story in hindi
story in hindi
सवाल
मेरी उम्र 70 साल है. पायरिया की वजह से मेरा एक दांत हिलने लगा और बाद में निकल गया. अब मुझे खाना खाने में परेशानी होती है. क्या नया दांत लगाया जा सकता है?
जवाब
जी हां, नया दांत 2 प्रकार से प्रतिस्थापित किया जा सकता है- रिमूवेबल पार्शियल डेंचर या फिक्स्ड प्रौस्थीसिस रिमूवेबल डैंचर प्लेट के साथ होता है जो अंदर की ओर से कवर करती है. इसे हर खाने के बाद निकाल कर साफ कर पहनना होता है व रात को उतार कर सोते हैं. फिक्स दांत ब्रिज या इंप्लांट की मदद से लगा सकते हैं. ब्रिज में 2 या अधिक स्वस्थ दांतों का सहारा ले कर एक प्रोस्थेटिक पुल प्रत्यारोपित करते हैं. डैंटल इंप्लांट एक कृत्रिम रूट है जिस की मदद से फिक्स दांत लगा सकते हैं.
नये साल में हर कोई भीड़ से अलग अपने अंदाज में सजना पसंद करता है. नए साल के जश्न को मनाने के लिए वेस्टर्न आउटफिट पहनना जरुरी नहीं. असल में कुछ लोगों को लगता है कि इंडियन आउटफिट उन्हें बोरिंग और देसी टाइप फील कराती है, लेकिन अगर आपने इंडियन आउटफिट को अच्छी तरह से कैरी किया है, तो सबकी नजर आपके परिधान से हटाना मुश्किल है. इस बारें में अविश्य डौट कौम के हैंडलूम एक्सपर्ट जवाहर सिंह बताते है कि वो दिन गए जब साड़ी को इंडियन ट्रेडिशनल ड्रेस में गिना जाता था. समय के साथ-साथ उसके पहनने के तरीके, स्टाइल,रंग और उसके मेकिंग में डिजाइनरों ने काफी परिवर्तन किया है. साड़ी को कई अलग अंदाज में भी पहना जा सकता है, यह आपको देसी दिवा का लुक दे सकती है.
1. घाघरा के साथ लेयर
घाघरा के ऊपर साड़ी की एक लेयर बनाकर पहनने से ये फैंसी फ्यूजन साड़ी लुक नए साल के लिए बहुत ही आकर्षक लगती है. इसके लिए आप सिर्फ एक घाघरा ट्रंक से निकाले या खरीद लें. साड़ी को पल्लू के रूप में कमर के चारों तरफ से घुमाकर एडजस्ट करें और पिन से सेट कर लें.
2. इंडो वेस्टर्न धोती पेंट स्टाइल
इसे बोहेमियन ट्विस्ट के साथ अलग लुक दिया जा सकता है. इस स्टाइल को कैरी करना बहुत आसान होता है, इसके लिए मौडर्न लुक की एक साड़ी, धोती पैंट और एक क्रौप टाप की जरुरत होती है, साड़ी को धोती पैंट के इर्द-गिर्द घुमाकर सेंटर में लायें और प्लीट्स बनाकर अच्छी तरह से खोस लें, अधिक आकर्षक बनांने के लिए एक पतली बेल्ट कमर के चारों ओर बाँध लें.
3. पहने स्ट्रक्चर्ड ड्रेस
अगर आप पूरी तरह से एथनिक वियर नहीं पहनना चाहते है तो निराश होने की कोई जरुरत नहीं, बाजार में कुछ ऐसे बने बनाये डिजाइनर ड्रेस मिल जाते है जिसे आप आसानी से पहन सकती है. इसे अलग लुक देने के लिए फिटेड पैंट्स और हाफ साड़ी का सहारा ले सकती है, इसके अलावा मेटेलिक बेल्ट की सहायता से इसे एक्स्ट्रा स्टाइलिस्ट बना सकती है.
4. क्रौप टाप स्टाइल अपनाए
क्रौप टाप आजकल बहुत प्रसिद्ध है,साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज पहनने का रिवाज अब कम हो चुका है,ऐसे में क्रौप टाप ट्विस्ट के साथ साड़ी पहनने से ड्रेस का लुक पूरी तरह से बदल जाता है, ब्लैक कलर की क्रौप टाप हर साड़ी के साथ अलग-अलग ढंग से पहना जा सकता है, इसके साथ कम से कम एक्सेसरीज का उपयोग करें.
5. दे अलग अंदाज नेहरु जैकेट के साथ
नेहरु जैकेट हर तरह के परिधान के साथ जैसे कि वेस्टर्न हो या इंडियन हर किसी के साथ नया लुक देती है. इसे साड़ी पहनने के बाद में या पहले किसी भी तरह से पहन सकती है, जाड़े के मौसम में इस स्टाइल को अपनाना अधिक उपयोगी होता है, अगर आप नेहरु जैकेट नहीं पहनना चाहती हैं तो कौलर वाले किसी शर्ट को भी पहनकर एक अलग लुक दे सकती है.
6. स्किनी जीन्स साड़ी ड्रेप
अगर आप कुछ अलग तरह की करना चाहती है तो अपने स्किनी जींस के साथ कंट्रास्ट साड़ी ले और जींस के उपर ड्रैप करें.
7. बेल्ट स्टाइल
नार्मल तरीके से साड़ी पहनने के बाद इसके उपर कमरबंद या बेल्ट का प्रयोग कर नया लुक दें.
8. नैक ड्रैप स्टाइल
इसके लिए साड़ी के पल्लू को गर्दन के चारो तरफ स्कार्फ के रूप में लपेट लें,ऐसी परिधान सर्दी के मौसम में काफी लाभदायक होता है, इस स्टाइल के लिए पल्लू को थोडा लम्बा रखना पड़ता है,इसके अलावा इस स्टाइल में स्कार्फ का भी प्रयोग किया जा सकता है.
9. मुमताज स्टाइल
ये स्टाइल रेट्रो जमाने का है,जिसमें अभिनेत्री मुमताज की फिल्म ‘राम और श्याम’ की साड़ी स्टाइल को कौपी किया जाता है,इसमें साड़ी के कई लेयर्स बनाकर अलग लुक दिया जाता है,ये देखने में आकर्षक होने के साथ-साथ ग्लैमरस भी होती है.
10. फ्रंट पल्लू स्टाइल
इसमें पल्लू को लेफ्ट में लेने के बजाय पीछे से लेकर राईट कंधे पर लिया जाता है.
11. मरमेड स्टाइल
इसमें लोअर पार्ट में प्लीट्स अधिक दिया जाता है, जिसका लुक मरमेड की पूंछ की तरह होता है,इसे पहनना कठिन है,पर अधिक टक्स और प्लीट्स के द्वारा इसे पहना जा सकता है.
12. पैंट स्टाइल
ये आसान,आरामदायक और अधिक फैशनेबल पहनावा नए साल के लिए अधिक उपयुक्त होता है,इसे कोई भी आसानी से कैरी कर सकता है.
नए साल का मतलब केवल पार्टी, धूमधड़ाका और कैलेंडर बदलना भर नहीं होता. नए साल से नई शुरुआत होती है. जीवन समय की गणना नए साल से होती है. नए साल में ही जन्मदिन आता है. नए साल के अवसर पर पार्टी, धूमधड़ाका और शुभकामनाओं की शुरुआत के साथ हम कुछ न कुछ ऐसा संकल्प लें जो केवल हमारे भविष्य के लिए ही अच्छा न हो, बल्कि हम समाज को कुछ अलग दे भी सकें.
देश में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है. दुनियाभर की बात करें तो सब से अधिक युवा हमारे देश में हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. युवा देश की सब से बड़ी ताकत हैं. इस के बाद भी युवाओं की ऊर्जा का सही प्रयोग नहीं किया जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि युवाओं को खुद अपना रास्ता तय करना चाहिए. नए संकल्प से युवा एक बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं.
आज के दौर में युवाओं के लिए नौकरियों के अवसर बदल रहे हैं. केवल पढ़ाई कर के सरकारी नौकरी के बल पर आगे बढ़ने का साधन सीमित रह गया है. युवाओं की मुख्य परेशानी यह है कि वे खुद को काबिल नहीं बनाना चाहते. वे जल्दी से जल्दी नौकरी हासिल कर के अपने सुखद भविष्य का सपना देखते रहते हैं.
हाल के कुछ सालों को देखें तो युवाओं में नौकरियों के लिए चाहत बढ़ रही है. इस कारण ही वे आरक्षण का विरोध, नौकरियों के लिए धरनाप्रदर्शन, सबकुछ करने को तैयार रहते हैं. नौकरियों की चाहत के चलते युवाओं को तरहतरह के शोषण का शिकार होना पड़ता है. ऐसे में अगर युवा अपने कैरियर की दिशा पहले से ही तय कर लें तो बेहतर रहता है. नए साल के संकल्प ऐसे में बहुत काम के होंगे.
निफ्ट यानी नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही आशा दीक्षित कहती हैं कि आज के समय में फैशन डिजाइनिंग की डिमांड बहुत बढ़ रही है. नौकरियों से अलग लोग अपने ब्रैंड शुरू कर रहे हैं. इस के जरिए युवा अपने कैरियर को जल्द ही एक पहचान दिला पा रहे हैं. हम केवल खुद का नाम ही नहीं रोशन कर रहे, तमाम लोगों को नौकरियां भी दे रहे हैं. नए फैशन ब्रैंड का ही प्रभाव है कि आज के समय में बड़ेबड़े फैशन ब्रैंड तक बजट के अंदर अपने डिजाइन सैल करने को मजबूर हो रहे हैं. पहले यही डिजाइनर केवल बड़े फिल्मस्टार और बिजनैस सैलिब्रिटी के लिए ही कपड़े डिजाइन करते थे. तब इन की कीमत भी बहुत होती थी. युवा डिजाइनरों के आने से आज यह बदलाव हुआ है कि कम बजट में भी लोग डिजाइनर वियर पहन रहे हैं. एक डिजाइनर के रूप में उन का संकल्प है कि वे छोटेबड़े हर बजट के डिजाइन तैयार करें.
आशा दीक्षित आगे कहती हैं, ‘‘आज के युवा पहले से अधिक सामाजिक होते जा रहे हैं. वे अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को भी समझ रहे हैं. पढ़ाई के साथ उन का प्रयास होता है कि वे दूसरे बच्चों को भी शिक्षा दे सकें. मैं भी ऐसे लोगों को खासकर अपनी उम्र के लड़केलड़कियों को फैशन का मतलब समझाना चाहती हूं जिस से कि वे भी नए दौर के साथ खुद को अपडेट रख सकें. शिक्षा के जरिए ही युवाओं को अपडेट रखना चाहती हूं.
‘‘मेरा प्रयास यह होगा कि मैं अपनी पहचान से अपने परिवार को गर्व करने लायक कुछ दे सकूं. मेरे परिवार में लड़कालड़की का कोई भेदभाव नहीं है. यही मैं हर घर में होते देखना चाहती हूं. बच्चे पेरैंट्स के साथ अपने ग्रैंड पेरैंट्स को भी महत्त्व दें, उन के साथ सामंजस्य बना कर रखें, यह संकल्प नए साल में हमें लेना है. इस से बच्चों को ग्रैंड पेरैंट्स के अनुभवों का लाभ मिल सकता है. ग्रैंड पेरैंट्स को भी खालीपन नहीं लगेगा. उन के अनुभव और युवाओं की सोच नई राह दिखा सकते हैं.’’
2. लोगों को जागरूक करना
मौडलिंग के क्षेत्र में अपना कैरियर संवार रही संजना मिश्रा कहती हैं, ‘‘मौडलिंग और ऐक्ंिटग के क्षेत्र में कदम रखने से पहले मैं ने यह सोच लिया कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं? यह मैं ने अपने बायोडाटा पर साफ लिख भी दिया है. आमतौर पर इस फील्ड में आने वाली लड़कियों में इस बात को ले कर कंफ्यूजन रहता है कि वे क्या करें और क्या न करें? इस का लाभ दूसरे लोग उठा कर बरगलाते हैं.’’ संजना साल 2015 में मिस यूपी रनरअप, मिस मौडल 2016 विनर रही हैं. ब्यूटीफुल स्माइल और ‘चार्मिंग फेस’ जैसे अवार्ड भी हासिल किए. इस के बाद प्रिंट शूट और रैंप शो भी किए. कई कार्यक्रमों में ऐंकर की भूमिका निभा चुकी संजना अपने नए साल के संकल्प को ले कर कहती है कि उन्हें अपने काम पर फोकस करना है जिस गति से उन्होंने अपने काम को आगे बढ़ाया है उसे और आगे ले जाना है.
संजना कहती हैं, ‘‘मैं अपने क्षेत्र में काम करने वाली लड़कियों को जागरूक करना चाहती हूं ताकि वे पूरी तैयारी के साथ यहां आएं. फैशन की दुनिया में खराबी नहीं है. यहां आने वाले को तय करना होता है कि वह अपनी मेहनत से आगे बढ़ना चाहता है या शौर्टकट रास्ते से. शौर्टकट रास्ते में शुरुआती सफलता दिखती है पर यह चमक चार दिन की होती है. कई बार इस में उलझ कर लोग सबकुछ खत्म कर बैठते हैं. ऐसे में अपनी मेहनत से आगे बढ़ें, यही सब से मजबूत रास्ता होता है.
‘‘आज के समय में फैशन का क्षेत्र बहुत बढ़ा हुआ है. फिल्मों में वैब सीरीज का चलन बढ़ा है. टीवी में ऐक्ंिटग की जरूरतें बढ़ी हैं. रैंप शो और डिजाइनर शूट बढ़ गए हैं. ऐसे में, यह कैरियर पहचान और पैसा दोनों दिलाने में सक्षम है.’’
3. अलग पहचान बनाने का संकल्प
फैशन के क्षेत्र में ही कैरियर बना चुकी साक्षी शिवानंद कहती हैं, ‘‘मैं पढ़ाई और ऐक्टिंग एकसाथ करना चाहती हूं. मेरा फोकस फैशन शो के अलावा ऐक्ंिटग पर है. मेरा संकल्प है कि मैं अपने कैरियर में ऐक्टिंग को आगे बढ़ाऊं. छोटे शहरों में फैशन फील्ड को ले कर रूढि़वादी सोच हावी रहती है. हमें इस से बाहर निकलना है. तभी हम कुछ नया सोच सकते हैं. छोटे शहरों की लड़कियां भी किसी से पीछे नहीं हैं, यह साबित करने का संकल्प इस साल लेना है. मैं छोटे शहरों की लड़कियों को मैसेज देना चाहती हूं कि जब वे फैशन के फील्ड में आएं तो सारे हालात को समझ कर आएं. जिस से उन के सामने असहज हालात न बनें. लड़कियों के साथ उन के पेरैंट्स को भी यह समझ लेना चाहिए. अगर पेरैंट्स समझ लेंगे तो वे अपने बच्चों के सही फैसलों में साथ खड़े होंगे और गलत फैसलों में उन को राह दिखाएंगे.’’
अंशिका वर्मा शेफ बनना चाहती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मेरा संकल्प है कि इस साल हर माह में एक नई डिश पर काम करूं और उस को नए रूप में सामने लाऊं. आज के समय में लड़कियों के सामने कई अवसर मौजूद हैं. वे खुद की पहचान बना सकती हैं. पेरैंट्स भी आजकल जागरूक हैं. वे बच्चों की उम्मीदों का खयाल रखते हुए उन को सहयोग करते हैं. ऐसे में बच्चों की भी जिम्मेदारी है कि वे पेरैंट्स की उम्मीदों को तोड़ें नहीं. किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए मेहनत के साथ नए इनोवेशन की जरूरत होती है. ऐसे में युवाओं का ज्ञान बढ़ाना चाहिए. आज के समय में युवाओं में सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ गया है. सोशल मीडिया का अपना एक दायरा है. यह सूचना क्रांति का दौर है. सोशल मीडिया का प्रयोग सूचनाओं के आदानप्रदान तक ठीक है. नए प्रयोगों, जानकारियों और विचारों के लिए पढ़ना व समझना जरूरी होता है, तभी आगे बढ़ा जा सकता है.’’
अंशिका आगे कहती है, ‘‘नए साल में हमारा संकल्प है कि हम अपने विचारों के आदानप्रदान के लिए पढ़ना शुरू करें. किसी भी विषय में बिना तर्क के उस का अनुसरण नहीं करना चाहिए. सोशल मीडिया तर्क से बचता है और अफवाहों को फैलाता है, ऐसे में अपने तर्कसंगत विचारों के साथ किसी घटना को हम समझेंगे तो अफवाहों के दौर से बाहर निकल सकेंगे.’’
यह सच है कि आज हर कोई युवाओं को केवल सोशल मीडिया के प्रचार से भरमाना चाहता है. ऐसे में जरूरी है कि युवा अफवाहों से बचें और तर्कसंगत विचारों के साथ आगे बढ़ें.
कितना क्षणिक है मानव जीवन. अगर मनुष्य जीवन का यह सार जान ले तो व्यर्थ की पीड़ा, द्वेष में अपने आज का सुखचैन न गंवाए. कितनी चिंता रहती थी वीना को अपने घर की, बच्चों की. लेकिन न वह, न कोई और जानता था कि जिस कल की वह चिंता कर रही है वह कल उस के सामने आएगा ही नहीं.
घर में मरघट सी चुप्पी थी. सबकुछ समाप्त हो चुका था. अभी कुछ पल पहले जो थी, अब वो नहीं थी. कुछ भी तो नहीं हुआ था, उसे. बस, जरा सा दिल घबराया और कहानी खत्म.
‘‘क्या हो गया बीना को?’’
‘‘अरे, अभी तो भलीचंगी थी?’’
सब के होंठों पर यही वाक्य थे.
जाने वाली मेरी प्यारी सखी थी और एक बहुत अच्छी इनसान भी. न कोई तकलीफ, न कोई बीमारी. कल शाम ही तो हम बाजार से लंबीचौड़ी खरीदारी कर के लौटे थे.
बीना के बच्चे मुझे देख दहाड़े मार कर रोने लगे. बस, गले से लगे बच्चों को मैं मात्र थपक ही रही थी, शब्द कहां थे मेरे पास. जो उन्होंने खो दिया था उस की भरपाई मेरे शब्द भला कैसे कर सकते थे?
इनसान कितना खोखला, कितना गरीब है कि जरूरत पड़ने पर शब्द भी हाथ छुड़ा लेते हैं. ऐसा नहीं कि सांत्वना देने वाले के पास सदा ही शब्दों का अभाव होता है, मगर यह भी सच है कि जहां रिश्ता ज्यादा गहरा हो वहां शब्द मौन ही रहते हैं, क्योंकि पीड़ा और व्यथा नापीतोली जो नहीं होती.
‘‘हाय री बीना, तू क्यों चली गई? तेरी जगह मुझे मौत आ जाती. मुझ बुढि़या की जरूरत नहीं थी यहां…मेरे बेटे का घर उजाड़ कर कहां चली गई री बीना…अरे, बेचारा न आगे का रहा न पीछे का. इस उम्र में इसे अब कौन लड़की देगा?’’
दोनों बच्चे अभीअभी आईं अपनी दादी का यह विलाप सुन कर स्तब्ध रह गए. कभी मेरा मुंह देखते और कभी अपने पिता का. छोटा भाई और उस की पत्नी भी साथ थे. वो भी क्या कहते. बच्चे चाचाचाची से मिल कर बिलखने लगे. शव को नहलाने का समय आ गया. सभी कमरे से बाहर चले गए. कपड़ा हटाया तो मेरी संपूर्ण चेतना हिल गई. बीना उन्हीं कपड़ों में थीं जो कल बाजार जाते हुए पहने थी.
‘अरे, इस नई साड़ी की बारी ही नहीं आ रही…आज चाहे बारिश आए या आंधी, अब तुम यह मत कह देना कि इतनी सुंदर साड़ी मत पहनो कहीं रिकशे में न फंस जाए…गाड़ी हमारे पास है नहीं और इन के साथ जाने का कहीं कोई प्रोग्राम नहीं बनता.
‘मेरे तो प्राण इस साड़ी में ही अटके हैं. आज मुझे यही पहननी है.’
हंस दी थी मैं. सिल्क की गुलाबी साड़ी पहन कर इतनी लंबीचौड़ी खरीदारी में उस के खराब होने के पूरेपूरे आसार थे.
‘भई, मरजी है तुम्हारी.’
‘नहीं पहनूं क्या?’ अगले पल बीना खुद ही बोली थी, ‘वैसे तो मुझे इसे नहीं पहनना चाहिए…चौड़े बाजार में तो कीचड़ भी बहुत होता है, कहीं कोई दाग लग गया तो…’
‘कोई सिंथेटिक साड़ी पहन लो न बाबा, क्यों इतनी सुंदर साड़ी का सत्यानास करने पर तुली हो…अगले हफ्ते मेरे घर किटी पार्टी है और उस में तुम मेहमान बन कर आने वाली हो, तब इसे पहन लेना.’
‘तब तो तुम्हारी रसोई मुझे संभालनी होगी, घीतेल का दाग लग गया तो.’
किस्सा यह कि गुलाबी साड़ी न पहन कर बीना ने वही साड़ी पहन ली थी जो अभी उस के शव पर थी. सच में गुलाबी साड़ी वह नहीं पहन पाई. दाहसंस्कार हो गया और धीरेधीरे चौथा और फिर तेरहवीं भी. मैं हर रोज वहां जाती रही. बीना द्वारा संजोया घर उस के बिना सूना और उदास था. ऐसा लगता जैसे कोई चुपचाप उठ कर चला गया है और उम्मीद सी लगती कि अभी रसोई से निकल कर बीना चली आएगी, बच्चों को चायनाश्ता पूछेगी, पढ़ने को कहेगी, टीवी बंद करने को कहेगी.
क्याक्या चिंता रहती थी बीना को, पल भर को भी अपना घर छोड़ना उसे कठिन लगता था. कहती कि मेरे बिना सब अस्तव्यस्त हो जाता है, और अब देखो, कितना समय हो गया, वहीं है वह घर और चल रहा है उस के बिना भी.
एक शाम बीना के पति हमारे घर चले आए. परेशान थे. कुछ रुपयों की जरूरत आ पड़ी थी उन्हें. बीना के मरने पर और उस के बाद आयागया इतना रहा कि पूरी तनख्वाह और कुछ उन के पास जो होगा सब समाप्त हो चुका था. अभी नई तनख्वाह आने में समय था.
मेरे पति ने मेरी तरफ देखा, सहसा मुझे याद आया कि अभी कुछ दिन पहले ही बीना ने मुझे बताया था कि उस के पास 20 हजार रुपए जमा हो चुके हैं जिन्हें वह बैंक में फिक्स डिपाजिट करना चाहती है. रो पड़ी मैं बीना की कही हुई बातों को याद कर, ‘मुझे किसी के आगे हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता. कम है तो कम खा लो न, सब्जी के पैसे नहीं हैं तो नमक से सूखी रोटी खा कर ऊपर से पानी पी लो. कितने लोग हैं जो रात में बिना रोटी खाए ही सो जाते हैं. कम से कम हमारी हालत उन से तो अच्छी है न.’
जमीन से जुड़ी थी बीना. मेरे लिए उस के पति की आंखों की पीड़ा असहनीय हो रही थी. घर कैसे चलता
है उन्होंने कभी मुड़ कर भी नहीं देखा था.
‘‘क्या सोच रही हो निशा?’’ मेरे पति ने कंधे पर हथेली रख मुझे झकझोरा. आंखें पोंछ ली मैं ने.
‘‘रुपए हैं आप के घर में भाई साहब, पूरे 20 हजार रुपए बीना ने जमा कर रखे थे. वह कभी किसी से कुछ मांगना नहीं चाहती थी न. शायद इसीलिए सब पहले से जमा कर रखा था उस ने. आप उस की अलमारी में देखिए, वहीं होंगे 20 हजार रुपए.’’
बीना के पति चीखचीख कर रोने लगे थे. पूरे 25 साल साथ रह कर भी वह अपनी पत्नी को उतना नहीं जान पाए थे जितना मैं पराई हो कर जानती थी. मेरे पति ने उन्हें किसी तरह संभाला, किसी तरह पानी पिला कर गले का आवेग शांत किया.
‘‘अभी कुछ दिन पहले ही सारा सामान मुझे और बेटे को दिखा रही थी. मैं ने पूछा था कि तुम कहीं जा रही हो क्या जो हम दोनों को सब समझा रही हो तो कहने लगी कि क्या पता मर ही जाऊं. कोई यह तो न कहे कि मरने वाली कंगली ही मर गई.
‘‘तब मुझे क्या पता था कि उस के कहे शब्द सच ही हो जाएंगे. उस के मरने के बाद भी मुझे कहीं नहीं जाना पड़ा. अपने दाहसंस्कार और कफन तक का सामान भी संजो रखा था उस ने.’’
बीना के पति तो चले गए और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी सोचती रही. जीवन कितना छोटा और क्षणिक है. अभी मैं हूं पर क्षण भर बाद भी रहूंगी या नहीं, कौन जाने. आज मेरी जबान चल रही है, आज मैं अच्छाबुरा, कड़वामीठा अपनी जीभ से टपका रही हूं, कौन जाने क्षण भर बाद मैं रहूं न रहूं. कौन जाने मेरे कौन से शब्द आखिरी शब्द हो जाने वाले हैं. मेरे द्वारा किया गया कौन सा कर्म आखिरी कर्म बन जाने वाला है, कौन जाने.
मौत एक शाश्वत सचाई है और इसे गाली जैसा न मान अगर कड़वे सत्य सा मान लूं तो हो सकता है मैं कोई भी अन्याय, कोई भी पाप करने से बच जाऊं. यही सच हर प्राणी पर लागू होता है. मैं आज हूं, कल रहूं न रहूं कौन जाने.
मेरे जीवन में भी ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं जिन्हें मैं कभी भूल नहीं पाती हूं. मेरे साथ चाहेअनचाहे जुड़े कुछ रिश्ते जो सदा कांटे से चुभते रहे हैं. कुछ ऐसे नाते जिन्होंने सदा अपमान ही किया है.
उन के शब्द मन में आक्रोश से उबलते रहते हैं, जिन से मिल कर सदा तनाव से भरती रही हूं. एकाएक सोचने लगी हूं कि मेरा जीवन इतना भी सस्ता नहीं है, जिसे तनाव और घृणा की भेंट चढ़ा दूं. कुदरत ने अच्छा पति, अच्छी संतान दी है जिस के लिए मैं उस की आभारी हूं.
इतना सब है तो थोड़ी सी कड़वाहट को झटक देना क्यों न श्रेयस्कर मान लूं. क्यों न हाथ झाड़ दूं तनाव से. क्यों न स्वयं को आक्रोश और तनाव से मुक्त कर लूं. जो मिला है उसी का सुख क्यों न मनाऊं, क्यों व्यर्थ पीड़ा में अपने सुखचैन का नाश करूं.
प्रकृति ने इतनी नेमतें प्रदान की हैं तो क्यों न जरा सी कड़वाहट भी सिरआंखों पर ले लूं, क्यों न क्षमा कर दूं उन्हें, जिन्होंने मुझ से कभी प्यार ही नहीं किया. और मैं ने उन्हें तत्काल क्षमा कर दिया, बिना एक भी क्षण गंवाए, क्योंकि जीवन क्षणिक है न. मैं अभी हूं, क्षण भर बाद रहूं न रहूं, ‘कौन जाने.’
रविवार के बाद आने वाला सोमवार अपने साथ सुस्ती, अरुचि, नीरसता जैसे कितने ही भाव ले कर आता है. इस का असर चेहरे पर साफ नजर आता है. नतीजतन खिला और निखरा चेहरा भी डल और मुरझाया दिखता है.
मंडे ब्लूज के इस इफैक्ट को कम करने के लिए आजमाइए मेकअप के न्यू रूल्स ताकि मंडे को भी आप का चेहरा तरोताजा नजर आए और आप न्यू मेकअप लुक के साथ औफिस जाने के लिए बेताब हो जाएं.
फुल मेकअप करने के बजाय आईलाइनर पर फोकस करें. इस के लिए जैट ब्लैक, डार्क ब्राउन या रौयल ब्लू शेड का आईलाइनर चुनें. अब आउटफिट से मेल खाता (ब्लैक, ब्राउन, ब्लू में से कोई एक) आईलाइनर आंखों की सिर्फ ऊपरी आईलिड पर थोड़ा चौड़ा लगाएं ताकि यह उभर कर नजर आए.
इसे और भी आकर्षक बनाने के लिए आईलाइनर के पिछले छोर को ऊपर की तरफ ले जा कर छोड़ दें. इसी तरह फिश स्टाइल आईलाइनर से भी आंखों को अट्रैक्टिव इफैक्ट दे सकती हैं. इस के लिए आंखों की ऊपरी आईलिड पर थिक आईलाइनर लगाएं और इन के छोर को ऊपर की तरफ ले जाएं.
अब निचली आई लिड के ठीक बीच से आईलाइनर लगाना शुरू करें और इसे छोर पर ले जा कर नीचे की तरफ मोड़ दें. इस आई मेकअप के साथ आईशैडो, मसकारा और डार्क लिपस्टिक लगाने से बचें वरना लुक गौडी नजर आ सकता है.
2. आईकैंडी आईशैडो
आईलाइनर के बजाय आईशैडो का इफैक्ट भी मंडे ब्लूज की डलनैस को कम कर सकता है, लेकिन तब जब आप सही आईशैडो के शेड के साथ उसे अप्लाई करने का भी सही तरीका अपनाएंगी. आईशैडो के लिए शैंपेन, ब्रौंज या व्हाइट शेड का चुनाव करें. इन दिनों ये तीनों ही शेड्स फैशन में हैं.
आईकैंडी लुक के लिए शैंपेन शेड का आईशैडो पलकों पर अप्लाई करें. अगर व्हाइट कलर का आईशैडो यूज करना चाहती हैं तो पूरी पलकों पर आईशैडो लगाने के बजाय ब्रश की सहायता से सिर्फ आंखों के दोनों पिछले छोरों पर लगाएं.
इस से आप की आंखों को व्हाइट इफैक्ट मिलेगा. इसी तरह ब्रौंज शेड आईशैडो को भी सिर्फ आंखों की पिछले छोरों पर ऊपर की तरह कोना निकालते हुए लगाएं. इस से आप की आंखें और भी आकर्षक नजर आएंगी. इस के बाद आईलाइनर, मसकारा या बोल्ड लिपस्टिक न लगाएं वरना लुक बिगड़ सकता है.
3. मसकारा मैजिक
अगर आप मिनिमल आई मेकअप करना चाहती हैं, तो आईशैडो और आईलाइनर के बजाय आई मेकअप के लिए सिर्फ मसकारे का इस्तेमाल करें. जी हां, आकर्षक लुक के लिए मसकारा भी काफी है. इस के लिए ब्लैक, ब्राउन, ब्लू या फिर ट्रांसपैरेंट शेड का मसकारा खरीद सकती हैं. आंखों के ऊपरी आईलैशेज पर मसकारा लगाते वक्त उन्हें ऊपर की तरफ कर्ल करें और निचली आईलैशेज पर मसकारा लगा कर नीचे की तरफ कर्ल करें.
इससे आप की पलकें घनी और आंखें आकर्षक नजर आएंगी. अगर आप की नैचुरल आईलैशेज की ग्रोथ बहुत कम है, तो आर्टिफिशियल आईलैशेज लगा कर भी मसकारा लगा सकती हैं. इस से लोगों की निगाहें आप की आंखों पर टिकी रहेंगी. मसकारे के साथ न्यूड शेड की लिपस्टिक आप को आकर्षक लुक देगी.
4. बोल्ड लिप कलर
आप चाहें तो आई मेकअप के बजाय लिप मेकअप को भी हाईलाइट कर सकती हैं. बोल्ड लुक के लिए ब्राइट शेड की लिपस्टिक चुनें जैसे ब्राइट औरेंज, ब्राइट पिंक, हौट रैड, मजैंटा आदि. ये शेड्स काफी अट्रैक्टिव नजर आते हैं.
परफैक्ट लिप मेकअप के लिए पहले होंठों पर मौइश्चराइजर लगाएं, फिर लिपलाइनर से आउटलाइन दें और फिर लिपस्टिक लगा लें. ग्लौसी के बजाय मैट टैक्स्चर वाली लिपस्टिक खरीदें. यह काफी स्टाइलिश नजर आती है.
यह जरूरी नहीं कि आप सिर्फ डार्क ऐंड बोल्ड शेड की लिपस्टिक लगा कर ही अपने लिप्स को हाईलाइट करें. लिपस्टिक के न्यूड शेड भी आप को सैक्सी लुक दे सकते हैं. इन्हें भी जरूर ट्राई करें.
5. लिक्विड फाउंडेशन
वीकैंड की थकावट के बाद त्वचा रूखी और मुरझाई सी नजर आती है. ऐसे में बेस मेकअप के लिए त्वचा पर पाउडर फाउंडेशन लगाने की भूल न करें वरना इस से आप का चेहरा और भी रूखा और पैची नजर आ सकता है.
फ्रैश लुक के लिए लिक्विड फाउंडेशन का चुनाव करें. यह चेहरे पर बहुत जल्दी और अच्छी तरह सैट हो जाता है और लंबे समय तक टिका भी रहता है.
6. ब्यूटीफुल ब्लशर
अगर आप आई और लिप मेकअप दोनों नहीं कर रही हैं, तो चीक मेकअप से भी आकर्षक लुक पा सकती हैं. चीक मेकअप को हाईलाइट करने के लिए पीच, पिंक, रोज, कोरल शेड का ब्लश औन खरीदें. लेकिन पाउडर के बजाय क्रीम बेस्ड ब्लशर लगाएं.
इस का इफैक्ट काफी फ्रैश नजर आता है, जबकि पाउडर ब्लशर से त्वचा रूखी नजर आती है. लेकिन ध्यान रहे अगर आप ब्लशर लगा रही हैं, तो डार्क लिपस्टिक और हैवी आईलाइनर न लगाएं.
7. स्मार्ट आइडियाज
मंडे ब्लूज से बचने के लिए सप्ताह की शुरुआत हौट और स्टाइलिश आउटफिट से करें जैसे वी नैक टौप, मिनी स्कर्ट, स्लीवलैस कुरती, स्किनी जींस आदि.
हैवी इयररिंग्स, लौंग नैकपीस, बिग रिंग और कफ में से किसी एक ज्वैलरी को अपना स्टाइल स्टेटमैंट बनाएं और मंडे ब्लूज को बीट करें.
फौर्मल फुटवियर के बजाय मंडे को हाई हील के सैक्सी सैंडल पहनें या फिर वैजेस भी ट्राई कर सकती हैं.
कोई भी स्टाललिश हेयरस्टाइल ले कर भी आप मंडे ब्लूज को मात दे सकती हैं जैसे हाई पोनी, हाई बन आदि.
रैग्यूलर लैदर या लैपटौप बैग के बजाय स्टाइलिश और ट्रैंडी हैंड बैग कैरी करें. मंडे ब्लूज खुदबखुद छूमंतर हो जाएगा.
आउटफिट से ले कर कोईर् भी न्यू ऐक्सैसरीज मंडे को पहनें. इस से औफिस जाने के लिए आप खुद ऐक्साइटेड रहेंगी.
नए साल का आरंभ आपसी रिश्तों को सुधारने का सब से अच्छा समय साबित हो सकता है. पुरानी पीढ़ी के पास अनुभव की कमी नहीं होती और नई पीढ़ी के पास ऊर्जा भरपूर होती है. अगर अनुभव और ऊर्जा का समावेश एक जगह पर हो जाए तो तरक्की पक्की हो जाती है. कई बार बाप और बेटे के बीच रिश्ते उतने अच्छे नहीं होते जितने दादा और पोते के बीच होते हैं. ऐसी ही दूरियां दूसरे रिश्तों में भी आ रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि नए साल पर परिवार के साथ ग्रैंड पार्टी करें. जिस में हर पीढ़ी के लोग शामिल हों. आमतौर पर पुरानी पीढ़ी ऐसी ग्रैंड पार्टी से दूर रहती है, इसलिए उस को पार्टी में जरूर शामिल करें.
बुढ़ापे में दादा के साथ थोड़ी बात कर उन के अनुभव के विषय में जानकारी ले ली जाए तो दादा का दिल खुश हो जाएगा. बुढ़ापे का खाली समय डिप्रैशन की भावना को जन्म देता है. अगर दादा और पोते के बीच संबंध बेहतर हों, पोते के पास दादा को देने के लिए कुछ समय हो तो दादा के अंदर डिप्रैशन का जन्म ही नहीं होगा. केवल दादा और पोते की ही बात नहीं है. मां और दादी के बीच भी बेटी एक कड़ी हो सकती है. पेरैंट्स और ग्रैंड पेरैंट्स के साथ नए साल की ग्रैंड पार्टी से पीढि़यों के बीच रिश्ते सुधारने में मदद मिलती है. पूरा परिवार सालभर नई एनर्जी को महसूस करेगा.
बीकौम कर रही नेहा बताती है, ‘‘मैं अपनी मम्मी से ज्यादा अपनी दादी के करीब हूं. वे मेरी बात ज्यादा अच्छे से समझ लेती हैं. वे मेरी बात को समझ कर मां को भी मेरी बात समझा देती हैं, जिस से मुझे अपने काम के लिए मम्मी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.’’
प्रेरणा की शादी तय हुई थी. प्रेरणा की मां के पास इतना समय नहीं था कि वे उसे कुछ अच्छे से समझा पातीं. प्रेरणा कहती है, ‘‘मेरी नानी ने मुझे ससुराल में रिश्ते निभाने के कुछ टिप्स दिए. मैं हैरान रह गई जब उन्होंने पति के साथ शारीरिक संबंधों को ले कर बहुत ही सहज तरीके से मुझे समझा दिया, इस से मेरी कई तरह की भ्रांतियां दूर हो गईं.’’
करीब होते हैं ग्रैंड पेरैंट्स
दादी के पास हर समस्या का समाधान होता है. हालांकि नई पीढ़ी की लड़कियों को लगता है कि वृद्ध दादी के पास उन की समस्या का समाधान कैसे होेसकता है. बेटियां तब आश्चर्यचकित रह जाती हैं जब दादी, मां के मुकाबले अधिक व्यावहारिक सलाह दे देती हैं. यही वजह है कि प्रचारप्रसार यानी विज्ञापनों की दुनिया में भी बेटी और दादी के रिश्तों को ले कर ज्यादा विज्ञापन बनते हैं. दादी की सलाह केवल सेहत और खानपान तक से ही जुड़ी नहीं रहती, वे रिश्तों को ले कर भी बहुत सटीक सलाह देती हैं.
असल में दादी और दादा, जिन को पुरानी पीढ़ी का मान कर दरकिनार कर दिया जाता है, वे आज भी मातापिता से ज्यादा आधुनिक सोच वाले होते हैं. दादी और दादा की पीढ़ी के पास समय अधिक होता है. उन के पास करने को ज्यादा काम नहीं होता. वे अपनी आधुनिक सोच किसी पर दिखाएं तो लोग उन का मजाक उड़ाते हैं. ऐसे में अगर बेटा या बेटी उन के पास कुछ समय गुजारते हैं तो उन्हें दोहरा लाभ होता है. एक तो वे लोग खुद में व्यस्त हो जाते हैं. उन को लगता है कि परिवार में उन की पूछ बनी हुई है. बेटा न सही, उस के बच्चे उन की सलाह तो ले रहे हैं. परिवार को यह लाभ मिलता है कि बेटे और बाप के बीच आईर् दूरी को कम करने के लिए एक सेतु मिल जाता है. ग्रैंड पेरैंट्स जब परिवार के साथ नए साल की पार्टी में शामिल होंगे तो उन का उत्साह बढ़ जाएगा. इस से परिवार के बीच सामंजस्यभरा माहौल बनेगा.
सब की रुचि का खयाल रखें
नए साल में तमाम तरह की पार्टियों का आयोजन होता है. ऐसे आयोजन को तैयार करते समय घर की पुरानी पीढ़ी को ध्यान में रखें, इस बात की जरूरत बड़े स्तर पर महसूस की जा रही है. यही वजह है कि अच्छी सोच वाले स्कूल अब ग्रैंड पेरैंट्स मीटिंग भी कराने लगे हैं, जिस में बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स के साथ आते हैं. बच्चों को अपनी कमी या समस्याएं मांबाप से साझा करने में संकोच होता है. वे ग्रैंड पेरैंट्स से बात को शेयर करने में हिचक का अनुभव नहीं करते. अगर नए साल में ग्रैंड पेरैंट्स के साथ पार्टी सैलिब्रेशन होगा तो उस की खुशियां पूरे साल घरपरिवार को नई ऊर्जा देती रहेंगी.
नए साल में सर्दी बहुत होती है, ऐसे में पार्टी का आयोजन करते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि दादादादी किस तरह से उस में हिस्सा लेंगे. उन के खाने, ड्रैस कोड से ले कर मनोरंजन तक के अलग इंतजाम करने जरूरी होंगे. पार्टी इस तरह की न हो कि दादादादी केवल कोने में बैठे नजर आएं. आप उन की रुचियों को देखते हुए आयोजन करें ताकि वे लोग भी शामिल हो सकें. पार्टी का असली मजा तभी आता है जब सभी सक्रियता से शामिल हों. परिवार के सभी लोगों का पार्टी में हिस्सा लेना संबंधों को नई ऊर्जा देता है. घरपरिवार के माहौल को बेहतर बनाने के लिए ऐसे उत्सव जरूरी हो जाते हैं.
सुधरेंगे रिश्ते, बदलेगा माहौल
आमतौर पर नए साल की पार्टी में घर के बुजुर्ग लोगों को हाशिए पर रखा जाता है. इस का प्रमुख कारण यह होता है कि नए साल की पार्टी में शराब और जुआ जैसी बुराइयों वाले आयोजन होते हैं. ऐसे में बुजुर्गों के बीच यह संभव नहीं होता. इस कारण उन को घर पर ही छोड़ दिया जाता है. जब नए साल की पार्टी में घर के बुजुर्गों को शामिल किया जाएगा तो पार्टी के आयोजन में शराब और जुआ जैसी चीजें बाहर हो जाएंगी, आपसी रिश्तों में ऊर्जा आएगी. कई बार घरपरिवार के विवाद भी ऐसे आयोजनों से खत्म हो जाते हैं. इसलिए नए साल की ग्रैंड पार्टी में ग्रैंड पेरैंट्स को जरूर शामिल करें. इस से रिश्ते सुधरेंगे और घरपरिवार का माहौल बदलेगा.
पीढि़यों में दूरी को कम करने के लिए पार्टी का अपना अहम रोल होता है. यह नए साल के जश्न से ले कर फैमिली आउटडोर डिनर कुछ भी हो सकता है. आज के समय में पुरानी पीढ़ी केवल सोच के आधार पर ही नहीं, पहनावे और फैशन के लिहाज से भी नईर् पीढ़ी का मुकाबला करने को तैयार है. पार्टियों में ऐसे लोगों को संगीत पर थिरकते देखा जा सकता है. कई बार नई पीढ़ी उन से पीछे रह जाती है. नई पीढ़ी की सोच अब बदल रही है. वह पुरानी पीढ़ी के बीच सामंजस्य बैठा कर चलती है. ऐसे में यह चलन बढ़ रहा है और यह चलन आपसी रिश्तों को मजबूत भी कर रहा है.
डाक्टर बन चुका गौरव अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहता था. उस के पिता चाहते थे कि वह रिश्तेदार की लड़की से शादी करे. वे लड़की भी पसंद कर चुके थे. बाप और बेटे के बीच विचारों का टकराव था. जिस के चलते गौरव शादी ही नहीं कर रहा था. ऐसे में गौरव के दादा ने पहल की और पिता को समझाया. जिस के बाद गौरव की शादी उस की पसंद की लड़की से हो गई. केवल शादी तक ही नहीं, गौरव के दादा ने शादी के बाद भी घरपरिवार, नातेरिश्तेदारों के बीच गौरव की पत्नी की ऐसी इमेज बना दी कि सभी उस की प्रशंसा करने लगे. ग्रैंड पेरैंट्स बच्चों के लिए बहुत जरूरी होते हैं. उन के बीच की कड़ी को जोड़ने के लिए नए साल की पार्टी जैसे अवसरों का लाभ उठाना चाहिए.
केवल कलैंडर का पन्ना बदलने या घड़ी की सूई की जगह बदलने से जीवन में खुशियां नहीं आतीं. जीवन में खुशियों को भरने के लिए सोच बदलने की जरूरत है. ऐसे आयोजन इस में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ग्रैंड पेरैंट्स के पास समय अधिक होता है. उन के समय का सदुपयोग करें और जीवन में नई ऊर्जा भरें. नए साल की शुरुआत की यह ऊर्जा पूरे साल बनी रहेगी.
ताकि रिश्तों में मिठास घुले
पार्टी किसी भी तरह की हो, उस से ऊर्जा मिलती ही है. परिवार के साथ नए साल की पार्टी में पूरे परिवार के लोग शामिल होंगे तो आपस में संबंध बेहतर होंगे. आमतौर पर नए साल की पार्टी को लोग अकेले सैलिबे्रट करना चाहते हैं. ऐसे में परिवार उपेक्षित रहते हैं. जिस से कई तरह की दूरियां आपस में पैदा हो सकती हैं. जब पूरा परिवार साथ रह कर पार्टी करेगा तो संबंध बेहतर होते हैं. खासकर हम ग्रैंड पेरैंट्स को इस में शामिल कर सकते हैं. एकसाथ कई पीढि़यां इस में तालमेल के साथ हिस्सा ले सकती हैं जो पूरे परिवार के लिए लाभकारी हो सकता है.
— रीना गुप्ता, समाजसेविका
पार्टी के नाम पर लोग कई तरह की बुराइयों के शिकार हो जाते है. केवल आदमी ही नहीं, औरतें भी पार्टी में शराब और जुए का शौक पूरा करती हैं. यह जीवन के लिए बहुत अच्छा नहीं होता. परिवार के साथ पार्टी करने से ऐसी बुरी आदतों से लोग बचे रहेंगे. परिवार के साथ होने से नशे और जुए जैसी आदतों से दूर रहेंगे. एकसाथ कई परिवार मिल कर भी ऐसे आयोजन कर सकते हैं. ऐसे में उस उम्र के लोगों में आपसी बातचीत से संबंध सुधरेंगे. पार्टी में परिवार के करीबी लोगों के शामिल होने से लोगों का एकदूसरे की रुचियों को समझना आसान हो जाता है.
— विनोद, बिजनैसमैन
दिसंबर का महीना था. किट्टी पार्टी इस बार रिया के घर थी. अपना हाऊजी का नंबर कटने पर भी किट्टी पार्टी की सब से उम्रदराज 55 वर्षीय मालिनी हमेशा की तरह नहीं चहकीं, तो बाकी 9 मैंबरों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे से पूछा कि आंटी को क्या हुआ है? फिर सब ने पता नहीं में अपनाअपना सिर हिला दिया. सब में सब से कम उम्र की सदस्या थी रिया. अत: उसी ने पूछा, ‘‘आंटी, आज क्या बात है? इतने नंबर कट रहे हैं आप के फिर भी आप चुप क्यों हैं?’’
फीकी हंसी हंसते हुए मालिनी ने कहा, ‘‘नहींनहीं, कोई बात नहीं है.’’
अंजलि ने आग्रह किया, ‘‘नहीं आंटी, कुछ तो है. बताओ न?’’
‘‘पवन ठीक है न?’’ मालिनी की खास सहेली अनीता ने पूछा.
‘‘हां, वह ठीक है. चलो पहले यह राउंड खत्म कर लेते हैं.’’
हाऊजी का पहला राउंड खत्म हुआ तो रिया ने पूछा, ‘‘अरे, आप लोगों का न्यू ईयर का क्या प्लान है?’’
सुमन ने कहा, ‘‘अभी तो कुछ नहीं, देखते हैं सोसायटी में कुछ होता है या नहीं.’’
नीता के पति विनोद सोसायटी की कमेटी के मैंबर थे. अत: उस ने कहा, ‘‘विनोद बता रहे थे कि इस बार कोई प्रोग्राम नहीं होगा, सब मैंबर्स की कुछ इशूज पर तनातनी चल रही है.’’ सारिका झुंझलाई, ‘‘उफ, कितना अच्छा प्रोग्राम होता था सोसायटी में… बाहर जाने का मन नहीं करता… उस दिन होटलों में बहुत वेटिंग होती है और ऊपर से बहुत महंगा भी पड़ता है. फिर जाओ भी तो बस खा कर लौट आओ. हो गया न्यू ईयर सैलिब्रेशन. बिलकुल मजा नहीं आता. सोसायटी में कोई प्रोग्राम होता है तो कितना अच्छा लगता है.’’
रिया ने फिर पूछा, ‘‘आंटी, आप का क्या प्लान है? पवन के पास जाएंगी?’’
‘‘मुश्किल है, अभी कुछ सोचा नहीं है.’’
हाऊजी के बाद सब ने 1-2 गेम्स और खेले, फिर सब खापी कर अपनेअपने घर आ गईं.मालिनी भी अपने घर आईं. कपड़े बदल कर चुपचाप बैड पर लेट गईं. सामने टंगी पति शेखर की तसवीर पर नजर पड़ी तो आंसुओं की नमी से आंखें धुंधलाती चली गईं…
शेखर को गए 7 साल हो गए हैं. हार्टअटैक में देखते ही देखते चल बसे थे. इकलौता बेटा पवन मुलुंड के इस टू बैडरूम के फ्लैट में साथ ही रहता था. उस के विवाह को तब 2 महीने ही हुए थे. जीवन तब सामान्य ढंग से चलने ही लगा था पर बहू नीतू अलग रहना चाहती थी. नीतू ने उन से कभी इस बारे में बात नहीं की थी पर पवन की बातों से मालिनी समझ गई थीं कि दोनों ही अलग रहना चाहते हैं. जबकि उन्होंने हमेशा नीतू को बेटी जैसा स्नेह दिया था. उस की गलतियों पर भी कभी टोका नहीं था. बेटी के सारे शौक नीतू को स्नेह दे कर ही पूरे करने चाहे थे.
पवन का औफिस अंधेरी में था. पवन ने कहा था, ‘‘मां, आनेजाने में थकान हो जाती है, इसलिए अंधेरी में ही एक फ्लैट खरीद कर वहां रहने की सोच रहा हूं.’’ मालिनी ने बस यही कहा था, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो. पर यह फ्लैट किराए पर देंगे तो सारा सामान ले कर जाना पड़ेगा.’’
‘‘क्यों मां, किराए पर क्यों देंगे? आप रहेंगी न यहां.’’
यह सुन मालिनी को तेज झटका लगा, ‘‘मैं यहां? अकेली?’’
‘‘मां, वहां तो वन बैडरूम घर ही खरीदूंगा. वहां घर बहुत महंगे हैं. आप यहां खुले घर में आराम से रहना… आप की कितनी जानपहचान है यहां… वहां तो आप इस उम्र में नए माहौल में बोर हो जाएंगी और फिर हम हर हफ्ते तो मिलने आते ही रहेंगे… आप भी बीचबीच में आती रहना.’’
मालिनी ने फिर कुछ नहीं कहा था. सारे आंसू मन के अंदर समेट लिए थे. प्रत्यक्षत: सामान्य बनी रही थीं. पवन फिर 2 महीने के अंदर ही चला गया था. जाने के नाम से नीतू का उत्साह देखते ही बनता था. मालिनी आर्थिक रूप से काफी संपन्न थीं. उच्चपदस्थ अधिकारी थे शेखर. उन्होंने एक दुकान खरीद कर किराए पर दी हुई थी, जिस के किराए से और बाकी मिली धनराशि से मालिनी का काम आराम से चल जाता था. मालिनी को छोड़ बेटाबहू अंधेरी शिफ्ट हो गए थे. मालिनी ने अपने दिल को अच्छी तरह समझा लिया था. यों भी वे काफी हिम्मती, शांत स्वभाव वाली महिला थीं. इस सोसायटी में 20 सालों से रह रही थीं. अच्छीखासी जानपहचान थी, सुशिक्षित थीं, हर उम्र के लोग उन्हें पसंद करते थे. अब खाली समय में वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी थीं. उन का अच्छा टाइम पास हो जाता था.
नीतू ने बेटे को जन्म दिया. पवन मालिनी को कुछ समय पहले ही आ कर ले गया था. नीतू के मातापिता तो विदेश में अपने बेटे के पास ही ज्यादा रहते थे. नन्हे यश की उन्होंने खूब अच्छी देखरेख की. यश 1 महीने का हुआ तो पवन उन्हें वापस छोड़ गया. यश को छोड़ कर जाते हुए उन का दिल भारी हो गया था. पर अब कुछ सालों से जो हो रहा था, उस से वे थकने लगी थीं. त्योहारों पर या किसी और मौके पर पवन उन्हें आ कर ले जाता था. वे भी खुशीखुशी चली जाती थीं. पर पवन के घर जाते ही किचन का सारा काम उन के कंधों पर डाल दोनों शौपिंग करने, अपने दोस्तों से मिलने निकल जाते. जातेजाते दोनों उन से कह चीजें बनाने की फरमाइश कर जाते. सारा सामान दिखा कर यश को भी उन के ही पास छोड़ जाते. यश को संभालते हुए सारे काम करते उन की हालत खराब हो जाती थी. काम खत्म होते ही पवन उन्हें उन के घर छोड़ जाता था. यहां भी वे अकेले ही सब करतीं. उन की वर्षों पुरानी मेड रजनी उन के दुखदर्द को समझती थी. उन की दिल से सेवा करती थी. इस दीवाली भी यही हुआ था. सारे दिन पकवान बना कर किचन में खड़ेखड़े मालिनी की हिम्मत जवाब दे गई तो नीतू ने रूखे धीमे स्वर में कहा पर उन्हें सुनाई दे गया था, ‘‘पवन, मां को आज ही छोड़ आओ. काम तो हो ही गया है. अब वहां अपने घर जा कर आराम कर लेंगी.’’
जब उन की कोख से जन्मा उन का इकलौता बेटा दीवाली की शाम उन्हें अकेले घर में छोड़ गया तो उन का मन पत्थर सा हो गया. सारे रिश्ते मोहमाया से लगने लगे… वे कब तक अपने ही बेटेबहू के हाथों मूर्ख बनती रहेंगी. अगर उन्हें मां की जरूरत नहीं है तो वे क्यों नहीं स्वीकार कर लेतीं कि उन का कोई नहीं है अब. वह तो सामने वाले फ्लैट में रहने वाली सारिका ने उन का ताला खुला देखा तो हैरान रह गई, ‘‘आंटी, आज आप यहां? पवन कहां है?’’ मालिनी बस इतना ही कह पाई, ‘‘अपने घर.’’ यह कह कर उन्होंने जैसे सारिका को देखा था, उस से सारिका को कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी. फिर वही उन की दीवाली की तैयारी कर घर को थोड़ा संवार गई थी. बाद में थाली में खाना लगा कर ले आई थी और उन्हें जबरदस्ती खिलाया था.
उस दिन का दर्द याद कर मालिनी की आंखें आज भी भर आई हैं और आज जब वे किट्टी के लिए तैयार हो रही थीं, तो पवन का फोन आया था, ‘‘मां, इस न्यू ईयर पर मेरे बौस और कुछ कुलीग्स डिनर र घर आएंगे, आप को लेने आऊंगा.’’दीवाली के बाद पवन ने आज फोन किया था. वे बीच में जब भी फोन कर बात करना चाहती थीं, पर पवन बहुत बिजी हूं मां, बाद में करूंगा, कह कर फोन काट देता था.
नीतू तो जौब भी नहीं करती थी. तब भी महीने 2 महीने में 1 बार बहुत औपचारिक सा फोन करती थी. अचानक फोन की आवाज से ही वे वर्तमान में लौट आईं. वे हैरान हुईं, नीतू का फोन था, ‘‘मां, नमस्ते. आप कैसी हैं?’’
‘‘ठीक हूं, तुम तीनों कैसे हो?’’
‘‘सब ठीक हैं, मां. आप को पवन ने बताया होगा 31 दिसंबर को कुछ मेहमान आ रहे हैं. 15-20 लोगों की पार्टी है, मां. आप 1 दिन पहले आ जाना. बहुत सारी चीजें बनानी हैं और आप को तो पता ही है मुझे कुकिंग की उतनी जानकारी नहीं है. आप का बनाया खाना सब को पसंद आता है, आप तैयार रहना, बाद में करती हूं फोन,’’ कह कर जब नीतू ने फोन काट दिया तो मालिनी जैसे होश में आईं कि बच्चे इतने चालाक, निर्मोही क्यों हो जाते हैं और वे भी अपनी ही मां के साथ? इतनी होशियारी? कोई यह नहीं पूछता कि वे कैसी हैं? अकेले कैसी रहती हैं? बस, अपने ही प्रोग्राम, अपनी ही बातें. बहू का क्या दोष जब बेटा ही इतना आत्मकेंद्रित हो गया. मालिनी ने एक ठंडी सांस भरी कि नहीं, अब वे स्वार्थी बेटे के हाथों की कठपुतली बन नहीं जीएंगी. पिछली बार बेटे के घरगृहस्थी के कामों में उन की कमर जवाब दे गई थी. 10 दिन लग गए थे कमरदर्द ठीक होने में. अब उतना काम नहीं होता उन से.
अगली किट्टी रेखा के घर थी. न्यू ईयर के सैलिब्रेशन की बात छिड़ी, तो अंजलि ने कहा, ‘‘कुछ प्रोग्राम रखने का मन तो है पर घर तो वैसे ही दोनों बच्चों के सामान से भरा है मेरा. घर में तो पार्टी की जगह है नहीं. क्या करें, कुछ तो होना चाहिए न.’’
रेखा ने पूछा, ‘‘आंटी, आप का क्या प्रोग्राम है? पवन के साथ रहेंगी उस दिन?’’
‘‘अभी सोचा नहीं,’’ कह मालिनी सोच में डूब गईं.
उन्हें सोच में डूबा देख रेखा ने पूछा, ‘‘आंटी, आप क्या सोचने लगीं?’’
‘‘यही कि तुम सब अगर चाहो तो न्यू ईयर की पार्टी मेरे घर रख सकती हो. पूरा घर खाली ही तो रहता है… इसी बहाने मेरे घर भी रौनक हो जाएगी.’’
‘‘क्या?’’ सब चौंकी, ‘‘आप के घर?’’
‘‘हां, इस में हैरानी की क्या बात है?’’ मालिनी इस बार दिल खोल कर हंसीं.
रिया ने कहा, ‘‘वाह आंटी, क्या आइडिया दिया है पर आप तो पवन के घर…’’
मालिनी ने बीच में ही कहा, ‘‘इस बार कुछ अलग सोच रही हूं. इस बार नए साल की नई शुरुआत अपने घर से करूंगी और वह भी अच्छे सैलिब्रेशन के साथ. डिनर बाहर से और्डर कर मंगा लेंगे, तुम लोगों में से जो बाहर न जा रहा हो वह सपरिवार मेरे घर आ जाए… कुछ गेम्स खेलेंगे, डिनर करेंगे… बहुत मजा आएगा. और वैसे भी हमारा यह ग्रुप जहां भी बैठता है, मजा आ ही जाता है.’’
यह सुन कर रिया ने तो मालिनी के गले में बांहें ही डाल दीं, ‘‘वाह आंटी, क्या प्रोग्राम बनाया है. जगह की तो प्रौब्लम ही सौल्व हो गई.’’ सारिका ने कहा, ‘‘आंटी, आप किसी काम का प्रैशर मत लेना. हम सब मिल कर संभाल लेंगे और खर्चा सब शेयर करेंगे.’’
मालिनी ने कहा, ‘‘न्यू ईयर ही क्यों, तुम लोग जब कोई पार्टी रखना चाहो, मेरे घर ही रख लिया करो, तुम लोगों के साथ मुझे भी तो अच्छा लगता है.’’
‘‘मगर आंटी, पवन लेने आ गया तो?’’
‘‘नहीं, इस बार मैं यहीं रहूंगी.’’
फिर तो सब जोश में आ गईं और फिर पूरे उत्साह के साथ प्लान बनने लगा. कुछ दिनों बाद फिर सब मालिनी के घर इकट्ठा हुईं. सुमन, अनीता, मंजू और नेहा तो उस दिन बाहर जा रही थीं. नीता, सारिका, रिया, रेखा और अंजलि सपरिवार इस पार्टी में आने वाली थीं. सब के पति भी आपस में अच्छे दोस्त थे. मालिनी का सब से परिचय तो था ही… जोरशोर से प्रोग्राम बन रहा था. 30 दिसंबर को सुबह पवन का फोन आया, ‘‘मां, आज आप को लेने आऊंगा, तैयार रहना.’’
‘‘नहीं बेटा, इस बार नहीं आ पाऊंगी.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘कुछ प्रोग्राम है मेरा.’’
पवन झुंझलाया, ‘‘आप का क्या प्रोग्राम हो सकता है? अकेली तो हो?’’
‘‘नहीं, अकेली कहां हूं. कई लोगों के साथ न्यू ईयर पार्टी रखी है घर पर.’’
‘‘मां आप का दिमाग तो ठीक है? इस उम्र में पार्टी रख रही हैं? यहां कौन करेगा सब?’’
‘‘उम्र के बारे में तो मैं ने सोचा नहीं. हां, इस बार आ नहीं पाऊंगी.’’
पवन ने इस बार दूसरे सुर में बात की, ‘‘मां, आप इस मौके पर क्यों अकेली रहें? अपने बेटे के घर ज्यादा अच्छा लगेगा न?’’
‘‘अकेली तो मैं सालों से रह रही हूं बेटा, उस की तो मुझे आदत है.’’
पवन चिढ़ कर बोला, ‘‘जैसी आप की मरजी,’’ और गुस्से से फोन पटक दिया. पवन का तमतमाया चेहरा देख कर नीतू ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मां नहीं आएंगी.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘उन्होंने अपने घर पार्टी रखी है.’’
‘‘क्या? क्यों? अब क्या होगा, मैं तो इतने लोगों का खाना नहीं बना पाऊंगी?’’
‘‘अब तो तुम्हें ही बनाना है.’’
‘‘नहीं पवन, बिलकुल नहीं बनाऊंगी.’’
‘‘मैं सब को इन्वाइट कर चुका हूं.’’
‘‘तो बाहर से मंगवा लेना.’’
‘‘नहीं, बहुत महंगा पड़ेगा.’’
‘‘नहीं, मुझ से तो नहीं होगा.’’
दोनों लड़ पड़े. जम कर बहस हुई. अंत में पवन ने सब से मां की बीमारी का बहाना कर पार्टी कैंसिल कर दी. दोनों बुरी तरह चिढ़े हुए थे. पवन ने कहा, ‘‘अगर तुम मां के साथ अच्छा संबंध रखतीं तो मुझे आज सब से झूठ न बोलना पड़ता. अगर मां को यहां अच्छा लगता तो वे आज अलग वहां अकेली क्यों खुश रहतीं?’’ नीतू ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या समझा रहे हो… तुम्हारी मां हैं, बिना मतलब के जब तुम ही उन्हें फोन नहीं करते तो मैं तो बहू हूं.’’
दोनों एकदूसरे को तानेउलाहने देते रहे. दूसरे दिन भी दोनों एकदूसरे से मुंह फुलाए रहे.
हाऊजी, गेम्स, म्यूजिक और बढि़या डिनर के साथ न्यू ईयर का जश्न तो मना, पर कहीं और.
सर्दियों में नौनवेज खाने और बनाने के अलग ही मजा होता है तो आज हम के लिए लेकर आए है ऐसे ही नौनवेज डिश जिसे आप सर्दियों जल्दी पका भी सकती है और खा भी सकती है. तो ट्राय करें गौअन फिश करी जो सर्दियों में हेल्थ को फिट रखेंगी.
सामग्री
250 ग्राम (8 क्यूब्स) सीबास फिश.
सामग्री पेस्ट की
1 बड़ा चम्मच तेल द्य 1 बड़ा प्याज कटा हुआ
1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर द्य 1 छोटा चम्मच धनिया द्य 1 छोटा चम्मच जीरा
छोटा चम्मच अजवाइन द्य 1 बड़ा चम्मच अदरक कटा हुआ द्य 2 हरीमिर्चें कटी हुई द्य 8 लौंग
1 कप नारियल कसा हुआ.
करी
2 बड़े चम्मच तेल द्य 1/2 कप नारियल क्रीम
1 छोटा चम्मच धनियापत्ती कटी हुई द्य 7-8 करीपत्ते द्य 1/2 टमाटर कटा हुआ
1/4 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर द्य 1/4 छोटा चम्मच हलदी द्य 20 ग्राम इमली
नमक स्वादानुसार.
विधि
फिश को चौकोर काट लें.
पैन गरम कर जीरा, धनिया और अजवाइन को बिना तेल के भून कर अलग रखें. फिर पैन में तेल गरम कर प्याज को तब तक भूनें जब तक वह पारदर्शी न हो जाए. अब पैन में अदरक, लहसुन, हरीमिर्च, कसा नारियल और हलदी डाल कर कुछ देर तक अच्छी तरह मिलाएं और फिर भुनी सामग्री में मिला कर ग्राइंड कर पेस्ट बना लें.
2. करी की विधि
एक पैन में तेल गरम कर उस में राई के दाने डालें. दानों को चटकने दें. फिर इस में करीपत्ते डालें. अब टमाटर डालें और थोड़ी देर अच्छी तरह हिलाएं. फिर इस मिश्रण में हलदी और मिर्च डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस मिश्रण में नारियल का पेस्ट डालें और बाकी सामग्री के साथ मिलाएं. इस के बाद इमली को निचोड़ कर उस के पल्प को मिश्रण में डालें. फिर नारियल की क्रीम मिलाएं. आखिर में नमक डालें और धीमी आंच पर पकाएं. अब फिश के टुकड़े डालें और उन्हें पकने दें. पकने के बाद धनियापत्ती से गार्निश कर सर्व करें.
“तुम्हें दोस्त की बेटी की शादी में जाना अधिक आसान लगा बनिस्पत एक बीमार को मिलने के. अपनीअपनी प्राथमिकताएं हैं. तुम ने प्रतिष्ठा को चुना और मैं होती तो शायद प्रेम को चुनती. मैं तुम्हें मिलने के लिए मजबूर नहीं कर सकती लेकिन खुद को तो रोक सकती हूं न… यह मेरी आखिरी सदा है. इस के बाद कभी तुम्हें आवाज नहीं दूंगी,” लिख कर आभा ने रमन को व्हाट्सऐप पर मैसेज कर दिया और रमन की प्रतीक्षा करने लगी लेकिन प्रतिष्ठा भी तो एक कारा ही है न? इस की मोटी सलाखों को तोड़ पाना किसी साधारण व्यक्ति के लिए आसान नहीं. शायद प्रेम करने वाले असाधारण ही होते होंगे. रमन की चुप्पी आभा को निराश करने लगी. प्रेम के अस्तित्व से भरोसा उठने लगा. यह विचार पुष्ट होने लगा कि शायद प्रेम का दैहिक रूप ही अधिक प्रचलन में है.
कई दिन बीत गए. आभा की शरीरिक अस्वस्थता ठीक हो गई लेकिन उस की मानसिक व्याधि दूर नहीं हुई. दिमागी मंथन अब भी जारी है.
“क्या प्रेम जबरदस्ती करवाया जा सकता है? किसी को भी पकड़ कर आप के साथ बांध दिया जाए और यह आदेश दिया जाए कि बस, आज से आप को इसी से प्रेम करना है क्या यह संभव है?” आभा सोचती तो उसे अपने मांबाबूजी याद आ जाते. हर रोज झगड़ते, एकदूसरे पर कटाक्ष करते, ताने मारते और बातबात में नीचा दिखाने की कोशिश करते. मांबाबूजी को देख कर उसे कभी नहीं लगा कि यह भी प्यार का कोई रूप है क्या. बावजूद इस के वे दोनों 4 संतानों के मातापिता बने.
दूर की एक चाची को घर आई देख कर अवश्य ही बाबूजी जरा नरम पड़ते दिखते थे. बाबूजी चाची के बच्चों को भी बहुत प्यार करते थे लेकिन लोकलाज के कारण उस ने कभी चाची को बाबूजी से बात करते नहीं देखा था. हां, उन की मुसकान वह अवश्य महसूस करती थी. इस बीच रमन के फोन आते रहे और आभा प्रेम को ले कर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी. शायद पहुंच भी नहीं सकती थी क्योंकि इतना तो वह जान ही गई थी कि प्रेम की परिभाषा हरेक के लिए अलग होती है और शायद निजी भी. रमन के लिए जो प्रेम की धारणा है वह उस की धारणा से पृथक है.
“हैलो…आभा? क्या हुआ? तुम सुन रही हो न?” अचानक रमन की आवाज उसे वर्तमान में ले कर आई. आभा अब तक कुछ सामान्य हो चुकी थी.
“तुम्हारे लिए प्रेम क्या है रमन? क्या तुम इसे परिभाषित कर सकते हो?” आभा ने पूछा.
“लगता है, आज मेरी क्लास ली जा रही है,” रमन ने माहौल को सहज करने की कोशिश की.
“तुम तो साहित्यकार हो न, बताओ? क्या है प्रेम?” आभा ने उसे अनसुना करते हुए फिर से पूछा.
“हमारेतुम्हारे मामले में तो प्रेम अकेले में सौ प्रतिशत और सब के सामने शून्य है आभा. परिस्थितियां तुम भी जानती हो और मैं भी. बस, तुम उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहती. हम जिन सामाजिक सीमाओं में बंधे हैं उन्हें तोड़ नहीं सकते. तुम्हें वह गीत याद है, ‘प्यार से भी जरूरी कई काम हैं… प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए…'” रमन ने हारे हुए शब्दों में अपनी विवशता स्वीकार की. फोन पर फिर से चुप्पी की चादर फैल गई.
“प्रेम शब्द की जितनी भी व्याख्या की जाए या फिर उसे जितना भी परिभाषित किया जाए, हमेशा समझ से बाहर का विषय ही रहा है. समाज और संसार की नजरों में भी प्रेम सदैव अबूझ पहेली सा ही रहा होगा, तभी तो जहां पशुपक्षियों, जीवजंतुओं और असहायउपेक्षितों से प्रेम करने वाले को महान करार दिया जाता है, वहीं किसी विपरीत लिंगी से प्रेम करने को हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है फिर चाहे वह प्रेम कितना भी निश्छल या वासना रहित क्यों न हो,” आभा प्रेम पहेली में उलझ कर कसमसा रही थी.
“समाज की तो क्या ही कहें, ऐसे प्रेम को तो स्वयं प्रेमी भी सहजता से स्वीकार नहीं कर पाता. उसे भी अपने मीत से मिलने के लिए न जाने कितने झूठ बोलने पड़ते हैं, कितने बहाने रचने पड़ते हैं. और मजे की बात तो यह है कि ये सारे प्रपंच व्यक्ति स्वयं अपनेआप से करता है. शायद समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए. रमन भी तो यही कर रहा है,” आभा के विचारों ने और गति पकड़ी.
“क्या मैं रमन को प्रेम करने के लिए बाध्य कर सकती हूं? नहीं न? तो क्या करूं? क्या रमन को भूल जाऊं? क्या यह प्रेम की हार नहीं होगी? आभा अपने प्रश्नजाल से बाहर निकल ही नहीं पा रही थी. तभी मानो रौशनी की 1-1 क्षीण सी रेखा दूर कहीं अंधियारे में कौंधी. आभा साफसाफ देख पा रही थी कि उस रौशनी में प्रेम को परिभाषित होते हुए.
“आभा, अरे यार… कुछ बोलो न? प्लीज, जो सहजता से चल रहा है उसे चलने दो न. क्यों शांत जिंदगी में लहरें लाने की जिद पर अड़ी हुई हो?”रमन ने आभा से अनुनय की लेकिन आभा तो अपना निर्णय ले चुकी थी.
“मैं क्यों इतनी स्वार्थी हुई जा रही हूं. यदि रमन के लिए उस की गढ़ी हुई प्रेम की परिभाषा सही हो सकती है तो मैं भी तो अपनी निजी परिभाषा गढ़ने के लिए स्वतंत्र हूं. उस की वह जाने लेकिन मैं भी तो जिद्दी हुई जा रही हूं न प्रेम को पाने के लिए. शायद यह जिद प्रेम को पाने की नहीं बल्कि रमन को पाने की है. क्या मैं उसे भौतिक रूप से पाए बिना अपने प्रेम को निभा नहीं सकती? यदि नहीं तो फिर मेरा प्रेम स्वार्थ ही हुआ न? अब मैं सबकुछ समय पर छोड़ कर निश्चिंत हो अपना प्रेम निभाउंगी. बिना किसी जिद और स्वार्थ के. बिना किसी शिकायत के. हां, मैं प्रेम की प्रायोजित कारा से आजाद हो कर स्वतंत्र प्रेम करूंगी,” आभा ने तय कर लिया था और ऐसा निश्चय करते ही उसे लगा मानो उस का मष्तिष्क सचमुच किसी भारी बोझे से आजाद हो गया. अब उसे रमन पर गुस्सा नहीं बल्कि प्रेम आ रहा था. वह भी पहले से कई गुणा अधिक.
“तुम सही कहते हो रमन. तुम्हें पाने की मेरी जिद ही मेरी पीड़ा का कारण है. मैं तुम से हमेशा प्यार करूंगी लेकिन अपने प्यार को अपनी जिद नहीं बनने दूंगी. जिस दिन तुम सब के सामने मुझे अपनी जिंदगी का हिस्सा स्वीकार करोगे उस दिन मेरी दुनिया में तुम्हारा स्वागत है. मुझे देह नहीं नेह चाहिए,” कहते हुए आभा ने फोन काट दिया. मानो नेह को देह की कारा से मुक्त कर दिया हो.