पुरुषों को ही नहीं, महिलाओं को भी बदलने की जरुरत है- निर्देशक राहुल चित्तेला

प्रोड्यूसर मीरा नायर के साथ क्रिएटिव और प्रोड्यूसिंग पार्टनर के रूप में काम कर कर चुके निर्देशक राहुल चित्तेला एक इंडिपेंडेंट राइटर, प्रोड्यूसर है. वे फिल्म ‘आजाद’ के राइटर और डायरेक्टर है, जिसे पहली बार किसी भारतीय फिल्म को ‘प्रेस्टीजियस प्रेस फ्रीडम डे फोरम’ पर UNESCO द्वारा स्क्रीनिंग की गई थी, इस फिल्म ने कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीते है. राहुल हमेशा रियल कहनियों और रिलेटेबल कहानियों को कहना पसंद करते है. फिल्म ‘गुलमोहर’ भी ऐसी ही एक कहानी है, जो आज की पारिवारिक परिस्थिति को बयां करती है. जिसे उन्होंने बहुत ही खुबसूरत तरीके से दर्शकों तक पहुँचाने की कोशिश की है. ये फिल्म 3 मार्च को ओटीटी प्लेटफॉर्म डिजनी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज होने वाली है. उन्होंने इस फिल्म की मेकिंग और राइटिंग पर बात की और बताया कि ये फिल्म सभी उम्र के लिए है, जिसे सभी एन्जॉय कर सकते है.

कहानी 3 पीढ़ी की

राहुल कहते है कि पिछले 3 साल पहले मैं जब पहली बार पिता बना, उस वक्त इस कांसेप्ट की शुरुआत हुई थी. परिवार और उनके संबंधों को लेकर लिखना शुरू किया था, धीरे-धीरे चरित्र सामने आते गए और मैंने उसे कहानी में पिरोता गया, लेकिन बेसिक बात मैंने अपने मन में रखा था कि इसमें 3 जेनरेशन को दिखाया जायेगा. इसमें ये 3 जेनरेशन आज के समय को कैसे देखते है, उनमे जो बदलाव दिख रहा है, इसका अर्थ सभी के लिए क्या है आदि कई प्रसंगों को बयां करती हुई है. ऐसी कहानिया केवल एक परिवार की नहीं है, बल्कि कई परिवारों की कहानिया है. जो मैंने ऑब्जरवेशन के बाद लिखा है. हमेशा से मुझे हर उम्र के लोगों से बात करना पसंद है. फिल्म के दौरान अभिनेत्री शर्मीला टैगोर के साथ बात करना बहुत अच्छा लगा, उनकी बातें मुझे यंग फील करवाती है. मनोज बाजपेयी से बात करने पर परिवार पर उनकी धारणा को देखा और इसे जानने की उत्सुकता हुई. सभी पीढ़ी के कलाकारों के साथ काम करना मुझे बहुत अच्छा लगा.

 

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बदलना है महिलाओं को भी

महिलाओं में आगे बढ़ने की चाहत में हो रही समस्या के बारें में राहुल कहते है कि इसमें समाज में सभी की नजरिये को बदलने की जरुरत है. इसमें सिर्फ पुरुषों को ही नहीं, महिलाओं को भी बदलने की जरुरत है. इसमें उन्हें समझना है कि महिलाएं न तो पुरुषों से कम है और न ही अधिक है. दोनों को समान दर्जा प्राप्त है. इसी सोच को मैं अपने अंदर रखता हूँ. मैं ये मानता हूँ कि औरते पुरुषों से अधिक अकलमंद होती है, लेकिन पुरुषसत्तात्मक समाज ने पुरुषों को ही सबसे ऊपर रखा है. पुरुषों को ब्रेड अर्नर का दर्जा है, वे बाहर जाकर कमाएंगे. महिलाएं घर सम्हालेगी. बच्चे से पेरेंट्स के बारें में पूछे जाने पर वे भी पिता को ऑफिस और माँ को किचन में देखते है.

 

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आसपास है स्ट्रोंग महिलाएं

अनुभवी मीरा नायर के साथ काम करने के बाद राहुल ने कई चीजे फिल्मों से सम्बंधित सीखा है. वे कहते है कि मैं मीरा नायर के साथ काम कर खुद को लकी मानता हूँ, इस कहानी की लेखक अर्पिता भी है, जो न्यूयार्क में रहती है. इस फिल्म के साथ जुड़े अधिकतर महिलाएं है. पहले मैंने मीरा नायर जैसी महिला के साथ काम किया है और मेरी पत्नी मैथिलि भी एक स्ट्रोंग महिला है.

मेरी माँ विजया भी एक मजबूत महिला है, उन्होंने बाहर जाकर काम नहीं किया और ये जरुरी भी नहीं होता, पर उनकी सोच में बदलाव रहा. उन्होंने घर में सेंस ऑफ़ इक्वलिटी को हमेशा बनाये रखा. मैं खुद लिखता हूँ, प्रोड्यूस करता हूँ और निर्देशन भी करता हूँ. इसके फिल्म के लिए 2 से 3 साल लगे है, इसलिए जो कहानी मुझे उत्साहित करें, उसे करता हूँ. आगे मैं मनोहर कहानियों के लिखने पर एक शो बना रहा हूँ.

महिलाओं के लिए खास मैसेज

मेरा सभी महिलाओं से कहना है कि सेंस ऑफ़ इक्वलिटी के इमोशन के लिए रुके नहीं. कोई इसे आपको दिला नहीं सकता, इसे आपको खुद के लिए क्रिएट करना पड़ेगा. उसे पहले दिमाग से लाना पड़ता है, ये वुमन्स वर्ल्ड है और वे ही इस समाज और परिवार को बनाने वाली है. बच्चे के पीछे काम को न छोड़े. बच्चों को छोड़कर काम करने पर मन में अपराध बोध न लायें. साहिर मेरा बेटा है और वह जानता है कि मेरे माता और पिता दोनों ही काम करते है. इसके अलावा घर पर रहने वाली महिलाएं भी काम करती है, खाना पकाना घर की देखभाल करना भी एक काम है. इसलिए उन्हें रेस्पेक्ट ऑफ़ इक्वलिटी सभी को देना बहुतजरुरी है.

कुछ बातें सह-कलाकारों की फिल्म गुलमोहर में काव्या सेठ और उत्सवी झा ने भी भूमिका निभाई है, उनसे हुई बातचीत कुछ इस प्रकार है,

काव्या सेठ

दिल्ली की काव्या सेठ जो अब मुंबई में रहती है और एक एक्टर, डांसर और कोरियोग्राफर है. इस फिल्म में दिव्या की भूमिका निभा रही है. इससे पहले भी कावेरी ने कई फिल्मों में काम किया है, लेकिन इस फिल्म में कावेरी को मौका मिलना एक बड़ी बात है, क्योंकि इस फिल्म की भूमिका उनसे काफी मेल खाती है. वह कहती है कि इस फिल्म से मुझे सीख मिली है कि कई बार सभी को खुश रखने की चाहत में व्यक्ति अपनी ख़ुशी को भूल जाता है, लेकिन फिल्म में दिव्या की जो चाहत पति के साथ रहते हुए है, उसे वह कर पाती है. इस फिल्म  में सबके साथ एक टीम में काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा है. वह फिल्म में भी दिखेगा. शर्मीला टैगोर और मनोज बाजपेयी के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. उन दोनों ने सच में एक परिवार बना लिया था. शर्मीला के एक इंटेंस सीन को देखकर मैं इतनी प्रभावित हुई कि मैं अपने पैर हिलाने लगी, लेकिन शर्मीला ने देखा और मुझे इसे करने से मना किया. इससे मुझे अपने परिवार की याद आई. ये सारी यादें अब मुझे अच्छा अनुभव करवा रही है.

उत्सवी झा

मुंबई की उत्सवी झा फिल्म ‘गुलमोहर’ में अमृता बत्रा की भूमिका निभाई है. रियाल लाइफ में वह एक सिंगर और सोंग राइटर है, उन्होंने एक्टिंग कभी नहीं की है और कभी सोचा भी नहीं था. ये उनकी डेब्यू फिल्म है. इस फिल्म के ऑफर आने पर पहले उन्हें विश्वास नहीं हुआ, कॉन्ट्रैक्ट साईन करने के बाद उन्हें लगा कि वह एक्टिंग करने वाली है. वह कहती है कि मेरे परिवार के अलावा किसी को भी मेरी एक्टिंग के बारें में पता नहीं था. परिवार और दोस्तों ने मेरे इस काम में बहुत सहयोग दिया है. इस फिल्म में काम करना बहुत अच्छा लगा, क्योंकि मैं एक बड़े परिवार में रहती हूँ और इसमें भी मुझे एक बड़ा परिवार मिला है.

ये एक फॅमिली ड्रामा है, जिसमे रिश्तों और उनके संबंधों को दिखाने की कोशिश की गई है और आज हर वर्ग और उम्र के व्यक्ति खुद से इसे रिलेट कर सकेंगे. मैं रियल लाइफ में भी मैं अमृता की तरह ही हूँ, जिसे जो करना है वह अवश्य कर लेती है. इसके अलवा इस फिल्म में ये भी मेसेज है कि परिवार से अनबन कितनी भी हो, लेकिन मुश्किल वक्त में वे हमेशा साथ देते है और परिवार का महत्व हर किसी को देने की जरुरत है.

अंतर्द्वंद्व: आखिर क्यूं सीमा एक पिंजरे में कैद थी- भाग 1

सीमाऔर सतीश ने ज्यों ही औफिस में प्रवेश किया, वे उस की साजसज्जा देख कर हैरान रह गए. एक वकील का औफिस और इतना खूबसूरत. इस की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. सारे दिन अपराधियों की संगति और ?ाठफरेबों का सहारा ले कर रोजीरोटी कमाने वाले एक वकील का औफिस इतना कलात्मक भी हो सकता है, सचमुच हतप्रभ कर देने वाली बात थी.

औफिस में सभी दीवारों पर सुंदर कलात्मक कलाकृतियां सुसज्जित थीं. सामने वाली दीवार पर एक बड़े शीशे के पीछे बहुत ही सुंदर मौडर्न आर्ट टगी थी. औफिस कंप्यूटर, एअरकंडीशनर आदि आधुनिक उपकरणों से भी परिपूर्र्ण था. कुल मिला कर औफिस का वातावरण बहुत ही खुशनुमा और जिंदादिल था.

सीमा और सतीश औफिस की खूबसूरती में ही डूबे हुए थे कि तभी रमेशजी ने प्रवेश किया. उन की उम्र लगभग 60-65 वर्ष की रही होगी परंतु चेहरे और कपड़ों से वे 50-55 के ही नजर आ रहे थे. काली पैंट और सफेद शर्ट में बहुत ही सभ्य, आकर्षक और खूबसूरत लग रहे थे. उन के आकर्षक व्यक्तित्व को देख कर सीमा और सतीश पहली नजर में ही उन से प्रभावित हुए बिना न रह सके.

‘‘कमाल है आप ने अपने औफिस की सजावट बहुत खूबसूरती से कर रखी है. एक वकील से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी,’’ सतीश ने हंसते हुए कहा. हालांकि उस का यह रमेशजी से पहला ही परिचय था फिर भी अपने बातूनी स्वभाव और रमेशजी के हमउम्र होने का उस ने यहां पूरापूरा फायदा उठाया और अपने मन की बात उन से प्रथम मुलाकात और प्रथम वार्त्तालाप में ही कह दी.

सतीश की बात सुन कर सीमा भी मुसकराई और बोली, ‘‘हांहां बहुत ही सुंदर पेंटिंग्स हैं. काफी कीमती भी होंगी. आप ये कहां से लाए?’’

सीमा की बात सुन कर रमेशजी मुसकराने लगे और बोले, ‘‘अरे पेंटिंग्स तो मुफ्त की ही हैं क्योंकि इन्हें बनाने वाला कलाकार अपना ही है.’’

‘‘अरे वाह इतनी सुंदर पेंटिंग्स और वे भी मुफ्त में. माना कि कलाकार अपना ही है फिर भी उस की कला की तो दाद देनी ही पड़ेगी. जब कभी उन से मिलेंगे तो उन की प्रशंसा अवश्य करेंगे,’’ सतीश ने कहा.

 

सतीश की बात सुन कर रमेशजी फिर मुसकराए और बोले, ‘‘फिर देरी

किस बात की. कीजिए प्रशंसा क्योंकि वह अदना सा कलाकार आप के सामने ही है.

सतीश और सीमा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा यानी ये सब पेंटिंग्स वकील बाबू ने बनाई हैं.

‘‘अचंभे की बात है साहब. फिर तो आप को वकालत छोड़ कर यही काम करना चाहिए था. कहां यह ?ाठफरेब का धंधा और कहां एक कलाकार का जीवन. दोनों का कोई मेल ही नहीं है.’’

रमेशजी को भी सतीश की बातें भा रही थीं शायद. कोई बहुत दिनों बाद उन से इतनी आत्मीयता से बात कर रहा था वरना लोग तो बहुत आते थे परंतु अपने मतलब की बात कर चले जाते थे. उन के निजी जीवन और उन की पसंदनापसंद का खयाल किसी को भी नहीं था.

वे बोले, ‘‘सतीशजी यह पेट बड़ा पापी होता है और कभीकभी पेट भरने के लिए अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं का गला घोंटना पड़ता है. आप तो जानते ही हैं कि कलाकारों को अकसर अपना पेट काटना पड़ता है. अत: अपनी तथा अपने परिवार की गुजरबसर करने के लिए मु?ो पेंटिंग्स बनाना छोड़ कर वकालत का काम शुरू करना पड़ा. फिर भी मैं समय मिलने पर अपना यह शौक पूरा करता हूं.’’

‘‘मेरी पत्नी सीमा भी बहुत सुंदर पेंटिंग्स बनाती है,’’ सतीश ने कहा.

‘‘अब कहां बनाती हूं. मैं ने तो पेंटिंग्स बनाना कब का छोड़ दिया है,’’ सीमा ने सतीश की बात को काटते हुए कहा. उसे सतीश का इस तरह किसी गैर के सामने अपनी पत्नी की प्रशंसा करना कुछ सुखद पर अजीब सा लग रहा था. सतीश सीमा के मामले में ज्यादा पजैसिव हैं.

‘‘क्यों छोड़ दिया. यह तो अच्छा शौक है. आप को पेंटिंग्स बनाना जारी रखना चाहिए था,’’ रमेशजी ने सीमा की ओर मुंह कर के कहा.

सीमा को उन के पूछने का ढंग बड़ा ही अच्छा लगा. फिर उस ने उत्तर दिया, ‘‘गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते स्त्रियों को अपनी शौक ताक पर रखने ही पड़ते हैं. यही मेरे साथ हुआ. बच्चों का पालनपोषण करने में इतनी मशगूल हो गई कि मु?ो स्वयं की कोई खबर ही नहीं रही.’’

‘‘अब तो आप के बच्चे बड़े हो गए होंगे,’’ रमेशजी ने एक नजर सीमा पर डालते हुए कहा.

हालांकि सीमा उम्र में अधिक बड़ी नजर नहीं आ रही थी फिर भी सतीशजी की उम्र को देख कर उस की उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह भी लगभग 50 के आसपास तो अवश्य होगी.

‘‘हां बच्चे तो काफी बड़े हो गए हैं और दोनों ही होस्टल में रहते हैं. इंजीनियरिंग कर रहे हैं. कभीकभार ही घर आते हैं. मगर अब पेंटिंग्स बनाने की इच्छा नहीं होती. मु?ो यह भी लगता है अब मैं कभी पेंटिंग्स नहीं बना पाऊंगी. वैसे भी मैं कोई महान कलाकार तो हूं नहीं. यों ही बस थोड़ेबहुत रंग भर लेती थी कैनवास पर,’’ सीमा ने रमेश बाबू से कहा जैसे चाहती हो कि वे उसे फिर से पेंटिंग्स बनाने का आग्रह न करें.

‘‘अजी साहब बहुत सुंदर पेंटिग्स बनाती है. मैं तो इसे कहकह कर थक गया. शायद आप के कहने से ही यह मान जाए. आप एक दिन हमारे घर आइए और देखिए कि इस का हाथ कितना सधा हुआ है,’’ सतीश का यह बदला सा व्यवहार सीमा को नया लग रहा था. क्या कोविड-19 के बाद अपनों की फिक्र अब ज्यादा होने लगी है?

‘‘अवश्य आऊंगा,’’ रमेशजी ने मुसकराते हुए कहा और फिर वे सतीशजी की फाइल देखने में व्यस्त हो गए.

घर पहुंच कर सतीश और सीमा अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और भूल ही गए कि वे रमेशजी को घर आने का न्योता दे आए हैं.

संयोग की बात थी कि एक दिन बाद ही रमेशजी को उन्हीं के घर की तरफ एक और क्लाइंट से मिलने आना था सो आतेआते उन्होंने सोचा क्यों न फिर ना एक मुलाकात सतीश और सीमाजी से भी कर ली जाए. वे दोनों ही उन के मन को भा गए थे. अत: उन्होंने सतीशजी को फोन मिलाया.

संयोग से सतीशजी घर पर ही थे और उन्होंने रमेशजी के घर आने का स्वागत किया.

‘‘आप ने क्याक्या पेंटिंग्स बनाई हैं क्या मु?ो दिखाएंगे?’’ रमेशजी ने सीमा से कहा.

‘‘कुछ खास नहीं. इन की तो आदत मेरी प्रशंसा नहीं करने की है पर आप की पेंटिंग्स देख कर कुछ बदल से गए हैं,’’ सीमा ने सकुचाते हुए कहा.

काव्या को मोहरा बनाएगी माया, सच सुनते ही फूटा अनुपमा का गुस्सा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा‘ इन दिनों काफी चर्चा में बना हुआ है. शो ने एक बार फिर से टीआरपी लिस्ट में अपने नंबर 1 की जगह हासिल कर ली है, साथ ही दर्शकों का भी खूब दिल जीत रहा है. लेकिन इन दिनों ‘अनुपमा‘ में कई एंगल एक साथ दिखाए जा रहे हैं. जहां एक तरफ काव्या और वनराज की शादी टूटने की कगार पर है तो वहीं माया, अनुज से प्यार कर बैठी है और उसे पाने का मन बना चुकी है. बीते दिन भी रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में दिखाया गया कि माया काव्या के सामने जाहिर करती है कि वह अनुज से प्यार करती है. यह बात काव्या को जरा भी पसंद नहीं आती और वह अनुपमा के गले लगकर रोने लगती है. लेकिन रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में आने वाले ट्विस्ट और टर्न्स यहीं पर खत्म नहीं होते हैं.

 

माया को नजरअंदाज करेगा अनुज

अनुपमा‘ में दिखाया जाएगा कि अनुपमा के सामने छोटी तो माया को नजरअंदाज करेगी ही, वहीं जब अनुज भी ऑफिस से लौटेगा तो वह भी उसे जरा भी भाव नहीं देगा. अनुज की ये बातें देखकर माया उससे पूछ बैठेगी कि क्या वह उसको नजरअंदाज कर रहा है. इसपर अनुज कहेगा कि मेरी कोई गलती नहीं थी और मैं अपने काम में बिजी हूं. माया इसपर अनुज को ताना मारेगी कि गलती नहीं थी तो तुम अनुपमा को सच क्यों नहीं बता देते.

 

अनुपमा संग रोमांस में चूर होगा अनुज

रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में दर्शकों को अनुपमा और अनुज का रोमांस भी देखने को मिलेगा. दरअसल, अनुज अपनी शर्ट लेकर अनुपमा के पास आएगा और उससे बटन टांकने के लिए कहेगा. अनुपमा उसे बताएगी कि वह बिजी है, इसपर माया बोल पड़ेगी कि वह शर्ट में बटन टाक देगी. लेकिन दोनों ही माया को मुंह पर मना कर देंगे. इतना ही नहीं, बटन टाकते वक्त अनुपमा और अनुज रोमांस में भी चूर होंगे, जिससे माया को जलन होगी.

अनुपमा की खातिर अपने करियर को कुर्बान करेगी काव्या

माया की बातों से काव्या पहले ही परेशान रहती है और वह अनुपमा को सच बताने का मौका देखती है. शिवरात्री की पूजा में माया काव्या को बताती है कि उसने भी व्रत रखता है, साथ ही वह उसे असाइनमेंट दिलाने का भी लालच देती है. लेकिन माना जा रहा है कि अपने करियर को कुर्बान करके इस बार काव्या अनुपमा का घर बचाएगी और सबके सामने माया नकाब उतार देगी.

 

शिवरात्री में माया को चांटा मारेगी अनुपमा

‘अनुपमा’ को लेकर यह भी खबर आ रही है कि माया का सच पता लगने के बाद अनुपमा उसे सबके सामने थप्पड़ मारेगी, जिस तरह उसने काव्या को तमाचा जड़ा था. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि माया का सच जानने के बाद अनुपमा का क्या रिएक्शन होगा.

जो भी प्रकृति दे दे – भाग 1

कभीकभी निशा को ऐसा लगता है कि शायद वही पागल है जिसे रिश्तों को निभाने का शौक है जबकि हर कोई रिश्ते को झटक कर अलग हट जाता है. उस का मानना है कि किसी भी रिश्ते को बनाने में सदियों का समय लग जाता है और तोड़ने में एक पल भी नहीं लगता. जिस तरह विकास ने उस के अपने संबंधों को सिरे से नकार दिया है वह भी क्यों नहीं आपसी संबंधों को झटक कर अलग हट जाती.

निशा को तरस आता है स्वयं पर कि प्रकृति ने उस की ही रचना ऐसी क्यों कर दी जो उस के आसपास से मेल नहीं खाती. वह भी दूसरों की तरह बहाव में क्यों नहीं बह पाती कि जीवन आसान हो जाए.

‘‘क्या बात है निशा, आज घर नहीं चलना है क्या?’’ सोम के प्रश्न ने निशा को चौंकाया भी और जगाया भी. गरदन हिला कर उठ बैठी निशा.

‘‘मुझे कुछ देर लगेगी सोम, आप जाइए.’’

‘‘हां, तुम्हें डाक्टर द्वारा लगाई पेट पर की थैली बदलनी है न, तो जाओ, बदलो. मुझे अभी थोड़ा काम है. साथसाथ ही निकलते हैं,’’ सोम उस का कंधा थपक कर चले गए.

कुछ देर बाद दोनों साथ निकले तो निशा की खामोशी को तोड़ने के लिए सोम कहने लगे, ‘‘निशा, यह तो किसी के साथ भी हो सकता है. शरीर में उपजी किसी भी बीमारी पर इनसान का कोई बस तो नहीं है न, यह तो विज्ञान की बड़ी कृपा है जो तुम जिंदा हो और इस समय मेरे साथ हो…’’

‘‘यह जीना भी किस काम का है, सोम?’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो. अरे, जीवन तो कुदरत की अमूल्य भेंट है और जब तक हो सके इस से प्यार करो. तरस मत खाओ खुद पर…तुम अपने को देखो, बीमार हुई भी तो इलाज करा पाने में तुम सक्षम थीं. एक वह भी तो हैं जो बिना इलाज ही मर जाते हैं… कम से कम तुम उन से तो अच्छी हो न.’’

सोम की बातों का गहरा अर्थ अकसर निशा को जीवन की ओर मोड़ देता है.

‘‘आज लगता है किसी और ही चिंता में हो.’’

सोम ने पूछा तो सहसा निशा बोल पड़ी, ‘‘मौत को बेहद करीब से देखा है इसलिए जीवन यों खो देना अब मूर्खता लगता है. मेरे दोनों भाई आपस में बात नहीं करते. अनिमा से उन्हें समझाने को कहा तो उस ने बुरी तरह झिड़क दिया. वह कहती है कि सड़े हुए रिश्तों में से मात्र बदबू निकलती है. शरीर का जो हिस्सा सड़ जाए उसे तो भी काट दिया जाता है न. सोम, क्या इतना आसान है नजदीकी रिश्तों को काट कर फेंक देना?

‘‘विकास मुझ से मिलता नहीं और न ही मेरे बेटे को मुझ से मिलने देता है, तो भी वह मेरा बेटा है. इस सच से तो कोई इनकार नहीं कर सकता न कि मेरे बच्चे में मेरा खून है और वह मेरे ही शरीर से उपजा है. तो कैसे मैं अपना रिश्ता काट दूं. क्या इतना आसान है रिश्ता काट देना…वह मेरे सामने से निकल जाए और मुझे पहचाने भी न तो क्या हाल होगा मेरा, आप जानते हैं न…’’

‘‘मैं जानता हूं निशा, इसलिए यही चाहता हूं कि वह कभी तुम्हारे सामने से न गुजरे. मुझे डर है, वह तुम्हें शायद न पहचाने…तुम सह न पाओ इस से तो अच्छा है न कि वह तुम्हारे सामने कभी न आए…और इसी को कहते हैं सड़ा हुआ रिश्ता सिर्फ बदबू देता है, जो तुम्हें तड़पा दे, तुम्हें रुला दे वह खुशबू तो नहीं है न…गलत क्या कहा अनिमा ने, जरा सोचो. क्यों उस रास्ते से गुजरा जाए जहां से मात्र पीड़ा ही मिलने की आशा हो.’’

चुप रह गई निशा. शब्दों के माहिर सोम नपीतुली भाषा में उसे बता गए थे कि उस का बेटा मनु शायद अब उसे न पहचाने. जब निशा ने विकास का घर छोड़ा था तब मनु 2 साल का था. साल भर का ही था मनु जब उस के शरीर में रोग उभर आया था, मल त्यागने में रक्तस्राव होने लगता था. पूरी जांच कराने पर यह सच सामने आया था कि मलाशय का काफी भाग सड़ गया है.

आपरेशन हुआ, वह बच तो गई मगर कलौस्टोमी का सहारा लेना पड़ा. एक कृत्रिम रास्ता उस के पेट से निकाला गया जिस से मल बाहर आ सके और प्राकृतिक रास्ता, जख्म पूरी तरह भर जाने तक के लिए बंद कर दिया गया. जख्म पूरी तरह कब तक भरेगा, वह प्राकृतिक रास्ते से मल कब त्याग सकेगी, इस की कोई भी समय सीमा नहीं थी.

अब एक पेटी उस के पेट पर सदा के लिए बंध गई थी जिस के सहारे एक थैली में थोड़ाथोड़ा मल हर समय भरता रहता. दिन में 2-3 बार वह थैली बदल लेती.

आपरेशन के समय गर्भाशय भी सड़ा पाया गया था जिस का निकालना आवश्यक था. एक ही झटके में निशा आधीअधूरी औरत रह गई थी. कल तक वह एक बसीबसाई गृहस्थी की मालकिन थी जो आज घर में पड़ी बेकार वस्तु बन गई थी.

आपरेशन के 4 महीने भी नहीं बीते थे कि विकास और उस की मां का व्यवहार बदलने लगा था. शायद उस का आधाअधूरा शरीर उन की सहनशीलता से परे था. परिवार आगे नहीं बढ़ पाएगा, एक कारण यह भी था विकास की मां की नाराजगी का.

‘‘विकास की उम्र के लड़के तो अभी कुंआरे घूम रहे हैं और मेरी बहू ने तो शादी के 2 साल बाद ही सुख के सारे द्वार बंद कर दिए…मेरे बेटे का तो सत्यानाश हो गया. किस जन्म का बदला लिया है निशा ने हम से…’’

अपनी सास के शब्दों पर निशा हैरान रह जाती थी. उस ने क्या बदला लेना था, वह तो खुद मौत के मुंह से निकल कर आई थी. क्या निशा ने चाहा था कि वह आधीअधूरी रह जाए और उस के शरीर के साथ यह थैली सदा के लिए लग जाए. उस का रसोई में जाना भी नकार दिया था विकास ने, यह कह कर कि मां को घिन आती है तुम्हारे हाथ से… और मुझे भी.

थैली उस के शरीर पर थी तो क्या वह अछूत हो गई थी. मल तो हर पल हर मनुष्य के शरीर में होता है, तो क्या सब अछूत हैं? थैली तो उस का शरीर ही है अब, उसी के सहारे तो वह जी रही है. अनपढ़ इनसान की भाषा बोलने लग गया था विकास भी.

जीवन भर के लिए विकास ने जो हाथ पकड़ा था वह मुसीबत का जरा सा आवेग भी सह नहीं पाया था. उसी के सामने मां उस के दूसरे विवाह की चर्चा करने लगी थी.

एक दिन उस के सामने कागज बिछा दिए थे विकास ने. सोम भी पास ही थे. एक सोम ही थे जो विकास को समझाना चाहते थे.

‘‘रहने दीजिए सोम, हमारे रिश्ते में अब सुधार के कोई आसार नजर नहीं आते. मेरा क्या भरोसा कब मरूं या कब बीमारी से नाता छूटे… विकास को क्यों परेशान करूं. वह क्यों मेरी मौत का इंतजार करें. आप बारबार विकास पर जोर मत डालें.’’

और कागज के उस टुकड़े पर उस का उम्र भर का नाता समाप्त हो गया था.

‘‘अब क्या सोच रही हो निशा? कल डाक्टर के पास जाना है.’’

‘‘कब तक मेरी चिंता करते रहेंगे?’’

‘‘जब तक तुम अच्छी नहीं हो जातीं. दोस्त हूं इसलिए तुम्हारे सुखद जीवन तक या श्मशान तक जो भी निश्चित हो, अंतिम समय तक मैं तुम्हारा साथ छोड़ना नहीं चाहता.’’

‘‘जानते हैं न, विकास क्याक्या कहता है मुझे आप के बारे में. कल भी फोन पर धमका रहा था.’’

‘‘उस का क्या है, वह तो बेचारा है. जो स्वयं नहीं जानता कि उसे क्या चाहिए. दूसरी शादी कर ली है…और अब तो दूसरी संतान भी आने वाली है… अब तुम पर उस का भला क्या अधिकार है जो तलाक के बाद भी तुम्हारी चिंता है उसे. मजे की बात तो यह है कि तुम्हारा स्वस्थ हो जाना उस के गले से नीचे नहीं उतर रहा है.

part-2

‘‘सच पूछो तो मुझे विकास पर तरस आने लगा है. मैं ने तो अपना सब एक हादसे में खो दिया. जिसे कुदरत की मार समझ मैं ने समझौता कर लिया लेकिन विकास ने तो अपने हाथों से अपना घर जला लिया.’’

कहतेकहते न जाने कितना कुछ कह गए सोम. अपना सबकुछ खो देने के बाद जीवन के नए ही अर्थ उन के सामने भी चले आए हैं.

दूसरे दिन जांच में और भी सुधार नजर आया. डाक्टर ने बताया कि इस की पूरी आशा है कि निशा का एक और छोटा सा आपरेशन कर प्राकृतिक मल द्वार खोल दिया जाए और पेट पर लगी थैली से उस को छुटकारा मिल जाए. डाक्टर के मुंह से यह सुन कर निशा की आंखें झिलमिला उठी थीं.

‘‘देखा…मैं ने कहा था न कि एक दिन तुम नातीपोतों के साथ खेलोगी.’’

बस रोतेराते निशा इतना ही पूछ पाई थी, ‘‘खाली गोद में नातीपोते?’’

‘‘भरोसा रखो निशा, जीवन कभी ठहरता नहीं, सिर्फ इनसान की सोच ठहर जाती है. आने वाला कल अच्छा होगा, ऐसा सपना तो तुम देख ही सकती हो.’’

निशा पूरी तरह स्वस्थ हो गई. पेट पर बंधी थैली से उसे मुक्ति मिल गई. अब ढीलेढाले कपड़े ही उस का परिधान रह गए थे. उस दिन जब घर लौटने पर सोम ने सुंदर साड़ी भेंट में दी तो उस की आंखें भर आईं.

विकास नहीं आए जबकि फोन पर मैं ने उन्हें बताया था कि मेरा आपरेशन होने वाला है.

‘‘विकास के बेटी हुई है और गायत्री अस्पताल में है. मैं ने तुम्हारे बारे में विकास से बात की थी और वह मनु को लाना भी चाहता था. लेकिन मां नहीं मानीं तो मैं ने भी यह सोच कर जिद नहीं की कि अस्पताल में बच्चे को लाना वैसे भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं होता.’’

क्या कहती निशा. विकास का परिवार पूर्ण है तो वह क्यों उस के पास आता, अधूरी तो वह है, शायद इसीलिए सब को जोड़ कर या सब से जुड़ कर पूरा होने का प्रयास करती रहती है.

निशा की तड़प पलपल देखते रहते सोम. विकास का इंतजार, मनु की चाह. एक मां के लिए जिंदा संतान को सदा के लिए त्याग देना कितना जानलेवा है?

‘‘क्यों झूठी आस में जीती हो निशा,’’ सोम बोले, ‘‘सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन इस सच को भी मान लो कि तुम्हारे पास कोई नहीं लौटेगा.’’

एक सुबह सोम की दी हुई साड़ी पहन निशा कार्यालय पहुंची तो सोम की आंखों में मीठी सी चमक उभर आई. कुछ कहा नहीं लेकिन ऐसा बहुत कुछ था जो बिना कहे ही कह दिया था सोम ने.

‘‘आज मेरी दिवंगत पत्नी विभा और गुड्डी का जन्मदिन है. आज शाम की चाय मेरे साथ पिओगी?’’ यह बताते समय सोम की आंखें झिलमिला रही थीं.

सोम उस शाम निशा को अपने घर ले आए थे. औरत के बिना घर कैसा श्मशान सा लगता है, वह साफ देख रही थी. विभा थी तो यही घर कितना सुंदर था.

‘‘घर में सब है निशा, आज अपने हाथ से कुछ भी बना कर खिला दो.’’

चाय का कप और डबलरोटी के टुकड़े ही सामने थे जिन्हें सेक निशा ने परोस दिया था. सहसा निशा के पेट को देख सोम चौंक से गए.

‘‘निशा, तुम्हें कोई तकलीफ है क्या, यह कपड़ों पर खून कैसा?’’

सोम के हाथ निशा के शरीर पर थे. पेटी की वजह से पेट पर गहरे घाव बन चुके थे. थैली वाली जगह खून से लथपथ थी.

‘‘आज आप के साथ आ गई, पेट पर की पट्टी नहीं बदल पाई इसीलिए. आप परेशान न हों. पट््टी बदलने का सामान मेरे बैग में है, मैं ने आज साड़ी पहनी है. शायद उस की वजह से ऐसा हो गया होगा.’’

सोम झट से बैग उठा लाए और मेज पर पलट दिया. पट्टी का पूरा सामान सामने था और साथ थी वही पुरानी पेटी और थैली.

सोम अपने हाथों से उस के घाव साफ करने लगे तो वह मना न कर पाई.

पहली बार किसी पुरुष के हाथ उस के पेट पर थे. उस के हाथ भी सोम ने हटा दिए थे.

‘‘यह घाव पेटी की वजह से हैं सोम, ठीक हो जाएंगे…आप बेकार अपने हाथ गंदे कर रहे हैं.’’

मरहमपट्टी के बाद सोम ने अलमारी से विभा के कपड़े निकाल कर निशा को दिए. वह साड़ी उतार कर सलवारसूट पहनने चली गई. लौट कर आई तो देखा सोम ने दालचावल बना लिए हैं.

हलके से हंस पड़ी निशा.

सोम चुपचाप उसे एकटक निहार रहे थे. निशा को याद आया कि एक दिन विकास ने उसे बंजर जमीन और कंदमूल कहा था. आधीअधूरी पत्नी उस के लिए बेकार वस्तु थी.

‘क्या मुझे शरीरिक भूख नहीं सताती, मैं अपनेआप को कब तक मारूं?’ चीखा था विकास. पता नहीं किस आवेग में सोम ने निशा से यही नितांत व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया, तब निशा ने विकास के चीख कर कहे वाक्य खुल कर सोम से कह डाले.

हालांकि यह सवाल निशा के चेहरे की रंगत बदलने को काफी था. चावल अटक गए उस के हलक में. लपक कर सोम ने निशा को पानी का गिलास थमाया और देर तक उस की पीठ थपकते रहे.

‘‘मुझे क्षमा करना निशा, मैं वास्तव में यह जानना चाहता था कि आखिर विकास को तुम्हारे साथ रहने में परेशानी क्या थी?’’

सोम के प्रश्न का उत्तर न सूझा उसे.

‘‘मैं चलती हूं सोम, अब आप आराम करें,’’ कह कर उठ पड़ी थी निशा लेकिन सोम के हाथ सहसा उसे जाने से रोकने को फैल गए..

‘‘मैं तुम्हारा अपमान नहीं कर रहा हूं निशा, तुम क्या सोचती हो, मैं तमाशा बना कर बस तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी का राज जान कर मजा लेना चाहता हूं.’’

रोने लगी थी निशा. क्या उत्तर दे वह? नहीं सोचा था कि कभी बंद कमरे की सचाई उसे किसी बाहर वाले पर भी खोलनी पड़ेगी.

‘‘निशा, विकास की बातों में कितनी सचाई है, मैं यह जानना चाहता हूं, तुम्हारा मन दुखाना नहीं चाहता.’’

‘‘विकास ने मेरे साथ रह कर कभी अपनेआप को मारा नहीं था…मेरे घाव और उन से रिसता खून भी कभी उस की किसी भी इच्छा में बाधक नहीं था.’’

उस शाम के बाद एक सहज निकटता दोनों के बीच उभर आई थी. बिना कुछ कहे कुछ अधिकार अपने और कुछ पराए हो गए थे.

‘‘दिल्ली चलोगी मेरे साथ…बहन के घर शादी है. वहां आयुर्विज्ञान संस्थान में एक बार फिर तुम्हारी पूरी जांच हो जाएगी और मन भी बहल जाएगा. मैं ने आरक्षण करा लिया है, बस, तुम्हें हां कहनी है.’’

‘‘शादी में मैं क्या करूंगी?’’

‘‘वहां मैं अपनी सखी को सब से मिलाना चाहता हूं…एक तुम ही तो हो जिस के साथ मैं मन की हर बात बांट लेता हूं.’’

‘‘कपड़े बारबार गंदे हो जाते हैं और ठीक से बैठा भी तो नहीं जाता…अपनी बेकार सी सखी को लोगों से मिला कर अपनी हंसी उड़ाना चाहते हैं क्या?’’

उस दिन सोम दिल्ली गए तो एक विचित्र भाव अपने पीछे छोड़ गए. हफ्ते भर की छुट्टी का एहसास देर तक निशा के मानस पटल पर छाया रहा.

बहन उन के लिए एक रिश्ता भी सुझा रही थी. हो सकता है वापस लौटें तो पत्नी साथ हो. कितने अकेले हैं सोम. घर बस जाएगा तो अकेले नहीं रहेंगे. हो सकता है उन की पत्नी से भी उस की दोस्ती हो जाए या सोम की दोस्ती भी छूट जाए.

2 दिन बीत चुके थे, निशा रात में सोने से पहले पेट का घाव साफ करने के लिए सामान निकाल रही थी. सहसा लगा उस के पीछे कोई है. पलट कर देखा तो सोम खड़े मुसकरा रहे थे.

हैरानी तो हुई ही कुछ अजीब सा भी लगा उसे. इतनी रात गए सोम उस के पास…घर की एक चाबी सदा सोम के पास रहती है न…और वह तो अभी आने वाले भी नहीं थे, फिर एकाएक चले कैसे आए?

‘‘जी नहीं लगा इसलिए जल्दी चला आया. गाड़ी ही देर से पहुंची और सुबह का इंतजार नहीं कर सकता था…मैं पट्टी बदल दूं?’’

part-3

‘‘मैं बदल लूंगी, आप जाइए, सोम. और घर की चाबी भी लौटा दीजिए.’’

सोम का चेहरा सफेद पड़ गया, शायद अपमान से. यह क्या हो गया है निशा को? क्या निशा स्वयं को उन के सामीप्य में असुरक्षित मानने लगी है? क्या उन्हें जानवर समझने लगी है?

एक सुबह जबरन सोम ने ही पहल कर ली और रास्ता रोक बात करनी चाही.

‘‘निशा, क्या हो गया है तुम्हें?’’

‘‘भविष्य में आप खुश रहें उस के लिए हमारी दोस्ती का समाप्त हो जाना ही अच्छा है.’’

‘‘सब के लिए खुशी का अर्थ एक जैसा नहीं होता निशा, मैं निभाने में विश्वास रखता हूं.’’

तभी दफ्तर में एक फोन आया और लोगों ने चर्चा शुरू कर दी कि बांद्रा शाखा के प्रबंधक विकास शर्मा की पत्नी और दोनों बच्चे एक दुर्घटना में चल बसे.

सकते में रह गए दोनों. विश्वास नहीं आया सोम को. निशा के पैरों तले जमीन ही खिसकने लगी, वह धम से वहीं बैठ गई.

सोम के पास विकास की बहन का फोन नंबर था. वहां पूछताछ की तो पता चला इस घटना को 2 दिन हो गए हैं.

भारी कदमों से निशा के पास आए सोम जो दीवार से टेक लगाए चुपचाप बैठी थी. आफिस के सहयोगी आगेपीछे घिर आए थे.

हाथ बढ़ा कर सोम ने निशा को पुकारा. बदहवास सी निशा कभी चारों तरफ देखती और कभी सोम के बढ़े हुए हाथों को. उस का बच्चा भी चला गया… एक आस थी कि शायद बड़ा हो कर वह अपनी मां से मिलने आएगा.

भावावेश में सोम से लिपट निशा चीखचीख कर रोने लगी. इतने लोगों में एक सोम ही अपने लगे थे उसे.

विकास दिल्ली वापस आ चुका था. पता चला तो दोस्ती का हक अदा करने सोम चले गए उस के यहां.

‘‘पता नहीं हमारे ही साथ ऐसा क्यों हो गया?’’ विकास ने उन के गले लग रोते हुए कहा.

वक्त की नजाकत देख सोम चुप ही बने रहे. उठने लगे तो विकास ने कह दिया, ‘‘निशा से कहना कि वह वापस चली आए… मैं उस के पास गया था. फोन भी किया था लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया,’’ विकास रोरो कर सोम को सुना रहा था.

उठ पड़े सोम. क्या कहते… जिस इनसान को अपनी पत्नी का रिसता घाव कभी नजर नहीं आया वह अपने घाव के लिए वही मरहम चाहता है जिसे मात्र बेकार कपड़ा समझ फेंक दिया था.

‘‘निशा तुम्हारी बात मानती है, तुम कहोगे तो इनकार नहीं करेगी सोम, तुम बात करना उस से…’’

‘‘वह मुझ से नाराज है,’’ सोम बोले, ‘‘बात भी नहीं करती मुझ से और फिर मैं कौन हूं उस का. देखो विकास, तुम ने अपना परिवार खोया है इसलिए इस वक्त मैं कुछ कड़वा कहना नहीं चाहता पर क्षमा करना मुझे, मैं तुम्हारीं कोई भी मदद नहीं कर सकता.’’

सोम आफिस पहुंचे तो पता चला कि निशा ने तबादला करा लिया. कार्यालय में यह बात आग की तरह फैल गई. निशा छुट्टी पर थी इसलिए वही उस का निर्देश ले कर घर पर गए. निर्देश पा कर निशा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई.

‘‘तबीयत कैसी है, निशा? घाव तो भर गया है न?’’

‘‘पता नहीं सोम, क्या भर गया और क्या छूट गया.’’

धीरे से हाथ पकड़ लिया सोम ने. ठंडी शिला सी लगी उन्हें निशा. मानो जीवन का कोई भी अंश शेष न हो. ठंडे हाथ को दोनों हाथों में कस कर बांध लिया सोम ने और विकास के बारे में क्या बात करें यही सोचने लगे.

‘‘मैं क्या करूं सोम? कहां जाऊँ? विकास वापस ले जाने आया था.’’

‘‘आज भी उस इनसान से प्यार करती हो तो जरूर लौट जाओ.’’

‘‘हूं तो मैं आज भी बंजर औरत, आज भी मेरा मूल्य बस वही है न जो 2 साल पहले विकास के लिए था…तब मैं मनु की मां थी…अब तो मां भी नहीं रही.’’

‘‘क्या मेरे पास नहीं आ सकतीं तुम?’’ निशा के समूल काया को मजबूत बंधन में बांध सोम ने फिर पूछा, ‘‘पीछे मुड़ कर क्यों देखती हो तुम…अब कौन सा धागा तुम्हें खींच रहा है?’’

किसी तरह सोम के हाथों को निशा ने हटाना चाहा तो टोक दिया सोम ने, ‘‘क्या नए सिरे से जीवन शुरू नहीं कर सकती हो तुम? सोचती होगी तुम कि मां नहीं बन सकती और जो मां बन पाई थी क्या वह काल से बच पाई? संतान का कैसा मोह? मैं भी कभी पिता था, तुम भी कभी मां थीं, विकास तो 2 बच्चों का पिता था… आज हम तीनों खाली हाथ हैं…’’

‘‘सोम, आप समझने की कोशिश करें.’’

‘‘बस निशा, अब कुछ भी समझना शेष नहीं बचा,’’ सस्नेह निशा का माथा चूम सोम ने पूर्ण आश्वासन की पुष्टि की.

‘‘देखो, तुम मेरी बच्ची बनना और मैं तुम्हारा बच्चा. हम प्रकृति से टक्कर नहीं ले सकते. हमें उसी में जीना है. तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो और मैं तुम्हें खो नहीं सकता.’’

सोम को ऐसा लगा मानो निशा का विरोध कम हो गया है. उस की आंखें हर्षातिरेक से भर आईं. उस ने पूरी ताकत से निशा को अपने आगोश में भींच लिया. कल क्या होगा वह नहीं जानते परंतु आज उन्हें प्रकृति से जो भी मिला है उसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से स्वीकारने और निभाने की हिम्मत उन में है. आखिर इनसान को उसी में जीना पड़ता है जो भी प्रकृति दे.

Zivame Grand Lingerie Festival: दिलचस्प ऑफर्स और छूट के साथ बनें भारत की सबसे बड़ी लॉन्जरी सेल का हिस्सा

Zivame Grand Lingerie Festival: अब आप भी बनिए भारत की सबसे बड़ी लॉन्जरी सेल का हिस्सा जो 1 मार्च रात 8 बजे से Zivame पर शुरू हो चुकी है. ऑनलाइन लॉन्जरी शॉपिंग में Zivame लॉन्जरी और नाइटवियर पर आकर्षक ऑफर्स के सेलेक्शन के साथ अपने ग्रैंड लॉन्जरी फेस्टिवल की मेजबानी भी कर रहा है. यहां आपको मिलेगी वायर्ड ब्रा, नॉन-पैडेड ब्रा, शेपवियर, और बहुत कुछ.

Zivame का ग्रैंड लॉन्जरी फेस्टिवल क्या है?

Zivame ग्रैंड लॉन्जरी फेस्टिवल भारत की सबसे बड़ी लॉन्जरी सेल है. यह आपको कम कीमतों पर अच्छे इनरवियर और अन्य प्रोडक्ट खरीदने का मौका देता है. इस फेस्टिवल में Zivame की सबसे ज्यादा बिकने वाली ब्रा, पैंटी, नाइटवियर और बहुत से आइटम शामिल है! 70% तक की छूट के साथ, यह आपके सभी पसंदीदा अंडरगारमेंट्स को स्टॉक करने का सही समय है.

Zivame पर उपलब्ध है ये टॉप लॉन्जरी ब्रांड

1. Zivame

Zivame की सबसे बड़ी सेल पर चुनिए अपने मनपसंद प्रोड्क्ट वो भी धमाकेदार ऑफर्स और छूट के साथ. यहां आपको मिलेंगे मैटरनिटी वियर, नाइटवियर, ब्राज, एक्टिव वियर, पेंटीज, शेपवियर, लॉंग वियर के अलावा और भी बहुत कुछ, तो अभी क्लिक कीजिए और लीजिए अनलिमिटेड डील्स का मजा.

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2. Rosaline

Rosaline की स्टाइलिश, खूबसूरत और आरामदायक इनरवियर अब आपको मिलेंगी बहुत ही किफायती दाम में. यहां न सिर्फ आपके लिए अनलिमिटेड कलेक्शन है बल्कि एक से बढ़कर ऑफऱ भी हैं. Buy 3 @ 1099 या Buy 4 @ 999 ऐसे ही कई ऑफर कर रहे हैं आपका इंतजार. तो फिर देर मत करिए.

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3. Amante

Amante Zivame पर उपलब्ध टॉप ब्रांडों में से एक है. यह ब्रांड ब्रा और ब्रीफ से लेकर बेबीडॉल और नाइटवियर तक इनरवियर की एक बेहरतरीन रेंज देता है. वो भी बहुत की किफायती दाम में जो आपको कही और नहीं मिलेगा. इसकी खास बात ये है कि इसके पीसेस बेहतरीन फ़ैब्रिक और हाई क्वालिटी वाले शिल्प कौशल के साथ बनाए जाते हैं, जो हर तरह की बॉडी टाइप के लिए आरामदायक और सही फिटिंग वाले हैं.

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4. Jockey

जॉकी भारत के प्रमुख इनरवियर ब्रांडों में से एक है. अब आप Zivame सेल में अपने पसंदीदा लॉन्जरी की खरीदारी कर सकते हैं और बेहतरीन छूट पा सकते हैं! चाहे आप ब्रा, पैंटी या नाइटवियर की तलाश कर रहे हों, ये सभी आइटम आपको Zivame पर ऑनलाइन मिल जाएंगे वो भी बेस्ट डील्स के साथ.

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5. Marks & Spencer

मार्क्स एंड स्पेंसर हमेशा अपने बेस्ट क्वालिटी के लिए जाना जाता है, और यह Zivame सेल भी इससे अलग नहीं है. सभी आइटम बेस्ट फैब्रिक वाले कपड़ों और मटेरियल के साथ बेहद बारीकी के साथ बनाए जाते हैं. यहां हर तरह की साइज के लिए प्रोड्क्ट मौजूद है. यहां आपको ऐसे कपड़े ढूंढना बेहद आसान है जो आपको आसानी से फिट हो जाएंगे. साइज़ की रेंज के साथ, कुछ ऐसा ढूंढना आसान है जो बिल्कुल सही हो. मार्क्स एंड स्पेंसर में न सिर्फ आपको अच्छा सेलेक्शन मिलेगा बल्कि यहां आपको कई बेस्ट ऑनलाइन सेल्स भी मिलेंगी.

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इस फेस्टिवल का लाभ उठाने के लिए बेस्ट ऑफ़र और डील

1- फ्लैट 50% की छूट

Zivame पर ऑनलाइन एक और बेहतरीन डील है  50% की जो चुनिंदा लॉन्जरी रेंज पर उपलब्ध है, जैसे Zivame पैडेड नॉन-वायर्ड 3/4th कवरेज टी-शर्ट ब्रा, ज़ेलोसिटी हाई राइज़ कॉटन लेगिंग, रोज़लाइन मीडियम राइज़ फुल कवरेज हिप्स्टर पैंटी (2 का पैक) और भी बहुत कुछ.

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2- फ्लैट 60% की छूट

इस सीजन की सबसे अच्छी ऑनलाइन शॉपिंग सेल है Zivame की फ्लैट 60% की छूट। Zivame लॉन्जरी सेल से खरीदारी करें और अमेजिंग ब्रा, पैंटी और नाइटवियर पर दिलचस्प ऑफर पाएं. इन ऑफर्स को मिस न करें और अभी शॉपिंग करे.

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3. फ्लैट 70% की छूट  

अगर आपको भी चाहिए कुछ ज्यादा छूट तो Zivame आपको ये मौका भी देगा. जी हां, स्टाइल  ब्राज, स्लीपवियर और एक्टिव वियर पर आपको मिलेगी 70% तक की छूट और इतने ऑप्शन की आप खरीददारी करते ही जाएंगे.

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ग्रैंड लॉन्जरी फेस्टिवल के दौरान खरीदारी क्यों करें

Zivame का ग्रैंड लॉन्जरी फेस्टिवल ब्रा, पैंटी, शेपवियर से लेकर नाइटवियर और कई लॉन्जरी के ऑप्शन रखता है. आप इस Zivame सेल के दौरान बेस्ट प्राइस पर अपने सभी पसंदीदा लॉन्जरी की खरीदारी कर सकते हैं.

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निष्कर्ष

Zivame ग्रैंड लॉन्जरी फेस्टिवल उन लोगों के लिए सबसे अच्छी लॉन्जरी सेल है, जो स्टाइल, आराम और कम्फर्ट की तलाश में हैं वो भी कम प्राइस पर लॉन्जरी नाइटवियर, शेपवियर और अन्य आवश्यक वस्तुओं के सिलेक्शन के साथ, ऐसे में यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि यह ऑनलाइन सेल भारत के सबसे लोकप्रिय शॉपिंग इवेंट में से एक क्यों बन गई है.

 

Holi 2023: रंगों के बीच ऐसे रखें अपनी खूबसूरती को बरकरार

होली मतलब रंगों का त्योहार, अपनों का साथ, मस्ती और खूब सारा धमाल. रंगों की हमजोली में हर कोई डूब जाना चाहता है, लेकिन रंगों का ये त्योहार खुशियों के साथ में कभी कभी कुछ तकलीफें भी दे जाता है. कई बार हम इस डर से भी रंगों से तौबा कर लेते हैं कि कहीं इससे हमारे बाल या त्वचा खराब न हो जाए. लेकिन अब चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ब्यूटी टिप्स लेकर आएं हैं जो ना कि आपको रंगो से होने वाली समस्याओं से छुटकारा दिलाएगा बल्कि आपकी खूबसूरती में चार चांद भी लगाएगा.

अगर आप होली के रंगों की खुशियों में रंगने के साथ अपनी खूबसूरती भी बरकरार रखना चाहती हैं, तो इसके लिए आपको पहले से ही तैयार होना पड़ेगा. होली में रंगों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए अपनाएं ये टिप्स-

ढीले-ढाले और फुलस्लीव कपड़े पहनें

रंगों से खुद को ज्यादा से ज्यादा बचा कर रखने का सबसे बेहतर तरीका है फुलकवर्ड कपड़े. होली में दोस्तों के संग टोलियों में रंगों का मजा लेने के लिए ढीले-ढाले कपड़े जैसे फुल जींस और फुलस्लीव टीशर्ट, सलवार कमीज आदि पहनने चाहिए. ऐसा करने से आपका बदन ढंका रहेगा और काफी हद तक रंगों से बचा भी रहेगा. इतना ही नहीं इन कपड़ों में आप खुद को कंफर्टेबल भी महसूस करेंगी.

अपनी स्किन पर चढ़ाएं सुरक्षा कवच

सुबह उठकर सबसे पहले अपने शरीर पर तिल का तेल, सरसों का तेल, औलिव औयल या फिर कोई अन्य बौडी औयल लगाएं. चेहरे और गर्दन की त्वचा को रंग के असर से बचाने के लिए उस पर वाटर प्रूफ बेस लगाएं. ऐसा करने से रंग त्वचा पर चढ़ेगा नहीं और नहाते समय आसानी से धुल जाएगा.

बालों की करें देखभाल

बालों को रंगों के प्रभाव से बचाने के लिए तेल अच्छा विकल्प है. बालों पर जोजोबा, रोजमेरी या नारियल तेल की मसाज करें. अगर बाल लंबे हैं, तो तेल लगाकर टाइट जूड़ा या पोनी बना लें. इससे स्कैल्प और बालों में रंग जड़ों तक नहीं समाएगा और आसानी से निकल भी जाएगा. यदि आपके बाल छोटे हैं, तो बालों में तेल लगाएं और फिर हेयर जेल लगाकर बालों को सेट करें.

नेलपेंट का डबलकोट लगाएं

होली के रंग सबसे ज्यादा हमारे नाखूनों को प्रभावित करते हैं. क्योंकि ये जल्दी छूटने का नाम ही नहीं लेता है और काफी दिनों तक हमारे नाखूनों को बदसूरत बनाए रखता है. इससे बचने के लिए किसी स्ट्रॉङ्ग नेलपेंट का डबलकोट अपने हाथों और पैरों के नाखूनों पर लगाएं. होली के बाद जब आप थिनर से अपना नेलपेंट हटायेंगे, तो आपके नाखून पहले जैसे ही खूबसूरत और बेदाग नजर आयेंगे.

होंठों पर लगाएं मैट लांग-स्टे लिपस्टिक

नाजुक होंठों को रंगों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए उस पर अच्छी क्वालिटी की मैट लांग-स्टे लिपस्टिक लगाएं. ये लिपस्टिक आपके होठों पर काफी घंटों तक बरकरार रहेगी और रंग के प्रभाव से होंठों की रंगत भी फीकी नहीं पड़ेगी. अगर आप कलर लिपस्टिक नहीं लगाना चाहती हैं, तो नेचुरल शेड का लिप कलर लगाएं. ये होंठों पर सुरक्षा कवच का काम करेगा और इससे होठों पर रंग चिपकेगा भी नहीं.

होली खेलने के बाद

अगर आपने सूखी होली खेली है, तो धोने से पहले अच्छे से रंगों को कपड़े से झाड़ लें. चेहरे से रंग छुड़ाने के लिए बहुत अधिक स्क्रब ना करें, इससे त्वचा रूखी हो सकती है. रंग साफ करने या चेहरा धोने के लिए साबुन की जगह क्लींजर का इस्तेमाल करें.

होली खेलने के तुरंत बाद बालों को माइल्ड शैंपू से धोएं और अच्छे से कंडीशनिंग करें. ये रंगों से बालों को डैमेज होने से बचाता है. दो बड़े चम्मच शहद में दो अंडे और एक बड़े चम्मच नारियल का तेल अच्छे से मिलाएं. इसे अपने बालों पर लगाएं और करीब एक घंटे तक रहने दें. इसके माइल्ड शैंपू और एक अच्छे कंडीशनर से धो लें. इस घरेलू कंडीशनिंग से आप अपने बालों को ज्यादा खूबसूरत पाएंगी.

आंखों को साफ पानी से धोने के बाद गुलाब जल आंखों में डाल सकती हैं या गुलाब जल में भीगे कौटन को आंखों पर कुछ देर रख आंख बंद करें.

किचन इन्ग्रीडियेंट का इस्तेमाल

चने का आटा, शहद और दूध को मिक्स करके स्क्रब बना लें और इसे फेस और बौडी पर स्क्रब करें. ये बौडी से कलर हटाने में आपकी मदद करेगा. साथ ही स्किन को चमकदार और मुलायम भी बनाता है. ज्यादा पोषण के लिए मौइस्चराइजिंग के पहले फ्रेश एलोवेरा जेल बौडी पर लगाएं.

लौकडाउन के दैरान मैं अपना सारा काम घर से ही कर रहा था,ऐसे में काम करने में मुश्किल होती है, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 25 साल है. लौकडाउन के दैरान मैं अपना सारा काम घर से ही कर रहा था. मेरा काम लैपटौप पर होता है. मेरी पीठ में दर्द होने लगा है. जकड़न भी महसूस होती है. ऐसे में काम करने में मुश्किल होती है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

गतिहीन जीवनशैलीगलत मुद्रा में बैठनालेट कर लैपटौप पर काम करनालगातार एक ही मुद्रा में काम करना और उठनेबैठने के गलत तरीकों के कारण घर से काम कर रहे लोगों में रीढ़ की समस्याएं विकसित हो रही हैं. ये सभी फैक्टर रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों पर तेज दबाव बनाते हैं. सभी काम ?ाक कर करने से रीढ़ के लगामैंट्स में ज्यादा खिंचाव आ जाता है जिस से पीठ में तेज दर्द के साथसाथ अन्य गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं.

सर्वाइकल पेन भी इसी से संबंधित एक समस्या है जो गरदन से शुरू होता है. यह दर्द व्यक्ति को परेशान कर देता है. हालांकि एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली के साथ इस समस्या से बचा जा सकता है.

ऐसे में रोज ऐक्सरसाइज करनाबौडी स्ट्रैचसही तरीके से उठनाबैठनासही तरीके से ?ाकना और शरीर को सीधा रखना आदि चीजें जरूरी हैं. पोषणयुक्त डाइट लेंजिस में प्रोटीनसलादफल और हरी सब्जियां भरपूर मात्रा में मौजूद हों. शरीर में विटामिन डी की कमी न हो इसलिए रोज थोड़ी देर धूप में बैठना जरूरी है.

Holi 2023: इतना बहुत है

घर के कामों से फारिग होने के बाद आराम से बैठ कर मैं ने नई पत्रिका के कुछ पन्ने ही पलटे थे कि मन सुखद आश्चर्य से पुलकित हो उठा. दरअसल, मेरी कहानी छपी थी. अब तक मेरी कई कहानियां  छप चुकी थीं, लेकिन आज भी पत्रिका में अपना नाम और कहानी देख कर मन उतना ही खुश होता है जितना पहली  रचना के छपने पर हुआ था.

अपने हाथ से लिखी, जानीपहचानी रचना को किसी पत्रिका में छपी हुई पढ़ने में क्या और कैसा अकथनीय सुख मिलता है, समझा नहीं पाऊंगी. हमेशा की तरह मेरा मन हुआ कि मेरे पति आलोक, औफिस से आ कर इसे पढ़ें और अपनी राय दें. घर से बाहर बहुत से लोग मेरी रचनाओं की तारीफ करते नहीं थकते, लेकिन मेरा मन और कान तो अपने जीवन के सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति और रिश्ते के मुंह से तारीफ सुनने के लिए तरसते हैं.

पर आलोक को साहित्य में रुचि नहीं है. शुरू में कई बार मेरे आग्रह करने पर उन्होंने कभी कोई रचना पढ़ी भी है तो राय इतनी बचकानी दी कि मैं मन ही मन बहुत आहत हो कर झुंझलाई थी, मन हुआ था कि उन के हाथ से रचना छीन लूं और कहूं, ‘तुम रहने ही दो, साहित्य पढ़ना और समझना तुम्हारे वश के बाहर की बात है.’

यह जीवन की एक विडंबना ही तो है कि कभीकभी जो बात अपने नहीं समझ पाते, पराए लोग उसी बात को कितनी आसानी से समझ लेते हैं. मेरा साहित्यप्रेमी मन आलोक की इस साहित्य की समझ पर जबतब आहत होता रहा है और अब मैं इस विषय पर उन से कोई आशा नहीं रखती.

कौन्वैंट में पढ़ेलिखे मेरे युवा बच्चे तनु और राहुल की भी सोच कुछ अलग ही है. पर हां, तनु ने हमेशा मेरे लेखन को प्रोत्साहित किया है. कई बार उस ने कहानियां लिखने का आइडिया भी दिया है. शुरूशुरू में तनु मेरा लिखा पढ़ा करती थी पर अब व्यस्त है. राहुल का साफसाफ कहना है, ‘मौम, आप की हिंदी मुझे ज्यादा समझ नहीं आती. मुझे हिंदी पढ़ने में ज्यादा समय लगता है.’ मैं कहती हूं, ‘ठीक है, कोई बात नहीं,’ पर दिल में कुछ तो चुभता ही है न.

10 साल हो गए हैं लिखते हुए. कोरियर से आई, टेबल पर रखी हुई पत्रिका को देख कर ज्यादा से ज्यादा कभी कोई आतेजाते नजर डाल कर बस इतना ही पूछ लेता है, ‘कुछ छपा है क्या?’ मैं ‘हां’ में सिर हिलाती हूं. ‘गुड’ कह कर बात वहीं खत्म हो जाती है. आलोक को रुचि नहीं है, बच्चों को हिंदी मुश्किल लगती है. मैं किस मन से वह पत्रिका अपने बुकश्ैल्फ  में रखती हूं, किसे बताऊं. हर बार सोचती हूं उम्मीदें इंसान को दुखी ही तो करती हैं लेकिन अपनों की प्रतिक्रिया पर उदास होने का सिलसिला जारी है.

मैं ने पत्रिका पढ़ कर रखी ही थी कि याद आया, परसों मेरा जन्मदिन है. मैं हैरान हुई जब दिल में जरा भी उत्साह महसूस नहीं हुआ. ऐसा क्यों हुआ, मैं तो अपने जन्मदिन पर बच्चों की तरह खुश होती रहती हूं. अपने विचारों में डूबतीउतरती मैं फिर दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई. जन्मदिन भी आ गया और दिन इस बार रविवार ही था. सुबह तीनों ने मुझे बधाई दी. गिफ्ट्स दिए. फिर हम लंच करने बाहर गए. 3 बजे के करीब हम घर वापस आए. मैं जैसे ही कपड़े बदलने लगी, आलोक ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो, अभी चेंज मत करो.’’

‘‘थोड़ा लेटने का मन है, शाम को फिर बदल लूंगी.’’

‘‘नहीं मौम, आज नो रैस्ट,’’ तनु और राहुल भी शुरू हो गए.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, फिर कौफी बना लेती हूं.’’

तनु ने फौरन कहा, ‘‘अभी तो लंच किया है मौम, थोड़ी देर बाद पीना.’’

मैं हैरान हुई. पर चुप रही. तनु और राहुल थोड़ा बिखरा हुआ घर ठीक करने लगे. मैं और हैरान हुई, पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ कोई कुछ नहीं बोला. फिर दरवाजे की घंटी बजी तो राहुल ने कहा, ‘‘मौम, हम देख लेंगे, आप बैडरूम में जाओ प्लीज.’’

अब, मैं सरप्राइज का कुछ अंदाजा लगाते हुए बैडरूम में चली गई. आलोक आ कर कहने लगे, ‘‘अब इस रूम से तभी निकलना जब बच्चे आवाज दें.’’

मैं ‘अच्छा’ कह कर चुपचाप तकिए का सहारा ले कर अधलेटी सी अंदाजे लगाती रही. थोड़ीथोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजती रही. बाहर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. 4 बजे बच्चों ने आवाज दी, ‘‘मौम, बाहर आ जाओ.’’

मैं ड्राइंगरूम में पहुंची. मेरी घनिष्ठ सहेलियां नीरा, मंजू, नेहा, प्रीति और अनीता सजीधजी चुपचाप सोफे पर बैठी मुसकरा रही थीं. सभी ने मुझे गले लगाते हुए बधाई दी. उन से गले मिलते हुए मेरी नजर डाइनिंग टेबल पर ट्रे में सजे नाश्ते की प्लेटों पर भी पड़ी.

‘‘अच्छा सरप्राइज है,’’ मेरे यह कहने पर तनु ने कहा, ‘‘मौम, सरप्राइज तो यह है’’ और मेरा चेहरा सैंटर टेबल पर रखे हुए केक की तरफ किया और अब तक के अपने जीवन के सब से खूबसूरत उपहार को देख कर मिश्रित भाव लिए मेरी आंखों से आंसू झरझर बहते चले गए. मेरे मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली. भावनाओं के अतिरेक से मेरा गला रुंध गया. मैं तनु के गले लग कर खुशी के मारे रो पड़ी.

केक पर एक तरफ 10 साल पहले छपी मेरी पहली कहानी और दूसरी तरफ लेटेस्ट कहानी का प्रिंट वाला फौंडेंट था, बीच में डायरी और पैन का फौंडेंट था. कहानी के शीर्षक और पन्ने में छपे अक्षर इतने स्पष्ट थे कि आंखें केक से हट ही नहीं रही थीं. मैं सुधबुध खो कर केक निहारने में व्यस्त थी. मेरी सहेलियां मेरे परिवार के इस भावपूर्ण उपहार को देख कर वाहवाह कर उठीं. प्रीति ने कहा भी, ‘‘कितनी मेहनत से तैयार करवाया है आप लोगों ने यह केक, मेरी फैमिली तो कभी यह सब सोच भी नहीं सकती.’’ सब ने खुलेदिल से तारीफ की, और केक कैसे, कहां बना, पूछती रहीं. फूडफूड चैनल के एक स्टार शैफ को और्डर दिया गया था.

मैं भर्राए गले से बोली, ‘‘यह मेरे जीवन का सब से खूबसूरत गिफ्ट है.’’  अनीता ने कहा, ‘‘अब आंसू पोंछो और केक काटो.’’

‘‘इस केक को काटने का तो मन ही नहीं हो रहा है, कैसे काटूं?’’

नीरा ने कहा, ‘‘रुको, पहले इस केक की फोटो ले लूं. घर में सब को दिखाना है. क्या पता मेरे बच्चे भी कुछ ऐसा आइडिया सोच लें.’’

सब हंसने लगे, जितनी फोटो केक की खींची गईं, उन से आधी ही लोगों की नहीं खींची गईं.

केक काट कर सब को खिलाते हुए मेरे मन में तो यही चल रहा था, कितना मुश्किल रहा होगा मेरी अलमारी से पहली और लेटेस्ट कहानी ढूंढ़ना? इस का मतलब तीनों को पता था कि सब से बाद में कौन सी पत्रिका आई थी. और पहली कहानी का नाम भी याद था. मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी बात थी.

मैं क्यों कुछ दिनों से उलझीउलझी थी, अपराधबोध सा भर गया मेरे मन में. आज अपने पति और बच्चों का यह प्रयास मेरे दिल को छू गया था. क्या हुआ अगर घर में कोई मेरे शब्दों, कहानियों को नहीं समझ पाता पर तीनों मुझे प्यार तो करते हैं न. आज उन के इस उपहार की उष्मा ने मेरे मन में कई दिनों से छाई उदासी को दूर कर दिया था. तीनों मुझे समझते हैं, प्यार करते हैं, यही प्यारभरी सचाई है और मेरे लिए इतना बहुत है.

हिंदी में मैडिकल शिक्षा

मैडिकल एजुकेशन अब हिंदी में देने की कोशिश की जा रही है. हो सकता है सरकार कोशिश न कर के कुछ जगह इसे थोपे. जिन पुस्तकों के कवर दिखे हैं उन से लगता है यह एक्सपैरिमैंट बहुत बुरा नहीं है क्योंकि मैडिकल कालेज उस शुद्ध हिंदी में नहीं दी जा रही है जिसे पंडित, आचार्य रघुवीर ने देश पर थोपा था और आम बोलचाल की भाषा हिंदी का संस्कृतीकरण कर दिया था. एनेटौमी को एनेटौमी ही लिख कर ‘व्ययच्छेद विधा’ न लिख कर सही कदम उठाया है. हिंदी का गुण रहा है कि यह सामान्य बोलचाल की भाषा रही है और सभी भाषाओं के शब्द आसानी से एडजस्ट करती रही है. रघुवीर ने हिंदी का संस्कृतीकरण कर डाला था ताकि यह केवल ऊंची जातियों वाले उन बच्चों तक लिमिटेड रह जाए जो किसी पंडित को टीचर की तरह रख सकें. हिंदी के नाम पर एक जाति ने हिंदी से आम आदमी को दूर कर डाला. वह हिंदी थोप दी गई जो बोली ही नहीं जाती थी जिस की अमिताभ बच्चन व धमेंद्र की फिल्म ‘चुपकेचुपके’ में कस कर पोल खोली गई.

जब भारतीय स्टूडैंट चीन, कजाकिस्तान, यूक्रेन में मैडिकल एजुकेशन के लिए जा सकते हैं और वहां की भाषाओं में लिखी किताबों और इंग्लिश की किताबों के सहारे मैडिकल एजुकेशन पूरी कर सकते हैं तो यहां क्यों नहीं संभव है.

दिक्कत इस बात की है कि यह स्टैप केवल पौलिटिकल है, ???…आईकार्ड…??? है. न अमित शाह न शिवराज सिंह चौहान को हिंदी में मैडिकल एजुकेशन देने में कोई रुचि है न उन्हें ???…कला…??? मालूम है. इन दोनों के निकट संबंधी विदेशों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उन्हें हिंदी से, बस, इतना प्रेम है कि वे घर के नौकरों और ड्राइवरों से बात कर सकें. वरना ये न हिंदी पढ़ते हैं और न चाहते हैं. 97 एक्सपर्ट्स ने जो टैस्ट दवाएं तैयार की हैं उन में इंग्लिश को अनटचेबल नहीं माना गया है. लैंग्वेज पूरी तरह मिक्स्ड है. इन्हें पढऩे में उन को आसानी होगी जिन की इंग्लिश कमजोर है.

कठिनाई यह है कि इन कम नंबर लाने वाले स्टूडैंट्स को तो देश के कालेजों में एडमिशन मिलता ही नहीं है. मध्यप्रदेश राज्य सरकार ने अगर अपने मैडिकल कालेजों में इसे लागू भी किया तो ये टैस्टबुक्स केवल सजावटी बना कर रह जाएंगी क्योंकि 90-98 फीसदी नंबर लाने वाले इन्हें छुएंगे भी नहीं. फिर जिन की मदरलैंग्वेज हिंदी नहीं है, वे एडमिशन तो ले लेंगे पर पढ़ेंगे इंग्लिश किताबें. वे जानते हैं कि मरीजों को चाहे इंग्लिश न आती हो, वे रिपोर्ट और प्रिस्क्रिप्शन इंग्लिश वाला ही चाहते हैं. सो, हिंदी वाले झोलाछाप बन कर रह जाएंगे.

तुम आज भी पवित्र हो– भाग 1

कल से नमन क्षितिजा को फोन लगाए जा रहा था, पर न तो वह अपना फोन उठा रही थी और न ही वापस उसे फोन कर रही थी.

लेकिन आज जब उस का फोन बंद आने लगा तो नमन आशंका से भर उठा.

‘‘हैलो आंटी, क्षितिजा कहां है? मैं कल से उसे फोन लगा रहा हूं, पर वह फोन नहीं उठा रही है और आज तो उस का फोन ही बंद आ रहा है. कहां है क्षितिजा?’’

नमन के कई बार पूछने पर भी जब सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बेचैन हो उठा. बोला, ‘‘आंटी, क्या हुआ सब ठीक तो है?’’

‘‘बेटा, वो…वो… क्षितिजा अस्पताल में…’’ इतना बोल कर सुमन सिसक कर रोने लगीं. ‘‘अस्पताल में?’’ अस्पताल का नाम सुनते ही नमन घबरा गया, ‘‘पर… पर क्या हुआ उसे?’’

फिर सुमन ने जो बताया उसे सुन कर नमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. फिर बोला, ‘‘ठीक है आंटी, आ… आप रोइए मत. मैं कल सुबह की फ्लाइट से ही वहां पहुंच रहा हूं.’’

नमन को देखते ही क्षितिजा के आंसू फूट पड़े. वह उस के सीने से लग कर एक बच्ची की तरह बिलखबिलख कर देर तक रोती रही.

‘‘बस क्षितिजा बस, अब मैं आ गया हूं न… सब ठीक हो जाएगा,’’ उस के आंसू पोंछते हुए नमन बोला.

मगर डर के मारे वह इसलिए नमन को नहीं छोड़ रही थी कि वह दरिंदा फिर उस के सामने न आ जाए. हिचकियां लेते हुए कहने लगी, ‘‘नमननमन उ… उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. उस ने धोखे से मेरे साथ… बोलतेबोलते वह बेहोश हो

गई.’’ ‘‘जब से यहां आई हैं ऐसा ही हो रहा है. लगता है डर घुस गया है इन के मन में. देखिए, मैं अब भी यहीं कहूंगा कि आप सब को पुलिस में

शिकायत कर देनी चाहिए. आखिर दोषी को सजा तो मिलनी चाहिए न? वैसे आप सब को जो ठीक लगे,’’ डाक्टर बहुत ही रहम दिल इंसान थे. उन से क्षितिजा की हालत देखी नहीं जा रही थी. उन्होंने सब को समझाते हुए कहा.

मगर क्षितिजा के मातापिता ऐसा नहीं चाहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन की बेटी समाज में बदनाम हो, क्योंकि लड़की का भले ही कोई दोष न हो पर सुनना हमेशा उसी को पड़ता है.

क्षितिजा की ऐसी हालत और उस के मातापिता के मन के डर को समझते हुए नमन बोला, ‘‘हमें पुलिस में कोई शिकायत नहीं करनी डाक्टर. बस क्षितिजा जल्दी से स्वस्थ हो जाए, फिर हम उसे यहां से ले जाएंगे.’’

‘‘ठीक है जैसी आप लोगों की मरजी,’’ कह कर डाक्टर चले गए.

2 दिन बाद. कुछ हिदायतों के साथ डाक्टर ने क्षितिजा को अस्पताल से छुट्टी दे दी. नमन के पूछने पर कि आखिर ये सब हुआ कैसे, सुमन बताने लगीं, ‘‘जिस दिन तुम औफिस के काम से दुबई जाने के लिए निकले उस के अलगे ही दिन क्षितिजा और मैं सगाई की खरीदारी के लिए निकल गए. समय कम था, इसलिए तुम ने कहा था कि क्षितिजा अपनी पसंद से तुम्हारे लिए भी अंगूठी और शेरवानी ले ले. उस रोज वह इतनी खुश थी कि बस बोले ही जा रही थी कि तुम्हारे ऊपर कैसी और कौन से रंग की शेरवानी अच्छी लगेगी और यह भी कि उसे भी शेरवानी से मैच करता ही लहंगा लेना है ताकि लोग कहें कि वाह भई क्या लग रहे हैं दोनों.

‘‘सारी खरीदारी बस हो चुकी थी कि उसी वक्त क्षितिजा के बौस का फोन आ गया. कहने लगा कि कोई जरूरी फाइल है जो मिल नहीं रही है तो वह आ कर जरा उस की मदद कर दे.’’

‘‘अब यह क्या तरीका है क्षितिजा? जब उसे पता है कि तुम छुट्टी पर हो तो फिर कैसे… पर मेरी बात को बीच ही में काटते हुए बोली कि मां, कल औडिट होने वाला है न इसलिए उस फाइल की जरूरत होगी और शायद मैं ने वह गलती से अपने लौकर में रख दी होगी. आप चिंता न करो मैं जल्दी आ जाऊंगी. कह

वह वहीं औफिस के सामने उतर गई और मुझे ड्राइवर के साथ घर भेज दिया.’’

‘‘मगर जब 2 घंटे बीत जाने के बाद भी वह घर नहीं आई तब मैं ने

उसे फोन लगाया तो बोली कि बस मैं निकल ही रही हूं और फिर फोन काट दिया. हम खाने पर उस का इंतजार करते रहे, वह नहीं आई. तब फिर मैं ने उसे फोन लगाया, पर इस बार तो फोन ही नहीं उठा रही थी. क्षितिजा के पापा कहने लगे कि रास्ते में होगी… शायद फोन की आवाज सुनाई नहीं दे रही

होगी… तुम चिंता न करो आ जाएगी. पर मां का दिल है, चिंता तो होगी ही न? लेकिन जब मेरी बरदाश्त की हद हो गई तब मैं ने उस के बौस को फोन

लगाया तो वह बोला कि वह तो घर कब की निकल चुकी है. उस की बातें सुन कर मेरी टैंशन और ज्यादा बढ़ गई.

‘‘फिर मैं ने उस के सारे दोस्तों से पूछा कि क्या क्षितिजा उन के घर पर है? पर सब का एक ही जवाब था नहीं. समझ में नहीं आ रहा था कि क्षितिजा कहां जा सकती है और उस ने अपना फोन

क्यों बंद कर रखा है? यह सोचसोच कर मेरा डर के मारे बुरा हाल था. मैं सोच रही थी कि कहीं मेरी बेटी को कुछ हो तो नहीं गया.

‘‘हार कर मैं ने क्षितिजा के पापा को उस के औफिस तक भेजा और जब उन्होंने वहां ताला लगा देखा तो वे भी घबरा गए. जब वहां के वाचमैन से पूछा तो वह कहने लगा

कि हां क्षितिजा आई तो थी पर फिर बौस के साथ ही उन की गाड़ी में बैठ कर चली गई. माथा ठनका कि फिर उस के बौस ने झूठ क्यों बोला… रात

के 12 साढ़े 12 बजे तक, जब किसी की जवान बेटी घर से बाहर हो और उस का फोन भी न

लग रहा हो तो जरा सोचिए उन मांबाप पर क्या बीतेगी?

‘‘चिंता के मारे भूखप्यासनींद सबकुछ हवा हो चुका था हमारा. पूरी रात हम ने आंखों में काट दी. सोचा सुबह होते ही पुलिस में इतला कर देंगे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने दौड़ कर दरवाजा खोला और फिर जो देखा, उसे देख कर सन्न रह गई. क्षितिजा के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह दीवार से लग कर खड़ी मुझे एकटक निहार रही थी.

‘‘मैं पहले उसे अंदर लाई और फिर झट से दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई देख न ले. समझ में तो आ ही गया था मुझे, फिर भी मैं ने पूछा कि कहां चली गई थी बेटा और तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था? क्या तुम्हारे बौस को… बौस का नाम सुनते ही वह फूट पड़ी. उस की आंखों से झरझर कर आंसू बहने लगे.

‘‘मैं ने इसे झंझोड़ कर पूछा कि क्या हुआ बता? किसी ने तेरे साथ… पर कुछ बोलने से पहले ही वह बेहोश हो गई. जल्दी से हम उसे अस्पताल ले आए. डाक्टर ने जांच कर बताया कि उस के साथ बलात्कार हुआ है. यह सुन कर हमारे पैरों तले की जमीन खिसक गई कि कुछ दिन बाद सगाई होने  वाली थी…यह उस के साथ क्या हो गया? सदमे से वह बारबार बेहोश हो रही है तो हम उस से पूछते क्या कि किस ने उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत की? कुछ ठीक होने पर जब मैं ने पूछा कि वह तो अपने बौस को कोईर् फाइल देने गई थी, तो फिर ये सब कैसे हुआ और किस ने किया?

‘‘तब बताने लगी कि उस के बौस ने ही धोखे से उस के साथ… उस रात अपने बौस के बहुत आग्रह करने पर कि वह डिनर उस के साथ, उस के घर पर ही चल कर करे, चाह कर भी वह मना नहीं कर पाई. वैसे पहले भी 1-2 बार वह उस के घर जा चुकी थी. फिर यह भी सोचा कि बौस की पत्नी तो होगी ही घर पर, लेकिन घर एक नौकर के अलावा और कोई न था. वह भी खाना टेबल पर लगा कर चला गया.

आगे पढ़ें-क्षितिजा के पूछने पर कि उस की पत्नी औ…

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