मुसकान : भाग 2- क्यों टूट गए उनके सपने

लेखिका- निर्मला कपिला

राजकुमार को एंबुलेंस में डाला गया तो सभी उन के साथ जाना चाहते थे पर सुनील नहीं माना. सुनील, अनिल और मुसकान साथ गए.

पटियाला पहुंच कर जल्दी ही सारे टेस्ट हो गए. डाक्टर ने रात को ही उन की बाईपास सर्जरी करने को कहा. 2 बोतल खून का भी प्रबंध करना था, जिस के लिए सुनील और अनिल अपना खून का सैंपल मैच करने के लिए दे आए थे. बेशक दोनों डाक्टर थे पर मुसकान बहुत घबराई हुई थी. लोगों को बीमारी में देखना और बात है पर अपनों के लिए जो दर्द, घबराहट होती है, यह मुसकान आज जान पाई.

सुनील उसे ढाढ़स बंधा रहा था. उसे यह सोच कर दुख हो रहा था कि उस के सपनों की राजकुमारी, जिस ने जीवन में दुख का एक क्षण नहीं देखा, आज इतना बड़ा दुख…वह भी उस रात में जिस में इस समय उस की बांहों में लिपटी सुहागरात की सेज पर बैठी होती.

‘‘मुसकान, मैं हूं न तुम्हारे साथ. मेरे होते तुम चिंता क्यों करती हो.’’

‘‘मुझे आप के लिए दुख हो रहा है कि मेरे पापा के कारण आप को अपनी खुशी छोड़नी पड़ी,’’ मुसकान की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘पगली, यह हमारे बीच में मेरे-तुम्हारे कहां से आ गया. यह मेरे भी पापा हैं. कल को मुझ पर या घर के किसी दूसरे सदस्य पर कोई मुसीबत आ जाए तो क्या तुम साथ नहीं दोगी?’’

‘‘मेरी तो जान भी हाजिर है.’’

‘‘मुझे जान नहीं, बस, मुसकान चाहिए,’’ कहते हुए सुनील ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर दबाया.

सुनील को डाक्टर ने बुलाया था. अनिल बाजार सामान लेने गया हुआ था. मुसकान पापा के पास बैठ गई. पूरे एक घंटे बाद सुनील आया तो उदास और थकाथका सा था.

‘‘क्या खून दे कर आए हैं?’’ मुसकान घबरा गई.

‘‘हां,’’ जैसे कहीं दूर से उस ने जवाब दिया हो.

‘‘आप थोड़ी देर कमरे में जा कर आराम कर लें, अभी भैया भी आ जाएंगे. मैं पापा के पास बैठती हूं.’’

मुसकान के मन में चिंता होने लगी. सुनील को क्या हो गया. शायद थकावट और परेशानी है और ऊपर से खून भी देना पड़ा. चलो, थोड़ा आराम कर लेंगे तो ठीक हो जाएंगे.

उधर सुनील पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा था. किसे बताए, क्या बताए. मुसकान का क्या होगा. फिर डाक्टर परमिंदर सिंह का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा और उन के कहे शब्द दिमाग में गूंजने लगे :

‘‘सुनील बेटा, तुम  मेरे छात्र रह चुके हो, मेरे बेटे जैसे हो. कैसे कहूं, क्या बताऊं मैं 2 घंटे से परेशान हूं.’’

‘‘सर, मैं बहुत स्ट्रांग हूं, कुछ भी सुन सकता हूं, आप निश्ंिचत हो कर बताइए,’’ सुनील सोच भी नहीं सकता था, वह क्या सुनने जा रहा है.

‘‘तुम एच.आई.वी. पौजिटिव हो. जांच के लिए भेजे गए तुम्हारे ब्लड से पता चला है.’’

‘‘क्या? सर, यह कैसे हो सकता है? आप तो मुझे जानते हैं. कितना सादा और संयमित जीवन रहा है मेरा.’’

‘‘बेटा, मैं जानता हूं और तुम डाक्टर हो, जानते हो कि देह व्यापार और नशेबाजों के मुकाबले में डाक्टर को एड्स से अधिक खतरा है. खुदगर्ज, निकम्मे व भ्रष्ट लोगों की वजह से अनजाने में ही मेडिकल स्टाफ इस बीमारी की गिरफ्त में आ जाता है. सिरिंजों, दस्तानों की रिसाइक्ंिलग, हमारी लापरवाही, अस्पतालों में आवश्यक साधनों की कमी जैसे कितने ही कारण हैं. लोग ब्लड डोनेट करते हैं, समाज सेवा के लिए मगर उसी सेट और सूई को दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो क्या होगा? शायद वही सूई पहले किसी एड्स के मरीज को लगी हो.’’

‘‘सर, मुझे अपनी चिंता नहीं है. मैं मुसकान से क्या कहूंगा? वह तो जीते जी मर जाएगी,’’ सुनील की आवाज कहीं दूर से आती लगी.

‘‘बेटा, हौसला रखो. अभी किसी से कुछ मत कहो. आज पापा का आपरेशन हो जाने दो. 15 दिन तो अभी यहीं लग जाएंगे. घर जा कर मांबाप की सलाह से अगला कदम उठाना. जीवन को एक चुनौती की तरह लो. सकारात्मक सोच से हर समस्या का हल मिल जाता है. मुसकान से मैं बात करूंगा पर अभी नहीं.’’

‘‘सर, उसे अभी कुछ मत बताइए, मुझे सोचने दीजिए,’’ कह कर सुनील अपने कमरे में आ गया था.

पर वह क्या सोच सकता है? एड्स. क्या मुसकान सुन सकेगी? नहीं, वह सह नहीं सकेगी. मैं उसे तलाक दे दूंगा, कहीं दूर चला जाऊंगा, नहीं…नहीं…वह तो अपनी जान दे देगी…नहीं…इस से अच्छा वह मर जाएगा पर मांबाप सह नहीं पाएंगे. नहीं…विपदा का हल मौत नहीं. सर ने ठीक कहा था कि सब को एक न एक दिन मरना है पर मरने से पहले जीना सीखना चाहिए.

अचानक उसे ध्यान आया, आपरेशन का टाइम होने वाला है. मुसकान परेशान हो रही होगी…कम से कम जब तक पापा ठीक नहीं होते, मैं उस का ध्यान रख सकता हूं…इतने दिन कुछ सोच भी सकूंगा.

वह जल्दी कमरा बंद कर के वार्ड में आ गया.

‘‘अब कैसी तबीयत है?’’ उसे देखते ही मुसकान पूछ बैठी.

‘‘मैं ठीक हूं. मुसकान, तुम थोड़ी स्ट्रांग बनो. मैं तुम्हें परेशान देख कर बीमार हो जाता हूं.’’

12 बजे राजकुमार को आपरेशन के लिए ले गए. वह तीनों आपरेशन थियेटर के बाहर बैठ गए. मुसकान को सुनील की खामोशी खल रही थी पर समय की नजाकत को देखते हुए चुप थी. शायद पापा के कारण ही सुनील परेशान हों.

आपरेशन सफल रहा. अगले दिन घर से भी सब लोग आ गए थे. मां ने दोनों को गेस्ट रूम में आराम करने को भेज दिया.

कमरे में जाते ही सुनील लेट गया.

‘‘मुसकान, तुम भी थोेड़ी देर सो लो, रात भर जागती रही हो. मुझे भी नींद आ रही है,’’ कहते हुए वह मुंह फेर कर लेट गया. मुसकान भी लेट गई.

शादी के बाद पहली बार दोनों अकेले एक ही कमरे में थे. इस घड़ी में सुनील का दिल जैसे अंदर से कोई चीर रहा हो. उस का जी चाह रहा था कि मुसकान को बांहों में भर ले पर नहीं, वह उसे और सपने नहीं दिखाएगा. वह उस की जिंदगी बरबाद नहीं होने देगा.

मुसकान मायूस सी किसी हसरत के इंतजार में लेट गई. कुछ कहना चाह कर भी कह नहीं पा रही थी. सुनील पास हो कर भी दूर क्यों है? शायद कई दिनों से भागदौड़ में ढंग से सो नहीं पाया. पर दिल इस पर यकीन करने को तैयार नहीं था. उस ने सोचा, सुनील थोड़ी देर सो ले तब तक मैं वार्ड में चलती हूं. जैसे ही वह दरवाजा बंद करने लगी कि सुनील उस का नाम ले कर चीख सा पड़ा.

‘‘क्या हुआ,’’ वह घबराई सी आई तो देखा कि सुनील का माथा पसीने से भीगा हुआ था.

‘‘एक गिलास पानी देना.’’

उस ने पानी दिया और उसे बेड पर लिटा दिया.

‘‘कहीं मत जाओ, मुसकान. मैं ने अभीअभी सपना देखा है. एक लालपरी बारबार मुझे दिखाई देती है. मैं उसे छूने के लिए आगे बढ़ता हूं पर छू नहीं पाता, एक पहाड़ आगे आ जाता है. वह उस के पीछे चली जाती है. मैं उस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता हूं तो नीचे गिर जाता हूं,’’ इतना कह कर सुनील मुसकान का हाथ जोर से पकड़ लेता है.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो? सपने भी क्या सच होते हैं? चलो, चुपचाप सो जाओ. तुम्हारी लालपरी तुम्हारे पास बैठी है.’’

वह धीरेधीरे उस के माथे को सहलाने लगी. सुनील ने आंखें बंद कर लीं. थोड़ी देर बाद मुसकान ने सोचा, वह सो गया है. वह चुपके से उठी और वार्ड की तरफ चल पड़ी. वह उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी.

आगे पढ़ें- कुछ देर के लिए वहां…

ये भी पढ़ें- एक अच्छा दोस्त: सतीश ने कैसे की राधा की मदद

एक हसीना एक दीवाना: भाग 2- क्या रंग लाया प्रभात और कामिनी का इश्क ?

कामिनी गांव से लौट कर शहर आ गई. वह रोज कालेज आनेजाने लगी, तो प्रभात पहले की तरह उस से मिलनेजुलने लगा. कामिनी को प्रभात ने यह कह कर यकीन दिला दिया था कि जब वह कहेगी, तभी उस से शादी करेगा.

3 महीने बाद प्रभात को शहर में 3-4 घंटे के लिए एक फ्लैट मिल गया. फ्लैट उस के दोस्त का था. उस दिन उस के घर वाले कहीं बाहर गए हुए थे. दोस्त ने सुबह ही फ्लैट की चाबी प्रभात को दे दी थी. उस दिन प्रभात कालेज के गेट पर समय से पहले ही जा कर खड़ा हो गया. कामिनी आई, तो उसे गेट पर ही रोक लिया. वह बहाने से अपने दोस्त के फ्लैट में ले गया.

प्रभात ने जैसे ही फ्लैट के दरवाजे पर अंदर से सिटकिनी लगाई, कामिनी चौंक गई. वह उस की तरफ घूरते हुए बोली, ‘‘तुम ने दरवाजा बंद क्यों किया?’’ ‘‘मुझे तुम से जो बात करनी है, वह दरवाजा बंद कर के ही हो सकती है. बात यह है कामिनी कि जब तक मैं तुम्हें पा नहीं लूंगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा. तुम तो अभी शादी नहीं करना चाहती, इसलिए मैं चाहता हूं कि शादी से पहले तुम मुझ से सुहागरात मना लो. इस में हर्ज भी नहीं है, क्योंकि एक न एक दिन तुम मेरी पत्नी बनोगी ही.’’

प्रभात के चुप होते ही कामिनी बोली, ‘‘तुम पागल हो गए हो क्या? ऐसा करना सही नहीं है. मैं अपना तन शादी के बाद ही पति को सौंपूंगी. इस की कोई गारंटी नहीं है कि मेरी शादी तुम से ही होगी, इसलिए अभी मेरा जिस्म पाने की ख्वाहिश छोड़ दो.’’ ‘‘प्लीज, मान जाओ कामिनी. मैं अब मजबूर हो गया हूं. देखो, तुम्हें अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए प्रभात कामिनी के कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा.

कामिनी जोर लगा कर उस की पकड़ से छूट गई और बोली, ‘‘मैं तुम्हारा इरादा समझ गई हूं. तुम्हें यह लगता है कि मेरे साथ जोरजबरदस्ती करोगे, तो मजबूर हो कर मैं अपना मकसद भूल जाऊंगी और तुम से शादी कर लूंगी. मगर ऐसा हरगिज नहीं होगा. ‘‘अगर तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे, तो मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी. मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी. उस के बाद तुम्हारा क्या होगा, यह तुम खुद सोच सकते हो. तुम जेल चले जाओगे, तो क्या तुम्हारी जिंदगी बरबाद नहीं हो जाएगी?’’

रेप के खतरे से कामिनी डर गई थी और बचने का तरीका ढूंढ़ने लगी थी. कुछ देर चुप रहने के बाद कामिनी प्रभात को समझाने लगी, ‘‘मेरी मानो तो अभी सब्र से काम लो. 3 महीने बाद हमारे इम्तिहान होंगे. उस के 2-3 महीने बाद रिजल्ट आएगा. फिर हम बैठ कर आपस में बात कर लेंगे.

‘‘मैं जानती हूं कि तुम हर हाल में मुझे पाना चाहते हो. मैं तुम्हारी ख्वाहिश जरूर पूरी करूंगी. मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगी. मैं तुम्हें प्यार करती हूं, तो तुम से ही शादी करूंगी न.’’ कामिनी ने प्रभात को तरहतरह से समझाया, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. उस दिन उस के साथ सैक्स करने का इरादा छोड़ कर उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं. रिजल्ट आने तक मैं शादी के लिए तुम्हें परेशान नहीं करूंगा, लेकिन तुम्हें भी मेरी एक बात माननी होगी.’’

‘‘कौन सी बात?’’ कामिनी ने पूछा. ‘‘मेरे पिता से मिल कर तुम्हें यह कहना होगा कि गे्रजुएशन पूरी करने के बाद तुम मुझ से शादी कर लोगी. नौकरी की तलाश नहीं करोगी.’’

कुछ सोच कर कामिनी प्रभात की बात मान गई. 2 दिन बाद प्रभात के साथ कामिनी उस के घर गई. उस के मातापिता से उस ने वह सबकुछ कह दिया, जो प्रभात चाहता था. साथ ही, उस ने उस के पिता से यह भी कहा कि अभी वे उस के घर वालों से न मिलें. रिजल्ट आने के बाद ही मिलें.

प्रभात के मातापिता ने भी कामिनी की बात मान ली. उस के बाद सबकुछ पहले की तरह चलने लगा. इम्तिहान के बाद कामिनी गांव चली गई. उस के बाद प्रभात उस से मिल न सका.

गांव जाते समय कामिनी ने उस से कहा था कि वह उस से मिलने कभी गांव न आए. अगर वह गांव में आएगा. तो उस की बहुत बदनामी होगी. वह उस से फोन पर बात करती रहेगी. रिजल्ट मिलने के एक महीने बाद वह अपने पिता को रिश्ते की बात करने के लिए उस के घर भेज देगी. प्रभात ने उस की बात मान ली. वह उस से मिलने उस के घर कभी नहीं गया.

प्रभात ने सोचा था कि रिजल्ट लेने कामिनी आएगी, तो उसी दिन वह उस से भविष्य की बात कर लेगा. मगर उस का सोचा नहीं हुआ. रिजल्ट लेने कामिनी कालेज नहीं आई. उस का कोई रिश्तेदार आया था और रिजल्ट ले कर चला गया.

प्रभात फर्स्ट डिवीजन में पास हुआ था, जबकि कामिनी सिर्फ पास हुई थी. बधाई देने के लिए प्रभात ने कामिनी को फोन किया, पर उस का फोन स्विच औफ था.

रिजल्ट मिलने के एक दिन पहले तक कामिनी का फोन ठीक था. प्रभात ने उस से बात की थी. अचानक उस का फोन क्यों बंद हो गया, यह वह समझ नहीं पाया. प्रभात कामिनी से तुरंत मिलना चाहता था, मगर वह उस के गांव इसलिए नहीं गया कि उस ने मना कर रखा था. वह उस के साथ वादाखिलाफी नहीं करना चाहता था.

कई दिनों तक प्रभात ने फोन पर कामिनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. एक महीना बीत गया. वादे के मुताबिक कामिनी ने अपने मातापिता को प्रभात के घर नहीं भेजा, तो एक दिन वह उस के गांव चला गया.

पहली बार जिस औरत के सहयोग से प्रभात कामिनी से मिला था, वह सीधे उसी के घर गया. उस औरत से प्रभात को पता चला कि रिजल्ट मिलने के कुछ दिन बाद कामिनी को मुंबई में नौकरी मिल गई थी. अभी वह मुंबई में है. कामिनी मुंबई में कहां रहती थी, उस औरत को इस की जानकारी नहीं थी.

कामिनी के बिना प्रभात रह नहीं सकता था, इसलिए बेखौफ उस के घर जा कर उस के मातापिता और बहनों से मिला. अपनी और कामिनी की प्रेम कहानी बता कर प्रभात ने उस के पिता से कहा, ‘‘कामिनी को मैं इतना प्यार करता हूं कि अगर उस से मेरी शादी नहीं हुई, तो मैं पागल हो कर मर जाऊंगा. मुंबई में वह कहां रहती है? उस का पता मुझे दीजिए. मैं उस से पूछूंगा कि उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’’

कामिनी का पता देना तो दूर उस के पिता ने दुत्कार कर प्रभात को घर से निकाल दिया. घर आ कर प्रभात ने कामिनी का सारा सच पिता को बता दिया. उस के पिता प्रभात को बरबाद होता नहीं देखना चाहते थे. उन्होंने जल्दी ही उस की शादी करने का फैसला किया. आननफानन उस के लिए लड़की तलाश कर शादी भी पक्की कर दी.

प्रभात के दिलोदिमाग से कामिनी अभी गई नहीं थी. उसे लग रहा था कि अगर वह कामिनी से शादी नहीं करेगा, तो जरूर पागल हो कर रहेगा, इसलिए उस ने मुंबई जा कर कामिनी को ढूंढ़ने की सोची. प्रभात जानता था कि उस ने अपने दिल की बात पिता को बता दी, तो वे खुदकुशी करने की धमकी दे कर शादी करने के लिए मजबूर कर देंगे.

शादी में 2 दिन बच गए, तो किसी को कुछ बताए बिना प्रभात घर से मुंबई चला गया. वहां एक दोस्त के घर में रह कर प्रभात ने नौकरी की तलाश के साथसाथ कामिनी की तलाश भी जारी रखी. 6 महीने बाद प्रभात को एक सरकारी बैंक में नौकरी मिल गई, लेकिन कामिनी का पता नहीं चला.

इसी तरह 3 साल बीत गए. इस बीच उस ने चिट्ठी लिख कर अपने पिता को यह बता दिया था कि वह मुंबई में सहीसलामत है. कामिनी से शादी करने के बाद ही वह घर आएगा. 3 साल बाद अचानक प्रभात का ट्रांसफर कोलकाता हो गया. 2 महीने से वह कोलकाता की एक शाखा में अफसर था और इस बात से बेहद चिंतित था कि अब वह कामिनी की तलाश कैसे करेगा?

आगे पढ़ें- दरवाजा अंदर से बंद करने के बाद…

लेखक- राम महेंद्र राय

इंटिमेट सीन्स करने में सहज नहीं हैं ‘सपनों की छलांग’ फेम मेघा राय

सपने तो हर कोई देखता है, लेकिन उन्हें पूरा करने की लगन हर व्यक्ति में नहीं होती. ऐसी ही कहानी है सोनी टीवी के सीरियल ‘सपनों की छलांग’ के अभिनेत्री राधिका यानि मेघा राय की, जिन्होंने पढाई पूरी कर अपनी लाखों की नौकरी छोड़कर एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा.ये तो कहानी है धारावाहिक की, लेकिन रियल लाइफ में भी मेघा ने नौकरी छोड़कर एक्टिंग में कदम रखी है.

असल में मेघा राय एक टीवी एक्ट्रेस, मॉडल और ब्लॉगर हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक ब्यूटी ब्लॉगर के रूप में की थी. मुंबई की मेघा उड़ीसा की है, लेकिन छोटी उम्र में अपने पेरेंट्स के साथ मुंबई शिफ्ट हो गई. शांत और हंसमुख स्वभाव की मेघा एक कंप्यूटर इंजीनियर है और कई सालों तक उन्होंने जॉब भी किया है, पर दिल में कही उन्हें एक्टिंग का शौक था. इसके अलावा वह एक बिग फूडी हैं. उन्हें नए प्रकार का व्यंजन ट्रायकरना पसंद हैं.वह कई ब्रांडस के लिए मॉडल के रूप में काम कर चुकी हैं.मेघा एक पशुप्रेमी हैं. उनके पास एक पालतू बिल्ली भी हैं.मेघा की पसंदिता जगह गोवा हैं.मेघा ने हमेशा नार्थ इंडियन लड़की की भूमिका निभाई है. वर्ष 2019 में वह टेलीविज़न पर सीरियल “दिल ये जिद्दी हैं” से डेब्यू किया है.

मिली प्रेरणा

उन्हें बचपन से ही ब्यूटी और फैशन का काफी शौक था जिसके लिए उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ एक ब्लॉग बनाया, जिसमें वह ब्यूटी और फैशन से संबंधित टिप्स लोगों के साथ शेयर करती थी,उनके इस ब्लॉग को लोगों का काफी सहयोग मिला. मेघा कहती है कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं एक्ट्रेस बनूँगी, लेकिन मुझे परफोर्मिंग आर्ट्स से बहुत लगाव था, क्योंकि मैं एक डांसर भी हूँ. एक्टिंग पसंद था, लेकिन कब कैसे करना है, ये पता नहीं था. जॉब में भी मुझे संतुष्टि नहीं मिल रही थी,इसलिए मैंने मन में निश्चय लिया कि मैं जॉब छोड़करअभिनय के क्षेत्र में ट्राई करुँगी.

परिवार का सहयोग

मेघा कहती है कि परिवार को पहले बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि मैंने परमानेंट जॉब छोड़कर अभिनय करने का मन बनाया था. मैंने उन्हें अपनी बात समझाई और उनसे मैंने दो साल का समय माँगा. कुछ ठीक न होने पर वापस आकर जॉब करने की बात कही. मुझे खुद पर विश्वास था कि मैने जो निर्णय लिया है, वह ठीक है और मुझे वापस लौटने की जरुरत नहीं होगी.

मिला ब्रेक

मेघा का कहना है कि पहला ब्रेक मिलना आसान था, क्योंकि मैंने सोशल मीडिया पर देखा था कि किसी प्रोडक्शन हाउस को फ्रेश फेस चाहिए, उनका कांसेप्ट अच्छा था, मैंने अप्लाई किया और पहले ऑडिशन में मैं चुन ली गई. मैं शुरू में विज्ञापन में काम करना चाहती थी,क्योंकि डेली सोप में समय अधिक देना पड़ता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Megha Ray (@megha_ray)

किये संघर्ष

संघर्ष के बारें में मेघा कहती है कि मैंने संघर्ष को कभी फील नहीं किया, क्योंकि मैं अभिनय के इस प्रोसेस को एन्जॉय करती हूँ. मेरे हिसाब से कोई भी सपना आसान नहीं होता, उसमे मेहनत, लगन और धीरज की जरुरत होती है. संघर्ष शुरूआती दिनों में बहुत रहा, लेकिन जो भी मिला मैं उसमे संतुष्ट रही. इसमें उतार-चढ़ाव भी आये, लेकिन अंत में जो भी मिला अच्छा मिला. इस नई धारावाहिक में भी मेरी कैरियर सर सम्बंधित कहानी है, जिसे करने में मुझे अच्छा लग रहा है.

कांसेप्ट है आकर्षक

मेघा का आगे कहना है कि ये झाँसी की कहानी है, जहाँ एक लड़की राधिका जॉइंट फॅमिली में रहती है. उनके बीच में बहुत अधिक प्यार है, उन्होंने बेटे और बेटी में फर्क नहीं किया है. सबको पढाया लिखाया है. परिवार की वित्तीय सहायता भी इस लड़की ने उठाया है, परिवार में इसकी माँ काफी समझदार है और वह बेटी को अच्छा पढ़ा-लिखा कर एक कामकाजी महिला बनाना चाहती है, क्योंकि राधिका पढने-लिखने में काफी तेज है, लेकिन समस्या लड़की होने से है, जो शहर में अकेले नहीं रह सकती, क्योंकि सुरक्षा का सवाल है. राधिका ऐसे में क्या करती है, उसी को दिखाने की कोशिश की गई है. असल में आज के लड़की की चुनौतीपूर्ण कैरियर के बारें में दिखाया गया है, जो हर परिवार में किसी न किसी रूप में है.

जोड़ पाना है आसान

इस चरित्र से मेघा खुद को बहुत रिलेट कर पाती है, क्योंकि राधिका की जर्नी मेघा से थोड़ी मेल खाती है, इतना ही नहीं, इस भूमिका से हर लड़की खुद को जोड़ पाएगी, क्योंकि मुंबई में कई लड़कियां बाहर से आती है, ऐसे में नए शहर में रहना, रूम शेयर करना, जॉब करना आदि सभी चीजे रिलेटेबल है. मेरी ये चौथी शो है, जिसमे मैंने नार्थ इंडियन की भूमिका निभाई है.इसके अलावा मैंने झाँसी की भाषा और कल्चरको समझा है. मैं झाँसी गई भी हूँ.

होती है समस्या

मेघा कहती है कि महिलाओं को आगे बढ़ते हुए मानसिक समस्या से गुजरना पड़ता है और मैंने इसे आज भी आसपास की कुछ महिलाओं में देखा है, इसे उन्हें ही ठीक करना है. लड़कियों को खुद को कम नहीं समझना चाहिए, चीजे बदल रही है, हर महिला कुछ गलत होने पर अपनी आवाज उठा सकती है.कैरियर में आगे बढ़ने के लिए मौज-मस्ती, घर के कम्फर्ट और परिवार का साथ छोड़ना पड़ता है,मैं खुद भी सुबह की गुड मोर्निंग और रात को गुड नाईट कहती हूँ, क्योंकि फ़ोन करने का समय नहीं मिलता. कैरियर के लिए हर किसी को सामंजस्य को बनाए रखने की कला सीखनी चाहिए. समाज और परिवार के दृष्टिकोण को बदलने में टीवी और सोशल मीडिया का  बहुत बड़ा हाथ होता है, क्योंकिसालों तक किसी शो को देखने पर व्यक्ति उससे खुद को जोड़ लेता है.

इंटिमेट सीन्स करने में सहज नहीं

मेघा को हिंदी वेब सीरीज और फिल्मों में काम करने की इच्छा है, पर अभी वह इंटिमेट सीन्स करने में सहज नहीं, वह फॅमिली वेब सीरीज करना चाहती है, जिसे परिवार के सभी साथ बैठकर देख सकें. वह कहती है कि मैं आगे के बारें में अधिक नहीं सोचती और जो जैसे आता है करती जाती हूँ.

गैसलाइट फिल्म रिव्यू: चित्रांगदा सिंह का शानदार अभिनय फिल्म को कितनी सफलता दिलाएगा?

  • रेटिंग: 2 स्टार
  • निर्माता: रमेश तौरानी और आकाशपुरी
  • लेखक: नेहा शर्मा और पवन कृपलानी
  • निर्देशक: पवन कृपलानी
  • कलाकार: सारा अली खान,विक्रांत मैसे,चित्रांगदा सिंह,अक्षय ओबेराय, राहुल देव, शिशिर शर्मा व दीपक कालरा
  • अवधि: लगभग दो घंटे
  • ओटीटी प्लेटफार्म: डिज्नी प्लस हौट स्टार

2011 में प्रदर्शित सेक्स से सराबोर फिल्म ‘‘रागिनी एमएमएस’’ के लेखक पवन कृपलानी ने इस फिल्म की असफलता के बाद अपने नाम में यानी कि अंग्रेजी की स्पेलिंग में ‘डब्लू’ की जगह ‘वी’ कर लिया था. इस बदलाव के बाद वह बतोर सह लेखक व निर्देशक फिल्म ‘‘डर एट द माल’’ लेकर आए. पर इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा. तब फिर से नाम पुराने नाम की स्पेलिंग के साथ बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘‘फोबिया’’ लेकर आए,जिसमें राधिका आप्टे व सत्यदीप मिश्रा थे. पर यह फिल्म भी नही चली.

तब फिर से नाम में ‘वी’ जोड़कर 2021 में फिल्म ‘‘भूत पोलिस’’ लेकर आए. सैफ अली खान व अर्जुन कपूर के अभिनय से सजी 40 करोड़ की लागत से बनी यह फिल्म ‘‘डिज्नी प्लस हौट स्टार’’ पर आयी थी, जो दर्शकों को पसंद नहीं आयी थी. अब पवन कृपलानी बतौर सह लेखक व निर्देशक मनोवैज्ञानिक रहस्य प्रधान रोमांचक फिल्म ‘‘गैसलाइट’’ लेकर आए हैं.

यह फिल्म 31 मार्च से ‘डिज्नी प्लस हौट स्टार’ पर ही स्ट्रीम हो रही है. इस फिल्म में सारा अली खान के साथ चित्रांगदा सिंह व विक्रांत मैसे हैं. अति कमजोर कथा व पटकथा के चलते यह फिल्म कमजोर फिल्म बनकर रह गयी. फिल्म में मनोविज्ञान,रोमांच या रहस्य का कहीं अता पता नही है. फिल्म शुरू होने के महज 15 मिनट बाद दर्शक समझ जाता है कि असली खलनायक या कातिल कौन है.

इंसान पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने वाले दो तीन दृष्य हैं,मगर वह भी काफी कमजोर हैं. फिल्मकार को समझना चाहिए कि सिर्फ मोरबी की एक अजीबोगरीब हवेली में जाकर फिल्म को फिल्माने व डरावना माहौल रचने मात्र से फिल्म का रहस्य व रोमांचक पक्ष मजबूत नही होता है.

पवन कृपलानी ने ‘भूत पोलिस’ को सैफ अली खान के साथ बनाया था, जबकि फिल्म ‘‘गैस लाइट’’ को सैफ की बेटी सारा अली खान के साथ बनाया है. इन दोनों फिल्मों का निर्माण रमेश तौरानी ने आकाश पुरी के साथ किया है और दोनो ही फिल्में ‘डिज्नी प्लस हौट स्टार’ पर ही स्ट्रीम हो रही हैं. क्या यह महज संयोग है?

कहानीः

फिल्म ‘‘गैसलाइट’’ की कहानी मोरबी, गुजरात में स्थापित है. जहां राजा रतन सिंह गायकवाड़ (शताफ अहमद फिगार) की हवेली है. फिल्म शुरू होती है राजा रतन सिंह गायकवाड़ (शताफ अहमद फिगार) यानी कि दाता कि बेटी मीशा (सारा अली खान) के लंबे समय बाद घर वापस आने से, जिसने एक दुर्घटना में अपनी मां की मृत्यु के बाद अपने पिता से नाता तोड़ लिया था. उसी त्रासदी ने मीशा को भी अपंग बना दिया था.

वास्तव में रतन सिंह गायकवाड़ (शताफ अहमद फिगार) की रूक्मणी (चित्रांगदा सिंह) के साथ दूसरी शादी ने बाप-बेटी के बीच के अलगाव को और बढ़ा दिया. खैर, दाता के फोन करने के चलते मीशा कई वर्षों बाद घर लौटती है. रूक्मणी के लिए आश्चर्य की बात है कि मीशा ने सोशल मीडिया से वैराग ले रखा है. मीशा की सौतेली माँ रुक्मिणी और यहाँ तक कि उसके पिता भी शायद नहीं जानते कि वह एक वयस्क के रूप में कैसी दिखती है. मीशा घर तो लौट आई है, लेकिन दुख की बात है कि उसके पिता लापता हैं.

रात के अंधेरे में भूतिया आकृतियाँ पर्दे के पीछे नजर आ़ती हैं, एक गैसलाइट लालटेन फर्श पर पलक झपकते ही आ जाती है,जो एकमात्र सबूत है कि कोई वहाँ था. रात में चीजें टकरा जाती हैं. और हर बार जब मीशा (सारा अली खान) हवेली में मौजूद सौतेली मां रूक्मिणी (चित्रांगदा सिंह) के साथ इन भयावह घटनाओं को सामने लाने की कोशिश करती है, तो उसे बताया जाता है कि वह चीजों की कल्पना कर रही है.

यानी कि अपने पिता की गैरहाजिरी में मीशा के साथ होने वाले अजीबोगरीब हादसे उसे इस बात का एहसास दिलाते हैं कि उसके पापा के साथ कुछ गलत हुआ है. लेकिन मीशा के बार बार कहने के बावजूद कोई उसकी बातों पर विश्वास नहीं करता.

वह इस रहस्य की तह तक जाने के लिए अपने पिता के तथा कथित वफादार नौकर कपिल (विक्रांत मैसी) की मदद लेती है. कहानी में एक एंगल मीसा के कजिन राणा जय सिंह (अक्षय ओबेराय) का भी है, जिनकी बाद में हत्या हो जाती है. तो पुलिस इंस्पेक्टर एसपी अशोक तंवर (राहुल देव) भी हैं. कपिल सारे किरदारों को लेकर एक नई कहानी सुनाता है. पर क्या मीसा अपने पिता यानी राजा रतन सिंह गायकवाड से मिल पाएगी? घर वापस लौटी लड़की मीसा है या यह भी कोई चाल है? पारिवारिक और राजा रतन सिंह का वफादार कुत्ता क्या कोई सुराग दे पाएगा?

लेखन व निर्देशनः

एक बार फिर लेखक व निर्देशक बुरी तरह से मात खा गए हैं. पवन कृपलानी ने नेहा शर्मा संग इसकी कथा व पटकथा लिखी है,पर सच यह है कि वह सिर्फ माहौल गढ़ पाए हैं. मनोविज्ञान की उन्हें कोई समझ नही है. रहस्य भी वह ज्यादा देर तक बरकरार नही रख पाते. परिणामतः महज 15 मिनट बाद ही दर्षक की रूचि फिल्म से खत्म हो जाती है. तो इस फिल्म की पहली और सबसे कड़ी कमजोर कड़ी इसका लेखन है. बतौर निर्देशक पवन कृपलानी ने फिल्म का नाम ‘गैसलाइट’ रखकर दर्षकों को उलझाने का ही प्रयास किया है.  जब गांवो में बिजली नही पहुॅची थी. तब रोशनी के लिए लालटेन और अधिक रोशनी के लिए गैसलाइट यानी कि ‘पेट्ोमैक्स’जलाए जाते थे. इस पेट्ोमैक्स के अंदर रिस्कोफिलामेंट यान यानी कि रेशमी धागे व एक खास तरह के केमिकल से बनी हुई गोल गुब्बारे ुनुमा थैली बांधी जाती थी. जो दबाव के साथ आते केरोसीन को जलाकर झक सफेद रोशनी कर देती. तो वहीं ‘गैसलाइट’ का मतलब किसी इंसान को मनौवैज्ञनिक तौर पर इस कदर परेषान कर देना कि वह अपनी बुद्धि ही खो दे.  निर्देशक पवन कृपलानी ने अपनी फिल्म के षुरूआती दृष्य में रात में नदी या समुद्र में चलती नाव पर इसी पेट्ोमैक्स को जलाकर रखा हुआ है. इसके अलावा मीसा को मनोवैज्ञानिक स्तर पर डराने के लिए कुछ दृष्य गढ़े हैं,पर वह डराने की बजाय हंसाते ज्यादा हैं. सौतली मां व बेटी के रिष्ते को भी ठीक से नही रचा गया. फिल्म में कुछ दृष्य अवष्य अच्छे बन पड़े हैं.

अभिनयः

अभिनेता सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान ने 2018 में जब फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था,तब उनसे कुछ उम्मीदें जगी थीं. लेकिन उसके बाद ‘सिंबा’,‘लव आजकल’,‘कुली नंबर वन’,‘अतरंगी रे’ सहित हर फिल्म में उन्होेने अपने आपको एक भावहीन अदाकारा के रूप में ही पेश किया है.

सारा अली खान की यह सभी फिल्में असफल रही हैं. मजेदार बात यह है कि सारा अली खान की फिल्में अब सिनेमाघर की बजाय ओटीटी पर ही आ रही हैं.

‘कुली नंबर वन’ और ‘अंतरंगी रे’ के बाद ‘गैस लाइट’ उनकी तीसरी फिल्म है,जो कि ओटीटी पर स्ट्रीम हो रही है. फिल्म ‘गैसलाइट’ में भी वह सपाट चेहरे मे ही नजर आती हैं. इस फिल्म में मीशा के किरदार में वह व्हील चेअर पर है, इसलिए उनके पास अपने अभिनय को दर्शाने के सीमित साधन रह जाते हं. पर वह अपने पिता के गायब होने और उनके साथ जो कुछ हो रहा है, उस बेचैनी को अपने चेहरे के हाव भाव से दिखा सकती थी, जिसमें वह मात खा गयीं.

सौतली मां रूक्मिणी,जिसे वह पसंद नही करती, उसके प्रति गुस्सा भी वह ठीक से व्यक्त नही कर पाती.

कपिल के किरदार में विक्रांत मैसे जैसे बेहतरीन कलाकार हैं. मगर इस फिल्म में वह कुछ नया नही कर पाए. यदि उनकी अब तक की फिल्मों व सीरियलों पर गौर किया जाए तो अहसास होता है कि वह खुद को एक ढर्रे में बांधते जा रहे हैं, जिससे उनके अंदर की अभिनय क्षमता का विकास नही हो पा रहा है. इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार हैं. उन्हे फिल्मों के चयन को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए.

रूक्मिणी के किरदार में चित्रांगदा सिंह दर्शक को याद रह जाती हैं. अक्षय ओबेरॉय, राहुल देव और शिशिर शर्मा कमजोर पटकथा के चलते कुछ खास नही कर पाए.

मुसकान : भाग 1- क्यों टूट गए उनके सपने

लेखिका- निर्मला कपिला

आज आसमान से कोई परी उतरती तो वह भी मुसकान को देख कर शरमा जाती, क्योंकि मुसकान आज परियों की रानी लग रही है. नजाकत से धीरेधीरे पांव रखती शादी के मंडप की ओर बढ़ रही मुसकान लाल सुर्ख जरी पर मोतियों से जड़ा लहंगाचोली पहने जेवरों से लदी, चूड़ा, कलीरे और पांव में झांजर डाले हुए है. उस के भाई उस के ऊपर झांवर तान कर चल रहे हैं. झांवर भी गोटे और घुंघरुओं से सजी है. उस का सगा भाई अनिल उस के आगेआगे रास्ते में फूल बिछाते हुए चल रहा है.

शादी के मंडप की शानोशौकत देखते ही बनती है. सामने स्टेज पर सुनील दूल्हा बना बैठा है. वहां मौजूद सभी एकटक मुसकान को आते हुए देख रहे हैं जो अपने को आज दुनिया की सब से खुशनसीब लड़की समझ रही है. आज मुसकान अपने सपनों के राजकुमार की होने जा रही है. सुनील के पिता सुंदरलालजी जिस फैक्टरी में लेखा अधिकारी हैं उसी में मुसकान के पिता राजकुमार सहायक हैं.

दोनों परिवार 20 साल से इकट्ठे रह रहे हैं. दोनों के घरों के बीच में दीवार न होती तो एक ही परिवार था. राजकुमार के 2 बच्चे थे, जबकि सुंदरलाल का इकलौता बेटा सुनील था. यह छोटा सा परिवार हर तरह से खुशहाल था. सुंदरलाल, मुसकान को अपनी बेटी की तरह मानते थे. तीनों बच्चे साथसाथ खेले, बढ़े और पढ़े.

मुसकान, अनिल से 5 वर्ष छोटी थी. सुनील और मुसकान हमउम्र थे. दोनों पढ़ने में होशियार थे. जैसेजैसे बड़े होते गए उन में प्यार बढ़ता गया. मन एक हो गए, सपने एक हो गए और लक्ष्य भी एक, दोनों डाक्टर बनेंगे.

राजकुमार की हैसियत मुसकान को डाक्टरी कराने जितनी नहीं थी मगर सुनील के मांबाप ने मन ही मन मुसकान को अपनी बहू बनाने का निश्चय कर लिया था इसलिए उन्होंने यथासंभव सहायता का आश्वासन दे कर मुसकान को डाक्टर बनाने का फैसला कर लिया था. अनिल भी इंजीनियरिंग कर के नौकरी पर लग गया. वह भी चाहता था कि मुसकान डाक्टर बने.

सुनील को एम.बी.बी.एस. में दाखिला मिल गया. मुसकान अभी 12वीं में थी. जब सुनील पढ़ने के लिए पटियाला चला गया तब दोनों को लगा कि वे एकदूसरे के बिना जी नहीं सकेंगे. मुसकान को लगता कि उस का कुछ कहीं खो गया है पर वह चेहरे पर खुशी का आवरण ओढ़े रही ताकि मन की पीड़ा को कोई दूसरा भांप न ले. दाखिले के 7 दिन बाद सुनील पटियाला से आया तो सीधा मुसकान के पास ही गया.

‘लगता है 7 दिन नहीं सात जन्म बाद मिल रहा हूं. मुसकान, मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूं.’

मुसकान कुछ कह न पाई पर उस के आंसू सबकुछ कह गए थे.

‘मुसकान, आंसू कमजोर लोगों की निशानी है. हमें तो स्ट्रांग बनना है, कुछ कर दिखाना है, तभी तो हमारा सपना साकार होगा,’ सुनील ने उसे हौसला दिया.

अब दोनों ही अपना कैरियर बनाने में जुट गए. सुनील जब भी घर आता मुसकान के लिए किताबें, नोट्स ले कर आता. वह चाहता था कि मुसकान को भी उस के ही कालिज में दाखिला मिल जाए. मुसकान उसे पाने के लिए कुछ भी कर सकती थी. सुनील मुसकान की पढ़ाई की इतनी चिंता करता कि फोन पर उसे समझाता रहता कि कौन सा विषय कैसे पढ़ना है, टाइम मैनेज कैसे करना है.

सुनील एक हफ्ते की छुट्टी ले कर घर आया और मुसकान से टेस्ट की तैयारी करवाई. दोनों ने दिनरात एक किया. अगर लक्ष्य अटल हो, प्रयास सबल हो तो विजय निश्चित होती है. मुसकान को भी पटियाला में ही प्रवेश मिल गया. मुसकान को दाखिल करवाने दोनों के ही मांबाप गए थे. वापसी से पहले सुनील की मां ने मुसकान से कहा था, ‘बेटा, हमें उम्मीद है तुम दोनों अपने परिवार की मर्यादा का ध्यान रखोगे तो हम सब तुम्हारे साथ हैं.’

‘मां, जितना प्यार मुझे मेरे मांबाप ने दिया है उस से अधिक आप लोगों ने दिया है. मैं आप से वादा करती हूं कि मेरा जीवन इस परिवार और प्यार के लिए समर्पित है,’ मुसकान मम्मी के गले लग गई.

दोनों ने बड़ी मेहनत की और अपने मांबाप की आशाओं पर फूल चढ़ाए. सुनील ने एम.डी. की और उसे पटियाला में ही नौकरी मिल गई. दोनों के मांबाप चाहते थे अब सुनील व मुसकान की शादी हो जानी चाहिए पर दोनों ने फैसला किया था कि जब मुसकान भी एम.डी. हो जाए उस के बाद ही वे शादी करेंगे.

आज उन की मेहनत और सच्चे प्यार का पुरस्कार शादी के रूप में मिला था. सुनील हाथ में जयमाला लिए मंडप की ओर आती मुसकान को देख रहा था.

मुसकान की विदाई एक तरह से अनोखी ही थी. न किसी के चेहरे पर उदासी न आंखों में आंसू. सभी लोग शादी के मंडप से निकले और गाडि़यों में बैठ कर जहां से चले थे वहीं वापस आ गए. दुलहन के रूप में मुसकान सुनील के घर चली गई. दोनों घरों के बीच एक दीवार ही तो थी. जब सब के दिल एक थे तो मायका क्या और ससुराल क्या.

आज सुनील से भी अपनी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आज वह अपनी लाल परी को छुएगा.

‘‘मां, हमें जल्दी फारिग करो, हम थक गए हैं,’’ सुनील बेसब्री से बोला.

‘‘बस, बेटा, 10 मिनट और लगेंगे. मुसकान कपड़े बदल ले.’’

मम्मी मुसकान को एक कमरे में ले गईं और एक बड़ा सा पैकेट दे कर बोलीं, ‘‘बेटा, यह सुनील ने अपनी पसंद से तुम्हारे लिए खरीदा है आज रात के लिए.’’

मम्मी के जाने के बाद मुसकान ने कमरा अंदर से बंद किया और जैसे ही उस ने पैकेट खोला, वह उसे देख कर हैरान रह गई. पैकेट में सुर्ख रंग का जरी, मोतियों की कढ़ाई से कढ़ा  हुआ कुरता, हैवी दुपट्टा पटियाला सलवार, परांदा आदि निकला था. उस ने तो बचपन से ही पैंटजींस पहनी थी. कपड़ों की तरफ दोनों ने पहले कभी ध्यान ही नहीं दिया था. सुनील ने भी कभी उस के कपड़ों पर कोई टिप्पणी नहीं की थी.

वह बड़े सलीके से तैयार हुई. अपने केशों में परांदी, सग्गीफूल लगाया, मैच करती लिपस्टिक लगाई, माथे पर मांग टीका लटक रहा था, फिर दुपट्टा पिनअप कर के जैसे ही शीशे के सामने खड़ी हुई सामने पंजाबी दुलहन के रूप में खुद को देख मुसकान हैरान रह गई. सुनील की पसंद पर उसे नाज हो आया और दिल धड़क उठा रात के उस क्षण के लिए जब उस का राजकुमार उसे अपनी बांहों में भर कर उस की कुंआरी देहगंध से रात को सराबोर करेगा.

किसी ने दरवाजा खटखटाया. मुसकान ने दरवाजा खोला तो सामने मम्मी और मां घबराई सी खड़ी थीं.

‘‘बेटी, तुम्हारे पापा की तबीयत खराब हो गई थी. सुनील और अनिल उन्हें अस्पताल ले कर गए हैं. पर घबराने की बात नहीं है, अभी आते होंगे,’’ कह कर मां और मम्मी दोनों उस के पास बैठ गईं.

मुसकान एकदम घबरा गई. अभी 1 घंटा पहले तो पापा ठीक थे, हंसखेल रहे थे. उस ने जल्दी से मोबाइल उठाया, ‘‘सुनील, कैसे हैं पापा, क्या हुआ उन्हें?’’

‘‘मुसकान, देखो घबराना नहीं,’’ सुनील बोला, ‘‘मेरे होते हुए चिंता मत करो. पापा को हलका हार्ट अटैक पड़ा है. हमें इन्हें ले कर पटियाला जाना होगा. तुम जरूरी सामान और कपड़े ले कर डैडी के साथ यहीं आ जाओ. तुम भी साथ चलोगी. मेरे वाला पैकेट अभी संभाल कर रख लो.’’

‘‘मम्मी, सुनील ने मुझे अस्पताल बुलाया है. पापा को पटियाला ले कर जाना पड़ेगा,’’ और फिर जितनी हसरत से उस ने सुनील वाले कपड़े पहने थे, उतने ही दुखी मन से उन्हें उतार दिया. हलके रंग का सूट पहना और यह सोच कर कि इस लाल सूट को तो वह सुहागरात को ही पहनेगी उसे बड़े प्यार से उसी तरह अलमारी में रख दिया.

आगे पढ़ें- डाक्टर ने रात को ही…

ये भी पढ़ें- तीमारदारी: राज के साथ क्या हुआ

एक हसीना एक दीवाना: भाग 1- क्या रंग लाया प्रभात और कामिनी का इश्क ?

जिस कामिनी को पूरे 3 साल तक कहांकहां नहीं ढूंढ़ा, वह एक दिन अचानक खुद सामने आ जाएगी, प्रभात ने ऐसा कभी नहीं सोचा था. प्रभात एक सरकारी बैंक में अफसर था. उस दिन वह अपने काम में मसरूफ था कि किसी औरत की आवाज कानों में सुनाई पड़ी, तो उस ने मुड़ कर देखा. कामिनी बोली, ‘‘कैसे हो प्रभात?’’

प्रभात ने सिर उठा कर देखा, तो वह खुशी से झूम उठा. उस के  सामने उस की प्रेमिका कामिनी खड़ी थी. प्रभात का दिल हुआ कि वह लोकलाज की परवाह न करते हुए कामिनी को बांहों में भर ले, मगर वह ऐसा न कर सका. उस से पूछा, ‘‘मुझे छोड़ कर तुम कहां चली गई थीं?’’

‘‘मेरे लिए तुम अब भी तड़प रहे हो? क्या तुम ने अब तक शादी नहीं की?’’ कामिनी ने पूछा.

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी चाहत तुम हो, फिर मैं किसी और के साथ शादी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘ऐसी बात है, तो मैं तुम्हारी चाहत जरूर पूरी करूंगी. मैं यहां एक काम से आई थी. तुम्हें देख कर तुम्हारे पास आ गई. मेरा घर पास में ही है. तुम ऐसा करो कि अपना काम खत्म कर के मेरे साथ चलो. वहां पर आराम से बातें करेंगे. बैंक में मेरा जो काम है, वह किसी दूसरे दिन कर लूंगी.’’

प्रभात ने कामिनी को ऊपर से नीचे तक बडे़ ही गौर से देखा. गुलाबी रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह बड़ी खूबसूरत दिख रही थी. प्रभात का उसे पाने के लिए मन मचल गया.

प्रभात ने कहा, ‘‘तुम कहो, तो मैं अभी छुट्टी ले कर चलूं?’’

यह सुन कर कामिनी मुसकरा उठी, फिर बोली, ‘‘इतने उतावले क्यों हो रहे हो? अब तो तुम्हारी चाहत पूरी हो ही जाएगी. फिलहाल तो तुम अपना काम निबटा लो. मैं कहीं बैठ जाती हूं.’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि तुम बैंक में किस काम से आई थीं?’’

‘‘अपना काम शुरू करने के लिए मुझे इस बैंक से अच्छाखासा लोन लेना है. मगर अभी तो तुम मेरे घर चलो.’’

इस के बाद कामिनी सोफे पर जा कर बैठ गई. प्रभात अपना काम खत्म करने में लग गया.

प्रभात बिहार के एक गांव का रहने वाला था. गांव के स्कूल से 12वीं जमात पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह शहर के कालेज में दाखिल हुआ, तो वहां कामिनी से उस की मुलाकात हुई.

कामिनी भी 12वीं जमात पास करने के बाद 2 दिन पहले ही कालेज में दाखिल हुई थी. कामिनी इतनी ज्यादा खूबसूरत थी कि प्रभात अपने दिल पर काबू न रख सका. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह हर हाल में उस से शादी करेगा. फिर तो उसी दिन से वह उस के आगेपीछे लट्टू की तरह नाचने लगा था.

ऐसी बात नहीं थी कि कामिनी की खूबसूरती पर सिर्फ प्रभात ही मरता था. कालेज के ज्यादातर लड़के उस पर अपनी जान छिड़कते थे, मगर बाजी प्रभात के हाथ लगी. 6 महीने बाद प्रभात को लगा कि अगर उस ने अपने दिल की बात कामिनी से नहीं कही, तो कोई दूसरा लड़का बाजी मार ले जाएगा.

आखिरकार हिम्मत कर के एक दिन प्रभात ने कामिनी से कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं. ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं, मगर शादी मैं तभी करूंगी, जब मुझे कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘मैं भी अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी कोई बहन नहीं है. हमारे पास खेती के लिए 80 एकड़ से ज्यादा की जमीन है. उस से हमारा गुजारा मजे से हो जाएगा, फिर तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत है?’’ प्रभात ने पूछा.

‘‘मैं गुजारा नहीं करना चाहती, शानशौकत की जिंदगी जीना चाहती हूं. फिर तुम जिस जमीन की बात कर रहे हो, वह तुम्हारी नहीं तुम्हारे पुरखों की है. मैं चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति अपने पैरों पर खड़ा हो.’’

‘‘ठीक है, मैं किसानी नहीं करूंगा. गे्रजुएशन होने के बाद मैं कहीं नौकरी कर लूंगा. मगर तुम क्यों नौकरी करना चाहती हो?’’

‘‘मैं अपने पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती. मैं खुद पैरों पर खड़ी हो कर अपनी जरूरतें पूरी करना चाहती हूं, इसलिए मैं ने तय किया है कि मैं उसी से शादी करूंगी, जो मेरे रास्ते में दीवार नहीं खड़ी करेगा.’’

‘‘अगर तुम मुझ से प्यार करते हो और मुझ से शादी करना चाहते हो, तो तुम्हें मेरी नौकरी मिलने तक इंतजार करना होगा.’’

प्रभात कामिनी की बात सुन कर राजी हो गया. उस दिन के बाद से प्रभात ने शादी की बात कभी नहीं की. पहले की तरह दोनों एकदूसरे से मिलते रहे. इस तरह ढाई साल बीत गए.

इस के बाद प्रभात मुसीबत में फंस गया. हुआ यह कि एक दिन अचानक उस के पिता ने उसे एक लड़की दिखा कर उस से शादी करने के लिए कहा.

प्रभात कामिनी के सिवा किसी और से शादी नहीं करना चाहता था, इसलिए लड़की के घर से अपने घर आते ही उस ने पिता को कामिनी के बारे में सबकुछ बता दिया.

प्रभात ने अपने पिता को यह चेतावनी भी दी कि अगर कामिनी से उस की शादी नहीं हुई, तो वह खुदकुशी कर लेगा.

प्रभात के पिता ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, मगर समझदार थे. वे बेटे का जुनून समझ गए. 2-3 दिनों तक सोचने के बाद उन्होंने प्रभात से कहा, ‘‘पहले कामिनी से मुझे मिलाओ. उस से बात करने के बाद ही उस के घर वालों से बात करूंगा.’’

यह सुन कर प्रभात खुश हो गया. वह उसी दिन कामिनी से बात कर लेना चाहता था, मगर उस दिन कामिनी कालेज नहीं आई थी. प्रभात ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच औफ था.

प्रभात परेशान हो गया. उस ने बारबार कामिनी को फोन किया, मगर उस का फोन नहीं लगा. अगले दिन भी कामिनी कालेज नहीं आई, तो उस की परेशानी और बढ़ गई.

प्रभात ने कामिनी की 3-4 सहेलियों से बात की. सभी ने यही कहा कि कामिनी का फोन स्विच औफ है, इसलिए पता नहीं कि वह कालेज क्यों नहीं आ रही है.

तीसरे दिन भी कामिनी कालेज नहीं आई, तो प्रभात उस के घर चला गया.

कामिनी का अपना घर दूरदेहात में था. शहर में वह बूआ के साथ रहती थी. बूआ का घर कालेज से 5 किलोमीटर दूर था. कामिनी बस से कालेज आतीजाती थी.

कामिनी की बूआ से प्रभात बहाने से मिला. बूआ ने बताया कि कामिनी की मां की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, इसलिए उसे गांव आना पड़ा.

कामिनी को देखे बिना प्रभात को चैन नहीं मिलने वाला था, इसलिए बूआ से गांव का पता ले कर अगले दिन ही वह मोटरसाइकिल से उस के गांव चला गया.

कामिनी का गांव शहर से 60 किलोमीटर दूर था. गांव की एक बुजुर्ग औरत की मदद से प्रभात कामिनी से एक सुनसान जगह पर मिला.

कामिनी के आते ही प्रभात उस पर बरस पड़ा था, ‘‘फोन पर असलियत बता दी होती, तो मुझे इतना परेशान नहीं होना पड़ता. जानती हो कि एक दिन भी मैं तुम्हें नहीं देखता हूं, तो बेचैन हो जाता हूं. तुम ने अपना फोन भी बंद कर रखा है.’’

कामिनी ने समझाबुझा कर पहले प्रभात का गुस्सा शांत किया, उस के बाद कहा, ‘‘मैं ने फोन बंद नहीं किया था. शहर से गांव आते समय हाथ से छूट कर मोबाइल फोन जमीन पर गिर जाने के चलते खराब हो गया था. तब से बंद पड़ा है. अब शहर जा कर ही फोन को ठीक कराऊंगी.’’

‘‘अच्छा… अब तुम जाओ. यह शहर नहीं गांव है. अगर किसी ने तुम्हारे साथ मुझे देख लिया और मेरे घर वालों को बता दिया, तो मेरी पढ़ाई बंद कर दी जाएगी. तब मेरा सपना भी पूरा नहीं होगा.

‘‘अगर मेरा सपना पूरा नहीं होगा, तो मैं तुम से शादी नहीं कर पाऊंगी. 3-4 दिन बाद मां की तबीयत बिलकुल ठीक हो जाएगी, तो मैं कालेज आ जाऊंगी.’’

कामिनी वहां से चली जाना चाहती थी, लेकिन प्रभात ने उसे जाने नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘दरअसल, मैं तुम्हें एक बात बताने आया हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे बारे में अपने मातापिता को बता दिया है. वे तुम से मिलना चाहते हैं. तुम से बात करने के बाद ही वे तुम्हारे घर वालों से शादी की बात करेंगे.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम? मैं ने पहले ही तुम्हें बताया था कि मैं शादी तभी करूंगी, जब मुझे कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘अभी शादी करने के लिए मैं कहां कह रहा हूं. तुम मेरे पिता से मिल लो, बात कर लो. शादी तभी करना, जब तुम्हें नौकरी मिल जाए.’’

‘‘मैं अभी तुम्हारे घर वालों से नहीं मिलूंगी. तुम भी मेरे घर वालों से मिलने की कोशिश मत करो. अगर ऐसा करोगे, तो मैं तुम से संबंध तोड़ लूंगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि हम कितने गरीब हैं. मेरे पिता बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं. मेरे पिता के पास कुछ नहीं है. वे मजदूरी कर के परिवार को पाल रहे हैं. मेरी 3 और बहनें हैं. वे तीनों मुझ से छोटी हैं. उन के प्रति भी मेरी जिम्मेदारी है.’’

उस के बाद कामिनी रुकी नहीं. प्रभात ठगा सा वहीं खड़ा रह गया. उस रात प्रभात को नींद नहीं आई. कामिनी की बात से उसे एहसास हो गया था कि वह 4-5 साल से पहले शादी नहीं करेगी.

कामिनी के घर से लौटने के बाद प्रभात ने शादी करने की उस की शर्त पिता को बता दी.

पिता ने बगैर देर किए अपना फैसला प्रभात को सुना दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘अब तुम कामिनी को हमेशाहमेशा के लिए भूल जाओ.

‘‘जिस लड़की को मैं ने तुम्हें दिखाया है, 5-6 महीने में उस से शादी कर लो और गे्रजुएशन के बाद खेती में जुट जाओ. अपनी जमीन रहते तुम्हें नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

प्रभात कामिनी से ही शादी करना चाहता था, मगर पिता का विरोध भी नहीं करना चाहता था. वह कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहता था, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

कामिनी से शादी करने का प्रभात को  जब कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा, तो उस ने कामिनी से जिस्मानी रिश्ता बनाने का फैसला किया. उसे लगा कि रिश्ता हो जाने के बाद कामिनी अपनी शर्त भूल जाएगी और उस से शादी कर लेगी.

आगे पढ़ें- क्या प्रभात कामिनी के साथ जिस्मानी रिश्ता बना पाया?

लेखक- राम महेंद्र राय

थ्रेडिंग के बाद होने वाले पिंपल से बचें ऐसे

थ्रेडिंग आईब्रो पर मौजूद बालों को हटाने का पुराना तरीका है, जिसका इस्‍तेमाल काफी पहले से किया जा रहा है. थ्रेडिंग लगभग सभी तरह की स्किन की जाती है, चाहे आपकी स्किन सेंसिटिव क्‍यों न हो. वैक्सिंग जैसे विकल्‍प की तुलना में थ्रेडिंग एक बेहतर औप्शन है, क्‍योंकि यह स्किन की परत को दूर नहीं करती. लेकिन कभी-कभी खासकर सेंसिटिव स्किन पर थ्रेडिंग करवाने के बाद पिंपल्‍स, चकते या स्किन में लालिमा आ जाती है. अगर आपकी भी यही प्रौब्लम है तो ये टिप्स आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

 1. थ्रेडिंग से पहले फेस को करें क्लीन

थ्रेडिंग करवाने से पहले फेस को धोकर अच्‍छे से पोंछ लें. स्किन को गुनगुने पानी से धोने पर ज्‍यादा फायदा होता है. इससे थ्रेडिंग करवाते समय दर्द कम होगा और आप फ्रेश फील करेगी. फिर एक कौटन का साफ कपड़ा लेकर अपने फेस को हल्‍के हाथों से पोंछ लें. क्‍योंकि रगड़कर पोंछने से आपकी स्किन  ड्राई हो सकती है.

 2. थ्रेडिंग से पहले होममेड टोनर का करें इस्तेमाल

अब घरेलू टोनर लगाकर अपने फेस को हल्‍का नम कर दें. दाने वाली स्किन  के लिए विच हेजल जडी़ बूटी से बना टोनर अच्‍छा रहता है. आप चाहें तो दालचीनी की चाय को टोनर के रूप में लगा सकते हैं. अब पार्लर में जाकर थ्रेडिंग बना लें.

3. थ्रेडिंग करवाने के बाद ये टिप्स अपनाएं

टोनर को आईब्रो पर लगाकर बर्फ लगाएं. इससे आपको जलन और संक्रमण नहीं होता है. अगर आप अपना चेहरा धोना चाहती हैं तो गुलाब जल से धोयें. यह प्राकृतिक जल, आईब्रो पर लगने वाले कट को सही कर देता है और दाने व पिंपल भी सही हो जाते हैं.

4. 12 से 24 घंटे के बीच थ्रेडिंग वाले हिस्‍से को न छूएं

सुनिश्चित करें कि थ्रेडिंग करवाने के बाद 12 से 24 घंटे के बीच थ्रेडिंग वाले हिस्‍से को न छूएं. ऐसा करने से वहां पिंपल्‍स, चकते या जलन पैदा हो सकती है. कोशिश करें थ्रेडिंग के तुरंत बाद किसी भी प्रकार के स्‍टीम ट्रीटमेंट से बचें.

5. कैमिकल वाले कौस्मैटिक से बचना है जरूरी

अपने फेस पर थ्रेडिंग करवाने के बाद, उस हिस्‍से में कम से कम 12 घंटे की अवधि के दौरान एसिड की मौजूदगी वाले सुगांधित कौस्‍मेटिक उत्‍पाद जैसे क्‍लींजर और मौइश्चराइजर न लगाये. ऐसा इसलिए क्‍योंकि यह एसिडिक उत्‍पाद स्किन  की बाहरी परत को हटा देते हैं. बाल हटाने के बाद इन्‍हें इस्‍तेमाल करने से प्रतिकूल प्रतिक्रिया हो सकती है, खासकर अगर आपकी संवेदनशील स्किन  है तो.

प्रैगनैंसी टालें पर एक सीमा तक

आज कई महिलाएं अपना कैरियर बनाने और अपनी फिगर मैंटेन रखने के चलते प्रैगनैंसी को टालती रहती हैं. और जब प्रैगनैंट होना चाहती हैं, तो कई तरह की परेशानियां उन के प्रैगनैंट होने में बाधक बन जाती हैं.

‘‘अनुज, आखिर क्यों यह निर्णय हम ने पहले नहीं लिया? कैरियर और पैसा कमाने के चक्कर में आज मैं मां बनने के लिए तरस रही हूं,’’ एक वर्किंग वूमन ने अपने पति से कहा.

‘‘नेहा, तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा,’’ पति ने उसे सांत्वना दी.

‘‘लेकिन कैसे अनुज? कितने ही डाक्टरों को दिखाया पर सब का वही जवाब कि आप चिंता मत कीजिए. पर हमारी शादी को 6 वर्ष बीत गए. काश, यह फैसला हम ने पहले लिया होता,’’ अब नेहा को अपने फैसले पर अफसोस था.

यदि उम्र ज्यादा हो जाए तो कंसीविंग में काफी अड़चनें आ जाती हैं. इस के पीछे स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. नूपुर पगौड़े ने कुछ कारण बताए:

प्रैगनैंसी टालने के कारण

– आजकल इस समस्या में ज्यादा बढ़ोतरी देखी जा रही है. इस का कारण है, देर से शादी याशादी के बाद ऐंजौयमैंट को प्राथमिकता देते हुए बच्चा पैदा न करना.

– कैरियर बनाने, सही मुकाम पाने, सफलता पाने के चक्कर में जल्दी बच्चा पैदा न करने की जिद.

– अच्छा घर, लग्जरी कार, घर में हर आरामदायक वस्तु का होना. सुविधा की वस्तुएं होंगी तभी तो लाइफस्टाइल अच्छा होगा, स्टेटस बनेगा. इस होड़ में बच्चे से पहले इन वस्तुओं को प्राथमिकता दी जाती है.

– फिगर खराब न हो जाए, इस के चलते भी प्रैगनैंसी को टाला जाता है.

– औफिस में क्या इंप्रेशन पड़ेगा, यदि इतनी जल्दी बच्चा हो जाएगा. यह सोच कर भी जल्दी बच्चे का होना टाला जाता है.

– कई लड़कियां अपने औफिस में अपनी शादी छिपाती हैं, इसलिए भी जल्दी बच्चा पैदा करने से कतराती हैं.

– इस के अलावा कुछ शारीरिक परेशानियों के चलते भी प्रैगनैंसी टाली जाती है. जैसे किसी को टीबी है या कोई अन्य बीमारी है तो डाक्टर ही जल्दी बच्चे पैदा न करने की सलाह देते हैं.

– अंडाणु का न बन पाना, फैलोपियन ट्यूब खराब होना और शुक्राणु के विकार के कारण भी प्रैगनैंसी में बाधा आती है.

– कुपोषण, तनाव, प्रदूषण, मोटापा जैसी समस्याएं भी कुछ हद तक प्रैगनैंसी में बाधा उत्पन्न करती हैं.

गर्भधारण की सही उम्र

इन्हीं कारणों की वजह से महिलाएं गर्भधारण करने से या तो बचती हैं या मजबूरी में नहीं कर पातीं, जिस की वजह से एक उम्र के बाद गर्भधारण में बहुत सी मुश्किलें आने लगती हैं.

सामान्य रूप से गर्भधारण की सही उम्र अमूमन 30-32 से पहले ही मानी जाती है. लेकिन कैरियर बनाने या अन्य कारणों के चलते 30-32 साल की उम्र तो यों ही बीत जाती है और जब महिलाएं प्रैगनैंट होना चाहती हैं तो काफी दिक्कतें आती हैं.

आज की युवा पीढ़ी बंधन नहीं चाहती. नए दंपती अपनीअपनी जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं. ऐसे में बच्चा एक आफत लगता है. और जब मां बनने की सुध आती है, तब तक या तो देर हो चुकी होती है या किसी अन्य कारण से गर्भधारण में परेशानी आती है.

इस तरह सभी को या तो बच्चा होने से पहले या बच्चा होने के बाद किसी न किसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है. लेकिन यदि देखा जाए तो दोनों ही हालात में पतिपत्नी को ज्यादा समझदारी दिखाने की जरूरत होती है.

स्नैक्स में परोसें मसूर दाल कबाब

फेस्टिव सीजन में अगर आप स्नैक्स की रेसिपी सोच रही हैं तो मसूर दाल के कबाब की ये आसान रेसिपी ट्राय करना ना भूलें. ये हेल्दी और टेस्टी रेसिपी है, जिसे आप अपने बच्चों से लेकर मेहमानों को आसानी से खिला सकते हैं.

सामग्री

1/2 कप मसूर दाल साबूत

1 बड़ा चम्मच अदरक,

हरीमिर्च और लहसुन का पेस्ट

1/4 कप पनीर कद्दूकस किया

1/4 कप प्याज बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच पुदीनापत्ती कटी

1 छोटा चम्मच धनियापत्ती कटी

2 बड़े चम्मच ब्रैडक्रंब्स

1 बड़ा चम्मच भुने चनों का आटा

कबाब सेंकने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

विधि

दाल को 2 घंटे पानी में भिगोएं. फिर पानी निथार कर 4 बड़े चम्मच पानी के साथ प्रैशरकुकर में 1 सीटी आने के बाद 2 मिनट धीमी आंच पर रखें. आंच बंद कर दें. दाल गल जानी चाहिए और पानी नहीं रहना चाहिए. दाल को मैश कर के सारी सामग्री मिलाएं और छोटेछोटे कबाब बना कर नौनस्टिक तवे पर तेल लगा कर सेंक लें. प्याज के छल्लों, चटनी व सौस के साथ सर्व करें.

रिश्ता: क्या सही था माया का फैसला

रात के ढाई बजे हैं. मैं जानती हूं आज नींद नहीं आएगी. बैड से उठ कर चेयर पर बैठ गई और बैड पर नजर डाली. राकेश आराम से सोए हैं. कभीकभी सोचती हूं यह व्यक्ति कैसे जीवन भर इतना निश्चिंत रहा? सब कुछ सुचारु रूप से चलते जाना ही जीवन नहीं है. खिड़की से बाहर दूर चमकती स्ट्रीट लाइट पर उड़ते कुछ कीड़े, शांत पड़ी सड़क और हलकी सी धुंध नजर आती है जो फरवरी माह के इस समय कम ही देखने को मिलती है. अचानक जिस्म में हलचल होने लगी. ड्रैसिंग रूम में आईने के सामने गाउन उतार कर खड़ा होना अब भी अच्छा लगता है. अपने शरीर को किसी भी युवती की ईर्ष्या के लायक महसूस करते ही अंतर्मन में छिपे गर्व का एहसास चेहरे छा गया. कसी हुई त्वचा, सुडौल उन्नत वक्ष, गहरी कटावदार कमर, सपाट उभार लिए कसा हुआ पेट, चिकनी चमकदार मांसल जांघें, सुडौल नितंब, दमकता गुलाबी रंग और चेहरे पर गहराई में डुबोने वाली हलकी भूरी आंखें, यही तो खूबियां हैं मेरी. अचानक अर्जुन के कहे शब्द याद आने से चेहरे पर मुसकान कौंधी फिर लाचारी का एहसास होने लगा. सच मैं उस के साथ कितना रह सकती  हूं.

अर्जुन ने कहा था, ‘‘रिश्ते आप के जीवन में पेड़पौधों से आते हैं. जिन में से कुछ पहले से होते हैं, कुछ अंत तक आप के साथ चलते हैं, तो कुछ मौसमी फूलों की तरह बहुत खूबसूरत तो होते हैं, लेकिन सिर्फ एक मौसम के लिए.’’

‘‘और तुम कौन सा पेड़ हो मेरे जीवन में,’’ मैं ने मुसकरा कर उसे छेड़ा था.

‘‘मुझे गन्ना समझिए. एक बार लगा है तो 3 साल काम आएगा.’’

‘‘फिर जोर से हंसे थे हम. अर्जुन बड़ा हाजिरजवाब था. उस का ऐसा होना उस की बातों में अकसर झलक जाता था. 3 साल से उस का मतलब हमारे 3 साल बाद वापस लुधियाना जाने से था.

अर्जुन कैसे धीरेधीरे दिमाग पर छाता चला गया पता ही न चला. मिला भी अचानक ही था, पाखी की बर्थडे पार्टी में. वहां की भीड़ और म्यूजिक का शोर थका देने वाला था. मैं साइड में लगे सोफे पर बैठ गई थी. कुछ संयत होने पर बगल में नजर गई तो देखा पार्टी से बिलकुल अलग लगभग 24-25 वर्ष का आकर्षक युवक आंखें बंद किए और पीछे सिर टिकाए आराम से सो रहा था. तभी दीपिका आ कर बोली, ‘‘थक गईं दीदी?’’ फिर उस की नजर सोए उस युवक पर गई, तो वह बोली, ‘‘तुम यहां सोने आए हो…’’ फिर उस ने उस का चेहरा अपने एक हाथ में पकड़ जोर से हिला दिया.

‘‘ओ भाभी, मैं तो बस आंखें बंद किए बैठा था,’’ कह कर वह मुसकराया फिर हंस पड़ा.

‘‘मीट माया दीदी, अभी इन के हसबैंड ट्रांसफर हो कर यहां आए हैं और दीदी ये है अर्जुन रोहित का फ्रैंड,’’ दीपिका ने परिचय कराया था.

‘‘लेकिन रोहित के हमउम्र तो ये लगते नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘रोहित से 8 साल छोटा है, लेकिन उस का बेहतरीन फ्रैंड और सब का फैं्रड है,’’ फिर बोली, ‘‘अर्जुन दीदी का खयाल रखना.’’

‘‘अरे मुझे यहां से कोई उठा कर ले जाने वाला है, पर क्या?’’ मैं ने दीपिका से कहा.

मैं इसे आप को कंपनी देने के लिए कह रही हूं,’’ कह कर दीपिका मुसकराई फिर बाकी गैस्ट्स को इंटरटैन करने के लिए चली गई. मैं ने अर्जुन की ओर देखा, वह दोबारा सो गया था.

रकेश का ट्रांसफर लुधियाना से हम यहां होने पर मेरठ आए थे. दीपिका के इसी शहर में होने से यहां आनाजाना तो बना ही रहा था, लेकिन व्यवस्थित होने के बाद अकेलापन सालने लगा था. पल्लवी कितनी जल्दी बड़ी हो गई थी. वह इसी साल रोहतक मैडिकल कालेज में ऐडमिशन होने से वहीं चली गई थी. गाउन पहन मैं वापस कमरे में आ कर चेयर पर आ बैठ गई. बैड पर सिमटे हुए राकेश को देख कर लगता है कितना सरल है जीवन. यदि राकेश की जगह अर्जुन बैड पर होता तो लगता जीवन कितना स्वच्छंद और गतिशील है  अर्जुन दूसरी बार भी दीपिका के घर पर ही मिला था. वह डिनर के वक्त एक बहुत ही क्यूट छोटा व्हाइट डौगी गोद में लिए अचानक चला आया था. आ कर उस ने डौगी पाखी की गोद में रख दिया. इतना प्यारा डौगी देख पाखी और राघव तो बहुत खुश हो गए थे.

‘‘इसे कहां से उठा लाए तुम?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘पाखी, राघव बहुत दिनों से कह रहे थे, अब मिला तो ले आया.’’

‘‘मुझे से भी तो पूछना चाहिए था,’’ दीपिका ने प्रतिवाद किया

‘‘मुझे ऐसा नहीं लगा,’’ अर्जुन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘रोहित यह लड़का…समझाओ इसे, डौगी वापस ले कर जाए.’’

‘‘तुम भी जानती हो डौगी यहीं रहने वाला है, इसे प्यार से ऐक्सैप्ट करो,’’ रोहित ने कहा.

फिर सभी डिनर टेबल पर आ गए.

‘‘अर्जुन, तुम राकेश से मिले नहीं शायद. यह शास्त्रीनगर ब्रांच में ब्रांच मैनेजर हो कर पिछले महीने ही मेरठ आए हैं और भाईसाब यह अर्जुन है,’’ रोहित ने परिचय कराया, अर्जुन ने खामोशी से हाथ जोड़ दिए.

‘‘आप क्या करते हैं?’’ राकेश ने उत्सुकता से पूछा था.

‘‘जी कुछ नहीं.’’

‘‘मतलब, पढ़ाई कर रहे हो?’’ आवाज से सम्मान गायब हो गया था.

‘‘इसी साल पीएच.डी. अवार्ड हुई है.’’

‘‘अच्छा अब लैक्चरर बनोगे,’’

‘‘जी नहीं…’’

तभी बीच में रोहित बोल पड़ा, ‘‘भाईसाहब यह अभी भी आप के मतलब का आदमी है. इस के गांव में आम के 3 बाग, खेत, शहर में दुकानों और होस्टल कुल मिला कर ढाईतीन लाख रुपए का मंथली ट्रांजैक्शन है, जिसे इस के पापा देखते हैं इन का सीए मैं ही हूं.’’

‘‘गुड, इन का अकाउंट हमारे यहां कराओ, राकेश चहका.’’

‘‘कह दूंगा इस के पापा से,’’ रोहित ने कहा.

‘‘हमारे घर आओ कभी,’’ राकेश ने अर्जुन से कहा.

‘‘जी.’’

‘‘यह डिफैंस कालोनी में अकेला रहता है,’’ दीपिका ने कहा फिर अर्जुन से बोली, ‘‘तुम दीदी को बाहर आनेजाने में हैल्प किया करो. रक्षापुरम में घर लिया है इन्होंने.’’

‘‘जी.’’

मुझे बाद में पता चला था शब्दों का कंजूस अर्जुन शब्दों का कितना सटीक प्रयोग जानता है. रात के 3 बजे हैं. सब कुछ शांत है. ऐसा लग रहा है जैसे कभी टूटेगा ही नहीं. बांहों के रोम उभर आए हैं. उन पर हथेलियां फिराना भला लग रहा है. अगर यही हथेलियां अर्जुन की होतीं तो उष्णता होती इन में, शायद पूरे शरीर को झुलसा देने वाली.

हमेशा ही तो ऐसा लगता रहा, जब कभी अर्जुन की उंगलियां जिस्म में धंसी होती थीं तब कितना मायावी हो जाता था. सच में सभी पुरुष एक से नहीं होते. तनमन, यौवन सभी तो, फर्क होता है और उस से भी अधिक फर्क इन तीनों के संयोजन और नियत्रंण में होता है. किशोरावस्था से ही देखती आई हूं पुरुषों की कामनाओं और अभिव्यक्तियों के वैविध्य को. समय से हारते अपने प्यार सचिन की लाचारी आज तक याद है. उस रोमानियत में बहते न उस ने न कभी मैं ने ही सोचा था कि अचानक खुमार ऐसे टूट आएगा. अभी ग्रैजुएशन का सैकंड ईयर चल ही रहा था कि मां को मेरी सुरक्षा मेरे विवाह में ही नजर आई. कितना बड़ा विश्वास टूटा था हम सब का. डैड की जाफना में हुई शहादत के बाद अपने भाइयों का ही तो सहारा था मां को. उन्हीं के भरोसे वे अपनी दोनों बेटियों के साथ देहरादून छोड़ सहारनपुर आ कर अपने मायके में रहने लगी थीं. सब कुछ ठीक चला. नानानानी और तीनों मामाओं के भरोसे हमारा जीवन पटरी पर लौटा था, लेकिन फिर भयावाह हो कर खंडित हो गया.

मां दीपिका को ले कर चाचाजी के घर गई थीं जबकि गरमी के उन दिनों अपने ऐग्जाम्स के कारण मैं नहीं जा सकी थी, इसलिए नानाजी के घर पर थी. नानानानी 3 मामाओं और 3 मामियों व बच्चों वाला उन का बड़ा सा घर मुझे भीड़भाड़ वाला तो लगता था, लेकिन अच्छा भी लगता था. लेकिन वहां एक दिन अचानक मेरे साथ एक घटना घटी. उस दिन मेरे रूम से अटैच बाथरूम की सिटकनी टूटी हुई मिली. इस पर ध्यान न दे कर मैं नहाने लगी, क्योंकि उस बाथरूम में मेरे सिवा कोई जाता नहीं था. वहां अचानक जब दरवाजा खोल कर मझले मामा को नंगधडं़ग आ कर अपने से लिपटा पापा तो भय से चीख उठी थी मैं. मेरे जोर से चीखने से मामा भाग गए तो उस दिन मेरी जान बच गई, लेकिन मां के वापस लौटने पर जब मैं ने उन्हें यह बात बताई तो मां को अपनी असहाय स्थिति का भय दिनरात सालने लगा. परिणाम यह हुआ कि हम ने दोबारा देहरादून शिफ्ट किया, लेकिन मां ने उसी वर्ष मेरी शादी में मेरी सुरक्षा ढूंढ़ ली जबकि दीपिका अभी बहुत छोटी थी.

राकेश अच्छे किंतु साधारण व्यक्ति हैं, काम और सान्निध्य ही इन के लिए अहम रहा. मानसिक स्तर पर न इन में उद्वेग था न ही मैं ने कभी कोई अभिलाषा दिखाई. पल्लवी के जन्म के बाद मेरा जीवन पूरी तरह से उस पर केंद्रित हो गया था. राकेश के लिए बहुत खुशी की बात यह थी कि उन की पत्नी ग्रेसफुली घर चलाती है बच्चे को देखती है और नानुकर किए बिना शरीर सौंप देती है. कभी सोचती हूं तो लगता है यही जीवन तो सब जी रहे हैं, इस में गलती कहां है. धीरेधीरे पहचान बढ़ने पर मैं ने ही अर्जुन को घर बुलाना शुरू किया था. तब मुझे ड्राइविंग नहीं आती थी और सभी मार्केट यहां से बहुत दूर हैं. बिना कार ऐसी कालोनी में रहना दूभर होता है. कुछ भी तो नहीं मिलता आसपास. ऐसे में अर्जुन बड़ा मददगार लगा. वह अकसर मुझे मार्केट ले जाता था. मुझे दिन भर अर्जुन के साथ रहना और घूमना सब कुछ जीवन के भले पलों की तरह कटता रहा. शादी के बाद पहली बार कोई लड़का इतना निकट हुआ था, जीवन में आए एकमात्र मित्र सा. फिर सहसा ही वह पुरुष में परिवर्तित हो गया. कार चलाना सिखाते हुए अचानक ही कहा था उस ने काश आप को चलाना कभी न आए हमेशा ऐसे ही सीखती रहें. आप को छूना बहुत अच्छा लगता है.’’

दहल गई थी मैं, ‘‘पागल हो गए हो?’’ खुद को संयत रखने का प्रयास करते हुए मैं ने प्रतिवाद किया.

इन 4 महीनों में उस का व्यवहार कुछ तो समझ आने लगा था. मैं ने जान लिया कि वह वही कह रहा था, जो उस के मन में था. मैं ने कार को वापस घर की ओर मोड़ दिया. असहजता बढ़ने लगी थी. अर्जुन वैसा ही शांत बैठा था. मैं बहुत कुछ कहना चाहती थी उस से होंठ खुल ही नहीं पाए.

‘‘आउट,’’ घर पहुंचने पर कार रोक कर मैं क्रोध से बोली.

वह खामोशी से उतरा और चला गया. मैं चाहती थी वह सौरी बोले कुछ सफाई दे, लेकिन वह चुपचाप चला गया. उस के इस तरह जाने ने मुझे झकझोर दिया. बाद में घंटों उस का नंबर डायल करती रही, लेकिन फोन नहीं उठाया. अगले दिन मैं उस के घर पहुंच गई, लेकिन गेट पर ताला लगा था. फोन अब भी नहीं उठ रहा था. दीपिका से उस के बारे में पता करने का प्रयास किया तो पता चला वह कल से फोन ही नहीं उठा रहा है. धीमे कदमों से घर पहुंची. गेट के सामने अर्जुन को खड़ा पाया. दिल हुआ कि एक चांटा खींच कर मारूं इस को, लेकिन वह हमेशा की तरह शांत शब्दों में बोला, ‘‘कल मोबाइल आप की कार की सीट पर पड़ा रह गया था.’’

‘‘ओह गौड…मैं ने सिर पकड़ लिया.’’

फिर 3 साल जैसे प्रकाश गति से निकल चले. उस दिन जब घर में अर्जुन ने मुझे पहली बार बांहों में लिया था तब एहसास हुआ था कि शरीर सैक्स के लिए भी बना है. कितना बेबाक स्पर्श था उस का. अपने चेहरे पर उस के होंठ अनुभव करती मैं नवयौवना सी कांप उठी थी. उस की उंगलियों की हरकतें, मैं ने कितने सुख से अपने को सौंप दिया उसे. उस के वस्त्र उतारते हाथ प्रिय लगे. पूर्ण निर्वस्त्र उस की बांहों में सिमट कर एहसास हुआ था कि अभी तक मैं कभी राकेश के सामने भी वस्त्रहीन नहीं हुई थी. अर्जुन एक सुखद अनुभव सा जीवन में आया था. उस के साथ बने रिश्ते ने जीवन को नया उद्देश्य, नई समझ दी थी. अब जीवन को सचझूठ, सहीगलत, पापपुण्य से अलग अनुभव करना आ गया था. 3 साल बीत गए ट्रांसफर ड्यू था सो राकेश ने वापस ट्रांसफर लुधियाना करवा लिया. सामान्य हालात में यह खुशी का क्षण होता, लेकिन अब जैसे बहती नदी अचानक रोक दी गई थी. जानती हूं सदा तो अर्जुन के साथ नहीं रह सकती. परिवार और समाज का बंधन जो है. सोचती रही कि अर्जुन कैसे रिएक्ट करेगा, इसलिए एक हफ्ते यह बात दबाए रही, लेकिन कल शाम तो उसे बताना ही पड़ा. मौन, सिर झुकाए वह चला गया बिना कुछ कहे, बिना कोई एहसास छोड़े.

सुबह 8 बजे जाना है, 4 बज चुके हैं. आंखों में नींद नहीं, राकेश पहले की तरह सुख से सोए हैं. अचानक मोबाइल में बीप की आवाज. नोटिफिकेशन है अर्जुन के ब्लौग पर नई पोस्ट जो एक कविता है:

मोड़ से पहले

जहां गुलदाउदी के फूल हैं,

लहू की कुछ बूंदें

चमक रही हैं.

माली ने शायद

उंगली काट ली हो.

जब निकलोगी सुबह

रुक कर देखना,

क्या धूप में रक्त

7 रंग देता है.

नहीं तो जीवन

इंद्रधनुषी कैसे हो गया.

जब जाने लगो

देखना माली के हाथों पर,

सूखे पपड़ाए जख्म मिलेंगे

रुकना मत.

जीवन साथ लिए

जीवन सी ही निकल जाना.

मोड़ से पहले

जहां गुलदाउदी के फूल हैं ,

कुछ खत्म हुआ है

तुम्हारे सपनों सा.

पर मैं सदा ही

जीवित रहूंगा तुम्हारे सपनों में.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें