मेरा बेटा मोटापे के कारण हीनभावना का शिकार होता जा रहा है, मैं क्या करूं?

मेरा बेटा 14 साल का है और उस का वजन 66 किलोग्राम है. मोटापे के कारण वह हीनभावना का शिकार होता जा रहा है. इतनी सी उम्र में डायबिटीज जांच में उसे प्री डायबिटिक कंडीशन बताई गई है. मुझे अपने बच्चे को ले कर बहुत चिंता रहती है. क्या करूं?

ज्यादातर बच्चों में मोटापा आनुवंशिक कारणों तथा जंक फूड खाने व फिजिकल ऐक्टिविटी न करने के कारण होता है. यदि आप की फैमिली हिस्ट्री में मोटापे की बीमारी है तो बच्चे का खास ध्यान रखने की जरूरत है क्योंकि अधिक बीएमआई बढ़ने पर डायबिटीज का खतरा भी दोगुना हो जाता है. प्रीडायबिटिक होने का मतलब है उस का ग्लूकोस लैवल सामान्य से थोड़ा अधिक और डायबिटीज के स्तर से थोड़ा नीचे है. इसलिए आप को बच्चे की जीवनशैली में स्वास्थ्यवर्धक भोजन व ऐक्सरसाइज को शामिल करना बहुत जरूरी है. यदि फिर भी वजन नियंत्रित नहीं होता है तो बच्चे की बैरिएट्रिक सर्जरी करवाने का भी एक विकल्प है क्योंकि मोटापे के कारण आगे चल कर अन्य कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं.

-डा. कपिल अग्रवाल

डाइरैक्टर, हैबिलाइट सैंटर फौर बैरिएट्रिक ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी

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गर्मियों में बनाएं अचारी चीला रायता और वेज रायता

गर्मियों ने अपना प्रकोप दिखाना प्रारम्भ कर दिया है इन दिनों में धूप और गर्मी के प्रभाव से हमारे शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है और शरीर को ठंडा रखने के लिए आहार विशेषज्ञ शीतल पदार्थों के सेवन की सलाह देते हैं.

इन दिनों में पना, शरबत और ज्यूस के साथ साथ रायते भी बहुत स्वास्थ्यप्रद होते हैं. रायते को दही से बनाया जाता है जिसमें पाया जाने वाला लेक्टोवेसिलस बैक्टीरिया पाचन तन्त्र को दुरुस्त रखने का काम करता है.

इसके साथ ही रायते को फल और सब्जी के साथ बनाते हैं जिससे इसकी पौष्टिकता और अधिक हो जाती है. कम केलोरी होने के कारण यह वजन कम करने में भी मददगार होते हैं.

कैसा हो दही

रायता बनाने के लिए घर का जमा दही सर्वोत्तम होता है. दही जमाने के लिए 1 लीटर गुनगुने दूध में 1/2 टीस्पून जामन अर्थात दही डालकर अच्छी तरह चलायें. इसे ढककर गर्म स्थान पर रखें, गर्मियों में 5-6 घंटे में दही जमकर तैयार हो जाता है. फ्रिज में रखे और खट्टे दही की अपेक्षा ताजे दही से रायता बनाना अधिक स्वास्थ्यप्रद होता है यदि आपको रायता बनाने के लिए गाढ़ा दही चाहिए तो महीन छलनी को एक कटोरे के ऊपर रख दें और इसमें दही डाल दें 4-5 घंटे के बाद पानी कटोरे की तली में आ जायेगा और गाढे दही को छलनी से निकालकर इससे आप मनचाहा रायता बना सकतीं हैं.

  1. अचारी चीला रायता
  • कितने लोगों के लिए 6
  • बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
  • मील टाइप वेज
  • सामग्री (चीला के लिए)
  • बेसन 1 कप
  • सूजी 1/4 कप
  • नमक 1/4 टीस्पून
  • अदरक हरी मिर्च पेस्ट 1/4 टीस्पून
  • तेल 1 टीस्पून
  • सामग्री(रायते के लिए)
  • ताजा दही 500 ग्राम
  • मिर्च के अचार का मसाला 1 टीस्पून
  •  चाट मसाला                         1/4 टीस्पून
  • बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
  • सामग्री (बघार के लिए)
  • सरसों का तेल 1/4 टीस्पून
  • करी पत्ता 4-5 पत्ती
  • राई के दाने 1/8 टीस्पून

विधि

चीले की समस्त सामग्री को एक बाउल में अच्छी तरह घोल लें. अब एक नॉनस्टिक पैन में चिकनाई लगाकर एक बड़ा चम्मच चीले का मिश्रण फैलाएं. धीमी आंच पर सुनहरा होने तक सेंक लें. इसी प्रकार सारे चीले तैयार कर लें. तैयार चीलों को 1 इंच के छोटे टुकड़ों में काट लें. दही को अचार का मसाला, और चाट मसाला डालकर अच्छी तरह चलाएं और चीले के कटे टुकड़े डालकर हरा धनिया डालकर सर्व करें.

  1. मिक्स वेज रायता

कितने लोगों के लिए               6

बनने में लगने वाला समय         30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री

  • ताजा दही                           500 ग्राम
  • बारीक कटी लाल, पीली, हरी शिमला मिर्च 1कप
  • बारीक कटा प्याज 1
  • बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
  • बारीक कटी हरी मिर्च 2
  • उबला कटा आलू 1
  • कटा पत्तागोभी          1/4 कप
  • तेल 1/2 टीस्पून
  • राई के दाने 1/8 टीस्पून
  • काला नमक 1/2 टीस्पून
  • काली मिर्च पाउडर 1/4 टीस्पून
  • भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून

सामग्री (बघार के लिए)

  • सरसों का तेल 1/2 टीस्पून
  • जीरा 1/4 टीस्पून
  • हींग 1 चुटकी
  • विधि

एक नॉनस्टिक पैन में तेल डालकर राई के दाने डालें और आलू छोड़कर सभी सब्जियां डाल दें. नमक डालकर बिना ढके 4-5 मिनट तक चलाएं जैसे ही सब्जियां हल्की सी नरम हो जाएं तो गैस बंद कर दें. जब सब्जियां पूरी तरह ठंडी हो जाएं तो फेंटे दही में मिलाएं. उबला आलू, काली मिर्च, भुना जीरा और काला नमक मिलाएं. तड़का पैन में तेल गरम करें हींग, जीरा तड़काकर रायते में मिलाएं. बारीक कटे हरे धनिए से गार्निश करके सर्व करें.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • रायते के लिए सदैव ताजे दही का ही प्रयोग करें.
  • पाइनएप्पल का रायता बनाते समय या तो बाजार में उपलब्ध टिंण्ड पाइनेपल का प्रयोग करें अथवा पाइनएप्पल को चीनी डालकर उबाल लें फिर रायता बनाएं कच्चा पाइनएप्पल दही में डाले जाने पर दही को कड़वा कर देता है.
  • फ्रूट रायता बनाने के लिए हंग कर्ड का प्रयोग करना बेहतर होता है.
  • रायते में नमक सर्व करते समय ही डालें अन्यथा रायता सर्व करते समय तक खट्टा हो जाएगा.
  • खट्टे और रखे दही को हंग कर्ड बनाकर प्रयोग करें इससे उसका खट्टापन काफी हद तक कम हो जाएगा, इसे पतला करने के लिए पानी का प्रयोग करें.
  • यदि आपका रायता अधिक मात्रा में बच गया है तो इसमें सूजी मिलाकर इड्ली या उत्तपम बना लें.

Summer Special: 6 टिप्स- गर्मी में नवजात की देखभाल करें ऐसे

नवजातों के लिए गर्मी का मौसम बेहद असहनशील होता है, क्योंकि पहली बार वे ऐसे माहौल से रूबरू होते हैं. तेज आवाज में और लगातार रोने, खूब पसीना निकलने, बाल गीले होने, लाल गाल और तेज सांस लेने जैसे लक्षण इस बात के संकेत हैं कि बच्चा अत्यधिक गर्मी से परेशान हो रहा है. ओवर हीटिंग गर्मी में डायरिया का प्रत्यक्ष कारण होता है, जो कई नवजातों के लिए घातक भी हो सकता है.

  1. धूप से बचाएं

गर्मी के मौसम में नवजातों को धूप की सीधी किरणों से दूर रखें. 6 माह से कम उम्र के नवजातों की त्वचा में सूर्य की नुकसानदेह किरणों से सुरक्षा के लिए बहुत कम मैलानिन होता है. मैलानिन ऐसा पिगमैंट होता है, जो त्वचा, आंखों और बालों को रंगत प्रदान करता है. लिहाजा, मैलानिन के अभाव में सूर्य की किरणें त्वचा की कोशिकाओं को स्थाई रूप से भी क्षतिग्रस्त कर सकती हैं.

2. तेल मालिश करें

शरीर की मालिश बच्चे के विकास में मददगार होती है. उचित मालिश से बच्चे के टिशू और मांसपेशियां खुलती हैं और इस से उस का सही विकास होता है. बच्चे की नाजुक त्वचा को सब से अच्छी तरह सूट करने वाले तेल का चयन जहां अनिवार्य है, वहीं यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि इस से चिपचिपाहट न हो. तेल की जगह मसाजिंग लोशन और क्रीम भी इस्तेमाल की जा सकती है. नहलाते समय इस की पूरी मात्रा बच्चे के शरीर से धुल जाए, क्योंकि तेल बच्चे की स्वेदग्रंथि को अवरुद्ध कर सकता है.

3. टब में स्नान कराएं

गर्मी से छुटकारा पाने का सर्वोत्तम उपाय है स्नान कराना. वैसे हर बार स्नान कराने से बेहतर होता है कि बच्चे को गीले कपड़े से पोंछती रहें. लेकिन जब बच्चा तेज गर्मी के कारण व्याकुल हो रहा हो, तो उसे भरे टब में स्नान कराएं. इस में पानी का तापमान कुनकुना रहना चाहिए.

4. टैल्कम पाउडर

टब में नहलाने के बाद बच्चे के शरीर पर टैल्कम पाउडर लगाना अच्छा माना जाता है. जहां कुछ बच्चों को हीट रैश कम करने में टैल्कम पाउडर का इस्तेमाल उपयोगी होता है, वहीं कुछ में इस से स्थिति और बिगड़ जाती है. अत: अपनी हथेली पर थोड़ाथोड़ा पाउडर ले कर उस की त्वचा पर लगाएं, उस पर बुरकें नहीं.

5. नियंत्रित तापमान

बच्चे को 16 से 20 डिग्री तापमान के अंदर ही रखें. उस के कमरे को दिन में ठंडा रखने के लिए परदे लगा कर कमरे में अंधेरा करें. पंखा औन रखें. बच्चे को एअरकंडीशनर के सीधे संपर्क में कभी न रखें, क्योंकि इस से उसे जुकाम भी हो सकता है.

6. उपयुक्त पोशाक

मां अकसर दुविधा में रहती हैं कि बच्चे को कैसी पोशाक पहनाई जाए. मिथक के अनुसार नवजातों को खूब सारे गरम कपड़ों में रखना चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि गर्भ से बाहर का तापमान अंदर के तापमान से ठंडा रहता है. लेकिन गर्मी के मौसम में उन के कपड़ों की परत कम करते हुए उन्हें हलके कपड़ों में रख सकती हैं. उन्हें ढीलेढाले सूती वस्त्र पहनाएं ताकि उन की त्वचा में हवा का प्रवाह बना रहे और वे आराम महसूस कर सकें. सूती वस्त्र बच्चों के लिए लाभकारी होते हैं, क्योंकि इन में हवा भी अच्छी तरह प्रवेश हो जाती है और ये पसीना भी सोखने की क्षमता रखते हैं. बच्चे को हीट स्ट्रोक से बचाने के लिए धूप में बाहर ले जाते समय उसे हैट जरूर पहनाएं.

– डा. कृष्ण यादव, पारस ब्लिस हौस्पिटल, पंचकूला 

आधी अधूरी प्रेम कहानी

लौक डाउन का दूसरा चरण देश में चल रहा था. नर्मदा नदी पुल पर बने जिस चैक पोस्ट पर मेरी ड्यूटी जिला प्रशासन ने लगाई थी,वह दो जिलों की सीमाओं को जोड़ती थी. मेरे साथ ड्यूटी पर पुलिस के हबलदार,एक पटवारी ,गाव का कोटवार और मैं निरीह मास्टर.आठ आठ घण्टे की तीन शिफ्ट में लगी ड्यूटी में हमारा समय सुबह 6 बजे से लेकर दोपहर के 2 बजे तक रहता.आठ घंटे की इस ड्यूटी में जिले से बाहर आने जाने वाले लोगों की एंट्री करनी पड़ती थी. यदि कोई कोरोना संक्रमण से प्रभावित क्षेत्रों से जिले की सीमा में प्रवेश करता,तो तहसीलदार को इसकी सूचना दी जाती और यैसे लोगों की जांच कर उन्हें कोरेन्टाईन में रखा जाता. म‌ई महिने की पहली तारीख को मैं ड्यूटी के लिए सुबह 6 बजे ककरा घाट पर बनी चैक पोस्ट पर पहुंच गया था.
नर्मदा नदी के किनारे एक खेत पर एक किसानअपनी मूंग की फसल में पानी दे रहा था . काम करते हुए उसकी नजर नदी की ओर ग‌ई ,तो उसे नदी में कोई भारी सी चीज बहती हुई किनारे की तरफ आती दिखाई दी. थोड़ा करीब जाने पर किसान ने एक दूसरे से लिपटे युवक युवतियों को देखा तो चैक पोस्ट की ओर जोर से आवाज लगाई
” मुंशी जी दौड़ कर आइए ,ये नदी में देखिए लड़का लड़की बहते हुये किनारे लग गये हैं”
मेरे साथ ड्यूटी कर रहे पुलिस थाना के हबलदार बैनीसिंह ने आवाज सुनकर पुल से नीचे की तरफ दौड़ लगा दी. सूचना मिलने पर पुलिस टीम भी मौक़े पर आ ग‌ई . आस पास के लोगों की भीड़ नदी किनारे इकट्ठी हो गई, मुझसे भी रह नहीं गया . तो मैं भी नदी के घाट परपहुंच गया . सबने मिलकर आपस में एक दूसरे से लिपटे दोनों लड़का-लड़की के शव को नदी से निकाल कर किनारे पर कर दिया . जैसे ही उनके चेहरे  पर मेरी नजर गई तो मैं दंग रह ग‌या.

दरअसल नर्मदा नदी में मिले ये दोनों शव दो साल पहले मेरे स्कूल में पढ़ने वाले सौरभ और नेहा के ही थे ,जो दिन पहले ही रात में घर से भागे थे. गाव में जवान लड़का, लड़की के भागने की खबर फैलते ही लोग तरह-तरह की बातें करने लगे थे. नेहा के मां वाप का तो‌‌ रो रोकर बुरा हाल था. गांव में जाति बिरादरी में उनकी इज्जत मुंह दिखाने लायक नहीं बची थी. हालांकि दो साल से चल रहे दोनों के प्रेम प्रसंग चर्चा का विषय बन गये थे.पुलिस लाशों के पंचनामा और अन्य कागजी कार्रवाई में जुटी थी और मेरे स्मृति पटल पर स्कूल के दिनों की यादें के एक एक पन्ने खुलते जा रहे थे.

सौरभ और नेहा स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही एक दूसरे को पसंद करने लगे थे. सौरभ बारहवीं जमात में और नेहा दसवीं जमात में पढते थे. स्कूल में शनिवार के दिन बालसभा में जीवन कौशल शिक्षा के अंतर्गत किशोर अवस्था पर डिस्कशन चल रहा था. जब सौरभ ने विंदास अंदाज़ में बोलना शुरू किया तो सब देखते ही रह गये.  सौरभ ने जब बताया कि किशोर अवस्था में लड़के लड़कियों में जो शारीरिक परिवर्तन होते हैं, उसमें गुप्तांगों के आकार बढ़ने के साथ बाल उग आते हैं.लड़को के लिंग में कड़ा पन आने लगता हैऔर लड़कियों के वक्ष में उभार आने लगते हैं .लड़का-लड़की एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं.  हमारे बुजुर्ग शिक्षक जो दसवीं जमात के विज्ञान का जनन वाला पाठ पढ़ाने में संकोच करते हैं ,वे बालसभा छोड़ कर चले गये. लड़को को सौरभ के द्वारा बताई जा रही बातों में मजा आ रहा था, तो क्लास की लड़कियों के शर्म के मारे सिर झुके जा रहे थे.  17साल की  नेहा को सौरभ की बातें सुनकर गुदगुदी हो रही थी, लेकिन जब उसका बोलने का नंबर आया तो उसने भी खडे होकर बता दिया-
“लड़कियों को भी किशोरावस्था में पीरियड आने लगते है”
सौरभ और नेहा के इन विंदास बोल ने उन्हें स्कूल का आयडियल बना दिया था.

सौरभ स्कूल की पढ़ाई के साथ ही सभी प्रकार के फंक्शन में भाग लेता और नेहा उसके अंदाज की दीवानी हो गई.स्कूल में पढ़ाई के दौरान नेहा और सौरभ एक दूसरे से मन ही मन प्यार कर बैठे. दोनों के बीच का यह प्यार इजहार के साथ जब परवान चढ़ा तो मेल मुलाकातें बढ़ने लगी और दोनों ने एक दूजे के साथ जीने मरने की कसमें खा ली . इसी साल सौरभ कालेज की पढ़ाई के लिए सागर चला गया तो नेहा का  स्कूल में मन ही नहीं लगता.मोबाइल फोन के जरिए सौरभ और नेहा  आपस में बात करने लगे. सौरभ जब भी गांव आता तो लुक छिपकर नेहा से मिलता और पढ़ाई पूरी होते ही शादी करने का बादा करता  .

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिये लगे लौक डाउन के तीन दिन पहले कालेज की छुट्टियां होने पर सौरभ सागर से गांव आ गया था . गांव वालों की नजरों से बचकर नेहा और सौरभ जब आपस में मिलते तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. नेहा सौरभ से कहती-” अब तुम्हारे बिना गांव में मेरा दिल नहीं लगता”
सौरभ नेहा को अपनी बाहों में भरकर दिलासा देता,” सब्र करो नेहा , मेरी पढ़ाई खत्म होते ही हम शादी कर लेंगे”. नेहा सौरभ के बालों में हाथ घुमाते हुए कहती-
” लेकिन सौरभ घर वालों को कैसे मनायेंगे” .
सौरभ नेहा के माथे पर चुंबन देते हुए कहता-
“नेहा घर वालों को भी मना लेंगे,आखिर हम एक ही जाति बिरादरी के हैं”
सौरभ के सीने से लिपटते हुए नेहा कहती

” सौरभ यदि हमारी शादी नहीं हुई तो मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी”.
सौरभ ने उसके ओंठों को चूमते हुए आश्वस्त किया
“नेहा हमार प्यार सच्चा है हम साथ जियेंगे, साथ मरेंगे”
साथ जीने मरने की कसमें खाने वाले नेहा और सौरभ को एक दिन आपस में बात करते नेहा के पिता  ने देख लिया तो परिवार में बबाल मच गया .घर वालों ने समाज में अपनी इज्जत का वास्ता देकर नेहा को डरा धमकाकर समझाने की कोशिश की. नेहा ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह तो सौरभ से ही शादी करेंगी.सौरभ के दादाजी को जब इसका पता चला तो दादाजी आग बबूला हो गये.कहने लगे” आज के लडंका लड़कियों में शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं है.ये शादी हरगिज नहीं होगी.जिस लड़की में लाज शरम ही नहीं है, उसे हम घर की बहू नहीं बना सकते.”
सौरभ को जब दादाजी के इस निर्णय का पता चला तो वह भी ‌तिलमिला कर‌रह गया.

अब घर परिवार का पहरा  नेहा और सौरभ पर गहराने लगा था. एक दूजे के प्यार में पागल दोनों प्रेमी घर पर रहकर तड़पने लगे .और एक रात उन्होंने बिना सोचे समझे घर से भाग जाने का फैसला कर लिया.  योजना के मुताबिक वे अपने घरों से रात के दो बजे  मोटर साइकिल पर सवार होकर गांव से निकल तो गये, लेकिन लौक डाउन में जगह-जगह पुलिस की निगरानी से इलाके से दूर न जा सके.

दूसरे दिन सुबह  जब नेहा घर के कमरे में नहीं मिली तो घर वालों के होश उड़ गए .  सौरभ के वारे में जानकारी मिलने पर पता चला कि वह भी घर से गायब है,तो उन्हें यह समझ आ गया कि दोनों एक साथ घर से गायब हुए हैं. गांव में समाज के मुखिया और पंचो ने बैठक कर यह तय किया कि पहले आस पास के रिश्तेदारों के यहां उनकी खोज बीन कर ली जाए , फिर पुलिस को सूचना दी जाए. शाम तक जब दोनों का कोई पता नहीं चला ,तो घर वालों ने पुलिस थाना मे गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

अपने वेटे की तलाश में जुटे सौरभ के पिता ने तीसरे दिन की सुबह अपने मोबाइल  पर आये सौरभ के मेसेज को देखा तो उन्हें कुछ आशा की किरण दिखाई दी. मैसेज बाक्स को खोलकर वे मैसेज पढ़ने लगे . मैसेज में सौरभ ने लिखा था
” मेरे प्यारे मम्मी पापा,
हमारी वजह से आपको बहुत दुःख हुआ है, इसलिए हम हमेशा के लिए आपसे दूर जा रहे हैं.   नर्मदा नदी के ककरा घाट के किनारे मोटर साइकिल ,और मोबाइल रखे हैं.इन्हे ले जाना अलविदा”.

तुम्हारा अभागा वेटा
सौरभ

उधर नेहा के भाई के मोबाइल के वाट्स ऐप पर नेहा ने गुड बाय का मैसेज  सेंड किया था. जब दोनों के घर वाले मैसेज में बताई गई जगह पर पहुंचे तो वहां  मोटरसाइकिल खड़ी थी . उसके पास दो मोबाइल, गमछा, चुनरी और जूते चप्पल रखे थे. पुलिस की मौजूदगी में वह सामान जप्त कर नदी के किनारे और नदी में भी तलाशी की गई, लेकिन नेहा और सौरभ का दूर दूर तक कोई पता नहीं था.
घर वाले और पुलिस टीम दोनों की तलाशी में रात दिन जुटे हुए थे ,तभी म‌ई की एक तारीख को सुबह सुबह दोनों के शव नदी में उतराते मिले थे.

” मास्साब यै लोग इंदौर से आ रहे हैं ,इनकी एंट्री करो” पटवारी की आवाज सुनकर मैने देखा एक कार चैक पोस्ट पर जांच के लिए खड़ी थी . यादों के सफर से मैं वापस आ गया था . झटपट कार का नंबर नोट कर मुंह और नाक पर मास्क चढाकर उसमें सवार लोगों के नाम पता नोट कर लिए थे . कार के जाते ही हाथों पर सेनेटाइजर छिड़क कर हाथों को अच्छी तरह रगड़ कर अपने काम में लग गया.
उधर पोस्ट मार्टम के बाद सौरभ और‌ नेहा के शव को गांव में अपने अपने घर लाया गया और उनके अंतिम संस्कार में पूरा गांव उमड़ पड़ा था.  अस्सी साल की उमर पार कर चुके सौरभ के दादाजी पश्चाताप की आग में जल रहे थे.अपनी झूठी शान की खातिर युवाओं के सपनों को चूर चूर कर जबरदस्ती समाज के कायदे कानून थोपने के अपने निर्णय से दुःख भी हो रहा था.

मुझे भी सौरभ और नेहा की इस अधूरी प्रेम कहानी ने दुखी कर दिया था.  स्कूल की बालसभा में बच्चों को किशोरावस्था में समझ और धैर्य से काम ‌लेने और सोच समझकर निर्णय लेने की शिक्षा देने के बावजूद भी जवानी के‌ जोश में होश खो देकर अपनी जीवन लीला खत्म करने वाले इस प्रेमी जोड़े के निर्णय पर वार अफसोस भी हो रहा था. मुझे लग रहा था कि  काम धंधा जमाकर पहले सौरभ अपने पैरों पर खड़ा होता  और‌ लौक डाउन खत्म होते ही नेहा के साथ  कानूनी तौर पर शादी करता तो शायद ये प्रेम कहानी आधी अधूरी न रहती.

बहू- जब दीपक के स्वार्थ को हराया उसकी पत्नी ने

बहू शब्द सुनते ही मन में सब से पहला विचार यही आता है कि बहू तो सदा पराई होती है. लेकिन मेरी शोभा भाभी से मिल कर हर व्यक्ति यही कहने लगता है कि बहू हो तो ऐसी. शोभा भाभी ने न केवल बहू का, बल्कि बेटे का भी फर्ज निभाया. 15 साल पहले जब उन्होंने दीपक भैया के साथ फेरे ले कर यह वादा किया था कि वे उन के परिवार का ध्यान रखेंगी व उन के सुखदुख में उन का साथ देंगी, तब से वह वचन उन्होंने सदैव निभाया.

जब बाबूजी दीपक भैया के लिए शोभा भाभी को पसंद कर के आए थे तब बूआजी ने कहा था, ‘‘बड़े शहर की लड़की है भैयाजी, बातें भी बड़ीबड़ी करेगी. हमारे छोटे शहर में रह नहीं पाएगी.’’

तब बाबूजी ने मुसकरा कर कहा था, ‘‘दीदी, मुझे लड़की की सादगी भा गई. देखना, वह हमारे परिवार में खुशीखुशी अपनी जगह बना लेगी.’’

बाबूजी की यह बात सच साबित हुई और शोभा भाभी कब हमारे परिवार का हिस्सा बन गईं, पता ही नहीं चला. भाभी हमारे परिवार की जान थीं. उन के बिना त्योहार, विवाह आदि फीके लगते थे. भैया सदैव काम में व्यस्त रहते थे, इसलिए घर के काम के साथसाथ घर के बाहर के काम जैसे बिजली का बिल जमा करना, बाबूजी की दवा आदि लाना सब भाभी ही किया करती थीं.

मां के देहांत के बाद उन्होंने मुझे कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी. इसी बीच राहुल के जन्म ने घर में खुशियों का माहौल बना दिया. सारा दिन बाबूजी उसी के साथ खेलते रहते. मेरे दोनों बच्चे अपनी मामी के इस नन्हे तोहफे से बेहद खुश थे. वे स्कूल से आते ही राहुल से मिलने की जिद करते थे. मैं जब भी अपने पति दिनेश के साथ अपने मायके जाती तो भाभी न दिन देखतीं न रात, बस सेवा में लग जातीं. इतना लाड़ तो मां भी नहीं करती थीं.

एक दिन बाबूजी का फोन आया और उन्होंने कहा, ‘‘शालिनी, दिनेश को ले कर फौरन चली आ बेटी, शोभा को तेरी जरूरत है.’’

मैं ने तुरंत दिनेश को दुकान से बुलवाया और हम दोनों घर के लिए निकल पड़े. मैं सारा रास्ता परेशान थी कि आखिर बाबूजी ने इस समय हमें क्यों बुलाया और भाभी को मेरी जरूरत है, ऐसा क्यों कहा  मन में सवाल ले कर जैसे ही घर पहुंची तो देखा कि बाहर टैक्सी खड़ी थी और दरवाजे पर 2 बड़े सूटकेस रखे थे. कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है. अंदर जाते ही देखा कि बाबूजी परेशान बैठे थे और भाभी चुपचाप मूर्ति बन कर खड़ी थीं.

भैया गुस्से में आए और बोले, ‘‘उफ, तो अब अपनी वकालत करने के लिए शोभा ने आप लोगों को बुला लिया.’’

भैया के ये बोल दिल में तीर की तरह लगे. तभी दिनेश बोले, ‘‘क्या हुआ भैया आप सब इतने परेशान क्यों हैं ’’

इतना सुनते ही भाभी फूटफूट कर रोने लगीं.

भैया ने गुस्से में कहा, ‘‘कुछ नहीं दिनेश, मैं ने अपने जीवन में एक महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है जिस से बाबूजी सहमत नहीं हैं. मैं विदेश जाना चाहता हूं, वहां बहुत अच्छी नौकरी मिल रही है, रहने को मकान व गाड़ी भी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है भैया,’’ दिनेश ने कहा.

दिनेश कुछ और कह पाते, तभी भैया बोले, ‘‘मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई दिनेश, मैं अब अपना जीवन अपनी पसंद से जीना चाहता हूं, अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ.’’

यह सुनते ही मैं और दिनेश हैरानी से भैया को देखने लगे. भैया ऐसा सोच भी कैसे सकते थे. भैया अपने दफ्तर में काम करने वाली नीला के साथ घर बसाना चाहते थे.

‘‘शोभा मेरी पसंद कभी थी ही नहीं. बाबूजी के डर के कारण मुझे यह विवाह करना पड़ा. परंतु कब तक मैं इन की खुशी के लिए अपनी इच्छाएं दबाता रहूंगा ’’

मैं बाबूजी के पैरों पर गिर कर रोती हुई बोली, ‘‘बाबूजी, आप भैया से कुछ कहते क्यों नहीं  इन से कहिए ऐसा न करें, रोकिए इन्हें बाबूजी, रोक लीजिए.’’

चारों ओर सन्नाटा छा गया, काफी सोच कर बाबूजी ने भैया से कहा, ‘‘दीपक, यह अच्छी बात है कि तुम जीवन में सफलता प्राप्त कर रहे हो पर अपनी सफलता में तुम शोभा को शामिल नहीं कर रहे हो, यह गलत है. मत भूलो कि तुम आज जहां हो वहां पहुंचने में शोभा ने तुम्हारा भरपूर साथ दिया. उस के प्यार और विश्वास का यह इनाम मत दो उसे, वह मर जाएगी,’’ कहते हुए बाबूजी की आंखों में आंसू आ गए.

भैया का जवाब तब भी वही था और वे हम सब को छोड़ कर अपनी अलग

दुनिया बसाने चले गए.

बाबूजी सदा यही कहते थे कि वक्त और दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती, इस बात का आभास भैया के जाने के बाद हुआ. सगेसंबंधी कुछ दिन तक घर आते रहे दुख व्यक्त करने, फिर उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

जैसेजैसे बात फैलती गई वैसेवैसे लोगों का व्यवहार हमारे प्रति बदलता गया. फिर एक दिन बूआजी आईं और जैसे ही भाभी उन के पांव छूने लगीं वैसे ही उन्होंने चिल्ला कर कहा, ‘‘हट बेशर्म, अब आशीर्वाद ले कर क्या करेगी  हमारा बेटा तो तेरी वजह से हमें छोड़ कर चला गया. बूढ़े बाप का सहारा छीन कर चैन नहीं मिला तुझे  अब क्या जान लेगी हमारी  मैं तो कहती हूं भैया इसे इस के मायके भिजवा दो, दीपक वापस चला आएगा.’’

बाबूजी तुरंत बोले, ‘‘बस दीदी, बहुत हुआ. अब मैं एक भी शब्द नहीं सुनूंगा. शोभा इस घर की बहू नहीं, बेटी है. दीपक हमें इस की वजह से नहीं अपने स्वार्थ के लिए छोड़ कर गया है. मैं इसे कहीं नहीं भेजूंगा, यह मेरी बेटी है और मेरे पास ही रहेगी.’’

बूआजी ने फिर कहा, ‘‘कहना बहुत आसान है भैयाजी, पर जवान बहू और छोटे से पोते को कब तक अपने पास रखोगे  आप तो कुछ कमाते भी नहीं, फिर इन्हें कैसे पालोगे  मेरी सलाह मानो इन दोनों को वापस भिजवा दो. क्या पता शोभा में ऐसा क्या दोष है, जो दीपक इसे अपने साथ रखना ही नहीं चाहता.’’

यह सुनते ही बाबूजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने बूआजी को अपने घर से चले जाने को कहा. बूआजी तो चली गईं पर उन की कही बात बाबूजी को चैन से बैठने नहीं दे रही थी. उन्होंने भाभी को अपने पास बैठाया और कहा, ‘‘बस शोभा, अब रो कर अपने आने वाले जीवन को नहीं जी सकतीं. तुझे बहादुर बनना पड़ेगा बेटा. अपने लिए, अपने बच्चे के लिए तुझे इस समाज से लड़ना पड़ेगा.

तेरी कोई गलती नहीं है. दीपक के हिस्से तेरी जैसी सुशील लड़की का प्यार नहीं है.

तू चिंता न कर बेटा, मैं हूं न तेरे साथ और हमेशा रहूंगा.’’

वक्त के साथ भाभी ने अपनेआप को संभाल लिया. उन्होंने कालेज में नौकरी कर ली और शाम को घर पर भी बच्चों को पढ़ाने लगीं. समाज की उंगलियां भाभी पर उठती रहीं, पर उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा. राहुल को स्कूल में डालते वक्त थोड़ी परेशानी हुई पर भाभी ने सब कुछ संभालते हुए सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली.

भाभी ने यह साबित कर दिया कि अगर औरत ठान ले तो वह अकेले पूरे समाज से लड़ सकती है. इस बीच भैया की कोई खबर नहीं आई. उन्होंने कभी अपने परिवार की खोजखबर नहीं ली. सालों बीत गए भाभी अकेली परिवार चलाती रहीं, पर भैया की ओर से कोई मदद नहीं आई.

एक दिन भाभी का कालेज से फोन आया, ‘‘दीदी, घर पर ही हो न शाम को

आप से कुछ बातें करनी हैं.’’

‘‘हांहां भाभी, मैं घर पर ही हूं आप आ जाओ.’’

शाम 6 बजे भाभी मेरे घर पहुंचीं. थोड़ी परेशान लग रही थीं. चाय पीने के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी कुछ परेशान लग रही हो  घर पर सब ठीक है ’’

थोड़ा हिचकते हुए भाभी बोलीं, ‘‘दीदी, आप के भैया का खत आया है.’’

मैं अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. बोली, ‘‘इतने सालों बाद याद आई उन को अपने परिवार की या फिर नई बीवी ने बाहर निकाल दिया उन को ’’

‘‘ऐसा न कहो दीदी, आखिर वे आप के भाई हैं.’’

भाभी की बात सुन कर एहसास हुआ कि आज भी भाभी के दिल के किसी कोने में भैया हैं. मैं ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘भाभी, क्या लिखा है भैया ने ’’

भाभी थोड़ा सोच कर बोलीं, ‘‘दीदी, वे चाहते हैं कि बाबूजी मकान बेच कर उन के साथ चल कर विदेश में रहें.’’

‘‘क्या कहा  बाबूजी मकान बेच दें  भाभी, बाबूजी ऐसा कभी नहीं करेंगे और अगर वे ऐसा करना भी चाहेंगे तो मैं उन्हें कभी ऐसा करने नहीं दूंगी. भाभी, आप जवाब दे दीजिए कि ऐसा कभी नहीं होगा. वह मकान बाबूजी के लिए सब कुछ है, मैं उसे कभी बिकने नहीं दूंगी. वह मकान आप का और राहुल का सहारा है. भैया को एहसास है कि अगर वह मकान नहीं होगा तो आप लोग कहां जाएंगे  आप के बारे में तो नहीं पर राहुल के बारे में तो सोचते. आखिर वह उन का बेटा है.’’

मेरी बातें सुन कर भाभी चुप हो गईं और गंभीरता से कुछ सोचने लगीं. उन्होंने यह बात अभी बाबूजी से छिपा रखी थी. हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, तभी दिनेश आ गए और हमें परेशान देख कर सारी बात पूछी. बात सुन कर दिनेश ने भाभी से कहा, ‘‘भाभी, आप को यह बात बाबूजी को बता देनी चाहिए. दीपक भैया के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे.’’

यह सुनते ही भाभी डर गईं. फिर हम तीनों तुरंत घर के लिए निकल पड़े. घर जा कर

भाभी ने सारी बात विस्तार से बाबूजी को बता दी. बाबूजी कुछ विचार करने लगे. उन के चेहरे से लग रहा था कि भैया ऐसा करेंगे उन्हें इस बात की उम्मीद थी. उन्होंने दिनेश से पूछा, ‘‘दिनेश, तुम बताओ कि हमें क्या करना चाहिए ’’

दिनेश ने कहा, ‘‘दीपक आप के बेटे हैं तो जाहिर सी बात है कि इस मकान पर उन का अधिकार बनता है. पर यदि आप अपने रहते यह मकान भाभी या राहुल के नाम कर देते हैं तो फिर भैया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे.’’

दिनेश की यह बात सुन कर बाबूजी ने तुरंत फैसला ले लिया कि वे अपना मकान भाभी के नाम कर देंगे. मैं ने बाबूजी के इस फैसले को मंजूरी दे दी और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे सही कर रहे हैं.

ठीक 10 दिन बाद भैया घर आ पहुंचे और आ कर अपना हक मांगने लगे. भाभी पर इलजाम लगाने लगे कि उन्होंने बाबूजी के बुढ़ापे का फायदा उठाया है और धोखे से मकान अपने नाम करवा लिया है.

भैया की कड़वी बातें सुन कर बाबूजी को गुस्सा आ गया. वे भैया को थप्पड़ मारते हुए बोले, ‘‘नालायक कोई तो अच्छा काम किया होता. शोभा को छोड़ कर तू ने पहली गलती की और अब इतनी घटिया बात कहते हुए तुझे जरा सी भी लज्जा नहीं आई. उस ने मेरा फायदा नहीं उठाया, बल्कि मुझे सहारा दिया. चाहती तो वह भी मुझे छोड़ कर जा सकती

थी, अपनी अलग दुनिया बसा सकती थी पर उस ने वे जिम्मेदारियां निभाईं जो तेरी थीं.

तुझे अपना बेटा कहते हुए मुझे अफसोस होता है.’’

भाभी तभी बीच में बोलीं, ‘‘दीपक, आप बाबूजी को और दुख मत दीजिए, हम सब की भलाई इसी में है कि आप यहां से चले जाएं.’’

भाभी का आत्मविश्वास देख कर भैया दंग रह गए और चुपचाप लौट गए. भाभी घर की बहू से अब हमारे घर का बेटा बन गई थीं.

Summer Special: सनस्क्रीन से स्किन को दें सुरक्षा कवच

सनस्क्रीन को सनब्लौक क्रीम, सनटैन लोशन, सनबर्न क्रीम, सनक्रीम भी कहते हैं. यह लोशन, स्प्रे या जैल रूप में हो सकता है. यह सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित या परावर्तित कर के सनबर्न से सुरक्षा उपलब्ध कराता है. जो महिलाएं सनस्क्रीन का उपयोग नहीं करती हैं उन्हें त्वचा का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है. नियमित रूप से सनस्क्रीन लगाने से झुर्रियां कम और देर से पड़ती हैं. जिन की त्वचा सूर्य के प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है उन्हें रोज सनस्क्रीन लगाना चाहिए.

क्या है एसपीएफ

एसपीएफ अल्ट्रावायलेट किरणों से सनस्क्रीन द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सुरक्षा को मापता है. लेकिन एसपीएफ यह नहीं मापता है कि सनस्क्रीन कितने बेहतर तरीके से अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा करेगा. त्वचारोग विशेषज्ञ एसपीएफ 15 या एसपीएफ 30 लगाने की सलाह देते हैं. ध्यान रखें, अधिक एसपीएफ अधिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराता है.

सनस्क्रीन न लगाने के नुकसान

सनस्क्रीन हर मौसम में लगाना चाहिए. समर में इसे लगाना बहुत ही जरूरी है. इस सीजन को त्वचा के रोगों का सीजन कहा जाता है. इस मौसम में समर रैशेज, फोटो डर्माइटिस, पसीना अधिक आना और फंगस व बैक्टीरिया के संक्रमण से अधिकतर महिलाएं परेशान रहती हैं. समर में थोड़ी देर भी धूप में रहने से सनटैन और सनबर्न की समस्या हो जाती है. टैनिंग इस मौसम में त्वचा की सब से सामान्य समस्या है. अत: घर से बाहर निकलने से पहले अच्छी गुणवत्ता वाला सनस्क्रीन जरूर इस्तेमाल करें.

जो महिलाएं सनस्क्रीन का उपयोग नहीं करती हैं उन की त्वचा समय से पहले बुढ़ा जाती है, उस पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. यूवी किरणों का अत्यधिक ऐक्सपोजर त्वचा के कैंसर का कारण बन सकता है.

कैसे चुनें सनसक्रीन

सही सनस्क्रीन का चयन करना बहुत जरूरी है. अधिकतर महिलाओं के लिए एसपीएफ 15 वाला सनस्क्रीन बेहतर होता है. लेकिन जिन की त्वचा का रंग बहुत हलका हो, त्वचा के कैंसर का पारिवारिक इतिहास हो या फिर लुपुस जैसी बीमारी के कारण त्वचा सूर्य के प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो, उन्हें एसपीएफ 30 या उस से अधिक एसपीएफ वाला सनस्क्रीन लगाना चाहिए. अगर आप सोचती हैं कि एसपीएफ 30 वाला सनस्क्रीन एसपीएफ 15 वाले सनस्क्रीन से दोगुना अच्छा है तो यह सही नहीं है. एसपीएफ 15-93% यूवीबी को फिल्टर करता है तो एसपीफ 30 इस से थोड़ा सा अधिक यानी 97% यूवीबी को फिल्टर करता है.

त्वचारोग विशेषज्ञों का मानना है कि कम से कम एसपीएफ 30 वाला सनस्क्रीन लगाएं. कई महिलाएं एसपीएफ 50 वाला सनस्क्रीन भी लगाती हैं, लेकिन बाजार में कोई ऐसा सनस्क्रीन उपलब्ध नहीं है, जो हानिकारक यूवी किरणों से 100% सुरक्षा उपलब्ध कराए. हमेशा अच्छे ब्रैंड के सनस्क्रीन का ही इस्तेमाल करें. जिन्हें पसीना अधिक आता हो, उन्हें वाटरपू्रफ या स्वैटपू्रफ सनस्क्रीन लगाना चाहिए.

सनस्क्रीन कैसे और कितना लगाएं

सही सनस्क्रीन से भी अधिक लाभ नहीं मिलेगा, अगर आप इस का रोज और सही तरीके से इस्तेमाल नहीं करेंगी. पेश हैं, कुछ सुझाव:

– सनस्क्रीन धूप में निकलने से 15 से 30 मिनट पहले लगाएं.

– अगर आप मेकअप करना चाहती हैं तो इसे मेकअप करने से पहले लगाएं.

– सनस्क्रीन बहुत कम मात्रा में न लगाएं.

– चेहरे पर ही नहीं शरीर के बाकी खुले भागों पर भी लगाएं.

– हर 2 घंटे बाद सनस्क्रीन दोबारा लगाएं.

– ऐक्सपाइरी डेट वाला सनस्क्रीन न लगाएं, क्योंकि वह प्रभावी नहीं रहता है.

सनस्क्रीन: मिथ और तथ्य

मिथ: सनस्क्रीन लगाने से सनटैन नहीं

हो सकता.

तथ्य: अगर आप एसपीएफ 30 वाला सनस्क्रीन लगाती हैं तो आप सनबर्न से बच सकती हैं. अच्छा सनस्क्रीन आप को यूवीए और यूवीबी किरणों से भी बचा लेगा. लेकिन अगर आप लंबे समय तक धूप में रहेंगी तो आप को सनटैन की समस्या हो सकती है.

मिथ: पानी में सनबर्न नहीं होता है.

तथ्य: पानी झुलसा देने वाली गरमी में शरीर को ठंडा कर देता है, क्योंकि पानी में डूबा शरीर सूर्य की किरणों से सुरक्षित रहता है. लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है. पानी वास्तव में यूवी किरणों को परावर्तित करता है. इस प्रकार से हमें इन के प्रति अधिक ऐक्सपोज कर देता है.

मिथ: कार या बस की खिड़की से आप को सूर्य की यूवी किरणें नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं.

तथ्य: यह बिलकुल गलत धारणा है, क्योंकि हानिकारक यूवी किरणें ग्लास को पैनिट्रेट कर लेती हैं. अगर आप को विंडोसीट के पास बैठना पसंद है या अपने काम के सिलसिले में लंबी ड्राइव करनी पड़ती है, तो आप को उस से अधिक मात्रा में सनस्क्रीन लगाना चाहिए जितना आप सामान्यतौर पर लगाती हैं.

(डा. मनीष पौल, स्किन लैजर सैंटर)

विकराल शून्य- निशा की कौनसी बीमारी से बेखबर था सोम?

‘‘कैसी विडंबना है, हम पराए लोगों को तो धन्यवाद कहते हैं लेकिन उन को नहीं, जो करीब होते हैं, मांबाप, भाईबहन, पत्नी या पति,’’ अजय ने कहा.

‘‘उस की जरूरत भी क्या है? अपनों में इन औपचारिक शब्दों का क्या मतलब? अपनों में धन्यवाद की तलवार अपनत्व को काटती है, पराया बना देती है,’’ मैं ने अजय को जवाब दिया.

‘‘यहीं तो हम भूल कर जाते हैं, सोम. अपनों के बीच भी एक बारीक सी रेखा होती है, जिस के पार नहीं जाना चाहिए, न किसी को आने देना चाहिए. माना अपना इनसान जो भी हमारे लिए करता है वह हमारे अधिकार या उस के कर्तव्य की श्रेणी में आता है, फिर भी उस ने किया तो है न. जो मांबाप ने कर दिया उसी को अगर वे न करते या न कर पाते तो सोचो हमारा क्या होता?’’ अजय बोला.

अजय की गहरी बातें वास्तव में अपने में बहुत कुछ समाए रखती हैं. जब भी उस के पास बैठता हूं, बहुत कुछ नया ही सीख कर जाता हूं.

बड़े गौर से मैं अजय की बातें सुनता था जो अजय कहता था, गलत या फिजूल उस में तो कुछ भी नहीं होता था. सत्य है हमारा तो रोमरोम किसी न किसी का आभारी है. अकेला इनसान संपूर्ण कहां है? क्या पहचान है एक अकेले इनसान की? जन्म से ले कर बुढ़ापे तक मनुष्य किसी न किसी पर आश्रित ही तो रहता है न.

‘‘मेरी पत्नी सुबह से शाम तक बहुत कुछ करती है मेरे लिए, सुबह की चाय से ले कर रात के खाने तक, मेरे कपड़े, मेरा कमरा, मेरी व्यक्तिगत चीजों का खयाल, यहां तक कि मेरा मूड जरा सा भी खराब हो तो बारबार मनाना या किसी तरह मुझे हंसाना,’’ मैं अजय से बोला.

‘‘वही सब अगर वह न करे तो जीवन कैसा हो जाए, समझ सकते हो न. मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन की बीवियां तिनका भी उठा कर इधरउधर नहीं करतीं. पति ही घर भी संभालता है और दफ्तर भी. पत्नी को धन्यवाद कहने में कैसी शर्म, यदि उस से कुछ मिला है तुम्हें? इस से आपस का स्नेह, आपस की ऊष्मा बढ़ती है, घटती नहीं,’’ अजय ने कहा.

सच ही कहा अजय ने. इनसान इतना तो समझदार है ही कि बेमन से किया कोई भी प्रयास झट से पहचान जाता है. हम भी तो पहचान जाते हैं न, जब कोई भावहीन शब्द हम पर बरसाता है.

उस दिन देर तक हम साथसाथ बैठे रहे. अपनी जीवनशैली और उस के तामझाम को निभाने के लिए ही मैं इस पार्टी में आया था, जहां सहसा अजय से मुलाकात हो गई थी. हमारी कंपनी के ही एक डाइरेक्टर ने पार्टी दी थी, जिस में मैं हाजिर हुए बिना नहीं रह सकता था. इसे व्यावसायिक मजबूरी कह लो या तहजीब का तकाजा, निभाना जरूरी था.

12 घंटे की नौकरी और छुट्टी पर भी कोई न कोई आयोजन, कैसे घर के लिए जरा सा समय निकालूं? निशा पहले तो शिकायत करती रही लेकिन अब उस ने कुछ भी कहनासुनना छोड़ दिया है. समूल सुखसुविधाओं के बावजूद वह खुश नजर नहीं आती. सुबह की चाय और रात की रोटी बस यही उस की जिम्मेदारी है. मेरा नाश्ता और दोपहर का खाना कंपनी के मैस में ही होता है. आखिर क्या कमी है हमारे घर में जो वह खुश नजर नहीं आती? दिन भर वह अकेली होती है, न कोई रोकटोक, न सासससुर का मुंह देखना, पूरी आजादी है निशा को. फिर भी हमारे बीच कुछ है, जो कम होता जा रहा है. कुछ ऐसा है जो पहले था अब नहीं है.

सुबह की चाय और अखबार वह मेरे पास छोड़ जाती है. जब नहा कर आता हूं, मेरे कपड़े पलंग पर मिलते हैं. उस के बाद यंत्रवत सा मेरा तैयार होना और चले जाना. जातेजाते एक मशीनी सा हाथ हिला कर बायबाय कर देना.

मैं पिछले कुछ समय से महसूस कर रहा हूं, अब निशा चुप रहती है. हां, कभी माथे पर शिकन हो तो पूछ लेती है, ‘‘क्या हुआ? क्या आफिस में कोई समस्या है?’’

‘‘नहीं,’’ जरा सा उत्तर होता है मेरा.

आज शनिवार की छुट्टी थी लेकिन पार्टी थी, सो यहां आना पड़ा. निशा साथ नहीं आती, उसे पसंद नहीं. एक छत के नीचे रहते हैं हम, फिर भी लगता है कोसों की दूरी है.

मैं पार्टी से लौट कर घर आया, चाबी लगा कर घर खोला. चुप्पी थी घर में. शायद निशा कहीं गई होगी. पानी अपने हाथ से पीना खला. चाय की इच्छा नहीं थी. बीच वाले कमरे में टीवी देखने बैठ गया. नजर बारबार मुख्य

द्वार की ओर उठने लगी. कहां रह गई यह लड़की? चिंता होने लगी मुझे. उठ कर बैडरूम में आया और निशा की अलमारी खोली. ऊपर वाले खाने में कुछ उपहार पड़े थे. जिज्ञासावश उठा लिए. समयसमय पर मैं ने ही उसे दिए थे. मेरा ही नाम लिखा था उन पर. स्तब्ध रह गया मैं. निशा ने उन्हें खोला तक नहीं था. महंगी साडि़यां, कुछ गहने. हजारों का सामान अनछुआ पड़ा था. क्षण भर को तो अपना अपमान लगा यह मुझे, लेकिन दूसरे ही क्षण लगा मेरी बेरुखी का इस से बड़ा प्रमाण और क्या होगा?

उपहार देने के बाद मैं ने उन्हें कब याद रखा. साड़ी सिर्फ दुकान में देखी थी, उसे निशा के तन पर देखना याद ही नहीं रहा. कान के बुंदे और गले का जड़ाऊ हार मैं ने निशा के तन पर सजा देखने की इच्छा कब जाहिर की? वक्त ही नहीं दे पाता हूं पत्नी को, जिस की भरपाई गहनों और कपड़ों से करता रहा था. जरा भी प्यार समाया होता इस सामान में तो मेरे मन में भी सजीसंवरी निशा देखने की इच्छा होती. मेरा प्यार और स्नेह ऊष्मारहित है. तभी तो न मुझे याद रहा और न ही निशा ने इन्हें खोल कर देखने की इच्छा महसूस की होगी. सब से पुराना तोहफा 4 महीनों पुराना है, जो निशा के जन्मदिन का उपहार था. मतलब यह कि पिछले 4 महीनों से यह सामान लावारिस की तरह उस की अलमारी में पड़ा है, जिसे खोल कर देखने तक की जरूरत निशा ने नहीं समझी.

यह तो मुझे समझ में आ गया कि निशा को गहनों और कपड़ों की भूख नहीं है और न ही वह मुझ से कोई उम्मीद करती है.

2 साल का वैवाहिक जीवन और साथ बिताया समय इतना कम, इतना गिनाचुना कि कुछ भी संजो नहीं पा रहा हूं, जिसे याद कर मैं यह विश्वास कर पाऊं कि हमारा वैवाहिक जीवन सुखमय है.

निशा की पूरी अलमारी देखी मैं ने. लाकर में वे सभी रुपए भी वैसे के वैसे ही पड़े थे. उस ने उन्हें भी हाथ नहीं लगाया था.

शाम के 6 बज गए. निशा लौटी नहीं थी. 3 घंटे से मैं घर पर बैठा उस का इंतजार कर रहा हूं. कहां ढूंढू उसे? इस अजनबी शहर में उस की जानपहचान भी तो कहीं नहीं है. कुछ समय पहले ही तो इस शहर में ट्रांसफर हुआ है.

करीब 7 बजे बाहर का दरवाजा खुला.

बैडरूम के दरवाजे की ओट से ही मैं ने देखा, निशा ही थी. साथ था कोई पुरुष, जो सहारा दे रहा था निशा को.

‘‘बस, अब आप आराम कीजिए,’’

सोफे पर बैठा कर उस ने कुछ दवाइयां मेज पर रख दी थीं. वह दरवाजा बंद कर के चला गया और मैं जड़वत सा वहीं खड़ा रह गया. तो क्या निशा बीमार है? इतनी बीमार कि कोई पड़ोसी उस की सहायता कर रहा है और मुझे पता तक नहीं. शर्म आने लगी मुझे.

आंखें बंद कर चुपचाप सोफे से टेक लगाए बैठी थी निशा. उस की सांस बहुत तेज चल रही थी. मानो कहीं से भाग कर आई हो. मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी पास जाने की. शब्द कहां हैं मेरे पास जिन से बात शुरू करूंगा. पैसों का ढेर लगाता रहा निशा के सामने, लेकिन यह नहीं समझ पाया, रुपयापैसा किसी रिश्ते की जगह नहीं ले सकता.

‘‘क्या हुआ निशा?’’ पास आ कर मैं ने उस के माथे पर हाथ रखा. तेज बुखार था, जिस वजह से उस की आंखों से पानी भी बह रहा था. जबान खिंच गई मेरी. आत्मग्लानि का बोझ इतना था कि लग रहा था कि आजीवन आंखें न उठा पाऊंगा.

किसी गहरी खाई में जैसे मेरी चेतना धंसने लगी. अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह के साथ मेरा घर, मेरी गृहस्थी कहीं उजड़ने तो नहीं लगी? हंसतीखेलती यह लड़की ऐसी कब थी, जब मेरे साथ नहीं जुड़ी थी. मेरी ही इच्छा थी कि मुझे नौकरी वाली लड़की नहीं चाहिए. वैसी हो जो घर संभाले और मुझे संभाले. इस ने तो मुझे संभाला लेकिन क्या मैं इसे संभाल पाया?

‘‘आप कब आए?’’ कमजोर स्वर ने मुझे चौंकाया. अधखुली आंखों से मुझे देख रही थी निशा.

निशा का हाथ कस कर अपने हाथ में पकड़ लिया मैं ने. क्या उत्तर दूं, मैं कब आया.

‘‘चाय पिएंगे?’’ उठने का प्रयास किया निशा ने.

‘‘कब से बीमार हो?’’ मैं ने उठने से उसे रोक लिया.

‘‘कुछ दिन हो गए.’’

‘‘तुम्हारी सांस क्यों फूल रही है?’’

‘‘ऐसी हालत में कुछ औरतों को सांस की तकलीफ हो जाती है.’’

‘‘कैसी हालत?’’ मेरा प्रश्न विचित्र सा भाव ले आया निशा के चेहरे पर. वह मुसकराने लगी. ऐसी मुसकराहट, जो मुझे आरपार तक चीरती गई.

फिर रो पड़ी निशा. रोना और मुसकराना साथसाथ ऐसा दयनीय चित्र प्रस्तुत करने लगा मानो निशा पूर्णत: हार गई हो. जीवन में कुछ भी शेष नहीं बचा. डर लगने लगा मुझे. हांफतेहांफते निशा का रोना और हंसना ऐसा चित्र उभार रहा था मानो उसे अब मुझ से

कोई भी आशा नहीं रही. अपना हाथ खींच लिया निशा ने.

तभी द्वार घंटी बजी और विषय वहीं थम गया. मैं ही दरवाजा खोलने गया. सामने वही पुरुष खड़ा था, मेरी तरफ कुछ कागज बढ़ाता हुआ.

‘‘अच्छा हुआ, आप आ गए. आप की पत्नी की रिपोर्ट्स मेरी गाड़ी में ही छूट गई थीं. दवा समय से देते रहिए. इन की सांस बहुत फूल रही थी इसलिए मैं ही छोड़ने चला आया था.’’

अवाक था मैं. निशा को 4 महीने का गर्भ था और मुझे पता तक नहीं. कुछ घर छोड़ कर एक क्लीनिक था, जिस के डाक्टर साहब मेरे सामने खड़े थे. उन्होंने 1-2 कुशल स्त्री विशेषज्ञ डाक्टरों का पता मुझे दिया और जल्दी ही जरूरी टैस्ट करवा लेने को कह कर चले गए. जमीन निकल गई मेरे पैरों तले से. कैसा नाता है मेरा निशा से? वह कुछ सुनाना चाहती है तो मेरे पास सुनने का समय नहीं. तो फिर शादी क्यों की मैं ने, अगर पत्नी का सुखदुख भी नहीं पूछ सकता मैं.

चुपचाप आ कर बैठ गया मैं निशा के पास. मैं पिता बनने जा रहा हूं, यह सत्य अभीअभी पता चला है मुझे और मैं खुश भी नहीं हो पा रहा. कैसे आंखें मिलाऊं मैं निशा से? पिछले कुछ महीनों से कंपनी में इतना ज्यादा काम है कि सांस भी लेने की फुरसत नहीं है मुझे. निशा दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही थी और मैं ने एक बार भी पूछा नहीं, उसे क्या तकलीफ है.

निशा के विरोध के बावजूद मैं उसे उठा कर बिस्तर पर ले आया. देर तक ठंडे पानी की पट्टियां रखता रहा. करीब आधी रात को उस का बुखार उतरा. दूध और डबलरोटी ही खा कर गुजारा करना पड़ा उस रात, जबकि यह सत्य है, 2 साल के साथ में निशा ने कभी मुझे अच्छा खाना खिलाए बिना नहीं सुलाया.

सुबह मैं उठा तो निशा रसोई में व्यस्त थी. मैं लपक कर उस के पास गया. कुछ कह पाता, तब तक तटस्थ सी निशा ने सामने इशारा किया. चाय ट्रे में सजी थी.

‘‘यह क्या कर रही हो तुम? तुम तो बीमार हो,’’ मैं ने कहा.

‘‘बीमार तो मैं पिछले कई दिनों से हूं. आज नई बात क्या है?’’

‘‘देखो निशा, तुम ने एक बार भी मुझे नहीं बताया,’’ मैं ने कहा.

‘‘बताया था मैं ने लेकिन आप ने सुना ही नहीं. सोम, आप ने कहा था, मुझे इस घर में रोटीकपड़ा मिलता है न, क्या कमी है, जो बहाने बना कर आप को घर पर रोकना चाहती हूं. आप इतनी बड़ी कंपनी में काम करते हैं. क्या आप को और कोई काम नहीं है, जो हर पल पत्नी के बिस्तर में घुसे रहें? क्या मुझे आप की जरूरत सिर्फ बिस्तर में होती है? क्या मेरी वासना इतनी तीव्र है कि मैं चाहती हूं, आप दिनरात मेरे साथ वही सब करते रहें?’’ निशा बोलती चली गई.

काटो तो खून नहीं रहा मेरे शरीर में.

‘‘आप मुझे रोटीकपड़ा देते हैं, यह सच

है. लेकिन बदले में इतना बड़ा अपमान भी करें, क्या जरूरी है? सोम, आप भूल गए, पत्नी का भी मानसम्मान होता है. रोटीकपड़ा तो मेरे पिता के घर पर भी मिलता था मुझे. 2 रोटी तो कमा भी सकती हूं. क्या शादी का मतलब यह होता है कि पति को पत्नी का अपमान करने का अधिकार मिल जाता है?’’ निशा बिफर पड़ी.

याद आया, ऐसा ही हुआ था एक दिन. मैं ने ऐसा ही कहा था. इतनी ओछी बात पता नहीं कैसे मेरे मुंह से निकल गई थी. सच है, उस के बाद निशा ने मुझ से कुछ भी कहना छोड़ दिया था. जिस खबर पर मुझे खुश होना चाहिए था उसे बिना सुने ही मैं ने इतना सब कह दिया था, जो एक पत्नी की गरिमा पर प्रहार का ही काम करता.

निशा को बांहों में ले कर मैं रो पड़ा. कितनी कमजोर हो गई है निशा, मैं देख ही नहीं पाया. कैसे माफी मांगूं अपने कहे की. लाखों रुपए हर महीने कमाने वाला मैं इतना कंगाल हूं कि न अपने बच्चे के आने की खबर का स्वागत कर पाया और न ही शब्द ही जुटा पा रहा हूं कि पत्नी से माफी मांग सकूं.

पत्नी के मन में पति के लिए एक सम्मानजनक स्थान होता है, जिसे शायद मैं खो चुका हूं. लाख हवा में उड़ता रहूं, आना तो जमीन पर ही था मुझे, जहां निशा ने सदा शीतल छाया सा सुख दिया है मुझे.

मेरे हाथ हटा दिए निशा ने. उस के होंठों पर एक कड़वी सी मुसकराहट थी.

‘‘ऐसा क्या हुआ है मुझे, जो आप को रोना आ गया. आप रोटीकपड़ा देते हैं मुझे, बदले में संतान पाना तो आप का अधिकार है न. डाक्टर ने कहा है, कुछ औरतों को गर्भावस्था में सांस की तकलीफ हो जाती है. ठीक हो जाऊंगी मैं. आप की और घर की देखभाल में कोई कमी नहीं आएगी,’’ निशा ने कहा.

‘‘निशा, मुझ से गलती हो गई. मुझे माफ कर दो. पता नहीं क्यों मेरे मुंह से

वह सब निकल गया,’’ मैं निशा के आगे गिड़गिड़ाया.

‘‘सच ही आया होगा न जबान पर, इस में माफी मांगने की क्या जरूरत है? मैं जैसी हूं वैसी ही बताया आप ने.’’

‘‘तुम वैसी नहीं हो, निशा. तुम तो संसार की सब से अच्छी पत्नी हो. तुम्हारे बिना मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा. अगर मैं अपनी कंपनी का सब से अच्छा अधिकारी हूं तो उस के पीछे तुम्हारी ही मेहनत और देखभाल है. यह सच है, मैं तुम्हें समय नहीं दे पाता लेकिन यह सच नहीं कि मैं तुम से प्यार नहीं करता. तुम्हें गहनों, कपड़ों की चाह होती तो मेरे दिए तोहफे यों ही नहीं पड़े होते अलमारी में. तुम मुझ से सिर्फ जरा सा समय, जरा सा प्यार चाहती हो, जो मैं नहीं दे पाता. मैं क्या करूं, निशा, शायद आज संसार का सब से बड़ा कंगाल भी मैं ही हूं, जिस की पत्नी खाली हाथ है, कुछ नहीं है जिस के पास. क्षमा कर दो मुझे. मैं तुम्हारी देखभाल नहीं कर पाया.’’ मैं रोने लगा था.

मुझे रोते देख कर निशा भी रोने लगी थी. रोने से उस की सांस फूलने लगी थी. निशा को कस कर छाती से लगा लिया मैं ने. इस पल निशा ने विरोध नहीं किया. मैं जानता हूं, मेरी निशा मुझ से ज्यादा नाराज नहीं रह पाएगी. मुझे अपना घर बचाने के लिए कुछ करना होगा. घर और बाहर में एक उचित तालमेल बनाना होगा, हर रिश्ते को उचित सम्मान देना होगा, वरना वह दिन दूर नहीं जब मेरे बैंक खातों में तो हर पल शून्य का इजाफा होगा ही, वहीं शून्य अपने विकराल रूप में मेरे जीवन में भी स्थापित हो जाएगा.

दुनिया गोल है

‘‘हैलो…मां, कैसी हो?’’

‘‘अरे कुछ न पूछ बेटी, 4 दिनों से कांताबाई नहीं आ रही है. काम करकर के कमर टेढ़ी हो गई है. घुटनों का दर्द भी उभर आया है.’’

‘‘जितना जरूरी है उतना ही किया करो, मां.’’

‘‘उतना ही करती हूं, बेटी. खैर, छोड़, तू तो ठीक है?’’

‘‘हां मां. परसों विभा मौसी की पोती की मंगनी थी, शगुन में खूब अच्छा सोने का सैट आया है. मौसी ने भी बहुत अच्छा लेनादेना किया है. 2 दिनों से बारिश का मौसम हो रहा है. सोच रही हूं आज दालबाटी बना लूं.’’

‘‘भैया से बात हुई? उन का आने का कोई प्रोग्राम है?’’

‘‘हां, पिछले हफ्ते फोन आया था. अभी तो नहीं आ रहे.’’

‘‘रीनू से बात होती होगी, कैसी है वह? मैं तो सोचती ही रह जाती हूं कि उस से बात करूंगी पर फिर तुझ से ही समाचार मिल जाते हैं.’’

‘‘वह ठीक है, मां? अच्छा अब फोन रखती हूं, कालेज के लिए तैयार होना है.’’ मां से हमेशा मेरी इसी तरह की बातें होती हैं. ज्यादातर वक्त तो वे ही बोलती हैं क्योंकि मेरे पास तो बताने के लिए कुछ होता नहीं है. पहले फोन बंद करते वक्त अकसर मेरे दिमाग में यही बात उठती थी कि मां की दुनिया कितनी छोटी है. खानापीना, लेनदेन, बाई, रिश्तेदार और पड़ोसी बस, इन्हीं के इर्दगिर्द उन की दुनिया घूमती रहती है. देश में कितना कुछ हो रहा है. कितने स्ंिटग औपरेशन हो रहे है, चुनावों में कैसीकैसी पैंतरेबाजी चल रही हैं, घरेलू हिंसा, यौनशोषण कितना बढ़ गया है, इन सब से उन्हें कोई सरोकार नहीं है. जबकि यहां पत्रपत्रिकाएं, जर्नल्स सबकुछ पढ़ कर हर वक्त खुद को अपडेट रखना पड़ता है. एक तो मेरा विषय राजनीति विज्ञान है जिस में विद्यार्थियों को हर समय नवीनतम तथ्य उपलब्ध करवाने होते हैं, दूसरे, बुद्धिजीवियों की मीटिंग में कब किस विषय पर बहस छिड़ जाए, इस वजह से भी खुद को हमेशा अपडेट रखना पड़ता है और जब इंसान बड़े मुद्दों में उलझ जाता है तो बाकी सबकुछ उसे तुच्छ, नगण्य लगने लगता है.

मैं मां की बातों को भुला कर फिर से अपनी दुनिया में खो जाती. रीनू से बात किए वाकई काफी वक्त बीत गया है. वह भी तो अपने काम में बहुत व्यस्त रहती है. दूसरे, अमेरिका और इंडिया में टाइमिंग का इतना अंतर है कि जब मैं फ्री होती हूं, बात करने का मूड होता है तब वह सो रही होती है या किसी जरूरी काम में फंसी होती है. पर आज रात मैं उस से जरूर बात करूंगी, उस की छुट्टी भी है. यही सोच कर मैं ने उस दिन उसे रात में स्काइप पर कौल किया था. काफी दिनों बाद बेटी की सूरत देखते ही मैं द्रवित हो उठी थी, ‘कितनी दुबली हो गई है तू? चेहरा भीकैसा पीलापीला नजर आ रहा है? तबीयत तो ठीक है तेरी?’

‘हां मौम, मैं बिलकुल ठीक हूं, एक प्रोजैक्ट में बिजी हूं. रही दुबला होने की बात, तो हर इंडियन मां को अपनी संतान हमेशा कमजोर ही नजर आती है. नानी भी तो जब भी आप से मिलती हैं, अरे बिट्टी, तू कितनी कमजोर हो गई है, कह कर लिपटा लेती हैं आप को. फिर नसीहतें आरंभ, दूध पिया कर, बादाम खाया कर…’

‘अच्छा छोड़ वह सब. यह वैक्यूमक्लीनर की आवाज आ रही है? मेड काम कर रही है?’ मेरी नजरें अब रीनू से हट कर उस के इर्दगिर्द दौड़ने लगी थीं.

‘यहां कहां मेड मौम? सबकुछ खुद ही करना पड़ता है. रोजर, मेरा रूममेट सफाई कर रहा है.’

‘क्या? तू एक लड़के के साथ रह रही है? कब से?’ मेरी चीख निकल गई थी. ‘कम औन मौम. आप इतना ओवररिऐक्ट क्यों कर रही हैं. यहां यह सब आम है. यही कोई 6-7 महीनों से हम साथ हैं.’ ‘साथ मतलब क्या? रीनू, हमारे लिए यह सब आम नहीं है. हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार इन सब की अनुमति नहीं देते. तुम्हारे नानानानी और दादादादी को ये सब पता चला तो तूफान उठ खड़ा होगा.’

‘फिलहाल तो आप बिना बात तूफान खड़ा कर रही हैं मौम, यह तो शुक्र है वैक्यूमक्लीनर की आवाज में रोजर कुछ सुन नहीं पा रहा है वरना उसे कितना बुरा लगता.’ ‘तुम्हें रोजर को बुरा लगने की फिक्र है और मुझ पर जो बीत रही है उस की जरा भी परवा नहीं?’

‘मौम प्लीज, आप बिना वजह बात का बतंगड़ बना रही हैं. मैं ने आप को बताया न, यहां ये सब आम बात है. दरअसल, आप की दुनिया बहुत छोटी है. इंसान चांद पर घर बसाने की सोच रहा है और आप की सोच अभी तक हमारा परिवार, हमारे संस्कार इन्हीं पर टिकी हुई है. एक बार अपनी दुनिया से बाहर निकल कर जरा बाहर की दुनिया देखिए, खुद ब खुद समझ जाएंगी. रोजर इधर ही आ रहा है मौम. बेहतर होगा हम इस टौपिक को यहीं समाप्त कर दें.’ ‘सिर्फ टौपिक ही क्यों, सबकुछ समाप्त कर दो.’ गुस्से में मैं ने संपर्कविच्छेद कर दिया था. मेरे गुस्से से न केवल स्टूडैंट्स बल्कि घर वाले भी खौफ खाते हैं. यह तापमापी के पारे की तरह पल में चढ़ता है तो समझानेबुझाने या क्षमायाचना करने पर पल में उतर भी जाता है. देर तक उस के शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे थे. मैं ने सिर झटक दिया था, मानो ऐसा कर के मैं सबकुछ एक झटके में दिमाग से बाहर फेंक दूंगी और सोने का प्रयास करने लगी थी. बहुत दिनों तक मेरा न रीनू से बात करने का मन हुआ था, न मां से. यह सोच कर दुख भी होता कि मैं रीनू का गुस्सा मां पर क्यों निकाल रही हूं. फिर मैं ने मां से बात की थी पर रीनू की बात  गोल कर गई थी. मांबाबा को आजकल वैसे भी कम सुनाई देने लगा है, इसलिए भी मैं उन्हें बताने से हिचक रही थी. पता नहीं, आधीअधूरी बात सुन कर वे जाने क्या मतलब निकाल लें जबकि मामला इतना गंभीर हो ही न? सासससुर देशाटन पर गए हुए थे.

चलो, एक तरह से अच्छा ही है. वे लौटेंगे, तब तक तो शायद वेणु भी लौट आएं. फिर वे अपनेआप संभाल लेंगे. वेणु की कमी मुझे इस वक्त बेहतर खटक रही थी. काश, वे इस वक्त मुझे संभालते, समझाते मेरे पास होते. वेणु और मेरी लवमैरिज थी. साथसाथ पढ़ते प्रेम के अंकुर फूटे और जल्द ही प्यार का पौधा पल्लवित हो उठा था. दक्षिण भारतीय वेणु आगे जा कर आर्मी में चले गए और मैं एक कालेज में शिक्षिका हो गई. हम दोनों जानते थे कि हमारे कट्टरपंथी परिवार इस बेमेल विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगे, इसलिए हम ने कोर्टमैरिज कर ली थी. जब वेणु मुझे दुलहन के जोड़े में अपने घर ले गए तो थोड़ी नाराजगी दिखाने के बाद वे लोग जल्दी ही मान गए थे. और फिर दक्षिण भारतीय तरीके से हमारा विवाह संपन्न हुआ था. पर मेरे मांबाबा को यह बात बेहद नागवार गुजरी थी. वे शादी में शरीक नहीं हुए थे. मैं उन से गुस्सा थी लेकिन वेणु ने हिम्मत नहीं हारी, मनाने के प्रयास जारी रखे. आखिर रीनू के जन्म के बाद मांबाबा पिघले और उन्होंने हमें दिल से अपना लिया. उस वक्त मैं बच्चों की तरह किलक उठी थी. मां से लिपट कर ढेरों फरमाइशें कर डाली थीं. तब से वेणु और रीनू उन के लिए मुझ से भी बढ़ कर हो गए थे. ऐसी शिकायत कर के मैं अकसर उन से बच्चों की भांति रूठ जाया करती थी. और सभी इसे मेरी जलन कह कर खूब आनंद उठाते थे. वेणु को नौर्थईस्ट में पोस्ंिटग मिली तो मैं रीनू को ले कर उन के साथ रहने आ गई थी. पर छोटी सी बच्ची के साथ उस असुरक्षित इलाके में रहना हर वक्त खतरे से खेलते रहना था. रीनू का खयाल कर के मैं हमेशा के लिए अपने सासससुर के पास रहने आ गई थी. मैं ने वापस कालेज में पढ़ाना आरंभ कर दिया था.

वेणु छुट्टियों में आते रहते थे. जिंदगी एक बंधेबंधाए ढर्रे पर चलने लगी थी. रीनू पढ़ने के लिए विदेश चली गई और फिर वहीं अच्छी सी नौकरी भी करने लग गई. दिल तो बहुत रोया पर बदलते जमाने और उस की खुशी का खयाल कर मन को समझा लिया. पर अब, अब तो पानी सिर से ऊपर बढ़ गया है. इधर, कुछ समय से वेणु की पोस्ंिटग भी काफी सीनियर पोजीशन पर हिमालय की तराई वाले इलाके में हो गई थी. वहां पड़ोसी देश से छिटपुट लड़ाई चल रही थी और आएदिन छोटीबड़ी मुठभेड़ की खबरें आती रहती थीं. मुझे हर वक्त सिर पर तलवार  लटकती प्रतीत होती थी, जाने कब कैसा अप्रिय समाचार आ जाए. वेणु की बहुत दिनों से कोई खबर न थी. पर यह अच्छी बात थी क्योंकि सेना में ऐसा माना जाता है कि जब तक किसी के बारे में कोई खबर न मिले, समझ लेना चाहिए सब सकु शल है. मैं भी यही सोच कर वेणु के सकुशल लौट आने का इंतजार कर रही थी. वेणु की यादों के साथ रीनू के दिए घाव ताजा हो गए थे. जीवनसाथी तो मैं ने भी अपनी मनमरजी से चुना था. पर उस के साथ रही तो शादी के बाद ही थी. लेकिन यहां तो बिलकुल ही उलट मामला है. फिर मैं ने और वेणु ने शादी के बाद भी सब को मनाने के प्रयास जारी रखे थे. सब की घुड़कियां, धमकियां झेलीं, ताने सुने पर आखिर सब को मना कर रहे. और इस जैनरेशन को देखो, पता है मां गुस्सा है, नाराज है पर मानमनौवल का एक फोन तक नहीं. काश, वेणु यहां होते. खैर, बहुत इंतजार के बाद एक दिन रीनू का फोन आया था. पर बस, औपचारिक वार्त्तालाप-आप कैसी हैं? दादादादी कब आएंगे? पापा ठीक होंगे. और फोन रख दिया था. ऐंठ में मैं ने भी कुछ नहीं कहासुना.

हमारे फोनकौल्स न केवल सीमित बल्कि बेहद औपचारिक भी हो गए थे. मां जरूर थोड़े दिनों में फोन कर मेरे हाल जानती रहतीं. वेणु और सासससुर की अनुपस्थिति ने उन्हें मेरे प्रति ज्यादा चिंतित बना दिया था. वे मुझे धीरज और विश्वास देने का प्रयास करतीं. उन का आग्रह था, मैं अकेली न रहूं और उन के पास रहने चली जाऊं. मैं ने उन से कहा कि मैं तो छुट्टियों में हमेशा ही आती हूं. अभी सासससुर भी नहीं हैं तो वे मेरे पास आ जाएं. पर उन्होंने इतनी लंबी यात्रा करने में असमर्थता जता कर मेरा प्रस्ताव सिरे से खारिज कर दिया. उन के अनुसार, वे छुट्टियों में मेरा इंतजार करेंगी और मैं थोड़ी लंबी छुट्टियां प्लान कर सकूं तो अच्छा होगा.

‘कोई खास वजह, मां?’

‘अरे नहीं, खास क्या होगी? बस ऐसे ही तेरे साथ रहने को दिल कर रहा था. क्या पता कितना जीना और शेष है? अब तबीयत ठीक नहीं रहती. तेरे भैयाभाभी को भी इसी दौरान रहने को बुला लिया है. सब साथ रहेंगे, खाएंगे, पीएंगे तो अच्छा लगेगा.’ पहली बार मां की दुनिया अलग नहीं, थोड़ी अपनी सी महसूस हुई. उन का दर्द अपना दर्द लगा. ‘हां मां, ज्यादा छुट्टियां ले कर आने का प्रयास करूंगी. कांता बाई से मुझे भी मालिश करवानी है. आजकल मुझे भी आर्थ्राइटिस की प्रौब्लम हो गई है. आप के हाथ की मक्का की रोटी और सरसों का साग खाने का भी बहुत मन हो रहा है. गोभी, गाजर वाला अचार भी डाल कर रखना मां.’ प्रत्युत्तर में उधर चुप्पी छाई रही तो मैं समझ गई कि भावनाओं के आवेग ने हमेशा की तरह मां का गला अवरुद्ध कर दिया है.

‘जल्द मिलते हैं, मां’, मां की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं ने तुरंत फोन रख दिया था. अगले सप्ताह एक लंबी छुट्टी अरेंज कर जल्दी ही उन्हें अपने आने की सूचना भी दे दी. स्टेशन पर मांबाबा दोनों को मुझे लेने आया देख मैं हैरत में पड़ गई थी क्योंकि उन के गिरते स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने उन्हें सख्त हिदायत दे रखी थी कि वे कभी भी मुझे लेनेछोड़ने आने की औपचारिकता में नहीं पड़ेंगे. बेमन से ही सही, वे मेरी हिदायत की पालना करते भी थे. पर आज अचानक…वो भी दोनों…जरा सा भी कुछ असामान्य देख इंसान का दिमाग हमेशा उलटी ही दिशा में सोचने लगता है. मेरे शक की सूई भी उलटी ही दिशा में घूमने लगी. अवश्य ही वेणु को ले कर कोई बुरी खबर है. मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘वेणु की कोई खबर, बेटी? ठीक है न वह?’

मैं ने राहत की सांस ली, ‘आप को तो मालूम ही है मां, कोई खबर नहीं, मतलब सब कुशल ही होगा.’

‘एक बहुत अच्छी खबर है. मैं एक प्यारे से गुड्डे की परनानी और तू नानी बन गई है.’ मां की नजरें मेरे चेहरे पर जमी थीं, जहां एक के बाद एक रंग आजा रहे थे. मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी, मां किस की बात कर रही हैं.

‘हमारी रीनू ने 2 दिन पहले एक बेटे को जन्म दिया है. वह यहीं है घर पर, हमारे पास.’

‘क्या?’ आश्चर्य से मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था. ‘उस ने तुझे यह तो बता ही दिया था कि वह रोजर नाम के किसी लड़के के साथ रह रही थी.’

‘हां, पर यह सब नहीं बताया था.’

‘उस की हिम्मत ही नहीं पड़ी बेटी, तेरे गुस्से से वह घबरा गई थी. फिर उसे यह भी खयाल था कि तू अभी बिलकुल अकेली रह रही है. वेणु भी इतने खतरनाक मोरचे पर तैनात हैं तो तू वैसे ही बहुत परेशान होगी.’

‘पर मां, उसे मुझे तो बताना था,’ मेरी आंखों के सम्मुख उस का पीला, दुबला चेहरा घूम गया.

‘वह तुझे बताना चाहती थी पर तभी सब गड़बड़ा गया. रोजर इतनी जल्दी बच्चे के लिए तैयार नहीं था. वह अबौर्शन करवाना चाहता था पर रीनू उस के लिए तैयार नहीं हुई. विवाद बढ़ा और रोजर घर छोड़ कर चला गया.’

‘ओह,’ मैं ने सिर थाम लिया. ‘रीनू बहुत हताश और परेशान हो गई थी पर तुझे और दुखी नहीं करना चाहती थी. इसलिए सारा गम अकेले ही पीती रही. एक दिन उस की बहुत याद आ रही थी तो उस का हालचाल जानने के लिए मैं ने ऐसे ही उसे फोन कर दिया. मैं फोन पर ही उसे दुलार रही थी कि सहानुभूति पा कर वह फूट पड़ी और सब उगल दिया. ‘हम ने उसे भरोसा दिलाया कि तुझे नहीं बताएंगे पर वह तुरंत हमारे पास इंडिया आ जाए और यहीं बच्चे को जन्म दे. उस ने हमारी बात मानी और आ गई. कल उसे अस्पताल से घर ले आए हैं. अभी तेरे भैयाभाभी उस के पास हैं. तेरे आने की खबर से वह काफी बेचैन है. तुम दोनों आमनेसामने हो, इस से पहले तुम दोनों को सबकुछ बता देना आवश्यक था.

‘उम्र और अनुभव ने हमें बहुतकुछ सिखा दिया है बेटी. हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएं, अपनी अगली और पिछली पीढि़यों से हमारा टकराव स्वाभाविक है. ऐसे हर टकराव का मुकाबला हमें संयम और विश्वास से करना होगा. अपने बच्चों के साथ यदि हम ही खड़े नहीं होंगे तो औरों को उंगलियां उठाने का मौका मिलना स्वाभाविक है. हम अलगअलग पीढि़यों की दुनिया कितनी भी अलगअलग क्यों न हो, आ कर मिलती तो एक ही जगह है क्योंकि यह दुनिया गोल है. हम घूमफिर कर फिर वहीं आ खड़े होते हैं जहां से कभी आगे बढ़े थे. यह समय गुस्सा करने का नहीं, समझदारी से काम लेने का है. ‘आज की तारीख में हमारे लिए सब से बड़ी खुशी की बात यह है कि हमारी बेटी हमारे पास सकुशल है और उस के साथसाथ यह बच्चा भी अब हमारी जिम्मेदारी है. रीनू का आत्मविश्वास लौटा लाने के लिए उसे यह विश्वास दिलाना बेहद जरूरी है.’

घर आ चुका था. मैं ने भाग कर पहले रीनू को, फिर नन्हे से नाती को सीने से लगा लिया. रीनू आश्वस्त हुई, फिर खुलने लगी, ‘इस की आंखें बिलकुल पापा जैसी हैं न मौम…मौम, मुझे आप के हाथ का पायसम और उत्तपम खाना है,’ वह बच्चों की तरह किलक रही थी. ‘नानू, नानी, मौम आप सब को एक बात बतानी थी. कल रात दिल नहीं माना तो मैं ने रोजर को गुड्डू का फोटो भेज दिया, उस का जवाब आया है. वह शर्मिंदा है, जल्द आएगा.’ मां मुझे देख कर मुसकरा रही थीं.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम किसे कहा जाता है, जानें लक्षण और इलाज

गुंजन आजकल काफी परेशान है क्योंकि दिन प्रतिदिन उसके हाथ पैरों में सूजन बढ़ती जा रही है। जिसकी वजह से वह ठीक से काम नहीं कर पाती और जल्दी थक भी जाती है। उसने डॉक्टर से सलाह लेने की सोची। डॉक्टर ने चेकअप के बाद बताया कि यह नेफ्रोटिक सिंड्रोम की वजह से ऐसा हो रहा है, तो गुंजन हैरान हो गई।  हैरानी के साथ गुंजन ने नेफ्रोटिक सिंड्रोम के विषय में जानना चाहा, क्योंकि वह तो अपनी हेल्थ का बहुत ध्यान रखती है। इस बीमारी के विषय में डॉक्टर ने जो भी जानकारी दी वह आपसे साझा करने जा रही हूं।

नेफ्रोटिक सिंड्रोम, सिम्पटम्स का एक ग्रुप होता है जो इस बात का संकेत हैं कि हमारी किडनी सही तरीके से काम नहीं कर रही है. एक अन्य शब्दों से कहा जाए तो यह सिंड्रोम एक किडनी डिसऑर्डर है जो हमारे यूरिन में बहुत अधिक प्रोटीन पास करने का कारण बनता है. यह समस्या आमतौर पर किडनी में उन स्मॉल ब्लड वेसल्स के ग्रुप को नुकसान होने की वजह से होती है, जो ब्लड से वेस्ट और एक्सेस वॉटर को फिल्टर करते हैं. नेफ्रोटिक सिंड्रोम किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है. आइए जानें इस बीमारी के बारे में और अधिक.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम के लक्षण कौन से हैं?

नेफ्रोटिक सिंड्रोम के चार मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:

  • -यूरिन में बहुत अधिक प्रोटीन होना, जिसे डॉक्टर प्रोटीन्यूरिया कहा जाता है.
  • -ब्लड में फैट और कोलेस्ट्रॉल लेवल का बढ़ना. इसे मेडिकल टर्म में हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के रूप में जाना जाता है.
  • -टांगों, पैरों और एड़ियों में सूजन. यह सूजन कई बार हाथों और पैरों में भी हो सकती है. इसे एडेमा कहा जाता है.
  • -ब्लड में एल्बुमिन का लो लेवल होना. इसे मेडिकल टर्म में हाइपोएल्ब्यूमिनमिया के नाम से जानता है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम का उपचार

नेफ्रोटिक सिंड्रोम का उपचार इस समस्या के कारणों पर निर्भर करता है. कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने से इसकी गंभीरता को कम किया जा सकता है. इस स्थिति में निम्नलिखित दवाईयों की सलाह दी जा सकती है:

  • -ब्लड प्रेशर मेडिकेशन्स जैसे एसीइ इन्हिबिटर्स आदि. इससे ब्लड प्रेशर को सही बनाए रखने में यूरिन में प्रोटीन की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है
  • -ड्यूरेटिक्स यानि वॉटर पिल्स ताकि सूजन कम की जा सके
  • -कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवाईयां
  • -ब्लड थिनर्स ताकि आसानी से ब्लड क्लॉट्स बन सकें
  • -इम्यून सिस्टम को सप्रेस करने के लिए मेडिकेशन्स जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स

इसके साथ ही डॉक्टर रोगी को सूजन कम करने के लिए कम नमक लेने की सलाह देंगे. यहीं नहीं, इस स्थिति में रोगी को कम सैचुरेटेड फैट्स और कोलेस्ट्रॉल युक्त डाइट लेनी चाहिए. अगर नेफ्रोटिक सिंड्रोम इन ट्रीटमेंट्स से बेहतर न हो, तो रोगी को डायलिसिस की आवश्यकता हो सकती है.

इस समस्या से बचाव के लिए रोगी को अपना ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को कंट्रोल में रखना जरूरी है. कॉमन इंफेक्शंस के लिए वैक्सीन्स लेने की भी राय दी जाती है. अगर आपके डॉक्टर ने एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह दी है, तो सही से उन्हें लें. आप बेहतर महसूस कर रहे हैं, तब भी इन दवाईयों को अपनी मर्जी से लेना बंद न करें.

जानें फेशियल हेयर ग्रोथ यानी चेहरे पर बाल आने के 3 कारण

पुरुषों में फेशियल हेयर को सामान्य और अट्रैक्टिव माना जाता है. हालांकि, महिलाओं में इसे उतना सामान्य नहीं माना जाता है. केवल पुरुषों के चेहरे पर ही बाल नहीं होते, बल्कि कुछ हद तक महिलाओं के चेहरे पर भी यह होते हैं. लेकिन, अगर महिलाओं के चेहरे पर यह बाल थिक और डार्क हों, तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. महिलाएं इन बालों से छुटकारा पाने के लिए शेविंग, वैक्सिंग, प्लकिंग या केमिकल्स आदि का इस्तेमाल करती हैं. इसके लिए कुछ ट्रीटमेंट्स जैसे लेजर, इलेक्ट्रोलाइसिस या दवाईयों की सलाह भी दी जा सकती है. लेकिन, यह सभी मेथड्स महंगे होते हैं और स्किन इरिटेशन का भी कारण बन सकते हैं. आइए जानते हैं कि फेशियल हेयर ग्रोथ के क्या कारण हो सकते हैं?

फेशियल हेयर ग्रोथ के क्या हो सकते हैं कारण?

फेशियल हेयर अधिकतर महिलाओं को ठोडी के नीचे, अपर लिप्स, गर्दन के आसपास होते हैं. यह बाल महिलाओं के गालों या जॉलाइन में बहुत कम दिखाई देते हैं. लेकिन, यह बाल सख्त, डार्क और अनवांटेड होते हैं. महिलाओं में फेशियल हेयर के कई कारण होते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

हॉर्मोन-

हिर्सुटिज्म एक ऐसा डिसऑर्डर है, जिसमें रोगी के चेहरे पर जीन्स, हार्मोनल चेंजेज और कुशिंग सिंड्रोम आदि के कारण अत्यधिक बाल हो सकते हैं. इस समस्या को कंट्रोल करना संभव नहीं है. लेकिन, न्यूट्रिशियस व बैलेंस्ड डाइट, रोजाना एक्सरसाइज और अननेसेसरी मेडिसिन्स को नजरअंदाज करने से इस समस्या के जोखिम को कम किया जा सकता है.

पॉलिसिस्टिक ओवरीयन सिंड्रोम-

अगर किसी को पॉलिसिस्टिक ओवरीयन सिंड्रोम या हार्मोनल इम्बैलेंस की समस्या है, तो उस व्यक्ति में मेल हार्मोन एंड्रोजन की प्रोडक्शन अधिक मात्रा में हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप चेहरे पर अधिक बाल आ सकते हैं.

जेनेटिक्स-

जेनेटिक्स भी फेशियल हेयर की ग्रोथ के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. अगर आपकी मां, बहन या दादी-नानी को थिक फेशियल हेयर हैं, तो यह समस्या आपको होने की संभावना अधिक होती है.

भाग्यवश हम अपने शरीर से हेयर रिमूव कर सकते हैं. अगर किसी को हॉर्मल इम्बैंलेंस या पॉलिसिस्टिक ओवरीयन सिंड्रोम के कारण यह समस्या है, तो अपने डॉक्टर से बात करें ताकि सही उपचार हो सके और इससे छुटकारा पाया जा सके. इसके लिए डॉक्टर आपको दवाईयां और सही डाइट की सलाह दे सकते हैं. अगर यह जेनेटिक है ,तो आप फेशियल वैक्स या थ्रेडिंग के लिए सैलून जा सकते हैं. इसके साथ ही अन्य कई तरीके भी हैं जिनसे आप इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं या इसे कम कर सकते हैं.

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