नुकसान औरतों का ही हुआ

अगर आप बैंक लोन के कर्ज पर ब्याज दर में 6 माह की सरकारी सहायता देने के वायदे पर खूब उछल रहे हैं तो संभल जाइए. यह वादा असल में और जुमलों की तरह एक और जुमला भर है. एक कैलकुलेशन के हिसाब से ₹50 लाख के कर्ज पर 8% की दर से यदि आप को ₹2,12,425 कंपाउंड इंटरैस्ट लगता था तो सरकार की महान घोषणा के बाद ₹12,245 सरकार देगी. कोविड-19 के दौरान लौकडाउन, बिजनैस ठप्प हो जाने, छोटे व्यापारियों का पैसा फंस जाने, बेमतलब की सरकारी अड़ंगेबाजी, थालीताली पीटने से जो नुकसान हुआ है वह क्या ₹12,245 से पूरा होगा?

जो लोग कोरोना की चपेट में आ कर बीमार हो गए उन के परिवारों को तो ₹10 लाख तक देने पड़े हैं. सरकारी अस्पतालों में इलाज मुफ्त हुआ है पर फिर भी सैकड़ों रुपए फालतू में बह जाते हैं जब घर के 1 या 2 सदस्य अस्पताल में भरती हो जाएं. इस सब की जिम्मेदार सरकार चाहे न हो पर जो सरकार हर पैसे की कमाई में हिस्सा लेने के लिए आ खड़ी होती है उसे आफत में जनता के साथ खड़ा होना चाहिए. माईबाप सरकार से यही अपेक्षा की जाती है.

मगर यहां तो सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कोविड-19 के दौरान न तो आर्थिक सहायता दी, न खानेपीने, दवाओं, अस्पतालों पैट्रोल पर टैक्स कम किया ताकि जो पैसा लौकडाउन की शिकार जनता के हाथों में है वह और दिन चल सके.

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दुनियाभर में सरकारों ने जनता को भरपूर पैसा दिया है. कहीं सरकारों ने छोटे उद्योगों को अपने कर्मचारियों को वेतन देने की राशि उधार की तरह सहायता के रूप में दी तो कहीं लोगों के अकाउंट में सीधे उन के वेतन के बराबर पैसे डाल दिए ताकि वे लोग नौकरी या व्यापार न रहने पर भी गुजरबसर कर सकें.

हमारे यहां जो लाखों मजदूर लौकडाउन के दौरान अपने गांवों की ओर गए उन के पीछे उन के मालिकों के पास खत्म हुआ पैसा था. जीएसटी और नोटबंदी से पहले अधमरे हुए मजदूरों के मालिकों के पास इतना पैसा था ही नहीं कि वे मजदूरों को दे सकें. इन दिनों सामान भी नहीं बचा और ये लोग कहीं से पूंजी भी नहीं जुटा पाए.

सरकार ने वादा किया था कि ₹20 लाख करोड़ की आर्थिक सहायता दी है पर असल में यह न के बराबर है, क्योंकि सरकार ने महंगाई बढ़ने के डर से नोट छाप कर लोगों की सहायता नहीं की क्योंकि उसे डर था कि वह करों से होने वाली कम आय की पूर्ति कैसे करेगी?

इस सब का खमियाजा हर घरवाली को सहना पड़ा है, जिस की जमापूंजी कम हो गई है. लोगों ने इसीलिए खर्चे घटाए, हैल्प हटाई, बाहर का खाना नहीं मंगाया, पर घरवाली पर बो झ बढ़ गया. अब बच्चों के स्कूल जाने के समय जो राहत मिलती थी वह भी औनलाइन क्लासों की वजह से खत्म हो गई.

नुकसान हर तरफ औरतों का हुआ है. वैसे तो हिंदू औरतों को आज भी बराबरी का स्तर मिला ही नहीं पर जो सुविधाएं मिलने लगी थीं वे भी गलत सरकारी फैसलों से मिट्टी में मिल गई हैं. औरतों से उम्मीद की जाती है कि वे हर कष्ट  झेलें, त्याग करें, उपवास करें, हवनों में घंटों आग के सामने बैठें, रीतिरिवाजों में ठंडे पानी में नहाएं और अब भक्त सरकार के गुणों के दर्शन कर के उस का गुणगान करें.

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सास अगर बन जाए मां

मेरी सहेली शिखा की सास बहुत प्रोटैगनिस्ट है. उस ने अपनी बहू को नौकरानी बना रखा है और शिखा का पति अपनी माताजी का आज्ञाकारी बेटा है, जो अपनी मां के अमानवीय व्यवहार पर भी एक शब्द तक नहीं बोलता और न ही अपनी पत्नी के पक्ष में खड़ा दिखता. यदि शिखा शिकायत भी करती है तो वह उसी को 4 बातें सुना देता. हमेशा जवाब होता कि रहना है तो रहो वरना फौरेन चली जाओ. परेशान हो कर शिखा अपने मायके आ गई. लेकिन समाज के लिए फिर भी शिखा ही गलत है. क्यों? क्योंकि गलती हमेशा बहू की ही होती है.

समाज का यह दोहरा चेहरा क्यों

अकसर खबरें मिलती हैं कि बहू अच्छी नहीं थी बेटे ने उस के कहने पर आ कर मां को घर से निकाल दिया. सोचने वाली बात है हर समय बहू ही गलत क्यों?

जब बीवी की बातों में आ कर मां को तंग करना गलत है, तो मां के सम्मान की खातिर उस की गलत बातों पर चुप रहना सही कैसे हो सकता है?

2 शब्द सासों से

मैं भी मां हूं और मैं जानती हूं मां दुनिया का सब से प्यारा लफ्ज है और सब से ही अनोखा बंधन. वह अद्भुत प्यारा सा एहसास जिस में. मां को सब से करीब देखा जाता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मां गलत हो ही नहीं सकती. गलत को गलत कहने में कौन सा गुनाह है? वह भी तब जब अकसर बेटे की मां, सास बनने के बाद जानबूझ कर यह गुनाह करती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सास बनने के बाद मांएं बहुत ही निस्स्वार्थ भाव से की गई ममता का मोल चाहती हैं. इनसिक्योर फील करती हैं. कड़वी सचाई तो यह है कि सास बनने के बाद मांएं स्वार्थी हो जाती हैं. अपने बेटे के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिखता, बहू तो बिलकुल भी नहीं, बल्कि बहू को तो वे अपनी प्रतिस्पर्धी समझती हैं, दुश्मन मानती हैं जो उन का बेटा छीन रही हैं.

शायद इसलिए कि उन्होंने उसे जन्म दिया है, पालापोसा है. तो भई बहू को क्या उस की मां सड़क से उठा कर लाई थी? उसे भी उन्होंने जन्म दिया है और पालपोस कर इस लायक बनाया है कि वह आप के घर की शान बन सके. उसे एक मौका तो दीजिए.

तो क्या इस वजह से बेटा जिंदगी जीना छोड़ दे और हमेशा मां की जीहुजूरी में लगा रहे. मां जब गलत कहे, गलत करे तो भी वह चुप रहे?

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दोहरे मानदंड

यह घोर नाइंसाफी है. अगर अक्ल पर परदा पड़ गया हो तो ऐसी सासें जरा उस वक्त को सोचें जब वे भी बहू थीं. तब वे चाहती थीं कि उन का पति अपनी मां का नहीं, सिर्फ और सिर्फ उन का खयाल रखे. आप की भी तो कोई बेटी होगी. यदि उस की सास भी वैसे ही करे जैसा आप करती हैं तब आप को कैसा लगेगा? आप भी तो यही चाहेंगी न आप का दामाद बस आप की बेटी का खयाल रखे, अपनी मां का नहीं. क्यों हैं दोहरे मानदंड बेटी के लिए कुछ और बेटे के लिए कुछ और?

कैसी सियासत

अजीब सी सियासत है यह रिश्तों की. हमारे भारतीय समाज में एक ओर से मां अपने शास्त्र और शस्त्रों के साथ बेटे को अपनी ओर खींचती है तो दूसरी ओर से पत्नी विचारों और भावनाओं के साथ निशाना साधती रहती है. पुत्र एक रणभूमि में परिवर्तित हो जाता है.

व्यर्थ जाती ऊर्जा

सासबहू के बीच प्रत्यक्ष रूप से भावनात्मक रक्तपात होता रहता है. बेटा 2 पाटों में पिस जाता है और बिना अपना दिमाग लगाए मां का साथ देता है, क्योंकि उसे उस के दूध का कर्ज जो चुकाना होता है. न जाने कितने ऐसे बेटे हैं, जिन के जीवन का अच्छाखासा समय इन दोनों के संतुलन कायम करने में व्यर्थ जाता रहता है.

सड़ेगले मूल्य

सासूजी छोड़ो अपने इन सड़ेगले मूल्यों को. जब आप नहीं बदलेंगी तो अपने खिलाफ बगावत तो पाएंगी ही. न करो अपनी बहू को बगावत के लिए बाध्य. अपनी खुद की मुक्ति ढूंढ़ो. एक नई वैश्विक व्यवस्था का रास्ता आप को स्वयं ही एक औरत और मां की सोच को समझ लेना होगा. लेकिन इस के लिए आप को बहू की मां बनना होगा. आप को अपने अंदर की उस सृजनात्मकता को जगाना होगा जो सिर्फ बच्चे, पति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उस बेचारी पराई बेटी की मां भी बन सके.

यह है कारण

असल में हमारे देश में मां के प्रेम का अनावश्यक और अतिरंजित महिमामंडन कुछ ज्यादा ही होता है. मां बनना एक शुद्ध जैविक भूमिका है. चाहे वह जानवरों में हो या इंसानों में, चाहे किसी भी देश में, किसी भी धर्म या जाति में. वह बच्चे को अपने गर्भ में रखती है और जन्म के बाद उसे पोषण देती है. जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता और खुद से अपना भोजन नहीं जुटा पाता, मां उस की देखभाल करती है. पशुओं में मातृत्व ज्यादा संयमित, ज्यादा संतुलित और ज्यादा व्यावहारिक होता है. उस में एक स्वाभाविक मैत्री और करुणा है और एक स्वाभाविक उपेक्षा भी है, जो हम इंसानों के लिए क्रूरता का पर्याय है.

जानवर बेहतर हैं

प्यार का महिमामंडन करतेकरते हम कहीं न कहीं पाखंडी, स्वार्थी और प्रेम विहीन हो जाते हैं. अब पशुओं को ही देखो जब तक बच्चा अपने पैरों से चलने नहीं लगता तभी तक मां उस का खयाल रखती है. कुछ भी बदले में नहीं चाहिए. कितना पवित्र ममत्व है.

मानव शिशु अपनी मां पर निर्भर जैविक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक कारणों से रहता है और यह सफर पढ़नालिखना, बड़ा होना, शादी करना और न जाने क्याक्या जीवनपर्यंत चलता रहता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उस में मानसिक और मनोवैज्ञानिक संस्कार ऐसे गहरे बैठ जाते हैं कि वह आजीवन मांबाप पर और मांबाप उस पर लदे रहते हैं. यह हमारे सामाजिक जीवन की सचाई है. मां और पिता का जरूरत से ज्यादा प्रेम और संरक्षण बच्चे की सांस ही रोक देता है. अवसर आने पर वह अपनी पत्नी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता.

मेरे पड़ोस में रहने वाले माथुरजी की पत्नी सिर्फ इसलिए छोड़ गई, क्योंकि जब भी वह फैक्टरी से घर आते थे उन की माताजी उन से कहती थीं कि वह उन के साथ ही बैठे. माथुर साहब माता के प्रेम में डूब कर उन की बात मानते रहे और नतीजा यह हुआ कि उन की पत्नी यह कह कर उन्हें छोड़ गई कि आप ममाज बौय हैं. अपनी मां के साथ ही रहें.

आत्मप्रेम

ऐसे बहुत से केस रोज आप के सुनने में आते होंगे कि प्रेम चाहे जिस का हो, स्वार्थी होता है. मां का प्रेम कोई अलग किस्म का होता है, यह सोचना बहुत बड़ी बेवकूफी हो सकती है. हर प्रकार का प्रेम अंतत: आत्मप्रेम ही होता है. मेरा बेटा…’ इस अभिव्यक्ति में पूरा जोर ‘मेरा’ पर होता है, ‘बेटा’ दुबका रहता है.

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सुखी घरपरिवार का आधार है मधुर रिश्ते. शादी के बाद हर मां को यही लगता है कि उस का बेटा बदल गया है और वह अब सिर्फ अपनी पत्नी की बात ही सुनता है. ऐसे में मां इस बात पर बेटे या बहू को ताने देने लगती है तो रिश्ते में खटास आना स्वाभाविक है. घर में बहू जितनी भी अच्छी क्यों न हो सास की आदत होती है कि वह दूसरों की बहुओं की तुलना अपनी बहू से करती है. इस वजह से भी घर में कलह रहती है.

रिलेशनशिप काउंसलर का कहना है, ‘‘मैं केवल सास को दोषी नहीं ठहराऊंगी. मैं तो समस्या की जड़ पर बात करूंगी. आप दिल पर हाथ रख कर एक बात बताएं कि क्या हो जाता है शादी के बाद? क्यों शादी के बाद औरत कभी सास के रूप में, कभी बहू के रूप में, कभी ननद के रूप में, कभी पत्नी के रूप में ऐसी परिस्थिति पैदा कर देती है कि एकसाथ रहना दूभर हो जाता है और ठीकरा फूटता है पुरुष के सर? आप सब कहते हैं बेटियां अच्छी होती हैं, मैं भी यही कहती हूं कि बेटियां तो सभी अच्छी ही होती हैं, लेकिन क्या वही बेटियां अच्छी सास, अच्छी बहू, अच्छी पत्नी भी होती हैं? देखा जाए तो परिवार टूटने के मूल में है महिलाओं का आपसी सामंजस्य का अभाव, घर की महिला का खराब स्वभाव और रिश्तों में अत्यधिक अपेक्षाएं.’’

सोच कर देखें

महिलाओं में जितने क्लेश होते हैं पुरुषों में उतने नहीं होते. 2 अलगअलग घरों के लोग एक ही छत के नीचे मिलते हैं तो उन की सोच में फर्क होना लाजिम है. अगर सास अपने स्तर पर मन में पहले से ही यह मान ले कि इस नए रिश्ते की शुरुआत प्यार और दोस्ती के साथ करनी है, तो रिश्ता यकीनन मजबूत ही बनेगा. सास इस बात को समझे कि नई बहू आज के जमाने की लड़की है. घर की बेटियों के लिए मानदंड अलग और बहुओं के लिए अलग नहीं होने चाहिए.

बंद करें ड्रामा

अपने स्त्री होने का गलत फायदा उठाना बंद करें और अपने आंसुओं को हथियार न बनाएं. ईमानदारी से विरोध करना सही है, लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर केवल बहू मात्र का नहीं. एक औरत जो मानसिक हिंसा करती है, वह कतई माफ करने लायक नहीं. लिहाजा जरूरत मानसिकता बदलने की है.

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लड़के भी सीखें खाना बनाना

16 वर्षीय अभिषेक को अपनी मैडिकल की कोचिंग की वजह से कानपुर से दिल्ली आना पड़ा. दिल्ली आ कर सब से पहले तो उस ने बजट में रहने की एक जगह ढूंढ़ी. उस के बाद उस के सामने समस्या थी खाने की, क्योंकि जिस पीजी में वह रहता था उस ने खाना न उपलब्ध कराने के लिए कहा. पीजी वालों का कहना था कि अगर आप खुद खाना बना सकते हों तो ठीक है वरना बाहर से मैनेज करें. बाहर से पता करने पर पता चला कि खाने का खर्च जहां उस का बजट बिगाड़ देगा वहीं रोजरोज बाहर का खाना खाने से उस की सेहत को खतरा था.

आज अभिषेक को लग रहा था कि काश, उस ने भी अपनी बहन की तरह खाना बनाना सीख लिया होता तो आज यह नौबत न आती. दरअसल, भारतीय समाज में किचन का काम मुख्य रूप से लड़कियों की जिम्मेदारी समझा जाता है.

लड़कों से किचन का काम करवाना या खाना बनवाना बिलो स्टैंडर्ड समझा जाता है. यही कारण है कि लड़के खाना बनाना नहीं सीख पाते और खाने के लिए घर की महिलाओं पर निर्भर रहते हैं.

बदलते समय में लड़कियों की दुनिया महज घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं है. वे घर से बाहर बड़ीबड़ी कंपनियां चला रही हैं. ऐसे में लड़कों के लिए भी कुकिंग सीखना बहुत जरूरी हो जाता है. लड़कों को कुकिंग आने के अनेक फायदे हैं, जिन्हें लड़के जान लें तो वे कुकिंग सीखने से पीछे नहीं हटेंगे.

लड़कियां होंगी इंप्रैस

आज की कामकाजी, आत्मनिर्भर लड़कियां ऐसे लड़कों की तलाश में रहती हैं जो खुद तो खाना बना ही सकें साथ ही गर्लफ्रैंड को भी अपनी बनाई डिशेज खिला कर इंप्रैस कर सकें.

15 वर्षीय वंशिका कहती है, ‘‘जब लड़कियां लड़कों के बराबर उच्च शिक्षा, नौकरी, घर से बाहर सभी कार्य कर रही हैं जो लड़के करते हैं तो फिर लड़के घर के काम यानी कुकिंग क्यों न सीखें?

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‘‘बाहर से आ कर लड़का क्यों आराम से बैठ कर और्डर करे और क्यों लड़की ही किचन में खाना बनाए. जब जमाना बराबरी का है तो लड़कों को भी कुकिंग सीखनी चाहिए. मेरे लिए परफैक्ट बौयफ्रैंड का पैरामीटर है कि लड़के को भी कुकिंग आनी चाहिए.’’

हैल्थ के लिए फायदेमंद

अभिषेक जैसे अनेक लड़के हैं जो उच्चशिक्षा या कोचिंग के लिए घरपरिवार से दूर दूसरे शहरों में रहते हैं. उन के लिए रोजरोज बाहर का खाना खाना न केवल महंगा पड़ता है बल्कि सेहत के लिए भी नुकसानदायक है. ऐसे में अगर लड़कों ने कुकिंग सीखी होगी तो वे खुद खाना बना कर खा सकते हैं जो हर लिहाज से सस्ता व सेहतमंद होगा.

फ्यूचर के लिए फायदेमंद

आजकल लड़कालड़की दोनों वर्किंग होते हैं. ऐसे में अगर लड़के को कुकिंग आती होगी, तो दोनों घरबाहर की जिम्मेदारियों को बराबरी से बांट सकेंगे वरना आएदिन खाना बनाने को ले कर दोनों के बीच तूतूमैंमैं होती रहेगी.

वैसे भी अगर विवाह के बाद लड़केलड़की दोनों को खाना बनाना आता होगा तो खाने में वैरायटी आएगी. दोनों मिल कर कुकिंग में नएनए ऐक्सपैरिमैंट कर सकेंगे और लड़के को खाने के लिए अपनी पत्नी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा बल्कि जरूरत पर पत्नी को भी खाना बना कर खिला सकेगा.

बनेंगे इंडिपैंडैंट

होस्टल में जहां लड़केलड़कियां इकट्ठे रहते हैं वहां अगर लड़कों को खाना बनाना न आता हो और लड़कियां कहीं चली जाएं या बीमार हो जाएं तो कुकिंग न आने वाले लड़कों के लिए मुसीबत हो जाएगी, लेकिन अगर लड़कों को खाना बनाना आता होगा तो वे लड़कियों पर निर्भर नहीं रहेंगे.

लड़कियों को मिलेगा स्पैशल ट्रीटमैंट

लड़कियों को कितना अच्छा लगेगा जब रूटीन से हट कर लड़की आराम से बैठेगी और लड़का उस के लिए स्पैशल डिश बना कर उसे खुश करेगा.

इसी तरह विवाह के बाद भी अगर लड़के को खाना बनाना आता होगा तो दोनों मिल कर किचन में साथसाथ कुकिंग कर सकेंगे और साथसाथ समय बिताते हुए दोनों के बीच प्यार बढ़ेगा.

लड़के कुकिंग सीखने की शुरुआत कैसे करें

कुकरी ऐक्सपर्ट नीरा कुमार का कहना है कि लड़कों के लिए भी कुकिंग सीखना उतना ही जरूरी है जितना लड़कियों के लिए. उन का तो यहां तक कहना है कि पाक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि लड़के खाना बनाना सीख सकें. वैसे भी जब लड़कियां पढ़लिख कर खाना बनाती हैं तो लड़के भी पढ़नेलिखने के बाद खाना बनाना क्यों न सीखें?

लड़के खाना बनाना सीखने की शुरुआत कैसे करें इस बारे में नीरा कुमार का कहना है कि शुरुआत में वे इंस्टैंट फूड बनाना सीखें. फिर धीरेधीरे पुलाव, पोहा, सैंडविच, पास्ता जैसी डिशेज बनाना सीखें. वे चाहें तो कुकिंग वीडियोज की भी मदद ले सकते हैं.

स्मार्टफोन की लें मदद

स्मार्टफोन का यूज सिर्फ मेल, मैसेज या वीडियोज शेयर करने के लिए न करें. आप स्मार्ट फोन में कुकिंग से रिलेटिड ऐप्स भी डाउनलोड कर सकते हैं और गुड फूड ऐप्स जैसी ऐप्लिकेशंस की सहायता से कुकिंग में आने वाली मुश्किलों का हल तलाश सकते हैं.

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लखनऊ के रहने वाले अपूर्व का कहना है कि कुकिंग एक आर्ट है और इसे हर लड़के को सीखना चाहिए. मैं 12वीं के बाद होस्टल और पीजी में रहा हूं, जहां हमेशा खाने की समस्या आती रहती थी, लेकिन कुकिंग मेरा पैशन है और मैं बचपन से कुकिंग में इंट्रैस्ट लेता था इसलिए मुझे अकेले रहने के दौरान कोई दिक्कत नहीं आई.

मुझे कई तरह का खाना बनाना आता है. मेरा मानना है कुकिंग रिलेशनशिप व बैचलर लाइफ के अलावा शादी के बाद भी काम आती है. इसलिए लड़कों को भी बचपन से ही खाना बनाना सीखना चाहिए.

कैरियर का बेहतरीन औप्शन

आज देश के जानेमाने शैफ संजीव कपूर, विकास भल्ला, रणवीर बरार, कुणाल कपूर आदि सभी पुरुष हैं और इन्होंने महिलाओं के एकाधिकार वाले क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई है. इसलिए अगर आप का कुकिंग में पैशन है तो आप उसे अपना प्रौफैशन भी बना सकते हैं. वैसे भी सामाजिक स्तर पर जब लड़केलड़कियों का अंतर खत्म हो रहा है तो फिर लड़कों को भी लड़कियों के क्षेत्र में यानी कुकिंग में महारत हासिल कर के अपने टैलेंट को साबित करना चाहिए और यह तभी संभव हो सकता है जब बचपन से ही वे कुकिंग की ट्रेनिंग लें.

रूठे हैं तो मना लेंगे

माता पिता और बच्चों का रिश्ता वैसे ही बहुत ख़ास होता है .बच्चों का जुड़ाव सबसे ज़्यादा माता पिता के साथ होता है इसलिए अमूमन वो भावनात्मक रूप से उनसे बेहद जुड़े होते हैं और अपने जीवन से संबंधित हर निर्णय उनकी सहमति से लेना चाहते हैं .

जहाँ तक हम भारतीय समाज की बात करें तो भारतीय अभिभावक अपने बच्चे के हर फैसले में अपना अधिकार सर्वोपरि रखते हैं ,उन्हें अपने बच्चों के लिए जो उचित लगता है उसके हित में दिखाई देता है बच्चों को वो वही करने की सलाह देते हैं फिर चाहे बात शिक्षा के क्षेत्र में विषय के चुनाव की हो ,कैरियर से संबंधित हो, विदेश जाने की हो, विवाह करने या न करने का निर्णय हो अथवा जीवनसाथी के चुनाव की बात ही क्यों न हो इन अब में अभिभावकों का निर्णय ही अधिकाँश मामलों में अंतिम होता है.ऐसा नहीं है कि बदलते समय और परिवेश के अनुसार लोगों की सोच में बदलाव नहीं आया है बच्चों को काफी बातों में स्वतंत्रता मिली है फिर भी अभी भी इस बदलाव का प्रतिशत बहुत कम है. ऐसे में बच्चों को ये जान लेना ज़रूरी है कि माता पिता हमेशा ही उनका हित चाहते हैं और उनके बारे में उनसे भी बेहतर जानते हैं .उनसे ज़्यादा जानने का मतलब है कि वो बच्चों को उनके सच के साथ पहचानते हैं ऐसे में बच्चों के सामने ये बहुत बड़ी चुनौती है कि वो अपने माता पिता को से अपने मन की बात कैसे मनवाएँ .इसके लिए कुछ तरीके कारगर हो सकते हैं.

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जब बात हो जीवनसाथी के चुनाव की हमारे देश में विवाह के बहुत मायने हैं विवाह जीवन का सबसे बड़ा फैसला माना जाता है और अमूमन हर भारतीय माता पिता अपने बच्चे के जन्म के साथ ही उसके विवाह के सपने संजोने लगते हैं ऐसे में जब तक बच्चे की उम्र विवाह योग्य होती है तब तक माता पिता के जज़्बात और अरमान उसके विवाह को लेकर बन चुके होते हैं ऐसे में जब विवाह की बात आती है तो बच्चों के जीवनसाथी का चुनाव माता पिता ही करना चाहते हैं इसे वो अपना अधिकार मानते हैं पर मुश्किल तब शुरू होती है जब बच्चे अपनी पसंद का जीवनसाथी चाहते हैं या वो किसी को पसंद कर लेते हैं और यदि वो लड़का या लड़की सजातीय या सधर्मी नहीं है तब तो भूचाल सा आ जाता है. वैसे तो लव मेरिज का प्रतिशत बढ़ा है पर आज भी इसकी मान्यता कम ही है.हमारे देश के कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जहाँ लव मैरिज करने पर ऑनर किलिंग कर दी जाती है .ऐसे में अपनी पसंद की शादी करने के लिए माता पिता को राजी करना भी टेढ़ी खीर है.यदि आपने जिसे चुना है उसकी जाति आपसे अलग है तो समझाना और भी मुश्किल है .चूँकि अगर जाति अलग हैं तो खान पान रहन सहन में काफी अंतर आता है इसलिए माता पिता नही चाहते कि बच्चे अंतर्जातीय विवाह करें.पर फिर भी उन्हें मनाया जा सकता है अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो.

1. समझाएँ कि शादी पूरे जीवन की बात है आप ये समझाने का प्रयास करें कि ये एक दिन की बात नहीं है पूरे जीवन का प्रश्न है और यदि आप ही खुश नहीं रह पाए तो बाकी सबको कैसे खुश रख पाएँगे.

2. शादी कैसी भी हो चुनोतियाँ उसका हिस्सा हैं आप ये बताने का प्रयास करें कि इस से कोई फर्क़ नही पड़ता कि शादी अंतर्जातीय है ,आपकी पसंद की है या आपके माता पिता की पसंद की पर हर रिश्ते को निभाने के लिए प्रयास करने ही होते हैं जो पूरी तरह आप पर निर्भर करते हैं.उन्हें उदाहरण देकर बताएँ कि उनके इतने वर्षों के साथ में क्या उनके रिश्ते ने उतार चढ़ाव नहीं देखे.

3. लोग क्या सोचते हैं इस से कुछ नहीं बदलता उन्हें ये समझाएँ कि लोग क्या कहते हैं इस से आप को या उनको फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि ये रिश्ता पूरी तरह से दो लोगों का रिश्ता है .जब अच्छा बुरा समय आएगा तो आप सबको मिलकर काटना है लोगों को नहीं.

4. कुछ अपनों को अपने पक्ष में लें आपके कुछ क़रीबियों (जिनकी बात आपके माता पिता के लिए मायने रखती है )को विश्वास में लें जिस से वो आपके पक्ष को और अच्छे से समझा सकें.

5. माता पिता का विश्वास जीतें आपको उनका विश्वास जीतना होगा.उन्हें बताना होगा कि उन्हें आपके जीवनसाथी से जो उम्मीदें आपके लिए अपने लिए और परिवार के लिए हैं वो उस पर अवश्य खरा उतरेगा और उनकी मान्यताओं का उसी तरह सम्मान रखेगा जिस तरह उनकी पसंद से लाया गया व्यक्ति रखेगा.आजकल ग्लोबलाइजेशन का ज़माना है जिसमें सभी जातियों और प्रान्तों का खानपान एक जैसा ही है इसलिए इन बातों से आपके रिश्ते में कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं फिर जब रिश्ते में परस्पर प्रेम और विश्वास होता है एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान होता है तो ये बातें उसके आगे बहुत छोटी हैं.

6. उदाहरण तैयार रखें पहले से अपने परिवार में अपने पसंद से अंतर्जातीय विवाह करने वाले ऐसे लोगों को ढूंढ कर रख लें जिनके विवाह सफल हैं.माता पिता को बताइए कि कैसे वो लोग भी तो सफल हैं आपको भी कोई परेशानी नहीं आएगी.

7. उसे अपने माता पिता से मिलवाएँ कोई अच्छा समय देखकर उसे घर बुलाएँ और ऐसी योजना बनाएँ कि वो माता पिता के साथ एक अच्छा समय बिता पाए जिस से वो लोग उसे देख समझ सकें और उसके प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रसित अपनी धारणाएँ और दृष्टिकोण बदल सकें.उनपर जल्दबाज़ी में कोई दबाव बनाने का प्रयास न करें बल्कि उन्हें अहसास कराएँ कि उनकी सहमति आपके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है.लेकिन अपने प्यार को छोड़ना आपके लिए उतना ही दुःखद है इसलिए आप उनसे उम्मीद रखते हैं कि वो आपकी भावनाओं को समझें.

8. यदि धर्म हों अलग अलग- यदि जिसे आपने पसंद किया है उसका धर्म अलग है तो चुनोती बहुत बड़ी होती है क्योंकि इस तरह की शादियों को हमारे समाज में आज भी स्वीकार्यता मुश्किल से मिलती है ऐसे में कोई भी माता पिता इस तरह की शादी के लिए तैयार नहीं होते .पर ऐसे में आप हिम्मत मत हारिये बल्कि समझाइए और प्रयत्न जारी रखिये उन्हें बताइए कि घर दो लोगों से मिलकर बनता है धर्म से कोई फर्क़ नही पड़ता जैसे दो लोग एक दूसरे की दूसरी अलग बातों का सम्मान करते हैं वैसे ही एक दूसरे के धर्मो का सम्मान भी कर सकते हैं और रजिस्टर्ड मैरिज करने पर अब ये भी संभव है कि दोनों को अपना धर्म नही बदलना पड़ेगा और भविष्य में जो संतान होगी वो बालिग होने पर अपना धर्म चुनने को स्वतंत्र होगी कि माता का धर्म अपनाए या पिता का इस से कोई भी परेशानी नहीं होना चाहिए किसी को .एक सफल विवाह में एक जाति या एक धर्म होने से ज्यादा विचारों का एक होना मायने रखता है और विवाह प्रेम की नींव पर टिके होते हैं यदि विवाह की नींव ही समझौते पर है तो वो ज़्यादा लंबा नहीं चल पाएगा इस तरह समझाने पर वो लोग आपकी बात अवश्य समझेंगे .उन्हें अपने ऐसे दूसरे दोस्तों से मिलाइए जिन्होंने ऐसी शादी की है और खुशहाल जीवन बिता रहे हैं इस से उनकी राय बदलने में आपको मदद मिलेगी.

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9. उनके प्यार को समझने का प्रयास करें और सोचें कि वो आपका भला चाहते हैं और आपके अच्छे बुरे वक़्त में कोई हो न हो वो हमेशा खड़े रहते हैं इसलिए जो आपने सोचा है उसको तथ्यों के साथ उनके सामने रखें और उन्हें बताएँ कि उनकी सलाह आपके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है पर यदि फिर भी अंत में आपकी और उनकी राय अलग अलग दिशा में जाये तो आप जल्दबाजी न करते हुए बात को वहीं छोड़ दें और कुछ दिन बाद नए सिरे से बात को शुरू करें.

10.आपका कहने का तरीका बहुत मायने रखता है आप अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखें और आपने जिसे भी चुना है उसकी सारी खूबियों के बारे में आप अच्छे से जानते हैं उन खूबियों के बारे में उन्हें बताएँ.

11. कुछ समय उनके साथ बिताएं जो सिर्फ़ आपका और उनका होकई बार बात कहने के लिए सही समय का चुनाव करना ज़रूरी होता है इसके लिए उनके साथ उनके समय में शामिल हों जिस से आपकी आपस की बॉन्डिंग मजबूत हो और वो आपकी बात समझ पाएँ.

12. उन्हें अहसास कराएँ कि वो सबसे महत्वपूर्ण हैं उन्हें बताएँ कि उनकी सलाह आपके लिए बहुत मायने रखती है.उन्होंने जो भी आपके लिए सोचा है वो निश्चित ही सबसे अच्छा होगा पर उसी तरह उन्हें भी आप पर भरोसा करना चाहिए कि आप जो भी करेंगे बहुत अच्छा होगा और ये भरोसा आप ही को क़ायम करना होगा.

आप उन्हें समझाइए कि आपको हर कदम पर उनका साथ चाहिये इस तरह समझाने पर वो जरूर ही आपकी बात पर अपनी सहमति देंगे और साथ भी ,बस किसी भी बात में उनको राजी करने के लिए उग्रता या उतावलापन न दिखाएँ उनको पूरा समय लेकर सोचने दें बस अपने सारे सकारात्मक पहलू अच्छे से समझा दें फिर देखिए वो आपकी बात जरूर समझेंगे.
उम्मीद है इस तरह से बात करने पर बात बन ही जाएगी.तो देर मत कीजिये और मना लीजिए अपने अपनों को.

शादी के बाद दूसरों से सम्बन्ध जोखिमों से भरे

दिल्ली के बुराड़ी इलाके में स्थितपूजा और अशोक की शादी को4 साल बीत चुके हैं. दोनों अभी 28-32 साल की है. साल के भीतर की उम्र के हैं.यह शादी परिवार वालों की इच्छा से अरेंज हुई थी. अशोक के घरवालों को पढ़ीलिखी लेकिन घर संभालने वाली बहु चाहिए थी. वे शहरी लड़की बिलकुल नहीं चाहते थे, तो अपने पैतृक भूमि पौड़ी जिले (उत्तराखंड) के कोटद्वारनगर से पूजा का हाथ अशोक के लिए मांग ले आए थे.

किन्तु अशोक का अपने कालेज दिनों से ही आरती पर क्रश था. आरती से उस की पहली मुलाकात जीटीबी नगर के बस स्टैंड के पास हुई थी, जिस के बाद दोनों का रोज उस बसस्टैंड के पास यूंही मिलना और साथ में कश्मीरी गेट तक जाना होता था. बहुत बार बस में खाचाकाच भीड़ के चलते दोनों एकदुसरे के नजदीक आते.दोनों में तनबदन में सिहरन दोड़ती, फिर नजरें मिलती. कई बार बस की सीट पर साथसाथ ही बैठना हो जाता.

साथ में सफर करते हुए ही उन की आपस में बात होनी शुरू हुई और यह बातचीत आपस में कुछ समय के प्रेम तक भी जा पहुंची. दोनों को आपस में प्रेम तो हो गया लेकिन किसी की तरफ से इस बारे में परिवार वालों को बोलने कीहिम्मत नहीं हुई. दरअसल आरती शहरी लड़की थी, लेकिन शहरी से अधिक वह यूपी राज्य से तालुक रखती थी. दोनों की जाति, संस्कृति, क्षेत्र, व बोलीअलगअलग थी जो दोनों के प्रेम सबंध को शादी के बंधन में बंधने से रोक रही थी.

दोनों ने इसे जवानी के एक अच्छे क्रश या कहें कि कुछ समय का प्रेम ही समझा. अशोक ने आरती को किसी तरह की कमिटमेंट नहीं दिखाई तो आरती की कुछ समय बाद शादी तय हो गई. जिस के कुछ समय के बाद, अशोक भी अरेंज मैरिज के लिए आधे मन से तैयार हो गया.

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पूजा दिखने में अच्छी थी तो अशोक ने शादी के लिए हामी भर दी थी. शादी के दुसरे ही साल दोनों का एक बेटा हुआ. जिस के बाद पिछले साल ही परिवार ने दोनों के लिए अलगफ्लेट खरीदकर दे दिया. किन्तु संयोग से यह फ्लेट संत नगर इलाके के नजदीक आरती के मायके के एकदम पड़ोस में था. अशोक को पता तो था कि आरती इधर ही कहीं रहती थी लेकिन उस कामायका ठीक उस के पड़ोस मेंहोगा यह नहीं पता था.

पिछले साल सितंबर महीने के अंत में आरती का अपने मायके आना हुआ था. जिसे देख अशोक एकदम हक्काबक्का रह गया. दोनों की आपस में, काफी समय से बंद पड़े फेसबुक से, फिर से बातचीत शुरू हो गई. यह बातचीत रात देर रात को भी होने लगी थी. धीरेधीरे फेसबुक से इतर फोन पर भी बात होनी शुरू होगई. पूजा को धीरेधीरे अशोक में आए बदलाव पर शक होने लगा. जो अशोक पहले अपने फोन को यहांवहां कहीं भी बेफिकर रख जाया करता था, वह फोन को एक मिनट के लिए भी खुद से दूर नहीं रख रहा था. बल्कि अब तो अशोक अपने फोन पर लौक भी लगाने लगा था.

अशोक ने अब पूजा पर दिलचस्पी दिखाना भी कम कर दिया है. पूजा को आरती और अशोक के नाजायज रिश्ते के बारे में शक होने लगा है. पिछले एक साल से दोनों के बीच हर छोटी सी छोटी बात पर अनबन हो ही जाती है. न चाहते हुए भी झगड़ा बढ़ने लगता है. पूजा झगड़े में अगर कह दे, “मैं जानती हूं तुम्हारी हकीकत क्या है” तो अशोक की सिट्टीपिट्टी उड़ जाती है. वह इस बात को मोड़ने के लिए और भी झल्ला जाता है, और पूजा पर खूब जोरजोर से चीखने लगता है, जिस से उस की आवाज दब जाती है. उन के झगड़े की नौबत यहां तक अ गई है कि कई बार आसपड़ोस के लोगों को आ कर बीच में कूदना पड़ जाता है. कई बार अशोक के मांबाप को समझाने आना पड़ा है, लेकिन ‘ढाक के वही तीन पात.’

इन झगड़ों का असर काफी समय से उन के 2 साल के बेटे अनुज पर भी पड़ रहा है. हर बात में होने वाली चीखमचिल्ली से वह घबरा कर रोने लगता है. उस पर मानसिक अघात होने लगा है. उस की परवरिश में मातापिता का प्रेम पहले से काफी कम हो गया है. अशोक अगर अनुज को अपनी गोद में लेना चाहे तो उसी बात पर झगड़ा होने लगता है. इस साल की शुरुआत में पूजा झगड़ा कर अपने मायके चली गई थी, लौकडाउन लगा तो वह मायके में ही रह गई. लेकिनआज आलम यह है कि पूजा ने तय किया कि अब वह कुछ शर्तों के साथ ही वापस घर की दहलीज में आएगी, इसलिए अब वह अपने बेटे अनुज के साथ मायके में ही रह रही है, उस का फिलहाल वापस जाने की इच्छा नहीं है.

शादी के बाद अफेयर न बन जाए जोखिम

देखा जाए तोइस तरह के मामलों में शादीशुदा कपल्स के दो तरह से ही मामले सुलटते हैं, पहला, अलग होकर यानी ‘तलाक’ दे कर. दूसरा समझौतों के साथ रह कर.अधिकतर शादीशुदा कपल्स सब से पहले खराब हो चुके रिश्ते को फिर से संभालने की कोशिश में आपसी समझौतों को अपनाने की कोशिश करते हैं किन्तु इन मामलों में पहले जैसी ताजगी खत्म हो जाती है,विश्वास कमजोर हो जाता है, और बदला लेने या कम से कम एक बार किसी तरह से सबक सिखाने की इच्छा प्रबल रहती है, घाव हमेशा हरे रहते हैं, जो समयसमय याद कर फिर से हरे होने लगते हैं, जो खोया पैशन वापस नहीं दिला पाता.जब इस तरह से मामला सुलटता दिखाई नहीं देता तो तलाक की तरफ बढ़ने का फैसला लिया जाता है

कई बार रंगे हाथ पकड़े जाने पर मामला आपराधिक रूप भी ले लेता है. ऐसे में कभी कई हत्याओं की वारदातें इन्ही मामलों में सामने आई हैं. शादी के बाद नाजायज सम्बन्ध का ऐसा ही एक मामला पंजाब के कपूरथला जिले से सामने आया था. तलवंडी चौधराइन गांव में रहने वाला बलविंदर सिंह और रजवंत कौर का हंसताखेलता परिवार था. एक दिन अचानक रजवंत कौर का गौतम कुमार नामक व्यक्ति से नाजायज सम्बन्ध बनते उस के 4 वर्ष के बेटे ने देख लिया. जिस के बाद महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने बेटे को जान से मार दिया. जिस के बाद उन दोनों के ऊपर धारा 302 (हत्या) और 34 के तहत मामला चलाया गया.

ठीक ऐसा ही एक मामला इस साल अप्रैल माह में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के खंडा गांव से सामने आया. जहां एक शादीशुदा महिला (रवीना) ने अपने प्रेमी (प्रताप), जो महिला का चचेरा भाई था, के साथ मिल कर रात में 2.30 बजे अपने पति विक्रम ठाकुर, उम्र 22, का गला रेत दिया. इस जोड़े का लगभग 1.5 साल का एक बेटा भी था.ऐसे अनेकों मामले पुरे देश के हर एक राज्य में पटे पड़े हैं, जहां शादी के बाद चल रहे प्रेमप्रसंग के चलते अपराध की वारदातें देखने को मिलती हैं.

वर्ष 2017 में इसी के चलते भारतीय सेना ने अपने एक अधिकारी को जूनियर अधिकारी की पत्नी के साथ सम्बन्ध रखने के चलते सख्त सजा सुनाई. ब्रिगेडियर और जूनियर अफसर दोनों ही देहरादून से तलूक रखते थे.यह सुनवाई पश्चिम बंगाल के बिनागुरी में चला, फैसला आर्मी कोर्ट ने लिया था. इस की शिकायत खुद ब्रगेडियर की पत्नी ने परिवार को बचाने के चलते की थी. जिस के फैसले के बाद ब्रिगेडियर के प्रमोशन पर 4 साल तक की रोक लगा दी थी.

बढ़ते तलाक के मामले और एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर

भारत में ऐसे अनेकों मामले निलंबित है जहां शादी में आई खटास के चलते शादीशुदा जोड़ा कोर्ट के दरवाजे खटकाने को मजबूर हो जाता है. इन आई खटासों का एक बड़ा कारण एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर भी रहता है. मिनिस्ट्री ऑफ़ ला से मिली जानकारी के अनुसार भारत में कुल 7 लाख तलाक के मामले दिसंबर 2017 तक पैंडिंग पड़े थे. इस में सब से अधिक मामले उत्तर प्रदेश के थे. जहां 38% मामलों के साथ कुल 2,64,409 मामले पेंडिग थे. वहीँ जनसंख्या अनुपात में देखा जाए तो सब से अधिक मामले केरल से सामने आए हैं. जहां कुल 61,970 मामले पैंडिंग थे. इस के बाद बिहार 46,735 और महाराष्ट्र 35,349 मामलों के साथ चौथे नंबर पर था.

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भारत में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को मनमाना व अप्रासंगिक घोषित कर दिया. तब के चीफ जस्टिस  दीपक मिश्रा, व जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन,चंद्रचूड, इंदु मल्होत्रा ने अपने अलगअलग लिखे निर्णयों में एक मत से “व्यभिचार” यानी एडल्ट्री की कानूनी वैधता को निरस्त कर दिया. अपने लिए फैसले में व्यभिचार को तलाक लिए जाने का एक मजबूत आधार बनाए रखा. यानि जो पहले अपराध की श्रेणी में आता था वह तो हट गया लेकिन व्यभिचार से भावनाओं और विश्वास को ठेस पहुंचने को रिश्ते में ना बने रहने का विकल्प का रास्ता बनाए रखा.

दरअसल 1860 का बना यह कानून लगभग 150 से अधिक साल पुराना था. इस कानून के तहत पुरुष को 5 साल की कैद या जुर्माना या दोनों ही सजा का प्रावधान था. हांलाकि शादीशुदा पुरुष अगर किसी विधवा या कुंवारी महिला से सम्बन्ध बनाए तो वह एडल्ट्री में नहीं आता था.हांलाकि केंद्र सरकार इस कानून को बचाए रखने के पक्ष में थी, सरकार का मानना था कि भारतीय संदर्भ में ऐसा कोई प्रयास जो इस कानून को रद्द करने से सम्बंधित है वह ‘परिवार और शादी की पवित्रता’ को चोट पहुंचाएगा. किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्त्री की स्वाधीनता और बराबरी को बनाए रखने के लिए पितृसत्ता के खिलाफ निर्णय बताया.

ग्लीडेन की रिपोर्ट

यूं तो भारत में काफी संख्या में‘टिंडर’, ‘ट्रूलीमैडली’, ‘मैच’, ‘हिंग’, ‘बम्बल’ जैसे डेटिंग साइट्स या एप्स खुल चुके हैं,जो प्रेम,जीवनसाथी की तलाश के लिए युवाओं के बीच खासा प्रचलित भी हैं. जहां, युवा अपना काफी समय खर्च भी करते हैं. ऐसे में भारत प्राइम मार्किट के तौर पर इन साइट्स के लिए उभर कर सामने आया है. आज शहरी लोगों खासकर युवाओं के हाथों में एंड्राइड फोन और इन्टरनेट की सुविधा सरलता से पहुंच चुकी है इस क्षेत्र में बहुत बड़ा उछाल देखने को भी मिला है.

आमतौर पर यह साइट्स टीनेजर व यूथ में प्रचलित है. किंतु ग्लीडेन की प्रकाशित की गई रिपोर्ट कहानी कुछ और ही बयां कर रही है. ग्लीडेन भारत का पहला ‘एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर ऐप है. जिस की शुरुआत भारत में वर्ष 2017 में हुई थी. ग्लीडेन कीहालिया रिपोर्ट के बाद भारत में व्यभिचार के कुछ हैरान करने वाली जानकारियां सामने आई हैं. यह रिपोर्ट देश में अलग अलग समय में प्रकाशित होती रही हैं.ग्लीडेन के अनुसार भारत में इस साल जनवरी-फ़रवरी माह तक कुल 8 लाख यूजर्स थे जो इस ऐप का इस्तेमाल करते थे. वहीँ पूरी दुनिया में इसके यूजर्स की संख्या 32 लाख के आसपास है.

इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 के बाद, जब देश में एडल्ट्री कानून को निरस्त किया गया था, उस के बाद भारत में इस ऐप को चलाने वालो की संख्या में भारी बूम आया है. पिछले साल अंत में जारी की रिपोर्ट में ग्लीडेन ने मुख्य 5 शहरों को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया, जिसमें बैगेलुरु, मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और पुरे थे. जिस के आधार पर बताया गया कि भारत में शादीशुदा महिलाएं 30-40 के बीच अपने लिए अफेयर पार्टनर की तलाश में रहती हैं, वहीँ पुरुष 25-30 के बीच की महिलाएं. यह यूजर्स 34-49 साल के बीच के हैं. इस ऐप पर यूजर्स द्वारा हर दिन 3 विजिट के साथ समय खर्च 1.5 घंटा ओसतन है, व इसे इस्तेमाल करने का प्राइम टाइम रात 12 से सुबह बजे के बीच का है.

रिपोर्ट के अनुसार अपने शादीशुदा पार्टनर के साथ सब से अधिक संख्या में व्यभिचार करने में बैंगुलुरु 1.3 लाख के साथ पहले स्थान पर है, फिर उस के बाद क्रमशः मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और पुणे है. इन में अधिकतम सफेद कालर लोग शामिल हैं जैसे- डॉक्टर, डेंटिस्ट, हायरअप मैनेजर, चार्टेड अकाउंटेड इत्यादि.रिपोर्ट में कहा गया कि 77 प्रतिशत भारतीय रूटीन लाइफ और बोर होने के चलते अपने पार्टनर से चीट करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि 48 प्रतिशत भारतीय सोचते हैं कि यह संभव है कि एक साथ 2 लोगों के साथ रिश्ते बनाए जा सकते हैं.

वहीँ, इस ऐप ने लौकडाउन के दौरान भारतीय शादीशुदा जोड़ों में बढ़ती दिलचस्पी के आकड़े सामने रखे. ग्लीडेन के अनुसार जनवरी-फ़रवरी के मुकाबले लौकडाउन के पहले महीने मार्च-अप्रैल में 166 प्रतिशत यूजर्स की बढ़ोतरी हुई है. जो अभी कुल मिलकर 10 लाख के आकड़े को पार कर चूका है. जिस इस्तेमाल करने वालों में महिला पुरुष अनुपात 34:64 का है. जो दिखा रहा है कि आधुनिक समय में शादी से उकता चुके कपल्स अपने लिए कहीं और सुख ढूंढने की तलाश में रहते हैं.

विवाह के बाद दूसरों से सम्बन्ध खतरे से खाली नहीं

विवाह के बाद संबंधों का बनना किसी भी शादीशुदा परिवार के पतन की पहली निशानी होती है. खासकर भारत के लिए यह अति अवांछनीय कृति में है. भारत में शादी को आमतौर पर विश्वास और पवित्रता से जोड़ कर देखा जाता है. यह एक प्रकार का म्यूच्यूअल एग्रीमेंट होता है जिसे कथित विश्वास की मजबूत डोर से बांधा जाता है. भारतीय समाज में यौनिकता को अति विशेष निजी दायरे में रखा जाता है. जो दोनों (महिला-पुरुष) पर निर्धारित होता है. हांलाकि, यहां यह देखना जरुरी है कि पुरुष के लिए यह यौनिकता का सुख कभी भी दायरों में बंध के नहीं रहा है, तमाम रेडलाइट और कौठे पुरुषों की यौन सुखों को तृप्त करते रहे हैं. बाहर निकल कर, काम का बहाना मार, पत्नी की नजरों से बचबचा कर अपने यौन आजादियों का मजा पुरुष के अधिकार में ही आ पाया है.

किंतु उस के बावजूद बचेकुचे पारिवार की इमारत इन जैसे मामलों के उजागर होने से ध्वस्त होते रहे हैं.विवाह से बाहर दुसरे से सम्बन्ध से पूरा परिवार एक झटके में तबाह हो जाता है.चाहे पुरुष का व्यभिचार हो या चाहे महिला का व्यभिचार हो, बड़ी चोट महिला के ही हिस्से बंधती है. एक बार शादी टूटने से पुरुष के मुकाबले किसी महिला के लिए दोबारे अच्छे विकल्प के साथ शादी के बंधन में बंधना बहुत मुश्किल होता है.

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लेकिन यह बाद की बात है, उस से पहले परिवार के सभी सदस्यों को हर दिन इन विषयों पर सोच कर मानसिक अघात से गुजरना पड़ता है. एसटीडी का खतरा, एकदुसरे के प्रति सम्मान का खोना, रोज के झगड़े,डोमेस्टिक वायलेंस, विश्वास का छिन्नभिन्न हो जाना, सच्चाई को छुपाने के लिए कई झूटों को परोसना और अंत में सच सामने आने पर भारी गिल्ट में जीना या कुछ अपराधिक कृत्य कर गुजरना. ऐसे उदाहरण हम काफी देख चुके हैं. जहां सच्चाई सामने आने पर पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ पत्नी को मरवा दिया, या पति ने अपनी पत्नी को मार दिया.

ऐसे मामले में इस से होने वाले नुकसान सिर्फ पतिपत्नी के बीच ही सीमित नहीं रहते, बल्कि आने वाली जेनरेशन पर भी इस का गहरा असर पड़ता है. 2015 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार विवाह के बाहर नाजायज संबंधो के चलते होने वाले पतिपत्नी के झगड़ों में बच्चों पर भारी विपरीत असर पड़ता है. वे इसे अपने दिमाग में आत्मसात करते हैं और अपने जीवन में भी उसी प्रकार रिएक्ट करते हैं.ऐसे में जरुरी है कि विवाहेत्तर बनने वाले संबंधो में पड़ने से खुद को नियंत्रित किया जाए, जहां किसी प्रकार का कपल्स में आपसी भटकाव होने लगे उन्हें बैठ कर पहले ही सुलझा लिया जाए. वहीँ अगर ऐसे मामले नियंत्रण से बाहर होने लगे तो अपने शादीशुदा रिश्ते को सच्चाई की बुनियाद पर टिका कर कन्फेस करने में ही भलाई है. फिर चाहे कपल्स का साथ में बने रहना हो या अलग होना हो, यह दोनों की आपसी समझदारी पर ही निर्भर करेगा.कि वह भविष्य में अपना जीवन कैसे निर्वाह करना चाहते है.

माता पिता की असमय मृत्यु के बाद ऐसे रखें बच्चों का ख्याल

जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारे लिए उस इंसान के बगैर जीना मुश्किल सा हो जाता है. क्योंकि वो नुकसान इतना बड़ा होता है की उसकी भरपाई दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं कर सकती. पर इससे भी बड़ी मुश्किल तब जन्म लेती है जब किसी बच्चे के माता पिता की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाए.
वयस्कों की तरह, बच्चे भी उसी भयावह दुख की प्रक्रिया से गुजरते हैं. और जैसे माता-पिता के होने के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, वैसे ही अपने माता पिता के बगैर बच्चे कैसे प्रतिक्रिया करेंगे,इसके लिए भी कोई नियम पुस्तिका नहीं है.

बच्चे कभी-कभी बहुत दुखी और परेशान हो सकते हैं, कभी-कभी वे शरारती या क्रोधित हो सकते हैं, और हो सकता है की आपको कभी-कभी यह प्रतीत हो की वो भूल गए हैं. लेकिन सच कहूँ तो वे भूलते नहीं है ,एक बच्चा शायद ही कभी मौखिक रूप से अपने दुख को व्यक्त कर सकता है. इसी कारण से कम उम्र के बच्चे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो रहे है.

अवसाद के संकेतों को कैसे पहचाने-

बच्चे और वयस्कों में अवसाद के समान लक्षण हो सकते हैं: हो सकता है वो दूसरों से बात करने से कतराएँ,हो सकता है वो अकेला रहना चाहे, या ये भी हो सकता है की वो कुछ भी नहीं करना चाहे .
वैसे तो यह दु: ख की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा हो सकता है. लेकिन अगर यह लंबे समय तक चलता है तो आप मनोचिक्त्सक से कन्सल्ट कर सकते है.

बच्चो को इस अवसाद से बचाने के लिए ये समझना जरूरी है की बच्चे और किशोर मृत्यु को कैसे देखते है?

क्योंकि उम्र के हर पड़ाव में बच्चे का सोचने और समझने का तरीका बहुत अलग होता है.

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1- जन्म से 2 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चो में मृत्यु की कोई समझ नहीं होती.वो सिर्फ अपने माता पिता की अनुपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं.

माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चो में रोने, प्रतिक्रियाशीलता में कमी और खाने या सोने में बदलाव जैसी प्रतिक्रिया हो सकती है.

2- 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चे मृत्यु के बारे में जानेने के लिए बहुत उत्सुक होते हैं. इस उम्र के बच्चो को मृत्यु की स्थायी स्थिति को समझने में परेशानी हो सकती है. “वे कहेंगे कि पापा चले गए हैं और एक घंटे बाद पापा के घर आने के लिए खिड़की पर प्रतीक्षा करेंगे ”

अक्सर कुछ बच्चे अपने आपको दोषी समझते हैं और मानते हैं कि वे अपने माता पिता की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं, वे “बुरे” थे इसीलिए उनके माता-पिता चले गए.

“(शायद ऐसा इसलिए होता है की जब वो अपने माता पिता के साथ थे तब कभी कभार हंसी-मज़ाक या गुस्से में माता पिता अक्सर बोलते है की ,मै आपको छोड़ कर चला जाऊंगा या जब मेरे जाने के बाद आपको कोई भी प्यार नहीं करेगा. )

ऐसे बच्चे अकसर अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर पाते. और इसी कारण उनके अंदर चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, सोने में कठिनाई, या प्रतिगमन जैसे व्यवहार पाये जाते हैं.

3- 6 वर्ष से 12 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चे मृत्यु को व्यक्ति या आत्मा के रूप में, भूत, परी या कंकाल की तरह समझ सकते हैं.
वो अक्सर मौत के विशिष्ट विवरण में रुचि रखते हैं जैसे मृत्यु के बाद शरीर का क्या होता है??
इस उम्र के बच्चे अपराधबोध, क्रोध, शर्म, चिंता, उदासी सहित कई भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं और अपनी मृत्यु के बारे में चिंता कर सकते हैं.

4- 13 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चो को ये नहीं पता होता की उन्हे इन परिस्थितियों में कैसे संभलना है.वो अक्सर परिवार के सदस्यों पर गुस्सा कर सकते हैं या आवेगी या लापरवाह व्यवहार दिखा सकते हैं, जैसे कि मादक द्रव्यों का सेवन, स्कूल में लड़ाई और यौन संकीर्णता.

कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने साल के हैं, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु कठिन और अक्सर भारी भावनाओं की एक श्रृंखला ला सकती है: सदमे, गहरी उदासी, भ्रम, चिंता और क्रोध, सब कुछ बस नाम लेने के लिए है.पर फिर भी हम खुद को और उन बच्चो को जिनहोने अपने माता पिता को खो दिया है इस कठिन समय से उबारने की कोशिश तो कर सकते हैं.

यहां मैंने बच्चे को मृत्यु और नुकसान को समझाने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं-
1-उन्हें आश्वस्त करें की उनकी गलती नहीं है-

जब किसी बच्चे के माता-पिता की असमय मृत्यु हो जाती है, तो बच्चे खुद को दोषी ठहरा सकते हैं. यह विशेष रूप से तब हो सकता है जब मृत्यु काफी अचानक हो.या बच्चे के माता पिता ने हंसी मज़ाक या गुस्से में कोई ऐसा तर्क दिया हो.
उन्हें यह आश्वस्त करना महत्वपूर्ण है कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और उनका इसमे कोई दोष नहीं है.

2-उन्हें बताए की दुखी होना ठीक है-

बच्चे का व्यवहार इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि उनके आसपास के लोग कैसे व्यवहार कर रहे हैं. अक्सर बच्चे एक प्रोटेक्टर की भूमिका निभाते हैं और वयस्कों से अपनी भावनाओं के बारे में बात नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि वयस्क परेशान हो जाएगा.
कभी कभी ऐसा भी होता है की आप उन्हें बता रहे हैं कि शोक करना ठीक है, लेकिन अपने दुःख को उनसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें लग सकता है कि उन्हें भी ‘मजबूत’ होने की आवश्यकता है.
इसलिए हर समय बच्चों को “मजबूत” होने के लिए दबाव महसूस न कराएं.
अगर बच्चे किसी से अपना दुख कह नहीं पाएंगे तो वो अंदर ही अंदर घुटते रहेंगे ,और यही घुटन एक दिन अवसाद का रूप ले लेगी.

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इसलिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप जितना हो सके पूरी तरह से शोक करें, ताकि वे आपको दुखी देख सकें – और समझें कि दुखी होना या रोना ठीक है.

3-मृत्यु के बारे में बात करते समय, सरल, स्पष्ट शब्दों का उपयोग करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें की भाषा मायने रखती है, इसलिए अपने द्वारा चुने गए शब्दों से अवगत रहें.मृत्यु के बारे में बात करते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जो सरल और प्रत्यक्ष हों. उनके माता-पिता की मृत्यु कैसे हुई, इस बारे में जितना संभव हो उतना सरल होने की कोशिश करें. लेकिन केवल एक हद तक जो आपके बच्चे की आयु और विकास के लिए उपयुक्त हो.बहुत अधिक विस्तार में जाने से एक बच्चे के दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए अपने स्पष्टीकरण को सत्य लेकिन संक्षिप्त रखें.

उदाहरण के लिए , “मुझे पता है कि आप बहुत दुखी महसूस कर रहे हैं. मैं भी दुखी हूँ. हम दोनों ही उनसे बहुत प्यार करते थे, और वह भी हमसे प्यार करते थे.”
अपने बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए मृत्यु की प्रकृति के बारे में ईमानदार रहें.

4-बच्चो को भ्रमित न करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें ‘सच्चाई छुपाने से बाद में अविश्वास पैदा हो सकता है’ क्योंकि बच्चे मौत के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं.

अभी कुछ ही समय पहले की बात है ,एक छोटी बच्ची के पिता का देहांत हो गया था,उसके पूछने पर की पापा कहाँ गए ? घरवालों ने उससे कहा की वो सोते-सोते भगवान जी के पास चले गए.आप यकीन नहीं करेंगे ‘उस छोटी बच्ची को सोने से डर लगने लगा ‘.
इसलिए “नींद में चले गए” जैसे वाक्यांशों को भ्रमित करने के बजाय वास्तविक शब्दों का उपयोग करके मौत की व्याख्या करें.
उदाहरण के लिए , आप कह सकते हैं कि मृत्यु का मतलब है कि व्यक्ति के शरीर ने काम करना बंद कर दिया है या वह व्यक्ति अब सांस नहीं ले सकता है.

एक चीज़ और मृत्यु के बारे में अपने परिवार की धार्मिक या आध्यात्मिक मान्यताओं को साझा करें.

4-उन्हें अपनी भावनाओं और आशंकाओं को साझा करने दें:

माता पिता की मृत्यु के बाद कई बच्चे अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं. वे आपको बताना चाहते हैं कि क्या हुआ, वे कहाँ थे जब उन्हें उनके माता पिता की मृत्यु के बारे में बताया गया या उस वक़्त उन्हे कैसा महसूस हुआ………
कभी-कभी बच्चे एक भय का भी अनुभव कर सकते है. वे इस बात को लेकर परेशान हो सकते हैं की अन्य लोग जो उनके करीब हैं वे भी उन्हें छोड़ देंगे या उनकी भी मृत्यु हो जाएगी.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके बच्चे कैसा महसूस कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, बातचीत जारी रखें. हीलिंग का मतलब प्रियजन के बारे में भूलना नहीं है. इसका मतलब है कि व्यक्ति को प्यार के साथ याद करना.

5-परंपराएँ और याद करने के तरीके बनाएँ:

अक्सर ऐसा होता है की जब बच्चे माता पिता से दूर हो जाते है तो कुछ विशेष अवसर जिनमे उनकी अपने माता पिता से कुछ कीमती यादें जुड़ी होती है जैसे मदर्स डे, फादर डे,वर्षगाँठ आदि बच्चो के लिए विशेष रूप से कठिन हो सकते हैं.
कोशिश करें की जितना ज्यादा संभव हो सके बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अवसर दे. यह बातचीत के माध्यम से, नाटक के माध्यम से, या ड्राइंग और पेंटिंग के माध्यम से हो सकता है.

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कम उम्र में माता-पिता को खोने से दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यही कारण है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद पारिवारिक परामर्श इतना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर नुकसान अप्रत्याशित या दर्दनाक है, जैसे कि आत्महत्या या हिंसक मौत.

NOTE: प्रत्येक परिवार का द्रष्टिकोण अलग हो सकता है.

बीवी जब जीजा, साढ़ू की दीवानी हो

लेखक- धीरज कुमार

अंजली की नईनई शादी हुई थी. उस की दिलचस्पी नए घरपरिवार में सामंजस्य बैठाने में कम थी, अपने बड़े जीजा से मोबाइल पर बात करने में ज्यादा थी. जब तक उस का जीजा मोबाइल पर ‘किस‘ नहीं देता था, वह खाती भी नहीं थी.

शादी के कुछ दिन बाद ही उस का जीजा उस से मिलने आ गया था. घर के लोगों ने यह समझा कि ससुराल में अंजली नईनई आई है, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा है. इसलिए उस का जीजा मिलने आ गया है.

उस दिन उस का पति काम पर गया था. कुछ जरूरी काम होने के कारण फैक्टरी से पहले लौट आया था, तो उस ने देखा कि उस की पत्नी अंजली अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में है.

फिर क्या था…? पतिपत्नी में काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. हलांकि उस का साढ़ू मौके की नजाकत को समझ कर वहां से खिसक चुका था. परंतु पतिपत्नी में काफी तनाव भर गया था. दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे थे.

शादी के बाद जीजा से हंसीमजाक करना तो ठीक है, परंतु एकदूसरे से प्यार करना और जिस्मानी संबंध बनाना काफी नुकसानदायक है. शादी के बाद कोई भी पति अपनी पत्नी को किसी के प्रति ऐसा लगाव पसंद नहीं करता है. वह चाहता है कि उस की पत्नी सिर्फ उसी से प्यार करे. यह पुरुष का स्वाभाविक गुण है. पुरुष ही क्यों, कोई भी पत्नी अपने पति को दूसरे के साथ रिश्ता रखना पसंद नहीं करती है. यही बातें पुरुषों पर भी लागू होती हैं.

सरला सरकारी स्कूल में पढ़ाती है. जब वह घर से निकलती है, तो उस के कान मोबाइल पर ही लगे रहते हैं. बस पकड़ने से ले कर स्कूल पहुंचने तक वह मोबाइल पर ही लगी रहती है. एक दिन सड़क पार करते हुए दुर्घटना होने से वह बालबाल बची थी.

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जब इस की जानकारी उस के पति को हुई, तो उस ने सड़क पर चलते हुए मोबाइल पर बात करने से मना किया. फिर भी इस में कोई सुधार नहीं हुआ. तब उस ने उस के मोबाइल काल डिटेल को खंगालना शुरू किया.

सरला के काल डिटेल से पता चला कि दिनभर में लगभग 2 से ढाई घंटे तक वह अपने जीजा से बात करती रहती है. आखिर इतनी बातचीत जीजा से क्यों? तभी उसे समझ में आया कि जब भी वह मोबाइल पर काल करता है, तो उस का मोबाइल बिजी बताता है.

उस के पति का शक और गहराने लगा, जब सैलरी मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट अपने दीदी और जीजा के लिए जरूर खरीदती है और अपने बहन के यहां जाने की बातें करती है. बातबात में अपने जीजा का उदाहरण देती है. इसीलिए अब पतिपत्नी के बीच खटास पैदा होने लगा था. उस का पति समझदार था, इसीलिए उस ने समझाने की कोशिश की.

जीजासाली का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है, जिस में दोनों को मीठीमीठी बातें करने की छूट रहती है. इसीलिए घर के लोग भी अनदेखा करते हैं, परंतु कुछ चालाक किस्म के जीजा अपनी सालियों के साथ जिस्मानी संबंध तक बना लेते हैं, जबकि ऐसी स्थिति रिश्ते की मर्यादा को तारतार कर देती है.

जब लड़की कुंवारी रहती है, तो कुछ बातें तो छुपाई जा सकती हैं, किंतु विवाह के बाद लड़की पराए घर की हो जाती है. वहां उस का अपना घरपरिवार होता है, वहां उस का पति होता है. उस नवविवाहिता का पूरा ध्यान अपने घरपरिवार में ही रहना चाहिए. हां, अपने जीजा से संबंध मर्यादित ही होना चाहिए. संबंध ऐसा होना चाहिए, जिस से रिश्ते में खटास नहीं आए. उस के परिवारिक जीवन को तहसनहस न करें.

कई बार देखा गया है कि लड़कियां अपनी बड़ी बहन की शादी के बाद जीजा से लगाव तो रखती हैं, परंतु यह लगाव इतना बढ़ जाता है कि अपनी शादीशुदा जिंदगी में भी आग लगा लेती हैं. ससुराल वाले भी इतना लगाव जीजा के साथ उचित नहीं समझते हैं. कभीकभी यह लगाव उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता है. नतीजतन, दोनों परिवारों के बीच झगड़े का रूप ले लेता है.

जूही को अपने जीजा से काफी लगाव हो चुका था. जब उस की शादी हो गई तो भी अपने जीजा से लगाव कम नहीं हुआ था. उन दिनों वह अपने ससुराल से बड़ी बहन के बच्चा जन्मने के समय जीजा के घर आई थी. उस के जीजा ने उसे इधरउधर खूब घुमायाफिराया. होटल, रेस्त्रां में खिलायापिलाया. उस की बड़ी बहन जब अस्पताल में भरती थी, तो जीजा से उस के जिस्मानी संबंध भी बन गए थे. एक दिन जीजा ने बहलाफुसला कर उस से मंदिर में शादी कर ली.

जब इस बात की जानकारी जूही के पति को हुई, तो काफी झगड़ा हुआ. यह मामला कोर्ट तक चला गया. इस के बाद जूही का पति अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ.

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इस प्रकार जूही ने अपनी बड़ी बहन के साथसाथ खुद की भी खुशहाल जिंदगी बरबाद कर ली. इस का आभास उसे कुछ ही दिन बाद होने लगा था, क्योंकि जो अपनापन, प्यार, दुलार अपनी बड़ी बहन से प्राप्त कर रही थी, वह कुछ ही दिन में झगड़े में बदल गए थे. हालांकि इस बात से साफ हो गया था कि उस का जीजा काफी चालाक इनसान था.

इसलिए हर लड़की को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अपने जीजा के साथ लगाव इतना ही रखना चाहिए, जिस से मनोरंजन हो सके. हंसीमजाक, ठिठोली तक तो ठीक है, इस के बाद मर्यादा का उल्लंघन करना रिश्ते को जोखिम में तो डालना है ही, साथ ही, लड़की का भविष्य भी खराब हो सकता है. लड़की कहीं की नहीं रह जाती है.

कई बार तो ऐसा होता है कि लड़की की शादी के बाद किसी प्रकार से उस के पति को पता चल जाता है, तो भी शादीशुदा जिंदगी में खटास पैदा होने लगती है. इसलिए हर हाल में लड़की को मर्यादित व्यवहार करना चाहिए.

जीजा के साथ रिश्ता अमर्यादित नहीं होना चाहिए, क्योंकि अमर्यादित रिश्ते की भनक जब परिवार के लोगों को हो जाती है, तो दोनों परिवारों में तल्खी आ जाती है. रिश्ते बदनाम हो जाते हैं सो अलग. जब कभी एकदूसरे की मदद की जरूरत पड़ती है, तो चाहते हुए भी पीछे हट जाना पड़ता है. रिश्ते में आई खटास के कारण ऐसा होता है.

दोनों परिवारों के बीच संबंध मधुर बना रहे, इस की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की ही नहीं है, बल्कि लड़के यानी जीजा की भी होनी चाहिए. जीजा को भी सोचना चाहिए कि उस की पत्नी की बहन आधी घरवाली नहीं है, बल्कि सिर्फ उस की पत्नी की बहन है. उस की इज्जत का खयाल रखना उस की भी जिम्मेदारी है.

शुरू में तो मातापिता लड़कियों को काफी बंदिशों में रखते हैं. लेकिन उस घर में बेटी का पति आता है, तो उस का चरित्र जाने बिना ही अपनी बेटी को उस के साथ घूमनेफिरने की काफी छूट दे देते हैं, जबकि ऐसी स्थिति में भी मां का दायित्व बनता है कि बेटी को यह सीख देनी चाहिए कि अपने जीजा के साथ भी संतुलित व्यवहार रखना उचित है. जीजा भी आम इनसान है. जिस प्रकार से दूसरे लोगों से बचने का प्रयास करती है, वैसे ही जीजा से भी खुद को बचाए रखना जरूरी है. यही बातें शादी के बाद भी याद रखना जरूरी है.

देखा गया है कि ऐसे हालात में कई बार झगड़े की नौबत आ जाती है. पति अपना आपा खो देता है और पत्नी से लड़ाईझगड़ा करने लगता है. कभीकभी पतिपत्नी के बीच के ये झगड़े कानूनी विवाद का रूप भी ले लेते हैं. ऐसे में बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है. लेकिन ऐसी स्थिति में पति को भी शांत रहना चाहिए और अपने परिवारिक जीवन को बचाने का प्रयास करना चाहिए.

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पत्नी को भरपूर प्यार मिले, इस का ध्यान रखना चाहिए. अकसर विवाहित औरतें अपने पति से शारीरिक जरूरतें पूरी न होने के कारण अपने जीजा से संबंध रखना उचित समझती हैं. लेकिन ऐसा सब के साथ नहीं होता है. कभीकभी जीजा की मीठीमीठी बातों के कारण भी पत्नी बहक जाती है. थोड़ा संयम से काम लिया जाए, तो ऐसी परिस्थिति को टाला जा सकता है और पुनः सुखमय जीवन जिया जा सकता है.

पति जब मां मां करे, तो क्या करें पत्नियां

नेहा की नई-नई शादी हुई है. वह विवाह के बाद जब कुछ दिन अपने मायके रहने के लिए आई तो उसे अपने पति से एक ही शिकायत थी कि वह उस का पति कम और ‘मदर्स बौय’ ज्यादा है. यह पूछने पर कि उसे ऐसा क्यों लगता है? उस का जवाब था कि वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए मां पर निर्भर है. वह उस का कोई काम करने की कोशिश करती तो वह यह कह कर टाल देता कि तुम से नहीं होगा, मां को ही करने दो.

नेहा पति के ये सब काम खुद करना चाहती है, लेकिन उस की सास उसे कोई मौका नहीं देतीं. नेहा की मां माला ने बेटी को समझाया कि चिढ़ने और किलसने से कोई लाभ नहीं है. बेकार में अपना खून जलाओगी. मांबेटे की इस दोस्ती का खुलेदिल से स्वागत करो और फिर बड़ी होशियारी से उन के बीच अपनी जगह बनाओ. नेहा की बातें सुन कर माला को अपने पुराने दिन याद आ गए. जब वे इस घर में ब्याह कर आई थीं, इस समस्या को उन्होंने भी लंबे समय तक झेला था.

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नेहा की दादी भी अजय के सभी निजी काम खुद ही करती थीं. उन का कहना था कि उन्होंने बेटे को बहुत नाजों से पाला है, उसे अपने काम खुद करने की आदत नहीं है. उन्होंने बचपन से उस की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखा है. सुबह उठ कर चाय के पहले कप से ले कर नहाने का गरम पानी, अंडरगारमैंट्स, तौलिया, प्रैस किए हुए कपड़े, नाश्ता, लंच, जूतेजुर्राबें देना सब काम वे ही करती थीं.

सहज व स्वाभाविक

पति के जीवन में मां की इतनी ज्यादा भूमिका देख कर माला को भी बुरा लगता था. वे सोचती थीं कि अब उन का विवाह हो गया है तो ये जिम्मेदारियां उन्हें निभानी चाहिए. वैसे भी विवाह के शुरुआती दिनों में एकदूसरे के छोटेछोटे काम करना असीम सुख देता है, लेकिन माला को यह सुख कभी नहीं मिला. उन्होंने सास के हाथ से पति के काम की कमान लेने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे जितनी कोशिश करतीं, सास की पकड़ और मजबूत होती चली जाती. यह समस्या कोई नई नहीं है. हां, समय के साथ इस का स्वरूप थोड़ा बदला जरूर है. विवाह से पहले अधिकतर लड़कों का पूरापूरा झुकाव मां की तरफ होता है. बचपन से ही वे मां के सान्निध्य में पलेबढ़े होते हैं और युवावस्था में भी मां ही उन की सर्वेसर्वा होती है, जिस के साथ वे अपने मन की हर बात शेयर कर लेते हैं. इसलिए मां के साथ उन का प्रेम सहज व स्वाभाविक है. सब से पहली बात कि इसे अन्यथा न लें, चिढ़ें नहीं. अगर वे दोनों नहीं समझते हैं तो आप खुश रहें और खुद को उसी माहौल में ढालने का प्रयास करें.

क्या करें पत्नी 

बहुत कम पुरुषों को अपना काम खुद करने की आदत होती है. वे अपने हर छोटेबड़े काम के लिए मां पर निर्भर होते हैं. पुरुष के जीवन में विवाह बहुत बड़ा बदलाव लाता है और इस नए जीवन में उसे कदमकदम पर अपनी चिरपरिचित सहायिका की तलाश होती है. 25-30 साल तक वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए जिस औरत पर निर्भर था, उस से एकदम से अपने को कैसे अलग कर ले? फिर पत्नी के साथ खुलने में उसे थोड़ा समय लगता है, इसलिए वह उतने अधिकार से हर काम पत्नी से नहीं कह सकता जितने अधिकार से वह अपनी मां से कह लेता है. इसलिए उसे कुछ काम पत्नी से करवाने में थोड़ी हिचकिचाहट होती है. अत: उसे थोड़ा समय दें.

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कुछ मांएं तो बेटे के विवाह के बाद उस के  निजी कार्यों से खुद को स्वयं ही अलग कर लेती हैं और यह जिम्मेदारी बहू को सौंप देती हैं. अगर आप की सास यह जिम्मेदारी एकदम से छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं  उन्हें थोड़ा समय दें. इस से उन्हें बुरा नहीं लगेगा.अधिकतर मांएं अपने बेटे पर ज्यादा हक जमाती हैं. वे किसी न किसी बहाने बेटे को अपने साथ जोड़े रखना चाहती हैं. उन के मन में डर होता है कि विवाह होते ही बेटा पत्नी का हो जाएगा और उन्हें नहीं पूछेगा. बहू को सास के मन के इस डर को खत्म करना जरूरी है. उन्हें इस बात का एहसास कराना चाहिए कि वे सब परिवार में एकदूसरे के सुखदुख के पूरक हैं.

ज्यादातर घरों में झंझट बेटे की तनख्वाह को ले कर होता है. विवाह से पहले तक बेटा अपनी सारी तनख्वाह मां के हाथ पर रखता है, लेकिन विवाह के बाद पत्नी को लगता है कि पति की कमाई पर तो सिर्फ उस का अधिकार है. यह सोच गलत है, पति की कमाई पर सिर्फ उसी का नहीं, उस की मां का भी अधिकार है. अगर सारा घर खर्च एक ही जगह से होता है तो पत्नी को इस बात पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. घर से बाहर जाने के लिए उन की इजाजत लेना या फिर उन्हें सूचित करना निहायत जरूरी है. अगर पति हर बार बाहर जाने से पहले अपनी मां को बता कर जाता है, तो इसे अन्यथा न लें.

मांबेटे के प्रेम को ले कर ज्यादा छींटाकशी या रोकटोक न करें. पति को प्यार से धीरेधीरे समझाएं. तीखे कटाक्षों और बिना वजह रोकटोक से पति कभीकभी बुरी तरह तिलमिला जाते हैं. फिर वे जानबूझ कर पत्नी को चिढ़ाने के लिए वही काम करते हैं, जो उसे बुरा लगता है.

अगर पति ज्यादा मांमां करता है तो आप भी मां की चहेती बनने का प्रयास करें. अगर वह हर बात में मां को महत्त्व देता है, तो आप भी हर काम में सास की सलाह ले सकती हैं.

विवाह के बाद भी अगर कुछ दिनों तक मां बेटे के निजी काम करना चाहती हैं तो करने दें, क्योंकि यह सब पहले उन की दिनचर्या का हिस्सा था, इस दिनचर्या को बदलने के लिए उन्हें समय दें. रोकटोक न करें.

पति की भूमिका

पति सास और बहू के बीच की कड़ी होता है, इसलिए उस की भूमिका सब से अधिक महत्त्वपूर्ण होती है. समझदार युवक वही होता है, जो हर रिश्ते के महत्त्व को समझता है और हर रिश्ते को बिना किसी को शिकायत का मौका दिए सही ढंग से निभाता है.

पति को विवाह के बाद धीरेधीरे अपने जीवन की बागडोर मां के हाथों से ले कर पत्नी के हाथों में सौंप देनी चाहिए, लेकिन यह काम प्यार और होशियारी से करना होगा. उसे खुद आगे बढ़ कर मां से कहना चाहिए कि मां तुम ने बहुत कर लिया, अब तुम्हारी आराम करने की बारी है.

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मां की भूमिका

अंदर से हर मां जानती है कि विवाह के बाद बेटे पर उस से अधिक अधिकार उस की पत्नी का होता है, इसलिए विवाह के बाद हर मां को चाहिए कि वह बेटे से जुड़ी हर निजी जिम्मेदारी बहू को सौंप दे. वह खुद उसे समझाए   उसे कब क्या करना चाहिए, उस का निजी सामान कहां रखा है. उसे खाने में क्या पसंद है, आदि. अगर विवाह के बाद बेटा मां को तनख्वाह ला कर देता है तो मां को कम से कम एक बार अवश्य कहना चाहिए कि इस पर अब उस की पत्नी का अधिकार है.

मां-बाप पर डिपेंड होना मतलब उनका हुक्म मानना

कोरोना ने सबकी जिंदगी को बदल कर रख दिया है. किसी को फाइनेंसियली , किसी को सोशलली , किसी को पोलिटिकली किसी किसी तरह से प्रभावित किया है. बात अगर युवाओं की करें तो कोरोना ने उन्हें घर बैठा दिया है. लाखों युवाओं की नौकरियां गई हैं, जिसके चलते वे घर पर बैठने पर मजबूर हो गए हैं. यहां पर जब हम घर की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब मां बाप का घर है

क्योंकि जो युवा पहले अपनी आजाद और मौजमस्ती वाली जिंदगी जीने के लिए मां बाप से दूर किराए के कमरे में रहते थे, या फिर पी जी में रहते थे या फिर दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करके रहते थे अब उन्हें मजबूरन नौकरी  पौकेट मनी कम हो जाने के चलते अपने पेरेंट्स के घर में शिफ्ट होना पड़ रहा है. और  मां बाप के घर में शिफ्ट होने का मतलब अब उन्हें अपनी तरह की जिंदगी जीने पर पाबंदियां लगने लगी हैं. जाहिर सी बात है कि जब आप अपने पेरेंट्स के घर में रहते हो तो उनके ही तौर तरीके , उनके ही नियम कानून, उनके ही रहने के सरीको को फोलो करना पड़ता है. क्योंकि अब आप ये नहीं कह सकते कि मेरा कमरा है, मेरी आजादी है, मेरे पैसे हैं , मैं चाहे जैसे खर्च करुँ , मेरा रूम है मैं  इसे जैसे मर्जी यूज़ करुं , मेरा फ्लैट है मैं जब चाहे तब आऊं , ये करने की आजादी आपकी खत्म हो जाती है. क्योंकि अगर आपको  मां बाप के पास रहना है तो सुबह उठने से लेकर रात का टाईमटेबल आपको सेट करना होगा, खाने पीने की आदते बदलनी पड़ेगी.

घर में कब तक म्यूजिक चलाना है ये देखना होगा, कौन सी चीज कही रखनी है सब देखना होगाकुल मिलाकर कहना यह है कि जब से कोरोना ने युवाओं का रोजगार छीना है तब से वे पेरेंट्स पर आश्रित हो गए हैं और मां बाप पर  आश्रित होने का मतलब उनका हर हुक्म मानना. आइए जानते हैं कि किसकिस तरह से युवाओं के लाइफस्टाइल पर प्रभाव पड़ा है और कौन कौन सी बातों पर उन्हें मां बाप का हुक्म मानना उनकी मजबूरी बन गया है

1. छिन जाएगी घूमनेफिरने की आजादी 

पहले आप जब अकेले या फिर फ्रैंड्स के साथ रूम शेयर करके रहते थे तब आप अपनी मर्जी से बेवक्त पर घूमते फिरते थे, जब मर्जी सैर सपाटे पर निकल जाते थे. अपने   फ्रैंड्स  के घर जमकर पार्टीज करते थे मूवी के नाईट शोज बुक करके खूब मजा लेते थे . क्योंकि रोकने टोकने वाला कोई जो नहीं थालेकिन अब जब आप अपने पेरेंट्स के घर गए हैं तो आपको अपनी इन आजादी पर पाबंदी लगानी पड़ेगी. क्योंकि हर समय कैमरे की तरह उनकी नजर आप पर जो है. इसलिए अब आपके पास कभी कभार ही मस्ती करने का लाइसेंस होगा

2. अब घर में डिसिप्लिन में रहना होगा 

चाहे पढ़ाई के सिलसिले में या फिर जौब के कारण आपको अपने पेरेंट्स से दूर रहना पड़ा हो. लेकिन इस कारण जब आपने खुद को अपने तरीके से जीना सीखा ही  दिया है तो उसमें अब किसी की भी दखलअंदाज़ी अच्छी नहीं लगती, फिर चाहे उसमें पेरेंट्स ही क्यों होलेकिन ये बात सिर्फ जब तक आप अकेले रह रहे थे तब तक ही अमल होती थी, लेकिन अब जब आपको पेरेंट्स के घर पर आकर रहना पड़ रहा है तो आपको अपने हिसाब से नहीं बल्कि अपने घर के हर डिसिप्लिन को मानना होगा. आपको अब सुबह जल्दी उठने से लेकर रात को जल्दी सोने तक, खानेपीने की अपनी आदतों को, अपने रूम की सफाई , चीजों को सही से अरेंज करने , वर्किंग हैबिट्स से लेकर म्यूजिक सुनने तक की सभी आदतों को बदलना होगा।  क्योंकि यहां आपका नहीं बल्कि आपके पैरेंटस का हुक्म जो मायने रखता है .  

3. गर्लफ्रैंड से मिलना होगा मुश्किल 

जाहिर सी बात है कि यंग हो तो गर्लफ्रैंड भी होगी ही. जिसके साथ आप  खूब मस्ती करते होंगे. क्योंकि अभी तक आप अपना रूम लेकर या शेयरिंग में जो रह रहे थेजब मन करा दिल बहलाने का तो झट से गर्लफ्रैंड को अपने घर या दोस्त के रूम पर बुला लिया.  उसकी एक फर्महिश पर उसे शौपिंग पर ले गएरात में घंटों तक उससे चैटिंग वीडियो कॉल का सिलसिला चलता रहा. क्योंकि नजर रखने वाला कोई जो नहीं था. लेकिन अब आपकी इस मस्ती पर कोरोना ने ब्रेक लगा दिया है. क्योंकि अब आप उसे घर बुला नहीं सकते और अगर मिलने जाना भी है तो दस बहाने लगाने पड़ेंगे।  उसमें भी अगर झूठ पकड़ा गया तो बात बिगड़ सकती है. साथ ही अगर आपका घर छोटा है तो फॅमिली में किसी किसी के साथ तो रूम शेयर करना ही पड़ेगा, जिससे अब गर्लफ्रेंड के साथ लंबी बात भी नहीं हो पाएगी. ऐसे में अगर आपको अपने पेरेंट्स के साथ रहना है तो उनके आदेश  को मानना ही पड़ेगा

4. लौंग ड्राइव पर जाना होगा टफ 

अभी तक आप अपने पेरेंट्स की गाड़ी में खुद का पैट्रोल डलवाकर खूब ऐश करते थे. और आपके पेरेंट्स ने भी आपको अकेले रहने के कारण वाहन की सुविधा दे रखी थी ताकि आपको किसी भी तरह की कोई दिक्कत हो. लेकिन अब जब आपको कोरोना से कारण अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है , जिस कारण आप मजबूर हैं अपने पेरेंट्स के साथ रहने को तो अब आप पहले जैसे आए रोज लौंग ड्राइव पर नहीं जा पाएंगेक्योंकि बार बार जाने पर आपको अपने पेरेंट्स का सामना करना ही पड़ेगा और हो सकता है कि उनके ये ताने भी सुनने पड़े कि इतना ऐश में रहना छोड़ दो. क्योंकि अब सिर्फ हमारी कमाई से ही सारी चीजें चलती हैंकौन रोज रोज तुम्हारे  लौंग ड्राइव पर जाने के लिए गाड़ी में पैट्रोल डलवाएगा. ऐसे में अब पहले की तरह रोज रोज आपके लिए  लौंग ड्राइव पर जाना आसान नहीं होगा

5. फोन पर लगातार बात करने की आदत को बदलना पड़ेगा 

आज हम सबकी हैबिट ऐसी हो गई है कि चाहे हमें फोन पर कुछ काम भी हो, लेकिन फिर भी चौबीसों घंटे हमारे हाथ में फोन रहता ही है. यहां तक कि मिड नाईट में भी हम फोन से दूरी बना कर रख नहीं पाते हैं. और जब मन करता है तब फ़ोन उठाकर कभी दूसरों का स्टेटस चेक करते रहते हैं , तो कभी फेसबुक पर नई नई पोस्ट्स डालते रहते हैं. यहां तक कि जब मन करा तब दोस्तों को भी फ़ोन मिलाने से नहीं चूकते. लेकिन ऐसा आप जब तक अकेले रह रहे थे तब तक तो चल सकता था. लेकिन अब जब आप अपने पेरेंट्स के घर आकर रहने लगे हैं तो आपको  चौबीसों घंटे फोन पर चिपके रहने की अपनी आदत को छोड़ना होगा. क्योंकि उन्हें आपकी ये आदत बर्दाशत नहीं होगी. और अगर आपने बहस की तो हो सकता है कि बात भी बिगड़ जाए. इसलिए आपको अपनी आदतों को बदलना होगा.  

6.  आपकी फ्रीडम पर लगेगा ब्रेक 

लेट नाईट तक टीवी देखना, रात को देरी से सोना और सुबह देर तक उठना, घर के बने खाने की बजाए फास्ट फूड पर डिपेंड होना, घर के कामों में दिलचस्पी नहीं लेना, दोस्तों के साथ जब मर्जी घूमने निकल जाना, पैसों की कद्र नहीं करना, आपके बोलने के तरीके से लेकर आपके रहने के स्टाइल तक आपको अपनी हैबिट्स को बदलना होगा. क्योंकि आपके पेरेंट्स आपके अनुसार खुद को नहीं ढालेंगे बल्कि आपको उनके अनुसार खुद को बदलना होगा. यानि आपका ये बदलाव आपकी आजादी पर ब्रेक लगाने का काम करेगा

7. शौपिंग पर करना होगा कंट्रोल 

अभी तक तो आपको  शौपिंग पर पानी की तरह पैसे बहाने की आदत थी. शौपिंग पर गए नहीं कि एक साथ कई कई जोड़ी कपड़े खरीद लिए. जिन्हें एक बार पहनने के बाद आप दूसरी बार पहनना पसंद नहीं करते. मॉल से नीचे कपड़े खरीदना आप अपनी शान के खिलाफ समझते हो. लेकिन अब घर पर आप पर हर समय  नजर रखने के लिए आपके पेरेंट्स हैं. इसलिए अब आपकी मनमानी नहीं चल पाएगी. अब आप पहले की तरह जब मर्जी चाहे फिर चाहे मार्केट में जाकर शौपिंग करने की बात हो या फिर ऑनलाइन शौपिंग की नहीं कर पाएंगे. क्योंकि अगर आपने कंट्रोल से बाहर शौपिंग की तो हर बार आपको उपदेश सुनने को जरूर मिलेगा.  

8. पेरेंट्स के साथ रहने के फायदे भी 

आप चाहे पढ़ाई के कारण  या फिर जौब के काऱण अगर आप पेरेंट्स से दूर रहने लग गए हैं , तो यकीनन आपने अपने तरीके से अपनी जिंदगी को जीना सीख ही लिया होगा. जैसा अकसर  यंग जनरेशन करती हैजैसे जब मर्जी सोना, जब मर्जी उठना, जहां मर्जी जाना, बाहर के खाने पर ही निर्भर रहना , पूरी रात टीवी देखना वगैरा वगैरा और जब ऐसे में कोई भी आपके लाइफस्टाइल में दखल देगा, तो आपको अपनी आजादी पर ब्रेक लगता ही दिखाई देगाभले ही वो दखल आपके पेरेंट्स ही क्यों लगा रहे हो. लेकिन ये जरूरी नहीं कि  उनकी हर  बात गलत ही हो . क्योंकि बहुत बार उनके टोकने में आपकी भलाई ही छुपी होती है. जैसे अगर वे आपको रात को जल्दी सोने और हैल्थी ईटिंग हेब्बिट्स को अपनाने की बात कहते हैं तो इससे आपकी हैल्थ पर पॉज़िटिव असर पड़ता है. और अगर आपको अपने खर्चों को कंट्रोल करने के लिए टोकते हैं तो इसमें भी आपका ही हित है, ताकि आप पैसों की अहमियत समझते हुए अपने भविषय को मजबूत बना सकें. और जब आप पेरेंट्स के साथ रहते हैं तो आप हर मुश्किल से लड़ सकते हैं. क्योंकि वो किसी भी परिस्तिथि में आपको कमजोर नहीं पड़ने देंगे. इसलिए आपको खुद में भी थोड़ा बदलाव लाना होगा

बच्चों को सिखाएं रिश्तों की अहमियत

ईंटपत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है, तभी वह घर कहलाता है. हमारे रिश्तों की बुनियाद हमारे उन अपनों से होती है, जिन से हमारा खून का रिश्ता होता है. दादादादी, ताऊ, बूआ, मौसी, मामा इत्यादि कितने ही ऐसे रिश्ते हैं, जो हमारे संबंधों के आधार हैं, जिन का साथ हमें जिंदगी भर निभाना होता है. लेकिन आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत भूलते जा रहे हैं. व्यस्त जीवनशैली और समय की कमी के कारण हम अपने नातेरिश्तेदारों से दूर होते जा रहे हैं, जिस का असर हमारे बच्चों के कोमल मन पर भी पड़ रहा है. तभी तो आज के बच्चों को रिश्तों की अहमियत के बारे में बिलकुल पता नहीं होता.

क्यों अनजान हैं बच्चे रिश्तों से

हम पैदा होते ही रिश्तों की डोर में बंध जाते हैं और तभी से रिश्तों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. लेकिन हम पीछे मुड़ कर देखें तो कितने ऐसे रिश्ते हैं, जिन्हें हम निभा पाते हैं? इस बदलते परिवेश ने हमें अपनों से दूर कर दिया है. जब हम खुद ही अपने रिश्तों से दूर हो गए हैं, तो भला हमारे बच्चे क्या समझेंगे कि रिश्ता क्या होता है. आज के बच्चों में न तो रिश्तों के बारे में जानकारी की उत्सुकता है और न ही उन्हें निभाने में.

मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों में संस्कार की नींव मातापिता द्वारा ही रखी जाती है. अगर मातापिता ही रिश्तों को तवज्जो नहीं देते हैं, तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही.

आजकल के बच्चे क्यों अनजान हैं रिश्तों के महत्त्व से? क्या हैं इस की खास वजहें? आइए, इस पर एक नजर डालें.

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न्यूक्लियर फैमिली

आज समाज में न्यूक्लियर फैमिली यानी एकल परिवार का चलन है. पहले जहां बच्चों का पालनपोषण संयुक्त परिवार में होता था, वहीं आज के बच्चों का परिवार एकल है. पहले जब बच्चों का पालनपोषण संयुक्त परिवार में होता था, तब वे दादादादी, ताऊ, चाचा, बूआ इत्यादि के साथ रहते थे और रिश्तों को समझते थे.

इस के विपरीत आज के बच्चे अकेले रहते हैं. अकेले रहने के कारण वे अपने खून के रिश्तों को भी नहीं समझते और जब बच्चा खून के रिश्तों को समझेगा ही नहीं, तो उस में रिश्तों के प्रति सम्मान और अपनापन कहां से आएगा? अपनी परंपराओं का ज्ञान तो उन्हें न के बराबर होता है, क्योंकि आज के अभिभावकों के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति से उन्हें अवगत करा सकें. याद करें वे दिन, जब हम पिता के भाई को चाचा और पिता की बहन को बूआ कहते थे. परंतु आज के बच्चों के पास इन सब के लिए बस अंकल और आंटी का संबोधन ही काफी है, क्योंकि हम ने उन्हें यही सिखाया है.

समय की कमी

आज हमारी जीवनशैली इतनी व्यस्त हो गई है कि व्यक्ति के पास खुद के लिए समय नहीं है. ऐसे में रिश्ते निभाने और बच्चों को उन की अहमियत बताने का समय किस के पास है? आज इंसान समय के साथ होड़ लगाने के लिए अंधाधुंध भाग रहा है. इसी रफ्तार में इंसान अपने रिश्तों को अनदेखा करता जा रहा है. इसी अनदेखी की प्रवृत्ति के कारण उस के नजदीकी रिश्ते धीरेधीरे खत्म होते जा रहे हैं.

हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम अपने रिश्तेदारों से मिल सकें. ऐसे में हमारे बच्चे रिश्तों की अहमियत क्या समझेंगे. उन्हें तो लगता है, बस यही हमारा परिवार है. बच्चों का कोमल मन तो वही सीखता है, जो वे देखते हैं.

रिश्तों में दिखावा

आज जमाना दिखावे का हो गया है. इसी दिखावे के कारण सारे रिश्ते, परंपराएं एक तरफ हो गई हैं. आज का लाइफस्टाइल हाईटैक हो गया है. हर चीज में दिखावा व कंपीटिशन हावी है, जैसे अगर फलां रिश्तेदार के पास गाड़ी है और हमारे पास नहीं, तो कैसे भी कर के हमारी कोशिश होती है कि हम गाड़ी खरीद लें ताकि हम भी गाड़ी वाले कहलवाएं. अभिभावकों के ऐसे आचरण का प्रभाव बच्चों पर काफी पड़ता है. वे भी बड़ों की नकल करते हैं और दूसरे बच्चों से कंपीटिशन करते हैं. जहां रिश्तों में कंपीटिशन और दिखावा आ जाता है वहां रिश्तों की स्वाभाविकता खत्म हो जाती है.

अपने में सिमटते रिश्ते

आज मैं और मेरे की भावना इतनी प्रबल हो गई है कि व्यक्ति को सिर्फ अपनी पत्नी और बच्चे ही दिखाई देते हैं. दूसरे रिश्तों को वे उन के बाद ही स्थान देते हैं. अपने मांबाप के द्वारा अपनेपन की इस भावना को बच्चे ऐसे अपने मन में बैठा लेते हैं कि उन्हें केवल खुद से मतलब होता है.

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यही बात वे मातापिता पर भी लागू करते हैं और सिर्फ अपनी जरूरतों के पूरी होने तक ही उन्हें उन की जरूरत होती है. मांबाप के द्वारा बच्चा यही सीखता है कि यही उस का परिवार है बाकी लोग दूसरे लोग हैं. ‘मैं’ और ‘अपने’ की इसी भावना ने आज रिश्तेनातों में और भी खटास पैदा कर दी है. ऐसे में बच्चे रिश्तों की अहमियत को क्या समझेंगे. हम जैसा बोएंगे वैसा ही तो काटेंगे.

आज जमाना कितना भी आगे बढ़ जाए, हम रिश्तों के महत्त्व को नकार नहीं सकते. आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमें रिश्तों के महत्त्व को बिलकुल नहीं भूलना चाहिए. हमें अपने बच्चों को पारिवारिक परंपराओं और रिश्तों के महत्त्व को जरूर समझाना चाहिए. बच्चों को यह बताना बहुत जरूरी है कि चाचाचाची, दादादादी, नानानानी से उन का क्या रिश्ता है.

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