Download Grihshobha App

कैसा हो परफैक्ट ब्राइडल लहंगा

किसी परिवार में किसी नवयुवक या नवयुवती का रिश्ता तय हो जाने पर सभी अपने वस्त्रों को ले कर परेशान दिखाई देते हैं. सभी ऐसे वस्त्र पहनना चाहते हैं कि सभी उन के वस्त्रों की प्रशंसा करें. वस्त्रों के चयन को ले कर किसी नवयुवती का सब से ज्यादा उल?ान में होना स्वाभाविक है क्योंकि उस विवाह समारोह में दुलहन बनी नवयुवती ही मुख्य नायिका होती है.

नवयुवती सब से सुंदर व आकर्षक दिखने के लिए कितने ही सीरियल देखती है, पत्रिकाओं के पन्ने पलटती है. उन में दुलहन बनी युवतियों को देखती है. यही नहीं, विभिन्न मौल्स में जा कर ब्राइडल ड्रैसों को देखती है. घंटों औनलाइन साइटों पर अपने लायक ड्रैस खंगालती है. महंगे ब्यूटीपार्लर में जा कर मेकअप कराती है, लेकिन ड्रैस की सही डिजाइन और रंग दुलहन के आकर्षण को बदरंग कर देता है.

विवाह समारोह में मूवी कैमरा अधिकतर दुलहन पर केंद्रित रहता है, इसलिए दुलहन बनी नवयुवती सब से आकर्षित करने वाली ड्रैस पहनने की कोशिश करती है. आधुनिक परिवेश में दुलहन अब साड़ी की जगह लहंगे में सजना पसंद करती है. महीनों पहले लहंगे का चयन करना शुरू कर देती है.

डिजाइनर लहंगे

बाजारों में शादियों के दिनों में वैडिंग वियर की बहार सी आ जाती है. दुकानों पर दुलहन द्वारा पहने जाने वाले परिधानों की भरमार दिखाई देती है. बाजार में लहंगों की इतनी वैराइटी, रंग व डिजाइन दिखाई देती है कि दुलहन बनने वाली नवयुवतियां लहंगे का चुनाव नहीं कर पातीं. अनेक शोरूमों में जा कर नवयुवतियां लहंगों को देखती हैं.

फिर कुछ सहेलियों के साथ जा कर लहंगा पसंद करती हैं. अधिकतर वर पक्ष की स्त्रियों के साथ जा कर दुलहन के लिए परिधान खरीदे जाते हैं. ऐसे में नवयुवतियों के लिए लहंगा पसंद करना मुश्किल हो जाता है.

आजकल 20 हजार से लहंगों का मूल्य प्रारंभ होता है और 40-50 हजार तक लहंगे का दाम चला जाता है. नवयुवतियां बनारसी व कांजीवरम सिल्क से बने लहंगा अधिक पसंद करती हैं. गोल्डन बूटियों व बड़े छापे वाले बनारसी मैटीरियल वाले लहंगे अधिक खरीदे जाते हैं.

बाजार में भारी लहंगे भी देखे जा सकते हैं. ऐसे लहंगों पर जरदोजी या ऐंब्रौयडरी का काम किया जाता है. लहंगों पर अधिक काम नहीं करवाना चाहें तो ब्लाउज पर हैवी वर्क करवा सकती हैं. चुन्नी भी शिफौन या किसी लाइट मैरीरियल की लेनी चाहिए. चुन्नी का बौर्डर हैवी रख सकती हैं. चुन्नी पर बीच में लहंगे और ब्लाउज से मेल खाती छोटीछोटी बूटियां बनवाई जा सकती हैं. अधिक आकर्षण बढ़ाने के लिए बांहों पर जरदोजी के बूटे बनवाए जा सकते हैं.

फिटिंग के अनुसार चयन

आजकल बाजार में राजस्थानी व गुजराती कढ़ाई के लहंगे बनेबनाए मिलते हैं. इन के साथ ब्लाउज भी खरीदे जा सकते हैं. अपनी फिटिंग के अनुसार लहंगे के साथ पहन कर दुलहन के रूप में छा सकती हैं. खूबसूरत लहंगा बनारसी साड़ी से भी बनवा सकती हैं. ब्रोकेड के लहंगे भी अपनी पसंद के अनुसार खरीद सकती हैं. यह भी आप की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है.

नवविवाहिता को विवाह के बाद रिश्तेदारों व परिचितों के घर जाने के लिए भी लहंगे की आवश्यकता होती है. विवाह के लिए रिश्तेदार और परिचित वरवधू को विशेषरूप से बुलाते हैं. वरवधू को विशेष उपहार भी दिए जाते हैं. ऐसे स्वागत समारोह में जाने के लिए भी वधू को विशेष वस्त्रों की आवश्यकता होती है.

ऐसे समय वधू दूसरे कौटन सिल्क, जौर्जेट, शिफौन, प्रिंटेड सिल्क, बंधेज का लहंगा पहन कर जा सकती है. इस लहंगे के साथ वधू को ऐसा ब्लाउज पहनना चाहिए जो कईकई लहंगों के साथ मैच कर सके. गुजराती व राजस्थानी कढ़ाई व डिजाइन वाला ब्लाउज पहन सकती है. नैट और टिश्यू से बने ब्लाउज का इस्तेमाल भी कर सकती है.

मैचिंग का ध्यान रखें

बाजारों में शिफौन के साथसाथ शिमर और बनारसी का मैचिंग खरीदा जा सकता है. ब्रोकेड और शिफौन का भी मिलाजुला इस्तेमाल किया जा सकता है. खादी सिल्क के कपड़े पर शिमर या अन्य हैवी मैटीरियल से थोक दे कर आकर्षक बना सकती है.

विशेष आयोजनों में लहंगे का इस्तेमाल किया जाता है. लहंगा इतना लंबा होता है कि पांव भी पूरी तरह ढक जाते हैं. ऐसी परिस्थति में लहंगा फर्श को स्पर्श करता है. ऐसे में यदि कहीं फर्श गीला हो तो लहंगे को उठा कर चलना चाहिए. आयोजनों में फर्श पर कारपेट बिछा दिए जाते हैं. अत: फर्श पर बिछे कारपेट पर चलना चाहिए.

यदि लहंगा पहन कर वाइक पर बैठना हो तो लहंगे को सावधानी से पकड़ कर बैठना चाहिए. वाहक के पहिए में फंस कर लहंगा दुर्घटना का कारण बन सकता है.

खरीदने से पहले

कुछ नवयुवतियां लहंगे के लिए मैजेंटा या लाल रंग पसंद करती हैं. किसी समारोह में सभी नवयुवतियां मैजेंटा व लाल रंग का लहंगा पहनी हों तो सब लाललाल दिखाई देगा. लहंगा ब्राउन, डार्क ग्रीन, मैरून चौकलेट, ग्रीन गोल्डन, लाइट औरेंज, ब्लूग्रीन, डार्क पर्पल आदि रंग का भी बनवा सकती हैं. ऐसा रंग किसी दूसरी नवयुवती के लहंगे से नहीं मिलेगा जिस से दूसरों को अधिक आकर्षित कर पाएंगे.

लहंगा व ब्लाउज किसी नवयवुती पर तब आकर्षक लगता है जब लहंगे व ब्लाउज की फिटिंग सही हो. कई बार नवयुवतियां किसी दूसरे का लहंगा या ब्लाउज ले कर पहन लेती हैं. ऐसी नवयुवतियां अजीब सी दिखाई देती हैं.

विवाह के लिए लहंगा लेते समय उस के रंग का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि केवल एक दिन ही तो उस महंगे लहंगे का इस्तेमाल नहीं करना, दूसरे समारोहों में भी उस लहंगे को पहनना होगा.

ऐसे निभाएं स्कूलमेट पेरैंट्स से दोस्ती

38साल की आबिदा मेरठ से दिल्ली नए जीवन और बेहतर उम्मीद के साथ आई थी. वह पढ़ीलिखी और सुल?ा सिंगल मदर थी. 4 साल पहले उस के पति का औफिस में किसी औरत से चक्कर चल रहा था तो दोनों में अनबन होने के बाद मामला तलाक तक जा पहुंचा.

3 साल लंबी चली कोर्ट काररवाई ने आबिदा को उक्ता तो दिया था पर इस बीच उस ने लड़ने की हिम्मत भी पा ली थी. आबिदा अपने मायके में थी और लंबी कोर्ट की काररवाई में उल?ा रही. जब उस का तलाक हुआ तो उस ने फैसला लिया कि वह अब अपने मायके में भी नहीं रहेगी. वह स्वाभिमानी थी. अत: अपने प्रति अपनी भाभी की तिरछी नजरों को सम?ा रही थी.

उस ने मायके और ससुराल से बिना किसी शिकायत के काफी पहले ही दिल्ली सैटल होने का फैसला ले लिया था. इस बीच वह नौकरी के लिए अप्लाई भी करती रही. जैसे ही तलाक की प्रक्रिया पूरी हुई तो वह अपने मायके से मदद स्वरूप सैटल होने लायक कुछ आर्थिक मदद ले कर अपने बेटे के साथ दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके रहने आ गई.

साथ में वह अपनी मां को कुछ समय के लिए अपने साथ ले आई थी ताकि जब तक सब ठीक नहीं हो जाता रियान की देखभाल हो सके.वह पढ़ीलिखी थी तो उसे गुरुग्राम की एमएनसी में नौकरी मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा.

वैसे तो आबिदा दिल्ली कई बार आई थी पर ऐसा पहली बार हुआ जब वह अपने दम पर कोई बड़ी जिम्मेदारी ले कर यहां आई हो. उस के लिए सब से ज्यादा जरूरी बेटे की पढ़ाई थी जो 8वीं क्लास में पढ़ रहा था. नए और अच्छे स्कूल में ऐडमिशन करवाना और फिर अपने लिए भी नए अच्छे दोस्तों का सर्कल ढूंढ़ना जरूरी हो गया था.

आबिदा ने बेटे का ऐडमिशन ईडब्ल्यूएस कोटा के बल पर केंद्रीय स्कूल में करवा लिया. नए स्कूल में जाने के बाद से ही रियान ने अपने नए फ्रैंड बना लिए थे, जिस में उन्हीं की कालोनी का ऋषभ उस का खास फ्रैंड बना जो रियान के साथ आताजाता था. अब आबिदा के लिए मुश्किल यह हो रही थी कि चूंकि वह जौब कर रही थी तो बेटे की ऐक्टिविटी पर एक मां और जिम्मेदार व्यक्ति होने के नाते कम नजर रख पा रही थी. उस के पास बेटे को ले कर जो जानकारी थी वह सिर्फ अपनी मां के तरफ से ही थी.

उस ने सोचा तो इस का समाधान मिलते उसे देर न लगी. उस के लिए सब से बढि़या यही था कि रियान के स्कूल मेट्स या उस के दोस्तों के पेरैंट्स से नजदीकी बढ़ाई जाए. इस के 2 फायदे तो थे एक उस का फ्रैंड सर्कल भी बढ़ता और अपने बेटे की सैफ्टी और ऐक्टिविटी को ले कर भी आश्वस्त होती.

अच्छा यह रहा कि उस की हलकीफुलकी जानपहचान पहले ही ऋषभ की मम्मी रीना से हो गई थी. बात, व्यवहार में रीना अच्छी लगी थी पर ज्यादा बात हो नहीं पाती थी. अब आबिदा ने फिर से बात करनी शुरू की तो रीना के थ्रू रियान के कई और स्कूलमेट्स उस के फ्रैंड सर्कल में जुड़ते चले गए.

वे न सिर्फ इस सर्कल के थ्रूअपने बच्चों की आपसी बौंडिंग की कड़ी बन रहे थे बल्कि स्कूल की कमियों की चर्चा और समय आने पर स्कूल तक शिकायत पहुंचाने से भी नहीं ?ि?ाक रहे थे. ऐसे वे अपने काम के साथसाथ अपने बच्चों की देखरेख निभा रहे थे.

जरूरी भी नहीं ऐसा हो

पेरैंट्स की अपने बच्चों के स्कूलमेट पेरैंट्स के साथ दोस्ती या जानपहचान हो जाना बड़ी बात नहीं है. बच्चों को स्कूल छोड़ते या घर लाते समय मुलाकात हो ही जाती है. बहुत बार हर महीने होने वाली पेरैंट्स टीचर मीटिंग में यह मुलाकात गहरी भी हो जाती है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि एक कालोनी में रह रहे बच्चे एक ही स्कूल में जाते हैं.

दूसरी तरफ स्वाभाविक तौर पर पेरैंट्स पर पेरैंटिंग प्रैशर भी रहता है कि वे बाकी पेरैंट्स के साथ दोस्ती करें. ऐसा करना गलत भी नहीं क्योंकि जिस समय आप का बच्चा आप की नजरों से ओ?ाल होता है तो पता रहना चाहिए, वह किस के साथ अपना समय ज्यादा बिताता है? उस का बैस्ट फ्रैंड कौन है? स्वभाव कैसा है? उस के पेरैंट्स का नेचर कैसा है.

हर मातापिता अपने बच्चों के प्रति केयरिंग होते हैं. वे चाहते भी हैं कि बच्चों का हर तरह से ध्यान रखा जाए. इस के लिए अगर उन के फ्रैंड्स के पेरैंट्स से दोस्ती करनी पड़े तो गलत नहीं. देखा जाए तो दोस्ती का दायरा बढ़ाना किसी भी लिहाज से गलत नहीं होता. ये आप के जीवन में सरप्लस की तरह ही होते हैं, जिन के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड किया जा सकता है, घूमाफिरा जा सकता है, उन से संबंधित जानकारी ली जा सकती है.

इस के बावजूद जो बात ध्यान रखने की होनी चाहिए वह यह कि जरूरी नहीं कि दूसरे पेरैंट्स से हुई दोस्ती के अपने ‘इफ ऐंड बट’ हैं. बहुत पेरैंट्स इस तरह की दोस्ती को ज्यादा तरजीह नहीं देते हैं. लेकिन जो इसे तरजीह देते हैं उन्हें खास सावधानियां बरतने की जरूरत होती है ताकि दोस्ती अपनी सीमा में रहते हुए स्मूथ चलती रहे.

ध्यान रखने की जरूरत

अलगअलग इंटरैस्ट: आप के साथ जुड़ने वाले लोग जरूरी नहीं कि आप जैसी ही पसंद रखते हों. अधिकतर दोस्तियां इस बात पर आ कर खत्म हो जाती हैं कि ‘भई उस में और मु?ा में तो कोई ताल ही नहीं था.’ जैसे यदि दूसरे मातापिता हमेशा फिल्मों के बारे में बात करना चाहते हैं और आप फिल्मों के शौकीन नहीं हैं या यदि वे घर की सजावट के बारे में बात करना पसंद करते हैं और आप घरेलू की जगह बाहरी कामों को ले कर रुचि रखते हैं तो बातचीत का आनंद नहीं आ पाएगा.

ऐसे में जरूरी है कि अलगअलग रुचि के बावजूद ऊबने की जगह रुचि लेना या इस के लिए कोशिश करना सब से बेहतर उपाय है. इस के लिए बेहतर तो यह है कि आप उस काम को ले कर रुचि जगा सकते हैं उस बारे में पढ़ या जान कर.

पेरैंटिंग को ले कर अलगअलग विचार: हो सकता है कि आप सौफ्ट पेरैंटिंग को सही मानते हों और दूसरे मातापिता अपने बच्चों पर अधिक अनुशासन का उपयोग करते हों या हो सकता है कि आप बच्चों के प्रति बहुत फ्री माइंड हों और आप को लगता है कि दूसरे मातापिता की शैली बहुत ही केयरिंग हो. पेरैंटिंग के तरीकों में अंतर आम बात हैऔर उन्हें ‘जीयो और जीने दो’ के साथ छोड़ देना ही बेहतर अप्रोच है.

ऐसे ही यदि आप उन के आसपास या अपने बच्चे को उन के आसपास रखने में कंफर्ट नहीं हैं, जैसेकि यदि कोई पेरैंट्स अपने बच्चे पर पिटाई का उपयोग करते हों तो आप दूरी बना सकते हैं.

दोस्ती को मैनेज करने के टिप्स

स्टेटस और जातिधर्म पर न जाएं: शादीब्याह के समय भारत में जाति, धर्म और स्टेटस को प्राथमिकता दी जाती है. यह बीमारी समाज के हर कोने में फैली है. इतनी कि जब दोस्त बना रहे होते हैं तब भी इन्हें देखा जाता है. यहां तक कि अपने बच्चों को भी दोस्ती करने से रोका जाता है. अगर कोई गैरधर्म या जाति से दोस्त बन भी जाता है तो किसी न किसी तरह से उसे एहसास कराया जाता है कि वह बराबरी का नहीं है. ऐसा बिलकुल न करें. समाज बदल रहा है. खुद को बदलें. ये सब पुरानी बातें बकवास हो चली हैं.

कंट्रोवर्शियल विषयों पर न उल?ों: चाहे आप कितने भी पैशनेट हों धर्म या राजनीतिक विषयों पर बहस करने के लिए फैक्ट यह है कि जरूरी नहीं कि दूसरा आप से सहमति रखता हो. बहुत बार अपने अलग धर्म वाले दोस्त से धार्मिक मसलों पर उल?ाना दिक्कत पैदा कर सकता है.

पीठ पीछे बुराई नहीं: होता क्या है कि कई बार बच्चों के पेरैंट्स जब आपस में मिलते हैं तो किसी तीसरे के बारे में कानाफूसी शुरू कर देते हैं. किसी और के बारे में गलत बातें कहने लगते हैं.

ऐसा अकसर महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलता है. ध्यान रखें कि जिन से भी आप अपनी कोई बात शेयर कर रहे हों वे सिर्फ पर्टिकुलर टाइम के लिए आप के दोस्त बने हैं. ऐसा कर के आप अपनी इमेज को खराब करेंगे. संभव है कि आप की बातें भी कोई आप की पीठ पीछे कर रहा हो.

गु्रप के साथ घूमें: किसी दिन आप सब बच्चे और पेरैंट्स कहीं पिकनिक मनाने भी जा सकते हैं. ऐसा कर के न सिर्फ बच्चों की बौंडिंग मजबूत होगी, साथ ही आप भी एकदूसरे को बेहतर तरीके से सम?ा सकेंगे. इस के लिए किसी अच्छे पार्क का चयन कर सकते हैं या म्यूजियम, रेस्तरां, मूवी का प्लान बना सकते हैं. मगर ध्यान रखें अच्छी कन्वर्सेशन ही करें.

सीमा बांधें: नए दोस्तों से संपर्क बन तो जाते हैं पर सहज हो पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जरूरी नहीं कि रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए उन्हें अपनी पर्सनल स्पेस में ऐंट्री दें. कोशिश करें कि अपने बच्चों के स्कूलमेट्स पेरैंट्स को बाहर तक सीमित रखें. दोस्ती घर के बाहर ही रहे तो बढि़या. अपने उसूलों पर रहें.

अगर वह उसे माफ कर दे: भाग 2- पिता की मौत के बाद क्या हुआ ईशा के साथ

रेखा और ईशा ने एकदूसरे की तरफ देखा, दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. इतने में कमांडर पंत कहीं से कमरे में आए और टीवी का स्विच बंद करते हुए बोले, ‘‘क्यों सुन रहे हो यह खबर?’’ मगर समाचारवाचक का बोला वह वाक्य उन के कानों में पड़ ही गया, ‘‘कहा जा रहा है कि कमांडर शर्मा का रेशमा से 1 बच्चा भी है.’’

रेखा ने अपना सिर पकड़ लिया. पति की मौत की खबर ने उसे इतना अचंभित नहीं किया था जितना कि इस खबर ने कर दिया. रवि ने उसे धोखे में रखा, उस के साथ विश्वासघात किया, उस के रहते हुए किसी अन्य महिला से शारीरिक संबंध… इतना ही नहीं उस से बच्चा भी. रेखा को सभी कुछ अनजान व अजनबी प्रतीत हो रहा था. उसे खुद का वजूद भी एक भ्रम लग रहा था.

यह बात तो साफ थी कि रवि उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ में नहीं मरा था और न ही वह देश के लिए शहीद हुआ था. उग्रवादी गुट ने आपसी रंजिश में उस की जान ली थी.

‘‘मेरे पापा के कोई और बच्चा नहीं है, सिर्फ मैं ही हूं,’’ कहते हुए ईशा बिस्तर पर फिर लुढ़क गई थी.

कमांडर पंत अब रेखा से नजरें चुराने लग गए थे. रवि की हरकतों ने संभवत: सी.आर.पी.एफ. के कर्मचारियों के चरित्र पर  धब्बा लगा दिया था.

रात करीब 12 बजे  एक वैन घर के आगे आ कर रुकी. रेखा की मां, भाई व उन की पत्नियां घबराए हुए से घर में घुसे और बौखलाई नजरों से सभी ने रेखा व ईशा को देखा. आफिस के लोगों ने उन तक सूचना पहुंचा दी थी. उन को देख कर रेखा की जान में जान आई. भाइयों की बीवियां ईशा की तरफ  बढ़ीं, भाई व मां रेखा की तरफ. मां रोते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या हो गया, रेखा? मेरी तरह तू भी…’’

फिर एक दबी हुई खामोशी, एक असहजता भरा वातावरण, सभी लोग चकित. रेखा का बड़ा भाई विनोद चुप्पी तोड़ते हुए बोला, ‘‘हमें रवि के बारे में सब कुछ पता चल गया है. उस लड़की रेशमा से उस के संबंध… तुझे क्या कभी उस पर शक नहीं हुआ?’’ कहते हुए उन के चेहरे पर झुंझलाहट आ गई थी.

रेखा ने इनकार में गरदन भर हिलाई.

छोटा भाई राकेश बोला, ‘‘कुछ तो कभी…कालाइगांव से कभी कोई ऐसा फोन… या तू ने कभी वहां फोन किया हो तो किसी औरत का स्वर…?’’

रेखा को सहसा ध्यान आया कि वह कभी भी खुद रवि को फोन नहीं करती थी. हमेशा रवि ही उसे फोन करते थे. यह नियम उन के बीच हमेशा बना रहा था.

समय कैसा भी हो, बीत जाता है. रवि का गोली दगा शरीर दिल्ली पहुंचा. उस की अंत्येष्टि हुई, रेशमा से रवि के कैसे ही संबंध रहे हों मगर उन की कानूनन पत्नी रेखा थी इसलिए मौत का मुआवजा, पेंशन, संपत्ति आदि सभी पर रेखा का हक था. रवि के रेशमा से संबंधों की चर्चा उस के सभी परिचितों के बीच हो रही थी. उस के कालिज, जहां रेखा अर्थशास्त्र की लेक्चरार थी, के स्टाफ  के लोगों को भी पता चल गया था. सभी की बेधती खामोश नजरें उस से पूछ रही थीं कि क्या उसे अपने पति पर कभी शक नहीं हुआ?

रवि से हुई अंतिम मुलाकात को रेखा ने कई बार याद किया. उस सुबह वरदी पहने रवि ने बड़े सामान्य ढंग से उस से व ईशा से विदा ली थी और साथ में यह भी कहा था कि कालाइगांव में पोस्टिंग के सिर्र्फ कुछ ही दिन शेष बचे हैं. अगली पोस्टिंग वह दिल्ली की लेगा. ईशा का हाई स्कूल का बोर्ड है. वह उस के साथ घर पर रहना चाहता है. ईशा के जन्मदिन पर वह जरूर घर पहुंचेगा.

वह क्या वजहें थीं कि रवि ने किसी दूसरी औरत से गुप्त प्रेम संबंध बनाए? इस अफवाह में कितनी सचाई है? क्या रेशमा नामक कोई औरत वास्तव में अस्तित्व रखती है? इस तरह के कई सवाल रेखा के दिमाग में कोलाहल मचा रहे थे. चूंकि उस के तमाम सवालों का जवाब कालाइगांव में था. अत: उस ने वहां जा कर हकीकत को खुद जाननेसमझने का मन बनाया.

रेखा ने कमांडर पंत को फोन किया, ‘‘मैं कालाइगांव उस जगह जाना चाहती हूं जहां रवि रहते थे.’’

‘‘अरे, मैडम, आप किन चक्करों में…’’

‘‘नहीं,’’ रेखा ने कमांडर पंत को आगे कुछ कहने से रोकते हुए कहा, ‘‘मेरे लिए वहां जाना बहुत जरूरी है. नहीं तो मुझे चैन नहीं आएगा.’’

कमांडर पंत ने रेखा का जोरहाट तक एअर टिकट बुक करवा दिया. जोरहाट से बस द्वारा उसे कालाइगांव पहुंचना था, जहां अरबिंदा उसे लेने आने वाला था. रेखा जैसे ही बस से नीचे उतरी चपटी नाक वाला अरबिंदा उस के नाम का पोस्टर लिए उस की प्रतीक्षा में खड़ा था. वह चुपचाप आगे बढ़ी और जीप में बैठ कर सी.आर.पी.एफ. के गेस्टहाउस में आ गई.

रेखा  स्नान वगैरह कर के फे्रश हुई. मेस में जा कर थोड़ा खाना भी खाया. उस के बाद अरबिंदा से बोली, ‘‘मुझे रेशमा के घर ले चलो, जानते हो न उस का घर?’’

अरबिंदा ने सहमति में गरदन हिलाई और जीप में बैठने का इशारा किया.

जीप शहर की भीड़ से दूर किसी ग्रामीण इलाके  की सुनसान सड़क पर दौड़ने लगी थी. रेखा अपने विचारों की उधेड़बुन में थी कि एक सुंदर उपवन के बीच बनी काटेज के सामने अरबिंदा ने जीप रोक दी. रेखा ने काटेज को देखा, हरेभरे पेड़ों से घिरी छोटी सी काटेज सुंदरता का प्रतीक लग रही थी. एक अजनबीपन रेखा को डस गया. वह काटेज की तरफ बढ़ी तो अरबिंदा ने पूछा, ‘‘मैं जाऊं?’’

‘‘नहीं, तुम यहीं इंतजार करो,’’ वह बोली और आगे बढ़ गई.

दरवाजे के पास रेखा काफी देर तक खड़ी रही, हिम्मत ही नहीं हो रही थी खटखटाने की. अंदर से किसी शिशु के रोने की आवाज आ रही थी. इतनी दूर आ कर वह बिना रेशमा से मिले तो जाएगी नहीं, सोचते हुए उस ने हलके हाथों से दरवाजा थपथपाया. एक औरत गोदी में कुछ माह के शिशु को लिए आई और दरवाजा खोला. जैसे ही उस ने रेखा को देखा, वह एकाएक दरवाजा बंद करने लगी. रेखा ने तुरंत दरवाजा पकड़ लिया.

रेखा दरवाजा पीछे धकेल कर अंदर दाखिल हो गई. सामने दीवार पर उसे अपनी सास की बड़ी सी फोटो टंगी नजर आई. कमरे में दृष्टि दौड़ाई तो देखा लकड़ी के बड़े से केबिनेट पर रवि व रेशमा की प्रेम मुद्राओं में तसवीरें सजी थीं. एक फोटो में रवि, रेशमा और उन का बच्चा था. ईशा की फोटो भी लगी थी. वहां सभी की तसवीरें थीं, सिर्फ एक रेखा की छोड़ कर.

आगे पढ़ें- एक लंबी सांस भरते हुए रेखा ने…

शेखर सुमन ने दी बिग बॉस 16 कंटेस्टेंट्स को पार्टी, प्रियंका के साथ दिखी पूरी गर्ल गैंग

सलमान खान का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो बिग बॉस का 16वां सीजन खत्म हो गया है लेकिन इस शो से जुड़े तमाम सेलेब्स अब भी लाइमलाइट में बने हुए हैं. बिग बॉस के घर से बाहर आने के बाद सभी कंटेस्टेंट्स अपने काम में बिजी हो गए हैं. लेकिन इस बीच वे समय निकालकर एक-दूसरे से मिल भी रहे हैं. बीते दिनों, फराह खान ने सभी कंटेस्टेंट्स को अपने घर बुलाकर एक शानदार पार्टी दी. तो वहीं, अब शेखर सुमन ने अपने घर पर एक डिनर पार्टी का आयोजन किया, जिसमें बिग बॉस 16 का लगभग हर कंटेस्टेंट नजर आया.

शेखर सुमन के घर बिग बॉस कंटेस्टेंट्स का धमाल

दरअसल, बीती रात शेखर सुमन ने अपने घर पर एक डिनर पार्टी का आयोजन किया, जिसमें बिग बॉस 16 के कंटेस्टेंट्स के साथ-साथ फराह खान भी नजर आईं. फराह यहां पर पीले कलर के लॉन्ग टॉप और ब्लैक पेंट में नजर आईं

पार्टी में दिखीं गर्ल गैंग

शेखर सुमन की इस पार्टी में बिग बॉस की गर्ल गैंग ने सबका ध्यान खींच लिया. इस मौके पर प्रियंका, सौंदर्या, श्रीजिता, अर्चना, अर्चना गौतम, मान्या सिंह और निमृत कौर अहलूवालिया ने एक साथ पोज दिए.

शेखर सुमन संग सौंदर्या शर्मा

सौंदर्या शर्मा ने इस पार्टी से कई सारे वीडियो और तस्वीरें शेयर कीं, जिसमें उन्होंने पूरी पार्टी का हाल दिखाया है. एक वीडियो में सौंदर्या सबके पास जाती हैं. वहीं, आखिर में वह शेखर सुमन के साथ नजर आती हैं

ब्लैक ड्रेस में प्रियंका ने खींचा ध्यान

शेखर सुमन की इस पार्टी में प्रियंका चाहर चौधरी ने सबका ध्यान खींच लिया. इस पार्टी में प्रियंका ब्लैक कलर की साइड कट शॉट ड्रेस पहनकर पहुंचीं. फैंस उनके लुक को प्रियंका चोपड़ा से कंपेयर कर रहे हैं.

 

सिंपल लुक में हैंडसम लगे शिव ठाकरे

इस पार्टी में शिव ठाकरे अपने सिंपल लुक में भी काफी हैंडसम लगे. उन्होंने ब्लैक और ग्रे कलर की चेक शर्ट पहनी थी. शिव को शेखर सुमन के घर के बाहर देखते ही पैपराजी ने घेर लिया था.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shiv Thakare (@shivthakare9)

साजिद संग दिखीं सौंदर्या शर्मा

इस पार्टी में साजिद खान और सौंदर्या शर्मा एक साथ दिखे. बीते दिनों दोनों की डेटिंग की खबर आग की तरह वायरल हुई. इसी वजह से दोनों की एक फोटो पर लोग जमकर कमेंट कर रहे हैं. कई लोगों ने दोनों ने पूछा कि क्या चल रहा है.

सौशल मीडिया पर वायरल हुईं सभी फोटोज

शेखर सुमन की इस डिनर पार्टी की सभी फोटोज सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही हैं. इन फोटोज को देख कुछ लोग प्रियंका के लुक की तारीफ कर रहे हैं तो कुछ साजिद-सौंदर्या के बारे में गॉसिप कर रहे हैं

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Riya (@bigg_boss_16_16_)

अगले प्रोजेक्ट्स बिजी हुए ये कंटेस्टेंट्स

बता दें कि शालीन, सुंबुल और अंकित अपने अगले प्रोजेक्ट्स में बिजी हो गए हैं. शालीन जल्द ही ‘बेकाबू’ में नजर आएंगे और सुंबुल अपने वेब शो की शूटिंग में बिजी है. अंकित गुप्ता भी जुनूनियत में नजर आ रहे हैं.

Anupama: माया के बॉयफ्रेंड की हुई एंट्री, अनुज के सामने खुलेंगी काली करतूतें

अनुपमा छोटे परदे के सबसे लोकप्रिय टीवी शो में से एक है जो दर्शकों को हमेशा स्क्रीन से बांधे रखने में कामयाब रहा है. अनुपमा के निर्माता अपने शो को दिलचस्प बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. अनुपमा का मौजूदा एपिसोड में दिखाया जा रहा है कि कैसे अनुपमा, अनुज-छोटी अनु और शाह परिवार के बीच फंस चुकी है. इसी बीच माया, अनुज और छोटी अनु को अनुपमा से छीनने की पूरी कोशिश कर रही है. अनुपमा के आगामी एपिसोड में हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिलेगा. अनुपमा में हर गुजरते दिन के साथ माया और अनुज का बंधन मजबूत होता दिख रहा है. अनु बुरी तरह आहत महसूस करती है और उसका दिल टूट जाता है. वह उसके साथ अपने अलग रास्ते जाने का फैसला करती है.

 

माया का बॉयफ्रेंड लेगा एंट्री

अनुपमा के आने वाले एपिसोड में जल्द ही एक नई एंट्री के साथ आने वाली कहानी में कुछ प्रमुख मोड़ देखने को मिलने वाले हैं. जैसा कि माया, अनुज के दिल में अपनी जगह बनाने और छोटी अनु के जीवन में बदलने की पूरी कोशिश कर रही है. हालांकि, नियति को कुछ और ही मंजूर है. यही कारण है कि अचानक से, माया का बॉयफ्रेंड अब कहानी में नई एंट्री करेगा. ये नई एंट्री माया को अंदर तक झकझोर रख देने वाली है.

 

माया के खुलेंगे काले राज

अब माया अपने प्रेमी को देखकर जमीन से हिल जाएगी. साथ ही ये सब चीजें देखकर अनुज हैरान रह जाएगा. जबकि अब अनुज और माया दोनों खतरे में हैं. हालांकि ये नई एंट्री अनुज और अनुपमा के ठंडे पड़े रिश्ते को जोड़ने में मदद करेगी या तोड़ेगी? ये कहानी में आगे देखना होगा.

 

काव्या ने वनराज से तोड़ा नाता

काव्या अपना करियर और अपनी जिंदगी बर्बाद करने के लिए इस बार वनराज से बुरी तरह से नाराज है. यहां तक कि काव्या, वनराज से उसे नहीं छूने के लिए कहती है क्योंकि वह इसे एक अजनबी का टच फील कराता है. काव्या, वनराज से कहती है कि वह अब उससे प्यार नहीं करती है. इधर बा उनकी बातचीत सुन लेती है. काव्या ने वनराज से नाता तोड़ने का फैसला कर लिया है. इसीलिए बा, अनुपमा को अपने बेटे के जीवन में वापस लाने का फैसला करती है.

 

जोड़ों के दर्द को न करें नजरअंदाज, हो सकता है गठिया बाय

हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी जोड़ों के दर्द से पीडि़त होते हैं. हालांकि सभी जोड़ों के दर्द का मतलब यह नहीं है कि हम आर्थराइटिस से पीडि़त हैं. लेकिन 1 से अधिक जोड़ों में लगातार होने वाले दर्द को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. जोड़ों के दर्द को नजरअंदाज करने से जोड़ों में खराबी आ सकती है और परिणामस्वरूप उनमें विकृति आ सकती है. इसलिए चिकित्सीय सहायता जरूरी है.

इसके अलावा आर्थराइटिस के 200 विभिन्न प्रकार हैं. विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस में गंभीरता के विभिन्न स्तर होते हैं. आर्थराइटिस के विभिन्न प्रकारों में, गठिया बाय भारत में आर्थराइटिस का दूसरा सब से आम प्रकार है. गठिया बाय आर्थराइटिस का गंभीर प्रकार है क्योंकि यह सिर्फ जोड़ों का रोग नहीं है बल्कि यह त्वचा, आंखें, हृदय, फेफड़े और गुर्दे जैसे अन्य महत्वपूर्ण अंगों को भी प्रभावित करता है. गठिया बाय एक ऑटोइम्यून रोग है जिसका अर्थ है कि प्रतिरक्षा प्रणाली में कुछ समस्या है. गठिया बाय में रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के स्वस्थ ऊतकों पर हमला करना शुरू कर देती है और दर्द और अन्य लक्षण जैसे सूजन और जकड़न का कारण बनती है. इससे शुरुआत में छोटे जोड़ प्रभावित होते हैं लेकिन बाद में शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं.

गठिया बाय बहुत तेजी से आगे बढ़ता है और इसलिए शरीर के अन्य भागों में विकृति और जटिलताओं को रोकने के लिए प्रारंभिक अवस्था में गठिया बाय का निदान और उपचार करना आवश्यक है.

यहां कुछ लक्षण दिए गए हैं जो गठिया बाय को पहचानने और अपने डॉक्टर से परामर्श करने में मदद कर सकते हैं.

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द जो आराम करने से कम नहीं हो रहा है और दिनों दिन बढ़ रहा है. एक से अधिक जोड़ों में दर्द हाथ, कोहनी और कंधे आदि के जोड़. आपके हाथों की उंगलियों के जोड़ और पैरों के तलवों में सूजन इसकी वजह से मुट्ठी बांधना और वस्तुओं को पकड़ना मुश्किल हो जाता है और लोगों से हाथ मिलाते समय भी दर्द होता है.

सुबह 1 घंटे से अधिक समय तक जोड़ों में अकड़न सुबह के समय जोड़ों में अकड़न होना जिस से बिस्तर से उठना और दैनिक कार्य करना मुश्किल हो जाता है.

परिवार में किसी भी व्यक्ति को गठिया बाय होना गठिया बाय वंशानुगत हो सकता है. यदि आपके किसी निकट संबंधी को गठिया बाय है तो संभावना है कि आपको भी यह हो सकता है.

थकान और हल्का बुखार

आप थकान का अनुभव करते हैं जो आराम करने से भी कम नहीं होता है और हल्का बुखार रहता है.

जोड़ों के दर्द के लिए दर्द निवारक दवा लेने की जरूरत है 

आपको दर्द नाशक दवाएं लेनी पड़ती हैं क्योंकि घरेलू उपचार से दर्द कम नहीं हो रहा है. दर्द नाशक दवाएं केवल लक्षणों में आराम देते हैं. इसमें खुद से दवा लेना उपयोगी नहीं होता है. यह समय है जब आप अपने डॉक्टर से परामर्श लें. डॉक्टर इसका सही निदान और उपचार करने में आपकी सहायता करेंगे.

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द.

6 सप्ताह से अधिक समय से जोड़ों का दर्द जो आराम करने से कम नहीं हो रहा है और दिनों दिन बढ़ रहा है. एक से अधिक जोड़ों में दर्द हाथ, कोहनी और कंधे आदि के जोड़.

आपके हाथों की उंगलियों के जोड़ और पैरों के तलवों में सूजन इसकी वजह से मुट्ठी बांधना और वस्तुओं को पकड़ना मुश्किल हो जाता है और लोगों से हाथ मिलाते समय भी दर्द होता है.

सुबह 1 घंटे से अधिक समय तक जोड़ों में अकड़न सुबह के समय जोड़ों में अकड़न होना जिस से बिस्तर से उठना और दैनिक कार्य करना मुश्किल हो जाता है.

परिवार में किसी भी व्यक्ति को गठिया बाय होना गठिया बाय वंशानुगत हो सकता है. यदि आपके किसी निकट संबंधी को गठिया बाय है तो संभावना है कि आपको भी यह हो सकता है.

थकान और हल्का बुखार

आप थकान का अनुभव करते हैं जो आराम करने से भी कम नहीं होता है और हल्का बुखार रहता है.

जोड़ों के दर्द के लिए दर्द निवारक दवा लेने की जरूरत है

आपको दर्द नाशक दवाएं लेनी पड़ती हैं क्योंकि घरेलू उपचार से दर्द कम नहीं हो रहा है. दर्द नाशक दवाएं केवल लक्षणों में आराम देते हैं. इसमें खुद से दवा लेना उपयोगी नहीं होता है. यह समय है जब आप अपने डॉक्टर से परामर्श लें. डॉक्टर इसका सही निदान और उपचार करने में आपकी सहायता करेंगे.

अपने से कम ना समझें महिलाओ को

अफगानिस्तान के नए शासकों की लड़कियों की पढ़ाई को पूरी तरह बंद कर देने पर किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. अगर ईरान, सऊदी अरब, यूएई, कतर, इराक, लीबिया के बस में होता तो वे बरसों पहले यह कर देते पर इन तेल बेचने वाले देशों को पश्चिमी देशों को खुश रखना था और इसलिए उन्होंने आधाअधूरा इस्लामिक देश बनाए जिन में औरतों को कुछ छूट दी गई.

अफगानिस्तान के पास न अब तेल है, न वह रूस या चीन की सेना के लिए जरूरी है और इसलिए वह पूरा इस्लामिक देश बन गया है और इसलाम या किसी भी धर्म की पहली शर्त यही रहती है कि औरतें पढ़ें नहीं. सिर्फ बच्चे पैदा करें और धर्म की सेवा करें. ईसाई संसार में सदियों यही होता रहा पर वहां ङ्क्षप्रङ्क्षटग प्रेस आने के बाद नई सोच की लहर आई जिस से तकनीक बड़ी, रहने का ढंग सुधरा और साथ में औरतों को आजादी मिली. अफगानिस्तान को कुछ नहीं चाहिए. वे अपनी भेड़ों, पहाड़ों में होने वाली फसलें, इबादत और खूनखराबे में खुश हैं्र्र. तालिबानी लड़ाकू वहां न पढऩालिखना जानते हैं न कुछ बनाना. वे बस मारना जानते है. किसी तरह उन्होंने आधुनिक हथियारों को चलाना जरूर सीख लिया है. जितना पैट्रोल बंदूकें, तोपों, गाडिय़ां, टैंक, बारूद उन्हें चाहिए होता है वह उन्हें खेतों से निकली मादक दवाओं को और कालीन आदि बेंच कर मिल जाता है, वे आज कच्ची सडक़ों, कच्चे मकानों, हाथ के बुने कपड़ों में खुश हैं तो पश्चिमी देश हो या चीन, पाकिस्तान, रूस उन को किसी भी तरह समझाबुझा नहीं सकते.

यह नहीं भूलना चाहिए आज वहां जो औरतों के साथ हो रहा है उस के पीछे औरतों का ही हाथ है. मांए अपने लडक़ों को मरनेमारने के लिए पहले दिन से तैयार कर देती हैं. लडक़ों की मौत को अल्लाह की मर्जी मान लेती हैं. उन के कई बच्चे होते है, 2-4 मारे जाते हैं तो गम क्या. वे अपनी लड़कियों को खुद धर्म की कट्टरता के हमले करती हैं, उन की आजादी छीनती हैं, उन के बाहर निकलते पैरों को तोड़ डालती हैं. वे तालिबानियों लड़ाकों का सब से बड़ा सहारा है.

अफगान औरतों के सहारे अफगानिस्तान की इकौनोमी चलती है. वे कालीन बुनती है. फसल को संभालती है, जानवरों को पालती हैं. वे गुलाम है पर उन की और दूसरी औरते को गुलाम बनाए रखती हैं. लड़कियों को स्कूल न भेजने के फैसले के पीछे औरतें ही ज्यादा हैं. वे इस फैसले का विरोध करतीं तो मजाल है तालिबानी मर्द कुछ कर पाते. औरतों को सरेआम मारने पर बहुत औरतें तालियां बजाती है, वे ही उन औरतों की शिकायत करती हैं जिन्होंने गला घोंट राज का जरा सा भी विरोध करना चाहा. हर प्रौढ़, बूढ़ी औरत हर जवान औरत को समय से पहले ही बांध कर बूढ़ा कर देना चाहती है.

भारत में यही कोशिश रातदिन हो रही है, लड़कियां क्या पहनें, क्या खाएं. कहां घूमें, किसे दोस्त बनाएं, किस तरह आदी करें, किस तरह की बीवी बन कर रहे यह सब औरतें ही तय करती हैं, वे औरतें जो रातदिन धर्म की माला जपती है, हिंदू राष्ट्र के नाम पर वोट देती हैं. इस का आखिरी पढ़ाव अफगानिस्तान ही है, यह वे न भूलें.

ङ्क्षहदू राष्ट्र का मतलब मुसलिम मुक्त देश नहीं है, पंडा युक्त देश है जहां औरत को जब चाहे भगा लिया जाए, जब चाहे उस के नाककान काट लिए जाए. जब चाहो उस पर गंदे आरोप लगा दो, जब चाहो रेप कर दो, जब चाहे टुकड़ेटुकड़े कर दो, जब चाहो उसे खुद जमीन में धसने को मजबूर कर दो. तालिबानी सिर्फ काले रंग में नहीं होते. वे भगवा और सफेद में भी होते है.

फेयरनेस क्रीम के इस्तेमाल से पहले जान लें ये 5 बातें

कहा जाता है कि सुंदरता देखने वाले की आंखों में देखी जाती है, लेकिन सुंदरता आमतौर पर स्किन के रंग के संदर्भ में मापी जाती है और यह हमेशा देखा जाता है कि फेयर स्किन टोन को सुंदर का खिताब दिया जाता है. फेयर स्किन टोन के बिना, किसी को समाज में सम्मानजनक नहीं माना जाता है. ब्लैक स्किन टोन अभी भी समाज में अपनी जगह बनाने के लिए लड़ रहा है. भारतीय बाजार को ब्यूटी उत्पादों और विशेष रूप से फेयरनेस सोल्यूशन के लिए सबसे अच्छे और सबसे बड़े बाजारों में से एक माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि इन क्रीम्स के इस्तेमाल से आपको कई तरह की एलर्जी भी हो सकती हैं…

1 खुजली की प्रौब्लम है आम

ब्यूटी क्रीम लगाने के सबसे सामान्य लक्षणों में से एक खुजली है. यह आम तौर पर ब्यूटी क्रीम के इस्तेमाल के बाद कुछ मिनटों में होता है. खुजली से स्किन लाल हो जाती है और इससे चकत्ते भी पड़ सकते हैं.

2 एलर्जी का रहता है खतरा

ब्यूटी क्रीम कई रसायनों और स्टेरौयड से बने होते हैं जिनके परिणामस्वरूप एलर्जी हो सकती है. अधिकांश स्किन एक ब्यूटी क्रीम के रासायनिक एजेंटों को सहन नहीं कर सकती है. इसके कारण लालिमा, स्किन में जलन, जलन, चकत्ते और बहुत सी समस्याएं होती हैं.

3 मुंहासे की प्रौब्लम है गंभीर

ब्यूटी क्रीम मुहांसों की गंभीर समस्या का कारण बनते हैं क्योंकि यह स्किन के छिद्रों को बाधित करता है. जिन ब्यूटी उत्पादों में तैलीय पदार्थ या लैनोलिन होता है, वे मुंहासे का कारण बनते हैं.

4 ड्राई स्किन पर हो सकता है ये नुकसान

स्किन के प्रकार को जानना बहुत ज़रूरी है क्योंकि ब्यूटी क्रीम को बिना जाने स्किन को ड्राई स्किन और झाइयों को जन्म दे सकता है.

5 स्किन का पतला होना

एक ब्यूटी क्रीम में मौजूद हानिकारक रसायन और स्टेरौयड स्किन को पतला बना देते हैं. पतली स्किन बहुत खतरनाक है क्योंकि यूवी किरणें सीधे स्किन में प्रवेश कर सकती हैं और इससे सनबर्न, पैच आदि हो सकते हैं.

ब्यूटी क्रीम में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स और स्टेरौयड का ज्यादा इस्तेमाल स्किन के लिए बहुत हानिकारक और खतरनाक है. स्किन को होने वाले नुकसान का स्थायी प्रभाव हो सकता है. ब्यूटी क्रीम का इस्तेमाल करने के बजाय, किसी को मूल स्किन टोन की सराहना करनी शुरू कर देनी चाहिए जो स्किन को चमकदार और खूबसूरत बनाने के लिए नेचुरल उपचार का इस्तेमाल करना चाहिए.

डौ. रोहित बत्रा, स्किन विशेषज्ञ, सर गंगा राम अस्पताल से बातचीत पर आधारित.

जब बीवी कमाए, पति उड़ाए

आमतौर पर पुरुषों का कार्यक्षेत्र घर की चारदीवारी के बाहर होता है और घरगृहस्थी की जिम्मेदारी महिलाएं ही संभालती हैं. लेकिन अब इस का उलटा भी हो रहा है. पत्नी नौकरी करती है और पति बेरोजगार हो कर घर के काम करता है. कुछ आलसी किस्म के पति आर्थिक दृष्टि से पत्नी की कमाई पर निर्भर रहते हैं ‘खुदा दे खाने को तो कौन जाए कमाने को’ के सिद्धांत पर चलने वाले पति ताउम्र निठल्ले पड़े रहते हैं. वे घरेलू कामकाज और बच्चों की देखभाल तो कर सकते हैं, पर कोई कामधंधा नहीं.

ऐसे पतियों को और उन की पत्नियों को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि घर पर रहने वाले पतियों को होती है दिल की बीमारियां, जो उन्हें असमय ही मौत के मुंह में धकेल देती हैं.

घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करने वाले पतियों को दिल की बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है. यह बात अमेरिका में किए गए एक अध्ययन के बाद सामने आई है. घर में रह कर बच्चों की जिम्मेदारी संभालने वाले पतियों को दिल की बीमारी होने और उन की जल्दी मौत होने की संभावना बढ़ जाती है.

यह बात कार्य से संबंधित तनाव और कोरोनरी बीमारी के बारे में किए गए एक अध्ययन के दौरान भी सामने आई थी. घर पर रहने वाले पतियों के स्वास्थ्य को इस तरह का खतरा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें अपने परिजनों, मित्रों और साथियों का समर्थन या सहयोग नहीं मिलता है, जबकि घर के लिए काम छोड़ने वाली अकेली कमाऊ महिलाओं को हर तरह से वाहवाही मिलती है.

हमेशा तनाव में रहना

फिर पुरुषों पर यह भी सिद्ध करना होता है कि वे महिला से बेहर काम कर सकते हैं, इसलिए भी वे सदैव तनाव में रहते हैं. एक अध्ययन लगातार 10 वर्ष तक 18 वर्ष से ले कर 77 साल तक के 2,682 पतियों पर किया गया. इस अध्ययन से यह भी पता चला कि घर पर ही रहने वाले पति अपने अन्य हमउम्र लोगों की अपेक्षा 10 वर्ष पहले मर जाते हैं. अध्ययनकर्ताओं ने इन पतियों की उम्र, रक्तचाप कोलैस्ट्रौल, वजन, मधुमेह और धूम्रपान करने की आदत को जब आधार बनाया, तब भी इस अध्ययन के परिणाम सही निकले.

कम आय प्राप्त करने वाले या पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर होने वाले पुरुषों को भी दिल की बीमारी होने और समय से पूर्व का ग्रास बन जाने की संभावना अधिक होती है. अच्छी आय प्राप्त करने वाले पुरुषों जैसे डाक्टरों, वकीलों, इंजीनियरों, आर्किटैक्ट और शिक्षकों को दिल की बीमारी होने का खतरा तो होता है, पर अधिक नहीं.

आसान नहीं तलाक लेना

पत्नियों को यह याद रखना चाहिए कि वे निठल्ले पति से तलाक नहीं ले सकती क्योंकि भारतीय अदालतें हिंदू औरतों को पति सेवक आज भी मानती हैं और उन के लिए पति तो जन्मों का साथी होता है चाहे कोढ़ी हो, वेश्यागासी हो. निठल्ले पति का आवरण भी पत्नी के लिए अच्छा रहता है क्योंकि न से तो वह है और दूसरे हाथ मारते हुए डरते हैं. यही सामाजिक परंपराएं कई निठल्ले पतियों को उग्र बना देती हैं. वे मारपीट का सहारा भी लेने लगते हैं.

निठल्ले पतियों की मौत जल्दी भी इसलिए होती है कि न पत्नी, न बच्चे ऐसे जने की देखभाल ढंग से करते हैं. जरूरत पड़ने पर उन्हें इग्नोर किया जाता है. हां एक बार मद्रास उच्च न्यायालय ने हिम्मत दिखा कर बेरोजगार पति को कमाऊ पत्नी से गुजाराभत्ता दिलाने से इनकार कर दिया था जो पत्नी से अलग रहता था. ऐसे पति छोटी बीमारी भी कई बार नहीं बता पाते.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें