रूह का स्पंदन: क्या थी दीक्षा के जीवन की हकीकत

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

‘‘मम्मी, मैं तो यह कह रही थी कि यदि वह अपने ही क्षेत्र का होता तो अच्छा रहता.’’ दक्षा ने मन की बात कही. लड़का गढ़वाली ही नहीं, अपने इलाके का ही है. मां ने बताया तो दक्षा खुश हो उठी.

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

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दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

शुभस्य शीघ्रम: कौनसी घटना घटी थी सुरभि के साथ 

हैडऔफिस से ब्रांच औफिस के कर्मचारियों को अचानक निर्देश मिला कि इस काम को आज ही पूरा किया जाए, तो काम पूरा करते रात के 10 बज गए. नई नियुक्त सुरभि को उस के घर छोड़ने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली, क्योंकि मेरा और उस का घर आसपास है.

मैं सुरभि के साथ घर के लिए रवाना हुआ, तो वह चुप बैठी थी. बातचीत मैं ने शुरू की, ‘‘तुम ने एम.बी.ए. कहां से किया सुरभि?’’

‘‘जी, वाराणसी से.’’

‘‘यहां फ्लैट में रहती हो या पी.जी. में?’’

‘‘सर, पी.जी. में.’’

‘‘घर पर कौनकौन है?’’

‘‘सर, मैं अकेली हूं.’’

‘‘हांहां यहां तो अकेली ही हो. मैं तुम्हारे घर के बारे में पूछ रहा हूं.’’

‘‘जी, मैं अकेली ही हूं.’’

‘‘क्या मतलब सुरभि, घर पर मम्मीपापा, भाईबहन तो होंगे न?’’

‘‘सर, मेरा कोई नहीं. मेरे पापा बहुत पहले चल बसे थे. 4 माह पहले मां का भी देहांत हो गया. मैं उन की इकलौती संतान हूं,’’ उस का चेहरा दुख से मलिन हो गया तथा आंखें सजल

हो गईं.

‘‘ओह सौरी, मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया.’’

हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी पसर गई. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें, फिल्में देखना पसंद है?’’

‘‘सर, टीवी पर देख लेती हूं. मेरा टीवी हर समय औन रहता है.’’

‘‘ओहो, पूरे समय टीवी का शोर. सिरदर्द नहीं हो जाता तुम्हें?’’

‘‘नहीं सर, बंद टीवी से हो जाता है. शांत वातावरण में मुझे अपने दुखदर्द कचोटते हैं.’’

उस ने इतनी गमगीन गंभीरता से यह बात कही तो मैं ने कहा, ‘‘सही बात है, स्वयं को व्यस्त रखने का कोई बहाना तो चाहिए ही. मैं भी हर समय म्यूजिक सुनता रहता हूं.’’

फिर थोड़ी देर में उस का पी.जी. आ गया तो उस ने नीची नजरों से मुझे थैंक्स कहा और गाड़ी से उतर गई. मैं भी उसे बाय, गुडनाइट कहता हुआ आगे निकल गया.

अगले दिन से हम दोनों की ही नजरों में एकदूसरे के लिए कुछ विशेष था. मुझ से नजरें मिलते ही वह नजरें झका लेती थी. मौका देख कर मैं ने कहा, ‘‘सुरभि, हम दोनों का औफिस आनेजाने का रास्ता एक ही है. हम रोज साथ में आनाजाना कर सकते हैं. हां मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

उस ने मुसकराते हुए नीची नजरों से सहमति प्रकट कर दी.

फिर हम दोनों साथसाथ ही आनेजाने लगे.

हमारे बीच अपनत्व पनप चुका था. एक दिन मैं ने पहल करते हुए कहा, ‘‘सुरभि, हमें मिले ज्यादा समय तो नहीं हुआ, किंतु मेरा मन रातदिन तुम्हारे नाम की माला जपता रहता है. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं तुम्हारे मन की बात भी जानना चाहता हूं. और हां, मेरा नाम राज है, वही बोलो. ये सर, सर क्या लगा रखा है?’’

मेरे इतना कहने पर भी वह खामोश रही तो मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख पूछा, ‘‘क्या बात है, सुरभि खामोश क्यों हो?’’

मेरा अपनत्व पा कर वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘राज सर, मेरा बलात्कार हो चुका है. मैं कलंकित हूं. मुझे कोई कैसे स्वीकार करेगा? मैं इस कलंक को पूरी उम्र ढोने के लिए मजबूर हूं…’’

मैं ने उस के होंठों पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुरभि, स्वयं को संभालो. मैं तुम्हें अपनाऊंगा. तुम से शादी करूंगा. स्वयं को हीन न समझे. चलो सब से पहले थोड़ा पानी पी कर स्वयं को संयत करो.’’

वह पानी पी कर कुछ शांत हुई, किंतु आंसू बहाती रही.

‘‘देखो सुरभि, तुम्हारे गुजरे कल से मेरा कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारे साथ अपना आज और आने वाला कल संवारना चाहता हूं. किंतु हां, जो हादसा तुम्हें इतना दुखी कर गया है, उसे अवश्य बांटना चाहूंगा. तुम अपनी आपबीती, बे?िझक मुझे बताओ. तुम्हारे सामने तुम्हारा दोस्त, हितैषी, हमदर्द बैठा हुआ है.’’

वह धीमे स्वर में बोली, ‘‘राज, हमारे गांव में दादा साहब के यहां मेरे पापाजी अकाउंटैंट का काम करते थे. उन के बेटे बाबा साहब भी अपने पिता की तरह पापाजी की ईमानदारी की बहुत इज्जत करते थे और दोनों ही पापाजी से मित्रवत व्यवहार करते थे. एक दिन काम करते हुए अचानक पापाजी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. उन दोनों ने हम लोगों की सहायता के लिए हर माह पैंशन देने की घोषणा करते हुए आदेश दिया कि जब तक वे दोनों हैं तब तक पैंशन हमारे परिवार को दी जाए.

‘‘पैंशन से हम लोगों का घर खर्च चलने लगा, फिर 3 सालों में दादा साहब एवं बाबा साहब का निधन हो गया तो उन का बेटा शहर से गांव आ गया और कामकाज देखने लगा.

‘‘उस दिन हर माह की तरह मैं पैंशन लेने पहुंची थी. मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मेरा 12वीं का रिजल्ट आ गया था और मुझे बहुत अच्छे अंक मिले थे. वहां काम करने वाले रजत से मालूम हुआ कि मुझे पैंशन लेने लंच टाइम में पुन: आना होगा, क्योंकि अभी छोटे साहब बाहर गए हुए हैं.

‘‘मैं लंच टाइम में दोबारा वहां पहुंची तो देखा वह बैठा हुआ जैसे मेरा इंतजार ही कर रहा था. मुझे देखते ही बोला, ‘बधाई हो सुरभि, सुना है तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए हैं.’

‘‘मैं ने पैंशन की बात कही तो बोला, ‘अरे बैठो, खड़ी क्यों हो? थोड़ा शरबत तो पी लो. इतनी दुपहरिया में तो आई हो.’

‘‘फिर शरबत का एक गिलास उस ने स्वयं उठा लिया तथा दूसरा मेरी ओर सरका दिया.

‘‘मैं यह सोच कर कि ये बडे़ लोग हैं, इन की कही बातों को मानना चाहिए शरबत पी गई. फिर जब होश आया तो स्वयं को निर्वस्त्र पाया. मेरे ऊपर वह दरिंदा भी निर्वस्त्र पड़ा हुआ था. सारा माहौल देख कर व अपनी शारीरिक पीड़ा से इतना तो समझ सकी कि इस दुष्ट ने मेरा सर्वनाश कर दिया है.

‘‘मेरी दशा घायल शेरनी सी हो रही थी, पर वह दरिंदा मेरी बरबादी का आनंद

लेता हुआ बोला, ‘मुफ्त में पैसा ले जाती है तो अच्छा लगता है. आज अपना हक वसूल लिया

तो काटने दौड़ती है. खबरदार, चुपचाप निकल ले. वह तेरे बाप की पैंशन रखी है, तेरी कीमत

भी बढ़ा कर उस में रख दी है. गिन ले, कम

लगे तो और ले ले. जो कीमत कहेगी दे दूंगा. बहुत आनंद मिला. तू ने मुझे अपना प्रशंसक

बना लिया है. तू तो मुझे पहली नजर में ही भा

गई थी…’ और न जाने क्याक्या वह निर्लज्ज बकता रहा.

‘‘उस के पैसे वहीं छोड़ कर, लड़खड़ाते कदमों से मैं जब घर पहुंची तो उस वक्त मां के पास पासपड़ोस की औरतें भी बैठी हुई थीं. मैं मां के गले लग कर फफकफफक कर रोती हुई सब बोल गई. मां के साथ सभी ने मेरी आपबीती सुन ली तो वे अपनेअपने ढंग से सभी ढाढ़स बंधा कर चली गईं. मां पत्थर की मूर्ति सी बन गईं.

‘‘2 दिनों तक हम मांबेटी, अपने दुख के साथ घर में अकेली बंद पड़ी रहीं. जो पासपड़ोस रातदिन हमारे घर आताजाता रहता था, कोई झंकने नहीं आया, जैसे हमारे घर में छूत की बीमारी हो गई हो. 2 दिनों बाद पड़ोस की राधा दीदी खाना ले कर आईं और बोलीं, ‘भाभी,

यों पत्थर बनने से काम नहीं चलेगा. दिल को मजबूत करो. बिट्टो की हिम्मत बन कर उसे

राह दिखाओ, मेरा कहा मानो तो इस गांव से दूर चली जाओ.’

‘‘दीदी का अपनत्व पा कर, मां के दिल में जमा दर्द आंखों से आंसू बन कर बह निकला. वे रोते हुए बोलीं, ‘दीदी, जिस गांव को अपना रक्षक मानती थी, वही तो इज्जत का भक्षक बन बैठा, अब मैं अकेली विधवा, एक जवान, खूबसूरत लड़की को ले कर कहां जाऊं?’

‘‘दीदी, मां को सस्नेह गले लगा कर बोलीं, ‘भाभी, यों हिम्मत हारने से काम नहीं बनेगा. यहां रातदिन इसी कुकर्म की चर्चा से जीना दूभर हो जाएगा. बिट्टो अच्छे अंक लाई है. यहां का घरबार बेच कर, वाराणसी चली जाओ. उसे पढ़ाओ, पैरों पर खड़ा करो. भैया भी तो यही चाहते थे. भाभी, उन का सपना पूरा करना भी तो तुम्हारा कर्तव्य है.

‘‘मां पर उन की बातों का अवश्य कुछ असर हुआ, जिस से वे कुछ शांत हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘घर के लिए इतनी जल्दी ग्राहक ढूंढ़ना भी कठिन है, सौ बातें उठेंगी.’

‘‘तो वे बोलीं, ‘भाभी, तुम उठने वाली बातों की चिंता छोड़ो, बिट्टो का जीवन संवारने की सोचो. बहुत से लोग हैं जो घरजमीन खरीदना चाहते हैं. तुम तो जाने की तैयारी करो. हां इस बात का पूरा ध्यान रखना कि किसी को कानोकान खबर न हो कि तुम कहां जा रही हो.’

‘‘दीदी की मदद से गांव का सब काम निबटा कर हम वाराणसी आ पहुंचे. यहां थोड़ी भागदौड़ के बाद मां को एक बुटीक में काम मिल गया और मुझे अच्छे कालेज में ऐडमिशन. दोनों अपनेअपने काम में तनमन से लग गईं.’’

राज, यह मां ने ही कहा था कि कभी शादी के निर्णय का समय आए, तो अपने साथी को अवश्य बता देना. अन्य किसी के सामने कभी भी इस दुष्कर्म की चर्चा न करना.’’

यह कह कर सुरभि खामोश हो गई तो मैं ने उस के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारी मां की हिम्मत को तहे दिल से सलाम करता हूं. रोज ही टीवी पर, पेपर्स में इस तरह की दुर्घटनाएं सुनने, पढ़ने को मिल जाती हैं. हमेशा से पुरुष वर्ग स्त्रियों पर इस तरह के जुल्म करता रहा है.

‘‘इन ज्यादतियों की जड़ें हमारे धार्मिक ग्रंथों से भी जुड़ी हुई हैं. रामायण में वर्णित है कि सीता को रावण हरण कर ले जाता है तो उन के पति राम उन की पवित्रता की अग्निपरीक्षा लेते हैं. उस के बाद भी उन्हें त्याग कर वनवास हेतु मजबूर कर दिया जाता है.’’

वह दिन शनिवार का दिन था. हम दोनों लगभग 2 बजे औफिस से निकले थे और अब समय 4 से ऊपर हो चुका था. हम दोनों का मन भी कसैला हो गया था तथा कुछ भूख भी लग आई थी, इसलिए हम पास के रैस्टोरैंट में चले गए. वहां सुरभि ने आहिस्ता से कहा, ‘‘राज, मैं अपने कलंक से आप का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. मुझे माफ कीजिएगा, मैं बेवजह आप की राह में आ गई.’’

‘‘कैसी बातें करती हो सुरभि’’, मैं ने उस के करीब आ कर कहा, मैं तहेदिल से तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार कोई सूखा पत्ता नहीं होता, जो हवा से उड़ जाए. वह तो मजबूत चट्टान सा अडिग होता है, जो अनेक तूफानों का सामना कर सकता है.

‘‘एक अनजान पुरुष ने तुम्हारे साथ दुष्कर्म किया, उस से तुम कैसे कलंकित हो

गई? उस की सजा तुम क्यों पाओगी? जो भी सजा मिलनी चाहिए, उस दुष्कर्मी को मिलनी चाहिए, तुम स्वयं को हीन न समझे, मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों मिल कर एक खुशहाल दुनिया बसाएंगे, जहां घृणा तिरस्कार नहीं, सिर्फ प्यार और विश्वास होगा.’’

‘‘राज, आप को विश्वास है कि आप के मातापिता मुझ जैसी लड़की को अपनाएंगे, स्वीकार करेंगे?’’ उस ने अपनी शंका धीरे से व्यक्त की.

‘‘हां, मुझे पूरा विश्वास है. वे दोनों बहुत समझदार हैं और दकियानूसी विचारों के नहीं हैं. मेरे परिवार में मेरे कुछ कजिंस ने अंतर्जातीय विवाह किए तो उस मौके पर सारे परिवार को समझने का काम मेरे मम्मीपापा ने ही किया.

‘‘मैं अपने मम्मीपापा को अपने प्यार

अपने निर्णय के बारे में तो बताऊंगा. मुझे पूरा विश्वास है कि जीवन और समाज के प्रति

मेरी इस सकारात्मक सोच, मेरी पहल का वे स्वागत करेंगे.’’

मैं ने प्यार से उस का हाथ अपने हाथों में

ले कर कहा, ‘‘सुरभि, मेरी इस सकारात्मक

पहल में मेरा साथ दोगी न? मेरी हमसफर बन कर मेरा संबल बनोगी न? यदि मम्मीपापा को समझने में थोड़ा समय लग जाए, तो मेरा इंतजार करोगी न?’’

उस ने मुसकराते हुए सहमति से सिर हिला दिया.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चलो, फिर आज ही तुम्हें मम्मीपापा से मिलवा देता हूं, देरी क्यों करना, शुभस्य शीघ्रम.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी में मेरी खुशी समाहित थी, इसलिए वह खुशहाल जीवन की ओर इशारा करती प्रतीत हो रही थी.

दिल वर्सेस दौलत: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

‘‘किस का फोन था, पापा?’’

‘‘लाली की मम्मी का. उन्होंने कहा कि किसी वजह से तेरा और लाली का रिश्ता नहीं हो पाएगा.’’

‘‘रिश्ता नहीं हो पाएगा? यह क्या मजाक है? मैं और लाली अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. नहीं, नहीं, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. लाली मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है? आप ने ठीक से तो सुना था, पापा?’’

‘‘अरे भाई, मैं गलत क्यों बोलने लगा. लाली की मां ने साफसाफ मु झ से कहा, ‘‘आप अपने बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें. हम अबीर से लाली की शादी नहीं करा पाएंगे.’’

पापा की ये बातें सुन अबीर का कलेजा छलनी हो आया. उस का हृदय खून के आंसू रो रहा था. उफ, कितने सपने देखे थे उस ने लाली और अपने रिश्ते को ले कर. कुछ नहीं बचा, एक ही  झटके में सब खत्म हो गया, भरे हृदय के साथ लंबी सांस लेते हुए उस ने यह सोचा.

हृदय में चल रहा भीषण  झं झावात आंखों में आंसू बन उमड़नेघुमड़ने लगा. उस ने अपना लैपटौप खोल लिया कि शायद व्यस्तता उस के इस दर्द का इलाज बन जाए लेकिन लैपटौप की स्क्रीन पर चमक रहे शब्द भी उस की आंखों में घिर आए खारे समंदर में गड्डमड्ड हो आए.  झट से उस ने लैपटौप बंद कर दिया और खुद पलंग पर ढह गया.

लाली उस के कुंआरे मनआंगन में पहले प्यार की प्रथम मधुर अनुभूति बन कर उतरी थी. 30 साल के अपने जीवन में उसे याद नहीं कि किसी लड़की ने उस के हृदय के तारों को इतनी शिद्दत से छुआ हो. लाली उस के जीवन में मात्र 5-6 माह के लिए ही तो आई थी, लेकिन इन चंद महीनों की अवधि में ही उस के संपूर्ण वजूद पर वह अपना कब्जा कर बैठी थी, इस हद तक कि उस के भावुक, संवेदनशील मन ने अपने भावी जीवन के कोरे कैनवास को आद्योपांत उस से सा झा कर लिया. मन ही मन उस ने उसे अपने आगत जीवन के हर क्षण में शामिल कर लिया. लेकिन शायद होनी को यह मंजूर नहीं था. लाली के बारे में सोचतेसोचते कब वह उस के साथ बिताए सुखद दिनों की भूलभुलैया में अटकनेभटकने लगा, उसे तनिक भी एहसास नहीं हुआ.

शुरू से वह एक बेहद पढ़ाकू किस्म का लड़का था जिस की जिंदगी किताबों से शुरू होती और किताबों पर ही खत्म. उस की मां लेखिका थीं. उन की कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में छपती रहतीं. पिता को भी पढ़नेलिखने का बेहद शौक था. वे एक सरकारी प्रतिष्ठान में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे. घर में हर कदम पर किताबें दिखतीं. पुस्तक प्रेम उसे नैसर्गिक विरासत के रूप में मिला. यह शौक उम्र के बढ़तेबढ़ते परवान चढ़ता गया. किशोरावस्था की उम्र में कदम रखतेरखते जब आम किशोर हार्मोंस के प्रभाव में लड़कियों की ओर आकर्षित होते हैं,  उन्हें उन से बातें करना, चैट करना, दोस्ती करना पसंद आता है, तब वह किताबों की मदमाती दुनिया में डूबा रहता.

बचपन से वह बेहद कुशाग्र था. हर कक्षा में प्रथम आता और यह सिलसिला उस की शिक्षा खत्म होने तक कायम रहा. पीएचडी पूरी करने के बाद एक वर्ष उस ने एक प्राइवेट कालेज में नौकरी की. तभी यूनिवर्सिटी में लैक्चरर्स की भरती हुई और उस के विलक्षण अकादमिक रिकौर्ड के चलते उसे वहीं लैक्चरर के पद पर नियुक्ति मिल गई. नौकरी लगने के साथसाथ घर में उस के रिश्ते की बात चलने लगी.

वह अपने मातापिता की इकलौती संतान था. सो, मां ने उस से उस की ड्रीमगर्ल के बारे में पूछताछ की. जवाब में उस ने जो कहा वह बेहद चौंकाने वाला था.

मां, मु झे कोई प्रोफैशनल लड़की नहीं चाहिए. बस, सीधीसादी, अच्छी पढ़ीलिखी और सम झदार नौनवर्किंग लड़की चाहिए, जिस का मानसिक स्तर मु झ से मिले. जो जिंदगी का एकएक लमहा मेरे साथ शेयर कर सके. शाम को घर आऊं तो उस से बातें कर मेरी थकान दूर हो सके.

मां उस की चाहत के अनुरूप उस के सपनों की शहजादी की तलाश में कमर कस कर जुट गई. शीघ्र ही किसी जानपहचान वाले के माध्यम से ऐसी लड़की मिल भी गई.

उस का नाम था लाली. मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई थी. संदली रंग और बेहद आकर्षक, कंटीले नैननक्श थे उस के. फूलों से लदीफंदी डौलनुमा थी वह. उस की मोहक शख्सियत हर किसी को पहली नजर में भा गई.

उस के मातापिता दोनों शहर के बेहद नामी डाक्टर थे. पूरी जिंदगी अपने काम के चलते बेहद व्यस्त रहे. इकलौती बेटी लाली पर भी पूरा ध्यान नहीं दे पाए. लाली नानी, दादी और आयाओं के भरोसे पलीबढ़ी. ताजिंदगी मातापिता के सान्निध्य के लिए तरसती रही. मां को ताउम्र व्यस्त देखा तो खुद एक गृहिणी के तौर पर पति के साथ अपनी जिंदगी का एकएक लमहा भरपूर एंजौय करना चाहती थी.

विवाह योग्य उम्र होने पर उस के मातापिता उस की इच्छानुसार ऐसे लड़के की तलाश कर रहे थे जो उन की बेटी को अपना पूरापूरा समय दे सके, कंपेनियनशिप दे सके. तभी उन के समक्ष अबीर का प्रस्ताव आया. उसे एक उच्चशिक्षित पर घरेलू लड़की की ख्वाहिश थी. आजकल अधिकतर लड़के वर्किंग गर्ल को प्राथमिकता देने लगे थे. अबीर जैसे नौनवर्किंग गर्ल की चाहत रखने वाले लड़कों की कमी थी. सो, अपने और अबीर के मातापिता के आर्थिक स्तर में बहुत अंतर होने के बावजूद उन्होंने अबीर के साथ लाली के रिश्ते की बात छेड़ दी.

संयोगवश उन्हीं दिनों अबीर के मातापिता और दादी एक घनिष्ठ पारिवारिक मित्र की बेटी के विवाह में शामिल होने लाली के शहर पहुंचे. सो, अबीर और उस के घर वाले एक बार लाली के घर भी हो आए. लाली अबीर और उस के परिवार को बेहद पसंद आई. लाली और उस के परिवार वालों को भी अबीर अच्छा लगा.

दोनों के रिश्ते की बात आगे बढ़ी. अबीर और लाली फोन पर बातचीत करने लगे. फिर कुछ दिन चैटिंग की. अबीर एक बेहद सम झदार, मैच्योर और संवेदनशील लड़का था. लाली को बेहद पसंद आया. दोनों में घनिष्ठता बढ़ी. दोनों को एकदूसरे से बातें करना बेहद अच्छा लगता. फोन पर रात को दोनों घंटों बतियाते. एकदूसरे को अपने अनुकूल पा कर दोनों कभीकभार वीकैंड पर मिलने भी लगे. एकदूसरे को विवाह से पहले अच्छी तरह जाननेसम झने के उद्देश्य से अबीर  शुक्रवार की शाम फ्लाइट से उस के शहर पहुंच जाता. दोनों शहर के टूरिस्ट स्पौट्स की सैर करतेकराते वीकैंड साथसाथ मनाने लगे. एकदूसरे को गिफ्ट्स का आदानप्रदान भी करने लगे.

दिन बीतने के साथ दोनों के मन में एकदूसरे के लिए चाहत का बिरवा फूट चुका था. सो, दोनों की तरफ से ग्रीन सिगनल पा कर लाली के मातापिता अबीर का घरबार देखने व उन के रोके की तारीख तय करने अबीर के घर पहुंचे. अबीर का घर, रहनसहन, जीवनशैली देख कर मानो आसमान से गिरे वे.

अबीर का घर, जीवनस्तर उस के पिता की सरकारी नौकरी के अनुरूप था. लाली के रईस और अतिसंपन्न मातापिता की अमीरी की बू मारते रहनसहन से कहीं बहुत कमतर था. उन के 2 बैडरूम के फ्लैट में ससुराल आने पर उन की बेटी शादी के बाद कहां रहेगी, वे दोनों इस सोच में पड़ गए. एक बैडरूम अबीर के मातापिता का था, दूसरा बैडरूम उस की दादी का था.

अबीर की दादी की घरभर में तूती बोलती. वे काफी दबंग व्यक्तित्व की थीं. बेटाबहू उन को बेहद मान देते. उन की तुलना में अबीर की मां का व्यक्तित्व उन्हें तनिक दबा हुआ प्रतीत हुआ.

अबीर के घर सुबह से शाम तक एक पूरा दिन बिता कर उन्होंने पाया कि उन के घर में दादी की मरजी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता. उन की सीमित आय वाले घर में उन्हें बातबात पर अबीर के मातापिता के मितव्ययी रवैए का परिचय मिला.

अगले दिन लाली के मातापिता ने बेटी को सामने बैठा उस से अबीर के रिश्ते को ले कर अपने खयालात शेयर किए.

लाली के पिता ने लाली से कहा, ‘सब से पहले तो तुम मु झे यह बताओ, अबीर के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’

‘पापा, वह एक सीधासादा, बेहद सैंटीमैंटल और सुल झा हुआ लड़का लगा मु झे. यह निश्चित मानिए, वह कभी दुख नहीं देगा मु झे. मेरी हर बात मानता है. बेहद केयरिंग है. दादागीरी, ईगो, गुस्से जैसी कोई नैगेटिव बात मु झे उस में नजर नहीं आई. मु झे यकीन है, उस के साथ हंसीखुशी जिंदगी बीत जाएगी. सो, मु झे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं.’

तभी लाली की मां बोल पड़ीं, ‘लेकिन, मु झे औब्जेक्शन है.’

‘यह क्या कह रही हैं मम्मा? हम दोनों अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. अब मैं इस रिश्ते से अपने कदम वापस नहीं खींच सकती. आखिर बात क्या है? आप ने ही तो कहा था, मु झे अपना लाइफपार्टनर चुनने की पूरीपूरी आजादी होगी. फिर, अब आप यह क्या कह रही हैं?’

‘लाली, मैं तुम्हारी मां हूं. तुम्हारा भला ही सोचूंगी. मेरे खयाल से तुम्हें यह शादी कतई नहीं करनी चाहिए.’

‘मौम, सीधेसीधे मुद्दे पर आएं, पहेलियां न बु झाएं.’

‘तो सुनो, एक तो उन का स्टेटस, स्टैंडर्ड हम से बहुत कमतर है. पैसे की बहुत खींचातानी लगी मु झे उन के घर में. क्यों जी, आप ने देखा नहीं, शाम को दादी ने अबीर से कहा, एसी बंद कर दे. सुबह से चल रहा है. आज तो सुबह से मीटर भाग रहा होगा. तौबा उन के यहां तो एसी चलाने पर भी रोकटोक है.

‘फिर दूसरी बात, मु झे अबीर की दादी बहुत डौमिनेटिंग लगीं. बातबात पर अपनी बहू पर रोब जमा रही थीं. अबीर की मां बेचारी चुपचाप मुंह सीए हुए उन के हुक्म की तामील में जुटी हुई थी. दादी मेरे सामने ही बहू से फुसफुसाने लगी थीं, बहू मीठे में गाजर का हलवा ही बना लेती. नाहक इतनी महंगी दुकान से इतना महंगी मूंग की दाल का हलवा और काजू की बर्फी मंगवाई. शायद कल हमारे सामने हमें इंप्रैस करने के लिए ही इतनी वैराइटी का खानापीना परोसा था. मु झे नहीं लगता यह उन का असली चेहरा है.’

‘अरे मां, आप भी न, राई का पहाड़ बना देती हैं. ऐसा कुछ नहीं है. खातेपीते लोग हैं. अबीर के पापा ऐसे कोई गएगुजरे भी नहीं. क्लास वन सरकारी अफसर हैं. हां, हम जैसे पैसेवाले नहीं हैं. इस से क्या फर्क पड़ता है?’

‘लेकिन मैं सोच रही हूं अगर अबीर भी दादी की तरह हुआ तो क्या तू खर्चे को ले कर उस की तरफ से किसी भी तरह की टोकाटाकी सह पाएगी? खुद कमाएगी नहीं, खर्चे के लिए अबीर का मुंह देखेगी. याद रख लड़की, बच्चे अपने बड़ेबुजुर्गों से ही आदतें विरासत में पाते हैं. अबीर ने भी अगर तेरे खर्चे पर बंदिशें लगाईं तो क्या करेगी? सोच जरा.’

‘अरे मां, क्या फुजूल की हाइपोथेटिकल बातें कर रही हैं? क्यों लगाएगा वह मु झ पर इतनी बंदिशें? इतना बढि़या पैकेज है उस का. फिर अबीर मु झे अपनी दादी के बारे में बताता रहता है. कहता है, वे बहुत स्नेही हैं. पहली बार जब वे लोग हमारे घर आए थे, दादी ने मु झे कितनी गर्माहट से अपने सीने से चिपकाया था. मेरे हाथों को चूमा था.’

‘तो लाली बेटा, तुम ने पूरापूरा मन बना लिया है कि तुम अबीर से ही शादी करना चाहती हो. सोच लो बेटा, तुम्हारी मम्मा की बातों में भी वजन है. ये पूरी तरह से गलत नहीं. उन के और हमारे घर के रहनसहन में मु झे भी बहुत अंतर लगा. तुम कैसे ऐडजस्ट करोगी?’’ पापा ने कहा था.

‘अरे पापा, मैं सब ऐडजस्ट कर लूंगी. जिंदगी तो मु झे अबीर के साथ काटनी है न. और वह बेहद अच्छा व जैनुइन लड़का है. कोई नशा नहीं है उस में. मैं ने सोच लिया है, मैं अबीर से ही शादी करूंगी.’

‘लाली बेटा, यह क्या कह रही हो? मैं ने दुनिया देखी है. तुम तो अभी बच्ची हो. यह सीने से चिपकाना, आशीष देना, चुम्माचाटी थोड़े दिनों के शादी से पहले के चोंचले हैं. बाद में तो, बस, उन की रोकटोक, हेकड़ी और बंधन रह जाएंगे. फिर रोती झींकती मत आना मेरे पास कि आज सास ने यह कह दिया और दादी सास ने यह कह दिया.

‘और एक बात जो मु झे खाए जा रही है वह है उन का टू बैडरूम का दड़बेनुमा फ्लैट. हर बार त्योहार के मौके पर तु झे ससुराल तो जाना ही पड़ेगा. एक बैडरूम में अबीर के पेरैंट्स रहते हैं, दूसरे में उस की दादी. फिर तू कहां रहेगी? तेरे हिस्से में ड्राइंगरूम ही आएगा? न न न, शादी के बाद मेरी नईनवेली लाडो को अपना अलग एक कमरा भी नसीब न हो, यह मु झे बिलकुल बरदाश्त नहीं होगा.

‘सम झा कर बेटा, हमारे सामने यह खानदान एक चिंदी खानदान है. कदमकदम पर तु झे इस वजह से बहू के तौर पर बहुत स्ट्रगल करनी पड़ेगी. न न, कोई और लड़का देखते हैं तेरे लिए. गलती कर दी हम ने, तु झे अबीर से मिलाने से पहले हमें उन का घरबार देख कर आना चाहिए था. खैर, अभी भी देर नहीं हुई है. मेरी बिट्टो के लिए लड़कों की कोई कमी है क्या?’

‘अरे मम्मा, आप मेरी बात नहीं सम झ रहीं हैं. इन कुछ दिनों में मैं अबीर को पसंद करने लगी हूं. उसे अब मैं अपनी जिंदगी में वह जगह दे चुकी हूं जो किसी और को दे पाना मेरी लिए नामुमकिन होगा. अब मैं अबीर के बिना नहीं रह सकती. मैं उस से इमोशनली अटैच्ड हो गई हूं.’

‘यह क्या नासम झी की बातें कर रही है, लाली? तू तो मेरी इतनी सम झदार बेटी है. मु झे तु झ से यह उम्मीद न थी. जिंदगी में सक्सैसफुल होने के लिए प्रैक्टिकल बनना पड़ता है. कोरी भावनाओं से जिंदगी नहीं चला करती, बेटा. बात सम झ. इमोशंस में बह कर आज अगर तू ने यह शादी कर ली तो भविष्य में बहुत दुख पाएगी. तु झे खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मारने दूंगी. मैं ने बहुत सोचा इस बारे में, लेकिन इस रिश्ते के लिए मेरा मन हरगिज नहीं मान रहा.’

‘मम्मा, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अब इस रिश्ते में पीछे नहीं मुड़ सकती. मैं अबीर के साथ पूरी जिंदगी बिताने का वादा कर चुकी हूं. उस से प्यार करने लगी हूं. पापा, आप चुप क्यों बैठे हैं? सम झाएं न मां को. फिर मैं पक्का डिसाइड कर चुकी हूं कि मु झे अबीर से ही शादी करनी है.’

‘अरे भई, क्यों जिद कर रही हो जब यह कह रही है कि इसे अबीर से ही शादी करनी है तो क्यों बेबात अड़ंगा लगा रही हो? अबीर के साथ जिंदगी इसे बितानी है या तुम्हें?’ लाली के पिता ने कहा.

‘आप तो चुप ही रहिए इस मामले में. आप को तो दुनियादारी की सम झ है नहीं. चले हैं बेटी की हिमायत करने. मैं अच्छी तरह से सोच चुकी हूं. उस घर में शादी कर मेरी बेटी कोई सुख नहीं पाएगी. सास और ददिया सास के राज में 2 दिन में ही टेसू बहाते आ जाएगी. जाइए, आप के औफिस का टाइम हो गया. मु झे हैंडल कर लेने दीजिए यह मसला.’

इस के साथ लाली की मां ने पति को वहां से जबरन उठने के लिए विवश कर दिया और फिर बेटी से बोलीं, ‘यह क्या बेवकूफी है, लाली? यह तेरा प्यार पप्पी लव से ज्यादा और कुछ नहीं. अगर तू ने मेरी बात नहीं मानी तो सच कह रही हूं, मैं तु झ से सारे रिश्ते तोड़ लूंगी. न मैं तेरी मां, न तू मेरी बेटी. जिंदगीभर तेरी शक्ल नहीं देखूंगी. सम झ लेना, मैं तेरे लिए मर गई.’ यह कह कर लाली की मां अतीव क्रोध में पांव पटकते हुए कमरे से बाहर चली गईं.

मां का यह विकट क्रोध देख लाली सम झ गई थी कि अब अगर कुदरत भी साक्षात आ जाए तो उन्हें इस रिश्ते के लिए मनाना टेढ़ी खीर होगा. मां के इस हठ से वह बेहद परेशान हो उठी. उस का अंतर्मन कह रहा था कि उसे अबीर जैसा सुल झा हुआ, सम झदार लड़का इस जिंदगी में दोबारा मिलना असंभव होगा. आज के समय में उस जैसे सैंसिबल, डीसैंट लड़के बिरले ही मिलते हैं. अबीर जैसे लड़के को खोना उस की जिंदगी की सब से बड़ी भूल होगी.

लेकिन मां का क्या करे वह? वे एक बार जो ठान लेती हैं वह उसे कर के ही रहती हैं. वह बचपन से देखती आई है, उन की जिद के सामने आज तक कोई नहीं जीत पाया. तो ऐसी हालत में वह क्या करे? पिछली मुलाकात में ही तो अबीर के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं उस ने. दोनों ने एकदूसरे के प्रति अपनी प्रेमिल भावनाएं व्यक्त की थीं.

पिछली बार अबीर के उस के कहे गए प्रेमसिक्त स्वर उस के कानों में गूंजने लगे, ‘लाली माय लव, तुम ने मेरी आधीअधूरी जिंदगी को कंप्लीट कर दिया. दुलहन बन जल्दी से मेरे घर आ जाओ. अब तुम्हारे बिना रहना शीयर टौर्चर लग रहा है.’

क्या करूं क्या न करूं, यह सोचतेसोचते अतीव तनाव से उस के स्नायु तन आए और आंखें सावनभादों के बादलों जैसे बरसने लगीं. अनायास वह अपने मोबाइल स्क्रीन पर अबीर की फोटो देखने लगी और उसे चूम कर अपने सीने से लगा उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

तभी मम्मा उस का दरवाजा पीटने लगीं… ‘‘लाली, दरवाजा खोल बेटा.’’

उस ने दरवाजा खोला. मम्मा कमरे में धड़धड़ाती हुई आईं और उस से बोलीं, ‘‘मैं ने अबीर के पापा को इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. सारा टंटा ही खत्म. हां, अब अबीर का फोनवोन आए, तो उस से तु झे कुछ कहने की कोई जरूरत नहीं. वह कुछ कहे, तो उसे रिश्ते के लिए साफ इनकार कर देना और कुछ ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं. ले देख, यह एक और लड़के का बायोडाटा आया है तेरे लिए. लड़का खूब हैंडसम है. नामी एमएनसी में सीनियर कंसल्टैंट है. 40 लाख रुपए से ऊपर का ऐनुअल पैकेज है लड़के का. मेरी बिट्टो राज करेगी राज. लड़के वालों की दिल्ली में कई प्रौपर्टीज हैं. रुतबे, दौलत, स्टेटस में हमारी टक्कर का परिवार है. बता, इस लड़के से फोन पर कब बात करेगी?’’

‘‘मम्मा, फिलहाल मेरे सामने किसी लड़के का नाम भी मत लेना. अगर आप ने मेरे साथ जबरदस्ती की तो मैं दीदी के यहां लंदन चली जाऊंगी. याद रखिएगा, मैं भी आप की बेटी हूं.’’ यह कहते हुए लाली ने मां के कमरे से निकलते ही दरवाजा धड़ाक से बंद कर लिया.

मन में विचारों की उठापटक चल रही थी. अबीर उसे आसमान का चांद लग रहा था जो अब उस की पहुंच से बेहद दूर जा चुका था. क्या करे क्या न करे, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

सारा दिन उस ने खुद से जू झते हुए बेपनाह मायूसी के गहरे कुएं में बिताया. सां झ का धुंधलका होने को आया. वह मन ही मन मना रही थी, काश, कुछ चमत्कार हो जाए और मां किसी तरह इस रिश्ते के लिए मान जाएं. तभी व्हाट्सऐप पर अबीर का मैसेज आया, ‘‘तुम से मिलना चाहता हूं. कब आऊं?’’

उस ने जवाब में लिखा, ‘जल्दी’ और एक आंसू बहाती इमोजी भी मैसेज के साथ उसे पोस्ट कर दी. अबीर का अगला मैसेज एक लाल धड़कते दिल के साथ आया, ‘‘कल सुबह पहुंच रहा हूं. एयरपोर्ट पर मिलना.’’

लाली की वह रात आंखों ही आंखों में कटी. अगली सुबह वह मां को एक बहाना बना एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई.

क्यूपिड के तीर से बंधे दोनों प्रेमी एकदूसरे को देख खुद पर काबू न रख पाए और दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ ही क्षणों में दोनों संयत हो गए और लाली ने उन दोनों के रिश्ते को ले कर मां के औब्जेक्शंस को विस्तार से अबीर को बताया.

अबीर और लाली दोनों ने इस मुद्दे को ले कर तसल्ली से, संजीदगी से विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अब जो कुछ करना है उन दोनों को ही करना होगा.

‘‘लाली, इन परिस्थितियों में अब तुम बताओ कि क्या करना है? तुम्हारी मां हमारी शादी के खिलाफ मोरचाबंदी कर के बैठी हैं. उन्होंने साफसाफ लफ्जों में इस के लिए मेरे पापा से इनकार कर दिया है. तो इस स्थिति में अब मैं किस मुंह से उन से अपनी शादी के लिए कहूं?’’ अबीर ने कहा.

‘‘हां, यह तो तुम सही कह रहे हो. चलो, मैं अपने पापा से इस बारे में बात करती हूं. फिर मैं तुम्हें बताती हूं.’’

‘‘ठीक है, ओके, चलता हूं. बस, यह याद रखना मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. शायद खुद से भी ज्यादा. अब तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं.’’

लाली ने अपनी पनीली हो आई आंखों से अबीर की तरफ एक फ्लाइंग किस उछाल दिया और फुसफुसाई, ‘हैप्पी एंड सेफ जर्नी माय लव, टेक केयर.’’

लाली एयरपोर्ट से सीधे अपने पापा के औफिस जा पहुंची और उस ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया. उस की बातें सुन पापा ने कहा, ‘‘अगर तुम और अबीर इस विषय में निर्णय ले ही चुके हो तो मैं तुम दोनों के साथ हूं. मैं कल ही अबीर के घर जा कर तुम्हारी मां के इनकार के लिए उन से माफी मांगता हूं और तुम दोनों की शादी की बात पक्की कर देता हूं. इस के बाद ही मैं तुम्हारी मां को अपने ढंग से सम झा लूंगा. निश्चिंत रहो लाली, इस बार तुम्हारी मां को तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी.’’

लाली के पिता ने लाली से किए वादे को पूरा किया. अबीर के घर जा कर उन्होंने अपनी पत्नी के इनकार के लिए उन से हाथ जोड़ कर बच्चों की खुशी का हवाला देते हुए काफी मिन्नतें कर माफी मांगी और उन दोनों की शादी पक्की करने के लिए मिन्नतें कीं.

इस पर अबीर के पिता ने उन से कहा, ‘‘भाईसाहब, अबीर के ही मुंह से सुना कि आप लोगों को हमारे इस 2 बैडरूम के फ्लैट को ले कर कुछ उल झन है कि शादी के बाद आप की बेटी इस में कहां रहेगी? आप की परेशानी जायज है, भाईसाहब. तो, मेरा खयाल है कि शादी के बाद दोनों एक अलग फ्लैट में रहें. आखिर बच्चों को भी प्राइवेसी चाहिए होगी. यही उन के लिए सब से अच्छा और व्यावहारिक रहेगा. क्या कहते हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक है, जैसा आप उचित सम झें.’’

‘‘तो फिर, दोनों की बात पक्की?’’

‘‘जी बिलकुल,’’ अबीर के पिता ने लाली के पिता को मिठाई खिलाते हुए कहा.

बेटी की शादी उस की इच्छा के अनुरूप तय कर, घर आ कर लाली के पिता ने पत्नी को लाली और अबीर की खुशी के लिए उन की शादी के लिए मान जाने के लिए कहा. लाली ने तो साफसाफ लफ्जों में उन से कह दिया, ‘‘इस बार अगर आप हम दोनों की शादी के लिए नहीं माने तो मैं और अबीर कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’ और लाली की यह धमकी इस बार काम कर गई. विवश लाली की मां को बेटी और पति के सामने घुटने टेकने पड़े.

आखिरकार, दिल वर्सेस दौलत की जंग में दिल जीत गया और दौलत को मुंह की खानी पड़ी.

रूठी रानी उमादे: क्यों संसार में अमर हो गई जैसलमेर की रानी

रेतीले राजस्थान को शूरवीरों की वीरता और प्रेम की कहानियों के लिए जाना जाता है. राजस्थान के इतिहास में प्रेम रस और वीर रस से भरी तमाम ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं, जिन्हें पढ़सुन कर ऐसा लगता है जैसे ये सच्ची कहानियां कल्पनाओं की दुनिया में ढूंढ कर लाई गई हों.

मेड़ता के राव वीरमदेव और राव जयमल के काल में जोधपुर के राव मालदेव शासन करते थे. राव मालदेव अपने समय के राजपूताना के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे. शूरवीर और धुन के पक्के. उन्होंने अपने बल पर  जोधपुर राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया था. उन की सेना में राव जैता व कूंपा नाम के 2 शूरवीर सेनापति थे.

यदि मालदेव, राव वीरमदेव व उन के पुत्र वीर शिरोमणि जयमल से बैर न रखते और जयमल की प्रस्तावित संधि मान लेते, जिस में राव जयमल ने शांति के लिए अपने पैतृक टिकाई राज्य जोधपुर की अधीनता तक स्वीकार करने की पेशकश की थी, तो स्थिति बदल जाती. जयमल जैसे वीर, जैता कूंपा जैसे सेनापतियों के होते राव मालदेव दिल्ली को फतह करने में समर्थ हो जाते.

राव मालदेव के 31 साल के शासन काल तक पूरे भारत में उन की टक्कर का कोई राजा नहीं था. लेकिन यह परम शूरवीर राजा अपनी एक रूठी रानी को पूरी जिंदगी नहीं मना सका और वह रानी मरते दम तक अपने पति से रूठी रही.

जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर राव मालदेव की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर के रावल लूनकरण की बेटी राजकुमारी उमादे के साथ हुई थी. उमादे अपनी सुंदरता व चतुराई के लिए प्रसिद्ध थीं. राठौड़ राव मालदेव की शादी बारात लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची. बारात का खूब स्वागतसत्कार हुआ. बारातियों के लिए विशेष ‘जानी डेरे’ की व्यवस्था की गई.

ऊंट, घोड़ों, हाथियों के लिए चारा, दाना, पानी की व्यवस्था की गई. राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा पति के रूप में पाकर बेहद खुश थीं. पंडितों ने शुभ वेला में राव मालदेव की राजकुमारी उमादे से शादी संपन्न कराई.

चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. शादी के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व सगेसंबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए. महफिल काफी रात गए तक चली.

इस के बाद तमाम घराती, बाराती खापी कर सोने चले गए. राव मालदेव ने थोड़ीथोड़ी कर के काफी शराब पी ली थी.

उन्हें नशा हो रहा था. वह महफिल से उठ कर अपने कक्ष में नहीं आए. उमादे सुहाग सेज पर उन की राह देखतीदेखती थक गईं. नईनवेली दुलहन उमादे अपनी खास दासी भारमली जिसे उमादे को दहेज में दिया गया था, को मालदेव को बुलाने भेजने का फैसला किया. उमादे ने भारमली से कहा, ‘‘भारमली, जा कर रावजी को बुला लाओ. बहुत देर कर दी उन्होंने…’’

भारमली ने आज्ञा का पालन किया. वह राव मालदेव को बुलाने उन के कक्ष में चली गई. राव मालदेव शराब के नशे में थे. नशे की वजह से उन की आंखें मुंद रही थीं कि पायल की रुनझुन से राव ने दरवाजे पर देखा तो जैसे होश गुम हो गए. फानूस तो छत में था, पर रोशनी सामने से आ रही थी. मुंह खुला का खुला रह गया.

जैसे 17-18 साल की कोई अप्सरा सामने खड़ी थी. गोरेगोरे भरे गालों से मलाई टपक रही थी. शरीर मछली जैसा नरमनरम. होंठों के ऊपर मौसर पर पसीने की हलकीहलकी बूंदें झिलमिला रही थीं होठों से जैसे रस छलक रहा हो.

भारमली कुछ बोलती, उस से पहले ही राव मालदेव ने यह सोच कर कि उन की नवव्याहता रानी उमादे है, झट से उसे अपने आगोश में ले लिया. भारमली को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला या वह जानबूझ कर नहीं बोली, वह ही जाने.

भारमली भी जब काफी देर तक वापस नहीं लौटी तो रानी उमादे ने जिस थाल से रावजी की आरती उतारनी थी, उठाया और उस कक्ष की तरफ चल पड़ीं, जिस कक्ष में राव मालदेव का डेरा था.

उधर राव मालदे ने भारमली को अपनी रानी समझ लिया था और वह शराब के नशे में उस से प्रेम कर रहे थे. रानी उमादे जब रावजी के कक्ष में गई तो भारमली को उन के आगोश में देख रानी ने आरती का थाल यह कह कर ‘अब राव मालदेव मेरे लायक नहीं रहे,’ पटक दिया और वापस चली गईं.

अब तक राव मालदेव के सब कुछ समझ में आ गया था. मगर देर हो चुकी थी. उन्होंने सोचा कि जैसेतैसे रानी को मना लेंगे. भारमली ने राव मालदेव को सारी बात बता दी कि वह उमादे के कहने पर उन्हें बुलाने आई थी. उन्होंने उसे कुछ बोलने नहीं दिया और आगोश में भर लिया. रानी उमादे ने यहां आ कर यह सब देखा तो रूठ कर चली गईं.

सुबह तक राव मालदेव का सारा नशा उतर चुका था. वह बहुत शर्मिंदा हुए. रानी उमादे के पास जा कर शर्मिंदगी जाहिर करते हुए कहा कि वह नशे में भारमली को रानी उमादे समझ बैठे थे.

मगर उमादे रूठी हुई थीं. उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वह बारात के साथ नहीं जाएंगी. वो भारमली को ले जाएं. फलस्वरूप एक शक्तिशाली राजा को बिना दुलहन के एक दासी को ले कर बारात वापस ले जानी पड़ी.

रानी उमादे आजीवन राम मालदेव से रूठी ही रहीं और इतिहास में रूठी रानी के नाम से मशहूर हुईं. जैसलमेर की यह राजकुमारी रूठने के बाद जैसलमेर में ही रह गई थीं. राव मालदेव दहेज में मिली दासी भारमली बारात के साथ बिना दुलहन के जोधपुर आ गए थे. उन्हें इस का बड़ा दुख हुआ था. सब कुछ एक गलतफहमी के कारण हुआ था.

राव मालदेव ने अपनी रूठी रानी उमादे के लिए जोधपुर में किले के पास एक हवेली बनवाई. उन्हें विश्वास था कि कभी न कभी रानी मान जाएगी.

जैसलमेर की यह राजकुमारी बहुत खूबसूरत व चतुर थी. उस समय उमादे जैसी खूबसूरत महिला पूरे राजपूताने में नहीं थी. वही सुंदर राजकुमारी मात्र फेरे ले कर राव मालदेव की रानी बन

गई थी. ऐसी रानी जो पति से आजीवन रूठी रही. जोधपुर के इस शक्तिशाली राजा मालदेव ने उमादे को मनाने की बहुत कोशिशें कीं मगर सब व्यर्थ. वह नहीं मानी तो नहीं मानी. आखिर में राव मालदेव ने एक बार फिर कोशिश की उमादे को मनाने की. इस बार राव मालदव ने अपने चतुर कवि आशानंदजी चारण को उमादे को मना कर लाने के लिए जैसलमेर भेजा.

चारण जाति के लोग बुद्धि से चतुर व वाणी से वाकपटुता व उत्कृष्ट कवि के तौर पर जाने जाते हैं. राव मालदेव के दरबार के कवि आशानंद चारण बड़े भावुक थे. निर्भीक प्रकृति के वाकपटु व्यक्ति.

जैसलमेर जा कर आशानंद चारण ने किसी तरह अपनी वाकपटुता के जरिए रूठी रानी उमादे को मना भी लिया और उन्हें ले कर जोधपुर के लिए रवाना भी हो गए. रास्ते में एक जगह रानी उमादे ने मालदेव व दासी भारमली के बारे में कवि आशानंदजी से एक बात पूछी.

मस्त कवि समय व परिणाम की चिंता नहीं करता. निर्भीक व मस्त कवि आशानंद ने भी बिना परिणाम की चिंता किए रानी को 2 पंक्तियों का एक दोहा बोल कर उत्तर दिया—

माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण.

दोदो गयंदनी बंधही, हेको खंभु ठाण.

यानी मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति को रखना है तो मान को त्याग दे. लेकिन दोदो हाथियों को एक ही खंभे से बांधा जाना असंभव है.

आशानंद चारण के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की सोई रोषाग्नि को वापस प्रज्जवलित करने के लिए आग में घी का काम किया. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं है.’’ रानी उमादे ने उसी पल रथ को वापस जैसलमेर ले चलने का आदेश दे दिया.

आशानंदजी ने मन ही मन अपने कहे गए शब्दों पर विचार किया और बहुत पछताए, लेकिन शब्द वापस कैसे लिए जा सकते थे. उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है, अपनी रूपवती दासी भारमली के कारण ही अपने पति राजा मालदेव से रूठ गई थीं और आजीवन रूठी ही रहीं.

जैसलमेर आए कवि आशानंद चारण ने फिर रूठी रानी को मनाने की लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं मानीं. तब आशानंदजी चारण ने जैसलमेर के राजा लूणकरणजी से कहा कि अपनी पुत्री का भला चाहते हो तो दासी भारमली को जोधपुर से वापस बुलवा लीजिए. रावल लूणकरणजी ने ऐसा ही किया और भारमली को जोधपुर से जैसलमेर बुलवा लिया.

भारमली जैसलमेर आ गई. लूणकरणजी ने भारमली का यौवन रूप देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गए. लूणकरणजी का भारमली से बढ़ता स्नेह उन की दोनों रानियों की आंखों से छिप न सका. लूणकरणजी अब दोनों रानियों के बजाय भारमली पर प्रेम वर्षा कर रहे थे. यह कोई औरत कैसे सहन कर सकती है.

लूणकरणजी की दोनों रानियों ने भारमली को कहीं दूर भिजवाने की सोची. दोनों रानियां भारमली को जैसलमेर से कहीं दूर भेजने की योजना में लग गईं. लूणकरणजी की पहली रानी सोढ़ीजी ने उमरकोट अपने भाइयों से भारमली को ले जाने के लिए कहा लेकिन उमरकोट के सोढ़ों ने रावल लूणकरणजी से शत्रुता लेना ठीक नहीं समझा.

तब लूणकरणजी की दूसरी रानी जो जोधपुर के मालानी परगने के कोटड़े के शासक बाघजी राठौड़ की बहन थी, ने अपने भाई बाघजी को बुलाया. बहन का दुख मिटाने के लिए बाघजी शीघ्र आए और रानियों के कथनानुसार भारमली को ऊंट पर बैठा कर मौका मिलते ही जैसलमेर से छिप कर भाग गए.

लूणकरणजी कोटड़े पर हमला तो कर नहीं सकते थे क्योंकि पहली बात तो ससुराल पर हमला करने में उन की प्रतिष्ठा घटती और दूसरी बात राव मालदेव जैसा शक्तिशाली शासक मालानी का संरक्षक था. अत: रावल लूणकरणजी ने जोधपुर के ही आशानंद कवि को कोटडे़ भेजा कि बाघजी को समझा कर भारमली को वापस जैसलमेर ले आएं.

दोनों रानियों ने बाघजी को पहले ही संदेश भेज कर सूचित कर दिया कि वे बारहठजी आशानंद की बातों में न आएं. जब आशानंदजी कोटड़ा पहुंचे तो बाघजी ने उन का बड़ा स्वागतसत्कार किया और उन की इतनी खातिरदारी की कि वह अपने आने का उद्देश्य ही भूल गए.

एक दिन बाघजी शिकार पर गए. बारहठजी व भारमली भी साथ थे. भारमली व बाघजी में असीम प्रेम था. अत: वह भी बाघजी को छोड़ कर किसी भी हालत में जैसलमेर नहीं जाना चाहती थी.

शिकार के बाद भारमली ने विश्रामस्थल पर सूले सेंक कर खुद आशानंदजी को दिए. शराब भी पिलाई. इस से खुश हो कर बाघजी व भारमली के बीच प्रेम देख कर आशानंद जी चारण का भावुक कवि हृदय बोल उठे—

जहं गिरवर तहं मोरिया, जहं सरवर तहं हंस

जहं बाघा तहं भारमली, जहं दारू तहं मंस.

यानी जहां पहाड़ होते हैं वहां मोर होते हैं, जहां सरोवर होता है वहां हंस होते हैं. इसी प्रकार जहां बाघजी हैं, वहीं भारमली होगी. ठीक उसी तरह से जहां दारू होती है वहां मांस भी होता है.

कवि आशानंद की यह बात सुन बाघजी ने झठ से कह दिया, ‘‘बारहठजी, आप बड़े हैं और बड़े आदमी दी हुई वस्तु को वापस नहीं लेते. अत: अब भारमली को मुझ से न मांगना.’’

आशानंद जी पर जैसे वज्रपात हो गया. लेकिन बाघजी ने बात संभालते हुए कहा कि आप से एक प्रार्थना और है आप भी मेरे यहीं रहिए.

और इस तरह से बाघजी ने कवि आशानंदजी बारहठ को मना कर भारमली को जैसलमेर ले जाने से रोक लिया. आशानंदजी भी कोटड़ा गांव में रहे और उन की व बाघजी की इतनी घनिष्ठ दोस्ती हुई कि वे जिंदगी भर उन्हें भुला नहीं पाए.

एक दिन अचानक बाघजी का निधन हो गया. भारमली ने भी बाघजी के शव के साथ प्राण त्याग दिए. आशानंदजी अपने मित्र बाघजी की याद में जिंदगी भर बेचैन रहे. उन्होंने बाघजी की स्मृति में अपने उद्गारों के पिछोले बनाए.

बाघजी और आशानंदजी के बीच इतनी घनिष्ठ मित्रता हुई कि आशानंद जी उठतेबैठे, सोतेजागते उन्हीं का नाम लेते थे. एक बार उदयपुर के महाराणा ने कवि आशानंदजी की परीक्षा लेने के लिए कहा कि वे सिर्फ एक रात बाघजी का नाम लिए बिना निकाल दें तो वे उन्हें 4 लाख रुपए देंगे. आशानंद के पुत्र ने भी यही आग्रह किया.

कवि आशानंद ने भरपूर कोशिश की कि वह अपने कविपुत्र का कहा मान कर कम से कम एक रात बाघजी का नाम न लें, मगर कवि मन कहां चुप रहने वाला था. आशानंदजी की जुबान पर तो बाघजी का ही नाम आता था.

रूठी रानी उमादे ने प्रण कर लिया था कि वह आजीवन राव मालदेव का मुंह नहीं देखेगी. बहुत समझानेबुझाने के बाद भी रूठी रानी जोधपुर दुर्ग की तलहटी में बने एक महल में कुछ दिन ही रही और फिर उन्होंने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया. बाद में यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई.

राव मालदेव ने रूठी रानी के लिए तारागढ़ दुर्ग में पैर से चलने वाली रहट का निर्माण करवाया. जब अजमेर पर अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के आक्रमण की संभावना थी, तब रूठी रानी कोसाना चली गई, जहां कुछ समय रुकने के बाद वह गूंदोज चली गई. गूंदोज से काफी समय बाद रूठी रानी ने मेवाड़ में केलवा में निवास किया.

जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी उमादे से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पहले एक बार रूठी रानी से मिलने का अनुरोध किया.

एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया.

रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हारे.

वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और कष्ट भी पहुंचा. उमादे ने प्रायश्चित के रूप में उन की पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप दिया.

ऐसी थी जैसलमेर की भटियाणी उमादे रूठी रानी. वह संसार में रूठी रानी के नाम से अमर हो गईं.

तुम ही चाहिए ममू: क्या राजेश ममू से अलग रह पाया?

कुछ अपने मिजाज और कुछ हालात की वजह से राजेश बचपन से ही गंभीर और शर्मीला था. कालेज के दिनों में जब उस के दोस्त कैंटीन में बैठ कर लड़कियों को पटाने के लिए तरहतरह के पापड़ बेलते थे, तब वह लाइब्रेरी में बैठ कर किताबें खंगालता रहता था.

ऐसा नहीं था कि राजेश के अंदर जवानी की लहरें हिलोरें नहीं लेती थीं. ख्वाब वह भी देखा करता था. छिपछिप कर लड़कियों को देखने और उन से रसीली बातें करने की ख्वाहिश उसे भी होती थी, मगर वह कभी खुल कर सामने नहीं आया.

कई लड़कियों की खूबसूरती का कायल हो कर राजेश ने प्यारभरी कविताएं लिख डालीं, मगर जब उन्हीं में से कोई सामने आती तो वह सिर झुका कर आगे बढ़ जाता था. शर्मीले मिजाज की वजह से कालेज की दबंग लड़कियों ने उसे ‘ब्रह्मचारी’ नाम दे दिया था.

कालेज से निकलने के बाद जब राजेश नौकरी करने लगा तो वहां भी लड़कियों के बीच काम करने का मौका मिला. उन के लिए भी उस के मन में प्यार पनपता था, लेकिन अपनी चाहत को जाहिर करने के बजाय वह उसे डायरी में दर्ज कर देता था. औफिस में भी राजेश की इमेज कालेज के दिनों वाली ही बनी रही.

शायद औरत से राजेश का सीधा सामना कभी न हो पाता, अगर ममता उस की जिंदगी में न आती. उसे वह प्यार से ममू बुलाता था.

जब से राजेश को नौकरी मिली थी, तब से मां उस की शादी के लिए लगातार कोशिशें कर रही थीं. मां की कोशिश आखिरकार ममू के मिलने के साथ खत्म हो गई. राजेश की शादी हो गई. उस की ममू घर में आ गई.

पहली रात को जब आसपड़ोस की भाभियां चुहल करते हुए ममू को राजेश के कमरे तक लाईं तो वह बेहद शरमाई हुई थी. पलंग के एक कोने पर बैठ कर उस ने राजेश को तिरछी नजरों से देखा, लेकिन उस की तीखी नजर का सामना किए बगैर ही राजेश ने अपनी पलकें झुका लीं.

ममू समझ गई कि उस का पति उस से भी ज्यादा नर्वस है. पलंग के कोने से उचक कर वह राजेश के करीब आ गई और उस के सिर को अपनी कोमल हथेली से सहलाते हुए बोली, ‘‘लगता है, हमारी जोड़ी जमेगी नहीं…’’

‘‘क्यों…?’’ राजेश ने भी घबराते

हुए पूछा.

‘‘हिसाब उलटा हो गया…’’ उस ने कहा तो राजेश के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने बेचैन हो कर पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो ममू… क्या गड़बड़ हो गई?’’

‘‘यह गड़बड़ नहीं तो और क्या है? कुदरत ने तुम्हारे अंदर लड़कियों वाली शर्म भर दी और मेरे अंदर लड़कों वाली बेशर्मी…’’ कहते हुए ममू ने राजेश का माथा चूम लिया.

ममू के इस मजाक पर राजेश ने उसे अपनी बांहों में भर कर सीने से लगा लिया.

ख्वाबों में राजेश ने औरत को जिस रूप में देखा था, ममू उस से कई गुना बेहतर निकली. अब वह एक पल के लिए भी ममू को अपनी नजरों से ओझल होते नहीं देख सकता था.

हनीमून मना कर जब वे दोनों नैनीताल से घर लौटे तो ममू ने सुझाव दे डाला, ‘‘प्यारमनुहार बहुत हो चुका… अब औफिस जाना शुरू कर दो.’’

उस समय राजेश को ममू की बात हजम नहीं हुई. उस ने ममू की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘नौकरी तो हमेशा करनी है ममू… ये दिन फिर लौट कर नहीं आएंगे. मैं छुट्टियां बढ़वा रहा हूं.’’

‘‘छुट्टियां बढ़ा कर क्या करोगे? हफ्तेभर बाद तो प्रमोशन के लिए तुम्हारा इंटरव्यू होना है,’’ ममू ने त्योरियां चढ़ा कर कहा.

ममू को सचाई बताते हुए राजेश ने कहा, ‘‘इंटरव्यू तो नाम का है डार्लिंग. मुझ से सीनियर कई लोग अभी प्रमोशन की लाइन में खड़े हैं… ऐसे में मेरा नंबर कहां आ पाएगा?’’

‘‘तुम सुधरोगे नहीं…’’ कह कर ममू राजेश का हाथ झिड़क कर चली गई.

अगली सुबह मां ने राजेश को एक अजीब सा फैसला सुना डाला, ‘‘ममता को यहां 20 दिन हो चुके हैं. नई बहू को पहली बार ससुराल में इतने दिन नहीं रखा करते. तू कल ही इसे मायके छोड़ कर आ.’’

मां से तो राजेश कुछ नहीं कह सका, लेकिन ममू को उस ने अपनी हालत बता दी, ‘‘मैं अब एक पल भी तुम से दूर नहीं रह सकता ममू. मेरे लिए कुछ दिन रुक जाओ, प्लीज…’’

‘‘जिस घर में मैं 23 साल बिता चुकी हूं, उस घर को इतनी जल्दी कैसे भूल जाऊं?’’ कहते हुए ममू की आंखें भर आईं.

राजेश को इस बात का काफी दुख हुआ कि ममू ने उस के दिल में उमड़ते प्यार को दरकिनार कर अपने मायके को ज्यादा तरजीह दी, लेकिन मजबूरी में उसे ममू की बात माननी पड़ी और वह उसे उस के मायके छोड़ आया.

ममू के जाते ही राजेश के दिन उदास और रातें सूनी हो गईं. घर में फालतू बैठ कर राजेश क्या करता, इसलिए वह औफिस जाने लगा.

कुछ ही दिन बाद प्रमोशन के लिए राजेश का इंटरव्यू हुआ. वह जानता था कि यह सब नाम का है, फिर भी अपनी तरफ से उस ने इंटरव्यू बोर्ड को खुश करने की पूरी कोशिश की.

2 हफ्ते बाद ममू मायके से लौट आई और तभी नतीजा भी आ गया. लिस्ट में अपना नाम देख कर राजेश खुशी से उछल पड़ा. दफ्तर में उस के सीनियर भी परेशान हो उठे कि उन को छोड़ कर राजेश का प्रमोशन कैसे हो गया.

उन्होंने तहकीकात कराई तो पता चला कि इंटरव्यू में राजेश के नंबर उस के सीनियर सहकर्मियों के बराबर थे. इस हिसाब से राजेश के बजाय उन्हीं में से किसी एक का प्रमोशन होना था, मगर जब छुट्टियों के पैमाने पर परख की गई तो उन्होंने राजेश से ज्यादा छुट्टियां ली थीं. इंटरव्यू में राजेश को इसी बात का फायदा मिला था.

अगर ममू 2 हफ्ते पहले मायके न गई होती तो राजेश छुट्टी पर ही चल रहा होता और इंटरव्यू के लिए तैयारी भी न कर पाता. अचानक मिला यह प्रमोशन राजेश के कैरियर की एक अहम कामयाबी थी. इस बात को ले कर वह बहुत खुश था.

उस शाम घर पहुंच कर राजेश को ममू की गहरी समझ का ठोस सुबूत मिला. मां ने बताया कि मायके की याद तो ममू का बहाना था. उस ने जानबूझ कर मां से मशवरा कर के मायके जाने का मन बनाया था ताकि वह इंटरव्यू के लिए तैयारी कर सके.

सचाई जान कर राजेश ममू से मिलने को बेताब हो उठा. अपने कमरे में दाखिल होते ही वह हैरान रह गया.

ममू दुलहन की तरह सजधज कर बिस्तर पर बैठी थी. राजेश ने लपक कर उसे अपने सीने से लगा लिया. उस की हथेलियां ममू की कोमल पीठ को सहला रही थीं.

ममू कह रही थी, ‘‘माफ करना… मैं ने तुम्हें बहुत तड़पाया. मगर यह जरूरी था, तुम्हारी और मेरी तरक्की के लिए. क्या तुम से दूर रह कर मैं खुश रही? मायके में चौबीसों घंटे मैं तुम्हारी यादों में खोई रही. मैं भी तड़पती रही, लेकिन इस तड़प में भी एक मजा था. मुझे पता था कि अगर मैं तुम्हारे साथ रहती तो तुम जरूर छुट्टी लेते और कभी भी मन लगा कर इंटरव्यू की तैयारी नहीं करते.’’

राजेश कुछ नहीं बोला बस एकटक अपनी ममू को देखता रहा. ममू ने राजेश को अपनी बांहों में लेते हुए चुहल की, ‘‘अब बोलो, मुझ जैसी कठोर बीवी पा कर तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘तुम को पा कर तो मैं निहाल हो गया हूं ममू…’’ राजेश अभी बोल ही रहा था कि ममू ने ट्यूबलाइट का स्विच औफ करते हुए कहा, ‘‘बहुत हो चुकी तारीफ… अब कुछ और…’’

ममू शरारत पर उतर आई. कमरा नाइट लैंप की हलकी रोशनी से भर उठा और ममू राजेश की बांहों में खो गई, एक नई सुबह आने तक.

वफादारी का सुबूत

तकरीबन 3 महीने बाद दीपक आज अपने घर लौट रहा था, तो उस के सपनों में मुक्ता का खूबसूरत बदन तैर रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह पलक झपकते ही अपने घर पहुंच जाए और मुक्ता को अपनी बांहों में भर कर उस पर प्यार की बारिश कर दे. पर अभी भी दीपक को काफी सफर तय करना था. सुबह होने से पहले तो वह हरगिज घर नहीं पहुंच सकता था. और फिर रात होने तक मुक्ता से उस का मिलन होना मुमकिन नहीं था.

‘‘उस्ताद, पेट में चूहे कूद रहे हैं. ‘बाबा का ढाबा’ पर ट्रक रोकना जरा. पहले पेटपूजा हो जाए. किस बात की जल्दी है. अब तो घर चल ही रहे हैं…’’ ट्रक के क्लीनर सुनील ने कहा, फिर मुसकरा कर जुमला कसा, ‘‘भाभी की बहुत याद आ रही है क्या? मैं ने तुम से बहुत बार कहा कि बाहर रह कर कहां तक मन मारोेगे. बहुत सी ऐसी जगहें हैं, जहां जा कर तनमन की भड़ास निकाली जा सकती है. पर तुम तो वाकई भाभी के दीवाने हो.’’ दीपक को पता था कि सुनील हर शहर में ऐसी जगह ढूंढ़ लेता है, जहां देह धंधेवालियां रहती हैं. वहां जा कर उसे अपने तन की भूख मिटाने की आदत सी पड़ गई है. अकसर वह सड़कछाप सैक्स के माहिरों की तलाश में भी रहता है. शायद ऐसी औरतों ने उसे कोई बीमारी दे दी है.

दीपक ने सुनील की बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह मुक्ता के बारे में सोच रहा था. उस की एक साल पहले ही मुक्ता से शादी हुई थी. वह पढ़ीलिखी और सलीकेदार औरत थी. उस का कसा बदन बेहद खूबसूरत था. उस ने आते ही दीपक को अपने प्यार से इतना भर दिया कि वह उस का दीवाना हो कर रह गया. दीपक एमए पास था. वह सालों नौकरी की तलाश में इधरउधर घूमता रहा, पर उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली. दीपक सभी तरह की गाडि़यां चलाने में माहिर था. उस के एक दोस्त ने उसे अपने एक रिश्तेदार की ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर की नौकरी दिलवा दी, तो उस ने मना नहीं किया.

वैसे, ट्रक ड्राइवरी में दीपक को अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. तनख्वाह मिलने के साथ ही वह रास्ते में मुसाफिर ढो कर भी पैसा बना लेता था. ये रुपए वह सुनील के साथ बांट लेता था. सुनील तो ये रुपए देह धंधेवालियों और खानेपीने पर उड़ा देता था, पर घर लौटते समय दीपक की जेब भरी होती थी और घर वालों के लिए बहुत सा सामान भी होता था, जिस से सब उस से खुश रहते थे. दीपक के घर में उस की पत्नी मुक्ता के अलावा मातापिता और 2 छोटे भाईबहन थे. दीपक जब भी ट्रक ले कर घर से बाहर निकलता था, तो कभी 15 दिन तो कभी एक महीने बाद ही वापस आ पाता था. पर इस बार तो हद ही हो गई थी. वह पूरे 3 महीने बाद घर लौट रहा था. उस ने पूरे 10 दिनों की छुट्टियां ली थीं.

‘‘उस्ताद, ‘बाबा का ढाबा’ आने वाला है,’’ सुनील की आवाज सुन कर दीपक ने ट्रक की रफ्तार कम की, तभी सड़क के दाईं तरफ ‘बाबा का ढाबा’ बोर्ड नजर आने लगा. उस ने ट्रक किनारे कर के लगाया. वहां और भी 10-12 ट्रक खड़े थे.

यह ढाबा ट्रक ड्राइवरों और उन के क्लीनरों से ही गुलजार रहता था. इस समय भी वहां कई लोग थे. कुछ लोग आराम कर रहे थे, तो कुछ चारपाई पर पटरा डाले खाना खाने में जुटे थे. वहां के माहौल में दाल फ्राई और देशी शराब की मिलीजुली महक पसरी थी. ट्रक से उतर कर सुनील सीधे ढाबे के काउंटर पर गया, तो वहां बैठे ढाबे के मालिक सरदारजी ने उस का अभिवादन करते हुए कहा, ‘‘आओ बादशाहो, बहुत दिनों बाद नजर आए?’’

सुनील ने कहा, ‘‘हां पाजी, इस बार तो मालिकों ने हमारी जान ही निकाल ली. न जाने कितने चक्कर असम के लगवा दिए.’’

‘‘ओहो… तभी तो मैं कहूं कि अपना सुनील भाई बहुत दिनों से नजर नहीं आया. ये मालिक लोग भी खून चूस कर ही छोड़ते हैं जी,’’ सरदारजी ने हमदर्दी जताते हुए कहा.

‘‘पेट में चूहे दौड़ रहे हैं, फटाफट

2 दाल फ्राई करवाओ पाजी. मटरपनीर भी भिजवाओ,’’ सुनील ने कहा.

‘‘तुम बैठो चल कर. बस, अभी हुआ जाता है,’’ सरदारजी ने कहा और नौकर को आवाज लगाने लगे.

2 गिलास, एक कोल्ड ड्रिंक और एक नीबू ले कर जब तक सुनील खाने का और्डर दे कर दूसरे ड्राइवरों और क्लीनरों से दुआसलाम करता हुआ दीपक के पास पहुंचा, तब तक वह एक खाली पड़ी चारपाई पर पसर गया था. उसे हलका बुखार था.

‘‘क्या हुआ उस्ताद? सो गए क्या?’’ सुनील ने उसे हिलाया.

‘‘यार, अंगअंग दर्द कर रहा है,’’ दीपक ने आंखें मूंदे जवाब दिया.

‘‘लो उस्ताद, दो घूंट पी लो आज. सारी थकान उतर जाएगी,’’ सुनील ने अपनी जेब से दारू का पाउच निकाला और गिलास में डाल कर उस में कोल्ड ड्रिंक और नीबू मिलाने लगा. तब तक ढाबे का छोकरा उस के सामने आमलेट और सलाद रख गया था.

‘‘नहीं, तू पी,’’ दीपक ने कहा.

‘‘इस धंधे में ऐसा कैसे चलेगा उस्ताद?’’ सुनील बोला.

‘‘तुझे मालूम है कि मैं नहीं पीता. खराब चीज को एक बार मुंह से लगा लो, तो वह जिंदगीभर पीछा नहीं छोड़ती. मेरे लिए तो तू एक चाय बोल दे,’’ दीपक बोला. सुनील ने वहीं से आवाज दे कर एक कड़क चाय लाने को बोला. दीपक ने जेब से सिरदर्द की एक गोली निकाली और उसे पानी के साथ निगल कर धीरेधीरे चाय पीने लगा. बीचबीच में वह आमलेट भी खा लेता. जब तक उस की चाय निबटी. होटल के छोकरे ने आ कर खाना लगा दिया. गरमागरम खाना देख कर उस की भी भूख जाग गई. दोनों खाने में जुट गए. खाना खा कर दोनों कुछ देर तक वहीं चारपाई पर लेटे आराम करते रहे. अब दीपक को भी कोई जल्दी नहीं थी, क्योंकि दिन निकलने से पहले अब वह किसी भी हालत में घर नहीं पहुंच सकता था. एक घंटे बाद जब वह चलने के लिए तैयार हुआ, तो थोड़ी राहत महसूस कर रहा था. कानपुर पहुंच कर दीपक ने ट्रक ट्रांसपोर्ट पर खड़ा किया और मालिक से रुपए और छुट्टी ले कर घर पहुंचा. सब लोग बेचैनी से उस का इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही खुश हो गए.

मां उस के चेहरे को ध्यान से देखे जा रही थी, ‘‘इस बार तो तू बहुत कमजोर लग रहा है. चेहरा देखो कैसा निकल आया है. क्या बुखार है तुझे?’’

‘‘हां मां, मैं परसों भीग गया था. इस बार पूरे 10 दिन की छुट्टी ले कर आया हूं. जम कर आराम करूंगा, तो फिर से हट्टाकट्टा हो जाऊंगा,’’ कह कर वह अपनी लाई हुई सौगात उन लोगों में बांटने लगा. सब लोग अपनीअपनी मनपसंद चीजें पा कर खुश हो गए. मुक्ता रसोई में खाना बनाते हुए सब की बातें सुन रही थी. उस के लिए दीपक इस बार सोने की खूबसूरत अंगूठी और कीमती साड़ी लाया था. थोड़ी देर बाद एकांत मिलते ही मुक्ता उस के पास आई और बोली, ‘‘आप को बुखार है. आप ने दवा ली?’’

‘‘हां, ली थी.’’

‘‘एक गोली से क्या होता है? आप को किसी अच्छे डाक्टर को दिखा कर दवा लेनी चाहिए.’’

‘‘अरे, डाक्टर को क्या दिखाना? बताया न कि परसों भीग गया था, इसीलिए बुखार आ गया है.’’

‘‘फिर भी लापरवाही करने से क्या फायदा? आजकल वैसे भी डेंगू बहुत फैला हुआ है. मैं डाक्टर मदन को घर पर ही बुला लाती हूं.’’

दीपक नानुकर करने लगा, पर मुक्ता नहीं मानी. वह डाक्टर मदन को बुला लाई. वे उन के फैमिली डाक्टर थे और उन का क्लिनिक पास में ही था. वे फौरन चले आए. उन्होंने दीपक की अच्छी तरह जांच की और जांच के लिए ब्लड का सैंपल भी ले लिया. उन्होंने कुछ दवाएं लिखते हुए कहा, ‘‘ये दवाएं अभी मंगवा लीजिए, बाकी खून की रिपोर्ट आ जाने के बाद देखेंगे.’’ रात में दीपक ने मुक्ता को अपनी बांहों में लेना चाहा, तो उस ने उसे प्यार से मना कर दिया.

‘‘पहले आप ठीक हो जाइए. बीमारी में यह सबकुछ ठीक नहीं है,’’ मुक्ता ने बड़े ही प्यार से समझाया.

दीपक ने बहुत जिद की, लेकिन वह नहीं मानी. बेचारा दीपक मन मसोस कर रह गया. उस को मुक्ता का बरताव समझ में नहीं आ रहा था. दूसरे दिन मुक्ता डाक्टर मदन से दीपक की रिपोर्ट लेने गई, तो उन्होंने बताया कि बुखार मामूली है. दीपक को न तो डेंगू है और न ही एड्स या कोई सैक्स से जुड़ी बीमारी. बस 2 दिन में दीपक बिलकुल ठीक हो जाएगा. दीपक मुक्ता के साथ ही था. उसे डाक्टर मदन की बातें सुन कर हैरानी हुई. उस ने पूछा, ‘‘लेकिन डाक्टर साहब, आप को ये सब जांचें करवाने की जरूरत ही क्यों पड़ी?’’

‘‘ये सब जांचें कराने के लिए आप की पत्नी ने कहा था. आप 3 महीने से घर से बाहर जो रहे थे. आप की पत्नी वाकई बहुत समझदार हैं,’’ डाक्टर मदन ने मुक्ता की तारीफ करते हुए कहा.

दीपक को बहुत अजीब सा लगा, पर वह कुछ न बोला. दीपक दिनभर अनमना सा रहा. उसे मुक्ता पर बेहद गुस्सा आ रहा. रात में मुक्ता ने कहा, ‘‘आप को हरगिज मेरी यह हरकत पसंद नहीं आई होगी, पर मैं भी क्या करती, मीना रोज मेरे पास आ कर अपना दुखड़ा रोती रहती है. उसे न जाने कैसी गंदी बीमारी हो गई है. ‘‘यह बीमारी उसे अपने पति से मिली है. बेचारी बड़ी तकलीफ में है. उस के पास तो इलाज के लिए पैसे भी नहीं हैं.’’

दीपक को अब सारी बात समझ में आ गई. मीना उस के क्लीनर सुनील की पत्नी थी. सुनील को यह गंदी बीमारी देह धंधेवालियों से लगी थी. वह खुद भी तो हमेशा किसी अच्छे सैक्स माहिर डाक्टर की तलाश में रहता था. सारी बात जान कर दीपक का मन मुक्ता की तरफ से शीशे की तरह साफ हो गया. वह यह भी समझ गया था कि अब वक्त आ गया है, जब मर्द को भी अपनी वफादारी का सुबूत देना होगा.

खाली हाथ: क्या सही था कविता का फैसला

राम सिंह ने कुछ दिनों से बीमार चल रहे बाघ को उस दिन मांस खाते देखा, तो राहत की सांस ली. यह अच्छी खबर नीरज साहब को बताने के लिए वह चिडि़याघर के औफिस की तरफ चल पड़ा.

तभी उस की बगल से एक युवक तेज चाल से चलता हुआ गुजरा. उस युवक के गुस्से से लाल हो रहे चेहरे को देख रामसिंह चौंक पड़ा.

वह युवक एक लड़की और लड़के की तरफ बढ़ रहा था. रामसिंह ने इन तीनों को साथसाथ पहले कई बार चिडि़याघर में देखा था. तीनों उसे कालेज के विद्यार्थी लगते थे.

गुस्से से भरे युवक ने अपने साथी युवक को पीछे से उस के कौलर से पकड़ा और रामसिंह के देखते ही देखते उन दोनों के बीच मारपीट शुरू

हो गई.

‘‘अरे, लड़ो मत,’’ रामसिंह जोर से चिल्लाया और फिर उन की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया.

फिर उस ने उन युवकों को एकदूसरे से अलग किया. काफी चोट खा चुके थे. उन के साथ आई लड़की भय से कांप रही थी.

उन दोनों युवकों को फिर से लड़ने के लिए तैयार देख रामसिंह ने उन्हें सख्त लहजे में चेतावनी दी, ‘‘अगर तुम दोनों ने फिर से मारपीट शुरू की, तो पुलिस के हवाले कर देंगे. शांति से बताओ कि किस बात पर लड़ रहे थे?’’

उन दोनों ने एकदूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए. रामसिंह की समझ में बस उतना ही आया कि लड़ाई लड़की को ले कर हुई थी.

जिस युवक ने लड़ाई शुरू की थी उस का नाम विवेक था. दूसरा युवक संजय था और लड़की का नाम कविता था.

दरअसल, संजय करीब आधा घंटा पहले कविता को साथ ले कर कहीं गायब हो गया था. इस बात को ले कर विवेक बहुत खफा था.

रामसिंह को थरथर कांप रही कविता पर दया आई. उस ने उन दोनों को डपट कर पहले चुप कराया और फिर कहा, ‘‘तुम दोनों मेरे साथ औफिस तक चलो. सारी बातें वहीं होंगी और अगर रास्ते में झगड़े, तो खैर नहीं तुम दोनों की. तब पुलिस वालों के डंडे ही तुम्हें सीधा करेंगे.’’

रामसिंह की इस धमकी ने असर दिखाया और औफिस की इमारत तक पहुंचने के दौरान वे दोनों एक शब्द भी नहीं बोले.

नीरज चिडि़याघर में रिसर्च असिस्टैंट था. उस ने उन चारों को इमारत की तरफ आते खिड़की में से देखा तो उत्सुकतावश कमरे से बाहर आ कर बरामदे में खड़ा हो गया.

रामसिंह ने पास आ कर उसे रिपोर्ट दी, ‘‘साहब, ये दोनों लड़के बाघ के बाड़े के पास जानवरों की तरह लड़ रहे थे. लड़की साथ में है, इस बात का भी कोई शर्मलिहाज इन दोनों ने नहीं किया. ये तीनों यहां अकसर आते रहते हैं. अगर आप के समझने से न समझें, तो दोनों को पुलिस के हवाले कर देना सही होगा.’’

‘‘नहीं, पुलिस को मत बुलाना प्लीज,’’ कहते हुए कविता की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘पहले इन दोनों का हुलिया ठीक कराओ, रामसिंह. फिर इन्हें औफिस में ले कर आना,’’ नीरज ने रामसिंह से कहा. फिर कविता से कहा, ‘‘तुम मेरे साथ आओ,’’ और अंदर औफिस में चला गया.

उस के व्यक्तित्व ने संजय और विवेक को ऐसा प्रभावित किया कि वे दोनों बिना कुछ बोले रामसिंह के साथ चले गए. कविता पल भर को ?िझकी फिर हिम्मत कर के नीरज के पीछे औफिस में चली गई.

नीरज ने उसे पहले पानी पिलाया. फिर उस के कालेज व घर वालों के बारे में

हलकीफुलकी बातचीत कर उसे सहज बनाने की कोशिश की. फिर, ‘‘अब बताओ कि क्या मामला है? क्यों लड़े तुम्हारे ये सहपाठी आपस में?’’ कह कर नीरज ने हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए कविता से जानकारी मांगी.

‘‘सर, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है,’’ कविता ने धीमी आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘हम तीनों अच्छे दोस्त हैं, पर आज विवेक ने झगड़ा शुरू कर के मेरे दिल को चोट पहुंचाई है. वे दोनों ही आज अजीब सी बातें कर रहे थे.’’

‘‘कैसी अजीब सी बातें?’’

‘‘मैं कैसे बताऊं, सर… हमारे बीच हमेशा ही हंसीमजाक चलता रहता था. हलकेफुलके अंदाज में. दोनों फ्लर्ट भी कर लेते थे मेरे साथ… मुझ से प्रेम करने का दावा भी दोनों करते रहे हैं, पर मजाकमजाक में… लेकिन आज…आज…’’

‘‘आज क्या नया हुआ है?’’

‘‘सर, आज मुझे एहसास हुआ कि वे मजाक नहीं करते थे. दोनों मुझे अपनी प्रेमिका समझ रहे थे, जबकि मेरे दिल में किसी के भी लिए वैसी भावनाएं नहीं हैं. मैं तो उन्हें बस अच्छा दोस्त समझती रही हूं.’’

‘‘तुम्हें उन दोनों में कौन ज्यादा पसंद है?’’

‘‘ज्यादाकम पसंद वाली बात नहीं है. मेरे मन में, सर. वे दोनों ही मेरी नजरों में बराबर हैं.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि किस का व्यक्तित्व बेहतर है? क्या कमियां या अच्छाइयां हैं दोनों की?’’

कुछ पल खामोश रहने के बाद कविता ने कहा, ‘‘सर, विवेक अमीर घर का बेटा है. वह पढ़ने में तेज है और तहजीब से व्यवहार करता है.

‘‘संजय उस के जितना स्मार्ट तो नहीं है,

पर दिल का ज्यादा अच्छा है. क्रिकेट और फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी है. उसे गुस्सा कम आता है, लेकिन आज उसे गुस्से में देख कर मैं डर गई थी.’’

‘‘झगड़ा तुम्हारे कारण हुआ है, यह तो तुम समझ रही हो न?’’

‘‘जी, लेकिन मैं ने उन दोनों को कभी गलत ढंग से बढ़ावा नहीं दिया है, सर. मैं करैक्टरलैस लड़की नहीं हूं.’’

‘‘अब क्या करोगी? मेरी समझ से कि ये दोनों आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे. तुम दोनों में से किसी से भी प्रेम नहीं करती हो, तुम्हारा ऐसा कहना इन दोनों को तुम से दूर नहीं कर पाएगा.’’

‘‘अगर ये नहीं समझेंगे, तो मैं इन से

दोस्ती खत्म कर लूंगी,’’ कविता ने गुस्से से

जवाब दिया.

‘‘मेरी बातों का बुरा मत मानना, कविता. मैं जो कुछ तुम्हें समझ रहा हूं, वह तुम्हारे भले के लिए ही है. देखो, कोई लड़का प्रेम को ले कर गलतफहमी का शिकार न बने, इस की जिम्मेदारी लड़की को अपनी ही माननी चाहिए. आज के समय में हर इंसान तनाव से भरा जीवन जी रहा है. ऊपर से उस के मन में पुलिस, कानून आदि का खास भय भी नहीं है.

‘‘किसी गुमराह प्रेमी ने लड़की के मुंह पर तेजाब फेंका या उसे जान से मार डाला जैसी खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं. मुझे उम्मीद है कि तुम भविष्य में ज्यादा समझदारी दिखाओगी. लेकिन अभी तुम चुप रहना, मैं तुम्हारे दोस्तों को प्यार से समझने की और कुछ डर दिखा कर सही व्यवहार करने की समझ देने की कोशिश करता हूं.’’

नीरज की इन बातों को सुन कर कुछ शर्मिंदा सी नजर आ रही कविता ने अपनी नजरें फर्श की तरफ झका लीं.

रामसिंह के साथ जब विवेक और संजय ने औफिस में कदम रखा, तो दोनों ही कुछ तनावग्रस्त और सहमे से नजर आ रहे थे. उन के कुरसी पर बैठ जाने के बाद नीरज ने उन के साथ बात शुरू की.

‘‘क्या तुम दोनों अपनेअपने घटिया व्यवहार के लिए शर्मिंदा हो?’’ नीरज ने दोनों को घूरते हुए सख्त स्वर में सवाल पूछा.

‘‘जी हां, हमें लड़ना नहीं चाहिए था,’’ विवेक ने धीमे, दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारा क्या जवाब है?’’ उस ने संजय से पूछा.

‘‘यह मुझ पर हाथ न छोड़ता, तो लड़ाई क्यों होती?’’ संजय की आंखों में गुस्सा भड़क उठा.

‘‘क्यों छोड़ा इस ने तुम पर हाथ?’’

‘‘यह गलतफहमी का शिकार था, सर. कविता और मैं जानबूझ कर इस से अलग नहीं हुए थे.’’

‘‘मुझे लगता है कि तुम दोनों ही कविता को ले कर जबरदस्त गलतफहमी के शिकार बने हुए हो. क्या इस ने तुम में से किसी को कभी अपना प्रेमी माना है?’’

वे दोनों जवाब में खामोश रहे तो नीरज ने कुछ शांत लहजे में उन्हें समझना शुरू किया,

‘‘हम इंसानों को प्यारमुहब्बत के मामले में जानवरों से ज्यादा समझदारी दिखानी चाहिए. पर तुम दोनों ने बड़ा घटिया व्यवहार दिखाया है. दोस्तों के बीच जो आपसी भरोसा होता है, उसे तोड़ा है तुम दोनों ने.

‘‘मैं यहां जानवरों के व्यवहार और आदतों पर रिसर्च कर रहा हूं. ये जानवर प्रेम में जोरजबरदस्ती नहीं करते. बहुत कुछ सीख

सकता है आज का मनुष्य इन जानवरों से.

‘‘भारीभरकम गैंडा बहुत सहनशक्ति

दिखाता है मादा का दिल जीतने के लिए.

15-20 दिनों तक इंतजार करता है मादा की रजामंदी का. मादा नर को खदेड़ती रहती है.

पर वह गुस्सा नहीं होता… हिंसा का रास्ता

नहीं अपनाता.

‘‘बाघों में मादा की रुचि सर्वोपरि होती है. वही पहल कर अपनी दिलचस्पी नर में दर्शाती है. हम इंसानों को भी लड़की की इच्छा व पसंद को महत्त्व देना चाहिए या नहीं?

‘‘भेडि़यों के बारे में जानना चाहोगे? सरदार भेडि़या आजीवन 1 मादा के साथ जुड़ा रहता है. वफादारी सीख सकते हैं हम इन भेडि़यों से. हंसीमजाक में फ्लर्ट करना प्रेम नहीं है, मित्रो. यों एकदूसरे को लहूलुहान कर प्रेम का प्रदर्शन न करो. ऐसा करना तो उस पवित्र भावना का मजाक उड़ाना होगा.

‘‘कविता तुम्हारे साथ पढ़ती है… तुम दोनों की दोस्त है. उसे अपने गलत व्यवहार से मानसिक कष्ट पहुंचा कर उस का दिल तो तुम दोनों क्या जीतोगे, उलटे उस की दोस्ती से भी हाथ धो बैठोगे. मेरी बात समझ रहे हो न तुम दोनों?’’

‘‘जी,’’ विवेक और संजय दोनों के मुंह से एकसाथ यह शब्द निकला.

‘‘गुड. चलो अब तुम दोनों हाथ मिलाओ.’’

संजय और विवेक ने उठ कर हाथ मिलाया और फिर गले भी लग गए. कविता ने मुसकरा कर

नीरज को आंखों से धन्यवाद दिया और फिर जाने को उठ खड़ी हुई.

नीरज के आदेश पर रामसिंह उन तीनों  को छोड़ने के लिए बाहर तक गया. कुछ दूर जा कर उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि उस के साहब बरामदे में खड़े उन की तरफ ही देख रहे थे.

तभी कविता ने भी पीछे मुड़ कर देखा और नीरज को अपनी तरफ देखता पा कर उस ने हाथ हवा में उठा कर हिलाया. नीरज ने उस के अभिवादन में दूर से अपना हाथ बड़े जोशीले अंदाज में हिलाया.

इस घटना के लगभग 3 महीने बाद विवेक और संजय की चिडि़याघर में औफिस के

सामने रामसिंह से अगली मुलाकात हुई.

उन दोनों ने रामसिंह को अभिवादन कर हाथ मिलाए. फिर संजय बोला, ‘‘रामसिंह, कविता ने हम से 12 बजे यहां मिलने का प्रोग्राम फोन पर तय किया था. वह आई नहीं है क्या अभी तक?’’

‘‘वह आई तो थी लेकिन अब यहां नहीं है. पर मिठाई का डब्बा तो है. मैं अभी मुंह मीठा कराता हूं तुम दोनों का,’’ रामसिंह बहुत खुश नजर आ रहा था.

‘‘किस बात के लिए मुंह मीठा कराओगे, रामसिंह?’’ संजय उलझन का शिकार बन गया.

‘‘कविता कहां चली गई है?’’ विवेक ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘अरे, तुम दोनों को खबर नहीं है क्या?’’ रामसिंह चौंक पड़ा.

‘‘कैसी खबर?’’ विवेक और ज्यादा परेशान हो उठा.

‘‘भाई तुम लोग कब से कविता मैडम से नहीं मिले हो?’’

‘‘पिछले दिनों परीक्षाएं चल रही थीं, इसलिए परीक्षा के दिन ही मिल पाते थे. जो खबर है, उसे तो बताओ.’’

‘‘तुम दोनों को सचमुच कोई अंदाजा नहीं है कि मैं क्या खबर सुनाऊंगा… क्यों मुंह मीठा कराने की बात कर रहा हूं?’’

‘‘रामसिंह, अगर आप पहेलियां नहीं बुझओगे, तो मेहरबानी होगी,’’ विवेक

अचानक चिढ़ गया और उस की आवाज तीखी हो गई.

रामसिंह रहस्यमय अंदाज में कुछ देर

तक मुसकराने के बाद उन से बोला, ‘‘लगता

है कि मुझे सारी बातें शुरू से ही तुम्हें बतानी पड़ेंगी, नहीं तो तुम दोनों की समझ में कुछ

नहीं आएगा.’’

‘‘अब बताना शुरू भी कीजिए प्लीज.’’

‘‘तो सुनो. जब तुम दोनों यहां आपस में झगड़े थे, तो उस दिन मैं तुम सब को बाहर तक छोड़ने गया था. तुम दोनों बस से गए थे जबकि कविता मैडम को मैं ने औटो से भेजा था. उन के पास पैसे नहीं थे इसलिए मैं ने उन्हें क्व100 का नोट किराए के लिए दिया था. ये सब याद है न तुम दोनों को?’’

वे दोनों खामोश रहे, तो रामसिंह ने

आगे बोलना शुरू किया, ‘‘वही 100 रुपए

लौटाने के लिए कविता मैडम 3 दिन बाद

अकेली यहां आई थीं. तुम दोनों की आंखों में हैरानी के भाव देख कर मैं इस वक्त यह अंदाजा लगा रहा हूं कि उन्होंने यहां आने की बात तुम दोनों को कभी नहीं बताई. क्या मैं गलत कह

रहा हूं?’’

‘‘नहीं, पर उसे… खैर, आगे बोलो, रामसिंह,’’ विवेक अपने दोस्त संजय की तरह ही तनाव का शिकार बना हुआ था.

‘‘मेरी बातें सुन कर अपना दिल न

दुखाना तुम दोनों. देखो, जो भी होना होता है,

वह होता है. उस दिन कविता मैडम ने लंच

यहीं हमारे नीरज साहब के साथ किया था.

वह 4-5 दिन बाद फिर आई तो हमारे साहब

के लिए गोभी के परांठे अपने घर से बना कर लाई थी.

‘‘साहब ने जीवविज्ञान में पीएच.डी. कर रखी है और तुम सब इसी विषय में बी.एससी. कर रहे हो. आगे यह हुआ कि कविता मैडम सप्ताह में 2 बार साहब से पढ़ने के लिए आने लगीं.

‘‘उन दोनों के बीच इन बढ़ती मुलाकातों का नतीजा क्या निकला, वह बात वैसे तो खुशी की है, पर मुझे लग रहा है कि तुम दोनों का उसे सुन कर दिल बैठ जाएगा.

‘‘लेकिन सच तो मालूम पड़ना ही चाहिए. कल हमारे साहब और कविता मैडम की सगाई हो गई है. उसी खुशी में यहां सब मिठाई खा रहे हैं. कविता मैडम कुछ देर पहले साहब के साथ घूमने निकल गई है. शायद दिमाग से उतर गया होगा कि तुम दोनों पुराने दोस्तों को मिलने के लिए उन्होंने यहां बुलाया हुआ है. खैर मुंह मीठा कराने को मैं मिठाई…’’

‘‘वह लड़की तो…,’’ विवेक ने अचानक कविता को कुछ कहना चाहा तो रामसिंह को भी गुस्सा आ गया.

‘‘अब आगे जबान संभाल कर बोलना. कविता मैडम के लिए कोई गलत बात मैं नहीं सुनूंगा,’’ रामसिंह ने कठोर लहजे में विवेक को चेतावनी दी.

‘‘कविता ने हम दोनों को अंधकार में रख कर अच्छा नहीं किया है, रामसिंह. वह प्यार का अभिनय हमारे साथ भी करती थी. उस दिन हम आपस में यों ही नहीं लड़े थे. वह उतनी सीधी है नहीं जितनी दिखती है,’’ संजय ने मायूस से लहजे में पहले अपने दिल की पीड़ा जाहिर की और फिर विवेक के कंधे दबा कर उसे शांत रहने को समझने लगा.

‘‘मुझे तुम दोनों से गहरी सहानुभूति है,’’ रामसिंह का गुस्सा ठंडा पड़ने लगा, ‘‘उस दिन तुम आपस में न लड़ते, तो कविता मैडम तुम दोनों के ही साथ होतीं क्योंकि हमारे साहब से उन की मुलाकात ही न हुई होती.

‘‘हमारे साहब तुम दोनों से ज्यादा समझदार व होशियार निकले. न खून बहाया, न रुपए लुटाए लेकिन कविता मैडम को पा लिया.

‘‘तुम दोनों तो आपसी झगड़ों में ताकत खर्च करते रहे और कमजोर पड़ गए. साहब ने उन का दिल जीता और उन्हें पा लिया. आदमी की असली ताकत अब उस की बुद्धि है, न कि मजबूत मांसपेशियां. तुम दोनों खाली हाथ

मलते रह गए. इस का मुझे अफसोस है… पर आगे तुम जरा समझदारी से काम लेना. हमारे साहब की तरह कोई अच्छी लड़की कल को तुम्हारे साथ भी जरूर होगी. अब मैं मिठाई का डब्बा लाता हूं.’’

रामसिंह औफिस में से डब्बा ले कर बाहर आया तो विवेक और संजय वापस जा चुके थे.

‘‘बेचारे,’’ उस ने इस शब्द से उन दोनों के प्रति सहानुभूति दर्शायी और फिर उन्हें भुला कर काजू की 2 बरफियां इकट्ठी मुंह में रख कर बड़े स्वाद से खाने लगा.

एक मासूम सी ख्वाहिश: रवि को कौनसी लत लगी थी

 कहानी- कीर्ति प्रकाश

योंतो रवि और प्रेरणा की शादी अरेंज्ड मैरिज थी, मगर सच यही था कि दोनों एकदूसरे को शादी से 3 साल पहले से जानते थे और एकदूसरे को पसंद करते थे. दिल में एकदूसरे को जगह दी तो फिर कोई और दिल में न आया. दुनिया एकदूसरे के दिल में ही बसा ली सदा के लिए.

सब के लिए एक नियत वक्त आता है और इन दोनों के जीवन में भी वह नियत खूबसूरत वक्त आया जब मातापिता, समाज ने इन्हें पतिपत्नी के बंधन में बांध दिया.

जीवन आगे बढ़ा और प्यार भी. रवि और प्रेरणा के बीच हर तरह की बात होती. अमूमन पतिपत्नी बनने के बाद ज्यादातर जोड़ों के बीच बहुत सारी बातें खत्म हो जाती हैं. मसलन, राजनीति, खेलकूद, देशदुनिया, साइंस, कैरियर, हंसीमजाक आदि. मगर इन के बीच सबकुछ पहले जैसा था. हंसीमजाक, ठिठोली, वादविवाद, एकदूसरे की टांग खिंचाई, एकदूसरे की खास बातों में सलाह देनालेना, साथ घूमनाफिरना, एक ही प्लेट में खाना, एकदूसरे का इंतजार करना आदि सबकुछ बहुत प्यारा था रवि और प्रेरणा के बीच. ऐसा नहीं कि रवि और प्रेरणा के  झगड़े न होते हों. होते थे मगर वैसे ही जैसे दोस्त लड़ते झगड़ते, मुंह फुलाते और आखिर में वही होता, चलो छोड़ो न यार जाने दो न. सौरी बाबा… माफ कर दो न. गलती हो गई और दोनों एकदूसरे को गले लगा लेते.

रवि और प्रेरणा की छोटी सी प्यारी सी गृहस्थी थी. शादी को 6 साल हो गए थे. अनंत 2 साल का हो गया था. अब एक और मेहमान बस 4-5 महीनों में आने वाला था. जीवन की बगिया महक रही थी. रवि प्रेरणा का बहुत खयाल रखता था. प्रेरणा ने भी जीवन के हर पल में रवि को हद से ज्यादा प्यार किया. शादी के 6 साल बाद भी यों लगता जैसे अब भी दोनों प्यार में हैं और जल्द से जल्द एकदूसरे के जीवनसाथी बनना चाहते हों. रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों के अलावा शायद ही कोई सम झ पाता था कि दोनों पतिपत्नी हैं. हां, अनंत के कारण भले ही अंदाज लगा लेते थे वरना नहीं.

अब सबकुछ अच्छा चल रहा था. कहीं कोई कमी न थी. फिर भी जाने क्यों कभीकभी प्रेरणा उदास हो जाती. रवि शायद ही कभी उस के उदास पल देख पाता और कभी दिख भी जाते तो प्रेरणा कहती, ‘‘कुछ नहीं, यों ही.’’

प्रेम चीज ही ऐसी है जो स्व का त्याग कर दूसरे को खुश रखने की कला सिखा ही देती है. मगर इन सब बातों के बीच एक ऐसी बात थी, एक ऐसी आदत रवि की जिसे प्रेरणा कभी दिल से स्वीकार नहीं कर सकी. हालांकि उस ने कोशिश बहुत की. उस ने कई बार रवि से कहा भी, बहुत मिन्नतें भी कीं कि प्लीज इस आदत को छोड़ दो. यह हमारी प्यारी गृहस्थी, हमारे रिश्ते, हमारे अगाध प्यार के बीच एक दाग है. कहतेकहते अब 6 साल बीतने को थे. रवि ने न जाने उस आदत को खुद नहीं त्यागना चाहा या फिर उस से हुआ नहीं, पता नहीं. जबकि कहते हैं कि दुनिया में जिंदगी और मौत के अलावा बाकी सबकुछ संभव है. महान गायिका लताजी का यह गाना सुन कर मन को बहला लेती, ‘हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता…’

नन्हे मेहमान के आगमन में बस 2 महीनों की देरी थी. रवि जल्दी घर आता. प्रेरणा को बहुत प्यार देता. अनंत भी खुश था, क्योंकि उसे बताया गया कि मम्मी तुम्हारे लिए जल्द ही एक बहुत ही सुंदर गुड्डा या गुडि़या लेने जाएंगी जो तुम्हारे साथ खेलेगी भी, दौड़ेगी भी और बातें भी करेगी. अनंत को गोद में लिए रवि प्रेरणा के साथ बैठ घंटों दुनियाजहान की बातें करता. प्रेरणा हर वक्त खुश थी पर कभीकभी अनायास पूछ बैठती, ‘‘रवि, तुम सच में अपनी आदत नहीं छोड़ सकते?’’

रवि उस के हाथ थाम फिर वही बात दोहरा देता जो पिछले 6 सालों से कहता आ रहा था, ‘‘बस 2-4 दिन दे दो मु झे. सच कहता हूं इस बार पक्का. तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’’

प्रेरणा कसक भरी मुसकान के साथ सिर हिला देती, ‘‘ओके, प्लीज, इस बार जरूर.’’

रवि प्यार से प्रेरणा के माथे को चूम लेता, कभी गालों पर थपकी दे कर कहता, ‘‘इस बार पक्का प्रौमिस.’’

बात फिर खत्म हो जाती.

एक शाम अचानक प्रेरणा का बहुत दिल किया कि आज आइसक्रीम

खाने चलते हैं. वैसे भी 2-3 महीनों से कहीं निकली नहीं थी. रवि ने कहा, ‘‘मैं घर ही ले आता हूं.’’

प्रेरणा नहीं मानी. तीनों तैयार हो कर आइसक्रीमपार्लर चले गए. आइसक्रीम खाते हुए बहुत खुश थे तीनों. होनी कुछ और लिखी गई थी, जिस का समय नजदीक था. तीनों घर आए. अनंत तो आते ही सो गया. प्रेरणा के दिल में आज फिर एक सोई हुई ख्वाहिश जगी. उस ने रवि का हाथ पकड़ कर अपनी ओर प्यार से खींचते हुए कहा, ‘‘रवि, सुनो न एक बात… इधर आओ तो जरा.’’

मगर रवि ने पुरानी आदत के अनुसार हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘रुको प्रेरणा. बस 5 मिनट, मैं अभी आया,’’ और फिर बालकनी में चला गया और सिगरेट पीने लगा.

अचानक प्रेरणा की तेज चीख सुन कर रवि दौड़ा. प्रेरणा बाथरूम में लहूलुहान पड़ी थी. अब बस उस की आंखें कुछ कह रह थीं पर उस के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी. रवि के प्राण ही सूख चले. उस ने बिना देर किए ऐंबुलैंस बुलाई और प्रेरणा को कुछ ही पलों में हौस्पिटल पहुंचाया गया. तत्काल इलाज शुरू हुआ. रवि अब तक अपने मातापिता और प्रेरणा के घर वालों को भी खबर कर चुका था. सभी आ गए. सभी प्रेरणा के लिए चिंतित और दुखी थे.

उधर अनंत घर में अकेला था. सिर्फ नौकरों के भरोसे छोटा बच्चा नहीं रह सकता, इसलिए रवि की मां को घर जाना पड़ा. इधर डाक्टर प्रेरणा की कंडीशन को अब भी खतरे में बता रहे थे. बच्चा पेट में खत्म हो गया था. औपरेशन कर दिया था. अब प्रेरणा को बचाने की कोशिश में जुटे थे. थोड़ी देर में अनंत को ले कर मां पुन: हौस्पिटल आईं. मां ने रवि के हाथ में एक पेपर देते हुए कहा, ‘‘यह तकिए के नीचे रखा था शायद… अनंत के हाथ में खेलते हुए आ गया. कोई जरूरी चीज हो शायद यह सोच मैं लेती आई.’’

मां पढ़ना नहीं जानती थीं सो रवि पढ़ने लगा.

उस ने पहचान लिया. प्रेरणा की लिखावट थी और जगहजगह स्याही ऐसे बिखरी हुए थी कि लग रहा था उस ने रोतेरोते ही ये सब लिखा है. अरे यह तो अभी शाम को लिखा है उस ने… क्योंकि प्रेरणा की आदत सभी जानते हैं. वह कुछ भी लिखती है तो उस पर अपने साइन कर के नीचे तारीख और समय भी लिखती है. मतलब कि जब रवि थोड़ी देर के लिए सिगरेट पीने बालकनी में गया था तभी प्रेरणा ने यह लिखा था.

कागज में लिखा था, ‘पता है रवि जब प्यार में हम दोनों सराबोर हुए थे पहली बार… जब हम पहली बार अपनेअपने दिल की बात एकदूसरे से कहने को मिले थे, जो शायद हमारे प्यार की पहली ही शाम थी, उस दिन हम ने समंदर किनारे बने उस कौफीहोम में समंदर की लहरों को साक्षी मान कर एकदूसरे से पूछा था कि हम एकदूसरे को ऐसा क्या दे सकते हैं जो सच में बहुत नायाब हो. मैं ने कहा पहले आप कहो रवि. याद है रवि आप ने क्या कहा था? आप को तो शायद याद ही नहीं है, लेकिन मैं एक पल को भी नहीं भूली. आप ही ने कहा था रवि कि मैं तुम्हारी आंखों से अपनी आंखों को जोड़ना चाहता हूं. बोलो दोगी मु झे यह तोहफा? मैं ने आप की आंखों में प्यार की सचाई देखी थी. उस एक पल में मैं ने आप के साथ अपना पूरा जीवन देख लिया था. ऐसे तोहफे आप मांगेंगे यह कल्पना तो नहीं की थी, लेकिन आप की इस ख्वाहिश ने ही मु झे भी यह ख्वाहिश दे दी कि मैं आप की यह इच्छा जरूर पूरी कर दूं. दिल में तो आया था कि अभी ही पूरी कर दूं. पर मैं शादी के बाद आप की यह इच्छा जरूर पूरी करूंगी, मैं ने सोच लिया था. लेकिन साथ ही यह भी था कि मु झे आप का सिगरेट पीना बरदाश्त न था मैं ने अपने घरपरिवार में कभी ये सब देखासुना नहीं था.

‘मु झे इस के धुएं से, इस की अजीब सी स्मैल से हद से ज्यादा नफरत थी. मेरा दम घुटने को हो आता है इस से. फिर भी मैं ने नजरें नीची कर के कहा कि सही वक्त आने पर आप को यह तोहफा जरूर दूंगी. आप की आंखें खुशी से चमक उठी थीं. मु झे बहुत अच्छा लगा था रवि. फिर आप ने मु झ से पूछा कि तुम्हें मु झ से क्या चाहिए? याद है रवि, मैं ने एक ही चीज मांगी थी. रवि आप सिगरेट पीना छोड़ दो. इस के अलावा मु झे सारी जिंदगी कुछ और नहीं चाहिए. आप ने कहा बस 1 सप्ताह बाद तुम मु झे सिगरेट पीते नहीं देखोगी. मैं कितनी खुश हुई थी, आप इस का अंदाजा नहीं लगा सकते. लेकिन आप ने पलट कर यह नहीं पूछा कि मु झे यही तोहफा नायाब क्यों लगा? मैं ने बताया भी नहीं. जानते हो रवि क्यों नहीं मांगा था मैं ने ताकि मैं आप की ख्वाहिश पूरी कर सकूं. हां रवि, आप की सांसों से अपनी सांसों को जोड़ने की ख्वाहिश मेरे मन में भी जग चुकी थी. पर आप की सिगरेट पीने की आदत ने मु झे यह कभी करने न दिया.

‘मु झे आप से बहुत प्यार मिला है रवि बहुत सम्मान मिला है. सच है कि आप को जीवनसाथी पा कर मैं इस जहान में खुद को सब से ज्यादा खुशहाल पाती हूं. हमारी एकदूसरे से नजदीकियां तो शरीर और मन की तरह हैं रवि. पर बेहद अजीब है न कि इतने करीब हो कर भी वह पल नहीं आ पाया कि मेरा वादा और मेरी एक छोटी सी ख्वाहिश पूरी हो सके.

‘शादी के बाद इन 6 सालों में आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया पर अफसोस मेरी एक छोटी सी यह ख्वाहिश आज भी अधूरी है. कितनी बार मैं ने चाहा, मगर हर बार जब भी आप की सांसों का हमकदम बनना चाहा हर बार वही सिगरेट की अजीब सी गंध ने मु झे मुंह फेर लेने को मजबूर किया. लेकिन आप ने कभी यह सम झने की कोशिश नहीं की. क्या कोई यकीन कर सकता है रवि कि पतिपत्नी हो कर, 1 बच्चे के मातापिता हो कर भी हम एकदूसरे के होंठों के स्पर्श को नहीं जानते. लोग हंसेंगे कि यह क्या बकवास है. भला 6 साल के दांपत्य जीवन में ऐसा पल न आया हो. मैं कैसे कहूं कि यह हमारे अटूट बंधन, गहरे प्रेम के बीच एक दाग की तरह है, मगर सच है आप नहीं सम झोगे रवि. लेकिन मैं अब सम झ गई हूं कि आप मु झे भी शायद छोड़ सकते हो, लेकिन सिगरेट को नहीं, कभी नहीं. मैं फिर आज इसलिए लिख रही हूं रवि क्योंकि आज हद से ज्यादा दिल मचल गया था और लगा था कि आप ने आज तो बहुत देर से सिगरेट नहीं पी है. शायद आज एक बार ही सही मेरी ख्वाहिश पूरी हो जाएगी. लेकिन आज भी आप हाथ छुड़ा कर सिगरेट उठा कर चल दिए.

‘मैं रोना चाहती हूं चीखचीख कर पर नहीं रो सकती, शायद हमारे अगाध प्रेम में यह शोभनीय नहीं होगा. मैं बांटना चाहती हूं अपना यह दर्द, मगर क्या यह किसी से कहना उचित लगेगा? बेहद अपमानित महसूस करने लगी हूं आप की सिगरेट के सामने अपनेआप को. कोई तरीका नहीं है मेरे पास अपनी इस अधूरी ख्वाहिश का दर्द बांटने के लिए सिवा इस के कि पन्ने पर उतार कर दिल हलका कर लूं, जबकि जानती हूं पहले की ही तरह कुछ देर बाद इसे भी फाड़ कर फेंक दूंगी पर कोई बात नहीं दिल तो हलका हो जाता है. आई लव यू रवि, लव यू औलवेज.’

पढ़तेपढ़ते रवि आंसुओं में डूब गया. उसे आज एहसास हुआ कि

उस की सिगरेट की लत के कारण क्या से क्या हो गया.

रवि के सिगरेट ले कर चले जाने के कारण प्रेरणा को आज बहुत ज्यादा बुरा लगा. उस की आंखों से आंसू छलक आए. उस ने पेपर और पैन उठाया और

अपने मन की सारी बात उस कागज पर लिख कर अपने मने को हलका कर लिया. जब तक रवि सिगरेट खत्म कर के कमरे में वापस आने वाला था. प्रेरणा का चेहरा आंसुओं से भीग गया था. वह उठ कर हाथमुंह धोने चली गई. जब वह वाशरूम से वापस आने लगी तो अचानक उस का पैर फिसल गया. यह उस की संतप्त मन की मंशा थी या प्रैगनैंसी के कारण उसे चक्कर आया होगा या फिर उस की जीवन की इतनी ही अवधि तय थी यह तो कुदरत को ही पता था या फिर खुद प्रेरणा को.

रवि पागलों की तरह डाक्टर से कह रहा था, ‘‘मेरी प्रेरणा को बचा लो. मेरा सबकुछ ले लो… मेरी जान भी उसे दे दो, मगर बचा लो उसे.’’

मगर यह नहीं हो सका. 8 घंटे के अथक प्रयास के बाद डाक्टरों ने आकर कहा, ‘‘हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन हम हार गए. प्रेरणा के पास अब ज्यादा समय नहीं. उस से मिल लें आप लोग.’’

रवि बदहवास प्रेरणा के पास पहुंचा. प्रेरणा की आंखें शून्यता से भरी थीं. रवि ने उस का हाथ थामा और पागलों की तरह कहने लगा, ‘‘प्रेरणा मु झे छोड़ कर मत जाओ… मत जाओ प्रेरणा… मैं तुम्हारी हर बात मान लूंगा आज से, अभी से. अब नहीं टालूंगा 1 सैकंड भी नहीं. बस मत जाओ… मत जाओ मु झे छोड़ कर.’’

प्रेरणा की आंखें रवि के चेहरे पर टिक गईं. वह बड़ी मुश्किल से जरा सा मुसकराई और फिर अपने होंठों पर एक मासूम सी ख्वाहिश सजा हमेशा के लिए खामोश हो गई.

विध्वंस के अवशेष से: क्या हुआ था ईला के साथ

‘‘घरके बाहर का दरवाजा खुला हुआ है पर किसी को इस का ध्यान नहीं, सभी मां के कमरे में बैठ कर गप्पें मार रहे होंगे. आजकल कालोनी में दिनदहाड़े ही कितनी चोरियां हो रही हैं… इन्हें पता हो तब न,’’ औफिस से लौटी ईला बड़बड़ाते हुए अपनी मां के कमरे के दरवाजे को खोलने ही जा रही थी कि अंदर से आती हुई आवाजों ने उस के पैरों को वहीं रोक दिया.

उस का छोटा भाई शिबु गुस्से से मां से कह रहा था ‘‘देखो मां, आगे से मैं यहां आने वाला नहीं हूं, क्योंकि कालोनी में दीदी के बारे में फैली बातों को सुन कर मैं शर्म से गड़ा जा रहा हूं… किसी भी दोस्त से आंख उठा कर बात नहीं कर सकता.

‘‘क्या जरूरत है दीदी को सुरेश साहब के साथ टूर पर जाने की? अपनी नहीं तो हमारी मर्यादा का तो कुछ खयाल हो.’’

मां कुछ देर तक चुपचाप शिबु को निहारती रहीं, फिर अपनी भीगी आंखों को अपने आंचलसे पोंछते हुए बोलीं, ‘‘करूं भी तो क्या करूं? घर की सारी जिम्मेदारियां उठा कर उस ने मेरे मुंह पर ताला ही लगा दिया है… जब भी कुछ कहो तो ज्वालामुखी बन जाती है. मेरा तो इस घर में दम घुट रहा है. आत्महत्या कर लेने की धमकी देती है. इस बार मैं तुम्हारे साथ ही यहां से चल दूंगी. रहे अकेली इस घर में. माना कि बाप की सारी जिम्मेदारियों को उठा लिया तो क्या सिर चढ़ कर इस तरह नाचेगी कि सभी के मुंह पर कालिख पुत जाए? यही सब गुल खिलाने के लिए पैदा हुई थी?

‘‘कितने रिश्ते आए, लेकिन उसे कोई पसंद नहीं आया… अब इतनी उम्र में किसी कुंआरे लड़के का रिश्ता आने से रहा… उस पर बदनामियों का पिटारा साथ है.’’

मां और भाई के वार्त्तालाप से ईला को क्षणभर के लिए ऐसा लगा कि किसी ने उस के कानों में जैसे पिघला सीसा डाल दिया हो. ईला बड़ी मुश्किल से अपनी रुलाई रोकने की कोशिश कर रही थी कि तभी छोटी बहन नीला बोलना शुरू हो गई, ‘‘दीदी और सुरेश के संबंधों की कहानी मेरी ससुराल की देहरी पर भी पहुंच गई है. सास ताना देती है कि कैसी बेशर्म है… देवर सुनील हमेशा मेरी खिंचाई करते कहता रहता है कि अरे भाभी उस फैक्टरी में आप की दीदी की बड़ी चलती है. उस से कहा कि सुरेश साहब से कह कर मेरी नौकरी लगवा दे. अनिल भी चुटकियां लेने से बाज नहीं आता. सच में उन की बातें सुन शर्म से गड़ जाती हूं.’’

‘‘समधियाना में भी कोई इज्जत नहीं रह गई है किसी की… ऐसी बातें तो हजारों पंख लगा कर उड़ती हैं. मजाल है कि कोई उसे कुछ समझ सके,’’ नहले पर दहला जड़ते हुए मां की बातों ने तो जैसे ईला को दहका कर ही रख दिया.

‘‘क्यों हमें बहुत सीख देती थी… ऐसे रहो, ऐसा करो, यह पहनो, वह नहीं पहनो… लड़कों से ज्यादा बात नहीं करते… खुद पर इन बातों को क्यों लागू नहीं करतीं?’’

नीला के शब्द ईला के कलेजे के आरपार हो रहे थे.

‘कृतघ्नों की दुनिया संवारने में सच में मैं ने अपने जीवन के सुनहरे पलों को गंवा दिया,’ सोच ईला रो पड़ी. फिर सभी के प्रत्यारोपों के उत्तर देने के लिए कमरे में जाने लगी ही थी कि सब से छोटी बहन मिली की बातों ने उस के बढ़ते कदम रोक दिए.

‘‘मेरी ससुराल वाले भी इन बातों से अनजान नहीं हैं… प्रत्यक्ष में तो कुछ नहीं कहते, लेकिन पीठ पीछे छिछले जुमले उछाल ही देते हैं.

‘‘अमित कह रहे थे कि अब तुम सभी को मिल कर अपनी दीदी का घर बसा देना चाहिए… तुम लोगों के लिए उन्होंने जो किया उस के समक्ष इन सब बेकार बातों का कोई अर्थ नहीं है… शिबु को बोलो कि बहन की शादी करे और मां को अपने पास ले जाए. अब हम सभी को मिल कर जल्द से जल्द कुछ कर लेना चाहिए अन्यथा यह समय भी रेत की तरह हाथों से फिसल जाएगा.’’

‘‘तो कहो न अमित से कि वही कोई अच्छा रिश्ता ढूंढ़ दे… बड़ा लैक्चर देता है,’’ शिबु और नीला की गरजना से पूरा कमरा गूंज उठा.

‘चलो कोई तो ऐसा है जो उस के त्याग, उस की तपस्या को समझ सका,’ सोच ईला दरवाजा खोल अंदर चली गई.

अचानक ईला को सामने देख कर सब अचंभित हो गए… सब की बोलती बंद हो गई.

अपनेआप पर किसी तरह काबू पाते हुए मां ने कहा, ‘‘अरे ईला

तुम अंदर कैसे आई? बाहर का दरवाजा किस ने खोला? क्यों रे नीला बाहर का दरवाजा खुला ही छोड़ दिया था क्या?’’

‘‘शायद नियति को मुझ पर तरस आ गया हो… उसी ने दरवाजा खोल कर मेरे सभी अपनों के चेहरों पर पड़े नकाब को नोच कर मुझे उन की वास्तविकता को दिखा दिया… इतना जहर भरा है मेरे अपनों में मेरे लिए… तुम सभी को मेरे कारण शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है… अच्छा ही हुआ जो आज सबकुछ अपने कानों से सुन लिया,’’ अपनी रुलाई पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘तो क्यों न मैं पहले अपनी मां के आरोपों के उत्तर दूं… तो हां मां आप ने उस विगत को कैसी भुला दिया जब पापा की मृत्यु के बाद आप के सभी सगेसंबंधियों ने रिश्ता तोड़ लिया था? अनेकानेक जिम्मेदारियां आप के समक्ष खड़ी हुई थीं… आप ही हैं न मां वे जो अपने 4 बच्चों सहित मरने के लिए नदीनाले तलाश कर रही थीं… तब आप चारों की चीख ने न जाने मेरी कितनी रातों की नींद छीन ली थी.

‘‘तीनों छोटे भाईबहनों के भविष्य का प्रश्न मेरे समक्ष आ कर खड़ा हो गया तो मैं ने अपने सभी सपनों का गला घोट दिया… अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ कर पापा की जगह अनुकंपा बहाली को स्वीकार कर चल पड़ी अंगारों पर कर्तव्यपूर्ति के लिए… आईएएस बनने का मेरा सपना टूट गया… सारी जिम्मेदारियों को निभाने में मेरा जीवन बदरंग हो गया… मेरे कुंआरे सपनों के वसंत मुझे आवाज देते गुजर गए…

‘‘मेरे जीवन में भी कोई रंग बिखेरे… मेरा अपना घरपरिवार हो… आम लड़कियों की तरह मेरी आंखों में भी ढेर सारे सपने तैर रहे थे. मेरे वे इंद्रधनुषी सपने आप को दिखे नहीं? अपने पति की सारी जिम्मेदारियां मुझे सौंप कर आप चैन की नींद सोती रहीं. आप का बेटा शिबु, नीला और मिली आप की बेटियां सभी अपने जीवन में बस कर सुरक्षित हो गए तो आप को मुझ में बुराइयां ही नजर आ रही हैं… क्या मैं आप की बेटी नहीं हूं? कैसी मां हैं आप जिस ने अपने 3 बच्चों का जीवन सुंदर बनाने के लिए अपनी बड़ी बेटी को जीतेजी शूली पर चढ़ा दिया?’’

मां के पथराए चेहरे को देख कर ईला कुछ क्षणों के लिए चुप तो हो गई, लेकिन क्रोध के मारे कांपती रही. फिर भाई को आग्नेय दृष्टि से निहारते हुए बोली, ‘‘हां तो शिबु आज तुम्हें शर्मिंदगी महसूस हो रही है… उस समय शर्म नाम की यह चीज कहां थी जब मैडिकल का ऐंट्रैंस ऐग्जाम एक बार नहीं 3 बार क्लियर नहीं कर पाए थे. डोनेशन दे कर नाम लिखाने के लिएक्व50 लाख कहां से आए थे? इस के लिए मुझे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी… तुम्हें डाक्टर बनाने के लिए मुझे अपने कुंआरे सपनों को बेचना पड़ा था. तब तुम सब इतने नादान भी नहीं थे कि समझ नहीं सको कि मैं ने अपने कौमार्य का सौदा कर के इतने रुपयों का इंतजाम किया था… तो आज मैं तुम लोगों के लिए इतनी पतित कैसे हो गई?’’

सिर झकाए शिबु के मुंह में जबान ही कहां थी कि वह ईला के प्रश्नों के उत्तर दे सके. फिर भी किसी तरह हकलाते हुए बोला, ‘‘तुम गलत समझ रही हो दीदी… मेरे कहने का मतलब यह नहीं था.’’

जवाब में ईला किसी घायल शेरनी की तरह दहाड़ उठी, ‘‘चुप हो जाओ… तुम सब ने अपनी आंखों को लज्जाहीन कर लिया है… मैं ने सारे आक्षेप सुन लिए हैं… और तुम नीला भूल गई उस दिन को जब कालोनी के सब से बदनाम व्यक्ति रमेश के साथ तुम भाग रही थी तो सुरेश साहब के ड्राइवर ने तुम्हें उस के साथ जाते देख लिया था और तत्काल उन्हें खबर कर दी थी. साहब ने ही तुम्हें बचाया था… सुरेश साहब ने मुझे बताने के साथसाथ आधी रात को पुलिस स्टेशन जाने के लिए अपनी गाड़ी तक भेज दी थी…

‘‘जीवन में तुम्हें व्यवस्थित करने के लिए मुझे न जाने कितनी जहमत उठानी पड़ी थी… तुम्हारी शादी का दहेज जुटाने के लिए, तुम्हारे होने वाले पति की डिमांड को पूरा करने के लिए अपनी कौन सी धरोहर को गिरवी रखना पड़ा था मुझे… तुम लोगों ने कभी पूछा था कि एकसाथ इतने रुपयों का इंतजाम मैं ने कैसे

किया? आज ससुराल में तुम्हें मेरे कारण लज्जित और अपमानित होना पड़ रहा है… भेज देना अपने देवर को कुछ न कुछ उस के लिए भी कर ही दूंगी.’’

ईला ने उस की बातें सुन ली थीं. इस पर नीला को बड़ा क्षोभ हुआ… 1-1 कर के स्मृतियों के सारे पन्ने खुल गए. असहनीय वेदना की ऊंची लहरों को उछालते हुए विगत का समंदर उस के समक्ष लहरा उठा तो वह अपनी दीनहीन प्रौढ़ बहन के लिए तड़प उठी और फिर रोते हुए बोली, ‘‘भाग जाने देतीं मुझे उस बदनाम रमेश के साथ… कोई जरूरत नहीं थी मेरी शादी के लिए तुम्हें इतनी बड़ी कीमत चुकाने की… पढ़ालिखा कर मुझे सब तरह से योग्य बनाया. दोनों बहनें मिल कर घर की जिम्मेदारियां बांट लेतीं. हम सभी को अमृत पिला कर खुद विषपान करती रहीं… दीदी, तुम्हारे स्वार्थरहित प्यार को यह कैसा प्रतिदान मिला हम सभी से? क्यों मिटती रहीं हम सब के लिए? जलती रहीं तिलतिल कर. लेकिन हम सब पर कोई आंच नहीं आने दी,’’ और फिर नीला जोरजोर से रो पड़ी.

इतनी देर से चुप मां ने कहा, ‘‘कैसे निर्दयी बन गए थे हम. बेटी के त्याग को मान देने के बदले इतनी ओछी मानसिकता पर उतर आए हैं हम…

जा मिली अपनी दीदी के लिए चाय बना ला.’’

सकुचाते, लजाते मिली को उठते देख ईला ने

कहा, ‘‘मिली चायवाय बनाने की कोई जरूरत नहीं है… तुम्हें अपनी सहेलियों से आंखें मिलाने में शर्म आ रही है तो तुम लौट जाओ अपनी ससुराल… उन दिनों को भूल गई जब 1-1 जरूरत की पूर्ति के लिए मुझे निहारा करती थी. अरे, तुम से अच्छा और समझदार तुम्हारा पति है जिस से मेरा खून का कोई रिश्ता नहीं है, फिर भी मेरे लिए कुछ सोचता तो है. यही मेरे अपने हैं जिन की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुरबान होती रही… तमाम जिंदगी भागती रही,’’ कह ईला अपने कमरे में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया.

बिस्तर पर लेटते ही आंखों के समक्ष विस्मृत अतीत की स्मृतियों के पृष्ठ खुलने लगे. इन्हीं अपनों की खुशी के लिए क्या नहीं किया उस ने… माना कि सुरेश साहब की मुझ पर बेशुमार मेहरबानियां रही हैं, पर क्या उन्होंने भी उस की भरपूर कीमत उस की देह से नहीं वसूली है? उस के हिस्से की सारी धूप ही को परिवार ने ताप लिया है. फिर भी उसे उस का कभी कोई गम नहीं हुआ था. सपनों को ही चुरा लिया…

परिवार की खुशियों में सबकुछ भूल कर जीती रही… सारी जिल्लतों को सहती रही. मगर यह कोई नई बात थोड़े थी. पारिवारिक बोझ को झेलने के लिए, दायित्वों को निभाने के लिए जब भी बड़ी बेटियां सामने आती हैं तो उन्हें इन बेशुमार मेहरबानियों के लिए, कर्तव्यों के लिए अपने कौमार्य की कीमत देनी ही पड़ती है… जालिम मर्द समाज ऐसे ही किसी असहाय लड़की की मदद तो करने से रहा.

कितने रंगीन सपने भरे थे उस की आंखों में, पर सभी के सपनों को साकार करने में उस ने अपने सारे इंद्रधनुषी सपनों को खो दिया. मगर सिवा रुसवाई के कुछ भी तो नहीं मिला उसे.

अतीत के उमड़ते घने काले बादलों के बीच चमकती बिजली में ईला के समक्ष अचानक शिखर का चेहरा उभर गया जो उसे दीवानगी की हद तक प्यार करता था.

कितना प्यार था, कितना मान… सबकुछ भूल कर उस की बांहों में सिमटना चाहा था उस ने. कितना सम्मान था शिखर की आंखों में उस के लिए… पारिवारिक जिम्मेदारियों के दावानल ने उस की चाहतों को जला कर रख दिया, उसे यों मिटते वह देख नहीं सका.

शिखर के प्रति छलकते अथाह सागर को ही उदरस्त कर लिया. मायूस हो

कर उस ने सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि दुनिया को ही हमेशा के लिए छोड़ दिया. शिखर को याद कर वह देर तक रोती रही.

मुझे यों तड़पता छोड़ कर तुम क्यों चले गए शिखर? तुम्हें क्या पता कि अपने दिल की गहराइयों से तुम्हारे प्यार को… तुम्हारी यादों को निकालने के लिए मुझे अपने मन को कितना मथना पड़ा था? रातों की तनहाइयों में मैं तुम्हें टूट कर पुकारती रही, लेकिन तुम 7 समंदर का फासला तय नहीं कर पाए? तुम्हारा भी क्या दोष. तुम ने तो मेरे साथ मिल कर मेरे कंधों पर पड़ी जिम्मेदारियों को भी बांट लेना चाहा था… मैं ही विचारों के कठोर कवच में कैद हो कर रह गई थी.

आवेश में आ कर ईला कुछ उलटासीधा कदम न उठा ले, सोच कर सभी घबराए से उस के कमरे के सामने खड़े हो कर पश्चात्ताप की अग्नि में झलसते हुए आवाजें दे रहे थे…

ईला से दरवाजा खोलने की विनती कर रहे थे पर उस ने दरवाजा नहीं खोला. सब की निर्मम सोच ने उसे पत्थर सा बना दिया था.

घबरा कर ईला का भाई उस के साथ कार्यरत जावेद के घर की ओर दौड़ पड़ा. बिना देर किए वह दौड़ा चला आया और ईला से दरवाजा खोलने की गुहार करने लगा. फिर ‘कहीं ईला ने ऐसावैसा तो नहीं कर लिया,’ सोच वह दरवाजा तोड़ने के लिए व्याकुल हो उठा.

वर्षों दौड़तीभागती ईला को आज बड़ी थकान महसूस हो रही थी. नींद से बो?िल पलकें मुंदने ही वाली थीं कि कहीं दूर से आती पहचानी सी आवाज ने उसे झकझेर कर उठा दिया. किसी दीवानी की तरह दौड़ कर उस ने दरवाजा खोल दिया. बाहर जिसे प्रतीक्षा करते पाया उस पर यकीन नहीं कर सकी. अपलक कुछ पलों तक उसे निहारती रही. फिर थरथराते कदमों से आगे बढ़ी तो जावेद ने उसे अपनी बांहों में थाम लिया.

वह उस की आंखों में असीम प्यार के लहराते सागर में डूब गई. विध्वंस के अवशेष से ही जीवन की नई इबारत लिखने को वह तत्पर हो उठी. सारे गिलेशिकवे जाते रहे. फिर महीने के भीतर ही ईला ने जावेद से कोर्ट मैरिज कर ली, जिस की पत्नी अपने दूसरे बच्चे के प्रसव के दौरान चल बसी थी. उस की मां फातिमा बेगम की बूढ़ी, कमजोर बांहें घर और जावेद के

2 बच्चों की जिम्मेदारियों को उठाने में असमर्थ सिद्ध हो रही थीं. कालेज के दिनों से ही जावेद की पलकों पर ईला छाई हुई थी.

जाहिदा से शादी कर लेने के उपरांत भी जावेद ईला को अपने मन से नहीं निकाल सका था. जाहिदा के गुजर जाने के बाद ईला के प्रति उस की चाहत नए सिरे से उभर आई थी. ईला ने भी उस की आंखों में अपने प्रति प्यार की लौ पहचान ली थी. जबतब उस के कदम जावेद के क्वार्टर की ओर उठ जाते थे. वहां जा कर वह उस के बच्चों से खेल कर अपने अतृप्त मातृत्व का सुखद आनंद लिया करती थी. जावेद के साथ फातिमा बेगम भी उस के आने की राह में आंखें बिछाए रहती थीं. कितनी बार ईला ने उन से जावेद की दूसरी शादी के लिए कहा, पर वे बच्चों के लिए सौतेली मां की कल्पना करते ही सिहर जाती थीं.

ईला भी बच्चों से जुड़ तो गई थी परधर्म की ऊंची दीवार को फांदने की हिम्मतनहीं जुटा पाती थी. लेकिन अब उस ने धर्म

की कंटीली बाड़ को पार कर ही लिया. कौन क्या कहेगा, पारिवारिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं क्या होंगी, उस ने रत्तीभर भी परवाह नहीं की. जावेद की सबल बांहों में अपने थके, बुझे शरीर को सौंप दिया. इधर जावेद ने भी वर्षों से छिपी चाहत को हजारों हाथों से थाम लिया. फातिमा बेगम ने सलमासितारों से जड़ी अपनी शादी की ?िलमिलाती चुन्नी ईला को ओढ़ा कर अपने कलेजे से लगा लिया. फिर तो जैसे खुशियों का आकाश धरती पर उतर आया.

औफिस की ओर से ईला और जावेद के उठाए गए इस कदम की आलोचना कम सराहना ज्यादा हुई. फिर एक पार्टी का आयोजन किया गया, जिसे आयोजित करने में सुरेश साहब ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया. सितारों से जड़े सुर्ख जोड़े एवं बड़ी नथ व जड़ाऊ झमर में सजी ईला और सिल्क के कुरते और धोती में सजे जावेद ने विध्वंस के अवशेष से नए जीवन की शुरुआत कर ली जहां नई रोशनी, नई खुशियां उन का स्वागत कर रही थीं.

‘‘जाहिदा से शादी हो जाने के बाद भी जावेद ईला को अपने मन से निकाल नहीं सका था. ईला ने भी उस की आंखों में अपने लिए प्यार महसूस कर लिया था…’’

एक सवाल: शीला और समीर के प्यार का क्या था अंजाम

शीना और समीर दोनों ही किसी कौमन दोस्त के विवाह में आए थे. जब उस दोस्त ने उन्हें मिलवाया तो वे एकदूसरे से बहुत प्रभावित हुए. वैसे तो यह उन की पहली मुलाकात थी, लेकिन दोनों ही जानीमानी हस्तियां थीं. रोज अखबारों में फोटो और इंटरव्यू आते रहते थे दोनों के. सो, ऐसा भी नहीं था कि कुछ जानना बाकी हो.

समीर सिर्फ व्यवसायी ही नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक पार्टी का सदस्य भी था. उधर, शीना बड़ी बिजनैस वूमन थी. अच्छे दिमाग की ही नहीं, खूबसूरती की भी धनी. सो, दोनों का आंखोंआंखों में प्यार होना स्वाभाविक था. दोस्त की शादी में ही दोनों ने खूब मजे किए और दिल में मीठी यादें लिए अपनेअपने घरों को चल दिए.

शीना सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपने बिजनैस का विस्तार कर रही थी. नाम, पैसा और ऊपर से हुस्न. भला ऐसे में कौन उस का दीवाना न हो जाए. सो, समीर ने उस से अपनी मुलाकातें बढ़ाईं. शीना को भी उस से एतराज नहीं था. अपने पति की मृत्यु के बाद वह भी तो कितनी अकेली सी हो गईर् थी. ऐसे में मन किसी न किसी के प्यार की चाहत तो रखता ही है. और सिर्फ मन ही नहीं, तन की प्यास भी तो सताती है.

शीना भी समीर को मन ही मन चाहने लगी थी. बातों बातों में मालूम हुआ समीर भी शादीशुदा है लेकिन उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका था. दोनों अभी अर्ली थर्टीज में थे.

कई दिनों बाद समीर अपने व्यवसाय के सिलसिले में आस्ट्रेलिया गया और शीना भी उस वक्त वहीं किसी जरूरी मीटिंग के लिए गईर् थी.

दोनों को मिलने का जैसे फिर एक बहाना मिल गया. समीर अपना काम खत्म कर जब शीना से उस के होटल में डिनर पर मिला तो उस ने अपने मन की बात शीना से कह ही डाली, ‘‘शीना, आज जिंदगी के जिस पड़ाव पर तुम और मैं हूं, क्या ऐसा नहीं लगता कि कुदरत ने हमें एकदूसरे के लिए बनाया है? क्यों न हम दोनों विवाह के बंधन में बंध जाएं?’’

शीना को लगा समीर ठीक ही तो कह रहा है. उसे भी तो पुरुष के सहारे की जरूरत है. सो, उस ने समीर को इस रिश्ते की रजामंदी दे दी.

बस, फिर क्या था, दोनों ने भारत लौट कर दोस्तों को बुला कर अपने प्यार को दुनिया के साथ साझा किया और साथ ही विवाह की घोषणा भी. रातोंरात सारे जहां में उन का प्यार दुनिया की सब से बड़ी खबर बन गया था. सारे विश्व में फैले उन के सहयोगी उन्हें बधाइयां दे रहे थे. दोनों ने ट्विटर पर अपने दोस्तों व फौलोअर्स की बधाइयां स्वीकारते हुए धन्यवाद किया.

बस, अगले ही महीने दोनों ने शादी की रस्म भी पूरी कर ली. हनीमून के लिए मौरिशस का प्लान तो पहले ही बना रखा था, सो, विवाह के अगले दिन ही हनीमून को रवाना हो गए.

शीना कहने लगी, ‘‘समीर, जीवन में सबकुछ तो था, शायद एक तुम्हारी ही कमी थी. और वह कमी अब पूरी हो गई है. ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं दुनिया की सब से खुशहाल औरत हूं.’’

समीर ने भी अपना मन शीना के सामने खोल कर रख दिया था, बोला, ‘‘सेम हियर शीना, तुम बिन जिंदगी अधूरीअधूरी सी थी.’’

दोनों ने अपने हनीमून के फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर किए. इतनी सुंदर तसवीरें थीं कि शायद कोई भी न माने कि यह उन दोनों का दूसरा विवाह था. शायद ईर्ष्या भी होने लगे उन तसवीरों को देख कर.

खैर, हनीमून खत्म हुआ और दोनों भारत लौट आए. और फिर से अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. दोनों खूब पैसा कमा रहे थे. पैसे के साथ नाम और शोहरत भी. 2 वर्ष बीते, शीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अब ऐसा लग रहा था जैसे उन का परिवार पूरा हो गया हो.

शीना अपनी जिंदगी में भरपूर खुशियां समेट रही थी और अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाती जा रही थी. समीर और उस के विवाह के 10 वर्ष कैसे बीत गए, उन्हें कुछ मालूम ही न हुआ. बेटा भी होस्टल में पढ़ने के लिए चला गया था.

समीर अब व्यवसाय से ज्यादा राजनीति में सक्रिय हो गया था. एकदो बार किसी घोटाले में फंस भी गया. लेकिन, उस ने सारा पैसा शीना के अकाउंट में जमा किया था, जिस से बारबार बच जाता. वैसे तो शीना इन घोटालों को खूब सम?ाती थी लेकिन अकसर व्यवसाय में थोड़ाबहुत तो इधरउधर होता ही है. इसलिए उसे भी कुछ फर्क नहीं पड़ता था.

शौकीनमिजाज समीर जनता के पैसों से अपने सारे शौक पूरे कर रहा था. साथ में शीना भी. अब वे स्पोर्ट्स टीम के मालिक भी बन चुके थे. कभी दोनों साथ में रेसकोर्स में, तो कभी स्पोर्ट्स टीम को चीयर्स करते नजर आते थे. दोनों को साथ मौजमस्ती करते देख भला किस की नीयत खराब न हो जाए.

अंधेरे आसमान में चांदनी फैलाने वाले चांद में भी कभी तो ग्रहण लगता ही है. शीना को अपने पति के रंगढंग कुछ बदलेबदले लगने लगे थे. उसे लगने लगा कि आजकल समीर पहले की तरह उसे दिल से नहीं चाहता है. जैसे, वह उस के साथ हो तो भी उस का मन कहीं और होता है. वैसे तो वह 50 वर्ष की उम्र पार कर रहा था, लेकिन दौलतमंद लोग अपने जीवन को जीभर कर जी लेना चाहते हैं. उन के शौक तो हर दिन बढ़ते जाते हैं और साथ ही साथ, वे उन्हें पूरा भी कर ही लेते हैं.

शीना को महसूस होने लगा था कि अब समीर उस से दूरियां बनाने लगा है. न तो वह पहले की तरह उसे वक्त देता है और न ही उस की तारीफ करता है. जहां शीना को देख समीर के चेहरे पर मुसकराहट खिल जाती थी वहीं अब वह काम का बहाना कर उस से नजरें तक नहीं मिलाना चाहता था. वह समझने लगी थी कि जरूर समीर के जीवन में कोई और औरत आई है.

अब वह उस की ज्यादा से ज्यादा खबर रखने लगी थी. जैसे, बैंक अकाउंट में कितने पैसे हैं, वह कहां और कितने पैसे खर्च कर रहा है आदि. इस बार जब शीना के बिजनैस अकाउंट से समीर ने कुछ पैसे निकालने चाहे तो उस ने समीर को साफ न कह दिया. वह बोली, ‘‘समीर, तुम्हारी मौजमस्ती के लिए नहीं कमाती मैं. तुम्हारे पास मेरे लिए फुरसत के दो क्षण नहीं, अकेले मौजमस्ती के लिए वक्त है? अगर ऐसा ही है तो वह मौजमस्ती तुम अपने पैसों से करो.’’

यह बात समीर को चुभ गई थी. उस ने तो घोटाले के पैसों से शीना को बहुत ऐश करवाईर् थी. खैर, इतना अनापशनाप पैसा था दोनों के पास कि पैसे का झगड़ा तो मामूली ही बात थी.

शीना अब समीर की दूसरी गतिविधियों पर भी नजर रखने लगी थी. जैसे, अपनी फेसबुक वौल पर वह किसे ज्यादा तवज्जुह देता है, किस के फोटो ज्यादा शेयर करता है, किस महिला मित्र को ज्यादा कमैंट करता है आदि.

कुछ ही दिनों में वह समीर की बेरुखी की तह तक पहुंच गई. उस की फेसबुक वौल पर किसी जवान लड़की के ऐसे कमैंट दिखे कि उसे लगा कि समीर के उस लड़की से संबंध हैं. ट्विटर पर भी उस ने नजर गड़ा रखी थी कि समीर किस के नाम पर क्या ट्वीट करता है.

तभी उस का ध्यान पड़ा कि जो लड़की समीर से काम के सिलसिले में अकसर मिलती जुलती है उस के और समीर के मैसेज कुछ साधारण नहीं. उसे कहीं से उन संदेशों में प्यार की गंध आने लगी थी. वह सब समझ गई थी कि शौकीनमिजाज समीर क्यों उस से किनारा कर रहा है, क्यों उस के खर्चे बढ़ गए हैं. समीर इतना बड़ा व्यापारी और शख्सियत है, कौन लड़की उस के साथ उठनेबैठने और मौजमस्ती करने से इनकार करेगी. और फिर इतनी बड़ी हस्तियों पर प्रैस और मीडिया तो जैसे नजर गड़ाए ही रहते हैं. अखबारों और मनोरंजक मैगजींस में समीर व उस लड़की के संबंध के बारे में खुल्लमखुल्ला छपने लगा था.

शीना को यह सब बहुत अखरने लगा. एक तो पति की उस से दूरी, ऊपर से जगहंसाई भी. जो पैसा वह दिनरात मेहनत कर के कमाती रही और पति के जिस पैसे पर उस का हक है, उस पर कोई और मौज करे, यह बरदाश्त करना क्या आसान बात है और तो और, जब कभी पार्टी में जाती, समीर साथ न होता तो वह अन्य महिलाओं की हंसी का पात्र बन कर रह जाती. उसे ऐसा महसूस होता जैसे किसी ने उस के जले पर नमक छिड़क दिया हो.

सबकुछ उस की बरदाश्त से बाहर होने लगा था. सो, एक दिन उस ने गुस्से में आ कर ट्वीट कर डाला, ‘‘मेरे पति समीर के दूसरी लड़की से संबंध हैं, यह मैं आप सब के साथ साझा कर रही हूं क्योंकि मैं दुनिया के ताने सुनसुन कर परेशान हो गई हूं. बेहतर है मैं स्वयं ही इसे स्वीकार लूं.’’

यह ट्वीट तो ऐसा था जैसे मीडिया के हाथ गड़ा खजाना लग गया हो. समीर इसे बरदाश्त न कर पाया और उस रात दोनों में खूब ? झगड़ा हुआ. समीर ने कहा, ‘‘क्यों तुम हमारी जिंदगी बरबाद करने पर तुली हो? तुम भी चैन से रहो और मुझे भी रहने दो. यदि मेरे किसी और लड़की से संबंध हैं तो तुम्हें क्या? तुम से पहले भी तो मैं तलाकशुदा था. तब तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं हुई, फिर अब क्यों?’’

शीना बिफर कर बोली, ‘‘क्योंकि अब मैं तुम्हारी पत्नी हूं. तुम्हारे पैसे और तुम पर मेरा हक है. तुम उसे किसी और से बांटो और मेरी जगहंसाई करवाओ, मैं कैसे बरदाश्त करूं? सारी मीडिया आज तुम्हारी और उस लड़की की ही बातें कर रही है. मैं ने अपने मुंह से स्वीकार लिया, तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.’’

‘‘कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? मैं बताता हूं, अगले एक महीने बाद फिर से इलैक्शन आ रहे हैं. तुम्हारे इस ट्वीट से मेरी कितनी छवि खराब होगी तुम ने सोचा? कौन टिकट देगा मुझे और इस राजनीति में मैं जो अपने पैर जमा रहा हूं वह कल को हमारे बेटे के लिए ही तो अच्छा होगा. चलो, जो भी हुआ भूल जाओ. और अब हम अच्छे पतिपत्नी की तरह प्यारभरी जिंदगी जिएंगे.’’

शीना को लगा उस के जीवन में लगा ग्रहण हट गया है. उसे लगा जैसे उस का खोया प्यार उसे फिर से मिल गया है. सो, उस ने अगले दिन ही समीर से कहा, ‘‘समीर, चलो न हम एक कौमन ट्वीट फिर से कर देते हैं.’’

समीर कहां मना करने वाला था. दोनों ने मिल कर अगले ही दिन ट्वीट किया, ‘‘हम दोनों अपने जीवन से बहुत खुश हैं, और उस लड़की के बारे में जो भी कहा, वह मात्र एक गलतफहमी थी.’’

मीडिया में फिर से यह बात फैल गईर् थी. समीर की छवि एक बार फिर अच्छे राजनेता की बन गई.

एक महीना बीता. चुनाव हुए और समीर को कुरसी हासिल हो गई. अब समीर के तेवर फिर से बदल गए थे. शीना ने लाख कोशिशें कीं कि समीर गैर महिलाओं से संबंध न रखे, किंतु फितरत से शौकीन समीर को वह रोक न पाई. खूब जगहंसाई हुई. पति, प्यार, पैसा सब ही तो बंट गया था.

वह समझ गई थी कि वह दोबारा अपने ही पति द्वारा छली गई है. इस झटके को वह सहन न कर पाई और एक दिन अपने ही घर में मृत पाई गई. पुलिस आई, उसे लगा कहीं यह हत्या तो नहीं. लेकिन नहीं, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि उस ने जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी.

वह तो चली गई, लेकिन जातेजाते एक सवाल छोड़ गई. एक पत्नी कैसे अपने पति के प्यार को बांट ले और कैसे रोजरोज जगहंसाई करवाए? दूसरी महिला उस के हक को छीन ले, उस के पैसे पर मौज करे, जिसे बदनामी और इज्जत की परवा ही नहीं. लेकिन एक पत्नी के लिए तो वह उस की इज्जत पर जैसे बड़ा प्रहार है, वह कैसे उसे सह सकती थी.

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