Download Grihshobha App

रिश्ता: क्या सही था माया का फैसला

रात के ढाई बजे हैं. मैं जानती हूं आज नींद नहीं आएगी. बैड से उठ कर चेयर पर बैठ गई और बैड पर नजर डाली. राकेश आराम से सोए हैं. कभीकभी सोचती हूं यह व्यक्ति कैसे जीवन भर इतना निश्चिंत रहा? सब कुछ सुचारु रूप से चलते जाना ही जीवन नहीं है. खिड़की से बाहर दूर चमकती स्ट्रीट लाइट पर उड़ते कुछ कीड़े, शांत पड़ी सड़क और हलकी सी धुंध नजर आती है जो फरवरी माह के इस समय कम ही देखने को मिलती है. अचानक जिस्म में हलचल होने लगी. ड्रैसिंग रूम में आईने के सामने गाउन उतार कर खड़ा होना अब भी अच्छा लगता है. अपने शरीर को किसी भी युवती की ईर्ष्या के लायक महसूस करते ही अंतर्मन में छिपे गर्व का एहसास चेहरे छा गया. कसी हुई त्वचा, सुडौल उन्नत वक्ष, गहरी कटावदार कमर, सपाट उभार लिए कसा हुआ पेट, चिकनी चमकदार मांसल जांघें, सुडौल नितंब, दमकता गुलाबी रंग और चेहरे पर गहराई में डुबोने वाली हलकी भूरी आंखें, यही तो खूबियां हैं मेरी. अचानक अर्जुन के कहे शब्द याद आने से चेहरे पर मुसकान कौंधी फिर लाचारी का एहसास होने लगा. सच मैं उस के साथ कितना रह सकती  हूं.

अर्जुन ने कहा था, ‘‘रिश्ते आप के जीवन में पेड़पौधों से आते हैं. जिन में से कुछ पहले से होते हैं, कुछ अंत तक आप के साथ चलते हैं, तो कुछ मौसमी फूलों की तरह बहुत खूबसूरत तो होते हैं, लेकिन सिर्फ एक मौसम के लिए.’’

‘‘और तुम कौन सा पेड़ हो मेरे जीवन में,’’ मैं ने मुसकरा कर उसे छेड़ा था.

‘‘मुझे गन्ना समझिए. एक बार लगा है तो 3 साल काम आएगा.’’

‘‘फिर जोर से हंसे थे हम. अर्जुन बड़ा हाजिरजवाब था. उस का ऐसा होना उस की बातों में अकसर झलक जाता था. 3 साल से उस का मतलब हमारे 3 साल बाद वापस लुधियाना जाने से था.

अर्जुन कैसे धीरेधीरे दिमाग पर छाता चला गया पता ही न चला. मिला भी अचानक ही था, पाखी की बर्थडे पार्टी में. वहां की भीड़ और म्यूजिक का शोर थका देने वाला था. मैं साइड में लगे सोफे पर बैठ गई थी. कुछ संयत होने पर बगल में नजर गई तो देखा पार्टी से बिलकुल अलग लगभग 24-25 वर्ष का आकर्षक युवक आंखें बंद किए और पीछे सिर टिकाए आराम से सो रहा था. तभी दीपिका आ कर बोली, ‘‘थक गईं दीदी?’’ फिर उस की नजर सोए उस युवक पर गई, तो वह बोली, ‘‘तुम यहां सोने आए हो…’’ फिर उस ने उस का चेहरा अपने एक हाथ में पकड़ जोर से हिला दिया.

‘‘ओ भाभी, मैं तो बस आंखें बंद किए बैठा था,’’ कह कर वह मुसकराया फिर हंस पड़ा.

‘‘मीट माया दीदी, अभी इन के हसबैंड ट्रांसफर हो कर यहां आए हैं और दीदी ये है अर्जुन रोहित का फ्रैंड,’’ दीपिका ने परिचय कराया था.

‘‘लेकिन रोहित के हमउम्र तो ये लगते नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘रोहित से 8 साल छोटा है, लेकिन उस का बेहतरीन फ्रैंड और सब का फैं्रड है,’’ फिर बोली, ‘‘अर्जुन दीदी का खयाल रखना.’’

‘‘अरे मुझे यहां से कोई उठा कर ले जाने वाला है, पर क्या?’’ मैं ने दीपिका से कहा.

मैं इसे आप को कंपनी देने के लिए कह रही हूं,’’ कह कर दीपिका मुसकराई फिर बाकी गैस्ट्स को इंटरटैन करने के लिए चली गई. मैं ने अर्जुन की ओर देखा, वह दोबारा सो गया था.

रकेश का ट्रांसफर लुधियाना से हम यहां होने पर मेरठ आए थे. दीपिका के इसी शहर में होने से यहां आनाजाना तो बना ही रहा था, लेकिन व्यवस्थित होने के बाद अकेलापन सालने लगा था. पल्लवी कितनी जल्दी बड़ी हो गई थी. वह इसी साल रोहतक मैडिकल कालेज में ऐडमिशन होने से वहीं चली गई थी. गाउन पहन मैं वापस कमरे में आ कर चेयर पर आ बैठ गई. बैड पर सिमटे हुए राकेश को देख कर लगता है कितना सरल है जीवन. यदि राकेश की जगह अर्जुन बैड पर होता तो लगता जीवन कितना स्वच्छंद और गतिशील है  अर्जुन दूसरी बार भी दीपिका के घर पर ही मिला था. वह डिनर के वक्त एक बहुत ही क्यूट छोटा व्हाइट डौगी गोद में लिए अचानक चला आया था. आ कर उस ने डौगी पाखी की गोद में रख दिया. इतना प्यारा डौगी देख पाखी और राघव तो बहुत खुश हो गए थे.

‘‘इसे कहां से उठा लाए तुम?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘पाखी, राघव बहुत दिनों से कह रहे थे, अब मिला तो ले आया.’’

‘‘मुझे से भी तो पूछना चाहिए था,’’ दीपिका ने प्रतिवाद किया

‘‘मुझे ऐसा नहीं लगा,’’ अर्जुन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘रोहित यह लड़का…समझाओ इसे, डौगी वापस ले कर जाए.’’

‘‘तुम भी जानती हो डौगी यहीं रहने वाला है, इसे प्यार से ऐक्सैप्ट करो,’’ रोहित ने कहा.

फिर सभी डिनर टेबल पर आ गए.

‘‘अर्जुन, तुम राकेश से मिले नहीं शायद. यह शास्त्रीनगर ब्रांच में ब्रांच मैनेजर हो कर पिछले महीने ही मेरठ आए हैं और भाईसाब यह अर्जुन है,’’ रोहित ने परिचय कराया, अर्जुन ने खामोशी से हाथ जोड़ दिए.

‘‘आप क्या करते हैं?’’ राकेश ने उत्सुकता से पूछा था.

‘‘जी कुछ नहीं.’’

‘‘मतलब, पढ़ाई कर रहे हो?’’ आवाज से सम्मान गायब हो गया था.

‘‘इसी साल पीएच.डी. अवार्ड हुई है.’’

‘‘अच्छा अब लैक्चरर बनोगे,’’

‘‘जी नहीं…’’

तभी बीच में रोहित बोल पड़ा, ‘‘भाईसाहब यह अभी भी आप के मतलब का आदमी है. इस के गांव में आम के 3 बाग, खेत, शहर में दुकानों और होस्टल कुल मिला कर ढाईतीन लाख रुपए का मंथली ट्रांजैक्शन है, जिसे इस के पापा देखते हैं इन का सीए मैं ही हूं.’’

‘‘गुड, इन का अकाउंट हमारे यहां कराओ, राकेश चहका.’’

‘‘कह दूंगा इस के पापा से,’’ रोहित ने कहा.

‘‘हमारे घर आओ कभी,’’ राकेश ने अर्जुन से कहा.

‘‘जी.’’

‘‘यह डिफैंस कालोनी में अकेला रहता है,’’ दीपिका ने कहा फिर अर्जुन से बोली, ‘‘तुम दीदी को बाहर आनेजाने में हैल्प किया करो. रक्षापुरम में घर लिया है इन्होंने.’’

‘‘जी.’’

मुझे बाद में पता चला था शब्दों का कंजूस अर्जुन शब्दों का कितना सटीक प्रयोग जानता है. रात के 3 बजे हैं. सब कुछ शांत है. ऐसा लग रहा है जैसे कभी टूटेगा ही नहीं. बांहों के रोम उभर आए हैं. उन पर हथेलियां फिराना भला लग रहा है. अगर यही हथेलियां अर्जुन की होतीं तो उष्णता होती इन में, शायद पूरे शरीर को झुलसा देने वाली.

हमेशा ही तो ऐसा लगता रहा, जब कभी अर्जुन की उंगलियां जिस्म में धंसी होती थीं तब कितना मायावी हो जाता था. सच में सभी पुरुष एक से नहीं होते. तनमन, यौवन सभी तो, फर्क होता है और उस से भी अधिक फर्क इन तीनों के संयोजन और नियत्रंण में होता है. किशोरावस्था से ही देखती आई हूं पुरुषों की कामनाओं और अभिव्यक्तियों के वैविध्य को. समय से हारते अपने प्यार सचिन की लाचारी आज तक याद है. उस रोमानियत में बहते न उस ने न कभी मैं ने ही सोचा था कि अचानक खुमार ऐसे टूट आएगा. अभी ग्रैजुएशन का सैकंड ईयर चल ही रहा था कि मां को मेरी सुरक्षा मेरे विवाह में ही नजर आई. कितना बड़ा विश्वास टूटा था हम सब का. डैड की जाफना में हुई शहादत के बाद अपने भाइयों का ही तो सहारा था मां को. उन्हीं के भरोसे वे अपनी दोनों बेटियों के साथ देहरादून छोड़ सहारनपुर आ कर अपने मायके में रहने लगी थीं. सब कुछ ठीक चला. नानानानी और तीनों मामाओं के भरोसे हमारा जीवन पटरी पर लौटा था, लेकिन फिर भयावाह हो कर खंडित हो गया.

मां दीपिका को ले कर चाचाजी के घर गई थीं जबकि गरमी के उन दिनों अपने ऐग्जाम्स के कारण मैं नहीं जा सकी थी, इसलिए नानाजी के घर पर थी. नानानानी 3 मामाओं और 3 मामियों व बच्चों वाला उन का बड़ा सा घर मुझे भीड़भाड़ वाला तो लगता था, लेकिन अच्छा भी लगता था. लेकिन वहां एक दिन अचानक मेरे साथ एक घटना घटी. उस दिन मेरे रूम से अटैच बाथरूम की सिटकनी टूटी हुई मिली. इस पर ध्यान न दे कर मैं नहाने लगी, क्योंकि उस बाथरूम में मेरे सिवा कोई जाता नहीं था. वहां अचानक जब दरवाजा खोल कर मझले मामा को नंगधडं़ग आ कर अपने से लिपटा पापा तो भय से चीख उठी थी मैं. मेरे जोर से चीखने से मामा भाग गए तो उस दिन मेरी जान बच गई, लेकिन मां के वापस लौटने पर जब मैं ने उन्हें यह बात बताई तो मां को अपनी असहाय स्थिति का भय दिनरात सालने लगा. परिणाम यह हुआ कि हम ने दोबारा देहरादून शिफ्ट किया, लेकिन मां ने उसी वर्ष मेरी शादी में मेरी सुरक्षा ढूंढ़ ली जबकि दीपिका अभी बहुत छोटी थी.

राकेश अच्छे किंतु साधारण व्यक्ति हैं, काम और सान्निध्य ही इन के लिए अहम रहा. मानसिक स्तर पर न इन में उद्वेग था न ही मैं ने कभी कोई अभिलाषा दिखाई. पल्लवी के जन्म के बाद मेरा जीवन पूरी तरह से उस पर केंद्रित हो गया था. राकेश के लिए बहुत खुशी की बात यह थी कि उन की पत्नी ग्रेसफुली घर चलाती है बच्चे को देखती है और नानुकर किए बिना शरीर सौंप देती है. कभी सोचती हूं तो लगता है यही जीवन तो सब जी रहे हैं, इस में गलती कहां है. धीरेधीरे पहचान बढ़ने पर मैं ने ही अर्जुन को घर बुलाना शुरू किया था. तब मुझे ड्राइविंग नहीं आती थी और सभी मार्केट यहां से बहुत दूर हैं. बिना कार ऐसी कालोनी में रहना दूभर होता है. कुछ भी तो नहीं मिलता आसपास. ऐसे में अर्जुन बड़ा मददगार लगा. वह अकसर मुझे मार्केट ले जाता था. मुझे दिन भर अर्जुन के साथ रहना और घूमना सब कुछ जीवन के भले पलों की तरह कटता रहा. शादी के बाद पहली बार कोई लड़का इतना निकट हुआ था, जीवन में आए एकमात्र मित्र सा. फिर सहसा ही वह पुरुष में परिवर्तित हो गया. कार चलाना सिखाते हुए अचानक ही कहा था उस ने काश आप को चलाना कभी न आए हमेशा ऐसे ही सीखती रहें. आप को छूना बहुत अच्छा लगता है.’’

दहल गई थी मैं, ‘‘पागल हो गए हो?’’ खुद को संयत रखने का प्रयास करते हुए मैं ने प्रतिवाद किया.

इन 4 महीनों में उस का व्यवहार कुछ तो समझ आने लगा था. मैं ने जान लिया कि वह वही कह रहा था, जो उस के मन में था. मैं ने कार को वापस घर की ओर मोड़ दिया. असहजता बढ़ने लगी थी. अर्जुन वैसा ही शांत बैठा था. मैं बहुत कुछ कहना चाहती थी उस से होंठ खुल ही नहीं पाए.

‘‘आउट,’’ घर पहुंचने पर कार रोक कर मैं क्रोध से बोली.

वह खामोशी से उतरा और चला गया. मैं चाहती थी वह सौरी बोले कुछ सफाई दे, लेकिन वह चुपचाप चला गया. उस के इस तरह जाने ने मुझे झकझोर दिया. बाद में घंटों उस का नंबर डायल करती रही, लेकिन फोन नहीं उठाया. अगले दिन मैं उस के घर पहुंच गई, लेकिन गेट पर ताला लगा था. फोन अब भी नहीं उठ रहा था. दीपिका से उस के बारे में पता करने का प्रयास किया तो पता चला वह कल से फोन ही नहीं उठा रहा है. धीमे कदमों से घर पहुंची. गेट के सामने अर्जुन को खड़ा पाया. दिल हुआ कि एक चांटा खींच कर मारूं इस को, लेकिन वह हमेशा की तरह शांत शब्दों में बोला, ‘‘कल मोबाइल आप की कार की सीट पर पड़ा रह गया था.’’

‘‘ओह गौड…मैं ने सिर पकड़ लिया.’’

फिर 3 साल जैसे प्रकाश गति से निकल चले. उस दिन जब घर में अर्जुन ने मुझे पहली बार बांहों में लिया था तब एहसास हुआ था कि शरीर सैक्स के लिए भी बना है. कितना बेबाक स्पर्श था उस का. अपने चेहरे पर उस के होंठ अनुभव करती मैं नवयौवना सी कांप उठी थी. उस की उंगलियों की हरकतें, मैं ने कितने सुख से अपने को सौंप दिया उसे. उस के वस्त्र उतारते हाथ प्रिय लगे. पूर्ण निर्वस्त्र उस की बांहों में सिमट कर एहसास हुआ था कि अभी तक मैं कभी राकेश के सामने भी वस्त्रहीन नहीं हुई थी. अर्जुन एक सुखद अनुभव सा जीवन में आया था. उस के साथ बने रिश्ते ने जीवन को नया उद्देश्य, नई समझ दी थी. अब जीवन को सचझूठ, सहीगलत, पापपुण्य से अलग अनुभव करना आ गया था. 3 साल बीत गए ट्रांसफर ड्यू था सो राकेश ने वापस ट्रांसफर लुधियाना करवा लिया. सामान्य हालात में यह खुशी का क्षण होता, लेकिन अब जैसे बहती नदी अचानक रोक दी गई थी. जानती हूं सदा तो अर्जुन के साथ नहीं रह सकती. परिवार और समाज का बंधन जो है. सोचती रही कि अर्जुन कैसे रिएक्ट करेगा, इसलिए एक हफ्ते यह बात दबाए रही, लेकिन कल शाम तो उसे बताना ही पड़ा. मौन, सिर झुकाए वह चला गया बिना कुछ कहे, बिना कोई एहसास छोड़े.

सुबह 8 बजे जाना है, 4 बज चुके हैं. आंखों में नींद नहीं, राकेश पहले की तरह सुख से सोए हैं. अचानक मोबाइल में बीप की आवाज. नोटिफिकेशन है अर्जुन के ब्लौग पर नई पोस्ट जो एक कविता है:

मोड़ से पहले

जहां गुलदाउदी के फूल हैं,

लहू की कुछ बूंदें

चमक रही हैं.

माली ने शायद

उंगली काट ली हो.

जब निकलोगी सुबह

रुक कर देखना,

क्या धूप में रक्त

7 रंग देता है.

नहीं तो जीवन

इंद्रधनुषी कैसे हो गया.

जब जाने लगो

देखना माली के हाथों पर,

सूखे पपड़ाए जख्म मिलेंगे

रुकना मत.

जीवन साथ लिए

जीवन सी ही निकल जाना.

मोड़ से पहले

जहां गुलदाउदी के फूल हैं ,

कुछ खत्म हुआ है

तुम्हारे सपनों सा.

पर मैं सदा ही

जीवित रहूंगा तुम्हारे सपनों में.

तितली: सियाली के चेहरे पर क्यों थी मुस्कान

रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मीपापा के  झगड़े की कड़वी आवाजों से हुई. सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी कि चिकचिक सुन कर उस ने चादर सिर तक ओढ़ ली, इस से आवाज पहले से कम तो हुई, पर अब भी उस के कानों से टकरा रही थी.

सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गई. पास पड़े मोबाइल को टटोल कर उस में ईयरफोन लगा कर उन्हें कानों में कस कर ठूंस लिया और आवाज को बहुत तेज कर दिया.

18 साल की सियाली के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. उस के मांबाप आएदिन ही  झगड़ते रहते थे, जिस की सीधी वजह थी उन दोनों के संबंधों में खटास का होना… ऐसी खटास, जो एक बार जिंदगी में आ जाए, तो आपसी रिश्तों का खात्मा ही कर देती है.

सियाली के मांबाप प्रकाश और निहारिका के संबंधों में यह खटास कोई एक दिन में नहीं आई, बल्कि यह तो  एक मिडिल क्लास परिवार के कामकाजी जोड़े के आपसी तालमेल बिगड़ने के चलते धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी.

सियाली के पिता प्रकाश अपनी पत्नी निहारिका पर शक करते थे. उन का शक करना भी एकदम जायज था, क्योंकि निहारिका का अपने औफिस के एक साथी के साथ संबंध चल रहा था. जितना शक गहरा हुआ, उतना ही प्रकाश की नाराजगी बढ़ती गई और निहारिका का नाजायज रिश्ता भी उसी हिसाब से  बढ़ता गया.

‘‘जब दोनों साथ नहीं रह सकते, तो तलाक क्यों नहीं दे देते… एकदूसरे को,’’ सियाली बिस्तर से उठते हुए  झुं झलाते  हुए बोली.

सियाली जब तक अपने कमरे से बाहर आई, तब तक वे दोनों काफी हद तक शांत हो चुके थे. शायद वे किसी फैसले तक पहुंच गए थे.

‘‘तो ठीक है, मैं कल ही वकील से बात कर लेता हूं, पर सियाली को अपने साथ कौन रखेगा?’’ प्रकाश ने निहारिका की ओर घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं सम झती हूं… सियाली को तुम मु झ से बेहतर संभाल सकते हो,’’ निहारिका ने कहा, तो उस की इस बात पर प्रकाश भड़क सा गया, ‘‘हां, तुम तो सियाली को मेरे पल्ले बांधना ही चाहती हो, ताकि तुम अपने उस औफिस वाले के साथ गुलछर्रे उड़ा सको और मैं एक जवान लड़की के चारों तरफ एक गार्ड बन कर घूमता रहूं.’’

प्रकाश की इस बात पर निहारिका ने भी तेवर दिखाते हुए कहा, ‘‘मर्दों के समाज में क्या सारी जिम्मेदारी एक मां की ही होती है?’’

निहारिका ने गहरी सांस ली और कुछ देर रुक कर बोली, ‘‘हां, वैसे सियाली कभीकभी मेरे पास भी आ सकती है…  1-2 दिन मेरे साथ रहेगी तो मु झे भी एतराज नहीं होगा,’’ निहारिका ने मानो फैसला सुना दिया था.

सियाली कभी मां की तरफ देख रही थी, तो कभी पिता की तरफ, उस से कुछ कहते न बना, पर वह इतना सम झ गई थी कि मांबाप ने अपनाअपना रास्ता अलग कर लिया है और उस का वजूद एक पैंडुलम से ज्यादा नहीं है जो उन दोनों के बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक डोल रही है.

शाम को जब सियाली कालेज से लौटी, तो घर में एक अलग सी शांति थी. पापा सोफे में धंसे हुए चाय पी रहे थे, जो उन्होंने खुद ही बनाई थी. उन के चेहरे पर कई महीनों से बनी रहने वाली तनाव की शिकन गायब थी.

सियाली को देख कर उन्होंने मुसकराने की कोशिश की और बोले, ‘‘देख ले… तेरे लिए चाय बची होगी… लेले और मेरे पास बैठ कर पी.’’

सियाली पापा के पास आ कर बैठी, तो पापा ने अपनी सफाई में काफीकुछ कहना शुरू किया, ‘‘मैं बुरा आदमी नहीं हूं, पर तेरी मम्मी ने भी तो गलत किया था. उस के काम ही ऐसे थे कि मु झे उसे देख कर गुस्सा आ ही जाता था और फिर तेरी मां ने भी तो रिश्तों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.’’

पापा की बातें सुन कर सियाली से भी नहीं रहा गया और वह बोली, ‘‘मैं नहीं जानती कि आप दोनों में से कौन सही है और कौन गलत है, पर इतना जरूर जानती हूं कि शरीर में अगर नासूर हो जाए, तो आपरेशन ही सही रास्ता और ठीक इलाज होता है.’’

बापबेटी ने कई दिनों के बाद आज खुल कर बात की थी. पापा की बातों में मां के प्रति नफरत और गुस्सा ही छलक रहा था, जिसे सियाली चुपचाप सुनती रही थी.

अगले दिन ही सियाली के मोबाइल पर मां का फोन आया और उन्होंने सियाली को अपना पता देते हुए शाम को उसे अपने फ्लैट पर आने को कहा, जिसे सियाली ने खुशीखुशी मान भी लिया था और शाम को मां के पास जाने की सूचना भी उस ने अपने पापा को दे दी, जिस पर पापा को भी कोई एतराज नहीं हुआ.

शाम को सियाली मां के दिए पते पर पहुंच गई. पता नहीं क्या सोच कर उस ने लाल गुलाब का एक बुके खरीद लिया था और वह फ्लैट नंबर 111 में पहुंच गई.

सियाली ने डोरबैल बजाई. दरवाजा मां ने ही खोला था. अब चौंकने की बारी सियाली की थी. मां गहरे लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थीं. उन की मांग में भरा हुआ सिंदूर और माथे पर बिंदी… सियाली को याद नहीं कि उस ने मां को कब इतनी अच्छी तरह से सिंगार किए हुए देखा था. हमेशा सादा वेश में ही रहती थीं मां और टोकने पर दलील देती थीं, ‘अरे, हम कोई ब्राह्मणठाकुर तो हैं नहीं, जो हमेशा सिंगार ओढ़े रहें… हम पिछड़ी जाति वालों के लिए साधारण रहना ही अच्छा है.’

तो फिर आज मां को ये क्या हो गया? बहरहाल, सियाली ने मां को बुके दे दिया. मां ने बड़े प्यार से कोने में रखी एक मेज पर उसे सजा दिया.

‘‘अरे, अंदर आने को नहीं कहोगी सियाली से,’’ मां के पीछे से आवाज आई.

सियाली ने आवाज की दिशा में नजर उठाई, तो देखा कि सफेद कुरतापाजामा पहने हुए एक आदमी खड़ा हुआ मुसकरा रहा था.

सियाली उसे पहचान गई. वह मां का औफिस का साथी देशवीर था. मां उसे पहले भी घर ला चुकी थीं.

मां ने बहुत खुशीखुशी देशवीर से सियाली का परिचय कराया, जिस  पर सियाली ने कहा, ‘‘जानती हूं मां… पहले भी आप इन से मु झ को मिलवा चुकी हो.’’

‘‘पर, पहले जब मिलवाया था तब ये सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त थे, लेकिन आज मेरे सबकुछ हैं. हम लोग फिलहाल तो लिवइन में रह रहे हैं और तलाक का फैसला होते ही शादी भी कर लेंगे.’’

सियाली मुसकरा कर रह गई थी. सब ने एकसाथ खाना खाया. डाइनिंग टेबल पर भी माहौल सुखद ही था. मां के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी.

सियाली रात को मां के साथ ही सो गई और सुबह वहीं से कालेज के लिए निकल गई. चलते समय मां ने उसे 2,000 रुपए देते हुए कहा, ‘‘रख ले, घर जा कर पिज्जा और्डर कर देना.’’

कल से ले कर आज तक मां ने सियाली के सामने एक आदर्श मां होने के कई उदाहरण पेश किए थे, पर सियाली को यह सब नहीं भा रहा था. फिलहाल तो वह अपनी जिंदगी खुल कर जीना चाहती थी, इसलिए मां के दिए गए पैसों से वह उसी दिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने चली गई.

‘‘सियाली, आज तू यह किस खुशी में पार्टी दे रही है?’’ महक ने पूछा.

‘‘बस यों सम झो कि आजादी की पार्टी है,’’ कह कर सियाली मुसकरा दी थी.

सच तो यह था कि मांबाप के अलगाव के बाद सियाली भी बहुत रिलैक्स महसूस कर रही थी. रोजरोज की टोकाटाकी से अब उसे छुटकारा मिल चुका था और वह अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी, इसीलिए उस ने अपने दोस्तों से अपनी एक इच्छा बताई, ‘‘यार, मैं एक डांस ग्रुप जौइन करना चाहती हूं, ताकि मैं अपने

जज्बातों को डांस द्वारा दुनिया के सामने पेश कर सकूं.’’

इस पर उस के दोस्तों ने उसे और भी कई रास्ते बताए, जिन से वह अपनेआप को दुनिया के सामने पेश कर सकती थी, जैसे ड्राइंग, सिंगिंग, मिट्टी के बरतन बनाना, पर सियाली तो मौजमस्ती के लिए डांस ग्रुप जौइन करना चाहती थी, इसलिए उसे बाकी के औप्शन अच्छे  नहीं लगे.

सियाली ने अपने शहर के डांस ग्रुप इंटरनैट पर खंगाले, तो ‘डिवाइन डांसर’ नामक एक डांस ग्रुप ठीक लगा, जिस में 4 मैंबर लड़के थे और एक लड़की थी.

सियाली ने तुरंत ही वह ग्रुप जौइन कर लिया और अगले दिन से ही डांस प्रैक्टिस के लिए जाने लगी और इस नई चीज का मजा भी लेने लगी.

इस समय सियाली से ज्यादा खुश कोई नहीं था. वह तानाशाह हो चुकी थी. न मांबाप का डर और न ही कोई टोकने वाला. वह जब चाहती घर जाती और अगर नहीं भी जाती तो भी कोई पूछने वाला नहीं था. उस के मांबाप का तलाक क्या हुआ, सियाली तो एक ऐसी चिडि़या हो गई, जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए आजाद थी.

एक दिन सियाली का फोन बज उठा. यह पापा का फोन था, ‘सियाली, तुम कई दिन से घर नहीं आई, क्या बात है? कहां हो तुम?’

‘‘पापा, मैं ठीक हूं और डांस सीख रही हूं.’’

‘पर तुम ने बताया नहीं कि तुम डांस सीख रही हो…’

‘‘जरूरी नहीं कि मैं आप लोगों को सब बातें बताऊं… आप लोग अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रहे हैं, इसलिए मैं भी अब अपने हिसाब से ही  जिऊंगी,’’ इतना कह कर सियाली ने फोन काट दिया था, पर उस का मन एक अजीब सी खटास से भर गया था.

डांस ग्रुप के सभी सदस्यों से सियाली की अच्छी दोस्ती हो गई थी, पर पराग नाम के लड़के से उस की कुछ ज्यादा ही पटने लगी थी.

पराग स्मार्ट था और पैसे वाला भी. वह सियाली को गाड़ी में घुमाता और खिलातापिलाता. उस की संगत में सियाली को भी सिक्योरिटी का अहसास होता था.

एक दिन पराग और सियाली एक रैस्टोरैंट में गए. पराग ने अपने लिए एक बीयर मंगवाई और सियाली से पूछा, ‘‘तुम तो कोल्ड ड्रिंक लोगी न सियाली?’’

‘‘खुद तो बीयर पीओगे और मु झे बच्चों वाली ड्रिंक… मैं भी बीयर पीऊंगी,’’ कहते हुए सियाली के चेहरे पर  एक अजीब सी शोखी उतर आई थी.

सियाली की इस अदा पर पराग भी मुसकराए बिना न रह सका और उस ने एक और बीयर और्डर कर दी.

सियाली ने बीयर से शुरुआत जरूर की थी, पर उस का यह शौक धीरेधीरे ह्विस्की तक पहुंच गया था.

अगले दिन डांस क्लास में जब वे दोनों मिले, तो पराग ने एक सुर्ख गुलाब सियाली की ओर बढ़ा दिया और बोला, ‘‘सियाली, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

यह सुन कर ग्रुप के सभी लड़केलड़कियां तालियां बजाने लगे.

सियाली ने भी मुसकरा कर पराग के हाथ से गुलाब ले लिया और कुछ सोचने के बाद बोली, ‘‘लेकिन, मैं शादी जैसी किसी बेहूदा चीज के बंधन में नहीं बंधना चाहती. शादी एक सामाजिक तरीका है 2 लोगों को एकदूसरे के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए जिंदगी बिताने का, पर क्या हम ईमानदार रह पाते हैं?’’ सियाली के मुंह से ऐसी बड़ीबड़ी बातें सुन कर डांस ग्रुप के लड़केलड़कियां शांत से हो गए थे.

सियाली ने थोड़ा रुक कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपने मांबाप को उन की शादीशुदा जिंदगी में हमेशा लड़ते ही देखा है, जिस का खात्मा तलाक के रूप में हुआ और अब मेरी मां अपने प्रेमी के साथ लिवइन में रह रही हैं और पहले से कहीं ज्यादा खुश हैं.’’

पराग यह बात सुन कर तपाक से बोला, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ लिवइन में रहने को तैयार हूं,’’ तो सियाली ने इसे  झट से स्वीकार कर लिया.

कुछ दिन बाद ही पराग और सियाली लिवइन में रहने लगे, जहां वे जी भर कर जिंदगी का मजा ले रहे थे. पराग के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी.

कुछ दिनों के बाद उन के डांस ग्रुप की गायत्री नाम की एक लड़की ने सियाली से एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘सियाली, तुम्हारी तो अभी उम्र बहुत कम है… और इतनी जल्दी किसी के साथ लिवइन में रहना… कुछ अजीब सा नहीं लगता तुम्हें…’’

सियाली के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकराहट आई और चेहरे पर कई रंग आतेजाते गए, फिर उस ने अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘जब मेरे मांबाप ने सिर्फ अपनी जिंदगी के बारे में सोचा और मेरी परवाह नहीं की, तो मैं अपने बारे में क्यों न सोचूं… और गायत्री, जिंदगी मस्ती करने के लिए बनी है, इसे न किसी रिश्ते में बांधने की जरूरत है और न ही रोरो कर गुजारने की…

‘‘मैं आज पराग के साथ लिवइन में हूं, और कल मन भरने के बाद किसी और के साथ रहूंगी और परसों किसी और के साथ, उम्र का तो सोचो ही मत… बस मस्ती करो.’’

सियाली यह कहते हुए वहां से  चली गई, जबकि गायत्री अवाक सी खड़ी रह गई.

तितली कभी किसी एक फूल पर नहीं बैठती… वह कभी एक फूल पर, तो कभी दूसरे फूल पर, और तभी तो  इतनी चंचल होती है और इतनी खुश रहती है… रंगबिरंगी तितली, जिंदगी से भरपूर तितली.

नुकसान उस का है जो दबा है

अडानी समूह पर बहस में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकाअर्जुन खड़गे ने एक जगह कह दिया कि सरकार ने सारे न्यूज चैनलों के ऐंकर खरीद लिए हैं. गोदी मीडियागोदी मीडिया… सुनने वाले चैनल ऐंकरों को आमतौर पर इस तरह की सुनने की आदत है पर एक ने एक जगह पूछ लिया कि साबित कर के दिखाओ कि ऐंकरों ने एक भी पाई ली हो.

यह साबित करने की बात भी मजेदार है. ऐंकरों को यह कहना पड़ रहा है कि दूसरा पक्ष साबित करे कि वह ?ाठ बोल रहा हैअपनेआप में स्वीकारोक्ति है. जनता या नेता कोई ईडीसीबीआईएनआईए तो हैं नहीं जो आप को महीनों बंद कर के रखें कि आप की पाई को ढूंढ़ना है. यह ताकत तो उन के पास है जो पाई दे सकते हैं.

गोदी मीडिया बिका हुआ है यह तो साफ दिखता है कि वह रातदिन हिंदूमुसलिम करता हैसरकार का प्रचार करता है. प्रधानमंत्री की चुनावी रैलियों का सीधा प्रसारण घंटों तक करता है और उन के चैनल ही फ्री औफ कौस्ट सैटटौप बौक्सों से ग्राहकों तक पहुंचते हैं. किसी के बिकने का सुबूत इतना ही काफी है कि वह अमीरोंउद्योगपतियोंसब में बैठे लोगों की बातें रातदिन करे और जो लोग उन की पोल खोलें उन की बात को रिपोर्ट भी न करे.

अकसर आलोचना करने वालों से पूछा जाता है कि आप दूसरा पक्ष भी क्यों नहीं देते. सरिता’ को इस तरह सैकड़ों पत्र मिलते हैं. दूसरी तरफ की बातें यानी वे बातें जो सरकार ढिंढोरा पीट कर कह रही है और मंदिरों के प्रवचनों में रोजाना दोहराई जा रही हैंहम भी क्यों नहीं कह रहेनहीं कह रहे तो अवश्य किसी ने खरीद रखा है.

यह अजीबोगरीब तर्क है. जिस के पास पैसा वही तो खरीद सकता है. जब आप पैसे वालों की आलोचना कर रहे होपोल खोल रहे होजनता को गुमराह होने से बचा रहे होपीडि़तों से उन के अधिकारों की बात कर रहे हो तो कौन आप को खरीदेगाआप से तो हरेक को डर लगेगा कि अगर आज कुछ दे भी दिया तो कल ये उन के खिलाफ भी बोल सकते हैं.

कांग्रेस अपनेआप में पूरी तरह डिटर्जैंट से धुली हो जरूरी नहीं. वह सत्ता में 50-60 साल रही. हर कांग्रेसी ठसके वाला है. हरेक के पास घरगाडि़यांबंगले हैं पर फिर भी यदि ये लोग आज भी कांग्रेस में हैं और भाग कर भारतीय जनता पार्टी के तले नहीं चले गए तो यह साबित करता है कि इन में कुछ अभी बाकी है जो लोकतंत्रजवाबदेहीकमजोरों के अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं.

जिस तरह से विपक्षी दलों और उन के नेताओं को बंद किया जा रहा है और बंद करते समय जिस तरह ऐंकर सुर्खियों में समाचार प्रकाशित करते हैं और जिस तरह से वे दिल्ली के उपराज्यपाल या अन्य राज्यपालों की दखलंदाजियों की खबरें पचा जाते हैंजिस तरह से वे औरतों पर हो रहे अत्याचारों की बात को 3 सैकंड में दिखा कर रफादफा कर देते हैं उस से क्या साबित करना बचता है कि ऐंकर शुद्ध हरिद्वार जल से पापरहित हो चुके हैं?

भक्तिभाव में डूबे होना भी बिकना है. हो सकता है कि चैनलों के मालिकों की श्रद्धा किसी नेता में हो क्योंकि व्यक्तिगत तौर पर किसी के अंधभक्त होंयह भी बिकना है.

आज चाहे एक जने के अधिकार व अस्तित्व की रक्षा की बात हो या सुप्रीम कोर्टचुनाव आयोगअल्पसंख्यकोंऔरतोंविचारकोंछोटे मजदूरोंकिसानों कीयदि वे समाज में घुटन महसूस कर रहे हैं तो जो भी उन का मालिक या संचालक है वह खुद बिका हुआ है या खरीद रहा है. नुकसान उस का है जो दबा है.

दसरा फिल्म रिव्यू: नानी और कीर्ति सुरेश का शानदार अभिनय

 रेटिंग: तीन स्टार

निर्माताः सुधाकर चेरीकुरी

लेखकः श्रीकांत ओडेला,  जेला श्रीनाथ, अर्जुना पुटेरी,  वामसी कृष्णा पी

निर्देशक: श्रीकांत ओडेला

कलाकारः नानी, कीर्ति सुरेश,  दीक्षित शेट्टी, शाइन टामो चाको,  समुथिरकानी,  सई कुमार,  झांसी,  शामना कासिम,  राज षेखर अनिंगी

अवधि: दो घंटे 36 मिनट

बौलीवुड में सामाजिक मुद्दे या नारी उत्थान पर बनने वाली फिल्मों को इस तरह से बनाया जाता है कि यह सारे मुद्दे गायब हो जाते हैं और यह साफ नजर आने लगता है कि फिल्मसर्जक ने इस फिल्म को किस मकसद से बनाया है. जबकि दक्षिण भारतीय सिनेमा की खासियत यह है कि वह मुद्दे वाली फिल्म को भी मनोरंजक तरीके से बनाते हैं, परिणामतः उनकी फिल्में उपदेशात्मक भी नही लगती.  इसका ताजातरीन उदाहरण पहली बार स्वतंत्र लेखक व निर्देशक बने श्रीकांत ओडेला की तेलुगू फिल्म ‘‘दसरा’’ ( दशहरा), जो कि हिंदी सहित पांच भाशाओं में 30 मार्च को प्रदर्शित हुई है.

ग्रामीण पृष्ठभूमि में नारी की मर्जी के साथ ही ‘प्यार बड़ा या हवस बड़ा’ के सवाल को उठाने वाली फिल्म ‘दसरा’ एक ऐसी एक्शन प्रधान फिल्म है, जो अंत तक लोगों को बांधकर रखती है. जी हां! एक्शन प्रधान फिल्म ‘‘दसरा’’ बिना किसी शोरशराबे या भाषणबाजी के ग्रामीण राजनीति, सरपंच का चुनाव, दोस्ती, शराब में डूबे गांव के पुरूषों के चलते गांव में विधवा औरतांे की बढ़ती संख्या, जातिगत भेदभाव, दलित व मुस्लिम एकता, विधवा औरत की मर्जी के बिना उसे मंगल सूत्र पहनाना सही या गलत सहित कई मुद्दों पर बात करती है.

फिल्म ‘‘दसरा’’ यह संदेश भी देती है कि वर्तमान हालातों में रावण (राक्षसी प्रवृत्ति के लोग ) का विनाश करने के लिए राम नही रावण (राक्षसी प्रवृत्ति ही अपनाना) ही बनना पड़ेगा. फिल्म के नायक नानी दूसरी बार हिंदी भाषी दर्षकों के समक्ष हैं. इससे पहले हिंदी भाषी दर्शकों ने नानी को 2012 में एस एस राजामौली निर्देषित फिल्म ‘ईगा’ को हिंदी में डब होकर ‘मक्खी’ के नाम से प्रदर्षित हुई फिल्म में देखा था.

शाहिद कपूर की फिल्म ‘जर्सी’ इन्हीं नानी की इसी नाम की तेलुगू फिल्म की हिंदी रीमेक थी. इस बार नानी ने अपनी फिल्म ‘दसरा’ (दशहरा) का हिंदी ट्रेलर लखनउ, उत्तरप्रदेश में रिलीज किया था.

कहानीः

ग्रामीण पृष्ठभूमि में तमिलनाड़ु, अब तेलंगाना के कोयला खनन वाले वीरलापल्ली नामक की गांव की कहानी है. कहानी उस काल की है जब एन टी रामाराव मुख्यमंत्री थे और उन्होंने शराब बंदी लागू कर दी थी. यह गांव देश के मानचित्र पर एक धब्बा है. यह ऐसा गांव है, जहां सुबह होते ही गांव के सभी पुरूश ‘सिल्क बार’ पहुंचकर शराब का सेवन करना षुरू कर देते हैं. वह कोयले की खान में काम करते हैं और इसलिए उन्हें लगता है कि शराब पीना जरूरी है.

दलित व निचली जाति के लोगों को ‘सिल्क बार’ के अंदर जाने की इजाजत नही है. परिणामतः महिलाएं शोशण का षिकार होती रहती हैं. कहानी के केंद्र में धरणी (नानी) और सूरी (दीक्षित शेट्टी) और एक लड़की वेनेला(कीर्ति सुरेश)हैं. धरणी, सूरी व वेनेला बचपन से ही जिगरी दोस्त हैं. धरणी व सूरी चलती मालगाड़ियों से कोयले की चोरी करते रहते हैं. नम्र स्वभाव का धरणी परोपकारी है और टकरावों से दूर रहने में विश्वास करता है.

धरणी,  वेनेला को बचपन से ही प्यार करता आया है. पर जवानी मे जब पता चलता है कि सूरी और वेनेला एक दूसरे से प्यार करते हैं, तो वह अपना प्यार कुर्बान कर देता है. कई वर्षों के बाद,  गाँव और बार के नियंत्रण के लिए युद्ध में दो सौतेले भाइयों,  राजन्ना (साइकुमार) और शिवन्ना  (समुथिरकरानी) के बीच अनुचित सत्ता की राजनीति से प्रेम त्रिकोण बढ़ जाता है.  षिवन्ना का बेटा नंबी  (शाइन टॉम जैकब) आक्रामक स्वभाव का है, उसकी वजह से इस गांव की दिशा व दशा ही बदल जाती है.

धरणी, सूरी व वेनेला की जिंदगी में सारी समस्याओ की जड़ हवसी नंबी (शाइन टॉम जैकब) ही है. नंबी का अस्तित्व राजनीतिक और जातिगत दबदबे के कारण है. नंबी द्वारा रची गयी हिंसा से धरनी का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और अब वह प्रतिशोध की योजना बनाने से लेकर खुद के अंदर साहस जुटाने में लग जाता है. डरपोक,  उत्तरदायित्व से जी चुराने वाला व्यक्ति धरणी अब तकदीर को मानने की बजाय कुछ कर गुजरने का फैसला ले लेता है.

लेखन व निर्देशनः

इंटरवल से पहले फिल्म की गति धीमी है. षुरूआती आधा घंटा निराशा जनक है. इंटरवल में जिस मोड़ पर फिल्म थमती है, उसे देखकर दर्षक जो कुछ सोचता है, उसके विपरीत इंटरवल के बाद कहानी न सिर्फ तेज गति से आगे बढ़ती है, बल्कि कई अलग अलग मोड़ आते हैं. तब लोगों की समझ में आता है कि इंटरवल से पहले धीमी गति से चलती हुई कहानी किस तरह किरदारों को परिभाषित करती है.

यह पटकथा लेखकों और निर्देशक का कमाल है. पटकथा लेखक व निर्देशक की खूबी यह है कि फिल्म का नाम ‘दसरा’ है, मगर क्लायमेक्स से पहले तक दर्षक के दिमाग में ‘दसरा’ (दशहरा) आता ही नही है. हम यहां याद दिला दें कि दक्षिण भारत में आज भी रावण की पूजा की जाती है. पर दशहरे के दिन रावण दहन की भी परंपरा है.

फिल्म ‘दसरा’ के सर्जक ने अपनी फिल्म की कहानी के लिए पात्र व उपमाएं हिंदू धर्म ग्रंथ ‘रामायण’ से ही चुने हैं. इंटरवल के बाद ही समझ में आता है कि धरणी, सूरी व वेनेला की जिंदगी में सारी समस्याओ की जड़ हवसी नंबी (शाइन टॉम जैकब) ही है. नंबी का अस्तित्व राजनीतिक और जातिगत दबदबे के कारण है.

फिल्म ‘दसरा’ देखकर लोगों की समझ में आएगा कि तीस साल पहले भी गांवों में किस तरह राजनीतिक प्रतिद्वंदिता व गांव का सरपंच आम लोगों का शोशण कर रहा था. फिल्म में जाति गत भेदभाव , प्रेम कहानी व दोस्ती को भी प्रभावी तरीके से उकेरा गया है.

फिल्म में फिल्म सर्जक ने जाति विभाजन के चलते सामाजिक परिणामों को अपने तीन मुख्य पात्रों के माध्यम से स्पष्ट तौर पर रेखंाकित किया है. फिल्म में सूरी व वेनेला की जाति एक ही है, जबकि धरणी की जाति अलग है. फिल्म में धरणी के हर निर्णय को सूरी के साथ अपनी प्रगाढ़ दोस्ती बताकर निर्देशक इस सवाल से जरुर बच गए कि वेनेला व सूरी एक ही जाति के हैं, इसलिए धरणी ने अपने प्यार को कुर्बान किया.

शायद इस मुद्दे से फिल्मकार खुद को अलग रखना चाहते थे. औरत की अपनी मर्जी के बिना कोई भी पुरूष उसके साथ कुछ नही कर सकता. इस पर बौलीवुड ने कई फिल्में बना डाली. जबकि इस फिल्म के लेखक व निर्देशक ने इसी सवाल को बिना भाशणबाजी के महज दो मिनट के अंदर पुरजोर तरीके से उठाया है. शादी के बाद हनीमून से पहले ही सूरी की हत्या के बाद जब वेनेला के सिर से सिंदूर, गले से मंगल सूत्र व हाथ की चूड़ियंा तोड़ी जाती है और उसे विधवा का दर्जा दिया जाता है, तभी धरणी वही मंगल सूत्र पुनः वेनेला को पहनाकर अपने घर ले आता है. पर उसके साथ धरणी दोस्ताना व्यवहार ही करता है.

उस वक्त मूक रही वेनेला बाद में स्पष्टीकरण मांगती है कि उसकी ओर से जीवन-परिवर्तनकारी निर्णय लेने से पहले उसकी सहमति क्यों नहीं मांगी गई?वह कहती है-‘‘मेरे गले में मंगलसूत्र डालने से पहले मेरी मर्जी क्यों नही पूछी गयी.’’ वेनेला के इस सवाल पर धरणी का जवाब एक तरह से माफी मांगने जैसा ही है. क्या बौलीवुड के फिल्मकार अपनी फिल्मों में इस तरह की बात करने का साहस दिखा सकते हैं?

फिल्म का कमजोर पक्ष यह है कि राख से भरे परिवेश, कालिख से भरी हवा व कोयले से भरी मालगाड़ी के अलावा कोयला खदान को स्थापित करने के लिए फिल्मकार ने कुछ नही किया. इसके अलावा फिल्म में राजन्ना का किरदार जबरन ठूंसा हुआ लगता है. क्योंकि राजन्ना राजनीति में कड़ुवाहट घोलने के बाद हर जगह सिर्फ शो पीस की तरह मौजूद रहता है.  अपने समर्थकों के पक्ष में भी कुछ नही करता.

फिल्म का क्लायमेक्स भी अनूठा है. फिल्म के कैमरामैन सत्थान सूर्यान की भी तारीफ करनी पड़ेगी. फिल्म के सभी गाने पार्श्व में चलते हैं, मगर पात्रों के मन की बात करते हुए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. फिल्म के एक्शन दृष्यों की भी तारीफ की जानी चाहिए. कम से कम बौलीवुड के सर्जकों को ‘दसरा’ से सीखना चाहिए कि एक्शन क्या होता है?

अभिनयः

2008 में अभिनय जगत में कदम रखने वाले व कई भारतीय पुरस्कारों के साथ ही 2013 में ‘टोरंटो आफटर डार्क फिल्म फेस्टिवल’ में सर्वश्रेष्ठ हीरो का अवार्ड अपनी झोली में डाल चुके नानी की ‘दसरा’ 29वीं फिल्म है.

डिग्लैमरस धरणी के किरदार को नानी अपनी कुशाग्र बुद्धि से जीवंतता प्रदान करने में सफल रहे हैं. परोपकारी, अति विनम्र स्वभाव व झगड़े से दूर रहने वाले धरणी का कर्मठ युवा से लेकर निर्दयी इंसान बनने तक का जो बदलाव है, उसे बाखूबी परदे पर नानी ने जिया है.

इतना ही नहीं धरणी ने जिस तरह से अपने अंदर अपने प्यार को दबा रखा है, उसे नानी ने बाखूबी जिया है. अफसोस की बात यह है कि हिंदी में नानी के संवाद अभिनेता शरद केलकर ने डब किए हैं, जो कि नानी के किरदार धरणी पर फिट नही बैठते. यह फिल्म की कमजेार कड़ी है.

सूरी के किरदार में शेट्टी दीक्षित अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

वेनेला की जिंदगी में कई भावनात्मक उतार चढ़ाव आते हें और हर भाव को अपने चेहरे से उकेरने में सफल रहने वाली अभिनेत्री कीर्ति सुरेश ने 2018 में प्रदर्शित तेलुगू फिल्म ‘‘महानती’ में अपनी अभिनय प्रतिभा का परिचय दे चुकी हैं. मलयालम फिल्मों के निर्माता सुरेश कुमार और तमिल अभिनेत्री मेनका की बेटी कीर्ति सुरेश को अभिनय व फिल्म माहौल बचपन से मिला है.

बतौर बाल कलाकार भी वह तीन फिल्में कर चुकी हैं. कीर्ति सुरेश कमाल की अभिनेत्री हैं. नंबी के किरदार में अभिनेता शाइन टॉम चाको भी छा जाते हैं. उन्हे देखकर या उनकी बौडीलेंगवेज से यह कल्पना नही की जा सकती है कि इतना बुरा इंसान है.

मेकअप रिमूव न करने के नुकसान

अगर आप भी उन महिलाओं में से हैं जो घर से बाहर निकलते वक्त खुद को परफैक्ट लुक देना नहीं भूलतीं और औफिस पहुंच कर भी बिलकुल टिंच रहती हैं, तो इस का मतलब है कि मेकअप आप के रूटीन का अहम हिस्सा बन चुका है. कई महिलाएं तो अपने वीकली औफ वाले दिन भी घर में मेकअप से लिपीपुती रहती हैं तो कुछ बैड पर जाने से पहले भी मेकअप करना नहीं भूलतीं ताकि उन के पार्टनर को उन का बिना मेकअप वाला चेहरा न दिखे.

दरअसल, वे ऐसा पार्टनर का पूरा अटैंशन पाने के लिए करती हैं. एक सर्वे के मुताबिक करीब 53% महिलाओं ने स्वीकारा कि रात में बिना मेकअप वे अपने पार्टनर को रिझा नहीं पाएंगी. लेकिन शायद आप को इस बात पर यकीन न आए पर कई शोधों के मुताबिक यह सच है कि जो महिलाएं रात में मेकअप रिमूव नहीं करतीं, उन की त्वचा पर मेकअप नकारात्मक प्रभाव डालता है. 

ध्यान रहे जितना जरूरी मेकअप करना है, उतना ही जरूरी उसे साफ करना भी है. ऐसा न करने पर चेहरे पर इन्फैक्शन भी हो सकता है. मेकअप की परत चढ़ते ही त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और रोमछिद्रों के लंबे समय तक बंद रहने से त्वचा के भीतर की गंदगी बाहर नहीं निकल पाती, जो बाद में कीलमुंहासों का रूप ले लेती है.

बहुत सी महिलाएं कई बार बिना मेकअप साफ किए ही सो जाती हैं. अगर आप चाहती हैं कि आप की त्वचा संक्रमित होने से बची रहे तो सोने से पहले मेकअप जरूर रिमूव कर दें. 

रिमूव न करने पर क्या होगा

अगर आप मेकअप नहीं हटाती हैं, तो दिन भर में चेहरे पर लगे धूलमिट्टी के कण चेहरे पर अटैक करेंगे और रात में आप ने मेकअप चाहे लाइट किया हो या हैवी, साफ नहीं किया तो वह पूरी रात चेहरे पर रहेगा और स्किन को नुकसान पहुंचाएगा. इस का नतीजा यह होगा कि आप के चेहरे पर उम्र से पहले झुर्रियां पड़ने लगेंगी. और आप का कौंप्लैक्शन भी डार्क हो सकता है. 

उत्पाद के पड़ने वाले बुरे प्रभाव

मेकअप के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले फाउंडेशन की मोटी परत त्वचा पर चढ़ती है, इसलिए उस की जगह अन्य उत्पाद दिन के लिए इस्तेमाल किए जाएं. फाउंडेशन में होने वाले कण और पिगमैंट दिन भर त्वचा के रोमछिद्रों पर इफैक्ट करते हैं. वे कण त्वचा में लौक हो जाते हैं और त्वचा की परत में हवा के बाहर और अंदर आने में बाधक बनते हैं. प्राइमर: प्राइमर त्वचा को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. साथ ही आप इसे कैसे लगा रही हैं, उस पर भी यह निर्भर करता है. अगर आप ने प्राइमर पूरा दिन लगाए रखा है तो प्रदूषण आप की त्वचा पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव डालेगा.

लिपस्टिक:

अगर आप रात में लिपस्टिक लगा कर सो रही हैं, तो उस का परिणाम आप को अगले दिन, होंठों के सूखे व फटेफटे से होने के रूप में मिलेगा. यदि आप की लिपस्टिक में ज्यादा पिगमैंट है तो इसे लगाने से आप के होंठ काले भी पड़ सकते हैं. आप को इस तरह की लिपस्टिक हटाने के लिए सौफ्ट वाइप्स से हलकी स्क्रबिंग करनी होगी. कई कंपनियों की लिपस्टिक होंठों पर लंबे समय तक टिकी रहती है. ऐसे में लिपस्टिक हटाने के लिए पैट्रोलियम जैली का इस्तेमाल करें. लिपस्टिक हटाने के बाद लिप्स और ज्यादा ड्राई हो जाते हैं. ऐसे में लिप बाम जरूर लगाएं ताकि होंठों की नमी बरकरार रहे और वे मुलायम हो जाएं.

आईज:

महिलाओं को रोज आंखों पर मसकारा, काजल और आईलाइनर लगाने की आदत होती है. इन में से कोई चीज लगाए बिना तो उन के घर से पैर ही नहीं निकलते. उन के पास में भी ये चीजें जरूर मिलेंगी. आईज मेकअप उन्हें बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन ज्यादातर महिलाएं इसे बिना साफ किए ही सो भी जाती हैं. अगर आप भी ऐसा करती हैं तो फौरन ऐसा करना बंद कर दें. माना कि पलकों पर मसकारा लगाए बिना मेकअप पूरा नहीं होता, मगर इसे लगाए ही रात को सो जाती हैं, तो आप की पलकों में फैलाव आना स्वाभाविक है. मसकारा आप की पलकों पर बोझ डालता है, इसे साफ न करने से पलकें अलगअलग होने लगती हैं. इस से न केवल आप की पलकें ज्यादा टूटेंगी, बल्कि बेहद हलकी भी पड़ जाएंगी. मसकारा के अंदर पाए जाने वाले कण आप की त्वचा के छिद्रों को बंद कर देते हैं. ऐसे में आप ब्लेफ्राइटिंस बीमारी से भी ग्रस्त हो सकती हैं. इस के अलावा लंबे समय तक कंजक्टिविटीज की समस्या भी रह सकती है.

काजल, आईलाइनर या मसकारा यदि रात भर लगा कर रखा जाए तो आंखों की इन समस्याओं से आप को जूझना पड़ेगा. शुरुआत में आंखों में इरिटेशन और हलकी ऐलर्जी भी हो सकती है. आंखों में सूजन भी आ सकती है.

बचाव

रात को सोने से पहले सारा मेकअप जरूर उतार दें. मेकअप में धूलमिट्टी फंसी हो सकती है. सारी रात इसे लगा कर सोने से धूलमिट्टी चेहरे के रोमछिद्रों को बंद कर सकती है. साथ ही मेकअप में कुछ ऐसे कैमिकल भी हो सकते हैं, जो कुछ समय बाद आप की त्वचा में जलन पैदा कर सकते हैं. इसलिए सोने से पहले मेकअप उतारना न भूलें. अगर आप अकसर मेकअप साफ करना भूल जाती हैं और बैड पर आ जाती हैं, तो अपने बैड की साइड की टेबल पर मेकअप रिमूव करने की सारी चीजें रखें और अपनी स्किन को स्वस्थ व चमकदार बनाने की ओर कदम बढ़ाएं.

यह भी न भूलें

आप की मेकअप किट में मेकअप का सारा सामान होने के साथ ही मेकअप रिमूवर होना भी बहुत जरूरी है. आंखें काफी सैंसिटिव होती हैं और उन्हें अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. फेशियल मेकअप, फाउंडैशन, लिपस्टिक, वाटर बेस्ड मेकअप आदि क्लींजर से आसानी से साफ हो जाता है, लेकिन आई मेकअप जैसे आईलाइनर, काजल और मसकारा को हटाने के लिए अलग रिमूवर की जरूरत होती है.

कुछ टिप्स

क्या आप जानती हैं कि बेबी औयल एक अच्छा मेकअप रिमूवल है? हां, लेकिन आप को हलका फीवर है तो आई मेकअप रिमूवल को चुनते वक्त एहतियात जरूर बरतें. अगर आप की आंख में लालिमा या फिर इन्फैक्शन है तो कौटन को एक ही आंख पर रख कर इस्तेमाल करें. अगर आप ऐसा नहीं करती हैं तो आप की दूसरी आंख में भी इन्फैक्शन हो सकती है. इस के अलावा कई महिलाएं रात को सोने से पहले चेहरा साबुन से धोती हैं. तो आप को बता दें कि मेकअप हटाने के लिए साबुन यूज न करें.

सास के कारण मैं परेशान हो गया हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरा 2 वर्ष पूर्व ही विवाह हुआ है. मेरी 45 वर्षीय सास बेहद खूबसूरत है. वह विधवा है और अकेली रहती है. एक दिन मैं किसी काम से ससुराल गया तो वह टीवी पर ब्लू फिल्म देख रही थी. मुझे देख कर शरमा गई, पर फिल्म बंद नहीं की. कनखियों से मुझे देखती रही. धीरेधीरे हम दोनों ही उत्तेजित होने लगे और फिर आलिंगनचुंबन करतेकरते हमबिस्तर हो गए. उस दिन से यह सिलसिला लगातार चल रहा है. मैं डरता भी हूं पर खुद पर नियंत्रण नहीं कर पाता. कहीं मैं संकट में तो नहीं पड़ जाऊंगा?

जवाब-

आप की कुछ समय पहले ही शादी हुई है. घर में जवान पत्नी है बावजूद इस के आप उस की अधेड़ उम्र मां (जो आप के लिए भी मां समान है) से अवैध संबंध बना रहे हैं. सब से हैरतअंगेज तो आप की सास का व्यवहार है, जो अपनी ही बेटी के घर में सेंध लगा रही है. जरा सोचिए, यदि आप की पत्नी को कभी आप के रिश्ते की भनक लग गई तो उस पर क्या गुजरेगी. अवैध संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. देरसवेर जगजाहिर हो ही जाते हैं. तब आप का दांपत्य जीवन तो तहसनहस होगा ही समाज में बदनामी भी होगी. अत: समय रहते संभल जाएं.

ये भी पढ़ें-

धोखा देना इंसान की फितरत है फिर चाहे वह धोखा छोटा हो या फिर बड़ा. अकसर इंसान प्यार में धोखा खाता है और प्यार में ही धोखा देता है. लेकिन आजकल शादी के बाद धोखा देने का एक ट्रेंड सा बन गया है. शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बाद बदले लेने के लिए. इतना ही नहीं कई बार शादी के बाद धोखा देने का कारण होता है असंतुष्टि. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है. लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि शादी के बाद धोखा देना कहां तक सही है, शादी के बाद धोखे की स्थिति को कैसे संभालें. क्या करें जब आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- शादी के बाद धोखा देने के क्या होते हैं कारण

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

फैमिली के लिए डिनर में बनाएं अरहर दाल के गट्टे

बेसन के गट्टे की सब्जी आपने कई बार ट्राय की होगी. लेकिन क्या आपने अरहर दाल के गट्टे की सब्जी बनाई है. अगर नहीं तो ये आपके लिए हेल्दी और टेस्टी सब्जी है.

सामग्री

1/2 कप अरहर दाल

1 इंच अदरक का टुकड़ा

1 हरीमिर्च कटी

1 छोटा चम्मच धनिया भुना व दरदरा कुटा

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1 छोटा चम्मच सौंफ

चुटकी भर हींग पाउडर

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

1 छोटा चम्मच रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार.

सामग्री तड़के की

1 बड़ा चम्मच सफेद तिल

चाटमसाला स्वादानुसार

2 छोटे चम्मच रिफाइंड औयल.

विधि

दाल को 3 घंटे पानी में भिगोएं. फिर पानी निथार कर अदरक व हरीमिर्च के साथ थोड़ा दरदरा पीसें. तेल को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री मिलाएं और हाथ को तेल से चिकना कर के गट्टे की तरह रोल बनाएं. बीच में एक मोटी सलाई से छेद कर भाप में 10 मिनट पकाएं. ठंडा कर के 1/2 इंच मोटे टुकड़े काटें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के तिल चटकाएं. फिर इन टकेपैसों को डाल कर लगभग 3 मिनट उलटेंपलटें. चाटमसाला डाल कर सर्व करें.

YRKKH: प्रणाली राठौड़ के साथ जय की हरकते देख फैंस ने दिया रिएक्शन

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में जय सोनी को काफी ज्यादा पसंद किया जा रहा है. इस सीरियल में जय ‘अभिनव’ के किरदार में दिखाई दे रहे हैं, जो अक्षरा से बेहद प्यार करता है. सोशल मीडिया पर फैंस के एक बड़े ग्रुप को जय और प्रणाली राठौड़ की जोड़ी काफी पसंद आ रही हैं और दोनों को फैन ने ‘akshnav’ नाम भी दिया है. लेकिन अब जय फैंस के गुस्से का शिकार हो गए हैं. सोशल मीडिया पर उनका और प्रणाली राठौड़ का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह प्रणाली से कुछ ऐसा कहता दिखाई दे रहे हैं, जो उनके फैंस को रास नहीं आया.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jay Soni (@jaysoni25)

प्रणाली राठौड़ और जय सोनी का वीडियो हुआ वायरल

दरअसल, जय सोनी (Jay Soni) और प्रणाली राठौड़ का एक वीडियो ट्विटर पर तेजी से वायरल हो रहा है. यह वीडियो ये रिश्ता क्या कहलाता है (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के सेट का है, जिसमें जय और प्रणाली मिलकर एक सीन को शूट करते हैं और सीन पूरा होने का बात पीछे से कट की आवाज भी आती है. तभी अचानक ही जय सोनी का बर्ताव प्रणाली के लिए बदल जाता है और वह कहते हैं कि ये क्या कर रही थी. इसके बाद जय अपने हाथ से कुछ एक्शन करते हैं. वहीं, प्रणाली भी इस बात का शांति से जवाब देती है. जय का यह अंदाज प्रणलाी के फैंस को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया है. कई लोगों का कहना है कि आज उन्होंने जय का असली चेहरा देख लिया है.

 

फैंस ने किया ट्रोल

इस वीडियो पर फैंस से अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘अभिनव प्रणाली को कैसे इनसल्ट कर रहा है. प्रूफ देखो. कम से कम पीआर की बात सुने बिना कसे चला गया. शेम ऑन यू जय.’ दूसरे ने लिखा, ‘आप महिलाओं से इस तरह बात करते हैं? क्यों वह उसकी नकल और मजाक उड़ा रहा है. भगवान का शुक्र है कि हमें यह क्लिप मिली, यह लड़का असल जिंदगी में अच्छा आदमी नहीं है. यह लड़का सोचता है कि वह मुख्य अभिनेत्री से बेहतर है? यही होता है जब आप साइडी कॉमियो को इतना महत्व देते हैं.’ इसके अलावा भी फैंस ने काफी कुछ कहा है.

‘‘भोलाः तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ का घटिया रीमेक…’’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः अजय देवगन,भूषण कुमार, किषन कुमार,एस आर प्रकाष बाबू, रिलायंस इंटरटेनमेंट

लेखकःआमिल कियान खान, अंकुष सिंह, श्रीधर दुबे व संदीप केलवानी

निर्देषकः अजय देवगन

कलाकारःअजय देवगन,तब्बू,विनीत कुमार,किरण कुमार,दीपक डोबरियाल, संजय मिश्रा,गजराज राव, आमला पौल, मकरंद देषपांडे,यूरी सूरी,अभिषेक बच्चन,अक्ष आहुजा, राज लक्ष्मी व अन्य

अवधिःदो घंटे 24 मिनट

प्रदर्षन की तारीखः तीस मार्च 2023

दक्षिण भारतीय लेखक व निर्देषक लोकेष कनगराज की तमिल भाषा की फिल्म ‘‘कैथी’’ 25 अक्टूबर 2019 को सिनेमाघरों में पहुॅची थी.25 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर 105 करोड़ से अधिक कमाए थे.फिर यह फिल्म ‘एम एक्स प्लेअर पर भी हिंदी में डब करके मुफ्त दिखायी गयी.जिससे प्रभावित होकर अजय देगवन ने स्वयं इस फिल्म का हिंदी रीमेक बनाने का फैसला लिया.अब अजय देवगन बतौर निर्माता, निर्देषक व अभिनेता एक्षन व रोमांचक फिल्म ‘कैथी’ का हिंदी रीमेक ‘‘भोला’ ’लेकर आए हैं.जो कि अति खराब फिल्म है.कैथी में जिस किरदार को कार्थी ने और पुलिस इंस्पेक्टर बिजौय के किरदार को नरेन ने निभाया था,उसे ही ‘भोला’’में क्रमषः

अजय देवगन और तब्बू ने निभाया है.यानी कि कैथी का पुरूष इंस्पेक्टर बिजौय का लिंग बदलकर भोला में इंस्पेक्टर डायना जोसेफ कर दिया गया.फिर भी यह फिल्म ‘काथी’ के मुकाबले काफी कमजोर है. तथा दर्षकों को बांध नही पाती है.जिन्हे कहानी की बजाय सिर्फ एक्षन देखना चाहते हैं,वह अवष्य इसे देख सकते हैं.‘कैथी’ एक रात की कहानी है और इसमें रोमांचक तत्व काफी हैं. जबकि ‘भोला’ में रोमांच का अभाव है.इतना ही नही यह फिल्म रात संे दिन तक चलती है.आखिर अजय देवगन अपने एक्यान के करतब दिन मे ंन दिखांए,यह कैसे हो सकता है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ajay Devgn (@ajaydevgn)

कहानी:

2019 की सफल तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ के हिंदी रीमेक वाली फिल्म ‘‘भोला’’ की कहानी उत्तर प्रदेष की पृष्ठभूमि में है और कहानी के केंद्र में पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ ( तब्बू ) और दस साल बाद जेल से छूटा कैदी भोला ( अजय देवगन ) है.पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ उनकी टीम ने करोड़े रूपए मूल्य की कोकीन को जब्त करने के साथ ही ड्ग्स व कोकीन के सिंडिकेट के प्रमुख निठारी ( विनीत कुमार ) सहित सिंडिकेट के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया, जिनकी पहचान उन्हें नहीं है.डायना जोसेफ ऐसा करते हुए बुरी तरह से घायल हो जाती है.डायना जोसेफ को लगता है कि अभी तक निठारी उनकी पकड़ से कोसो दूर है.इसलिए वह निठारी के भाई, श्वत्थामा ‘आशु‘ (दीपक डोबरियाल ) को गुस्सा दिलाती है,जिससे निठारी समाने आ सके.उधर आषू गुस्से में 5 पुलिस वालों के खिलाफ इनाम की घोषणा करने के साथ ही पुलिस द्वारा जब्त अपने कोकीन को भरी प्राप्त करने के प्रयास में लग जाता है.उधर आषु भ्रष्ट एनसीबी सिपाही देवराज सुब्रमण्यम की मदद से डायना के वरिष्ठ अफसर की सेवानिवृत्ति की पार्टी में पुलिस वालों के खाने-पीने में जहर घुलवा देता है.डायना जोसेफ इस पार्टी में कुछ नही खाती,क्योंकि घायल होने के बाद वह दवाएं ले रही थी. उधर हाल ही दस साल तक जेल में कैद रहने के बाद अच्छे व्यवहार के चलते जेल से छूटने पर भोला अपनी बेटी ज्योति से मिलने अनाथाश्रम की तरफ बढ़ता है,जिसे रास्तें में पुनः पुलिस पकड़ लेती है. और अब डायना के निवेदन पर भोला अपनी बेटी के पास जाने के बदले 80 किलोमीटर दूर निकटतम अस्पताल में डायना जोसेफ के साथ ही पुलिस वालों को ट्क में में भरकर पहुॅचाने के लिए अनिच्छा से सहमत हो जाता है.रास्ते में हर कोने पर भोला,डायना जोसेफ व पुलिस कर्मियों पर मौत मंडराती रहती है.आखिर आशु और गैंगस्टर पुलिस वालों के साथ ही डायना को मौत के घाट उतारने के लिए तत्पर है.परिणामतः भोला और आषू के गैंग्स्टरों के बीच चूहे बिल्ली का खेल षुरू हो जाता है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ajay Devgn (@ajaydevgn)

लेखन व निर्देषन:

मषहूर एक्षन निर्देषक स्व. वीरू देवगन के बेटे अजय देवगन ने 1991 में फिल्म ‘‘फूल और कोटे’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था.अब तक सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.पर 11 अप्रैल 2008 को प्रदर्षित व बुरी तरह से असफल फिल्म ‘‘यू मी और हम’’ का निर्देषन कर निर्देषन के क्षेत्र में कदम रखा था. इस फिल्म में अजय देवगन ने स्वयं अपनी पत्नी व अभिनेत्री काजोल के संग अभिनय किया था.फिर आठ वर्ष बाद अजय देवगन ने फिल्म ‘‘षिवाय’’ का निर्देषन करते हुए खुद ही अभिनय किया था.फिल्म को औसत दर्जे की ही सफलता मिल पायी थी.इसके बाद 2022 में अजय देवगन ने ‘‘रनवे 34’ का निर्देषन किया.सत्य घटनाक्रम पर आधारित इस फिल्म में अजय देवगन के साथ अमिताभ बच्चन,बोमन ईरानी और रकूल प्रीत सिंह ने भी अभिनय किया था.

मगर यह फिल्म अपनी आधी लागत वसूलने में भी नाकामयाब रही.यानी कि ‘रनवे 34’ जितनी बुरी तरह से बाक्स आफिस पर धराषाही हुई,उसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी.लेकिन अजय देवगन और उनके नजदीकी लोग हार मानने को तैयार नही है.तभी तो अब अजय देवगन ने 2019 की सफलतम तमिल फिल्म ‘‘कैथी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म को ‘‘भोला’’ नाम से निर्देषित करने के साथ ही अपनी सफल फिल्म ‘दृष्यम’ व ‘दृष्यम 2’ की सह कलाकार तब्बू के साथ अभिनय भी किया है.फिल्म ‘‘भोला’’ देखकर दो बातें साफ तौर पर उभर कर आती हैं.पहली यह कि एक भाषा की सफल फिल्म का हिंदी रीमे करते हुए किस तरह पूरी कहानी व फिल्म का बंटाधार किया जा सकता है,इसका सबूत है ‘भोला’’.दूसरी बात बौलीवुड को दक्षिण की फिल्मों या हौलीवुड से कोई खतरा नही है.हकीकत यह है कि बौलीवुड से जुड़े दिग्गज लोग ही सिनेमा को खत्म करने पर आमादा हैं. यहां याद दिल दें कि 2016 में भाजपा सरकार ने अजय देवगन के सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा था.

वाराणसी,हैदराबाद व मंुबई में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘भोला’’ में कहानी, पटकथा,निर्देषन सब कुछ गड़बड़ है.फिल्म में सिर्फ एक्षन दृष्य हैं,इमोषन का दूर दूर तक अता पता नही है.षायद अजय देवगन को भी पता था कि उन्होने एक घटिया फिल्म बनायी है,इसी कारण उन्होने और उनकी इस फिल्म के कलाकारों ने फिल्म ‘‘भोला’’ के संदर्भ में बात करने की बनिस्बत देष के कुछ षहरों में ‘भोला’’ नामक ट्क दौड़ाते हुए फिल्म को नए अंदाज में प्रमोट करते हुए फिल्म को जबरदस्त सफलता मिलेगी, ऐसा दावा करते रहे. हमें लगता है कि फिल्म के प्रमोषन की इस स्ट्ेटजी को गढ़ने वाले लोग अजय देवगन को बर्बाद करने पर ही आमादा हैं.क्योंकि अनूठे ेतरीके के प्रचार के बावजूद इस फिल्म का पहले दिन की एडवांस बुकिंगी काफी कमजोर हुई है.इस  वैसे बतौर निर्देषक अजय देवगन अपनी इस चैथी फिल्म में भी मात खा गए हैं.वैसे प्रेस षो में मेरे बगल में बैठा एक पत्रकार बुदबुदा रहा था कि इस एक्षन फिल्म में सारा का तो एक्षन डायरेक्टर ने किया है.तो फिर निर्देषक ने क्या किया?

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ajay Devgn (@ajaydevgn)

तमिल की सफलतम फिल्म ‘‘कैथी’’ का हिंदी रीमेक करते समय इसकी पटकथा चार लोगों, आमिल कियान खान,अंकुष सिंह,श्रीधर दुबे व संदीप केलवानी ने मिलकर लिखी है.पर यह सभी मात खा गए.नकल करने पर यह हाल है,तो इनसे मौलिक फिल्म की उम्मीद करना बेकार ही है.‘नकल के लिए भी अक्ल चाहिए.’फिल्म में कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी गड़बड़ियां हैं.भोला को जेल से रिहा होते समय पात चला कि उसकी बेटी ज्योति अनाथाश्रम में है.पर भोला की पत्नी कब गर्भवती हुई और बेटी कब पैदा हुई.फिल्म मेें वाराणसी में गंगा नदी के तट पर भोला एक डाक्टर(आमला पौल ) से विवाह करता है.और वहीं होटल में रूका है.तभी गंगा नदी में नाव पर बैठकर अभिषेक बच्चन व विनीत कुमार सहित सत्तर लोग आते हैं.भोला की पत्नी पर हमला हो जाता है. बाकी भोला संवाद में बताता है कि इन सत्तर लोगों की हत्या के जुर्म में उसे सजा हुई थी.भोला ने कभी भी अपनी दस वर्षीय बेटी ज्योति की षक्ल नही देखी है.दस वर्ष से भोला जेल में था.अब क्या समझा जाए…? इसी तरह जब भोला के पास जेल से छोड़े जाने का पत्र है,तो फिर उसे बिना किसी गुनाह के दूसरी जगह की पुलिस गिरफ्तार क्यांे करती है?फिल्म में कुछ ऐसे दृष्य भी हैं,जिनका जिक्र करने पर फिल्म के लिए स्पाॅयलर हो जाएगा.पर वह दृष्य भी गड़बड़ हैं.

कुछ एक्षन दृष्य जरुर अच्छे हैं. वैसे भी षुरू से अंत तक फिल्म में मार धाड़,खून खराबा ही है.फिल्म ड्ग्स की तस्करी या ड्ग्स गिरोह को लेकर कुछ नही कहती.इंटरवल के बाद फिल्म अधिक कमजोर हो जाती है. फिल्म के क्लायमेक्स खत्म होते जब ज्योति अपने पिता भोला से पुलिस स्टेषन में तमाम लाषों के बीच मिलती है,उस वक्त पिता पुत्री के बीच जो इमोषन होने चाहिए थो,वह उभर कर नही आ पाए.पहली बात तो ज्योति को उसके पिता से मिलवाने की जगह ही गलत चुनी गयी.उस वक्त वहां जो दृष्य था,उसका दस वर्ष की बालिका के दिलो दिमाग पर किस तरह का मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है,इस पर लेखक व निर्देषक ने विचार ही नहीं किया. ‘‘भोला’’ में सारे मसाले भर दिए गए हैं.रोमांस भी है.गाने और आइटम सांग भी है.इतना ही नही किसी भी दृष्य में अजय देवगन मार धाड़ करते हुए थकने की बजाय एकदम तरोताजा नजर आते हैं. फिल्म को थ्री डी में भी बनाया गया है.मगर इसका थ्री डी प्रभाव नही छोड़ता है.वीएफएक्स भी काफी कमजोर है.फिल्म का पाष्र्वसंगीत इतना कानफोड़ू है कि कई दृष्यों में संवाद भी ठीक से सुनायी नही पड़ते. फिल्म में उत्तर प्रदेष की आंचलिक भाषा व लहजे में संवाद सुनकर सुखद अहसास होता है.क्रिष्चियन पुलिस इंस्पेक्टर डायना जोसेफ को षुद्ध हिंदी बोलते सुनकर कुछ लोग आष्चर्य चकित होंगे,तो कुछ लोग इसे निर्देषक की कमजोर कड़ी मानेंगे.

इस फिल्म को देखकर यह समझना मुष्किल हो रहा है कि भोला अकेले ही सौ लोगो से कैसे भिड़ जाता है? उसके अंदर यह ताकत माथे पर भगवान षंकर की भस्म लगाने से आती है,अथवा कई किलो मटन एक साथ खाने से आती है या षराब का सेवन करने से आती है? कुछ लोगों की राय में षराब का सेवन करने के बाद इंसान षारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है.पर षराब पीने के बाद भी भोला का दिमाग तेज गति से चलता है और उसकी ताकत कम नही होती.फिल्म कहीं न कहीं धार्मिक अंधविष्वास को भी बढ़ावा देती है.फिल्म के कुछ दृष्यों पर सेंसर बोर्ड का मौन समझ में आता है.क्योकि फिल्म के कुछ दृष्य वाराणसी और गंगा नदी पर फिल्माए गए हैं.फिल्म में भोला माथे पर भस्म लगाकर गंगा आरती भी करता है. बहरहाल, फिल्म इस सूचना के साथ खत्म होती है कि भोला वापस आ गया है,जिससे निपटना है.यानी कि इसका सिक्वल भी आएगा.

अभिनयः

भोला के जटिल किरदार मंे अजय देवगन कुछ नया नही कर पाए.वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आते हैं.ड्ग्स गिरोह के खात्मे के लिए प्रयासरत पुलिस इंस्पेक्टर डायना के किरदार में तब्बू का अभिनय ठीक ठाक है.आषु के किरदार में दीपक डोबरियाल का अभिनय जरुर आकर्षित करता है. छोटे किरदारो में किरण कुमार,विनीत कुमार, अभिषेक बच्चन, आमला पौल,गजराज राव के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.यह सभी महज षो पीस ही रहे.

क्या माया की इस चाल से अनुज और अनुपमा हमेशा हो जाएंगे हमेशा के लिए अलग!

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ इन दिनों काफी सुर्खियों में बना हुआ है. शो में आए दिन आ रहे उथल-पुथल ने इसकी टीआरपी रेटिंग तो कम की ही है, साथ ही दर्शकों के दिमाग का भी दही कर दिया है. ‘अनुपमा‘ में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि अनुपमा और अनुज अलग हो चुके हैं. जहां अनुज माया के पास पहुंच गया है तो वहीं अनुपमा अपनी मां के घर चली गई. बीते दिन भी रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में देखने को मिला कि अनुज भटकते हुए माया के पास पहुंच जाता है. माया उसे वहां संभालती है और उसे छोटी से मिलवाती है. दूसरी ओर अनुपमा अपनी मां के घर जाती है. हालांकि रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में आने वाले ट्विस्ट यहीं पर खत्म नहीं होते हैं.

 

अनुज संग घर बसाने का सपना देखेगी माया

‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कि छोटी अनुज को दवाइयां पिलाकर सुला देती है. तभी वहां माया आ जाती है और अनुज के साथ घर बसाने का सपना देखने लगती है. वह कहती है कि 26 साल का प्यार बेटी के प्यार के आगे भारी पड़ ही गया. आप मेरे पास आ ही गए अनुज. इस बार मैंने तो कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की थी और न ही कोई चालें चली थीं. अब जब किस्मत आपको मेरे पास ले ही आई है तो मैं आपको ऐसे वापिस नहीं जाने दूंगी.

 

शाह परिवार को आईना दिखाएंगी कांताबेन

रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में देखने को मिलेगा कांताबेन शाह परिवार पहुंच जाती हैं और वहां सबको आईना दिखाती हैं. वह बा को दोष देती हैं कि अनुपमा का घर तोड़ने में सबसे बड़ा हाथ उनका है. कांताबेन बा पर चिल्लाती हैं कि आपसे कोई काम नहीं होता और हर चीज के लिए आप अनुपमा को याद करती हो. इसके साथ ही वह पाखी, तोषू और बापूजी को भी खरी-खोटी सुनाती हैं. वह बा को पत्थर बताती हैं और कहती हैं, “आप वो पत्थर हो, जिसे गले में बांधकर उसकी गृहस्थी डूब गई. ऐसे होते हैं बुजुर्ग, जो बच्चों को गालियां देते हैं और फिर आंख में आंसू लेकर भले बन जाते हैं.”

अनुपमा से तलाक लेगा अनुज कपाड़िया

रुपाली गांगुली के एंटरटेनमेंट से भरपूर ‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलेगा कि कांताबेन माया के घर मुंबई पहुंच जाती हैं. वहां वह अनुज को माया के घर में देखकर हैरान रह जाती हैं. दूसरी ओर अनुपमा प्रार्थना करती है कि सबकुछ ठीक हो जाए. लेकिन अनुज कांताबेन से कहता है, “आप अपनी बेटी से बोलना कि उसकी जिंदगी में जो अनुज नाम का चैप्टर था वो खत्म हो चुका है.” ऐसे में शो को लेकर माना जा रहा है कि दोनों का जल्द ही तलाक हो जाएगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें