YRKKH: अभीर से मिले बिना चला जाएगा अभिमन्यु, हैप्पी फैमिली का सपना अधूरा रह गया

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ लगातर दर्शकों का चाहेता शो बन गया है. ये शो स्टार प्लास का सबसे पुराना सीरियल है. आज भी टीआरपी में ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ टॉप पर है. शो के मेकर्स आए दिन नए-नए ट्विस्ट लेकर आते है. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि एक तरफ जहां अक्षरा अपने पति और बेटे के संग हैप्पी फैमिली के तरह रहेगी, वहीं दूसरी ओर अभिमन्यू के आंसू थमने का नाम नहीं लेंगे.

अभिमन्यू के पास जाएगी अक्षरा

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अक्षरा- अभिमन्यू के पास जाएगी. अक्षरा को देखते ही अभिमन्यू एकदम शांत हो जाएगा. अक्षरा कहेगी- मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं. आंसू वही है बस आंखें बदली है. अपने बच्चों से दूर होने का दर्द समझ सकती हूं. मुझे माफ कर दो अभिमन्यू. मैं अभीर को तुमसे अलग नहीं करना चाहती थी. बस मैं खुद उसके साथ रहना चाहती थी. अभिमन्यू काफी इमोशनल हो जाएगा. वह कहेगा कि मैने हमेशा हैप्पी फैमिली का सपना देखा लेकिन वह कभी पूरा नहीं हो पाया. अक्षरा अभिमन्यू को समझने की खूब कोशिश करती है लेकिन अभिमन्यू के आंसू थमने का नाम नहीं लेंगे.

 

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अक्षरा और अभिनव के साथ जाएगा अभीर

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में देखने को मिलेगा कि  अक्षरा भी अभीर और अभिनव के साथ गोयनका हाउस में जाएगी. जहां अभीर अपने मम्मी-पापा के साथ खुश नजर आएगा वहीं अभिमन्यू दुखी नजर आएगा. अभिमन्यू को देख रूही परेशान हो जाती है.

अभीर से बिना मिले चला जाएगा अभीर

आगे सीरियल में देखने को मिलेगा कि सुबह होते ही अभिमन्यू अभीर को सारा सामान पैक कर गोयनका हाउस ले जाएगा . अभिमन्यू, अभीर को गोयनका हाउस में खुश देखकर भावुक हो जाएगा. वह वहां से अभीर से बिना मिले चला जाएगा, लेकिन अक्षरा रोकती है. हालांकि अभिमन्यू, अक्षरा की आवाज सुनकर अनसुनी कर देता है.

अपनें सपनों को पूरा करें एवॉन के साथ

आज के समय में एक महिला का आत्मनिर्भर होना और अपने बल पर जीना बहुत जरूरी है. वैसे भी आज महिलाओं के पास आगे बढऩे के बहुत से मौके हैं जिन का उपयोग कर वे सहजता से अपना करियर बना सकती हैं. लेकिन महिलाओं के जीवन में आगे बढऩे के रास्ते में कई तरह की बाधाएं आती हैं. कभी घर परिवार और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी तो कभी बड़े बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी. ऐसे में चाहते हुए भी वे आगे नहीं बढ़ पातीं. उन्हें अपना काम छोडऩा पड़ता है. महिलाओं की इसी समस्या को देखते हुए एवॉन आप को घर से काम करने की सुविधा देता है. ताकि आप घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए या दूसरे काम करते हुए भी बहुत आसानी से अपना एक मुकाम बना सकें.

हम ऐसी ही महिलाओं का अनुभव आप के लिए ले कर आए हैं जिन से आप को एवॉन के साथ जुड़ कर अपना करियर बनाने का रास्ता खोजने की प्रेरणा मिलेगी:

मेरठ में रहने वाली 42 साल की शालिनी खन्ना पिछले करीब 14 सालों से एवॉन से जुड़ी हुई हैं और अब वह 50,000 तक की कमाई करती हैं. उनके दो बेटे हैं जिनकी उम्र 25 साल और 23 साल की है. शालिनी बताती हैं, एक बार मैं किसी मीटिंग में गई थी. वहीं मैं ने एवॉन के बारे में सुना. एक ऐसी कंपनी जिसके जरिए आप को घर बैठे काम करने का मौका मिलता है. आप बिना ज्यादा परेशान हुए अच्छी खासी कमाई कर सकती हैं.

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यह कांसेप्ट मुझे बहुत अच्छा लगा. मैंने इसके कुछ प्रोडक्टस खरीदे जो मुझे बहुत पसंद आए. फिर मैंने अपनी फैमिली मेंबर्स और रिलेटिव्स को ये प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया. उन लोगों ने प्रोडक्ट्स खरीदे और बहुत खुश हुए क्योंकि प्रोडक्ट्स की क्वालिटी बहुत अच्छी थी. इस तरह मेरा काम शुरू हुआ और एवॉन के जरिए मैं अपने करियर के रास्ते में आगे बढ़ती चली गई.

एवॉन के जरिए शालिनी अब तक पांच इंटरनेशनल ट्रिप्स कर चुकी हैं और कई नेशनल ट्रिप्स पर जा चुकी हैं. वह बताती हैं, मेरे किचन के ज्यादातर इक्विपमेंट्स और यहाँ तक कि वाशिंग मशीन भी एवॉन से गिफ्ट्स के रूप में मिले हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि आप का कोई बॉस नहीं होता. कोई पूछने वाला नहीं होता कि आप ने क्या काम किया है क्या नहीं. आप को अपने हिसाब से काम करने की अनुमति मिलती है. इस काम के सिलसिले में हमें डोर टू डोर नहीं जाना होता है बल्कि मैं पार्लर में कैटलॉग दे कर आती हूं. फिर हमें आर्डर मिलता है.

आजकल तो कैटलॉग वगैरह भी ऑनलाइन भेजे जा सकते हैं. इस काम के लिए सब से जरूरी है टाइम मैनेजमेंट. कभी कंपनी हमारे साथ और कभी हम अपने कस्टमर्स के साथ मीटिंग्स करते हैं. कंपनी कुछ नया लांच करती है तो हम लोगों को इनवाइट करते हैं. उन्हें डेमो देते हैं और फिर अगर प्रोडक्ट्स उन्हें पसंद आता है तो हम ऑर्डर मंगवाते हैं. हमें घर बैठे काम करने को मिल रहा है इस से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता. वैसे भी ऑनलाइन सारे काम हो जाते हैं. वह बताती हैं कि कंपनी ने हमेशा उन का सपोर्ट किया.

इसी तरह 26 साल की गुरुग्राम में रहने वाली अनमोल बग्गा भी करीब 10 सालों से एवॉन से जुड़ कर काम कर रही हैं. उन की माँ हाउसवाइफ है और पिता का इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस है. अनमोल बताती हैं, जब मैं 16 साल की थी तब क्लास 10 में थी. उस समय मुझे स्कूल और ट्यूशन जाना होता था. मेरी एक कजिन मेरे घर में रहती थी और वह एवॉन की मेंबर थीं.

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उन्होंने मुझे बोला कि एवॉन की कैटलॉग अपने ट्यूशन में ले जाना. तेरी किसी सहेली को कुछ पसंद आए तो मुझे बताना. मेरे अंदर शुरू से ही मार्केटिंग स्किल बहुत अच्छी थी. मैं किसी को कोई बात इस तरह समझाती हूँ कि सामने वाला उसे मान जाता है.

ऐसा ही यहां भी हुआ. मुझे पहले ही दिन 20-30 हजार का आर्डर मिल गया. मेरी कजिन शॉक्ड हो गई और कहने लगी कि मुझे तो पिछले 2 साल में इतने आर्डर नहीं मिले जो तू एक बार में ले आई. फिर कुछ समय बाद वह मेरे घर से चली गई मगर मुझे आर्डर आते रहे. तब मैंने एवॉन ज्वाइन कर लिया. मेरा ग्रुप्स बढ़ते गए. स्कूल और ट्यूशन के अलावा भी मेरी बहुत फ्रेंड्स थीं. 2 साल इसी तरह बीत गए. मैं समझ गई थी कि आगे जाकर मुझे मार्केटिंग के फील्ड में ही आगे जाना है.

इधर मेरे पापा विदेश में जिन के साथ बिजनेस करते थे उन के बेटे ने वहीं एक कॉस्मेटिक्स की दुकान खोली. तब मैंने उन के बेटे से बात की और बताया कि ये प्रोडक्ट्स कितने नेचुरल होते हैं. मैंने उनको डिस्काउंट्स भी दिए. मुझे पता था कि मुझे महीने का 10-15 लाख का आर्डर मिल रहा है. मैंने सारी कैलकुलेशन बिठाई कि किस हिसाब से मेरे गिफ़्ट्स बनेंगे. मुझे कितना कमीशन मिलेगा और मैं उस को मैक्सिमम कितने डिस्काउंट्स दे सकती हूँ कि मेरा भी फायदा हो.

मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया. यहाँ मेरे नए कॉन्टेक्ट्स बने. सोशल मीडिया पर मैंने अपनी टीम बनाई. लोग मेरे नीचे जुडऩे लग गए. कॉलेज का अपना पूरा खर्च मैं खुद उठाती थी. चेक अच्छा आने लगा. फिर मेरी एमबीए की पढ़ाई शुरू हुई. एवॉन की मार्केटिंग का एक्सपीरियंस वहां काफी काम आया. मुंबई में गर्ल्स हॉस्टल में मेरे कॉन्टेक्ट्स बढ़े. मुंबई में भी मैंने एवॉन के लिए टीम बना ली. अब मैं एक अच्छी कंपनी में फुल टाइम जॉब भी कर रही हूँ और साथ ही पार्ट टाइम एवॉन का बिजनेस भी कर रही हूँ. एवॉन से मुझे करीब 4 लाख सालाना इनकम है.

42 साल की आशा कुकरेजा चंडीगढ़ से बिलॉन्ग करती है। उनके पति बिजनेसमैन है जब कि बेटी कॉलेज में और बेटा बारहवीं में पढ़ाई कर रहा है. आशा कुकरेजा एक जॉइंट फैमिली से संबंध रखती है. करीब 12 साल पहले जब उन्होंने एवॉन से जुड़ कर काम करना शुरू किया.

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वह बताती हैं, शुरुआत में एवॉन के साथ मैं केवल सेलिंग परपस से जुड़ी थी. घरवालों को लगता था कि छोटी मोटी चीजें बेच कर कितना कमा लेगी. मगर धीरे धीरे मैंने टीम बनाई, लोगों से जुड़ती गई और मेरी सेल बढ़ी तो एवॉन की तरफ से बहुत सारे गिफ्ट्स आए. घर के मैक्सिमम इलेक्ट्रॉनिक आइटम जैसे फ्रिज, फुली ऑटोमेटिक मशीन, एयरफ्रायर, माइक्रोवेव वगैरह सब मुझे गिफ्ट में एवॉन के जरिए मिला. यही नहीं मैं मलेशिया का फॉरेन ट्रिप भी कर के आ चुकी हूं.

एवॉन से जुडऩे के बेनिफिट के बारे बताते हुए आशा कुकरेजा कहती हैं, फाइनेंसियल बेनिफिट के अलावा मेरा सोशल सर्कल बना है और आत्मविश्वास बढ़ा है. एवॉन के द्वारा अवार्ड शो होते हैं जिस में हमें रिकॉग्निशन मिलती है. इस उम्र में आकर इस तरह की पहचान बनना बहुत बड़ी बात है. यही नहीं मुझे कॉस्मेटिक्स, ब्यूटी प्रोडक्टस और स्किन केयर की काफी नॉलेज हो गई है.

लोग मुझ से सलाह लेते हैं. बच्चों को भी मेरे लिए प्राउड फील होता है. उस समय मुझ में इतना आत्मविश्वास नहीं था. लेकिन एवॉन से जुडऩे के बाद मेरी अपनी अलग आइडेंटिटी बनी. ऐसा लगता है जैसे मैं ने एक मुकाम को छू लिया है. यह अहसास मेरे लिए सब से बड़ा बेनिफिट है. यही नहीं हर ऑर्डर के साथ हर महीना गिफ्ट जरूर आता है और यह एक हाउसहोल्ड गिफ्ट होता है जो महिलाओं को बहुत पसंद आता है.

एवॉन से जुड़ी ज्यादातर महिलाओं की ऐसी ही कहानी है. एवॉन ने उन के सपने सच करने में उन का काफी साथ दिया है. उन के जीवन को एक दिशा और गति दी. उन्हें आत्मनिर्भर और सक्षम बनाया. उन के इरादों को बुलंदी और करियर को नया मुकाम दिया.

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सलमान खान ने खास अंदाज में बहन अर्पिता को किया बर्थडे विश, देखें फोटो

बॉलीवुड के जाने-माने स्टार सलमान खान का शो बिग बॉस ओटीटी 2 इन दिनों काफी धूम मचा रहा है. सलमान खान की फिल्मों से ज्यादा इस शो की चर्चा हो रही है. वहीं, अपने प्रोफेशनल करियर में काफी व्यस्त रहने वाले सलमान खान कई खास मौकों पर अपने परिवार के साथ समय बिताने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद, अभिनेता अपनी बहन अर्पिता खान के जन्मदिन समेत कुछ महत्वपूर्ण अवसरों को याद रखते है.

अर्पिता को सलमान ने दी जन्मदिन की शुभकामनाएं

सलमान खान ने 3 अगस्त को इंस्टाग्राम पर अपनी छोटी बहन को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए एक अनमोल पुरानी तस्वीर साझा की. उन्होंने तस्वीर को कैप्शन देते हुए लिखा, “हैप्पी बर्थडे अर्पिता के साथ (Heart and Hugs) का इमोजी,@arpitahansharma.”

 

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यह तस्वीर उनके शुरुआती करियर के दिनों की है, जहां वह ब्लॉक प्रिंट के साथ अपनी सिग्नेचर विंटेज ब्लैक लेदर जैकेट पहने नजर आ रहे हैं. दूसरी ओर, नन्हीं अर्पिता खान सफेद फ्रॉक में बेहद प्यारी लग रही हैं. सलमान की पोस्ट पर उनके फैंस से अपार प्यार मिल रहा है.

इन फिल्मों में नजर आएंगे सलमान खान

सलमान खान इसी साल अपनी ‘टाइगर 3’ से बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाने वाले हैं. टाइगर 3 एक्शन का तीसरा चैप्टर है जिसे पहली बार 2012 में रिलीज किया गया था, जिसका नाम ‘एक था टाइगर था’, जिसका निर्देशन कबीर खान ने किया था. पहली फिल्म में सलमान और कैटरीना कैफ भी थे.

इसके बाद 2017 में अली अब्बास जफर द्वारा निर्देशित ‘टाइगर जिंदा है’ आई. तीसरी फिल्म मनीष शर्मा द्वारा निर्देशित की जा रही है और इसमें इमरान हाशमी को खलनायक के रूप में पेश किया जाएगा.

ऐसे में कहा जा रहा है कि टाइगर 3 में शाहरुख खान का कैमियो भी होगा. जैसा कि लोगों को पता होगा, सलमान SRK की कमबैक ‘पठान’ फिल्म में टाइगर के रूप में दिखाई दिए थे.

खूंटियों पर लटके हुए: भाग -1

वह झल्लाता हुआ अपने कमरे में वापस आया और पत्रिका जोर से मेज पर पटक दी, ‘‘क्या पड़ी थी मुझे जो पत्रिका देने चला गया था. अपनी तरफ से कुछ करो तो यह नखरे करने लगती है. सुरेश के सामने ही बुराभला कह डाला. मेरी बला से जहन्नुम में जाए.’’

फिर कुछ संयत हो कर उस ने दराज में रखी डायरी उठाई और उस में कुछ लिखने के बाद 2-4 बार उलटीसीधी कंघी बालों में चलाई और फिर कौलर को सीधा करता हुआ बाहर चल दिया कि आज खाने का वक्त गुजार कर ही घर लौटूंगा. देखूं, मैडम क्या करती हैं. अभी तो कई जोरदार पत्ते मेरे हाथ में हैं.

ड्राइंगरूम से बाहर निकलते हुए उसे सुरेश के जोरदार ठहाके की आवाज सुनाई पड़ी. वह पलभर को ठिठका. गुस्से की एक लहर सी दिमाग में उठी, पर फिर सिर झटक कर तेज कदमों से बाहर निकल आया.

जाड़ों के दिन थे. 11 बजे भी ऐसा लग रहा था, जैसे अभी थोड़ी देर पहले ही सूरज निकला हो. वैसे भी रविवार का दिन होने से सड़क पर ट्रैफिक कम था. उसे छुट्टी की खुशी के बदले कोफ्त हुई. औफिस खुला रहता तो वहीं जा बैठता.

बाइक पर बैठ कर कुछ दूर जा कर फिर दाएं मुड़ गया. इस समय लोधी गार्डन ही अच्छी जगह है बैठने की, वहीं आराम किया जाए. फिर वह एक बैंच पर जा लेटा. सामने का नजारा देख उसे अक्षरा की याद आने लगी. जिधर देखो जोड़े गुटरगूं में लगे थे.

वह सोचने लगा कि सभी तो कामदेव के हाथों पराजित हैं. मैं ने भी यदि शादी न की होती तो चैन रहता. आज छुट्टी होते हुए भी यों पार्क में तो न लेटना पड़ता. दोस्तों के साथ कहीं घूमता. अब अक्षरा से शादी के बाद किसी के यहां अकेले भी नहीं जा सकता.

अतिरिक्त आवेग में वह अमेरिका जाने के बारे में विचार करने लगा. फिर सोचने लगा कि पहले जैसी बात तो अब है नहीं, अमेरिका में नौकरियां कौन सी आसानी से मिलती हैं. नहीं मैं अमेरिका नहीं जा सकता. फिर बबलू को कैसे देखूंगा?

फिर कड़वाहट से बुदबुदाया कि मैं अमेरिका ही चला जाता हूं. बेटे से मेरा क्या मतलब… दुनिया की नजर में मैं बाप हूं, पर

घर में कोई घास नहीं डालता. जहन्नुम में जाएं सब. इस बात से उसे हमेशा हैरानी हुई है कि क्या सभी लड़कियां ऐसी ही होती हैं? जहां अपने पति को देखा कि नाकभौंहें के चढ़ जाती हैं. लेकिन बाहरी लोगों के आगे कैसी मधुरता और विनम्रता की अवतार बन जाती हैं.

इधर सालभर से तो मैडम कभी झल्लाए और चिढ़े बिना बात ही नहीं करतीं. ये तेवर तो तब हैं, जब मैं कमा रहा हूं. यदि बेकार होता और सिर्फ बीवी की कमाई से ही घर चल रहा होता, तब तो मेरी स्थिति गुलामों से भी बदतर होती.

वह अपनी कमाई से साडि़यां लाती है, बच्चों के कपड़ों पर खर्र्च करती है, बैंक में डालती है. घर का सारा खर्च तो मैं ही चलाता हूं. इतना घमंड किस बात का है.

उस ने उंगलियों पर हिसाब किया. यह छठा दिन है. आज से 6 दिन पहले वह उसे रेस्तरां ले गया था. खाना बहुत अच्छा था और मूड भी अच्छा था. लौटते वक्त रास्ते में उस ने चमेली के फूलों का गजरा खरीदा. मन बहुत खुश था. वह एक पुराना गीत गुनगुनाता रहा था, ‘‘गोरी मो से जमना के पार मिलना…’’

घर आ कर कपड़े बदलने के बाद वह फिर ड्रैसिंगटेबल के आगे खड़ी हो कर गालों पर क्लींजिंग क्रीम लगाने लगी. उस ने मूड में आ कर पीछे से उस की गरदन चूमते हुए कुछ कहना चाहा. तभी अक्षरा ने गरदन ?ाटक दी. एक हाथ से गरदन को झड़ कर उस की तरफ यों घूर कर देखा जैसे वह कोई अपरिचित हो और अनधिकार वहां घुसा हो. वह फिर शीशे में देख कर क्रीम लगाने लगी.

उस का बनाबनाया मूड पलभर में बिखर गया. नशा टूटने पर अफीमची को जैसा अनुभव होता है, वैसा ही लगा. मन में खिलते गुलाब, चमेली, चंपा के तमाम फूल तत्काल मुर?ा गए. इन औरतों को बैठेबैठे यों ही क्या हो जाता है, समझना कठिन है.

चेहरा सख्त बनाए हुए उस ने भी कपड़े बदले. स्टडीरूम में आ कर टेबललैंप जलाया और यों ही एक मोबाइल उठा कर देखने लगा. उस की आंखें जरूर मोबाइल पर थीं, पर कान पत्नी की जरा सी भी आहट को लपकने को तैयार थे.

जब बैडरूम की बत्ती बुझ तो वह धीरे से उठा. बाहरी कमरों के चक्कर लगा कर दरवाजे सब देख लिए. बैडरूम का दरवाजा बंद हैं या नहीं धीरे से बंद कर वह भी पलंग पर आ लेटा. सिरहाने चमेली का गजरा रख दिया. खिड़की से आ रही हलकी लाइट पलंग पर पड़ रही थी. सिरहाने रखे गजरे की सुगंध फैलने लगी.

अक्षरा उस की तरफ पीठ फेरे दूसरे किनारे पर सो रही थी. चांदनी के हलके आभास में वह उस की समान गति से उठतीगिरती पीठ और कंधे देख रहा था.

यों ही थोड़ी देर देखते रहने के बाद उस ने जरा लापरवाही के साथ एक हाथ अक्षरा की कमर पर रख दिया. श्वास में थोड़ा सा अंतर पड़ा. उस ने अक्षरा की पीठ को थोड़ा सहलाया और उसे धीरे से अपनी तरफ खींचना चाहा.

तभी वह झटके के साथ उठ बैठी. झनझन कर बोली, ‘‘क्यों तंग कर रहे हो? दिनभर की थकी हूं, रात में भी चैन नहीं लेने देते.’’

हलके अंधेरे में उस की आंखें बिल्ली की तरह चमक रही थीं. उस ने कुछ कहने का प्रयास किया, पर तब तक वह और परे खिसक कर पीठ फेर कर लेट गईर् थी. शादी से पहले

तो जब भी मौका मिलता था वह लपक कर बांहों में समा जाती थी, शादी हुई नहीं कि तेवर बदल गए.

वह कमरे की छत को घूरता रहा. मन कर रहा था, अक्षरा को खींच कर उठाए, कस कर दो ?ापड़ लगाए और पीठ फेर कर लेट जाए. पर आज का आदमी या तो बड़ा कायर है या आवश्यकता से अधिक सभ्य हो गया है. उसे अंगरेजी की एक पत्रिका में छपा कार्टून याद आया, जिस में आदिम युग का एक जंगली सा पुरुष कंधे पर मोटे से तने की अनगढ़ गदा रखे, चमड़ा कमर में लपेटे एक स्त्री के बाल पकड़ कर उसे खींचे लिए जा रहा है. स्त्री की कमर में भी चमड़े का वस्त्र लिपटा है, वह जमीन पर पड़ी घिसटती जा रही है.

एक वह जमाना था. आज हम सभ्य हो गए हैं. आपसी संबंधों में सरलता की जगह जटिलताएं आ गई हैं. वह सोचने लगा कि मैं उस जमाने में हुआ होता तो अच्छा रहता. रात में पता नहीं उसे कब नींद आई.

उस दिन से यही दिनचर्या है. बहुत सोचने पर भी वह इस तरह के व्यवहार का कारण सम?ा नहीं पाया. दिनभर पत्नी सामान्य कामकाजी बातों के अलावा उस से कुछ नहीं कहतीसुनती. रात में दोनों एक पलंग पर यों सोते हैं जैसे बीच में कोसों की दूरी हो.

आज सुरेश आया तो उस ने पत्नी को हफ्ते भर में पहली बार जरा हंसतेबोलते सुना. सुरेश उस के साथ स्कूल और कालेज में पढ़ा था. अब वह उसे जरा भी नहीं सुहाता. उस के तौरतरीके घटिया, बाजारू से लगते. खासतौर पर उस की हमेशा माउथ फ्रैश खाते रहने की आदत से वह बहुत चिढ़ता. पर उस की पत्नी उसे बड़े प्यार से ‘देवरजी’ और वह ‘भाभी’ कहता. उसे तो उस का आना ही नहीं सुहाता.

साथ: भाग 3- पति से दूर होने के बाद कौन आया शिवानी की जिंदगी में

भारी मन से मैं घर से साहिल के घर पहुंच गई. वहां काफी भीड़ थी. शाम को मन न होते हुए भी पार्टी में जाना पड़ा, पर सारा वक्त मन साहिल के खयाल में ही डूबा रहा. मांजी को गुजरे हुए 13 दिन हो गए तो साहिल ने औफिस आना शुरू कर दिया. हमारा मिलनाजुलना फिर शुरू हो गया. मैं ने

महसूस किया कि अब हम पहले से ज्यादा करीब आ चुके थे. जो प्यार व सम्मान मुझे अमन से नहीं मिला था वह साहिल ने मुझे दिया था.

एक दिन साहिल ने मुझ से कहा, ‘‘शिवी, मां के जाने के बाद मैं बिलकुल अकेला हो गया हूं. तुम मेरे पास आ जाओ तो हम अपनी दुनिया बसाएंगे.’’

मैं बहुत खुश हो गई. मुझे उस वक्त अमन का खयाल तक नहीं आया. मैं ने साहिल से कुछ वक्त मांगा. उस शाम मैं जब घर पहुंची तो अमन पहले ही घर आ चुके थे. उन्होंने मुझे बताया कि अगले दिन मम्मीपापा कुछ दिनों के लिए हमारे पास आ रहे हैं. मैं ने साहिल से फोन पर कहा कि मैं कुछ दिन नहीं मिल पाऊंगी.

सासससुर के घर में आते ही मेरा सारा ध्यान घर पर लग गया. अमन भी अब जल्दी घर आ जाते थे. मैं साहिल से फोन पर भी ठीक से बात नहीं कर पा रही थी. एक दिन मौका पा कर मैं ने साहित से बात की.

फोन उठाते ही वह बोला, ‘‘शिवी, प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो. तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे बिना अब नहीं रह सकता.’’

‘‘साहिल तुम समझने कोशिश करो. घर पर मम्मीपापा हैं, उन को वापस जाने दो फिर हम मिलेंगे,’’ मैं ने उसे समझया.

‘‘शिवी, मां के जाने के बाद तुम ही मेरा सहारा हो. प्लीज, एक बार मिलने आ जाओ,’’ उस ने मुझ से कहा.

‘‘मैं कोशिश करती हूं. बाय, मांजी बुला रही हैं,’’ मैं ने जल्दी से फोन काट दिया.

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आज जब मांपापा के घर होने के कारण मैं साहिल से ठीक से बात तक नहीं कर पा रही हूं तो अमन से तलाक की बात मैं कैसे करूंगी? फिर जब मेरे मम्मीपापा, भैयाभाभी यहां आएंगे तो उन को क्या कहूंगी? अमन को मुझ में जो कमियां दिखती थीं वे तो मैं ने दूर कर ली थीं. अब हमारे बीच कोई लड़ाई नहीं होती थी. क्या कहूंगी सब को कि एक सहकर्मी से प्यार हो गया?

मैं सारी रात परेशान रही. सुबह बिस्तर से उठी तो चक्कर खा कर गिर पड़ी. अमन ने मुझे संभाला. आंख खुली तो बिस्तर पर निढाल पड़ी थी और अमन मेरा सिर दबा रहे थे. सासूमां चाय का कप ले कर हमारे कमरे में दाखिल हुईं.

‘‘बहू, अब से तू बस आराम कर,’’ उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुझे कुछ करने की जरूरत नहीं है. मैं ने तेरे पापा से कह दिया कि अब जब तक पोते का मुंह नहीं देख लेती मैं वापस नहीं जाने वाली,’’ उन का चेहरा यह कहतेकहते चमक रहा था.

‘‘पोता?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां मैडमजी पोता, पर मां मुझे बेटी चाहिए बिलकुल शिवानी जैसी,’’ अमन ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. उन के चेहरे पर ऐसी खुशी मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी. मेरी समझ में अब सारी बात आ चुकी थी. मैं मां बनने जा रही थी.

‘‘मेरी सासूमां ने मेरी नजर उतारी. उस दिन तो फोन पर फोन आते रहे. कभी मम्मी का, कभी दीदी का, कभी बूआ का तो कभी भाभी का. सब मुझ पर स्नेह और शुभकामनाओं की बौछार कर रहे थे और ढेर सारी नसीहतें भी दे रहे थे. सारा दिन कैसे गुजरा पता ही नहीं चला. मुझे साहिल का खयाल भी नहीं आया. रात को जब साहिल का फोन आया तो मैं फिर परेशान हो गई. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? मैं बहक गई थी पर भटकी नहीं थी. मुझे साहिल से मिलना जरूरी हो गया था.’’

अगले दिन मैं ने अमन से कहा कि मुझे  जौब से इस्तीफा देना है, तो उन्होंने भी साथ चलने को कहा. पर उन्हें समझबुझकर मैं अकेली ही निकली और सीधे साहिल के पास पहुंच गई.

‘‘शिवी तुम… तुम नहीं जानतीं मैं कितना खुश हूं तुम को देख कर,’’ साहिल ने दरवाजे पर ही मुझे गले लगा लिया.

‘‘साहिल, मैं तुम से कुछ कहने आई हूं,’’ मैं ने उसे अपने से दूर करते हुए कहा.

‘‘क्या बात है शिवी, तुम परेशान लग रही हो?’’ साहिल ने शायद मेरे चेहरे को पढ़ लिया था, ‘‘अंदर आओ पहले तुम.’’

हम दोनों अब घर के अंदर थे. मैं ने एक ही सांस में साहिल को अपने मां बनने की बात कह दी और अपनी परेशानी भी.

‘‘देखो शिवी, तुम को परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं थोड़ा भटक गया था, भूल गया था कि तुम पर मुझ से पहले किसी

और का हक है. तुम बिलकुल परेशान मत होना शिवी, मैं तुम से बहुत दूर चला जाऊंगा. बस तुम खुश रहो,’’ साहिल की आंखें भर चुकी थीं.

मैं ने साहिल का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘साहिल, हमारा रिश्ता साथ रहने से ही बनता? तुम मेरी जिंदगी की सब से बड़ी हिम्मत हो और मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा मेरी हिम्मत बने रहो. हम साथ रह नहीं सकते तो क्या हुआ, साथ निभा तो सकते हैं. एकदूसरे का सहारा तो बन सकते हैं. तुम चाहो तो शादी कर सकते हो, पर मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी. हम दोस्त बन कर रहेंगे. सुखदुख में एकदूसरे का सहारा बनेंगे.

‘‘मैं मानती हूं कि समाज इस रिश्ते को सही नहीं मानेगा पर चंद लोगों की सोच के लिए हम अपनी खुशियों को नहीं मारेंगे. बोलो तुम मेरा साथ दोगे?’’

‘‘शिवी, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, एक साए की तरह,’’ साहिल के चेहरे पर चमक आ गई.

आज 5 वर्षों के बाद भी मैं और साहिल साथ हैं. एकदूसरे के सहारे की तरह. साहिल की शादी हो चुकी है. हम दोनों अपने परिवार में खुश हैं, क्योंकि हम एकदूसरे के साथ हैं. अगर हम एकदूसरे के साथ नहीं होते तो शायद हम अपने घर में भी खुश नहीं होते.

सीख: भाग 1-आखिर वंदना ने कौन-सी योजना बनाई

वंदना और मनोज की शादी करीब 3 महीने पहले हुई थी. इतने कम समय में वह 5वीं बार मायके में रहने आ गई.

पति मनोज को ऐसा करने पर कोई एतराज नहीं था. उसे पता था कि जब वह लौटेगी तो खूब सारा सामान व रुपए साथ लाएगी.

वंदना अपने पिता शैलेंद्रजी और भाई विकास की खास लाडली थी. उस का हालचाल पूछने के बाद शैलेंद्रजी फोन पर कारोबारी बातें करने में व्यस्त हो गए और विकास फैक्टरी का काम देखने चला गया.

अचानक वंदना को ख्याल आया और उस ने अपनी मां कमला से पूछा, ‘‘भाभी कहां है मां?’’

‘‘अपने कमरे में आराम कर रही है,’’ कमला की आवाज में चिंता के भाव उभरे.

‘‘क्यों?’’

‘‘कल रात वह गुसलखाने में फिसल गई थी. आज कमर में तेज दर्द के कारण उस से हिला भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘उफ,’’ वंदना ने अजीब सा मुंह बनाया.

‘‘थोड़ी देर बाद तू ही उस के साथ डाक्टर के यहां चली जाना.’’

‘‘सौरी मां. मैं यहां आराम और मौजमस्ती करने आई हूं. मुझे किसी काम के झंझट में मत डालो प्लीज.’’

कमला को अपनी बेटी की यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह अपनी कविता भाभी से मिले बिना नहानेधोने के लिए अपने पुराने कमरे में घुस गई.

वंदना नहाधो कर सो गई. जब वह कमरे से बाहर आई तब तक लंच का समय हो गया था.

डाइनिंगटेबल पर होटल से आया खाना सजा था. वंदना इस बात से खुश हुई पर उस के भाई और पिता नाराज हो उठे. उन्हें बाहर का खाना पसंद न था.

‘‘मैं कविता को डाक्टर के यहां ले कर गई थी. फिर घर में खाना कौन बनाता,’’ कमला ने नाराजगीभरे अंदाज में अपनी तरफ से सफाई दी.

‘‘वंदना बना सकती थी,’’ ये शब्द उन दोनों में से किसी की जबान पर नहीं आए क्योंकि इस घर में वंदना पर घर के कामों की जिम्मेवारी डालने की अहमियत दोनों ने कभी महसूस ही नहीं करी थी.

खाना खाने के बाद वंदना ने 10 मिनट का समय कविता के साथ बिताया. फिर अपने कमरे में घुस कर उपन्यास पढ़ने में मग्न हो गई.

शाम को वंदना अपनी एक पुरानी सहेली से मिलने चली गई. लौटने के बाद देर तक मनोज से फोन पर गपशप करती रही.

रात का खाना कमला ने अकेले बनाया. बेटी ने काम में जरा भी हाथ नहीं बंटाया, इस बात का गुस्सा मन में लगातार बना रहा. इसी कारण कपल का माइग्रेन का तेज दर्द उभर आया और वह बिना खाना खाए सोने चली गई.

कविता का खाना उस के कमरे में विकास ले कर गया. वंदना ने अपनी भाभी का खयाल रखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

अगले दिन सुबह कमला तेज सिरदर्द  के कारण पलंग से उठ नहीं पाई. जब तक वंदना अपने कमरे से बाहर निकली, तब तक शैलेंद्रजी और विकास बिना नाश्ता किए काम पर निकल चुके थे.

वंदना ने अपने व कविता के लिए मक्खन ब्रैड तैयार किए. यों किचन में काम करते हुए उस का मूड काफी खराब हो गया.

‘‘कमर का दर्द कल से ज्यादा बढ़ गया है,’’ कविता के मुंह से यह बात सुन कर वंदना और ज्यादा चिड़ीचिड़ी सी हो गई.

कमला ने वंदना के सामने फोन कर के अपने पति व बेटे को बाहर ही लंच करने की सलाह दी. रसोई में घुसने के झंझट से बचने के लिए वंदना अपनी एक अन्य सहेली के घर चली गई.

शाम को लौटी तो पाया कि कमला सिर पर चुन्नी बांधे कमरे में लेटी है. रात का खाना तैयार करने के लिए तब वंदना को मजबूरन रसोई में घुसना पड़ा.

‘‘मैं यहां गैस के सामने खड़े हो कर पसीना बहाने नहीं आई हूं. तुम सासबहू को यों साथसाथ बीमार पड़े रहना है तो मुझे वापस भेज दो…’’ खाना पकाते हुए वंदना लगातार यों बड़ाबड़ा कर अपना गुस्सा प्रकट करती रही.

अभ्यास न होने के कारण वंदना खाना अच्छा नहीं बना सकी. उस के पिता व भाई ने तो चुपचाप आधाअधूरा पेट भर लिया, पर कमला चुप नहीं रह सकी.

‘‘तुम ढंग से दालसब्जी भी नहीं बना सकती हो वंदना,’’ कमला ने उसे डांटा, ‘‘मुझे शर्म आ रही है यह सोच कर कि मनोज के साथ तुम कैसेकैसे नाम सुनती होगी.’’

‘‘मनोज के साथ मैं बहुत खुश रहती हूं और सब मुझे सिरआंखों पर बैठा कर रखते हैं,’’ वंदना ने चिड़ कर जवाब दिया.

‘‘जिस पत्नी को घर के काम नहीं आते, उस की पति के घर में कभी इज्जत नहीं होती है वंदना.’’

‘‘मेरी होती है क्योंकि मेरे सासससुर अलग रहते हैं और उन्हें न माइग्रेन है और न मेरी ननद की कमर में दर्द रहता, जो उन्हीं के साथ रहती है.’’

‘‘कविता और मुझे ताना दे रही हो तुम?’’

‘‘मां, तुम जैसा चाहो, वैसा समझ लो.

मुझे भूख नहीं रही है,’’ नाराज वंदना झटके से कुरसी से उठी और पैर पटकती अपने कमरे में जा घुसी.

‘‘विकास, तुम कल कविता को स्पैशलिस्ट को दिखाओ. वंदना मायके आ कर परेशान और नाराज रहे, यह बात ठीक नहीं,’’ शैलेंद्रजी भी नाराज से हो उठे और अपने कमरे में चले गए.

‘‘मां, कविता कामचोर तो बिलकुल नहीं है. कमरदर्द का बहाना नहीं कर रही है वह,’’ विकास ने भी नाराजगी दर्शाते हुए अपनी पत्नी का पक्ष लिया.

‘‘मुझे मालूम है कि मेरी बहू काम करने वाली और समझदार है. तुम वंदना की बातों पर ध्यान दे कर परेशान मत होओ. उसे खुद को अच्छी गृहिणी बनने की समझ अभी तक नहीं आई है,’’ विकास को यों समझ कर शांत करने के बाद कमला गहरे सोचविचार में लीन हो गई.

अगले दिन विकास कविता को हड्डियों के स्पैशलिस्ट डाक्टर को दिखाने ले गया. बाद में दोनों कविता की बूआ के घर चले गए. रात को दोनों वहीं से खाना खा कर लौटे.

वंदना को सारा दिन किचन में काम करना पड़ा. इस कारण वह भरी बैठी थी और उन के घर में घुसते ही दोनों से झगड़ पड़ी.

‘‘ये कमर का दर्द अच्छा है जिस के कारण खूब घूमने का मौका मिलने लगा,’’ उस ने जहर बुझे स्वर में दोनों को सुनाया, ‘‘फिल्म देखो… बाजार में घूमो… नौकरानी की ड्यूटी देने के लिए ही तो मैं मायके आई हूं.’’

‘‘बेकार की बातें मुंह से निकाल कर

दिमाग खराब मत कर वंदना,’’ विकास ने उसे डांट दिया.

‘‘दिमाग तो तुम ने अपनी पत्नी का खराब कर रखा है उसे जरूरत से ज्यादा सिर चढ़ा कर. अरे, जो इंसान ठीक खा रहा है, ठीक से सो रहा है, रिश्तेदारों के यहां घूमने जा सकता है उसे घर का काम करने में क्या आफत आ जाती है?’’

‘‘कविता को काम करना कभी नहीं खटकता है. यह तो तुम ही कामचोर हो जिस की 2 दिन काम कर लेने से ही जान निकली जा रही है.’’

विकास के इन वाक्यों ने वंदना को बुरी तरह भड़का दिया. वह खूब बोली और रोई भी. पूरे घर का माहौल उस के क्लेश करने के कारण तनावपूर्ण और बोझिल हो गया. अंतत: अपने पिता की डांट सुन कर ही वंदना चुप हुई.

‘‘अगर मुझे ही सारा काम करना है, तो भाभी को यहां शोपीस बना कर रखने की क्या जरूरत है? मायके में जा कर क्यों नहीं आराम करती है?’’ कमरे में घुसने से पहले वंदना ने अपना गुस्सा यों प्रदर्शित किया.

बरसों की साध: जब सालों बाद से मि भाभी रूपमती की मुलाकात ने क्या लिया मोड़?

प्रशांत को जब अपने मित्र आशीष की बेटी सुधा के साथ हुए हादसे के बारे में पता चला तो एकाएक उसे अपनी भाभी की याद आ गई. जिस तरह शहर में ठीकठाक नौकरी करने वाले मित्र के दामाद ने सुधा को छोड़ दिया था, उसी तरह डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद प्रशांत के ताऊ के बेटे ईश्वर ने भी अपनी पत्नी को छोड़ दिया था. अंतर सिर्फ इतना था कि ईश्वर ने विदाई के तुरंत बाद पत्नी को छोड़ा था, जबकि सुधा को एक बच्चा होने के बाद छोड़ा गया था.

आशीष के दामाद ने उन की भोलीभाली बेटी सुधा को बहलाफुसला कर उस से तलाक के कागजों पर दस्तखत भी करा लिए थे. सुधा के साथ जो हुआ था, वह दुखी करने और चिंता में डालने वाला था, लेकिन इस में राहत देने वाली बात यह थी कि सुधा की सास ने उस का पक्ष ले कर अदालत में बेटे के खिलाफ गुजारेभत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.

अदालत में तारीख पर तारीख पड़ रही थी. हर तारीख पर उस का बेटा आता, लेकिन वह मां से मुंह छिपाता फिरता. कोर्टरूम में वह अपने वकील के पीछे खड़ा होता था.

लगातार तारीखें पड़ते रहने से न्याय मिलने में देर हो रही थी. एक तारीख पर पुकार होने पर सुधा की सास सीधे कानून के कठघरे में जा कर खड़ी हो गई. दोनों ओर के वकील कुछ कहतेसुनते उस के पहले ही उस ने कहा, ‘‘हुजूर, आदेश दें, मैं कुछ कहूं, इस मामले में मैं कुछ कहना चाहती हूं.’’

अचानक घटी इस घटना से न्याय की कुरसी पर बैठे न्यायाधीश ने कठघरे में खड़ी औरत को चश्मे से ऊपर से ताकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन?’’

वकील की आड़ में मुंह छिपाए खडे़ बेटे की ओर इशारा कर के सुधा की सास ने कहा, ‘‘हुजूर मैं इस कुपुत्र की मां हूं.’’

‘‘ठीक है, समय आने पर आप को अपनी बात कहने का मौका दिया जाएगा. तब आप को जो कहना हो, कहिएगा.’’ जज ने कहा.

‘‘हुजूर, मुझे जो कहना है, वह मैं आज ही कहूंगी, आप की अदालत में यह क्या हो रहा है.’’ बहू की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप इस की ओर देखिए, डेढ़ साल हो गए. इस गरीब बेसहारा औरत को आप की ड्योढ़ी के धक्के खाते हुए. यह अपने मासूम बच्चे को ले कर आप की ड्योढ़ी पर न्याय की आस लिए आती है और निराश हो कर लौट जाती है. दूसरों की छोडि़ए साहब, आप तो न्याय की कुरसी पर बैठे हैं, आप को भी इस निरीह औरत पर दया नहीं आती.’’

न्याय देने वाले न्यायाधीश, अदालत में मौजूद कर्मचारी, वकील और वहां खडे़ अन्य लोग अवाक सुधा की सास का मुंह ताकते रह गए. लेकिन सुधा की सास को जो कहना था. उस ने कह दिया था.

उस ने आगे कहा, ‘‘हुजूर, इस कुपुत्र ने मेरे खून का अपमान किया है. इस के इस कृत्य से मैं बहुत शर्मिंदा हूं. हुजूर, अगर मैं ने कुछ गलत कह दिया हो तो गंवार समझ कर माफ कर दीजिएगा. मूर्ख औरत हूं, पर इतना निवेदन जरूर करूंगी कि इस गरीब औरत पर दया कीजिए और जल्दी से इसे न्याय दे दीजिए, वरना कानून और न्याय से मेरा भरोसा उठ जाएगा.’’

सुधा की सास को गौर से ताकते हुए जज साहब ने कहा, ‘‘आप तो इस लड़के की मां हैं, फिर भी बेटे का पक्ष लेने के बजाए बहू का पक्ष ले रही हैं. आप क्या चाहती हैं इसे गुजारे के लिए कितनी रकम देना उचित होगा?’’

‘‘इस लड़की की उम्र मात्र 24 साल है. इस का बेटा ठीक से पढ़लिख कर जब तक नौकरी करने लायक न हो जाए, तब तक के लिए इस के खर्चे की व्यवस्था करा दीजिए.’’

जज साहब कोई निर्णय लेते. लड़के के वकील ने एक बार फिर तारीख लेने की कोशिश की. पर जज ने उसी दिन सुनवाई पूरी कर फैसले की तारीख दे दी. कोर्ट का फैसला आता, उस के पहले ही आशीष सुधा की सास को समझाबुझा कर विदा कराने के लिए उस की ससुराल जा पहुंचा. मदद के लिए वह अपने मित्र प्रशांत को भी साथ ले गया था कि शायद उसी के कहने से सुधा की सास मान जाए.

उन के घर पहुंचने पर सुधा की सास ने उन का हालचाल पूछ कर कहा, ‘‘आप लोग किसलिए आए हैं, मुझे यह पूछने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मुझे पता है कि आप लोग सुधा को ले जाने आए हैं. मुझे इस बात का अफसोस है कि मेरे समधी और समधिन को मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. शायद इसीलिए बिटिया को ले जाने के लिए दोनों इतना परेशान हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं हैं समधिन जी. आप के उपकार के बोझ से मैं और ज्यादा नहीं दबना चाहता. आप ने जो भलमनसाहत दिखाई है वह एक मिसाल है. इस के लिए मैं आप का एहसान कभी नहीं भूल पाऊंगा.’’ आशीष ने कहा.

सुधा की सास कुछ कहती. उस के पहले ही प्रशांत ने कहा, ‘‘दरअसल यह नहीं चाहते कि इन की वजह से मांबेटे में दुश्मनी हो. इन की बेटी ने तलाक के कागजों पर दस्तखत कर दिए हैं. उस हिसाब से देखा जाए तो अब उसे यहां रहने का कोई हक नहीं है. सुधा इन की एकलौती बेटी है.’’

‘‘मैं सब समझती हूं. मेरे पास जो जमीन है उस में से आधी जमीन मैं सुधा के नाम कर दूंगी. जब तक मैं जिंदा हूं, अपने उस नालायक आवारा बेटे को इस घर में कदम नहीं रखने दूंगी. सुधा अगर आप लोगों के साथ जाना चाहती है तो मैं मना भी नहीं करूंगी.’’ इस के बाद उस ने सुधा की ओर मुंह कर के कहा, ‘‘बताओ सुधा, तुम क्या चाहती हो.’’

‘‘चाचाजी, आप ही बताइए, मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली अपनी इन सास को छोड़ कर मैं आप लोगों के साथ कैसे चल सकती हूं.’’ सुधा ने कहा.

सुधा के इस जवाब से प्रशांत और आशीष असमंजस में पड़ गए. प्रशांत ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली सास को छोड़ कर अपने साथ चलने के लिए कैसे कह सकता हूं.’’

‘‘तो फिर आप मेरी मम्मी को समझा दीजिएगा.’’ आंसू पोंछते हुए सुधा ने कहा.

‘‘ऐसी बात है तो अब हम चलेंगे. जब कभी हमारी जरूरत पड़े, आप हमें याद कर लीजिएगा. हम हाजिर हो जाएंगे.’’ कह कर प्रशांत उठने लगे तो सुधा की सास ने कहा, ‘‘हम आप को भूले ही कब थे, जो याद करेंगे. कितने दिनों बाद तो आप मिले हैं. अब ऐसे ही कैसे चले जाएंगे. मैं तो कब से आप की राह देख रही थी कि आप मिले तो सामने बैठा कर खिलाऊं. लेकिन मौका ही नहीं मिला. आज मौका मिला है. तो उसे कैसे हाथ से जाने दूंगी.’’

‘‘आप कह क्या रही हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है?’’ हैरानी से प्रशांत ने कहा.

‘‘भई, आप साहब बन गए, आंखों पर चश्मा लग गया. लेकिन चश्मे के पार चेहरा नहीं पढ़ पाए. जरा गौर से मेरी ओर देखो, कुछ पहचान में आ रहा है?’’

प्रशांत के असमंजस को परख कर सुधा की सास ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप तो ज्ञानू बनना चाहते थे. मुझ से अपने बडे़ होने तक राह देखने को भी कहा था. लेकिन ऐसा भुलाया कि कभी याद ही नहीं आई.’’

अचानक प्रशांत की आंखों के सामने 35-36 साल पहले की रूपमती भाभी का चेहरा नाचने लगा. उस के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘भाभी आप…?’’

‘‘आखिर पहचान ही लिया अपनी भाभी को.’’

गहरे विस्मय से प्रशांत अपनी रूपमती भाभी को ताकता रहा. सुधा का रक्षाकवच बनने की उन की हिम्मत अब प्रशांत की समझ में आ गई थी. उन का मन उस नारी का चरणरज लेने को हुआ. उन की आंखें भर आईं.

रूपमती यानी सुधा की सास ने कहा, ‘‘देवरजी, तुम कितने दिनों बाद मिले. तुम्हारा नाम तो सुनती रही, पर वह तुम्हीं हो, यह विश्वास नहीं कर पाई आज आंखों से देखा, तो विश्वास हुआ. प्यासी, आतुर नजरों से तुम्हारी राह देखती रही. तुम्हारे छोड़ कर जाने के बरसों बाद यह घर मिला. जीवन में शायद पति का सुख नहीं लिखा था. इसलिए 2 बेटे पैदा होने के बाद आठवें साल वह हमें छोड़ कर चले गए.

‘‘बेटों को पालपोस कर बड़ा किया. शादीब्याह किया. इस घर को घर बनाया, लेकिन छोटा बेटा कुपुत्र निकला. शायद उसे पालते समय संस्कार देने में कमी रह गई. भगवान से यही विनती है कि मेरे ऊपर जो बीती, वह किसी और पर न बीते. इसीलिए सुधा को ले कर परेशान हूं.’’

प्रशांत अपलक उम्र के ढलान पर पहुंच चुकी रूपमती को ताकता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. रूपमती भाभी के अतीत की पूरी कहानी उस की आंखों के सामने नाचने लगी.

बचपन में प्रशांत की बड़ी लालसा थी कि उस की भी एक भाभी होती तो कितना अच्छा होता. लेकिन उस का ऐसा दुर्भाग्य था कि उस का अपना कोई सगा बड़ा भाई नहीं था. गांव और परिवार में तमाम भाभियां थीं, लेकिन वे सिर्फ कहने भर को थीं.

संयोग से दिल्ली में रहने वाले प्रशांत के ताऊ यानी बड़े पिताजी के बेटे ईश्वर प्रसाद की पत्नी को विदा कराने का संदेश आया. ताऊजी ही नहीं, ताईजी की भी मौत हो चुकी थी. इसलिए अब वह जिम्मेदारी प्रशांत के पिताजी की थी. मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घर वालों से रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. फिर भी प्रशांत के पिता को अपना फर्ज तो अदा करना ही था.

ईश्वर प्रसाद प्रशांत के ताऊ का एकलौता बेटा था. उस की शादी ताऊजी ने गांव में तब कर दी थी. जब वह दसवीं में पढ़ता था. तब गांव में बच्चों की शादी लगभग इसी उम्र में हो जाती थी. उस की शादी उस के पिता ने अपने ननिहाली गांव में तभी तय कर दी थी, जब वह गर्भ में था.

देवनाथ के ताऊजी को अपनी नानी से बड़ा लगाव था, इसीलिए मौका मिलते ही वह नानी के यहां भाग जाते थे. ऐसे में ही उन की दोस्ती वहां ईश्वर के ससुर से हो गई थी.

अपनी इसी दोस्ती को बनाए रखने के लिए उन्होंने ईश्वर के ससुर से कहा था कि अगर उन्हें बेटा होता है तो वह उस की शादी उन के यहां पैदा होने वाली बेटी से कर लेंगे.

उन्होंने जब यह बात कही थी, उस समय दोनों लोगों की पत्नियां गर्भवती थीं. संयोग से ताऊजी के यहां ईश्वर पैदा हुआ तो दोस्त के यहां बेटी, जिस का नाम उन्होंने रूपमती रखा था.

प्रशांत के ताऊ ने वचन दे रखा था, इसलिए ईश्वर के लाख मना करने पर उन्होंने उस का विवाह रूपमती से उस समय कर दिया, जब वह 10वीं में पढ़ रहा था. उस समय ईश्वर की उम्र कम थी और उस की पत्नी भी छोटी थी. इसलिए विदाई नहीं हुई थी. ईश्वर की शादी हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि उस के ससुर चल बसे थे. इस के बाद जब भी विदाई की बात चलती, ईश्वर पढ़ाई की बात कर के मना कर देता. वह पढ़ने में काफी तेज था. उस का संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक नौकरी में चयन हो गया और वह डिप्टी कलेक्टर बन गया. ईश्वर ट्रेनिंग कर रहा था तभी उस के पिता का देहांत हो गया था.

संयोग देखो, उन्हें मरे महीना भी नहीं बीता था कि ईश्वर की मां भी चल बसीं. मांबाप के गुजर जाने के बाद एक बहन बची थी, उस की शादी हो चुकी थी. इसलिए अब उस की सारी जिम्मेदारी प्रशांत के पिता पर आ गई थी.

लेकिन मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घरपरिवार से नाता लगभग खत्म सा कर लिया था. आनेजाने की कौन कहे, कभी कोई चिट्ठीपत्री भी नहीं आती थी. उन दिनों शहरों में भी कम ही लोगों के यहां फोन होते थे. अपना फर्ज निभाने के लिए प्रशांत के पिता ने विदाई की तारीख तय कर के बहन से ईश्वर को संदेश भिजवा दिया था.

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

बारिश में कार ड्राइविंग के 12 टिप्स

बारिश का मौसम देश की फ़िजा में अपनी दस्तक दे चुका है. बारिश गर्मी से तपती धरती, झुलसते पेड़ पौधों और व्यथित मानुष को शीतलता तो प्रदान करती है परन्तु इस मौसम में जगह जगह कीचड़ और गड्ढों में पानी भर जाने की समस्या भी हो जाती है जिससे अक्सर हम मुसीबत में फंस जाते है और कई बार तो कार भी क्षतिग्रस्त हो जाती है. बारिश में बाहर आने जाने के लिए कार का प्रयोग तो किया ही जाता है ऐसे में बारिश आने से पूर्व और बारिश में कार चलाते समय कुछ सावधानियां रखना अत्यंत आवश्यक होता है इससे आपकी कार की लाइफ तो बढ़ती ही है साथ ही आप भी असमय आने वाली किसी भी मुसीबत से बच जाते हैं.

1. -बारिश से पूर्व अपनी कार की सर्विसिंग करवाकर इंजिन ऑयल, एयर व फ्यूल फ़िल्टर बदलवाएं साथ ही सस्पेंशन जॉइंट, व साइलेंसर पाइप अवश्य चैक करवाएं क्योंकि बारिश में सर्वाधिक यही पार्ट्स प्रभावित होते हैं.

2. -बारिश में जगह जगह कीचड़ और मिट्टी जमा हो जाती है इसलिए टायर के फिसलने की बहुत अधिक संभावना होती है, इससे बचने के लिए 4-5 साल पुराने घिसे टायरों को बदलवाना ठीक रहता है. स्टेपनी को भी दुरुस्त करके रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उसका उपयोग कर सकें.

3. -कार की सभी लाइट्स को चैक करवाएं, यदि लाइट के कांच में कोई क्रेक हो तो बदलवा दें क्योंकि इसमें से पानी रिसकर बल्ब को शार्ट कर देगा.

4. -बारिश में नए रास्तों पर जाने की अपेक्षा जाने पहचाने रास्तों पर ही जाएं ताकि किसी दुर्घटना की गुंजाइश न रहे.

5. -बारिश में कार चलाते समय डिपर को ऑन कर दें ताकि सामने वाले ड्राइवर को आपकी स्थिति का पता चल जाये.

6. -गाड़ी को अंदर से साफ करके फुट कवर पर पेपर बिछाएं, इसे गन्दा हो जाने पर दो तीन दिन के अंतराल पर बदलते रहें इससे कार  के साथ साथ फुट कवर भी गन्दे होने से बचे रहेंगे.

7-बारिश में गीली कार को कवर से ढकने की अपेक्षा खुला ही रखें क्योंकि पानी की नमी रहने के कारण जंग लगने की संभावना रहती है.

8. -यदि आप छोटे बच्चों के साथ जा रहे हैं तो अपने साथ पानी की बोतल, बिस्किट, चिप्स जैसे खाने का सामान अपने साथ लेकर चलें ताकि रास्ते में उतरना न पड़े.

9. -बारिश के मौसम में कम से कम एक छाता और छोटा टॉवेल अपनी कार में अवश्य रखें.

10. -आपके कार्यस्थल से यदि कार पार्किंग दूर है तो छाते के स्थान पर कार में रैनकोट रखें ताकि आप लेशमात्र भी भीगें नहीं.

11. -यदि आप लंबे सफर पर जा रहे हैं और रात हो सकती है तो कार में टॉर्च रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके.

12-यदि बारिश का वेग बहुत अधिक तेज है तो ऐसे में कार चलाने से बचें क्योंकि इस समय आपको सामने से आ रहे वाहन की स्तिथि का कोई अंदाजा नहीं हो पाता.

क्या करें जब गाड़ी पानी में फंस जाए

यदि आप पानी में फंस गए हैं तो कार को सुरक्षित स्थान पर खड़ी करके पानी के रुकने का इंतजार कर सकते हैं.

बारिश में अक्सर गड्ढों में पानी भर जाता है और वे कार चलाते समय दिखते ही नहीं है, इसके अतिरिक्त कई बार हमें अंदाजा नहीं होता और चलते चलते अचानक से कार कीचड़ में फंस जाती है,  यदि आप ऐसी किसी जगह पर फंसते हैं तो कार को जबरदस्ती निकालने के स्थान पर सम्बंधित कम्पनी को गाड़ी निकालने के लिए फोन करें. आजकल कार कम्पनियां कहीं से भी आपकी कार को टोचन करके निकालकर आप तक सुरक्षित पहुंचाने की सुविधा देतीं हैं.

-यदि आप किसी अनजान रास्ते पर जा रहे हैं तो जी पी एस का सहारा लें ताकि आप उचित मार्ग पर पहुंच सकें.

मैं मायके चली जाऊंगी

उधर डोरबैल बजाने के बाद भी जब श्रीमतीजी ने दरवाजा नहीं खोला, तो हम ने गुस्से में आ कर दरवाजे को जोर से धकेल दिया. देखा तो वह खुला पड़ा था. सोचा कि श्रीमतीजी अंदर से बंद करना भूल गई होंगी. घर में घुसते ही हम ने इधरउधर नजर दौड़ाई. हमारी श्रीमतीजी हमें कहीं नजर नहीं आईं.

हम घबराए हुए सीधे बैडरूम में जा पहुंचे. वहां श्रीमतीजी अंधेरा किए बैड पर ऐसे फैली पड़ी थीं, जैसे किसी ने उन के कीमती जेवरों पर हाथ साफ कर दिए हों और अब उसी का गम मना रही हों.

हम ने जैसे ही कमरे की बत्ती जलाई, तो श्रीमतीजी ने गुस्से में मोटीमोटी लाललाल आंखें हमें दिखाईं, तो हम तुरंत समझ गए कि आज हमारी शामत आई है.

हम ने धीरे से श्रीमती से पूछा, ‘‘क्या तबीयत खराब है या मायके में कोई बीमार है?’’

वे गुस्से में फट पड़ीं, ‘‘खबरदार, जो मेरी या मेरे मायके वालों की तबीयत खराब होने की बात मुंह से निकाली.’’

श्रीमतीजी बालों को बांधते हुए बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गईं. हम भी अपने कपड़े बदल कर उन के पास आ कर बैठ गए. फिर उन के शब्दों के बाणों की बौछारें शुरू हो गईं, ‘‘शादी को अभी सालभर भी नहीं हुआ है और तुम ने मुझे इस फ्लैट की चारदीवारी में कैद कर दिया है. तुम न तो मुझे कभी फिल्म दिखाने ले जाते हो, न कहीं घुमाते हो और न ही किसी अच्छे से रैस्टोरैंट में खाना खिलाते हो.

‘‘आज तो तुम को मुझे कहीं न कहीं घुमाने ले जाना पड़ेगा और मेरे नाजनखरों को उठाना पड़ेगा, वरना मैं मायके चली जाऊंगी और फिर कभी वापस नहीं आऊंगी.’’

श्रीमतीजी के मायके जाने की धमकी ने हमारी आंखों को उन के पहलवान पिताजी कल्लू के साक्षात दर्शन करा दिए थे, जिन्होंने अपनी बेटी को विदा करते समय हमें चेतावनी दी थी कि अगर कभी हमारी बेटी यहां रोतीबिलखती आई, तो हम से बुरा कोई न होगा. बेटी राधिका को परेशान करने के एवज में तुम्हें हमारे बेटे भूरा से गांव के वार्षिक दंगल में लड़ना होगा.

भूरा की कदकाठी कुछ ऐसी ही थी कि हाथी भी सामने आ जाए, तो उस सांड़ को देख कर अपना रास्ता बदल ले.

हम ने तुरंत श्रीमतीजी के पैर पकड़ लिए और उन के नाजनखरों को उठाने को तैयार हो गए.

अगले दिन दफ्तर में श्रीमतीजी का फोन आया. वे बोलीं, ‘‘आज हमारा सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ देखने का मन कर रहा है. उस के बाद डिनर भी हम बाहर ही करेंगे.’’

सो, इंटरनैट के जरीए हम ने ‘बजरंगी भाईजान’ के 2 टिकट बुक करा दिए. शाम को जब हम घर पहुंचे, तो श्रीमतीजी दरवाजे पर तैयार खड़ी गुस्से से कलाई घड़ी की तरफ देख रही थीं. उधर गरमी के मारे हमारी हालत बुरी थी.

सकपकाते हुए हम धीरे से घर के अंदर घुसे. फिर फ्रिज से हम ने ठंडा पानी निकाला और 2-4 घूंट पानी गले में डाला, जल्दी से कपड़े बदले और श्रीमतीजी के साथ स्कूटर पर निकल पड़े.

मगर रास्ते में ही स्कूटर ने धोखा दे दिया. उधर श्रीमतीजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. स्कूटर का पिछला पहिया पंक्चर हो गया.

हम ने श्रीमतीजी के तमतमाए चेहरे की तरफ देखा और फिर घड़ी में समय देखा, तो शाम के 7 बज चुके थे. एक घंटे का शो पहले ही निकल चुका था. जब तक हम पंक्चर लगवा कर सिनेमाघर तक पहुंचे, तब तक रात के 9 बज चुके थे. लोग सिनेमाघर से बाहर निकल रहे थे.

अब हमारा दिल डर के मारे बुरी तरह धड़क रहा था.

हम ने श्रीमतीजी को समझाया, ‘‘कल हम तुम्हें मौर्निंग शो में फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ दिखा लाएंगे. इस के एवज में हम कल ड्यूटी पर भी नहीं जाएंगे.’’

यह सुन कर श्रीमतीजी के चेहरे पर गुस्से की लकीरें थोड़ी कम होने लगी थीं. फिर वहीं पास ही के एक अच्छे से रैस्टोरैंट में श्रीमतीजी को ले गए. वहां हम दोनों ने लजीज खाने का लुत्फ उठाया. जब पैसे देने का समय आया, तो हमारी जेब से पर्स गायब था.

हम ने रैस्टोरैंट के मालिक को बहुत समझाया. आखिरकार हमें अपना स्कूटर उन के पास बतौर गिरवी छोड़ना पड़ा और पैदल ही घर जाना पड़ा.

अभी हमारी मुसीबत कम नहीं हुई थी, क्योंकि सुनसान सड़क पर चलती हुई हमारी श्रीमतीजी सोने के जेवरों से दमक रही थीं. जब हम ने उन्हें समझाया कि पल्लू से अपने गहनों को ढक लो, तो

वे अकड़ते हुए बोलीं, ‘‘मैं कल्लू पहलवान की बेटी हूं. चोरउचक्कों से डर तुम जैसे शहरियों को लगता होगा. मैं एक धोबीपछाड़ दांव में अच्छेअच्छों को पटक दूंगी और अपनी हिफाजत मैं खुद कर लूंगी.’’

श्रीमतीजी की बहादुरी से हमारे हौसले भी बढ़ चुके थे कि तभी वही हो गया, जिस का हमें डर था. 2 लुटेरों ने हमें धरदबोचा. चाकूपिस्तौल देख हमारी हालत पतली हुई जा रही थी, तभी एक लुटेरा हमारी श्रीमतीजी के गहनों पर झपट पड़ा. इस के बाद श्रीमतीजी ने उन दोनों की जो हालत बनाई, वह नजारा हम अपनी जिंदगी में कभी भूल नहीं सकते हैं.

कुछ ही देर में पुलिस की एक गाड़ी वहां आ पहुंची. उन दोनों इनामी बदमाशों को पकड़वाने के एवज में श्रीमतीजी को 50 हजार रुपए का चैक बतौर इनाम मिला.

हम ने उन रुपयों से एक सैकंडहैंड कार ले ली है. अब तो हम हर शाम श्रीमतीजी के साथ कार में घूमने जाते हैं. इस बात की उम्मीद करते हैं कि दोबारा किसी लुटेरे गैंग से हमारी श्रीमतीजी की भिड़ंत हो जाए और उसे पकड़वाने के एवज में इनाम के तौर पर फिर कोई चैक मिल जाए.

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