Valentine’s Special: यह कैसा प्यार- रमा और विजय के प्यार का क्या हुआ अंजाम

वे दोनों बचपन से एक ही कालोनी में आसपड़ोस में रहते हुए बड़े हुए थे. दोनों ने एकसाथ स्कूल व कालेज की पढ़ाई पूरी की. उन के संबंध मित्रता तक सीमित थे, वो भी सीमित मात्रा में. दोनों एक ही जाति के थे. सो, स्कूल समय तक एकदूसरे के घर भी आतेजाते थे. कालेज में भी एकदूसरे की पढ़ाई में मदद कर देते थे. एकदूसरे के छोटेमोटे कामों में भी सहयोग कर देते थे. लेकिन कालेज के समय से उन का एकदूसरे के घर आनाजाना बहुत कम हो गया. जाना हुआ भी तो अपने काम के साथ में एकदूसरे के परिवार से मिलना मुख्य होता था.

दोनों अपने समाज, जाति की मर्यादा जानते थे. अब दोनों जवानी की उम्र से गुजर रहे थे. रमा तभी विजय के घर जाती जब विजय की बहन से उसे काम होता. विजय से तो एक औपचारिक सी हैलो ही होती. कालेज में भी उन का मिलना बहुत जरूरत पर ही होता. रमा को यदि विजय से कोई काम होता तो वह विजय की बहन या मां से कहती. विजय को वैसे तो जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी रमा के घर, पर कई बार ऐसे मौके आते कि जाना पड़ता. जैसे रमा को नोट्स देने हों या कालेज की लाइब्रेरी से निकाल कर पुस्तकें देनी हों.

विजय जाता तो रमा के मम्मी या पापा घर पर मिलते. रमा चाय बना कर दे जाती. विजय पुस्तकें रमा के मातापिता को दे देता. रमा के मातापिता उसे बैठा कर घरपरिवार, पढ़ाईलिखाई, भविष्य की बातें पूछते, कुछ अपनी बताते. विजय वापस आ जाता.

रमा के मातापिता अपनी इकलौती बेटी के लिए अच्छे वर की तलाश में जुटे थे. बात विजय की भी निकली. रमा के पिता ने कहा, ‘‘लड़का तो ठीकठाक है लेकिन करता तो कुछ नहीं है फिलहाल.’’

रमा की मां ने कहा, ‘‘अभी तो पढ़ाई कर रहा है. पास का देखापरखा लड़का है. रमा से पटती भी है.’’ मां की बातें रमा के कानों से होती हुईं उस के दिल में पहुंचीं, पहली बार. और पहली बार ही रमा के हृदय में कंपन सी हुई. रमा के पिता ने एक सिरे से नकारते हुए कहा, ‘‘पढ़ाई पूरी होने के बाद नौकरी की कोई गांरटी नहीं है और मैं अपनी इकलौती बेटी का विवाह किसी बेरोजगार से नहीं कर सकता. फिर इतनी पास रिश्ता करना भी ठीक नहीं है. अभी तो विजय की बहन बैठी हुई है शादी के लिए. मुझे विजय के पिता का व्यवहार और उन की क्लर्की की नौकरी दोनों खास पसंद नहीं हैं.’’

रमा की मां ने कहा, ‘‘मैं ने तो ऐसे ही बात कह दी थी. आप उस के परिवार के बारे में क्यों उलटासीधा कह रहे हैं?’’

रमा के पिता ने कहा, ‘‘उलटासीधा नहीं, सच कह रहा हूं. मैं अपनी हैसियत वाले घर में ही रिश्ता करूंगा. इंजीनियर हूं. क्लर्क के घर में क्यों रिश्ता करूं?’’

पति को आवेश में देख रमा की मां किचन में जा कर घरेलू कामों में जुट गई. विजय को जब मालूम हुआ कि रमा के लिए लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो पता नहीं क्यों पहली बार उसे लगा कि उस की प्रियवस्तु कोई उस से छीन रहा है. उस ने हिम्मत कर के अपनी मां से रमा के साथ शादी की बात चलाने के लिए कहा.

विजय की मां ने कहा, ‘‘बेटा, पहले नौकरी करो. फिर बहन के हाथ पीले करो. उस के बाद अपनी शादी के विषय में सोचना.’’ मां ने कह तो दिया लेकिन बेटे के चेहरे को भी पढ़ लिया. उन्हें स्पष्ट नजर आया कि उन का बेटा रमा से प्रेम करता है. बेटे की तसल्ली के लिए मां ने कहा, ‘‘अच्छा, देखती हूं, तुम्हारे पिता से बात करती हूं.’’ विजय के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई, जिसे मां से छिपाने के लिए वह दूसरे कमरे में चला गया.

विजय की मां ने रात को भोजन के बाद अपने कमरे में पति से बेटे के मन की बात कही. पति ने कहा, ‘‘वे लोग ऊंची हैसियत वाले हैं. अपने से बड़े घर की लड़की लाने का मतलब समझती हो. सह पाओगी बड़े घर की बेटी के नखरे. फिर इतनी पास में रिश्ता. घर में जवान बेटी बैठी है. बेटा बेरोजगार है. किस मुंह से शादी का रिश्ता ले कर जाएंगे. अपना अपमान नहीं कराना मुझे. फिर मैं ठहरा ईमानदार आदमी और मामूली सा क्लर्क. वे हैं इंजीनियर और 2 नंबर के पैसे वाले.’’

विजय की मां ने कहा, ‘‘वो मैं समझती हूं. बेटे के दिल में है कुछ रमा के लिए, इसलिए कहा.’’

विजय के पिता ने कुछ पल ठहर कर कहा, ‘‘मैं तो बात करने नहीं जाऊंगा. तुम चाहो तो किसी और के माध्यम से बात चलवा कर देख लो. बेटे की तरफदारी करने से अच्छा है, बेटे को समझाओ कि अपने पैरों पर खड़े हो कर उन के बराबर बन कर दिखाए.’’

पत्नी ने करवट ली और सोने का प्रयास करने लगी. वे इस बात को यहीं खत्म कर देना चाहती थी.

बाजार से जरूरी सामान मंगवाना था. रमा के पिता कुछ अस्वस्थ थे. रमा की मां ने विजय को आवाज दे कर बुलाया और कहा, ‘‘रमा को देखने वाले आ रहे हैं. यह लिस्ट ले जाओ. बाजार से सामान ले कर जल्दी आना.’’

सामान की लिस्ट और रुपए ले कर विजय बाजार की ओर चल दिया. लेकिन मन उस का उदास था. वह सोच रहा था कि रमा किस तरह उसे मिलेगी. कैसे वह रमा को अपना जीवनसाथी बनाएगा. एमएससी का अंतिम वर्ष था उस का. नौकरी मिलने में समय लगेगा.

विजय के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह रमा के पिता से अपने विवाह की बात कर पाता. मां ने अपने एक परिचित से रिश्ते की खबर भेजी थी, लेकिन उत्तर अनुकूल न था. बात औकात, हैसियत, बेरोजगारी पर आ कर अटक गई थी. विजय के मन में अजीब से अंधड़ चल रहे थे. स्वयं को संभालते हुए बाजार से सामान ला कर उस ने रमा के पिता को सौंप दिया. लड़के वाले आ चुके थे, इसलिए रमा के मातापिता ने विजय को बैठने को भी नहीं कहा.

विजय पास के गार्डन में पहुंचा. थकेहारे, टूटे हुए व्यक्ति की तरह मन में सोचने लगा, ‘रमा का ये रिश्ता टूट जाए, रमा का विवाह हो तो मुझ से, अन्यथा न हो.’

हार से गुस्सा उपजता है और गुस्से से मस्तिष्क बेकाबू हो कर किसी भी दिशा में भटकने लगता है. पास बैठे एक अंकल से उस ने कहा, ‘‘क्या जिंदगी में जिसे चाहो वह मिल जाता है?’’

अंकल ने रूखे स्वर में कहा ‘‘हां, शायद.’’

अंकल की बात से असंतुष्ट विजय उठ कर घर की तरफ चल दिया. रातभर वह यही सोचता रहा कि उसे रमा से इतना लगाव, इतना प्यार कैसे हो गया? यदि पहले से था तो उसे पता क्यों नहीं चला? यही तड़प पहले होती तो वह रमा से इस विषय में कालेज में बात कर लेता. क्या पता रमा के मन में कुछ है भी या नहीं. होता तो कभी तो वह कहती बातों में, इशारों में. प्रेम कहां छिपता है? कहीं यह एकतरफा प्यार का मामला तो नहीं. वह खुद से कहने लगा, ‘रमा का ग्रैजुएशन का अंतिम वर्ष है. शादी आज नहीं तो कल हो ही जाएगी. फिर मेरा क्या होगा? क्या मैं रमा से बात करूं? कहीं ऐसा तो नहीं कि बात और बिगड़ जाए.’

विचारों के आंधीतूफान से उलझता विजय घर आ गया. रात में बिस्तर पर उसे नींद नहीं आई. वह करवटें बदलते हुए सोचने लगा कि रमा को कैसे हासिल किया जाए. पत्रपत्रिकाओं में छपने वाले तांत्रिक बाबाओं, वशीकरण विधा के जानकारों वाले विज्ञापन उस के दिमाग में कौंधने लगे. बाजार से उस ने कुछ तंत्रमंत्र की किताबें खरीद कर उन्हें आजमाने पर विचार किया. यदि लड़की वशीभूत हो कर विवाह के लिए तैयार हो जाए तो फिर कोई क्या कर सकता है?

तंत्रमंत्र की पुस्तकें पढ़ कर विजय को निराशा हाथ लगी. वशीकरण मंत्र के लाखों की संख्या में जाप कर के  उन्हें सिद्ध करना, फिर पूरे नियम से उन का दसवां हिस्सा हवनतर्पण, मार्जन करना, उस के बाद विशेष तिथि, योग में ऐसी सामग्री जुटाना जो उस के लिए क्या, किसी भी साधारण आदमी के लिए संभव नहीं थी. विजय ने पुस्तकें एकतरफ फेंक कर इंटरनैट पर वशीकरण संबंधी प्रयोग तलाशने शुरू किए, उसे मिले भी. सारे प्रयोग एकएक कर के किए भी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

विजय समझ गया कि सारे प्रयोग झूठे हैं. फिर उस ने तंत्रमंत्र, वशीकरण के विज्ञापनों पर दृष्टि डाली जहां 24 घंटे से ले कर 4 मिनट में वशीकरण के दावे किए गए थे. विजय ने कई बाबाओं से मुलाकात की. रुपए इधरउधर से इंतजाम कर के फीस भरी. कभी नीबू के प्रयोग, कभी नारियल वशीकरण, कभी लौंग वशीकरण प्रयोग बाबाओं द्वारा बताए गए. लेकिन नतीजा शून्य निकला.

रमा की तरफ से उसे कोई जवाब नहीं मिला. विजय समझ गया कि वशीकरण, तंत्रमंत्र जैसा कुछ नहीं, सब बेवकूफ बनाते हैं. लेकिन रमा की तरफ विजय का लगाव निरंतर बढ़ता जा रहा था. फिर वह सोचने लगा कि शायद मुझ से ही कोई चूक हो गई हो. सब तो गलत नहीं हो सकते. क्यों न अब की बार प्रयोग तांत्रिक से ही करवाया जाए.

विजय ने बंगाली बाबा नाम के व्यक्ति को फोन लगाया. बाबा ने कहा, ‘‘मैं सौ टके तुम्हारा काम कर दूंगा. लेकिन तुम्हें श्मशान की राख, उल्लू का जिगर, किसी मुर्दे की हड्डी लानी पड़ेगी. यदि नहीं ला सकते तो हम सामान की अलग से फीस लेंगे. साथ में, हमारी फीस. जिस का वशीकरण करना है उस की पूरी जानकारी नाम, पता, फोटो, मोबाइल सब हमारे मेल पर भेजना होगा. और अपना विवरण भी. फीस हमारे बताए अकाउंट में जमा करनी होगी.’’

विजय जानतेसमझते हुए भी बेवफूफ बन गया. रमा की फोटो कालेज फंक्शन के गु्रप में उस के पास थी. उस ने उस फोटो की एक और फोटो निकाल कर पोस्टकार्ड साइज में रमा की फोटो स्टूडियो से बनवा ली. सारी सामग्री बाबा को मेल कर दी. फीस अकाउंट में जमा कर दी. लेकिन कई दिन बीतने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ. विजय समझ गया कि तंत्रमंत्र का बाजार झूठ और धोखे पर आधारित है.

रमा के पिता ने विजय को घर बुला कर कहा, ‘‘तुम घर के लड़के हो. रमा के लिए लड़के वाले देखने आए थे. उन्होंने रमा को पसंद कर लिया है. मैं चाहता हूं तुम मेरे साथ चलो. हम भी उन का घरपरिवार देख आएं.’’

विजय चाह कर भी मना न कर सका. लड़के वालों ने अच्छा स्वागतसत्कार किया. रमा के पिता ने विवाह की स्वीकृति दे दी.

विजय ने बातोंबातों में लड़के का मोबाइल नंबर ले लिया. साथ ही, घर का पता दिमाग में नोट कर लिया. विजय भलीभांति जानता था कि वह जो कर रहा है और करने वाला है, वह गलत है. लेकिन उस ने स्वयं को समझाया कि रास्ता गलत है, पर मकसद तो अपने प्यार को पाना है. विजय ने रमा के चरित्रहनन की झूठी कहानी बना कर लड़के के पते पर भेजी. साथ ही, रमा को पढ़ाने वाले प्रोफैसर, उस की सहेलियों को भी रमा के विषय में लिख भेजा.

एकदो पत्र तो उस ने महल्ले के लड़कों के नाम, एक अधेड़ प्रोफैसर के नाम इस तरह भेजे मानो रमा अपने प्रेम का इजहार कर रही हो. बात तेजी से फैली. कुछ लोगों ने रमा को पत्र का जवाब लिखा. कुछ लोगों ने उस के पिता को पत्र दिखाया. न जाने कितने प्रकार के अश्लील पत्र रमा की तरफ से विजय ने भेजे.

कालेज, महल्ले में तमाशा खड़ा हो गया. रमा को समझ ही नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. जितनी सफाई रमा और उस का परिवार देता, मामला उतना ही उछलता. लड़कियों को ले कर भारतीय समाज संवेदनहीन है. सब मजे लेले कर एकदूसरे को किस्से सुना रहे थे.

हालांकि समझने वाले समझ गए थे कि किसी ने शरारत की है लेकिन समझने के बाद भी लोग अश्लील पत्रों का आनंद ले कर एकदूसरे को सुना रहे थे. प्रोफैसर ने तो अपने कक्ष में बुला कर रमा को अपने सीने से लगा लिया और कहा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करता हूं.’’ जब रमा ने थप्पड़ जमाया तब प्रोफैसर को समझ आया कि वे धोखा खा गए.

लड़के के मोबाइल पर अज्ञात नंबर से रमा का प्रेमी बन कर विजय ने यह कहते हुए जान से मारने की धमकी दी कि रमा और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं पर घर वाले उस की जबरदस्ती शादी कर रहे हैं. यदि तुम ने शादी की तो मार दिए जाओगे.

लड़के वालों के परिवार ने रिश्ता तोड़ दिया. अच्छीभली लड़की का पूरे महल्ले में तमाशा बन गया. बेगुनाह होते हुए भी रमा और उस का परिवार किसी से नजर नहीं मिला पा रहे थे.

विजय को अनोखा आनंद आ रहा था. उस के मातापिता का उजाड़ चेहरा देख कर उसे लग रहा था कि मंजिल अब करीब है.

रमा के पिता तो शहर छोड़ने का मन मना चुके थे. पुलिस में रिपोर्ट करने पर पुलिस अधिकारी ने उलटा उन्हें ही समझा दिया, ‘‘लड़की का मामला है, आप लोगों की खामोशी ही सब से बढि़या उत्तर है. जितनी आप सफाई देंगे, जांच करवाएंगे, आप की ही मुसीबत बढ़ेगी.’’

विजय को फोन कर के रमा के पिता ने अपने घर बुलाया. रमा की मां का रोरो कर बुरा हाल था. रमा के पिता ने उदास स्वर में विजय से कहा, ‘‘पता नहीं मेरी बेटी से किस की क्या दुश्मनी है कि उसे चरित्रहीन घोषित कर दिया. उस की शादी टूट गई. हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. बेटा, तुम तो जानते हो रमा को अच्छी तरह से.’’

विजय ने अपनी खुशी को छिपाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जी अकंलजी, मैं तो बचपन से देख रहा हूं. रमा पाकपवित्र लड़की है. मैं तो आंख बंद कर के विश्वास करता हूं रमा पर.’’

‘‘बेटा, तुम रमा से शादी कर लो,’’ रमा के पिता ने हाथ जोड़ते हुए विजय से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा जीवनभर ऋणी रहूंगा. अन्यथा हम तो शहर छोड़ कर जाने की सोच रहे हैं.’’ रमा दरवाजे के पास छिप कर सुन रही थी और देख रही थी अपने दबंग पिता को नतमस्तक होते हुए.

‘‘अंकल, आप कैसी बातें कर रहे हैं? आप की इज्जत मेरी इज्जत. रमा मेरी पत्नी बने, मेरे लिए गर्व की बात होगी.’’

विजय की बात सुन कर रमा के मन में फिर से एक बार कंपन हुई. इस कंपन में प्यार के साथ सम्मान भी था और आभार भी. विजय ने अपने घर में दोटूक उत्तर दिया, ‘‘मैं रमा से ही शादी करूंगा. यह मेरा पहला और आखिरी फैसला है. आप मना करेंगे तो भी मैं शादी करूंगा, चाहे कोर्ट में ही क्यों न करनी पडे़?’’

विजय के परिवार के लोग भी सहमत हो गए. शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. रमा खुश थी, बहुत खुश. उसे बचपन से जवानी तक देखाभला युवक पति के रूप में मिल रहा था. रही विजय के बेरोजगार होने की बात, तो रमा के पिता ने स्पष्ट कह दिया कि ऐसे नेक लड़के के रोजगार लगने की प्रतीक्षा की जा सकती है. यदि नौकरी नहीं मिली तो अपनी जमा पूंजी से विजय के लिए रोजगार की व्यवस्था मैं करूंगा.

रमा के मोबाइल की रिंगटोन बजी. रमा ने मोबाइल उठा कर पूछा ‘‘हैलो कौन?’’

‘‘आप का शुभचिंतक.’’

‘‘नाम बताइए.’’

‘‘मैं बंगाली बाबा. आप को वशीभूत करने के लिए एक व्यक्ति ने मुझे रुपए दिए थे. यदि आप नाम जानना चाहें तो 10 हजार रुपए मेरे अकाउंट में जमा करवा दीजिए.’’

‘‘मुझे नहीं जानना.’’

‘‘हो सकता है जो तंत्रमंत्र के द्वारा आप का वशीकरण चाहता हो, कल आप को दूसरे तरीके से भी नुकसान पहुंचा दे.’’

‘‘कौन है वह?’’

‘‘पहले अकाउंट में रुपए.’’

‘‘आप सच कह रहे हैं, इस का क्या सुबूत है?’’

‘‘मेरे पास आप का फोटो, घर का पता, मातापिता का नाम, सारी जानकारी है आप की.’’

रमा का माथा ठनका. पिछले दिनों जो कुछ उस के साथ हुआ कहीं ये सब उसी व्यक्ति का कियाधरा तो नहीं है. रमा ने उस के अकाउंट में रुपए जमा करवा कर नाम पूछा. नाम सुन कर रमा भौचक्की रह गई. रमा सीधे पुलिसस्टेशन पहुंची. थाना इंचार्ज सीमा तिवारी से मिली. अपनी बदनामी और उन पत्रों की जानकारी दे कर बाबा द्वारा बताया गया नाम भी बताया.

‘‘आप चिंता मत करिए. मैं बारीकी से जांच कर के अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाऊंगी.’’

पुलिस ने अपनी जांच शुरू की. रमा की शादी जिस लड़के से होने वाली थी उस लड़के और उस के परिवार वालों को थाने बुला कर पूछताछ की. लड़के को जिस नंबर से फोन पर जान से मारने की धमकी मिली थी, उस नंबर की जांच के साथ उन तमाम पत्रों की भी जांच की गई जो रमा के विरुद्ध महल्ले, कालेज में और लड़के वालों के घर भेजे गए थे. जांच का परिणाम यह निकला कि सबकुछ विजय द्वारा किया गया था. पुलिस की थर्ड डिगरी के आरंभिक दौर में ही विजय ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. रमा ने गुस्से में आ कर कई थप्पड़ विजय को जड़ दिए.

‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा?’’

‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम्हें पाने के लिए, तुम से शादी करने के लिए किया सब.’’

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम्हें. जिस से प्यार करते हो उसी को सारे शहर में बदनाम कर दिया. यह कैसा प्यार है? यह प्यार है तो नफरत किसे कहते हो? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती रही. तुम पर भरोसा करती रही और तुम ने भरोसा तोड़ा, मेरी शादी तुड़वाई. गिर चुके हो तुम मेरी नजरों से. मैं चाहूं तो जेल भिजवा सकती हूं अभी लेकिन फिर तुम्हारी बहन की शादी कैसे होगी? तुम्हारे मातापिता कैसे जी पाएंगे?’’

रमा ने थाना प्रभारी सीमा तिवारी से निवेदन किया, ‘‘मैडम, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. मैं इस व्यक्ति के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करना चाहती. इसे क्षमा करना ही इस की सब से बड़ी सजा होगी.’’

विजय नजरें झुकाएं हवालात में खड़ा था. रमा की डांट से, थप्पड़ से वह अंदर ही अंदर टूट चुका था. रमा थाने के बाहर आई. सामने शादी तोड़ने वाला परिवार खड़ा था. रमा से माफी मांग कर लड़के ने कहा, ‘‘दूसरे के बहकावे में आ कर मैं ने बहुत बड़ी गलती कर दी. मैं शादी करने को तैयार हूं.’’

‘‘लेकिन मैं तैयार नहीं हूं. किसी के बहकावे में आ कर शादी तोड़ने वालों पर विश्वास नहीं कर सकती. शादी के बाद यदि यही बातें तुम तक पहुंचतीं तब क्या करते, तलाक दे देते? विवाह के लिए भरोसा जरूरी है. पहले विश्वास करना सीखिए.’’

रमा ने अपनी स्कूटी उठाई और घर की ओर चल दी. धीरेधीरे यह बात सब जगह पहुंच गई कि रमा को बदनाम करने में विजय का हाथ था. वह तो रमा भली लड़की है जिस ने विजय के परिवार को ध्यान में रख कर उस पर कोई केस नहीं किया.

रमा अब सरकारी नौकरी करती है. इसी शहर में उस का विवाह हो चुका है एक डाक्टर से. रमा के 2 बच्चे हैं. वह खुशहाल भरापूरा जीवन जी रही है. पुलिस थाने से निकलने के बाद विजय न घर आया न किसी ने उसे देखा. विजय की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज है.

Serial Story: लाइफ कोच – भाग 4

अभी नकुल खाना खा कर सोने ही जा रहा था कि फिर किरण का फोन आ गया.

पूछने लगी कि उस ने खाना खाया या नहीं और खाया तो क्या खाया? बहुत ज्यादा कैलोरी वाला खाना तो नहीं खाया न? दवा तो याद से ले रहा है न?

‘‘हां, ले रहा हूं और खाना भी एकदम सादा ही खाया है, तुम चिंता मत करो,’’ मन झंझला उठा नकुल का, ‘अरे, मैं कोई छोटा बच्चा हूं जो हर वक्त मुझे समझती रहती है? खाना खाया कि नहीं, दवा ली या नहीं? इंसान को भूख लगेगी तो खाएगा ही, जरूरत है तो दवा भी लेगा. इस में पूछने वाली कौन सी बात है. सच कहता हूं, एकदो दिन दवा न खाने से शायद मैं बच भी जाऊं, परंतु किरण की कड़कती बातों से एक दिन जरूर मुझे हार्ट अटैक आ जाएगा,’ मन में सोच नकुल ने तकिया उठा कर पलंग पर दे मारा.

लोगों के सामने वह जाहिर करती कि पैसे कमाने के अलावा नकुल को कुछ नहीं आता है. इसलिए घरबाहर सबकुछ उसे ही संभालना पड़ता है. हंसतेहंसते उस के दोस्तरिश्तेदारों के सामने उसे अपमानित कर देती और बेचारा नकुल दांत निपोर कर रह जाता. लेकिन अंदर से उस का दिल कितना रोता था वही जानता था. तंग आ चुका था वह अपने दोस्त और सहकर्मियों के चिढ़ाने से. जब वे कहते, ‘भई बीबी हो तो नकुल के जैसी. कितनी पढ़ीलिखी है, नकुल की तो जिंदगी ही बदल कर रख दी है भाभीजी ने वरना यह तो रमता जोगी, बहता पानी था.

लेकिन उन्हें कौन समझए कि वह पहले ही ठीक था. आजाद जिंदगी थी. जो मन आए करता था. जहां मन आए जाताआता था, कोई रोकटोक नहीं थी उस की जिंदगी में. लेकिन आज उस की जिंदगी झंड बन चुकी है. लगता है वह अपने घर में नहीं, बल्कि एक पिंजरे में कैद है, जिस की किरण पहरेदारी कर रही है.

नकुल के तो अपने कमाए पैसे पर भी अधिकार नहीं था, क्योंकि उस के कमाए पैसे का सारा हिसाबकिताब किरण ही रखती थी. रोज के खर्चे के लिए वह उसे पैसे तो देती थी पर 1-1 पैसे का हिसाब भी लेती थी कि उस ने कहां कितने पैसे खर्च किए. नकुल के लिए चाहे कपड़े हों, चप्पलें हों या अन्य कोई सामान किरण ही पसंद करती थी, क्योंकि उस के हिसाब से नकुल की पसंद ‘आउट औफ डेटेड’ हो चुकी थी. जब भी कोई नकुल के कपड़े, घड़ी या जूतों की तारीफ करता तो कैसे तन कर किरण कहती कि यह तो उस की पसंद है. नकुल को ये सब कहां आता है. मतलब लोगों के सामने उस ने तो नकुल को एकदम गंवार ही साबित कर दिया था.

नकुल के फोन चलाने पर भी उसे एतराज होता है. कहती है कि उस के कारण ही पीहू बिगड़ रही है. बेचारे नकुल की हिम्मत ही नहीं पड़ती है फिर किरण के सामने फोन छूने की भी, जबकि वह खुद घंटों मोबाइल पर हंसहंस कर अपने रिश्तेदार और सहेलियों से बातें करती रहती है. जब मन होता शौपिंग पर निकल पड़ती है. किट्टी पार्टी करती है. सहेलियों के सामने अपनी धाक जमाने के लिए हर महीने नई साड़ी और ज्वैलरी खरीदती है. अपने रूपरंग को निखारने के लिए ब्यूटीपार्लर जाती है.

नकुल के मेहनत से कमाए पैसों को पानी की तरह बहाती है. तब तो नकुल कुछ नहीं बोलता है, क्योंकि यह उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और अगर पति कुछ बोल दे, तो पत्नी उस पर घरेलू हिंसा का आरोप लगा कर थाने तक घसीट ले जाती है. फिर पति और बच्चों के साथ इतनी रोकाटोका क्यों? सोच कर ही नकुल तिलमिला उठता था. लेकिन उस की हिम्मत नहीं होती थी किरण से कुछ पूछने की. इस घर में सिर्फ नकुल और पीहू के लिए ही अनुशासन संचालित था, किरण के लिए नहीं. वह तो आजाद थी अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीने के लिए.

बचपन से ही नकुल ने देखा है, कैसे उस की मां उस के पापा से डरडर कर

जीती थी. हमेशा इस बात का डर लगा रहता था उसे कि जाने किस बात पर नकुल के पापा उस पर भड़क उठेंगे. कभी उस के बनाए खाने को ले कर तो कभी उस के पहनावे और बोलने के ढंग को ले कर नकुल के पापा अपनी पत्नी का अपमान करते रहते थे और वह बेचारी, सिर झकाए सब सुनती यह सोच कर कि शायद वे सही बोल रहे हैं. उसे विश्वास दिला दिया गया था कि वह एक अनपढ़गंवार औरत है, कुछ नहीं आता उसे. अपने पापा के कड़े व्यवहार के कारण ही नकुल 10वीं कक्षा के बाद बाहर पढ़ने निकल गया था.

लेकिन उसे नहीं पता था कि एक दिन उस की जिंदगी भी उस की मां जैसी बन जाएगी. तभी वह कहता अपनी मां से कि वह चुप क्यों रहती है, बोलती क्यों नहीं कुछ? विरोध क्यों नहीं करती उन की बातों का? लेकिन आज उसे समझ में आ रहा है कि घर की शांति भंग न हो, इसलिए एक इंसान चुप लगा जाता है. लेकिन कैसे दूसरा इंसान उस की इस चुप्पी का फायदा उठा जाता है वह भी अच्छे से देख रहा था. नकुल की चुप्पी का ही नतीजा है कि आज उस का परिवार उस से दूर हो गया.

पिछले साल रक्षाबंधन पर कैसे किरण ने नकुल की बहन सिम्मी को यह बोल कर अपने घर आने से रोक दिया था कि नकुल ही वहां चला जाएगा, उसे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है.

जाते वक्त नकुल को 500 रुपए पकड़ाते हुए कहा था कि बहुत हैं, इन से ज्यादा क्या दोगे. एक ही बहन है उस की और भाई इतने बड़ी कंपनी में काम करता है तो क्या यही दे सकता है वह अपनी एकलौती बहन को? बहुत दुख हुआ था उसे. लेकिन नकुल की मां सब समझती थी तभी तो अपनी तरफ से सिम्मी को उपहार दे कर बात संभाल ली. मगर कब तक? एक न एक दिन तो सब को पता चल ही जाता है न.

किरण के ऐसे डौमिनेटिंग व्यवहार के कारण ही नकुल के परिवार के लोगों ने उस के घर आना बंद कर दिया. नकुल को उस के घर में सब जोरू का गुलाम बुलाते हैं. उन्हें लगता है नकुल अपनी पत्नी से डरता है, जबकि वह उस की इज्जत करता है. मगर क्या किरण यह बात समझेगी कभी? उसे तो सिर्फ लोगों को बेइज्जत करना आता है.

नकुल को जब भी मन होता है अपने परिवार से मिलने वहां खुद चला जाता है, क्योंकि किरण को अपने घर में वे लोग पसंद नहीं. अपने ही घर में नकुल इतना पराया हो गया है कि उसे यह भी फैसला लेने का हक नहीं है कि उस के घर में कौन आ सकता है कौन नहीं, जबकि उस के मायके वाले जब मन हुआ तब आ धमकते हैं. किरण कैसे उन के स्वागत में पानी की तरह पैसे बहाती है. क्या ये सब देख कर नकुल को गुस्सा नहीं आता है? वह खून का घूंट पी कर रह जाता है.

हमेशा जताती है कि अगर वह नकुल की जिंदगी में न आई होती, तो आज वह इस मुकाम पर न होता. इस में भी सारा श्रेय खुद ले कर वह नकुल को जीरो साबित कर देती है. अपने दोस्तों और परिवार वालों के सामने नकुल का आत्मसम्मान, उस का आत्मविश्वास सब टूटने लगा था. जिस तरह से किरण उसे झिड़कती, उसे सच में लगता कि वह कुछ काम का नहीं है.

‘‘हाय, स्ट्रौंग मैन, आप अभी तक यहीं हो?’’ पीछे से किसी का स्पर्श पा कर जब नकुल मुड़ा तो वही बच्चा अपनी मां का हाथ थामे खड़ा मुसकरा रहा था.

‘मैं और स्ट्रौंग’ नकुल ने मन ही मन कहा कि वैसे गलती मेरी भी है. मैं ने खुद को इतना कमजोर बना लिया कि किरण मुझ पर हावी होती चली गई. ‘लाइफ कोच’ के नाम पर वह मेरा शोषण करती रही और मैं करवाता रहा. लेकिन अब नहीं, अब बहुत हो चुका. अब मैं अपना ‘लाइफ कोच’ खुद बनूंगा. अब न तो मैं खुद और न ही अपनी बेटी को किरण के जुल्मों का शिकार बनने दूंगा. अब से मैं वही करूंगा जो मुझे सही लगेगा. अगर उसे पसंद है तो ठीक, वरना हमारे रास्ते अलग होंगे. मन में सोच नकुल ने एक लंबी सांस ली.

Valentine’s Special: स्मार्ट मेकअप ट्रिक्स अपनाएं और रूप सजाएं

वैलेंटाइन डे यानी प्यार करने के लिए प्यार से बना दिन है. हर लडक़ी चाहती है कि वह इस दिन कुछ खास लगे. लेेकिन कामकाजी लड़कियां अपने बिजी शेड्यूल की वजह न तो वह अपनी स्किन को टाइम दे पातीं हैं न सैलून जाकर तैयार हो पाती हैं. अगर आप भी ऐसी ही कामकाजी महिलाएं हैं तो फिक्र न करें. पूरे दिन की ऑन लाइन मीटिंग के बावजूद पंद्रह मिनट की कुछ स्मार्ट मेकअप ट्रिक्स आजमाएंगी तो आपके वो खास आपके रूप को देखकर बस फिदा हो जाएंगे. रूप को निखारने के ट्रिक्स बता रहीं हैं ब्यूटी एक्सपर्ट और अरोमा थेरेपिस्ट नीति अरोड़ा.

ब्यूटी के स्मार्ट टिप्स और ट्रिक्स

फेस क्लीन

सबसे जरूरी बात कि दिनभर की थकान चेहरे पर नहीं दिखे इसके लिए आइस वॉटर से फेस धोएं, इसके बाद कॉफी और शुगर से स्क्रब करें.

परफेक्ट रेड

लिपस्टिक में रेड एक ऐसा रंग है जो फ्रैश लुक देगा.इसके अलावा आप  मैरून टोन भी ले सकती है. अगर आपको बिल्कुल मेकअप पसंद नहीं हैं तो टिंटेड ग्लॉस लगा सकती हैं. अगर आप रेड से होंठो को सजाती हैं तो आखों को ज्यादा हाइलाइट करने की जरूरत भी नही पड़ती.

हाथों में जब होगा हाथ

हाथों को फटाफट क्लीन करने के लिए फ्रैंच मेन्क्यिोर करें, आजकल मार्केट में रेडी टू यूज मैनिक्योर किट उपलब्ध हैं. फिर नेल पेंट लगाएं.

हाइलाइटर और ब्लशर

अगर आप को बहुत हैवी मेकअप नहीं करना तो सीसी और बीबी क्रीम को मॉश्चाइजर के साथ मिक्स करके लगाएं. यह नेचुरल कवरेज है. इसके ऊपर आप ब्लशर और हाइलाइटर का प्रयोग करें. डस्की स्किन है तो गोल्डन और फेयरटोन है तो सिल्वर कलर ही लगाएं.

आंखें कुछ कहती हैं

मोहब्बत में आंखों से भी कुछ कहा जाता है. ऐसे में इस मौके पर आंखों का मेकअप करना न भूलें. सिर्फ ब्लैक आइलाइनर ही क्यों. इंडियन टोन के हिसाब से डार्क ब्राउन और डार्क चैरी उन पर बिजलियां गिराने के लिए काफी है. आईशेड्स लगाने में तो समय लगता है ऐसे में स्पार्कल और शिमर आईलिड पर लगाएं. आईब्रो पेंसिल से आईब्रोज को शेप करें. इन सभी के बाद मस्कारा का एक स्ट्रोक ही काफी है.

हेयर स्टाइल

छोटे बाल हो तो उन्हें खुला छोड़ दे हल्के बालों को घना दिखाने के लिए कर्ल करे अपने फेस लुक के अनुसार बालों को स्ट्रेट भी कर सकती हैं लंबे बालों हाई पोनी बनाएं.

चलते-चलते

एक और टिप खुद को सजाने के बाद महकना न भूले. उनका पसंदीदा ड्यिू या परफ्यूम से महकें. बहुत स्ट्रांग परफ्यूम न लगाएं. हल्का फ्लोरल आपकी फ्रैगनेंस में चार-चांद लगा देगा.

Valentine’s Day: परिंदा- क्या भाग्या का उठाया कदम सही था

भाग्या के घर में उस की शादी की बातें हो रही थीं. उस के पापा राज ने अपने समाज के कुछ लड़के देखे थे. बात आगे बढ़ाने से पहले उन्होंने भाग्या से कहा, ‘‘यदि तुम्हें कोई लड़का पसंद हो तो बता दो, हम उस से मिल कर तुम्हारी शादी करवा देंगे.’’

जवाब में भाग्या ने घरवालों की बात पर अपनी मोहर लगाते हुए कहा, ‘‘पापा, कोई नहीं है. आप को जैसा ठीक लगे, मु झे मंजूर है.’’

‘‘ठीक है, फिर मैं लड़के वालों से बात कर के मिलने की तारीख तय कर देता हूं. आपस में तुम लोग एकदूसरे से मिल लो, फिर बात आगे बढ़ेगी.’’

घर पर शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. इधर भाग्या भी अपने काम में व्यस्त थी. समय पंख लगा कर उड़ रहा था. 2 दिनों बाद लड़के वालों से मिलने सब दूसरे शहर जाने वाले थे. आज सुबह भाग्या ने अपना बैग पैक किया व औफिस जाने के लिए जैसे ही बाहर निकली कि उस की मां मोना ने उसे आवाज दी, ‘‘भाग्या, आज अपने औफिस में छुट्टी की बात कर लेना, हमें परसों निकलना है.’’ भाग्या ने बिना पलटे ही, ‘‘ठीक है मां,’’ कहा और तेजी से घर से बाहर निकल गई.

रात के 9 बज चुके थे. सब के घर आने का समय हो गया था. मोना भोजन तैयार कर सब के घर आने की राह देख रही थी. भाग्या अभी तक घर नहीं आई तो मोना कुछ चिंतित सी हो गईं. साधारणतया वह 9 बजे तक आ जाती थी. 9.30 बज गए थे. राज भी घर पर आ गए. मोना को घर पर अकेली परेशान देख कर राज ने पूछा, ‘‘भाग्या अभी तक नहीं आई? क्या बात है?’’ मोना ने पलट कर कहा, ‘‘हां, आती होगी. आजकल काम ज्यादा है इसलिए जल्दी जाती है और देरी से घर आती है. मैं फोन लगा कर पूछती हूं कि कहां है.’’

उन्होंने भाग्या को फोन लगाया. घंटी जा रही थी किंतु उस ने फोन नहीं उठाया. सब परेशान हो रहे थे. समय गुजर रहा था. 10 बजे तक भाग्या घर नहीं आई तो राज ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं. चल संजू.’’ संजू भाग्या का छोटा भाई था. राज ने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा कि मोना के फोन की घंटी बजी. मोना ने वहीं से आवाज दे कर कहा, ‘‘रुको, भाग्या का फोन है.’’ आवाज दे कर मोना ने फोन उठाया, ‘‘कब से तु झे फोन कर रहे हैं, उठा भी नहीं रही है, सब ठीक है न? कहां है, कब तक आएगी? सब परेशान हैं.’’ लेकिन भाग्या ने मोना की बात बीच में काट कर कहा, ‘‘मां, मेरी चिंता मत करो. मैं ठीक हूं. मैं ने शादी कर ली है. मु झे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. हम नहीं मिलेंगे. हम ने शहर भी छोड़ दिया है,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

‘‘हैलो, भाग्या, सुन…’’ मोना बोलती रहीं और कंठ अवरुद्ध हो गया. फोन हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया. कटी हुई डाली की तरह मोना धम्म से जमीन पर गिर पड़ीं. यह देख कर सभी उन की तरफ दौड़े, ‘‘क्या हुआ?’’

मोना ने अस्फुटित शब्दों में कहा, ‘‘उस ने शादी कर ली है, और कहा है कि वह वापस नहीं आएगी, उसे मत ढूंढ़ना. वह यह शहर छोड़ कर चली गई है.’’

उस के इस कदम से घर के सभी लोग स्तब्ध हो गए. नींद उड़ गई थी सब की. भोजन ठंडा हो गया था. घर में भय से भरा सन्नाटा पसरा हुआ था. बाहर के कमरे में सभी लोग बैठे थे किंतु वे सभी कुछ कहनेसुनने व सोचने की स्थिति में नहीं थे. अब जाएं भी तो कहां जाएं. जवान लड़की का इस तरह चले जाना इज्जत का सवाल होता है. ऐसी खबरें भी आग की तरह फैलती हैं. मोना छाती पीट कर रो रही थीं. उधर राज का क्रोध सातवें आसमान पर था. वे मोना पर अपने क्रोध के अग्निबाण चला रहे थे.

‘‘सब तेरा ही सिखायापढ़ाया है, घर पर क्या करती हो, बच्चों का ध्यान नहीं रख सकती.’’ उस के पिता ने उन्हें बीच में टोक दिया, ‘‘अब लड़ने झगड़ने से क्या फायदा होगा. तुम्हारी इसी हरकत से वह चली गई है. जब देखो एकदूसरे को काटने के लिए दौड़ते हो. अब शांत हो कर आगे की सोचो. लड़की जात है, इस बात का ध्यान रखना कि बात घर से बाहर नहीं जाए. अब शादी कर ली है तो लड़की को घर लाने की बात सोचो. मन को शांत रखो. उसे सम झाबु झा कर घर लाना होगा.’’

उन की बात सुन कर सब लोग चुप थे. मन में उथलपुथल मची हुई थी और हारे हुए से अपने समय को कोस रहे थे. 2 दिन हो गए, भाग्या की कोई खबर नहीं मिली. परिवार के सभी लोग इस बात से चिंतित थे कि कहीं लड़की के साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ, कौन सी जाति का लड़का है? क्या करता है? आजकल समाज में जिस तरह की घटनाएं हो रही थीं, चिंता होना लाजमी थी. कहते हैं न इश्कमुश्क छिपाए नहीं छिपता है. इस बात को परिवार भरसक छिपाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन जल्दी हवा में सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. गांव में ऐसी बातें जल्दी फैलती हैं. इधरउधर से लड़के की जानकारी भी मिल रही थी कि इसे भाग्या के साथ देखा गया था. 2 दिन तक जब भाग्या की कोई खबर नहीं मिली तो सब ने पुलिस की मदद लेने का फैसला लिया. लेकिन तभी फोन की घंटी बजी. नया नंबर देख कर राज ने फोन उठाया. उधर से भाग्या की आवाज आई, ‘‘पुलिस में खबर करने की जरूरत नहीं है. मैं बहुत खुश हूं. हमें ढूंढ़ने की कोशिश मत करो. हम आप को नहीं मिलेंगे, न ही घर आएंगे.’’

राज ने मन शांत रख कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम ने शादी कर ली है. अब तो घर आ जाओ. बैठ कर बात करेंगे. हम उसी लड़के से तुम्हारी शादी समाज के सामने करवा देंगे. ऐसे हम समाज में क्या मुंह दिखाएंगे. हमें भी तो लड़के से मिलने दो. नहीं आई तो मजबूरन हमें पुलिस की मदद लेनी पड़ेगी.’’

‘‘मैं ने कहा न कि मैं बहुत खुश हूं. हमें ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. हम ने शहर छोड़ दिया है. मैं अब बालिग हूं, अपना भलाबुरा सोच सकती हूं,’’ इस के बाद फोन बंद हो गया. आजकल सोशल मीडिया ने सब की जिंदगी में अपने पांव पसार रखे हैं. दुनिया में यह जीवन की खुली किताब का सब से आसान जरिया भी बन गया है. देररात भाग्या ने अपने सोशल अकाउंट पर शादी की तसवीरें पोस्ट कर के अपनी शादी को सार्वजनिक कर दिया. उस के बाद उस ने अपना फोन भी बंद कर दिया. परिवार जिस इज्जत की दुहाई दे रहा था, उसे उस ने पलभर में चकनाचूर कर दिया था. समाज रिश्तेदारों में यह बात आग की तरह फैल गई थी. जितने मुंह उतनी बातें. लड़के की तसवीर देख कर भाग्या के घरवालों ने लड़के के घर का पता ढूंढ़ना शुरू किया. गांव के कुछ शुभचिंतकों ने लड़केवालों का पता भी दे दिया था. ऐसे समय में शुभचिंतक भी बहुत पैदा हो जाते हैं. सब भागेभागे लड़के के घर गए व उस के मातापिता से कहा, ‘‘हमें हमारी लड़की से मिलने दो.’’ लेकिन, उन्होंने भी साफ कह दिया कि उन का लड़का भी घर से गायब है व उस का फोन भी बंद आ रहा है. वे भी बहुत परेशान हैं. उस से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. राज को गुस्सा आ गया, वे बोले,’’ आप को जैसे ही पता चले हमें भी अवगत कराएं. आप के लड़के ने हमारी लड़की को भगाया है. हम उसे नहीं छोड़ेंगे.’’ लड़के वाले भी घबरा गए. वे बोले, ‘‘देखिए, हम भी उतने ही परेशान हैं जितने आप. हमारा लड़का भी घर से भाग गया है. हम क्या कहें.’’

वे मायूस हो कर घर लौट गए. घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा था. उधर लड़के वालों का भी संदेश आ गया, अच्छा हुआ लड़की शादी से पहले भाग गई. वरना हमारे बच्चे की जिंदगी खराब हो जाती.’

राज ने घर में सब से कह दिया, ‘‘इस लड़की ने हमारी नाक कटा कर रख दी है. अब हमें उस से कोई नाता नहीं रखना है.’’ इधर भाग्या के जीवन में बसंत ने खुशियों की दस्तक दी थी. पलाश के प्यार ने उस के जीवन को महका दिया था. आज वह दुनिया से चीखचीख कर कहना चाहती थी कि मैं आजाद हूं. जैसे कोई पंछी पिंजरे से बाहर निकल कर खुले आसमान में मदमस्त हो कर विचरण करता है, वैसे ही भाग्या का मन उड़ान भर रहा था. उमंगें जहां हृदय में हिलोरें मार रही थीं वहीं भय भी ग्रहण बन कर बैठा था. कब क्या होगा, कोई नहीं जानता था. उसे पता था कि उस का परिवार इतनी आसानी से उन्हें जीने नहीं देगा.

इधर पलाश हर कदम पर उस के साथ खड़ा था. हर 2 दिन में वे शहर बदलते रहे कि कहीं उन का नंबर ट्रेस कर के ढूंढ़ लिया तो पकड़े जा सकते हैं. इस भागमभाग में भी यह प्रेमिल जोड़ा अपनी दुनिया में खुशियों के रंग भर रहा था. भाग्या के माथे पर सिंदूर की लालिमा दमक रही थी. वहीं, आंखों में भविष्य के सुनहरे सपने पल रहे थे. प्यार के रंग में रंगी उस की जिंदगी में इंद्रधनुषी रंग भर गए थे. उस के ससुराल वालों ने उसे अपनी पलकों पर बिठा कर इतना दुलार दिया कि उसे मातापिता की कमी महसूस नहीं हुई. उन के साथ के बिना यह शादी संभव नहीं थी. शादी की तसवीर पोस्ट करने के बाद दोनों गुजरात के एक होटल में 2 दिन के लिए रुक गए. रात को पलाश ने अपने घर फोन कर के मातापिता से स्थिति का जायजा लिया व उन्हें अपने सकुशल होने की सूचना दी.

नवविवाहित जोड़ा प्यार की खुमारी के रंग में रंगा हुआ अपने जीवन को सतरंगी बना रहा था. रात को पलाश थक कर सो गया, पर भाग्या की आंखों में नींद नहीं थी. पलाश की आगोश में लेटी हुई वह अपने अतीत में विचरण कर रही थी. बचपन से ही उस ने अपने घर में प्यार के दो शब्द भी नहीं सुने थे. मातापिता को हमेशा लड़ते देखा था. दोनों का गुस्सा भाग्या पर निकलता था. मां ने भी हमेशा संजू और उस में फर्क किया. जैसे उस का लड़की होना ही बुरा था. वे लड़की की जिम्मेदारियों से बचना चाहते थे. बातबात पर भाग्या को कोसना व मारना आम बात थी. मां हर वक्त उसे डांटती रहतीं, तो कभी गुस्से में उस का सिर दीवार से फोड़ देतीं.

पापा का दिल उस के माथे से निकलते हुए खून को देख कर भी कभी नहीं पसीजा. घर में भाग्या का बचपन सहमते हुए ही बीता. बचपन से ही ताने सुनसुन कर व मार खाखा कर वह कुछ ढीठ सी हो गई थी. उसे युवावस्था में आतेआते घरवालों की हर बात से फर्क पड़ना बंद हो गया था. पैसे की लालची उस की मां ने उसे पढ़ने के साथसाथ काम पर भी लगवा दिया था. उस की मां को बस मिलने वाले गिफ्ट व पैसे के अलावा किसी बात से कोई मतलब नहीं था कि भाग्या बाहर क्या करती है. भाग्या ने भी उन्हें पैसे व गिफ्ट दे कर उन का ध्यान खुद से हटा दिया.

घर में उपेक्षित बच्चों के कदम बाहर जल्दी बहकते हैं. अपनेपन व प्यार के लिए तरसती भाग्या के कदम कम उम्र में ही बहक गए थे. एक बार अपनी क्लास के मुसलमान सहपाठी के साथ पकड़ी गई तो घर से बाहर निकलने के साथ उस का कालेज भी बंद करवा दिया गया. उसे घर में बंधक बना कर नजरबंद कर दिया गया. उस के दोस्त को मारपीट कर धमका कर हवालात के दर्शन करवा दिए व लड़की को बहलानेफुसलाने की रपट करवा दी. दोनों तरफ पहरे हो गए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी वह घर से बाहर नहीं जा सकी.

कम उम्र में सहीगलत की सम झ ही कहां होती है. मामला शांत करने के लिए कुछ दिनों बाद उसे ननिहाल में भेज कर घरवालों ने उस की शादी करवाने का निर्णय लिया. लेकिन, शादी की बात सुनते ही उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की. बमुश्किल से कुछ रिश्तेदारों ने बीचबचाव कर के कहा, ‘लड़की अभी छोटी है. पहले लड़की को लिखाओपढ़ाओ, प्यार से सम झाओ.’ भाग्या के पास भी दूसरा मार्ग नहीं था, या तो वह पढ़े या शादी करे. उस ने फिर से पढ़लिख कर कुछ करने का मन बनाया. घर वालों ने भी उस के प्रति थोड़ी नरमी बरतनी शुरू कर दी. घर वालों ने प्राइवेट परीक्षा देने की अनुमति प्रदान की. लेकिन घर से बाहर उसे अकेले आनेजाने की अनुमति नहीं थी. वह सिर्फ परीक्षा देने ही जाती थी. उस का जीवन एक कैदी की तरह बीतने लगा. 2 वर्षों तक यों ही चलता रहा. फिर घरवालों को लगा कि वह सुधर गई है, तो फिर से पढ़ाने के साथ उस के घर वालों ने उसे अपने करीबी रिश्तेदार के यहां काम पर भी रख दिया, जिस से आमदनी भी होती रहे व उस का भविष्य भी सुधर जाए. परिवार का कोई न कोई सदस्य पहले उसे खुद लेनेछोड़ने जाता था.

खुली हवा में सांस लेने के लिए तरसती भाग्या के जीवन में पलाश के आने से बसंत का आगमन शुरू हो गया था. प्यार की फगुनाहट दिल में दस्तक देने लगी थी. मन का मौसम चुपके से बदल रहा था. वह उस के औफिस में काम से आता था, वहां एकदूसरे से नजरें मिलीं और दिल चुपचाप धड़कने लगे. रोज औफिस में होती मुलाकातों ने उन्हें एकदूसरे के करीब ला दिया. एक दिन पलाश ने भाग्या को शादी के लिए प्रपोज किया तो बिना देर किए भाग्या ने अपने जीवन को बदलने का मन बना लिया.

औफिस लंच के समय भाग्या पलाश के घर वालों से भी कभीकभार मिलने लगी. इस बार वह सतर्क थी कि दिल में महकते हुए प्यार के फूलों की महक किसी तक न पहुंचे. फिर से कोई इन फूलों को न मसले. सुंदर, सलोनी लड़की पा कर पलाश के घर वालों ने उसे सहर्ष अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर आशीष व नेह की बारिश में भिगो दिया. प्यार के लिए तरसती भाग्या का समय सच में उस पर मेहरबान हो रहा था. इधर परिवार में उस की शादी के चर्चे शुरू हुए तो भाग्या ने घबरा कर पलाश व उस के परिवार को सब बात बता दी. वह उन्हें खोना नहीं चाहती थी. उस ने कहा जल्दी शादी करो वरना हमारी शादी कभी नहीं होगी. पलाश के मातापिता ने कहा, ‘बेटी तुम चिंता मत करो, हम तुम्हारे घरवालों से बात करेंगे.’ कहते हैं न दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. तब उस ने कहा, ‘नहीं, मेरे घर वाले नहीं मानेंगे. मेरे पापा बहुत गुस्से वाले हैं. वे पलाश के साथ कुछ भी कर सकते हैं. उन की यहां सब से बहुत जानपहचान है.’

भय से उस का चेहरा पीला पड़ रहा था. औफिस के काम में भी मन नहीं लग रहा था. औफिस का मालिक उन के परिवार का करीबी था. वह सब जानता था. उस ने भाग्या के जीवन में खुशियों की खातिर उस का साथ देने का फैसला लिया. उस ने भाग्या को दिलासा दिया कि वह उस की मदद करेगा. पर किसी को भी यह बात पता नहीं चलनी चाहिए. उस ने भाग्या के घर पर संदेश दिया कि आजकल औफिस में काम ज्यादा है, इसलिए औफिस जल्दी आना होगा व देर तक रुकना होगा. रिश्तेदार होने के कारण किसी को उस पर शक नहीं हुआ. इधर पलाश व उस के घर वालों ने गुपचुप तरीके से  झटपट शादी की तैयारियां शुरू कर दीं.

मातापिता बन कर वे बेटी को घर लाने की तैयारी कर रहे थे. किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई. भाग्या ने भी घर छोड़ने के कुछ दिनों पहले से अपना सामान चुपचाप ले जा कर अपने होने वाले नए घर में रखना शुरू कर दिया. चुपचाप सारी तैयारियों को अंजाम देते हुए अंत में दूसरे शहर जा कर कोर्टमैरिज कर ली.

भाग्या के सासससुर, ननदननदोई सब ने मिल कर उस की  झोली खुशियों से भर दी. उसी शाम दोनों पलाश की बहन के घर गुजरात चले गए. शेष सभी लोग देररात तक वापस शहर में आ गए. रात को राज ने उस के औफिस में जब पूछताछ की तो मालिक ने कह दिया, ‘मैं तो आज दिन में बाहर गया था, मु झे नहीं पता है.’ सब की कोशिशों ने भाग्या का जीवन बदल दिया था.

मामला ठंडा होने तक दोनों एक शहर से दूसरे शहर घूमते रहे. फिर पुलिस की मदद से अपने घर लौट आए. आज पंछी कैद से आजाद था, उसे पिंजरे के घुटनभरे माहौल से मुक्ति मिल गई थी. यहां सांस लेने के लिए खुला आसमान था, रहने के लिए घर था, जिसे वह अपना कह सकती थी. जो मन चाहे कर सकती थी. जीवन के नीरस रंग चटकीले रंगों में बदल गए थे. भय का कोई साया साथ नहीं था.

सुबहशाम घर में इतनी शांति उस ने कभी नहीं देखी थी. अब सुबह मधुर संगीत से होती थी तो शाम को घर में हंसी के ठहाके गूंजते थे. वह आज अपने घर में सुरक्षित थी. प्यार व दुलार का एहसास अब हो रहा था. सास के रूप में उसे मां मिली थीं जिन्होंने उसे अपने आंचल में छिपा कर अपनी ममता उस पर लुटा दी थी. जीवन पूर्ण सतरंगी हो गया था.

राज व मोना चाह कर भी कुछ नहीं कर सके. उन्होंने भाग्या से संबंध तोड़ लिए थे. लेकिन भाग्या ने मन बनाया कि कुछ समय बाद वह कोशिश करेगी कि अपने घर वालों के मन को भी मिठास का स्वाद चखा दे. पलाश के फूलों की महक सब के जीवन में ताउम्र महकती रहे. पंरिदे पिंजरे में कैद नहीं, खुले आसमान में विचरते ही अच्छे लगते हैं. कलरव की मधुरता ही जीवन को सुंदर बनाती है.

Valentine लुक को गॉर्जियस बनाए डिजाइनर साड़ी

वेलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी आ गया है. ऐसे में अपने लुक को स्टाइलिश बनाने और इस खास दिन को और खास बनाने के लिए ऐसी ड्रेस कैरी करें जो सबसे हट कर हो. तो क्यों न इस प्यार के मौसम में बॉलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडेकर की तरह वाइट साड़ी पहन कर जलवा बिखेरा जाएं.

प्यार के इस मौसम में रेड कलर की धूम हर तरफ देखने को मिलती है. फिर चाहे वो ट्रेडिशनल ड्रेस हो या वेस्टर्न ड्रेस. आप रेड कलर पहन कर मॉडर्न और ट्रेंडी लुक तो दिखा सकती है लेकिन खास लुक पाने के लिए बॉलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर की डिजाइनर वाइट साड़ी ट्राई कर सकती है.

 

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राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर अपनी फिल्म ‘बधाई दो’ के प्रमोशन के लिए कपिल शर्मा के शो में नजर आएंगे. चैनल ने एपीसोड का प्रोमो रिलीज कर दिया है. भूमि पेडनेकर शो में डिजाइनर साड़ी पहनकर पहुंची हैं. डिजाइनर अबु जानी-संदीप खोसला की डिज़ाइन की हुई इस वाइट ओर्गेंजा साड़ी में रेड कलर के धागे से लव शब्द को अलग-अलग भाषाओं में एम्ब्रॉयडर किया गया है. जो देखने में बहुत स्टाइलिश लग रहा है. साड़ी का कलर कॉम्बिनेशन भी अलग लुक दे रहा है.

 

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अब साड़ियों में एक्सपेरिमेंट होने लगे हैं. ट्रेडिशनल साड़ियों को मॉर्डन टच देने के लिए स्टाइलिश ब्लाउज आ गए हैं. भूमि पेडेकर ने वाइट साड़ी को प्लेन वाइट बस्टियर स्टाइल ब्रालेट के साथ पहना है साड़ी के साथ लुक को गॉर्जियस बनाने के लिए मेकअप  मिनिमल, मैट और न्यूड किया हुआ है और बालों को खुला छोड़ा हुआ है. इसके साथ डायमंड ब्रेसलेट और छोटे इयररिंग भूमि की खूबसूरती को और निखार रहे है.

अगर आपके लिए भूमि के जैसी डिजाइनर साड़ी खरीदना मुश्किल है तो कम बजट में आप ऐसे ही कलर कॉम्बिनेशन में दूसरा कोई मिनिमल पैटर्न भी चुन सकती हैं..अब बहुत से होमग्रोन ब्रैंड्स हैं जो आपकी पसंद और डिजाइन के हिसाब से साड़ियां कस्टमाइज़ कर सकते हैं. अब आपको जॉर्जेट,सिल्क, ऑर्गेंजा, बनारसी, सिफॉन नेट तरह तरह की साड़ियों की वैराइटी भी मिल जाती है.

अगर आप भी इस वेलेंटाइन डे को खास बनाना चाहती है तो इस तरह की साड़ी को जरूर ट्राई करें.

Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 1

माहभर बाद जब ग्रीष्मा अपने स्कूल पहुंची तो पता चला कि पुराने प्रिंसिपल सर का तबादला हो गया है और नए प्रिंसिपल ने 2 दिन पहले ही जौइन किया है. जैसे ही उस ने स्टाफरूम में प्रवेश किया सभी सहकर्मी उस के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए बोले, ‘‘ग्रीष्मा अच्छा हुआ जो तुम ने स्कूल जौइन कर लिया. कम से कम उस माहौल से कुछ देर के लिए ही सही दूर रह कर तुम खुद को तनावमुक्त तो रख पाओगी. आज ही प्रिंसिपल सर ने पूरे स्टाफ से मुलाकात हेतु एक मीटिंग रखी है. तुम भी मिल लोगी वरना बाद में तुम्हें अकेले ही मिलने जाना पड़ता.’’ प्रेयर के बाद अपनी कक्षा में जाते समय जब ग्रीष्मा प्रिंसिपल के कक्ष के सामने से गुजरी तो उन की नेमप्लेट पर नजर पड़ी. लिखा था- ‘‘प्रिंसिपल विनय कुमार.’’

शाम की औपचारिक बैठक के बाद घर जाते समय आज इतने दिनों के बाद ग्रीष्मा का मन थोड़ा हलका महसूस कर रहा था वरना वही बातें… सुनसुन कर उस की तो जीने की इच्छा ही समाप्त होने लगी थी. नए सर अपने नाम के अनुकूल शांत और सौम्य हैं. सोचतेसोचते वह कब घर पहुंच गई उसे पता ही न चला. रवींद्र की अचानक हुई मौत के बाद अब जिंदगी धीरेधीरे अपने ढर्रे पर आने लगी थी. रवींद्र के साथ उस का 10 साल का वैवाहिक जीवन किसी सजा से कम न था. अपने मातापिता की इकलौती नाजों से पलीबढ़ी ग्रीष्मा का जब रवींद्र से विवाह हुआ तो सभी लड़कियों की भांति वह भी बहुत खुश थी. परंतु शीघ्र ही रवींद्र का शराबी और बिगड़ैल स्वभाव उस के सामने उजागर हो गया.

रवींद्र का कपड़ों का पुश्तैनी व्यवसाय था. मातापिता की इकलौती बिगड़ैल संतान थी. शराब ही उस की जिंदगी थी. उस के बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था. ग्रीष्मा ने शुरू में बहुत कोशिश की कि रवींद्र की शराब की लत छूट जाए पर बरसों की पड़ी लत उस की जरूरत नहीं जिंदगी बन चुकी थी. अपने तरीके से जीना उस की आदत थी. दुकान बंद कर के देर रात तक यारदोस्तों के साथ मस्ती कर के शराब के नशे में धुत्त हो कर घर लौटना और बिस्तर पर ग्रीष्मा के शरीर के साथ अठखेलियां करना उस का प्रिय शौक था. यदि कभी ग्रीष्मा नानुकुर करती तो मार खानी पड़ती थी.

ऐसे ही 1 माह पूर्व शराब के नशे में एक रात घर लौटते समय रवींद्र की बाइक एक कार से टकरा गई और वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठा. उस की मृत्यु से ग्रीष्मा सहित उस के सासससुर पर जैसे गाज गिर गई. इकलौते बेटे की मृत्यु से उन का खानापीना सब छूट गया. नातेरिश्तेदार अपना शोक जता कर 13 दिनों के बाद 1-1 कर के चले गए. रवींद्र के जाने के बाद ग्रीष्मा ने अपने बिखरे परिवार को संभालने में पूरी ताकत लगा दी. मातापिता के लिए इकलौते बेटे का गम भुलाना आसान नहीं होता. संतान जिस दिन जन्म लेती है मातापिता उसी दिन से उस के साथ रोना, हंसना और जीना सीख लेते हैं और उस के साथ भविष्य के सुनहरे सपने बुनने लगते हैं पर जब जीवन के एक सुखद मोड़ पर अचानक वही संतान साथ छोड़ देती है तो मातापिता तो जीतेजी ही मर जाते हैं.

कहने के लिए तो रवींद्र उस का पति था, परंतु रवींद्र के दुर्व्यवहार के कारण उस के प्रति प्रेम जैसी भावना कभी जन्म ही नहीं ले पाई. रवींद्र से अधिक तो उसे अपने सासससुर से प्यार था. उन्होंने उसे सदैव बहू नहीं, बल्कि एक बेटी सा प्यार दिया. अपने बेटे रवींद्र के आचरण का वे भले ही प्रत्यक्ष विरोध न कर पाते थे, परंतु जानते सब थे और इसीलिए सदैव मन ही मन अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपने प्यार से उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. इसलिए रवींद्र के जाने के बाद अब वे उस की ही जिम्मेदारी थे. बड़ी मुश्किल से पोते कुणाल का वास्ता देदे कर उस ने उन्हें फिर से जीना सिखाया.

रवींद्र की मृत्यु के बाद आज पहली बार वह स्कूल गई थी. सासससुर ने ही उस से कहा, ‘‘बेटा, घर में रहने से काम नहीं चलेगा… जाने वाला तो चला गया अब तू ही हमारा बेटा, बेटी, और बहू है. तू अपनी नौकरी जौइन कर ले. दुकान तो हम दोनों संभाल लेंगे.’’ ग्रीष्मा विवाह से पहले एक स्कूल में पढ़ा रही थी और पति ने उसे रोका नहीं था. किचन का काम समाप्त कर के वह जब बिस्तर पर लेटी तो बारबार मन सुबह की मीटिंग में हुई प्रिंसिपल सर की बातों पर चला गया. न जाने क्या था उन के व्यक्तित्व में कि ग्रीष्मा का मन उन के बारे में सोच कर ही प्रफुल्लित हो उठता.

एक दिन स्कूल से घर के लिए निकली ही थी कि झमाझम बारिश शुरू हो गई. स्कूटी खराब होने के कारण वह उस दिन रिकशे से ही आई थी. बारिश रुकने के इंतजार में वह एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई. तभी विनय सर की गाड़ी उस के पास आ कर रुकी, ‘‘मैडम, आइए मैं आप को घर छोड़ देता हूं,’’ कह कर उन्होंने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोल दिया.

‘‘नहींनहीं सर मैं चली जाऊंगी. आप परेशान न हों,’’ कह कर ग्रीष्मा ने उन्हें टालने की कोशिश की.

मगर वे फिर बोले, ‘‘मान भी जाइए मैडम, बारिश बहुत तेज है. आप भीग कर बीमार हो जाएंगी और फिर कल लीव की ऐप्लिकेशन भेज देंगी.’’ ग्रीष्मा चुपचाप गाड़ी में बैठ गई.

गाड़ी में पसरे मौन को तोड़ते हुए विनय सर ने कहा, ‘‘मैडम, आप कहां रहती हैं? कौनकौन हैं आप के घर में?’’

‘‘सर यहीं अरेरा कालोनी में अपने सासससुर और एक 10 वर्षीय बेटे के साथ रहती हूं.’’ ‘‘आप के पति?’’

‘‘सर अभी 1 माह पूर्व ही उन का देहांत हो गया,’’ ग्रीष्मा ने दबे स्वर में कहा. यह सुन विनय सर लगभग हड़बड़ाते हुए बोले, ‘‘ओह सौरी… आई एम वैरी सौरी.’’

‘‘अरे नहींनहीं सर इस में सौरी की क्या बात है… आप को तो पता नहीं था न, तो पूछना जायज ही है. सर… आप के परिवार में… कहतेकहते ग्रीष्मा रुक गई.’’ ‘‘मैडम मैं तो अकेला फक्कड़ इंसान हूं. विवाह हुआ नहीं और मातापिता एक दुर्घटना में गुजर गए. बस अब मैं और मेरी तन्हाई,’’ कह कर विनय सर एकदम शांत हो गए.

‘‘जी सर…बसबस सर यहीं उतार दीजिए. वह सामने मेरा घर है,’’ सामने दिख रहे घर की ओर इशारा करते हुए ग्रीष्मा ने कहा.

आगे पढ़ें- एक दिन जैसे ही ग्रीष्मा स्कूल पहुंची, चपरासी…

आदिल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा, राखी ने पति पर लगाए थे गंभीर आरोप

राखी सावंत (rakhi Sawant) ने अपने पति आदिल दुर्रानी (Adil Khan Durrani Arrested) के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी. जिसके बाद पुलिस ने आदिल पर 406 और 420 की धाराएं लगाकर उन्हें गिरफ्तार किया था. आदिल की गिरफ्तारी के बाद राखी ने एक बयान भी जारी किया था, जिसमें कई खुलासे किए थे. अब खबर आ रही है कि अब आदिल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. बीते कुछ समय से राखी सावंत की मुश्किलें धमने का नाम नहीं ले रही है. राखी और पति आदिल खान दुर्रानी के बीच बीते कुछ दिनों से तनातनी चल रही है. हाल ही में राखी ने अपने पति के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने आदिल को हिरासत में लिया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राखी के बयानों को सामने रखते हुए आदिल को अब 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

राखी सावंत ने आदिल दुर्रानी पर लगाए गंभीर आरोप

राखी सावंत ने कुछ दिनों पहले ही आदिल दुर्रानी के साथ शादी की थी। अब राखी सावंत ने अपने पति पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. राखी सावंत का कहना है कि आदिल दुर्रानी पहले ही शादीशुदा है. राखी सावंत ने मंगलवार को आदिल दुर्रानी के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी. पुलिस ने शिकायत पर कार्रवाई करते हुए आदिल दुर्रानी को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी. पुलिस ने बुधवार को आदिल दुर्रानी को अंधेरी कोर्ट में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

 

 

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14 दिन की न्यायिक हिरासत में आदिल दुर्रानी

राखी सावंत की शिकायत के बाद आदिल को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया था. बीते दिन उन्हें अंधेरी कोर्ट में पेश किया गया था. राखी सावंत ने ही आदिल खान दुर्रानी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसके बाद पुलिस ने आदिल को हिरासत में लेकर पूछताछ की थी. आज हुई सुनवाई के बाद आदिल दुर्रानी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

राखी सावंत की मुसीबतें नहीं हो रहीं कम

बताते चलें कि राखी सावंत ने आरोप लगाया था कि आदिल दुर्रानी ने उनके पैसों का दुरुपयोग कर रहे है. राखी सावंत ने ये भी आरोप लगाया था कि आदिल दुर्रानी की वजह से उनकी मां का निधन हुआ है. बता दें कि राखी सावंत की मां जया सावंत का 28 जनवरी को निधन हो गया था. राखी सावंत अपनी मां के निधन से उबर नहीं पाई थीं कि उनके पति आदिल दुर्रानी के साथ रिश्ते खराब हो गए कि उन्हें कोर्ट और पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.

 

 

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राखी सावंत ने जारी किया था बयान

राखी सावंत ने बीते दिन अपनी इंस्टा स्टोरी पर मीडिया स्टेटमेंट जारी किया था. उन्होंने कहा कि वह भी मामले को सुलझाने के लिए स्टेशन पहुंची हैं. उनसे मिलने के लिए घर आने के बाद आदिल को गिरफ्तार किया गया. उन्होंने एक मीडिया बयान भी जारी किया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि ये कोई मीडिया ये नाटक नहीं है. मेरी जिंदगी खराब हो रही है. इसने. मुझे मारा है, मेरा पैसा लूटा है कुरान पे हाथ रख के भी. इसने मेरे साथ धोखा किया है.

अपनी पहली डेट को बनाएं मीठी याद

पहली डेट वो पल होता है जिसे हम अपनी वृद्धावस्था में भी याद करें तो होठों पर मुस्कान छोड़ जाए क्योंकि यही वो पल होता है जिस समय हम अपने जीवन में ऐसे खास व्यक्ति से मिलते है जिसके साथ हम सारी ज़िंदगी बिताने के सपने संजोना चाहते हैं. इस मुलाकात का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि आप अपनी पसंद के लड़के या लड़की से पहली बार मिलने जा रहे है बल्कि यह आपके माता पिता या मैट्रिमोनियल साइट से प्रोफाइल पसंद आए हुए व्यक्ति से भी हो सकती है.  आजकल जब लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तभी अपनी रिलेशनशिप को आगे बढ़ाने की सोचते हैं ऐसे में दोनों के मन में उत्सुकता और उलझन के साथ साथ सवालों की जैसे झरी लगी होती है डेट पर क्या होगा?क्या वो बिलकुल ऐसा होगा या होगी जैसा जीवन साथी मुझे चाहिए ? क्या उसे मैं पसंद आऊगा या आऊंगी? जैसे सवाल आपके मन में हिडोले ले रहे होते हैं, तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर पहली डेट को आप किस प्रकार बिना गलतियां करे बेहद खास और यादगार बना सकते हैं.

कंफर्ट का रखें ध्यान

पहली डेट पर जा रहे हैं तो दोनों का एक दूसरे के साथ कंफर्ट होना बहुत जरूरी है इसके लिए ऐसी जगह जाएं जहां आप एक दूसरे से आराम से बैठ कर बात कर सकें, या अगर कुछ खा पी रहे हैं तो उनकी इच्छाओं को जानें और उनका सम्मान करें। अच्छे से तैयार होकर जाएं.  भड़कीले या ऐसे कपड़े पहन कर ना जाए जिसमें आप कंफर्टेबल महसूस ना करें. औपचारिक न बने , दोस्ताना रवैया रखें जिससे की आप दोनों सहजता पूर्वक बातें कर सकें और एक दूसरे को समझ सके.
घबराहट से बचें- घबराहट और हिचकिचाहट से बचें.  आत्मविश्वास बनाए रखे. बहुत ज्यादा या इधर-उधर की बातें न करते हुए खुद को खुली किताब बनने से बचे क्योंकि धोड़े रहस्यमयी लोगों को जानने की उत्सुकता हमेशा लगी रहती है तो कुछ बातें दूसरी डेट के लिए भी छोड़ देनी चाहिए.  हड़बड़ाहट के बजाय आराम से अपनी भावनाएं व्यक्त करें और पार्टनर की बातों को ध्यान से सुनें और समझें.
परिवार को दे वैल्यू -यदि आप किसी से रिश्ता बनाने जा रहे हैं तो उसके परिवार के बारे में जानना भी बहुत जरूरी है इससे सामने वाले पर अच्छा इम्प्रेशन भी पड़ता है।रिश्ते-नाते आदि से संंबंधित नकारात्मक बातें करने से बचें. सामने वाले को जताएँ की आप परिवार के वैल्यूज को महत्व देते हैं .

स्वाद के लिए न करें दिल से समझौता

प्रिया को अचानक सीने में तेज दर्द हुआ उसे लगा कि शायद गैस की की तकलीफ होगी इसलिए इनो पी लिया पर जब काफी देर तक आराम न पड़ा तो तुरंत हॉस्पिटल जाना पड़ा वहाँ कुछ टेस्ट करने के बाद मालूम हुआ कि प्रिया को माइनर हार्ट अटैक आया है और उसे एंजियोप्लास्टी करवानी होगी मतलब हार्ट में स्टेंट डलवाना होगा ये सुनकर प्रिया के पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि अभी तो उसका बेटा बहुत छोटा है और मात्र 38 साल की उम्र में ये नौबत आखिर ऐसी क्या गलती हुई प्रिया से ?

जो स्थिति प्रिया की हुई आजकल ये हाल किसी का भी हो जाता है जिसके बहुत से कारण हैं पर अगर खान पान में कुछ चीजों को खाने में संयम रखा जाए तो इस स्थिति से बचा जा सकता है. शरीर मे यदि कोलेस्ट्रॉल बढ़ रहा है इसका मतलब है वसा का जमाव हो रहा है इसे हल्के में कतई न लें. कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों से दूरी बना लेना ही श्रेयस्कर होगा. क्योंकि ऐसा न करने पर वासा के जमाव के कारण बंद हुई नसों को खोलने के लिए सर्जरी करके स्टेंट डाला जाता है.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि गंदा कोलेस्ट्रॉल कैसे कम किया जाए? अगर आप चाहते हैं कि आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल कम रहे, तो सबसे पहले इस हानिकारक पदार्थ को बढ़ाने वाले खाद्यपदार्थों से दूरी बना लें क्योंकि, इन खाद्य पदार्थों को खाने से शरीर में एलडीएल (लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) बढ़ने लगता है जो नसों में जम जाता है और उन्हें ब्लॉक कर देता है जिस से कोरोनरी आर्टरी डिजीज हो जाती है जो हार्ट अटैक का कारण बनती है. इन नसों को खोलने के लिए कोरोनरी एंजियोप्लास्टी करके स्टेंट डाला जाता है. यहाँ जिक्र कर रहे हैं कुछ ऐसे पदार्थों का जिनसे दूरी बनाकर आप इस स्थिति से बच सकते हैं.

मक्खन बन सकता है जान का दुश्मन

ब्रेड के उपर मक्खन लगा कर यदि आप चाव से खाते हैं तो ऐसा करना बंद कर दीजिए या कम कर दीजिए क्योंकि ये मक्खन नसों में जम जाता है और ब्लॉकेज का कारण बनता है.

आइसक्रीम को कहिए ना

अगर आप आइसक्रीम खाने के शौकीन हैं और रोज इसे खाना आपकी आदत है, तो संभल जाइए.  क्योंकि USDA के अनुसार 100 ग्राम वनीला आइसक्रीम खाने से 41 एमजी कोलेस्ट्रॉल मिलता है, जो कि आपके हार्ट के लिए बहुत हानिकारक है.

बिस्किट की मात्रा कम रखें

अक़्सर लोग चाय के साथ बिस्किट खाते हैं, जो कि कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा सकता है। बिस्किट एक प्रोसेस्ड फूड है, जिसमें सैचुरेटेड फैट अधिकता में होता है। जो कि आपके हार्ट के लिए खतरनाक हो सकता है.

पकौड़े व फ्राइड चिकन

इस तरह के खाद्य पदार्थ डीप फ्रायड फूड्स में आते हैं। इन खाद्यपदार्थों में वसा का सबसे गंदा प्रकार प्रचुर मात्रा में होता है, जिसे ट्रांस फैट्स कहा जाता है। यह एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है.

बर्गर, पिज्जा, पास्ता

ये सभी जंक फूड हैं। जिन्हें बनाने के लिए मक्खन, क्रीम, चीज़ और अन्य आर्टिफिशियल इंग्रीडिएंट्स मिलाए जाते हैं.  ये सभी चीजें नसों में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ाने का काम करते हैं, इसलिए इनसे समय रहते दूरी बना लें.
यदि खान पान में इतना ध्यान रखेंगे और थोड़ा संयम रखेंगे तो इस तरह की किसी भी बीमारी से दूर रहेंगे और एक स्वस्थ्य जीवन जी सकेंगे.

एक और आकाश: भाग 3- क्या हुआ था ज्योति के साथ

शारीरिक भूख से अधिक महत्त्व- पूर्ण उस के अपने बच्चे प्रकाश का भविष्य था, जिसे संवारने के लिए वह अभी तक कई बार मरमर कर जी थी. अपने को उस सीमा तक व्यस्त कर चुकी थी, जहां उस को कुछ सोचने का अवकाश ही नहीं मिलता था.

ज्योति की कल्पना में अभी स्मृतियों का क्रम टूट नहीं पाया था. वह शाम आंखों में तिर गई थी, जब उस ने मां को सबकुछ साफसाफ कह दिया था. अपने प्रेम को भूल का नाम दे कर रोई थी, क्षमा की भीख मांग कर मां से याचना की थी कि वह गर्भ नष्ट करने के लिए उसे जाने दे.

मां ने उसे गर्भ नष्ट कराने का मौका न दे कर सबकुछ पिता को बता दिया था. फिर पहली बार पिता का वास्तविक रूप उस के सामने आया था. उन्होंने ज्योति को नफरत से देखते हुए दहाड़ कर कहा था, ‘‘खबरदार, जो तू ने मुझे आज के बाद पिता कहा. निकल जा, अभी…इसी वक्त इस घर से. तेरा काला मुंह मैं नहीं देखना चाहता. जाती है या नहीं?’’

अब उन्हीं पिता का पत्र उसे मिला था. क्षण भर के लिए मन तमाम कड़वाहटों से भर आया था. परंतु धीरेधीरे पिता के प्रति उदासीनता का भाव घटने लगा था. वह निर्णय ले चुकी थी कि अगर पिता ने उसे क्षमा नहीं किया तो कोई बात नहीं, वह अपने पिता को अवश्य क्षमा कर देगी.

उस दिन तो पिता की दहाड़ सुन कर कुछ क्षण ज्योति जड़वत खड़ी रही थी. फिर चल पड़ी थी बाहर की ओर. उसे विश्वास हो गया था कि उस का प्रेमी हो या पिता, पुरुष दोनों ही हैं और अपने- अपने स्तर पर दोनों ही समाज के उत्थान में बाधक हैं.

उस दिन ज्योति घर छोड़ कर चल पड़ी थी. किसी ने उस की राह नहीं रोकी थी. किसी की बांहें उस की ओर नहीं बढ़ी थीं. किसी आंचल ने उस के आंसू नहीं पोंछे थे. आंसू पोंछने वाला आंचल तो केवल मां का ही होता है. परंतु साथ ही उसे इस बात का पूरा एहसास था कि पिता के अंकुश तले दबी होंठों के भीतर अपनी सिसकियों को दबाए हुए उस की मां दरवाजे पर खड़ी जरूर थीं, पर उसे पांव आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं थी. वह चली जा रही थी और समझ रही थी मां की विवशता को. आखिर वह भी तो नारी थीं उसी समाज की.

बच्चे को जन्म देने के बाद ज्योति ने उसे प्रकाश नाम दे कर अपने भीतर अभूतपूर्व शक्ति का अनुभव किया था. उसे वह गुलाब के फूल की तरह अनेक कांटों के बीच पालती रही थी.

अब ज्योति की आंखों में केवल एक ही स्वप्न शेष था. किस प्रकार वह समाज में अपना वही स्थान प्राप्त कर ले, जिस पर वह घर से निकाले जाने से पहले प्रतिष्ठित थी.

शायद इन्हीं भावनाओं ने ज्योति को प्रेरित किया था मां के नाम पत्र लिखने के लिए. डब्बे में रोशनी कम थी. फिर भी उस ने अपने पर्स को टटोल कर उस में से कुछ निकाला. आसपास के सारे यात्री सो रहे थे या ऊंघ रहे थे. ज्योति एक बार फिर उस पत्र को पढ़ रही थी जिसे उस ने केवल मां को भेजा था, केवल यह जानने के लिए कि कहीं भावावेश में किसी शब्द के माध्यम से उस का आत्मविश्वास डिग तो नहीं गया था.

‘‘मां, अपनी बेटी का प्रणाम स्वीकार करते हुए तुम्हें यह विश्वास तो हो गया है न कि ज्योति जीवित है.

‘‘मैं जीवन के युद्ध में एक सैनिक की भांति लड़ी हूं और अब तक हमेशा विजयी रही हूं प्रत्येक मोर्चे पर. परंतु मेरी विजय अधूरी रहेगी जब तक अंतिम मोर्चे को भी न जीत लूं. वह मोर्चा है, तुम्हारे समाज के बीच आ कर अपनी प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त कर लेने का. मैं ने उस घर को अपना घर कहने का अधिकार तुम से छीन लेने के बाद भी छोड़ा नहीं. मैं उसी घर में आना चाहती हूं. परंतु मैं तभी आऊंगी जब तुम मुझे बुलाओगी. सचसच कहना, मां, क्या तुम में इतना साहस है कि तुम और पिताजी दोनों अपने समाज के सामने यह बात निसंकोच स्वीकार कर सको कि मैं तुम्हारी बेटी हूं और प्रकाश मेरा पुत्र है.

‘‘मेरी परीक्षा की अवधि बीत चुकी है. अब तुम दोनों की परीक्षा का अवसर है. मैं नहीं चाहती कि आप में से कोई मेरे पास ममतावश आए. मैं चाहूंगी कि आप सब कभी मुझे इस दया का पात्र न बनाएं. मैं छुट्टियों के कुछ दिन आप के पास बिता कर पुन: यहां वापस आ जाऊंगी. मेरे पुत्र या मुझे ले कर आप की प्रतिष्ठा पर जरा भी आंच आए, यह मेरी इच्छा नहीं है. मैं ऐसे में अंतिम श्वास तक आप के लिए उसी तरह मरी बनी रहने में अपनी खुशी समझूंगी जिस तरह अब तक थी. यदि मैं ने आप लोगों को अपनी याद दिला कर कोई गलती की है तो भी क्षमा चाहूंगी. शायद यही सोच कर मैं ने इस पत्र में केवल अपनी याद दिलाई है, अपना पता नहीं दिया.

-ज्योति.’’

ज्योति को यह सोच कर शांति मिली थी कि उस ने ऐसा कुछ नहीं लिखा था जिस से उन के मन में कोई दुर्बलता झांके. उस ने पत्र को पर्स में रखने के साथ दूसरा पत्र निकाला, जो उस के पिता का था. वह पत्र देखते ही उस की आंखें डबडबा आईं और उन आंसुओं में उतने बड़े कागज पर पिता के हाथ के लिखे केवल दो वाक्य तैरते रहे, ‘‘चली आ, बेटी. हम सब पलकें बिछाए हुए हैं तेरे लिए.’’

सुबह का उजाला उसे आह्लादित करने लगा था. अपनी जन्मभूमि का आकर्षण उसे बरबस अपनी ओर खींच रहा था. कल्पना की आंखों से वह सभी परिवारजनों की सूरत देखने लगी थी.

गाड़ी ज्योंज्यों धीमी होती गई, ज्योति की हृदयगति त्योंत्यों तीव्र होती गई. प्रकाश की उंगली थामे हुए वह डब्बे के दरवाजे पर खड़ी हो गई. कल्पना साकार होने लगी. गाड़ी रुकते ही कई गीली आंखें उन दोनों पर टिक गईं. कई बांहों ने एकसाथ उन का स्वागत किया. कई आंचल आंसुओं से भीगे और कई होंठ मुसकराते हुए कह बैठे, ‘‘कैसी हो गई है ज्योति, योगिनी जैसी.’’

ज्योति ने डबडबाई आंखों से भाई की ओर निहारा जो एक ओर चुपचाप खड़ा सहज आंखों से बहन को निहार रहा था. ज्योति ने अपने पर्स से पिछले 11 वर्षों की राखी के धागे निकाले और उस की कलाई पर बांधते हुए पूछा, ‘‘भाभी नहीं आईं, भैया?’’

‘‘नहीं, बेटी. तेरे बिना तेरे भैया ने शादी नहीं की. अब तू आ गई है तो इस की शादी भी होगी,’’ मां बोल उठी थीं.

घर की ओर जातेजाते ज्योति के मन में अपूर्व शांति थी. अपने भाई के प्रति मन स्नेह से भर गया था. उस का संघर्ष सार्थक हुआ था. उस के वियोग का मूल्य भाई ने भी चुकाया था. उस ने ऊपर की ओर ताका. मन के भीतर ही नहीं, ऊपर के आकाश को भी विस्तार मिल रहा था.

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