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Holi 2023: इन 7 टिप्स को अपनाएं और लें होली का मजा

होली के दिन आपका भी मन करता होगा रंगो में डूब जाने का और जी खोल कर मस्ती करने का. करें भी क्यों ना आखिर कितने इंतजार के बाद तो ये दिन आता है. तो खुद को जरा भी रोके बिना रंग का पूरा लुत्फ उठाइये पर जरा सानधानी से.

एक पुराना समय था जब लोग हल्‍दी, चदंन, गुलाब और टेसू के फूल से रंग बनाया करते थे पर आजकल तो रासायनिक रंगों का ही बोलबाला है. ऐसे मे सावधानी बरतना बहुत जरूरी है. ऐसे रंगों मे कई तरह के रासायनिक और विषैले पदार्थ मिले होते हैं, जो त्वचा, नाखून व मुंह से शरीर मे प्रवेश कर अदंरूनी हिस्सों को क्षति पहुंचा सकते हैं. ऐसे में अगर होली खेलने से पहले कुछ सावधानियां बरती जायें तो त्वचा को रासायनिक रंगों से होने वाले नुक्सान से काफी हद तक बचाया जा सकता है.

चलिए जानते हैं कि होली खेलने से पहले हमें क्‍या-क्‍या सावधानियां बरतने की जरुरत है-

1. होली खेलने से 20 मिनट पहले अपने शरीर पर खूब सारा तेल या फिर मौस्‍चराइजर लगा लें. इसके बाद अपने शरीर पर वाटरप्रूफ सनस्‍क्रीन लगा कर ही होली खेलने निकलें.

2. होली के दिन आप पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनिए. अच्‍छा होगा कि कपड़े के अंदर कोई स्‍विम सूट पहन लें जिससे होली का रसायनयुक्‍त रंग अंदर जाने से बच जाए.

3. इस दिन बालों पर विशेष ध्‍यान देना जरुरी है. अपने बालों पर एक अच्‍छा तेल लगाएं जिससे नहाने के समय बालों पर रंग चिपके ना और आसानी से धुल भी जाए. चाहें तो टोपी भी पहन सकती हैं. तेल के अलावा अपने होंठों को हानिकारक रंगों से बचाने के लिए उस पर लिप बाम लगाना बिल्कुल न भूलें.

4. अपनी आखों का विशेष ध्यान रखें. आंखों को रंग, गुलाल, अबीर आदि से बचाएं क्‍योंकि इनमें मौजूद पोटेशियम हाईक्रोमेट नामक हानिकारक तत्व आंखों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. यदि कुछ रंग आंख मे चला जाए तो आंखों को तब तक पानी से धोएं जब तक रंग ठीक से निकल न जाए.

5. नाखूनों पर जब रंग चढ़ जाते हैं तो जल्‍दी साफ नहीं होते. इसके लिए नाखूनों और उसके अंदर भी वैसलीन लगाएं. इससे नाखूनों और उसके अंदर रंग नहीं चढेगा. इसके अलावा महिलाएं किसी गहरे रंग की नेलपौलिश भी लगा सकती हैं.

6. जब भी रंग खरीदने जाएं तो कोशिश हमेशा यही होनी चाहिए कि हरा, बैगनी, पीला और नारंगी रंग न लेकर लाल या फिर गुलाबी रंग खरीदें. वह इसलिए क्‍योंकि इन सब गहरे रंगों में ज्‍यादा रसायन मिले हुए होते हैं.

7. रंग खेलने के बाद त्‍वचा रुखी हो जाती है, तो इसके लिए शरीर पर मलाई या बेसन का पेस्‍ट बना कर लगाया जा सकता है. अगर शरीर पर कोई घाव या चोट आदि है तो होली खेलने से बचें, क्योंकि रंगों में मिले रासायनिक तत्व घाव के माध्यम से शरीर के रक्त में मिलकर नुकसान पहुंचा सकते हैं.

इन दी गई सावधानी को बरते और खुलकर होली का मजा ले.

Holi 2023: होली के रंगों में भी आप दिख सकती हैं फैशनेबल

होली रंगों का त्योहार है. होली के मौके पर अगर आप किसी होली इवेंट में जा रही हैं तो आपके फैब्युलस लुक का होना जरूरी है. अगर आप इस बात से चिंतित हैं कि होली इवेंट में किस तरह से ड्रेसअप करना चाहिए या किस तरह का मेकअप करना चाहिए तो चलिए हम आपकी ये परेशानी भी दूर कर देते हैं. यहां हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे टिप्स जिसमें आप फैब्युलस लग सकती हैं.

1. ड्रेसअप

व्हाइट कलर होली पर पहनने वाला एक पुराना फैशन बन चुका है. अब आप व्हाइट के साथ अलग-अलग कलर को पेयर करके अपने पहनावे को और भी वाइब्रेंट और आकर्षक बना सकती हैं. ऐसे ड्रेस चुनें जो आपको होली सेलिब्रेशन के दौरान कंफर्ट का एहसास कराये.

अगर आप टीशर्ट और टौप को फैशनेबल प्लाजो या ट्राउजर के साथ पेयरअप करना चाहती हैं या आप ढ़ीली कुर्ती, लूज टौप के साथ हौट पैंट या लाइट ब्लू जींस कैरी करना चाहते हैं तो इसे जरुर ट्राय करें. फ्लोरल प्रिंट आपको होली पर एक नया लुक और एहसास देगा. इसी तरह युनिक लुक पाने के लिए लाइट कलर जैसे पिंक, येलो, पर्पल, ग्रीन को भी अपना सकती हैं.

2. हेयरडू

होली की मस्ती के साथ इसके हानिकारक रंगों से अपने बालों को बचाना भी उतना ही जरुरी होता है. इसलिए अपने बालों को इनसे बचाने के लिए पहले अपने बालों को नारियल तेल से मौइश्चराइज कर लें इसके बाद कोई चिक स्टाइल हेयरडू बनायें. जैसे पोनीटेल, ब्रेडेड बन, फ्रेंच बन या उंची चोटी पर डबल ब्रेड भी कर सकती हैं. हाइ पोनी करके क्यूट ड्रेस के साथ आप और भी क्यूट लगेंगी.

3. नेलआर्ट

अपने नेल्स को नेलपेंट की मदद से कवर करें और इसे होली के रंगों से बचायें. इसके अलावा कुछ युनिक करना चाहते हैं तो होली नेल आर्ट डिजाइन अपने नाखूनों पर बनायें. बेस कोट के अलावा आप अलग-अलग रंगों के साथ अपने नेल्स को सजा सकती हैं.

4. फुटवियर

इस फेस्टिव में हाइ हील्स पहनना सोचें भी नहीं. क्योंकि इवेंट के दौरान आपको रनिंग और डांसिंग भी करनी पड़ेगी तो इसे ध्यान में रखते हुए ही अपनी कंफर्ट के मुताबिक फुटवेयर का चयन करें. शूज का चुनाव करें. बैली या खूबसूरत स्लिपर भी चुन सकती हैं. अगर आप जींस, शार्ट्स के साथ टौप पहन रही हैं तो स्नीकर्स, बैली, लोफर या सिंपल स्लिपर आजमा सकती हैं.

Holi 2023: स्वप्न साकार हुआ- क्या हुआ बबली के साथ

रात में रसोई का काम समेट कर आरती सोने के लिए कमरे में आई तो देखा, उस के पति डा. विक्रम गहरी नींद में सो रहे थे. उन के बगल में बेटी तान्या सो रही थी. आरती ने सोने की कोशिश बहुत की लेकिन नींद जैसे आंखों से कोसों दूर थी. फिर पति के चेहरे पर नजर टिकाए आरती उन्हीं के बारे में सोचती रही.

डा. विक्रम सिंह कितने सरल और उदार स्वभाव के हैं. इन के साथ विवाह हुए 6 माह बीत चुके हैं और इन 6 महीनों में वह उन्हें अच्छी तरह पहचान गई है. कितना प्यार और अपनेपन के साथ उसे रखते हैं. उसे तो बस, ऐसा लगता है जैसे एक ही झटके में किसी ने उसे दलदल से निकाल कर किसी महफूज जगह पर ला कर खड़ा कर दिया है.

उस का अतीत क्या है? इस बारे में कुछ भी जानने की डा. विक्रम ने कोई जिज्ञासा जाहिर नहीं की और वह भी अभी कुछ कहां बता पाई है. लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं कि वह उन को धोखे में रखना चाहती है. बस, उन्होंने कभी पूछा नहीं इसलिए उस ने बताया नहीं. लेकिन जिस दिन उन्होंने उस के अतीत के बारे में कुछ जानने की इच्छा जताई तो वह कुछ भी छिपाएगी नहीं, सबकुछ सचसच बता देगी.

इसी के साथ आरती का अतीत एक चलचित्र की तरह उस की बंद आंखों में उभरने लगा. वह कहांकहां छली गई और फिर कैसे भटकतेभटकते वह मुंबई की बार गर्ल से डा. विक्रम सिंह की पत्नी बन अब एक सफल घरेलू औरत का जीवन जी रही है.

आज की आरती अतीत में मुंबई की एक बार गर्ल बबली थी. बार बालाओं के काम पर कानूनन रोक लगते ही बबली ने समझ लिया था कि अब उस का मुंबई में रह कर कोई दूसरा काम कर के अपना पेट भरना संभव नहीं है.

मुंबई के एक छोर से दूसरे छोर तक, जिधर भी जाएगी, लोगों की पहचान से बाहर न होगी. अत: उस ने मुंबई छोड़ देने का फैसला किया. गुजरात के सूरत जिले में उस की सहेली चंदा रहती थी. उस ने उसी के पास जाने का मन बनाया और एक दिन कुछ जरूरी कपड़े तथा बचा के रखी पूंजी ले कर सूरत के लिए गाड़ी पकड़ ली.

सूरत पहुंचने से पहले ही बबली ने चंदा के यहां जाने का अपना विचार बदल दिया क्योंकि ताड़ से गिर कर वह खजूर पर अटकना नहीं चाहती थी. चंदा भी सूरत में उसी तरह के धंधे से जुड़ी थी.

बबली के लिए सूरत बिलकुल अजनबी व अपरिचित शहर था जहां वह अपने पुराने धंधे को छोड़ कर नया जीवन शुरू करना चाहती थी. इसीलिए शहर के मुख्य बाजार में स्थित होटल में एक कमरा किराए पर लिया और कुछ दिन वहीं रहना ठीक समझा ताकि इस शहर को जानसमझ सके.

बबली को जब कुछ अधिक समझ में नहीं आया तो कुकरी का 3 माह का कोर्स उस ने ज्वाइन कर लिया. इसी दौरान बबली सरकारी अस्पताल से कुछ दूरी पर संभ्रांत कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. कोर्स सीखने के दौरान ही उस ने अपने मन में दृढ़ता से तय कर लिया कि अब एक सभ्य परिवार में कुक का काम करती हुई वह अपना आगे का जीवन ईमानदारी के साथ व्यतीत करेगी.

कुकरी की ट्रेनिंग के बाद बबली को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जल्दी ही उसे एक मनमाफिक विज्ञापन मिल गया और पता पूछती हुई वह सीधे वहां पहुंची. दरवाजे की घंटी बजाई तो घर की मालकिन वसुधा ने द्वार खोला.

बबली ने अत्यंत शालीनता से नमस्कार करते हुए कहा, ‘आंटी, अखबार में आप का विज्ञापन पढ़ कर आई हूं. मेरा नाम बबली है.’

‘ठीक है, अंदर आओ,’ वसुधा ने उसे अंदर बुला कर इधरउधर की बातचीत की और अपने यहां काम पर रख लिया.

अगले दिन से बबली ने काम संभाल लिया. घर में कुल 3 सदस्य थे. घर के मालिक अरविंद सिंह, उन की पत्नी वसुधा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा बेटा राजन.

बबली के हाथ का बनाया खाना सब को पसंद आता और घर के सदस्य जब तारीफ करते तो उसे लगता कि उस की कुकरी की ट्रेनिंग सार्थक रही. दूसरी तरफ बबली का मन हर समय भयभीत भी रहता कि कहीं किसी हावभाव से उस के नाचनेगाने वाली होने का शक किसी को न हो जाए. यद्यपि इस मामले में वह बहुत सजग रहती फिर भी 5-6 सालों तक उसी वातावरण में रहने से उस का अपने पर से विश्वास उठ सा गया था.

एक दिन शाम के समय परिवार के तीनों सदस्य आपस में बातचीत कर रहे थे. बबली रसोई में खाना बनाने के साथसाथ कोई गीत भी गुनगुना रही थी कि राजन की आवाज कानों में पड़ी, ‘बबलीजी, एक गिलास पानी दे जाना.’

गाने में मगन बबली ने गिलास में पानी भरा और हाथ में लिए ही अटकतीमटकती चाल से राजन के पास पहुंची और उस के होंठों से गिलास लगाती हुई बोली, ‘पीजिए न बाबूजी.’

राजन अवाक् सा बबली को देखता रह गया. वसुधा और अरविंद को भी उस का यह आचरण अच्छा न लगा पर वे चुप रह गए. अचानक बबली जैसे सोते से जागी हो और नजरें नीची कर के झेंपती हुई वहां से हट गई. बाद में उस ने अपनी इस गलती के लिए वसुधा से माफी मांग ली थी.

आगे सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहा. बबली को काम करते हुए लगभग 2 माह बीत चुके थे. एक दिन शाम को वसुधा क्लब जाने के लिए तैयार हो रही थीं कि पति अरविंद भी आफिस से आ गए. वसुधा ने बबली से चाय बनाने को कहा और अरविंद से बोली, ‘मुझे क्लब जाना है और घर में कोई सब्जी नहीं है. तुम ला देना.’

‘डार्लिंग, अभी तो मुझे जाना है. हां, 1 घंटे बाद जब वापस आऊंगा तो उधर से ही सब्जी लेता आऊंगा,’ अरविंद बोले.

‘लेकिन सब्जी तो इसी समय के लिए चाहिए,’ वसुधा बोली, ‘ऐसा कीजिए, बबली को अपने साथ लेते जाइए और सब्जी खरीद कर इसे ही दे दीजिएगा. यह लेती आएगी.’

चाय पीने के बाद अरविंद ने बबली से चलने को कहा तो वह दूसरी तरफ का आगे का दरवाजा खोल कर उन की बगल की सीट पर धम से बैठ गई और जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, अचानक अरविंद के कंधे पर हाथ मार कर बबली बोली, ‘अपन को 1 सिगरेट चाहिए, है क्या?’

अरविंद चौंक से गए. यह कैसी लड़की है? फिर बबली की आवाज कानों में पड़ी, ‘लाओ न बाबूजी, सिगरेट है?’

अरविंद ने गाड़ी रोक दी और उस की तरफ देखते हुए जोर से बोले, ‘बबली, आज तू पागल हो गई है क्या? सिगरेट पीएगी?’

अरविंद की आवाज बबली के कानों में गरम लावे जैसी पड़ी. तंद्रा टूटते ही उसे लगा कि अतीत के दिनों की आदतें उस पर न चाहते हुए भी जबतब हावी हो जाती हैं. अपने को संभालती हुई बबली बोली, ‘अंकल, आज मैं बहुत थकी हुई थी. आप की गाड़ी में हवा लगी तो झपकी आ गई. उसी में पता नहीं कैसेकैसे सपने आने लगे. जैसे कोई सिगरेट पीने को मांग रहा हो. माफ कीजिए अंकल, गलती हो गई.’ हाथ जोड़ कर बबली गिड़गिड़ाई.

अरविंद को बबली की यह बात सच लगी और वह चुप हो गए. कार आगे बढ़ी. ढेर सारी सब्जियां खरीदवा कर अरविंद ने बबली को घर छोड़ा और अपने काम से चले गए.

अरविंद ने इस घटना का घर पर कोई जिक्र नहीं किया. वह अनुमान भी नहीं लगा सके कि बबली बार बाला है पर उस की कमजोरी को उन्होंने भांप लिया था.

बबली को अपनी इस फूहड़ता पर बड़ी ग्लानि हुई. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सावधान रहने पर भी उस से बारबार गलती क्यों हो जाती है. उस ने दृढ़ निश्चय किया कि वह भविष्य में अपने पर नियंत्रण रखेगी ताकि उस का काला अतीत आगे के जीवन में अपनी कालिमा न फैला सके.

बीतते समय के साथ सबकुछ सामान्य हो गया. बबली अपने काम में इस कदर तल्लीन हो गई कि सिगरेट मांगने वाली घटना को भूल ही गई.

एक दिन वसुधा ने बबली को चाबी पकड़ाते हुए कहा, ‘मुझे दोपहर बाद एक सहेली के घर जन्मदिन पार्टी में जाना है, तुम समय से आ कर खाना बना देना. मुझे लौटने में देर हो सकती है. राजन तो आज होस्टल में रुक गया है लेकिन अरविंदजी को समय से खाना खिला देना.’

‘जी, आंटी, लेकिन अगर साहब को आने में देर होगी तो मैं मेज पर उन का खाना लगा कर चली जाऊंगी.’

‘ठीक है, चली जाना.’

शाम को जल्दी आने की जगह बबली कुछ देर से आई तो देखा दरवाजा अंदर से बंद है. उस ने दरवाजे की घंटी बजाई तो अरविंद ने दरवाजा खोला. उसे कुछ संकोच हुआ. फिर भी काम तो करना ही था. सो अंदर सीधे रसोई में जा कर अपने काम में लग गई.

बरतन व रसोई साफ करने के बाद बबली बैठ कर सब्जी काट रही थी कि अरविंद ने कौफी बनाने के लिए बबली से कहा.

कौफी बना कर बबली उसे देने के लिए उन के कमरे में गई तो देखा, वह पलंग पर लेटे हुए थे और उन्होंने इशारे से कौफी की ट्रे को पलंग की साइड टेबल पर रखने को कहा.

बबली ने अभी कौफी की ट्रे रखी ही थी कि उन्होंने उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया. वह धम से उन के ऊपर गिर पड़ी. उसे अपनी बांहों में भरते हुए अरविंद ने कहा, ‘जानेमन, तुम ने तो कभी मौका नहीं दिया, लेकिन आज यह सुअवसर मेरे हाथ लगा है.’

बबली अपने को उन के बंधन से छुड़ाते हुए बोली, ‘छोडि़ए अंकल, क्या करते हैं?’

लेकिन अरविंद ने उसे छोड़ने की जगह अपनी बांहों में और भी शक्ति के साथ जकड़ लिया. अपने बचने का कोई रास्ता न देख कर बबली ने हिम्मत कर के एक जोरदार तमाचा अरविंद के गाल पर जड़ दिया. अप्रत्याशित रूप से पड़े इस तमाचे से अरविंद बौखला से गए.

‘दो कौड़ी की छोकरी, तेरी यह हिम्मत,’ कहते हुए अरविंद उस पर जानवरों जैसे टूट पड़े थे कि तभी दरवाजे की घंटी बज उठी और उन की पकड़ एकदम ढीली पड़ गई.

बबली को लगा कि जान में जान आई और भाग कर उस ने दरवाजा खोल दिया. सामने वसुधा खड़ी थी. उन से बिना कुछ कहे बबली रसोई में खाना बनाने चली गई.

खाना बनाने का काम समाप्त कर बबली जाने के लिए वसुधा से कहने आई. वसुधा ने देखा खानापीना सबकुछ तरीके से मेज पर सज गया था. उस की प्रशंसा करती हुई वसुधा ने कहा, ‘बबली, मुझे तुम्हारा काम बहुत पसंद आता है. मैं जल्दी ही तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी.’

इतने समय में बबली ने निश्चय कर लिया कि अब वह इस घर में काम नहीं करेगी. अत: दुखी स्वर में बोली, ‘आंटी, इतने दिनों तक आप के साथ रह कर मैं ने बहुत कुछ सीखा है लेकिन कल से मैं आप के घर में काम नहीं करूंगी. मुझे क्षमा कीजिएगा…मेरा भी कोई आत्म- सम्मान है जिसे खो कर मुझे कहीं भी काम करना मंजूर नहीं है.’

‘अरे, यह तुझे क्या हो गया? मैं ने तो कभी भी तुझे कुछ कहा नहीं,’ वसुधा ने जानना चाहा.

‘आप ने तो कभी कुछ नहीं कहा आंटी, पर मैं…’ रुक गई बबली.

अब वसुधा का माथा ठनका. वह सीधे अरविंद के कमरे में पहुंचीं और बोलीं, ‘आज आप ने बबली को क्या कह दिया कि वह काम छोड़ कर जाने को तैयार है?’

अरविंद ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘हां, थोड़ा डांट दिया था. कौफी पलंग पर गिरा दी थी. लेकिन कह दो, अब कभी कुछ नहीं कहूंगा.’

पति की बात को सच मान कर वसुधा ने बबली को बहुतेरा समझाया लेकिन वह काम करने को तैयार नहीं हुई.

घर आ कर पहले तो बबली की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे. अगले दिन जब तनावरहित हो कर वह आगे के जीवन के बारे में सोच रही थी तो उसे पड़ोस में रहने वाली हमउम्र नर्स का ध्यान आया. बस, उस के मन में खयाल आया कि क्यों न वह भी नर्स की ट्रेनिंग ले कर नर्स बन जाए और अपने को मानव सेवा से जोड़ ले. इस से अच्छा कोई दूसरा कार्य नहीं हो सकता.

उस नर्स से मिल कर बबली ने पता कर के नर्स की ट्रेनिंग के लिए आवेदनपत्र भेज दिया और कुछ दिनों बाद उस का चयन भी हो गया. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उसे सरकारी अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई. नर्स के सफेद लिबास में वह बड़ी सुंदर व आकर्षक दिखती थी.

अस्पताल में डा. विक्रम सिंह की पहचान अत्यंत शांत, स्वभाव के व्यवहारकुशल और आकर्षक व्यक्तित्व वाले डाक्टर के रूप में थी. बबली को उन्हीं के स्टाफ में जगह मिली, तो साथी नर्सों से पता चला कि डा. विक्रम विधुर हैं. 2 साल पहले प्रसव के दौरान उन की पत्नी का देहांत हो गया था. उन की 1 साढ़े 3 साल की बेटी भी है जो अपनी दादीमां के साथ रहती है. इस हादसे के बाद से ही डा. विक्रम शांत रहने लगे हैं.

उन के बारे में सबकुछ जान लेने के बाद बबली के मन में डाक्टर के प्रति गहरी सहानुभूति हो आई. बबली का हमेशा यही प्रयास रहता कि उस से कोई ऐसा काम न हो जाए जिस से डा. विक्रम को किसी परेशानी का सामना करना पड़े.

अब सुबहशाम मरीजों को देखते समय बबली डा. विक्रम के साथ रहती. इस तरह साथ रहने से वह डा. विक्रम के स्वभाव को अच्छी तरह से समझ गई थी और मन ही मन उन को चाहने भी लगी थी लेकिन उस में अपनी चाहत का इजहार करने की न तो हिम्मत थी और न हैसियत. वह जब कभी डाक्टर को ले कर अपने सुंदर भविष्य के बारे में सोचती तो उस का अतीत उस के वर्तमान और भविष्य पर काले बादल बन छाने लगता और वह हताश सी हो जाती.

एक दिन डा. विक्रम ने उसे अपने कमरे में बुलाया तो वह सहम गई. लगा, शायद किसी मरीज ने उस की कोई शिकायत की है. जब वह डरीसहमी डाक्टर के कमरे में दाखिल हुई तो वहां कोई नहीं था.

डा. विक्रम ने बेहद गंभीरता के साथ उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह पहले तो हिचकिचाई पर डाक्टर के दोबारा आग्रह करने पर बैठ गई. कुछ इधरउधर की बातें करने के बाद

डा. विक्रम ने स्पष्ट शब्दों में पूछा, ‘मिस बबली, आप के परिवार में कौनकौन हैं?’

‘सर, मैं अकेली हूं.’

‘नौकरी क्यों करती हो? घर में क्या…’ इतना कहतेकहते डा. विक्रम रुक गए.

‘जी, आर्थिक ढंग से मैं बहुत कमजोर हूं,’ डाक्टर के सवाल का कुछ और जवाब समझ में नहीं आया तो बबली ने यही कह दिया.

डा. विक्रम बेहिचक बोले, ‘बबलीजी, आप को मेरी बात बुरी लगे तो महसूस न करना. दरअसल, मैं आप को 2 कारणों से पसंद करता हूं. एक तो आप मुझे सीधी, सरल स्वभाव की लड़की लगती हो. दूसरे, मैं अपनी बेटी के लिए आप जैसी मां के आंचल की छांव चाहता हूं. क्या आप मेरा साथ देने को तैयार हैं?’

बबली ने नजरें उठा कर डा. विक्रम की तरफ देखा और फिर शर्म से उस की पलकें झुक गईं. उसे लगा जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. लेकिन सामने वह खामोश ही रही.

उसे चुप देख कर डा. विक्रम ने फिर कहा, ‘मैं आप पर दबाव नहीं डालना चाहता बल्कि आप की इच्छा पर ही मेरा प्रस्ताव निर्भर करता है. सोच कर बताइएगा.’

बबली को लगा कहीं उस के मौन का डा. विक्रम गलत अर्थ न लगा लें. इसलिए संकोच भरे स्वर में वह बोली, ‘आप जैसे सर्वगुण संपन्न इनसान के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए मुझे सोचना क्या है? लेकिन मेरा अपना कोई नहीं है, मैं अकेली हूं?’

बबली का हाथ अपने हाथों में ले कर अत्यंत सहज भाव से डा. विक्रम बोले, ‘कोई बात नहीं, हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’

बबली अधिक बोल न सकी. बस, कृतज्ञ आंखों से डा. विक्रम की तरफ देख कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी.

विवाह से पहले विक्रम ने बबली को अपनी मां से मिलवाना जरूरी समझा. बेटे की पसंद की मां ने सराहना की.

बबली से कोर्ट मैरिज के बाद डा. विक्रम ने एक शानदार रिसेप्शन का आयोजन किया, जिस में उन के सभी रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त तथा अस्पताल के सभी डाक्टर, नर्स व कर्मचारी शामिल हुए. हां, रिसेप्शन के निमंत्रणपत्र पर डा. विक्रम सिंह ने बबली का नाम बदल कर अपनी दिवंगत पत्नी के नाम पर आरती रख दिया था.

उन्होंने बबली से कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि तुम को बबली के स्थान पर आरती नाम से पुकारूं. तुम को कोई आपत्ति तो न होगी?’

बबली उन की आकांक्षा को पूरापूरा सम्मान देना चाहती थी इसलिए सहज भाव से बोली, ‘आप जैसा चाहते हैं मुझे सब स्वीकार है. आप की आरती बन कर आप की पीड़ा को कम कर सकूं और तान्या को अपनी ममता के आंचल में पूरा प्यार दे सकूं इस से बढ़ कर मेरे लिए और क्या हो सकता है?’ इस तरह वह बबली से आरती बन गई.

अचानक तान्या के रोने की आवाज सुन कर बबली की तंद्रा टूटी तो वह उठ कर बैठ गई. सुबह हो गई थी. विक्रम अभी सो रहे थे. तान्या को थपकी दे कर बबली ने चुप कराया और उस के लिए दूध की बोतल तैयार करने किचन की तरफ बढ़ गई.

विक्रम की सहृदयता और बड़प्पन के चलते आज सचमुच सम्मान के साथ जीने की उस की तमन्ना का स्वप्न साकार हो गया और वह अपनी मंजिल पाने में सफल हो गई.

Women’s Day 2023: मां का घर- भाग 3

आज पूजा को पुरानी सारी बातें याद आ रही हैं. जब तक वह मां के साथ थी, हर समय उन पर हावी रहती, ‘मां, आप अपनी सहेलियों को घर न बुलाया करें, कितना बोर करती हैं. हर समय वही बात, शादी कब करोगी, कोई बौयफें्रड है क्या? आप की वह सफेद बालों वाली सहेली मोहिनीजी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कितना तेज बोलती हैं और कितना ज्यादा बोलती हैं.’

‘मैं ने मां को समझा ही नहीं,’ पूजा बुदबुदाई और उठ खड़ी हुई. सुप्रिया ने टोका, ‘‘कहां चली, पूजा?’’

‘‘मां को ढूंढ़ने.’’ ‘‘कहां?’’

‘‘पता नहीं, सुप्रिया. पर एक बार मैं उन से मिल कर माफी मांगना चाहती हूं.’’ ‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं,’’ सुप्रिया ने कहा.

अगले दिन सुवीर ने दोनों सहेलियों को हवाई जहाज से मुंबई भेजने की व्यवस्था कर दी. वह खुद भी साथ जाना चाहता था पर पूजा ने कहा, ‘‘जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी. मुंबई हमारी जानीपहचानी जगह है.’’

सुप्रिया के मायके में सामान रख दोनों सहेलियां सब से पहले कांदिवली पूजा के घर गईं. पूजा धीरा आंटी के घर पहुंची तो उसे देख कर वे चौंक गईं, ‘‘अरे पूजा, तू? अनुराधा की कोई खबर मिली?’’ ‘‘यही तो पता करने आई हूं. आप बता सकती हैं कि मां की वे सहेलियां कहां रहती हैं जो हमारे घर कभीकभी आती थीं?’’

धीरा आंटी सोचने लगीं, फिर बोलीं, ‘‘सब के बारे में तो नहीं जानती, पर बैंक में तुम्हारी मां के साथ काम करने वाली आनंदी को मैं ने कई बार उन के साथ देखा था बल्कि 10 दिन पहले भी आनंदी यहां आई थीं.’’ ‘‘मां ने आप से अपने जाने को ले कर कुछ कहा था…’’

‘‘नहीं पूजा, तुम्हारी मां हम लोगों से कम ही बोलती थीं. दरअसल, 10 साल पहले जब तुम्हारी मां ने शादी की थी, तब से…’’ कहतेकहते अपने होंठ काट लिए धीरा ने. ‘‘मां की शादी?’’ पूजा को झटका लगा. वह गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘‘प्लीज आंटी, आप मुझे सबकुछ सचसच बताइए. शायद आप की बातों से मुझे मां गई कहां हैं यह पता चल जाए?’’

धीरा गंभीर हो कर बताने लगीं, ‘‘तुम समीरजी के बारे में तो जानती ही हो. जिस दिन तुम्हारी मां को पता चला कि समीर बीमार हैं, उन्हें टी.बी. हो गई है, तुम्हारी मां ने घबरा कर मुझे ही फोन किया था. मैं और वे अच्छी सहेली थीं और अपना दुखदर्द बांटा करती थीं. मैं ने तुम्हारी मां को अपने घर बुलाया. समीर अनुराधा की जिंदगी में ताजा हवा का झोंका थे. तुम्हारी मां उन का बहुत सम्मान करती थीं और प्यार भी करती थीं. मैं अनुराधा को ले कर समीर के पास गई थी. समीर की हालत वाकई खराब थी. अनुराधा ही समीर को ले कर अस्पताल गईं लेकिन उन की जिंदगी में तो जैसे चैन था ही नहीं.’’ ‘‘क्या हुआ? समीर अंकल अच्छे तो हो गए?’’ पूजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘हमारे पहुंचने से पहले वहां समीर के मातापिता आ गए थे. उन्होंने अनुराधा के सामने यह शर्त रखी कि वह समीर से शादी करे वरना वे उस की शादी कहीं और कर देंगे. बीमार समीर को जीवनसाथी की जरूरत है और अब बूढ़े मांबाप में इतनी शक्ति नहीं कि उस की देखभाल कर सकें. ‘‘समीर बैंक में नौकरी करते थे, देखने में अच्छे थे, एक पैर ठीक नहीं था तो क्या, कोई न कोई लड़की तो मिल ही जाती. समीर के मातापिता का दिल रखने के लिए अनुराधा और समीर ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली.

‘‘मुझे अनुराधा का यों शादी करना अच्छा नहीं लगा. शायद इस की वजह यह थी कि तुम मां की शादी का विरोध कर चुकी थीं. उस समय मैं भी अनुराधा से नाराज हो गई. इस के बाद हमारे संबंध पहले जैसे न रहे,’’ इतना कहतेकहते धीरा की आवाज भर्रा गई. पूजा की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आंटी, हम औरतें ही दूसरी औरतों को जीने नहीं देतीं. मां की खुशी हमें बरदाश्त नहीं हुई.’’

धीरा ने सिर हिलाया, ‘‘आज पलट कर सोचती हूं तो अपने ऊपर ग्लानि हो आती है. काश, मैं ने उस समय अनुराधा को समझा होता.’’ पूजा भी मन ही मन यही सोच रही थी कि काश, उस ने मां को समझा होता.

धीरा ने अचानक कहा, ‘‘हो सकता है, मोहिनी को अनुराधा के बारे में पता हो. वह यहीं पास में रहती है. चलो, मैं भी चलती हूं तुम्हारे साथ.’’ धीरा फौरन साड़ी बदल आईं. तीनों एक आटो में बैठ कर दहिसर की तरफ चल पड़ीं. पूजा अरसे बाद मोहिनीजी से मिल रही थी. उन के पूरे बाल सफेद हो गए थे. पूजा के साथ धीरा और सुप्रिया को देख वे ठिठकीं. पूजा आगे बढ़ कर उन के गले लग कर रोने लगी. मोहिनी ने पूजा को बांहों में भींच लिया और पुचकारते हुए कहा, ‘‘मत रो बेटी, तुझे यहां देख कर मुझे एहसास हो गया है कि तू बहुत बदल गई है.’’

‘‘मुझे मां के पास ले चलिए, मौसी,’’ पूजा ने रोंआसी आवाज में कहा. मोहिनीजी ने पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मां को ढूंढ़ती हुई इतनी दूर आई हो तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगी. लेकिन बेटी, अनुराधा को और तकलीफ मत देना, बहुत दिनों बाद मैं ने उसे हंसते देखा है, सालों बाद वह अपनी जिंदगी जी रही है.’’

अगले दिन जब पूजा और सुप्रिया मोहिनी के साथ इगतपुरी जाने को निकलने लगीं तो धीरा भी साथ चल पड़ीं. सुबह की बस थी. दोपहर से पहले वे इगतपुरी पहुंच गईं. वहां से एक जीप में बैठ कर वे आगे के सफर पर चल पड़ीं. जीप पेड़पौधों से ढके एक घर के सामने रुकी. घर के अंदर से वीणा वादन की आवाज आ रही थी.

मोहिनी ने दरवाजा खटखटाया तो एक कुत्ता बाहर निकल आया और उन्हें देख कर भौंकने लगा. अंदर से आवाज आई, ‘‘विदूषक, इतना हल्ला क्यों मचा रहे हो? कौन आया है?’’ अनुराधा की आवाज थी. जब वे सामने आईं तो पूजा के दिल की धड़कन जैसे रुक ही गई. सलवारकमीज और खुले बालों में वे अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं. माथे पर टिकुली, मांग में हलका सा सिंदूर और हाथों में कांच की चूडि़यां. भराभरा चेहरा. पूजा पर नजर पड़ते ही अनुराधा सन्न रह गईं. पूजा दौड़ती हुई उन के गले लग गई.

मांबेटी मिल कर रोने लगीं. पूजा ने किसी तरह अपने को जज्ब करते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर सकोगी?’’ अनुराधा ने सिर हिलाया और बेटी को कस कर भींच लिया.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? मुझे उन से मिलना है,’’ पूजा की आवाज में बेताबी थी. अनुराधा उन सब को ले कर अंदर गई. समीर रसोई में सब्जी काट रहे थे. पूजा उन के पास गई तो समीर ने उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘वेलकम होम बिटिया.’’

अनुराधा को कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूजा समझ गई कि साल में 2 बार मां 10 दिन के लिए कहां जाती थीं. क्यों चाहती थीं कि पूजा शादी कर अपने घर में खुश रहे. शाम को बरामदे में सब बैठे थे. पूजा ने सिर मां की गोद में रखा था. वह दोपहर से न जाने कितनी बार रो चुकी थी. मां का हाथ एक बार फिर चूम वह भावुक हो कर बोली, ‘‘मां, मैं कितनी पागल थी. औरत हो कर तुम्हारा दिल न समझ सकी. आज जब मैं अपने परिवार में खुश हूं तो मुझे एहसास हो रहा है कि तुम मेरी वजह से सालों से अपने पति से अलग रहीं.’’

अनुराधा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की बेटी के साथसाथ उस की पुरानी सहेली धीरा भी लौट आई है, उस की खुशियों में शरीक होने. रात को सुवीर का फोन आया तो पूजा उत्साह से बोली, ‘‘पता है सुवीर, मेरे साथ दिल्ली कौन आ रहा है? मां और पापा. दोनों कुछ दिन हमारे साथ रहेंगे, फिर हम जाएंगे दीवाली में उन्हें छोड़ने.’’ अनुराधा और समीर मुसकरा रहे थे. बेटी मायके जो आई है.

Holi 2023: हनीमून- रश्मि और शेफाली के साथ क्या हुआ

ऊंचाई पर मौसम के तेवर कुछ और थे. घाटियों में धुंध की चादरें बिछी थीं. जब भी गाड़ी बादलों के गुबार के बीच से गुजरती तो मुन्नू की रोमांचभरी किलकारी छूट जाती.

ऊंची खड़ी चढ़ाई पर डब्बे खींचते इंजन का दम फूल जाता, रफ्तार बिलकुल रेंगती सी रह जाती. छुकछुक की ध्वनि भकभक में बदल जाती, तो मुन्नू बेचैन हो जाता और कहता, ‘‘मां, गाड़ी थक गई क्या?’’

कहींकहीं पर सड़क पटरी के साथसाथ सरक आती. ऐसी ही एक जगह पर जब सामने खिड़की पर बैठी सलोनी सी लड़की ने बाहर निहारा तो समानांतर सड़क पर दौड़ती कार से एक सरदारजी ने फिकरा उछाला, ‘‘ओए, साड्डे सपनों की रानी तो मिल गई जी.’’

सरदारजी के कहे गए शब्दों को सुन कर लड़की ने सिर खिड़की से अंदर कर लिया.

यद्यपि सर्दी में वहां भीड़भाड़ कम थी, लेकिन फिर भी सर्दी के दार्जिलिंग ने कुछ अलग अंदाज से ही स्वागत किया. ऐसा भी नहीं कि पूरा शहर बिलकुल ही बियावान पड़ा हो. ‘औफ सीजन’ की एकांतता का आनंद उठाने के इच्छुक एक नहीं, अनेक लोग थे.

माल रोड पर मनभावन चहलपहल थी. कहीं हाथों में हाथ, कहीं बांहों में बांहें तो कहीं दिल पर निगाहें. धुंध में डूबी घाटियों की ओर खिड़कियां खोले खड़ा चौक रोमांस की रंगीनी से सरोबार था.

‘‘लगता है, देशभर के नवविवाहित जोड़े हनीमून मनाने यहीं आ गए हैं,’’ रोहित रश्मि का हाथ दबा कर आंख से इशारा करते हुए बोला, ‘‘क्यों, हो जाए एक बार और?’’

‘‘क्या पापा?’’ मुन्ने के अचानक बोलने पर रश्मि कसमसाई और रोहित ने अपनी मस्तीभरी निगाहें रश्मि के चेहरे से हटा कर दूर पहाड़ों पर जमा दीं.

‘‘पापा, आप क्या कह रहे हैं,’’ मुन्ने ने हठ की तो रश्मि ने बात बनाई, ‘‘पापा कह रहे हैं कि वापसी में एक बार और ‘टौय ट्रेन’ में चढ़ेंगे.’’

‘‘सच पापा,’’ किलक कर मुन्नू पापा से लिपट गया. फिर कुछ समय बाद बोला, ‘‘पापा, हनीमून क्या होता है?’’

इस से पहले कि रोहित कुछ कहे, रश्मि बोल पड़ी, ‘‘बेटा, हनीमून का मतलब होता है शादी के बाद पतिपत्नी का घर से कहीं बाहर जा कर घूमना.’’

‘‘मम्मी, क्या आप ने भी कहीं बाहर जा कर हनीमून किया था?’’

‘‘हां, किया था बेटे, नैनीताल में,’’ इस बार जवाब रोहित ने सहज हो कर दिया था.

‘‘क्या आप ने पहाड़ पर चढ़ कर गाना भी गाया था टैलीविजन वाले आंटीअंकल की तरह?’’

‘‘ओह,’’ बेटे के सामान्य ज्ञान पर रश्मि ने सिर थाम लिया और बात को बदलने का प्रयत्न किया.

‘‘नहीं, सब लोग टैलीविजन वाले आंटीअंकल जैसे गाना थोड़े ही गा सकते हैं. चलो, अब हम रोपवे पर घूमेंगे.’’

एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ के बीच की गहरी घाटियों के ऊपर झूलती ट्रालियों में सैर करने की सोच से मुन्ना रोमांचित हो उठा तो रश्मि ने राहत की सांस ली.

पर कहां? मुन्नू को तो नवविवाहित जोड़ों की अच्छी पहचान सी हो गई थी.

उस दिन होटल के ढलान को पार करने के बाद पहला मोड़ घूमते ही पहाड़ी कटाव के छोर पर एक नवविवाहित युगल को देख मुन्नू चहका और पिता के कान में फुसफुसाया, ‘‘पापा, पापा… हनीमून.’’

‘‘हिस,’’ होंठों पर उंगली रख कर रश्मि झेंपी. रोहित ने बेटे को गोद में उठा कर ऊपर हवा में उछाला.

दुनिया से बेखबर, बांहों में बाहें डाले प्रेमीयुगल एकदूसरे को आइसक्रीम खिलाने में मगन थे. उन की देखादेखी मुन्नू भी मचला, ‘‘पापा, हम भी आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘अरे, इतनी सर्दी में आइसक्रीम?’’ रोहित ने बेटे को समझाया.

‘‘वे आंटीअंकल तो खा रहे हैं, पापा?’’ उस ने युगल की ओर उंगली उठा कर इशारा किया.

‘‘वह…वे तो हनीमून मना रहे हैं,’’ मौजमस्ती के मूड में रोहित फिर बहक रहा था.

‘‘हनीमून पर सर्दी नहीं लगती, पापा?’’ मुन्ने ने आश्चर्य जताया.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ रोहित ने शरारतभरा अट्टाहास किया और बेटे को उकसाया, ‘‘अपनी मां से पूछ लो.’’

गुस्से से रश्मि तिलमिला कर रह गई. उस समय तो किसी तरह बात को टाला, पर अवसर मिलते ही पति को लताड़ा, ‘‘तुम भी रोहित, बच्चे के सामने कुछ भी ऊटपटांग बोल देते हो.’’

‘‘शाश्वत तथ्यों का ज्ञान जरूरी नहीं क्या,’’ रोहित ने खींच कर पत्नी को पास बैठा लिया, पर रश्मि गंभीर ही बनी रही.

रश्मि की चुप्पी को तोड़ते हुए रोहित बोला, ‘‘तुम तो व्यर्थ में ही तिल का ताड़ बनाती रहती हो.’’

‘‘मैं तिल का ताड़ नहीं बना रही. तुम सांप को रस्सी समझ रहे हो. जब देखो, बेटे को बगल में बैठा कर टैलीविजन खोले रहते हो. ये छिछोरे गाने, ये अश्लील इशारे, हिंसा, मारधाड़ के नजारे. कभी सोचा है कि इन्हें देखदेख कर क्या कुछ सीखसमझ रहा है हमारा मुन्नू. और अब यहां हर समय का यह हनीमून पुराण के रूप में तुम्हारी ठिठोलबाजी मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’

‘‘अरे, हम छुट्टियां मना रहे हैं, मौजमस्ती का मूड तो बनेगा ही,’’ रोहित रश्मि को बांहों में बांधते हुए बोला.

दार्जिलिंग की वादियों में छुट्टियां बिता कर वापस लौटे तो रोहित कार्यालय के कामों में पहले से भी अधिक व्यस्त हो गया. चूंकि मुन्नू की कुछ छुट्टियां अभी बाकी थीं, इसलिए रश्मि मुन्नू को रचनात्मक रुचियों से जोड़ने के लिए रोज  नईनई चीजों के बारे में बताती. चित्रमय किताबें, रंगारंग, क्रेयंस, कहानियां, कविताएं, लूडो, स्क्रेंबल, कैरम और नहीं तो अपने बचपन की बातें और घटनाएं मुन्नू को बताती.

एक दिन रश्मि बोली, ‘‘पता है मुन्नू, जब हम छोटे थे तब यह टैलीविजन नहीं था. हम तो, बस, रेडियो पर ही प्रोग्राम सुना करते थे.’’

‘‘पर मां, फिर आप छुट्टियों में क्या करती थीं?’’ हैरान मुन्नू ने पूछा.

‘‘छुट्टियों में हम घर के आंगन में तरहतरह के खेल खेलते, घर के पिछवाड़े में साइकिल चलाते और नीम पर रस्सी डाल कर झूला झूलते.’’

मां की बातें सुन कर मुन्नू की हैरानी और बढ़ जाती, ‘‘पर मां, झूला तो पार्क में झूलते हैं और साइकिल तुम चलाने ही नहीं देतीं,’’ इतना कह कर मुन्नू को जैसे कुछ याद आ गया और कोने में पड़े अपने तिपहिया वाहन को हसरतभरी निगाह से देखने लगा.

‘‘मां, मां, कल मैं भी साइकिल चलाऊंगा. शैला के साथ रेस होगी. तुम, बस, मेरी साइकिल नीचे छोड़ कर चली जाना.’’

रश्मि ने बात को हंसी में टालने का यत्न किया. स्वर को रहस्यमय रखते हुए वह बोली, ‘‘और पता है, क्याक्या करते थे हम छुट्टियों में…’’

‘‘क्या मां? क्या?’’ मुन्नू उत्सुकता से उछला.

‘‘गुड्डेगुडि़यों का ब्याह रचाते थे. नाचगाना करते थे. पैसे जोड़ कर पार्टी भी देते थे. इस तरह खूब मजा आता.’’

पर मुन्नू को इस तरह की बातों में उलझाए रखना बड़ा मुश्किल था. चाहे जितना मरजी बहलाओ, फुसलाओ, लेकिन घूमफिर कर वह टैलीविजन पर वापस आ जाता.

‘‘मां, अब मैं टीवी देख लूं?’’

रश्मि मनमसोस कर हामी भरती. कार्टून चैनल चला देती. डिस्कवरी पर कोई कार्यक्रम लगा देती, पर थोड़ी देर बाद इधरउधर होती तो मुन्नू पलक झपकते ही चैनल बदल देता और कमरे में बंदूकों की धायंधायं के साथ मुन्नू की उन्मुक्त हंसी सुनाई देती.

‘नासमझ बच्चे के साथ आखिर कोई कितना कठोर हो सकता है,’ रश्मि सोचती, ‘टैलीविजन न चलाने दूं तो दिनभर दोस्तों के पास पड़ा रहेगा. यह तो और भी बुरा होगा.’ इसी सोच से रश्मि ढीली पड़ जाती और बेटे की बातों में आ जाती.

‘‘मां, हम लोग बुधवार को पिकनिक पर जा रहे हैं,’’ उस दिन शाम को खेल से लौटते ही मुन्नू ने घोषणा की तो रश्मि को बहुत अच्छा लगा.

‘‘पर बेटे, बुधवार को कैसे चलेंगे, उस दिन तो तुम्हारे पापा की छुट्टी नहीं है.’’

‘‘नहीं मां, आप नहीं, हम सब दोस्त मिल कर जाएंगे,’’ मुन्नू ने स्पष्ट शब्दों में मां से कहा.

‘‘रविवार को पिकनिक मनाने हम सब एकसाथ चलेंगे बेटे. तुम अकेले कहां जाओगे?’’

‘‘हम सब जानते थे, यही होगा इसलिए हम लोगों ने छत पर पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बनाया है,’’ मुन्नू किसी वयस्क की तरह बोला.

‘‘ओह, छत पर,’’ रश्मि का विरोध उड़नछू हो गया. मन ही मन वह खुश थी.

‘‘मां…मां, हम लोग दिनभर पिकनिक मनाएंगे. सब दोस्त एकएक चीज ले कर आएंगे,’’ इतना कह कर मुन्नू मां के गले में बांहें डाल कर झूल गया.

‘‘पर तुम सब मिला कर कितने बच्चे हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘चिंटू, मिंटू, सोनल, मीनल, मेघा, विधा…’’ हाथ की उंगलियों पर मुन्नू पहले जल्दीजल्दी गिनता गया, फिर रुकरुक कर याद करने लगा, ‘‘सोनाक्षी, शैला, शालू वगैरह.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ रश्मि ने उसे टोका, ‘‘कागजपैंसिल ले कर याद कर के लिखते जाओ, फिर सब गिन कर बताओ.’’

काम उलझन से भरा था, पर मुन्नू फौरन मान गया.

‘‘सब दोस्त मिल कर बैठो, फिर जरूरी सामान की लिस्ट बना लो. इस से तुम्हें बारबार नीचे नहीं उतरना पड़ेगा,’’ रश्मि ने बेटे को समझाया.

अगले 3 दिन तैयारी और इंतजार में बीते. मुन्नू का मन टैलीविजन से हटा देख रश्मि भी रम गई. वह भी बच्चों के साथ नन्ही बच्ची बन गई. उस का बस चलता तो बच्चों के साथ वह भी पिकनिक पर पहुंच जाती, पर बच्चे बहुत चालाक थे. उन के पास बड़ों का प्रवेश वर्जित था.

नन्हेमुन्नों का उल्लास देखते ही बनता था. आखिर वादविवाद, शोरशराबेभरी तैयारियां पूरी हुईं. पिकनिक वाले दिन मुन्नू मां की एक आवाज पर जाग गया. दूध और नाश्ते का काम भी झट निबट गया. 9 भी नहीं बजे थे कि नहाने और बननेठनने की तैयारी शुरू हो गई.

नहाने के बाद मुन्नू बोला, ‘‘मां, मेरा कुरतापजामा निकालना और अचकन भी.’’

‘‘अरे, तू पिकनिक पर जा रहा है या किसी फैंसी ड्रैस शो में.’’

‘‘नहीं मां, आज तो मैं वही पहनूंगा…’’ स्वर की दृढ़ता से ही रश्मि समझ गई कि बहस की कोई गुंजाइश नहीं है.

‘मुझे क्या,’ वाले अंदाज में रश्मि ने कंधों को सिकोड़ा और नीचे दबे पड़े कुरतापजामा व अचकन को निकाल लाई और प्रैस कर उन की सलवटों को भी सीधा कर दिया.

अचकन का आखिरी बटन बंद कर के रश्मि ने बेटे को अनुराग से निहारा और दुलार से उस के गाल मसले तो बस, छोटे मियां तो एकदम ही लाड़ में आ कर बोले, ‘‘मां…मां, तुम्हें पता है, सिंह आंटी कितनी कंजूस हैं.’’

‘‘मुन्नू…, बुरी बात’’, मां ने टोका.

‘‘सच मां, सब दोस्त कह रहे थे, पता है अंकुश पिकनिक में सिर्फ बिछाने की दरी ला रहा है.’’

‘‘तो क्या? बिछाने की दरी भी तो जरूरी है. फिर सिंह आंटी तो काम

पर भी जाती हैं. कुछ बनाने का समय नहीं होगा.’’

‘‘नकुल की मम्मी औफिस नहीं जातीं क्या? वह भी तो केक और बिस्कुट ला रहा है.’’

‘‘अच्छा, चुप रहो. अंकुश से कुछ कहना नहीं. वह तुम्हारा दोस्त है, मिलजुल कर खेलना,’’ रश्मि बेटे को समझाते हुए बोली.

तभी सामान उठाए सजेधजे शोर मचाते बच्चों के झुंड ने प्रवेश किया. लहंगे, कोटी और गोटेकिनारी वाली चूनर में ठुमकती नन्ही सी विधा अलग ही चमक रही थी.

‘‘आज कितनी सुंदर लग रही है मेरी चुनमुन,’’ लाड़ में आ कर रश्मि ने उसे गोद में उठा लिया.

‘‘पता है आंटी, आज इस की…’’ शादाब कुछ बोलता, उस से पहले मनप्रीत ने उसे जोर से टोक दिया. कुछ बच्चे उंगली होंठों पर रख कर शादाब को चुप रहने का संकेत करने लगे.

रश्मि समझ गई कि जरूर कोई बात है, जो छिपाई जा रही है पर उस ने कुछ भी न कहा, क्योंकि वह जानती थी कि शाम तक इन के सारे भेद बिल्ंिडग का हर एक फ्लैट जान जाएगा. इन नन्हेमुन्नों के पेट में कोई बात आखिर पचेगी भी कब तक?

सभी बच्चे अपनीअपनी डलियाकंडिया उठाए खड़े थे. कुछ मोटामोटा सामान पहले ही छत पर पहुंचाया जा चुका था. रोल की हुई दरी उठाए खड़े 4 बच्चे चलोचलो का शोर मचा रहे थे. मुन्नू की टोकरी भी तैयार थी. लड्डू का डब्बा, मठरियों का डब्बा, पेपर प्लेट्स और पेपर नैपकिंस आदि सभी रखे थे. रश्मि ने टोकरी ऊपर तक पहुंचाने की पेशकश की, पर मुन्नू ने उसे बिलकुल ही नामंजूर कर दिया.

यद्यपि छत की बनावट इस प्रकार की थी कि कोई दुर्घटना न हो, फिर भी रश्मि ने बच्चों को हिदायतें दीं. सबक देना अभिभावकों का स्वभाव जो ठहरा.

‘‘दीवारों पर उचकना नहीं और न ही पानी की टंकी पर, न छत पर. पहुंचते ही लिफ्ट का दरवाजा और फैन बंद कर देना,’’ सुनीसुनाई हिदायतें बारबार सुन कर बच्चे परेशान हो गए थे.

‘‘हम सब देख लेंगे, आप चिंता न करो और आप ऊपर न आना.’’

बाहर बराबर लिफ्ट का दरवाजा धमाधम बज रहा था. ऊपर आनेजाने के चक्कर जारी थे. कुछ बच्चे अभी भी लिफ्ट के इंतजार में बाहर दरवाजे पर खड़े थे. मुन्नू भी उन में शामिल हो गया. तभी 10वीं मंजिल के रोशनजी ने सीढि़यों से उतरते हुए बच्चों को धमकाया, ‘‘क्या धमाचौकड़ी मचा रखी है. बंद करो यह तमाशा. कब से लिफ्ट के इंतजार में था, पर यहां तो तुम लोगों का आनाजाना ही बंद नहीं हो रहा है.’’

बच्चों को डांटते हुए रोशनजी सामने वाले अली साहब के फ्लैट में हो लिए. रश्मि दरवाजे की ओट में थी.

तभी लिफ्ट के वापस आते ही रेलपेल मच गई. वहां खड़े सभी बच्चे अपनीअपनी डलियाकंडिया संभाले लिफ्ट में समा गए.

‘बाय मां’, ‘बाय आंटी’ के स्वर के साथ रश्मि का स्वर भी उभरा, ‘‘बायबाय बच्चो, मजे करो.’’

लिफ्ट के सरकते ही सीढि़यों में सन्नाटा सा छा गया. फ्लैट का दरवाजा बंद करते ही ऊपर से आती आवाजों का आभास भी बंद हो गया.

‘छत कौन सी बहुत दूर है, दिन में कई बार तो चक्कर लगेंगे,’ सोचती हुई रश्मि गृहस्थी सहेजनेसमेटने में जुट गई. सुबह से ही मुन्नू के कार्यक्रम की वजह से घर तो यों फैला पड़ा था जैसे कोई आंधीअंधड़ गुजरा हो.

घर समेट कर रश्मि सुपर बाजार का चक्कर भी लगा आई. दाल, चावल, मिर्च, मसाले, कुछ फलसब्जियां सब खरीद ली. डेढ़ बजे तक सबकुछ साफ संजो कर जमा भी दिया. इस बीच किसी भी बच्चे ने एक बार भी मुंह न दिखाया तो रश्मि को कुछ खटका सा लगा. दबेपांव वह ऊपर जा पहुंची और चुपके से अंदर झांका.

पिकनिक पार्टी जोरों पर थी. सीडी प्लेयर पर ‘दिल तो पागल…’ पूरे जोरशोर से बज रहा था. कुछ बच्चे गाने की धुन पर खूब जोश में झूम रहे थे. अनुराग कैमरा संभाले फोटोग्राफर बना हुआ था. ज्यादातर बच्चे मुन्नू और विधा को घेर कर बैठे थे. कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ सुन रहा था. कुल मिला कर समां सुहाना था. अपनी उपस्थिति जता कर बच्चों की मौजमस्ती में विघ्न डालना रश्मि को उचित न लगा, वह प्रसन्न, निश्ंिचतमन के साथ वापस उतर आई और टैलीविजन पर ‘आंधी’ फिल्म देखने बैठ गई.

लगभग साढ़े 4 बजे के करीब फोन की घंटी ने फिल्म का तिलिस्म तोड़ा, ‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ दूसरी मंजिल की शेफाली थी. वह अपनी नन्ही सी बेटी विधा के लिए बहुत चिंतित थी.

‘‘रश्मि, प्लीज एक बार जा कर देख तो आ. बच्चे तो सुबह के चढ़े एक बार भी नहीं उतरे…’’

‘‘अरे, बताया न, मैं ऊपर गई थी. सब बच्चे मजे में हैं. विधा भी खेल रही थी. देखना कुछ ही देर में उतर आएंगे,’’ रश्मि का सारा ध्यान अपनी फिल्म पर था, पर शेफाली अड़ी रही.

‘‘बस, एक सीढ़ी ही तो ऊपर जाना है. एक बार झांक आ न, प्लीज. मैं ही चली जाती पर कुछ लोग आ गए हैं. विधा ने पता नहीं कुछ खाया भी है कि नहीं. मैं तो समझती हूं वह जरूर सो गई होगी.’’

‘‘अच्छा बाबा, जाती हूं,’’ यद्यपि रश्मि को यह व्यवधान बहुत अखरा था फिर भी टीवी बंद कर के चाबी उठा कर चल पड़ी.

दिनभर के खेल से बच्चे शायद थक चुके थे. ऊपर अपेक्षाकृत शांति थी. छोटेछोटे खेमों में बंटे बच्चे आपस में धीरेधीरे बोल रहे थे. रश्मि ने तलाशा पर विधा और मुन्नू कहीं न दिखे. रश्मि की दृष्टि छत का ओरछोर नाप आई, पर मुन्नू और विधा कहीं न दिखे.

तभी बच्चों की नजर उस पर पड़ी और वे उछलनेकूदने लगे.

‘‘अरे, वे दोनों कहां गए,’’ पलभर को उछलकूद बंद हो गई और एकदम खामोशी छा गई. कुछ बच्चे हंसे, कुछ खिलखिलाए कुछ केवल मुसकराए. अजब रहस्यमय समां बंध गया था. रश्मि को अचरज भी हुआ और मन में डर भी लगा. इस बार उस ने कुछ जोर से पूछा, ‘‘कहां हैं मुन्नू और विधा?’’

उस की उत्तेजना पर बच्चे कुछ सकपका से गए. तब सोनाली ने भेद खोल दिया, ‘‘आंटी, हम ने तो उन की शादी कर दी.’’

‘‘क्या?’’ कुतूहल से उस की ओर देखती हुई रश्मि ने पूछा.

‘‘हां आंटी, छोटे में जैसे आप गुड्डेगुडि़यों की शादी करते थे न, वैसे ही…’’ तनय ने बात को और अधिक स्पष्ट किया.

‘‘पार्टी भी हुई आंटी…’’ प्रियज नाश्ते की प्लेट सजा लाया.

‘‘चलो, बड़ा काम निबट गया,’’ रश्मि ने चैन की सांस ली और केक का टुकड़ा खाते हुए बोली, ‘‘वे दोनों हैं कहां?’’

‘‘वे दोनों तो हनीमून पर चले गए.’’

‘‘क्या?’’ केक गले में जा अटका. रश्मि को जोर की खांसी आ गई.

‘‘पर कहां?’’ सहमनेसकपकाने की बारी अब रश्मि की थी. क्या पूछे, शब्द उसे ढूंढ़े न मिल रहे थे कि तभी उस की नजर दूर पानी की टंकी के पार से झांकती दो जोड़ी नन्हीमुन्नी टांगों पर जा पड़ी.

‘‘हूं, नदी के किनारे नहीं तो पानी की टंकी के पार ही सही, पट्ठों ने क्या जगह चुनी है हनीमून के लिए. जरा देखूं तो सही…’’

बच्चों का इरादा भांपते देर न लगी. सभी एक स्वर में बोले, ‘‘आंटी, शेमशेम. आप उधर कैसे जाएंगी?’’ रश्मि भौचक रह गई.

अब इस वर्जना को चुनौती दे कर नए जोड़े की एकांतता में खलल डाल खलनायिका बनने का साहस रश्मि में न था. इसलिए उस ने सहज दिखने का यत्न किया.

‘‘ठीक है, जाती हूं,’’ कंधे उचका कर वह मुसकराई और वापस पलटी. अपनी जीत पर बच्चों ने जोर का हुल्लड़ किया.

बेटा बिना बताए ही हनीमून पर निकल जाए तो मां अपने दिल को

कैसे समझाए, रश्मि से भी रहा न

गया. रेलिंग के साथ लगी सीमेंट की जाली में से अंदर का दृश्य साफ दिखाई दे रहा था.

लहंगा इधर तो चूनर उधर. दुलहन नींद से निढाल थी, पर रोमांच की रंगीनी को कायम रखने के प्रयत्न में दूल्हे ने एकलौते साझे लौलीपौप को पहले खुद चाटा, फिर लुढ़कतीपुढ़कती दुलहन के मुंह में ठूंस दिया.

‘हाय, 21वीं सदी का यह लौलीपौप लव,’ रश्मि सिर पीट कर रह गई, ‘चलूं, शेफाली को उस की बेटी की करतूतें बता दूं तथा लगेहाथ उसे खुशखबरी भी सुना दूं कि अब हम समधिन बन गई हैं,’ यह सोच कर रश्मि शेफाली के घर चल दी.

Holi 2023: होली पार्टी के लिए 10 टिप्स

होली वाले दिन सुबह से ही बच्चे धमाचौकड़ी मचाना प्रारम्भ कर देते हैं तो बड़े भी उत्साह से लबरेज नजर आते हैं, त्योहारों पर परिवार और दोस्तों के साथ  पार्टी त्यौहार को और अधिक रंगीन बना देती हैं. कोई भी विशेष अवसर हो सबसे ज्यादा मुसीबत हम महिलाओं की होती है क्योंकि उनका तो अधिकांश समय किचिन में ही बीतता है जिससे वे पार्टी का आनन्द ही नहीं ले पातीं हैं परन्तु यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाये तो आप भी होली की पार्टी का भरपूर आनन्द उठा सकतीं हैं.

1-परिवार के सभी सदस्यों के होली पर पहनने वाले कपड़े पहले से ही धो प्रेस करके रख दें ताकि होली वाले के दिन आपको परेशान न होना पड़े.

2-रंग, गुलाल, अबीर, पिचकारी आदि को एक ही स्थान पर रखकर परिवार के सभी सदस्यों को बता दें ताकि आप उनके प्रश्नों से बची रहकर अन्य कामों पर ध्यान दे सकें.

3-पानी की व्यवस्था घर से बाहर करने के साथ साथ बच्चों को बार बार घर में न आने की सख्त हिदायत दें ताकि घर गंदा होने से बचा रहे.

4-घर के सोफों, दीवान आदि के कवर आदि हटा दें या पुराने कवर लगा दें ताकि ये रंगों से बचे रहें, हो सके तो मेहमानों के बैठने के लिए प्लास्टिक की कुर्सियों का प्रयोग करें.

5-घर में आने वाले मेहमानों के लिए नाश्ता एक ट्रे में लगाकर पेपर से ढक दें यदि सम्भव हो तो सर्व करने के लिए डिस्पोजल प्लेट्स और कटोरियों का प्रयोग करें.

6-ठंडाई, शरबत, लस्सी, छाछ या मॉकटेल जो भी ड्रिंक आप मेहमानों को सर्व करना चाहतीं हैं उन्हें पहले से ही बनाकर मेहमानों की संख्या के अनुसार डिस्पोजल ग्लासों में डालकर सिल्वर फॉयल या क्लिंग फिल्म से कवर करके फ्रिज में रख दें.

7-ताजे नाश्ते की जगह गुझिया, मठरी, शकरपारे, सेव, सूखी बेसन कचौरी, समोसे, दही बड़ा  जैसे सूखे नाश्ते को प्राथमिकता दें ताकि मेहमानों के आने पर आपको परेशान न होना पड़े.

8-डेजर्ट में आप फ्लेवर्ड कुल्फी, आइसक्रीम, रबड़ी आदि को प्राथमिकता दें, साथ ही इन्हें सर्विंग बाउल में डालकर सिल्वर फॉयल से ढककर रखें ताकि पार्टी के बीच में आपको परेशान न होना पड़ें.

9-यदि आप मेहमानों पर अपना प्रभाव जमाना चाहतीं हैं तो चुकन्दर, पालक, हरे धनिया, आदि का प्रयोग करके आलू स्टफ्ड इडली, पनीर स्टफ्ड अप्पे या टमाटरी सेव आदि बनाएं इन्हें आप पहले से बनाकर भी रख सकतीं हैं.

10-कचौरी, समोसे, आलू बोंडा, पेटीज आदि को आप तेज आंच पर आप तलकर रख दें और मेहमानों के आने पर अच्छी तरह गर्म तेल में एक बार डालकर बटर पेपर पर निकाल दें इससे आपको किचिन में बहुत देर तक नहीं रहना पड़ेगा और मेहमानों को गर्म नाश्ता भी मिल सकेगा.

Holi 2023: एक और आकाश- क्या हुआ था ज्योति के साथ

तलाक के 5 साल बाद सचिन श्रॉफ ने 50 की उम्र में की दूसरी शादी, जानें कौन है दुल्हन

टीवी के मशहूर एक्टर सचिन श्रॉफ दूसरी बार शादी के बंधन में बंध चुके हैं. बीती रात यानी 25 फरवरी 2023 को मुंबई में सचिन ने अपनी लाइफ पार्टनर चांदनी के साथ सात फेरे लिए. पहली बार उन्होंने अपनी पत्नी के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने अपनी लेडीलव को सपोर्ट सिस्टम कहा.

मैरिड लाइफ पर बोले सचिन श्रॉफ

चांदनी से शादी करके सचिन श्रॉफ बहुत खुश हैं. उन्होंने बताया कि अब वह बहुत रिलैक्स फील कर रहे हैं. सचिन ने बॉम्बे टाइम्स संग बातचीत में कहा, “मैं बहुत कंफर्टेबल, रिलैक्स और हैप्पी स्पेस में हूं. मैरिड लाइफ बहुत अच्छा है, हालांकि मुझे अभी इसका अनुभव करना है. यह एक प्यारी फीलिंग है. इस जर्नी में चैलेंजेस आएंगे, लेकिन मैंने और चांदनी ने साथ में मिलकर इन चीजों पर काम करने का फैसला किया है. हम धन्य हैं, खासकर चांदनी को अपनी जिंदगी में पाकर मैं बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं. वह मेरी सबसे बड़ी सपोर्ट सिस्टम हैं.”

 

 

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सचिन श्रॉफ-चांदनी का वेडिंग लुक

सचिन श्रॉफ ने अपनी ग्रैंड वेडिंग में ऑरेंज कलर की शेरवानी पहनी थी, जिसमें वह हैंडसम लग रहे थे. वहीं, दुल्हन चांदनी ने ब्लू कलर का हैवी एंब्रॉयडर्ड लहंगा पहना था, जिसे ऑरेंज दुपट्टे से स्टाइल किया था. हैवी ज्वेलरी कैरी की थी. चोकर के साथ लॉन्ग नेकलेस, झुमके, मांग टीका और चूड़ी-कलीरों के साथ उनका ब्राइडल लुक परफेक्ट था. सचिन की शादी में ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) की स्टार कास्ट भी शामिल हुई थी. इस वक्त वह इसी शो में तारक मेहता का किरदार निभा रहे हैं.

 

कौन हैं सचिन श्रॉफ की दूसरी पत्नी?

सचिन श्रॉफ की दूसरी पत्नी चांदनी हैं, जो लाइमलाइट से दूर रहती हैं. प्रोफेशन की बात करें तो एक्टिंग न सही, लेकिन चांदनी अपने काम में माहिर हैं. वह पेशे से एक इवेंट ऑर्गनाइजर और इंटीरियर डिजाइनर हैं. सचिन श्रॉफ की दूसरी पत्नी भी काफी खूबसूरत हैं. बता दें कि, सचिन की पहली पत्नी जूही परमार हैं, जो टीवी की जानी मानी एक्ट्रेस हैं. सचिन और जूही का 2018 में तलाक हुआ था. उनकी बेटी का नाम समायरा है.

कुनीतियों के चलते पिछड़ता देश

भारत जैसे देश अपनी सरकारों की गलत नीतियों के कारण वर्ल्ड लेबर सप्लायर बनने जा रहे हैं. आज भारत के ही सब से अधपढ़े या अच्छे पढ़े युवा विदेशों में जा रहे हैं और हर देश इन के लिए दरवाजे खोल रहा है क्योंकि उन की अपनी जनता बढऩी बंद हो गई है, वहां बच्चे कम हो रहे हैं, लेबर फोर्स सिकुड़ कर रही है. भारत में इस बात को कई बार प्राइड से कहा जाता है, पर है शर्म की बात. भारत के युवाओं को विदेशों में लगभग दोगुने पैसे मिलते हैं. किसीकिसी देश में 3-4 गुना भी हो जाते हैं. ठीक है कि वहां खाना, ट्रांसपोर्ट महंगा है पर लाइफस्टाइल अच्छी है, महंगा किराया है पर कई ऐसी फैसिलिटीज हैं जो उन के सपनों में भी नहीं आतीं.
कनाडा ने अब स्टूडैंट्स को एक छूट दी है जिसे वरदान माना जा रहा है. अब तक स्टूडैंट वीसा पर आने वाले सप्ताह में 20 घंटे काम कर के पैसे का जुगाड़ कर सकते थे. अब 31 दिसंबर, 2023 तक छूट दी गई है कि वे जितना भी चाहें काम कर लें. इन-डायरैकक्टली समझें कि यूथ अपनी पढ़ाई का खर्च पार्टटाइम काम कर के निकाल सकते हैं. इन स्टूडैंट्स में ज्यादातर भारत के ही हैं.
यह वह टेलैंट है जिस का एक्सपोर्ट हम लगातार कर रहे हैं क्योंकि हमारे यहां का सोशल व एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर ही ऐसा है कि हर काम हर जना नहीं कर सकता. वहां स्टूडैंट्स अपना बैकग्राउंड भूल कर सैनिटरिंग, ???… लीडर…???,

डिलीवरी पर्सन का काम ऐक्सैप्ट कर रहे हैं. यहां भारत में उन के मांबाप नहीं जानते पर यदि वे वहां कहीं भूलेभटके चले जाएं तो मिलने वाले डौलरों की वजह से मुंह बंद कर लेते हैं.

ह्यूमन कैपिटल आज भी किसी देश की सब से बड़ी कैपिटल है पर हमारी सोसायटी पौपुलेशन को बोझ मानती है. कनाडा, अमेरिका, यूरोप, जापान और यहां तक कि चीन भी अब समझने लगे हैं कि लाइफस्टाइल बनाए रखने के लिए, जीडीपी ग्रोथ के लिए वर्कर चाहिए ही. भारत उन वर्कर्स का एक अच्छा सोर्स है क्योंकि अफ्रीका के बाद भारत ही ऐसा देश है जहां अनएंपलौयमैंट सब से ज्यादा है. वैसे भी, यूरोपियन व अमेरिकी रंगभेद की वजह से ब्लैक की जगह ब्राउन्स को प्रैफर किया जाता है. हमारा लौस, उन का गेन है. पर क्या करें? इस देश का यूथ इस देश में नारे तो लगाता है पर काम की अपौर्चुनिटी उस के पास नहीं है.

Anupama: सबके सामने प्यार कबूल करेगी माया तो अनुज के कैरेक्टर पर उठेंगे सवाल

टीवी के टॉप सीरियल अनुपमा में रोजाना कुछ न कुछ ऐसा देखने को मिलता है, जिसे दर्शक शो से जुड़े रहते हैं और लगातार प्यार बरसाते रहते हैं. बीते एपिसोड में आपने देखा कि माया इमोशनल होकर अनुज से लिपट जाती है और फूट-फूटकर रोने लगती है. वो कहती है कि हाथ उठाने वाले मर्द बहुत देखे हैं लेकिन औरत पर उठने वाले हाथों को रोकने वाला पहली बार देखा है, वो अनुज को थैंक्स बोलती है लेकिन उससे लिपटी रहती है. इसी बीच वो अनुज को गालों पर किस करती है लेकिन अनुज उसे झटक देता है. माया कहती है कि ये सब गलती से हुआ है, प्लीज उसे गलत मत समझना.

 

काव्या-वनराज में भिड़ंत

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा खुशी-खुशी अनुज और छोटी के आने का इंतजार कर रही है. वो दोनों के लिए अच्छा-अच्छा खाना बनाती है और खुद भी अच्छे से तैयार होकर अनुज के कपड़ों से बात करती हैं. उधर काव्या सबको हैरान करने वाली है क्योंकि उसने अपने एक्स पति अनिरुद्ध को घर पर बुला लिया है. काव्या उससे मिलते ही खुशी से झूम उठती है और बा और वनराज के तोते उड़ जाते हैं. काव्या बड़े प्यार से अनिरुद्ध से बात करती है और उसके लिए कॉफी भी बनाती है. काव्या अनिरुद्ध के बिजनेस की तारीफ करती है तो वनराज चिढ़ जाता है, और कहता है कि तुम्हें शर्म नहीं आई इसे घर बुलाने में. अनिरुद्ध बीच में टोक देता है और कहता है कि भले ही ये मेरी पत्नी नहीं है लेकिन दोस्त आज भी है. मेरी दोस्त से तुम ऐसे बात नहीं कर सकते हो.

 

अनुज पर सवाल उठाएगा वनराज

वनराज काव्या से कहता है कि मां-बापूजी के सामने तुम अपने एक्स से बात करते हुए शर्म नहीं आ रही है, निकालो इसे मेरे घर से। काव्या कहती है कि ये सब तो अनुपमा भी करती है, तब कोई दिक्कत क्यों नहीं होती. वो वनराज से कहती है कि तुम अपनी मां पर गए हो, जो दोगली है और जिसे हर परेशानी में अनुपमा ही चाहिए, अपनी पत्नी नहीं. और जब वनराज अनुपमा से  बात करके अपना मन हल्का कर सकता है तो मैं क्यों नहीं. आने वाले एपिसोड में काव्या को भनक लग जाएगी कि माया अनुज से प्यार करने लगी है और माया खुद भी ये बात कबूल कर लेगी. जिसके बाद वनराज उसके कैरेक्टर पर सवाल उठाएगा.

 

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