ट बनाए गए हैं ताकि स्किन को प्रोटैक्शन व ग्लो दोनों मिल सकें.

बैस्ट फेस मिस्ट

– आईएलआईए ब्लू लाइट प्रोटैक्शन मिस्ट स्किन को हाइड्रेट करने, मेकअप को सैट करने तथा स्किन को हार्मफुल ब्लू लाइट व प्रदूषण से बचाने का काम करता है.

पोर्स मिनिमाइज फेशियल मिस्ट

एक स्टडी के अनुसार, बड़े पोर्स का मुख्य कारण अत्यधिक सीरम होता है. यह तब होता है जब किसी महिला की वसामय ग्रंथि अधिक तेल का उत्पादन करना शुरू कर देती है, जिस से त्वचा औयली हो जाती है, जो स्किन की कोमलता को भी चुराने का काम करती है. ऐसे में पोर्स को मिनिमाइज करने के लिए पावरफुल ऐंटीऔक्सीडैंट्स रिच फेस मिस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए.

बैस्ट फेस मिस्ट

– रैडियंस मिस्ट पोर्स को मिनिमाइज करने के साथसाथ बिना स्किन को इरिटेट किए उसे ऐक्सफौलिएट करने का काम करता है.

केले का छिलका: क्या थी रौनी की सच्चाई

‘‘देहरादून के सिर पर ताज की तरह विराजमान मसूरी की अपनी निराली छटा है. सागर तल से लगभग 2,005 मीटर की ऊंचाई पर 65 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली मसूरी से एक ओर घाटी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है तो दूसरी ओर बर्फीले हिमालय की ऊंचीऊंची चोटियां. मसूरी को ‘पहाड़ों की रानी’ यों ही नहीं कहा जाता.

‘‘यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में गनहिल, कैमल्सबैक रोड, नगरनिगम उद्यान, चाइल्ड्स लौज, झड़ीपानी निर्झर, कैंप्टी फौल, धनोल्टी प्रमुख हैं.’’

गाइड अपनी लच्छेदार भाषा में रटारटाया भाषण दिए जा रहा था. अधिकतर यात्री एकाग्रचित्त हो कर सुन रहे थे, लेकिन कुछ लोग खिड़की से बाहर मनोहर और लुभावने दृश्य देख रहे थे.

अचानक ईशान ने महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है. उस के पास बैठी लड़की की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह अपनी सिसकियों को दबाने का असफल प्रयास कर रही थी और इसी ने ईशान का ध्यान आकर्षित किया था. जब पास में बैठी कोई लड़की, जो खूबसूरत भी हो, अगर इतने सुहावने वातावरण के बावजूद रो रही हो तो एक सुसंस्कृत युवक का क्या कर्तव्य बनता है?

ईशान एक अमेरिकन बैंक में योजना अधिकारी था. वेतन इतना मिलता था कि भारत सरकार के उच्च अधिकारियों को भी एक बार ईर्ष्या हो जाती. वर्ष में एक बार 15 दिन की अनिवार्य छुट्टी पूरे वेतन के साथ मिलती थी. स्थान के लिहाज से सब से अच्छे होटल में रहना और सुबह का नाश्ता मुफ्त. घूमनेफिरने और हर दिन के कड़े काम की उकताहट से उबरने के लिए इस से बड़ा प्रोत्साहन और क्या हो सकता है.

ईशान का विवाह पिछले वर्ष बड़े धूमधाम से हुआ था. पत्नी गर्भवती थी और प्रसूति के लिए मायके गई हुई थी. कुछ सहयोगी, जो कुछ समय पहले मसूरी हो कर आए थे, इतनी प्रशंसा कर रहे थे कि उस ने भी मसूरी घूमने का निश्चय किया. वैसे तो घूमनेफिरने का आनंद पत्नी के साथ ही आता है, बिलकुल दूसरे हनीमून जैसा. परंतु इस समय ईशान की पत्नी पहाड़ों पर जाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए वह अकेला ही निकल पड़ा था.

मसूरी के एक वातानुकूलित होटल में कमरा पहले से आरक्षित किया जा चुका था. कुछ समय तक कमरे में बैठेबैठे ही खिड़की खोल कर ईशान दूरदूर तक फैली हरियाली और कीड़ेमकोड़ों की तरह दिखते मकानों को निहारता रहा. कभीकभी आवारा बादल कमरे में ही घुस आते थे और तब वह सिहर कर अपनी पत्नी गौरी की कमी महसूस करता.

होटल की स्वागतिका से कह कर ईशान ने आसपास घूमने के लिए बस में सीट आरक्षित करवा ली थी. उस समय वह बस में बैठा हुआ था जब पास बैठी लड़की की सिसकियों ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचा.

जब नहीं रहा गया तो उस ने शालीनता से पूछा, ‘‘क्षमा कीजिए, आप को कुछ कष्ट है क्या? क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकता हूं?’’

लड़की ने कोई उत्तर नहीं दिया, केवल सिसकती रही. ईशान की समझ में नहीं आ रहा था कि अपने काम से काम रखे या अंगरेजी फिल्मों के नायक की तरह अपना रूमाल उसे पेश करे.

आखिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘देखिए, मैं आप के मामले में कोई दखल नहीं देना चाहता. हां, अगर आप समझती हैं कि एक अजनबी से कुछ मदद ले सकती हैं तो मैं हाजिर हूं.’’

सिसकियां दबाते हुए लड़की ने कहा, ‘‘मेरा सिर चकरा रहा है. मैं कहीं खुली जगह में बैठना चाहती हूं.’’

‘‘ओह, तबीयत खराब है?’’

‘‘नहीं,’’ लड़की ने कराहते हुए कहा.

‘‘तो फिर…’’ ईशान झिझका, ‘‘खैर, मैं अभी बस रुकवाता हूं,’’ सोचा, लड़की की तबीयत खराब होना भी एक नाजुक मामला है.

जब उस ने थोड़ी चहलपहल वाली जगह पर बस रुकवाई तो सारे पर्यटक आश्चर्य से उसे देखने लगे.

लड़की के हाथ में केवल एक पर्स था, वह झट से उतर गई. ईशान अपनी सीट पर बैठने ही वाला था कि उसे कुछ बुरा लगा. सोचने लगा कि अकेली मुसीबत में पड़ी लड़की को यों ही छोड़ देना ठीक नहीं. शायद उसे मदद की आवश्यकता हो?

इस से पहले कि चालक बे्रक पर से पैर हटाता, वह अपना बैग उठा कर लड़की के पीछेपीछे उतर गया. बस उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ गई.

सड़क के किनारे एक खाली बेंच थी. लड़की जा कर उस पर बैठ गई. फिर उस ने आंखें बंद कर लीं और सिर पीछे टिका लिया. ईशान भी पास ही बैठ गया. पर अब महसूस कर रहा था कि वह किस चक्कर में पड़ गया.

लगभग 2 मिनट की चुप्पी के बाद लड़की ने क्षीण स्वर में कहा, ‘‘मुझे अफसोस है. आप बेकार में ही मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हैं.’’

पहली बार ईशान का ध्यान लड़की की टांगों पर गया. वह स्कर्टब्लाउज पहने थी. गोरीगोरी टांगें रेशम की तरह मुलायम लग रही थीं. घुटने से ऊपर तक के मोजे पहने थे, देखने में वे पारदर्शी और टांगों के रंग से मिलतेजुलते थे.

ईशान ने सिर झटका, ‘मूर्ख कहीं का, इस तरह मत भटक.’

‘‘परेशानी तो कुछ नहीं,’’ ईशान ने जल्दी से कहा, ‘‘हां, अगर आप के कुछ काम आया तो खुशी होगी.’’

अचानक लड़की की आंखों से फिर से ढेर सारे आंसू निकल पड़े तो ईशान भौचक्का रह गया.

‘‘मैं अपने मातापिता के साथ कुछ रोज पहले यहां आई थी,’’ लड़की ने सिसकते हुए कहा.

‘‘ओह, ये बात है,’’ ईशान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मुझे क्या मालूम था…’’ लड़की फिर रो पड़ी.

‘‘धीरज से काम लीजिए,’’ ईशान ने सहानुभूति से कहा. सोचा, ‘शायद कुछ हादसा हो गया है.’

लड़की अब आंसू पोंछने लगी, फिर बोली, ‘‘क्षमा कीजिए. मेरा नाम वैरोनिका है. वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं.’’

ईशान मुसकराया. औपचारिकता के लिए बोला, ‘‘बड़ा अच्छा नाम है. आप बैठिए, मैं आप के लिए कुछ लाता हूं. कौफी या शीतल पेय?’’

रौनी ने झिझकते हुए कहा, ‘‘बड़ी मेहरबानी होगी, अगर आप मेरे लिए इतना कष्ट न उठाएं.’’

‘‘नहींनहीं, कष्ट किस बात का…आप ने अपनी पसंद नहीं बताई?’’ ईशान ने जोर दिया.

‘‘गरम कौफी ले आइए,’’ रौनी ने अनिच्छा से कहा.

सामने ही ‘कौफी कौर्नर’ था. ईशान

2 कप कौफी ले आया. वह कौफी पीने लगा. पर लग रहा था कि रौनी केवल होंठ गीले कर रही है.

‘‘क्या हुआ आप के मांबाप को?’’ थोड़ी देर बाद ईशान ने पूछा.

‘‘उन की हाल ही में मौत हो गई,’’ रौनी फिर रो पड़ी.

ईशान ने उस के हाथ से कप ले लिया, क्योंकि कौफी उस के अस्थिर हाथों से छलकने ही वाली थी.

‘‘माफ कीजिएगा, आप का दिल दुखाने का मेरा कतई इरादा नहीं था,’’ ईशान ने शीघ्रता से कहा.

‘‘कोई बात नहीं,’’ आंसुओं पर काबू पाते हुए रौनी ने कहा, ‘‘कोई सुनने वाला भी नहीं. मेरा दिल भरा हुआ है. आप से कहूंगी तो दुख कम ही होगा.’’

‘‘ठीक है. पहले कौफी पी लीजिए,’’ कप आगे करते हुए उस ने कहा.

जब रौनी स्थिर हुई तो बोली, ‘‘मेरी मां को कैंसर था. बहुत इलाज के बाद भी हालत बिगड़ती जा रही थी. एक दिन हम सब टीवी देख रहे थे. पर्यटकों के लिए अच्छेअच्छे स्थानों को दिखाया जा रहा था. बस, मां ने यों ही कह दिया कि काश, वे भी किसी पहाड़ की सैर कर रही होतीं तो कितना मजा आता.’’

रौनी ने कौफी खत्म कर के कप पीछे फेंक दिया. ईशान उत्सुकता से उस की कहानी सुन रहा था.

‘‘पिताजी के मन में आया कि मां की अंतिम इच्छा पूरी करना उन का कर्तव्य है. हम लोग मध्यवर्ग के हैं. फिर मां की बीमारी पर भी काफी खर्च हो रहा था. काफी रुपया उधार ले चुके थे,’’ रौनी ने गहरी सांस छोड़ी.

‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है,’’ ईशान ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा आराम कर लीजिए.’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं. कहने से मन हलका ही होगा,’’ रौनी ने अपने ऊपर नियंत्रण करते हुए कहा, ‘‘किसी तरह से पिताजी ने उधार ले कर और कुछ जेवर बेच कर मसूरी आने का कार्यक्रम बनाया. यहां आ कर हम तीनों एक सस्ते होटल में ठहरे.

‘‘एक दिन कैमल्सबैक गए. इतनी ऊंचाई पर जब वह पहाड़ी दिखाई दी, जो ऊंट की पीठ के आकार की थी, मां के आनंद का ठिकाना न रहा. वे बच्चों की तरह प्रसन्न हो कर किलकारियां मारने लगीं. अचानक वे अपना नियंत्रण खो बैठीं और नीचे को गिरने लगीं. पिताजी ने जैसे ही देखा, उन्हें पकड़ने की कोशिश की. पर वे स्वयं भी अपने पर नियंत्रण न रख सके. दोनों एकसाथ गिर पड़े. नीचे इतनी गहराई थी कि लाशें भी नहीं मिलीं.’’

रौनी फिर से सिसकने लगी.

ईशान ने हिम्मत कर के रौनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और कहा, ‘‘मुझे आप के साथ पूरी सहानुभूति है. आप का दुख समझ सकता हूं. अब क्या इरादा है?’’

‘‘कुछ नहीं. कुछ दिन और रुकूंगी. शायद कुछ पता लगे. फिर तो वापस जाना ही है,’’ रौनी ने उदास हो कर कहा, ‘‘पता नहीं क्या करूंगी?’’

‘‘घबराइए मत. कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ ईशान ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भूख लग रही है. चलिए, कुछ खाते हैं.’’

‘‘मेरी तो भूखप्यास ही खत्म हो गई है. आप मेरी वजह से परेशान न हों.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं खाऊं और आप भूखी रहें?’’ ईशान ने दिलेरी से कहा, ‘‘वैसे मुझे अकेले खाने की आदत भी नहीं है.’’

‘‘देखिए. मैं आप के ऊपर कोई बोझ नहीं बनना चाहती,’’ रौनी ने दयनीय भाव से कहा, ‘‘आप की सहानुभूति मिली, इसी से मुझे बड़ा सहारा मिला.’’

‘‘रौनी,’’ इस बार ईशान ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ खाना खाओगी तो यह मेरे ऊपर तुम्हारी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह, आप तो बस…’’ रौनी की आंखों में पहली बार मुसकान की झलक दिखाई दी.

‘‘बस, अब उठ कर चलो मेरे साथ,’’ ईशान ने उठ कर उस की ओर हाथ बढ़ाया.

वह रौनी को एक अच्छे होटल में ले गया. दोनों ने बहुत महंगा भोजन किया. रौनी अब पिछले हादसों से उबर रही थी.

‘‘अब क्या करोगी? घूमने चलोगी या आराम करोगी?’’ ईशान ने बाहर आ कर पूछा.

‘‘आराम कहां है मेरी जिंदगी में,’’ रौनी ने आह भर कर कहा.

‘‘देखो, अब ऐसी बातें मत करो. सामान्य होने की कोशिश करो,’’ ईशान ने अब अधिकार से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं सोचता हूं, तुम्हें कुछ देर अब आराम करना चाहिए. चलो, तुम्हारे होटल छोड़ आता हूं. शाम को फिर मिलेंगे.’’

‘‘होटल,’’ रौनी से उदासी से कहा, ‘‘होटल तो मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था. रहने के लिए रुपया चाहिए और सारा रुपया पिताजी की जेब में था. वह तो होटल का मालिक इतना सज्जन था कि उस ने मुझ से कोई हिसाब नहीं मांगा.’’

‘‘तो फिर कहां रहती हो?’’ ईशान ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कालीबाड़ी में. इतने सारे लोग रोज आतेजाते हैं, मुझे कोई परेशानी नहीं होती,’’ रौनी ने लापरवाही से कहा.

ईशान ने कुछ क्षणों तक सोचा और फिर कहा, ‘‘तुम्हें कालीबाड़ी में रहने की कोई जरूरत नहीं है. चलो, अपना सामान उठाओ और मेरे होटल में आ जाओ. मैं तुम्हारे लिए कमरा आरक्षित करवा दूंगा.’’

रौनी ने आशंका और अविश्वास से ईशान को देखा और कहा, ‘‘आप मेरे लिए इतना सब क्यों करेंगे? मैं नादान और कमसिन जरूर हूं पर भोली भी नहीं हूं.’’

ईशान के ऊपर बिजली सी गिर पड़ी. शीघ्रता से बोला, ‘‘विश्वास करो रौनी, मेरा कोई बुरा आशय नहीं है. मैं कोई नाजायज फायदा भी नहीं उठाना चाहता. हां, एक दोस्त की हैसियत से तुम्हें कुछ लमहे खुशी के दे सकता हूं तो इनकार कर के मेरा दिल तो न तोड़ो.’’

रौनी ने शरारतभरी मुसकराहट से कहा, ‘‘बुरा मान गए? दरअसल, हम लड़कियों को हर पल चौकन्ना और होशियार रहना पड़ता है. अच्छे और बुरे की पहचान करना कोई आसान काम है क्या?’’

ईशान ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने तो मुझे डरा ही दिया था. अपने ही आईने में भेडि़या नजर आने लगा.’’

‘‘अब छोडि़ए भी. हां, इतना फिर कहूंगी कि मैं जहां हूं, ठीक हूं. आप मेरी चिंता मत कीजिए,’’ उस ने जोर दिया.

‘‘रौनी, कृपा कर के अब यह संवाद अधिक मत दोहराओ. तुम मेरी खातिर चलो. मुझे अच्छा लगेगा,’’ रौनी का हाथ ईशान ने मजबूती से पकड़ लिया.

रौनी के साथ ईशान कालीबाड़ी गया और उस का सामान उठवाया. केवल एक सूटकेस और स्लीपिंग बैग देख कर उसे आश्चर्य तो हुआ, पर कुछ बोला नहीं.

रौनी ने अपनेआप ही सफाई दी, ‘‘रुपए की जरूरत पड़ी तो बाकी सामान बेच दिया.’’

ईशान ने कोई उत्तर नहीं दिया. होटल पहुंच कर रौनी के लिए कमरा लिया. शाम की कौफी, नाश्ता भी वहीं किया और फिर रात को मसूरी का आनंद लेने के लिए निकल पड़े. रौनी से धीरेधीरे ईशान की घनिष्ठता बढ़ गई. शर्म व झिझक भी कम होती जा रही थी.

जिस किसी दुकान पर वह कोई पोशाक या आभूषण ठिठक कर देखने लगती, ईशान तुरंत खरीद कर भेंट कर देता. धीरेधीरे ईशान का एहसान अधिकार में बदलने लगा. रौनी अब खुल कर फरमाइश भी कर देती थी. अच्छा खातीपीती थी और खूब खरीदती थी.

ईशान जितने रुपए साथ लाया था, सब कभी के खत्म हो चुके थे. अब वह अपने बैंक का ‘क्रैडिट कार्ड’ इस्तेमाल कर रहा था. सोच कर आया था कि अपनी पत्नी गौरी के लिए ढेर सारी चीजें खरीदेगा और अपने होने वाले बच्चे के लिए ढेर सारे खिलौने व कपड़े, पर रौनी के चक्कर में फुरसत ही न मिली. साथ ही अब तो इफरात से खर्च करने के कारण आर्थिक स्थिति भी डांवांडोल हो रही थी. ठीक पता नहीं था कि क्रैडिट कार्ड कब तक साथ देगा.

15 दिन कैसे निकल गए, पता नहीं लगा. ईशान को रौनी अच्छी लगने लगी थी. कभीकभी तो लगता कि वह उसे प्यार करने लगा है. काश, कहीं रौनी की ओर से कोई संकेत मिल जाता.

परंतु रौनी ने ऐसा कुछ नहीं किया. मौजमस्ती ने उस का दुख मिटा दिया था, उस की खिलखिलाहट में एक खिलाड़ी का स्वर गूंजता था. इसी से ईशान बड़ा सुकून महसूस करता था.

‘‘कल सुबह तो मैं चला जाऊंगा,’’ ईशान ने डूबी हुई आवाज में कहा, ‘‘अब तुम क्या करोगी?’’

‘‘अब तुम ही चले परदेस…’’ रौनी ने शरारत से ठुमका लगा कर कहा, ‘‘लगा के ठेस तो अब हम क्या करेगा?’’

ईशान ने हंस कर कहा, ‘‘शैतानी से बाज नहीं आओगी. सुनो, मेरे साथ चलोगी?’’

‘‘न बाबा,’’ रौनी ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी गौरी से जूते खाने हैं क्या?’’

‘‘तो तुम से कब और कैसे भेंट होगी?’’ ईशान ने पूछा.

‘‘यह मुझ पर छोड़ दो. पहले अपना ठिकाना ढूंढ़ लूं. फिर तो तुम्हें कहीं से भी पकड़ लाऊंगी,’’ रौनी ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है और मेरी जान पर बनी है,’’ ईशान ने नाराजगी का फिल्मी इजहार किया.

रौनी ने केवल जीभ दिखा दी. फिर उस की प्रार्थना पर ईशान ने होटल का 2 दिन का किराया और दे दिया. साथ ही कुछ रुपए खानेपीने के लिए दिए.

ईशान जब घर पहुंचा तो एकदम कड़का था. बैंक से भी पता लगा कि उस ने बचत से कहीं अधिक खर्च कर डाला है, इसलिए अब उधार पर अधिक सूद देना पड़ेगा. लेकिन रौनी की मधुरस्मृति ने दुखी नहीं होने दिया. सोचने लगा, कब याद करेगी अब?

कुछ समय बाद ईशान की पत्नी गौरी गोलमटोल बबलू को ले कर घर आ गई. उस ने पति के बरताव में कुछ बदलाव सा महसूस किया. लेकिन उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा.

ईशान ने एकाध बार सोचा कि क्यों न गौरी को बता दे कि कैसे उस ने एक मुसीबत में फंसी लड़की को सहारा दिया. तब गौरी अवश्य ही उस की प्रशंसा करेगी. फिर यह सोच कर रह जाता था कि बहादुरी दिखाने के बजाय विवेक से काम लेना अधिक अच्छा होता है. हो सकता है, गौरी इस का गलत अर्थ लगाए.

वर्ष बीत रहा था और रौनी के संपर्क न करने से ईशान को बेचैनी सी होने लगी थी. कभी यह भी सोचता था कि चलो, अच्छा हुआ, पीछा छूटा. कहीं उस का संबंध गहरा हो जाता तो अपना पारिवारिक जीवन ही डांवांडोल हो जाता. उन क्षणों में वह गौरी से आवश्यकता से अधिक ही प्रेम जताने लगता.

जब छुट्टी लेने का समय आया तो उस ने फिर से मसूरी ही जाने का निश्चय किया.

‘‘पिछले साल ही तो मसूरी गए थे?’’ गौरी ने पूछा, ‘‘क्या हमारे महान देश में पर्यटक स्थलों की कमी पड़ गई है?’’

‘‘गौरी, एक बार मसूरी चलो तो सही. तुम देखते ही उस से प्यार करने लगोगी,’’ ईशान ने हंस कर कहा, ‘‘मेरा तो मन करता है, वहां ही कोई घर ले लूं.’’

गौरी को दार्जिलिंग अधिक अच्छा लगता था. इस बात पर अकसर दोनों में गरम बहस भी होती थी.

वे मसूरी पहुंचे तो ठहरे उसी पुराने होटल में.

दोपहर का सुहावना मौसम था. वे घूमने निकल पड़े. बादल छाए हुए थे और ठंडी हवा के झोंके बदन में सिहरन भर रहे थे. गौरी ने बबलू को कंबल में लपेट कर गोद में लिटा रखा था. ईशान पास ही बैठा उस से अपने अनुभवों का वर्णन कर रहा था.

अचानक एक परिचित स्वर कानों में पड़ा. ईशान चौंक गया. मुड़ कर देखा, वही थी. साथ में एक मोटा आदमी था. पीछे वाली बैंच पर दोनों बैठे थे. ईशान की तरफ उन की पीठ थी.

‘‘मैं अपने मांबाप के साथ कुछ रोज पहले यहां आई थी,’’ रौनी सिसकते हुए कह रही थी, ‘‘मुझे क्या मालूम था… क्षमा कीजिए, मेरा नाम वैरोनिका है, वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं…मेरी मां को कैंसर था…’’

ईशान का दिल डूबने लगा. वह गौरी से आंखें न मिला सका. ऐसा लगा, जैसे उस ने उस की चोरी पकड़ ली हो.

2 आदमी हाथों में मूंगफली की पुडि़या लिए सामने से निकले. दोनों वार्त्तालाप में मस्त थे.

‘‘किसी शायर ने क्या खूब कहा है,’’ एक आदमी कह रहा था, ‘‘औरत केले के छिलके की तरह होती है, पैर पड़ा नहीं कि फिसल गए.’’

दोनों ठहाका मार कर हंस रहे थे. क्या खूब कहा था.

यह कैसा प्यार: क्या दूर हुई शिवानी की नफरत

आज मैं ने वह सब देखा जिसे देखने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. कालिज से घर लौटते समय मुझे डैडी अपनी कार में एक बेहद खूबसूरत औरत के साथ बैठे दिखाई दिए. जिस अंदाज में वह औरत डैडी से बात कर रही थी, उसे देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि वह डैडी के बेहद करीब थी.

10 साल पहले जब मेरी मां की मृत्यु हुई थी तब सारे रिश्तेदारों ने डैडी को दूसरा विवाह करने की सलाह दी थी लेकिन डैडी ने सख्ती से मना करते हुए कहा था कि मैं अपनी बेटी शिवानी के लिए दूसरी मां किसी भी सूरत में नहीं लाऊंगा और डैडी अपने वादे पर अब तक कायम रहे थे, लेकिन आज अचानक ऐसा क्या हो गया, जो वह एक औरत के करीब हो कर मेरे वजूद को उपेक्षा की गरम सलाखों से भेद रहे थे.

मुझे अच्छी तरह  से याद है कि मम्मी और डैडी के बीच कभी नहीं बनी थी. मम्मी के खानदान के मुकाबले में डैडी के खानदान की हैसियत कम थी, इसलिए मम्मी बातबात पर अपनी अमीरी के किस्से बयान कर के डैडी को मानसिक पीड़ा पहुंचाया करती थीं. मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आई कि जब डैडी और मम्मी के विचार आपस में मिलते नहीं थे तब डैडी ने उन्हें अपनी जीवनसंगिनी क्यों बनाया था.

कालिज से घर आते ही काकी मां ने मुझ से चाय के लिए पूछा तो मैं उन्हें मना कर अपने कमरे मेें आ गई और अपने आंसुओं से तकिए को भिगोने लगी.

5 बजे के आसपास डैडी का फोन आया तो मैं अपने गुस्से पर जबरन काबू पाते हुए बोली, ‘‘डैडी, इस वक्त आप कहां हैं?’’

‘‘बेटे, इस वक्त मैं अपनी कार ड्राइव कर रहा हूं,’’ डैडी बडे़ प्यार से बोले.

‘‘आप के साथ कोई और भी है?’’ मैं ने शक भरे अंदाज में पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें कैसे पता चला कि इस समय मेरे साथ कोई और भी है. क्या तुम्हें फोन पर किसी की खुशबू आ गई?’’ डैडी हंसते हुए बोले.

‘‘हां, मैं आप की इकलौती बेटी हूं, इसलिए मुझे आप के बारे में सब पता चल जाता है. बताइए, कौन है आप के साथ?’’

‘‘देखा तुम ने अरुणिमा, मेरी बेटी मेरे बारे मेें हर खबर रखती है.’’

मुझे समझते देर नहीं लगी कि डैडी के साथ कार में बैठी औरत का नाम अरुणिमा है.

‘‘जनाब, यहां आप गलत फरमा रहे हैं,’’ डैडी के मोबाइल से मुझे एक औरत की खनकती आवाज सुनाई दी, ‘‘अब वह आप की नहीं, मेरी भी बेटी है.’’

उस औरत का यह जुमला जहरीले तीर की तरह मेरे सीने में लगा. एकाएक मेरे दिमाग की नसें तनने लगीं और मेरा जी चाहा कि मैं सारी दुनिया को आग लगा दूं.

‘‘शिवानी बेटे, तुम लाइन पर तो हो न?’’ मुझे डैडी का बेफिक्री से भरा स्वर सुनाई दिया.

‘‘हां,’’ मैं बेजान स्वर में बोली, ‘‘डैडी, यह सब क्या हो रहा है? आप के साथ कौन है?’’

‘‘बेटे, मैं तुम्हें घर आ कर सब बताता हूं,’’ इसी के साथ डैडी ने फोन काट दिया और मैं सोचती रह गई कि यह अरुणिमा कौन है? यह डैडी के जीवन में कब और कैसे आ गई?

डैडी और अरुणिमा के बारे में सोचतेसोचते कब मेरी आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला.

7 बजे शाम को काकी मां ने मुझे उठाया और चिंतित स्वर में बोलीं, ‘‘बेटी शिवानी, क्या बात है? आज तुम ने चाय नहीं पी. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘काकी मां, मेरी तबीयत ठीक है. डैडी आ गए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, और वह तुम्हें बुला रहे हैं. उन्होंने कहा है कि तुम अच्छी तरह से तैयार हो कर आना,’’ इतना कह      कर काकी मां कमरे से बाहर निकल गईं.

थोड़ी देर बाद मैं ड्राइंगरूम में आई तो मुझे सोफे पर वही औरत बैठी दिखाई दी जिसे आज मैं ने डैडी के साथ उन की कार में देखा था.

‘‘अरु, यह है मेरी बेटी, शिवानी,’’ डैडी उस औरत से मेरा परिचय कराते हुए बोले.

न चाहते हुए भी मेरे हाथ नमस्कार करने की मुद्रा में जुड़ गए.

‘‘जीती रहो,’’ वह खुद ही उठ कर मेरे करीब आ गईं और फिर मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर उन्होंने मेरे माथे पर एक प्यारा चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘अगर मेरी कोई बेटी होती तो वह बिलकुल तुम्हारे जैसी होती. सच में तुम बहुत प्यारी हो.’’

‘‘अरु, यह भी तो तुम्हारी बेटी है,’’ डैडी हंसते हुए बोले.

डैडी के ये शब्द पिघले सीसे की तरह मेरे कानों में उतरते चले गए. मेरा जी चाहा कि मैं अपने कमरे में जाऊं और खूब फूटफूट कर रोऊं. आखिर डैडी ने मेरे विश्वास का खून जो किया था.

‘‘बेटी, तुम करती क्या हो?’’  अरुणिमाजी ने मुझे अपने साथ बैठाते हुए पूछा.

उस वक्त मेरी हालत बड़ी अजीब सी थी. जिस औरत से मुझे नफरत करनी चाहिए थी वह औरत मेरे वजूद पर अपने आप छाती जा रही थी.

मैं उन्हें अपनी पढ़ाई के बारे में बताने लगी. हम दोनों के बीच बहुत देर तक बातें हुईं.

‘‘काकी मां, देखो तो कौन आया है?’’ डैडी ने काकी मां को आवाज दी.

‘‘मैं जानती हूं, कौन आया है,’’ काकी मां ने वहां चाय की ट्राली के साथ कदम रखा.

‘‘अरे, काकी मां आप,’’  अरुणिमा उन्हें देखते ही खड़ी हो गईं.

चाय की ट्राली मेज पर रख कर काकी मां उन की तरफ बढ़ीं. फिर दोनों प्यार से गले मिलीं तो मैं दोनों को उलझन भरी निगाहों से देखने लगी.

अरुणिमा का इस घर से पूर्व में गहरा संबंध था, यह बात तो मैं समझ गई थी, लेकिन कोई सिरा मेरे हाथों में नहीं आ रहा था.

‘‘काकी मां, आप इन्हें जानती हैं?’’ मैं ने हैरत भरे स्वर में काकी मां से पूछा.

काकी मां के बोलने से पहले ही डैडी बोल पड़े, ‘‘बेटी, अरुणिमाजी का इस घर से गहरा संबंध रहा है. हम दोनों एक ही स्कूल और एक ही कालिज में पढ़े हैं.’’

तभी अरुणिमाजी ने डैडी को इशारा किया तो डैडी ने फौरन अपनी बात पलटी और सब को चाय पीने के लिए कहने लगे.

अब मेरी समझ में कुछकुछ आने लगा था कि मम्मीडैडी के बीच ऐसा क्या था जो वे एकदूसरे से बात करना तो दूर, देखना तक पसंद नहीं करते थे. निसंदेह डैडी शादी से पहले इसी अरुणिमाजी से प्यार करते थे.

चाय पीने के दौरान मैं ने अरुणिमाजी से काफी बातें कीं. वह बहुत जहीन थीं. वह हर विषय पर खुल कर बोल सकती थीं. उन की नालेज को देख कर मेरी उन के प्रति कुछ देर पहले जमी नफरत की बर्फ तेजी से पिघलने लगी.

उन की बातों से मुझे यह भी पता चला कि वह एक प्रोफेसर थीं. कुछ साल पहले उन के पति का देहांत हो गया था. उन का अपना कहने को इकलौता बेटा नितिन था, जो बिजनेस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए लंदन गया हुआ था.

रात का डिनर करने के बाद जब अरुणिमा गईं तो मैं अपने कमरे में आ गई. मैं ने कहीं पढ़ा था कि कुछ औरतों की भृकुटियों में संसार भर की राजनीति की लिपि होती है, जब उन की पलकें झुक जाती हैं तो न जाने कितने सिंहासन उठ जाते हैं और जब उन की पलकें उठती हैं तो न जाने कितने राजवंश गौरव से गिर जाते हैं.

अरुणिमाजी भी शायद उन्हीं औरतों में एक थीं, तभी डैडी ने दूसरी शादी न करने की जो कसम खाई थी, उसे आज वह तोड़ने के लिए हरगिज तैयार नहीं होते. मैं बिलकुल नहीं चाहती कि इस उम्र में डैडी अरुणिमाजी से शादी कर के दीनदुनिया की नजरों में उपहास का पात्र बनें.

सुबह टेलीफोन की घंटी से मेरी आंख खुली. मैं ने फोन उठाया तो मुझे अरुणिमाजी की मधुर आवाज सुनाई दी. ‘‘स्वीट बेबी, मैं ने तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया?’’

‘‘नहीं, आंटीजी,’’ मैं जरा संभल कर बोली, ‘‘आज मेरे कालिज की छुट्टी थी, इसलिए मैं देर तक सोने का मजा लेना चाह रही थी.’’

‘‘इस का मतलब मैं ने तुम्हारी नींद में खलल डाला. सौरी, बेटे.’’

‘‘नहीं, आंटीजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘आज तुम्हारी छुट्टी है. तुम मेरे घर आ जाओ. हम खूब बातें करेंगे. सच कहूं तो बेटे, कल तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा था.’’

‘‘लेकिन आंटी, डैडी की इजाजत के बिना…’’ मैं ने अपना वाक्य जानबूझ कर अधूरा छोड़ दिया.

‘‘तुम्हारे डैडी से मैं बात कर लूंगी,’’ वह बडे़ हक से बोली, ‘‘वह मना नहीं करेंगे.’’

उस पल जेहन में एक ही सवाल परेशान कर रहा था कि जिस से मुझे बेहद नफरत होनी चाहिए, मैं धीरेधीरे उस के करीब क्यों होती जा रही हूं?

1 घंटे बाद मैं अरुणिमाजी के सामने थी.

उन्होंने पहले तो मुझे गले लगाया, फिर बड़े प्यार से सोफे पर बैठाया. इस के बाद वह मेरे लिए नाश्ता बना कर लाईं. नाश्ते के दौरान मैं ने उन से पूछा, ‘‘आंटी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप से मिले हुए मुझे अभी सिर्फ 1 दिन हुआ है. सच कहूं तो मैं कल से सिर्फ आप के बारे में ही सोचे जा रही हूं. अगर आप मुझे पहले मिल जातीं तो कितना अच्छा होता,’’ यह कह कर मैं उन के घर को देखने लगी.

उन का सलीका और हुनर ड्राइंग रूम से बैडरूम तक हर जगह दिखाई दे रहा था. हर चीज करीने से रखी हुई थी. उन का घर इतना साफसुथरा और खूबसूरत था कि वह मुझे मुहब्बतों का आईना जान पड़ा.

उन के सलीके और हुनर को देख कर मेरे दिल में एक हूक सी उठ रही थी. मैं सोच रही थी कि काश, उन के जैसी मेरी मां होतीं. तभी मेरी आंखों के सामने मेरी मम्मी का चेहरा घूम गया. मेरी मम्मी एक मगरूर औरत थीं, उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त डैडी से लड़ते हुए बिताया था.

मेरी मम्मी ने बेशक मेरे डैडी के शरीर पर कब्जा कर लिया था, लेकिन वह उन के दिल में जगह नहीं बना पाई थीं, जोकि एक स्त्री अपने पति के दिल में बनाती है.

अब अरुणिमाजी की जिंदगी एक खुली किताब की तरह मेरे सामने आ गई थी. उन के दिल के किसी कोने में मेरे डैडी के लिए जगह जरूर थी. लेकिन उन्होंने डैडी से शादी क्यों नहीं की थी, यह बात मेरी समझ से बाहर थी.

शाम होते ही डैडी मुझे लेने आ गए. रास्ते में मैं ने उन से पूछा, ‘‘डैडी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आप से एक बात पूछ सकती हूं?’’

डैडी ने बड़ी हैरानी से मुझे देखा, फिर आहत भाव से बोले, ‘‘बेटे, मैं ने आज तक  तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है, जो आज तुम ऐसी बात कह रही हो. तुम जो पूछना चाहती हो पूछ सकती हो. मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगा.’’

‘‘आप अरुणिमाजी से प्यार करते हैं न?’’ मैं ने बिना किसी भूमिका के कहा.

डैडी पहले काफी देर तक चुप रहे फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘यह सच है कि एक वक्त था जब हम दोनों एकदूसरे को हद से ज्यादा चाहते थे और हमेशा के लिए एकदूसरे का होने का फैसला कर चुके थे.’’

‘‘ऐसी बात थी तो आप ने एकदूसरे से शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि तुम्हारे दादा ने मुझे अरुणिमा से शादी करने से मना किया था. तब मैं ने अपने मांबाप की मर्जी के बिना घर से भाग कर अरुणिमा से शादी करने का फैसला किया, लेकिन उस वक्त अरुणिमा ने मेरा साथ नहीं दिया था. तब उस का यही कहना था कि हमारे मांबाप के हम पर बहुत एहसान हैं, हमें उन के एहसानों का सिला उन के अरमानों का खून कर के नहीं देना चाहिए. उन की खुशियों के लिए हमें अपने प्यार का बलिदान करना पडे़गा.

‘‘मैं ने तब अरुणिमा को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. इसलिए हमें एकदूसरे की जिंदगी से दूर जाना पड़ा. कुछ दिन पहले वह मुझे एक पार्टी में नहीं मिलती तो मैं उसे तुम्हारी मम्मी कभी नहीं बना पाता. आज की तारीख में उस का एक ही लड़का है, जिसे अरुणिमा के तुम्हारी मम्मी बनने से कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘लेकिन डैडी, मुझे एतराज है,’’ मैं कड़े स्वर में बोली.

‘‘क्यों?’’ डैडी की भवें तन उठीं.

‘‘क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप की जगहंसाई हो.’’

‘‘मुझे किसी की परवा नहीं है,’’ डैडी सख्ती से बोले, ‘‘तुम्हें मेरा कहा मानना ही होगा. तुम अपने को दिमागी तौर पर तैयार कर लो. कुछ ही दिनों        में वह तुम्हारी मम्मी बनने जा रही है.’’

उस वक्त मुझे अपने डैडी एक इनसान न लग कर एक हैवान लगे थे, जो दूसरों की इच्छाओं को अपने नुकीले नाखूनों से नोंचनोंच कर तारतार कर देता है.

2 दिन पहले ही अरुणिमाजी का इकलौता बेटा नितिन लंदन से वापस लौटा तो उन्होंने उस से सब से पहले मुझे मिलाया. नितिन के बारे में मैं केवल इतना ही कहूंगी कि वह मेरे सपनों का राजकुमार है. मैं ने अपने जीवन साथी की जो कल्पना की थी वह हूबहू नितिन जैसा ही था.

कितनी अजीब बात है, जिस बाप को शादी की उम्र की दहलीज पर खड़ी अपनी औलाद के हाथ पीले करने के बारे में सोचना चाहिए वह बाप अपने स्वार्थ के लिए अपनी औलाद की खुशियों का खून कर के अपने सिर पर सेहरा बांधने की सोच रहा है.

आज अरुणिमाजी खरीदारी के लिए मुझे अपने साथ ले गई थीं. मैं उन के साथ नहीं जाना चाहती थी, लेकिन डैडी के कहने पर मुझे उन के साथ जाना पड़ा.

शौपिंग के दौरान जब अरुणिमाजी ने एक नई नवेली दुलहन के कपड़े और जेवर खरीदे, तो मुझे उन से भी नफरत होने लगी थी.

मैं ने मन ही मन निश्चय कर अपनी डायरी में लिख दिया कि जिस दिन डैडी अपने माथे पर सेहरा बांधेंगे, उसी दिन इस घर से मेरी अर्थी उठेगी.

आज मुझे अपने नसीब पर रोना आ रहा है और हंसना भी. रोना इस बात पर आ रहा है कि जो मैं ने सोचा था वह हुआ नहीं और जो मैं ने नहीं सोचा था वह हो गया.

यह बात मुझे पता चल गई थी कि डैडी को अरुणिमा आंटी को मेरी मां बनाने का फैसला आगे आने वाले दिन 28 नवंबर को करना था और यह विवाह बहुत सादगी से गिनेचुने लोगों के बीच ही होना था.

28 नवंबर को सुबह होते ही मैं ने खुदकुशी करने की पूरी तैयारी कर ली थी. मैं ने सोच लिया था कि डैडी जैसे ही अरुणिमा आंटी के साथ सात फेरे लेंगे, वैसे ही मैं अपने कमरे में आ कर पंखे से लटक कर फांसी लगा लूंगी.

दोपहर को जब मैं अपने कमरे में मायूस बैठी थी तभी काकी मां ने कुछ सामान के साथ वहां कदम रखा और धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘ये कपड़े तुम्हारे डैडी की पसंद के हैं, जोकि उन्होंने अरुणिमा बेटी से खरीदवाए थे. उन्होंने कहा है कि तुम जल्दी से ये कपड़े पहन कर नीचे आ जाओ.’’

मैं काकी मां से कुछ पूछ पाती उस से पहले वह कमरे से बाहर निकल गईं और कुछ लड़कियां मेरे कमरे में आ कर मुझे संवारने लगीं.

थोड़ी देर बाद मैं ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तो वहां काफी मेहमान बैठे थे. मेहमानों की गहमागहमी देख कर मेरी समझ में कुछ नहीं आया.

मैं सोफे पर बैठी ही थी कि वहां अरुणिमाजी आ गईं. उन के साथ नितिन नहीं आया था.

‘‘शिशिर, हमें इजाजत है?’’ उन्होंने डैडी से पूछा.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं, यह रही तुम्हारी अमानत. इसे संभाल कर रखिएगा,’’  डैडी भावुक स्वर में बोले.

तभी वहां नितिन ने कदम रखा, जो दूल्हा बना हुआ था.

मेरा सिर घूम गया. मैं ने उलझन भरी निगाहों से डैडी की तरफ देखा तो वह मेरे करीब आ कर बोले, ‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं अरुणिमा आंटी को तुम्हारी मम्मी बनाऊंगा. आज से अरुणिमा आंटी तुम्हारी मम्मी हैं. इन्हें हमेशा खुश रखना.’’

एकाएक मेरी रुलाई फूट पड़ी. मैं डैडी के गले लग गई और फूटफूट कर रोने लगी.

इस के बाद पवित्र अग्नि के सात फेरे ले कर मैं नितिन की हमसफर और अरुणिमाजी की बेटी बन गई.

संकल्प: क्या था कविता का प्लान

उसशनिवार की शाम मुंबई में रहने वाली मेरी पुरानी सहेली शिखा अचानक मेरे घर आई, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. अपनी सास की बीमारी के चलते वह मेरी शादी में शामिल होने दिल्ली नहीं आ सकी थी. इस कारण मेरे पति मोहित उस दिन पहली बार शिखा से मिले.

जब तक मैं चायनाश्ता तैयार कर के लाई, तब तक वे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए थे. मोहित के चेहरे पर छाई खुशी व पसंदगी के भाव बता रहे थे कि वे शिखा के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हैं.

मैं ने नोट किया कि पिछले 6 सालों में वह काफी बदल गई है. वार्त्तालाप करते हुए वह बारबार अच्छी अंगरेजी बोल रही थी. उस के कीमती सैट की महक से मेरा ड्राइंगरूम भर गया था. 2 बेटों की मम्मी होने के बावजूद वह नीली जींस और लाल टौप में सैक्सी और स्मार्ट लग रही थी.

मेरे 5 साल के बेटे मयंक के लिए शिखा रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कार लाईर् थी. अपनी शिखा मौसी के गाल पर आभार प्रकट करने वाली बहुत सारी पुच्चियां कर वह कार से खेलने में मस्त हो गया.

मेरे बनाए पकौड़ों के स्वाद की तारीफ करने के बाद शिखा बोली, ‘‘मेरे घर में 3 नौकर काम करते हैं. जो थोड़ाबहुत किचन का काम मैं शादी होने से पहले करना जानती थी अब वह भी भूल गई हूं.’’

‘‘जब नौकर घर में हैं तो तुझे काम करने की जरूरत ही क्या है? तू तो खूब ऐश कर,’’ मैं ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘ऐश तो मैं वाकई बहुत कर रही हूं, कविता. किसी चीज की कोई कमी नहीं है मेरी जिंदगी में. आधी से ज्यादा दुनिया घूम चुकी हूं और अगले महीने हम चीन घूमने जा रहे हैं.’’

‘‘अमीर होने का मेरी नजरों में सब से बड़ा फायदा यही है कि बंदा जब चाहे देशविदेश भ्रमण करने निकल सकता है. कहांकहां घूम आए हो तुम दोनों?’’ मैं ने उत्साहित लहजे में पूछा.

‘‘अपने देश के लगभग सारे हिल स्टेशन हम ने देख लिए हैं. यूरोप घूमने 3 साल पहले गए थे. उस से पिछले साल केन्या में सफारी का मजा लिया था.’’

मेरा कोई सपना है तो वह देशविदेश में खूब घूमने का. तभी पूरी दिलचस्पी दिखाते हुए उस के देशविदेश भ्रमण के अनुभव मैं ने काफी देर तक सुने.

‘‘मुझे यह तो बता कि तुम दोनों कहांकहां घूमे हो?’’ काफी देर तक अपनी सुनाने के बाद शिखा को हमारे बारे में कुछ पूछने का खयाल आया.

समस्या यह पैदा हुई कि हमारे पास बताने को ज्यादा कुछ नहीं था और इस बात ने मेरे अंदर अजीब सी बेचैनी पैदा कर दी.

‘‘हम हनीमून मनाने शिमला गए थे. उस शानदार और यादगार ट्रिप के बाद कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम चाह कर भी नहीं बना सके हैं,’’ मैं ने यों तो मुसकराते हुए जवाब दिया, पर न चाहते हुए भी मेरी आवाज में उदासी के भाव उभर आए थे.

‘‘अरे, उस हनीमून ट्रिप के अलावा पिछले 6 सालोें में क्या तुम सचमुच कहीं और घूम कर नहीं आए हो?’’ शिखा हैरान हो उठी.

‘‘नहीं यार,’’ मैं ने गहरी सांस खींच कर सफाई दी, ‘‘शादी के बाद से कोई न कोई बड़ा खर्चा हमारे सिर पर हमेशा खड़ा रहा है. पहले ननद की शादी की. छोटे देवर की इंजीनियरिंग की पढ़ाई इसी साल पूरी हुई है. पिछले 2 सालों से इस फ्लैट की किस्त हर महीने चुकानी पड़ती है. यों तो हम दोनों कमा रहे हैं, पर कहीं घूमने जाने के लिए बचत हो ही नहीं पाती है.’’

मुझे हर साल कहीं न कहीं घुमा कर लाने के लिए शिखा मोहित को प्रेरित करने लगी, पर मैं ने अपने मन को दुखी न करने के इरादे से वार्त्तालाप में हिस्सा लेना बंद कर दिया.

शिखा के साथ हंसनाबोलना मोहित को खूब अच्छा लगा. वह करीब 2 घंटे हमारे साथ रही और फिर लौटते हुए शिखा मुझ से बोली, ‘‘जब भी मौका लगेगा, मैं अपने पति को मोहित से मिलाने जरूर लाऊंगी. सच कविता तेरी शादी बहुत हंसमुख और दिल के अच्छे इंसान के साथ हुईर् है.’’

मोहित को छेड़ने के लिए मैं ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया, ‘‘तेरा साथ इन्हें कुछ ज्यादा ही पसंद आया है, वरना ये इतने ज्यादा हंसमुख नहीं हैं. ये अपनी छोटी साली के साथ भी इतना ज्यादा समय नहीं गुजारते हैं जितना तेरे साथ गुजारा है.’’

‘‘मैं छोटी नहीं बल्कि बड़ी साली हूं, इसलिए मुझे पूरा सम्मान देते हुए मेरा ज्यादा खयाल रखा है. मेरे साथ खूब मजेदार गपशप करने के लिए थैंकयू, मोहित,’’ शिखा ने मुड़

कर पीछे आ रहे मोहित से बड़ी गर्मजोशी से

हाथ मिलाया.

न जाने क्यों शिखा की ‘बड़ी साली’ वाली बात मेरे मन को चुभ गई. वह मुझ से साल भर बड़ी है, पर अब मैं उस से काफी ज्यादा बड़ी लगने लगी हूं, इस एहसास ने मेरा मन एकाएक खिन्न कर दिया.

अपनी कार के पास पहुंच कर शिखा संजीदा लहजे में बोली, ‘‘कविता, तू कुछ ज्यादा मोटी हो गई है. मैं जानती हूं कि तुझे चौकलेट और आइसक्रीम बहुत पसंद हैं, पर अब कुछ समय के लिए उन्हें खाना बंद कर दे.’’

‘‘यार, इन दोनों चीजों को खाना कम तो कर सकती हूं, पर बिलकुल बंद करना मुश्किल है,’’ मैं ने नकली हंसी हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘देख, अगर तू ऐसे ही फूलती चली गई, तो मोहित की जिंदगी में कोई दूसरी औरत आ जाएगी.’’

‘‘मैं कितनी भी मोटी हो जाऊं, पर ये मुझे छोड़ कर किसी की तरफ कभी नहीं देखेंगे,’’ मैं ने प्यार से मोहित का हाथ पकड़ कर कुछ तीखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘सहेली, यों आंखें मूंद कर जीना बंद कर,’’ शिखा गंभीर हो कर मुझे समझने लगी, ‘‘पत्नियों के लिए अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाए रखने में लापरवाही करना उन के सुखी दांपत्य जीवन के लिए खतरा बन सकता है. मेरी तरह सुंदर और फिट दिखने की कोशिश तुझे भी दिल से करनी चाहिए.’’

‘‘कमर में दर्द रहने की वजह से इस का वजन कुछ बढ़ गया है, पर यह ‘मोटो’ मुझे अभी भी बहुत सुंदर लगती है,’’ मोहित ने मेरी तरफदारी करने की कोशिश जरूर करी, पर उन का मेरे लिए ‘मोटो’ शब्द का प्रयोग करना मुझे अच्छा नहीं लगा.

‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार और दिल

के अच्छे इंसान हो,’’ मोहित की फिर से तारीफ करने के बाद वह मुझ से गले मिली और कार में बैठ गई.

शिखा के जाने के बाद मैं ने मोहित को बुझ हुआ सा देखा. मेरे लिए उन के  मनोभावों को समझना मुश्किल नहीं था. शिखा ने जातेजाते मेरी तुलना अपने साथ कर के मोहित का मूड खराब कर दिया था.

डिनर करते हुए भी हमारे बीच अजीब सी दूरी और खिंचाव बना रहा. मैं ने उन की सुखसुविधा का खयाल रखने में कभी कोई कमी नहीं रखी, पर आज उन का मुंह फुला कर घूमना मुझे मेरी अपनी नजरों में गिराने की कोशिश करने जैसा था. यह बात मेरे मन को बहुत दुखी कर रही थी.

उस रात मेरे मन में मोहित के साथ अपने दांपत्य संबंधों की मजबूती को ले कर असुरक्षा का भाव पहली बार उठा. हमारे यौन संबंधों में अब पहले जैसा जोश नहीं रहा है, यह एहसास मेरे मन को और ज्यादा परेशान कर रहा था.

वे सोने से पहले नहाने के लिए जब बाथरूम में जा रहे थे, तो मैं ने उन्हें रोक कर भावुक लहजे से पूछ ही लिया, ‘‘आज बहुत देर से यों उदास हो कर क्यों घूम रहे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं,’’ मुझ से नजरें चुराते हुए उन्होंने बुझे से लहजे में जवाब दिया.

‘‘क्या अपने मन की बात मुझ से नहीं कहोगे?’’ मैं एकदम से रोंआसी हो उठी.

‘‘हम अमीर न होने के कारण अभावों से भरी जिंदगी जी रहे हैं, इस कारण क्या तुम मन ही मन दुखी रहती हो?’’ उन की आवाज में मौजूद पीड़ा के भाव मुझे अंदर तक हिला गए.

‘‘ऐसा अजीब सवाल क्यों पूछ रहे हो?’’ मैं ने उन से उलटा सवाल किया.

‘‘शिखा जब अपनी देशविदेश की यात्राओं के विवरण तुम्हें सुना रही थी, तब मैं ने तुम्हारी आंखों में गहरे अफसोस के भाव साफ देखे थे. अपने खूब घूमने के सपनों को पूरा न कर पाने का तुम्हें क्या बहुत दुख है?’’

‘‘बच्चों जैसी बात मत करो,’’ मैं ने उन्हें प्यार से डपट दिया, ‘‘मैं पहले तुम्हारी सारी जिम्मेदारियों को पूरा करने के महत्त्व को समझती हूं और अपने हालात से पूरी तरह सुखी और संतुष्ट हूं, माई डियर हस्बैंड.’’

‘‘तुम सच बोल रही हो?’’ उन की आंखों में कुछ राहत के भाव उभरे.

‘‘मैं बिलकुल सच बोल रही हूं. आई एम वैरी हैप्पी विद यू,’’ मैं भावविभोर हो उन से लिपट गई.

‘‘मैं वादा करता हूं कि तुम्हें एक बार पूरे यूरोप की सैर जरूर कराऊंगा,’’ उन्होंने मेरे माथे को चूमा और फिर जोशीली आवाज में बोले, ‘‘हम कल ही बैंक में एक अकाउंट खोलेंगे. उस में जो रकम जमा होगी, वह सिर्फ तुम्हारे घूमने के शौक को पूरा करने के काम आएगी.’’

‘‘तुम सचमुच बहुत अच्छे हो,’’ उन के गाल पर प्यार भरा चुंबन अंकित करने के बाद मैं ने उन्हें बाथरूम में जाने की इजाजत दे दी.

पलंग पर लेट कर मैं अपने मानोभावों को समझने की कोशिश में लग गई.  मोहित शिखा के साथ मेरे रंगरूप की तुलना कर के शाम से दुखी हो रहे हैं, मेरा यह अंदाजा पूरी तरह से गलत निकला था.

सुंदर स्त्री का साथ सब पुरुष चाहते हैं और मैं ने मोहित की आंखों में भी आज खूबसूरत और स्मार्ट शिखा के लिए प्रशंसा के भाव कई बार साफ देखे थे. मेरी जिम्मेदारी बनती थी कि मोहित को एक खूबसूरत व आकर्षक जीवनसाथी का साथ हमेशा मिले.

मयंक के होने के बाद से अपने रंगरूप व फिगर का ढंग से रखरखाव न कर पाने के लिए मैं ने खुद को दोषी माना और फौरन इस कमी को दूर करने का फैसला मन ही मन कर लिया.

मैं जिंदगी की चुनौतियों के सामने हार मानने वालों में से नहीं हूं. अपने जीवन में कई महत्त्वपूर्ण कार्यों को मैं ने अकेले अपने बलबूते पर पूरा किया था.

मैं ने अपनी एमए की पढ़ाई बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर पूरी करी थी. अपने लिए मोहित का रिश्ता मैरिज साइट पर जा कर खुद ढूंढ़ा था. शादी के बाद मुझे जल्दी समझ में आ गया था कि अगर मैं ने नौकरी नहीं करी तो हमें हमेशा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा. घर के कामकाज में उलझे रह कर पढ़ाई करना कठिन था, पर मैं ने लगन और मेहनत के बल पर बीएड की डिगरी हासिल करी थी.

उसी जोशीले जलबे के साथ अपने दांपत्य संबंधों में जोश और खुशियां भरने का संकल्प मैं ने उसी पल कर लिया. हम शिखा की तरह अमीर नहीं थे, पर हमें आपस में साथ रहने को बहुत समय मिलता था. मैं ने फैसला किया कि अपने दांपत्य जीवन में हंसीखुशी और मौजमस्ती बढ़ाने के लिए मैं अब से इस समय का सदुपयोग बखूबी करूंगी.

मोहित ने मेरी खुशियों की खातिर नया अकाउंट खोलने का फैसला किया. इसी तर्ज पर 3 महीने बाद आ रही शादी की सालगिरह पर मैं ने खुद को ज्यादा फिट, आकर्षक और सुंदर बना कर उन्हें खास उपहार देने का पक्का मन बना लिया.

मैं ने उसी वक्त उठ कर सुबह 5 बजे का अलार्म लगाया. सुबह जल्दी उठ कर पार्क में घूमने जाने का मेरा पक्का इरादा था. मेरी कमर का दर्द अब मेरा वजन कम करने में कोई रुकावट खड़ी नहीं कर सकेगा. वैसे डाक्टर का कहना भी यही था कि नियमित रूप से व्यायाम करने से ही दर्द जड़ से जाएगा.

वे नहा कर बाहर आए तो खुल कर मुसकरा रहे थे. मुझे उन की आंखों में जी भर कर प्यार करने वाले भाव दिखे, तो मेरे दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ गईं.

मुझे लगा कि स्मार्ट और सैक्सी शिखा के साथ गुजारा वक्त टौनिक की तरह काम करते हुए मोहित को रोमांटिक बना रहा है, पर यह विचार मुझे परेशान नहीं कर सका. जल्द ही मैं खुद उन्हें ऐसा टौनिक भरपूर मात्रा में पिलाया करूंगी, अपने इस संकल्प को फिर से दोहरा कर मैं उन की मजबूत बांहों के घेरे में कैद हो गई. मन में एक डर था कि कहीं शिखा की बात सही न निकले. कोई मोहित को ले न उड़े.

3 माह बाद शिखा अचानक पहले की तरह बिना बताए आ धमकी. इन दिनों में मैं ने अपना वजन 3 किलोग्राम कम कर लिया था. बदन चुस्त हो गया था. मार्क्स ऐंड स्पैंसर से सेल में कुछ अपने लायक ड्रैसें भी ले आई थी जो लेटैस्ट डिजाइन की तो न थीं पर पहले वाले बहनजी रूप से मुझे बदलने लायक तो थी हीं. मेरा बेटा मयंक अब गंभीर हो कर पढ़ने लगा था और मोहित का रुख और ज्यादा प्यारा हो गया था. जब वह आई तो मैं ने देखा कि वह पहले की तरह चुस्त तो थी पर चेहरे पर उदासी की परत बिखरी थी.

बनावटी ठहाके से उस ने मोहित को पुकारा. ‘‘हाय जीजू कहां हो… देखो तो बड़ी साली आई है.’’

मोहित तुरंत कमरे से निकले पर इस बार वह गर्भजोशी नहीं थी जो पिछली बार शिखा के साथ 2 घंटे बाद हुई थी. उन्होंने हंस कर स्वागत किया और कहा, ‘‘सालीजी, यह क्या हुआ? इतने दिनों से कोई मैसेज नहीं, कोई हाय नहीं, कोई तुम्हारी सलोनी तसवीर नहीं.’’

मैं ने पूछा, ‘‘चीन कैसा रहा? रोज कोविड की वजह से चीन के बंद होने की खबरें आ रही थीं.’’

शिखा ने कहा, ‘‘अरे कहां का चीन? हम जा ही नहीं पाए. मेरे पति तो  आजकल भाइयों के विवाह में बुरी तरह फंस गए हैं. कहीं आनाजाना हो ही नहीं पा रहा. मैं दिल्ली उन्हीं के साथ आई हूं, एनसीएलएटी में इन की अपील है. अकेले आने की सोच रहे थे पर 3 वकीलों से कौंन्फ्रैंस तय हो गई.

‘‘उन के मन पर हरदम बोझ रहता है. वजन बढ़ने लगा है. बहुत टैंस रहते हैं. अब कंपनी के कामों के सिलसिले में बाहर जाना बंद सा हो गया है. जब हालत सुधरेंगे तब देखेंगे. मेरी छोड़ अपनी सुना कविता. स्मार्ट लग रही है. वजन भी कम हो गया है. लगता है जीजू कुछ ज्यादा खयाल रख रहे हैं.’’

वह 2 घंटे रुकी पर पिछली बार की तरह ठहाके नहीं लगा पा रही थी. चलते हुए बोली, ‘‘जो हाथ में है उसी को ऐंजौय कर कविता. मेरी अपनी फिलौसफी इन के मुकदमों ने बदल दी है,’’ फिर मयंक के लिए चौकलेट का डब्बा देते हुए बोली, ‘‘मयंक ट्यूशन से आए तो देना न भूलना.’’

उस के जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी खुश हूं. बेकार में कंपीटिशन करने लगी थी. हरेक के जीवन में उतारचढ़ाव आते हैं. दूसरों को ऊंचे जाते देख अपनी हार नहीं माननी चाहिए, अपना काम अपनी गति से करते रहना चाहिए वरना दुख कब पिछले दरवाजे से घुस जाए. पता नहीं.

अब मेरा डर गायब हो गया था. मैं ने मोहित की एक जोर की पप्पी ली और बरतन समेटने लगी. मोहित सोच रहे थे कि अचानक यह बारिश क्यों और कैसे हुई?

घर पर लीजिए कटहल की दम बिरयानी का मजा

बिरयानी खाना किसे पसंद नहीं, लेकिन वेजिटेरियन लोगों के लिए बिरयानी के ऑप्शन बेहद कम होते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने वाले हैं कटहल की बिरयानी के बारे में, जिसका स्वाद आप भूल नहीं पाएंगे. तो फिर देर किस बात की चलिए जानते हैं इसकी विधि.

सामग्री

  • 200 ग्राम कटहल के छिले व कटे डेढ़ इंच के टुकड़े
  • 1 कप चावल
  • 3 लौंग
  • 2 छोटी इलायची
  • 1 इंच टुकड़ा दालचीनी
  • 1 बड़ी इलायची
  • 1 तेजपत्ता
  • 2 छोटे चम्मच तेल
  • नमक स्वादानुसार.

सामग्री कटहल को मैरीनेट करने की

  • 2 बड़े चम्मच प्याज का पेस्ट
  • 2 छोटे चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट
  • 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  • 1 छोटा चम्मच देगी मिर्च पाउडर
  • 1 बड़ा चम्मच मोटा बेसन
  • 1 छोटा चम्मच रिफाइंड औयल
  • कटहल तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल
  • नमक स्वादानुसार.

अन्य सामग्री

  • 1/2 कप लंबे कतलों में कटा व भुना प्याज
  • 1/4 कप दही
  • 2 बड़े चम्मच प्याज का पेस्ट
  • 1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट
  • 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
  • 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला
  • 2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर
  • 1 छोटा चम्मच देगी मिर्च पाउडर
  • 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर
  • 5-6 केसर के धागे 1 चम्मच केवड़ा में भिगोए हुए
  • 1/4 कप टोमैटो प्यूरी
  • 2 तेजपत्ते
  • 2 बड़े चम्मच पुदीनापत्ती कटी
  • 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी
  • 2 हरीमिर्चें लंबाई में चीरी हुईं
  • 1 बड़ा चम्मच अदरक के बारीक कतरे लच्छे
  • 1 छोटा चम्मच जीरा
  • 3 बड़े चम्मच तेल
  • 3 बड़े चम्मच देशी घी
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

चावलों को साफ कर के 20 मिनट पानी में भिगाए रखें. कटहल के टुकड़ों को 20 मिनट मैरिनेट कर के अलग रखें. 6 कप पानी उबालें और उस में खड़े मसाले, नमक, तेल डालें और फिर चावल डाल कर उन के 80% गलने तक पकाएं और फिर मांड़ पसा दें. मैरिनेट किए कटहल के टुकड़ों को गरम तेल में सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें. एक अन्य बरतन में तेल गरम कर के प्याज, अदरक व लहसुन भूनें. फिर दही, सूखे मसाले व नमक डाल कर भूनें. फिर टोमैटो प्यूरी डालें. जब मसाला तेल छोड़ने लगे तो उस में 11/2 कप पानी व कटहल के टुकड़े डाल कर 2 मिनट तेज आंच पर पकाएं. अब एक भारी पैंदे के बरतन में नीचे 2 बड़े चम्मच देशी घी डाल कर तेजपत्ता लगाएं. फिर आधे चावलों की तह लगा दें. उन पर पूरा कटहल फैला दें. साथ ही भुना प्याज आधा. अब पुन: थोड़े से चावल फैलाएं और उन पर भुना प्याज, अदरक, हरीमिर्च, धनिया व पुदीनापत्ती फैला दें. बचे चावलों की तह लगाएं. ऊपर से केसर घोट कर फैला दें और फिर बचा देशी घी. ढक्कन लगाएं और बिलकुल धीमी आंच पर 10 मिनट दम कर के सर्व करें.

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब 

प्रदूषित हवा में ऐसिड अधिक होने की वजह से स्किन रूखी हो जाती है और प्रदूषण के कण उन के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजाऐसा क्लींजर यूज करें जो स्किन से नमी निकाले बिना उसे मौइस्चराइज करे. स्किन पर मौइस्चराइजर लगाने के बजाय फेशियल औयल यूज करें. यह हानिकारक तत्वों को स्किन में प्रवेश करने से रोकता है. स्किन में मौजूद औयल प्रदूषण के हानिकारक कण और धूलमिट्टी को हटाने में टोनर मदद करता है.

इसलिए मौइस्चराइजर के बाद टोनर लगाएं. समयसमय पर स्किन की स्क्रबिंग करना भी जरूरी हैलेकिन हलके हाथों से ताकि स्किन धूलमिट्टी और औयल से पूरी तरह फ्री हो जाए. आप चाहें तो फेशियल की जगह हलदी वाला या फिर आलू वाला फेस मास्क भी लगा सकती हैं. यह भी स्किन पर प्रदूषण के असर को कम करने में मदद करेगा.

हम साथ-साथ हैं: क्या परिवार को मना पाए राजेशजी

‘‘क्या बात है, पापा, आजकल आप अलग ही मूड में रहते हैं. कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते हैं. पहले तो आप को इस रूप में कभी नहीं देखा. इस का कोई तो कारण होगा,’’ कुनिका के इस सवाल पर कुछ पल मौन रहे. फिर ‘‘हां, कुछ तो होगा ही’’ कह राजेशजी चाय का घूंट भरते हुए अखबार ले कर बैठ गए.

इकलौती लाड़ली कुनिका कब चुप रहने वाली थी, ‘‘कोई ऐसावैसा काम न कर बैठना, पापा. अपनी उम्र और हमारी इज्जत का ध्यान रखना.’’

क्या यह उन की वही नन्ही बिटिया है जिसे पत्नी के गुजर जाने के बाद मातापिता दोनों का लाड़ दिया. तब बेटी और नौकरी बस 2 ही तो लक्ष्य रह गए थे. पर जब 19 वर्षीया कुनिका, असगर के साथ भाग गई थी तब भी बिना किसी शिकायत और अपशब्द के बेटी की इच्छा को पूरी तरह मान देने की बात, अखबारों में अपील कर के प्रसारित करवा दी. 4 दिन बाद कुनिका, असगर को छोड़ वापस आ गई थी और अपने इस गलत चुनाव के लिए पछताई भी थी.

तब शर्मिंदगी से बचने व बेटी के भविष्य के लिए उन्होंने अपना तबादला भोपाल करा लिया. अब समय का प्रवाह, उन्हें 65 बसंत के पार ले आया था. जीवन यों ही चल रहा था कि पिछले 1 वर्ष से पार्क में सैर करते हुए रेनूजी से परिचय हुआ. उन की सादगी, शालीनता, बातचीत में मधुरता देख उन के प्रति एक अलग सा मोह उत्पन्न हो रहा था. रेनूजी, यहां छोटे बेटेबहू के साथ रह रही थीं. बड़ा बेटा परिवार सहित अमेरिका में रह रहा था.

‘‘अपने बारे में कुछ सोचती हैं कभी?’’ एक दिन बातों ही बातों में राजेशजी ने कहा.

‘‘अपने बारे में अब सोचने को रहा ही क्या है? हाथपांव चलते जीवन बीत जाए,’’ कहते हुए रेनूजी का चेहरा उदास हो उठा था.

कुछ दिनों बाद, राजेशजी ने जीवनभर का साथ निभाने का प्रस्ताव रेनूजी के समक्ष रख दिया, ‘‘क्या आप मेरे साथ बाकी का जीवन बिताना चाहेंगी? अकेलेपन से हमें मुक्ति मिल जाएगी.’’

‘‘इस उम्र में यह मेरा परिवार, आप का परिवार, समाज, हम…’’ शब्द गले में ही अटक गए थे.

‘‘एक विधवा या विधुर को जीवन बसाने की तमन्ना करना क्या गुनाह है? हम ने अपने कर्तव्य पूरे कर लिए हैं. अब कुछ अपने लिए तलाश लें तो भला गलत क्या है? तुम्हारी स्वीकृति हम दोनों को एक नया जीवन देगी.’’

‘‘हां, यह सच है कि अकेलापन, मन को पीडि़त करता है. पर जीवन तो बीत ही गया, अब कितना बचा है जो…’’ कंपित स्वर था रेनूजी का, ‘‘अब मैं चलती हूं,’’ तेजी से वे चली गईं.

इधर, 10-12 दिनों से वे घर से नहीं निकलीं. उस दिन माला, रोहन से कह रही थी, ‘‘आजकल मम्मी घूमने नहीं जातीं. गुमसुम बैठी रहती हैं. मातम जैसा बनाए रखती हैं चेहरे पर.’’

‘‘कोई बात नहीं. अपनेआप ठीक हो जाएगा मूड. तुम टाइम से तैयार हो जाना. लंच पर रमेश के घर जाना है.’’

बेटे के इस उत्तर पर, रेनूजी की आंखें भर आईं. न जाने क्या सोच कर राजेशजी को मोबाइल पर नंबर लगा दिया. उधर से राजेशजी का मरियल स्वर सुन वे घबरा गईं, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, 8 दिनों से तबीयत थोड़ी खराब चल रही है. बेटीदामाद लंदन गए हुए हैं. 2-4 दिनों में ठीक हो जाऊंगा,’’ और हलकी सी हंसी हंस दिए वे.

उस दिन 2 घंटे बाद, रेनूजी दूध, फल आदि ले राजेशजी के घर पहुंच गईं. तब राजेशजी के चेहरे की खुशी व तृप्ति, रेनूजी को अपने अस्तित्व की महत्ता दर्शा गई. आज का दिन उन की ‘स्वीकृति’ बन गया.

2 हफ्तों बाद, एकदूसरे को माला पहना, जीवनसाथी बन, रेनूजी के चेहरे पर संतोष के साथसाथ दुश्चिंता केभाव भी स्पष्ट थे. दोनों परिवारों के बच्चों से सामना करने का संकोच गहराता जा रहा था.

‘‘मुझे तो घबराहट व बेचैनी हो रही है कि बच्चे क्या कहेंगे? आसपास के लोग क्या कहेंगे? पांवों में आगे बढ़ने की ताकत जैसे खत्म हो रही है.’’

‘‘सब ठीक होगा. मैं हूं न तुम्हारे साथ. हर स्वीकृति कुछ समय लेती है. अब हमारे कदम रुकेंगे नहीं पहले मेरे घर चलो.’’

छोटी बिंदी और मांग में सिंदूरभरी महिला को पापा के साथ दरवाजे पर खड़ा देख कुनिका के अचकचा कर देखने पर परिचय कराते हुए राजेशजी बोले, ‘‘बेटी, ये तुम्हारी मां हैं. हम ने आज ही विवाह किया है. और…’’

‘‘यह क्या तमाशा है, पापा? शादी क्या कोई खेल है जो एकदूसरे को माला पहनाई और बन गए…’’

‘‘पहले पूरी बात तो सुनो, अगले माह कोर्टमैरिज भी होगी,’’ बीच में ही राजेशजी ने जवाब दे डाला.

‘‘कुछ भी हो, यह औरत मेरी मां नहीं हो सकती. इस घर में यह नहीं रह सकती,’’ वह उंगली तानते हुए बोली.

‘‘पर यह घर तो मेरा है और अभी मैं जिंदा हूं. इसलिए तुम इन्हें रोक नहीं सकतीं.’’

तभी रेनूजी ने आगे बढ़ते हुए कहा, ‘‘सुनो तो, बेटी.’’

‘‘मैं आप की बेटी नहीं हूं. मत करिएयह नाटक,’’ कुनिका पैर पटकती अंदर चली गई.

‘‘आओ रेनू, तुम भीतर आओ,’’ रेनूजी का उतरा चेहरा देख, राजेशजी ने समझाते हुए कहा, ‘‘हमारे इस फैसले को ये लोग धीरेधीरे अपनाएंगे. थोड़ा सब्र करो, सब ठीक हो जाएगा.’’

चाय बनाने के लिए रेनूजी के रसोई में घुसते ही, कुनिका ‘हुंह’ के साथ लपक कर बाहर निकल आई. पीछेपीछे राजेशजी भी वहीं पहुंच गए.

‘‘मेरे बच्चे भी न जाने क्याकुछ कहेंगे, कैसा व्यवहार करेंगे,’’ उन के पास जाने की सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है,’’ चाय कपों में उड़ेलते हुएरेनूजी कह रही थीं, ‘‘मैं ने रोहन को बता दिया है मैसेज कर के. बस, अब बच्चों को एहसास दिलाना है कि हम उन के हैं, वे हमारे हैं. हम अलग रहेंगे पर सुखदुख में साथ होंगे. कोशिश होगी कि हम उन पर बंधन या बोझ न बनें और उन की खुशी…’’

तभी कुनिका की दर्दभरी चीख सुन सीढि़यों की तरफ से आती आवाज पर दोनों उस ओर लपके. वह कहीं जाने के लिए निकली ही थी कि ऊंची एड़ी की सैंडिल का बैलेंस बिगड़ने से 4 सीढि़यों से नीचे आ गिरी. रेनूजी व राजेशजी ने सहारा दिया और उस के कक्ष में बैड पर लिटा दिया. पहले तो दर्दनिवारक दवा लगाई फिर रेनूजी जल्दी से हलदी वाला गरम दूध ले आईं. कुनिका का पांव देख रेनूजी समझ गईं कि मोच आई है. राजेशजी से मैडिकल बौक्स ले कर उस में से पेनकिलर गोली दी. साथ ही, पांव में क्रेपबैंडेज भी बांध दिया.

‘‘परेशान न हो, कुनिका. कुछ ही घंटों में यह ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए रेनूजी ने पतली चादर उस के पैरों पर डाल उस के माथे पर हाथ फेर दिया.

धीरेधीरे दर्द कम होता गया. अब कुनिका आंखें बंद किए सोच रही थी, ‘सच में ही इस औरत ने पलक झपकते ही यह स्थिति सहज ही संभाल ली. अकेले पापा तो कितने नर्वस हो जाते.’ कुछ बीती घटनाओं को याद करते हुए वह सोचने लगी, ‘पापा वर्षों से अकेलेपन में जीते आए हैं. अब उन्हें मनपसंद साथी मिला है तो मैं क्यों चिढ़ रही हूं?

‘‘बेटी, अब कैसा लग रहा है?’’ माथे पर रेनूजी का गुनगुना स्पर्श, मन को ठंडक दे गया.

‘‘मैं ठीक हूं, आप परेशान न हों,’’ एक हलकी मुसकान के साथ कुनिका का जवाब पा रेनूजी का मन हलका हो गया.

अगले दिन रेनूजी अपने द्वार की घंटी बजा, राजेशजी के साथ दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा में खड़ी थीं. दरवाजा खुला, माला ने दोनों को एक पल देखा और बिना कुछ कहे भीतर की ओर बढ़ गई. सामने लौबी में रोहन चाय पी रहा था. वह न तो बोला, न उस ने उठने का प्रयास किया और न इन लोगों से बैठने को कहा. राजेशजी स्वयं ही आगे बढ़ कर बोले, ‘‘हैलो बेटे, मैं राजेश हूं. तुम्हारी मां का जीवनसाथी. हम जानते हैं कि हमारा यह नया रिश्ता तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा पर तुम्हें अब अपनी मां की चिंता करने की जरूरत नहीं होगी. हम दोनों…’’

‘‘बेकार की बातें न करें. हमारे बच्चे, समाज, आसपास के लोगों के बारे में कुछ तो सोचा होता. इतनी उम्र निकल गई और अब शादी रचाने की इच्छा जागृत हो गई आप लोगों की. क्या हसरत रह गई है अब इस उम्र में? मेरी मां तो ऐसा स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थीं. यह सब आप का फैलाया जाल है. क्या इस वृद्धावस्था में यह शोभा देता है? आखिर, कैसे हम अपने रिश्तेदारों में गरदन उठा पाएंगे?’’ क्रोध और तनाववश रोहन का चेहरा विदू्रप हो उठा था.

तभी रेनूजी सामने आ गईं, ‘‘कौन से रिश्तेदारों की बात कर रहा है. जब मैं 2 छोटे बच्चों के साथ मुसीबतों से जूझ रही थी तब तो कोई अपना सगा सामने नहीं आया. तुम्हारे पापा की मृत्यु के साथ जैसे मेरा अस्तित्व भी समाप्त हो गया था. पर मैं जिंदा थी. सच पूछो तो मुझे स्वयं पर गर्व है कि मैं ने अपना कर्तव्य पूरी तरह निभाया, तुम बच्चों को ऊंचाई तक पहुंचाया.’’

तभी पास रखी कुरसी खींच, उस पर बैठते हुए राजेशजी बोले, ‘‘तुम्हारा कहना कि हमारी उम्र बढ़ गई है, तभी तो यह रिश्ता हसरतों का नहीं, साथ रहने व संतुष्टि पाने का है. बेटे, एक बार हमारी भावना, संवेदना पर गौर करना, सोचना और हमें अपना लेना. हम तो तुम्हारे हैं ही, तुम भी हमारे हो जाना. तुम्हारा छोटा सा साथ, हमें ऊर्जा व खुशी से लबालब रखेगा. अब हम चलते हैं.’’

उसी शाम कुनिका को भी फोन कर दिया, ‘‘आज गौरव भी भारत आ जाएगा. परसों रविवार की सुबह तुम लोग, साकेत वाले फ्लैट पर आ जाना. और हां, रेनूजी का परिवार भी निमंत्रित है. तुम सब की प्रतीक्षा होगी हमें.’’ फोन डिसकनैक्ट करने ही वाले थे कि उधर से आवाज आई, ‘‘पापा, हम जरूर आएंगे. बायबाय.’’ राजेशजी के चेहरे पर मुसकराहट छा गई.

वर्षों पूर्व छुटी एक ही रूम में सोने की आदत, अपनाने में असहजता व कुछ अजीब सा लग रहा था राजेशजी व रेनूजी को. फिर भी बातें करतेकरते एक सुकून के साथ कब वे दोनों नींद की आगोश में समा गए, पता ही न लगा. गहरी नींद में सोई हुई रेनूजी, अलार्म की घंटी पर, हलकी सी चीख के साथ जाग पड़ीं, ‘‘क्या हुआ? कौन है?’’

‘‘अरे, कोई नहीं. यह तो घड़ी का अलार्म बजा है.’’

‘‘अभी तो शायद 4 या साढ़े 4 ही बजे होंगे और यह अलार्म?’’

‘‘हां, मैं इतनी जल्दी उठता हूं, फिर फ्रैश हो कर सैर करने के लिए निकल जाता हूं. तुम चलोगी?’’ राजेशजी के पूछने पर, ‘‘अरे नहीं, मैं आधी रात के बाद तो सो पाई हूं कि…’’ परेशानी युक्त स्वर में जवाब आया.

‘‘क्यों? क्या तुम्हें नींद न आने की समस्या है?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. असल में नई जगह पर नींद थोड़ी कठिनाई से आ पाती है.’’

जीवन में कई ऐसी बातें होती हैं जिन पर गौर नहीं किया जाता, खास महत्त्व नहीं दिया जाता. और फिर अचानक ही वे महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं, जैसे कि राजेशजी को चटपटी सब्जी, एकदम खौलती हुई चाय, मीठे के नाम पर बूंदी के लड्डू बहुत पसंद हैं. इस के विपरीत रेनूजी को सादा, हलके मसाले की सब्जी और बूंदी के लड्डू की तो गंध भी पसंद नहीं आती. पर अब वे दोनों ही एकदूसरे की पसंद पर ध्यान देने लगे हैं, एकदूसरे की खुशी का ध्यान पहले करते हैं.

रविवार की दोपहर, राजेशजी व रेनूजी के घर में दोनों परिवारों के बच्चे एकदूसरे से परिचित हो रहे थे. रोहन और माला चुपचुप थे पर कुनिका और गौरव बातों में पहल कर रहे थे. तभी राजेशजी की आवाज पर सब चुप हो गए.

‘‘बच्चों, हम कुछ कहना चाहते हैं. हमारी इस शादी से किसी के परिवार पर भी आर्थिक स्तर पर कोई दबाव नहीं होगा. प्रौपर्टी बंट जाएगी या ऐसी ही कुछ और समस्या का सामना होगा, ऐसा कुछ भी नहीं होगा. हम दोनों ने कोर्ट में ऐफिडेविट बनवा कर निश्चय किया है कि हम पतिपत्नी बन कर एकदूसरे की चलअचल संपत्ति पर हक नहीं रखेंगे. अपनी इच्छा से अपनी संपत्ति गिफ्ट करने की स्वतंत्रता होगी. अपनीअपनी पैंशन अपनी इच्छा से खर्च करने की मरजी होगी. खास बात यह कि तुम्हारी मां अपनी पैंशन को हमारे घर के खर्च पर नहीं लगाएंगी. यह खर्च मैं वहन करूंगा. आर्थिक सहायता नहीं, पर भावनात्मक या कभी साथ की जरूरत हुई तो हम बच्चों की राह देखेंगे. हम तो तुम्हारे हैं ही, बस, तुम्हें अपना बनता हुआ देखना चाहेंगे. और भी कुछ जिज्ञासा हो तो आप पूछ सकते हैं,’’ इतना कह राजेशजी, प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में चुप हो गए.

‘‘हम आप के साथ हैं, आप की खुशी में हम भी खुश हैं,’’ दोनों परिवारों के सदस्यों ने समवेत स्वर में कहा. तभी राजेशजी ने रेनूजी का हाथ धीरे से थामते हुए कहा, ‘‘शेष जीवन, कटेगा नहीं, व्यतीत होगा.’’

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