आधुनिकता बनाम धर्मांधता

मध्य प्रदेश के ग्वालियर के नजदीक दतिया की 24 वर्षीय निकिता चौरसिया ने एमबीए किया है. बीती 16 फरवरी को निकिता की शादी जो उस ने अपनी मरजी से की धूमधाम से संपन्न हुई. निकिता ने ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराया और मैरिज गार्डन आ कर बरात का इंतजार करने लगी. इस दौरान शादी की सारी रस्में मसलन हलदी, मंडप, मेहंदी और संगीत की हुईं. निकिता के पिता पान की दुकान करते हैं. भाई कुणाल भी मेहमानों के स्वागत और खानेपीने सहित दूसरे इंतजामों में लगा था.

मां और छोटी बहन महिलाओं के साथ अंदर मंगल गीत गाने के साथसाथ रीतिरिवाज संपन्न करवाने में लगी थी. लेकिन मेहमानों के चेहरों पर खुशी के बजाय एक खिंचाव सा था जो बरात का इंतजार बैचेनी से नहीं बल्कि एक उत्सुकता से कर रहे थे क्योंकि किसी ने अपनी जिंदगी में पहले कभी ऐसी शादी नहीं देखी थी.

वजह यह कि निकिता की शादी किसी युवक से नहीं बल्कि एक मूर्ति से होने जा रही थी. भगवान शंकर जो निकिता के दूल्हा थे, अब पति हैं जिन की बरात ब्रह्म कुमारी आश्रम से आई थी. द्वारचार के बाद 2 लोग दूल्हे की मूर्ति को उठा कर लाए और मैरिज गार्डन के बीचोंबीच उसे रख दिया. इस के बाद फेरों की रस्म के लिए पंडितजी के बुलाबे पर दुलहन निकिता आई और उस ने जयमाला के बाद शंकर की मूर्ति के संग 7 फेरे लिए. इस दौरान कुछ लोगों ने जम कर डांस किया.

ये फेरे पंडितों के मंत्रोच्चार के बीच संपन्न हुए. इस दौरान गार्डन में खानापीना चलता रहा. लोग उपहार और आशीर्वाद सिर्फ वधू को देते रहे क्योंकि भगवान भोले नाथ को तो आशीर्वाद देने की उन की न हैसियत थी और न ही हिम्मत. सो लोग उन्हें प्रणाम और चरणस्पर्श करते नजर आए. कुछ लोगों ने पुष्प वर्षा की और 1 घंटे में निकिता भगवान शंकर की पत्नी बन गई.

अनूठी शादी

इस अनूठी शादी को कवर करने का मौका मीडिया वाले भला कैसे चूक जाते. उन के लिए तो यह ऐक्सक्लूसिव और बिकाऊ खबर थी. इसलिए उन्होंने निकिता का इंटरव्यू भी किया, जिस में निकिता ने बताया कि भगवान शिव से शादी करने की वजह यह है कि लोग सांसारिक मोहमाया के जाल में फंसते जा रहे हैं. धनदौलत होने के बाद भी दुखी रहते हैं. महामार्ग को चुनने वाला हमेशा सुखी रहता है. इसलिए उस ने इस मार्ग को चुना किसी सामान्य लड़के के बजाय भगवान शिव को पति चुना. अब वह नव वर के साथ विश्व कल्याण के काम करेगी.

पुरातनपंथ का चक्रव्यूह

निकिता ने जब शंकर से शादी करने का अपना फैसला सुनाया तो घर वाले अचकचा गए थे. उन्होंने उसे सम झाने की कोशिश की पर कुछ देर की बहस के बाद उन्हें ही ज्ञान प्राप्त हो गया कि यह शादी तो हो कर रहेगी. अब यह उन के ऊपर है कि वे निकिता का साथ देते हुए अरैंज्ड मैरिज करेंगे या नहीं. आखिरकार बेटी की खुशी के लिए वे राजी हो गए और शुभचिंतकों की इस सम झाइश पर ध्यान नहीं दिया कि लड़की को सम झाओबु झाओ और कोई अच्छा सा एमबीए पास लड़का देख कर उस की शादी कर दो. दोनों साथ रहते गृहस्थ जीवन जीएं, वंश आगे बढ़ाएं और समाज व देश के लिए कुछ करें उसी में सार है वरना इस ड्रामे से तो लड़की की जिंदगी दूभर हो जाएगी.

मगर चौरसिया परिवार तो शंकर को दामाद बनाने के लिए निकिता से भी ज्यादा उतावला निकला और सलाह देने वालों को यह कहते हुए उन्होंने हड़का दिया कि तुम लोग अच्छा कुछ होते देखते ही टंगड़ी अड़ाने लगते हो. दतिया और दतिया के बाहर जिस ने भी सुना उसे राजस्थान की पूजा सिंह की याद आ गई. उस ने भी इसी तरह कृष्ण मूर्ति से शादी जयपुर में बीते 22 दिसंबर को की थी. पूजा और निकिता दोनों को पंडितों ने अपने पोथेपत्तर खंगाल कर बताया था कि इस तरह के यानी प्रतिमा विवाह का प्रावधान हिंदू धर्म में है. इसलिए वे भगवानों की मूर्तियों से शादी कर सकती हैं.

सामूहिक आस्था पैर पसार लेती है

आधुनिक भारतीय नारियां और युवतियां किस तरह पुरातनपंथ के चक्रव्यूह में फंसी हैं, यह इन 2 और ऐसी आए दिन की शादियों के अलावा खासी शिक्षित युवतियों के सबकुछ छोड़ कर सन्यास लेने से भी आएदिन साबित होता रहता है. अधिकतर सन्यास दीक्षा लेने वाली युवतियां जैन समुदाय की होती हैं. सन्यास का फैसला लेने में मुनि लोग उन की हिम्मत बढ़ाते हुए मदद करते हैं और फिर पूरा समाज ऐसा धूमधड़ाका आयोजित करता है जिस के नीचे वे तमाम बातें और दलीलें फना हो जाती हैं जो आम लोगों के मन में उमड़घुमड़ रही होती हैं. जहां सामूहिक आस्था पैर पसार लेती है तर्कों को वहां से अपनी इज्जत और जान बचाने खिसकने में ही भलाई लगती है.

अब ये सवाल लोगों के मन ही दफन हो कर रह गए कि कल को अगर दोनों में पटरी नहीं बैठी और लड़की ने तलाक मांगा तो वह कौन देगा नीचे की अदालत या ऊपर की क्योंकि दूल्हा तो उस लोक का है या यह फैसला भी वे पंडित ही करेंगे जिन्होंने जाने किस पोथी से शादी का तरीका ढूंढ़ा था वही तलाक का रास्ता निकालेंगे?

पति परमेश्वर क्यों

मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो ये और ऐसी युवतियां इसी लोक के किसी जीतेजागते युवक से शादी करने और घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां उठाने में खुद को असहाय पाती हैं. इसलिए भगवानों की मूर्तियों से शादी कर लेती हैं. असल में किशोरावस्था से ही ये भक्ति के रंग में इतनी रंग जाती हैं कि वास्तविक दुनिया और जिंदगी से कट जाती हैं. इन्हें शुरू से ही घुट्टी पिला दी जाती है कि कृष्ण या शंकर ही तुम्हारा स्वामी है.

अगर सांसारिक पुरुष से विवाह नहीं करना और जीवन का लक्ष्य धर्म तय कर लिया है तो भगवान से ही विवाह कर लो जिस का प्रावधान धर्म में है. राम से कोई युवती शादी नहीं करती क्योंकि वे एक पत्नीव्रत धारी हैं और दूसरे उन से प्रणय निवेदन करने वाली शूर्पणखा का अंजाम सभी को याद है. अब भला कौन युवती अपनी नाक कटवाना पसंद करेगी.

इस मामले में एक दिलचस्प बात यह भी है कि कभी कोई युवक किसी देवी की मूर्ति से शादी नहीं करता. अगर प्रावधान है तो बराबरी से होना चाहिए. ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि मैसेज यह देना रहता है कि पुरुष ही सर्वोपरि है स्त्री उस के बिना अधूरी है. इसलिए उसे यह एहसास कराया जाता है कि स्त्री जीवन की सार्थकता और पूर्णता ईश्वर के चरणों में है और पुरुष ईश्वर है. पति को परमेश्वर यों ही नहीं कहा गया है. पुरुष जीवन की संपूर्णता या सार्थकता स्त्री के चरणों में नहीं है फिर भले ही वह देवी ही क्यों न हो.

मुमकिन है यह सब धर्म के धंधे में कैरियर बनाने, पैसा कमाने और पूजने के लिए किया जाता हो, लेकिन समाज से एक शिक्षित युवती छिन जाती है जिस का जिम्मेदार वह पुरातनपंथ होता है जिस ने पूरे समाज को तरहतरह के डर और लालच दिखाते हुए जकड़ रखा है. अब कौन पूजा या निकिता से पूछे कि जब मूर्तियों से ही शादी करनी थी तो इतनी पढ़ाईलिखाई क्यों की थी. सोचना जरूरी है कि क्या भगवान भी शिक्षित पत्नी चाहने लगा है?

एक चेहरा यह भी

शिवरात्रि की दोपहर यह प्रतिनिधि भोपाल के न्यू मार्केट इलाके स्थित इंडियन कौफी हाउस में था. उसी वक्त ओला से 2 महिलाएं उतरीं जिन में से ज्यादा उम्र वाली ने सलवारसूट और उस से कम उम्र वाली ने जींसटौप पहन रखा था. एक के हाथ में पौलिथीन का बैग था जिसे ले कर वे रौकेट की रफ्तार से टौयलेट में घुस गईं. इस पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया, लेकिन 5-7 मिनट बाद जब वे टौयलेट से बाहर निकलीं तो उन के कपडे़ बदले हुए थे. अब दोनों ही पीली साडि़यां पहने हुए थीं.

पौलिथीन वाला बैग अब भी उन के हाथ में था. लेकिन अब उस में उतारे हुए कपडे़ थे. एकाध वेटर और मैनेजर का ध्यान उन की तरफ गया. लेकिन कुछ पूछा और कहा जाता उस से पहले ही वे जिस आंधी की तरह आई थीं उस से बड़े तूफान की तरह वापस चली गईं. होगा कुछ यह सोच कर सभी ने सिर  झटक लिया. लेकिन आधे घंटे बाद उन्हें न्यू मार्केट में ही एक शिव बरात में देखा तो यह प्रतिनिधि चौंका कि इसलिए इन्होंने ड्रैस बदली थी.

मन तो वही है

यह कोई नई बात नहीं है बल्कि आज के दौर की महिलाओं का सच है कि वे बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और नजर आती हैं. कलश यात्राएं अब धर्म की दुकानदारी का बहुत बड़ा जरीया बन चुकी हैं. इस में महिलाएं भगवा पीले या लाल कपड़े जो आमतौर पर साड़ी ही होती है पहन कर चलती हैं. उन के हाथों और सिर पर कलश होता है और वे मंगल गीत गा रही होती हैं. यह ड्रैस कोड बताता है कि महिलाएं अभी आजाद नहीं हुई हैं. वे धर्म के मकड़जाल में बुरी तरह जकड़ी हुई हैं. हां ऊपर से जरूर वे आधुनिक दिखती हैं.

इस डर या गुलामी को नापने के लिए पैमानों की कमी नहीं. करवाचौथ के दिन घर हो या औफिस औरतें आपस में बतियाती नजर आती हैं कि ए तेरे मियां ने गिफ्ट में क्या दिया? तो क्या आप इसे आधुनिकता कहेंगी, जो औरत की पुरानी तसवीर नए फ्रेम में पेश करती बात है? इस फ्रेम की तुलना जकड़न से करते हुए समाज शास्त्र की एक सीनियर प्रोफैसर कहती हैं, ‘‘पहले महिला की कलाइयों पर धार्मिक रीतिरिवाजों की रस्सी कांस या सन से बनी होती थी, जिस में स्किन छिल जाने की हद तक चुभन होती थी. अब यह रस्सी रेशम या कपास की होने लगी है, जिस में चुभन कम होती है पर जकड़न पर कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो ज्यों की त्यों है. बाजार धर्म में कितनी गहरी पैठ बना चुका है यह तो गिफ्ट वाली बातचीत से साबित होता ही है, लेकिन उस से पहले यह सम झ आता है कि पुरातनपंथ वक्त के साथ मन और चेतना से गहरे अगर आत्मा नाम का कोई तत्त्व होता है तो उस में भी जड़ें जमा चुका है. किसी सौफ्ट वेयर कंपनी की कंप्यूटर इंजीनियर अगर हरतालिका तीज के दिन भूखीप्यासी रहे तो ऐसी शिक्षा पर लानतें न भेजने की कोई वजह नहीं.

इंटरनैट की पोंगापंथी क्रांति की महिलाएं पहले भी धार्मिक मुहरा थीं और आज भी हैं बल्कि अब पहले से कहीं ज्यादा हैं क्योंकि उन के हाथ में टैक्नोलौजी की नई देन स्मार्ट फोन नाम का आत्मघाती गजट है, जिस में उन्हें सुबहसुबह ही दिन का पंचांग, तिथि, व्रत, त्योहार, उपवास आदि की जानकारी मिल जाती है जो पहले सास या मां की जिम्मेदारी होती थी कि बहू आज तुम्हें निराहार निर्जला रहना है क्योंकि आज निर्जला एकादशी है.

न तो पहले सास का हुक्म टाला जा सकता था न आज मोबाइल बाबा की अनदेखी की जा सकती है. अपने मरीजों को खाली पेट न रहने की सलाह देने वाली डाइटिशियन और फिजिशियन भी खाली पेट रहते कौन सी आधुनिकता का सुबूत देती हैं. यह या तो वही जानें या पंडेपुजारी अथवा भगवान बशर्ते वह कहीं होता हो तो. अब नए दौर की औरत को गुरु बनाने या बाबाओं के चमत्कार देखने दूर कहीं नहीं जाना पड़ता. बाबाजी या गुरुजी खुद उस के स्मार्ट फोन में प्रकट हो जाते हैं. यूट्यूब पर बाबाओं और उन के चमत्कारों का खजाना भरा पड़ा है जिन्हें देख आस जगती है कि फलां टोटका करने से पति इधरउधर मुंह नहीं मारेगा.

इंटरनैट भी कम दोषी नहीं

इंटरनैट ने महिलाओं को दिया कम है उन से छीना ज्यादा है. भोपाल के इलाके गौतम नगर में किराए के फ्लैट में रहने वाली बैंक औफिसर सुगंधा आप्टे (बदला हुआ नाम) मनपसंद पति चाहने इन दिनों 16 सोमवार के व्रत कर रही है. सोमवार की सुबह उठ कर वह नहाधो कर शिव मंदिर जाती है और दिनभर व्रत के नाम पर भूखीप्यासी रहती है. शाम को बैंक से लौट

कर वह पूजापाठ करती है और बिना नमक का खाना खाती है. 16 सोमवार के व्रत पूरे हो जाने के बाद सुगंधा उज्जैन हरिद्वार या नासिक जा कर व्रत का समापन करेगी जिसे उद्यापन भी कहते हैं.

यह विधिविधान उस ने यूट्यूब से सीखा है. लेकिन सुगंधा खुद को पुरातनपंथी कहने पर चिढ़ कर कहती हैं कि नहीं मैं नए जमाने की पढ़ीलिखी मौडर्न लड़की हूं जो कभीकभार फ्रैंड्स के साथ बियर भी पीती है और सिगरेट के धुएं के छल्ले भी बनाती है यानी वह ऊपर से कथित आधुनिक और अंदर से वास्तविक पुरातनपंथी है.

सुगंधा की नजर में कभीकभार मन की कर लेना गलत नहीं है. लेकिन कभी भी धर्म की अनदेखी करना कहीं से भी सही नहीं है. जब से सोशल मीडिया का चलन बढ़ा है तब से निकिता पूजा और सुगंधा, जैसी कई लड़कियों को अपनी सनक सा झा करने के लिए एक प्लेटफौर्म भी मिल गया है. ये लड़कियां किसी भी देवता और उन में भी खासतौर से कृष्ण को अपना सखा या प्रेमी बना उस के साथ ऐसा व्यवहार करती हैं मानो वह जीवित उन के सामने खड़ा हो या साथ हो.

पुरातनपंथ फैलाते ब्रैंडेड बाबा

ऐसी ही एक युवती वृंदावन की राधे वृंदावनेश्वरी है जिस के हजारों फौलोअर्स हैं. वृंदावनेश्वरी राजा वृषभानु की बेटी और कृष्ण की हजारों प्रेमिकाओं में से एक थी. जाहिर है यह असली नाम नहीं है. मुमकिन है हो भी लेकिन इस से उस की प्रेमभक्ति या सनक जो भी कह लें पर कोई असर नहीं पड़ता. मासूम और सुंदर वृंदावनेश्वरी सिर से ले कर नाक तक तिलक लगाए रहती है और अकसर ऐसे वीडियो शेयर करती है जिन में वह कृष्ण से बेहद अंतरंग होती है. कई बार वह कृष्ण की मनुहार करते नजर आती है तो कभी उन्हें  िझड़क भी देती है. इसी लीला की आड़ में वह धर्म और शाकाहार का प्रचार भी करती रहती है.

वृंदावनेश्वरी जितनी कृष्णप्रिया हैं उतनी ही सुंदर, आकर्षक और बिंदास दिनरात कृष्ण में डूबी रहने वाली. वह अकसर फिल्मी गानों की पैरोडी पर भी अपनी भावनाएं व्यक्त करती है और कृष्ण को पूजने के फायदे गिनाती रहती है और व्रतत्योहारों की महिमा भी पोस्ट करती है. यह और ऐसी सैकड़ोंहजारों युवतियां सनातन और पुरातनपंथ फैलाने की ब्रैंडेड बाबाओं से कम दोषी नहीं कही जा सकतीं.

कोविड का कहर

कोविड और लौकडाउन के दौरान महिलाएं और तेजी से पुरातनपंथ की गिरफ्त में आईं क्योंकि तब उन के सिर पिता, पति, बेटा या भाई छिन जाने का डर शिद्दत से मंडरा रहा था. तब बिना मनु स्मृति पढ़े ही उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हो गया था कि समाज पुरुषप्रधान है और यह सहारा अगर छिना तो वे कहीं की नहीं रह जाएंगी.

लिहाजा, इन दिनों उन्होंने जम कर व्रतउपवास और दूसरे धार्मिक जतन मसलन टोनटोटके तक किए. लेकिन तब उन की सलामती के लिए घर के किसी पुरुष ने यह सब नहीं किया क्योंकि महिला अगर चली भी जाती तो उन की सेहत या स्थिति पर कोई दीर्घकालिक फर्क नहीं पड़ना था. कोविड के पहले भी हालात यही थे कि पुरुष ने यह सब कभी नहीं किया.

कोविड के दौरान विधुर हुए अधिकतर पुरुषों ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन महिलाएं जो विधवा हुईं उन की स्थिति बदतर है क्योंकि विधवा विवाह आज भी आसान नहीं. कोविड ने समाज की भयावहता और भेदभाव को तीव्रता से उजागर किया कि पुरुषप्रधान समाज में महिलाएं चाहे वे अनपढ़ हों या शिक्षित हों असुरक्षा के मामले में उन में कोई अंतर नहीं यानी आधुनिकता तब भी सैकंडरी थी आज भी है. पारिवारिक और सामाजिक सुरक्षा की जो गारंटी धर्म देता है शिक्षा वह नहीं दे पा रही. यह गारंटी कितनी खोखली है यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं.

गैरधार्मिक दकियानूसी भी

जब महिलाएं तेजी से शिक्षित हुईं और नौकरियों में आने लगीं तो उन्हें आभास हुआ कि वे अभी तक ठगी जा रही थीं. लेकिन इस का कोई खास प्रतिकार उन्होंने नहीं किया. हां थोड़ाबहुत वे अपनी मरजी से जीने लगीं. इस का यह मतलब नहीं कि उन्होंने खुद को धार्मिक जकड़न से मुक्त कर लिया बल्कि यह है कि कमाऊ होने के नाते वे कुछ पैसा अपनी सहूलियतों पर खर्च करने लगी जिस पर पुरुषों ने ऐतराज दर्ज न करने में ही बेहतरी सम झी.

फिर शुरू हुआ आधुनिकता के नाम पर किट्टी पार्टियों का दौर जिस की 3 दशक तक खूब चर्चा रही. इस पर भी पुरुषों ने ऐतराज नहीं जताया क्योंकि यह उन के भले की ही बात थी. औरतें अपना वक्त और पैसा जाया करें और उत्पादकता और रचनात्मकता से दूर रहें यह इच्छा किट्टी पार्टियों से पूरी होने लगी. यह एक गैरधार्मिक काम है जिस से औरत पिछड़ी ही रहती है. वह महफिल में मशगूल रहती है ठीक वैसे ही जैसे सत्यनारायण की कथा में रहती है कि कोई तर्क नहीं, कोई सवाल नहीं बस हवन में आहुति डाले जाओ.

बोल्ड सीरीज से नाम और पैसा दोनों कमाए: गहना वशिष्ठ

एकता कपूर की वैब सीरीज ‘गंदी बात’ में काम कर गहना वशिष्ठ अपनी बोल्ड वैब सीरीज और बोल्ड बयानों की वजह से हमेशा चर्चा में रहती हैं. कंप्यूटर साइंस की डिगरी हासिल करने वाली गहना शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा और उमेश कामत के साथ मिल कर पोर्न फिल्में बनाने के आरोप में 3 महीने की सजा काट चुकी हैं. इस के अलावा वे कई हिंदी और साउथ की फिल्मों में भी अभिनय कर चुकी हैं. उन्होंने कई टीवी सीरियलों में भी लंबे समय तक काम किया है.

गहना के परिवार में सभी शिक्षित हैं. मां डाक्टर हैं तो पिता और 2 भाई इंजीनियर हैं. पोर्न फिल्मों में काम करने के उन पर लगे इलजाम कहां तक सही हैं, इस संबंध में हुई उन से बातचीत के कुछ अंश पेश हैं:

एकता कपूर की वैब सीरीज ‘गंदी बात’ से आप चर्चा में आईं. ऐसे में गंदी बात करने के बाद क्या अच्छी और क्या बुरी बात हुई?

जब मुझे यह सीरीज औफर हुई थी और मैं ने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मुझे यह अच्छी नहीं लगी क्योंकि सीरीज में मेरे एक बुड्ढे आदमी के साथ बोल्ड सीन थे जिन्हें करना मुझे बिलकुल गवारा नहीं था. इसलिए यह वैब सीरीज करने से मैं ने मना कर दिया. बाद में मु?ा से बोला गया कि वे लोग बूढ़े वाला सीन ही निकाल देंगे. फिर भी मैं ने करने से मना कर दिया क्योंकि मैं ने पहले कभी इस तरह का काम नहीं किया था. लेकिन बाद में जब उन्होंने बोला कि अगर मैं ने यह सीरीज नहीं की तो बालाजी वाले मुझे कभी दूसरी बार नहीं बुलाएंगे.

ऐसे में मुझे फिर हां बोलना पड़ा. इस से पहले मैं ने कभी खतरनाक स्मूच सीन नहीं दिए थे. इस वैब सीरीज में मेरे साथ जो हीरो था वह पौराणिक सीरियलों में राक्षस का रोल करता था. उस ने भी कभी ऐसी फिल्म नहीं की थी. लिहाजा हम दोनों के ही पसीने छूट रहे थे. सम?ा नहीं आ रहा था कैसे क्या करें. फिर भी हम ने किसी तरह डाइरैक्टर के कहे अनुसार शौट दे दिए. अच्छी बात यह हुई कि इस सीरीज में मुझे बहुत ज्यादा पसंद किया गया और मैं बहुत फेमस हो गई.

जब आप ने फर्स्ट टाइम बोल्ड शौट दिए तब आप की क्या प्रतिक्रिया थी?

सब से पहले मैं ने ‘गंदी बात’ के लिए ही बोल्ड शौट दिए थे. शुरुआत में तो डर के मारे मेरी हालत खराब थी क्योंकि ऐसे सैक्सी शौट देखने में भले मजा आए लेकिन जब शूट करते हैं तो पता चलता है कि कितना मुश्किल है क्योंकि उस वक्त सिर के ऊपर डाइरैक्टर, असिस्टैंट डाइरेक्टर, मेकअप आर्टिस्ट सभी खड़े होते हैं. डाइरैक्टर चिढ़ कर बोल रहा होता है ठीक से करो, ऐसे करो, क्या बकवास स्मूच कर रहे हो आदिआदि. उस वक्त मन में यही खयाल आया कि जितना हो सकेगा करेंगे. नहीं हुआ तो नहीं करेंगे.

लेकिन बाद में अच्छा यह हुआ कि ‘गंदी बात’ वैब सीरीज बहुत हिट हो गई और वायरल भी, जिस वजह से मैं भी बहुत चर्चित हो गई और मुझे बहुत काम भी मिलने लगा.

कई बार कलाकारों को इंटीमेट सीन करने के दौरान सचमुच प्यार हो जाता है. क्या आप के साथ कभी ऐसा हुआ?

हां ऐसा होता है कई बार शौट देते देते सामने वाला अच्छा लगने लगता है. ऐसे में कई लोग सीरीज करने के बाद भी रिलेशनशिप जारी रख लेते हैं. सैक्सी सीन शूट के दौरान अगर आप को बुरा नहीं लग रहा तो अच्छा जरूर लगता है. जरूरी नहीं है कि आप को सैक्सी सीन करते वक्त सामने वाला पसंद आ ही जाए लेकिन अगर हम किसी ऐसे शख्स के साथ सैक्सी सीन करते हैं जो हमें मन में पसंद है तो कई बार हम भावना में भी बह जाते हैं. ऐसा सब के साथ होता है.

क्या कभी कोई हीरो बोल्ड सीन के दौरान आउट औफ कंट्रोल हुआ?

हीरो सारे आउट औफ कंट्रोल ही हो जाते हैं. हमें उन्हें बताना पड़ता है कि बाबू सामने कैमरा है कंट्रोल में रहो. हीरो को भी पता होता है कि अगर हम आउट औफ कंट्रोल हो कर बेहूदा दिखे तो हमारा बहुत मजाक उड़ेगा इसलिए वे भी कंट्रोल में रहते हैं.

आज आप की इमेज बोल्ड हीरोइन की हो गई है. ऐसे में क्या आप को टाइप्ड होने का डर नहीं है?

नहीं मुझे ऐसा कोई डर नहीं है क्योंकि मेरा मानना है आज के समय में स्टार नहीं कंटैंट बिकता है और आप मानें या न मानें ऐसी फिल्में ज्यादातर लोग देखना पसंद करते हैं. यही वजह है कि मैं ने बोल्ड सीरीज करके नाम और पैसा दोनों कमाए हैं. बतौर निर्मातानिर्देशक मैं ने कई सारी बोल्ड वैब सीरीज बनाई हैं जिन में मैं ने अब तक 72 ऐक्टर लौंच किए हैं. मुझे अपने काम को ले कर कोई पछतावा नहीं है क्योंकि मैं ने जो भी काम किया है प्रोफैशनली किया है.

आप पर पोर्न फिल्म बनाने का भी इलजाम लगा है जिस के चक्कर में 3 महीने से ज्यादा जेल में भी रहीं. इस बारे में आप क्या कहेंगी?

इस बारे में मैं यही कहूंगी कि न तो मैं ने किसी पोर्न फिल्म में काम किया है और न ही मैं ने कोई पोर्न फिल्म बनाई है. मुझे इस मामले में पूरी तरह फंसाया गया है. मेरे पास मेरी बेगुनाही के पुख्ता सुबूत हैं जिन्हें मैं जब कोर्ट में केस चलेगा तब पेश करूंगी. लिहाजा इस बारे में मैं ज्यादा बात नहीं कर सकती क्योंकि कोर्ट में केस चल रहा है. मगर मैं इतना जरूर कहूंगी कि मैं ने कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जो कानून के खिलाफ हो या गलत हो. जहां तक बोल्ड फिल्म बनाने और बोल्ड फिल्म में काम करने की बात है तो वह तो बहुत सारे लोग करते हैं. मैं ने कुछ अलग या गलत नहीं किया.

जेल में रहने के दौरान आप से जुड़े लोगों का व्यवहार आप के साथ कैसा था?

उस दौरान मु?ा से जुड़े सभी लोगों ने मेरा साथ दिया. फिर चाहे वह मेरा डाइरैक्टर दोस्त हो, मेरे दोस्त हों, मेरे परिवार वाले हों या मेरी टीम के लोग हो. अगर मैं अपने परिवार की बात करूं तो क्योंकि उस वक्त मैं जेल में थी सो इतना बड़ा खर्चा करना मेरे बस में था ही नहीं. सुप्रीम कोर्ट की वकील की फीस, बाकी सब खर्चे मेरे परिवार वालों ने ही किए क्योंकि उस दौरान मेरा अकाउंट भी फ्रीज कर दिया गया था और मेरे पास पैसे भी नहीं थे खर्चे के लिए तो उस दौरान मेरे दोस्तों ने मुझे पैसों से हैल्प भी की थी.

यहां तक कि मेरे डाइरैक्टर ने, मेरे मेकअप आर्टिस्ट ने और दोस्तों ने मिल कर उस वक्त मेरा बर्थडे भी मनाया था. सभी को पता है कि मैं भले गंदी फिल्मों में काम करती हूं, लेकिन मेरी नीयत साफ है. मैं ने हमेशा सब की मदद ही की थी. इसीलिए बुरे वक्त में सब ने मेरा साथ दिया.

आप का लव स्टेटस क्या है?

फिलहाल तो मैं सिंगल हूं और शादी के लिए लड़का ढूंढ़ रही हूं. लेकिन मैं ?ाठ नहीं बोलूंगी मेरे भी अफेयर्स रहे हैं जो टिक नहीं पाए. इन अफेयर्स में एक तो साउथ का बड़ा ऐक्टर था जिस का मैं नाम नहीं लेना चाहूंगी. उस से मेरा अफेयर काफी समय चला. उस दौरान मैं साउथ की फिल्में कर रही थी. मेरा उसी के साथ सैटल होने का इरादा था, लेकिन वह बहुत शराब पीता था इसलिए मैं ने उस के साथ संबंध तोड़ लिए. उस के बाद मुझे और एक लड़के से प्यार हुआ जिस का नाम राम है. वह अच्छा लड़का है.

उस ने मेरा मेरे बुरे वक्त में भी बहुत साथ दिया. लेकिन उस लड़के से भी मेरी शादी नहीं हो पा रही क्योंकि उस के मांबाप नहीं चाहते कि हमारी शादी हो. जैसे ही सही लड़का मिल जाएगा मैं शादी कर के सैटल हो जाऊंगी.

आप ने एकता कपूर के कई सीरियलों में काम किया. एकता कपूर के ‘गंदी बात’ वैब सीरीज से भी आप को लोकप्रियता मिली. तो ऐसी क्या वजह हुई कि अब आप एकता कपूर के किसी भी सीरियल में नहीं हैं?

एकता कपूर ने मुझे ‘लौकअप रियलिटी शो’ के लिए कौल किया था. लौकअप के लिए मेरे सारे टैस्ट जो शो में जाने से पहले होते हैं और औडिशन सबकुछ हुआ. पैसे भी फाइनल किए गए. लंबे समय के लंबे इंतजार के बावजूद उन्होंने मुझे आने के लिए कौल नहीं किया और न ही मुझे न बोला, जिस वजह से मेरा काफी समय खराब हो गया.

12 Summer Makeup Tips: गरमी में मेकअप के लिए परफैक्ट कौस्मैटिक्स

गरमी के मौसम में कई चीजों में बदलाव करना पड़ता है. खानापीना, पहनावा, हेयरस्टाइल से ले कर मेकअप के तरीके तक में भी बदलाव जरूरी हो जाता है. गरमी में सनटैन, पसीना, चिपचिपापन जैसी समस्याएं त्वचा की खूबसूरती बिगाड़ देती हैं.

यही वजह है कि गरमी में मेकअप करना किसी चुनौती से कम नहीं होता है. परेशानी तब और बढ़ जाती है जब किसी पार्टी या जरूरी बिजनैस मीटिंग में जाना हो और आप के लिए प्रेजैंटेबल दिखना जरूरी हो. पसीने और चिपचिपाहट के कारण गरमी में मेकअप को देर तक टिकाए रखना काफी मुश्किल काम होता है. इसलिए गरमियों में मेकअप करते समय कौस्मैटिक्स समझदारी से चुनने चाहिए.

  1. क्लींजिंग के लिए औयल फ्री फेसवाश

पसीने की समस्या गरमी में सामान्य है और यह मेकअप के खराब होने का कारण भी बन सकता है. इस परेशानी को कम करने के लिए औयल फ्री फेसवाश काफी मददगार साबित हो सकता है. वैसे आप हफ्ते में 1 या 2 बार पसीने या त्वचा से तेल की समस्या को कंट्रोल करने के लिए घरेलू चीजों जैसे मुलतानी मिट्टी, बेसन, नीम, नीबू, मसूर दाल आदि का उपयोग भी कर सकती हैं.

  1. टोनिंग के लिए गुलाबजल

टोनर त्वचा की गंदगी निकालने और स्किन पोर्स में कसावट लाने का काम करता है. गरमियों में टोनर के तौर पर गुलाबजल का उपयोग कर सकती हैं. गुलाबजल सौफ्टली त्वचा के अत्यधिक तेल को नियंत्रित करता है और साथ ही त्वचा को मौइस्चराइज भी करता है. पसीने की समस्या और त्वचा के रूखेपन की परेशानी दोनों के लिए ही यह उपयोगी होता है.

  1. 30 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन

सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणें स्किन में फाइनलाइंस, असमय ?ार्रियां, ?ांइयां, सनटैन व सनबर्न का कारण बन सकती हैं. ऐसे में गरमी के मौसम में अगर धूप में बाहर जाने का काम है तो घर से निकलने से 15-20 मिनट पहले ही सनस्क्रीन लगा लेना चाहिए. सनस्क्रीन लोशन चुनते समय ध्यान दें कि अगर आप की स्किन औयली है तो जैल बेस्ड या ऐक्वा बेस्ड लोशन लेना चाहिए. वहीं अगर आप की स्किन ड्राई है तो मौइस्चराइजर बेस्ड सनस्क्रीन लोशन लें. लेकिन इतना जरूर ध्यान रखें कि यह 30 एसपीएफ से ज्यादा का हो.

  1. वाटरपू्रफ प्राइमर का इस्तेमाल

जब चेहरे पर मेकअप प्रोडक्ट इस्तेमाल करने की बारी आती है तो सब से पहले प्राइमर का उपयोग किया जाता है. इसे स्किन के अनुसार क्रीम, जैल या स्प्रे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. किसी भी मेकअप के लिए प्राइमर बेस की तरह काम कर सकता है. यह एक स्मूद और फ्लौलैस मेकअप लुक पाने में मदद करता है. साथ ही यह मेकअप को देर तक टिकने में भी मदद करता है. इसे आप मौइस्चराइजर लगाने के 5 मिनट बाद चेहरे पर अप्लाई करें और इस के 5 मिनट बाद मेकअप करें. गरमियों में वाटरपू्रफ प्राइमर का इस्तेमाल करना अच्छा विकल्प होता है.

  1. लाइट मौइस्चराइजर का इस्तेमाल

कई महिलाएं गरमी के मौसम में मौइस्चराइजर का उपयोग करने से परहेज करती हैं. दरअसल, कई बार महिलाएं यह सम?ाती हैं कि मौइस्चराइजर से त्वचा में चिपचिपाहट या पसीने की समस्या हो सकती है और मौइस्चराइजर सिर्फ ठंड के मौसम के लिए होता है, जबकि ऐसा नहीं है. गरमी में भी त्वचा को नमी और मौइस्चराइजर की आवश्यकता होती है. बस इतना ध्यान रखना है कि मौइस्चराइजर हलका हो या कम मात्रा में उपयोग किया जाए.

  1. पाउडर फाउंडेशन लगाएं

गरमियों में मेकअप करते समय पाउडर फाउंडेशन का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है. दरअसल, पाउडर फाउंडेशन आप की स्किन में ऐक्स्ट्रा औयल प्रोडक्शन को रोक सकता है और साथ ही स्किन के साथ चिपक कर आप के मेकअप को लंबे समय तक टिकाए रख सकता है. गरमियों में पसीना बहुत आता है इसलिए लिक्विड या क्रीम बेस्ड फाउंडेशन का इस्तेमाल करने से बचें. इसी तरह शीयर या शाइनी फाउंडेशन का इस्तेमाल भी न करें.

समर में हैवी फाउंडेशन लगाने से बचें. अगर यह हैवी होगा तो चेहरे पर अधिक पसीना आएगा और पोर्स भी बंद हो जाएंगे, जिस से स्किन पैची तो लगेगी ही साथ ही ऐक्ने, पिंपल्स आदि की समस्या भी हो सकती है. अगर गरमियों में फाउंडेशन यूज नहीं करना चाहती हैं, तो आप फाउंडेशन की जगह ऐलोवेरा जैल, गुलाबजल, बेहतर क्वालिटी की बीबी क्रीम, सीसी क्रीम जैसे विकल्प चुन सकती हैं. इस के अलावा त्वचा पर सिर्फ प्राइमर लगा कर भी छोड़ सकती हैं.

  1. लूज पाउडर

गरमियों के मौसम में नौर्मल स्किन वाली महिलाओं की स्किन भी औयली हो जाती है. ऐसे में मेकअप को टिकाए रखना और फ्रैश बनाए रखना बहुत ही मुश्किल लगता है. मगर इस प्रौब्लम से लूज सैटिंग पाउडर की मदद से बचा जा सकता है. मेकअप बेस बनाने के बाद लूज पाउडर से चेहरे को हलकेहलके ब्रश करने से लौंगलास्टिंग और मैट मेकअप मिलता है.

  1. औयल ब्लौटिंग शीट्स का इस्तेमाल

गरमियों में पसीने के साथ चिपचिपाहट की समस्या से हर महिला परेशान रहता है. ऐसे में अगर मेकअप को औयली होने से बचाना हो तो ब्लौटिंग शीट्स या ब्लौटिंग पेपर इस्तेमाल करना अच्छा रहता है. ब्लौटिंग पेपर टिशू पेपर की तरह होता है जो त्वचा के ऐक्स्ट्रा औयल को सोख सकते हैं. इस का उपयोग कर त्वचा से पसीना या तेल हटाया जा सकता है. ब्लौटिंग शीट्स को आप अपने साथ रख सकती हैं और जब भी आप को लगे कि चेहरे पर औयल जमा हो रहा है तो आप इन शीट्स को इस्तेमाल कर इसे सैट कर सकती हैं. इस के उपयोग से मेकअप भी लौंगलास्टिंग रह सकता है.

  1. फिनिशिंग स्प्रे

फिनिशिंग स्प्रे या सैटिंग स्प्रे मेकअप का लास्ट टच है. यह मेकअप को सैट कर देता है, जिस से मेकअप देर तक ठीक रह सकता है. जब मेकअप पूरा हो जाए तो इस स्प्रे से फाइनल टचअप कर मेकअप को सैट करें.

  1. गरमियों में आई मेकअप
  • समर में हैवी आई मेकअप करने से बचें. जरूरत हो तभी आई मेकअप करे.
  • जहां तक हो सके वाटरपू्रफ और स्मज पू्रफ प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करें.
  • ज्यादा गरमी हो तो केवल काजल व मसकारा लगाना बेहतर है.
  • काजल, मसकारा या लाइनर तीनों एकसाथ लगाने के बजाय तीनों में से सिर्फ कोई एक भी लगा सकती हैं.
  • आई मेकअप करते समय आईशैडो के लिए लाइट व न्यूट्रल शेड्स चुनें.
  • समर में ब्लैक के बजाय सौफ्ट ब्राउन का मसकारा लगाएं. आप चाहें तो ट्रांसपैरेंट मसकारा भी लगा सकती हैं.
  • काजल लगाने से पहले ही आंखों के नीचे वाले एरिया को कौंपैक्ट पाउडर से अच्छी तरह सैट कर सकती हैं.
  • इस मौसम में आई मेकअप के लिए शिमर का इस्तेमाल न करें.
  • आंखों के पास ज्यादा पाउडर लगाने से बचें.
  • आंखों के वाटर लाइन एरिया में लिक्विड आईलाइनर न लगाएं.
  • इवनिंग पार्टी में जा रही हैं तो आई मेकअप के लिए वार्म चौकलेट, स्लेटी ग्रे या नेवी ब्लू शेड्स का चयन करें. समर में यह आई मेकअप आप को कूल लुक देगा.
  1. गरमियों में लिप मेकअप
  • समर में हैवी लिप मेकअप से बचें. डेली मेकअप के लिए सिर्फ लिपग्लौस ही काफी है. समर में लिपस्टिक लगाते समय मैट के बजाय क्रीमी लिपस्टिक लगाएं.
  • होंठों पर हलका प्राइमर या फाउंडेशन लगाएं ताकि लिपस्टिक देर तक टिके. कोई भी लिपस्टिक लगाने से पहले अपने होंठों पर लिपबाम लगा लें. लाइट शेड की लिपस्टिक का ज्यादा प्रयोग करें. लिप लाइनर लगाना न भूलें.
  • समर में लाइट कलर की लिपस्टिक लगाएं. पिंक, पीच जैसे लाइट शेड की लिपस्टिक समर में आप को यंग और फ्रैश लुक देगी.
  1. मेकअप को लौंगलास्टिंग बनाने के टिप्स
  • जहां तक संभव हो वाटरपू्रफ और स्मजपू्रफ मेकअप प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. इस से आप का मेकअप जल्दी खराब नहीं होगा है.
  • ब्राइट की जगह लाइट मेकअप को महत्त्व दें जो थोड़ा इधरउधर होने पर भी खराब नहीं लगेगा.
  • स्किन को तरोताजा व हाइड्रेटेड रखने के लिए फेस मिस्ट स्प्रे का इस्तेमाल करें. यदि आप धूप में लंबे समय तक घूम रही हों तो बीचबीच में फेस मिस्ट स्प्रे आप को फ्रश महसूस कराएगा.
  • अपने साथ ब्लौटिंग पेपर जरूर रखें ताकि चेहरे पर पसीने को कंट्रोल किया जा सके.

बच्चों के लिए बनाएं यम्मी केसर चौकलेट फिरनी और हेजलनट्स नारियल चौकलेट बौल

बच्चों को मीठा खाना बेहद पसंद आता है लेकिन बाजार की मिठाई और आइसक्रीम का ज्यादा सेवन उनके लिए अच्छा नहीं है, इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसी स्वीट डिश के बारे में, जिसे आप घर पर आसानी से बना सकते हैं. ये बच्चों को भी बेहद पसंद आएगी. तो फिर देर किस बात की आइए जानते हैं इन नई रेसिपीज के बारे में.

  1. हेजलनट्स नारियल चौकलेट बौल

सामग्री

  • 150 ग्राम हेजलनट्स, छीले और भुने हुए
  • 350 ग्राम डार्क चौकलेट कटी हुई
  • 200 ग्राम चोको हेजलनट्स स्प्रैड
  • नारियल पाउडर.

विधि

  1. 20 हेजलनट्स अलग रख दें और बाकी नट्स को बारीक काट लें.
  2. ध्यान रहे कि हमें इन हेजलनट्स को पीसना नहीं है.
  3. 150 ग्राम चौकलेट लें और डबल बौयलर विधि से पिघला लें.
  4. इस के लिए आप एक हीटप्रूफ बाउल में चौकलेट ले कर उसे उबलते पाने के एक बरतन के ऊपर रख दें. इस से चौकलेट पिघल जाएगी,
  5. इस के बाद बाकी बची चौकलेट, हेजलनट स्प्रैड, कोकोआ और बारीक कटे हेजलनट्स डालें और सब को अच्छे से मिक्स कर लें.
  6. अखरोट के आकार की बौल बनाएं और उस में हेजलनट स्टफ करें.
  7. बौल्स को कोकोनट पाउडर से कोट करें.
  8. करीब 15 मिनट के लिए या बौल्स के अच्छी तरह से सैट होने तक फ्रिज में रखें.

2. केसर चौकलेट फिरनी

सामग्री

  • 1 लिटर दूध
  • 100 ग्राम चीनी
  • 10 ग्राम घी
  • 100 ग्राम डार्क चौकलेट कद्दूकस की हुई
  • 10 ग्राम हरी इलायची पाउडर
  • 80 ग्राम मावा
  • 10 ग्राम गुलाबजल
  • 100 ग्राम भीगे चावल का पेस्ट.

विधि

  1. भारी तले के बरतन में दूध डाल कर एक उबाल आने दें.
  2. उस के बाद उस में चावल का पेस्ट डालें और दूध में 2 से 3 उबाल आने दें.
  3. जब चावल करीब 80% तक पक जाएं तो उन में 1-1 कर के चीनी, कुटी हुई हरी इलायची पाउडर, मावा डालें और अच्छे से मिक्स करती रहें.
  4. आखिर में घी और गुलाब जल डाल कर कुछ मिनट तक पकाएं.
  5. इसे कुल्हड़ में परोसें और कसी हुई चौकलेट से सजाएं.

मेरी स्किन का कलर डार्क है, ऐसे में मुझे किस कलर का ब्लशर यूज करना चाहिए?

सवाल

मेरा रंग सांवला है. मुझे किस रंग का ब्लशर लगाना चाहिए और  कैसे लगाना चाहिए ताकि मैं खूबसूरत लगूं?

जवाब

आप पर पीच या फिर डार्क कलर का ब्लशर अच्छा लगेगा. पिंक कलर आप के लिए नहीं है. अगर आप बहुत ही लाइट कलर के कपड़े पहन रही हैं तो आप पीच कलर लगा लीजिए और अगर डार्क कपड़े पहन रही हैं तो मैरून कलर आप को सूट करेगा. लगाने के लिए आप ब्लशर ब्रश ले लें और उस पर थोड़ा सा ब्लशर ले कर अपने गालों पर नाक से ले कर कानों के ऊपरी हिस्से तक ले जाएं और अच्छे से स्मज करें.

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सवाल

मेरे बालों में बहुत ही डैंड्रफ हो गया है. मेरे मेरे कपड़ों पर गिरता है और खराब लगता है. हर वक्त खुजली करती रहती हूं. कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब

अगर आप का डैंड्रफ आप के कपड़ों पर गिरता रहता है तो इस का मतलब है कि आप का डैंड्रफ ड्राई डैंड्रफ है. इसलिए आप किसी एरोमैटिक औयल से सिर में अच्छे से मसाज करें. 1 प्याज और 1 छोटा टुकड़ा अदरक ले कर कद्दूकस करें और उस का रस निकाल कौटन बौल की सहायता से अपनी स्कैल्प पर लगाएं. आधा घंटा रहने दें. उस के बाद बालों को धो लें. ऐसा हफ्ते में 2 या 3 बार करें. 2-3 हफ्तों में ही आप का डैंड्रफ ठीक हो जाएगा. एक बात और ध्यान रखने की जरूरत है कि जब भी बालों को धोएं अपने तकिए का कवर अपने कौंब और तौलिया धो कर किसी ऐंटीसैप्टिक लोशन में आधा घंटा डाल कर रखें और फिर धूप में सुखा लें. तब इस्तेमाल करें. अगर फिर भी डैंड्रफ ठीक न हो तो किसी क्लीनिक या सैलून में जा कर ओजोन ट्रीटमैंट लें. इस से डैंड्रफ ठीक हो जाएगा.

कहीं आपका बच्‍चा तो नहीं ट्रॉमा का शिकार, इन संकेतों से करें पहचान

बच्चे बेहद सेंसिटिव और मासूम होते हैं. ऐसे में किसी भी ट्रॉमा के संपर्क में आने से उनके बचपन की सुंदरता कम हो सकती है और उनके विकास में भी समस्या हो सकती है. लेकिन, अगर एक्सपर्ट्स की मानें, तो 18 से कम उम्र के बहुत से बच्चे जीवन में कभी न कभी किसी ट्रॉमा का अनुभव अवश्य करते हैं. अगर आपका बच्चा किसी ट्रॉमा से गुजरता है तो आप उसके व्यवहार में बदलाव का अनुभव कर सकते हैं. अगर इस समस्या का सही समय पर समाधान न किया जाए, तो बच्चा तनाव का शिकार भी हो सकता है. ऐसे में, अपने बच्चे के व्यवहार में बदलाव को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. आइए जानें कि बच्चों में ट्रॉमा के संकेत कौन से हो सकते हैं?

बच्चों में ट्रॉमा के संकेत

अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों में ट्रॉमा के लक्षणों को समझ नहीं पाते हैं. इससे पीड़ित बच्चों को भी अपने इमोशंस को एक्सप्रेस करने में समस्या आती है. लेकिन, बच्चों में इसके संकेत इस प्रकार हो सकते हैं:

बच्चों में ट्रॉमा के इमोशनल संकेत

  • -बच्चों में ट्रॉमा के इमोशनल संकेत इस प्रकार हो सकते हैं:
  • -उदास महसूस करना
  • -अधिक गुस्सा या अग्रेशन शो करना
  • -बहुत जल्दी ड़र जाना
  • -शर्म महसूस होना
  • -तनाव या अकेला महसूस करना
  • -अपने माता-पिता से दूर होते हुए डरना
  • -अधिक रोना और चिल्लाना

बच्चों में ट्रॉमा के बिहेवियर संकेत

ट्रॉमा से बच्चे के दिमाग पर असर हो सकता है. बच्चों में कुछ बिहेवियर संकेत इस प्रकार हैं:

  • -स्कूल के काम, प्रोजेक्ट आदि पर फोकस न करना
  • -बड़े बच्चों का बेड गीला करना या अंगूठा चूसना
  • -स्कूल जानें से मना करना
  • -लगातार रोना
  • -सोने में परेशानी होना
  • -वजन का बहुत अधिक बढ़ना या कम होना
  • -ईटिंग हैबिट्स में बदलाव या ईटिंग डिसऑर्डर
  • -सेल्फ हार्म के लक्षण दिखना

बच्चों में ट्रॉमा के शारीरिक संकेत

जब बच्चा ट्रॉमा के लक्षण महसूस करते हैं इसका असर उनके इम्यून सिस्टम फंक्शन पर भी बढ़ता है. जिससे वो मेटाबॉलिक सिंड्रोम, अस्थमा और इंफेक्शंस आदि का शिकार हो सकते हैं. कॉम्प्लेक्स ट्रॉमा के शिकार बच्चे बॉडी डिसरेगुलेशन का सामना भी कर सकते हैं. जिसके कारण बच्चे आवाज, टच, लाइट और स्मेल आदि के प्रति हाइपरसेंसिटिव हो सकते हैं. यही नहीं, बच्चे शरीर में दर्द की शिकायत भी कर सकते हैं.

हर बच्चा अलग होता है और वो ट्रॉमा के प्रकति कैसे रिस्पॉन्ड करता है, यह कई कारकों पर निर्भर करता है जिसमें इवेंट की गंभीरता, बच्चे की उम्र, बच्चे के डेवलपमेंट स्टेज, एन्वॉयरमेंट आदि शामिल है।

कभी न छोड़ें शादी के बाद नौकरी

राइटर- प्रियंका यादव

शादी के बाद महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे जौब छोड़ दें क्योंकि घर में रहने वाली महिला को यह समाज संस्कारी महिला की संज्ञा देता है जो बिलकुल भी सही नहीं है. असल में यह समाज महिलाओं को चारदीवारी में कैद रखना चाहता है. ऐसे में महिलाओं को यह चाहिए कि वे शादी के बाद भी अपनी जौब जारी रखें ताकि घर में रहने वाली संस्कारी महिला की छवि को तोड़ा जा सके.

यह समाज शादी के बाद महिलाओं पर घरेलू बनने का दबाव डालता है क्योंकि वह चाहता है कि महिलाएं घर तक ही सीमित रहें. समाज को लगता है कि घर से बाहर निकलने पर महिलाएं अपने हक के बारे में जान जाएंगी और बरसों से चली आ रही रूढि़वादी परंपराओं को मानने से इनकार कर देंगी. यह एक तरह से बगावत होगी समाज के उन ठेकेदारों के खिलाफ जो सदियों से महिलाओं का किसी न किसी रूप में शोषण करते आए हैं. महिलाओं को चाहिए कि वे अपनेआप को ऐसे शोषण करने वाले लोगों से बचाएं.

इस क्षेत्र में सब से पहला कदम महिलाओं का शादी के बाद भी जौब करना है. शादीशुदा महिलाओं को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. उन्हें यह सम?ाना चाहिए कि जौब उन के लिए कितनी जरूरी है. यह न सिर्फ उन के घर से बाहर निकलने का जरीया है बल्कि यह उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाती ह.ै उन्हें अपनी योग्यता का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्हें यह सोचना चाहिए कि उन की पढ़ाई का क्या फायदा है अगर वे उस का उपयोग ही न कर सकें.

आखिर वजह क्या है

यह समाज हमेशा से यह चाहता आया है कि महिलाएं घर तक ही सीमित रहें. इस के लिए समाज किचन का निर्माण भी ऐसे ही किया कि उस में एक बार में एक व्यक्ति ही काम कर सके. महिलाओं को समाज की इस सोच को तोड़ना है कि रसोईघर सिर्फ महिलाओं का क्षेत्र है. इस के लिए सब से पहले खुली किचन का निर्माण करना होगा या किचन की सैंटिंग ऐसी करनी होगी कि वहां एकसाथ कम से कम 2 लोग काम कर सकें.

जब लड़की अपने पिता के घर होती है तो वह आसानी से जौब कर लेती है. लेकिन शादी के बाद महिलाएं जौब क्यों नहीं करतीं? तो इस का एक कारण है कि उन के होने वाले पति या ससुराल वाले इस की इजाजत नहीं देते. महिलाओं का शादी के बाद जौब न करने का दूसरा कारण महिलाओं द्वारा जल्दी बच्चे कर लेना है. ऐसे में बच्चे के जन्म लेने में 9 महीने का समय लग जाता है और इस के बाद अगले 3 साल तक उस की देखभाल करने की जरूरत होती है.

ऐसे में महिलाएं उसी में बंध कर रह जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि लड़कियां शादी से पहले फैमिली प्लानिंग के बारे में होने वाले पति से बात कर लें. शादी से पहले अपने होने वाले पार्टनर से अपने मन की बात करें. उन्हें यह बताएं कि शादी के बाद भी आप जौब करना चाहती हैं.

घर वालों से खुल कर बात करें

बहुत सी महिलाएं शादी के बाद अपने अरमानों का गला घोट देती हैं. वे अपने बेहतर कैरियर तक को छोड़ देती हैं. अत: शादी का फैसला सोचसम?ा कर करें और ऐसा जीवनसाथी चुनें जो आप को कैरियर में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे.

जो लड़कियां कैरियर औरिएंटल होती हैं और शादी के बाद जौब छोड़ना नहीं चाहतीं, उन्हें इस बारे में अपने पार्टनर और उस के घर वालों से खुल कर बात करनी चाहिए. इस से उन लोगों के जवाब से महिलाओं को निर्णय लेने में आसानी हो जाएगी.

महिलाएं अपने होने वाले पति से पूछ सकती हैं कि शादी के बाद उन के कैरियर को बढ़ावा देने के लिए वे किस प्रकार से सपोर्ट कर सकते हैं? क्या वे घरेलू जिम्मेदारियों में आप का हाथ बंटाएंगे या फिर परिवार के बढ़ने के बाद भी क्या वे उन के कैरियर की गंभीरता को सम?ोंगे? अगर परिवार के लोगों ने नौकरी छोड़ने को कहा तो क्या वह उन्हें सम?ाने की कोशिश करेंगे? ऐसे ही कुछ सवाल पूछ कर महिलाएं अपने लिए सही जीवनसाथी चुन सकती हैं.

शादीशुदा महिलाएं समय का रखें ध्यान

शादीशुदा महिलाओं को अपने समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस के लिए वे अगले दिन के लंच की तैयारी रात में ही कर लें जैसे सब्जियां काट कर फ्रिज में रख दें, रात में ही कपड़े प्रैस कर लें, अपना बैग तैयार कर लें, इस तरह से महिलाएं अपने काम के समय को बचा सकती हैं.

दिल्ली की रहने वाली 28 वर्षीय अनु बताती हैं कि उन की शादी को 2 साल हो गए हैं. शुरू में शादी के बाद जौब करने में उन्हें काफी परेशानियां आईं, फिर उन्होंने अपनी सैलरी का एक हिस्सा दे कर नौकरानी रख ली. अब वे घर और औफिस दोनों का काम बड़ी सरलता से कर लेती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे अपनी सैलरी का 40% हिस्सा नौकरानी शांता को देती हैं, लेकिन उन्हें इस का कोई मलाल नहीं है क्योंकि वे सम?ाती हैं कि जौब हर महिला को करनी चाहिए और इसे शादी के बाद भी जारी रखना चाहिए.

कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस दोनों का काम करना होता है. ऐसे में वे अपने कामों को छोटेछोटे हिस्सों में बांट दें. परिवार के हर सदस्य को उस की जरूरत का खुद खयाल रखने दें, जेबें चैक करने के बाद गंदे कपड़ों को टोकरी में डालने को कहें, खाने के बाद उन्हें अपनी थाली खुद उठाने को कहें, अपने पार्टनर से टेबल और बैड लगाने को कहें, उन्हें पानी का जार भरने जैसे छोटेछोटे काम करने को दें.

पुरुषों को भी यह सम?ाना होगा कि यह केवल महिलाओं का ही काम नहीं है क्योंकि एक कामकाजी महिला के रूप में कार्यालय और घर दोनों अच्छी तरह संभाल रही हैं, इसलिए दोनों को घर के कामों में हाथ बंटाना चाहिए, अगर आप के पार्टनर को खाना बनाना आता है तो उन से कहें कि वे भी खाना बनाया करें. यदि परिवार में अन्य सदस्य हैं. तो सभी को विनम्रता से यह स्पष्ट करें कि आप एक कामकाजी महिला हैं और आप भी जौब करती हैं इसलिए सभी को मिल कर काम करना होगा.

धर्म क्या चाहता है

हर धर्म चाहता है कि औरतें कमजोर रहें और इसलिए धर्म के धोखेबाज तरहतरह के तरीके अपनाते हैं. वे कहते हैं कि पूजापाठ से घर में बरकत होती है, बच्चे होते हैं, लड़की को अच्छा वर मिलता है, बीमार ठीक होता है, इन सब के लिए आदमी अपना समय कम लगाते हैं, औरतें ज्यादा समय लगाती हैं. वर्किंग औरतों को इस साजिश को सम?ा लेना चाहिए और धर्म में समय नहीं लगाना चाहिए.

तीर्थस्थान की जगह मनोरंजक स्थान पर जाएं, जहां फुरसत हो और कार्यक्रम आप के अनुसार तय हो, मंदिर के कपाट खुलने या पंडितों के दिए समय के अनुसार नहीं. मंदिरों में लाइनों में समय बरबाद न करें, किसी समुद्री तट या जंगल का मजा लें.

घर में पूजापाठ के नाम पर घंटों आंखें मूंद कर बैठने की जगह व्यवसाय करें, पौधे लगाएं, घर की देखभाल करें ताकि कोई यह न कह सके कि घर है या कबाड़खाना.

एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि एक शिशु को मां की सब से अधिक जरूरत केवल 3 वर्ष तक ही होती है, इस के बाद जैसेजैसे उस का विकास होता जाता है उस का ध्यान कम रखना पड़ता है. इस बीच महिलाएं अपने बच्चे के लिए बेबी सिटर या कहें बेबी केयर अपौइंट कर सकती हैं और इस के बाद महिलाएं अपनी जौब को जारी रख सकती हैं.

महिलाओं को इस बात से पीछे नहीं हटना चाहिए कि उन की सैलरी बेबी केयर और नौकरानी में निकल जाएगी. उन्हें उस वक्त बस यह ध्यान रखना है कि वे अपनी जौब को जारी रखें क्योंकि यही एक जरीया है जो उन्हें बाहरी दुनिया से जोड़े रखेगा और मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चलने का अवसर प्रदान करेगा.

मेघा पेशे से डाक्टर हैं. उन के 2 बच्चे हैं. ऐसे में बच्चों को अकेला छोड़ कर क्लीनिक जाना उन के लिए एक मुश्किल फैसला था. इस वजह से वे अपनी नौकरी छोड़ने की सोच रही थीं. तभी उन की एक दोस्त ने सु?ाव दिया कि वे एक फुलटाइम बेबी सिटर रख लें. मेघा ने ऐसा ही किया. इस के बाद मेघा टैंशन फ्री हो कर क्लीनिंग जाने लगीं.

जमाना बदल गया है

ऐसी ही एक कहानी दिल्ली के पटेल नगर में रहने वाली नीति बताती हैं. वे कहती हैं कि वे एक न्यूज चैनल में कार्यरत हैं. अपने अनुभव बताते हुए वे कहती हैं कि उन्हें हमेशा से यह डर लगता था कि बच्चे होने के बाद क्या वे अपनी जौब जारी रख पाएंगी? लेकिन नौकरानी और बेबी सिटर की सहायता से वे अपने घर और जौब दोनों को अच्छे से संभाल लेती हैं. वे कहती हैं कि महिलाओं को हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करनी चाहिए. इस के लिए जरूरी है कि वे शादी के बाद भी जौब करें.

महिलाओं के लिए नौकरी करना और उस के साथसाथ घर और बच्चे की जिम्मेदारी संभालना आसान काम नहीं है, लेकिन नए जमाने की महिलाओं ने इसे बखूबी निभाया है. महिलाओं को अपने पार्टनर को यह बताना चाहिए कि घर और बच्चे दोनों के हैं इसलिए जिम्मेदारी भी दोनों की है, किसी एक की नहीं.

वे लोग जो सम?ाते हैं कि कामकाजी महिलाएं घर का अच्छे से खयाल नहीं रखती हैं उन्हें शुगर कौस्मैटिक की कोफाउंडर विनीता अग्रवाल और ममा अर्थ की ओनर कजल अलघ का नाम नहीं भूलना चाहिए. वहीं अगर मीडिया इंडस्ट्री की बात की जाए तो उच्च पदों पर कार्यरत महिलाएं जैसे अंजना ओम कश्यप भी शादीशुदा हैं, फिर भी वे घर और जौब दोनों को अच्छे से संभाल रही हैं.

भारत के कई राज्यों और शहरों में ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने फूड स्टाल लगा कर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है. वे न केवल अपना खर्चा उठाती हैं बल्कि अपने परिवार की जरूरतों का भी पूरा खयाल रखती हैं.

ऐसा ही एक स्टौल दिल्ली के लाजपत नगर में एक महिला चलाती हैं जो मोमोस के लिए फेमस हैं. इन्हें ‘डोलमा आंटी’ के नाम से जाना जाता है. हमें अपने आसपास राह चलते हुए ऐसी कई महिलाएं दिख जाती हैं जो नीबू पानी, जूस, लस्सी और चाय आदि का स्टाल लगाती हैं. यह वे महिलाएं हैं जिन से हमें प्रेरणा मिलती हैं. ये महिलाएं उन सभी महिलाओं के लिए उदाहरण पेश करती हैं जो शादी के बाद जौब छोड़ कर खुद को घरगृहस्थी में व्यस्त कर लेती हैं और अपना कैरियर दांव पर लगा देती हैं.

ऐसे बहुत से काम हैं जिन्हें शादीशुदा महिलाएं पार्टटाइम के तौर पर कर सकती हैं. ये काम घर बैठे भी किए जा सकते हैं. आमतौर पर ये काम कुछ घंटे के होते हैं जैसे राइटिंग, प्रूफ रीडिंग, एडिटिंग, टाइपिंग आदि. पार्टटाइम काम करने के लिए जरूरी है कि आप के पास उन कामों से संबंधित विषय वस्तु हो जैसे प्रूफ रीडिंग और राइटिंग के लिए टेबल और कुरसी की जरूरत होती है.

कामकाजी महिलाओं के फायदे

कामकाजी महिला होने के बहुत फायदे हैं जैसे कामकाजी महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम होती हैं. वे अधिक कौन्फिडैंट होती हैं क्योंकि वे बनठन कर रहती है इसलिए उन की पर्सनैलिटी होती है. कामकाजी महिलाएं बहुत खुशमिजाज होती हैं और साथ ही साथ जिंदगी को एक नए तरीके से देखने में भी विश्वास रखती हैं.

इस के अलावा और भी कई फायदे हैं:

आर्थिक रूप से सक्षम: आर्थिक रूप से सक्षम कामकाजी महिलाओं का समाज में एक अलग रुतबा होता है. आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारण वे अपने आर्थिक फैसले खुद ले सकती हैं. वे जो भी चाहें वह खरीद सकती हैं. इस के लिए उन्हें पति पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है. यदि महिलाएं शादी के बाद जौब नहीं करतीं तो उन्हें छोटीछोटी जरूरतों के लिए अपने पति का मुंह ताकना पड़ता है. यह उन महिलाओं को असहज महसूस करा सकता है जिन्होंने शादी से पहले जौब की हो.

अपनेआप को इस असहजता से निकालने के लिए उन्हें शादी के बाद भी जौब करनी चाहिए. आर्थिक रूप से सक्षम होने के कारण वे अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देती हैं. इस के अलावा आय का एक सोर्स और बढ़ने से घर में सेविंग होने लगती है जोकि उन के भविष्य के लिए बहुत जरूरी है.

अधिक अट्रैक्टिव : शादीशुदा कामकाजी महिलाएं अधिक अट्रैक्टिव होती हैं क्योंकि वे दुनिया से जुड़ी हुई होती हैं. उन्हें पता होता कि फैशन में क्या चल रहा है इसलिए वे पति का अधिक प्यार भी पाती हैं. यह भी देखा गया है कि कामकाजी महिलाओं के पति अधिक रोमांटिक होते हैं. इस वजह से उन के बीच रोमांस अधिक होता है. वहीं अगर घरेलू महिला की बात की जाए तो वे कम अट्रैक्टिव होती हैं क्योंकि वे फैशन से लगभग कट चुकी होती हैं. उन का दायरा अब केवल घर तक ही सीमित रह जाता है. इसी वजह से उन के बीच रोमांस कम होता है.

अधिक कौन्फिडैंट : कामकाजी महिलाओं के कौन्फिडैंट की डोर खुले आसमान में गोते खाती हुई नजर आती है. यह कौन्फिडैंट उन्हें चारदीवारी से बाहर निकल कर आता है. वहीं अगर घरेलू महिलाओं की बात करें तो उन का सारा समय चौका बरतन में ही निकल जाता है. ऐसे में बाहरी दुनिया से उन का नाता लगभग टूट जाता है.

32 वर्षीय सुप्रिया एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती हैं. उस का कौन्फिडैंस उन की बातों से साफ ?ालकता है. वहीं अगर घरेलू महिलाओं की बात की जाए तो वे लोगों से बात करने में ?ि?ाकती हैं.

निजी रिश्तों में आता है निखार : यह बात कई अध्ययनों के माध्यम से सामने आई है कि कामकाजी महिलाएं अपने क्षेत्र में अधिक सफल होती हैं. उन का निजी जीवन ज्यादा खुशनुमा होता है.

अधिक खुशमिजाज : लोगों का मानना है कि बाहर काम करना बहुत कठिन है, लेकिन सच तो यह है कि यदि घर पर कोई विशेष काम न हो तो महिलाओं को बाहर निकल कर जौब करनी ही चाहिए. इस से न केवल वे आत्मनिर्भर बनेंगी बल्कि तनावमुक्त भी रहेंगी. हाल ही में हुई एक स्टडी के मुताबिक, कामकाजी महिलाओं में गृहिणियों के मुकाबले कम अवसाद और तनाव देखने को मिला है. लोगों का मानना है कि कामकाजी महिलाएं घरेलू महिलाओं के मुकाबले अधिक खुशमिजाज होती हैं.

आदर्श महिलाएं : कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के सामने एक आदर्श के रूप में निखरती हैं. यह भी देखा गया है कि यदि किसी घरपरिवार में आर्थिक तंगी को ले कर तनाव देखने को मिलता है तो ऐसी स्थिति में ये महिलाएं बाहर निकल कर नौकरी कर के अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती हैं. इन सब बातों का प्रभाव बच्चों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है और आगे चल कर वे इस से अपने इरादों में मजबूती पाते हैं.

बदलता है नजरिया : घर से बाहर निकल कर काम करने वाली महिलाओं की सोच का नजरिया घरेलू महिलाओं की सोच में अधिक हो जाता है क्योंकि वे बाहर निकल कर पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही होती हैं. ऐसी स्थिति में कामकाजी महिलाएं पुरुषों के कार्य को भलीभांति सम?ा सकती हैं. यह देखने में आया है कि कामकाजी महिलाएं अपने परिवार के हित में जो भी फैसला लेती हैं. वह खुले दिल और दिमाग से होता है.

हमें बौलीवुड की फिल्म ‘की एंड का’ से प्रेरणा लेनी चाहिए. फिल्म में दिखाया गया है कि करीना कपूर एक कैरियर ऐंबीशंस लड़की है जो मानती है कि जरूरी नहीं है कि महिलाएं किचन में ही काम करें. वे कौरपोरेट औफिस में भी अच्छी तरह काम कर सकती हैं. वहीं अर्जुन कपूर की अपने पिता के बिजनैस में कोई रुचि नहीं है. वह मानता है कि एक लड़का भी अच्छे से किचन संभाल सकता है.

हमें इस फिल्म से यह सीखना चाहिए कि घरपरिवार की जिम्मेदारी महिलापुरुष कुछ दोनों की है. महिलाओं को यह सम?ाने की जरूरत है कि यह समाज उन्हें बस घर में कैद करना चाहता है. इस के लिए वह अलगअलग हथकंडे अपनाता है जैसे घर संभालना, बच्चों की देखभाल करना, आदर्श बहू बनना और न जाने क्याक्या. महिलाओं को इन सभी बातों को दरकिनार कर के अपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए. उन्हें इस बात को इग्नोर नहीं करना चाहिए कि उन का आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है.

शिणगारी: आखिर क्यों आज भी इस जगह से दूर रहते हैं बंजारे?

बंजारों के एक मुखिया की बेटी थी शिणगारी. मुखिया के कोई बेटा नहीं था. शिणगारी ही उस का एकमात्र सहारा थी. बेहद खूबसूरत शिणगारी नाचने में माहिर थी.

शिणगारी का बाप गांवगांव घूम कर अपने करतब दिखाता था और इनाम हासिल कर अपना व अपनी टोली का पेट पालता था.

शिणगारी में जन्म से ही अनोखे गुण थे. 17 साल की होतेहोते उस का नाच देख कर लोग दांतों तले उंगली दबाने लगे थे.

ऐसे ही एक दिन बंजारों की यह टोली उदयपुर पहुंची. तब उदयपुर नगर मेवाड़ राज्य की राजधानी था. महाराज स्वरूप सिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे. उन के दरबार में वीर, विद्वान, कलाकार, कवि सभी मौजूद थे. एक दिन महाराज का दरबार लगा हुआ था. वीर, राव, उमराव सभी बैठे थे. महफिल जमी थी. शिणगारी ने जा कर महाराज को प्रणाम किया.

अचानक एक खूबसूरत लड़की को सामने देख मेवाड़ नरेश पूछ बैठे, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘शिणगारी… महाराज. बंजारों के मुखिया की बेटी हूं…’’ शिणगारी अदब से बोली, ‘‘मुजरा करने आई हूं.’’

‘‘ऐसी क्या बात है तुम्हारे नाच में, जो मैं देखूं?’’ मेवाड़ नरेश बोले, ‘‘मेरे दरबार में तो एक से बढ़ कर एक नाचने वालियां हैं.’’

‘‘पर मेरा नाच तो सब से अलग होता है महाराज. जब आप देखेंगे, तभी जान पाएंगे,’’ शिणगारी बोली.

‘‘अच्छा, अगर ऐसी बात है, तो मैं तुम्हारा नाच जरूर देखूंगा. अगर मुझे तुम्हारा नाच पसंद आ गया, तो मैं तुम्हें राज्य का सब से बढि़या गांव इनाम में दूंगा. अब बताओ कि कब दिखाओगी अपना नाच?’’ मेवाड़ नरेश ने पूछा. ‘‘मैं सिर्फ पूर्णमासी की रात को मुजरा करती हूं. मेरा नाच खुले आसमान के नीचे चांद की रोशनी में होता है…’’ शिणगारी बोली, ‘‘आप अपने महल से पिछोला सरोवर के उस पार वाले टीले तक एक मजबूत रस्सी बंधवा दीजिए. मैं उसी रस्सी पर तालाब के पानी के ऊपर अपना नाच दिखाऊंगी.’’

शिणगारी के कहे मुताबिक मेवाड़ नरेश ने अपने महल से पिछोला सरोवर के उस पार बनेरावला दुर्ग के खंडहर के एक बुर्ज तक एक रस्सी बंधवा दी.

पूर्णमासी की रात को सारा उदयपुर शिणगारी का नाच देखने के लिए पिछोला सरोवर के तट पर इकट्ठा हुआ. महाराजा व रानियां भी आ कर बैठ गए.

चांद आसमान में चमक रहा था. तभी शिणगारी खूब सजधज कर पायलें छमकाती हुई आई. उस ने महाराज व रानियों को झुक कर प्रणाम किया और दर्शकों से हाथ जोड़ कर आशीर्वाद मांगा. फिर छमछमाती हुई वह रस्सी पर चढ़ गई. नीचे ढोलताशे वगैरह बजने लगे.

शिणगारी लयताल पर उस रस्सी पर नाचने लगी. एक रस्सी पर ऐसा नाच आज तक उदयपुर के लोगों ने नहीं देखा था. हजारों की भीड़ दम साधे यह नाच देख रही थी. खुद मेवाड़ नरेश दांतों तले उंगली दबाए बैठे थे. रानियां अपलक शिणगारी को निहार रही थीं.

नाचतेनाचते शिणगारी पिछोला सरोवर के उस पार रावला दुर्ग के बुर्ज पर पहुंची, तो जनता वाहवाह कर उठी. खुद महाराज बोल पड़े, ‘‘बेजोड़…’’

कुछ पल ठहर कर शिणगारी रस्सी पर फिर वापस मुड़ी. बलखातीलहराती रस्सी पर वह ऐसे नाच रही थी, जैसे जमीन पर हो. इस तरह वह आधी रस्सी तक वापस चली आई.

अभी वह पिछोला सरोवर के बीच में कुछ ठहर कर अपनी कला दिखा ही रही थी कि किसी दुष्ट के दिल पर सांप लोट गया. उस ने सोचा, ‘एक बंजारिन मेवाड़ के सब से बड़े गांव को अपने नाच से जीत ले जाएगी. वीर, उमराव, सेठ इस के सामने हाथ जोड़ेंगे. क्षत्रियों को झुकना पड़ेगा और ब्राह्मणों को इस की दी गई भिक्षा ग्रहण करनी पड़ेगी…’ और तभी रावला दुर्ग के बुर्ज पर बंधी रस्सी कट गई.

शिणगारी की एक तेज चीख निकली और छपाक की आवाज के साथ वह पिछोला सरोवर के गहरे पानी में समा गई.

सरोवर के पानी में उठी तरंगें तटों से टकराने लगीं. महाराज उठ खड़े हुए. रानियां आंसू पोंछते हुए महलों को लौट गईं. भीड़ में हाहाकार मच गया. लोग पिछोला सरोवर के तट पर जा खड़े हुए. नावें मंगवाई गईं. तैराक बुलाए गए. तालाब में जाल डलवाया गया, पर शिणगारी को जिंदा बचा पाना तो दूर उस की लाश तक नहीं खोजी जा सकी.

अगले दिन दरबार लगा. शिणगारी का पिता दरबार में एक तरफ बैठा आंसू बहा रहा था.

मेवाड़ नरेश बोले, ‘‘बंजारे, हम तुम्हारे दुख से दुखी हैं, पर होनी को कौन टाल सकता है. मैं तुम्हें इजाजत देता हूं कि तुम्हें मेरे राज्य का जो भी गांव अच्छा लगे, ले लो.’’

‘‘महाराज, हम ठहरे बंजारे. नाच और करतब दिखा कर अपना पेट पालते हैं. हमें गांव ले कर क्या करना है. गांव तो अमीर उमरावों को मुबारक हो…’’ शिणगारी का बाप रोतेरोते कह रहा था, ‘‘शिणगारी मेरी एकलौती औलाद थी. उस की मां के मरने के बाद मैं ने बड़ी मुसीबतें उठा कर उसे पाला था. वही मेरे बुढ़ापे का सहारा थी. पर मेरी बेटी को छलकपट से तो नहीं मरवाना चाहिए था अन्नदाता.’’

मेवाड़ नरेश कुछ देर सिर झुकाए आरोप सुनते रहे, फिर तड़प कर बोले, ‘‘तेरा आरोप अब बरदाश्त नहीं हो रहा है. अगर तुझे यकीन है कि रस्सी किसी ने काट दी है, तो तू उस का नाम बता. मैं उसे फांसी पर चढ़वा कर उस की सारी जागीर तुझे दे दूंगा.’’

‘‘ऐसी जागीर हमें नहीं चाहिए महाराज. हम तो स्वांग रच कर पेट पालने वाले कलाकार हैं,’’ शिणगारी के पिता ने कहा. ‘‘तो तुम जो चाहो मांग लो,’’ मेवाड़ नरेश गरजे.

‘‘नहीं महाराज…’’ आंसुओं से नहाया बंजारों का मुखिया बोला, ‘‘जिस राज्य में कपटी व हत्यारे लोग रहते हैं, वहां का इनाम, जागीर, गांव लेना तो दूर की बात है, वहां का तो मैं पानी भी नहीं पीऊंगा. मैं क्या, आज से उदयपुर की धरती पर बंजारों का कोई भी बच्चा कदम नहीं रखेगा महाराज.’’

यह सुन कर सभा में सन्नाटा छा गया. वह बंजारा धीरेधीरे चल कर दरबार से बाहर निकल गया.

इस घटना को बीते सदियां गुजर गईं, पर अभी भी बंजारे उदयपुर की जमीन पर कदम नहीं रखते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी बंजारे अपने बच्चों को शिणगारी की कहानी सुना कर उदयपुर की जमीन से दूर रहने की हिदायत देते हैं.

लेखक- शिवचरण चौहान

गूंगी गूंज- क्यों मीनो की गुनाहगार बन गई मां?

“रिमझिम के तराने ले के आई बरसात, याद आई किसी से वो पहली मुलाकात,” जब
भी मैं यह गाना सुनती हूं, तो मन बहुत विचलित हो जाता है, क्योंकि याद
आती है, पहली नहीं, पर आखिरी मुलाकात उस के साथ.

आज फिर एक तूफानी शाम है. मुझे सख्त नफरत है वर्षा  से. वैसे तो यह भुलाए
न भूलने वाली बात है, फिर भी जबजब वर्षा होती है तो मुझे तड़पा जाती है.

मुझे याद आती है मूक मीनो की, जो न तो मेरे जीवन में रही और न ही इस
संसार में. उसे तकदीर ने सब नैमतों से महरूम रखा था. जिन चीजों को हम
बिलकुल सामान्य मानते हैं, वह मीनो के लिए बहुत अहमियत रखती थीं. वह मुंह
से तो कुछ नहीं बोल सकती थी, पर उस के नयन उस के विचार प्रकट कर देते थे.

कहते हैं, गूंगे की मां ही समझे गूंगे की बात. बहुतकुछ समझती थी, पर मैं
अपनी कुछ मजबूरियों के कारण मीनो को न चाह कर भी नाराज कर देती थी.

बारिश की पहली बूंद पड़ती और वह भाग कर बाहर चली जाती और खामोशी से आकाश
की ओर देखती, फिर नीचे पांव के पास बहते पानी को, जिस में बहती जाती थी
सूखें पत्तों की नावें. ताली मार कर खिलखिला कर हंस पड़ती थी वह.

बादलों को देखते ही मेरे मन में एक अजीब सी उथलपुथल हो जाती है और एक
तूफान सा उमड़ जाता है जो मुझे विचलित कर जाता है और मैं चिल्ला उठती हूं
मीनो, मीनो…

मीनो जन्म से ही मानसिक रूप से अविकसित घोषित हुई थी. डाक्टरों की सलाह
से बहुत जगह ले गई, पर कहीं उस के पूर्ण विकास की आशा नजर नहीं आई.

मीनो की अपनी ही दुनिया थी, सब से अलग, सब से पृथक. सब सांसारिक सुखों से
क्या, वह तो शारीरिक व मानसिक सुख से भी वंचित थी. शायद इसीलिए वह कभीकभी
आंतरिक भय से प्रचंड रूप से उत्तेजित हो जाती थी. सब को उस का भय था और
उसे भय था अनजान दुनिया का, पर जब वह मेरे पास होती तो हमेशा सौम्य, बहुत
शांत व मुसकराती रहती.

बहुत कोशिश की थी उस रोज कि मुझे गुस्सा न आए, पर 6 वर्षों की सहनशीलता
ने मानसिक दबावों के आगे घुटने टेक दिए थे और क्रोध सब्र का बांध तोड़ता
हुआ उमड़ पड़ा था. क्या करती मैं? सहनशीलता की भी अपनी सीमाएं होती हैं.

एक तरफ मीनो, जिस ने सारी उम्र मानसिक रूप से 3 साल का ही रहना था और
दूसरी ओर गोद में सुम्मी. दोनों ही बच्चे, दोनों ही अपनी आवश्यकताओं के
लिए मुझ पर निर्भर.

उस दिन एहसास हुआ था मुझे कि कितना सहारा मिलता है एक संयुक्त परिवार से.
कितने ही हाथ होते हैं आप का हाथ बंटाने को और इकाई परिवार में
स्वतंत्रता के नाम पर होती है आत्मनिर्भरता या निर्भर होना पड़ता है
मनमानी करती नौकरानी पर. नौकर मैं रख नहीं सकती थी, क्योंकि मेरी 2
बेटियां थीं और कोई उन पर बुरी नजर नहीं डालेगा, इस की कोई गारंटी नहीं
थी.

आएदिन अखबारों में ऐसी खबरें छपती रहती हैं. मीनो के साथसाथ मेरा भी
परिवार सिकुड़ कर बहुत सीमित हो गया था. संजीव, मीनो, सुम्मी और मैं.
कभीकभी तो संजीव भी अपने को उपक्षित महसूस करते थे. हमारी कलह को देख कर
कई लोगों ने मुझे सलाह दी कि मीनो को मैं पागलखाने में दाखिल करा दूं और
अपना ध्यान अपने पति और दूसरी बच्ची पर पूरी तरह दूं, पर कैसे करती मैं
मीनो को अपने से दूर. उस का संसार तो मैं ही थी और मैं नहीं चाहती थी कि
उसे कोई तकलीफ हो, पर अनचाहे ही सब तकलीफों से छुटकारा दिला दिया मैं ने.

उस दिन मेरा और संजीव का बहुत झगड़ा हुआ था. फुटबाल का ‘विश्व कप’ का
फाइनल मैच था. मैं ने संजीव से सुम्मी को संभालने को कहा, तो उस ने मना
तो नहीं किया, पर बुरी तरह बोलना शुरू कर दिया.

यह देख मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं ने भी उलटेसीधे जवाब दे दिए. फुटबाल
मैच में तो शायद ब्राजील जीता था, परंतु उस मौखिक युद्ध में हम दोनों ही
पराजित हुए थे. दोनों भूखे ही लेट गए और रातभर करवटें बदलते रहे.

सुबह भी संजीव नाराज थे. वे कुछ बोले या खाए बिना दफ्तर चले गए. जैसेतैसे
बच्चों को कुछ खिलापिला कर मैं भी अपनी पीठ सीधी करने के लिए लेट गई.
हलकीहलकी ठंडक थी. मैं कंबल ले कर लेटी ही थी कि मीनो, जो खिलौने से खेल
रही थी, मेरे पास आ गई. मैं ने हाथ बाहर निकाल उसे अपने पास लिटाना चाहा,
पर मीनो बाहर बारिश देखना चाहती थी.

मैं ने 2-3 बार मना किया, मुझे डर था कि कहीं मेरी ऊंची आवाज सुन कर
सुम्मी न जाग जाए. उस समय मैं कुछ भी करने के मूड में नहीं थी. मैं ने एक
बार फिर मीनो को गले लगाने के लिए बांह आगे की और उस ने मुझे कलाई पर काट
लिया.

गुस्से में मैं ने जोर से उस के मुंह पर एक तमाचा मार दिया और चिल्लाई,
‘‘जानवर कहीं की. कुत्ते भी तुम से ज्यादा वफादार होते हैं. पता नहीं
कितने साल तेरे लिए इस तरह काटने हैं मैं ने अपनी जिंदगी के.’’

कहते हैं, दिन में एक बार जबान पर सरस्वती जरूर बैठती है. उस दिन दुर्गा
क्यों नहीं बैठी मेरी काली जबान पर. अपनी तलवार से तो काट लेती यह जबान.

थप्पड़ खाते ही मीनो स्तब्ध रह गई. न रोई, न चिल्लाई. चुपचाप मेरी ओर बिना
देखे ही बाहर निकल गई मेरे कमरे से और मुंह फेर कर मैं भी फूटफूट कर रोई
थी अपनी फूटी किस्मत पर कि कब मुक्ति मिलेगी आजीवन कारावास से, जिस में
बंदी थी मेरी कुंठाएं. किस जुर्म की सजा काट रही हैं हम मांबेटी?

एहसास हुआ एक खामोशी का, जो सिर्फ आतंरिक नहीं थी, बाह्य भी थी. मीनो
बहुत खामोश थी. अपनी आंखें पोंछती मैं ने मीनो को आवाज दी. वह नहीं आई,
जैसे पहले दौड़ कर आती थी. रूठ कर जरूर खिलौने पर निकाल रही होगी अपना
गुस्सा.

मैं उस के कमरे में गई. वहां का खालीपन मुझे दुत्कार रहा था. उदासीन बटन
वाली आंखों वाला पिंचू बंदर जमीन पर मूक पड़ा मानो कुछ कहने को तत्पर था,
पर वह भी तो मीनो की तरह मूक व मौन था.

घबराहट के कारण मेरे पांव मानो जकड़ गए थे. आवाज भी घुट गई थी. अचानक अपने
पालतू कुत्ते भीरू की कूंकूं सुन मुझे होश सा आया. भीरू खुले दरवाजे की
ओर जा कूंकूं करता, फिर मेरी ओर आता. उस के बाल कुछ भीगे से लगे.

यह देख मैं किसी अनजानी आशंका से भयभीत हो गई. कितने ही विचार गुजर गए
पलछिन में. बच्चे उठाने वाला गिरोह, तेज रफ्तार से जाती मोटर कार का मीनो
को मारना.

भीरू ने फिर कूंकूं की तो मैं उस के पीछे यंत्रवत चलने लगी. ठंडक के
बावजूद सब पेड़पौधे पानी की फुहारों में झूम रहे थे. मेरा मजाक उड़ा रहे
थे. मानव जीवन पा कर भी मेरी स्थिति उन से ज्यादा दयनीय थी.

भीरू भागता हुआ सड़क पर निकल गया और कालोनी के पार्क में घुस गया. मैं उस
के पीछेपीछे दौड़ी. भीरू बैंच के पास रुका. बैंच के नीचे मीनो सिकुड़ कर
लेटी हुई थी. मैं ने उसे उठाना चाहा, पर वह और भी सिकुड़ गई. उस ने कस कर
बैंच का सिरा पकड़ लिया. मैं बहुत झुक नहीं सकती. हैरानपरेशान मैं इधरउधर
देख रही थी, तभी संजीव को अपनी ओर आते देखा.

संजीव ने घर फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही, इसलिए परेशान हो कर दफ्तर से
घर आया था. खुले दरवाजे व सुम्मी को अकेला देख बहुत परेशान था कि मिसेज
मेहरा ने संजीव को मेरा पार्क की तरफ भागने का बताया. वे भी अपना दरवाजा
बंद कर आ रही थीं.

संजीव ने झुक कर मीनो को बुलाया तो वह चुपचाप बाहर घिसट कर आ गई. मीनो को
इस प्रव्यादेश का जिंदगी में सब से बड़ा व पहला धक्का लगा था. पर मैं खुश
थी कि कोई और बड़ा हादसा नहीं हुआ और मीनो सुरक्षित मिल गई.

घर आ कर भी वह वैसे ही संजीव से चिपटी रही. संजीव ने ही उस के कपड़े बदले
और कहा, ‘‘इस का शरीर तो तप रहा है. शायद, इसे बुखार है,” मैं ने जैसे ही
हाथ लगाना चाहा, मीनो फिर संजीव से लिपट गई और सहमी हुई अपनी बड़ीबड़ी
आंखों से मुझे देखने लगी.

मैं ने उसे प्यार से पुचकारा, “आ जा बेटी, मैं नही मारूंगी,” पर उस के
दिमाग में डर घर कर गया था. वह मेरे पास नहीं आई.

”ठंड लग गई है. गरम दूध के साथ क्रोसीन दवा दे देती हूं,“ मैं ने मायूस
आवाज में कहा.

“सिर्फ दूध दे दो. सुबह तक बुखार नहीं उतरा, तो डाक्टर से पूछ कर दवा दे
देंगे,” संजीव का सुझाव था.

मैं मान गई और दूध ले आई. थोड़ा सा दूध पी मीनो संजीव की गोद में ही सो
गई. अनमने मन से हम ने खाना खाया. सुबह का तूफान थम गया था. शांति थी हम
दोनों के बीच.

संजीव ने प्यार भरे लहजे से पूछा, “उतरा सुबह का गुस्सा?”

उस का यह पूछना था और मैं रो पड़ी.

“पगली सब ठीक हो जाएगा?” संजीव ने प्यार से सहलाया. मेरी रुलाई और फूटी.
मन पर एक पत्थर का बोझ जो था मीनो को तमाचा मारने का.

मीनो सुबह उठी तो सहज थी. मेरे उठाने पर गले भी लगी. मैं खुश थी कि मुझे
माफ कर वह सबकुछ भूल गई है. मुझे क्या पता था कि उस की माफी ही मेरी सजा
थी.

मीनो को बुखार था, इसलिए हम उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने सांत्वना
दी कि जल्दी ही वह ठीक हो जाएगी, पर मानो मीनो ने न ठीक होने की जिद पकड़
ली हो. 4 दिन बाद बुखार टूटा और मीनो शांति से सो गई- हमेशाहमेशा के लिए,
चिरनिद्रा में. मुक्त कर गई मुझे जिंदगीभर के बंधनों से. और अब जब भी
बारिश होती है, तो मुझे उलाहना सा दे जाती है और ले आती है मीनो का एक
मूक संदेश, ”मां तुम आजाद हो मेरी सेवा से. मैं तुम्हारी कर्जदार नहीं
बनना चाहती थी. सब ऋणों से मुक्त हूं मैं.

‘‘मीनो मुझे मुक्त कर इस सजा से. यादों के साथ घुटघुट कर जीनेमरने की सजा.”

लेखिका- नीलमणि भाटिया

अमेरिका जैसा मैंने देखा: बेटे-बहू के साथ कैसा था शीतल का सफर

अमेरिका पहुंचने के 2 महीने बाद ही बेटी श्वेता ने जब अपनी मां शीतल को फोन पर उस के नानी बनने का समाचार सुनाया तो शीतल की आंखों से खुशी और पश्चात्ताप के मिश्रित आंसू बह निकले. शीतल को याद आने लगा कि शादी के 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी श्वेता का परिवार नहीं बढ़ा तो उस के समझाने पर, श्वेता की योजना सुन कर कि अभी वे थोड़ा और व्यवस्थित हो जाएं तब इस पर विचार करेंगे, उस ने व्यर्थ ही उस को कितना लंबाचौड़ा भाषण सुना दिया था. उस समय दामाद विनोद के, कंपनी की ओर से, अमेरिका जाने की बात चल रही थी. अब उस को एहसास हो रहा है कि पहले वाला जमाना तो है नहीं, अब तो मांबाप अपनेआप को बच्चे की परवरिश के लिए हर तरह से सक्षम पाते हैं, तभी बच्चा चाहते हैं.

4-5 महीने बाद श्वेता ने मां शीतल से फोन पर कहा, ‘‘ममा, आप अपना पासपोर्ट बनवा लीजिए, आप को यहां आना है.’’

‘‘क्यों क्या बात हो गई? तेरी डिलीवरी के लिए तेरी सास आ रही हैं न?’’

‘‘हां, पहले आ रही थीं लेकिन डाक्टर ने उन्हें इतनी दूर फ्लाइट से यात्रा करने के लिए मना कर दिया है, इसलिए अब वे नहीं आ सकतीं.’’

‘‘ठीक है, देखते हैं. तू परेशान मत होना.’’ फोन पर बेटी ने यह अप्रत्याशित सूचना दी तो वह सोच में पड़ गई, लेकिन उस ने मन ही मन तय किया कि वह अमेरिका अवश्य जाएगी.

पासपोर्ट बनने के बाद वीजा के लिए सारे डौक्युमैंट्स तैयार किए गए. श्वेता ने फोन पर शीतल को समझाया कि अमेरिका का वीजा मिलना बहुत ही कठिन होता है, साक्षात्कार के समय एक भी डौक्युमैंट कम होने पर या पूछे गए एक भी प्रश्न का उत्तर संतोषजनक न मिलने पर साक्षातकर्ता वीजा निरस्त करने में तनिक भी संकोच नहीं करता. उस के बाद वह कोई भी तर्क सुनना पसंद नहीं करता. अमेरिका घूमने जाने वालों को, वहां अधिक से अधिक 6 महीने ही रहने की अनुमति मिलती है, इसलिए उन की बातों से उन को यह नहीं लगना चाहिए कि वे वहीं बसने जा रहे हैं, लेकिन उन की कल्पना के विपरीत जब साक्षातकर्ता ने 2-3 प्रश्न पूछने के बाद ही मुसकरा कर वीजा की अनुमति दे दी तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. सारे डौक्युमैंट्स धरे के धरे रह गए. बाहर प्रतीक्षा कर रहे अपने बेटे को जब उन्होंने हाथ हिला कर उस की जिज्ञासा पर विराम लगाया तो उस ने उन का ऐसे अभिनंदन किया, जैसे वे कोई मुकदमा जीत कर आए हों.

अंत में शीतल का अपने पति के साथ अमेरिका जाने का दिन भी आ गया. वे पहली बार वहां जा रहे थे. सीधी फ्लाइट नहीं थी, इसलिए बेटे ने पूछा, ‘‘यदि आप लोगों को यात्रा करने में तनिक भी असुविधा लग रही है तो व्हीलचेयर की सुविधा ले सकते हैं? पूरा समय आप लोग एक गाइड के संरक्षण में रहेंगे?’’

 ‘‘नहीं, इस की आवश्यकता नहीं है,’’ उन्होंने उत्तर दिया.

मुंबई से 9 घंटे की उड़ान के बाद वे लंदन के हीथ्रो हवाईअड्डे पर पहुंचे. वहां से अमेरिका के एक राज्य टेक्सास के लिए दूसरे विमान से जाना था. अब फिर उन को 9 घंटे की यात्रा करनी थी. उन लोगों ने एक बात का अनुभव किया कि घरेलू विमान से यात्रा करते समय जो झटके लगते हैं, वो इस में बिलकुल नहीं लग रहे थे. उड़ान मंथर गति से निर्बाध अपनी मंजिल की ओर अग्रसर थी.

टेक्सास हवाईअड्डे के बाहर श्वेता अपने पति विनोद के साथ उन की प्रतीक्षा कर रही थी. बेटी पर निगाह पड़ते ही शीतल को एहसास हुआ कि औरत मातृत्व के रूप में सब से अधिक गरिमा से परिपूर्ण लगती है, वह बहुत सुंदर लग रही थी.

उस का चेहरा कांति से दमक रहा था. उस का मन अपनी बेटी के लिए गर्व से भर उठा. भावातिरेक में उस ने उस को गले लगा लिया. वहां से वे लोग कार से डेलस, उन के घर पहुंचे, जो कि लगभग 40 किलोमीटर दूर था. शाम हो गई थी.

बेटी ने घर पहुंचने के लगभग 1 घंटे बाद कहा, ‘‘मेरी क्लास है, यहां डिलीवरी के पहले बच्चे की होने वाली मां को जन्म के बाद बच्चे की कैसे देखभाल की जाए, समझाया जाता है. आप लोग आराम कीजिए, मैं क्लास अटैंड कर के आती हूं.’’

रास्ते की थकान होने के कारण  हम दोनों जल्दी ही गहरी नींद में सो गए. जब जोरजोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई तो वह जल्दी से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए भागी. उस को याद आया कि बेटी ने जातेजाते चौकस हो कर सोने के लिए कहा था, जिस से कि वे दरवाजा खोल सकें, क्योंकि वहां दरवाजे की घंटी नहीं होती है.

अंदर आते हुए श्वेता बड़बड़ा रही थी, ‘‘अरे ममा, यहां पर जरा सी आवाज होते ही पड़ोसी अपनेअपने दरवाजों को खोल कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगते हैं.’’ जब उस ने बताया कि लगभग आधे घंटे से वह बाहर खड़ी थी तो उस को बड़ी ग्लानि हुई.

लेकिन तुरंत ही वह अपनी मां को सांत्वना देती हुई बोली, ‘‘कोई बात नहीं, जेट लैग (अमेरिका में जब रात होती है, तब भारत में दिन होता है इसलिए शरीर को वहां के क्रियाकलापों के अनुसार ढालने में समय लगता है, उसी को जेट लैग कहते हैं) में ऐसी ही नींद आती है.’’ आगे उस ने अपनी बात को जारी रखते हुए बताया, ‘‘यहां पर आप की किसी भी गतिविधि से यदि पड़ोसी को असुविधा होती है तो वे पुलिस को बुलाने में जरा भी संकोच नहीं करते. यहां तक कि ऊपरी फ्लोर में रहने वालों के छोटे बच्चों के भागनेदौड़ने की आवाज के लिए भी निचले फ्लोर में रहने वाले एतराज कर सकते हैं, यहां का कानून बहुत सख्त है.’’

श्वेता के साथ जब कभी शीतल बाजार जाती तो भारत के विपरीत वह देखती कि सड़क पार करते समय पैदल यात्री की सुविधा के लिए ट्रैफिक रुक जाता था. कहीं पर भी कितनी भी भीड़ क्यों न हो, कोई किसी से टकराता नहीं था. हमेशा एक दूरी निश्चित रहती थी, चाहे वह आम लोगों में हो या यातायात के साधनों में हो. किसी भी मौल में या किसी भी सार्वजनिक स्थल पर अजनबी भी मुसकरा कर हैलो अवश्य कहते हैं. गर्भवती स्त्रियों के साथ उन का बड़ा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होता है.

घरों में कामवाली मेड के अभाव में सभी गृहकार्य और बाजार के कार्य स्वयं करने के कारण भारत में जो उन से सुविधा मिलने से अधिक जो मानसिक यंत्रणा को भोगना पड़ता है, वह न होने से जीवन सुचारु रूप से चलता है. गृहकार्य को सुविधाजनक बनाने के लिए बहुत सारे उपकरण भी घरों में उपलब्ध होते हैं. वातानुकूलित घर होने के कारण निवासियों की ऊर्जा का हृस नहीं होता. सड़क पर टै्रफिक जाम न होने के कारण समय बहुत बचता है और उस से उत्पन्न मानसिक तनाव नहीं होता. वहां पर इंडियन स्टोर्स के नाम से बहुत सारी दुकानें खुली हैं, जहां लगभग सभी भारतीय खा- पदार्थ और चाट आदि मिलती हैं. वहां जा कर लगता ही नहीं कि हम भारत में नहीं हैं.

श्वेता की ससुराल में गर्भकाल के 7वें या 9वें महीने में बहू की गोदभराई की रस्म होती है. शीतल के वहां पहुंचने की प्रतीक्षा हो रही थी, इसलिए 9वें महीने में समारोह के आयोजन का विचार किया गया. जिन को बुलाना था उन को उन की  ईमेल आईडी पर निमंत्रण भेजा गया. उन लोगों ने अपनी उपस्थिति के लिए हां या न में लिखने के साथ यह भी लिखा कि वे कितने लोग आएंगे, साथ में अपना बजट लिख कर यह भी पूछा कि उपहार में क्या चाहिए. अमेरिका में अजन्मे बच्चे के लिंग के बारे में पहले से ही डाक्टर बता देते हैं, इसलिए उपहार भी उसी के अनुकूल दिए जाते हैं. उस को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि अपने बच्चे के प्रयोग में आई हुई कीमती वस्तुओं को भी वहां के लोग उपहार में देने और लेने में तनिक भी संकोच नहीं करते. इस से समय और पैसे की बहुत बचत हो जाती है.

समारोह में जितने भी लोग आए थे, लगभग सभी भारतीय पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित हो कर आए थे और हिंदी में बात कर रहे थे. उन की जिज्ञासा को उस की बेटी ने यह कह कर शांत किया कि हमेशा मजबूरी में पाश्चात्य कपड़े पहन कर और अंगरेजी बोल कर सब ऊब जाते हैं, इसलिए समारोहों में ऐसा कर के अपने भारतीय होने के सुखद एहसास को वे खोना नहीं चाहते. उस ने सोचा कि यह कैसी विडंबना है कि भारत में भारतीय पाश्चात्य सभ्यता को अपना कर खुश होते हैं.

वहां पर सभी कार्य स्वयं करने होते हैं, इसलिए जितने भी मेहमान आए थे, सब ने मिलजुल कर सभी कार्य किए और कार्यक्रम समाप्त होने के बाद सब पूरे हौल को साफ कर के सारा कूड़ा तक कूड़ेदान में डाल कर आए. और तो और, बचा हुआ खा- पदार्थ भी जिन को जितना चाहिए था, सब ने मिल कर बांट लिया.

अंत में श्वेता के डिलीवरी का दिन भी आ गया. विनोद उस को डाक्टर को दिखाने के लिए अस्पताल ले कर गए तो वहां से उन का फोन आया कि उसे आज ही भरती करना पड़ेगा. सुन कर शीतल के मन में खुशी और चिंता के मिश्रित भाव उमड़ने लगे. अस्पताल गई तो बेटी को हलके दर्द में ही कराहते देख कर उस ने कहा, ‘‘बेटा, अभी से घबरा रही है, अभी तो बहुत दर्द सहना पड़ेगा.’’ उसे अपना समय याद आ गया था. आगे की तकलीफ कैसी झेलेगी, यह सोच कर उस का मन व्याकुल हो गया. इतने में डाक्टर विजिट पर आ गईं. उस ने शीतल का परिचय श्वेता से पाना चाहा तो उस के बताने पर मुसकरा कर ‘हैलो’ कह कर उस ने उस का स्वागत किया और बेटी व दामाद से आगे की प्रक्रिया के बारे में बातचीत करने लगी. उस के बाद डाक्टर ने श्वेता को एक इंजैक्शन दिया और सोने के लिए कह कर चली गई.

जब डाक्टर ने बेटी को सोने के लिए कहा तो उसे आश्चर्य हुआ कि दर्द में कोई कैसे सो सकता है? जिस का समाधान बेटी ने किया कि जो इंजैक्शन दिया है उस से दर्द का अनुभव नहीं होगा. उस के मन में जो दुश्चिंता थी कि कैसे वह अपनी बेटी को दर्द में तड़पते देख पाएगी, लुप्त हो चुकी थी और उस ने राहत की सांस ली. विज्ञान के नए आविष्कार को मन ही मन धन्यवाद दिया. बेटी ने कहा, ‘‘ममा, आप भी सो जाइए.’’ डाक्टर बारबार आ कर श्वेता को संभाल रही थी तो उस को वहां अपनी उपस्थिति का कोई औचित्य भी नहीं लगा, इसलिए वेटिंगरूम में जा कर सो गई. वहां की व्यवस्था से संतुष्ट होने और अपने थके होने के कारण शीतल तुरंत ही गहरी नींद में सो गई.

सुबह 5 बजे के लगभग विनोद ने उसे जगाया और कहा, ‘‘औपरेशन करना पड़ेगा, चलिए.’’ अपनी नींद को कोसती हुई औपरेशन के नाम से कुछ घबराई हुई बेटी के पास गई तो उस ने देखा कि वह औपरेशन थिएटर में जाने के लिए तैयार हो रही है. शीतल को देख कर वह मुसकराने लगी तो उस ने सोचा कि बेकार ही वह उस की हिम्मत पर शक कर रही थी. मन ही मन उस को अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था.

औपरेशन थिएटर में विनोद भी श्वेता के साथ पूरे समय रहे. उन्होंने वहां सारी प्रक्रिया की फोटो भी खींची जो देख कर वह आश्चर्यचकित रह गई, जैसे कोई खेल हो रहा है. भारत में तो उस ने ऐसा कभी देखासुना भी नहीं था. वहां पर मां को प्रसव के लिए मानसिक रूप से इतना तैयार कर देते हैं कि परिवार वालों को चिंता करने की या उसे संभालने की आवश्यकता ही नहीं होती. आधे घंटे में ही दामाद बच्चे को गोद में ले कर बाहर आ गए. चांद सी बच्ची की नानी बन कर शीतल फूली नहीं समा रही थी. उस ने देखा बच्चे की दैनिक क्रियाकलापों को सुचारु रूप से करने की पूरी जानकारी नर्स दामाद को दे रही थी. उस की तो किसी भी कार्य में दखलंदाजी की आवश्यकता ही नहीं महसूस की जा रही थी. वह तो पूरा समय केवल मूकदर्शक बनी बैठी रही.

उस ने सोचा, तभी बेटी ने वीजा के साक्षात्कार के समय भूल कर भी बेटी की डिलीवरी के लिए जा रहे हैं, ऐसा न कहने के लिए समझाया था. उस ने चैन की सांस ली कि उस की यह चिंता भी कि कैसे वह मां और बच्चे को संभालेगी, उस को तो कुछ पता ही नहीं है, निरर्थक निकली. घर आ कर बेटी ने बच्चे को संभाल कर पूरी तरह साबित भी कर दिया.

वहां पर बच्चे को अस्पताल से ले जाने के लिए कारसीट का होना अति आवश्यक है, उस के बिना बच्चे को डिस्चार्ज ही नहीं करते. इसलिए उस की भी व्यवस्था कर के उसे नियमानुसार कार की पिछली सीट पर स्थापित किया गया. अस्पताल की साफसफाई और रखरखाव किसी फाइवस्टार होटल से कम नहीं था. डाक्टर और नर्स सभी कमरे में मुसकराते हुए प्रवेश करते थे और उस को ‘हैलो’ कहना नहीं भूलते थे, जो उस की उपस्थितिमात्र को महत्त्वपूर्ण बना देता था. जिस दिन डिस्चार्ज होना था, उस दिन उन सब ने श्वेता को काफी देर बैठ कर बच्चे से संबंधित बातें समझाईं. उस के लिए ये सारी प्रक्रिया किसी सपने से कम नहीं थी.

घर आने के बाद, भारत के विपरीत, मिलने आने वालों के असमय और बिना सूचित किए न आने से बच्चे के किसी भी कार्यकलाप में विघ्न नहीं पड़ता था. बच्चे के कमरे में भी बिना अनुमति के कोई प्रवेश नहीं करता था. बच्चे को दूर से ही देखने की कोशिश करते थे और गोद में उठाने से पहले हाथ अवश्य धोते थे, जिस से उस को किसी भी संक्रमण से बचाया जा सके. वह विस्मित सी सब देखती रहती थी. बेटी से पर्याप्त बातचीत करने का समय मिल जाता था.

बातों ही बातों में उस ने बताया कि वहां पर एकल मातृत्व के कारण और एक उम्र के बाद मांबाप और बच्चों के बीच में मानसिक, शारीरिक व आर्थिक जुड़ाव न होने के चलते अवसाद की समस्या भारत की तुलना में बहुत अधिक है. लेकिन अब वे बहुतकुछ भारतीय संस्कृति से प्रभावित हो कर उसे अपना रहे हैं. दूसरी ओर भारतीय उन की अच्छी बातों को न सीख कर, बुराइयों का अनुकरण कर के गर्त में जा रहे हैं. वहां दूसरी गंभीर समस्या मोटापे को ले कर है क्योंकि वहां अधिकतर डब्बाबंद खा- पदार्थों का अत्यधिक सेवन किया जाता है. इस का भी असर भारत की नई पीढ़ी में देखा जा सकता है.

अमेरिका में 6 महीने कब बीत गए, शीतल को पता ही नहीं चला. वहां के सुखद एहसासों और यादों के साथ भारत लौटने के बाद, एक कसक उस को हमेशा सालती रहती है कि यदि हर भारतीय वहां की बुरी बातों के स्थान पर अच्छी बातों को अपना ले और युवापीढ़ी को उन के बौद्धिक स्तर के अनुसार नौकरी व वेतन मिले तो कोई भी अपनों को छोड़ कर अमेरिका पलायन का विचार भी मन में न लाए.

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