Famous Hindi Stories : असली पहचान

Famous Hindi Stories : वह मेरी पड़ोसिन की बूआ का बेटा था. मेरे परिवार के लोग राजेश को टपोरी समझते थे पर उसी टपोरी ने वह कर दिखाया था जिस के बारे में न तो मैं ने कभी सोचा था न मेरे परिवार में किसी को उम्मीद थी.

आज जब राजेश का फोन आया कि नीलू मां बनने वाली है तो मेरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. मां और बाबूजी के साथ मेरे देवर भी तरहतरह के मनसूबे बनाने लगे और मैं सोचने लगी कि इस दुनिया में कितने ऐसे लोग हैं जो जैसे दिखते हैं वैसे अंदर से होते नहीं और जो बाहर से भोलेभाले दिखते हैं स्वभाव से भी वैसे हों यह जरूरी नहीं.

नीलू मेरी सब से छोटी ननद है. मेरी आंखों के सामने उस की बचपन की तसवीर घूमने लगी और मेरा मन 15 साल पीछे की बातों को याद करने लगा.

मैं इस घर में बहू बन कर जब आई थी तब मेरे दोनों देवर व ननद छोटेछोटे थे. मेरे पति सब से बड़े थे. उन में व बाकी बहनभाइयों में उम्र का काफी फासला था. हमारी शादी के दूसरे दिन ही बूआ सास ने मजाक में कहा था, ‘बहू, तुम्हें पता है कि तुम्हारे पति व अन्य बहनभाइयों में उम्र का इतना अंतर क्यों है? तुम्हारे पति के जन्म के बाद मेरी भाभी ने सोचा थोड़ा आराम कर लिया जाए…’ और इतना कह कर वह जोर का ठहाका मार का हंस पड़ी थीं.

नईनई भाभी पा कर मेरे छोटेछोटे देवर तो मेरे आगेपीछे चक्कर काटते और मेरा आंचल पकड़ कर घूमते रहते थे. पर मैं ने गौर किया कि मेरी सब से छोटी ननद नीलू जो लगभग 6-7 साल की थी, मेरे सामने आने से कतराती थी. यदि वह कभी हिम्मत कर के पास आती भी थी तो उस के भाई उसे झिड़क देते थे. यहां तक कि मांजी भी हमेशा उसे अपने कमरे में जाने को बोलतीं. नीलू मुझे सहमी सी नजर आती.

शादी के कुछ दिन बाद घर मेहमानों से खाली हो गया था. कोई काम नहीं था तो सोचा कमरे में पेंटिंग ही लगा दूं. मैं अपने कमरे में पेंटिंग लगा रही थी कि देखा, नीलू चुपचाप मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गई है. मुझे इस तरह उस का चुपचाप आना अच्छा लगा.

‘आओ नीलू, तुम अपनी भाभी के पास नहीं बैठोगी? तुम मुझ से बातें क्यों नहीं करतीं.’

मैं उस से प्यार से अभी पूछ ही रही थी कि मेरा बड़ा देवर संजय आ गया और नीलू की ओर देख कर बोला, ‘अरे, भाभी, यह क्या बातें करेगी…इतनी बड़ी हो गई पर इसे तो ठीक से बोलना तक नहीं आता.’

संजय ने बड़ी आसानी से यह बात कह दी. मैं ने देखा कि नीलू का खिला चेहरा बुझ सा गया. मैं ने सोचा कि इस बारे में संजय को कुछ नसीहत दूं. पर तभी मांजी मेरे कमरे में आ गईं और आते ही उन्होंने भी नीलू को डांटते हुए कहा, ‘तू यहां खड़ीखड़ी क्या कर रही है. जा, जा कर पढ़ाई कर.’

नीलू अपने मन के सारे अरमान लिए चुपचाप वापस अपने कमरे में चली गई.

उस के जाने के बाद मांजी बोलीं, ‘देखो बहू, मैं ने तुम्हारे लिए यह सूट खरीदा है,’ और वह मुझे सूट दिखाने लगीं, पर मेरा मन नीलू पर ही लगा रहा.

शाम को जब यह घर आए तो चायनाश्ते के समय मैं ने इन से पूछा, ‘आप एक बात बताइए कि यह नीलू इतनी डरीसहमी सी क्यों रहती है?’

यह गौर से मुझे देखते हुए बताने लगे कि वह साफसाफ बोल नहीं पाती. दरअसल, नीलू ने बोलना ही देर से शुरू किया और 6 साल की होने के बावजूद हकलाहकला कर बोलती है.

‘आजकल तो कितनी मेडिकल सुविधाएं हैं. आप नीलू को किसी स्पीच थेरेपिस्ट को क्यों नहीं दिखाते?’

उस समय उन्होंने मेरी बात हवा में उड़ा दी पर मैं ने मन ही मन सोचा कि मैं खुद नीलू को दिखाने के लिए किसी स्पीच थेरेपिस्ट के पास जाऊंगी. इस बारे में जब मैं ने बाबूजी से बात की तो उन्होंने भी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई लेकिन उन्होंने सीधे मना भी नहीं किया.

अगले हफ्ते मैं नीलू को शहर की एक लोकप्रिय महिला स्पीच थेरेपिस्ट के पास ले गई.

थोड़ी देर बाद जब थेरेपिस्ट नीलू का विश्लेषण कर के बाहर आईं तो बोलीं, ‘इस का हकला कर बोलना उतनी परेशानी की बात नहीं है जितना इस के व्यक्तित्व का दबा होना. इसे लोगों के सामने आने में घबराहट होती है क्योंकि लोग इस के हकलाने का मजाक उड़ाते हैं. इसी से यह खुल कर नहीं रहती और न ही बोल पाती है.’

मैं नीलू को ले कर घर चली आई. मैं ने निश्चय किया कि नीलू को ले कर मैं बाहर निकला करूंगी, उसे अपने साथ घुमाने ले जाया करूंगी और उस दिन से मैं नीलू पर और ज्यादा ध्यान देने लगी.

मैं ने नीलू के व्यक्तित्व को निखारने की जैसे कसम खा ली थी. इस के नतीजे जल्दी ही हम सब के सामने आने लगे. उस दिन तो घर में खुशी की लहर ही दौड़ गई जब नीलू अपने स्कूल में कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार ले कर घर आई थी.

समय पंख लगा कर कितनी तेजी से उड़ गया, पता ही नहीं चला. मेरे सभी देवरों की शादी हो गई. अब घर में बस, नीलू ही थी. उस ने भी एम.ए. कर लिया था. हम लोग उस की शादी के लिए लड़का देख रहे थे. जल्द ही लड़का भी मिल गया जो डाक्टर था. परिवार के लोगों ने बड़ी धूमधाम से नीलू की शादी की.

शादी के बाद के कुछ महीनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा. धीरेधीरे मैं ने महसूस किया कि नीलू की आवाज में खुशी नहीं झलकती. मैं ने पूछा भी पर उस ने कुछ बताया नहीं और शादी के केवल 2 साल बाद ही नीलू अकेले मायके वापस आ गई.

उस के बुझे चेहरे को देख कर हम सभी परेशान रहते थे. मैं ने सोचा भी कि कुछ दिन बीत जाएं तो उस के ससुराल फोन करूं. क्या पता पतिपत्नी में खटपट हुई हो.

15 दिन बाद जब मैं ने नीलू के ससुराल फोन किया तो उस की सास व पति के जवाब सुन कर सन्न रह गई.

‘मेरा तो एक ही बेटा है, आप ने हम से झूठ बोल कर शादी की और अपनी तोतली बेटी हमें दे दी. उस पर वह बांझ भी है. मैं तो सीधे तलाक के पेपर भिजवाऊंगी,’ इतना कह कर नीलू की सास ने फोन काट दिया.

घर में सन्नाटा छा गया. मांजी ने मुझे भी कोसना शुरू कर दिया, ‘मैं कहती थी कि यह कभी ठीक नहीं होगी. तुम्हारे उस ‘स्पीच थेरेपी’ जैसे चोंचलों से कुछ होने वाला नहीं है. लो, देखो, अब रखो अपनी छाती पर इसे जिंदगी भर.’

मुझे नीलू की सास की बात सुन कर उतना दुख नहीं हुआ जितना कि अपनी सास की बातों से हुआ. दरअसल, नीलू एकदम ठीक हो गई थी पर नए माहौल में एकाध शब्द पर थोड़ा अटकती थी जोकि पता नहीं चलता था. पर उस के ससुराल वालों ने उसे कैसे बांझ करार दे दिया यह बात मेरी समझ में नहीं आई. क्या 2 साल ही पर्याप्त होते हैं किसी स्त्री की मातृत्व क्षमता को नापने के लिए?

खैर, बात काफी आगे बढ़ चुकी थी. आखिर तलाक हो ही गया. इस के बाद नीलू एकदम चुप सी रहने लगी. जैसे कि मेरी शादी के समय थी. बंद कमरे में रहना, किसी से बातें न करना.

एक दिन मैं ने जिद कर के नीलू को अपने साथ बाहर चलने के लिए यह सोच कर कहा कि घर से बाहर निकलेगी तो थोड़ा बदलाव महसूस करेगी. रास्ते में ही पड़ोस की बूआ का बेटा राजेश मिल गया. उस ने मुझे रोक कर नमस्कार किया और बोला, ‘भाभी, मुझे मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई है और कंपनी वालों ने रहने के लिए फ्लैट दिया है. किसी दिन मम्मी से मिलने के लिए आप मेरे घर आइए न.’

‘ठीक है भैया, किसी दिन मौका मिला तो आप के घर जरूर आऊंगी,’ इतना कह कर मैं नीलू के साथ बाजार चली गई.

एक दिन मैं बूआ के घर गई. उन का घरपरिवार अच्छा था. अपना खुद का कारोबार था. मैं ने बातों ही बातों में बूआ से नीलू का जिक्र किया तो वह बोल पड़ीं, ‘अरे, उस बच्ची की अभी उम्र ही क्या है? कहीं दूसरी शादी करा दें तो ठीक हो जाएगी.’

‘लेकिन बूआ, कौन थामेगा उस का हाथ? अब तो उस पर बांझ होने का ठप्पा भी लग गया है. यद्यपि मैं ने उस के तमाम मेडिकल चेकअप कराए हैं पर उस में कहीं कोई कमी नहीं है,’ इतना कहते- कहते मेरा गला जैसे भर्रा गया.

‘मैं कैसा हूं आप के घर का दामाद बनने के लिए?’ राजेश बोला तो मैं ने उसे डांट दिया कि यह मजाक का वक्त नहीं है.

‘भाभी, मैं मजाक नहीं सच कह रहा हूं. मैं नीलू का हाथ थामने को तैयार हूं बशर्ते आप लोगों को यह रिश्ता मंजूर हो.’

मेरा मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. आश्चर्य से मैं बूआ की ओर पलटी तो मुझे लगा कि उन्हें भी राजेश से यह उम्मीद नहीं थी.

थोड़ी देर रुक कर वह बोलीं, ‘मैं घूमघूम कर समाजसेवा करती हूं और जब अपने घर की बारी आई तो पीछे क्यों हटूं? फिर जब राजेश को कोई एतराज नहीं है तो मुझे क्यों होगा?’

राजेश मेरी ओर मुड़ कर बोला, ‘भाभी, जहां तक बच्चे की बात है तो इस दुनिया में सैकड़ों बच्चे अनाथ पड़े हैं. उन्हीं में से किसी को अपने घर ले आएंगे और उसे अपना बच्चा बना कर पालेंगे.’

राजेश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. जिस की पहचान हम उस के पहनावे से करते रहे वह तो बिलकुल अलग ही निकला और जो सूटटाई के साथ ‘जेंटलमैन’ बने घूमते थे वह कितने खोखले निकले.

मेरे मन से राजेश के लिए सैकड़ों दुआएं निकल पड़ीं. मेरा रोमरोम पुलकित हो उठा था. मुझे टपोरी ड्रेस में भी राजेश किसी राजकुमार की तरह लग रहा था.

घर आ कर मैं ने यह बात परिवार के दूसरे लोगों को बताई तो सब इस के लिए तैयार हो गए और फिर जल्दी ही नीलू की शादी राजेश के साथ कर दी गई. शादी के साल भर बाद ही वे दोनों अनाथ आश्रम जा कर एक बच्चा ले आए और आज जब नीलू खुद मां बनने वाली है तो मेरा मन खुशी से झूम उठा है.

मैं ने राजेश से फोन पर बात की और उसे बधाई दी तो वह कहने लगा कि भाभी, हम मांबाप तो पहले ही बन चुके थे पर बच्चों से परिवार पूरा होता है न. बेटी तो हमारे पास पहले से ही है अब जो भी होगा उसे ले कर कोई गिलाशिकवा नहीं रहेगा, क्योंकि वह हमारा ही अंश होगा.

राजेश के मुंह से यह सुन कर सचमुच मन भीग सा गया. राजेश ने मानवता की जो मिसाल कायम की है, यदि ऐसे ही सब हो जाएं तो समाज में कोई परेशानी आए ही न. यह सोच कर मेरी आंखों में राजेश व उसके परिवार के प्रति कृतज्ञता के आंसू आ गए.

लेखक- बबिता श्रीवास्तव

Short Stories in Hindi : खाउड्या – रिश्वत लेना आखिर सही है या गलत

Short Stories in Hindi :  सीतू झोंपड़पट्टी वाले थाने में नयानया सिपाही भरती हुआ था. एक दिन थानेदार ने उसे रामू बनिए को बुला लाने के लिए भेजा.

रामू बनिया तो घर पर नहीं मिला, पर उस के मुनीम ने सीतू को 50 रुपए का नोट पकड़ा कर कहा, ‘‘थानेदार से कह देना कि सेठजी आते ही थाने में हाजिर हो जाएंगे.’’

लौट कर सीतू ने 50 रुपए का नोट थानेदार की मेज पर रख दिया और साथ ही मुनीम का पैगाम भी कह सुनाया.

जब वह जाने लगा तो थानेदार ने 50 रुपए का नोट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसे रख लो, यह तुम्हारा इनाम है.’’

बाद में थाने के सिपाहियों ने सीतू का काफी मजाक उड़ाया और बताया कि मुनीम ने 50 रुपए उसे दिए थे, न कि थानेदार को. थानेदार तो 100 रुपए से कम को हाथ तक नहीं लगाता.

सीतू 50 रुपए ले कर खुश हो गया. यह उस की पहली ऊपर की कमाई थी. थानेदार उस की ईमानदारी का कायल हो गया. इस के बाद से थानेदार को जहां से भी पैसा ऐंठना होता, तो वह सीतू को भेज देता या अपने साथ ले जाता.

सीतू जो भी पैसा ऐंठ कर लाता था, उस में से उसे भी हिस्सा मिलता था. धीरेधीरे उस के पास काफी पैसा जमा हो गया. पर मन के किसी कोने में उसे अपनी इस ऊपर की कमाई से एक तरह के जुर्म का अहसास होता, मगर जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता तो यह अहसास कहीं गायब हो जाता.

सीतू को एक बात अकसर चुभती थी कि कसबे के लोग बाकी सिपाहियों को तो पूरी इज्जत देते और सलाम करते थे, मगर उसे केवल मजबूरी में ही सलाम करते थे. वह चाहता था कि उसे भी दूसरे सिपाहियों के बराबर समझा जाए, मगर वह इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था.

वैसे, अब सीतू काफी सुखी था.

उस के पास सरकारी मकान था. एक साइकिल भी उस ने खरीद ली थी. वह शान से साफसुथरे कपड़ों में रहता था. कम से कम झोंपड़पट्टी के लोग तो उस की कद्र करते ही थे.

सीतू अपने साथी सिपाहियों के मुकाबले खुद को बेहतर समझता था. उस के सभी साथी शादीशुदा थे, मगर वह इस झंझट से अभी तक आजाद था. मांबाप की याद भी उसे ज्यादा नहीं आती थी, क्योंकि उसे उन से ज्यादा लगाव कभी रहा ही नहीं था.

एक दिन सीतू अपनी साइकिल पर सवार हो कर बाजार से गुजर रहा था कि एक जगह भीड़ लगी देख कर वह रुक गया. उस ने देखा कि झोंपड़पट्टी में रहने वाली एक लड़की भीड़ से घिरी खड़ी थी और रोते हुए गालियां बक रही थी. वह कभीकभार भीड़ पर पत्थर भी फेंक रही थी.

भीड़ में शामिल लोग लड़की के पत्थर फेंकने पर इधरउधर भागते हुए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहे थे.

सीतू ने देखा कि कुछ लफंगे से दिखाई देने वाले लड़के उस लड़की को घेरने की कोशिश कर रहे थे. सीतू ने पास खड़े झोंपड़पट्टी में रहने वाले एक बूढ़े आदमी से पूछा, ‘‘बाबा, आखिर माजरा क्या है?’’

बूढ़े ने सीतू को पुलिस की वरदी में देख कर पहले तो मुंह बिचकाया, फिर बोला, ‘‘यह लड़की यहां बैठ कर लकड़ी के खिलौने बेच रही थी. जब सब खिलौने बिक गए, तो उस ने पैसे रख लिए और थैले में से रोटी निकाल कर खाने लगी.

‘‘तभी ये 3 बदमाश लड़के यहां आ धमके. एक ने उसे 50 का नोट दिखा कर पूछा कि ‘चलती है क्या मेरे साथ?’ तो लड़की ने उस के मुंह पर थूक दिया.

‘‘बस फिर क्या था, तीनों लड़के उस पर टूट पड़े. लड़की की चीखपुकार सुन कर भीड़ जमा हो गई तो लड़कों ने शोर मचा दिया कि इस लड़की ने चोरी की है. बस, तभी से यह नाटक चल रहा है.’’

इतना बता कर वह बूढ़ा सीतू को इस तरह घूर कर देखने लगा मानो कह रहा हो, ‘है हिम्मत इस लड़की को इंसाफ दिलाने की?’

इतना सुनते ही सीतू साइकिल की घंटी बजाते हुए भीड़ में जा घुसा. उस ने कड़क लहजे में लड़की से पूछा, ‘‘ऐ लड़की, यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘साहब, ये तीनों मुझ से बदतमीजी कर रहे हैं. मैं ने रोका तो जबरदस्ती करने लगे. मैं ने शोर मचाया तो बोले कि मैं चोर हूं, पर मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘साहब, यह झूठी है. यह तो पक्की चोर है. इस ने पहले भी कई चोरियां की हैं. जो घड़ी इस के हाथ में बंधी है वह मेरी है,’’ एक लड़के ने कहा.

‘‘इस ने मेरा 50 का नोट चुराया है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘ये लड़के झूठ बोलते हैं साहब. मैं ने चोरी नहीं की है,’’ लड़की ने सीतू के आगे हाथ जोड़ कर कहा.

लड़की के मुंह से ‘साहब’ सुन कर सीतू की छाती चौड़ी हो गई. उस ने एक लड़के से पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि यह घड़ी तेरी है?’’

इस से पहले कि वह लड़का कुछ कह पाता, भीड़ में से किसी की आवाज आई, ‘‘इस लड़की के पास क्या सुबूत है कि यह घड़ी इसी की है?’’

यह सुन कर सीतू भड़क उठा. साइकिल स्टैंड पर लगा कर उस ने अपना डंडा निकाल लिया. फिर वह भीड़ की तरफ मुड़ गया और हवा में डंडा लहराते हुए बोला, ‘‘किसे चाहिए सुबूत? इस लड़की के पास यह सुबूत है कि घड़ी इस के कब्जे में है… और किसी को कुछ पूछना है? चलो, भागो यहां से. क्या यहां जादूगर का तमाशा हो रहा है?’’

सीतू की फटकार सुन कर वहां जमा हुए लोग धीरेधीरे खिसकने लगे.

‘‘देखो साहब, वे तीनों भी भाग रहे हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘तुम तीनों यहीं रुको और बाकी सब लोग जाएं,’’ सीतू ने उन लफंगों को रोकते हुए कहा.

जब भीड़ छंट गई, तो सीतू उन लड़कों से बोला, ‘‘चलो, थाने चलो.’’

थाने का नाम सुन कर उन तीनों लड़कों के साथसाथ वह लड़की भी घबरा गई. वह बोली, ‘‘देखो साहब, ये तो बदमाश हैं, मगर मैं थाने नहीं जाना चाहती.’’

‘‘अरी, तुझे कोई खा जाएगा क्या वहां? मैं हूं न तेरे साथ,’’ सीतू उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘साहब, घड़ी इसी के पास रहने दीजिए. कहां थाने के चक्कर में फंसाते हैं,’’ एक लड़का बोला.

‘‘साला… फिर कहता है कि मैं चोर हूं. चलो साहब, थाने ही चलो,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘गाली नहीं देते लड़की,’’ सीतू ने लड़की से कहा और फिर लड़कों से बोला, ‘‘मैं तुम लोगों को तब से देख रहा हूं, जब तुम ने इस लड़की को 50 का नोट दिखाया था.’’

यह सुन कर तीनों लड़कों के चेहरे फीके पड़ गए. सीतू ने लड़की को बूढ़े के पास रुकने को कहा और तीनों लड़कों को ले कर थाने की ओर बढ़ चला. लड़कों ने आपस में कानाफूसी की और एक लड़के ने सौ का नोट सीतू की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अब तो जाने दो साहब. कभीकभी गलती हो जाती है.’’

सीतू ने एक नजर नोट पर डाली और फिर इधरउधर देखा, कुछ लोग उन्हें देख रहे थे.

‘‘रिश्वत देता है. इस जुर्म की दफा और लगेगी,’’ कहते हुए सीतू उन्हें धकेलता हुआ सड़क के मोड़ पर ले गया.

‘‘साहब, इस समय तो हमारे पास इतने ही पैसे हैं,’’ कहते हुए लड़के ने 50 का नोट और बढ़ा दिया.

सीतू ने इधरउधर देखा, वहां उन्हें कोई नहीं देख रहा था. वह बोला, ‘‘ठीक है, अब आगे ऐसी घटिया हरकत मत करना.’’

‘अरे साहब, कसम पैदा करने वाले की, अब ऐसा कभी नहीं करेंगे,’ तीनों ने एकसाथ कहा.

‘‘अच्छा जाओ, मगर दोबारा अगर पकड़ लिया तो सीधा सलाखों के पीछे डाल दूंगा,’’ सीतू ने नोट जेब में रखते हुए कहा.

सीतू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर धीरेधीरे साइकिल धकेलता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां बूढ़े के पास लड़की को छोड़ कर गया था. लड़की तो वहां नहीं थी, पर बूढ़ा वहीं बैठा हुआ था. बूढ़ा सीतू को सिर से पैर तक घूर रहा था.

‘‘ऐ बूढ़े, वह लड़की कहां गई?’’ सीतू ने पूछा.

बूढ़े ने सीतू को घूरते हुए कहा, ‘‘पुलिस में भरती हो गए तो क्या यह तमीज भी भूल गए कि बड़ेबूढ़ों से किस तरह बात करते हैं. वह लड़की चली गई, पर इस से तुम्हें क्या मतलब? तुम्हारी जेब तो गरम हो गई न, जाओ ऐश करो.’’

‘‘क्या बकता है? किस की जेब की बात करता है? तुम ने उस लड़की को क्यों जाने दिया?’’ सीतू भड़क उठा.

‘‘इस इलाके में कोई भी तुम पुलिस वालों पर यकीन नहीं करता. ऐसे में वह लड़की क्या करती? सोचा था कि अपनी बिरादरी का एक आदमी पुलिस में आया है तो वह कुछ ठीक करेगा, मगर वाह री पुलिस की नौकरी, बेच दी अपनी ईमानदारी शैतान के हाथों और बन गया खाउड्या… जा खाउड्या अपना काम कर.’’

‘‘क्या बकता है? थाने में बंद कर दूंगा,’’ कहने को तो सीतू कह गया, मगर न जाने क्यों वह बूढ़े से नजरें नहीं मिला पाया.

सीतू इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि रिश्वत लेना जुर्म है, मगर आज तक किसी पुलिस वाले ने उसे यह बात नहीं बताई थी. हां, साथियों ने यह जरूर समझाया था कि रिश्वतरूलेते समय पूरी तरह से चौकस रहना बहुत ही जरूरी होता है.

लेखक- मदन बड़ोलिया

Hindi Story Collection : सबक – सुधीर जीजाजी के साथ क्या हुआ

Hindi Story Collection : रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’

‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’

‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’

‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’

‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.

देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.

‘‘सुधीर जीजाजी ने आप का उस से परिचय नहीं करवाया?’’

‘‘उस को चायनाश्ते के लिए कहते वक्त सुधीर शायद मुझे यह दर्शा रहे थे कि वह उन की मेड है लेकिन उन के साथ उस की तसवीर, फिर तसवीर का गायब होना और मेरी उपस्थिति से सुधीर का असहज होना इस बात की तरफ साफ संकेत कर रहा था कि वह युवती उन की मेड नहीं बल्कि कुछ और है.’’

‘‘भैया, इस विषय में हमें संध्या दी को तुरंत बता देना चाहिए,’’ मैं ने उतावले स्वर में कहा.

‘‘नहीं अनु, इस विषय में तुम संध्या दी को कुछ नहीं बताओगी,’’ भैया के बजाय भाभी बड़े ही कठोर और आदेशात्मक लहजे में बोलीं. ‘‘भाभी, आप एक औरत हो कर भी औरत के साथ अन्याय की बात कर रही हैं. संध्या दी मेरे पति की सगी बहन हैं, मेरी ननद हैं. जैसे मैं आप की ननद हूं’’ ‘‘जानती हूं मैं, संध्या आप के पति की सगी बहन है, लेकिन 14 साल पहले वह अपने पति से बुरी तरह लड़झगड़ कर अपनी मरजी से अपनी दोनों बेटियों को ले कर मायके आ गई थी. सुधीर और उन के परिवार वालों ने लाख कोशिश की कि वह लौट आए लेकिन हर बार उन्हें संध्या दी ने अपमानित किया. ऐसी स्थिति में सुधीर के मांबाप ने चाहा भी कि दोनों का तलाक हो जाए लेकिन संध्या दी पर तो जैसे जिंदगीभर सुधीर को परेशान करने का जनून सवार था. शायद इसी वजह से उस ने सुधीर को तलाक भी नहीं दिया.’’

‘‘जानती हो अनु, जब तुम्हारी संध्या दी ने अपना ससुराल छोड़ा था तब अपने पति के मुंह पर थूक कर गई थी. तो भला, कौन पति अपनी ऐसी बेइज्जती सहेगा? इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद, सुधीर की इंसानियत और बड़प्पन देखो कि वे उस का और दोनों बेटियों का पूरा खर्चा बिना किसी हीलहुज्जत के नियम से दे रहे हैं. उन की हर सुखसुविधा का खयाल भी रखते हैं. महीने में उन से मिलने भी आते हैं.’’

‘‘यह तो उन का फर्ज है, भाभी. वे एक पिता और पति भी हैं,’’ मैं ने संध्या दी का पक्ष लेते हुए कहा. ‘‘सारे फर्ज सुधीर के ही हैं, तुम्हारी संध्या दी के कुछ भी नहीं,’’ भाभी कड़वे स्वर में बोलीं, ‘‘अनु, तुम ही बताओ तुम्हारी संध्या दी ने शादी के बाद अपने पति को क्या सुख दिया? उन का जीवन खराब कर दिया. कभी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली. मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन की बेटियां कैसे हो गईं? उन्हें तो सुधीर के सान्निध्य से ही घिन आती थी. उन के हर काम, व्यवहार में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन के कपड़े धोना तो दूर, उन्हें हाथ तक न लगाती थी. उन्हें खाने तक के लिए तरसा दिया था. वे बेचारे मां के पास खाते तो उन पर ताने कसती, उन पर व्यंग्य करती. तो बताओ अनु, क्या ऐसी औरत से हम सहानुभूति रखें? ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो अपने पति और ससुराल वालों

इतना कर्कश व्यवहार रखती हैं. एक अच्छी और सुघड़ औरत वह होती है जो परिवार को तोड़ती नहीं, बल्कि जोड़ती है. लेकिन तुम्हारी संध्या दी ने तो जोड़ना नहीं, तोड़ना सीखा है. प्रेम और मिलनसार व्यवहार जैसे शब्द तो शायद उन के शब्दकोश में हैं ही नहीं. सच पूछो, तो मुझे बेहद खुशी है कि सुधीर उस औरत के साथ हंसीखुशी रह रहे हैं.’’

‘‘भाभी, आप जो कुछ कह रही हैं वह हम सब जानते हैं. न वे व्यवहार की अच्छी हैं न स्वभाव की. जबान की भी बेहद कड़वी हैं या दूसरे शब्दों में कहें वे शुद्ध खालिस स्वार्थ की प्रतिमा हैं. मायके में भी किसी से नहीं बनी, तभी तो किराए के मकान में रह रही हैं. लेकिन एक औरत होने के नाते हमें ऐसा होने से रोकना चाहिए और संध्या दी को सबकुछ बता देना चाहिए.’’

‘‘अनु, इस मामले में मेरी सोच तुम से जुदा है. मैं भी एक औरत हूं लेकिन इस प्रकरण में मैं सुधीर का साथ दूंगी क्योंकि हर जगह आदमी ही गलत नहीं होता. 95 प्रतिशत मामलों में दोषी न होते हुए भी पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है. अगर एक पति अपनी कर्कशा पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और इस के एवज में अगर वह अपना एकाकीपन दूर करने के लिए एक औरत के साथ सुखी, संतुष्ट और तनावमुक्त जीवन जी रहा है तो इस में गलत क्या है? वह औरत भी पूरी सचाई से वाकिफ है, तो बुरा क्या है. प्लीज, जैसा चल रहा है, चलने दो. इस बारे में संध्या को बताने का मतलब साफ है कि सुधीर का जीवन पहले से और भी बदतर हो जाना क्योंकि संध्या की फितरत से वाकिफ हूं मैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, उस औरत को अंत में क्या हासिल होगा? कानूनी रूप से तो संध्या ही उन की पत्नी हैं. सुधीर जीजाजी के न रहने पर उन की सारी संपत्ति, जमीनजायदाद और पैंशन पर तो संध्या दी का ही हक होगा. यह सब छिपा कर हम उस औरत के साथ भी तो एक तरह से अन्याय ही कर रहे हैं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘नहीं अनु, तुम किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रही हो. मैं जानती हूं, सुधीर जैसे नेकदिल इंसान मात्र अपने सुख और स्वार्थ के लिए उस औरत के साथ कोई धोखा नहीं करेंगे, न ही उसे अंधेरे में रखेंगे. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ वे अपना रिश्ता निभाएंगे. मुझे पूरा विश्वास है सुधीर जैसे पढ़ेलिखे, समझदार और दूरदर्शी व्यक्ति ने उस के सुखी और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य कर दिया होगा.

‘‘रही बात संध्या की, तो ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो बिना वजह अपने पति और ससुराल वालों को प्रताडि़त कर के उन्हें कानूनी धमकी दे कर अपने मायके आ जाती हैं. इस श्रेणी में तुम्हारी संध्या दी भी आती हैं. यह बात मैं ही नहीं, तुम और तुम्हारे ससुराल वाले और यहां तक कि दोनों तरफ के रिश्तेदार व पड़ोसी भी जानते हैं. इसलिए यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं कि तुम संध्या को बता कर सुधीर की खुशहाल जिंदगी में जहर घुलवाओगी या चुप रह कर उन की वर्तमान खुशियां बरकरार रखोगी,’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.

जानती हूं मैं, भाभी ने जो कुछ कहा है वह एकदम सच कहा है क्योंकि सुधीर जीजाजी उन के करीबी रिश्तेदार हैं. उन्होंने अपना दर्द उन से बयां किया है. मैं अजीब कशमकश में हूं कि एक निर्दोष आदमी की खुशियों की खातिर चुप रहूं या फिर एक कटु, कठोर व कर्कशा औरत के न्याय के लिए बोलूं… फिर भी यह तो मैं भी मानती हूं कि पतिपत्नी के रिश्ते को चाहे वह पति हो या पत्नी, कोई एक भी उस रिश्ते को तोड़ने का जिम्मेदार है तो कुसूरवार वही है. ऐसे में दोषी के साथ सहानुभूति दिखाना बेकुसूर के साथ बेइंसाफी होगी. सुधीर जीजाजी को पूरा हक है कि वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवारें.

Hindi Fiction Stories : एक किताब सा चेहरा

Hindi Fiction Stories : वह अकसर मुझे दिखाई देती थी, जब मैं अपनी साइकिल से सूनीसूनी सड़कों पर शिमला की ठंडक को मन में लिए जब भी निकला हूं मैं… बर्फीले हवा के झेंके सी गुजर जाती है वह. नहीं, वह नहीं गुजरती मैं ही गुजर जाता हूं. उस के पास धीमीधीमी साइकिल पर चलतेचलते मेरा मन होता है कि मैं रुक जाऊं उसे देखने के लिए. कभी तो ऐसा भी लगा साइकिल पर ही रुक कर पलट कर देख लूं. पर शायद यह लुच्चापन लगेगा, वह मुझे लोफर या बदमाश भी समझ सकती है. मैं नहीं कहलाना चाहता बदमाश उस की नजरों में. इसलिए सीधा ही चला जाता हूं. मन में कसक लिए उसे अच्छी तरह देखने की.

वह मुझे आजकल की लड़कियों सी नहीं दिखती थी. अगर तुम पूछोगे कि आजकल की लड़कियां तो मैं बिलकुल पसंद नहीं करूंगा. आज की लड़कियों को पसंद करता भी नहीं क्यों एक फूहड़पन सा झलकता है इन लड़कियों में. अजीब सा चेहरा बना कर बात करना, सैल्फी खींचखींच कर चेहरे और विशेषकर होंठों को सिकोड़े रहने की आदत की शिकार नहीं बीमार कहिए बीमार हो गई हैं आज की लड़कियां.

पहनावा सोचते ही उबकाई आने लगती है. मुझे जीरो साइज के पागलपन में पागल लड़कियां अपने शरीर की गोलाइयों को पूरा सपाट बना देती हैं. इस से जो आकर्षण होना चाहिए वह बचता ही नहीं. अब आप कहेंगे मैं पागल हूं जो आज के माहौल के लिए, आधुनिक युग के लिए ऐसा बोल रहा हूं.

तो साहब, ऐसा नहीं शरीर को प्रयोगशाला बनाने के साथ ही कपड़ों की तो बात ही क्या है? घुटनों के पास से फटी जींस, कमर, पेट दिखाता टौप, कहींकहीं तो पिडलियों के पास से भी फटी जींस के भीतर से झंकते शरीर को देख कर मुझे तो घिन आती है. कहीं से भी सुंदर नहीं दिखती ऐसी लड़कियां. आगे भी सुन लीजिए. बालों को भी नहीं छोड़ा, नीले, लाल कलर के रंग में रंग बाल देख कर मसखरी करने वाले जोकरों की याद आ जाती है.

अब आप बोलें या सोचें क्या इन से प्रेम किया जा सकता है? दिल में बसाया जा सकता है लंबे प्रेम संबंध चलें ऐसी कोई कल्पना की जा सकती है? नहीं साहब, बिलकुल नहीं. एक बात तो बताना ही भूल गया जनाब कि इन का प्रेम भी फास्ट फूड जैसा होने लगा है. विश्वास ही नहीं होता ये कितनों के साथ एकसाथ प्रेम करती हैं. एक से ब्रेकअप हुआ तो दूसरा रैडी है. दूसरे के साथ ब्रेकअप हुआ तो तीसरा तैयार है… नुक्कड़ पर फोन करने की देर है.

अब ऐसे फास्ट फूड के जमाने में कोई शीतल झरने सी लड़की. जी हां लड़की, दिख जाए तो मन बावला हो उठता है. मेरा भी मन बावला हो उठा उस लड़की को देख कर.

घर पर जा कर मैं ने प्रण किया अब तो मैं कुछ दिनों में उस लड़की से जरूरजरूर बात करूंगा. मैं शिमला की ठंडक को मन में संजोए सो गया. कमरे के दरवाजे और खिड़की पर बर्फ की परतें जमनी शुरू हो गई थीं. गरम रजाई के भीतर उस लड़की की सांसों की गरमी मैं महसूस कर रहा था, बर्फ से ढकी पहाडि़यों के पीछे से लड़की का चेहरा बारबार झंक कर मुझे रातभर परेशान करता रहा और मैं जागता रहा, सोता रहा.

सुबह जब नींद खुली तो देखा 9 बजने जा रहे थे. बर्फ की परतें जो रात से

खिड़की और दरवाजे पर लिपटी थीं. हलकीहलकी पिघलने लगी थीं. हलकी सी धूप पहाडि़यों से अंगड़ाई लेते हुए पहाडि़यों की गोद में बसे कौटेजों पर बिखरने लगी थी. क्या करूं? मन नहीं कर रहा था उठने का. चाय पी लेता हूं. नाश्ते के बाद निकलूंगा. आज संडे है पर संडे को भी लाइब्रेरी खुलती है. नाश्ते के बाद 11 साढ़े 11बजे तक लाइब्रेरी पहुंच जाऊंगा. रास्ते में फिर मिलेगी वह लड़की. मैं आज पक्का उस से बात करूंगा, चाहे जो हो. यही सोच कर मैं ने चाय पी पर चाय ठंडी हो गई थी.

गरम करने के लिए दोबारा केतली उठाई. चाय के बाद मैं ने गाम पानी के गीजर को औन किया. तब तक कपड़ों की तैयारी में लग गया कि आज कौन से कपड़े पहनूं जिन से वह लड़की इंप्रैस हो जाए. सोचतेसोचते सब्ज कलर की जींस और ब्लैक टीशर्ट निकाली. हलकेहलके गरम पानी की उड़ती भाप में भी लड़की का चेहरा बनता रहा बिगड़ता रहा, पहाडि़यों से भी वह झंकती रही. मैं उसे देखता रहा.

नहा कर जब बाहर आया तो भूख सी महसूस हो रही थी मुझे. फ्रिज देखा तो कुछ अंडे थे, लेकिन ब्रैड नहीं थी. अब क्या करूं? केसरोल देखा तो कल का एक परांठा बचा पड़ा था. चलो हो गया नाश्ते का इंतजाम. बासी परांठा और ताजा आमलेट. फटाफट मैं प्याज, हरीमिर्च और धनियापत्ती काट कर अंडे फेंटने लगा. नाश्ता भी मैं ने गरम कंबल में लिपटे हुए खाया. नाश्ते के बाद आदमकद आइने के सामने खड़ा हुआ. खुद को आईने में देख कर सोचने लगा कि क्या वह मुझे पसंद करेंगी? बुरा तो नहीं मैं 5 फुट 11 इंच की हाइट, हलकेहलके कर्ली बाल, लंबी नाक, घनी मूंछें, खिलता रंग. पसंद करेगी बात भी करेगी. चेहरे से कुछकुछ शायर सा लगता हूं जैसेजैसे याद नहीं आ रहा, किस ने कहा था? शायद किसी दोस्त ने. ‘वह उस गीत सा…’ कौन सा गीत हां याद आया:

‘किसी नजर को तेरा इंजतार आज भी है…’ सुरेश वाडकर पर फिल्माया गया था यह गीत. डिंपल कपाडि़या बेचैन सी हो कर आती है. चलो देखते हैं…

तैयार हो कर कौटेज से बाहर निकला. धूप अच्छी लग रही थी. हलकीहलकी कुनकुनी सी. जींसब्लेजर में भी इंतजार वाले गीत सा महसूस कर रहा था. फिर सोचा साइकिल आज ठीक रहेगी. काश बाइक ले कर आता घर से, घर तो दिल्ली था, जौब शिमला में थी. साइकिल पसंद थी, इसलिए साइकिल उठा लाया. पर साइकिल से क्या वह इंप्रैस होगी? ऐसा करता हूं मकानमालिक से बाइक ले लेता हूं आज. बाइक ठीक रहेगी.

मकानमालिक ने दे दी बाइक की चाबी. वे आज रैस्ट के मूड में थे. शाम को ही निकलने के मूड में थे. संडे जो था. खैर मैं ने बाईक निकाली और चल दिया शिमला की अजगर जैसी सड़कों पर. सर्पीली सड़कों के जाल, पहाडि़यों की गगन चूमती चोटियां, हंसता सूरज, मुसकराती धूप, पौधोंफूलों से टपकती बर्फ, पिघलती बर्फ की खामोशियां, हवाओं में बहती खुशबू, गरमगरम कपड़ों में कौटेजों से निकल कर धूप को पीते लोग.

हरियाली की चूनर, चिनार के पेड़ों की वे कतारें, कौटेज से उठता धुआं. सबकुछ कितना मनमोहक है, कितना सुंदर, प्यारा और जीवन से प्यार करना सिखाता. ये प्रकृति का अद्भुत चित्र. एक अनदेखे चित्रकार की खूबसूरत कलाकृति यह सृष्टि. बाइक पर उसे याद आया सड़क के किनारे एक छोटा सा देव स्थान है. वह तुंरत उस जगह पहुंच गया.

जूते खोल कर वह आगे बढ़ा. देखा तो घना वटवृक्ष है, उस ने ध्यान से देखा तो पाया बरसों पुराना है शायद सैकड़ों साल पुराना. बहुत घना. उस के नीचे पक्के चबूतरे पर एक देव प्रतिमा थी. सामने एक दीपक जल रहा था. बरगद के पीछे बड़ी काली पहाड़ी थी, पहाड़ी से लगा था छोटा सा तालाब. दीपक जल रहा है. मतलब कोई जला कर गया है. बरगद पर सैकड़ों धागे बंधे थे. शायद मन्नत के धागे… मैं ने पास के तालाब में हाथ धो कर जेब से रूमाल निकाल कर माथे को ढका. देव प्रतिमा के सामने जा कर अपना शीश झका कर जैसे ही आंखें बंद कीं, फिर उस लड़की का चेहरा नाच उठा.

मैं नहीं जानता मुझे क्या हुआ. क्यों आया मैं तेरे द्वार पर इस दौर में मुझे सुकून से भरे कुछ पल दे दे. ऐसा सुकून, शांति जिस की मेरे देश को भी जरूरत हैं. अमनशांति से भर दे सब की झली. कुछ पल तक मैं दीपक की जादू भरी लौ को देखता रहा. फिर न जाने क्या सोच कर वहां पूजा की थाली में रखा रंगीन कलावा ले कर वृक्ष के दामन में बांध कर वापस आ गया.

बाइक स्टार्ट कर के वापस अपनी मंजिल लाइब्रेरी की तरफ चला. अफसोस सारे रास्ते मुझे वह लड़की नहीं दिखी. मन उदास हो चला, दुखी हो गया.

लाइब्रेरी के बाहर बाइक खड़ी करतेकरते भी मन उदास और निराश था, जल्दी से बुक्स ले कर वापस हो जाऊंगा, क्या पता, वह बीमार हो गई हो. आज कुछ ज्यादा ही लोग थे. लाइब्रेरी में. यह एक मात्र लाइब्रेरी थी, जिस में दिन भर पढ़ने के शौकीन विद्यार्थी आते रहते थे. मुझे भी किताबों का शौक था.

बड़े दिनों से टौलस्टौय की बुक ‘इंसान और हैवान’ की तलाश में था. मैं ने अपनी

बुक के लिए शैल्फ पर नजरें दौड़ानी शुरू कीं. आधा घंटा हो गया था. दूसरी वाली शैल्फ में देखता हूं, यह सोच कर मैं ने पलट कर देखा तो सामने से कोई टकरा गया. मेरी बुक जमीन पर मैं ने जल्दी से बुक उठाई और सौरी कहा. यह क्या… सामने तो वही लड़की थी, जिसे मैं देखा करता था.

अरे यह. चमत्कार हो गया. दिल इतनी तेजी से धड़कने लगा जैसे लो बाहर ही आ जाएगा. सौरी बोलने के बाद मैं अपलक उसे निहारता ही रह गया.

‘‘क्या हुआ आप को? सौरी बोल तो दिया आप ने. अब क्या हुआ,’’ लड़की की आवाज मेरे कानों तक पहुंची.

‘‘जीजी हां, वह मैं थोड़ा जल्दी में था,’’ मैं ने अपनी धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘कोई बात नहीं… देख ली आप ने?’’ लड़की बोली.

‘‘जी देखी तो लेकिन उस शैल्फ में तो नहीं मिली… इस में देख लेता हूं.’’

‘‘कौन सी बुक है?’’ वह पूछने लगी.

मैं ने कहा, ‘‘टौलस्टौय की बुक ‘इंसान और  हैवान.’’

‘‘अच्छा… कहीं यह तो नहीं,’’ कह कर उस ने बुक अपने हाथ में रख कर मेरी नजरों के सामने की.

‘‘अरे हां ये ही… मैं खुशी से बोला, ‘‘लेकिन आप ने तो अपने नाम से इशू करवाई होगी? आप पढ़ लीजिए. मैं फिर ले लूंगा,’’ मेरा स्वर उदासी भरा था.

‘‘अरे नहीं, आप पढ़ लीजिए मैं फिर पढ़ लूंगी,’’ वह बोली.

मैं खुश हो गया. मैं ने उसे थैंक्स कहा.

‘‘ओकेजी,’’ वह बोली.

‘‘अच्छा आप अभी रुकेंगी या जाएंगी,’’ मैं ने हिम्मत जुटाई.

‘‘मैं अब निकलूंगी,’’ वह बोली.

‘‘अगर आप चाहें तो मैं आप को छोड़ दूं? मैं ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं चलिए साथ चलते हैं,’’ वह बोली.

मैं बाहर आ गया. वह भी साथ थी. मैं ने बाइक निकाली.

‘‘अरे यह क्या… बाइक,’’ वह बोली.

‘‘जी बाइक. बाइक पर नहीं बैठोगी?’’ मैं ने थोड़े आश्चर्य से पूछा.

‘‘नहींनहीं ऐसा कुछ नहीं, लेकिन आप की तो साइकिल ही अच्छी है,’’ वह बोली. ‘‘फिर इन खूबसूरत नजारों को देखने के लिए मुझे पैदल जाना ही पसंद है,’’ वह मुसकराती बोली.

‘उफ, कितनी कातिल मुसकान है,’ मैं ने सोचा, ‘लुट जाते होंगे न जाने कितने इस मुसकान पर.’

‘‘चलिए बाइक यहीं छोडि़ए हम कुछ देर घूम लेते हैं,’’ वह बोली.

‘‘ओके,’’ मैं ने कहा फिर बाइक वहीं छोड़ी और उस के साथ चल दिया.

घुमावदार सड़कें, बर्फ से छिपतेढकते, पेड़, बर्फ

कहींकहीं पिघल कर पैरों को छू कर ठंड भर देती शरीर में. कुछ दूरी पर छोटा सा कौफीहाउस था पहाड़ी के दामन में. मैं ने कहा, ‘‘अगर एतराज न हो तो 1-1 कौफी पी लें?’’

‘‘जरूर,’’ वह बोली.

बड़े दिनों बाद आज धूप निकली थी इस बर्फीले हिल स्टेशन पर. गरम कपड़ों में लोग जगहजगह धूप का आनंद ले रहे थे.

कौफीहाउस में कुछ लोग थे, मैं ने खिड़की के पास वाली टेबल पसंद की. लकड़ी के कौटेज मुझे बहुत पसंद है. कौफीहाउस की डैकोरेशन बड़ी प्यारी थी.

वह मेरे सामने थी, बीच में थी टेबल, टेबल पर था पीले, सफेद, पिंक गुलाबों का गुलदस्ता, जो शायद कुछ देर पहले ही सजाया गया था.

‘क्या बात शुरू करूं?’ मैं ने सोचा. फिर ध्यान आया. अरे नाम…

‘‘हम लाइब्रेरी से इतनी देर से साथ हैं… हम ने एकदूसरे का नाम भी नहीं पूछा,’’ मैं ने कहा.

‘‘ओह,’’ कह कर वह मुसकरा दी. मुसकराते ही दाएं गाल का डिंपल भी मुसकरा दिया.

‘‘मैं आकाश हूं. मतलब मेरा नाम आकाश है. मैं जौब करता हूं. घर मेरा इंदौर में है. शिमला की बर्फ और खूबसूरती मुझे पंसद है. यहां का औफर आया तो तुरंत हां कर दी,’’ अपनी बात समाप्त कर के मैं उसे देखने लगा.

‘‘मैं गीतिका हूं. मुझे भी पहाडि़यों और चर्च से घिरा शिमला पसंद है. मेरे मामा यहां रहते हैं, पापामम्मी भोपाल में हैं. पापा सरकारी जौब में हैं. मम्मी हाउसवाइफ हैं. मुझे पढ़ने का शौक है तो मामा के यहां रह कर पढ़ाई भी करती हूं और अच्छे साहित्यकारों को भी पढ़ती हूं.’’

‘‘साहब, और्डर,’’ तभी वेटर ने आ कर हमारे बातचीत के क्रम को भंग किया.

‘‘कौफी के साथ क्या लोगी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जो आप का मन करे,’’ कह गीतिका मुसकरा दी.

‘‘ओके,’’ कह कर मैं ने पनीर सैंडवीच और कौफी का और्डर कर दिया.

सूर्य की किरणें कौटेज की दरारों से अंदर आ कर शैतानियां कर रही थीं. बर्फ की धुंध को चीर कर बड़े दिनों बाद धूप निकली थी जो अच्छी लग रही थी. धूप की शैतानियों को देखतेदेखते मैं ने गीतिका को देखा जो खिड़की से फूलों को देख रही थी.

मैं ने उसे देखा कि खिलता हुआ रंग, होंठों की बाईं तरफ तिल जो सौंदर्य पर पहरा दे रहा था, कमल सी आंखें, जो खामोशखामोश सी कोई कहानी छिपाए हैं. मुझे पसंद हैं सुंदर आंखें. लंबा कद, मांसलता लिए शरीर, ब्लैक कलर का सूट, उस पर पिंक कलर का ऐंब्रौयडरी वाला दुपट्टा, हलकाहलका काजल. काश, मेरी लाइफपार्टनर बने. मैं कल्पना में खो गया.

‘‘साहब, कौफी,’’ तभी वेटर की आवाज सुनाई दी.

‘‘गीतिका, क्या सोचती हो मेरे बारे में? मैं ने पूछा, मैं तो अकसर ही तलाशता था जब मैं लाइब्रेरी आता था,’’ कह उस के चेहरे के भाव देखने लगा.

‘‘जी मैं ने भी कई बार देखा था आप को. आप मुझे देखने के लिए साइकिल धीमी कर देते थे,’’ कह गीतिका खिलखिला दी. हंसतेहंसते ही उस ने अपने आंखों पर हाथ रख लिए. यह अंदाज मेरे दिल में उतर गया. ऐसा लगा जैसे नन्हेनन्हे घुंघरू बज उठे हों.

‘‘हां गीतिका मैं भी तुम से बात करना चाहता था, पर कर नहीं पाता था. मुझे ओवरस्मार्ट बनने वाली लड़कियां पसंद नहीं हैं. शरीर दिखाऊ कपड़े, अजीब सा हेयरस्टाइल, सिगरेट का धुआं उड़ाती लड़कियों का मानसिक दीवालिया समझता हूं मैं.’’

‘‘अच्छाजी,’’ गीतिका बोली, ‘‘कौफी

खत्म हो गई है. अब चलते हैं मामा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘गीतिका थोड़ी देर प्लीज,’’ मैं रिकवैस्ट के अंदाज में बोला.

‘ओके,’’ कह कर वह बैठ गई.

‘‘एक कौफी और मंगा लें?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मंगा लीजिए.’’

‘‘गीतिका तुम्हारी हौबी क्या है?’’

‘‘पढ़ना. बताया तो था आप को. इस के अलावा प्रकृति की सुंदरता को निहारना पसंद है. भीड़ से मुझे घबराहट होती,’’ गीतिका शिमला की पहाडि़यों को निहारती हुई बोली.

‘‘सच, कितनी सुंदर हौबीज हैं तुम्हारी.’’ मैं बहुत खुश हो उठा. मन ही मन उस देव स्थान पर मेरा सिर झकने लगा.

‘‘गीतिका हम फिर मिलेंगे न?’’ मैं ने उस की तरफ देख कर पूछा.

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘मुझे यह बुक पढ़ कर वापस कर देना मुझे भी पढ़नी है.’’

‘‘ओके बाय,’’ मैं ने हाथ हिला कर कहा.

‘‘बाय फिर मिलते हैं,’’ कह कर वह चली गई. मैं उसे जाते देखता रहा दूर तक.

मन में उस की सूरत बसाए जब अपने रूम पहुंचा तो देखा कि मेरे मकानमालिक एक

बड़ा सा लिफाफा लिए मेरा इंतजार कर रहे थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘तुम्हारे घर से आया है.’’

मैं लिफाफा ले कर रूम में पहुंचा. जैसे ही लिफाफा खोला तो कई फोटो नीचे गिर पड़े, हाथ में ले कर जैसे ही फोटो पर नजर गई, तो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ. गीतिका के फोटो थे, पापामम्मी ने मेरे लिए लड़की पसंद की थी. मोबाइल के फोटो देखने को खुद मैं ने ही मना किया हुआ था. नहीं समझ आता फोटो फिल्टर हैं या औरिजनल. सामने हो तो बात ही अलग होती है मैं ने तुंरत घर फोन किया.

‘‘बेटा देख ले लड़की को,’’ पापा बोले. ‘‘गीतिका भी शिमला में ही है. पता कर के मुलाकात कर ले.’’

मैं क्या बोलता पापा को कि मैं तो मिल कर देख चुका हूं गीतिका को. मैं ने तुरंत हां कर दी शादी के लिए मेरे सपनों का चेहरा अब मेरा जीवनसाथी बनने जा रहा था.

तेरी सुरमई सूरत जब फूल बन जाए,

किताबी आंखों पर मेरी गजल हो जाए,

बन कर मैं देखूं तुझे रांझे की नजर से,

मेरे प्रेम के एहसास में तू हीर बन जाए.

यही थी मेरे गुलाबी सपनों का गुलाबी सपना किताब सा चेहरा.

Short Moral Stories in Hindi : सवाल का जवाब

Short Moral Stories in Hindi : जफर दफ्तर से थकाहारा जैसेतैसे रेलवे के नियमों को तोड़ कर एक धीमी रफ्तार से चल रही ट्रेन से कूद कर, मन ही मन में कचोटने वाले एक सवाल के साथ, उदासी से मुंह लटकाए हुए रात के साढ़े 8 बजे घर पहुंचा था. बीवी ने खाना बना कर तैयार कर रखा था, इसलिए वह हाथमुंह धोने के लिए वाशबेसिन की ओर बढ़ा तो देखा कि उस की 7 साल की बड़ी बेटी जैना ठीक उस के सामने खड़ी थी. वह हंस रही थी. उस की हंसी ने जफर को अहसास करा दिया था कि जरूर उस के ठीक पीछे कुछ शरारत हो रही है.

जफर ने पीछे मुड़ कर देखने के बजाय अपनी गरदन को हलका सा घुमा कर कनखियों से पीछे की ओर देखना बेहतर समझा कि कहीं उस के पीछे मुड़ कर देखने से शरारत रुक न जाए.

आखिरकार उसे समझ आ गया कि क्या शरारत हो रही है. उस की दूसरी

6 साला बेटी इज्मा ठीक उस से डेढ़ फुट पीछे वैसी ही चाल से जफर के साए की तरह उस के साथ चल रही थी.

बस, फिर क्या था. एक खेल शुरू हो गया. जहांजहां जफर जाता, उस की छोटी बेटी इज्मा उस के पीछे साए की तरह चलती. वह रुकता तो वह भी उसी रफ्तार से रुक जाती. वह मुड़ता तो वह भी उसी रफ्तार से मुड़ जाती. किसी भी दशा में वह जफर से डेढ़ फुट पीछे रहती.

इज्मा को लग रहा था कि जफर उसे नहीं देख रहा है, जबकि वह उस को कभीकभी कनखियों से देख लेता, इस तरह कि उसे पता न चले.

इस अनचाहे आकस्मिक खेल की मस्ती में जफर अपने 2 दिन पहले की सारी परेशानी और गम भूल सा गया था. तभी उसे अहसास हुआ कि इस नन्ही परी ने खेलखेल में उसे गम और परेशानियों का हल दे दिया था. इस मस्ती में उसे उस के बहुत बड़े सवाल का जवाब मिल गया था, जिस का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह थक चुका था.

पिछले 2 दिनों से वह हर वक्त दिमाग में सवालिया निशान लगाए घूम रहा था. मगर जवाब कोसों दूर नजर आ रहा था, क्योंकि 2 दिन पहले उस की दोस्त नेहा ने कुछ ऐसा कर दिया था जिस के गम के बोझ में जफर जमीन के नीचे धंसता चला जा रहा था.

हमेशा सच बोलने का दावा करने वाली नेहा ने उस से एक झूठ बोला था. ऐसा झूठ, जिसे वह कतई बरदाश्त नहीं कर सकता था.

आखिर क्यों और किसलिए नेहा ने ऐसा किया?

इस सवाल ने दिमाग की सारी बत्तियों को बुझा कर रख दिया था. इस झूठ से जफर का उस के प्रति विश्वास डगमगा गया था.

वह ठगा सा महसूस कर रहा था. उसे लगने लगा था कि अब वह दोबारा कभी भी नेहा पर भरोसा नहीं कर पाएगा. ऐसा झूठ जिस ने रिश्तों के साथ मन में भी कड़वाहट भर दी थी और जो आसानी से पकड़ा गया था, क्योंकि उस शख्स ने जफर को फोन कर के बता दिया था कि नेहा अभीअभी उस से मिलने आई थी. जब जफर ने पूछा तो नेहा ने इनकार कर दिया था.

नेहा ने झूठ बोला था और उस शख्स ने सचाई बता दी थी. इतनी छोटी सी बात पर झूठ जो किसी मजबूरी की वजह से भी हो सकता था, जफर ने दिल से लगा लिया था. इस झूठ को शक और अविश्वास की कसौटी पर रख कर वह नापतोल करने लगा.

झूठ के पैमाने पर नेहा से अपने रिश्ते को नापने लगा तो सारी कड़वाहट उभर कर सामने आ गई. सारी कमियां याद आने लगीं. अच्छाई भूल गया. अच्छाई में भी बुराई दिखने लगी और यही वजह उस की परेशानी का सबब बन गई. उस के जेहन में एक, बस एक ही सवाल गूंज रहा था कि नेहा ने उस से आखिर क्यों झूठ बोला था?

जफर की नन्ही परी इज्मा ने बड़ी मासूमियत से उसे गम के इस सैलाब

से बाहर निकाल लिया था. उसे अपने सवाल का जवाब उस की इन मस्तियों में मिल गया था क्योंकि अब वह समझ गया था कि उस की बेटी थोड़ी मस्ती के लिए उस की साया बन कर, उस की पीठ के पीछे चल कर खेल खेल रही थी, जिस का मकसद खुशी था. अपनी भी और उस की भी. ठीक उसी तरह नेहा भी उस से झूठ बोल कर एक खेल खेल रही थी.

जफर की पीठ पीछे की घटना थी. उस ने शायद उस नन्ही परी की तरह

ही आंखमिचौली करने की सोची थी, क्योंकि इस से पहले कितनी ही बार जफर ने उस को परखा था. उस ने कभी झूठ नहीं बोला था. आज शायद उस का मकसद भी उस नन्ही परी की तरह मस्ती करने का था. शायद कुछ समय बाद वह सबकुछ बता देने वाली थी जिस तरह नन्ही परी ने बाद में बता दिया था.

जफर ठहरा जल्दी गुस्सा होने वाला इनसान, उस की एक न सुनी और बारबार फोन करने पर भी उसे सच बताने का मौका ही नहीं दिया था.

वह हैरान थी और डरी हुई भी. उस ने उस से बात तक नहीं की. जब तक बात न हो, गिलेशिकवे और बढ़ जाते हैं. बातचीत से ही रिश्तों की खाइयां कम होती हैं. यहां बातचीत के नाम पर

2 दिनों से सिर्फ ‘हां’ या ‘न’ दो जुमले इस्तेमाल हो रहे थे.

नेहा जफर की नाराजगी को ले कर परेशान थी और वह उस के झूठ को ले कर. नन्ही परी की मस्ती की अहमियत को इस सवाल के जवाब के रूप में समझ कर मेरी दिमाग की सारी घटाएं छंट गई थीं. दिल पर छाया कुहरा अब ऐसे हट गया था, जैसे सूरज की किरणों से कुहरे की धुंध हट जाया करती है.

सबकुछ साफ दिखाई दे रहा था. समझ में आ गया था कि कोई सच्चा इनसान कभीकभी छोटीछोटी बातों के लिए झूठ क्यों बोल देता है. शायद मस्ती के लिए. जो बात वह दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा कर भी नहीं सोच पा रहा था, वह इस नन्ही परी इज्मा की शरारत ने समझा दी थी, वह भी कुछ ही पलों में.

जफर का गुस्सा अब पूरी तरह से शांत हो गया था. एकदम शांत. वह समझ गया था कि उसे क्या करना है.

जफर ने खुद ही नेहा को फोन किया. नेहा ने सफाई देने की कोशिश की, मगर जफर ने उसे रोक दिया.

जफर ने अपनी नन्ही परी इज्मा का पूरा किस्सा सुनाया. अब नेहा एकदम शांत थी. उस की नाराजगी और सफाई अब दोनों की ही कोई अहमियत नहीं रह गई थी. फिर उस ने पहले की तरह एक चुटकुला छेड़ दिया था और वे दोनों सबकुछ भूल कर पहले जैसे हो गए थे.

लेखक- मौहम्मद आसिफ

Body Polishing : बौडी पौलिशिंग का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं पड़ेगा ?

Body Polishing : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

शादी से पहले की गई शौपिंग में व्यस्त रहने के कारण मेरी स्किन टैन हो गई है, इसलिए मैं बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं. इस का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

जी नहीं यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक उपचार है, इसलिए शरीर पर इस का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. इस के लिए खास तरह के प्रोडक्ट प्रयोग किए जाते हैं जैसे बौडी क्रीम, बौडी औयल, बौडी साल्ट, बाम, बौडी पैक, ऐक्सफौलिएशन क्रीम वगैरह. इस में सब से पहले स्क्रब को पूरे शरीर पर लगा कर हलके गीले हाथों से हलकेहलके रगड़ा जाता है और 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. स्क्रबिंग की मदद से बौडी की डैड स्किन निकल जाती है और साथ ही टैनिंग भी रिमूव हो जाती है. नैचुरल तरीके से बनाया गया यह स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है. इस के बाद बौडी को वाश कर के उस पर स्किन ग्लो पैक लगा लें और सूख जाने के बाद इसे वाश कर लें. इस के बाद बौडी शाइनर लगा कर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज करें. बौडी पौलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं, साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है, जिस से त्वचा में कोमलता व निखार आता है. नई बनने वाली दुलहन मसाज से स्ट्रैस फ्री फील करती है व बौडी रिलैक्स होती है, साथ ही पूरी बौडी की रंगत एकजैसी हो जाती है.

गरमी शुरू होते ही मेरी स्किन रूखी, पपड़ीदार हो जाती है और उस पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. इस समस्या को दूर करने का उपाय बताएं?

गरमियों में ऐलर्जी की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में सैंसिटिव स्किन में नमी की कमी की वजह से लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं. चकत्ते होने पर आप साबुन की जगह सुबहशाम अल्कोहल फ्री क्लींजर का उपयोग करें.

इसी तरह घरेलू आयुर्वेदिक उपचार के तौर पर स्किन पर तिल के तेल की मालिश कर सकती हैं. मलाई में कुछ शहद की बूंदें मिला कर उसे त्वचा पर लगा कर 10-15 मिनट तक लगा रहने दीजिए. फिर इसे फ्रैश वाटर  से धो लें. यह ट्रीटमैंट सामान्य तथा ड्राई दोनों प्रकार की स्किन के लिए उपयोगी है.

मेरी उम्र 21 साल है. मेरी आंखें काफी छोटी हैं. मुझे कोई ऐसी मेकअप टैक्नीक बताएं जिस से मेरी आंखें बड़ी और अट्रैक्टिव नजर आएं?

अपनी आंखों को अट्रैक्टिव व बड़ी दिखाने के लिए आप ब्लैक के बजाय व्हाइट कलर की आई पैंसिल अप्लाई करनी करें और ध्यान रहे कि आईलाइनर बहुत थिन यानी पतला लगाएं. बाद में मसकारा लगा लें. आर्टिफिशियल आईलैशेज भी लगा सकती हैं, लेकिन ध्यान रहे कि मीडियम थिन आईलैशेज लगाएं. ऐसा आई मेकअप करने से आप की आंखें बड़ी और खूबसूरत नजर आएंगी. आंखें काफी छोटी हों तो आई मेकअप के लिए आईशैडो भी लाइट कलर का ही अप्लाई करें. सब से अच्छा रहेगा कि आप आईलैशेज ऐक्सटैंशन करवा लें. आप को रोज आईलैशेज नहीं लगाना पड़ेगा. यह आराम से 1-2 महीने चल जाएगी. बीचबीच में फिलिंग करवा सकती हैं.

मैं चिपचिपे डैंड्रफ की समस्या से ग्रस्त हूं. मैं ने कई ऐंटीडैंड्रफ शैंपू इस्तेमाल किए परंतु सब बेकार रहे. कृपया समाधान बताएं?

डैंड्रफ की समस्या आमतौर पर ड्राई और औयली दोनों किस्म के बालों में होती है. इस को यदि समय रहते कंट्रोल न किया जाए तो इस के ?ाड़ने से त्वचा में इन्फैक्शन फैलने का डर रहता है, साथ ही बालों की जड़ें भी कमजोर हो जाती हैं, जिस की वजह से हेयर फौल की समस्या उत्पन्न हो जाती है. इसलिए इसे समय रहते रोकना बेहद आवश्यक है.

इस के लिए सप्ताह में कम से कम 3 बार बालों में शैंपू करें और बाल धोने के लिए बहुत ज्यादा गरम पानी के बजाय कुनकुने पानी का प्रयोग कीजिए. इन्फैक्शन से बचने के लिए आप अपनी कंघी, तौलिया व तकिए को अलग रखें और इन की सफाई का भी खासतौर पर खयाल रखें. जब भी बाल धोएं तो ये तीनों चीजें किसी अच्छे ऐंटीसैप्टिक के घोल में आधा घंटा डुबो कर रखें और धूप में सुखा कर ही दोबारा इस्तेमाल करें.

सिर में औयली बाल होने के कारण रूसी है तो एक चम्मच त्रिफला पाउडर को 1 गिलास पानी में डाल कर कुछ देर के लिए उबाल लें. ठंडा हो जाने पर इसे छान लें और फिर 2 बड़े चम्मच सिरके में मिक्स कर लें और रात में इस टौनिक से सिर की मसाज कर लें. सुबह किसी अच्छे शैंपू से बाल धो लें. इन सब विधियों के बावजूद यदि आप की समस्या का हल न हो तो किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर ओजोन ट्रीटमैंट या बायोप्ट्रोन की सिटिंग्स ले सकती हैं. इस से डैंड्रफ तो कंट्रोल होगा ही, साथ ही डैंड्रफ की वजह से हो रहा हेयर फौल में भी रुक जाएगा.

मेरी उम्र 45 साल है. चेहरे की रंगत दिनबदिन खत्म होती जा रही है. इस के लिए कोई घरेलू उपाय बताएं?

नियमित रूप से करीपत्तों का उपयोग करने से आप के चेहरे की रंगत में निखार आ जाएगा. करीपत्तों का इस्तेमाल करने के लिए इन्हें अच्छी तरह धूप में सुखा लें. उस के बाद इन का पाउडर बना लें. उस में जरूरत के हिसाब से कुछ बूंदें शहद, गुलाबजल और 1 छोटा चम्मच मुलतानी मिट्टी मिला कर फेस पैक बना लें. अब इस पेस्ट को 20 से 30 मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें. उस के बाद चेहरे को सादे पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में चेहरे की त्वचा पर इस का अच्छा असर दिखाई देने लगेगा.

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Personality : करें बातें दिल खोल कर

Personality : रात 8 बजे संगीता ने कीर्ति को फोन मिलाया और रोज की तरह दिनभर की गौसिप शुरू कर दी.

‘‘आज फिर बौस ने सब के सामने मु झे फटकार लगाई मैं सब सम झती हूं, ये सब वे अर्पिता के सामने ज्यादा करता हैं,’’ संगीता  ने अपना रोना रोते हुए कहा.

‘‘अर्पिता कौन?’’

‘‘बताया तो था वह नई कोऔर्डिनेटर.’’

‘‘उस पर इंप्रैशन जमा रहा होगा कुछ दिनों बाद शांत हो जाएगा.’’

‘‘मु झ से बरदाश्त नहीं होता मन करता जौब छोड़ दूं.’’

‘‘इसे जौइन करे 6 महीने ही हुए हैं छोड़ देगी तो बौस का क्या बिगड़ जाएगा? नुकसान तो तेरा ही होगा.’’

‘‘फिर क्या करूं?’’

‘‘जो बातें बुरी लगी हैं उन्हें डायरी में नोट कर ले. नई नौकरी ढूंढ़ती रह. जब मिल जाए तो अपने खड़ूस बौस को सारी बातें सुना कर जाना.’’

‘‘नई नौकरी नहीं मिली तो क्या करूंगी?’’

‘‘लिखने से तेरी भड़ास तो निकल जाएगी और हो सकता है तेरे बौस को ही नई नौकरी मिल जाए.’’

‘‘यानी बौस ही बदल जाएगा, ठीक है यह भी कर के देख लेती हूं.’’

‘‘छोड़ फालतू बातें, यह बता ऋषभ से तेरी दोस्ती कहां तक पहुंची?’’

कीर्ति की बात सुनते ही संगीता का मूड चेंज हो गया. वह हंस कर ऋषभ के संग अपने रिश्ते को बताने लगी.

संगीता इकलौती संतान है. स्कूलकालेज की सहेलियां अपनी नौकरी या नई गृहस्थी में व्यस्त हो चुकी हैं. यहां बैंगलुरु में आ कर अचानक उसे एहसास होने लगा कि वह कितनी अकेली हो गई है. वह जल्दी मित्र नहीं बना पाती और पुरानी सहेलियां को भी क्या डिस्टर्ब करे, सोच कर मन ही मन घुट रही थी कि एक दिन मौल में कीर्ति मिल गई. दोनों  एक ही शहर कानपुर से हैं, यह जान कर दोनों बहुत खुश हो गईं. अब तीज त्यौहार पर साथ ही घर जाने लगी. धीरेधीरे कीर्ति संगीता की प्रिय सहेली बन गई, जिस से वह अपनी हर बात शेयर कर लेती है.

क्या आप के पास है ऐसी सहेली जिस से खुल कर अपने दिल की बातें कर सकें? आजकल युवाओं को नौकरी में प्रतिस्पर्धा, अकेलापन, नया माहौल, घरपरिवार, पुराने मित्रों से दूरी आदि कारक अवसाद की ओर खींच रहे हैं.

ऐसे में यह बहुत जरूरी होता है कि आप के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक मित्र अवश्य हो जिस से दिल खोल कर बातें कर सकें. मगर मित्रता के चयन में कुछ बातों का ध्यान अवश्य दें:

हमउम्र

हमउम्र मित्र आप की समस्याओं को भलीभांति सम झता है क्योंकि वह भी उसी दौर से गुजर रहा होता है. अगर आप और मित्र की उम्र में 10-15 वर्ष का अंतर होगा तो उस के साथ खुल कर अपनी बात रखने में आप को  िझ झक महसूस होगी.

समानलिंगी

लड़की और लड़कों की मित्रता या संबंधों में कोई बुराई नहीं है किंतु स्त्री विमर्श या समस्याओं को जितना बेहतर एक स्त्री सम झ सकती है उतनी गहराई से कोई पुरुष मित्र न तो सोच सकता है न ही सम झा सकता है. यही बात पुरुषों के लिए भी लागू होती है. मित्रों की सूची में तो महिला, पुरुष दोनों शामिल हो सकते हैं लेकिन बैस्टी तो समलिंगी ही चुनें.

सकारात्मक विचार

मित्रता उसी से करें जिस से बात करने के बाद आप को अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा महसूस हो. नकारात्मक बातें करने वाले मित्रों की  संगत से दूरी बना कर रखें. कुछ लोग हर बात को ले कर दुखी रहते हैं. ऐसों से मित्रता आप को भी अवसाद की ओर ले जाएगी.

जिंदादिल मित्रता

जिंदादिल मित्रता से मतलब है समय का सदुपयोग करते हुए हर पल का आनंद लेना. जैसे वीकैंड में फिल्म, थिएटर या विंडों शौपिंग का  प्रोग्राम बनाना अथवा एकदूसरे के फ्लैट में जा कर मनपसंद भोजन बनाना या बाहर से और्डर कर दिल खोल कर गप्पें लगाना.

प्रकृति प्रेमी

पेड़पौधों, नदी, तालाब, समुद्र जिसे आकर्षित करते हो, ऐसे मित्र होने पर नई यात्राओं का योग बनता है. यात्राएं हमारे अंदर जीवन के प्रति प्रेम और नवीन उमंग का संचार करती हैं. ऐसे में अपनी प्रिय सहेली का साथ हो तो यात्रा का आनंद कई गुना बढ़ जाता है. यदि उस की यात्राओं में दिलचस्पी नहीं है तो आप उसे प्रेरित करें.

मित्रता मजबूत रखने के गुण

अपनी मित्रता को मजबूती प्रदान करने के लिए एकदूसरे की निजता का सम्मान करें, उस की व्यक्तिगत बातों को किसी तीसरे के सामने न खोलें.

भावनात्मक स्तर पर जुड़ने के बाद उस की भावनाओं का सम्मान करें. उसे उचित राय प्रदान करें. यदि वह भावनात्मक स्तर पर कमजोर हो तो उसे मनोचिकित्सक से उपचार को तैयार करें. रुपयों का लेनदेन बराबर का रखें. यह मित्रता में दूरी ला सकता है. मित्रता में एकतरफा लेनदेन से दूरी बनाए.

मौका मिलने पर मित्र के परिवारजनों से भी अवश्य मिलें. उन से भी संपर्क सूत्र बना कर रखें ताकि वे भी आप दोनों की खोजखबर लेते रहें और मौका पड़ने पर मदद भी कर सकें.

भागदौड़ की जिंदगी में यदि आप के पास कोई अपना है तो आप की जिंदगी आसान हो जाएगी.  40 की उम्र के बाद मेनोपौज की वजह से शरीर में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन की कमी हो जाती है और इस कारण सैक्स की इच्छा होने पर भी गीलापन कम होता है और चरमसुख नहीं मिल पाता.

शरीर में ऐस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए आहार संबंधी जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए. खाने में मौसमी फल, हरी सब्जियां, दूध, पनीर आदि का नियमित सेवन करना चाहिए और नियमित व्यायाम करना चाहिए.

सैक्स करते वक्त क्रीम का प्रयोग किया जा सकता है. इस से चिकनाई बनी रहेगी और सैक्स में आनंद भी आएगा. बेहतर है कि सैक्स से पहले फोरप्ले करें. इस से भी काफी हद तक सूखेपन की समस्या से बचा जा सकता है.

Hill Station पर जाने का बना रहे हैं प्लानिंग, तो इन बातों का रखें ध्यान

Hill Station Trip  : औली हो या मनाली, लेह हो या दार्जिलिंग, मसूरी हो या कश्मीर पहाड़ों में जाने की बात ही दिल में नई उमंगें भर देती है. जब आप बर्फीले इलाकों में जा रहे होते हैं तो जोश कुछ अलग ही होता है. आप सोचते हैं कि कैसे पहाड़ों पर जा कर वहां बर्फ के गोले बना कर एकदूसरे पर फेंक कर खेलेंगे, खूबसूरत फोटो लेंगे, टैंट लगा कर रात को आसमान निहारेंगे, ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का आनंद लेंगे, कैंपफायर के साथसाथ गानाबजाना आदि करेंगे.

मगर सच तो यह है कि जब आप इन जगहों पर कुछ तैयारी के बिना जाते हैं तो ट्रिप तकलीफदायक भी हो सकता है. पहाड़ों पर किसी भी तरह का कोई प्रैडिक्शन नहीं चलता. चाहे वह मौसम से जुड़ा हो, स्नो फाल से जुड़ा हो या भूस्खलन संबंधित हो. यानी पहाड़ों पर जाने का मतलब कही न कहीं अपनेआप में ही बड़ा रिस्क है. कभी मौसम बदलने से आप बीमार हो जाते हैं तो कभी पहाड़ पर चढ़ते समय सांस फूल जाती है या पैर दर्द करने लग जाते हैं. फिर अगर बारिश और आ जाए तो आप की यात्रा ऐसी बिगड़ जाती है कि आप को वापस उस जगह जाने के नाम से ही चिढ़ हो सकती है.

सही तैयारी न हो तो कई दफा ट्रैकिंग या ऐडवैंचर करते वक्त आप के साथ कुछ गलत भी हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि आप पहाड़ों पर घूमने और ऐडवैंचर करने जाते समय कुछ बातों का खयाल रखें और कुछ तैयारी कर लें.

तो चलिए जर्नी से पहले और इस के दौरान याद रखने की इन बातों पर ध्यान देते हैं:

पहाड़ी इलाकों में आप कहीं भी जा रहे हों यह तो सम झ ही लें कि कही न कहीं थोड़ाबहुत पैदल तो चढ़ना ही होगा. ऐडवैंचर का मजा लेना है तो और भी ज्यादा फिटनैस की जरूरत होगी. इसलिए इस बात के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैयार रहें.

पैदल ट्रैक के दौरान आप के पैरों मे दर्द न हो और आसानी से ट्रैक कर लें इस के लिए यात्रा से कम से कम 20 दिन पहले से आप को 5-7 किलोमीटर चलने की आदत डालनी होगी ताकि शरीर पहाड़ों पर पैदल चलने के लिए आसानी से तैयार हो सके.

आप को एक ऐक्स्ट्रा छोटा खाली बैग हमेशा साथ में पैक कर के ले जाना चाहिए क्योंकि जब आप किसी स्थान पर घूमोगे तो बड़े बैग को तो आप होटल में रखोगे. पहाड़ों पर कभी भी बारिश शुरू हो सकती है इसलिए छोटे बैग (बैगपैक) में एक जोड़ी ऐक्स्ट्रा कपड़े, मैडिसिन, रेनकोट या छतरी आदि डाल कर बैग को अपने साथ दिनभर रखें ताकि बारिश में भीगने या बीमार होने की स्थिति में यह सामान काम आ जाए.

पहाड़ी यात्रा पर हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा मौजे, गरम कपड़े, मफलर, फर्स्ट एड किट, टौर्च, ऐक्स्ट्रा शू लेस, डायरीपेन, कैश कुछ पासपोर्ट साइज फोटो, आईडी कार्ड की कुछ फोटोकौपी, छाता, ग्लूकोस पाउडर, मार्कर, छोटी कैंची, बिस्कुट, नमकीन, चौकलेट्स, रेनकोट, सनग्लास, कैमरे की ऐक्स्ट्रा बैटरी, ऐक्स्ट्रा मैमोरी कार्ड, हैंड ग्लव्स, गरम पानी की बोतल, रस्सी, सूईधागा, सिक्के, प्रिंटेड टिकट्स आदि चीजें जरूर अपने साथ रखें.

अगर आप फ्लाइट से सीधा अधिक ऊंचाई पर जा रहे हैं (दिल्ली से लेह) तो अपने साथ डायमौक्स टैबलेट जरूर रखें पर इन का उपयोग डाक्टर के बताए अनुसार ही करें.

नए जूते पहन कर यात्रा पर न चले जाएं. उन्हें थोड़े दिन पहन कर फिर यात्रा पर ले जाएं. जूते भी बढि़या कंपनी के खरीदें ताकि वे कहीं फटें न या कहीं ठोकर लगने से पैर की उंगलियां चोटित न हों और बिना फिसले पहाड़ी इलाकों पर अच्छे से चल सकें.

अपने साथ उलटी की गोलियां एवं कपूर की डिब्बी जरूर रखें. औक्सीजन की कमी महसूस होने पर कपूर सूंघते रहना चाहिए.

ध्यान रहे बैकपैक एक अच्छी कंपनी का ट्रैक बैग हो नहीं तो ट्रैक के समय आप इसे ज्यादा समय तक उठा नहीं पाएंगे और आप को बैक पेन शुरू हो जाएगा.

यात्रा प्लानिंग में हमेशा एक दिन ऐक्स्ट्रा बचा कर रखें ताकि कोई चीज किसी कारण देखने से छूट जाए तो बचे हुए एक दिन में उसे कवर कर सकें.

सफर में सनग्लास का साथ होना जरूरी है. एक तो आप के फोटो काफी आकर्षक आएंगे दूसरा आप की आंखे स्नो ब्लाइंडनैस जैसी समस्या से बच जाएंगी. अगर आप दिनभर बर्फ में बिना सनग्लास के घूमेंगे तो निश्चित ही आप की आंखों को नुकसान पहुंचेगा.

गरम कपड़े रखना न भूलें. इन की बड़ी लिस्ट है. सब से पहले आप को जरूरत रहेगी थर्मल कपड़ों की. इन से काफी हद तक आप सर्दी से लड़ पाओगे. इस के साथ ही आप को अच्छी क्वालिटी के आकर्षक जैकेट की की जरूरत रहेगी. दस्ताने और सौक्स के कई सारे पेयर आप को चाहिए होंगे. सिर को ढकने के लिए मंकी कैप, स्कार्फ, मफलर ये चीजें आप के सिर को ठंडी बर्फीली हवाओं से बचाएंगी. कपड़े 1 या 2 दिन के ज्यादा ही रखें क्योंकि पहाड़ों में कपड़े गीले हो गए तो आसानी से सूखेंगे नहीं.

कभी पहाड़ों पर घूमने जाएं तो आप के पास सनस्क्रीन होना चाहिए. इस का एसपीएफ 30 या उस से ऊपर होना चाहिए. कमरे से बाहर निकलते ही रोज सुबह इसे चेहरे पर अच्छी तरह लगा लेना चाहिए. इस से आप के चेहरे की रक्षा होगी, चेहरा फटेगा नहीं और कालापन नहीं आएगा.

जब करना हो ऐडवैंचर

ऐडवैंचर स्पोर्ट्स बहुत रोमांचकारी होते हैं. उस रोमांच के बारे में सोचें जब आप पैराग्लाइडिंग करते हुए चट्टान से ऊपर उठ कर हवा में तैरते हैं, राफ्टिंग करते समय पानी में उतरते हैं या ऊंचे पहाड़ों पर ट्रैक करते हैं. इन सभी रोमांच का अनुभव खूबसूरत हो इस के लिए पहले से सावधानीपूर्वक योजना और तैयारी की आवश्यकता होती है. इन में सब से जरूरी है अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देना.

ड्रैस का चुनाव

प्रत्येक खेल के लिए कपड़ों की अपनी अलगअलग जरूरतें होती हैं. ज्यादा ऊंचाई वाली ट्रैकिंग के लिए तापमान में उतारचढ़ाव को संभालने के लिए लेयर्ड ड्रैस का होना जरूरी है जबकि स्कूबा डाइविंग और सर्फिंग के लिए वेटसूट से कोई सम झौता नहीं किया जा सकता.

सेफ्टी गियर्स

सुरक्षा गियर का उपयोग करें. मसलन, हैलमेट, हार्नेस, लाइफ जैकेट और घुटने या कुहनी के गार्ड सुरक्षित ऐडवैंचर तय करते हैं. सुरक्षा गियर पहनने से कभी सम झौता न करें, भले ही यह असुविधाजनक लगे.

स्टैमिना बढ़ाएं

रौक क्लाइंबिंग, राफ्टिंग और स्कीइंग जैसे ऐडवैंचर स्पोर्ट्स में कोर और ऊपरी शरीर की ताकत की जरूरत होती है. वेट ट्रेनिंग, बौडी वेट ऐक्सरसाइज और कोर वर्कआउट को शामिल करने से मदद मिल सकती है.

ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज करें

ऊंचाई पर या पानी के नीचे की गतिविधियों जैसे स्कूबा डाइविंग में सांस पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है. गहरी सांस लेने की तकनीक सीखना या नियंत्रित सांस लेने का अभ्यास करना बहुत फायदेमंद हो सकता है. शारीरिक तैयारी से आप चोटों से बच पाते हैं और कठिन परिस्थितियों में सहज बने रहते हैं.

वैदर पर रहे नजर

मौसम की स्थिति किसी ऐडवैंचर स्पोर्ट्स को सफल या असफल बना सकती है. उदाहरण के लिए तेज हवाओं में पैराग्लाइडिंग खतरनाक है और बारिश में चट्टानों पर चढ़ना लगभग असंभव है.

ट्रैकिंग के लिए एरिया समझें

अगर आप ट्रैकिंग या कैंपिंग कर रहे हैं तो जान लें कि आप को किन जानवरों का सामना करना पड़ सकता है. कुछ क्षेत्रों में भालू या सांप जैसे वन्यजीव होते हैं. ऐसे में यह जानना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है.

जब ज्यादा हाइट पर जाएं

यदि आप अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जा रहे हैं जैसेकि किसी पर्वतीय ट्रैक पर तो ऊंचाई से होने वाली बीमारी और औक्सीजन के स्तर में कमी के लिए तैयार रहें. बहुत जल्दी चढ़ाई करने से दिक्कतें आ सकती हैं. यहां तक कि फिट लोगों को भी. धीरेधीरे चढ़ना, हाइड्रेटेड रहना और अपने शरीर को एडजस्ट होने का समय देना बहुत बड़ा अंतर ला सकता है.

ऊंचाई पर होने वाली बीमारी के लक्षणों में सिरदर्द, मतली और सांस लेने में तकलीफ शामिल है. यदि आप इन में से किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं तो रुकना और अपने शरीर को एडजस्ट होने का समय देना आवश्यक है.

हाइड्रेटेड रहें

ऊंचाई पर ट्रैकिंग करने से आप जितनी जल्दी सोचते हैं उस से कहीं ज्यादा तेजी से डिहाइड्रेट हो जाते हैं. भरपूर पानी पीने से सिरदर्द और चक्कर आने जैसी समस्या से बचा जा सकता है.

जानें कि कब लौटना है

खतरनाक परिस्थितियों में खुद को बहुत ज्यादा पुश करना उचित नहीं है. ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का मतलब है मौजमस्ती करना और अपनी सीमाओं का सम्मान करना. ऐडवैंचर स्पोर्ट्स शारीरिक चुनौतियों के साथसाथ मानसिक चुनौतियों से भी जू झते हैं. ऊंचाइयों, गहरे पानी या तेज बहाव का सामना करना डरावना हो सकता है लेकिन मानसिक मजबूती आप को इन डरों से निबटने में मदद करेगी.

जब करनी हो ट्रैकिंग

पहाड़ों पर ट्रैक करते वक्त हमेशा ट्रैकिंग स्टिक या छड़ को साथ रखें. छड़ी के सपोर्ट से ट्रैक करने में कई जगह आसानी हो जाएगी.

हमेशा अपने हर बैग में अपना विजिटिंग कार्ड रखें या मार्कर से अपने बैग पर अपना कौंटैक्ट नंबर लिख दें. बैग कही भूल जाने के केस में शायद कोई आप के छोड़े हुए नंबर पर कौल कर आप को वापस पहुंचा दे.

अपने साथ हमेशा कोई भी मौस्किटो रेपेलैंट क्रीम जैसेकि ओडोमास रखें. सपोज करो आप कही जंगल में कैंप में रहे और रातभर मच्छर आसपास घूमते रहे तो आप की नींद भी खराब होगी और अगला दिन भी. आप इसे अपने हर सफर पर साथ रखें. कभीकभी होटल के किसी कमरे में आप ने कुछ देर रात को खिड़की खोली और फिर कुछ मच्छर कमरे में आ गए तो भी आप की नींद खराब होनी है. ऐसे केस में ओडोमौस काम आएगी.

अगर आप किसी खतरनाक ट्रैक के लिए निकल रहे हैं और वह भी सर्दियों या मौनसून में तो याद रखें सर्दियों में स्नोफाल और मौनसून में भूस्खलन के कारण आप को कहीं पर भी 1 या 2 दिन फंसे रहना पड़ सकता है. ऐसे मौसम में अगर आप स्ट्रिक्ट शैड्यूल बना कर रिटर्न की फ्लाइट या ट्रेन बुक कराते हैं तो हो सकता है आप पहाड़ों में फंस जाने के कारण उस दिन ट्रेन या फ्लाइट का सफर मिस कर दें. सर्दियों और मौनसून में अपने तय किए कार्यक्रम में 1 या 2 दिन हमेशा ऐक्स्ट्रा रखें या रिटर्न जाने के लिए बुकिंग सेफ जोन में पहुंच कर ही करें.

रात को अपने मोबाइल की बैटरी, पावर बैंक, कैमरे की बैटरी को हमेशा गरम कपड़े की कुछ मोटी लेयर में लपेट कर बैग के अंदर बीच में दबा कर रखें क्योंकि रात को ज्यादा ठंड के

कारण बिना इस्तेमाल किए ही आप के हर डिवाइस की बैटरी तेजी से कम होती रहेगी. अगर आप इन्हें खुला रख देंगे तो रातभर में आप के हर डिवाइस की बैटरी पूरी डिस्चार्ज हो जाएगी.

लोअर ऐप्टिट्यूड से हायर ऐप्टिट्यूड पर आने का सफर अगर फ्लाइट से हो रहा है तो फ्लाइट से उतरने से पहले ही अपने शरीर को पूरा ढक लें. काफी लोग दिल्ली से लेह तक 1 घंटे में ही फ्लाइट से आ जाते हैं और ऐप्टिट्यूड में 1 घंटे में ही इतने बड़े चेंज को उन का शरीर  झेल नहीं पाता और वे लेह में ही बीमार पड़ जाते हैं और तत्काल वापस दिल्ली की फ्लाइट से लेह छोड़ देते हैं.

दवाइयां/मैडिकल किट साथ ले कर चलें. अगर आप किसी रैग्युलर दवा को रोज ले रहे हैं तो कोशिश करें यात्रा के दिन के हिसाब से सारी दवा अपने साथ ले कर चलें. कम से कम 5 दिन की दवा आप ऐक्स्ट्रा अपने साथ रखें. यह मान कर चलें कि आप की दवा पहाड़ों पर भी केवल बड़े शहरों में मिल सकती है पर ट्रैक या छोटे औफ बीट गांवों में नहीं. इसलिए एक छोटी मैडिकल किट हमेशा साथ रखें जिस में सर्दी, बुखार, दस्त, अपच, गैस, दर्द, उलटी आदि की दवा साथ रखें. चोट लगने की स्थिति में कोई क्रीम, पैरासिटामोल, गरम पट्टी, रुई, छोटी कैंची तो साथ होनी ही चाहिए. इलैक्ट्रौल, ओआरएस, ईनो के कुछ पैकेट भी मैडिकल किट में होने चाहिए.

ट्रैकिंग या बर्फ वाले रास्ते काफी फिसलन भरे होते हैं. अगर आप सामान्य जूते पहन कर चलोगे तो फिसल कर हड्डियां तुड़वा बैठोगे. इसलिए आप को अपने साथ मजबूत और बढि़या क्वालिटी के ट्रैकिंग शूज रख लेने चाहिए. अगर आप लंबे विंटर ट्रैक पर जा रहे हैं तो एक जोड़ी जूते ऐक्स्ट्रा आप के पास होने चाहिए. जूते वाटरप्रूफ हों तो सब से बढि़या बात है.

हमेशा अपने साथ एक ऐक्स्ट्रा मोबाइल रखें. ट्रैक के दौरान आप का मोबाइल अगर कहीं खो गया तो कम से कम ऐक्स्ट्रा मोबाइल से फोटोग्राफी कर पाओगे. आप का फोन अगर गिर गया और स्क्रीन पूरी टूट गई तो इस ऐक्स्ट्रा फोन में सिम डाल कर काम चला सकते हैं. इस में आप औफलाइन मैप और गाने डाल कर भी रख सकते हैं ताकि मुख्य फोन की बैटरी बिना कम किए इस फोन से गाने वगैरह सुन सकते हैं. मुख्य फोन की स्टोरेज फुल होने पर डाटा इस में ट्रांसफर कर सकते हैं.

एक सीटी हमेशा साथ रखें. अगर कभी अनजान पहाड़ों पर अकेले फंस जाएं और हैल्प के लिए चीखते हुए गला खराब हो जाए तो सीटी बजाएं. पहाड़ों पर वैसे भी सीटी की आवाज आते ही लोकल लोग अलर्ट हो जाते हैं.

ट्रैक के दौरान पानी ज्यादा पीएं. कोई पेयपदार्थ रास्ते में मिले तो पहले उसे प्राथमिकता दें. ट्रैक से पहले पूरा पेट भर कर खाना न खाएं.

सही औप्शन चुनें

जब ऐडवैंचर स्पोर्ट्स की बात आती है तो हरेक ऐडवैंचर में शारीरिक मजबूती, जोखिम सहने का हौसला और आवश्यक कौशल की जरूरत होती है.

अपनी रुचियों और सहजता के स्तर के अनुसार स्पोर्ट्स डिसाइड करें. अगर आप ऊंचाई पर सहज हैं तो राक क्लाइंबिंग या पैराग्लाइडिंग आप के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है. अगर आप को पानी पसंद है तो राफ्टिंग या सर्फिंग पर विचार करें.

यह भी देखें कि आप की फिटनैस का स्तर क्या है. कुछ ऐडवैंचर स्पोर्ट्स शारीरिक रूप से कठिन होते हैं जिन में सहनशक्ति और ज्यादा ताकत की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ जैसे हौट एअर बैलूनिंग शारीरिक रूप से कम कठिन होते हैं. फिर भी रोमांचकारी होते हैं. स्कूबा डाइविंग जैसी कुछ गतिविधियों के लिए खास स्थानों की यात्रा की आवश्यकता हो सकती है.

याद रखें सही खेल का चयन आप की सुरक्षा के साथसाथ आप की व्यक्तिगत सुविधा और रुचि से भी संबंधित होता है. जोखिमों के बारे में भी जानें. भले ही रोमांच से आकर्षित हो रहे हों लेकिन संभावित जोखिमों और खतरों के बारे में जागरूक होना भी उतना ही आवश्यक है. उदाहरण के लिए रौक क्लाइंबिंग के लिए आप को लीड फाल और रोप बर्न के बारे में सम झना होगा जबकि सर्फिंग के लिए धाराओं और ज्वार के बारे में जानकारी की आवश्यकता होती है.

Prachi Tehlan : खेल के मैदान से फिल्मी परदे तक का सफर

Prachi Tehlan : प्राची तेहलान एक ऐसा नाम है जिसे आप ने खेल के मैदान से ले कर फिल्मी पर्दे तक देखा होगा. उन के सफर की शुरुआत हुई भारतीय नेटबौल टीम से जहां उन्होंने न सिर्फ देश का प्रतिनिधित्व किया बल्कि कौमनवैल्थ गेम्स जैसे बड़े मंच पर अपना जौहर भी दिखाया. खेल ने उन्हें सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि हर मोड़ पर उठ कर खड़े होना सिखाया.

खेल के बाद उन के जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हुआ सिनेमा के साथ. पिछले 8 सालों में उन्होंने कई भाषाओं में फिल्मों और शोज में काम किया. एक कलाकार के रूप में उन्होंने खुद को हर किरदार में  झोंक दिया चाहे वह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हो, ऐक्शन से भरपूर रोल हो या फिर दिल को छू लेने वाली कहानियां. अब उन की नजर हौलीवुड पर है जहां वे अपने अभिनय के नए आयाम दिखा सकें.

उन की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. वह एक सोशल ऐंटरप्रेन्योर भी हैं. प्राची तेहलान फाउंडेशन के जरीए वह महिलाओं के सशक्तीकरण और लड़कियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं. अब वह खेल गतिविधियों और टूर्नामैंट्स को भी फाउंडेशन का हिस्सा बनाना चाहती हैं ताकि आने वाले युवाओं को सही दिशा मिल सके.

फिल्मों के प्रति अपने जुनून को एक नई उड़ान देने के लिए उन्होंने “Raystride Studios”
नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस भी शुरू किया है.

जीवन के हर पल को जीने और महसूस करने का उन का एक अलग ही अंदाज है. उन्हें किताबें पढ़ना, नई जगहों को एक्सप्लोर करना खासकर पहाड़ों और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करने का शौक है.

एक स्पोर्ट्स पर्सन से एक्ट्रेस बनने का सफर

यह कहानी 2016 की है. उस वक्त वह ऐक्सेंचर में कंसल्टैंट के तौर पर काम कर रही थी. खेल के मैदान से ले कर कौरपोरेट वर्ल्ड तक का सफर चल ही रहा था कि अचानक एक दिन उन के फेसबुक फैन पेज पर एक संदेश आया. यह पेज उन्होंने अपने स्पोर्ट्स कैरियर के दौरान बनाया था.

संदेश था टीवी इंडस्ट्री के एक बड़े शो ‘दीया और बाती हम’ से. उन्होंने प्राची को आरजू राठी के किरदार के लिए अप्रोच किया. इस शो में उन्हें एक पैरेलल लीड रोल औफर हुआ. उस वक्त तक प्राची ने कभी नहीं सोचा था कि वह कैमरे के सामने भी जाएंगी. लेकिन स्क्रिप्ट पढ कर उन्हें लगा कि यह किरदार उन के अंदर छिपी एक नई पहचान को बाहर लाने का जरिया बन सकता है. बस फिर क्या था उन्होंने Accenture कंफर्टेबल जौब को छोड़ कर अपने सपनों के पीछे भागने का फैसला कर लिया और इस तरह ऐक्टिंग के सफर की शुरुआत हुई. खेल के मैदान से ले कर फिल्मी पर्दे तक यह सफर जितना अनपेक्षित था उतना ही रोमांचक भी.

इस तरह उन्होंने अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत स्टार प्लस के 2 प्रमुख शोज में लीड रोल्स निभा कर की. इन शोज में से पहला था ‘दीया और बाती हम’ और दूसरा ‘इक्यावन’, जिसमें उन्होंने सुशील पारेख का किरदार निभाया. इसके बाद उन्होंने पंजाबी सिनेमा में कदम रखा और दो फिल्में कीं—“BAILARAS ” और “Arjan.

Prachi Tehlan

फिर उन्होंने साउथ इंडस्ट्री में अपनी पहली फिल्म की— ममंगम जिस में उन्हें मलयालम सुपरस्टार ममूटी के अपोजिट काम करने का मौका मिला. ये फिल्म सिर्फ उन के कैरियर का मील का पत्थर नहीं थी बल्कि इस ने उन को साउथ सिनेमा के प्रति एक खास लगाव भी दिया. इसके बाद मलयालम फिल्म में फिर से काम किया जिस में प्राची के अपोजिट थे पर्यटन और पैट्रोलियम मंत्री सुरेश गोपी. यह फिल्म जल्द ही रिलीज होने वाली है. तेलुगु इंडस्ट्री में भी उन्होंने एक फिल्म की जिस में उन के अपोजिट थे अमनप्रीत जो मशहूर ऐक्ट्रैस रकुल प्रीत सिंह के भाई हैं.

वह कहती हैं कि हर प्रोजैक्ट ने उन्हें कुछ नया सिखाया लेकिन सुपरस्टार ममूटी के साथ काम करने का अनुभव और सुशील पारेख का किरदार उन के दिल के बेहद करीब है. ये दोनों ही प्रोजैक्ट्स उन के कैरियर की नींव बन गए.

लंबी हाइट ने भी दिया साथ

खूबसूरत, आत्मविश्वास से भरपूर, 5 फुट 9 इंच लंबी प्राची तेहलान की सफलता के पीछे उन की लंबी हाइट की भी अहम भूमिका है. बात बास्केटबौल और नैटबौल खेलने की हो या फिर ‘दीया और बाती’ में मौका मिलने की, इस लंबी हाइट ने उन का साथ दिया. दरअसल ‘दीया और बाती’ में एक लंबी लड़की की जरूरत थी. यह भी एक वजह थी कि उन्हें वहां मौका मिला और वह ऐक्ट्रैस बन पाई.

साउथ सिनेमा से लगाव

दिल्ली में जन्मी, हरियाणा के जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाली दिल से देसी प्राची तेहलान को स्पोर्ट्स ने सिखाया कि ये पूरा देश ही उन का घर है. इसलिए देश के किसी भी कोने में खुद को बे िझ झक महसूस करती हैं. आजकल वह केरल में हैं. यह वो जगह है जिस ने उन्हें पहली बड़ी पहचान दी फिल्म ‘ममंगम’ के जरीए.

वह कहती हैं कि साउथ सिनेमा की बात ही अलग है. यहां की कहानियां भारतीय संस्कृति की जड़ों से निकली होती हैं— गहरी, भावुक और दिल को छू जाने वाली. यहां के टैक्नीशियन और फिल्ममेकर्स में एक अलग ही जुनून है. हर सीन, हर फ्रेम में उन की मेहनत और पैशन  झलकता है. यहां सिर्फ फिल्में नहीं बनाई जाती बल्कि कला को पूजा जाता है. साउथ में सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि एक इमोशनल कनैक्शन है. यही वजह है कि यहां के दर्शक इतने पैशनेट हैं. उन का प्यार और क्रेज ही है जो इस इंडस्ट्री को लगातार नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है और शायद यही वो वजह है कि यहां का सिनेमा बिजनैस के मामले में भी दिनबदिन तरक्की कर रहा है

आज के समाज में महिलाओं की स्थिति

प्राची कहती हैं कि आज की भारतीय महिलाएं वे नहीं रहीं जो 10 साल पहले थीं. अब वे ज्यादा मजबूत, जागरूक और महत्वाकांक्षी हैं. चाहे घर बैठे कमाना हो या किसी भी इंडस्ट्री में कदम रखना हो आज उन के पास हर मौका है. आज की महिलाएं सिर्फ सपने नहीं देखती बल्कि उन्हें पूरा करने का हौसला भी रखती हैं. वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं— शिक्षा, कारोबार, खेल, मनोरंजन— हर जगह. और सच कहूं तो कई इंडस्ट्रीज में वो पुरुषों से भी बेहतर कर रही हैं. ये दौर महिलाओं का है. महिलाएं कमजोर नहीं बल्कि हर मायने में मजबूत हैं. वे अपनी शर्तों पर जी रहे हैं, अपने हक के लिए आवाज उठा रही हैं और खुद को साबित कर रही हैं. इसलिए अब उन्हें कमजोर सम झने का वक्त बीत चुका है. महिलाएं यहां हैं, पूरी ताकत और आत्मविश्वास के साथ और इस दौर को अपने नाम करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

वह कहती हैं, ‘‘सच कहूं तो मैं अपना बैस्ट कर रही हूं और मुझे इस पर फक्र है. मेरे आसपास ऐसे मर्द हैं, जो मेरे सपनों, मेरे एम्बिशन को दिल से अपनाते हैं. वो मु झे पूरा सपोर्ट करते हैं, मेरे हर कदम पर मेरे साथ खड़े रहते हैं और मु झे ऊंचाइयों पर बढ़ते देख खुशी महसूस करते हैं. मुझे नहीं पता कि पूरी सोसाइटी कैसी है लेकिन मेरे आसपास की दुनिया तो बहुत ही प्रोग्रेसिव है. मेरे भाई, मेरे पापा, मेरे दोस्त— हर कोई मेरी तरक्की में मेरी ताकत बन कर खड़ा है.’’

अवार्ड्स और अचीवमैंट्स

प्राची के लिए सब से बड़ी उपलब्धि रही 21 साल की उम्र में भारत को अपनी कप्तानी में पहला मैडल दिलाना. इंडियन नैटबौल की पूर्व कप्तान प्राची की कप्तानी में 2011 में भारतीय टीम ने दक्षिण एशियाई बीच खेलों में अपना पहला पदक जीता था. उसी सफर ने उन्हें लिम्का बुक औफ रिकार्ड्स में सब से कम उम्र की भारतीय कप्तान के रूप में दर्ज कराया. उन का एक और सपना था IIT/IIM में पढ़ने का. भले वहां पढ़ नहीं पाई लेकिन TED& स्पीकर बन कर वहां अपनी कहानी सुनाना उन के लिए किसी सपने के सच होने जैसा था. फिल्मी सफर में हर भाषा की पहली फिल्म के लिए उन्हें बैस्ट डेब्यूटेंट के नौमिनेशन मिले. NIKON के लिए वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी की ब्रैंड ऐंबेसेडर भी बनी.

एक घटना जिस ने जिंदगी बदल दी

प्राची बताती हैं, ‘‘लौकडाउन ने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया. कोरोना ने हमें सिखाया कि जिंदगी बहुत अनिश्चित है. जिंदगी में महत्त्वपूर्ण क्या है, इस बात को सम झना जरूरी है. हमें एंबिशियस होना चाहिए. काम करना भी जरूरी है. मगर जीवन में बैलेंस रखना भी बहुत जरूरी है. हम जिंदगी में बस दौड़े जा रहे थे. कंपीटीशन में उलझे हुए थे मगर हमें यह सम झना जरूरी है कि अपनों के साथ समय बिताना, खूबसूरत यादें सजाना और खुश रहना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. कोरोना ने मेरे सोचने का नजरिया बदला, मेरे जीने का तरीका बदला, यहां तक कि खुद को देखने का अंदाज भी बदल दिया. सच कहें तो लौकडाउन एक वरदान साबित हुआ. यही वो दौर था जिस ने मु झे मेरे अब तक के सब से बेहतर और सशक्त वर्जन के रूप में ढाला. कहते हैं, कभीकभी ठहराव में भी तरक्की छिपी होती है. और मेरे लिए वही ठहराव मेरी सब से बड़ी तरक्की बन गया.’’

फोटो : पीयूष तानपुरे
फोटो : पीयूष तानपुरे

भावुक करने वाले पल

कुछ लम्हें जिंदगी में ऐसे होते हैं जो हमेशा दिल में बस जाते हैं. प्राची बताती हैं कि उन के लिए ऐसे दो पल थे—

पहला जब उन्हें 2010 के कौमनवैल्थ गेम्स के लिए भारतीय टीम का कप्तान बनने का मौका मिला. उस पल की खुशी आज भी दिल में ताजा है. उन्होंने जब पापा को कौल कर के ये खबर सुनाई तो वो गर्व और खुशी के आंसू निकल आए. वह पल अमूल्य था.

दूसरा जब उन्होंने अपना पहला साउथ इंडियन फिल्म प्रोजैक्ट साइन किया— सुपरस्टार ममूटी के साथ. मुंबई के BKC में शूटिंग के बाद वो एग्रीमैंट साइन करना और फिर से पापा को कौल कर ये खुशखबरी देना ऐसा एहसास था जिस की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकती.

महिलाओं की ताकत

प्राची कहती हैं महिलाओं की सब से बड़ी ताकत है उन की भावनाएं और उन का इंटुइशन. ये 2 ऐसे हथियार हैं जिन्हें अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो एक औरत खुद के हितों की रक्षा करने के साथसाथ दुनिया को भी बेहतर बना सकती है. अगर एक औरत को अपनी जिंदगी के कुछ पहलुओं पर कंट्रोल मिल जाए तो वो अपनी भावनात्मक सम झ और ज्ञान के जरीए वो कर सकती है जो शायद कोई और नहीं कर पाए. कहते हैं, दिल की सुनो और दिमाग से चलो. औरतें यही तो करती हैं— दिल की सुन कर, दिमाग से रास्ता बनाती हैं. यही उन की असली शक्ति है. इस के अलावा समाज में स्त्रियों की स्थिति मजबूत करने के लिए जरूरी है कि स्त्रियां सेल्फ डिफेंस करना सीखें. वे शिक्षित हों और यहां के सिस्टम को दुरुस्त किया जाए ताकि लोग गलत करने से पहले 10 बार सोचें. लड़कियों को बाहर निकलने से पहले यह न सोचना पड़े कि कहीं कोई दुर्घटना न घट जाए.

Summer Skin Care Tips : शाइनी और रिच लुक के लिए चुनें ये सनस्क्रीन क्रीम

Summer Skin Care Tips : समर सीजन में घर से बाहर निकलना हो तो सब से पहले तेज धूप से स्किन को प्रोटैक्ट करने की चिंता सताने लगती है क्योंकि टैनिंग या फिर यूवी रेज से स्किन को जो प्रौब्लम्स होती हैं वे जल्दी ठीक नहीं होतीं. ऐसे में सनस्क्रीन से बेहतर औप्शन भला क्या हो सकता है. लेकिन क्या आप अपनी स्किन के लिए सही सनस्क्रीन इस्तेमाल कर रही हैं जो आप की त्वचा को हार्मफुल यूवी रेज से प्रोटैक्शन देने के साथसाथ उसे शाइनी और रिच लुक भी दे. और जिस में स्किन के लिए गुणों से भरपूर पपाया के बैनीफिट्स भी हों.

आइए, जानते हैं शाइनी और रिच लुक के साथ सन प्रोटैक्शन के लिए कैसी सनस्क्रीन चुनें:

एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन है बैस्ट

एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन हार्मफुल यूवी किरणों से आप की स्किन को 98त्न तक सुरक्षा देती है. इन किरणों की वजह से ही स्किन पर सनबर्न जैसी समस्या होती है. इतना ही नहीं यह आप को प्रीमैच्योर एजिंग की वजह से आने वाले रिंकल्स से भी प्रोटैक्ट करती है. यह स्किन प्रोटैक्शन देने के साथसाथ स्किन टैक्स्चर को भी इंप्रूव करती है जिस से स्किन शाइनी लुक देती है.

धूप में ज्यादा देर तक रहने से हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या भी हो जाती है जिस से स्किन टन इवन नहीं रह जाती. एसपीएफ 50 सनस्क्रीन इस से भी प्रोटैक्ट करती है.

पपाया के गुण

पपाया स्किन हैल्थ के लिए जरूरी गुणों से भरपूर है. इस में मौजूद ऐंजाइम और विटामिंस स्किन को हाइड्रेट रखने में मदद करते हैं. यह त्वचा को नैचुरली ऐक्सफोलिएट करता है जिस से त्वचा में निखार आता है. इस में पाया जाने वाला पपैन ऐंजाइम स्किन की डेड सैल्स को रिमूव करने में हैल्प करता है और वह खली हुई दिखती है. इतना ही नहीं इस में रिंकल्स को कम करने और पिंपल्स की रोकथाम के गुण भी होते हैं.

तो अब आप को धूप में बाहर निकलने से डरना नहीं पड़ेगा क्योंकि पपाया के गुणों से भरपूर एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन आप को पूरा सन प्रोटैक्शन देगी.

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