पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब 

प्रदूषित हवा में ऐसिड अधिक होने की वजह से स्किन रूखी हो जाती है और प्रदूषण के कण उन के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजाऐसा क्लींजर यूज करें जो स्किन से नमी निकाले बिना उसे मौइस्चराइज करे. स्किन पर मौइस्चराइजर लगाने के बजाय फेशियल औयल यूज करें. यह हानिकारक तत्वों को स्किन में प्रवेश करने से रोकता है. स्किन में मौजूद औयल प्रदूषण के हानिकारक कण और धूलमिट्टी को हटाने में टोनर मदद करता है.

इसलिए मौइस्चराइजर के बाद टोनर लगाएं. समयसमय पर स्किन की स्क्रबिंग करना भी जरूरी हैलेकिन हलके हाथों से ताकि स्किन धूलमिट्टी और औयल से पूरी तरह फ्री हो जाए. आप चाहें तो फेशियल की जगह हलदी वाला या फिर आलू वाला फेस मास्क भी लगा सकती हैं. यह भी स्किन पर प्रदूषण के असर को कम करने में मदद करेगा.

प्यार को प्यार से जीत लो: शालिनी ने मां को कैसे मनाया

सुबह की हलकी धूप में बैठी मित्रा  नई आई पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं कि तभी शालिनी की तेज आवाज ने उन्हें चौंका दिया.

‘‘ममा…ममा…आप कहां हो?’’

‘‘ऊपर छत पर हूं. यहीं आ जाओ.’’

सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’

शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.

‘‘बोलो, तुम्हें कहना क्या है?’’

पता नहीं क्या हुआ कि शालिनी एकदम चुप हो गई. उस के स्वभाव के विपरीत उस का आचरण देख सुमित्रा अचंभित थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि कौन सी ऐसी बात है जिसे बोलने के लिए इस वाचाल लड़की को हिम्मत जुटानी पड़ रही है. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शालिनी ने खुद ही बातें शुरू कीं.

‘‘ममा, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लेकिन क्या करूं… आप को धोखे में भी नहीं रख सकती. इसलिए आप को बता रही हूं कि मैं ने और अतुल ने इसी महीने शादी करने का फैसला कर लिया है.’’

बेटी की बातें सुन कर सुमित्रा बुरी तरह चौंक गईं, मानो अचानक ही कोई दहकता अंगारा उन के पांव तले आ गया हो.

‘‘क्या…क्या कह रही हो तुम. यह कैसा मजाक है?’’

‘‘नहीं ममा…आई एम नौट जोकिंग. आई एम सीरियस.’’

‘‘शादीब्याह को क्या तुम ने गुड्डेगुडि़यों का खेल समझ रखा है जिस से चाहोगी जब चाहोगी झट से जयमाला डलवा दूंगी. सच पूछो तो इस में तुम्हारी भी क्या गलती है. समीर ने मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हर गलतसही मांगों को पूरा कर के तुम्हें इतना स्वार्थी और उद्दंड बना दिया है कि आज तुम्हेें मातापिता की भावनाओं का भी खयाल नहीं रहा.’’

‘‘ममा, हर बात के लिए आप पापा को दोष मत दीजिए. यह मेरा और अतुल का फैसला है. कंपनी अतुल को अगले महीने अमेरिका की अपनी एक शाखा में नियुक्त कर रही है. उस ने मेरे पासपोर्ट और दूसरे कागजात की भी व्यवस्था कर रखी है, इसीलिए हम दोनों इस महीने में शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘जब तुम ने सारे फैसले खुद ही कर रखे हैं तो अब पूछना कैसा?’’ गुस्से से तिलमिला कर सुमित्रा बोलीं, ‘‘सूचना देने के लिए धन्यवाद. जाओ, जो दिल चाहे वही करो.’’

सुमित्रा एकटक अपनी जाती हुई बेटी को देखती रहीं. उस की परवरिश में कहां कमी रह गई कि उस की इकलौती संतान, उस की अपनी ही बेटी ने अपने जीवन के इतने अहम फैसले में अपने मातापिता से सलाह तक लेने की जरूरत नहीं समझी. शालिनी की शादी उन के जीवन का सब से बड़ा सपना था. पर आज जब शादी होने का समय आया तो वे एक मूकदर्शक मात्र बन कर रह गई थीं.

बेटी से मिली अवहेलना की दारुण पीड़ा को झेलना उन के लिए दुष्कर था.

ऐसा नहीं था कि सुमित्रा को अतुल पसंद नहीं था. वह कई बार शालिनी के साथ घर आया था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रहा था. संस्कारी और सौम्य स्वभाव का लड़का था. विजातीय होते हुए भी अतुल, सुमित्रा को दिल से स्वीकार होता, अगर मातापिता की उपेक्षा न कर के शालिनी अपनी शादी का फैसला उन्हें अपने विश्वास में ले कर करती.

शाम को आफिस से लौटने के बाद समीर को जब सारी बातें मालूम हुईं तो बेटी के इस अप्रत्याशित फैसले ने उन्हें भी थोड़ी देर के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया. पर हमेशा की तरह थोड़ी देर बाद ही बेटी की गलती सुधारने में जुट गए.

समीर ने शालिनी को बुला कर उस से पूछताछ शुरू कर दी.

‘‘इस शादी के लिए क्या अतुल के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘नहीं, पापा, वे दोनों पूरी तरह हमारी शादी के खिलाफ हैं. हफ्ते भर से अतुल उन्हें मनाने में जुटा है फिर भी उस के मातापिता तैयार नहीं हो रहे हैं. उन का कहना है कि उन्हें अपने बेटे के लिए एक विजातीय डाक्टर बहू नहीं, एक सजातीय सीधीसादी घरेलू लड़की चाहिए.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं शीघ्र ही अतुल के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर तुम दोनों की शादी करवाने की पूरी कोशिश करता हूं.’’

‘‘नहीं, पापा, आप बात नहीं करेंगे. मेरे कारण वे आप के सम्मान को ठेस पहुंचाएं, यह मुझे मंजूर नहीं होगा.’’

‘‘वे अतुल के मातापिता हैं, उन का इस शादी के लिए तैयार होना बहुत जरूरी है, वरना तुम दोनों सारी जिंदगी सुकून से नहीं जी पाओगे.’’

‘‘माई फुट, वे मानें या न मानें… शादी तो हर हाल में अतुल मुझ से ही करेगा. वे मानेंगे तो ठीक, वरना हम दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे.’’

‘‘बेटा, थोड़ा सब्र से काम लो. अतुल उन की इकलौती संतान है, वह उन्हें मना ही लेगा.’’

‘‘नहीं…पापा…मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तो आज ही अतुल से शादी पक्की करने के लिए बात करूंगी.’’

‘‘जिंदगी के फैसले इस तरह जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. इस शादी से सिर्फ तुम्हारा और अतुल का रिश्ता ही नहीं जुड़ेगा, तुम्हारे न चाहने पर भी, ढेर सारे रिश्ते खुद ब खुद तुम से आ जुड़ेंगे… जिन से तुम इनकार नहीं कर सकतीं.’’

‘‘पापा, कौन मुझे इंडिया में रहना है जो इन रिश्तेनातों को निभाने के लिए परेशान रहूं.’’

‘‘अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है, जब दूर जाओगी तो अपनों की और रिश्तेनातों की अहमियत समझ में आएगी. एक बात और समझ लो कि तुम्हारे इस तीखे तेवर से उन के इस विश्वास को और भी बल मिलेगा कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की उन लोगों का सम्मान नहीं करेगी. उन के इस भ्रम को तोड़ने के लिए तुम्हें झुकना होगा. बड़ों के सामने झुकने में तुम्हारी तौहीन नहीं होगी, बल्कि खुद झुक कर ही तुम उन्हें झुका सकती हो. उन का प्यार और सम्मान पा सकती हो.’’

बिना कोई जवाब दिए चुपचाप शालिनी वहां से उठ कर बाहर आ गई और अपनी कार ले डा. सुधा वर्मा के घर की तरफ चल दी. डा. सुधा वर्मा उस की सीनियर और गाइड ही नहीं, अंतरंग सहेली जैसी थीं. जब वह सुधा वर्मा के पास पहुंची तब और दिनों की अपेक्षा ज्यादा आपरेशन होने के कारण वे काफी व्यस्त थीं. शालिनी पर नजर पड़ते ही काफी खुश हो गईं.

‘‘अच्छा हुआ जो तुम आ गईं. तुम जरा वार्ड नं. 13 में 113 नंबर बैड पर ऐडमिट डिप्रैशन के एक मरीज की जांच कर लो. सुबह जब मैं राउंड पर गई थी तब तो ठीक थी, अभी थोड़ी देर पहले से उस की परेशानी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है.’’

शालिनी वार्ड नं. 13 की तरफ चल पड़ी. उस वार्ड में एक प्रौढ़ महिला ऐडमिट थी. भरेभरे शरीर और बड़ीबड़ी आंखों वाली उस आकर्षक महिला के चेहरे पर गहरी विषाद की लकीरें छाई हुई थीं, जैसे कोई गहरी वेदना उसे साल रही थी. उस संभ्रांत महिला के साथ आई महिला ने बताया कि 2 दिन से उन की यही स्थिति है. इन 2 दिनों में इन्होंने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है.’’

‘‘इस तरह की स्थिति क्या इन की पहले भी कभी हुई है?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं…डाक्टरनी साहिबा. पहले इन की इस तरह की स्थिति कभी नहीं हुई. वह तो 4 दिन पहले इन की अपने इकलौते बेटे से किसी बात पर जम कर बहस हुई और वह इन्हें छोड़ कर मुंबई चला गया. 2 दिन तक तो इन्होंने किसी तरह अपने को संभाला, लेकिन जब बेटे का कोई फोन नहीं आया तो इन की स्थिति बिगड़ने लगी और हमें यहां लाना पड़ा.’’

शालिनी ने पहले नर्स को जरूरी इंजेक्शन तैयार करने की हिदायत दी फिर खुद भी उस महिला की नब्ज देखने लगी. महिला बेहोशी जैसी स्थिति में भी कुछ बड़बड़ाए जा रही थी, ‘मैं ने पालपोस कर बड़ा किया, इतना प्यार दिया और तू है कि मुझे ही जलाए दे रहा है. क्या तेरा सारा फर्ज उस कल आई लड़की के लिए ही है. बूढ़े मातापिता के प्रति तेरा कोई फर्ज नहीं है…और ऊपर से जलीकटी सुनाता है. जा, चला जा मेरी नजरों के सामने से. इस बीमार मां को जितना दुख दिया है उस से दोगुना दुख तू पाएगा. मैं यह सोचूंगी कि मैं ने अपना दूध अपने बेटे को नहीं एक संपोले को पिलाया है.’

शालिनी को यह समझने में देर नहीं लगी कि बेटे के किसी आचरण ने मां को गहरा सदमा दिया था. जब उस औरत की स्थिति थोड़ी सामान्य हुई और वह सो गई, तो शालिनी ने सुधा दीदी के पास जा कर उन्हें अब तक की स्थिति की रिपोर्ट थमा दी और सीधे आ कर कार में बैठ गई. कार में बैठने के साथ ही उस औरत का अशांत और पीडि़त चेहरा शालिनी की आंखों के सामने बारबार घूम रहा था. बेटे के कठोर आघात ने मां के दिल में कैसी कटुता भर दी थी कि बेहोशी की हालत में भी उसे कोस रही थी. शालिनी को एक ही बात बारबार दंश दे रही थी कि क्या वह खुद भी अतुल के साथ मिल कर कुछकुछ वैसा ही अपराध नहीं कर बैठी थी.

पहली बार शालिनी को अपने पापा की बातों की गहराई समझ में आई थी. अपने सुनहरे भविष्य की अटारी पर बैठी अपने जिस सपने को वह मुग्धभाव से निहार रही थी अचानक ही वह जमीन पर गिर कर चकनाचूर हो गया. अपनी स्वार्थी सोच पर लगाम देने के लिए शालिनी ने अतुल के घर की तरफ अपनी कार मोड़ ली.

वहां पहुंच कर बड़े ही आत्मविश्वास के साथ वह अंदर आ गई. सामने ही अतुल की मम्मी गायत्री देवी पाइप से पौधों को पानी दे रही थीं. उसे गेट खोल कर अंदर आते देख हाथ का पाइप एक तरफ रखते हुए बोलीं, ‘‘तुम…तुम यहां क्या करने आई हो? तुम्हें मालूम नहीं कि अतुल घर पर नहीं है. वह एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ है.’’

‘‘मुझे मालूम है आंटी, पर मैं अतुल से नहीं आप से बात करने आई हूं.’’

‘‘आई हो तो मुझ से उम्मीद मत रखना. मैं आसानी से अपने फैसले नहीं बदलती. मेरा एक ही जवाब है, अगर अतुल तुम से शादी करेगा तो अपने मातापिता को खो देगा.’’

‘‘आप निश्ंिचत रहिए आंटी, मैं आप को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर करने नहीं आई हूं. अगर आप सोचती हैं कि मेरे साथ अतुल की शादी होने से आप का नाम खराब होगा तो कहीं न कहीं आप की सोच सही ही होगी. आप हमारी बड़ी हैं, अतुल की मां हैं, सच मानिए आंटी, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप का अतुल पर पहला हक है. मैं उसे आप से कभी अलग करने की बात सोच भी नहीं सकती. जब तक आप नहीं चाहेंगी, आप आशीर्वाद नहीं देंगी, तब तक हम दोनों कभी शादी नहीं करेंगे, यह आप से मेरा वादा है.’’

‘‘और मेरा आशीर्वाद तुम्हें कभी मिलेगा नहीं.’’

‘‘तो ठीक है, आंटी. आज और अभी से मैं अपने सारे संबंध अतुल के साथ तोड़ती हूं.’’

इतना बोल वह तेजी से मुड़ कर अपनी कार में आ बैठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी के साथ इतनी झुक कर बातें की थीं, फिर भी उसे अपना मन काफी हलका लग रहा था, जैसे किसी अपराधबोध का बोझ उतर गया हो.

यह सत्य है कि अतुल के बिना जीना शालिनी के लिए आसान नहीं था, फिर भी अपने भौतिक सुखों के लिए किसी से उस की प्रिय वस्तु छीन लेने के बदले बिना किसी अपेक्षा के अपनी सब से प्रिय वस्तु किसी को समर्पित कर देने में उसे बेहद सुख और संतोष का अनुभव हो रहा था. घर आ कर जैसे ही उस ने अपना फैसला मां को बताया, शालिनी का उदास और क्लांत चेहरा देख उन का सारा गुस्सा फौरन तिरोहित हो गया.

‘‘अरे, वे लोग मेरी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? तू चिंता मत कर, मैं गायत्री से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, ममा…आप कोई बात नहीं करेंगी.’’

‘‘अरे, कैसे नहीं करूंगी, मां हूं. लोग अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते…’’

‘‘ममा, प्लीज,’’ वह मां की बात बीच में ही काट कर अपने कमरे में चली गई.

अपने वादे के अनुसार उस दिन से शालिनी ने न अतुल से कोई बात की और न ही उस का कोई फोन रिसीव किया.

करीब एक हफ्ते बाद…एक दिन जब शालिनी अस्पताल से लौटी तो मां ने झट से उस के सामने एक गुलाबी रंग की जरी की बार्डर वाली साड़ी ला कर रख दी और बोलीं, ‘‘जल्दी से तैयार हो जा. एक जगह सगाई में जाना है.’’

‘‘नहीं, ममा, मेरा मन नहीं है.’’

‘‘कभी तो अपनी ममा का दिल रख लिया कर.’’

अपनी मां के प्यार भरे अनुरोध को शालिनी टाल न सकी. मन न होते हुए भी साड़ी ले कर तैयार होने लगी. जल्दी ही तैयार हो कर ड्राइंगरूम में आ बैठी. उस की ममा अभी तैयार नहीं हुई थीं. वह यों ही बैठेबैठे टीवी के चैनल बदलने लगी. तभी दरवाजे पर घंटी बजी शालिनी ने बढ़ कर दरवाजा खोला तो भौचक रह गई. दरवाजे पर कई अजनबी चेहरों के साथ अतुल की मां गायत्री देवी खड़ी थीं. उसे भौचक और घबराई हुई देख कर वे बोलीं, ‘‘अंदर आने के लिए भी नहीं कहोगी.’’

‘‘हां, आइए न,’’ कह कर वह दरवाजे से हट कर खड़ी हो गई.

‘‘तुम्हारी ममा कहां हैं, उन्हें बुलाओ.’’

‘‘प्लीज आंटी, आप मेरी ममा से कुछ मत कहिए. वे पहले से ही मेरे कारण बहुत परेशान हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं…मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी. बुलाओ अपनी ममा को.’’

तभी शालिनी को अपने पीछे से अपनी मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, गायत्री बहन, आप आ गईं पर अतुल को कहां छोड़ आईं.’’

‘‘भला अपनी ही सगाई में वह खुद कैसे नहीं आएगा. अपनी पसंद की अंगूठी लेने गया है.’’

फिर शालिनी की तरफ मुखातिब हो कर गायत्रीजी बोलीं, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो बेटा, तुम्हें अपने बड़ों की खुशियों का खयाल है तो क्या बड़े अपने बच्चों की खुशियों का खयाल नहीं रखेंगे. उस दिन तुम्हारी सौम्यता, मेरे प्रति तुम्हारा निस्वार्थ प्रेम और उस से भी बढ़ कर तुम्हारे द्वारा झुक कर सम्मान का भाव प्रकट करने से मुझे लगा, तुम से अच्छी बहू मुझे नहीं मिल सकती. जब तुम्हारी मां ने पहल की तो मैं ने भी देर नहीं की. पहले चाहे मैं ने तुम्हें कितना भी भलाबुरा कहा हो पर आज सच्चे और साफ दिल से कहती हूं, तुम मुझे दिल से पसंद हो. मेरे बेटे की पसंद खराब हो ही नहीं सकती.’’

शालिनी शरमा कर उन के पैरों पर झुक आई तो उसे बीच में ही थाम कर गायत्रीजी ने उसे गले से लगा लिया.

अगर आप भी हेडफोन लगाती हैं तो सावधान हो जाइए

आज के समय में मोबाइल एक ऐसी जरूरत बन चुकr है, जिसके बिना आज के जीवन की कल्पना जैसे मुश्किल सी हो गई है. आप भी मोबाइल के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकते हैं. मोबाइल फोन्स आज हमारी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं. आज के समय के सभी लोग चाहे वह युवा वर्ग हो, बच्चे हों या बुजुर्ग, मोबाइल के शौकीन हैं. पर देखा गया है कि लोग मोबाइल का न सही इस्तेमाल करते हैं और न ही सही ढंग से करते हैं, जिस कारण ये हमारे लिए खतरा साबित होता है.

हम आपको बताना चाहते हैं कि जब भी आप बस या ट्रेन से सफर कर रहे होते हैं या बाहर घूमते वक्त भी, यहां तक की रात को सोते वक्त भी मोबाइल की लीड या हेडफोन लगाकर बात करते हैं या फिर गाने सुनते रहते हैं. यूं हर वक्त कान में हेडफोन लगाकर गाने सुनना या बात करना आपके लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है.

आपने शायद कई बार सोचा तो होगा कि हेडफोन लगाना आपके लिए खतरनाक हो सकता है पर फिर आप इस बात को भूल गए होंगे. तो हम आपको बता दें कि हेडफोन लगाकर गाने सुनने और लगातार फोन पर हेडफोन लगाकर बातें करने से आपको क्या-क्या गंभीर नुकसान हो सकते हैं..

1. जब भी आप अपनी गाड़ी चलाते हैं और कानों में लीड लगाकर रखते हैं, तो जाहिर है कि आपको अन्य गाड़ियों के हार्न का आवाज नहीं सुनाई देगी और ऐसे में हमें दुर्घटना होने का खतरा हरदम बना रहता है. इससे बचने का केवल यही उपाय है कि आप गाड़ी चलाते समय कानों में लीड लगाकर गाने न सुने. गाड़ी पर रहते हुए फोन भी नहीं उठाना चाहिए.

2. सुनने में अजीब तो लग सकता है पर ये सच है कि अधिक समय तक कानों में लीड लगाने से आप बहरे भी हो सकते हैं. साथ ही कान खराब होने की संभावनाऐं तो कई फीसदी बढ़ती ही हैं.

3. रात को सोते समय कानों में लीड लगाकर सो जाने से आपके कान की नसें कमजोर होने लगती हैं और एक बार कान की नसें कमजोर हो जाएं, तो वे जीवन भर आपको परेशान करती हैं.

4. इसके अलावा हेडफोन के ऐसे इस्तेमाल से कान में दर्द, सूजन, इन्फेक्शन और मानसिक तनाव भी पैदा होता है. ये बात आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है.

5. जब आप हेडफोन लगाकर गाने सुनते हैं, तो इससे आपके दिमाग के डैमेज या क्षतिग्रस्त होने का खतरा होता है. कई बार इससे सरदर्द की समस्या भी सामने आती है. आपके दिमाग को कई अंदरूनी समस्याओं का भी सामना कर पड़ सकता है, जो आपके जीवन के लिए वाकई एक गंभीर समस्या बन सकती है.

पथरीली मुस्कान: क्या गौरी की जिंदगी में लौटी खुशी

फैमिली के लिए बनाएं बेसन की सब्जी

अगर आप लंच में कुछ टेस्टी और हेल्दी सब्जी बनाना चाहती हैं तो बेसन की सब्जी आपके लिए बेस्ट औप्शन है. बेसन हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी होता है. आप इसे अपनी फैमिली को लंच या डिनर में खिला सकते हैं.

 हमें चाहिए

– बेसन (100 ग्राम)

– लाल मिर्च (1/4 चम्मच)

– गरम मसाला (1/2 चम्मच)

– हरी मिर्च  (01 बारीक कटी हुई)

– इमली (20 ग्राम)

– भुना जीरा (01 छोटा चम्मच)

– शक्कर (01 छोटा चम्मच)

– तेल (1/2 छोटा चम्मच)

– काला नमक (1/2 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

बेसन की सब्जी बनाने की विधि :

– सबसे पहले इमली को रात भर के लिए एक कटोरी पानी में भि‍गो दें.

– इसके बाद एक कटोरे में गुनगुने पानी में बेसन को अच्छी तरह से फेंट लें.

– फिर लाल मिर्च, गरम मसाला, हरी मिर्च और नमक मिला लें.

– इसके बाद घोल को एक बार फिर अच्छी तरह फेंट लें.

– अब एक कड़ाही में बेसन के घोल को डालें और मीडियम आंच पर पकायें.

– घोल को लगातार चम्मच से चलाते रहें, जिससे बेसन में गुठलियां ने पड़ने पायें.

– बेसन के घोल को 10-12 मिनट पकायें, इससे वह गाढ़ा हो जाएगा.

– अब एक में थाली में 1/2 चम्मच तेल लगाकर उसकी सतह को चिकना कर लें.

– फिर बेसन के घोल को थाली में पतला पतला फैला दें और ठंडा होने दें.

– घोल ठंडा होने पर घोल जम जायेगा.

– जमने पर बेसन की पर्त को छोटे-छोटे साइज में काट लें.

– अब भीगी हुई इमली को अच्छे से मसल कर उसका पानी छान लें.

– इमली के रस में एक बड़ा कटोरा पानी और मिला लें.

– इस पानी में हल्का सा काला नमक, भुना हुआ जीरा और एक चम्मच शक्कर मिला लें.

– अब बेसन के टुकड़ों को इमली के घोल में डाल दें और थोड़ी देर के लिये रख दें.

– आप चाहें तो इसे थोड़ा सा पका भी सकते हैं.

– अब आपकी स्वादिष्ट राजस्‍थानी पतोड़ तैयार है.

इसे सर्विंग प्‍लेट में निकालें और गर्मा-गरम रोटियों / पराठों के साथ सर्व करें.

Summer Special: बच्चों को खिलाएं चावल के शकरपारे और ड्रमस्टिक लीव्स फ्रिटर्स

 चावल के शकरपारे

सामग्री

  •   1 कप चावल
  •   1 कप गुड़
  •   1/2 कप नारियल का पाउडर
  •   2 बड़े चम्मच बादाम और काजू के टुकड़े
  •   1 बड़ा चम्मच तिल तलने के लिए तेल.

विधि

चावलों को धो कर सुखा लें. एक कड़ाही में चावलों को धीमी आंच पर भून लें. हलका ठंडा कर मिक्सी में पाउडर बना लें. गुड़ में 1/2 कप पानी डाल कर 1/2 घंटे के लिए रख दें. गुड़ घुल जाएगा. गुड़ के पानी से चावलों का आटा, नारियल का पाउडर, बादामकाजू के टुकड़े और तेल को अच्छी तरह से मिला कर गूंध लें. चाहें तो इस की गोलियां बना कर चपटा कर तल लें या प्लास्टिक की परत के बीच से बेल कर शकरपारे बना लें. कड़ाही में तेल गरम कर शकरपारे तल लें.

  1. ड्रमस्टिक लीव्स फ्रिटर्स

सामग्री

  •   1/2 कप ड्रमस्टिक लीव्स
  •   1/2 कप चने की दाल
  •   2 बड़े चम्मच लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च कटी
  •   1 प्याज कटा
  •   1 हरीमिर्च कटी
  •   तलने के लिए तेल
  •   नमक स्वादानुसार.

विधि

  • चने की दाल को 2-3 घंटों के लिए पानी में भिगो दें. फिर मिक्सी में पीस लें.
  • इस में प्याज, हरीमिर्च, सभी शिमलामिर्च, ड्रमस्टिक लीव्स और नमक डाल कर अच्छी तरह फेंट कर इस के गरम तेल में छोटेछोटे पकौड़े तल चटनी के साथ गरमगरम परोसें

3. ब्रोकन व्हीट पैन केक

सामग्री

  • 1 कप दलिया
  • 1 प्याज बारीक कटा
  • 1 टमाटर बारीक कटा
  • 2 बड़े चम्मच लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च कटी
  • 1/2 कप लौकी घिसी
  • 1/2 कप पनीर कसा
  • 1-2 हरीमिर्चें कटी
  • थोड़ी सी धनियापत्ती कटी
  • 3 बड़े चम्मच तेल
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

  1. दलिए को अच्छी तरह धो कर पानी डाल कर 1 घंटा भिगोए रखें. फिर मिक्सी में पेस्ट बना लें.
  2. एक बाउल में निकाल कर इस में सारी सब्जियां, स्वादानुसार नमक, हरीमिर्चें व धनियापत्ती मिला लें.
  3. तवा गरम कर चम्मच से दलिए के मिश्रण को गरम तवे पर फैलाएं.
  4. दोनों तरफ से तेल लगा कर सेंक लें. पैन केक चटनी के साथ गरमगरम परोसें.

मुझे मीठा खाने से दांतों में झनझनाहट भी महसूस होती है, ऐसे में क्या रूट कैनाल ट्रीटमैंट कराना सही है?

सवाल

मेरी उम्र 25 साल है. मेरे दांतों में कीड़ा लग गया है, जिस कारण दर्द तो होता ही है, साथ ही मीठा खाने से दांतों में झनझनाहट भी महसूस होती है. डैंटिस्ट ने मुझे रूट कैनाल ट्रीटमैंट कराने की सलाह दी है. क्या यह ट्रीटमैंट लेना सही रहेगा?

जवाब

चूंकि आप के दांतों में दर्द के साथसाथ झनझनाहट भी होती है, इसलिए आप के लिए रूट कैनाल ट्रीटमैंट कराना आवश्यक है. डाक्टर ने यह सलाह जांच के बाद ही दी है. अत: बिना किसी संदेह के यह ट्रीटमैंट ले सकते हैं.

रूट कैनाल ट्रीटमैंट में सूजन या संक्रमण वाले पल्प को हटा दिया जाता है. इस पल्प को हटाने के बाद वहां की खाली जगह को पहले साफ किया जाता है और फिर उसे सही आकार दे कर भरा जाता है. इस में दांत को सुन्न कर प्रक्रिया को पूरा किया जाता है. इस प्रक्रिया को ऐक्सरे के बाद ही शुरू किया जाता है.

पहले दांत में कीड़ा लगने पर उस दांत को निकाल दिया जाता था या वहां धातू भर दी जाती थी. यह प्रक्रिया काफी दर्दनाक होती थी. लेकिन अब नई तकनीक व ऐनेस्थीसिया की मदद से दर्द न के बराबर होता है और इलाज भी आसानी से पूरा हो जाता है. इस प्रक्रिया में दांत को निकाले बिना उसे सुरक्षित कर दिया जाता है.

सवाल

मैं 22 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पायरिया की समस्या है, जिस की वजह से दांत बहुत पीले हो गए हैं और खून भी ज्यादा निकलता है. क्या घरेलू उपायों से इस का इलाज संभव है?

जवाब

पायरिया दांतों का वह रोग है, जो मसूढ़ों को भी प्रभावित करता है. दांतों की ठीक से सफाई न करने और जबतब खाने की आदत के कारण उन में पायरिया हो जाता है. मसूढ़ों से खून और मवाद आना, सांस से बदबू आना, दांतों में दर्द होना, उन का पीला पड़ना सब पायरिया के ही लक्षण हैं. पायरिया का सही समय पर इलाज कराना बेहद जरूरी है अन्यथा बाद में यह बड़ी समस्या बन जाती है, जिस में दांत निकलने शुरू हो जाते हैं.

इस का इलाज घर पर मुमकिन है. नियमितरूप से दांतों की सफाई करें. रात को सोने से पहले ब्रश अवश्य करें. ब्रश के बाद कुछ भी न खाएं. सरसों के तेल में नमक मिला कर रोज इसे अच्छी तरह दांतों पर मलें. जामुन की छाल का काढ़ा बना कर रख लें और फिर खाने के बाद इस का प्रयोग कुल्ला करने के लिए करें. जितनी बार कुल्ला कर सकें करें. हफ्ते में कम से कम 3 बार नीम की दातुन करें. नीम का तेल भी पायरिया में लाभदायक साबित होता है. रोज नीम के तेल को दांतों पर 2 मिनट लगाए रखें, फिर पानी से धो लें. ये सब करने से दांतों से पीलापन भी दूर हो जाएगा और पायरिया की परेशानी से भी छुटकारा मिल जाएगा.

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Summer Special: गर्मी में कैसे पाएं स्‍मूथ अंडरआर्म्‍स, अपनाएं ये 5 होम रेमेडीज

हम अधिकतर यह देखते हैं कि मॉडल और सेलेब्रिटीज के आर्मपिट्स स्मूथ और फेयर होते हैं.लेकिन, हममें से अधिकतर लोगों के अंडरआर्म्स स्मूथ और फेयर नहीं होते. लेकिन, स्लीवलेस कपड़े पहनने के लिए अंडरआर्म्स का ख्याल रखना जरूरी है. इसके लिए आपको पार्लर में घंटों समय बिताने की जरूरत नहीं है. कुछ होम रेमेडीज से ही आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं और आराम से स्लीवलेस कपड़े पहन सकते हैं. गर्मी के मौसम में पाएं स्‍मूथ अंडरआर्म्‍स पाने के लिए ये होम रेमेडीज आपके बहुत काम आने वाली हैं. आइए जानें गर्मियों में आर्मपिट्स को स्मूथ बनाने के लिए होम रेमेडीज के बारे में.

स्‍मूथ अंडरआर्म्‍स पाने के लिए होम रेमेडीज

स्मूथ अंडरआर्म्स के लिए होम रेमेडीज से पहले यह जानकारी जरूरी है कि अंडरआर्म्स का काला होना बेहद सामान्य है. ऐसे में इस बारे में आपको किसी भी तरह की हीन भावना अपने मन में नहीं लानी चाहिए. अगर बात करें स्मूथ अंडरआर्म्स की, तो इसके लिए होम रेमेडीज इस प्रकार हैं:

  1. बेकिंग सोडा-

एक चम्मच बेकिंग सोडा और थोड़ा सा एप्पल साइडर विनेगर का इस्तेमाल कर के आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं. इन दोनों को मिला कर एक पेस्ट बनाएं और अंडरआर्म्स पर लगा कर दस मिनट्स तक ऐसे ही रहने दें. इसके बाद इसे धों दें. हफ्ते में दो बार इस तरीके के इस्तेमाल से आपको लाभ होगा.

2. खीरा-

खारे में बेहतरीन ब्लीचिंग और स्किन व्हाइटनिंग प्रॉपर्टीज होती हैं, जिससे अंडरआर्म स्किन आसानी सॉफ्ट हो जाती है. इसके इस्तेमाल से डेड स्किन सेल्स आसानी से रिमूव हो जाते हैं. आप खीरे को अपनी स्किन पर रगड़ें और उसके बाद उसके बाद इसे धो दें.

3. आलू-

आलू के इस्तेमाल से भी आपके अंडरआर्म्स सॉफ्ट और लाइट हो सकते हैं. इसलिए आप आलू का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

4. मॉइस्चराइजर-

चेहरे की तरह अंडरआर्म्स में मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल करना स्किन को सॉफ्ट बनाता है. लेकिन, रोजाना इसका इस्तेमाल करना जरूरी नहीं है.

5. एलोवेरा-

एलोवेरा स्किन को मॉइस्चराइजेशन प्रदान करता है, जिससे स्किन सॉफ्ट बनती है. आप एलोवेरा और टमाटर का एक पेस्ट बनाएं और इसका इस्तेमाल अंडरआर्म्स पर करें. कुछ देर इसे लगाने के बाद ड्राई होने दें और बाद में इसे धो दें. कुछ दिन इसका इस्तेमाल करने से आपको जल्द ही फर्क नजर आएगा.

हेल्दी रहने के साथ ही अंडरआर्म्स को स्मूथ और लाइट बनाने के लिए आपका हाइड्रेट रहना भी बेहद जरूरी है. इसके साथ ही कभी भी ड्राई स्किन पर शेव न करें. ऐसा करना भी स्किन को हार्ड बनाता है.

तरक्की: श्वेता को क्या तोहफा मिला था

श्वेता एक सीधीसादी लड़की थी. कम बोलना, बेवजह किसी को फालतू मुंह न लगाना उस की आदत में ही शामिल था. दफ्तर के मालिक मनोहर साहब जब भी उसे बुलाते, वह नजरें झुकाए हाजिर हो जाती.

‘‘श्वेता…’’

‘‘जी सर.’’

‘‘तुम काम खत्म हो जाने पर फुरसत में मेरे पास आना.’’

‘‘जी सर,’’ कहते हुए श्वेता दरवाजा खोलती और बाहर अपने केबिन की तरफ बढ़ जाती. उस ने कभी भी मनोहर साहब की तरफ ध्यान से देखा भी नहीं था कि उन की आंखों में उस के लिए कुछ है.

अगले महीने तरक्की होनी थी. पूरे दफ्तर में मार्च के इस महीने का सब को इंतजार रहता था.

मनोहर साहब अपने दफ्तर में बैठे श्वेता के बारे में ही सोच रहे थे कि शायद 2 साल के बाद वह उन से गुजारिश करेगी. पिछले साल भी उन्होंने उस की तरक्की नहीं की थी और न ही तनख्वाह बढ़ाई थी, जबकि उस का काम बढि़या था.

इस बार मनोहर साहब को उम्मीद थी कि श्वेता के कहने पर वे उस की तरक्की कर उसे अपने करीब लाएंगे, जिस से वे अपने मन की बात कह सकेंगे, पर श्वेता की तरफ से कोई संकेत न मिलने की वजह से वे काफी परेशान थे. आननफानन उन्होंने मेज पर रखी घंटी जोर से दबाई.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ चपरासी विपिन हाजिर हो गया.

‘‘विपिन, देखना श्वेता क्या कर रही है? अगर वह खाली हो तो उसे मेरे पास भेज दो.’’

मनोहर साहब ने बोल तो दिया, पर वे समझ नहीं पा रहे थे कि उस से क्या कहेंगे, कैसे बात करेंगे. वे अपनी सोच में गुम थे कि तभी श्वेता भीतर आई.

मनोहर साहब उस के गदराए बदन को देखते हुए हड़बड़ा कर बोले, ‘‘अरे, बैठो, तुम खड़ी क्यों हो?’’

‘‘जी सर,’’ कहते हुए श्वेता कुरसी पर बैठ गई.

मनोहर साहब बोले, ‘‘देखो श्वेता, तुम काबिल और समझदार लड़की हो. तुम इतनी पढ़ाईलिखाई कर के टाइप राइटर पर उंगलियां घिसती रहो, यह मैं नहीं चाहता.

‘‘मैं तुम्हें अपनी सैक्रेटरी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘क्या,’’ इस शब्द के साथ श्वेता का मुंह खुला का खुला रह गया. वह अपने भीतर इतनी खुशी महसूस कर रही थी कि मनोहर साहब के चेहरे पर उभरे भावों को देख नहीं पा रही थी.

‘‘ठीक है सर. कब से काम संभालना है?’’ यह पूछते हुए श्वेता के चेहरे पर बिखरी खुशी की लाली उस की खूबसूरती में निखार ला रही थी, जिस का मजा उस के मनोहर साहब भरपूर उठा रहे थे.

‘‘कल से ही तुम यह काम संभाल लो,’’ यह कहते हुए मनोहर साहब को ध्यान भी नहीं रहा कि अभी इस महीने में 5 दिन बाकी हैं, उस के बाद पहली तारीख आएगी.

मनोहर साहब के ‘कल से’ जवाब के बदले में श्वेता ने कहा, ‘‘ठीक है सर…’’ और जाने के लिए कुरसी छोड़ कर खड़ी हो गई, पर सर की आज्ञा का इंतजार था.

थोड़ी देर बाद मनोहर साहब बोल पड़े, ‘‘ठीक है, तुम जाओ.’’

श्वेता को मानो इसी बात का इंतजार था. वह अपनी इस खुशी को अपने परिवार में बांटना चाहती थी. वह अपना पर्स टटोलते हुए अपने केबिन में पहुंची और वहां सभी कागज वगैरह ठीक कर के घर के लिए चल पड़ी.

श्वेता अपने परिवार के पसंद की खाने की चीजें ले कर घर पहुंची. रास्ते में उस के जेहन में वे पल घूम रहे थे, जब 3 साल पहले उस के पिताजी की मौत हो गई थी. एक साल तक मां ही परिवार की गाड़ी चलाती रही थीं.

श्वेता ने बीए पास करते ही नौकरी शुरू कर दी थी, ताकि उस की दोनों छोटी बहनें पढ़ सकें. एक छोटा भाई सागर था, जो अभी तीसरी क्लास में था.

श्वेता के 12वीं के इम्तिहान के बाद ही सागर का जन्म हुआ था. तीनों बहनों का लाड़ला था सागर, पर पिता का प्यार उसे नहीं मिल सका था.

श्वेता को अपनी सोच में गुम हुए पता न चला कि घर आ चुका था.

‘‘रोको भैया, रोको, मुझे यहीं उतरना है,’’ कहते हुए श्वेता ने पैकेट संभाले हुए आटोरिकशा का पैसा चुकता किया और घर की सीढि़यों पर चढ़ते ही घंटी बजाई.

छोटी बहन संगीता ने दरवाजा खोला. सब से छोटी बहन सरोज भी उस के साथ थी. दीदी के हाथों में पैकेट देख कर दोनों बहनें हैरान थीं.

अभी वे कुछ कहतीं, उस से पहले श्वेता बोल पड़ी, ‘‘लो सरोज, आज हम सब बाहर का खाना खाएंगे.’’

इस के बाद वे तीनों भीतर आ कर मां के पास बैठ गईं.

मां भी श्वेता कोे देख रही थीं, तभी वह बोली, ‘‘मां, आज मैं बहुत खुश हूं. अब आप को चिंता नहीं करनी पड़ेगी. आप खुले हाथों से खर्च कर सकती हैं. अब मुझे 10,000 रुपए तनख्वाह मिला करेगी.’’

श्वेता की बातें सुन कर मां और ज्यादा हैरान हो गईं.

श्वेता ने आगे कहा, ‘‘मैं अपनी बहनों को इंजीनियर और डाक्टर बनाऊंगी. अब इन की पढ़ाई नहीं रुकेगी,’’ कहते हुए श्वेता के चेहरे पर ऐसे भाव आ गए जो पिता की मौत के बाद कालेज छोड़ते हुए आए थे.

श्वेता की तरक्की से पूरा दफ्तर हैरान था. काम्या तो इस बात से हैरान थी कि श्वेता ने कैसे मनोहर साहब से अपनी तरक्की करवा ली. अगर उसे पता होता कि ‘मनोहर साहब’ भी मैनेजर जैसे हैं, तो वह अपना ब्रह्मपाश मनोहर सर पर ही चलाती. वह फालतू ही मैनेजर के चक्कर में पड़ गई. उसे अपनेआप पर गुस्सा आ रहा था.

काम्या चालबाज लड़की थी. उस ने आते ही मैनेजर को अपने मायाजाल में फांस कर अपनी तरक्की करा ली थी, पर यह सब दफ्तर का कोई मुलाजिम नहीं जानता था. वह वहां सामान्य ही रहती थी, भले ही अपनी पूरी रात मैनेजर के साथ बिताती थी.

एक दिन काम्या ने श्वेता से कह दिया कि बहुत लंबा तीर मारा है तुम ने सीधीसादी बन कर, पर श्वेता उस का मतलब न समझ पाई.

4 महीने बीत चुके थे. एक दिन किसी समारोह में श्वेता भी मनोहर साहब के साथ गई. साहब बहुत खुश नजर आ रहे थे. दफ्तर का ही कार्यक्रम था. श्वेता से उन की खुशी छुपी नहीं रही. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, आज कोई खास बात है क्या?’’

‘‘हां श्वेता, तुम्हारे लिए खुशखबरी है,’’ कहते हुए वे मुसकराने लगे.

‘‘मेरे लिए क्या…’’ हैरान श्वेता देखती रह गई.

समारोह खत्म होने पर ‘तुम साथ चलना’ कहते हुए श्वेता का जवाब जाने बिना मनोहर साहब दूसरी तरफ चले गए. पर वह विचलित हो गई कि आखिर क्या बात होगी?

समारोह तकरीबन 4 बजे खत्म हुआ और साहब के साथ गाड़ी में चल पड़ी, वह राज जानने जो उस के साहब को खुश किए था और उसे भी कोई खुशी मिलने वाली थी. एक फ्लैट के सामने गाड़ी रुकी और साहब ताला खोलने लगे.

अंदर हाल में दीवान बिछा था, सोफे भी रखे थे. ऐसा लग रहा था कि यहां कोई रहता है. सभी चीजें साफसुथरी लग रही थीं.

‘‘बैठो,’’ मनोहर साहब ने कहा तो वह भी बैठ गई और साहब की तरफ देखने लगी.

‘‘देखो श्वेता, तुम बहुत ही समझदार लड़की हो. अब मैं जो भी कहने जा रहा हूं, उसे ध्यान से सुनना और समझना. अगर तुम्हें मेरी बातें या मैं बुरा लगूं तो तुम मेरा दफ्तर छोड़ कर आराम से जा सकती हो. अब मेरी बातें बड़े ही ध्यान से सुनो…’’

श्वेता मनोहर साहब की बातें समझ नहीं पा रही थी कि वे क्या कहना चाहते हैं और उस से क्या चाहते हैं. कानों में मनोहर साहब की आवाज पड़ी, ‘‘सुनो श्वेता, मैं तुम से पतिपत्नी का रिश्ता बनाना चाहता हूं. तुम मुझे अच्छी लगती हो. तुम में वे सारे गुण मौजूद हैं, जो एक पत्नी में होने चाहिए. मेरा एक 3 साल का बेटा है, उसे मां की जरूरत है. अगर तुम मेरी बात मान लोगी तो यहां जिंदगीभर राज करोगी. सोचसमझ कर मुझे अभी आधे घंटे में बताओ. तब तक मैं कुछ चायकौफी का इंतजाम करता हूं,’’ कहते हुए वे कमरे से बाहर जा चुके थे.

श्वेता क्या करे, इनकार की गुंजाइश बिलकुल नहीं थी. दूसरी नौकरी तलाशने तक घर तबाह हो जाएगा, हां कहती है तो बिना जन्म दिए मां का ओहदा मिल जाएगा. तरक्की के इतने सारे अनचाहे उपहारों को वह संभाल पाएगी. उस ने अपनेआप से सवाल किया.

‘‘लो, चाय ले लो,’’ कहते हुए वे उस के करीब बैठ चुके थे और उस की पीठ पर हाथ फेरने लगे. उस ने विरोध भी नहीं किया. उसे अपनी बहनों को डाक्टर और इंजीनियर जो बनाना था.

शरीर की हलचल पर काबू न रखते हुए वह मनोहर साहब की गोद में लुढ़क गई. आखिर उसे भी तो कुछ देना था साहब को, उन की इतनी मेहरबानियों की कीमत.

थोड़े देर में वे दोनों एकदूसरे में डूब गए. श्वेता को कुछ भी बुरा नहीं लग रहा था.

मनोहर साहब की पत्नी मर चुकी थी. वे किसी ऐसी लड़की की तलाश में थे, जो उस के बच्चे को अपना कर उसे प्यार दे सके. श्वेता में उसे ये गुण नजर आए, वरना उस की औकात ही क्या थी.

3 हफ्ते में दोनों की शादी हो गई. शादी में पूरा दफ्तर मौजूद था. सभी मनोहर साहब की तारीफ कर रहे थे कि चलो रिश्ता बनाया तो निभाया भी, वरना आजकल कौन ऐसा करता है.

काम्या भीतर ही भीतर हाथ मल रही थी और पछता रही थी. उस से रहा नहीं गया. श्वेता के कान में शब्दों की लडि़यां उंड़ेल दीं. ‘‘श्वेता, लंबा हाथ मारा है, नौकर से मालकिन बन बैठी.’’

श्वेता के चेहरे पर हलकी सी दर्द भरी मुसकान रेंग गई. वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि ‘लंबा हाथ मारा है’ या ‘लुट गई है’.

‘‘मम्मी, गुड इवनिंग,’’ यह आवाज एक मासूम बच्चे सौरभ की थी, जो बहुत ही प्यारा था. मनोहर साहब उस का हाथ पकड़े खड़े थे. शायद मांबेटे का एकदूसरे से परिचय कराने के लिए, पर बिना कुछ पूछे श्वेता ने सौरभ को उठा कर अपने सीने से लगा लिया, क्योंकि उसे अपनी तरक्की से कोई गिला नहीं था. उसे तरक्की में मिले तोहफों से यह तोहफा अनमोल था.

लेखिका- डा. पुष्पा सिंह विसेन

जुआरी: बड़े भैया की वसीयत में क्या लिखा था

‘जिंदगी क्या इतनी सी होती है?’ बड़े भैया अपने बिस्तर पर करवटें बदलते हुए सोच रहे थे और बचपन से अब तक के तमाम मौसम उन की धुंधली नजर में तैरने लगे. अंत में उन की नजर आ कर उन कुछ करोड़ रुपयों पर ठहर गई जो उन्होंने ताउम्र दांत से पकड़ कर जमा किए थे.

कितने बड़े परिवार में उन्होंने जन्म लिया था. बड़ी बहन कपड़े पहना कर बाल संवारती थी, बीच की बहन टिफिन थमाती थी. जूते पहन कर जब वह बाहर निकलते तो छोटा भाई साइकिल पकड़ कर खड़ा मिलता था.

‘भैया, मैं भी बैठ जाऊं?’ साइकिल बड़े भाई को थमाते हुए छोटा विनम्र स्वर में पूछता.

‘चल, तू भी क्या याद रखेगा…’ रौब से यह कहते हुए साइकिल का हैंडल पकड़ कर अपना बस्ता छोटे भाई को पकड़ा देते फिर पीठ पर एक धौल मारते हुए कहते, ‘चल, फटाफट बैठ.’

छोटा साइकिल की आगे की राड पर मुसकराता हुआ बैठता. तीसरा जब तक आता उन की साइकिल चल पड़ी होती.

अगले दिन साइकिल पर बैठने का नंबर जब तीसरे भाई का आता तो दूसरे को पैदल ही स्कूल जाना पड़ता. इस तरह तीनों भाई भागतेदौड़ते कब स्कूल से कालिज पहुंच गए पता ही नहीं चला.

कितनी तेज रफ्तार होती है जिंदगी की. कालिज में आने के बाद उन की जिंदगी में बैथिनी क्या आई, वह अपने ही खून से अलग होते चले गए. बैथिनी का भाई सैमसन उन के साथ कालिज में पढ़ता था. ईसाई धर्म वाले इस परिवार का उन के ब्राह्मण परिवार से भला क्या और कैसा मेल हो सकता था. पढ़ाई पूरी होतेहोते तो बैथिनी के साथ उन की मुहब्बत की पींगें आसमान को छूने लगीं. सैमसन का नेवी में चुनाव हो गया तो उन का आर्मी में. वह जब कभी भी अपने प्रेम का खुलासा करना चाहते उन का ब्राह्मण होना आडे़ आ जाता और उन की बैथिनी इस ब्राह्मण घर की दहलीज नहीं लांघने पाती. पिताजी असमय ही काल का ग्रास बन गए और वह आर्मी की अपनी टे्रनिंग में व्यस्त हो गए.

फौज की नौकरी में वह जब कभी छुट्टी ले कर घर आते उन के लिए रिश्तों की लाइन लग जाती और वह बड़े मन से लड़कियां देखने जाते. कभी मां के साथ तो कभी बड़ी बहनों और उन के पतियों के साथ.

पिताजी ने काफी नाम कमाया था, सो बहुत से उच्चवर्गीय परिवार इस परिवार से रिश्ता जोड़ना चाहते थे पर उन के मन की बात किसे मालूम थी कि वह चुपचाप बैथिनी को अपनी हमसफर बना चुके थे. वह मां के जीतेजी उन की नजर में सुपुत्र बने रहे और कपटी आवरण ओढ़ लड़कियां देखने का नाटक करते रहे. वैसे भी पिताजी की मृत्यु के बाद घर में उन से कुछ पूछनेकहने वाला कौन था. 4 बड़ी बेटियों के बाद उन का जन्म हुआ था. उन के बाद 3 छोटे भाई और सब से छोटी एक और बहन भी थी. सो वह अपने ‘बड़ेपन’ को कैश करना बचपन से ही सीख गए थे. चारों बड़ी बहनों का विवाह तो पिताजी ही कर गए थे. अब बारी उन की थी, सो मां की चिंता आंसुओं में ढलती रहती पर न उन्हें कोई लड़की पसंद आनी थी और न ही आई.

छोटे भाइयों को भी अपने राम जैसे भाई का सच पता नहीं था, तभी तो भारतीय संस्कृति व परिवार की डोर थामे वे देख रहे थे कि उन का बड़ा भाई सेहरा बांधे तो उन का भी नंबर आए.

वह जानते थे कि जिस ईसाई लड़की को उन्होंने अपनी पत्नी बनाया है उस का राज एक न एक दिन खुल ही जाएगा, अत: कुछ इस तरह का इंतजाम कर लेना चाहिए कि घर में बड़े होने की प्रतिष्ठा भी बनी रहे और उन की इस गलती को ले कर घर व रिश्तेदारी में कोई बवाल भी न खड़ा हो.

इस के लिए उन्होंने पहले तो सेना की नौकरी से इस्तीफा दिया फिर बैथिनी को ले कर इंगलैंड पहुंच गए. हां, अपने विदेश जाने से पहले वह एक बड़ा काम कर गए थे. उन्होंने इस बीच, सब से छोटी बहन का ब्याह कर दिया था. अब 3 भाई कतार में थे कि बड़े भैया ब्याह करें तो उन का नंबर आए. 70 साल की मां की आंखों में बड़े के ब्याह को ले कर इतने सपने भरे थे कि वह पलकें झपकाना भी भूल जातीं. आखिर इंतजार का यह सिलसिला तब टूटा जब उन से छोटे ने अपना जीवनसाथी चुन कर विवाह कर लिया. मां को  इस प्रकार चूल्हा फूंकते हुए भी तो जवान बेटा नहीं देख सकता था. वह भी तब जब बड़ा भाई विदेश चला गया हो.

घर में आई पहली बहू को मां इतना लाड़दुलार कभी नहीं दे पाईं जितना उन्होंने बड़े की बहू के लिए अपनी झोली में समेट कर रखा था. उस बीच बड़े के गुपचुप ब्याह की खबर हवा में तैरती हुई मां के पास न जाने कितनी बार पहुंची लेकिन वह तो बड़े के खिलाफ कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थीं. बहू दिशा यह सोच कर कि वह अपना फर्ज पूरा कर रही है, अपने में मग्न रहने का प्रयास करती. मां से बडे़ की अच्छाई सुनतेसुनते जब उस के कान पक जाते तो उन की उम्र का लिहाज कर वह खुद ही वहां से हट जाती थी. संस्कारी, सुशिक्षित परिवार की होने के कारण दिशा बेकार की बातों पर चुप्पी साध लेना ही उचित समझती.

वह जब भी विदेश से आते, मां उन के विवाह का ही राग अलापती रहतीं, जबकि कई बार अनेक माध्यमों से उन के कान में बडे़ बेटे के विवाह की बात आ चुकी थी. बाकी सब चुप ही रहते. वही गरदन हिलाहिला कर मां के प्यार को कैश करते रहते. अपने मुंह से उन्होंने ब्याह की बात कभी न कही, न स्वीकारी और पिताजी के बाद तो साहस किस का था जो उन से कोई कुछ पूछाताछी करता. बडे़ भाई के रूप में वह महानता की ऐसी विभूति थे जिस में कोई बुराई हो ही नहीं सकती.

धीरेधीरे सब भाइयों ने विवाह कर लिया. कब तक कौन किस की बाट देखता? सब अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्तत्रस्त थे तो मां की आंखों में बड़े के ब्याह के सपने थे, जबकि वह विदेश में अपनी प्रेयसी पत्नी के साथ मस्त थे. वह जब भी हिंदुस्तान आते तो अकेले. दिखावा इतना करते कि हर भाई को यही लगता कि बडे़ भैया बस, केवल उसी के हैं पर भीतर से निर्विकार वे सब को नचा कर  फिर से उड़ जाते. जब भी उन के हिंदुस्तान आने की खबर आती, सब के मन उड़ने लगते, आंखें सपने बुनतीं, हर एक को लगता इस बार बड़े भैया जरूर उसे विदेश ले जाने की बात करेंगे. आखिर यही तो होता है. परिवार का एक सदस्य विदेश क्या जाता है मानो सब की लाटरी निकल आती है.

लेकिन उन्होंने किसी भी भाई की उंगली इस मजबूती से नहीं पकड़ी कि वह उन के साथ हवाई जहाज में बैठ सके. शायद उन्हें भीतर से कोई डर था कि घर के किसी भी सदस्य को स्पांसर करने से कहीं उन की पोलपट्टी न खुल जाए. गर्ज यह कि वह अपनी प्रिय बैथिनी के चारों ओर ताउम्र घूमते रहे. जब घूमतेघूमते थक जाते तो कुछ दिनों के लिए भारत चले आते थे.

मां की मौत के बाद ही वह बैथिनी को ले कर घर की दहलीज लांघ सके थे. पर अब फायदा भी क्या था? सब के घर अलगअलग थे, सब की अपनी सोच थी और सब के मन में विदेश का आकर्षण, जो बड़े भैया को देखते ही लाखों दीपों की शक्ल में उजास फैलाने लगता.

वर्ष गुजरते रहे और परिवार की दूसरी पीढ़ी की आंखों में विदेश ताऊ के पास जा कर पैसा कमाने के स्वप्न फीके पड़ते रहे. भारत में उन्होंने अपना ‘एन आर आई’ अकाउंट खुलवा रखा था सो जब भी आते बैंक में जा कर रौब झाड़ते. उन के व्यवहार से भी उन के डालर और पौंड्स की महक उठती रहती.

इंगलैंड में भी उन का अच्छाखासा बैंक बैलेंस था. औलाद कोई हुई नहीं. जब तक काम किया, उस के बाद एक उम्र तक आतेआते उन्हें देश की याद सताने लगी. बैथिनी को भारत नहीं आना था और उन्हें विदेश में नहीं रहना था, सो जीवन की गोधूलि बेला में वह एक बार भाई के बेटे के विवाह में विदेश से देश क्या आए वापस न जाने की ठान ली.

भाइयों के पेट में प्रश्नों का दर्द पीड़ा देने लगा. जिस औरत के साथ बड़े भाई ने पूरा जीवन बिता दिया उसे इस उम्र में कैसे छोड़ सकते हैं? अब वह भाइयों के पास ही रहने लगे थे और क्रमश: वह और बैथिनी एकदूसरे से दूर हो गए थे.

अब परिवार के युवा वर्ग की आशा निराशा में बदल चुकी थी. बस, अब तो यह था कि जो उन की सेवा करता रहे, उसी को लड्डू मिल जाए. पर वह तो जरूरत से ज्यादा ही समझदार थे.  अपने हाथों में भरे हुए लड्डुओं की खुशबू जहां रहते वहां हवा में बिखेर देते और जब तक लड्डू किसी को मिलें उन्हें समेट कर वह वहां से दूसरे भाई के पास चल देते.

अब कुछ सालों से उन का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था, सो उन्हें एक भाई के पास जम कर रहना ही पड़ा. शायद वह समझ नहीं पा रहे थे या मानने को तैयार नहीं थे कि उन्हें अपने शरीर को छोड़ कर जाना होगा. एक ‘एन आर आई’ की अकड़ में वह रहते… ‘एन आर आई’ होने के भ्रम में वह बरसों तक इसी खौफ में सांसें गिनते रहे कि कोई उन्हें लूट लेगा. बैथिनी को कितनीकितनी बार उन की बीमारी की खबर दी गई पर उस का रटारटाया उत्तर रहता, ‘उस को ही यहां पर आना होगा, मैं तो भारत में आने से रही.’ सो न वह गए और न बैथिनी आई.

आज वह पलंग पर लेटेलेटे अपने जीवन को गोभी के पत्तों की तरह उतरता देख रहे हैं. उन्हें आज परत दर परत खुलता जीवन जैसे नंगा हो कर खुले आकाश के नीचे बिखेर रहा है और उन के हाथ में पकड़े लड्डू चूरचूर हो रहे हैं पर उन की बंद मुट्ठी किसी को उस में से एक कण भी देने के लिए तैयार नहीं है.

यों तो हमसब ही शून्य में अपने ऊपर आरोपित तामझामों का लबादा ओढ़े खडे़ हैं, सब ही तो भीतर से नंगे, अपनेआप को झूठे आवरणों में छिपाए हुए हैं. कोई पाने के लालच में सराबोर तो कोई खोने के भय से भयभीत. जिंदगी के माने कुछ भी हो सकते हैं.

बडे़ भैया अब गए, तब गए, इसी ऊहापोह में कई दिन तक छटपटाते रहे पर उन की मुट्ठियां न खुलीं. ‘एन आर आई’ के तमगे को लिपटाए एक शख्स अकेलेपन के जंगल से गुजरता हुआ बंद मुट््ठियों को सीने से लगाए एक दिन अचानक ही शांत हो गया. फिर बैथिनी को बताया गया. फोन पर सुन कर बैथिनी बोली, ‘‘जितनी जल्दी हो सके मुझे डैथ सर्टिफिकेट भेज देना,’’ इतना कह कर फोन पटक दिया गया. भली मानस उस की मिट्टी तो सिमट जाने देती.

खैर, अब बडे़ भैया की अटैचियां खुलने की बारी थी. शायद उन में ही कहीं लड्डू छिपा कर रख गए हों. सभी भाई, भतीजे, बहुएं, बड़े भैया के सामान के चारों ओर उत्सुक दृष्टि व धड़कते दिल से गोल घेरे में बैठेखडे़ थे.

‘‘लो, यह रही वसीयत,’’ एक पैक लिफाफे को खोलते हुए छोटा भाई चिल्लाया.

‘‘लाओ, मुझे दो,’’ बीच वाले ने छोटे के हाथ से लगभग छीन कर पढ़ना शुरू किया…आखिर में लिखा था, ‘मेरी सारी चल और अचल संपत्ति मेरी पत्नी बैथिनी को मिलेगी और इंगलैंड व भारत का सब अकाउंट मैं पहले ही उस के नाम कर चुका हूं.’

अब सभी भाई व उन के बच्चे एक- दूसरे की ओर चोर नजरों से देख कर हारे हुए जुआरियों की भांति पस्त हो कर सोफों में धंस गए थे और शून्य में वहीं बडे़ भैया की ठहाकेदार हंसी गूंजने लगी थी.

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