Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 4

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

  अब तक आप ने पढ़ा:

तान्या अपनी मम्मी के साथ नानी के घर रुड़की आई. छुट्टियां खत्म होने के बाद वे वापस जाने के लिए एअरपोर्ट गए. जिस फ्लाइट से वे वापस जा रहे थे उस में साथ वाली सीट पर डाक्टर नितिन से तान्या की मुलाकात हुई. वह इंटर्नशिप कर रहा था. बातचीत के दौरान तान्या नितिन की तरफ आकर्षित हो गई. हवाईजहाज से बाहर निकलते ही तान्या की मम्मी को लगातार सूखी खांसी होने लगी. तब डाक्टर नितिन ने उन्हें मास्क पहनने की सलाह दी और सब से अलग बैठने को कहा. फिर तीनों एकसाथ बाहर निकले और नितिन ने तान्या को अपना फोन नंबर दिया.

एअरपोर्ट से बाहर निकलने के बाद तान्या गाड़ी में बैठ चुकी थी. वह कोरोना वायरस के फैलने पर चिंतित थी. घर पहुंचने के बाद उस की सोसाइटी में भी सबकुछ बदलाबदला सा नजर आ रहा था. पड़ोसी दूर से ही हैलोहाय कर रहे थे. पड़ोसी मिलने तक से बच रहे थे. 2-3 दिनों बाद तान्या की मां की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन्हें तेज बुखार था और सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. जांच रिपोर्ट में वे कोरोना पौजिटिव निकलीं. मां को अस्पताल में ऐडमिट कराने के बाद तान्या परेशान थी क्योंकि वहां भी सभी डरे हुए थे और अफरातफरी का माहौल था.

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शामढलते ही नितिन हौस्पिटल की वैन से तान्या से मिलने और अनिला का हालचाल बताने आ गया.

तान्या को पूरा विश्वास था कि नितिन उस से मिलने जरूर आएगा इसलिए आज न जाने क्यों उस ने अपने को कुछ ज्यादा ही आकर्षक बना लिया था. सुंदर तो वह थी ही और बस हलके मेकअप के साथ बालों के स्टाइल ने उसे मोहक बना दिया था.

बैल बजते ही उस ने निंदिया को निर्देश दिए और कहा, ‘‘आने वाला अगर अपना नाम डाक्टर नितिन बताएं तो सीधे ड्राइंग रूम में ला कर बिठा देना और हां उन के हाथ जरूर सैनिटाइज करवा लेना.

निंदिया ने ऐसा ही किया. नितिन को थोड़ा इंतजार करा कर तान्या ने ड्राइंग रूम में प्रवेश करते हुए मुंह से गले की तरफ मास्क सरका  कर पूछा, ‘‘वेलकम डाक्टर मम्मा कैसी हैं?’’

अपने मुंह और नाक पर चढ़ाया मास्क नीचे सरकाते हुए नितिन बोला, ‘‘कोरोना का ही अटैक है उस दिन एअरपोर्ट पर वो जिस फौरेन लेडी के पास बैठी थी मुझे पूरा विश्वास है कि उसी से उन्होंने वायरस कैरी किया है.’’

लेकिन तब से तो 7 दिन हो गए, आज कैसे इस का अटैक हो गया?

तान्या यही तो कठिनाई है कि इस वायरस का अटैक तुरंत नहीं होता है 10 दिन के भीतर यदि शरीर में नहीं मरा तो कभी भी अटैक कर सकता है. इस में हर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम बहुत काम करता है. वैसे ट्रीटमैंट शुरू हो गया है और तुम सब की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट भी मैं ने जल्दी मंगवाई है.

‘‘और डाक्टर यदि… तान्या कुछ कहना चाहती थी पर नितिन बोल पड़ा,

‘‘तान्या, तुम मुझे केवल नितिन पुकार सकती हो… डाक्टर तो मैं हौस्पिटल के लिए हूं तुम्हारे लिए नहीं?

‘‘फिर मेरे लिए तुम क्या हो? तान्या ने बेबाकी से पूछा तो नितिन मास्क उतार कर मुसकराते हुए बोला,

‘‘अभी तो केवल मित्र… हो सकता है कि आगे चल कर कुछ हो जाऊं.

‘‘और कुछ न हो पाए तो?

‘‘तब की तब देखी जाएगी पर ये बात तो सच है प्लेन में हुई तुम्हारी दोस्ती ने मेरी राह आसान कर दी. मेरे अरमान तुम्हारे जैसी ही लड़की से शादी करने के थे और तुम्हें देखते ही मन तुम्हें चाहने लगा है.’’

‘‘नितिन, पहले मां का ठीक होना जरूरी है. दूसरे उन्हें मैं अकेला नहीं छोड़ सकती शादी होती भी है तो मैं उन्हें अपने साथ ही रखना चाहूंगी. शादी तभी करूंगी जब मेरा सपना पूरा हो जाएगा.

इसी बीच निंदिया कौफी और स्नेक्स रख गई थी. सैंटर टेबल के इस पार सोफे पर तान्या बैठी थी और दूसरी तरफ नितिन. दोनों के बीच मतलब भर की दूरी थी.

मास्क गले की तरफ सरका कर दोनों चुपचाप कौफी पीते रहे. तान्या ने स्नैक्स की प्लेट नितिन की तरफ बढ़ाते हुए कहा भी, ‘‘कुछ लो न’’ पर नितिन ने मना कर दिया.

कौफी खतम हुई ही थी कि नितिन का फोन बज उठा, कौल रिसीव करते ही वो उठ खड़ा हुआ बोला, ‘‘मुझे वापस हौस्पिटल जाना होगा, एक सीरीयस केस आ गया है, आई हैव टु अटैंड हर.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी नितिन’’ तान्या के मुंह से ये शब्द सुन कर नितिन के माथे पर कुछ देर को चिंताएं उभरीं फिर उस ने मास्क लगे ही कहा,

‘‘ओके, तुम्हारे लिए पीपीई किट की व्यवस्था करनी पड़ेगी,’’ जोखिम भी पूरा है… लेकिन चलो चलते हैं. मैं अपनी रिस्क पर तुम्हें साथ ले चलता हूं. मैं तुम्हें, तुम्हारी मम्मी से मिलवा कर उसी वैन से वापस भिजवा दूंगा.

हौस्पिटल की पिकअप वैन को ड्राइव करते हुए हौस्पिटल के वैन ड्राइवर को तान्या के साथ पीछे की सीट पर बैठे नितिन ने कुछ निर्देश दिए. उस ने कुशलता के साथ वैन को हौस्पिटल वाली रोड पर डाल कर स्पीड बढ़ा दी.

रास्ते में तान्या ने पूछा, ‘‘नितिन ये बताओ की यदि मेरी रिपोर्ट भी पौजिटिव आ गई तब क्या करोगे?’’

‘‘तब सब से पहले सारे मरीजों को छोड़ कर हम तुम्हारा इलाज करेंगे.’’

‘‘और तब भी मैं न बच पाई तो?’’

उस के इतना कहते ही नितिन ने उस के होठों पर अपने हाथ रख दिए और बोला, ‘‘अब तुम्हे मेरे लिए जीना है तान्या और मुझे तुम्हारे लिए.’’

ग्लब्स में लगे सैनिटाइजर की हलकी सी महक तान्या की नाक में घुस गई और कोई वक्त होता तो वो सैनिटाइजर की महक बर्दाश्त नहीं कर पाती लेकिन इस समय उसे वो महक अच्छी लगी.

फिर जब नितिन ने अपना एक हाथ उस के एक कंधे के ऊपर से निकाल कर अपनी हथेली उस के दूसरे कंधे पर प्यार से रख दी तो वो उस की तरफ थोड़ी सी सरक आई.

दोनों ने ही मास्क पहन रखे थे और नितिन ने आदतन हैंड ग्लब्स पहने हुए थे. कंधे पर रखा ग्लब्स पहना नितिन का हाथ तान्या को कुछ प्यार भरे मौन संदेश रास्तेभर देता रहा.

हौस्पिटल में अंदर ले जाने से पहले नितिन ने तान्या के लिए पीपीई किट की व्यवस्था कर के उसे सिक्योर किया मां के पास एक घंटा बिता कर तान्या संतुष्ट सी जब घर वापस आ रही थी तो उसे फिर लगा कि उस की धड़कनों में सुर वास्तव में पहले जैसे नहीं रहे, संगीतमय हो गए हैं.

जरा सी मुलाकात में ही उस ने मां को बता दिया था कि वह नितिन से प्यार करने लगी है और मामी को भी फोन पे उस ने बता दिया है कि उस ने लड़का पसंद कर लिया है.

नितिन उस के बाद 2 बार और तान्या से मिलने आ पाया और हर बार तान्या ने चाहा कि वो मास्क और दूरी का डर छोड़ कर नितिन के सीने से चिपक जाए पर ऐसा हो न सका.

नितिन को भी हौस्पिटल में थोड़ी फुरसत मिलती तो वो भी तान्या को फोन लगा लेता और प्यार भरी बातें करता. फिर बताता कि उस की मां अब खतरे से बाहर है.

इस बीच रुड़की से नानी और मामामामी के भी फोन आते रहे और मां के कोरोना संक्रमण से बच कर घर आने की बात सुनी तो सब से पहले नानी का फोन आया.

‘‘तान्या बेटी मन तो कर रहा है कि तुम्हारे पास हम सब पहुंच जाएं पर परिस्थितियां ऐसी हैं कि लौकडाउन में कहीं निकल ही नहीं सकते. तुम अपना ध्यान रखना.’’

जब मां कोरोना महामारी की जंग जीत कर विजयी भाव के साथ घर लौटीं तो तान्या ने उन के कमरे में आराम करने की व्यवस्था कर के उन्हें बेड पर लिटाने के बाद पूछा, ‘‘मम्मा नितिन साथ में नहीं आए.

‘‘हां वो नहीं आ पाया. मुझे घर भेजने की सब व्यवस्था तो उस ने कर दी थी पर चलते समय उस से मुलाकात नहीं हो पाई…

सुनते ही तान्या ने नितिन को फोन मिलाया पर वह स्विच औफ आया. पिछले 4 दिन से यही हो रहा था. 2 बार तो नर्स ने बताया कि मैडम, डाक्टर किसी से नहीं मिल सकते.

मां तो घर आ गई. ट्रेनिंग सैंटर के शीघ्र खुलने की कोई उम्मीद नहीं थी. लौकडाउन के

कारण वो घर से कहीं निकल सकती नहीं थी. नितिन ने फोन उठाना बंद क्यों कर दिया? अस्पताल में ज्यादा बिजी हो गया होगा? केसेज भी तो तेजी से बढ़ रहे हैं. यही सब सोच कर वो अपने को तसल्ली देती रही?

इसी बीच जब नानी का फोन आया तो अपने मन की बात बताते हुए उस ने कहा, नानी आप और मामी अकसर कहते थे कि अब और लंबी मत हो जाना वरना बड़ी मुश्किल से लड़का मिलता है. और जब मैं ने लड़का पसंद कर लिया तो वो फोन नहीं उठा रहा है. नानी मैं क्या करूं?

तू कुछ मत कर, बस उसे भूल जा क्योंकि मेरा अब तक का अनुभव कहता है कि हर डाक्टर चाहता है कि उस का ब्याह डाक्टर लड़की से हो क्योंकि किसी और प्रोफैशन की लड़की से उस का रूटीन मेल नहीं खाता है. फिर तेरे मामीमामा भी यही चाहते हैं कि जब तुझे आर्मी जौइन करनी है तो तू एक सिविल डाक्टर से कैसे तालमेल बैठा पाएगी.

बेचैनी में उस ने मामामामी से अगले दिन बात करी, उन्होंने भी उसे समझया कि हाईट इत्यादि की बात तो ठीक है पर जब तू पायलेट अफसर बन कर मिलिटरी जौइन कर लेगी तब क्या होगा. असल में मिलिटरी पर्सन्स की लिविंग स्टाइल तथा अनुशासन और सिविलियन्स की सोच में बहुत अंतर होता है इसलिए तू नितिन को भूल जा.

पर तान्या ने वास्तव में नितिन को अपना दिल दे दिया था और उस ने अपनी किताब नितिन के सामने खोल दी थी इसलिए वो उसे बंद करने के मूड में नहीं थी बल्कि जब मां के मुंह से भी उस ने शब्द सुने कि बेटे अभी तो तेरी पढ़ाई बाकी है और तेरा सपना भी अधूरा है फिर मामामामी और तेरी नानी भी नहीं चाह रहे हैं तो नितिन की तरफ से तू ध्यान हटा ले.

लेकिन तान्या जिस की धड़कनों के सुर बदलने के बाद इतने मधुर हो चले थे जिन्हें अब वो किसी कीमत पर बदलना नहीं चाहती थी.

उस का किसी काम में मन लगना बंद हो गया वो अपने कमरे में बंद रहने लगी. मामामामी और नानी से उस ने बात करना बंद कर दिया. बस कभीकभी नितिन के नंबर पर फोन लगा लेती. लेकिन उधर से लगातार स्वीच्ड औफ पा कर वो अजीब सी उलझन में घिर जाती.

लौकडाउन का दूसरा दौर भी शुरू हो गया. मां

को घर आए हुए भी 15 दिन हो गए तभी उस के मोबाइल पर एक मैसेज चमका, ‘‘तान्या कैसी हो? आज मैं बेहतर महसूस कर रहा हूं, असल में लोगों की बीमारी दूर करतेकरते मैं खुद संक्रमित हो गया था. किसी से मिल नहीं सकता था मोबाइल भी मुझ से दूर कर दिया गया था आज 15 दिन बाद जब मेरी रिपोर्ट नैगेटिव आई तो तुम्हें मैसेज कर रहा हूं. इस बीच हर पल हर दिन तुम्हें याद करता रहा.’’

तान्या ने जवाब में तुरंत नितिन को मैसेज न कर के कौल लगा दी और कहा, ‘‘जब तुम्हारी रिपोर्ट पौजिटिव आई थी तब तो मां हौस्पिटल में थी उन्हें बता देते तो इतने दिन मैं परेशान हो कर रोती न रहती.’’

इस का मतलब है कि मां ने तुम्हें नहीं बताया? जिस समय मेरी रिपोर्ट आई थी, उस समय तो मैं तुम्हारी मां के पास ही बैठा था क्योंकि वो मेरे ही मोबाइल से रुड़की वाले मामाजी से बातें कर रही थी. और मामाजी को भी उन्होंने ये खबर दे दी थी कि जो डाक्टर उन का इलाज कर रहा था वह खुद संक्रमित हो गया है.

‘‘फिर मेरी रिपोर्ट आने के बाद मुझे वहां से तुरंत हटा कर, अन्य चेकअप के लिए ले जाया गया तब भी मोबाइल उन के पास ही मैं छोड़ गया था.’’

तान्या का माथा ठनका उस ने नितिन से कहा, ‘‘तुम अपना ध्यान रखो मैं कुछ देर में तुम्हें फोन लगाती हूं.’’

ओह, तो इस का अर्थ है कि मम्मी और मामा दोनों जानते थे कि नितिन कोरोना पौजिटिव हो गया है तभी मुझ से ये बात छिपा कर ऐसी बातें की जा रही थीं, ‘‘उसे भूल जाओ’’ मिलिटरी और सिविलयन की लाइफ में बहुत फर्क होता है. लंबे लड़के और मिल जाएंगे.

उसे सब से ज्यादा आश्चर्य हो रहा था कि मां ने उस से यह बात छिपाई. इसलिए वह तेजी से मां के कमरे में गई.

मां स्वस्थ लग रही थी और नौवेल पढ़ने में व्यस्त थी. उन के पास पहुंच कर वह आदेश में बोली, ‘‘मां, मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी.’’

‘‘अरे इतने गुस्से में क्यों है? किस उम्मीद की बात कर रही है मेरी प्यारी बेटी.’’

‘‘यही तुम्हारा बेटी के प्रति प्यार है कि जिस डाक्टर ने तुम्हारी संक्रमण से जान बचाई उस के खुद संक्रमित होने की बात तुम ने मुझ से छिपाई. क्यों मां क्यों.’’

‘‘बेटी तेरे मामा और नानी ने मुझ से ऐसा करने को कहा था.’’

‘‘उन्होंने क्यों मना किया?’’

‘‘क्योंकि तेरी नानी और मामा का सोचना था कि मिलिटरी परिवार में पलीबढ़ी लड़की उसी परिवेश में ही खुश रह सकती है. दूसरे इस उम्र में कोरोना पौजिटिव लड़के से शादी के पक्ष में वे नहीं थे, उन का सोचना था कि इस खतरनाक वायरससे अगर तू भी संक्रमित हो गई तो तेरा भविष्य भी चौपट हो सकता है.’’

‘‘वाह, मम्मी वाह, बड़ा अच्छा तर्क दे कर तुम्हें समझ दिया नानी और मामा ने और तुम समझ भी गईं. लेकिन तुम ने यह नहीं सोचा कि जब तुम इतने खतरनाक वायरस के प्रभाव में आने के बाद भी बच कर आ सकती हो तो डाक्टर क्यों नहीं.’’

मां तुम सब भले ही कुछ भी सोचो पर अब मैं नितिन के साथ ही बिताऊंगी और उस के साथ ही मरूंगी. तुम नानी और मामा को बता देना और कह देना कि तान्या जिन सपनों को देखती है उन्हें पूरा भी करना जानती है. मैं आज से मामा और नानी से कोई बात नहीं करूंगी.

कहती हुई तान्या मां के कमरे से बाहर निकल कर अपने कमरे में आ गई.

उस ने नितिन को फोन लगा दिया, ‘‘बोली आज तुम से एक वादा लेना है.’’

‘‘कैसा वादा?’’ नितिन ने उधर से पूछा.

‘‘यही कि तुम वास्तव में मुझ से ही शादी करोगे न?’’

‘‘हां, तुम्ही से करूंगा’’

‘‘ठीक होने के बाद कोई और पसंद तो नहीं आएगी?’’

‘‘एक डाक्टर के नाते मुझे इतनी फुरसत कहां मिलेगी जो तुम जैसी दूसरी लड़की ढूंढ़ता फिरूं.’’

‘‘तो यह बताओ कि कब तक ठीक हो रहे हो?’’

‘‘ठीक तो हो गया हूं बस तीसरी रिपोर्ट और नैगेटिव आ जाए. पर ऐसी बातें तुम आज क्यों कर रही हो?’’

‘‘क्योंकि मुझे अपने मामामामी, मम्मी और नानी का यह भरम तोड़ना है कि कोरोना संक्रमित हो जाने वाले व्यक्ति से शादी करना एक जवान लड़की के लिए जोखिम भरा है.’’

‘‘ठीक है तान्या, मैं तुम्हारे साथ हूं पर अभी तो शादी और ऐसे सारे फंक्शन बंद हैं. जब सबकुछ ओपन होगा तो सब से पहले हम ही शादी करेंगे.’’

‘‘लौकडाउन खत्म हो गया. नितिन ठीक होकर फिर संक्रमितों की सेवा में जुट गया. अभी तक लगभग रोज ही दोनों की फोन पर बातें होती थीं. अनलौक 1 में दोनों एक पार्क में सारी सावधानियों के साथ मिले. मास्क पहनेपहने ही एकदूसरे को प्यार किया.

अनिला से तान्या केवल काम की ही बातें करतीं. एक दिन मां ने बताया कि बेटी मामा और नानी तुझ से बात करना चाहते हैं. ऐसी भी क्या जिद है क्या तू सदा के लिए उन से रूठी रहेगी.

‘‘मुझे उन से कोई बात नहीं करनी.’’

‘‘नानी से भी नहीं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तू अपना बचपन भूल गई जब नानी की गोद में चढ़ कर बैठ जाती थी और हर जिद पूरी करवा लेती थी.’’

‘‘लेकिन अब मैं बड़ी हो गई हूं, उन की गोद में नहीं बैठ सकती.’’

‘‘ठीक है अब तू बड़ी हो गई है और यह जान ले कि बड़ी होने पर उन्हें फोन करना भी गोद में बैठने के बराबर है. तू बात करेगी तो शायद वो तेरी यह बात भी मान जाएं.’’ देख मैं अपने मोबाइल से उन्हें फोन लगाती हूं तू अपनी बात तो कह के देख, फिर तेरे मामामामी भी कल वापस अपनी ड्यूटी पर जा रहे हैं.

कहतेकहते अनिला ने अपनी मां को फोन मिला दिया और उधर से हैलो की आवाज सुनते ही तान्या को फोन पकड़ा कर बोलीं, ‘‘बेटी, नानी तुझ से बात करना चाह रही हैं.’’अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उस ने नानी से बात करनी शुरू की, ‘‘हां, नानी बोलो क्या कहना चाह रही हो.’’

कुछ नहीं मैं सब कुछ सह सकती हूं पर तेरा रूठना नहीं. पता है तेरी आवाज सुने पूरा 1 महीना हो गया है… मुझ से बता तू क्या चाहती है… तुझे पता है कि तेरी खुशी ही हम सब की खुशी है.

‘‘पर नानी आप सब तो मेरी खुशी मुझ से छीनना चाहते हो.’’

‘‘हां, मन में कुछ नैगेटिव थौट्स आ गए थे… फिर लगा कि मेरा जीवन अब रह ही कितना गया है मैं क्यों अपनी इच्छाएं तुझ पे मढ़ूं इसलिए तू जिसे चाहती है उसी से तेरी शादी होगी. तेरे मामा को भी मैं ने समझ दिया है. वे भी तैयार हो गए हैं. बस सिचुएशन नौर्मल हो जाए तब हम सब का पहला काम तेरी धूमधाम से शादी.’’

ओह नानी, मेरी प्यारी नानी आई लव यू, रीयली आई लव यू कह कर तान्या खुशी और आवेश में मोबाइल चूमने लगी.

45 की उम्र में इतनी बोल्ड हुई अनुपमा, देखे लैटस्ट फोटोशूट

स्टार प्लस के लोकप्रिय सीरियल अनुपमा में लीड रोल निभाने वाली अदाकारा रूपाली गांगुली ने नया फोटोशूट कराया जिसमें उन्होंने बोल्ड अंदाज दिखाया है. अपने नए फोटोशूट में रूपाली गांगुली ब्राउन कलर की वेस्टर्न ड्रेस में नजर आ रही हैं. हमेशा साड़ी में स्क्रीन पर नजर आने वाली रूपाली गांगुली का ये अंदाज देख उनके चाहने वाले और लाखों फैंस दंग रह गए हैं

ब्राउन कलर की ड्रेस में फोटोशूट करवा कर अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हुए कैप्शन लिखा Dare to try!! You don’t know how far you can go, unless you try… और फैंस ने जमकर प्यार दिया और खूब कमेंट्स कर के अपना प्यार दिखाया. अनुपमा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है. 17 घंटे में इस तस्वीर को 74 हजार से ज्यादा लाइक्स मिले हैं. वहीं फैंस ने लव इमोजी बनाकर कमेंट किया है.

 

 

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अनुपमा सीरियल में ट्विस्ट एण्ड टर्न दिखते है

अनुपमा में अब एक और नई एंट्री होने वाली जो कि अनुपमा और अनुज की जिंदगी में तूफान लाने वाली है. रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) स्टारर शो में ‘माया’ (Maya) नाम के किरदार की एंट्री होने वाली है, जो कि छोटी अनु (Anu) के बेहद करीब आने की कोशिश कर रही है. वहीं अनु भी उसे अपना सबसे अच्छा दोस्त बता रही है. इस बात से अनुज और अनुपमा (Anuj and Anupama) को शक होने लगा है.

 

 

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शाह परिवार की परेशानी बढ़ी

 वहीं दूसरी ओर शाह परिवार पारितोष (Paritosh) की वजह से काफी परेशान और दुखी नजर आने वाला है. जहां वनराज किंजल से खुद पारितोष से दूर हो जाने के लिए कहेगा और कहेगा कि वो उसे कभी माफ न करे. साथ ही ये भी कहेगा कि उसे अपने आप पर शर्म आने लगी है और वो मर जाना चाहता है. इन सब से अलग पाखी का एक नया रूप देखने को मिलेगा, जहां वो अपने परिवार को इमोशनल सपोर्ट करती नजर आएगी. वहीं किंजल दुखी होकर अनुपमा को फोन लगाएगी लेकिन उससे कुछ बताएगी नहीं, जिसकी वजह से अनुपमा को शाह परिवार में कुछ गड़बड़ होने की आशंका हो जाएगी.

 

 

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होगी नई एंट्री

वहीं दूसरी ओर अनुज, अनुपमा और अनु तीनों डेयरी फार्म में घूम कर घर वापस आ जाते हैं. तीनों साथ में बेहद खुश नजर आते हैं. इन सब के बीच छोटी अनु लगातार ‘माया’ के नाम की रट लगाएगी. जिससे अनुपमा और अनुज थोड़े परेशान हो जाएंगे. अनुज को अनु के पास एक कार्ड मिलेगा, जहां माया ने लिखा है कि वो और छोटी अनु हमेशा साथ रहेंगे. इस बात से अनुज और अनुपमा को शक होने लगेगा। वहीं जब छोटी अनु माया को कॉल करेगी तो अनुपमा भी माया से बात करना चाहेगी लेकिन माया की तरफ से कॉल कट हो जाएगा.

BB 16: प्रियंका चौधरी होंगी टॉप 2 से बाहर, फिनाले में भिड़ेंगे शिव और एम सी स्टेन!

प्रियंका चाहर चौधरी को शो की विजेता के रूप में पेश किया गया था, लेकिन लगता है कि चीजें बदल गई हैं और वह फिनाले तक नहीं पहुंच पाएंगी. शो को फॉलो करने वाले ट्विटर हैंडल के अनुसार, यह दावा किया जाता है कि प्रियंका बाहर हो गई हैं और उनका खेल खत्म हो गया है और अब शीर्ष दो फाइनलिस्ट शिव ठाकरे और एमसी स्टेन होंगे. पहले ऐसी चर्चा थी कि शिव ठाकरे और प्रियंका चाहर चौधरी विजेता बनने के लिए एक दूसरे के साथ काम्पिटिशन करेंगे.

 

 

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मजबूत खिलाड़ी में से है प्रियंका

प्रियंका सबसे मजबूत खिलाड़ियों में से एक रही हैं और उनका खेल पहले दिन से ही शक्तिशाली है. लेकिन अंकित गुप्ता के जाने के बाद वह थोड़ी सुन्न हो गई, कई लोगों ने सोचा कि वह शेरनी बन जाएगी लेकिन वह धीरे-धीरे खेल रही है. दरअसल, लेटेस्ट एपिसोड में नॉमिनेशन टास्क के दौरान एमसी टैन ने यहां तक ​​दावा किया कि अंकित के बाहर होने के बाद प्रियंका जीरो हो गई हैं.

इस बीच, इस ट्वीट के खिलाफ, प्रियंका चाहर चौधरी के प्रशंसक उनके समर्थन में सामने आ रहे हैं और उन्हें विजेता के रूप में मान रहे हैं और याद दिला रहे हैं कि यह पीसीसी है जिसने मंडली सदस्य के एमसी स्टेन और साजिद खान के विपरीत कभी भी अभद्र और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया है, जिसे अब बेदखल कर दिया गया है.

कौन होगा बिग बॉस का विजेता

क्या आपको लगता है कि प्रियंका चाहर चौधरी के साथ यह उचित है क्योंकि इस ट्वीट से यह दावा किया जाता है कि वह खेल है? प्रियंका के पास टॉप 2 में रहने या यहां तक ​​कि शो की विजेता बनने की पूरी क्षमता है और फराह खान, शहनाज गिल और मायर जैसे कई मेहमान हैं जिन्होंने शो में मजबूत प्रतियोगी होने की प्रशंसा की है.

 

 

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इन सदस्यों पर लटकी नॉमिनेशन की तलवार

बीते एपिसोड में काफी कुछ नया देखने को मिला है. नॉमिनेशन टास्क की बात करों तो सबसे पहले मंडली के सदस्यों ने टीना दत्ता पर निशाना साधा. इसके बाद सभी ने सौंदर्या शर्मा को भी नॉमिनेट कर दिया. टीना दत्ता के चक्कर में शालीन भनोट पर भी नॉमिनेशन की तलवार लटक गई. वहीं मंडली की सदस्य सुंबुल तौकीर पर भी नॉमिनेश की गाज गिर गई. कुल मिलाकर टीना दत्ता , सुंबुल तौकीर खान, शालीन भनोट और सौंदर्या शर्मा नॉमिनेट हो गए हैं. अब वीकेंड के वार पर इनमें से कोई एक घर से बेघर हो जाएगा.

कुछ पल का सुख: क्यों था ऋचा के मन में आक्रोश

बेमेल विवाह में कैसे हो तालमेल, जानिए

आज भी बहुत से ऐसे बेमेल विवाह देखने को मिलते हैं, जिन में पतिपत्नी की आयु में अत्यधिक खटकने वाला अंतर होता है या पति अनपढ़ या कम पढ़ालिखा होता है या पत्नी नौकरीशुदा होती है और पति बेरोजगार. हालांकि हर मांबाप और लड़कालड़की यही चाहते हैं कि पति अधिक पढ़ालिखा हो और पत्नी उस से कम पढ़ीलिखी हो. पति घर के लिए व्यवसाय या नौकरी कर के उपार्जन करे और पत्नी घर संभाले. लेकिन कभीकभी ऐसी मजबूरियां हो जाती हैं, जिन से बेमेल विवाह भी संपन्न हो जाते हैं. ऐसा ही कुछ नीलम के साथ भी हुआ. नीलम सुंदर और पढ़ीलिखी युवती थी तथा रक्षा मंत्रालय में कार्य करती थी. मातापिता ने उस के विवाह के लिए अनेक लड़के देखे, किंतु नीलम को हर लड़के में कोई न कोई दोष दिखाई देता था.

धीरेधीरे नीलम की उम्र बढ़ती गई और वह अपनी उम्र का 35वां वर्ष भी पार कर गई. फिर लड़कों ने नीलम को नकारना आरंभ कर दिया. हार कर नीलम को एक अधेड़ व्यक्ति से विवाह करना पड़ा. वह सजातीय तो था, लेकिन वह 12वीं कक्षा पास था और आमदनी के नाम पर मकान से आने वाला थोड़ाबहुत किराया था. उस में भी भाइयों का हिस्सा अलग था.

नीलम को बताया गया था कि लड़का प्रौपर्टी डीलर है, जबकि वास्तव में उस के कुछ दोस्त प्रौपर्टी डीलर थे और वह केवल शाम को उन के पास शराब पीने बैठता था. अकसर ऐसा भी देखा गया है कि लड़की के मांबाप केवल सजातीय लड़के की खोज में लगे रहते हैं और लड़की पढ़ाई की सीढि़यां चढ़ती चली जाती है.

फिर उस जाति में उतने पढ़ेलिखे लड़के नहीं मिलते जितनी लड़की पढ़लिख जाती है. तब मजबूरन कम पढ़ेलिखे लड़के से विवाह करना पड़ता है.

1. मनोवैज्ञानिक दबाव

यदि लड़का लड़की से कम पढ़ालिखा हो या लड़की नौकरी करती हो और लड़का बेरोजगार हो तो ऐसे पति और पत्नी दोनों ही मनोवैज्ञानिक दबाव में जीते हैं. मैरिज काउंसलर एवं वकील नलिन सहाय बताते हैं कि प्राय:ऐसे मामले मध्यवर्गीय परिवारों में ही पाए जाते हैं और वे कभीकभार ही सलाह लेने आते हैं.

2. न्यायालय की नीति

सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट आर.के. सिंह का मानना है कि इस तरह के बेमेल विवाह की जड़ आधुनिक भौतिकवादी जीवनशैली ही है. उन्होंने बताया कि पंजाब उच्च न्यायालय के एक लीडिंग केस तीरथ कौर बनाम किरपाल सिंह के मामले में पहले तो गरीब और बेरोजगार पति ने अपनी पत्नी को प्रशिक्षण दिलवाया और फिर जब उस की नौकरी लग गई तो उसे नौकरी छोड़ कर गांव में आ कर अपने साथ रहने के लिए जोर देने लगा. पत्नी उसे तलाक भी नहीं देना चाहती थी और नौकरी भी नहीं छोड़ना चाहती थी.

सुरिंद्र कौर और गुरदीप सिंह का मामला भी ऐसा ही था. मगर इस मामले में पत्नी ने पति को तलाक दे दिया, लेकिन अपनी नौकरी नहीं छोड़ी. न्यायालय हिंदू पतिपत्नी के एक ही जगह रहने के पक्ष में है, क्योंकि हिंदू विधि के अनुसार पत्नी मात्र एक पत्नी न हो कर धर्मपत्नी है और धर्म के अनुसार पत्नी का धर्म पति के संरक्षण में एक छत के नीचे रह कर पति की गृहस्थी को संभालना है. ऐसे में बदले आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जब पति और पत्नी की भूमिकाएं बदल रही हैं, क्या न्यायालय भी हिंदू विधि में बदलाव के पक्ष में होंगे?

3. पतिपत्नी यथार्थ को समझें

आज अर्थोपार्जन सब से महत्त्वपूर्ण है, चाहे यह कार्य पति करे या पत्नी अथवा दोनों. यदि घर में धन का अभाव होता है तो अनेक परेशानियां उठ खड़ी होती हैं. इसलिए यदि पति कम पढ़ालिखा है या बेरोजगार है तो अपने परिवार की भलाई के लिए अपने अहं को ताक पर रख कर, जो कार्य पत्नी घर के लिए करती है उन्हें वह स्वयं करे ताकि पत्नी को घर और बाहर दोनों का बोझ न उठाना पड़े.

4. पति संभाले घर की जिम्मेदारी

पति चाहे तो घर के बहुत से काम अपने जिम्मे ले सकता है जैसे, बच्चों को स्कूल छोड़ना व लाना, उन का होमवर्क करवाना, पत्नी को औफिस छोड़ना व ले जाना, सुबह और शाम चाय बना देना, सब्जी, चावल आदि बना लेना, बाजार की खरीदारी कर लेना. चूंकि ये सभी काम वह अपने परिवार के लिए ही कर रहा है, इसलिए इस में किसी भी प्रकार के अहं को बीच में न आने दें.

दूसरी ओर पत्नी का भी दायित्व है कि वह किसी भी बात में पति के कम पढ़ालिखा होने या नौकरीव्यवसाय न करने का जिक्र न करे ताकि पति हीनभावना से ग्रस्त न हो. इस तरह की भावनाएं आगे चल कर मनोग्रंथि का रूप धारण कर लेती हैं और पति छोटीछोटी बातों पर घर के वातावरण को कलहपूर्ण बना देता है.

5. प्रेम और साहचर्य

एक मुसकराहट सभी परेशानियों से मुक्त कर देती है. नौकरी पर जाते समय और थकेहारे वापस आने पर एक मुसकराहट सारे दुखों और पीड़ाओं को हर लेती है. साथ खाना खाने और रात को एक ही बिस्तर पर सोने से कौन बड़ा है कौन छोटा है की भावना खत्म हो जाती है. इस से पति और पत्नी दोनों ही समानता के स्तर पर आ जाते हैं. यही नहीं वे एकदूसरे के पूरक भी बन जाते हैं. उन्हें कोई भी परिस्थिति अलग नहीं कर सकती है.

प्रेम पर भारी धर्म से ट्रैजेडी

प्यार की राह पर चलने वाली 27 वर्षीय श्रद्धा का जो हश्र उस के प्रेमी आफताब ने किया वह एक नाकाबिले माफी जुर्म है जिस के लिए वह कतई हमदर्दी नहीं बल्कि सख्त से सख्त सजा का हकदार है ऐसा दुर्दांत और जघन्य हादसा अकसर नहीं होता, लेकिन जब हो गया तो हर किसी को दुख हुआ और सभी ने सड़क हादसों की तर्ज पर कुछ न कुछ कहा, लेकिन परंपरावादी लोग यही कहते नजर आ रहे हैं कि इस से तो अच्छा है कि प्यार किया ही न जाए और किया जाए तो पेरैंट्स की इजाजत ले ली जाए. पर यह कहना कम है, प्रमुखता से हल्ला यह मचाया गया कि हिंदू लड़कियों को मुसलिम लड़कों से प्यार नहीं करना चाहिए नहीं तो न केवल उन के बल्कि सनातन धर्म और संस्कृति के 35 टुकड़े होना तय है.सभ्य समाज के लिए कलंक मामला क्या है और क्यों व कैसे हुआ इस से पहले तरस उन लोगों की मानसिकता पर खा लेना जरूरी है जो इस बीभत्स कांड को लव जिहाद कहते लड़कियों को प्यार के रास्ते पर न चलने की नसीहत दे रहे हैं क्योंकि श्रद्धा हत्याकांड में भी अपना धर्म उन्हें खतरे में नजर आ रहा है. जाने क्यों और कैसे तंदूर कांड में मारी गई नैना साहनी के बाद यही धर्म सलामत बच गया था तब क्यों लड़कियों को नसीहतें धर्म गुरुओं ने नहीं दी थीं और न ही मीडिया वालों ने यह कहा था कि हमें शिकायत नैना से भी है.

सार यह कि अगर आफताब की जगह कोई आकाश या सूरज होता तो हल्ला इतना नहीं मचाया जाता और सनातन खतरे में नहीं पड़ता. ठीक इसी तरह श्रद्धा की जगह सलमा या सकीना होती. तो भी इसे हादसा मानने की कोई वजह नहीं होती. कितनी हास्यास्पद बात है कि अगर प्यार में हिंदू लड़का हिंदू लड़की की हत्या करे या मुसलिम लड़का मुसलिम लड़की की हत्या करे तो कोई आसमान नहीं फटता मानो यह उन का हक हो.

धर्म के ठेकेदार दरअसल में प्यार को कोस रहे हैं क्योंकि इन की दुकान की बुनियाद ही युवाओं की आजादी के विरोध से पड़ी है. दूसरे क्या भारतीय पेरैंट्स इतने उदार हो गए हैं कि संतान खासतौर से लड़की अगर कहेगी कि मु?ो फलां से प्यार हो गया है तो क्या ये ?ाट से उस की भावनाओं का सम्मान करते हुए शादी के लिए राजी हो जाएंगे?

नहीं पेरैंट्स हजार बातें करेंगे, सैकड़ों नुक्स जातिधर्म और गोत्र के निकालेंगे और आखिर में मुंह लटका कर कहेंगे कि तुम्हें कोई हक नहीं कि तुम हमारी प्रतिष्ठा और खुशियों का गला घोंट कर अपनी मरजी से शादी करो और घर बसाओ फिर जैसी तुम्हारी मरजी तुम जानो तुम्हारा काम जाने. किसी बुरे के हम जिम्मेदार नहीं होंगे.

अपवाद मामलों में ही ऐसा होता है कि पेरैंट्स बच्चे की खुशी और इच्छा पर तवज्जो देते जीवनसाथी के चुनाव पर खुले दिल से उस के फैसले का सम्मान करते हैं नहीं तो तादाद उन की  ज्यादा हैं जो हिंदी फिल्मों के मांबाप की तरह परवरिश की दुहाई देते संतान को इमोशनली ब्लैकमेल करने का पुराना हथकंडा इस्तेमाल करते हैं जो कभी कामयाब तो कभी नाकामयाब हो जाता है.

जिन मामलों में यह कामयाब होता है उन में ज्यादातर बेटी की जिंदगी दूभर होने का खतरा ज्यादा रहता है जो अपने अरमानों का गला घोंट कर पेरैंट्स जिस के गले बांध देते हैं उस के साथ बेमन से विदा हो जाती है. बेमन से इसलिए कि यह एहसास उसे रहता है कि वह शादी नहीं कर रही बल्कि पेरैंट्स के लिए त्याग, सम?ाता या सौदा कर रही है जो जन्म देने, परवरिश करने और शिक्षा दिला कर काबिल बनाने की कीमत है.

कौन है श्रद्धा

कौन है श्रद्धा लेकिन श्रद्धा भी दूसरी कई जागरूक युवतियों की तरह इस पचड़े में नहीं पड़ी इसीलिए उसे कोसने की एक बड़ी वजह कुछ लोगों को मिल गई जैसे उस की हत्या की इकलौती वजह पेरैंट्स की अनदेखी ही हो और उस ने एक मुसलिम युवक से प्यार करने के गुनाह की सजा बेरहम तरीके से भुगती जबकि सच कुछ और है कि दरअसल में लिव इन में रह रहे लाखों कपल्स की तरह उस की और आफताब की पटरी आपस में नहीं बैठ रही थी. श्रद्धा की गलती प्यार करना नहीं थी बल्कि प्यार और लिव इन में जरूरी सम?ादारी और सावधानियां न रखना थी.

श्रद्धा का पूरा नाम श्रद्धा वाकर है. वह महाराष्ट्र के पालघर की रहने वाली थी. आम मध्यवर्गीय परिवारों की युवती की तरह वह भी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करने लगी थी. मास मीडिया में मास्टर डिगरी लेने वाली श्रद्धा को उस के सहपाठी उसे 4 जी गर्ल कहते थे. एक मल्टीनैशनल कंपनी के कौल सैंटर में मुंबई के मलाड इलाके में नौकरी कर रही बिंदास, हंसमुख  खूबसूरत और आकर्षक इस युवती की जानपहचान 2019 में अपने सहकर्मी आफताब से हुई जिस का पूरा नाम आफताब अमीन पूना वाला है.

यह जानपहचान जल्द ही प्यार में बदल गई और दोनों साथ जीनेमरने के वादे करते शादी के सपने देखने लगे. श्रद्धा को उम्मीद यह थी कि उस के पेरैंट्स इस शादी के लिए हां कर देंगे क्योंकि वे अपनी बिटिया को बहुत चाहते थे.

श्रद्धा के इस भ्रम या विश्वास कुछ भी कह लें को ?ाटका उस वक्त लगा जब पेरैंट्स ने सख्ती से मना कर दिया कि नहीं यह शादी नहीं हो सकती क्योंकि लड़का मुसलमान है. इस से श्रद्धा को जाहिर है दुख हुआ और वह निराश भी हुई. उस ने मांबाप को मनाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन बात नहीं बननी थी सो नहीं बनी. तय है इसलिए कि पेरैंट्स एक मुसलिम युवक को दामाद स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. इस मुकाम पर 2 ही बातें मुमकिन होती हैं. पहली तो यह कि मांबाप बेटी की बात मानते उसे अपनी जिंदगी जी लेने दें या फिर बेटी अपने प्यार की आहुति देते हुए मांबाप की बात मान ले.

श्रद्धा और उस के पेरैंट्स दोनों ही अपनी जिद पर अड़े रहे और धीरेधीरे उन के बीच रिश्ते की गरमाहट और बातचीत तक खत्म होने लगी. मांबाप की सम?ाइश की तह में अपना अहम और प्रतिष्ठा ज्यादा थी तो बेटी की जिद में भी नादानी और बेवकूफी कम नहीं थी जिस ने एक बर्बर हत्याकांड को जन्म दिया.

कौन है आफताब

मुंबई के ही मीरा रोड स्थित एक रिहायशी अपार्टमैंट में दीवाली के दिनों में पूना वाला परिवार वसई से रहने आया था. अपार्टमैंट्स में कौन रहने आया, कौन गया इस से आजकल कोई मतलब नहीं रखता जो महानगरीय संस्कृति का ही एक हिस्सा है. लोग ट्रक से सामान उतरते और चढ़ते सहजता से देखते रहते हैं. मुंबईया माहौल में पैदा हुए और पलेबढ़े आफताब का परिवार मीरा रोड शिफ्ट हो गया तो किसी ने ज्यादा नोटिस नहीं लिया और जिन्होंने लिया उन्हें यही सम?ा आया कि इस परिवार में 4 ही लोग हैं. मांबाप और 2 जवान बेटे (दूसरा आफताब का छोटा भाई) ये लोग ठीकठाक हैं, लेकिन बोलते ज्यादा हैं.

पेशे से फोटोग्राफर आफताब की डेटिंग ऐप पर श्रद्धा से पहचान और फिर कुछ मुलाकातों के बाद प्यार हो जाने पर वह भी हसीन सपने देखने लगा. लेकिन शादी की इजाजत उस के पेरैंट्स भी नहीं दे रहे थे इसे ले कर वह श्रद्धा की तरह तनाव में नहीं था यानी आने वाली जिंदगी को ले कर गंभीर नहीं था. श्रद्धा की तरह वह भी मध्यवर्गीय परिवार से था और महत्त्वाकांक्षी था. यह और बात है कि यह महत्त्वाकांक्षा हीनता और कुंठा में बदलती जा रही थी जिसे वह महसूस तो रहा था, लेकिन सम?ा नहीं पा रहा था.प्यार पर विरोध मुंबई महानगर है जहां युवाओं के इश्क और मुहब्बत के सीन कहीं भी देखे जा सकते हैं पार्कों, होटलों, बीच, सड़क और लोकल ट्रेनों में भी प्यार करते युवा इफरात से नजर आते हैं. इन्हीं में एक नाम श्रद्धा और आफताब का शुमार हो गया था जो अपने प्यार को शादी की मंजिल तक ले जाना चाहते थे इसलिए दोनों ने किसी से कुछ छिपाया नहीं था, लेकिन दोनों के परिवारजन इस के लिए तैयार नहीं थे और घर वालों की इच्छा के बाहर जा कर शादी करने की इन की हिम्मत नहीं पड़ रही थी, इसलिए एक दिन दोनों दिल्ली भाग गए. जहां जा कर पहले वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके फिर उन्होंने महरौली इलाके में किराए का मकान ले लिया और बाकायदा पतिपत्नी की तरह रहने लगे, लेकिन उतने प्यार और शिद्दत से नहीं जितना कि प्यार होने के कुछ दिन बाद मुंबई में रहते थे.

ऐसा नहीं कि महरौली में रहते प्यार एकदम कम हो गया था बल्कि गलती दोनों तरफ से और बराबरी से हो रही थी. श्रद्धा चाहती थी कि वे दोनों जल्द से जल्द शादी कर लें पर आफताब उसे टाल रहा था. शायद ही नहीं तय है इस जिद के पीछे श्रद्धा का सोचना यह था कि एक बार शादी हो जाए तो उसे तो पहचान मिलेगी ही साथ ही समाज और परिवार वाले भी रिश्ते पर मुहर लगा देंगे क्योंकि अमूमन होता यही है कि लड़कालड़की लिव इन में रहते शादी कर लेते हैं तो शादी पर एतराज जताते रहने वाले पेरैंट्स भी ?ाक ही जाते हैं. महरौली शिफ्ट होने के बाद आफताब शादी से नानुकुर करने लगा तो श्रद्धा को चिंता होना स्वाभाविक बात थी. बात यहीं से बिगड़ी. श्रद्धा चाहती थी कि आफताब तुरंत शादी कर ले, लेकिन आफताब कुछ और ही सोच रहा था.

बड़ी भूल

लिव इन जिन शर्तों पर होती है उन में से एक खास यह है कि कोई भी एक पक्ष दूसरे पर बेजा हक नहीं जमाएगा पर श्रद्धा खुद को आफताब की ब्याहता सम?ाने की भूल करने के साथ दूसरी भी कई गलतियां कर रही थी. लक्ष्मण सहित वह अपने कुछ दूसरे फ्रैंड्स के संपर्क में भी थी, लेकिन मांबाप से तो जैसे उस का नाता टूट ही गया था. बिना डोली में विदा हुए ही वह उन के लिए पराई हो चुकी थी.

जाहिर है उसे यह सम?ा आ गया था कि बिना किसी ठोस वजह के आफताब शादी की बाबत उसे टरका रहा है. इस से वह और गुस्से और असुरक्षा से भर उठती थी क्योंकि अब दुनिया में आफताब के सिवा उस का कोई रह भी नहीं गया था. बात इस लिहाज से सच थी कि 3 साल एक मुसलिम युवक के साथ लिव इन में रहने के बाद उसे कोई नहीं स्वीकारता. उस तरफ के सारे दरवाजे उस के लिए बंद हो चुके थे.

जिद्दी श्रद्धा को अब पेरैंट्स से बात करने में भी हिचक होने लगी थी क्योंकि धीरेधीरे ही सही वे सही और वह गलत साबित होने लगी थी. इस वक्त वह कोई जौब भी नहीं कर रही थी इसलिए भी आक्रामक होने लगी थी. खर्चों को ले कर भी आए दिन दोनों ?ागड़ते रहते थे कि पैसा कौन खर्च करे. नौबत तो यहां तक आ गई थी कि रोज की सब्जीतरकारी खरीदने के लिए भी चिकचिक होने लगी थी.

नशे का आदी आफताब

उधर आफताब को श्रद्धा की यह कमजोरी पकड़ आ गई थी कि वह चारों तरफ से टूट चुकी है लिहाजा उस ने श्रद्धा पर हाथ उठाना भी शुरू कर दिया था. नशे के आदी इस नौजवान ने यह नहीं सोचा कि श्रद्धा ने उस के भरोसे पर दुनिया को ठुकरा रखा है. मारपीट और कलह अब रोजरोज की बात हो चली थी. लगता ऐसा था कि अपनेअपने हिस्से की प्यार भरी जिंदगी वे जी चुके हैं और अब तो दुश्मनी निभा रहे हैं.कसाई बना आशिक दुश्मनी इस हद तक बढ़ गई थी कि आफताब रोज श्रद्धा की पिटाई करने लगा था. इतना ही नहीं वह उस के जिस्म पर जलती हुई सिगरेटें भी दागने लगा था जैसे श्रद्धा का शरीर एशट्रे हो. श्रद्धा हर ज्यादती सहन कर रही थी, लेकिन जाने क्यों हैवान बनते जा रहे आफताब को छोड़ने को तैयार नहीं थी. अपने साथ हो रही हैवानियत का जिक्र उस ने लक्ष्मण सहित कुछ और दोस्तों से भी किया था. उसे यह भी लगने लगा था कि आफताब उसे मार डालेगा.

और फिर 18 मई को ऐसा हो भी गया.

इस दिन भी आफताब गांजे का नशा कर आया था. दोनों में फिर इस बात को ले कर कहासुनी हुई कि मुंबई से दिल्ली तक सामान ढुलाई के 20 हजार रुपए कौन दे. इस के बाद श्रद्धा ने जैसे ही फिर शादी करने की बात कही तो आफताब कसाई बन गया. पहले तो उस ने श्रद्धा का गला घोंट कर उस की हत्या की, फिर धारदार चाकू से इत्मीनान से लाश के 35 टुकड़े किए.

इस काम में उसे 2 दिन लगे. यह कितना प्रीप्लान्ड मर्डर था इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आफताब ने लाश के टुकड़े रखने के लिए 300 लिटर का फ्रिज खरीदा था और उस की पेमैंट भी श्रद्धा के पैसों से की थी. उस ने 55 हजार रुपए श्रद्धा के अकाउंट से निकाले थे. हत्या करने के बाद भी नशे के लिए वह लगातार बियर पीता रहा था.

बाथरूम में खून बहाने के बाद उस ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े फ्रिज में करीने से जमाए और रोज 2-2 टुकड़े ले जा कर महरौली के जंगल में फेंकता रहा. यह आइडिया उसे क्राइम सीरियलों से मिला था. वह रोज फ्रिज में रखे श्रद्धा के शरीर के टुकड़े और खोपड़ी देखता था. फ्लैट में बदबू न आए इसलिए कमरों में खुशबूदार अगरबत्ती और रूम फ्रैशनर का इस्तेमाल करता था.

साफ दिख रहा है कि सभ्य समाज से साइको किलर आफताब का नाता टूट चुका था. खुद को सजा से बचाने के लिए वह जुर्म छिपाने के तमाम टोटके कर रहा था. मसलन श्रद्धा के सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ पोस्ट करना और उस के क्रैडिट कार्ड का बिल भरना वगैरह

शामिल हैं. बेटी की तलाश अब क्यों जब कई दिनों तक श्रद्धा से बात नहीं हुई तो पिता विकास मदन वाकर उस की तलाश में निकल पड़े. पहले मुंबई फिर बैंगलुरु और फिर दिल्ली की खाक उन्होंने छानी, लेकिन श्रद्धा उन्हें कहीं नहीं मिली. मिलती भी कैसे कहीं होती तो मिलती. उन्होंने महरौली थाने में भी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई तो पुलिस इन्वैस्टिगेशन में आफताब फंस गया. पुलिस के सामने उस का एक यह ?ाठ भी नहीं चला कि श्रद्धा तो ?ागड़ा कर घर छोड़ कर चली गई कहां गई यह मु?ो नहीं मालूम.

अहिस्ताअहिस्ता पुलिस ने उस से उंगली टेढ़ी कर सब उगलवा लिया. आफताब ने भी खुद को कानून के फंदे में फंसता देख इंग्लिश में सच उगल दिया कि यस आई किल हर. श्रद्धा के पिता को मालूम था कि वह आफताब के साथ रह रही है 2021 में वह मां की मौत के बाद घर गई थी, लेकिन बाप बेटी के बीच खटास कम नहीं हुई. विकास ने कुछ दिन पहले उसे ताना सा मारते आफताब के बारे में पूछा भी था जिस का सीधा और सच्चा जवाब श्रद्धा ने देना जरूरी नहीं सम?ा था क्योंकि पिता उसे अपनाने नहीं बल्कि अपमानित करने आए थे कि देखो हमारी बात न मानने पर तुम्हारी क्या दुर्गति हो रही है.

असल में घर छोड़ते वक्त श्रद्धा ने पूरे आत्मविश्वास से कहा था कि अब मैं 25 साल की हो गई हूं और अपने फैसले खुद ले सकती हूं. तब तक श्रद्धा को उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल आफताब शादी के लिए राजी हो ही जाएगा.

अब हादसे के बाद विकास व्यथित हो कर कह रहे हैं कि श्रद्धा अगर उन की बात मान लेती तो यह नौबत नहीं आती. पर यह वे नहीं सोच पा रहे कि अगर वे ही श्रद्धा की बात मान लेते तो भी यह नौबत नहीं आती. बहरहाल, श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं और आफताब पुलिस हिरासत में रहते अपना जुर्म स्वीकार करते जो बताता रहा उसे मीडिया ने श्रद्धा और आफताब से जुड़ी हर बात को एक धमाके की तरह पेश किया ताकि लोग उन का चैनल देखते रहें. इस कांड को धारावाहिक की तरह चलाया और दिखाया गया ताकि टीआरपी बढ़े.कुछ सबक कुछ सावधानियां

श्रद्धा की गलती आफताब से प्यार करना तो कतई नहीं थी, लेकिन उस की पहली बड़ी गलती लगातार जल्दबाजी में फैसले लेने की थी जिस की कीमत उसे जान दे कर चुकानी भी पड़ी. अगर वक्त रहते वह ठंडे दिमाग से सोचती तो इस हादसे से खुद को बचा भी सकती थी. ये गलतियां आए दिन लिव इन में रहने वाले करते हैं और बाद में पछताते नजर आते हैं. खासतौर से लड़कियों को तो इन बातों पर काफी सोच सम?ाकर फैसला लेना चाहिए.

-पैसा जीने के लिए अहम है इसलिए घर से अलग होने और लिव इन में रहने के लिए खुद के पास खासे पैसों का इंतजाम कर लेना चाहिए. सेविंग में सालभर के खर्च का पैसा होना चाहिए. यह फंड अपने पार्टनर पर उजागर करना जरूरी नहीं क्योंकि कभी भी अलगाव की नौबत आ सकती है. ऐसे में जमा पूंजी ही आप का सब से बड़ा सहारा और आत्मविश्वास रहेगी.

– प्यार कितना ही ज्यादा हो अपने पार्टनर से घर खर्च की बाबत यह पहले तय कर लेना चाहिए कि कौन किस काम पर कितना खर्च करेगा.

-प्यार में अंधे हो कर फैसले लेने से बचना चाहिए. जिंदगी जज्बातों से नहीं बल्कि व्यावहारिकता से चले तो ज्यादा सफल रहती है. लिव इन की जिंदगी तो वैसे भी दुधारू तलवार होती है. पार्टनर का ?ाकाब किसी दूसरी की तरफ होता दिखे तो उस पर रोकटोक ज्यादा कारगर साबित नहीं होती यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता लिव इन में अहम होती है.

-पार्टनर अगर किसी नशे का आदी हो तो उस के साथ ज्यादा दिनों तक चैन से रहना मुमकिन नहीं रह जाता. अगर वह नशे की लत न छोड़ पाए तो उसे ही छोड़ देना बेहतर होता है साथ ही खुद भी नशे से बच कर रहना चाहिए.

– अगर शादी करने की शर्त पर लिव इन में रहा जा रहा है तो शादी की डेट लाइन तय होनी चाहिए. इस के बाद भी पार्टनर शादी से नानुकुर करने लगे तो उस पर ज्यादा दबाव बनाने से

कोई फायदा नहीं होता. फिर उस के सामने यह रोना रोने के भी कोई माने नहीं रह जाते कि देखो तुम्हारे लिए मैं ने सबकुछ छोड़ दिया, सबकुछ तुम्हें सौंप दिया. अगर वह शादी के अपने वादे से मुकर रहा है तो निश्चित ही वेबफा है और वेबफाओं के साथ हंसीखुशी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती.

-सैक्स संबंध लिव इन में आपसी रजामंदी से बनते हैं, इसलिए इन्हें एहसान की तरह पार्टनर पर न थोपें क्योंकि इस में आप की सहमति भी शामिल थी. कोई भी बौयफ्रैंड इस आधार पर शादी के लिए वाध्य नहीं होता कि उस से आप के सैक्स संबंध रहे हैं.

– लिव इन में एकदूसरे की जिंदगी में आदतों और इच्छाओं पर नियंत्रण की एक सीमा होती है जो दोनों जानते हैं. इसलिए इस लक्ष्मणरेखा को न खुद क्रौस करें और न ही पार्टनर को यह अधिकार दें.

– किसी भी मुद्दे पर विवाद हो और कुछ कोशिशों के बाद भी न सुल?ो तो बजाय कलह और तूतू, मैंमैं करने के शांति से अलग हो जाना ज्यादा अच्छा रहता है और विवाद तभी होते हैं जब दोनों एकदूसरे की आजादी में दखल देने लगते हैं, एकदूसरे के विचारों से सहमत नहीं होते और अपने हिस्से के खर्चों से बचने की कोशिश करने लगते हैं.

– किसी के भी साथ कुछ ही दिन सही गुजारने के बाद किसी भी वजह से अलग होने का फैसला भावनात्मक रूप से तकलीफदेह हो सकता है, लेकिन यकीन मानें अगर अलग न हुआ जाए तो यह काफी विस्फोटक साबित होता है जैसाकि श्रद्धा और आफताब के मामले में हुआ.

कोई मिल गया इस का यह मतलब नहीं कि बाकी लोगों से रिश्ते खत्म हो गए. लिव इन अगर शादी न हो तो एक अस्थायी व्यवस्था है, इसलिए परिवारजनों और भरोसेमंद दोस्तों से संपर्क बनाए रखना अच्छा रहता है. अपने पार्टनर की भी बात उन से करवाते रहना चाहिए.

इन की प्रौब्लम धर्म या जाति नहीं थी बल्कि उस की जड़ में पैसे की कमी थी. शादी पर दोनों की सहमति न बनने ने इस में घी डालने का काम किया. इस हादसे से जुड़े कुछ सवालों के जबाब तो विशेषज्ञ मनोविज्ञानी भी नहीं दे पाएंगे कि क्यों श्रद्धा शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहने के बाद भी आफताब से चिपकी रही और क्यों आफताब ने उसे इतने डरावने तरीके से मार डाला, जबकि इस का अंजाम वह जानता था. साफ दिख रहा है कि चाहे लिव इन हो या शादीशुदा जिंदगी मतभेद अगर दूर न हों तो अलग हो जाना सब से बेहतर रास्ता और फैसला होता है ताकि प्यार के रास्ते में कोई हादसा न हो.

निटिंग कला: क्यों कह दें गुडबाय

एक समय था जब कढ़ाईबुनाई महिलाओं के व्यक्तित्व का एक जरूरी हिस्सा हुआ करती थी. महिलाएं अपना चूल्हाचौका समेटने के बाद दोपहर में कुनकुनी धूप का सेवन करते हुए स्वैटर बुनने बैठ जाती थीं. गपशप तो होती ही थी साथ ही एकदूसरे से डिजाइन का आदानप्रदान भी हो जाता था. घर के हर सदस्य के लिए स्वैटर बुनना हर महिला का प्रिय शगल होता था. उस समय न टीवी था, न व्हाट्सऐप, न इंटरनैट और न ही फेसबुक.

टैक्नोलौजी का जितना असर समाज के अन्य पक्षों पर पड़ा है उतना ही निटिंग पर भी पड़ा है. लेकिन उन सब से अनभिज्ञ आज की युवा पीढ़ी ने निटिंग जैसी कला को गुडबाय कह दिया है. ‘कौन पहनता है हाथ से बुने स्वैटर’ या ‘यह ओल्ड फैशन ऐक्टिविटी है’ जैसे जुमलों ने महिलाओं को हाथ से स्वैटर बनाने की कला  को दूर कर दिया है. पर इन सब जुमलों के बावजूद मैं ने निटिंग के प्रति अपना दीवानापन नहीं छोड़ा. उस दुनिया से छिप कर बुनती रही जो इस कला को ओल्ड फैशन मानती है. कभी चारदीवारी के अंदर तो कभी रात के साए में स्वैटरों के नित नई डिजाइनें टटोलती रही.

विदेशों में क्रेज

आश्चर्य तो तब हुआ जब मैं ने जरमनी यात्रा के दौरान अपनी हवाई यात्रा में एक जरमन महिला को मोव कलर के दस्ताने बुनते देखा और फिर वहां मैट्रो ट्रेन में कुछ महिलाओं को निटिंग करते देखा. वहां एक स्टोर में जाने का मौका मिला तो पाया कि लोग किस कदर हैंडमेड स्वैटर पहनने के इच्छुक हैं.

स्टोर में पड़ी किताबों में से स्वैटर की डिजाइन ढूंढ़ कर लोग वहां बैठी महिलाओं को और्डर दे रहे थे. उन्हें वहां पड़ी ऐक्सैसरीज में से बटन, लेस और बीड्स को भी अपने स्वैटरों पर लगवाने के लिए चयन करते देखा. मु?ा यह जान कर अच्छा लगा कि यहां जैसे भौतिकवादी देश में भी लोग हैंडमेड चीजों के प्रति आकर्षित हैं.

हाल ही में अमेरिका की यात्रा की तो निटिंग संबंधी स्टोर देखना मेरे पर्यटन में शामिल था. बोस्टन शहर की ब्रौड वे गली में एक स्टोर है जिस का नाम है ‘गैदर हेयर.’ जैसा नाम वैसा ही पाया मैं ने. अंदर का नजारा कलापूर्ण तो था ही गैदर हेयर जैसा भी था. एक बड़ी गोल टेबल के गोल घेरे में आठ महिलाएं सलाइयां ले कर जुटी थीं. सब के हाथों में सलाइयां थीं और सब सीखनेसिखाने की दृष्टि से आई थीं.

सोफिया ने बताया कि वे अपने भाई के लिए टोपी बुन रही हैं. लारा अपने बेटे के लिए मोजे बुन रही थीं. उन महिलाएं में एक मांबेटी का भी जोड़ा था. उन से संवाद करने पर पता चला कि वे महीने के दूसरे मंगलवार और चौथे बृहस्पतिवार को यहां इकट्ठा होती हैं. यहां वे एकदूसरे से डिजाइन सीखतीसिखाती हैं और अपनी कला को निखारती हैं.

कुनकुनी धूप में बुनाई

उसी हाल के दूसरे कोने में 2 पुरुष और 1 महिला बैठे थे जो अपने तैयार स्वैटरों पर बटन लगाने की तैयारी कर रहे थे. एक कोने में चायकौफी और स्नैक्स का सामान पड़ा था जो उन महिलाओं के लिए ही था. स्टोर ढेर सारे कच्चे सामान के साथ सुंदर तरीके से सजा था जिस में ऊन, सलाइयां, क्रोशिया, धागे, सुइयां, बटन और तैयार आइटमों का खूबसूरत डिस्प्ले था. मैं आश्चर्यचकित थी यह सब देख कर. मु?ो अपने देश में बिताए वे दिन याद आ रहे थे जब मैं ने अपनी दादीनानी, बूआ और मौसी को घर के आंगन में कुनकुनी धूप में बैठे ये सब करते देखा था.

मगर अब मेरे देश से ये सब नजारे गायब हैं. युवतियों और महिलाओं के हाथ में मोबाइल है या कानों में स्पीकर. नैट यूजर लड़कियां यह भी नहीं जानतीं कि नैट सर्फ कर के भी हैंडमेड चीजों का खजाना ढूंढ़ा जा सकता है और उन्हें बनाने की कला भी सीखी जा सकती है. निटिंग जैसी कलाएं न तो आप को बोर होने देती हैं और न ही अकेलेपन का एहसास कराती हैं. आप के दिमाग के संतुलन को बनाए रखने में भी ये कलाएं बहुत कारगर सिद्ध होती हैं.

विदेशों में हाइपरटैंशन के मरीजों की परची पर डाक्टर द्वारा इलाज की सूची में दवाई के साथ ‘निटिंग’ भी लिखा जाता है यानी डाक्टर द्वारा सलाह दी जाती है कि यदि आप निटिंग करेंगी तो आप का बीपी संतुलित रहेगा. अमेरिका जैसे देश में जहां लोग भौतिक सुखसुविधा से संपन्न हैं, फिर भी निटिंग कला को खूबसूरती से बनाए हुए हैं.

बोस्टन स्थित विश्व की नंबर वन यूनिवर्सिटी में भी एक कक्ष ऐसा है जहां ऊन सिलाई, क्रोशिया (धागा) मशीन, सूई, बैल्ट बटन सब रखे हैं. जब विद्यार्थी पढ़ाई करतेकरते थक जाएं तो इस कक्ष में आ कर अपनी मनपसंद क्रिएटिविटी कर सकते हैं और अपने दिमाग को फिर से तरोताजा कर सकते हैं.

एक बार मेरी बेटी जो बोस्टन में एमआईटी में पढ़ाई कर रही है ने बेहद उत्साहित हो कर बताया, ‘‘मां, मैं एक सेमिनार में समय से कुछ पहले पहुंच गई तो वहां देखा कि लैक्चर देने वाली प्रोफैसर निटिंग कर रही है. शायद वह वार्मअप हो रही थी. मां आप की बहुत याद आई.’’

एक सुखद एहसास

मगर हमारे देश में अब निटिंग लुप्तप्राय हो रही है. यह केवल डिजाइनिंग के विद्यार्थियों के पाठयक्रमों तक सीमित रह गई है जो अपनी सेवाएं मशीनों को दे रहे हैं. न सही बड़ा स्वैटर या जर्सी छोटाछोटा ही कुछ बुनिए जैसे टोपी और मोजे ही सही. मेरी मां एक बार बहुत बीमार हो गईं. पलंग से उठना दूभर था. मैं ने उन के सामने ऊन व सलाइयां ला कर रख दीं.

मां ने न जाने कितने मोजों के जोड़े बुन दिए. फिर तो जो भी उन की कुशलमंगल पूछने आता उसे मोजों का जोड़ा उपहार में मिलता. मां के चेहरे की संतुष्टि और उपहार पाने वाले की खुशी देखते ही बनती थी. इस उपक्रम में मां अपनी बीमारी का दर्द भूल जाती थीं. निटिंग करने का सुख अलग ही है. एक बार निटिंग कर के तो देखिए इस सर्दी में.

सर्दियों के दिनों में बनाएं ये 3 मजेदार डिश

सर्दियों के दिनों में हमारी पाचन क्षमता अच्छी हो जाती है इसीलिए इस मौसम को सेहत बनाने वाला मौसम कहा जाता है. मौसम कोई सा भी हो सुबह शाम का नाश्ता हमेशा गृहिणी के लिये बहुत बड़ी समस्या ही रहता है कि ऐसा क्या बनाया जाए जो हैल्दी भी हो और टेस्टी भी साथ ही जिसे घर के सभी सदस्य स्वाद लेकर खाएं भी. आज आपकी इसी समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं. आज हम आपको 3 बहुत ही टेस्टी और हैल्दी ब्रेकफास्ट बनाना बता रहे हैं इन्हें आप सुबह या शाम के नाश्ते में घर में उपलब्ध सामग्री से ही बड़ी आसानी से बना सकतीं हैं. तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-स्प्राउट सैंडविच
कितने लोगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री(कवर के लिए)
अंकुरित मूंग 1 कप
पालक प्यूरी 1 टीस्पून
ब्रेड क्रम्ब्स 1/4 कप
अदरक हरी मिर्च पेस्ट 1/4 टीस्पून
नमक 1/4 टीस्पून
हींग 1 चुटकी
बटर 1 टीस्पून
सामग्री(फिलिंग के लिए)
उबला आलू 1
शिमला मिर्च 1
टमाटर 1
मेयोनीज 1 टीस्पून
शेजवान सॉस 1 टीस्पून
टोमेटो सॉस 1/2 टीस्पून
चिली फ्लैक्स 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1/2 टीस्पून

विधि
बटर को छोड़कर अंकुरित मूंग को सैंडविच की सभी सामग्री और 1कप पानी के साथ एक साथ पेस्ट फॉर्म में पीस लें. फिलिंग की सब्जियों को एक बाउल में डालकर मेयोनीज, टोमेटो सॉस, शेजवान सॉस और टोमेटो सॉस अच्छी तरह मिलाएं. सैंडविच मेकर में बटर लगाकर 1 बड़ा चम्मच पतला पतला चीले जैसा मूंग का बेटर फैलाएं और बंद करके लाइट ब्राउन होने तक सेक लें इसी प्रकार दूसरी शीट तैयार कर लें. अब एक शीट को टोस्टर में रखकर फिलिग रखकर ऊपर से चिली फ्लैक्स और चाट मसाला अच्छी तरह बुरकें. दूसरी शीट से कवर करके बटर लगाएं और गोल्डन ब्राउन होने तक सेककर सर्व करें.

-फ्रायड मटर क्यूब्स
कितने लोंगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री
मटर के दाने 2 कप
बेसन 1/2 कप
खट्टा दही 1 कप
अदरक, हरी मिर्च पेस्ट 1 टीस्पून
हींग 1 चुटकी
नमक स्वादानुसार
सामग्री(बघार के लिए)
तेल 1 बड़ा चम्मच
साबुत लाल मिर्च 4
लम्बाई में कटी हरी मिर्च 2
राई के दाने 1/4 टीस्पून
कश्मीरी लाल मिर्च 1/2 टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून

विधि
मटर के दानों को बेसन, दही, अदरक, हरी मिर्च पेस्ट, हींग और नमक के साथ अच्छी तरह पीस लें. अब इसमें 2 कप पानी मिला लें. तैयार मिश्रण को एक पैन में डालकर गैस पर लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं. जब मिश्रण गाढ़ा होकर पैन में चिपकना छोड़ दे तो एक चिकनाई लगी ट्रे में 1/2 इंच की मोटाई में फैलाएं. ठंडा होने पर चौकोर क्यूब्स में काटें. बघार की समस्त सामग्री को तेल में डालें और क्यूब्स के ऊपर अच्छी तरह फैलाएं. टेस्टी मटर के क्यूब्स को चाय कॉफी के साथ सर्व करें.

-बाजरा चीजी बॉल्स
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री
बाजरा आटा 1 कप
उबले आलू 2
उबली मटर 1/2 कप
उबली गाजर 1/2 कप
बारीक कटा प्याज 1
बारीक कटी हरी मिर्च 4
जीरा 1 टीस्पून
नमक 1 टीस्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
चीज क्यूब्स 2
तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में

विधि
बाजरे के आटे में चीज क्यूब्स और तेल को छोड़कर सभी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें. चीज क्यूब्स को किसकर 6 बॉल्स तैयार कर लें. अब तैयार मिश्रण में से 1 टेबलस्पून मिश्रण लेकर हथेली पर फैलाएं और चीज बॉल को रखकर अच्छी तरह बंद कर दें. इसी प्रकार सारे बॉल्स तैयार कर लें. अब इन्हें मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें.टोमेटो सॉस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

पगली: आखिर क्यूं महिमा अपने पति पर शक करती थी- भाग 2

अंजलि अपनी विधवा मां के साथ 3 कमरों के फ्लैट में रहती थी. उस का इकलौता बड़ा भाई अमेरिका में 5 साल पहले जा कर बस गया था. मां को बेसहारा हालत में न छोड़ने के इरादे से उस ने शादी न करने का फैसला किया था.

महिमा उस से शाम को मिलने आएगी, फोन पर सौरभ से यह जानकर उसे कुछ हैरानी तो हुई, पर आत्मविश्वास का स्तर ऊंचा होने के कारण वह परेशान या चिंतित नहीं हुई.

उस शाम अंजलि और महिमा का पहली बार आमनासामना हुआ. दोनों ही औसत से ज्यादा खूबसूरत स्त्रियां थीं. महिमा खुल कर मुसकरा रही थी और अंजलि से गले लग कर मिली. दूसरी तरफ अंजलि जरा गंभीर बनी उसे आंखों से नापतोल ज्यादा रही थी.

कुछ देर उन के बीच औपचारिक सी बातें हुईं. उम्र में बड़ी अंजलि ने ही ज्यादा सवाल पूछे और महिमा प्रसन्न अंदाज में उन के जवाब देती रही.

फिर महिमा उठ कर रसोई में पहुंच गई. वहां अंजलि की मां सावित्री उन सब के लिए चायनाश्ता तैयार कर रही थीं.

काम में सावित्री का हाथ बंटाने के साथसाथ महिमा उन से उन के सुखदुख की ढेर सारी बातें भी करती जा रही थी. शुरू में खिंचाव सा महसूस कर रही सावित्री, महिमा के अपनत्व और व्यवहार के कारण जल्दी खुल कर उस से हंसनेबोलने लगीं.

 

करीब 20 मिनट बाद गरमागरम पकौड़े प्लेट

में रख कर महिमा अकेली ड्राइंगरूम में लौटी, तो सौरभ और अंजलि ?ाटके से चुप हो गए.

प्लेट को मेज पर रखने के बाद महिमा ने अपना पर्र्स खोल कर गिफ्ट पेपर में लिपटा छोटा सा बौक्स निकाला और उसे अंजलि को पकड़ाते हुए बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘दीदी, आप भी इन के दिल में रहती हैं और इस कारण मेरी जिंदगी में भी आप की जगह खास हो गई है. हमारे संबंध मधुर रहें, इस कामना के साथ यह छोटा सा गिफ्ट मैं आप को दे रही हूं.’’

‘‘थैंक यू, महिमा,’’ गिफ्ट लेने के बाद अंजलि ने गंभीर लहजे में धन्यवाद दिया, ‘‘बिलकुल रहेंगे,’’ अंजलि की आंखों में हल्की बेचैनी के भाव उभरे.

‘‘इन्हें मैं आप से दूर करने की कोशिश नहीं करूंगी और आप मु?ो इन से.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मेरा जब दिल करे तब क्या मैं आप से मिलने अकेली आ जाया करूं?’’

‘‘मैं तो बहुत व्यस्त रहती हूं, महिमा छुट्टी वाले दिन…’’

‘‘आप व्यस्त रहती हैं, तो कोई बात नहीं मैं आंटी से मिलने आ जाया करूंगी. इस घर में मेरा मन बड़ा प्रेम और अपनापन सा महसूस कर रहा है,’’ महिमा ने खड़े हो कर कमरे में आई सावित्री के हाथ से पहले चाय की ट्रे ले कर मेज पर रखी और फिर उन्हें जोर से गले लगा लिया.

महिमा के खुले व्यवहार ने धीरेधीरे इन मांबेटी के होंठों की मुसकान उड़ा दी. सौरभ की पत्नी उन से इतने प्यार व आदरसम्मान के साथ पेश आए, यह बात न उन्हें सम?ा आ रही थी, न हजम हो रही थी. अजीब सी उल?ान का शिकार बना सौरभ भी अधिकतर चुप रहा.

विदा के समय सावित्री ने महिमा को एक खूबसूरत व कीमती साड़ी उपहार में दी. वह साड़ी देख कर बच्चे की तरह खुश हो गई, ‘‘अगली बार यही सुंदर साड़ी पहन कर मैं यहां आऊंगी और हम डिनर के लिए भी रुकेंगे, आंटी. मैं चाहती हूं कि आप मु?ो अपनी छोटी बेटी सम?ा कर खूब प्यार दें,’’ सावित्री के कई बार गले लग कर महिमा ने विदा ली.

अंजलि का हाथ पकड़ कर महिमा ने उस से

कहा, ‘‘दीदी, आप बे?ि?ाक हो कर हमारे घर आनाजाना शुरू कर दो. मम्मीपापा को मैं सम?ा लूंगी और दुनिया वालों के कुछ कहने की फिक्र मैं ने आज तक नहीं करी है और आप भी मत करना.’’

‘‘मैं आऊंगी,’’ जबरदस्ती मुसकराने के बाद अंजलि अपनी कनपटियां मसलने लगी क्योंकि पिछले घंटेभर से उस का ‘माइग्रेन’ का दर्द तेजी से बढ़ता जा रहा था.

पहली मुलाकात में महिमा ने एक शब्द भी अंजलि की शान के खिलाफ मुंह से नहीं निकाला, पर अपने पीछे वह अपनी इस ‘दीदी’ के मन में चिड़, गुस्से व कड़वाहट के भाव छोड़ गई.

सावित्री को लगा कि महिमा बेहद बातूनी पर सीधी और दिल की अच्छी लड़की है. लौटते हुए सौरभ ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस करी. उसे लगा रहा था कि उस की प्रेमिका और पत्नी वास्तव में एकदूसरे को पसंद करती हैं और उन के बीच अच्छी दोस्ती के संबंध जरूर कायम हो जाएंगे.

उस रात महिमा बहुत रोमांटिक मूड में थी. उस ने बड़े जोशीले अंदाज में सौरभ को प्यार करना शुरू किया.

‘‘एक बात बताओ,’’ सौरभ ने कुछ पलों के लिए उस की शरारती हरकतों को रोक कर पूछा, ‘‘क्या तुम ने अंजलि को अपनी एक अच्छी फ्रैंड के रूप में स्वीकार कर लिया है?’’

‘‘कर लिया है… आप की खुशी की खातिर कर लिया है,’’ महिमा ने उठ कर उस का माथा चूम लिया.

‘‘मेरी खुशी की बात छोड़ो. क्या वैसे वह तुम्हें अच्छी लगी है?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘मैं हैरान हूं यह देख कर कि तुम ने कितनी आसानी से हमारे रिश्ते को स्वीकार कर लिया है.’’

‘‘तुम्हारी खुशी की खातिर मैं कुछ भी सहन कर सकती हूं.’’

‘‘मेरी खुशी को बीच में मत लाओ. वैसे तुम्हारे मन के भाव क्या हैं अंजलि और मेरे रिश्ते के बारे में?’’

‘‘मेरा दिल तो कहता है कि तुम्हारी जान ले लूं,’’ महिमा के हाथ उस के गले के इर्दगिर्द हलके से कसे और आंखों में अचानक आंसू छलक आए, ‘‘लेकिन मेरे

मुंह से शिकायत का एक शब्द भी कभी निकल जाए, तो लानत है मु?ा पर. मैं तुम्हारे प्रेम में पागल हूं, सौरभ… माई डार्लिंग… माई स्वीटहार्ट… माई लव.’’

महिमा बेतहाशा उस के चेहरे पर चुंबन अंकित करने लगी. सौरभ ने भावुक हो कर उसे ‘आई एम सौरी’ कईर् बार कहना चाहा, पर महिमा के प्यार की तीव्रता के आगे ये 3 शब्द उस के गले से बाहर नहीं आ पाए.

अंजलि का प्लैट ज्यादा दूर नहीं था पर महिमा रोज नहीं जाती. अंजलि से उस की मुलाकात सौरभ, उस की जिद के कारण रात को कराता और सप्ताह में 2-3 बार महिमा उस के साथ भी अंजलि के घर जाती.

अपने सासससुर व ननद के सामने वह अंजलि के बारे में बात करने से जरा भी नहीं हिचकिचाती. सौरभ की उपस्थिति में भी उसे ऐसी चर्चा छेड़ने से परहेज नहीं था.

अपनी सास द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में महिमा ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मम्मी, अंजलि की बातें खुल कर करने

से मेरा मन हलका रहता है. अगर मैं सब बातें दबाने लगूं, तो मेरे मन में आप के बेटे व

अंजलि दोनों के प्रति गुस्से व नफरत के भाव बहुत बढ़ जाएंगे.’’

‘‘पता नहीं तुम कैसे उस चालाक, चरित्रहीन औरत से मिलने चली जाती हो. मैं तुम्हारी जगह होती, तो न कभी खुद उस से मिलती, न सौरभ को मिलने देती,’’ उस की सास का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा था.

‘‘मम्मी, मैं जो कर रही हूं, वह आप के बेटे के हित व खुशियों को ध्यान में रख कर कर रही हूं,’’ महिमा के होंठों पर उभरी रहस्यमयी सी मुसकान उस की सास को उल?ान का शिकार बना गईर्.

औरत एक पहेली: संदीप और विनीता के बीच कैसी थी दोस्ती

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