दाल को पकाने से पहले भिगोना क्‍यों जरूरी है?

दालों को एक सुपरफूड माना जाता है, जिसमें कई न्यूट्रिएंट्स होते हैं. यह प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत हैं और मीट व एनिमल फूड्स का एक हेल्दी अलटरनेटिव भी हैं. यही नहीं, दालें डाइट्री फाइबर और काम्प्लेक्स कार्ब्स भी प्रदान करती हैं. दालों के फायदे यही खत्म नहीं होते, इनमें कैल्शियम, फोस्फोरस, आयरन और बी काम्प्लेक्स विटामिन्स भी भरपूर मात्रा में होते हैं. अक्सर दालों को बनाते हुए हम इन्हें कुछ देर भिगोना जरूरी नहीं मानते. लेकिन. क्या आप जानते हैं कि इन्हें पकाने से पहले भिगोना आवश्यक है? आइए जानते हैं कि क्यों दालों को पकाने से पहले कुछ देर भिगोना जरूरी है?

दाल को पकाने से पहले भिगोना क्‍यों जरूरी है?

कुछ दालें प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में गैस और ब्लोटिंग का कारण बन सकती हैं. लेकिन, पकाने से पहले दालों को थोड़ी देर भिगोने से दाल से टैनिन और फाइटिक एसिड आदि रिमूव हो जाते हैं. टैनिन और फाइटिक एसिड दाल के पौष्टिक तत्वों को कम कर देते हैं. जिससे यह दालें गैस और ब्लोटिंग का कारण बन सकती है. यही नहीं, दालों को भिगोने से एंजाइम्स को स्टिमुलेट में मदद मिलती है, जिससे दाल आसानी से पच जाती है. ऐसा भी माना जाता है कि दालों को पकाने से पहले भिगोने से इनमें न्यूट्रिएंट्स अच्छे से एब्जॉर्ब हो जाते हैं. जिससे हमें सभी पोषक तत्व आसानी से मिल जाते हैं. यही कारण है कि हमें सभी दालों को पकाने से पहले थोड़ी देर अवश्य भिगोना चाहिए. इसका एक और कारण यह भी है कि इससे दाल जल्दी पक जाती है जिससे गैस और समय की भी बचत होती है.

दालों को भिगोने का सही समय क्या है?

पकाने से पहले दालों को दो से आठ घंटे भिगोने की सलाह दी जाती है. भिगोने से पहले दाल को अच्छे से दो से तीन बार धो लें. अब एक बाउल में पानी लें और दाल को भिगों दें. दाल के प्रकार के अनुसार आप तीस मिनट्स से लेकर दो घंटे तक भिगो सकते हैं. साबुत दालों को दो घंटे तक भिगोना जरूरी है. फलियों जैसे राजमा, छोले आदि को आठ से बारह घंटे तक भिगो कर पकाया जाता है. पकाने से पहले भिगोई हुई दाल को फ्रेश कोल्ड वॉटर से रिंस अवश्य करें.

सोकिंग यानी भिगोना एक ऐसा तरीका है जिसका इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है. इसके कई हेल्थ बेनेफिट्स हैं. यही नहीं, इसके साथ ही दालें जल्दी भी बन जाती हैं. इसलिए, आप भी दालों को बनाने से पहले कुछ देर इन्हें भिगो कर रखना न भूलें.

मेरा वजन 118 किलोग्राम हैं, क्या बैरिएट्रिक सर्जरी के द्वारा अतिरिक्त चरबी को खत्म हो सकती है?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल और वजन 118 किलोग्राम हैं. मुझे पिछले 8 सालों से डायबिटीज की शिकायत है. मुझे किसी ने सलाह दी है कि बैरिएट्रिक सर्जरी के द्वारा अतिरिक्त चरबी को खत्म कर के डायबिटीज को भी ठीक किया जा सकता है. यह बात कितनी सही है?

जवाब

जी हां, बहुत संभावना है कि बैरिएट्रिक सर्जरी के द्वारा डायबिटीज को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है. इस के लिए सब से पहले हमें कुछ टैस्ट द्वारा बौडी में इंसुलिन के स्तर की जांच करनी होती है. यदि जांच फेवर में हो तो मरीज की मैटाबोलिक सर्जरी की जाती है. इस सर्जरी को करने के बाद डायबिटीज ठीक हो जाती है.

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सवाल

मेरी उम्र 32 साल और वजन 108 किलोग्राम है. मैं डाइटिंग व ऐक्सरसाइज के द्वारा वजन कम करने की बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बहुत ज्यादा फर्क नहीं आ पाता है. क्या बाजार में उपलब्ध वजन कम करने की दवाइयां व सप्लिमैंट लेना सुरक्षित है और यह कारगर साबित होता है?

जवाब

वजन कम करने के लिए दवा व सप्लिमैंट का प्रयोग किया जा सकता है. इस का प्रभाव भी पड़ता है, लेकिन यह प्रभाव सीमित समय तक ही रहता है. जैसे ही दवा लेना बंद करते हैं वजन बढ़ने लगता है. दूसरा वजन में केवल 5 से 10% तक ही फर्क पड़ता है. यह दवा व सप्लिमैंट केवल कुछ अधिक वजन वाली सामान्य आबादी पर ही कारगर साबित होता है. यह दवा दिमाग के सैरोटोनिन रिसैप्टर 2 को सक्रिय करती है. इस रिसैप्टर के सक्रिय होने से भूख कम लगती है और थोड़ा सा खाने से ही पेट भर जाने का एहसास होता है. अत्यधिक मोटापे से ग्रस्त लोगों पर इस दवा का कोई असर नहीं होता. आप को सम?ाना होगा कि यदि आप का मोटापा आनुवंशिक है तो आप के पास सर्जरी और नियमित संतुलित आहार व व्यायाम ही विकल्प है.

-डा. कपिल अग्रवाल

डाइरैक्टर, हैबिलाइट सैंटर फौर बैरिएट्रिक ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी

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शायद कुछ नया मिलेगा: क्या खुद को बदल पाया विजय

विजय अपने किसी जानपहचान वाले की तारीफ करते हुए कह रहा था, ‘‘बड़े दिलदार इंसान हैं हमारे ये भाईसाहब. राजा हैं राजा. बहुत बड़े दिल के मालिक हैं. जेब में चाहे 50 रुपए ही हों, खर्चा 500 का कर देते हैं. मेहमाननवाजी में कभी कोई कमी नहीं करते. बड़े शाही स्वभाव के हैं.’’

मैं समझ नहीं पा रहा था. वह उन के जिस गुण की तारीफ कर रहा था क्या वह वास्तव में तारीफ के लायक था. कहीं वही पुराना अंदाज ही तो नहीं दिखा रहा विजय?

‘‘अभी कुछ दिन पहले ही इन के बेटे की शादी हुई है. इन्होंने दिल खोल कर खर्चा किया. औफिस में सब को खूब शराब पिलाई. खाने पर खूब खर्चा किया. सभी वाहवाह करते हैं.’’

‘‘जी,’’ बढ़ कर हाथ मिला लिया मैं ने, ‘‘आप किस जगह काम करते हैं, क्या करते हैं, मतलब आप अपना ही कारोबार करते हैं या किसी नौकरी में हैं?’’

‘‘इन का अकाउंट्स का काम है, साहब. डी पी मेहता का नाम सुना होगा आप ने. वह इन्हीं की फर्म है.’’

एक लौ फर्म का नाम बताया मुझे विजय ने. उस व्यक्ति को देख कर ऐसा नहीं लगा मुझे कि वह इतनी बड़ी लौ फर्म का मालिक होगा. एक मुसकान का आदानप्रदान हुआ और वे साहब विदा ले कर चले गए. विजय के साथ अंदर आ गया मैं. विजय मेरा साढ़ू भाई है.

‘‘आइए, जीजाजी,’’ सौम्या मेरी आवाज सुनते ही चली आई थी. दीवाली का तोहफा ले कर गया था मैं.

‘‘दीदी ने क्या भेजा है, इस बार मठरी और बेसन की बर्फी तो नहीं बनाई होगी. दीदी के हाथ में दर्द था न.’’

‘‘बनाई है बाबा, और आधे से ज्यादा काम मुझ से कराया है तुम्हारी दीदी ने. अब यह मत कहना सब दीदी ने बनाया है. सारी मेहनत मेरी है इस बार. बेसन में कलछी भी मैं ने घुमाई है और मैदे में मोयन डाल उसे भी मैं ने ही मला है.’’

मैं ने जरा सा बल डाला माथे पर, सच बताया तो बड़ीबड़ी आंखें और भी बड़ी कर लीं सौम्या ने. मेरे हाथ से डब्बा झपट लिया, ‘‘क्या सच में?’’

सौम्या का सिर थपक दिया मैं ने, ‘‘जीती रहो. और सुनाओ, कैसी हो?’’

‘अच्छी हूं’ जैसी अभिव्यक्ति उभर आई सौम्या के गले लगने में. सौम्या का माथा चूमा मैं ने. मेरी छोटी बहन जैसी है सौम्या, मेरी बेटी जैसी.

‘‘और सुनाइए, आप कैसे हैं? इस बार बहुत देर बाद मुलाकात हुई है. फोन पर बात होती है तब भी कभी बाथरूम में होते हैं, कभी पता नहीं कहां होते हैं आप?’’ विजय से पूछा. मैं ने कोई उत्तर नहीं दिया. बस, मुसकराभर दिया. अभी जो बाहर किसी की तारीफ में इतने पुल बांध रहा था. मेरे सामने, अब चुप था.

सौम्या झट से चाय बना लाई और प्लेट में इडलीसांभर.

‘‘भई वाह, तुम्हारे हाथ के इडलीसांभर का जवाब नहीं.’’

‘‘तुम्हारे मायके वाले पहले हलवाई का काम करते थे क्या? तुम दोनों बहनों को हर पल इन्हीं कामों की ही लगी रहती है. बाजार में क्या नहीं मिलता. सोहन हलवाई के पास अच्छी से अच्छी मिठाई मिलती है. 200 रुपए किलो से शुरू होती है 1000 रुपए किलो तक जो चाहो ले लो. पैसा खर्च करो, क्या नहीं मिलता.’’

सदा की तरह का रवैया था विजय का इस बार भी. उस ने इस बार भी जता दिया था, हमारा परिवार कंजूस है. हम रुपयापैसा खर्च करने में पीछे हटते हैं.

‘‘सोहन हलवाई की मिठाई में मेरी बहन के हाथ का प्यार नहीं है न, जिस की कीमत उस की 1000 रुपए किलो मिठाई से कहीं ज्यादा है.’’

‘‘अपनीअपनी सोच है, विजयजी. मैं आप की सोच को गलत नहीं कहता. आप मेरी सोच का सम्मान कीजिए. अगर इन बहनों को 1000 रुपए किलो वाली चीज 400 रुपए खर्च कर के घर में मिल जाती है तो 600 रुपए भी तो हमारा ही बचता है न. मेरी पत्नी अपने कपडे़ खुद डिजाइन करती है. जो सूट बाजार में 2000 का आता है उसे वह 700 रुपए में बना लेती है, 1300 रुपए किस के बचते हैं, मेरे ही घर के न. मुझे इतनी सुरक्षा अवश्य रहती है कि समय पर मुझे जो चाहिए, इस की दीदी अवश्य हाजिर कर देगी.

‘‘तभी झट से निकाल देगी न जब उस के पास होगा, होगा तभी जब वह अपनी मेहनत से बचाएगी. हमें इतनी मेहनती जीवनसाथी मिली है, आप को इस बात का सम्मान करना चाहिए. जेब में 100 रुपया हो और इंसान 50 का खर्चा करे, इस में समझदारी है या जेब में 50 रुपया हो और इंसान 500 का खर्च करे, इस में समझदारी है? क्या ऐसा इंसान हर पल कर्ज में नहीं डूबा रहेगा? ये जो साहब अभी गए जिन की आप तारीफ कर रहे थे, क्या सच में डी पी मेहता लौ फर्म वाले ही हैं?’’

‘‘कौन, जीजाजी?’’ सौम्या का प्रश्न था.

‘अभी जो गए वे डीपी मेहता लौ फर्म में अकाउंट्स का काम देखते हैं. संयोग से ये भी मेहता ही हैं.’’

हंसी आने लगी मुझे विजय की बुद्धि पर. हमें कंजूस कहने के लिए बेचारे ने अकाउटैंट को मालिक बना दिया था. सिर्फ यही समझाने के लिए कि देखिए, दिलदार आदमी क्या होता है, 50 जेब में और खर्चा 500 का करता है.’’

‘‘पिछले दिनों इन के बेटे ने भाग कर चुपचाप मंदिर में शादी कर ली. तो क्या करते मेहता साहब? कैसे बताते सब को कि बेटे ने शादी कर ली है. सब को मिठाई बांट दी और औफिस में सब को खिलापिला दिया. इन की जेब में तो कभी पैसे रहते ही नहीं. सदा किसी न किसी की उधारी ही चलती है. इन की तुलना हमारे परिवार से करने की क्या तुक?’’

क्रोध आने लगा था, सौम्या को, ‘‘पीठ पीछे आप गाली भी इसी आदमी को देते हैं कि जब देखो उधार ही मांगता रहता है फिर जीजाजी के सामने उसी को बढ़ाचढ़ा कर बताने का क्या मतलब? मेहताजी खर्च ही कर पाते तो इज्जत से अपने दोनों बच्चों की शादी न कर लेते. बेटी ने भी लड़का पसंद कर रखा था और बेटे ने भी लड़की कब से समझबूझ रखी थी. मातापिता क्या अंधे थे जो कुछ नजर नहीं आता था. वे %

दूसरी हार: आजम को किस बात का अफसोस था

आ  जम, हैदर और रऊफ एक मिडिल क्लास के कौफी हाउस में बैठे कौफी की चुस्कियां ले रहे थे. तीनों दसवीं क्लास तक साथसाथ पढ़े थे. हैदर और रऊफ पहले से कौफी हाउस में थे, जबकि आजम थोड़ी देर पहले वहां पहुंचा था. तीनों की भेंट कभीकभार ही होती थी.

‘‘तो तुम आजकल टैक्सी चला रहे हो?’’ हैदर ने आजम से पूछा.

‘‘हां, क्या तुम ने यही पूछने के लिए बुलाया था?’’ आजम ने खुश्क स्वर में कहा और हैदर के कीमती सूट की तरफ देखा.

हैदर उस के चेहरे को ताकतेहुए बोला, ‘‘और तुम्हारी टांगें? क्या तुम पहले की तरह अब भी तेज दौड़ सकते हो?’’

‘‘टांगें भी ठीक हैं, लेकिन इस बात का मुझे यहां बुलाने से क्या संबंध है?’’ आजम ने उसे घूरते हुए कहा.

‘‘इस बारे में तुम्हें रऊफ बताएगा.’’ हैदर ने रऊफ की ओर इशारा करते हुए कहा, जो अब तक बिलकुल चुपचाप बैठा था. वह दुबलापतला युवक था, लेकिन उस का सिर एक तरफ झुका हुआ था, जैसे वह कान लगा कर कोई आवाज सुन रहा हो. उस के बारे में यह मशहूर था कि वह पचास गज के फासले से ही पुलिस वालों के कदमों की आहट सुन लेता था. हैदर और रऊफ आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहते थे. वे कभीकभी बड़ा हाथ भी मार लेते थे.

रऊफ बोला, ‘‘तुम्हें स्कूल में सब से तेज दौड़ने वाला छात्र कहा जाता था. मैं ने अपनी जिंदगी में किसी को इतना तेज दौड़ते हुए नहीं देखा. तुम ने एक किलोमीटर दौड़ने का क्या रिकौर्ड बनाया था आजम?’’

‘‘4 मिनट 10 सेकेंड. लेकिन यह स्कूल के जमाने की बात है. बाद में तो मैं 24 सेकेंड में 220 गज का फासला तय कर के स्टेट चैंपियन बन गया था. लेकिन उस के बाद कमबख्त शकील ने 22 सेकेंड में यह फासला तय कर के मेरा रिकार्ड तोड़ दिया. कोई सोच सकता है कि सिर्फ 2 सेकेंड के फर्क से मैं दूसरे नंबर पर आ गया.’’ आजम निराश स्वर में बोला.

हैदर धीरे से हंसा, ‘‘मुझे यकीन था कि तुम उस मनहूस शकील को पराजित करने में कामयाब हो जाओगे? वह बड़ा मगरूर और बददिमाग लड़का था.’’

‘‘शकील कहां है आजकल?’’ रऊफ ने पूछा.

‘‘पता नहीं, किसी बड़ी कंपनी में ऊंची पोस्ट पर नौकरी कर रहा होगा. वह पढ़ने में भी तो काफी तेज था.’’ आजम ने कहा.

‘‘शकील ऊंची पोस्ट पर और तुम टैक्सी ड्राइवर…यहां भी तुम उस से मात खा गए.’’ रऊफ आंखें बंद कर के मुस्कराया.

आजम की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘अब यह सब बातें छोड़ो. बताओ, मुझे यहां क्यों बुलाया है.’’

‘‘50 लाख रुपए. क्या तुम यह रकम लेना पसंद करोगी.’’

आजम का चेहरा पीला पड़ गया. वह कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, ‘‘क्या तुम लोग कहीं डाका डालना चाहते हो.’’

‘‘तुम्हें हम दोनों के कामों के बारे में तो मालूम ही होगा. इसलिए ताज्जुब करने की कोई जरूरत नहीं है. अगर तुम्हें 50 लाख रुपए कमाने में दिलचस्पी हो तो बोलो. नहीं तो कोई बात नहीं.’’ हैदर ने उस के चेहरे पर निगाहें गड़ाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं ही क्यों?’’ आजम बोला.

‘‘हमें एक तेज दौड़ने वाले आदमी की जरूरत है. काम बहुत आसान है, जिस में नाकामी का सवाल ही नहीं पैदा होता और आमदनी… तुम सुन ही चुके हो. तीसरा हिस्सा 50 लाख रुपए बनता है. क्या खयाल है?’’ रऊफ ने कहा.

‘‘पूरी बात सुने बगैर मैं क्या जवाब दे सकता हूं.’’ आजम को अब 50 लाख रुपए लहराते हुए दिखाई देने लगे थे.

रऊफ ने सिर हिलाया और मेज पर आगे की तरफ झुकता हुआ बोला, ‘‘नाजिमाबाद में एक बहुत बड़ी टूल फैक्ट्री है. हैदर पिछले 2 महीने से वहीं नौकरी कर रहा है. हर माह की 5 तारीख को वहां के कर्मचारियों को तनख्वाह दी जाती है. यह धनराशि लगभग एक सौ पचास लाख होती है.’’ रऊफ ने जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाल कर मेज पर फैला दिया. आजम ने उस पर खिंची हुई टेढ़ी तिरछी लकीरों को देखा, लेकिन उस की समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘ये देखो, यह है फैक्ट्री की चारदीवारी और यह है प्रवेश द्वार. इस के पास ही एक छोटा सा दरवाजा है. बड़े दरवाजे से फैक्ट्री के कर्मचारी आतेजाते हैं. इसलिए यह दिन में 4 बार ही खुलता है. लेकिन छोटा दरवाजा खुला रहता है, जहां से फैक्ट्री के दफ्तर के लोग आतेजाते हैं. दरवाजे के अंदर दाखिल हो तो खुला मैदान आता है जो सीमेंट का बना हुआ है. यह मैदान पार करने के बाद फैक्ट्री का औफिस है.

‘‘फैक्ट्री के मुख्य प्रवेश द्वार और औफिस के बीच करीब 5 सौ फुट की दूरी है. पहले यह मैदान औफिस के कर्मचारियों द्वारा अपनी गाडि़यां खड़ी करने के काम आता था, लेकिन अब फैक्ट्री के मालिकों ने सामने वाला प्लाट भी खरीद लिया है, जहां सभी गाडि़यां खड़ी की जाती हैं. मैदान में सुबहशाम ट्रकों पर माल लादा और उतारा जाता है. बाकी समय यह खाली पड़ा रहता है.’’ हैदर ने विस्तार से आजम को बताते हुए कहा, ‘‘अब तुम समझे कि हमें तुम्हारी मदद की क्यों जरूरत पड़ी.’’

आजम हैरानी से उन दोनों को बारीबारी से देखता रहा.

रऊफ बोला, ‘‘फैक्ट्री के प्रवेश द्वार से गाड़ी अंदर नहीं जा सकती. फैक्ट्री के औफिस में एक सौ पचास लाख की धनराशि होती है. तुम्हें औफिस के अंदर से धनराशि का थैला उठा कर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार तक दौड़ लगानी है-बहुत तेज. बाहर हम लोग गाड़ी में बैठे तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे. जैसे ही तुम गाड़ी में बैठोगे, गाड़ी दस सेकेंड में वहां से एक मील दूर पहुंच जाएगी. सारा मामला 500 फुट मैदान पार करने का है.’’

‘‘यानी मैं…’’ आजम ने कुछ कहना चाहा.

‘‘हां, तुम…तुम्हारे जैसा तेज दौड़ने वाला आदमी ही यह काम कर सकता है. 5 तारीख को सुबह ठीक साढ़े 10 बजे एकाउंटेंट तिजोरी में से एक सौ पचास लाख रुपए निकालता है. उस की मदद के लिए 3 औरतें होती हैं. वे कमरा बंद कर के रकम गिनते हैं और हर कर्मचारी की तनख्वाह के अनुसार रकम को लिफाफों में बंद करते जाते हैं.

रकम प्राप्त करना कोई मसला नहीं है. एकाउंटेंट एक बूढा आदमी है. रिवाल्वर देख कर वह कोई विरोध नहीं करेगा. और तीनों औरतें तो डर के मारे कांपने लगेंगी. बस, तुम्हें रुपयों का थैला उठा कर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार तक दौड़ लगानी है-तेज, खूब तेज. तुम्हें सारे रिकौर्ड तोड़ देने हैं.’’ हैदर ने आजम को उत्साहित करते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं.’’ आजम ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं यह काम नहीं कर सकता, चाहे तुम मुझे कितने ही रुपए दो. इस काम में बहुत खतरा है. फिर सवाल यह भी है कि मुझे प्रवेश द्वार के अंदर कौन जाने देगा. फैक्ट्री के कर्मचारियों को पहचान पत्र जारी किए जाते हैं, जिन्हें दिखा कर अंदर जाने की अनुमति मिलती है.’’

रऊफ बोला, ‘‘पहचान पत्र पर फोटो नहीं होती. तुम हैदर का पहचान पत्र दिखा कर अंदर जा सकते हो. तुम्हें कोई नहीं रोकेगा. फैक्ट्री में रोजाना नए कर्मचारी भर्ती किए जाते हैं, क्योंकि 1-2 कर्मचारी नौकरी छोड़ कर चले जाते हैं. फैक्ट्री काफी बड़ी है, इसलिए कोई भी गार्ड या गेटमैन इतने कर्मचारियों या मजदूरों के चेहरे याद नहीं रख सकता. आजम, यह बड़ा आसान काम है और तुम जैसे तेज दौड़ने वाले आदमी के लिए तो यह कोई काम ही नहीं है.’’

‘‘मैं तेज दौड़ सकता हूं लेकिन गोली की रफ्तार से मुकाबला नहीं कर सकता.’’ आजम ने हकबकाते हुए कहा.

‘‘गोली चलने की नौबत नहीं आएगी. बूढे़ एकाउंटेंट को गोली चलानी नहीं आती. वह कमरे का दरवाजा बंद रखने का आदी है.’’ हैदर बोला. लेकिन आजम फिर भी नहीं तैयार हुआ. उस ने कहा कि वह बंद दरवाजा कैसे तोड़ेगा. इस पर हैदर ने कहा, ‘‘मैं रिपेयरिंग विभाग में कार्यरत हूं. मैं घटना से एक दिन पहले उस दरवाजे की कुंडी कुछ ढीली कर दूंगा, जिस से वह एक धक्के में खुल जाएगा.’’

लेकिन तब भी आजम यह काम करने को तैयार नहीं हुआ. इस पर रऊफ बोला, ‘‘आजम अब दौड़ने के काबिल नहीं रहा.’’

‘‘ये बात नहीं है.’’ आजम ने विरोध किया.

‘‘हमें मालूम है, तुम दौड़ सकते हो, लेकिन तुम्हारे अंदर हौसले की कमी है. यही वजह है कि तुम शकील से शिकस्त खा गए.’’ रऊफ जोर से हंसा, ‘‘50 लाख से तो तुम कई टैक्सियों के मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम इस के लिए कोशिश करना ही नहीं चाहते.’’ फिर वह हैदर से बोला, ‘‘चलो हैदर, किसी दूसरे की तलाश करें, जो तेज दौड़ने के साथसाथ शानदार भविष्य का इच्छुक हो.’’

रऊफ और हैदर उठ खड़े हुए. रऊफ जाते समय आजम से बोला कि अगर वह अपना फैसला बदले तो हैदर को फोन कर दे. आजम ने कहा, ‘‘मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा.’’ लेकिन अगली रात आजम ने अपना फैसला बदल दिया और उन के साथ काम करने को तैयार हो गया.

फिर दूसरे ही दिन से आजम ने मैदान में दौड़ लगाने का अभ्यास शुरू कर दिया. उसे यह देख कर बहुत तसल्ली हुई कि वह अब भी उतना ही तेज दौड़ सकता है. फर्क सिर्फ यह पड़ा था कि अभ्यास छूटने से उस की सांस अब जल्दी फूलने लगी थी.

लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं थी, उसे फैक्ट्री के औफिस से प्रवेश द्वार तक सिर्फ एक ही बार दौड़ लगानी थी. फिर तो उसे गाड़ी में बैठ कर वहां से निकल भागना था. रविवार के दिन आजम ने जब मैदान में दौड़ लगाई तो वह आश्चर्यचकित रह गया. उस की रफ्तार पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई है.

शीघ्र ही 5 तारीख आ गई, जिस दिन टूल फैक्ट्री में तनख्वाह बंटनी थी और आजम को रऊफ एवं हैदर के साथ नाजिमाबाद पहुंचना था. एक घंटे के बाद वे लोग फैक्ट्री के पास पहुंच गए. रऊफ ने फैक्ट्री के मुख्य प्रवेश द्वार से कुछ दूर पहले ही अपनी गाड़ी रोक दी. वहां से आजम पैदल ही फैक्ट्री तक पहुंचा. ठीक 10 बजे फैक्ट्री का दरवाजा खुला और कर्मचारी कतारबद्ध हो कर अंदर जाने लगे.

आजम भी लाइन में लग गया. नंबर आने पर उस ने चौकीदार को हैदर का पहचान पत्र दिखाया, जिस ने सरसरी तौर से उस पर नजर डाली और आगे बढ़ने का इशारा किया. दरवाजे से घुसने पर उस ने अंदर का निरीक्षण किया. रऊफ ने वहां का जो नक्शा बनाया था, वह एकदम ठीक था.

आजम ने फैक्ट्री के औफिस से छोटे दरवाजे तक का फासला नजरों से मापा, वह लगभग, 500 फुट ही था. यानी 150 गज. आजम यह फासला 15-16 सेकेंड में तय कर सकता था. अब उसे यह इत्मीनान हो गया कि यह काम वाकई ज्यादा मुश्किल नहीं है.

इस से पहले आजम, रऊफ और हैदर इस योजना पर कई बार बात कर चुके थे तथा हर मामले पर अपनी दृष्टि डाल चुके थे. यही नहीं, आजम हैदर से मिलने के बहाने पूरी फैक्ट्री बाहर से देख चुका था.

आजम आगे बढ़ता जा रहा था. लेकिन वह अन्य कर्मचारियों के साथ फैक्ट्री के अंदर नहीं गया, बल्कि कुछ दूरी पर बने शौचालय की ओर बढ़ गया. उसे अपना काम ठीक साढ़े 10 बजे अंजाम देना था. 10:25 पर वह शौचालय से बाहर निकला और फैक्ट्री के औफिस के पास पहुंच कर रुक गया. उस ने जेब में रिवाल्वर टटोला जिसे रऊफ ने दिया था. फिर वह औफिस के अंदर पहुंचा.

आजम ने खिड़की से देखा कि तनख्वाह बांटने वाले कमरे में बूढ़ा एकाउंटेंट और 3 औरतें थीं. एकाउंटेंट तिजोरी से रुपए निकाल कर थैले में डाल चुका था. आजम ने दरवाजे का हैंडल घुमाया और दरवाजे को धक्का दिया. मगर दरवाजा टस से मस न हुआ. एक क्षण के लिए उस के होश उड़ गए.

लेकिन जब उस ने थोड़ा जोर से धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. बूढे़ एकाउंटेंट ने सिर उठा कर उस की ओर देखा, फिर उस के माथे पर बल पड़ गए. उस ने प्रश्नवाचक नजरों से आजम को देखा, जो अब तक रिवाल्वर निकाल चुका था. रिवाल्वर देख कर तीनों औरतों की चीखें निकल गईं.

‘‘खामोश!’’ आजम ने सख्त स्वर में कहा, ‘‘चुपचाप रुपयों का थैला मेरे हवाले कर दो, नहीं तो तुम लोग बेमौत मारे जाओगे.’’

‘‘नहीं.’’ बूढ़े एकाउंटेंट की सांसें फूलने लगीं, ‘‘इस में हमारी तनख्वाहें हैं.’’

‘‘जल्दी करो.’’ आजम ने कठोर स्वर में कहा. बूढे एकाउंटेंट ने डर के मारे नोटों से भरा थैला आजम की ओर बढ़ा दिया. आजम ने झपट कर थैला ले लिया. थैला बहुत भारी था. उसे पहली बार महसूस हुआ कि नोटों में भी काफी वजन होता है. वह सोचने लगा कि थैला ले कर दौड़ लगाने में उसे जरूर परेशानी होगी. लेकिन फिर भी वह 500 फुट का फासला 15-16 सेकेंड में तय कर सकता था.

आजम दरवाजे की ओर कदम बढ़ाते हुए बोला, ‘‘शोर मचाने की जरूरत नहीं है. अगर किसी ने शोर मचाया या मेरा पीछा करने की कोशिश की तो मैं गोली चला दूंगा.’’ फिर शीघ्र ही वह कमरे से बाहर निकला और दरवाजे की कुंडी लगा कर दौड़ना शुरू कर दिया.

7 साल पहले का जमाना लौट आया, जब आजम दर्शकों के सामने दौड़ लगाता था. आज भी वह अपनी योग्यता का भरपूर प्रदर्शन कर रहा था. उस के कानों में तेज हवाओं की सीटियां गूंज रही थीं. आजम को अपने पीछे दौड़ते कदमों का एहसास हो रहा था. ऐसे में उस के पैरों में मानो पंख लग गए थे.

वह जीजान से तेज दौड़ रहा था. उस की नजरों के सामने छोटा दरवाजा तेजी से पास आता जा रहा था. उस दरवाजे के बाहर रऊफ और हैदर गाड़ी में बैठे उस का इंतजार कर रहे थे. तभी उसे एहसास हुआ कि वह जिंदगी में कभी पहले इस से ज्यादा तेज नहीं दौड़ा था.

अचानक उसे किसी ने पीछे से पकड़ने का प्रयास किया. खतरे का एहसास होते ही क्षण भर के लिए उस का बदन टेढ़ा हो गया. आजम का कंधा पूरी ताकत के साथ सीमेंट के पक्के फर्श से टकराया लेकिन रुपयों का थैला उस के हाथ से फिर भी नहीं छूटा. ऐसे में उस के चेहरे के अंग सुरक्षित रहे. अगर वह सीधा गिरता तो शायद काफी समय तक कोई उसे पहचान न पाता.

जमीन से टकराते ही आजम के फेफड़ों में भरी हुई हवा निकल गई. उस ने एक गहरी सांस ले कर जल्दी से उठने की कोशिश की. लेकिन किसी ने उस की टांगें बड़ी मजबूती से पकड़ रखी थीं. उस के गले से एक तेज चीख निकल गई.

यह कैसे संभव हो सकता था. वह तो अपनी जिंदगी में कभी इतना तेज नहीं दौड़ा था. आखिर कोई आदमी उसे किस तरह पकड़ने में सफल हो गया. उस ने सिर घुमा कर पीछे देखा-एक युवक उस के टखने पकडे़ हुए था. वह युवक बोला, ‘‘माफ करना मित्र, इस थैले में मेरी तनख्वाह है. इसलिए मैं तुम्हें यह थैला ले कर भागने की इजाजत नहीं दे सकता.’’

पहले तो आजम को अपनी आंखों पर यकीन नहीं आया. फिर धीरेधीरे उस ने उस युवक को पहचान लिया. उस ने छोटी सी दाढ़ी बढ़ा रखी थी. उसे पकड़ने वाला युवक शकील था, जिस ने 7 साल पहले कालेज में उसे दौड़ प्रतियोगिता में हराया था.

‘‘शकील!’’ आजम के हलक से एक दर्दभरी कराह निकली, ‘‘तुम…तुम यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘मैं इस टूल फैक्ट्री का कर्मचारी हूं.’’ शकील ने कठोर स्वर में जवाब दिया, ‘‘एक विभाग का मैनेजर.’’

फिर पलक झपकते ही वहां फैक्ट्री के बहुत से कर्मचारी इकट्ठा हो गए. उन्होंने पहले रुपयों का थैला उठाया, फिर आजम को उस के पैरों पर खड़ा किया. वे आपस में जोरजोर से बातें कर रहे थे. रऊफ और हैदर को भी पकड़ लिया गया था.

आजम को उन दोनों की कोई परवाह नहीं थी. उसे रुपए हाथ से निकल जाने का भी कोई दुख नहीं हुआ. आजम को बस एक ही बात का अफसोस था कि इस बार भी वह दौड़ में शकील के मुकाबले दूसरे नंबर पर रहा.

– प्रस्तुति : कलीम उल्लाह   

मम्मी जी के बेटे जी: क्या पति को सास से दूर कर पाई जूही

प्रतिभा ने अपनी ससुराल फोन किया. 3 बार घंटी बजने के बाद वहां उस के पति शरद ने रिसीवर उठाया और हौले से कहा, ‘‘हैलो?’’ शरद की आवाज सुन कर प्रतिभा मुसकराई. उस ने चाहा कि वह शरद से कहे कि मम्मीजी के बेटेजी.

मगर यह बात उस के होंठों से बाहर निकलतेनिकलते रह गई. वह सांस रोके असमंजस में रिसीवर थामे रही. उधर से शरद ने दोबारा कहा, ‘‘हैलो?’’ प्रतिभा शरद के बारबार ‘हैलो’ कहते सुनने से रोमांचित होने लगी, पर उस ने शरद की ‘हैलो’ का कोई जवाब नहीं दिया. सांसों की ध्वनि टैलीफोन पर गूंजती रही. फिर शरद ने थोड़ी प्रतीक्षा के बाद झल्लाते हुए कहा, ‘‘हैलो, बोलिए?’’ किंतु प्रतिभा ने फिर भी उत्तर नहीं दिया, उलटे, वह हंसने को बेताब हो रही थी, इसीलिए उस ने रिसीवर रख दिया. रिसीवर रखने के बाद उस की हंसी फूट पड़ी. हंसतेहंसते वह पास बैठी अपनी बेटी जूही के कंधे झक झोरने लगी. जूही को मम्मी की हंसी पर आश्चर्य हुआ. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, किस बात पर इतनी हंसी आ रही है? टैलीफोन पर ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘टैलीफोन पर कोई बात ही कहां हुई,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया. ‘‘तो फिर आप को इतनी हंसी क्यों आ रही है? पापा पर?’’ जूही चौंकी. ‘‘हां.’’

‘‘उन्होंने ऐसा क्या किया?’’ ‘‘यह सम झाना मुश्किल है.’’ ‘‘मगर कुछ तो बतलाइए, मम्मी, प्लीज?’’ ‘‘वे आएंगे तब बतलाऊंगी, जूही,’’ प्रतिभा ने पीछा छुड़ाने के लिए बेटी जूही से कह दिया. किचन में जा कर प्रतिभा खाना बनाने लगी, मगर उस की हंसी फिर भी रुक नहीं रही थी. उसे रहरह कर इसी बात पर आश्चर्य हो रहा था कि शरद भी कैसा व्यक्ति है जो 2 बच्चों का बाप बन गया, मगर अपनी मां का आंचल अभी भी छोड़ नहीं पाया. बातबात पर मम्मीमम्मी की रट लगाता रहता है. अपने पापा के प्रति तो शरद को इतना लगाव नहीं रहा, मगर मम्मी तो जैसे उस के रोमरोम में बसी हैं.

कदमकदम पर मम्मी उसे याद आती रहती हैं. विवाह के कुछ वर्षों बाद उस ने जब पापामम्मी से अलग होने का सु झाव दिया था तो शरद की पहली प्रतिक्रिया यही हुई थी, ‘मम्मी को अलग कैसे छोड़ सकते हैं.’ इस पर चकित होते हुए प्रतिभा ने शरद से पूछा था, ‘क्यों नहीं छोड़ सकते हो? तुम कोई दूध पीते बच्चे हो जो मम्मी से अलग नहीं रह सकते?’ ‘तुम्हें कैसे सम झाऊं, प्रतिभा. यह मामला दूसरी तरह का है,’ तब शरद ने बहुत ही भावुक हो कर उत्तर दिया था. ‘क्या मतलब? कुछ सम झाओ न?’ ‘बात यह है कि यह भावनाओं का मामला है. भावनात्मक लगाव के कारण ही मम्मी से अलग होना मु झे…’ भावावेश में शरद अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था, क्योंकि उस स्थिति को व्यक्त करने लायक शब्द उसे सू झे नहीं थे. उस ने अपने हावभाव से मम्मी से विछोह की पीड़ादायक स्थिति अभिव्यक्त कर दी थी.

अपने पति की इस बात को प्रतिभा सम झ गई थी, इसीलिए उस ने दोटूक शब्दों में पूछा था, ‘भावनाएं क्या केवल तुम्हारे ही पास हैं? मेरा हृदय क्या भावनाशून्य है?’ ‘क्या मतलब?’ ‘मतलब यही कि मु झे अपने मम्मीपापा से लगाव नहीं है क्या?’ ‘किस ने कहा कि लगाव नहीं है?’ ‘तो फिर तुम ने यह क्यों नहीं सोचा कि मैं अपने मम्मीपापा को छोड़ कर यहां, दूसरे नगर में, इस नए परिवार में कैसे आ गई?’ लेकिन प्रतिभा की इस बात का शरद कोई उत्तर नहीं दे पाया था. वह मुंहबाए देखता रहा था. ‘अपने मम्मीपापा से तुम्हारा यह विछोह तो नाममात्र का है,’ प्रतिभा फिर बोली थी, ‘क्योंकि हम तो इसी नगर में अपना अलग चूल्हा कायम करेंगे. हम कोई दूसरे नगर में नहीं बसेंगे, उन के पास ही रहेंगे. यहां जगह की कमी नहीं होती तो हम अलग होने का विचार भी नहीं करते. मजबूरी में ही यह विचार कर रहे हैं.’

इस मजबूरी का तो शरद भी कायल था, क्योंकि 2 कमरे एवं एक किचन वाले इस घर में विवाह के बाद वह खुद को बंधाबंधा सा महसूस करता था. अभी तक वह मांबाप, भाईबहन के साथ रहता आया था, मगर उसे यह घर छोटा कभी महसूस नहीं हुआ था. पर विवाह के बाद उसे महसूस होने लगा था कि घर जैसे पहले से छोटा हो गया है, इसीलिए इस से बड़े घर की कामना उस ने की थी. प्रतिभा ने उस की इस कामना की पूर्ति के लिए अलग होने की बात सु झाई थी, किंतु यह सु झाव शरद को पसंद नहीं था, क्योंकि अपनी मम्मी से अलग होने की कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठा था. इसीलिए इस विकल्प को वह टालता रहा था. शरद के पापा ने ही शरद की पीड़ा सम झते हुए सु झाव दिया था, ‘‘भैया, कोई बड़ा घर ढूंढ़ो. ढाई कमरे में अब गुजरबसर संभव नहीं है.’ तब शरद और उस का छोटा भाई हेमंत बड़ा मकान ढूंढ़ने निकले थे,

किंतु बहुत भटकने के बाद भी उन्हें कम किराए वाला बड़ा मकान नहीं मिला था. जो मिले थे उन का किराया भी बहुत अधिक था और पेशगी में बड़ी रकम की मांग भी थी. उन की और भी कई शर्तें थीं, इसीलिए उन्होंने यह प्रयास त्याग दिया था. वे मन मसोस कर रह गए थे. इसी दौरान 2 कमरे एवं एक किचन वाले एक फ्लैट की सहज प्राप्ति का मौका आ गया था. हुआ यों था कि शहर से बाहर पूर्वी क्षेत्र में शरद के एक सहयोगी ने वह फ्लैट खरीदा था. वह उस में रहने भी लगा था, किंतु तबादला हो जाने से उसे जाना पड़ रहा था. वह चाहता था कि उस फ्लैट में कोई ऐसा किराएदार आ जाए जो जरूरत होने पर फ्लैट खाली कर दे, दुखी न करे. उसे शरद की मकान की परेशानी पता थी, इसीलिए उस ने शरद से कहा कि वह यदि चाहे तो उस के फ्लैट में आ जाए. अभी 3 वर्ष तक उस के यहां लौटने की कोई संभावना नहीं है. लिहाजा, इन 3 वर्षों तक वह यहां रह सकता है. इस बीच वह अ%2

Summer Special: इन टिप्स की मदद से झुलसी त्वचा भी चमकने लगेगी

अच्छे स्वास्थ्य के लिए धूप में बैठना जरूरी है. हम सर्दियों में अकसर शरीर को धूप लगाने के लिए घंटों धूप में बैठते हैं. गरमियों में भी सुबहसुबह धूप में बैठने की कोशिश करते हैं यानी यह सच है कि धूप सेहत के लिए अच्छी है. इस से विटामिन डी मिलता है, साथ ही धूप शरीर में ऊर्जा का संचार करती है. मगर याद रखें धूप में ज्यादा देर बैठने से त्वचा को कई तरह के नुकसान भी हो सकते हैं.

दरअसल, सूर्य द्वारा पराबैगनी यानी यूवी किरणों का उत्सर्जन होता है. ये किरणें शरीर के लिए कई तरह से लाभकारी हैं. इन से शरीर में विटामिन डी का निर्माण होता है, हड्डियां मजबूत होती हैं, लेकिन ये किरणें त्वचा से संबंधित कुछ परेशानियां भी पैदा कर सकती हैं.

यूवी किरणों के 2 प्रमुख रूप यूवीए और यूवीबी हैं. यूवीए और यूवीबी दोनों ही तरह की किरणों से त्वचा को नुकसान हो सकता है.

यूवीए किरणें त्वचा की गहरी परतों को प्रभावित करती हैं और यूवीबी किरणें त्वचा की सतही परतों को प्रभावित करती हैं. त्वचा पर यूवी किरणों के बहुत से नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं मसलन:

टैनिंग:

सूर्य के संपर्क में आने पर त्वचा का रंग बदलने लगता है. त्वचा ?ालसी हुई सी दिखती है. रंग सांवला होने लगता है. त्वचा पर गहरे रंग के पैच भी पड़ सकते हैं जो बिना ट्रीटमैंट के दूर नहीं होते हैं. चेहरे की रौनक छिन जाती है और ?ांइयां हो सकती हैं.

सनबर्न:

सूर्य के लंबे समय तक संपर्क में आने पर त्वचा पर छाले पड़ जाते हैं, साथ ही लाललाल धब्बे भी बनने लगते हैं जिन में खुजली भी हो सकती है. इसे सनबर्न कहते हैं.

ऐजिंग:

त्वचा के नीचे कोलोजन और इलास्टिन में डैमेज या कमी के कारण स्किन ऐजिंग होने लगती है. इस से फाइन लाइंस और ?ार्रियां आने लगती हैं. यूवी किरणें सीधे कोलोजन और इलास्टिन के स्तर को प्रभावित करती हैं.

त्वचा कैंसर:

स्किन कैंसर जेनेटिक भी हो सकता है. मगर यह सन डैमेज की वजह से भी हो सकता है. सूर्य की इन किरणों का असर हर इंसान पर समान नहीं होता. धूप में निकलने के बाद सब से ज्यादा खतरा गोरी त्वचा वालों को होता है या फिर जिन के शरीर में बड़ी संख्या में तिल होते हैं उन्हें भी ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है. इस के अलावा जिन की त्वचा में जलने के निशान या झाइयां हों या जो कई घंटे बाहर धूप में समय बिताएं उन्हें ज्यादा दिक्कत आती है.

यूवी किरणों से त्वचा की सुरक्षा के तरीके

पूरी त्वचा और शरीर को ढकने वाले कपड़े पहन कर यूवी किरणों को त्वचा तक पहुंचने से रोका जा सकता है.  50 या उस से अधिक के यूपीएफ रेटिंग वाले कपड़ों से यह जोखिम कम किया जा सकता है.

किसी की त्वचा को हानिकारक पराबैगनी किरणों से बचाने के लिए सब से प्रभावी तरीकों में से एक सनस्क्रीन का प्रयोग है.

सुनिश्चित करें कि उपयोग में आने वाले सनस्क्रीन में कम से कम 30 एसपीएफ (सन प्रोटैक्शन फैक्टर) हो. वास्तव में एसपीएफ 30 वाला सनस्क्रीन ज्यादातर भारतीय त्वचा के लिए काफी अच्छा होता है. मगर यदि आप दिन में ज्यादातर समय धूप में बिताती हैं, तो एसपीएफ 50 या इस से अधिक वाला सनस्क्रीन आप के लिए सही है. बाहर जाने से कम से कम 30 मिनट पहले एसपीएफ 30+ के ब्रैंड स्पैक्ट्रम लगाएं.

ब्रैंड स्पैक्ट्रम का मतलब है कि उत्पाद 2 प्रकार की हानिकारक यूवी किरणों- यूवीए और यूवीबी से सुरक्षा प्रदान करता है. अगर धूप में कई घंटे रहना है तो लगातार अंतराल पर नियमित रूप से सन प्रोटैक्शन क्रीम लगाना जरूरी है.

सरल और प्रभावी तरीका

कैप पहन कर भी आप यूवी किरणों से अपनी आंखों, कानों और चेहरे को कुछ हद तक बचाने में सफल हो सकती हैं. बेहतर सुरक्षा के लिए चौड़े किनारे वाला कैप चुनें.

त्वचा को यूवी किरणों से बचाने का सब से सरल और प्रभावी तरीका छत या छाया के नीचे रहना है. जब सुबह और दोपहर के समय सूर्य अपने चरम पर होता है तो सलाह दी जाती है कि सूर्य के सीधे संपर्क से बचें.

पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से त्वचा और शरीर को सूर्य की किरणों से होने वाले विकिरण से बचाया जा सकता है. ताजा जूस, ग्लूकोस, पानी और इलैक्ट्रोलाइसिस पीने से फायदा मिलता है.

धूप का चश्मा आंखों को यूवी जोखिम से बचा सकता है. धूप का वही चश्मा पहनना जरूरी है जो पूरी तरह से यूवीए और यूवीबी किरणों को कवर करता हो और आंखों के लिए कंफर्टेबल हो.

लेजर स्किन टोनिंग और डीटैनिंग: लेजर ऐक्सपोजर के परिणामस्वरूप त्वचा का रंग हल्का हो जाता है.

त्वचा की पौलिशिंग: त्वचा की पौलिशिंग डैमेज त्वचा पर काम करती है और उसे फिर से जीवंत बनाती है.

ऐंटीऐजिंग उपचार:

कभीकभी झुर्रियों और रेखाओं के रूप में त्वचा को होने वाली क्षति स्थायी होती है. बोटोक्स और फिलर्स का उपयोग कर के इसे ठीक किया जा सकता है.

यूवी किरणों से त्वचा को बचाने के लिए डाइट में शामिल करें ये फूड्स:

यूवी किरणों से बचने का एक और उपाय है जिस पर लोग ध्यान नहीं देते और वह है यूवी किरणों से बचने के लिए हैल्दी फूड का सेवन करना. दरअसल, जो भी खाते हैं उस का सीधा असर हमारे चेहरे पर भी दिखता है. अत: आप को ऐसे फूड्स का सेवन करना चाहिए जिस में विटामिन सी ज्यादा हो, साथ ही हरी सब्जियों और ग्रीन टी का भी प्रयोग करें.

आहार में इन्हें शामिल करें

विटामिन सी युक्त फल जिन में संतरा, आंवला और नीबू शामिल हैं. इन में विटामिन सी के साथसाथ ऐंटीऔक्सीडैंट्स भी पाए जाते हैं जो सूर्य की किरणों के नुकसान और सनबर्न से बचाते हैं.

इसी तरह हरी सब्जियों में विटामिन ए पाया जाता है जिस से शरीर सूर्य की किरणों से होने वाले नुकसान से बचता है. आप सनबर्न से भी बच सकती हैं. जिन महिलाओं को धूप से हाथपैरों के डार्क पड़ने की शिकायत होती है उन्हें भी हरी सब्जियां नियमित रूप से खानी चाहिए. टमाटर में लाइकोपिन होता है जो सूर्य की यूवीए और बी किरणों के प्रभाव को कम करने में मदद करता है.

ग्रीन टी

यूवी किरणों से बचने के लिए ग्रीन टी भी बेहद फायदेमंद है. ग्रीन टी में पौलीफेनौल ऐंटीऔक्सीडैंट्स पाए जाते हैं जिन के सेवन से सूर्य की किरणें त्वचा को नुकसान नहीं पहुचाती हैं. अगर आप को सन डैमेज होने की शिकायत अधिक रहती है तो ग्रीन टी को अपने रूटीन में शामिल करना आप के लिए बेहद कारगर हो सकता है.

नट्स एंड फ्रूट

नट्स और ड्राई फ्रूट्स जैसे काजू, बादाम और किशमिश में ओमेगा-3 फैटी ऐसिड पाया जाता है जो स्किन के लिए बेहद लाभकारी है. इस में भरपूर मात्रा में ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण होते हैं जो सनबर्न वाली स्किन को रिकवर करने में मदद करते हैं.

Summer Special: इन 5 टिप्स से कमजोर नाखूनों को बनाएं मजबूत

लंबे व खूबसूरत नाखून देखने में बहुत खूबसूरत लगते हैं और आजकल यह फैशन में भी हैं. लेकिन, नाखूनों को लंबा करना कोई आसान काम नहीं हैं. अधिकतर महिलाओं की यह शिकायत होती है कि उनके नाखून जल्दी ही टूट जाते हैं. दरअसल शरीर में न्यूट्रिशंस की कमी के कारण नाखून कमजोर हो सकते हैं. शरीर में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन आदि की कमी के कारण यह समस्या हो सकती है. अगर आपके नाखून कमजोर हैं तो उन्हें मजबूत बनाने के लिए कुछ आसान तरीकों को अपना सकते हैं. आइए जानें, कैसे बनाएं अपने नेल्स को मजबूत.

इन तरीकों से बनाएं नाखूनों को मजबूत

कुछ तरीके न केवल आपके नाखून खूबसूरत बन सकते हैं, बल्कि यह उतने ही मजबूत भी हो सकते हैं. इसके कुछ टिप्स इस प्रकार हैं-

  1. बायोटीन सप्लीमेंट लें-

बायोटीन को विटामिन एच और विटामिन बी7 के रूप में जाना जाता है. यह वाटर-सॉल्युबल होता है इसलिए इसे शरीर में स्टोर नहीं किया जा सकता है. इस बात का ध्यान रखें कि इसका रोजाना सेवन करें. इसका सेवन करने से बाल और नाखून मजबूत बनते हैं. आप इन्हें पके हुए अंडे, फलियों आदि से प्राप्त कर सकते हैं.

  1. पानी के सम्पर्क में कम आएं-

पानी में अधिक सम्पर्क में आने से नाखून कमजोर और ब्रिटल हो जाते हैं. इसलिए पानी में कोई भी काम करने से पहले ग्लव्स पहन लें.

  1. हाइड्रेट रहें-

पर्याप्त पानी पाना हमारी सेहत के लिए जरूरी है. लेकिन, नाखूनों के लिए भी लाभदायक है. पर्याप्त नमी न होने के कारण नाखून भंगुर हो सकते हैं और जल्दी टूट सकते हैं. पर्याप्त पानी पीने से उन्हें पर्याप्त नमी मिलेगी और वो स्ट्रांग बनेंगे.

  1. सही खानपान-

इस बात का ध्यान रखें कि आप न्यूट्रिएंट से भरपूर आहार का सेवन करें और इसके साथ ही मल्टीविटामिन और मिनरल्स लें. शरीर में पोषक तत्वों की कमी का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ सकता है, जिसमें नाखून भी शामिल हैं. कोई भी नया सप्लीमेंट ली से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें.

  1. प्रोडक्ट्स का करें सोच-समझ कर इस्तेमाल-

किसी भी उत्पाद के इस्तेमाल को बहुत ध्यान से करें जैसे नेल पॉलिश, रिमूवर, हैंड सेनेटाइजर और क्लीनिंग प्रोडक्ट्स आदि. क्योंकि, इनमें मौजूद केमिकल्स आपके नाखूनों को कमजोर बना सकते हैं. जेल या ऐक्रेलिक नेल्स का इस्तेमाल करने से भी बचें. जब भी आप पॉलिश को रिमूव करते हैं या आपको लगता है कि आपके नाखून पर्याप्त हाइड्रेट नहीं हैं, तो उन पर हैंड क्रीम का इस्तेमाल करें. हाथ धोने के बाद भी आप ऐसा कर सकते हैं.

Summer Special: पालक साबूदाना फ्रिटर्स, स्टीम्ड आलू कोफ्ते और दाल पकौड़ा

गरमी के मौसम में बच्चों को कुछ चटपटा खाने का मन होता है लेकिन हमें उनकी हेल्थ का ध्यान रखना होता है. इसलिए आप घर पर ही उनके लिए कुछ मजेदार रेसिपी बना सकते हैं. तो आज हम आपको बताएंगे ऐसी ही 3 रेसिपीज के बारे में. जो टेस्टी भी है और मजेदार भी.

  1. पालक साबूदाना फ्रिटर्स

सामग्री

  • 1 कप साबूदाना  
  • 1 कप पालक बारीक कटा  
  • 1/2 कप मूंगफली का चूरा
  • 1/2 कप पनीर  
  • 2 उबले आलू  
  • 2 हरीमिर्चें कटी  
  • 1/2 चम्मच अदरक कसा
  • तलने के लिए तेल  
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

  • साबूदाने को 7-8 घंटों के लिए 1 कप पानी में भिगो दें.
  • इस में पालक, हरीमिर्चें, मूंगफली का चूरा, पनीर और आलू कस कर तथा नमक अच्छी तरह मिला लें.
  • इस की छोटीछोटी टिकियां बना लें.
  • कड़ाही में तेल गरम कर धीमी आंच पर साबूदाने की टिकियां सुनहरा होने तक तल लें.
  • चटनी या सौस के साथ गरमगरम परोसें

2. स्टीम्ड आलू कोफ्ते

सामग्री

  • 1 कप बेसन  
  • 3 आलू उबले  
  • 1/2 कप पनीर  
  • 2 बड़े चम्मच लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च कटी
  • 1 प्याज कटा  
  • 2 हरीमिर्चें कटी  
  • 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी  
  • 2 छोटे चम्मच तेल
  • थोड़ी सी राई  
  • करीपत्ता  
  • 1 हरीमिर्च  
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

  1. आलुओं को मैश कर इस में पनीर, लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च, हरीमिर्च, धनियापत्ती व नमक डाल कर अच्छी तरह मैश कर इस की छोटीछोटी बौल्स बनाएं.
  2. एक कटोरी में बेसन घोल लें. इस में नमक मिला लें.
  3. आलू की छोटी बौल्स को बेसन में लपेट कर 10 से 15 मिनट स्टीम करें.
  4. कड़ाही में तेल गरम कर इस में राई, करीपत्ता व हरीमिर्च का तड़का लगाएं और फिर सभी स्टीम कोफ्ते इस में मिला दें.

3. मूंगदाल पकौड़ा

सामग्री

  • 1 किलोग्राम मूंग दाल
  • 100 ग्राम प्याज कटा
  • 50 ग्राम हरीमिर्च
  • 100 ग्राम धनियापत्ती
  • 50 ग्राम अदरक कटा
  • 20 ग्राम पेरीपेरी मसाला
  • 30 ग्राम पानी
  • 300 मिलीलिटर रिफाइंड औयल
  • नमक स्वादानुसार.

विधि

  1. मूंग की दाल को रातभर भिगो लें और अच्छी तरह पीस लें.
  2. मूंगदाल के पेस्ट में पेरीपेरी मसाला को छोड़ कर बाकी बचे सभी मसालों को अच्छे से मिक्स करें.
  3. कड़ाही में तेल गरम कर के इसे सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें.
  4. अब पेरीपेरी मसाला से सीजन करें और गरमगरम परोसें.

पिछले कुछ महीनों से खाने के बाद हमेशा मेरे सीने में तेज जलन होती है, क्या करूं?

सवाल

मुझे सीने व गले में लगातार जलन रहती है. पहले तो यह तकलीफ कभीकभी होती थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से खाने के बाद जलन हमेशा होती है. हालांकि मैं खाने में ज्यादा मिर्च व तलाभुना लेने से परहेज करती हूं. क्या करूं?

जवाब

ग्रासनली एक ऐसी नली होती है जो मुंह से भोजन पेट में ले जाती है. गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज (गर्ड) या ऐसिडिटी तब होती है जब आप की ग्रासनली के अंतिम सिरे पर स्थित मांसपेशी ठीक प्रकार से बंद नहीं होती है. इस से पेट की चीजें वापस ऊपर ग्रासनली में रिसने लगती हैं और जलन उत्पन्न करती हैं. आप को अपने सीने या गले में जलन का अनुभव हो सकता है जिसे हार्टबर्न कहते हैं.

कभीकभी आप को अपने मुंह में पेट के तरल का अनुभव हो सकता है. इस का उपचार न करने पर इस की वजह से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आप को दवा या सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है.

निम्न तरीके से इन लक्षणों को कम किया जा सकता है.

शराब और मसालेदार, तैलीय या ऐसिडिक आहार से दूर रहें.

एकदम ज्यादा न खाएं बल्कि छोटे आहार लें.

खाना खा कर एकदम न सोएं, वजन को नियंत्रित रखें.

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सवाल

मेरी उम्र 40 साल ह. मैं पिछले काफी समय से अपने पेट व जांघ के बीच सूजन महसूस कर रहा हूं. धीरेधीरे यह बढ़ती जा रही है. जब मैं ने एक डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने हर्निया की शिकायत बताई और औपरेशन करवाने की सलाह दी. मुझे औपरेशन से डर लगता है. क्या इस का कोई विकल्प है?

जवाब

हर्निया का सिर्फ एक ही उपचार है सर्जरी. इसे अन्य किसी भी दवा से ठीक नहीं किया जा सकता. आजकल हर्निया की सर्जरी लैप्रोस्कोपी के द्वारा भी की जाती है. इस में डरने वाली कोई बात नहीं होती क्योंकि सिर्फ

3 छोटे छेद कर के सर्जरी कर दी जाती है. 24 घंटे के अंदरअंदर मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है. इसलिए आप को बिना किसी डर या शंका के किसी काबिल सर्जन से अपनी सर्जरी करवा लेनी चाहिए.

-डा. कपिल अग्रवाल

डाइरैक्टर, हैबिलाइट सैंटर फौर बैरिएट्रिक ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी द्य

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आधुनिकता बनाम धर्मांधता

मध्य प्रदेश के ग्वालियर के नजदीक दतिया की 24 वर्षीय निकिता चौरसिया ने एमबीए किया है. बीती 16 फरवरी को निकिता की शादी जो उस ने अपनी मरजी से की धूमधाम से संपन्न हुई. निकिता ने ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराया और मैरिज गार्डन आ कर बरात का इंतजार करने लगी. इस दौरान शादी की सारी रस्में मसलन हलदी, मंडप, मेहंदी और संगीत की हुईं. निकिता के पिता पान की दुकान करते हैं. भाई कुणाल भी मेहमानों के स्वागत और खानेपीने सहित दूसरे इंतजामों में लगा था.

मां और छोटी बहन महिलाओं के साथ अंदर मंगल गीत गाने के साथसाथ रीतिरिवाज संपन्न करवाने में लगी थी. लेकिन मेहमानों के चेहरों पर खुशी के बजाय एक खिंचाव सा था जो बरात का इंतजार बैचेनी से नहीं बल्कि एक उत्सुकता से कर रहे थे क्योंकि किसी ने अपनी जिंदगी में पहले कभी ऐसी शादी नहीं देखी थी.

वजह यह कि निकिता की शादी किसी युवक से नहीं बल्कि एक मूर्ति से होने जा रही थी. भगवान शंकर जो निकिता के दूल्हा थे, अब पति हैं जिन की बरात ब्रह्म कुमारी आश्रम से आई थी. द्वारचार के बाद 2 लोग दूल्हे की मूर्ति को उठा कर लाए और मैरिज गार्डन के बीचोंबीच उसे रख दिया. इस के बाद फेरों की रस्म के लिए पंडितजी के बुलाबे पर दुलहन निकिता आई और उस ने जयमाला के बाद शंकर की मूर्ति के संग 7 फेरे लिए. इस दौरान कुछ लोगों ने जम कर डांस किया.

ये फेरे पंडितों के मंत्रोच्चार के बीच संपन्न हुए. इस दौरान गार्डन में खानापीना चलता रहा. लोग उपहार और आशीर्वाद सिर्फ वधू को देते रहे क्योंकि भगवान भोले नाथ को तो आशीर्वाद देने की उन की न हैसियत थी और न ही हिम्मत. सो लोग उन्हें प्रणाम और चरणस्पर्श करते नजर आए. कुछ लोगों ने पुष्प वर्षा की और 1 घंटे में निकिता भगवान शंकर की पत्नी बन गई.

अनूठी शादी

इस अनूठी शादी को कवर करने का मौका मीडिया वाले भला कैसे चूक जाते. उन के लिए तो यह ऐक्सक्लूसिव और बिकाऊ खबर थी. इसलिए उन्होंने निकिता का इंटरव्यू भी किया, जिस में निकिता ने बताया कि भगवान शिव से शादी करने की वजह यह है कि लोग सांसारिक मोहमाया के जाल में फंसते जा रहे हैं. धनदौलत होने के बाद भी दुखी रहते हैं. महामार्ग को चुनने वाला हमेशा सुखी रहता है. इसलिए उस ने इस मार्ग को चुना किसी सामान्य लड़के के बजाय भगवान शिव को पति चुना. अब वह नव वर के साथ विश्व कल्याण के काम करेगी.

पुरातनपंथ का चक्रव्यूह

निकिता ने जब शंकर से शादी करने का अपना फैसला सुनाया तो घर वाले अचकचा गए थे. उन्होंने उसे सम झाने की कोशिश की पर कुछ देर की बहस के बाद उन्हें ही ज्ञान प्राप्त हो गया कि यह शादी तो हो कर रहेगी. अब यह उन के ऊपर है कि वे निकिता का साथ देते हुए अरैंज्ड मैरिज करेंगे या नहीं. आखिरकार बेटी की खुशी के लिए वे राजी हो गए और शुभचिंतकों की इस सम झाइश पर ध्यान नहीं दिया कि लड़की को सम झाओबु झाओ और कोई अच्छा सा एमबीए पास लड़का देख कर उस की शादी कर दो. दोनों साथ रहते गृहस्थ जीवन जीएं, वंश आगे बढ़ाएं और समाज व देश के लिए कुछ करें उसी में सार है वरना इस ड्रामे से तो लड़की की जिंदगी दूभर हो जाएगी.

मगर चौरसिया परिवार तो शंकर को दामाद बनाने के लिए निकिता से भी ज्यादा उतावला निकला और सलाह देने वालों को यह कहते हुए उन्होंने हड़का दिया कि तुम लोग अच्छा कुछ होते देखते ही टंगड़ी अड़ाने लगते हो. दतिया और दतिया के बाहर जिस ने भी सुना उसे राजस्थान की पूजा सिंह की याद आ गई. उस ने भी इसी तरह कृष्ण मूर्ति से शादी जयपुर में बीते 22 दिसंबर को की थी. पूजा और निकिता दोनों को पंडितों ने अपने पोथेपत्तर खंगाल कर बताया था कि इस तरह के यानी प्रतिमा विवाह का प्रावधान हिंदू धर्म में है. इसलिए वे भगवानों की मूर्तियों से शादी कर सकती हैं.

सामूहिक आस्था पैर पसार लेती है

आधुनिक भारतीय नारियां और युवतियां किस तरह पुरातनपंथ के चक्रव्यूह में फंसी हैं, यह इन 2 और ऐसी आए दिन की शादियों के अलावा खासी शिक्षित युवतियों के सबकुछ छोड़ कर सन्यास लेने से भी आएदिन साबित होता रहता है. अधिकतर सन्यास दीक्षा लेने वाली युवतियां जैन समुदाय की होती हैं. सन्यास का फैसला लेने में मुनि लोग उन की हिम्मत बढ़ाते हुए मदद करते हैं और फिर पूरा समाज ऐसा धूमधड़ाका आयोजित करता है जिस के नीचे वे तमाम बातें और दलीलें फना हो जाती हैं जो आम लोगों के मन में उमड़घुमड़ रही होती हैं. जहां सामूहिक आस्था पैर पसार लेती है तर्कों को वहां से अपनी इज्जत और जान बचाने खिसकने में ही भलाई लगती है.

अब ये सवाल लोगों के मन ही दफन हो कर रह गए कि कल को अगर दोनों में पटरी नहीं बैठी और लड़की ने तलाक मांगा तो वह कौन देगा नीचे की अदालत या ऊपर की क्योंकि दूल्हा तो उस लोक का है या यह फैसला भी वे पंडित ही करेंगे जिन्होंने जाने किस पोथी से शादी का तरीका ढूंढ़ा था वही तलाक का रास्ता निकालेंगे?

पति परमेश्वर क्यों

मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो ये और ऐसी युवतियां इसी लोक के किसी जीतेजागते युवक से शादी करने और घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां उठाने में खुद को असहाय पाती हैं. इसलिए भगवानों की मूर्तियों से शादी कर लेती हैं. असल में किशोरावस्था से ही ये भक्ति के रंग में इतनी रंग जाती हैं कि वास्तविक दुनिया और जिंदगी से कट जाती हैं. इन्हें शुरू से ही घुट्टी पिला दी जाती है कि कृष्ण या शंकर ही तुम्हारा स्वामी है.

अगर सांसारिक पुरुष से विवाह नहीं करना और जीवन का लक्ष्य धर्म तय कर लिया है तो भगवान से ही विवाह कर लो जिस का प्रावधान धर्म में है. राम से कोई युवती शादी नहीं करती क्योंकि वे एक पत्नीव्रत धारी हैं और दूसरे उन से प्रणय निवेदन करने वाली शूर्पणखा का अंजाम सभी को याद है. अब भला कौन युवती अपनी नाक कटवाना पसंद करेगी.

इस मामले में एक दिलचस्प बात यह भी है कि कभी कोई युवक किसी देवी की मूर्ति से शादी नहीं करता. अगर प्रावधान है तो बराबरी से होना चाहिए. ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि मैसेज यह देना रहता है कि पुरुष ही सर्वोपरि है स्त्री उस के बिना अधूरी है. इसलिए उसे यह एहसास कराया जाता है कि स्त्री जीवन की सार्थकता और पूर्णता ईश्वर के चरणों में है और पुरुष ईश्वर है. पति को परमेश्वर यों ही नहीं कहा गया है. पुरुष जीवन की संपूर्णता या सार्थकता स्त्री के चरणों में नहीं है फिर भले ही वह देवी ही क्यों न हो.

मुमकिन है यह सब धर्म के धंधे में कैरियर बनाने, पैसा कमाने और पूजने के लिए किया जाता हो, लेकिन समाज से एक शिक्षित युवती छिन जाती है जिस का जिम्मेदार वह पुरातनपंथ होता है जिस ने पूरे समाज को तरहतरह के डर और लालच दिखाते हुए जकड़ रखा है. अब कौन पूजा या निकिता से पूछे कि जब मूर्तियों से ही शादी करनी थी तो इतनी पढ़ाईलिखाई क्यों की थी. सोचना जरूरी है कि क्या भगवान भी शिक्षित पत्नी चाहने लगा है?

एक चेहरा यह भी

शिवरात्रि की दोपहर यह प्रतिनिधि भोपाल के न्यू मार्केट इलाके स्थित इंडियन कौफी हाउस में था. उसी वक्त ओला से 2 महिलाएं उतरीं जिन में से ज्यादा उम्र वाली ने सलवारसूट और उस से कम उम्र वाली ने जींसटौप पहन रखा था. एक के हाथ में पौलिथीन का बैग था जिसे ले कर वे रौकेट की रफ्तार से टौयलेट में घुस गईं. इस पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया, लेकिन 5-7 मिनट बाद जब वे टौयलेट से बाहर निकलीं तो उन के कपडे़ बदले हुए थे. अब दोनों ही पीली साडि़यां पहने हुए थीं.

पौलिथीन वाला बैग अब भी उन के हाथ में था. लेकिन अब उस में उतारे हुए कपडे़ थे. एकाध वेटर और मैनेजर का ध्यान उन की तरफ गया. लेकिन कुछ पूछा और कहा जाता उस से पहले ही वे जिस आंधी की तरह आई थीं उस से बड़े तूफान की तरह वापस चली गईं. होगा कुछ यह सोच कर सभी ने सिर  झटक लिया. लेकिन आधे घंटे बाद उन्हें न्यू मार्केट में ही एक शिव बरात में देखा तो यह प्रतिनिधि चौंका कि इसलिए इन्होंने ड्रैस बदली थी.

मन तो वही है

यह कोई नई बात नहीं है बल्कि आज के दौर की महिलाओं का सच है कि वे बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और नजर आती हैं. कलश यात्राएं अब धर्म की दुकानदारी का बहुत बड़ा जरीया बन चुकी हैं. इस में महिलाएं भगवा पीले या लाल कपड़े जो आमतौर पर साड़ी ही होती है पहन कर चलती हैं. उन के हाथों और सिर पर कलश होता है और वे मंगल गीत गा रही होती हैं. यह ड्रैस कोड बताता है कि महिलाएं अभी आजाद नहीं हुई हैं. वे धर्म के मकड़जाल में बुरी तरह जकड़ी हुई हैं. हां ऊपर से जरूर वे आधुनिक दिखती हैं.

इस डर या गुलामी को नापने के लिए पैमानों की कमी नहीं. करवाचौथ के दिन घर हो या औफिस औरतें आपस में बतियाती नजर आती हैं कि ए तेरे मियां ने गिफ्ट में क्या दिया? तो क्या आप इसे आधुनिकता कहेंगी, जो औरत की पुरानी तसवीर नए फ्रेम में पेश करती बात है? इस फ्रेम की तुलना जकड़न से करते हुए समाज शास्त्र की एक सीनियर प्रोफैसर कहती हैं, ‘‘पहले महिला की कलाइयों पर धार्मिक रीतिरिवाजों की रस्सी कांस या सन से बनी होती थी, जिस में स्किन छिल जाने की हद तक चुभन होती थी. अब यह रस्सी रेशम या कपास की होने लगी है, जिस में चुभन कम होती है पर जकड़न पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो ज्यों की त्यों है. बाजार धर्म में कितनी गहरी पैठ बना चुका है यह तो गिफ्ट वाली बातचीत से साबित होता ही है, लेकिन उस से पहले यह सम झ आता है कि पुरातनपंथ वक्त के साथ मन और चेतना से गहरे अगर आत्मा नाम का कोई तत्त्व होता है तो उस में भी जड़ें जमा चुका है. किसी सौफ्ट वेयर कंपनी की कंप्यूटर इंजीनियर अगर हरतालिका तीज के दिन भूखीप्यासी रहे तो ऐसी शिक्षा पर लानतें न भेजने की कोई वजह नहीं.

इंटरनैट की पोंगापंथी क्रांति की महिलाएं पहले भी धार्मिक मुहरा थीं और आज भी हैं बल्कि अब पहले से कहीं ज्यादा हैं क्योंकि उन के हाथ में टैक्नोलौजी की नई देन स्मार्ट फोन नाम का आत्मघाती गजट है, जिस में उन्हें सुबहसुबह ही दिन का पंचांग, तिथि, व्रत, त्योहार, उपवास आदि की जानकारी मिल जाती है जो पहले सास या मां की जिम्मेदारी होती थी कि बहू आज तुम्हें निराहार निर्जला रहना है क्योंकि आज निर्जला एकादशी है.

न तो पहले सास का हुक्म टाला जा सकता था न आज मोबाइल बाबा की अनदेखी की जा सकती है. अपने मरीजों को खाली पेट न रहने की सलाह देने वाली डाइटिशियन और फिजिशियन भी खाली पेट रहते कौन सी आधुनिकता का सुबूत देती हैं. यह या तो वही जानें या पंडेपुजारी अथवा भगवान बशर्ते वह कहीं होता हो तो. अब नए दौर की औरत को गुरु बनाने या बाबाओं के चमत्कार देखने दूर कहीं नहीं जाना पड़ता. बाबाजी या गुरुजी खुद उस के स्मार्ट फोन में प्रकट हो जाते हैं. यूट्यूब पर बाबाओं और उन के चमत्कारों का खजाना भरा पड़ा है जिन्हें देख आस जगती है कि फलां टोटका करने से पति इधरउधर मुंह नहीं मारेगा.

इंटरनैट भी कम दोषी नहीं

इंटरनैट ने महिलाओं को दिया कम है उन से छीना ज्यादा है. भोपाल के इलाके गौतम नगर में किराए के फ्लैट में रहने वाली बैंक औफिसर सुगंधा आप्टे (बदला हुआ नाम) मनपसंद पति चाहने इन दिनों 16 सोमवार के व्रत कर रही है. सोमवार की सुबह उठ कर वह नहाधो कर शिव मंदिर जाती है और दिनभर व्रत के नाम पर भूखीप्यासी रहती है. शाम को बैंक से लौट

कर वह पूजापाठ करती है और बिना नमक का खाना खाती है. 16 सोमवार के व्रत पूरे हो जाने के बाद सुगंधा उज्जैन हरिद्वार या नासिक जा कर व्रत का समापन करेगी जिसे उद्यापन भी कहते हैं.

यह विधिविधान उस ने यूट्यूब से सीखा है. लेकिन सुगंधा खुद को पुरातनपंथी कहने पर चिढ़ कर कहती हैं कि नहीं मैं नए जमाने की पढ़ीलिखी मौडर्न लड़की हूं जो कभीकभार फ्रैंड्स के साथ बियर भी पीती है और सिगरेट के धुएं के छल्ले भी बनाती है यानी वह ऊपर से कथित आधुनिक और अंदर से वास्तविक पुरातनपंथी है.

सुगंधा की नजर में कभीकभार मन की कर लेना गलत नहीं है. लेकिन कभी भी धर्म की अनदेखी करना कहीं से भी सही नहीं है. जब से सोशल मीडिया का चलन बढ़ा है तब से निकिता पूजा और सुगंधा, जैसी कई लड़कियों को अपनी सनक सा झा करने के लिए एक प्लेटफौर्म भी मिल गया है. ये लड़कियां किसी भी देवता और उन में भी खासतौर से कृष्ण को अपना सखा या प्रेमी बना उस के साथ ऐसा व्यवहार करती हैं मानो वह जीवित उन के सामने खड़ा हो या साथ हो.

पुरातनपंथ फैलाते ब्रैंडेड बाबा

ऐसी ही एक युवती वृंदावन की राधे वृंदावनेश्वरी है जिस के हजारों फौलोअर्स हैं. वृंदावनेश्वरी राजा वृषभानु की बेटी और कृष्ण की हजारों प्रेमिकाओं में से एक थी. जाहिर है यह असली नाम नहीं है. मुमकिन है हो भी लेकिन इस से उस की प्रेमभक्ति या सनक जो भी कह लें पर कोई असर नहीं पड़ता. मासूम और सुंदर वृंदावनेश्वरी सिर से ले कर नाक तक तिलक लगाए रहती है और अकसर ऐसे वीडियो शेयर करती है जिन में वह कृष्ण से बेहद अंतरंग होती है. कई बार वह कृष्ण की मनुहार करते नजर आती है तो कभी उन्हें  िझड़क भी देती है. इसी लीला की आड़ में वह धर्म और शाकाहार का प्रचार भी करती रहती है.

वृंदावनेश्वरी जितनी कृष्णप्रिया हैं उतनी ही सुंदर, आकर्षक और बिंदास दिनरात कृष्ण में डूबी रहने वाली. वह अकसर फिल्मी गानों की पैरोडी पर भी अपनी भावनाएं व्यक्त करती है और कृष्ण को पूजने के फायदे गिनाती रहती है और व्रतत्योहारों की महिमा भी पोस्ट करती है. यह और ऐसी सैकड़ोंहजारों युवतियां सनातन और पुरातनपंथ फैलाने की ब्रैंडेड बाबाओं से कम दोषी नहीं कही जा सकतीं.

कोविड का कहर

कोविड और लौकडाउन के दौरान महिलाएं और तेजी से पुरातनपंथ की गिरफ्त में आईं क्योंकि तब उन के सिर पिता, पति, बेटा या भाई छिन जाने का डर शिद्दत से मंडरा रहा था. तब बिना मनु स्मृति पढ़े ही उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हो गया था कि समाज पुरुषप्रधान है और यह सहारा अगर छिना तो वे कहीं की नहीं रह जाएंगी.

लिहाजा, इन दिनों उन्होंने जम कर व्रतउपवास और दूसरे धार्मिक जतन मसलन टोनटोटके तक किए. लेकिन तब उन की सलामती के लिए घर के किसी पुरुष ने यह सब नहीं किया क्योंकि महिला अगर चली भी जाती तो उन की सेहत या स्थिति पर कोई दीर्घकालिक फर्क नहीं पड़ना था. कोविड के पहले भी हालात यही थे कि पुरुष ने यह सब कभी नहीं किया.

कोविड के दौरान विधुर हुए अधिकतर पुरुषों ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन महिलाएं जो विधवा हुईं उन की स्थिति बदतर है क्योंकि विधवा विवाह आज भी आसान नहीं. कोविड ने समाज की भयावहता और भेदभाव को तीव्रता से उजागर किया कि पुरुषप्रधान समाज में महिलाएं चाहे वे अनपढ़ हों या शिक्षित हों असुरक्षा के मामले में उन में कोई अंतर नहीं यानी आधुनिकता तब भी सैकंडरी थी आज भी है. पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा की जो गारंटी धर्म देता है शिक्षा वह नहीं दे पा रही. यह गारंटी कितनी खोखली है यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं.

गैरधार्मिक दकियानूसी भी

जब महिलाएं तेजी से शिक्षित हुईं और नौकरियों में आने लगीं तो उन्हें आभास हुआ कि वे अभी तक ठगी जा रही थीं. लेकिन इस का कोई खास प्रतिकार उन्होंने नहीं किया. हां थोड़ाबहुत वे अपनी मरजी से जीने लगीं. इस का यह मतलब नहीं कि उन्होंने खुद को धार्मिक जकड़न से मुक्त कर लिया बल्कि यह है कि कमाऊ होने के नाते वे कुछ पैसा अपनी सहूलियतों पर खर्च करने लगी जिस पर पुरुषों ने ऐतराज दर्ज न करने में ही बेहतरी सम झी.

फिर शुरू हुआ आधुनिकता के नाम पर किट्टी पार्टियों का दौर जिस की 3 दशक तक खूब चर्चा रही. इस पर भी पुरुषों ने ऐतराज नहीं जताया क्योंकि यह उन के भले की ही बात थी. औरतें अपना वक्त और पैसा जाया करें और उत्पादकता और रचनात्मकता से दूर रहें यह इच्छा किट्टी पार्टियों से पूरी होने लगी. यह एक गैरधार्मिक काम है जिस से औरत पिछड़ी ही रहती है. वह महफिल में मशगूल रहती है ठीक वैसे ही जैसे सत्यनारायण की कथा में रहती है कि कोई तर्क नहीं, कोई सवाल नहीं बस हवन में आहुति डाले जाओ.

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